Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 16
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 430
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६ ४१५ ६८२२०. (#) नवपद पूजा, संपूर्ण, वि. १९१०, पौष शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. बालोतरानगर, पठ.पं. गुलाबविजय; प्रले. मु. कस्तुरसागर; अन्य. पं.सौभाग, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, १६x४०). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजीगणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: परम मंत्र प्रणमी करी; अंति: कोई नये न अधूरी रे, पूजा-९. ६८२२१. (#) आत्मनिंदा भावना व सीमंधरजिन पत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ७, कुल पे. २, प्र.वि. पत्र जीर्ण होने से पाठ अवाच्य है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १२४३२-३६). १. पे. नाम. आत्मनिंदा भावना, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, रा., गद्य, आदि: हे आत्मा हे चेतन ऐ; अंति: सो नर सुगुण प्रवीन. २.पे. नाम. सीमंधरजिन पत्र, पृ. ४अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. क. नर, मा.गु., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रीमहाविदेह; अंति: (-). ६८२२२. (#) अट्ठाई व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २१-१२(१ से १२)=९, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, १४४४१). अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: वंछित सिद्ध हुवै, (पू.वि. आर्द्रकुमार प्रसंग अपूर्ण से है.) ६८२२३. (+#) अष्टकर्मनी १५८ प्रकृति विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, १४४३०). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो ज्ञानावरणी कहइ; अंति: (-), (पू.वि. गोत्रकर्म अपूर्ण तक है.) ६८२२४. (+) स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२, १५४३६-३९). स्तवनचौवीसी, मु. हर्षचंद, मा.गु., पद्य, आदि: उठत प्रभात नाम जिनजी; अंति: हरखचंद० करौ दुखपीर, स्तवन-२४. ६८२२५. (#) अंतिम आराधना, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-२(१ से २)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२, ८४३०). अंतिम आराधना, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३२ अपूर्ण से ९४ अपूर्ण तक है.) ६८२२६. बालचंदबत्तीसी, संपूर्ण, वि. १९३८, मार्गशीर्ष शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. वडोदरा, प्रले.ऋ. मोतीचंद डुंगरशी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२, ११४३९-४२). अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद मुनि, पुहि., पद्य, वि. १६८५, आदि: अजर अमर पद परमेसरकुं; अंति: रंग मन आणिये, गाथा-३३. ६८२२७. पंचमीतप स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदे., (२५४१२, १२४३२-३७). __ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९३, आदि: सुत सिद्धारथ भूपनो; अंति: सकल भवि ___ मंगल करे, ढाल-६. ६८२२८. (+#) शांतिनाथ स्तोत्र व चोविसतिर्थंकर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ९४२५-२८). १. पे. नाम. शांतिनाथ स्तोत्र, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण.. शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारदमाय नमुं सिरनामी; अंति: मनवंछित शिवसुख पावे, गाथा-२१. २. पे. नाम. २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, पृ. ३अ-५आ, संपूर्ण. मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणमु; अंति: तास सीस पभणे आणंद, गाथा-२९. ६८२२९. अवंतीसुकमाल चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्रले. मु. नरसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १२४४५-४८). अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंति: शांतिहरष सुख पावेरे, ढाल-१३, गाथा-१०३. For Private and Personal Use Only

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