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पफल
कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची
जैन हस्तलिखित साहित्य (खंड-१.१.१६) KAILASA ŚRUTASAGARA GRANTHASUCI
Descriptive Catalogue of Jain Manuscripts (Vol. 1.1.16)
यह प्रमाण अणा ब्रह्मगांरादागम चदरिसीमिवमा वादमनगरावति।। गानामा डिएंडि गाव महावीर
आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमादर
मदर
कोबा तीर्थ
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เวลา
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श्रीयादी
M
रसना यातना
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आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न १६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची
(१.१.१६)
श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, ,कोबा तीर्थ संचालित
आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर
श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागार में संगृहीत हस्तलिखित ग्रंथों की विस्तृत सूची
• आशीर्वाद व प्रेरणा आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी
Savingers
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wyd a fren
प्रकाशक 6
श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ, गांधीनगर वीर सं. २५३९ ० वि.सं. २०६९ ० ई. २०१३
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आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न १६
Acarya Shri Kailasasagarasuri Smrti Granthasuci - Ratna 16
कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची : १.१.१६
Kailasa śrutasāgara Granthasūci : 1.1.16
● ग्रंथसूची निर्देशन समिति o
मुकेश एन. शाह (ट्रस्टी) श्रीपाल आर. शाह (ट्रस्टी) रजनीभाई एन. शाह (कारोबारी सदस्य) कनुभाई एल. शाह (नियामक)
● सह संपादक 0
पं. रामप्रकाश झा डॉ. हेमंत कुमार
पं. अरुण कुमार झा पं. गजेन्द्र पढियार
● संपादक मंडल O
पं. नवीनभाई वी. जैन
पं. संजयकुमार आर. झा
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● कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग ●
केतन डी. शाह
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● संपादन सहयोग ●
परबत ठाकोर
ब्रिजेश पटेल संजय गुर्जर दिलावरसिंह विहोल
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आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न १६
श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ संचालित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर स्थित
श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ
हस्तलिखितग्रंथानां विस्तृत सूची विभाग - १ : हस्तप्रत सूची - वर्ग - १ : जैन साहित्य
खंड - १६
आशीर्वाद व प्रेरणा 6 आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी
Descriptive Catalogue of Manuscripts
Preserved in Sri Dēvarddhigani Ksamāśramana Hastaprata Bhāndāgāra,
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under the auspices of Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth
Class - I: Jain Literature
Section -I: Manuscripts Catalogue
Volume - 16
o Blessings & Inspiration os Acharya Shri Padmasagarsurishwarji
Publishers
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth, Gandhinagar, (Guj.) India
2013
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Acharya Shri Kailasasagarsuri Memorial Catalogue Series - 16
Kailāsa Śrutasāgara Granthasūci
Descriptive Catalogue of Manuscripts - 1.1.16
Preserved in
Sri Devarddhigani Kṣamäśramaṇa Hastaprata Bhändägara,
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©: Publisher
Vir Samvat 2539, Vikram Samvat 2069, A.D. 2013
Edition: First
• प्रकाशन सौजन्य :
श्री विजय देवसूर संघ श्री गोडीजी महाराज जैन टेम्पल एन्ड चेरीटीज़, पायधुनी, मुंबई
Shri Vijay Devsur Sangh Shri Godiji Maharaj Jain Temple & Charities, Pydhonie, Mumbai
• Available at:
Shruta Sarita
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth
C Publisher:
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Koba Tirth, Gandhinagar 382007. (Guj.) INDIA
Tel: (079) 23276204, 23276205, 23276252, 30927001 Fax: 23276249
Web site: www.kobatirth.org E_mail: gyanmandir@kobatirth.org
O Price: Rs. 1500/
O ISBN:
81-89177-00-1 (Set)
978-81-89177-58-4 (Vol.16)
O Printer :
Navprabhat Printing Press, Ahmedabad
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* उपलक्ष
श्रुतोद्धारक आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. के ७९ वें जन्मोत्सव
के पुनीत प्रसंग पर
वि.सं. २०६९, भाद्रपद शुक्लपक्ष, एकादशी, रविवार, दि. १५-९-२०१३
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आचार्य
योगनिष्ठ आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी
श्री कीर्तिसागरसूरीश्वरजी
गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी
आचार्य श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी
आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी
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|| अहम् नमः ।। ॐ मंगल कामना
तीर्थंकरों की वाणी में सरस्वती का निवास है. श्री तीर्थंकर परमात्मा के श्रीमुख से निकली वाणी, जिसे गणधर भगवंतों ने सूत्ररूप में गुंफित किया है; ऐसे जिनागम की परंपरा को वाचना के द्वारा आज तक अविच्छिन्न रखनेवाले सभी आचार्य भगवंतों को वंदन. जिनागम को समर्पित नियुक्तिकार-भाष्यकार-चूर्णिकार-टीकाकार एवं ग्रंथों के प्रतिलेखक आदि श्रमण समूह का भी मैं ऋण स्वीकृतिपूर्वक पुण्य स्मरण करता हूँ.
अनेक जैन संघों, श्रेष्ठियों तथा यतिवर्ग ने आज तक जैन साहित्य का संग्रह-संरक्षण करके अनुमोदनीय कार्य किया है, वे सभी धन्यवाद के पात्र हैं. समय परिवर्तन के साथ परिस्थितिवश लोगों का गाँवों से शहर की ओर जाना प्रारंभ हुआ. यतिवर्ग भी लुप्तप्राय हुए. इन सभी कारणों से ग्रन्थभंडारों की स्थिति चिंतनीय बन गई. बहुत से ग्रन्थ विदेश जाने लगे, कुछ भंडार लोगों की उपेक्षा से नष्टप्राय होने लगे, ग्रन्थों की सुरक्षा भी एक समस्या बन गई. इन सब बातों को देखकर सर्वप्रथम सन् १९७४ में अहमदाबाद के चातुर्मास दौरान ग्रन्थ भंडारों को सुव्यवस्थित करने का मुझे विचार आया. परम श्रद्धेय आचार्य भगवंत श्रीमद् कैलाससागरसूरीश्वरजी म.सा. से इस विषय में चर्चा करके उनके मंगल आशीर्वाद से कार्य प्रारंभ करने का संकल्प किया. श्रेष्ठीवर्य स्व. कस्तुरभाई लालभाई आदि ने भी इस कार्य में सहयोग देने की भावना दर्शाई. सन १९७९ में श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र के नाम से कोबा में संस्था की स्थापना हुई. अनेक स्थानों व विविध प्रान्तों में विहार करके ग्रन्थों को संग्रह करने का कार्य प्रारंभ हुआ और धीरेधीरे संग्रह समृद्ध बनता गया.
आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर आज भारत का एक सुव्यवस्थित-समृद्ध ज्ञानभंडार है. प्राचीन प्रणाली को कायम रखते हुए भी इस ज्ञानमंदिर में आधुनिक साधनों का सुभग समन्वय हुआ है.
ज्ञानभंडार को व्यवस्थित करने के साथ-साथ इस सूची में समाविष्ट अधिकांश ग्रंथों की मूलसूची बनाने का जो भगीरथ कार्य मुनि श्री निर्वाणसागरजी ने किया है तथा इस कार्य के लिए योग्य मार्गदर्शन देकर पंन्यास श्री अजयसागरजी ने जो सहयोग दिया है, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता. अन्य मुनिराजों ने भी जो यथायोग्य बहुमूल्य सहयोग दिया है, उन सबकी मैं हार्दिक अनुमोदना करता हूँ. ज्ञानमंदिर के निदेशक श्री कनुभाई शाह की देखरेख में पंडितवर्ग ने जिस सूझ व धैर्य के साथ अस्तव्यस्त हस्तप्रतों को व्यवस्थित करने एवं प्रतों के बारीक अध्ययनपूर्वक अतिविवरणात्मक सूचीकरण के इस कार्य को उत्तरोत्तर गति प्रदान की, वह अपने आप में अनूठा व इतिहाससर्जक कार्य है. श्री नवीनभाई जैन, श्री संजयकुमार झा, श्री रामप्रकाश झा, डॉ. हेमंत कुमार, श्री अरुण कुमार झा, श्री गजेन्द्र पढियार आदि सभी पंडितवरों, प्रोग्रामर श्री केतनभाई शाह एवं सभी सहयोगी कार्यकर्ताओं को मेरा हार्दिक धन्यवाद है. ज्ञानमंदिर का कार्य सम्भालने वाले संस्था के ट्रस्टी श्री मुकेशभाई एन. शाह, श्री श्रीपालभाई आर. शाह एवं कारोबारी सदस्य श्री रजनीभाई एन. शाह आदि सभी को उनकी बहुमूल्य सेवाओं के लिए हार्दिक आशीर्वाद देता हूँ. अनेक श्रीसंघों, व्यक्तियों और जैन-जैनेतर लोगों ने भी इस कार्य में मुझे पूर्ण सहयोग दिया है, जिन्हें मैं धन्यवाद देता हूँ. ग्रन्थों के संरक्षण, सूचीकरण व प्रस्तुत १६वें खंड के प्रकाशन में आर्थिक सहयोग प्रदान करनेवाले श्री विजय देवसूर संघ श्री गोडीजी महाराज जैन टेम्पल एन्ड चेरीटीज़, पायधुनी, मुंबई एवं समस्त ट्रस्टीगण के प्रति भी धन्यवाद देता हूँ.
बड़ी संख्या में पूज्य साधु-साध्वीजी तथा विद्वान-शोधकर्ताओं द्वारा यहाँ के ग्रंथसंग्रह का सुंदर लाभ लिया जा रहा है, जो बड़ी ही प्रसन्नता का विषय है. इस ज्ञानभंडार के हस्तप्रतों की अपने-आप में विशिष्ट प्रकार के सूचीपत्र कैलास श्रुतसागर ग्रन्थसूची का १६वाँ खंड प्रकाशित होने जा रहा है, यह ज्ञानमंदिर के कार्य की सफलता का एक नया सोपान है. मुझे विश्वास है कि विश्वभर के विद्वद्जन इस ग्रंथसूची से महत्तम लाभान्वित होंगे. संस्था अपने विकासपथ पर उत्तरोत्तर आगे बढ़ती रहे, यही मेरी मंगल कामना है. पभसागर रि
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प्रकाशकीय
जिनेश्वरदेव चरम तीर्थंकर श्री महावीरस्वामी, श्रुतप्रवाहक पूज्य गणधर भगवंतों, योगनिष्ठ आचार्यदेव श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी तथा परम पूज्य गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी की दिव्यकृपा से परम पूज्य आचार्यदेव श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी के शिष्यप्रवर राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की प्रेरणा एवं कुशल निर्देशन में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखित जैन ग्रंथों की सूची के १६वें खंड को आंबावाडी जैनसंघ-अहमदाबाद की पुण्यमयी धरा पर परम पूज्य आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी के ७९वें जन्मदिन महोत्सव के पावन प्रसंग पर चतुर्विध श्रीसंघ के करकमलों में समर्पित करते हुए श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबातीर्थ परिवार अपार हर्ष की अनुभूति कर रहा है.
विश्व में बहुत से ग्रंथालय तथा ज्ञानभंडार हैं, किन्तु प्राचीन परम्पराओं के रक्षक ज्ञानतीर्थरूप आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में हस्तलिखित ग्रंथों का बेशुमार दुर्लभ खजाना पूज्य गुरुदेवश्री द्वारा भारत के कोने-कोने से एकत्र किया गया है. यह ज्ञानभंडार इस भूमंडल पर अब अपना उल्लेखनीय स्थान प्राप्त कर चुका है.
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हस्तप्रतों की संप्राप्ति, संरक्षण, विभागीकरण, सूचीकरण तथा रख-रखाव के इस कार्य व मार्गदर्शन में पूज्य आचार्यदेव के अधिकतर शिष्य-प्रशिष्यों का अपना योगदान रहा है. तपस्वी मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी ने हस्तप्रतों के सूचीकरण हेतु वर्षों तक अहर्निश भगीरथ परिश्रम किया है. इस सूचीकरण की अवधारणा को और विकसित करने में तथा कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग के कार्य में ग्रंथालय विज्ञान की प्रचलित प्रणालियों के स्थान पर महत्तम उपयोगिता व सूझबूझ का उपयोग करने में तथा समय-समय पर सहयोगी बनने हेतु पूज्य पंन्यास श्री अजयसागरजी तथा यहाँ के पंडितवर्यों, प्रोग्रामरों और कार्यकर्ताओं ने अपनी शक्तियों का यथासंभव महत्तम उपयोग किया है. इसी तरह पूज्य आचार्य भगवंत के अन्य विद्वान एवं प्रज्ञाशील शिष्यों का भी इस पूरी प्रक्रिया में विविध प्रकार का सहयोग प्राप्त होता रहा है, जिससे ज्ञानमंदिर की प्रवृत्तियों को विशेष बल एवं वेग मिलता रहा है. इस अवसर पर संस्था ज्ञात-अज्ञात सभी सहयोगियों व शुभेच्छुकों की अनुमोदना करते हुए हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करती है. सभी के मिलेजुले समर्पित सहयोग के बिना यह विशालकाय कार्य संभव नहीं था.
पंडितों के साथ करीब तीस कार्यकर्त्ताओं के माध्यम से, श्रीसंघ के व्यापक हितों से संबद्ध ज्ञानमंदिर की अनेकविध प्रवृत्तियों के संचालन के लिए निरंतर बड़ी मात्रा में धनराशि की आवश्यकता रहती है. किसी भी प्रकार के सरकारी या अन्य किसी भी अनुदान को न लेकर मात्र संघों व समाज की ओर से मिलनेवाले आर्थिक व अन्य सहयोग के द्वारा कार्यरत इस संस्था में हस्तप्रत सूचीकरण व संलग्न अन्य विविध प्रवृत्तियाँ निरंतर गतिशील रहती हैं. इस भगीरथ कार्य हेतु भारत व विदेश के श्रीसंघों, संस्थाओं व महानुभावों का भी आर्थिक सहयोग यदि नहीं मिल पाता तो इस कार्य को आगे बढ़ाना मुश्किल था. समस्त चतुर्विध संघ तथा संस्था के सभी शुभेच्छुकों को इस अवसर पर साभार- धन्यवाद दिया जाता है..
आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के श्रुतभक्ति के प्रत्येक कार्य में हमारे वर्तमान ट्रस्टीगण अत्यंत उत्सुक और गतिशील रहे हैं. विशेषतः ट्रस्टीवर्य श्री मुकेशभाई एन. शाह एवं श्री श्रीपालभाई आर. शाह तथा कारोबारी सदस्य श्री रजनीभाई एन. शाह का योगदान महत्वपूर्ण रहा है. तदुपरांत समय-समय पर तन-मन-धन से ज्ञानमंदिर का कार्यभार निर्वाह करनेवाले ट्रस्टीवर्य स्व. श्री शांतिलाल मोहनलाल शाह, स्व. श्री उदयनभाई आर. शाह श्री हेमंतभाई राणा, श्री सोहनलालजी एल. चौधरी, श्री चांदमलजी गोलिया, श्री किरीटभाई कोबावाला, श्री कल्पेशभाई जे. शाह, श्री गिरीशभाई वी. शाह एवं कारोबारी सदस्य श्री मोहितभाई शाह का भी ज्ञानमंदिर को आज की ऊँचाईयों तक पहुँचाने में जो सुंदर योगदान प्राप्त हुआ है, उसे इस अवसर पर याद किये बिना नहीं रहा जा सकता.
कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची - जैन हस्तलिखित साहित्य के इस १६वें खंड के वित्तीय सहयोग प्रदाता श्री विजय देवसूर संघ श्री गोडीजी महाराज जैन टेम्पल एन्ड चेरीटीज़, पायधुनी, मुंबई के प्रति संस्था कृतज्ञता व्यक्त करती है.
आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची के इस १६ वें रत्न का समाज में स्वागत किया जाएगा, ऐसा हमारा विश्वास है.
श्री सुधीरभाई यु. महेता श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र ट्रस्ट
ii
प्रमुख कोबातीर्थ, गांधीनगर
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|| શ્રી ગોડીજી પાર્શ્વનાથાય નમઃ ।।
પ.પૂ. રાષ્ટ્રસંત આચાર્ય ભગવંત શ્રી પદ્મસાગરસૂરીશ્વરજી મ.સા. આદિ ઠાણાના ગૌરવશાલી સાન્નિધ્યમાં સં. ૨૦૬૮ માં ઐતિહાસિક રીતે ઉજવાયેલ
શ્રીગોડીજી પાર્શ્વનાથ જિનાલયની દ્વિશતાબ્દી પર્વ નિમિત્તે
શુભેચ્છુક શ્રી વિજય દેવસૂર સંઘ
શ્રી ગોડીજી મહારાજ જૈન ટેમ્પલ એન્ડ ચેરીટીઝ વિજય વલ્લભ ચોક, પાયધુની, મુંબઈ-૪૦૦૦૦૩ ફોનઃ ૦૨૨-૨૩૪૬૩૧૫૬ | ૨૩૪૭૪૬૩૯
૧૨,
મુંબઈના સરતાહત શ્રી ગોડીજી મહાશ
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प्राक्कथन
कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची प्रकाशन के अविरत सिलसिले में परम श्रद्धेय राष्ट्रसन्त आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी के ७९वें जन्मदिन महोत्सव के पावन प्रसंग पर प्रकाशित हो रहे इस १६वें रत्न का प्रकाशन हमारे लिए गौरव की बात है.
प्रस्तुत भाग में संस्कृत, प्राकृत व देशी भाषाओं में आगमिक, धार्मिक, कर्मसिद्धान्त, साहित्य आदि व आयुर्वेद, ज्योतिष, वास्तु, सामुद्रिक, व्याकरण, न्यायदर्शन, छन्दोग्रंथादि, रास, कथा-चरित्रादि विषय विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं. कतिपय स्तवन-स्तोत्र, औपदेशिक-सुभाषित पद आदि की लघुकृतियाँ भी अपने कलेवर में विविध विषयों को समेटी हुई दृष्टिगोचर होंगी. छोटी से छोटी कृतियाँ भी महत्त्वपरक होने के कारण उन्हें निश्चय ही योग्य स्थान प्राप्त हुआ है. आगम व व्याख्या साहित्य की मूल, टीका, अवचूरि आदि महत्वपूर्ण कृतियाँ प्रचुर मात्रा में अप्रकाशित ज्ञात हो रही हैं, इनमें से अनेक विद्वानों की कृतियाँ तो बड़ी ही महत्वपूर्ण हैं.
हस्तप्रतों के वर्गीकरण से लेकर सूचीकरण तक का संपूर्ण कार्य बडा ही जटिल व कष्टसाध्य होता है, परंतु उनमें समाहित महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ, जो अद्यावधि विद्वद्वर्ग की नजरों से ओझल थीं, उन्हें आपके कर-कमलों में समर्पित करने का यह सुंदर परिणाम हमारे लिये अपार संतोषदायक सिद्ध हो रहा है.
इस सूचीपत्र में हस्तप्रत, कृति व विद्वान/व्यक्ति संबंधी जितनी भी सूचनाएँ समाविष्ट की गई हैं, उन सबका विस्तृत विवरण व टाइप सेटिंग सम्बन्धी सूचनाएँ भाग ७ के पृष्ठ vi एवं परिशिष्ट परिचय संबंधी सूचनाएँ भाग ७ के पृष्ठ ४५४ पर है. कृपया वहाँ पर देख लें. ___ जैन साहित्य एवं साहित्यकार कोश परियोजना के अन्तर्गत शक्यतम सभी जैन ग्रंथों व उनमें अन्तर्निहित कृतियों का कम्प्यूटर पर सूचीकरण करना; एक बहुत ही जटिल व महत्वाकांक्षी कार्य है. इस परियोजना की सबसे बड़ी विशेषता है, ग्रंथों की सूचना पद्धति. अन्य सभी ग्रंथालयों में अपनायी गई, मुख्यतः प्रकाशन और पुस्तक इन दो स्तरों पर ही आधारित द्विस्तरीय पद्धति के स्थान पर, यहाँ बहुस्तरीय सूचना पद्धति विकसित की गई है. इसे कृति, विद्वान, प्रत, प्रकाशन, सामयिक व पुरासामग्री; इस तरह छ: भागों में विभक्त कर बहुआयामी बनाया गया है. इसमें प्रत, पुस्तक, कृति, प्रकाशन, सामयिक व एक अंश में संग्रहालयगत पुरासामग्री; इन सभी का अपने-अपने स्थान पर महत्त्व कायम रखते हुए भी इन सूचनाओं को परस्पर संबद्धकर एकीकरण का कार्य कर दिया गया है.
प्रस्तुत सूची के पूर्व के सभी खंडों की तरह इस खंड में समाविष्ट अधिकांश प्रतों की मूल सूची तो श्रुतसेवी पूज्य मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी ने वर्षों की मेहनत से बनाई थी. उसी को आधार रखकर हमने यह संपादनकार्य किया है. मुनिश्री के हम चिरकृतज्ञ हैं. समग्र कार्य के दौरान श्रुतोद्धारक पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी तथा श्रुताराधक पूज्य पंन्यासप्रवर श्री अजयसागरजी की ओर से मिली प्रेरणा व मार्गदर्शन ने इस जटिल कार्य को करने में हमें सदा उत्साहित रखा है. साथ ही पूज्यश्री के अन्य शिष्य-प्रशिष्यों की ओर से भी हमें सदा सहयोग व मार्गदर्शन मिलता रहा है, जिसके लिए संपादक मंडल सदैव आभारी रहेगा. इस ग्रंथसूची के आधार से सूचना प्राप्त कर श्रमणसंघ व अन्य विद्वानों के द्वारा अनेक बहुमूल्य अप्रकाशित ग्रंथ प्रकाशित हो रहे हैं, यह जानकर हमारा उत्साह द्विगुणित हो जाता है; हमें अपना श्रम सार्थक प्रतीत होता है.
प्रतों की विविध प्रकार की प्राथमिक सूचनाएँ कम्प्यूटर पर प्रविष्ट करने एवं प्रत विभाग में विविध प्रकार से सहयोग करने व त्वरा से संदर्भ पुस्तकें तथा प्रतें उपलब्ध कराने हेतु आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के सभी कार्यकर्ताओं को हार्दिक धन्यवाद.
सूचीकरण का यह कार्य पर्याप्त सावधानीपूर्वक किया गया है, फिर भी जटिलता एवं अनेक मर्यादाओं के कारण क्वचित् भूलें रह भी गई होंगी. इन भूलों के लिए व जिनाज्ञा विरुद्ध किसी भी तरह की प्रस्तुति के लिए हम त्रिविध मिच्छामि दुक्कडं देते हैं. विद्वानों से करबद्ध आग्रह है कि इस प्रकाशन में रह गई भूलों की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करें एवं इसे और अधिक बेहतर बनाने हेतु अपने सुझाव अवश्य भेजें, ताकि अगली आवृत्ति व अगले भागों में यथोचित सुधार किए जा सकें.
- संपादक मंडल
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अनुक्रमणिका
मंगलकामना.. प्रकाशकीय .........
...........................||
प्राक्क
थन ..................................................................................
.............................
अनुक्रमणिका ................. ...........................................................................IV प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेप व संकेत ....................
....... v-vi हस्तप्रत सूचीकरण सहयोग सौजन्य एवं सादर ग्रंथ समर्पण
........vii-viii हस्तप्रत सूची
........१-४७४ परिशिष्ट : कृति परिवार अनुसार प्रत-पेटाकृति अनुक्रम संख्या....................... ४७५-५९६ १. संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति। क्रमांक सूची परिशिष्ट - १ ................
...४७५-५१२ २. देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ ......
..५१३-५९६
इस सूचीपत्र में हस्तप्रत, कृति व विद्वान/व्यक्ति संबंधी जितनी भी सूचनाएँ समाविष्ट की गई हैं, उन सबका विस्तृत विवरण व टाइप सेटिंग संबंधी सूचनाएँ भाग ७ के पृष्ठ vi एवं परिशिष्ट परिचय संबंधी सूचनाएँ भाग ७ के पृष्ठ ४५४ पर हैं. कृपया वहाँ पर देख लें.
प्रस्तुत खंड १६ में निम्नलिखित संख्या में सूचनाओं का संग्रह है. 0 प्रत क्रमांक - ६२९४१ से ६८४५१ 0 इस सूचीपत्र में मात्र जैन कृतियों वाली प्रतों का ही समावेश किए जाने के कारण वास्तविक रूप से २१९५
प्रतों की सूचनाओं का समावेश इस खंड में हुआ है. ० समाविष्ट प्रतों में कुल ३७२५ कृति परिवारों का समावेश हुआ है. ० इन परिवारों की कुल ४२१६ कृतियों का इस सूची में समावेश हुआ है. ० सूची में उपरोक्त कृतियों कुल ६६३१ बार आई हैं.
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प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेप व संकेत
........
..........
(+)
#.....
........... कृति पार
कृति नाम के अंत में विभिन्न अज्ञात विद्वान कर्तृक, अनेक अस्थिर टबार्थ व श्लोक संग्रह जैसी समान कृतियों के समुच्चय रूप या फुटकर कृति दर्शक संकेत. कृति/प्रत/पेटांक नाम के बीच : का, की, के, इत्यादि विभक्ति सूचक. प्रत क्रमांक के अंत में छोटे उर्ध्वाक्षरों में - दुर्वाच्य, अवाच्य, अशुद्ध पाठ - सूचक. ..प्रत क्रमांक के अंत में छोटे उर्ध्वाक्षरों में - प्रत की महत्ता सूचक. - इस हेतु प्र.वि. में निम्न सूचनाएँ हो सकती हैं. कर्ता-कर्ता के शिष्य-प्रसिद्ध व्यक्ति द्वारा लिखित, रचना के समीपवर्ती काल में लिखित, संशोधित - शुद्धप्राय - टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पाठ में सुगमता हेतु विविध प्रकार के चिह्नयुक्त प्रत, यथा- अन्वय दर्शक अंक युक्त, पदच्छेद - संधि सूचक - वचन विभक्ति - क्रियापदसूचक चिह्न आदि वाली प्रत. कृति नाम के बाद प्रयुक्त होने पर संयुक्त कृति की पहचान - यथा आवश्यकसूत्र सह नियुक्ति, भाष्य व तीनों की लघुवृत्ति. प्रत क्रमांक के अंत में छोटे उर्ध्वाक्षरों में प्रत की अवदशा, पाठ नष्ट हो जाने से प्रत की उपयोगिता में कमी का सूचक. इस हेतु प्र.वि. में निम्न सूचनाएँ हो सकती हैं. मूल पाठ का, टीकादि का, मूल व टीका का, टिप्पणक का अंश नष्ट है. अक्षर फीके पड़ गये हैं, मिट गये हैं, पन्नों पर आमने-सामने छप गये हैं. अक्षर की स्याही फैल गई है. पत्र जीर्णतावश नष्ट होने लगे हैं, हो गये हैं.
. कृति परिशिष्टों में प्रत क्रमांक के अंत में उर्ध्वाक्षरों से प्रत की अपूर्णता सूचक. अपूर्ण, त्रुटक, प्रतिअपूर्ण हेतु. (--)............आदिवाक्य अनुपलब्ध. अप.............अपभ्रंश (कृति भाषा)
अंतिमवाक्य (कृतिमाहिती) आ. ......... आचार्य (विद्वान स्वरूप) आदिः........ आदिवाक्य (कृतिमाहिती) उप. ............ प्रत प्रतिलेखन उपदेशक. (प्र. ले. पु. विद्वान) उपा......... उपाध्याय (विद्वान स्वरूप) ऋ. ......... ऋषि (विद्वान स्वरूप) क........... कवि (विद्वान स्वरूप) कुं..............कुंडली (कृति स्वरूप) कुल ग्रं........ मूल व टीका आदि का संयुक्तरूप से सर्वग्रंथाग्र परिमाण - प्रत व पेटाकृति विशेष में. कुल पे......... कुल पेटाकृति (प्रतमाहिती स्तर) क्रीत............ प्रत को खरीदनेवाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) को.............. कोष्टक (कृति स्वरूप) ग........... गणि (विद्वान स्वरूप) गडी............गडी किए हुए पत्रों वाली प्रत. गद्य............. गद्यबद्ध (कृति प्रकार) गा.............. गाथा (कृति परिमाण) गु. .............गुजराती (कृति भाषा) गुटका ........बंधे पत्रों वाली प्रत. (प्रतमाहिती स्तर)
तिः
........
आतमपाप
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गृही.
गृहीत. आदान-प्रदान में प्रत को प्राप्त करने वाला (प्र. ले. पु. विद्वान)
गोल ............ गोल कुंडलाकार प्रत. (प्रतमाहिती स्तर)
....... ग्रंथाग्र (कृति परिमाण)
. जैन कृति (कृति परिशिष्ट) जै.क. ..... जैन कवि (विद्वान स्वरूप ) जै.............. जैन देवनागरी (प्रत लिपि)
ते ..........
दत्त.
ग्रं.
जै.
दि.
བླ བ འ །ཆ
देना.
पठ.
प+ग
पद्य. पा...... पु. हिं..
पू. वि.
पूर्व.
पृ.
पे.
ये वि
को
........... पद्य व गद्य संयुक्त (कृति प्रकार )
. पद्यबद्ध (कृति प्रकार )
पाठक (विद्वान स्वरूप )
नाम.
प्रा.. प्रे.
जैन श्वेतांबर तेरापंथी कृति (कृति परिशिष्ट) आदान-प्रदान में प्रत देनेवाला (प्र. ले. पु. विद्वान )
. जैन दिगंबर कृति. (कृति परिशिष्ट )
. देवनागरी (प्रत लिपि)
पै............. प्र. वि.
प्रले.
. पंजाबी (कृति भाषा )
पंन्यास, पंडित (विद्वान स्वरूप )
..........
पठनार्थ जिसके पढ़ने हेतु प्रत लिखी या लिखवाई गई हो. (प्र. ले. पु. विद्वान )
पेटाकृति नाम -पेटाकृति विशेष
पैशाची प्राकृत (कृति भाषा )
प्रत विशेष.
. प्रतिलेखक, लहिया, (प्रतिलेखन पुष्पिका. प्रत, पेटाकृति, कृति माहिती स्तर पर .)
प्र. ले. पु..... प्रतिलेखन पुष्पिका की (प्रत/पेटाकृति / कृति स्तर) (सामान्य मध्यम आदि उपलब्धता सूचक.)
प्र. ले. श्लो..... प्रत, पेटाकृति व कृति हेतु प्रतिलेखक द्वारा लिखित प्रतिलेखन श्लोक ( जलात् रक्षेत्... इत्यादि)
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. पुरानी हिंदी (कृति भाषा )
. पूर्णता विशेष (प्रतमाहिती, पेटाकृति माहिती व कृतिमाहिती स्तर)
. कृतिमाहिती में वर्ष प्रकार सूचक 'वि.' 'श.' आदि के बाद संवत् प्रवर्तन के पूर्व का वर्ष दर्शक.
- पृष्ठ सूचना (प्रत माहिती स्तर पर व पेटाकृति स्तर पर )
"
-
प्राकृत (कृति भाषा)
. प्रतलेखन प्रेरक (प्र. ले. पु. विद्वान )
vi
बौ.............. बौद्ध कृति (कृति परिशिष्ट) .मराठी (कृति भाषा )
. महाराष्ट्री प्राकृत (कृति भाषा ) .मागधी प्राकृत (कृति भाषा )
म.
महा.
मा.
मा.
मु.
मु.
मृपू.
यं.
रा.
वा.
******.
वि..
गु.
रा..............राजस्थानी (कृति भाषा )
राज्यकाल .... जिस राजा के राज्य शासनकाल में प्रत लिखी गई हो. राज्ये.......... जिस आचार्य के गच्छनायकत्व काल में प्रत का लेखन हुआ हो.
लिख.
. प्रत लिखवाने वाला. (प्र. ले. पु. विद्वान ) ले. स्थल...... लेखन स्थल (प्रतिलेखन पुष्पिका) वाचक (विद्वान स्वरूप )
. विक्रम संवत् (वर्ष माहिती) (प्रे. ले. पु., कृति रचना वर्ष)
श.
विक्र .............. विक्रेता प्रत का. (प्र. ले. पु. विद्वान) वी..
वै.
व्याप.
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.. वैदिक कृति. (कृति परिशिष्ट )
. व्याख्याने पठित -विद्वान द्वारा. (प्र. ले. पु. विद्वान)
शक संवत् (वर्ष माहिती प्र. ले. पु. कृति रचना वर्ष )
श्रावक (विद्वान स्वरूप )
श्राविका (विद्वान स्वरूप)
श्रु.. श्रोता द्वारा व्याख्यान में श्रुत. (प्र. ले. पु. विद्वान)
श्वे.
जैन श्वेतांबर कृति (कृति परिशिष्ट )
सं.
सम.
श्राव.
श्रावि.
. मारुगुर्जर (कृति भाषा )
मुनि (विद्वान स्वरूप)
. मुस्लिम धर्म (कृति परिशिष्ट)
. जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक कृति (कृति परिशिष्ट)
. यंत्र (कृति स्वरूप)
राजा (विद्वान स्वरूप)
*****..
सा.
स्था.....
हिं.
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वर्ष संख्या के पूर्व होने पर 'वीर संवत' यथा वी. २००० वर्ष संख्या पश्चात् होने पर 'वी सदी'. यथा- ८ वी सदी. (७१०-८००) (प्र. ले.. पु., कृति रचना वर्ष)
-
संस्कृत (कृति भाषा)
समर्पक ज्ञानभंडार को प्रत समर्पित करनेवाला. (प्र. ले. पु. विद्वान )
साध्वीजी (विद्वान स्वरूप)
. जैन श्वेतांबर स्थानकवासी (कृति परिशिष्ट) . हिंदी (कृति भाषा )
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० सुकृत के सहभागी ० हस्तप्रत सुचीकरण में विशिष्ट आर्थिक सहयोगियों की नामावली
अमेरिका
मुंबई
१. शेठ आणंदजी कल्याणजी (धार्मिक धर्मादा ट्रस्ट).|| १३. फेडरेशन ऑफ जैन एसोसिएसन इन नॉर्थ अमेरिका, पालडी
अहमदाबाद
| "जैना" हस्ते डॉ. प्रेमचंदजी गडा २. श्री शांतिलाल भुदरमल अदाणी परिवार,अहमदाबाद || १४. श्री एम. जे. फाउन्डेशन ३. बाबु श्री अमीचंद पन्नालाल आदीश्वर ट्रस्ट, वालकेश्वर|| १५. श्री कल्याण पार्श्वनाथ जैन संघ, चौपाटी मुंबई
मंबई || १६. श्री सांताक्रुज जैन तपगच्छ संघ, श्री कुंथुनाथ जैन ४. शेठ श्री झवेरचंद प्रतापचंद सुपार्श्वनाथ जैन संघ,|| नाश जैन संघ देरासर मार्ग, सांताक्रुज (वे.)
मुंबई वालकेश्वर
लिई || १७. श्री महावीर जैन श्वे. मू. पू. संघ, पालडी अहमदाबाद ५. श्री प्लेजेंट पैलेस जैनसंघ
१८. श्री श्वे. मू. पू. जैन संघ, नानपुरा, सुरत ६. श्री गोवालिया टैंक जैनसंघ
मुंबई
| १९. श्री आंबावाडी मू. पू. जैन संघ अहमदाबाद ७. श्री प्रेमलभाई कापडिया
मुंबई
२०. श्री चिंतामणी पार्श्वनाथ श्वे. मू. पू. जैन संघ, आरे रोड, गोरेगाँव
मुंबई ८. श्री जवाहरनगर जैन श्वे. मू. पू. जैन संघ, गोरेगांव
| २१. श्री राजस्थान जैन श्वे. मू. पू. संघ, जयनगर, बेंग्लोर
२२. श्री आदिनाथ जैन श्वे. मंदिर ट्रस्ट, चिकपेट,बेंग्लोर ९. जैन सेन्टर ऑफ नॉर्दर्न केलिफोर्निया अमेरिका
२३. श्री महुडी जैन श्वे. मू. पू. ट्रस्ट, महुडी १०. श्री श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन बोर्डिंग अहमदाबाद
२४. श्री गोडीजी महाराज जैन टेम्पल एन्ड चेरीटीज़, मुंबई ११. श्री शंभुकुमार कासलीवाल
मुंबई
२५. श्री जुहु स्कीम जैन संघ, विलेपार्ले (वे.) मुंबई १२. शेठ मोतीशा जैन रिलीजियस एन्ड चेरीटेबल ट्रस्ट
२६. श्री शांतिनाथ देरासर जैन पेढी, श्री शंखे. पार्श्व., बावन
जिनालय, देवचंदनगर रोड, भायंदर (वे.) थाणा मुंबई
मुंबई
मुंबई
हस्तप्रत सूचीकरण में आर्थिक सहयोगियों की नामावली
//
रोड
१. श्रीमद् यशोविजयजी जैन संस्कृत पाठशाला, श्री जैन || १०. प. पू. आचार्यदेव श्री जगच्चन्द्रसूरीश्वरजी महाराज की श्रेयस्कर मंडल
महेसाणा || प्रेरणा से श्री सिद्धगिरि महातीर्थ चातुर्मास आराधना हेतु २. श्री अर्बुद गिरिराज जैन श्वे. तपागच्छ उपाश्रय ट्रस्ट
।। श्री बेतालीस के विशा श्रीमाली जैन ज्ञाति मंडल मुंबई इन्दौर
|| ११. श्री आदिनाथ सोसायटी जैन टेम्पल ट्रस्ट, पूना-सातारा ४. शेठ श्री शायरचंदजी नाहर मुंबई
पूना ५. श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ जैन देरासर ट्रस्ट, पालडी
|| १२. श्री बिरला एकेडेमी ऑफ आर्ट एन्ड कल्चर
कोलकाता अहमदाबाद
|| १३. दक्षिण-पावापुरी तीर्थ, चंद्रप्रभु जैन सेवामंडल ट्रस्ट ६. संघवी श्री पुखराजजी हंजारीमलजी दांतेवाडीया
चेन्नई मांडवला चेन्नई
१४. श्री जवाहर जैन श्वे. मू. संघ, गौरेगाँव मुंबई (वे.) ७. श्री रांदेर रोड जैनसंघ श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ जैन |
| १५. श्री सोहनराज सिंघवी
कोलकाता देरासर, रांदेर रोड
सुरत ८. श्री जिन आराधक मंडल, कांदीवली ९. श्री जयेशभाई हिरजीभाई शाह, नरीमान प्वाइंट मुंबई
vii
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(० सुकृत के सहभागी
हस्तप्रत सूचीकरण में १ से १६ भाग के आर्थिक सहयोगियों की नामावली १. रमेशकुमार चोथमलजी, तारादेवी रमेशकुमार & सन्स || ९. शेठ श्री आणंदजी कल्याणजी पेढी अहमदाबाद २. श्री जैन श्वेतांबर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर || १०. श्री भवानीपुर मूर्तिपूजक जैन श्वेताम्बर संघ कोलकाता ३. घाणेराव (राजस्थान) निवासी श्रीमती मोहिनीबाई एस.|| ११. श्रीमती तारादेवी हरखचंदजी कांकरिया परिवार | देवराजजी जैन चेन्नई |
कोलकाता ४. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर || १२. श्री सांताक्रुज जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ मुंबई ५. मांडवला (राज.) निवासी संघवी मुथा मोहनलालजी|| १३-१४. डॉ. विनय के. जैन - प्रेसीडेन्ट (जीवदया फाउन्डेशन), | रघुनाथमलजी सोनवाडीया परिवार चेन्नई
यु.एस.ए. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ, मेवानगर || १५ पोत श्री संवेगभार्ट लालभार्ट परिवार अ ७. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पाश्वनाथ तीर्थ मेवानगर || १६. श्री विजय देवसूर संघ श्री गोडीजी महाराज जैन टेम्पल ८. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर
एन्ड चेरीटीझ, पायधुनी,
मुंबई
हस्तप्रत सूचीकरण में भविष्य के आर्थिक सहयोगियों की नामावली
१. शेठ श्री संवेगभाई लालभाई, अहमदाबाद २. शेठ श्री रसिकलाल धारीवाल (माणिकचंद ग्रुप) पूना, मुंबई ३. शेठ श्री रमेशभाई लुंकड भीनमाल, पवनबेन लुंकड, भीनमाल, मुंबई ४. श्री गोडीजी महाराज जैन टेम्पल एन्ड ट्रस्ट, पायधुनी-मुंबई ५. शेठ श्री चंद्रप्रकाशजी अग्रवाल, कायमगंज ६. श्री बावन जिनालय, भायंदर-मुंबई ७. शेठ श्री देवीचंद विकासकुमार अनिलकुमार चोपडा (बच्छराज डेवलोपर्स) मुंबई ८. शेठ श्री शांतिलाल लल्लुभाई शाह - ह. भरतभाई शाह, वालकेश्वर-मुंबई ९. शेठ श्री सोहनराजजी सिंघवी, कोलकाता १०. श्री सायन जैन संघ, शीव-मुंबई
* सादर समर्पण
कल्याणस्वरूप तीर्थंकरों द्वारा स्थापित श्रमणप्रधान चतुर्विध श्रीसंघ के
कर कमलों में...
जिनके द्वारा यह श्रुत परंपरा अक्षुण्ण रही.
०००
viji
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॥ श्री महावीराय नमः॥ ॥श्री बुद्धि-कीर्ति-कैलास-सुबोध-मनोहर-कल्याण-पद्मसागरसूरि सद्गुरुभ्यो नमः॥
कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
६२९४१. नवस्मरण व लघुशांति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-१(१७)=१७, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४१०.५, १०४३५-३८). १.पे. नाम. नवस्मरण, पृ. १आ-१८अ, पूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: जैनं जयति शासनं, स्मरण-९, (पू.वि. बृहद्
शांतिस्तोत्र का पाठ "पसमनायशांति" तक व "सर्वमंगलमांगल्यं" से है.) २. पे. नाम. लघुशांति, पृ. १८अ-१८आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है.
आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१६ अपूर्ण तक है.) ६२९४२. (+) विजयचंदकेवली चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २१-२(१ से २)=१९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १७४५६-६१). विजयचंद्रकेवली चरित्र, मु. चंद्रप्रभ महत्तर, प्रा., पद्य, वि. ११२७, आदि: (-); अंति: चरियं सिरिविजयचंदस्स,
कथा-८, (पू.वि. गाथा ८३ अपूर्ण से है.) ६२९४३. (+#) कर्मग्रंथ २ से ६, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १८-४(१ से ४)=१४, कुल पे. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक
लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४४५-५०). १. पे. नाम. कर्मस्तव कर्मग्रंथ, पृ. ५अ६अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: (-); अंति: वंदियं नमहं तं वीरं, गाथा-३४,
(पू.वि. गाथा ९ से है.) २. पे. नाम. बंधस्वामित्व कर्मग्रंथ, पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: देविंदसूरि०
सोडे, गाथा-२४. ३. पे. नाम. षडशीति कर्मग्रंथ, पृ. ७अ-१०आ, संपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिअजिणं जिअ१ मग्गण; अंति: लिहियो
देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. ४. पे. नाम. शतक कर्मग्रंथ, पृ. १०आ-१४आ, संपूर्ण. शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिअजिणं धुवबंधोदय; अंति:
देविंदसूरि०आयसरणट्ठा, गाथा-१००. ५. पे. नाम. सप्ततिका कर्मग्रंथ, पृ. १४आ-१६आ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: एगूणा होइ नउईउ, गाथा-९०. ६२९४४. (+#) योग विधि, संपूर्ण, वि. १७२५, मार्गशीर्ष कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. संजेतनगर, प्रले. पंन्या. हस्तिविजय (गुरु
पं. भीमविजय, तपगच्छ); गुपि.पं. भीमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १६४२५-२८).
योग विधि, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: आवश्यकयोगे वग्धारितं; अंति: दिन एक पूर्णिमा दिने. ६२९४५. (+) विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक
लकीरें., जैदे., (२५४११, १९४५८-६४). १.पे. नाम. पंचमांग तपविधि, पृ. १अ-१६अ, संपूर्ण.
योग विधि-खरतरगच्छीय, मु. शिवनिधान, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: हर्षसार गुरुचरणद्वय; अंति: कल्याणमस्तु सदा.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. दीक्षा विधि, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण, वि. १७७२, फाल्गुन शुक्ल, १, सोमवार, ले.स्थल. फलवर्धिका,
प्रले. पं. रूपचंद (गुरु पं. दयासिंह, बृहत्खरतरगच्छ); गुपि.पं. दयासिंह (गुरु मु. सुखवर्धन, बृहत्खरतरगच्छ); मु. सुखवर्धन (बृहत्खरतरगच्छ); पठ. मु. जिनहर्ष (गुरु मु. शातिहर्ष, बृहत्खरतरगच्छ); गुपि.मु.शातिहर्ष (बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१०१०) यादृशं पुस्तकं दृष्टं.
दीक्षा विधि-विधिमार्गप्रपानुसारी, प्रा.,सं., गद्य, आदि: संध्यायां चारित्र; अंति: वास ९ उस्सगो १०. ३. पे. नाम. तपग्रहणविधि संग्रह, पृ. १७अ-१८अ, संपूर्ण.
प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: एउण पडलेहण थया; अंति: गाथा कही साधु जीमै. ६२९४६. (+#) प्रकीर्णक संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल
गयी है, जैदे., (२६.५४११, ११४३४-३७). १.पे. नाम. आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने कृति नाम "मरणसमाहिपइण्णय" लिखा
ग. वीरभद्र, प्रा., प+ग., वि. ११वी, आदि: देसिक्कदेसविरओ; अंति: खयं सव्वदुक्खाणं, गाथा-६७. २. पे. नाम. भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक, पृ. ४आ-१२आ, संपूर्ण.
ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण महासयं महाणुभा; अंति: सासय सुखं लहइ सुक्खं, गाथा-१७२. ३.पे. नाम. संस्तारक प्रकीर्णक, पृ. १२आ-१६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
___ ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: काऊण नमुक्कारं जिणवर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१०३ अपूर्ण तक है.) ६२९४७. (+#) स्तोत्र व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों
की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ११४४०-४५). १.पे. नाम. संतिकरं स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं जग; अंति: सिद्धी भणइ सिसो, गाथा-१४. २.पे. नाम. भयहर स्तोत्र, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण.
नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणयसुरगण; अंति: परमपयत्थं फुडं पास, गाथा-२३. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २आ-५अ, संपूर्ण. जयतिहअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंति: अभयदेव०
आणदिअ, गाथा-३०. ४. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ५अ-७आ, संपूर्ण.
आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ५. पे. नाम. अजितशांति स्तवन, पृ. ७आ-१०आ, संपूर्ण. अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअसव्वभयं संत; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह,
गाथा-४०. ६. पे. नाम. लघुशांति, पृ. १०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-९ अपूर्ण तक है.) ६२९४८. आनंदश्रावक संधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११, १२४२६-३५).
आनंदश्रावक संधि, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि: वर्द्धमानजिनवर चरण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३६
तक है.) ६२९४९. (+) सप्तस्मरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, ११४३७-४५).
सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअसव्वभयं; अंति: भवे भवे पास
जिणचंद, स्मरण-७. ६२९५०. (#) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, पठ.मु. पुनमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल
गयी है, जैदे., (२३.५४११, ७४२२).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ६२९५१. (+) तेजसारनृप कथा, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १६४५६).
तेजसारनृप कथा, प्रा., गद्य, आदि: जिणबिंबाणं पुरउ दीवं; अंति: ओ दिणो भत्तीइ वरदीवो. ६२९५२. (+) उपधान विधि, संपूर्ण, वि. १६४३, पौष कृष्ण, १, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. नविननगर, प्रले. ग. तेजविजय (गुरु आ. हीरविजयसूरि); गुपि. आ. हीरविजयसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १४४३१).
व्रतोच्चार विधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: इर्यापथिकी प्रतिक्रम; अंति: दितायां भवति नान्यथा. ६२९५३. (+) वाग्भटालंकार सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. २, ले.स्थल. तिमिरीनगर,
प्रले.पं. पुण्यनिधान (गुरु उपा. विमलउदय); गुपि. उपा. विमलउदय (गुरु ग. अनंतहंस, खरतरगच्छ-सागरचंद्रसूरिशाखा); पठ. मु. उदयनिधान, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-पंचपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३५-४५). १.पे. नाम. वाग्भट्टालंकार सह अवचूरि, पृ. १आ-११आ, संपूर्ण. वाग्भटालंकार, जै.क. वाग्भट्ट, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: श्रियं दिशतु; अंति: सारस्वतध्यायिनः, परिच्छेद-५,
(वि. १६८२, संवन्नेत्राष्टाग्निभूवनंदुमिते, श्रावण शुक्ल, १५) वाग्भटालंकार-टीका, ग. सिंहदेव, सं., गद्य, आदि: श्रीनाभेयजिनो; अंति: सुगमानि, (वि. १६८२, कार्तिक कृष्ण, १३,
बुधवार, प्रले. मु. उदयनिधान, प्र.ले.पु. सामान्य) २. पे. नाम. षट्रस दृष्टांत श्लोक, पृ. ११आ, संपूर्ण.
सुभाषित श्लोक संग्रह *, सं., पद्य, आदि: लाटी हास्यरसै प्रयोग; अंति: मुहुर र्भाषणं कुरुते, श्लोक-३. ६२९५४. (+) भक्तामर व कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६४८-१६४९, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. २,
ले.स्थल. कटीग्राम, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., जैदे., (२६४११, ७४३०-३५). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र सह अवचूरि, पृ. १आ-७अ, संपूर्ण, वि. १६४८, वैशाख कृष्ण, ११, प्रले. मु. भाणजय (गुरु
पं. देवजय गणि); गुपि.पं. देवजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीभक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपिति लक्ष्मीः , श्लोक-४४,
प्र.ले.पु. सामान्य. भक्तामर स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: किल इति सत्ये अहमपि; अंति: प्रतिष्ठा जयलक्ष्मी. २. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह बालावबोध, पृ. ७अ-१२आ, संपूर्ण, वि. १६४९, आश्विन शुक्ल, ५, शनिवार,
ले.स्थल. कटीग्राम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: मोक्ष प्रपद्यते,
श्लोक-४४.
कल्याणमंदिर स्तोत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: किल इति संभावनायां; अंति: प्रभाश्वर झलहलती छइ. ६२९५५. (+) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४११, ४४२५). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुदाइ सूअसमुदाउ,
गाथा-५१.
जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: भुवन जे त्रिभुवन; अंति: ते माहिथी उद्धर्यो. ६२९५६. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४२-१२९(१ से १२९)=१३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१०.५, ५४४०-४२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन- ३१ गाथा-१० अपूर्ण से
अध्ययन- ३२ गाथा- १०८ तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६२९५७. (+) चंपकश्रेष्टि कथा, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले. मु. चंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १५४४९).
चंपकश्रेष्ठि कथा, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: चंपानगरी सैगंधिकगाधि; अंति: मोक्षं यास्यति. ६२९५८. (+) श्रावकाराधना, संपूर्ण, वि. १७८३, माघ शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. बीकानेर, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३४).
श्रावकाराधना, सं., प+ग., आदि: श्रीसर्वज्ञ प्रपंपण; अंति: जैन जयति शासनं. ६२९५९. (#) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५६-४५(१ से ४२,४५ से ४६,५३)=११, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १०४३०).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश हैं.) ६२९६१. (+) कल्पसूत्रकल्पलताटीका-साधुसमाचारी, संपूर्ण, वि. १८२६, वैशाख कृष्ण, ३, सोमवार, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १४४५०).
कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६२९६२. (+) वास्तुसार प्रकरण व प्रतिष्टासार संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. २, प्र.वि. उपयोगी यंत्र सहित.,
टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, १७४५८-६३). १. पे. नाम. वास्तुसार प्रकरण, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण.
ठक्कुर फेरु, प्रा., पद्य, वि. १३७२, आदि: सयलसुरासुरविंद दसण; अंति: गिहपडिमालक्खणाईणं, प्रकरण-३, गाथा-२०५. २. पे. नाम. प्रतिष्टासार संग्रह, पृ. ६अ-११अ, संपूर्ण. प्रतिष्ठासार संग्रह, आ. वसुनंदि सैद्धांतिक, सं., पद्य, आदि: सिद्धं सिद्धात्मसद्; अंति: धारय धारय स्वाहा, अध्याय-६,
(वि. भूमिपूजन विधि देकर पूरा कर दिया है.) ६२९६३. (+) पाक्षिकसूत्र व पाक्षिकखामणा, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. २, प्रले. मु. मानविजय (गुरु
आ. जिनराजसूरि); गुपि. आ. जिनराजसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०, १३४४१). १.पे. नाम. पाक्षिक सूत्र, पृ. १आ-१०अ, संपूर्ण.
पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरि० तित्थंकरेय; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ती, ग्रं. ३६०. २.पे. नाम. क्षामणकसूत्र, पृ. १०आ, संपूर्ण.
हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो० पिय; अंति: नित्थार पारगा होह, आलाप-४. ६२९६४. (+#) शांतिनाथचरित्रगत कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३०-११९(१ से १०८,११५ से १२५)=११, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १७-२३४५३-५८). कथा संग्रह-शांतिजिन चरित्रोद्धत, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., गुणधर्मकनकवती कथा
अपूर्ण से महीपालसूरपाल कथा अपूर्ण तक है.) ६२९६५. विविध बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, कार्तिक शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ८-३(२ से ४)=५, प्रले. मुथरामल, प्र.ले.पु. सामान्य,
दे., (२५.५४१०.५, १२-१५४३०-३७).
___ बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के कुछ पाठांश नहीं हैं.) ६२९६७. (+#) सिंदूरप्रकर सह टीका व प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त
विशेष पाठ-त्रिपाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ५-८४५८). १.पे. नाम. सिंदूरप्रकर सह टीका, पृ. १आ-१०अ, संपूर्ण. सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२,
श्लोक-१०३, (वि. प्रक्षेपकाव्य श्लोक-२ सहित.) सिंदूरप्रकर-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: वृत्तिमिमामकार्षीत्. २.पे. नाम. प्रस्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
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"
श्लोक संग्रह पुहिं. प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदिः इदमपि प्रतिक्ष्य समी; अंतिः कर० लुलोठ राजहंस, (वि. प्रासंगिक विविध श्लोकों का संग्रह.)
६२९६८. योगशास्त्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., ( २४.५X१०.५, १३x४०-४३). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: नमो दुर्वाररागादि, अंति: (-), ( पू. वि. प्रकाश- ३, श्लोक ५४ अपूर्ण तक है.)
६२९६९. (+) शोभन स्तुति, पूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६-१ (५) ५, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२६X११, १३x४८).
स्तुतिचतुर्विंशतिका. मु. शोभनमुनि सं., पद्य, आदि: भव्याभोजविबोधनैक, अंतिः हारताराबलक्षेमवा, स्तुति- २४, श्लोक- ९६ (पू.वि. श्लोक ७५ अपूर्ण से ९० अपूर्ण तक नहीं हैं.)
"
६२९७०. (+) थंभणपार्श्वनाथ स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, प्रले. मु. मतिसोम (गुरु मु. तिलककीर्ति); गुपि. मु. तिलककीर्ति (गुरु ग. पुण्यमंदिर); ग. पुण्यमंदिर, पठ श्रावि रायकुमरी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५X११, ६x४१).
"
जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी, आदि जय तिहुयणवरकप्परुक्ख अंतिः अभयदेव० आदिअ गाथा ३०.
जयतिहुअण स्तोत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: हे श्रीपार्श्व जयवंत; अंति: माहे श्लाघा सहित.
६२९७१. (+) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १३-७(१ से ७) ०६, पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५.५X१०.५, ११४३९-४३).
""
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-५ गाधा- २६ अपूर्ण से अध्ययन-१० गाथा-१६ अपूर्ण तक है.)
६२९७२. (+) कल्पसूत्र सह टवार्थ व व्याख्यान + कथा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७३-६६ (१ से ६४,६६,७०)=७, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे. (२५४११, ६४३७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. भगवान महावीर का लेखशाला प्रवेशादि प्रसंग देव व ग्रहण प्रसंग तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) कल्पसूत्र - टवार्थ ". मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
कल्पसूत्र - व्याख्यान + कथा *, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-).
"
६२९७३ (१) जिनराजपूजाव्याख्यानिका संक्षेप, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ९. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२६१०, १२४४८).
८ प्रकारी पूजाकथा संग्रह, प्रा. सं., प+ग, आदि (१)वरगंधधूयचोक्खक्खएडिं, (२) वैताढ्याद्री दक्षिण अंति: (-), (पू.वि. फलपूजा कथानक अपूर्ण तक है.)
६२९७४. उपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २४-१८ (१ से १७,१९ * )= ६, जैदे., (२५.५X१०, ९३५-४०). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. बीच के पत्र हैं. गाथा २६४ अपूर्ण से गाथा ३६२ अपूर्ण तक है.)
६२९७५. (+#).
कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३५ - २७ (१ से २७) = ८, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२५४१०.५, ९४३०).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. त्रिशलारानी १४ स्वप्नदर्शन प्रसंग से महावीरजिन जन्मोत्तर प्रसंग अपूर्ण तक है.)
"
६२९७६. (+) सौभाग्यपंचमी कथा, संपूर्ण, वि. १७८८, माघ शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल. जेसलमहादुर्ग, प्रले. पं. जैतसी (गुरु आ. जिनचंद्रसूरि) गुपि आ. जिनचंद्रसूरि प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२४४११, १३x४०). वरदत्तगुणमंजरी कथा - सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: विनिर्मिता कनककुशलेन, श्लोक-१४९.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६२९७७. (+) पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४१०.५, १५४३९). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: (-), (पू.वि. "न पढियं न परियट्ठियं पुच्छियं" पाठ
अपूर्ण तक है.) ६२९७८. (+) विचारपंचाशिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. पं. सुखरुचि (गुरु पं. अमीविजय);
गुपि.पं. अमीविजय; पठ. ग. हरखविजय पंडित (गुरु पं. विनितविजय गणि); गुपि.पं. विनितविजय गणि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४११, ५४३५). विचारपंचाशिका, ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, आदि: वीरपयकयं नमिउं देवा; अंति: विमलसूरिवराणं विणएण,
गाथा-५१.
विचारपंचाशिका-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीरस्वामिना; अंति: आणंद शिष्ये रची छै. ६२९७९. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ व आगारगाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८०६, फाल्गुन कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ३,
ले.स्थल. देसणोक, प्रले. पं. भाग्यहर्ष मुनि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२२.५४१०, ५४३४-३७). १.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-७आ, संपूर्ण.
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बुद्धबोहेक्कणिक्काय, गाथा-५१.
नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: एक सिद्ध अनेक सिद्ध. २. पे. नाम. साधुअतिचारचिंतवन गाथा, पृ. ७आ, संपूर्ण.
संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः सयणासणन्नपाणे; अंति: वितहायरणे अइयारो, गाथा-१. ३. पे. नाम. आगार गाथा, पृ. ७आ, संपूर्ण.
प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: दो चेव नमुक्कारे; अंति: हवंति सेसेसु चत्तारि, गाथा-३. ६२९८१. (+) पाक्षिक व पाक्षिकखामणा सूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, कुल पे. २, पठ.ग. मनोहरसागर,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १३४४०-५०). १. पे. नाम. पाक्षिक सूत्र, पृ. १अ-७आ, संपूर्ण..
पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ती. २.पे. नाम. क्षामणकसूत्र, पृ. ७आ, संपूर्ण.
हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं; अंति: नित्थारग पारगा होह, आलाप-४. ६२९८२. (+) चतुर्विंशतिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ११४३८).
स्तुतिचतुर्विंशतिका, उपा. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, वि. १८०१-१८४१, आदि: सद्भक्त्या नतमौलि; अंति: देवता सा
जयतादजस्रम्, स्तुति-२४, श्लोक-७७, ग्रं. १४८. ६२९८३. (+#) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह विधि सहित, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २४-१७(१ से १२,१४ से १८)-७,
पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १३४३२-४०).
प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अतिचार पाठ अपूर्ण
६२९८४. (+) विचारषट्त्रिंशिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०४, ज्येष्ठ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. बजाणा,
प्रले. मु. माणिक्यविजय (गुरु पं. दीपविजय गणि); गुपि.पं. दीपविजय गणि (गुरु ग. राजविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिनाथ प्रसादात्. श्रीगुरुदेव प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३.५४११, ४४२७). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: विन्नत्ति अप्पहिया,
गाथा-३८. दंडक प्रकरण-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ ऋषभ; अंति: कही स्तववा योग्य.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
६२९८५. (#) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९८, जीर्ण, पृ. ६, प्र. वि. अंतिम पत्र खंडित होने से प्रतिलेखन पुष्पिका अपूर्ण व अवाच्य है., मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२३X१०, ५X४१).
जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा. पद्य वि. ११वी आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण अंतिः रुदाउ सुय समुद्दाउ,
"
गाथा - ५१.
जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिभुवन मांहि, अंति: मोटा श्रुतसमुद्र थकी.
६२९८६, (+०) गौतमस्वामि रास, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९-१ (१२) = ८, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२१x१०, ९४२४).
गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: (-); अंति: नितनित मंगल उदय करो, गाथा-४७, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.)
६२९८७, (+) कर्मविपाक सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १७२३ वैशाख शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ७, ले. स्थल, बीकानेर, प्रले. मु. विद्याकुशल पंडित, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित, जैवे. (२५.५x१०.५, ६४३७).
"
कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १३वी ९४वी आदि सिरिवीरजिणं वंदिय, अंति: लिहिय
देविंदसूरींहि, गाथा-६५.
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कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीरजिन वांदीनइ, अंति: श्रीदेवेंद्रसूरियइ.
६२९८८. (+) दंडकविचारषट्त्रिंशिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३५, वैशाख कृष्ण, ११, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. जेसलमेर, प्र. मु. श्रीचंद्र (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीउदैचंदजी प्रसादात्, पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ.. प्र. ले. लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं जै., (२५.५४११, ३४४२).
दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स, अंति: विन्नत्ति अप्पहिया,
गाथा-४०.
दंडक प्रकरण-वार्थ, मु. यशसोम-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: (१) ऐंद्रराजं जिनं नत्वा, (२) नमस्कार करीने मनवचनः अंति: हितनी करणहारी.
६२९८९. (+) अणुत्तरोववाईदशांगसूत्र, संपूर्ण वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ६ प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे., (२५.५X१०.५, १३x४१).
अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि: तेणं कालेणं० नवमस्स, अंति: जहा धम्मकहा यव्वा, अध्याय-३३. प्र. १९२.
६२९९० (+) महीपाल चरित्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित. दे. (२६४१०.५,
,
१३-१७४३४).
महीपालराजा कथा. ग. वीरदेव, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण रिसहनाहं केवल अंति: (-), (पू. वि. गाथा २१६ तक लिखा है.)
६२९९९ (4) सिद्धगिरी स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे १०, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.. (२५.५X११, ७X१७-२४).
१. पे. नाम. सिद्धगिरि स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदिः प्रभुजी रे संग आयो, अंतिः वीर० सीवपुरि रे लोल, गाथा- ६२. पे. नाम. विमलनाथ स्तवन, पृ. १आ- २अ, संपूर्ण.
विमलजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: घर आंगणि सुरतरु; अंति: जिनराज० देव प्रमाण, गाथा-५.
३. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. २आ, संपूर्ण.
मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मेतो जोति फिरु जिन; अंति: रूपचंद० चितलाया रे, गाथा-४.
४. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
मु. कीर्तिसागर, मा.गु, पद्य, आदि गढ़ गीरनारे सइया रे म, अंति के वैरवेर बलिजईया रे, पद-३. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३अ ४अ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंखेसरपास जिणेसर, अंतिः जिणचंद सकलरिपु जीततो, गाथा-५.
६. पे. नाम ऋषभजिन पद, पृ. ४-४आ, संपूर्ण.
आदिजिन पद, मु. बालचंद, पुर्हि, पद्य, आदि: ऋषभदेव साम रे तेरे अंतिः बालचंद० लियो छे'
७. पे. नाम महावीरजिन पद, प्र. ४ आ-५आ, संपूर्ण
महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गीरवा रे गुण तुमतणा; अंति: जिवन प्राण आधारो रे, गाथा-५.
८. पे. नाम. पार्श्वजिन पद गोडीजी, पृ. ५आ- ६अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. कमलसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: सांचो साहिब निरधारी अंति; तो कमलसुंदर तुझ बंदा,
गाथा-५.
९. पे नाम, साधारणजिन स्तवन, पृ. ६अ ६आ, संपूर्ण
आ. जिनमहेंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८९८ आदि: मेतो भेट्या प्रभु सर, अंतिः आणंद सर मे छड्डा रे, गाथा-५. १०. पे नाम, ऋषभजिन स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, पुहिं. पद्य वि. १९३२, आदि: ऋषभजिणेसर साहिब साचो अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- १२ अपूर्ण तक लिखा है.)
६२९९२. (+) भाष्यत्रय सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ७, पठ. उपा. सुमतिसोम गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पंचपाठ-संशोधित, जैदे. (२६४११ ९-११x४०-५०).
भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे, अंति: य सुक्खं लहुं मुक्खं, भाष्य-३,
गाथा - १५२.
भाष्यत्रय-अवचूरि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, आदि: वंदि० वंदनीयान् सर्व, अंतिः पच्चक्खाणम० सुगमा. ६२९९३. (+#) दानशीलतपभावना कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ५, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैये. (२५.५४१०.५, ६४३९-४६)
दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., पद्य, आदि: देवाहिदेवं नमिउण वीर; अंति: हिया सूरि खमंतु तेणं,
गाथा ४९.
दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: देवाधिदेव श्रीमहावीर, अंति: हुइ ते आचार्य खमायो. ६२९९४ (+४) दीवालीपर्व कथा व दीवालीपर्व कल्प, अपूर्ण, वि. १८०४, ज्येष्ठ शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ६.९(१)-५, कुल पे. २, ले. स्थल. बीकानेर, पठ. श्राव. अजबसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे., (२५x११, १७X५२).
१. पे. नाम. दीपालिका कथा, पृ. २अ ३आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है.
दीपावली पर्व कथा, सं., गद्य, आदि (-); अंतिः क्षेमकारणी भवंतु, (पू. वि. प्रारंभिक पाठ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. दीवाली कल्प, पृ. ३आ-६आ, संपूर्ण.
दीपावलीपर्व कल्प, सं., गद्य, आदि: चतुरशीतिलब्धनिधानस्य अंतिः वृद्धिदायको भवतु एवं. ६२९९५. कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. ६- १ (१) =५, पू. वि. बीच के पत्र हैं., जैदे.,
जैदे. (२५x११.
१५४४४).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). (पू. वि. गर्भ में जीवस्थिति से मल्लिजिन प्रसंग तक है.) कल्पसूत्र - बालावबोध *, मा.गु., रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
६२९९६. (+) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७- २ (१ से २ ) = ५, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. टिप्पणयुक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित, जैदे., ( २६.५X११, १३x४५-५० ).
उत्तराध्ययनसूत्र. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: (-) (पू.वि. अध्ययन- २ अपूर्ण से अध्ययन- ८ गाथा - १७ अपूर्ण तक है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६ ६२९९७. साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-९(१ से ९)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., अ., (२३४९, ६x२४).
प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "देवसी अंबइ
आवशीआए से अतिचारगत स्त्रीतिर्यंच नाम" पाठ तक है.) ६२९९८. साधुवंदना, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-२(१ से २)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२४.५४१०.५, ११४३१).
साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण से गाथा-७९ अपूर्ण तक
६२९९९. (+) पुराणोक्त प्रास्ताविक श्लोकसंग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६९७, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. मु. विनयरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, ७X४६).
पुराणहुंडी, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अक्रोधवैराग्य; अंति: क्षमामंगल्यमुच्यते, श्लोक-८३, (वि. १६९७, चैत्र शुक्ल, २) पुराणहुंडी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: क्रोधरहित१ वैराग्य; अंति: खिमा मंगलकारिणी कहीइ, (वि. १६९७, वैशाख
शुक्ल, १३) ६३०००. (+#) बृहत्संग्रहणी सह टीका, अपूर्ण, वि. १५वी, जीर्ण, पृ. ३५-३०(१ से २२,२५ से २८,३० से ३१,३३ से ३४)=५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२३४९.५, ७४२४-२८). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. मनुष्यद्वार अपूर्ण से तिर्यंच द्वार अपूर्ण
तक है.)
बृहत्संग्रहणी-टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६३००१. (+) उपदेश रसाल, संपूर्ण, वि. १८६९, श्रावण शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. वीकानेर, प्रले.पं. रत्नचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १४४३९-४३).
उपदेश रसाल, सं., गद्य, आदि: एसो मंगलनिलओ भयविलओ; अंति: परंन कोपिभग्न. ६३००२. (#) दशपच्चक्खाण सह टबार्थ व दूहा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-१(८)=८, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४९.५, १२-१३४४२-४५). १.पे. नाम. दशपचक्खाण सह टबार्थ, पृ. १अ-९अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है.
प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: असित्थेणवा वोसरइ. प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., गद्य, आदि: (१)वाग्वादिनी नमस्कृत्य, (२)उग्गणे सूरे कहिता; अंति:
वार्तिकींतत्. २. पे. नाम. नवकारवाली गुणण दोहा, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र-गुणन दोहा, संबद्ध, रा., पद्य, आदि: आठ सहस त्रिणसै अधिक; अंति: करया चिम कल्यान,
दोहा-३, (वि. साथ में विधि भी लिखी गई है.) ६३००३. (#) वाक्यप्रकाश व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १७४६, चैत्र कृष्ण, ५, मंगलवार, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २,
ले.स्थल. बांतानगर, प्रले. ग. दोलतविजय (गुरु पंन्या. शांतिविजय गणि); गुपि. पंन्या. शांतिविजय गणि (गुरु मु. मानविजय); पठ. ग. दानविजय (गुरु पं.सौभाग्यविजय); गुपि.पं.सौभाग्यविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीपार्श्वनाथ प्रसादात्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१११५) यादृसं पुस्तके दृश्यटं, जैदे., (२६.५४९.५, ८४३९-४२). १. पे. नाम. वाक्यप्रकाश, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण.
ग. उदयधर्म, सं., पद्य, वि. १५०७, आदिः प्रणम्यात्मविद; अंति: हितो वाक्यप्रकाशोयम्, श्लोक-१२८. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ७अ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह जैनधार्मिक , प्रा.,सं., पद्य, आदि: पूर्व दत्ते पुज्या; अंति: (अपठनीय). ६३००४. (+#) चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७४६, फाल्गुन शुक्ल, १, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. अल्लहणपुर,
प्रले. मु. प्रेमरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, ४४३६-४१).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा. पद्य वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं,
"
गाथा-६३.
चतुः शरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सावद्य व्यापरनइ विषय; अंति: देणहार छइ ए च्यारशरण. ६३००५. भगवतीसूत्र अंतर्गत जमालीआलावा, संपूर्ण, वि. १७४९, मध्यम, पृ. १२, प्रले. मु. नेतसी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२३.५x१०, ११४४८-५३).
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भगवतीसूत्र - जमाली आलावा, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: तस्सणं माहणकुंडगाम; अंति: अणुबाहं त्तिबेमि. ६३००६. स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७- २ (१ से २) = ५, कुल पे. २५, जैदे., ( २४.५X१०.५, १३x४५-४८).
१. पे. नाम. पंचकल्याणक स्तुति, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
प्रा., पद्य, आदि (-); अंति: गणसहिया पंचकल्लाणएसु, गाथा-४, (पू. वि. गाथा ४ अपूर्ण तक नहीं है.)
२. पे नाम, चैत्यपरिपाटी स्तुति, पृ. ३अ संपूर्ण.
५ तीर्थजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीशत्रुंजयमुख्य अंतिः संतु भद्रंकरा, श्लोक-४.
३. पे. नाम. अर्बुदाचल स्तुति, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., पद्य, आदि: वरमुक्तियहार सुतार, अंति: सुहाणि कुणेसु सया, गाथा-४. ४. पे. नाम. पलांकित स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण
पार्श्वजिन स्तुति - पलांकित, सं., पद्म, आदिः श्रीसर्वज्ञं ज्योति अंतिः वृद्धिं वैदुष्यम्, श्लोक-४.
५. पे. नाम. शेत्रुंजय स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थं स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेतुंजमंडण आदि अंतिः नंदि०तुम्ह पाय सेवता, गाथा-४. ६. पे. नाम. थानक थूई, पृ. ३-४अ, संपूर्ण.
विहरमान २० जिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: पंचविदेह विषै विहरत; अंतिः जण मन वंछित सारइ, गाथा-४. ७. पे नाम. पारणा स्तुति, पृ. ४अ, संपूर्ण.
महावीर जिन पारणा स्तुति, सं., पद्य, आदिः यत्पारणासु प्रथमासुः अंतिः प्रानु मम प्रोमोदम् श्लोक-४. ८. पे. नाम. सामान्यजिन स्तुति, पृ. ४-४आ, संपूर्ण.
साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: अविरलकुवलगवलमुक्ता, अंति: देवी श्रुतोच्चयम्, श्लोक-४. ९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण.
सं., पद्म, आदि: हर्षनतासुरनिर्जरलोकं अंति: मज्जनशस्तनिजायः श्लोक-४.
१०. पे. नाम. युगादिदेव स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदिः युगादिपुरुषेंद्राय अंतिः कूष्मांडी कमलेक्षणा, श्लोक-४.
११. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण.
आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अश्वसेन नरेसर वामा, अंति: जिनभक्ति० बहु वित्त, गाथा-४.
१२. पे नाम, अष्टमी स्तुति, पृ. ५अ, संपूर्ण
अष्टमीतिथि स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चौवीसे जिणवर प्रणमुं अंतिः इम जीवित जनम प्रमाण,
गाथा-४.
१३. पे. नाम. दंडक स्तुति, पृ. ५अ ५आ, संपूर्ण
२४ दंडक स्तुति, आ. जिनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि: रुचितरुचिमहामणि; अंति: भारती भारती, श्लोक-४, (वि. इस प्रत में कर्ता का नाम नहीं मिलता है.)
१४. पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. ५आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: ऋषभनाथ भनाथनिभानने; अंति: तनुभातनुभातनु भारती, श्लोक-४.
१५. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. ६अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: देवदेवाधिपैः सर्वतो; अंतिः यच्छताइस्सदा श्लोक-४.
१६. पे. नाम महावीरजिन स्तुति, पृ. ६अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि मूरति मनमोहन कंचन, अंतिः इम श्रीजिनलाभसूरिंद, गाथा ४. १७. पे, नाम, मौनएकादशी स्तुति, पृ. ६अ ६आ, संपूर्ण.
मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: दीक्षा श्रीअरनाथकस्य; अंति: ज्ञानस्य लाभं सदा, श्लोक-४. १८. पे नाम, नेमिजिन स्तुति, पृ. ६आ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तुति - गिरनारमंडन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: गिरनार सिहर पर नेम; अंति: जिनलाभ० फलै सुगीस, गाथा-४.
१९. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. ६ आ-७अ, संपूर्ण, पे. वि. प्रतिलेखक ने कृतिनाम "नेमिनाथ स्तुति" लिखा है. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि : चंपक केतकी पाडल जाई; अंति: जो तूसै देव अंबाई, गाथा-४. २०. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. ७अ, संपूर्ण.
अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टमी अष्ट परमाद, अंति: सर्व विघ्न दूरे हरई, गाथा-४. २१. पे नाम, महावीरजिन स्तुति, पृ. ७अ ७आ, संपूर्ण
सं., पद्य, आदिः यदहिनमनादेव देहिन; अंति: नित्यममंगलेभ्यः, श्लोक-४.
२२. पे नाम, महावीरजिन स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण.
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मा.गु., पद्य, आदि: बालापणे डावी पाय, अंति: मेले मुक्ति साथ, गाथा-४.
२३. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण.
२४ जिन स्तुति, अप, पद्य, आदि: भरहेसरकारिय देव हरे, अंतिः विगणंतु अणंतदहंसगुणा, गाथा २. २४. पे. नाम वीरजिन स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं, अंति: दद्यात्सौख्यम्, श्लोक-४.
२५. पे. नाम चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण.
साधारणजिन स्तुति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीतीर्थराजः पदपद्म, अंतिः भावदाता ददतु सवं वः,
श्लोक-१.
६३००७. (+) षट्त्रिंशिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७५३, मध्यम, पृ. ५. ले. स्थल, रूघडी, प्रले. मु. हर्षा (गुरु मु. सांवल); गुपि. मु. सांवल (गुरु मु. भीमाजी ऋषि); मु. भीमाजी ऋषि (गुरु मु. भोजाजी ऋषि); मु. भोजाजी ऋषि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें.. जैदे., (२५.५४१०, ५X३७-४४).
प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका, मु. रूपसिंह, सं., पद्य, आदि: प्रज्ञाप्रकाशाय नवीन, अंति: मयका प्रणीता, श्लोक-३७. प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रज्ञा प्रकाश करवान, अंतिः कीधा रूपसिंघ आचार्य.
११
६३००८. कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ९४ - ८६ (१ से ४०, ४२, ४४ से ६९, ७१ से ८२,८६ से ९१,९३)=८,
(#)
पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जीवे. (२३.५x१०, १३४३४-४०).
कथा संग्रह**, प्रा.,मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. वैश्रमण कथानक अपूर्ण से ध्वजदंड कथानक पूर्ण तक है व बीच बीच के कथानक नहीं हैं.)
६३००९. प्रकरण संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६९, चैत्र कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ३, ले. स्थल. लसकर, प्रले. मु. नेमचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२२.५४९.५ १२४४०).
"
१. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. १अ ३अ, संपूर्ण.
आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊंण, अंतिः रूद्दाउ सुय समुद्दाउ, गाथा-५१.
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२. पे. नाम, दंडक प्रकरण, पृ. ३अ ५अ, संपूर्ण.
मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीसजिणे तस्स, अंति: गजसारेण० अप्पहिआ, गाथा-४५. ३. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ५अ-७आ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा, अंति: १३ क्क१४ णिक्काय१५, गाथा-५२.
६३०१०. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२४-६ (१ से ६) = ११८, प्र. वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे. (२६.५x१०.५, ६x४३-४८).
"
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१२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: (-) अंति: (-) (पू. वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.. अध्ययन- २ गाथा २५ अपूर्ण से अध्ययन ३६ गाथा १८१ अपूर्ण तक है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) उत्तराध्ययनसूत्र- टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू. वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. ६३०११. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र की टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०७, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जै.., (२६×१०.५, १३३९-४५).
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ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र- टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. ११२०, आदि: नत्वा श्रीमन्महावीर; अंति: दशम्यांच सिद्धेयम्, अध्ययन १९ (वि. मूलकृति का मात्र प्रतीक पाठ दिया है.)
६३०१२. (0) आचारांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७८-९ (५९) ७७, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६.५x११, १३४३८).
"
आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: सुयं मे आउस तेण; अंति: ( - ), ( पू. वि. अध्ययन १६ विमुत्ति
चूलिका अपूर्ण तक है.)
६३०१३. (+) उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९०-२ (१३,८९) = ८८, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६X११, ५X३४-३८).
उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं० चंपा नाम नयरी, अंति: (-), (पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं.. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं . )
उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मु. हर्षवल्लभ, मा.गु., गद्य, वि. १६९३, आदि: ते० तेणइ काले चोथे, अंति: (-), पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं.
६३०१४. अंतगडदशांगसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ८२, जैवे. (२५.५११, ५४३२).
अंतकृदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: अंतगडदसाउ समत्ताउ, अध्याय ९२, प्र. ८९०, संपूर्ण.
अंतकृद्दशांगसूत्र- बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेणई काले चउथो आरो; अंतिः (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, अतिमुक्तक प्रसंग तक लिखा है.)
,
६३०१५. (+) संग्रहणीसूत्ररत्न सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ६४, प्र. वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे. (२६.५x११, १-४X३९-४५).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: नंदउ जा वीरजिणं, गाथा-२७६. बृहत्संग्रहणी - टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: अत्यद्भुतं योगिभिः अंति: लोकानां सर्वसंख्यया, ग्रं. ३५००. ६३०१६. (१) विवेकविलास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५५, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२५.५४१०.५,
१०X३७-४० ).
विवेकविलास, आ. जिनदत्तसूरि, सं., पद्य, आदि: शाश्वतानंदरूपाय तमस, अंति: लोकोत्तरं शाश्वतम्, उल्लास-१२. ६३०१७. (+#) संग्रहणीसूत्ररत्न सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६४, प्र. वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२६.५४१०.५, १७४११-४५).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-२७६. बृहत्संग्रहणी - टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: अत्यद्भुतं योगिभि, अंति: लोकानां सर्वसंख्यया. ६३०१८. दशाश्रुतस्कंध सह नियुक्ति व चूर्णि संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६९, जैदे. (२६.५x११, १७-२०४५५). दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ, अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, दशा- १०,
ग्रं. १३८०.
दशाश्रुतस्कंधसूत्र - निर्युक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: वंदामि भद्दबाहु; अंति: संसारमहन्नवं तरई,
गाथा - १४१.
दशाश्रुतस्कंधसूत्र - चूर्णि#, प्रा. सं., गद्य, आदि: मंगलादीणि सत्याणि०: अंतिः णयाणं गाथा नं. २२२५.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६ ६३०१९. (+) उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १६२१, माघ शुक्ल, ६, रविवार, मध्यम, पृ. ६१, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, १४४३८-४५).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स; अंति: संबुडे त्ति बेमि, अध्ययन-३६. ६३०२०. (#) विक्रमसेननरेश्वर चतुष्पदी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४३५-३८). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: परम ज्योति प्रकास; अंति: परमसागर आणंदा
रे, ढाल-६४. ६३०२१. (+) कल्पसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८१-८(१ से ५,६३ से ६५)=७३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४८-५५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.,
भगवान महावीर के द्वारा केवलज्ञान प्राप्ति वर्णन अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.)
कल्पसूत्र-टीका*, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. ६३०२२. (#) कर्मग्रंथ संग्रह सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५०, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
जैदे., (२६.५४११, १२-१५४३०-३३). १. पे. नाम. कर्मविपाक सह बालावबोध, पृ. १अ-२५अ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिण वंदिअ; अंति: लिहिओ
देविंदसूरिहिं, गाथा-६०. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, म. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: श्रेयोमार्गस्य वक्ता; अंति:
मतिचंद्र०बालावबोधिनी. २. पे. नाम. कर्मस्तव सह बालावबोध, पृ. २५अ-५०आ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वंदियं नमहं तं
वीरं, गाथा-३४. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, म. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: वीरं बोधनिधिं धीर; अंति: लिखिता
लोकवार्तया. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ सह बालावबोध, पृ. ५०आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्त; अंति: (-),
(पू.वि. मात्र प्रथम गाथा है.)
बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: ॐसर्वशर्मप्रदं नत्वा; अंति: (-). ६३०२३. (+) खित्तसमास सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, ४४२८). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपयपयट्ठिय; अंति: कुसलरंगमय
पसिद्धं, अधिकार-६, गाथा-२६२.
लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: वीर श्रीमहावीर केहवउ; अंति: रंगसय प्रसिद्ध पामो. ६३०२४. (+) प्रश्नव्याकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८४-४(३२,७२,७८ से ७९)=८०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, ६४४५-५०). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: जंब इणमो अण्हयसंवर; अंति: सरीरधरे भविस्सइति,
अध्याय-१०, गाथा-१२५०, (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.)
प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसुधर्मास्वामी; अंति: जाइ शाश्वत सुख पामइ. ६३०२५. (+) कल्पसूत्र व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५५, प्रसं.ग. सत्यसागर (विधिपक्षगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १६४५३-५८).
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१४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
कल्पसूत्र - टीका में सं., गद्य, आदि: कल्याणानि समुद्धसंति, अंतिः श्रीसंघभट्टारकः.
६३०२६. योगशास्त्र प्रकाश-१ से ४ सह लघुवृत्ति, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६४, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. जैदे. (२६४११, १४४४३-४८).
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योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १ से ४, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: नमो दुर्वाररागादि; अंति: (-), (पूर्ण, पू. वि. प्रकाश - ४, श्लोक-३५ अपूर्ण तक है.)
योगशास्त्र - हिस्सा प्रकाश १ से ४ की अवचूरि, आ. अमरप्रभसूरि, सं., गद्य, आदि: महावीराय नमस्कारोस्त; अंतिः (-). अपूर्ण.
६३०२७. जीवानुशासन सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७१, जैदे. (२६.५X११, १३X२७-३०).
जीवानुशासन, आ. देवचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १९६२, आदि: निम्महियरायरोसं वीरं; अंति: वासट्ठी सूरत वमीपं, अधिकार- ३८, गाथा- ३२३.
जीवानुशासन - वृत्ति, आ. देवचंद्रसूरि, सं. गद्य वि. १९६२, आदि: अल्पश्रुतमतिसम्मत अंतिः जात विमलदयः,
.
3
ग्रं. २२००.
६३०२८. (+४) दशवैकालिकसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४४, प्र. वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५. ५X११, १२x१८-२५).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदिः धम्मो मंगलमुक्किहं, अंति: भविआण विबोहणद्वाए, अध्ययन- १०, (वि. चूलिका २.)
दशवैकालिकसूत्र - टबार्थ में, मा.गु., गद्य, आदि धर्म उत्कृष्टओ मंगलि अंतिः आउखड पछड़ कालगत हुआ. ६३०२९. (४) राजप्रश्रीयोपांग की वृत्ति, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६७, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२६११,
१५४५३).
राजप्रश्नीयसूत्र - टीका, आ. मलयगिरिसूरि, सं., गद्य, आदि: प्रणमत वीरजिनेश्वर, अंति: ताडनानि कशादिघाताः, ग्रं. ३७००.
६३०३० (+) आवश्यकसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे. (२६४१०.५, १-४४२४-२९).
साधुभावक प्रतिक्रमणसूत्र स्थानकवासी, संचद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग, आदिः तिखुत्तो आयाहीणं; अंति: गुणधारणा ६
चेव.
साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: न० नमस्कार हो अ०; अंति: छो
आवस्यक.
६३०३१. (७) स्थानांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १०० ३८ (१ से ३८) = ६२. पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं.. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५x१०.५, १३४३४-३७)
स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. स्थानक-४, उद्देश- ३ अपूर्ण से स्थानक १० अपूर्ण तक है.)
६३०३२. (+४) आचारांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. ६२-८ (१,१० से १३,२१,५७,६०)=५४, पू. वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६ ११, १६x४०-४५). आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध १, अध्ययन-१, उद्देश - २ अपूर्ण से श्रुतस्कंध - २, अध्ययन- १६, चूला- ४ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.)
६३०३३. (+) प्रवचनसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १६४१, फाल्गुन कृष्ण, ११, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ५६, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे.,
(२६४११, १४४३७-४१).
प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी, आदि: नमिऊण जुगाईजिणं, अंति: नंद बहु पहिज्झतो, द्वार- २७६, गाथा - १५३९, ग्रं. २०००.
६३०३४. आचारांगसूत्र- द्वितीयश्रुतस्कंध, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ७०+१ (४०) ७१, जीवे. (२६.५४१०.५, १२४३७).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: से भिकखुवा निख्णी; अंति: विमुच्चइ त्ति बेमि, अध्ययन-२५,
ग्रं. २६४४. ६३०३५. (+#) बृहत्संग्रहणी सह टीका, संपूर्ण, वि. १६६८, आषाढ़ अधिकमास शुक्ल, ४, गुरुवार, मध्यम, पृ. ५६,
ले.स्थल. वीरमपुर, पठ. मु. विद्याकीर्ति (गुरु मु. पुण्यतिलक, खरतरगच्छ); गुपि.मु. पुण्यतिलक (गुरु ग.खेमसोम, खरतरगच्छ); ग. खेमसोम (गुरु ग. प्रमोदमाणिक्य, खरतरगच्छ); ग. प्रमोदमाणिक्य (गुरु ग. दयातिलक, खरतरगच्छ); ग. दयातिलक (गुरु उपा. क्षेमराज, खरतरगच्छ); उपा. क्षेमराज (गुरु मु.सोमकीर्ति, खरतरगच्छ-खेमकीर्तिशाखा); राज्ये आ. जिनचंद्रसूरि (गुरु आ. जिनमाणिक्यसूरि, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. जिनकुशलसूरि प्रसादात्. अबरखयुक्त पत्र है., पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१०.५, १६-१९४५९-६३). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊं अरिहंताई ठिइ; अंति: नंदोजा वीरजिण तित्थं,
गाथा-३४९.
बृहत्संग्रहणी-टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: अत्यद्भुतं योगिभि; अंति: लोकानां सर्वसंख्यया, ग्रं. ३५००. ६३०३६. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३५, जैदे., (२३.५४१०.५, ५-१२४३२-३८).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहताणं० पढम; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., वर्तमान चौवीसी में घटित होनेवाली १० आश्चर्यजनक घटनाओं के वर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) कल्पसूत्र-टबार्थ *,मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतनइ नमस्कार होइ; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*,सं., गद्य, आदि: अर्हत भगवंत समुत्पन; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., वि. प्रारंभ में पीठिका दी हुई है.) ६३०३७. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७६-२३(१ से २३)=५३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२७४१०.५, ५४३४-३७).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-८, गाथा-८ अपूर्ण से __ अध्ययन-१९, गाथा-८७ अपूर्ण तक है.)
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६३०३८. (+#) औपपातिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ११-१३४३१-३६).
औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: सुही सुहं पत्ता, सूत्र-४३, ग्रं. १६००. ६३०३९. (+) कल्पसूत्र, त्रुटक, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०१-७२(१ से २४,३३,३७,३९ से ४७,५१ से ५२,५४ से ५६,५८,६० से
६४,६६,६८ से ७५,७७ से ९३)=२९, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, ७४२२-२७).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. त्रिशला के द्वारा देखे गए चौदह स्वप्न
__ वर्णन से स्वप्न फल वर्णन तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ६३०४०. (+) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६२-८(१ से ६,५२,६१)=५४, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४३५-४१).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-६, गाथा-१८ अपूर्ण से
___ अध्ययन-३६, गाथा-२६६ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के कुछ पाठांश नहीं हैं.) ६३०४१. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ व कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०२-६५(१ से ६१,६३ से ६६)=३७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-द्विपाठ., जैदे., (२६४१०.५, ६-१६x४०-४३). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.,
अध्ययन-७, गाथा-११ अपूर्ण से अध्ययन-१६, सूत्र-८ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६३०४२. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सहटबार्थ व कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३४-१(१)=३३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ५-१७४३९-४५).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., __अध्ययन-२२, गाथा-१२ से अध्ययन-२८, गाथा-१ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रथम व अंतिम पत्र नहीं है.
उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह ,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), पृ.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. ६३०४३. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ व कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६२-१५(१ से ७,१५ से २२)=४७, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१०.५, १-१३४३६-५२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१, गाथा-४१ अपूर्ण से
अध्ययन-६, गाथा-१५ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६३०४४. (+#) समवायांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १६४६, माघ कृष्ण, १२, गुरुवार, मध्यम, पृ. ४०-२(१,२८)=३८,
प्र.वि. संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. कुल ग्रं. १७५०, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४३९-४५). समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: अज्झयणं त्तिबेमि, अध्ययन-१०३, सूत्र-१५९,
ग्रं. १६६७, (पू.वि. सूत्र-१, "असुरकुमाराणं देवाणं" पाठ से है व सूत्र-१४०, "संसारसमुद्दरुंद उत्तरण" पाठ से
"कप्परविमाण वत्तमेसु" पाठ तक नहीं है.) ६३०४५. (#) आवश्यकसूत्र प्रथम पीठिका सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, प्र. ४२.प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ११४३१-३५).
आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का हिस्सा पीठिका, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: आभिणिबोहियनाणं; अंति:
अणुओग पईव दिट्ठतो, गाथा-८१. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का हिस्सा पीठिका का बालावबोध, ग. संवेगदेव, मा.गु., गद्य, वि. १५१५, आदि:
श्रीवर्द्धमान; अंति: स्वपरार्थसिद्ध्यै. ६३०४६. (#) स्तुति, स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७३-४०(१ से ५,१३,१७,२० से २३,२५ से २६,३५ से ४३,५१
से ५२,५४,५७ से ७१)=३३, कुल पे. ४६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १३४३५-३९). १.पे. नाम. सामाई पोसह पारिवा गाथा, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
सामायिकपारणसूत्र, हिस्सा, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सेसो संसार फल हेउ, (पू.वि. सूत्र-२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. प्रतिक्रमण सूत्रांश, पृ. ६अ, संपूर्ण. आयरियउवज्झायसूत्र-प्रतिक्रमणसूत्रगत, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: आयरिय उवज्झाए सीसे; अंति: करेमिकाउसग्गं,
गाथा-४. ३. पे. नाम. नवखंडापार्श्वनाथ स्तुति, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थ, सं., पद्य, आदि: श्रीसेढीतटिनीतटे; अंति: सदा ध्यायामि मानसे, श्लोक-२. ४. पे. नाम. चौदनियम गाथा, पृ. ६आ, संपूर्ण.
श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सच्चित्त दव्व विगई; अंति: दिसिन्हाण भत्तेसु, गाथा-१. ५. पे. नाम. तेरकाठिया नाम, पृ. ६आ, संपूर्ण.
१३ काठिया गाथा, प्रा., पद्य, आदि: आलस्स मोहवन्ना थंभा; अंति: पखेव कोहला रमणा, गाथा-१. ६. पे. नाम. राईसंथारा गाथा, पृ. ६आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन चैत्यवंदन, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: चउक्कसायपडिमलुल्लरण; अंति: पयउ पासपयत्थौ वंछिय, गाथा-२. ७. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ६आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
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शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु, पद्य, आदि: श्रीशत्रुंजयमंडण आदि, अंति: नंदि०तुम्ह पाय सेवता, गाथा ४. ८. पे. नाम. सीमंधर स्तुति, पृ. ६ आ-७अ संपूर्ण.
बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न, अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४.
९. पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तुति, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतकसुप्रपंचपरमा; अंति: सिद्धायिका नायिका, श्लोक-४. १०. पे. नाम. लघ्वीखीछंदसि स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: दद्यात्सौख्यम्, श्लोक - १.
११. पे. नाम. अणोझा स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदिः यदंहिनमनादेव देहिन, अंतिः नित्यं मम मंगलेभ्यः, श्लोक-४. १२. पे. नाम. अष्टमीतप स्तुति, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण.
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अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: महामंगलं अष्ट सोहै, अंति: विहसंति कल्याणदाता, गाथा-४. १३. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. ८अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: हर्षनतासुरनिर्जरलोकं; अंति: मज्जनशस्तनिजाघः, श्लोक-४.
१४. पे. नाम. अर्बुदाचले आदिनाथ स्तुति, पृ. ८अ संपूर्ण.
आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., पद्य, आदि: वरमुत्तियहार सुतारगण, अंति: सुहाणि कुणेसु सया, गाथा-४. १५. पे नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदि: शमदमोत्तमवस्तुमहापणं; अंति: जयतु सा जिनशासनदेवता, श्लोक-४.
१६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ८आ, संपूर्ण
पार्श्वजिन स्तुति - पलांकित, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञं ज्योति; अंति: वृद्धिं वैदुष्यम्, श्लोक-४.
१७. पे. नाम ऋषभजिन स्तुति, पृ. ८आ- ९अ संपूर्ण.
आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि ऋषभनाथ भनावनिभानने, अंतिः तनुभातनुभातनु भारती, श्लोक-४.
,
१८. पे. नाम. मौन एकादशी स्तुति, पृ. ९अ, संपूर्ण.
मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि, अंतिः विस्मित हृदः क्षिती० श्लोक-४. १९. पे. नाम. सर्व्वजिन स्तुति, पृ. ९अ - ९आ, संपूर्ण.
५ तीर्थजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीशत्रुंजयमुख्य; अंति: संतु भद्रंकराः, श्लोक-४.
२०. पे नाम, चौवीसजिन स्तुति, पृ. ९आ-१०अ संपूर्ण
साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: अविरल कवल गवल; अंति: देवी श्रुतोच्चयम्, श्लोक-४. २१. पे. नाम. दीपमालिका स्तुति, पृ. १०अ १०आ, संपूर्ण.
दीपावलीपर्व स्तुति, गच्छा. जिनचंद्रसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि पापायां पुरि चारु; अंति: शार्दूलविक्रीडितम्, श्लोक-४.
२२. पे नाम, पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १०आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रें दें कि धप; अंति: दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४.
२३. पे. नाम. महावीर स्तुति, पृ. १० आ - ११अ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुरति मनमोहन कंचन, अंति: इम श्रीजिनलाभसूरिंद,
गाथा-४.
२४. पे नाम, नेमिजिन स्तुति, पृ. १९अ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तुति - गिरनारमंडन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: गिरनार सिहर पर नेम, अंतिः जिनलाभसूर० फले सुगीस, गाथा- ४.
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२५. पे नाम, बीसविहरमान स्तुति, पृ. १९आ, संपूर्ण.
विहरमान २० जिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: पंचविदेह विषय; अंतिः जण मनवंछित सारै, गाथा-४. २६. पे. नाम. नेमनाथ स्तुति, पृ. ११-१२अ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
नेमिजिन स्तुति, मा.गु, पद्य, आदि: सुर असुर वंदीव पाय अंतिः करो ते अंबा देवीए गाथा ४. २७. पे. नाम महावीरजिन स्तुति, पृ. १२अ संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: बालपण डाबै पाय; अंतिः काम चढे प्रमाणे, गाथा ४.
"
२८. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १२अ १२आ, संपूर्ण
आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: निरुपम सुखदायक; अंतिः श्रीजिनलाभसूरिंदा जी, गाथा-४. २९. पे. नाम. पारणा स्तुति, पृ. १२आ, संपूर्ण.
महावीर जिन पारणा स्तुति, सं., पद्य, आदिः यत्पारणासु प्रथमासु, अंति: परागा तु मम प्रमोदम् श्लोक-४. ३०. पे नाम, पर्युषण पर्व स्तुति, पृ. १२आ, अपूर्ण, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है.
आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वलि वलि हुं घ्यावं, अंति: (-). ( पू. वि. गाधा- २ अपूर्ण तक है. ) ३१. पे, नाम, नवग्रहरक्षा स्तोत्र, पृ. १४अ अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है.
ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: ग्रहशांतिमुदाहृतम्, श्लोक-११, (पू. वि. श्लोक ८ अपूर्ण से है.)
३२. पे नाम, बृहद्शांति स्तोत्र, पृ. १४अ १६अ, संपूर्ण.
बृहत्शांति स्तोत्र- तपागच्छीय, सं., पग, आदि: भो भो भव्याः श्रृणुत; अंति: सिवं भवंतु स्वाहा.
३३. पे नाम, जयतिहुअण स्तोत्र, पृ. १६अ १८आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है.
आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि जय तिहुयणवरकप्परुक्ख, अंतिः अभयदेव० आनंदिअ, गाधा ३०, (पू.वि. गाथा - १० अपूर्ण से २३ अपूर्ण तक नहीं है.)
३४. पे. नाम. पगामसज्झाय सूत्र, पृ. १८ आ-१९आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक
से अधिक बार जुड़ी हुई है.
पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: चत्तारि मंगलं अरिहंत, अंति: (-) (पू.वि. पणवीसाए भावणाहिं
छब्बीसाएदसा" पाठ तक है.)
३५. पे. नाम. प्रव्रज्याकुलक प्रकरण, पृ. २४अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
प्रव्रज्या कुलक, प्रा. पद्य, आदि: (-); अंति: तरंति ते भवसलिलरासिं, गाथा- ३४ (पू. वि. गाथा २७ अपूर्ण से है.) ३६. पे, नाम, संथारापोरिसी सूत्र पृ. २४- २४आ, संपूर्ण.
संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीहि निसीहि निसीहि; अंति: इअ समत्तं मए गहिअं, गाथा - १०.
३७. पे, नाम, पगामसज्झाय सूत्र, पृ. २४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं है, पे. वि. वह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है.
पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदिः चत्तारि मंगलं अरिहंत अंति: (-) (पू. वि. "वोसिरामित्ति पावगंर आयरियाम पाठ तक है.)
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३८. पे. नाम. सप्तस्मरणानि, पृ. २७अ - ३४अ, संपूर्ण.
सप्तस्मरण- खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जिवसव्वभयं संत, अंतिः भवे भवे पास जिणचंद, स्मरण ७.
३९. पे. नाम. सप्त्युत्तरशतजिनचक्र स्तोत्र, पृ. ३४-३४आ, संपूर्ण.
विजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि तिजयपहुत्तपयासय अठ, अंतिः निब्धंतं निच्चमच्चेह, गाथा- १४.
४०. पे. नाम. नवग्रहगर्भित पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ३४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
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पार्श्वजिन स्तोत्र नवग्रहस्तुतिगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य वि. १४वी, आदि: दोसावहारवक्खो नालिया, अंति ( - ), ( पू. वि. गाथा - ५ अपूर्ण तक है.)
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४१. पे नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. ४४-४४आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि (-) अंति सवा पावप्पणामो तुह, गाथा ४४, ( पू. वि. गाथा - २७ अपूर्ण से है . )
४२. पे नाम, जीवविचार प्रकरण. पू. ४४आ- ४६आ, संपूर्ण
आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण, अंति: संतिसूरि० सुयसमुद्दाओ, गाधा-५१. ४३. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ४६आ - ४८आ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा, अंति: अनंतभागो य सिद्धिगओ, गाथा- ६०.
४४. पे. नाम. दंडक प्रकरण, पृ. ४८आ-५०आ, संपूर्ण.
मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीसजिणे तस्स, अंति: गजसारेण० अप्पहिआ, गाथा-४५. ४५. पे. नाम. सिंदूर प्रकर, पृ. ५० आ-५६आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि सं., पद्य वि. १३वी आदि सिंदूरप्रकरस्तपः अंति: (-) (पू. वि. गावा- ८५ अपूर्ण तक है.)
४६. पे. नाम. बृहत्संग्रहणी, पृ. ७२-७३आ, अपूर्ण, पू. वि. बीच के पत्र हैं.
आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, वि. ७पू, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा- २३९ अपूर्ण से २८४ अपूर्ण तक है.)
६३०४७. (#) विविधविषयगत कथासंग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३३, कुल पे. १२, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, १३x४३).
१. पे. नाम. अशोकदत्त कथा, पृ. १अ २आ, संपूर्ण.
अशोकदत्त कथा-वंचनाविषये, सं., गद्य, आदि: दक्षिणमथुरायां अशोक, अंति: बुद्धो व्रतं जग्राह .
२. पे. नाम. वर्द्धमानराजा कथा, पृ. २आ- ३अ, संपूर्ण.
वर्द्धमान कथा - लोभविषये, सं., गद्य, आदि: सभ्वलोकरहितं जगत्रये अंति: लोभः परिहर्त्तव्यः.
३. पे. नाम. यशोभद्र कथानक, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण.
यशोभद्र कथा प्रस्तावोक्तविषये, सं., गद्य, आदि: इहैव भरते साकेतनपुर, अंतिः भवति कोटिफलप्रदः. ४. पे. नाम. महासती मयणरेहा दृष्टांत, पृ. ४आ-८आ, संपूर्ण.
मदनरेखासती कथा, सं., प+ग, आदि शीलं प्रधानं न कुलं; अंतिः पाल्य त्रिदिवं जगाम
५. पे. नाम. नागदत्त कथानक, पृ. ८- ९आ, संपूर्ण.
"
नागदत्त कथा - अष्ठाह्निकातपविषये, सं., गद्य, आदिः तपः सर्वाक्ष सारंगः अंतिः रचयति पुण्यं कुरुते. ६. पे. नाम. सनतकुमार कथानक, पृ. ९आ-११आ, संपूर्ण.
सनत्कुमारचक्रवर्ति कथा-तपविषये, सं., गद्य, आदि: इहैव भरते कुरुदेशे अंतिः तृतीयदेवलोके गतः.. ७. पे. नाम. अमरचंद्र कथानक, पृ. ११ आ-१३आ, संपूर्ण.
अमरचंद्र कथा- भावनाविषये सं., गद्य, आदि: भावना सकललोक पावना, अंति: पालयित्वा मोक्षे गतः.
""
१९
८. पे. नाम. शुकराज कथानक, पृ. १३आ-१८अ संपूर्ण
शुकराज कथानक - अक्षतपूजा विषये, सं., गद्य, आदि अखंड फुडिय चक्क्ख, अंतिः सिद्धिं यास्यति ९. पे. नाम, मदनावली कथानक, पृ. १८अ २०आ, संपूर्ण,
मदनावली कथानक - गंधपूजा विषये, सं., गद्य, आदि: पणमह तं नाभिसुर्य अंति: बोध्य मोक्षं जगाम. १०. पे. नाम. हालिकराजा कथानक, पृ. २०आ- २३अ, संपूर्ण.
हालिक कथानक - नैवेद्यपूजा विषये, सं., गद्य, आदि: दोअइजो नेवज्जं जिण, अंतिः भवे मोक्षं यास्यति, ११. पे. नाम. दीपशिखो राजा कथानक, पृ. २३ अ - २५आ, संपूर्ण.
दीपशिखराजा कथानक - दीपपूजा विषये, सं., गद्य, आदि: दाऊण दीव यं जा; अंतिः धर्म्यं करोति. १२. पे. नाम ऋषिदत्ता कथानक, पृ. २५ आ-३३अ संपूर्ण
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ऋषिदत्तासती कथा, सं., गद्य, आदि: अत्रैव जंबूद्वीपे; अंति: उदारोनंदसंदोहमूहे. ६३०४८. (+#) दीपालिकाकल्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, ६-३२-३८). दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदि: श्रीवर्धमानमांगल्य; अंति: चंद्रार्कजगत्त्रये,
श्लोक-४३६, ग्रं. १५००.
दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अहँत बालबोधाना; अंति: करे ति लगे प्रतपो. ६३०४९. (+#) बृहत्संग्रहणी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४०, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, ७:१९-२४).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिई; अंति: स्त्रीगई राई गई ठेई, गाथा-३४९. ६३०५०.(+#) आचारप्रदीप, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७६-३३(३ से ३५) ४३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ४०६१, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १७४५६-६०). आचारप्रदीप, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १५१६, आदि: श्रीवर्द्धमानमनुपमवि; अंति: जयदायकश्च विदाम,
प्रकाश-५, (पू.वि. प्रथम प्रकाश- श्लोक-३५ अपूर्ण से द्वितीय प्रकाश, "कोकाशकाकजंघनृपोपाख्यान" अपूर्ण तक
नहीं है.) ६३०५१. (+) व्याख्यान संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४२, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १२४३९). १.पे. नाम. चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, पृ. १आ-१३अ, संपूर्ण.
उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., गद्य, आदि: स्मारं स्मारं स्फुरद; अंति: सर्वेष्टार्थसिद्धिः, ग्रं. ४०१. २.पे. नाम. अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, पृ. १३अ-२६आ, संपूर्ण.
उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: शांतीशंशांतिकर्ता; अंति: पद्यबंधं विलोक्य तत्. ३. पे. नाम. वरदत्तगुणमंजरी कथा, पृ. २६आ-३२अ, संपूर्ण. वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि:
श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: कनककुशलच मेडता नगरे, श्लोक-१४८. ४. पे. नाम. चातुर्मासिक व्याख्यान, पृ. ३२आ-३४आ, संपूर्ण... होलिकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८३५, आदि: होलिका फाल्गुने मासे; अंति:
व्याख्यानमाख्यानभृत्. ५. पे. नाम. मौनएकादशी व्याख्यान, पृ. ३४आ-३९अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनंदिसूरि, सं., पद्य, वि. १५७६, आदि: अन्यदा नेमिरीशाने; अंति:
हम्मीरपुरसंश्रितैः, श्लोक-११८. ६. पे. नाम. पौषदशमीपर्व कथा, पृ. ३९आ-४२अ, संपूर्ण.
मु. जिनेंद्रसागर, सं., पद्य, आदि: ध्यात्वा वामेयमहँत; अंति: शीघ्रं रचयांचकार, श्लोक-७५. ६३०५२. श्रीपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १९६२, भाद्रपद शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. ४१, ले.स्थल. धुलीया, प्रले. पुनमचंद व्यास (नागोरवाला), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११, १३४२८).
श्रीपाल चरित्र, ग. जयकीर्ति, सं., गद्य, वि. १८६८, आदि: प्रणम्य सिद्धचक्रं; अंति: श्रीसद्गुरुप्रसादात्, प्रस्ताव-४. ६३०५३. (+) रूपसेनराजेंद्रकथानक-चतुर्नियमपालने, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., जैदे., (२६४११, ११४४१). रूपसेनकनकावती चरित्र-चतुर्थव्रतपालने, आ. जिनसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीमंतं विदुरं शांत; अंति: सुकृताय कृता
कथा, श्लोक-२२४. ६३०५४. (+) बृहत्संग्रहणी सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१०,११-१६x४२-४६).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२७३ तक है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
बृहत्संग्रहणी- बालावबोध, ग. दयासिंह, मा.गु., गद्य वि. १४९७, आदि: अरिहंतदेव नमस्करी नह, अंति: (-). ६३०५५, (+) आराधनापताका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैदे. (२६४११,
१३४३९-४४).
"
आराधनापताका, प्रा., पद्य, आदि: पणमिर नरिंददेविंदवंद, अंतिः हेउ सेवह आराहणाअमयं गाथा - ९२९. ग्रं. १०७०. ६३०५६. (+) सप्तस्मरण- खरतरगच्छीय सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३३, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६४१०.५,
१३x४४).
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सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअं जिअ सव्वभयं; अंतिः भवे भवे पास जिणचंद, स्मरण- ७.
सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नत्वा श्रीपार्श्वजिन; अंति: हो पार्श्वनाथ जिनचंद. ६३०५७. (+) गणधरसार्धशतक सह टीका, संपूर्ण, वि. १६५१, आश्विन कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ. ३२, ले. स्थल. वीरमपुर, प्रले. ग. सोमसुंदर (गुरु मु. रंगसुंदर, खरतरगच्छ); गुपि. मु. रंगसुंदर (गुरु मु. विनयसोम, खरतरगच्छ); मु. विनयसोम (गुरु आ. जिनमाणिक्यसूरि, खरतरगच्छ); आ जिनमाणिक्यसूरि (गुरु गच्छाधिपति जिनसिंहसूरि, खरतरगच्छ गच्छाधिपति जिनसिंहसूर (गुरुआ जिनचंद्रसूरि, खरतरगच्छ); आ. जिनचंद्रसूरि (गुरु आ . जिनमाणिक्यसूरि, खरतरगच्छ); आ. जिनमाणिक्यसूरि (गुरु गच्छाधिपति जिनहंससूरि, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. जैवे. (२६.५४११, १५४४९)
"
गणधरसार्धशतक, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: गुणमणिरोहणागिरिणो अंतिः तं भवरविसंतावमवहरउ,
-
२१
गाथा - १५०.
गणधरसार्धशतक-लघुवृत्ति #, ग. सर्वराज, सं., गद्य, आदि: प्रतन्यात्प्रथमजिनपत; अंति: कमला पाणिग्रेणोत्सवं. ६३०५८. (१) श्राद्धदिनकृत्य सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १६५७, पौष शुक्ल ३, शनिवार, मध्यम, पृ. ३८-७ ( ४ से ५,१५ से १९) = ३१, ले. स्थल. अवंतिका (मालवद, प्रले उधव जोसी, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. त्रिपाठ, टीकादि का अंश नष्ट है, प्र. ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६X१०.५, १ - ३५८).
आद्धदिनकृत्य प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वीरं नमिऊण तिलोयभाणु अंतिः मिच्छामिह दुक्कडंति,
गाथा-३४१, ग्रं. ३९०, (पू. वि. गाथा - २० अपूर्ण से ३८ अपूर्ण तक व गाथा - १४८ अपूर्ण से १८१ अपूर्ण तक नहीं है.)
श्राद्धदिनकृत्य अवचूरि, सं., गद्य, आदिः श्रीवीरं नत्वा श्राद, अंतिः राह अयाएमाणेण.
६३०६० () सूत्रकृतांगसूत्र सह वालावबोध, त्रुटक, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ९०-४२ (१ से ९, १३ से १२४, १६, १८ से २०,२२ से २३,२५ से ३०,३२ से ३४,३६ से ३८, ४१ से ४२,५३,५६,६२,६७,७०,७२ से ७५, ८४) = ४८, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,
प्र. वि. स्याही उखड़े होने एवं पत्र खंडित होने के कारण कुछ पत्रों के पत्रांक का पता नहीं चल रहा है, इसलिये पाठ के आधार पर पत्रों की गिनती करके पत्रांक की सूचना भरी गई है।, पंचपाठ. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२६X१०.५, ७X२५).
सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. श्रुतस्कंध १ अध्ययन- १ उद्देश३ अपूर्ण से अध्ययन १४ अपूर्ण तक के बीच-बीच के पाठांश हैं.)
११४३७-४६)
१. पे. नाम, चतुः शरण प्रकीर्णक, पृ. १अ- ३आ, संपूर्ण.
सूत्रकृतांगसूत्र- बालावबोध * मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण.
६३०६१. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २८, प्र. वि. संशोधित, जैये. (२६४११, ६४३३-३६)दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठे, अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अध्ययन-६, गाथा १२ अपूर्ण तक है. )
,
दशवैकालिकसूत्र - टवार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि श्रीजिनधर्म उत्कृष्ट अंति: (-) (पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. अध्ययन- ३ अपूर्ण तक लिखा है.)
६३०६२ (+) चतुः शरणादि प्रकीर्णक संग्रह, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, कुल पे. ६, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२७४१०,
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२२
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ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई, अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा - ६३. २. पे. नाम. आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, पृ. ३आ- ७अ, संपूर्ण
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ग. वीरभद्र, प्रा., प+ग., वि. ११वी, आदि: देसिक्कदेसविरओ, अंतिः खयं सव्वदुरियाणं, गाथा - ६०. ३. पे नाम, उत्तराध्ययनसूत्र का २४वाँ सामाइअ अध्ययन, पृ. ७अ ८अ संपूर्ण.
उत्तराध्ययनसूत्र. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: (-): अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
४. पे. नाम. भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक, पृ. ८अ - १५अ, संपूर्ण.
ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण महाइसयं महाणु, अंति: सोक्खं लहइ मोक्खं, गाथा- १७१. ५. पे. नाम. संस्तारक प्रकीर्णक, पृ. १५ अ २०अ, संपूर्ण.
ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: काऊण नमोकार जिणवर अंतिः सुहसंकमणं मम दिंतु, गाथा- १२०. ६. पे. नाम. चंद्रावेध्यक प्रकीर्णक, पृ. २०अ २६ आ. संपूर्ण
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प्रा., पद्य, आदि: जगमत्थयत्थयाणं विगसि, अंति: दुग्गइविणिवायगमणाणं, गाथा - १७४. ६३०६३. (*) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, जयतिहुअण स्तोत्र व पोरसीसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २५, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६५११, ५२४-२७).
1
१. पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टबार्थ, पृ. १अ - १८आ, संपूर्ण.
साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र - खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि नमो अरिहंताणं, अंतिः वंदामि जिणे
चउव्वीसं.
साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र - खरतरगच्छीय का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंतनइ माहरु; अंति: चउवीस तीर्थंकर प्रति.
२. पे. नाम. जयतिहुअणस्तोत्र सह टबार्थ, पृ. १८ आ- २५आ, संपूर्ण.
जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंतिः
9
"
अभयदेव० विनवह अणिविअ, गाथा ३०.
जयतिहुअण स्तोत्र - टवार्थ *, मा.गु, गद्य, आदि: जय कहतां जयवंत थाओ, अंतिः नही किणही तुं.
३. पे नाम, प्रत्याख्यानसूत्र सह टबार्थ, पृ. २५आ, अपूर्ण. पू. वि. अंत के पत्र नहीं है.
प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: पोलसिंगंठि सहियं, अंति: (-), (पू.वि. "गिहत्थ संसट्टेणं उक्खित्तविवेगेणं" तक पाठ है.)
प्रत्याख्यानसूत्र- टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
६३०६४. (+) दानप्रकाश, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. २५, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित, जैये., ( २४.५x१०.५,
१३x४०-५३).
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दानप्रकाश, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५६, आदि: श्रीपार्श्वः पार्श्व, अंति: (१) यत्नमिहैव महोद्यताः, (२) ग्रंथोयं कनककुशलेन, प्रकाश-८.
६३०६५. (+) अंतकृद्दशांगसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २४, अन्य श्राव. जेष्टाजी, श्राव. पुनमचंद शाह, श्राव. जवेरचंद सेठ, श्रावि. तुलसी पुनमचंद्र शाह (पति श्राव. पुनमचंद शाह); आ. राजेंद्रसूरि; श्राव. लालचंद पुमनचंद्र शाह (पिता श्राव. पुनमचंद शाह), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. वि. १९४१ में इस प्रति को राजपुर के भांडागार में रखने का उल्लेख मिलता है., पंचपाठ-टिप्पणयुक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैदे. (२६४१०.५, ९-१५X३६-४०).
अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: जहा नायाधम्मकहाणं,
अध्याय ९२, ग्रं. ७९०,
अंतकृद्दशांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: अथांतकृतदशासु किमपि; अंति: विधीयतां सर्वथा, वर्ग-८.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
६३०६६. (+) चंद्रधवलभूपधर्मदत्तश्रेष्ठि कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८८, आश्विन कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ. २४, ले. स्थल, समाणानगर, प्रले. मु. हरजी ( अज्ञा. मु. गोविंद) लिख. मु. गोविंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५४११, ९४३८-४७).
י
चंद्रधवलभूप धर्मदत्तश्रेष्ठि कथा, आ. माणिक्यसुंदरसूरि सं., पद्य, आदि चतुर्थी कथा प्रोक्ता अंतिः कथांसी लभतां तथा, श्लोक - ९८.
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उत्तराध्ययनसूत्र- सुखबोधा टीका की कथा का अनुवाद, मु. मुनिसुंदरसूरि - शिष्य, सं., गद्य, सर्वसिद्धाश्च; अंति: (-), प्रतिपूर्ण
चंद्रधवलभूपधर्मदत्तश्रेष्ठिकथा-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि चउथी कथा कही पोसह अंतिः कथा या करता पामो सुख. ६३०६७. उत्तराध्ययनसूत्र लघुवृत्तिगत प्राकृत कथा का संस्कृत अनुवाद - कथा. १ से १८, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदे. (२५.५x११. १६४५०-५७).
आदि: अर्हतः
६३०६८. (+) कल्पसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०७८४ (१ से ८१,८९,१०२ से १०३ ) = २३, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे. (२६४११, ६४३२).
"
"
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-) अंति: (-) (पू. वि. स्थविरावली अन्तर्गत आर्य भद्रवाह वर्णन के प्रसंग अपूर्ण से संवत्सरी के दिन करने योग्य क्रियाओं का वर्णन अपूर्ण तक के बीच-बीच के पाठांश हैं.) कल्पसूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
ग. जिनवल्लभ, प्रा., पद्म, आदिः सयलंतरारि वीरं बंदिय; अंतिः विवोहितु सो हिंतु, गाथा- १५८.
४. पे. नाम. प्राचीन द्वीतीय कर्मग्रंथ, पृ. १४अ- १६अ, संपूर्ण.
२३
६३०६९. (+#) संदेहदोलावली, सूक्ष्मार्थविचारसारोद्धारादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २७-५ (१ से २,५ से ७)=२२, कुल पे. ७. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२६११, १३४५५).
१. पे. नाम. संदेहदोलावली, पृ. ३अ ४आ, अपूर्ण, पू. वि. बीच के पत्र हैं.
संदेहदोलावली प्रकरण, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. गाथा ४८ अपूर्ण से ११२ अपूर्ण तक है.)
२. पे. नाम. आगमिकवस्तुविचार सार, पृ. ८अ ९अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं.
षडशीति प्राचीन कर्मग्रंथ, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सुणंतु गुणंतु जाणंतु, गाथा- ८६, (पू. वि. गाथा ५० अपूर्ण से है.)
३. पे. नाम. सूक्ष्मार्थविचारसारोद्धार, पृ. ९अ १४अ, संपूर्ण.
कर्मस्तव प्राचीन कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण जिण वरिंदे, अंति: दंसणसुद्धिं समाहिं च गाथा ५७. ५. पे. नाम. कर्मविपाक, पृ. १६अ - २१अ, संपूर्ण.
कर्मविपाक प्राचीन कर्मग्रंथ, ऋ. गर्ग महर्षि, प्रा., पद्य, आदि: ववगयकम्मकलंकं वीरं; अंति: कम्मविवागं च सो अइरा, गाथा - १६८.
६. पे. नाम. पौषधविधि प्रकरण, पृ. २१अ-२५आ, संपूर्ण.
आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि जस्सुद्धट्ठियमुल्लसि अंति: गुणंतु विहिरया, ग्रं. १५०.
७. पे नाम प्रतिक्रमण सामाचारी, पृ. २५ आ-२७अ, संपूर्ण
प्रतिक्रमण समाचारी, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सम्मं नमिउं देविंद, अंति: जिनवल्लभगणि० तस्स,
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गाथा ४०.
६३०७० (+) भाष्यत्रय सह बालावबोध व असनपाणादि विचार संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २२ कुल पे. २, पठ. ग. मानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे., (२५x१०.५, १४४४९). १. पे. नाम. भाष्यत्रय सह बालावबोध, पृ. १अ २२अ, संपूर्ण, पे. वि. उपयोगी यंत्र दिया गया है.
भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे, अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३,
गाथा - १४५.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भाष्यत्रय-बालावबोध, मु. धर्मरत्नसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमद्वीरजिनस्वामी; अंति: पामइ छइ पामिस्यइ. २.पे. नाम. असनपाणादि विचार संग्रह, पृ. २२आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है.
___असनपाणादि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मुंगरुं लेके सर्व; अंति: अगर प्रमुख जाणवा. ६३०७१.(+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५-१३(१ से १३)=२२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११,५४४१). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. धारिणी रानी के स्वप्न देखने के
बाद स्वप्न पाठक के आने के प्रसंग से मेघकुमार के नामकरण संस्कार वर्णन तक का पाठ है.)
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६३०७२. (#) प्रतिष्ठाकल्प, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २४-४(७ से ९,२२)=२०, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१०.५, १०४३३). जिनबिंब प्रतिष्ठा कल्प, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: प्रतिप्रशाद प्रतिष्ठ; अंति: (-), (पू.वि. पंचम दिवस नंदीश्वरद्वीप पूजा
अपूर्ण तक बीच-बीच के पाठ हैं.) ६३०७३. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १६६३, कार्तिक कृष्ण, १४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ५९-३९(१ से ३९)=२०, अन्य. मु. हस्तिराम; मु. रूपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१०.५, १३४३१-३५). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: रोषोक्तावु
नतौ नमः, कांड-६, ग्रं. १४५२, (पू.वि. कांड-३, श्लोक-६१ अपूर्ण से है.) ६३०७४. (+) अंतकृद्दशांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १५८४, माघ शुक्ल, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २०, ले.स्थल. अहिपुर, प्रले. पं. विशालविजय;
पठ. ग. भावमंडन (अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७४११, १५४४५).
___ अंतकृदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: पण्णत्ते त्तिबेमि, अध्याय-९२, ग्रं. ८९९. ६३०७५. (+) उपदेशमाला, पूर्ण, वि. १७३८, चैत्र शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. २०-१(१२)=१९, ले.स्थल. सूरतबंदर, प्रले. ग. ललितसागर
(गुरु उपा. रत्नसागर); गुपि. उपा. रत्नसागर; पठ. श्राव. केशवजी वेलजी, श्राव. वल्लभजी वेलजी; श्राव. जिनदास वेलजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाकर बाद में लिखी गई प्रतीत होती है., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२५४११, १३४४४-४७). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५४४,
(पू.वि. गाथा ३०५ अपूर्ण से ३३५ अपूर्ण तक नहीं है.) ६३०७६. (+) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७८६, जीर्ण, पृ. १९-१(१५)=१८, ले.स्थल. लूणकरणसर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५४१०, ४४३६-४३). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: वंदामि जिणे
चउवीस, (वि. १७८६, आश्विन कृष्ण, १३, पू.वि. वंदित्तुसूत्र गाथा १३ अपूर्ण से गाथा २३ अपूर्ण तक नहीं है.,
प्रले. पं. दुलीचंद (गुरु पं. सदासुख गणि), प्र.ले.पु. सामान्य) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमो कहतां नमस्कार; अंति: जिन तीर्थंकर
चउवीसेई, (वि. १७८६, आश्विन शुक्ल, २, शनिवार, प्रले. मु. दीपचंद; मु. ईसरदास (गुरु पं. सदासुख गणि); गुपि.पं. सदासुख गणि (गुरु वा. दर्शनसुंदर गणि); वा. दर्शनसुंदर गणि (परंपरा आ. कीर्तिरत्नसूरि); आ. कीर्तिरत्नसूरि
(बृहत्खरतर गच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम) ६३०७७. (+) गणरत्नमहोदधि सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४८-२९(१ से २५,२७,३०,३६,४३)=१९, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १७४६०-६५). गणरत्नमहोदधि, आ. वर्द्धमान, सं., गद्य, वि. ११९७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ११४ से २७४ तक के
बीच-बीच के पाठांश हैं.)
गणरत्नमहोदधि-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. वर्द्धमान, सं., गद्य, वि. ११९७, आदि: (-); अंति: (-). ६३०७८. अंतगडदशा विवरण, संपूर्ण, वि. १८९४, आश्विन, मध्यम, पृ. १८, जैदे., (२५४११, १०४२९-३२).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
अंतकृद्दशांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: अथांतकृतदशासु किमपि; अंति: विधीयतां
सर्वथा, वर्ग-८. ६३०७९. (+) दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८७३, आश्विन कृष्ण, ११, मंगलवार, मध्यम, पृ. १८, ले.स्थल. जतारण,
प्रले. सा. स्याइ (गुरु सा. गोराजी आर्या); गुपि. सा. गोराजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०, १६x४२). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: अपुणागमं गइ त्तिबेमि,
अध्ययन-१०, (वि. चूलिका २) ६३०८०. माधवानल चौपई, संपूर्ण, वि. १८०१, पौष कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. साथियानगर, प्रले.ग. प्रधानविजय (गुरु ग. प्रतापविजय पंडित); गुपि.ग. प्रतापविजय पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४१०.५, ११४२३). माधवानल चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६१६, आदि: देवी सरसती देवी; अंति: कुशल०सुख पामें
संसार, गाथा-४८३. ६३०८१. चित्रसेनपद्मावती चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदे., (३०.५४१४, १३-१५४४८).
चित्रसेनपद्मावती चरित्र, आ. महीतिलकसूरि, सं., पद्य, वि. १५२४, आदि: नत्वा जिनपतिमाद्य; अंति: पाठक
राजवल्लभः, श्लोक-४९८. ६३०८२. (#) सप्तस्मरण खरतरगच्छीय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७५१, ज्येष्ठ कृष्ण, १०, मंगलवार, मध्यम, पृ. १६,
ले.स्थल. महाजन, प्रले. मु. जिनहस, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. *अबरख युक्त पत्र है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११,५४५५).
सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअसव्वभयं; अंति: नमामि साहम्मिया
तेवि, स्मरण-७.
सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अजितनाथ जिता जिण सघल; अंति: साधु ते सर्व पुणिति. ६३०८३. (+) दंडक प्रकरण सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१०.५, ५-१३४३४-४०). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ३० तक लिखा है.) दंडक प्रकरण-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनई चउवीस; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण. दंडक प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: थमा १ वंसा २ सेला ३; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण. ६३०८४. (+) उपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-३(३,८ से ९)=१५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १३४५२).
उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५४४,
(पू.वि. गाथा- ५० अपूर्ण से ८१ अपूर्ण तक व गाथा- २०५ अपूर्ण से २६७ अपूर्ण तक नहीं है.) ६३०८५. (+) विचित्रविचार सार, संपूर्ण, वि. १८०२, कार्तिक शुक्ल, १०, बुधवार, मध्यम, पृ. १५, ले.स्थल. लांबा, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १०४३५).
विचित्रविचार सार, प्रा., पद्य, आदि: चुल्लग १पासग २ धन्न; अंति: तेण पमाऊन कायव्वो, गाथा-१७६. ६३०८६. (+#) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६६८, आश्विन शुक्ल, १०, जीर्ण, पृ. १४, प्रले. मु. कल्याणसागर
(तपगच्छ); राज्ये आ. विजयचंद्रसूरि (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक के गुरु का नाम अवाच्य है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ६४३०-४०). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: वंदामि जिणे
चउवीसं. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंतनइ माहरु; अंति: चउव्वीस प्रतई.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६३०८७. (#) रूपसेन चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. श्राव. रामचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १९-२३४५५-७०). रूपसेनकनकावती चरित्र-चतुर्थव्रतपालने, आ. जिनसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीमंतं विदुरं शांत; अंति: सुकृता कथिता
कथा, श्लोक-३१७. ६३०८८. (+) अंतकृद्दशांगसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, १६x६३-६६).
अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: जहा नायाधम्मकहाणं, अध्याय-९२,
ग्रं. ८९९. अंतकृद्दशांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: अथांतकृतदशासु किमपि; अंति: विधीयतां
सर्वथा, वर्ग-८. ६३०८९. (+) प्रतिक्रमसूत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९-५(१ से ३,९ से १०)=१४, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त
विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०.५, ५-७X४२-४७).. १.पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. ४अ-११आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., प्रले. ग. जयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: क्षेत्रदेवताः, (पू.वि. जयवियराय
सूत्र अपूर्ण से बीच-बीच के पाठ हैं.) २. पे. नाम. वंदित्तुसूत्र, पृ. ११आ-१५आ, संपूर्ण. ___संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्ध; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. ३. पे. नाम. स्थंभनकपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १५आ-१९आ, संपूर्ण. जयतिहअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंति: विण्णवइ
अणिंदिय, गाथा-३०. ६३०९०. पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४, पठ. मु. जीतविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०,११४३८).
पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: मणसा मत्थेण वंदामि. ६३०९१. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८१०, श्रावण कृष्ण, १३, शनिवार, मध्यम, पृ. १२,
कुल पे. २, ले.स्थल. गंधार, प्रले. मु. देवीचंद ऋषि (गुरु मु. रामचंद ऋषि); गुपि.मु. रामचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ४५१, जैदे., (२५.५४११, ४४२७-३१). १.पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-१२अ, संपूर्ण. कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते,
श्लोक-४४, संपूर्ण. कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कल्याण क० मंगलिक; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., श्लोक ३८ तक लिखा है.) २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १२आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है.
पार्श्वजिन स्तवन-मक्षीजी मंडन, पुहि., पद्य, आदि: ऐसा मुख मगसी का; अंति: लायो पायो शुद्ध परम, गाथा-१०. ६३०९२. (#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा व्याख्यान-५ से ९, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २८-१५(१ से १५)=१३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४११, १३-१५४४१-४३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. भगवान महावीरस्वामी के तप
प्रसंग अपूर्ण से केवलज्ञान प्राप्ति प्रसंग अपूर्ण तक का पाठ है.) कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण.
कल्पसूत्र-व्याख्यान कथा *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ६३०९३. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थव बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६७-५४(१ से ५४)=१३, पू.वि. बीच के
पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६४१०.५, २-५४४०).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अति: (-), (पू.वि. अध्ययन १२ गाथा ४३ अपूर्ण से अध्ययन
१५ गाथा ७ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
उत्तराध्ययनसूत्र-बालावबोध*,मा.गु., गद्य, आदिः (-); अति: (-). ६३०९४. (+#) चतुर्मासव्याख्यान व पट्टावली, संपूर्ण, वि. १७८८, वैशाख कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. २,,
प्रले. उपा. कर्पूरविजय गणि (गुरु ग. लक्ष्मीसमुद्र, खरतरगच्छ); पठ. पं. तत्त्ववल्लभमुनि; पं. रंगवल्लभ गणि (गुरु उपा. राजसोम गणि, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४४५). १. पे. नाम. चातुर्मासिक व्याख्यान, पृ. १आ-८अ, संपूर्ण. चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६५, आदि: प्रणम्य परमानंदात्; अंति:
समयसुंदर० व्याख्याम्. २. पे. नाम. पट्टावली खरतरगच्छी, पृ. ८अ-१३आ, संपूर्ण. पट्टावली खरतरगच्छीय, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीमहावीरस्वामीनै; अंति: तत्त्ववल्लभमुनिः, (वि. श्रीजिनभक्तिसूरिजी के
बाद अलग से अन्य नाम जोडा गया है.) ६३०९५. (#) नलदमयंती चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५-२(१ से २)=१३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८.५४९, ९४४२-४३).
नलदमयंती चरित्र, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक २८ अपूर्ण से २९९ अपूर्ण तक है.) ६३०९६. (+) चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९०१, आषाढ़ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. जेसलमेरदुर्ग,
प्रले. मु. सवाईसागर (गुरु मु. विजयसागर, तपागच्छ); गुपि.मु. विजयसागर (तपागच्छ); अन्य. पं. तिलोकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२४४११, १२४४०). चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., गद्य, आदि: स्मारं स्मारं स्फुरद; अंति: सर्वेष्टार्थसिद्धिः,
ग्रं. ४०१. ६३०९७. (+#) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४०-२८(१ से २८)=१२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पणयुक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५४१०.५, ५४४७). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-६ गाथा-६०
अपूर्ण से अध्ययन-९ उद्देशक- २ गाथा-५ तक है.)
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६३०९८. योगशास्त्र की वृत्ति- प्रकाश १ से ४, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदे., (२६.५४११, २३४५७-७०).
योगशास्त्र-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: अत्र महावीरायेति; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण,
वि. मूल कृति का प्रतीक पाठ लिखा हुआ है.) ६३०९९. हेतुगर्भप्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदे., (२६४११, १७४६०).
प्रतिक्रमणगर्भहेतु, संबद्ध, आ. जयचंद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, वि. १५०६, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति:
कृप्तश्चिरनंदनात्. ६३१००. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०, १३४३१-३५).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१ जीवार पुण्णं३; अंति: परियट्टो चेव संसारो, गाथा-४१. नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, पं. सुमतिकलश, मा.गु., गद्य, आदि: नमिऊण महावीरं नरिंद; अंति: सुमइकलस०
सपरोवयाराय. ६३१०१. (#) षट्प्राभृत सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २४-१३(१ से १०,१३,१५,१७)=११,प्र.वि. मूल पाठ का अंश
खंडित है, जैदे., (२५.५४९.५, ११४४३).
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२८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची षट्प्राभृत, आ. कुंदकुंदाचार्य, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्राभृत-३ गाथा-४१ से
प्राभृत-५ गाथा-६० तक लिका बीच बीच के पाठांश हैं.)
षट्प्राभृत-टीका, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ६३१०२. (+#) कर्मप्रकृति, संपूर्ण, वि. १५३९, मार्गशीर्ष कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ११, अन्य. आ. कुंदकुंदाचार्य (सरस्वतीगच्छ);
मु. कल्याणकीर्ति (गुरु मु. रत्नकीर्ति, सरस्वतीगच्छ-मूलसंघ-बलात्कारगण); गुपि.मु. रत्नकीर्ति (गुरु आ. जिनचंद्रदेव, सरस्वतीगच्छ-मूलसंघ-बलात्कारगण); आ. जिनचंद्रदेव (गुरु आ. शुभचंद्रदेव, सरस्वतीगच्छ-मूलसंघ-बलात्कारगण); अन्य. पंडित. रायमल्ल पांडे; रामदास; श्रावि. पुरीबाई; श्राव. तेजा; श्रावि. रोहिणी; श्राव. चोखा; श्राव. पुना; श्राव. पाल्हा; श्रावि. दामा, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२६.५४१०.५, १०४३६-४१). कर्मप्रकृति, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि: पणमिय सिरसा णैमि; अंति: न लहई जं इच्छियं जेण,
गाथा-१५९, (वि. अंतिम पृष्ठ पर कर्मप्रकृति भांगा का कोष्ठक सहित उल्लेख किया गया है.) ६३१०३. बृहत्संग्रहणी, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४१०, १२४५०).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउ अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६७ अपूर्ण
तक है.) ६३१०४. (+#) सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे.,
(२६.५४११.५, १३४२८-३५). १. पे. नाम. नववाडी सज्झाय, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण. नववाड सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: श्रीनेमसर चरण जुग; अंति: धारा हो जुगते नववाडि,
ढाल-११, गाथा-१०२. २. पे. नाम. छ जीव ढाल, पृ. ५आ-१०आ, संपूर्ण. ६जीव पंचढालियो, मु. सुगुणनिधान, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमि पास जिणंदने; अंति: हंसला जी सुगुण नीधान,
ढाल-५, गाथा-११०. ३. पे. नाम. पांच संवादनी ढालु, पृ. १०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ५ कारण छ ढालिया, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सिधारथसुत वंदीइ; अंति: (-),
(पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ६३१०५. उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५५-४५(१ से ४३,५० से ५१)=१०, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६४१०.५, ११४४६). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२८ गाथा-२४ अपूर्ण से
अध्ययन-३२ गाथा-१०९ अपूर्ण तक बीच-बीच के पाठ हैं.) ६३१०६. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १४४३४). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते,
श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: (१)सर्वसौख्यस्य कारकं, (२)कल्याण क० मांगलिक्य;
अंति: सिधसेनाचार्य इति नाम. ६३१०७. (+#) अंतकृद्दशांगसूत्र टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२३४९, १५४४१). अंतकृद्दशांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: अथांतकृतदशासु किमपि; अंति: ननु
विधीयतां सर्वथा.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६ ६३१०८. (+) संबोधसप्ततिका सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२-२(१ से २)=१०, पठ. श्रावि. सोहागदे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, ४-३२-३५).
संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: जयसेहर नत्थि संदेहो, गाथा-७६, (पू.वि. गाथा-१०
__ अपूर्ण से है.)
संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: ते मोक्षना सुखपामइ. ६३१०९. (+) स्याद्वादरत्नाकर- परिच्छेद २, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, अन्य. पं. कल्याणकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १५४३५-५३). प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार-स्याद्वादरत्नाकर स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. वादिदेवसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-),
प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ६३११०. (+#) षष्टिशतक प्रकरण, गाथा संग्रह व आध्यात्मिक पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १६७४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ४, मध्यम,
पृ. १०, कुल पे. ५, ले.स्थल. शितपुर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२७४११.५, ७४४७). १.पे. नाम. षष्टिशत प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ-१०आ, संपूर्ण.
षष्टिशतक प्रकरण, श्राव. नेमिचंद्र भंडारी, प्रा., पद्य, आदि: अरिहं देवो सुगुरू; अंति: नेमिचंद० जंतु सिवं, गाथा-१६१.
षष्टिशतक प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: अढार दोष रहित; अंति: सुख पामउ सुखीया थाओ. २. पे. नाम. जीवाभिगम सूत्रांतर्गत गाथा सह टबार्थ, पृ. १०आ, संपूर्ण.
आगमिक गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: भिन्नमुहत्तो नरएस; अंति: उक्कोस विउव्वणा कालो, गाथा-१.
आगमिक गाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नारकी वैक्रीय शरीर; अंति: उपरांति न रहइ. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १०आ, संपूर्ण. ____ मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: अबहइ मदन नृपति कउ; अंति: राखिउ अपनउ तोरउ, चौपाई-३. ४. पे. नाम. आध्यात्मिक कडी, पृ. १०आ, संपूर्ण.
मु. जिनराज, पुहि., पद्य, आदि: लालण मेरा हो जीवन; अंति: संग चली पाहर नर हो, गाथा-४. ५.पे. नाम. काया कमल नाम, पृ. १०आ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: सिरकमल १ नयणकमल २; अंति: ८ योनिकमल स्त्रीनइ. ६३१११. (#) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-१(९)=९, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ११-१४४३४-४६). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: (-), (पू.वि. बृहच्छान्ति अपूर्ण
तक बीच-बीच के पाठ हैं.) ६३११२. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, ३४३१).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३२ अपूर्ण तक है.)
नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रीपार्श्वचंद्र, (२)पहिलउ जीव तत्त्व १; अंति: (-). ६३११३. (+) उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन-३६, संपूर्ण, वि. १७७१, भाद्रपद कृष्ण, ५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, पठ. श्रावि. मल्लकाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०, १३४४०).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: सम्मए त्ति बेमि, प्रतिपूर्ण. ६३११४. (+) पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, अन्य. आ. कल्याणसागरसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १३४३६-४७).
पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ती. ६३११५. (+) १८ हजार शीलांगरथ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे.,
(२४४१०.५, १८४९-५४).
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३०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १८ हजार शीलांगरथ, प्रा., पद्य, आदि: जेनो करंति मणसा; अंति: अहमे धमसन्नं परिहरेई, गाथा-१८, (संपूर्ण, वि. यंत्र
सहित.) ६३११६. (+) मंजरी संग्रह, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ४८६-४७७(१ से ४७७)=९, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक
लकीरें-संशोधित., जैदे., (२७४८, ९४३८-३९). १. पे. नाम. संजममंजरी, पृ. ४७८अ-४७८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं.
संयममंजरी, आ. महेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: महेसरसूरि० सुणेह, गाथा-३५, (पू.वि. गाथा-२६ अपूर्ण से
२.पे. नाम. विवेकमंजरी प्रकरण, पृ. ४७८आ-४८६आ, पूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है.
विवेकमंजरी, श्राव. आसड कवि, प्रा., पद्य, वि. १२४८, आदि: सिद्धिपुरसत्थवाह; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४२
___अपूर्ण तक है.) ६३११७. (#) भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९४५, बाणयुगांकचन्द्र, ज्येष्ठ शुक्ल, बुधवार, मध्यम, पृ. १०-२(१ से २)=८, ले.स्थल. कोटारामपुरा, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१०, ८x२१). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-१० अपूर्ण
से है.) ६३११८. (+#) संबोधसित्तरीसह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६९०, जीर्ण, पृ.८, ले.स्थल. मांधातृपुर, प्रले. ग. धर्मकीर्ति (गुरु
ग. धर्मनिधान, बृहत्खरतरगच्छ); गुपि.ग. धर्मनिधान (गुरु गच्छाधिपति जिनचंद्रसूरि, बृहत्खरतरगच्छ); गच्छाधिपति जिनचंद्रसूरि (बृहत्खरतरगच्छ); पठ.सा. गुणविजयाश्री (गुरु सा. हर्षविजयाश्री); गुपि.सा. हर्षविजयाश्री; राज्यकाल आ. जिनराजसूरि (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११.५, ६४३८).
संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोयगुरुं; अंति: जयसेहर नत्थि संदेहो, गाथा-९४. संबोधसप्ततिका-बालावबोध, वा. धर्मकीर्ति, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ तिनि; अंति: लाभइ इहां संदेह
नही. ६३११९. (+) इकवीसठाणा प्रकण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पठ. सा. पुण्यसिद्धि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ५४२८-४०). २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाण नयरी २; अंति: असेस साहारणा भणिया,
गाथा-६६.
२१ स्थान प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: च्यवननउ विमान १ नगरी; अंति: सहुनइ साधारण कह्या. ६३१२०. वीतराग स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ.८, अन्य. पं. मुक्तिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, ११४४०).
वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: य: परात्मा परं; अंति: फलमीप्सितम्,
प्रकाश-२०, ग्रं. १३७. ६३१२१. (+) आश्रवत्रिभंगी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२६४११, १०४३५). आस्रवत्रिभंगी, मु. श्रुतमुनि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: पणमिय सुरेंदपूजियपय; अंति: बालिंदो चिरं जयऊ,
अध्याय-३, गाथा-६२. ६३१२२. (+#) विदग्धमुखमंडण, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पंचपाठ-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२७४११.५, १७४५६). विदग्धमुखमंडन काव्य, आ. धर्मदाससूरि, सं., पद्य, आदि: सिद्धौषधानि भवदुःख; अंति: स्वांतमेकांतमदनातुरं,
परिच्छेद-४, श्लोक-२६३.
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पराममनदानात.
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६ ६३१२३. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९०, फाल्गुन कृष्ण, ४, रविवार, मध्यम, पृ.७, ले.स्थल. उदेपुर,
प्रले. ऋ. जोईता (गुरु ऋ. कल्याणजी, लुंकागच्छ); गुपि.ऋ. कल्याणजी (गुरु क्र. मेघजी, लुंकागच्छ); ऋ. मेघजी (लुकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. २५३, जैदे., (२६.५४११, ४४३६).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४४, ग्रं. ५०. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (१)साचउ वस्तुनउ स्वरूप, (२)पहिलउ जीव तत्त्व १;
अंति: श्रीपार्श्वचंद्रेण, ग्रं. २०३. ६३१२४. (+) वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८३६, वैशाख कृष्ण, ११, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ.७, ले.स्थल. विसलनगर, प्रले.पं. ललितमुनि; अन्य. पं.न्यानविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १४४३०).
वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: तो भाषितम भनंदन्निति. ६३१२५. (+) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ३, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२६४१०,
२-१२४२६-३६). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र सह टीका, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तव, श्राव. वेल्हण, सं., पद्य, आदि: जयति भुजगराजप्राज्य; अंति: स्थितं चिरमाश्रितः, श्लोक-९.
पार्श्वजिन स्तव-टीका, मु. देवकल्लोल, सं., गद्य, आदि: तन्यातमाल द्रगण; अंति: गोपदा हरिणी तदा. २.पे. नाम. रावणमंडन पार्श्वनाथ यमकाष्टक सह अवचूर्णि, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन यमकाष्टकबद्ध स्तोत्र-रावणमंडन, मु. कर्मसागर पाठक, सं., पद्य, आदि: ध्यायंति राज्ञो विभव; अंति:
स्तोत्रं बुधानंददं, श्लोक-९. पार्श्वजिन यमकाष्टकबद्ध स्तोत्र -रावणमंडन-अवचूर्णि, मु. देवकल्लोल, सं., गद्य, आदि: सवणकि रावणग्रामे के;
अंति: समुदायः तेषु उत्तमः. ३. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र सह टीका, पृ. ५अ-७अ, संपूर्ण.
चतुर्विंशतिजिन स्तुति, मु. सागरचंद्र, सं., पद्य, आदि: जगति जजिमभाजि; अंति: ता क्रियां गुप्तकैः, श्लोक-२५.
चतुर्विंशतिजिन स्तुति-टीका, सं., गद्य, आदि: अज्ञानत्वयुक्ते; अंति: विक्रीडितं छंदः.. ६३१२६. शीलोपदेशमाला सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११.५, ७X४२).
शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि: आबालबंभयारि नेमि; अंति: (-),
(पू.वि. गाथा-१०० अपूर्ण तक है.)
शीलोपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बालपणा लगई; अंति: (-). ६३१२७. (+) मुहूर्त मुक्तावली सह टबार्थ वमुहूर्त संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे.,
(२५.५४११, ७X४३). १. पे. नाम. मुहूर्त मुक्तावली सह टबार्थ, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण.
मुहूर्तमुक्तावली, सं., पद्य, वि. १५३९, आदि: श्रीशहरं शारदा; अंति: नैव कारयेत्, श्लोक-५२, संपूर्ण. मुहूर्तमुक्तावलि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४६
तक लिखा है.) २. पे. नाम. मुहूर्त संग्रह, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.
___ मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६३१२८. (+) चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १३४५०).
चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६५, आदि: प्रणम्य परमानंदात्; अंति:
___ समयसुंदर० व्याख्याम्. ६३१२९. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०.५,
४४४७).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१ जीवार पुण्णं३; अंति: अनंतभागो य सिद्धिगओ, गाथा - ५२. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्व १ प्राण धरइ; अंति: हजी सिद्धि गयो छे, ग्रं. ३५०. ६३१३०. (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६४४, कार्तिक कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ७, अन्य. मु. तेजविजय; मु. जिनदत्त ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न क्रियापद संकेत-संशोधित कुल ग्रं. १५०, टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२२.५X१०.५, ६X३२-३४).
कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४.
कल्याणमंदिर स्तोत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि कल्याणनु घर उदारगुरु, अंति: मोक्षप्रतिइ पामइ.
६३१३१. (+) स्मरण व स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १७४३ भाद्रपद कृष्ण, ५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ३ ले. स्थल. सुरतबिंदर,
पठ. पं. रामचंद्रमुनि (गुरु पं. जिनसौभाग्यमुनि बृहत्खरतरगच्छ); गुपि. पं. जिनसौभाग्यमुनि (गुरु ग. मतिकुशल, बृहत्खरतरगच्छ); ग. मतिकुशल (गुरुग मतिवल्लभ, बृहत्खरतरगच्छ); ग. मतिवल्लभ (गुरुग सुगुणकीर्ति, बृहत्खरतरगच्छ); ग. सुगुणकीर्ति (परंपरा मु. खेमकीर्त्ति, बृहत्खरतरगच्छ); मु. खेमकीर्त्ति (बृहत्खरतरगच्छ); राज्यकाल आ. जिनचंद्रसूरि (बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. अंतिम पत्र पर जगचिंतामणि की गाथा - १ लिखी गई है., संशोधित., जैदे., ( २६ १०.५, १७X४४). ९. पे. नाम, सप्तस्मरण, पृ. १अ ६अ, संपूर्ण,
सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअं जिअ सव्वभयं; अंतिः भवे भवे प
जिणचंद, स्मरण- ७.
२. पे. नाम. शांति स्तोत्र, पृ. ६अ ६आ, संपूर्ण.
लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिं शांतिनिशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च श्लोक-१७. ३. पे. नाम. लघुशांति, पृ. ६आ, संपूर्ण.
शांतिजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि; शांतवे शांतिकामाय अंति: पापशांतिर्भवे भवे, श्लोक-३.
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"
६३१३२, (+#) नवतत्त्व प्रकरण सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें - अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X१०.५, ३X३७).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि जीवा जीवार पुण्णं३ अंति (-) (पू. वि. गाथा ३३ अपूर्ण तक है.)
नवतत्त्व प्रकरण-वार्थ * मा.गु., गद्य, आदि जीवतत्व १ प्राण घरे अंतिः (-).
7
६३१३३. (+) अनुत्तरोपपातिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित.,
जैदे., (२६X११, ११x४०).
अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पग, आदि: तेण कालेणं तेणं समएण, अंति: (१) अयमठ्ठे पण्णत्ते, (२) जहा धम्मकहाणेयव्वं.
६३१३४. (+) प्रास्ताविक गाथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८-२ (१ से २) =६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित., जैदे., (२५.५X१०, १२x२८).
प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-).
"
६३१३५. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १७६८, मार्गशीर्ष कृष्ण, १३, सोमवार, मध्यम, पृ. ६ प्र. मु. प्रसिद्धसागर (गुरु पं. महिमासागर); गुपि. पं. महिमासागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६४१०,५, ५X३२).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१ जीवार पुण्ण३; अंतिः अणागयद्धा अनंतगुणा, गाथा-४२. नवतत्त्व प्रकरण-वार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्व १ अजीवतत्व २: अंतिः आवर्त्तई कालि
६३१३६. (*) नवतत्त्व प्रकरण सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, प्रले. मु. देववर्द्धन, पठ. सा. दमा आर्या (गुरु सा. सुंदरि
आर्या), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६X११, ५X३१).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि जीवा
जीवार पुण्णं३ अंतिः अणागवद्धा अनंतगुणा, गाथा ४२.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्व १ अजीवतत्व २; अंति: आवर्त्तइ कालि. ६३१३७. (+#) मृगांगकुमारपद्मावती चउपई, अपूर्ण, वि. १६८५, कार्तिक शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ७-१(१)=६, ले.स्थल. जेसलमेर,
प्रले. श्राव. अभयराज लूणीया सीमाला; पठ. ग. अमीविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४५१). मृगांककुमार रास, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १६४९, आदिः (-); अंति: प्रीतिविमल० चउमासइ, गाथा-१९४,
(पू.वि. गाथा-३४ अपूर्ण से है.) ६३१३८. (+) स्थानांगसूत्र का चयन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. मु. रायचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, ६४५५).
स्थानांगसूत्र- प्रव्रज्याभेदादि विवरण, प्रा., गद्य, आदि: तिविहा वुद्धा पत्तं; अंति: पण्णवेइ जाव उवदंसेइ, संपूर्ण. स्थानांगसूत्र- प्रव्रज्याभेदादि विवरण का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिण पुरुष बुधिवंत; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंत के कुछ सूत्रों का टबार्थ नहीं लिखा है.) ६३१३९. (+#) चतु:शरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४२, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. वीकानेर, पठ. मु. लाधा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०.५, ५-८४३१-३५). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: निव्वुइ सुक्खाइ, गाथा-६३,
(वि. १८४२, मार्गशीर्ष शुक्ल, ४, सोमवार, प्रले. मु. चतुरचंद ऋषि (गुरु मु. माणिकचंदजी, लुंकागच्छ),
प्र.ले.पु. सामान्य) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सावज्जयोग कहतां पाप; अंति: सुख मुक्तिनांसुखनु, (वि. १८४२,
मार्गशीर्ष शुक्ल, ७, गुरुवार, ले.स्थल. विकानेर, प्रले. मु. खुशालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य) ६३१४०. नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५.५४११, ५४४६-५२).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१ जीवार पुण्णं३; अंति: बुद्धबोहिक्कणिक्काय, गाथा-५१. ६३१४१. अंतकृतदशांगसूत्र वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५.५४११, १७-२०४५७-८०).
अंतकृद्दशांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: अथांतकृतदशासु किमपि; अंति: ननु
विधीयतां सर्वथा, वर्ग-८. ६३१४२. अष्टोत्तरीस्नात्र विधि व बिंबप्रवेश विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १५४४५). १. पे. नाम. अष्टोत्तरी स्नात्रविधि, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण...
मा.गु.,सं., गद्य, आदि: हवइ अट्ठोत्तरी; अंति: तो ढोवानइ अर्थिलीजइ. २. पे. नाम. बिंबप्रवेश विधि, पृ. ३आ-५अ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में बली मंत्र और बिंबस्थापन यंत्र दिया हुआ है.
___ मा.गु.,सं., प+ग., आदि: भलउं मूहुर्त वेला; अंति: नाम अठोत्तरसु स्मरइ. ६३१४३. (+#) कल्पसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २३६-२३१(१ से १६५,१६७ से २११,२१३,२१५ से २२९,२३१ से २३५)=५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १६x२६-३३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. महावीरप्रभु के चातुर्मास स्थल अधिकार व
नेमिजिन चरित्र १४ स्वप्न के ध्वज वर्णन अपूर्ण से संपदा अधिकार अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) __ कल्पसूत्र-टीका*,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६३१४४. नवकार कल्प, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. पाटण, दे., (२६.५४११, १२४३९).
नमस्कारमहामंत्र कल्प, सं., गद्य, आदि: पंचादिपदानां परमेष्ट; अंति: करणीय सौभाग्यमुद्रा. ६३१४५. (+#) महावीरजिन २७भववर्णन व शतपंचाशिका प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७४६, वैशाख कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. ५, कुल
पे. २, ले.स्थल. मुलताण, प्रले. मु. आनंदा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११, १३४३९). १.पे. नाम. महावीरजिन २७ भव वर्णन, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण.
सं., गद्य, आदि: अत्रश्रीवीरस्य सप्त; अंति: त्यादियुक्ता भवंति.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. शतपंचाशिका प्रकरण, पृ. ५आ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: चउवीसं तित्थयरा बारस; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६ अपूर्ण तक लिखा
६३१४६. (+) अनुत्तरोपपातिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पठ. सभाचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १५४४५). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेण कालेणं तेणं समएण; अंति: कहाणं तहा
णेयव्वं, अध्याय-३३, ग्रं. १९२. ६३१४७. (+) तत्त्वार्थसूत्र व प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १७८०, आश्विन कृष्ण, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २,
ले.स्थल. शितपत्र, प्रले. मु. ताराचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४८). १. पे. नाम. तत्त्वार्थसूत्र, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण.
तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि: मोक्षमार्गस्य नेतार; अंति: चउगइदुक्खं णिवारेइ, अध्याय-१०. २.पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. ५आ, संपूर्ण.
प्रा.,सं., पद्य, आदि: लक्ष्मै र्यत्र न वाक; अंति: धर्मप्रभावो स्फुटं, श्लोक-७. ६३१४८. (#) समयसार नाटक-पद्यानुवाद की चयनित गाथा, संपूर्ण, वि. १७५९, मध्यम, पृ. १४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १४-१५४३८).
समयसार नाटक पद्यानुवाद के चयनित पद्य, पुहिं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-). ६३१४९. कालिकाचार्य कथा का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. पिंडरवाडा, प्रले. मु. चंपक (भावडराय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १७४४९).
कालिकाचार्य कथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीर चरमतीर्थं; अंति: माला विस्तारउं. ६३१५०. कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२४४१०.५, ११४३३).
कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते,
श्लोक-४४. ६३१५१. (#) पासाकेवली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१०.५, १३४४२-४५).
पाशाकेवली, मु. गर्गऋषि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवती; अंति: सत्योपासक केवली, श्लोक-१९६. ६३१५२. (#) बृहत्संग्रहणी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-८(१ से ८)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१०, १५४३३).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा १८३ से ३१६ अपूर्ण तक है.) ६३१५३. (+#) स्तवन व स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६-१(१)=१५, कुल पे. २०,प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त
विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३७१०, ११४३६-४१). १. पे. नाम. बृहत्शांति स्तोत्र, पृ. २अ-४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: (-); अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे, (पू.वि. "मुनिसुव्रत १२ सुमति" पाठ से
२. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जइज्जासमणे भगवं; अंति: कयं अभयदेवसरिहिं.
गाथा-२२. ३. पे. नाम. जिनपंजर स्तोत्र, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण.
आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अहँ; अंति: श्रीकमलप्रभाख्यः, श्लोक-२५. ४.पे. नाम. २४जिन स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
२४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिन नौमि; अंति: सुखनिधानं०
निवासम्, श्लोक-८. ५.पे. नाम. परमात्मा स्तोत्र, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण.
वीतरागाष्टक, सं., पद्य, आदि: शिवं शुद्धबुद्धं; अंति: मान् हृदाभ्युद्यतम्, श्लोक-९. ६. पे. नाम. जैन रक्षा मंत्र, पृ. ७अ-८अ, संपूर्ण.
जिनरक्षा स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीजिनं भक्तितो; अंति: संपदश्च पदे पदे, श्लोक-१८. ७. पे. नाम. सत्तरीय प्रभाव स्तवन, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण.
तिजयपहत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहत्तपयासय अट्ठ; अंति: निब्भत निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ८. पे. नाम. नवग्रहगर्भित पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहस्तुतिगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: दोसावहारदक्खो नालिया; अंति:
जिणप्पहसूरिन पीडति, गाथा-१०. ९. पे. नाम. चिंतामणी महास्तोत्र, पृ. ९अ-१०आ, संपूर्ण, प्रले. उपा. युक्तिधीर, प्र.ले.पु. सामान्य.
पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्व पातु वो; अंति: प्राप्नोति स श्रियम्, श्लोक-३३. १०. पे. नाम. ऋषिमंडल स्तोत्र, पृ. ११अ-१४अ, संपूर्ण, ले.स्थल. बीकानेर.
आ. गौतमस्वामीगणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यताक्षरसंलक्ष्य; अति: स्तोत्रमुत्तमम, श्लोक-९२, ग्रं. १५०. ११. पे. नाम. पंच परमेष्ठि स्तवन, पृ. १४अ, संपूर्ण.
५ परमेष्ठि स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: अल्तस्त्रिजगद; अंति: प्रथमं भवति मंगलम, श्लोक-७. १२. पे. नाम. महाप्रभावी परमेष्ठि रक्षा स्तोत्र, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. उपा. युक्तिधीर,
प्र.ले.पु. सामान्य.
वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ परमेष्ठि; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. १३. पे. नाम. नेमि स्तुति, पृ. १४आ-१५अ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदित पाय; अंति: करौ अंबिका देवियें, गाथा-४. १४. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तुति, पृ. १५अ, संपूर्ण.
ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वसुपूज्य नरेश्वर मात; अंति: जिनहरषै० सौख्यनिधान, गाथा-४. १५. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तुति, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य नरेसर; अंति: देव विघन हरो नितमेव, गाथा-४. १६. पे. नाम. शंखेश्वर पार्श्व स्तवन, पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण. ___पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास शंखेश्वरो; अंति: पास संखेसरो आप तूठा,
गाथा-७. १७. पे. नाम. असज्झाय विचार, पृ. १६अ, संपूर्ण.
प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: सूर्यग्रहण की १६; अंति: (-). १८. पे. नाम. पंचजिन स्तवन, पृ. १६आ, संपूर्ण.
पंचजिन पद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीविमलागिरि रिसह; अंति: त्यां सहुसंपद थाय, गाथा-२. १९. पे. नाम. ऋषभदेव चैत्यवंदन, पृ. १६आ, संपूर्ण.
आदिजिन पद, मा.गु., पद्य, आदि: रिसह जिणेसर पढम नाह; अंति: तिहां घरिरंग घरिरंग, गाथा-२. २०. पे. नाम. नवकार स्तुति, पृ. १६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नमस्कार महामंत्र स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: पहल पद श्रीअरिहंतदेव; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ५
अपूर्ण तक है.) ६३१५४. (#) जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र, संपूर्ण, वि. १६६०, मार्गशीर्ष शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. १२२, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई
है. कुल ग्रं. ४४५४, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (९६८) यादृशं पुस्तके दृशं, जैदे., (२६४११, १३४३७-४०).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, वक्षस्कार-७, ग्रं. ४१४६. ६३१५५. (+) आचारांगसूत्र सह टबार्थ प्रथम श्रुतस्कंध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११८+१(६७)=११९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, ४४२९).
आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं० इहमेगे; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण,
पू.वि. श्रुतस्कंध-१, अध्ययन-८, उद्देशक-४, गाथा-१६ अपूर्ण तक है.)
आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सूर्य० सांभल्यो मे० म; अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ६३१५६. (+#) आचारांगसूत्र सह टबार्थ प्रथम श्रुतस्कंध, संपूर्ण, वि. १८५७, मध्यम, पृ. ९७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (११५६) यादृशं पुस्तकं द्रष्ट्वा, जैदे., (२४.५४१०.५, ४४३०-३४).
आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं तेण; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. १८५७, ज्येष्ठ __ अधिकमास शुक्ल, ९, शुक्रवार) आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम अंग ते आचारांग; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. १८५७, ज्येष्ठ अधिकमास
शुक्ल, १०, सोमवार) ६३१५७. (+#) शांतिनाथचरित्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९८-१(४५)=९७, प्रले. ग. दयासागर (गुरु ग. महिमराज, खरतरगच्छ);
गुपि.ग. महिमराज (गुरु आ. सागरचंद्रसूरि, खरतरगच्छ); आ. सागरचंद्रसूरि (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११, १७४५०-५५). शांतिनाथचरित, आ. माणिक्यचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: तेपि ब्रह्मादयो यस्य; अंति: माणिक्यसूरि० भवेदिह, सर्ग-८,
श्लोक-५४५८, ग्रं. ५५७४, (पू.वि. सर्ग-३ श्लोक ७५१ अपूर्ण से ८०८ अपूर्ण तक नहीं है.) ६३१५८. (#) हनूमच्चरित्र, संपूर्ण, वि. १६३५, पौष शुक्ल, १, सोमवार, मध्यम, पृ. ८४, अन्य. श्राव. देवीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. विक्रम संवत १५७८ में लिखित प्रत से प्रतिलिपि की गई हो ऐसा प्रतीत होता है. विक्रम संवत १८४२ में जेसलमेरनगर में देवीचंदजी द्वारा यह प्रति देने का उल्लेख मिलता है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (११५६) यादृशं पुस्तकं द्रष्ट्वा, जैदे., (२६.५४१०.५, ११४३३-३६). । हनूमच्चरित्र, श्राव. अजित ब्रह्मचारी, सं., पद्य, आदि: सद्दोधसिंधु चंद्रायस; अंति: हनूमच्चरित्रे शुभे, सर्ग-१२,
श्लोक-२०००. ६३१५९. (#) उपदेशमालाकथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७९+१(२६)=८०, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०.५, १४४२७-३६). उपदेशमाला कथा संग्रह, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: वंदित्वावीर जिणं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
कथा ६३ अपूर्ण तक लिखा है.) ६३१६०. (+#) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र सह वृंदारूवृत्ति, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८०-१(२)=७९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३५-४४). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिह० सव्वसाहूण; अंति: वत्तियागारेण वोसिरइ,
(पू.वि. नमस्कार मंत्र का अंतिम पद नहीं है.) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-वंदारू टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: वृंदारुवृंदारकवृंदवं; अंति: वृत्तितोवरचूर्णितश्च,
ग्रं. २७२०. ६३१६१. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७३, प्र.ले.श्लो. (९३६) यादृसं पूस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२४४१०.५, २-५४३०-३५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: अपुणागमं गइ त्तिबेमि,
अध्ययन-१०, (वि. चूलिका २)
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजिनधर्म केह; अंति: तुज प्रतै कझै छई. ६३१६२. (#) उत्तराध्यायन की वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित
है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १७४३९-४५).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
उत्तराध्ययनसूत्र-दीपिका टीका, मु. विनयहस, सं., गद्य, वि. १५७२, आदि: उत्तराध्ययनस्येमा; अंति: (-),
(पू.वि. अध्ययन-३६ अपूर्ण तक है., वि. मूल कृति प्रतीक पाठ के रूप में दी गई है.) ६३१६३. (+) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८५२, वैशाख कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. ७३-१(७०)=७२,
ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. चंद्रभाण; अन्य. मु. वसंतराय ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१०, ४४३८-४२). जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: से आराहगा भणिया,
उद्देशक-२१, (पू.वि. परिवार वालों की ओर से जंबूस्वामी को चारित्र ग्रहण करने से मना करने का प्रसंग अपूर्ण नहीं
जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: ते काल चउथा आरानै; अंति: अर्थ संपूर्ण थयो. ६३१६४. (+#) आचारांगसूत्र-द्वितीय श्रुतस्कंध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७०-१(६५*)+१(६४)=७०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११, १२४३२-३८).
आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: विमुच्चति त्ति बेमि, ग्रं. २६४४, प्रतिपूर्ण. ६३१६६. (+#) औपपातिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७५९, भाद्रपद शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. ६९, ले.स्थल. लोहियावट,
प्रले. मु. गुणमूर्ति (गुरु मु. सुमतिविमल, बृहत्खरतरगच्छ); गुपि.मु. सुमतिविमल (गुरु मु. विनयलाभ, बृहत्खरतरगच्छ); मु. विनयलाभ (गुरु उपा. विनयप्रमोदजी गणि, बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१०.५, ६x४५).
औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: सुही सुहं पत्ता, सूत्र-४३, ग्रं. १६००.
औपपातिकसूत्र-टबार्थ, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: वंदित्वा श्रीजिन; अंति: सुख पाम्या थका. ६३१६७. (+#) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८९-२४(१ से २४)=६५, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, ४४३१-३४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: मुच्चइ त्ति बेमि, अध्ययन-१०,
(पू.वि. अध्ययन-५ उद्देशक-१ गाथा १७ अपूर्ण से है., वि. चूलिका २)
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: दुख हूं तु उक्तयइ, ग्रं. ३५००. ६३१६८.(+#) समवायांगसूत्र-वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १९४४८). समवायांगसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: वृत्तितः समाप्तम्,
ग्रं. ३५७५. ६३१६९ (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६१, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१०.५, ४४२७)..
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-११ तक है.)
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: बाह्य अभ्यंतर संजोग; अंति: (-). ६३१७०. (#) जयानंदकेवलि चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १११-४३(१ से ४१,९५,१०७)=६८, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५,१५४३६-३९). जयानंदकेवलि चरित्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सर्ग-७ अपूर्ण से १० अपूर्ण तक
बीच-बीच के पाठ हैं.) ६३१७१. (+#) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९१-२४(१ से २,४ से २४,४२*)=६७,
पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ६x४३-४६). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. धारिणी रानी के दोहला की पूर्ति
हेतु चिंतित राजा श्रेणिक के प्रसंग अपूर्ण से कछुआ एवं श्रृंगाल की कथा अपूर्ण तक के बीच-बीच का पाठ है.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६३१७२. (+#) कल्पसूत्र का अंतर्वाच्य सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६१, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, ८४४६-५१).
कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य, सं., गद्य, आदि: कल्याणानि समुल्लसंति; अंति: (-), (पू.वि. "एष सचिरं छाया करो" तक का पाठ
कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कल्याणना समूह समुल्ल; अंति: (-). ६३१७३. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ७४४६-४९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९,
ग्रं. १२१६.
कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतनइ नमस्कार सिद; अंति: भद्रबाहुस्वामि कह्यो. ६३१७४. (+#) त्रिवर्णाचार निरूपक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२५-२४(१ से ५,१० से २१,२०२ से २०४,२०६ से २०७,२१२ से २१३)=२०१, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, ८x२५). त्रिवर्णाचार प्ररूपण, मु. सोमसेन, सं., पद्य, वि. १६६७, आदिः (-); अंति: श्रोतुः सुखप्रदम, अध्याय-१३,
श्लोक-२७००, (पू.वि. अध्याय-१ श्लोक ३० अपूर्ण से बीच-बीच के पाठ हैं.) ६३१७५. (+) आवश्यकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६३-१(१)=६२, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. कुल ग्रं. २०००, जैदे., (२५.५४१०.५, ४४२६-२९).
आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: तिगिच्छ गुणधारणा चेव, अध्ययन-६, सूत्र-१०५,
(पू.वि. अध्ययन-१वंदनापाठ अपूर्ण से है.)
आवश्यकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: ए छठो आवश्यक. ६३१७६. (#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २७०-२१८(१ से १७०,१९५,२११ से २५५,२५८ से
२५९)=५२, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४५१-५७).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१६ अपूर्ण से ३५ अपूर्ण तक के
बीच-बीच के पाठ हैं.)
उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा टीका, आ. नेमिचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. ११२९, आदि: (-); अंति: (-). ६३१७७. (+) औपपातिकसूत्र सह वृत्ति व विप्रजैनमत श्लोक, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५२, कुल पे. २, प्रले.मु. लालचंद
(गुरु ग. भावरंग); गुपि. ग. भावरंग (गुरु पंन्या. स्वर्णप्रभ वाचक); पंन्या. स्वर्णप्रभ वाचक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (४५९) मंगलं लेखकस्यापि, (६४५) यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा, (७७३) अदृष्टिदोषान् मतिविभ्रमाद्वा, जैदे., (२६.५४११, १०४३२-३६). १. पे. नाम. औपपातिकसूत्र सह वृत्ति, पृ. १आ-५२अ, संपूर्ण.
औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: सुही सुहं पत्ता, सूत्र-४३, ग्रं. १६००. औपपातिकसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: संशोधिता चेयमिति,
ग्रं. ३१२५. २. पे. नाम. विप्रजैनमत खंडन श्लोक, पृ. ५२अ, संपूर्ण..
विप्रजैनमत खंडनमंडन श्लोक, सं., पद्य, आदि: नो वापी नैव कूपो न च; अंति: प्राणेषु दयां कृथा, श्लोक-६. ६३१७८. (#) प्रश्नोत्तररत्नमाला सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६१-३(१,४१ से ४२)=५८, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १६४५०-५५).
प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२ से २४ तक बीच-बीच के पाठ
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
प्रश्नोत्तररत्नमाला- कल्पलतिका वृत्ति, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. १४२९, आदि: (-); अंति: (-). ६३१७९. (+#) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५४, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०.५, ५X३२-३५).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठे, अंति: (-), (पू.वि. प्रथम चूलिका अपूर्ण तक है.)
दशवैकालिकसूत्र - टवार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः धम्र्म्मरूपीवठ मांगलिक, अंति: (-).
६३१८०. (+#)
प्रश्नव्याकरण सह वृत्ति- अध्ययन १ से ४, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५३, प्र. वि. विक्रम संवत १९४१ में श्री राजेंद्रसूरि की प्रेरणा से लालचंद्र पुनमचंद्र द्वारा राजनगर के भांडागार में रखने का उल्लेख मिलता है., संशोधित. कुल ग्रं. २४९५, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६४१०, १५४४१-४५).
प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: जंबू तेणं कालेणं तेण, अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
प्रश्नव्याकरणसूत्र टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. १२वी, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६३१८१. (+#) उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५८ - १ (१८) + १ (२९) = ५८, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, ६X३८-४२).
उपासक दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि; तेणं कालेणं तेणं, अंतिः दिवसेसु अंगं तहेव, अध्ययन १०, ग्रं. ८१२, (पू. वि. अध्ययन- २ कामदेव की तपस्या प्रसंग के पाठ का अल्पांश नहीं है.)
उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मु. हर्षवल्लभ, मा.गु., गद्य, वि. १६९३, आदि: ते० तेणइ काले चोथे, अंति: समुद्देसई. ६३१८२. (+) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६३-७ (१ से २, ३२ से ३४,३८, ५८)=५६, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, १५X३८-४५).
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि (-); अंतिः वंदामि जिणे चउव्वीसं (पू.वि. नवकारमंत्र अपूर्ण से बीच-बीच के पाठ हैं.)
६३१८३.
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-वंदारू टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: वृत्तितोवरचूर्णितश्च, ग्रं. २७२०. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५४, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्थाही फैल गयी है, जैवे.. (२५X१०.५, १३X४७-५५).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., पग, आदि: संजोगाविप्यमुक्कस्स, अंतिः सम्मए ति बेमि, अध्ययन-३६,
ग्रं. २०००.
३९
६३१८४.
(#)
) उत्तराध्यचनसूत्र व माहात्म्य गाथा संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५३. कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., (२५.५x११, १५X३९-४५ ).
१. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र, पृ. १आ-५३अ, संपूर्ण.
मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदि: संजोगाविष्यमुक्कस्स, अंतिः सम्मए त्ति बेमि, अध्ययन- ३६, ग्रं. २०००,
२. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र माहात्म्य गाथा, पृ. ५३ अ - ५३आ, संपूर्ण.
संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जे किर भवसिद्धीया; अंतिः सो पावइ सासयं ठाणं, गाथा- ९.
६३१८५. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ९७-५५ (३ से २७,२९,३३ से ३९,४१ से ४२, ४४ से ५३,५७,७४,८४ ९१) = ४२, पू. वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे.,
,
(२६.५X११, १३X३९-४५).
".
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि: तेणं कालेणं० चंपाए अंति: (-), (पू. वि. श्रुतस्कंध १ अध्ययन- १४ अपूर्ण तक बीच-बीच के पाठ हैं.)
"
६३१८६, (+) उपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ३०, प्रले, मु. कीर्तिरत्न (गुरुग. राजरत्न) गुपि. ग. राजरत्न (गुरुग, जयरत्न); पठ. श्रावि. मोहणदे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रथम पत्र पर भगवान महावीर का चित्र है., संशोधित, जैवे. (२५.५४११, ११x२८-३५).
उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद, अंति: वयण विणिग्गया वाणी,
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गाथा - ५४४.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
६३१८७. (+#) पर्यूषणअष्टाह्निका व्याख्यान सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५-६ (१४ से १९) = २९, पू. वि. बीचव के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२३.५४९.५, ७३२-३८).
