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अनुसन्धान - ५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग - १
ज्ञात कर कि मेरे पीछे राज्यधुरा का संचालन कुमारपाल करेंगे । वे यह नहीं चाहते थे कि कुमारपाल राज्य का अधिपति बने । अतएव कुमारपाल के मरण का अनेक बार प्रयोग किया गया । कुमारपाल भी मरणभय से इधरउधर भागते रहे । एक समय कुमारपाल हेमचन्द्र के सम्पर्क में आए, उनके लक्षण देखकर हेमचन्द्र ने यह निश्चय किया और कुमारपाल से कहा कि 'तुम इस प्रदेश के राजा बनोगे उस समय मुझे याद करना ।' सिद्धराज जयसिंह के भेजे हुए राज्यपुरुष कुमारपाल को ढूँढ़ते हुए खम्भात आ पहुँचे । उस समय हेमचन्द्र ने अपनी वसती के भूमिगृह में कुमारपाल को छिपा दिया और उसके द्वार को पुस्तकों से ढक कर उसके प्राण बचाए । कहा जाता है कि जब राजपुरुष हेमचन्द्र के पास पहुँचे और पूछा तो जवाब दिया कि तलघर में ढूंढ लो, राजपुरुषों ने सोचा कि वहाँ पुस्तकें ही पुस्तकें है इसीलिए वे लोग वापिस चले गए । मन्त्री उदयन और आचार्य हेमचन्द्र उसके संरक्षण का अनेक बार प्रयोग करते रहे । जयसिंह की मृत्यु के पश्चात् राजगद्दी का बखेड़ा भी प्रारम्भ हुआ किन्तु अन्त में संवत् १९९९ मार्ग शीर्ष कृष्णा चतुर्दशी को कुमारपाल का राज्याभिषेक हो गया । राज्य की उथल-पुथल और षड्यन्त्रकारियों से गुजरात को मुक्त करने में कुमारपाल ने सबल प्रयत्न किया और पूर्णतः से इसको मुक्त करवा दिया । राज्यव्यवस्था में अत्यन्त संलग्न होने के कारण हेमचन्द्र को भूल भी गए था ।
कुमारपाल प्रबन्ध, प्रबन्ध चिन्तामणि, पुरातन प्रबन्ध संग्रह कुमारपाल प्रबन्ध के अनुसार जिस समय कुमारपाल का राज्याभिषेक हुआ उस समय उसकी अवस्था ५० वर्ष ही होगी । इसका लाभ यह हुआ कि उसने अपने अनुभव और पुरुषार्थ द्वारा राज्य की सुदृढ़ व्यवस्था की । यद्यपि कुमारपाल सिद्धराज के समान विद्वान् नहीं था, तब भी राज्यप्रबन्ध के करने के पश्चात् धर्म तथा विद्या से प्रेम करने लगा था । कुमारपाल की राज्यप्राप्ति के संवाद सुनकर हेमचन्द्र कर्णावती से पाटण गए, तब मन्त्री उदयन से ज्ञात हुआ कि वह उन्हें बिल्कुल भूल चुका है। हेमचन्द्र ने उदयन से कहा कि 'आज आप राजा से कहें कि वह अपनी नई रानी के महल में न जावें । आज वहाँ उत्पात होगा ।' यह किसने कहा यह जानने की जिज्ञासा हो तो अत्यन्त