Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 16
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६ २१. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: नटवा थई मत नाचो राज, गाथा-४, (पू.वि. अंतिम गाथा अपूर्ण मात्र है.) २२. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १३अ, संपूर्ण.
मु. रतन, रा., पद्य, आदि: आंटो करमारोराज; अंति: रतन भणे० दल नाटो राज, पद-४. २३. पे. नाम. अध्यात्म पद, पृ. १३अ, संपूर्ण.
मु. कुशल, पुहिं., पद्य, आदि: चेतानंद मान कया मेरा; अंति: कुसल० निज आतम हेरा, गाथा-१०. २४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण.
मु. रामचंद्र, रा., पद्य, आदि: भवसागर में भटकत भटकत; अंति: रामचंद्र० पार उतारो, गाथा-१२. २५. पे. नाम. समवसरणमान स्तवन, पृ. १३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है., वि. प्रतिलेखक ने प्रथम गाथा नहीं लिखी है.) ६८३०४. (+#) आठ कर्म १५८ प्रकृति विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १३४२४). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: इहां सुशिष्य पूछै; अंति: (-), (पू.वि. नामकर्म की प्रकृति जस नामकर्म
अपूर्ण तक है.) ६८३०५. (+) चंदप्रबंध रास, पूर्ण, वि. १९४०, श्रेष्ठ, पृ. २२३-१(२०३*)+१(१०६)=२२३, ले.स्थल. लक्ष्मणापुरी,
प्रले. मु. गोकुलचंद्र ऋषि (गुरु आ. शांतिसागरसूरि, विजयगच्छ पूर्णिमापक्ष), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में बीजक लिखा है. ऋषभ मंदिरे., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२७४१३, १३४३९-४३). श्रीचंद्रकेवली रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७७०, आदि: सुखकर साहेब सेवीयें; अंति: थइ भणतां
मंगलमालाजी, उल्लास-४, गाथा-२३९५,ग्रं. ६९३९, (संपूर्ण, वि. ढाल १११) ६८३०६. समयक्त्वपरीक्षा सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८५९, पौष शुक्ल, १२, मंगलवार, मध्यम, पृ. १९७, ले.स्थल. लिंबडी,
प्रले.पं. क्षमावर्द्धन गणि (गुरु पं. धर्मवर्द्धन गणि); गुपि.पं. धर्मवर्द्धन गणि (गुरु पं. विवेकवर्द्धन गणि); पं. विवेकवर्द्धन गणि (गुरु पं. मेघवर्द्धन गणि); पं. मेघवर्द्धन गणि (गुरु पं. कल्याणवर्द्धन गणि); पं. कल्याणवर्द्धन गणि (गुरु पं. धीरवर्द्धन गणि); पं. धीरवर्द्धन गणि (गुरु पं. रिद्धिवर्द्धन); पं. रिद्धिवर्द्धन (गुरु उपा. रविवर्द्धन गणि); उपा. रविवर्द्धन गणि, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. द्विपाठ., प्र.ले.श्लो. (६११) यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा, (६१७) भग्नपृष्टि कटि ग्रीवा, जैदे., (२५४१३, १६४५३).
सम्यक्त्व स्वरूप, आ. विबुधविमलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य पार्श्वनाथेश; अंति: मिथ्यादुःकृतं मेस्तु. सम्यक्त्व स्वरूप-बालावबोध, आ. विबुधविमलसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १८१३, आदि: प्रणम्य कहेता प्रणा; अंति:
च्छामीदुक्कडं होज्यो. ६८३०७. (+#) चंद्रकेवली रास, संपूर्ण, वि. १७८२, माघ कृष्ण, १, रविवार, मध्यम, पृ. १६९, ले.स्थल. स्तंभ तीर्थ,
प्रले.ग. विनीतसोम (गुरु ग. गुणसोम); गुपि.ग. गुणसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में बीजक लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १७४४५-५०). श्रीचंद्रकेवली रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७७०, आदि: सुखकर साहिब सेवीइं; अंति: थइ भणतां
मंगलमालाजी, उल्लास-४, गाथा-२३९४, ग्रं. ६८३९, (वि. ढाल १११) ६८३०८. (+) चंदराजा की चौपई, संपूर्ण, वि. १९२३, वैशाख शुक्ल, २, मंगलवार, मध्यम, पृ. १२०, ले.स्थल. अजीमगंज, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६४१३, १३४३५-३८). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धराधव तिम; अंति: मोहनविजये० गुण चंदना,
उल्लास-४, गाथा-२७०१, (वि. ढाल १०८)
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