"
पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., पद्य, वि. १७८९, आदि: स्मृत्वा पार्श्व, अंति: (-), (पू.वि. "उवाचाईकु तक व तद्विगित्वा से पितर्विद्यारेधर्यं त्वक्ततेन" तक का पाठ है.)
पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान टबार्थ *, मा.गु. गद्य, आदि: समरीने श्रीपार्थ, अंति: (-).
६३१८८, (+१) उत्तराध्ययनसूत्र सह सुखबोधा लघुवृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २४७-४६ (२३, १२८ से १७१, २२८)=२०१, पू. वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२६४११, १९४५३). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: संजोगाविष्यमुक्कस्स: अंति: (-). (पू.वि. अध्ययन- १३ अपूर्ण तक व
"
"
"
अध्ययन-१९ अपूर्ण से ३५ अपूर्ण तक का पाठ है.)
,
,
उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा टीका, आ. नेमिचंद्रसूरि, सं. गद्य वि. १९२९, आदिः प्रणम्य विघ्नसंघात, अंति: (-). ६३१८९. (*) कल्पसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८४४ माघ शुक्ल १२, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १७७, ले. स्थल, कालाऊना, प्रले. मु. विवेक कल्याण; पठ. पं. अमरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., । ,जैदे., (२५x१०.५. १२X३८).
,
कल्पसूत्र, आ. भद्रवाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पदमं अंति: उवदंसेइ ति बेमि, व्याख्यान- ९,
,
ग्रं. १२१६.
कल्पसूत्र - बालावबोध, उपा. रामविजय, मा.गु, गद्य, वि. १८१९, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर अंति: (१) श्रीसंघ आगे वखाण्यो, (२) कल्पार्थं लोकभाषया.
६३१९०, (+०) ऋषिमंडलप्रकरण सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १६२, प्रले. ग. जयध्वज गणि अन्य मु. मोतीचंद (गुरु
पं. केसरीचंद गणि, खरतरगच्छ भट्टारक); पं. केसरीचंद गणि (गुरु ग. लालचंद वाचक, खरतरगच्छ भट्टारक), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित कुल ग्रं. ७९९० अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२६४११, १५४४८-५५).
""
ऋषिमंडल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: भत्तिब्भरनमिरसुरवर अंति: धम्मघोस० सिद्धिसुहं, गाथा - २०९, ग्रं. २५९.
ऋषिमंडल प्रकरण-कथार्णवांक वृत्ति, ग. पद्ममंदिर, सं., गद्य, वि. १५५३, आदि: जयाय जगतामीशो युगादी, अंति दुत्पादाय संजायताम्, ग्रं. ७२६१.
६३१९१. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८२२ कार्तिक शुक्ल, ३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १६६+१ (१५६) = १६७, प्र.वि. संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२५X११, ५X३५-४०).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स, अंति: सम्मए त्ति बेमि, अध्ययन- ३६, ग्रं. २०००.
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः उत्तराध्ययननो ए अर्थ; अंति: तुज प्रते कहुं छं.
६३१९२. (+) आचारांगसूत्र सह प्रदीपिका टीका, संपूर्ण, वि. १६१६, फाल्गुन कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ. १५७-१ (६५*)=१५६, राज्ये आ. जिनचंद्रसूरि (गुरु आ जिनमाणिक्यसूरि, खरतरगच्छ); गुपि. आ. जिनमाणिक्यसूरि (गुरु गच्छाधिपति जिनहंससूरि,
खरतरगच्छ); अन्य. श्राव. हांसा ताल्हण सा; श्राव. जिणू ताल्हण सा; श्रावि. टिम्मी ताल्हण सा (पति श्राव. ताल्हण भोजा सा), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. विक्रम संवत १६२४ पौष शुक्लपक्ष १४ सोमवार को ज्ञानार्थ एवं कर्मक्षयार्थ भांडागार में रखवाने का उल्लेख मिलता है., पदच्छेद सूचक लकीरें पंचपाठ-संशोधित कुल ग्रं. १०५००, जैदे., (२७४११, ३-१०X२७-३१).
आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउस तेणं, अंतिः विमुच्चति त्ति बेमि, अध्ययन- २५,
.
ग्रं. २६४४ (वि. १६१६ फाल्गुन कृष्ण, ३०)
आचारांगसूत्र - प्रदीपिका टीका, गच्छा. जिनहंससूरि, सं., गद्य वि. १५७३, आदि: शासनाधीश्वरं नत्वा, अंति
ब्रवीमीति पूर्ववत्, ग्रं. १०५००.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
६३१९३. (#) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २०३ - ५६ (१ से २,३५ से ३६, ६२, १२५,१३२,१३४,१४१ से १५०,१५७ से १९३,२०२*) = १४७, पू. वि. बीच-बीच के पत्र है., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे (२६.५४११, ११४३०-३५),
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. श्रुतस्कंध १ अध्ययन १ पूर्ण अध्ययन १६ अपूर्ण तक के बीच-बीच के पाठ हैं.)
६३१९४. वासुपूज्य चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १३३, प्र. वि. कुल ग्रं. ५५९०, जैदे., (२६X१०.५, १५X४०-४५). वासुपूज्यजिन चरित्र, आ. वर्द्धमानसूरि, सं., पद्य, वि. १२९९, आदि: अर्हतं नौमि नाभेयं; अंति: जयिनः सुरेंद्राः, सर्ग-४, लोक- ५४६९ नं. ५४९४.
६३१९५ (+) शांतिनाथ चरित्र, अपूर्ण, वि. १६४२, ज्येष्ठ कृष्ण, २, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १७४-६१(१ से ६१ ) = ११३, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ६०००१४ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र. ले. श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, (११६०) तैलात् रक्षेत् जलात् रक्षेत्, जैदे., (२५.५X११, १३x४५-५०).
शांतिजिन चरित्र, आ. भावचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. १५३५, आदि: (-); अंति: स करोतु शांतिम्, प्रस्ताव-६, (पू.वि. प्रस्ताव-४ चोर द्वारा चोरी का कार्य छोडने एवं लोकहित व्रत ग्रहण करने के प्रसंग से है.) ६३९९६. (+४) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १६०७ ज्येष्ठ कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. ११५, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., (२७X११, १३x४५-५०).
४१
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि: तेणं कालेणं० चंपाए: अंतिः पुरिससिहेणं, अध्ययन-१९,
,
ग्रं. ५४६४.
६३१९७. (+४) कल्पसूत्र सह टवार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. १९० + १ (८९) = १९१. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पत्रांक १७४ के बाद १ से १६ तक दुबारा लिखा हुआ है, इन प्रतों में आगे के पाठ जारी होने के कारण पत्र १७४ के बाद के पत्रांक के रूप में लिया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२५X११, ६-११४३५-३८).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो अंतिः (-) (पू.वि. स्थविरावली के अंतर्गत
वर्षावास में श्रमण-श्रमणी को उपाश्रय से बाहर कहीं जाने से पूर्व आचार्य की अनुमति लेने के प्रसंग तक का पाठ है.) कल्पसूत्र - टवार्थ, सं., गद्य, आदि: तस्मिन् समये यंत्रास, अंति: (-).
कल्पसूत्र - व्याख्यान+कथा " सं., गद्य, आदि: सूत्रमर्थस्तथा चात अंति: (-).
६३१९८ (+४) जंबूद्दीवपणत्ती, संपूर्ण वि. १६४४ वैशाख कृष्ण, ८, बुधवार, मध्यम, पृ. ११५, ले. स्थल, वटपद्रनगर,
प्र. मु. लखमसी (अंचलगच्छ); पठ. आ. धर्मसागरसूरि (अचलगच्छ); अन्य. श्रावि. सुखमादे श्रावि रूपाबाई,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ- टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र. ले. श्लो. (५७८) याद्रसं पुस्तकं द्रष्ट्वा, जैदे., ( २६ ११, १३x४३-४८).
जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहंताणं० तेणं अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, वक्षस्कार-७, ग्रं. ४९४६. ६३९९९ (+) प्रवचनसारोद्धार सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १६८०, पौष कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. १०९, ले. स्थल. वीरमपुर, प्रले. मु. ज्ञानमेरु
(गुरु वा. महिमसुंदर, खरतर गच्छ); गुपि वा महिमसुंदर (गुरु पं. साधुकीर्ति पाठक, खरतर गच्छ); पं. साधुकीर्ति पाठक (परंपरा गच्छाधिपति जिनराजसूरि, खरतर गच्छ); पठ. सा. पुण्यसिद्धि (गुरु सा. पदमासिद्धि); गुपि. सा. पदमासिद्धि (गुरु सा. मानसिद्धि); सा. मानसिद्धि, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. प्रथम पत्र पर तीर्थंकर परमात्मा का रंगीन चित्र बनाया हुआ है., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., ( २६.५X११, ७x४१).
प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊण जुगाइजिणं; अंति: नंदउ बहु पढिज्जतो, द्वार- २७६, गाथा-१५९९, ग्रं. २०००.
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प्रवचनसारोद्धार - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने जुगादि, अंतिः भव्ये भणी जतउ थकड.
६३२००. (+#) समवायांगसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०४, प्र. वि. पंचपाठ - संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों
की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X११, ५-१२x२७-३१).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: सुयं मे० इह खलु समणे; अंति: अज्झयणति त्तिबेमि,
अध्ययन-१०३, सूत्र-१५९, ग्रं. १६६७. समवायांगसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: पादौनाष्टशती तथा,
ग्रं. ३५७५. ६३२०१. (+#) बृहत्संग्रहणी सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १००, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४३३). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: सिरिचंद० अत्तपढणट्ठा,
गाथा-२७२.
बृहत्संग्रहणी-टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: अत्यद्भुतं योगिभि; अंति: लोकानां सर्वसंख्यया, ग्रं. ३५००. ६३२०२. (+#) प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १६३२, मध्यम, पृ. १११, ले.स्थल. विक्रमनगर(Jes), प्रसं.ग. कल्याणधीर
(गुरु आ. जिनमाणिक्यसूरि, खरतरगच्छ); गुपि. आ. जिनमाणिक्यसूरि (गुरु गच्छाधिपति जिनहससूरि, खरतरगच्छ); पठ. मु. धर्मरत्न, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, ३-६४४५-५२). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरहताणं जंबू; अंति: भविस्सत्ती तिबेमि, अध्याय-१०,
ग्रं. १२५०. प्रश्नव्याकरणसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: संशोधिता चेयम्,
अध्याय-१०, ग्रं. ४६३०. ६३२०३. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०१, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, ६x४०-४५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२९, सूत्र-३६
अपूर्ण तक है.)
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (१)उत्तर प्रधानगोअध्ययन, (२)संयोग बे प्रकारे; अंति: (-). ६३२०४. कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १७२६, कार्तिक शुक्ल, ८, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ९६, ले.स्थल. देवीझर, प्रले. पं. क्षमावर्द्धन (गुरु
ग. हेमनिधान, बृहत्खरतरगच्छ); ग. हेमनिधान (गुरु पं. मुनिमेरु, बृहत्खरतरगच्छ); गुपि.पं. मुनिमेरु (गुरु ग. श्रीधर्म, खरतरगच्छ-सागरचंद्रसूरिशाखा); ग. श्रीधर्म (गुरु ग. समयकलश, खरतरगच्छ-सागरचंद्रसूरिशाखा); ग. समयकलश (गुरु । ग. चारुधर्म वा, खरतरगच्छ-सागरचंद्रसूरिशाखा); राज्यकालगच्छाधिपति जिनचंद्रसूरि (बृहत्खरतरगच्छ); लिख. श्राव. फतेचंद अमीचंद (पिता श्राव. अमीचंद जीवराज); गुपि. श्राव. अमीचंद जीवराज (पिता श्राव. जीवराज जगमालजी); श्राव. जीवराज जगमालजी; मं. जगमाल; मं. वसताजी; मं. ठाकुरशी; मं. वीरमसी, मं. मोहण; मं. बलू; मं.खेतसी; मं. नेतसी; म. जयतसी माधवजी (पिता मं. माधवजी हमीरजी); मं. माधवजी हमीरजी (पिता मं. हमीरजी सोमाजी); मं. हमीरजी सोमाजी; मं. सोमाजी, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.वि. श्रीपार्श्वनाथ प्रसादात्. बोहित्थरागोत्र (बोथरा) सपरिवारेण लिखापिता इयं प्रति ज्ञानविध्यर्थं., प्र.ले.श्लो. (२०९) जलाद्रक्षे थलाद्रक्षे, (७७५) मंगलं लेखकानांच, जैदे., (२६.५४११, ६४३०-३७).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: उवदंसिइत्ति बेमि, ग्रं. १२१६. ६३२०५. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ६-१७X४८-५८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (१)णमो अरिहंताण पढम, (२)तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-).
(पू.वि. भगवान महावीरस्वामी द्वारा दीक्षा लेने के प्रसंग वर्णन अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: माहरो नमस्कार हूवौ; अंति: (-).
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्यतीर्थनेतार; अति: (-). ६३२०६. अंतगडदसासूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८२, प्र.वि. कुल ग्रं. ३०००, दे., (२५.५४११.५, ५४३०-३४).
अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: अट्ठमं अंगसमत्तं.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
अंतकृद्दशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० तेणं काले ते; अंति: अर्थपरुप्यो कह्यो. ६३२०७. (+#) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७७, पौष कृष्ण, ८, गुरुवार, मध्यम, पृ. ८५, ले.स्थल. लींबडी, अन्य.
हरदेव कृष्णदेव त्रवाडी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संधिसूचक चिह्न-टिप्पणयुक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ४४३२).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: अपुणागमं गइ त्तिबेमि.
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: ध० धर्म म० मंगलिक; अंति: तीर्थंकरनु प्ररुप्यु. ६३२०८. (+#) कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १००-३२(१,३ से ९,१३ से १५,१७,१९ से २१,२६,२८ से
३०,३३ से ३५,३७,४१,४५ से ४८,५४ से ५५,५७,९०)=६८, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १४४३८-४५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. वाचना-१ अपूर्ण से ५ अपूर्ण तक बीच-बीच
के पाठ हैं.)
कल्पसूत्र-बालावबोध *, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६३२०९. (#) शांतिनाथ चरित्र, अपूर्ण, वि. १७५१, वैशाख शुक्ल, १२, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १०६-३७(१ से ।
३२,३५,४०,४२,४८,५२)=६९, ले.स्थल. संथाणाग्राम, प्रले.ग. माणिक्यसागर (गुरु ग. ऋद्धिसागरजी गणी शिष्य); गुपि.ग. ऋद्धिसागरजी गणी शिष्य (गुरु ग. ऋद्धिसागरजी गणि); ग. ऋद्धिसागरजी गणि; राज्यकालरा. केसरिसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ६५००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १८४४७-५०). शांतिजिन चरित्र, आ. भावचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. १५३५, आदि: (-); अंति: स करोतु शांतिम्, (पू.वि. प्रस्ताव-३
अपूर्ण से बीच-बीच के पाठ हैं.) ६३२१०. (+#) कर्मग्रंथ १ से ६ सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २९२, कुल पे. ६, प्र.वि. त्रिपाठ-द्विपाठ-टिप्पण युक्त विशेष
पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न. कुल ग्रं. ४०००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १-१६x४८-५५). १. पे. नाम. कर्मविपाक सह टीका, पृ. १आ-३८अ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ
देविंदसूरिहिं, गाथा-६०. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-स्वोपज्ञ सुबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: दिनेशवद्ध्यानवर; अंति: सर्वोपि
तेन जनः, ग्रं. १८८२. २.पे. नाम. कर्मस्तव सह टीका, पृ. ३८अ-५६आ, संपूर्ण.
कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वंदियं नमहं तं
वीर.
कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-स्वोपज्ञ सुखबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (१)बंधोदयोदीरण सत्पदस्थ,
(२)तथा तेन प्रकारेणस्तु; अंति: (१)देवेंद्रसूरि बिंति, (२)त्रुट्यंतु जगतोपि, ग्रं. ८३०. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व सह टीका, पृ. ५७अ-६५आ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: देविंदसूरि०
सोउं, गाथा-२०. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-अवचूर्णि, सं., गद्य, आदि: सम्यग्बंधस्वामित्व; अंति: (१)देशद्वारेण भणनात,
(२)लेख्यवचूर्णिका, ग्रं. ४२०. ४. पे. नाम. षडशीति सह टीका, पृ. ६६अ-१२३आ, संपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं जीअमग्गण; अंति: लिहियो
देविंदसूरीहिं, गाथा-८६.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-स्वोपज्ञ सुखबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: यद्भाषितार्थलवमाप्य; अंति:
(१)देवेंद्र०चंचरीकैरिति, (२)विचारणा चतुरः, ग्रं. २८००. ५. पे. नाम. शतक सह टीका, प्र. १२४अ-२१३आ, संपूर्ण. शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति:
देविंदसूरि०आयसरणट्ठा, गाथा-१००. शतक नव्य कर्मग्रंथ-स्वोपज्ञ टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: यो विश्वविश्वभविना; अंति:
(१)स्मृतिनिमित्तमिति, (२)सर्वोपि तेन जनः, ग्रं. ४३४०. ६. पे. नाम. शप्ततिका सह टीका, पृ. २१४अ-२९२आ, संपूर्ण. सप्ततिका कर्मग्रंथ, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: चंदमहत्तर होइ नवइउ,
श्लोक-९३. सप्ततिका कर्मग्रंथ-टीका, आ. मलयगिरिसूरि, सं., गद्य, आदि: अशेषकर्मांशतमः; अंति: (१)मलयगिरि०
श्रुतांलोक, (२)धर्मपरममंगलं, ग्रं. ४०००. ६३२११. (+#) पद्म चरित्र, अपूर्ण, वि. १६१३, आषाढ़ शुक्ल, १, रविवार, मध्यम, पृ. ३१०-२३(३३ से ५५)=२८७, ले.स्थल. इल
महादुर्ग, प्रले. श्राव. सहिसा, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्ट, (११६३) भग्न पृष्टि कटिग्रीवा, जैदे., (२५.५४११, १३४३७-४२). पउमचरिय, आ. विमलसूरि, प्रा., पद्य, ई. ३वी, आदि: सिद्ध सुर किन्नरोरग; अंति: चरियं सुविरिसाणं, पर्व-११८,
गाथा-८६५५, ग्रं. ११५००, (पू.वि. पर्व-६ गाथा-१८६ अपूर्ण से पर्व-१० गाथा-४६ तक नहीं है.) ६३२१२. (+) बृहद्विचाररत्नाकर, संपूर्ण, वि. १६१७, आश्विन शुक्ल, ८, रविवार, मध्यम, पृ. २९७, ले.स्थल. अणहिल्लपाटकनगर,
लिख. श्राव. वीह्नी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १४-१७४३९-४६).
बृहद्विचाररत्नाकर, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: आद्यं भावारोग्यं मनो; अंति: रागादि नेति संयमंच, ग्रं. १४५७३. ६३२१३. (+#) आत्मप्रबोध सह बीजक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २७०, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १२४३३).
आत्मप्रबोध, आ. जिनलाभसूरि, सं., प+ग., वि. १८३३, आदि: अनंतविज्ञानविशुद्ध; अंति: (१)ग्रंथवरात्मबोधः,
(२)सद्बोधभक्तिभृता.
आत्मप्रबोध-बीजक, सं., गद्य, आदि: तत्राद्य प्रकाशे यथा; अंति: (१)ग्रंथो विनिर्मितः, (२)पगमोद्गवा अष्टौगुणाः. ६३२१४. (+#) कल्पसूत्र सह बालावबोध व्याख्यान १-८, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २३५-१०(१ से ९,२१२)=२२५,
प्रले. मु. शिवनिधान (खरतरगच्छ); अन्य. आ. जिनराजसूरि (गुरु गच्छाधिपति जिनसिंहसूरि, खरतरगच्छ); गुपि.गच्छाधिपति जिनसिंहसूरि (गुरु आ. जिनचंद्रसूरि, खरतरगच्छ); आ. जिनचंद्रसूरि (गुरु आ. जिनमाणिक्यसूरि, खरतरगच्छ); आ. जिनमाणिक्यसूरि (गुरु गच्छाधिपति जिनहससूरि, खरतरगच्छ); गच्छाधिपति जिनहससूरि (गुरु आ. जिनसमुद्रसूरि, खरतरगच्छ); आ. जिनसमुद्रसूरि (गुरु आ. जिनचंद्रसूरि, खरतरगच्छ); आ. जिनचंद्रसूरि (गुरु आ. जिनभद्रसूरि, खरतरगच्छ); आ. जिनभद्रसूरि (गुरु आ. जिनवर्धनसूरि, खरतरगच्छ); अन्य. आ. जिनकुशलसूरि (गुरु आ. जिनचंद्रसूरि, खरतरगच्छ); आ. जिनदत्तसूरि (गुरु आ. जिनवल्लभसूरि, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४४१-४५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: इक्काररसगणहरा होत्था, व्याख्यान-८, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र
नहीं हैं., महावीरस्वामी के च्यवन कल्याणक प्रसंग से है.) कल्पसूत्र-बालावबोध, मु. शिवनिधान, मा.गु., गद्य, वि. १६८०, आदि: (-); अंति: मंगलश्रेणि विस्तारउ,
पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ६३२१५. (+) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४५-१(१)+१(१५४)=२४५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक
लकीरें., जैदे., (२५.५४११, २-५४१७-३५).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., वक्षकार-१ सूत्र-१ अपूर्ण से
वक्षकार-७ नक्षत्र नाम वर्णन अपूर्ण तक है.) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
___ भरतचक्री के छत्ररत्न की चंद्र उपमा अपूर्ण तक लिखा है) ६३२१६. (#) अनेकार्थसंग्रह सह कैरवाकरकौमुदी टीका, पूर्ण, वि. १६६३, वैशाख कृष्ण, १३, बुधवार, मध्यम,
पृ. २३९-१(२०८*)=२३८, प्रले.ग. शीलविजय पंडित (गुरु आ. मेघजी ऋषि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. १२०००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्ट, जैदे., (२५४११, १५४४७-५३). अनेकार्थसंग्रह, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: ध्यात्वार्हतः कृतै; अंति:
खेदामंत्रणयोरपि, अध्याय-७, श्लोक-१९३१, संपूर्ण. अनेकार्थसंग्रह-कैरवाकरकौमुदी टीका, आ. महेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: परमात्मानमानम्य निज; अंति:
महेंद्रसूरि०महीचंद्र, संपूर्ण. ६३२१७. (#) कर्मग्रंथ १ से ६ सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८१४, आश्विन अधिकमास शुक्ल, ४, शनिवार, मध्यम, पृ. २११, कुल
पे. ६, ले.स्थल. रमणीकनगर, अन्य. मु. महेसदास; मु. दीपचंद; मु.खुस्यालचंद (गुरु पंन्या. लब्धिकमल); प्रले. पंन्या. लब्धिकमल (गुरु पं. माणिक्यराज); गुपि.पं. माणिक्यराज (गुरु ग. रूपवल्लभ); ग. रूपवल्लभ, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (४५९) मंगलं लेखकस्यापि, जैदे., (२५४११, १५४४९). १. पे. नाम. कर्मविपाक सह बालावबोध, पृ. १आ-२९अ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ
देविंदसूरिहिं, गाथा-६०. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: सकल त्रिभुवन जनमनने; अंति:
(१)मतिचंद्र०बालावबोधिनी, (२)लिख्यौ देवेंद्रसूरे. २. पे. नाम. कर्मस्तव सह बालावबोध, पृ. २९अ-४४आ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वंदियं नमहं तं
वीरं, गाथा-३४. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: (१)वीरं बोधनिधिं धीरं, (२)तथा कहता तिणे
प्रकार; अंति: (१)देवेंद्र० वांद्या छे, (२)र देवेंद्रे वंदित छै. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व सह बालावबोध, पृ. ४४आ-५२अ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: देविंदसूरि०
सोउं, गाथा-२४. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: (१)सर्वशर्मप्रदं नत्वा, (२)कर्म परमाणुनौ
___जीवप्र; अंति: मतिचंद्रेण कृतिहेतवे. ४. पे. नाम. षडशीति सह बालावबोध, पृ. ५२अ-७८अ, संपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं जीअमग्गण; अंति: लिहिओ
देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य शिरसा वीरं, (२)जिन कहिये
रागद्वेष; अंति: मतिचंद्र० कृतिहेतवे. ५. पे. नाम. शतक सह बालावबोध, पृ. ७८अ-१४९अ, संपूर्ण. शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति:
देविंदसूरि०आयसरणट्ठा, गाथा-१००. शतक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: (१)रत्नत्रयोपदेष्टार, (२)जिन कहीये राग द्वेष;
अंति: मतिचंद्रेण पद्धति.
पा-८५.
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४६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६. पे. नाम. सप्ततिका सह बालावबोध, पृ. १४९अ-२११आ, संपूर्ण. सप्ततिका कर्मग्रंथ, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: चंदमहत्तर० होइ नवइउ,
श्लोक-९२.
सप्ततिका कर्मग्रंथ-बालावबोध, म. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: अभिगम्यजगद्धीरं वीरं; अंति: सुबोधोयं विनिर्ममे. ६३२१८. सर्वज्ञ शतक सह स्वोपज्ञ टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २०६, प्र.वि. द्विपाठ., जैदे., (२६४११, ११४३५-४०).
सर्वज्ञशतक, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., पद्य, आदि: पणमिय सिरिवीरजिणं; अंति: जयउ जा तित्थं, श्लोक-१२३.
सर्वज्ञशतक-स्वोपज्ञ टीका, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अति: कालं जयत्वित्याशि. ६३२१९. (+) नंदीसूत्र सह टबार्थव बालावबोध, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८२-२(१७*,१६६*)=१८०, प्रले. शंकरजी खीमजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ४-१२४२१-४४).
नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणओ; अंति: समणुन्नाइं नामाई, संपूर्ण. नंदीसूत्र-बालावबोध* मा.गु., गद्य, आदि: अथ नंदी० आनंदनो हेतु; अंति: संपूर्ण.
नंदीसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: ज० विषय कषायना जीपक; अंति: नानाम जाणवा, संपूर्ण. ६३२२०. (+#) कर्मग्रंथ १ से ६ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८८+१(१५७)=१८९, कुल पे. ६,
प्र.वि. संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ३-१२४२०-३४). १. पे. नाम. कर्मविपाक सह टबार्थ, पृ. १आ-१८अ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ
देविंदसूरिहिं, गाथा-६०. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-स्तबकार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८०३, आदि: प्रणिपत्य जिनं वीर; अंति:
सूचकं वाक्यं. २. पे. नाम. कर्मस्तव सह टबार्थ, पृ. १८अ-२८आ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिण; अंति: वंदियं नमहतं
वीर, गाथा-३४. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, म. जीवविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८०३, आदि: तथा तिणे प्रकारे; अंति: श्रीमहावीर
देव प्रति. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व सह टबार्थ, पृ. २९अ-३७अ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: नेयं
कम्मत्थयं सोउ, गाथा-२४. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८०३, आदि: जीवप्रदेश साथे कर्म; अंति:
तेहने अनुसारे जाणवू. ४. पे. नाम. षडशीति सह टबार्थ, पृ. ३७अ-७८अ, संपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं जीअमग्गण; अंति: लिहियो
देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८०३, आदि: जिनने नमस्कार करीने; अंति: पुस्तक
न्याय कह्यो. ५.पे. नाम. शतक सह टबार्थ, पृ. ७८अ-१२०आ, संपूर्ण. शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति:
देविंदसूरि०आयसरणट्ठा, गाथा-१००. शतक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८०३, आदि: जिनप्रति नमस्कार; अंति: संभारवाने
अर्थे. ६.पे. नाम. सप्ततिका सह टबार्थ, पृ. १२०आ-१८८आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
सप्ततिका कर्मग्रंथ, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: चंदमहत्तर० होइ नवइड,
श्लोक-९१.
सप्ततिका कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अथ चंद्रमहत्तरि कृत; अंति: गाथाइ छे इत्यर्थ. ६३२२१. (+#) राजप्रश्नीयसूत्र सहटबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७९-१३(१ से १२,२०)=१६६, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ५४३२-३९). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. आभियोगिक देव अधिकार सूत्र-"एवामेव ते सूरियाभस्स
देवस्स" पाठांश से सूर्याभदेव आगामी भव सूत्र-"गोयमा महाविदेहे वासाई इमाइं कुलाई" पाठांश तक है.)
राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६३२२२. रायपसेणीयसूत्र सह मलयगिरीय टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ११०, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४११, ४-१३४३२-३६).
राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: पसवणीए णमो, ग्रं. २१२०. राजप्रश्नीयसूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदि: प्रणमत वीरजिनेश्वर; अंति: मलयगिरिणा० भवतु कृती,
ग्रं. ३७५०. ६३२२३. (+#) शांतिनाथ चरित्र, संपूर्ण, वि. १६७१, फाल्गुन शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. १५६, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि
सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ६५००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१०१०) यादृशं पुस्तकं दृष्ट, जैदे., (२६४१०.५, १५४४०). शांतिजिन चरित्र, आ. भावचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. १५३५, आदि: प्रणिपत्यार्हतः सर्व; अंति: स करोतु शांतिम्,
प्रस्ताव-६. ६३२२४. (+#) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४१, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १३४४१-४५). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: वग्गेहिं सम्मत्तो,
अध्ययन-१९, ग्रं. ५५००. ६३२२५. (+) भगवतीसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८८९, ज्येष्ठ कृष्ण, १२, मंगलवार, मध्यम,
पृ. १५५५-१४(८,२९५,१०५०,१३३० से १३३९,१३७२*)+८(५,१२६,१४७,१७६,१०२६,१०७७,११४४,१४५१)=१५४९, ले.स्थल. माडवीबंदर, प्रले. देवकृष्ण हरदेव त्रेवाडी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२५.५४१०.५, ५४३१-३६).
भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरहताणं० सव्व; अंति: दिवसेणं उद्दिसिज्जति, शतक-४१,
सूत्र-१७७५२, (पू.वि. बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) भगवतीसूत्र-टबार्थ, उपा. पद्मसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १८पू, आदि: (१)श्रेयः श्रीसेविता, (२)अरिहत १२ गुणेकरी;
अंति: पद्मसुंदर०कृतोद्यमाः. ६३२२६. (+#) विवाहपण्णत्तीसूत्र, अपूर्ण, वि. १५७०, आश्विन शुक्ल, ३, जीर्ण, पृ. ६५९-२(४६४ से ४६५)=६५७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पंचपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, ११४२६-३६). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहताणं णमो; अंति: संतिकरितं नमसामि,
(पू.वि. शतक-१८ उद्देश-८ अपूर्ण से उद्देश-९ अपूर्ण तक नहीं है.) ६३२२७. कल्पसूत्र की दुर्गपदविवृत्ति, संपूर्ण, वि. १५००, कार्तिक कृष्ण, १४, बुधवार, मध्यम, पृ. ६२, राज्यकाल
आ. जिनभद्रसूरि (गुरु आ. जिनवर्धनसूरि, खरतरगच्छ); लिख. श्राव. पासड; श्राव. सक; श्राव. जीचंद, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२८४८.५, ७-११४४६-५०). कल्पसूत्र-संदेहविषौषधि टीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., गद्य, वि. १३६४, आदि: ध्यात्वा श्रीश्रुत; अंति: समाप्त:
समर्थित इति.
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४८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६३२२८. (+#) सम्यक्त्वकौमुदी कथानक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८१+२(२,८०)=८३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४९.५, ९४३५).
सम्यक्त्व कौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४५७, आदि: श्रीवर्धमानमानम्य; अंति: (-), (पू.वि. कथा-२
__ अपूर्ण तक है.) ६३२२९. (+#) संग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४, ले.स्थल. भादोसडानगर, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, १०x४०). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिई १; अंति: जा वीरजिण तित्थं,
गाथा-३०२. ६३२३०. (+#) महीपाल कथा, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१५०) यावच्चंद्र दिवाकरा वनुदितं, जैदे., (२७४९, १०४३८-४५). महीपालराजा कथा, ग. वीरदेव, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण रिसहनाह केवल; अंति: वीरदेवगणी० पसाएण,
गाथा-१८०९. ६३२३१. (+#) कल्पसूत्र सह कल्पलता टीका, संपूर्ण, वि. १८२७, आषाढ़ कृष्ण, ६, गुरुवार, मध्यम, पृ. २७५, प्रले. मु. सावंतसिंघ
(गुरु आ. जिनअक्षयसूरि, खरतरगच्छ); गुपि. आ. जिनअक्षयसूरि (परंपरा आ. जिनललितसूरि, खरतरगच्छ); आ. जिनललितसूरि (परंपरा आ. जिनविमसूरि, खरतरगच्छ); आ. जिनविमसूरि (परंपरा आ. जिनचंद्रसूरि, खरतरगच्छ); आ. जिनचंद्रसूरि (परंपरा
आ. जिनरंगसूरि, खरतरगच्छ); आ. जिनरंगसूरि (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित. कुल ग्रं. ८४००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२४.५४१०, १३४३१).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदि: प्रणम्य परमं ज्योतिः; अंति:
तावन्नंदतु सापि हि. ६३२३३. (+#) कर्मग्रंथ १ से ५ सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १८१+३(११४ से ११५,११७)=१८४, कुल पे. ५,
प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न. कुल ग्रं. १००००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १७X४४-५०). १.पे. नाम, कर्मविपाक सह टीका, पृ. १अ-३५अ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ
देविंदसूरिहिं, गाथा-६०. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-स्वोपज्ञ सुबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: दिनेशवद्ध्यानवर; अंति:
(१)देवेंद्र०चंचरीकैरिति, (२)सर्वोपि तेन जनः, ग्रं. १८८२. २. पे. नाम. कर्मस्तव सह टीका, पृ. ३५अ-५२अ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: देविंद० नमह
तं वीर, गाथा-३४. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-स्वोपज्ञ सुखबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (१)बंधोदयोदीरण सत्पदस्थ,
(२)तथा तेन प्रकारेणस्तु; अंति: (१)देवेंद्रसूरि बिंति, (२)त्रुट्यंतु जगतोपि, ग्रं. ८३०. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व सह टीका, पृ. ५२अ-६०अ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: देविंदसूरि०
सोउं, गाथा-२४. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-अवचूर्णि, सं., गद्य, आदिः सम्यग्बंधस्वामित्व; अंति: देशद्वारेण भणनात्. ४. पे. नाम. षडशीति सह टीका, पृ. ६०अ-१०८आ, संपूर्ण.
बाम.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं जीअमग्गण; अंति: लिहियो
देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-स्वोपज्ञ सुखबोधाटीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: यद्भाषितार्थलवमाप्य; अंति:
(१)देवेंद्र०चंचरीकैरिति, (२)विचारणा चतुरः, ग्रं. २८००. ५. पे. नाम. शतक सह टीका, पृ. १०८आ-१८१आ, संपूर्ण. शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति:
देविंदसूरि०आयसरणट्ठा, गाथा-१००. शतक नव्य कर्मग्रंथ-स्वोपज्ञ टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: यो विश्वविश्वभविनां; अंति:
(१)स्मृतिनिमित्तमिति, (२)सर्वोपि तेन जनः. ६३२३४. (+#) आचारांगसूत्र श्रुतस्कंध-२ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५८, मध्यम, पृ. १६१-१(७२)=१६०, अन्य. सा. पांचीबाई
(गुरु सा. मानकुंवर); गुपि. सा. मानकुंवर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, ५४३२).
आचारांगसूत्र-हिस्सा श्रुतस्कंध-२, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: से भिक्खु वा भिक्खु; अंति: विप्पमुच्चइति
बेम्मि, अध्ययन-१६, (वि. १८५८, आषाढ़ कृष्ण, १, रविवार) आचारांगसूत्र-द्वितीयश्रुतस्कंध-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)तेहनो ए समंध प्रथम, (२)से० ते भि० साधु भि०;
अंति: इम हु बे० कहु छउ, (वि. १८५८, श्रावण कृष्ण, ८, सोमवार) ६३२३५. (2) कल्पसूत्र सह टीका व पट्टावली, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १२७-३(१ से २,५३)=१२४, कुल पे. २,
प्र.वि. त्रिपाठ-द्विपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १-१८४५२-५८). १.पे. नाम. कल्पसूत्र सह टीका, पृ. ३अ-५२आ-१२७आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं.
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, संपूर्ण. कल्पसूत्र-कल्पकिरणावली टीका, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, वि. १६२८, आदि: (-); अंति: रमुष्या शतशः
प्रतीः, (अपूर्ण, पू.वि. नमस्कारमंत्र विवेचन अपूर्ण से है व बीच का पाठांश नहीं है.) २. पे. नाम. पट्टावली, पृ. १२७आ, संपूर्ण.
__ पट्टावली*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्वामी; अंति: श्रीविजयदेवसूरि ६३. ६३२३६. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १८८५, चैत्र कृष्ण, १०, सोमवार, मध्यम,
पृ. १६७-१(२७*)=१६६, प्रले. मु. अमरतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, ५४३८).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहताणं नमो; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ+व्याख्यान+कथा, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (१)सकलार्थसिद्धिजननी,
(२)अरिहंतनइ नमस्कार; अंति: सोमविमलसूरेण० स्फुट. ६३२३७. (+#) महीपाल चरित्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८४७, माघ कृष्ण, ८, गुरुवार, मध्यम, पृ. ११६-१(३४)=११५,
ले.स्थल. बिकानेर, प्रले. मु. चंद्रभाण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ८४३६-४३)... महीपालराजा कथा, ग. वीरदेव, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण रिसहनाहं केवल; अंति: वीरदेवगणी० पसाएण,
(पू.वि. गाथा-५४१ अपूर्ण से गाथा-५५७ अपूर्ण तक नहीं है.)
महीपालराजा कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करि; अंति: के प्रशाद कर सही. ६३२३८. (+#) शांतिनाथ चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३०, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ५०००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १५४३३). शांतिजिन चरित्र, आ. भावचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. १५३५, आदि: प्रणिपत्यार्हतः सर्व; अंति: करोति कल्याणं करोति,
प्रस्ताव-६, ग्रं. ५०००.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
६३२३९.
(+#)
कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८२ - १ (१) = ८१, पू. वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षर फीके पड़ गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै, (२५x१०.५, ७३३-३९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू. वि. जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र का वर्णन अपूर्ण से वर्षाकाल में साधु-साध्वी द्वारा गोचरी हेतु जाने के समय पालन करने योग्य नियम वर्णन अपूर्ण तक का पाठ है.) कल्पसूत्र - टवार्थ में, मा.गु, गद्य, आदि: (-); अंति: (-). *,
६३२४० (+) उपदेशमाला सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७३९ आश्विन शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ६३, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२४.५x११,
५x२९).
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उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: जयंमि थिर थावरा होउ, गाथा-५४४,
संपूर्ण.
उपदेशमाला - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमिऊण कहीइ नमीनइ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५२२ अपूर्ण तक लिखा है.)
६३२४१. (+४) उत्तराध्ययनसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २८४-२१० (१ से १८,२४ से १२४, १४४ से १५४,१७९ से १९९,२०४,२१२ से २६१ ) = ७४, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.,
(२५४१०.५, ४x२४).
उत्तराध्ययनसूत्र. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश हैं.) उत्तराध्ययन सूत्र- टवार्थ मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-).
६३२४२. (+) श्रीपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें -संधि सूचक चिह्न-संशोधित - टिप्पणयुक्त विशेष पाठ, जैये. (२४४१०.५, ११४३३).
"
श्रीपाल चरित्र, आ. ज्ञानविमलसूरि, सं., गद्य वि. १७४५, आदिः सकलकुशलवल्ली सेचने, अंतिः कालस्यं सदा
1
वाच्यं.
६३२४३. (+#) निशीथसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८६, पौष कृष्ण, ११, बुधवार, मध्यम, पृ. ८६, ले. स्थल. मांडवी (कच्छ), प्रले. मुरारजी वासदेवजी जानी लिख. मु. मुरारजी, अन्य ऋ. गुलाबचंद्र, श्राव. सुंदरजी देवराज, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ३०००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०.५, ५x२८). निशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जे भिखु हत्थ कम्मं; अंति: तेण परत्थ, उद्देशक- २०.
निशीथसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे० जे साधु ह० हस्त; अंतिः सयसिस्सोवभोज्झइ.
६३२४४. (+४) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३९-१ (२) ३८, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४,५५११.५, ९४२४-३० ).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि धम्मो मंगलमुकि अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन- १ गाथा ८ अपूर्ण से गाथा- २३ अपूर्ण तक नहीं है व चूलिका १ अपूर्ण तक है.)
६३२४५. (+४) कर्पूरमंजरी सह टीका, अपूर्ण, वि. १९५४ माघ कृष्ण, २. शुक्रवार, मध्यम, पृ. १०७-६७(१ से ६७)=४०, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६४१०, ८४३२-३८).
"
-
कर्पूरमंजरी, क. राजशेखर, प्रा., पद्य, आदि (-); अंति: गोविदा कप्पूरमंजरी (पू. वि. जवनिका २ अपूर्ण से है.)
कर्पूरमंजरी टीका. ग. धर्मचंद्रगणि, सं., गद्य, आदि (-); अंति: गमत्वाच्च न विक्रियत
६३२४६. (+) स्थानांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२२-७२ (१ से ७१,१०९) = ५०, प्र. वि. पदच्छेद लकीरें, जैदे., (२५x१०.५, ६४३६-४० ).
स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. बीच-बीच के पाठ
हैं.)
स्थानांगसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बीच-बीच के पाठ हैं व चत्तारि आशिविषाधिकार अपूर्ण तक लिखा है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६ ६३२४७. (+#) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४९, कुल पे. ४८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि
सूचक चिह्न. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४२८-३३). १. पे. नाम. पडिकमणासूत्र, पृ. १आ-१९अ, संपूर्ण. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: णमो अरिहताणं णमो; अंति: वंदामि जिणे
चउवीसं. २. पे. नाम. थंभणपार्श्वनाथजिन स्तोत्र, पृ. १९अ-२२आ, संपूर्ण. जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंति: अभय०
विनिवइ आणदिय, गाथा-३०. ३. पे. नाम. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, पृ. २२आ-३३आ, संपूर्ण.
मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअसव्वभयं; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, स्मरण-७. ४. पे. नाम. बृहत् स्तवन, पृ. ३३आ-३४अ, संपूर्ण.
तिजयपहत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहत्तपयासय अट्ठ; अंति: निब्भत निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ५.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३४अ-३४आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहस्तुतिगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: दोसावहारदक्खो नालिया; अंति:
___ जिणप्पहसूरि० पीडति, गाथा-१०. ६. पे. नाम. आदीसर स्तुति, पृ. ३५अ, संपूर्ण.
शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सेजमंडण आदिदेव; अंति: नंदसूरि० पायसेवता, गाथा-४. ७. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ३५अ-३५आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: बालापणे डावइ पाय; अंति: काज चढे प्रमाणे, गाथा-४. ८. पे. नाम. दीपमालिका स्तुति, पृ. ३५आ-३६अ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तुति, गच्छा. जिनचंद्रसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: पापायां पुरि चारु; अंति: जिनचंद्र० क्रीडितं,
श्लोक-४. ९. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. ३६अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि; अंति: प्लवः क्षितौ कल्याणा, श्लोक-४. १०. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ३६, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: दद्यात्सौख्यम्, श्लोक-१. ११. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ३६अ-३६आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: हर्षनतासुरनिर्जरलोकं; अंति: मज्जनशस्तनिजाघः, श्लोक-४. १२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, पृ. ३६आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: शमदमोत्तमवस्तुमहापणं; अंति: जयतु सा जिनशासनदेवता, श्लोक-४. १३. पे. नाम. आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, पृ. ३७अ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: वरमुत्तीहार सुतारगणं; अंति: सुहाणि कुणेसु सया, गाथा-४. १४. पे. नाम. चउवीसतीर्थंकर स्तुति, पृ. ३७अ-३७आ, संपूर्ण.
पंचकल्याणक स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: नाभेयं संभवं तं अजिय; अंति: गणसहिया पंचकल्लाणएसु, गाथा-४. १५. पे. नाम. २४ दंडक स्तुति, पृ. ३७आ-३८आ, संपूर्ण.
आ. जिनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि: रुचितरुचिमहामणि; अंति: दद्यादलं भारती भारती, श्लोक-४. १६. पे. नाम. सिमंधरस्वामि द्वितीया स्तुति, पृ. ३८आ-३९अ, संपूर्ण.
बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न; अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. १७. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. ३९अ-३९आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: पंचानंतकसुप्रपंचपरमा; अंति: सिद्धायिका त्रायिका, श्लोक-४.
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५२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १८.पे. नाम. द्वितीया वीस विहरमान स्तुति, पृ. ३९आ, संपूर्ण.
विहरमान २० जिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: पंचविदेह विषे विहरत: अंति: जण मनवंछित सारै. गाथा-४. १९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ३९आ-४०अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञ ज्योति; अंति: वृद्धिं वैष्यम, श्लोक-४. २०. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ४०अ-४०आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: यदहिनमनादेव देहिन; अंति: भवतु नित्य मंगलेभ्यः, श्लोक-४. २१. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. ४०आ-४१अ, संपूर्ण.
साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: अविरहलकुवलगवलमुक्ता; अंति: देवी श्रुतोच्चयम्, श्लोक-४. २२. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ४१अ, संपूर्ण.
२४ जिन स्तुति, अप., पद्य, आदि: भरहेसरकारिय देव हरे; अंति: तु अणंतदहंसगुणा, गाथा-२. २३. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. ४१अ-४१आ, संपूर्ण.
आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसे जिनवर प्रणमु; अंति: जिनसुख० सुरि सुह जाण, गाथा-४. २४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ४१आ, संपूर्ण.
आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अश्वसेन नरेसर वामा; अंति: जिनभक्ति० बहु वित्त, गाथा-४. २५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ४१आ-४२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: दें कि धपमप; अंति: दिशतु शासनदेवता,
श्लोक-४. २६. पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. ४२अ-४२आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: ऋषभनाथ भनाथनिभानने; अंति: तनुभा तनुभातिनी, श्लोक-४. २७. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ४२आ, संपूर्ण..
सं., पद्य, आदि: युगादिपुरुषंद्राय; अंति: कूष्मांडी कमलेक्षणा, श्लोक-४. २८. पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. ४२आ-४३अ, संपूर्ण..
५ तीर्थजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजयमुख्य; अंति: ते संतु भद्रकराः, श्लोक-४. २९. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. ४३अ-४३आ, संपूर्ण..
सं., पद्य, आदि: देवदेवाधिपैः सर्वतो; अंति: यच्छताद्वस्सदा, श्लोक-४. ३०. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ४३आ-४४अ, संपूर्ण.
आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुरति मनमोहन कंचन; अंति: इम श्रीजिनलाभसूरिंद, गाथा-४. ३१. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. ४४अ-४४आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: दीक्षा श्रीअरनाथकस्य; अंति: ज्ञानस्य लाभंसदा, श्लोक-४. ३२. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति-गिरनारमंडन, पृ. ४४आ, संपूर्ण.
आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: गिरिनारिसिहर पर नेमि; अंति: जिनलाभसूर०फले सुजगीस, गाथा-४. ३३. पे. नाम. नेमनाथ स्तुति, पृ. ४४आ-४५आ, संपूर्ण.
साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतकी पाडल जाई; अंति: तुंसे देवी अंबाई, गाथा-४. ३४. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. ४५आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: अष्टमी अष्ट प्रमाद; अंति: सर्व विघ्न दूरे हरइ, गाथा-४. ३५. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. ४५आ, संपूर्ण. ___ साधारणजिन स्तुति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीतीर्थराजः पदपद्म; अंति: भावदाता ददतु सवं वः,
श्लोक-१. ३६. पे. नाम. पंचतीर्थी गीत, पृ. ४५आ-४६अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: हरषमनधार दुखवार महि; अंति: आनंदि परमात्म भावै, गाथा-७.
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३७. पे नाम, सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ४६-४७अ संपूर्ण.
आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: निरुपम सुखदायक, अंतिः श्रीजिनलाभसूरिंदा जी गाथा ४.
३८. पे. नाम. शीतलजिन स्तुति, पृ. ४७अ संपूर्ण.
आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवनजननायक दायक: अंतिः भणे श्रीजिनलाभसूरिंद, गाथा ४. ३९. पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तुति, पृ. ४७-४७आ, संपूर्ण.
पंचमीतिथि स्तुति, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु, पद्य, आदि: पंच अनंत महंत गुणाकर, अंतिः कहै जिणचंद मुणिंद,
गाथा-४.
४०. पे नाम, मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. ४७-४८अ संपूर्ण
मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: अरनाथ जिनेश्वर, अंति देवी देव करो कल्याण, गाथा-४,
४१. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ४८अ, संपूर्ण.
आ. जिनलाभसूरि, सं., पद्य, आदि: विशदसद्गुणराजिविराजि; अंतिः वाग्जिनलाभशुभार्थदा, श्लोक-४. ४२. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. ४८आ, संपूर्ण.
२४ जिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टापदगिरि आदिजिणेस अंतिः पामु परमानंदाजी, गाथा १. ४३. पे नाम वीरप्रभु स्तुति, पृ. ४८आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीदेवार्य विश्ववर अंति: वांत्यो शवयात्, लोक-१.
४४. पे नाम वासुपूज्यजिन स्तुति, पृ. ४८-४९अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि श्रीवासुपूज्यनरेसर, अंति: देव विधन हरो नितमेव गाथा ४.
४५. पे नाम, ऋषभजिन स्तुति, पृ. ४९अ ४९आ, संपूर्ण
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आदिजिन स्तुति, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदिः प्रणमुं परमपुरुष परम, अंतिः कहै जिनहर्षसुरिंदाजी, गाथा-४. ४६. पे. नाम. चउदहनियम गाथा, पृ. ४९आ, संपूर्ण.
आवक १४ नियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि सचित्त दव्बर विगाइ३ अंतिः न्हाण१३ भक्तिसु१४, गाथा- १. ४७. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र - प्रथमं अध्ययणं, पृ. ४९आ, संपूर्ण.
"
दशवैकालिकसूत्र, आ. शव्यंभवसूरि, प्रा. पद्य, वी, रवी, आदि धम्मो मंगलमुक्कि अंति: (-), प्रतिपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.
४८. पे. नाम. ग्रहशांति स्तोत्र, पृ. ४९आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य अंति: (-), (पू. बि. गाथा १ अपूर्ण तक है.)
६३२४८. (००) ज्ञानसार सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५०, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी
(+#)
,
है. जैवे. (२५x१०.५, ३४३२).
ज्ञानसार, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, वि. १८वी, आदि ऐंद्रश्रीमुखमझेन, अंतिः स्वीयं कृतं मंगलम्. ज्ञानसार स्वोपज़ टवार्थ, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गद्य, आदि: ऐंद्रवृंदनतं नत्वा, अंतिः श्रीवशोविजय वाचकैरयं.
६३२४९. (+) विपाकसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १८८१, माघ शुक्ल ५, सोमवार, मध्यम, पृ. ५४, ले. स्थल, बालूचरपुर, अन्य. श्रावि. नेमा (पति श्राव. दयाचंद); श्राव. दयाचंदजी, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. त्रिपाठ - पंचपाठ- संशोधित. अक्षरों की फैल गयी है, जैवे. (२५४११, ५-१२४३२-३५).
-
५३
विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं, अति: सेसं जहा आवारस्स, श्रुतस्कंध २,
ग्रं. १२५०, (वि. अध्ययन २० . )
विपाकसूत्र टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, आदि: नत्वा श्रीवर्द्धमान, अंति: मदभयदेवाचार्यस्येति श्रुतस्कंध - २,
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ग्रं. ९००.
६३२५१. (१) स्थानांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ७१-२४ (१ से २४) =४७, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे. (२४.५x१०, ६४३७).
.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ठाणं २ उद्देशक २ अपूर्ण से ठाणं ४
__उद्देशक २ अपूर्ण तक है.)
स्थानांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६३२५२. (+) नवस्मरण व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४६, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११,
४-१५४३०-३५). १. पे. नाम. नवस्मरण सह टबार्थ, पृ. १आ-४५अ, संपूर्ण.
नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: जैनंजयति शासनं, स्मरण-९.
नवस्मरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहतने माहरो नम; अंति: जैनसासने धर्मनौ समूह. २. पे. नाम. वीरजिन स्तुति सह टबार्थ, पृ. ४५अ-४६अ, संपूर्ण..
पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्या प्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४.
पाक्षिक स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: स्नात्र कहीइ न्हवण; अंति: विषे सीद्धी थाओ. ३. पे. नाम. जिनचैत्य स्तुति, पृ. ४६अ-४६आ, संपूर्ण.
तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: ति सततं चितमानंदकारी, श्लोक-९. ४. पे. नाम. जिनस्तुति, पृ. ४६आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
परमात्म स्तुति, सं., पद्य, आदि: दर्शनं देवदेवस्य; अंति: (-), (पू.वि. प्रथम श्लोक अपूर्ण मात्र है.) ६३२५३. (+) साधुप्रतिक्रमणसूत्र वस्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १७७५, कार्तिक कृष्ण, १३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४६-१०(१ से ७,४३
से ४५)=३६, कुल पे. १२, ले.स्थल. राजनगर, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२४.५४१०,११४३२). १.पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह, पृ. ८अ-१०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१, (पू.वि. "इच्छामि पडिक्कमिओ
पगामिसिज्झाय" पाठ से है.) २.पे. नाम. पार्श्वनाथ नमस्कार, पृ. ११अ-१३आ, संपूर्ण. __ जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंति: अभयदेव०
आणंदिअ, गाथा-३०. ३. पे. नाम. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, पृ. १४अ-२३आ, संपूर्ण.
मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअसव्वभय; अंति: नमामि साहम्मिया तेवि, स्मरण-७. ४. पे. नाम. शांति स्तव, पृ. २३आ-२४आ, संपूर्ण.
लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ५. पे. नाम. तिजयपहुत्त स्तोत्र, पृ. २४आ-२५आ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अठ्ठ; अंति: निब्भतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ६. पे. नाम. आदिजिन स्तव, पृ. २५आ-२९अ, संपूर्ण.
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ७.पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. २९अ-३२आ, संपूर्ण.
आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ८. पे. नाम. वर्द्धमानजिन स्तवन, पृ. ३२आ-३५अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव-समसंस्कृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: दृष्टिं
दयालो मयि, श्लोक-३०. ९. पे. नाम. वर्द्धमानस्वामि स्तोत्र, पृ. ३५अ-३७आ, संपूर्ण, पठ. चंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य. दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दुरिअरयसमीरं मोहपंको; अंति: सया पायप्पणामो तुह,
गाथा-४४.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
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१०. पे. नाम. नवतत्त्वस्वरूप प्रकरण, पृ. ३८ अ-४०आ, संपूर्ण.
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४९. ११. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ४०-४२आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
आ. शांतिसूरि, प्रा. पद्य वि. ११वी, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण अंति (-) (पू. वि. गाथा ४९ अपूर्ण तक है.) १२. पे. नाम. सर्वप्रत्याख्यानसूत्र, पृ. ४६अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
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प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति: वत्तिआगारेणं बोसिरह (पू. वि. उपवास पच्चखाण अपूर्ण से है.) ६३२५४. (+) आचारोपदेश सह टबार्थ व मांगलिक गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १७५२, श्रेष्ठ, पृ. २४, कुल पे. २,
ले. स्थल. देवपत्तन प्रले.ग. राजकुशल (गुरुग. तेजकुशल); गुपि. ग. तेजकुशल, अन्य मु. शुभविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित. प्र. ले. श्लो. (५७) जिहां लगे मेरु महीधर, जैदे, (२५x११, ६X३३).
१. पे. नाम, मांगलिक गाथा संग्रह. पू. १अ संपूर्ण,
गाथा संग्रह में, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-).
.
२. पे. नाम. आचारोपदेश सह टबार्थ, पृ. १आ-२४आ, संपूर्ण.
आचारोपदेश, उपा. चारित्रसुंदर, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: चिदानंदस्वरूपाव, अंति: निजयोर्धनजन्मनो वर्ग- ६, श्लोक-२४६, (वि. १७५२, आषाढ़ अधिकमास शुक्ल, १५, सोमवार)
आचारोपदेश-टबार्थ, ग. राजकुशल, मा.गु., गद्य, वि. १७५२, आदि: ज्ञान अने आनंद तेह ज; अंति: जन्मवारो सफल करे.
६३२५५. (*) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, पू. वि. अंत के पत्र नहीं है., प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें जै. (२४.५x१०.५, ४३३-३६).
""
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदिः धम्मो मंगलमुक्किडं, अंति: (-), (पू. वि. अध्ययन-५,
गाथा - १६ तक है.)
दशवैकालिकसूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजिनधर्म उत्कृष्ट अंति: (-).
६३२५६. वास्तुसार प्रकरण व प्रतिष्ठासार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९६०, वैशाख शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. २०, कुल पे. २, दे., (२३.५x१०.५, ११४४३-४६).
५५
१. पे. नाम. वास्तुसार प्रकरण, पृ. १अ १०अ, संपूर्ण, पे. वि. कृति से संबंधित यंत्र दिया हुआ है.
ठक्कर फेरु, प्रा., पद्य, वि. १३७२, आदि: सयलसुरासुरविंद दंसण, अंति: गिहपडिमालक्खणाईणं, प्रकरण- ३, गाथा-२०५. २. पे. नाम प्रतिष्ठासार संग्रह, पृ. १० आ-२०अ, संपूर्ण.
आ. वसुनंदि सैद्धांतिक, सं., पद्य, आदि: सिद्धं सिद्धात्म, अंति: २ स्वाहा शुभं भवतु, अध्याय-६. ६३२५७. चैत्यवंदनादि व श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र की लघुवृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २३, कुल पे. २, जैवे. (२३.५४१०.५,
१४X३२-४३).
१. पे. नाम. चैत्यवंदनादिसूत्र की लघुटीका, पृ. १अ - १७आ, संपूर्ण.
चैत्यवंदनसूत्र संग्रह - लघुटीका, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, आदिः श्रीवीरजिनवरेंद्र, अंतिः वर्गावाप्तिरिति ग्रं. ५५०.
२. पे. नाम. श्रद्धप्रतिक्रमणसूत्र की लघुटीका, पृ. १७-२३आ, संपूर्ण.
वंदित्सूत्र - लघुटीका, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, आदि: प्रणिधाय श्रीवीर, अंति: दे नमस्करोमीत्यर्थः.
६३२५८, (+) भक्तामर स्तोत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १० - १ ( २ ) = ९ प्र. वि. संशोधित कुल ग्रं. ३५० अक्षरों
की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X११, १२X४२).
भक्तामर स्तोत्र- बालावबोध, मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंतिः समुपैति आवइ, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., श्लोक४ अपूर्ण से है., वि. मूल कृति प्रतीक पाठ के रूप में दी गई है.)
६३२५९. (*) प्रतिक्रमणसूत्र व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १५, कुल पे. ४, पठ. मु. नगजी वैरागी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें. जैवे. (२५x१०.५, १२४३०-३५).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. श्राद्धसाधुप्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह, पृ. १आ-१३आ, संपूर्ण. साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-लोंकागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० पंचि; अंति: वंदामि जिणे
चउवीसं. २.पे. नाम. दशविधि प्रत्याख्यान, पृ. १३आ-१५अ, संपूर्ण.
प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: गारेणं वोसिरामि. ३. पे. नाम. चौवीसतीर्थंकर स्तवन, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण.
२४ जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: पहिला ऋषभ जिणेसरदेव; अंति: देयो सुख संपती, गाथा-७. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तोत्र, पृ. १५आ, संपूर्ण.
मु. रूप, सं., पद्य, आदि: विबुधरंजकवीरककारको; अंति: रुपकेण प्रसिद्धा, श्लोक-७. ६३२६०. (+) साधुप्रतिक्रमणसूत्र, सोलसती नाम, पट्टावली आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६०, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. ६,
प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२४.५४१०, ११४३८). १.पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १आ-१०अ, संपूर्ण, वि. १८६०, माघ शुक्ल, २, शनिवार, ले.स्थल. हरिदुर्ग,
प्रले. मु. खुस्यालचंद्र (नागोरीलुंकागच्छ); पठ. मु. ताराचंद्र (परंपरा मु.खुस्यालचंद्र, नागोरीलुंकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-लोंकागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं; अंति: ते मिच्छामि
दुकुकडम्. २. पे. नाम. सोल सती नाम, पृ. १०अ, संपूर्ण.
१६ सती नाम, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: ब्राह्मीजी १ चंदनवाल; अंति: दिनं कुर्वंतवो मंगलं. ३. पे. नाम. मांगलिक गाथा, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मंगलं भगवान वीरो; अंति: जैनंजयति शासनम्,
गाथा-१. ४. पे. नाम. द्रुमपुष्पिका अध्ययन, पृ. १०आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा द्रुमपुष्पिका प्रथम अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ;
अंति: साहुणो त्तिबेमि, गाथा-५. ५. पे. नाम. नागोरीलंकागच्छ पट्टावली, पृ. १०आ, संपूर्ण.
पट्टावली-नागोरीलंकागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: पूज्याचार्यजी; अंति: चंद्रजी १६ चिरंजीविः. ६. पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. १०आ, संपूर्ण..
सुभाषित श्लोक संग्रह *, सं., पद्य, आदि: दानं सुपात्रे विशद; अंति: (-), गाथा-१. ६३२६१. (१) बृहत्संग्रहणी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. कृति से संबंधित यंत्र व कोष्ठक दिये गये हैं., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १३-१५४४२).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२४५ तक है.) ६३२६२. (+) पाक्षिकसूत्र व खामणादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९२२, श्रावण कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. १३, कुल पे. ४, ले.स्थल. शिवपुरी,
प्रले. मु. हंसविजय; पठ. सा. संतोषश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीआदेस्वरजी प्रसादात्., संशोधित., प्र.ले.श्लो. (७४) जब लग मेरु अडिग है, (८५३) पोथी प्यारी प्राणथी, (११६५) भणज्यो गुणज्यो सीखज्यो, दे., (२४४११, ११४२३-३०). १.पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १अ-१२अ, संपूर्ण.
हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. २. पे. नाम. पाक्षिकखामणा, पृ. १२अ-१३अ, संपूर्ण.
क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमा०; अंति: नित्थारग पारगा होह, आलाप-४. ३. पे. नाम. अब्भुट्टिओमिसूत्र, पृ. १३अ, संपूर्ण.
गुरुवंदनसूत्र-श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: इच्छा० संदि० अब्भः अंति: दीयाणं जंकंचियं क. ४. पे. नाम. पाक्षिकादि तप संख्या, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
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पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीतप आलापक, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदिसह; अंति: करी तप पोहचाडज्यो,
६३२६३. (*) भाष्यत्रय सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २४-१३ (१ से १२, १४) ११. पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२४४१०.५, ४२८-३२).
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भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा. पद्य वि. १४वी, आदि (-): अंति: (-), (पू. वि. गुरुवंदनभाष्य गाथा ४ अपूर्ण से
पच्चक्खाणभाष्य गाथा-३० अपूर्ण तक है.)
भाष्यत्रय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
६३२६४. (+१) श्रावकप्रतिक्रमण सूत्र व सप्तस्मरणादि संग्रह, त्रुटक, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २३-११ ( २ से ४, ६, ९, ११, १४ से १८)=१२, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., ( २४१०.५, ११३३ -४०). १. पे. नाम. लोकनालिकाबत्रीसी, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदंसणं विणा जं, अंति: (-), (पू. वि. गाथा ९ तक है.)
२. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. ५अ - १०आ, अपूर्ण, पू. वि. बीच के पत्र नहीं हैं.
साधु श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.सं. प+ग, आदि (-); अंति: (-). ( पू. वि. वर्द्धमानाक्षर स्तुति अपूर्ण से वंदित्तुसूत्र अपूर्ण तक बीच-बीच के पाठ हैं.)
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३. पे. नाम. जयतिहुअण स्तोत्र, पृ. १२अ - १३आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र हैं.
आ. अभयदेवसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि (-); अति: (-), (पू. वि. गाथा ८ अपूर्ण से गाथा २६ अपूर्ण तक है.)
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४. पे. नाम. सप्तस्मरण खरतरगच्छीय, पृ. १९आ-२३आ, अपूर्ण, पू. वि. बीच के पत्र हैं.
सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. उल्लासिका स्तवन गाथा ८ अपूर्ण से सिग्धमवहर स्तोत्र गाथा २ अपूर्ण तक है.)
२. पे नाम, लघुशांति, पृ. १९अ, संपूर्ण.
आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिं शांतिनिशांत; अंति: जैन जयति शासनम्, श्लोक-१९.
३. पे. नाम. वज्रपंजर स्तोत्र, प्र. ११ आ. संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: पंचपरमेष्ठि अंतिः राधिश्चापि कदाचन, श्लोक ८.
४. पे. नाम. ग्रहपिंजर स्तोत्र. पू. ११ आ. संपूर्ण.
५७
६३२६५. (+) भगवतीसूत्र बीजक, संपूर्ण, वि. १८६२, करगुहकाननदंताबलभूमि, आषाढ़ शुक्ल, २, मध्यम, पृ. १५,
ले. स्थल, विक्रमपत्तन प्रले. परमानंद पठ. मु. हीराचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., ( २४.५X१०, १४X३६).
भगवतीसूत्र- बीजक, मु. हर्षकुल, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य परया भक्त्वा, अंति: बीजकं समाप्तम्, ग्रं. ४०९. ६३२६६. नवस्मरणादि व स्तुति संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८१, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. १०, ले. स्थल. लीभाहेडा, प्र. मु. रत्नचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४X१०, १०-३०५१-५७).
१. पे. नाम. नवस्मरण सह टबार्थ, पृ. १आ- ११ अ. संपूर्ण.
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नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा. सं., पग, आदिः नमो अरिहंताणं हवइ, अंति जैनं जयति शासनम्, स्मरण - ९. नवस्मरण-टबार्थ में, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतने माहरो नमः अंतिः जैनसासने धर्मनी समूह.
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ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रवाहस्वामी, सं., पद्म, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य अंति: ग्रहशांतिविधिश्रुतं, श्लोक-११. ५. पे. नाम. महालक्ष्मीस्तुति मंत्रमय, पृ. १९आ, संपूर्ण.
महालक्ष्मी स्तुति-मंत्रमय, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदिः ॐ ह्रीँ श्रीचंद्र, अंतिः रसीद वरदे वरसारपद्मा, श्लोक-६.
६. पे. नाम. जिनपंजर स्तोत्र, पृ. ११ आ- १२अ, संपूर्ण.
आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ ह्रीं श्रीं अह अंतिः श्रीकमलप्रभाख्यः श्लोक-२५.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७. पे. नाम. ऋषिमंडल स्तोत्र, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण.
आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: ऊँ आद्यताक्षरसंलक्ष; अंति: सर्वे दोषाद्विमुंचति, श्लोक-८८. ८. पे. नाम. जिनचैत्य स्तुति, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण.
तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: सततं चित्तमानंदकारि, श्लोक-९. ९. पे. नाम. जिनदर्शन स्तुति, पृ. १३अ, संपूर्ण.
जिनदर्शन श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: दर्शनं देवदेवस्य; अंति: मुच्यते जिनबंधनात, श्लोक-१२. १०. पे. नाम. वीरजिन स्तुति सह टबार्थ, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण..
पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४.
पाक्षिक स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: स्नात्र कहीइ न्हवण; अंति: विषेसीद्धी थाओ. ६३२६७. (+#) भक्तामरस्तोत्र सह टबार्थव जिनपद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. २, अन्य. सा. रतुजी,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रथम पृष्ठ पर सप्ततिशत जिनयंत्र दिया हुआ है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२३.५४९.५, ५४२९). १. पे. नाम. भक्तामरस्तोत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-१०आ, संपूर्ण.
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४.
भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्तिवंत अमरदेवता; अंति: भावलक्ष्मी मोक्षसुख. २.पे. नाम. जैनगाथा संग्रह , पृ. १०आ, संपूर्ण.
प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६३२६८. (#) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १७८६, पौष शुक्ल, १४, मंगलवार, मध्यम, पृ. १८-७(१ से ७)=११,
ले.स्थल. मेदनी, प्रले. मु. मनरूपकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीआदिनाथ प्रसादात्., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०.५, ७X२९). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: सरिमे अभिगहे विगइ, (पू.वि. सामायिक
अतिचार पाठ से है.) ६३२६९. (+) नवतत्त्वप्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२२, फाल्गुन शुक्ल, ११, बुधवार, मध्यम, पृ. १०, प्रले. मु. भानुविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२४.५४११, ३४३३).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४५.
नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: साचो वस्तुनो स्वरूप; अंति: मनुष्य थकी जणा करणा. ६३२७०. (+#) नवतत्त्वप्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०.५, १५४४४-४८).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२० तक है.)
नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलुंजीवतत्त्व१; अंति: (-). ६३२७१. (+#) पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-१(७)=१२, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, ९४२५-३०).
पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: (-), (पू.वि. "विरीयांमोमूसावायाओ" पाठ अपूर्ण तक
है.)
६३२७२. (+) नवतत्त्वप्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, ३४१९).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४६ तक है.)
नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलं जीवतत्व १; अंति: (-). ६३२७३. (+) आत्मावबोध कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७३४, फाल्गुन कृष्ण, ५, रविवार, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. संशोधित.,
प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५४११, ३४२७).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
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आत्मावबोध कुलक, आ. जयशेखरसूरि " प्रा., पद्य, आदि: धम्मप्पहारमणिज्जे अंति: जिणं जयसेहरो होसि
गाथा-४३.
आत्मावबोध कुलक-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि धर्मप्पह क० धर्मनी, अंतिः मोक्ष पुहचइ सही. ६३२७४. (+) बृहत्संग्रहणी, संपूर्ण, वि. १९०२, आषाढ़ शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले. स्थल. मिरजापुर, प्रले. पं. रत्नानंद,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., दे., ( २४४११, १२X३४).
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बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३०९. ६३२७५. (+) जंबूद्वीपसमास, संपूर्ण वि. १६६०, वैशाख शुक्ल, १४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले. स्थल, राजधनपूर, प्र. वि. टिप्पण युक्त
विशेष पाठ संशोधित प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. जैवे. (२५४११, १३४४३).
जंबूद्वीपसमास, वा. उमास्वाति सं., गद्य, आदि सर्वजन नयनकांतं नखले; अंतिः यंता द्वीप समुद्राः, अध्याय- ४. ६३२७६. (+) कृष्णरुक्मिणी चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०-४ (१ से ४) = ६, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित.,
जैदे. (२४.५४१०.५, १४४२६-३१).
कृष्णरुक्मणी चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. ढाल ६ अपूर्ण से १५ अपूर्ण तक है.) ६३२७७. (+) उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९ - २ (१ से २) = ७, पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २४.५X१०.५, ५X३८).
"
उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: (-) (पू. वि. गाथापति आनंद की पत्नी शिवानंदा का वर्णन प्रसंग अपूर्ण से भगवान महावीर द्वारा गुणव्रत वर्णन प्रसंग अपूर्ण तक का पाठ है.) उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु, गद्य, आदि (-); अंति: (-).
६३२७८. गौतमस्वामी रास व शांतिस्तव, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, जैदे., ( २४.५X१०.५, ११३२). १. पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. १अ - ५अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्म, आदि: वीरजिणेसर चरण कमल; अंतिः नित नित मंगल उदय करो, गाथा- ४६. २. पे. नाम, लघुशांति, पृ. ५-६ आ, संपूर्ण.
५९
आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि शांति शांतिनिशांत, अंतिः पूज्यमाने जिनेश्वरे, श्लोक-१८.
६३२७९. (+) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १७३६, आश्विन कृष्ण, ९, जीर्ण, पृ. ६, प्रले. मु. प्रीतविजय (गुरुग. सुमतिविजय); गुपि. ग. सुमतिविजय (गुरुग. लक्ष्मीविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५X११, १२४३१). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह क्षे.मू. पू. संबद्ध, प्रा.मा.गु. सं. प+ग, आदि नमो अरिहंताणं नमो अंतिः विधिकरता अवि ६३२८०. (+) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक
*B
""
लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५X१०.५, ११४३४).
"
प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा. मा. गु. सं., पद्य, आदि धर्माज्जन्मकुले शरीर, अंति: (-) (पू.वि. श्लोक ८१ अपूर्ण तक है.) ६३२८१. (+४) लोकनालिद्वात्रिंशिका सह व्याख्या, संपूर्ण, वि. १६७५, पौष शुक्ल २, बुधवार, मध्यम, पृ. ६, ले. स्थल, इलिदुर्गं (इडर), प्र. वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैवे. (२४४११, १६४४७).
लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदंसण विणा जो लोय; अंति: जहा मह इह भिसं गाथा ३२.
लोकनालिद्वात्रिंशिका व्याख्या, सं., गद्य, आदि: जिनदर्शनं विना जन्मम, अंतिः शं अत्यर्थं न भ्रमत.
"
६३२८२ (४) पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X१०, ११X३५).
६३२८३. पर्यंताराधना सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ८, जैदे. (२४४११, ५४३२-३४).
पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे अतित्थे; अंति: (-), (पू.वि. "तस्स आलोएमो पडिक्कमामि" पाठ तक है.)
पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: सोम० ते सासयं सुक्खं, गाथा- ६९.
पर्यंताराधना-टबार्थ”, पर्वताराधना- टवार्थ" मा.गु., गद्य, आदि: नमिक क० नमस्कार करीन; अंतिः सुख मोक्षसुखने पामे,
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६०
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
६३२८४ दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १०-२ (१ से २) =८, पू. वि. बीच के पत्र हैं. दे. (२४.५X१०.५,
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९X२८-३०).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन ४ अपूर्ण मात्र है.) (+) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ९. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. वे. (२५.५४११. ४x२२-२७).
जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा. पद्य वि. ११वी आदि भुवणपईव वीर नमिऊण, अंतिः
"
"
संतिसूरि० सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१, संपूर्ण,
जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिभुवनरइ विषइ दीवा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ६ तक टबार्थ लिखा है.)
६३२८६. देवसिकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८३७, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले. मु. तत्त्वसागर (गुरु मु. करुणासागर): गुपि मु. करुणासागर (गुरु आ उदयसागरसूरि) आ. उदयसागरसूरि पठ. श्राव. भोजराज, प्र.ले.पु. मध्यम, जैवे. (२३.५x१०.५, ८४३२).
साधु प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० इच्छा, अंति: जैन जयति शासनं. ६३२८७. श्रावकोपयोगी विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५, दे. (२४.५x११, १४४४०-४४)
,
""
बोल संग्रह * प्रा.मा.गु. सं., गद्य, आदि: जयसिरि १ वांछिय २ अंति (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण..
1
भावना वर्णन अपूर्ण तक लिखा है.)
६३२८८. (+) नवतत्त्वप्रकरण सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ५. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे., (२३.५x११,
५x२५-४३).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंतिः अणागयद्धा अनंतगुणा, गाथा- ४७. नवतत्त्व प्रकरण- टवार्थ *, मा.गु. गद्य, आदि: पहिलुं जीवतत्त्व अंति वचने हुइ ते प्रमाण,
६३२८९. (+#) जैन औपदेशिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ५, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट,
जैदे. (२५x१०, १६x४९-४४).
औपदेशिक लोक संग्रह " पुहिं. प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-).
1
६३२९०. (+#) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ५, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै.., (२४.५x१०.५, १३४४०).
साधु श्रावक प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., सं., प+ग, आदि: णमो अरिहंताणं, अंति: क्षेत्र देवता. ६३२९२. (०) आर्यवसुधाराकल्प, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५.५x१०.५, १३४४०). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य अंतिः भोगयोगं च विधत्ते,
""
६३२९३ (+) क्षेत्रसमास सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४-९ (१ से ३५ से ८,१२ से १३)=५. पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,
"
प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे. (२४४११, ७४३२).
बृहत्क्षेत्रसमास- जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा २४ अपूर्ण से १२९ अपूर्ण तक बीच-बीच के पाठ हैं.)
जंबूद्वीप प्रकरण-वार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-).
६३२९४. (+) पंचपरमेष्ठिगुण विवरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल. वजीरपुर, प्र. वि. टिप्पणयुक्त पाठ, दे. (२४.५४११, ३४३५).
नमस्कार महामंत्र - बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि बारसगुण अरिहंता अशोक, अंति: ४ ए अष्टभंगी जाणवा नमस्कार महामंत्र-बालावबोध का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बार गुण अरिहंताना १२; अंति: (-).
६३२९६. साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५. प्रले. मु. लखमीचंद (वृद्धपक्ष); अन्य. मु. लालचंदजी ऋषि (लोकागच्छ);
सा. डाईबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५x११, १२X३५).
साधुवंदना, प्रा., पद्य, आदि: वंदियं ते वीरजिणं; अंति: लहंती ते सअल कल्लाणं, गाथा- १०७.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
६३२९७ (१) श्रद्धप्रतिक्रमणसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ५, ले. स्थल नाडुलनगर, प्रले. मु. त्रैलोक्यसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रत के अंत में नक्षत्रों के कुछ नाम लिखे हुए हैं., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५४९.५, ५४४१).
""
दिसूत्र संबद्ध प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे, अति: वंदामि जिणे चउवीस, गाथा-५०.
वंदित्सूत्र - बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वांदि सर्व सिद्ध, अंति: तीर्थंकर चोवीसे.
६३२९८. पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९५८, श्रेष्ठ, पृ. ३१, ले. स्थल पाटण, प्रले. मु. हरक, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५५११, ५४४१).
"
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पर्युषणाष्ठाह्निका व्याख्यान, आ. लक्ष्मीसूरि, सं., गद्य, वी. १६६९, आदि: सामायिकप्रमुखशिक्षाव, अंतिः वो व्रतिभिर्गृहस्थैः, व्याख्यान- ३ (वि. १९५८, पौष शुक्र. १३)
,
पर्युषणाष्ठाह्निका व्याख्यान टबार्थ, मा.गु, गद्य, आदि हिवे सामायक प्रमुख अंतिः जेते संपूर्ण थवुइ (वि. १९५८,
६१
माघ कृष्ण, २)
"
६३२९९, (+) जंबूअध्ययन सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २६-१ (१) + १ (१९) = २६, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे. (२५.५४१०.५, ६४३०-३५ ).
जंबू अध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. उद्देशक १ अपूर्ण से उद्देशक ५ अपूर्ण तक है.)
जंबू अध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
६३३०० (+) भक्तामरस्तोत्र व कल्याणमंदिरस्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७६३ आषाढ शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. २८, कुल पे. २, ले.स्थल. आऊआनगर, प्रले. ग. गौतमसागर (गुरु मु. कांतिसागर); गुपि मु. कांतिसागर (गुरु मु. उत्तमसागर, तपागच्छ); मु. उत्तमसागर (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. त्रिपाठ- संशोधित, जैये. (२५.५x१०.५, ३४३७)
,
१. पे. नाम. भक्तामरस्तोत्र सह वृत्ति, पृ. १अ १४अ संपूर्ण
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि, अंतिः मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-बालहितैषिणी टीका, मु. कनककुशल, सं., गद्य, वि. १६५२, आदि: प्रणम्य परमानंददायकं; अंति: शम्यां हि सा समाप्ता, ग्रं. ६१६.
२. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टीका, पृ. १४- २८आ, संपूर्ण.
कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः कुमुद० प्रपद्यते,
लोक-४४.
कल्याणमंदिर स्तोत्र - टीका, मु. कनककुशल, सं., गद्य, वि. १६५२, आदि: प्रणम्य पार्श्व; अंति: श्लोकानामिह मंगलम्, ग्रं. ७२७.
६३३०१. उत्तमकुमार चरित्र, संपूर्ण, वि. १७०७, भाद्रपद शुक्ल, २, मध्यम, पृ. २४, ले. स्थल. गलकुंडा महानगर, प्र. मु. (गुरु पं. सुमतिसार, तपागच्छ): गुपि. पं. सुमतिसार (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२४.५४११, १३४३१-३४). उत्तमकुमार चरित्र, ग. चारुचंद्र, सं., पद्य, आदि: वंदित्वा स्वगुरुन; अंति: चारुचंद्र० नंदतांचिरं, श्लोक - ५७२. ६३३०२. (+१) जीवविचार, नवतत्त्व व दंडक प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८८३, श्रावण कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. २१, कुल पे. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२५X११, ७२५-२८). १. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टिप्पण, पृ. १आ - ९आ, संपूर्ण.
"
गाथा - ५१.
जीवविचार प्रकरण- टिप्पण, सं., गद्य, आदिः कथं भूतंवीरं किं कृत: अंतिः नामानि उक्तानि जाणवा २. पे. नाम. नवतत्व प्रकरण सह टिप्पण, पृ. ९आ- १६आ, संपूर्ण.
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि जीवार जीवार पुण्णं३ अंतिः बुद्धबोहिकणिक्काय, गाथा- ६०. नवतत्त्व प्रकरण- टिप्पण, सं., गद्य, आदि: जीवतत्त्वर अजीब, अंतिः एकसिद्ध१४ अनेकसिद्ध.
जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा. पद्य वि. ११वी आदि भुवणपईवं वीरं नमिऊण, अंतिः रुद्दाउ सुय समुद्दाउ,
',
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. दंडक प्रकरण सह टिप्पण, पृ. १६आ-२१अ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: विन्नत्ती अप्पहिया.
गाथा-४५.
दंडक प्रकरण-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: नत्वा चतुर्विंशतिजिन; अंति: ञप्तगत्यहिता लिखिता. ६३३०३. पाक्षिकसूत्र व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०.५, ९४२६-३२). १.पे. नाम. पाक्षिक सूत्र, पृ. १आ-२०आ, संपूर्ण.
पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिसअसायरे भत्ति. २. पे. नाम. चंडिकादेवी मंत्र, पृ. २०आ, संपूर्ण.
___ मंत्र संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६३३०४. (+#) नवस्मरण, संपूर्ण, वि. १८६२, आश्विन कृष्ण, २, मध्यम, पृ. १६, ले.स्थल. राधनपुर, प्रले. ग. सोभनचंद (गुरु
पं. विनयविजय, तपगच्छ); गुपि.पं. विनयविजय (गुरु पं. धनविजय, तपगच्छ); पं. धनविजय (गुरु पं. रत्तनविजय, तपगच्छ); पं. रत्तनविजय (गुरु पं. भक्तिविजय, तपगच्छ); पं. भक्तिविजय (गुरु ग. कांतिविजय, तपगच्छ); ग. कांतिविजय (गुरु पंडित. प्रेमविजय, तपगच्छ); पंडित. प्रेमविजय (गुरु आ. विजयप्रभसूरि, तपगच्छ); आ. विजयप्रभसूरि (तपगछ), प्र.ले.प. विस्तृत, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१७७) पोथी प्यारी प्राणथी, (४४८) गयवर समरे विंझवन, (११६६) जादृसं पुसकं दृष्ट्वा, जैदे., (२४.५४११, १०४२३-३०). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: जैन जयति शासनं, स्मरण-९,
(वि. कल्याणमंदिर स्तोत्र नहीं है.) ६३३०५. (#) नंदीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २०, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३७-४०). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणओ; अंति: सेतं नंदी सम्मत्ता, सूत्र-५७,
गाथा-७००. ६३३०७. मुनिपति चरित्र, संपूर्ण, वि. १७२७, मार्गशीर्ष शुक्ल, २, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १७, ले.स्थल. नागपुर, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४३६-४०).
मुनिपति चरित्र सारोद्धार, संक्षेप, प्रा.,सं., गद्य, आदि: नमिऊण वद्धमाणं चौतीस; अंति: रइयं हरिभद्दसूरीहिं. ६३३०८. (+#) दीपालिकाकल्प, संपूर्ण, वि. १६५७, माघ शुक्ल, २, रविवार, मध्यम, पृ. १६, ले.स्थल. घोघानगर, प्रले. मु. वासण
ऋषि (गुरु मु. तेजा ऋषि, बृहत्खरतरगच्छ); गुपि.मु. तेजा ऋषि (गुरु ग. नयरंग ऋषि, बृहत्खरतरगच्छ); ग. नयरंग ऋषि (बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३३-३८). दीपावलीपर्वकल्प, आ. जिनसंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदि: श्रीवर्द्धमानमांगल्य; अंति: चंद्रार्क जयत्त्रये,
श्लोक-४३७, ग्रं. १५००. ६३३०९. (+#) जीवविचारादि प्रकरण संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४, कुल पे. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों
की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ११४३२). १.पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण.
आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पइवं वीरं नमिउण; अंति: रुद्दाओ सुय समुद्दाओ, गाथा-५१. २.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ३आ-६आ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवापुन्नं पावा; अंति: बुद्धा बोहि कणिक्काय, गाथा-५६. ३. पे. नाम. दंडक प्रकरण, पृ. ६आ-९अ, संपूर्ण.
मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउचउवीस जिणे; अंति: विन्नत्ति अप्पहिया, गाथा-४१. ४. पे. नाम. चतुःशरण प्रकीर्णक, पृ. ९अ-१२आ, संपूर्ण.
ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावजजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुई सुहाणं, गाथा-६३.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६ ५. पे. नाम. गौतम कुलक, पृ. १२आ-१४अ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०. ६३३१०. (+) पर्यंताराधना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२, प्रले. मु. सुखविजय; पठ. मु. हर्षविजय (गुरु मु. सुखविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१०.५, ४४२६-३२). पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण भणइ एवं भयवं; अंति: सोम० ते सासयं सुक्ख, गाथा-७०,
ग्रं. २४५.
पर्यंताराधना-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: नमीऊण श्री महावीर; अंति: सुख प्रतई पामइं. ६३३११. (+#) वाग्भटालंकार सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १७४४८-५७).
वाग्भटालंकार, जै.क. वाग्भट्ट, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: श्रियं दिशतु; अंति: सारस्वतध्यायिनः, परिच्छेद-५. वाग्भटालंकार-टीका, आ. जिनवर्धनसूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीमान् श्रीआदिनाथः; अंति: अभौन्लौग: स्यात्,
परिच्छेद-४. ६३३१२. (+#) सोमशतक काव्य व औपदेशिक श्लोक, संपूर्ण, वि. १७११, कार्तिक शुक्ल, १५, सोमवार, मध्यम, पृ. १२, कुल
पे. २, पठ. मु. हीरा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १२४२९). १.पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: कोलाभो गुणसंगमं; अंति: राज्यं किमाज्ञाफलम्, श्लोक-१. २. पे. नाम. सिंदूरप्रकर, पृ. १आ-१२आ, संपूर्ण.
आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: मानेति शमेति नाशम्, द्वार-२२, श्लोक-१००. ६३३१३. (+#) सामायिकव्रतग्रहण विवरण व विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. २, प्रले. पं. चारित्रोदय,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १३४४०-४८). १.पे. नाम. सामायिक विवरण, पृ. १आ-११अ, संपूर्ण.
प्रा.,सं., प+ग., आदि: सिक्खावयंव पढम सामा; अंति: वद्भिर्विचारणीयानि. २. पे. नाम. सामायिकव्रतग्रहण विचार, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण.
प्रा.,सं., गद्य, आदि: इत्थं पुण सामायारी; अंति: एस विधी सामायारीयस्स. ६३३१४. (+#) एकविंशतिस्थानक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-१(७)=११, पठ. मु. परमाणंद ऋषि,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ४४३३). २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण१ विमाणार नयरी३; अंति: असेस साहारणा भणिया,
गाथा-७३, (पू.वि. गाथा- ३५ अपूर्ण से ४२ अपूर्ण तक नहीं है., वि. अंत में दो गाथाएँ लिखकर कुल ७५ गाथाएँ
पूरी की गई हैं.)
२१ स्थान प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: चवण कहतां तीर्थंकर; अंति: च्चयपदि भण्या कह्या. ६३३१५. (+#) प्रश्नोत्तरावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १७४६०-६३).
प्रश्नोत्तर संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: केई कहइ श्रीवीतरागनी; अंति: जन्मनास्तीतिवासार्थ. ६३३१६. (#) नंदीसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २८-१७(१ से १७)=११, पृ.वि. बीच के पत्र हैं..प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ११४२८-३२).
नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-१३४ अपूर्ण से १५७ अपूर्ण तक है.)
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६४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६३३१७. (+) पुद्गलभंगक विवरण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२४.५४१०.५, १५-१८x२७-३३). परमाणुपरिणाम भांगा कोष्टक, ग. नयविजय, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: परमाणु पोगालेण भंते; अंति:
द्दिष्टकानयनाम्नायः. ६३३१८. (+) गुणस्थानक सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११, १९x४२). गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४४७, आदि: गुणस्थानक्रमारोह हत; अंति: (-),
(पू.वि. श्लोक-७५ तक है., वि. अंतिम पृष्ठ पर यंत्र दिये गए हैं.)
गुणस्थानक्रमारोह-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४४७, आदि: अहँ पदं हृदि; अंति: (-). ६३३१९. चैत्रीपूनम विधि व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-४(१४ से १७)=१४, कुल पे. ७, जैदे.,
(२४.५४११, १०४२८-३१). १. पे. नाम. चैत्रीपुनम व्याख्यान, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण.
चैत्रीपूर्णिमापर्व व्याख्यान, सं., गद्य, आदि: सिद्धो विज्जाइ चक्की; अंति: स्मरणादानंदमाला भवतु. २. पे. नाम. चैत्रीपुनम देववंदन विधि, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण.
चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: उस्सप्पिणीहि पढमं; अंति: नमः० देव वांदै विधसु. ३. पे. नाम. श्रावक चौदनियम गाथा सह बालावबोध, प्र. ६आ-९आ, संपूर्ण.
श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सच्चित१ दिव्वर विगइ३; अंति: न्हाण१३ भक्तिसु१४, गाथा-१.
श्रावक १४ नियम गाथा-बालावबोध, पुहिं., गद्य, आदि: श्रावक नित प्रति; अंति: राखै तौल से माप से. ४. पे. नाम. पांचमी विधि, पृ. १०अ-११आ, संपूर्ण.
पंचमीतपउच्चारण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पहिली गुरु आगलि आवी; अंति: काउसग्ग न करै. ५. पे. नाम. ज्ञानपंचमी तपउजमणा विधि, पृ. ११आ-१३अ, संपूर्ण.
पंचमीतप पारने की विधि, मा.गु., गद्य, आदि: तपकरी उजमनी कीजै; अंति: अनुमान सनमान कीजै. ६. पे. नाम. एकादशी ग्रहणविधि, पृ. १३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मौनएकादशीतप विधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही तस्सु; अंति: (-), (पू.वि. "आचारंगसूत्राय नमः
श्रीसूगडांगसूत्र" पाठ तक है.) ७. पे. नाम. देवपूजा सज्झाय, पृ. १८अ-१८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. असज्झाय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ●अरिपडैतां सीम असि; अंति: (-), (पू.वि. "अनाथपुरुषमृते १०० हाथमाहि अ०
उधसां" पाठ तक है.) ६३३२०. (+) साधु आचार विषयक आगमिक पाठ संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण
युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११, १४४५०-५५). __ आगमिकपाठ संग्रह, प्रा.,सं., गद्य, आदि: दुवाल सविहे संभोगे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
ठाणांग के साक्षी पाठ अपूर्ण तक लिखा है.) ६३३२१. वैराग्यशतक सह टबार्थव सुभाषित संग्रह, संपूर्ण, वि. १८४६, ज्येष्ठ, ११, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २,
ले.स्थल. रोडपुरा (ढुंढाड, प्रले.सा.रंभा (गुरु सा. रायकंवर); गुपि.सा. रायकंवर (गुरु सा. महाकंवरी); सा. महाकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (४४७) पानइ दीठो जेहवो, (११६७) भगन पिष्ट कटिरं ग्रीवा, जैदे., (२४.५४१०.५, ५४३८). १.पे. नाम. वैराग्यशतक सह टबार्थ, पृ. १अ-१०आ, संपूर्ण.
वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारम्मि असारे; अंति: लहइ जीओ सासयठाणं, गाथा-११०.
वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सं० चत्तुर्गति रुप; अंति: अवतरिवउ नहीं. २. पे. नाम. सुभाषित गाथा संग्रह, पृ. १०आ, संपूर्ण.
सुभाषित संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: ऊँचइ मुख जोवइ नहीं; अंति: त्यां करै निहाल, गाथा-२.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
६५
६३३२२. (+#) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३-३ (१ से ३) = १०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, ३X२९).
कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी - १४वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से ४० अपूर्ण तक है.)
कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टवार्थ, मा.गु. गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
६३३२३. कथा संग्रह, संपूर्ण वि. १८०१ चैत्र शुक्ल, २, रविवार, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. ६, जैवे. (२५.५x११, १७४६७). १. पे. नाम. दीपालिका कल्प, पृ. १आ-५अ, संपूर्ण.
दीपावली पर्व कल्प, आ. विनयचंद्रसूरि, सं., पद्य वि. १३४५, आदिः सन्तु श्रीवर्द्धमान, अंति: महिमासुरेंद्राति कृत, लोक-२७८.
२. पे. नाम. दिवाली कल्प, पृ. ५अ- ६आ, संपूर्ण.
दिवालीकल्प, सं., गद्य, आदि: श्रीगौतम गणाधीशो; अंतिः संघे कुर्वतां शुभां
३. पे. नाम. दिवाली कल्प, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण.
युगप्रधान साधुसाध्वी राजा श्रावकश्राविका संख्या गाथा, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि बिह हजार अनइ च्यार, अंति उत्तम नृप संख्या, गाथा - १०.
४. पे. नाम. वरदत्तगुणमंजरी कथा, पृ. ७अ - ९अ, संपूर्ण.
वरदत्तगुणमंजरी कथा - सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: कनककुशल०च मेडता नगरे, श्लोक-१५०.
५. पे नाम. पौषदशमीपर्व कथा, पृ. ९अ १०अ, संपूर्ण
सं. गद्य, आदि: अभिनवमंगलमालाकरणं, अंतिः स्मरणादानंदमाला भवतु.
६. पे. नाम. पौषदशमी पर्व कथा, पृ. १०अ १० आ. संपूर्ण
पौषदशमीव्रत कथा, सं., गद्य, आदि: सम्यक्त्व प्रपितो दश, अंतिः अधिकार टीकातोवसेया.
६३३२४. भाष्यत्रय, संपूर्ण, वि. १८१७, पौष शुक्ल, १३, रविवार, मध्यम, पृ. १०, प्रले. पं. गंभीरविजय (गुरु मु. दोलतविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X११, १२×३७).
भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: वंदित्तु बंदणिज्जे, अंति: सासय सुखं अणाबाहं, भाष्य-३, गाथा - १४५, (वि. आनुषंगिक विविध चक्रों के साथ.)
६३३२५. (+) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण वि. १६७९, फाल्गुन, बुधवार, मध्यम, पृ. ९, ले. स्थल. जाबालपुर, प्रले. मु. रत्नराज
(गुरु ग. रत्नसुंदर); गुपि. ग. रत्नसुंदर (गुरु उपा. रत्ननिधान); उपा. रत्ननिधान (गुरु आ . जिनचंद्रसूरि); आ. जिनचंद्रसूरि;
पठ. सा. ज्ञानमाला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे., (२५.५X१०.५, ११४३१).
""
प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - श्वेतांबर" संबद्ध प्रा. सं., प+ग, आदिः णमो अरिहंताणं० जयउ अंतिः सर्वप्रत्याख्यानानि ६३३२६, (+) अध्यात्मोपनिषद्, संपूर्ण वि. १७२९, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, रविवार, मध्यम, पृ. १० प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैये. (२४.५४११, ११४४१-४४).
अध्यात्मोपनिषद्, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, आदि: ऐंद्रववृंदनतं नत्वा, अंतिः णां जवेन यशः श्रियम्, श्लोक-२३१, (वि. ४ अधिकार)
६३३२८. (+) साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १६९९ श्रावण शु. १३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २०-१० (१० से १९) = १०, ले.स्थल. बारेजानगर, प्रले. ग. शिवविजय (गुरु आ. विजयानंदसूरि); गुपि. आ. विजयानंदसूरि (तपागच्छ); पठ. मु. दीप्तिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंतिम पत्र पर मूल पाठ नहीं बल्कि मात्र प्रतिलेखन पुष्पिका है., पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४.५४१०.५, ११४२९-३३).
"
साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं, अंति: (-), (पू.वि. पडिकमामि छहिं लेसाहि किण्ठलेसाए नीललेसाए काउ" पाठ तक है.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६३३२९. (+#) क्षेत्रसमास सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-२(१ से २)-८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, ५४३४).
जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. वक्षस्कार-१, सूत्र-३ अपूर्ण से १२ अपूर्ण तक है.)
जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६३३३०. नाभाकराजचरित्र, संपूर्ण, वि. १९५९, श्रेष्ठ, पृ. ११, दे., (२४४१०.५, ११४४७)...
नाभाकराज चरित्र, आ. मेरुतूंगसूरि, सं., पद्य, वि. १४६४, आदि: सौभाग्यारोग्यभाग्योत; अंति: मेरुतुंग निर्मिताकथा,
श्लोक-२९५. ६३३३१. (+) सिंदूरप्रकर, संपूर्ण, वि. १८५२, फाल्गुन शुक्ल, ९, गुरुवार, मध्यम, पृ. १०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४११, १२४३१-३५). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२,
श्लोक-१००. ६३३३२. (+#) भक्तामर स्तोत्र व गौतमकुलक, अपूर्ण, वि. १७६०, फाल्गुन कृष्ण, ७, सोमवार, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २,
प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ६४३९). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण.
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४.
भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, क्र. नारायणजी, मा.गु., गद्य, आदि: भक्त सेवक तीर्थंकरना; अति: आवइज कुण ल. लक्ष्मी. २. पे. नाम. गौतम कुलक सह टबार्थ, पृ. ६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.)
गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लोभी मनुख द्रव्य मेल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ६३३३३. (+) जीवविचार प्रकरण आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०-३(१ से ३)=७, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त
विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०.५, ११४४३). १. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ४अ-६अ, संपूर्ण.
आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पईवं वीरं नमिऊण; अंति: शांतिसूरि० समुद्दाओ, गाथा-५१. २. पे. नाम. विचारषट्त्रिशिंका, पृ. ६अ-८अ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ,
गाथा-४१. ३. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र-अध्ययन-१ से २, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण.
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ४. पे. नाम. उपदेशमाला, पृ. ८आ-१०आ, संपूर्ण. पौषध सज्झाय-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति: उप्पन्नं केवलं नाणं,
गाथा-३४. ६३३३४. (+) बृहत्संग्रहणी सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४६-४०(१ से ४०)=६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१०.५, ३४३६).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा- १४६ से १७३ अपूर्ण तक है.) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
बृहत्संग्रहणी-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६३३३५. (+#) जसादित्य वसुराजादि कथानक, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४४-३८(१ से ३१,३६ से ४२)=६, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १६x४२-४५). वसुराजादि कथा-पंचाणुव्रतोपरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. जसादित्यराजा, अरुणदेवतस्कर, देवणीरानी
कथानक श्लोक-४५० अपूर्ण से धनसार कथानक श्लोक-१००२ अपूर्ण तक है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
६३३३६. (+) नवतत्त्वप्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८००, आषाढ़ कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ७, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे. (२५.५११, ५X३६-४०).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१ जीवा२ पुण्ण३; अंति: १३ क्क १४ णिक्काय, गाथा-५२. नवतत्त्व प्रकरण- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व१ अजीव; अंति: ए पनरे भेदे सिद्ध.
६३३३७. (१) साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६ प्र. वि. पंचपाठ अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे.,
(२६४११, १-९४२४-२७).
पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदिः नमो अ० करेमि, अंति: (-), सूत्र -२१ (पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., असज्झायकाल वर्णन तक लिखा है.)
गामसज्झायसूत्र- टीका, सं. गद्य, आदि: शुभयोगेभ्यो शुभयोग, अंति: (-). पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ६३३३८. (+४) अंतकृद्दशांगसूत्र सह टीका, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, ले. स्थल, लाभपुर, प्रले. मु. रत्नलाभ; पठ. मु. कमलहर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, १७५०).
६७
अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंतिः अठवग्गा अद्रुम चेव, अध्याय ९२, (वि. मूल का मात्र प्रतीक पाठ है.)
अंतकृद्दशांगसूत्र- टीका, आ. अभवदेवसूरि, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि अधांतकृतदशासु किमपि अंति: ननु विधीयतां सर्वथा, वर्ग-८, (वि. अंतिम वाक्य के पाठांश खंडित हैं.) ६३३३९ योगविधि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८, जैवे. (२५x१०.५, १३४४४-४८).
""
योग विधि- साधु, प्रा. सं. पण, आदि नाणं पंचविहं पन्नत्त; अंतिः म लोचे कृते शिष्यस्य.
६३३४० (+४) जीवविचारप्रकरण व जीवआयुष्य गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५x११, ५४२५-३१).
१. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ - ७अ, संपूर्ण.
जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पईवं वीरं नमिऊण; अंति: रूद्धाओ सूअ समुद्धाओ, गाथा-५१.
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जीवविचार प्रकरण- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिभोवनमांहिं दीवा अंतिः सिद्धत समुद्र विकड.
२. पे नाम, जीवआयुष्यविचार गाथा संग्रह सह टवार्थ, पृ. ७अ ७आ, संपूर्ण
बृहत्संग्रहणी प्रकरण- जीवआयुष्यबंध विचारगाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: वासासयं तु सवीसं अंतिः अणंतसो सव्व जोणी, गाथा-३,
बृहत्संग्रहणी प्रकरण- जीवआयुष्यबंध विचारगाथा संग्रह का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बरस सत एकवीस सहित, अंतिः सर्व्व योनि विषई.
६३३४१. (#) सिद्धांतसार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६२, वैशाख शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ७, प्रले. पं. जसवंतसागर (गुरु पं. केसरसागर गणि): गुपि. पं. केसरसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५x१०.५, ७X४३).
सिद्धांतसार, पं. विवेकविजय, प्रा., पद्य, आदि: चत्तारि परिमंगाणि अंति: कभाजां विजयप्रभाणाम्, गाथा- १०३. सिद्धांतसार- बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि हवे श्रीउत्तराध्ययन, अंतिः श्रीविवेकविजयनइ
,ले. स्थल. अर्गलपुर,
"
६३३४२. (+) ज्ञानपंचमी माहात्म्य सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३८, माघ शुक्ल, १५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ८, प्र. मु. रणधीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, दे., (२४.५X११, ७X३१). ज्ञानपंचमी माहात्म्य, सं. गद्य, आदिः यथा गुणमंजरी वरदत्ता, अंतिः थं लोके सौभाग्यपंचमी. ज्ञानपंचमी माहात्म्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानंसारं सर्वसंसार, अंति: एहवो एहनो नाम कहे छे. ६३३४४. (*) कल्पसूत्र की कल्पद्रुमकलिका टीका, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५X१०.५, १२४३२).
...
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कल्पसूत्र- कल्पद्रुमकलिका टीका. ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानस्य अंति: (-),. (पू. वि. कल्पसूत्रश्रवण माहात्म्य वर्णन तक है.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
६३३४५ (+)
कल्पसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८८९, ज्येष्ठ कृष्ण, १४, मंगलवार, मध्यम, पृ. २७-१९ (१ से १९) = ८, अन्य गच्छाधिपति जिननंदीवर्द्धनसूरि ( खरतरगच्छ ) आ. जिनचंद्रसूरि गच्छाधिपति जिनअक्षवसूरि (खरतरगच्छ);
मु. जिनविमल; आ. जिनचंदसूरि, आ. जिनरंगसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २४.५X१०.५,
११X३३-३८).
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3
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उवयंसेइ ति बेमि, व्याख्यान ९ ग्रं. १२१६, (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., समाचारी के पाठ "वासावासं प० खलुनिगांथाण वा२ अज्जेवकखुडेकडुए" पाठ से है) कल्पसूत्र - अवचूरि ". सं. गद्य, आदि (-); अंति: थंकर गणधरोपदेशेनेति, पू. वि. अंत के पत्र हैं.
६३३४६. सुभाषित संग्रह, संपूर्ण, वि. १८११, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. ६, प्रले. पं. विनयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२४.५x१०.५, १९४४०-४७)
सुभाषित संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: सविनयस्ते मया देयिता; अंति: निधमा पंचपन्नत्ता, श्लोक-१९१. ६३३४७. (+) आठ कर्म १५८ प्रकृति विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैये. (२४४१०, १३४५३-५९).
"1
बोल संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: ज्ञानावरणी दर्शनावरण, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
"८ व्यवहारलोक प्रसिद्ध ९ निश्चयकेवलीगम्य १०" पाठ तक लिखा है.)
६३३४८. (७) प्रकरण व उपदेशमाला, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ८. कुल पे. २, ले. स्थल पल्लिनगर, प्रले. मु. ऋद्धिचंद अन्य. ग. विनयचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४X११, १५X३५).
१. पे. नाम. सिंदुर प्रकरण, पृ. १आ-८आ, संपूर्ण.
सिंदूरकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी आदि सिंदूरप्रकरस्तपः अंतिः संसारिणो दुर्लभा, द्वार- २२, श्लोक-१०१.
3
२. पे. नाम. धर्म उपदेश, पृ. ८.आ, संपूर्ण.
सुभाषित संग्रह, प्रा. मा.गु. सं., प+ग, आदि: भक्तिश्रीवीतरागे भवत: अंतिः सताशकंकिमुपायएषः. ६३३४९. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह व दीक्षाकुलक, अपूर्ण, वि. १९बी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, जैवे. (२५.५x१०, १०x३९-४४)१. पे. नाम. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १आ- ६आ, संपूर्ण.
""
साधुआवक प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह- खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा. सं., प+ग, आदि: णमो अरिहंताणं; अंतिः समुन्नइ निमित्तं
२. पे नाम, दीक्षा कुलक, पृ. ६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
प्रव्रज्या कुलक, प्रा., पद्य, आदि: संसार विसमसायर भवजल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा- २ अपूर्ण तक है.) ६३३५०. (+#) चातुर्मासिकव्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, प्रले. मु. नयमेरु ( गुरु ग. महिमासुंदर, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२४४१०.५, १४४३२-४० ).
चातुर्मासिक व्याख्यान, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: सामायिकावश्यकपौषधानि अंति: गुणव्व ए निंदे. ६३३५१. (+) भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६७८, वैशाख शुक्ल, ८, गुरुवार, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, ले. स्थल. पाडली, प्रले. कुमारगणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ४१५, जैवे. (२५x११.५, २१x६०).
१. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध, पृ. १-५ आ, संपूर्ण
"
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि, अंतिः मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र - बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदिः किल इसइ सत्यवचनि इहउ; अंति: मानतुंग० आण्यउ छइ, ग्रं. ३६९.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६ २. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र शेष काव्य सह बालावबोध, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
भक्तामर स्तोत्र-शेषकाव्य, हिस्सा, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: गंभीरता रविपूरित; अंति: गुणैः प्रयोज्यः,
श्लोक-४.
भक्तामर स्तोत्र-शेषकाव्य का बालावबोध, श्राव. मेघराज, मा.गु., गद्य, आदि: रवे दुंदुभिः ध्वनति; अंति: कृता वा
श्रीमेघराजेन. ६३३५२. (+) वसुधारा, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ५, पठ. सा. रतनाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १३४३६).
वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति. ६३३५३. ग्रहशांति व १० पच्चक्खाणसूत्रादि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५४-४९(१ से ४९)=५, कुलपे. २, जैदे.,
(२४.५४१०.५, ११४३३). १. पे. नाम. नवग्रह स्तोत्र, पृ. ५०अ-५०आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: भद्रबाहु०विधिस्तथा, श्लोक-११, (पूर्ण,
पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. दश पच्चक्खाण, पृ. ५०आ-५४आ, संपूर्ण.
प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गएसूरे नमुक्कार; अंति: मह० सव्व० बोसिरामि. ६३३५४. (+) सिंदूरप्रकर, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४५२-५८). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२,
श्लोक-१००. ६३३५५. (+#) दंडक प्रकरण व भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ५, कुल पे. २, पठ.सा. सुमतिसिद्धि,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०.५, १२४४१). १. पे. नाम. विचारषविंशिका, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण.. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: गजसारेण अप्पहिआ.
गाथा-३९. २. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ३अ-५आ, संपूर्ण.
आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ६३३५६. (+#) नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. जैदे., (२४.५४१०.५, १३४३३-५०).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१ जीवार पुण्णं३; अंति: अणागयद्धा अणतगुणा, गाथा-४७.
नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: १ जीवतत्त्व २ अजीवतत; अंति: पुद्गल परावर्त छइ. ६३३५७. (+) नवतत्त्व प्रकरण व जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष
पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, ११४३४). १.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: बद्धबोहिक्कणिक्काय, गाथा-४४. २. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ३आ-५आ, संपूर्ण.
आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. ६३३५८. गौतमाष्टक सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. त्रिपाठ. कुल ग्रं. २००, जैदे., (२५४१०.५, २४३४).
गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूतिं वसु; अंति: लभंते नितरा क्रमेण, श्लोक-९. गौतमस्वामी स्तोत्र-टीका, ग. रूपचंद्र, सं., गद्य, वि. १७६६, आदि: सरस्वत्या प्रसादेन; अंति: रूपचंद्र० भूयाच्चिरं.
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७०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६३३५९. (+#) सौभाग्यपंचमी कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-२(१ से २)=५, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११, १४४३५). वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि:
श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: मेडतानगरे, श्लोक-१५३, संपूर्ण. ६३३६०. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९३-८८(१ से ८३,८७ से ८८,९० से ९२)=५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१०, ५-१५४३४-४७).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठ हैं.) कल्पसूत्र-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*,मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ६३३६१. (+) भावप्रकरण, सिद्धपंचाशिका व क्षेत्रसमास प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित.,
जैदे., (२४४११, १२४३१). १.पे. नाम. भाव प्रकरण, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, वि. १६२३, आदि: आणंदभरिय नयणे आणंद; अंति: विजयविमल पुव्वगंथाओ,
गाथा-३०. २.पे. नाम. सिद्धपंचाशिका प्रकरण, पृ. २आ-५आ, संपूर्ण.
आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धं सिद्धत्थसुअं; अंति: लिहियं देविंदसूरिहिं, गाथा-५०. ३. पे. नाम. क्षेत्रसमास प्रकरण, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपय पईट्ठि; अंति: (-),
(पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ६३३६२. (+#) होलिकापर्व कथा सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, ६४३०-३४).
होलिकापर्व कथा, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: वर्द्धमानजिनं नत्वा; अंति: विज्ञानां वाचनोचितः, श्लोक-४९.
होलिकापर्व कथा-अनुवाद, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमाहावीरने नमीने; अंति: जाणीने ते वाचना करवी. ६३३६३. (+#) नंदीसूत्र, अपूर्ण, वि. १८४१ कृष्ण, श्रेष्ठ, पृ. २०-१५(१ से ७,९,१२ से १५,१७ से १९)=५, ले.स्थल. जेपुर,
प्रले. सा. हीरा (गुरु सा. महाकंवरीजी); गुपि.सा. महाकंवरीजी; राज्यकालरा. प्रतापसिंह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४१०.५, १६४३६).
नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: नाणं सेत्तं नंदी, (पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) ६३३६४. (+) विक्रमसेन चौपाई, संपूर्ण, वि. १८१८, कार्तिक शुक्ल, ३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ५१,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १२४३४). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: सुखदाता संखेश्वरो; अंति: मानसागर०जय जय
कार जी, ढाल-५२, गाथा-११६२, ग्रं. १०८४. ६३३६५. मुनिपति चरित्र, अपूर्ण, वि. १७६२, आश्विन शुक्ल, ६, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३०-३(१ से ३)=२७, ले.स्थल. वीलाडा,
प्रले.पं. समयहंस (गुरु पं. दयाकल्लोल, खरतरगच्छ); गुपि.पं. दयाकल्लोल (गुरु उपा. उदयरत्न गणि); उपा. उदयरत्न गणि (गुरु आ. जिनसागरसूरि, खरतरगच्छ); आ. जिनसागरसूरि (गुरु गच्छाधिपति जिनसिंहसूरि, खरतरगच्छ),प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५.५४१०, १५४५२). मुनिपति चौपाई, मु. धर्ममंदिर, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: (-); अंति: नवेय निधानो रे, ग्रं. १५००,
(पू.वि. खंड-१ ढाल-७ से है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६ ६३३६६. (+) नलदमयंति चौपाई, संपूर्ण, वि. १७२८, आश्विन शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ३१, ले.स्थल. रोहिटनगर, प्रले. पं. भावनिधान
(गुरु ग. भाग्यसमुद्र, खरतरगच्छ); गुपि.ग. भाग्यसमुद्र (गुरु ग. श्रीसुंदर, खरतर गच्छ); ग. श्रीसुंदर (गुरु ग. हर्षविमल गणि); ग. हर्षविमल गणि (गुरु आ. जिनचंद्रसूरि); आ. जिनचंद्रसूरि (बृहत्खरतरगच्छ); पठ. पं. देवसौभाग्य (गुरु पं. भावनिधान, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०, १५४४१). नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: सीमंधरस्वामी प्रमुख; अंति: समयसुंदर०
माणस गहगही, खंड-६, गाथा-२०१, ग्रं. १४९५, (वि. ढाल ३९) ६३३६७. (+) सांबप्रद्युम्न चतुष्पदी व वल्कलचीरी चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, कुल पे. २, ले.स्थल. नव्यनगर,
प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १५४४०-४५). १. पे. नाम. सांबप्रद्युम्न चतुष्पदी, पृ. १अ-१९आ, संपूर्ण, वि. १७३०, मार्गशीर्ष शुक्ल, १०, सोमवार, ले.स्थल. नव्य नगर. सांबप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६५९, आदि: श्रीनेमीसर गुणनिलउ; अंति:
समयसुंदर०सुजस जगीस ए, खंड-२, गाथा-५३५, ग्रं. ८००, (वि. ढाल २१) २.पे. नाम. वलकलचीरीमहामुनि चतुष्पदी, पृ. १९आ-२८आ, संपूर्ण, वि. १७३०, पौष शुक्ल, १, रविवार. वल्कलचीरी चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: प्रणमुं पारसनाथनइ; अंति: समयसुंदर ते
सुणइ रे, गाथा-२२९, ग्रं. ३५०. ६३३६८. (+) सीमंधरजिनविनंति स्तवन सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०-२(१,७)=२८, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४१०.५, ३४२७-३२). सीमंधरजिन विनती स्तवन-१२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: (-),
(पू.वि. ढाल-१ गाथा-२ अपूर्ण से ढाल-११ गाथा- १४ तक बीच-बीच के पाठ हैं.)
सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा-टबार्थ, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ६३३६९. (+) हरिबल चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १५४५३).
हरिबल रास, मु. जीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुखदाई समरूं सदा; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२६ दूहा-५ तक है.) ६३३७०. (#) नलदमयंतीरास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १८४४८-५२). नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: सीमंधरस्वामी प्रमुख; अंति: समयसुंदर०
चित्तवास, खंड-६, गाथा-२०५, ग्रं. १२५०, (वि. ढाल ३९) ६३३७१. (+) माधवानलकामकंदला चौपाई, संपूर्ण, वि. १७७२, ज्येष्ठ, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. २३, ले.स्थल. भिनमालनगर,
प्रले. मु. श्रीचंद (गुरु पं. भक्तिविजय गणि); गुपि. पं. भक्तिविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १६x४९). माधवानल चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६१६, आदि: देवि सरसति देवि; अंति: कुशल सुख पामें
संसार, गाथा-५५२. ६३३७२. (+) आदिजिन चरित्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १५४४४-४८). कल्पसूत्र-हिस्सा आदिजिन चरित्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: संवच्छरे काले
गच्छइ. कल्पसूत्र-हिस्सा आदिजिन चरित्र का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः (१)धण १ मिहुण २ सुर ३, (२)पहिलइ भवइ
धनो नाम; अंति: पांच कल्याणक वखाण्या. ६३३७३. (+) गुणावली चौपाई, अपूर्ण, वि. १७२०, आश्विन शुक्ल, १४, सोमवार, मध्यम, पृ. २४-५(१ से ५)=१९,
ले.स्थल. कोढणा, प्रले.ग. ऋद्धिविजय; पठ.मु. विनयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०, १३४३७-४०).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गुणावलि चौपाई, ग. गजकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७१४, आदि: (-); अंति: गजकुशल०नित सुख आणंदा,
(पू.वि. ढाल-६ गाथा-४ अपूर्ण से है.) ६३३७४. (+) औपदेशिक पद, सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, कुल पे. २५, प्र.वि. संशोधित., दे.,
(२३४१०,१०-१५४२२-२८). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. कान्हाजी ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: ते भणीया भाई ते भणीय; अंति: अविचलपद अनुचरसी रे, गाथा-५. २. पे. नाम. साधुभक्ति बारमासा, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.
१२ मासीय साधुभक्ति, मा.गु., पद्य, आदि: आज आसाढीकउ नह्यो; अंति: तोरण लहेके बार, गाथा-१३. ३. पे. नाम. साधारणजिन भक्तिपद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि: भजन बिनु जीवत हे; अंति: सुयस० कुटंब समेत, गाथा-४. ४. पे. नाम. बाहुबल सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. भरतबाहबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.ग., पद्य, वि. १७वी, आदि: राजतणा अति लोभीया; अंति:
समयसुंदर० पाया रे, गाथा-८. ५. पे. नाम. नवकार छंद, पृ. ३अ-५अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछित पूरे विवध पर; अंति: ऋद्धि वंछित
लहै, गाथा-१३. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
मु. लाभउदय, मा.गु., पद्य, आदि: हारे लाल वंछित आपो; अंति: लाभउदय० आपो वालहा, गाथा-९. ७. पे. नाम. दस पच्चक्खाणनी सज्झाय, प्र. ५आ-६अ, संपूर्ण.
१० पच्चक्खाण सज्झाय, मागु., पद्य, आदि: प्रह उठी दसविध पचखाण; अंति: पामउ निश्चि निरवाण, गाथा-८. ८. पे. नाम. पडिकमणानी सज्झाय, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: कर पडिकमणुं भावशू; अंति: धर्मसिंह लाल रे,
गाथा-६. ९.पे. नाम. ज्ञाननोगरबो, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण.
ग्यान गरबो, मु. भूधर, मा.गु., पद्य, आदि: आदिशकति आस्युं नोरतै; अंति: भूधर० जयकार मांजी, गाथा-१०. १०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदिः रहेने रहेने रहेने; अंति: मोहन० स्तुति
लटकाली, गाथा-६. ११. पे. नाम. पंचमीवृद्ध स्तवन, पृ. ८अ-१०अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पाचम तवनने निरमल; अंति:
समयसुंदर० प्रसंसीउ, ढाल-३, गाथा-१९. १२. पे. नाम. थुलिभद्र गीत, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण.
स्थूलिभद्रमुनि गीत, मु. नित्यलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: कोसवो ए मुझी मावडी; अंति: नित्यलाभ गुण गायरे, गाथा-७. १३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण.
मु. उदयरत्न, रा., पद्य, आदि: साहिबनी सेवामा; अंति: उदयरत्न० श्रीमहावीर, गाथा-६. १४. पे. नाम. दानफल सज्झाय, पृ. ११अ-१२अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: एक घरि घोडा हाथीआजी; अंति:
लावण्यसमय० प्रमाण रे, गाथा-१२. १५. पे. नाम. ऋषभदेव स्तवन, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण.
आदिजिन प्रभाति, मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभाते पंखीडा बोले; अंति: राम० वंदु करजोडी, गाथा-५.
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१६. पे. नाम. मिच्छामिदुक्कडमनी सज्झाय, पृ. १२आ- १३आ, संपूर्ण.
५६३ जीवभेद स्तवन, मु. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: मिच्छामि दुक्कडं इण; अंति: इम कहै रिषभदास जी, गाथा - १३.
१७. पे नाम, मेघरथराजानी सज्झाय, पृ. १३ आ-१५अ संपूर्ण
मेघरथराजा सज्झाय, मु. रायचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९७९७, आदि: दशमें भवे श्रीशांति, अंति: कहे रायचंद शुभवाण,
गाथा - २१.
१८. पे. नाम. दशश्रावक सज्झाय, पृ. १५ अ - १५आ, संपूर्ण.
१० श्रावक सज्झाय, मु. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: वाणिय गाम आणंद भलो; अंति: रिषभदास आणंदो रे, गाथा - १४.
१९. पे. नाम. सुमतिकुमति निर्णयस्वरूप कथन सज्झाय, पृ. १५- १६अ, संपूर्ण.
सुमति कुमति सज्झाय, मु. सुमति, मा.गु., पद्य, आदि: सुमति की अरज सुणीजे अंतिः कोडिकल्याण वरीजे हो,
गाथा- ७.
२०. पे नाम, रतनगुरुनी सज्झाय, पृ. १६आ-१९अ, संपूर्ण
रतनसीगुरु सज्झाय, मु. देवजी, मा.गु., पद्य, आदि: रतनगुरु गुण मीठडा रे; अंति: धर्मसी० साभता मनरंग, गाथा- ४३. २१. पे नाम षट्काय सज्झाय, पृ. १९अ- १९आ, संपूर्ण.
६ काय सज्झाय, मु. वाल मुनि, मा.गु., पद्य, आदि; जिनवर दीए धर्मदेशना अंतिः मुनिवाल० सदीव के गाथा-७, २२. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १९आ, संपूर्ण.
मु. प्रीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अचला माय हुलरावती; अंति: प्रीतविजय० गुन गाया, कडी ९. २३. पे. नाम रहनेमीराजीमति सज्झाय, पृ. २०अ २०आ, संपूर्ण.
रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काउसग्गव्रत रह्या, अंति: मुनिदेव० केवल लेसे रे,
गाथा - १२.
२४. पे नाम, मावितरनी सीखामणनी सज्झाय, पृ. २०आ-२२अ, संपूर्ण.
गर्भावास सझाय, संघो, मा.गु., पद्य, आदि माता उदर वस्यो दसमास अंतिः मुक्या वैकुंठ वासी, गाथा १६. २५. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. २२अ-२३आ, संपूर्ण
७३
महावीरजिन विनती स्तवन- जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी वीनती, अंति: समयसुंदर० भुवनतिलो, गाथा- १९.
६३३७५. कल्पसूत्र व्याख्यान ४ सह बालाबबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदे., (२७४१०.५, १६x४६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. कल्पसूत्र- बालावबोध, मु. शिवनिधान, मा.गु., गद्य, वि. १६८०, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण.
६३३७६ (+) दंडक ३० बोल, पूर्ण, वि. १७४७, माघ शुक्ल ९, गुरुवार, मध्यम, पृ. २०- १ ( १ ) = १९, ले. स्थल, नागोर, प्रले. पं. रत्नसुंदर, अन्य. सा. नोरंगवे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५x१०.५, १५४३९).
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दंडक ३० बोल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मोक्षइ मास ६ आंतरउ, (पू.वि. व्यंतर ज्योतिषी देवों के नाम से है.)
६३३७७. (+) प्रत्येकबुद्ध चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३७-१८ (१ से १७,३२) = १९, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं.. प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२६X९.५, ११X३०).
४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु. पच, वि. १६६५, आदि (-); अंति: (-) (पू. वि. ढाल-५, गाथा-७ अपूर्ण से डाल १६ गाथा २० अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.)
६३३७८. चौपाई, सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १४-१ (१)=१३, कुल पे. १६, जैदे., (२५.५४१०,
१३X३३-३९).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. शकोशलऋषि सज्झाय, पृ. २अ-३अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. सुकोशलमुनि सज्झाय, मु. सूरचंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: श्रीसंघ सुप्रसन्न, गाथा-४३, (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण
से है.) २.पे. नाम. मधुबिंदु सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मुझरेमात दिओ; अंति: चरणपरमोद० मै पामीइ, गाथा-१०. ३. पे. नाम. धन्नाशालीभद्र सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण... शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गोवाला तणे भव; अंति: सहजसुंदरनी वाणी,
गाथा-१५. ४. पे. नाम. दशानभद्र सज्झाय, पृ. ४अ-५आ, संपूर्ण.
दशार्णभद्र सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद बुधदाइ सेवक; अंति: लालविजय निसदीस, गाथा-९. ५. पे. नाम. आत्म स्वाध्याय, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
__ वैराग्य सज्झाय, मु. अमर, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सुण प्राणि रे; अंति: अमर० आणो हृदय मझारि, गाथा-९. ६. पे. नाम. सारबोल चौपाई, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.
औपदेशिक छंद, पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., पद्य, आदि: भगवति भारति चरण; अंति: कलोलरंग मन धरजो चाल,
गाथा-१६. ७. पे. नाम. थुलभद्र सज्झाय, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. शिवचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीथुलभद्रसाधु भले; अंति: शिवचंद० अविचल पाली,
गाथा-१०, (वि. गाथाकं नही हैं.) ८. पे. नाम. आत्म सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. जिनधर्म सज्झाय, मु. कनककुशल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनधर्मतणाफल जोउ; अंति: कनककुशल०थाई भोगी रे,
गाथा-७. ९.पे. नाम. संखेश्वर स्तवन, पृ. ७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. विजयहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: तार श्रीपाससंखेसरा; अंति: हरखनीज चरणनी सेवरे,
गाथा-५. १०. पे. नाम. गयसुकमाल सज्झाय, पृ. ७आ-९अ, संपूर्ण, पठ. मु. चंद्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. शीलांग मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: देवकीनंदन गुणवंतो; अंति:
सीलिंगसीस०केवलन्यान, गाथा-२४, (पठ. मु. चंद्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य) ११. पे. नाम. शीयलव्रत सज्झाय, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण..
मु. विजय मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: मनमधुकर पडीइं नही रे; अंति: मुनिविजय० करत रे, गाथा-११. १२. पे. नाम. सुभद्रासती सज्झाय, पृ. १०अ-११अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: सकल जिणेसरपाय नमी; अंति: मुनिरख्य०रमणि जय वरो, गाथा-१०. १३. पे. नाम. निमित्तोपरि सज्झाय, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. चंद्रावतीभीमसेन सज्झाय, मु. विवेकहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: जस मुख सोहें सरसति; अंति: कवि महाणंद दीइ
आसीस, गाथा-२०. १४. पे. नाम. मनकमुनिस्वर स्वाध्याय, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. मनकमुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नमो नमो मनक महामुनि; अंति: लबधी० सद्गति सारो रे,
गाथा-११. १५. पे. नाम. विजयसेठविजयाश्राविका सीलशिरोमणि स्वाध्याय, पृ. १३अ-१४आ, संपूर्ण. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी रे पंच; अंति: हर्षकीर्ति० घर
अवतरै, ढाल-३, गाथा-२३.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६ १६. पे. नाम. सीख सज्झाय, पृ. १४आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चतुर तुंचाखि मुज; अंति: ऋद्धिविजय० सकल सीझइं,
गाथा-५. ६३३७९. (+#) आश्रव त्रिभंगी, संपूर्ण, वि. १७०२, वैशाख शुक्ल, १०, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १५, ले.स्थल. अर्गलपुर, प्रले. मु. वीरजी
(गुरु वा. देवचंद्र, पार्श्वचंद्रसूरिगच्छ); गुपि. वा. देवचंद्र (गुरु आ. रायचंद्रसूरि, पार्श्वचंद्रसूरिगच्छ); आ. रायचंद्रसूरि (गुरु
आ. समरचंद्रसूरि, पार्श्वचंद्र गच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १५४९-५४).
आश्रव के ४२ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: मिच्छत्तं अविरमणं; अंति: मार्गणा समाप्ता. ६३३८०. (+) आठ कर्मारो विवरण, संपूर्ण, वि. १८१२, आश्विन शुक्ल, ३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले.स्थल. नारदपुर,
प्रले. पं. विनयविजय गणि (गुरु ग. देवेंद्रविजय); गुपि. ग. देवेंद्रविजय; गुभा. ग. जयविजय (गुरु पंन्या. अमृतविजय); गुपि. पंन्या. अमृतविजय (गुरु पंन्या. सिंहविजय); पंन्या. सिंहविजय (गुरु आ. विजयरत्नसूरि); आ. विजयरत्नसूरि (गुरु आ. विजयप्रभसूरि), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. श्रीइष्टदेव प्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४३५-४३).
८ कर्मप्रकृति विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: पहिला सुतो आठकरमारा; अंति: १४मो अबधि गु० कहिइं. ६३३८१. (+) मृगावती रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १५४४०-४६). मृगावतीसती रास, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धारथ नरपति कुलिं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३९८
अपूर्ण तक है.) ६३३८२. (#) सुरसुंदरी चोपई, संपूर्ण, वि. १८९१, वैशाख कृष्ण, २, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १६, प्रले. सा. डाहीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०, १२४३७-४८).
सुरसुंदरी रास, क. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर श्रीऋषभजी; अंति: केसर० होजो जे जे कार, ढाल-१५. ६३३८३. (+) नलदमयंती रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४२-२७(१ से २७)=१५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४४). नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-५ से खंड-६
ढाल-८ गाथा-११ अपूर्ण तक है.) ६३३८४. (+) सर्वप्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्र.वि. अंतिम पत्र पर सर्व विधियों का अनुक्रम दिया है., संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १५४५३-६१). प्रतिक्रमणविधि संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदिः (१)श्रीहर्षसारसद्गुरु, (२)विधिपूर्वक पडिलेह्या;
अंति: (१)निमित्त सूत्र दीजइ, (२)एसा पुण देह पणवीसा. ६३३८५. (#) वसतिदानादि विषयक कथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १४-१६४४२-५०).
वसतिदानादि विषयक कथासंग्रह, प्रा.,सं., गद्य, आदि: वसही सयणासण भत्तपाणे; अंति: तृतीयभवे मोक्षः, कथा-८. ६३३८६. बुध रास व चंदनमलयागिरि रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०.५, १३४४२-५२).
१. पे. नाम. बुद्धि रास, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. ___ आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमवि देवि अंबाई; अंति: सविटले कलेस तो, गाथा-६७. २. पे. नाम. चंदनमलयागिरिरास, पृ. ३अ-१०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
म. भद्रसेन, पुहि., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीविक्रम; अंति: (-), (पू.वि. कलिका-६ गाथा-१६ अपूर्ण तक है.) ६३३८७. (+) श्रावकपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, लिख.पं. रूपचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १२४२९).
श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दसणंमि०; अंति: करि मिच्छामिदूक्कडं. ६३३८८. जीवविचारादि पद्यानुवाद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. ४, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४२८-३६).
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७६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. जीवविचार-पद्यानुवाद, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण-पद्यानुवाद, मु. ज्ञानसार, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: भुवन प्रदीपक वीर; अंति: ग्यांनसार०
नगर मझार, गाथा-२९. २.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण-पद्यानुवाद, पृ. ३अ-५आ, संपूर्ण.
मु. ज्ञानसार, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: नमस्कार अरिहतने; अंति: ग्यांनसार नवर फल लीध, गाथा-३३. ३. पे. नाम. दंडक प्रकरण-पद्यानुवाद, पृ. ५आ-८अ, संपूर्ण, वि. १८८०, कार्तिक कृष्ण, ७, ले.स्थल. बीजलवाडी,
प्रले. पं. रुघा; गृही.पं. राजरूप, प्र.ले.पु. सामान्य.
मु. ज्ञानसार, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: ऋषभादिक चौवीस नमि; अंति: ग्यानसार० मझार, गाथा-२६. ४. पे. नाम. बुद्धि रास, पृ. ८अ-९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
__ आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमवि देवि अंबाई; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२९ अपूर्ण तक है.) ६३३९०. (+) पद, सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८७५, ज्येष्ठ कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. २०-१०(१ से ९,१९)=१०, कुल
पे. २०, प्रले. रतनचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०.५, ९४२८-३७). १. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १०अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
मु. वल्लभ, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: वलभ यात्र श्रीकार रे, (पू.वि. अंतिम गाथा अपूर्ण मात्र है.) २.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १०अ, संपूर्ण..
मु. रतन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रमण पाठक गणधर जसु; अंति: रतन०तारि तारि भव तीर, गाथा-५. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण.
मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: वे कोई अजब तमासा देख; अंति: भूधर० तिनका जन्मासा, गाथा-५. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण.
जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: वा दिन कौ कर सोचरे; अंति: बनारसी० बूढापेपनमें, गाथा-४. ५. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन पद, प्र. ११अ, संपूर्ण..
श्राव. केवलराम, पुहिं., पद्य, आदि: चंदाप्रभु महाराज दरस; अंति: केवलराम०आवागमण निवार, पद-५. ६. पे. नाम. जिनागम पद, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, श्राव. जिनबगस, पुहिं., पद्य, आदि: टुक दिल के चसमे खोल; अंति: जिनबगसमुक्तिमें पगा,
गाथा-५. ७. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ११आ, संपूर्ण.
मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: लगी लो नाभिनंदनसुं; अंति: जिन समझी भूधर यु, गाथा-५. ८. पे. नाम. औपदेशिक पद-नरभव, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-नरभव दर्लभता, पुहिं., पद्य, आदि: ऐसो उत्तमकुल नर पाय; अंति: राखो आवागमन निवारो, दोहा-४. ९.पे. नाम. जैनधार्मिक श्लोक संग्रह, पृ. १२अ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह जैनधार्मिक ,प्रा.,सं., पद्य, आदि: जीवदया जिणधम्मो सावय; अंति: उत्तम मानुषं जम्म, श्लोक-४. १०.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण.
चेतन, पुहिं., पद्य, आदि: देशलडो वरानोरे अपनो; अंति: चेतन मनकी जी प्यास, गाथा-५. ११. पे. नाम. महावीरजिन तप स्तवन, पृ. १२आ-१३आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: गोतमस्वामी रेबुध; अंति: मुक्ति आपो सांमीया, गाथा-१०. १२. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: तेरा नही ते सरब; अंति: पाखंडी लरथरियाजी, गाथा-८. १३. पे. नाम. साधारणजिन कवित, पृ. १४अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: परस फरस नर सरस दरस; अंति: मुदित नितप निपत पलपल, कडी-१. १४. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १४अ-१६अ, संपूर्ण.
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श्राव. विनोदलाल, पुहिं., पद्य, आदि उजलभावको भेद उमेद सो, अंतिः विनोदीलाल० नवकारको, सवैया- ११. १५. पे. नाम, वनस्पति मान, पृ. १६अ १६आ, संपूर्ण.
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१८ भार वनस्पति गाथा, क. शुभ, मा.गु., पद्य, आदि: छ सरसवे एक जव जव ती; अंति: उत्तरभद्र अंबरे, गाथा - ६.
१६. पे. नाम, आत्मबोध सज्झाय, पृ. १७अ १७आ, संपूर्ण.
3
आयुष्य सज्झाय, मा.गु., पद्म, आदि आउखो टूटै सांधी लागे; अंतिः न धरे मुनि लिगार रे, गाथा- ७.
१७. पे. नाम. भरतचक्री सज्झाय, पृ. १७आ-१८ अ, संपूर्ण.
भरतचक्रवर्ती सज्झाय, रा., पद्य, आदि: एक जणारा मन मे ऊपनी; अंति: निजर लागी छे मोख रे, गाथा-५. १८. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-तृष्णा, पृ. ९८अ १८आ, संपूर्ण.
तृष्णा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: क्रोध लोभ मद मच्छर, अंति: तूं थोडी थास्ये, गाथा - ११.
१९. पे नाम, सुगुरुपच्चीसी, पृ. १८आ- २०आ, अपूर्ण, पू. वि. बीच का एक पत्र नहीं है.
मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुरू पिछाणो एणे, अंति: जिनहर्ष० उछरंगजी, गाधा- २५, (पू. वि. गाथा- २ से १५ अपूर्ण तक नहीं है.)
२०. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. २०आ, संपूर्ण.
जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: धरम करत संसार सुख, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१ लिखा है.)
६३३९१. इलाचिरुषि रास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (२५X११, १३X३६-४२).
इलाचीकुमार चौपाई भावविषये, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य वि. १७९९, आदि: सकल सिद्धदायक सदा, अंति शेखपुरे मन हरसइ रे, ढाल १६, गाथा- १८६.
६३३९२ (+) जिनरस, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १२ प्रले. पं. गौडीदत्त, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२५.५४११, १३४३७).
""
जिणरस, मु. वेणीराम, मा.गु., पद्य, वि. १७९९, आदि: गणपतिसारद पाय नमी; अंति: वेणीराम० धजादे धिंग
गाथा - १९५.
६३३९३, (+) हंसराजवच्छराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२६X१०.५, १५X४०).
७७
"
हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि आदिसर आये करी चोवीसे अंतिः (-), (पू.वि. ढाल १७ गाथा-१० तक है.)
६३३९४. (+) सुक्तावली, संपूर्ण, वि. १८३६, फाल्गुन शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १२, पठ. श्राव. नानजी, श्राव रणछोडदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैवे (२४४११, १४४४०).
सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु. सं., पद्य, वि. १७५४, आदिः सकलसुकृतवल्लि वृंदजी अंतिः वैराग्यता दाखवें,
वर्ग- ४, श्लोक - १७६.
६३३९५ (+) शालिभद्र चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६४१०.५,
"
११४३१-३३).
शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पच, वि. १६७८ आदि सासननायक समरिवै अंतिः (-). ६३३९६. (+) सिंहलकुमार चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २४.५X११.५, १५X३९).
प्रियमेलक चौपाई - दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: प्रणमुं सद्गुरु पाय; अंतिः समयसुंदर० अधिक प्रमोद, ढाल-११, गाथा-२३०.
६३३९७, (+) सज्झाय, स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे २०, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२४.५x१०.५, १५-२१४३९-५१).
१. पे. नाम. २० विहरमानजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची विहरमान २० जिन स्तवन-मातपितानामगर्भित, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम सीमंधरजिन; अंति:
लच्छिवल्लभ० प्रमाद ए, गाथा-१९. २. पे. नाम. नवकार सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, मु. पद्मराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनवकार जपो मनरंगे; अंति: पद्मराज० जास अपार रे,
गाथा-१०. ३. पे. नाम. पंचइंद्रिनी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण..
५ इंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: कामांध गजराज अगाध; अंति: जिनहर्ष० सुख सास्वता, गाथा-६. ४. पे. नाम. नववाडनी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.
९ वाड सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रमणी पसु पंडग तणीरे; अंति: अजितदेवसुर के, गाथा-११. ५. पे. नाम. अइमंतानी सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. अइमुत्तामुनि सज्झाय, क. आणंदचंद, मा.गु., पद्य, वि. १५९७, आदि: श्रीवृद्धमानरे पाय; अंति: आणंदचंद भणेरे
उल्हास, गाथा-१३. ६.पे. नाम. ऋषभदेव स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुरति मोहन वेलडी जी; अंति: गुणसागरसुर० तोरा पाय,
गाथा-९. ७. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण.
मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे मोने धरम; अंति: मोहन० अती घणे रेलो, गाथा-७. ८. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पूर्व पुखलावती विजेय; अंति: जेमल० टल जायै खामी,
गाथा-२१. ९. पे. नाम. पांचमा आरानी सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पंचमआरा सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: श्रीजिन चरणकमल नमी; अंति: लालचंद० बोल सुहाय हो,
गाथा-१३. १०. पे. नाम. विजयसेठनी सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुकलपख विजया वरत लीध; अति: रतन०
पाम्या निरवाणी, गाथा-८. ११. पे. नाम. परनारीनी सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
शीयलव्रत सज्झाय, रा., पद्य, आदि: समज पीउ चपल मति रमे; अंति: की बात अलपी वखांणे, गाथा-१३. १२. पे. नाम. धन्नासालिभद्र सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण.
शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गोवाल्याने भव; अंति: सहेजसुद्र निरवाण, गाथा-१६. १३. पे. नाम. अर्णकमुनि सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
अरणिकमुनिसज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: रुपविजय० कीधो जी.
गाथा-८. १४. पे. नाम. सनतकुमारचक्री सज्झाय, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: सुरपति प्रशंसा करे; अंति: खेमकहे गाया सुख
पावो, गाथा-१९. १५. पे. नाम. सीख छत्तीसी, प्र. ५अ-५आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सवैया, मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसद्गुरु उपदेश; अंति: श्रीधर्मसी उवज्झाय, गाथा-३६. १६. पे. नाम. बाहुबलीनी सज्झाय, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
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भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राजतणा अति लोभीया, अंति: समयसुंदर० पाया रे, गाथा-७.
१७. पे. नाम. सात व्यसन सज्झाय, पृ. ६अ- ६आ, संपूर्ण.
७ व्यसन सज्झाय, मा.गु, पद्य, आदि: कायाकांमण जीवसुं इम, अंतिः धर्म सदा चित में धरो, गाथा-८.
१८. पे. नाम. नवकारनो स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण.
नमस्कार महामंत्र स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: प्रथम नमु अरिहंत देव, अंतिः रायचंद० तो धर्म करो,
गाथा - १४.
१९. पे. नाम गौतमस्वामी रास, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण
मु. रायचंद ऋषि, रा. पच, वि. १८३४, आदि: गुण गाउ गौतम तणा; अंतिः रायचंद० कीयो चोमास जी, गाथा-१३. २०. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि आरती, पृ. ७आ, संपूर्ण.
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मा.गु., पद्य, आदि: पहिली आरती अरिहंत; अंतिः वंछित फल निश्चे पावो, गाथा- १५.
६३३९८. (#) पाशाकेवली, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ६, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२४४१०.५, १४४४५-४८).
""
पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो भगवती; अंति: (-).
६३३९९. (+) आध्यात्मिक गीत, औपदेशिक पद व कुगुरु- सुगुरु सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७. कुल पे. ६, लिख श्रावि. सलतानबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५x११, ११४३७-४०).
*"
१. पे नाम, ५ कुगुरु सज्झाय, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो सदगुरु गुण, अंतिः नय० सीसेण जणाणबोहड्डा, डाल-६, गाथा- ३९. २. पे. नाम. सुगुरु सज्झाय, पृ. ३ आ-६अ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु, पद्य, आदि: सद्गुरु एहवा सेविइ, अंतिः साहूण जसंसिणं एए. ढाल ४, गाथा - ४१. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक गीत, पृ. ६अ ६आ, संपूर्ण
६३४००.
आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं, पद्य, आदि: चेतन ममता छारि परी; अंतिः चिदानंदघन पदवी वरीरी, गाथा ५. ४. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण.
(+)
उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: कंत विण कहो कुण गति, अंति: सुजस० रमे रंग अनुसारी, गाथा - ५. ५. पे नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ७अ ७आ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि: जब लगइ आवइ नही मन, अंति: सुजस० प्रकटइ आतमराम, गाथा-५. ६. पे. नाम कर्मयुद्ध सझाय, पृ. ७आ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: धर्म के विलास वास; अंति: ताके पाय हम लगेहि, गाथा-५. । चतुशरण सह बालावबोध, संपूर्ण वि. १६वी, मध्यम, पू. ६. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैवे.,
(२४४१०, १३x४६-५०%
७९
चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई, अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं,
गाथा - ६३.
चतुः शरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: मंगलीक भणी पहिलउं अंतिः ए चउसरण गुणिवर्ड.
६३४०१. दृष्टांतकथा व आध्यात्मिक पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(१) =७, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११,
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२६x४७-५०).
१. पे. नाम. दृष्टांतकथा संग्रह, पृ. २अ-८अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है.
प्रा. मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. सप्तव्यसन वर्णन अपूर्ण से तीर्थंकर अतिशय वर्णन अपूर्ण तक है.)
२. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ८आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
(वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा ३. पे. नाम. आध्यात्मिक श्लोक संग्रह, पृ.
जै. क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: तुं आतमगुण जाण रे; अंति: अवर न कोई छुडावनहार, गाथा-८, को दो-दो गाथा के रूप में लिखा है.) ८आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-).
६३४०२. (+) स्तवन व पूजा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ९, प्र. वि. संशोधित, जैवे (२६४१०, ११४४०-४७).
१. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., सं., पद्य, आदि: अरिहंत पद ध्यातो थको; अंति: जसतणी० न अधूरी रे, गाथा - १४. २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
सिद्धचक्र नमस्कार, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत उदार कांत, अंति: निधि प्रगटै चेतन भूप,
गाथा ६.
३. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
नवपद स्तवन. वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: तीरथनायक जिनवरू रे, अंति: नित प्रति नमत कल्याण, गाथा- ६. ४. पे नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण
मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुण सनेही साजन, अंति: जिनचंद० प्रेम अभंग गाथा- १०.
י י
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५. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
सिद्धचक्र स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुरमणि सम सहू मंत्र, अंति: जिनलाभ० जश लीजै रे,
गाथा - १३.
६. पे. नाम. श्रीपाल रास ढाल १७वीं प्र. ३अ ४अ, संपूर्ण
श्रीपाल रास- बृहद्, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४०, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
७. पे. नाम. अष्टप्रकारी पूजा, पृ. ४अ ६अ, संपूर्ण
८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु., सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: गंगा मागध क्षीरनिधि, अंति: दर्शनसल्लभंते, ढाल -८, श्लोक- ८.
८. पे. नाम. एक वस्त्र पूजा, पृ. ६अ, संपूर्ण.
वस्त्रपूजा श्लोक, सं., पद्य, आदि: शक्रो यथा जिनपते, अंति: क्लेशक्षयाकांक्षया, श्लोक - २.
९. पे नाम ज्ञानशास्त्र पूजा, पृ. ६अ, संपूर्ण
ज्ञान पहिरावणी गाथा, प्रा., पद्य, आदि: नमंत सामंतमही विनाह; अंति: नाणस्सलाभाय भवक्षयाय, गाथा - २. ६३४०३. गुणठाणाद्वार विवरण, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ७, दे. (२६४१०.५, ११-१३४४१).
1
१४ गुणस्थानक २८ द्वार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानद्वार १ समकित अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., द्वार- १७ अपूर्ण तक लिखा है.)
६३४०४. (+) नवकारमंत्र बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र. वि. संशोधित., दे., ( २६११, ११-१३X५२). नमस्कार महामंत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: बारसगुण अरिहंता, अंति: ४ ए अष्टभंगी जाणवा. ६३४०५. (+#) शत्रुंजयतीर्थ रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैसे. (२६x१०.५, ११-१३x६१)
शत्रुंजयतीर्थ रास, उपा. कुशललाभ, मा.गु, पद्य, आदि: सिद्धाचलगिरि सिखरि अंतिः कुशल० गुरुनइ सुपसाय,
गाथा - १०४.
६३४०६. मनुष्यजीवन ८ कर्तव्य विचार, संपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. ७, जैदे, (२५x१०, १४४४०).
व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु., रा., सं., गद्य, आदि: देवपूजा१ दया२ दानं३; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. या गुण वर्णन अपूर्ण तक लिखा है.)
६३४०७. (+) स्तवनचौवीसी, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५x९.५, १३×३८).
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स्तवनचौवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्म, आदि: मनमधुकर मोही राउ, अंति: (-), (पू.वि. स्तवन- २४, गाथा-५ अपूर्ण तक है.)
६३४०८. (+) सुरसुंदरी चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित., जैये. (२४४१०.५, १५X४६).
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सुरसुंदरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: सासण जेहनो सलहियै आज; अंति: (-), (पू.वि. ढाल १६, गाथा-५ अपूर्ण तक है.)
६३४०९ (+) सिद्धांतसार, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित. जैवे. (२४.५x११, १५-१७X४०-४२).
सिद्धांत बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: (-), (पू.वि. कर्मविपाक कर्मग्रंथ अपूर्ण तक है.) ६३४१०. नवकारगुण, सप्तव्यसन व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे ४, जैदे (२६४१०.५, १२x२८). १. पे. नाम. नवकारगुण चौपाई, पृ. १अ ३अ, संपूर्ण.
नमस्कार महामंत्र चौढालिया, उपा. राजसोम पाठक, मा.गु., पद्य, आदि: नवकारवाली मणियडा; अंति: कल्याण नवनिध संपजै ए, ढाल-४.
२. पे नाम, सात व्यसननिवारण सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण,
७ व्यसन सज्झाय, मु. जिनरंग, मा.गु, पद्य, आदि पर उपगारी साधु सुगुर, अंतिः सीस रंगे जेरंगे कहे, गाथा- ९. ३. पे. नाम. सूरजजी सलोको, पृ. ३आ-५ अ, संपूर्ण.
सूर्य सलोको, मा.गु., पद्य, आदि: सरसत सांमण करोने पसा; अंति: उठीनै कहजो जी लोकौ, गाथा- १७. ४. पे. नाम. पंचमी स्तवन, पृ. ५अ - ६आ, संपूर्ण.
ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन- बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगुरु पाय; अंतिः धुण्य त्रिभुवनतिलो, डाल-३, गाथा-२०.
६३४११. (+) विवेकविलास वालावबोध व ७२ सीख, अपूर्ण, वि. १७२९ पौष कृष्ण, १३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ७. कुल पे. २, ले.स्थल. बिकानेर, प्रले.ग. राजप्रमोद (गुरु आ . जिनराजसूरि); गुपि. आ. जिनराजसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ- संशोधित प्र. ले. श्लो. (१९९४) जितरांताई, जैदे. (२५.५x१०.५, २०X३७-४२).
""
"
१. पे. नाम. विवेक विलास का बालावबोध, पृ. १अ-७आ, संपूर्ण.
विवेकविलास- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: भलो सुहणो देखनइ न, अंति: करी जिनदत्त करीश्वरइ.
२. पे. नाम. ७२ सीख नाम, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
७२ शिक्षा नाम - श्रावकसंबंधी, मा.गु, गद्य, आदिः इष्टदेवता उपरी मति, अंति: (-) (पू.वि. शिक्षा नाम ७ तक है.) ६३४१२. (+) क्षेत्रसमास विचार, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७. प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे., (२५x१०.५,
7
११४३४).
क्षेत्रसमास विचार, मा.गु., गद्य, आदि: व्यंतर देवतांरो देह, अंति: राद्धरै विषै छै.
६३४१३. (+) धर्मध्यान व शक्रइंद्र देवीमान विचार, संपूर्ण, वि. १८९७, आश्विन शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, ले.स्थल. दिवबंदर, प्रले. मु. दामजी ऋषि; पठ. मु. जेठाजी ऋषि; अन्य. मु. बेचर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २५.५X१०, ११३६-४१).
१. पे. नाम. धर्मध्यान लक्षण विचार, पृ. १आ-७अ, संपूर्ण.
धर्मध्यान लक्षण, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: धम्मेज्झाणे चउविहे, अंति: इं धर्मध्यान ध्याइ.
२. पे. नाम. शक्रइंद्र देवीमान विचार, पृ. ७आ, संपूर्ण,
1
विचार संग्रह प्रा.मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
,
६३४१४. (+) मछोदर रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९- २ (१ से २) ७, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश
खंडित है, जैदे., (२५.५X१०.५, १२X३८).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
मत्स्योदरकुमार रास. ग. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंतिः साधुकीरति० तस पूरि आस, गाथा १५७, (पू. वि. गाथा ३५ अपूर्ण से है. )
६३४१५. (०) पुण्यप्रकाश स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५१, ज्येष्ठ शुक्र, २. शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ८. ले. स्थल, पालीताणा, प्रले. मु. कुंअरविजय; पठ. श्रावि. बाई जामकुंअर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४x१०.५, ९-११x२८-३२).
पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु, पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा अंतिः विनय० पुण्यप्रकाश ए. ढाल ८, गाथा-१०२.
६३४१६. (+) आदिनाथ चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे.,
१८X६३).
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आदिजिन चरित्र, मा.गु., गद्य, आदि: जंबुद्वीप पश्चिम, अंतिः अणसण करी मुगतड़ पहुता.
६३४१७, (०) रत्नसारकुमार रास, अपूर्ण, वि. १६०३, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. ११-५ (१,३ से ६) = ६, ले. स्थल, कयईल, प्रले. मु. राजमेर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित संशोधित., जैदे., (२६×१०.५, १६x४१-४५).
.जे. (२५.५x१०.५,
रत्नसारकुमार रास, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १५८२, आदि (-); अंतिः आणी बुद्धि प्रकाश रे, गाथा- ३१५, (पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा - २४ अपूर्ण से है.)
(+)
६३४१८. (#) वैदर्भि चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे. (२४.५x१०, १४४४१).
"
दमयंती चौपाई, मु. प्रेमराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जिनधर्ममांहि दीपता, अंति: (-), (पू.वि. ढाल -६, गाथा - २५ तक है.)
६३४१९. श्रावकपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण वि. १९३० फाल्गुन कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. पं. ऋद्धिसार, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५X११, १२X३६-३९).
६३४२०.
श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु, गद्य, आदि: नाणंमि दंसणमि०: अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्. | गुणठाणा ३३ द्वार व भावप्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०-४ (१ से ४) = ६, कुल पे. २ प्रले. मु. सत्यसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित., जैदे., ( २६११, २०x६०).
,
१. पे नाम, गुणठाणा ३३द्वार, पृ. ६अ ९आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
१४ गुणस्थानक ३३ द्वार बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: भांगाजी जाणिवा, (पू. वि. आहारक शरीर वर्णन अपूर्ण से है.)
गाथा - ३०.
६३४२१. नेमिजिन रास, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४३९).
२. पे. नाम. भाव प्रकरण, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण.
ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, वि. १६२३, आदि आणंदभरिय नयणो आणंद अंतिः विजयविमल० पुव्वगंवाओ,
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शीलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि पहिला प्रणाम करूं, अंति: (-), (पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा - ६५ अपूर्ण तक है.)
६३४२२. (+) सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-२ (२७)=८, कुल पे. ८. प्र. वि. हाशिये में सम्बन्धित दृष्टांत कथाएँ दी
गई हैं., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित टिप्पणक का अंश नष्ट, दे., (२५.५x१०, ९-११x२२-२४).
१. पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. १अ- १आ, पूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मा.गु., पद्य, आदि श्रेणिक नरवैराजीयो म, अंति: (-), (पू. वि. गाथा - १५ तक है.)
२. पे नाम, सीख सज्झाय, पृ. ३अ-४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं.
औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु, पद्य, आदि: (-); अंति: विजयभद्र० नवि अवतरे, गाथा - २५, (पू. वि. गाथा - ५ अपूर्ण से है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
३. पे. नाम. प्रहेलिका हरियाली, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण. प्रहेलिका हरियाली-सज्झाय, मु. ऋषभसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सुणज्यो पंडितराय०; अंति: रिसिभ०गीतामाहै
गाइयो, गाथा-७. ४. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण.
मु. धर्मचंद, मा.गु., पद्य, आदि: हुं तुज पुछु वात; अंति: धर्मचंद० त्रिकालोजी, गाथा-७. ५. पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. ६आ-८अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. मु. कीर्तिसोम, मा.गु., पद्य, आदि: यक दिन अहिर्ण जाम उठ; अंति: कीर्तिसूरि इण० कहै ए, गाथा-२४, (पू.वि. गाथा-८
अपूर्ण से २१ अपूर्ण तक नहीं है.) ६.पे. नाम. वणजारा सज्झाय, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण.
आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: विणजारा रे तुं तो नग; अंति: जिणचंदसूरि इम वीनवै, गाथा-८. ७. पे. नाम. सुपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण.
मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: सहज सलुणो हो मिलीयो; अंति: पूरो प्रेम विलास, गाथा-७. ८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ९आ-१०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
औपदेशिक सज्झाय-कर्मफल स्वरुप, आ. गुणसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवनस्वामी शिवपु; अंति: (-),
(पू.वि. गाथा ७ तक है.) ६३४२३. गीत, स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-२(१ से २)=७, कुल पे. ४, जैदे., (२६४११, १२४२५). १.पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र गीत, पृ. ३अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: (-); अंति: गीत रच्या सुखकार,
अध्याय-१०, (पूर्ण, पू.वि. अध्ययन ४ की अंतिम गाथा से है.) २. पे. नाम. नेमनाथजी नवभव स्तवन, पृ. ५आ-८अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन-नवभव गर्भित, मु. नयशेखर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसद्गुरुना पाय नम; अंति: नयरसिखर० जग
आणंदणो, गाथा-४४. ३.पे. नाम. राजिमती रहनेमी सज्झाय, प्र. ८आ-९आ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. जिनचंदसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: देखी मन देवर का; अंति: जिनचंद० सिष जपै
एम, गाथा-१७. ४. पे. नाम. स्थुलिभद्रमुनि सज्झाय, पृ. ९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, ग. लब्धिउदय, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर रहिण चौमासे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ६ तक
६३४२४. वीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८४४, चैत्र कृष्ण, ४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ८-३(१ से ३)=५, ले.स्थल. उजेण(उज्जैन), प्रले.ग. कनकसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीअवंती प्रसादे., जैदे., (२५४१०.५, १३४३७). महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३,
आदि: (-); अंति: आणा शिर वहस्ये जी, ढाल-६, गाथा-१४८, (पू.वि. ढाल-३ गाथा ८ अपूर्ण से है.) ६३४२५. (+) आदिनाथ चरित्र संक्षेप व चक्रवर्तिरत्न विचार, अपूर्ण, वि. १६३०, ज्येष्ठ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, कुल पे. २,
प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १५४५२-५७). १.पे. नाम. आदिनाथ चरित्र संक्षेप, पृ. २अ-६आ, पूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. आदिजिन चरित्र-संक्षेप, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: परिपूर्ण पालीनइं, (अपूर्ण, पू.वि. भव ५ निर्नामिका जन्म प्रसंग
अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. भरतचक्रवर्ती रत्नविचार, पृ. ६आ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: भरतचक्रवर्तिनइ चक्र; अंति: विनीतानगरीयइ आव्या.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
६३४२६. लोकनालि स्तवन, संपूर्ण, वि. १७५०, कार्तिक कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. ग. गजानंद (गुरु उपा. सुखलाल गणि); गुपि. उपा. सुखलाल गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X१०, १५X४५).
लोकनालि स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य वि. १६८७, आदि: सरसति दरसति शक्ति, अंति: गुण सकल मनवंछित फलइ, गाथा- ७६.
६३४२७. (+) नलदमयंती चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १६-११ (१ से ७,१० से १३) ५ पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं.. प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५X१०, १६३७-४४).
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नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-२, ढाल - १ अपूर्ण से खंड-४, ढाल - २ अपूर्ण तक के बीच-बीच के पाठ हैं.)
६३४२८. (+) वज्रस्वामी रास, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५. पू. वि. अंत के पत्र नहीं है. प्र. वि. संशोधित दे. (२४४१०.५, ९४२३-२६).
वज्रस्वामी रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: अरथ भरतमां दीपतो देस; अंति: (-), (पू.वि. ढाल - ९, गाथा-४ अपूर्ण तक है.)
६३४२९. () जंबुकुमार रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. अशुद्ध पाठ. दे., (२५X१०.५,
"
"
१२X३१-३५).
जंबूस्वामी रास, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, वि. १५२२, आदि: गोयम गणहर पय नमी; अंति: (-),
(पू. वि. गाथा- ९५ अपूर्ण तक है.)
६३४३० (+) दीपावली कल्प सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जैदे
(२५.५X१०.५, १४X३३).
दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., पद्य वि. १४८३, आदिः श्रीवर्द्धमानमांगल्य, अंति: (-),
(पू.वि. श्लोक - १० तक है.)
दीपावलीपर्व कल्प-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीरदेव रूप; अंति: (-).
६३४३१. (४) सिंहलसुत चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पत्रांक खंडित है. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., ( २४.५X१०.५, १५६२).
प्रियमेलक चौपाई - दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: प्रणमुं सद्गुरु पाय; अंति: (-), (पू.वि. ढाल ११, गाथा-३ अपूर्ण तक है.)
६३४३२. (+४) सज्झाय, गीत व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६X११, १२X४२-४५).
१. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र सज्झाय, पृ. १अ ५अ, संपूर्ण.
दशवेकालिकसूत्र - सज्झाव, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु, पद्य, वि. १७१७, आदि: धरम मंगल महिमा नीलो; अंतिः जेतसी जय जय रंग, अध्याय- १०.
२. पे नाम, जंबूकुमार गीत, पृ. ५अ ५आ, संपूर्ण.
जंबूस्वामी गीत, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, आदि: राजगिरी नगरीकु जाण, अंतिः नमावौ सिधि दीयौजी, गाथा-८. ३. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ लघुस्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन लघुस्तवन- गोडीजी, मु. रुघनाथ, मा.गु., पद्य, आदि: सद्गुरु वचने सांभल्य; अंतिः रुघनाथ० छै तुझ आधार,
गाथा-७.
६३४३३. पुरंदरकुमार रास, अपूर्ण, वि. १६९७, मध्यम, पृ. १४-९ (१ से ९) = ५, जैदे., (२४X१०, १५X४०).
पुरंदरकुमार रास, वा. मालदेव, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कहे मालदेव आणंद, ढाल १२, गाथा-३७६, (पू. वि. गाथा २५८ अपूर्ण से है.)
६३४३४. (#) पुन्यसारकुमार चरित्र, संपूर्ण, वि. १७६९, चैत्र कृष्ण, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. ५, ले. स्थल. रोहीठनगर, प्रले. पं. पुन्यसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५X११.५, १७५०).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
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,
पुण्यसार रास-पुण्याधिकारे, मु. पुण्यकीर्ति, मा.गु. पद्य वि. १६६६, आदि: नाभिराय नंदन नमुं अंतिः पुण्यकीरति० तस गेह, ढाल - ९, गाथा - २०५.
६३४३५. (+४) दंडकना २६ बोल विचार, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२५४११. १७४२५-६२).
"
दंडक २६ बोल विचार यंत्र, मा.गु., गद्य, आदि: शरीर वैक्रिय तेजसर; अंतिः शनर ७ आयुषू मनुष्यगति. ६३४३६. (+४) चंदनमलयागिरी चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. ५, ले. स्थल, समालखान, प्रले. मु. गोडीदास (गुरु पं. सुखलाभ); गुपि. पं. सुखलाभ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित टिप्पणक का अंश नष्ट, जैवे., (२५.५X१०.५, १५x५१).
יי
चंदनमलयागिरि रास, मु. भद्रसेन पुहिं, पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीविक्रम, अंति: तासिं जोड हवइ तेसिं, अध्याय-५,
गाथा - १९९.
६३४३७. (+४) सांवप्रद्युम्न चौपाई, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १७, ले. स्थल. नवानगर, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२६११, १५-१८३०-४०)
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सांबप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६५९, आदि: श्रीनेमीसर गुणनिलङ; अंतिः समयसुंदर० सुजस जगीस ए, खंड-२, गाथा-५३५, (वि. ढाल - २२)
६३४३८. (+) पुन्यविषये गुणकरंड गुणावली चउपही व कडवा बोल, संपूर्ण, वि. १७११, चैत्र शुक्ल, २, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, कुल पे. २, ले. स्थल. बुधनाउरनगर, प्रले. मु. जसराज (गुरु आ. जयचंद्रसूरि, पार्श्वचंद्र गच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रायः शुद्ध पाठ-कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-संशोधित, जैदे., ( २६११, १९४५८).
जसराज० भावस्यु रे, ढाल-१८, गाथा-७०३.
२. पे. नाम. कडवा बोल, पृ. १५अ, संपूर्ण.
१. पे नाम. पुन्यविषये गुणकरंड गुणावली चउपही, पृ. १अ १५अ, संपूर्ण.
गुणकरंडक गुणावलि चौपाई- पुण्य विषये, मु. जसराज, मा.गु., पद्य, वि. १७११, आदि: श्रीपार्श्वनाथ प्रणम; अंति
1
८५
मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि जड फटड आकाश तउ किम; अंतिः कवियण० सुता मेल्हि गाथा- ७.
६३४३९. (+) गुणावली रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २५-११ (१ से ११) = १४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. टिप्पणयुक्त विशे पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे. (२६४१०.५, १३x४०).
"
गुणावली रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल १२ गाथा ४ अपूर्ण से डाल- २८ गाथा १२ अपूर्ण तक
है.)
६३४४०. (#) गजसिंघकुमार चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६ - २ (८, ११) = १४, पू. वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५x१०.५, १३४३३-३६).
गजसिंघकुमार रास, मु. सुंदरराज, मा.गु., पद्य, बि. १५५६, आदि: पासजिणेसर पाय नमी, अंति: (-), (पू. वि. प्रारंभ से गाथा- १७२ तक, गाथा- १९६ से २३९ अपूर्ण तक व गाथा २६३ अपूर्ण से ३७८ अपूर्ण तक है.)
६३४४१. (+४) बंधउदयउदीरणासत्ता विचार, ५ भावना उत्तरभेद विचार व देवसीराइब प्रतिक्रमणादि विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. ५, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है. जी., (२५.५x१०.५. १७५६२).
१. पे. नाम. बंधउदयउदीरणासत्ता विचार, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
१४ गुणस्थानके कर्मबंधउदयसत्ता व उदीरणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: बंधउ थइ समवइ पदइ १२; अंति: षय कीजइ० नमह तं वीरं
२. पे. नाम. द्वितीय कर्मग्रंथ विचार, पृ. १आ- ३आ, संपूर्ण,
कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ - विचार, संबद्ध, मा.गु, गद्य, आदि: हिवह श्रीमहावीर भगवान, अंति: ठाणा अणाहारकनइ
जाणवा.
३. पे. नाम. षडशीतिका चतुर्थ कर्मग्रंथ विचार, पृ. ३आ-१०आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
षडशीति नव्य कर्मग्रंथ - विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: पहिली १४जीवस्थानकना, अंति: लहिउ देविंदसूरींहि . ४. पे नाम, ५ भावना ५३उत्तरभेद विचार, पृ. १०आ- १२आ, संपूर्ण
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५ भावना के ५३ उत्तरभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मास्तिकाय १ अधर्म; अंति: जुदा-जुदा लिख्या छइ. ५. पे. नाम. देवसीराइयादि प्रतिक्रमण विचार, पृ. १२आ- १३आ, संपूर्ण.
देवसीराइय प्रतिक्रमणादि विचार, मा.गु, गद्य, आदि: पंच विहायारविसुद्धिः अंतिः सारोद्धारनी जाणिवा. ६३४४२. (+) २६ द्वारगर्भित वीरजिन स्तवन सह टबार्थ व जीवगति विचार, अपूर्ण, वि. १६४९, श्रेष्ठ, पृ. १५-२(१ से २)=१३, कुल पे. २, ले. स्थल. अहमदावाद, प्रले. पं. कर्मसी (बृहत्खरतरगच्छे), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६X११, ५X३९).
१. पे नाम, २६ द्वारगर्भित वीरजिन स्तवन सह टवार्थ, पृ. ३अ-१५आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
महावीरजिन स्तवन २४ दंडक २६ द्वारगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति
श्रीपासचंद०अविचल ठाइ, गाथा- ९१, ( पू. वि. गाथा १८ अपूर्ण से है.)
महावीरजिन स्तवन- २४ दंडक २६ द्वारगर्भित-टबार्थ, आ. राजचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: दंडका
काउ छइ.
२. पे. नाम. जीवगति विचार, पृ. १५आ, संपूर्ण.
बोल संग्रह से, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: समूर्च्छिम मनुष्यनी अंति एवं १४मांहिलउ नावइ. ६३४४३. (+) कुमतिउथापणारी चर्चा, गोचरीना ४२ दोष व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X११, ११X३६).
१. पे नाम, कुमतिउत्थापन चर्चा, पृ. १अ १०अ संपूर्ण, वि. १८८४ माघ शुक्ल ९, शुक्रवार, ले. स्थल, जोधपुर,
"
प्रले. श्राव. सिरदारमल फोजमल भंडारी, अन्य मु. धनरूपविजय (गुरु पं. कस्तुरविजय), प्र.ले.पु. सामान्य.
प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: मनोमती झूठी प्ररूपणा; अंति: मांहे कह्यौ छे.
२. पे. नाम. गोचरीना ४२ दोष, पृ. १०अ ११अ, संपूर्ण.
गोचरी ४२ दोष, मा.गु, गद्य, आदिः आधाकरमी जती निमते अंतिः साधरे गोचरीरा कह्या.
३. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. ११अ ११आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद - पुण्योपरि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पुन्य करी पुन्य करी; अंति: समयसुंदर ० कोटानकोटी, गाथा-३.
६३४४४. शत्रुंजय रास, संपूर्ण, वि. १८९०, मार्गशीर्ष शुक्ल, ६, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले. स्थल. लक्ष्मणापुरी, प्रले. मु. रूपचंद्र ऋषि; पठ. श्राव. गंगाराम; राज्येगच्छाधिपति जिननंदीवर्द्धनसूरि (खरतरगच्छ); राज्यकालरा. नसरदी हैदर, प्र.ले.पु. मध्यम, जै.., (२७४११.५, १०x३२).
शत्रुंजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी, अंति: समयसुंदर ० आणंद धाय, दाल-६, गाथा १०९.
"
.
"
६३४४५. (+) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित, जैदे (२६११, १७४०-४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. भगवान महावीरस्वामी के जीव का देवानंदा
ब्राह्मणी के गर्भ में अवतरण प्रसंग से त्रिशलामाता द्वारा स्वप्न में सूर्यदर्शन प्रसंग तक है.)
"
६३४४६. (+४) २४ दंडक २६ द्वार विचार, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११.५, २९x९-१६).
२४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: शरीर अवगाहणा संघयण, अंति: (-), (पू. वि. सिद्धविमान गति अपूर्ण
तक है.)
६३४४७. (+) नवकार विचार, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६११, १२४३५).
"
नमस्कार महामंत्र - बालावबोध", मा.गु., गद्य, आदि: पहिलउ मंगलीक सकल, अंतिः पदमं हवइ मंगलं.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६ ६३४४९. उपधान विधि, संपूर्ण, वि. १९२५, पौष शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. अमदावाद (गोरीसर, प्रले.पं. रत्नविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४१०.५, १३४४५).
उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथमे द्वितीये; अंति: पछी माल पेहिरी सुजेइ. ६३४५०. पार्श्वनाथ देशांतरी छंद व अंतरीक्ष छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १२४४६). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ देशांतरी छंद, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: सुवचन आपो शारदा मया; अंति: तवियो छंद देशांतरी, गाथा-४७. २.पे. नाम. अंतरिकपार्श्वनाथ छंद, पृ. ४अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, मा.गु., पद्य, आदि: सरस्वति मात माया करि; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४, गाथा-२ अपूर्ण
तक है.) ६३४५१. (+#) आगमसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १९३३, माघ शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ७४, गृही. आ. शांतिसागरसूरि (विजयगच्छ);
दत्त. श्राव. लेखराज श्रीमाली, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११, १३४२८-३४).
आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: हिवै भव्यजीवने; अंति: भविक ते लहिसी शिवपंथ. ६३४५२. (#) सिंदूरप्रकरण व श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १८४५, वैशाख शुक्ल, २, सोमवार, मध्यम, पृ. ६३-४(१२ से १५)=५९, कुल
पे. २, ले.स्थल. बिनातटनगर, प्रले. मु. केसरचंदजी ऋषि (गुरु मु. रुघनाथजी ऋषि); गुपि. मु. रुघनाथजी ऋषि (गुरु मु. हरखचंद ऋषि); मु. हरखचंद ऋषि; अन्य. मु. आशानंद वैरागी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल व टीका का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १६x४६-५०). १.पे. नाम. सिंदूरप्रकर सह बालावबोध व कथा, पृ. १आ-६३आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२,
श्लोक-१००, (पू.वि. श्लोक-६ अपूर्ण से ९ अपूर्ण तक नहीं है.) सिंदूरप्रकर-बालावबोध कथा, पा. राजशील, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: शारदाचरणयुग्ममतीतपाप; अंति: मयी मूर्खे
कृतकृपैः. २.पे. नाम. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, पृ. ६३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
श्लोक संग्रह जैनधार्मिक*, प्रा.,सं., पद्य, आदि: धर्मः कामगवीयदीय; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२ अपूर्ण तक है.) ६३४५३. (#) चतुःशरण प्रकीर्णक व इक्षुकारी संधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल
गयी है, जैदे., (२५.५४११, १२४३८). १. पे. नाम. चतुःशरण प्रकीर्णक, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण.
ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. २. पे. नाम. इक्षुकारसिद्ध चौपाई, पृ. ३अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४७, आदि: परम दयाल दयाकरु आसा; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-६, दोहा-३ अपूर्ण तक
६३४५४. (+#) योगशतक, कार्मण विधि व वैद्यक पद्धति आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३६-१(३३*)=३५, कुल
पे. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३०-३३). १. पे. नाम. योगशतक सह टीका, पृ. १अ-२४आ, संपूर्ण.
योगशतक, धन्वंतरी, सं., पद्य, आदि: कृष्णस्य तंत्रस्य गृ; अंति: षडेते रितवो मत, श्लोक-१११.
योगशतक-टीका, मु. पूर्णसेन, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्धमानं प्रणिपत; अंति: इदं वायुप्रशांति नये. २.पे. नाम. कार्मण विधि, पृ. २४आ-२८आ, संपूर्ण. ___ मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह , उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ततो देवी सरस्वती शुभ; अंति: न्हवरावइ कार्मण उतरइ. ३. पे. नाम. वैद्यक पद्धति, पृ. २८आ-३१अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: नाभेरथः प्रसृतयो; अंति: उडित्वेसंश्रिनापि हि, श्लोक-४१.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम. मूत्रपरीक्षा, पृ. ३१अ-३२अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिनाधी; अंति: ज्ञेयो विचक्षणैः, श्लोक-२३. ५. पे. नाम. मूत्रपरीक्षा, पृ. ३२अ-३४आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: पश्चात् रजनीयामे घटि; अंति: निरामे च ज्वरो भवेत, श्लोक-२९. ६.पे. नाम. कालज्ञान, पृ. ३४आ-३६आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
शंभूनाथ, सं., पद्य, आदि: कालज्ञानं कलायुक्तं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-५२ अपूर्ण तक है.) ६३४५५. (+) सज्झाय, चौपाई व गीत, संपूर्ण, वि. १८९२, श्रेष्ठ, पृ. ३१, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५,
१३४३७-४०). १.पे. नाम. अंजनासुंदरी चौपाई, पृ. १अ-३१अ, संपूर्ण, वि. १८९२, वैशाख शुक्ल, ३, गुरुवार, ले.स्थल. मूमासर,
प्रले. पं. गोधु, प्र.ले.पु. सामान्य. ग. भुवनकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १७०६, आदि: करतां सगली साधना; अंति: भुवनकीरति इण परि भणई, खंड-३,
गाथा-२५३, ग्रं. ७०७, (वि. ढाल ४३) २. पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. ३१अ-३१आ, संपूर्ण. ___ मु. हर्षमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: रमण आवे अतिभली आवती; अंति: हमे लेस्यां संजमभार, गाथा-११. ३. पे. नाम. अरणिकमुनि गीत, पृ. ३१आ, संपूर्ण..
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: विहरण वेला पांगुर्यउ; अंति: त्रिकरण सुद्ध प्रणाम, गाथा-८. ६३४५६. (+#) उपदेशमाला का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३३-१(१)=३२, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं
हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०, १३४३९-४५).
उपदेशमाला-बालावबोध, आ. सोमसुंदरसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १४८५, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३
__ अपूर्ण से १२८ अपूर्ण तक का बालावबोध है., वि. मूल गाथा का मात्र प्रतीक पाठ लिखा है.) ६३४५७. (#) रामकृष्ण चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३४-१(१)=३३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४४६). रामकृष्ण चौपाई, मु. लावण्यकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६७७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम एक, बीच व अंत
के पत्र नहीं हैं, खंड-१, ढाल-२, गाथा-८ अपूर्ण से खंड-६, ढाल-८, गाथा-७ अपूर्ण तक है व खंड-२, ढाल-१०,
गाथा-१३ अपूर्ण से ढाल-१२, गाथा-११ अपूर्ण तक नहीं है.) ६३४५८. (#) श्रीपालराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १००-६८(१ से १४,२३ से २८,३० से ३१,४८ से ५७,५९ से ६०,६५
से ६७,६९ से ९९)=३२, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ९४३०). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-),
(पू.वि. खंड-१, ढाल-८, गाथा-५ अपूर्ण से खंड-४, ढाल-११, गाथा २७ तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) ६३४५९. (#) भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध व कथा, अपूर्ण, वि. १८५२, पौष शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ३०-१(११)=२९,
ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. सदाचंद्र ऋषि (गुरु मु. चंद्रभांण ऋषि, पार्श्वचंद्रसूरिगच्छ); गुपि.मु. चंद्रभांण ऋषि (पार्श्वचंद्रसूरिगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १७४३३-३६). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४, (पूर्ण,
पू.वि. काव्य-१२ अल्पांश रूप में है., वि. मूलपाठ कहीं तो पूर्ण रूप से तो कहीं प्रतीकपाठ रूप में मिलता है.) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, ग. शुभवर्धन, मा.गु., गद्य, वि. १६वी, आदि: श्रीमदादिजिनं नत्वा; अंति: शुभवर्द्धनेन०
चिरम्, (पूर्ण, पू.वि. श्लोक-१२ से संबंधित कथा का कुछ अंश नहीं है., वि. प्रत्येक श्लोक का प्रतीक पाठ दिया गया
है.)
भक्तामर स्तोत्र-कथा*,मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमालवदेशमाहिं; अंति: लक्ष्मीनु विलास करै, कथा-२२, पूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६ ६३४६०. मुनिपति चरित्र, संपूर्ण, वि. १८२५, फाल्गुन कृष्ण, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३६, ले.स्थल. मेडतानगर, प्रले. मु. चंद ऋषि
(गुरु मु. राजसिंह); गुपि. मु. राजसिंह (गुरु मु. उदयचंद्र); मु. उदयचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (११६८) यादृशं पुस्तके दृष्टं, जैदे., (२६.५४११, १६x४५). मुनिपति चौपाई, मु. धर्ममंदिर, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: श्रीशंखेसर सुख करू; अंति: नवेय निधानोरे, खंड-४,
(वि. ढाल ६५) ६३४६१. हरिश्चंद्रराजा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २७-२(१,२४)=२५, पृ.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४११, १२x२४-२७). हरिश्चंद्रराजा चौपाई, मु. कनकसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६९७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-१ ढाल-१
गाथा-१० अपूर्ण से खंड-३ ढाल-१० गाथा-१० अपूर्ण तक है व ढाल-८ गाथा-१० अपूर्ण से ढाल-९ गाथा-६ अपूर्ण
तक नहीं है.) ६३४६२. (#) विमलमंत्रि रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०, १३४४२-४५). विमलमंत्री प्रबंध, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६८, आदि: आदिजिनवर आदिजिनवर; अंति: (-),
(पू.वि. खंड-९ प्रारंभ तक है.) ६३४६३. (+#) पंचमांग तपोविधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३-१६४३८-४६). योग विधि-खरतरगच्छीय, मु. शिवनिधान, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: हर्षसार गुरुचरणद्वय; अंति: कल्याणमस्तु सदा,
(वि. कोष्ठक सहित.) ६३४६४. (#) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४३-२२(१ से २१,२६)=२१, कुल पे. १५५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल
गयी है, जैदे., (२४४११, १८४५०-५४). १. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. २२अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुण सोभागी साहिबा; अंति: ज्ञानविमल०भावइं गाया, गाथा-५. २.पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. २२अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशीतल जिननु धरि; अंति: ज्ञानविमल० आवे ध्याय, गाथा-५. ३. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. २२अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशीतलजिन तणा चरण; अंति: ज्ञानविमलविस्तार रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २२अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीनतडी अवधारि हारे; अंति: ज्ञानविमल० शुद्धाचार, गाथा-५. ५. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २२अ-२२आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: एता लाभलीजीइं जिनभक; अंति: ज्ञानविमल०ए निधान छे, गाथा-५. ६. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २२आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मृदंग वजायो मांका; अंति: ज्ञानविमल० वरूं छु, गाथा-५. ७. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २२आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: करम कसाला माहि दिल; अंति: ज्ञानविमल० रे साहिबा, गाथा-५. ८. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २२आ, संपूर्ण. ___ आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: तारी मुद्राए मन मोह; अंति: ज्ञानविमल गुणखाणी रे, गाथा-५. ९. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २३अ, संपूर्ण.
___ आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसीमधरु रे मारा; अंति: ज्ञानविमल० जस मान, गाथा-५. १०. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २३अ, संपूर्ण..
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्राण मोकी नेमि हो; अंति: ज्ञानविमल० थई हो थई, गाथा-९.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११. पे. नाम. गिरनारमंडननेमिजिन स्तवन, पृ. २३आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन-गिरनारमंडन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नेमि निरंजन देवके; अंति: ज्ञानविमल.
कीजीये हो, गाथा-८. १२. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २३आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: तारि मुज तारि तारि; अंति: ज्ञानविमलादि गावें, गाथा-८. १३. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २३आ-२४अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमधर साहिबा; अंति: ज्ञानविमल. हवई थाय, गाथा-७. १४. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २४अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर साहिबा विनतडी; अंति: ज्ञान० जे बाह्य के, गाथा-५. १५. पे. नाम. भाभापार्श्व स्तवन, पृ. २४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-भाभा, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुकृत समीहित सुरलता; अंति: ज्ञानविमल.
सुपसाय रे, गाथा-९. १६. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २४अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुंदर सूरति तेरी जी; अंति: ज्ञानविमल०शिरनामी जी, गाथा-५. १७. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २४अ-२४आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवरने वंदना ए; अंति: ज्ञानविमल० प्रमाण तो, गाथा-५. १८. पे. नाम. शत्रुजयमंडन आदिजिन स्तवन, पृ. २४आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तव-शत्रुजयमंडन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: गिरि श्रीसिजो; अंति: ज्ञान प्रेम विशाल,
गाथा-५. १९. पे. नाम. पंचासरापार्श्वजिन स्तवन, पृ. २४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरा, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपंचासर पास महिमा; अंति:
ज्ञानविमल विलासथी जी, गाथा-५. २०. पे. नाम. नारंगपुरपार्श्वजिन स्तवन, पृ. २४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-नारंगपुरमंडन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नारंगपुरवर पास निहार; अंति: ज्ञान
मंगलमालो रे, गाथा-५. २१. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २४आ-२५अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: माहरा साहिबा हो राज; अंति: ज्ञानविमल० परम अनूप, गाथा-५. २२. पे. नाम. साधारणजिनआंगी स्तवन, पृ. २५अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अजब बनी छे आंगी; अंति: ज्ञानविमल०करो प्राणी, गाथा-८. २३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २५अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवननायक तुंही; अंति: ज्ञान०सहजानंद दीवाली, गाथा-८. २४. पे. नाम. राजीमति गीत, पृ. २५अ-२५आ, संपूर्ण. रथनेमिराजीमति गीत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: देवरिया मुनिवर छेडो; अंति: तव ज्ञानविमल
गुणमाला, गाथा-५. २५. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २५आ, संपूर्ण. __ आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पीउडा मदमतवाला झोला; अंति: ज्ञान० पडहो जिम वाजे,
गाथा-५. २६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २५आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वामादे नंदना हमारी; अंति: ज्ञानविमल० साचा जिन, गाथा-५. २७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २५आ, संपूर्ण.
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९१
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
पार्श्वजिन स्तव, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुकृत विधि, अंतिः ज्ञानविमल०ए सहु जपई, गाथा-६. २८. पे नाम, स्तंभनपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २५आ, संपूर्ण
पार्श्वजिन स्तवन- स्तंभन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः सदा आनंद नयन मेरे, अंति: ज्ञानविमल० लही नाव रे. गाथा- ६.
२९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २७अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः आज मनमंदिर आवस्य; अंति: ज्ञानविमल० जगदुपकार, गाथा-६.
३०. पे नाम, शांतिजिन स्तवन, पृ. २७अ संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: भगति करूं थिर होइ, अंति: ज्ञानविमल० मोहि जोई, गाथा- १०.
३१. पे नाम, जगवल्लभ पासजिन स्तवन, पृ. २७अ संपूर्ण
पार्श्वजिन स्तवन- जगवल्लभ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय श्रीगुणगणनिधि, अंति: ज्ञानविमल ० उदयविलास, गाथा ८.
३२. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २७अ २७आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभु तेरो मोहन है; अंति: ज्ञानविमल० को लटको, गाथा- ६.
३३. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २७आ, संपूर्ण
पार्श्वजिन गीत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुखसागरपास जेहना अंतिः श्रीजिन गाईओ जी, गाथा- ७. ३४. पे. नाम. साधारणजिन गीत, पृ. २७आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभु तेरी भक्ति सदा, अंतिः ज्ञानविमल० करण वडाई, गाथा-४.
३५. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २७आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: भलुं कीधुं रे मारा न; अंति: ज्ञानविमल० प्रगटे रे, गाथा-५.
३६. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन, पृ. २८अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पास संखेसर भेटीइ रे; अंति: ज्ञानविमलनाथ रे, गाथा-५.
३७. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन, पृ. २८अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी पास संखेसरो, अंति: ज्ञानविमल० परमानंद रे, गाथा-५.
३८. पे. नाम. भटेवापार्श्वजिन स्तवन, पृ. २८अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- भटेवा, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: भटेवा पासजी रे भेट; अंतिः ज्ञानविमल० वासो रे,
गाथा - ९.
३९. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्व स्तवन, पृ. २८आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु, पद्य, आदिः प्रणमुं पास चिंतामणी; अंतिः ज्ञानविमल ० जगमांहि, गाथा-७.
४०. पे नाम. चिंतामणिपार्थं स्तवन, पृ. २८आ, संपूर्ण
पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं पास चिंतामणी; अंति: ज्ञान० तेजथी रे लो, गाथा-८.
४१. पे. नाम. पुरुषादानीपार्क स्तवन, पृ. २८आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- पुरुषादानी, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः परम पुरुष तुं, अंतिः ज्ञानविमल० फल सवी होत, गाथा ५.
४२. पे नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. २८आ- २९अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वाटडी विलोकुं रे, अंतिः ज्ञानविमल० कल्याण, गाथा - ६.
४३. पे नाम ऋषभजिन स्तवन, पृ. २९अ संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: तुं त्रिभुवन सुखकार;
___ अंति: ज्ञानविमल० धरी उछाह, गाथा-५. ४४. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. २९अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: गिरिराज का परम जस; अंति: ज्ञान० पद पावना रे, गाथा-९. ४५. पे. नाम. पुरुषादानीपार्श्व स्तवन, पृ. २९अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पुरुषादानी, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहि., पद्य, आदि: दीनानाथ को दयारस; अंति: ज्ञान० शरण को
रे.गाथा-८. ४६. पे. नाम. भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. २९अ-२९आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: वीरा सुणो बाहुबलि; अंति: ज्ञानविमल०बलिहारी है, गाथा-६. ४७. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २९आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: गिरीराज तेरे आज दरिस; अंति: ज्ञानविमल० तुम नेही, गाथा-६. ४८. पे. नाम. सिद्धाचलजी स्तवन, पृ. २९आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: शुभ परिणाम वधारो तुम; अंति: ज्ञानविमल गुण खाणो,
गाथा-६. ४९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २९आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन गीत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो साहिबा मन की; अंति: ज्ञानविमल० भूपतिया, गाथा-६. ५०. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. २९आ-३०अ, संपूर्ण..
आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: विमलगिरि चले जाओरे; अंति: ज्ञानविमल० ध्याउरे, गाथा-५. ५१. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ३०अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सकल जिनराज दिन राज; अंति: ज्ञानविमल बजावइ, गाथा-७. ५२. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ३०अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मरुदेवी कहे भरतने हो; अंति: ज्ञान० परम प्रभाव, गाथा-७. ५३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन-औपदेशिक, पृ. ३०अ-३०आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु माहरो वांक; अंति: ज्ञानविमल० प्रतिपालो, गाथा-१०. ५४. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ३०आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकर साहिब शांतिजिन; अंति: ज्ञानविमल० संभारु, गाथा-७. ५५. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. ३०आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वारी जाउं विमलगिरिंद; अंति: ज्ञानविमल० गुणनो गेह, गाथा-६. ५६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३०आ-३१अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु पासजी तु; अंति: ज्ञानविमल हो स्वामि, गाथा-७. ५७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३१अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पूरि प्रभु पूरि; अंति: ज्ञान० भविक प्राणी, गाथा-६. ५८. पे. नाम. अंतरंगओढणी स्तव, पृ. ३१अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ओढणियां आपो प्रभु; अंति: ज्ञानविमल० साधइरे,
गाथा-५. ५९. पे. नाम. मुनिसुव्रतजिन स्तवन, पृ. ३१आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनना गुण गाउं; अंति: ज्ञानविमल० जनमारो रे, गाथा-७. ६०. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ३१आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने प्रत में पार्श्वजिन स्तव नाम दिया है.
आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: प्यारे प्रभु दीदार ह; अंति: भवजल पार उतारे हमारे, गाथा-५. ६१. पे. नाम. शाश्वताशाश्वताजिन चैत्यवंदन, पृ. ३१आ-३२अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मंगलकार एही सिद्; अंति: सहीए नमो अरिहंताणं, गाथा-१८. ६२. पे नाम, साधारणजिन स्तवन, पृ. ३२अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि धन आ बेला रे जिहां अंतिः ज्ञानविमल० मोटो मंत, गाथा ५. ६३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३२अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि जोयो रे भाई करमनो, अंति: ज्ञान० स्युह लीइं, गाथा-४. ६४. पे नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ३२अ-३२आ, संपूर्ण.
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आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि मेरे दिल वसीया साहिब, अंतिः लीणुं मन गुण धाम, गाथा ५. ६५. पे. नाम. मनमोहनपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३२आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- मनमोहन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मनमोहन पासजी भवि; अंतिः ज्ञानविमल० परमानंद, गाथा-७.
६६. पे नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. ३२आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नेमिजिनंद सोहावे, अंतिः ज्ञानविमल० कोउ न पावइ, गाथा-५.
६७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३२आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि पास परमप्रभु महिम; अंतिः ज्ञानविमल० दुसमन कोइ गाथा १०. ६८. पे. नाम. साधारणजिन गीत, पृ. ३२आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः आय बसे मनमांहि, अंति: ज्ञानविमल० होइ जाहिं, कडी-३. ६९. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. ३२-३३अ, संपूर्ण.
गिरनारशत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारो सोरठ देश देखाओ, अंति: ज्ञानविमल० सिर धरीया, गाधा-७.
७०. पे. नाम. साधारणजिन जन्मकल्याणक स्तवन, पृ. ३३अ, संपूर्ण.
साधारणजिन स्तवन- जन्मकल्याणक, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मे जिनमुख देखण जाउं; अंतिः ज्ञानविमल० ध्याउं रे, गाथा- ६.
७१. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ३३अ, संपूर्ण.
,
आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अरज सुणो जिनराज मेरे अंति: ज्ञानविमल० गलि आय, गाथा- १०. ७२. पे नाम, साधारणजिन स्तवन, पृ. ३३अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं, पद्य, आदि: जिनराज जुहारण जास्या, अंति: ज्ञानविमल० सरास्याजी, गाथा-३. ७३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ३३२-३३आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन- शत्रुंजयतीर्थमंडन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि; कोई आण मिलावे ऋषभ, अंतिः ज्ञान० शिवगति पावे, गाथा- ९.
९३
७४. पे नाम, साधारणजिन स्तवन, पृ. ३३आ, संपूर्ण
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि कही जो कहने की होड़, अंति: ज्ञान० निजर स्युं जोय, गाथा- ७. ७५. पे नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ३३आ, संपूर्ण
आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: आतम पाया धरम वसाया; अंति: ज्ञानविमल०सदा सुखदाई, गाथा-५.
७६. पे नाम. साधारण जिन स्तवन, पृ. ३३आ, संपूर्ण
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८बी, आदि: जाणे रे प्रभु वाता; अंति: ज्ञानविमल० शोभा तिनकी, गाथा-४, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथा को एक गाथा गिना है.)
७७. पे नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ३३आ, संपूर्ण
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आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: कोहिकुं करत विगारी, अंति: ज्ञानविमल० पखालो रे, गाथा-१०. ७८. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ३३-३४अ संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभु की भक्ति विना; अंति: ज्ञान० विना न कछु, गाथा-६. ७९. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ३४अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गिरनार साहिब सामने; अंति: ज्ञानविमल० दूरे जावे, गाथा-५. ८०. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ३४अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सिद्धचक्र आराधीइं रे; अंति: ज्ञानविमल० फले रे लो, गाथा-५. ८१. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ३४अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीअरिहंत अवनीतले; अंति: ज्ञानविमल०मनोहारिरे, गाथा-६. ८२. पे. नाम. साधारणजिन गीत, पृ. ३४अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: एसो सदागम खीर जलधि; अंति: ज्ञान० आतम अंतर को, गाथा-३. ८३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ३४अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: एसो अनोपम साहिब मेरो; अंति: ज्ञान० नरेसर कोकी को, गाथा-७. ८४. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. ३४अ-३४आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गिरिराज कुं सदा मेरी: अंति:
ज्ञानविमल विचारनारे, गाथा-५, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथाओं को एक गाथा गिना है.) ८५. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ३४आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गाओ गाओ रे जिणंद; अंति: ज्ञानविमल लहीइंरे, गाथा-६. ८६. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ३४आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रभुजी मुजने चित्त; अंति: ज्ञान० भाव न कोय रे, गाथा-६. ८७. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ३४आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: विनती कैसे करुं रे; अंति: ज्ञान जलराशि तरूं रे, गाथा-७. ८८. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ३४आ-३५अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आज माहरा प्रभुजी; अंति: ज्ञानविमल० दिल आवो, गाथा-५. ८९. पे. नाम. वीर स्तव, पृ. ३५अ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रभु विण वाणी कोण; अंति:
ज्ञानविमल आवेरे आवे, गाथा-५. ९०. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ३५अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: शांति जिनेसर साहिबा; अंति: जाणीइ ज्ञानविमल परखो, गाथा-७. ९१. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. ३५अ-३५आ, संपूर्ण..
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: ऊंचो गढ शेत्तुंज तणो; अंति: ज्ञानविमल०परमाणंद रे, गाथा-५. ९२. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ३५आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अब मेरे नरभव सफल भये; अंति: ज्ञानविमलरस अधिक पए,
गाथा-४. ९३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ३५आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: समता राणीना वालिम छो; अंति: ज्ञान० दुसमन नसिया, गाथा-९. ९४. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ३५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: एहीज उत्तम काम बीजु; अंति:
ज्ञानविमल० निधि दाम, गाथा-६. ९५. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ३५आ-३६अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मेरो मन अलि लगि; अंति: ज्ञानविमल० भाव लह्यो, गाथा-६. ९६. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ३६अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि; मेरो मन हरखे प्रभुः अंतिः ज्ञान० कमला वरसे जी, गाथा-५. ९७. पे. नाम. पुरुषादाणीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३६अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, आ. ज्ञानविमलसूरि म.मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि आवो अम्हचे चित्त अंति ज्ञानविमल० लहो भगवान, गाथा-५.
९८. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३६अ, संपूर्ण, पे. वि. शत्रुंजय गिरनार आदि तीर्थों के नायकों का वर्णन मिलता है. पंचतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुडिं, पद्य वि. १८वी, आदिः सुणो अब जइए रे, अंतिः ज्ञान० महिला र हार, गाथा ६.
"
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९९. पे नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ३६अ, संपूर्ण
आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि लग गई अँखिया मेरी रे, अंति: ज्ञान० नतिया सारी रे, गाधा-८. १००. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ३६अ - ३६आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: छपरीया तुं गिरनार, अंति: ज्ञानविमल० सुख लही रे, गाथा- १०. १०१. पे नाम, साधारणजिन स्तवन, पृ. ३६आ, संपूर्ण
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु, पद्य, वि. १८वी, आदि: तेरी सूरति मोहि अंतिः ज्ञानविमल० नरनारी जी, गाथा ६. १०२. पे नाम साधारणजिन स्तवन, पृ. ३६आ, संपूर्ण
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: दरिसण मुझने आपो रे; अंति: ज्ञान० भावे धावो रे, गाथा-५. १०३. पे. नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. ३६आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: नेमिजिणेसर नायक माहर, अंतिः धन्य शिवादेवी मल्हार,
गाथा - १०.
१०४. पे नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. ३६-३७अ संपूर्ण
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: छोड चल्यो यदुवंशी, अंति: ज्ञानविमल० होय मिलेसी, गाथा-९, (वि. प्रतिलेखक ने छठी गाथा नहीं लिखी है.)
१०५. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ३७अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: लीनो रे मन दुंदुभि, अंति: ज्ञानविमल० सिर धर के, गाधा-६. १०६. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३७अ संपूर्ण
आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अब मनु हरखत सांई, अंति: ज्ञान० जिनपद पाई रे, गाथा-५. १०७. पे नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. ३७अ संपूर्ण.
3
आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं, पद्य, आदि रहो रहो नेमजी दो अंतिः ज्ञान० मेरी आंखडीया, गाथा-७,
,
१०८. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ३७अ - ३७आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु, पद्य, वि. १८वी, आदि: माहरा भव भवना भय जाय, अंतिः ज्ञानविमल घरि आणी रे,
गाथा - ५.
१०९. पे नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. ३७आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि हां जीअ लेबुं जी रे, अंतिः ज्ञानविमल गुण गेहरे, गाथा ५. ११०. पे. नाम. नेमिजिन गीत, पृ. ३७आ, संपूर्ण.
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९५
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: साहिबाजी मांसे बोलो; अंति: ज्ञानविमल० को गोलो रे, गाथा-४. १११. पे. नाम. अनागमन अममजिन स्तव, पृ. ३७आ, संपूर्ण.
अममजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अममजिनेसर बारमा हो; अंति: ज्ञानविमल० अभिराम गाथा - ९.
११२. पे नाम, अनागतचौवीसीइं प्रथम पद्मनाभजिन स्तवन, पृ. ३७आ, संपूर्ण.
पद्मनाभजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: माहरा मनडां मांहि अंतिः ज्ञानविमल० सुख वृंदा, गाथा- १०.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
११३. पे नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. ३७-३८अ, संपूर्ण
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु, पद्य, वि. १८वी, आदि: निसनेहा न थईए हो; अंतिः ज्ञानविमल० भवनो पार, गाथा-५. ११४. पे. नाम. अनागतपेढालजिन स्तवन, पृ. ३८ अ, संपूर्ण.
पेढालजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पच, वि. १८वी, आदि: प्रह समे प्रणमं अंतिः ज्ञानविमल० परिवार रे,
गाथा ८.
११५. पे. नाम, साधारणजिन स्तवन, पृ. ३८अ संपूर्ण,
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्म, वि. १८वी, आदि: जिनदरिसनधी दुख जावे, अंतिः ज्ञानविमल० चढावे जी, गाथा- ९. ११६. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ३८अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु, पद्य, वि. १८वी, आदि; साहिब सारा प्यारा, अंतिः ज्ञानविमल० न पाईरे, गाथा ८. ११७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३८अ - ३८आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे वामादेवीनो; अंति: ज्ञानविमल० निस्तारुजो, गाथा-७. १९८. पे. नाम. सिद्धाचल स्तव, पृ. ३८आ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चढवुं सेत्तुंजे नग्ग; अंतिः ज्ञानविमल०
झग्गामग्ग, गाथा - ९.
११९. पे. नाम. साधारणजिन स्तव, पृ. ३८आ, संपूर्ण.
साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: तोरे चरणा रे निरखत; अंति: ज्ञानविमल० दूर टले, गाथा- ८.
१२०. पे. नाम. साधारणजिन गीत, पृ. ३८आ, संपूर्ण.
साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जोगी सोही जोग जगावे; अंतिः ज्ञानविमल० न समावे, गाथा-३.
१२९. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ३८आ, संपूर्ण
आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदिः समवशरण सुख देत है; अंतिः ज्ञानविमल० बहु हेत है, गाथा- ७. १२२. पे. नाम. अनंतजिन स्तवन, पृ. ३८-३९अ. संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु, पद्य, वि. १८वी, आदि अनंत जिनराजना चरणनी अंतिः ज्ञानविमल० दास धारो, गाथा-५. १२३. पे, नाम, साधारणजिन स्तवन, पृ. ३९अ, संपूर्ण
साधारणजिन स्तव, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि : देव नमो भवि देव नमो; अंति: ज्ञानविमल० नेह नमो, गाथा-५.
१२४. पे. नाम. संभवजिन स्तव, पृ. ३९अ, संपूर्ण.
संभवजिन गीत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: लीनो रे मन संभवजिन; अंति: ज्ञानविमल० करी गणस्ये, गाथा-४.
१२५. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ३९अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जाण्यो रे मै मन; अंति: ज्ञानविमल० सभाव समाधि, गाथा - १०. १२६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३९अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रभु के आगे गुमान, अंति: ज्ञान० पामर परमाणंद, गाथा-५. १२७. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ३९आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: शरणां वे मेरे दिल मे; अंति: ज्ञान० पार उतरणा बे, गाथा-६. १२८. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ३९आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु, पद्म, वि. १८वी, आदिः शयणां रे श्रीशांति, अंतिः ज्ञानविमल० हितकारी, गाथा- ६. १२९. पे. नाम. साधारणजिन स्तव, पृ. ३९आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु, पद्य, वि. १८वी, आदि: मोह नृपतिने जीति, अंति: ज्ञान० श्रीजिनचंद रे, गाधा-५.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६ १३०. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ३९आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मिली जायो रे साहिबा; अंति: ज्ञानविमल० चहि नमे, गाथा-६. १३१. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ३९आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीयादवकुल नभचंदा; अंति: ज्ञान० बलिहारी रे, गाथा-८. १३२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४०अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-सामल, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आज सुखी सुविहाणडा हे; अंति: सीस
कहे करजोडि, गाथा-७. १३३. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. ४०अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: शीतल जिनवर साहिब; अंति: नय० छइ दाम तुम्हारइ, गाथा-७. १३४. पे. नाम. भाभापार्श्वजिन स्तव, पृ. ४०अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-भाभा, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीभाभो पास जुहारि; अंति: ज्ञानविमल
गुण गाय, गाथा-५. १३५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४०अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-भाभा, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: भले भावे भाभा पासनी; अंति:
ज्ञानविमल नंदासना, गाथा-४. १३६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४०आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हमारु मन लागुं; अंति: ज्ञान सुखकर सयण सहाय, गाथा-६. १३७. पे. नाम. भाभापार्श्वजिन स्तव, पृ. ४०आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-भाभा, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: भले भावे भाभो भेटीइं; अंति:
ज्ञानविमल परि लूटीई, गाथा-६. १३८. पे. नाम. भाभापार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४०आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-भाभा, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आज सखी मनमोहनो मोरो; अंति:
ज्ञान० तुम्ह तोलई, गाथा-७. १३९. पे. नाम. भाभापार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४०आ-४१अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-भाभा, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुमति करण कुमति हरण; अंति:
ज्ञानविमल० नूरा री, गाथा-४. १४०. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ४१अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुकृत कमाई फल पति; अंति: ज्ञानविमल निधि धाम, गाथा-५. १४१. पे. नाम. नेमिजिन गीत, पृ. ४१अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: नेमि मोहि लागत प्यार; अंति: ज्ञान आतम भाव विचारो, गाथा-४. १४२. पे. नाम. साधारणजिन स्तव, पृ. ४१अ, संपूर्ण. साधारणजिन गीत, आ. ज्ञानविमलसूरि, रा., पद्य, वि. १८वी, आदि: म्हे छांधणी याता; अंति: ज्ञान० प्रभुताई जामी,
गाथा-५. १४३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ४१अ-४१आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मुगति को मारग मस्त; अंति: ज्ञान० निधि वस्तु है, गाथा-८. १४४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तव, पृ. ४१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरा, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पास पंचासरा प्रगट; अंति:
ज्ञानविमल सकल साधइ, गाथा-९.। १४५. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ४१आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: भवतारणी हितकारणी; अंति: ज्ञान० वधाउं ने रे, गाथा-८.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
१४६. पे, नाम, साधारणजिन स्तवन, पृ. ४२अ संपूर्ण
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सकल कुसल वन सेचन, अंति: ज्ञानविमल० अति घणी रे, गाथा- ९. १४७. पे. नाम. आध्यात्मिक स्तवन, पृ. ४२अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं, पद्य, आदिः परमातम परमानंदरूप; अंतिः ञानविमल० शुभ मना, गाथा ६.
१४८. पे. नाम. पंचासरापार्श्व स्तवन, पृ. ४२अ - ४२आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरा, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपंचासर पासजिनेसर, अंति: ज्ञानविमल० सुध सुगाल, गाथा ५.
१४९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तव, पृ. ४२आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- पुरुषादाणी, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं, पद्य, वि. १८वी, आदि: बामानंद वसंत युं अंतिः ज्ञानविमल० भए रंगरेलि गाथा ८.
१५०. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ४२आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि मेरे दिल मांहि वसो, अंति: ज्ञानविमलसूरिंदा, गाथा ५. १५१. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ४२आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मोरा साहिब हो; अंति: ज्ञानविमल गुण भाविये, गाथा- ६. १५२. पे नाम, साधारणजिन स्तवन, पृ. ४३अ, संपूर्ण,
आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: जिन तुम्ह दरिसन सुमत; अंति: ज्ञानविमल०समकित पसरि,
गाथा-४.
१५३. पे नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ४३अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन- शत्रुंजयतीर्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य वि. १८वी, आदि दूरि रे माहरू रूडां; अति ज्ञानविमल० दिणंदारे, गाथा १०.
१५४. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. ४३अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः धर्मजिणेसर धर्मधुरं अंतिः ज्ञानविमल० पद लीनसो, गाथा ८. १५५. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ४३ अ-४३आ, संपूर्ण
आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुखदाई हो श्रीशांति, अंति: ज्ञान० प्रभुता घणी, गाथा- ९. ६३४६५. कर्पूरप्रकर सह बालावबोध व कथा, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २७, जैवे. (२६.५४११, १३४४७-५६)
""
कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., पद्य, आदि: कर्पूरप्रकरः शमामृत, अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
श्लोक-२६ तक लिखा है.)
कर्पूरप्रकर- बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि: (१) पार्श्वश्रिये सोस्तु, (२) इहां शास्त्रनइ प्रार, अंति: (-), अपूर्ण. पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.
कर्पूरप्रकर-कथा*, मा.गु., गद्य, आदिः आदनदेसि आदनपुरनगरि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गजसुकुमाल कथा तक लिखा है.)
६३४६६. (+४) कयवन्ना चौपाई, संपूर्ण, वि. १८३४, कार्तिक कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. १९, ले. स्थल. लोटोती, प्रले. मु. श्रीचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैये. (२६.५x११, १५x४४).
कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदा, अंतिः जयरंग० मन उलिस्बेजी,
ढाल- ३१, गाथा-५५५.
1
६३४६७. (४) परदेशीराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, प्र. २०- ३ (१ से २,१६) १७, प्र. वि. पत्रांक- ११ से २० अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखित है. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२६४११, १५४३१).
""
प्रदेशीराजा रास *, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., ढाल ११, गाथा-४अपूर्ण से साधु
द्वारा प्रदेशी राजा को संयम हेतु प्रतिबोध देने के प्रसंग अपूर्ण तक है व बीच के पाठांश नहीं हैं.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
९९
६३४६८. (४) नवकारमंत्र प्रभाव कथा, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २३-२(२ से ३ ) = २१, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
जैदे., (२५X११, ११X३१).
नमस्कार महामंत्र- कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं अरिहंत अंति: (-). (पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं, छठी कथा अपूर्ण है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.)
६३४६९. (*) शालिभद्र चौपाई, संपूर्ण, वि. १७५५, कार्तिक कृष्ण, ११, बुधवार, मध्यम, पृ. २५, ले. स्थल, अलवरगढ, प्र. मु. सावलदास ऋषि (गुरु मु. कर्मचंद ऋषि, विजयगच्छ); गुपि मु. कर्मचंद ऋषि (गुरु मु. आणंद ऋषि, विजयगच्छ); मु. आणंद ऋषि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., ( २६ १०.५, १४X३०-३३).
शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: शासननायक समरीयह, अंति: बंछित फल लहिस्यै
जी, ढाल - २९, गाथा- ५०७.
६३४७०. (+#) द्रव्यप्रकाश, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २७, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५X११, ११X३९).
द्रव्यप्रकाश, ग. देवचंद्र, पुहिं., पद्य, बि. १८वी, आदि: अज अनादि अक्षयगुणी, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, दोहा १५१ अपूर्ण तक लिखा है.)
६३४७२. (४) नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९बी, जीर्ण, पृ. २२, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. अक्षर फीके us गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०.५, १४४४२).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा, अंति: (-), (पू.वि. गाथा - ५१ तक है.)
नवतत्त्व प्रकरण- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जिनमती जीवानई, अंतिः (-).
६३४०३. (+) नवतत्त्व बोल, संपूर्ण वि. १९०८, आषाढ़ कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. १९, ले. स्थल, कालवड, प्रले. जादवजी प्रागजी खत्री; अन्य. सा. माणकचाई महासती सा. कसलीबाई माहासती (गुरु सा. माणकचाई महासती); सा. गंगाबाई, सा. कस्तुरबाई, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, वे. (२६४१०.५, १६-१९x३३-३६).
""
नवतत्त्व प्रकरण- बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १ जीवतत्त्व २ अजीव अंति होइ ते मोक्ष जाइ.
"
६३४०४. (+) गुणठाणा द्वार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २१. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. मूल कृति पत्रांक- २ से प्रारंभ हुई है, पत्रांक- १ पर पत्रांक-२ का अवशिष्ट दिया गया है., संशोधित., दे., ( २६ ११, १५X४६).
गुणस्थानक द्वार, मा.गु, गद्य, आदि: नाम१ लक्षण गुण३ ठी४ अंति: (-) (पू. वि. द्वार- ९७ अपूर्ण तक है.) ६३४७५. (+) देवराजवछराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६X१०, १३x४५-५० ).
देवराजवच्छराज चौपाई, मा.गु., पद्य, आदिः परमोदय कारण पवर, अंति: (-), (पू.वि. ढाल - २६, गाथा १२ तक है.) ६३४७६. (+) आदिजिन स्तवन सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २५, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैवे. (२७४११ ९४३१-३५).
"
आदिजिन स्तवन- देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित, ग. विजयतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलं पणमीय देव अंतिः विजयतिलय निरंजणो, गाथा २१.
आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: हुं पहिलु धुरि, अंति: तिलक उपाध्याय जाणिवा.
६३४७७. (+#) अष्टाह्निका व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९, प्र. वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैवे. (२६११, ८-११४२८-३५).
"
अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: शांतीशं शांतिकर्त्ता, अंति: पद्यबंध
विलोक्य तत्.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६३४७८. (#) सुदर्शनसेठ कवित्त वधर्मलाभमहिमा श्लोक, संपूर्ण, वि. १८८१, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, शनिवार, मध्यम, पृ. १४, कुल
पे. २, ले.स्थल. खंडप, प्रले. मु. किसनचंद ऋषि (गुरु मु. दोलतराम ऋषि); गुपि.मु. दोलतराम ऋषि (गुरु मु. अणंदराम ऋषि); मु. अणंदराम ऋषि (गुरु मु. जीवराम ऋषि); मु. जीवराम ऋषि; पठ. मु. गुमानसिंह ऋषि (गुरु मु. किसनचंद ऋषि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४४६). १.पे. नाम. सुदर्शनशेठ रास, पृ. १अ-१४आ, संपूर्ण.
मु. दीपचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: वंदु श्रीजिनवीर धीर; अंति: धन धन श्रीरुपऋष, गाथा-१२५. २. पे. नाम. धर्मलाभमहिमा व्याख्यान, पृ. १४आ, संपूर्ण.
औपदेशिक व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६३४७९. (+#) चातुर्मासिक व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १५४४७).
चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: सामाइकावश्यक पौषधानि; अंति: दुक्कडं देवै. ६३४८०. सम्यक्त्वद्वादशव्रत आलापक व औपदेशिक गाथासंग्रह, संपूर्ण, वि. १६७४, आषाढ़ कृष्ण, १३, रविवार, मध्यम,
पृ. १२, कुल पे. २, ले.स्थल. रायधनपुर, जैदे., (२५.५४११, १४४३७-४०). १.पे. नाम. सम्यक्त्वादिद्वादशव्रत आलापक, पृ. १अ-१२अ, संपूर्ण.
सम्यक्त्वादिद्वादशव्रत आलापक संग्रह, प्रा.,सं., गद्य, आदि: अहन्नं भंते तुम्हाणं; अंति: सत्तीए तवो कायव्वो. २. पे. नाम. औपदेशिकगाथा संग्रह, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण.
जैनगाथा संग्रह प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अह्म हईडूं दाडिम कली; अंति: अलजु अतिहि करंति, गाथा-२. ६३४८१. दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६-४(१ से २,५,१०)=१२, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४११, १६४३६-४०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-४ अपूर्ण से
अध्ययन-९, उद्देश-३, गाथा-८ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) ६३४८३. (#) चतुर्मासिक व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८५२, आषाढ़ कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. १९, प्रले. मु. पुण्यरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. चारों ओर सुशोभन दिया गया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११,१३४३३-३७).
चातुर्मासिक व्याख्यान, मा.गु., प+ग., आदि: प्रणम्य परमानंद; अंति: पूरो थयो वखाण. ६३४८४. (#) हंसबच्छ कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६, पठ.सा. सिद्धलछ; अन्य. श्रावि. महियादे मोहर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १५४४६-४९). वच्छराजहंसराज चतुष्पदी, असाइत नायक, मा.गु., पद्य, वि. १४१७, आदि: अमरावई समाण; अंति: आसाइत
अकल्प्यां फलई, खंड-४, गाथा-४३७. ६३४८५. (+#) अल्पबहुत्व विचार बालावबोधवार्तारूप, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १६४५३-५६). अल्पबहुत्व विचार, आ. सोमसुंदरसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (१)वीरं गुरूंश्च वंदित्, (२)१पृथ्वी २अप् ३तेउ; अंति:
अल्पबहुत्व विचारिउ. ६३४८६. (#) पुरंदरकुमार रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५. १२४३०). पुरंदरकुमार रास, वा. मालदेव, मा.गु., पद्य, आदि: वरदाई श्रुतदेवता; अंति: कहे मालदेव आणंद, ढाल-१२,
गाथा-३९३. ६३४८७. चंद्रलेहा रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४९).
चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सरसति भगति नमी करी; अंति: त्रिभुवनपति हवे तेह,
ढाल-२९, गाथा-६१७.
1०).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
१०१ ६३४८८. (+) कल्पसूत्र व्याख्यान-सामाचारी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे.,
(२५.५४११, १४४३९-४४).
___ कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६३४८९. (+#) जंभवती चोपई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४३२-३५). जंबूवती चौपाई, मु. सूरसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पहिली ढाल सुहामणी; अंति: सूरसागर०अविचल पाट तो,
ढाल-१३. ६३४९०. (+#) सुरपतिराजर्षि चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३, ले.स्थल. सत्यपुर, प्रले. ग. सुमतिचंद्र (गुरु ग. क्षमाचंद्र,
अचलगच्छ); गुपि.ग. क्षमाचंद्र (गुरु ग. पुण्यचंद्र, अचलगच्छ); ग. पुण्यचंद्र (गुरु आ. धर्ममूर्तिसूरि, अचलगच्छ); आ. धर्ममूर्तिसूरि (अचलगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १५४४१-४५).
सुरपतिराजा रास-दानधर्मे, मु. दामोदर, मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: प्रणमुंस्वामि; अंति: रिद्धि वृद्धि कल्याण,
गाथा-३६१. ६३४९१. (+) पद व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९६७, कार्तिक शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. १७, कुल पे. ४६, ले.स्थल. चितोडगढ,
प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., दे., (२६४१०.५, १४-२१४२६-४६). १. पे. नाम. जीवदया पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-जीवदया, ऋ. केवल, पुहिं., पद्य, वि. १९५५, आदि: (१)दया जगत में है अति, (२)धर्मरुचिने दयाके;
अंति: केवल रीष करी उच्चारे, गाथा-११. २. पे. नाम. नेमिजिनवंदन सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण.
मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: सुण सुण रे जिनवरजी; अंति: हीरालाल० धरने गायो, गाथा-१३. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
मु. हीरालाल, पुहि., पद्य, आदि: ललचे मती नार कुमतकार; अंति: हीरालाल कुमती नारी, गाथा-६. ४. पे. नाम. जिनदर्शन पद, पृ. २आ, संपूर्ण.
मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: दरसण करस्या जी माराज; अंति: हीरालाल० मन सेती जी, गाथा-७. ५. पे. नाम. हुकमीचंदजी दुढालिया, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण, वि. १९६७, आश्विन शुक्ल, ५.
मु. हीरालाल, पुहि., पद्य, आदि: बृद्धमात्र बृद्धिकरन; अंति: हीरालाल धरी अमी लाख, ढाल-२. ६. पे. नाम. शिवलाल स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण.
मु. हीरालाल, पुहि., पद्य, वि. १९३८, आदि: आज पूजजी का दर्शन; अंति: हीरालाल आपके आया, गाथा-७. ७. पे. नाम. शिवलाल स्तुति, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण.
मु. हीरालाल, पुहि., पद्य, वि. १९४४, आदि: पूजजी का दर्शन की; अंति: हीरालाल हित विचारी, गाथा-७. ८. पे. नाम. शिवलाल स्तुति, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
मु. हीरालाल, पुहि., पद्य, आदि: करले पूज चरण का; अंति: हीरालाल दिन चढते वान, गाथा-९. ९. पे. नाम. शिवलाल स्तुति, पृ. ५आ, संपूर्ण.
मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, आदि: पूजजी आया रतनपुरी; अंति: हीरालाल पावा लागसूजी, गाथा-८. १०. पे. नाम. हुकमीचंद महाराज गीत, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.. हुकमीचंद आदि गुरु गीत, मु. हीरालाल, रा., पद्य, आदि: इण भरतखंड मे तरणतारण; अंति: हीरालाल मोष की
पाजे, गाथा-६. ११. पे. नाम. चौथमलजी स्तुति, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.
चोथमलजी स्तुति, मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: पूज्य श्रीचौथमलजी; अंति: हीरालाल. मुगती मगसीस, गाथा-४. १२. पे. नाम. उदयचंदगुरु स्तुति, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
मु. हीरालाल, पुहिं, पद्य, आदि पूज उदेचंदजी को सरणो; अंतिः हीरालाल का गरजी रे, गाथा-५.
"
१३. पे नाम, औपदेशिक पद, पृ. ७अ, संपूर्ण.
मु. चोथमल ऋषि, पुहिं, पद्य, आदि: अब लगा खलक मोय खारा, अंतिः चोथमल० होय संसारा, गाथा- ७.
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१४. पे नाम, पनरेतिथि का वर्णन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण
१५ तिथि सज्झाव, मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: पनरे तिथि का करु मे; अंति: हीरालाल० महिमा गाई रे, पव-४. १५. पे. नाम नशीयत गजल, पृ. ८अ संपूर्ण.
औपदेशिक गजल-नशीयत, मु. हीरालाल, उ. पुहिं., पद्य, आदिः मुरशद की नशीवत को अंतिः हीरालाल बताता है, गाथा-७.
१६. पे नाम. हीदायत गजल, पृ. ८अ संपूर्ण.
औपदेशिक गजल - हिदायत, मु. हीरालाल, उ. पुहिं, पद्य, आदि आलिम से मालूम होना, अंति: हीरालाल० में मीया, गाथा-५.
१७. पे. नाम. तकवीर की गजल, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण
औपदेशिक पद - तकवीर, पुहिं., पद्य, वि. १९६४, आदि: लीखते सोइ सरी पूछी, अंति: हीरालाल० साल में गाया,
गाथा-४.
१८. पे. नाम. दगा के फल की गजल, पृ. ८आ, संपूर्ण.
औपदेशिक गजल - तकदीर, मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: अपनी अपनी तगदीर के; अंति: बडे तकवीर हीरालाल, गाथा- ६.
१९. पे. नाम. हितशिक्षा गजल, पृ. ९अ, संपूर्ण.
औपदेशिक गजल, मु. हीरालाल, पुहिं, पद्य, आदि; अब ज्ञान का दरपण देख; अंति हीरालाल जगत से तरे, गाथा ६.
२०. पे. नाम. औपदेशिक गजल, पृ. ९अ, संपूर्ण.
औपदेशिक गजल-अहिंसापालन, मु. हीरालाल, पुहिं, पद्य, आदि: दयाधार हिंसाटार वचन अंतिः हीरालाल० जन्नत को वसा, गाथा- ७.
२१. पे. नाम. झवेरलालजी गुण स्तुति, पृ. ९अ - ९आ, संपूर्ण.
झवेरलालगुण स्तुति, मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: संत जगत में केहना; अंति: हीरालाल० मारग की एना, गाथा - ८. २२. पे. नाम. औपदेशिक गजल, पृ. ९आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद, मु. हीरालाल, पुहिं, पद्य, आदि: माया मत कर तु मेरी, अंति: हीरालाल० हुई छे तेरी, गाथा- ८. २३. पे नाम, जीवदया पद पृ. १०अ, संपूर्ण,
औपदेशिक पद, मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: माइ मारो प्राण बचायो; अंति: हीरालाल० धर्म बताओ, गाथा- ९. २४. पे. नाम औपदेशिक पद दया, पृ. १०अ संपूर्ण.
मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: दया विन जनम गयो; अंति: हीरालाल० जीव तीरता, गाथा-५.
२५. पे. नाम. औपदेशिक पद - कर्मगति, पृ. १०अ, संपूर्ण.
मु. हीरालाल, पुहिं, पद्य, आदि क्या केणा कुछ करमगति; अंतिः हीरालाल० भागो मती रे, गाथा- ७.
२६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-माननिषेध, पृ. १०आ, संपूर्ण.
मु. हीरालाल, मा.गु, पद्य, आदि मानीडा मत कर मान, अंतिः हीरालाल० मुगति महेल, गाथा- ७. २७. पे. नाम. औपदेशिक पद - संयम पालन, पृ. १० आ, संपूर्ण.
मु. हीरालाल, मा.गु, पद्य, आदि: चतुर नर देखो ग्यान, अंतिः हीरालाल० संजम को साथ, गाथा- ६. २८. पे नाम, चोती अतिशय स्तवन, पृ. १०आ, संपूर्ण.
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३४ अतिशय पद, पुहिं., पद्य, आदि: अचल कीरत जग जस धरण, अंति: साधता मीटे दुख जंजाल, गाथा-२. २९. पे. नाम. कृष्णमहाराजा स्तुति, पृ. ११अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
१०३ मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: मात जसोदा दइरे, अंति: जल जगत में पसरीयो, गाथा-११. ३०. पे. नाम. धन्नाकाकंदी सज्झाय, पृ. ११अ, संपूर्ण.
मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, वि. १९३२, आदि: काकंदी नगरीसुंनीसर; अंति: हीरालाल सुदी सोमवार, गाथा-१२. ३१. पे. नाम. औपदेशिक बारमासा, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण.
मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: चेत मास में चेत चिता; अंति: हीरालाल सुणजो लोका, गाथा-१४. ३२. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १२अ, संपूर्ण.
मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामी आज्यो मंदरीये; अंति: हीरालाल० थापसुंजी, गाथा-११. ३३. पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण.
मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, आदि: आलीजा म्हारी विनंती; अंति: हीरालाल संजम नेम, गाथा-७. ३४. पे. नाम. धन्नाशालीभद्र सज्झाय, पृ. १३अ, संपूर्ण. धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, आदि: अहो माहरा प्राण का; अंति: हीरालाल जोडजो करी,
गाथा-८. ३५. पे. नाम. गुरुगुण स्तुति, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण.
मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, आदि: जगतगुरु तारो तारो रे; अंति: हीरालाल मानो दीनदयाल, गाथा-६. ३६. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण.
मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, आदि: मगधाधिप मोटा महीपाल; अंति: हीरालाल०तवन परकास जी, गाथा-१४. ३७. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १४अ, संपूर्ण.
मु. चौथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सुकरत पूरब पून करीने; अंति: चोथमलजी० कारज सारो, गाथा-१४. ३८. पे. नाम. अर्जुनमाली लावणी, पृ. १४आ, संपूर्ण.
मु. हीरालाल, रा., पद्य, वि. १९३२, आदि: उरजनमाली नाम जीनोका; अंति: गायो हीरालाल उलासो, गाथा-१७. ३९. पे. नाम. सीमंधरजिन विनती, पृ. १५अ, संपूर्ण, पे.वि. वि. १८८१ में प्रतिलेखक लालचंद द्वारा लिखित प्रत की प्रतिलिपि
प्रतीत होती है. सीमंधरजिन स्तवन, मु. अगरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: मारी वीनतडी अवधारो; अंति: अगरचंद० गरीब
नवाज, गाथा-२३. ४०. पे. नाम. जीवदया सज्झाय-विविधमत सम्मत, पृ. १५आ, संपूर्ण.
मु. चौथमलजी, पुहिं., पद्य, वि. १९६०, आदि: दयाकू पालत है; अंति: चौथमल० करो गुणवान, गाथा-५. ४१. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-विविधमत सम्मत, पृ. १५आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: हक मरणां हक जाणा; अंति: रूपचंद० गुण गाना, गाथा-४. ४२. पे. नाम. जैनगाथा संग्रह, पृ. १५आ, संपूर्ण.
जैन गाथा*, प्रा., पद्य, आदि: लोगस्स उज्जोयगरे; अंति: जस्स धम्मे सयामणो, गाथा-२. ४३. पे. नाम. संवर सज्झाय, पृ. १६अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर गोयमने कहे; अंति: शिवरमणी वेगे वरो, गाथा-६. ४४. पे. नाम. कामदेवश्रावक सज्झाय, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. कामदेव श्रावक सज्झाय, मु. खुशालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८६, आदि: श्रावक श्रीवीरनो; अंति: कुसालचंद०
प्रकास, गाथा-१६. ४५. पे. नाम. चार शरणा, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण.
४ शरणा सज्झाय, मु. चौथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: हीरदे धारीजे हो; अंति: चोथमल० बाल गोपाल, गाथा-११. ४६. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण. मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: महावीर सासण धणी जिन; अंति: लालचंद० श्रीवीरजिणंद,
गाथा-१२.
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१०४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६३४९२. (+#) लोकनालिकाद्वात्रिंशिका सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३-१(३)=१२, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४४२-४६). लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि,प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदसण विणा जंलोअं; अंति: जहा भमह न
इह भिसं, गाथा-३२, (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से १२ अपूर्ण तक नहीं है.) लोकनालिद्वात्रिंशिका-बालावबोध, पं. नयविलास, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य श्रीमहावीरं, (२)जिनदंसणं विना
जंजिन; अंति: भिसं कहता अतिसयइ. ६३४९३. (+#) ऋषिमंडलपूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १०४३७-४०). ऋषिमंडल स्तोत्र पूजा, संबद्ध, ग. शिवचंद्र, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १८७९, आदि: प्रणमी श्रीपारस विमल; अंति: (-),
(पू.वि. महावीरजिन पूजा अपूर्ण तक है.) ६३४९५. (+#) ज्योतिषसार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, प्रले. श्राव. श्रीचंद्र पंडित; पठ. जाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १६x४०-४५).
ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: चंद्रो नैव चिंत्यम्, श्लोक-२९४. ६३४९६. (#) सुरसुंदरी चौपाई, संपूर्ण, वि. १७८८, वैशाख शुक्ल, ११, बुधवार, मध्यम, पृ. १९, ले.स्थल. कृष्णगढनगर,
प्रले. ग. ऋद्धिविजय (गुरु मु. प्रमोदविजय); गुपि. मु. प्रमोदविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१०.५, १५४४३-४८).
सुरसुंदरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: सासण जेहनो सलहीयै आज; अंति: आणंद लील
उमंगइ जी, खंड-४, गाथा-६१३, (वि. ढाल-४०.) ६३४९७. (#) विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १७१९, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, मंगलवार, मध्यम, पृ. १९, कुल पे. २, ले.स्थल. बीकानेर,
प्रले. मु. कनकनिधान (गुरु मु. चारुदत्त, खरतरगच्छ); गुपि.मु. चारुदत्त (गुरु मु. हंसप्रमोद, खरतरगच्छ); मु. हंसप्रमोद (गुरु पं. हर्षचंद्र गणि, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १७७५५-५८). १. पे. नाम. पंचमांग योगविधि, पृ. १आ-१९अ, संपूर्ण. __ योग विधि-खरतरगच्छीय, मु. शिवनिधान, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: हर्षसार गुरुचरणद्वय; अंति: विगइ प्रमुख
आहार करइ. २. पे. नाम. सप्तमंडली तपविधि, पृ. १९आ, संपूर्ण.
साधु ७ मांडलीतप विधि, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: सुत्ते अत्थे भोयणकाल; अंति: निक्खेवोन कीरति. ६३४९८. षट्काय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९६०, आश्विन कृष्ण, ८, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. दापडधरी, प्रले. कालीदास
परसोत्तम खत्री; पठ. श्राव. भागीरथ मणोत, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., दे., (२६.५४११, १४४४५). षट्काय संग्रह, मु. रूपचंदजी ऋषि, मा.गु., गद्य, वि. १९वी, आदि: राजत खट चालीश गुण; अंति: (१)उधार्या हे,
(२)प्राण ४ भाव जाणवा. ६३४९९. (+) जंबूद्वीप विचार व अनुभव महिमा, संपूर्ण, वि. १९५३, श्रावण शुक्ल, २, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, कुल पे. २,
ले.स्थल. अमरेली, प्रले. मु. प्रतापसागर (गुरु मु. कस्तूरसागर); गुपि.मु. कस्तूरसागर; पठ. श्रावि. कुंवरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४११, १४४४०). १. पे. नाम. जंबुद्वीप विचार, पृ. १आ-१२आ, संपूर्ण.
लघुसंग्रहणी-खंडाजोयण बोल*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जंबुदीप एक लाख जोजन; अंति: द्वीप मध्ये जाणवी. २. पे. नाम. अनुभवमहिमा गाथा, पृ. १३अ, संपूर्ण.
अनुभव महिमा, पुहिं., पद्य, आदि: कहूं शुद्ध निश्चे कथ; अंति: मोखको अनुभव मोख सरूप, गाथा-३. ६३५००. (#) कालिकाचार्य कथा सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. अक्षरों
की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३४-३८).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
कालिकाचार्य कथा, सं., पद्य, आदिः श्रीवीरवाक्यानुमतं, अंति: (-). (पू.वि. लोक-६४ तक है.) कालिकाचार्य कथा - बालावबोध, मा.गु, गद्य, आदिः श्रीमहावीरदेवना वचन, अंति: (-). ६३५०१. (+) धन्नाशालिभद्र रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११- २ (६ से ७) = ९, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५x१०.५, १८X५०-५३).
शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासणनायक समरीई; अंति: (-), (पू. वि. प्रारंभ से ढाल-१५ गाथा-६ तक व ढाल - २० गाथा-८ अपूर्ण से ढाल २९ गाथा - १ अपूर्ण तक है.) ६३५०२. (+) आराधना, संपूर्ण वि. १६७३ आश्विन शुक्ल, १, रविवार श्रेष्ठ, पृ. ११, प्रले. हरिशंकर गिरि, पठ. श्रावि. सवीरा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५X११, ११x२९).
जीवराशि क्षमापना रास, आ. अजितदेवसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १५९७, आदि: चरणकमल श्रीवीरना; अंति: निश्चइ लहिसे तेह, गाथा- १५०,
६३५०३. थुलिभद्र नवरसो, संपूर्ण, वि. १८५५ आश्विन शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले. स्थल भणावनगर, प्रले. मु. पुण्यसागर, राज्यकालरा. उदभाणजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कुल ग्रं. १३८, प्र.ले. श्लो. (११७०) काजल थोडो हेत घणो, जैदे., (२५x१०.५, ११x२९)
स्थूलभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न, मा.गु. पच, वि. १७५९, आदिः सुखसंपत्ति दायक सदा; अंतिः मनोरथ सवि फल्यारे, ढाल ९.
"
६३५०४. (+#) शालीभद्रधन्ना चौपाई, संपूर्ण, वि. १७९८ आश्विन कृष्ण, ५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १७, ले. स्थल. वापिका, प्र. मु. ज्योतसागर, गुभा. मु. पद्मसागर (गुरु मु. गुणपतिसागर); गुपि. मु. गुणपतिसागर (गुरु पंन्या. नारायणसागर); पंन्या. नारायणसागर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित कुल ग्रं. ८०१ अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे., (२५.५X१०.५, १५X४६).
शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पच, वि. १६७८ आदि शासननायक समरीई, अंतिः मनवंछित फल लहस्नी ढाल २९ गाथा-५०५.
६३५०५. (+) शालीभद्रधन्ना चौपाई, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पणयुक्त पाठ- संशोधित, जैदे., (२६X१०.५, १३x४५-४७).
शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पच, वि. १६७८, आदि शासननायक समरीयइ, अंति: (-), (पू.वि. ढाल २९ गाथा-४ अपूर्ण तक है.)
६३५०६. कृतकर्मराजर्षि चौपाई, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६-१ (१) १५ प्रले. ग. राजहर्ष (गुरु उपा. ललितकीर्ति, खरतरगच्छ); गुप. उपा. ललितकीर्ति ( खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X११, १५X४५).
कृतकर्मराजर्षि चौपाई, मु. लब्धिकलोल, मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: (-) अंति: दो जाम सायर दिनमणि, गाथा- ४०७, (पू.वि. गाथा-८ से है.)
६३५०७, (+) कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ४८-३६(१ से ३६) = १२, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित, जैये. (२६४१०.५, १५x५०).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-): अंति: (-), (पू. वि. वाचना-६ अन्तर्गत वसुदेवराजा अधिकार अपूर्ण सेमिनर्वाणाधिकार अपूर्ण तक है.)
कल्पसूत्र - बालावबोध *, मा.गु., रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
१०५
६३५०८. (+#) ऋषभजिन विवाहलो व रत्नसार चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पणयुक्त पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X११, १४X३२-३७).
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१. पे नाम ऋषभजिन विवाहलो, पृ. १आ-१२अ संपूर्ण.
आदिजिन विवाहलो, मा.गु., पद्य, आदि: सासनदेवीय पाय प्रणमे; अंति: बोलेइ सेवक इम मुदा, ढाल-४४, गाथा-२४३. २. पे. नाम. रत्नसार चौपाई, पृ. १२अ - १२आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
"
रत्नसारकुमार रास, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १५८२, आदि: सरसति हंसगमनि पय, अंति: (-), (पू.वि. ढाल - १ की गाथा - १४ अपूर्ण तक है.) ६३५०९. विजयतिलक सूरिपदथापनानो रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११-१(३) १०, जैवे. (२६.५४१०.५, ११४४१). मुनिविजयतिलक सूरिपदस्थापन रास, मु. दर्शनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि आदिजिनादिक जिनवरु अंति: दर्शन० शिवसुखराज जी, गाथा- १९८, ( पू. वि. गाथा ३४ अपूर्ण से ५३ अपूर्ण तक नहीं है.) ६३५१०. जंबूस्वामी चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३-४ (१,४ से ६) = ९. पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. जैवे. (२५.५x११, १५४४२).
जंबूस्वामी चरित्र - चयनित संक्षेप कथा संग्रह, संबद्ध, मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश हैं.)
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६३५११. (+#) सिद्धांत प्रश्नोत्तरी, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ९, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५. ५X१०.५, २४X६५).
सिद्धांत प्रश्नोत्तरी, वा. मेरुसुंदर गणि, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, वि. १५३५, आदि: श्रीसिद्धांतनई; अंति: (-), ( पू. वि. प्रश्न- ९६ अपूर्ण तक है.)
६३५१२. (+) मौनएकादशी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ९ कुल पे. २. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०.५, १२X३२).
१. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व व्याख्यान, पृ. १अ - ९आ, संपूर्ण.
मौनएकादशीपर्व व्याख्यान - सुव्रतश्रेष्ठिकथायां, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: (१) सिरिवीरं नमिऊण, ( २ ) श्रीमहावीरदेवनै; अंति: सकल सुख विभागी थाह.
२. पे नाम, मौनएकादशी गणनुं पृ. ९आ, संपूर्ण.
मौनएकादशी गणणुं, सं., गद्य, आदि: श्रीअरिनाथनाथाय नमः; अंति: सर्वज्ञाय नमः २०००. ६३५१३. चौदजीवठाणा विचार, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ६, दे. (२५x१०.५, ११३०-३३).
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""
१४ गुणस्थानक के कर्मप्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: चउद जीवठाणानो विचार, अंति: आतमानि नमोस्तु. ६३५१४. खंडाजोयण व गुणठाणादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०४, मार्गशीर्ष कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. ३, वे. (२५.५४१०.
२३X६०).
१. पे. नाम. खंडाजोयण विचार, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण.
लघुसंग्रहणी १० द्वार विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: खंडार जोयणर वासा३: अंति: १४५६००० नदी जाणवी ए. २. पे. नाम. १४ गुणठाणा ४१ द्वार विचार, पृ. ७अ - ९आ, संपूर्ण.
१४ गुणस्थानक ४१ द्वार विचार, मा.गु. गद्य, आदि: नामद्वार लक्षणद्वार अंतिः अल्प बहुत्वद्वार
३. पे, नाम, अडीद्वीप विचार, पृ. ९आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति अन्य प्रतिलेखक के द्वारा लिखी गई प्रतीत होती है. द्वीप विचार, मा.गु., गद्य, आदि: हीवे अढीद्वीप आसरी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "११९मांडला लवण समुद्रमाहे छे" पाठ तक लिखा है.)
६३५१५. द्वादशभावना सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२५.५X१०.५, ११X३३-४२).
१२ भावना सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: विमलकुलकमलना हंस तु; अंति: सकलमुनि चित् आणो, डाल- १४.
"
६३५१६. (*) पार्श्वनाथजीरो सिलोको, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६ प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५४१०.५, ९४३०). पार्श्वजिन सलोको, जोरावरमल पंचोली, रा., पद्य, वि. १८५१, आदि: प्रणमुं परमातम अविचल; अंति: चवदे राज रो अंतरजामी, गाथा-५६.
६३५१७. (+) संघयणियंत्रकानि, अपूर्ण, वि. १६५९ आश्विन शुक्ल, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ९-१ (५) -८, ले. स्थल. गंधारबंदिर, प्रले. मु. दर्शनविजय (गुरु उपा. मुनिविजय); गुपि . उपा. मुनिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैवे. (२६x१०.५, ९-१४४३४-४५).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
१०७ बृहत्संग्रहणी-यंत्र, मा.गु., को., आदि: देवता नारकी मनुष्य; अंति: माहि १२लाख कुलकोडि. ६३५१८. (+) कालिकाचार्य कथा- कल्पसूत्रे, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १७४६२).
कालिकाचार्य कथा, सं., गद्य, आदि: वंदामि भद्दबाहु; अंति: (-), (पू.वि. शालिवाहन राजा के दृष्टांत अपूर्ण तक है.) ६३५१९. (+) उपदेशमाला सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०-३(१,५ से ६)-७, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १२-१४४३३-४०).
उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ से १२ तक व १९ से २९ तक है.)
उपदेशमाला-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६३५२०. (+) नवपद पूजा व आरती, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११,
१०x४०). १. पे. नाम. सिद्धचक्र पूजा, पृ. १अ-८आ, संपूर्ण. नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: कोइ न रही अधूरी रे,
पूजा-९. २. पे. नाम. नवपद आरती, पृ. ८आ, संपूर्ण.
मु. जयकीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: जै जै आरती नौपदजी की; अंति: जयकीरति संपदा पावै, गाथा-१०. ६३५२१. आठकर्मप्रकृति-चौदगुणठाणादि विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. ६, जैदे., (२६.५४११,
१५४४५). १. पे. नाम. आठ कर्मप्रकृति विचार, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण.
८ कर्मप्रकृति विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: पढम नाणावरणं १ बीयं; अंति: थाइ इति अंतरायकर्म ८. २.पे. नाम. १४गुणस्थानक गाथा, पृ. ४अ, संपूर्ण..
१४ गुणठाणा नाम, प्रा., पद्य, आदि: मिच्छे सासण मीसे; अंति: सजोगी अजोगी, गाथा-१. ३. पे. नाम. १४ गुणस्थानक विचार, पृ. ४अ-९अ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: तिहां गाथाइ गुणठाणा; अंति: काशित ग्रंथादुद्धरित. ४. पे. नाम. ५६३ जीवना भेद, पृ. ९अ-१०अ, संपूर्ण.
५६३ जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नारकीनो भेद १४ नरक ७; अंति: जीवना भेद ५६३ जाणिवा. ५.पे. नाम. ६ संघयण नाम, पृ. १०अ, संपूर्ण.
प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: वज्ररिसहनारायं पढम; अंति: कीलक५ छेवठो६. ६.पे. नाम. संस्थाननाम गाथा विचार, पृ. १०अ, संपूर्ण. ६ संस्थान नाम, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (१)समचोरंसे निग्गोय साइ, (२)समचौरस १ न्यग्रोध २; अंति: (१)सव्वत्थ
सलक्खणं पढम, (२)ए छ संस्थान कह्या. ६३५२२. (+) विदर्भी चौपाई, संपूर्ण, वि. १७१४, चैत्र कृष्ण, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. साहज्यापुर, प्रले. सा. महिमाश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १३४३३-३७).
वैदर्भी चौपाई, मु. प्रेमराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जैनधर्म जुगतइ भणो; अंति: वडी हुई घर प्रधान, ढाल-५,
गाथा-१८०. ६३५२३. कल्पसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४१०.५, १५४४५).
कल्पसूत्र-बालावबोध *, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: अर्हत भगवंत उत्पन्न; अंति: (-), (पू.वि. नागकेतु कथा अपूर्ण तक
६३५२४. (+) आणंदश्रावक संधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८-९(१ से ९)=९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १२४३१).
आनंदश्रावक संधि, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि: (-); अंति: पभणइ मुनि श्रीसार, ढाल-१५,
गाथा-२५२, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-१३७ से है.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
६३५२५. पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२५X१०.५, १४४४२).
पट्टावली *, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवर्धमानस्वामी; अंति: (१) चंद्रगच्छ ए वइरीशाखा, (२) ज्यक्रीयते पाहलणपुरे. ६३५२६. (+) समकीत सडसठिबोल स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५X११, १०x४०). सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदिः सुकृतवल्लि कादंबिनी अंति वाचकसम बोले, ढाल - १२, गाथा-६८.
६३५२७, (+) औपदेशिक सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ८. प्र. वि. संशोधित, जैदे, (२५४१०.५, १२४३२-३७)
१. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १अ २अ, संपूर्ण, वि. १८८०, आषाढ़ कृष्ण, २ प्रले. पं. तिलोकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. नारी सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि मूरख के भाव नहीं, अंति: खामण आगे इछा थारी रे, गाथा- २३.
२. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ - ३अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-नारी चरित्र, मा.गु., पद्य, आदि धणी धणीवांणी इम: अंति: पीहर पाला रे पूरो जी, गाथा- १४. ३. पे. नाम. कपट सज्झाय, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण.
"
औपदेशिक सज्झाय-कपटोपरि, मु. रायचंद ऋषि, रा. पद्य वि. १८३३, आदिः कपटी पुरुषनै विसास न, अंतिः ऋषरायचंद कहे एमोजी, गाथा- १५.
४. पे. नाम. नेमराजिमती बारमासो, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण.
मु.
५. पे. नाम. बीसबोल सज्झाय, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण
जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: राणी राजुल इण परि; अंति: जिनहरख कहै० प्रीत रे, गाथा - १३.
२० बोल सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३३, आदि: किणशुं वाद विवाद न, अंति: मद गाल्यो महावीरे जी, गाथा - १५.
६. पे. नाम, जीवकाया सज्झाय, प्र. ५आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-जीवकाया, मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरु भाखे देसना; अंति: इम कुसल कहै समझाय
गाथा - ९.
७. पे. नाम. गजसुकुमालमुनि सज्झाच, पृ. ५आ-७अ संपूर्ण
मा.गु, पद्य, आदि; वाणी श्रीजिनराजतणी अंति बाईस मुगते मांडे गया, गाथा ३६.
"
८. पे. नाम. आयुष्यविचार सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
जीव आयुष्यविचार सज्झाय, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: गुरुचरणकमल प्रणमीने; अंतिः भावसा
दाखी जी, गाथा - १०.
६३५२८. (#) कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-२ (१ से २) = ९, कुल पे. ४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.,
(२५x१०.५, १६x४३-४७)
१. पे नाम. १२ चक्रवर्ति कथा, पृ. ३अ-७अ अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं.
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मा.गु, गद्य, आदि: (-); अंतिः करी मोक्ष पुहुतु, कथा-१२, (पू.वि. भरत चक्रवर्ती कथा अपूर्ण से है.)
२. पे. नाम. दशार्णभद्रराजर्षि कथा, प्र. ७अ-७आ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: दशार्णपुरनगरि दशार्ण; अंति: तो तो पिण तर्यो.
३. पे. नाम. चार प्रत्येकबुद्ध रास, पृ. ७आ-११आ, संपूर्ण.
४ प्रत्येकबुद्ध कथा, मा.गु., गद्य, आदि: करकंडू कलंगेसु० कलिं; अंतिः एकसमै मुक्त पाम्या, कथा-४. ४. पे. नाम. नाटकइंद्ररी संख्या, पृ. ११आ, संपूर्ण.
१२ देवलोक इंद्र संख्या, मा.गु., गद्य, आदि: इंद्र महाराजरी, अंतिः एता पांच से अत्रीस ६३५२९. चारमंगल रास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., ( २६.५X११, १२x४५).
४ मंगल रास, मु. जेमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: अनंत चोवीसी जिण नमु; अंति: के धर्म आराधीये ए, ढाल-४,
गाथा - १०७.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
१०९ ६३५३०. महावीर स्तोत्र व वर्धमान स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०.५, ११४३०). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तोत्र, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव-समसंस्कृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: दृष्टिं
दयालो मयि, श्लोक-३०. २. पे. नाम. दुरियरयसमीर स्तोत्र, पृ. ४अ-६आ, संपूर्ण. दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दुरिअरयसमीर मोहपंको; अंति: सया पायप्पणामो तुह,
गाथा-४४. ६३५३१. (+) अढारपापस्थानक आलोचना व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, कुल पे. २, प्रले. ग. देवचंद्र (गुरु
मु. दीपचंद, खरतरगच्छ); गुपि.मु. दीपचंद (गुरु मु. ज्ञानधर्म, खरतरगच्छ); पठ. श्राव. भक्तिदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-संशोधित., जैदे., (२४४१०, १०४३७-४५). १.पे. नाम. अढार पापस्थानक आलोयणा, पृ. १आ-७आ, संपूर्ण.
१८ पापस्थानक आलोयणा, मा.गु., गद्य, आदि: कोई भव्यजीव कोई; अंति: सदा अविहड हज्यो. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ७आ, संपूर्ण.
ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: परम अध्यात्म ने लखे; अंति: कहे निज आतिम थिर थाय, गाथा-४. ६३५३२. (+) चतुर्विंशतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४०).
२४ जिन स्तवन, मु. नेत, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभदेव राजा लही ओलग; अंति: भव भवमो सुख दायन रे, गीत-२४. ६३५३३. चंदनबाला व आषाढभूतिमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(१)-७, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०.५,
९४२२-२६). १.पे. नाम. चंदनबालासती सज्झाय, पृ. २अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं.
पं. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६७०, आदि: (-); अंति: मुगतिना सूख ते लहें, (पृ.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. आषाढाभूतिमुनि सज्झाय, पृ. ५आ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीश्रुतदेवी हिइ; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ६३५३४. (+) आनंदश्रावक संधि, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १५४४७).
आनंदश्रावक संधि, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि: वर्द्धमानजिनवर चरण; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१३,
गाथा-२१३ तक है.) ६३५३५. दशार्णभद्र सज्झाय, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., जैदे., (२४.५४१०.५, १०४२७-२९).
दशार्णभद्रराजर्षि सज्झाय, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७५७, आदि: वीरजिणेसर वंदिने; अंति: (-),
(पू.वि. ढाल-६, गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ६३५३६. सुक्तमाला, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, जैदे., (२५.५४११, १४४४०-५०).
सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृतवल्लि वृंदजी; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., वर्ग-२ श्लोक-१० अपूर्ण तक लिखा है.) ६३५३७. (+) अष्टौधर्मोपदेशक कथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १७३६, माघ शुक्ल, २, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ९+१(१)=१०, कुल पे. १०,
ले.स्थल. कृष्णगढ, प्रले. मु. रायचंद (गुरु मु. गेहाजी ऋषि, गुर्जरगच्छ); गुपि. मु. गेहाजी ऋषि (गुरु मु. ज्ञानसागर *), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रायः शुद्ध पाठ., जैदे., (२५४१०, १५-१७४२४-५०). १. पे. नाम. चुल्हकोपरि चंद्रोदयदाने मृगसुंदरी कथा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मृगसुंदरी कथा-चुल्हकोपरि चंद्रोदयदाने, सं., गद्य, आदि: चंद्रोदयं च कुर्वति; अंति: ततः स्वर्गं गतः. २. पे. नाम. पौषधे रणसूर कथा, पृ. १आ, संपूर्ण.
रणसूर कथा-पौषधे, सं., गद्य, आदि: अट्ठमिचउद्दसीपमुह; अंति: चंद्रकांताभिधे गतः. ३. पे. नाम. कुरुचंद्र कथा, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
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कुरुचंद्र कथा - वसतिदाने, सं., गद्य, आदि: वसही सयणासण भत्तपाण; अंति: स्वर्गापवर्गः स्यात्.
४. पे. नाम. पद्माकर कथा, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
५. पे. नाम. करेराज कथा. पृ. २आ-४अ संपूर्ण.
सं., गद्य, आदि: पुष्पपुरे शेखरोनाम, अंति: र्मोक्षे गमिष्यति.
सं., गद्य, आदि: मंगलपुरे नगरे राजा; अंति: मुक्तिं यास्यति.
६. पे. नाम. आहारदानविषये कनकरथराजा कथा, पृ. ४अ ५अ, संपूर्ण
(+)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
कनकरथराजा कथा सुपात्रदानविषये, प्रा. सं., गद्य, आदि: (१) आहारविरहिआणं सिझासण ( २ ) अत्रैव भरते वैताढ्य
""
अंति: प्राप्तिर्भविष्यति.
७. पे. नाम. पानाहारविषये धन्यपुण्यकर कथा, पृ. ५अ ५आ, संपूर्ण.
धन्यपुण्यकर्मकर कथानक - पानाहारे, सं., गद्य, आदि: कांत्यानगर्यां अंति: प्रपद्य स्वगृहं गतौ. ८. पे. नाम. रेवतीसती कथा. पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
रेवतीसती कथा- भेषजदाने, प्रा. सं., गद्य, आदि भेसज्जं पुण दितो अंतिः श्रीवीरो नीरोगो जातः ९. पे. नाम. ध्वजभुजंग कथा वस्त्रदाने, पृ. ६अ-८आ, संपूर्ण.
ध्वजभुजंग कथा - वस्त्रदाने, सं., गद्य, आदिः उज्जयनी प्रत्यासन्न, अंति: देव कतिपयभवे मोक्षः. १०. पे. नाम. धनपति कथा सुपात्रदाने, पृ. ८आ- ९अ, संपूर्ण.
धनपति कथा- सुपात्रदाने, सं., गद्य, आदि: अचलपुरे नगरे सुरतेजो, अंतिः न तृतीय भवे मोक्षः.
६३५३८. ) पुन्यसार चतुपदी, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. पं. जयहेम गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५X१०, १५-१७४२४-५०).
पुण्यसार रास-पुण्याधिकारे, मु. पुण्यकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६६६, आदि: नाभिराव नंदन नमुं अंतिः नव निधि होय तस गेह, ढाल - ९, गाथा - २०३.
६३५३९. सीयल रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५X१०.५, १४४४५-४८).
शीलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि पहिली प्रणाम करूं, अंति: (-), (पू. वि. गाधा ५९ अपूर्ण तक है.)
',
६३५४०. स्तुतिचौवीसी, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैदे. (२६.५x११.५, १२X४९). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: (-), (पू.वि. गाथा- ८६, नेमिजिन स्तुति अपूर्ण तक है.)
६३५४१. (१) विवाहपडल का पद्यानुवाद, संपूर्ण, वि. १९६३, मार्गशीर्ष शुक्ल, ६, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले. स्थल. खिमेलनगर, प्रले. ऋ. दिपचंद्र (कोरंट गच्छ); गुपि. पं. फतेचंद; पठ. मु. अनराजजी ऋषि (गुरु पं. फतेचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२५.५४११, ८४१९-२५).
विवाहपडल-पद्यानुवाद, वा. अभयकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: वाणी पद वंदी करी; अंतिः इति गजदशा प्रमाण, गाथा - ६३.
६३५४२. जीणरख्यजीपालीयारो चोढाल्यो, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७ प्रले. मु. परसुराम ऋषि (गुरु मु. बखतमल ऋषि, गुज.लुंकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१X१०, ९x२९).
जनपालजिनरक्षित चौढालियो, रा., पच, आदि अनंत चोवीसी आगे हुई, अंतिः पासी भवनो पार, ढाल -४, गाथा-६६. ६३५४३. गीतचौवीसी, सीमंधर गीत व औपदेशिक सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १७५६, फाल्गुन शुक्ल, १०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. ४, प्रले. मु. सामंत (गुरु मु. वीरचंद्र, पल्लीवालगच्छ); गुपि. मु. वीरचंद्र (गुरु उपा. उदयशेखर, पल्लीवालगच्छ); उपा. उदयशेखर (पल्लीवालगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११, १०x३२).
१. पे नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण.
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मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: सुधो धर्म मकिस विनय, अंतिः ते चिरकाले नंदो रे, गाथा - ९. २. पे नाम, स्तवनचीवीसी, प्र. ९आ- ९अ, संपूर्ण.
१आ-९अ,
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
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आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मनमधुकर मोही रह्यउ, अंति: (१) जिनराज० आप समानो रे, (२) जिनराज० उल पावउ जी, स्तवन- २४.
३. पे. नाम. सीमंधरजिन गीत, पृ. ९अ - ९आ, संपूर्ण.
सीमंधरजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुझ हिवडुं हेजा लुडं अंतिः कहे मत मूको विसार, गाथा- ७. ४. पे. नाम. युगमंधरजिन गीत, पृ. ९आ, संपूर्ण.
मु. जिनराज, मा.गु, पद्य, आदि: सहमुख हुन सकुं कही, अंति: (-). (अपूर्ण. पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा- ४ अपूर्ण तक लिखा है.)
६३५४४. प्रतिक्रमणादि विधिसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (२५.५४११, १३४३८)
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प्रतिक्रमणविधि संग्रह- खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम तो जाय गात्र, अंतिः ंदण कहै जयवीराय ताई.
६३५४५. स्तवन व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८ कुल पे १७ जैदे. (२५x१०.५, १५X४३). १. पे. नाम. उपदेशगुणतीसी सज्झाव, पृ. १अ २अ, संपूर्ण.
मु. ब्रह्म, मा.गु., पद्म, आदि: वरसे पहुकराचरत सुमेह, अंतिः ब्रह्म०कहीज्यो आरंग, गाथा २९.
"
२. पे. नाम. वणजारा सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण.
आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: विणजारा रे तुं तो नग, अंति: जिणचंदसूरि इम वीनवे, गाथा- ८.
३. पे नाम, सुपासजिन स्तवन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण.
सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. कविवण, मा.गु., पद्य, आदि: सहज सलूणो हो मिलीयो, अंति की पुरो प्रेम विलास, गाथा-७. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-कर्मफल स्वरुप, आ. गुणसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवनस्वामी शिवपु, अंति: इम कहे गुणसूरिंदरे, गाथा-८.
गाथा-४.
६. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. ३अ- ३आ, संपूर्ण.
मु. अमर, मा.गु., पद्य, आदि धारणी मनावे रे मेघ; अंति: अमर० तुट करमना पास, गाथा-५.
७. पे. नाम. समता सज्झाय, पू. ३आ-४अ, संपूर्ण.
"
५. पे. नाम. क्रोध मान माया लोभ सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण.
क्रोधमानमायालोभ सज्झाय, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: भजीये छे श्रीजिनचरण अंति: गुणसागर० समझावै,
औपदेशिक सज्झाय-समता, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव ममता मुकीयइ; अंति: जायसी समता तणइ गुणेह, गाथा-१५. ८. पे. नाम. अनंतकाय सज्झाय, पृ. ४-४आ, संपूर्ण.
२२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: जिनशासन रे सूधी सद्द, अंति: प्राणी ते सिवसुख लहइ,
गाथा-८.
९. पे. नाम. मयणरेहासती सज्झाय, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण.
मदनरेखासती सज्झाय, मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: लघुबांधव युगबाहुने र अंतिः करूं प्रणाम त्रिकाल, गाथा-८. १०. पे. नाम. कलियुगस्वरूप सज्झाय, पृ. ५अ - ५आ, संपूर्ण.
कलियुग सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, पुष्टिं पद्य, आदि: माया कहे मुझ नान्ही अंतिः सुकृत एक सवायो, गाथा १२. ११. पे. नाम. पंचखांण सज्झाय, पृ. ५आ, संपूर्ण.
१० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: दसविध प्रभु कहै; अंति: पामो निश्चै निरवांण, गाथा-८.
१२. पे नाम, जीवशिक्षा स्वाध्याय, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
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औपदेशिक सज्झाय - जीवशिक्षा, मु. सिद्धविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बापडला रे जीवडला तूं अंति: कहे० चढत सवाई रे, गाथा - १०.
१३. पे. नाम रहनेमिराजिमती सज्झाय, पृ. ६अ- ६आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्म, आदि: राजिमती नेम भणी चाली; अंतिः कहे जिनहर्ष त्रिकाल, गाथा - ९.
१४. पे. नाम, बारव्रत सज्झाय, पृ. ६आ, संपूर्ण.
१२ व्रत सज्झाव, मु. केसराज, मा.गु, पद्य, आदि: बार भावन भावो रे भव, अंति: केसराज० गुण पाया रे, गाथा-८. १५. पे. नाम. पारसनाथ स्तवन, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- श्रीपुरमंडण, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपुर पास सुहामणो अंति: देवसूरि० हियाना पूर, गाथा - १३.
१६. पे. नाम पद्मावती आराधना, पृ. ७अ-८अ, संपूर्ण,
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि हवे राणी पद्मावती, अंति: कहइ पापथी छुटई ततकाल, डाल- ३,
गाथा - ३२.
१७. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, वि. १७२२, आदि: अमल कमल जिम धवल; अंति: वंदना भई त्रिकाल, गाथा- ९.
६३५४६. (+) औपदेशिक सज्झाय व मंगलकलश फाग, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैये., (२५.५x११.५, ११४३३-३८).
१. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६ अपूर्ण से १३ अपूर्ण तक लिखा है., वि. सुपात्रदान व सत्यभामा का प्रसंग है.)
२. पे. नाम. मंगलकलश फाग, पृ. १आ- ९आ, पूर्ण, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है.
वा. कनकसोम, मा.गु, पद्य, वि. १६४९, आदि: सासणदेवीय सामिणी ए अंति: (-). (पू.वि. गाथा १४० तक है.) ६३५४७. स्तुतिचौवीसी, पूर्ण, वि. १८०६, भाद्रपद अधिकमास शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. ९-१ (१) ८, पठ. पं. तेजसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X११, ११३४).
स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक-९६, (पू.वि. अजितजिन स्तुति की गाथा - १ अपूर्ण से है.)
६३५४८. (४) हंसराजवत्सराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १०-३(१ से २६) =७, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०.५, १२X३१-३४).
हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि (-); अंति (-), (पू. वि., ढाल- २ गाथा५ अपूर्ण से ढाल - ५ गाथा- ४ अपूर्ण तक व ढाल ७ गाथा- २ अपूर्ण से ढाल - ११ गाथा - १० अपूर्ण तक है.) ६३५५० (४) सीयल रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६. पू. वि. अंत के पत्र नहीं है. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे.,
(२४.५X११, १६X३६-४०).
शीलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलुं प्रणाम करूं, अंति: (-), (पू. वि. गाथा- ६४ अपूर्ण क है.)
६३५५१. (+) श्रेणिक चौढालियो व २४ जिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित. दे. (२६.५X१०.५, ११X३१-३५).
१. पे. नाम, श्रेणिकराजा चोढालीयो, पृ. १अ ५अ, संपूर्ण
सम्यक्त्व चौढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३३, आदि: समकीत माहे दीढ रह्या; अंति: रायचंद० दोष हो, ढाल ४.
२. पे. नाम. चौवीसजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
२४ जिन सज्झाय, मु. हेत ऋषि, पुहिं, पद्य, आदिः श्रीआदनाथ अजत संभव अंतिः माहासुख कि खान है, गाथा-८. ६३५५२. बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दे. (२५.५४१०.५, १७४२३-२६)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
',
बोल संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: चरचाना बोल लेखते; अंति: (-). ६३५५३. श्रवकपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ५, जैदे. (२४.५X१०.५, ११४४३). श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि० तत्र, अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ६३५५४. (+१) पद्मावती स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश
,
खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X१०, ११x२४-२७).
पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: (-).
६३५५६. (+#) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७२७, कार्तिक कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. जडाऊ, प्र. ग. महिमाकीर्ति, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२५४१०.५, ५४३८-४१).
"
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: सेसो संसारफल हेउ.
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - खरतरगच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ( अपठनीय); अंति: मिच्छामिदुक्कडं.
६३५५८. (+#) चंदनमलयगिरी रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैये. (२५.५४११, १६३७-४०).
चंदनमलयागिरि रास, मु. भद्रसेन पुहिं, पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीविक्रम, अंति: (-) (पू.वि. कलिका-५ गाथा ४६ अपूर्ण तक है.)
६३५५९. (१) दानशीलतपभावना चौढालीयो, संपूर्ण वि. १६९२ आषाढ़ कृष्ण, ९, रविवार, मध्यम, पृ. ५,
ले.स्थल. कहलवाडा, प्रले. ग. इंद्रविजय, पठ. मु. हस्तिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, १०-१३X२८-३२).
दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: वीर जिनेसर पाय नमी, अंतिः समृद्धि सुप्रसादो रे, ढाल -४, गाथा - १०१.
६३५६०. (#) पाशाकेवली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५x११, १६x४०-४४).
पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो भगवती, अंति: (-), (पू.वि. पासा नं.-४२४ के फलादेश अपूर्ण तक है)
६३५६१. (१) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२४.५४१०.५,
१२X३६-४२).
१. पे. नाम. सौभाग्यपंचमी स्तवन, पृ. १अ ३अ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तवन- ज्ञानपंचमीपर्व, ग. दयाकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: शारद मात पसाउले निज, अंतिः दयाकुशल आणंद भयो, हाल-३, गाधा-३४.
११३
२. पे. नाम, नेमराजुल स्तवन, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण.
नेमराजिमती संवाद, मु. ऋद्धिहर्ष, रा., पद्य, आदि: हठ करी हरिय मनावीया, अंति: ऋद्धिहरष० दातार रे, गाथा-३१. ३. पे. नाम. मौनएकादशी स्तवन, पृ. ४आ-५अ संपूर्ण
मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समवसरण बेठा भगवंत; अंतिः समयसुंदर कहो वाहडी गाथा १३.
४. पे नाम, शेत्रुंजय स्तवन, पृ. ५अ ५आ, संपूर्ण
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शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: डूंगर ठाडो रे डूंगर, अंति: उदयरत्न० कल्यांणो रे, गाथा - ८. ६३५६२. (०) १४ जीवस्थान विचार, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ५. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५X११, १४X३५).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४ जीवस्थान-कर्मविशुद्धिमार्गणा अपेक्षाए, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: जीवठाणा नाम १ लक्षण; अंति: चोक ५ पंच
संजोगी १. ६३५६४. (#) बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १०-१३४६०-६६).
बोल संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६३५६५. (+#) गौतम रास, संपूर्ण, वि. १७८५, आश्विन शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ५,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, ११४३३-३७). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: मनवंछित
सुख पामीइए, गाथा-६४. ६३५६६. (+#) दसवैकालिकाध्ययन गीत, संपूर्ण, वि. १७२७, चैत्र कृष्ण, ७, मंगलवार, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. बीकानेर,
प्रले. मु. श्यामसुंदर (गुरु आ. देवगुप्तसूरि, उकेसगच्छ); गुपि. आ. देवगुप्तसूरि (गुरु आ. कक्कसूरि, उकेसगच्छ); आ. कक्कसूरि (उकेसगच्छ); पठ. सा. चारित्रलब्धि (गुरु सा. समयलब्धि); गुपि. सा. समयलब्धि (गुरु सा. सिद्धलब्धि); सा. सिद्धलब्धि, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३३). दशवकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: धरम मंगल महिमा निलो; अंति:
पुण्यकलश० जय जयरंग, अध्याय-१०. ६३५६७. (+) ५७ कर्मबंधहेतु विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१०.५, १३४४५).
५७ कर्मबंधहेतु विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पेहलुं कर्मबंधनु; अंति: अभिप्राई करी का, ग्रं. २००. ६३५६८. (+#) पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. अंतिम पत्र में कुछ औषधि के नामों का उल्लेख है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४४८-५५).
पाशाकेवली, मु. गर्गऋषि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवती; अंति: गर्ग० एतत्पाशककेवली, श्लोक-१९६. ६३५६९. (+#) महावीरजिन २७ भव स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १०x४१). महावीरजिन स्तवन-२७ भव, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: विमल कमलदल लोयणा; अंति:
शुभविजय शिष्य जय करो, ढाल-६, गाथा-८१. ६३५७०. (#) भरतबाहुबली संवाद, संपूर्ण, वि. १९२९, पौष शुक्ल, १०, बुधवार, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. सरसानगर, प्रले. मु. किशोरचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२५४११, ९४३३).
भरतबाहुबली संवाद, मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सारद माता समरीयें; अंति: कुशल प्रणमु शिरनामी, गाथा-६८. ६३५७१. (+#) ८ कर्म १५८ प्रकृति व ६ काय जीव आयु विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्रले. मु. वीरदास
ऋषि (गुरु मु. जसवंत ऋषि); गुपि. मु. जसवंत ऋषि; पठ. श्रावि. कृष्णावतीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १४४३९-४२). १.पे. नाम. ८ कर्म १५८ प्रकृति, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण, वि. १७१२, कार्तिक, ले.स्थल. आगराकोट.
८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलं ज्ञानावरणी; अंति: विषे उद्यम करवो, . १८५. २.पे. नाम. ६ कायजीव उत्पत्ति आयुष्यादि विचार, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: पृथिवीनु आऊखो जघन्य; अंति: त्रीकइ १०० विमान. ६३५७२. (#) नेमराजीमती रास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, प्रले. सा. रतना; पठ.सा. कसुंभा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०, १०४२८-३१).
नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सारद पाय प्रणमी करी; अंति: पुण्यरतन नेमिजिणंदकि, गाथा-६३. ६३५७३. (+) स्नात्रपूजा व लूण विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०,
७-१२४२०-४८).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
१. पे. नाम. स्नात्रपूजा विधि, पृ. १आ-५अ, संपूर्ण, वि. १८५१, ज्येष्ठ कृष्ण, १३, मंगलवार, ले.स्थल. फरकावाद,
प्रले. मु. हर्षविजय (खरतर गच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चौतीसे अतिसै जूओ वचन; अंति: देवचंद० सूत्र
मझार, ढाल-८, गाथा-६०. २. पे. नाम. लूणपाणीमट्टी विधि, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
लूणपाणी विधि, प्रा., गद्य, आदि: उवणेऊ मंगले वो जिणाण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ तक है.) ६३५७४. (+#) नेमिनाथ समोसरण व ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८२२, कार्तिक शुक्ल, ९, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २,
प्रले. पंन्या. हर्षसौभाग्य (गुरु उपा. जयसौभाग्य); गुपि. उपा. जयसौभाग्य; लिख. श्रावि.रामकुंअर बाई; पठ. श्रावि. वजीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (९४८) भणे गूणे जे सांभलें, (११७२) जब लगें मेरु थर रहें, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४३३-३७). १.पे. नाम. नेमिजिन स्तवन-समवसरणविचारगर्भित, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. मु. सोमसुंदरसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: जादवकुल शिणगार; अंति: अनंती ते लहइ ए, कडी-३६,
ग्रं. ७५. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन-समतामुखलतागुणगर्भित, पृ. ३आ-५आ, संपूर्ण.
वा. सकलचंद्र, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: विबुहहियामयदिट्ठि; अंति: सेवक सकलचंद कृपा करी, गाथा-३१. ६३५७५. (+#) जिनप्रतिमा विचार, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १५४३३-३६). जिनप्रतिमापूजासिद्धि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (१)नमो अरिहंताणं नमो, (२)श्रीसिद्धांतनइ; अंति: (-),
(पू.वि. पुलाकबकुशकुशील विवेचन अपूर्ण तक है.) ६३५७६. मौनएकादशीपर्व व मौनएकादशीगणj, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५,
१४४४७-५०). १. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व कथा सह बालावबोध, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व कथा, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरं नमिऊण पुच्छ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
मांगलिकरूप प्रारंभिक मात्र २ गाथाएँ लिखी है.) मौनएकादशीपर्व कथा बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीरदेवने; अंति: सकल सुख विभागी थाय, संपूर्ण. २. पे. नाम. मौनएकादशी गणj, पृ. ५आ, संपूर्ण.
सं., गद्य, आदि: श्रीअरिनाथनाथाय नमः; अंति: सर्वज्ञाय नमः २०००. ६३५७७. (+#) अंतकाल आराधना, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११,७४२३-२९).
आराधना कुलक, मा.गु., पद्य, आदि: वंदिय चउवीसम जिणंद; अंति: जनम तणूंफल लीजइ, गाथा-१२२. ६३५७८. अगडदत्त चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, जैदे., (२५.५४११, १९४५६-६०).
अगडदत्त चौपाई, मु. ललितकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६७९, आदि: नाभिमहीपति सिरितिलओ; अंति: ललितकीरति०
संपद थाय, ढाल-१७, गाथा-३९६, ग्रं. ५०३. ६३५७९. दंडक बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४१०.५, १४४२७-३५).
२४ दंडक बोल संग्रह", मा.गु., गद्य, आदि: नारकीर्नु द्वार मांडी; अंति: सिद्धदंडक पचीसमो २५, संपूर्ण. ६३५८०. (+) श्रावकविधिप्रकाश, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., जैदे., (२५४११.५, ११४३६). श्रावकविधि प्रकाश, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु.,सं., गद्य, वि. १८३८, आदि: प्रणम्य श्रीजिनाधीशं; अंति: (-),
(पू.वि. वस्त्रादि पडिलेहन विधि अपूर्ण तक है.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६३५८१. कम्मपयडीस्तवन व शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९२५, पौष शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, दे., (२५.५४१०,
१२४५३-५६). १.पे. नाम. कम्मपयडीस्तवन, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. कर्मप्रकृति स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदि स्वयंभुशंकर शिव; अंति: हुइ एतलइं सवि पसाया,
ढाल-६, गाथा-६७. २.पे. नाम. शांतिनाथ विनती स्तवन, पृ. ४अ-९अ, संपूर्ण.
शांतिजिन स्तवन-१४ गुणस्थानकगर्भित, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिणेसर जग हित; अंति:
__ वाचकमानविजय सुहंकरू, गाथा-८५, (वि. स्तवन के साथ कोष्टक भी दिए गए हैं.) ६३५८२. (+) चंद्रलेहा रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१०.५, १८४५२-५६). चंद्रलेहा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सरसती सजगत नमी करी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१९,
गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ६३५८३. (+) बासठीयो, संपूर्ण, वि. १९०४, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२५४१०.५, ११४२५-३०). ६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: गई४ इंदि५ काय६; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
द्वार-५३ अपूर्ण तक लिखा है.) ६३५८४. (+#) विक्रमचौबोली चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १६४३८-४३). विक्रमचौबोलीरास-पुण्यफलकथने, वा. अभयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: वीणा पूस्तकधारणी हंस;
अंति: अभयसोम० काजै कही, ढाल-१७, ग्रं. ३२५. ६३५८५. (#) उत्तराध्ययनसूत्र सज्झाय व पद्मावती स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-१(५)=८, कुलपे. २, प्र.वि. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १६x४५-५०). १.पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र सज्झाय, पृ. १अ-९अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पवयणदेवि चित्त
धरीजी; अंति: उदयविजय० नवनिधि थाय, (पू.वि. अध्ययन-२० गाथा-४ अपूर्ण से अध्ययन-२२ गाथा-१४ अपूर्ण
तक नहीं है.) २. पे. नाम. पद्मावती स्तोत्र, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन पद्मावतीदेवी छंद, मु. हेम, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: श्रीकलिकुंडतुड; अंति: हेम० पूजो सुखकरणी, गाथा-१२. ६३५८६. (+#) मंगलकलश फाग, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८, प्रले. मु. रत्नसी (गुरु मु. चंद्ररत्न), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४३५-३८). मंगलकलश फाग, वा. कनकसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६४९, आदि: सासणदेवीय सामिणी ए: अंति: कनकसोम०
चरित्त जगीस, गाथा-१४२. ६३५८७. (+) बुढापा चौपड़, संपूर्ण, वि. १९१७, आषाढ़ शुक्ल, ९, बुधवार, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. सुजाणगढ, प्रले. मु. धनसुख, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित.,प्र.ले.श्लो. (११७३) पोथी प्यारी प्राणथी, जैदे., (२५.५४११, ११४३६-४०).
बुढापा रास, मु. चंद, रा., पद्य, वि. १८३६, आदि: दया जमाता वीनवु; अंति: चंद० कलजुगनीसाणी, ढाल-२२. ६३५८८.(+) मिच्छामिदुक्कडं भांगा, विविध विधि संग्रह आदि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. ८, प्र.वि. संशोधित.,
जैदे., (२५.५४११, १०४३१-३४). १. पे. नाम. मिच्छामिदुक्कडं भांगा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: ५६३ भेद जीवना ते दसे; अंति: जीवना १८२४१२० खमावना. २. पे. नाम. शीलांगरथधारानां भेद, पृ. १आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
१८ हजारशीलांगरथधारी भेद, मा.गु., गद्य, आदि: चेतन १ अचेतन २ एवं; अंति: चेतन अचेतन का जाणिवा. ३. पे. नाम. साढापच्चीसी, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण.
साढापच्चीस आर्यदेश विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम १ मगधदेश; अंति: प्रमाण करजोजी. ४. पे. नाम. पंचमीतपलेवा विधि, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण.
__ पंचमीतपउच्चारण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम गुरु आगल आवी; अंति: काउसग्ग न करै. ५.पे. नाम. पंचमीतप पारणा विधि, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण.
पंचमीतप पारने की विधि, मा.गु., गद्य, आदि: तपकरी उजमणो कीजै; अंति: याचकानें दान दीजै. ६. पे. नाम. एकादशी विधि, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
मौनएकादशीतप विधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही तस्सु; अंति: कीजै परीलोगस्स कहीयै. ७. पे. नाम. चौदस मेलवा विधि, प्र. ६अ-६आ, संपूर्ण.
चतुर्दशीतप पारने की विधि, सं.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम इरियावही तस्स०; अंति: वैसी नमुत्थुण कही जै. ८.पे. नाम. प्रायश्चित लेवानी विधि, पृ. ६आ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रायश्चित्तप्रदान बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञान आसातनाइं जघन्य; अंति: (-), (पू.वि. नीवी आंविल एकासना
लेने की विधि अपूर्ण तक है.) ६३५८९. ढालसागर रास, संपूर्ण, वि. १७४५, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, मंगलवार, मध्यम, पृ. १२३, ले.स्थल. मालगाम, प्रले. ग. प्रेमसोम; ग. रविसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (४९९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, जैदे., (२५४१०, १६x४२-४९). पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: श्रीजिन आदिजिनेश्वरू; अंति: गुणसूरि० रंग वधामणो,
खंड-९,ग्रं. ५८५०, (वि. ढाल १५१) ६३५९०. (+) रामयशोरसायण चौपाइ, संपूर्ण, वि. १७२५, कार्तिक कृष्ण, १०, रविवार, मध्यम, पृ. ११४, ले.स्थल. कुर्कुटेश्वर,
प्रले. मु. लब्धिचंद्र ऋषि (गुरु मु. इंद्रजी ऋषि); गुपि. मु. इंद्रजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. एक विद्वान का नाम दुर्वाच्य है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२६४११, १३४४३-४६). रामयशोरसायन चौपाई, मु. केशराज, मा.गु., पद्य, वि. १६८३, आदि: श्रीमुनिसुव्रतस्वामी; अंति: केशराज० हरख
वधामणी, गाथा-३१९१. ६३५९१. (+) ढालसागरहरिवंश प्रबंध, संपूर्ण, वि. १९३६, श्रावण शुक्ल, ४, बुधवार, मध्यम, पृ. ९६, प्रले. जेठा शुक्ल; लिख. श्रावि. माणेकबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११, १९४५२-६०). पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: श्रीजिन आदिजिनेश्वरू; अंति: गुणसूरि० रंग वधामणो,
खंड-९, ग्रं. ६०००, (वि. ढाल १७६) ६३५९२. (+#) कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३०-५२(१,१२,१७ से २९,३२ से ३४,३६ से
३८,५४,५७,६६ से ६७,७० से ७१,७४ से ७५,९५ से १०८,११४ से ११७,११९ से १२०,१२२,१२६,१२९)=७८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१०.५, १५४३२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, (अपर्ण,
पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., नवकार महिमा वर्णन अपूर्ण से समाचारी वर्णन अपूर्ण तक बीच-बीच के पाठ हैं.) कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), त्रुटक, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,
प्र.ले.पु. अतिविस्तृत. ६३५९३. हरीबलचौपाई, संपूर्ण, वि. १८५४, पौष कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ७०, ले.स्थल. स्याणा, प्रले. पं. हर्षविजय (गुरु पंन्या. वनीतविजय); गुपि. पंन्या. वनीतविजय (गुरु पं. कनकविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१०.५, १५४३९-४४). हरिबल चौपाई, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१०, आदि: प्रथम धराधव जगधणी; अंति: लब्धिनी० फलज्यो
रे, उल्लास-४, (वि. ढाल ५९)
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११८
कैलास
'श्रुतसागर ग्रंथ सूची
६३५९४. (+४) जंबूस्वामि चौपाई, संपूर्ण, वि. १७८५, फाल्गुन कृष्ण, ११, गुरुवार, मध्यम, पृ. ६७, ले. स्थल. साहिजिहानाबाद, प्रले. मु. ऋद्धिविजय (गुरु मु. चतुरविजय); राज्यकालरा. महमदस्याहजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की फैल गयी है, प्र. ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., ( २६ १०.५, १२X३८).
जंबूस्वामी चरित्र, मु. पद्मचंद्र, मा.गु., पद्य वि. १७१४, आदि: शारद पाय प्रणमुं: अंतिः पदमचंद्र० अपारो रे, डाल-५८, गाथा - १५०० ग्रं. १५११.
',
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६३५९५. (+) सिंहासनबत्रीसी कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६१, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, जैदे., (२५४११, १५४४५-४८)
सिंहासनवीसी, ग. संघविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सकल मंगल धर्म धुरि अंति; लहि नर कोडि कल्याण, गाथा - १५४७.
६३५९६. (+४) शीलोपदेशमाला- बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५५, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६.५४११, १६-१९४६४).
""
शीलोपदेशमाला-कथा संग्रह, संबद्ध, मु. मेरुसुंदर, मा.गु, गद्य, आदि; लक्षयोजन प्रमाण जंब, अंति; ते शीलनडं
महात्म्य.
६३५९७. (+#)
| सुकराज रास, त्रुटक, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५५-७ (१ से ५, १०, १३) ४८. पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं.. प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६.५x१०, १५X४०-४३).
י.
शुकराज रास, मु. मतिहंस, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. ढाल -६ गाथा- २ अपूर्ण से ढाल ७२ गाथा -५ अपूर्ण तक बीच-बीच के पाठ हैं.)
६३५९८. (#) हंसराजवछराज चौपाई, संपूर्ण, वि. १७८२, ज्येष्ठ शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ३७, ले. स्थल. वारणी, प्रले. पं. लीलकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्थाही फैल गयी है, जैवे. (२६४१०, १२४३८-४१).
हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदिः आदीस्वर आदिकरि चोवीस; अंतिः जिनोदयसूरि० वच्छराज, खंड-४, गाथा - ९०५, (वि. ढाल ४८)
६३५९९. () ढोलामारवणीरी चौपाई, संपूर्ण, वि. १७८५ आश्विन शुक्ल, १३, मध्यम, पू. ३८, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२५x१०.५, १२४३२).
"
ढोलामारु चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६७७, आदि: सकल सुरासुर सामिनी, अंति: कुशललाभ०
पामे संपदा.
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६३६००. (+#) विक्रमसेनकुमार चौपाई, संपूर्ण, वि. १८४३, कार्तिक कृष्ण, २, सोमवार, मध्यम, पृ. ३९, ले. स्थल. चिरपटिया, प्रले. पं. धनविजय (गुरु पं. नेमविजय); गुपि. पं. नेमविजय (गुरु पं. विरमविजय): पं. विरमविजय, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२६११, १३-१५X३६-४०).
विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., पच, वि. १७२४, आदि: सुखदाता संखेश्वरो, अंतिः मानसागरे० दोलति पाईजी, ढाल ५२, गाथा- ११६२.
६३६०२. (+) ४ प्रत्येकबुद्ध रास व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३६, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५५११, १३४४१).
१. पे. नाम. ४ प्रत्येकबुद्ध रास, पृ. १अ- ३६आ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: श्रीसिद्धारथ कुलतिलङ, अंति: उदय० आणंद लीलविलास, खंड-४, गावा- २२५, ग्रं. १३२० (वि. दाल ४५ )
२. पे. नाम. औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. ३६आ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह **, पुहिं., प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: धरेपूरा गुरुसु गुरा; अंति: आख्याहि परमेश्वरा, श्लोक-२.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६ ६३६०३. (+) चंद्रलेहा रास, संपूर्ण, वि. १८७५, फाल्गुन शुक्ल, १५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २८, ले.स्थल. नृपवप्न, प्रले. मु. चांपसी ऋषि
(गुरु मु. राजसी ऋषि); पठ.पं. राजसी ऋषि (गुरु पं. धर्मसी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपार्श्वनाथजी प्रसादात्., संशोधित., प्र.ले.श्लो. (७९७) जलात्क्षे थला क्षे, (९५०) जाद्रीसं पुस्तकं द्रष्ट्वा, (११७४) भग्न द्रष्टी कटी ग्रीवा, जैदे., (२५.५४१०.५, ११-१३४४०). चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सरसति भगवति नमी करी; अंति: मतिकुशल० हुवेंतेह,
ढाल-२९, गाथा-६२४. ६३६०४. सुरसुंदरीनी चौपाई, संपूर्ण, वि. १७९६, आश्विन कृष्ण, ५, मंगलवार, मध्यम, पृ. २२, ले.स्थल. बाबाग्राम,
प्रले. पं. रूपविजय (गुरु मु. मेघविजय); गुपि. मु. मेघविजय (गुरु पं. लक्ष्मीविजय); पं. लक्ष्मीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, १२४३०).
सुरसुंदरी रास, क. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर श्रीऋषभजी; अंति: केसर होजो जे जे कार, ढाल-१५. ६३६०५. (+#) ११प्रतिमा, १४पूर्वमान, श्रावक विधि व सामायिक समीक्षा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २२-४(३ से ६)=१८,
कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ११४३८). १.पे. नाम. श्रावक ११ प्रतिमा वहेवा विधि, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण.
श्रावक ११ प्रतिमा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: दसण १ वय २ सामाइय ३; अंति: पूठइ वली घरे आवइ. २. पे. नाम. १४ पूर्व प्रमाण, पृ. २आ, संपूर्ण.
१४ पूर्व विषय और लेखनप्रमाण, रा., गद्य, आदि: ढींचण लगइ उंचउ हाथिउ; अंति: चऊद पूरव कहीइ मान. ३. पे. नाम. श्रावकविधि प्रकाश, पृ. ७अ-२१अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पे.वि. अंत में श्रावकविधिप्रकाश का
बीजक दिया है. उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु.,सं., गद्य, वि. १८३८, आदि: (-); अंति: (१)क्षमाकल्याण० सुजान, (२)विधिप्रकाशो
निर्मितः, (पू.वि. देवसिप्रतिक्रमण इरियावही से है.) ४. पे. नाम. सामाइके इरियापथिकी मुहपत्ति समीक्षा, पृ. २१आ-२२अ, संपूर्ण.
सामायिकसूत्रे इरियावही साक्षिपाठ, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: सामायिकशास्त्र; अंति: पछे इरियावही छे. ६३६०६. कल्पसूत्र व्याख्यान १-२ सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदे., (२५४१०.५, १६४४६).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सूत्र-२ से ___ "तिन्नाणोवगए आवि होत्था"(गर्भसंक्रमणाधिकार) तक लिखा है.)
कल्पसूत्र-बालावबोध, मु. शिवनिधान, मा.गु., गद्य, वि. १६८०, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६३६०७. (+) ऋषिदत्तासती आख्यान, संपूर्ण, वि. १७१५, भाद्रपद शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. २४, ले.स्थल. पद्मसर, प्रले. मु. लक्ष्मीहर्ष (गुरु
ग. नित्यहर्ष, तपागच्छ); गुपि.ग. नित्यहर्ष (गुरु आ. विजयरत्नसूरि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (६४४) याद्रिशं पुस्तकं द्रिष्ट्वा, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३६-४२). ___ ऋषिदत्तासती रास, आ. जयवंतसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६४३, आदि: उदय अधिक दिन दिन; अंति: जयवंतसूरि०दिन
दिन आस, ढाल-४१, गाथा-५६२. ६३६०८. (+) चंद्रलेहा चतुष्पदी-सामायिकाधिकारे, संपूर्ण, वि. १७९२, पौष शुक्ल, ४, रविवार, मध्यम, पृ. १६, ले.स्थल. नारबदेसर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, १७४५०). चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सरसति भगवति नमी करी; अंति: त्रिभुवनपति हुवे तेह,
ढाल-२९, गाथा-६२४, ग्रं.७०१. ६३६०९. (+) धर्मबुद्धि चौपाई, संपूर्ण, वि. १७६९, पौष शुक्ल, १३, सोमवार, मध्यम, पृ. १६, ले.स्थल. जैतारणनगर,
अन्य. पं. विद्यारंग; उपा. वल्लभजी; पं. दीपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १७४५०).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री रास, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य वि. १७४२, आदि: प्रथम जिणेसर परगडो; अंति: गृह
,
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शिवसुख सुजस लहै, ढाल-३९, गाथा-५३५.
६३६१०. (+) जंबूप्रबंध रास, संपूर्ण, वि. १७वी, वैशाख शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. १७, प्र. वि. संशोधित - प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैवे. (२४४१०.५, १७३०-५७).
जंबूस्वामी रास, मु. राजपाल, मा.गु., पद्य, वि. १६२२, आदि: सकल जिनवर सकल जिनवर, अंति: राजपाल० विलसई इंदिरा गाथा-५२७, ग्रं. ९५५.
६३६११. (+०) सुभद्रासती चौपाई, संपूर्ण वि. १८७२ आश्विन शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. १९, ले. स्थल, उदरासर, प्रले. पं. ऋद्धसागर मुनि
(गुरु पं. सुगुणकुशल मुनि); गुपि. वा. महिमाकल्याण गणि (गुरु वा. विद्याविशाल गणि); वा. विद्याविशाल गणि
पठ. श्राव. गोधा, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है- टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X१०.५, १५२४-४०).
सुभद्रासती चौपाई, ग. रूपवल्लभ, मा.गु., पद्य, वि. १८२५, आदि आदिकरण आदिसरं सांति, अंति: सुणतां रंग रसाला जी, ढाल - २५, गाथा - ५४०.
६३६१२. (+) भावमुनिकृत स्तवनचौविसी, पार्श्वजिन स्तवन व आदिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४-२ (१ से २)=१२, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित, जैदे., (२५.५X११, १३X३२).
१. पे. नाम. स्तवनचौवीसी, पृ. ३अ १४अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं है.
"
मु. भावमुनि, मा.गु, पद्म, आदि: (-); अंति: भाव० मुझ मन घरि आया, स्तवन- २४, (पू. वि. अभिनंदनजिन स्तवन अंतिम गाथा अपूर्ण से है.)
२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरमंडण, पृ. १४अ - १४आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरमंडन, मु. भावमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु नेक नजरि करि; अंतिः भावमुनि निशि दिस रे,
गाथा-७.
३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन- वटपद्रमंडन, पृ. १४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मा.गु., पद्य, आदि; जी हो सरसति सामिनी अंति: (-) (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण तक है.)
"
६३६१३. चंदनमलयागिरी कथा, संपूर्ण, वि. १७४२, कार्तिक कृष्ण, ४, मंगलवार, जीर्ण, पृ. १३, प्रले. मु. सारंग ऋषि; पठ. मु. भोजराज ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०, ९४२८-३०),
चंदनमलयागिरि रास, मु. भद्रसेन पुहिं., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीविक्रम, अंतिः होई ता संजो बहवे एवं अध्याय-५,
गाथा - १९९.
६३६१४. अंजनासती रास, संपूर्ण, वि. १७६०, आश्विन शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले. स्थल. सिणोहीया, प्रले. सा. प्यारमदे आर्या (गुरु सा. कोडा आर्या) गुपि. सा. कोडा आर्या (गुरु सा जीवाजी आर्या) सा. जीवाजी आर्या, पठ. सा. रंभा आर्या सा. हरचाई आर्या, श्रावि. रूपा वैरागण, प्र.ले.पु. विस्तृत, जैदे., (२६×१०.५, १५X४३).
अंजनासुंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलुंनइ कडवुनइ पाये; अंतिः सतीय सिरोमणि अंजना, गाथा- १६०. ६३६१५. (+) कान्नडकाठीयारारी चौपाई, संपूर्ण, वि. १८५६ वैशाख कृष्ण १४, मंगलवार, मध्यम, पृ. ११, ले. स्थल. वामसीण, प्रले. पं. भीमसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५.५x१०, १२x२६).
"
कान्हडकठियारा रास - शीयलविशे, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आवि: पारसनाथ प्रणमुं मुदा; अंति: मानसागर० दिन वधते रंग, ढाल ९.
६३६१६. स्तवन, पद व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६. कुल पे. २८, जैवे. (२५.५x१०.५, १३४३३-३६).
"
१. पे. नाम. अंतरीकपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन पद- अंतरिक्ष, मु. माणक, मा.गु, पद्य, आदिः सोहे अंतरीक पास जिणं; अंतिः माणक० पास जिणंदा,
गाथा - ३.
२. पे. नाम. औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह, प्रा., सं., पद्य, आदि: कोहेण वग्घसिंहा माणे; अंति: निधनं वद कोत्र हेतुः, श्लोक-३..
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
१२१ ३. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन पद-कुंडलपुरमंडन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: मेरे मन वस रह्यो; अंति: जिणहरख० आपो
भवजलतीर, पद-४. ४.पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है.
मु. कुशलधीर, पुहिं., पद्य, आदि: रुषभजिन भाग्यदसा हम; अंति: धीर० सो कहिये वडभागी, पद-३. ५. पे. नाम. शत्रुजय स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, पुहि., पद्य, आदि: क्युं न भये हम मोर; अंति:
समयसुंदर० जरा निबोर, गाथा-९. ६. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
औपदेशिक कवित्त संग्रह, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: शीख्योई श्लोकको कवित; अंति: सब शीख्यो गयो धूरमे,
गाथा-१. ७. पे. नाम. बारमास दूहा, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
१२ मास दहा, मु. जसराज, पुहि., पद्य, आदि: पीउ चाल्यौ पदमण कहे; अंति: गोरंगी जसराज, गाथा-१२. ८. पे. नाम. नेमिनाथराजिमती गीत, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, मु. शांतिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सखीरी बोलइ राजल नारी; अंति: शांतिहर्षगायाहो लाल,
गाथा-१५. ९. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, मु. कनककुशल, पुहिं., पद्य, आदि: अइयो नाटक नाचै आदीसर; अंति: कनककुशल मेवा मांगेलो,
गाथा-६. १०. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि, रा., पद्य, आदि: प्रभु तेरो रूप बन्यो; अंति: समयसुंदर०सफल ताही को, गाथा-३. ११. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तुति, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, ग. रुघपति गणि, रा., पद्य, आदि: थारो थलवटदेस सुहावे; अंति: हो गावे रुघपति गणी,
गाथा-५. १२. पे. नाम. ऋषभजिन पद, पृ. ४अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है.
आदिजिन पद, मु. कुशलधीर, पुहि., पद्य, आदि: रुषभजिन भाग्यदसा हम; अंति: धीर० सो कहिये वडभागी, पद-३. १३. पे. नाम. अजितजिन पद, पृ. ४अ, संपूर्ण.
मु. कुशलधीर, पुहिं., पद्य, आदि: अजितजिन तो सम सुभट न; अंति: कुशलधीर०संपति द्येसइ, पद-३. १४. पे. नाम. संभवनाथ पद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
संभवजिन पद, मु. कुशलधीर, मा.गु., पद्य, आदि: ऐसो नरभव लाहो लीजे; अंति: कुशलधीर० सेवा कीजे, पद-३. १५. पे. नाम. अभिनंदनजिन पद, पृ. ४आ, संपूर्ण.
मु. कुशलधीर, पुहिं., पद्य, आदि: अभिनंदन सेवीयै रिद्ध; अंति: मणौ दीपे धीर उदार, गाथा-३. १६. पे. नाम. श्रेयांसजिन पद, पृ. ४आ, संपूर्ण.
मु. कुशलधीर, पुहिं., पद्य, आदि: जिनंदराय ऐसै क्यूंन; अंति: धीर वदत० तिम कर तारो, गाथा-३. १७. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मिल जाज्यो रे साहिबा; अंति: नयविमल अखेसुख चैन मे, गाथा-६. १८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ५अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, मु. अमृत, पुहिं., पद्य, आदि: रे दरवाजे ठाढे खोल; अंति: अमृत०पर जाउं में घोल, गाथा-५. १९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ५अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: चेतन मान असाडी; अंति: अणो निज छत्तियां, गाथा-५.
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२०. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पु. ५अ ५आ, संपूर्ण.
मु. उदयरत्न, रा., पद्य, आदि: साहिबनी सेवामे रहसु; अंति: उदयरत्न० श्रीमहावीर, गाथा-६. २१. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ५आ, संपूर्ण.
मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदिः आप ही ख्याल खेलंदा, अंतिः रूप० जीत तुम्हारी है, गाथा-३.
२२. पे नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
मु. राजाराम, पुहिं., पद्य, आदि: मेरा नेम मिले तो मे; अंतिः राजाराम० बलिहारीयां, पद-४.
२६. पे नाम, पार्श्व पद, पृ. ६आ, संपूर्ण
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: रे घडिया रे वावरे कह; अंति: आनंदघन० विरला पावे, गाथा-३. २३. पे. नाम. नेमिनाथराजीमति स्वाध्याय, पृ. ६अ, संपूर्ण.
नेमराजिमती सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अरज सुणउ सहेलीया रे; अंति: लाल कहइ जिनहरख सनेह,
गाथा-६.
२४. पे. नाम. मल्लिजिन पद, पृ. ६अ ६आ, संपूर्ण.
मल्लिजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मोहि कैसे तारोगे, अंति: झगरति रूपचंद गुण गात गाथा -५२५. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ६आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन होरी, मु. जिनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मेरे पास प्रभुजी के अंति: जिनचंद० नवल वसंत, गाथा-४. २७. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. ६आ, संपूर्ण.
दोहा संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: मोमें चूक अनेक छे; अंतिः पछे राज वहिज्यो लाज, दोहा - १.
२८. पे. नाम पद्मप्रभु पद, पू. ६आ, संपूर्ण.
पद्मप्रभजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहिं, पद्य, आदि: जिनचरणन चित लीनी अली अंतिः हरखचंद० सफल कर लीन्हौ,
गाथा-४.
६३६१७. (+) नवतत्त्व का वालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १३-५ (१ से २, ४, ११ से १२) = ८, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें, दे., ( २६.५X१०.५, १४X४७).
नवतत्त्व प्रकरण- बालावबोध, मा.गु. गद्य, आदि: (-): अंति (-) (पू. वि. जीवद्वार अपूर्ण से निर्जराद्वार तक बीच-बीच
""
के पाठ हैं.)
६३६१८. (+) अवंतीसुकुमाल सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ६, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित. दे. (२५x११, १३x२८).
अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु. पच, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंति: (-). (पू. वि. ढाल ११ गाथा-७ अपूर्ण तक है.)
६३६१९. (+) चौबोलीराणीविक्रमादित्यसंबंध चतुष्पदी, संपूर्ण, वि. १८०९, मार्गशीर्ष शुक्ल, १०, शनिवार, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. रिणिनगर, प्रले. पं. दयाकुशल गणि (गुरु पं. सदासुख गणि); गुपि. पं. सदासुख गणि (गुरु वा. दर्शनसुंदर गणि); वा. दर्शनसुंदर गणि (परंपरा आ. कीर्तिरत्नसूरि) आ. कीर्तिरत्नसूरि (बृहत्खरतर गच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२६४११, २१४४३).
विक्रमचौबोली रास, मु. कीर्तिसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १७६२, आदि: श्रीजिनशासन मे सकल, अंति: (१)कीरतसुंदर ० अधिकार (२) श्रीसिंघने सुखकार, ढाल ११, गाथा- २३०.
६३६२०. (4) तपागच्छ पट्टावली, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है,
7
"
जैदे., (२६X१०.५, ३४X१६).
पट्टावली" प्रा.मा.गु. सं., गद्य, आदि: (अपठनीय): अंति: (-) (पू. वि. महावीरस्वामी से ५५वीं पाट सुमतिसाधुसूरि तक है.)
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६३६२९. (४) सज्झाय स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०-२ (१ से २)=८, कुल पे ५, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०, ११x२६).
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१. पे नाम, धन्नारी सज्झाय, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं.
धन्नाअणगार सज्झाय, मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: तुम चेतो चतुर सुजाण, गाथा-११, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से है.)
२. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: लगी लगी अंगीयांने; अंति: उदयरतन० पुगी छै आस,
गाथा - १०.
३. पे. नाम. बुढालारी ढालां, पृ. ३आ-१०अ, संपूर्ण.
बुढापा रास, मु. चंद, रा., पद्य, वि. १८३६, आदि: दया ज माता वीनवु; अंति: चंद० कलजुग नीसाणी, ढाल-२२. ४. पे. नाम औपदेशिक दोहा, पृ. १०अ संपूर्ण.
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दोहा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: मचकंता पगमांह कंटो; अंति: दोरो लागे डीलमे, गाथा- १.
५. पे. नाम. जोबनपच्चीशी, पृ. १०अ १०आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
यौवनपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य वि. १८४०, आदि: पुन्यजोगे नरभव लहीयो; अंति: (-),
(पू. वि. गाथा ११ अपूर्ण तक है.)
६३६२२. (+४) परदेशी चतुःपदी, संपूर्ण वि. १६५२ आश्विन, मध्यम, पृ. ७. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.,
(२५.५X१०.५, १६X५९).
प्रदेशीराजा रास, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि; त्रिभुवन नवणानंदकरि, अंति: सहजसुंदर० फलइ संसारि,
२. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ७अ, संपूर्ण.
सवैया संग्रह" पुहिं, पद्य, आदि: सिधसाधक जंगमजोगी: अंतिः व्यापराड सबकुं, सवैया- १.
"
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गाथा - २४२.
६३६२३. (+) प्रीयमेलकतीरथ प्रबंध, सवैया व ऐमुत्तामुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७३०, पौष शुक्ल १४, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. ३, ले. स्थल. वीरात, प्रले. मु. धर्मचंद्र (गुरु उपा. न्यानचंद्र), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैये., (२५.५x१०.५, १७x४२-४५).
१. पे. नाम प्रियमेलकतीरथ प्रबंध, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण.
प्रियमेलक चौपाई दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: प्रणमं सद्गुरु पाय अंति समयसुंदर अधिक परमोद, डाल- ११, गाथा ३०५.
(+)
३. पे. नाम. अइमुत्तामुनि सज्झाय, पृ. ७आ, संपूर्ण.
मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि आज क काल्हि चले; अंतिः राजसमुद० लीलविलासो रे, गाथा १०. ६३६२४. (+) समेतशिखर २० तीर्थंकर स्तवन, संपूर्ण, वि. १७५७, पौष शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल. कुशमपुर,
प्रले. पं. कुशलरुचि (गुरु पं. हीररुचि गणि); गुपि. पं. हीररुचि गणि; पठ. श्राव. खेदो, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कर्ता के शिष् द्वारा लिखित प्रत, जैवे. (२५x११.५ १४४३८).
२० जिन स्तवन- सम्मेतशिखरमंडन, ग. हीस्रुचि, मा.गु., पद्य, आदि: गुण गिरुआ गुरुने; अंतिः हीररुचि० बहु लहे,
स्तवन- २०.
६३६२५.
सज्झाय, स्तवन व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १८७५, ज्येष्ठ शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. २८-२० (१ से २०) = ८, कुल पे. ३१, प्रले. मु. रतनचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५X१०, ९X३७-४१).
१. पे. नाम. पांचेंद्री सज्झाय, पृ. २१अ - २१आ, संपूर्ण.
गाथा-५.
३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २२अ २२आ, संपूर्ण.
५ इंद्रिय सज्झाय, मु. प्रेम ऋषि, पुहिं., पद्य, आदिः करुणाले हो जिनराज, अंतिः प्रेमऋषी के ईस हमारी, गाथा - १२. २. पे. नाम. पारसनाथजिन स्तवन प्र. २१ आ-२२अ संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, मु. जसवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंतजीरी अजबसूरति; अंति: जसवरधन० कर लीधौ रे,
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. सेवक, बं., पद्य, आदि: तोमी देखो जिनराज देख; अंति: सेवक दरसन पाइलो, पद-७. ४. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन पद, पृ. २२आ, संपूर्ण.
मु. रूप, मा.गु., पद्य, आदि: चंदाजी जिनंदा वंदन; अंति: रूप० वंछित सकल मिलाय, पद-६. ५. पे. नाम. विमलजिन पद, पृ. २२आ, संपूर्ण.
मु. रूप ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: पुन कहवा मे प्रभूपद; अंति: रूप० अजर अमर पद पाय, पद-४. ६. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २२आ-२३अ, संपूर्ण.
मु. रूप ऋषि, बं., पद्य, आदि: मौन लागीलो रे तुमार; अंति: रूप० दीजो मुक्तगोरी, गाथा-५. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २३अ, संपूर्ण.
मु. भूधर, पुहि., पद्य, आदि: ते मेरा दरद न पाया; अंति: भूधर० फुरमाया रे, गाथा-४. ८. पे. नाम. औपदेशिक पद-नरभव प्रमाद, पृ. २३अ-२३आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: खोयो रे गमार तें; अंति: विषय मनमेलन धोयो, पद-४. ९. पे. नाम. साधारणजिन पद-अरज, पृ. २३आ, संपूर्ण.
साधारणजिन पद, रा., पद्य, आदि: जिनजी अरज करां छा; अंति: म्हे मुगत वरांछा, पद-३. १०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २३आ-२४अ, संपूर्ण.
मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: म्हारे गुरु दीनी एक; अंति: भूधर०सहजे व्याधि टरी, गाथा-५. ११. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २४अ, संपूर्ण.
क्र. देवीदासजी, पुहि., पद्य, आदि: दुरमति दूर खडी रहो; अंति: देवीदास० धका दिराया, गाथा-५. १२. पे. नाम. औपदेशिक पद-कायाअनित्यता, पृ. २४अ-२४आ, संपूर्ण.
पुहि., पद्य, आदि: अव घर जा मोरे वीर; अति: पहुंचू चरणन के तीर, पद-४. १३. पे. नाम. औपदेशिक पद-नरभव निष्फलता, पृ. २४आ, संपूर्ण.
मु. जिनदत्त, पुहिं., पद्य, आदि: नरभव पाय कहा कियो रे; अंति: जिनदत्त ति कियो रे, पद-८. १४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २४आ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: धरम करत संसार सुख; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र
गाथा-१ लिखा है.) १५. पे. नाम. सीमंधरजिन पद, पृ. २५अ, संपूर्ण.
मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: सीमंधरस्वामी मे चरनन; अंति: भूधर०समरथ साहिब तेरा, गाथा-४. १६. पे. नाम. औपदेशिक पद-मन शिक्षा, पृ. २५अ, संपूर्ण.
मु. भूधर, मा.गु., पद्य, आदि: मनहंस हमारी ले; अंति: भूधर भूलें ख्वारी, पद-४. १७. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २५अ-२५आ, संपूर्ण..
मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: जिनराज ना विसारौ मति; अंति: भूधर० दगा है यारो, गाथा-३. १८. पे. नाम. औपदेशिक पद-कर्मफल, पृ. २५आ, संपूर्ण.
मु. भूधर, मा.गु., पद्य, आदि: सवविधि करन उतावला; अंति: भूधर० पहुंचे भव तीरा, पद-३. १९. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. २५आ-२६अ, संपूर्ण.
मु. भूदर, पुहिं., पद्य, आदि: भगवंत भजन क्यों भूला; अंति: भूधर० सिर धूलारे, गाथा-४. २०. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २६अ, संपूर्ण.
मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: जपि माला जिनवर नामकी; अंति: भूधर० पूरन राम की, गाथा-४. २१. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. २६अ, संपूर्ण.
मु. धर्मपाल, पुहिं., पद्य, आदि: देखौ भाई गरजि गरजि; अंति: धरमपाल०मो मन सरसे री, गाथा-२. २२. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २६अ-२६आ, संपूर्ण.
मु. जगराम, पुहि., पद्य, आदि: प्रभु विन कोंन हमारो; अंति: जगतराम सेवक ताई, गाथा-४.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
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२३. पे, नाम, नेमिजिन पद, पृ. २६आ, संपूर्ण.
मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि सांवरी सूरति मेरें, अंतिः नवल० मोहियें फसी है, पद- ३.
"
२४. पे, नाम, साधारणजिन पद, प्र. २६-२७अ संपूर्ण
मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: जिनराज चरण मन मति, अंतिः भूधर० कूपन काज सरे, गाथा ४. २५. पे. नाम. औपदेशिक होली, पृ. २७अ, संपूर्ण.
मु. भूधर, मा.गु., पद्य, आदि: होरी खेलोंगी घर आए; अंति: भूधर० सुमति विहसंत, पद-४.
२६. पे. नाम. नेमिजिन होरी, पृ. २७अ-२७आ, संपूर्ण.
नेमिजिन पद, मु. भूधर, पुहिं, पद्य, आदि देखौ गरब गहेलीरी, अंतिः भूधर० धेरै जहां दोई, पद-४. २७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २७-२८अ, संपूर्ण.
मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: चरखा चलता नांहि बे; अंति: होयगा भूधर समज सवेरा, गाथा-५. २८. पे नाम, औपदेशिक पद, पृ. २८अ संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: साधो भाई अब हम कीनी; अंति: मुक्तमहानिधि पाई, गाथा ६.
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२९. पे नाम, औपदेशिक पद- नश्वरता, पृ. २८अ- २८आ, संपूर्ण
मु. लाल, पुहिं., पद्य, आदि समझ मन मूरख वोरा रे०; अंति: लाल० पानी का ओरा रे, पद-३. ३०. पे. नाम. औपदेशिक पद - जैनधर्म, पृ. २८आ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय, पुहिं, पद्य, आदि जेनधरम नहि कीताबे नरः अंतिः सोई परम पुनी तावे, पद-३. ३१. पे. नाम. जीवहिंसाफल पद, पृ. २८आ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय, पुहिं, पद्य, आदि: चेतन मान असादी बतीया, अंतिः चानत० आंणो छतीयां, गाथा-३. ६३६२६. (+#) सुभाषित कवित्तबावनी, संपूर्ण, वि. १८०२, आषाढ़ कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. ८, ले. स्थल. सोजितनगर,
पठ. पं. भाग्यविलास (परंपरा मु. कर्पूरप्रियशिष्य); गुपि. मु. कर्पूरप्रियशिष्य (गुरु उपा. कर्पूरप्रिय गणि); प्रले. उपा. कर्पूरप्रिय गणि प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५X११, १२X३५-३८). अक्षरबावनी, मु. सुमति कविराज, मा.गु., पद्य, आदिः ॐकार अणपार सार सतरूप; अंतिः सुमति० करजोडि निति,
का.-५६.
६३६२७. (+) मौनएकादशीपर्व स्तवन, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र. वि. संशोधित., दे., (२५.५X११.५, ८X२७-२९). मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरी, अंति: (-), (पू.वि. अं पत्र नहीं है., कलश का अंतिम अंश नहीं है.)
६३६२८. छकाय, समकित स्वरूप व पंच महाव्रतादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ५, दे. (२४.५४१०.५, ८X३८-४४).
१. पे. नाम. छ काय स्वरूप विचार, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण.
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६ कायजीव उत्पत्ति आयुष्यादि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहेली पृथ्वीकाय बीजी, अंति: १० हजार वरसनुं ४.
२. पे. नाम. समकित स्वरूप विचार, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
५ समकित स्वरूप विचार, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: देवतत्व ते कोहोने; अंति: तेहेने समकित कहीए.
३. पे. नाम. जती पांच महाव्रत विचार, पृ. ४अ -५अ, संपूर्ण.
५ महाव्रत स्वरूप विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सर्वप्राणातिपातविरमण; अंति: राखे नही खाए नहीं ६. ४. पे. नाम. ५ अनुष्ठान नाम, पृ. ५अ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: विषानुष्ठान १: अंतिः अमृतानुष्ठान ५.
५. पे. नाम. एकविंशति मिध्यात्व भेदाः, पृ. ५अ, संपूर्ण.
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मिथ्यात्व २१ भेद, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: लौकिक देवगत; अंति: अमुत्ते मुत्तसत्ता २१.
६३६२९. (#) सदयवत्स सावलिंगा चउपई, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५X१०.५, २०x६२-७२).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सदयवत्स सावलिंगा चउपई, मु. कीर्तिवर्द्धन, मा.गु., पद्य, वि. १६९७, आदि: स्वस्ति श्रीसोहगसुजस; अंति: (-),
(पू.वि. गाथा-२९४ अपूर्ण तक है.) ६३६३०. दानशीलतपभावना संवाद, संपूर्ण, वि. १६९४, माघ शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. अहम्हदाबाद, प्रले. मु. राजकीर्ति ऋषि; पठ. सा. राजश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, १०४३३-३६). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिणेसर पय नमी; अंति:
समयसुंदसुप्रसादो रे, ढाल-४, गाथा-१०१. ६३६३१. (+) योगविधि, उत्तराध्ययनसूत्र व असज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. ८, ले.स्थल. द्वीपबिंदर,
प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४९.५, १६४५४-५६). १.पे. नाम. शिष्यमंडली स्थापन विधि, पृ. १अ, संपूर्ण.
प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: मुहपत्ती पडिलेही; अंति: क्षमाश्रमणानि २१. २. पे. नाम. योगोद्वहनविधि संग्रह, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण.
प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: आवश्यकाद्यं कालिकेष: अंति: स्कंधे काल दिन नंदि. ३. पे. नाम. योगप्रवेश विधि, पृ. ७अ, संपूर्ण.
प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (१)पहिलो साते नवकारे, (२)इच्छकारि भगवन्; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ४. पे. नाम. योगोत्तारण विधि, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पुनः खमासण देई; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ५. पे. नाम. पोरसीमान गाथा, पृ. ७आ, संपूर्ण.
असनपाणादि कालमान विचार, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: आसाढेमासे दुपया पोसे; अंति: जलं ति पहरुवरिं, गाथा-६. ६. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र-असंखयं अध्ययन, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण.
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ७. पे. नाम. असज्झाई विचार, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण.
असज्झाय विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: धूयरि पडइं तां सीम १; अंति: हुवइ एकपुहर सीम. ८. पे. नाम. योगानुष्ठान विधि, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण.
कालमांडलादियोग विधि-साधु, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इच्छामिखमास०; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ६३६३२. (+) घणसीरामजीरो संक्षेप संबंध, संपूर्ण, वि. १९१५, पौष शुक्ल, १२, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. नवानगर,
प्रले. मु. कनीराम (गुरु मु. घासी ऋषि); गुपि.मु. घासी ऋषि (गुरु मु. उग्रसेन ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-संशोधित., दे., (२४४९.५, १२-१३४४३-४९).
- घणसीराम चौपई, मु. कनीराम, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत सिद्धने हुँ; अंति: वीनती कनीराम ए, ढाल-९, गाथा-१९८. ६३६३३. (+#) हीरविजयसूरि सलोको, सवैया व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ११,
प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४९.५, ३५-४४४१२). १. पे. नाम. हीरविजयसूरि सलोको, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण.
ग. कुंअरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती वरसती वाणी; अंति: कुंअरविजयकुशलकल्याण, गाथा-८२. २.पे. नाम. लाजरक्षण सवैया, पृ. ५अ, संपूर्ण, प्रले. मु. धनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य.
पुहिं., पद्य, आदि: सुंदर एक सलुनीह देखत; अंति: जब लाग गई तब लाज कहा, सवैया-१. ३. पे. नाम. प्रतिक्रमण सज्झाय, पृ. ५अ, संपूर्ण.
मु. गंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कर पडिकमणुं भावसुं; अंति: गंग० साचो जाण लाल रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. नोकारवालि स्वाध्याय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: कहेजो रे पंडित ते; अंति: रूप कहे बुध
सारी रे, गाथा-५. ५. पे. नाम. गुरू स्वाध्याय, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
१२७ विजयक्षमासूरि सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीविजयरत्नसूरिंदना; अंति: मोहन कहे जयकार,
गाथा-७. ६. पे. नाम. नंदीषेण स्वाध्याय, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही नगरीनो वासी; अंति: मेरुविजय० पसाया हो,
ढाल-३, गाथा-१४. ७. पे. नाम. स्थूलभद्र स्वाध्याय, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. शांति, मा.गु., पद्य, आदि: बोली गयो मुख बोल; अंति: य पभणुं संति मया करी,
गाथा-१३. ८.पे. नाम. समकित सज्झाय, पृ. ७आ, संपूर्ण. सम्यक्त्व सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवाणी घन वुठडो; अंति: तिलकविजय भणे एम रे.
गाथा-७. ९. पे. नाम. प्रथमाणुव्रत सज्झाय, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. प्राणातिपात विरमणव्रत स्वाध्याय, मु. तिलकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो पहिला समकित; अंति:
तिलकविजय हो जयकार, गाथा-६. १०. पे. नाम. पार्श्वजिन सवैया, पृ. ८अ, संपूर्ण.
मु. गौतम, पुहिं., पद्य, आदि: प्यारे पारसलाल तुम; अंति: गौतम कुं निवाजें हो, सवैया-१. ११. पे. नाम. धन्नाशालिभद्र सज्झाय, पृ. ८आ, संपूर्ण.
उपा. उदय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: अजीया मुनी ते वैभार; अंति: उदय० जे भवजल तीर रे, गाथा-७. ६३६४९. (+#) भुवनदीपक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८५, कार्तिक शुक्ल, १२, गुरुवार, मध्यम, पृ. १४, ले.स्थल. जालोरनगर,
प्रले. मु. जयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४९.५, ६x४५). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१७६,
(संपूर्ण, वि. पाठांतर सहित.) भुवनदीपक-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: सारस्वत सबंधीओ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
__ श्लोक-१७० तक लिखा है.) ६३६५०. (+) ज्योतिषसार, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १८-३(१ से ३)=१५, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १७-१९४५४-६८). ज्योतिषसार, पंन्या. हीरकलश, मा.गु., पद्य, वि. १६२७, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२९ अपूर्ण से ८१४
अपूर्ण तक है.) ६३६५४. (+#) कविशिक्षा सह टीका प्रस्ताव-१ से ४ स्तबक-१, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधिसूचक चिह्न-क्रियापद संकेत-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४४१). कविशिक्षा, श्राव. अरिसिंह, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: वाचं नत्वा महानंदकर; अंति: (-), प्रतिपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. कविशिक्षा-काव्यकल्पलतावृत्ति, य. अमरचंद्र, सं., गद्य, वि. १३वी, आदि: विमृश्य वाङ्मय; अंति: (-), प्रतिपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ६३६५९. (+) नारचंद्र ज्योतिष व विवाह पटल, संपूर्ण, वि. १७४२ शुक्ल, २, गुरुवार, मध्यम, पृ. १४, कुल पे. २,
ले.स्थल. जसरासर, प्रले. मानसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, १६४३३-३७). १. पे. नाम. नारचंद्रसूत्र, पृ. १अ-११अ, संपूर्ण. ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: (१)नाडी विवर्जयेत्, (२)वैरं मंझार मूषकः,
श्लोक-२९४.
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१२८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. विवाह पडल, पृ. ११आ-१४आ, संपूर्ण.
विवाहपडल, सं., पद्य, आदि: जंभाराति पुरोहिते; अंति: टलइ इम जंपई सहदेव, श्लोक-९१. ६३६६१. (+#) पर्याताराधना सूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११,५४३१). पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है.,
गाथा-६९ तक है.)
पर्यंताराधना-टबार्थ ,मा.गु., गद्य, आदि: नमस्करीनइ शिष्य पुछइ; अंति: (-), पूर्ण, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है. ६३६७८. (+) भुवनदीपक ढुंढिका बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ८, ले.स्थल. महिमदावादनगर,
प्रले. पंन्या. विद्याविजय (गुरु पंन्या. विजयभूषण); गुपि.पंन्या. विजयभूषण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११, १८४३५-४५). भुवनदीपक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सरस्वती तणु तेज; अंति: शून्य काई न होसिइ, (वि. मूल का प्रतीकपाठ
दिया गया है.) ६३६९९. (+#) योगचिंतामणि सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५७-९२(१ से ८७,१३५ से १३८,१५३)+१(१३३) ६६, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ७४३५-४२). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्याय-७ श्लोक-२ से प्रशस्ति
पत्र अपूर्ण तक बीच-बीच के पाठांश हैं.)
योगचिंतामणि-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६३७०८. भुवनदीपक सह टीका, पूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ४५, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४४).
भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१६६ तक है.)
भुवनदीपक-टीका, आ. सिंहतिलकसूरि, सं., गद्य, वि. १३२६, आदि: अर्हदादीन् प्रणम्याथ; अंति: (-). ६३७२७. भुवनदीपक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५१, फाल्गुन कृष्ण, ४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २०, ले.स्थल. गुडाराडधरा,
प्रले. मु. दीपचंद (गुरु पं. अभाजी); गुपि.पं. अभाजी (गुरु उपा. उपाजी); उपा. उपाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१०.५, ५४३३-३८). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१८३,
संपूर्ण. भुवनदीपक-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: सरस्वती संबंधि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
__ श्लोक-१७५ तक लिखा है.) ६३७३२. (+) पाशा शुकनावली व नक्षत्र ज्योतिष, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे.,
(२४.५४९.५, ९४३७-४०). १. पे. नाम. सुकनावली की भाषा, पृ. १आ-८अ, संपूर्ण.
पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं पद्मावती; अंति: होसी कल्याण ऊपजै सही. २.पे. नाम. रमल सुकनावली, पृ. ८आ-१४अ, संपूर्ण. रमलशुकनावली, पुहिं., गद्य, आदि: (१)लहीयान १ कुबजतुदाखील, (२)अरीजेक नीत बांधी है; अंति: है भला होइगा
सही. ३. पे. नाम. नक्षत्र ज्योतिष, पृ. १४अ-१५आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
ज्योतिष संग्रह , मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: अश्विनी भरणी कृतिका; अंति: (-), (पू.वि. अभिज्यनक्षत्र श्लोक पूर्ण तक
६३७३६. (+) नारचंद्रज्योतिष का संक्षेप, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्रले. ग. ऋद्धिसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०, १५४३८-४०).
ज्योतिषसार-लघुनारचंद्र ज्योतिष, संक्षेप, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: अर्हतं जिनं नत्वा; अंति: वाहनं महिषासनं.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
६३०४४. (+) श्रुतबोध की मनोरमा टीका, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ८, प्रले. आ. अमरकीर्तिसूरि (गुरु आ मानकीर्तिसूरि, नागपूरीवतपागच्छ); गुपि, आ. मानकीर्तिसूरि (गुरु आ. चंद्रकीर्तिसूरि, नागपुरीयतपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२५.५X१०.५, १७५० ).
श्रुतबोध- मनोरमा टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदिः श्रीमत्सारस्वतं धाम, अंतिः मकरोद् बालावबोधाव वै. ६३७४९. (+) भुवनदीपक व ज्योतिष संग्रह, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९ - १ (१) = ८, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि
सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., ( २६ ११, १५X४४).
१. पे. नाम. भुवनदीपक, पृ. २अ - ९आ, पूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. वि. १८४६ माघ शुक्ल, १, प्रले. मु. हर्षविजय, प्र.ले.पु. सामान्य.
आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि (-); अंतिः श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक १६३ (पू. वि. लोक-२५ से है.) २. पे. नाम. बीकानेर लग्नमान शीघ्रसिद्धि सारणि, पृ. ९आ, संपूर्ण, पे. वि. अष्टकवर्ग कोष्टक दिया है.
ज्योतिष संग्रह, मा.गु. सं., हिं., प+ग, आदि: पल दोइसे अड्डार मेष, अंतिः भाद्रपदादि ७ सोनो. ६३७६८. (+१) कविशिक्षा सह स्वोपज्ञ काव्यकल्पलता टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ५८-१७(१,३३ से ४८) =४१, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२५.५x११, १३९४८-५०).
"
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"
कविशिक्षा, आव, अरिसिंह, सं., पद्म, वि. १३वी आदि (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रतान १ स्तबक- २ से प्रतान- ३
स्तबक३ तक है व बीच का कुछ पाठ नहीं है.)
कविशिक्षा- काव्यकल्पलतावृत्ति, य. अमरचंद्र, सं., गद्य वि. १३वी आदि (-); अंति: (-).
.
६३७७४. (+) हैमलघुप्रक्रिया, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४४+१ (४३) ४५, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न- टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२६४११, १२४३६-३८).
सिद्धहेमशब्दानुशासन - हैमलघुप्रक्रिया, उपा. विनयविजय, सं., गद्य वि. १७१०, आदिः प्रणम्य परमात्मानं अंति (-), (पू.वि. आख्यात् प्रक्रिया अपूर्ण तक है.)
६३८०३. (+#) सामाइकाधिकारे चंद्रलेखा चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२५.५x१०.५, १५४६६).
""
चंद्रलेहा रास, मु.] मतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सरसति भगवति नमी करी, अंतिः मतिकुशल ० हुवें तेह,
ढाल - २९, गाथा - ६२४.
६३८०५. भुवनदीपक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६X१०.५, ६X३९-४३). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य वि. १३पू आदि सारस्वतं नमस्कृत्य अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१४८ तक है.)
,
१२९
भुवनदीपक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सरस्वती सबंधी यो मह; अंति: (-).
६३८३१. (+) कविशिक्षा सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२-५ (१ से ३, ५, ८ ) = ७, पू. वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न- संशोधित, जैदे., ( २६११, १६x४०-४४).
कविशिक्षा, श्राव. अरिसिंह, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतान १ स्तबक- २ अपूर्ण से स्तबक-५ अपूर्ण तक बीच-बीच के पाठ हैं.)
कविशिक्षा - काव्यकल्पलतावृत्ति, य. अमरचंद्र, सं., गाद्य वि. १३वी आदि (-); अंति: (-).
६३८३५. (+) पंचांग विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, प्रले. मनोहरदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैवे. (२५.५४१०.५, १५X४०-४७)
"
पंचांगगणित विधि, उपा. महिमोदय, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदिः परम जोति प्रभुकुं अंतिः महिमोदय० ग्रंथ समुदाय गाथा १६४.
(#)
६३८३८.
) वसुधारा व शुक्रउदय विचार, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५x११, १२X३५-४० ).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
१. पे नाम, वसुधारा, पृ. ९अ ६आ, संपूर्ण वि. १८५८, मार्गशीर्ष शुक्र १२, बुधवार, ले. स्थल, वीठोरानगर,
प्रले. मु. निहालहंस (गुरु पं. ईश्वरहंस); गुपि. पं. ईश्वरहंस (गुरु पं. देवेंद्र हंस); पं. देवेंद्र हंस (गुरु पं. अमृतहंस); पं. अमृतहंस, प्र.ले.पु. मध्यम, पे.वि. श्रीशांतिनाथजी प्रसादात्.
वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति,
२. पे. नाम. शुक्रउदय विचार, पृ. ६आ, संपूर्ण.
शुक्रोदय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: भरणीथी ८ आठ नक्षत्रम, अंतिः प्रजानें आनंद हूवै.
६३८३९. (१) भुवनदीपक, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.,
"
(२४.५X१०.५, १३X३१).
भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३५, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य अंति: (-) (पू.वि. श्लोक-१४२ अपूर्ण तक है.)
६३८४६. (+) सुभाषित संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-६ (१ से ५, ११) = ६, पू. वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२५.५x१०.५, ११४३२).
सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक- ८३ अपूर्ण से १७५ अपूर्ण तक
..
व श्लोक-१८८ अपूर्ण से२०२ अपूर्ण तक है.)
६३८४९. (+) सूरत की गझल व कवित्त, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५. कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X११, ११X३५-४०).
१. पे. नाम. सुरत की गझल, पृ. १-५आ, संपूर्ण, वि. १८७७, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, रविवार, ले.स्थल. सूरतबंदर,
प्रले. मु. रंगसोम (लोढीपोसालगच्छ); लिख. मु. दीपविजय (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य.
सूरतबंदर गजल, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्म, आदि: श्रीगुरु प्रेमप्रताप, अंति: सुरत सेहेर चरनन किओ, गाथा-८३. २. पे. नाम, औपदेशिक कवित्त, पृ. ५आ, संपूर्ण
मु. दीपविजय, पुहिं., पद्य, आदि: घोडें कुं घोडा अरु; अंति: दीप० जिभा पें तयार हे, गाथा - ३. ६३८५१. आर्यवसुधाराधारिणी, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, जैदे. (२४.५४१०.५, १५४४५).
"3
वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैनस्य, अंति: भाषितमभ्य नंदन्निति
६३८५६. (+) आर्यवसुधाराधारिणी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५. प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५.५४१०.५, १२X४६).
वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य अंति: भाषितमभिनंदन्निति,
६३८९३. (+) चंद्रकीर्ति टीका, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ६१-११ (१ से २,२९,५३ से ६०) =५० प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न, जैदे. (२६४११, १८४५७-६६ ).
"
सारस्वत व्याकरण- दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. संज्ञाप्रक्रिया ११ अव्य० अग्रेन्दृविक्षेपे पाठ से "आश्रमाश्च इतरे च समाहा" पाठांश तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.)
"
६३८९४. स्तवनचोवीसी, सज्झाय व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, दे., (२५.५X११, १९x४५). १. पे. नाम. स्तवनचोवीसी, पृ. १अ ५अ, संपूर्ण, वि. १९३१, वैशाख कृष्ण, ४, रविवार, ले. स्थल. सोपुर,
प्रले. श्राव. बसनचंद, प्र. ले. पु. सामान्य.
स्तवनचौवीसी, श्राव. विनयचंद्र गोकलचंद कुमट, मा.गु., पद्य वि. १९०६, आदि: श्रीआदिसरस्वामी हो, अंति जलमे जल जातरी प्राणी, स्तवन- २४.
२. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
उपदेशपच्चीसी, मु. जेमल ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: मनखजनम दोहेलो लहो रे; अंतिः जमल० इम तर सीर मातबी,
"
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गाथा - १५.
३. पे. नाम. भवदेवनागिला सज्झाय, पृ. ५आ, संपूर्ण.
मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७२, आदि: भावदेव जागी मोहीणी, अंति: रतन० मुनी सीस नमाय, गाथा- ११.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
१३१ ६३८९५. व्याख्यान संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (२५.५४११, ११४२९-३३).
__ व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., गद्य, आदि: देवपूजा दया दानं; अंति: गुरु हितोपदेशै दैसै. ६३८९६. कर्मग्रंथ-१ से ६, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३२, कुल पे. ६, जैदे., (२७४११.५, ९४३३-४०). १. पे. नाम, कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण.
आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं, गाथा-६०. २. पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ५आ-८अ, संपूर्ण.
आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: देविंद० नमह तं वीर, गाथा-३४. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ८आ-१०आ, संपूर्ण.
आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्क; अंति: देविंद कम्मत्थयं सोउ, गाथा-२५. ४. पे. नाम. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, पृ. १०आ-१७अ, संपूर्ण.
आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिअजिणं जिअ१ मग्गण; अंति: लिहिओदेविंदसूरीहिं, गाथा-८६. ५.पे. नाम. शतक नव्य कर्मग्रंथ, पृ. १७अ-२५अ, संपूर्ण.
आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति: देविंदसूरि०आयसरणट्ठा, गाथा-१००. ६. पे. नाम. सप्ततिका कर्मग्रंथ, पृ. २५अ-३२अ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: चंदमहतर० होइ नउईउ, गाथा-९०. ६३९०६. श्लोक संग्रह व चिकित्सासार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१, कुल पे. २, जैदे., (२८x१०, १०४३९). १. पे. नाम. श्रृंगारश्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह **, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-३. २.पे. नाम. चिकित्सासार संग्रह, पृ. १आ-२१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: यत्र वित्रासमायांति; अंति: (-), (पू.वि. अध्याय-३
श्लोक-१११ अपूर्ण तक है.) ६३९२७. (#) प्रश्नोत्तररत्नमाला की कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, २०४५०). प्रश्नोत्तररत्नमाला-कथा, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: निरकांक्षदावेषयिकी; अंति: (-), (पू.वि. मेघकुमार की कथा
तक है.) ६३९३०. (+#) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५६-१(१)=५५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३४-३९).
अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: रोषोक्तावु
नतौ नमः, कांड-६, ग्रं. १४५२, (पू.वि. कांड-१ श्लोक-१४ अपूर्ण से है.) ६३९३१. (+#) नारचंद्रज्योतिष सह टबार्थव बारहभावना विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३१, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद
सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, ५४३२). १. पे. नाम. नारचंद्र ज्योतिष सह टबार्थ, पृ. १अ-३०अ, संपूर्ण.
ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: दष्टाभृष्टार्थ सारथक, श्लोक-२१७, संपूर्ण. ज्योतिषसार-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीलक्ष्मीवंत राग; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम
श्लोक का टबार्थ नहीं है.) २. पे. नाम. बारभवन विचार, पृ. ३०अ-३१आ, संपूर्ण.
१२ भवन विचार, सं., पद्य, आदि: सूर्य भोमस्तथा राहू; अंति: दय्यः उच नीचउ दीकृते, श्लोक-१४. ६३९३२. (+) मानतुंगमानवती चतुष्पदी, संपूर्ण, वि. १७७६, फाल्गुन शुक्ल, ३, मंगलवार, मध्यम, पृ. ४५, ले.स्थल. देवनगर,
प्रले. पं. नेमविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०.५, १३४४३).
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१३२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद
पदांबुजे; अंति: मोहनविजयमंगलमालो है, ढाल-४७, गाथा-१०१७. ६३९३३. (+#) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १८७६, आश्विन शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. ७२-३९(१ से ३९)=३३,
ले.स्थल. विसाउ, प्रले. श्राव. लाला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १०४३२-३६).
अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदिः (-); अंति: रोषोक्ता
नतौ नमः, कांड-६, ग्रं. १४५२, (पू.वि. कांड-३ श्लोक-६५ अपूर्ण से है.) ६३९३४. (१) नारचंद्र ज्योतिष, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २०, प्रले. मु. कल्याणकुशल; पठ. सा. वंदना; मु. नयनसुख, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०, ११४३२-३५).
ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: सुभिक्खं न संदेहो, श्लोक-३३६. ६३९३५. (#) नारचंद्र ज्योतिष सह यंत्रकोद्धार टिप्पण, संपूर्ण, वि. १७५०, वैशाख शुक्ल, १, बुधवार, मध्यम, पृ. १५,
ले.स्थल. कालिकापुरी, प्रले. मु. दयासागर पंडित (गुरु ग. कमलहष); गुपि.ग. कमलहर्ष (गुरु वा. मानविजय); वा. मानविजय; पठ. मु. लब्धिकमल (गुरु मु. दयासागर पंडित), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४०).
ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: शनि प्रोक्तो न संशयः, श्लोक-३५८. ज्योतिषसार-यंत्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: सरस्वतीं नमस्कृत्य; अंति: उभी संक्रांति
आवइ. ६३९३७. (+#) अभिधानचिंतामणि नाममाला कांड-३ से६, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४१-४(१४,१९,२२,२८)=३७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४३७-४५).
अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: रोषोक्तावु
नतौ नमः, ग्रं. १४५२, (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. कांड-३ श्लोक-३८४ अपूर्ण से ४०० अपूर्ण तक, ४१६ अपूर्ण से ४४४
अपूर्ण तक कांड-४ श्लोक-४ अपूर्ण से ३५ अपूर्ण तक व श्लोक-१८५ से २१४ तक के पाठ नहीं हैं.) ६३९३९. सारस्वत व्याकरण की चंद्रकीर्ति टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, दे., (२६.५४१०.५, १७X४७).
सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: नमोस्तु सर्वकल्याणपद; अंति:
(-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., स्वरांत पुंलिंग अपूर्ण तक लिखा है.) ६३९४०. अभिधानचिंतामणि नाममाला सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३३, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२४४१०.५, १-११४४५).
अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति:
(-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कांड-३ श्लोक-५० अपूर्ण तक लिखा है.) अभिधानचिंतामणि नाममालाशिलोंछ-वृत्ति, वा. वल्लभ वाचक, सं., गद्य, वि. १६६७, आदि: श्रीमदर्हतमानम्य;
अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ६३९४१. (+) क्षेमेंद्रकृत सारस्वत टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १५४५२-५६).
सारस्वत व्याकरण-क्षेमेंद्रीवृत्ति, आ. क्षेमेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: तदर्थतत्त्वाभिनिविष; अंति: य परिस्फुटान्. ६३९४२. वाक्यप्रकाशसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ११, प्रले. मु. माणिक्यचंद्र; पठ. मु. हेमचंद्र (गुरु मु. माणिक्यचंद्र), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६४११, ३-७४४७-५१).
वाक्यप्रकाश, ग. उदयधर्म, सं., पद्य, वि. १५०७, आदि: प्रणम्यात्मविदं; अंति: उदयधर्म० प्रकाशोयं, श्लोक-१३१.
वाक्यप्रकाश-टीका, मु. हर्षकुल, सं., गद्य, वि. १५८०, आदि: श्रीमज्जिनेंद्रमानम्; अंति: पदि चाव्ययीभावसमासः. ६३९४३. (+#) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २१, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,
प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १२४३८).
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१३३
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति:
(-), (पू.वि. कांड-३, श्लोक-१११ अपूर्ण तक है.) ६३९४४. (+#) भुवनदीपक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७९९, कार्तिक शुक्ल, १५, सोमवार, मध्यम, पृ. २८-६(१,९ से १०,२४,२६ से
२७)=२२, प्रले. पंडित. भैरवदास तिवारी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (४५५) प्रत्रश्य गुणदोषेण, जैदे., (२४.५४१०.५, ४४२७). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: (-); अंति: श्रीपद्मप्रभुसूरिभिः, श्लोक-१७३, (पू.वि. प्रारंभ व
बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., श्लोक- ४ अपूर्ण से ५० अपूर्ण तक, ६३ अपूर्ण से १४६ अपूर्ण तक, १५५ अपूर्ण से १५९
अपूर्ण तक व १७२ अपूर्ण से है.) भुवनदीपक-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., श्लोक-१५८ तक के टबार्थ लिखे हैं.) ६३९४५. (+#) सामुद्रिकशास्त्र सह अर्थ, संपूर्ण, वि. १७२२, मध्यम, पृ. १३, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४५०).
सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदि: आदिदेवं प्रणम्यादौ; अंति: वृद्धिं भवेद्यत, अध्याय-३६, श्लोक-२७३.
सामुद्रिकशास्त्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: पहिला आउखु जौइजै; अंति: आवइं कुलवाधइ यशवाधइ. ६३९४६. (+#) नारचंद्र ज्योतिष, संपूर्ण, वि. १७९२, पौष कृष्ण, ९, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २६, ले.स्थल. सूर्यपुर,
प्रले. मु. लब्धिविजय; पठ. मु. गोविंदविजय (गुरु मु. लब्धिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१५.५४१०, १४४२३).
ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: दक्षिणेकार्यसिद्धि, श्लोक-२९४. ६३९४७. आठकर्मप्रकृति विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, जैदे., (२५४११, ९४२३-२८).
८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: आठ कर्म ते कहिये छइ; अंति: विषइ उद्यम करिवउ. ६३९४८. (#) राजप्रश्नीयसूत्र का बीजक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५४१०.५, १८४५२). राजप्रश्नीयसूत्र-बीजक, मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहताणं० तेणं; अंति: (-), (पू.वि. सूर्याभदेव द्वारा भगवान की पूजा
करने के प्रसंग अपूर्ण तक है.) ६३९४९. (#) उपधान विधि, संपूर्ण, वि. १७८६, भाद्रपद शुक्ल, ५, रविवार, मध्यम, पृ. १७, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४९.५, ९४३९-४२).
उपधानतपविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पहिलै नवकारनै उपधान; अंति: समकितनी मेले जाणवी. ६३९५०. (#) शालिभद्र चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १८, ले.स्थल. सुभटपुर, प्रले. मु. विनीतसागर (गुरु मु. भावसागर, तपागच्छ); पठ.सा. कसूबा आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४४२-४६). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: शासननायक समरीइं; अंति: वंछित फल लहिस्यै
जी, ढाल-२९, गाथा-५१३. ६३९५१. (+#) पगामसज्झाय सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ४-१३४३०-३३).
पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि पडिक्कमिउ; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, संपूर्ण. पगामसज्झायसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: इच्छामि ईच्छं वांछउ; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
अंतिम गाथा का टबार्थ नहीं लिखा है.)
पगामसज्झायसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), संपूर्ण. ६३९५२. (+#) जिणरिख जिणपालरोचोढाल्यो व देवकीजीरी चौपीरी ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, कुल पे. २,
ले.स्थल. खरवा, प्रले. कीरनचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १०४३२).
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१३४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. जिनरक्षितजिनपाल चौढालिया, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण, वि. १८८०, ज्येष्ठ कृष्ण, १२, शुक्रवार. जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, रा., पद्य, आदि: अनंत चौवीसी आगे हुई; अंति: माहाविदेह जासी मोक्ष, ढाल-४,
गाथा-८५. २. पे. नाम. देवकी सज्झाय, पृ. ५आ-१५अ, संपूर्ण, वि. १८८०, ज्येष्ठ शुक्ल, ३, बुधवार.
मु. लावण्यकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: रिठनेम नामे हुवा लखण; अंति: शुक्लाष्टमीये सुखकार, ढाल-११. ६३९५३. (#) नवस्मरण व भैरवछंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २९, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.,
(२५.५४१०.५, ९४२४). १.पे. नाम. नवस्मरण, पृ. १अ-२९अ, संपूर्ण, वि. १९२६, ज्येष्ठ शुक्ल, ४, रविवार, ले.स्थल. चांपानेर, पे.वि. बडीशांति के
साथ बीच में लघुशांति भी लिखी हुई है.
मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, स्मरण-९. २.पे. नाम. भैरव छंद, पृ. २९आ, संपूर्ण.
भैरवदेव छंद, रा., पद्य, आदि: नमो आद भैरु भूजा तेज; अंति: माठा हम प्रण थारे. ६३९५४. (+#) शालिभद्र रास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १८, प्रले. मु. चंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १५४३६-३९). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै; अंति: मनवंछित फल
लहिस्यइजी, ढाल-२९, गाथा-५१०. ६३९५५. (+#) मृगावती चरित्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३१, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १४४३६). मृगावतीसती चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: समरु सरसति सामिणी; अंति: वृद्धि
सुजगीसा छे, खंड-३, गाथा-७४५, (वि. ढाल ३७) ६३९५६. (+#) स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २३-८(१,६,८,१२,१५,२० से २२)=१५, कुल पे. २३,
प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १४४५४). १.पे. नाम. स्तवनचौवीशी, पृ. २अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. स्तवनचौवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जिनराज०दोलति पावै जी, स्तवन-२४,
(पू.वि. सुपार्श्वजिन स्तवन गाथा-४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन ऋषभ जयो सदा; अंति: बीजै भव दुख दाह, गाथा-१४. ३. पे. नाम. रीषभ तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, मु. विक्रम, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: प्रथम आदि जिणंद; अंति: विक्रम० सुख जय भने. ४. पे. नाम. ऋषभ तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, मु.क्षेमकरण, मा.गु., पद्य, आदि: आदिजिणेसर आज अम्हीणो; अंति: खेमकरण जो लेवो हो,
गाथा-८. ५. पे. नाम. अजितनाथ तवन, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं.
अजितजिन स्तवन, मु. क्षेमकरण, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय अजिय जिणंद,; अंति: खेमकरण० सुख राखिजो ए,
गाथा-५, संपूर्ण. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं.
मा.गु., पद्य, आदि: जगगुर पाशजिनंद २; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ तक है.) ७. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ७अ, पूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पार्श्वजिन स्तवन, मु. क्षेमकरण, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: खेमकरण० सानिधकारी, गाथा-५, (पू.वि. गाथा-१
अपूर्ण से है.)
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८. पे. नाम. पार्श्व स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, रा., पद्य, आदि: सानिधिकारी पाशजिणेसर; अंति: हो परतख श्रीपदमावती, गाथा- ७. ९. पे. नाम. पार्श्वनाथ तवन, पृ. ७आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सारां गुणवंतानै, अंति: धन धन श्रीजिन ध्यावै, गाथा - १२. १०. पे नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मा.गु., पद्य, आदि: साधो भाई चित्त जिन, अंति: (-), (पू. वि. गाथा ४ अपूर्ण तक है.)
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११. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ९अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
मु. जसवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जसोवरधन० करी जी लो, गाथा-५, (पू. वि. मात्र अंतिम गाथा है.) १२. पे. नाम. नेमराजमति सज्झाय, पृ. ९अ- ९आ, संपूर्ण.
मराजिमती सज्झाय, मु. जसवर्द्धन, मा.गु, पद्य, आदि कविमाता करज्यो मया अंति: जसोवरधन० नरभव लाहरी, गाथा - ११.
१३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ९आ, संपूर्ण.
मु. वल्लभ, पुहिं., पद्य, आदि: चरणकमल सेवासुं चाव; अंति: तस वल्लभ जिनगुण गावै, गाथा - १०.
१४. पे. नाम. पार्श्व तवन, पृ. ९आ-१०अ संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, मु. धर्मसिंघ, पुहिं., पद्य, आदि: सबकोइ जपो जिन जस वास; अंति: धर्मसिंघ० जिनवर पास,
गाथा-४.
१५. पे. नाम. मेघउपाध्याय कृत चोवीसी, पृ. १०अ १४आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है.
स्तवनचीवीसी, उपा. मेघविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीजिन जगआधार, अंतिः भावे मेघ वाचक जिनवरु स्तवन-२४, (पू.वि. शीतलजिन स्तवन गाथा-३ अपूर्ण तक व धर्मजिन स्तवन गाथा - ३ अपूर्ण से है.)
१६. पे नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
पुहिं., पद्म, आदि रंग लागो त्रिभवननाथ; अंति: (-). (पू.वि. गाथा ६ तक है.)
१७. पे नाम. अजितशांति तवन, पृ. १६अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है.
अजितशांति स्तवन, संबद्ध, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., पद्य, वि. १५वी, आदि: (-); अंतिः श्रीमेरुनंदन उवझाय ए, गाथा-३२, (पू.वि. गाथा- ३० अपूर्ण से है.)
१८. पे. नाम. पंचकल्याणक गीतमंगल, पृ. १६ अ-१८आ, संपूर्ण.
पंचकल्याणक मंगल, मु. रूपचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पणमवि पंच परमगुरु; अंति: रूपचंद० चोसंघह जयौ, ढाल - ५, गाथा - २५.
१९. पे नाम, चोवीसजिनसप्तवोल स्तवन, पृ. १८आ. १९आ, संपूर्ण.
२४ जिन मातापितादि ७ बोल स्तवन, मु. दीप, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: श्रीजिनवाणी सरस्वती; अंतिः दीपो० कुलथपुर चोमास ए, गाथा - ३१.
२०. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १९आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मु. भोज, मा.गु., पच, वि. १७२३, आदि: श्रीसद्गुरूना चरण नम; अंतिः (-). (पू. वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) २१. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २३अ, संपूर्ण.
मु. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आससेन कुलचंदा हो, अंतिः शंतिविजय० भमरलो जी, गाधा-७२२. पे नाम, सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २३अ-२३आ, संपूर्ण.
१३५
सीमंधरजिन स्तुति, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर वंदीयै, अंति: ज्ञानचं० समझाय हो जिन, गाथा १४. २३. पे नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. २३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
आदिजिन स्तवन- आडंपुरमंडन, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि जिन जीम जाने ते दिन अंति: (-), (पू. वि. गाथा - २० अपूर्ण तक है.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
१३६
६३९५७, (+) पद्मावती आराधना, उदाइ ढाल, कर्मपच्चीसी, स्तवन, पद, व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २३-२(११ से १२) २१, कुल पे. ३०, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित, जैवे. (२४.५११, १९५०).
१. पे. नाम. पार्श्वजिन निसाणी - घग्घर, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण.
मु. जिनहर्ष, पुहिं, पद्य, आदि सुखसंपति दायक सुरनर, अंति: गुण जिनहर्ष कहंदा है, गाथा-२१.
२. पे. नाम. जिणपालजिणऋपनी चौढाल्ची, पृ. २अ- ३आ, संपूर्ण
जनपालजिनरक्षित चौडालियो, मु. जेमल ऋषि, मा.गु. पच, आदि: अनंतचौवीसी आगे हुए अंति: (१) वीदेह में जासी मोखे, (२) ऋष जेमल कही विस्तारी, डाल- ४, गाथा- ७३.
३. पे. नाम. मयणरेहानी ढाल, पृ. ३आ-७अ, संपूर्ण.
मदनरेखासती रास, मा.गु., पद्य, आदि: जुवां मास दारु तणो; अंति: पोहोचे मोख मझारि, गाथा- १६३.
४. पे. नाम. चंदनबालासती सज्झाय, पृ. ७अ ८अ संपूर्ण
मु. चोथमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: सासणनायक संजम लीधो; अंतिः चौथमल नित समरो भाइ, गावा- ३१.
५. पे. नाम. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पृ. ८अ, संपूर्ण.
मु. चोथमल, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: गजसुखमाल देवकीनंदन, अंति: चोथमल० नित समरो भाई, गाथा - १८. ६. पे. नाम. गुरुगुण सज्झाच, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण.
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क्र. रायचंदजी, पुहिं., पद्य, वि. १८४०, आदि: गुरु अमृत सम लागे; अंतिः ऋष रायचंद कही समझावे, गाथा - २१. ७. पे. नाम. नेमिजिन लावणी, पृ. ८आ- ९अ, संपूर्ण.
मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: तुम तजकर राजुलनार तज; अंति: जिनदास सुणो जिनवर रे, गाथा- ४.
८. पे. नाम. १६ जिन स्तवन, पृ. ९अ, संपूर्ण.
मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: ऋषभ अजित संभवस्वामी; अंति: रायचंद० दुरे हरणां, गाथा-१०. ९. पे नाम. ८ जिन स्तवन- वर्ण प्रभातियुं, पृ. ९अ ९आ, संपूर्ण
मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: पह उठी प्रभाते; अंति: रायचंद० हरख उलास रे, गाथा- १०. १०. पे नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. ९आ, संपूर्ण.
मु. दुर्गादास, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ अजित संभव देवा, अंति: दुर्गदास०टले जरमरणां, गाथा-७.
११. पे. नाम. लोभपच्चीसी, पृ. ९आ-१०अ संपूर्ण.
मु. रायचंद ऋषि, पुहिं, पद्य, वि. १८३४, आदि: लोभी मनुषसुं प्रीत न अंतिः रायचंद० साबासो जी, गाथा २५.
"
१२. पे. नाम. सगपण व्यवहारपच्चीसी, पृ. १०अ १० आ, संपूर्ण.
मु. लालचंद, मा.गु., पद्य वि. १८६३, आदि: श्रीअरहंत सीद्ध, अंति: लालचं० भाणपुर के मांइ, गाथा-२५.
१३. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. १०आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मु. आसकरण, पु.ि, पद्य, बि. १८३८, आदिः साधुजीनें वंदना नीत अंति: (-).
"
१४. पे नाम, विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, पृ. १३अ १४अ संपूर्ण,
मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: श्रीवीतराग जिणदेव; अंतिः ऋष लालचंद सीरनांमी, गाथा-१६. १५. पे. नाम पद्मावती आराधना, पृ. १४अ १४आ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवे राणी पद्मावती, अंति: समयसुंद० ततकाल ते, ढाल -३, गाथा-३४.
१६. पे नाम. सुगुरुपच्चीसी, पृ. १४-१५अ संपूर्ण.
मु. जिनहर्ष, मा.गु, पद्य, आदिः सुगुरु पीछांणो नर, अंतिः जिनहर्ष० उछरंग जी, गाथा-२५.
१७. पे नाम, कर्मपच्चीसी, पृ. १५अ-१६अ, संपूर्ण.
कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देव दाणव तीर्थंकर, अंति: ऋद्धिहर्ष० जिणराजा रे,
गाथा - २६.
१८. पे. नाम. सीतासती सज्झाय- शीलविषये पृ. १६अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
१३७ ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जलजलती मिलती घणीरे; अंति: जिनहर्ष० पाय रे. १९. पे. नाम. गर्भसित्तरी, पृ. १६अ-१७आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उत्पति जोज्यो आपणी; अंति: इम कहे श्रीसार ए,
गाथा-७१. २०. पे. नाम. भरतचक्रवर्ति सज्झाय, पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण. ___ भरतचक्रवर्ती सज्झाय, रा., पद्य, आदि: आरीसारा भुवनमें बेठा; अंति: मुगति गयो सोभागी, ढाल-२. २१. पे. नाम. चेलणासती चौढालियो, पृ. १८अ-१९आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३३, आदि: अवसर जे नर अटकलै तेह; अंति: रायचंद० बारस वखांण, ढाल-४,
गाथा-५६. २२. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-जिह्वा, पृ. १९आ-२०अ, संपूर्ण.
गच्छा. विजयक्षमासूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जीभडली सुंण बापडली; अंति: खिम्यासूरि० सोइ रे, गाथा-१८. २३. पे. नाम. उदाइ ढाल, पृ. २०अ-२२आ, संपूर्ण.
उदाइरो वखाण, मु. जैमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: चंपानगर पधारीया; अंति: जेमल० मोयो रे, ढाल-६. २४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २२आ, संपूर्ण.
मु. रतनचंद ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: ए जुग जाल सुपने की; अंति: रतनचंद० मिटाणा रे, गाथा-८. २५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २२आ-२३अ, संपूर्ण.
मु. रतनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: थारी फुलसी देह पलकमे; अंति: रतनचंद० अभीलाषे रे, गाथा-५. २६. पे. नाम. औपदेशिक पद-साधु, पृ. २३अ, संपूर्ण.
कबीरदास संत, पुहि., पद्य, आदि: नाही धोइ तिलक ज छापा; अंति: कबीर०भावसे मिलता हे, कडी-८. २७. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २३अ, संपूर्ण.
उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: वीसरे मति नाम; अंति: क्षमाकल्याण०सदानीको, पद-३. २८. पे. नाम. धर्मजिन होरी, पृ. २३अ, संपूर्ण.
मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., पद्य, आदि: मधुवन मे जाय मची; अंति: क्षमा कहै करजोरी, पद-२. २९. पे. नाम. चंदनबालासती सज्झाय, पृ. २३अ-२३आ, संपूर्ण.
मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: दुधीवाहन पुत्री; अंति: रतनचंद० जोडी टंकसाला, गाथा-१४. ३०. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-आयुष्य, पृ. २३आ, संपूर्ण.
मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: आउखु तुट्याने सांधो; अंति: चोथमल० निस्तार रे, गाथा-११. ६३९५८. प्रस्ताविक श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२४४१०.५, ५-१३४३२-३५).
औपदेशिक श्लोक संग्रह*, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: प्रथम श्रोतागुण एह; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३२९ अपूर्ण
तक है.) ६३९५९. वंकचूल रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदे., (२५.५४११, १४४३९-४२).
वंकचूल रास, मु. विवेकसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८७२, आदि: प्रणमुंगोडी पासजी; अंति: रीतनो पुरी पनरमी ढाल,
ढाल-१५, गाथा-३११. ६३९६०. दंडकसूत्र सह व्याख्या, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, दे., (२५४११, १०x१८-२२).
दंडक प्रकरण, म. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ.
गाथा-४०.
दंडक प्रकरण-व्याख्या, मा.गु., गद्य, आदि: चउवीस तीर्थंकर; अति: दंडकविचाररूप स्तवनम्. ६३९६१. शांतिनाथ रास-खंड चोथो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, दे., (२५४१०.५, १२४५०).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
शांतिजिन रास, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८५, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.
६३९६२. (+#) रूपसेन चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २० - १ (१४) = १९, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X१०.५, १८३१-३६).
रूपसेनकनकावती चरित्र - चतुर्थव्रतपालने, आ. जिनसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीमंत दूरा शांत; अंति: (-), (पू.वि. शत्रुंजयतीर्थ पर पूजा करने के प्रसंग अपूर्ण तक है व बीच का कुछ पाठ नहीं है.) ६३९६३. (४) अंजनासुंदरी रास, संपूर्ण, वि. १८९०, आश्विन कृष्ण, ११, बुधवार, मध्यम, पृ. २७, प्रले. मु. गिरधरलाल (गुरु मु. सूर्यसौभाग्य); गुपि. मु. सूर्यसौभाग्य ( गुरु मु. वल्लभसौभाग्य); मु. वल्लभसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरी हैं, प्र.ले. श्लो. (१९९७) धुर अक्षर भाव ही भला, जैदे., (२४X१०.५, ११x२७-३१).
अंजनासुंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदिः शील समो वह को नहीं अंतिः भार्या जगतनी माय तो, गाथा- १६५. ६३९६४. (+) प्रतिष्ठाविधि, अध्यात्मगीता व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७८, मध्यम, पृ. १४, कुल पे. ३, प्र. वि. पवच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२४.५X१०.५, ११४३७-४२).
१. पे. नाम जिनचैत्यविंग विधि, पृ. १अ ११अ. संपूर्ण.
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जिनबिंब प्रतिष्ठा विधि, मा.गु., सं., गद्य, आदि: हिवे पूर्वोक्त भला; अंति: पूजा रात्रिजागरण करे.
२. पे. नाम. अध्यात्मगीता, पृ. ११अ १४अ, संपूर्ण, वि. १८७८, पौष शुक्ल, ४, शुक्रवार, ले. स्थल. अजीमगंज, प्रले. श्राव. रतनचंद बोथरा, प्र.ले.पु. सामान्य.
ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणमीह विश्वहित जैन, अंति: रंगी मुनि सुप्रतीता, गाथा ४९. ३. पे. नाम. ऋषभ स्तवन, पृ. १४आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मन मधुकर मोहि रह्यो; अंति: सेवे ते बे करजोडी रे, गाथा-५. ६३९६५. भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध + कथा, अपूर्ण, वि. १६८७, ज्येष्ठ कृष्ण, २, रविवार, जीर्ण, पृ. १९-५(१ से ५)=१४,
प्रले. मु. अमरसिंघ (गुरु मु. मुगरजी, तपागच्छ); गुपि. मु. मुगरजी (तपागच्छ); अन्य. आ. कमलकलशसूरि (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रत जीर्ण और किनारी खंडित होने से पत्रांक अनुमानित दिया है., जैदे., (२५X१०.५, १३X३५).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (); अंति मानतुंग० लक्ष्मी, श्लोक-४४ (पू.वि. श्लोक-१२ से है.) भक्तामर स्तोत्र - बालावबोध + कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: लक्ष्मी स्वयं वर.
६३९६६. महावीरजिन २७ भव वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, जैदे., (२४.५X११, १६x४३-४९).
महावीरजिन २७ भव, मा.गु., गद्य, आदि: पश्चिम माहाविदेहने, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., शुलपाणी यक्ष उपद्रव तक लिखा है.)
६३९६७. (+०) दश श्रावक गीत, संपूर्ण, वि. १७१८, मध्यम, पृ. १०, ले. स्थल बीकानेर, प्र. वि. पदच्छेद सूचक
लकीरें संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०, १०X३४-३७).
१० श्रावक गीत, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, आदि: वाणियगामि गाथापती; अंति: लइ रंग भरि जयतसी जी, गीत-१०, गाथा - १४६.
६३९६९. (+) अभिधानचिंतामणि शेषसंग्रहसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित, जैदे. (२५.५x११, १४४५० ).
"
अभिधानचिंतामणि नाममाला- शेष नाममाला, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदिः प्रणिपत्यार्हतः सिद्; अंति: निपात्यंते पदे पदे, श्लोक-२०४, ग्रं. ३००.
६३९७१. (+) सिद्धहेमशब्दानुशासन अष्टम अध्याय, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६४११, १८x४९-५५)
"
प्राकृत व्याकरण हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य वि. १२वी, आदि: अथ प्राकृतम् बहुल, अंति संस्कृतवत्सिद्धम्, पाद- ४, सूत्र- ४४५.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
१३९
६३९७४. (+०) सिद्धहेमशब्दानुशासन सह लघुवृत्ति, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ११-६ (१ से ४, ६ से ७) ५ पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X११, १८X५०-६०). सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य वि. ११९३, आदि: (-); अंति: (-),
(पू.वि. अध्याय-३ पाद-४ सूत्र- ३३ अपूर्ण से सूत्र - ६७ अपूर्ण तक व अध्याय- ४ पाद- १ सूत्र- ५६ अपूर्ण से पाद-२ सूत्र- ११८ अपूर्ण तक है.)
सिद्धहेमशब्दानुशासन - स्वोपज्ञ लघुवृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६३९७५. (+) लिंगानुशासन सह अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र. वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न - संशोधित., जैदे., (२६X११, १२x२३-३५).
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हैमलिंगानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, बि. १२वी, आदि पुल्लिंग कटणथपभमयर, अंति हेम० शासनानि लिंगानां प्रकरण ८, श्लोक-१३९.
हैमलिंगानुशासन-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: नमः सर्वविदेकादयोदंत; अंति: काटकं कापलं इत्यादि.
६३९७६. (#) पासाकेवली, संपूर्ण, वि. १७५७, फाल्गुन शुक्ल, १५, गुरुवार, मध्यम, पृ. ७, प्रले. मु. गुणा (गुरु उपा. उदयशेखर); गुपि. उपा. उदयशेखर (गुरु उपा. क्षिमाशेखर); पठ. श्राव. देदा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै.., (२५X११, १४X३७-४२).
पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो भगवती, अंतिः सत्योपासक केवली, श्लोक-१८४. ६३९७७. शालिभद्रधन्ना चौपई, अपूर्ण, वि. १७८२, पौष शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. ६-१ (१) = ५, प्र. वि. पत्रांक अनुमानित दिया गया है., जैवे. (२६४१०.५, ११४२२-३१).
शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८ आदि (-); अंति: मतिसार० फल लहिल्यै जी ग्रं. ७००, (पू.वि. डाल- २६, दूहा- २ अपूर्ण से है.)
६३९७८. (+#) रोहक सज्झाय व मानतुंग कथा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७- २ (२, ४) =५, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२४.५४१०.५, १०-१३४३७-४०).
१. पे. नाम. रोहक सज्झाय, पृ. १अ १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है.
रोहक सज्झाय- बुद्धिविषये, मा.गु., पद्म, आदि: नामें सीस बंदो; अंति (-), (पू. वि. ढाल २ गाथा-५ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम मानतुंगमानवती रास, पृ. ३अ-७आ, अपूर्ण, पू. वि. बीच के पत्र हैं.
अनुपचंद - शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १८७०, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल ३ गाथा ४ अपूर्ण से ढाल ८ दूहा-३
"
अपूर्ण तक है.)
६३९७९ १२८ कर्मप्रकृति विचार, रथनेमि सज्झाय व भावना विचार, संपूर्ण, वि. १७४४, भाद्रपद कृष्ण, ८, शनिवार, मध्यम,
पृ. ५. कुल पे. ३, ले. स्थल. फलोदी, जैवे. (२४.५x११, १६x४०-४४).
१. पे. नाम. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, पृ. १अ ५आ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदिः आठ कर्म ते केहा; अंति: मन राखइ उद्यम करइ.
२. पे. नाम. रथनेमि सज्झाय, पृ. ५आ, संपूर्ण.
रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. तेजहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: तेजहरख ० रे आण रे, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम गाथा है.)
३. पे. नाम. २५ भावना विचार, पृ. ५आ, संपूर्ण.
२५ भावना विवरण, मा.गु., गद्य, आदि (-): अंति: अध्ययने ए विचार छह, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "फरस पामी० पाचमा व्रतनी ५ भावना जाणवी" पाठांश से है.)
६३९८० (+) विक्रमचोबोली चोपाई, अपूर्ण, वि. १७६१, पौष कृष्ण, १४, गुरुवार, मध्यम, पृ. ९-२ (१ से २) ७,
प्रले. मु. नित्यविजय गणि (गुरु पं. गुलालविजय गणि); गुपि. पं. गुलालविजय गणि (गुरु पं. रंगविजय गणि); पं. रंगविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X११, १५X४८).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
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विक्रमचौबोली रास पुण्यफलकथने, वा. अभवसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: (-); अंति: मतिसुंदर काजे कही, (पू.वि. ढाल -४ गाथा - ९ अपूर्ण से है.)
६३९८१. वरदत्तगुणमंजरी कथा, संपूर्ण, वि. १८८०, श्रावण शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ५, ले. स्थल. देसणोक, प्रले. सा. जीता, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X११, १३X२७-३०).
वरदत्तगुणमंजरी कथा, मा.गु., सं., गद्य, आदि: ज्ञानं सारं सर्व, अंति: मुक्तिं गतः. ६३९८२. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, ७, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, वे., (२५X१०.५, ७२०).
"
पार्श्वजिन स्तवन- अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु, पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणी ब्रह्मवादिनी, अंति: जिन नाम अभिराम जपंता, ढाल ५, गाथा - ५५.
६३९८३. सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २२-१७ (१ से १७) =५, कुल पे. ५, दे., (२५४११, १३४३१). १. पे. नाम. नागिला सज्झाय, पृ. १८अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
भवदेवनागिला सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: समयसुंदर कहे सार रे. २. पे. नाम. जंबुकुमार सज्झाय, पृ. १८अ - १९अ, संपूर्ण.
जंबूस्वामी सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजगृही नयरी वसे ऋषभ; अंति: सिधिविजय सुख थाया रे,
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गाथा - १९.
३. पे. नाम सियल चौडालियो, पृ. १९अ २०अ, संपूर्ण
शीयलव्रत चौढालियो, मु. जीवण, मा.गु., पद्य, आदि: चोविसे जिन आगमे रे; अंति: जीवण० नगर गुण गावे रे, ढाल-४, गाथा २०.
४. पे. नाम. धर्मराजा कागलीयो, पृ. २०अ २२अ, संपूर्ण.
सीमंधरजिन पत्र, क. नर, मा.गु., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रीमहाविदेह; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पत्र-२ नहीं लिखा है.)
५. पे. नाम. नोकार सज्झाय, पृ. २२अ-२२आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. आनंदहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनवकार मेहेमा घणो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा - १७ अपूर्ण तक है.)
६३९८४. रुकमणी रास, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५, वे., (२५x१०.५, १६४४१).
रुक्मिणी रास, मु. नंदलाल, रा., पद्य, आदि: वीर जिनेश्वर बंदिये अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. गाथा - १२५ तक लिखा है.)
६३९८६. पंचमीतपविषये गुणमंजरीवरदत्त कथा स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, ले. स्थल, अहिपुर, जैदे, (२५x११,
१०X२४-२७).
ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु, पद्य, वि. १७९३, आदिः सुत सिद्धारथ भूपनो; अंति: सकल भवि मंगल करे, डाल- ६, गाथा- ६८.
६३९८७. (+) भगवतीसूत्र बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ६, प्रले. मु. दासाजी शिष्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैवे. (२४.५x१०.५, ३५-४०X१७-२१)
"
भगवतीसूत्र - बोल संग्रह, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: (१) कतिविहेणं भंते, (२) अथ यद्यपि सर्व, अंति: ( १ ) समच आबंध कहि, (२) ज माहि जाइ भ.श. २४.
६३९८८. (+) राजुलपचीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५X१०.५, ११×३१-३५).
राजिमतीपच्चीसी, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम हि सुमिरौं, अंति: लालचंद० को मंगल करे, गाथा-२६. ६३९८९. (#) औपदेशिक व्याख्यान व दूहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी
है. जैवे. (२४.५४१०.५, ११-१४४४१-४५).
१. पे. नाम. औपदेशिक व्याख्यान कथा, पृ. १अ - ९आ, संपूर्ण.
औपदेशिक व्याख्यान, मा.गु, गद्य, आदि: दानं सुपात्रे विशद अंतिः सर्वागवादि जिनः.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
१४१ २. पे. नाम. पखवाडियारा दहा, पृ. ९आ, संपूर्ण.
१५ तिथि दूहा, मा.गु., पद्य, आदि: पख पिडवाथी उलसै सुति; अंति: नरा ते पधरा न होय, गाथा-१५. ६३९९०. (#) चंदनमलयागिरि रास, अपूर्ण, वि. १८२८, कार्तिक शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ९-२(१ से २)=७, प्रले. पं. ऋद्धिविजय (गुरु ग. कुशलविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १७४५०). चंदनमलयागिरी रास, पं. क्षेमहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७०४, आदि: (-); अंति: ते पामे सुख अनंतोरे, ग्रं. ७०२,
(पू.वि. ढाल-३ गाथा-८४ अपूर्ण से है.) ६३९९१. दानशीयलतपभाव संवाद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदे., (२४.५४११, १३४३२-३५).
दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति:
समयसुंदर० प्रसादो रे, ढाल-४, गाथा-१०१. ६३९९२. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५१, चैत्र कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. सुरत, प्रले. ग. रामविजय (गुरु पं. कांतिविजय गणि); पठ. मु. भक्तिविजय (गुरु ग. रामविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, ११४३६-४२). महावीरजिन स्तवन-२७ भवविचारगर्भित, मु. हंसराज, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति भगवति देउ मति;
अंति: कहे धन मुझ एह गुरू, ढाल-१०, गाथा-१००. ६३९९३. (#) सामायिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, ८x२९-३२).
सामायिक अतिचार, प्रा., गद्य, आदि: नमो चउवीसाए; अंति: अरिहे समणे तहा संघे. ६३९९५. दशवैकालिकसूत्र का गुढार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मार्गशीर्ष कृष्ण, ११, शुक्रवार, मध्यम, पृ.८, प्रले. मु. रायचंद ऋषि (गुरु मु. रतन ऋषि); गुपि. मु. रतन ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, ११४३९-४४).
दशवैकालिकसूत्र-गुढार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: उदेसीयं केता आधाकरमी; अंति: विषे आतमा व्यापेदअ. ६३९९६. द्रौपदी चौपाई, संपूर्ण, वि. १८८४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. किसनगढ, प्रले. सुखा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, १८४४४).
द्रौपदीसती चौपाई, आ. हीरविजयसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सील वडो संसारमै; अंति: हीर० आवागवण निवार रे,
___ ढाल-१४. ६३९९७. प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक बीजक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४४१०.५, १४४३१).
प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक-बीजक, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गद्य, वि. १८५३, आदि: पहिलौ बोलै तीर्थंकर; अंति: (-),
(पू.वि. 'सेव॒जय स्थानक निराबाध" पाठांश तक है.) ६३९९८. (#) पद व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ११, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.,
(२५४११.५, ११४२६-२९). १.पे. नाम. शांतिजिन पद, प्र. १अ, संपूर्ण.
शांतिजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: अंगन कलप फल्यौसी; अंति: सोहिलोरी हमारे, गाथा-३. २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. धर्मसी, पुहिं., पद्य, आदि: मेरे मन मानी साहिब; अंति: लोह कनक करि लेवा, गाथा-३. ३. पे. नाम. दानशीलतपभावना प्रभाति, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: रे जीव जिन धरम कीजीय; अंति: मुगति तणां फल तांहि,
गाथा-६. ४. पे. नाम. तीर्थावली स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सेजेजे रीषभ समोसर; अंति: समयसुंदर कहे
एम, गाथा-१६. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन गीत, पृ. २आ, संपूर्ण.
मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मेरौ इतनौ चाहीयै नित; अंति: सजी में अवर न ध्याउं, गाथा-३.
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१४२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६.पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
मु. जिनराज, पुहि., पद्य, आदि: आज सकल मंगल मिला आज; अंति: जिनराज० अनुभौरस मान, गाथा-५. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: चिंतामनि स्वामी; अंति: बेनारसी बंदा तेरा, गाथा-४. ८. पे. नाम. नवकार सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: सूरवरसीस
रसाल, गाथा-७. ९. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: आणी मन सुध आसता देव;
अंति: मारा चिंता चूर, गाथा-६. १०. पे. नाम. ऋषभदेव स्तवन, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७६५, आदि: अधिक आणंदै हो वंद्यो; अंति: सफल जात्रा
जगीस ए, गाथा-११. । ११. पे. नाम. जिनदत्तसूरि गीत, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मु. लाभउदय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सद्गुरुजी तुमे सांभल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ तक है.) ६३९९९. (#) गुणस्थानक षड्द्रव्यादि विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-१(२)=६, कुल पे. ६, प्र.वि. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १८४४६). १. पे. नाम. चौदगुण ठाणां, पृ. १अ-३अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. १४ गुणस्थानक १२० प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम गुणठाणै कोई; अंति: ते नित्यै प्रणमीयै,
(पू.वि. गुणस्थानक-८ विवरण अपूर्ण तक व "१२ जिननामकर्म १३' पाठांश से है.) २. पे. नाम. षड्द्रव्य विचार, पृ. ३अ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: धर्मास्तिकाय १; अंति: प्रमुख परिवर्ते. ३. पे. नाम. मुहपत्ती पडिलेहण बोल, पृ. ३अ, संपूर्ण. मुहपति पडिलेहण के २५ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: (१)सम्यक्त्वमूल जीवदया, (२)सम्यक्त्व मोहिनीय १; अंति:
पडिलेहणा जाणिवी सही. ४. पे. नाम. १४ गुणठाणा, पृ. ३अ, संपूर्ण.
१४ गुणठाणा नाम, प्रा., पद्य, आदि: मिच्छे सासण मीसे; अंति: सजोगी अयोगिगुणा, गाथा-१. ५. पे. नाम. सप्तनय विचार, पृ. ३अ-५अ, संपूर्ण. सप्तनय-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (१)से किं तं नए सत्त, (२)श्रीजिनप्रवचन मूलभूत;
अंति: (१)इति पंचमांग वचनात्, (२)पासचंद्रसूरि० विवरणं. ६. पे. नाम. गुणस्थानक्रमारोह, पृ. ५अ-७आ, संपूर्ण.
आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४४७, आदि: गुणस्थानक्रमारोहहत; अंति: चैव रत्नशेखरसूरिभिः, श्लोक-१३६. ६४०००. (#) सीमंधरजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १५४३३-४०).
सीमंधरजिन विनती स्तवन-१२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सामि सीमंधर
__ विनती; अंति: जसविजय बुध जयकरौ, ढाल-११, गाथा-१२५, ग्रं. १७५. ६४००१. (+) सायरसेठ चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले.पं. नयनभद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हई है-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १६x४१-४४). सागरश्रेष्ठी कथा-दानाधिकारे, मु. सहजकीर्ति कवि, मा.गु., पद्य, वि. १६७५, आदि: प्रणमुलवधि पास; अंति: रइए
सुणतां सुख सोभाग, ढाल-१३.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
६४००२. (+) सीमंधरजिन स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८ कुल पे १४, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२४४१०.५, २१४५१).
१. पे. नाम. सीमंधिरस्वामीविनति स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
सीमंधरजिन विनती स्तवन, मु. अगरचंद, मा.गु., पच, वि. १८६२, आदि: त्रीभवन साहिब अर्ज स, अंतिः जिनपद वचन विलास, गाथा - २१.
२. पे. नाम भवदेवनागिला सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण,
मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७२, आदि: भवदेव जागी मोहणी तजी, अंतिः रतन० नीत सीस नमाय, गाथा- १२. ३. पे. नाम. रावणमंदोदरी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: ढलकंतढाल फरूक तनेजा; अंति: अयोध्या में वटी वधाई, गाथा - ९.
४. पे. नाम. हनुमान लंका दहण पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
मु. जिनदास, मा.गु., पद्म, आदि: पूछे अंजनी के कुवर, अंतिः जिनदास धन हो रघुराई, गाथा-४.
५. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. २अ संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: संत चर्णरी जाउ बलीहा, अंति: सूरत लागे प्यारी, गाथा-४.
६. पे. नाम. साधारणजिन होरी, पृ. २अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्म, आदि: सतीया ए समीप रुपोवो; अंतिः मुझ से भी खेम सार, गाथा- १२.
१०. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण.
मु. जिनदास, पु,ि पद्म, आदि चोरी कर कर होरी रचाई अंतिः जिनदास० दोपरो छोरी, गाथा-४.
७. पे. नाम. शील पद, पृ. २अ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद - शीलविषये, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: सील सिणगार करो री; अंति: जिनदास एम कहो री, गाथा - ३.
८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: गरवी की देसी इम, अंति: छू हुं तेहनी नारी, गाथा - १३.
९. पे नाम. प्रियदर्शनासती सज्झाय, पृ. २आ-३अ संपूर्ण.
मु. जिनराय, मा.गु., पद्य, आदि: भगवंत भाखे देसना सुण, अंति: चतुर धारे मनमाय, गाथा- ९.
११. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण,
मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: चेत चेत रे चेत चतुर, अंतिः रतनचंद० ढाल बणाय रे, गाथा- १३. १२. पे नाम, वैराग्य सज्झाय, पृ. ३४-३आ, संपूर्ण
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शिव, मा.गु., पद्य, आदिः परमातम परणमी करी रे; अंतिः शिव० धारो चित मझार, गाथा- २३. १३. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
पुहिं, पद्य, आदि; क्यु आया किम फीर, अंति; मोटी जनममरणरी खोडो, गाथा २०.
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१४. पे. नाम. साधुवंदना, पृ. ४-८आ, संपूर्ण.
मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: पंच भरत पंच एरवय; अंति: देवमुनी गुण संथुण्या, ढाल-१३, गाथा-३७७. ६४००३. (+) स्तवनचोवीशी, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल. लिंबोदरा, प्रले. ऋ. कुबेर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२४.५४१०.५, १०-१४४३२-४३).
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स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवाला हो, अंति: तुं जीवन जीव आधार रे, स्तवन- २४, गाथा - १२१.
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६४००४. साधुपाक्षिक अतिचार व बार राशि नाम संपूर्ण, वि. १८४१, ज्येष्ठ कृष्ण, २. शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, अन्य श्राव, परसोत्तम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, ११४२५). १. पे. नाम. साधुपाक्षिकादि अतिचार, पृ. १अ - ५आ, संपूर्ण.
साधुपाक्षिक अतिचार छे.मू. पू. संबद्ध, प्रा.मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय, अंतिः इति करी प्रवेश.
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२. पे. नाम, बार राशीनाम, पृ. ५आ, संपूर्ण
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
बारराशि वर्णमाला, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
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६४००५, (+) गणधरपट्टावली सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र. वि. संशोधित कुल ग्रं. १६१, जैदे., (२५X११, ९३०). गणधरपट्टावली सज्झाय, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१०, आदि: ब्रह्माणी वाणी दिओ अंतिः विनय गुरु
गुण गाय ए, गाथा- ७२.
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६४००६. (+) व्यवहारसूत्र की चुलिका १६ स्वप्न सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९५२, फाल्गुन कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले. स्थल. लींबडी, प्रले. श्राव. त्रंबकलाल सुंदरजीभाई शेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. दे. (२५५११, ५X३१). व्यवहारसूत्र - चुलिका सोलह स्वप्न विचार, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं, अंतिः वसही मेसुहि भवीसई. व्यवहारसूत्र - चुलिका सोलह स्वप्न विचार का टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते तेणे काले ते अंतिः चालसे तेसुखी थासे.
६४००७. बलचंद रास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. सा. केसर आर्या (गुरु सा. रंभा); गुपि. सा. रंभा, अन्य. मु. मनोहरलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५X११, १६x४१).
बलचंद रास, क्र. सबलदास, मा.गु., पद्य, वि. १८६०, आदि: श्रीशांतिनाथ जिनना, अंति: सबलदास० निस्तारा रे, ढाल- १३.
६४००८. स्नात्र पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., ( २४.५X११, ११-१३X३१).
स्नात्रपूजा विधिसहित पंन्या. रूपविजय, प्रा., मा.गु, पद्य, आदि: मुक्तालंकार विकारसार, अंतिः संपदा निज पामे तेह. ६४००९. (+) श्रावकपाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १०. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जैवे ., (२४.५X१०.५, ९-१३X२२).
श्रावक पाक्षिक अतिचार- अंचलगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: इच्छा० गुरुपर्वभणी, अंति: (-). ( पू. वि. मुहपत्ती पडिलेहण अपूर्ण तक है. )
६४०१०. (+) धर्मदत्त रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४८-४१ (१ से ३२, ३५ से ४२, ४५) = ७, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २४.५X१०.५, १३X३२-३९).
धर्मदत्त रास, आ. दयासागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-२, ढाल ४, गाथा-६ अपूर्ण से ४९ अपूर्ण ढाल-७, ४६ अपूर्ण से ६१ अपूर्ण तक, ढाल-८, गाथा- २३ अपूर्ण से ४५ अपूर्ण तक, ७८ अपूर्ण तक ९१ अपूर्ण तक व ढाल - ९, गाथा - ६९ अपूर्ण से ९९ अपूर्ण तक है.)
६४०११. (#) बीज तिथि स्तुत्यादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. १२, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.,
( २५X१०, ११४३८).
१. पे नाम, बीजतिथि स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण,
मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि दिन सकल मनोहर बीज, अंति: कहे पुरो मनोरथ माय, गाथा ४.
२. पे नाम, एकादशी स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण,
नेमिजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदीय पाय; अंति: मंगल करो अंबादेवीयै, गाथा-४.
३. पे. नाम. पर्युषण पर्व स्तुति, पृ. १आ-२अ संपूर्ण.
मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि सतर भेद जिन पूजा; अंतिः मानविजै० देव अंवाइजी, गाथा-४,
४. पे. नाम ऋषभ स्तुति, पृ. २अ २आ, संपूर्ण
आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु. पच, वि. १७वी, आदिः प्रह उठी बंदु ऋषभदेव, अंतिः ऋषभदास गुण
,
गाय, गाथा-४.
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५. पे. नाम, एकादशीतिथि स्तुति, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण
मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि एकादशी अति रुअडी, अंतिः संघ तणा निसविस
गाथा-४.
६. पे. नाम, कल्याणकंद स्तुति, पृ. ३अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्याणकंदं पढमं; अंति: अम्ह सया पसत्था, गाथा-४. ७. पे. नाम. श@जयतीर्थ स्तुति, पृ. ३अ, संपूर्ण..
मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पुंडरिकमंडण पाय; अंति: सौभाग्य दे सुखकंदाजी, गाथा-१. ८. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: सर्वकार्येषु सिद्ध, श्लोक-४. ९. पे. नाम. मौनएकादशी स्तुति, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
मौनएकादशीपर्व स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: नेमजिन उपदेशी मोन; अंति: सानिध करा सत सुह करा, गाथा-४. १०. पे. नाम. पलांकित स्तुति, पृ. ४अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञज्योतीरूप; अंति: वृद्धिं वैदुष्यं, श्लोक-४. ११. पे. नाम. औपदेशिक बत्रीसी, पृ. ४अ-९आ, संपूर्ण. अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद मुनि, पुहि., पद्य, वि. १६८५, आदि: अजर अमर तिहा; अंति: बालचंद० छंद जाणीई,
गाथा-३३. १२. पे. नाम. कक्कसूरि गुणाष्टक, पृ. ९आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: जे हे आराध्या तुम्हे; अंति: आठै आगै किउ कचुरे, गाथा-८. ६४०१२. (+#) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१०, १३४३५-४०). साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं; अंति: (-), (पूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "दश संकेत प्रत्याख्यान" तक लिखा है.) ६४०१३. (#) मयणरेहारी छढाला, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, ले.स्थल. नवानगर, प्रले.सा. पेमा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११, १३४२४-३४). मदनरेखासती रास, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८७०, आदिः (-); अंति: विनयचंद०भवियण इक मनै, ढाल-६,
(पू.वि. ढाल-२, गाथा-१ अपूर्ण से है.) ६४०१४. (#) आदिनाथ स्तवन, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८-१(४)=७, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५४११, १५४३०-३६).
आदिजिन स्तवन, मु. मान, मा.गु., पद्य, आदि: सर्व जिनेश्वर पाय; अंति: श्रीसंघनइ मंगल करो, गाथा-१३०,
(पू.वि. गाथा २४ अपूर्ण से ४९ अपूर्ण तक नही हैं.) ६४०१५. (+) प्रवज्या विधि व उपस्थापना विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११,
११४३७-४३). १. पे. नाम. प्रव्रज्या विधि, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण.
साधुप्रव्रज्या विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: दीक्षा लेतां एतला; अंति: १ नोकारवाली गणाविए. २.पे. नाम. उपस्थापना विधि, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण.
प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नंदि मांडीने खमासण; अंति: यथायोग्य नाम दीजे. ६४०१७. (+) मेरुत्रयोदशी कथा, संपूर्ण, वि. १८३८, माघ शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. जेसलमेर दुर्ग, प्रले. पं. खुस्यालचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १७४५०).
मेरुत्रयोदशीपर्व कथा, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य भारती भक्त; अंति: इहभव परभव सुख पामइ. ६४०१८. (+) जंबूस्वामी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(१)=६, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १२४३५). जंबूस्वामी रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२, गाथा-५ अपूर्ण
से ढाल-८, गाथा-२ अपूर्ण तक है.)
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१४६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६४०१९. नमस्कार महामंत्र व कल्पसूत्र व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४१०.५,
१७४४०-४५). १.पे. नाम. नमस्कार महामंत्र सह बालावबोध, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.
नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: णमो अरिहताणं; अंति: पढम हवई मंगलम्, पद-९.
नमस्कार महामंत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं कहता; अंति: सोपावइ सासयं ठाणं. २.पे. नाम. कल्पसूत्र व्याख्यान व कथा, पृ. २आ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० तिणे का; अंति: (-), (पू.वि. "इम कही पाछोवल्यौ
पूछांथी" पाठ तक है.) ६४०२०. (+) गुणठाणाना २८ द्वार व जंबूद्वीप विचार, संपूर्ण, वि. १९१५, मार्गशीर्ष कृष्ण, ६, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २,
ले.स्थल. रत्नपुरी, प्रले. मु. सवाइराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११,१४४५३-५५). १.पे. नाम. गुणठाणा २८ द्वार, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक २८ द्वार, मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रीसमवायांगसूत्रमा, (२)नामद्वार १ लक्षणद्वा; अंति: तेरमे चउदमे ए
कषायक, द्वार-२८. २.पे. नाम. जंबूद्वीपनी परिधि, पृ. ६आ, संपूर्ण.
जंबूद्वीप विचार, मा.गु., गद्य, आदि: एच्यार जंबूद्वीपना; अंति: आणपेडे एक राज कहीजे. ६४०२१. सिद्धचक्र पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४.५४१०.५, ११४२७-३०).
सिद्धचक्र पूजा, मा.गु., प+ग., आदि: अरिहंत पद ध्यातो; अंति: (-), (पू.वि. सप्तम कलशपूजा प्रारंभिक पाठ तक है.) ६४०२२. (+#) सारस्वतव्याकरण की चंद्रकीर्ति टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १७१, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४३८-४४). सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: नमोस्तु सर्वकल्याणपद; अंति:
(-), (पू.वि. कृत् प्रत्यय, गत्यर्थक धातु अपूर्ण तक है.) ६४०२३. कुमारपाल रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४.५४१०, १४४३७).
कुमारपाल रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६७०, आदि: सकल सिद्ध चरणे नमु; अंति: (-),
(पू.वि. मुनि रामचंद्र के दृष्टांत अपूर्ण तक है.) ६४०२४. (+) विक्रमादित्यभूपालपंचदंड चौपाई, संपूर्ण, वि. १८२७, फाल्गुन कृष्ण, २, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ११४, प्रले. मु. विनयचंद्र
(गुरु ग. सिद्धकीर्ति, आचार्यांयागच्छ); गुपि.ग. सिद्धकीर्ति (गुरु उपा. सिद्धिविलास गणि, बृहत्खरतरगच्छ); उपा. सिद्धिविलास गणि (गुरु उपा. सिद्धवर्द्धन गणि, बृहत्खरतरगच्छ); उपा. सिद्धवर्द्धन गणि (गुरु आ. जिनधर्मसूरि, बृहत्खरतरगच्छ);
आ. जिनधर्मसूरि (बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. कुल ग्रं. ३१६८, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (३४१) लेखयंती नरा धन्या, (४५९) मंगलं लेखकस्यापि, (४६०) यां लगि मेरु महीधर, जैदे., (२३४९.५, १३४३५).
विक्रमराजा चौपई, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: प्रणमु पासजिणंद पय; अंति: अहनिस उछवरंग
___ बधाइ, खंड-६, गाथा-३१६८. ६४०२५. (+) हरिवंश प्रबंध, अपूर्ण, वि. १७१६, कार्तिक शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १५०-५४(१ से ३,९९ से १४९)=९६,
ले.स्थल. श्रीपुरनगर, प्रले.ऋ. नाथू (गुरु आ. सुमतसागरसूरि, विजयगच्छ); गुपि. आ. सुमतसागरसूरि (गुरु आ. कल्याणसागरसूरि, विजयगच्छ); आ. कल्याणसागरसूरि (गुरु आ. गुणसागरसूरि, विजयगच्छ); राज्यकालरा. राजसिंघ, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१०,१३४४८). पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदिः (-); अंति: ढालसागर श्रीहरिवंश, खंड-९ ढाल १५१,
ग्रं. ५७५०, (पू.वि. प्रारंभ से गाथा ६३ अपूर्ण तक, ३८६ अपूर्ण से ६६० अपूर्ण तक नहीं है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
१४७ ६४०२६. (+) हैमलिंगानुशासन का स्वोपज्ञ विवरण सह स्वोपज्ञ विवरण की दुर्गपदप्रबोधवृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ,
पृ. ९२-८(१ से ३,७६,८१ से ८२,८४ से ८५)=८४, प्र.वि. त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ३३०००, जैदे., (२५.५४१०.५, १८४४७). हैमलिंगानुशासन-स्वोपज्ञ विवरण, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: हेमचंद्र:०
लिंगानाम्, ग्रं. ३३००, (पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., "स्वरे संवसथे ग्रामो" पाठ से है व बीच बीच के
कुछ पाठांश नहीं हैं.) हैमलिंगानुशासन-स्वोपज्ञ विवरण की दर्गपदप्रबोधटीका, वा. वल्लभ वाचक, सं., गद्य, वि. १६६१, आदिः (-);
अंति: वाचकौ स्वस्वलिंगौच, पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. ६४०२७. (+) नारचंद्र ज्योतिष सह टबार्थ व नवग्रहशुभाशुभफल, संपूर्ण, वि. १८६७, आषाढ़ शुक्ल, ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ६७,
कुल पे. ३, ले.स्थल. कृष्णगढ, प्रले. श्राव. नेमीचंद; अन्य. पं. हरीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, ४४२७). १. पे. नाम. नारचंद्र ज्योतिष सह टबार्थ, पृ. १आ-६५आ, संपूर्ण.
ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: सुस्थासुवृष्टिश्च, श्लोक-२९४.
ज्योतिषसार-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: माहरो श्रीअरिहंत; अंति: हुवै ते वास्ते भला. २. पे. नाम. अवर्गादि वर्णज्ञान श्लोक सह टबार्थ, पृ. ६५आ-६६अ, संपूर्ण.
अवर्गादिवर्णज्ञान श्लोक, सं., पद्य, आदि: अवर्गो गरुडो ज्ञेयो; अंति: स्यात्तथामेषशवर्गकः, श्लोक-२.
अवर्गादिवर्ण ज्ञान श्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आ इ उ ऋ नृ एहवो गरुड; अंति: मेखमीढानो वर्ग कह्यौ. ३. पे. नाम. नवग्रह शुभाशुभफल श्लोक, पृ. ६६अ-६७अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: भानुः षष्ठस्तृतीयश्च; अंति: कृष्णेच मरणं ध्रुवं, गाथा-१६. ६४०२८. (+) सिद्धहेमशब्दानुशासन की स्वोपज्ञ लघुवृत्ति- अध्याय १-५, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, १७४४१-४५). सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य परमात्मानं,
(२)अर्हमित्येतदक्षरं; अंति: (-), ग्रं. ६०००, प्रतिपूर्ण. ६४०२९. (+) कल्पसूत्र वाचना ५ सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७९५, ज्येष्ठ शुक्ल, ४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४३, ले.स्थल. वीकानेर, प्रले. पं. लाखणसी; पठ.पं. रामचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०, १०४३९).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), ग्रं. १२१६, प्रतिपूर्ण.
कल्पसूत्र-बालावबोध*,मा.गु.,रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६४०३०. कयवन्ना चौपाई, संपूर्ण, वि. १९२६, चैत्र कृष्ण, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४७, ले.स्थल. जैतारण, प्रले. मु. हजारीमल (कैवलागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४१०, ९४२४-२९). कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदा; अंति: जयरग० अधीकादावाजी,
ढाल-३१, गाथा-५५५. ६४०३१. (#) विक्रमसेन चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४२-६(१ से ६)=३६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १४४३८-४२). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-६, गाथा-१५ से
ढाल-५१ गाथा-१० तक है.) ६४०३२. सिंहासनबत्रीसी कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ५०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४.५४१०.५, १५४४८-५७). सिंहासनबत्रीसी, ग. संघविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सकल मंगल धर्म धुरि; अंति: (-),
(पू.वि. गाथा-८०२ अपूर्ण तक है.)
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१४८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
६४०३४. (+) हैमप्राकृतव्याकरण का हिस्सा अपभ्रंशव्याकरण वृहद्वृत्तिगत उदाहृत दोधकटीका सह दोधकव्याख्यालेशटीका, संपूर्ण, वि. १६४७, पौष शुक्ल श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले. ग. कीर्त्तिविमल (गुरु ग. विद्याविमल); गुपि. ग. विद्याविमल (गुरु ग. वानर); ग. वानर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. त्रिपाठ - टिप्पण युक्त विशेष पाठ पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे. (२५.५४१०.५, ९५४५).
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प्राकृत व्याकरण- हिस्सा अपभ्रंशव्याकरण की स्वोपज्ञ वृत्तिगत उदाहृत दोधकटीका, मु. चिरंतनमुनि, अप, पद्य, आदिः ढोल्ला सामला धण चंपा, अंति: सास दुस्क्या पुहवी, गाथा-२५३.
प्राकृत व्याकरण- हिस्सा अपभ्रंशव्याकरण की स्वोपज्ञ वृत्तिगत उदाहृत दोधकटीका की
दोधकव्याख्यालेशटीका, ग. सुमतिरत्नगणि, सं., गद्य, आदि: ढोल्लानायकः सामली, अंतिः वंविधा विधा जयह
जयति.
६४०३५. (+) असज्झायादि विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. १० प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २४.५X१०.५, ११x४०).
१. पे नाम. असज्झाय विचार, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: वरसालइ सात कणा पडइ, अंति: असज्झाइ पछइ सूकइ.
२. पे. नाम. अनध्याय विधि, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
अणोझा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: चैत्र सुदि पांचमि, अंतिः तओ आवती० लगइ सूझइ.
३. पे. नाम. दंतनष्ट असज्झाय विधि, पृ. २अ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: दांत गाममाहि जउ रहइ, अंति: प्रकटोपिनउकार.
४. पे. नाम. असज्झाय विचार, पृ. २अ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: जहीइ सूर्य आद्राइ, अंति: दिशा लोक कीधओ होई.
५. पे. नाम. साधुचारित्रीयानुं आवश्यक, पृ. २आ, संपूर्ण.
साधुप्रायश्चित विधि, मा.गु. गद्य, आदि: पडिकमणु न करइ तो अंतिः चोथनु प्रायश्चित आवइ.
"
६. पे. नाम. सवाविश्वा जीवदया गाथा सह अर्थ, पृ. ३अ संपूर्ण
सवाविश्वा जीवदया गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा सुहुमा थूला; अंति: विक्खा चेव निरवक्खा, गाथा- १.
जीवदया गाथा- अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जीवाना द्वै भेदौ सूक; अंति: संकल्पसु मनोव्यापार.
७. पे. नाम. २० वसा जीवदया - साधु, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
८. पे. नाम. पांचनिर्ग्रथना नाम, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण.
भगवतीसूत्र - नियंडा - संजया आलापक- बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पुलाकनिग्रंथ प्रकार अंतिः निग्रंथ जाणिवा. ९. पे. नाम. जिनबिंबप्रवेश विधि, पृ. ५अ ६अ, संपूर्ण.
जिनबिंबप्रवेश स्थापना विधि, मा.गु. सं., गद्य, आदि: प्रथम उत्तम मुहूर्त, अंति: शासनदेवता भवताम्
१०. पे. नाम. आचारांगसूत्र द्वितीयश्रुतस्कंध प्रथमअध्ययन सह टिप्पण, पृ. ६आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. मात्र द्वितीयश्रुतस्कंध के प्रथम अध्ययन का सूत्र ३४५ लिखा है.)
आचारांगसूत्र- विषमपद पर्याय टिप्पण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण.
६४०३६. (+) छंदोनुशासन सह स्वोपज्ञ वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २६, प्रले. मु. गंगकुशल (गुरु मु. धीरकुशल, तपागच्छ); गुपि. मु. धीरकुशल (गुरुग. देवकुशल, तपागच्छ); ग. देवकुशल, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५x११, २२x६७).
"
छंदोनुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: वाचं ध्यात्वार्हती, अंति: द्विघ्नानेकाध्वयोगः,
अध्याय ८.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
छंदोनुशासन-स्वोपज्ञ छंदचूडामणि वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि:
शब्दानुशासनविरचनानंत; अंति: रणात्त्वस्माभिरुक्तः. ६४०३७. हैमलिंगानुशासन का स्वोपज्ञ लघु विवरण, संपूर्ण, वि. १६७९, मार्गशीर्ष, श्रेष्ठ, पृ. २८, ले.स्थल. भुजनगर, जैदे., (२५.५४११, १९-२१४३७-४३). हैमलिंगानुशासन-स्वोपज्ञ विवरण, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: श्रीसिद्धहेमचंद्र; अंति:
हेमचंद्र:० लिंगानाम, ग्रं. ३३००. ६४०३८. (+) धनंजयनाममाला व अनेकार्थनाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष
पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, १३४४२-४५). १.पे. नाम. धनंजयनाममाला, पृ. १अ-७आ, संपूर्ण. ___ जै.क. धनंजय, सं., पद्य, आदि: तन्नमामि परं ज्योति; अंति: शब्दाः समुत्पीडिताः, श्लोक-२०५. २.पे. नाम. अनेकार्थनाममाला, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं.
जै.क. धनंजय, सं., पद्य, आदि: गंभीरं रुचिरं चित्रं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१६ अपूर्ण तक है.) ६४०३९. सिद्धहेमशब्दानुशासन सह षट्पादावचूरि- अध्याय १-२ पाद- २, संपूर्ण, वि. १५५२, मार्गशीर्ष शुक्ल, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २९, ले.स्थल. ईडलपुरि, प्रले. पोपा जोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १९४६६). सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि: अहँ सिद्धिः स्याद; अंति: (-),
प्रतिपूर्ण.
सिद्धहेमशब्दानुशासन-षट्पादावचूरि, सं., गद्य, आदि: अर्ह णामं वह्नत्वे; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६४०४०. अनेकार्थ संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४२-१(२)=४१, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४१०.५, १५४५०).
अनेकार्थ संग्रह, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: ध्यात्वार्हतः कृतै; अंति: (-),
(पू.वि. कांड-२ श्लोक-४ से श्लोक-४७ तक एवं कांड-६ श्लोक-५० अपूर्ण तक है.) ६४०४१. पासाकेवली सुकनावली, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ९, जैदे., (२५.५४११, ११४३७).
पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवती; अंति: सत्योपासक केवली, (वि. प्रतिलेखक ने श्लोक
सं. नहीं लिखी है.) ६४०४२. (+) नारचंद्र ज्योतिष, अपूर्ण, वि. १७६६, वैशाख कृष्ण, १२, रविवार, मध्यम, पृ. २६-३(१,२३ से २४)+१(१८)=२४, प्रले. मु. विनयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १४४४५). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: रुचिरावासराः संभवंति, श्लोक-२९४, (पू.वि. प्रारंभ व बीच
के पत्र नहीं हैं.,प्रारंभ से श्लोक-११ अपूर्ण तक व श्लोक- ४०७ अपूर्ण से ४४१ अपूर्ण तक नहीं है.) ६४०४३. (+) नारचंद्र ज्योतिष, संपूर्ण, वि. १८७२, माघ कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. २०, ले.स्थल. तिमरीग्राम, प्रले. मु.खेतसी (गुरु
मु. पद्महस, बृहत्खरतरगच्छ); गुपि. मु. पद्महस (परंपरा आ. जिनभद्रसूरि, बृहत्खरतरगच्छ); आ. जिनभद्रसूरि (बृहत्खरतरगच्छ); पठ. श्राव. साहिबचंद; श्राव. मेघराज, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १५४४३).
___ ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: समेकुमारी विषमेकुमार, श्लोक-२९४. ६४०४४. (+#) नारचंद्र ज्योतिष-प्रकीर्णक प्रकरण, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. अणहिल्लपुरपत्तन,
प्रले. मु. शांतिसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२५४१०, १४४५६).
ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६४०४५. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२२.५४१०.५,११-१३४३०-३५). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः: अंति:
(-), (पू.वि. कांड-२, श्लोक-२३ अपूर्ण तक है.)
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१५०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
६४०४६. (+) मेघमाला व वर्षाविचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२३X१०.५,
१३-१५X३५-४५).
१. पे. नाम. मेघमाला, पृ. १अ १३अ, संपूर्ण.
मु. केवलिकीर्ति, प्रा. सं., मा.गु., पद्य, आदि: तियसिंदनरिंदनयं पणमि; अंतिः चिंतनीयो यशोर्थिभिः, अध्याय- १२. २. पे. नाम. वर्षाविचार, पृ. १३ - १३आ, संपूर्ण.
मंडलविचार, सं., पद्य, आदि: कृतिका च विशाखा च, अंति: (-), गाथा-२६, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक- ८ अपूर्ण तक लिखा है.)
६४०४८. एकाक्षर नाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१ (३) =५, जैदे. (१६.५X१०.५, ८X२१).
एकाक्षर नाममाला. मु. सुधाकलश मुनि, आ. हिरण्याचार्य, सं., पद्य, आदिः श्रीवर्धमानमानम्य; अंति: ग्रंथांतरानुते, श्लोक-४९ (पू.वि. लोक १५ अपूर्ण से २५ अपूर्ण तक नहीं है.)
६४०५४. (+) रमलशुकनावली व पार्श्वजिन पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०६, कार्तिक कृष्ण, ५, शनिवार, मध्यम, पृ. ५, कु पे. ५. प्र. वि. संशोधित. वे. (२४.५x१०.५, १०४६२).
१. पे. नाम. रमलशुकनावली, पृ. १आ-५अ, संपूर्ण.
उ., पद्य, आदि: फाल पते की अरे यार, अंति: हुसी घरे आनंद हुसी..
२. पे नाम, पार्श्वजिन पद चिंतामणि, पृ. ५आ, संपूर्ण,
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ऋषभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पासकि पासकि पासकि; अंति: तुमसी लागी आसकी, गाथा-४. ३. पे नाम, पुरुषस्त्री षोडशशृंगार नाम, पृ. ५आ, संपूर्ण.
मु.
१६ शृंगार नाम, सं., पद्य, आदि : आदौ मज्जनचारुचीरतिलक; अंति: श्रृंगारस्त्री षोडशा, श्लोक-१. ४. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण.
मु. जिनरंग, मा.गु, पद्य, आदि: तुं मेरा मनमें तुम, अंतिः जिनरंग० सकल हो जिनजी, गाथा-६.
५. पे. नाम. गोडीजी स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी मु. रूपविजय, रा., पद्य, आदि पुरसादाणी पासजी थे, अंतिः रूप० दैव्यो वारंवारजी,
गाथा- ७.
६४०७० (+) महादेवीग्रहस्पष्ट विधि, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १५, पठ, मु. कुस्यालमुनि प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. यंत्रादि सहित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित, जैवे. (२३.५४११, ११४३०-३३).
महादेवीग्रहस्पष्ट विधि, संबद्ध, मु. हीरमुनि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम घटी काढीजै; अंति: बोल्यो ज्यौइ सगाढ.
६४०७६. (+#) ज्योतिषसार, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२ - १ ( ११ ) = ११, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२४.५x१०.५, १५X४४).
"
ज्योतिषसार आ. नरचंद्रसूरि, सं., पच, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा, अंति: (-) (पू. वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण श्लोक १९० अपूर्ण से २१६ अपूर्ण तक नहीं है एवं श्लोक- २२३ अपूर्ण तक लिखा है., वि. यंत्रादि सहित.)
६४०८७. पासाकेवली सुकनावली, संपूर्ण, वि. १८१३, वैशाख शुक्ल, १४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले. स्थल. पोसीनापुर, प्र. मु. भीखनचंद ऋषि, पठ. श्राव. दोलतसिंघजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२३.५४११.५, ९४२६).
"..
, י
पाशाकेवली - भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदिः ॐ नमो भगवति, अंति: अष्ट महासिद्धि होई. ६४११८. (*) धर्मदत्त रास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५८-३५ (१ से १७,२३, ३३ से ३७, ३९ से ४८, ५६ से ५७)= २३, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. 'अंतिम पत्र का पत्रांक अनुमानित दिया है., संशोधित, जैवे. (२५.५x१०, ११४३५)धर्मदत्त रास, आ. दयासागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-१ ढाल - गाथा - ३४४ अपूर्ण से ४५६ अपूर्ण तक, ४८२ अपूर्ण से ७०५ तक, १०९९ अपूर्ण से १२७९ अपूर्ण तक व खंड- २ ढाल - १६, गाथा - ७९ अपूर्ण तक है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
१५१
"
६४१२३. (+४) लीलावती भाषानुवाद, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर फीके पड गये हैं, जैवे. (२५.५x११, १५४३९-४१). लीलावती - भाषानुवाद, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: सोभित सिंदूर पुर; अंति: (-). ६४१३२. () पासाकेवली भाषा, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १०० ९२ (१ से ९२ ) =८, पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २३x१०.५, २४x१२).
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पाशाकेवली - भाषा *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १११ महाउत्तम थानिक; अंति: सत्य मानें सही, संपूर्ण. ६४१३४. (+) दोहा विवाहपटल, संपूर्ण वि. १८२०, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ६ प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६४११,
१३x४१-४४).
विवाहपटल दोहा, मु. हीर, मा.गु., पद्य, आदि: हरिसयणा धन मीन मलमास अंतिः हीर० जे जोवै ते जाण, गाथा- १३४. ६४१३५. (+) अवयद शुकनावली, दूहा व मंत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १२-३ (१ से २,६) = ९, कुल पे. ३, ले. स्थल. जेसलमेर, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५X११, १२X३६).
१. पे. नाम. अबयद शुकनावली, पृ. ३अ-१२अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं., वि. १८९५, पौष कृष्ण, ४, ले. स्थल. जेसलमेर, प्रले. पं. विजयचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य.
मु. सुजाणसिंह, पुहिं., गद्य, वि. १७९४, आदि: (-); अंति: (१) वात में संदेह नाही, (२)सुखांणसिंघ० ससनेह,
(पू. वि. प्रकरण १ शकुनफल-९ अपूर्ण से प्रकरण २ शकुनफल १० अपूर्ण तक व प्रकरण ३ शकुनफल- १ अपूर्ण से है.)
२. पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. १२अ - १२आ, संपूर्ण.
दोहा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि पूछ परख परवीनता सुचि, अंतिः बैर जीवताने रोवे, गाथा-१०.
३. पे. नाम. हनुमत्मंत्रादि संग्रह, पृ. १२आ, संपूर्ण.
मंत्र संग्रह *, मा.गु., सं., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय), (वि. पत्र घिस जाने के कारण अक्षर अवाच्य हैं.) ६४१३६. (+) सिद्धांतसारोद्धार व जीवविचार बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३७+ ३ (१४, २४ से २५) = ४०, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२३.५X१०.५, १९-२२X४८).
१. पे नाम. सिद्धांतसारोद्वार विचार, पृ. १आ-३७अ, संपूर्ण
सिद्धांतसारोद्धार, मा.गु., गद्य, आदि: अथ जंबूद्वीप ० ५२६; अंति: भेदे मिच्छामिदुक्कडं.
२. पे नाम, जीवविचार, पृ. ३७२-३७आ, संपूर्ण.
५६३ जीवविचार बोलसंग्रह से, मा.गु., गद्य, आदि सरव जीवधी मनुष्य, अंति: ९७ सरव जीव विसेष ९८. ६४१३७. (+) नवतत्त्व चौपई, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३६, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२४x१०.५, १५X३८).
नवतत्त्व चौपाई, मु. भावसागरसूरि-शिष्य, मा.गु, पद्य, वि. १५७५, आदि आदि नमी आणंदहपूरि अंतिः रमल बुद्धि विबुध नर गाथा- ९५१, ग्रं. १२२५.
"
६४१३८, (४) रामयशोरसायन रास, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३१, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२४४१०,
१३-१६X३६).
रामयशोरसायन चौपाई, मु. केशराज, मा.गु., पद्य, वि. १६८३, आदि: श्रीमुनिसुव्रतस्वामी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- ९५० अपूर्ण तक लिखा है.)
६४१३९. (४) कालकाचार्य कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ३२-१ (७) =३१, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., ( २१.५x९.५, ९४३१-३६).
कालिकाचार्य कथा * मा.गु., गद्य, आदि: (१) मगहेसु धरावासे पुरे (२) इणही ज जंबूदीपमाहि; अंति: (-).
7
(पू. वि. आचार्यश्री के सामने इंद्र के द्वारा सीमंधरजिनवाणी मूल स्वरूप में कहे जाने के वर्णन तक है व बीच के कुछ पाठांश नहीं है.)
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१५२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६४१४०. (+#) मानतुंगमानवती चरित्र, अपूर्ण, वि. १७८४, कार्तिक शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. २९-१(१५)=२८, ले.स्थल. महिमदपुर,
प्रले.ग. वृद्धिविजय (गुरु मु. प्रेमविजय); गुपि.मु. प्रेमविजय (गुरु ग.शांतिविजय, तपागच्छ); ग. शांतिविजय (गुरु पं. धर्मविजय गणि); पं. धर्मविजय गणि; पठ.पं. प्रतापविजय, प्र.ले.प. मध्यम, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३.५४१०.५, १९x४४). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: श्रीरीषभजिणंद
चरण; अंति: मोहनविजय० मंगलमालो, ढाल-४७, गाथा-१०१५, (पू.वि. ढाल-२४ गाथा-७ अपूर्ण से ढाल-२६
दोहा-६ अपूर्ण तक है.) ६४१४१. प्रतिक्रमण विधि व जीवोत्पत्ती स्थान गाथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २५-३(१ से ३)=२२, कुल पे. २, जैदे.,
(२३४१०.५, १३४३४). १.पे. नाम. पक्खि ,चउमासी,संवत्छरी पडिक्कमण विधि, पृ. ४अ-२५आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पक्खि चउमासी संवत्सरी पडिक्कमण विधि, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: देवसीनी परै करणो, (पू.वि. देवसीप्रतिक्रमण
चार थुइ अधिकार में चौथी थुइ के सिद्धाणंबुद्धाणं सूत्र अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. जीवोत्पत्ति १४ स्थान गाथा, पृ. २५आ, संपूर्ण.
जीवउत्पत्ति के १४ स्थान, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: विदल १ अठी २ मल ३; अंति: १३ सिव १४ पत्तेसुं, गाथा-१. ६४१४२. चातुर्मासिक व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४.५४११,११४४१).
चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान- बालावबोध, मु. सूरचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: (-),
(पू.वि. पाटपरंपरा अकबर प्रतिबोधक जिनचंद्रसूरि तक है.) ६४१४४. (#) बारेव्रतनी पूजा व पेतालीस आगमरी पूजा, संपूर्ण, वि. १८९४-१८९५, श्रेष्ठ, पृ. २३, कुल पे. २,
प्रले. मु. सरूपसौभाग्य (गुरु पं. क्षमासौभाग्य); गुपि.पं. क्षमासौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१०.५, ११४३३). १. पे. नाम. बारेव्रतनी पूजा, पृ. १अ-१२आ, संपूर्ण, वि. १८९४, ज्येष्ठ कृष्ण, १४, ले.स्थल. खेरवा. १२ व्रत पूजाविधि, पं. वीरविजय, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १८८७, आदि: उच्चैर्गुणैर्यस्य; अंति: टालवा १२४ दीवा करीइ,
ढाल-१३, गाथा-१२४. २.पे. नाम. पेतालीस आगमरी पूजा, पृ. १२आ-२३अ, संपूर्ण, वि. १८९५, आषाढ़ कृष्ण, ४, सोमवार. ८ प्रकारी पूजा-पिस्तालीसआगमगर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८१, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजी; अंति:
संघने तिलक करायो रे. ६४१४५. (+) विवेकवार्ता शत्रुजयतीर्थगझलादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८२४, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद
सूचक लकीरें., जैदे., (२३.५४१०.५, १५४४६). १. पे. नाम. विवेकवार्ता, पृ. १अ-८आ, संपूर्ण, वि. १८२४, ज्येष्ठ कृष्ण, ९, ले.स्थल. श्रीतलवाडा, प्रले.पंडित. रामकृष्ण,
प्र.ले.पु. सामान्य.
केशवदास, मा.गु., प+ग., आदि: ॐ कार अरुप रुप निरग; अंति: धणी कुण धणी अनेरा. २. पे. नाम. शेजय गजल, पृ. ८आ-१०अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थगजल, उपा. कल्याणविजय गणि, मा.गु., पद्य, श. १६२३, आदि: सारदमात की सेवाकू; अंति:
कल्याण० रूपलछी वरे, गाथा-४६... ३. पे. नाम. वैराग्य नीसांणी, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. गुरुशिष्य कथन निसानी, मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: इण संसार समुद्र को; अंति: धरमसी सुख होइ सुलदा,
गाथा-७. ४. पे. नाम. गूढार्थगर्भित दोहा संग्रह, पृ. १०आ, संपूर्ण.
दोहा संग्रह-गूढार्थ गर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: विसारजनीयुं छेछेवाचु; अंति: अभोअभ्या: मेमेंसवरे, गाथा-१. ६४१४६. शियलवेलि, संपूर्ण, वि. १९०४, भाद्रपद कृष्ण, १२, रविवार, मध्यम, पृ. १८, दे., (२३.५४१०, ९४३०-३३).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
१५३ स्थूलिभद्रमुनि शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: सयल सुहकर पासजी; अंति:
वीरविजय कमला वरसे रे, ढाल-१८, ग्रं. २५०. ६४१४७. कालिकाचार्य कथा बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८४६, फाल्गुन शुक्ल, १, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १९-२(२ से ३)=१७, ले.स्थल. खाचरोद, प्रले. मु. पद्मचंद (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०, १२४३३-३७). कालिकाचार्य कथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: तिहां पूर्वइ स्थविरा; अंति: ते वर्तमान योग, (पू.वि. शासन में
हुए अलग-अलग तीन कालकाचार्यों के संक्षिप्त परिचय से कालककुमार को परीक्षा के लिये दिये गए अश्वों के
नामादि वर्णनाधिकार तक नहीं हैं.) ६४१४८. (+) चैत्यवंदन चौवीशी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-१(१)=९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४४१०.५, ७४३०). स्तुतिचतुर्विंशतिका, उपा. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, वि. १८०१-१८४१, आदिः (-); अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. बीच के
पत्र हैं., आदिजिन स्तुति गाथा-२ अपूर्ण से प्रशस्ति गाथा-१अपूर्ण तक है.) ६४१४९. (+) सिद्धपंचाशिका व औपदेशिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, कुल पे. २, प्रले.मु. पीतांबर ऋषि,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, ११४३९). १. पे. नाम. सिद्धपंचाशिका सह बालावबोध, पृ. १आ-१७आ, संपूर्ण.
सिद्धपंचाशिका प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धं सिद्धत्थसुअं; अंति: लिहियं देविंदसूरिहिं, गाथा-५०.
सिद्धपंचाशिका प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सिद्धं आपणो अर्थ; अंति: द्रसूरिइं इदं कृतं. २.पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. १७आ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह **, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अस्मिन्नंभोदवृंद; अंति: न स्पृहामत्र सिंह, श्लोक-१. ६४१५०. (+) चित्रसेन चोपई, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ३४-२३(१ से २२,२४)=११, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १२४२४-२७). चित्रसेन चरित्र*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३७१ अपूर्ण से ३८७ अपूर्ण तक वगाथा-४०३
अपूर्ण से ५६६ अपूर्ण तक है.) ६४१५१. (+) पद, स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २१-२(१ से २)=१९, कुल पे. ३४, ले.स्थल. वडोदरा,
प्रले.ग. शांतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२२.५४९, १५४३७). १.पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: धर्मसी० अवसरनो उपगार, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण.
मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुण सुग्यानी सामनै; अंति: जी ध्यान धरै धर्मसीह, गाथा-८. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: आजनै अम्हारै मन आसा; अंति: सुख थाय जस सांभलियां, गाथा-४. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण.
मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: आणी आणी अधिकउ माह; अंति: गुण इम धरमसी रे, गाथा-५. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण.
मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: नित नमीये पारसनाथजी; अंति: रमसी एह अनाथा नाथजी, गाथा-३. ६. पे. नाम. महावीरजिन स्तोत्र, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. महावीरजिन विनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी वीनती; अंति:
थुण्यो त्रिभुवनतिलो, गाथा-१९. ७. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण.
आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७३५, आदि: अजित जिणेसर प्रणमु; अंति: कीधो तवन जनमन मोह ए, गाथा-१३. ८. पे. नाम. आत्मशिक्षा सज्झाय, पृ. ५अ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
आध्यात्मिक पद, जै. क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: तुं आतमगुण जाणरे, अंति: बनारसी०कवण छुडावणहार, गाथा- ७.
९. पे. नाम. सात उपधानविधि स्तवन, पृ. ५आ - ६अ, संपूर्ण.
,
उपधानतप स्तवन-वृद्ध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीमहावीर धरम, अंतिः समयसुंदर सुहकरो, ढाल - ३, गाथा - १६.
१०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण.
मु. धर्मसी, पुहिं, पद्य, आदि ऊगी धन दिन आज सफले अंतिः कवि भ्रमसीह कहे, गाधा-७.
११. पे. नाम. मगसीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६अ - ६आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- मगसीपुर, मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदिः आदरजीव री भवीयण भाव; अंति: धर्मसीह० मनै जी, गाथा- ७.
१२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण.
मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: महिमा मोटी महीयलै हो; अंति: धरमसी धरत ही ध्यान, गाथा- ९.
१३. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन- लोद्रवपुरमंडन, पृ. ७अ, संपूर्ण,
पार्श्वजिन स्तवन- लोद्रवपुरमंडण, मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: लुलि लुलि वंदो हो, अंति: करी प्रणम्या पारसनाथ,
गाथा-७.
१४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ७अ, संपूर्ण.
मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: अजु सफल अवतार, अंतिः ध्यान सदा भ्रमसीह, गाथा-७.
१५. पे नाम, पार्श्वजिन लघु स्तवन, पृ. ७आ, संपूर्ण
पार्श्वजिन स्तवन, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., पद्य, बि. १७३०, आदि: महिमा मोटी महीवले, अंतिः धरमसीह चितधारो रे, गाथा- ७.
१६. पे. नाम. अवंतिपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ७आ-८ अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- अवंतिपुर आ जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७६१, आदि आज सफल अवतार फली; अंति जिणचंद्रसूरि० गहगही, गाथा-८.
१७. पे नाम. मगसीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ८अ संपूर्ण
पार्श्वजिन स्तवन-मगसीपुरमंडण, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७६१, आदि: सकलदेव सिर सेहरो हो; अंतिः गसी बगसीस करे सही हो, गाथा-७.
१८. पे नाम. थूलभद्र सज्झाय, पृ. ८अ ९अ, संपूर्ण.
स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि धुलिभद्र मुनिसर आवो, अंति: जा लगि दूयनी तारी
गाथा - १७.
१९. पे नाम. दंडक स्तुति, पृ. ९अ ९आ, संपूर्ण
२४ दंडक स्तुति, आ. जिनेश्वरसूरि सं., पद्य, आदि: रुचितरुचिमहामणि; अंतिः भारती भारती, श्लोक-४.
२०. पे. नाम. सवासो सीख, पृ. ९आ - ११अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सवैया, मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसदगुरु उपदेश; अंति: श्रीधर्मसी उवज्झाय, गाथा - ३६. २१. पे. नाम. बृहत् स्तवन, पृ. ११अ १२आ, संपूर्ण.
९६ जिन स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७४३, आदि: वर्त्तमान चौवीसी; अंतिः सदा जिणचंदसुर ए. ढाल - ५, गाथा- २३.
२२. पे. नाम. समस्याबंध महावीर स्तवन, पृ. १२आ- १३अ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तवन - समस्यामय, मु. धर्मवर्धन, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्वीर तथा; अंति: ते स्युर्जंतवः कंतवः, श्लोक - १२. २३. पे. नाम. शीतलनाथ स्तवन, पृ. १३अ १४अ संपूर्ण
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शीतलजिन स्तवन- अमरसरपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, रा., पद्य, आदि: मोरा साहिब हो श्री श; अंतिः समय ० सुणड जनमन मोह ए. गाथा - १५.
२४. पे नाम. भणपार्श्वनाथ बृहत् स्तवन, पृ. १४ अ- १६अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- स्तंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु प्रणमुंरे पास अंतिः जाणी कुसललाभ पयंपए, ढाल - ५, गाथा - १८.
२५. पे. नाम. अजितशांति स्तवन, पृ. १६अ १७आ, संपूर्ण.
संबद्ध, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., पद्य, वि. १५वी, आदि मंगल कमलाकंद ए सुख, अंतिः सिरिमेरुनंदण उवझाय ए. गाथा - ३२.
२६. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १७आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद - उपकार, मु. धर्मसी, पुहिं, पद्य, आदि करनी कर उपगार की सब, अंतिः शाखन के सार की,
"
गाथा-३.
२७. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १७आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-गुरुभक्ति, मु. धर्मसी, पुहिं., पद्य, आदि: ग्यान गुण चाहइ तो; अंति: धारि धर्म सीख धुर की, गाथा - ३. २८. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १७आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद - स्वार्थ, मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: सुग्यानी संभाल तु अब; अंति: थिरि सिविपद थपनासु, गाथा-३.
२९. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १७आ, संपूर्ण
पार्श्वजिन पद, मु. धर्मसी, पुहिं., पद्य, आदि: मेरे मन मानी साहिब, अंति: लोह कनक करि लेवा, दोहा-३. ३०. पे नाम, वैराग्यध्रुव पद, पृ. १७आ, संपूर्ण
औपदेशिक पद- वैराग्य, मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि करहु वसि सजन मन वचन, अंतिः श्रीधरम उपदेस आया, गाथा - ३.
३१. पे. नाम. पार्श्वनाथ वृद्धस्तवन, पृ. १८अ १९अ. संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन-वृद्ध, मु. जिनराजसूरि शिष्य, सं., पद्य, आदिः स्वस्ति श्रिये पार्श, अंतिः श्रीजेनरलेन वै गाधा- २२. ३२. पे. नाम. पार्श्वनाथ वृद्धस्तवन, पृ. १९अ - १९आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन वृद्धस्तवन, मु. रत्नसोम, सं., पद्य, आदि: श्रीगीर्वाणप्रणतां; अंति: रत्न० समीहित हितप्रदः, श्लोक - १४. ३३. पे. नाम. पंचमी स्तवन, पृ. २०अ २०आ, संपूर्ण.
ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन- बृहत् उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगुरु पाय अंतिः भगति भाव प्रसंसियो, ढाल - ३, गाथा-२०.
३४. पे. नाम. सीमंधरस्वामी वृद्ध स्तवन, पृ. २०आ - २१आ, संपूर्ण.
सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु, पद्य, आदि: सफल संसार अवतार, अंतिः पूर आस्था मनतणी,
गाथा - १८.
६४१५२. (०) अंजनासती रास, संपूर्ण वि. १८१० आश्विन कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ११ ले स्थल विकानेर पठ. सा. रूपा (गुरु सा. उमाजी); गुपि. सा. उमाजी (गुरु सा. पनाजी); सा. पनाजी (गुरु सा. मालुजी); सा. मालुजी (गुरु सा. दयाजी आर्या); सा. दयाजी आर्या, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १६x५१).
अंजनासुंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदि: गुणधर गोतम प्रमुख; अंति: जगत्रनी मात तो, गाथा - १६८.
६४१५३. (+) गजसिंघकुमार रास, संपूर्ण, वि. १७८३, माघ शुक्ल, २, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्रले. पं. हेमरत्न (गुरु पं. विजयरत्न गणि, तपगच्छ); गुपि. पं. विजयरत्न गणि (गुरु पंन्या. लब्धिरत्न गणि, तपागच्छ); पंन्या. लब्धिरत्न गणि (गुरु आ हीररत्नसूरि, तपागच्छ); आ. हीररत्नसूरि (तपागच्छ) पठ. मु. तिलकरत्न, मु. उद्योतरत्न (गुरु पं. हेमरत्न, तपगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. संशोधित, जैये. (२३.५४११, १७४३८).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गजसिंघकुमार रास, मु. सुंदरराज, मा.गु., पद्य, वि. १५५६, आदि: पासजिणेसर पाय नमी; अंति: संक्षेपि पूरी कही,
खंड-४, गाथा-४३६. ६४१५४. (+) श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, ११४३७).
श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १५३१, आदि: ॐकर कमल जोडेवि करि; अंति: श्रीसिंघ जयजयकार,
गाथा-२६६. ६४१५५. (#) स्याद्वादमतादि सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४९-३३(१ से २९,३९,४१ से ४२,४८)=१६, कुल
पे. ६४, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१०.५, १७४५३). १. पे. नाम. १० बोल सज्झाय, पृ. ३०अ, संपूर्ण.
मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: स्याद्वादमत श्रीजिन; अंति: श्रीसार० रतन बहुमोल, गाथा-२१. २. पे. नाम. नेमनाथराजेमति बारमासो, पृ. ३०आ, संपूर्ण.
नेमराजिमती बारमासो, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: राणी राजुल इण परि; अंति: पालै अविहड प्रीत रे, गाथा-१३. ३. पे. नाम. रेवतीश्राविका सज्झाय, पृ. ३०आ-३१अ, संपूर्ण.
मु. वल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: सोवन सिंघासन रेवती; अंति: वल्लभ० हर्ष अपार रे, गाथा-१०. ४. पे. नाम. निंदा परिहार सज्झाय, पृ. ३१अ, संपूर्ण.
मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: चावत म करो परतणी; अंति: लबधि० पामे देव विमान, गाथा-५. ५. पे. नाम. अरणकमुनि सज्झाय, पृ. ३१अ, संपूर्ण. अरणिकमुनि सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: एक दिन अरणक नाम उठ्य; अंति: कर जोडी
कवियण भणै ए, गाथा-२४. ६. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३१आ, संपूर्ण.
महमद काजी, मा.गु., पद्य, आदि: अरे घरियारे वावरे मत; अंति: क्या दिन क्या राता, गाथा-४. ७. पे. नाम. श्रीकृष्णभक्ति पद, पृ. ३१आ, संपूर्ण.
नंददास, पुहिं., पद्य, आदि: चिरीया चहचानी चकवा; अंति: नंददास० दरस रसाला, गाथा-४. ८. पे. नाम. रामभक्ति पद, पृ. ३१आ, संपूर्ण.
मलुकदास वैष्णव, मा.गु., पद्य, आदि: राम भजि राम भजि; अंति: मगन भए रामगुण गावरे, गाथा-४. ९. पे. नाम. चौवीस जिन पद, पृ. ३१आ, संपूर्ण.
२४ जिन पद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जीउ जपिजपि जिनवर; अंति: समयसुंदर सिरनामी, गाथा-३. १०. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ३१आ, संपूर्ण.
आदिजिन पद-शत्रुजयमंडण, मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: हां हो श्रीविमलाचल; अंति: मानेयो जगदाधार हो,
गाथा-५. ११. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३१आ-३२अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: युं साधु संसार में; अंति: घर बैठा ही पावै, गाथा-५. १२. पे. नाम. नवकार गीत, पृ. ३२अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र गीत, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: महा मुनि इम जपाइ; अंति: मोटो मुखथी मति विसार,
गाथा-४. १३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३२अ, संपूर्ण.
जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: तुं आतमगुण जाण रे; अंति: वनारसी० बूझावनहार, गाथा-४. १४. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ३२अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: महाराज चढे गजरथ; अंति: ण छोडीने प्रभूचलीया, गाथा-८. १५. पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. ३२अ, संपूर्ण.
क. नरसिंह महेता, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीया धारै भुधरीयो; अंति: नरसी० पदारथ देलो, गाथा-३.
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१५७ १६. पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. ३२अ-३२आ, संपूर्ण.
मीराबाई, पुहिं., पद्य, आदि: व्रजमंडल देश दिखाओ; अंति: मीरा० मेरे मनवसीया, गाथा-३. १७. पे. नाम. सीताजी पद, पृ. ३२आ, संपूर्ण.
सीताहरण पद, सूरदास, मा.गु., पद्य, आदि: भैया लक्षमण सीता कौन; अंति: सूरदास० मैं विपत परी, गाथा-३. १८. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. ३२आ, संपूर्ण.
मु. दीप ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजै सीवादेवी; अंति: दीपो० संघने जयजयकार, गाथा-१०. १९. पे. नाम. नेमिजिन फाग, पृ. ३२आ, संपूर्ण.
पुहि., पद्य, आदि: सब सखियन मिल केसर; अंति: रेजिन भर भर भर रे, गाथा-३. २०. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ३२आ-३३अ, संपूर्ण.
मु. साधु, रा., पद्य, आदि: म्हारा हो जिनजीनै; अंति: घर बैठांही आवै, गाथा-५. २१. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३३अ-३३आ, संपूर्ण.
मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: वादल दहुं दिशउनम्या; अंति: उदय० जगि भाण रे, गाथा-९. २२. पे. नाम. नेमनाथ राजेमति सज्झाय, पृ. ३३आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मु. विजयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: मात सिवादेवी जाया रा; अंति: उ पहिली मुगति सिधावे,
गाथा-७. २३. पे. नाम. विहरमानमहाभद्रजिन स्तवन, पृ. ३३आ, संपूर्ण. महाभद्रजिन स्तवन, मु. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विहरमान अढारमारे; अंति: तणी मिलवानी मन खांति,
गाथा-७. २४. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ३३आ, संपूर्ण.
मु. हर्षकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: चंदलीया जिनजीसुं; अंति: हर्ष० सुख भरपुर रे, गाथा-५. २५. पे. नाम. रथनेमिराजिमती सज्झाय, पृ. ३४अ, संपूर्ण..
मु. ऋद्धिहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: देखी मन देवर का; अंति: ऋद्धिहर्ष कहै एम, गाथा-२०. २६. पे. नाम. भावपूजा सज्झाय, पृ. ३४अ-३४आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: ज्ञाननीर नीरमल आणी; अंति: तणा सुख होयो जी, गाथा-९. २७. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३४आ, संपूर्ण, वि. १८०३, प्रले. मु. देवीचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य.
मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणि करुं; अंति: करइंते सुखीया हुइ, गाथा-१६. २८. पे. नाम. शीलव्रत स्वाध्याय, पृ. ३५अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, ग. कुमुदचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सुण कतारे; अंति: कुमदचंद सम
निरमलो, गाथा-१०. २९. पे. नाम. नागिलाभवदेव सज्झाय, पृ. ३५अ-३५आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भुदेव भाई घेर आविया; अंति: समयसुंदर सुखकार रे, गाथा-८, (वि. दो गाथा
को एक गाथा गिना गया है.) ३०. पे. नाम. गयसुकमाल सज्झाय, पृ. ३५आ-३६अ, संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. सिंहसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: सोरठ देस मझार दुवारक; अंति: सिंघसोभाग०
राजीयो जी, गाथा-३५. ३१. पे. नाम. गजसुकुमाल सज्झाय, पृ. ३६अ, संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. नथमल, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवर आवतां मैं; अंति: नथमल० आवागमण निवार,
गाथा-७. ३२. पे. नाम. रथनेमिराजिमती सज्झाय, पृ. ३६अ-३६आ, संपूर्ण.
मु. हितविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी सदगुरु पाय; अंति: पद राजुल लह्यो जी, गाथा-११.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३३. पे. नाम. अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. ३६आ-३७अ, संपूर्ण.
पंन्या. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मगधाधिपति श्रेणिक; अंति: इम बोलै कविराम कै, गाथा-३०. ३४. पे. नाम. रात्रीभोजन सज्झाय, पृ. ३७अ-३७आ, संपूर्ण.
रात्रिभोजन निवारण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: अवनीपुर वारु वसैजी; अंति: सार्या आपण काजरे, गाथा-२०. ३५. पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. ३७आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: आदि नमी अरिहंतनै; अंतिः सदा वरदायक वधमान, गाथा-८. ३६. पे. नाम. श्रावकव्रत शिक्षा सज्झाय, पृ. ३७आ-३८अ, संपूर्ण.
मु. पार्श्वचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: देवगुरु संघ कारण; अंति: पाशचंद० संयम पालो रे, गाथा-९. ३७. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३८अ, संपूर्ण. प्रतिक्रमण सज्झाय, मु. तेजसिंघ, मा.गु., पद्य, आदि: पंचप्रमाद तजी पडिकमण; अंति: भाखे ते भवसायर तिरसी,
गाथा-८. ३८. पे. नाम. मृगापुत्र सज्झाय, पृ. ३८अ-३८आ, संपूर्ण.
म. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: पुरसुग्रीव सोहामणो; अंति: न दिन कोडि कल्याण हो. गाथा-१९. ३९. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३८आ, संपूर्ण.
औपदेशिक गीत, म. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: काया कामसा वीनवै जी; अंति: धरोजी तास जनम परमाण, गाथा-८. ४०. पे. नाम. १० श्रावक सज्झाय, पृ. ३८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठि प्रणमुदसे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा- ४ तक है.) ४१. पे. नाम. धनानी सज्झाय, पृ. ४०अ, संपूर्ण. धन्नाअणगार सज्झाय, मु. ठाकुरसी, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवाणीरे धना अमीय; अंति: गाया हे मन में गहगही.
गाथा-२२, (वि. गाथांक का उल्लेख नहीं है.) ४२. पे. नाम. राजेमती लेख, पृ. ४०अ-४०आ, संपूर्ण. राजिमती द्वारा नेमिजिन को पत्र, म. जिनविजय, रा., पद्य, आदि: स्वस्तिश्री जादपति; अंति: नेमेजी जपो करजोडि,
गाथा-१३. ४३. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ४०आ, संपूर्ण.
नेमराजिमती गीत, आ. रत्नसागरसूरि, रा., पद्य, आदि: समुद्रविजै सुतनेम; अंति: रतन० चरणे चित लावोनै, गाथा-७. ४४. पे. नाम. थावच्चाकुमार गीत, पृ. ४०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मा.गु., पद्य, आदि: नयरी द्वरकानाथ अपूरब; अंति: (-), (पू.वि. कलश नहीं है.) ४५. पे. नाम. दसारणभद्र सज्झाय, पृ. ४३अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. दशार्णभद्र सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: लालविजय नीस दीस, गाथा-१८, (पू.वि. गाथा ७
अपूर्ण से है.) ४६. पे. नाम. सातवार सज्झाय, पृ. ४३अ-४३आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: आदित जोयनै जीवडा जगइ; अंति: भणै जपो श्री महावीर,
गाथा-८. ४७. पे. नाम. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, पृ. ४३आ, संपूर्ण.
मु. रतन, मा.गु., पद्य, आदि: अहो लाल सुंदर रूप; अंति: रतन० जयजयकार रे लाला, गाथा-६. ४८. पे. नाम.५ इंद्रिय सज्झाय, पृ. ४३आ, संपूर्ण, वि. १८०३, ले.स्थल. अर्गलपुर, दत्त. मु. देवीचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य.
ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: काम अंध गजराज अगाज; अंति: सुजाण लहो सुख सासता, गाथा-६. ४९. पे. नाम. जीवकायाउपर वैराग्य गीत, पृ. ४४अ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतडली न किजीये; अंति: समयसुंदर प्रभुरीत,
गाथा-४.
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५०. पे. नाम. नववाडी सज्झाय, पृ. ४४अ, संपूर्ण.
९ वाड सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रमणी पशु पंडग तणी रे, अंतिः श्रीअजितदेवसूर के, गाथा - १५. ५१. पे. नाम. ५ महाव्रत सज्झाय, पृ. ४४अ - ४४आ, संपूर्ण.
आ. देवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुरतरुनी परि दोहिलो अंतिः श्रीविजयदेवसूरि कि, गाथा- १६.
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५२. पे. नाम. मधुबिंदु सज्झाय, पृ. ४४-४५अ, संपूर्ण.
मु. चरण प्रमोद - शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मुझ रे माता; अंति: जंपै परम सुख मांगीयो, ढाल -५, गाथा - १०. ५३. पे. नाम. सीखामणरूप सज्झाय, पृ. ४५अ - ४५आ, संपूर्ण.
जीवोत्पत्तिकारण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदिः उतपति जोइनइ आपणी; अंति: लीजै भवनो लाह चेतन, गाथा- ३१. ५४. पे. नाम. बाहुबली सज्झाय, पृ. ४५-४६अ, संपूर्ण
भरतबाहुबली सज्झाय, मु. विमलकीर्ति, मा.गु. पच, आदि: बाहुबल चारत लियो जी, अंतिः पिंडत चतुर सुझाण,
गाथा - १२.
५५. पे. नाम. केशीगीतमगणधर सज्झाय, पृ. ४६अ, संपूर्ण.
केशीगौतम गणधर संवाद सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि सीस जिणेसरपासना केशी, अंति: टवी सीस उदैजस रंग रे, गाथा - ८.
५६. पे. नाम. सोलसती सज्झाय, पृ. ४६ अ - ४६आ, संपूर्ण.
१६ सती सज्झाय, मु. प्रेमराज, पुहिं., पद्य, आदि: सील सुरंगी भांतिसु; अंति: प्रसन्न सदा पद्मावती, गाथा-१४. ५७. पे नाम. सतीसीतारी धमाल, प्र. ४६आ, संपूर्ण
१५९
सीतासती सज्झाय, मु. लक्ष्मीचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मुनिसुवरतस्वामी कुं, अंति: जंपै जिनवरकुं सिरनाम, गाथा- १४. ५८. पे नाम अनाधीमुनि सज्झाय, पृ. ४७अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक रववाडी चड्यो, अंति: (-), (पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा- २ तक लिखा है.)
५९. पे. नाम. सुखदेव रास. पू. ४७अ ४७आ, संपूर्ण.
वा. कर्मतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: सुरग थकी सुर अवतयों, अंतिः रि सील राखो नरनार कि. गाथा - २४.
६०. पे नाम. दशवैकालिक सज्झाय- अध्याय १. पृ. ४७आ, संपूर्ण,
-
६१. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, पृ. ४७आ, संपूर्ण.
मु. राजसमुद्र, रा., पद्य, आदि सुणि बहिनी प्रीउडो अंतिः राजसमुद्र० सोभागी रे, गाथा-७.
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६२. पे. नाम. नेमनाथ कडखा, पृ. ४९अ, संपूर्ण.
दशवैकालिकसूत्र - सज्झाव, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: धर्ममंगल महिमा निलो, अंति: (-). प्रतिपूर्ण,
नेमिजिन स्तवन, श्राव. महमद जैन, मा.गु., पद्य, आदि: तोसें कौन सरभर करइ, अंतिः शरणि देवाधिदेवा, गाथा-४. ६३. पे. नाम. गुरुगुण गहुंली, पृ. ४९अ, संपूर्ण.
मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: ते गुरु मेरे उर बसे, अंति: लगो भूधर मांगे एह, गाथा- १४.
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६४. पे, नाम, सनतकुमार सज्झाय, पृ. ४९आ, संपूर्ण.
सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: सुरपति प्रशंसा करे, अंति: खेमकहे गाया सुख पावो, गाथा-२०.
"
६४१५६. (+) सिद्धांत प्रश्नोत्तरी, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ११, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैवे. (२४४११, १४-१९४५५-५९).
सिद्धांत प्रश्नोत्तरी, वा. मेरुसुंदर गणि, प्रा., मा.गु. सं., गद्य वि. १५३५, आदि: श्रीसिद्धांत अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रश्न- ८८ अपूर्ण तक लिखा है.)
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१६०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६४१५७. समेतसिखरगिरि रास, संपूर्ण, वि. १९२४, ज्येष्ठ शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले. मु. निहालचंद्र (गुरु मु. पद्मजय, खरतरगच्छ); गुपि.मु. पद्मजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३.५४११, ११४३१). सम्मेतशिखरतीर्थ रास, मु. सत्यरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८८०, आदि: अजितादिक प्रभु पाय; अंति: सत्यरत्न० भवपार
उतार, ढाल-७. ६४१५८. (+) थुलिभद्र रसवेल, अपूर्ण, वि. १८७७, ज्येष्ठ शुक्ल, १३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ११-१(८)=१०, ले.स्थल. रानेर बंदर, प्रले. मु. अमरतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, ११४२४-३३). स्थूलिभद्र रसवेल, मु. माणिक्यविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६७, आदि: पार्श्वदेवने प्रणमीइ; अंति: माणिक्य० सुजस
विलास, ढाल-१७, गाथा-१३५, (पू.वि. ढाल-१३ गाथा-३ अपूर्ण से ढाल-१४ गाथा-१ अपूर्ण तक नहीं है.) ६४१५९. छत्रीसबोलनो थोकडो, संपूर्ण, वि. १९६८, माघ शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. नाथद्वारा, प्रले. मु. भूरिलाल शिष्य, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३४१०.५, २२४५७).
३६ बोल थोकडो, मा.गु., गद्य, आदि: एगे संजमे१ एगे असंजम; अंति: रयतनी रिक्खा करवी. ६४१६०.(+) सकलार्हत् स्तोत्र व श्रावकपाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. १८९०, पौष कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. १८-४(१ से ४)=१४,
कुल पे. २, ले.स्थल. पालणपुर, लिख. श्रावि. जरमर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१०.५, ८x२२). १. पे. नाम. सकलारथ, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: हरो० नमस्तस्मै,
श्लोक-३६, (पू.वि. मात्र अंतिम श्लोक है.) २. पे. नाम. श्रावक अतिचार, पृ. ५अ-१८अ, संपूर्ण.
श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि अ; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ६४१६१.(#) सीताराम चौपाई, अपूर्ण, वि. १६९६, कार्तिक कृष्ण, १, बुधवार, मध्यम, पृ. ६६-५२(१ से २,६ से ५५)=१४,
ले.स्थल. राहिणा, प्रले. मु. गोकल (गुरु मु. डुंगरसी, चंद्रगच्छ); गुपि. मु. डुंगरसी (चंद्रगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३४१०, १५४५२-५६). रामसीता रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदिः (-); अंति: समयसुंदर० कल्याणोरे, खंड-९,
गाथा-२४१२, ग्रं. ३७०४, (पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं., खंड-३ गाथा-१ अपूर्ण से खंड- ४ गाथा-१३
अपूर्ण तक व खंड-७ गाथा-१ अपूर्ण से है., वि. अंत में प्रत्येक खंडों की गाथाओं का विवरण दिया गया है.) ६४१६२. (+#) अंजनासुंदरी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१०, १५४३७-४२).
अंजनासुंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदि: सील समोवर को नही; अंति: जगत्रनी माय तो, गाथा-१६५. ६४१६३. (+) आदीश्वर स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-३(५ से ७)=५, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे.,
(२२.५४११, १०४३१-३४). १.पे. नाम. शत्रुजयमंडनबृहत् स्तवन, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ बृहत्स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बे करजोडी वीनवुजी; अंति: समयसुंदर गुण भणै,
गाथा-३१. २. पे. नाम. २८ लब्धि स्तवन, पृ. ३आ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
आदिजिन स्तवन-२८ लब्धिगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: प्रणमुंप्रथम जिनेसर; अंति: (-),
(पू.वि. गाथा- १८ अपूर्ण तक है) ३. पे. नाम. आदिश्वर स्तवन, पृ. ८अ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. नरक चौढालिया, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: गुणसागर० समरण पाईयै, ढाल-४, गाथा-३५,
(पू.वि. गाथा- २४ अपूर्ण से है.) ६४१६४. (+) कान्हडकठियारा रास, सुजात चौपाई व नेमिनाथ सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ३, प्रले.
रामरतनजी; पठ. सा. लछमा आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १७-२५४५०-६५).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
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१. पे. नाम कान्हडकठियारा रास, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण
कान्हडकठियारा रास- शीयलविशे, मु. मानसागर, मा.गु., पद्म, वि. १७४६, आदि पारसनाथ प्रणमुं सदा; अंतिः भलीसुं कानडतणो संबंध, ढाल - ९.
२. पे, नाम, सुजात चौपाई, पृ. ३अ ६अ, संपूर्ण.
मु. लाल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८९७, आदि आदिनाथ सुरतरु समो मन, अंति दिने जोड करी उल्हास, ढाल ४. ३. पे. नाम. नेमिनाथ सज्झाय, पृ. ६अ, संपूर्ण.
नेमराजिमती पद. मु. शिवरतन, मा.गु. पद्म, आदि: बावीस सुभट जीतने वार अंतिः सीवरतन० धडडडडने,
गाथा ५.
६४१६५ (+४) दानशियलतपभावना चौपाई, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ६, प्रले. श्राव वीरदास मथेन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२४४१०, १२४३३).
दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: समयसुंदर सुजगीसो रे, बाल-४, गाथा- १०१. ग्रं. १३५.
o
६४१६६. मेघकुंवरादि पदसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९०९, फाल्गुन शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ११, ले. स्थल. जावरा, प्र. मु. हेमराज (गुरु मु. बदीचंद); गुपि. मु. बदीचंद ( गुरु मु. मोतीचंद); मु. मोतीचंद (गुरु मु. हेमराज), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३.५X१०, १८४४५),
१. पे. नाम. मेघमुनीसरनी मरेटी, पृ. १अ, संपूर्ण.
मेघमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदिः मेघकुंवर सेणकनो बेटो, अंतिः ख मीटजावे आतम समजाइ, गाथा- १७. २. पे. नाम. महावीरजिन मरेटी, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तवन-कुंडणपुर, मा.गु., पद्य, आदि: कुंडणपुर वरनगर, अंति: प्रभुजी जनम मरण काई, गाथा - १८. ३. पे, नाम, अरजणमालीनी सज्झाय, पृ. १आ- २आ, संपूर्ण.
१६१
अर्जुनमाली सज्झाय, मु. खेमा, मा.गु., पद्य, आदि: मगध देसमांही राजगरी, अंति: खेमा० एने बलीहारी, गाथा- ३३. ४. पे नाम, औपदेशिक मरेटी, पृ. २आ, संपूर्ण
औपदेशिक लावणी, मु. अखपत, पुहिं., पद्य, आदि: खबर नहीं जुग में पल; अंति: नहीं वीनती एकपत की, गाथा-८. ५. पे. नाम. औपदेशिक मरेटी, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय- गुरुवाणी, मा.गु., पद्य, आदि: चेत चतुर नर कहे, अंतिः तो पोचो निरबाना है, गाथा १९. ६. पे. नाम. शांतिनाथनी मरेटी, पृ. ३अ ४अ, संपूर्ण.
शांतिजिन स्तवन, पुहिं, पद्य, आदि संतनाथ जिन संति के अंतिः संतनाथ जिन जेह रटे, गाथा- ११.
७. पे. नाम. चंदाप्रभुनी मरेटी, पृ. ४अ संपूर्ण.
चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५४, आदि: हा रे चंदाप्रभु चीत; अंति: लाल० दास रहु चरणारी, गाथा १३.
८. पे नाम, दानशीलतपभावना मरेटी, पृ. ४आ, संपूर्ण
दानशीलतपभावना सज्झाय, मा.गु, पद्य, आदिः आज काल में कुच होने, अंतिः एलो सूझत कमाइ रे, गाथा - १६. ९. पे. नाम औपदेशिक लावणी, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण.
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औपदेशिक लावणी- जिनभक्ति, पुहिं, पद्य, आदि; हा रे किसी की भुंडी, अंतिः एक जिनदरसणा चाहीये, गाथा-४. १०. पे नाम. जंबूस्वामी लावणी, पृ. ५अ -५ आ, संपूर्ण.
मु. चोथमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५८, आदि: सेठ रिषभदत पिता जंबु; अंति: चोथमल० पाली पीठ चाइ, गाथा-२१. ११. पे. नाम औपदेशिक मरेटी, पृ. ५आ, संपूर्ण.
७ वार कर्त्तव्य सज्झाय, मु. थावर ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: चतुरनर सुण सतगुरु; अंति: थावर० मे आतम उधरणा,
गाथा-८.
६४९६७. नवतत्त्वभेद विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, दे. (२३.५४१०.५, ९-११४३८).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवतत्त्व २७६ भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्वना भेद १४; अंति: ५७ इति संवरतत्त्व. ६४१६८. (+) प्रियमेलक चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१०.५, १३४३९).
प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: प्रणमुसद्गुरु पाय; अंति: (-),
___ (पू.वि. ढाल-७ की गाथा-४ तक है.) ६४१६९. (+) स्तुति, स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ४, ले.स्थल. चाचरीयापाडा, प्रले. पं. गुलालविजय;
पठ. श्रावि. फुलबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १३४३३-३५). १.पे. नाम. अष्टापदतीर्थ स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: सरसती अमृत वसति; अंति: तीरथ नमो जिणाणं, गाथा-२२. २. पे. नाम. मौनइग्यारस स्तवन, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण.
मौनएकादशी स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती सामीनि पाय नमी; अंति: महेला सविसुख पावेइ, गाथा-३२. ३. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: गुणहर्षसीस० निसदीस,
गाथा-४. ४. पे. नाम. एकादशी स्तवन, पृ. ४अ-६आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरी समोसर्य; अंति: मंगलमाला
महेमहेजी, ढाल-३, गाथा-२५. ६४१७०. (+) थुलिभद्र नवरसो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, ९४२८).
स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति दायक सदा; अंति: मनोरथ वेगे
फल्या, ढाल-९. ६४१७१. (+) दशवकालिकसूत्र सज्झाय व जंबूस्वामी गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक
लकीरें., जैदे., (२४.५४११.५, ११४३३-४०). १. पे. नाम. दशवकालिकसूत्र सज्झाय, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: धर्ममंगल महिमा निलो; अंति: जेतसी
जय जय रंग, अध्याय-१०. २. पे. नाम. जंबूस्वामी गीत, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.
मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, आदि: राजगिरी नगरीकु जाण; अंति: स नमावउं सिधि दीयउजी, गाथा-८. ६४१७२. जंबुस्वामिनाभवादि स्तवनसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २८, प्रले. रामरतनजी; पठ. सा. वगतावरजी
आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०.५, २२४४६). १. पे. नाम. नागीला ढाल, पृ. १अ, संपूर्ण.
जंबूस्वामी ५ भव सज्झाय, मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: सारद प्रणमु हो के; अंति: होके मुनीवर रामजी, गाथा-३४. २.पे. नाम. जीवाजी को स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मानवभव दुर्लभता सज्झाय, नरसिंघदास, रा., पद्य, वि. १८७९, आदि: का तुम जावो हार जीवा; अंति: नरसींगदास०
एह अभ्यास, गाथा-९. ३. पे. नाम. धर्मरूचिअणगार सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. धर्मरुचिअणगार सज्झाय, मु. रतनचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८६५, आदि: चंपानगर अनोपम सुंदर; अंति: नाम लीया
नीसतारो, गाथा-१५. ४. पे. नाम. आत्मसंबोधरो तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
वैराग्य सज्झाय, शिव, मा.गु., पद्य, आदि: परमातम परणमी करी रे; अंति: शिव० धारो चित मझार, गाथा-२३. ५.पे. नाम. नेमिजिन नवभव स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
नेमराजिमती ९ भव वर्णन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: क्यु आया किम फर चल्य; अंति: मोटी जनममरणरी खोडो,
गाथा-२०. ६.पे. नाम. महावीरस्वामी स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि: सिद्धारथ कुल दीपक; अंति: रायचंद० प्रभुजी
पीर, गाथा-१६. ७. पे. नाम. आणंदजीरी ढाल, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.. आणंदश्रावक सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३४, आदि: आज पछे अण तीरथी रे; अंति: चौथमल०
उलास हो सामी, ढाल-२, गाथा-२३. ८. पे. नाम. कामदेव स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. कामदेव श्रावक सज्झाय, मु. खुशालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८६, आदि: एक दिन इंद्र प्रसंसी; अंति: जी कुसालचंद
प्रकाश, गाथा-१७. ९. पे. नाम. जंबूकुमार स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
जंबूस्वामी सज्झाय, मु. बुधमल, मा.गु., पद्य, आदि: जंबुकुंवर वैरागीया; अंति: बुधमल० छे ढालो जी, गाथा-१२. १०. पे. नाम. अरणिकरो स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. अरणिकमनि सज्झाय, म. खीमा, पुहिं., पद्य, आदि: काचा था सो चल गया हो: अंति: देव आयो जण दस जाय रे.
गाथा-१२. ११. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लाखीणो सोहावें जिनजी; अंति: वांदु श्रीविजयहीर,
गाथा-७, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथाओं को एक गाथा गिना है.) १२. पे. नाम. नागिलाभवदेव सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. भवदेवनागिला सज्झाय, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७२, आदि: भवदेव जागी मोहणी तजी; अंति: रतन०
नीत सीस नमाय, गाथा-१२. १३. पे. नाम. सुभद्रासती सज्झाय, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण.
मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर सोधेजी इरज्या; अंति: कवीयण केरे ठाम हो, गाथा-१६. १४. पे. नाम. राधाकृष्ण बारमासो, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
रतनासागर, पुहिं., पद्य, आदि: पेलोरे महीनो सखी; अंति: रतन० वीछोहो जण पडीयो, गाथा-१६. १५. पे. नाम. नववाड स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण. नववाड सज्झाय, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमो अधेनउत्ताधेनको; अंति: नचंदजी भण्यो रे उलास.
गाथा-१२. १६. पे. नाम. जमाली स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
प्रियदर्शनासती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सतीया ए समीप रुपोयो; अंति: हो सीखेवो जी पार, गाथा-११. १७. पे. नाम. राजिमति स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण.
नेमराजिमती स्तवन, मु. कुसालचंद, रा., पद्य, आदि: अहो अहो उग्रसेन घर; अंति: वांद्या तणी वार, गाथा-११. १८. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद, पुहिं., पद्य, आदि: संतचरण की जाउ बलिहार; अंति: रत तेरी लागे प्यारी, गाथा-४. १९. पे. नाम. नारीपरिहार पद, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण..
औपदेशिक पद-नारीपरिहार गर्भित, पुहिं., पद्य, आदि: मांडीरी घंटा घरररर; अंति: ररंगमहेल चुवे झरररर, गाथा-४. २०. पे. नाम. काया आत्मरोस्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण.
प्रियतमविरह पद, मुहम्मद काजी, मा.गु., पद्य, आदि: झरी झरी मेरी नाव; अंति: मारे साइ उतारो पार, गाथा-५. २१. पे. नाम. आत्महितोपदेश स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वैराग्य सज्झाय, मुहम्मद काजी, पुहि., पद्य, आदि: गाफल वंदे नीदडली; अंति: काजी मेमंद० पाप उतार, गाथा-५. २२. पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. ६आ, संपूर्ण..
सूरदास, पुहिं., पद्य, आदि: माखण मेरो खायो मटकी; अंति: सूरदास० खेले होरी, गाथा-४. २३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण.
गोपीचंद, पुहिं., पद्य, आदि: सोनारी कुंडी रे गोपी; अंति: देसी हमने रोटी रे, गाथा-३९. २४. पे. नाम. औपदेशिक बारमासो, पृ. ७अ-८अ, संपूर्ण.
नेमराजिमती बारमासो, मा.गु., पद्य, आदि: गुणानीधे गुणपत लागुं; अंति: तो आटराण्या मुगते गइ, गाथा-१७. २५. पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. ८अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: नगर दवारकासु कसन; अंति: बरोबर क्युं हो जाय, गाथा-१२. २६. पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण.
क. नरसिंह महेता, पुहिं., पद्य, आदि: जी मात जसोदा जलभर; अंति: नरसी० पड्या ला दीनी, गाथा-९. २७. पे. नाम. समवसरण स्तवन, पृ. ८आ, संपूर्ण.
सुमतिजिन समवसरण गीत, मा.गु., पद्य, आदि: आज हुँगई थी समोसरण; अंति: जे उतरे भवपारो रे, गाथा-८. २८. पे. नाम. नेमिजिन व्याहलो, पृ. ८आ-९आ, संपूर्ण. मु. गुमानचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६३, आदि: छपनकोड जादव मिल आया; अंति: गुमानचंद सहु चतलाइ, ढाल-४,
गाथा-३८. ६४१७३. नवपद पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२३.५४१०, ११४३४).
नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: कोई न थई अधूरी रे,
पूजा-९. ६४१७४. समकीत सडसठि बोल स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२४४१०, १०-१२४३२-४५).
सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुकृतवल्लि कादंबिनी; अंति:
वाचक जसविजय बोलइरे, ढाल-१२, गाथा-६८. ६४१७५. (+) थूलिभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७३८, कार्तिक कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. उंझा, प्र.वि. संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२४४१०, ११४३२). स्थूलिभद्र एकवीसो, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५५३, आदि: आविउ आविउरे आविउ; अंति: बोलइ अंगि
निरमल थाईइ, गाथा-४२. ६४१७६. (+) आदिजिन विवाहलो, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४-७(१ से ७)=७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३४१०.५, १०४३७). आदिजिन विवाहलो, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२२, गाथा-१० अपूर्ण से ढाल-४३, गाथा-२३५
तक है.) ६४१७७. (#) सरस्वती स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. १९, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.,
(२४४९.५, १३४४२). १.पे. नाम. गणेश स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: गलदल्ह दान प्रवाह; अंति: स्फुडजचश्चरणो भजंते, श्लोक-१०. २. पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: व्याप्तानंतसमस्तलोक; अंति: भवेत्युत्तम संपद, श्लोक-९. ३. पे. नाम. सारदादेवी अष्टक, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
शारदाष्टक, सं., पद्य, आदि: ऐं ह्रीं श्रीं मंत्र; अंति: सदा सारदे देवि तिष्ठ, श्लोक-८. ४.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
१६५ पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर, सं., पद्य, आदि: वरसं वरसं वरसं वरसं; अंति: शिवसुंदर सौख्यभरम्,
श्लोक-७. ५. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: स्तुवंतु तं जिन; अंति: भवेस्त्वमेव मे विभुः, श्लोक-३. ६. पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तोत्र-मंत्रगर्भित, पृ. ३अ, संपूर्ण.
आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमस्त्रिदशवंदित; अंति: मधुरोज्ज्वलागिरः, श्लोक-९. ७. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण..
सं., पद्य, आदि: जय वृषभ वृषभवृषविहित; अंति: शाश्वत शिवसौख्यलील, श्लोक-३. ८. पे. नाम. नेमिजिन स्तोत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: जिगाय यः प्राज्यतरः; अंति: नोमी नं नामनामामनामि, श्लोक-३. ९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: तवेशनामतस्त्वरा दरा; अंति: ममापिधर्मशीलराः, श्लोक-३. १०.पे. नाम. पंचतीर्थ्यापंचजिनस्तोत्र बृहत् स्तवन, पृ. ३-४अ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: योचीचलद्दश्च्यवनो; अंति: भव्य श्रीधर्मशीलभृतः, श्लोक-४. ११. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थमंडन, पृ. ४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थमंडन, मु. जयसागर, सं., पद्य, आदि: युगात्मानं यं मधुरं; अंति: यद्वान्यकस्य प्रियं,
श्लोक-५. १२. पे. नाम. साधारणजिन स्तोत्र, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
साधारणजिन स्तोत्र-अष्टमहाप्रातिहार्यगर्भित, सं., पद्य, आदि: स्वर्ण सिंहासनं; अंति: श्रेणिकश्चैवशाखी, श्लोक-३. १३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तव, पृ. ४आ, संपूर्ण.
मु. जिनचंद्र, सं., पद्य, आदि: भुजंगलक्षणलक्षिण; अंति: जिनचंद्र० दशसत्समाजः, श्लोक-७. १४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण.
ग. श्रीसुंदर, सं., पद्य, आदि: प्रणुतपार्श्वपतेः; अंति: श्रीसुंदरः सादरं, श्लोक-१३. १५. पे. नाम. पार्श्वनाथ लघुस्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, मु. रूपचंद्रोदय, सं., पद्य, आदि: जय जिन तारक हे; अंति: निरुपम कारण हे, गाथा-८. १६. पे. नाम. एकीभावेन समस्तजिन स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण. वीतराग गुणवर्णन पद, मु. रूपचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: जय वीतमोह जय वीतदोष; अंति: सिद्ध रूपचंद्राभिरूप,
गाथा-५. १७. पे. नाम. शाश्वतजिन स्तवन, पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, मु. नयरंग, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जयउ रिषभवर्द्धमानौ; अंति: नयरंग० आस्या फलै, गाथा-१२. १८. पे. नाम. पार्श्वनाथ लघुस्तवन, पृ. ७अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन-शृंखलाबंध, मु. जैनचंद्र, सं., पद्य, आदि: सर्वदेवसेवितपदपद्म; अंति: मुक्तालतावन्मुदे, श्लोक-७. १९. पे. नाम. पंचजिन स्तवन-हारबंध, पृ. ७अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
आ. कुलमंडनसूरि, सं., पद्य, आदि: गरीयो गुण श्रेण्यरीण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) ६४१७८. (#) अवंतिसुकुमाल चौढालीयो, संपूर्ण, वि. १८१२, श्रावण कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. नडुलाई,
प्रले. पं. विनयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीइष्टदेव प्रसादात्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १४४३६).
अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंति: शांतिहरख सुख पावै
रे, ढाल-१३, गाथा-१०५.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
१६६
६४१७९. (+१) नंदीद्वीपस्थजिनालय स्तुति, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२४.५४१०.५, ११४३५).
"
"
दीपस्थ जिनालय स्तुति, सं., पद्य, आदि: दिशि श्रीपूर्वस्या, अंतिः जयंतु मदमानवसिंधुराए, श्लोक ५३. ६४१८० (+) साधुपाक्षिकादि अतिचार, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६ प्र. वि. संशोधित, जैदे (२४४११, ९४२५). साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू. पू., संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: करी मिच्छामि दुक्कडं. ६४१८१. (+#) प्रियमेलक चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे.,
(२४X११.५, १४४४२).
प्रियमेलक चौपाई - दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: प्रणमुं सद्गुरु पाय; अंति: पुण्य अधिक परमोद, डाल- ११, गाथा-२२०.
६४१८३. (+) सीमंधरजिनादि स्तवनसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ५. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैवे. (२३४११.५, ११४३१).
१. पे. नाम. सीमंधरजिन विनती स्तवन, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण.
उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार एहवु, अंति: पूरि आस्या मनतणी, गाथा-१८.
२. पे. नाम. सामायिक ३२ दोष स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवरना प्रणमुं; अंतिः रमणि बहली संचर, गाथा-१३.
३. पे. नाम, चोराशीआसातना स्तवन, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण,
८४ आशातना स्तवन, उपा. धर्मसिंह, मा.गु., पद्य, आदि जय जय जिनपास जगत्र, अंतिः वंदे जैनसासन ते बली,
गाथा - १८.
४. पे. नाम. आदिनाथ स्तवन, पृ. ४आ-६आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन- शत्रुंजयमंडन, मु. रत्नचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीविमलाचल तीरथ अंतिः रतनचंद० सिवरमणी वरौ, गाथा - २५.
५. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण,
पार्श्वजिन पद, पुहिं., पद्य, आदि: सकलसुर राज सेवित; अंति: चरण से चित्तउलस्या, गाथा-३.
६४१८४, (+) धर्मदत्त रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६९-६४ (१ से ४४, ४६ से ६४,६७)=५, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२४.५४१०.५, १३-१५X३८).
""
धर्मदत्त रास, आ. दयासागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड- २ ढाल - ५ गाथा - ९१ अपूर्ण
खंड- २ ढाल - ५ गाथा- १२३ अपूर्ण तक, खंड- २ ढाल - २२ गाथा- ४९२ अपूर्ण से खंड- ३ ढाल - १ गाथा- ६५१ अपूर्ण तक व खंड ३ दाल- २ गाथा ६७४ अपूर्ण से खंड- ४ ढाल ३ गाथा- ७३२ अपूर्ण तक है.)
६४१८५. (+) राजसिंघ कथा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८-३ (१ से ३) = ५, ले. स्थल. लासनगर, प्रले. पं. विद्याविजय गणि पठ. मु. दानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२४४१०.५, १३४३९).
"
राजसिंघ कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: यु विजयदायक सुखदायक, (पू.वि. राजा जयसेन द्वारा सपरिवार दक्ष
लेने के प्रसंग से है.)
६४१८६. (+) अक्षरबावनी, संपूर्ण, वि. १९२६ आश्विन कृष्ण, १०, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले. स्थल हतरस, प्रले. मु. जवाहरमल ऋषि (स्थानकवासी); अन्य. मु. अशरचंद (गुरुमु उत्तमचंद) गुपि. मु. उत्तमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२४४१०, १२x३६).
अक्षरबावनी, मु. मान, पुहिं., पद्य, आदिः ॐकार अपार अलख्य अंतिः मान० अक्षर बावनी गाई, गाथा-५७. ६४१८७. (+#) नेमिजिन चोकचौवीस, संपूर्ण, वि. १८४७, आषाढ़ कृष्ण, ६, मंगलवार, मध्यम, पृ. ९, पठ. मु. जालमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२३४१०.५, ११x२१).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
१६७ नेमगोपी संवाद-चौवीसचोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: एक दिवस वसै नेमकुंवर; अंति: तस
सीस अमृत गुण गाया, चोक-२४. ६४१८८. दशार्णभद्रचौपाई आदि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ७, जैदे., (२१.५४१०, १०४३०). १.पे. नाम. दशार्णभद्र चौपाई, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण. दशार्णभद्रराजर्षि चौपाई, मु. कुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७८६, आदि: सारदमात मनरली समरु; अंति: कुशल सीस गुण
गाईया, ढाल-४. २.पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण.
मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: पंथडो निहालुंरे; अंति: आनंदघन मति अंब, गाथा-६. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, प्र. ५अ, संपूर्ण.
मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: किन गुण भयौ रे उदासी; अंति: जाय करवत ल्यूकासी, गाथा-३. ४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: रे परदेसी भमरा यौ; अंति: आनंद उर न समायरे, गाथा-३. ५. पे. नाम. परनिंदात्याग पद, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: किसी की खोटी नही कही; अंति: एक मोय जीन दरसन चइए, गाथा-४. ६. पे. नाम. ऋषभदेव लावणी, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.
आदिजिन लावणी, मु. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: सुणीये बातां राव सदा; अंति: देख तमाशा फजरा मै, गाथा-८,
(वि. एक गाथा को दो गिनकर लिखा है.) ७. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ६आ, संपूर्ण.
मु. करमसी, मा.गु., पद्य, आदि: आय रहो दिल बाग में; अंति: करमसिंह० सिवभाग मै, गाथा-५. ६४१८९. (+#) चौवीस जिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-२(१ से २)=८, पृ.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४४१०.५, १०४२७).
स्तवन चौवीसी, मु. रत्नविमल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. संभवजिन स्तवन, गाथा-४ अपूर्ण से
__धर्मजिन स्तवन, गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ६४१९०. (+#) चौवीसी स्तवन, पूर्ण, वि. १८२२, आषाढ़ शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(१)=६, ले.स्थल. सांडेरा, प्रले.ग. अजितविजय,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०, १३४३५). स्तवनचौवीसी, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मालामाला ते वरे रेलो, स्तवन-२४,
(पू.वि. अभिनंदनजिन स्तवन गाथा-२ से है.) ६४१९१. (+) चौरासी बोल कवित, संपूर्ण, वि. १८१८, फाल्गुन शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. नौतनपुर, प्रले. मु. पीतांबर ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १०४३०-३६).
८४ बोल कवित्त, क. हेम, पुहिं., पद्य, आदि: सुनय पोषहत दोष मोख; अंति: टौ बढौ ग्यान सुख होत, गाथा-९०. ६४१९२. शालिभद्रमुनि चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-४(१ से ४)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२४४१०, १८४४४).
शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-८ गाथा-४ अपूर्ण से
ढाल-१७ गाथा-११ अपूर्ण तक है.) ६४१९३. आठ कर्मनी १५८ प्रकृतिविचार, संपूर्ण, वि. १७४५, कार्तिक शुक्ल, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. अर्गलपुर, जैदे., (२४४१०, १२४४३).
८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: आठ कर्म ते केहा; अंति: विषइ उद्यम करिवउ. ६४१९४. महावीरजिन स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-४(३ से ६)-६, कुल पे. ५, जैदे., (२४४१०.५,
११४३४-३६). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ-२आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
महावीरजिन स्तवन- २७ भवविचारगर्भित, मु. हंसराज, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति भगवति दिओ मति; अंति: (-), (पू.वि. गाथा- २७ तक है.)
२. पे. नाम. सनत्कुमारचक्रवर्त्ती सज्झाय, पृ. ७अ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है.
सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: देवलोक त्रीजे संभाली, गाथा- १३, (पू.वि. गाथा- ९ से है.)
३. पे. नाम, अष्टापदतीर्थ स्तवन, पृ. ७अ-८आ, संपूर्ण
ग. भाणविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अष्टापद उपरे जाणी, अंतिः भाग भाखे हो फळे सघळी, गाथा- २३. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ८आ-१०अ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तवन-उपधानतपविधिगर्भित, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: श्रीवीरजिणेसर सुपरे; अंतिः मुझ देयो भवि भवि, गाथा-२७.
-
५. पे. नाम महावीरजिन स्तवन- पारणागर्भित, पृ. १०अ १०आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अनंत गुण, अंति: (-), (पू.वि. गाथा १२ अपूर्ण तक है.) ६४१९५. (+) शत्रुंजयतीर्थ स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २४-१७ (१ से ९,१२ से १९) = ७, कुल पे. १०, प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २४४१०.५, १६ - २०५०).
१. पे नाम औपदेशिक सज्झाय हिंसा निवारण, पृ. १०अ रा., पद्य, आदि: (-); अंतिः ते धर्म आछो नहीं, गाथा- ३९
२. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. १०अ ११आ, संपूर्ण.
रा., पद्य, आदि: सितरुजो परबत को अंतिः पण नही आवे लाजी रे, गाथा- ३४.
अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं है. (पू.वि. गाथा २७ अपूर्ण से है.)
३. पे. नाम. नौनवकडी ढाल, पृ. ११आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है.
रा., पद्य वि. १८३३, आदि: दुषम आर पांचमै श्रा, अंति: (-) (पू. वि. गाथा- ६ अपूर्ण तक है.)
४. पे. नाम. साधुआचार सज्झाय, पृ. २०अ २१अ, संपूर्ण.
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साधु आचार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पेला अरहंतने नमु; अंति: तो डुबे वली वसेष जी, गाथा-५३.
५. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय कुगुरु, पू. २१अ संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: दावानल लाघो अधक बले; अंति: तो पोचसी मोख मझारो, गाथा - २१.
६. पे. नाम. ५ आरागत कुगुरु सज्झाय, पृ. २१अ-२२अ, संपूर्ण.
रा., पद्य, आदि: भेषधारी बिगड्या घणा; अंति: भेषधारी पांचमे काले, गाथा- ५१. ७. पे. नाम. कुगुरु सज्झाय, पृ. २२अ-२२आ, संपूर्ण.
रा., पद्य, आदि: विनारा भाव सुण सुण, अंतिः तो सिवपस्सुपित सांवै, गाथा-२२.
८. पे. नाम. कुगुरुसाधु पद पृ. २२आ, संपूर्ण.
१७३७).
१. पे. नाम औपदेशिक लावणी, पृ. १अ. संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: भेखधारी भगवानरा साधु; अंति: ते सुणज्यो विसतार, गाथा-५. ९. पे. नाम. साधु रा अणाचार, पृ. २२आ- २४आ, संपूर्ण.
साधु अनाचार परिहार, मा.गु., पद्य, वि. १८३४, आदि: कुगुरुतणा चरत चावा; अंति: साधम जाणो अणआचारै,
गाथा- ७२.
१०. पे नाम, साधपणारे भेष, पृ. २४आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं.
साधु आचार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: अणा साधन त्यारां भेष, अंति: (-), (पू.वि. गाथा- ५ अपूर्ण तक है.) ६४९९६ (+) उपदेशपदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे २३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. दे. (२४.५x१०,
अखेमल, पुहिं., पद्य, आदि: खबर नहीं है जग में; अंति: वीणती अखमल की, गाथा - ११.
२. पे. नाम. भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. १ अ- १आ, संपूर्ण.
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७.
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राजतणा अति लोभीया; अंति: मयसुंदर वंदे पाया रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. दानशीलतपभावना सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना प्रभाति, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: रेजीव जिनध्रम कीजीय; अंति:
मुगति तणां फल पाय, गाथा-७. ४. पे. नाम. नवकारपद लावणी, पृ. १आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्रपद लावणी, मु. जिनदास, पुहि., पद्य, आदि: तुम जपों मंत्र नोकार; अंति: रखो मुझ चरणों के पास,
गाथा-३. ५. पे. नाम. नेमजीनी लावणी, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
नेमराजिमती सज्झाय, मु. नवलराम, पुहि., पद्य, आदि: नेमकी जान बणी मारी; अंति: की कीरपा बुधसारी, गाथा-८. ६. पे. नाम. स्वार्थविषे लावणी, पृ. २आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: कोन जगतमें तारा चेतन; अंति: जीव होवे निस्तार रे, गाथा-४. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद-परनारी, पृ. २आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: चतुर नर नारी मत निरख; अंति: जब वन मे भटक्यो, गाथा-५. ८.पे. नाम. स्वार्थ सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु.,रा., पद्य, आदि: स्वारथ की सब हेरे; अंति: हे भली परम सगाइ,
गाथा-५. ९. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण.
मु. रतनचंद, पुहि., पद्य, आदि: कर गुदरान गरीबी से म; अंति: भेटतीया दुख टलता है, गाथा-७. १०.पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
मु. हीरालाल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: वाजा नगारा जीत्या; अंति: जीत नगारा गायाजी, गाथा-८. ११. पे. नाम. क्षुधा सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण.
मु. शिवलाल, पुहि., पद्य, आदि: वेदना क्षुधा की है; अंति: दूज्या की बलिहारी, गाथा-१२. १२. पे. नाम. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण.
मु. रतन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन आया हो सोरठ; अंति: जोडी हो रतनजी इम भणे, गाथा-१३. १३. पे. नाम. गुरुगुण गहुंली, पृ. ४अ, संपूर्ण.
मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, आदि: ज्ञानी गुरु विना कोण; अंति: पार उतारे भवजल पाणी, गाथा-७. १४. पे. नाम. कुगुरु पद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
कुगुरु परिहार पद, मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: सुत विन कुण सुणो; अंति: सुणे कुगुरु की काणी, गाथा-५. १५. पे. नाम. भरतचक्रवर्ती सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण.
मु. इंद्रजी ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: साहबा प्रेमधरीने; अंति: भरत भजो वीस वावीस, गाथा-११. १६. पे. नाम. ग्यान की कथा, पृ. ४आ, संपूर्ण.
आध्यात्मिक पद, पुहिं., पद्य, आदि: सुन रे सुजान प्यारे; अंति: सुन सुन ग्यान की कथा, गाथा-३. १७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ५अ, संपूर्ण..
पुहि., पद्य, आदि: बाराजी मागे नव पड़े; अंति: जस अपणो कर लीजे, गाथा-३. १८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ५अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: अपर्नु सोच अपना मन ने; अंति: गरमे क्या रण में, गाथा-३. १९. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५अ, संपूर्ण.
ऋ. अमीचंद, पुहिं., पद्य, आदि: क्यु नायक कष्ट उठाव; अंति: रीख नायक जनम गमावे, गाथा-८. २०. पे. नाम. सत्संगति पद, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
मु. रत्न ऋषि शिष्य, पुहिं., पद्य, आदि: संगत कर लेरे साधु; अंति: मासो सील गुण चासो रे, गाथा-४.
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२१. पे. नाम औपदेशिक पद- वैराग्य, पृ. ५आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद, आव, विनोदलाल, पुहिं, पद्म, आदि: कहता है तु मेरी अंति की ज्यां रे जायगा, गाथा-३.
"
२२. पे. नाम. औपदेशिक पद- वैराग्य, पृ. ५आ, संपूर्ण.
मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: मुसाफिर चोकस रइयो ठग, अंतिः जिनदास० उतरोगे पार, गाथा-४. २३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ५आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: मनवा समज लो ओ वीर, अंति: मनवा समज लेउ वीर गाथा-५
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
६४१९७. (+) नेमिसंवाद चोक, संपूर्ण, वि. १८४९, फाल्गुन शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल. मांडवाडा, प्रले. मु. रामविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित संशोधित., जैदे., (२३१०.५, १३३९).
नेमगोपी संवाद- चौवीसचोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पच, वि. १८३९, आदि: एक दिवस वसै नेमकुंवर, अंतिः तस सीस अमृत गुण गाया, चोक-२४.
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६४१९८. रात्रिभोजन चौपाई, अपूर्ण, वि. १७६३, ज्येष्ठ शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. १४-८ (१, ७ से १३) =६, ले. स्थल. सवारीनगर, प्रले. मु. प्रतापसागर (गुरु पं. प्रीतिसागर); गुपि. पं. प्रीतिसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैबे, (२३१०, १२४३७).
जयसेन चौपाई - रात्रिभोजन विषये, वा. धर्मसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: वाचक० संपति ते लहइ,
गाथा - २५१, (पू. वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं, गाथा - ११ अपूर्ण से है व गाथा १०३ अपूर्ण से २४८ अपूर्ण तक नहीं है.)
६४१९९. (#) भक्तामर व कल्याणमंदिर का पद्यानुवाद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३.५X१०.५, ११४३२).
१. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र पद्यानुवाद, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण.
भक्तामर स्तोत्र-पद्यानुवाद, मु. हेमराज, मा.गु., पद्य, आदि : आदि पुरूष आदिस जिन; अंति: भावसु ते पामै सिवखेत,
मा.गु., पद्य, आदि: सजन फलज्यो फुलज्यो; अंतिः तो उणही रंग रहज्यो, गाथा - १.
३. पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
गाथा ४८.
२. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र पद्यानुवाद, पृ. ५आ-८आ, संपूर्ण.
कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै. क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदिः परम ज्योति परमातमा; अंतिः सी कारण समकित सुद्धि, गाथा- ४४.
६४२०० (+) दशपचक्खाण स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १४-३ (४,१० से १२) =११, कुल पे. ७, प्रले. पं. बुद्धा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२१.५x१०.५, ११४३१).
१. पे. नाम. १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पृ. १अ - ३आ, संपूर्ण.
पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नमुं; अंति: रामचंद तपविधि भणै, ढाल -३, गाथा-३३. २. पे. नाम औपदेशिक दोहा, पृ. ३आ, संपूर्ण.
दोहा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: सजन युं मति जाणिज्यो; अंति: (-), (पू.वि. दोहा - ३ तक है.)
४. पे. नाम. पार्श्वनाथ नीसाणी, पृ. ५अ- ९आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन निसाणी-धधर, मु. जिनहर्ष, पुहिं, पद्य, आदिः सुखसंपत्तिदायक सुरनर, अंतिः गुण जिनहरख गावंदा है,
1
गाथा - ३१.
७. पे नाम, गोडीजी अष्टमीलघु स्तवन, पृ. १४आ, संपूर्ण
गाथा - ५४.
५. पे. नाम जिनदर्शन श्लोक संग्रह, पृ. ९आ, संपूर्ण वि. १८४४ श्रावण कृष्ण, ८. ले. स्थल. लाडणु लोक संग्रह **, पुहिं., प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: दर्शनं देव देवस्य; अंति: (-).
६. पे. नाम. जिनकुशलसूरि छंद, पृ. १२अ १४अ, संपूर्ण.
जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. विजयसिंह, मा.गु, पद्य, आदिः समरुं माता सरसती; अंतिः अभवसोम० लीला वरी,
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
१७१
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: वाल्हेसर मुझ विनती; अंति: इम जपे जिनराज रे, गाथा- ७. ६४२०१. अरणिककुमार चउपड़, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल, नवानगर, जैदे. (२२.५x१०.५, १४X३० ). अरणिकमुनि रास, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १७०२, आदि: (१) सुत सिद्धार्थ भुपनो, (२) सरसति सामिणि वीनवु; अंति: महिमासागर० विलास कि ढाल ८.
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६४२०२. (+) शृंगारभाव वर्णन, अक्षरद्वात्रिंशिका व सज्झायादि, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २१.५X११, ११-१२X३२-३६).
१. पे. नाम. शृंगारभाव वर्णन दहा संग्रह, पृ. १आ-८अ संपूर्ण.
प्रेमपत्री, मा.गु. प+ग, आदि ससिवदनी मृगलोचनी, अंति: आवडे भावे जान सजान, पत्र- ५, दोहा-१३९. २. पे. नाम. अक्षरद्वात्रिंशिका, पृ. ८अ - ९आ, संपूर्ण.
"
अक्षरवत्रीशी. मु. हिम्मतविजय, मा.गु. पच, वि. १७२५, आदि: कका ते किरिया करी कर, अंतिः मुनि महेस हित जाणि, गाथा - ३४.
३. पे. नाम, आवककरणी सज्झाय, पृ. ९आ-१०अ संपूर्ण.
मु. नित, मा.गु., पद्य, आदिः श्रावक धरम करो सुख, अंतिः नेत० समकति धारी रे, गाथा- १०.
४. पे. नाम. पंचतीर्थ स्तवन, पृ. १०अ १० आ. संपूर्ण.
५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि आदए आदए आदिजिणेसरु ए अंति: लावण्यसमय०
सासता, गाथा - ६.
६४२०३. (+) सीमंधरजिन विनती स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित., जैदे.,
(२२x१०.५, ९४२८-३०).
सीमंधरजिन विनती स्तवन- १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: स्वामी सीमंधर विनती, अंति: (-), (पू.वि. डाल- ११. गाथा १३ तक है.)
"
"
६४२०४. नेमगोपीसंवाद चोवीस चोक, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैदे. (२३४१०.५, १२३१). गोपी संवाद- चौवीसचोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: एक दिवस बसे नेमकुंवर, अंति: (-),
(पू.वि. चोक- १६, ढाल १७, गाथा ३ अपूर्ण तक है.)
६४२०५ (+) शोभनस्तुति, संपूर्ण, वि. १८३२ श्रावण शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले. स्थल. आसोप, प्रले. मु. खुस्यालसीभाग्य (गुरु ग. जयसौभाग्य, तपागच्छ); गुपि. ग. जयसौभाग्य (तपागच्छ); पठ. मु. खीवा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२२x१०.५, १६४३५).
स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति - २४,
श्लोक- ९६.
६४२०६. (+) २४ दंडक स्तवन, १० पचक्खाण स्तवन व ६३ शलाकापुरुष रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-४ (१ से ४) =५, कुल पे. ३, ले. स्थल. मंगलपुर, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२.५X११, ८x२०-३०).
१. पे नाम, चोवीसदंडक स्तवन, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं.
7
२. पे. नाम. १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पृ. ५अ-८ अ, संपूर्ण, ले. स्थल. मंगलपुर, प्रले. ग. प्रेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंद नमु; अंति: रामचंद्र तपविधि भणि, ढाल -३, गाथा-३३. ३. पे. नाम. ६३ शलाकापुरुष रास, पृ. ८अ - ९आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
ग. दयाकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीजिनचरण पसाउले, अंति: (-), (पू.वि. ढाल - २ गाथा-५ अपूर्ण तक
है.)
पार्श्वजिन स्तवन- २४ दंडकविचारगर्भित, मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: (-); अंति: गावै धर सुजगीस ए. ढाल ४, गाथा-३४, (पू. वि. मात्र अंतिम गाथा अपूर्ण है.)
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१७२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६४२०७. (+) सुक्तावली काव्य, अपूर्ण, वि. १८४९, भाद्रपद कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. १२-२(१ से २)=१०, ले.स्थल. सणधरी, प्रले. काना
मथेन; अन्य. मु. रणछोड (गुरु मु. दोलाजी); गुपि. मु. दोलाजी (गुरु उपा. केसरजी); उपा. केसरजी (गुरु उपा. रामचंद्र); उपा. रामचंद्र; राज्यकालरा. जालमसिंघजी रावल; रा. अमरसिंघजी रावल; अन्य. श्राव. केशवदास; श्राव. दीपचंदजी; श्राव. जीवणजी; श्राव. अभाजी; श्राव. उपाजी, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (५६०) जलात् रक्षेत् थलात् रक्षे, (११७७) रक्षे जत्नज पुस्तका सुखकरि, जैदे., (२२.५४११, १४४३४-३७).
सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: (-); अंति: केसरविमलेन विबुधेन, (पू.वि. गाथा-२५
अपूर्ण से है.) ६४२०८. पर्यंताराधना व जीव क्षमापना सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८५३, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ६-१(५)=५, कुल पे. २,
प्रले. मु. सोभाचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४१०.५, १३४२८-३२). १.पे. नाम, पर्यंताराधना सह बालावबोध, पृ. १अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
पर्यंताराधना-चयन, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६५ तक है.)
पर्यंताराधना-चयन का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अतिचार आलोच्यो हिवै; अंति: (-). २.पे. नाम. जीवराशि खमावा सज्झाय, पृ. ६अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदिः (-); अंति: पापथी छूटे ते ततकाल,
(पू.वि. गाथा १४ अपूर्ण से है.) ६४२०९. (+) भक्तामर ऋद्धि मंत्र गुण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६+१(६)-७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२१x१०.५, १५-१८४४१-४४).
भक्तामर स्तोत्र-मंत्राम्नाय, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (१)भक्तामर प्रणत मोली, (२)ॐ ह्रीँ अहँणमो; अंति: रहे
माहत प्रभावीक. ६४२१०. (+) कान्हडकठियारा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२४१०.५, १६५३०-३२).
कान्हडकठियारा रास-शीयलविशे, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२
गाथा-३ अपूर्ण से ढाल-८ गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ६४२११. (+#) नेमिजिन रास, संपूर्ण, वि. १८५४, वैशाख कृष्ण, ३०, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. वाव, प्रले. मु. अमरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३४११, १०४२२).
नेमिजिन रास, ग. शुभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नेमि प्रणमु सूर; अंति: शुभविजि० श्रीनेमिसरो, गाथा-८१. ६४२१२. (+) प्रतिक्रमणहेतुगर्भित सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१९.५४११, ११४२४).
प्रतिक्रमणहेतुगर्भित स्वाध्याय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७४४, आदि: श्रीजिनवर प्रणमी;
अंति: जस० देयो मंगल कोडि, ढाल-१९. ६४२१३. उपधान विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदे., (२३४१०, १३४२५).
उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पहिलुं नवकारर्नु; अंति: माहिं पाठांतरि छक्कि. ६४२१४. शीयलविषये विक्रमचरीत्रकनकावती रास, संपूर्ण, वि. १८२८, कार्तिक कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ३९, ले.स्थल. श्रीपुरबंदर, जैदे., (२२४९.५, १४४२९-३४). कनकावती रास-शीलविषये, पं. कांतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७६७, आदि: सकल सुरासुर सामनी; अंति: घरि
मंगलमाल हो राजि, ढाल-४१. ६४२१५. श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१-१०(१ से १०)=११, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२२.५४१०.५, १२४३४-३६). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-),
(पू.वि. खंड-१, ढाल-९ गाथा-१७ अपूर्ण से खंड-२ ढाल-६ गाथा-७ तक है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
१७३ ६४२१६. रात्रिभोजन चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २९-२०(१ से २०)=९, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२२.५४१०.५, ९x१८-२०). रात्रिभोजन चौपाई, मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-६ गाथा-५ अपूर्ण
से ढाल-९ गाथा-१० अपूर्ण तक है.) ६४२१७. (+#) खरतरगच्छ गुर्वावली, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-२(१ से २)=८, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१०, १२४३७).
खरतरगुरूगुणवर्णन छप्पय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. जिनेश्वरसूरि अधिकार अपूर्ण से "आनंद
कामदेवस असलः आंन बैठत हैं अपनी" पाठांश तक हैं.) ६४२१८. (#) राजसिंघ रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-८(१ से ८)=९, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१०.५, १२४३७). राजसिंघ रास, ग. कपूरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८२०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-९ गाथा-७ अपूर्ण से
ढाल-१८ गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ६४२१९. (+) शीलविषये विक्रमचरीत्रकनकावती रास, संपूर्ण, वि. १८४९, माघ कृष्ण, ३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३१,
ले.स्थल. सीलोदर, प्रले.पं. तीर्थविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीमाहावीरजी प्रसादात्., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३४१०.५, १४४४३-४७). कनकावती रास-शीलविषये, पं. कांतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७६७, आदि: सकल समीहित पूरवइ; अति: घरि
मंगलमाल हो राजि, ढाल-४१, ग्रं. ८९०. ६४२२०. (#) स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. खभालीया, प्रले. पं. अमीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४११, १७४३७). स्तवनचौवीसी, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ओलगडी आदिनाथनी जो; अंति: रामविजय जयश्री लही,
स्तवन-२४. ६४२२१. (+) पार्श्वजिन विवाहलो, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-३(१ से ३)=७, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२.५४१०, १५४३५-३८). पार्श्वजिन विवाहलो, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-५ गाथा-१४ अपूर्ण
से ढाल-१८ गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ६४२२२. (+#) साहा पंचाईणनिर्वाण रास व पाक्षिक स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. २, ले.स्थल. राधनपुर,
प्रले. श्राव. पानाचंद शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२४१०, ९४२०-३०). १.पे. नाम. साह पंचाइणजीरास, पृ. १अ-१०अ, संपूर्ण.
मु. जयराज, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: वांदु वीरजिणंदना चरण; अंति: जयराजगछने मंगल करो, गाथा-७४. २. पे. नाम. पाक्षिक स्तुति, पृ. १०आ, संपूर्ण.
आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
प्रतिलेखक ने मात्र अंतिम गाथा लिखी है.) ६४२२३. (+) जातकपद्धति सह टबार्थ व महादशादि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष
पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२२.५४१०, ५४३९-४५). १.पे. नाम. जातकपद्धति सह टबार्थ, पृ. १आ-१७अ, संपूर्ण. जातकपद्धति, मु. हर्षविजय, सं., पद्य, वि. १७६५, आदि: प्रणम्य पार्श्वदेवेश; अंति: हर्षविजयो०जातकदिपिका,
श्लोक-९४, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथ प्रते; अंति: (-), (पूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम दो गाथा का टबार्थ नहीं
लिखा है.) २. पे. नाम. महादशा श्लोक, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण.
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१७४
सार
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सं., पद्य, आदि: आद्रादौ गणयेत्सूर्यो; अंति: कर्मयोग्या भवति ता, श्लोक-५. ३. पे. नाम. स्पष्टलग्न विधि सह बालावबोध, पृ. १७आ, संपूर्ण.
लग्नस्पष्ट विधि, सं., पद्य, आदि: अयनांश युते स्पष्टे; अंति: कार्यं च गणकोत्तमे, श्लोक-५.
लग्नस्पष्ट विधि-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: हिवे स्पष्ट सूर्य, अंति: धनलग्न स्पष्ट थाइं. ६४२२४. (+) अभयकुमारादि पंच साधु चतुःपदी, संपूर्ण, वि. १७६८, फाल्गुन कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४९, १४४४५-५०). ५ साधु चौपाई-अभयकुमारसंबंधे, मु. कान्हजी, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: जगगुरु प्रणमुं वीर; अंति: कानजी
संघ उदय सूखकार, ढाल-१२. ६४२२५. (+) धर्मदत्त धनवती चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४१-२०(१६ से २०,२२ से ३६)=२१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१४९.५, १०x२९). धर्मदत्तधनवती चौपाई, मु. कुशलहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७८८, आदि: प्रथम नमुंचौवीस जिण; अंति: कुशलहर्ष०
जगीस हो, खंड-२, (पू.वि. खंड-१ ढाल-११, गाथा-१२ अपूर्ण तक, खंड-२ ढाल-४ गाथा-८ अपूर्ण से ढाल-५
गाथा-१ अपूर्ण तक व खंड-२ ढाल-१७ गाथा-६ अपूर्ण से है., वि. ढाल ३२) ६४२२६. (#) शत्रुजयादि स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-१(३)=९, कुल पे. ९, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
जैदे., (२२.५४९.५, ९-१४४२८-३९). १.पे. नाम. शेजय स्तवन, पृ. १अ-४अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. आदिजिन बृहत्स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. प्रेमविजय, मा.ग., पद्य, आदि: प्रणमी सयल जिणंद पाय: अंति: प्रेम० पामो
भवपार ए, गाथा-२२, (पू.वि. गाथा-१६ से २१ तक नहीं है.) २. पे. नाम. पारसजिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: सहज सलुणो हो मिलीयो; अंति: पूरो प्रेम विलास, गाथा-७. ३. पे. नाम. साधारणजिन विनती, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण.
रा., पद्य, आदि: प्रभुजी सेवा हो कारण; अंति: ज्यो पावै सुखविलास, गाथा-९. ४. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन-मगरोपमंडण, मु. मोहन, रा., पद्य, आदि: सरस्वति सामणि भेट्रं; अंति: मोहन कैल करंदाजी,
गाथा-५. ५.पे. नाम. पंचतीर्थस्तवन, प्र. ६अ-७अ, संपूर्ण. ५तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिहि आदि जिणेसरु ए: अंति: लावण्यसमै इम भणै ए.
गाथा-६. ६. पे. नाम. ऋषभदेव स्तवन, पृ. ७अ-८अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. देवसौभाग्य, मा.गु., पद्य, वि. १७४८, आदि: सरसत मात मया करो गाउ; अंति: प्रणम्
देवसौभाग्य, गाथा-११. ७. पे. नाम. वरकाणापार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणा, मु. जिण, मा.गु., पद्य, आदि: वरकाणै वरमंडण पास; अंति: सेवग जिन० पाय वास,
गाथा-१०. ८. पे. नाम. आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडन, पृ. ८आ-१०अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने पार्श्वनाथ स्तवन लिखा है.
मु. शिवसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १७१५, आदि: राणपुरै मन मोहीयो; अंति: लाल सेवसुंदर सुख पाय, गाथा-१६. ९. पे. नाम. भोजनछत्रीसी-महावीरजिनस्तुतिगर्भित, पृ. १०अ-१०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
__ आ. दयासागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिशला राणी कहै; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २५ अपूर्ण तक है.) ६४२२७. (+) ६ काय बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, अन्य. श्रावि. रतनबाइ; श्रावि. कासीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३४१०, १३४२९).
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१७५
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
६ काय बोल, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पेहले बोले छ कायना; अंति: इति मुगतसलाना १२ नाम. ६४२२८. (+) व्याख्यान व शांतिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१९.५४१०,
११४२४-२८). १. पे. नाम. उठाणैरी गाथा, पृ. १आ-६अ, संपूर्ण.
तीर्थंकर चक्रवर्ती ऋद्धि वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: तित्थयरा गणहारी सुर; अंति: विषै प्रवत्तौं. २.पे. नाम. शांतिजिनंदा स्तुति, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद मात नमु सिरनामी; अंति: गुणसागर०
शिवसुख पावे, गाथा-२१, (वि. मात्र प्रतीक पाठ लिखा है.) ६४२२९. फलवृद्धिपार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-३(३,६ से ७)=५, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (१९.५४१०, ४४१३). पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धितीर्थ, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: परतापूरण प्रणमीयै; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६
अपूर्ण तक है व बीच-बीच की गाथाएँ नहीं हैं.) ६४२३०. (#) क्षमाछत्रीशी, संपूर्ण, वि. १७८६, मध्यम, पृ. ५, प्रले. मु. करमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (१८४९.५, ७-१०४२१-२७). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदर जीव खिमागुण आदर; अंति: समईसुंदर० संघ जगीसजी,
गाथा-३६. ६४२३१. (#) हरिबल चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०.५, १५४३४-३७). हरिबल चौपाई, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१०, आदि: प्रथम धराधव जगधणी; अंति: (-),
(पू.वि. उल्लास-४, ढाल-२. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ६४२३२. (+) शास्त्रयुक्तिसम ग्रंथ, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. ५४, प्र.वि. पत्रांक दोनो तरफ लिखे हैं., संशोधित., दे., (३५.५४२२, ४५-५०४३५-४०). दुषमकाल आगमिक श्रुतस्थिती प्रमाणादि प्रश्नोत्तर विचार, पुहि.,प्रा.,सं., गद्य, आदि: (१)त्रिजगताधीशं नत्वा,
(२)इस वक्त में श्रीजिन; अंति: पुराणे अतिथ्यधिकारे, अधिकार-५. ६४२३३. (+#) अंजनासुंदरी चौपाई, संपूर्ण, वि. १८८२, मार्गशीर्ष कृष्ण, ९, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३५, ले.स्थल. बाबरा,
प्रले.पं. नेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४९.५, ११४४०).
अंजनासुंदरी रास, मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: श्रीगणधर गौतम प्रमुख; अंति: ऋद्धि वृद्धि
मंगलमाल, खंड-३, गाथा-६३२,ग्रं. ९०५०, (वि. ढाल २२) ६४२३४. जंबूस्वामि रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२३.५४९.५, ३२-३४४१४-१५).
जंबूस्वामी रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: प्रणमी पासजिणंदना; अंति: (-),
(पू.वि. ढाल-३५, गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ६४२३५. (+) प्रियमेलकचौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२३४१०.५, १२-१४४३०-३५). प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: प्रणमु सद्गुरु पाय; अंति: (-),
(पू.वि. ढाल-९, गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ६४२३६. (#) दशवैकालिकसूत्र सज्झाय, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१०, १४४४५). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, वा. कमलहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: मंगलिक महिमा निलो रे: अंति:
(-), (पू.वि. अध्याय-१० गाथा-८ अपूर्ण तक है.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
१७६
६४२३७ (१) शियलवेलि, संपूर्ण वि. १८७५, पौष शुक्ल १५, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले. स्थल, राणावसम, प्रले. पं. हिरहर्ष (गुरु मु. उदयहंस); गुपि. मु. उदवहंस, पठ. श्राव. हरुपजी सालगजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२३.५x१०, १३४३२).
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स्थूलभद्रमुनि शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: सीयल सुहंकर पासजी, अंति: सेला वरस्यै रे, ढाल - १८.
,
६४२३८. दशवैकालिकसूत्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पू. ६, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं, जैवे. (२३४१०, ११४४४-४८). दशवैकालिकसूत्र - सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु, पद्य, आदिः श्रीगुरूपदपंकज नमीजी अंतिः (-), (पूर्ण, पू.वि. सज्झाय-११, गाथा-४ अपूर्ण तक है.)
६४२३९. (+०) उत्तराध्ययन ३६ भास, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११ ले. स्थल, कृष्णगढ, प्रले. पं. महिमासागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित मूल व टीका का अंश नष्ट है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैसे. (२१.५X१०.५ १३-१६३८-४२).
"
उत्तराध्ययन सूत्र - विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पवयणदेवी चित्त धरीजी, अंति: रे जे थकी नवनिध थाय, सज्झाय-३६.
६४२४० (+) नारचंद्रज्योतिष व आषाढी पूर्णिमा विचार, संपूर्ण, वि. १८५३, श्रेष्ठ, पृ. ५६, कुल पे. २, ले. स्थल, मसुदा, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैदे. (२४.५४१०, ४४३८).
१. पे. नाम. नारचंद्रज्योतिष सह टवार्थ, पृ. १३-५६ आ. संपूर्ण.
ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हत जिनं, अंतिः सुभिक्खं न संदेहो, श्लोक-२९४ (वि. १८५३, ज्येष्ठ कृष्ण, ३०, ले. स्थल. मसुदा, प्रले. मु. दोलतकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य )
ज्योतिषसार-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीतीर्थंकर वीतराग; अंतिः तो निश्चयसुगाल होय, (वि. १८५३, आषाढ़ कृष्ण, रविवार, ले. स्थल. कोव्या, प्रले. शिवकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य )
२. पे. नाम. आषाढी पूर्णमासि विचार सह टबार्थ, पृ. ५६आ, संपूर्ण.
आषाढपूर्णिमा विचार श्लोक सं., पद्म, आदि आषाढंत पूर्णमायां अंतिः तद्वत् इशानकोणो, श्लोक-१, संपूर्ण आषाढपूर्णिमा विचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि आसाउने सुदि १५: अंति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., एक पाद का ही लिखा है.)
६४२४२. (+) नाराचंद्र ज्योतिष सह टिप्पण, अपूर्ण, वि. १९००, श्रेष्ठ, पृ. ३३-२ (१ से २ ) = ३१, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न - टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैदे. (२४४१०.५, १३४३६).
"
ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (१) लोहा प्रकीर्त्तिता, (२) शेषं पुत्रस्य लभ्यते,
( पू. वि. श्लोक - २६ अपूर्ण से है . )
ज्योतिषसार-यंत्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
६४२४३, (+) लिंगानुशासनसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७. प्रले. पं. मेघविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे
(२५X११, १२X३२-४१).
हैमलिंगानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: पुल्लिंग कटणथपभमयर, अंतिः हेम० शासनानि लिंगानां प्रकरण ८, श्लोक १३९.
"
६४२४४. (+) नारचंद्र ज्योतीष सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १८७२ श्रावण शुक्ल, १५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, कुल पे. ४, ले.स्थल. मलसीसर, प्रले. हीरानंद, राज्यकालरा. डुंगरसिंघजी शेखावत, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें जै (२५x१०.५, १२x२४-४२).
१. पे. नाम. नारचंद्रज्योतिष सह टिप्पण, पृ. १आ- १३अ, संपूर्ण.
ज्योतिषसार आ. नरचंद्रसूरि सं., पद्म, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा, अंतिः नाडी विवर्जयेत् श्लोक-२९४. ज्योतिषसार-यंत्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: सरस्वतीं नमस्कृत्य; अंति: षण्मासे मरणं ध्रुवं. २. पे. नाम. छुटक श्लोक, पृ. १३अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
ज्योतिष लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: मघार्के वारे शशिनो, अंति: रोग सर्वमेव विधीयते श्लोक-६. ३. पे. नाम. आसरा छावण आर्या, पृ. १३आ, संपूर्ण.
आश्रय स्थापन, मा.गु., पद्य, आदि: राजाजी युष्टरा मंदर, अंति: विचालै पड्यो पावै, दोहा-५.
४. पे. नाम. तिथिनक्षत्र वेध, पृ. १३आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: नंदा च रोहिणी वेधाः; अंति: टालयेद्विदुषावहा, श्लोक-४. ६४२४५. पासकेवली, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११, जैये. (२५x११, १०x२९).
१३X३९).
१. पे. नाम. नारचंद्रज्योतिष सह टिप्पण, पृ. १आ - २०आ, संपूर्ण.
पाशाकेवली, मु. . गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो भगवती; अंति: गणोयं सत्यापास केवली, श्लोक-१८४. ६४२४६. (+) नारचंद्र ज्योतिष व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १७९२ फाल्गुन शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. २०, कुल पे. २, ले. स्थल. सूरती बंदर, प्र. मु. लब्धिविजय पठ. श्राव. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित, जैदे. (२४४१०,
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ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रकीर्णक-प्रथम ही लिखा है. )
ज्योतिषसार-यंत्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: सरस्वतीं नमस्कृत्य अंति: (-), प्रतिपूर्ण २. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक संग्रह, पृ. २०आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: रविदिन नख संख्या चंद, अंतिः शुक्रा प्रकिर्तिता, श्लोक-३.
६४२४७. भुवनदीपक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १६९५, श्रावण कृष्ण, १३, शनिवार, मध्यम, पृ. १३ - १ (१) = १२, ले.स्थल. संग्रामपुर, पठ मु. सभाचंद पंडित (गुरुग, जगसी, खरतरगच्छ); गुपि. ग. जगसी (गुरुग, श्रीपाल, खरतरगच्छ); ग. श्रीपाल (गुरु उपा. भुवनसोम, खरतरगच्छ); उपा. भुवनसोम ( खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., ( २४.५X१०.५, ६x४५).
भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: (-); अंति: (१) तस्य दोषो कुलोद्भवः, (२) श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१७६, (पू.वि. श्लोक-१३ अपूर्ण से है.)
भुवनदीपक-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: पितर तेहनु दोस कहणउ, (प्रले. ऋ. धर्मसी, प्र.ले.पु. सामान्य) ६४२४९. (+#) रामसीता रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०४ - १ (१) = १०३, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३X१०.५, १३-१५X३६).
रामसीता रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रथम एक व अंत के नहीं हैं., खंड-१ ढाल -१ गाथा- ६ अपूर्ण से खंड-९ ढाल ६ गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) ६४२५२. (+४) ढोलामारु चोपई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. ३९-३ (१ से ३) ३६, पू. वि. बीच के पत्र हैं.
६४२५७. हीरावेध बत्रीशी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, जैदे., (२५.५X११, ६x४०-४४).
प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X१०.५, १३X२८).
ढोलामारु चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६७७, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. गाथा- ३९ अपूर्ण से ६९३ अपूर्ण तक है.)
-
१७७
हीरावेधद्वात्रिंशिका, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजनगर सम एह नारि; अंति: कांति० हीरावेध री, गाथा-३२. हीरावेधद्वात्रिंशिका टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हे राजन् गर विष समान अंति: बत्रीसी वांचो भणो.
६४२६०. (४) गोराबादल चौपाई व राजवंशावली, अपूर्ण, वि. १७६६ चैत्र शुक्ल, ११, बुधवार, मध्यम, पृ. १८-९ (२ से १०)०९, कुल पे. २, ले.स्थल. बिनासतटद्रंग, प्रले. मु. चतुर (गुरु मु. भागचंद ऋषि, लुकागच्छ); गुपि. मु. भागचंद ऋषि (गुरु मु. हाजी ऋषि, लुकागच्छ); मु. गेहाजी ऋषि (लुकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२६४१०.५, १६४५४-५८).
१. पे. नाम. गोराबादल चौपाई, पृ. १आ- ११अ - १८आ, अपूर्ण, पू. वि. बीच के पत्र नहीं हैं.
o
आ. हेमरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६४५, आदिः सुखसंपतिदायक सकल; अंति: हेमरतन ले लिखमी बरे, (पू. वि. गाथा - २० अपूर्ण से गाथा- ३३० अपूर्ण तक नहीं है.)
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१७८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. चित्रकूट गहिलोत रत्नसेन राजवंशावली, पृ. १८आ, संपूर्ण.
___ मा.गु., गद्य, आदि: राणा श्रीरतनसिंह; अंति: रां. जगतसिंघजी. ६४२७२. (+#) कालज्ञान भाषा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, ११४३३). कालज्ञान-भाषा, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: संकत शंभूशंभूसुतन; अंति: (-),
(पू.वि. गाथा-१२३ अपूर्ण तक है.) ६४२८५. (#) भुवनदीपक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८४१, आश्विन कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. २३, ले.स्थल. आघोइनगर, प्रले. मु. जीतसागर; पठ. नथुराम जोशी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१०.५, १२४३२). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१७८,
संपूर्ण. भुवनदीपक-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: सरस्वती संबंधीओ; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
अंतिम गाथा का बालावबोध नहीं लिखा है.) ६४२८९. सारस्वत व्याकरण टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४११, १५४४८-५५).
सारस्वत व्याकरण-दीपिकाटीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: नमोस्तु सर्वकल्याणपद; अंति:
(-), (पू.वि. "सूत्रं नस्योपधाानोपधातस्या" पाठांश तक है.) ६४३०४. (+#) द्रव्यगुणसतश्लोकी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३०-२४(२ से ७,११ से २६,२८ से २९)=६,
पठ. मु. पार्श्वचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, ४४२९-३२). द्रव्यगुण शतश्लोकी, त्रिमल्ल भट्ट, सं., पद्य, आदि: श्रीकंठं गिरिजागणेशस; अंति: शुद्धस्तु दाहादिकृत्, (पू.वि. श्लोक-२
अपूर्ण तक, श्लोक-२० अपूर्ण से २९ अपूर्ण तक, ८० अपूर्ण से ८५ अपूर्ण तक व श्लोक१०० अपूर्ण से है.) द्रव्यगुण शतश्लोकी-टबार्थ, क. रूपचंद, रा., गद्य, वि. १८३१, आदि: जो त्रिमल्ल शतके; अंति: षम वात रूप कीधो
सुगम. ६४३२८. (+) शोभन स्तुति, अपूर्ण, वि. १७९९, श्रावण कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, ले.स्थल. पाटण, प्रले. मु. हेतविजय (गुरु ग. हस्तिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१.५४१०.५, १२४३७-४४). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (१)हारताराबलक्षेमदा, (२)भव्यलोकेन बबर्क परं,
(पू.वि. पद्मप्रभ स्तुति गाथा-१ अपूर्ण से है.) ६४३९९. (+) नीतिशतक सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १३४४२).
नीतिशतक, भर्तृहरि, सं., पद्य, आदि: यां चिंतयामि सततं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२२ तक है.)
नीतिशतक-टीका, पा. धनसार उपाध्याय, सं., गद्य, वि. १५३५, आदि: युगादिदेवोप्ययुगादि; अंति: (-). ६४४०९. (+#) स्तवन सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ६, पठ. मु. पानाचंद, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२१.५४१०, ११४१९). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु.ज्ञानविमल, पुहि., पद्य, आदि: वीर विना वाणी कोण; अंति: ज्ञानविमल० आवें आवें, गाथा-९. २. पे. नाम. शांतिजिन फाग, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
शांतिजिन स्तवन, मु. राम, पुहिं., पद्य, आदि: शांतिकरण जिन शांति; अंति: पाउ अपनो बहू माल, गाथा-७. ३.पे. नाम. औपदेशिक गीत, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-वसंत, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: रतनी की सहज वसंत की; अंति: (१)रुपचंद०लाल कबांन हे,
(२)रुपचंद० कबांन हैं, गाथा-४.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
१७९ ४. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण.
मु. महिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिननी आनमा सासर; अंति: महिमा० सुख लहीएंरे, गाथा-९. ५. पे. नाम. आत्मशिखामण सज्झाय, पृ. ४अ-६आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, श्राव. लाधो साह, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर करी; अंति: लाधो० जाउं बल्यहारी,
गाथा-१५. ६. पे. नाम. बोल संग्रह, पृ. ६आ, संपूर्ण.
बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: परतक्ष परमाण; अंति: ए ३ दान उपादेय. ६४४१५. (+) भक्तामर स्तोत्र, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२२४९.५, १०४३२).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४४ अपूर्ण तक है.) ६४४२९. (+) आर्यवसुधाराधारिणी सह विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. ग. मतिकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४४१०.५, १४४५०).
वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति.
वसुधारा स्तोत्र-विधि, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: इयं वसुधारा; अंति: तदा श्री० वर्द्धिते. ६४४३८. (+) सिंदूरप्रकर, स्तोत्र व प्रतिक्रमणादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८८-१८९२, श्रेष्ठ, पृ. ८७, कुल पे. १५, ले.स्थल. खीवसर,
प्रले. श्राव. मूलचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२८x१४, ४-१३४३२). १.पे. नाम. सिंदूरप्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ-२७आ, संपूर्ण, वि. १८८८, वैशाख अधिकमास शुक्ल, १४. सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सोम० मार्गं समाचरेत्, द्वार-२२,
श्लोक-१०१. सिंदूरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नख दुति भर केहवौ छै; अंति: जाणवू इहपरलोक हेतू. २.पे. नाम. नवस्मरण सह टबार्थ, पृ. २८अ-६०अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने सप्तस्मरण लिखा है. नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंति: तुह दंसण मम फलं हेउ,
(अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बृहत्शांति स्तोत्र नहीं लिखा है., वि. व्युत्क्रम से पाठ लिखा गया है.) नवस्मरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीभगवंत ना चरण युग; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, पृ. ६०अ-६९आ, संपूर्ण, वि. १८९२, श्रावण कृष्ण, १०, सोमवार, ले.स्थल. खिवसर,
प्रले. श्राव. मूलचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: इच्छामि खमासमणो; अंति: क्षेत्रदेवताः,
संपूर्ण. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वांछुछु अहौ क्षमा; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पोसहविधि सूत्र सेटबार्थ नहीं लिखा है.) ४. पे. नाम. दशविध पच्चक्खाण, पृ. ७०अ-७३आ, संपूर्ण.
प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: गारेणं वोसिरामि. ५. पे. नाम. १४ नेम, पृ. ७३आ, संपूर्ण.
श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सच्चित्त दव्व विगई; अंति: दिसिन्हाण भत्तेसु, गाथा-१. ६.पे. नाम. ८ कर्म, पृ. ७३आ, संपूर्ण.
८ कर्म नाम, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावर्णनी १; अंति: अंतरायकर्म ७ आवखो ८. ७. पे. नाम. बृहत्ग्रहशांति, पृ. ७४अ-७५अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है.
ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: भद्र० विधिं श्रुत, श्लोक-२९. ८. पे. नाम. नवग्रह स्तोत्र, पृ. ७५अ-७५आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है.
ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: भद्रबाहु० श्रुतां, श्लोक-१३.
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९. पे नाम. सूर्याष्टकं, पृ. ७५ आ-७६अ, संपूर्ण.
सूर्याष्टक, सं., पद्य, आदि: ॐ रक्तवर्णो महातेज, अंति: च भवे जन्मनि जन्मनि श्लोक-११. १०. पे नाम. १०८ स्नात्रपूजा विधि, पृ. ७६अ ७६आ, संपूर्ण.
अष्टोत्तरी स्नानविधि, मा.गु. सं., गद्य, आदिः प्रतिमा ४ कही, अंतिः देवगुरू प्रशादात्, ११. पे. नाम. सर्व तपो विधि, पृ. ७७अ-८१आ, संपूर्ण.
तपविधि संग्रह, मा.गु, गद्य, आदि: प्रथम ज्ञांनतपः अंतिः कृतं मनौकार्यफलं.
१२. पे नाम. पोसह विधि, पृ. ८१-८४अ संपूर्ण.
पौषध विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: पोसा त्रण प्रकारना; अंतिः लीखी ज छै ते जाणवौ. १३. पे. नाम. ८४ गच्छनामानि पृ. ८४अ ८४आ, संपूर्ण.
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
८४ गच्छ नाम, मा.गु., गद्य, आदि: ओयसगच्छ कवला १ खरतर, अंति: (१) ८३ नाडोलगछ ८४, (२) गच्छनामानी० फलमुत्तमं
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१४. पे. नाम. युगादिदेव महिम्न स्तोत्र, पृ. ८५अ-८७आ, संपूर्ण.
आदिजिन महिम्न स्तोत्र, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: महिम्नः पारं ते परम; अंति: रत्नशेखर ० तेजोमयी, लोक-३८.
१५. पे. नाम. ज्ञान पहिरावणी, पृ. ८७आ, संपूर्ण, वि. १८९२, श्रावण शुक्ल, ५.
ज्ञान पहिरावणी गाथा, प्रा., पद्य, आदिः नमंत सामंत महीप नाहं, अंतिः लाभाय भवक्खयाय, गाथा-२. ६४४४०. (+) आराधना, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २६, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२८.५X१४.५, १३४३२).
आराधनासूत्र, आ. पार्धचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १५९२, आदि: श्रीजिनचरणजुगल पणमेस अंतिः पासचंद० चतुर विचारि, गाथा ४०५.
६४४४२. (+) कल्पसूत्र सिद्धांत सह टबार्थ, कथा व महिमा गाथा, संपूर्ण, वि. १९०५, आषाढ़ कृष्ण, १०, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १२५, कुल पे. २, ले. स्थल, खीवसर, प्रले श्राव. मूलचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें- संधि सूचक चिह्न, वे., (२८x१३.५, ६-२३४३६).
१. पे. नाम. कल्पसूत्र सिद्धांत सह टबार्थ व कथा, पृ. १आ-१२५आ, संपूर्ण.
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (१) णमो अरिहंताणं० पढमं, (२) तेणं कालेणं० समणे, अंति: उवदसे त्ति बेमि, व्याख्यान. ९. ग्रं. १२१६.
कल्पसूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंत भणी माहरौ; अंति: पिण कहु छं० प्रमाण..
कल्पसूत्र - व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदिः ॐ नमः आदिनाथाय, अंति: खिमतखांमणा करवी. २. पे. नाम. कल्पसूत्र महिमा गाथा सह टबार्थ, पृ. १२५आ, संपूर्ण.
-
कल्पसूत्र महिमा गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जं उत्तिमं तित्थो, अंतिः तं कप्पे सवणेण य, गाथा २. कल्पसूत्र महिमा गाथा-टबार्थ, मा.गु, गद्य, आदि जो उत्तिम तीर्थ, अंतिः सुण्यां दूर थाय.
६४४४३ (+) चैत्यवंदन, नवतत्व, स्तुत्यादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९३, चैत्र कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे ७, ले. स्थल, जेसाणपुर, प्रले. ग. गुलाबविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित., जैदे., (२८x१४, १४४४२).
१. पे नाम, पार्श्वजिन चैत्यवंदन-चिंतामणि, पृ. १अ, संपूर्ण,
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सं., पद्य, आदिः पार्श्वनाथ नमस्तुभ्य अंति: (-). (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-२ तक लिखा है.)
२. पे. नाम. चतुर्विंशति जिन स्तोत्र, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण.
सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी आदिः सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंतिः (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-३० तक लिखा है.)
३. पे. नाम मांगलिक लोक संग्रह, पृ. २अ संपूर्ण.
प्रा. सं., पद्य, आदि: कल्याणपादपाराम, अंतिः भुवन चूडामणि भगवान्.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६ ४. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण.
आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. ५. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ३आ-५आ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (१)बोहिय इक्कणिक्काय, (२)लेसा तिन्नि सेसाणं, गाथा-५५. ६. पे. नाम. दडंक प्रकरण, पृ. ५आ-७अ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउण चउविसजिणे तसु; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ,
गाथा-४१. ७. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ७अ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह-, सं., पद्य, आदि: मिथ्यात्व सास्वादनं; अंति: चतुर्मासिक मंडनानि, श्लोक-५. ६४४४४. कुदेवतावीमोचन सुदेव सुगुरु सुधर्म वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, प्रले. मु. अचलसुंदर; पठ. श्राव. आणंदरूप, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१४.५, १४४३७-४०).
कुदेवकुगुरुकुधर्मस्वरूप विवेचन, मा.गु., गद्य, आदि: देवधरमगुरु वंदी पद; अंति: ते परम मंगल पद पामै. ६४४४५. (+) प्रतिक्रमणसूत्र व पच्चक्खाणसूत्र, अपूर्ण, वि. १८७१, आषाढ़ शुक्ल, १, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १०-१(१)=९, कुल पे. ३,
ले.स्थल. कोटा, प्रले. ग. भैरव विजय गणि; पठ. मु. रूपचंद (गुरु मु. श्रीचंद); गुपि. मु. श्रीचंद (गुरु पं. रत्नसौभाग्य); पं.रत्नसौभाग्य, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८x१५, १६-१९४३६). १. पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. २अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीस, (पू.वि. अनत्थ
सूत्र अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. श्रमणप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. ७आ-९अ, संपूर्ण. साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० करेमि; अंति: वंदामि
जिणे चउवीसं. ३. पे. नाम. प्रत्याख्यानकानि, पृ. ९अ-१०अ, संपूर्ण.
प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: सुरे उग्गए नमुकार; अंति: असित्थेण वा वोसिरामि. ६४४४६. (+) आगमादि पाठांतर विषयक शंकासमाधान चर्चा व १८ नातरा विवरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, कुल पे. २,
प्र.वि. संशोधित., अ., (२८.५४१४.५, ११४३०-३२). १.पे. नाम. आगमादि में पाठांतर के कारण उत्पन्न शंकासमाधान विषयक चर्चा, पृ. १आ-१६आ, संपूर्ण. आगमादि में पाठांतर के कारण उत्पन्न शंकासमाधान विषयक चर्चा, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: श्रीजिनागम बोहित्थं;
अंति: दहदिसितिमिरं पणासेई. २.पे. नाम. १८ नातरा विवरण, पृ. १६आ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: कुबेरदत्तकुबेरसेना; अंति: पिता एवं नात्रा १८. ६४४४७. (+) अल्पबहुत्व को बासटीयो, संपूर्ण, वि. १९७१, कार्तिक शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. करमचंद लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१३.५,२६-३६४१९-३९).
बोल संग्रह", प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: जीव गइ इदिय काए जोए; अति: ५ सुप्न देखता जागइ. ६४४४८. (+) क्षेत्रसमास, कर्मग्रंथ व लोकनालीद्वात्रिंशिका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, कुल पे. ८, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक
युक्त पाठ-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x१४, १७४४६). १. पे. नाम. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, पृ. १आ-८आ, संपूर्ण.
आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपयपयट्ठिय; अंति: रयणसेहर० मयं पसिद्धं, अधिकार-६,
गाथा-२६६. २.पे. नाम. कर्मविपाक सूत्रं प्रथमं, पृ. ८आ-१०अ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ
देविंदसूरिहिं, गाथा-६२. ३. पे. नाम. कर्मस्तव द्वितीय कर्मग्रंथ, पृ. १०अ-११अ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वंदियं नमहं तं
वीरं, गाथा-३५. ४. पे. नाम. बंधसामित्तं तृतीय कर्मग्रंथ, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्त; अंति: नेयं
कम्मत्थयं सोउ, गाथा-२५. ५.पे. नाम. षडशीतिकं चतुर्थ कर्मग्रंथ, पृ. ११आ-१४अ, संपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहिओ
देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. ६. पे. नाम. शतक कर्मग्रंथ, पृ. १४अ-१७अ, संपूर्ण. शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति:
देविंदसूरि०आयसरणट्ठा, गाथा-१००. ७. पे. नाम. सत्तरी कर्मग्रंथ षष्ट, पृ. १७अ-१९अ, संपूर्ण. सप्ततिका कर्मग्रंथ, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धपएहिं महत्थ; अंति: चंद० एगूणा होई नउईओ,
श्लोक-९३. ८. पे. नाम. लोकनालीद्वात्रिंशिका, पृ. १९अ-१९आ, संपूर्ण. लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदसणं विणा जं; अंति: जहा भमह न इह
भिसं, गाथा-३२. ६४४४९. (+) पार्श्वचंद्र प्रश्नबोल संक्षेप संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.८, प्र.वि. संशोधित., दे., (२९x१४, ११४३२).
प्रश्नबोल संग्रह, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: मूलसूत्रना बीजा तु; अंति: परंपराइं चालई छई, प्रश्न-७४. ६४४५०. (+) संबोधसत्तरी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ७५०, जैदे., (२८.५४१४.५, ६x४४). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोयगुरुं; अंति: (१)जयसेहर नत्थि संदेहो, (२)ताव
धम्म समायरे, गाथा-१२५. संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मु. विमल, मा.गु., गद्य, वि. १७२३, आदि: (१)ॐ नमस्ते जगत्त्रातस्, (२)नमिऊण कहितां
नमस्कार; अंति: (१)मोक्षना सुख हूइ, (२)प्रते तुंशीघ्र कर. ६४४५१. (+) विधिशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, प्र.वि. संशोधित., दे., (२८.५-३३.५४१४, ८-१६x४५-५०).
विधिशतक, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: वंदिय वीरजिणंद नमिय; अंति: पास० भणियंत पमाणंमे,
गाथा-१००, संपूर्ण. विधिशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बीच-बीच में टबार्थ
लिखा है.) ६४४५२. आतमशिक्षा बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदे., (२९x१४, १३४३८-४१).
आत्मशिक्षा बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: तिहां प्रथम ए आत्मा; अंति: पामी सिद्धि पदने वरे. ६४४५३. (+) जिनप्रतिमापूजा चर्चा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र.वि. संशोधित., दे., (२८.५४१४.५, १६x४६-५३).
जिनप्रतिमापूजा चर्चा, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीतरागगणधरश्री; अंति: (१)ज जिणेहिं पवेइयं,
(२)पार्श्वचंद्रदीधा छै, प्रश्न-१३. ६४४५४. (+) नियतानियत प्रश्नोत्तर प्रदीपिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८.५४१४,
४४३०).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
नियतानियत प्रश्नोत्तर प्रदीपिका, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनशासन जगि आधार; अंति: श्रीगुरूणं
प्रसादातः, गाथा-६४.
नियतानियत प्रश्नोत्तर प्रदीपिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजिनशासन जगत्रयनइ; अंति: गुरुनइ प्रसादिइ करी. ६४४५५. (+) साधु समाचारी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ११५०, जैदे., (२८.५४१४.५, १६x४८).
साधु समाचारी, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: वीरजिण नमिऊणं अमरिंद; अंति: धम्म सुद्धं परूवंति, गाथा-२९२. ६४४५६. (+) उत्तराध्ययन सज्झाय छत्रिस, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२९x१४, ११४३१-३८).
उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन-सज्झाय, संबद्ध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर पय
___पणमेवि; अंति: मनि रहिइ एरंग भरे, ढाल-३६. ६४४५७. सूत्रस्थापना, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२८.५४१४.५,११४२८-३२).
सूत्र स्थापना विचार, मा.गु., गद्य, आदि: टीका नियुक्ति विघइ; अंति: कहिज्यौ ए प्रस्न छइ. ६४४५८. पंचसंग्रह सह टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३३-१(१)=३२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पत्रांक न होने के कारण पत्रांक-२ के बाद क्रमशः पत्रांक लिखा है., त्रिपाठ., दे., (२७४१४, १३-२०४३८-४०). पंचसंग्रह, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. द्वितीय बंधकद्वार गाथा ३९ से तृतीय
बंधव्याभिधान द्वार तक है.)
पंचसंग्रह-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६४४५९. (+) स्तुति संग्रह, नववाड सज्झाय व दानशीयलतपभावना संवाद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, कुल पे. ६,
ले.स्थल. माडल, प्रले. लखमीचंद गोरजी; पठ. श्रावि. मालबाई; श्रावि. धोलीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपायचंदसूरीजीमाहाराज प्रसादात्., संशोधित., दे., (२६.५४१३.५, १३४२२-२७). १. पे. नाम. चतुर्दशी थोय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण..
पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्या प्रतिमस्य; अंति: सर्वकार्येषु सिद्धं, श्लोक-४. २. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.
पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: आदि जिनवर राया जास; अंति: पद्मने सुख दिता, गाथा-४. ३. पे. नाम. अजितजिन स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: विजयासुत वंदो तेजथी; अंति: सेवना सुखकंदो, गाथा-१. ४. पे. नाम. संभवजिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण.
तृतीयातिथि स्तुति, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: संभव सुखदाता जेह; अंति: जास नामे पलाता, गाथा-१. ५. पे. नाम. नववाड सज्झाय, पृ. २अ-५आ, संपूर्ण.. ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: हो तेहने जाउ भामणे.
ढाल-१०. ६. पे. नाम. दानशीयलतपभावना संवाद, पृ. ५आ-१३अ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय नमी; अंति:
समृद्धि सुप्रसादोरे, ढाल-४, गाथा-१०१. ६४४६०. चार्तुमास व्याख्यान, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, प्रले. श्राव. अमृतलाल हंसराज सेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१४, १४४३६-३९).
चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (१)प्रणम्य परमानन्द, (२)सामाअकावश्यकपौषधानी; अंति:
मिच्छामिदुक्कडं देवो. ६४४६१. त्रीस द्वार विचार, संपूर्ण, वि. १९६९, पौष शुक्ल, १५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. पाटणनगर, प्रले. नानालाल हरीनंद लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. लेखन स्थल-खडाखोटडीना पाडामा., दे., (२५४१३.५, १२४३४-३९).
२४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजो; अंति: जीव अनंतगुणा अधिक.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
६४४६२. साधुगुणमाला, संपूर्ण, वि. १९४७, पौष शुक्ल २, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले. स्थल, चांदुर, प्रले. मु. विवेकवर्द्धन (गुरु पं. हंसवर्द्धन गणि); लिख. मु. धर्मविजय, अन्य. पं. हंसवर्द्धन गणि (गुरु पं. नित्यवर्द्धन ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीमनाथ प्रशादात्., दे., (२६X१३.५, १९x४०).
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साधुगुणमाला, आव, हरजसराय जैन, पुहिं., पद्य वि. १८६४ आदि श्रीत्रैलोकाधीस को अंतिः गाया नाथजी आस पूरे, गाथा - १२४.
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६४४६३. स्थविरावली की टीका, अपूर्ण, वि. ११वी, मध्यम, पृ. १३-४ (१ से ४) = ९, जैये. (२८४१४, १२-१४४३५-३९)स्थविरावली - टीका, सं., गद्य, आदि (-); अंतिः श्रेयः प्रवर्त्तताम्, (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. पादलिमाचार्य दृष्टांत अपूर्ण से है.) ६४४६४. (+) वरधमान बासठीयो, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र. वि. संशोधित, वे. (२६४१३.५, १७-२३४४०-४३). वर्धमान बासठीयो, प्रा., मा.गु., को. आदि: (१) भावगइइंद्रीकाए जेए, (२) उदय भावना अलद्धीया, अंतिः च्यार कर्म
उदयवंत.
६४४६५. (+) संग्रहिणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र. वि. संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x१४, १७x४८). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी, आदिः नमिठं अरिहंताई ठिइ, अंतिः जा वीरजिण तित्थं, गाथा- ३११. ६४४६६. (+) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९४४, मार्गशीर्ष कृष्ण, ८, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल. सिद्धपुर, प्रले. श्राव.
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चंद
सुखराम भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., दे., (३२.५X१२.५, ८-११x२३-२९).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमीलि अंतिः मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. ६४४६७. विधिविचार चोपई, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ८. दे. (२८.५X१४.५, १३३६-३९).
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विधिविचार चौपाई, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर पत्र प्रणमे अंतिः जिणवाणी खमिज्यो सहू
गाथा - १५१.
६४४६८. (+) एकसोचोपन प्रश्न, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, दे., (२८.५X१४.५, १६x४७). १५४ आगमिक प्रश्नोत्तर, मा.गु., गद्य, आदि: अथ प्रश्न १५४ मूक्या; अंति: होय ते विचारी जोजो, प्रश्न- १५४. ६४४६९. वीतराग आज्ञा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३, प्र. वि. कुल ग्रं. ७५०, जैदे., (२८.५X१४, १६४५४).
वीतराग आज्ञा- विविध आगमोक्त, प्रा., मा.गु., पग, आदि: जगन्नाथ जगत्रात कृपा, अंति: मज्झे सुविहियाणं. ६४४७० (+) आगमादि में पाठांतर के कारण उत्पन्न शंकासमाधान विषयक चर्चा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४,
प्र. वि. संशोधित, दे., (२८.५४१४.५, १६४४९-५८).
आगमादि में पाठांतर के कारण उत्पन्न शंकासमाधान विषयक चर्चा, प्रा., मा.गु. प+ग, आदि: (१) श्रीजिनागम बोहित्थं, (२)श्रीजिनशासन मांहे, अंति: देवीनो कहवो किस्यू.
६४४७१. (+) श्रीपाल चरित्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९३९ मध्यम, पृ. १४९, ले. स्थल, विकानेर, प्रले. मु. पुण्यविजय (गुरु
मु. उत्तमविजय); गुपि. मु. उत्तमविजय (गुरु मु. नेमिविजय); मु. नेमिविजय (गुरु मु. उदयविजय); मु. उदयविजय (गुरु मु. सकलविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. श्रीअजितनाथजी प्रशादात् संशोधित. प्र. ले, श्लो. (२०३२) जब लग मेरु अडग है, दे., (२५x१३, ६४३३-३५).
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श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदिः कल्पवेलि कवियण तणी, अंति: ज्ञानविशाला जी, खंड-४, गाथा- १८२५, ग्रं. १९२३, (वि. १९३९, पौष कृष्ण, ४, गुरुवार,
ले. स्थल विकानेर, वि. ढाल ४१.)
श्रीपाल रास-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: सरसतीमाता केहवीक छे; अंति: धर्मशाला वधे, (वि. १९३९, माघ शुक्ल,
१३, सोमवार, ले. स्थल, विक्रमपुर)
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६४४७२. महादंडक चौपाई, संपूर्ण, वि. १९ वी, चैत्र कृष्ण, ८, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ९३, ले. स्थल. कृष्णगढ, प्रले. पंडित. सिवलाल; लिय. श्राव आणंदरूप सेठ, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे. (२६४१४, १५४३६-३८).
महादंडक चौपाई, मु. विजयकीर्ति भट्टारक, मा.गु., पद्य वि. १८२९, आदि: वर्द्धमान नित्य प्रत, अंतिः किर्ति० भक्ति मन, अधिकार ४९.
६४४७३. (+) पुन्यप्रकाश स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४+१ (४) = ५, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २६.५x१२.५, १२-१४X३२).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
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महावीरजिन स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., प+ग., वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धि दायक सदा; अंति:
पुन्यप्रकाश ए. दाल-८.
६४४७४ (१) नवतत्त्व प्रकरण सह गाथार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २०-६ (१,१२ से १६) = १४, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५X११.५, १०X२८).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. गाथा २ अपूर्ण से गाथा १७ तथा २१ से २५ तक है.) नवतत्त्व प्रकरण-गाथार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-) अंति: (-).
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६४४७५. (+) श्रीपाल चरित्र, संपूर्ण वि. १९६२ भाद्रपद शुक्ल, ११, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ४७, ले. स्थल. आहोर, प्रले. पूर्णचंद्र ओझा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, दे., ( २४४१३, १६x४२).
श्रीपाल चरित्र क्र. केशव, सं., गद्य वि. १८७७, आदिः प्रणम्य वीरं धनकर्मम: अंतिः सत्साधुभिर्मंडिते. ६४४७६. (१) गुणकरंडकगुणावली रास, संपूर्ण, वि. १९३१ श्रावण कृष्ण ७, शनिवार, मध्यम, पृ. २२, ले. स्थल. पीपलीग्राम, प्र. मु. ज्ञानचंदजी चापसीहजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (२५.५४१३, १५४३७-४१). गुणकरंडक गुणावलि चौपाई, मु. दीपचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७५७, आदि संपत्ति सुखदायक सदा, अंतिः घिर संपति जस थावैजी, ढाल २७, गाथा १६०३.
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६४४७७. दंडकनामा ओगणत्रिसद्वार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १५-७ (१ से ६, १२) =८, वे. (२६.५x१२.५, ११४३०-३५). २९ द्वार २४ दंडक नाम, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: गुणा अधिका जाणवा सहि (पू. वि. नरक द्वार अपूर्ण से है.) ६४४७८. दशवैकालिकसूत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९३९, आषाढ़ शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ५, पठ. श्रावि. साहबाबाई सेठाणी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२.५, ११४३२-३४).
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दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: धम्मोमंगल महिमा नीलो; अंति: ग रच्या सुखकार, अध्याय- १०.
६४४७९. (+) वैद्यवल्लभ, संपूर्ण, वि. १८५१, श्रावण कृष्ण, १०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले. स्थल. करौली, प्र. वि. संशोधित., जै..,
(२४.५X१३.६, ११x२६-३०).
वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., पद्य, वि. १७२६, आदि: सरस्वतीं हृदि, अंतिः विनिर्मिता स्वयम्, विलास - ९. ६४४८०. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ११, दे., (२५.५X१३, १०-१२X३२).
१. पे. नाम. उत्तराध्ययन स्वाध्याय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, वा. श्रीकरण, मा.गु., पद्य, आदिः समवसरण सिंहासनेजी रे, अंतिः करण० प्रणमू बैकर जोडि,
गाथा - ९.
२. पे. नाम. मधुबिंदु सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण.
मु. चरण प्रमोद - शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती रे माता द्यो व अंतिः परम पद में पामियो, गाथा- १०.
३. पे नाम, मेघकुमार सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: धारणी मनावे रे मेघ; अंति: प्रीत० भवनो रे पास, गाथा-५.
४. पे. नाम. जिनप्रतिमास्थापना निक्षेप स्वाध्याय, पृ. ३अ ४अ, संपूर्ण.
जिनप्रतिमास्थापना सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन प्रतिमा वंदन; अंति: कीजें तास प्रमाण रे, गाथा- १५.
५. पे. नाम. एकादशी सज्झाय, पृ. ४अ - ४आ, संपूर्ण.
एकादशीतिथि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु, पद्य, आदि आज महारे एकादसी रे; अंतिः वाचक० लीला लेहस्यै,
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गाथा- ७.
६. पे. नाम. लोभ सज्झाय, पृ. ४आ-५अ संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय- लोभोपरि, पंडित भावसागर, मा.गु., पद्म, आदि: लोभ न करीये प्राणीया: अंतिः भावसागर ० सयल जगीस रे, गाथा- ८.
७. पे नाम, इलायचीपुत्र सज्झाय, पृ. ५अ ५आ, संपूर्ण
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इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नामे ईलापुत्र जाणीयै; अंति: लबधविजे गुन गाई,
गाथा - ९.
८. पे नाम, अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक रखबाडी चड्यो, अंतिः वंदे रे वे करजोडि, गाथा- ९.
९. पे. नाम. विषय निवारक सज्झाय, पृ. ६अ, संपूर्ण.
मु.
विद्याचंद, मा.गु., पद्य, आदि: मयगल मातो रे वनमांहि, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २ तक लिखा है.)
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१०. पे नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण
मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या, अंतिः जेणे मनवंछित लीधो जी, गाथा- ९.
११. पे. नाम. सीतासती सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
सीतासती सज्झाय - शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जलजलती मिलती घणी रे; अंति: प्रणमुं पाय रे, गाथा - १०.
६४४८१. (+) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र के बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५. प्र. वि. संशोधित. वे. (२७४१२.५, १४४३९). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र- प्रनशतक, संबद्ध, मा.गु, गद्य, आदि: श्रीग्याताधर्म कथा, अंतिः कीधी होय ते कर्म उदय,
प्रश्न- ८८.
६४५०८. सम्मतिसूत्र, संपूर्ण, वि. १९३५, फाल्गुन कृष्ण, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले. स्थल, राजनगर ( अहमदाबा, प्रले. शिवदान गुमानीराम लहिया, लिख श्राव. रवचंद जयचंद, प्र. वि. कुल ग्रं. २१५, दे. (३०x१४, १२X४१-४४)
सन्मतितर्क प्रकरण, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सिद्धं सिद्धट्ठाणं; अंति: सुहाहिगम्मस्स, कांड-३, गाथा- १६७.
६४५३७. कृष्णदास वावनी सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९३३, पौष कृष्ण, ८, मंगलवार, मध्यम, पृ. १५, ले. स्थल, जामनगर, प्र. मु. गुलाबचंद ऋषि (गुरु मु. कृष्णचंद्र ऋषि); गुपि मु. कृष्णचंद्र ऋषि (गुरु मु. हर्षचंद ऋषि); मु. हर्षचंद ऋषि (गुरु मु. नंदराम ). प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२९x१५, ४४४४-४९).
अक्षरबावनी, वा. किशन, पुहिं., पद्य, वि. १७६७, आदिः ॐकार अमर अमार अविकार; अंति: किसन कीनी
उपदेशबावनी, गाथा- ६१.
अक्षरबावनी - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ( अपठनीय); अंति: (१) कीधी ए उपदेसबावनी, (२) सवैया ६१ छइ एहनाः. ६४५५६. (+#) वसंतराजशाकुन - प्रथमसर्ग सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- त्रिपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. जैवे. (२८४१४, ११-१४४३०-३५).
वसंतराजशाकुन, वसंतराज, सं., पद्म, आदि: विरंचिनारावणशंकरेभ्य, अंतिः (-), प्रतिपूर्ण
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वसंतराजशाकुन - टीका, उपा. भानुचंद्र, सं., गद्य, आदि: लक्ष्मीलीलाकटाक्षस्त; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६४५५९. (+) प्रतिष्ठा कल्प, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १२३-८ (१ से ८) +२ (७३ से ७४) = ११७. पू. वि. बीच के पत्र हैं.,
प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २६.५X१४, १४X३४).
जिनविंद प्रतिष्ठा कल्प, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
६४५६१. (+) क्षामणासूत्र व पाक्षिक खामणा, अपूर्ण, वि. १८०७ चैत्र शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १२- १ ( २ ) =११, कुल पे. २, प्रले.ग. छत्रसौभाग्य (गुरु पं. तिलकसौभाग्य), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X११, ११X३८).
१. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. २अ - १२अ, पूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है.
हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि (-) अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति, (पू.वि. सूत्र २ दव्वओ खित्तओ कालओ भावओ" पाठ से है.)
२. पे. नाम. पाक्षिक क्षामणा, पृ. १२-१२आ, संपूर्ण.
क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि इच्छामि खमासमणो पिर्य अंतिः नित्वारग पारगा होह, आलाप ४.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
१८७ ६४५६२. कुर्मापुत्र चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३६, फाल्गुन शुक्ल, ५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २७, प्रले. पं. चमनीराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१९८२) जिहां ध्रुव सायर रवि, दे., (२६.५४११.५, ५४३६). कुम्मापुत्त चरिअ, मु. जिनमाणिक्य; उपा. अनंतहंस, प्रा., पद्य, वि. १६वी, आदि: नमिऊण वद्धमाणं; अंति:
जिनमाणिक्यसीस० जयओ, गाथा-१९६, ग्रं. ६२१. कुम्मापुत्त चरिअं-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य श्रीमहावीरं, (२)प्रथम ग्रंथनें धूरे; अंति: परम आनंदसुखने
पामो. ६४५६३. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९११, ज्येष्ठ शुक्ल, १५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. मम्माईबंदर, प्रले. मु. जसविजय (आनंदसूरिगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-त्रिपाठ-द्विपाठ., दे., (२५.५४११.५, ३४५०). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: मोक्षप्रपद्यते,
श्लोक-४४.
कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, पा. हर्षकीर्ति, सं., गद्य, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिनं; अंति: हर्षकीर्ति० प्रसादतः. ६४५६४. नवतत्त्व चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. सा. रुखमणि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११.५, १८४४६).
नवतत्त्व चौपाई, मु. वरसिंह ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि: श्रीअरिहतना पाय युग; अंति: वरसंग० चीत्तमां धरी,
गाथा-१३०. ६४५६५. (+) अवंतीसुकमाल प्रबंध, संपूर्ण, वि. १८५३, ज्येष्ठ शुक्ल, ३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, पठ. सा. वाछीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १३४३३).
अवंतिसुकुमाल सज्झाय, मु. शांतिहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: पास जिनेश्वर सेविये; अंति: शांतिहर्ष सुख
पावेरे, ढाल-१३. ६४५६६. ५६३ जीव बोल थोकडा व गुणस्थानक द्वार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, दे., (२५.५४११.५,
२४-३४४४५-५५). १. पे. नाम. ५६३ जीव बोल थोकडा, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: जीव गइ इंदीये काए; अंति: गण्या नथी माटे. २. पे. नाम. गुणस्थानक द्वार, पृ. ४आ-७अ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: नाम१ लक्षण२ गुण३ ठी४; अंति: छे माटे १२. ६४५६७. पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५.५४११.५, १०४२६-३३).
पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
अदत्तादान आलापक-३ अपूर्ण तक लिखा है.) ६४५६८. (+) नवतत्व, जीवविचार व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १८१२-१९०१, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे.,
(२५४११.५, ६-१७४३१-४१). १.पे. नाम. नवतत्व सह टबार्थ, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण, वि. १८१२, कार्तिक कृष्ण, ६, रविवार, पठ.मु. विजा ऋषि,
प्र.ले.पु. सामान्य. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४२.
नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: जीवा कहतां १० प्रांण; अंति: अनंतिगुणा हूश्यै. २. पे. नाम. जीवविचार सह टबार्थ, पृ. ५आ-१०अ, संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति:
संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१, (वि. १८१२, ज्येष्ठ कृष्ण, ९, बुधवार, ले.स्थल. नागोर, पठ. मु. विनयरत्न (गुरु
मु. हीररत्न); प्रले. मु. हीररत्न, प्र.ले.पु. सामान्य) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिनभुवन रै विषै; अंति: जे समुद्र तेह थकी, (वि. १९०१, श्रावण
शुक्ल, १३, सोमवार, ले.स्थल. खीवसर, प्र.ले.श्लो. (२३) जब लग मेरु अडग है) ३. पे. नाम. पांच इंद्रियादि बोल संग्रह, पृ. १०आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पांच इंद्रीरी २३; अंति: माहै ४५लाख जोजन. ६४५६९. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६९, श्रेष्ठ, पृ. ४६, ले.स्थल. सरदारसहर, प्रले. मु. केसरीचंद (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४११, ६४४३).
दशवकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमक्किट्ठ; अंति: कहणा य वियालणा संघे, ___अध्ययन-१०, (वि. १९६९, कार्तिक शुक्ल, १४, शनिवार, वि. चूलिका २) दशवकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: धर्म केवली भगवंतनो; अंति: आगलि केहिउ विविलाप, (वि. १९६९,
मार्गशीर्ष शुक्ल, ७, शुक्रवार) ६४५७०. (+) लावणी संग्रह, संपूर्ण, वि. १९८६, भाद्रपद कृष्ण, २, गुरुवार, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५४११.५, १५४४७-५२).
औपदेशिक लावणी संग्रह, म. हीरालाल, पुहिं., पद्य, वि. १९०१, आदि: पंच इंद्रि का जगडा; अंति: हीरालाल० कभी
मत हरणा, गीत-१२. ६४५७१. पाशाकेवली भाषा, संपूर्ण, वि. १९४४, आषाढ़ शुक्ल, १, मंगलवार, मध्यम, पृ. ६, प्रले. श्राव.खीवराज ओसवाल;
पठ.पं. क्षेमकुशल; राज्यकालरा. सादुलसिंघजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन स्थल अवाच्य है., दे., (२५.५४११, १२४३७).
पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवती; अंति: हाथ लागै धर्मे जय. ६४५७२. (#) आदिजिनविनती स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्रले. मु. रतनचंद; पठ. ग. रुपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. पत्रांक २अपर गाथा ९ से १५ तक दूसरी बार लिखा है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३४-३८).
आदिजिनविनती स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सकल आदिजिणंद जुहारीय; अंति: भवि भवि अविहड रंग, गाथा-५५. ६४५७३. (#) नंदीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९१२, कार्तिक, मध्यम, पृ. २५, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२६४११, १३४४३). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणओ; अंति: अणुजाणामि, सूत्र-५७,
गाथा-७००. ६४५७४. (+#) जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०८, पौष शुक्ल, ८, बुधवार, मध्यम, पृ. ६, प्रले. मु. अनोपचंद ऋषि (पार्श्वचंद्रगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११.५, ५४३४). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पईवं वीरं नमिऊण; अंति:
संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१.
जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *,मा.गु., गद्य, आदि: भुवन कहतांत्रीणभुवन; अंति: तेमाहि थी उधों. ६४५७५. (+#) साधु प्रतिक्रमण सूत्र व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, कुल पे. ६, अन्य. श्राव. गुलाबचंद,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १६x४०). १.पे. नाम. साधुप्रतिक्रमण सूत्र, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण, वि. १९वी, भाद्रपद अधिकमास कृष्ण, १२, ले.स्थल. मुलताण. साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-अंचलगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं.,मा.गु., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं० इच्छा; अंति:
अप्पाणं वोसिरामि. २. पे. नाम. पांच थावर नाम, पृ. ७अ, संपूर्ण.
बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पांच इंद्री नाम इदे; अंति: ३ समाणे ४ पयावचे ५. ३. पे. नाम. उपवास विधि, पृ. ७अ, संपूर्ण..
प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: सूरे उगे पचखामि गयो; अंति: गारेण अपाणं वोसिरामि. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवनं, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. हर्षचंद, मा.गु., पद्य, आदि: चिंतामणजिण चिंतवी हो; अंति: हरखचंद सुणो
चित्तलाय, गाथा-७.
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१८९
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
५. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र सज्झाय, पृ. ७आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: धर्ममंगल महिमा नीलो; अंति: जेतसी
ते पामइ भवपार. ६. पे. नाम. औपदेशिक दूहा संग्रह, पृ. ७आ, संपूर्ण.
औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: धरम घटता धन घट्यो; अंति: ते सजन कूल सूद्ध, गाथा-४. ६४५७६. (#) चरचा का बोल, संपूर्ण, वि. १८४८, पौष कृष्ण, १, रविवार, मध्यम, पृ. ५, प्रले. मु. रायचंदजी ऋषि; मु. गुमानजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १३४३८).
आगमगत चर्चा बोल-विविध प्रश्नोत्तर, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीउत्ताधेन सुत्त; अंति: प्रश्न-४९. ६४५७७. (+) प्रमाणनयतत्त्वावलोकालंकार टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. २१-६(१,३ से ४,६ से ७,१३)=१५,
पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५-१५.०, १७४६३-६८). प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार-स्याद्वादरत्नाकर स्वोपज्ञ वृत्ति की रत्नाकरावतारिका टीका, आ. रत्नप्रभसूरि, सं.,
प+ग., वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. परिच्छेद-१ "ननु तथापि कथमेतै" से परिच्छेद-२
"विषयज्ञानवत्तदपिप्रवर्तकत्वेन व्यापि अप्रवत्त" तक बीच-बीच के पाठ हैं.) ६४५७८. (+#) महाबलमलयसुंदरि चौपाई, संपूर्ण, वि. १९०९, ज्येष्ठ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ९५, ले.स्थल. अहीपुर, प्रले. मु. पुण्यविजय
(गुरु मु. उत्तमविजय); गुपि.मु. उत्तमविजय (गुरु मु. नेमिविजय); मु. नेमिविजय (गुरु मु. उदयविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. आदिजिन प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, प्र.ले.श्लो. (८३९) जादृसं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२४.५४११.५, १६x४०). मलयासुंदरी रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५१, आदि: श्रीशांतिसर सोलमो; अंति: पभणे जिनहर्ष विचार,
खंड-४, गाथा-४००९, ग्रं. ४५००, (वि. ढाल-१४४) ६४५७९. योगचिंतामणि सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८५-१०७(१ से १०७)=७८, जैदे., (२४४११.५, ११४३३). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व
प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., घृताधिकार-६ अपूर्ण से है व वाताधिकार अपूर्ण तक लिखा है.) योगचिंतामणि-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण. ६४५८०. आनंदघनकृत चौवीसी आदि, संपूर्ण, वि. १९वी, ज्येष्ठ शुक्ल, १५, सोमवार, जीर्ण, पृ. १०, कुल पे. ४, जैदे., (२५४१२,
१३४३४). १. पे. नाम. स्तवन चौविसी, पृ. १अ-९अ, संपूर्ण. स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति: (-),
(अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., नेमिजिन स्तवन तक लिखा है.) २. पे. नाम. नवरस वर्णन, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तवन-विषमपद व्याख्या, मा.गु., गद्य, आदि: धारणो ज्ञानदशाइं; अंति: भगवान नेमीनाथ जाणवा. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथजिन स्तवन, पृ. १०अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पास प्रभु प्रणमुं; अंति: परमानंद विलासें रे, गाथा-७. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण.
मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: करुणा कल्पलता श्रीमह; अंति: ण. अनंत सुखनो सदा रे, गाथा-१३. ६४५८३. (#) स्तवनचौवीसी व चौविसजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी
है, जैदे., (२५.५४११.५, १४४३८). १.पे. नाम. स्तवनचौवीसी, पृ. १आ-११आ, संपूर्ण.
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יי
ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७७६, आदि: ऋषभ जिणंदशुं प्रीतडी, अंति: विमल प्रभुता प्रकासे, स्तवन- २४. २. पे नाम, चोवीसजिन स्तवन, पृ. ११आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
२४ जिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: चौवीसें जिन गाईयइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ तक है.) ६४५८४. (४) शीलोपदेशमाला सह बालावबोध+कथा, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ११७-१६ (१ से ८,१५,६९ से ७५) = १०१, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., । (२५X११.५, १२x२८-३२).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा. पद्य वि. १०वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ से ४५ तक है.) शीलोपदेशमाला - बालावबोध+कथा, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य वि. १५५१, आदि: (-); अंति: (-).
६४५८५. साधुवंदना, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८, दे., (२५X११.५, १५X४६).
साधुवंदना, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: पंच भरत पंच एरवय; अंति: देवमुनि ते संथुण्या, ढाल १३, गाथा-३७७. ६४५८६. (+) भवभावना सूत्र सह टवार्थ व कथा, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४८, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, कुल
ग्रं. ३६००१, जैवे. (२६४११.५, ५-१३४३३-३६).
भवभावना, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, आदिः णमिऊण णमिरसुरवर मणि; अंति: हेम० कीरउ अलंकारो,
गाथा-५३१.
भवभावना- टबार्थ, उपा. मानविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७२५, आदि: (१) प्रणिपत्य जिनवरेंद्र, (२) नमस्कार करीने नमनशील, अंति: (१) करवो अलंकार आभरण, (२) चतुस्त्रिंशत्शतानि च ग्रं. ३४२५.
भवभावना- कथा, उपा. मानविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७२५, आदि: जम्बूद्वीपे भरत, अंति: उपजी मुक्तिं जास्यई. ६४५८७. (#) हंसराजवत्सराज चौपाई, संपूर्ण, वि. १८१९ श्रावण कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. २७, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५X११.५, १६X३६).
हंसराजवत्सराज चौपाई, आ, जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि आदीसर आदिई करी; अंति जिनोदय ० दिन हुइ जयकार, खंड-४, गाथा- ९०५, (वि. ढाल - ४८)
O
६४५८८. जीवविचार प्रकरण सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८२१ श्रावण कृष्ण, ६, गुरुवार, मध्यम, पृ. ९, ले. स्थल, खींवसर, जैदे.,
(२५X१२, ४X३४).
जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा. पद्य वि. ११वी आदि भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः
संतिसूरि० सुयसमुद्दाओ, गाथा - ५१.
विचार प्रकरण-वार्थ *, मा.गु, गद्य, आदि: त्रिणिभुवननै विषै: अंतिः जे समुद्र तेह थकी
६४५८९. (+) केशीगौतमना प्रश्ननी ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले. स्थल. मांगरोल, प्रले. श्राव. झरेवचंद जादवजी मास्तर; अन्य श्रावि. सुंदरबाई पानाचंद, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२६४१२, ९४२२ ).
" ',
केशी गौतम गणधर संवाद रास, मु. अदेसंगजी, मा.गु., पद्य, वि. १८४८, आदि: वांदी जिन चोवीसने, अंति: अदेसंग ० लहे रसाल रे, ढाल १४, गाथा-२१६.
६४५९०. (#) अजितसेनकनकावती रास, अपूर्ण, वि. १८९५, पौष शुक्ल, ११, गुरुवार, मध्यम, पृ. १९-१(१८)=१८,
ले. स्थल. बडौदा, प्रले. मु. हेमराज यति ( गुरु मु. रतन ); गुपि. मु. रतन (गुरु मु. रुपचंद); मु. रुपचंद (गुरु मु. खेमराज ); मु. (गुरु मु. रायभाण ऋषि); मु. रायभाण ऋषि (गुरु मु. पदारथ ऋषि); मु. पदारथ ऋषि, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. अक्षरों की फैल गयी है, जैदे., (२६X१२, १८x४४-५० ).
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अजितसेनकनकावती रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५१, आदि: वीणापुस्तकधारणी; अंति: जिनहर्ष० लाभ सवाई हो, (पू.वि. ढाल -४१ गाथा - ३ अपूर्ण तक व ढाल ४२ गाथा-९ अपूर्ण से है.) ६४५९२. (+) मंगलकलश चौपाई, संपूर्ण, वि. १८११, माघ शुक्ल, ८, सोमवार, मध्यम, पृ. ३०, ले. स्थल. नागपुर, प्रले. पं. वरपाल (गुरु पं. हरकिसन) गुपि पं. हरकिसन (गुरु मु. दयारतन) मु. दयारतन पठ. विजयचंद्रादय प्रमुख, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५X११, १२४३८).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
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मंगलकलश चौपाई, मु. लक्ष्मीहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: प्रह उठी नीत प्रणमी; अंति: लक्ष्मीहर्ष० प्रमोद, ढाल- २७.
६४५९३. (+#) संग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०१, भाद्रपद कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ३०, प्रले. मु. उत्तमविजय (गुरु मु. रामविजय); गुपि. मु. रामविजय (गुरु पं. रत्नविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न-संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. कुल ग्रं. ३४९, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, ५x५०).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ, अंति: चंदमुणि० जिणमयं लोए,
गाथा - ३००.
बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमी वांदीनइ अरिहंत; अंति: पंडित शोधि खरउ करि..
६४५९५ (+) स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८-२ (३ से ४) =६, कुल पे. ५, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५x१२,
3
१०X२७).
१. पे नाम, पार्श्व स्तवनम्, पृ. १आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., पद्य, आदि: सुगुण नर श्रीजिनवर ग; अंतिः क्षमाकल्याण०कुं भजना,
गाथा-५.
२. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. १आ-२आ, अपूर्ण. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मा.गु., पद्य, आदि: जय जय सुमति जिनेश्वर, अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.)
३. पे. नाम. अनंतजिन स्तवन, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: वाचक जस० प्रेम महंत, गाथा-५, ( पू. वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.)
४. पे. नाम. दसपच्चक्खाण फल गीत, पृ. ५अ-७आ, संपूर्ण.
१० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु, पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नमुं अंतिः रामचंद्र तपविधि भणे, डाल- ३, गाथा-३३.
५. पे नाम ज्ञानपंचमी चैत्यवंदन विधि, पृ. ७आ-८आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं है.
ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: तिहां प्रथम पवित्र, अंति: (-), (पू.वि. ज्ञानपूजा गाथा-६ पूर्ण है.)
"
६४५९६. (+#) कर्मग्रंथ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित - पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६४१२, ७४२४).
""
कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी १४वी, आदि सिरिवीरजिणं वंदिय, अंति: (-),
(पू.वि. गाथा ४७ अपूर्ण तक है. )
६४५९७. (+०) जिनराजसूरिकृत चडवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६ प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे..
(२४.५X१२, १३X३३).
स्तवनचीवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मनमधुकर मोही रह्यो, अंतिः जिनराज० दउलति पावउ जी,
स्तवन- २४.
६४५९९. (+) भक्तामर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १६५७, कार्तिक शुक्ल, रविवार, मध्यम, पृ. ७, ले. स्थल. वीरमगाम, प्रले. मु. यादव मुनि पठ. मु. गला ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित - पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५.५X११, ५X३४).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४.
भक्तामर स्तोत्र - सुखबोधिका टीका, आ. अमरप्रभसूरि, सं., गद्य, आदिः किल इति सत्ये अहमपि अंतिः विबुधैः शोध्यतामियम्.
६४६००. (+#) चार प्रत्येकबुध रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४२, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पणयुक्त पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २५X११.५, ११x२५).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: श्रीसिद्धारथ कुलतिलउ; अंति: (-),
(पू.वि. गाथा-२५० अपूर्ण तक है.) ६४६०१. (+) अंतगडदशांगसूत्र सहटबार्थ, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८८-१(१)=८७, अन्य.सा. केसरबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., दे., (२९.५४१४, १६४३८-४८). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: जहा नायाधम्मकहाणं, अध्याय-९२,
(पू.वि. प्रारंभिक किंचित् पाठ नहीं है.)
अंतकृद्दशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: ज्ञाताधर्मकथानी परे. ६४६०२. (-) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९७९, वैशाख कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ५०, कुल पे. ४५, प्रले. मु. हुलकचंद्र ऋषि,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५४१२, १६४५२). १.पे. नाम. भीखणजीस्वामीरा गुणरी सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. भिखणजीस्वामिगुण सज्झाय, श्राव. गिरधरदास, रा., पद्य, आदि: पहु उठी प्रणमुंसदा; अंति: मिल्या वंछित फल्याए,
गाथा-४९. २.पे. नाम. भारमलजी ढाल संग्रह, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. __ भारमलजी महाराज गुण ढाल, रा., पद्य, वि. १८७२, आदि: भगवंत श्रीमहावीरजी; अंति: मिगसरसुद तेरस गुरवार,
ढाल-२, गाथा-१५. ३. पे. नाम. भारमलजी महाराज गुण स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण.
भारमलजी गुण स्तवन, रा., पद्य, आदि: सोवन रतन जराय हो मत; अंति: मुख मलकै मुलकै राचता, गाथा-५. ४. पे. नाम. भारमलजी गुणारी ढाल, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. भारमलजी महाराज गुण ढाल, रा., पद्य, वि. १८७७, आदि: वधमान जिणवर तणो; अंति: जोडी रे आणे हरख अपार,
ढाल-१, गाथा-२७. ५. पे. नाम. भारमलजी महाराज गुण सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. भारमलजी महाराज गुण ढाल, रा., पद्य, वि. १८७८, आदि: सामी भारीमल गुण भारी; अंति: सिधाव वेगा शिवपुरी,
गाथा-२१. ६. पे. नाम. मुनिगुण सवैया, पृ. ४आ-७आ, संपूर्ण.
रा., पद्य, आदि: पाप पंथ परहर मोख पंथ; अंति: ईश सुख लहै सासता, गाथा-३६. ७. पे. नाम. सातकुव्यसन सवैया, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण.
सप्तव्यसनफल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: जूवै रमें नर जेह; अंति: खदाय विषै दूर छंड रे, गाथा-७. ८. पे. नाम. औपदेशिक सवैया-फुटकर, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण.
रा., पद्य, आदि: विणजत सीसोसार कसाया; अंति: न पामे निवाणकू, गाथा-७. ९. पे. नाम. औपदेशिक रेखता, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: सिव का धर्म में फंद; अंति: मोख में जाय म्हालै, गाथा-५. १०. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण.
रा., पद्य, आदि: सील संतोष खिम्या तप; अंति: ज्ञानरी जोत जागी, गाथा-३. ११. पे. नाम. २० बोलांकरी तीर्थंकर गोत्र बांधे ते दुहा, पृ. ९आ, संपूर्ण.
२० बोल-तीर्थंकर नामकर्मबंध के, रा., पद्य, आदि: गुण गाउ अरिहंत सिधा; अंति: तोजोवो सूतररै माहि, गाथा-४. १२. पे. नाम. सीखूगुण वर्णन, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. शिष्यगुण वर्णन, श्राव. हेमजी साम, पुहिं., पद्य, आदि: भेट भव चरण ले सरणी; अंति: हेम० चरण को सरण लीधो,
गाथा-१५. १३. पे. नाम. पूज्यगुण ढाल, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
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रायचंदजी गुण वर्णन, आव महेस, पुहिं., पद्य, आदि; आज को दिहाडोजी भलाई अंतिः महेस कहैजी सिर न्हाय,
"
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गाथा - १०.
१४. पे. नाम. गुरुकरण सज्झाय, पृ. १० आ-११आ, संपूर्ण.
""
साधुगुण सज्झाय, रा. पद्य वि. १८७७, आदि: ज्यां पांचमहाव्रत आद, अंतिः चितमांही चतुर विचार, गाथा- ३६. १५. पे. नाम. कुगुरु पच्चीसी, पृ. १९आ-१२अ, संपूर्ण.
आव. महेस, रा., पद्य, आदि पांचमहाव्रत मोटा लेव, अंति: वांदु तो मोने पचखाणो, गाथा २५.
१६. पे. नाम. तेरापंथ साधु वीनती, पृ. १२अ - १२आ, संपूर्ण.
तेरापंथ साधु अवगुण वर्णन, रा., पद्म, आदिः भेखधारी भर्म घालदे, अंतिः बुध माफक कीधी वीणतीए, ढाल -१,
गाथा-१५.
१७. पे नाम, औपदेशिक सवैया- साधुगुण, पृ. १२आ- १४अ संपूर्ण.
श्राव. महेस, रा., पद्य, आदि: सासन के नायक सव जीवा, अंति: कुबुध्य ज करि करि, गाथा-२१.
१८. पे. नाम. औपदेशिक सवैया - कुगुरु साधु, पृ. १४अ-१५अ, संपूर्ण.
कुगुरुसाधु सवैया, श्राव. माईदास मुहता, रा., पद्य, आदिः उंची क्रिया धारिके, अंतिः तामे शंका नाहि है रे, गाथा- ८. १९. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. १५ अ, संपूर्ण.
रा., पद्य, आदि समकित धारी सुधमती अंतिः निसचै हुवै न्वाल, गाथा- १४.
२०. पे. नाम वैराग्य सज्झाय, पू. १५ अ-१५आ, संपूर्ण
रा., पद्य, आदि: सखरो धर्म छै साचो; अंति: निसचै मुगत है नेडी, गाथा-७.
२१. पे नाम, वैराग्य सज्झाय, पृ. १५आ, संपूर्ण
औपदेशिक लावणी, मु. अखमल, पुहिं., पद्य, आदि: जब लग वसती तब लग; अंति: उपजे विनती अखमल की,
गाथा-८.
२२. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १५ आ - १६अ, संपूर्ण.
मु. देवचंद, पुहिं, पद्य, आदि: चतुर नर चितकुं समजाण, अंतिः चालो सोही सावधाना, गाथा- ६.
"
२३. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १६अ, संपूर्ण.
रा., पद्य, आदिः श्रीमंदिरजिनजीने, अंतिः धाप्या तीरथ च्यार, गाथा - १०.
२४. पे. नाम. २३ पदवी सज्झाय, पृ. १६अ - १६आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि गणधर गोतमसामजी समरु; अंति: हूसी खेवो पारो जी, गाथा- १७.
२५. पे. नाम, नरकदुःख सज्झाय, पृ. १६ आ. १७अ, संपूर्ण
औपदेशिक सज्झायनरकदुः ख वर्णन सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीवीरजिणेसर भाखियो, अंति: हो पापी जीवरो रे, ढाल - १, गाथा - १८.
२६. पे. नाम. साधुमारण सज्झाय, पृ. १७अ १७आ, संपूर्ण.
२२ परिषह सज्झाय, रा., पद्य, आदि: साधरो मारग रे कठण, अंतिः घणा सूतर में विसतार, गाथा-२०.
२७. पे नाम उपदेशरी सज्झाय, पृ. १७आ- ९८अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-संसारसगपण स्वार्थ, रा., पद्य, आदि: मात पिता बैनने भाई; अंति: धर्मसू राखो प्यारो,
गाथा - १२.
२८. पे. नाम महावीरस्वामी स्तवन, पृ. १८अ १८आ, संपूर्ण
महावीरजिन स्तवन, रा., पद्य, आदि: सिद्धारथ कुल जनमिया, अंति: तणा पामे सुख अनंत, गाथा- २३. २९. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय. पू. १८ आ-१९अ, संपूर्ण.
वैराग्य सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सतगुर आगम साखधी दे, अंति: बहुला बांधे रे कर्म गाथा - २५.
३०. पे नाम, गजसुकुमाल सज्झाय, पृ. १९ अ- १९आ, संपूर्ण.
गजसुकुमालमुनि सज्झाव, रा., पद्य, आदि: गजसुकमाल देवकीनंदन, अंतिः जिम साझ दियो मुनिराई, गाथा-२१.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३१. पे. नाम. साधुनी ३० उपमा, पृ. १९आ-२१अ, संपूर्ण.
साधु ३० उपमा सज्झाय, रा., पद्य, वि. १८५६, आदि: कासी जल नहिं भेदै; अंति: भीखू गुणरा भंडार, गाथा-३६. ३२. पे. नाम. वीरजिन स्तुति, पृ. २१अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-पावापुरी में अंतिमचातुर्मास, रा., पद्य, आदि: शासणनायक श्रीवीरजिण; अंति: प्रभुजी० सेवा
मिलीजी, गाथा-१२. ३३. पे. नाम. ब्राह्मीसुंदरी सज्झाय, पृ. २१अ-२२अ, संपूर्ण.
रा., पद्य, आदि: रिषभदेवजीरैराणी दो; अंति: चोरासीलाख पूरव आऊखाई, गाथा-२२. ३४. पे. नाम. सिद्धपावडीया सज्झाय, पृ. २२अ-२३आ, संपूर्ण..
रा., पद्य, वि. १८७५, आदि: शासणनायक समरियै; अंति: वद नवमी भोमवार रे, गाथा-४८. ३५. पे. नाम. अरजनमालिरोषट् ढालियो, पृ. २३आ-२६अ, संपूर्ण.
अर्जुनमाली रास, मा.गु., पद्य, आदि: तिणकाले ने तिणसमै; अंति: पाम्यां मुगत निधान, ढाल-६. ३६. पे. नाम. जिनपालजिनरक्षित चोढालियो, पृ. २६अ-२८अ, संपूर्ण.
जिनपालजिनरक्षित सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: आगै अरिहंत अनंता हुव; अंति: महाविदेहमें जासी मोख, ढाल-४. ३७. पे. नाम. ढंढणऋषि चोढालियो, पृ. २८अ-२९आ, संपूर्ण.
ढंढणऋषि सज्झाय, रा., पद्य, आदि: तिण कालेने तिण समें; अंति: तूले नावे लिगार, ढाल-४. ३८. पे. नाम. नमिरायऋषि चरित्र, पृ. २९आ-३३आ, संपूर्ण, वि. १९७९, वैशाख कृष्ण, ७.
नमिराजर्षि कथा, मा.गु., पद्य, आदि: नमीराजारी वारता कहु; अंति: ज्यु पामो भव पार हो, ढाल-१०. ३९. पे. नाम. नेमिनाथ चरित्र, पृ. ३४अ-३६आ, संपूर्ण.
नेमिजिन चरित्र, मा.गु., पद्य, आदि: नगर सोरीपुर राजियो; अंति: पूरीजी नेमीसरजी हो, गाथा-५१. ४०.पे. नाम. नंदणमणियाराको चोढालियो, पृ. ३६आ-३९अ, संपूर्ण.
नंदनमणियार चौढालियो, रा., पद्य, वि. १८३४, आदि: गिनातारा तेरवा; अंति: नंदणरो इधकार ए, ढाल-४. ४१. पे. नाम. चंदनबालारी वारता, पृ. ३९अ-४१अ, संपूर्ण.
चंदनबालासती ढाल, रा., पद्य, आदि: चंदणवालारी वारता कथा; अंति: पहंती निरवाण लाल रे, ढाल-२. ४२. पे. नाम. विजयसेठविजयासेठाणी अधिकार, पृ. ४१अ-४२आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: व्रतामे चोथोव्रत मोट; अंति: संका मूल आणो मती ए, ढाल-२, गाथा-३१. ४३. पे. नाम. श्रेणिकचेलणा अधिकार, पृ. ४२आ-४४आ, संपूर्ण.
चेलणासती अधिकार, रा., पद्य, वि. १८३९, आदि: राजग्रहीनो अधिपती; अंति: वद इग्यारस शनिवार, ढाल-४. ४४. पे. नाम. उदाइराजारो अधिकार, पृ. ४४आ-४८आ, संपूर्ण.
उदाइराजा सप्त ढालीयो, मा.गु., पद्य, वि. १८४२, आदि: तिण कालेने तिण समे; अंति: गोगुंदा मझारो रे, ढाल-७. ४५. पे. नाम. चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, पृ. ४८आ-५०आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: पाडलीपुर नामे नगर; अंति: संता कीधी जोरो रे, ढाल-२, गाथा-६२. ६४६०५. (+) सज्झाय व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-४(१ से ४)=६, कुल पे. ११, प्र.वि. संशोधित., दे.,
(२६४१२, १३४४०). १.पे. नाम. अनाथीमुनि गुण, पृ. ५अ-६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. अनाथीमुनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: इम बोल्या मुनीराय, गाथा-३३, (पू.वि. गाथा
५ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. कामदेव श्रावक ढाल, पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण. ___ कामदेव श्रावक सज्झाय, मु. खुशालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८६, आदि: एक दिन इंद्रे; अंति: कुसालचंदजी इम
भाख, गाथा-१७. ३. पे. नाम. ८ जिन स्तवन-वर्ण प्रभातियु, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदिः पो ऊठी प्रभाते वांदू, अंति: सहर चोमास रे माई, गाथा - १०. ४. पे. नाम. सुपात्रदान महिमा सज्झाय, पृ. ७आ, संपूर्ण.
मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: तिर्थंकर चोवीसे अंति: रायचंद० सेठी धारो, गाथा- १०.
५. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण.
मु. रतनचंद, रा., पद्य, आदि: तुं धन तुं धन तुं धन, अंति: रतनचंद० सहु भर पामी, गाथा - ५.
६. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. ८अ -८आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, मु. माणकचंद, पुहिं., पद्य वि. १८७८, आदि: श्रीआदनाथ श्रृष्ट को अंतिः माणक० परम सुख पाया, गाथा - १०.
७. पे नाम. आदिजिन पद, पृ. ८आ, संपूर्ण,
आदिजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रात उठि समरियै; अंति: कल्याण चरण की सेवा, गाथा-५. ८. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ८आ- ९अ, संपूर्ण
मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि रहो रहो सांवलीया, अंतिः राख्यो मन मध ताणी, गाथा ५.
९. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ९अ - ९आ, संपूर्ण.
मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५५, आदि: मांरो मन लागो हो; अंति: दिपतो मेडतनगर चोमास, गाथा- १७. १०. पे नाम. सीतासती तवन, पृ. ९आ-१०अ संपूर्ण, वि. १९४५ श्रावण कृष्ण, १२, शनिवार.
१९५
सीतासती सज्झाय, मु. चोखचंद, रा., पद्य, आदि: सीता सत राख्यो वनमे; अंति: चोख० दया राख दिल में, गाथा-५. ११. पे. नाम औपदेशिक लावणी, पृ. १०अ १० आ, संपूर्ण.
मु. जिनदास, पु,ि पच, आदि बल जाओ रे मुसापर प्य; अंतिः जिनराज० आस तज मेरी, गाथा ५.
(+)
६४६०६. कल्पसूत्र सह व्याख्यान - ६, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३० + १ (२५) = ३१, प्र. वि. संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ. जैवे. (२४.५x१२, १३४३८).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-): अंति: (-), प्रतिपूर्ण
कल्पसूत्र- व्याख्यान+कथा * सं., मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण
*,
६४६०७, (+) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ९-३(१ से ३) = ६, कुल पे. ४८, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ,
वे. (२५.५x१२, २२x९४).
"
१. पे. नाम. आलोयणापच्चीसी, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
मु. जडाव, रा., पद्य, वि. १९६२, आदि: (-); अंति: भाव जोड किधी चितचाव, गाथा - २५, (पू. वि. गाथा- १६ अपूर्ण तक नहीं है.)
२. पे. नाम. ऋषभदेवजी का स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, मु. अमी ऋषि, पुर्हि, पद्य, आदि प्रथम जीनेश्वर नित अंतिः अमी० जिनराया रे लो, गाथा- ७.
"
३. पे नाम, अजितनाथजी का स्तवन, पृ. ४अ संपूर्ण.
अजितजिन स्तवन, मु. अमी ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: रे जीव अजीत जिनेश्वर, अंति: अमी० आवागमन निवार रे,
गाथा-७.
४. पे. नाम. संभवनाथप्रभु का स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण.
संभवजिन स्तवन, मु. अमी ऋषि, पुहिं, पद्य, आदि: संभव जिनवर सांभलोरे, अंति: अमी० संभवजिन सुखकंद,
गाथा- ७.
५. पे. नाम. अभिनंदनजी का स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण.
अभिनंदनजिन स्तवन, मु. अमी ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीअभिनंदन करुणा, अंति: अमी० तारो श्रीजिनराज,
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गाथा- ७.
६. पे. नाम. सुपार्श्वनाथ का स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण.
सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. अमी ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: स्वामी सुपार्श्व आस; अंति: अमी० अरज अवधारी रे, गाथा-७.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
७. पे. नाम, चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण.
मु. अमी ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: चंदा प्रभु जिनराया; अंति: अमी० भय भंजन भगवंत, गाथा- ७.
८. पे. नाम. सुविधिनाथजी का स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण
सुविधिजिन स्तवन, मु. अमी ऋषि, पुहिं, पद्य, आदिः सुविधिजिन समरो नरनार, अंतिः अमि० कर भवजल पारी,
गाथा-७.
९. पे. नाम, शीतलनाथजी का स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण
शीतलजिन स्तवन, मु. अमी ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: प्यारा लागो प्यारा, अंति: अमी० मुझे यही उमावो, गाथा- ७. १०. पे नाम, विमलनाथजी का स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण
विमलजिन स्तवन, मु. अमी ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि; विमल जिनेश्वर साहिब, अंतिः बांह ग्रहे की लाजोजी, गाथा ७. ११. पे. नाम. अरिष्टनेमप्रभुजी का स्तवन, पृ. ४-५ अ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तवन, मु. अमी ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिन नेम परम उप; अंति: अमी० भवभ्रमण निवीरो, गाथा-७. १२. पे. नाम महावीरप्रभुजी का स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण
महावीरजिन स्तवन, मु. अमी ऋषि, पुहिं, पद्य, आदिः आज हम महाविरजिनंद के अंति: अमी० पार उतरस्यां राज,
गाथा- ७.
१३. पे. नाम. आदिश्वरजिन स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, मु. अमी ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: वंदू आदिजिनेश्वर भाव; अंति: अमी० दीजे अविचल सेव,
गाथा- ७.
१४. पे. नाम. सुपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण.
सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. अमी ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: देव सुपास सेव सुखकार; अंति: अमी० होजो नाथ सहाई,
गाथा- ७.
१५. पे. नाम. चंद्रप्रभुजिन स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण.
चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. अमी ऋषि, पुष्टिं पद्य, आदि: करजोडी अरजी करूँ शीव अंति: अमी० चाहूँ भवभव सेव,
"
गाथा-७.
१६. पे नाम, शीतलनाथ स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण
शीतलजिन स्तवन, मु. अमी ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: शीतलजिनराज भजो भाई, अंति: अमी० भव तुम बंदा हो,
गाथा- ७.
१७. पे नाम. श्रेयांसनाथ स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण
श्रेयांसजिन स्तवन, मु. अमी ऋषि, पुहिं, पद्य, आदि श्रीश्रेवांस जिनंदा अंतिः अमी०काई भयभंजन भगवंत, गाथा- ७. १८. पे नाम, वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण
मु. अमी ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: वासुपूज्यस्वामीसुं; अंति: अमी० भव पार उतार तो, गाथा-७.
१९. पे नाम, कुंथुनाथ स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण,
कुंथुजिन स्तवन, मु. अमी ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: कुंथुजिन बंदू सुखदाई, अंति: अमी० बसिया चित्तमांई, गाथा - ७. २०. पे. नाम. मल्लिनाथ स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण.
मल्लिजिन स्तवन, मु. अमी ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: नाथ कैसे भूपति को सम, अंति: शिवपुर मांहि सिधाया, गाधा-७. २१. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण.
सीमंधरजिन स्तवन, मु. अमी ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीसीमंधरस्वामी हो; अंति: अमी० सफल करो मुझ आस,
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गाथा- ७.
२२. पे. नाम. सुबाहुस्वामी स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण.
सुबाहुजिन स्तवन, मु. अमी ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: देव सुबाहु दीजिये उप; अंति: अमी० भवजल पार उतार,
गाथा- ७.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
२३. पे. नाम. समुच्च्यजिनगुण स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन स्तवन, मु. अमी ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: सुणो सुगणारे तुम वह; अंति: अमी० सेव सदा
सुखकारी, गाथा-७. २४. पे. नाम. अष्टमदनिवारण सज्झाय, पृ. ६अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-अष्टमदनिवारक, मु. अमी ऋषि, पुहि., पद्य, वि. १९५३, आदि: तुम सुणजो सहु भव; अंति:
अमी०सुगण तणे मन भायो, गाथा-१४. २५. पे. नाम. मेघरथराजा लावणी, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.
मु. अमी ऋषि, पुहिं., पद्य, वि. १९५१, आदि: श्रीमेघरथ राजा जीव; अंति: अमी० जीवदया लो धारी, गाथा-१४. २६. पे. नाम. हितोपदेश, पृ. ६आ, संपूर्ण. ___ औपदेशिक सज्झाय, मु. अमी ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: सीखसुध मानो भवप्रानी; अंति: अमी० समझ ज्ञानी रे,
गाथा-१०. २७. पे. नाम. पुरिसादानी पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पुरिसादानी, मु. अमी ऋषि, पुहिं., पद्य, वि. १९५१, आदि: नाथ कैसे नागनी नाग; अंति: अमी०
जिनके गुण गायो, गाथा-१६. २८. पे. नाम. दसविध चित्तसमाधि वर्णन, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण.
मु. अमी ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: सांभलजो भवि प्राणी; अंति: अमी०धारो विबुध सुजान, गाथा-१२. २९. पे. नाम. नित्यकृत्य लोकोत्तरव्यापार वर्णन, पृ. ७अ, संपूर्ण.
मु. अमी ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: पूर्वे पून्ये प्रगट; अंति: अविचल पदवी पावेजी, गाथा-८. ३०. पे. नाम. पांचपांडव सज्झाय, पृ. ७अ, संपूर्ण. ५ पांडव सज्झाय, मु. अमी ऋषि, पुहिं., पद्य, वि. १९५३, आदि: पांडव सुखकारी समता; अंति: अमी० मंगल च्यार
हो, गाथा-११. ३१. पे. नाम. नरक दुःख वर्णन एकवीसी, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. नारकीवेदनाएकवीसी, मु. अमी ऋषि, पुहिं., पद्य, वि. १९५२, आदि: श्रीजिनराज प्रकाशियो; अंति: अमी०आवे
भविजण दाय हो, गाथा-२१. ३२. पे. नाम. हितशिक्षा-अज्ञानकष्ट से मोक्षचाहने वाले को, पृ. ७आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-अज्ञानता, मु. अमी ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: क्यों नाहक कष्ट; अंति: अमी०कहे वे जनम गमावे,
गाथा-७. ३३. पे. नाम. कालविषे चेतावनी, पृ. ७आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-काल, मु. अमी ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: मन मान सुगुरुका कहना; अंति: लहे अमी रिख
सुखचैना, गाथा-६. ३४. पे. नाम. नेमनाथजी को हालरियो, पृ. ७आ, संपूर्ण.
नेमिजिन हालरई, मु. अमी ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: गावे हालरियो मा शिवा; अंति: अमी० नवनिध पावरे, गाथा-११. ३५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ७आ, संपूर्ण.
मु. अमी ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: चित्त चेतोरे सुजान; अंति: अमी० पामे पद निर्वाण, पद-४. ३६. पे. नाम. धर्मरुचि अणगार लावणी, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण.
मु. अमी ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: तपसी गुणधारी पूरन; अंति: अमी० चरन शरन हितकारी, गाथा-६. ३७. पे. नाम. अध्यात्मव्यापारी चेतनबनजारा को चेतावनी, पृ. ८अ, संपूर्ण.
औपदेशिक-चेतनवणजारा सज्झाय, मु. अमी ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: गाफिल मत रहे बनजारा; अंति: कहे
अमीरिख सुविचारा, गाथा-१०. ३८. पे. नाम. चैतन्य मुसाफिर को उपदेशरूप सज्झाय, पृ. ८अ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
औपदेशिक सज्झाय - चेतन, मु. अमी ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: जाग मुसाफिर समज सयान; अंति: अमि० लिन राहे रे, गाथा-७
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३९. पे. नाम. शुद्धगुरु स्वरूप सज्झाय, पृ. ८अ, संपूर्ण.
मु. अमी ऋषि, पुहिं, पद्य, आदि विषय कषाय से दूरा रे, अंति: अमी० गुण नांही अधूरा, गावा-८.
४०. पे. नाम. शुद्धधर्म स्वरूप सज्झाय, पृ. ८अ संपूर्ण
मु. अमी ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: जीवदया उर धारे रे; अंति: शिवपुर सुख त्यारे, गाथा- ९.
४१. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. ८अ संपूर्ण
मु. अमी ऋषि, पुहिं., पद्य, आदिः सुणजो भव प्राणी धारो, अंति: अमी० सब दुःख लूट हो, गाधा ७.
४२. पे, नाम, कपट छत्तीसी, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण
मु. अमी ऋषि, पुहिं, पद्य वि. १९५१, आदि: प्रणमु श्रीजिनरायने, अंति: अमी० जोड बनाई हो के, गाथा ४०.
"
,
४३. पे, नाम, गुरुगुण स्तवन, पृ. ८आ, संपूर्ण,
मु. अमी ऋषि, पुहिं, पद्य, आदिः सतगुरुजी म्हारा मारण, अंति: अमी० वंछित काजजी, गाथा- १२. ४४. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. ८आ- ९अ, संपूर्ण.
मु. अमी ऋषि, पुहिं, पद्म, आदि करे जिनधर्म सोहि जीत; अंतिः अमीरिख कहे समज मीता, गाथा ५. ४५. पे. नाम, औपदेशिक पद प्र. ९अ. संपूर्ण.
मु. अमी ऋषि, पुहिं, पद्य, आदि: निज गुण भुलो रे चेतन, अंति: अमी० अविचल संपद पावे, गाथा-६. ४६. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. ९अ, संपूर्ण.
मु. अमी ऋषि, पुहिं, पद्म, आदि: किम सुख मिलसी रे चैत अंतिः अमी० भवजल पार उतारे, गाथा- ११. ४७. पे, नाम, औपदेशिक पद, पृ. ९अ, संपूर्ण,
मु. अमी ऋषि, पुहिं, पद्य, आदि: इम सुख मिलसी रे चेतन, अंति: अमी० अविचल सुख लीजे, गाथा-८. ४८. पे. नाम. महावीरजिन गरबी, पृ. ९अ, संपूर्ण.
मु. अमी ऋषि, पुहिं, पद्य, आदि माने महेर करीने वेगा, अंति: अमी० आतम काज सारजो जी गाथा ४. ६४६०८, (-) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३००७(१ से ६, १०) = २३, कुल पे ४७, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का
अंश खंडित है, जैदे., (२६X१२, ११३५).
१. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. ७अ-८अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं.
मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: लीयो फिटकारी मा सनेह, गाथा - २४, (पू. वि. गाथा २ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ८अ - ९आ, संपूर्ण.
नवपद स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६२, आदि: सकल कुशल कमलानो; अंति: दानविजय जयकारा रे,
गाथा- २३.
३. पे नाम, पार्श्वजिन स्तुति भीनमालमंडन, पृ. ९आ, अपूर्ण, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है.
पार्श्वजिन स्तुति - भीनमालमंडन पुरुषादाणी, उपा. कुशलसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपासजिणंद पुरसादा, अंतिः ( - ), ( पू. वि. गाथा ४ अपूर्ण तक है.)
४. पे. नाम ऋषभजिन स्तवन, पृ. ११अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है.
आदिजिन स्तवन- नारदपुरीमंडन, मु. वल्लभ, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: (-); अंति: पग वल्लभ करे प्रणाम, गाथा-७, (पू. वि. गाथा ४ अपूर्ण से है.)
५. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. ११अ- १२अ, संपूर्ण.
मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि सहीयां मोरी चालो अंतिः अरिहंत श्री आदिनाथ, गाथा- ९.
६. पे. नाम. आतम प्रमोद, पृ. १२अ - १२आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-आत्म प्रमोद, रा., पद्य, आदि: ओ जुग चलीयो जासी रे; अंति: सही रे नित कीजीये, गाथा-१०. ७. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
सिद्धचक्र सज्झाय, मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नवपद महिमा सार सांभल; अंति: नवपद महिमा जाणीइ,
गाथा-५. ८. पे. नाम. अनंतनाथजी स्तवन, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. अनंतजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: धार तलवारनी सोहली; अंति: आनंदघन राजपावे.
गाथा-७. ९. पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. १३आ-१४आ, संपूर्ण.
मु. रतनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: कैसे वीरह देगा उरमे; अंति: रतनचंद० मे पकड मंगाउ, गाथा-१०. १०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १४आ-१५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: लागी लागी आंखीयने रे; अंति: साह्यबा पुगी छे
आसतो, गाथा-९. ११. पे. नाम. धर्मनाथजिन स्तवन, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण.
धर्मजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: धरमजिनेश्वर गाउंरंग; अंति: सांभलो एसेवक अरदास, गाथा-८. १२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण.
मु. रंग, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेसर म्हारो; अंति: दोय करजोडी रंग वणीऔ, गाथा-५. १३. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण.
मु. रतनचंद, रा., पद्य, आदि: तुं धन धन संतजिणेसर; अंति: रतनचंद० सहु भर पामी, गाथा-५. १४. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. १६आ, संपूर्ण.
नेमराजिमती पद, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: पती मेरो वसीयो वनमे; अंति: जीनदास नेम वसे नैनमे, गाथा-४. १५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १७अ, संपूर्ण.
मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: लोक चवदके पार किनारै; अंति: चरण कमल का वासा है, गाथा-५. १६. पे. नाम. कुंथुनाथ स्तवन, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण. __कुंथुजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: जिनजी मोरा रे रात; अंति: पद्मने मंगलमालो लाल,
गाथा-६. १७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १७आ, संपूर्ण.
मु. देवीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: करम सत्रु महरो कोई क; अंति: हरष निरख गुण गाय जी, पद-४. १८. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण.
मु. सेवाराम, पुहि., पद्य, आदि: प्रभुजीसू लागो मारो; अंति: लगी पलगमन चुटेरे, गाथा-३. १९. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गुगडी पारकर, मु. आगम, मा.गु., पद्य, वि. १८०६, आदि: पारकर देसनो राजीओ रे; अंति: आगम
करे अरदासरे, गाथा-९. २०. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १८आ-१९आ, संपूर्ण.
पं. मनरूपसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सोरीपुरनगर सुहामणु; अंति: मनरुप प्रणमें पाय, गाथा-१५. २१. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १९आ, संपूर्ण.
मु. न्यायसागर, पुहिं., पद्य, आदि: नेम मिलै तो मै बारिय: अंति: ग्यान की वेल वरीजीयै. गाथा-३. २२. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १९आ-२०अ, संपूर्ण.
मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रात उठ श्रीसंतिजिण; अंति: रतनचंद० कषाय टली, गाथा-५. २३. पे. नाम. सुमतिजिन पद, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण.
पुहि., पद्य, आदि: मेरे मन तुही हे ओर; अंति: जाणे मेरे मन तुही हे, गाथा-४. २४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २०आ, संपूर्ण.
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पार्श्वजिन स्तवन- अवंती, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: पांथीया पंथ चलेगो, अंति: रूपचंद० आवागमण नीवार,
गाथा-५.
२५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २०आ, संपूर्ण.
मु. मान, मा.गु., पद्य, आदि: जाग जाग जाग जाग रे; अंति: वीतराग लहो शिवमाग रे, गाथा-४.
२६. पे नाम. सुमतिजिन पद. पू. २० आ-२१अ, संपूर्ण.
मु. हर्षचंद, पुहिं, पद्य, आदि नीरख बीदन सुख पायो प अंतिः अवर देव नहीं आयो, गाथा-४.
२७. पे नाम. चितसांभवरी सज्झाय, पृ. २१अ २२आ, संपूर्ण
चित्तब्रह्मदत्त सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चित्त कहे ब्रह्मराय, अंति: जीणने सीवसुख मलसी हो, गाथा - २८, (वि. कर्ता नाम वाला भाग खंडित है.)
२८. पे नाम, नेमराजिमती स्तवन, पृ. २२आ, संपूर्ण
मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: कुमरी ल्यावो समजाये; अंति: रूपचंद० पर रही लोभाय, गाथा-५.
२९. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. २३अ, संपूर्ण.
मु. रूपचंद, रा., पद्य, आदि: जीयाजी थाने वरजु छु; अंति: रूपचंद० भवजल उतरे पार, गाथा- ३. ३०. पे नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. २३अ २४अ, संपूर्ण.
"
ग. उत्तमसागर, मा.गु, पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसिद्धचक्र सेवो अंतिः सुखदाय उत्तम सीस नमाय गाथा ४. ३१. पे. नाम. पार्श्वनाथ थुइ, पृ. २४अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति - सादडीमंडन, मु. वल्लभसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सादडीये पासजीणंद सोह; अंति: वलभसागर गुण नही गाजे, गाथा-४.
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३२. पे नाम, साधारणजिन पद, पृ. २४अ २४आ, संपूर्ण
साधारणजिन स्तवन, मु. राजकीर्ति, पुहिं, पद्य, आदि नेना सफल भइ हो० जीन अंतिः राज० मुगतीनो राज, गाथा ५. ३३. पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ पद, पृ. २४आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि (-); अंतिः अविचल पदवी देना हो, गाथा ४.
३४. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. २४आ- २५अ, संपूर्ण.
मु. दयाचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८७८, आदि: सुमताई सागर गुण, अंतिः दीयाचंद प्रेम करी, गाथा- ७.
३५. पे नाम, नेमराजिमती गीत, पृ. २५अ संपूर्ण
नेमराजिमती स्तवन, क. राजन, रा., पद्य, आदि: रथडो मत वालो मत वालो; अंति: राजन० सीवसुख आलो रे,
गाथा-५.
३६. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. २५अ- २५आ, संपूर्ण.
मु. रूपचंद, रा., पद्य, आदिः आज भल आयो रे राणी; अंति: मोती भर थाल वधायो रे, गाथा-४.
३७. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २५ आ-२६अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: अजब बणी हो माराज अंग; अंति: भव भवना बंधन तोरु हो, गाथा-८. ३८. पे नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. २६अ-२६आ, संपूर्ण.
मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: कालीने पीली वादली, अंति: कंत नमें बार बार, गाथा- ७.
३९. पे नाम, नेमराजिमती स्तवन, पृ. २६आ, संपूर्ण.
मु. जिनदास, पु.ि, पद्य, आदि: उभा रोहनी मुगतीफाकत, अंति: जिनवास० मुगतीनो पंथ, गाथा-५. ४०. पे. नाम. पार्श्वजिन होरी, पृ. २६आ, संपूर्ण.
मु. रत्नसागर, पुहिं., पद्य, आदि रंग मच्यो जिनद्वार, अंतिः रतनसागर० जय जयकार, गाथा-७.
"
४१. पे. नाम. नेमिजिन होरी, पृ. २६आ-२७अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: एसे स्याम सलुणे; अंति: त मट गये डरीगत जंजार, गाथा-८.
४२. पे नाम. आदिजिन स्तवन- धुलेवामंडन, पृ. २७अ संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
मु. ऋषभदास, रा., पद्य, आदि: मेरुदेवी का नंदा ताह; अंति: रीखभदास बलीहारी रे, गाथा-६. ४३. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. २७अ-२८अ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: सामलीआ घर आव कि राजु; अंति: सेहजसुंदर० दाखस्यु,
गाथा-५. ४४. पे. नाम. सिद्धाचलजी स्तवन, पृ. २८अ-२९अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: करजोडी कहे कामनी; अंति: सेवक जिन धरे ध्यान,
गाथा-१६. ४५. पे. नाम. आदिजिन पद-धुलेवा, पृ. २९अ, संपूर्ण.
श्राव. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: जगभूलो किउ भटके छै; अंति: ऋषभ० गुण नित केछ रे, गाथा-४. ४६. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २९अ-२९आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. मोहनविजय, रा., पद्य, आदि: मुजरौ तौ मानीने लीजै; अंति: मोहन प्रणमीजैरे,
गाथा-६. ४७. पे. नाम. खंधककुमार सज्झाय, पृ. २९आ-३०आ, संपूर्ण.
खंधकसाधु सज्झाय, रा., पद्य, आदि: श्रीसीमधर पाय नमुजी; अंति: पोहुता मोख मजार, गाथा-२६. ६४६०९. दंडकना त्रिसद्वार, संपूर्ण, वि. १९७३, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्रले. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२, १२४३१).
२४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजो; अंति: अधिका जाणिवा. ६४६१०. (+) कल्पसूत्र सहटबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२२-२५(१ से २५)=९७, पू.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१२, ७४३८-४१).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. व्याख्यान २ से ६ तक है.)
कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६४६१२.(+) लोकनालिद्वात्रिंशिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४.५४१२, ४४२७). लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदसणं विणा जंलोअ; अंति: जहा भमह न
इह भिसं, गाथा-३३.
लोकनालिद्वात्रिंशिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हे वीतराग देव ताहरु; अंति: विषइ भिसं वारंवार. ६४६१३. (+) सूयगडांगसूत्र सह बालावबोध-प्रथम श्रुतस्कंध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६७, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२७४११.५, ४४४९-६१).
सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झेज्झ तिउट्टिज्ज; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-बालावबोध, मु. रत्नसीशिष्य, मा.गु., गद्य, वि. १७४४, आदि: श्रीवर्धमान मानम्य; अंति: (-),
प्रतिपूर्ण. ६४६१४. आवश्यक नियुक्ति, संपूर्ण, वि. १५५५, श्रावण कृष्ण, ५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ७५, प्र.वि. कुल ग्रं. ३३००, जैदे., (२६४११.५, १५४४५-५२).
आवश्यकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः (१)जयइ जगजीव जोणी विआण,
(२)आभिणिबोहियनाणं; अंति: जणो लहउ मोक्खं, ग्रं. २७१५. ६४६१५. (+) परदेशीराजा चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १३४३६-४२). प्रदेशीराजा रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: सकल सिद्धि संपद करण; अंति: कहि लहीइ
मंगलमालो रे, ढाल-३३, ग्रं. ११००. ६४६१६. दशठाणांगसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २१, ले.स्थल. बीलाडा, प्रले. श्राव. लीछमा, प्र.ले.प. सामान्य, दे..
(२६४१२, २०४५१).
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१० ठाणा बोल, मा.गु., गद्य, आदि: एगे आया कहता आत्मा, अंतिः सुखमकाल जाणीजे.
६४६१७. (#) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र विधि सहित, संपूर्ण, वि. १८९०, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै..,
יי
(२६.५X११.५, ७४२३).
देवसिप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., पग, आदिः नमो अरिहंताणं, अंतिः ३ नोकार गुनिजै. ६४६१८. सत्तरभेदीपूजा विधिसहित, संपूर्ण, वि. १८८०, वैशाख शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले. स्थल. कुचेरानगर, प्रले. मु. उमेदविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे (२४.५४११.५, ११४३२-३६).
१७ भेदी पूजा, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६१८, आदिः भाव भले भगवंतनी पूजा; अंति: सब लीला शिवसुख साजै, ढाल १७.
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(#)
साधुश्रावक प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १० ३१ से ३)= ७, पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६x११.५, १३x४४).
"
साधु श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा.गु. सं., प+ग, आदि (-); अंति: (-), (पू. वि. वांदणासूत्र पूर्ण गाझा अपूर्ण तक है.)
६४६२० (+) स्तवन चौवीसी, संपूर्ण, वि. १९१६ पौष कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले. स्थल. वडलुनगर, प्रले. पं. पुन्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. वीरजीन प्रशादात्, संशोधित. दे. (२४.५x१२, १३x२७-३०).
स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवाल हो; अंति: तुं जीवजीवन आधारो रे, स्तवन- २४, गाथा- १२१.
६४६२१. दीपमालिका व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९३२ मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. १०, ले. स्थल. पालीनगर,
प्रले. पंन्या. दयासुंदर (गुरु वा. क्षमाविलास); गुपि. वा. क्षमाविलास (गुरु मु. माणिक्यहंस); मु. माणिक्यहंस (गुरु वा. सुखहेम); अन्य. श्राव. वनेचंद केसरीमल, प्र.ले.पु. मध्यम, वे. (२४.५४१२, १३४३८).
दीपावलीपर्व व्याख्यान, सं., प्रा., गद्य, आदि जाते वीरजिनस्य निवृत; अंति: गौतम० सुरद्रुम तुल्य
,
६४६२२. सज्झाय व गहुंली संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ८, जैदे., (२५X१२.५, १२X३६).
१. पे. नाम. पंचमअंगनी सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
पंचमांग सज्झाय, मु. शिवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सहु आगम में सोभतो रे; अंति: तुझ बिरूद विख्यात रे, गाथा-८. २. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ २आ, संपूर्ण.
मु. शिवचंद्र, मा.गु. पच, आदिः चेतन करीये रे जिनजि; अंतिः शिव० दिन वधतै रंग, गाथा- १०.
३. पे. नाम. नंदीसूत्र सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
संबद्ध, मु. शिवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: भवीयण सुणीयै रे नंदी, अंति: तरण अवतार रे सनेही, गाथा-७.
४. पे. नाम. महावीरजिन गहुंली, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण.
महावीरजिन पद, मु. शिवचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: इक दिन प्रभु वीर सम; अंतिः स्यादवाद अमृत झरिया, गाथा-५. ५. पे. नाम, महावीरजिन देशना, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण
महावीरजिन देशना - विशालानगरी, मु. शिवचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: इक दिन वीरजिणेसरू रे; अंति: सरण ग्रह्यौ सिवचंद्र गाथा ८.
६. पे. नाम. महावीरजिन गुंहली, पृ. ४-४आ, संपूर्ण.
महावीरजिन गहुंली, मु. विद्यारंग, मा.गु., पद्य, आदि: सहीया वीर जिणंद, अंति: विद्यारंग० सहीया मारी, गाथा-५. ७. पे. नाम, महावीरजिन गुंडली, पृ. ४आ, संपूर्ण.
महावीर जिन गहुली, मु. शिवचंद्र, पुहिं, पद्य, आदि: सिरी विरजिणेसर सामि; अंति: शिवचंद्र नमै शिरनामि, गाधा-९८. पे. नाम. महावीरजिन गुहली, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण.
महावीरजिन गहुंली, मु. शिवचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: वनपालक इम वीनवे रे; अंति: सिवचंद्र समान, गाथा-७. ६४६२४. (+) भक्तामर व कल्याणमंदिरादि स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २६, कुल पे. ६, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. दे. (२३.५४११.५, ४४२५-२९).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
२०३ १.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-१३अ, संपूर्ण, वि. १९०१, श्रावण कृष्ण, ७, शुक्रवार, प्रले. पं. चंद्रभाण,
प्र.ले.पु. सामान्य. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४.
भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)जिनपादयुगं सम्यग, (२)श्रीभगवंतना चरणयुगल; अंति: मुक्त लक्ष्मी पामै. २. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. १३अ-२५अ, संपूर्ण, वि. १९०१, श्रावण कृष्ण, १४, रविवार,
पठ. श्राव. श्रवणसिंघ; अन्य. मु. जैतसी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१२०८) मंगलं लेखकानांच. कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते,
श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कल्याणमंदिर क० मंगली; अंति: पामै एहवा प्रभु छै. ३. पे. नाम. पंचपरमेष्ठी नमस्कार सहटबार्थ, पृ. २५अ-२५आ, संपूर्ण.
नमस्कार महामंत्र, शाश्वत, प्रा., पद्य, आदि: णमो अरिहंताणं; अंति: पढम हवइ मंगलं, पद-९.
नमस्कार महामंत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: माहरो नमस्कार होज्यो; अंति: सुख संपतनो दातार छै. ४. पे. नाम. नवकारनो गुण गाथा, पृ. २५आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति हुंडी में लिखी है.
पंचिंदियसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: पंचिदिअसंवरणो तह; अंति: छत्तीसगुणो गुरु मज्झ, गाथा-२. ५. पे. नाम. उवसग्गहरं स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. २५आ-२६अ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासंपास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद,
गाथा-५. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: उपसर्गनो हर्णहार; अंति: जिनेस्वर पूर्ण चंद्र. ६. पे. नाम. संतिकर स्तोत्र, पृ. २६अ-२६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं शांतिजिणं जग; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ६
अपूर्ण तक है.) ६४६२५. (+) बारसासूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७७-५६(१ से २९,५० से ७६)=२१, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ७४३०).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. त्रिशलामाता १४ स्वप्न वर्णन अपूर्ण से
ऋषभदेव जीवन चरित्र अपूर्ण तक बीच-बीच के पाठ हैं.) ६४६२६. (#) सुरसुंदरी कथा, अपूर्ण, वि. १९०८, भाद्रपद कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. ७५-४१(१ से ४०,७४)=३४, ले.स्थल. जालोरगढ, प्रले. मु. नथमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२-१३.५, १३४२८-३२). सुरसुंदरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: (-); अंति: धर्मवर्द्धन० उमंगेजी, खंड-४, (पू.वि. खंड
१ढाल १ गाथा ११ अपूर्ण से है व बीच का अल्पांश नहीं है., वि. ढाल ४०) ६४६२७. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६७-४६(१ से ३८,४४,४९ से ५५)=२१, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, ६-१७X४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. त्रिशलामाता के १४ स्वप्न वर्णन अपूर्ण से
पार्श्वनाथ जीवन चरित्र अपूर्ण तक है.)
कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६४६२९. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, ६४४४).
दशवकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: अपुणागमं गइ त्तिबेमि,
___ अध्ययन-१०.
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: स्वमत थका नथी कहेतो. ६४६३०. श्रीपाल चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२३४१२, १२४३२).
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२०४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कलपवेल
कवीयणतणी सरसत; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-११, गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ६४६३१. (+#) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, ७४३८). दशवकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: अपुणागमं गइ त्तिबेमि,
अध्ययन-१०.
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मु. श्रीपाल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: तुज प्रतइ कह छं. ६४६३३. (+) पगामसज्झायसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्रले. ग. चैनसुख, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, ५४२६).
पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: पगाम सिज्झाए निगाम; अंति: वंदामि जिणे चउवीस, सूत्र-२१.
पगामसज्झायसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: घणा पाथर्णा बीछाया; अंति: नमस्कार करुं छु. ६४६३४. (+#) जैन धार्मिक प्रश्नोत्तर-विविधग्रंथोक्त, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१२, ५०४३७-४२).
जैन धार्मिक प्रश्नोत्तर-विविधग्रंथोक्त, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अहो प्रिय मित्रो सुज; अंति: होकर मोक्षमे जावे. ६४६३५. संबोधसत्तरी सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९४३, फाल्गुन कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्रले. पं. चारित्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३.५४१३, १५४३५).
संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोयगुरुं; अंति: जयसेहर०नत्थि संदेहो, गाथा-९३.
संबोधसप्ततिका-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनै त्रिलो; अंति: निस्संदेह जाणवौ. ६४६३७. (+#) साधुप्रतिक्रमण, स्तुति, सज्झाय व बोल आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १२, कुल पे. २३,
प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१२.५, १२४३८). १.पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण.
पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: चत्तारि मंगलं अरिहंत; अंति: (अपठनीय). २. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (१)कुशलं धीमतां सावधाना, (२)कुशलं धीमतां सावधाना,
श्लोक-४. ३. पे. नाम. स्नातस्या स्तुति, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: (अपठनीय), (वि. पत्र खंडित होने से
अंतिमवाक्य नहीं भरा है.) ४. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. ४अ, संपूर्ण.
मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-४. ५.पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. ___ मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: संघ तणा निसदिस,
गाथा-४. ६. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण..
अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टमी अष्ट प्रमाद; अंति: (अपठनीय), गाथा-४. ७. पे. नाम. संसारदावानल स्तुति, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण..
संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय), श्लोक-४. ८. पे. नाम. श्रावकवंदितुसूत्र, पृ. ५अ-७अ, संपूर्ण.
वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: वंदामि जिणे चउव्वीसं, गाथा-५०. ९. पे. नाम. सामायिक लेनेपारने की विधि, पृ. ७अ-८अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
सामायिक विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय). १०. पे. नाम. २८ लब्धि नाम, पृ. ८आ, संपूर्ण.
२८ लब्धि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जेहनै सरीर फरसै सर्व; अंति: ते पुलाक लब्धि २८. ११. पे. नाम. श्रावक २१ गुण गाथा, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: धम्मरयणस्स जुग्गो; अंति: इगवीस गुणो हवइ सढो, गाथा-३. १२. पे. नाम. वृद्ध वाक्य श्लोक, पृ. ९अ, संपूर्ण.
औपदेशिक श्लोक-वृद्धवाक्य हितशिक्षा, सं., पद्य, आदि: वृद्धवाक्य सदा मान्य; अंति: वृद्धवाक्येन मोचिता, श्लोक-१. १३. पे. नाम. ३३ गुरु आशातना, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण.
३३ आशातना विचार-गुरुसंबंधी, मा.गु., गद्य, आदि: गुररै आग्या विना शिष; अंति: बरोबर बैसे तो आ० ३३. १४. पे. नाम. २१ कायोत्सर्ग दोष, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण.
रा., गद्य, आदि: घोडानी पर उंचौ नीचौ; अंति: ते अनुपेक्ष दोष. १५. पे. नाम. दश पच्चक्खाण सज्झाय, पृ. १०अ, संपूर्ण.
१० पच्चखाणफल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: दसविध प्रह उठी; अंति: पामी निश्चै निर्वाण, गाथा-८. १६. पे. नाम. १८ भार वनस्पतिमान कवित, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण.
मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: तीन कोडि तरु जात; अंति: ध्रमसी०भारह अढार सहस, गाथा-२. १७. पे. नाम. औपदेशिक दूहा, पृ. १०आ, संपूर्ण.
औपदेशिक दहा-चतुर, पुहि., पद्य, आदि: छल बल कल विद्या; अंति: आठगुण ताकौ घटैन नीर, गाथा-१. १८. पे. नाम. सचितअचितउपर सज्झाय, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रणमी श्रीगौतम गण; अंति:
वीरविमल करजोडी कहे, गाथा-१९. १९. पे. नाम. १४ स्थानके मनुष्य उत्तपति, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण.
समुर्छिममनुष्योत्पत्ति १४ स्थान विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: उचारेसु वा वडी नीती; अंति: प्राणना धर्महार. २०. पे. नाम. महामोहनीरा ३० बोल, पृ. ११आ, संपूर्ण.
मोहनीय कर्मबंध के ३० स्थानक बोल, मा.गु., गद्य, आदि: माहामोह ७० कोडाकोड; अंति: संसार पणौ उपजावै ३०. २१. पे. नाम. २४ तीर्थंकर नाम, आयुमान, देहमान, वर्णादि विवरण, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. २४ तीर्थंकर नाम, आयुमान, देहमान, वर्ण, राज्यकाल, तपकाल आदि विवरण, मा.गु., गद्य, आदि:
श्रीरिषभदेवजी ८४ पूर; अंति: हस्त देहमान कनकवर्ण. २२. पे. नाम. दुषमकालना चैन-भगवतीसूत्र, पृ. १२आ, संपूर्ण.
३० बोल-दुषमकाल, मा.गु., गद्य, आदि: नगर ते ग्राम हुसी१; अंति: एक वार लूंणी जसी. २३. पे. नाम. बार चक्रवर्ती नव वासुदेव विवरण, पृ. १२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. १२ चक्रवर्ती ९ बलदेव कालमान, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीरिषभदेववारै१ भरत; अंति: (-), (पू.वि. प्रथम बलदेव का
समय अपूर्ण तक है.) ६४६३९. (+) एकविसठाणा प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१३, ३४२८).
२१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाणा १ नयरी २; अति: अद्धतेरसवास छउमत्थ,
गाथा-६९.
२१ स्थान प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: च० जे विमान थकि चवि; अंति: छद्मस्थ पणे रह्या. ६४६४०. अष्टप्रकारी पूजा, अपूर्ण, वि. १९१९, भाद्रपद शुक्ल, १५, रविवार, मध्यम, पृ. ९-२(४,६)=७, ले.स्थल. पुना,
प्रले. श्राव. बलाखीदास हरगोवनदास पारेख; लिख. लाधाजी मारवाडी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२, ८x२८).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८ प्रकारी पूजा, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: अजर अमर अकलंक जे; अंति: यांति मोक्षं हि वीरा,
ढाल-९, (पू.वि. ढाल २ गाथा २ अपूर्ण से ढाल ४ गाथा ५ तक व ढाल ६ अपूर्ण से ढाल ७ के दूहा २ अपूर्ण तक
नहीं है.) ६४६४३. (+) कायास्थिति स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५४१२,५४३०).
कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जह तुह दसणरहिओ काय; अंति: अकायपयसंपयं देसु,
गाथा-२४.
कायस्थिति प्रकरण-टबार्थ *मा.गु., गद्य, आदि: जह क० जिम तुहक०; अंति: ते प्रते मुझने आपो. ६४६४४. (+) सुक्तमाला, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२,१४४२६).
सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकल कुशलवली वृंदजी; अंति: (-), (पू.वि. वर्ग-४,
गाथा-२१ आश्रव वर्णन अपूर्ण तक है.) ६४६४५. पट्टावली-तपागच्छिय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (२५.५४१२, १३४३७).
पट्टावली-तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजिनशासन संप्रति; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
श्री अमृतरत्नसूरि पाट तक लिखा है.) ६४६४६. (+) चतुर्विंशतिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १८६०, श्रावण कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. कुल ग्रं. २३४, जैदे., (२८.५४१२, १२४३७-४१). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति-२४,
श्लोक-९६. ६४६४७. (-) पंचप्रतिक्रमणादिविधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ६, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५४१२,
१३४२७). १.पे. नाम. पंचप्रतिक्रमण विधि संग्रह, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इच्छामि० इरियावहि०; अंति: होय ते सवि हुं मन व०, (पू.वि. संवत्सरी की विधि नहीं
लिखी है.) २. पे. नाम. सामायिक लेवा विधि, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.
सामायिक लेने की विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम तीन नोकार गिण; अंति: तीन नोकार पढिजे. ३. पे. नाम. सामायिक पारवा विधि, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण.
सामायिक पारने की विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: इरियावही पडि० तस्स०; अंति: मायियवयजुतो कहि ३नो०. ४. पे. नाम. पोसह लेवा विधि, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
पौषध लेने की विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: इरिया० तसउ० अन्नत्थ०; अंति: होय ते सविह मन वच०. ५. पे. नाम. पोसह पारवा विधि, पृ. ७आ, संपूर्ण.
पौषध पारने की विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: इरियावहि० तस० अन० ४न; अंति: सेसो संसार फल हेउ. ६. पे. नाम. देव वांदवा विधि, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इरिया० त० अ० ४नो का०; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभिक चैत्यवंदन विधि अपूर्ण
तक है.) ६४६४८. (+) पाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११.५, १३४३८-४२).
श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दसणंमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ६४६४९. (+) विवेकविलास सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०४, आषाढ़ कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. १११, पठ. श्राव. कीस्तुरचंद गुलाबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ३७००, दे., (२५.५४१२, १३४३८-४२).
विवेकविलास, आ. जिनदत्तसूरि, सं., पद्य, आदि: शाश्वतानंदरूपाय तमस; अंति: लोकोत्तरं शाश्वतम्, उल्लास-१२. विवेकविलास-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ग्रंथकर्ता कहइ छइ ते; अंति: तेह ज पुरुष मोटउ.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
२०७ ६४६५०. कायस्थिति २२ द्वार वर्णन, संपूर्ण, वि. १९५२, कार्तिक शुक्ल, ८, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. मोतीचंद;
अन्य. श्राव. लखमीचंद रुपचंदजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२, १९४४६).
___ कायस्थिति २२ द्वार वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: जीवगइ१ इंदिय२ काय३; अंति: (-). ६४६५१. (+) निरयावलिका श्रुतस्कंध सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५५, आषाढ़ कृष्ण, १, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १५५+१(४१)=१५६,
कुल पे. ५, प्रले. खीमजी छगनजी त्रवाडी; गुपि. हरदेवजी छगनजी त्रवाडी (पिता छगनजी त्रवाडी); छगनजी त्रवाडी; लिख. सा. अमरबाई, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५,
४४३०).
१. पे. नाम. निरयावली पठमो वग्गो सह टबार्थ, पृ. १आ-६०आ, संपूर्ण.
कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेण०; अंति: नवरं माताओ सरिसणामा, अध्ययन-१०.
कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० ते अवसरपणी कालन; अति: नाम स० सरिखा णा० नाम. २. पे. नाम. कप्पवडिंसिया बिओ वग्गो सह टबार्थ, पृ. ६०आ-६६अ, संपूर्ण.
कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइणं भंते समणेणं०; अंति: महाविदेहे सिज्झीहिति, अध्ययन-१०.
कल्पावतंसिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज० जउ भं० हे पूज्य; अंति: महाविदेहे सि० सीझसि. ३. पे. नाम. पुफिया तइओ वग्गो सह टबार्थ, पृ. ६६अ-१२७आ, संपूर्ण.
पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइणं भंते समणेणं०; अंति: चेइयाइं जहा संघहणीए, अध्ययन-१०.
पुष्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज० जओ भं० हे पूज्य; अंति: गाथा मांहि तिम. ४. पे. नाम. पुप्फचूला चउत्थो वग्गो सह टबार्थ, पृ. १२७आ-१३७अ, संपूर्ण.
पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: खलु जंबू निक्खेवउ, अध्ययन-१०.
पुष्पचूलिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज० जो भ० हे पूज्य स०; अंति: सर्व पाछली परे कहेवो. ५. पे. नाम. वह्निदशा तृतीय वर्ग सह टबार्थ, पृ. १३७अ-१५४अ, संपूर्ण.
वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: ज० जओभं० हे पूज्य; अंति: वग्गे बारस उद्देसगा, अध्ययन-१२.
वृष्णिदशासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज० जो भं० हे पुज्य; अंति: बा० बार उ० उद्देशा. ६४६५२.(+) ठाणांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८९, ज्येष्ठ शुक्ल, ८, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १८८, ले.स्थल. मेदनीपुर,
प्रले. मु. वीरचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. १७८३५, प्र.ले.श्लो. (११०५) यादृशं पुस्तक दृष्ट्वा, जैदे., (२५.५४१२.५, ६-१८४५५-६५). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं तेणं; अंति: अणता पण्णत्ता, स्थान-१०, सूत्र-७८३,
ग्रं. ३७००. स्थानांगसूत्र-टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रीमद्वीरजिनं नत्वा, (२)श्रीसुधर्मास्वामी; अंति: कह्या ए दसमो
ठाणो. ६४६५३. (+#) चंदराजा रास, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२८-१(१)=१२७, प्रले. पं. रुपविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१३.५, १५४३५). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: (-); अंति: मोहनविजये० गुण चंदना, उल्लास-४,
गाथा-२६७९, (पू.वि. उल्लास-१ ढाल-१ से पूर्व की गाथा नहीं है., वि. ढाल १०८.) ६४६५४. (+) सीमंधर विज्ञप्ति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३३, वैशाख शुक्ल, ३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ८३, ले.स्थल. भावनगर, प्रले.
कृष्णजी वेलजी दवे; पठ. गीगाभाई भाणाभाई ओसवाल, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. ऋषभदेव प्रसादात्., संशोधित., दे., (२५.५४१३, ३४३३). सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन-३५० गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सीमंधर साहिब
आगई; अंति: शास्त्र मर्यादा भणी, ढाल-१७, गाथा-३५४. सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन-३५० गाथा-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य पार्श्वदेव; अंति:
नावा बेडी समान छे.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६४६५५. (+#) संग्रहणीरत्न सह टिप्पण व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९००, माघ अधिकमास कृष्ण, २, रविवार, मध्यम, पृ. २५,
कुल पे. २, ले.स्थल. मेडता, प्रले. मु. शिवदास; पठ. मु. सिवचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१३, १०४३१). १.पे. नाम. बृहत्संग्रहणि सह टीप्पण, पृ. १आ-२४अ, संपूर्ण.
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: चंदमुणिंदेण० तित्थं, गाथा-३४९.
बृहत्संग्रहणी-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: नत्वाअर्हदादीन्; अंति: समृद्धि प्राप्नोति. २. पे. नाम. बोल संग्रह, पृ. २४आ, संपूर्ण.
बोल संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तिगुणेण कप्प चउगे; अंति: (-). ६४६५६. (+) धर्मपरिक्षा भाष, संपूर्ण, वि. १८३४, मार्गशीर्ष शुक्ल, १४, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ११२, ले.स्थल. रामपुरा, प्र.वि. महावीर चैत्यालय., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (११८३) जाद्रसं पुस्तकं द्रष्टा, जैदे., (२५.५४१३, ११४४३).
धर्मपरीक्षा रास, संबद्ध, पुहिं., पद्य, आदि: प्रनमौं अरिहंत; अंति: कहै सकल संघमंगल करण, ग्रं. २०५०. ६४६८४. आर्यवसुधारधारिणी, संपूर्ण, वि. १९५४, कार्तिक शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ.८, ले.स्थल. सिवांणा, प्रले. श्राव. बनारस मेघराज, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१४, १२४२४-२७).
वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति. ६४८२१. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ७, दे., (२०x१२, १०-१२४१९). १.पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तुति-भक्तामरस्तोत्रप्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंति: भवजले
__ पततां जनानाम्, श्लोक-४. २. पे. नाम. वीरजिन स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति-कल्याणमंदिर प्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद; अंति:
नमभिनम्य जिनेश्वरस्य, श्लोक-४. ३. पे. नाम. शांतिनाथ स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
शांतिजिन स्तुति-सकलकुशलवल्ली पादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्ली; अंति: वः श्रेयसे शांतिनाथः,
__ श्लोक-४. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-रत्नाकरपच्चीसी प्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: श्रेयःश्रियं मंगल; अंति: जय
ज्ञानकलानिधानम्, श्लोक-४. ५.पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. ३अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: कमलवल्लपनं तव राजते; अंति: विभाभरनिर्जितभाधिपाः, श्लोक-४. ६. पे. नाम. वीरजिन स्तुति, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: स्फूर्जद्भक्तिनतेंद; अंति: बालचंद्राभदंष्ट्रम, श्लोक-४. ७. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण.
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: शैवेयः शंखकेतुः कलित; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ६४८३०. (+) शक्रस्तवादि स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. १३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१६.५४१४,
१३४१८). १.पे. नाम. शक्रस्तव-अर्हन्नामसहस्र, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण. शक्र स्तव-अर्हनामसहस्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., प+ग., आदि: ॐ नमो अर्हते परमा; अंति:
(१)सिद्धसेन०संपदां पदम्, (२)सिद्ध०पठितो महालाभाय. २. पे. नाम. पार्श्व स्तोत्रं, पृ. ६अ-८आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वः पातु वो; अंति: प्राप्नोति स श्रियम्, श्लोक-३३.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
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३. पे. नाम. जिनपंजर स्तवन, पृ. ८आ-१०आ, संपूर्ण.
जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ ह्रीं श्रीं अर्हीं अंतिः श्रीकमलप्रभाख्यः श्लोक-२४.
"
४. पे. नाम. जैनरक्षा स्तोत्र, पृ. १० आ - ११आ, संपूर्ण.
जिनरक्षा स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः सर्वातिशयसंपूर्णान् अंतिः बुद्धस्तां तथालिखत्, श्लोक १८.
५. पे. नाम. चंद्रप्रभस्वामी लघु स्तोत्र, पृ. ११आ - १२अ, संपूर्ण.
चंद्रप्रभजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः ॐ चंद्रप्रभः: अंति: दायिनि मे वरप्रदा, श्लोक ५.
६. पे. नाम. पंचपरमेष्टि स्तोत्र, पृ. १२अ- १२आ, संपूर्ण,
५ परमेष्ठि स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: अर्हत स्त्रिजग द्वंद; अंति: प्रथमं भवति मंगलम्, श्लोक - ७. ७. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १२आ, संपूर्ण.
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२०९
पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ ह्रीं श्रीं धरणोर, अंतिः नमामः कुशलं लभामः, ८. पे. नाम. वीर्य स्तवन, पृ. १३अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, प्रा., पद्य, आदिः ॐ तं नमह पासनाहं धरण; अंति: पइ य नाहं सरह भगवंतं.
९. पे. नाम. स्तंभन पार्श्वजिन स्तव, पृ. १३अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तव स्तंभन, अप, पद्य, आदिः ॐ गह भूय जख रखस डाइण; अंतिः ठियो पासो १ स्वाहा, गाथा- १. १०. पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र- भंडारगाथा, पृ. १३-अ, संपूर्ण.
उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा ५ की भंडारगाथा में संबद्ध, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः ॐ तुह दंसणेण सामिय अंति: दंसणमसमफल हेउ स्वाहा, गाथा- १.
११. पे. नाम. जिनकुशलसूरि स्तुति, पृ. १३अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: श्रीजिनकुशल मुनींद्र अंतिः प्रसीदंतु सौख्यकरा गाथा- १.
१२. पे. नाम. मंत्र संग्रह, पू. १३-अ, संपूर्ण.
जैन मंत्र संग्रह - सामान्य, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदिः ॐ नमो अरिहंताणं, अंतिः क्षमलवरयू स्वाहा १०८. १३. पे. नाम. भवानी कवच, पृ. १३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
रूद्रयामल-भवानीकवच स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: भगवन् सर्वमाख्यातं; अंति: (-), (पू. वि. गाथा - ७ तक है.) ६४८३४. थंभणापार्श्वनाथ स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ८५-८० (१ से ८०) =५, जैदे. (१७.५X१३, १४x२०).
पार्श्वजिन स्तवन- स्तंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु प्रणमुं रे पास, अंति: आणी कुशललाभ पयंपए, ढाल-५, गाथा-१८, संपूर्ण.
६४८४७. पद्मावत्यष्टक की वृत्ति, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २६-१ (१) २५, ले. स्थल अवंती, जैवे. (१८x१२.५, १२x२४)पद्मावतीदेवी अष्टक -पार्श्वदेवीय वृत्ति, ग. पार्श्वदेव, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: पार्श्व० छंदसांप्राया, (पू.वि. भूमिका अपूर्ण से है.)
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६४८६७, (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४२-३० (१ से १२, १६ से ३३ ) = १२, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., जैदे., (२०.५X१२, १४X३३).
अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक १९२ अपूर्ण से श्लोक-३६७ अपूर्ण तक है.)
६४९४५. (#) युगप्रधान विवरण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १६, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१६.५X१०.५, २५-३०X१८-२५).
युगप्रधान विवरण कोष्टक, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-).
६५०१४. (#) पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. १८४४, मध्यम, पृ. ५, ले. स्थल. द्राफा, प्रले. मु. वर्द्धमान ऋषि (गुरु मु. दुलिचंद ऋषि); पठ. ऋ. खुश्यालचंद, गुपि. मु. शिवजी ऋषि (गुरु मु. वर्द्धमान ऋषि), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६X१०.५, १६x४८).
पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो भगवती, अंति: गर्ग० सत्यापाशक केवली, श्लोक १७५.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६५०२४. (+) जन्मपत्री पद्धति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५०-२९(५ से १०,१२,१४ से २५,३१ से ३२,३९ से ४४,४७ से ४८)=२१, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२०४१२.५, १६४३३-३६). जन्मपत्री पद्धति, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य सारदां ज्योत; अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच व अंत के
पाठांश नहीं हैं.) ६५०४७. (+) पाशा केवली, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४३८).
पाशाकेवली, मु. गर्गऋषि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवती; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१७७ अपूर्ण तक है.) ६५०४८. (#) ज्योतिषसार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-२(६,१५)=१५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१०.५, ९४२८). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-२०१
अपूर्ण तक है.) ६५०४९. (+#) शारदीय लघु नाममाला, पूर्ण, वि. १८५९, वैशाख कृष्ण, ९, सोमवार, मध्यम, पृ. ३६-१(१)=३५, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२०७११, ९-१२४२१-३३).
शारदीय लघुनाममाला, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: कीर्ति बत नाममाला, कांड-३, श्लोक-४४५,
(पू.वि. श्लोक ७ अपूर्ण से है.) ६५०५०. (+) अभिधानचिंतामणिनाममाला-कांड ४, संपूर्ण, वि. १७८२, वैशाख शुक्ल, ३, रविवार, मध्यम, पृ. २४, ले.स्थल. मथुरा, पठ. श्राव. खुशालचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१७४११, १२-१३४२५-२६). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदिः (-); अंति: (-),
प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ६५०८२. (+) पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१६४१२, १३४२४).
पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवति; अंति: कल्याण वृद्धि सत्यं. ६५०९६. (+#) स्तवन,सज्झाय व पदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६-१(१)=१५, कुल पे. ९, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों
की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१७४११,७-८x१४-१९). १.पे. नाम. नेमिजिन बारमासो, पृ. २अ-८आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. नेमराजिमती बारमासो, मु. मान, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मांन० संगसुं हो राज, गाथा-२७, (पूर्ण, पू.वि. गाथा-३
अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण.
मु. मान, पुहिं., पद्य, आदि: देख सखी प्रभु कंठ; अंति: सेवगनी प्रतिपाल बे, पद-४. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ९आ-१०आ, संपूर्ण. मु. मान, पुहि., पद्य, आदि: पाग समारतो मुंछ मरोर; अंति: (१)मान० बिरद अमोलतो, (२)मान० रे सौदागर बोलतो,
पद-४. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १०आ-११आ, संपूर्ण.
मु. मान, पुहिं., पद्य, आदि: पास जिनेश्वर तुं जग; अंति: मान० भेट तुम्हारी, गाथा-५. ५. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ११आ-१२आ, संपूर्ण.
मु. मान, पुहिं., पद्य, आदि: जगतारक जिनराज जगतपती; अंति: मान० संतजिनिंदसु, गाथा-८. ६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १२आ-१३आ, संपूर्ण.
मु. मान ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: माया काया गरभ; अंति: ऋष मांन सुणावे हो, गाथा-५. ७. पे. नाम. जीव सज्झाय, पृ. १३आ-१४आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, क. मान, पुहि., पद्य, आदि: सोवननगरी हंस नरेस्वर; अंति: मान तौ जाणु किरतार, गाथा-७. ८. पे. नाम. होरी, पृ. १४आ-१५आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
२११ होरी-राधाकृष्ण, क. मान, पुहिं., पद्य, आदि: इतसुंआयो स्याम; अंति: मानसेवगनी प्रतिपारी, कडी-७. ९. पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण..
क. मान, पुहिं., पद्य, आदि: सब सखीयनमें मोहिन; अंति: तारण मांन कहैत माधो, पद-५. ६५०९७. (+#) कवित्त पद आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९५-१७०(१ से १७०)=२५, कुल पे. २५,
प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१५.५४११.५, ९-१२४१६-२२). १. पे. नाम. जन्मपत्री, पृ. १७१अ, संपूर्ण. ज्योतिष*मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (वि. अक्षर अवाच्य होने के कारण आदि व अंतिम वाक्य नहीं
लिया गया है. *जन्मकुंडली कोष्टक दिया हैं) २. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १७१आ, संपूर्ण.
क. हरिसिंघ, पुहिं., पद्य, आदि: मोहि देखि जिणवर; अंति: हरि० जोरजीद्वैरावरी, पद-४. ३. पे. नाम. ग्यानगाली, पृ. १७१आ-१७३आ, संपूर्ण. होली ज्ञान गाली कमति सज्झाय, श्राव. विनोदीलाल, पुहिं., पद्य, वि. १७४३, आदि: प्रथम ही सुमति; अंति:
लालविनोदी गारी छे, गाथा-१७. ४. पे. नाम. देव पूजा जयमाला, पृ. १७३आ-१७८आ, संपूर्ण.
देवपूजा विधि, सं., प+ग., आदि: (१)ॐ नम सिद्धेभ्यो वो, (२)जय जय जय णमोस्तु०; अंति: सो संसार न पीछे आवई. ५. पे. नाम. नेमराजिमती कवित्त, पृ. १७८आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: राज्यद मान कुलमंडन; अंति: (-). ६. पे. नाम. तत्वार्थाधिगम मोक्षशास्त्र- अध्याय-१, ५ व १०, पृ. १७९अ-१८१आ, संपूर्ण. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि: मोक्षमार्गस्य नेतारं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण. ७. पे. नाम. कवित्त, पृ. १८१आ-१८२अ, संपूर्ण. साधारणजिन कवित्त, क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: जामै लोकालोक को सभाव; अंति: ताहि बंदत बनारसी,
गाथा-१. ८. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १८२अ-१८२आ, संपूर्ण..
मु. जगराम, पुहिं., पद्य, आदि: महावीरजिन मुक्ति; अंति: जगराम जन्म सुधारे, गाथा-७. ९. पे. नाम. साथारणजिन पद, पृ. १८२आ, संपूर्ण.
साधारणजिन पद, पुहिं., पद्य, आदि: मनि मेरे यह आई या; अंति: तुम गुण भक्ति सहाई, गाथा-४. १०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १८२आ-१८३अ, संपूर्ण.
जै.क. भूधरदास, पुहिं., पद्य, आदि: ऐसी समजी कै सिर धूलि; अंति: सो नफो रह्यो नही मूल, गाथा-४. ११.पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १८३अ, संपूर्ण. मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: (१)लागि रही ऐह ढोरी इह, (२)इह संसार असार मैं; अंति: तव नवल नम्यो कर जौरी,
गाथा-४. १२. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १८३आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: श्रीनेम कवर जागे हैं; अंति: निरखि करत हैं निती, गाथा-४. १३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १८३आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: कांन तिहारो जस; अंति: मोहि निज सुख थांन, गाथा-३. १४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १८३आ-१८४अ, संपूर्ण.
पुहि., पद्य, आदि: मैं बलिहारी० साईया; अंति: आऊ हूं कबहु भवमे रे, गाथा-३. १५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १८४अ, संपूर्ण.
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श्राव खतराम, पुहिं., पद्य, आदि: जिन चरनन लागि रहो रे, अंतिः वखतरांम० सुख बहो रे, गाथा- ३. १६. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १८४अ १८४आ, संपूर्ण
मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: जिनराज ना विसारौ मति, अंति: में जाहर दगा है यारो, गाथा- ४. १७. पे नाम. साधारणजिन पद, पृ. १८४आ, संपूर्ण
पुहिं., पद्य, आदि आज मैं परम पदारथ अंति: अष्ट० मुक्तिअरू रब०, गाथा २.
-
"
१८. पे. नाम. साधारणजिन पद. पू. १८४आ-१८५ अ, संपूर्ण.
मु. वखता, पुहिं, पद्म, आदि: तुम मेरे त्यारण तिरण; अंति: जगपति वखता के महाराज, गाथा-३. १९. पे. नाम. आध्यात्मिक होरी, पृ. १८५अ, संपूर्ण.
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
जै.क. धानतराय, पुर्हि, पच, आदि; चेतन खेलो होरी सता; अंतिः चानत० जुग जुग जोरी, गाथा-४,
२०. पे नाम. वीनती, पृ. १८५ अ १८६अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: अब कैसे तिरनौ है, अंति: जिन चरनन सरनुं है, गाथा-३.
२३. पे. नाम. कवितछपै, पृ. १८८अ, संपूर्ण, वि. १८३८, पे. वि. विद्वान अवाच्य है.
प्रहलाद कवित, पुहिं., पद्म, आदिः सुरति की तो बरो; अंतिः चाटै पहलादकुं, का. १. २४. पे. नाम. कल्याणमंदिर भाषा, पृ. १८८ आ-१९५अ, संपूर्ण.
आराधना पाठ, जै. क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: मैं देव निति अरिहंत; अंति: द्यानत० चरण की दीजिये, गाथा - १६. २१. पे नाम, नेमिजिन बाग, पृ. १८६अ १८७आ, संपूर्ण
मु. सवाजी, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीचरणकरण जुहार करी, अंति: सुवाजी० नेम नवल को, का. १०.
२२. पे. नाम साधारणजिन पद, पृ. १८७आ, संपूर्ण
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कल्याणमंदिर स्तोत्र - पद्यानुवाद, जै. क. बनारसीदास, पुहिं, पद्य, वि. १७वी, आदिः परम जोति परमातमा परम अंतिः वणारसी० समिकित सुध, गाथा-४५.
२५. पे. नाम. विषापाहारजी की भाषा, पृ. १९५ अ- १९५आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
विषापहार स्तोत्र, आ. अचलकीर्ति, पुहिं. पद्य वि. १७१५, आदि: विश्वनाथ विमल गुण ईश, अंति: (-), (पू. वि. गाथा - ९ अपूर्ण तक है.)
६५१७१. () सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अशुद्ध पाठ., दे.,
(२०x११.५, ८x१८-२९).
१. पे. नाम. रावण सज्झाय, पू. १अ ३आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि के भभीकण सूण ही रावण, अंतिः आवरमान दियो भारी, गाधा-१६.
२. पे. नाम. सीतासती सज्झाय, पृ. ३अ-५अ, संपूर्ण.
लछिदास, मा.गु., पद्य, आदि: पिया मेरी एक न मानी, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाधा-७ अपूर्ण तक लिखा है.)
६५१८१ (+) प्रभंजनासती व ९ वाड सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-२ (४ से ५ ) ५, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित., जैदे., (१९x१०.५, ९-११x२४).
१. पे. नाम. प्रभंजनासती सज्झाय, पृ. १अ - ३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गिरि वैताढ्यने उपरे, अंति: (-), (पू.वि. ढाल - २ गाथा-१७ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. नववाड सज्झाय, पृ. ६अ-७आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं.
मु. पद्म, मा.गु., पद्य, वि. १७९९, आदि: (-); अंति: ( - ), ( पू. वि. गाथा - ५१ अपूर्ण से ७४ अपूर्ण तक है.)
६५१८२. (+) २२ परिषह व्याख्या, १० यतिधर्म, १२ भावनादि विचार, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १५-३ (१२ से १४) = १२. कुल
पे. ४, प्र. वि. संशोधित. दे., (१८x११, ९४२२-२५).
१. पे. नाम. २२ परिषह व्याख्या, पृ. १अ - ६अ, संपूर्ण.
२२ परिषह नाम-विवेचन, मा.गु., गद्य, आदिः क्षुधावेदनी व्यापी अंतिः ते दर्शन परिसह जीपे
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
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२. पे. नाम. १० प्रकारे यतिधर्म, पृ. ६अ-८अ, संपूर्ण.
१० यतिधर्म भेद, मा.गु., गद्य, आदि: अब्भिंतर बाह्य कष्ट, अंति: ब्रह्मचर्यधर्म कहि. ३. पे. नाम. १२ भावना विचार, पृ. ८अ ११ आ. अपूर्ण. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम अनित्यभावना ते; अंति: (-), (पू.वि. लोकभावना अपूर्ण तक है.) ४. पे. नाम. ५ चारित्र भेद विचार, पृ. १५ अ- १५आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं.
५ चारित्र विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. चारित्र भेद-२ से ३ अपूर्ण तक है.) ६५१८४. (०) पद्मावतीदेवी आरती स्तवन व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६-१ (१) ०५, कुल पे. ४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( १७१२, ९x१७).
१. पे. नाम. पद्मावतीदेवी आरती, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है., वि. १८७९, वैशाख शुक्ल, १३.
आ. कांतिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कांतिसूरि सुख करणी, गाथा-९, (पू. वि. गाथा - ८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. मधुबिंदु सज्झाय, पृ. २अ-४आ, संपूर्ण.
मु. चरण प्रमोद - शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती मुझरो मत दीयो, अंतिः चरणप्र० सुख पद पामीए डाल-५,
गाथा - १०.
३. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ५अ - ५आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदिः आज भले दिन उगो री, अंति: दुख टलीया सहु दुर, गाथा- ४.
४. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ५आ- ६आ, संपूर्ण.
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मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: तुं मेरा दल मे तु; अंति: जिनरंग० में हो जीनजी, गाथा- ६. ६५१८५. दानसीलतपभावना, स्तवन व सज्झाय संग्रह, त्रुटक, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११८-१०९ (१ से १३,९६, ९८ से ९९,१०१,१०६ से ११७) = ९, कुल पे. ४, प्र. वि. प्रारंभ में बीजक दिया है., जैदे., ( १७११.५, १२x१६-२०). १. पे. नाम. दानशीलतपभावना चोढालीयो, पृ. ९४ - १०३अ, अपूर्ण, पू. वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं.
दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय, अंति:
समयसुंद० सुप्रसादो रे, (पू.वि. ढाल १ गाथा-९ अपूर्ण तक व ढाल २ गाथा-३ अपूर्ण से ढाल ३ का दूहा-५ अपूर्ण तक व ढाल-४ का दूहा-८ से ढाल ४ गाथा - १० अपूर्ण तक व ढाल -५ का दूहा- २ अपूर्ण से है.)
२. पे. नाम. अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. १०३-१०४अ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक रेवाडी चढ्यौ, अंति: समयसुंदर ० बे कर जोडि, गाथा - ९.
२१३
३. पे. नाम. धन्नाकाकंदी सज्झाय, पृ. १०४अ - १०५आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवाणी रे धना, अंति: (-), (पूर्ण, पू. वि. अंतिम गाथा के अपूर्ण तक है.) ४. पे. नाम. विहरमान २० जिन स्तवन, पृ. ११८अ ११८आ, अपूर्ण, पू. वि. बीच के पत्र हैं.
८ प्रकारी पूजा, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीसुख पूरव, अंति: यजामहे स्वाहा.
३. पे. नाम. निमक उतारण गाथा, पृ. १६अ- १६आ, संपूर्ण.
लूण उतारण गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अह पडिभगापसर, अंति: फुट्ट लूणं तडतडस, गाथा-४.
पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल - १ गाथा-४ अपूर्ण से ढाल -२ गाथा-२ अपूर्ण तक है.)
६५१८६. (+) स्नात्रपूजा,
स्नात्रपूजा, अष्टप्रकारी पूजा व नमक उतारण विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, कुल पे. ३, प्र. मु. गोकुलचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, दे. (१८x११.५, १६x११-१३)
१. पे नाम, स्नात्रपूजा, पृ. १अ १० आ, संपूर्ण
स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चोति से अतिसय जुओ वचन, अंति: देवचंद० सही सूत्रमझार, दाल-८, गाथा ६०,
२. पे. नाम. अष्टप्रकारी पूजा, पू. १० आ-१६अ, संपूर्ण
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२१४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६५१८७. विदर्भी चौपाई, पांडव सज्झाय व नेमराजुल संवादादि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३, कुल पे. ४,
ले.स्थल. साहीपुरा, प्रले. पं. चतुरसागर; पठ.सा. भवानीजी आर्या; राज्यकालरा. उमेदसिंह; रा. भीमसिंह, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.ले.श्लो. (१२०७) राधाजी के बदन पर बिंदलि सोभा देई, जैदे., (१६.५४१२, १३-१५४१२-१५). १.पे. नाम. वैदर्भी चौपाई, पृ. १आ-२०अ, संपूर्ण.
मु. प्रेमराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जैन धर्ममाहि जागता; अंति: प्रेमराज० वै अवतार, गाथा-२००. २.पे. नाम. ५ पांडव सज्झाय, पृ. २०अ-२२अ, संपूर्ण.
मु. कानजी, मा.गु., पद्य, आदि: हस्तिनागपुर दीपतो; अंति: इम जंपे सेवक कानजी, गाथा-१३. ३.पे. नाम. नेमराजुल संवाद, पृ. २२अ-२३अ, संपूर्ण.
नेमिजिन पद, मु. ईश्वर विजय, मा.गु., पद्य, आदि: उमगी हो घटा घरघरर; अंति: भस्म उडायो भरररर, गाथा-४. ४. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. २३अ, संपूर्ण.
प्रास्ताविक दोहा संग्रह *मा.गु.,रा., पद्य, आदि: राधाजी के बदन पर; अंति: केतकी भमर बासना लेई, गाथा-१. ६५१८८. अगियारप्रतिमा भेद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५७-१५२(१ से १५२)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (१४.५४१०.५, १२४२३). श्रावक ११ प्रतिमा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पांच उदंवर तीन मकार; अंति: उदै विगसै वारिज वृंद, गाथा-५७,
संपूर्ण. ६५१८९. (#) श्रावक अतिचार,कर्म सज्झाय व गौतम रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही
फैल गयी है, जैदे., (१४४११, ९x१५-१६). १.पे. नाम. श्रावकसंक्षिप्त अतिचार, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण.
श्रावकसंक्षिप्त अतिचार ,संबद्ध, मा.गु., प+ग., आदि: श्रीज्ञानने विषे अति; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. २. पे. नाम. कर्म सज्झाय, पृ. ६अ-८आ, संपूर्ण. कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देव दाणव तीर्थंकर; अंति: ऋद्धिहरख०करम राजा रे,
गाथा-१८. ३. पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. ९अ-१०अ, संपूर्ण. उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण., गाथा-६ तक लिखा है.) ६५१९०. (#) वर्धमानजी चोपइ, पार्श्वपुराण व कुमतिसुमति सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७०-१६३(१ से १५०,१५६
से १६८)=७, कुल पे. ३,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१५४१०.५, १०-११४१६-१९). १. पे. नाम. वर्धमानजी चोपड़, पृ. १५१अ-१५५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है.
महावीरजिन २७ भव स्तवन, पुहिं., पद्य, आदि: नमो देव अरिहंत को; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४२ अपूर्ण तक है.) २.पे. नाम. पार्श्वपुराण-वज्रनाभ वैराग्य कथनाधिकार गाथा-१४ अपूर्ण से ३२ तक, पृ. १६९अ-१७०आ, अपूर्ण,
पू.वि. अंत के पत्र हैं. पार्श्वपुराण, जै.क. भूधरदास, पुहिं., पद्य, वि. १७८९, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण. ३. पे. नाम. कुमति सुमति सज्झाय, पृ. १७०आ, संपूर्ण.. __कुमतिसुमति सज्झाय, मु. लालविनोद, पुहिं., पद्य, आदि: साधो छोडो कुमति; अंति: लालबिनोद०विरला० भावे,
गाथा-५. ६५१९१. (+#) गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, पद व मंत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, कुल पे. ८, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, दे., (१६४११, ७-८x१४-१६). १.पे. नाम. गोडीजीस्तवन, पृ. १अ-११अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
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पार्श्वजिन स्तवन- अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणी ब्रह्मवादिनी अंतिः प्रीति०संधे मंगल करो, ढाल ५, गाथा-५६.
२. पे. नाम. चैत्यवंदन सूत्र - शक्रस्तव, जावंति चेड़आई व जावंति केवि सूत्र, पृ. ११आ - १३अ, संपूर्ण. चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, प्रा. सं., प+ग, आदि (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
३. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. १३-१४अ, संपूर्ण.
मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदिः सया भली रे संतोषनी, अंतिः विनय० केवल सुखकारी रे, गाथा-५. ४. पे नाम, औपदेशिक पद, पृ. १४आ-१६अ, संपूर्ण, प्रले. श्राव, जेठमल, प्र.ले.पु. सामान्य.
उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि जेन कहो किम होवे परम; अंतिः जस० जेन दसा जस उचि, गाथा- १०. ५. पे. नाम. गौतमगणधर बीज मंत्र सह विधि, प्र. १७अ, संपूर्ण.
गौतम गणधर बीज मंत्र, प्रा. सं., गद्य, आदिः ॐ नमो भगवो गोयमसः अंतिः पूरय पूरय स्वाहा.
,
गौतमगणधर बीज मंत्र विधि, मा.गु., गद्य, आदि: पाछिली राति जाप कीजै; अंति: खुस्याली हुसी.
६. पे. नाम, वशीकरण मंत्र संग्रह सविधि, पृ. १७अ १७आ, संपूर्ण
मंत्र संग्रह*, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
७. पे. नाम. पार्श्वजिन मंत्रसाधनविधि, पृ. १७आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन मंत्रविधान- नमिऊण, प्रा., मा.गु., गद्य, आदिः ॐ ह्रीँ अर्हं नमीऊण; अंति: (१) ह्रीं नम स्वाहा, (२) १०८ सर्वसुख
८. पे. नाम. पार्श्वजिन मंत्रसाधनविधि, पृ. १७आ, संपूर्ण
पार्श्वजिन मंत्रविधान- कलिकुंड, मा.गु. सं., गद्य, आदिः ॐ नमो भगवते ॐ ह्रीं अंतिः स्थंभव स्थंभय स्वाहा, मंत्र - १. ६५१९२. (+) नवकार छंद, रास व पदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ९-१ (१) = ८, कुल पे. २१, प्र. वि. पत्रांक न होने से
पत्र गिनकर लिखा है.. संशोधित अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैवे (१६४११, ९-१६x२०-३४).
१. पे नाम, नवकार छंद, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
२. पे. नाम. प्रास्ताविक लोक संग्रह, पृ. २अ, संपूर्ण.
प्रा. सं., पद्य, आदि राजा वेश्या जमो वनी, अंतिः नवमो ग्रामकुटक, गाथा- १.
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नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, पं. धर्मसिंह पाठक, प्रा., मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंतिः धर्मसी उवज्झाय कहि, गाथा-११, (पूर्ण, पू. वि. गाथा - १ अपूर्ण से है.)
३. पे. नाम. प्रास्ताविक कवित्त संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: खिण इक खमओ मयण नयण, अंतिः सो कण बुजेवे पारकी, का. २.
४. पे. नाम. जंबूद्वीप परीधि प्रमाण, पृ. ३अ, संपूर्ण.
बोल संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: तीन लाख योजन सोलह अंति: धनुष साढासात आंगुल. ५. पे. नाम. आशिर्वचन काव्य, पृ. ३अ, संपूर्ण, राज्यकालरा. भीमसिंहजी, प्र.ले.पु. सामान्य.
आशीर्वचन श्लोक, सं., पद्य, आदि: भाले भाग्यकला मुखे, अंति: दिनं क्षोणीपतौ राजते, श्लोक - १. ६. पे. नाम. ८ कर्म नाम, पृ. ३आ, संपूर्ण
मा.गु., गद्य, आदि गीनानावर्णी कर्म १; अंति: अंतरायकर्म ८.
७. पे. नाम. श्रीपाल रास- बृहद्, पृ. ४-५अ, संपूर्ण.
२१५
मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४०, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल - ३२ का दूहा- ३ से ५ तक, ढाल ३५ है व ढाल ४३ का दूहा १ से ५ तक लिखा है.)
८. पे. नाम. जिनचंद्रसूरि पद, पू. ५अ-५आ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सगुरु जिणचंद सोभाग; अंतिः समय० इम विरूद बोलै, गाथा-७.
९. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. ५आ, संपूर्ण.
प्रा. मा.गु. सं., पद्य, आदिः उदयति यदि भानु: अंतिः जन्मजन्मंतरेपि श्लोक-३.
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१०. पे. नाम. रागमाला, पृ. ६अ-७आ, संपूर्ण.
पुहिं, पद्य, आदि: स्याम वर्ण तन दुख हर; अंतिः खट सुनी राय कर हेत, दोहा-३६.
११. पे. नाम. गणपति कवित्त, पृ. ७आ, संपूर्ण.
केसवदास, मा.गु., पद्य, आदि; एक रदन गजवदन कदन, अंतिः केसव० लंबोदर असरण सरण, का.- १. १२. पे. नाम. २४ विष्णु अवतार स्तुति, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: जैजैमान वराह कमठ नर; अंति: अग्र स्याम उर पद धरौ, का.- १.
१३. पे नाम. मर्द लक्षण कवित्त, पृ. ८अ संपूर्ण.
मु. उदयराज, पुहिं., पद्य, आदि: मरद देग अर तेग मर्द, अंति: उदयराज० लछन मर्द के का. - १.
१४. पे. नाम. कृपण कवित्त, पृ. ८अ संपूर्ण
औपदेशिक कवित्त- कृपण, पुहिं., पद्य, आदि: गुंब कवित नहीं, अंतिः जावो भाट घर अप्पने, का. १.
१५. पे. नाम. कृपण कवित्त, पृ. ८अ संपूर्ण.
3
१६. पे. नाम. धूपपूजा श्लोक, पृ. ८अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि वनस्पती रसोत्पन्नं अंतिः धूपोयं प्रतिगृह्यताम्, श्लोक १.
१७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- नवलखा, पृ. ८- ९अ, संपूर्ण.
औपदेशिक कवित्त- कृपण, क. दुर्जनसालसिंघ, पुहिं., पद्य, आदि आव जाव रे भाट बहुत, अंति: कहे सुंजन के लछन इसे, का. - १.
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
मु. ललितचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि भवत्रय जस अभिधान, अंति: ललितचंद० जोर बजाबा वे, गाथा- ९.
१८. पे. नाम. ज्योतिष सारणी, पृ. ९अ, संपूर्ण.
पंडित. चंडू, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्योधपुरे, अंति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण श्लोक-३ तक लिखा है.) १९. पे. नाम. गूढ सवैया, पृ. ९आ, संपूर्ण.
गूढार्थ सवैया, गोस्वामी तुलसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: हंस परि चढ्यौ गयंद अंति: तुलछी०हंस भार एम सहै, सवैया- १.
९-१२x१७-२० ).
१. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ७६अ-७६आ, संपूर्ण.
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२०. पे नाम. राधिका सवैया, पृ. ९आ, संपूर्ण
पुहिं., पद्य, आदि: तरीया सारी वणी सारी; अंतिः श्रीराधिका सवारी है, सवैया-२.
२१. पे नाम औपदेशिक दूहा संग्रह, पृ. ९आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं., प्रा., मा.गु., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (-), (वि. आदिवाक्य अपठनीय है.) ६५१९३. (+) स्तवन, व पदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८८-७५ (१ से ७५ ) = १३ कुल पे. २६, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (१६४११,
मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदिः या संसार क्षारसागर, अंति: भूधर० दिल की वेदन खोई, गाथा - ९.
२. पे. नाम. औपदेशिक दूहा, पृ. ७६आ, संपूर्ण.
औपदेशिक दूहा*, पुहिं., पद्य, आदि: ऐसे कही कै गुर; अंति: क्या लाठी ले कर मारै, दोहा - १.
३. पे. नाम. परमात्ममहिमा साखी, पृ. ७७अ-७७आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: जागो जी जागो तुम, अंति: सुख मागो जी मांगो, गाथा-३.
६. पे. नाम. नेमराजिमती पद. पू. ७८आ, संपूर्ण.
जिनमहिमा साखी, मु. जगराम, पुहिं., पद्य, आदि: भगतिक्छल विरद सही जिन, अंतिः महिमा जगरांम गाई, गाथा- ३.
४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ७७-७८अ, संपूर्ण.
मु. जगतराम, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत सरण तेरी; अंति: जगराम चरणचित ल्यायो, गाथा - ५.
५. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. ७८ अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
२१७ मु. रतन, पुहिं., पद्य, आदि: नेम तोरी चाहि मौ पैं; अंति: रतन०पहुचे गढ गिरनारि, गाथा-३. ७. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ७८आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: अटके नेणां जिन चरणां; अंति: नवल० कोऊ कहो कन घटके,
गाथा-३. ८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ७९अ-७९आ, संपूर्ण.
मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: नही ऐसा जनम बारूबार; अंति: नवल० समकित अंगीकार, गाथा-४. ९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ७९आ-८०अ, संपूर्ण. ___पुहिं., पद्य, आदि: कौंन भरम मैं भूल्यौ, अंति: दुख सहै अनाहक रे जीव, गाथा-३. १०. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ८०अ, संपूर्ण.
मु. रूप, पुहिं., पद्य, आदि: ऐसैं काल गयो सब बीति; अंति: रूप० गयो न कछू मीति, गाथा-६. ११. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ८०आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: संजम ल्युगी सार; अंति: कै नेम चढे गिरनारि, गाथा-४. १२. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. ८०आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: (१)देह अचेतन प्रेत दरै, (२)देह अचेतन प्रीत धरी; अंति: पंथ परमार्थ है इतनौ, का.-२. १३. पे. नाम. ५ परमेष्ठि १०८ गुण वर्णन, पृ. ८१अ, संपूर्ण.
प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: बारसि गुण अरिहंता; अंति: पणबीसा साहू अठबीसा य. १४. पे. नाम. उपदेशक सवैया, पृ. ८१अ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद, मा.गु., पद्य, आदि: सरल कूसठ कहै बक्ता; अंति: दोष ऐसा कछू दुरजन, गाथा-१. १५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ८१आ, संपूर्ण.
___ पुहिं., पद्य, आदि: बीतराग तेरी या छबि; अंति: हरखि गुण गाउं जी, गाथा-४. १६. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ.८१आ-८२अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: जिन चरणन छबि देखिवा; अंति: (अपठनीय), गाथा-४. १७. पे. नाम. तीन चौइसी नाम, पृ. ८२अ-८३अ, संपूर्ण.
अतीतअनागतवर्तमान २४ जिन नाम, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: नीरवाणजी सागरजी; अंति: अनंतवीर्यजी. १८. पे. नाम. बीस तीर्थंकर नाम, पृ. ८३अ, संपूर्ण.
विहरमान २० जिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सीमंधरजी युगमंधरजी; अंति: देवजसजी अजितवीर्जजी. १९. पे. नाम. शांतिपाठ, पृ. ८४अ-८४आ, संपूर्ण.
सं., प+ग., आदि: शांतिजिनं शशिनिर्मल; अंति: वृषभाद्या जिनेश्वरा, श्लोक-९. २०. पे. नाम. ऋषभदेव वीनती, पृ. ८५अ-८५आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, मु. बालचंद पंडित, पुहि., पद्य, वि. १७८४, आदि: अरज सुणीज्यौ प्रभु; अंति: बालचंद गुण गायो,
गाथा-९. २१. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ.८५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन गीत, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मेरे तो यो ही चाव है; अंति: आनंदघन तो ओर न ध्याउ,
गाथा-५. २२. पे. नाम. प्राणीडो गीत, पृ. ८६अ-८६आ, संपूर्ण.
__ औपदेशिक सज्झाय, मु. नाथू, मा.गु., पद्य, आदि: प्राणीडा रेतू काई; अंति: नाथू०पणे सो ही भोगवे, गाथा-१३. २३. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ८६आ, संपूर्ण.
मु. भानुकीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: सावरो नेम भावे री; अंति: भानुकीर्त्ति गावैरी, गाथा-४. २४. पे. नाम. जिनस्तुत्यादि संग्रह, पृ. ८७अ-८८आ, संपूर्ण.
जिनस्तुत्यादि संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दर्शनं देवदेवस्य; अंति: घरिइ चलुक प्रमाणं.
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२५. पे. नाम आदिजिन पद, पृ. ८८आ, संपूर्ण.
मु. खुशालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: देखोजी आदीश्वरस्वामी; अंति: चंदखुश्याल लडाया है, गाथा-४. २६. पे. नाम. जिन पद, पृ. ८८आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
साधारणजिन पद, पुहिं., पद्य, आदि आसिरा जिनराज तेरा, अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम कडी है.) ६५१९४. (+४) आगम टीप, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६- १ (२) १५, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे.,
(१६४११, २५४८-२२).
३२ आगम विषय दर्शन, मु. तेजसिंघजी, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: कमणानी विध दस पचखांण, (पू.वि. आचारांग श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ उद्देश-५ से है.)
६५१९५. चंदनबाला चउपई, संपूर्ण, वि. १५६८, माघ कृष्ण, १, रविवार, मध्यम, पृ. ९, प्रले. मु. रत्नकल्याण (गुरु
ग. कुशलकल्याण, तपागच्छ); ग. कुशलकल्याण (गुरुग. कल्याणसोम, तपागच्छ); गुपि. ग. कल्याणसोम (गुरु आ. सोमदेवसूरि, तपागच्छ); आ. सोमदेवसूरि (गुरु आ सोमसुंदरसूरि तपागच्छ) आ. सोमसुंदरसूरि (तपागच्छ); पठ. श्राव. हर्षा सहसा ( पिता श्राव. सहसा ); श्राव. सहसा, श्रावि. जीबू, प्र.ले.पु. विस्तृत प्र. ले. लो. (४९९) यादृशं पुस्तके दृष्ट, जैवे. (१६.५x१०, १३x२८). चंदनबालासती चौपाई, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणवर० देपाल; अंति: तीह नरनारी
फलइ, गाथा - १३०.
६५१९६. ककाबत्रीसी, अपूर्ण, वि. १९०६, आश्विन कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ६-१ (२) = ५, ले. स्थल. आकडसादा, प्रले. मु. मोहनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (१६४१०, १०x१५-१९).
""
ककाबत्रीसी, मु. सिवसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८०८, आदिः कका करे प्रणाम सुणे; अंति: सिवसागर० दया मन धारै, गाथा-३७, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से १२ अपूर्ण तक पाठ नहीं है.)
६५१९७. शुकनावली, सूर्यश्लोको व गूढ दूहा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १७-१ (१) = १६, कुल पे. ३, जैदे., (१६X११, ९X२०). १. पे. नाम. अबयदी प्रश्न शुकनावली, पृ. २अ- १५अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है.
अबयदीशुकनावली - अनुवाद, पुहिं., गद्य, आदि: (-); अंति: तेरा काम सवरैगा सही, (पू. वि. प्रश्नफल-४ से है.) २. पे नाम. सूर्यदेवता सिलोको, पृ. १५अ १७आ, संपूर्ण
सूर्यदेव श्लोक, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सांमण करूंजी; अंति: नही का थारैजी तोलै, गाथा-१७.
३. पे, नाम, गूढ दूहा संग्रह, पृ. १७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
दोहा संग्रह - गूढार्थ गर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: पैहली सखी ऊठ बोली यु; अंति: ( - ), ( पू. वि. दूहा - २ अपूर्ण तक है.) ६५१९८. (-) आवकवाराव्रत टीप, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ८-९ (१) =७, प्र. वि. पत्रांक अनुमानित लिखा है., अशुद्ध पाठ.. जैवे. (१६.५x११, १२x२०-२५)
१२ व्रत प्रायश्चित, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., दुसरा अणुव्रत से किंचियं अपतीयं पाठ तक है.)
६५१९९. आवकपाक्षिक अतिचार तपागच्छीय, पूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १२. पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. दे. (१९.५x११,
"
१०x२२-२६).
श्रावकपाक्षिक अतिचार- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि०, अंति: (-), (पू.वि. अंतिम स्थूल "नाणाईब अट्ठ" पाठ अपूर्ण तक है.)
६५२०० सिद्धचक्र पूजन व निर्वाणकांड आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०९-७६ (१ से ७६) = ३३, कुल पे ७, जैदे.,
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(१६४११, ७४१६-२१).
१. पे. नाम. सिद्धचक्र महापूजन विधान, पृ. ७७अ - ९३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है.
प्रा.मा.गु. सं., प+ग, आदि (-) अंति: (१) देव प्रसीद परमेश्वर, (२) जैनधर्मोस्तु मंगलं, (पू. वि. नैवेद्यपूजा अपूर्ण से है.) २. पे. नाम निर्वाणकांड भाषा, पृ. ९३आ ९७आ, संपूर्ण.
निर्वाणकांड-पद्यानुवाद, जै. क. भैया, पुहिं, पद्य, वि. १७४१, आदि: वीतराग वंदी सदा भाव; अंतिः भैया० गुणमाल,
गाथा - २२.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
३. पे. नाम. पचीस दोहा, पृ. ९७आ-१०१अ, संपूर्ण. साधारणजिन पंचवीस दोहा, मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: सीस धार कर नमत हू; अंति: नवल० जै जै जै जिनदेव,
दोहा-२६. ४. पे. नाम, निर्वाणकांड, पृ. १०१आ-१०५आ, संपूर्ण..
प्रा., पद्य, आदि: अट्ठावयम्मि उसहो; अंति: पछा सो लहइ णिव्वाणं, गाथा-२७. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १०६अ-१०७अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: तुम दुरस दिलदरसिक; अंति: वगसि नजर महरि दी करो, पद-८. ६. पे. नाम. औपदेशिक रेखता, पृ. १०७अ-१०८अ, संपूर्ण.
श्राव. जिनबगस, पुहिं., पद्य, आदि: कुल करम को सुधरम; अंति: जिनबकसि कै तुज दीयौ, गाथा-८. ७. पे. नाम. एकीभाव स्तोत्र भाषा, पृ. १०८अ-१०९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. एकीभाव स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. भूधरदास, मा.गु., पद्य, आदि: नमो आदि आदीश जिन नमो; अंति: (-),
(पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ६५२०१. (+) दशार्णभद्र सज्झाय,स्तवन,दूहा व मंत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८३८, श्रेष्ठ, पृ. ३०-१२(३ से १४)=१८, कुल पे. १३,
ले.स्थल. बिकानेर, प्रले. मु. चंद्रभाण ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१६.५४११, ११x१८). १.पे. नाम. दशार्णभद्रराजर्षि चौपाई, पृ. १अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मु. कुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७८६, आदि: सारद समरु मनरली समरु; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-५ तक है.) २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १५अ-१८अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १८३८, फाल्गुन शुक्ल, ११, __मंगलवार, ले.स्थल. विकानेर, प्रले. मु. चंद्रभाण ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. महावीरजिन चौढालियो, मु. उदेसींघ, मा.गु., पद्य, वि. १७६८, आदि: (-); अंति: उदैसिंघ० दसमी भास ए, ढाल-४,
गाथा-३४, (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से है.) ३. पे. नाम. नेमिनाथजी सिलोक, पृ. १८आ-२१अ, संपूर्ण. नेमराजिमती श्लोक, मु. कुशलविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: समरु सारद नै गुणपत; अंति: आस्या सफली
हुवे सारी, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) ४. पे. नाम. दूहा, पृ. २१आ, संपूर्ण.
दूहा संग्रह*, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: काछलपटा करकःग बोलै; अंति: खर के काण न होय. ५. पे. नाम. सीतलनाथ स्तवन, पृ. २२अ-२३अ, संपूर्ण, वि. १८३८, चैत्र कृष्ण, ४.
शीतलजिन स्तवन, मु. श्रीसार, पुहिं., पद्य, आदि: सीतलजिणवरराया तुम्ह; अंति: श्रीसार० सुखकारी हो, गाथा-१८. ६. पे. नाम. नेमीनाथ स्तवन, पृ. २३आ-२७अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. उदयसिंघ ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७६५, आदि: श्रीनेमीसर नित नमु; अंति: उदयसिंघ० प्रमाण ए,
ढाल-४, गाथा-२८. ७. पे. नाम. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, पृ. २७अ, संपूर्ण.
आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी रे पंच; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१
गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) ८. पे. नाम. कालभैरव मंत्र, पृ. २७आ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो कालाभेरु कपीला; अंति: (१)मंत्र इस्वरोवाचा, (२)प्रेत नासे झाडो दिजै. ९. पे. नाम. चामुंडा मंत्र विधि, पृ. २७आ, संपूर्ण.
सं., गद्य, आदि: ॐ नमो ॐ चामुंडे हन; अंति: (१)हुं फुट् स्वाहा, (२)होमीजै ज्वर चढे. १०. पे. नाम. सर्पखीलण मंत्र विधि, पृ. २८अ-२८आ, संपूर्ण. सर्पखिलण मंत्र विधि, पुहि., गद्य, आदि: ॐ नमो आदेस गुरु कुं; अंति: (१)दुहाई तख बासक की आइ, (२)नांखीये
साप खीलीजै.
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११. पे नाम, सर्पखिलण मंत्र, पृ. २८आ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदिः ॐ नमो खीलणी भई, अंतिः छुटै वासिक सो परिवार.
१२. पे नाम, सूर्य मंत्र, पृ. २८आ, संपूर्ण
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(+)
"
सूर्य मंत्र विधि, मा.गु. सं. गद्य, आदिः ॐ नमो श्रीसूरजदेवाय, अंति: (१) कुरु कुरु स्वाहा, ( २ ) सूरज सुप्रष्ण हूवे. १३. पे. नाम. महाकाली मंत्र, पृ. २८आ- ३० अ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदिः ॐ नमो आदेस गुरु कुः; अंति: मंत्रौ इस्वरो बाचा.
६५२०२. (#) श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संपूर्ण, वि. १९२२, भाद्रपद शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ८, ले. स्थल. पाटण, पठ. श्राव, सरुपचंद खेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अंत में "आ परत बाइ जोड़ती मासीनी प्रत प्रमाणे लखी छे ते खरी छे" लिखा है., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २१.५x९, ११X३५-४०).
६५२०४.
श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि०, अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. छ काय विचार, चौवीसी नाम, देव नरकादि बोल व १२ भावनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३१-५ (१ से ४,२०) = २६, कुल पे ७०, प्र. वि. संशोधित, जै. (१७४१०.५, १४४२५).
3
१. पे. नाम. छ काय विचार, पृ. ५अ- ६अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
६ कायजीव उत्पत्ति आयुष्यादि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पृथीवीकाय धातु माटी अंतिः प्रमुखनौ आ० वर्षनी, संपूर्ण.
२. पे. नाम. १४ समूर्च्छिम मनुष्य उत्पत्ति स्थान, पृ. ६अ ६आ, संपूर्ण
जीवउत्पत्ति के १४ स्थान, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि उच्चारेसु वा कहता, अंतिः ठिकांणा रे विष.
-
"
३. पे. नाम. १७ प्रकार संयम नाम, पृ. ६आ, संपूर्ण.
संयम के १७ भेद नाम, मा.गु, गद्य, आदिः पृथिवीकाय संजमे १: अंतिः संजमे १६ कायसंजमे १७. ४. पे. नाम. १७ भेदी पूजा नाम, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम श्रीजिनप्रतिमा, अंति: (१) भावै १०८ काव्य करी, (२) ते सूखी हूसी सही सही.. ५. पे. नाम. २३ पदवी विचार-श्रीपन्नवणासूत्रे, पृ. ७अ ८अ संपूर्ण.
२३ पदवी विचार पत्रवणासूत्रगत, मा.गु. गद्य, आदि: ए पदवी भव्य विना न अंतिः वसुदेव एवं १५ रहित.
६. पे. नाम. १८ पाप स्थानक नाम, पृ. ८अ , संपूर्ण.
१८ पापस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: प्राणातिपातिक कहता, अंतिः कुदेव कुधर्मनी सेवा.
७. पे. नाम. ८ कर्मस्थिती विचार, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण,
८ कर्मस्थिति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणीय प्रकृति, अंति: मझलेणी धारणी सही सही.
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
९. पे. नाम. ११ उपदेश बोल, पृ. ९आ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: १ विधवादोपदेस २; अंति: एवं ११ बोलश्री.
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८. पे. नाम. नवतत्व विचार, पृ. ८आ- ९आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है. नवतत्त्व २७६ भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व चेतनालक्षण, अंति: मिश्र पदार्थ जाणिवा.
मा.गु., गद्य, आदि: केंद्र सुक्ष्म १; अंति: अनंतभागो गओ मुक्खं.
"
११. पे नाम, आगमनामादिविचार संग्रह * पृ. १० आ-११अ संपूर्ण.
"
१०. पे. नाम. नवतत्त्व २७६ भेद विचार, पृ. ९आ - १०आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है.
मा.गु., प्रा., सं., पद्य, आदिः आचारांग १ सूयगडांग २; अंति: परिमाण जाणवौ.
१२. पे. नाम. ५६३ जीव भेद, पृ. ११अ १२अ संपूर्ण
५६३ जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नारकी ना भेद; अंति: ५६३ उ० जीवना कह्या.
१३. पे. नाम. इरियावही १८२४१२० भेद, पृ. १२अ, संपूर्ण.
संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि अभिया १ बत्तिया २ अंतिः थया एवं० जाण्या जोइये.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६ १४. पे. नाम. धर्मविमुख जीव ५ भेद, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण..
मा.गु., गद्य, आदि: अहंकारीजीव १ अपणपो; अंति: हीयै धारवो सही सही. १५. पे. नाम. धर्माभिमुख जीव ८ भेद, पृ. १२आ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: हासोन करै १; अंति: करै७ सत्यभक्ता ८. १६. पे. नाम. १२ भावना विचार, पृ. १२आ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: पहिली अनित्य भावना १; अंति: चंद्रकेवलीई भावी. १७. पे. नाम. १० यतिधर्म नाम, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण.
१० यतिधर्म भेद, मा.गु., गद्य, आदि: खंती कहतां क्षमानौ; अंति: वृत ब्रमनो पालणौ१०. १८. पे. नाम. आसीविष ४ प्रकार, पृ. १३अ, संपूर्ण.
४ जाति आसीविष, मा.गु., गद्य, आदि: वीछू जाति विषै; अंति: समयक्षेत्र प्रमाणे ४. १९. पे. नाम. ज्योतिष मान, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: समभूतलथी प्रथ्वीथी; अंति: ४५ लाख जोजन मध्ये छै. २०. पे. नाम. ९८ बोल अल्पबहुत्व, पृ. १३आ-१५आ, संपूर्ण.
९८ बोल-जीवअल्पबहुत्व विषयक, मा.गु., गद्य, आदि: सर्वथी घोडा गरभज; अंति: विसेषा अधिक जाणि ९८. २१. पे. नाम. २४ दंडक विचार, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण.
२४ दंडक बोल संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: १ प्रथम डंडक नारकीनौ; अंति: आगति गतिनौ धारिवो. २२. पे. नाम. ५ प्रकार अचित्त वायु नाम-भगवतीसूत्रे, पृ. १६आ, संपूर्ण.
भगवतीसूत्र-बोलसंग्रह *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २३. पे. नाम. ६ पर्याप्ति नाम, पृ. १६आ, संपूर्ण.
६जीवपर्याप्ति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: आहारपर्याप्ति शरीर: अंति: पर्याप्ति ६ जाणिवी. २४. पे. नाम. लेश्या नाम, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण.
६लेश्या विचार, मा.गु., गद्य, आदि: कृष्णलेस्या १ सर्व; अंति: लेस्या सर्वसुद्ध ६. २५. पे. नाम. १० श्रावक वर्णन, पृ. १७अ, संपूर्ण.
१० श्रावक विचार-उपासकदशांगसूत्रगत, मा.गु., गद्य, आदि: श्रावक अणंदसिवानंदा; अंति: श्रावस्तीनगरे १०. २६. पे. नाम. प्राण १० विगत, पृ. १७आ, संपूर्ण.
१० प्राण विचार, मा.गु., गद्य, आदि: १ श्रोतेंद्री क० कान; अंति: काय ३ ए भोगी जाणवा. २७. पे. नाम. १० संज्ञा नाम, पृ. १७आ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: आहारसंज्ञा१ भयसंज्ञा; अंति: जोइजै विविकी सही. २८. पे. नाम. ११ गणधर नाम, पृ. १८अ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: इंद्रभूति १; अंति: मेतार्य १० प्रभास ११. २९. पे. नाम. १२ व्रत नाम, पृ. १८अ, संपूर्ण.
मागु., गद्य, आदि: थूलप्राणातिपातवेरमण; अंति: १२ अतिथिसंभागवत. ३०. पे. नाम. श्रावक देवसिकआलोयणासूत्र-तपागच्छीय, पृ. १८अ, संपूर्ण.
संबद्ध, मा.गु., पद्य, आदि: सातलाख पृथिकीकाय ७; अंति: होइ तो मिच्छामिदुकडं. ३१. पे. नाम. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक , पृ. १८अ, संपूर्ण.
प्रा.,सं., पद्य, आदि: न सा जाई न सा जोणी; अंति: सव्वे जीवा अणंतसो. ३२.पे. नाम. वीस विहरमाण नाम, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है. विहरमान २० जिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसीमधरस्वामीजी१; अंति: (१)अजितवीर्यतीर्थंकर२०, (२)विद्यामाण
विचरै छै. ३३. पे. नाम. १२ देवलोक नाम, पृ. १८आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मा.गु., गद्य, आदि: सुधर्मदेवलोकर ईसान; अंति: ११ अचुतदेवलोक १२. ३४. पे. नाम. नव ग्रैवेयक नाम, पृ. १८आ, संपूर्ण.
९ ग्रैवेयक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सुदंसण १ सुपडवद्धे २; अंति: प्रीतीकारे८ आईच्चे ९. ३५. पे. नाम. ५ अनुत्तरविमान नाम, पृ. १९अ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: विजय १ वैजयंत २ जयंत; अंति: सर्वार्थसिद्धविमान ५. ३६. पे. नाम. भुवनपती नाम, पृ. १९अ, संपूर्ण.
१० भुवनपतीदेव नाम, मा.गु., गद्य, आदि: असुरनिकाय १ नागनिकाय; अंति: स्तनितकुमार १०. ३७. पे. नाम. व्यंतर नाम, पृ. १९अ, संपूर्ण.
८ व्यंतरदेव नाम, मा.गु., गद्य, आदि: पिसाच १ भूत २ यक्षः; अंति: ६ महोरग ७ गंधर्व ८. ३८. पे. नाम. ज्योतिषी नाम, पृ. १९अ, संपूर्ण.
५ ज्योतिषी नाम, मा.गु., गद्य, आदि: चंद्रमा १ सूर्य २; अंति: (-). ३९. पे. नाम. ५ प्रकार देव, पृ. १९अ, संपूर्ण.
५ देव बोल, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीदेवाधिदेव १ धर्म; अंति: भावदेव४ भवियदव्वदेव५. ४०. पे. नाम. ७ नारकी नाम, पृ. १९अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है.
७ नरक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: धम्मा श्वंसा र सेला ३; अंति: मघा ६ माघवती ७. ४१. पे. नाम. ७ गोत्र, पृ. १९अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है.
७ नरक गोत्र, मा.गु., गद्य, आदि: रत्नप्रभा १; अंति: तमतमप्रभा ७. ४२. पे. नाम. नारकी आयुमान विचार, पृ. १९अ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: १ सागरोपम ३ सागरोपम; अंति: सागरोपम०३३ सागरोपम. ४३. पे. नाम. ८ वाणव्यंतर नाम, पृ. १९अ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: अणपनी १ पणपनी २; अंति: कोहंडक ७ पतंग ८. ४४. पे. नाम. चवद पूर्व नाम, पृ. १९अ, संपूर्ण.
१४ पूर्व नाम, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: श्रीउत्पादपूर्व १; अंति: प्रत्याख्यान १४. ४५. पे. नाम. देवलोक विचार संग्रह, पृ. १९आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है., पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से
अधिक बार जुडी हुई है.
मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ग्रैवेयक विवरण अपूर्ण तक है.) ४६. पे. नाम. १४७ भांगा कोष्टक, पृ. २१अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है.
बोल संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४७. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. २१अ, संपूर्ण.
प्रा.,सं., पद्य, आदिः येषां न विद्या न तपो; अंति: ये पुरुषा वहति, श्लोक-२. ४८. पे. नाम. १७ भक्ष भोजन नाम, पृ. २१अ, संपूर्ण.
१८ भक्ष्य भोजन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सिरटा १ फल २ घूघरउ ३; अंति: नाम १८ मो पांणी. ४९. पे. नाम. देहांग उपमा, पृ. २१अ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: निलाड चंद्र नासिका; अंति: भाहरा भमर आंख हरण. ५०. पे. नाम. वीस बोले तीर्थंकरगोत्रबंध, पृ. २१आ-२२अ, संपूर्ण.
२० बोल-तीर्थंकर नामकर्मबंध के, मा.गु., गद्य, आदि: पैले बोले अरहंतना; अंति: तीर्थंकरगोत्र बांधै. ५१. पे. नाम. अतीतचौवीसी जिन नाम, पृ. २२अ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: केवलन्यांनी १; अंति: संप्रतिनाथ २४. ५२. पे. नाम. २४ जिन नाम-वर्त्तमान, पृ. २२अ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: रिषभ १ अजित २ संभव ३; अंति: माहावीर २४.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
२२३ ५३. पे. नाम. २४ जिन विवरण-अनागत, पृ. २२आ-२३अ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: पदमनाभ १ श्रेणकरो; अंति: आ० ८४ला०पु० वरसनो. ५४. पे. नाम. वीस वैरमाण, पृ. २३आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है.
विहरमान २० जिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सीमंधर१ युगमंधर२; अंति: देवजसा १९ अजतवीरज२०. ५५. पे. नाम. देवलोक विचार, पृ. २३आ-२५अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है.
देवलोक विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: सौधरमा देवलोकरै विषै; अंति: वंदवा नि मत्य आवै. ५६. पे. नाम. अढीद्वीपे ज्योतिष विवरण, पृ. २५अ, संपूर्ण.. ___मा.गु., गद्य, आदि: जंबूधीप मै २ चंद्रमा; अंति: संख्या पुरीजै. ५७. पे. नाम. पैतालीसलाख मनुषषेत्र संख्या, पृ. २५अ-२५आ, संपूर्ण.
४५ लाख योजन मनुष्यक्षेत्र संख्यामान, मा.गु., गद्य, आदि: मेरपर्वतथी हरकाणी; अंति: विचै मैर छै. ५८. पे. नाम. नरकप्रीथीवी नाम, पृ. २५आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है.
७ नरक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: धम्मा १वंसा २ सेला ३; अंति: मघा ६ मघवति ७. ५९. पे. नाम. नरकप्रीथवी गोत्र, पृ. २५आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है.
७ नरक गोत्र, मा.गु., गद्य, आदि: रत्नप्रभा १; अंति: तमतमप्रभा ७. ६०. पे. नाम. नारकी विचार, पृ. २५आ-२६आ, संपूर्ण.
नरक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: रतनप्रभारै विषे; अंति: बीजो धर्म उदे नावै. ६१. पे. नाम. भुवनपती विचार, पृ. २६आ, संपूर्ण.
भवनपतीदेव देह आयु भवनादि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: भवनपती देवतानउ; अंति: देवतानी सिक्ति छै. ६२. पे. नाम. वंतर विचार, पृ. २६आ, संपूर्ण.
व्यंतरदेव विचार, मा.गु., गद्य, आदि: वंतर देवतानो उ० आ०; अंति: देवतानो देहमान ७हाथ. ६३. पे. नाम. ज्योतिषी विचार, पृ. २६आ-२७अ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: चंद्रमानौ आउखो; अंति: एकलाख जोजनरो रुप करै. ६४. पे. नाम. ४ गरणा विगत, पृ. २७अ, संपूर्ण.
रा., गद्य, आदि: १ धरतीरो गलणौ ईरज्या; अंति: संसाररो गलणो कपडो ४. ६५. पे. नाम. छ बोल नारकीथी आयामें, पृ. २७अ, संपूर्ण.
नरकगति आगत जीव ६ लक्षण, मा.गु., गद्य, आदि: दीरघ कषाय १ अमेलता २; अंति: ४ रागघणो ५ खाज घणी ६. ६६. पे. नाम. छ बोल तीर्यंचरा आयामै, पृ. २७अ, संपूर्ण..
तीर्यंचगति आगत जीव६ लक्षण, मा.गु., गद्य, आदि: लोभघणो १ विसेष लालच; अंति: खुधाघणी ५ आलस घणौ ६. ६७. पे. नाम. पंच बोल मनखसुं आयामै, पृ. २७अ, संपूर्ण.
मनुष्यगति आगत जीव ५ लक्षण, मा.गु., गद्य, आदि: नीर्लोभी १ विनैवंत २; अंति: क्षिमा घणी ५. ६८. पे. नाम. च्यार बोल देवतारा आयामें, पृ. २७अ, संपूर्ण.
देव गति आगत जीव ५ लक्षण, मा.गु., गद्य, आदि: दातार १ मधुरवाणी २; अंति: तपसी ४ वीतराग पूजा ५. ६९. पे. नाम. धर्मरुप जहाज, पृ. २७अ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: जमरूपी जिहाज व्रतरुप; अंति: वायरो ४ धरमरुपी धजा. ७०. पे. नाम. क्षेत्रसमास विचार, पृ. २७आ-३१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम जंबूदीप छै; अंति: (-), (पू.वि. बारा नदी के नाम तक है.) ६५२०५. (#) जादव रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१५.५४११, १०x१५).
नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सारद पाय प्रणमी करी; अंति: पुन्य० नेमिजिणंद कै, गाथा-६८. ६५२०६. (+) चंदनबाळानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८६७, पौष कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्र.वि. संशोधित., जैदे.,
(१६४१०.५, ११x१९-२१).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चंदनबालासती सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: कोसंबीनगरी पधारिया; अंति: सती सहस्र परिवार,
गाथा-४२. ६५२०७. महावीर गौतम संवाद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. सुहाई, प्रले. श्राव. जोधमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक नहीं है., जैदे., (१५.५४१०.५, २३-२५४१०-१५).
गणधरवाद, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: वरदै तूं वरदायनी; अंति: रसिकराज इण विधि भणै, गाथा-११८. ६५२०८. नेमिजिन पद साधारणजिन स्तवन व पार्श्वजिन आरति आदि, अपूर्ण, वि. १८७५, आषाढ़ कृष्ण, ७, श्रेष्ठ,
पृ. ८-१(१)७, कुल पे. ८, जैदे., (१५.५४११, ९-१०x१३-१४). १.पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है.
पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: समुद्रविजै के लाला, गाथा-४. २. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
मु. हर्षचंद, पुहि., पद्य, आदि: राजुल तेरे बिहा मैं; अंति: कबी हरखचंद भया, गाथा-३. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: मुज्ये है चाव दरस का; अंति: तो क्या होइगा, गाथा-५. ४. पे. नाम. नेमराजिमती रेकता, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण.
मु. चंदविजय, पुहि., पद्य, आदि: राजुल पुकारे नेम; अंति: कहैचंद्र०चरन चीत धरी, गाथा-५. ५. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: असी लगदी मुजै नेम की: अंति: राजा राम चरन सेवै. गाथा-३. ६. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण.
मु. चंद, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभु के दरसण पाये; अंति: चंद० चार बेद जस गाये, गाथा-४. ७. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण.
उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: बोल रे प्रीतम बोली; अंति: उदैरतन० भवनो बाटो रे, गाथा-३. ८.पे. नाम. पार्श्वजिन आरती, पृ. ७अ-८अ, संपूर्ण.
य. अगरचंद, पुहिं., पद्य, आदि: आरती कर श्रीपास; अंति: जिवित सफल भया उनका, गाथा-४. ६५२०९. अध्यात्मबत्तीसी, पद्मावती आराधना, जिननाम व गणधर नामादि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-२(१०,१४)=१३,
कुल पे. ६, जैदे., (१४.५४११.५, १३-१४४१३-१६). १.पे. नाम. अध्यात्मबत्तीसी, पृ. १अ-९आ, पूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. मु. बालचंद मुनि, पुहिं., पद्य, वि. १६८५, आदि: अजर अमर परमेश्वरकुं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३३ का अंतिम कुछ
पाठांश नहीं हैं.) २.पे. नाम. पद्मावती आराधना, पृ. ११अ-१३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पद्मावती; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३४ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. विहरमान २० जिन नाम, पृ. १५अ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: सीमंधरजी १ जुगमंधरजी; अंति: (१)अमितवीर्जजी २०, (२)त्रिकाल वंदणा होज्यो. ४. पे. नाम. २४ जिन नाम-वर्त्तमान, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: ऋषभदेवजी १ अजितनाथजी; अंति: (१)महावीरजी २४, (२)त्रिकाल वंदणा होज्यो. ५. पे. नाम. ११ गणधर नाम, पृ. १५आ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: इंद्रभूति १; अंति: मेतार्य १० प्रभास ११. ६. पे. नाम. १६ सती नाम, पृ. १५आ, संपूर्ण.
___ मा.गु.,सं., पद्य, आदि: ब्राह्मीजी१ चंदनबाला; अंति: सुंदरीजी१६. ६५२१०. (+) समकित विचार, संपूर्ण, वि. १९२७, भाद्रपद शुक्ल, १२, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ.७, प्र.वि. संशोधित., दे., (१७४१०,
१३४२८).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
६७ सम्यक्त्व भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सास्वादान समकित १; अंति: ४ चउथा जाणवा २. ६५२११. (+) साधुवंदना व शत्रुजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे.,
(१७.५४११.५, ११-१२४२०-२४). १.पे. नाम. साधु वंदना, पृ. १अ-११अ, संपूर्ण, वि. १७३९, वैशाख शुक्ल, ३, रविवार, प्रले. मु. प्रेमसुंदर (गुरु पं.लब्धिमेरु
गणि), प्र.ले.पु. सामान्य. साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रिसहजिण पमुह चउवीस; अंति: मनि आणंदई संथुआ, ढाल-७,
गाथा-९३. २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: आपो आपो ने लाल मोंघा; अंति: सेवा कामगवी दोहती, गाथा-६. ६५२१२. (+) साधुपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१५.५४११.५, ९x१९-२०).
साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ६५२१३. (+#) १५ तिथरी थुइयो, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०-११(१ से ११)=९, कुल पे. १७, प्रले. पं. गणेशविजय,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक दोनों तरफ हैं., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१६.५४११, १२-१४४१८-२१). १.पे. नाम. प्रतिपदा स्तुति, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. एकमतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: एक मिथ्यात असंयम; अंति: नयविमल० होवे लीलाजी,
गाथा-४. २. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बीजदिन धर्मनु बीज; अंति: नयविमल कवि इम कहई, गाथा-४. ३. पे. नाम. त्रीजदिन स्तुति, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. तृतीयातिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेयांस जिनवर शिव; अंति: नय० होज्यो अतिय घणी,
गाथा-४. ४. पे. नाम. चतुर्थीतिथि स्तुति, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सर्वारथसिद्धथी चवी ए; अंति: नय धरी नेह नीहालतो, गाथा-४. ५. पे. नाम. पंचमीतिथि स्तुति, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: धर्म जिणंद परमपद; अंति: नयविमल० विघन हरेवी, गाथा-४. ६. पे. नाम. षष्टी स्तुति, पृ. १४आ-१५अ, संपूर्ण.
छट्टतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेम जिनेसर ले; अंति: नयविमल० प्रीति धरो, गाथा-४. ७. पे. नाम. सप्तमीतिथि स्तुति, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चंद्रप्रभजिन ज्ञान; अंति: लीला नयविमल गुणवंत, गाथा-४. ८. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. १५आ-१६आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अभिनंदन जिनवर परमानं; अंति: नयविमल कहे शीश, गाथा-४. ९. पे. नाम. नवमीतिथि स्तुति, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुव्रति सुविधी सुमति; अंति: नयविमल० अधिकी पांमे, गाथा-४. १०. पे. नाम. दशमीतिथि स्तुति, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अर नेमि जिणंदा टालि; अंति: नयविमल० नामे सुखाला, गाथा-४. ११. पे. नाम. इग्यारसरी थुई, पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण.
एकादशीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, सं., पद्य, आदि: मल्लिदेवने जन्म संयम; अंति: ज्ञानात्मनां सूरीणां, श्लोक-४. १२. पे. नाम. द्वादशी स्तुति, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण.
बारसतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: जे बारसने ज्ञान; अति: पाखे न कीमे पतीज, गाथा-४.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
१३. पे. नाम. त्रयोदशीतिथि स्तुति, पृ. १८आ- १९आ. संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः पदम जिनेशर शिव पद अंतिः नयविमल दुख हरणी, गाथा-४. १४. पे. नाम. चतुर्दशीतिथि स्तुति, पृ. १९-२० अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु, पद्य, आदि वासपुज्य जिनेसर शिव अंतिः नयविमल सदा सुख अखंडा, गाथा ४. १५. पे नाम पूर्णिमासी स्तुति, पृ. २०अ, संपूर्ण
पूर्णिमातिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जिनपति संजम लै संयम, अंति: नयविमल० नाम तो गुणी, गाथा- ४.
१६. पे. नाम. अमावस्यातिथि स्तुति, पृ. २०आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः अमावस्या तो थइ उजली अंतिः नयविमल० नित्य नित्य, गाथा-४. १७. पे. नाम श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, पृ. २०आ, संपूर्ण.
लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा. सं., पद्य, आदि ऋद्धं शक्रे मुखे चंद, अंतिः मेव जिन गुणोत्तमः, श्लोक १. ६५२१४. १४ नियम,जिनकुशलसूरि पद व स्तवन सज्झायादि, अपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. १५९- १४५(८,१० से १५३)=१४, कुल पे. ६, प्र. वि. अंत में विषयानुक्रम दिया है., जैदे. (१६४१०.५, ९-११४१७-२० ).
१. पे नाम. आवक १४ नियम गाथा सह विवरण, पृ. १अ ५अ, संपूर्ण.
श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सच्चित्त दव्व विगई; अंति: दिसि न्हाण भत्तेसु, गाथा - १. श्रावक १४ नियम गाथा- विवरण, रा., गद्य, आदि: तीहां प्रथम सचित्त, अंति: राखै तोलसै तथा मापसे. २. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. ५अ - ६आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: कैसें कैसे अवसर में, अंति: तेरा वडा भरोसा भारी, गाथा-४.
३. पे. नाम जिनकुशलसूरि पद, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण.
रा., पद्य, आदि: हु तो मोही रह्योजी; अंति: ओलगैजी रंगघणे राजिंद, गाथा-४.
४. पे. नाम जिनकुशलसूरि पद, पृ. ७अ ७आ, संपूर्ण
अंतिः लालचंद० सरण मोहि दीजे, गाथा-३. अंतिम पत्र नहीं है.
मु. लालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: कुसल गुरु देख के ५. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू. वि. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु, पद्य, वि. १८वी, आदि: गिरुआ रे गुण तुम अंति: (-) (पू. वि. गाथा १ अपूर्ण तक है.)
६. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. ९अ- ९आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.
मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ से ११ अपूर्ण तक है.)
६५२१५. (+) सेत्रुंज रास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( १६.५X११, १०-१३X२०-२५).
शत्रुंजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, बि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी, अंतिः समयसुंदर० आणंद थाय, ढाल ६, गाथा- १२१.
६५२१६. (+) लंपकपचास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६-१ (३) = ५, प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( १६ ११.५, ९४२०). लंपकपचास, मु. जिनदास, पुहिं, पद्य, आदि देव सही अरिहंथ है; अंतिः जणदास०मति वको सच कोई, गाथा- ५०, (पू. वि. गाथा - १६ अपूर्ण से २६ अपूर्ण तक नहीं है.)
६५२१७ (+) स्नात्रपूजा सविधि, पर्वतिथि स्तवन व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १८-१० (२ से ५,१० से १५) =८, कुल पे. १०. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फेल गयी है, दे. (१६×११, ७-१०×१०-१५).
१. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन- लघु, पृ. १अ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमीतप तुमे करो रे, अंतिः (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. मात्र गाथा - १ लिखी है.)
२. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: डुंगर ठंडो रे डुंगर, अंति: (-), (पू. वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६ ३. पे. नाम. सुपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (१)कांतिविजय० मे साबास, (२)कांति० जिणेसर सांभलो, गाथा-४,
(पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) ४. पे. नाम. महाभद्रजिन स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण. ___ मु. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विहरमान अढारमा रे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र
गाथा-१ लिखी है.) ५. पे. नाम. प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, पृ. ६अ, संपूर्ण. मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: राज छोडी रलीयामणोरे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र
गाथा-१ लिखी है.) ६. पे. नाम. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह , उ.,पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (१)ॐ नमः सिहारा०, (२)काली माहाकाली तीन; अंति:
झाड माथे आग बले. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन, पृ. ७अ, संपूर्ण. उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: स्या माटे साहीबजी; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२
अपूर्ण तक लिखी है.) ८.पे. नाम. स्नात्रपूजा विधिसहित, पृ. ८अ-९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चोतिसे अतिसय जुओ वचन; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ अपूर्ण तक है.) ९. पे. नाम. बीजतिथि सज्झाय, पृ. १६अ-१७आ, संपूर्ण.
मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीज कहे भवि जीवने रे; अंति: लब्धीविजय० विनोद रे, गाथा-८. १०. पे. नाम. एकादशीतिथि सज्झाय, पृ. १८अ, संपूर्ण. उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: आज एकादसी रे नणदल; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
गाथा-२ तक लिखी है.) ६५२१८. (+#) दानशीलतपभावना संवाद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, प्रले. मु. उभयचंद्र गणि; पठ. श्रावि. राधा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (१६४११, १६४२१-२४). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: (-); अंति: समयसुंद०सुप्रसादो रे,
ढाल-४, गाथा-१०३. ६५२१९. (+) सीमंधरस्वामी स्तवन व जंबूस्वामि गईली, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक न होने से १ से
११ अनुक्रम से लिया है., संशोधित., दे., (१६.५४१०, ११४२५-२६). १. पे. नाम. सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, पृ. १अ-११आ, संपूर्ण, वि. १९१२, श्रावण कृष्ण, २, रविवार,
ले.स्थल. राजनगर, प्रले. श्राव. दुलीचंद; पठ. श्रावि. बेनाबाई, प्र.ले.प. सामान्य... सीमंधरजिन विनती स्तवन-१२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: स्वामी सीमंधर
विनती; अंति: जसविजय वाचक जय करो, ढाल-११, गाथा-१२५. २. पे. नाम. जंबूस्वामी गहुंली, पृ. ११आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: शासननायक वीरनो गनधर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ६५२२०. स्तवन, विनती व पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८, कुल पे. ७, जैदे., (१५४१०,७४१७-१८). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.
मु. अजयराज, पुहिं., पद्य, आदि: रागद्वेष दोय मोहसदन; अंति: अजैराज० गुण गाया है, गाथा-११. २. पे. नाम. चौवीस तीर्थंकर वीनती, पृ. २अ-४अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन-कल्याणकभूमिगर्भित, मु. अजयराज, मा.गु., पद्य, आदि: रे मन पांच परम गुरु; अंति: मन जाणै
हमारी वंदणा, गाथा-११.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
मु. राम, पुहिं., पद्य, आदि: टुक निजर महिर भी; अंति: राम० आवागमण निवारणा, गाथा-४. ४. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण.
पंडित. टोडरमल, पुहिं., पद्य, आदि: उठत तेरो मुख देख; अंति: टोडर० अनाथ के फंदा, गाथा-४. ५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: घडी दिन आज की येही; अंति: नवल आणंद ही पायो, गाथा-४. ६. पे. नाम. सुमतिजिन पद, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.
मु. हर्षचंद, पुहि., पद्य, आदि: प्रभुजी जो तुम तारक; अंति: हरखचंद गहै की नीवइये, गाथा-४. ७. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ६आ-८अ, संपूर्ण.
मु. दीपसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय आदि जिनंद आज; अंति: मागु दीपसोभाग दीयोजी, गाथा-१५. ६५२२१. सत्तरभेदी पूजा विधिसहित, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३१, दे., (१६४१०.५, ८x१६-१७).
१७ भेदी पूजा, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६१८, आदि: भाव भले भगवंतनी पूजा; अंति: (१)साधुकीरत० सुख
साजै, (२)नव अंगी पूजा करै, ढाल-१७. ६५२२२. ऋषिमंडल स्तोत्र, गौतमस्वामि रास व पर्वतिथि स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४६-११(२३ से ३३)=३५,
कुल पे. ५, दे., (१५४११.५, ४-११x१३-२०). १.पे. नाम. ऋषिमंडल स्तोत्र सह टबार्थव बालावबोध, पृ. १अ-२२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यताक्षरसंलक्ष्य; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक १००
अपूर्ण तक है.) ऋषिमंडल स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आदिको अक्षर अंतको; अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच में प्रतिलेखक ने
टबार्थ नहीं लिखा है.) ऋषिमंडल स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. क्वचित्त बालावबोध लिखा है.) २.पे. नाम. गौतमस्वामिरास, पृ. ३४अ-४१आ, संपूर्ण.. गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: नितनित
मंगल उदय करो, गाथा-४७. ३. पे. नाम. पंचमीपर्व बृहत् स्तवन, पृ. ४१आ-४४आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी सद्गुरु पाय; अंति:
समयसुंदर० प्रशंसियो, ढाल-३, गाथा-२५. ४. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, पृ. ४४आ-४५अ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमीतप तुमे करोरे; अंति: ज्ञाननो पंचमो भेदरे, गाथा-५. ५. पे. नाम. मौनइग्यारस स्तवन-बृहत्, पृ. ४५अ-४६अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समवसरण बेठा भगवंत; अंति:
समयसुंदर०करो ध्यावडी, गाथा-१३. ६५२२३. चौवीसजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., (१७.५४११, ११४२१-२४).
२४ जिन स्तवन, पुहिं., पद्य, वि. १८१५, आदि: आया तै जग भरम के; अंति: चेतन आपा चेते, गाथा-२५. ६५२२४. कामदेवकुमार रास, संपूर्ण, वि. १६५०, भाद्रपद शुक्ल, ८, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १२, ले.स्थल. मदहिमदावाद(महेम, पठ. मु. देवसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१६.५४११.५, १८-२०४३२-३८). कामदेवकुमार रास, मु. सोमचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: पहिलउ प्रणमिसि अनुक; अंति: प्रसन्न श्रीअरिहंत ए,
गाथा-३१४. ६५२२५. (+) दानशीलतपभावना प्रभाति, पद व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६२-५२(१ से ५२)=१०, कुल पे. १३,
प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१७४१०.५, १२४२०-२२).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
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१. पे. नाम. महावीरजिन वृद्धि स्तवन, पृ. ५३अ-५४अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं.
महावीरजिन विनती स्तवन- जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: समय ० त्रिभुवनतिलो, गाथा - १९, ( पू. वि. गाथा - ८ अपूर्ण से है.)
२. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन- अमरसरपुरमंडन, पृ. ५४-५५आ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि रा., पद्य, आदि मोरा साहेब हो; अंतिः समयसुंदर० जनमन मोह ए. गाथा-१५.
३. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन प्र. ५५आ- ५७अ संपूर्ण.
3
५. पे नाम, शीतलजिन स्तवन- रिणीयपुरमंडन, पृ. ५८-५८आ, संपूर्ण.
उपा. रुघपति, मा.गु., पद्य, आदि रिणीयपुरे रलियामणो अंतिः हो रुघपति नितमेव गाथा- ११.
६. पे. नाम. दानशीलतपभावना प्रभाति, पृ. ५८-५९अ संपूर्ण.
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मु. गंग, मा.गु., पद्य, आदि पासजिणेसर पूरण आसा, अंतिः श्रीसंघने सानिधि करो, गाथा- १३.
४. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तवन, पृ. ५७अ - ५८ अ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदिः समवसरण बैठा भगवंत अंति: कहे कही द्याहडी, गाथा १३.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: रे जीव जिनध्रम कीजीय; अंतिः समयसुंदर० फल त्यांह, गाथा - ६. ७. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ५९अ ५९आ, संपूर्ण
मु. जिनराज, पु,ि पद्म, आदिः आज सकल मंगल मिले आज अंतिः जिनराज० अनुभोरस मान, गाथा-५.
८. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तवन, पृ. ५९आ-६० आ. संपूर्ण.
मु. पुण्यउदय, मा.गु, पद्य, आदिः प्रह उठी गौतम प्रणमी, अंतिः समयः प्रगट्यो परधान, गाथा ८.
९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, पृ. ६० - ६१अ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदिः आणी मनसुध आसता देव, अंति: समयसुंदर० सुख भरपुर,
गाथा- ७.
१०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, पृ. ६१अ - ६१आ, संपूर्ण.
आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंखेसरपास जिणेसर, अंतिः जिनचंद० रिपु जीपतो, गाथा ५.
११. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६९ आ-६२अ, संपूर्ण.
२२९
मु. लाल, मा.गु., पद्य, आदि: त्रेवीसमा जिन ताहरो; अंति: साहिबा एम पयंपै लाल, गाथा- ७. १२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, पृ. ६२अ - ६२आ, संपूर्ण.
मु. दीपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुणज्यौ गोडीजी; अंति: दीपचद० कीजै एतो कांम, गाथा-५. १३. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, पृ. ६२आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मु. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, वि. १७२२, आदि: अमल कमल जिम धवल, अंति: (-), (पू. वि. गाथा ३ अपूर्ण तक है.) ६५२२६. (४) ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (१६४११,
११-१३x२१-२२).
८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शिवसुख कारण उपदेशी; अंति: वाचक जश वयणेजी, बाल-८, गाधा - ७६.
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६५२२७. (+) पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, संपूर्ण, वि. १८६९ आश्विन शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल सिरोहीनगर,
प्रले. मु. देवेंद्रविजय (गुरु मु. केशरविजय, विजयआणंदसूरिगच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्री ऋषभदेवसाहीबजी सुप्रसादात्., संशोधित., जैदे., (१६X११, १०x१९).
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, बि. १६६७, आदि: वदन अनोपम चंदलो गोडि, अंति: विनयकुशल० सुख लहे, गाथा - ४१.
६५२२८. (+४) स्तवनचीवीसी, संपूर्ण वि. १७८९ वैशाख शुक्ल, ६, बुधवार, मध्यम, पृ. १४, प्र. वि. संशोधित कुल ग्रं. २५०, अक्षर पड गये हैं, अक्षर मिट गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( १७.५X११, १२x२३).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
स्तवनचौवीसी, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ओलगडी आदिनाथनी जो; अंति: रामविजय जयसिरी लहि,
स्तवन- २४.
६५२२९. भवदेवनागीला सज्झाय, स्तवन व पदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६- १ (१) = ५, कुल पे. १४, दे., (१७१०.५, १२x२७-३०).
१. पे. नाम. शांतरस सज्झाय, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण.
पंन्या. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांतरस शांतरस पीजो; अंति: रूपविजय० सुर श्रीकार, गाथा-५. २. पे. नाम. अध्यात्म स्तवन- आनंदघन कृत, पृ. २आ, संपूर्ण.
आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, हिं., पद्य, आदि: अध्यातम प्रीत लागी, अंति: रहेत आनंदघन पास, गाथा-५. ३. पे नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण,
मा.गु., पद्य, आदि: राखी लो जी राज सयाए; अंतिः लीजो ये हो जी राज, गाथा-६.
४. पे. नाम, नागिलाभवदेव सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भवदेव भाइ घरे आवीया; अंति: समयसुंदर० ध्यान रे, गाथा-६.
५. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र पद, पृ. ४अ, संपूर्ण.
मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: तुम जपो मंत्र नवकार, अंति: जिनदास० चरणो की पासे.
६. पे नाम. कुमतिसुमति पद, पृ. ४अ संपूर्ण.
मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: सरक जा कुमति नार; अंति: जिनदास० कु पाय लागे, पद- १.
७. पे. नाम आदिजिन लावणी, पृ. ४अ, संपूर्ण.
मु. जिनदास, पु,ि पद्य, आदि सीस नित्य नमः अंतिः जिनदास० से नमावे, गाथा- १.
८. पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ पद, पृ. ४आ, संपूर्ण.
मु. नवलदास, पुहिं., पद्य, आदि: शीखरगिरी पुजन जाना ह; अंति: नवल० हरख वधाना है, गाथा-४.
९. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण.
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मु. चिदानंद, पुहिं., पद्य, आदि समज पडी मोये समज पडी, अंति: चिदानंद० मन मांहे खरी, गाथा- ३. १०. पे. नाम, साधारणजिन पद, पृ. ४आ ५अ संपूर्ण.
मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि लगी तोरे दरश की अंतिः रूपचंद पीयावर प्यारे, गाथा-३.
११. पे. नाम. शिखामण लावणी, पृ. ५अ - ५आ, संपूर्ण.
औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं, पद्य, आदि: कब देखूं जिनवर देव, अंतिः जिनदास सुनो जिनवाणी, गाथा-४, १२. पे. नाम. नेमनाथ लावणी, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
राजिमतीसती विलाप लावणी, मु. जिनदास, पुहिं, पच, आदि दे गया दगा दिलदार, अंतिः जिनदास० बेठ विनती गाई. गाथा ४.
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१३. पे. नाम. रावण पद, पृ. ६अ - ६आ, संपूर्ण.
मु. जवाहर ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: रावण कुं समझावै रानी, अंति: जवेर० एसो मत ठानी, गाथा ५. १४. पे. नाम. आदिजिन डोडीयुं, पृ. ६आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, मु. चंदकुशल, पुहिं., पद्य, आदि: देखोने आदेसर साहेब, अंति: कुसल गुण गाया हे रे, गाथा-४. ६५२३०. स्नात्रपूजा, संपूर्ण वि. १९६८, आश्विन कृष्ण, २, रविवार, मध्यम, पृ. १०, ले. स्थल. हुरडा, प्रले. मु. चंद्रकुसल,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्र - ७ के बाद की लिखावट में भिन्नता है. दे. (१७४१२, ६५१२).
स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चोतिसे अतिसय जुओ वचन, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, दाल-८ अपूर्ण तक लिखा है.)
६५२३१.
(+) शत्रुजयतीर्थ रास, स्तवन व पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, कुल पे. ९, ले. स्थल. पालीताणा, प्रले. मु. कुसालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (१६.५४१०.५, ११४२१-२५). १. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: आज वधाइ मारे रंग; अंति: श्रीजीनचंद सवाइरे, गाथा-५. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: मारें ऋषभजिणंदस; अंति: देवचंद्र० सुखवास के, गाथा-६. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
मु. ज्ञान, पुहिं., पद्य, आदि: सोई अचरीज मन भायो; अंति: ज्ञान० संसार भरमायो, गाथा-५. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-प्रभाति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण
मु. लाभउदय, मा.गु., पद्य, आदि: उठोने मोरा आतमराम; अंति: लाभउदय सिद्धवधाई रे, गाथा-५. ५. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चालो सखी जिन वंदन जइ; अंति: देवचंद्र पद नीको रे, गाथा-७. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण.
मु. अनूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जीवन माहरा त्रेवीसमा; अंति: पसाये पभणे अनोपमचंद, गाथा-९. ७. पे. नाम. आदिजिन स्तवन-धूलेवामंडन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण, वि. १९६५, पौष कृष्ण, ११, पे.वि. श्रीआदेसर भगवानरी
आदिजिन स्तवन-धुलेवामंडन, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: धूलेवगढ श्रीऋषभ; अंति: जिनहर्ष० पुरो आस,
गाथा-७. ८. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ रास, पृ. ४आ-१३आ, संपूर्ण, वि. १९६५, पौष शुक्ल, १. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंति: समयसुंदर० आणंद थाय, ढाल-६,
गाथा-११२. ९. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण.
मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर साहिबा; अंति: जिनहरख० सुख लाल रे, गाथा-५. ६५२३२. (+#) ज्ञानपच्चीसी, सरस्वतीदेवी छंद, स्तवन व औषधादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. ७,
प्र.वि. पत्रांक न होने से १ से ११ अनुमानित लिया है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१६.५४११.५, ७-१०४१४-२०). १. पे. नाम. ज्ञानपच्चीसी, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण, प्रले. श्राव. जेठमल, प्र.ले.पु. सामान्य.
जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुरनर तिरजच जग जोनि; अंति: विनारसी० करन के हेतु, गाथा-२५. २. पे. नाम. पचक्खाण सूत्र-विधि, पृ. ४अ, संपूर्ण.
जैनविधि संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. औपदेशिक छंद, पृ. ४आ-६अ, संपूर्ण.
पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., पद्य, आदि: भगति भारती चरण नमेव; अंति: लखमीकीलोल धरज्यो चोल, गाथा-१६. ४. पे. नाम. सरस्वतीदेवी छंद, पृ. ६आ-९अ, संपूर्ण.
आ. दयासूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बुध विमल करणी विबुध; अंति: दयासूरि० नमेवी जगपति, गाथा-९. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, प्र. ९अ-१०अ, संपूर्ण.
मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रात उठी ने मेरा; अंति: जिनचंद०सीद्ध वधाई रे, गाथा-६. ६.पे. नाम. मल्लिजिन स्तवन, पृ. १०अ-११आ, संपूर्ण.
मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मल्लिजिन एह सब सोभा; अंति: आनंदघन पद पावें हो, गाथा-११. ७. पे. नाम. औषधवैद्यक संग्रह, पृ. ११आ, संपूर्ण.
औषधवैद्यक संग्रह पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: आरणीया चांणा केरला; अंति: रोग गुलम दोष मीटे. ६५२३३. (+) स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५-१(१)=३४, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित.,
जैदे., (११.५४११, ८x१६).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्तवन-१
गाथा-५ से स्तवन-२१ गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ६५२३४. (+) गोकलचंदजी कृत चौबीसी, संपूर्ण, वि. १८२५, आश्विन कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१५.५४११, ९x१८-१९). स्तवनचौवीसी, मु. गुणविलासजी, पुहिं., पद्य, वि. १७५७, आदि: अब मोहि तारौ दीनदयाल; अंति: गुणविलास०
मल्हाए. ६५२३५. (+-) प्रश्नोत्तर संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. ऋषिराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र १x६, कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-अशुद्ध पाठ., दे., (१७४१०.५, ११-१३४१७-२४).
आगमिक प्रश्नोत्तर संग्रह, मु. ऋषिराज, पुहिं., गद्य, आदि: सूधर्मास्वामी के; अंति: मनुषभव सुफल होय. ६५२३६. (+) आलोयणा छत्तीसी, गौतमस्वामी रास, स्तवन, पद व सज्झायादि संग्रह, त्रुटक, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६१-२५(१ से
४,२६ से २८,४३ से ६०)=३६, कुल पे. २४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१६४१०.५, १०x१५-२०). १.पे. नाम. चतुर्विंशति तीर्थंकराणामंतराल देहमान आयुस्थितिकथन वृद्धि स्तवनं, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र
नहीं हैं. २४ जिन स्तवन-देहमान आयुस्थितिकथनादिगर्भित, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: (-);
अंति: धरमसीमुनि इम भणै, ढाल-५, गाथा-२९, (पू.वि. अंतिम गाथा अपूर्ण मात्र है.) २. पे. नाम. आलोयणाछत्रीसी, पृ. ५अ-८आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६९८, आदि: पाप आलोए तुंआपणा; अंति: समय० आलोयण उच्छाह,
गाथा-३६. ३. पे. नाम. गौतमस्वामी गीत, पृ. ८-९आ, संपूर्ण.
गौतमस्वामी स्तवन, मु. पुण्यउदय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी गौतम प्रणमी; अंति: समय० प्रगट्यो परधान, गाथा-८. ४. पे. नाम. आदिजिन स्तवन- आलोयणा गर्भित, पृ. ९आ-१३अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-वृद्ध, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: करजोडी इम वीन; अंति: राजसुमुद्र० सुभ दिनै,
गाथा-२७. ५. पे. नाम. सीमंधरस्वामी बृहत्स्तवन, पृ. १३अ-१५अ, संपूर्ण.
सीमंधरजिन स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: चांदलीया संदेसो जिन; अंति: जिनहर्ष सुजाण रे, गाथा-१५. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १५अ-१६अ, संपूर्ण.
मु. लाल, मा.गु., पद्य, आदि: त्रेवीसमा जिन ताहरो; अंति: साहिबा एम पयंपैलाल, गाथा-७. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. १६अ-१७अ, संपूर्ण.
मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: मुझ मननोरंजणहार जिण; अंति: जिनहरख० प्राण आधार, गाथा-७. ८. पे. नाम. स्थूलिभद्र पद, पृ. १७अ-१८अ, संपूर्ण.
श्राव. नीबा शाह, मा.गु., पद्य, आदि: चतुर चौमासो पडिकमी ह; अंति: नमै नीबो साह पाय रे, गाथा-४. ९.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. १८अ-१९अ, संपूर्ण.
मु. नैणसी, मा.गु., पद्य, आदि: गुण गिरूवा गौडी धणी; अंति: नैणसी० जससील सुसेवकि, गाथा-१०. १०. पे. नाम. ऐवंताकुवर वैराग्य सज्झाय, पृ. १९अ-२१आ, संपूर्ण. अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद वांदीने; अंति: लिखमीरतनना पाया,
गाथा-१०. ११. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २१आ, संपूर्ण.
मु. जिनराज, पुहि., पद्य, आदि: कहा अग्यानी जीव कुं; अंति: जिनराज० सहज मिटावै, गाथा-३. १२. पे. नाम. ९८ भेद अल्पबहुत्वविचारगर्भित स्तवन, पृ. २१आ-२५आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
२३३ ९८ भेद जीव अल्पबहुत्वविचारगर्भित स्तवन, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७७२, आदि: वीरजिणेसर वंदिये;
___ अंति: धर्म० सतरबहुत्तरै, गाथा-२२. १३. पे. नाम. गुरुगुण सज्झाय, पृ. २९अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: ताकै आखै अवदात रे, गाथा-५, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) १४. पे. नाम. आदिजिन पद-शत्रुजयतीर्थमंडण, पृ. २९अ-२९आ, संपूर्ण.
ग. महिमराज, मा.गु., पद्य, आदि: जाग जगत मुगट मणि; अंति: महिमराजकाटि दुखफंदा, गाथा-३. १५. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २९आ-३०अ, संपूर्ण.
मु. धर्मसी, पुहि., पद्य, आदि: मेरे मन मानी साहिब; अंति: धर्मसी० कनक करि लेवा, गाथा-३. १६. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ३०अ-३०आ, संपूर्ण...
मु. मालदास, पुहिं., पद्य, आदि: भलै मुख देख्यौ; अंति: भव भव हुं तुम्ह चेरो, गाथा-३. १७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३०आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: अजहुं न चेतै तुं; अंति: छुटै दुख जनमरा रे, गाथा-३. १८. पे. नाम. २४ दंडक गतिआगति विचार वृद्ध स्तवन, पृ. ३०आ-३३आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-२४ दंडक गतिआगतिविचारगर्भित, ग. धर्मसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: आदीसर हो सोवन काया;
अंति: धर्मसुं० सुरतरु तोलै, ढाल-२, गाथा-२६. १९. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. ३३आ-३६अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि: जागिरे सुग्यांनी जीव; अंति: रतनसमुद्र० सुख जेम, गाथा-१९. २०. पे. नाम. फलोधी श्रीपार्श्व लघु स्तवन, पृ. ३६अ-३७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, उपा. रामविजय पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १८२३, आदि: भलै दीठौ फलौदी गांम; अंति:
रामविजै० ए सफल घडी, गाथा-७. २१. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३७आ-३८अ, संपूर्ण.
आ. जिनलाभसूरि, पुहि., पद्य, आदि: पूजौ पासजिणेसर; अंति: जिनलाभ० उसकै री माइ, गाथा-५. २२. पे. नाम. वरकाणापार्श्वनाथ लघु स्तवनं, पृ. ३८अ-३९अ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणा, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वरकाणा प्रभु राजीया; अंति: जिनभक्ति०
मनोरथमाल, गाथा-७. २३. पे. नाम. दशार्णभद्रराजर्षि सज्झाय, पृ. ३९अ-४२आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७५७, आदि: वीरजिणेसर वंदियै; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-६ अपूर्ण तक
२४. पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. ६१अ-६१आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.
उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से ९ अपूर्ण तक है.) ६५२३७. (#) स्त्रिलक्षण, जिनबल विचार, जिनमाता स्वप्न व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८४६, मध्यम, पृ. १५१-१३५(१ से
१३५)=१६, कुल पे. १२, ले.स्थल. माधोराजपुरा, प्रले. चीमनराम छावडा; पठ. श्राव. लक्ष्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. *अंत में प्रतिलेखक की पुत्री की जन्मपत्री संक्षिप्त माहिती के साथ लिखी गई है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१५४१०.५, १३-१५४२०-२२). १. पे. नाम, संखणी लक्षण, पृ. १३६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
स्त्री लक्षण, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-). २.पे. नाम. जिनमाता १६ स्वप्न विचार, पृ. १३६अ-१३६आ, संपूर्ण.
रा., गद्य, आदि: (१)अथ जिनवर भगवान को, (२)हस्तीदर्शणः पुत्र; अंति: (अपठनीय). ३. पे. नाम. जिनबल विचार, पृ. १३७अ, संपूर्ण.
जिनबलविचार गाथा, मु. जयमल, मा.गु., पद्य, आदि: नर बारा बल व्रषभ; अंति: जमल० अंगुली अतुल बल, का.-१.
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२३४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४.पे. नाम. औपदेशिक कवित्त संग्रह, पृ. १३७अ-१३७आ, संपूर्ण.
औपदेशिक कवित्त संग्रह*, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: मृग वनमाह चरंत डरे; अंति: जिस रखणहारो तुं हई, का.-२. ५. पे. नाम. २४ जिन कवित्त, पृ. १३७आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: आदि रिषव अरिहंत अजित; अंति: (अपठनीय), गाथा-३. ६. पे. नाम. लघु सहस्र नाम, पृ. १३८अ-१४१आ, संपूर्ण.
जिनसहस्रनाम लघुस्तोत्र, सं., पद्य, आदि: नमस्त्रैलोक्यनाथाय; अंति: मुच्यते नात्र संशयः, श्लोक-४२. ७. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १४१आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति पत्रांक-१३९आ में लिखी गई है.
मा.गु., पद्य, आदि: चोसठि चौथाई भावनासू; अंति: बार मेरे मन भायो है, गाथा-१. ८. पे. नाम. श्रीपाल विनती स्तुति, पृ. १४१आ-१४३अ, संपूर्ण, पे.वि. किनारी खंडित होने से हुंडी स्थित पुष्पिका नष्ट है.
मा.गु., पद्य, आदि: ॐ नम सिध मम धरि संतः; अंति: सम्यक्तिमुक्ति बास, गाथा-२८. ९. पे. नाम. २४ जिन छप्पय, पृ. १४३आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: रिषबदेव रिषभदेव बीर; अंति: जिनेंद्र भवताप हरि, का.-१. १०. पे. नाम. नवमंगल, पृ. १४३आ-१५१अ, संपूर्ण, वि. १८४६, आश्विन शुक्ल, १५, ले.स्थल. माधोराजपुरा, प्रले. चीमनराम
छावडा; पठ. श्राव. लक्ष्मण, प्र.ले.पु. सामान्य. नेमिजिन तपकल्याणक, मु. सुनंदलाल, मा.गु., पद्य, वि. १७४४, आदि: अजी गुरु गणधर देव; अंति: लाल मंगल
गाईया, ढाल-९, गाथा-३८. ११. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १५१अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: मेरो अब कैसे निकसन; अंति: करो गहि कै बाहिया. गाथा-५. १२. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १५१अ-१५१आ, संपूर्ण.
___ मा.गु., पद्य, आदि: प्रभूजी म्हारी अरज; अंति: उर धारियेजी जिनराज, गाथा-६. ६५२३८. (#) महावीरजिन गर्भवास विचार व १४ स्वप्न स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, ले.स्थल. डुग्गला,
प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१५.५४१२, १६x२६). १.पे. नाम. महावीरिजिन चरित्र-गर्भवास विचार, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: हवे श्रीवर्द्धमान; अति: वर्द्धमान०जन्म थयु. २.पे. नाम. १४ स्वप्न स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम एरावण दीठो नयण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ अपूर्ण तक
लिखा है.) ६५२४०. गौतमस्वामी रास, नेमराजिमती बारमासो, सज्झाय, स्तवन व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम,
पृ. ३७-१८(२,१० से २६)=१९, कुल पे. १३, दे., (१४.५४१०.५, १०x१६-२१). १.पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. विनीतसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७८८, आदि: सहु नरनारी मिल आवो; अंति: पायो विनितसागर मुदा, गाथा-७. २.पे. नाम. नेमराजिमती बारमासो, पृ. ३अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है.
मु. लालविनोद, पुहिं., पद्य, आदिः (-); अंति: लालविनोदीने गाए, गाथा-२६, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) ३.पे. नाम. स्तवनचौवीसी, पृ. ८अ-९आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगि वाल हौ; अंति: (-), (पू.वि. अभिनंदनजिन
स्तवन गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ४. पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. २७अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है.
आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: विजयभद्र० विस्तरइंए, गाथा-४९, (पू.वि. गाथा-४७ अपूर्ण से है.) ५.पे. नाम. आदिजिन बृहत्स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, पृ. २७अ-३१अ, संपूर्ण.
मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पणमवि सयल जिणंद पाय; अंति: जिम पामो भवपार ए, गाथा-२२.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
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६. पे. नाम. गौतमस्वामी सज्झाय, पृ. ३१अ - ३२अ, संपूर्ण.
गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीर जिणेसर केरोसीस, अंति: लावण्यसमय० संपति कोडी, गाथा - ९.
७. पे. नाम. १६ सती सज्झाय, पृ. ३२-३३आ, संपूर्ण.
मु. प्रेमराज, पुहिं., पद्य, आदि: सील सुरंगी भांतिसु, अंति: प्रेमराज० सदा पदमावती, गाथा-७.
८. पे. नाम. सामायिक सज्झाय, पृ. ३३-३४अ संपूर्ण.
मु. नेमसागर, मा.गु., पद्म, आदि: सामायिक मन सूर्धं करो; अंतिः विद्यासागरसीस० निसदीस, गाथा-५, ९. पे. नाम, महावीरजिन तप स्तवन, पृ. ३४-३५आ, संपूर्ण
मा.गु., पद्य, आदि गीतमस्वामीजी बुद्धि, अंति: सिवसंघ आपी सुख घणा, गावा- १०.
१०. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ३५-३६अ, संपूर्ण.
मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि बंछितपूरण आदि नमो अंतिः शांतिकुशल० सुख थयो, गाधा-५.
११. पे नाम, दानशीलतपभावना प्रभाति, पृ. ३६-३७२, संपूर्ण
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: रे जीव जिनधर्म, अंति: समयसुं० तणा फल लूंसै, गाथा-७. १२. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ३७अ-३७आ, संपूर्ण.
मु. भाव, पुहिं., पद्य, आदि: दरसण द्यो प्रभु रिषभ; अंतिः भाव० की टालो भव फेरा, गाथा- ८.
१३. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ३७आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पात्र नहीं हैं.
मु. साधुकीर्ति, पुहिं, पद्य, आदि देखो माइ आज रिषभ घर अंति (-) (पू. वि. मात्र प्रथम गाथा है.)
"
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(गुरु
६५२४१. (+) १७ भेदी पूजा, संपूर्ण, वि. १८८१, वैशाख शुक्ल, १५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले. स्थल. एवला, प्रले. मु. माणकचंद । मु. मलुकचंद, खरतरगच्छ), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (१६४११, १३-१५४२४-२५).
"
१७ भेदी पूजा, वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: अरीहं मुखकज वासनी, अंति: सकल० सकल चुणीओ रे,
ढाल - १७, गाथा - १०८.
६५२४२. (#) २४ जिन मातापिता, आयु, देहमान, पर्याय, शासनकाल, शासनदेव, संपदादि बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४७-१९ (१ से २५ से ८,३४ से ४६ ) -२८, ले. स्थल, बालोतरा, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे..
( १२.५x११.५, ११x१०-१५).
२४ जिन मातापिता, आयु, देहमान, पर्याय, शासनकाल, शासनदेव, संपदादि बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: म्हारी वंदणा, (पू. वि. चतुर्थजिन से २४वें जिन वर्णन तक बीच-बीच के पाठ हैं.)
६५२४३. (+) गौतमस्वामी रास व शत्रुंजयतीर्थ रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २१, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( १३X११, १२x१४).
१. पे. नाम गौतमस्वामी रास, पृ. १अ १०अ संपूर्ण.
उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्म, वि. १४१२, आदिः श्रीवीरजिणेसर चरणकमल, अंति: कुशल लछी लील करिंति,
गाथा ४९.
२. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ रास, पृ. १०अ २१आ, पूर्ण, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी, अंति: (-), (पू. वि. गाथा १०७ अपूर्ण तक
है.)
६५२४४. (+) उपदेशमाला, रूपकमाला, पार्श्वजिन स्तवनादि संग्रह, त्रुटक, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३११-२९७ (१ से २८४,२९६ से ३०८)=१४, कुल पे. ६, प्र. वि. संशोधित - पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अशुद्ध पाठ., जैदे., (१३.५X११, १३X२१). १. पे. नाम. पार्श्वजन्माभिषेक स्तवन, पृ. २८५ अ- २८८अ संपूर्ण.
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पार्श्वजिन स्तवन- पंचकल्याणक मु. पुण्यसागर, अप, पद्य, आदि: पणमिव पणपरमिट्ठपय; अंतिः पुण्यसागर० चिर
1
जयउ, ढाल -३, गाथा - १९.
२. पे. नाम, उपदेशमाला, पृ. २८८आ- २९९अ, संपूर्ण.
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२३६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
गाथा-३४ अपूर्ण तक लिखा है.) ३. पे. नाम. रूपकमाला-शीलविषये, पृ. २९२अ-२९४आ, संपूर्ण.
मु. पुण्यनंदि, मा.गु., पद्य, आदि: आदिजिणेसर आयसउ सरसति; अंति: पभणि श्रीपुण्यनंदि, गाथा-३२. ४. पे. नाम. जैन सामान्यकृति, पृ. २९५अ-२९५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
जैन सामान्यकृति*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ३०९अ, संपूर्ण.
मु. सुमति, सं., पद्य, आदि: शिरसि यस्य विभाति; अंति: सुमति० जिनेश्वरम्, गाथा-५. ६. पे. नाम. शाश्वताचैत्य जिनबिंबसंख्या कोष्टक, पृ. ३०९आ-३११आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "नंदीसरदीप प्रा ५२ बिंब ६४४८" पाठांश तक है.) ६५२४५. (+) आदिजिन स्तुति, महावीरजिन स्तवन व पार्श्वजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ५,
प्र.वि. धागा बांधने हेतु ऊपरी कोने में छिद किया हुआ है., संशोधित., जैदे., (१४४१०.५, १०x१०-१३). १. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. ज्ञानसार, पुहि., पद्य, आदि: नाभज्यु के नंदा ज्य; अंति: ग्यानसार० ही गेहरा, गाथा-६. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धितीर्थ, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण.
मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: बिछत फलदायेक स्वामि; अंति: उत्तम जिन गुण गाइये, गाथा-७. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-तिमरीपुरमंडन, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण.
मु. ज्ञानउदय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीतिमरिपूर पासजी; अंति: ग्यांनउदै० बंछैतकाज, गाथा-७. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, पृ. ४अ-५आ, संपूर्ण.
आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंखेसरपास जिणेसर; अंति: जिनचंद कर्मदल जीपता, गाथा-५. ५. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गीरवारे गुण तुमतणा; अंति: जिवनो प्राण आधारो रे,
गाथा-५. ६५२४६. (#) बुद्धिरास, प्रतिक्रमण विधि, स्तुति व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १७५८, श्रेष्ठ, पृ. ३०-१२(१ से १२)=१८, कुल
पे. ७, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१२.५४११, ११-१७४१०-१६)... १.पे. नाम. बुद्धिरास, पृ. १३अ-१७अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १७५८.
आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: शालिभद्रष्टलै किलेसतो, गाथा-६१, (पू.वि. गाथा-७ से है.) २.पे. नाम. देवसिय प्रतिक्रमण विधि-तपागच्छीय, प्र. १७आ-२२अ, संपूर्ण.. देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम सामायकविधि; अंति: मिच्छामिदुक्कडं
दीजै. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. २२अ, संपूर्ण.
__संबद्ध, सं., पद्य, आदि: विशाललोचनदलं; अंति: नौमि बुधैर्नमस्कृतम्, श्लोक-३. ४. पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. २२आ-२७आ, संपूर्ण, वि. १७५८, ले.स्थल. सोहीग्राम, प्रले. ग. प्रेमविजय गणि (गुरु
पं. सुखविजय); गुपि.पं. सुखविजय (गुरु पं. मेघविजय गणि); पं. मेघविजय गणि (गुरु पं. जयविजय गणि); पं. जयविजय गणि, प्र.ले.पु. मध्यम.
वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदेत्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. ५.पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. २७आ-२८अ, संपूर्ण.
मु. मेघविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिजिणेसरराय जस नामै; अंति: सेवक मेघ दीइं आसीस, गाथा-४. ६. पे. नाम. लघुशांति, पृ. २८अ-३०आ, संपूर्ण, पठ. श्राव. नाथा प्रेमजी, प्र.ले.पु. सामान्य.
आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: जैन जयति शासनम, श्लोक-१९.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६ ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-कल्हारा, पृ. ३०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरुचरणकमल नमी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ६५२४७. (+#) छंद, स्तवन, पद व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २१, कुल पे. १६, प्र.वि. अंत में कुछ गृह
सामग्री की सूची दी गई है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१३.५४११, १३४१६). १.पे. नाम. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण, वि. १७६६, आश्विन कृष्ण, १, ले.स्थल. पादू, प्रले. मु. राज (गुरु
वा. पुण्यराज); गुपि. वा. पुण्यराज, प्र.ले.पु. सामान्य. ___ उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती सुमति आपइं; अंति: कुशललाभ० गोडी धणी, गाथा-२२. २.पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. ५आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है.
प्रास्ताविक दोहा संग्रह*,मा.गु.,रा., पद्य, आदि: भागे मनै भगत किसी; अंति: धणी सूनो तोही गाम, गाथा-३. ३. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ भावना स्तवन, पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण.
शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रूडो पालीतणो गांम जो; अंति: भाणविजय गुण गाया जो. ४. पे. नाम. जैन मंत्र संग्रह-सामान्य, पृ. ७अ, संपूर्ण..
जैन मंत्र संग्रह-सामान्य , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ जइतु ॐ जतु ॐ जि; अंति: ही पास अक्षर जपतइ. ५. पे. नाम. धन्नाअणगार सज्झाय, पृ. ७अ-८अ, संपूर्ण.
मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवचने वयरागी हो; अंति: श्रीदेव० जय जयकार, गाथा-१३. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन हमची-गोडीजी, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण.
मु. लब्धिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पाटिणथी पारिकरइ; अंति: लबधि० सामीजीरी साखे, गाथा-१४. ७. पे. नाम. नेमजी गीत, पृ. ९अ-१०अ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: पेख पसू रथ वालीयो; अंति: ऋद्धिहर्ष० दातार रे,
गाथा-१३. ८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-परदेशीजीव, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण.
मु. राजसमुद्र, पुहि., पद्य, आदि: एक काया अरि कामिनी प; अंति: राजसमुद०संसार कै मित, गाथा-५. ९. पे. नाम. आलोयण, पृ. ११अ-१३अ, संपूर्ण, वि. १७६३, आश्विन शुक्ल, १, ले.स्थल. देवसूरी, प्रले. मु. राज (गुरु
वा. पुण्यराज); गुपि.वा. पुण्यराज, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. पावरेखा के बाहर दोहा लिखा है. शत्रुजयतीर्थ बृहत्स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बे करजोडी विनवू जी; अंति: समय० त्रिभुवन
तिलउ, गाथा-३१. १०. पे. नाम. कलियुग सज्झाय, पृ. १३आ, संपूर्ण, पे.वि. पाश्वरखा के बाहर दोहा लिखा है.
मु. कुशलधीर, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर हवइ मजूर वदे; अंति: कुशलधीर०युगै आयो इसो, गाथा-२. ११. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-भिनमाल, पृ. १४अ-१९अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-भीनमाल, मु. पुण्यकमल, मा.गु., पद्य, वि. १६६१, आदि: सरसितसामिण पाय वाणी; अंति:
पुण्यकमल भवभय हरो, गाथा-५३. १२. पे. नाम. घडपण सज्झाय, पृ. १९अ-२०अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: वडपण तु का आवीयो रे; अंति: जाणे रे तास विचार रे, गाथा-९. १३. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह** पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: रावण तणै कपाल; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., दूहा-१३ अपूर्ण तक लिखा है.) १४. पे. नाम. प्रेमचंद दोहा संग्रह, पृ. २०आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति पत्रांक ११अ-११आ की हूंडी में लिखी गई है.
क. प्रेमचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रेमा प्रेम दिखाल; अंति: प्रेमचंद नावै दाय, दोहा-४. १५. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. २०आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है. *
यह कृति पत्र-१२अ-१३आ व २०आ की हुंडी में लिखि गई है.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रास्ताविक दोहा संग्रह *, मा.गु.,रा., पद्य, आदि: दीठां ही के दिन हुआ; अंति: भारथो करण संयुत्तो, गाथा-८. १६. पे. नाम. औपदेशिक गूढो, पृ. २०आ, संपूर्ण..
दोहा संग्रह-गूढार्थगर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: गे गंजण गुरु तासु; अंति: कहिज्यो कारिज कोइ, गाथा-१. ६५२४८. (+) प्रतिक्रमणसूत्र, कल्लाणकंद व बीजतिथि स्तुति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३, कुल पे. ३, पठ. मु. गमना (गुरु
ग.खंतिविजय); प्रले. ग.खंतिविजय (गुरु पं. उत्तमविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (१२४१२, १२४१०-१३). १.पे. नाम. देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, पृ. १अ-३२आ, संपूर्ण, वि. १९२९, ज्येष्ठ शुक्ल, ६.
संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. २. पे. नाम. पंचतीर्थी स्तुति, पृ. ३३अ-३३आ, संपूर्ण.
कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्याणकंदं पढम जिणं; अंति: सुहायस्या अम सय पसथा, गाथा-४. ३. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. ३३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दन सकल मनोहर बीज; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम गाथा है.) ६५२४९. (+#) खीमाछत्तीसी, धर्मतत्वभास्कर, पद, स्तवन, व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ११,
प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२.५४११.५, १४-१७४३५-४३). १.पे. नाम. क्षमाछत्रीसी, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, वि. १९५६, आषाढ़ कृष्ण, १२, मंगलवार, ले.स्थल. अलवर, प्रले. नथुलाल,
प्र.ले.प. सामान्य, पे.वि. अंत में "सेठजी वींदावन वालानका थानक मै बरखा समै" ऐसा लिखा है
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदर जीव खीम्या गुण; अंति: समयसुंदर०संघ जगीस जी, गाथा-३६. २. पे. नाम. भरतजी महारज की ढाल, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. भरतचक्रवर्ती चौपाई, क. नंदलाल, मा.गु., पद्य, वि. १८९७, आदि: श्रीनगर अयुधाने विषै; अंति: कोई नंदलाल गुण
गाय, गाथा-१९. ३. पे. नाम. सोलसती प्रभाती ढाल, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आदेइ आदे जिनवर वंदू; अंति: उदैरतन० सुख संपदा
य,गाथा-१७. ४. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह **, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: संध्याकाले अहो राजन्; अंति: लगे वडा पीपला लग, श्लोक-४. ५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण.
मु. कृपाराम, पुहिं., पद्य, वि. १९४४, आदि: जिन की वाणी सुणज्यो; अंति: ए उपदेस सुणाया जी, गाथा-९. ६. पे. नाम. दसलक्षण ढाल, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
साधुलक्षण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: तारण तीरण जिहाज सम; अंति: जी पावे सिवपुर राज, गाथा-१२. ७. पे. नाम. सम्यक्त्व सज्झाय, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: देव नीरंजन गुर; अंति: रतनचंद० मुकतरमुणनै, गाथा-१३. ८. पे. नाम. साधारणजिन पद-साचादेव, पृ. ६अ, संपूर्ण.
मु. भागचंद, पुहिं., पद्य, आदि: बुधजन पक्षपात तज; अंति: भागचंद० है किन मै, गाथा-४. ९. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.
मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिनेश्वर साहिब; अंति: मोहन जय जयकार, गाथा-७. १०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति-चिंतामणी, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: अचिंत चिंतामणी; अंति: (१)काजी भणै० आपो जी सेव, (२)तिरोजी तुम सें पसाय, गाथा-७. ११. पे. नाम. धर्मतत्वभास्कर अध्याय-२०, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. धर्मतत्त्वभास्कर, श्राव. नारण हीराचंद अमदावादकर, पुहिं., गद्य, आदि: (-); अंति: गोतम नाम प्रत्यक्ष, प्रतिपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.
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२३९
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६ ६५२५०. (+#) काह्नजी कठ्यारा चउपाइ, संपूर्ण, वि. १९२९, मध्यम, पृ. ६, प्रले.सा. साहुजी आर्या; अन्य.सा. राजा आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२.५४११, २०४३९). कान्हडकठियारा रास-शीयलविशे, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: पारसनाथ प्रणमुंसदा; अंति:
मानसागर दिन वधते रंग, ढाल-९. ६५२५१. बार उपयोगारी नियमा भजना, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदे., (२२.५४११, २६४७-१४).
१२ उपयोग नियमा भजना के २०१ बोल, मा.गु., को., आदि: १ समच जीवमे नियमा ०; अंति: जीव जीम समच ०
१२०. ६५२५२. (#) दानाधिकारे प्रियमेलक तीर्थप्रबंधे स्यंघलकुमार चोपई, संपूर्ण, वि. १७६६, श्रावण कृष्ण, ६, रविवार, मध्यम,
पृ. १०, ले.स्थल. वरलु, प्रले. पं. न्यानराज (गुरु पं. उदैभाण); गुपि.पं. उदैभाण (गुरु पं. जसकुशल पंडित); पं. जसकुशल पंडित; अन्य. आ. जिनचंद्रसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४२१.५, ७X३२-३६). प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: प्रणमुंसद्गुर पाइ; अंति:
समैसुंदर० अधिक परमोद, ढाल-११, गाथा-२२०. ६५२५३. (#) सवैया संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८+१(३)=९, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.,
(२१.५४११.५, १०४२२). १.पे. नाम. साधुगुणवर्णन सवैया, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, पे.वि. पत्रांक-३ (द्वि.) अपर कृति पूर्ण हुई है.
मु. चंद्रभाण, मा.गु., पद्य, आदि: अकल बहोत ऊंडी साचौ; अंति: चंद्रभाणसुखसासता जी, गाथा-१७. २.पे. नाम. २४जिन सवैयापचीसी, पृ. ३अ-८अ, संपूर्ण, पे.वि. पत्रांक-३(द्वि.)असे जारी है. २४ जिन सवैयापच्चीसी, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५५, आदि: सुरतरु ज्यु समरु; अंति: ध्यान महासुख
खाण है, सवैया-२५. ३. पे. नाम. श्रावकलक्षण सवैया, पृ. ८अ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
___ मा.गु., पद्य, आदि: सरावग लछ एह सुणी सहु; अंति: (-), (पू.वि. सवैया-३ अपूर्ण तक है.) ६५२५४. (+#) भगवतीसूत्र पर्यायार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२४११, २४४४४-४७). भगवतीसूत्र-पर्यायार्थ, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: सिद्धांतने श्रुतने; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
सचित्त अचित्त विवरण अपूर्ण तक लिखा है.) । ६५२५५. (#) शिखर रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२४११, १०x१९-२२).
सम्मेतशिखरतीर्थ रास, मु. सत्यरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८८०, आदि: अजितादिक प्रभुपाय; अंति: सत्यरत्न० भवपार
उतार, ढाल-७, गाथा-१९६. ६५२५६. (+#) संधिवरास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४११, १५४४६). १.पे. नाम. आनंदश्रावक संधि, पृ. १अ-९आ, संपूर्ण, वि. १८५३, ज्येष्ठ शुक्ल, १४.
__मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि: वर्द्धमानजिनवर चरण; अंति: कहै पभणै मुनीश्रीसार, ढाल-१५, गाथा-२५२. २.पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ रास, पृ. ९आ-१३अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंति: समयसुंदर
आणंद थाय, ढाल-६, गाथा-११२. ६५२५७. (#) यक्षयक्षिणी आदि नाम व हनुमान अष्टक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल
गयी है, जैदे., (२२४११, ९४२२-२५). १.पे. नाम. २४जिन यक्ष नाम, पृ. १आ, संपूर्ण.
__ वर्तमान २४ जिनयक्ष नाम, सं., गद्य, आदि: श्रीगोमुख महायक्ष; अंति: २२ गोमेध२३ पार्श्व२४. २. पे. नाम. २४जिन यक्षिणी नाम, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
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२४ जिन यक्षिणी नाम, सं., गद्य, आदि: श्रीचक्रेश्वरी१ अतित; अंति: पद्मा० २३ अपराजिता २४.
३. पे नाम, २४ क्षेत्रपाल नाम, प्र. २अ २आ, संपूर्ण
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
सं., प+ग., आदि: (१) वंदेहं सन्मतिं देवं, (२) अजय विजय अपराजित मान, अंति: अजदंत चारदंत पोहपदंत.
४. पे. नाम. चोसटी योगिनी नाम, पृ. २आ- ३आ, संपूर्ण.
६४ योगिनी नाम, सं., प+ग, आदि: दिव्ययोगिनी सिद्धमहा अंति: (१) कपाली विषलांगुली (२)जयत्वं त्रिवशेश्वरी. ५. पे. नाम निर्वाणकांडभाषा, पृ. ३आ-५आ, संपूर्ण.
"
निर्वाणकांड-पद्यानुवाद, जै.क. भैया, पुहिं, पद्य, वि. १७४१, आदि: वीतराग बंदों सदा भाव; अंतिः निर्वाणकांड गुनमाल, गाथा २२.
६. पे, नाम, हनुमत् अष्टक, पृ. ५आ-६आ, अपूर्ण, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है.
सं., पद्य, आदि: शंशंशं सिद्धिनाथं, अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. फलश्रुति श्लोक अपूर्ण तक है.)
६५२५८. (+#) यादवकुलविस्तार वर्णन, संपूर्ण, वि. १९९वी, मध्यम, पृ. ८, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.,
(२१.५x११, १४४३९).
यादवकुलविस्तार वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: हवे यादव कुलनो संबंध, अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., नेमिनाथ को विवाह करने हेतु आग्रह प्रसंग तक है.)
६५२५९. (०) प्रदेशीराजाना बोल, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ५. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२x१२, १२x२८-३२).
परदेशीराजानां बोल, मु. रतन, मा.गु., पद्य, आदिः प्रदेसीराजाने चीत; अंति: जाने झेर दीधु छे आही, गाथा- ९३. ६५२६०. लेख व श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०- १ ( ७ ) = ९, कुल पे. २, प्र. वि. पत्रक्रमांक-१ से ६ व पत्र - १ से ३ है. जैदे. (२१.५x११.५, १५-१९४३४-३८).
इस तरह २ क्रम से है. क्रमबद्धता हेतु एक साथ गिना गया
"
"
१. पे. नाम. नेमिनाथ श्लोक, पृ. १अ- ६आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
नेमिजिन सलोक, मा.गु., पद्य, आदि: सरसत सीमरू सामण सुर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६८ तक है.) २. पे. नाम. चौवीसजिन लेख, पृ. ८अ - १०आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
२४ जिन लेखो, मा.गु., गद्य, आदि: पैहला वांदु श्रीऋषभ, अंति: (-), (पू. वि. विमलजिन लेख अपूर्ण तक है.) ६५२६१ (+) चौडालियो, पद व सज्झावादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ९-१ ( २ ) -८ कुल पे. ११,
प्र. वि. संशोधित - अशुद्ध पाठ., जैदे., (२२x११, १३X३१).
१. पे. नाम. वजसेठ को चौढाल्यो, पृ. १अ ४अ, अपूर्ण, पू. वि. बीच का एक पत्र नहीं है., वि. १८९७, माघ शुक्ल, १५,
ले. स्थल. रुपनगर, प्रले. श्रावि. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य.
वज्रसेठ चौडालियो, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु, पद्म, वि. १८६९, आदिः शील वडो संसार सुरतरु; अंतिः चंद्रभाणजी विचारो जी, ढाल - ४, (पू.वि. ढाल २ दोहा-४ अपूर्ण से डाल-३ गाथा- २ अपूर्ण तक नहीं है.)
२. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: गरीसी नदिया नाव; अंति: हार मोत निसाणी का डर, गाथा- ४.
३. पे. नाम, नेमिजिन बारहमासा, पृ. ४-५ अ, संपूर्ण
नेमराजिमती बारमासा, मा.गु, पद्म, आदिः हो सांमी क्युं आव्यु: अंतिः नेमजी मुगत सिधावै, गाथा १८.
४. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५अ ६आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: भव जीवो आदिजणेसर, अंति: कीज्यो चित निर्मली, गाथा - ३१.
५. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण.
मु. आसकरण, पुहिं., पद्य, वि. १८३८, आदिः साधुजीने वंदना नीत अंति: उत्तम साधुजी रो दास रे, गाथा - १०.
,
६. पे नाम समकितभाव पद, पृ. ७अ ७आ, संपूर्ण.
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सम्यक्त्वभाव पद, मा.गु., पद्य, आदि: दढ समगत नर० विना सम; अंतिः ते नर वीरला होय जी, गाथा- ७. ७. पे नाम, गुरुगुणपच्चीसी, पृ. ७आ ८अ संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
२४१
मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: गुरु अमृत जेम लागे; अंति: रायचंद० थकी बेगा काढो, गाथा- १७. ८. पे. नाम. श्रावकव्रत सज्झाय, पृ. ८अ -८आ, संपूर्ण.
रा., पद्य, आदि कोई करे छै बेला तेला, अंतिः छो दोरी काडी रात, गाथा- ११.
९. पे. नाम. नवकारमहामंत्र सज्झाय, पृ. ८आ- ९अ, संपूर्ण.
नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. दुर्गादास, रा., पद्य वि. १८३१, आदि: श्रीअरिहंत पेले पद ज, अंतिः दुरंगदास लगावो वाली, गाथा - १४.
१०. पे. नाम गौतमस्वामि स्तवन, पृ. ९अ ९आ, संपूर्ण
गौतमस्वामी स्तवन, मु. विजयकीर्ति, रा., पद्य, आदि: गौतमनाम जपो जी प्रभा; अंति: गोतमजीरा गुण गावो,
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गाथा - ११.
११. पे. नाम. प्रतिक्रमण सज्झाय, पृ. ९आ, संपूर्ण.
संबद्ध, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., पद्म, आदिः करि पडिकमणु भावसुं अंतिः धर्म० मुगततणो ए निधान, गाथा-५. ६५२६२. साधुगुणमाला, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १४-७ (४,६,९ से १३) ७. पू. वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.. दे... (२१X१२, ११x१७-२८).
साधुगुणमाला, श्राव. हरजसराय जैन, पुहिं., पद्य, वि. १८६४, आदि: श्रीलोकाधीस को; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १२-१४, ९८ २० २६ अपूर्ण से ४२ व ४५ के बाद नहीं है.)
(+)
६५२६३.
मृगापुत्रऋष संबंध, संपूर्ण, वि. १९१४, श्रावण शुक्ल, ४, शनिवार, मध्यम, पृ. १५, ले. स्थल. कुकसी, प्रले. श्राव. ओपा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२२x११.५, ८x२५).
मृगापुत्र चौपाई, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७९५, आदिः प्रतिख प्रणमुं वीर, अंतिः मोक्ष्यने नमै सूर, डाल- १०,
गाथा - १२८.
६५२६४. (+) विक्रमसेन चौपाई, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३५- १ (३४) = ३४, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२१.५४११.५, १९४३४-३७).
विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: सुखदाता संखेश्वरो, अंति: (-), (पू.वि. ढाल -५२, गाथा-८ अपूर्ण तक है.)
६५२६५. २०स्थानकादि तपगणना संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७- २ (१ से २) =५, कुल पे. ३, जैदे., (२२x११,
१५X३१).
१. पे. नाम. वीसस्थानक गुण, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
२० स्थानकतप गणणुं, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: गुणणो २००० लोगस्स २०, ( पू. वि. अंतिम अंश है.) २. पे नाम. १७० जिन नाम, पृ. ३आ-५आ, संपूर्ण.
१७० तीर्थंकर नाम, सं., गद्य, आदि: श्रीजयदेवनाथाय नमः; अंतिः श्रीबलभद्रनाथाय नमः.
३. पे नाम, मौनएकादशी गणणु, पृ. ५आ-७आ, संपूर्ण
मौनएकादशीपर्व गणणुं, सं. को, आदि श्रीमहायशसर्वज्ञाय अंति: आदिकचारित्राय नमः
६५२६६. (+) सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०-४ (३ से ६) =६ कुल पे. ५. प्र. वि. संशोधित. वे. (२१.५x११.५,
१२X३१).
१. पे. नाम. गरवनी सीझाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय गर्व, मु. खोडीदास, मा.गु, पद्य, आदि: गरवि लोको ग्यानि गुर: अंति: जसमलजी तपसीनी पासे, गाथा २१.
२. पे नाम, सत्यवावीशी, पृ. २आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मु. खोडीदास, मा.गु., पद्य, आदि: टेक म मूको रे धरीये; अंति: (-), (पू.वि. गाथा - ६ अपूर्ण तक है.)
३. पे. नाम. साधुशिखामण सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
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२४२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सज्झाय-साधु, मु. खोडीदास, मा.गु., पद्य, वि. १९७०, आदि: (-); अंति: धर्मने रंगे रंगोरे, गाथा-१८,
(पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) ४. पे. नाम. साधु वंदना, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण, ले.स्थल. नौतनपुर, प्रले. मु. प्रतापचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य.
मु. खोडीदास, मा.गु., पद्य, वि. १९७०, आदि: चालो साधुजीने वांदवा; अंति: खोडोजी० जय जयकार रे, गाथा-१५. ५.पे. नाम. चोविसजिन जिननो चौढालियो, पृ. ८आ-१०अ, संपूर्ण. २४ जिन चोढालिय,म. खोडीदास, मा.गु., पद्य, आदि: आदिजिणेशर नाभीनरेश; अंति: खोडीदास पुरो मुजआस,
ढाल-४.गाथा-२८. ६५२६७. (#) कार्तिकसेठ चौढालियो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२४११.५, १०४३३). कार्तिकसेठ चौढालियो, श्राव. उदयभाण, मा.गु., पद्य, वि. १८४६, आदि: श्रीआदिश्वर आदि नमु; अंति: उदयभाण०
पुर ए थीयो, ढाल-४. ६५२६८. (#) ऋषभ गीता, झाझरियामुनि सज्झाय व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-३(१,५ से ६)=६, कुल
पे. ६, ले.स्थल. गोतरकाग्राम, प्रले. मु. हीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४११.५, २४-९-१२). १. पे. नाम. ऋषभ गीता, पृ. २अ, संपूर्ण.
आदिजिन गीता, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्यारी रे जीवन जिन; अंति: रंगवि० लच्छि पायारे, गाथा-६. २. पे. नाम. सुमतिनाथ स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
सुमतिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुमतिजिणेसर स्वाम; अंति: रामविजय प्रभु नामथी, गाथा-१२. ३. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
शांतिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिनपती संती जिणंद; अंति: रामे० प्रभुपारीखो, गाथा-६. ४. पे. नाम. सुमतिनाथ स्तवन, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. सुमतिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वाल्हा सुमतिजिणेसर; अंति: रामविजय० वंछित काजा,
गाथा-७. ५. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मा.गु., पद्य, आदि: सुखकर समतासायरू आतम; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ६. पे. नाम. झांझरीयाऋषि सज्झाय, पृ. ७अ-९आ, संपूर्ण. झांझरियामुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: महियलिमांहि मुनिवरु; अंति: जी लब्धिविजय गुण गाय,
गाथा-३८. ६५२६९. (#) श्रावकना अतिचार आलोयणविधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४११, १०४२५-२९).
श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमिदंसणंमि य; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ६५२७०. (+) मुनिमालिका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. ग. अमृतकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२४११,११४३१). मुनिमालिका स्तवन, ग. चारित्रसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १६३६, आदि: ऋषभ प्रमुख जिन पय; अंति: सदा कल्याण
कल्याण, गाथा-३५. ६५२७१. चतुर्विंशतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, प्रले. मु. लीबजी ऋषि (गुरु मु. गोवा ऋषि); गुपि. मु. गोवा ऋषि (गुरु मु. महावजी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४११.५, १८४३७-४२). स्तवन चौवीसी, मु. गजमुख, मा.गु., पद्य, वि. १७०५, आदि: श्रीजिनजी नाभिकुल; अंति: गजमुख० विस्तारी रे,
स्तवन-२४.
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२४३
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
६५२७२. (०) कल्पसूत्र का व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७६, प्र. वि. अशुद्ध पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०.५x११.५, १०x२५).
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कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य परमानंद दायक, अंति: श्रीकल्याणपर मंगली कै. ६५२७३. सुसढकथा का टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७१, प्र. वि. टबार्थ अनुवाद शैली में लिपिबद्ध है., अक्षरों की
(#)
स्याही फैल गयी है, गु., ( २२x११.५, १०X३१-३५).
सुसढ चरित्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१) प्रणम्य श्रीमहावीरं, (२) जे परम आनंदमय सिद्ध, अंति: उद्धरी रचना कीधी. ६५२७४ (४) चंदनवालासती रास, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ११-५ (१ से २,४,८,१०) = ६ प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., दे., (२१x११.५, १४४२५-२९).
चंदनबालासती चौपाई, मु. ब्रह्म, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: चहुं गत तणां फंदतो, गाथा - १५९, (पू. वि. गाथा - ३२ अपूर्ण से गाथा- ४९, गाथा- ६२ अपूर्ण से गाथा- ११० अपूर्ण तक व गाथा - १२९ अपूर्ण से है.)
६५२७५. १५ तिथि ७ वार चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १०-५ (१,३,७ से ९) =५. पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. जैदे., (२१.५x११.५, १२x२५).
१५ तिथि ७ वार चरित्र, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीजतिथि सज्झाय से की गाथा-५ अपूर्ण, पंचमीतिथि सज्झाय गाथा-५ अपूर्ण से नवमीतिथि गाथा-९, चतुर्दशीतिथि गाथा-६ अपूर्ण से गाथा - १२ अपूर्ण तक है.)
६५२७६ (१) स्नात्रपूजा, संपूर्ण, वि. २०बी, श्रेष्ठ, पृ. ५. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे., (२०.५x१०.५, १०×१८-२२). स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (१) प्रथम अंग शुद्ध करी, (२) चोतिसे अतिसय जुओ वचन, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., जिनजन्मोत्सव पर शक्रेंद्रकृत स्तुति प्रसंग तक लिखा है.) ६५२७७. (*) तेरापंथी चर्चापत्र, पूर्ण, वि. १९७४, फाल्गुन कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. ६-१ (१) + १ (६) =६, ले. स्थल, नागौर,
प्रले. मु. प्रसन्नचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे., (२१X११.५, १५X४१-४५).
१३ पंथी चर्चापत्र, आ. प्रभाकरसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: शेष ५ अकारण छे, (पू.वि. "निर्जरा सावध के
निरवद्य छे" चर्चा से है.)
६५२७८. () औपदेशिक कवित्त संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १८-११ (१ से ७,१०,१२ से १३,१६) =७, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २१.५X१२, ११-१६x२३-२६).
औपदेशिक कवित्त संग्रह, पुहिं., मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कवित्त २६ से ३२ अपूर्ण, कवित्त ३६ अपूर्ण से ३९ अपूर्ण, कवित्त ४६ से ५२ तक है व कवित्त-५८ से ६७ अपूर्ण तक लिखा है.)
६५२७९ (+४) हरचंदराजा सतवादी चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २१ प्रले. मु. माहाचंद, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २१.५X११.५, १६x२७-३०).
हरिश्चंद्रराजा चौपाई, मु. प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि : आदिजिनेश्वरे पाय नमः अंतिः प्रेममुनी० भाख्यो एम, ढाल - ४७. ६५२८०. स्नात्रपूजा, संपूर्ण, वि. १९५२, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले. स्थल. भीनमाल, प्रले. श्राव. खुसाल,
पठ. मु. मेघजी, अन्य. मु. मेघराज, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१X११, १०x१९-२२).
स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पच. वि. १८वी, आदि: चोतिसे अतिसय जुओ वचन, अंतिः सारखी कही सूत्र मझार, ढाल ८, गाथा- ६०.
""
"
६५२८१. मीरगलिख्या चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दे. (२०.५४११.५, १२x२३). मृगांकलेखा चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु. पद्य वि. १८३८, आदिः आदीसरजिन आद दे चोवीस अंति: (-),
""
"
(पू.वि. ढाल-९, गाथा-३ अपूर्ण तक है.)
६५२८२. (+) चंदराजागुणावली कागल, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १२-५ (१ से ५)=७ प्रले. ऋ. गुलाबचंदजी देवचंदजी पठ. सा. मोतीबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २१.५X११.५, १३X१९-२२).
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२४४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चंद्रराजागुणावलीराणी लेख, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्त; अंति: दीपवि०फलशे सहु आशरे,
गाथा-७४, संपूर्ण. ६५२८३. (-#) देवकीपुत्र ढाल, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९-२(१,३)=७, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१४११.५, १७४२२-२६). देवकीपुत्र ढाल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. नवकारमहिमा प्रसंग अपूर्ण से देवकीपुत्र तपवर्णन प्रसंग
अपूर्ण तक है व बीच के आंशिक पाठ नहीं है.) ६५२८४. पद्मावती आराधना, चौढालियो व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. ४, गु., (२१.५४११.५,
११४२३). १.पे. नाम. पदमावती आराधना, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पद्मावती; अंति: पापथी छुटे
तत्काल, ढाल-३, गाथा-३५. २.पे. नाम. जंबुस्वामी चौढालियो, पृ. ३आ-९अ, संपूर्ण, वि. १९२६, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३, ले.स्थल. पोरबंदर,
प्रले. मु. हेमचंद हीरजी; अन्य. सा. हरखबाई; श्राव. मेघजी, प्र.ले.पु. सामान्य. जंबूस्वामी सज्झाय, मु. गंग, मा.गु., पद्य, वि. १७६५, आदि: श्रीगुरु पदपंकज नमी; अंति: मनवंछित ते सुख लहे,
ढाल-४, गाथा-५६. ३. पे. नाम. मौनएकादशीस्तवन-पहली ढाल, पृ. ९अ-१०अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७८१, आदि: शांतिकरण श्रीशांतिजी; अंति: (-),
प्रतिपूर्ण. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १०अ-११अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. रतन ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: पाशजिणेसर सामी हइडा; अंति: रतने लेजोजतने रे.
गाथा-५. ६५२८५. (+#) सतरभेदी पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१४११.५, ८x१४-१७).
१७ भेदी पूजा, आ. विजयानंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सकल जिनंदमुनिंदनी; अंति: निजात्मरूप हुं पायो, पूजा-१७. ६५२८६. ११ अंग सज्झाय व जंबूपृच्छा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९०२, फाल्गुन शुक्ल, १२, सोमवार, मध्यम, पृ. १६, कुल पे. २,
ले.स्थल. बाडौली, पठ. मु. गुलाबविजय (गुरु पं. जयविजय); प्रले. पं. जयविजय; गुपि.पं. तेजविजय (गुरु पं. रुचिविजय); पं. रुचिविजय (गुरु पं. माणिकविजय); पं. माणिकविजय (गुरु पं. हर्षविजय); आ. मानसूरि, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. श्रीशांतिनाथजी श्रीआदिनाथजी प्रसादे. संवत् हेतु मात्र १९२ का उल्लेख है., दे., (२१.५४१२, १२४२१-२५). १. पे. नाम. ११ अंग सज्झाय, पृ. १अ-७आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२२, आदि: आचारांग वडु कां; अंति: रही रेकीधो ए सुपसाय,
स्वाध्याय-११. २. पे. नाम. गौतमपृच्छा चौपाई, पृ. ७आ-१६अ, संपूर्ण.
मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५४५, आदि: सकल मोनोरथ पूरवई; अंति: मनजे जिनवचने वसिउं, गाथा-१२४. ६५२८७. (+#) सील रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, प्रले. मु. ज्ञानविजय (वडीपोसालगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४११.५, १२-१५४२८-३२). शीलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलउं प्रणाम करउं; अंति: एम श्रीविजयदेवसूरि,
गाथा-६८,ग्रं. २५१. ६५२८८. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १६, कुल पे. १७, दे., (२१४११, १२४२६-३०). १.पे. नाम. अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण.
पंन्या. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मगधाधिप श्रेणिक; अंति: इम बोले मुनि राम, गाथा-३०.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
२४५
२. पे. नाम. जंबुकुमार सज्झाय, पृ. ४अ-५आ, संपूर्ण. जंबूस्वामी सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणीक नरवर राजीयो; अंति: कवियण०अम ऊतारो भवपार,
गाथा-२०. ३. पे. नाम. धनारी सज्झाय, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण.
धन्नाऋषि सज्झाय-काकंदी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवाणी रे धन्ना; अंति: अमा मन में रंगडली ही, गाथा-२१. ४. पे. नाम. मन सज्झाय, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. राजसमुद्र, रा., पद्य, आदि: सुण बेनी पुउडो परदेस; अंति: राजसमुद्र० सोभागी रे,
गाथा-७. ५. पे. नाम. रुषमणरी सज्झाय, पृ. ७अ-८अ, संपूर्ण. रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरतो गामोगाम नेम; अंति: रंगविजे राजे भण्यो, गाथा-७,
(वि. प्रतिलेखक ने २ गाथा को १ की गिनतीक्रम से कुलगाथा गिनी है.) ६. पे. नाम. उपदेस सज्झाय, पृ. ८अ-९अ, संपूर्ण. नरभव सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सुक्रत पूरब पुन्य कर; अंति: चोथमल० कारज सुधारो,
गाथा-१४. ७. पे. नाम. स्थुलिभद्र सज्झाय, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण.
स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. महानंद, मा.गु., पद्य, आदि: अहो मुनिवरजी माहरे; अंति: महानंदनी० सेवा मामे, गाथा-८. ८. पे. नाम. गजसुकुमाल सज्झाय, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. नथमल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन आवंता मे सुण; अंति: नथमल० आवागमण
निवार, गाथा-६. ९.पे. नाम. परनारीसुप्रीत नही करणी सज्झाय, पृ. १०आ-११आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-परनारीपरिहार, मा.गु., पद्य, आदि: सुण चतुर सुजाण परनार; अंति: दीये छै हितकारी, गाथा-८. १०. पे. नाम. स्थुलिभद्र सज्झाय, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतडली न किजीये; अंति: समयसुंदर प्रभु रित,
गाथा-६. ११. पे. नाम. षटकाया सज्झाय, पृ. १२अ-१३आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-जीवकाया, ऋ. रत्न, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवरनी वाणी रे; अंति: भवीजिनने हितकारी रे,
___ गाथा-२०. १२. पे. नाम. पडिकमणा सज्झाय, पृ. १३आ-१४आ, संपूर्ण. प्रतिक्रमण सज्झाय, मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, आदि: मन जाणे पडिकमणो कीधो; अंति: राम० भवजल तर्यो रे,
गाथा-८. १३. पे. नाम. भावपूजा स्तवन, पृ. १४आ-१५अ, संपूर्ण.
ग. मेघराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुदेवि प्रणमी कर; अंति: मेघ० भव्य सेव्योरे, गाथा-७. १४. पे. नाम. मुजरी सज्झाय, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद, रा., पद्य, आदि: सुकृत कर ले रे मुजी; अंति: धरी रे वेला पुजी, गाथा-६. १५. पे. नाम. बाहुबल सज्झाय, पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण. भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राजतणा अति लोभीया; अंति:
समयसुंदर वंदे पाय रे, गाथा-७. १६. पे. नाम. अरणीकमुनि सज्झाय, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. अरणिकमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: मनवंछित फल
सीधोजी, गाथा-८.
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२४६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
१७. पे नाम, साधुगुण सज्झाय, पृ. १६आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
गुरुगुण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदिः आज आणंद मुझ अतिघणौ, अंति: (-), (पू. वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ६५२९०. पचीसी संग्रह व सती सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ३, अन्य. सा. कस्तुरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे.,
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(२१.५X११.५, १०X२६ - २९).
१. पे. नाम, चोरपचीसी, पृ. १अ २आ, संपूर्ण
तस्करपच्चीशी सज्झाय, मु. खोडीदास, मा.गु., पद्य, वि. १९१६, आदि: चोरी चित्तना घरो नर, अंति: खोडी० पुर फते चोमासु, गाथा-२५.
२. पे. नाम. जुगारपचीसी, पृ. २आ ४आ, संपूर्ण
जुगटपचीसी, मु. खोडीदास, मा.गु., पद्य, वि. १९१६, आदि खेल छबीला रे सुणजो अंतिः खोडी०व्यसन द्यो छोडी,
गाथा - २५.
३. पे. नाम. सती सज्झाय, पृ. ४आ-६अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय- शीलविषये, मु. खोडीदास ऋषि, मा.गु., पद्म, आदि: निसुणो सकल सोभागणि; अंति: जोडी ऋषि खोडीदासे, गाथा- १७.
६५२९१. (#) मानतुंगमानवती चौपाई, संपूर्ण, वि. १९५९, माघ कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. ९, प्रले. मु. रावत ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फेल गयी है, दे. (२१x११.५, १३४३०).
मानतुंगमानवती रास, अनुपचंद - शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १८७०, आदि: श्रीजिनशांति जिनेसरू; अंति: प्रसादे० जयनगरे कही, डाल-८.
,
"
६५२९२. (+) सिंदूरप्रकर का पद्यानुवाद, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ११. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०.५X१२, १४x२६-३०).
सिंदूरकर - पद्यानुवाद भाषा, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९९, आदि: सोभित तप गजराज सीस, अंतिः (-), (पू. वि. गाथा ८९ तक है.)
६५२९३. (+४) गजसिंहगुणमाला चरित्र खंड ४ ढाल ७ व खंड ६, अपूर्ण, वि. १८४०, मार्गशीर्ष कृष्ण, २, मंगलवार, मध्यम, पू. २१-१ (१) २० प्र.श्राव. माणिकचंद मधेन प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०.५X११, १३३३-३६).
गजसिंहगुणमाला चरित्र, ग. खेमचंद कवि, मा.गु., पद्य, वि. १७६१, आदि: (-); अंति: खेमचंद० सयल विहंडणी, (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.)
६५२९४. अढारपापस्थानक सज्झाय, पूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., दे., (२०.५X११, १२X३९). १८ पापस्थानक सज्झाय, मु. धर्मदास, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिणेसर पाए; अंति: (-), (पू.वि. ढाल - १८ गाथा-५ अपूर्ण तक है.)
६५२९५, (४) अष्टादशपापस्थान स्वाध्याय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १० प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., (२०.५x११.५, १२x२८).
१८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पापथानक पहिलूं कह्यु; अंतिः वाचकस इम आखे जी, सज्झाय- १८, ग्रं. २११.
६५२९६ (+) निरंजनपचीसी व गजसुकुमालमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५. कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित. दे., (२१X११, ८x२०-२५ ) .
१. पे. नाम. निरंजनपचीसी, पृ. १अ - ५अ, संपूर्ण.
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וי
मु. खोडीदास, मा.गु., पद्य, वि. १९१६, आदि: नमीये नाथ निरंजनदेव, अंति: पूर रही चोमास हो लाल, गाथा - २५. २. पे. नाम. गजसुकमालमुनि सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. नथमल, मा.गु., पद्य, आदि जिनवर वादु तमे सुणी, अंति: (-). ( पू. वि. गाथा-६ अपूर्ण
तक है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
२४७ ६५२९७. (+) नवपदस्नात्र पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१६४१०, ८x१७-२०).
नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (१)प्रथम थकी बल बाकुल, (२)परम मंत्र प्रणमी
करी; अंति: (१)कोई नये न अधूरी रे, (२)कलशं यजामहे स्वाहा, पूजा-९. ६५२९८. अयवंतीसुकुमालनी ढालु, संपूर्ण, वि. १९५४, श्रावण शुक्ल, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. बरवाला,
प्रले. मु. हरखचंद ऋषि; पठ. श्रावि. धारीबा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२०.५४११, १२४३५-४०). ___ अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: पास जिनेसर सेवीये; अंति: शांतिहरष सुख पावे रे,
ढाल-१३, गाथा-१०७. ६५२९९. (+#) धर्मबावनी, संपूर्ण, वि. १८६९, ज्येष्ठ शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. ८, प्रले.पं. उदैभाण (गुरु पं. चैनाजी); गुपि.पं. चैनाजी (गुरु
मु. चतराजी); मु. चतराजी (गुरु मु. दुलीचंद ऋषि); मु. दुलीचंद ऋषि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०४११.५, १४४३०-३४).
अक्षरबावनी, मु. धर्मवर्धन, पुहिं., पद्य, वि. १७२५, आदि: ॐकार उदार अगम अपार; अंति: नाम धर्मबावनी,
गाथा-५७. ६५३००. नेमिराजुल संवाद चोविसचोक व औपदेशिक दोहा, अपूर्ण, वि. १८८६, वैशाख कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५,
कुल पे. २, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले.ऋ. वीरचंद (लुकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०.५४११.५, २०४३२-३६). १.पे. नाम. नेमगोपीसंवाद चौवीस चोक, पृ. २अ-६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. नेमगोपी संवाद-चौवीसचोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: (-); अंति: अमृतविजये गुण गाया,
चोक-२४, (पू.वि. चौक-४ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. ६आ, संपूर्ण.
औपदेशिक दोहा संग्रह , पुहिं., पद्य, आदि: सजन खारा खांडसा केशर; अंति: सारखा उछा जेहां समंद, दोहा-१. ६५३०१. पंचकल्याणकमहावीरजिन स्तवन व आध्यात्मिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, दे.,
(२०.५४१०.५, १०x२१). १. पे. नाम. पंचकल्याणक महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ-७आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-५ कल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: सासन नायक सीवकरण वंद;
अंति: नामे लही अधिक जगीस ए, ढाल-३. २. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण.
मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेयं प्रांनपुरीन; अंति: तेहिज शिवसुख लेसी रे, गाथा-९. ६५३०२. श्राद्धपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.८, दे., (२०.५४११,१२४३२).
श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दसणमि य; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ६५३०३. विजयशेठविजयाशेठाणी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २९-४(९,१६,१९ से २०)=२५, जैदे., (२०.५४११, १३४२०-२३). विजयशेठविजयाशेठाणी रास, मु. राजरत्न वाचक, मा.गु., पद्य, वि. १६९६, आदि: श्रीविमलाचल मंडणो; अंति:
(-), (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ३६८ अपूर्ण तक लिखा है. गाथा १०० अपूर्ण से
११४ अपूर्ण, १८७ अपूर्ण से २००, २२६ अपूर्ण से २५१ तक नहीं है.) ६५३०४. (+) श्रावकपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, प्र.वि. संशोधित., दे., (२०४११, ९x१८).
श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दसणम्मि अ; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ६५३०५. नवतत्त्व का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९३४, आषाढ़ शुक्ल, ३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले.स्थल. जामनगर,
प्रले. मु. कृष्णजी ऋषि (गुरु मु. गुलाबचंद ऋषि); गुपि.मु. गुलाबचंद ऋषि; अन्य. श्राव. ताराचंद रायचंद वारीया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२०.५४११.५, १५४३६).
नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पहेलो जीवतत्त्व बीजो; अंति: अजीवनै मिश्र कहिये. ६५३०६. अष्टप्रकारी पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२१४११, १२x२७).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
८ प्रकारी पूजा, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: अजर अमर निकलंक जे अंति: (-), (पू.वि. ढाल - ९, गाथा - ३ तक है.)
६५३०७. जैनशतक, पूर्ण, वि. १९०७, श्रेष्ठ, पृ. २८-१ (११* )= २७, लिख. श्राव. हीरालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. ले. श्लो. (१९९२) ग्रीव पीठ अन नैन भूज, दे. (२०११, ९४२३२८).
"
कीन,
जैनशतक, मु. भूधरमल्ल, पुहि पद्य वि. १७८१, आदि: म्यान जिहाजि बैठि, अंति: भूधर० सतक सपूरन
गाथा- १०७, संपूर्ण.
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६५३०८. (+) दानशीलतपभावसंवाद रास, स्तवन व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३५, कुल पे. २९,
प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैदे. (२०x११, १६४३२).
"
१. पे. नाम. दानशीलतपभावना संवाद रास, पृ. १आ-५अ संपूर्ण.
दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पच, वि. १६६२, आदि प्रथम जिनेसर पाय अंतिः समृद्धि सुप्रसादोरे, डाल-४, गाथा- ९९.
२. पे नाम, पार्श्वनाथनी घघरनिसाणी, पृ. ५अ-७अ, संपूर्ण
पार्श्वजिन निसाणी घरघर, मु. जिनहर्ष, पुहिं, पद्य, आदि सुखसंपतदायक सुरनर, अंतिः जिनहरष० कहंदा है,
गाथा - २७.
३. पे नाम, अवंतीसुकमालमहर्षि स्वाध्याय, पृ. ७अ ११आ, संपूर्ण.
अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंति: जीनहर्ष० सुख पावे रे,
ढाल - १३, गाथा - १०६.
४. पे. नाम. नारीचरित्र सज्झाय, पृ. ११आ, संपूर्ण, वि. १८४२, पौष शुक्ल, १५.
शीयलव्रत सज्झाय-नारीचरित्र विषे, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: मुखडानो मरकलडो देखी, अंति: हुं जाउं बलिहारी रे, गाथा - ५.
५. पे. नाम. समवसरण स्तवन, पृ. १२अ - १३अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- समवसरण विचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनशासन सेहरो जग, अंति: पाठक धर्मवर्धन धार ए, ढाल - २, गाथा - २८.
.पे. नाम. चतुर्विंशतिदंडकस्वरूपगर्भित पार्श्वनाथ बृद्ध स्तवन, पृ. १३-१५ अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- २४ दंडकविचारगर्भित, मु. धरमसी, मा.गु, पद्य वि. १७२९, आदि पूरि मनोरथ पासजिणेसर अंति: गावै धरमसी सुजगीस ए, ढाल ४, गाथा- ३४.
७. पे. नाम. २४ दंडक स्वाध्याय, पृ. १५-१५ आ. संपूर्ण.
२४ दंडक गतिआगति सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु. पच, आदिः समरी सरसति सांमण देव, अंतिः पामो निश्चे निरवांगी, गाथा ११.
८. पे. नाम. २४ दंडक स्तवन, पृ. १५आ - १६आ, संपूर्ण.
मु. भीमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सिरिजिन शासन मन धरी; अंति: भीमसागर० अति आनंद ए, ढाल - २, गाथा-२७. ९. पे, नाम, शत्रुंजय रास, पृ. १७अ २१अ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पर नमी, अंतिः समयसुंदर ० आणंद धाय, बाल-६, गाथा- ११२.
"
१०. पे. नाम चउदगुणठाणा स्तवन, पृ. २१अ २३अ, संपूर्ण, ले. स्थल. समीनगर.
सुमतिजिन स्तवन १४ गुणस्थानविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सुमतिजिणंद सुमति अंतिः कहे हम मुनि धरमसी, डाल- ६, गाथा- ३४.
११. पे. नाम. पंच परमेष्ठी आरती, पृ. २३अ, संपूर्ण.
"
५ परमेष्ठी आरती जै. क. द्यानतराय पुहिं. पद्य वि. १८वी, आदि: इणविध मंगल आरती कीजै; अंतिः सुरंग मुकति सुखदानी, गाथा- ८.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
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१२. ये. नाम. सनत्कुमार सज्झाय, पृ. २३अ-२३आ, संपूर्ण.
सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. शांतिकुशल, मा.गु, पद्य, आदि: सरसति सरस वचन रस अंतिः शांतिकुसल० रे संभाली, गाथा- १७.
१३. पे. नाम. सनत्कुमार सज्झाय, पृ. २४-२४आ, संपूर्ण.
सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, मु. राज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: अमर तणी वाणी सुणी, अंतिः ए मुनिवर नु आज, गाथा - १९.
१४. पे. नाम. सनतकुमारचक्रवर्ती सज्झाय, पृ. २४-२५अ, संपूर्ण.
सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हस्थिणाउरपुर जाणी, अंति: गुण० सयल जगीसो रे,
२४९
गाथा - १७.
१५. पे. नाम. प्रसन्नचंद्र ऋषि स्वाध्याय, पृ. २५अ - २५आ, , संपूर्ण.
प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, मु. कुंअरविजय, मा.गु, पद्य, आदि: मन वस करवु दोहिलुं इ. अंतिः नववि०सीस कुंअर भगत, गाथा १२.
१६. पे. नाम. नवकार विचार स्वाध्याय, पृ. २५आ - २६आ, संपूर्ण.
नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. आणंदरुचि, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीवरकाणइ सोहइं पास, अंति: आणंद० ध्याय निशदिस, गाथा १६.
१७. पे. नाम. बत्रीसीदश श्रावकनी सज्झाय, पृ. २६आ - २७आ, संपूर्ण.
१० धावक सज्झाय, आ. नन्वसूरि, मा.गु, पद्य, वि. १५५३, आदि: जिण चवीसह करूं, अंतिः कोरंटगछि पभणइ ननसूरि गाथा-३२.
१८. पे. नाम, चउरासी आशातना कुलक, पृ. २८अ २९अ, संपूर्ण.
जिनभवन ८४ आशातनापरिहार स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि सकल सुरासुर प्रणमइ, अंतिः सिरि कर वे धरी, गाथा-२८. १९. पे. नाम. चउवीस तीर्थंकरना परिवारसंख्यानी सज्झाय, पृ. २९अ, संपूर्ण.
२४ जिनपरिवार सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चउवीसे जिनना सुखकार; अंति: चउविध संघ कल्याण, गाथा ५.
२०. पे. नाम. साधु संख्या स्वाध्याय, पृ. २९अ- २९आ, संपूर्ण.
साधुसंख्या सज्झाय, मु. मान, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम पमुहा गुरु चित्; अंति: मान० सवि हुं ऋषीराय, गाथा- १३. २१. पे. नाम. उपसम स्वाध्याय, पृ. २९आ-३०अ, संपूर्ण.
उपशम सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सवि सुख दाता श्रीअरि; अंति: केवल कमला लीला वरो, गाथा-१२. २२. पे. नाम. सोलसती सज्झाय, पृ. ३० अ- ३०आ, संपूर्ण.
१६ सती सज्झाय, मु. सौभाग्यचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसरसति पव प्रममी अंति: बंदइ निशदीस, गावा- ११. २३. पे. नाम. जीवदया सीखामणविचार स्वाध्याय पृ. ३० आ-३१आ, संपूर्ण.
दयापच्चीसी, मु. विवेकचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सयल तीर्थंकर करूं; अंतिः विवेकचंद० एह विचार, गाथा - २५. २४. पे नाम. पार्श्वजिन आरती, पृ. ३१ आ-३२अ. संपूर्ण.
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मु. मतिहंस, पुहिं., पद्य, आदि: पहिली आरती अश्वसेन; अंतिः प्रभुजी की आरती गाई, गाथा- ७.
२५. पे नाम. पूजाविधि सुविधिनाथ स्तवन, पृ. ३२अ ३२आ, संपूर्ण
जिनपूजाविधि छंद, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुवधिनाधनी पूजा सार, अंति: प्रीतविमल० मन उल्लास,
गाथा - १३.
२६. पे. नाम. फलवृद्धि पार्श्वनाथजी छंद, पृ. ३२-३३अ, संपूर्ण, ले. स्थल. समीनगर, पठ. मु. हेमचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन स्तवन- फलवर्द्धितीर्थ, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदिः परतापूरण प्रणमीइ अरि; अंति: सार० गीरुओ गोड धणी, गाथा - १८.
२७. पे नाम, शांतिनाथ छंद, पृ. ३३आ-३४अ, संपूर्ण
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
शांतिजिन छंद - हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: शारद माय नमुं शिर, अंति: मनवंछित शिवसुख पावे, गाथा-२१.
२८. पे. नाम. शंखेश्वरजीनो छंद, पृ. ३४-३५अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. नयप्रमोद, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन सुखकारं सार; अंति: पावि मनवंछित सकल, गाथा - १२.
२९. पे नाम, भीडभंडन पार्श्वनाथ छंद, प्र. ३५अ- ३५आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन छंद - भीडभंजन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: भीडभंजण भवभयभितहरं, अंति: मदनमोहरिपुमर्दनं, गाथा - ११.
६५३०९. (+) विविध बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५३ -४१ (१ से ३६, ३९, ४८,५० से ५२ ) = १२, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित, दे. (१९.५४११.५ १६x२९).
.
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बोल संग्रह *, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
६५३१०. (+) विमलाचल रास, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(१) = ८, प्र. वि. संशोधित. दे., (२०.५११.५, १२x२३-२६). शत्रुंजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: (-); अंति: समयसुंदर० आणंद थाय, ढाल-६, (पू.वि. ढाल १ अपूर्ण से है . )
६५३११. (+) अट्ठाई व्याख्यान, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १४, प्र. वि., पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, दे. (२१x११,
7
११x२६-३०).
६५३१३.
अट्ठाई व्याख्यान, मु. ऋद्धिसार, मा.गु., गद्य, वि. १९४८, आदि: शांतिकरण श्रीशांति, अंति: लाल० ऋद्धसार वरज्ञान. ६५३१२. (-) पट्टावली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, दे., (२०X११, १०X३२).
पट्टावली*, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदिः श्रीमहावीरस्वामी चोथ; अंति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, हीरसूरि प्रसंग अपूर्ण तक लिखा है.)
| सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे ३, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (१९४११.५. १५x२२)
१. पे नाम सीलमहिमा सुभद्रासती चोडालियो, पृ. १अ ५अ, संपूर्ण
सुभद्रासती रास - शीलव्रतविषये, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सरसति सामणं वीनवु, अंति: फलिय मनोरथ माल, डाल-४.
२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण.
उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपासजी प्रगट; अंति: तुज पद पाया रे, गाथा-५.
३. पे. नाम. दृष्टीरागनिवारण सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
(+)
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दृष्टिरागनिवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: दृष्टि रागें नवि; अंति: कहे हि शिख मन धरजो, गाथा- ११.
६५३१४. (+) गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४४ फाल्गुन शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले. स्थल. लोलपूर, प्र. वि. शांतिनाथजी प्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२१X११, १३X२५).
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. नेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: भाव धरी भजनां करूं, अंति: इम विजय जयकार, ढाल - १५, गाथा- १३७.
६५३१५. धन्ना सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, दे., (२१X११.५, ८X२०).
१. पे. नाम. वर्णाक्षर, पृ. १अ, संपूर्ण.
वर्णमाला, मा.गु., गद्य, आदि: अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ लृ; अंति: ल व श ष स ह ळ क्ष २. पे. नाम. धन्नाकाकंदी सज्झाय, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: सतगुरु वचन विचार कर; अंतिः धना साभल जंबूकूमार, गाथा-२०. ३. पे. नाम. सद्गुरु पद, पृ. ४-५आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
२५१ महावीरजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मै ऐसा देख्या सतगुरु; अंति: रूपचंद० आवागमण मिटाई, गाथा-११. ६५३१६. आलोचना, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, दे., (२१४११.५, १३४३०).
आलोयणा गाथा, मा.गु., प+ग., आदि: पंच परमेष्ठिदेवनो; अंति: मिच्छामि दुकडं मोय. ६५३१७. दीपमालिकादेववंदन विधिसहित, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, दे., (२०x१०.५, ९४२६-३२).
दीपावलीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (१)इरियावही तस्सउ०४
नो०, (२)वीरजिनवर वीरजिनवर; अंति: ज्ञानविमल० गुण खाण. ६५३१८. (+) वैदर्भी चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (१९x११, १५-१६४३५-३९).
दमयंती चौपाई, उपा. अभयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७११, आदि: पास जिणेसर परगडो; अंति: अभयसोम मंगल
करइ सनूर, ढाल-१३, गाथा-१९१. ६५३१९. (+) अंजनारी चौपाई, पूर्ण, वि. १९३५, कार्तिक शुक्ल, २, रविवार, मध्यम, पृ. १४-१(२)=१३, ले.स्थल. देवलवाडी, प्रले.
हजारीमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. इस प्रत में जो प्रथम गाथा लिखा है, वह वास्तव में गाथा ८ वीं है. देखीये पुस्तक W-२७८२., संशोधित., दे., (२०x१०.५, १५४२७-३६).
अंजनासुंदरीरास, मा.गु., पद्य, आदि: हिवे मेंदरपुरी जुग; अंति: गया मुगत मंजार के, गाथा-१६५. ६५३२०. श्रीपाल स्तुति व स्थुलिभद्र नवरसो, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिया है., जैदे.,
(१९.५४११.५, ११४३०-३३). १.पे. नाम. श्रीपाल स्तुति, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.
मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: मात पिता पाये लागिने; अंति: जिनहरष० सुख पावैहे, गाथा-२०. २. पे. नाम. स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, पृ. २अ-६आ, पूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपत्ति दायक सदा; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-९, गाथा-६ अपूर्ण तक
६५३२१. (#) निशीथसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. ८७-१८(१ से २,९,२७ से ३८,४५ से ४७)=६९, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (१८.५४१०.५, १२-१८x१५-३०).
महानिशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश हैं.) ६५३२२. (+) वैदर्भि रास, स्तवन व सज्झाय, अपूर्ण, वि. १७७७, कार्तिक शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. १४-१(६)=१३, कुल पे. ३,
ले.स्थल. केकिंदनगर, प्रले.पं. रंगविजय; पठ. मु. फता; मु. पदमा; मु. मानसिंघ (गुरु पं. रंगविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१९४११, १३४२२-२६). १.पे. नाम. दमयंती चौपाई, पृ. १अ-१४अ, पूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. वैदर्भी चौपाई, मु. प्रेमराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जइन धर्म माहे दीपतो; अंति: पिमराज. नावै अवतार,
गाथा-२०४, (पू.वि. गाथा ६७ अपूर्ण से ८१ तक नहीं है.) २. पे. नाम. पार्श्वनाथ गीत, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: बलिहारी हं उस पासकी; अंति: अहेनीस आसकी बलिहारीओ,
गाथा-५. ३.पे. नाम. सामायिक सज्झाय, पृ. १४आ, संपूर्ण.
___ मु. नेमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सामाइक मन सुद्धि करो; अंति: समाइक करीवा निसदीस, गाथा-५. ६५३२३. (#) भक्तामर स्तव, संपूर्ण, वि. १९६०, कार्तिक कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. त्र्यंबकतिर्थ, प्रले. पं. राजेंद्रसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१४११.५, ९४३५).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ६५३२४. (+) नेमिनाथ रास, संपूर्ण, वि. १७९७, फाल्गुन कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. वीकानेर, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१८x११, १३७३५).
नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सारद पाय प्रणमी करी; अंति: प्रसन्न श्रीनेमजिणंद, गाथा-७५.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
६५३२५. (+) चैत्यवंदन व पूजादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३६ कार्तिक शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ६२, कुल पे ४, प्र. वि. संशोधित अशुद्ध
पाठ., दे., (१८x११.५, ७X१९).
१. पे नाम, चैत्यवंदनसूत्र विधिसहित, पृ. १अ ५अ संपूर्ण.
आवश्यक सूत्र- खरतरगच्छीय चैत्यवंदनसूत्र विधिसहित हिस्सा, प्रा. प+ग, आदिः णमो अरिहंताणं णमो अंतिः सेवणा आभवमखंडा
२. पे. नाम. स्नात्रपूजा विधि सहित, पृ. ५अ २५ अ, संपूर्ण.
स्नात्रपूजा विधिसहित ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि (१) प्रथम हुती निस्सिटी, (२) मुक्तालंकारविकारसार अंति: (१) देवचंद० सूत्र मझार, (२) बिंब थापि दूप दीजै, ढाल ८.
३. पे नाम, अष्टप्रकारी पूजा विधिसहित पृ. २५अ-३८आ, संपूर्ण
८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु., सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: (१) प्रथम सर्व चीज ल्याई, (२) सचित्त गंधवर कुसुम; अंति: अमर पद पावे, ढाल-८, श्लोक ८.
४. पे. नाम. नवपदसिद्धचक्र पूजा विधिसहित, पृ. ३९अ ६२आ, संपूर्ण.
नवपद पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: (१) प्रथम तो बलीबाकुल कर, (२) परम मंत्र प्रणमी, अंति: ( १ ) कोई न थई अधूरी रे, (२) अष्टप्रकारी पूजा कीजै, ढाल ९.
-
६५३५२. (+#) स्तुति व स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९६, कुल पे. ६, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२x११.५, ७X१३).
१. पे. नाम. जयतिहुअण स्तोत्र, पृ. १आ-१७अ, संपूर्ण.
आ. अभयदेवसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख: अंतिः अभवदेव विनवइ अणंदीय,
3
गाथा - ३०.
२. पे. नाम. सप्तस्मरण, पृ. १७ अ-५९आ, संपूर्ण.
सप्तस्मरण- खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअं जिअ सव्वभयं, अंतिः भवे भवे पास जिणचंद, स्मरण- ७.
३. पे. नाम. जिवठाणा विचार, पृ. ५९आ-७०आ, संपूर्ण.
जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पईवं वीरं नमिऊण, अंतिः शांतिसूरि० समुद्दाओ, गाधा-५१.
४. पे. नाम. नवतत्व प्रकरण, पृ. ७०आ-८३अ, संपूर्ण.
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि जीवार जीवार पुण्णं३: अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा ४९.
५. पे. नाम. दंडक प्रकरण, पृ. ८३अ - ९३आ, संपूर्ण.
मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउ चउवीस जिणे; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ, गाथा- ४०. ६. पे. नाम. सरस्वती छंद, पृ. ९३आ-९६ आ, पूर्ण, पू. वि. अंत के पात्र नहीं हैं.
सिद्धसारस्वत स्तव, आ. वप्यभट्टसूरि सं., पद्य वि. ९वी, आदि: करमरालविहंगमवाहना, अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१३ अपूर्ण तक है.)
६५३८३ (०) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७१, चैत्र शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ८. कुल पे. २, ले. स्थल, विक्रमपुर, प्रलेग. लक्ष्मीविलास
(गुरु पं. दयानंदन, खरतरगच्छ); गुपि. पं. दयानंदन (गुरु वा. सुमतिधीर, खरतरगच्छ); वा. सुमतिधीर (गुरु उपा. ज्ञानविलास, खरतरगच्छ); उपा. ज्ञानविलास (गुरु पंन्या, ज्ञानविजय, खरतरगच्छ); राज्येगच्छाधिपति जिनहर्षसूरि (खरतरगच्छ भट्टारक); राज्यकालरा. सूरतसिंघ, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२१X११.५, १२x२७-३०).
१. पे नाम, वसुधारा स्तोत्र, पृ. १अ ७आ, संपूर्ण.
सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य अंतिः भाषितमभ्यनंदन्निति,
२. पे. नाम. घंटाकर्णमहावीर स्तोत्र, पृ. ८अ, संपूर्ण.
घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः ॐ घंटाकर्णो महावीर: अंतिः नमोस्तु ते स्वाहा, श्लोक-४.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
२५३ ६५३९४. बृहत्शांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९३५, माघ कृष्ण, २, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. अजयनगर, प्रले. नंदलाल ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१४११, ८x१६-१९).
बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: पूज्यमानो जिनेश्वरः. ६५३९९. (+#) पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१७.५४११.५, १४४२३).
पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: महादेवं नमस्कृत्य; अंति: सत्यापाशक केवली, श्लोक-१८१. ६५४४३. अर्हन्नामसहस्र समुच्चय- प्रकाश १ से ५, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (१६४११.५, १४४२१).
अर्हन्नामसहस्र समुच्चय, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी-१३वी, आदि: अर्हन्नामापि कर्ण;
अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६५४६२. पद्मावती स्तोत्र, पूर्ण, वि. १८७१, मार्गशीर्ष कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, ले.स्थल. बनारस, प्रले. मु. कनीराम (गुरु
ऋ. जगन्नाथ); गुपि.ऋ. जगन्नाथ (गुरु मु. आसकरण ऋषि); पठ. श्राव. जीतमलजी दुगड, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१६.५४११.५, १५४१८-२२).
___ पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: पद्मावतीस्तोत्रम्, श्लोक-३३, (पू.वि. श्लोक-४ अपूर्ण से है.) ६५५१३. (#) स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३१-२२(१ से २२)=९, कुल पे. ४, प्र.वि. पत्रांक ११ से १९ भी लिखे हैं.,
अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१५४११, १२-१४४२१-२४). १.पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. २३अ-२४आ, संपूर्ण.
ब्रह्मांडपुराणे-सरस्वती स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: शुक्लां ब्रह्म विचार; अंति: सलोकेनात्र संसय, श्लोक-११. २. पे. नाम. पद्मावतीदेवी स्तोत्र, पृ. २४आ-२९अ, संपूर्ण.
पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: प्रसीद परमेश्वरि, श्लोक-३०. ३. पे. नाम. ज्वालामालिनी स्तोत्र, पृ. २९अ-३०आ, संपूर्ण.
सं., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवते श्रीचंद; अंति: ज्ञापयति स्वाहा. ४. पे. नाम. परमानंद स्तोत्र, प. ३०आ-३१आ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, वि. १८वी, आदि: परमानंदसंयुक्तं; अंति: यो जानाति सुपंडितः, श्लोक-२४. ६५५७२. पद्मावत्यादि स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-३(१,४,१०)=९, कुल पे. ४, जैदे., (१६४११,
९-१०x१५-१९). १.पे. नाम. पद्मावतीदेवी स्तव, पृ. २अ-८अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम एक व बीच के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: प्रसीद परमेश्वरि, श्लोक-३०, (पू.वि. श्लोक-३ अपूर्ण तक व श्लोक १० अपूर्ण से १४ अपूर्ण
तक नहीं है.) २. पे. नाम. चतुषष्टी योगिनी स्तोत्र, पृ. ८आ-९आ, संपूर्ण.
६४ योगिनी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं दिव्ययोगी; अंति: सर्वोपद्रवनाशिनी, श्लोक-११. ३. पे. नाम. क्षेत्रपाल स्तोत्र, पृ. ९आ-१२अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., पे.वि. आशीर्वादमंत्र संलग्न है. कालभैरवाष्टक-काशीखंडे, सं., पद्य, आदि: यं यं यं यक्षराजं; अंति: संपत्करी चित्करी, श्लोक-११, (पू.वि. श्लोक २
अपूर्ण से ६ अपूर्ण तक नहीं है.) ४. पे. नाम. भैरवाष्टक, पृ. १२अ-१२आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
शंकराचार्य, सं., पद्य, आदि: एकं खट्वांगहस्तं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-५ अपूर्ण तक है.) ६५५८१. देवपूजादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७५-५७(१ से ५७)=१८, कुल पे. ९, दे., (१६.५४११.५, ८-१३४१७-२४). १. पे. नाम. देवपूजा, पृ. ५८अ-६५आ, संपूर्ण.
प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: णमो अरहताणं णमो सिद: अंति: पणमवि अहंतावलीणं. २. पे. नाम. सिद्धपूजा, पृ. ६५आ-६८आ, संपूर्ण.
सिद्धपद पूजा, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ॐ ऊ र्ध्वाघोरज्युतं; अंति: ते सोभित मुक्तिम्.
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२५४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३.पे. नाम. बीस तीर्थंकरकी जयमाला, पृ. ६८आ-७०आ, संपूर्ण.
विहरमान २० जिन जयमाल, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधरजिन सेइस्या जग; अंति: हौय मुक्ति स्वयंबरा, गाथा-७. ४. पे. नाम. मुनिस्वराकी जयमाला, पृ. ७०आ-७१आ, संपूर्ण.
मुनिगुण जयमाल, मु. जिणदास, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मुनीस्वरो नमि; अंति: जिणदास कृपा करी, गाथा-१३. ५. पे. नाम. निर्वाणकांड की भाषा, पृ. ७१आ-७३आ, संपूर्ण. निर्वाणकांड-पद्यानुवाद, जै.क. भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७४१, आदि: वीतराग वंदों सदा भाव; अंति: निर्वाणकांड
गुणमाल, गाथा-२१. ६. पे. नाम. पंचमेरि जयमाल, पृ. ७३आ-७४अ, संपूर्ण. पंचमेरु जयमाल, मु. भूधर, मा.गु., पद्य, आदि: जनम जनमपीठं ममगनईदं; अंति: पंचमेरि जयमाल भजा,
(वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ७.पे. नाम. २४ तीर्थंकर चिह्न, पृ. ७४अ-७४आ, संपूर्ण.
२४ जिन लंछन दोहा, मु. नथमल, पुहिं., पद्य, आदि: जिह्न कह जिनराज के अंति: नथमल० करै निति तिकी, दोहा-३. ८. पे. नाम. सीतासती सज्झाय, पृ. ७५अ-७५आ, संपूर्ण. सीतासती सज्झाय-शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जलजलती मिलती पणी रे; अंति: करै
सीतासती रे लाल, गाथा-९. ९.पे. नाम. सोलसती नाम, पृ. ७५आ, संपूर्ण.
१६ सती नाम, मा.गु., गद्य, आदि: ब्राह्मी१ चंदन२ बालि; अंति: १५ पदमावती १६ सुंदरी. ६५५९८. (#) जिनपंजरादि स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४३-३१(१ से ३१)=१२, कुल पे. ५, प्रले. चीमनराम छावडा,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१६४११.५, १२-१५४१७-२०). १. पे. नाम. जिनपंजर स्तोत्र, पृ. ३२अ-३३अ, संपूर्ण, वि. १८३८, आश्विन.
आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अह; अंति: श्रीकमलप्रभाख्यः , श्लोक-२५. २. पे. नाम. सिद्धप्रिये स्तोत्र, पृ. ३३आ-३५आ, संपूर्ण.
सिद्धिप्रिय स्तोत्र, आ. देवनंदी, सं., पद्य, ई. ६वी, आदि: सिद्धिप्रियैः प्रति; अंति: देवनंदि० सतामीशिताः, श्लोक-२६. ३. पे. नाम. रोगप्रहार स्तोत्र, पृ. ३५आ-३६आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तोत्र-रोगप्रहार, मु. राम, पुहिं., पद्य, आदि: पारश प्रभू तुम नाम; अंति: राम की पाऊ सेव सदीव, गाथा-१५. ४. पे. नाम. ऋषिमंडल स्तोत्र, पृ. ३६आ-४०अ, संपूर्ण.
आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यताक्षरसंलक्षः; अंति: परमानंद संपदाम, श्लोक-८२. ५.पे. नाम. एकीभाव स्तोत्र, पृ. ४०अ-४३आ, संपूर्ण.
आ. वादिराजसूरि, सं., पद्य, ई. ११वी, आदि: एकीभावंगत इव मया; अंति: वादिराजमनुभव्य सहाय, श्लोक-२६. ६५६०६. कोकशास्त्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५५-४(१,९,३३,५१)+१(५३)=५२, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (१७.५४११,१६४१४). कोकसार, आ. नर्बुदाचार्य, मा.गु., पद्य, वि. १६५६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रकाश-१, गाथा-१० अपूर्ण से ७३
अपूर्ण तक, गाथा-८२ अपूर्ण से प्रकाश-३, दोहरा- ५ अपूर्ण तक, प्रकाश-३, गाथा-४ अपूर्ण से प्रकाश-४ गाथा-८५
अपूर्ण तक व प्रकाश-४, गाथा- ९४ अपूर्ण से प्रकाश-६ गाथा १० अपूर्ण तक है.) ६५७७३. कोकशास्त्र-प्रकाश ८ से ९, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२१४११, १३४२८-३०).
कोकसार, आ. नर्बुदाचार्य, मा.गु., पद्य, वि. १६५६, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रकाश-९ गाथा-५४
__ अपूर्ण तक है.) ६५७८१. (#) स्वरोदय ज्ञान, संपूर्ण, वि. १९२८, वैशाख शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. २४, ले.स्थल. तेनीवाडा नगर, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर
आमने-सामने छप गए हैं, दे., (१७.५४१०,११४२४-२६).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
२५५ स्वरोदयसार, मु. कपुरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९०७, आदि: नमो आदि अरिहंत देव; अंति: नंद चंद चित्त धार,
गाथा-४३६. ६५७८३. (+#) वसुधारा महाविद्या, संपूर्ण, वि. १८२५, कार्तिक कृष्ण, १४, मंगलवार, मध्यम, पृ. ७, प्रले. मु. कपूरचंद (परंपरा
आ. जिनचंद्रसूरि, बृहत्खरतरगच्छ श्रीजिनभद्रसूरिशाखा); गुपि. आ. जिनचंद्रसूरि (बृहत्खरतरगच्छ श्रीजिनभद्रसूरिशाखा), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (१७.५४११.५, १३४३४).
वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैनस्य; अंति: धारिणीमहाविद्या. ६५७८६. (+#) यंत्रराज, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१८.५४१०, १४४३२-३४). यंत्रराज, आ. महेंद्रसूरि, सं., पद्य, श. १२९२, आदि: श्रीसर्वज्ञपदांबुज; अंति: (-), (पू.वि. अध्याय-५, श्लोक-५९ अपूर्ण
तक है.) ६५७९९. बारह भावना, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (१६.५४१०.५, १०x१९-२४).
१२ भावना, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६४६, आदि: आदिसर जिणवर तणा पद; अंति: जयसोम० सब सुख
थाऐ, ढाल-१२, गाथा-७२. ६५९२०. (+) स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-५(१ से ५)=८, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित., दे., (२२.५४११, ९४२८). १.पे. नाम. लघुशांति, पृ. ६अ-७अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं.
आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७, (पू.वि. श्लोक-५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र, पृ. ७अ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद,
गाथा-५. ३. पे. नाम. मांगलिक श्लोक, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: सर्वमंगल मांगल्य; अंति: जैनोधर्मोस्तु मंगलम्, श्लोक-२. ४. पे. नाम. तिजयपहुत्त स्तोत्र, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण..
प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ५. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ८-१३आ, संपूर्ण.
आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ६५९२१. (+) लघुक्षेत्रसमास, अपूर्ण, वि. १९५३, माघ शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. २४-६(१ से ६)=१८, प्रले. श्राव. मंछालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२१.५४११,११४२२). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: (-); अंति: सुय सुयदेवी पसाएण,
अधिकार-६, गाथा-२६३, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-७१ अपूर्ण से है.) ६५९२२. (+) अक्षयतृतीया व्याख्यान व ज्ञानपंचमी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक
लकीरे-संशोधित., दे., (२१.५४११.५, १०४२२). १.पे. नाम. अक्षयतृतीया व्याख्यान, पृ. १आ-६अ, संपूर्ण.
अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य प्रभु; अंति: क्षमाकल्याणपाठकैः, ग्रं. ७०. २. पे. नाम. ज्ञानपंचमी कथा, पृ. ६अ-१३आ, संपूर्ण.
वरदत्तगुणमंजरी कथा, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ज्ञानं सारं सर्व; अंति: प्रपाल्य मुक्तिं गतः. ६५९२३. प्रश्नोत्तर संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२२.५४१२, २७४५२).
प्रश्नोत्तर संग्रह, उपा. विनयविजय, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नत्वा श्रुतज्ञानमनंत; अंति: जयशिशु विनयविजयगणिना. ६५९२४. जयविजय चरित्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-१(१)=१४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२२४११, ५४२९).
जयविजय चरित्र, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१ अपूर्ण से १२४ अपूर्ण तक है.)
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२५६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जयविजय चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६५९२५. सौभाग्यपंचमी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२३४१२, १४-१७७२४-२८).
वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि:
श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: कनककुशल०च मेडता नगरे, श्लोक-१५०. ६५९२६. कथासंग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-२(१ से २)=५, कुल पे. ७, दे., (२१.५४११.५, ११४२१). १.पे. नाम. उपकारविषये कथा, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. जयशेखरराजा सोममंत्रिकथा-उपकारविषये, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: जातो हर्षः सर्वेषां, (पू.वि. दूसरे दिन
राजपुत्र अपने घर में परिवार के साथ प्रसन्न होता है इस प्रसंग से है.) २. पे. नाम. अनित्यताविषये कथा, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
भोजराजा भूकँडद्विज कथा-अनित्यताविषये, सं., गद्य, आदि: धारानगर्यां भोजराजः; अंति: चौर्यं त्याजितश्चेति. ३. पे. नाम. लोभविषये कथा, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
बुद्धिसिद्धिस्त्रीद्वय कथा-अतिलोभे, सं., गद्य, आदि: अतिलोभो न कर्तव्यः; अंति: याचितं तदा अंधाजात. ४. पे. नाम. भंजकविप्रकथा, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण..
भंजकविप्र कथा-परगृहभंजने, सं., गद्य, आदि: असमंजसवाक् लोको न; अंति: जाते शांतः कलहः. ५. पे. नाम. अविचारी कथा, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण.
विप्रपालितशुक कथा-अविचारितकर्मणि, सं., गद्य, आदि: विचारितं च कर्तव्यं; अंति: पश्चात्तापपरो जाता. ६. पे. नाम. कुस्त्रीविषये कथा, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण.
कुस्त्री कथा, सं., गद्य, आदि: वरं रंक दरिद्रत्वं; अंति: भृशं लज्जितश्चैति. ७. पे. नाम. तापस कथा कायविषये, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
एकाग्रचित्ततापस कथा, सं., गद्य, आदि: ध्रुवमेकाग्रया भक्त; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रारम्भिक पाठ ही है.) ६५९२७. (+#) भाष्यत्रय सह अवचूर्णी व टिप्पण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, प्रले.ग. लक्ष्मीविजय पंडित,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पंचपाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४११, १२४२८-३४). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाह, भाष्य-३,
गाथा-१५२. भाष्यत्रय-अवचूरि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, आदि: वंदि० वंदनीयान् सर्व; अंति: श्रीसोमसुंदरसूरिभिः, (वि. द्वितीय
भाष्य से अवचूरि लिखी गई है.)
भाष्यत्रय-टिप्पण*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६५९२८. (+) नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९५३, माघ शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. श्राव. मंछालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२१.५४११.५, १०४२०).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बुद्धबोहिक्कणिक्काय, गाथा-५०. ६५९२९. (+) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९४२, आश्विन कृष्ण, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ३, ले.स्थल. मागरोल,
प्रले.मु. काहानजी (गुरु मु. भाणजी ऋषि); गुपि.मु. भाणजी ऋषि; पठ. श्राव. मदनवृद्ध जेचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२१४१२, ११४२४). १. पे. नाम. वीरस्तुति, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति:
आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा-२९. २. पे. नाम. प्रास्ताविकश्लोक संग्रह, पृ. ४अ-५आ, संपूर्ण.
प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंचमहव्वयसुव्वयमूलं; अंति: श्रीआदीनाथ नीरंजन, गाथा-१८. ३. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र अध्ययन-१, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
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२५७
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६५९३०. (+) सौभाग्यपंचमी माहात्म्य, अढारनातरा विवरण व समासपरिचय श्लोक, संपूर्ण, वि. १७५७, मार्गशीर्ष शुक्ल, १,
मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ३, ले.स्थल. जालोरनगर, प्रले. भट्टा. देवसूरि; पठ. मु. भामसुंदर (गुरु भट्टा. देवसूरि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२४११.५, १८४३२-३६). १.पे. नाम. सौभाग्यपंचमी माहात्म्य कथा, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि:
श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: कनककुशलच मेडता नगरे, श्लोक-१४८. २. पे. नाम. अढारनातरा नाम, पृ. ५अ, संपूर्ण. १८ नातरा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: १भाई एकमा भणी१; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
नातरा-६ तक लिखा है.) ३. पे. नाम. समासपरिचय श्लोक, पृ. ५आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: द्वंद्वं द्विगुरपिच; अंति: (-), श्लोक-१. ६५९३१. उपासकदशांगसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२२४११, ४४१८).
उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं० चंपा नामं नयरी; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-३
चूलनीपिता को देव द्वारा कष्ट दिये जाने के प्रसंग अपूर्ण तक है.) ६५९३२. (+) दंडक प्रकरण सह टिप्पण, कल्याणमंदिर स्तोत्र व बृहसंग्रहणी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-९(१ से ९)-८,
कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२१४११, १२x२३). १.पे. नाम. दंडक प्रकरण सह टिप्पण, पृ. १०अ-१२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: (-); अंति: गजसारेण० अप्पहिआ, गाथा-४४,
(पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से है.) दंडक प्रकरण-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: विज्ञप्ति आत्महिता. २. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १२आ-१७अ, संपूर्ण.
आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ३. पे. नाम. बृहत्संग्रहणी, पृ. १७अ-१७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ६५९३३. (+) जयतिहुयण स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२१.५४१०.५, ११४२१). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंति: अभयदेव
विन० आणदिउ, गाथा-३०. ६५९३४. नवग्रह पूजा, नवग्रहपूजा प्रकार व औपदेशिक पद संग्रह, अपूर्ण, वी. २४२०, माघ कृष्ण, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ९-३(१
से ३)=६, कुल पे. ४, ले.स्थल. विसलनगर, प्रले. श्राव. दीपचंद साकलचंद मणियार, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०.५४११, ८-१०x१७-३०). १.पे. नाम. नवग्रह पूजा, पृ. ४अ-७आ, संपूर्ण.
आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: पद्मप्रभजिनेंद्रस्य; अंति: ग्रहशांतिरुदीरिता, श्लोक-२०. २.पे. नाम. नवग्रहपूजा प्रकार, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण.
नवग्रहपूजा प्रकार विधिसहित, सं., गद्य, आदि: कस्मिन् रिष्टग्रहे; अंति: रहपीडोपशांतिः स्यात्. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-अंगीकार, पुहिं., पद्य, आदि: कोई प्रकृतिहि छाणणी; अंति: करत अंगीकार तरत, गाथा-८. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ९आ, संपूर्ण.
दोहा संग्रह जैनधार्मिक, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
६५९३५ (+) पंचप्रतिक्रमणविधि, संपूर्ण वि. २०वी, श्रावण कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. १३. ले. स्थल, उदपुर, प्रा. मु. छत्रकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीसीतलनाथजी मंदिर, संशोधित. वे. (२१x११.५, १x२५) -
""
"
प्रतिक्रमणविधि संग्रह- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि प्रथम सामायक लेणी; अंतिः सझाई पारीनकहेड. ६५९३६. (+#) संघयणीसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३-१४ (१ से १४ ) = ९, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित. अक्षरों
की स्वाही फैल गयी है. जैवे. (२१.५४१०.५, ११४२४-२७).
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बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. गाथा - १९२ अपूर्ण से ३११ तक है. ) ६५९३७. सौभाग्यपंचमी कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२४, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले. स्थल. कटोसण, प्रले. मु. राजेंद्रसागर (गुरु ग. उदयसागर वाचक, तपगच्छ); गुपि. ग. उदयसागर वाचक (गुरुग. महिमासागर पंडित, तपगच्छ); ग. महिमासागर पंडित (गुरु उपा. रत्नसागर, तपगच्छ); उपा. रत्नसागर (गुरु आ राजसागरसूरि, तपगच्छ); आ. राजसागरसूरि (गुरु गच्छाधिपति सेनसूरि, तपगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. श्रीआदिश्वर प्रसादात्., जैवे. (२१x११.५, ५x२८-३०).
वरदत्तगुणमंजरी कथा - सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: मेडतानगरे, श्लोक - १५२, (वि. १८२४, कार्तिक कृष्ण, ८, शुक्रवार)
वरदत्तगुणमंजरी कथा - सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये-टबार्थ, मा.गु, गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीर, अंति: रचना कीधी छई, (वि. १८२४, कार्तिक कृष्ण, १३, गुरुवार)
६५९३८. ज्योतिष संग्रह, जयतिहुअण स्तोत्र व सप्तधातु संस्कारविधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ३, प्रले. श्राव. लालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२१x११, १०X२०-३०).
१. पे. नाम. ज्योतिष संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण, पे. वि. गुजराती लिपि में लिखित है.
ज्योतिष मा.गु. ., सं., हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-).
स्
1
२. पे नाम. जयतिहुअण स्तोत्र, पू. १ आ-५आ, संपूर्ण.
आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य वि. १२वी, आदि जय तिहुयणवरकप्परुक्ख: अंतिः विण्णवइ अणिदिव गाथा- ३०. ३. पे. नाम. सप्तधातु संस्कारविधि, पृ. ६अ, संपूर्ण
औषधवैद्यक संग्रह, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
६५९३९. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टवार्थ व वर्ष शुभाशुभ ज्ञान श्लोक, पूर्ण, वि. १८१८ माघ शुक्ल, १५, सोमवार, जीर्ण, पृ. २६-१(१)=२५, कुल पे. २, ले. स्थल. कालधरीनगर, प्रले. पं. ज्ञानविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे. (२१४११, २x२७).
"
१. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. २अ - २६अ, पूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है.
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: अनंतभागो य सिद्धिगओ, गाथा - ५१, (पू. वि. गाथा- २ अपूर्ण से है . ) नवतत्त्व प्रकरण- टबार्थ मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: छे इम उत्तर कहस्ये.
"
२. पे. नाम. वर्ष शुभाशुभ ज्ञान श्लोक, पृ. २६आ, संपूर्ण.
ज्योतिष, मा.गु., सं., हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-३ अपूर्ण तक लिखा है.)
3., स..
लिखा है.)
६५९४०. वीर स्तुति व प्रास्ताविक गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, जैदे., (२२.५X११.५, ८x२१-२५). १. पे नाम वीर स्तुति, पृ. १आ-५अ, संपूर्ण.
सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदिः पुच्छिसुणं समणा माहण; अंतिः आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा - २९.
२. पे. नाम. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पृ. ५२-५ आ, संपूर्ण
पद्य, आदि: पंचमव्वयसुच्चय मूलं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- ३ तक
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
२५९ ६५९४१. गौतमस्वामी रास व सालीभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९२३, कार्तिक शुक्ल, १, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २,
ले.स्थल. मांघरोल बींदर, प्रले. पं. हेमचंद ऋषि; पठ. श्रावि. हरखबाई; श्राव. मेघजी कडवानी साह; अन्य.सा. जीवीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक नहीं दिया गया है और किसी लम्बे प्रत को काट कर प्रताकार बनाया गया है., दे., (२२४१२.५, ८-११४२२). १. पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. १आ-८अ, संपूर्ण. उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: सकल संघ आणंद करो,
गाथा-७८. २. पे. नाम. सालीभद्रधना सज्झाय, पृ. ८आ, संपूर्ण. शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गोवाल तणे भवे; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ तक लिखा है.) ६५९४२. अर्हन्नामसहस्र समुच्चय, संपूर्ण, वि. १९२२, फाल्गुन कृष्ण, ६ अधिकतिथि, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. बालोचर(मकसूदाबा, प्रले. मु. कनकनिधान; पठ. मु. रत्नअमृत, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२४११,११४२५).
अर्हन्नामसहस्र समुच्चय, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी-१३वी, आदि: अर्हन्नामापि कर्ण;
__ अति: पठनाजपात्, प्रकाश-१०. ६५९४३. (+) सिंदूरप्रकर सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२३४११, १५४३२).
सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१२ तक है.)
सिंदूरप्रकर-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिनं; अंति: (-). ६५९४४. साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२२.५४१०.५, ११४२४).
साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: णमो अरिहंताण; अंति: (-),
(पू.वि. दिवस पच्चक्खाण अपूर्ण तक है.) ६५९४५. (+) दीपोत्सव कल्प, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२४११,१५४३०).
दीपावलीपर्व कल्प, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: संतु श्रीवर्द्धमान; अंति: सुरेंद्रादिभिः कृतः,
श्लोक-२६३. ६५९४६. (+) नवतत्त्व, जीवविचार प्रकरण व शुक्रविचार, अपूर्ण, वि. १७८१, मध्यम, पृ. २३-१(१)=२२, कुल पे. ३,
प्रले. मु. जसवंतविजय (गुरु ग. प्रतापविजय पंडित); गुपि. ग. प्रतापविजय पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (१९.५४१०.५, ४४२०). १.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. २अ-१२अ, पूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., वि. १७८१, वैशाख कृष्ण, १०, मंगलवार,
ले.स्थल. सिंधासूआग्राम.
प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: अणागयद्धा अणतगुणा, गाथा-४७, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. १२आ-२३आ, संपूर्ण, वि. १७८१, श्रावण शुक्ल, ८, शुक्रवार.
आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रूद्दाउ सुय समुद्दाउ, गाथा-५१. ३. पे. नाम. शुक्रविचार, पृ. २३आ, संपूर्ण..
ज्योतिष*, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ६५९४७. भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२१४११,७४१५-१७).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (पृ.वि. श्लोक-२० अपूर्ण तक है.) ६५९४८. गौतम कुलक व जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८४३, मध्यम, पृ. ७-१(१)=६, कुल पे. २,
ले.स्थल. धिकारपुर, प्रले. मु.खंतसागर (गुरु मु. दयासागर); गुपि. मु. दयासागर (गुरु पं. गुणपतसागर); पं. गुणपतसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१४११, ७४३०).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
१. पे. नाम, गौतम कुलक सह टवार्थ, पृ. २अ-३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. वि. १८४३, मार्गशीर्ष कृष्ण, १४, रविवार.
गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि (-); अंतिः सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा २०, ( पू. वि. गाथा १० अपूर्ण से है.) गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंतिः सेवे सुखने पाम्मै.
२. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. ३अ-७आ, संपूर्ण.
जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा. पद्य वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः
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संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा - ५१, (वि. १८४३, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३०)
जीवविचार प्रकरण टवार्थ *, मा.गु. गद्य, आदि: त्रिन भुवन दीप समान अंति माहवकी उदरीयो छइ (वि. १८४३,
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मार्गशीर्ष शु. १, मंगलवार)
६५९४९. श्रावक व्रत विचार, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२-४ (१ से ४) = ८, जैदे., (२१.५X११, १०x१९).
श्रावक १२ व्रत विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: तस मिछामि दुकडं, (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., शीलव्रत वर्णन अपूर्ण से है.)
६५९५०. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, ले. स्थल. आदाग्र, प्रले. मु. जिनेंद्रविजय (गुरु . गौतमविजय); गुप. मु. गौतमविजय (गुरु मु. वल्लभविजय); मु. वल्लभविजय (गुरु मु. गोविंदविजय); मु. गोविंदविजय; अन्य. मु. अमरतविजय, मु. तेजविजय, प्र.ले.पु. विस्तृत, जैदे. (२०.५x११.५, १३X२०).
आवकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., मा.गु, प+ग, आदि नमो अरिहं० पंचिंदिय अंतिः वंदामि जिणे चडब्बीसं. ६५९५१. (+) भाष्यत्रय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२१ कार्तिक शुक्ल, १०, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ३३, ले. स्थल. कटोसण,
प्रले. मु. हर्षविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२०.५X११, ३X३५).
भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १४वी, आदि: वंदितु वंदणिज्जे, अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३,
,
गाथा - १४५.
भाष्यत्रय-टबार्थ, मु. लावण्यविजय, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्यतानंदकारकं, अंतिः त ते बाधारहित एहवं६५९५२. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-१ (१) १४, दे. (१८x११.५, १६-१८x१४).
साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पंचमहाव्रत वर्णन अपूर्ण से है व "संबर जोगो जाणो" पाठ तक लिखा है.)
६५९५३. (+#) भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २१, प्र. वि. पदच्छेद सूच लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१७X११, ३X२०-२३).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्म, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि, अंतिः मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि भक्त जे अमर कहतां, अंतिः करी प्रगटपणे कह्यो.
"
६५९५४ (१) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह विधिसहित अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ८-९ (१) ७. पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं. दे. (१८x११. ८x२१).
पंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रारंभिक सामायिक लेने की विधि अपूर्ण से अरिहंत चेईयाणं सूत्र अपूर्ण तक है. जावंति चेईयाई सूत्र अपूर्ण तक है.)
६५९५५. (०) पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण वि. १७८५ श्रावण कृष्ण, ८. शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. मु. हर्षसागर, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र. वि. संशोधित., प्र.ले. श्लो. (९७९) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (१९x११, ११x२५-३० ).
पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र, अंतिः पद्मावतीस्तोत्रम् श्लोक-३३.
६५९५६. नवतत्त्व, जीवविचार व दंडक प्रकरण, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २४-१ (१) = २३, कुल पे. ३, प्र. वि. प्रथम भाग में पत्रांक २ से १० तथा द्वितीय भाग में पत्रांक १ से १४ इस प्रकार दो भागों में विभक्त है., दे., (१८४११.५, ७४१७).
१. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. २अ १०आ, पूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है.
प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, ( पू. वि. गाथा- २ अपूर्ण से है., प्र.ले. श्लो. (४७६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा) २. पे नाम, जीवविचार प्रकरण, पृ. १९आ- १९अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण, अंतिः शांतिसूरि० समुद्दाओ, गाथा ४९. ३. पे. नाम, दंडक प्रकरण, पृ. १९आ-२४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
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१आ- २अ, संपूर्ण.
ऋषिमंडल स्तोत्र पूजाविधि, संबद्ध, सं., गद्य, आदिः प्रथमं स्नानं कृत्वा, अंतिः क्षमश्च परमेश्वरं
,
मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स, अंति: (-), (पू. वि. गाथा - ३० अपूर्ण तक है. ) ६५९५७. (+) अजितशांति स्तवन, संपूर्ण वि. १९३६, वैशाख शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. मु. वृद्धिचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. दे. (२१४११, १०x२२)
अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि अजियं जिवसव्वभयं संत अंतिः जिणवयणे आयरं कुणह
गाथा ४०.
६५९५८ (१) ऋषिमंडल स्तोत्र विधि सहित, पचपरमेष्ठी स्तोत्र व २४ तीर्थंकर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७-१ (५) =६, कुल पे. ४, ले. स्थल, पेधापुर, प्रले. पं. खुशालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२०X११, ११x२६).
१. पे. नाम. ऋषिमंडल स्तोत्र पूजा विधि, पृ.
२. पे. नाम. ऋषिमंडल स्तोत्र, पृ. २अ-६अ, अपूर्ण, पू. वि. बीच का एक पत्र नहीं है.
आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदिः आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: (-), (पू.वि. गाथा- ६३ तक है.)
३. पे. नाम. पंचपरमेष्टि स्तोत्र, पृ. ६अ, संपूर्ण.
वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: पंचपरमेष्ठि, अंति: राधिचापि कदाचन, श्लोक ८.
४. पे. नाम. २४ तीर्थंकर स्तोत्र, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण.
२४ जिन स्तव - चतुःषष्टियंत्रगर्भित, मु. जयतिलकसूरि-शिष्य, सं., पद्य, आदि आदी नेमिजिनं नत्वा, अंतिः मोक्षलक्ष्मी निवासम्, श्लोक ८.
२६१
६५९५९. स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५. कुल पे. ३, जैदे. (१८.५X१०.५, १४४४० ).
"
"
१. पे. नाम. जिनसहस्रनाम स्तोत्र, पृ. १अ ४अ, संपूर्ण.
शक्रस्तव अत्रामसहस्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि सं., प+ग, आदिः ॐ नमोर्हते परमात्म अंतिः प्रपेदे संपदा
पदम्.
२. पे. नाम, समस्याबंध पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण,
पार्श्वजिन स्तोत्र- समस्याबंध, सं., पद्य, आदिः श्रीपार्श्वनाथं तमहं अंति: भ्यर्चनोभीष्टलब्ध्यै श्लोक-१३.
३. पे. नाम. यमकबंध स्तोत्र, पृ. ५अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तोत्र- यमकबंध, उपा. समयसुंदर गणि, सं., पद्य, आदि: प्रणत मानव मानव मानव, अंतिः समयसुंदर ०
स्तवः,
श्लोक- ५.
६५९६० (+) रास व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १३८-२ (१) = १३७, कुल पे १३, प्र. वि. पृष्ठ ७१ के बाद पत्रांक नहीं लिखा है. बाद के पत्रों को गिनकर पत्रांक भरा गया है., संशोधित, जैदे. (१७११, ७-८X१६-१९).
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१. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ रास, पृ. २अ १८अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि (-); अंति: समयसुंदर० आणंद धाय, डाल-६, गाथा- १०८, (पू. वि. गाथा - ७ अपूर्ण से है. )
२. पे. नाम. नारकी चौढालियो, पृ. १८अ - २३आ, संपूर्ण.
नरक चौढालिया, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि : आदिजिणंद जुहारीयइ मन; अंति: पद स्वामि समरण पाईयइ,
ढाल-४, गाथा - ३१.
३. पे. नाम. पार्श्वनाथजी नीसाणी, पृ. २३आ- ३२आ, संपूर्ण, वि. १८८१, चैत्र शुक्ल, ८, ले. स्थल. विक्रमपत्तन,
प्रले. मु. जसराज (बृहत्खरतरगच्छ ); पठ. श्रावि. पवनबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, पे. वि. अन्त में आत्मोपदेश दोहा - १ लिखा है.
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.
२६२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, म. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपत्तिदायक सुरनर; अंति: जिणहरष कहंदा है,
गाथा-२८. ४. पे. नाम. नववाडि रास, पृ. ३३अ-४८आ, संपूर्ण. नववाड सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: श्रीनेमीश्वर चरणयुग; अंति: जिनहरख० जुगती नववाडि,
ढाल-११, गाथा-९७. ५. पे. नाम. दानशीलरो चौढालीयो, पृ. ४९अ-६५आ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: सुंदर०
सुप्रसादा रे, ढाल-४, गाथा-१०१. ६.पे. नाम. जिनबिंबस्थिरीकरण स्तवन, पृ. ६५आ-६७आ, संपूर्ण.
जिनबिंबपूजा स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनबिंब जुहारो; अंति: श्रीजिनचंद्र सदाइरै, गाथा-११. ७. पे. नाम. समेतशिखर स्तवन, पृ. ६७आ-६८आ, संपूर्ण.
सम्मेतशिखरतीर्थस्तवन, म. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: हंतो जाउंरे सिखर; अंति: पभणे श्रीजिनचंदरे, गाथा-७. ८. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ६९अ-७९आ, संपूर्ण.
आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ९. पे. नाम. जंबूद्वीप परिमाण, नारक-देव-मनुष्य क्षेत्र आयुष्य आदि विचार संग्रह, पृ. ८०अ-१२०आ, संपूर्ण.
विचार संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: रत्नप्रभारी उत्कृष्ट; अंति: धनुष आउखो हजार वरसरो. १०. पे. नाम. मौनएकादशी स्तवन, पृ. १२१अ-१२२आ, संपूर्ण. __ मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समवसरण बैठा भगवंत; अंति:
समयसुंदर०कहो द्यावडी, गाथा-१३. ११. पे. नाम. मृगापुत्र सज्झाय, पृ. १२३अ-१२६आ, संपूर्ण.
मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि: सुगरीपुर नगर सोहामणौ; अंति: खेम० सुधि परणाम हो, गाथा-१७. १२. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १२७अ-१३५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणी
ब्रह्मवादिनी; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कलश नहीं लिखा है.) १३. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १३६अ-१३८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
__ आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१६ अपूर्ण तक है.) ६५९६१. पद्मावती स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९२६, चैत्र शुक्ल, १, मध्यम, पृ. २२-१७(१ से १६,२१)=५, ले.स्थल. कलकत्तानगर, प्रले. मु. चतुर्भुज ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१७४१०.५, ७४१७-१९). पद्मावतीदेवी स्तोत्र-पूजन विधि सहित, आ. पृथ्वीभूषणसूरि, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: प्रशाद परमेश्वरी,
श्लोक-४०, (पू.वि. श्लोक-१९ अपूर्ण से ३५ अपूर्ण तक व ३८ अपूर्ण से है.) ६५९६२. पद्मावती स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(६)-८, दे., (१७४११, ९x१६-१८).
पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: पद्मावतीस्तोत्रम्, श्लोक-२९, (पू.वि. श्लोक-१६ अपूर्ण तक
__ व २० अपूर्ण से है.) ६५९६३. पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९१५, श्रेष्ठ, पृ. ८, दे., (२६४११, ९४२३).
पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: रुजादुर्भक्षदावानलाः, श्लोक-३४. ६५९६४. नवस्मरण, संपूर्ण, वि. १९३४, वैशाख कृष्ण, श्रेष्ठ, पृ. १९, ले.स्थल. वडगाम, प्रले. उगरचंद हरचंद भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१६.५४११, १०४२०-२२). नवस्मरण, म. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं हवइ; अंति: जैन जयति शासनम्, स्मरण-७,
(वि. तिजयपहूत्त व कल्याणमंदिर स्तोत्र नहीं है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
६५९६५ (+) भरटक द्वात्रिंशिका कथा, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३२, प्र. वि. संशोधित कुल ग्रं. ५२०, दे. (१६.५x११.५, १३५१९).
"
भरटकद्वात्रिंशिका, ग. आनंदरत्न, सं., गद्य वि. १५वी आदि देवदेवं नमस्कृत्य; अंतिः यथाश्रुतं त्वियम्. ६५९६६. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८६६, ज्येष्ठ शुक्ल, १, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले. स्थल. नागोर, प्रले. मगन व्यास,
प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( १६x१०.५, १०X१५).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमीलि अंतिः मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४८. ६५९६७. गौतमस्वामी रास, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ९ पठ. श्राव खुचचंद वैरागी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (१७१०.५.
१०X२०-२१).
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गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल, अंतिः विजयभद्र० ए. ढाल ६, गाथा- ७६.
६५९६८. पद्मावती अष्टक सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५. पू. वि. अंत के पत्र नहीं है. जैदे. (१५.५४१०.५,
,
१५x२६-३१).
पद्मावतीदेवी अष्टक, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र, अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२ तक है.)
पद्मावतीदेवी अष्टक - टीका, ग. पार्श्वदेव, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनं देवं; अंति: (-).
६५९६९. (+) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११, प्र. वि. पत्रांक ४ से शुरू कर १४ तक लिखा है, इसलिये प्रत की पूर्णता हेतु पत्रांक १ से ११ तक अनुमानित अंक प्रविष्ट किया गया है., संशोधित., दे., (१५.५X११, ८X१४-१७). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमीलि अंतिः मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४८. ६५९७०. आवकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दे. (१५.५×१०.५, __८४१४-१८)
"
आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि, अंतिः मानतुंग० लक्ष्मी:, श्लोक-४८.
२. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १०० आ, संपूर्ण.
औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं., प्रा., मा.गु, पद्य, आदि (-); अंति: (-), गाथा- ३.
आवश्यकसूत्र-श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग, आदिः आवसही इछामेणं भंते, अंति: (-), (पू.वि. बारहवें व्रत वर्णन अपूर्ण तक है.) ६५९७१. वृहत्शांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, ले. स्थल, पटणा, प्रले. मु. भागचंद्र, पठ श्राव मानसिंघ साह, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (१५.५४११, १०५५-९)
"
बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग, आदि भो भो भव्याः शृणुत; अंतिः ध्यायमाने जिनेश्वरे.
६५९७२. (+) भक्तामर स्तोत्र, औपदेशिक पद व श्लोक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पू. १००-८९(१ से ८९) = ११, कुल पे. ३,
प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( १६.५X११.५, ९-१०X१७-२०).
१. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ९०अ १००आ, संपूर्ण
३. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. १००आ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह पुहिं., प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि (-); अति: (-), श्लोक-१
**,
६५९७३. स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २६-११ (१ से ६, १८ से २२ ) = १५, कुल पे. ४, जैदे., ( १६ ११.५, ८x१५).
१. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र- पद्यानुवाद, पृ. ७अ १३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
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कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै. क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: बनारस सुध, गाथा- ४४, (पू.वि. गाथा - १२ अपूर्ण से है.)
२. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १३अ २४अ, अपूर्ण, पू. वि. बीच के पत्र नहीं हैं.
आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि, अंतिः मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४८ (पू. वि, श्लोक २१ अपूर्ण से ४४ अपूर्ण तक नहीं है. )
३. पे नाम, पार्श्वजिन स्तोत्र- लक्ष्मीनामांकित, पृ. २४-२५आ, संपूर्ण
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२६४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. पद्मप्रभदेव, सं., पद्य, आदि: लक्ष्मीर्महस्तुल्य; अंति: पद्मप्रभ० जगत्मगलं, श्लोक-९. ४. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. २५आ-२६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-६ अपूर्ण तक है.) ६५९७४. (-#) उपसर्गहर स्तोत्र व कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५७-५१(१ से ५१)=६, कुल पे. २,
प्रले. श्राव. चीमनराम छावडा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१६.५४११, १२x२३-२५). १.पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, पृ. ५२अ, संपूर्ण.
आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५. २. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ५२अ-५७आ, संपूर्ण.
आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ६५९७५. दंडक प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, पठ. गांगजी भाट, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१६.५४११, ६-७४१०-१६).
दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ,
गाथा-५४. ६५९७६. (+) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१५.५४११,७४१४).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. ६५९७७. शत्रुजय रास, भक्तामर स्तोत्र व कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४८-५(१ से ५)=४३, कुल पे. ३, दे.,
(१६४१०.५, ८x११-१६). १. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ रास, पृ. ६अ-२६अ, संपूर्ण, वि. १९२१, चैत्र कृष्ण, १४. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंति: समयसुंदर० आणंद थाय, ढाल-६,
गाथा-१०८. २. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. २६आ-३७आ, संपूर्ण. ____ आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ३. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ३७आ-४८आ, संपूर्ण.
आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ६५९७८. (+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४६, कुल पे. १४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१५.५४१०.५, १९-२३४८-११). १. पे. नाम. इरियावही मिच्छामि दुक्कडं संख्या स्तवन, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. इरियावही मिच्छामिदुक्कडं संख्या स्तवन, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: पद पंकज रे प्रणमी; अंति: इम संथव्यो
भावइ करी, ढाल-४, गाथा-१५. २. पे. नाम. मुहपत्तिपडिलेहण स्तवन, पृ. ४अ-६अ, संपूर्ण. मुहपत्तिपडिलेहणविधिस्तवन, ग. लब्धिवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: वर्धमान जिनवर तणा; अंति: विध लछिवल्लभ इम
कही, गाथा-१५. ३. पे. नाम. छिन्नूजिनवरनाम स्तवन, पृ. ६अ-९आ, संपूर्ण. ९६ जिन स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७४३, आदि: वर्तमान चोवीसी; अंति: सदा जिणचंदसूरिए,
ढाल-५, गाथा-२३. ४. पे. नाम. सप्तोधानविचार गर्भित महावीर बृहत्स्तवन, पृ. ९आ-१२आ, संपूर्ण. उपधानतप स्तवन-वृद्ध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: महावीरजी धर्म प्रकास; अंति: समय०भणइ वंछित
सुखकरो, ढाल-३, गाथा-१८. ५. पे. नाम. अष्टापदतीर्थ विस्तार विचार गर्भित सर्वतीर्थंकर स्तवन, पृ. १२आ-१५अ, संपूर्ण. अष्टापदतीर्थस्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जिणवर भक्ति समुल्लसि; अंति: समयसुंदर०करै परणाम
ए, गाथा-१७.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६ ६. पे. नाम. इर्यापथिकाविचारगर्भित स्तवन, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन लघुस्तवन-इरियापथिकी मिथ्यादष्कृत विचारगर्भित, उपा. समयसुंदर गणि, प्रा., पद्य, आदि:
मणुयातिसय तिडुत्तर न; अंति: समयसुंदर०पास जिणचंदं, गाथा-४. ७. पे. नाम. गणधरसंख्या गर्भित चतुर्विंसतिजिन स्तवन, पृ. १५आ-१८अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन-गणधरसंख्यागर्भित, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६५७, आदि: पासजिणेसर प्रणमुपाय; अंति:
पभणे संघने संपति करे, ढाल-५, गाथा-१७. ८. पे. नाम. सूक्ष्मविचारगर्भित रिषभदेवजिन स्तवन, पृ. १८आ-२३आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित, ग. विजयतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलो पणमिय देव;
अंति: विजयतिलक निरंजणो, गाथा-२०. ९. पे. नाम. २४ दंडक स्तवन, पृ. २३आ-२९अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, म. धरमसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: पूर मनोरथ पासजिणेसर;
अंति: गावै धरमसी सुजगीस ए, ढाल-४, गाथा-३४. १०. पे. नाम. अडसठतीरथवृद्धि स्तवन, पृ. २९अ-३२आ, संपूर्ण. ६८ तीर्थजिन स्तवन, वा. सोमहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: पाली तीरथ परगडौ; अंति: सोमहरख० गुरु जगदीस
ए, गाथा-२५. ११. पे. नाम. २४ जिन स्तवन-देहमान, पृ. ३३अ-३८अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन-देहमान आयुस्थितिकथनादिगर्भित, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि:
पंचपरमेष्ठि मन शुद्ध; अंति: धरमसी मुनि इम भणे, ढाल-५, गाथा-२९. १२. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. ३८आ, संपूर्ण.
आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेजमंडण आदि; अंति: नंदसूरी तस पाय सेवता, गाथा-४. १३. पे. नाम. विहरमान २० जिन स्तुति, पृ. ३९अ-३९आ, संपूर्ण, वि. १८२६, फाल्गुन, ७, गुरुवार, ले.स्थल. नोहरनगर,
प्रले. मु. युक्तिधिर; पठ. श्राव. रत्नचंद मनोहरदास शाह; अन्य. ग. भक्तिदत्त (गुरु उपा. ज्ञानविलास, खरतरगच्छ); गुपि. उपा. ज्ञानविलास (गुरु पंन्या. ज्ञानविजय, खरतरगच्छ); पंन्या. ज्ञानविजय (गुरु मु. ज्ञाननंदन, खरतरगच्छ); अन्य. श्राव. सुरतराम; श्राव. देवचंद; श्राव. सदानंद, प्र.ले.पु. मध्यम.
मा.गु., पद्य, आदि: पंचविदेह विषै विहरंत; अंति: जन मन वंछिअसारै, गाथा-४. १४. पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. ४०अ-४६आ, संपूर्ण, वि. १८५०.
मु. उदयवंत, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर चरण कमल; अंति: नित उच्छव उदौ करो, गाथा-५१. ६५९७९. (#) सप्तस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५१-३१(१ से ३०,४१)=२०, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (१५.५४११, ६४१४).
सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बृहद् अजितशांति स्तोत्र __श्लोक-१९ अपूर्ण से लघुशांति स्तोत्र श्लोक- ९ अपूर्ण तक व नमिऊण स्तोत्र श्लोक-३ अपूर्ण से गणधरदेव स्तोत्र
__ श्लोक-२३ अपूर्ण तक है.) ६५९८०. (+) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९३७, भाद्रपद कृष्ण, ३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले. श्राव. मन्नालाल हलवाइ;
पठ. श्राव. छोगालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (१५४११, ९x१८-१९).
__ भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४८. ६५९८१. (+) जीवविचारप्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८१, श्रावण कृष्ण, ५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २१, ले.स्थल. जेसलमेरु,
प्रले. मु. भेरुविजय (गुरु पं. विद्यासमुद्र, बृहत्खरतरगच्छ); गुपि.पं. विद्यासमुद्र (गुरु ग. राजप्रिय, खरतरगच्छ); पठ. श्राव. गोडीदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (१३४११, ५४१२). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: शांतिसू०सुय
समुद्दाओ, गाथा-५१.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: भुक० तीनलोकनै विषै; अंति: अधिकार कह्यो छै. ६५९८२. स्तोत्र व पद्यानुवाद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५४-२७(१ से २७)=२७, कुल पे. ५, जैदे., (१५४१०.५,
१०४२०-२१). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र-पद्यानुवाद, पृ. २८आ-३५आ, संपूर्ण.
मु. हेमराज, मा.गु., पद्य, आदि: आद पुरष आदेसजिन आद स; अंति: हेमराज० पावै शिवखेत, गाथा-६१. २. पे. नाम. कल्याणमंदिरस्तोत्र-पद्यानुवाद, पृ. ३६अ-४१आ, संपूर्ण. कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: परम जोति परमातमा परम;
अंति: बनारसी० समकित सुध, गाथा-४६. ३. पे. नाम. बृहत्शांति स्तोत्र, पृ. ४२अ-४७आ, संपूर्ण.
बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. ४८अ-५३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणी
ब्रह्मावादिनी; अंति: नाम अभिराम मते, ढाल-५, गाथा-५३. ५. पे. नाम. लघुशांति, पृ. ५३आ-५४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांति निशाति; अति: (-), (पू.वि. गाथा ११ अपूर्ण तक है.) ६५९८३. विचारषट्विंशिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९३, ज्येष्ठ कृष्ण, १२, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. विकानेरनयर, प्रले. शंकर गुसाई (पिता जतिसंग), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१२.५४१२, ५४२०). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: गजसारेण अप्पहिआ,
गाथा-४०.
दंडक प्रकरण-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने ऋषभादि; अंति: हितनी करणहारी. ६५९८४. (+#) भक्तामर स्तोत्र, प्रत्याख्यानसूत्र, नेमिजिन बारमासा व मेघवर्णन, अपूर्ण, वि. १८६८, मध्यम, पृ. ४३-७(५,२० से
२१,२५,२९,३१ से ३२) ३६, कुल पे. ४, प्रले. मु. श्रीचंद्र, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. जैदे., (११४१०, ७-८४८-९). १.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १अ-२२आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., वि. १८६८, श्रावण कृष्ण, ९, रविवार,
ले.स्थल. नागोर. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक- ९ अपूर्ण से
११ अपूर्ण तक व ३९ अपूर्ण से ४३ तक नहीं है.) २.पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. २३अ-३४अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., वि. १८६८, श्रावण शुक्ल, २.
संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्, (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ३. पे. नाम. नेमिजिन बारमासो, पृ. ३४आ-४०आ, संपूर्ण.
नेमराजिमती बारमासा, मा.गु., पद्य, आदि: हो सांमी क्युं आव्यु; अंति: नेमजी मुगत सिधावै, गाथा-१८. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद-मेघवर्णन, पृ. ४१अ-४३आ, संपूर्ण.
पुहि., पद्य, आदि: आयो वर्षाकाल चिंहु; अंति: सुकाल इदृसै वर्षाकाल, पद-१. ६६००६. (#) नमुत्थुणस्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (११x१०.५, ८x११).
शक्रस्तव, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: नमुत्थुणं अरिहंताणं; अंति: (अपठनीय), (वि. चिपके पत्र होने के कारण अंतिमवाक्य
अवाच्य है.) ६६३१२. (#) पासाकेवली शुकन व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १८५७, फाल्गुन शुक्ल, ३, रविवार, मध्यम, पृ. २४, कुल पे. २,
ले.स्थल. पंचपद्र, प्रले. राधाकृष्ण दवे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. *पत्र के दोनों ओर पत्रांक दिया गया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१६.५४१०, ९-१२४१८-२२). १.पे. नाम. पासाकेवलि शुकन, पृ. १अ-२४आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो भगवती, अंति: गर्गनामा० पाशककेवली, श्लोक-१८३. २. पे. नाम. योनिसंकोचन औषध, पृ. २४आ, संपूर्ण.
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औषधवैद्यक संग्रह”, पुहि., प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: कटु तुंबी गीर१ तुरी; अंति: राखीजै संकीर्णं भवति. ६६३३७. प्रतिक्रमणसूत्र व स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १५२२, पौष शुक्ल १० शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३६-२५ (१ से ३,६ से २६,३४)=११, कुल पे. ५, जैदे., (१४.५x९.५, १३X२४-२८).
१. पे. नाम. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. ४अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र हैं.
साधु श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि (-); अंति: (-), (पू. वि. चौवीसत्थव पूर्ण अतिचार अपूर्ण तक है.)
२. पे. नाम. भक्तामर स्तवन, पृ. २७अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं.
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंतिः मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४, (पू. वि. श्लोक-४२ अपूर्ण से है.)
३. पे. नाम, श्रावक सिखामण, पृ. २७-३०आ, संपूर्ण.
बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पणमवि देवि अंबाई, अंति: सालिभ०ि टलइ कलेस, गाथा-६०. ४. पे. नाम. ईसर संख्या, पृ. ३० आ-३२आ, संपूर्ण.
मु. रूप, पुहिं., पद्य, आदि: मे हो सरन तिहारै; अंति: रूपप्रभु० काज सुधारे, गाथा - ३.
३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ४८-४९अ, संपूर्ण.
साधु आचार विवरण, मा.गु., पद्य, आदि: पूछइ न जाणई मुनिवंत; अंति: तोउ इह प्रणाम कीजई, गाथा- ३०. ५. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ३२-३६आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है.
आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्म, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार: अंति मोक्षं प्रपद्यंते, श्लोक-४४, (पू. वि. लोक १४ अपूर्ण से २५ अपूर्ण तक नहीं है.)
६६३४६. (+) पार्श्वजिन पदादि स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५८-४७(१ से ४५,४७,५१) ११. कुल पे. ६, ले. स्थल. सोजित प्रले. पं. नगराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांकहीन प्रारंभिक ४ छुटक पत्र होने से काल्पनिक पत्रांक देकर क्रमबद्ध किया गया है., संशोधित., जैदे., (१४४१०, १२x१७).
१. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ४६ अ- ४६ आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
पार्श्वजिन स्तवन, मु. भाग्यउदय, पुहिं, पद्य, आदि: साचो पारसनाथ कहावै; अंति (-), (पूर्ण, पू. वि. अंतिम गाथा-५ का अंतिम पाद नहीं है.)
२. पे नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. ४८ अ-४८आ, संपूर्ण.
साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं, पद्म, आदि: दीनानाथ उवा पदई कब, अंतिः रूप० ही नाथ कहाउं, गाथा ३. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ४९-५०आ, पूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है.
वा. पदमसी, पु,ि पद्य, आदि पासजिनेसर अतिअलवेसर, अंतिः पदम० जिनपतिचरण सहायो, गाथा-५, संपूर्ण, ५. पे. नाम. चवदै नियम विचार सह अर्थ, पृ. ५२ अ - ५५अ, संपूर्ण.
श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सच्चित्त दव्व विगई; अंति: दिसि न्हाण भत्तेसु, गाथा - १.
२६७
आवक १४ नियम गाथा - अर्थ, मा.गु., गद्य, आदिः प्रभाते उठीने सदा अंतिः द्रव्य परिमाणमै राखे
६. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि नमस्कार मंत्रमय सप्रभावक साम्नाय स्तोत्र, पृ. ५५ अ-५८आ, संपूर्ण.
नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदिः किं कप्पतरु रे अयाण; अंतिः सेवा देज्यो नित्त, गाथा - २६.
१०-११X१६-१७).
१. पे. नाम. दुरियरबसमीर स्तोत्र, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
६६३६३. (+) दुरिअरयसमीरादि स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १५८-१३५ (१ से २४ से ११९,१३० से १३५, १४४ से १५४) = २३, कुल पे. ६. प्र. वि. 'पत्र अस्त-व्यस्त है, अतः काल्पनिक पत्रांक दिया गया है., संशोधित, जैये. (११४९,
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२६८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दुरियरयसमीरं मोहपंको; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११
___ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. सप्तस्मरण, पृ. १२०अ-१२९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअसव्वभयं; अंति: (-),
(पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं है व सिग्घमवहरउ स्तोत्र गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ३.पे. नाम. गौतमस्वामिरास, पृ. १३६अ-१४३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. आधुनिक लिखावट है. गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: (-),
(पू.वि. ढाल-६, गाथा-५७ अपूर्ण तक है.) ४. पे. नाम. वर्द्धमानजिन स्तव, पृ. १५५अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं., प्रले. मु. कर्मसार; पठ. श्राव. हरदासजी,
प्र.ले.पु. सामान्य. महावीरजिन स्तव-समसंस्कृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: दृष्टिं दयालो मयि, श्लोक-३०,
(पू.वि. श्लोक-२९ अपूर्ण से है.) ५. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. १५५आ-१५६आ, संपूर्ण..
पंचकल्याणक स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: नाभेयं संभवंतं अजिय; अंति: गणसहिया पंचकल्लाणएसु, गाथा-४. ६. पे. नाम. बृहत्शांति स्तोत्र, पृ. १५८अ-१५८आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है.
बृहत्शांति स्तोत्र-खरतरगच्छीय, सं., प+ग., आदिः (-); अति: (-), (पू.वि. बीच के पाठांश हैं.) ६६३८८. (#) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १७९९, चैत्र शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. १४, कुल पे. ५, ले.स्थल. साचोर, प्रले. मु. सोमचंद,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (१०४६.५, ९x१५). १.पे. नाम. धन्नाअणगार सज्झाय, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण, वि. १७९९, चैत्र शुक्ल, १३.
मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवचने वयरागी हो; अंति: होये जय जयकार रे, गाथा-१२. २.पे. नाम. स्थूलिभद्र सज्झाय, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण.
मु. लींबो, मा.गु., पद्य, आदि: चतुर चोमासुं पडकमी; अंति: प्रणमे नीबु पाय, गाथा-५. ३. पे. नाम. नमिराजर्षि सज्झाय, पृ. ५अ-७अ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो मिथीला नगरीनो; अंति: समयसुंदर० पामे भवपार, गाथा-८. ४. पे. नाम. थूलभद्र सज्झाय, पृ. ७अ-८आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्र सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अकल अरूपी आतमा अविना; अंति: मेरु० नामि आणंदि की,
गाथा-९. ५. पे. नाम. चित्रसंभूति सज्झाय, पृ. ९अ-१४आ, संपूर्ण.
मु. त्रिकम, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: प्रणमुं सरसति सामणी; अंति: वीनती अविधार ए, ढाल-४. ६६५९६. (+) पद्मावतीदेवी मंत्रसाधनविधि व स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. पत्र ५४२ है., संशोधित.,
दे., (२०४१६.५, १४४२४). १. पे. नाम. पद्मावती विधान, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
पद्मावती मंत्रजापविधि सहित, सं., प+ग., आदि: ॐ अस्य श्रीपद्मावती; अंति: स्तोत्रं पठ्यते. २.पे. नाम. पद्मावती स्तोत्र, पृ. १आ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है.
पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: (-), (पूर्ण, पृ.वि. श्लोक-३१ क्षमाप्रार्थना श्लोक अपूर्ण तक
६६६०२. कल्पसूत्रटीका की वाचना-६ का बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२७४७, ७-८४३७-४२). कल्पसूत्र-टीका का हिस्सा वाचना-६ का बालावबोध, मु. शांतिसागरसूरिशिष्य, पुहि., गद्य, आदि: (१)जिनवर
शासनदेव को, (२)तत्र कहिये तहां; अंति: (-), (प.वि. पार्श्वजिन दशमभव तक है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
२६९ ६६६११. महाभारत-दृष्टांतश्लोक संग्रह, सीमंधरजिन स्तोत्र व सम्यक्त्व कुलक, अपूर्ण, वि. १४८४, माघ कृष्ण, १, शनिवार,
मध्यम, पृ. २३८-२३१(१ से २२६,२२९,२३३,२३५ से २३७)=७, कुल पे. ३, ले.स्थल. वर्द्धनपुर, प्रले. महिराज; पठ. श्राव. गोविंद संघपति, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१६.५४८, १२४२८-३४). १. पे. नाम. महाभारत दृष्टांतश्लोक संग्रह, पृ. २२७अ-२३४आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. पुराणहुंडी, मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (१)गयहहणे वा लग्गु, (२)चैव मेघनादस्य नालिका, श्लोक-२२१,
(पू.वि. श्लोक-६६ अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) २.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तोत्र, पृ. २३४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
प्रा., पद्य, आदि: नमिरसुरअसुर नरविंद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. सम्यक्त्व कुलक, पृ. २३८अ-२३८आ, संपूर्ण.
आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वेसागिहेसुगमणं जहाव; अंति: हणपए नीसेस सुक्खावहो, श्लोक-१८. ६६६८९. सिरोही व मेदपाटदेश छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-३(१ से २,४)=७, कुल पे. २, प्रले. मु. खूमचंद (गुरु
मु. उत्तमविजय); गुपि. मु. उत्तमविजय (गुरु मु. नेमिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (११.५४५, ७४१७). १.पे. नाम. सिरोहीदेश वर्णन, पृ. ३अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. क. राज, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: अंबार अंबर मलिन अपार, गाथा-३०, (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण से १६ अपूर्ण
तक व गाथा-२२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. मेदपाट छंद, पृ. ७आ-१०आ, संपूर्ण. मेवाडदेश वर्णन छंद, क. जिनेंद्र, रा., पद्य, वि. १८१४, आदि: मन धरी माता भारती, अंति: कविजेनेंद्र० चिर नंद,
गाथा-१२. ६६७१३. ऋषिमंडल स्तोत्र वसाधारणजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १८८१, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २,
ले.स्थल. रुपनगर, प्रले. गिरधारीलाल पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (१५४१०, ९x१५-१९). १.पे. नाम. ऋषिमंडल स्तोत्र, पृ. १आ-७अ, संपूर्ण. ____ आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आयंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: परमानंद संपदाम्, श्लोक-८२. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: पाताले यानि बिंबानि; अंति: जिनेंद्र तव दर्शनात्, श्लोक-३. ६६७१५. जिनसहस्रनाम स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदे., (१५४१०.५, १०x१८-१९).
अर्हन्नामसहस्र समुच्चय, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी-१३वी, आदि: अर्हन्नामापि कर्ण;
अंति: पठनाजपात्, प्रकाश-१०, श्लोक-११७. ६६७५२. सरस्वती छंद, शारदा स्तोत्र व भैरवाष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक नहीं होने से
अनुमानित पत्रांक दिया है., जैदे., (१४.५४१०, १०४२०-२२). १.पे. नाम. सरस्वतीदेवी छंद, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, ले.स्थल. सेवडीग्राम.
ग. हेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ॐकार धुरा उच्चरणं; अंति: कर वदे हेम इम वीनती, गाथा-१६. २.पे. नाम. शारदा स्तोत्र, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण, प्रले. मु. जीवणविजय; अन्य.पं. ऋद्धिविजय (गुरु पं. तिलकविजय),
प्र.ले.पु. सामान्य. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. हेमाचार्य, सं., पद्य, वि. १५२७, आदि: कमलभूतनया मुखपंकजे; अंति: सुमतिनो
विबुधमतोहरी, श्लोक-११. ३. पे. नाम. क्षेत्रपाल स्तोत्र, पृ. ४आ-६अ, संपूर्ण.
क्षेत्रपाल छंद, सं., पद्य, आदि: यं यं यं यक्षराज; अंति: स शिवो च महेश्वरः, श्लोक-९. ६६८५०. कर्मदहन व्रत, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २१-१(१)=२०, प्रले. रामनाथ शर्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (११४९.५,
८४९-१२).
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२७०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कर्मदहन पूजा, आ. शुभचंद्र, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: कर्मरहि० सिद्धाय नमः, (पू.वि. ९ ॐ अर्ह
सिद्धाव्याबाधगुणाय नमः से है.) ६६८९६. (+) भक्तामर स्तोत्रादि संग्रह व शत्रुजय रास, अपूर्ण, वि. १८५०, वैशाख शुक्ल, १३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४९-१(२)=४८,
कुल पे. ५, प्रले. पं. अभैचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१४४१०, ९x११-१५). १.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १आ-११अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४, (पूर्ण, प.वि. श्लोक-३
अपूर्ण से ७ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ११अ-२१अ, संपूर्ण.
आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ३. पे. नाम. बृहत्शांति स्तोत्र, पृ. २१अ-२७अ, संपूर्ण..
बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनंजयति शासनम्. ४. पे. नाम. शांति स्तवन, पृ. २७अ-३०अ, संपूर्ण.
लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिशांतिनिशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ५. पे. नाम. सेनूंज रास, पृ. ३०१-४९आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थरास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंति: समयसुंदर०
आणंद थाय, ढाल-६, गाथा-११२. ६६९२२. (-) सरस्वतीदेवी स्तुति, स्तोत्र व छंद, संपूर्ण, वि. १९३०, पौष कृष्ण, ८, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ६,
प्रले. मु. अनोपचंद ऋषि; पठ. श्राव. खुबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (१७४१०.५, ९x१७-२४). १.पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.
सरस्वतीदेवी के १६ नाम स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: नमस्ते शारदादेवी; अंति: विद्या परमेश्वरी, श्लोक-९. २. पे. नाम. ॐकारगुरुमहिमा स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण.
ॐकार गुरुमहिमा स्तुति, सं., पद्य, आदि: ॐकार बिंदुसंयुक्तं; अंति: तस्मै श्रीगुरवे नमः, श्लोक-३. ३. पे. नाम. गणेशसरस्वती स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: शुडाडुड प्रचंडमेक; अंति: शरणं मतं याच्यहम्, श्लोक-३. ४. पे. नाम. एकश्लोकी दुर्गा, पृ. ३अ, संपूर्ण.
दुर्गा स्तुति, सं., पद्य, आदि: या अंबा मधुकैटभ प्रमथ; अंति: मम पात विश्वेश्वरी, श्लोक-१. ५. पे. नाम. अंबामाता स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: माया कुंडलिनी क्रिया; अंति: (१)गुणानामीशपारं न याति, (२)परमई माता कुमारीतिसी, श्लोक-२. ६. पे. नाम. सरस्वतीदेवी छंद, पृ. ३आ-७आ, संपूर्ण.
मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता मन आणी; अंति: वाचा फलसी माहरी, गाथा-३५. ६६९२९. (+#) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८, ले.स्थल. भरूचबंदर, पठ. मु. केसरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१७४९, ३४१८-२१).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: उवओगोअएवं जीवस लखणं, गाथा-४९.
नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: सवी जीवने लक्षण होइ. ६६९५५. (+) सूरजजीरो सिलोको, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. संशोधित., दे., (११४१०, ७४११).
सूर्य सलोको, मा.गु., पद्य, आदि: सरसतीसावण करो पसावो; अंति: नही कोइ थारै जी तोलै, गाथा-१९. ६६९६०. यंत्र, ध्वजारोपण, दक्षिणावर्तशंख कल्पादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९९२, आश्विन कृष्ण, २, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल
पे. ५, ले.स्थल. वीजापुर, प्रले.मु. पद्मसागर (गुरु मु. पुण्यसागर); गुपि.मु. पुण्यसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (११.५४९, १०-११४१५-१८). १. पे. नाम. दंतपीडानिवारण यंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
२७१ मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह , उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ॐ नमो आदेश गुरु कु; अंति: दाढ दंतपीडा जाय. २. पे. नाम. ध्वजारोपण विधि, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण..
जिनमंदिर ध्वजारोहण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: नानारत्नौघयुतं सुगंध, अंति: पूजाकरणं यथाशक्त्या. ३. पे. नाम. शतौषधि नाम, पृ. ७अ-८अ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: मोरशिखा सहदेवी तुलसी; अंति: कांची मुलं यव सर्षप. ४. पे. नाम. प्रासादविधिगत छुटक गाथा, पृ. ८आ, संपूर्ण.
गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: खुरकुंभकलशकयवली; अंति: वैराडपहरे तेर थरा, गाथा-१. ५. पे. नाम. दक्षिणावर्तशंख कल्प, पृ. ९अ-१२आ, संपूर्ण.
दक्षिणावर्त्तशंख विधि, सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीँ श्रीँ श्रीधर; अंति: दक्षिणावर्तशंखे नमः. ६६९७०. (+) अभिधानचिंतामणी नाममाला, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (१३.५४८, १२-१४४२१).
अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति:
(-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कांड-३ श्लोक-२५७ तक लिखा है.) ६६९७२. वास्तुसार प्रासादविधि व वास्तु प्रकरण, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४-२(१९,२१)=३२, कुल पे. २, प्र.वि. वास्तु
चक्र सहित., जैदे., (१५४८.५, ९x१९-२६). १.पे. नाम. वास्तुसार प्रासादविधि प्रकरण, पृ. १आ-३२आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. वास्तुसार प्रकरण, ठक्कुर फेरु, प्रा., पद्य, वि. १३७२, आदि: चउवीसंगुलभूमी खणेवि; अंति: गिहपडिमालक्खणाईणं,
प्रकरण-३, गाथा-२०५, (पू.वि. उदाहरणार्थ वास्तुमंडल कुछ चक्र नहीं है व प्रकरण-१ की गाथा-९३-९४ तथा
गाथा-९७ से कुछ आंशिक पाठ तक नहीं लिखा है.) २.पे. नाम. वास्तुसार प्रकरण, पृ. ३२आ-३४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
वास्तु प्रकरण, सं., पद्य, आदि: आयुर्व्ययशिक; अंति: (-), (पू.वि. वास्तुमंडल चक्र अपूर्ण तक है.) ६६९९५. (+) भुवनदीपक सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७-२(८,१५)=३५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१९.५४१०, १०४३१-३४). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच व अंत के
पत्र नहीं हैं., सामुदायक नक्षत्र विचार अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) भुवनदीपक-बालावबोध *मा.गु., गद्य, आदि: सरस्वतीतणु तेज नम; अंति: (-), पृ.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र
नहीं हैं. ६७००३. (+#) वेदर्भी चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४६.५, ९x४०-४२).
वैदर्भी चौपाई, रा., पद्य, आदि: सरसति सामणि वीनमुं; अंति: वैद्रवी साचवे जी, गाथा-१८१. ६७०१२. (+) नलदमयंती चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१-७(१,१० से १२,१४,१९ से २०)=१४, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१.५४९, ९४२७). नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-१ ढाल-१
गाथा-७ अपूर्ण से ढाल-४ गाथा-२ अपूर्ण तक, ढाल-६ गाथा-२ अपूर्ण से ढाल-६ तक व ढाल-७ से खंड-२
ढाल-५ तक है.) ६७०१३. आनंदघन चोवीसी, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११, १५४४८). __स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: रिषभ जिनेसर प्रीतम; अंति: (-),
(पू.वि. २०वें तीर्थंकर मुनिसुव्रतस्वामी स्तवन अपूर्ण तक है.) ६७०१४. (+#) चोबोल प्रबंध, संपूर्ण, वि. १९२५, चैत्र शुक्ल, २, जीर्ण, पृ. ५, ले.स्थल. चाणोद, प्रले. श्राव. फतेचंद,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२३.५४११.५, ११४२३).
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२७२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चोबोल प्रबंध, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सभापुरि विक्रमराय; अंति: धूवते उजेणीपुर आवीयो, गाथा-२१. ६७०१५. सत्तागुंबोल, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. विक्रमपुरनगर, प्रले.ऋ. मुलतानचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४९, ११४४३).
९७ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: आगमीया कालरा केवलीया; अंति: साखसूत्र भगवती. ६७०१६. (+) स्तवन, पद व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ९-४(३ से ४,६,८)=५, कुल पे. १०,ले.स्थल. नवानगर,
प्रले. पंन्या. धनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक नहीं होने से अनुमानित पत्रांक दिया गया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३४९.५, ३२४१५). १.पे. नाम. १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, पृ. १अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पापस्थानक पहिलं कहि; अंति: (-), (पू.वि. सज्झाय-६ की गाथा-५ तक
२.पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ५अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. साधारणजिन स्तवन-भावनगर मंडन, मु. आसकरण, मा.गु., पद्य, वि. १७९७, आदिः (-); अंति:
आसकरण०अधीक हीलाई रे, गाथा-१४, (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण से है.) ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जयसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७९४, आदि: प्रमा पांच प्यारी रे; अंति: जेसागर०कीजे
भगत अपार, गाथा-५. ४.पे. नाम. जिनबिंबस्थापना स्तवन, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मा.गु., पद्य, वि. १७९४, आदि: हां मोरा लाल मलका सम; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ७अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: विनय० परिमाणंदस्युं, गाथा-९, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. श्रीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अकल मुरति अलवेसरू; अंति: श्रीविजये कर साज हो,
गाथा-७. ७. पे. नाम. कफनिवारक औषध विवरण, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रारम्भिक पाठ है.) ८. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ९अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: भोर भयो भयो भयो जागी; अंति: सुखमंगल माल रे, गाथा-६. ९. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण.
मु. श्रीविजय, पुहि., पद्य, आदि: जागी मा जागी जागी मा; अंति: श्रीविजे० मागी जी, गाथा-२. १०. पे. नाम. औपदेशिक गाथा, पृ. ९आ, संपूर्ण.
औपदेशिक गाथा संग्रह *, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६७०१७. कान्हड कठियारानो रास, संपूर्ण, वि. १८२३, श्रेष्ठ, पृ. १०, अन्य. आ. कक्कसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४९, ९-११४३४-३६). कान्हडकठियारा रास-शीयलविशे, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: पारसनाथ प्रणमुंसदा; अंति:
मानसागर दिन वधते रंग, ढाल-९. ६७०१८. (+) रात्रिभोजन रास, संपूर्ण, वि. १७७९, आषाढ़ कृष्ण, ३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. कंबोही, प्रले. मु. पुण्यविजय (गुरु
मु. भीमविजय); गुपि.ग. भीमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांति प्रशादात्., संशोधित., जैदे., (२४४१०, १२-१३४५३-५६).
रात्रिभोजन रास, वा. चारुचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पणमवि गणहर गोयमराय; अंति: सिद्धि संपति ते लहइ, गाथा-२६६.
"
.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
२७३
६७०१९. भीमविजयगुणवर्णन रास, संपूर्ण, वि. १८४७ आषाढ़ अधिकमास कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ९, ले. स्थल. आगरा, जैवे.,
(२५x९, ८x२४-२८).
भीमविजयगुणवर्णन रास, मु. लाल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसतिमाता वचन सुभ, अंतिः पनि राख्यो माटि पणे,
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गाथा - १०२.
६७०२०. (A) साधुपाक्षिक अतिचार व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २२-१४(१ से १४) ८, कुल पे. ८. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४८.५, ९४२५).
१. पे नाम साधुपाक्षिक अतिचार, पृ. १५अ १७अ, अपूर्ण. पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. प्रले. पं. रंगविजय,
,
प्र.ले.पु. सामान्य.
साधुपाक्षिक अतिचार श्वे. मू. पू., संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: विषइउ अनेरु जि, (पू.वि. वनस्पतिका अपूर्ण से है.)
२. पे. नाम. सात लाख सूत्र, पृ. १७अ - १८अ, संपूर्ण.
श्रावक देवसिकआलोयणासूत्र- तपागच्छीय, संबद्ध, मा.गु., पद्य, आदि: सातलाख पृथ्वीकाय; अंति: तस्स मिच्छामिदुक्कडं.
३. पे. नाम. नेमनाथजी स्तवन, पृ. १८अ - १९आ, संपूर्ण.
नेमराजिमती सज्झाय, मु. रंगसोम, रा., पद्य, आदि: विनवे राजुल नारी हो; अंति: तेण सनेही सुडे रंगसू, गाथा -११. ४. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १९आ-२० आ. संपूर्ण.
मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्री सीमंधरजी सुणजी अंतिः स्वामीजी रो अरदासजी, गाथा- ७.
५. पे. नाम. सिद्धाचलजी स्तवन, पृ. २०आ- २१अ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. कांतिविजयजी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धाचल भेटवा, अंति: करी विमलाचल जिन गावो,
गाथा - ५.
६. पे. नाम. सिद्धाचलजिन स्तवन, पृ. २१अ २१आ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु, पद्य, वि. १८वी, आदि; मारो मन मोह्यो रे, अंतिः कहेता नावे पार,
गाथा ५.
७. पे. नाम. युगमंधरजिन स्तवन, पृ. २२अ-२२आ, संपूर्ण.
पं. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काया पामी अति कूडी, अंति: पंडित जिनविजये गायो, गावा- ९. ८. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २२आ, संपूर्ण.
मु. राजाराम, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन तूं क्या फिरै; अंतिः राजाराम अरज है मोरी, पद-५,
६७०२१. (+) पद्मरत्नसूरि गुणरास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र. वि. अंत में "मु. खीमाविजयजी चेला आणंदविजे मु. सीरोडी " लिखा हुआ कागज चिपकाया है. संशोधित, जै, (२३४१०, १४X३६-३८).
,
पद्मरत्नसूरि गुणरास, आ. हर्षरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८१४, आदि: कविजन बंछितदायिनी, अंति: इम भीम आसी
समुदाय, बाल ६.
६७०२२. ध्वजभुजंग चौपाई, संपूर्ण, वि. १८९१, पौष शुक्ल ९, गुरुवार, मध्यम, पृ. २४, ले. स्थल श्रीपुरनगर, प्रले. मु. हंसराज ऋषि (लुंकागच्छ); राज्यकालरा जुवानसींघजी महाराणा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २५x९, ९३२).
ध्वजभुजंगकुमार चौपाई, मु. लब्धिसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७७७, आदि: सकल मनोरथ पूरिवा, अंतिः रे होसी कोडि कल्याण, गाथा - २७३.
(+)
६७०२३. छ काय विचार, संपूर्ण, वि. १७९५, माघ शुक्ल, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले. स्थल. ओरंगाबादनगर, अन्य श्राव. माणेकचंद नाथा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२३.५X१०, ७२१-२६).
६ कायजीव उत्पत्ति आयुष्यादि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथविकाअ १ अपकाय २; अंति: १५ ए सिद्धना भेद थया. ६७०२४. (+) दशवैकालिकसूत्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १६-१ (८) =१५, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित., वे. (२४.५४८.५, ६x२९-३१).
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२७४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरूपदपंकज नमीजी; अंति: वृद्धिविजय०
जगीसरे, सज्झाय-११, (पू.वि. अध्यन-५ गाथा-१३ अपूर्ण से अध्ययन-६ तक नहीं है.) ६७०२५. (#) नेमिजिन चौवीसचोक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४१०, १४४३१). नेमगोपी संवाद-चौवीसचोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: समर्यां देवी सारदा; अंति: तस सीस
अमृत गुण गाया, चोक-२४. ६७०२६. कल्पसूत्र पीठिका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदे., (२८४६, १२-१५४५७).
कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: अज्ञानतिमिरांधानां; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
वाचना-४ ऋषिपंचमी कथा अपूर्ण तक लिखा है.) ६७०२७. (+#) पुण्यसार रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, प्रले. सा. नानबाई आर्या (गुरु सा. डाहीजी आर्या);
गुपि.सा. डाहीजी आर्या; पठ.सा. वनो आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०.५४९.५, १३४३०). पुण्यसार रास-पुण्याधिकारे, मु. पुण्यकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६६६, आदि: नाभिराय नंदन नमुं; अंति: इम भणैः
नवनिधि थाय, ढाल-९, गाथा-२०५. ६७०२८. (+) मयणरेहा रास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२४९.५, १२४३७).
मदनरेखासती रास, वा. मतिशेखर, मा.गु., पद्य, वि. १५३७, आदि: श्रीजिणचउवीसइ नमी; अंति: शेखर० ते सर्वसुख
लहइ, गाथा-३५९. ६७०२९. (+) कल्पसूत्र की कल्पपीठिका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२४९.५, १३-१४४२६-३०).
कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मु. हेमविमलसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: सकलार्थ सिद्धिजननी; अंति: रिषिपंचमी
पर्व हुओ. ६७०३०. (+#) क्रोधनिवारण सज्झाय व साधारणजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.७, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षर
पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२१४९.५, १३४३४-३८). १.पे. नाम. लोभपरिहार सज्झाय, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-लोभपरिहार, ग. पद्मसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: भगवंत भाखइ भवियण; अंति: पद्मसुंदर० आणंद
थाई, गाथा-३६. २.पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण.
मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतक पाडल जाई; अंति: जो तूसै देव अंबाई, गाथा-४. ६७०३१. सिद्धचक्र आराधना विधि, अरिहंत के बारह गुण व अष्टप्रतिहार्य, संपूर्ण, वि. १९९०, कार्तिक शुक्ल, १२, सोमवार,
श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, ले.स्थल. विजापुर, प्रले.पं. पद्मसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीसंभववीरजिन प्रसादात्., दे., (२०.५४८, ९४२७). १.पे. नाम. सिद्धचक्राराधना उद्यापन विधि, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण.
सिद्धचक्र आराधना विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: इरियावही ४ नोकार; अंति: विशेष विधि गुरुगम्य. २. पे. नाम. अरिहंत के १२ गुण, पृ. ५अ, संपूर्ण.
अरिहंत १२गुण श्लोक, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अशोकवृक्षधराय; अंति: श्रीज्ञानातिशयधराय, श्लोक-२. ३. पे. नाम. अष्ट प्रतिहार्य, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
८ प्रातिहार्य श्लोक, सं., पद्य, आदि: अथाग्रेसिद्ध केवल; अंति: धराय श्रीसिद्धाय नमः, श्लोक-१. ६७०३३. धर्मबावनी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-१(१)=९, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२२४८.५, ५४१९-२४).
अक्षरबावनी, मु. धर्मवर्धन, पुहिं., पद्य, वि. १७२५, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. दोहा-२ अपूर्ण से २० अपूर्ण तक
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
६७०३४. पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९२८, ज्येष्ठ कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले. स्थल. वांकली, प्रले. उपा. शिवचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीसरस्वतीजी प्रसादात्., दे., ( २१x१०.५, १३X२४).
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पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु. सं., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानस्वामी, अंति: विजयजिनेंद्रसूरि ६६. ६७०३५. (+) आनंदघन चोवीसी, पूर्ण, वि. १९२९ फाल्गुन शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. ३१-१ (१) = ३०, ले. स्थल, वालीनगर,
प्रले. मु. नेमीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. रीषभदेव मनमोहन प्रसादात्., पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१९.५x१०, ७-९४१६-२७).
स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: (-); अंति: आनंदघन० जागेजी वीर, स्तवन- २४, (पू.वि. ऋषभजिन स्तवन गाथा - ५ से है.)
६७०३६. (+) चतुर्विंशतिगणसाधु स्तवनादि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५८+१ (२२) =५९, कुल पे. ४३, प्र. मु. कमलानंद, मु. रूपेंद्रकुशल: मु. मेघा ऋषि मु. भीमकुशल, पठ. मु. नर्मदाशंकर, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांक व्यतिक्रम में होने के कारण उसमें सुधार किया गया है., संशोधित., जैदे., (१९x१०, ९X२७).
१. पे नाम, चतुर्विंशतिगणधरसंख्या स्तवन, पृ. १आ- ३आ, संपूर्ण
२४ जिन गणधरसंख्या स्तवन, मु. कुंभ ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सकल जिणेसर प्रणमुं; अंति: कुंभरिष पभणे निसदीस, गाथा-२७.
२. पे. नाम. नवखंडापार्श्वनाथ स्तवन, पू. ३आ-४अ संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- घोघामंडण नवखंडा, मु. अरदास, मा.गु., पद्म, आदि आजि आणंद लील प्रमोद, अंति: ज्ञान तुम्हारु बंडो, गाथा- ७.
३. पे. नाम. सामायिक सज्झाय, पृ. ४अ ५अ, संपूर्ण.
कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: गोतम गणधर पाय प्रणमी, अंति: भवना माहरा बंधन तोडो, गाथा- १४.
मु.
४. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. ५अ - ५आ, संपूर्ण.
ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चालो सखी जिन वंदन जइ; अंति: देवचंद्र पद नीको रे, गाथा-६.
५. पे. नाम. पांच पांडव सज्झाय, पृ. ५आ-७अ संपूर्ण
मु. कवियण, मा.गु., पद्म, आदि: हस्तिनागपुर वर भलुं अंतिः मुझ आवागमण निवार रे, गाथा- १९.
६. पे. नाम, शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः आपो आपो ने राज मुझने; अंतिः सेवा कामगवी दोहंती, गाथा-७.
७. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण.
२७५
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लोहो लीजे रे भविया; अंति: दान कहे वारोवारि के, गाथा-७. ८. पं. नाम सिद्धाचल स्तवन, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. कांतिविजयजी, मा.गु., पद्य, आदि: श्री रे सिद्धाचल; अंति: करी विमलाचल गायो, गाथा - ५. ९. पे. नाम. नेमजिन स्तवन, पृ. ८आ, संपूर्ण.
मिजिन स्तवन, मु. मेघविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पसूअ पोकार सूण्या; अंति: मिलस्यै नयणानयण के, गाथा - ६. १०. पे. नाम. ऋषभदेव स्तवन, पृ. ९अ - ९आ, संपूर्ण.
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शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. रंग विजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्यारा ते प्रीउने वी; अंति: जिणे राखी जग रंगरेख, गाथा - ११. ११. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ९आ- १०आ, संपूर्ण.
मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मोहन महिमानिलो रे जी; अंति: राजसमु० अंग णमाय रे, गाथा - १४.
१२. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १० आ-१२अ, संपूर्ण, प्रले. मु. कमलानंद, प्र.ले.पु. सामान्य.
मु. गजाणंद, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सांमणि पाय नमि; अंति: गजानंद आनंद कै, गाथा - १६. १३. पे, नाम, १२ भावना, पृ. १२अ १४आ, संपूर्ण
मा.गु., पद्य, आदि: सिद्ध अनंत समरी करी; अंति: इम जाणी रे सरणा करो, गाथा-२०. १४. पे नाम, शांतिजिन स्तवन, पू. १४ आ-१५अ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. जीवराज कवि, मा.गु., पद्य, आदि: इंद्र चउसठिमिया देव; अंति: जीवराज. थायसे रे, गाथा-६. १५. पे. नाम. मल्लिजिन स्तवन, पृ. १५अ-१७अ, संपूर्ण.
मु. जीवराज कवि, मा.गु., पद्य, आदि: पंच जिनवर जांणियइ इम; अंति: जीवराज मोरी आसये, गाथा-२१. १६. पे. नाम. सुव्रतस्वामी स्तवन, पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण. सुव्रतजिन स्तवन, मु. जीवराज कवि, मा.गु., पद्य, आदि: चरणकमल श्रीसद्गुरु; अंति: जिनवर गुण अभिरामजी,
गाथा-९. १७. पे. नाम. नमिनाथ स्तवन, पृ. १८अ-१९अ, संपूर्ण. नमिजिन स्तवन, मु. जीवराज कवि, मा.गु., पद्य, आदि: चिदानंदकारी भवतापचूर; अंति: जीवराज० नमो सिद्धकाज,
गाथा-१०. १८. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १९आ-२२आ, संपूर्ण, प्रले. मु. रूपेंद्रकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य.
मु. जीवराज कवि, मा.गु., पद्य, आदि: सदावदूरे वाविसमो; अंति: कर्म सघला टालिस्यइं, गाथा-१९. १९. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २२आ-२३अ, संपूर्ण.
आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: समकित वाहिरो जिनभा; अंति: विजयदेव० चित प्राणि, गाथा-१६. २०. पे. नाम. गुरुगुण सज्झाय, पृ. २३अ-२४अ, संपूर्ण.
मु. कुशलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सद्गुरु सरसति पाय; अंति: कुशल० गुरु चिरंजीवो, गाथा-१२. २१. पे. नाम. विजयरत्नसूरि स्तुति, पृ. २४अ-२४आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: विजयरत्नगणाधिप धीमता; अंति: तदयामितकांतिसुखावहः, श्लोक-१. २२. पे. नाम. क्षमासूरि स्तुति, पृ. २४आ, संपूर्ण, ले.स्थल. अहमदाबाद, प्रले. मु. भीमकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य.
मा.गु., पद्य, आदि: जय जय गणधारक विजय; अंति: माणिभद्र जसवीर, गाथा-१. २३. पे. नाम. मनगुणतीसी सज्झाय, पृ. २५अ-२७आ, संपूर्ण, प्रले. मु. मेघा ऋषि; पठ. मु. नर्मदाशंकर, प्र.ले.पु. सामान्य.
मु. गोविंद, मा.गु., पद्य, आदि: जीवडा म मेलै मन मोकल; अंति: गोविंद०पाप पणासै दूर, गाथा-२९. २४. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २७आ-२८आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: जनपति द्वारका नयरी; अंति: नायक मंगल यदुपति, गाथा-९. २५. पे. नाम. गुरुगुण भाष, पृ. २८आ-२९आ, संपूर्ण, वि. १८४६, वैशाख शुक्ल, २, सोमवार, ले.स्थल. जामोला.
ग. जयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही उद्यान कै; अंति: हितकार मनोरथ पुर छै, गाथा-६. २६. पे. नाम. मृगावती सज्झाय, पृ. २९आ-३३अ, संपूर्ण. मृगावतीसती सज्झाय, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: साधवीयै ज्ञान लह्यो; अंति: कोडि कल्याण करी हो,
गाथा-३९. २७. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-नारी शिक्षा, पृ. ३३अ-३५आ, संपूर्ण.
मु. रूपकमल, मा.गु., पद्य, वि. १५८२, आदि: आपैइ आप संभालीइ रे; अंति: धरइ जसुमतिसील रसाल, गाथा-३१. २८. पे. नाम. नेमिराजिमती फाग, पृ. ३५आ-३६अ, संपूर्ण.
नेमराजिमती फाग, मा.गु., पद्य, आदि: डफवारे तेरे संग; अंति: वैराग लह्यो चरणां, गाथा-५. २९. पे. नाम. कर्महिंडोला, पृ. ३६अ-३८अ, संपूर्ण. कर्महींडोल सज्झाय, मु. हर्षकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: राग दोष दोउ थंभ साजे; अंति: भवियन मनहुं पूरो आज,
गाथा-९. ३०.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-लालच परिहार, पृ. ३८अ-३८आ, संपूर्ण.
मु. भवनकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: लाज गमाइरेलालची; अंति: भवनकीरत० कोइ वंदनीक, गाथा-७. ३१. पे. नाम. मुंहपत्ति के पचास बोल, पृ. ३८आ, संपूर्ण. मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: तत्त्ववृष्टि इन मोहन; अंति: कषाय पचास बोलत
तजती.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
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३२. पे. नाम. हरि गीत, पृ. ३८-३९आ, संपूर्ण.
कृष्णभक्ति गीत, मा.गु., पद्य, आदि: सत्यभामाइ रूसणा लीधा; अंति: वाल बोली से तुम साथे, गाथा-९. ३३. पे. नाम. संप्रतिराजा सज्झाय, पृ. ३९-४०आ, संपूर्ण.
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पद्मप्रभजिन स्तवन- संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु, पद्य, आदि धन धन संप्रति साचो अंतिः भवि भवि सेवरे, गाथा- ९.
३४. पे नाम, जिनवंदनविधि स्तवन, पृ. ४०आ- ४१आ, संपूर्ण
मु. कीर्त्तिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: जिन चउवीसै करु; अंतिः कीर्त्तिविमल० वरवा, गाथा- ११.
३५. पे. नाम. अजितजिन गीत, पृ. ४९ आ-४२अ, संपूर्ण.
अजितजिन स्तवन, मु. विजयानंदन, मा.गु., पद्य, आदि: अजित जिणंद दयाल सुणो; अंति: देव थुण्यो जिन जगपती, गाथा - ११.
३६. पे नाम. शीतलजिन वीनती, पृ. ४२अ ४४अ संपूर्ण.
शीतलजिन स्तवन, मु. हर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सखी नवी नवेरी भगति, अंति: लहे सूख संपतडी, गाथा-१७. ३७. पे. नाम. सुगुरुपचीसी, पृ. ४४-४६अ, संपूर्ण
गुरुपच्चीसी, मु. जिनहर्ष, मा.गु, पद्य, आदिः सुगर पीछाणो इण आचारे अंतिः जिनहर्ष० पुसंगजी गाथा २५. ३८. पे. नाम क्षमाछत्तीसी प्र. ४६ अ ४९आ, संपूर्ण.
क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः आदर जीव क्षमागुण; अंति: चतुरविध संघ जगीस जी, गाथा - ३६.
३९. पे नाम, संगीतदर्पण रागमाला, पू. ४९ आ. ५०अ संपूर्ण
राग नाम विचार, सं., पद्य, आदि: श्रीरागोध वसंतच अंति: नदृहमर नटनारायणांगना, श्लोक ७.
४०. पे. नाम. रागरागिनी नाम, पृ. ५० अ-५०आ, संपूर्ण.
२७७
३६ रागरागिनी नाम, गोपाल, पुहिं., पद्य, आदि: भैरुमै विलावल मिलावत, अंति: गोपाल० वहै वांसरी, गाथा-२. ४१. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- वरकाणा, पृ. ५०-५२अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- वरकाणा तीर्थ, ग. शांतिविजय पंडित, मा.गु., पद्य, आदि; वरकाणै पास विराजै; अंतिः सांतिविजय लहै सुजगदीस, गाथा-१४.
४२. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय - गर्भावास, पृ. ५२-५७आ, संपूर्ण.
मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदिः उतपति जोज्यो आपणी; अंति: कहै मुनि श्रीसार ए, गाथा - ७५.
४३. पे नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. ५७-५८ अ, संपूर्ण
मु. सुमतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: जयदायक हो जगनायक; अंतिः सम जिनरायना हो राजि, गाथा - ६. ६,७०३७. (+) अढारपापस्थानकनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैवे. (१९.५x१०.५.
१०X२३).
१८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदिः पापस्थानक पहिलुं कहि, अंतिः वाचकजस इम आखे जी, सज्झाय- १८, ग्रं. २११.
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६७०३८. (+) गौतम रास, संपूर्ण, वि. १८७८, माघ कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ७, प्रले. श्राव. जसरूप, पठ. श्राव. सरूप, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२२x१०.५, १०X२४-२६).
गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल, अंति: सुख संपूरण संपजे ए. गाथा-५४.
६७०३९. (+#) बालचंद बत्तीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, प्र. वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२०.५X१०, १३X३१).
अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद मुनि, पुहिं., पद्य, वि. १६८५, आदि: अजर अमर पद परमेसर, अंतिः सुखकंद रुपचंद जानीए
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२७८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६७०४०. (+) प्रत्येकबुद्धचौपाई-खंड १-२, संपूर्ण, वि. १६९२, कार्तिक कृष्ण, ११, सोमवार, जीर्ण, पृ. १६,
ले.स्थल. सोजितनगर, प्रले. मु. हीरा (गुरु मु. समरथ ऋषि); गुपि. मु. समरथ ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (९७५) याद्रिसं पूस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२२४११, १४४२६-३०). ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: श्रीसिद्धारथ कुलतिलउ; अंति: (-),
प्रतिपूर्ण. ६७०४१. (+) उपदेशसित्तरी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१९.५४९, १०x२९-३२).
औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उतपत जोज्यो आपणी मन; अंति: इम कहइ श्रीसार
ए, गाथा-६९. ६७०४२. (+) औपदेशिक पद व लावणी संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष
पाठ-संशोधित., दे., (१२४११.५, ११-१३४२४). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
पुहि., पद्य, आदि: तु का ढूंडे यौवन; अंति: जिम मुखडो दरपन मे, पद-५. २. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
औपदेशिक लावणी-गुरुज्ञान, मु. जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: साब विना तन मन की; अंति: जिनदास० में नही
रसा, गाथा-४. ३. पे. नाम. नेमराजिमती लावणी, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
मु. जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: सजन विना गुना तजी हम; अंति: नगीना नेम गया वन में, गाथा-५. ४. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
औपदेशिक लावणी-लोभ परिहार, मु. जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: पापमाही रात दिवस; अंति: ठीकरी उई काजल
नैण, गाथा-४. ५. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
मु. जिनदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: तुम भजो जिनेसर देव; अंति: डत जौत सदा सुखदाइ रे, गाथा-५. ६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण.
मु. जिनदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: तुम तजौ जगत का ख्याल; अंति: उपदेस सुनो मत काना, गाथा-४. ७. पे. नाम. सोलसती लावणी, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण.
१६ सती लावणी, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवीरतणां तृकाल चर; अंति: रतनचद० में दीप्ति, गाथा-७. ६७०४३. (+) फलवर्द्धिपार्श्वजिन स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८३०, वैशाख कृष्ण, २, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ४,
प्रले. मु. शिवसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१४८.५, ९४२६-३२). १. पे. नाम. फलवर्द्धिपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण..
पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धितीर्थ, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: परत्यापुरण प्रणमीए; अंति: गाथा-१७. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ छंद, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, ग. कल्याणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: समरथ साहिब सांवलो; अंति: कल्याण० सानिधि
करइं, गाथा-१६. ३. पे. नाम. ऋषभदेव छंद, पृ. ४अ-५आ, संपूर्ण.
आदिजिन छंद, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: सतगुरु कहै सुगुरुराय; अंति: विजयहर्ष० सानिधि करै, गाथा-१७. ४. पे. नाम. आदिजिन छंद-धुलेवामंडन, पृ. ५आ-७आ, संपूर्ण..
___ आ. गुणसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रमोदरंगकारणी कला; अंति: गुणसूरि० ध्याइये, गाथा-८. ६७०४४. (+) गोडीपार्श्वजिन स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३, कुल पे. १४, प्र.वि. संशोधित., जैदे.,
(२२.५४१०.५, १०४२८). १. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
२७९ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. खुशालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो हे सहीया जिन; अंति: तो वाज्या जीतना
डंका, गाथा-५. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरा, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण.
पंन्या. खुशालविजय, रा., पद्य, आदि: सूरति प्यारी रे मूरत; अंति: स्यालविजय सूखकारी रे, गाथा-१४. ३. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण.
मु. हस्तिविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: संभवजिन सुप्रसन्न थई; अंति: सुख लद्यु आज रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. थुलभद्रमुनि सज्झाय, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण. स्थूलिभद्र सज्झाय, पंन्या. खुशालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: एक दिन कोस्या मन रंग; अंति: जय कहे सिद्धा काजरे,
गाथा-१६. ५. पे. नाम. रेवतीश्राविका सज्झाय, पृ. ४अ-५आ, संपूर्ण.
पंन्या. खुशालविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: सोवनने सिघासण हो रे; अंति: घरि होस्ये मंगलमाला, गाथा-११. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण, पे.वि. गोडीजी प्रसादात्.
पंन्या. खुशालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वंछितपुरण पास जिणंदा; अंति: खुस्याल० सुखया साया, गाथा-४. ७. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण.
पंन्या. खुशालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजितजिणंदरी सेवा भवि; अंति: खुस्याल० गुण गाया रे, गाथा-७. ८. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
पंन्या. खुशालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवर मुरति ताहरी रे; अंति: स्याल सवायो सुख पायो, गाथा-३. ९. पे. नाम. नेमिजिन गीत, पृ. ७आ, संपूर्ण.
पंन्या. खुशालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भविजन भावे रे सेवो; अंति: खुस्यालविजय जय जयकार, गाथा-३. १०. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, पंन्या. खुशालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मोरा जिनजी वीरजिणेसर; अंति: खुस्याल० पुरो आसि
रे, गाथा-९. ११. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ८आ-९आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, पंन्या. खुशालविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: प्रभूजी माहरा रे साह; अंति: सुणज्यो दीन
दीयाल रे, गाथा-९. १२. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण.
श्राव. लोधो शाह, मा.गु., पद्य, आदि: केसरवां वहु गइरे; अंति: गमणा नवारे रेसा, गाथा-७. १३. पे. नाम. चतुर्विंशती तीर्थंकरावली, पृ. १०अ-२६अ, संपूर्ण, वि. १८५७, वैशाख कृष्ण, १२. स्तवनचौवीसी, पंन्या. खुशालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिजिणेसर विनती दीजे; अंति: खुस्यालविजे सुजगीस,
स्तवन-२४. १४. पे. नाम. चोवीसीगरबी, पृ. २६अ-३३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. स्तवनचौवीसी, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: उलगडी रे आदिनाथनी यो; अंति: (-), (पू.वि. अनंतजिन स्तवन
तक है.) ६७०४५. कपासियामोती संवाद, संपूर्ण, वि. १७६६, भाद्रपद शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (१९.५४८, ११-१२४३२-३५).
मोतीकपासीया संबंध, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: सुंदर रुप सोहामणो; अंति: सार० चतुरनरां
चमतकार, ढाल-५, गाथा-१०३. ६७०४६. आदिजिन पदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(४)=७, कुल पे. ३, दे., (२१४९, १२४७). १.पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण.
आ. महेंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जंगा जाडमे आप विराजो; अंति: जपे भवजल पार उतारि, गाथा-५. २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: शत्रुजय नो वासी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-लोद्रवपुरमंडन, पृ. ५अ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है.
पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, पं. केसरीचंद गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीचिंतामणि पासरै; अंति: कहे मुनि केसरीचंद,
__ गाथा-९, संपूर्ण. ६७०४७. गौतमस्वामि रासादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०९, कुल पे. ५, दे., (१६.५४८.५, ६४९-११). १. पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. १अ-३१आ, संपूर्ण, वि. १९२४, आषाढ़ शुक्ल, १३. उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: संपजै कुरला करै कपूर,
गाथा-४७. २.पे. नाम. शांतिनाथजिन स्तवन, पृ. ३२अ-४०अ, संपूर्ण, ले.स्थल. कोटारामपुर. शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद मात नमु सिरनामी; अंति: वंछित फल
निहचै पावै, गाथा-२१. ३. पे. नाम. भक्तामरस्तोत्र, पृ. ४०आ-६२अ, संपूर्ण. ___ भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. ४. पे. नाम. श्रावक करणी, पृ. ६२अ-७१आ, संपूर्ण, पे.वि. ६७ से ७१ पत्र आपस में चिपके हुए हैं. श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: करणी दुखहरणी छे एह,
गाथा-२२. ५.पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, पृ. ७२अ-१०९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: जयउ सामी जयउ सामी; अंति: (-),
(पू.वि. महावीरजिन स्तुति गाथा-२ तक है.) ६७०४८. सत्तरभेदी पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, पठ. श्राव. वखत साह, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१७४१०, ७४१८-२०).
१७ भेदी पूजा, वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंतमुखकजवासिनी; अंति: सफले थुणियो रे, ढाल-१७. ६७०४९. (+) स्वार्थीनी सज्झाय, धन्नाअणगार सज्झाय व नंदिषेण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. ३,
प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१७४९, ११४२२-२६). १.पे. नाम. स्वार्थीनी सज्झाय, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-स्वार्थ परिहार, मा.गु., पद्य, आदि: इण रे प्रस्तावइ चित; अंति: दीधी बेग बिदाय, गाथा-५९. २. पे. नाम. धन्नाअणगार सज्झाय, पृ. ६आ-८अ, संपूर्ण.
मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: बे कर जोडि नइ बिनवू; अंति: पाला जिणधर्म सोयजी, गाथा-२०. ३. पे. नाम. नंदिषेणमुनि सज्झाय, पृ. ८अ-९आ, संपूर्ण..
मु. श्रुतरंग कवि, मा.गु., पद्य, आदि: मुनीवर महिअल विचरइं; अंति: कवि श्रुतरंग विनवइ, गाथा-६. ६७०५०. (+) सिद्धाचल रास, संपूर्ण, वि. १८६४, माघ शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. सीरुडा, पठ. मु. मोति (कमलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (१७४९.५, १३४२७-३१). शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंति: समयसुंदर०
आणंद थाय, ढाल-६, गाथा-१०९. ६७०५१. श्रावकपाक्षिक अतिचार व वर्द्धमानजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १५१५, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. १०-३(१,३,५)=७,
कुल पे. २, ले.स्थल. विश्वलनगर, प्रले.ग. जिनप्रमोद (गुरु आ. लक्ष्मीसागरसूरि); गुपि. आ. लक्ष्मीसागरसूरि; पठ. श्राव. जिणदास वाधा सं.; अन्य. सा. मूला, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१६.५४९.५, १३४२६-२९). १.पे. नाम. श्रावक अतीचार, पृ. २अ-१०अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम एक व बीच के पत्र नहीं हैं. श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मिच्छामि दुक्कडम्,
(पू.वि. बीच-बीच के पाठांश हैं.) २.पे. नाम. वर्द्धमानजिन स्तुति, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण.
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२८१
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
__ पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: सर्वकार्येषु सिद्ध, श्लोक-४. ६७०५२. सज्झाय व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १७८७-१८९९, मध्यम, पृ. १०-२(७ से ८)=८, कुल पे. ५, जैदे., (१७४१०.५,
१२४२५). १. पे. नाम. श्रावककरणी सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ___ मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: जिनहरख दुखहरणी छे एह, गाथा-२२. २. पे. नाम. श्रावक बारव्रत सज्झाय, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. १२ व्रत सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रावकना व्रत सुणिज; अंति: समयसुंदर०
नित सांभले, गाथा-१५. ३. पे. नाम. श्रावककरणी सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. ___उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावकनी करणी सांभलो; अंति: समयसुंदरतो साचो कहे, गाथा-१४. ४. पे. नाम. मुनिमालिका स्तवन, पृ. ३आ-६अ, संपूर्ण, वि. १७८७, प्रले.सा. भामाजी, प्र.ले.पु. सामान्य.
ग. चारित्रसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १६३६, आदि: रिषभ प्रमुख जिन पय; अंति: सदा कल्याण कल्याण, गाथा-३५. ५. पे. नाम. २० विहरमानजिन स्तवन, पृ. ६आ-१०आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं., वि. १८९९, वैशाख शुक्ल, १५,
प्रले.सा. भावसिद्ध; पठ.सा. वखतु (गुरु सा. भावसिद्ध), प्र.ले.पु. सामान्य. विहरमान २० जिन स्तवन, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: वांदुमन सुध वैहरमाण; अंति: नेहधर
___धर्मसी नमै, ढाल-३, गाथा-२५, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से १५ अपूर्ण तक नहीं है.) ६७०५३. पार्श्वनाथ छंद व पद्मावती आराधना, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-३(१ से ३)=५, कुल पे. २, जैदे., (१५.५४१०,
८x१८). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ छंद, पृ. ४अ-५आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: धर्मसिह ध्यानह धरण, गाथा-२९,
(पू.वि. गाथा-२२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पद्मावती आराधना, पृ. ५आ-८आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवि राणी पद्मावती; अंति: समयसुंदर० तत्काल, ढाल-३,
गाथा-३३. ६७०५४. मल्लिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९६७, आश्विन शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१६.५४१०, १०x२०-२२). मल्लिजिन स्तवन, मु. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: नवपद समरी मन सुद्ध; अंति: कुसललाभ० मन मै
धरी, ढाल-५. ६७०५५. (-#) सज्झाय, स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ४५-११(१,३,५,११ से १२,२७ से २८,३०,३९,४२ से
४३)=३४, कुल पे. ३२, प्र.वि. पत्रांक नहीं होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (१७.५४१०, १४-१९४२५-३०). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पे.वि. यह कृति पृष्ठ संख्या २ असे ७ अतक
बीच-बीच में लिखी गई है.
औपदेशिक दोहा संग्रह , पुहि., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण से ३४ तक है.) २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___मा.गु., पद्य, आदि: भवियण भव सायर तिरीया; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शत्रुजे ऋषभ समोसर्य; अंति: समयसुंदर कहे एम, गाथा-८, (वि. प्रतिलेखक
ने १ गाथा को ३ गाथा गिनकर लिखा है.) ४. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण, प्रले.पं. जसवंतविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य.
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मु. मतिहंस, मा.गु, पद्य, आदि: सीमंधरजिन साहिबा स्व; अंतिः मतिहंस नै मन मानीयो, गाथा ५. ५. पे. नाम. औपदेशिक कवित संग्रह, पृ. ७आ- ९अ, संपूर्ण, वि. १७८५, फाल्गुन शुक्ल, ३. औपदेशिक कवित्त संग्रह " पुहिं. मा.गु, पद्य, आदि: सदल सकोमल सिय हरण; अंति: (-). ६. पे. नाम औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. ९आ, संपूर्ण.
1
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
पुहिं., प्रा., मा.गु., पद्य, आदि: पाप घटै व्रत तीरथ; अंति: तोही नाम सरभर नाथीयै, गाथा - ११. ७. पे नाम, औपदेशिक दोहा संग्रह. पृ. ९आ-१०आ, संपूर्ण
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क. गद, पुहिं., पद्य, आदि: कनक दान कर खेत का अंति: गद्द० संपत्त जाहु जल, गाथा-२०.
८. पे. नाम. कृष्णलीला वर्णन, पृ. १३अ १४आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं है.
श्रीकृष्णलीला चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: जाणी निवात घोली, चौपाई ६१, (पू. वि. चीपाई ३७ अपूर्ण से है.)
९. पे. नाम. पंचतीर्थी स्तवन, पृ. १४-१५ अ, संपूर्ण.
५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदिः आद ए आद ए; अंतिः सुखे आवे आसना, गाथा - ११. १०. पे. नाम. शीयलनववाड सज्झाय, पृ. १५आ-१९अ, संपूर्ण.
नववाड सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: श्रीनेमीश्वर चरणयुग, अंति: कहे जिनहरख उमेदोरे, ढाल - ११, गाथा - ९७.
११. पे. नाम. पद्मावती आलोयणा, पृ. १९आ-२०आ, संपूर्ण, प्रले. पं. रूपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य.
पद्मावती आराधना, उपा, समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पदमावती; अंतिः कहे पापथी छूटि ततकाल, ढाल - ३, गाथा- ३३.
१२. पे नाम, शीतलजिन स्तवन- अमरपुर मंडन, पृ. २०आ- २१अ संपूर्ण,
शीतलजिन स्तवन- अमरसरपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, रा., पद्य, आदि: मोरा साहिव हो; अंति: समयसुंदर ० जनमन मोह ए, गाथा - १५.
१३. पे. नाम. श्रृंगाररा प्रास्ताविक दूहा, पृ. २१आ-२३अ, संपूर्ण.
तत्त्वसार, मु. आस, मा.गु., पद्य, आदि: सारदा सुप्रसनहुव सुज, अंति: आस० संपूरण ततसार, गाथा-५५.
१४. पे नाम, त्रिकूटबंध किसनजीरो गीत, पृ. २३ आ-२४अ, संपूर्ण
कृष्णलीला वर्णन गीत- त्रिकूटबंध, क. जस कवि, पुहिं., पद्य, आदि: वर किसन रुखमणि ले वल; अंति: गटगट वि जगै जस कीध, चौपाई-४.
१५. पे. नाम. जात सपखरो गीत पृ. २४- २४आ, संपूर्ण.
सपखरो गीत, क. भैरुदास, पुहिं., पद्म, आदि भृंगी ऊमंगी सुचंगी, अंतिः भैरुदास भाईभाई भांग, दोहा ५. १६. पे. नाम. गाहा जाति चोसर, पृ. २४आ, संपूर्ण.
औपदेशिक गाथा, खेम, पुहिं., पद्य, आदि उपना पुरसाणी उडा, अंति: खेम देता पंडिताला, गाथा- ४. १७. पे नाम, छंद जातिरोमकंध, पृ. २४-२६अ, संपूर्ण, वि. १७८६, आश्विन कृष्ण, ९ प्रले. पंन्या. जसवंतविजय,
प्र.ले.पु. सामान्य.
अश्वशुभलक्षण छंद, पुहिं., पद्य, आदि: पडताल पयाल भ्रमंक, अंतिः खान राजा० अभिनमै, चौपाई- १३. १८. पे. नाम. सनतकुमारचक्रवर्ती सज्झाय, पृ. २६आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः सांभलि सनतकुमार हो; अंतिः (-), (पू.वि. गाथा-६ तक है.)
१९. पे नाम, भैरवनाथ गीत, पृ. ३१अ- ३१आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं.
भैरव गीत, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: वीरंदा जसबंदा अमीचंद, गाथा-१२, (पू.वि. गाथा- २ से है.) २०. पे. नाम औपदेशिक सवैया, प्र. ३१ आ. संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: करन परपंच इन पंचभवे, अंतिः कछु राज पापाबाई की, सवैया- १.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
२१. पे. नाम. माता डुंगरेचारा छंद, पृ. ३२आ-३३आ, संपूर्ण, प्रले. पं. जगा, प्र.ले.पु. सामान्य. डुंगरदेवी स्तवन, पु,ि पद्य, आदि आदिस गति अघटा० जुगाव, अंतिः मे हे परमेश्वरी, गाथा-२१. २२. पे. नाम क्षेत्रपाल छंद, पृ. ३४अ- ३५अ, संपूर्ण.
क्षेत्रपाल स्तवन, मु. मेह, पुहिं., पद्य, आदि: (१) खेल लचिर ते खेलता, (२) नमोतुं नाथं नमो समाथ, अंति: मेह० भैरवनाथ समथभड, गाथा - १७.
२३. पे. नाम. गंगाजी छंद, पृ. ३५अ - ३७अ, संपूर्ण, वि. १७८२, पौष शुक्ल १, प्रले. पंन्या. जसवंतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. गंगाजी स्तवन, केसवदास, पुहिं., पद्य, आदि: ब्रह्म कमंडल मझे; अंति: केसव ० जै गंगा भागीरथी, गाथा-२१. २४. पे. नाम. औपदेशिक लोक संग्रह, पृ. ३७आ, संपूर्ण, वि. १७८५, आषाढ़ शुक्ल, ३, ले. स्थल. रीयागाम,
पे.वि. श्रीपार्श्वदेवजी सदा सहाय.
श्लोक संग्रह * पुहिं, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-) श्लोक-४.
**, पुहिं.,प्रा.,
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२५. पे. नाम. सुभद्रासती सज्झाय- शीयल, पू. ३८अ - ३८आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
सुभद्रासती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर सोझै ईरज्या, अंति: (-), (पू.वि. गाथा - १६ अपूर्ण तक है.) २६. पे नाम, धन्ना अणगार सज्झाय, पृ. ४०अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं.
मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कहे श्रीदेव० जय जयकार गाथा ११, (पू. वि. मात्र अंतिम गाथा अपूर्ण है.) २७. पे नाम, जीवकाय सज्झाय, पृ. ४० अ-४०आ, संपूर्ण
औपदेशिक सज्झाय-जीवकाया, पुहिं., पद्य, आदि: तुं मेरी फूलवाडीया; अंति: पामीजे रंग सूख कोड, गाथा - ९. २८. पे. नाम. मेघकुमार चौढालियो पृ. ४०आ-४१आ, संपूर्ण वि. १७८३ श्रावण शुक्र. ११, गुरुवार,
प्रले. पंन्या. जसवंतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य.
मु. जादव, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गणधर गुण नीलो; अंति: जादव० भणवा सुखय थाय, ढाल - ४, गाथा - २२. २९. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. ४१आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मु. गिरधर, पुहिं., पद्य, आदिः एकवत गीरधर रा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा- २ अपूर्ण तक है.) ३०. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. ४४अ, संपूर्ण.
औपदेशिक गाथा संग्रह # पुहिं., मा.गु, पद्य, आदि: अजो कृष्ण अवतार कंस, अंति: (-).
"
३१. पे. नाम. सिचियायमाता छंद, पृ. ४४-४५अ, संपूर्ण.
आ. सिद्धसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुझ मनि आसा आज फली, अंतिः सिद्धसूरि० प्रसन सही, गाथा २१. ३२. पे. नाम. औपदेशिक छंद, पृ. ४५आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
२८३
गाथा संग्रह, पुहिं., प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-). (पू. वि. गाथा ४ तक है.)
६७०५७. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २६- १ (१) - २५, कुल पे. ९, जैवे. (१७.५४९.५, १२x२५)
१. पे. नाम. मंगल स्तवन, पृ. २अ - २आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं.
पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: नमउ पद्मविजय कहेइ ए. गाथा-१७, (पू. वि. गाथा- ७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. चार मंगल पद, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण.
४ मंगल पद, क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शासणदेवता समरिआ गायस; अंतिः पद्मविजय० निरमल चित्त, गाथा ६.
३. पे. नाम. सिद्धदंडिका स्तवन, पृ. ३आ-७अ, संपूर्ण.
पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१४, आदि: श्रीऋखहेसर पयनमी; अंतिः पद्मविजय जिनराया रे, ढाल-५,
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गाथा - ३८.
४. पे. नाम. अमृतवेल सज्झाय, पृ. ७अ - ९अ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पच, वि. १८वी, आदि चेतन ज्ञान अजुवालीए अंतिः सुजस रंग रेलि रे, गाथा-२९. ५. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि सज्झाय, पृ. ९अ १३आ, संपूर्ण.
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२८४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नमस्कार महामंत्र सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वारी जाउ अरिहंत ने; अंति: ज्ञान०
सिद्धि स्वरूप, ढाल-८, गाथा-४१. ६. पे. नाम. क्षमाछत्रीसी, पृ. १३आ-१६अ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदर जीव खिमागुण आदर; अंति: समयसुंदर०संघ जगीश जी, गाथा-३६. ७. पे. नाम. शाश्वतजिन स्तवन, पृ. १६अ-२१आ, संपूर्ण. मु. माणिकविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७१४, आदि: वीर जिणेसर पाय नमी; अंति: माणिकविमल० संपति घणी, ढाल-७,
गाथा-८४. ८. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तवन, पृ. २१आ-२४आ, संपूर्ण. पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९५, आदि: जगपति नायक नेमिजिणंद; अंति: जिनविजय जयसिरी वरी, ढाल-४,
गाथा-४२. ९. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. २४आ-२६आ, संपूर्ण.
सिद्धचक्र स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: तिरथपति अरिहा नमी; अंति: देवचंद्र सुशोभता, गाथा-११. ६७०५८. नवपद स्तुति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-४(४,७ से ९)=६, दे., (१७४१०.५, ८x१६).
नवपद स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंतपद आराधीयै आणी; अंति: पद्मसूरि० महातम मोड, स्तवन-९,
(पू.वि. उपाध्यायपद स्तवन से तपपद सतवन अपूर्ण तक नहीं है.) ६७०५९. (#) स्तवन व रास संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, भाद्रपद शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. २२-७(७ से १२,१४)=१५, कुल पे. ४,
प्र.वि. लेखन संवत हेतु २० वर्षे लिखा है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१७.५४९.५, ११४२३). १.पे. नाम. मेघकुमार चौढालिया, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण.
क. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: मगध देसमाहि जाणीयै; अंति: मुनि कनक भणै निसिदीस, ढाल-४, गाथा-४६. २. पे. नाम. से@जय स्तोत्र, पृ. ४आ-६आ, संपूर्ण.. शत्रुजयतीर्थस्तवन, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: पय पणमी रे जिणवरना; अंति: साधुकीरति इम कहै,
गाथा-१६. ३. पे. नाम. नेमिजिन रास, पृ. ६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सारद पय पणमी करी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ४. पे. नाम. अवंतिसुकमाल सज्झाय, पृ. १३अ-२२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: (-); अंति: शांतिहरख सुख पावेरे, ढाल-१३,
गाथा-१०७, (पू.वि. ढाल-१, गाथा-६ अपूर्ण से ढाल-२, गाथा-१७ अपूर्ण तक है व ढाल-२, गाथा-२७ अपूर्ण से
अंत तक है.) ६७०६०. (+) कृष्ण लावणी, भक्तामर स्तोत्र, भक्तामर स्तोत्र पद्यानुवाद व कल्याणमंदिर स्तोत्र पद्यानुवाद, अपूर्ण, वि. २०वी,
श्रेष्ठ, पृ. ९८-८५(१ से ७८,८५ से ९०,९५)=१३, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (१७.५४९, १०४२६). १. पे. नाम. कृष्णजी लावणी, पृ. ७९अ-७९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. कंसकृष्ण विवरण लावणी, मु. विनयचंद ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: (-); अंति: विनयचंद० मनही आणंदे, ढाल-२७,
गाथा-४३, (पू.वि. ढाल-२७ की गाथा-३६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ७९आ-८४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. श्लोक-४४ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र पद्यानुवाद, पृ. ९१अ-९६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. भक्तामर स्तोत्र-पद्यानुवाद, मु. हेमराज, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: हेमराज० पावै शिवखेत, गाथा-४९,
(पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से ४२ अपूर्ण तक व ४७ अपूर्ण से है.) ४. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र पद्यानुवाद, पृ. ९६अ-९७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: परम जोति परमातमा परम;
अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण तक है.) ६७०६१. श्रावकपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटा कर पुनः लिखा गया है, किन्तु अवाच्य है., प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (१६.५४१०, ११४२४-२५).
श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दसणमि य; अंति: मिच्छामि दुक्कड. ६७०६२. भक्तामर स्तोत्र बालावबोध, अपूर्ण, वि. १५३२, भाद्रपद शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. २४-४(१६,१८,२२ से २३)=२०,
ले.स्थल. वीसलनगर, प्रले. श्राव. हीराणंद; पठ. श्राव. जीवा; उप. उपा. जिनमाणिक्यगणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (६१२) यादृशं पुस्तके दृष्टं, जैदे., (१७४१०, ११-१३४२१-३४). भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध कथा, मु. आगममाणिक्य, मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रीमद्जिनहसगुरु, (२)ऊजेणीनगरीइ
राजा भोज; अंति: विषइ आदर सदैव करछु, कथा-२७, (पू.वि. शालिवाहनराजा कथा अपूर्ण से देवदत्तराजा कथा
अपूर्ण तक नहीं है व सामराज क्षत्रिय कथा अपूर्ण से श्रीधर सार्थवाह कथा तक नहीं है.) ६७०६३. माणिभद्रवीर छंद व गौतमस्वामी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५-४(३ से ५,८)=११, कुल पे. २,
प्रले. मु. सोभासागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१६.५४९.५, ८x२४). १.पे. नाम. माणिभद्रवीर छंद, पृ. १आ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. माणिभद्रवीर छंद-मगरवाडामंडन, पा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुरपति तत सेवित सुभ; अंति: (-),
(पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण तक है.) २.पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. ६अ-१५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: (-); अंति: वृद्धि कल्याण करो, गाथा-४८, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से
८ अपूर्ण तक व ११ अपूर्ण से है.) ६७०६४. विमलमंत्री श्लोक व शालिभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७७६, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, ले.स्थल. मोरवणनगर, जैदे.,
(१७४१०.५, १५-१८x२७-३२). १. पे. नाम. विमलमंत्री श्लोक, पृ. १आ-६अ, संपूर्ण.
पंन्या. विनीतविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति समरूं बेकरजोड; अंति: विनीतविमल गुण गायो, गाथा-१११. २. पे. नाम. शालिभद्र सज्झाय, पृ. ६अ-७आ, संपूर्ण. शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. विनीतविमल, मा.गु., पद्य, आदि: राजगरि नगरी श्रेणिक; अंति: आवे सुखसंपत्ति दोडी,
गाथा-३१. ६७०६५. (+) बूढारोरास, संपूर्ण, वि. १८७१, भाद्रपद अधिकमास कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ.७, ले.स्थल. हरिदूर्ग, प्रले. मु. भगवानदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१७४९.५, १३-१४४२५-२६).
बुढापा रास, मु. चंद, रा., पद्य, वि. १८३६, आदि: दया जमाता वीनवू; अंति: चंद० कलयुगरी नीसाणी, ढाल-२२. ६७०६६. (-) इलाकुमार चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(५)=५, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (१७४९, १६४२३-२७). इलाचीकुमार चौपाई-भावविषये, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: सकल सिद्धदायक सदा; अंति:
(-), (पू.वि. ढाल-९ गाथा-१५ अपूर्ण तक व ढाल-१० गाथा-१ अपूर्ण से ११ अपूर्ण तक है.) ६७०६७. (+) रास व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२-१६(१ से ११,१९ से २१,२६ से २७)=१६, कुल पे. ६,
प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित., दे., (१६४१०, ९४१६-२०). १.पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. १२अ-२३आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: नितनित मंगल उदय करो,
गाथा-४७, (पू.वि. गाथा- ३२ अपूर्ण से ४० अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. १४ नियम गाथा सह बालावबोध, पृ. २४अ-२९अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं.
श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सच्चित्त दव्व विगई; अंति: दिसिन्हाण भत्तेसु, गाथा-१, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
श्रावक १४ नियम गाथा - बालावबोध, पुहिं., गद्य, आदि: श्रावक नित प्रति; अंति: राखै तौल से माप से, संपूर्ण. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. २९अ, संपूर्ण
२४ जिन स्तुति, अप, पद्य, आदि: भरहेसरकारिय देव हरे, अंति: विगणंतु अनंतदहंसगुणा, गाधा- २.
४. पे नाम. सुपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३० अ- ३१अ, संपूर्ण
सुपार्श्वजिन स्तवन- जयपुर मंडन, मु. रत्नविजय, पुहिं., पद्य, वि. १९००, आदि: हो जिनवरजी मरजी करने, अंति: रत्न कहै गुणधार छौ, गाथा- १०.
५. पे नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ३१अ- ३१आ, संपूर्ण.
मु. गुणविलास, मा.गु., पद्य, आदि: करो ऐसी बगसीस प्रभुः अंति: आस दूरे करो आप सरीस, गाधा- ३.
६. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ३२अ-३२आ, संपूर्ण
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. कमलसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: सांचो साहिब निरधारी, अंतिः तो कमलसुंदर तुझ बंदा,
गाथा ५.
६७०६८ (+) स्नात्रपूजा विधिसहित व वस्त्रपूजा, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १७, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (१६.५X१०.५, ११X१७-१९).
१. पे. नाम. स्नात्रपूजा विधिसहित पृ. १अ १७आ, संपूर्ण.
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ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि; चोउतिसय अतिसय जुओ वच अंतिः मोक्षसौख्यं श्रयंति, ढाल ८, गाथा- ६०. २. पे. नाम. वस्त्रपूजा श्लोक, पृ. १७आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदिः शक्रो यथा जिनपते, अंतिः क्लेशक्षयाकांक्षा, श्लोक-२.
६७०६९. पदसंग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१-२४ (१ से २४) = ७, कुल पे. ५, प्र. वि. अंत में जेसलमेर स्तवनों की सूची दी
(#)
गई है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१४.५X१०, १०X१२).
"
१. पे. नाम संभवनाथ पद, पृ. २५अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं,
संभवजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८९४, आदि: (-); अंति: अरियण मूल न को कलै, गाथा-५, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा अपूर्ण है.)
२. पे. नाम. पार्श्वजिन पद. पू. २५ आ- २६अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन द्रुपद, मु. धर्मशील, पुहिं., पद्य, आदि: केवल वाला रे केवल वा; अंति: गत सुध धरमशील संभाला, गाथा-४. ३. पे. नाम आदिजिन स्तवन, पृ. २६अ-२६आ, संपूर्ण
मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीऊडा जिनचरणांनी, अंतिः मोहन अनुभव मांगे, गाथा-३.
४. पे. नाम. विमलजिन पद, पृ. २६ आ- २८अ संपूर्ण.
विमलजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: घर आंगण सुरतरु फल्यौ, अंति: जिनराज० देव प्रमाण, गाथा - ५. ५. पे नाम, वासुपूज्यजिन पद, पृ. २८अ ३०अ, संपूर्ण.
वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: नायक मोह नचावीयो; अंति: इम जपै जिनराजौरे, गाथा-५. ६७०७०. चोविसजिन आंतरा, संपूर्ण, वि. १९२२, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २५, ले. स्थल. वलाद, प्रले. श्राव. खेमचंद
पीतांबरवास शा., प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (१६४१०, ९१३-१७).
""
२४ जिन आंतरा, मा.गु, गद्य, आदि: अहार कोडाकोडि सागरने, अंति: उणा आंतर जाणिवड. ६७०७१. खंदकमुनि चौढालीयो, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १०-१ (१) =९, दे. (१६४१०, ९४२०-२२).
खंधकमुनि चौडालिया, मु. जैमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८११, आदि: (-); अंति: ( ) ( पू. वि. प्रथम व अंतिम पत्र नहीं है, ढाल १ गाथा ४ अपूर्ण से दाल-४ गाथा- ७ अपूर्ण तक है.)
६७०७२. . (+) नंदीश्वर व सीमंधरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे. (१६.५x९.५, ८x१७- १९).
१. पे. नाम. नंदीश्वर स्तवन, पृ. १आ - ३आ, संपूर्ण.
नंदीश्वरद्वीप स्तवन, मु. जैनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: नंदीसर बावन जिनालये; अंति: जैनचंद्र गुण गावौ रे, गाथा - १५.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
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२. पे. नाम. सीमंधरस्वामीनुं स्तवन, पृ. ३आ-५आ, संपूर्ण.
सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुण सनेही साजन, अंतिः जिनचंद० प्रेम अभंग गाथा- १०. ६७०७३. पद व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. १४ -७(१ से ६, १०) = ७, कुल पे. ८, दे., (१५.५X१०, १६X१४).
१. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. ७अ-८आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद- समकित, मु. गोपालसागर, पुहिं., पद्य, आदि: परमंत्र परमेष्टी जपी, अंति: गोपालसागर काया करो, गाथा - १२.
२. पे नाम, ऋषभनाथ स्तवन, पृ. ८आ-९आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
आदिजिन स्तवन, मु. गोपालसागर, पुहिं, पद्य, आदिः धुलेवा नगर में विराज, अंति: (-), (पू. वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.)
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३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ११अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
मु. गोपालसागर, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: गोपालसागर जती कह्या, गाथा-६, (पू. वि. अंतिम गाथा का मात्र अं पद ही है.)
४. पे. नाम. हितशिक्षा सज्झाय, पृ. ११अ - १९आ, संपूर्ण.
श्रावकधर्म सज्झाय, मु. गोपालसागर, पुहिं., पद्य, आदि: ज्ञानी का गुन सुनके; अंति: गोपालसागर० परिहरीये,
गाथा ६.
५. पे नाम, फलवर्धीपार्श्वनाथ पद, पृ. १९ आ-१२आ, संपूर्ण
पार्श्वजिन स्तवन- फलवद्धिं, मु. गोपालसागर, मा.गु., पद्य, वि. १९९७, आदि: वीर जाउं फलवधी पारस, अंति गोपाल० गावीयो रे लो, गाथा १०.
.पे. नाम, नेमिजिन पद, पू. १३अ १३आ, संपूर्ण
नेमराजिमती स्तवन. मु. गोपालसागर, पुहिं., पद्य, आदि: (१) समुद्रविजय सुत लाडलो, (२) छप्पन कोड जादव मील्य अंति: गोपालसागर अणगार, गाथा - ९.
७. पे नाम, पार्श्वनाथ पद, पृ. १३आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, पुहिं., पद्य, आदि: दरसणरी मुने चाय छे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा - ३ तक लिखा है.)
८. पे. नाम. पर्युषण स्तवन, पृ. १४अ १४आ, संपूर्ण.
पर्युषणपर्व स्तवन, मु. गोपालसागर, पुहिं., पद्य, वि. १९५४, आदि : परव पजुसण आव्या जाणी; अंति: गोपाल हुलासोरे, गाथा-१०,
६७०७४. (+) प्रतिक्रमणसूत्र विधि सहित व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५४-८(१ से २,४ से ५,७,४०,४६,५३)=४६, कुल पे. २४, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (१६×१०, ८X१९).
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१. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र विधि सहित पू. ३अ २१आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: (-); अंति: देहि मे देवि सारं, (पू.वि. खमासमणसूत्र अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.)
२. पे नाम, सामायिकसूत्र विधि, पृ. २१ आ-२६अ, संपूर्ण
४. पे नाम, सीमंधरस्वामि स्तुति, पृ. ३४-३४आ, संपूर्ण
बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न, अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४.
५. पे नाम, महावीरजिन स्तुति, पृ. ३४आ-३५अ संपूर्ण
सामायिक पारने की विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: खमासमण देइ मुहपत्ती, अंति: बैसै धर्म ध्यान करै. ३. पे. नाम, देवसीपडिकमण विधि, पृ. २६-३३आ, संपूर्ण वि. १८६९ पौष कृष्ण, २.
देवसिप्रतिक्रमण विधि- खरतरगच्छीय, प्रा., मा.गु. सं., पग, आदि: विधिसुं सामायिक लेई, अंति: रीते सामायिक पारे.
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सं., पद्य, आदिः यदहिनमनादेव देहिन, अंतिः नित्यम मंगलेभ्यः, श्लोक-४.
६. पे नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ३५-३६अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., पद्य, आदि: वरमुक्तिबहार सुतार, अंति: सुहाणि कुणेसु सया, गाथा-४. ७. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. ३६अ - ३६आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु. पच, आदि; अश्वसेन नरेसर वामा; अंतिः जिनभक्ति० बहु वित्त, गाथा-४. ८. पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तुति, पृ. ३६-३७आ, संपूर्ण
पंचमीतिथि स्तुति, आ, जिनचंद्रसूरि, मा.गु, पद्य, आदि: पंच अनंत महंत गुणाकर, अंतिः कठै जिणचंद मुणिंद,
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गाथा-४.
९. पे नाम, अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. ३८अ-३८आ, संपूर्ण
मु. जीवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चौवीसे जिनवर प्रणमुं अंतिः जिनसुखसूरि० सुह झांण, गाथा-४.
१०. पे. नाम नेमिजिन स्तुति, पृ. ३८आ-३९आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्म, आदि: सुर असुर वंदित पाय अंतिः मंगल करो अंबा देविये, गाथा-४.
११. पे नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ३९ आ-४१ अ, अपूर्ण, पू. वि. बीच का एक पत्र नहीं है.
आ. जिनलाभसूरि, मा.गु, पद्य, आदि निरुपम सुखदायक, अंतिः श्रीजिनलाभसूरिंदा जी गाथा-४, (पू. वि. गाथा-१
"
.
अपूर्ण से ४ अपूर्ण तक नहीं है.)
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
१२. पे. नाम. मौनएकादशी स्तुति, पृ. ४१अ - ४२अ, संपूर्ण.
मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: अरनाथ जिनेश्वर, अंतिः जिनचंद्र० करो कल्याण, गाथा- ४. १३. पे नाम पूजाटक, पृ. ४२-४३, संपूर्ण.
יי
८ प्रकारी पूजा विधिसहित मु. अमृतधर्म, पुहिं प+ग, आदिः शुचि सुगंध वर कुसुम, अंतिः अमृतधर्म० पद कल्याण,
गाथा - ९.
१४. पे नाम, सिद्धचक्र नमस्कार, प्र. ४३अ- ४४अ, संपूर्ण.
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उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत उदार कांत, अंतिः कल्याण० चेतन भूप, गाधा - ६.
१५. पे. नाम. ऋषभजिन नमस्कार, पृ. ४४अ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय नाभिनरिंदनंद, अंतिः निसदिन नमत कल्याण, गाथा ३.
१६. पे नाम. शांतिजिन स्तव, पृ. ४४अ - ४४आ, संपूर्ण
शांतिजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमां जिनवर शांति, अंति: लहिये कोड कल्याण, गाथा - ३.
१७. पे. नाम नेमिजिन स्तव, पू. ४४ आ-४५अ संपूर्ण.
नेमिजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदिः प्रह सम प्रणमूं नेम, अंतिः क्षमा करै प्रणाम, गाथा- ३. १८. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ स्तव, पृ. ४५अ - ४५आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन चैत्यवंदन - गोडीजी, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: पुरसादाणीव पासनाह, अंतिः प्रगटे परम कल्याण, गाथा - ३.
१९. पे नाम वीरजिन स्तव, पृ. ४५आ, संपूर्ण.
महावीरजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु जगदाधार सार सिव, अंतिः कल्याण० करी सुपसाय, गाथा-३.
२०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तव, पृ. ४५आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
पार्श्वजिन नमस्कार - स्थंभनपुर, मु. कल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेडी तट मेरुधाम, अंति: (-), (पू. वि. गाधा-१ का प्रथम पद मात्र है.)
२१. पे. नाम. दस पच्चक्खाण, पृ. ४७अ ५०अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
!
प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध प्रा. गद्य, आदिः उग्गए सूरे नमुक्कार, अंतिः सहसा० म० स० बोसरामि, संपूर्ण. २२. पे नाम, महावीरजिन स्तव, पृ. ५०अ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: नमोस्तु वर्द्धमानाय, अंति: मयि विस्तरो गिरां श्लोक-३.
२३. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५०-५० आ. संपूर्ण.
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पार्श्वजिन स्तुति-स्तंभन, प्रा., पद्य, आदि: सिरिथंभणयट्ठिय पास, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- २ अपूर्ण तक लिखा है.)
६७०७५. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, कुल पे. २७, दे., ( १७१०.५, ९-१०X२३-२८). १. पे नाम, चंद्रप्रभुजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
२४. पे नाम. हितशिक्षाद्वात्रिंशिका, पृ. ५१ अ ५४आ, अपूर्ण, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.
हितशिक्षाबीसी, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: सकल विमल गुन कलित, अंति: (-), (पू.वि. गाथा - १५ तक व गाथा- २३ अपूर्ण से ३२ अपूर्ण तक है.)
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चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चंद्रप्रभु मुखचंद, अंतिः तरु आनंदघन प्रभु पाय,
गाथा-७.
२. पे नाम. श्रेयांसजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेयांसजिन अंतरजामी, अंति: आनंदघन वाशि रे, गाथा- ६.
३. पे नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. २अ ३अ, संपूर्ण.
नमिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि षट वर्सण जिन अंग भणी, अंतिः जिन आनंदघन लहीये रे, गाथा - ११.
४. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अजित जिणंदसुं प्रीत; अंतिः वाचक यस० गुण गाव के,
गाथा - ५.
५. पे नाम, अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण
उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्म, वि. १८वी, आदिः विठो हो प्रभू दीठो ज, अंति: जस० सुख दर्शन तणो जी,
गाथा - ६.
६. पे नाम ऋषभजिन स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण
.
आदिजिन स्तवन- धुलेवा मंडन, मु. चारित्रविजय, मा.गु., पद्य वि. १९१७ आदि ऋषभ प्रभु मोहना सुख; अंतिः चारित्रः सुविशाल रे, गाथा- ९.
७. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. ५अ- ६अ, संपूर्ण,
,
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ, जिनभक्तिसूरि, पुहिं, पद्य, आदि सुण सुण शत्रुंजयगिरि, अंतिः श्रीजिनभक्तिसुरंदा, गाथा- ११. ८. पे. नाम. सुपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुपास जिनराज, अंति: वाचक जसे थुण्यो जी, गाथा-५.
९. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. ६ अ- ६आ, संपूर्ण.
मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि शीतल जिनपति ललीत; अंतिः रा आनंदघन पद लेती रे, गाथा ६.
१०. पे. नाम विहरमानजिन स्तवन, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण.
वज्रधरजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: विहरमान भगवान सुणो; अंति: मुगति मुझ आपज्यो, गाथा- ७. ११. पे. नाम. वासपूज्य स्तवन, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण.
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वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि वासुपूज्य जिन त्रिभुः अंतिः शे आनंदघन मत संगी रे, गाथा- ६.
१२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ८अ ९आ, संपूर्ण.
मु. कृष्णचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: अरे म्हारे लगी मिलन; अंतिः कृष्णचंद्र गुण गाय, गाथा-२६.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
१३. पे नाम, संभवजिन स्तवन, पृ. ९आ-१०अ संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है, आ. राजेंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः संभवजिन सीरेस सुख्या अंतिः सूरिराजेंद्र० जाये हो, गाथा ६. १४. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १०अ, संपूर्ण.
आ. राजेंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नेमि जिणंद नमुं सदा अंतिः सूरिराजेंद्र० जीनराज, गाथा ५. १५. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १० आ-११अ, संपूर्ण.
आ. राजेंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: शांति रसे श्रीशांति, अंति: राजेंद्र०भवना कंद हो, गाथा-५. १६. पे. नाम चतुर्विंशतिजिन कलश स्तवन, पृ. ११ अ ११ आ. संपूर्ण.
२४ जिन कलश स्तवन, आ. राजेंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: आज मनोरथ फल्या; अंति: राजेंद० राजगढै भइ रीध,
गाथा - ९.
१७. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १२अ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तवन, आ. राजेंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे लाला जोग जुगत, अंति: राजेंद्र सिद्ध रे, गाथा-५. १८. पे. नाम मुनिसुव्रतजिन स्तवन, पृ. १२आ, संपूर्ण.
आ. राजेंद्रसूरि, मा.गु, पद्य, आदि मुनीसुव्रत महाराज का अंतिः राजेंद्र० सूरिपति री, गाथा-५.
१९. पे. नाम ऋषभजिन स्तवन, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, आ. राजेंद्रसूरि, मा.गु, पद्य, आदि: प्रेमसुं जिनपति: अंतिः राजेंद्र० गीरीस, गाथा-५. २०. पे नाम, अजितजिन स्तवन, पृ. १३अ १३ आ. संपूर्ण.
आ. राजेंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: हो न रंगीला अर्हन, अंति: राजेंद्र० अरजी कसी रे, गाथा-५.
२१. पे. नाम. संभवजिन पद, पृ. १३-१४अ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है, संभवजिन स्तवन, आ. राजेंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः संभवजिन शिवसुखस्वामी, अंति: राजेंद्र०हुय जाये हो, गाथा ५. २२. पे नाम, शीतलजिन पद, पृ. १४अ १४आ, संपूर्ण.
शीतलजिन स्तवन, आ. राजेंद्रसूरि, मा.गु, पद्य, आदि शीतलजिननि सप्त सुरंग, अंतिः राजेंद्र गवेखी रे, गाथा ५. २३. पे. नाम. मल्लिजिन स्तवन, पृ. १४-१५अ, संपूर्ण.
आ. राजेंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मोह कहो कीम मेटु हो; अंति: राजेंद्र० एहवो मल हो, गाथा-५. २४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १५ अ- १५आ, संपूर्ण
आ. राजेंद्रसूरि, मा.गु, पद्म, आदि: पारस पतिने पूजीए लही अंतिः राजेंद्र० समावे रे गावा-५.
',
२५. पे नाम, धर्मजिन स्तवन, पृ. १५ आ, संपूर्ण.
आ. राजेंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि धर्म धर्म जग डंडे घर, अंति: राजेंद्र० मुनिंद्र, गाथा-५.
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२६. पे. नाम. सुविधजिन स्तवन, पृ. १६अ, संपूर्ण.
सुविधिजिन स्तवन, आ. राजेंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुबुद्धि विचारु रे, अंतिः राखज्यो सूरिराजेंद्र, गाथा-५. २७. पे नाम, अध्यात्मिक पद, पृ. १६आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
आध्यात्मिक पद, मु. चिदानंद, पुहिं., पद्य, आदि: अपने पद को तजकर परमे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.)
६७०७६, (+) नमस्कार, स्तवन, स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४३-८ (१ से ७,२९) = ३५, कुल पे. १८,
प्र. वि. संशोधित. दे. (१६४९.५, १०२०).
"
१. पे. नाम. सिद्धचक्र नमस्कार, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण.
उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत उदार कांत; अंति: कल्याण० चेतन भूप, गाथा- ६.
२. पे. नाम ऋषभजिन नमस्कार, पृ. ८आ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय नाभिनरिंदनंद, अंति: निसदिन नमत
कल्याण, गाथा - ३.
३. पे नाम. शांतिजिन चैत्यवंदन, पृ. ८आ- ९अ. संपूर्ण.
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२९१ उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमा जिनवर शांतिनाथ; अंति: लहीयै कोडि कल्याण, गाथा-३. ४. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. नेमिजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह सम प्रणमो नेमि; अंति: खिमाकल्याण० प्रणाम,
गाथा-३. ५. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ९आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-गोडीजी, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: पुरसादाणीय पासनाह; अंति: प्रगटे परम
कल्याण, गाथा-३. ६. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. महावीरजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु जगदाधार सार सिव; अंति: कल्याण० करी
सुपसाय, गाथा-३. ७. पे. नाम. स्थंभनकपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १०अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन नमस्कार-स्थंभनपुर, मु. कल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेढी तट मेरुधाम; अंति: गमण पावउ पद कल्याण,
गाथा-३. ८. पे. नाम. सीमंधरस्वामी चैत्यवंदन, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु जिणवर विहरमाण; अंति: कारण परम कल्याण,
गाथा-३. ९.पे. नाम. समेतशिखरजी चैत्यवंदन, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण.
सम्मेतशिखरतीर्थ चैत्यवंदन, मु. कल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: पूरब देसै दीपतो; अंति: तीरथ करण कल्याण, गाथा-३. १०. पे. नाम. पद्मनाभजिन नमस्कार, पृ. ११अ, संपूर्ण. पद्मनाभजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम महेसर पद्मनाभ; अंति: कारण सदा कल्याण,
गाथा-३. ११. पे. नाम. पंचतीर्थी नमस्कार, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. पंचतीर्थ चैत्यवंदन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धाचल श्रीनाभिराय; अंति: नमौ करण क्षमाकल्याण,
गाथा-३. १२. पे. नाम. संक्षेप चैत्यवंदन विधि, पृ. ११आ-१४आ, संपूर्ण.
चैत्यवंदनसूत्र-विधिसंग्रह, संबद्ध, प्रा.,रा., गद्य, आदि: प्रथम घर सैनीकल जिन; अंति: सुंबाहिर नीकलै. १३. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १४आ-१७आ, संपूर्ण.
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: अप्पाणं वोसिरामि. १४. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. १७आ, संपूर्ण.
२४ जिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टापदगिरि आदिजिणेस; अंति: पामु परमानंदाजी, गाथा-१. १५. पे. नाम. दसवैकालिकसूत्र गीत, पृ. १८अ-२८आ, संपूर्ण, वि. १९०६, वैशाख कृष्ण, १४, ले.स्थल. हैदराबाद,
प्रले. पं. महिमाभक्ति (गुरु मु. गुणानंद); पठ. श्रावि. छोटी, प्र.ले.पु. सामान्य. दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: धरम मंगल महिमा निलो; अंति:
जयतसी जय जय रंग, अध्याय-१०. १६. पे. नाम. उपदेशबहोत्तरी, पृ. ३०अ-३६आ, संपूर्ण.
औपदेशिकबहोत्तरी, मु. रूप, मा.गु., पद्य, वि. १८९५, आदि: सुग्यानी जीवडा सुध; अंति: रूप० संघकुं मंगलकरी,
गाथा-७३. १७. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ३७अ, संपूर्ण.. ___मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजय सुत नेम; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा लिखा है.) १८. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ३८अ-४३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
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(१७८, २२x१४).
१. पे. नाम. जीव विषयक बोल संग्रह, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण.
आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि, अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४० अपूर्ण तक है.) ६७०७७. थंभणपार्श्वनाथ स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, १४, मंगलवार, मध्यम, पृ. १०-५ (१ से ५) ५ प्रले. श्राव. गोवंदा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (१८४९, ४४१०).
पार्श्वजिन छंद- स्थंभनपुर, मु. अमरविसाल, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: अमरविशाल० चोसालो, गाथा-१६, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-५ अपूर्ण से है.)
६७०७८. (+) जीव विषयक बोलसंग्रह व तपागच्छीय पट्टावली, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. वे.,
"
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९८ बोल- जीवअल्पबहुत्व विषयक, मा.गु., गद्य, आदि: गर्भव्युत्क्रांत, अंति: सर्वजीव विशेषाधिक. २. पे. नाम. तपागच्छीय पट्टावली, पृ. ३आ-५अ, संपूर्ण.
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम पाटे श्री; अंति: ७१ मणीविजयजी.
६७०७९, (०) स्तवनवीसी, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १४. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. कुछ पत्रों के पत्रांक नष्ट होने के
""
६७०८०. भगवतीसूत्र बोलसंग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, दे., ( १६x८.५, ८-९X२५-३०).
1
कारण पाठ के आधार पर पत्रांक दिया गया है., मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (१९x८.५, ९४२५-३०).
विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पुखलवई विजये जयो रे; अंति: (-), ( पू. वि. वीरसेनजिन स्तवन गाथा-५ अपूर्ण तक है.)
भगवतीसूत्र - नियंडा - संजया आलापक- बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पुलाक १ वुग्णस २; अंतिः कषायकुसीलने वासना
तक.
६७०८१. (७) स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८ कुल पे ६, प्रले. देवेंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (१२४५.५, ६-८४१७-२२).
१. पे. नाम. चिंतामणि पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ २आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, मु. राजसागर, मा.गु., पद्य, आदिः साठीचा श्रीचिंतामणी अंतिः राजनी आणंद वहे रे लो,
मा.गु., पद्य, आदि किया दिया लिया जिया अंतिः तब तुं पावि लेह, गाथा-७.
"
५. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
गाथा-७.
२. पे नाम, शांतिजिन स्तवन, पृ. २आ- ३आ, संपूर्ण
मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिणेशर साहिबा, अंति: मोहन जय जयकार, गाथा-५.
३. पे. नाम. पनरतिथिरा दूहा, पृ. ३आ-५आ, संपूर्ण.
१५ तिथि दुहा, मा.गु, पद्य, आदि पख पडवाथी उल रे ओ पख अंतिः मोजडी आयो नाह सुजांण, गाथा १६.
४. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५आ- ६आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन- धुलेवामंडन, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: चालो सखी दुलेवे रे ज; अंति: ऋषभ तुमारी, गाथा-४.
६. पे. नाम. पार्श्वजिन पद चिंतामणि, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण
मु. भानुचंद, पुहिं, पद्य, आदि आज मे प्रभुजीको दरसण अंतिः भागचंद० अधिक उपायो, गाथा-२.
"
६७०८२. स्तवन, स्तोत्र व वार्ता संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३०-६३(१ से ५९,६१ से ६३,७१) = ६७, कुल पे. ६, जैवे.,
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(९X७, ८x१२).
१. पे. नाम. बीस विहरमानजिन स्तवन, पृ. ६० अ- ६०आ, अपूर्ण, पू. वि. बीच के पत्र हैं.
विहरमानजिन स्तवनवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु, पद्य, आदि: (-); अंति: (-) (पू.वि. स्तवन- २० गाथा-३ अपूर्ण से स्तवन-२१ गाथा-२ अपूर्ण तक है.)
२. पे नाम, भक्तामर स्तोत्र, पृ. ६४अ-७५आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं.
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,
आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंतिः मानतुंग० लक्ष्मी, श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक ७ अपूर्ण से श्लोक-२९ अपूर्ण तक व श्लोक ३३ अपूर्ण से है.)
३. पे. नाम, कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ७५आ- ८९आ, संपूर्ण.
आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४४. पे. नाम. शांति स्तवन, पृ. ८९आ- ९३आ, संपूर्ण.
२९३
लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत अंतिः सूरिः श्रीमानदेवश्च श्लोक-१७. ५. पे. नाम. वीसविहरमानजिन स्तवन, पृ. ९३ आ- ९६आ, संपूर्ण, वि. १८२१ मार्गशीर्ष कृष्ण १४, गुरुवार,
ले. स्थल, वीकानेर, गुपि उपा. कर्पूरविजय गणि (गुरुग. लक्ष्मीसमुद्र, खरतरगच्छ); उपा. राजसोम गणि (गुरु उपा. कर्पूरविजय गणि, खरतरगच्छ); पं. रंगवल्लभ गणि (गुरु उपा. राजसोम गणि, खरतरगच्छ); प्रले. पं. रत्नदत्त मुनि (गुरु पं. रंगवल्लभ गणि, खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. मध्यम.
२० विहरमानजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बीसे विहरमान जिनराया; अंति: समयसुंदर पा सेवा, गाथा-४.
६. पे. नाम. सदैवछसावलिंगा वार्ता, पृ. ९७अ - १३० आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
सदैवच्छसावलिंगा वार्ता, मा.गु., गद्य, आदिः आणंदपुर नयरं सालवाहन; अंति: (-), (पू.वि. सावलिंगा से कुमरी के विवाह प्रस्ताव प्रसंग अपूर्ण तक है.)
६७०८३. प्रतिमास्थापनवीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५४६-५३८ (१ से ५३८) = ८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दे., ( ७X६.५, ११X११).
महावीरजिन स्तवन - स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल २ गाथा २२ अपूर्ण से ढाल ५ गाथा २२ अपूर्ण तक है.) ६७०८४. (+) अष्टभयनिवारण पार्श्वजिन छंद, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८. प्र. वि. संशोधित, जैदे. (११.५४६, ७४१२-१७). पार्श्वजिन पद - गोडीजी, मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन दे सरसती एह; अंति: धरमसींह ध्याने धरण,
"
"
गाथा - २९.
६७०८५ (+) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १८२७, वैशाख कृष्ण, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पू. ५३ ४६ (१ से ३८, ४१ से ४५,४८,५०,५२)=७, कुल पे. ७, ले. स्थल, विक्रमपुर, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं हैं, अनुमानित पत्रांक दिया गया है. श्रीअजितजिन प्रशादात्.. संशोधित, जै. (९.५४७.५, १०x११-१४).
१. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३९अ - ३९आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. चरणप्रमोद - शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सदा फल चिंतामणि, अंति: जंपइ पूरो संघ ग ए, गाथा - ३.
२. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. ४० अ- ४०आ, संपूर्ण.
मु. भोजसागर, मा.गु., पद्य, आदिः उदयापुरमंडण श्रीशीतल, अंतिः पर्वपे भोजसागर सुखकार, गाथा-४.
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३. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ४६अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
नेमराजिमती सज्झाय, मु. विनीतसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: री हे विनीतसागर कहे, गाथा-११, (पू. वि. गाथा - ९ अपूर्ण से है.)
४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४६-४७आ, संपूर्ण.
""
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी मु. जिनचंद्र, पुहिं पद्य वि. १७२२, आदि अमल कमल जिम धवल; अंति जिनराज० सफल फली अरदास, गाथा - ९.
५. पे नाम, गोडी पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४९अ ४९आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं.
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी मंडण, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मोहन० दीनदयाल के, गाधा-७, (पूर्ण, पू. वि. गाथा - १ अपूर्ण से है . )
६. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. ५१ अ - ५१आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं.
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२९४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पंचमीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: हरज्यो विघन हमारा जी, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) ७. पे. नाम. लोभपरिहार सज्झाय, पृ. ५३अ-५३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं.
औपदेशिक सज्झाय-लोभोपरि, पंडित. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: भावसागर० सयल जगीसरे,
गाथा-८, (पू.वि. गाथा- ४ अपूर्ण से है.) ६७१८८. (+1) आर्यवसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११. प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. जैदे.. (२१.५४१०, १०४२१-२३).
वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: सावधान्य श्रृणोति. ६७२०१. (+-) सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. ४, ले.स्थल. किसनगढ, प्रले. सा. रायकवरी,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-अशुद्ध पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (१९x१०, १५४२५-२९). १.पे. नाम. देवदत्ता पंचढालियो, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण.
मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२५, आदि: नमु अरिहंत सिध आचार: अंति: रीष जयमलजी कहए, ढाल-५. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-जीव, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: आरंभ करतांरे जीव; अंति: जीव जाय मोक्षमां, गाथा-५. ३. पे. नाम. अवर्गादि वर्णज्ञान श्लोक, पृ. ७आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: आए उइहंगरुड कख; अंति: मिरग सखोसा हा मीनो. ४. पे. नाम. राशि ज्ञान, पृ. ७आ, संपूर्ण.
राशिज्ञानमूल, पुहि.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ६७२२६. आर्यवसुधारा, संपूर्ण, वि. १८४६, फाल्गुन कृष्ण, ६, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. मल्लारगढ, प्रले. श्राव. हरचंद मयाचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१७४१०.५, १४४२२).
वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: शृणोति भोगं च करोति. ६७२८६. (+#) चमत्कारचिंतामणि सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४९.५, १५४२८-३१).
चमत्कारचिंतामणि, राजऋषिभट्ट, सं., पद्य, आदि: नचेत् खेचराः स्थापित; अंति: (-), (पू.वि. दीक्षा मुहुर्त तक है.)
चमत्कारचिंतामणि-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवामेय जिनं नत्वा; अंति: (-). ६७३०६. (+#) वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८६०, कार्तिक शुक्ल, १०, मंगलवार, मध्यम, पृ. १३, प्रले. पं. सीवसुंदर (गुरु
पं. चैनसुंदर); गुपि.पं. चैनसुंदर (गुरु पंन्या. बखतसुंदर); पंन्या. बखतसुंदर (गुरु उपा. खुशालसुंदर); उपा. खुशालसुंदर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४१०, ८x२०-२३).
वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति. ६७३२६. (#) बृहत्शांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. श्रीआदिनाथ प्रसादात्., अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (१९.५४९.५, ७-९x१८-२२).
बृहत्शांति स्तोत्र-खरतरगच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैन जयति शासनम्. ६७३७२. (+#) स्तोत्र व छंदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९५५, माघ कृष्ण, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. ६, प्रले. मु. कीर्तिमंडण,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१x११, १२४२७-३०). १. पे. नाम. पार्श्वजिनमहिम्न स्तोत्र, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण.
आ. रघुनाथ, सं., पद्य, वि. १८५७, आदि: महिम्नः पारं ते परम; अंति: लिखितो मुमोद भरतः, श्लोक-४१. २. पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: ह्रीं ह्रीँ हृद्यैक; अंति: बुद्धिः प्रवर्त्तते, श्लोक-११. ३. पे. नाम. बगलामुखी पद्धति, पृ. ७अ-८आ, संपूर्ण.
बगलामुखी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ क्लीं बगलामुखी; अंति: मांसमद्य विवर्जितः, श्लोक-२०, (वि. मंत्र विधि सहित.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
२९५ ४. पे. नाम. चोरनाम ज्ञान श्लोक, पृ. ८आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: नामांक दशकं कृत्वा; अंति: कथितं स्फुट चौरनामा, श्लोक-२. ५.पे. नाम. जैन श्लोक संग्रह, पृ. ८आ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह **, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पण इग्गारस तेरस; अंति: अभीइश्रुतु गणेयत्वम्, श्लोक-२. ६.पे. नाम. माताजीरो छंद, पृ. ८आ-१२आ, संपूर्ण.
भवानीदेवी छंद, उदोजी, मा.गु., पद्य, आदि: ॐ समधरन सचीयाय इम्रत; अंति: उदो० भणंता सुंदरी, गाथा-४३. ६७४१५. उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६६-३१(१ से ३,५ से ६,३५ से ४५.४७ से ५३.५५ से ५९,६१ से ६३)=३५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२३.५४९.५, ८४३७). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. विनय अध्ययन गाथा ४० अपूर्ण से
केसीगोयम अध्ययन तक बीच-बीच के पाठांश हैं.) ६७४२७. (#) आर्यवसुधारा, संपूर्ण, वि. १८३४, आश्विन कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. तिलककुमार; पठ. मु. माणिक्यजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१०, १३४२५-३३).
वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैनस्य; अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति. ६७४३३. (+) धनंजयनाममाला, संपूर्ण, वि. १७५४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले.स्थल. सलुंबर,
प्रले. मु. अमृतसागर (गुरु मु. क्षीरसागर); गुपि. मु. क्षीरसागर (गुरु ग. गजेंद्रसागर); ग. गजेंद्रसागर; पठ. पं. अनोपसागर; पं. अजितसागर; राज्यकालरा. केसरीसिंघ, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२२.५४१०,११४३६-४०).
धनंजयनाममाला, जै.क. धनंजय, सं., पद्य, आदि: तन्नमामि परं ज्योति; अंति: शरणोत्तम मंगलान्, श्लोक-२४६. ६७४४०. इंद्राक्षी स्तोत्र, नीतिशतक व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४१०.५,
१३-१६४३४-३६). १.पे. नाम. इंद्राक्षी स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. ऋ. वेद व्यास, सं., पद्य, आदि: इंद्राक्षी माहादेवी; अंति: यक् सत्यमेव न संशयः, श्लोक-१३, (वि. प्रतिलेखक ने
श्लोकांक नहीं लिखा है.) २. पे. नाम. नीतिशतक, पृ. १आ-७आ, संपूर्ण.
भर्तृहरि, सं., पद्य, आदि: अमृत करकांतमौलेः पाद; अंति: वाग्भूषणं भूषणम्, श्लोक-१००. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन लघुस्तवन, पृ. ७आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, मु. रूपचंद्रोदय, सं., पद्य, आदि: जय जिन तारक हे; अंति: निरुपम कारण हे, गाथा-८. ६७४४३. (+#) आलोयण विधि व २४ जिन कल्याणक तिथि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, अन्य. मु. नेमसागर,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३४११, १४-१६x४१). १.पे. नाम. आलोयणा विधि संग्रह, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण.
___ आलोयणा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम मुहूर्तं; अंति: (-). २. पे. नाम. २४ जिन कल्याणक तिथि, पृ. ५आ, संपूर्ण.
१२० कल्याणक कोष्ठक-चौबीसजिन, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६७५५२.(#) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १८६१, बुधवार, मध्यम, पृ. ११, ले.स्थल. पोकरजी, प्रले. सा. रतुजी आर्या (गुरु
सा. वदुजी आर्या); गुपि. सा. वदुजी आर्या (गुरु सा. अजवाजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. *पत्रांक-७ 'आ' पर प्रतिलेखन पुष्पिका लिखी गई है., अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४९.५, १२४२५-२८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण., पिंडेषणा अध्ययन, उद्देश-२, गाथा-१ अपूर्ण तक लिखा है.) ६७५५३. सामायिकसूत्र सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०३, मध्यम, पृ. ८, ले.स्थल. सिंघाणा, प्रले.मु. महादेव (गुरु मु. तुलसीराम);
गुपि. मु. तुलसीराम, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२०४९, ४४३०).
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२९६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सामायिकसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: णमो अरहताणं० तिक्खु; अंति: तिस मिच्छाम दुक्कडं,
(वि. १९०३, फाल्गुन कृष्ण, ४, गुरुवार) सामायिकसूत्र-स्थानकवासी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार श्री अरिहंत; अंति: जनम मरण न हुई,
(वि. १९०३, फाल्गुन कृष्ण, ५, शुक्रवार) ६७५५४. (+#) मौनैकादशीकथा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३१-२(२९ से ३०)=२९, प्रले. मु. राजेंद्रसागर (गुरु
उपा. उदयसागर); गुपि. उपा. उदयसागर; गुभा. मु. हर्षसागर; मु. रूपसागर; मु. मीठासागर (गुरु ग. उदयसागर), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (२१) जिहां ध्रुसायर चंद रवि, जैदे., (२१४१०, ४४२७-३०). मौनएकादशीपर्व कथा, पं. रविसागर, सं., पद्य, वि. १६५७, आदि: प्रणम्य वृषभदेवं; अंति: सागरशररसशशिप्रमिते,
श्लोक-२०१, (पू.वि. श्लोक-१८३ अपूर्ण से १९६ अपूर्ण तक नहीं है.)
मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य क० नमस्कार; अंति: नइ विषैए जोडी छै. ६७५५५. (+) प्रत्याख्यानभाष्य व अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४९.५,
१०x४०-४३). १. पे. नाम. प्रत्याख्यान भाष्य की अवचूर्णि, पृ. १अ-१०अ, संपूर्ण. प्रत्याख्यान भाष्य-अवचूर्णि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, आदि: दस० दश प्रत्याख्याना; अंति: धानफलमाह पच्च०
सुगमा. २. पे. नाम. प्रत्याख्यान भाष्य, पृ. १०अ-१२आ, संपूर्ण.
आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दस पच्चक्खाण चउविहि; अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, गाथा-४८. ६७५५६. (+) दंडक प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९३२, माघ कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. मकसुदाबाद, प्रले. श्राव. डालचंदभाई;
पठ. श्राव. नंदलालजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में भुवनपति आदि ६४ इन्द्रों की संख्या लिखी गई है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२१४११,५४१८-२१). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउ चउवीस जिणे; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ,
गाथा-३८. ६७५५७. स्नात्रपूजा विधि व ऋषिमंडल स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २, जैदे., (२२४११, १३४३३). १. पे. नाम. स्नात्रपूजा विधिसहित, पृ. १आ-७आ, संपूर्ण.
ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चोतिसे अतिसय जुओ वचन; अंति: मोक्षसौख्यं श्रयंति, ढाल-८, गाथा-६०. २. पे. नाम. ऋषिमंडल स्तोत्र, पृ. ७आ-९आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-७३ अपूर्ण तक है.) ६७५५८. (+#) नवतत्त्वप्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, भाद्रपद शुक्ल, ११, जीर्ण, पृ. ८, ले.स्थल. पलूदा, प्र.वि. प्रत खंडित
होने के कारण प्रतिलेखन संवत् में मात्र १८ पठनीय है. अतः अनुमानित वर्ष दिया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२२४११, ४४३०-३३)..
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१ जीवार पुण्णं३; अंति: अतिथसिद्धाय मरुदेवी, गाथा-५१, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम जीवतत्त्व अजीव; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., अंतिम गाथा का टबार्थ नहीं लिखा है.) ६७५५९. पाशाकेवली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२१४११, १४४३०).
पाशाकेवली, मु. गर्गऋषि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवती; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-६३ अपूर्ण तक है.) ६७५६०. वीसस्थानक तप विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २९-१५(१ से २,४ से १४,१६,२५)=१४, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., दे., (२०४११,७४२२).
२० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठ हैं.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
६७५६१. (#) उपदेशमाला, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २६ प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२१x१०,
१४x२५-३१).
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उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: जगचूडामणिभूओ उसभो, अंतिः वचण विणिग्गवा वाणी, गाथा - ५४४. ६७५६२. (#) स्तुति, स्तोत्र व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९९४, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. ५, प्र. वि. प्रतिलेखक ने संवत् के लिए मात्र १४ का उल्लेख किया है. प्रत की लेखनशैली व दशा के आधार पर समय तय किया है., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२०x१०.५, १५४२४-२९).
१. पे. नाम. वीरथुई, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण.
सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिस्सुणं समण, अंति: आगमसंति तिमि गाथा २९.
२. पे. नाम महावीरजिन स्तुति, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण.
प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: पंचमहव्वयसुव्वयमुलं; अंति: एगंत होई श्री जीवदया, गाथा - १९.
३. पे. नाम. नमिप्रवज्या अध्ययन, पृ. ३आ-५आ, संपूर्ण, ले. स्थल. सेलाणा, प्रले. सा. वखतावराजी आर्या, पठ. सा. रूपाजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य.
उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा नमिप्रव्रज्याध्ययन ९. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., पद्य, आदि चहऊण देवलोग उबवन्नो, अंतिः नमीराए रिसी तिबेमि, गाथा- ४४.
४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण, ज्येष्ठ शुक्ल, २.
पार्श्वजिन छंद, मु. द्यानत, पुहिं., पद्म, आदि: नरींद्र फणींद्र अंतिः चानत लेजो भगवान, गाथा ११.
५. पे. नाम. बीसबोल की सज्झाय, पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण, ज्येष्ठ शुक्ल, ३, ले. स्थल. सिवगड, पठ. सा. रूपाजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य.
२० बोल सज्झाय, मु. जसराज ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि: करम हनी केवल लही; अंति: कहै ऋष ये, गाथा - १८.
६७५६३. वैराग्यशतक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २२-८ (४ से ११) = १४, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.,
प्र. वि. टबार्थ अर्थ रूप में लिखा गया है., दे., (२०x११, ११x१९-२४).
२९७
,
वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ से २५ अपूर्ण व ५४ अपूर्ण से नहीं है.) वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ए संसार असार विषे, अंति: (-)
६७५६५ (+) प्रतिक्रमणसूत्र, जयत्रिभुवन स्तोत्र व सप्तस्मरण, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ५०-३१ (१ से
८,१२,१५,१९,२३,२५ से ३६, ४३ से ४९) = १९, कुल पे. ३, प्र. वि. पत्रांकवाला भाग नष्ट होने से पत्रांक- ५०वां अनुमानित
गया है, संशोधित, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (१८.५४७.५, ७४१९-२५).
"
१. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - विधिसहित, पृ. ९अ-२१अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.
पंचप्रतिक्रमणसूत्र - खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा. सं., प+ग, आदि: (-): अंतिः करेमि काउसगं (पू.वि. उपसर्गहर स्तोत्र गाथा-३ अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.)
२. पे. नाम. जयतिहुअण स्तोत्र, पृ. २१अ - २४आ, अपूर्ण, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.
आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि जब तिहुयणवरकप्परुक्ख, अति: (-). ( पू. वि. गाथा-८ अपूर्ण तक व गाथा - १३ अपूर्ण से १७ अपूर्ण तक है.)
३. पे. नाम. सप्तस्मरण, पृ. ३७अ ५० आ, अपूर्ण, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.
सप्तस्मरण- खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: ( - ), ( पू. वि. बृहदजितशांति स्तोत्र गाथा-३४ अपूर्ण से भयहरस्तोत्र गाथा १३ अपूर्ण तक व गुरुपारतंत्र्य स्तोत्र गाथा १९ अपूर्ण से सिग्धमवहर स्तोत्र गाथा-६ अपूर्ण तक है.)
६७५६६. (-) ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९०२ श्रावण कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. ७, ले. स्थल. ज्वाद, प्रले. पं. चैनजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. दे. (२०x१०.५, ८x२०-२५ ).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यताक्षरसंलिक्ष; अंति: परमानंद संपदं, श्लोक-८१,
ग्रं. १५०. ६७५६७. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१९.५४१०.५, ५४२१-२५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं.,
अध्ययन-१, गाथा-४७ अपूर्ण तक है.)
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: संजोग बहु प्रकारै; अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. ६७५६८. (#) विचारसार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४१०, १०x२८).
विचारसार प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: बारस गुण अरिहंत सिद; अंति: दस सगवीसा यतिभि भवा, गाथा-५७६. ६७५६९. (+#) स्तवन, स्तोत्र वस्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-१(१)=१२, कुल पे. ८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक
लकीरे-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४९, ९४२६-२९). १.पे. नाम. तीर्थयात्रा नमस्कार, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है.
सं., पद्य, आदि: (-); अंति: सततं चित्तमानंदकारी, श्लोक-९, (पू.वि. श्लोक-६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. चिंतामणि पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीज
ददातु, श्लोक-११. ३.पे. नाम. ज्वालामालिनी स्तोत्र, पृ. ३आ-५आ, संपूर्ण...
सं., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवते श्रीचंद; अंति: मालिनी जापयते स्वाहा. ४. पे. नाम. पद्मावतीदेवी स्तवन, पृ. ५आ-७अ, संपूर्ण.
पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: वदना पद्मावती, श्लोक-१०. ५.पे. नाम. महालक्ष्मी स्तुति, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. महालक्ष्मी स्तुति-मंत्रमय, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीचंद्र; अंति: रसीद वरदे वरसारपद्या,
श्लोक-६. ६. पे. नाम. सरस्वत्याष्टक, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण.
सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ह्रीं ह्रीं हृद्यैक; अंति: ध्यात्वा देवीसरस्वती, श्लोक-८. ७. पे. नाम. जिनसहस्रनाम, पृ. ८आ-१३अ, संपूर्ण. शक्र स्तव-अर्हन्नामसहस्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., प+ग., आदि: ॐ नमो जिनाय ॐ नमो; अंति: प्रपेदे संपदा
पदम्. ८. पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र-भंडारगाथा, पृ. १३आ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की भंडारगाथा *, संबद्ध, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: तुह दसणेण सामिय;
अंति: वंछितपूरण, गाथा-५. ६७५७०. (+#) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही
फैल गयी है, जैदे., (१९.५४८, १३४३१-३८). १. पे. नाम. भयहर स्तोत्र सह टीका, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण.
नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण पणय सुरगण; अंति: परमपयत्थं फुडं पासं, गाथा-२३.
नमिऊण स्तोत्र-टीका, आ. जयप्रभसूरि, सं., गद्य, आदि: अहं मुनेः श्रीपार्श; अंति: पार्श्व परमपदस्थितं. २. पे. नाम. उपसर्गहर स्तोत्र सह टीका, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद,
गाथा-५.
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२९९
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५-टीका, आ. जयप्रभसूरि, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनं पार्श; अंति: नधर्मावाप्ति दद्याः. ३. पे. नाम. वीरस्तुति सह टीका, पृ. ५अ-६आ, संपूर्ण.
पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४.
पाक्षिक स्तुति-टीका, आ. जयप्रभसूरि, सं., गद्य, आदि: स श्रीवर्द्धमानो; अंति: चतुर्दिक्षु पूरयंतं. ६७५७१. नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (१७४११, ६x२१-२४).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-५१. ६७५७२. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र तपागच्छीय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५-४(१,४,१०,१६)=२१, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (१५४११.५, १५४१०-१३). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. इरियावहीसूत्र अपूर्ण से
सामायिक पारने के सूत्र अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) ६७५७३. (+#) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१४१०, १०x२१-२५). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. भक्तामरस्तोत्र,
गाथा-१६ अपूर्ण तक है.) ६७५७४. (+) शतप्रकाशपार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९२६, पौष कृष्ण, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. कलकत्ताबंदर,
प्रले. मु. केशरीचंद्र ऋषि (बृहत्विजयगच्छ); लिख. मु. चैनसुख ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (१७४११, १४४२५).
पार्श्वजिनसहस्रनाम स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथं वामे; अंति: वृणुते तं सुखश्रियः, श्लोक-११६. ६७५७५. (+) पाक्षिक, क्षामणक व अब्भुडिओ सूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे.,
(१६४१०.५, १२४१६-१९). १.पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १अ-२०आ, संपूर्ण, वि. १९६०, वैशाख शुक्ल, ७, रविवार, ले.स्थल. शांडेरा, पे.वि. शांतिनाथ
प्रसादात्.
हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. २. पे. नाम. क्षामणकसूत्र, पृ. २१अ-२२अ, संपूर्ण, वि. १९६०. ।
हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पिय; अंति: मणसा मत्थएण वंदामि, आलाप-४. ३. पे. नाम. अब्भूटिओसूत्र, पृ. २२अ-२३अ, संपूर्ण, वि. १९६०, वैशाख शुक्ल, गुरुवार.
गुरुवंदनसूत्र-श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: इच्छा० संदि० अब्भु; अंति: तप करजो पोचाडजो. ६७५७६. (#) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३०-८(१७ से २४)=२२, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१८x१०, ६x२१-२६). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० पंचिं; अंति: (१)तियागारेणं
वोसिरामि, (२)अभिग्गहे९ विगई १०, (पू.वि. अतिचार गाथा अपूर्ण से क्षेत्रदेवता स्तुति अपूर्ण तक नहीं है.) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: माहरउ नमस्कार अरिहंत; अंति: (१)आनरी प्रकृति
छाडउं, (२)करइ प्रति नीवी. ६७५७७. (+) मंत्र व स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (१६.५४९.५,
६४१९). १. पे. नाम. नवकार मंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.
नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: णमो अरिहंताणं; अंति: पढम हवइ मंगलं, पद-९. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ अष्टक, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण. ___ पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्व पातु वो; अंति: प्राप्नोति स श्रियम्, श्लोक-३३. ३. पे. नाम. २४ जिन स्तोत्र, पृ. ६आ-८अ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में पैंसठिया यंत्र बनाया हुआ है.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: मोक्षलक्ष्मीनिवासम्,
श्लोक-८. ६७५७९. (2) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १०-२(५ से ६)=८, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१७४१०.५, ११x१९-२५).
प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-),
(पू.वि. "वारिजइ जइविनीयाणं" पाठ से "वयदुक्कमाए कयदुक्कमाए" पाठ तक नहीं है व पाक्षिक अतिचार अपूर्ण तक
६७५८०. ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९५४, भाद्रपद शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ५, लिख. श्राव. मूलचंद अमथाराम; प्रले. दलसुखराम अंबाराम भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१६४१०.५, १०x२२).
ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यताक्षरसंलिक्ष; अंति: लभते पदमव्ययम्, श्लोक-६६. ६७५८१. (+) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित., दे., (१६.५४१०, ९x१८-२२). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: (-), (पू.वि. कल्याणमंदिर स्तोत्र
नहीं लिखा है व वृद्धशांति स्तवन का किंचित् अंतिम अंश नहीं है.) ६७५८२. (-#) ऋषिमंडल स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९३४, पौष शुक्ल, १४, सोमवार, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, ले.स्थल. स्यारपुर, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (१६.५४१०, ८-११४१४-१७). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: लभ्यते पदमुत्तम, श्लोक-६६,
(पू.वि. श्लोक-९ अपूर्ण से है.) ६७५८३. (+#) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१८४९.५, ९-१२४२४-३३). साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: अन्नाण मोहदलणी जणणी; अंति: वंदामि जिणे
चउवीसं. ६७५८४. सूरिमंत्राराधन विधिसंग्रह-अंचलगच्छीय-विस्तृत, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७-२(१ से २)=१५, प्रले. वा. हंसराज (गुरु वा. लब्धिराज, अंचलगच्छ राजशाखा), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१५४१०.५, १९४२८).
सूरिमंत्राराधन विधिसंग्रह-अंचलगच्छीय-विस्तृत, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: नयनां विसर्जनमुद्रा,
(पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गणावच्छेदक मंत्र अपूर्ण से है.) ६७५८५. (+) पूजन व हवन विधि, संपूर्ण, वि. १९५०, आश्विन शुक्ल, १, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. २, ले.स्थल. जोधपुर,
प्रले.पं. जुहारमल्ल; पठ. श्राव. पूनमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (१३.५४१०, १०x१४). १. पे. नाम. नित्यपूजन विधि, पृ. १अ-८आ, संपूर्ण..
दिनकृत्य पूजाविधि, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: शुद्ध पवित्र जलसुं; अंति: ठिकाणे पधराय उठीजे. २.पे. नाम. होम विधि, पृ. ९अ-१३आ, संपूर्ण.
हवन विधि, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: सो भूमिशुद्धि१; अंति: पछी नमस्कार कर उठे. ६७५८६. (+) दंडक प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (१४.५४१०, ४४२१). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउण चउविसजिणे तसु; अंति: गयसारेण० अप्पहिया,
गाथा-३८, (संपूर्ण, वि. प्रशस्ति वाला अंतिम पत्र नहीं है.)
दंडक प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्करी चउवीस० भगवंत; अंति: आपणा हितनइ काजि लिखी, संपूर्ण. ६७५८७. (+) सिंदूरप्रकर, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७-१(१५)=१६, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित.,
जैदे., (१४.५४११, ११x१९-२४).
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सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पच, वि. १३वी आदि सिंदूर प्रकरस्तपः अंतिः (-) (पू. वि. लोक- ७८ अपूर्ण तक ब ८४ अपूर्ण से ९८ अपूर्ण तक है.)
६७५८८. (+) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १३-३(१ से ३) १०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित, जैवे. (१५४१०, ४४१७-२० ).
प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - श्वे. मू. पू. *, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. काउसग्ग सूत्रपूर्ण उवसग्गर सूत्र अपूर्ण तक है.)
प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - क्षे.मू. पू. - टवार्थ, मा.गु, गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
६७५८९. प्रास्ताविकगाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९४८, आश्विन कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. ९, प्र. वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है., दे. (१५.५X१०, ६१२).
प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तप: अंति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा १२ तक है. वि. विभिन्न ग्रन्थों से संकलित गाथाएँ.)
६७५९०. (#) साधुप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१६X१०,
११x१९-२३).
पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं करोमि, अंतिः वंदामि जिणे चडवीस, सूत्र- २१. ६७५९१ (१) पार्श्वनाथजीनो छंद, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (१७४८.५, ९४१९). पार्श्वजिन स्तोत्र- शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु. सं., पच, वि. १७१२, आदि जय जय जगनाय; अंतिः मुदा प्रसन्नात्,
"
गाथा - ३२.
६७५९२ (-) अजितशांति स्तवन अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १०-१ (८) = ९, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. अशुद्ध पाठ., जैवे. (१४४८, ७४१३).
"
अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि अजिअं जिअसव्वभयं संत अंतिः (-), (पू. वि. गाथा २० अपूर्ण तक व २४ अपूर्ण से ३१ अपूर्ण तक है.)
६७५९३. (A) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९-२ (९, १७) = १७, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (१६४९, ११४२३)
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - तपागच्छीय का बालावबोध, पं. हेमहंस गणि, मा.गु., गद्य, वि. १५०१, आदि:
श्रीमहावीर; अंति: (-), (पू. वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., नवकार कथा तक लिखा है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.)
६७५९४.
. (+#) शीलोपदेशमाला सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६९२, वैशाख कृष्ण, १४, रविवार, मध्यम, पृ. ९, ले. स्थल. महिमनगर, प्रले. मु. अमृतविजय (गुरुग. अमरविजय); गुपि. ग. अमरविजय, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६X११, ७३६-४०).
शीलोपदेशमाला, आ. जयवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: आबाल बंभयारिं नेमि; अंति: आराहिय लहइ बोहि फलं, गाथा - ११६.
शीलोपदेशमाला - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बालपणा लगइं ब्रह्म; अंति: पामइ भवांतरि बोधि फल. ६७५९५. (+) उपाशकदशांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १७८४, मध्यम, पृ. ४९-५ (२ से ५, २६) = ४४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ.. प्र. ले. श्लो. (१२१२) जादृशं पुस्तके दृष्टा, जैदे., (२५.५X१०.५, ६×५२).
,
उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि: तेणं० चंपा नाम नवरी अंति: दिवसेसु अंगं तहेव, अध्ययन- १०, (वि. १७८४ आश्विन कृष्ण, ३, मंगलवार, पू. वि. अध्ययन- १ व अध्ययन-३ के बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.)
उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मु. हर्षवल्लभ, मा.गु., गद्य, वि. १६९३, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: अनुज्ञा पवइया, (वि. १७८४ आश्विन कृष्ण, ९)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६७५९७. (+) जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र व पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १६१७, मध्यम, पृ. ७०+१(२१)=७१, कुल पे. २,
ले.स्थल. अणहिल्लपत्तन, राज्ये आ. जिनचंद्रसूरि (गुरु आ. जिनमाणिक्यसूरि, खरतरगच्छ); गुपि. आ. जिनमाणिक्यसूरि (गुरु गच्छाधिपति जिनहससूरि, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंतिम पत्र चूर्णियुक्त जंबूद्वीप के किसी अन्य प्रत का प्रतीत होता है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १७४५२-५८). १.पे. नाम. जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्र. १आ-७०अ, संपूर्ण.
प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, वक्षस्कार-७. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ७०अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: यस्य मूर्ध्नि वाभातू; अंति: पार्श्वजिन श्रियः, श्लोक-१. ६७५९८. (+) ज्योतिषसारादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६८, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे.,
(२६४११, ११४३९-४२). १.पे. नाम. सुभिक्षदुर्भिक्षज्ञान गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यंत्र सहित.
प्रा., पद्य, आदि: संबच्छरस्स अंके; अंति: दुभिक्खं होई उकिट्ठ, गाथा-२. २. पे. नाम. ज्योतिषसार, पृ. १आ-६८अ, संपूर्ण. ज्योतिषसारोद्धार, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: तं नमामि जिनाधीशं; अंति: संकलितवानेनम, अध्याय-३,
श्लोक-३३७. ३. पे. नाम. नरपतिजयचर्यागत कालचक्र वर्णन श्लोक, पृ. ६८आ, संपूर्ण, पे.वि. यंत्र सहित.
नरपतिजयचर्या, क. नरपति, सं., प+ग., वि. १२३२, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ४. पे. नाम. मृत्युयोग विचार श्लोक, पृ. ६८आ, संपूर्ण..
सं., पद्य, आदि: उरग वरुण रुद्रा वासव; अंति: रोगिणा मृत्युरेव, श्लोक-१. ६७५९९. श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४४११, ९४२५).
श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कवियण
तणी; अंति: (-), (पू.वि. खंड-२, ढाल-३, गाथा-६५ अपूर्ण तक है.) ६७६००. (+) उपासकदशांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ८५-७५(१ से ७५)=१०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. *पत्रांक का
भाग नष्ट तथा बीच के पत्र होने से पाठानुसंधान अस्तव्यस्त है. पत्रांक-७६ से ७८ के आंशिक भाग मिलने से पत्र क्रमशः गिनकर पत्रांक दिया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२८४७.५, ७४३०-३४). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-९ अपूर्ण से अध्ययन-१०
अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ६७६०१. (#) शांतिनाथ चरित्र, संपूर्ण, वि. १५२१, आषाढ़ कृष्ण, श्रेष्ठ, पृ. १४५, लिख. मु. शीलहंस, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३०.५४११, १६४४६). शांतिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३०७, आदि: श्रेयोरत्नाकरोद्भूता; अंति: स करोतु शांतिः,
प्रस्ताव-६, श्लोक-७९०. ६७६०२.(+) आचारांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७९-२५(१ से २५)=५४, पू.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x१०.५, १२४३८).
आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथमश्रुतस्कंध अध्ययन-८ उद्देश-४
गाथा-७ से द्वितीयश्रुतस्कंध विमुक्त्यध्ययन पहली भावना तक है.) ६७६०४. (+) कर्मग्रंथ १ से ४ सह टीका, पूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १२९, कुल पे. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे.,
(२७४१०, १४४५५-६०). १.पे. नाम. कर्मविपाक सह टीका, पृ. १आ-४०आ, संपूर्ण, वि. १५३२, कार्तिक शुक्ल, १, सोमवार, प्रले. उपा. राजशेखर (गुरु
उपा. रामभद्र, कोरंटकीयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
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कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी १४वी, आदि सिरिवीरजिणं वंदिय अंति: लिहिओ
देविंदरिहिं, गाथा- ६०.
कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-स्वोपज्ञ सुबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: दिनेशवद्ध्यानवर; अंतिः (१) देवेंद्र० चंचरीकैरिति, (२) सर्वोपि तेन जनः ग्रं. १८८२.
२. पे. नाम. कर्मस्तव सह टीका, पृ. ४१ अ-५९अ, संपूर्ण.
कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ - स्वोपज्ञ सुखबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: बंधोदयोदीरण सत्पदस्थ, अंतिः (१) देवेंद्रसूरि० बिति, (२) त्रुट्यंतु जगतोपि नं. ८३०.
३. पे. नाम. बंधस्वामित्व कर्मग्रंथ सह टीका, पृ. ५९-६७आ, संपूर्ण
बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा. पद्य वि. १३वी २४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्तं, अंतिः देविंदसूरि०
"
3
सोउं गाया-२५.
(+)
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कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी- १४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं, अंति: ( १ ) वंदियं नमहं तं वीरं (२) देविंद० नमह तं वीर गाथा-३४.
बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ अवचूर्णि, सं., गद्य, आदिः सम्यम्बंधस्वामित्व अंति: रतोलेख्यवचूर्णिका, ग्रं. ४२७. ४. पे. नाम. षडशीति कर्मग्रंथ सह टीका, पृ. ६७आ- १२९आ, पूर्ण, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है.
षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १३वी १४बी, आदिः नमिव जिणं जियमगण: अंति: लिहिउ
,
६७६०५. '
देविंदसूरीहिं, गाथा- ८६, संपूर्ण.
षडशीति नव्य कर्मग्रंथ स्वोपज्ञ सुखबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदिः यद्भाषितार्थलवमाप्य; अंतिः (-), (पूर्ण, पू.वि. टीकाप्रशस्तिगत अंतिम शब्द "चंचरीकैरिति" नहीं है.)
कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८४, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५X१०.५, ९४२४-२७).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (१)नमो अरिहंताणं नमो, ( २ ) तेणं कालेणं० समणे, अंति: (-), (पू.वि. स्थविरावली अपूर्ण तक है.)
६७६०६. दशवैकालिकसूत्र सह वालावबोध, संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ५३, प्र. वि. पंचपाठ, जैदे. (२६.५X१०.५, ७- १०X३०).
יי
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि धम्मो मंगलमुकि अंतिः अपुणागमं गए तिबेमि
अध्ययन - १०.
दशवैकालिकसूत्र - बालावबोध, उपा. राजहंस, मा.गु, गद्य, आदि: नत्वा श्रीवर्द्धमान, अंतिः इम कहिउ इम हउ बोलउ
६७६०७. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १७४१ श्रावण अधिकमास शुक्ल, ५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १२२-५५ (१ से ५५ ) = ६७, प्र. मु. मोहणजी ऋषि, पठ. मु. धनराज ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६.५४११, ७४२१-२५)
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-) अंति उवदंसेइ ति बेमि, व्याख्यान-८ (पू. वि. महावीरस्वामी दीक्षा प्रसंग अपूर्ण से है.)
६७६०८ (+) जीवाभिगमसूत्र सह कठिनपदटिप्पण, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ८९, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित., प्र. ले. श्लो. (४४९) यदक्षर पदभ्रष्ट, जैवे. (२७.५x११, १५४५५).
जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: णमो उसभादियाणं चउवीस, अंति: सेत्तं सव्वजीवाभिगमे, प्रतिपत्ति-१०, सूत्र- २७२,
ग्रं. ४७००.
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जीवाभिगमसूत्र - कठिनपद टिप्पण, सं., मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
६७६०९. (+) महीपालनरेंद्र कथा, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ५२-६ (१ से ६) =४६, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें - संशोधित., प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., ( २६.५X११, १६x४६).
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३०४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महीपालराजा कथा, ग. वीरदेव, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: वीरदेवगणी० पसाएण, गाथा-१८१६, (पू.वि. श्लोक
२१७ अपूर्ण तक नहीं है.) ६७६१०. उव्वाइयसुत्त, संपूर्ण, वि. १५७८, ज्येष्ठ शुक्ल, १०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ३३, प्र.वि. वि.१६९९ भाद्रपद पूर्णिमा को नाहटा
गोत्रीय नरसिंघ शाह सपरिवार ने आचार्यश्री जिनराजसूरि को यह प्रत दिया है., कुल ग्रं. ११७५, जैदे., (२७४११.५, १३४४२-४६).
औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: सुही सुहं पत्ता, सूत्र-४३, ग्रं. ११७५. ६७६११. सिद्धचक्रपूजाविधान नवपदमहिमा मंत्राह्वान विधि, संपूर्ण, वि. १८६८, आश्विन कृष्ण, ८, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २१, ले.स्थल. जगतारिणीनगर, प्रले. पं. रामहर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२८x११, ११४४२). सिद्धचक्रपूजाविधान नवपदमहिमा मंत्राह्वान विधि, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: सुलग्ने प्रथम उद्याप; अंति: संतर्पितास्तु
स्वाहा. ६७६१२. भगवतीसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १७३-१६२(१ से १६२)=११, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२७४११.५, १५४४८). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पोसहव्रत प्रश्न से शतक १ उद्देशा ५
पृथ्वीकाय वर्णन अपूर्ण तक है.) ६७६१३. (+) विक्रमसेनराजा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४१-२१(१ से २१)=२०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १५४४६).
विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल २८ के दूहा ७
___अपूर्ण से ढाल ५८ गाथा ७ अपूर्ण तक है.) ६७६१४. दानकुलकादिसह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१२, फाल्गुन कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. अगस्तपुर, प्रले. मु. कस्तुरविजय (गुरु पं. कुसलविजय गणि); गुपि.पं. कुसलविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, ५४३५-४०). दानशीलतपभावना कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: परिहरिय रज्जसारो; अंति: सोलहइ सिद्धिसुहं,
वक्षस्कार-४.
दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: परिहरिउं छांडिउं; अंति: सुख तेह प्रतइ. ६७६१५. वीरथुई अध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, जैदे., (२७.५४११.५, ४४३३).
सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति:
आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा-२९, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पुछि० पुछता हवा; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१२ तक टबार्थ लिखा है.) ६७६१६. (+) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३१-५(६ से १०)=२६, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १०४३३-३८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१०
गाथा-२० अपूर्ण तक है.) ६७६१७. (+#) हैमीनाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४५-२४(१ से २,६ से १६,२२ से २७,३१ से ३४,४०)=२१,
पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०, १३-१५४४५-४८).
अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-),
(पू.वि. कांड-१ श्लोक-४९ अपूर्ण से कांड-५ श्लोक-१६२ अपूर्ण तक बीच-बीच के पाठांश हैं.) ६७६१८.(+) हैमीनाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ.८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८x११.५,
१४४३५).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
३०५ अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति:
(-), (पू.वि. कांड-२, श्लोक-९४ अपूर्ण तक है.) ६७६१९. (+) तंदुलवेयालि पइण्णय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४१०, ७-८४४४-४६).
तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक, प्रा., प+ग., आदि: निजरिय जरामरणं; अंति: कारणं लहइ सिवसुक्खं.
तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तप संजमनक्ष एकीधा ज; अंति: अनुक्रम मोक्ष पाम. ६७६२०. प्रबंध संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६०-५२(१ से ५२)=८, कुल पे. ३, जैदे., (२७.५४१०.५, ११४४२-४८). १.पे. नाम. कुमारपालपूर्वभव हेमसूरि प्रबंध, पृ. ५३अ-५५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. हेमसूरि प्रबंध, आ. राजशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: (-); अंति: सिद्धराजस्य पुत्रः, (पू.वि. "तत्तदीयं वचः
श्रुत्वा शुशब्द" से है.) २. पे. नाम. हर्षविद्याधर जयंतचंद्र प्रबंध, पृ. ५५आ-५९आ, संपूर्ण.
हर्षकवि प्रबंध, आ. राजशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: पूर्वस्यां वाराणस्या; अंति: यवनैलाता पू:. ३. पे. नाम. हरिहर प्रबंध, पृ. ५९आ-६०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
आ. राजशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: श्रीहर्षवंशे हरिहरः; अंति: (-), (पू.वि. "अथ सोमेश्वरः वस्तुपाल सदनं
___गत्वा" पाठ तक है.) ६७६२१. (+) श्रावक व साधु आराधना, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, प्रले. मु. क्षेममाणिक्य, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२८.५४१०.५, १७४४६). १.पे. नाम. श्रावक आराधना, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६७, आदि: श्रीसर्वज्ञ प्रपंणम; अंति: (१)मुनिषडरसचंद्रवर्षे, (२)वार ३
उचरावीयै, अधिकार-५. २.पे. नाम. साधु आराधना, पृ. ५आ-९आ, संपूर्ण.
प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पूर्वं ग्लानस्य संप: अंति: स्तवनं उपसर्गहरदेशना. ६७६२२. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा-व्याख्यान १ से ८, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७७-२(१ से
२)=१७५, ले.स्थल. पंथेडी, प्रले. पं. ज्ञानविजय गणी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२२.५४१०.५, ५-१२४३२-३६).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहताणं नमो; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: ध्याताथी अधिकपणे; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं., १० कल्प में ३
रा कल्प अपूर्ण से है.) ६७६२३. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६४-३(१३,३१,६०)=६१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४४१०,५४३२-३८). दशवकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: मुच्चइ त्ति बेमि,
अध्ययन-१०, (पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं., वि. चूलिका २.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: धर्म केवली भगवंतनो; अंति: शिष्य प्रतइ कहइ छइ, पू.वि. बीच-बीच
के पत्र नहीं हैं. ६७६२४. (#) वैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१०, ६४३९).
वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जीओ सासयठाणं, गाथा-१०४. वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसार असारमाहि नथी; अंति: तुंशाश्वतुं ठाम.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
६७६२५. (4) प्रस्ताविकश्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८१५, मार्गशीर्ष कृष्ण, ६, मध्यम, पू. ६, प्रले. ग. देवेंद्रविजय, अन्य रामसिंघ,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०.५, १३X३८).
प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा., मा.गु., पद्य, आदि: देवपूजा दयादानं; अंति: ग्रीष्मे सप्तसुखावहा, गाथा-१५७. ६७६२६. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, ले. स्थल. वीकानेर, प्रले. पं. रूपहर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४X१०, ६x४४).
कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४.
कल्याणमंदिर स्तोत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कल्याण कहीयां श्रेय; अंति: मुक्तिना सुख पामइ. ६७६२७. (+) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६९ कार्तिक कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. ६, प्रले. ऋ. रतनचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है- संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५X१०.५, १२३१).
साधु प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे. मू. पू. संबद्ध, प्रा. सं., प+ग, आदि णमो अरिहंताणं णमो अंति: तस्स मिच्छामि दुकडं. ६७६२८. (+#) अणुत्तरोववाईसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६, अन्य . सा. वखतबाई, सा. झवेरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ७५०, मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे. (२४.५४९.५, ५x२७). अनुत्तरीपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि: तेणं कालेणं तेणं, अंतिः नवमं अंग सम्मतं,
अध्याय-३३.
अनुत्तरोपपातिकदशांगसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: त० ते कालन विषइ ते अंति: न० नवमू अंग पूरो भयो. ६७६२९. (+#) नवस्मरण व लघुशांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७३९, ज्येष्ठ कृष्ण, २, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. २, ले. स्थल. रोगांम, पठ. मु. वीरजी (गुरु पं. भोजरत्न); प्रले. पं. भोजरत्न प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२३१०.५, १५X४७).
१. पे. नाम. नवस्मरण, पृ. १-१०अ, संपूर्ण.
.
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मु. . भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., सं., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं नमो, अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, स्मरण-९, (वि. कल्याणमंदिर व तिजयपहुत्त क्रमशः नहीं है.)
२. पे. नाम. शांति स्तवन, पृ. १०अ १०आ, संपूर्ण.
"
लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि शांतिं शांतिनिशांत अंतिः सूरिः श्रीमानदेवश्च श्लोक-१७. ६७६३०. (+) भाष्यत्रय, संपूर्ण, वि. १८७७, माघ कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्रले. पं. गौतमविजय; पठ. श्राव. हेमराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रत के अंत में मनवचनकाया का ४९ भांगा दिया है., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३x१०.५, ९४२६).
भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे, अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३,
गाथा - १४८.
६७६३१. (#) पाक्षिकसूत्र व पाक्षिकखामणा, संपूर्ण, वि. १७५४, वैशाख शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, ले. स्थल. तपरवाडा, पठ. मु. प्रेम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे. (२२.५४९.५, १५४४३). १. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १अ ८आ, संपूर्ण.
"
पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि तित्यंकरे य तितथे अंति: जेसिं सुवसायरे भत्ति,
२. पे. नाम. खामणा सूत्र, पृ. ८आ, संपूर्ण.
क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं; अंतिः नित्वारग पारगा होह, आलाप ४. ६७६३२. श्लोक संग्रह (छूटक) सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४-४ (३,९,११,१३) १०, जैदे. (२३४१०,
१३X३४).
श्लोक संग्रह पुहिं प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: श्रीदानं सुपात्रे अंति (-) (पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण श्लोक-१४
"
तक लिखा है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.)
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"
श्लोक संग्रह - बालावबोध **, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंत भगवंतकेवल; अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
३०७ ६७६३३. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९३४, माघ शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. सतुंबर, प्रले.पं. पन्नालाल; पठ. श्राव. गुणचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीऋषभदेवजी के मंदिर में., संशोधित., दे., (२२४११, ११४२४). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते,
श्लोक-४४. ६७६३४. कलिकाल प्रबंध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, जैदे., (२२४११, ११४३६).
कलिकालप्रबंध द्रष्टांत संग्रह, सं., प+ग., आदि: धर्माद्धनं धनत एव सम; अंति: जाताः राजादिवमगात्. ६७६३५. लघुसंग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्रले. ताराचंद बारोट, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१.५४१०, ३४२८).
लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वन्नु; अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा-३०.
लघुसंग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमिय क० नमस्कार करीन; अंति: सूरिहि के० आचार्य. ६७६३६. (#) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १८०६, संवद्रसश्रुन्यसिद्धीचंद्र, फाल्गुन शुक्ल, २, मंगलवार, मध्यम, पृ. १७,
ले.स्थल. वल्लभोत्तरनगर, प्रले. पं. न्यानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशीतलजिन प्रशादात्., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३४१०.५, १३४३६). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते,
श्लोक-४४.
कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, पा. हर्षकीर्ति, सं., गद्य, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: पार्श्वनाथप्रसादतः. ६७६३७. सिंदूरप्रकर सह टीका व श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९२६, आश्विन कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. २६-९(४ से ६,१० से १५)=१७,
कुल पे. २, ले.स्थल. खीमेल, प्रले. मु. नवलरत्न (गुरु मु. ऋषभरत्न), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२०.५४१०.५, १३-१९४३५-५०). १.पे. नाम. सिंदूरप्रकर सह टीका, पृ. १अ-२६आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. सिंदरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम, द्वार-२२,
श्लोक-१००, (पू.वि. श्लोक-७ से १६ व २३ से ४५ नहीं है.) सिंदूरप्रकर-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: मुक्तावली व्यरचिकृता. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. २६आ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह **, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: नहि प्रयण नही मधुरमद; अंति: बलु बलुल कलुला कलुक, श्लोक-७. ६७६३८. विचारषत्रिंशिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०९, आषाढ़ अधिकमास कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. जालोरदुर्ग, प्रले. मु. लब्धिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१२) मंगलं लेखकानांच, जैदे., (२१.५४१०, २-४४३०). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: गजसारेण अप्पहिआ.
गाथा-४१.
दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमउंक० नमस्कार करीन; अति: आपणा हितनइ काजइ. ६७६३९. (+) वैराग्यशतक व देशनाशतक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२०x११,
११४२६). १. पे. नाम. भववैराग्यशतक, पृ. १अ-८अ, संपूर्ण.
वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जिओ सासयं ठाणं, गाथा-१०४. २.पे. नाम. देशनाशतक, पृ. ८अ-१४अ, संपूर्ण.
आदिनाथ देशनोद्धार, प्रा., पद्य, आदि: संसारे नत्थि सुह; अंति: सिवं जंति, गाथा-८८. ६७६४०. (+) गौतमपृच्छा सह टीका, अपूर्ण, वि. १९२३, आश्विन कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ६४-४४(१ से ४४)=२०, ले.स्थल. लखनौ,
प्रले.पं. सदासुख (गुरु आ. जिनहेमसूरि); गुपि. आ. जिनहेमसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२०.५४११, १२४२७-३०). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: धम्माधम्म फलं पयड, प्रश्न-४८, (पू.वि. गाथा-४९ से है., वि. प्रतिलेखक ने
गाथांक नहीं लिखा है.)
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गौतमपृच्छा-टीका, मु. मतिवर्द्धन, सं., गद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: सुगमा सुखबोधिका. ६७६४१. जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, दे. (२२x११, १०x२१).
जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण, अंति संतिसूरि० सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
६७६४३. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैवे (२३४१०.५, १०x२७)
पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि पडिक्कमिउ, अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. ६७६४४ (+) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र तपागच्छीय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४-२ (१ से २) = १२, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२०.५x९.५, १०X३०-३३).
"
"
साधुआवक प्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा.गु. सं., प+ग, आदि (-); अंति: (-), (पू. वि. जगचिंतामणि चैत्यवंदन अपूर्ण से पगाम सज्झाय अपूर्ण तक है.)
६७६४५. चतुर्विंशतिजिन नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९०२, फाल्गुन शुक्ल, १५, गुरुवार, मध्यम, पृ. ५, ले. स्थल. अजमेर,
प्रले. पं. भगवानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २१.५X१०.५, ७X१८).
सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी आदिः सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंतिः श्रीवीर भद्रं दिश, श्लोक-३३.
६७६४६. (+) स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६ - १२ (१ से ११, १८) = १४, कुल पे. ५, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., ( २१.५x१०.५, ८x२१-२४).
१. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १२अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि (-); अंति: कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४ (पू. वि. अंतिम श्लोक ४३ अपूर्ण से है.)
२. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. १२अ - १७आ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: एगंते होई मिच्छत्तं, गाथा-५३.
३. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. १७आ-२२आ, अपूर्ण, पू. वि. बीच का एक पत्र नहीं है.
आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण, अंति: रूद्दाउ सुय समुद्दाउ, गाथा- ५१, (पू. वि. गाथा ४ से १२ अपूर्ण तक नहीं है.)
४. पे. नाम, दंडक प्रकरण, प्र. २२आ-२६आ, संपूर्ण.
मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चडवीसजिणे तस्स अंति: गजसारेण० अप्पहिआ, गाथा-४०, ५. पे. नाम. उपदेशमाला, पृ. २६आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति (-), (पू.वि. गावा- १ अपूर्ण मात्र है.) ६७६४७. (+) दंडक प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ.,
1
जैदे. (२१.५x१०.५, ३-५X३७-४०).
-
दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि नमिठं चउवीसजिणे तस्स अंति: (-), (पू. बि. गाथा ३८ अपूर्ण तक है.)
दंडक प्रकरण- बार्थ, मु. यशसोम-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: ऐंद्रराजं जिनं नत्वा, अंति: (-).
६७६४८. (+) साधुपाक्षिक अतिचार व साधुप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पणयुक् पाठ-संशोधित, जैदे. (२२४१०५, १२x२०-२४).
१. पे. नाम. साधुपाक्षिकादिअतिचार पृ. १ अ ५आ, संपूर्ण.
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साधुपाक्षिक अतिचार श्वे. मू. पू., संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. २. पे. नाम. साधु प्रतिक्रमणसूत्र, पृ. ५आ- ९आ, संपूर्ण.
पगामसझायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अ० करेमि अंतिः वंदामि जिणे चोवीसं.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
६७६४९. (४) शीलोपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५. प्र. वि. अक्षर पत्र पर आमने-सामने छप गए हैं, जैवे., ११X३६).
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शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि : आबालबंभयारि नेमि, अंति: आराहिय लहइ बोहिफलं, गाथा- ११५.
६७६५०. (+) ज्ञानमाहात्म्यशतक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र. वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत संशोधित. वे., (२२x११, १३४३७)
पणिहाणिजोगजुत्तो पंचहि समिइंहि" पाठ अपूर्ण तक है.)
षडावश्यक सूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
ज्ञानमाहात्म्यशतक, पंडित, हीरालाल हंसराज, सं., पद्य, वि. १९५९, आदि: नत्वा जिनं वीरविभुं अंतिः चैव लभते ते नराधमाः, श्लोक १०१.
६७६५१. (+४) शोभन स्तुतयः, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९. प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२२x१०.५, १३X२८-३५). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि सं., पद्य, आदि: भव्याभोजविबोधनैक, अंतिः हारताराबलक्षेमदा, स्तुति - २४, श्लोक- ९६.
६७६५२. (+) षडावश्यकसूत्र सह टबार्थ व कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३७-२९ (१ से २९) ८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२२x१०, ४- १४X३०-४० ).
आवश्यक सूत्र- षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा. गद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. "नमो जिणमए नंदीसवासंयमे पाठ से
"
३०९
(२३४११.५,
आवश्यकसूत्र- षडावश्यकसूत्र- कथा संग्रह, मा.गु.. गद्य, आदि: (-); अंति: (-) (पू. वि. मातुशकथा से सालिमहासालि भ्राताद्वय कथा तक है.)
६७६५३. (+) सिद्धचक्र स्तव सह अवचूरि, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें. जैवे. (२३.५४११.५, २-६४२८)
"
सिरसिरवाल कहा- हिस्सा सिद्धचक्र स्तव, आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. पद्य वि. १४२८, आदि: गयणमकलियायतं उवाह, अंतिः सिद्धचकं नमामि गाथा ३६.
""
सिरिसिरिवाल कहा का हिस्सा सिद्धचक्र स्तव अवचूरि, मु. हेमचंद्र, सं. गद्य, आदि: अथ ग्रंथकार एकादश; अंति सिद्धचक्रं अहं नमामि
"
६७६५५ (+) द्रव्य संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७. प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२२.५X१०, ७-८x२५-२८). द्रव्य संग्रह, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि जीवमजीवं दव्वं जिणवर, अंति: मुणिणा भणियं जं, अधिकार-३, गाथा- ६४.
६७६५६. (+) सिंदूरप्रकर, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(१) = ८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२२x१०.५, १२X३६).
सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक - ६ अपूर्ण से १०० अपूर्ण
है.)
१. पे नाम, वृहत्शांति स्तोत्र तपागच्छीय, पृ. १अ ४अ संपूर्ण
सं., प+ग, आदि: भो भो भव्याः शृणुत, अंति: जैन जयति शासनम्.
२. पे नाम. नवकार स्तोत्र, पृ. ४अ ६अ, संपूर्ण.
६७६५७. (+#) स्तोत्र, विधि व श्रावकविधि प्रकाश, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. ५, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५X१०.५, १०x२९).
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नमस्कार महामंत्र पद, आ, जिनवल्लभसूरि, मा.गु, पद्य, वि. १२वी, आदि: किं कप्पतरु रे आवाण, अंतिः सेवा देज्यो नित्त, गाथा - १३.
३. पे. नाम. देवसि प्रतिक्रमण विधि, पृ. ६आ-८आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची देवसिप्रतिक्रमण विधि-खरतरगच्छीय, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: सामायक लेकै पीछे कहै; अंति: पीछे सामायक
पारे. ४. पे. नाम. चैत्यालय प्रतिष्ठा गृहबिंबप्रवेशस्थापन विधि, पृ. ८आ-९आ, संपूर्ण.
जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: तत्र पूर्वं चक्रस्य; अंति: बिंबनु नाम गुणै १०८. ५. पे. नाम. श्रावकविधि प्रकाश, पृ. ९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु.,सं., गद्य, वि. १८३८, आदि: प्रणम्य श्रीजिनाधीश; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभिक कुछ अंश
६७६५८. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०-४(१ से ४)=१६, जैदे., (२३४१०.५, ५४२७-२९).
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण., श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ सूत्र-९ अपूर्ण से है तथा सूत्र-३८ धारिणीदेवी स्वप्नफलवर्णन अपूर्ण तक लिखा
है.)
६७६५९. (+) सप्तस्मरण खरतरगच्छीय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०-५(१ से ५)=५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१०, ११४२८-३३). सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं
हैं., स्मरण-२ गाथा-१६ अपूर्ण से स्मरण-७ गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ६७६६०. (+) अर्हन्नामसहस्र समुच्चय व पद्मावतीसहस्रनाम स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त
विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२२४१०, १०x२४). १.पे. नाम. अर्हन्नामसहस्र समुच्चय, पृ. १आ-७आ, संपूर्ण.
आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी-१३वी, आदि: अर्हन्नामापि कर्ण; अंति: सानंद महानंदैककारण,
प्रकाश-१०, ग्रं. १११. २.पे. नाम. पद्मावतीसहस्रनाम स्तोत्र, पृ. ७आ-१६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है.
सं., पद्य, आदि: प्रणम्य परया भक्त्या ; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. श्लोक-१२७ अपूर्ण तक है.) ६७६६१. (+-#) भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित-अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१०.५, ८x२३-२६).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३७ तक है.) ६७६६२. (+) दंडक प्रकरण, चोवीसदंडक स्तवन व स्तुतिचतुर्विंशतिका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-१०(१ से १०)-५, कुल
पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१४१०, १२x२९). १.पे. नाम. दंडक प्रकरण, पृ. ११अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं.
मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: (-); अंति: गजसारेण० अप्पहिआ, गाथा-४२, (पू.वि. गाथा-३६ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. चोवीसदंडक स्तवन, पृ. ११अ-१४अ, संपूर्ण, ले.स्थल. जेसलमेरनगर, पे.वि. तपागच्छ में किसी अज्ञात
प्रतिलेखक द्वारा लिखित प्रत. पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, म. धरमसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: पूर मनोरथ पासजिणेसर;
अंति: गावै धरमसी सुजगीस ए, ढाल-४, गाथा-३४. ३. पे. नाम. स्तुतिचतुर्विंशतिका, पृ. १४अ-१५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: (-), (पू.वि. पद्मप्रभ स्तुतिगत सिद्धांतस्वरूपवर्णन श्लोक-३
अपूर्ण तक है.) ६७६६३. (+#) ३३ थोकडा, ८ मदादि विविध बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९२१, आश्विन शुक्ल, १०, सोमवार, मध्यम, पृ. १५,
ले.स्थल. रूपनगर, प्रले.सा. रायकुंवरजी (गुरु सा. पाराजी); गुपि.सा. पाराजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२२४१०.५, १३४३०).
बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पडिकमामि एगविहे असंज; अंति: मनोअधीन० छतीस अध्ययन.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६ ६७६६४. दशपच्चक्खाण, संपूर्ण, वि. १९३६, आश्विन अधिकमास कृष्ण, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. खाम गाम,
प्रले. मु. वृद्धिचंद्र ऋषि (लुकागच्छ); ऋ. जुहारमल; पठ. श्राव. जुहारमल हिमतमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंक्तिमध्य खाली जगह चतुष्कोण आकृति द्वारा सुशोभित है. विरधीचंदजी लिखित प्रत पर से जुहारमलजी ने प्रतिलिपि की है., दे., (२१x११, १०४२४).
प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: सहसागारेणं वोसिरइ. ६७६६५. साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह विधि सहित, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. पत्रांक का उल्लेख नहीं है., दे., (२०.५४१०.५, ११४२०). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: निस्सही निस्सही नमो; अंति: खामण खामुजी
खामण कहे. ६७६६६. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९१८, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. रुपाहेलि, पठ. रामलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२२.५४१०.५, १०४२६). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते,
श्लोक-४४. ६७६६७. (+) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२.५४११, ८x२७).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ६७६६८. (#) धूर्ताख्यान का बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२३४११, ११४३७). धूर्ताख्यान-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)सदुपनिषदनेकग्रंथसंदर, (२)श्रीमालवदेशे उजेणी; अंति: (-),
(पू.वि. शशिकथित कथानक प्रारंभिक अंश तक है.) ६७६६९. (+#) चौमासापर्व व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९२९, आषाढ़ शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. १९, ले.स्थल. विकानेरनयर,
पठ. मु. लालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२४१०, १२४३४). चातुर्मासिक व्याख्यान, मु. सुरचंद्र ऋषि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य श्रीमहावीरं, (२)हिवै चतुर्मासकं;
अंति: मंगलिकमाला संपजै. ६७६७०. (+#) पाक्षिकसूत्र व पक्षिखामणा, संपूर्ण, वि. १८६५, पौष कृष्ण, १३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, कुल पे. २,
प्रले.पं. क्षमासौभाग्य (गुरु ग. रामसौभाग्य); गुपि. ग. रामसौभाग्य (गुरु पं. जयसौभाग्य), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१०, १२-१४४३१). १.पे. नाम. पाक्षिकसत्र. प. १अ-१६अ.संपूर्ण.
हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति, ग्रं. ३६०. २.पे. नाम. क्षामणकसूत्र, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. ___ आवश्यकसूत्र-साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह का हिस्सा क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं;
अंति: मणसा मत्थएण वंदामि, आलाप-४. ६७६७१. पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८२४, आषाढ़ कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. २०, पठ. श्रावि. रत्नश्री; अन्य. मु. भीमराजजी (गुरु मु. हंसराजजी वा.); गुपि. मु. हंसराजजी वा., प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१x१०, १०x२५).
पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे अतित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. ६७६७२. (+) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४-१(२)=३३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२०x१०.५, ४४२१-२५). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. बीच के व
अंतिम पत्र नहीं हैं., नवकारमंत्र के बाद "एगिदिआ बेइंदिआ० अभिहयावत्तिया" पाठ अपूर्ण से वंदित्तुसूत्र गाथा-५१ अपूर्ण तक है.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: माहरो नमस्कार; अंति: (-), पूर्ण, पू.वि. बीच के व अंतिम पत्र नहीं
६७६७३. (#) स्तुतिचतुर्विंशतिका व महावीरजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-१(२)=८, कुल पे. २,
पठ. मु. अमरविजयशिष्य (गुरु पं. अमरविजय गणि, तपगच्छ); गुपि.पं. अमरविजय गणि (गुरु पं. विनीतविजय गणि, तपगच्छ); पं. विनीतविजय गणि (गुरु पंडित. प्रेमविजय, तपगच्छ); पंडित. प्रेमविजय (गुरु आ. विजयप्रभसूरि, तपगच्छ); आ. विजयप्रभसूरि (तपगछ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. प्रतिलेखनपुष्पिका का अंश खंडित है., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१०,१२४३०). १.पे. नाम. स्तुतिचतुर्विंशतिका, पृ. १अ-९आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक-९६,
(पू.वि. संभवजिन स्तुति श्लोक-३ अपूर्ण से पद्मप्रभजिन स्तुति श्लोक-४ अपूर्ण तक नहीं है.) २.पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ९आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: सन्नो देवीदेयादंबा, श्लोक-१. ६७६७४. (+) योगशास्त्र, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ८, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२२४९, १०४३७-४८). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: नमो दुर्वाररागादि; अंति: (-),
(पू.वि. प्रकाश-३ श्लोक-१ प्रारंभमात्र तक है.) ६७६७५. (+) दशवैकालिकसूत्र सह लघुवृत्ति, संपूर्ण, वि. १४८९, भाद्रपद कृष्ण, ६, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ५०, प्रले. आ. जिनभद्रसूरि
(गुरु आ. जिनवर्धनसूरि, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-प्रायः शुद्ध पाठ., जैदे., (२३४९, १४४५४-५९).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: मुच्चइ त्ति बेमि,
__ अध्ययन-१०, (वि. चूलिका-२.) दशवैकालिकसूत्र-टीका, आ. तिलकाचार्य, सं., प+ग., वि. १३०४, आदि: (१)अर्हतः प्रथयंतु, (२)धर्मो
__ मंगलमुत्कृष्टम; अंति: ब्रवीमीति पूर्ववत्, ग्रं. ७०००. ६७६७६. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९११, माघ शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. १००, प्रले. मु. ॐकारजी; पठ. श्राव. जभराजी मेहता, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२०.५४१०, ४-५४२६-२७). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: अपुणागमं गइ त्तिबेमि,
अध्ययन-१०, (वि. चूलिका-२.)
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: धरम ते केहउ छई मंगल; अंति: पामि इम गुरुशिष्यनीक. ६७६७७. संबोधसत्तरि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, जैदे., (१९.५४९.५, ८-११४१८-२१).
संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: जयसेहर नत्थि संदेहो, गाथा-८१. ६७६७८. (-#) सकलार्हत् स्तोत्र, दंडक प्रकरण व संबोधसत्तरि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध
पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०४९.५, ९-१४४१९-२९). १. पे. नाम. सकलार्हत् स्तोत्र, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: वीतराग नमोस्तु ते,
श्लोक-२९. २.पे. नाम. दंडक प्रकरण, पृ. ३अ-५अ, संपूर्ण, वि. १९वी, माघ शुक्ल, १४, गुरुवार, पठ. मु. हीरसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य.
मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ, गाथा-३८. ३. पे. नाम. संबोधसप्ततिका, पृ. ५अ-९अ, संपूर्ण. आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३८
अपूर्ण तक लिखा है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
६७६८०. तीर्थमाला, पूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-१ (३)=६, प्रले. पं. गुणराज गणि (गुरु आ. माणिक्यकुंजरसूरि, अंचलगच्छ); गुपि. आ. माणिक्यकुंजरसूरि (गुरु आ. गुणसमुद्रसूरि, अंचलगच्छ); आ. गुणसमुद्रसूरि (अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१८४९, १०-१२४३५-३८).
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तीर्थमाला स्तोत्र, आ. महेंद्रसिंहसूरि प्रा. पद्य वि. १४वी आदि अरिहंत भगवंत अंतिः मुणिविंद थुय महिया,
',
"
1
गाथा - ११०, (पू.वि. गाथा - २५ से गाथा- ४४ अपूर्ण तक नहीं है.)
६७६८१. (*) सामायिकलेवा- पारवानी विधिव आलोचना संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ९. कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( १७.५x९.५, ८-९X२१-२२).
१. पे नाम, सामायिक लेखा विधि, पृ. ९ आ-४आ, संपूर्ण
सामायिक लेने की विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरि० तीन नवकार अंतिः करु ३ नोकार गुणीजे, (वि. सूत्र सहित.)
२. पे. नाम. सामाचक पारवा विधि, पृ. ४आ-८आ, संपूर्ण
सामायिक पारने की विधि, संबद्ध, मा.गु, गद्य, आदि: प्रथम ईरीयावही तिसोत; अंतिः तस मिच्छामि दुक्कडं. ३. पे. नाम. श्रावक देवसिकआलोयणासूत्र- तपागच्छीय, पृ. ८आ-९आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
संबद्ध, मा.गु., पद्य, आदि: ईछाकारेण संदेसह, अंति: (-), (पू.वि. सत्तावन कर्महेतु आलोचना तक है.) ६७६८२. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०- २ (३, ९) = ८, पू. वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (१७.५x९.५, १२x२४-२६)
आवक प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह संबद्ध, प्रा., मा.गु, प+ग, आदि नमो अरिहं० पंचिंदिय; अंति: (-), (पू.वि. वंदित्तुसूत्र की
३१३
गाथा-२२ अपूर्ण तक बीच-बीच के कुछ सूत्रांश हैं.)
६७६८३. (+) सिंदूरप्रकर व पार्श्वजिन स्तुति, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४७, कुल पे. २, पठ. पं. देवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (१७x९, ९-१०X१९-२२).
१. पे नाम, सिंदूरप्रकर, पृ. १अ ४७आ, संपूर्ण.
आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी आदि सिंदूरप्रकरस्तपः अंतिः यदमपि न गंतु प्रभवति द्वार- २२, श्लोक १०१. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ४७आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
आ. जिनभक्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: कौमारे कमठस्य दुर्मत, अंति: (-), (पू.वि, श्लोक-२ अपूर्ण तक है.) ६७६८४. ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, दे., ( १६. ५८, ७२१-२६).
ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि : आद्यंताक्षरसंलक्ष्य, अंति: लभ्यते पदमुत्तमम्, श्लोक-६३. ६७६८५. (+) नवतत्त्व व जीवविचार सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १७६०, मध्यम, पृ. २६- २ (१४ से १५) - २४, कुल पे. २.
प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( १६४९.५, ४४१६-१९).
१. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-१३अ, संपूर्ण, प्रले. पंडित. हर्षलाभ (गुरु उपा. सत्यप्रमोद); गुपि. उपा. सत्यप्रमोद (परंपरा आ. जिनप्रमोदसूरि); राज्यकाल आ . जिनप्रमोदसूरि, प्र. ले. पु. सामान्य. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४५. नवतत्त्व प्रकरण-वार्थ#. मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व, अंतिः एसिद्धजीवना पनर भेद.
२. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १६अ - २६आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य वि. ११वी, आदि (-); अंति: रुद्दाओ सुय समुद्दाओ, गाथा-५१,
3
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(पू.वि. गाथा ६ से है.)
जीवविचार प्रकरण - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सिद्धांतसमुद्र थकी.
६७६८६, (4) भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १०-३ (१ से २,५ ) =७, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. मूल पाठ का
अंश खंडित है, जैवे. (१४.५x१०, ९x१५-१६).
""
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ७ अपूर्ण से १६ अपूर्ण व २१ अपूर्ण से ४४ अपूर्ण तक है.)
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३१४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६७६८७. पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र.ले.श्लो. (१२) मंगलं लेखकानांच, जैदे., (१६.५४९, ७४१८-२०).
पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: वांछितसिद्धिर्भवति, श्लोक-३५. ६७६८८. (+) चतुःशरण प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १९५२, चैत्र शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. जयनगर, प्रले. मु. शांतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपार्श्वनाथ प्रशादेन., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (१७४८, १०४३४). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावजजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं,
गाथा-६३. ६७६८९. (-) बृहत्शांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (१७.५४९.५, ९४२०-२२).
बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनंजयति शासनम्. ६७६९०. (+) अजितशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१८.५४८, ७४२८-३१).
अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअसव्वभयं संत; अंति: पुव्वुप्प० विणासंति,
गाथा-३९. ६७६९१. (+) बृहत्शांति स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १७४२, परमेष्ठिपिंडेषणायासंयममिते, ?, फाल्गुन शुक्ल, १०, बुधवार, मध्यम,
पृ. ७१-६६(१ से ६६)=५, ले.स्थल. फलवर्द्धिनिपुर, प्रले.ग. भोजसागर; पठ. श्राव. हीराजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित., जैदे., (११४१०, ९x१२).
बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैन जयति शासनम्, संपूर्ण. ६७६९२. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, स्तवन व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २७-३(१३ से १४,१७)=२४, कुल पे. ७, जैदे.,
(१२.५४९.५, ७-८x१०-१४). १.पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १अ-१६आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो सि; अंति: (-).
(पू.वि. बीच के कुछ पाठांश नहीं हैं व सामायिक पारने की विधि अपूर्ण तक है.) २.पे. नाम. गौतमस्वामी स्तोत्र, पृ. १८अ-२०अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिणेसर केरोसीस; अंति: गोतम तुठां संपत
कोड, गाथा-९. ३. पे. नाम. तीर्थावली तवन, पृ. २०अ-२२अ, संपूर्ण. २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सेर्जेजे रीषभ समोसर; अंति: समयसुंदर कहे
एम, गाथा-१६. ४. पे. नाम. अष्टापदजी तवन, पृ. २२अ-२३अ, संपूर्ण. अष्टापदतीर्थ स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मनडो अष्टापद मोह्यो; अंति: प्रह उगमते सूर जी,
गाथा-५. ५. पे. नाम. नवकार स्तवन, पृ. २३आ-२५आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. प्रभुसुंदर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: प्रभु सुरवर शीस
रसाल, गाथा-७. ६.पे. नाम. दानशीलतपभावना प्रभाति, पृ. २५आ-२६आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: रे जीव जिन धरम कीजीय; अंति: समयसुंदर० फल त्यांह,
गाथा-६. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २६आ-२७आ, संपूर्ण.
पुहि., पद्य, आदि: जय बोलो पासजिनेसर की; अंति: वीनती यह अलवेसर की, पद-५. ६७६९३. (+) ऋषिमंडल स्तोत्र, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६-१(१)=१५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१४४९.५, ७x१४-१८).
ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (१)शिवानंद सद्धेतुः, (२)लभते पदमव्ययम्,
श्लोक-११२, (पू.वि. श्लोक-३ अपूर्ण से है.)
गावा-५.
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३१५
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६ ६७६९४. प्रतिक्रमणसूत्रादि संग्रह, शारदाष्टक व वाग्वादिनी स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९०१, मध्यम, पृ. ६५-६(१०,२१ से
२२,२७,४३,४८)=५९, कुल पे. ६, ले.स्थल. वृंदावतीनगर, पठ. मु. रामचंद्र (गुरु मु. भैरुजी), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१४.५४१०, ६४८-१२). १.पे. नाम. प्रतिक्रमणविधि संग्रह, पृ. १अ-३३आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं., वि. १९०१, आषाढ़ कृष्ण, १४,
शनिवार, पठ. मु. रामचंद्र (गुरु मु. भैरुजी); गुपि. मु. भैरुजी (गुरु मु. चंद्रधनजी); मु. चंद्रधनजी, प्र.ले.पु. सामान्य. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: मिच्छामि दुक्कडं, (पू.वि. बीच-बीच
के पाठांश नहीं हैं., वि. पत्रांक-१ से है, परन्तु सूत्रपाठ अपूर्ण से शुरु किया है.) २.पे. नाम. देवसीपडिकमण विधि, पृ. ३४अ-५०अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. देवसिप्रतिक्रमण विधि-खरतरगच्छीय, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: पवित्र वस्त्र पहरकर; अंति: दसन्नभद्दो ए गाथा,
(पू.वि. बीच-बीच के कुछ पाठांश नहीं हैं.) ३. पे. नाम. अतिचार आलोयणा-रात्रिदिवसगत, पृ. ५०आ-५४अ, संपूर्ण, वि. १९०१, आषाढ़ शुक्ल, १, सोमवार.
संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: आजुणा चोपर दिवसमै जे; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ४. पे. नाम. पंचपरमेष्ठिरक्षा मंत्र, पृ. ५५अ-५७अ, संपूर्ण.
वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: पंचपरमेष्ठि; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. ५.पे. नाम. शारदाष्टक स्तोत्र, पृ. ५७अ-५९आ, संपूर्ण, वि. १९०१, आषाढ़ शुक्ल, २.
सरस्वतीदेवी के १६ नाम स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: नमस्ते शारदादेवी; अंति: निस्सेसजाड्यापहा, श्लोक-९. ६.पे. नाम. वाग्वादिनी स्तोत्र, पृ. ६०अ-६५आ, संपूर्ण, वि. १९०१, आषाढ़ शुक्ल, ६, शनिवार. सिद्धसारस्वत स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: कलमरालविहंगमवाहना; अंति: रंजयति स्फुटम्,
श्लोक-१३. ६७६९५. जिनाभिषेक विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, दे., (१३४९, ७४१५-१८).
जिनाभिषेक विधि, सं., पद्य, आदि: श्रीमजिनेंद्रमभिवं; अंति: कर्माष्टकविनाशनम्, श्लोक-२०. ६७६९६. (#) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१४४७.५,
९४२२-२३). १.पे. नाम. पद्मावती स्तोत्र, पृ. १आ-७आ, संपूर्ण.
पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्रे; अंति: पद्मावतीस्तोत्रम्, श्लोक-२७. २. पे. नाम. धरणेद्रपद्मावतीमंत्रसाधनविधि संग्रह, पृ. ८अ-९अ, संपूर्ण.
___ सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं हाल्व्य; अंति: शुभदं भवेत्. ३. पे. नाम. त्रिपुराभवानी स्तोत्र, पृ. ९आ-१४अ, संपूर्ण, पे.वि. त्रिपुराप्रसादेन भद्रमस्तु.
आ. लघ्वाचार्य, सं., पद्य, आदि: ऐंद्रस्यैव शरासनस्य; अंति: पिच्छलद्वारदेशः, श्लोक-२४. ४. पे. नाम, भैरवाष्टक, पृ. १४अ-१५आ, संपूर्ण.
शंकराचार्य, सं., पद्य, आदि: एकं खट्वांगहस्तं; अंति: भैरवं क्षेत्रपालम्, श्लोक-१०. ६७६९७. पाशाकेवली, अपूर्ण, वि. १८९९, आषाढ़ शुक्ल, १२, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २८-२(९ से १०)=२६, प्रले. अंबाराम; अन्य. राजाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. गुरुजीराजारामजीकस्य गृहे लिखितम्., जैदे., (१४.५४१०, ७X१५-१७).
पाशाकेवली, मु. गर्गऋषि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवती, अंति: लेखया संस्कृभाषयेषा, श्लोक-१८७,
__ (पू.वि. पाशा अंक-२१४ अपूर्ण से २३१ अपूर्ण तक नहीं है.) ६७६९८. (+) गोयमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१२.५४९, ९४२३-२६).
गौतमस्वामीरास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: जिम साखा
विस्तरे ए, गाथा-४९. ६७६९९. (+#) सज्झाय संग्रह व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
जैदे., (१७.५४८.५, १०४२६).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. बलभद्रकृष्ण सज्झाय, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. बलभद्रमुनि सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: द्वारिका हुंती निकल; अंति: कवियण नहीं कोई तोले,
ढाल-५, गाथा-३१. २. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तवन, पृ. ३आ-६अ, संपूर्ण.
मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे मारे ठाम धर्म; अंति: कांति सुख पामे घणु, ढाल-२, गाथा-२४. ३. पे. नाम. जीव उपरे सज्झाय, पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: तुं तु धरम म मुकिसि; अंति: एत्रीण काल
वंदा रे, गाथा-८. ६७७००.) सज्झाय व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९११, फाल्गुन कृष्ण, १४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १८-१(१)=१७, कुल पे. ४,
प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२०४८.५, ४-६४१६-२०). १.पे. नाम. महावीरजिनविनती स्तवन, पृ. २अ-६आ, संपूर्ण. महावीरजिन विनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी बीनती; अंति:
समयसुंदर० भुवनतिलो, गाथा-१९. २. पे. नाम. १व्रत पूजाविधि-जल, पुष्पमाल व दीपक पूजा, पृ. ६आ-१३आ, संपूर्ण. १२ व्रत पूजाविधि, पं. वीरविजय, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १८८७, आदि: सुखकर शंखेश्वर प्रभु; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण,
वि. पूजा क्रमशः नहीं है. व्रत-३ की ४थी पूजा का मात्र दोहा-१, व्रत-४ की दीपकपूजा इसके बाद व्रत-१ की
जलपूजा का क्रम है.) ३. पे. नाम. आत्मसिखामण स्तवन, पृ. १३आ-१६अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-षड्दर्शनप्रबोध, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: ओरन से रंगन्यारा; अंति: रूपचंद०सरण तिहारा
है, गाथा-९. ४. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. १६आ-१८आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिन एक मुज विनत; अंति: मोहनविजय गुण गाय,
गाथा-७. ६७७०१. (+#) मंगलकलश चौपाई, संपूर्ण, वि. १७६४, कार्तिक कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. २४, ले.स्थल. सांगानेर, प्रले. पं. जससोम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१६.५४१०,१३४२८). मंगलकलश चौपाई, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७१४, आदि: पास जिनेसर पायकमल; अंति: जिनहरष० गुणवंत,
ढाल-२१. ६७७०२. अर्बुदादितीर्थोद्धार ऐतिहासिक विवरण, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९-४(१ से ४)=५, जैदे., (१७४१०.५, १५-२२४१३). अर्बुदादितीर्थोद्धार ऐतिहासिक विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., बीच-बीच
के पाठ हैं.) ६७७०३. पासाशकुनावली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६-७(१,४,८ से ११,१५)=९, जैदे., (१८४९, ७X२१).
पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., फलश्रुति
कथन-१११ अपूर्ण से ४४४ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) ६७७०९. (4) पासाकेवली, संपूर्ण, वि. १७३९, ज्येष्ठ शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. मथाणीया, प्रले. मु. टीला (गुरु
मु. उदयसोभाग्य); गुपि. मु. उदयसोभाग्य (गुरु पं. जयरंग); पं. जयरंग (गुरु वा. पुण्यकलश); वा. पुण्यकलश; प्रले. मु. विजयचंद, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. विद्वान नाम विजयचंद बाद में लिखा गया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१६४९, ९x१६-२०).
पाशाकेवली-भाषा*,संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १११ थानकथी लाभ पुत्र; अंति: होसी चित ठाम राखे.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
३१७ ६७७१४. (#) गणधरविद्या मंत्र व सूरिमंत्रआराधना विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६-७(१ से २,५ से ६,८ से १०)=९, कुल
पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१४x७.५, ७४१८). १.पे. नाम. गणधरविद्या मंत्र, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, प.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
सं., गद्य, आदि: (-); अंति: अपराजिते स्वाहा, (पू.वि. "नमो सव्वसिद्धाय" पाठ से है.) २. पे. नाम. सूरिमंत्रपूजा विधि, पृ. ३आ-१६अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा.,सं., गद्य, आदि: ॐ क्रौं ह्रीं श्रीं; अंति: (-), (पू.वि. मुद्रापंचक विधि अपूर्ण से "हिरिमेरु चिरिमेरु पिरिमेरु" पाठ तक व
परमेष्ठि स्थापना के बाद का पाठ नहीं है.) ६७७१९. (-) स्तवन, पद, सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २०-१(१०)=१९, कुल पे. २१, प्र.वि. अशुद्ध पाठ.,
दे., (१५४९.५, ७-१०x१०-१६). १.पे. नाम. वाराणसीमंडन पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-वाराणसीमंडन, मा.गु., पद्य, वि. १९००, आदि: पास मोरी वीनतडी हो; अंति: मोरी विनतडी
आवधारो, गाथा-६. २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: वो तेरी भीग गई जो; अंति: भरावी तेरी गुजर गई, गाथा-३. ३. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: भागलीडी रे भागलीडी; अंति: सेवग० दरसण दीजे जी, गाथा-६. ४. पे. नाम. महावीरजिन बधाई, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: होये बाजत रंग बधाई; अंति: रूपचंदबाजत रंग बधाई, गाथा-४. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण.
मु. कान कवि, पुहिं., पद्य, आदि: जैन धरम से पायो सार; अंति: कान० भज ले वारंवार, गाथा-६. ६. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमींदर जिन स्याम; अंति: ग्यान आतम काज सुधारो, गाथा-५. ७. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. ६आ-८अ, संपूर्ण.
मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: कुमत कुलेछन नार लगी; अंति: जिनदास० दुर मुजे कुण, गाथा-४. ८. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण.
मु. मोहनमुनिजी, मा.गु., पद्य, आदि: नवपद ध्यान सदा; अंति: मोहनमुनि० हरख अपारी, गाथा-५. ९. पे. नाम. नेमिजिन चौमासो, पृ. ९अ-९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है.
मा.गु., पद्य, आदि: सोभागी नेमजी चतो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) १०. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ११अ, संपूर्ण..
मु. नवल, पुहि., पद्य, आदि: घरी धन तुज की एह सरे; अंति: नवल० मुख आज जिनवर का, गाथा-४. ११. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ११आ, संपूर्ण.
मु. लालचंद, पुहि., पद्य, आदि: जगतपति नेम जिनराया; अंति: लालचंद० भवतणा फेरा, गाथा-३. १२. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: तेरे दरसन देखे से; अंति: झलाझल सा झलकता है, गाथा-३. १३. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १२आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: गीरनारी की बता दो; अंति: चरणकमल में चित्त धरी, गाथा-३. १४. पे. नाम. नेमिजिन लावणी, पृ. १३अ-१४अ, संपूर्ण.
मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: तुम तजकर राजुल नार; अंति: जिनदास सुनो जिनवर रे, गाथा-४. १५. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १४अ-१५आ, संपूर्ण.
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३१८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अखेमल, पुहि., पद्य, आदि: खबर नहीं है जग में; अंति: जिनकु वीनती अखमल की, गाथा-४, (वि. प्रतिलेखक ने दो
गाथा को एक गाथा गिना है.) १६. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: दरसण दो मोकुं नेम; अंति: प्रभु पार उतारो, गाथा-४. १७. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: मेरे मन की षट करसन; अंति: बाल कहे० दीयो हे, गाथा-४. १८. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १७अ-१८आ, संपूर्ण.
मु. आत्मारामजी, मा.गु., पद्य, आदि: अजी तुम सुणियो करुण; अंति: निर्भव थान दीजो जी, गाथा-७. १९. पे. नाम. नागिला की सज्झाय, पृ. १८आ-१९आ, संपूर्ण. भवदेवनागिला सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भवदेव भाई घर आवीया; अंति: समयसुंदर
सुखदाय रे, गाथा-४, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथा को एक गाथा लिखा है.) २०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: ऐसी विधतेनुं पाई रे; अंति: पुजा दीन सवाई रे, गाथा-५. २१. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २०आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: पास प्रभु तेरो छे; अंति: (-), गाथा-१, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा लिखा
पा-७.
६७७२०. (+-) पद व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ५, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित., जैदे.,
(१३.५४७.५, ९x१५-१८). १. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वाल्हा आज सफल दिन; अंति: श्रीजिनलाभसूरीस नाम, गाथा-७. २. पे. नाम. पार्श्वजिन लघुस्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-लोद्रवमंडन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वाल्हा सांभलि सेवक, अंति: जिनलाभ०
महारा जीरे, गाथा-७. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन लघुस्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगौडीपुर साम हो; अंति: श्रीजिनलाभ कहै सदा,
गाथा-९. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन लघुस्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: विनय सजीने साहिबा; अंति: श्रीजिनलाभसुरीश,
गाथा-५. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण.
आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुनिजर कीजै हो जिनवर; अंति: जिनलाभनै० वंछित देव, गाथा-५. ६७७२१. (#) सवैया, पद, अष्टक आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. १०, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी
है, दे., (१६४१०, १६४२९-३५). १. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. धनमुनि, पुहि., पद्य, आदि: कबहु वनिता मृदु वाच; अंति: धन्न० त्रिय की करनी, गाथा-२. २. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. मुनिचंद, पुहिं., पद्य, आदि: कामिनी की बात माने; अंति: मुनिचंद० हो सुजन जन, गाथा-१. ३. पे. नाम. जैनगाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.
जैनगाथा संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सो असरी दुरि अदरी; अंति: भवतो यथावयोः, गाथा-३. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
मु. दौलत, मा.गु., पद्य, आदि: सेठ वेठ कोई तुं नहीं; अंति: दौलत कहे० काज सारो, दोहा-९. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण.
मु. दौलत, मा.गु., पद्य, आदि: बेठा भागी नावमांरे; अंति: घणोरे दोलत आख्याण, दोहा-९. ६. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण.
मु. दौलत, मा.गु., पद्य, आदि: नीरापेखी जग वीरला; अंति: दौलत लक्षित तेही रे, दोहा-५. ७. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद, मु. दौलत, मा.गु., पद्य, आदि: बुड्या तेहिज जाणो; अंति: दौलत० सुध ते राखे रे, दोहा-५. ८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण.
मु. दौलत, पुहिं., पद्य, आदि: गुणीजन गायन सुणो मोय; अंति: दीपे दौलत आनंद तारा, दोहा-४. ९. पे. नाम. वीर अरज उपदेशक, पृ. ४अ-६आ, संपूर्ण. महावीरजिन विज्ञप्तिस्तवन, पं. दोलतरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु सुमति पार्श्वजी; अंति: दोलत दयाधरी प्रतिपाल,
ढाल-५, गाथा-५७. १०. पे. नाम. माणिभद्र अष्टक, पृ. ६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
माणिभद्रवीर छंद, मनो, मा.गु., पद्य, आदि: साचो मणिभद्र वीर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ६७७२२. (-#) स्तवन, पद, सवैया व कवित्त संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७३, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. ७,
ले.स्थल. मंडाणा, प्रले. मु. मोटा ऋषि; लिख. मु. लाधाजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१२.५४६, ९x१०-१७). १. पे. नाम. चंदराजारो कागल, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. चंद्रराजागुणावलीराणी लेख, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीमरुदेवीन; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१३ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. पारसनाथजी स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्राण थकी प्यारा; अंति: मोहन कहे० प्राण आधार,
गाथा-५. ३. पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
मीराबाई, पुहिं., पद्य, आदि: व्रजमंडल देश दिखाओ; अंति: मीरा० मेरे मनवसीया, गाथा-३. ४. पे. नाम. बुध रासो, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
बुध रास, मा.गु., पद्य, आदि: एक अमृत तजि विष पीजे; अंति: सोरी जारी कीजे नहीं, गाथा-५. ५. पे. नाम. बांभणवाडजीरो कवित्त, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तवन-बांभणवाडा, मा.गु., पद्य, आदि: अरब देसरो आइय मंडल; अंति: मन मंगलमाल लहे, गाथा-२. ६. पे. नाम. पार्श्वनाथरो छंद, पृ. ६अ-८अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. विनयशील, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मुरत श्रीपास; अंति: नवनिध सदा आनंद धरे,
गाथा-११. ७. पे. नाम. महावीरजिन सवैया, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण.
मु. हीर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमहावीर वीर सुर; अंति: इम हीर० सदा चिर नंदो, गाथा-२. ६७७२३. शियलवेल व साहोकाढणरो विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २७-९(९,११,१३ से १५,१८,२१,२३ से २४)=१८,
कुल पे. २, ले.स्थल. पीपाड, प्रले. पं. रुपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१४४१०, ११४२०). १.पे. नाम. शीयलवेलि, पृ. १अ-२२अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., वि. १८८८, कार्तिक शुक्ल, ८, शनिवार. स्थूलिभद्रमुनि शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: सयल सुहकर पासजिन; अंति: विमला
कमला वरस्ये रे, ढाल-१८, (पू.वि. बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) २.पे. नाम. साहो काढण दहा, पृ. २२आ-२७आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं., वि. १८८९, कार्तिक शुक्ल, ८, रविवार.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
विवाहपडल पद्यानुवाद, मोतीराम, मा.गु., पद्य वि. १८३६, आदि: सद्गुरु चरण नमीकरी, अंतिः मोतीराम संपूरण जाण, गाथा- ६६, (पू.वि. गाथा ६ अपूर्ण से ३९ अपूर्ण तक नहीं है.)
६७७२४. स्नात्रपूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (१५x७.५, ७४१८-२१). स्नात्रपूजा, आव, देपाल भोजक, प्रा., मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: श्रीफलर चांबलसेर, अंति: (-), (पू.वि. पार्श्वजिन जन्मोत्सव वर्णन तक है.)
६७७२५. (+०) झांझरीयामुनि सज्झाय, संपूर्ण वि. १८२२ चैत्र शुक्ल, ८, मंगलवार, मध्यम, पृ. ६, प्रले. श्राव. लाधु, पठ श्रावि, मनीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे (१५x९, ९४२३).
झांझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: सरसति चरणे सीस नमावि, अंति: इम सांभा आणंदे के, ढाल - ४, गाथा- ४३.
६७७२६. स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १०३ (१,८ से ९) =७, कुल पे ७ ले. स्थल, वर्धमानपुर, पठ श्रावि. कंकु, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१३X७, ८x२० ).
२अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
१. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. पंचमी तिथि स्तुति, मु. विजय पंडित, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: हेतविजय० जयकारी जी, गाथा-४, (पू.वि. गाथा- ४ अपूर्ण मात्र है . )
२. पे. नाम. आठमनी स्तुति, पृ. २अ - ३आ, संपूर्ण.
अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि मंगल आठ करे जिन आगल; अंतिः नव० कोडि कल्याण जी, गाथा- ४.
३. पे. नाम, एकादशी धोय, पृ. ३आ-५अ, संपूर्ण
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एकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु, पद्य, आदि गौतम बोले ग्रंथ, अंति: लालविजय० विधन नीवारी,
गाथा-४.
४. पे. नाम चतुर्दशी धोय, पृ. ५अ ६आ, संपूर्ण.
पाक्षिकस्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्या प्रतिमस; अंति: सर्वकार्येषु सिद्धं, श्लोक-४. ५. पे. नाम, बीजनी खोय, प्र. ६आ-७अ, संपूर्ण.
बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: लबधि० पूरि मनोरथ माय,
गाथा-४.
६. पे. नाम. ऋषभदेवनी थोय, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रह उठी बंदु ऋषभदेव, अंति: (-), (पू. वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.)
७. पे नाम सेजानी स्तुति, पृ. १०अ १०आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
शत्रुंजयगिरनारतीर्थ स्तुति, मा.गु., पद्म, आदि: (-); अंति: जीव सुख संपत वरई, गाथा-४, (पू. वि. गाथा- २ अपूर्ण से है.) ६७७२७. विचार, दोहा व सवैया संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७- १(१ ) = १६, कुल पे. ७, जैदे., गुटका, (१४४९,
१८x१३).
१. पे. नाम. ज्ञानसुखडी, पृ. २अ - ५अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है ..
"
ज्ञान सुखडी, मु. सभयचंद, मा.गु. प+ग. वि. १७६७, आदि (-); अंतिः समयचंद० करण कल्याण, (पू. वि. दुभंगी वर्णन अपूर्ण से है.)
२. पे. नाम, पंचभावस्वरूप विचार, पृ. ५आ- ६अ, संपूर्ण.
मा.गु.,
[., गद्य, आदि: मोहनी कर्मना उपशमथी, अंतिः सर्वभेद ५३ जाणिवा.
,
३. पे. नाम. १४ गुणस्थानक ४ गति विवरण, पृ. ६अ - ६आ, संपूर्ण.
१४ गुणस्थानक विवरण यंत्र, मा.गु., को, आदि देवता मनुष्य नारकी अंतिः क्षीणमोह सजोगी अजोगी.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
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गाथा- ७.
६. पे. नाम. पंचपद स्तुति सवैया, पृ. ८अ - ९आ, संपूर्ण.
पंचपरमेष्ठि स्तवन, पुहिं., पद्म, आदि: त्रिभुवननाथ त्रिगुणा अंति में विराज रहे आप ही गाथा-५.
"
४. पे. नाम. हितशिक्षा दोहरा, पृ. ७अ, संपूर्ण.
आध्यात्मिक पद, पुहिं, पद्य, आदि ज्यों दातार दयाल हुइ, अंतिः तू चातिक गुरु मेह, गाथा-६,
५. पे. नाम. निमित्त उपादान का दोहरा, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण.
उपादान निमित्त दोहा, जै. क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: गुरु उपदेश निमित्त; अंति: करे सु तैसो भेष,
७. पे. नाम. शुद्धजीव को नमस्कार, पृ. १०अ १५आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
"
समयसार नाटक पद्यानुवाद के चयनित पद्य, पुहिं., पद्य, आदि: शोभित निज अनुभूति; अंति: (-), (पू. वि. दोहा-४९ अपूर्ण तक है.)
१. पे नाम, औपदेशिक पद, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण.
पुहिं, पद्य, आदिः भरिम जलशमें कहूं अंतिः वेह शुल कडे कुंडरता, गाथा ८.
२. पे. नाम. नेमराजिमती बारमासो, पृ. ३आ-६अ, संपूर्ण.
६७७२८. (#) पद, बारमासो, गहुंली व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९१८, वैशाख शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. ४, ले. स्थल. कडी, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१४४८.५, ६X१६).
(१३.५x९, ९x१२-१५).
१. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण.
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नेमिजिन बारमासो, मु. सौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावण मासे साहेलि, अंति: सौभाग्य कहे ० जइ मलिया, गाथा - १३. ३. पे. नाम. नेमिजिन गहुली, पृ. ६अ-८आ, संपूर्ण.
मु. सौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि गंधारि कहे लाडी विना, अंतिः सौभाग्य० सहि रे लोल, पद-१९ (वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या नहीं लिखी है.)
४. पे. नाम. सातव्यसन सज्झाय, पृ. ८आ- १२अ, संपूर्ण.
७ व्यसन सज्झाय, मु. सौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: सगुण सनेहि हो सांभल, अंति: सोभाग्य कहे करजोडि, गाथा- ११. ६७७२९. (#) पद, गीतादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ८, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.,
३२१
मु. सुंदरजी ऋषि, पुहिं., पद्य, आदिः यादव वंशी नेम जिनेसर; अंति: सुंदर दोउ चरणां दावै, गाथा-१६.
२. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण.
मु. राजनंदन पु,ि पद्म, आदिः छबि चंद्राप्रभु की अंति: तुमरो गुण समरे को गाथा- ३.
"
"
३. पे. नाम, आदिजिन पद, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदिः आदीसर जिनराज, अंतिः क्षमा० विनती करै जी, गाथा - ५.
४. पे, नाम, चार मंगल पद, पृ. ४आ ५अ संपूर्ण
४ मंगल पद, मु. सकलचंद, मा.गु., पद्य, आदिः आज म्हारै च्यारुं; अंति: आनंदघन उपगार, गाथा-४.
५. पे नाम, साधारणजिन पद, पृ. ५अ, संपूर्ण
मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: देख्या दरस तिहारा रे; अंति: रूपचंद० वार हजारा रे, गाथा- ३.
६. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
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मु. हरख, मा.गु., पद्य, आदि नेम जिणंद गिरनारी, अंति: हरष हरष गुण गावा, पद- ३.
७. पे नाम, नेमिजिन ख्याल, पू. ६अ, संपूर्ण.
बालकृष्ण, रा., पद्य, आदि नेम विन की करा हो जी अंतिः बालकृष्ण० गाईया वे, गाथा-३.
८. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ६ अ- ६आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: सेवो रे सदा सुखदाई, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम पद लिखा है.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
६७०३०. () छन्नूजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७. प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (१३४८, ९१६-१९).
९६ जिन स्तवन, उपा. मूला ऋषि, मा.गु, पद्य, आदि: केवलनाणी श्रीनरवाणी, अंतिः मूला० वृद्धि आनंदु ए. डाल-८. ६७७३४. सज्झाय, पद व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. ६, जैदे., (१२x९, ७-१२x१०-१३). १. पे. नाम. अयमत्ताऋषि सज्झाय, पृ. १अ - ५आ, संपूर्ण.
अइमुत्तामुनि सज्झाव, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिनंद बांदीने अंतिः लिखमीरतनना पाया,
गाथा - १७.
२. पे. नाम. संखेश्वर पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ६अ - ८अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर पार्श्व; अंति: जिणचंद करमदल जीपत्तो,
गाथा-५.
३. पे. नाम, साधारणजिन छंद, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण
साधारणजिन पद, रा., पद्य, आदि: तारो तारो म्हाराज, अंति: गंगा सरन तिहारो जी, गाथा - ३.
४. पे. नाम. आशीर्वचन पद, पृ. ८- ९अ, संपूर्ण.
आशीर्वचन श्लोक, सं., पद्य, आदि: भाले भाग्यकला मुखे; अंति: दिनं क्षोणीपतौ राजते, श्लोक-२. ५. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. ९अ-१०अ संपूर्ण.
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मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तुमे चालोने प्रीतम अंतिः दानविजे० साधे लीजे, गाथा ५. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १०अ १० आ, संपूर्ण.
मु. चंदखुसाल, मा.गु., पद्य, आदि: नानडीयो गोद खेलावै; अंति: चंदुलाल० सुख पावे छै, पद-६. ६७७३५. (+०) स्तवन सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४३-२९ (१ से १९, ३३ से ४२ ) = १४, कुल पे. ८. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (१२x९.५, १०x१३).
"
१. पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. २०अ २४अ, संपूर्ण
महावीरजिन स्तवन- पारणागभिंत, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अनंतगुण, अंतिः तेह नेम नामै मुन माल, गाथा - ३१.
२. पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. २४अ - २५अ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: अरणक मुनिवर चाल्या; अंतिः समयसुंदर० फल सीधोजी, गाथा ८. ३. पे. नाम. ढंढणऋषि सज्झाय, पृ. २५ अ-२६आ, संपूर्ण.
मु. जिनहर्ष, मा.गु, पद्य, आदिः ढंढणऋषजीने वंदणा हुं, अंतिः कहै जिनहरष सुजाण रे, गाथा-८.
४. पे. नाम. कर्म सज्झाय, पृ. २६आ-२८अ, संपूर्ण.
इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाम एलापुत्र जाणियै; अंति: लबधविजै गुण गाय,
गाथा- ७.
५. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. २८अ - २९आ, संपूर्ण, पे. वि. प्रतिलेखक ने कृति नाम सम्मेतशिखर पार्श्वजिन दिया है.
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, वि. १७२२, आदि: अमल कमल जिम धवल; अंति: श्रीजिनचंद्र ० मुझ आस, गाथा - ९.
६. पे. नाम. मृगापुत्र सज्झाय, पृ. २९आ- ३२आ, संपूर्ण.
मु. खेम, मा.गु, पद्य, आदि: श्रीनयरसुग्रीव सोहा अंतिः खेम० सुध प्रणाम हो, गावा- १२.
७. पे. नाम. तेरकाठीया सज्झाय, पृ. ३२आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
१३ काठिया सज्झाय, मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: साधु समीपै आवताजी; अंति: (-), (पू. वि. गाथा - ३ अपूर्ण तक है.)
८. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. ४३अ ४३आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
महावीर जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ( पू. वि. गाथा १६ अपूर्ण से १९ अपूर्ण तक है.) ६७७३६. गजसुकुमाल स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६-१ (१)-५, ले, स्थल, दादरी, प्रले सा. सोनाजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१३X९, ११x१३).
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गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. सिंहसौभाग्य, मा.गु, पद्य, आदि (-) अंति: सौभाग्य०जिनराजियो जी, गाथा-५०, ( पू. वि. गाथा - ९ अपूर्ण से है.)
६७७३७, (१) स्तवन, सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५१-४० (१ से ८,१० से ३१, ३४ से ३५, ३९ से ४०, ४३ से ४७,५०)=११, कुल पे. ११, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१३×१०.५, १०×१५-१९). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ९अ - ९आ, संपूर्ण.
मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि आज भलो दिन उगो हो; अंतिः सीसनो राम सफल अरदास, गाधा-५. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ९आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
आ. जिनराजसूरि, मा.गु, पद्य, आदि मुझ हीवडो हेजालुवो अंति: (-), (पू.वि. गाथा १ अपूर्ण मात्र है.)
३. पे. नाम. श्रावक इकीसी, पृ. ३२अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
श्रावकइकवीसी, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कहे सुणो नरनारो, गाथा-२१, (पू. वि. गाथा - १९ से है.) ४. पे. नाम. उपदेश छत्तीसी पृ. ३२-३६आ, अपूर्ण, पू. वि. बीच के पत्र नहीं हैं.
५. पे. नाम. अकल्पनीय आहारदान सज्झाय, पृ. ३६आ - ३८आ, संपूर्ण.
रा., पद्य, आदि: खुसामदी कर दातारनी; अंति: जोवो हिरदे विचार, गाथा-२०.
उपदेशछत्रीसी, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६६, आदि: सबद करी सतगुरु समझाव; अंति: रतनचंद० पातक नासै रे, गाथा-३६, (पू.वि. गाथा - २२ अपूर्ण से ३० अपूर्ण तक नहीं है.)
३२३
६. पे. नाम. औपदेशिक पद - मानव भव, पृ. ३८आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
औपदेशिक पद, मु. रतनचंद, पुडिं, पद्य, आदि मानव को भव पावके मत: अंतिः (-). (पू. वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ७. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. ४१-४२आ, संपूर्ण.
मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: हांजी प्रभु चंपा हो; अंति: रतनचंदजी ० ग्राम मझार, गाथा- १०.
८. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ४२आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मु. रतनचंद, रा., पद्य, आदि: सांवलिया साहिब, अंति: (-) ( पू. वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.)
९. पे. नाम भवदेवजीरी ढाल, पृ. ४८अ ४९आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
१०. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ४९आ, अपूर्ण, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है.
मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन खेत्र विदेह हो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा- २ तक है.)
११. पे, नाम, बोल संग्रह, पृ. ५१ अ ५१आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं.
भवदेवनागिला सज्झाय, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७२, आदि: (-); अंति: रतनचंदजी ० सीस नमाय, गाथा-१०, ( पू. वि. गाथा - १ अपूर्ण से है . )
बोल संग्रह, प्रा., मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "ज्ञानर असनी मिनषमै नथी अनाण" पाठ से "उगा सनी जलचर १०००" पाठ तक है.)
६७७३८. भीनमालमंडन पार्श्वजिन स्तवन व ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, अपूर्ण, वि. १८७४, माघ शुक्ल, १, मध्यम, पृ. १८-१(१)=१७, कुल पे. २, ले. स्थल, कोहिला ग्राम प्रले श्राव जसरूप, अन्य मु, खुसाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. खुसालजी की पोथी पर से लिखे जाने का उल्लेख मिलता है., जैवे. (११.५x१०, १०-१३४१४).
१. पे. नाम. भिनमालपार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ -१०अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- भीनमाल, मु. पुण्यकमल, मा.गु., पद्य, वि. १६६१, आदि: सरसती भगवती नमीय पाय, अंति:
पुन्यकमल भव भय हरु, गाथा - ५९.
२. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पृ. १०अ १८आ, संपूर्ण.
मु. गुणविजय, मा.गु., पद्म, आदिः प्रणमी पास जिणेसर, अंति: गुणविजय रंगे मुनि, ढाल ६, गाथा ४५,
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
६७७५५. स्तवन- सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ६८-५२ (१,१० से ६० ) = १६, कुल पे, १९४, दे., (२०४९.५,
१०-१३१४-१५).
१. पे नाम, सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है.
मु. गंग, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि: (-); अंति: गंग मुनि० करे प्रणाम, गाथा १३, ( पू. वि. गाधा- ९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नवकारवाली सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: कहजो चतुरनर ते कुण; अंति: रूप क सारी रे, गाथा ५.
३. पे नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३अ ४अ, संपूर्ण, ले. स्थल, राणावश, प्रले. मु. अनोपचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, मु. हीमत, मा.गु, पद्य, वि. १९१५, आदि: भलाई करले रे बंदा इण, अंतिः पंचमी हीमत राग गाई, गाथा- ९. ४. पे. नाम. सीतासती सज्झाय, पृ. ४अ - ५अ, संपूर्ण.
लछिदास, मा.गु., पद्य, आदि: पिया मेरी एक न मानी; अंति: में वांट वधाई, गाथा-९.
५. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. ५अ ५आ, संपूर्ण,
औपदेशिक पद - वैराग्य, मु. जिणदास, पुहिं., पद्य, आदि: तेरी मेरी करता जनम, अंति: कारज कछु नहीं सर्यो, गाथा-५.
६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
श्राव. जोधमल, मा.गु., पद्य, आदिः समकित विन जीव जगत; अंति: भवसागर नहीं भटक्यो, गाथा - ५. ७. पे. नाम संभवजिन स्तवन, पृ. ७अ-८अ, संपूर्ण,
आ. उदयसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः संभवजिन की सेवा; अंति: यारिध कीरत जुग मे हौ, गाथा- ११. ८. पे नाम, गजसुकुमाल सज्झाय, पृ. ६१२-६३आ, संपूर्ण
अंतिः
गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. चोधमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: गजसुखमाल देवकि नंदन; चोथमल० संसार समुंदर, गाथा - २२.
९. पे. नाम. साधु आचार सज्झाय, पृ. ६३-६४आ, संपूर्ण.
मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अरज करूं छु छोडो रीस अंति: रतनचंद० मन में ध्यान, गाथा- ७.
१०. पे. नाम, औपदेशिक पद अभक्ष्य, पृ. ६४आ, संपूर्ण
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औपदेशिक पद- अभक्ष्य वस्तु परिहार, मा.गु., पद्य, आदिः सी बाजे रे माहाराजा, अंतिः वसू पतंग पडेत हो, गाथा ५. ११. पे, नाम, पंचम आरा स्तवन, पृ. ६४आ-६७अ, संपूर्ण
',
पंचम आरा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु, पद्य, आदि; वीर कहे गौतम सुणो; अंतिः भाषा ववण रसालो रे, गाथा- १९. १२. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ६७अ- ६७आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय कायदृष्टांत गर्भित, मु. रतनचंद, पुहिं., पद्य, आदि; तेरी फुल सी देह पलक, अंतिः रतनचंदजी ० अबीलाखे रे, गाथा-५.
१३. पे नाम, औपदेशिक पद, पृ. ६७-६८ अ, संपूर्ण.
परतापगरि यति, पुर्हि, पद्य, आदि गगन मंडल में रेणा, अंति में गुण जाणोजी, गाथा-५.
"
१४. पे. नाम. मान सज्झाय, पृ. ६८आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झायमानपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव मान न कीजीए; अंति: देव्यो तुम देसोटो रे, गाथा-५.
६७७५६. २४ जिनस्तुति, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १३-७(१ से ७) = ६, जैदे. (९.५४९.५, ९x१३-१४).
""
२४ जिन स्तुति- अतीत अनागत वर्त्तमान, पुहिं, पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं, गाथा- ३० अपूर्ण से ५३ अपूर्ण तक है.)
६७७५७. त्रेसठशलाकापुरुष चरित्र अंतराल, अपूर्ण, वि. १८२३ वैशाख शुक्ल, ३, सोमवार श्रेष्ठ, पृ. १५-९(१ से ३, ८ से १३)=६, ले. स्थल, लखनौ, प्रले. पं. सेवाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (९.५५९.५, ९x१३).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
३२५ त्रेसठशलाकापुरुष नाम गाम लक्षण वर्णमातापितादि चरित्र अंतराल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कहे ताको
देखि विचार, गाथा-६०, (पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं., गाथा-१४ अपूर्ण तक व ५७ अपूर्ण से ५९ अपूर्ण तक
नहीं है.) ६७७५८. नेमजी रो बारेमासो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, दे., (१०४८.५, ६-७४८-११).
नेमराजिमती बारमासा, मु. लक्ष्मीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नेमजीसुंराजुल विनवे; अंति: वीनती पूरो मननी जीगस,
गाथा-१४. ६७७५९. वैराग्य सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (१०.५४९, ८४९-११).
औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मंगलकरण नमी जिनचरण; अंति: विजयभद्र० नही अवतरे,
गाथा-२५. ६७७६०. पुन्यप्रकाशनुंस्तवन, संपूर्ण, वि. १८०४, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (१२४१०, १३-१४४१७-१८).
पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: नामे
पुण्यप्रकाश ए, ढाल-८, गाथा-१०५. ६७७६१. (-) बुढ़ापा रास, संपूर्ण, वि. १८९७, वैशाख शुक्ल, १, मध्यम, पृ. १३, ले.स्थल. अंबोरी, प्रले. हीमतमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (१२४८.५, ६-८x१२).
बुढ़ापा रास, श्राव. मोतीचंद, रा., पद्य, वि. १८३६, आदि: दया ज माता वीनवू; अंति: सुसरो दुख थने हुतो, ढाल-२२. ६७७६२. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र व भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २५-१०(१ से ९,११)=१५, कुल पे. २, दे.,
(१०.५४७.५, ७४५-७). १. पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १०अ-२०आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: वंदामि जिण चउवीसं, गाथा-५०, (पू.वि. गाथा- २३ अपूर्ण तक एवं २६
__ अपूर्ण से २८ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. २१अ-२४आ, संपूर्ण.
आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक ६
अपूर्ण तक लिखा है.) ६७७६४. चिंतामणिजी को स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, दे., (१०.५४७, ५-६X८-११).
जिनबिंबपूजा स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: भविका श्रीजिनबिंब; अंति: श्रीजिनचंद्र सदाइरै,
गाथा-११. ६७७६५. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, त्रुटक, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३-९(१ से २,४ से ५,८,१०,१३,१५,१८)=१४, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (१०.५४८.५, ९x१०-११). चतुर्विंशतिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रथम, बीच-बीच व अंतिम तीर्थंकर की स्तुति
नहीं है.) ६७७६७. स्तुति व स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५०-३५(१ से ४,६,१० से १४,२० से ३३,३६ से ४६)=१५, कुल
पे. ८, दे., (११४५.५, ७-९x१४-१९). १. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. ५अ-५आ, पूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जिनसुख० सुरि सुह जाण, गाथा-४, (पू.वि. गाथा- १ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. मौन एकादशी स्तुति, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है.
मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. लघुशांति, पृ. ७अ-९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांति निशांत; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१६ अपूर्ण तक है.) ४. पे. नाम. बृहत्शांति स्तोत्र, पृ. १५अ-१९आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं.
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३२६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. पाठ-"इतिभव्यजनस्सहसमागत्य
स्नात्रपीठस्नात्रविधाय" से "शिवादेवीतुम्हयर निवासीनी अम्हाण" तक है.) ५. पे. नाम. अजितशांति स्तोत्र, पृ. ३४अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: पुव्वपन्ना बिनासंति, गाथा-३९, (पू.वि. गाथा-३८
अपूर्ण से है.) ६. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. ३४अ-३४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदित पाय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ७. पे. नाम. पाक्षिक अतिचार, पृ. ३५अ-३५आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दसणम्मि अ; अंति: (-),
(पू.वि. पाठ-"काले १ विनए २ बहुमाने ३ उवहाणो ४ तहअनिझवणो" तक है.) ८. पे. नाम. औषध मंत्रादि संग्रह, पृ. ४७अ-५०आ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच के पत्र हैं.
औषध-यंत्र-मंत्रसंग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६७७८२. सारस्वत यंत्र पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (१९.५४८.५, १०४२३-३०).
सारस्वत यंत्र पूजा, सं., प+ग., आदि: ह्रीं हंसः परमंत्रवर; अंति: इत्यादिस्तवः पठनीयः. ६७७८८. स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ३, प्रले.मु. भाणजी ऋषि; पठ. मु. अमीचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य,
जैदे., (१५.५४९, ८x२४-२७). १. पे. नाम. माणीभद्रवीर स्तोत्र, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. माणिभद्रवीर छंद, मु. लालकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती भगवती भारथी सू; अंति: लालकुसल लिक्ष्मी लही,
गाथा-२१. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरतीर्थ, मु. मेघराज, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सीर सूरति झग जाण; अंति: त्रिभुवननीलो,
गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ५अ-६आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: प्रणमामि सदा प्रभु; अंति: पार्श्वजिनं सिवं, श्लोक-६. ६७७९१. मेघमाला बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (१८x१०, ८x१७).
मेघमाला विचार-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: ऋषभदेव प्रभुने; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१८ के बालावबोध
अपूर्ण तक है.) ६७७९३. पासाकेवलि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. गांधाणी, प्रले. पं. जगरूप, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१७.५४८.५, ९x१९-२०).
पाशाकेवली, मु. गर्गऋषि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवती; अंति: अष्टमहासिद्धि होसी, श्लोक-४४५. ६७७९५. स्तवन व पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ५, जैदे., (२२.५४१०.५, ११४३०). १.पे. नाम. पार्श्वजिन केरवो, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. कीर्तिसागर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: बे करजोडी वीनवुजी; अंति: सा० सुखदाइ निज सेवजी, गाथा-९. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: मनवा जिणंद गुण गाय; अंति: आणंद वंछित दायरे, गाथा-३. ३. पे. नाम. सूरज सीलोको, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण.
सूर्य सलोको, मा.गु., पद्य, आदि: सरसत सामण करू पसावो; अंति: उठीनै कहजो जी लोकौ, गाथा-२२. ४. पे. नाम. नेमनाथ राजेमती सिलोको, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण.
नेमिजिन सिलोको, मा.गु., पद्य, आदि: समरु सारदने गणपत; अंति: आसा सफल हुवै म्हारी, गाथा-२१. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
३२७ मु. चंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्राण पीयारा जी हो; अंति: चंद० प्रभुजी सुखवास, गाथा-९. ६७८०८. (#) कक्काबावनी, संपूर्ण, वि. १९२५, ज्येष्ठ कृष्ण, ११, मंगलवार, मध्यम, पृ. १५, प्रले. घासीराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक ने प्र.ले.पु. दोहा में लिखा है., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२०४९.५, ८-११४२०-२७).
अक्षरबावनी, मु. लालचंद, पुहि., पद्य, वि. १८७०, आदि: सुरस वचन सुरस तणा; अंति: बावनी असा नाव धरीया,
गाथा-५३. ६७८०९. पारसजिन छंद व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, दे., (१८x१०, १०-१३५१९-२७). १.पे. नाम. अंतरिक पार्श्वनाथनो छंद देसांतरी, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण, पठ. मु.लाधाजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन वृद्धछंद-अंतरिक्ष, वा. भावविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात मयाकरी आपो; अंति: भाव पास जे
जेकरण, गाथा-६३. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-समवसरणभावगर्भित, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: देंद्रेकि धुप मप; अंति: निशं दिशतु
शासनदेवता, श्लोक-४. ६७८१०. सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. ८, दे., (१७X१०.५, १०x१५-२३). १.पे. नाम. करमनी सज्झाय, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, वि. १९३९, पौष कृष्ण, १.
कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देव दाणव तीर्थंकर; अंति: कर्म समो नही कोई, गाथा-१९. २. पे. नाम. माननी सज्झाय, पृ. ३अ-५अ, संपूर्ण. मानपरिहार सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: मान न करसो रे मानवि; अंति: सांभलजो सहुं लोकरे,
गाथा-१५. ३. पे. नाम. सुलसानी सज्झाय, पृ. ५अ-६आ, संपूर्ण, प्रसं.ऋ. केसरीचंद मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. सुलसाश्राविका सज्झाय, मु. कल्याणविमल, मा.गु., पद्य, आदि: धन्य धन्य सुलसा साचि; अंति: कल्याणविमल
गुणगाय रे, गाथा-१०. ४. पे. नाम. अजितनाथनो आरो, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. अजितजिन स्तवन-चोथा आरा, मु. तेजसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: चोथो आरो जिनवर वारो; अंति: भाखे जिनवर नाम
जुगते, गाथा-५. ५. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण, वि. १९३९, पौष कृष्ण, ९, ले.स्थल. उपलेटा.
मु. जगजीवन, मा.गु., पद्य, वि. १८२४, आदि: चालो विरजिणेसर शिवसु; अंति: जगजीवन० आश्या फली रे, गाथा-५. ६.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण..
पार्श्वजिन स्तवन, मु. मोटा ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पारस तु तो परतक्षदेव; अंति: मोटारीषी गावे मुदा, गाथा-५. ७. पे. नाम. मरुदेवीमाता सज्झाय, पृ. ९आ-११अ, संपूर्ण. ____ मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमातामरूदेव्या रे; अंति: जुवेतमारी वाट जो, गाथा-९. ८. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. ११अ-१२अ, संपूर्ण.
ग. मेघराज, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: शीतल जिनवर देव सुणो; अंति: मेघराज पुरी मन भावना, गाथा-६. ६७८१२. (+) अषाढाभूति चौपाई, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-१(२)=१०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (१८.५४९.५, १५४३५-४२).
आषाढाभूति प्रबंध-मायापिंडग्रहणे, मु. साधुकीर्ति, पुहि., पद्य, वि. १६२४, आदि: सुखनिधान जिनवर मनि; अंति:
साधुकीरति०सुणता आणंद, गाथा-१८३, (पू.वि. गाथा-१० से २३ अपूर्ण तक नहीं है.) ६७८१३. (+) आठकर्म अट्ठावनसोप्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१८x११.५, १५४२९).
८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: आठ कर्म ते केहा; अंति: जीव मुक्ति पुहचै. ६७८१४. सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. १०, जैदे., (१७४१०.५,१४४१४).
१. पे. नाम. गौतमस्वामी सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शिवपुरनगर सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: गोतमस्वामी पुछा करी; अंति: पामो सुख अथाग हो, गाथा-१६. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण.
मु. चोथमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: सासननायक सुखकारी; अंति: चोथमल०जिणेसर जीव जडी, गाथा-१३. ३. पे. नाम. साधु १० लंछन पद, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
१० लक्षण साधु पद, रा., पद्य, आदि: प्रथम लंछन साधनोजी; अंति: कह्याजी आप श्रीभगवान, गाथा-११. ४. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण.
मु. शिवलाल, मा.गु., पद्य, वि. १८९२, आदि: बावीसमाजिन स्वामी कर; अंति: पोह सुद मै शिवलाल हो, गाथा-११. ५. पे. नाम. गौतमाष्टक, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी अष्टक, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह ऊठी गौतम प्रणमी; अंति: उदय प्रगट्यो परधान,
गाथा-८. ६. पे. नाम. चोवीसी स्तवन, पृ. ५आ-७अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मु. शिवलाल, मा.गु., पद्य, आदि: समर सदा चोवीसे जिनवर; अंति: शिवलाल० मरण निवारीयै,
गाथा-११. ७.पे. नाम. शीतलनाथजी स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण, प्रले. हनुमानजी रामसुख, प्र.ले.पु. सामान्य. शीतलजिन स्तवन, मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशीतल सहज सुरंगा; अंति: कुसल गुण गाया हो,
गाथा-१०. ८. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, प्र. ८अ-८आ, संपूर्ण.
सीमंधरजिन स्तवन, मु. शिवलाल, मा.गु., पद्य, आदि: महावीदेहे श्रीमिंदर; अंति: सिवलाले० हुलास मे, गाथा-१२. ९. पे. नाम. शांत्तनाथ स्तवन, पृ. ८आ-९आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. शिवलाल, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमा श्रीजिनराज तणा; अंति: शिवलाल० शिवबंधु वरो,
गाथा-१६. १०. पे. नाम. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पृ. ९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन आव्या हे सोर; अंति: (-), (पृ.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ६७८१५. दानविषे कैवन्नासाधुनी चौपाई, संपूर्ण, वि. १८७२, वैशाख कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. २७, ले.स्थल. सुधागाव, प्रले.पं. हररूप (गुरु वा. मनरूप, चित्रावल गच्छ); गुपि. वा. मनरूप (चित्रावल गच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१८x१०, १४४३२).
कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदा; अंति: धरम करण मन उलसेजी,
___ ढाल-३१. ६७८१७. नंदिषेणमुनि चौढालिया, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (१७.५४११, ११४२६).
नंदिषणमुनि चौढालिया, मु. पूर्णमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद पाय प्रणमी करी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४
गाथा-२७ अपूर्ण तक है.) ६७८१८. (+) स्तवन व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८-१०(१ से १०)=८, कुल पे. ७, प्र.वि. संशोधित.,
जैदे., (१५.५४१०, १०-१२४१३-२५). १.पे. नाम. राजमतीजी सज्झाय, पृ. ११अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. नेमराजिमती गीत, मु. सुंदरजी ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: (-); अंति: सुंदर० चरणांदा हो, गाथा-१६, (पू.वि. गाथा-१२
अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. श्रीपाल रास-बृहद-ढाल १७वी आदिजिन विनती ढाल, पृ. ११अ-१२अ, संपूर्ण.
श्रीपाल रास-बृहद, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४०, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३. पे. नाम. शेजयमंडण आदिनाथआलोयणवृद्ध स्तवन, पृ. १२अ-१४आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ बृहत्स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बे करजोडी विनवू जी; अंति: समयसुंदर गुण भणै,
गाथा-३२.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
३२९ ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १४आ-१५आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, मु. कीरत, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुगुरु चिंतामणि; अंति: प्रभु पारसनाथ कीयै, गाथा-१५. ५. पे. नाम. चोवीसजिन स्तुति, पृ. १५आ-१६आ, संपूर्ण.
२४ जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: पहिला श्रीऋषभदेव वंद; अंति: भव भव मांगु थारी सेव, गाथा-७. ६. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तवन, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण.
२४ जिन भववर्णन स्तवन, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमीय चोवीसे जिन; अंति: श्रीदेवे इम गुण गाया, गाथा-५. ७. पे. नाम. धन्नामुनि स्वाध्याय, पृ. १७अ-१८आ, संपूर्ण. धन्नाअणगार सज्झाय, आ. कल्याणसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: काकंदीवासी सकज भद्रा; अंति: कल्याणसुरंगैरे,
ढाल-२. ६७८२०. स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०२, माघ शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ३, ले.स्थल. हरडा, प्रले. मु. मोहनसागर,
प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१५४१०.५, ९x१५). १.पे. नाम. जिनदत्तसूरि स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, वि. १९०२, माघ शुक्ल, २.
मु. लाभउदय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सदगुरुजी तुम्हे; अंति: लाभोदय सुख सिद्ध हो, गाथा-११. २. पे. नाम. जिनकुशलसूरि विनती, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. राजसागर कवि, मा.गु., पद्य, आदि: अरे लाला श्रीजिनकुशल; अंति: करै वारोवार रे लाला,
गाथा-९. ३. पे. नाम. आदिनाथ स्तवन, पृ. ४-५अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: शेजानो वासी; अंति: णेसर यो भव पार उतारो,
गाथा-७. ६७८२१. अवंतिसुकुमाल रास व दानशीलतपभावना संवाद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७९-७३(१ से ५४,६० से ७८)=६, कुल
पे. २, जैदे., (१६.५४१०.५, ९x१८). १.पे. नाम. अवंतिसुकुमाल रास, पृ. ५५अ-५९आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र हैं.
मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-५ की गाथा-३ अपूर्ण तक
२.पे. नाम. दानशीलतपभावना संवाद, पृ. ७९अ-७९आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ की गाथा-७ अपूर्ण से ढाल-५
गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ६७८२२. (#) ऋषभदेव बाललीला व पद्मप्रभुजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-२(१ से २)=६, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों
की स्याही फैल गयी है, दे., (१९.५४९.५, ७४१७-२०). १.पे. नाम. ऋषभदेवनी बाललीला, पृ. ३अ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
आदिजिन सुखडी, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जीवो तमे आदिनाथ धणि, गाथा-५३, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. ८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं..
मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपद्मप्रभुना नाम; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ तक है.) ६७८२३. गौतमस्वामि रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३-८(१ से ८)=५, जैदे., (१६४१०.५, १३४२४).
गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: विजयभद्र०
इम भणे ए, गाथा-४७, संपूर्ण. ६७८२४. (+) सुदर्शन रास, संपूर्ण, वि. १८२२, श्रावण शुक्ल, १३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. बगडी, प्रले. सा. राजकवरी (गुरु
सा. महाकवरी आर्या); गुपि.सा. महाकवरी आर्या; अन्य. सा. रंभा (गुरु सा. रायकंवर); दत्त. सा. रायकवरी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. सगनाकी नेसराय छे. मुनि मनोहरलालकी नेसरायमें छे., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (१६.५४१०, २०४३५).
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३३०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सुदर्शनशेठ रास, मु. रायमल्ल ब्रह्म, मा.गु., पद्य, आदि: पढम प्रणमूं स्वामी; अंति: राइमल० वैकुंठ को वास, गाथा-२०१. ६७८२६. रास, चैत्यवंदन व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २१३, कुल पे. ५, प्र.वि. प्रतिलेखक ने अंत में
पत्रांक नहीं लिखा है., दे., (१६४१०,७४२१-२२). १. पे. नाम. श्रीपाल रास, पृ. १अ-२०३आ, संपूर्ण. उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कलपवेल कवीयणतणी सरसत; अंति:
थोडा हुवा प्रमोणं, खंड-४, (वि. ढाल ४१.) २.पे. नाम. सिद्धचक्रजी माहाराजनु चैत्यवंदन, पृ. २०४अ-२०५आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सिद्धचक्र आराधतां; अंति: तणो सिस कहे
कर जोड, गाथा-१५. ३. पे. नाम. अमरितवेल, पृ. २०६अ-२१०आ, संपूर्ण. अमृतवेल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चेतन ज्ञान अजुवालीए; अंति: लहे
सूजस रंग रेल रे, गाथा-२९. ४. पे. नाम. पापस्थानक, पृ. २१०आ-२११आ, संपूर्ण, वि. २०वी, आश्विन कृष्ण, ५, प्रले. रायचंद गुलाबचंद गुजर,
प्र.ले.पु. सामान्य. प्राणातिपात प्रथमपापस्थानक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पापस्थानक पेहलु; अंति:
जिनवाणी धरो चित, गाथा-६. ५. पे. नाम. ब्रह्मचर्यव्रत पालनविशे उपदेश, पृ. २१२अ-२१३आ, संपूर्ण.
औपदेशिक विचार-ब्रह्मचर्यविशे, मु. रायचंद, रा., प+ग., आदि: हिराचंद आमोली साधरमी; अंति: वीद के जानो
रायचंद. ६७८२७. जांबूवतीजीरी चौपाई, संपूर्ण, वि. १८५३, माघ कृष्ण, ४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. नागोर, प्रले. मु. नंदलाल ऋषि; पठ. सा. उमादे आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१६४१०.५, १५४२५-२७).
जंबूवती चौपाई, मु. सूरसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पैली ढाल सुहावणी; अंति: दीधो अविचल पाट तो, ढाल-१३. ६७८३३. स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, दे., (१६.५४८.५, ६४११). १.पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तुति, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण.
बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न; अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. २. पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तुति, पृ. २आ-५अ, संपूर्ण.
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतकसुप्रपंचपरमा; अंति: सिद्धायिका त्रायिका, श्लोक-४. ३. पे. नाम. आठमनी स्तुति, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अष्टमीतिथि स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चौवीसे जिणवर प्रणमु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण
तक है.) ६७८३७. रास व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६५-१५१(१ से १३७,१४२,१५२ से १६४)=१४, कुल पे. ४,
जैदे., (१३४१०, १०x२२). १.पे. नाम. दशार्णभद्र सज्झाय, पृ. १३८अ-१४१आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद बुद्धिदायक सेवक; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. बुद्धिरास, पृ. १४३अ-१५१अ, संपूर्ण, ले.स्थल. वीकानेरनयर, प्रले. पं. सुमतिविजय; पठ. श्राव. मलूकचंद संघवी;
श्राव. उदाराजसिंघ संघवी, प्र.ले.पु. सामान्य.
आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पणमवि देवि अंबाइ; अंति: सविटले कलेस तो, गाथा-६१. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १५१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: चेतन तूं तिहु काल; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ४. पे. नाम. ४७ गोचरीदोष सज्झाय, पृ. १६५अ-१६५आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
३३१ मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४६ अपूर्ण से ५३ अपूर्ण तक है.) ६७८३८. (#) सज्झाय व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९१९, मध्यम, पृ. १६-२(१,१४)=१४, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश
खंडित है, दे., (१३४१०.५, १०x१५). १.पे. नाम. नववाडि सज्झाय, पृ. २अ-१३अ, पूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., वि. १९१९, वैशाख शुक्ल, २, ले.स्थल. सवराड,
प्रले. मु. पुनमचंद ऋषि; पठ. श्रावि. तीजाजी, प्र.ले.पु. सामान्य. नववाड सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: (-); अंति: जिनहर्ष०जुगति नववाडि, ढाल-११,
(पू.वि. ढाल-१ गाथा-५ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. नवपदजीरो स्तवन, पृ. १३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. नवपद स्तवन, मु. विनीतसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७८८, आदि: सहु नरनारी मिलि आवो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४
तक है.) ३. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १५अ-१६अ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्जाय, मु. सरूप ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: सांवरासै लागी मोरी; अंति: सरूप० करजोडी हेतलाय,
गाथा-२० ६७८३९. सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१-९(१ से ८,१३)=१२, कुल पे. १२, जैदे., (१३४१०.५,
११४१५). १.पे. नाम. रहनेमि सज्झाय, पृ. ९अ-१०अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सास्वतासुख लेस्ये रे, गाथा-११,
(पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १०अ-११आ, संपूर्ण.
पं. भक्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी शांतिजिणंदने; अंति: भक्ति०तुम पाय सेव हो, गाथा-८. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण.
मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७८९, आदि: जगपति तारक श्रीजिनदे; अंति: भगवंत भावेसु भेटीइ, गाथा-५. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १२अ-१२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है.
मा.गु., पद्य, आदि: जगपति श्रीचिंतामणपास; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ५. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १४अ-१४आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है.
आ. उदयसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: उदय० कीरत देज्यो हो, गाथा-७, (पूर्ण, पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से
है.) ६. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १४आ-१५आ, संपूर्ण.
मु. मोहनरुचि, रा., पद्य, आदि: नेम निरंजनदेव सेवा; अंति: मोहनरूची इम भणे जी, गाथा-८. ७. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १५आ-१६आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन-सिरोहीमंडन, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हो जी मारी सहीया सेव; अंति: जिनजीसुं
थुण्योजी, गाथा-७. ८. पे. नाम. चेलणाजीरी सज्झाय, पृ. १६आ-१७आ, संपूर्ण. चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वांदीने वलता; अंति: समयसुंदर० भवतणो पार,
गाथा-७. ९. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. १७आ-१८आ, संपूर्ण.
सीमंधरजिन स्तवन, क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो चंदाजी सीमंधर; अंति: वाधे मुज मुख अतिनूरो, गाथा-८. १०. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १८आ-१९आ, संपूर्ण.
मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिन एक मुज विनत; अंति: मोहनविजय गुण गाय, गाथा-७. ११. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, पृ. १९आ-२०आ, संपूर्ण.
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३३२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. रंग, मा.गु., पद्य, आदि: दिलरंजन जिनराजजी; अंति: रंगने हवे हाथरे, गाथा-७. १२. पे. नाम. भरहेसर सज्झाय, पृ. २०आ-२१आ, संपूर्ण.. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभइ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-११ अपूर्ण
तक लिखा है.) ६७८४९. स्तवन संग्रह, पूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २५-१(१३)=२४, कुल पे. २, दे., (१०.५४१०.५, १२-१५४१७-१८). १.पे. नाम. विहरमानजिन स्तवनवीसी, पृ. १अ-२२अ, पूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसीमधर जिनवर; अंति: परम महोदय युक्तिरे, स्तवन-२०,
(पू.वि. चंद्राननजिन-१२ स्तवन नहीं है.) २. पे. नाम. संयमश्रेणी स्तवन, प्र. २२-२५अ, संपूर्ण.
मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: केवलज्ञान दिवाकरुजी; अंति: उत्तम लहे भव तीर, गाथा-२२. ६७८५०. नवग्रह छंद व ऋषभदेव छंद, संपूर्ण, वि. १८४२, श्रेष्ठ, पृ. १६, कुल पे. २, ले.स्थल. धेणोज, प्रले. ग. लखमीविजय (गुरु
ग. खिमाविजय); गुपि.ग. खिमाविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१२४१०.५, १०x१४). १.पे. नाम. नवग्रह छंद, पृ. १आ-१३आ, संपूर्ण, वि. १८४२, पौष कृष्ण, १४.
क. संकरकवि, मा.गु., पद्य, आदि: काशपकुल शिणगारं दीण; अंति: समर तीहा कारज सरे, ढाल-९. २. पे. नाम. आदिजिन छंद, पृ. १४अ-१६आ, संपूर्ण.
आदिजिन छंद-धुलेवामंडन, आ. गुणसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रमोदरंगकारणी कला; अंति: ऋद्धिसिद्धि पाईए,
गाथा-८. ६७८५१. पार्श्वनाथजी की निसाणी व लघुचाणक्य राजनीतिशास्त्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०-१(१०)=१९, कुल पे. २,
जैदे., (१०४९, १०४८). १.पे. नाम. पार्श्वजिन छंद-घग्घरनिसानी, पृ. १अ-९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. पत्रांक व गाथांक का
उल्लेख न होने से गिनकर लिखा गया है. पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहि., पद्य, आदि: सुखसंपतिदायक सुरनर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१९ अपूर्ण
तक है.) २. पे. नाम. लघुचाणक्यराजनीति शास्त्र, पृ. ११अ-२०आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. चाणक्यलघुराजनीति, संक्षेप, कौटिल्य, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्याय-३
श्लोक-४ अपूर्ण से है व अध्याय-६ श्लोक-८ तक लिखा है.) ६७८५२. (-) २४ जिन स्तवन, छंद व मंत्रादि संग्रह, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७५-१(१)=७४, कुल पे. १३, अन्य. श्राव. वणारस
मेघराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रानुक्रम १ से ३५ क्रमशः है, इसके बाद सभी कृतियों का अलग-अलग पत्रानुक्रम दिया गया है, जिसे अनुक्रम में लाने हेतु पत्र-३६ से क्रमशः गिना गया है. प्रतिलेखक ने प्रत लिखने में ग्राम्यभाषा का विशेष उपयोग किया है., अशुद्ध पाठ., दे., (१५.५४७, ६४१४-१९). १.पे. नाम. चोवीसजिन स्तवन, पृ. २अ-३५आ, पूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., वि. १९५२, पौष कृष्ण, ११,
ले.स्थल. भीनमाल, पे.वि. यह प्रत भीनमाल की पोसाल में लिखी गयी है. स्तवनचौवीसी, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: मानविजय नितु ध्यावे, स्तवन-२४,
(पू.वि. आदिजिन स्तवन की गाथा-३ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. ज्योतिष गाथा संग्रह, पृ. ३६अ-४१आ, संपूर्ण. ज्योतिष श्लोक, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मेष वृष मिथुन वडा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
राशियोनिविचार अपूर्ण तक लिखा है.) ३. पे. नाम. गणेशजीरो छंद, पृ. ४२आ-४६आ, संपूर्ण, वि. १९५२, मार्गशीर्ष शुक्ल, २,प्र.ले.श्लो. (१७९) पोथी प्यारी प्राणथी.
गणपति छंद, अभयराम कवि, मा.गु., पद्य, आदि: जै जै गुणनायक व्रध; अंति: अभैराम० मंगलचार गुणं, गाथा-९. ४. पे. नाम. चवदे सूपना छंद, पृ. ४७आ-४९अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
३३३ त्रिशलामाता १४ स्वप्न स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सीर सिधारथ गर पटराणी; अंति: धन लक्ष्मी बहुगणी ए, गाथा-७. ५. पे. नाम. माताजी रो छंद, पृ. ४९अ-५१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. सरदारगढ, प्रले. मु. रतनलाल महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य.
सिचीयायदेवी छंद, हेम, मा.गु., पद्य, आदि: साचल साचल मात तणी घर; अंति: महाकाली चांवड तुहे, गाथा-६. ६. पे. नाम. नागविष निवारणादि मंत्र संग्रह, पृ. ५२अ-५५अ, संपूर्ण.
मंत्र संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: गंगा गोरी तहां राणी; अंति: (-). ७. पे. नाम. श्रावककरणी सज्झाय, पृ. ५६अ-६१अ, संपूर्ण.
मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: करणी दुखहरणी छे एह, गाथा-२३. ८. पे. नाम. अंबो वजीरी स्तुति, पृ. ६२आ-६४आ, संपूर्ण.
अंबिकामाता स्तुति, रमाकांत, मा.गु., पद्य, आदि: स्तुति अंबेवकी वरण; अंति: रामाकंथ होये सुरराये, गाथा-६. ९. पे. नाम. माताजी रो संद, पृ. ६४आ-६७आ, संपूर्ण, वि. १९५२, श्रावण शुक्ल, ५.
सरस्वतीदेवी छंद, मु. पूंजा ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: माता तुहीज माये पिता; अंति: पुंजा० रंगै पामीय, गाथा-११. १०. पे. नाम. अंबिकामाता छंद, पृ. ६८अ-६९अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: हे कलसहणी नगनोपीबाला; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ तक लिखा
११. पे. नाम. गणेशजीरो संद, पृ. ७०आ-७३अ, संपूर्ण.
गणेश स्तोत्र, मा.गु., पद्य, आदि: सुरनरनायक आदि सुंडाल; अंति: गुणिजें नाम गुणेसरा, गाथा-५. १२. पे. नाम. गणेश घग्घरनिसाणी छंद, पृ. ७३अ-७४आ, संपूर्ण, ले.स्थल. भीनमाल.
गणेश निसांणी, मा.गु., पद्य, आदि: सबदेवा नायेक तु; अंति: ऐसी मांज करंदा है, गाथा-३. १३. पे. नाम. औषधनिर्माण व प्रयोगविधि, पृ. ७५अ-७५आ, संपूर्ण.
__ औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६७८५३. संजोगविलास वसवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, जैदे., (१४x७, ९४२३). १.पे. नाम. संजोग विलास, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण..
मु. दौलत, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमु श्रीवीर पत्कज; अंति: दोलत० वचने करी, गाथा-४९. २.पे. नाम. हंसकाक तीसंवाद सवैया संग्रह, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सवैया संग्रह , मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: कागल ग्यो कब हंसनी; अंति: आग
लगावे लुगाई, सवैया-३. ६७८५६. (+) सज्झाय, पदव स्तवन संग्रह, त्रुटक, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-७(१,३,५,७,९,११,१३)=७, कुल पे.८,
प्र.वि. गुटका प्रत के विखड़े पत्र है, पत्रानुक्रम न होने से काल्पनिक पत्रांक दिया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (१२४६.५, ७X१७). १.पे. नाम. ढंढणमुनि सज्झाय, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र हैं. ___ढंढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से ७ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं.
मु. विमलकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: बाहुबल चारित लीयो जी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. चितसंभूतरी सझाय, पृ. ६अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
चित्तब्रह्मदत्त सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चित कहै ब्रह्मरायनै; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक
४.पे. नाम. औपदेशिक कवित्त संग्रह, पृ. ८अ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं.
औपदेशिक कवित्त संग्रह*, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: ध्यान धरे जब इस जटा; अंति: (-), (पू.वि. कवित्त-३ अपूर्ण तक
५.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १०अ-१०आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
महावीरजिन तप स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मुगत आपो सामिया, गाथा - १०, ( पू. वि. गाथा-६ से है.) ६. पे. नाम. सालिभद्रधनारी सझाय, पृ. १२अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं.
शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सहीजसुंदर सुण वाण, गाथा-१७, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा है.)
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७. पे. नाम. २४ जिन पद, पृ. १२आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जीव जप जप जिनवर अंतर; अंति: (-), (पूर्ण, पू. वि. गाथा - ३ तक है.) ८. पे. नाम. प्रतिक्रमण सज्झाय, पृ. १४- १४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
औपदेशिक सज्झाय, मु. तेजसिंघ, मा.गु, पद्य, आदि: पंचप्रमाद तजी पडिकमण, अंति: (-), (पू. वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.)
६७८५७. (+#) द्रौपदीसती चौपाई, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६८, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र. वि. संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२x१३.५, १३X२४-३०).
द्रौपदीसती चौपाई, वा. कनककीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६९३, आदि: पुरिसादाणी पासजिण अंति: (-), (पू.वि. ढाल -३९, गाथा-२४ अपूर्ण तक है.)
६७८५८. बीजकोश, स्तोत्र व अट्टेमट्टे मंत्राम्नायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. ८-३ (२, ५ से ६) =५, कुल पे ४, दे.,
(२१X१२.५, २०X१७-२० ).
१. पे. नाम. बीजकोश, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
सं., प+ग., आदि: ओं प्रणव ब्रह्मबीजं अंतिः श्रीत्रिपुरायै नमः.
२. पे. नाम. अट्टेमट्टे यंत्राम्नाय विधि, पृ. ३अ ४आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., पे. वि. पत्र ४ का पाठ ८अ पर अपूर्ण रूप से है.
पार्श्वजिन स्तव- अहेमद्वेमंत्राम्नाय गर्भित मंत्रसाधन विधि, संबद्ध, सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अन्त की विधि नहीं है.)
३. पे नाम, जांगुली महाविद्या विधि, पृ. ७अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पे. वि. श्रीजिनफतेंद्रसूरीश्वराणां प्रसादात्. धरणोरगेंद्र महाविद्या स्तोत्र, सं., प+ग., आदि: (-); अंति: ऊर्ध्वभूय पठनीय, (पू. वि. जक्के जक्करणे मम्मे मम्मर पाठ से है.)
४. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण, पे. वि. पत्रांक- ८अ वस्तुतः ८आ है.
पार्श्वजिन स्तव - कलिकुंड, आ. मुनिचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: नमामि श्रीपार्श्व; अंतिः शमयतु समग्रं भवभयम्, लोक-१०.
६७८५९. (+) पद्मावती आराधना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९५६, चैत्र शुक्ल, २, बुधवार, मध्यम, पृ. ८, प्रले. जसराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२२x१३, ५X१५-२० ).
पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवे राणी पद्मावती; अंति: पापथी छुटे तत्काल, ढाल -३, गाथा-३६, , संपूर्ण.
पद्मावती आराधना-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हिवे पद्मावती राणी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा २५ तक लिखा है.)
६७८६१. (+#) सिंदुरप्रकरण सह बालवबोध व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३६, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,
प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २२x१२, ११x२३-२६).
सिंदूरकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी आदि सिंदूरप्रकरस्तपः अंति: (-) (पू. वि. द्वार १० श्लोक-१२
तक है.)
सिंदूरकर - बालावबोध+कथा, पा. राजशील, मा.गु. सं., गद्य, आदि: श्रीशारदाचरणयुग्ममती, अंति: (-). ६७८६२. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २०- ३ (१ से २,१३*) = १७, कुल पे. ६, दे., (२०.५X११, १०x२६-३०). १. पे. नाम. चौवीसदंडक स्तवन, पृ. ३अ ६आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
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पार्श्वजिन स्तवन- २४ दंडकविचारगर्भित, मु. धरमसी, मा.गु. पद्य वि. १७२९, आदि पूर मनोरथ पासजिणेसर, अंति: गावै धरमसी सुजगीस ए, ढाल ४, गाथा- ३४.
२. पे. नाम. समस्मरणगर्भित पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६आ- ९अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन-समवसरण विचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनशासन सेहरो जग; अंति: पाठक धर्मवर्धन धार ए, ढाल - २, गाथा-२८.
३. पे. नाम. सासता जिनप्रसादप्रतिमा स्तवन, पृ. ९अ - ११अ, संपूर्ण.
शाश्वताचैत्यनमस्कार स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि ऋषभानन वर्धमान चंद्र, अंतिः
समयसुंदर मुझ परणाम ए, डाल-५, गाधा- १८.
४. पे. नाम. ४२ दूषण स्तवन, पृ. ११अ १५ अ, संपूर्ण.
गोचरी ४२ दोष वर्जन सज्झाय, मु. रुघनाथ, मा.गु., पद्य, वि. १८७८ आदिः सासनपति चोवीसमो महाव, अंतिः रुघनाथ० अट्ठडोत्तरै, गाथा- ३६.
५. पे नाम, त्रयः विंशतिपदवी स्तवन, पृ. १५अ - १६आ, संपूर्ण
२३ पदवी स्तवन, आ. उदयप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर पाय अंति: उदयपभ० धरमलाभ घणी थी,
गाथा- २३.
६. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन अंतराकालकायमान आयुस्थितिप्रमुखकथनेन स्तवन, पृ. १६ आ-२०अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन- देहमान आयुस्थितिकधनादिगर्भित, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: पंचपरमिट्ठ मन शुद्ध, अंति: धरमसीमुनि इम भणे, डाल-५, गाथा-२९
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६७८६३. स्त्रीपुरुष कला नामादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९२६, आश्विन कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. १३, ले. स्थल. अजीमगंज, प्र. मु. प्रेमअमृत, पठ. श्राव. भोजराज, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२०.५X११, १०X२७-३२).
१. पे. नाम. ७२ कला नाम - पुरुष, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: लिखनकला? पठनकला२ गणन; अंतिः इति पुरुषाणां ७२कला.
२. पे. नाम. स्त्री ६४ कला नाम, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी है. मा.गु., गद्य, आदि: नृत्य १ उचित्य अंति: प्रश्नप्रहेलिका ६४.
३. पे. नाम. १८ प्रकार की लिपि नाम, पृ. २आ, संपूर्ण.
मा.गु. गद्य, आदि; हंसलिपि भूतलिपिर; अंति: चाण०१७ मूलदेवीलिपि१८.
४. पे. नाम. १८ लिपि नाम- विशेष नाम, पृ. २आ, संपूर्ण.
५. पे. नाम. प्रकारांतर पुरुष ७२ कला नाम, पृ. ३अ - ४अ, संपूर्ण.
७२ कला नाम- पुरुष, मा.गु., गद्य, आदि लिखत कला १८५भेद छे अंतिः पंखीनी भाषाकला७२.
मा.गु., गद्य, आदि: लाटी१ चौटी२ डाहला३; अंति: (-), (पूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., १८वी लिपि का नाम नहीं लिखा है.)
६. पे. नाम. स्त्री ६४ कला नाम, पृ. ४अ -५अ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी है.
मा.गु., गद्य, आदि: नृत्यकला१ उचितकलार; अंतिः शुक्रोत्पत्तिकला६४.
७. पे. नाम. १८ व्याकरण नाम, पृ. ५अ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: १ऐंद्रव्याकर्ण २ पाण; अंति: १८ जयहेमव्याकर्ण.
८. पे. नाम. १४ विद्या नाम, पृ. ५आ, संपूर्ण.
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मझार, गाथा ४.
१०. पे. नाम. स्त्री ७ सुखदुख पद, पृ. ६ अ- ६आ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: शिक्षाविद्या १ कल्प, अंति: १४ पूराणविद्या.
९. पे नाम. पुरुष ७ सुखदुख वर्णन पद, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण
मा.गु., पद्य, आदि: (१) पहिली सुख निरोगी काय, (२) पहिली दुख जे अंगण, अंति: (१) सरे सहु काम, ( २ )साते दुख संसार
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मा.गु., पद्य, आदि: (१)पहिलौ सुख पीहर गाम, (२)पहिलो दुख जे पिउ पर; अति: (१)सुख जे सखी साथे वात, (२)सात
दुख नारी ने आम, गाथा-२. ११. पे. नाम. श्लोक संग्रह-गूढार्थगर्भित, पृ. ६आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: भो वृष्यो पर्वताग्रे; अंति: भुवने रामरामोच्चरंति, श्लोक-१. १२. पे. नाम. प्रहेलिका सोरठा, पृ. ६आ, संपूर्ण.
प्रहेलिका संग्रह, पुहि., पद्य, आदि: प्रगट भीख्यारी पास; अंति: कहो कारी कैसै लगे, गाथा-१. १३. पे. नाम. पांसठियादि यंत्रनिर्माण विधि, पृ. ७अ, संपूर्ण.
यंत्र संग्रह*, मा.गु.,सं., को., आदि: (-); अंति: (-). ६७८६४. (+#) पंचमी स्तवन, वंदित्तुसूत्र व मल्लिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८१, भाद्रपद कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. ३,
ले.स्थल. कनकावतीनगर, प्रले. गंगाधर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१४११.५, १३४२८-३१). १.पे. नाम. पंचमीतिथि स्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. मु. वर्धमान ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १४८४, आदि: सारद प्रणमु जी पाय; अंति: वृद्धमान० संपति करि, ढाल-४,
गाथा-४४. २.पे. नाम. श्रावकसूत्र, पृ. ३अ-५आ, संपूर्ण.
वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. ३. पे. नाम. एकादशीतिथि स्तवन, पृ. ५आ-७आ, संपूर्ण. मल्लिजिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवनपति रे मल्लि; अंति: पासचंद० शव सुख लहइ,
गाथा-२८. ६७८६५. (+#) स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ८, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.,
(२२४११, १०४३९). १.पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन-सारंगपुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, पुहि., पद्य, आदि: सारद मात नमु सिरनामि; अंति: श्रीगुणसूरि०
फल पावै, गाथा-२२. २. पे. नाम. शीतलनाथ स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. ___ शीतलजिन स्तवन, मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: शीतलजिन सहज सुरंगा; अंति: सुबुधी गुण गाया रे, गाथा-९. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: आणी मन सुद्धी आसता; अंति: समयसुंदर० सुख भरपुर,
गाथा-८. ४. पे. नाम. तीर्थमाला स्तवन, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेव॒जै ऋषभ; अंति: समयसुंदर कहे एम,
गाथा-२१. ५.पे. नाम. २४ जिन अष्टक, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण.
आ. उदयसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अविचल थानक पहुता; अंति: पभणे श्रीउदैसागरसूरि, गाथा-८. ६.पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ५अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: पारसनाथ प्रगट परमेसर; अंति: सेवक जानी दया करोजी, गाथा-३. ७. पे. नाम. सुव्रतजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिसुव्रतजीसुं मोहन; अंति: इम राम कहे शुभशीस हो, गाथा-५. ८.पे. नाम. विक्रमसेनराजा लीलावती चौपाई-ढाल२५वी, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण.
विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
६७८६६. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. १४, जैदे. (२२x११, १२x२४-२८).
१. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतक पाडल जाई; अंति: तुसे देवी अंबाई, गाथा-४.
२. पे. नाम ऋषभदेव स्तुति, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेडुंजो तीरथ, अंति: पाय ऋषभदास गुण गाय, गाथा ४. ३. पे नाम, कृष्णपक्षपंचमी स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: समुद्रभूपालकुलप्रदीप, अंतिः तु देवी जगतः किलांबा, श्लोक-४.
गाथा-४.
५. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: अष्टमी अष्ट परमाद, अंति: नंदीसर विघन दूरे हरे, गाथा- ४.
६. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे. वि. श्रीवरकाणौजी.
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४. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. २आ- ३अ, संपूर्ण.
पंचमीतिथि स्तुति, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धवधु केरो सिणगार अंति: पुर आस्या सवि मन तणी,
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सं., पद्य, आदिः युगादिपुरुषेंद्राय, अंतिः कूष्मांडी कमलेक्षणा, श्लोक-४.
७. पे नाम, एकादशीतिथि स्तुति, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदित पाय अंतिः करतु अंबिकदेवीया, गाथा ४.
८. पे नाम. दीवालीपर्व धुई, पृ. ४अ, संपूर्ण, पे. वि. "ए थुई वार ४ कहेवी" का उल्लेख है.
दीपावलीपर्व स्तुति, मु. भालतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय कर मंगलदीपक; अंति: कमला भालतिलक वर हीर, गाथा- १.
९. पे नाम, दीपालीपर्व थुई, पृ. ४-४आ, संपूर्ण, पे. वि. गाथा-१ को ४ बार बोलने हेतु अंत में ४ का संकेत मिलता है. दीपावलीपर्व स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: जय मानव सेवित; अंतिः तीर्थाधिप सुरराज, गाथा - १.
१०. पे नाम, पार्श्वजिन थुई, पृ. ४आ, संपूर्ण, पे. वि. गाथा-१ को ४ बार बोलने हेतु अंत में ४ का संकेत मिलता है. पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: कल्याणानि समुल्लसंति, अंतिः सत्कल्याणमाहात्म्यतः, श्लोक-१.
११. पे नाम, पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति-वरकाणा, पंन्या, कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदिः वरकाणे वर मंडण पास अंतिः कमलविजय० सुखसंपदा, गाथा-४.
१२. पे नाम आदिजिन स्तुति शत्रुंजयतीर्थमंडन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण, पेवि गाथा-१ को ४ बार बोलने हेतु अंत में ४ का संकेत मिलता है.
आदिजिन स्तुति, मु. सौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: पुंडरगिरिस्वामी आदि अंतिः सौभाग्यनो दातार, गाथा १. १३. पे नाम. आदिजिन स्तुति- शत्रुंजयतीर्थमंडन, पृ. ५अ, संपूर्ण.
६७८६७. श्रावकपाक्षिक अतिचार, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १० - १ (१) = ९, जैदे., (२३×१२, १२x२४-२८).
शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पुंडरिकमंडण पाय, अंति: सौभाग्य० सुखकंदा जी, गाथा- १. १४. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण.
दीपावली पर्व स्तुति, मु. रत्नविमल, मा.गु, पद्य, आदि: सासननायक श्रीमहावीर, अंतिः रतनविमल० मुज वाणी,
गाथा ४.
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श्रावकव्रत १२४ अतिचार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मन० मिच्छामि दुक्कडं, (पू. वि. दर्शनाचार ८ अचि पाठ से है.)
६७८६८. (+*) नलदमयंती चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १८-१३ (१ से १३) =५. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३X११, १३X३७).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., खंड- २ ढाल ५ की गाथा- ३१ अपूर्ण से खंड-३ दाल ५ की गाथा ८६ अपूर्ण तक है.)
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६७८६९. नेमिराजीमति गीत व बारमासा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, जैदे., (२३x१०.५, ९×३१). १. पे. नाम, नेमिराजिमती १५ तिथि सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण,
नेमराजिमती गीत - १५ तिथिगर्भित, मु. मूलचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीऋषभजिणंद प्रणमी, अंति: मूलचंद ० सवी फलसे, गाथा १८.
२. पे. नाम. नेमराजिमती बारमासो, पृ. २अ ३अ, संपूर्ण.
आ. कीर्तिसूरि, रा., पद्य, आदि: जी प्रभु श्रावणमास, अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१२ अपूर्ण तक लिखा है.)
३. पे. नाम. नेमराजिमती बारमासो, पृ. ३आ - ५अ, संपूर्ण.
आव. जीवा मयाराम, मा.गु., पद्य, वि. १८२५, आदि: सरसती अंबे माता नमु; अंतिः जीवो० एवर मांगुरे, गाथा-२६. ६७८७० (+) २६ दंडक बोल, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २२-२ (१,६) २० प्र. वि. संशोधित. वे. (२२x११.५, ९३१). २४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: गति मांहि आगति नथी, (पू. वि. प्रथम एक व बीच के पत्र नहीं हैं. घ्राणेंद्री रसेंद्री स्पर्शेद्री समुद्धात विचार से है व बीच के पाठ का अल्पांश भाग नहीं है.)
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६७८७१. नवपद रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९-१ (१) ८. पू. वि. बीच के पत्र हैं, जैदे., (२२.५४१२, १५४३०). राजसिंहरत्नवती कथा, मु. गौडीदास, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. दोहा-१३ अपूर्ण से ढाल १० दोहा-८ अपूर्ण तक है.)
६७८७२. स्नात्र पूजा व अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १९३५, कार्तिक शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, ले. स्थल. सलुवर, पठ. पं. पन्नालाल, प्रले. श्राव. गुणचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीऋषभदेवजी के मंदिर में प्रत लिखी गयी., दे., (२२x११, ११X३२-३५).
१. पे. नाम. स्नात्रपूजा विधि, पृ. १अ -५अ, संपूर्ण.
स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रथम पाटो १ बिछाई, अंति: देवचंद० सूत्र मझार, ढाल-८, गाथा ६०.
יי
२. पे. नाम, अष्टप्रकारी पूजा, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण
८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु., सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: विमलकेवलभासनभास्कर, अंतिः मोक्षसौख्यं श्रयंति, ढाल-८, श्लोक ८.
६७८७३. (+) दानादिभावना संवाद, नेमिजिन बारमासो व निंदापच्चीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. जैदे. (२४४११, १६४३७-४०).
१. पे. नाम. दानशीलतपभावना संवाद, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण, वि. १८८३, ज्येष्ठ शुक्ल, १४, ले.स्थल. लसकर,
प्रले. श्राव. सायणमल्ल, प्र.ले.पु. सामान्य.
"
उपा. समवसुंदर गणि, मा.गु., पद्य वि. १६६२, आदि: प्रथम जिणेशर पाय नमी, अंति: समृद्धि सुप्रसादो रे, डाल-४, गाथा - १०१. ग्रं. १३५.
२. पे. नाम. नेमिजिन बारमासो, पृ. ४अ ५अ, संपूर्ण वि. १८८३, ज्येष्ठ शुरू. १५.
मु. कवियण, मा.गु., पद्म, आदि: प्रेम बिलूधी पदमणी अंतिः मिल्या भांमणनै भरनार, गाथा-४४.
३. पे. नाम. निंदापच्चीसी, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
औपदेशिक सज्झायनिंदक, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्म, वि. १८३५, आदि; नवरो माणस निंदक हवे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा - १६ अपूर्ण तक है.)
६७८७४ (+) पार्श्वजिन श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित दे. (२०.५x११,
"
९४२२).
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और
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
पार्श्वजिन सलोको, जोरावरमल पंचोली, रा., पद्य, वि. १८५१, आदि: प्रणमुं परमातम अविचल; अंति: वंछित पावै,
गाथा-५८. ६७८७५. प्रास्ताविक श्लोक, कवित्त व सवैयादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. संकलित सभी पद्यों
का क्रमश: गाथानुक्रम गिना गया है., जैदे., (२२४१२.५, ११-१४४३०-३४). १. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. उदयराज, मा.गु., पद्य, आदि: जहाँ जाउं तहाँ जहर न; अंति: उदै० बाउल नदीया वत्थ, गाथा-६. २. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक, कवित्त व सवैयादि संग्रह, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण.
औपदेशिक श्लोक संग्रह*, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दुग्धककाव्यश्लोकानि; अंति: वसति वै भगवज्जनानां,
श्लोक-८०. ६७८७६. विषापहार स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, दे., (२०x१०.५, ११४२१-२४).
विषापहार स्तोत्र, आ. अचलकीर्ति, पुहि., पद्य, वि. १७१५, आदि: वीस्वनाथ वीमल गुणईस; अंति: अचल साहिब
को नाम, गाथा-४१. ६७८७७. (+) वंकचूल रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८-१(१)=७, प्र.वि. संशोधित., दे., (२०४११, १०x२३-२६).
वंकचूल रास, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., ढाल-३ अपूर्ण से है व ढाल-६ गाथा-१२ तक लिखा है.) ६७८७९. (+) चारमंगल रास, तेरकाठ्या सज्झाय व समाधिपच्चीशी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३,
प्रले. सा. राजकंवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२१४१०, ११४२५-२८). १.पे. नाम. ४ मंगल सज्झाय, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. ४ मंगल रास, म. जेमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: अनंत चोवीशीजिन नमु; अंति: वरत्या छै जयजयकार तो, ढाल-४,
गाथा-३७. २. पे. नाम. तेराकाठ्या सज्झाय, पृ. ३आ-५अ, संपूर्ण. १३ काठिया सज्झाय, मु. आसकरण ऋषि, रा., पद्य, वि. १८६१, आदि: रतनचिंतामण एहवो पामी; अंति:
आसकरण० सहर चोमास जी, गाथा-२१. ३. पे. नाम. समाधिपच्चीसी, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३३, आदि: अपुरब जीव जीणधरम; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण तक है.) ६७८८०. राजप्रश्नीयसूत्र दृष्टांत कथा, संपूर्ण, वि. १९०३, वैशाख शुक्ल, १०, रविवार, मध्यम, पृ. १०, ले.स्थल. नवानगर,
पठ.ऋ. नानचंदजी उकरडा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूलपाठ नहीं है किन्तु ग्रंथाग्र सूचनाएँ दी गयी हैं-सूत्रपाठ-२२२० व अर्थ-४७८७., कुल ग्रं. ७००७, दे., (२३४१२, १४४३४).
राजप्रश्नीयसूत्र-दृष्टांतकथा, मा.गु., गद्य, आदि: हिवे सेवइया नामे; अंति: गट करती छे तेहने नमो. ६७८८१. (+#) रीषभधवल मंगल, अपूर्ण, वि. १८४५, वैशाख शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. १२-६(१,७ से ११)=६, ले.स्थल. रुपनगर,
प्रले. मु. मानविजय (गुरु मु. रविविजय पंडित); गुपि. मु. रविविजय पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२१४१०, १३४३४-३९).
आदिजिन विवाहलो, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: बोलेइ सेवक इम मुदा, ढाल-४४, गाथा-३२४, (पू.वि. गाथा-१२०
अपूर्ण से ११४ अपूर्ण तक व गाथा-२३० अपूर्ण से है.) ६७८८३. (-#) सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८-२(१,७)=६, कुल पे. ८, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल
गयी है, दे., (२२४११.५, १६x२६-३२). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं.
मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पोहोता मोख दुवार, गाथा-११, (पू.वि. मात्र अतिम गाथा है.) २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
गुरुशिक्षा सज्झाय, मु. चोथमल, मा.गु., पद्य, आदि: सांभली सीख गुरां तणी, अंति: चौथमल० आवागमण निवार,
गाथा-८.
३. पे. नाम औपदेशिक पद- वैराग्य, पृ. २अ २आ, संपूर्ण.
मु. रामचंद्र, पुहिं, पद्य, आदि; तुम बात सुणो नी एक, अंतिः राम०पुठ पछै लगे वैरी, गाथा-३.
४. पे नाम, उपदेशपच्चीशी, पृ. ३अ ४अ, संपूर्ण, पे.वि. एक ही लहिये द्वारा लिखित किसी अन्य प्रत का भाग है, लिखावट समान होने से एक साथ रखा होना चाहिये.
""
उपदेशपच्चीसी, मु. रतनचंद, रा. पद्य वि. १८७८ आदि (-); अंति रतनचंद दियो एम उपदेश, गाथा २६, (वि. वस्तुतः गाथा-६ से है.)
५. पे नाम, अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. ४अ -५आ, संपूर्ण.
पंन्या. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मगधाधिप श्रेणिक; अंति: इम बोले मुनि राम, गाथा - ३०.
६. पे. नाम. गुरुमहिमा गहुली, पृ. ५आ, संपूर्ण
गुरुमहिमा लावणी, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: गुरसम जग में कुणा, अंतिः रतन० देख लु बलिहारी, गाथा- ९. ७. पे. नाम. साधुआचार सज्झाय, पृ. ५आ-६आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मु. कुसालचंद ऋषि, मा.गु. पच, आदि; वीर जिणेसर उपदिस्यों अंति (-) (पू. वि. गाथा २५ अपूर्ण तक है.) ८. पे. नाम. उपदेशछतीशी, पृ. ८अ - ८आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
आचारछत्रीसी, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सुणज्यो भवियण प्राणी, गाथा- ३७, ( पू. वि. गाथा - २१ अपूर्ण से है.)
६७८८४. (+) भक्तामर स्तोत्र भाषानुवाद, संपूर्ण वि. १८५६ फाल्गुन कृष्ण, १३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ५. ले. स्थल, नीतोडा, प्र. मु. वल्लभसोभाग (गुरु पं. सुजाणसोभाग); गुपि. पं. सुजाणसोभाग, प्र.ले.पु. सामान्य प्र. वि. संशोधित, जैवे (२२x११.५, १२x२६).
भक्तामर स्तोत्र-पद्यानुवाद, मु. हेमराज, मा.गु., पद्य, आदि : आदि पुरूष आदिस जिन; अंति: भावसु ते पामै सिवखेत,
गाथा- ४८.
६७८८५.
(+) सरस्वत्यादि छंद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५. कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२३४१२, १४x२०-२३).
१. पे. नाम. सरस्वतीदेवी छंद. पू. १अ २अ संपूर्ण.
मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्म, आदिः शशिकरनिकर समुदुज्ज, अंतिः सोहै पुजोनी सरस्वती, दाल-३, गाथा-१५.
२. पे. नाम. शांतिजिन छंद, पृ. २अ - ३आ, संपूर्ण.
शांतिजिन छंद - हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारदमाय नमुं सिरनामी, अंति: गुणसागर ० निचे पावि गाथा २१.
३. पे. नाम. गोडिपार्श्व छंद, पृ. ३आ-५आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. जीवणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पार्श्वनाथ परमपूर; अंति: जीवण० पुरिजे आसा परम, गाथा - १६.
६७८८७. सुरसुंदरीसती चौपाई, अपूर्ण, वि. १८७४, कार्तिक शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ३५-२६ (१ से २६) = ९, ले. स्थल, बिकानेर, प्रले. तनसुख महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२१x१०.५, १४X३२-३५)
"
सुरसुंदरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: (-); अंति: संग आणंद लील उमंगेजी, खंड-४, गाथा - ६१३, (पू. वि. खंड-४ डाल-१ की गाथा- २ अपूर्ण से है., वि. डाल- ४०.)
६७८८८. (+) श्रद्धामंडण, संपूर्ण, वि. १९०७ आश्विन शुक्ल, ९, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १०. प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल में लिखित. वे. (२०x१२.५, २०-२३४३६-३९).
"
"
श्रद्धामंडण, मु. रत्नविजय, पुहिं., प+ग., वि. १९०६, आदि: सर्वज्ञ कुं प्रणमु, अंतिः रत्न० कुमणा न रहै काय, प्रश्न- ११.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
,
६७८८९. (a) पुण्यसार रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जीवे. (२१.५x१०.५. १६४३६-४०).
पुण्यसार रास-पुण्याधिकारे, मु. पुण्यकीर्ति, मा.गु, पद्य, वि. १६६६, आदि: नाभिरायनंदन नमुंः अंतिः तसु परि नवनिधि थाय, ढाल - ९, गाथा - २०२.
६७८९० (+०) सांवप्रद्युम्न प्रबंध, संपूर्ण, वि. १६६६, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३, शनिवार, मध्यम, पृ. २२, ले. स्थल, लाहौर, प्र. वि. संशोधित ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे. (२०x१०.५, १५X३७-४०).
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सांबप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६५९, आदि: श्रीनेमीसर गुणनिलउ, अंति समयसुंदर० सुजस जगीस ए. खंड-२, गाथा ५३५, ग्रं. ८०० (वि. डाल- २२.)
६७८९१. (+) नागश्री चौपाई व साधारणजिन पद, संपूर्ण, वि. १९५५, आश्विन कृष्ण, ७, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २२, कुल पे. २, ले. स्थल सिरसा, प्रले. मु. अमरचंद (गुरु मु. जीवणराम); गुपि. मु. जीवणराम (गुरु मु. खीवराज); अन्य. मु. भगतराम, मु. श्रीचंद, मु. जुहारलाल, मु. नानकचंद, मु. तेजराम, मु. रामचंद ऋषि, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., दे., (२०.५x११, १२x२१-२४).
१. पे. नाम. नागश्री चौपाई. पू. १आ-२२अ संपूर्ण
१. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण
मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदित पाय; अंति: मंगल करय अंबक देवीये, गाथा-४.
"
२. पे. नाम. पर्युषण पर्व स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
मु. गणेश, मा.गु., पद्य, वि. १९४८, आदि: श्रीजिनचरण प्रणामकर, अंति: गनेसी० वार हो भवकजण, गाथा-२३४.
२. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २२अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: तीरथ करता दुरति हरता; अंतिः सेवो थावसे कल्याण ए. गाथा ५.
"
६७८९२. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९१९, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. २१, ले. स्थल. लसकर, प्रले. य. हरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे.,
(२०.५X१०.५, १४x२७).
मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सतरै भेद जिनपूजा रची; अंति: मानविजय० सिद्धाईजी, गाथा-४.
३. पे. नाम, बीजतिथि स्तुति, पृ. १आ. २अ संपूर्ण.
३४१
मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि दिन सकल मनोहर बीज, अंति: कहे पुरो मनोरथ माय, गाथा-४.
४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति- फतेपुरमंडन, मु. कनक कवि, मा.गु., पद्य, आदि: फतेपुरमंडण पासजिणेसर; अंति: कनक० सेव सुखकंद, गाथा-४.
५. पे. नाम. एकादशीतिथि स्तुति, पृ. २अ २आ, संपूर्ण
मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु, पद्य, आदि एकादशी अति रुअडी, अंति: गुणहर्ष० तणा निसदीस,
गाथा-४.
आ. रतनसूरि, मा.गु., पद्य, आदि सद्गुरु प्रसादस्युं अंतिः रत्न० घ्यावे मनरंगे, गाथा- १.
९. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. ३-४अ, संपूर्ण.
आ. रतनसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जिनप्रतिमा जिनसारखी; अंति: रतन० सदा सुहावी, गाथा-४.
६. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. शांतिजिन स्तुति- जावरापुरतीर्धमंडन, मु. पुण्यविजय, मा.गु, पद्य, आदि; संतिकर संतिजिण जावरे, अंतिः ज्ये पुण्य प्रभाविका, गाथा-४.
७. पे नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण.
मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि परव पजूसण पून्ये पाम, अंति: संतोषी गुण गाय जी, गाथा ४.
८. पे. नाम. पंचतीर्थ स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण
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३४२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ४अ, संपूर्ण.
आ. पद्मसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनाभिनंदन जगतवंदन; अंति: पद्मसागर० मंगलकारिणी, गाथा-४. ११. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण..
मा.गु., पद्य, आदि: वर्धमानजिनवर परम; अंति: साहिब संघ मंगलकारणी, गाथा-४. १२. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण.
आ. दयासूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभअजितसंभवअभिनंदन; अंति: दयासूर० सारद सेवी जी, गाथा-४. १३. पे. नाम. पक्षी स्तुति, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. १४. पे. नाम. पंचमीतिथि थूई, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. पंचमीतिथि स्तुति, आ. उदयसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमी संभव ज्ञान; अंति: उदेयसूरि अविचल पथ ए,
गाथा-४. १५. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन-धुलेवामंडन, आ. कीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीधुलेवै सुखकरूं; अंति: कीर्ति० चकेसरि भलीए,
गाथा-४. १६. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. ६आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १५वी, आदि: उजवालडी बीजै चंदा तु; अंति: अहिनिश वीस जिणंद, गाथा-४. १७. पे. नाम. सरस्वतीमाता स्तुति, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण.
आ. दयासूरि, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सणरण सरण करहु जिनदरस; अंति: सूरि दया दरसण सकलं, गाथा-४. १८. पे. नाम. संभवजिन स्तुति, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
आ. दयासूरि, मा.गु., पद्य, आदि: संभव सुखदाय सेवै सूर; अंति: दयासूरि० चराचर नाली, गाथा-४. १९. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति-जावरापुरतीर्थमंडन, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक
बार जुड़ी हुई है.
मु. पुण्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिकर शांतिकर; अंति: टालजे देवी अंबाईका, गाथा-४. २०. पे. नाम. इग्यारस थुइ, पृ. ८अ, संपूर्ण.
एकादशीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रीहंस इग्यारमो; अंति: संगने नित्य मंगलकरी, गाथा-४. २१. पे. नाम. अष्टमीतिथि थुई, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण.
अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टमी अष्ट प्रमाद; अंति: तस विघन दूरे हरे, गाथा-४. ६७८९३. आत्मारामजीकृत पत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. ५, अन्य. मु. दलिचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे.,
(२०.५४११, १४४३०). १.पे. नाम. आत्मारामजी का पत्र, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण.
मु. आत्मारामजी, मा.गु., गद्य, आदि: पेहेला प्रश्नमा २२; अंति: देवावालो कोइ नथी. २. पे. नाम. ढुंढकमत पटावली, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण.
ढुंढकमत पट्टावली वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: गुजरात देशना अमदावाद; अंति: ग्रंथ जोइ लेवो. ३. पे. नाम. तेरापंथी उत्पत्ति वर्णन, पृ. ५अ-८अ, संपूर्ण, वि. १९४५, आषाढ़ शुक्ल, १०, बुधवार, ले.स्थल. खिचंद,
प्रले. मु. लिछमीलाल महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. श्रीचोसाठौजी प्रसादत्. ढुंढिया नवबोल चर्चा, मु. दीपविजय, रा., गद्य, वि. १८७६, आदि: बाबीस टोला रुघनाथजी; अंति: मत पथपणो न
छोड्यो. ४. पे. नाम. ढूंढकमत कवित्त, पृ. ८अ, संपूर्ण, प्र.ले.श्लो. (१२२२) जब लग मेरु इडग है.
ढुंढिया मत सवैया, मु. खेतसी ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: जोगी मैन जती मै न; अंति: खेतसी०ते भया ढुंढाया, गाथा-१. ५. पे. नाम. ढुंढकमत प्रश्नोत्तर संग्रह, पृ. ९अ-१०आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
पुहिं., मा.गु., गद्य, आदि: ओर तुम टीका का भाष्य; अंति: मान्य करतो नथी. ६७८९४. पंचकल्याणक गणनुं, अपूर्ण, वि. १९२७, वैशाख कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ८-२ (१ से २) = ६, ले. स्थल. हरिदूर्ग, प्र. मु. भाग्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, वे. (२०x११, १०x१६-२६).
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२४ जिन पंचकल्याणक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (१) पारंगताय नमः यो करणो (२)श्रीधरमनाथजी मोक्ष, ( पू. वि. श्रावण वद ८ श्रीनमीनाथजी नमः पाठ से है. )
६७८९५ (+) पाने वडीरी चर्चा व पंचपद बंदणा, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १४, कुल पे. २. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. वे. (२२.५x१२, १२४३०-३३).
१. पे. नाम. पानेरी वडी चर्चा, पृ. १अ - १३आ, संपूर्ण.
४०१ बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: जीव रूपी के अरुपी, अंति: कसाई को तिरणो वांछणो. २. पे. नाम. पांचपदा की वंदना, पृ. १३आ-१४आ, संपूर्ण.
पंचपद वंदना, मा.गु., पद्य, आदि: पहेले पद श्रीसीमंदिर, अंति: मत्थएण वंदामि, पद-५.
६७८९६. द्रौपदी रास- ढाल २४ से २७, संपूर्ण, वि. १९३२, भाद्रपद कृष्ण, २, बुधवार, मध्यम, पृ. ५, दे., (२०x११,
१५X३३-४०).
मा.गु., पद्य, आदि: सरसत मण विनमुं जी, अंति: पहूता मुगत मझार, गाथा- १८.
२. पे नाम औपदेशिक शिक्षा, प्र. २आ-३आ, संपूर्ण.
औपदेशिक विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, आदिः आपरी सकत सारुं दान, अंतिः कै भेला जीमीज नहीं.
३४३
द्रौपदीसती रास, मु. सोभ, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सोभ कही विस्तारो रे, प्रतिपूर्ण
६७८९८. आलोयणा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ३, प्र. वि. प्रतिलेखक हेतु जैन भिक्षुलिखित का उल्लेख है., प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृद्धा, वे. (२१४११.५, १५४१७-३१).
१. पे नाम, वृद्धालोयणा, पृ. १अ ३अ, संपूर्ण
श्रावक आलोयणा, रा., गद्य, आदि: अगलित जल व्यापारे; अंति: चउविहारभंगे उपवास १.
२. पे. नाम. आलोयणा ८१ बोल, पू. ३अ ५आ. संपूर्ण.
आलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: देववंदन अकरणे पुरिमढ, अंति: पंचणाणं भांगे उपवास २. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक, पृ. ५आ, संपूर्ण.
प्रास्ताविक लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि पंखिणां काग चंडाल, अंतिः सर्वचंडाल निंदकम्, श्लोक १. ६७८९९. (+४) सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १०-१ (८* )= ९, कुल पे. ८, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२३४११.५. १०x२० ).
१. पे. नाम. खंदकमुनि सज्झाय, पृ. १अ २आ, संपूर्ण.
३. पे नाम, मेतार्यमुनि सज्झाय, पृ. ३आ ४आ, संपूर्ण,
तारजमुनि सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिकतणो रे जवाई, अंति: जिनहर्ष० त्रिकाल जी, गाथा- ९. ४. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ४आ, संपूर्ण.
आध्यात्मिक सवैया, ईसरदास, पुहिं, पद्य, आदि कहां जाणुं दीनानाथ, अंतिः इसर० केसी विध माणो, सवैया- १. ५. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, मु. सुरत ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सुगण जिणंदजीसुं; अंति: ऋष सुरत० नितमेव रे, गाथा-७. ६. पे. नाम. जीव उपदेश सज्झाय, पृ. ५आ-७अ, संपूर्ण.
मानपरिहार सज्झाय, मु. सुरत ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: मान न करज्यौ रे मानव; अंति: सुरत मुक्तसुख लेयिरे,
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गाथा - २०.
७. पे नाम, सोलै स्वप्न विचार स्वाध्याय, पृ. ७अ १०अ संपूर्ण
१६ स्वप्न सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि सरस्वति सामण विनवूं अंति: करीय बोलै कविजिन राय, दाल- २, गाथा १८. ८. पे. नाम. ९६ जिन नाम, पृ. १०आ, अपूर्ण, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है.
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मा.गु., गद्य, आदि: निर्वाणजी सागरजी, अंति: (-), (पू. वि. देवपालजी तक है.)
६७९००. (+#) सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८३९, मध्यम, पृ. ४२ - १ (१) = ४१, कुल पे. ११, ले. स्थल. दीवबंदर,
प्रले. मु. खुशालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है जैदे. (२१x१०, ११४२८).
१. पे. नाम. नवपद सज्झाच, पृ. २अ- ९अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है., वि. १८३९, ले. स्थल. दीवबंदर.
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
मु. महानंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: (-); अंति: महानंद० मंगलमाला जी, ढाल - १०, (पूर्ण, पू. वि. पद - १ गाथा - १ अपूर्ण से है )
२. पे. नाम. सोलसुपननी स्वाध्याय, पृ. ९आ- ११ आ. संपूर्ण.
१६ स्वप्न सज्झाय, मु. महानंद, रा., पद्य, आदि: श्रीश्रुतदेवी रे; अंति: भाखे मुनिमहानंद मुदा, ढाल - २.
३. पे. नाम. चोवीसजिन स्तवन, पृ. ११ आ-१२अ, संपूर्ण.
२४ जिन स्तवन, ग. तेजसी, मा.गु., पद्य, आदि: शासनपति चोवीसनी जे; अंति: तेजसी चौवीसे अभिधान, गाथा-४. ४. पे. नाम. आतमशिक्षा स्वाध्याय, पृ. १२अ- १२आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय - आत्मशिक्षा, मु. महानंद, मा.गु., पद्य, वि. १८१५, आदिः आसणरा रे योगी गहां, अंति: महानंद० गुण गाया रे, गाथा-१५.
५. पे. नाम. सनंतचक्री साधु स्वाध्याय, पृ. १२आ - २१अ, संपूर्ण.
सनत्कुमारचक्रवर्ति रास, मु. महानंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: श्रीश्रुतदेवी शारदा अंतिः सकल पदारथ शाश्चता, ढाल - ९.
६. पे. नाम. आठिमनी स्वाध्याय, पृ. २९अ-२२अ संपूर्ण
अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. महानंद, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: गणधर गौतमस्वामि, अंति: महानंदमुनि गुण गाय,
गाथा - ११.
७. पे. नाम. सीखामणनी सज्झाच, पृ. २२-२३आ, संपूर्ण.
औपदेशिक छंद, पंडित, लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., पद्य, आदि भगवती भारती रती चरण; अंतिः मनि धरज्वो चोल, गाथा - १६.
८. पे नाम, भलेनो अर्थ, पृ. २३आ-३०आ, संपूर्ण.
,
भले का अर्थ- महावीरजिन पाठशालापंडित संवादगर्भित, मु. महानंद, मा.गु., गद्य वि. १८३९, आदि: प्रभु नीशाले बैठा, अंति: ( १ ) परमानंदपणु पामस्यो, (२) महानंद० द्वीपबिंदरे,
९. पे नाम, पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ३० आ-३३आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तोत्र- शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु. सं. पद्य वि. १७१२, आदि जय जय जगनायक, अंतिः मुदा
प्रमत्तात्, गाथा-३२.
१०. पे. नाम. बार भावना, पृ. ३३आ-४२अ, संपूर्ण.
१२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: पास जिणेसर पाय नमी, अंति: भणी जेसलमेर मझार, ढाल - १३, गाथा - १२८, ग्रं. १२५.
११. पे. नाम. प्रतिक्रमण सज्झाय, पृ. ४२अ - ४२आ, संपूर्ण.
संबद्ध, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: करि पडिकमणो भावसुं; अंतिः धर्म० निदान लाल रे, गाथा - ६. ६७९०१. (+) अंजनासती चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, आश्विन शुक्ल, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले. स्थल. लाहोर, प्रले. सा. हीरादेवी
(गुरु सा. राजुलसती, स्थानकवासी); गुपि. सा. राजुलसती (गुरु सा. पार्वती); सा. पार्वती (गुरु आ. जैयणा); आ. जैयणा, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. कर्ता के शिष्य द्वारा लिखित प्रत- ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. दे. (२३x१२,
१७X३५-३८).
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अंजनासुंदरी चौपाई, सा. पार्वतीजी, पुहिं पद्य वि. १९७६, आदि: पंचपरमेष्ठिदेवको वंद, अंति: पार्वती० भाष सुनाई,
ढाल - १६.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
६७९०२. चैत्यवंदनचौवीसी, पंचमी स्तवन व गौतम स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०बी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ३, दे., (२०.५४९.५, १०X३८).
१. पे. नाम. २४ जिन चैत्यवंदन, पृ. १अ ५आ, संपूर्ण
चैत्यवंदनचौवीसी, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम नमुं श्रीआदि; अंति: रुपविजय गुण गाय, चैत्यवंदन- २४,
गाथा - ७५.
२. पे. नाम. पंचमी स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन- लघु उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्य, आदि: पंचमी तप तमे करो रे; अंतिः समयसुंदर० भेद रे. गाथा ५.
३. पे. नाम, गौतमस्वामी स्वाध्याय, पृ. ६अ ६आ, संपूर्ण,
देवानंदामाता सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहिं., पद्य, आदि: जिनवर रूप देखी मन, अंति: पूछै उलट वात मन आंणी, गाथा - १२.
६७९०३. (+) अंजनासुंदरी रास, संपूर्ण, वि. १९०८, भाद्रपद शुक्ल, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ७३, प्र. वि. संशोधित. दे. (२०x१०.५,
७X२०).
३४५
अंजनासुंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदिः सील समोवर को नहीं सी, अंतिः भारज्या जगतनी माततो, डाल- २२, गाधा- १६८. ६७९०४. अवंतीसुकमाल चोढाल्यो, संपूर्ण, वि. १८६९, माघ कृष्ण, ७, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल. भाणमतीनगर, जैदे., (२०x१०.५, १३x२५-३० ).
अवंतिसुकुमाल रास. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंतिः शांतिहरष सुख पावै जी, ढाल - १३, गाथा - १०७.
६७९०५ (+) वीसविहरमानजिन पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. १६-१० (१ से ९,११) ६, प्रले. श्राव लवजी मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, दे., (२०.५X१२, १३X२४-२७).
विहरमान २० जिन पूजा, मु. नित्यविजय, मा.गु., पद्य वि. १९१९, आदि (-); अंति संघने कंठे सोहावा रे, पूजा २०, (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. चंद्राननजिन से हैं.)
६७९०६. महावीर स्तवन व सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, प्रले. श्राव. हरचंद, प्र. ले. पु. सामान्य, दे.,
(२४.५x११, १०x१८-२२).
१. पे. नाम. पंचकल्याणक महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ-८अ, संपूर्ण.
महावीर जिन स्तवन ५ कल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु, पच, वि. १७७३, आदि: शासननायक शिवकरण बंदू अंतिः नामे लही अधिक जगीस ए, ढाल -३, गाथा-५६.
२. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ८- ९अ, संपूर्ण.
मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदिः श्रेयं प्रांनपुरीन, अंतिः तेहिज शिवसुख लेसी रे, गाथा- ९.
६७९०८. (F) कान्हडकाठियारारी ढाल, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ११-२ (१ से २ ) =९, पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२x१२, ११x२५).
कान्हडकठियारा रास - शीयलविशे, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि (-) अंति: (-). (पू.वि. गावा- १७ अपूर्ण से गाथा- ९७ तक है.)
६७९०९. चतुर्विंशतिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८८१, माघ शुक्ल ५, श्रेष्ठ, पृ. २५-१४ (१ से १३, २४) =११, ले. स्थल, जयनगर,
पठ. श्राव. कुंवरपाल चंडाल्या, प्र. ले. पु. सामान्य, जैवे. (२१x१२, ११४२५-३१)
स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: जीवन प्राण आधारो रे,
स्तवन- २४, (पू.वि. स्तवन- २ गाथा-४ अपूर्ण व स्तवन- २२ गाथा- २ अपूर्ण से स्तवन- २३ गाथा-४ तक नहीं है.) ६७९१०. पार्श्वजिन स्तोत्र, पूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ८. पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. दे. (२२.५x११, ११x२३-२६).
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,
"
पार्श्वजिन स्तोत्र - शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., सं., पद्य, वि. १७१२, आदि: जय जय जगनायक, अंति: (-), (पू.वि. अंतिम कलश अपूर्ण तक हैं.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६७९११. (+#) पंचाख्यानवार्तिक सह बालावबोधव कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१x११.५, १९-२१४४२-४५).
पंचाख्यान वार्तिक, सं., पद्य, आदि: कुश्रितं कुप्रनष्ट; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१७ तक है.) पंचाख्यान वार्तिक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: दक्षिणदेश तिहां महिल; अंति: (-). पंचाख्यान वार्तिक-कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: कोइक नगरे श्रीपतीसेठ; अंति: (-), (पू.वि. कथा-१७ अपूर्ण तक
६७९१२. (+) उत्तराध्ययनसूत्र की कथा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२१४११.५, २५४५४-५६). उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: गुरु रो कहो न माने; अंति: (-), (पू.वि. स्त्री मोक्ष वर्णन दृष्टांत अपूर्ण
तक हैं.) ६७९१३. (+#) सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३-१०(१ से ३,५ से ६,१०,१४ से १७)=१३, कुल
पे. १८, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०x१०, १८४४८). १.पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: लखमी० पय अरविंदो जी, गाथा-२९, (पू.वि. गाथा २७ अपूर्ण तक नहीं
२.पे. नाम. क्षमाछत्रीसी, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदरि जीव क्षमागुण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३१ अपूर्ण तक हैं.) ३.पे. नाम. अजितशांति वृद्धस्तवन, पृ. ७अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. ___ अजितशांति स्तवन, संबद्ध, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., पद्य, वि. १५वी, आदि: (-); अंति: सिरिमेरुनंदण उवझाय ए,
गाथा-३२, (पू.वि. गाथा २७ से हैं.) ४. पे. नाम. मेघकुमर चउढालीया, पृ. ७अ-८आ, संपूर्ण. मेघकुमार चौढालिया, क. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: देस मगधमाहे जाणीयइ; अंति: कवि कनक भणइ निसिदीस,
ढाल-४, गाथा-४७. ५. पे. नाम. नववाड सज्झाय, पृ. ९अ-९आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है.
मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनशासन नंदनवन; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६ तक है.) ६. पे. नाम. चतुर्थमंगल गीत, पृ. ११अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. ४ मंगल गीत, उपा. रत्ननिधान, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: रत्ननिधान०जगजयवंत रे, गाथा-९, (पू.वि. गाथा ३
अपूर्ण से हैं.) ७. पे. नाम. अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणीक रयवाडी चढ्यो; अंति: वंदेरे बेकरजोडि, गाथा-९. ८.पे. नाम. १२ भावना, पृ. ११आ-१३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६४६, आदि: आदिसर जिणवर तणा पद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७१ अपूर्ण तक
९.पे. नाम. नंदमणियार चउपई, पृ. १८अ-१८आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. नंदमणियार सज्झाय, ग. चारुचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १५८७, आदि: (-); अंति: मास फागुण मणहरे, गाथा-३९,
(पू.वि. गाथा २२ अपूर्ण से हैं.) १०. पे. नाम. नाकोडापार्श्व स्तवन, पृ. १८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-नाकोडातीर्थ, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: आपणाइ घरि वइठा लील; अंति:
समयसुंदर० गुण जोडो, गाथा-८. ११. पे. नाम. गोडीपार्श्व स्तवन, पृ. १८आ-१९अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
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पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि वाहलेसर मुझ विनती अंति इम जंपइ जिनराज रे,
गाथा-७.
१२. पे नाम, ज्ञानपंचमीतपोविचार गर्भित स्तोत्र, पृ. १९अ २०अ संपूर्ण.
ज्ञानपंचमीपर्व महावीर जिन स्तवन- बृहत् उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगुरुपाय, अंतिः समयसुंदर० प्रसंसीउ, ढाल -३, गाथा-२०.
१३. पे. नाम. धर्मनाथ वृद्धस्तवन, पृ. २०अ २०आ, संपूर्ण
धर्मजिन स्तवन-वृद्ध, वा. गुणवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमु प्रभुरे, अंति: गुण० सुरतरु तोल ए, गाथा -१२. १४. पे. नाम, शीतलजिन स्तवन, पृ. २०आ, संपूर्ण
मु. दानविनय, मा.गु., पद्य, आदि: दसम जिणेसर सेवीयइ; अंति: दानविजय० मनहि उल्लास, गाथा-७.
१५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २०-२१अ, संपूर्ण.
मु. दानविनय, पुहिं, पद्य, आदि: नितप्रति प्रभुकुं अंति: कहइ दानविनय आणंद हो, गाधा-८.
१६. पे नाम, मुनिमालिका स्तवन, पृ. २१अ २३अ, संपूर्ण
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ग. चारित्रसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १६३६, आदि: रिषभ प्रमुख जिन पाय; अंतिः सदा कल्याण कल्याण, गाथा-३६. १७. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २३अ-२३आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- अमीद्वारा मु. जिनराज, मा.गु, पद्य, आदिः परतखि पास अमीझरी भेट; अंतिः जिनराज० चढतड़ दावहरे, गाथा - ९.
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१८. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन जीरावला, पृ. २३आ, संपूर्ण
पार्श्वजिन स्तवन- जीरावला, मा.गु., पद्य, आदि: जीरावलादेव करुं जुहा, अंति: करी सेवक मुझ थापर, गाथा- १०. ६७९१५. (+) गजसुकुमाल चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १३. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२०X११, १७३८-४३).
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गजसुकुमाल चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य वि. १६९९, आदि नेमीसर जिनवरतणा चरण; अंति: (-), (पू.वि. डाल- २१ के दूहा १ अपूर्ण तक है.)
६७९१६. नवकारप्रभाव कथा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ६, दे., (२१x११, १२x२८-४२). १. पे. नाम. नवकारविषये श्रीमतीनी कथा, पृ. १आ - २अ, संपूर्ण.
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श्रीमती कथा - नमस्कार महामंत्र विषये, मा.गु., गद्य, आदि: भरतक्षेत्र पोतनपुरनव, अंति: पाली बेइ मुक्ति गता. २. पे नाम. नवकारविषे शिवकुमार कथा, पृ. २अ- ३अ, संपूर्ण
शिवकुमार कथा - नमस्कार महामंत्र विषये, मा.गु., गद्य, आदि: रत्नपुरनगर यसोभद्र, अंतिः पाप टाली सुगति पोहतो. ३. पे. नाम. नवकारविषड़ जीनदासश्रेष्टि कथा, पृ. ३अ - ४अ, संपूर्ण.
जिनदास श्रावक कथा, मा.गु., गद्य, आदि: क्षितप्रतिष्टित नगर, अंति: पणो पाली सूगत पहूतो.
४. पे. नाम. नवकारविषे चंदपिंगलचोरनो द्रष्टांत, पृ. ४अ ५अ, संपूर्ण.
चंडपिंगलचोर कथा - नवकार विषये, मा.गु., गद्य, आदि: वसंतपुर नगर जितशत्रु, अंति: धर्म पालि सुगत पोहतो. ५. पे. नाम. नवकारविषे हुंडकचोरनो द्रष्टांत, पृ. ५अ- ६अ, संपूर्ण.
हुंडकचोर कथा-नवकार प्रभाव, मा.गु., गद्य, आदि: मथुरानगरी रिपुमरदन, अंति: यक्ष उपशांत थयो.
६. पे. नाम. मांधाताराजा उत्पत्ति द्रष्टांत, पृ. ६अ ७आ, संपूर्ण,
गर्भपरावर्तन विचार कथा अन्यशास्रोक्त, मा.गु., गद्य, आदि: (१) प्रत्यक्ष गुरु राश, (२) विसालानामा नगरी तिहा अंतिः लोकनो हास्य न करवो.
६७९१७. तेरढाल-साधु वंदना, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २० - ५ ( १३ से १७) = १५, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., दे.,
(२०.५X११.५, ८x१८-२६).
साधुवंदना, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: पंच भरत पंच एरवय; अंति: (-), (पू. वि. ढाल - ६ गाथा-५ अपूर्ण से ढाल-८ गाथा- २ अपूर्ण व ढाल - ९ गाथा - ६ अपूर्ण से नहीं है . )
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३४८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६७९१८. अढारपापस्थानक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, दे., (२०.५४१०.५, १२४२७).
१८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पापस्थानक पहिलुकहि; अति:
वाचकजस इम आखे जी, सज्झाय-१८. ६७९१९. (+) पद व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-१(१)=१६, कुल पे. ४०, प्र.वि. संशोधित., जैदे.,
(२१.५४१२, १३४२०-२४). १. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वामानंदन सेवकजन आशा; अंति: तुम हो मेरे आतमराम,
गाथा-३. २.पे. नाम. आदिजिन पद, प्र. २अ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि: तुम्हारे सिर राजत; अंति: विजय प्रभु अति सुघटा, गाथा-३. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण..
उपा. यशोविजयजीगणि, पुहिं., पद्य, आदि: अब में साचो साहिब; अंति: चानो सो जस लीला पावे, गाथा-७. ४. पे. नाम. नेमीजिन पद, प्र. २आ-३अ, संपूर्ण. नेमिजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि: सयन की नयन की वयन; अंति: ज समोरंग रमो रतीयां,
गाथा-२. ५. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. __उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि: या गति कोन हे सखि; अंति: प्रणमे जय या जोरी, गाथा-३. ६. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि: देखत हि चित चोर लीओ; अंति: शिवसुख अमीय पीओ हो, गाथा-३. ७. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., पद्य, आदि: साहिब ध्याया मन मोहन; अंति: ज्योत सुंजोत मिलाया, गाथा-७. ८. पे. नाम. षट्पद गीत, पृ. ४अ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजीगणि, पुहिं., पद्य, आदि: अजब बनी हे जोरी अर्द; अंति: सुजस० रति अनुसरी
है, गाथा-१. ९. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु बल देखी सुरराज; अंति: बहोरन परि हो भोले, गाथा-४. १०. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., पद्य, आदि: प्रभु धरी पीठ वैताल; अंति: तुही वीर शिव साधे, गाथा-४. ११. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: अब मोहि इसी आय बनी; अंति: सुख जस लील घनी,
गाथा-६. १२. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: विमलाचल नितु वंदीये; अंति: लहे ते नर चिर नंदे, गाथा-५. १३. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ५आ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजीगणि, पुहिं., पद्य, आदि: देखो माइ अजबरूप जिन; अंति: जस० त्रिभुवन टीको, गाथा-२. १४. पे. नाम. साधारनजिन स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि: जिन तोरे चरण हि शरण; अंति: जसजिम भव
दुख न सहु, गाथा-३. १५.पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
३४९ नेमराजिमती गीत, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि: बालारूप शाला गले माल; अंति: यान धारा वज्र
दोरीसी, गाथा-२. १६. पे. नाम. औपदेशिक पद, प्र. ६अ-६आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि: जब लगे आवे नही मन; अंति: विलासी प्रगटे
आतमराम, गाथा-६. १७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजीगणि, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन ममता छार परिरी; अंति: चिदानंदघन विचरीरी, गाथा-६. १८. पे. नाम. कर्मयुद्ध सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: धर्म के विलास वास; अंति: ताके पाउ लगे हैं, गाथा-५. १९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. __ सामायिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: चतुर नर सामायिक; अंति: ज्ञानवंत के
पासे, गाथा-८. २०. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: सबल या छाक मोह मदिरा; अंति: जस० मे जाउ बलिहारी,
गाथा-८. २१.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन अब मोहि दर्शन; अंति: सेवक सुजस वखाने, गाथा-६. २२.पे. नाम. औपदेशिक पद-ज्ञानदृष्टि, पृ. ९अ, संपूर्ण. ____ उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: चेतन ज्ञान की दृष्टि; अंति: सुजस० हृदय पखालो, गाथा-६. २३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: कंत विण कहो कुण गति; अंति: सुजसरमे रंग अनुसारी, गाथा-६. २४. पे. नाम. जैनलक्षण सज्झाय, पृ. ९आ-१०आ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: परमगुरु जैन कहो क्यु; अंति: जैनदशा जस ऊंची, गाथा-१०. २५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १०आ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: परम प्रभु सब जन शब्द; अंति: सेवक जस गुण गावे, गाथा-६. २६. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: चेतन जो तुंग्यान; अति: अंतरदृष्टि प्रकासी, गाथा-९. २७. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजीगणि, पुहिं., पद्य, आदि: अजब गति चिदानंद घन; अंति: जस० उनके समरन की, गाथा-५. २८. पे. नाम. औपदेशिक पद-परभावे, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: जिउ लागी रह्यो परभाव; अंति: जस० वेध कर सधाउ मे,
गाथा-४. २९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १२अ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजीगणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मेरे साहिब तुमहि; अंति: दास को दीओ परमानंदा, गाथा-५. ३०. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १२आ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मेरे प्रभुसे प्रगट; अंति: जस कहे इसो तुंवडभाग, गाथा-५. ३१. पे. नाम. आदिजिन स्तवन-वर्षीतप पारणा, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि: पूर्वोराग पसारकर लिइ; अंति: जस० भवकुं जिनभान, गाथा-५. ३२. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: शीतल मोह प्यारा साहि; अंति: जस० तुम नामे भव पारा,
गाथा-६. ३३. पे. नाम. विचार हरियाली, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण.. प्रज्ञापनासूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: कहजो रे पंडित ते; अंति: वाचक जस०
सुख लहेस्ये, गाथा-१४. ३४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १४अ, संपूर्ण, पे.वि. पत्रांक १४आ रिक्त है.
उपा. यशोविजयजीगणि, पुहिं., पद्य, आदि: मन कितही नलागे हेजे; अंति: जस ब्रह्म के तेजे रे, गाथा-३. ३५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १५अ, संपूर्ण..
उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि: चिदानंदघन अविनासी हो; अंति: ब्रह्म अभ्यासी हो, गाथा-६. ३६. पे. नाम. नेमिजिन गीत, पृ. १५अ-१६अ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजीगणि, पहिं., पद्य, आदि: हरि नार टोलें मिली; अंति: पाए सुजस कल्याण लाल, गाथा-९. ३७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-अंतरिक्ष, पृ. १६अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्ष, उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, आदि: सलूणा अंतरिख प्रभु; अंति: कहे भक्तिम
मेटिरे, गाथा-३. ३८. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीनतडि केहजो रे मोर; अंति: जस प्रभु नेम महतने, गाथा-३. ३९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-अंतरिक्ष, पृ. १६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्ष, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जय जय जय जय पास जिण;
अंति: बोले तुम गुनके वृंद, गाथा-६. ४०. पे. नाम. नेमराजीमति गीत, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल बोले सुन हो सय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा
७ अपूर्ण तक लिखा हैं.) ६७९२०. (+) स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-२(७ से ८)=८, कुल पे. १४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२०.५४१०.५,
११४२५). १. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: लबधि० पूरि मनोरथ माय, गाथा-४. २. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: संघ तणा निसदिस,
गाथा-४. ३. पे. नाम. ऋषभ स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रह उठी वंदु ऋषभदेव; अंति: ऋषभदास गुण
गाय, गाथा-४. ४. पे. नाम. महावीर स्तुति, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तुति, मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवनपति ध्यावो; अंति: कुशलने आपो मंगलमाल, गाथा-४. ५. पे. नाम. सेबूंजा स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेजयतीरथ धण; अंति: संघसानिधकारी तहतीक, गाथा-४. ६. पे. नाम. ऋषभ स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तुति, मु. पुण्यरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: नयरी वनिता केरो राय; अंति: रुचि बोलै शिवपुर साथ, गाथा-४. ७. पे. नाम. सेबूंजा स्तुति, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण.
शत्रुजयतीर्थस्तुति, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसे@जय तीरथ; अंति: पाया ऋषभदास गुणगाया, गाथा-४.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
३५१ ८. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ९.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पहेले पद जपीए अरिहंत; अंति: कांतिविजय गुण गाय, गाथा-४. १०. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदित पाय; अंति: करतु अंबिक देवीया, गाथा-४. ११. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है.
शजयतीर्थ स्तुति, पुहि., पद्य, आदि: आगै पूरव वारे निवाणू; अंति: (-), (पू.वि. प्रथम गाथा अपूर्ण तक हैं.) १२. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. ६आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदिः (-); अंति: तपथी कोडि कल्याण जी, गाथा-४, (पू.वि. मात्र अंतिम
गाथा का अंतिम पद है.) १३. पे. नाम. ऋषभ स्तुति, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-सुधर्मदेवलोकभावगर्भित, ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सौधर्म देवलोक
पहिलो; अंति: कांतिविजय गुण गाय, गाथा-४. १४. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण.
मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर अति अलवेसर; अंति: सानिध करजो मायो जी, गाथा-४. ६७९२२. (#) श्रीपालराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४६-३७(१ से ३६,३८)=९, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१२, १३४२८). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-),
(पू.वि. खंड-३ ढाल-३ गाथा-२ अपूर्ण से ढाल-६ के दूहा-२ अपूर्ण तक हैं. बीच का पाठांश नहीं है.) ६७९२३. (+) अजितशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१९.५४१२,७४१४-१५).
अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह,
गाथा-४०. ६७९२४. (+) भगवतीसूत्र के बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२१.५४१०.५, ८x२४-२६). भगवतीसूत्र-बोलसंग्रह *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: भगवतीसुतरमा एक परशन; अंति: (-), (पू.वि. प्रश्न १५८ अपूर्ण
तक हैं. प्रारंभ में ८४ प्रश्न लिख कर फिर से १ से प्रारंभ किया गया है.) ६७९२५. (#) जिनरस, संपूर्ण, वि. १८७१, आषाढ़ शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. वीराया, पठ. क. हिम्मतसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१०, ११४५८). जिनरस, मु. वेणीराम, मा.गु., पद्य, वि. १७९९, आदि: गणपति शारद पयनमी आपू; अंति: वैणी० धरम धजा धिंगे,
गाथा-१९४. ६७९२६. (+#) चंद चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४१०, १२४४०). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धराधव तीम; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२२
अपूर्ण तक है.) ६७९२७. (+#) जंबूद्विपनो संक्षेप विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२२४११.५, ११४२१). लघुसंग्रहणी-खंडाजोयण बोल*संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जंबुद्वीप एक लाख; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., वैताढ्य पर्वत वर्णन अपूर्ण तक लिखा हैं.) ६७९२८. नेमबहुत्तरी स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२१४११, ९४२३-२९).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमिबहुत्तरी स्तवन, मु. मूलचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: प्रथम जिणेसर पाय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६५
अपूर्ण तक है.) ६७९२९. चोविशतीर्थंकरना आंतरा, संपूर्ण, वि. १९३०, फाल्गुन शुक्ल, ६, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले. खुबचंद कल्याणचंद; पठ. श्रावि. हरखबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२१.५४११.५, ११४२२-२६).
२४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, आदि: पहेला श्रीआदीनाथ; अति: उणानुं आतरु जाणवु'. ६७९३०. पच्चक्खाणसूत्र का अर्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (१७.५४११.५, ७४१८).
प्रत्याख्यानसूत्र-बालावबोध*, पुहिं.,मा.गु., गद्य, आदि: १ पाणं २ खादीम; अंति: (-), (पू.वि. एकासणा पच्चक्खाण
विवरण है.) ६७९३१. (+) संवादसतक, संपूर्ण, वि. १८७३, माघ शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. अजमेर, प्र.वि. प्र.ले.मास माहा सुद १६ लिखा है., संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१२११) पोथी प्यारी प्राणथी, जैदे., (१८x११, १३४२५). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय नमी; अंति:
समयसुंदर० प्रसाद रे, ढाल-४. ६७९३२. साधुपाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (१७.५४१२, ९x१६).
साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०; अंति: (-), (पू.वि. "दिवसमाहे सज्झाय च्यार" पाठ तक हैं.)
र्तिक कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. कुचामण, जैदे., (१६४१२. १०x१४-१८).
ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: परमानंद संपदा, श्लोक-८६. ६७९३४. (-) आदिजिन लावणी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८-१(६)=७, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (१७४१२, १०x१७-१९).
आदिजिन छंद-धुलेवा, क. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७५, आदि: आदि करण आदि जग आदि; अंति: (-),
(पू.वि. कलश का अंतिम भाग व बीच का पाठांश नहीं है.) ६७९३५. (-2) रास व स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, ले.स्थल. गाणोरा, प्रले. य. खुस्यालचंद्र (चंद्रगच्छ),
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (१७४११.५, ११४२१). १.पे. नाम. नेमराजिमती रास, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण.
मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सारद पय पणमी करी; अंति: पुन्य० नेमिजिणंद कै, गाथा-६४. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मान, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि: प्रभु श्रीगोडीपासजी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९
अपूर्ण तक है.) ६७९३६. (-) उदयापुर की गजलादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-३(१ से ३)=८, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे.,
(१७४११.५, १०-११४२१-२४). १.पे. नाम. उदयापुर की गजल, पृ. ४अ-९आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: अमरसिंघ जुग जुग अमर, गाथा-८२, (पू.वि. गाथा-३५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नेमजीको बारमासो, पृ. ११अ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासो, मु. हर्षकीर्ति, पुहि., पद्य, आदि: (-); अंति: फेर ल्यावो जादूरायनै, गाथा-२७, (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२४ अपूर्ण से हैं. पत्रांक १० कोरा है.) ३. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. ग. जीतसागर, पुहिं., पद्य, आदि: तोरण आयो हे सखी कोहै; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.)
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३५३
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६ ६७९३७. (+#) भरतबाहुबली छंद व औपदेशिक पद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५२-२४७(१ से २४५,२४७,२५१)=५, कुल
पे. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (१७४१२.५, १७४२२). १.पे. नाम. भरतबाहुबली छंद, पृ. २४६अ-२५२आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: राज० प्रणमति चरण, गाथा-१०३, (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से है व
बीच-बीच का पाठांश नहीं है.) २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २५२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
जैन सामान्यकृति ,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा २ अपूर्ण तक हैं.) ६७९३८. (+) शत्रुजय रास व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(७)=८, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१७४११.५,
१३४२०-२३). १.पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ रास, पृ. १अ-९अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंति: समयसुंदर० आणंद थाय, ढाल-६,
(पू.वि. ढाल-५ गाथा-४ अपूर्ण से ढाल-६ गाथा-६ अपूर्ण तक नहीं है.) २.पे. नाम. महावीरजिन पारj, पृ. ९अ-९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अनंत गुण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८
अपूर्ण तक है.) ६७९३९. (#) रास, श्लोक व संवाद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५७-२९(१ से २६,३८ से ३९,४२)=२८, कुल पे. ३,
प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१७४१२, १०-११४१३-१६). १.पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ रास, पृ. २७अ-४१आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१०७ अपूर्ण तक
हैव बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) २. पे. नाम. सूर्यजीरो सिलोको, पृ. ४३अ-४५आ, संपूर्ण. सूर्यदेव श्लोक, मा.गु., पद्य, आदि: सरसत सामण करोजी; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-९ के
बाद नहीं लिखा है.) ३. पे. नाम. दानसीलरो चोढालियो, पृ. ४५आ-५७आ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: समृद्धि
सुप्रसादोरे, ढाल-४, गाथा-९९. ६७९४०. सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८९६, ज्येष्ठ शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. २९-१(२१)=२८, कुल पे. २७,
ले.स्थल. विकानेर, प्रले. श्राव. सवाइमल (तपागच्छ) (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१६४११.५, १२४१४-१५). १. पे. नाम. रुक्मणीसती सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.
मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विसरतां गामो गाम; अंति: जाइ राजविजे रंगे भणे, गाथा-१२. २. पे. नाम. नवकारवाली स्वाध्याय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नवकारवाली सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कहीये चतुरनर ते कुण; अंति: मोहन बुद्ध सारी रे,
गाथा-५. ३. पे. नाम. राजीमतीरहनेमी सज्झाय, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: काउसग ध्याने मुनि रह; अंति: नीरमल सुंदर देहरे,
गाथा-८. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-परनारीपरिहार, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने कृति के अन्त में अष्टमी
सज्झाय लिखा है.
मु. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीव वारु छु मारा; अंति: भणे जीव आवागमण निवार, गाथा-५. ५. पे. नाम. राजुलनेम सज्झाय, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमराजिमती पद, मु. प्रमाणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: नव भव केरी प्रीत; अंति: प्रमाणसागर० बंधण छोड, गाथा-८. ६.पे. नाम. दशार्णभद्र सज्झाय, पृ. ५आ-८आ, संपूर्ण. ___ मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद बुधदाइ सेवक; अंति: लालविजय निसिदीस, गाथा-९. ७. पे. नाम. बाहूबलऋषि सज्झाय, पृ. ८आ-९आ, संपूर्ण. __ भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राजतणो अतिलोभीया भरथ; अंति:
समयसुंदर० पाया रे, गाथा-७. ८. पे. नाम. प्रसन्नचंद्रऋषि स्वाध्याय, पृ. ९आ-१०आ, संपूर्ण. प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: राज छोडी रलीयामणोरे; अंति: जिणे दीठा एह प्रतिख,
गाथा-७. ९. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय- परदेशी जीव, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-परदेशीजीव, मु. राजसमुद्र, पुहिं., पद्य, आदि: इक काया अरु कामनी; अंति: स्वारथ को संसार,
गाथा-५. १०. पे. नाम. मौनएकादशी सज्झाय, पृ. ११अ-१२अ, संपूर्ण. एकादशीतिथि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: आज एकादसी रे नणदल; अंति: उदयरतन० लीला लहेसे,
गाथा-७. ११. पे. नाम. इलाचीकुमार सज्झाय, पृ. १२अ-१३अ, संपूर्ण..
मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नामेलापूत्र जाणीयै; अंति: लबधविजै गुण गाय, गाथा-९. १२. पे. नाम. ढंढणऋषि सज्झाय, पृ. १३अ-१४अ, संपूर्ण.
मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढणऋषिने वंदणा; अंति: हे जिनहरख त्रिकाल रे, गाथा-९. १३. पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. १४अ-१५आ, संपूर्ण.
मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणक मुनीवर चाल्या; अंति: मोख्यतणो फल लिधोजी, गाथा-९. १४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-ब्रह्मचर्यवाड, पृ. १५आ-१६आ, संपूर्ण.
पं. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: संयोगी पासै रहै ब्रह; अंति: जिनहर्ष० मने आण रे, ढाल-१, गाथा-९. १५. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण.
मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: धारणी मनावे रे मेघ; अंति: प्रीतविजय० भवना पाप, गाथा-५. १६. पे. नाम. जीवप्रतिबोध स्वाध्याय, पृ. १७आ-१८आ, संपूर्ण.
५इंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: काम अंध गजराज अगाज; अंति: लहो सुख सासता, गाथा-६. १७. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १८आ-१९आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, वा. भोजसागर, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभजिनेसर साहिबो आतम; अंति: अहनिशि चाहे सेवा रे,
गाथा-८. १८. पे. नाम. ऋषभदेवजी स्तवन, पृ. १९आ-२०अ, संपूर्ण.
शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानउद्योत, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धाचल वंदोरे; अंति: भक्ति करुं इक तारी, गाथा-६. १९. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. २०अ-२०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है.
मु. विनीतसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७८८, आदि: सह नरनारी मली आवो; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. अंतिम दो पद नहीं
२०. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २२अ-२३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, वि. १७२२, आदि: अमल कमल जिम धवल; अंति: सफल फली
सहु आस, गाथा-९. २१. पे. नाम. मल्लिजिन स्तवन, पृ. २३अ-२३आ, संपूर्ण.
ग. फतेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: मल्लिजिणेसर गाउ रंग; अंति: फतेंद्र० दौलति थाय, गाथा-५.
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२६. पे नाम, सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २७आ- २८ अ, संपूर्ण.
क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो चंदाजी सीमंधर, अंति: पद्मविजय० मन अतिनूरो, गाथा - ७. २७. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २८आ- २९आ, संपूर्ण.
२२. पे. नाम. मेतारजमुनि सज्झाय, पृ. २३-२४आ, संपूर्ण.
ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदिः श्रेणिक राजा तणौ रे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ४ तक लिखा है.)
२३. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. २५अ - २५आ, संपूर्ण.
नवपद स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: जीया चतुर सुजाण नवपद, अंति: नवपद संग पसाय, गाथा-५.
२४. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. २५-२६अ, संपूर्ण.
मु. सुबुद्धि, मा.गु, पद्य, आदि: सुमतिजिणेसर सुमतत: अंति: सुबुधी० अविचल भोग गाथा-५.
२५. पे. नाम. अशरणभावनानी सज्झाय, पृ. २६ अ - २७आ, संपूर्ण.
अशरण भावना सज्झाय, मु. नवल, मा.गु., पद्य, आदि: पल पल छीजे आउंखुं अं; अंति: नवल० सूकृत तरुपेड रे,
गाथा-८.
मु. सुबुद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चितराजा सुण चुपसुं; अंति: सुबुद्धि सदा सुख थाय, गाथा-५. ६७९४१. श्रावकना तीनमनोरथ व ४ शरणा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, दे., (१८x१२, १५x२३-२५).
१. पे. नाम. श्रावकना त्रण मनोरथ, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण.
श्रावक ३ मनोरथ, मा.गु., गद्य, आदि: पहिले मनोरथ श्रमणोपा; अंति: रूप सासतो धानक पामे.
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२. पे नाम. चार सरणा, पृ. २आ-६अ, संपूर्ण,
४ शरणा, मा.गु., गद्य, आदि: (१) णमो अरिहंताणं० चत्ता, (२) पेहलो सरणो श्रीअरिहं; अंति: अक्षय अजरमर होय. ६७९४२. (-) चौपाई व पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १५, कुल पे. ४, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. वे. (१७४१२.५,
८-१०X१५-१८).
१. पे. नाम. चोविस दंडक, पृ. १आ- ९अ, संपूर्ण.
२४ दंडक चौपाई. मु. दोलतराम, मा.गु., पद्य, आदि वंदो धीरसु पीर हर अंति: करन को भाखी दोलतराम गाथा ५७. २. पे. नाम. जल गालन विधि, पृ. ९आ- १४अ, संपूर्ण.
रा., पद्य, आदि: प्रथम वंदि जिनदेव, अंति: हे अशितकय आताप, गाथा - ३०.
६७९४४. अढारनातरा की सज्झाय, पूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ९-१ ( २ ) =८, जैदे. (१६४१२, ११x१५-१८).
३. पे. नाम. मतपक्ष दृष्टांत, पृ. १४-१५अ, संपूर्ण.
षड्दर्शनाष्टक, पुहिं., पद्य, आदि: शिवमत बोध सुवेदमत, अंति: खंड सौ दशा छानवे और, गाथा-८. ४. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १५अ १५आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद- ४ वर्ण, पुहिं., पद्य, आदि: जो निहचे मारग गहे; अंति: सूद्र वरण सो जानि, गाथा-४. ६७९४३. स्नात्रपूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १८, दे. (१६.५x१२, १०X१०-१२ ).
"
स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी आदि चोतिसे अतिसय जुओ वचन; अंतिः देवचंद० सूत्र मझार, ढाल ८.
३५५
יי
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१८ नातरा सज्झाय, रा., पद्य, आदि: (-); अंति: एह सगपण जेहा रे, ढाल-५, (पू.वि. ढाल - २ गाथा-४ अपूर्ण से है . ) ६७९४५, (४) बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०-२ (२५) =८, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (१६.५४१२,
२८x१३-२८).
गम्माशतक यंत्र-भगवतीसूत्र, मा.गु., गद्य, आदि: नारकी सर्व सघात ऊपना; अंति: भंते नेरइए इत्यादि,
(पू. वि. बीच-बीच का पाठांश नहीं है.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६७९४६.(-) सज्झाय, पद व स्तवनादि संग्रह, त्रुटक, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १६६-११२(१ से ५,७ से २६,२९ से ३०,४० से
४७,५८ से ६४,६६ से ८१,९९ से १३०,१३५ से १४४,१४६ से १५१,१५३ से १५८)=५४, कुल पे. २५, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (१६४१२, १२४९-१५). १.पे. नाम. दानशीलतपभावना संवाद, पृ. ६अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-१२ अपूर्ण से ढाल-२ के
दूहा-१ प्रारंभ मात्र तक है.) २. पे. नाम. शीतलनाथ स्तवन, पृ. २७अ-२८अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. शीतलजिन स्तवन-अमरसरपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, रा., पद्य, आदि: (-); अंति: समयसुंदर० जनमन मोह ए,
गाथा-१५, (पू.वि. गाथा-९ तक नहीं है.) ३. पे. नाम. नवकारगुण स्तवन, पृ. २८अ-२८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, मु. पद्मराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनवकार जपो मनरंगे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण
तक है.) ४. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ३१अ-३२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन, मु. सेवक, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: सेवक० आपोजी सेव, गाथा-७, (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण तक
नहीं है.) ५. पे. नाम. साधुवंदना गुणमाला, पृ. ३२आ-३९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. साधुवंदना बडी, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: नमुं अनंत चोवीसी ऋषभ; अंति: (-),
(पू.वि. गाथा-६१ अपूर्ण तक है.) ६. पे. नाम. अइमत्ताऋषि स्तवन, पृ. ४८अ-४९आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
अड्मुत्तामुनि सज्झाय, रा., पद्य, आदि: (-); अंति: बरत्या छै जैजैकार जी, गाथा-९, (पूर्ण, पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) ७. पे. नाम. भक्तामरजीकी भाषा, पृ. ४९आ-५७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. भक्तामर स्तोत्र-पद्यानुवाद, मु. हेमराज, मा.गु., पद्य, आदि: आदि पुरूष आदिस जिन; अंति: (-), (पूर्ण,
पू.वि. गाथा-४४ अपूर्ण तक है.) ८. पे. नाम. पार्श्वजिन १० भव चौपाई, पृ. ६५अ-६५आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.
क. नंदलाल, मा.गु., पद्य, वि. १८७६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३१ अपूर्ण से ३६ अपूर्ण तक है.) ९.पे. नाम. खंधकमुनि चौढालियो, पृ. ८२अ-८५आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. खंधकमुनि चौढालीयो, मु. केवल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: केवल० धार रे मुनीवर, गाथा-४६,
(पू.वि. गाथा-२४ अपूर्ण से है.) १०. पे. नाम. चंदनबालासती सज्झाय, पृ. ८६अ-९३आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: कोसंबीनगरी पधारीया; अंति: सरणा देह हो स्वामी, गाथा-५३. ११. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. ९३आ-९७अ, संपूर्ण.
मु. पुनो, रा., पद्य, आदि: वीरजिणंद समोसर्या जी; अंति: भणेजी ते पामे भवपार, गाथा-२१. १२. पे. नाम. धन्नाजीकी सज्झाय, पृ. ९७अ-९८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. धन्नाकाकंदीसज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवाणी रे धना; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१७
अपूर्ण तक है.) १३. पे. नाम. ज्ञानपचीसी, पृ. १३१अ-१३२अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं.
वैराग्यपच्चीसी, मु. सदारंग, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सदारंग कहै इनथी टलणा, ढाल-२, गाथा-२५,
(पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से है.) १४. पे. नाम. संध्या पद, पृ. १३२आ, संपूर्ण.
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आदिजिन पद-संध्याकाल, मु. जिनदास, पुहिं, पद्य, आदि सांज समे जिन बंदो; अंतिः जिनदास होत आनंदो
गाथा- ३.
१५. पे नाम, भूधरदास वीनती, पृ. १३२आ-१३४अ, संपूर्ण.
साधारणजिन स्तवन, मु. भूधरदास, मा.गु., पद्य, आदिः करुणा लेहो जिनराज, अंति: भूधर० जगपति लाज हमारी,
४ शरणा, मा.गु., गद्य, आदि: च्यार सरना करना कर, अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम गाथा है.)
१९. पे. नाम. मोहनीयकर्मबंध के कारण, पृ. १५२ अ- १५२आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. कर्मबंध भांगा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. भांगाक्रम १६ से २७ तक है.)
२०. पे. नाम. १८ पापस्थानक नाम, पृ. १५९अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मिथ्यादर्शन शल्य, (पू.वि. १४ वें पापस्थानक से हैं.) २१. पे नाम, नवतत्वादि बोल संग्रह, पृ. १५९अ- १६० आ, संपूर्ण.
गाथा-८.
१६. पे नाम, दान सज्झाय, पृ. १३४अ १३४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
दानशीलतपभावना सज्झाय, मु. जयैतादास, मा.गु., पद्य, आदि: दान इक मनै देहि जीव; अंति: (-), (पू. वि. गाथा- ७ अपूर्ण तक है.)
१७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १४५अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: रूप० भवसागर युं तरो, गाथा-४, (पू. वि. मात्र अंतिम गाथा है.) १८. पे. नाम. चार शरणा, पू. १४५अ १४५आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
नवतत्त्व प्रकरण-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्राणातिपात१ मृषावाद; अंति: दरसण विना मोक्ष नही. २२. पे. नाम सिद्ध के १५ भेद, पृ. १६० आ-१६१अ, संपूर्ण.
प्रा., गद्य, आदि: तित्थसिद्धा १ अतित्थ, अंति: अनेकसिद्धा१५.
२३. पे. नाम. ८ बोल संग्रह. पू. १६१ अ १६१ आ. संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: पहली बोलै दया पालैः अंति: सनेह करै सो परउपगारी,
२४. पे. नाम. वादनिवारण बोल संग्रह, पृ. १६९आ, संपूर्ण.
८ बोल- वादनिवारण, पुहिं., गद्य, आदि: राजासु वाद कीजै नही१; अंति: नीचसु वाद कीजै नही.
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गाथा-५४, (पू.वि. गाथा- १५ अपूर्ण से है.)
२. पे. नाम. काव्य संग्रह, पृ. ५आ, संपूर्ण.
२५. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. १६२अ - १६६आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: सेतुंजतीरथ भेटीय, अंति: (-), (पू. वि. डाल- ३ के दूहा- २ तक है.)
६७९४७, () स्तवनादि संग्रह, पूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ९-१ (१) ८, कुल पे ४, प्र. वि. पत्रांक नहीं है अनुमानित पत्रांक दिया है., अशुद्ध पाठ., जैवे. (१६४१२.५, १२-१३१६-२२).
"
१. पे नाम, अंतरीक्ष पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २अ-५अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. ले. स्थल, नाडोलनगर, प्रले. मु. वखता, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले. श्लो. (४२६) यादृशं पुस्तकं दष्टं.
पार्श्वजिन छंद - अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५८५, आदि: (-); अंति: ध्याने माहरौ मन रहै,
मा.गु., सं., पद्य, आदि (-): अंति: (-).
३. पे. नाम, कवित संग्रह, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण.
कवित संग्रह, पुहिं., मा.गु., रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. एकाधिक कृति संग्रह है.)
४. पे. नाम. सात सहेली कवीत, पृ. ८अ ९आ. संपूर्ण.
३५७
७ सहेली संवाद, पुहिं., पद्य, आदि पहिली सखी उठि बोलीयु अंतिः मोसे तीहे कुणसु कमाल, गाथा ७.
"
६७९४८. (+) रास, संवाद व चौक, अपूर्ण, वि. १८६८, श्रेष्ठ, पृ. २७-१४(१ से १४) - १३, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित, जैवे.,
(१६४१२, १५-१६x२२-२३).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. गौत्तमस्वामीजीरो रास, पृ. १५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १८६८, आश्विन शुक्ल, १३, सोमवार. गौतमस्वामीरास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदिः (-); अंति: नवैनिध विलसै तास घरै, गाथा-६७,
(पू.वि. गाथा-५३ अपूर्ण तक नहीं है.) २.पे. नाम. दानशीलतपभावना संवाद, पृ. १५अ-२१अ, संपूर्ण, वि. १८६८, आश्विन शुक्ल, १३, सोमवार,
प्रले. पं. खुस्यालचंद; पठ.मु. रायचंद (गुरु पं.खुस्यालचंद), प्र.ले.पु. सामान्य. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: वृद्धि सुखकारो रे, ढाल-४,
गाथा-१०१. ३. पे. नाम. नेमजीराजीमतीजी चोक, पृ. २१अ-२७आ, संपूर्ण. नेमगोपी संवाद-चौवीसचोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: एक दिवस वसे नेमकुमर; अंति: तस
सीस अमृत गुण गाया, चोक-२४. ६७९४९. जिनपंजर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. जवाहर कायिथो, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१६४११.५, ६४१६-१७).
जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अहँ, अंति: श्रीकमलप्रभाख्यः, श्लोक-२५. ६७९५०. (+) स्तवन व स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९४३, कार्तिक शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ५, पठ. सा. जडाव (गुरु
सा. रुपा); गुपि. सा. रुपा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (१६४१०.५, १२४२०-२१). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण..
पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीचिंतामणि पास; अंति: होय चले शिवधाम में, गाथा-३. २.पे. नाम. भारती स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: राजते श्रीमती देवता; अंति: मेधामाहवति चिरकालम्, श्लोक-९. ३. पे. नाम. भवानी स्तोत्र, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण.
सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बुद्धि विमलकरणी विबु; अंति: सेवी नित नमेवी भगवती, गाथा-९. ४. पे. नाम. शांतिनाथ स्तोत्र, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण.
शांतिजिन स्तोत्र, मु. गुणभद्र, सं., पद्य, आदि: नानाविचित्रं बहुदुख; अंति: गुणभद्र० नित्यम्, श्लोक-९. ५.पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. ५अ, संपूर्ण.
दुहा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: लाख ताडना खलनको करौ; अति: जरत बुझावै आनि, गाथा-२. ६७९५१. पार्श्वजिन स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९६६, वैशाख शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. २२-१२(७ से १८)=१०, कुल पे. ५,
प्र.वि. प्रतिलेखक के द्वारा पत्रांक न लिखे जाने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया है., दे., (१६४११.५, १०x१९-२२). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण, पे.वि. गाथा- २२ के पश्चात अन्य प्रतिलेखक ने कृति को पूरा
किया है.
मु. लब्धिरूचि, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७१२, आदि: जय जय जगनायक पार्श्व; अंति: लब्धि० मुदा प्रणम्य, गाथा-३०. २.पे. नाम. औपदेशिक ज्ञान पद, पृ. ६अ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-ज्ञान, मा.गु., पद्य, आदि: जीम जीम बहुश्रुत; अंति: जोनी चेनय दरीयो, गाथा-१. ३. पे. नाम. सिद्धपद पूजा स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: सिद्ध सहज समाधिरे, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण., मात्र अंतिम गाथा लिखा है.) ४. पे. नाम. श्रावक के २१ गुणनाम, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.
श्रावक २१ गुण वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: लज्यावंत होइ१ दयावंत; अंति: अतीत कहै ते रहित होई, अंक-२१. ५.पे. नाम. पुन्यप्रकाश स्तवन, पृ. १९अ-२२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं., वि. १८६६, वैशाख शुक्ल, २, प्रले. जेठमल,
प्र.ले.पु. सामान्य. पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: (-); अंति: विनयविजये० प्रकाश ए, ढाल-८,
गाथा-१०२, (पू.वि. ढाल-६ से है.)
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___३५९
३५९ ६७९५२. (+) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०-२(१ से २)=२८, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (१५.५४१२,११४१६-१७). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. नमिऊण स्तोत्र गाथा-१६ अपूर्ण से
कल्याणमंदिर श्लोक-३८ अपूर्ण तक है.) ६७९५३. पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (१५.५४१३.५, १४४१३).
पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: पद्मावतीस्तोत्रम्, श्लोक-२५. ६७९५४. (#) पार्श्वनाथस्य सताष्टोत्तरनाम स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. जवाहर कायिथो, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१५.५४११.५, ७४१५-१७).
पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्व पातु वो; अंति: प्राप्नोति स श्रियम्, श्लोक-३३. ६७९५५. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, भक्तामरस्तोत्र व सोलसती सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, कुल पे. ३, जैदे.,
(१६.५४१२,११x१९-२३). १. पे. नाम. पडिकमणासूत्र, पृ. १अ-१३अ, संपूर्ण. देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० इच्छा; अंति: मिच्छामि
दुक्कडम्. २. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १३आ-१९अ, संपूर्ण.
आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ३. पे. नाम. १६ सती सज्झाय, पृ. १९आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: सीतल जिनवर करूं; अंति: इहना गुण समरो निसदिस, गाथा-५. ६७९५६. पार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. जवाहर कायिथो, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१५.५४११.५, ६४१४-१६).
पार्श्वजिन अष्टक-महामंत्रगर्भित, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्देवेंद्रवृंदा; अंति: तस्यैष्टसिद्ध्यैः, श्लोक-८. ६७९५७. ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, प्रले. जवाहर कायिथो, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१६४११.५, ६४१३). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: परमानंद संपदाम, श्लोक-८२,
ग्रं. १५०. ६७९५८. (4) पंचप्रतिक्रमणसूत्र व आदिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २२-४(११ से १४)=१८, कुल पे. २,
प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१७४११,११४२२-२६). १. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १आ-१५अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० इच्छा; अंति: वंदामि जिणे चोविसं,
(पू.वि. पाठ- "आयरणं आयरेणं आयारा ईअ" से "तेसिखणउ तिविहेणति दंडवियाणं" तक नहीं है.) २.पे. नाम. आदिजिन स्तवन-३४ अतिशय गर्भित, पृ. १५आ-२२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
आदिजिन स्तवन-३४ अतिशयगर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: नाभिनरिंदमल्हार; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३५ अपूर्ण तक
६७९५९. ध्यानविचार व पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, जैदे., (१६.५४११, ९-१२४१५-२५). १.पे. नाम. पद्मावती आराधना, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवइ राणी पदमावती; अंति: समय०पापथी छूटइ ततकाल,
ढाल-३, गाथा-३५. २. पे. नाम. चारप्रकार ध्यान विचार, प्र. ५अ-७आ, संपूर्ण.
४ ध्यान विचार, मा.ग., गद्य, आदि: हिवै ध्यान कह छै ४: अंति: विचयधर्म ध्यान जाणवो.
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३६०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६७९६०. (+#) स्तवन, सज्झाय व रास संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ३७-१२(१ से १०,२८ से २९)=२५, कुल पे. ६,
प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (१५.५४११, १२४१८). १.पे. नाम. मुनिमालिका स्तवन, पृ. ११अ-१५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
ग. चारित्रसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १६३६, आदिः (-); अंति: फलै सदा सदा कल्याण, गाथा-३५, (पू.वि. गाथा १२ से है.) २.पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ रास, पृ. १५अ-२५आ, संपूर्ण, प्रले.पं. देवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी; अति: सुणतां आनंद थाय, ढाल-६,
गाथा-११२. ३. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. २६अ-२७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
आदिजिन बृहत्स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमवि सयल जिणंद; अंति: (-),
(पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ४. पे. नाम. श्रावककरणी सज्झाय, पृ. ३०अ-३२अ, संपूर्ण.
मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: जिनहरख०दुखहरणी छे एह, गाथा-२२. ५.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ३२अ-३४आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार एहवु; अंति: पूरि आस्या
मनतणी, गाथा-१८. ६. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ३५अ-३७आ, संपूर्ण.
शत्रुजयतीर्थ बृहत्स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बे करजोडी विनवू जी; अंति: समयसुंदर गुण भणै,
___ गाथा-३१. ६७९६१. (+#) पंचबोलस्तवानादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २०-११(१ से १०,१९)=९, कुल पे. १४,
प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१६४१२, ११-१३४२०-२१). १.पे. नाम. पंचबोलस्तवन, पृ. ११अ-१३अ, संपूर्ण, पठ. श्राव. उत्तमा, प्र.ले.पु. सामान्य. २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणमुं; अंति:
तासु सीस पभणै आणंद. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-रुपये का महत्त्व, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-रुपये का महत्त्व, मा.गु., पद्य, आदि: कोलाहल करे टका सिर; अंति: सोउ भो जोवैटग टगा, गाथा-१. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद-लालच परिहार, पृ. १३आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: आकरे खरेख जाने केइ; अंति: कैसे दीये जातु हे, गाथा-१. ४. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १३आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सवैया-कुसंगति परिहार, मा.गु., पद्य, आदि: डुलत देखि कराडि ते; अंति: कुल वररि कीजै सनसार,
सवैया-१. ५. पे. नाम. सीतासती सज्झाय, पृ. १४अ-१५अ, संपूर्ण.
मु. लक्ष्मीचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मुनिसुवरतस्वामी कुं; अंति: लिखमीचंद० सिरनाम, गाथा-१४. ६. पे. नाम. नेमनाथजीरो सिलोको, पृ. १५अ-१६आ, संपूर्ण.
नेमिजिन सिलोको, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमीसरने सिरनाम; अंति: जिन गावतां हरष अपारो, गाथा-१८. ७. पे. नाम. गौतम गणधर पद, पृ. १६आ, संपूर्ण.. ____ मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठीने प्रणमीये; अंति: मनवंछित दातार, गाथा-२. ८. पे. नाम. कबीर के दोहे, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण.
भजन संग्रह, कबीरदास संत, मा.गु., पद्य, आदि: कबीर सब जग ढुंढीया; अंति: रामकि गए पल कमै छोडे. ९.पे. नाम. वर्षफल, पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण, वि. १७८३, वैशाख कृष्ण, ५, रविवार, प्रले. पंडित. जगन्नाथ,
प्र.ले.पु. सामान्य.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
वर्षफल उदाहरण, मा.गु, गद्य, आदि आखा तीज अढाणवै आम्रम, अंतिः बांध लेसी सुरतांणै १०. पे. नाम. प्रतिक्रमण सज्झाय, पृ. १८आ, संपूर्ण.
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संबद्ध, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: कर पडिकमणुं भावशुं; अंति: धर्म० निदान लाल रे, गाथा-६.
११. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय प्रतिक्रमण, पृ. १८आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है.
प्रतिक्रमण सज्झाय, मु. तेजसिंघ, मा.गु., पद्य, आदि: पंच प्रमाद तजी पडिकम, अंति: (-), (पू. वि. प्रथम गाथा अपूर्ण मात्र है.)
३६१
१२. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २०अ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है.
महावीरजिन तप स्तवन, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंतिः टालि सामी दुख घणा, गाथा-९, (पू. वि. अंतिम गाथा अपूर्ण मात्र है.)
१३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २०अ, संपूर्ण.
मु. जिनराज, पुहिं., पद्य, आदि: कहा रे अग्यानी जीव; अंति: इतनांकौ सेज मीटावो, गाथा-३.
१४. पे, नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. २०अ २०आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मा.गु., पद्य, आदिः उंचा मंदिर बोहत धन, अंति: (-). (पू. वि. गाथा १० तक है. )
६७९६२. (#) गौतमस्वामी रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (१७४१२, ११-१३४२०-२१).
,
गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल, अंति: (-), ( पू. वि. गाथा - ३५ अपूर्ण तक है.)
६७९६३. स्तंभनपार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १७७४ माघ शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. २९-२४ (१ से २४ ) =५, ले. स्थल. रीणी,
प्रले. मु. ज्ञानभद्र (गुरुग. यशशील); गुपि. ग. यशशील (गुरु मु. ज्ञानसागर); मु. ज्ञानसागर (गुरु उपा. क्षमालाभ); उपा. क्षमालाभ (गुरुमु. अमृतलाभ) पठ. श्राव. विजयचंद रायचंद शाह राज्ये आ. जिनरत्नसूरि (गुरु आ जिनराजसूरि, खरतरगच्छ). प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.ले.श्लो. (७९३) तैलाद्रक्षेज्जलाद्रक्षेद्, जैदे., (१७X११, ११x२५).
जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख, अंति: अभय
,
विन्निवह आणदिव गाथा- ३०, संपूर्ण.
६७९६४ (१) एकीभाव स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११५ ११० (१ से ११०) ५. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे.,
(१७.५X१०.५, ७X२०).
एकीभाव स्तोत्र - पद्यानुवाद, जै. क. भूधरदास, मा.गु., पद्य, भूधरदास, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंतिः भूधर करी कंठ सुखकार, गाथा-२८, (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गाथा - ११ अपूर्ण से है.)
६७९६५. (१) समयक्त्व ६७ भेदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १८, कुल पे ६ प्र. वि. पत्रांक नहीं है अनुमानित दिया है..
अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (१६४११.५, ७-१०x१५-१७).
१. पे. नाम. सम्यक्त्वना ६७ भेद, पृ. १आ-८अ, संपूर्ण.
६७ सम्यक्त्व भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: वली सम्यक्तनोरक्त; अंति: मार्गनो अनुकूल छे.
२. पे. नाम. नोकारवाली सज्झाय, पृ. ८अ - ९अ, संपूर्ण.
नवकारवाली सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु, पद्य, आदि: सरसवचन सूरस्वती रे अंतिः कहे० उठी गुणीये सबेर
गाथा - १०.
३. पे. नाम, उवसग्गहरं स्तवन, पृ. ९आ-१०अ संपूर्ण,
उवसग्गाहर स्तोत्र - गाथा ५, आ. भद्रवाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि उवसग्गहरं पास पास अंतिः भवे भवे पास जिणचंद,
गाथा-५.
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४. पे. नाम. जयतिहुअणस्तोत्र- भंडार गाथा, पृ. १० आ- ११अ संपूर्ण.
जयतिहुअण स्तोत्र - भंडार गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः परमेसर सिरिपासनाह; अंति: चंद मह वंछिअ पूरय, गाथा-२. ५. पे. नाम, बंभणवाइजिन स्तवन, पृ. १९आ-१८अ संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
महावीरजिन स्तवन- बामणवाडजी, मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: समरवि समरवि सारदाऐ; अंतिः श्रीकमलकलससूरीसर सीस, गाथा २१.
६. पे. नाम औपदेशिक पद. पू. १८अ १८आ, संपूर्ण.
आध्यात्मिक पद, मु. हर्षचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अलख अगोचर आत्मा घट; अंतिः णीया सब जाने ग्यांनी, गाथा- ७. ६७९६७. गौतमस्वामी बूझ आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४, कुल पे ९ जैये. (१६४१२, १२-१७४२४)१. पे. नाम. गौतमस्वामीजी बुज, पृ. १अ २अ, संपूर्ण.
""
गौतमगणधर स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: वांदी करी सीस नमाओ; अंति: रास रची आतम काम हो, गाथा - ३२. २. पे. नाम. सोल स्वप्न सज्झाय, पृ. २अ - ५आ, संपूर्ण.
१६ स्वप्न सज्झाय, मा.गु, पद्य, आदि: पाडलिपुर नामे नगर, अंतिः नर भव लाहौ लेसी रे, गाथा- ४८.
३. पे. नाम. आबुतीर्थ स्तवन, पू. ६अ ९अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन-अर्बुदगिरितीर्थ मंडन, वा. प्रेमचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७७९, आदि: आबु शिखर सोहामणो जिह, अंतिः तो आदिजिणंद रे लाल, गाथा-३४.
४. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ९अ ११अ, संपूर्ण
औपदेशिक सज्झाय- श्रावकाचार, मा.गु., पद्य, आदि: सप्तगस्राय तबण चौत, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा ३८ अपूर्ण तक लिखा है.)
५. पे. नाम. नेमराजमती बारमासो, पृ. ११ आ-१२अ. संपूर्ण.
नेमराजीमती बारमासा, मा.गु., पद्य, आदि: मीगसरयो भल आवीयो; अंति: संदेशो भोला नेम ने, गाथा- १२.
६. पे नाम, अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. १२अ १३आ, संपूर्ण.
पंन्या. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मगधाधिप श्रेणिक, अंति: छंड्यो मिथ्याखार कै, गाथा- १८. ७. पे. नाम, अनागतचोवीसी नाम, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण
२४ जिन नाम - अनागत, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपद्मनाथ श्रेणिक, अंतिः स्वातबूधनो जीव
८. पे नाम, बीस विहरमान नाम, पृ. १४अ, संपूर्ण, पे. वि. १ से ६ वीस विहरमान के नाम पृष्ठ १३आ पर लिखा है. २० विहरमानजिन नाम, मा.गु, गद्य, आदि: सीमंधर १ युगमंधर, अंति: १९ अजितवीर्य २०.
९. पे. नाम. इकाई पहाड़ा, पृ. १४आ, संपूर्ण.
पहाडा, मा.गु, गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
६७९६८. (+) नवपद पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५८-३१ (१ से ३१ ) = २७, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (१५.५X११, ८x१६). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंतिः जस०कोई नहीं अधूरी रे, पूजा-९, संपूर्ण.
६७९६९. (+) अष्टप्रकारीपूजा विधि, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६-१ (२)=५, पू.वि. बीच के पत्र है., प्र. वि. संशोधित, जैदे., (१३.५x१२, १२x१७).
८ प्रकारी पूजा विधि, मु. ज्ञानसागर - शिष्य, सं., मा.गु., गद्य, वि. १७४३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. जल पूजा पूर्ण रचना प्रशस्ति पाठ अपूर्ण तक है.)
६७९७० स्थूलिभद्र नवरसो, अरणिकमुनि सज्झाय व महावीरजिन स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४-२ (८ से ९) = १२, कुलपे. ४, प्र. वि. प्रतिलेखक के द्वारा पत्रांक न लिखा होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है, जैवे. (१५x१२, १२x१५).
१. पे. नाम. स्थूलभद्र नवरसो, पृ. १अ - ७आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति दायक सदा, अंति: (-), (पू. वि. ढाल - ६, गाथा - ७ अपूर्ण तक है.)
२. पे. नाम. अरणिकमुनिवर सज्झाय, पृ. १०अ १२अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
३६३ अरणिकमुनि सज्झाय, मु. कीर्तिसोम, मा.गु., पद्य, आदि: एक दिन अरणक जाण; अंति: कीर्तिसूरि० कहै ए,
गाथा-२३. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १२अ-१३आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-छमासीतप वर्णनगर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणि मत द्यो; अंति: टालो सामी दुख
घणा, गाथा-१५. ४. पे. नाम. मूढशिक्षा अष्टपदी, पृ. १४अ, पूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
पुहिं., पद्य, आदि: येसें क्युं प्रभु पा; अंति: (-), गाथा-८, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ६ तक लिखा है.) ६७९७१. (+#) श्रावककरणी सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. ११, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का
अंश खंडित है, जैदे., (१३.५४१२.५, १५४१५-२२). १.पे. नाम. श्रावककरणी सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण.
मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: करणी दुखहरणी छे एह, गाथा-२३. २. पे. नाम. नवकार महामंत्र सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. प्रभुसुंदर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरूं; अंति: प्रभु सुरवर शीस
रसाल, गाथा-७. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ३आ-५अ, संपूर्ण. महावीरजिन विनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी वीनती; अंति:
थुण्यो त्रिभुवन तिलो, गाथा-२०. ४. पे. नाम. तीर्थावली स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सेजेजे ऋषभ समोसर; अंति: समयसुंदर कहै
एम, गाथा-१६. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन लावणी, प्र. ६अ-६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धितीर्थ, मु. चंद्रभाण, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: श्रीजिण महाराज बहोत; अंति: पंजे
शिर पर धारै, गाथा-७. ६. पे. नाम. नेमराजिमती लावणी, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण.
मु. चतुरकुशल, पुहि., पद्य, आदि: नेमनाथ मुझ अरज; अंति: चतुरकुसल फिरणै की, गाथा-१०. ७. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. ८अ, संपूर्ण.
मु. चतुरकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: चालो वीमलगीर जाइये भ; अंति: र भेट्या भरथाल वधाइय, गाथा-४. ८.पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: कैसे कैसे अवसरमें; अंति: (अपठनीय), गाथा-४. ९. पे. नाम. औपदेशिकपद संग्रह, पृ. ८-९अ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह **, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय). १०.पे. नाम. शत्रंजयतीर्थस्तवन, प. ९अ-१०अ.संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (अपठनीय); अंति: कहेतां नावे पार, गाथा-५. ११. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १०अ, संपूर्ण.
मु. कांतिविजयजी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीरे सिद्धाचल; अंति: सत्रुजागीर गायो, गाथा-५. ६७९७२. अष्टमीस्तवनादि संग्रह, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(५)=५, कुल पे. ३, दे., (१४.५४१२, ९x१५). १.पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तवन, पृ. १अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. लावण्यसौभाग्य, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: पंचतिरथ प्रणमुंसदा; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ गाथा-२ अपूर्ण
तक है.) २. पे. नाम. रोहिणीतप चैत्यवंदन, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है.
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३६४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पंन्या. भक्तिविजय, गु., पद्य, आदि: (-); अंति: धान थी अनुभव सुख थाय, गाथा-६, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) ३. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तवन, मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: नवारे नागरमा भेटीइ; अंति: रस उपजे समता रस पुरे, गाथा-३. ६७९७३. (#) श्राववकअतिचारादि विधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(१)-८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१५४१०, १८-१९४२२-२३).
श्रावक पाक्षिकादि अतिचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मृषावाद से आठ मद नाम अपूर्ण तक है.) ६७९७४. (+) श्रावकपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. * पंक्ति अक्षर अनियमित., संशोधित., जैदे., (१५४१२.५, १८-१९x१५-१८).
श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: विशेषतः श्रावक तणइ; अंति: मिच्छामि दुक्कड. ६७९७५. (+) स्नात्रपूजा विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ.७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१५४१३, १९४१८-२२).
स्नात्रपूजा सविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पूर्व पंचतीरथी; अंति: पयाहिणं दितो. ६७९७६. स्नात्रपूजा विधिसहित, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-१(१)=१२, जैदे., (१४.५४११.५, ९-११४१५-१७).
स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: देवचंद० सूत्र मझार, ढाल-८, गाथा-६०,
(पू.वि. ढाल-३ अपूर्ण से है.) ६७९७७. नेमजिन लावणी, अपूर्ण, वि. १९२३, श्रावण कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. ९-२(१ से २)=७, ले.स्थल. भोपाल, प्रले. मु. इंद्रहस,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक के द्वारा पत्रांकन लिखा होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., दे., (१४.५४११, ९x१३-१४).
नेमिजिन लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: जीणदास सूणौ जीनवर रे, गाथा-४, (पू.वि. मात्र अंतिम
__ पत्र है., गाथा-२ अपूर्ण से है.) ६७९७८. शांतिजिन स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. १४, प्र.वि. प्रतिलेखक के द्वारा पत्रांकन लिखा होने
के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., जैदे., (१४४१२, १३-१६४१६-१८). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण.
मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिरि श्रुतदेवी सारदा; अंति: सेवक धीरविजय गुणगाय, गाथा-५१. २. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ४आ, संपूर्ण.
मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शत्रुजामंडण आदि; अंति: धीरविजय गुणगाय, गाथा-४. ३. पे. नाम. स्थूलिभद्र सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. स्थूलिभद्र नवरसो, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति दायक सदा; अंति:
(-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-१ अपूर्ण तक है.) । ४. पे. नाम. विमलजिन स्तवन, प्र. ६अ-६आ, संपूर्ण. मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विमलजीरो सरसेवीइं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-७
तक लिखा है.) ५.पे. नाम. गुरुगुण ३६ सज्झाय, पृ. ७अ, संपूर्ण. ३६ गुरुगुण सज्झाय, मु. भावविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति० गुरुनारे; अंति: भावविजय जयकारो जी,
गाथा-७. ६. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. ८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं.
मु. प्रीतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: प्रीतविजय० भवनो पार, गाथा-५, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से लिखा है.) ७. पे. नाम. विजयतिलकसूरिस्तवन, पृ. ८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मा.गु., पद्य, आदि: समरी सरति सहिगुरु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ८. पे. नाम. चक्षुरोग निदान औषध, पृ. ९अ, संपूर्ण.
औषध संग्रह , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
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३६५ ९.पे. नाम. जैनधार्मिक गाथा संग्रह, पृ. ९अ, संपूर्ण.
जैनगाथा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). १०. पे. नाम. जिनबल विचार, पृ. ९अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: सुणो वीर्य बोलु; अंति: अग्र को जिन ते तो, गाथा-१. ११. पे. नाम. अनंतनाथ स्तवन, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण, पे.वि. गाथा-४ अपूर्ण से पृष्ठ-१०आ पर नेमराजिमती लेख के पश्चात
लिखा गया है.
अनंतजिन स्तवन, मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आवो सहिली भेंटवा०; अंति: तणो धीरविजय सुखकरे, गाथा-५. १२. पे. नाम. नेमराजिमती लेख, पृ. १०अ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनपद पंकज नमी; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम
गाथा लिखा है.) १३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, पृ. १०आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरमंडण, मु. विद्याचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १६६०, आदि: सरसति मात पसाउले एतो; अंति: (-),
(अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा लिखा है.) १४. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १०आ, संपूर्ण.
औषध आदिसंग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६७९७९. (+-#) कर्मग्रंथादि विविधबोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २७-१(१)=२६, पू.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. पत्रांक
नहीं है व कृति अपूर्ण है, अतः अनुमानित पत्रांक लिखा गया है., संशोधित-अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१४.५४१२.५, १९-२१४१६-२२).
__ बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६७९८०. विधि व काव्यादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५६-३२(१ से ३,१५,१७ से ४४)=२४, कुल पे. १७, जैदे.,
(१२.५४१२, १०x१०-११). १.पे. नाम. सामायिक लेवा-पारवानीविधि, पृ. ४अ-१४आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र हैं.
मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. लोगस्ससूत्र से सामाइयसूत्र अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. जैनकाव्य संग्रह , पृ. १६अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. ___मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मात्र अंतिम पद है.) ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १६अ-१६आ, पूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मु. नवल, पुहि., पद्य, आदि: हो पुदगलदा क्या विस; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पद नहीं है.) ४. पे. नाम. गौतमस्वामी सज्झाय, पृ. ४५अ-४५आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदिः (-); अंति: तूठां संपति कोडि, गाथा-९,
(पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) ५. पे. नाम. माणिभद्रवीर छंद, पृ. ४५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मु. उदयकुसल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन द्यो सरसती, अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम गाथा अपूर्ण तक है.) ६.पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ४६अ-४६आ, संपूर्ण. साधारणजिन पद-औपदेशिक, मु. आनंदविजय, पुहिं., पद्य, आदि: सुन मेंडा श्रीजिनराज; अंति: आनंदविजै हित
गाईयां, गाथा-५. ७.पे. नाम. जिनवाणी पद, पृ. ४६-४७आ, संपूर्ण.
मु. आनंदविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वानीये मन मोह्यो रे; अंति: बेधक हुय मन पोयो रे, गाथा-४. ८. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ४८अ-४८आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: अब मोरै मन भाईयां, गाथा-४. ९. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ४८आ-४९अ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. आनंदविजय, पुहिं., पद्य, आदि: आज घडी जिन गाईया; अंति: आनंदविजै रस दाईया, गाथा-४. १०. पे. नाम. ऋषभाननजिन पद, पृ. ४९अ-५०अ, संपूर्ण.
मु. आनंदविजय, पुहि., पद्य, आदि: लगनलागी जिन से अवर; अंति: आनंदविजय चित सरसें, गाथा-५. ११. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ५०अ-५०आ, संपूर्ण.
मु. आनंदविजय, पुहिं., पद्य, आदि: जिनंद मेरो मोहना सूर; अंति: आनंदविजय० केरे उरसै, गाथा-४. १२. पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. ५०आ-५२अ, संपूर्ण.
मु. आनंद, पुहिं., पद्य, वि. १८३८, आदि: देखणनु चालो जिनजी; अंति: आनंद जय दातार, गाथा-८. १३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ५२अ-५३अ, संपूर्ण.
मु. आनंदविजय, पुहिं., पद्य, आदि: देखी सूरत पास जिनंद; अंति: वंदन विधयी पासकी, गाथा-५. १४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ५३अ-५३आ, संपूर्ण.
मु. उत्तमविजय, पुहिं., पद्य, आदि: मेरो दिल बस कीयो जिन; अंति: उत्तमवि० चित हर जाय, गाथा-३. १५. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ५३आ-५४आ, संपूर्ण.
मु. आनंदविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्यारो मेरो पास जिन; अंति: सरण तेरे आनंद कहत ए, गाथा-४. १६. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ५४आ-५५आ, संपूर्ण.
मु. आनंदविजय, पुहिं., पद्य, आदि: पासजिनेसर प्यारा हो; अंति: आनंदजय पद वाला हो, गाथा-६. १७. पे. नाम. जैनकाव्य संग्रह, पृ. ५५आ-५६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैन सामान्यकृति प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: (-), (पू.वि. गाथा ५ अपूर्ण तक है.,
वि. आदिवाक्य अवाच्य है.) ६७९८१. (+) पद्मावतीस्तोत्र एवं तीर्थवंदना चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष
पाठ-संशोधित., जैदे., (१३.५४१२, १२४१८). १. पे. नाम. पद्मावतीदेवी स्तव, पृ. १आ-७अ, संपूर्ण.
__ सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: क्षमस्व परमेश्वरी, श्लोक-२८. २.पे. नाम. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, पृ. ७अ-८आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: सद्देवदेवलोके रविशशि; अंति: दुर्गमध्ये त्रिलोके, श्लोक-१०. ६७९८२. पाशाकेवली, दशदिग्पालआरति वऋषभजिनस्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८१९, श्रेष्ठ, पृ. ९-३(१ से ३)=६, कुल पे. ३, जैदे.,
(१२.५४११.५, ११४१२-१५). १.पे. नाम. पाशाकेवली, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है.
मु. गर्गऋषि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवती; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-२ अपूर्ण तक लिखा
२. पे. नाम. दशदिग्पाल आरती, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण.
१० दिक्पाल आरती, मा.गु., पद्य, आदि: करध्वजानु धरता दुख; अंति: रे तुम छो साक्षाते, गाथा-१०. ३. पे. नाम. आदिजिन छंद, पृ. ६आ-९अ, संपूर्ण, वि. १८१९, श्रावण.
आदिजिन छंद-धुलेवामंडन, आ. गुणसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रमोदरंगकारणी कला; अंति: षडदेस आदिदेव ध्याइए,
गाथा-८.
६७९८३. (#) शंखेश्वर पार्श्वनाथ स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४, कुल पे. ६, प्र.वि. कृति में रिक्त स्थान पर
जन्मकुंडली आदि व्यक्तिगत बातें लिखी गई है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१३.५४१२, ७-१४४१५-१६). १. पे. नाम. दान सज्झाय, पृ. १अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मु. दीप्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगोयम गणधा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. भ्रमर स्वभाव दोहा, पृ. १अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
दोहा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अति: (-).
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३. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ - ५आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरमंडण, मु. विद्याचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १६६०, आदि: सरसति मात पसाउले एतो; अंतिः विद्याचंद० दिसि तपड़, गाथा-२७.
४. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेने आविने मुझने मोह, अंति (-). (पू. वि. गाथा- २ अपूर्ण तक है.)
५. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ६ आ-७अ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवाल हो; अंति: जसविजे० पोष लाल रे,
गाथा-५.
६. पे. नाम महावीरजिन निसाणी-बामणवाडजीतीर्थ, पृ. ७आ-१४आ, संपूर्ण.
मु. हर्षमाणिक्य, मा.गु., पद्य, आदि: माता सरसत्ती सेवग, अंति: (-), गाथा-३७, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २९ तक लिखा है . )
६७९८४. (+) अतीत तीर्थंकर, वीस विहरमान, २४ दंडक नाम व शत्रुंजय उद्धार रासादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४२-२६(१ से २६)=१६, कुल पे. ४, प्रले. पं. विनितविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( १२.५X१२, १५-१७X११-१४).
१. पे. नाम. उस्सर्पिणीना तीर्थंकरनाम, पृ. २७अ, संपूर्ण.
अतीतचौवीसी जिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: केवलज्ञानी निर्वाणी; अंति: संप्रतिनाथ २४.
२. पे. नाम. वीस विहरमान व ४ शाश्वततीर्थंक नाम, पृ. २७अ, संपूर्ण.
"
२० विहरमानजिन नाम, मा.गु. गद्य, आदि: सीमंधर १ युगमंधर अंति: १९ अजितवीर्य २० (वि. अंत में ४ शास्वत तीर्थंकर के नाम भी दिये गए है.)
३. पे. नाम. चोवीस दंडक नाम, पृ. २७आ, संपूर्ण.
२४ दंडक बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: सात नारकी याने, अंति: ए संघयण नाम जाणवा.
४. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास, पृ. २८अ - ४२आ, संपूर्ण.
मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: नयसुंदर० जय करूं, ढाल - १२, गाथा- ११८, ग्रं. १७०.
६७९८५ (+) अजापुत्र चौपाई, संपूर्ण, वि. १८७६, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ९५, पठ. श्राव. लालचंद (गुरु पं. देवविजय गणि); गुपि. पं. देवविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., प्र.ले. श्लो. (८५६) जाद्रिसं पुस्तकं द्रीष्टा, जैदे., (२३x१२, ११x२३-२६).
अजापुत्र चौपाई, मु. सुमतिप्रभ, मा.गु., पद्य वि. १८२२, आदिः परमज्योति त्रिभुवनपत, अंतिः लमाल भविजन सांभलो ए, ढाल - ४८.
६७९८६. (+०) आगमसारोद्धार, संपूर्ण वि. १८९९, फाल्गुन शुक्ल, ८, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ७६, ले. स्थल. नागपुर, प्रले. मु. भेरचंद ऋषि (नागोरीलंकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे. (२४.५४१२, १२४३३). आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: तिहां प्रथम जीव; अंति: तिथि सफल फली मन आस. ६७९८७. हंसराजवच्छराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १८६९, माघ शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ७० - ३ (६ से ८) = ६७, ले. स्थल. भागनगर, जैदे., (२३.५x१२.५, ११x२३).
हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु, पद्य, वि. १६८०, आदि आदिसर आये करी चोवीसे, अंति जिनोदयसूरि० अनै वछराज, खंड-४, गाथा- ९०५, (पू. वि. ढाल - ५ गाथा- ७ अपूर्ण से ढाल -७ गाथा-११ तक नहीं है., वि. दाल- ४८)
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६७९८८. (+) मानतुंगमानवती चौपाई, अपूर्ण, वि. १८३९, माघ कृष्ण, २, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ५४-८ (१ से ८) =४६,
ले. स्थल. प्रतापगढ़, प्रले. पं. ऋषभविजय गणि पठ. सा. खुशाला आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२३४११, १३३०-३६).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: (-); अंति:
होजो घरघर मंगलमाल हे, ढाल-४७, गाथा-१०१५, (पू.वि. ढाल-८, गाथा-१० अपूर्ण से है.) ६७९८९. (#) द्रोपदी चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४११, १२४३५). द्रौपदीसती चौपाई, वा. कनककीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६९३, आदि: पुरिसादाणी पासजिण; अंति: (-),
(पू.वि. ढाल-३८ तक है.) ६७९९०. (+) जंबूगुणरत्नमाल, संपूर्ण, वि. १९७६, आश्विन शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ३३, ले.स्थल. नागोर, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४१२.५, १४४४८). जंबूस्वामी चरित्र, श्राव. आणंद जेठमल, मा.गु., पद्य, वि. १९२०, आदि: शासनपत वृधमांननो भजन; अंति: सेवो
थाय छे कल्याण ए, ढाल-३५. ६७९९१. (+#) पद्मावती सहस्रनाम स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी शुक्ल, १२, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३५, कुल पे. ३०,
ले.स्थल. जालणीपुर, प्रले. मु. नेमसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१२, १३४३८). १. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, प्र. १आ-२अ, संपूर्ण.
साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दर्शनं देव देवस्य; अंति: हन्यते जिन वंदनात्, गाथा-१२. २. पे. नाम. पद्मावतीसहस्रनाम स्तवन, पृ. २अ-८आ, संपूर्ण.
पद्मावतीसहस्रनाम स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य परया भक्त्या; अंति: प्रीतिप्रपालनै किम्, शतक-१०, श्लोक-१३५. ३. पे. नाम. पद्मावती जपमाला, पृ. ८आ-१०आ, संपूर्ण.
पद्मावती मंत्रजापविधिसहित, सं., प+ग., आदि: ॐ ह्रीं नमो भगवती; अंति: मनवंछित पूरणये. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन होरी, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: रंग मच्यो जिनद्वार; अंति: ज्ञानपायो सुखगेह, गाथा-५. ५.पे. नाम. जैनधार्मिक श्लोक संग्रह, पृ. ११अ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह **, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उडगण परिवारो नायको; अंति: तंगोयम केरिसं साहू, श्लोक-५. ६.पे. नाम. बुद्धि रास, पृ. ११अ-१४अ, संपूर्ण.
आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पणमवि देवि अंबाई; अंति: सालिभद्रष्टलय कलेस तो, गाथा-६५. ७. पे. नाम. पद्मावती आलोयणा, पृ. १४अ-१५अ, संपूर्ण. पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवइ राणी पदमावती; अंति:
समयसुदर०छुटे तत्काल, ढाल-३, गाथा-३३. ८. पे. नाम. शंखेश्वर छंद, पृ. १५अ-१७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. शील, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणव पणव प्रह पय; अंति: सील सकलदेव संखेसरा,
गाथा-६६. ९. पे. नाम. मेघकुमार स्तवन, पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण.
मेघकुमार सज्झाय, मु. अमर, मा.गु., पद्य, आदि: धारणी मनावे रे मेघ; अंति: अमर० छूटीज भवतणा पास, गाथा-५. १०.पे. नाम. रात्रिभोजन परीभास, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण.
रात्रिभोजन निवारण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: संजम लेइ तप करीजी; अंति: सार्या आपण काजरे, गाथा-२०. ११. पे. नाम. पार्श्वनाथवीनती छंद, पृ. १८आ-२०आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपत्तिदायक सुरनर; अंति: गुण जिणहरख गहंदा है,
गाथा-२७. १२. पे. नाम. पोसहविधि संपूर्ण, पृ. २०आ-२२आ, संपूर्ण.
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पौषध विधि, मु. सुमतिविजय, प्रा. मा.गु., पग, आदि: पहिला प्रणमुं सरसति, अंतिः घरमीने नवनिधि आंगणे,
गाथा - ३७.
१३. पे. नाम महावीरजिन परिवार स्तवन, पृ. २२ आ. संपूर्ण.
क. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिनेसर सासनसार, अंतिः वाचक कमलविजयकार, गाथा ५. १४. पे. नाम. परमानंद स्तोत्र, पृ. २२आ - २३आ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, वि. १८वी, आदि परमानंदसंपन्नं अंतिः परमं पदमात्मनः श्लोक-२५. १५. पे. नाम. शांति स्तव, पृ. २३-२४अ, संपूर्ण.
संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: सांतिकरं सांतिजिणं; अंति: मुनिसुंदर०संपयं परमं,
गाथा - १४.
१६. पे. नाम. सुदर्शनशेठ सज्झाय, पृ. २४अ - २६अ, संपूर्ण.
मु. लालविजय, मा.गु., पच, वि. १७७६, आदि: श्रीगुरुपदपंकज नमी अंति लालविजय नमि कर जोडि, गाथा- ४३. १७. पे. नाम. पच्क्खाण सज्झाय, पृ. २६अ, संपूर्ण.
१० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: दसविह प्रह ऊठी, अंति: पामे निश्चे शिव ठांण, गाथा-८.
१८. पे. नाम. पंचतीर्थ स्तवन, पृ. २६अ - २६आ, संपूर्ण.
२४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शेत्रुंजे ऋषभ, अंति: समयसुंदर कहै एम, गाथा - १९ (वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गाथा गिना है.)
३६९
१९. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २६आ-२७अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: मायरि गीरि जानदे मुझ; अंति: की जो सदा जयवान हे, गाथा-७.
२०. पे नाम. समोसरणविचार स्तवन, पृ. २७अ - २८आ, संपूर्ण.
समवसरण रचना स्तवन, मु. अमरविबोध, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर चरण कमल; अंति: तेहने सिद्ध फलदाखे, गाथा- २३.
२१. पे नाम, शंखेश्वरपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २८-३० आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. हंसभुवनसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६१०, आदि: सासना देवी मन धरीए; अंति: हंसभवन० लहिडं घणां, गाथा- ४६.
२२. पे. नाम. आगमवर्णन गीत, पृ. ३०-३१अ, संपूर्ण.
मु. लावण्यचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: जिनभाखई भव तरवा, अंति: लावण्य० निरमल बुद्धे, गाथा- १७.
२३. पे नाम, चतुर्विंशतिजिन स्तवन, पृ. ३१अ ३२आ, संपूर्ण.
२४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिनेसर प्रणमुं; अंतिः तस सीस पभणे आणंद,
२४. पे नाम. विद्यासागरगुरुगुण स्तुति, पृ. ३२आ-३३अ संपूर्ण.
मु. लावण्यसागर, अप, पद्य, आदि: पवरगुणनिउण मुनिगण: अंति: नंदउ जो ससि सहर सकर, गाथा- १२.
२५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३३अ -३३आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-सोगठारमत परिहारविषये, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुण सनेही हो सांभल, अंतिः रमजो हो साजन जूबटई, गाथा- ११.
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२६. पे. नाम. नेमराजुल बारमासा, पृ. ३३आ-३४आ, संपूर्ण.
नेमराजिमती बारमासो, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: मागसर मासें मोहिओ; अंतिः विनयगाया हरख उल्हास, गाथा - २७.
२७. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ३४-३५अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. नित्यलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: दरिसण बेहिलोनी देडे, अंति: नित्यलाभ जो आधार तो,
गाथा-५.
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३७०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २८. पे. नाम. सामायिक सज्झाय, पृ. ३५अ, संपूर्ण.
मु. नेमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सामायिक मन सुधे करो; अंति: व्रत पालो निसदिस, गाथा-५. २९. पे. नाम. करकंडुमुनि सज्झाय, पृ. ३५अ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अति: (-), गाथा-६. ३०. पे. नाम. भाग्यमहिमा सवैया, पृ. ३५अ-३५आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: भाग्य थकी ऋद्धि; अंति: विना नर पसु विचरेहिं, गाथा-१. ६७९९२. (#) मंगलकलश रास, संपूर्ण, वि. १७९७, भाद्रपद शुक्ल, ११, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३३, ले.स्थल. पाडीव, प्रले. पं. प्रेमचंद्र
गणि (गुरु पं. तत्त्वचंद्र गणि); गुपि.पं. तत्त्वचंद्र गणि; पठ.पं. कृपाचंद्र गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (६४४) याद्रिशं पुस्तकं द्रिष्ट्वा, जैदे., (२३४११.५, १४-१६४३५-३८).
मंगलकलश रास, मु. दीप्तिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७४९, आदि: प्रणमुं सरसति स्वामी; अंति: दीप्तिनी फलयो आस
६७९९३. नवतत्त्व सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९११, पौष कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. २५, ले.स्थल. भाणपुरनगर, प्रले. मु. अर्जुन ऋषि (विजयगच्छ); पठ. मु. सरुपचंद्र ऋषि; मु. श्रीचंद ऋषि; मु. मगनिराम ऋषि, प्र.ले.पु. मध्यम, दे., (२४.५४१२.५, १२४३५).. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-), गाथा-६०, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
गाथा-३८ तक लिखा है., वि. इसके आगे के मूलप्रति के पृष्ठ उपलब्ध होने के कारण प्रतिलेखक ने यहीं तक लिखा
है.)
नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जिनमतजीवनइ पदार्थ; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण
६७९९४. नवतत्त्व बोलसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९६६, कार्तिक कृष्ण, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २१, ले.स्थल. कालावड, प्रले. वशराम आंबाभाई खत्री, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४१२, १५४३४-४०). नवतत्त्व प्रकरण-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: होय ते मोक्ष जाय,
(वि. बीच-बीच में मूल पाठ भी दिये गए हैं.) ६७९९६. (+) महाबलमलयासुंदरी चौपाई, संपूर्ण, वि. १९३८, ज्येष्ठ शुक्ल, १, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २३, ले.स्थल. पीतांबरनगर,
प्रले. मु. शुक्लचंद (गुजरातीलुकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२४.५४११.५, १९४४४). महाबलमलयासुंदरी चौपाई, मु. भक्तविमल, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: श्रीपार्श्वनाथ प्रणम; अंति: पुगी छै मनरी
कोडरे, खंड-४. ६७९९७. अंजनासुंदरीपवनंजयकुमार रास, संपूर्ण, वि. १८०१, श्रावण शुक्ल, ४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २६, ले.स्थल. पोखरा(गंगातीरे,
प्रले. मु. रविसुंदर (गुरु ग. उत्तमसुंदर); गुपि.ग. उत्तमसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (४५) भग्न पृष्टी कटी ग्रीवा, (४४०) तैलाद् रक्षेद् जलाद् रक्षेद्, (१२१४) यावत् मेरु यावत् सागर, जैदे., (२२.५४१२, १३-१५४३२-४०).
अंजनासुंदरी रास, मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: श्रीगणधर गौतम प्रमुख; अंति: ऋद्धि वृद्धि
मंगलमाल, खंड-३, गाथा-६३२. ६७९९८. स्नात्रपूजा विधि व नवपदपूजा, संपूर्ण, वि. १९२२, फाल्गुन कृष्ण, ४, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २३, कुल पे. २,
ले.स्थल. खीवांणदी, प्रले. उपा. शिवचंद (गुरु मु. उदयचंद, कमलकलशागच्छ-पोशाल गच्छ); गुपि.मु. उदयचंद (कमलकलशागच्छ-पोशाल गच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२४११.५, १२४२७). १.पे. नाम. स्नात्र पूजा, पृ. १अ-९आ, संपूर्ण. स्नात्रपूजा, श्राव. देपाल भोजक, प्रा.,मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: पूर्वदिसें तथा उत्तर; अंति: अमतणा
देवदेवाधिदेवो, कुसुमांजलि-५. २.पे. नाम. नवपदपूजा, पृ. ९आ-२३अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
३७१ नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (१)श्रीप्रथम बल बाहुलकर,
(२)उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: निर्वियामि ते स्वाहा, पूजा-९. ६७९९९. (#) नवपद रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७-१०(१,११ से १२,१५ से १६,२० से २२,२४,३३)=२७, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११.५, १०४२९). राजसिंहरत्नवती कथा, मु. गौडीदास, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१, गाथा-१५
अपूर्ण से ढाल-२२, गाथा-५ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) ६८०००. (+#) हरचंद चौपाई, संपूर्ण, वि. १९१२, श्रेष्ठ, पृ. २२, प्रले. मु. आलमचंद (इडरीयावडिपोसालगच्छ); अन्य. सेरसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२३४१२, १२४३३-३७).
हरिश्चंद्रराजा चौपाई, मु. प्रेम, रा., पद्य, वि. १८३४, आदि: आदि जिनेसर पाय नमी; अंति: ग मे नाम तीकारा होये,
___ढाल-२३. ६८००१. चंदराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३३-६(१,९ से ११,२३ से २४)=२७, पू.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, जैदे., (२३.५४१२.५, ११४२१-२६). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१, गाथा-७ अपूर्ण से
ढाल-१८, गाथा-१० अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) ६८००२. (+#) विविध विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३१-१०२(१ से १०२)=२९, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११.५, ८x१९). विविधविचार संग्रह*, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. ध्यान विचार अपूर्ण से गतिविचार अपूर्ण
तक है.) ६८००३. (-) जंबूचरित्र, संपूर्ण, वि. १८९४, माघ शुक्ल, १३, जीर्ण, पृ. १०, पठ. श्राव. नानचंद उकरडा दोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५४१२, १६४४४).
जंबू चरित्र, मा.गु., गद्य, आदि: राजगृही नामे नगरी; अंति: इविसेद जासेह श्रेक. ६८००४. (+) स्तुति, स्तवन, सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८५८, फाल्गुन कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. २९-११(१ से ११)=१८, कुल
पे. ५३, ले.स्थल. जेसलमेर, प्रले. पं. सुमतिधीर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १८४५५). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १२अ, संपूर्ण.
मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: आज सफल अवतार असाडा; अंति: ध्यान सदा ध्रमसीह, गाथा-७. २. पे. नाम. समवसरण स्तवन, पृ. १२अ, संपूर्ण.
ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: आज गई थी समवसरणमा; अंति: देवचंद० सुख साचुरे, गाथा-५. ३. पे. नाम. साधारणजिन गीत, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण..
मु. मान, मा.गु., पद्य, आदि: सरसत देवी नमी मनरंग; अंति: कवि मान कहै करजोडि, गाथा-१२. ४. पे. नाम. त्रेवीसपदवी स्तवन, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण.
२३ पदवी स्तवन, आ. उदयप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर पय प्रणमनै; अंति: उदयपभ०धरमलाभ घणौ थयौ,
__गाथा-२३. ५. पे. नाम. पंचतीर्थ स्तवन, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. मु. सुखलाभ शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७४८, आदि: अष्टापद तीरथ भलौ; अंति: सेवका सुख निस दीस, ढाल-४,
गाथा-२८. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १३आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन पद, मु. सदारंग, पुहिं., पद्य, आदि: पास दरस लगै अब मोहि; अंति: सदारंग० जिन तारो, गाथा-३. ७. पे. नाम. गोडीजीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जसवंत, मा.गु., पद्य, वि. १८१३, आदि: भवियां वांदो भावसु; अंति: है आदेस करत
कि, गाथा-९.
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३७२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८. पे. नाम. गोडीजीपार्श्वजिनगीत, पृ. १४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन गीत-गोडीजी, म. धर्मसीह, मा.गु., पद्य, आदि: जग जागे पास गोडी; अंति: धर्मसी गोडी चउ दिणंद,
गाथा-४. ९.पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १४अ, संपूर्ण.
मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: हे री आज गई मुरादेवी; अंति: भूधर० देखत दुष्ट डरै, गाथा-३. १०. पे. नाम. चंद्रप्रभुजिन पद, पृ. १४अ, संपूर्ण.
चंद्रप्रभजिन पद, मु. राजनंदन, पुहिं., पद्य, आदि: छबि चंद्राप्रभु की; अंति: राजनंदन० गुण समरत, गाथा-३. ११. पे. नाम. नवकारनो छंद, पृ. १४आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछित पूरे विविध परे; अंति: कुशललाभ०
वंछित लहै, गाथा-१७. १२. पे. नाम. अजितप्रभुजीनां पंचकल्याणक मंगल स्तवन, पृ. १५अ-१६अ, संपूर्ण. अजितजिन पंचकल्याणक स्तवन, उपा. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरुदेव नमेवि; अंति: शांति० लच्छी
वरपणे, गाथा-१६. १३. पे. नाम. झांझरियामुनि सज्झाय, पृ. १६अ-१७अ, संपूर्ण. मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: सरसति चरणे शीश नमावी; अंति: भावरतन० नरवृंदा रे, ढाल-४,
गाथा-४२. १४. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १७अ, संपूर्ण.
आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: विश्वत्रय सुखकारिका; अंति: हे श्रीजिनलाभसूरीश, गाथा-७. १५. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्व स्तवन, पृ. १७अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: चिंतामणि चित धर रे; अंति: भावरतन अनुसरे,
गाथा-३. १६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १७अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: भईया है रुपईया बाप; अंति: जैसे फटै अनार, गाथा-२. १७. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १७अ, संपूर्ण.
उपा. क्षमाकल्याण, पुहिं., पद्य, आदि: सो प्रभु मेरे वीर; अंति: प्रगट कल्यान भयो, गाथा-५. १८. पे. नाम. जिनचंद्रसूरि भास, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण. जिनचंद्रसूरि भास-गच्छनायक, मु. जयकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: वीकानेर समोसर्या रे; अंति: जयकीरत० नवलै रंग,
गाथा-८. १९. पे. नाम. जिनचंद्रसूरि भास, पृ. १७आ, संपूर्ण.
मु. शिवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: हारे औठो एम कहै; अंति: मुनि सिवचंदजी रे लौ, गाथा-१३. २०. पे. नाम. जिनचंद्रसूरि भास, पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण.
मु. शिवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: भविजन वंदो हो गिरवा; अंति: सदा चिरजीवौ महिराण, गाथा-१३. २१. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि गुणवर्णनरूप स्तुति, पृ. १८अ, संपूर्ण.
पं. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जपुं अरिहंतना; अंति: लबध कहै० नित नवकार, गाथा-९. २२. पे. नाम. पुरुषादाणी पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पुरुषादानी, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३४, आदि: जयकारी जिनराज पुरसाद; अंति:
जिनचंद० सार्या रे, गाथा-९. २३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद-शंखेश्वरतीर्थ, पृ. १८आ, संपूर्ण.
उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: प्यारो पारसनाथ पुजाय; अंति: उदयरतन० बहु धसमसीया, गाथा-६. २४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १८आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
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३७३
1
मु. तिलोकचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अति भली ३ रे श्रीपास अंतिः तिलोकचंद० सुख थाव गाथा १० (वि. प्रतिलेखक एक गाथा को दो गाथा गिना है.)
२५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १८आ, संपूर्ण.
मु. आनंदघन, रा., पद्य, आदि निसदीन जोउं धारी, अंति: आनंदघन रंग रोला, गाधा-५.
२६. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. १८आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु, पद्य, आदि: अजहु आतम अनुभव नावा, अंति: ज्ञानविमल० हित कीना, गाथा-६. २७. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १८ आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि हम लीन हे प्रभुजी के अंतिः ज्ञानविमल० करो दान में, गाथा ५.
"
२८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १९अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- अवंतिपुर, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७६१, आदि : आज सफल अवतार फली, अंति: जिणचंद्रसूरि० गहगही गाथा ८.
२९. पे. नाम. लोद्रपुरमंडन पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १९अ संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- लोद्रवपुर, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७४३, आदि पासजिणेसर पूजीये रे; अंति जिनचंद० दिन अति इहां, गाथा-८.
३०. पे. नाम. लोद्रवपुरमंडण पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १९अ - १९आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- लोद्रवपुरमंडन चिंतामणि, मु. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि उहरंग धरि मनमांहि, अंतिः शांतिविजय० टली जी, गाथा- ९.
३१. पे. नाम. साधारणजिन चैत्यवंदन, पृ. १९आ, संपूर्ण.
मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: जगन्नाथने ते नमै हाथ; अंति: कहे राम० जपो जैनवाणी, गाथा - ११.
३२. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १९आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद - पुण्योपरि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पारकी होड तुं म कर; अंति: समयसुंदर ० कोटानकोटी, गाथा- ३.
३३. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. २०अ, संपूर्ण.
सिद्धचक्र स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुरमणि सहू मंत्र मै अंतिः जिनलाभ० जस लीजे रे लो,
गाथा - १४.
३४. पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, पृ. २०अ, संपूर्ण.
मु. अमृत, हिं., पद्य, वि. १८४३, आदि: चालो सहीया आपे जईये, अंति: अमृत० करि कल्याण, गाथा- ७. ३५. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. २०अ २०आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: म्हारो मन मोझी रे, अंतिः ज्ञानविमल० नावे पार, गाथा-५३६. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २०आ, संपूर्ण.
मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि; आज बधाई म्हारें आज अंतिः श्रीजिनचंद सवाई, गाथा ५.
३७. पे. नाम. चार मंगल पद, पृ. २०आ, संपूर्ण.
४ मंगल पद, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि आज म्हारे च्यारुं; अंतिः आनंदघन उपगार, गाथा ५. ३८. पे. नाम. गिरनारतीर्थ स्तवन, पृ. २०आ, संपूर्ण.
मु. लाभउदय, मा.गु., पद्य, वि. १८५१, आदि: श्रीगिरनार सोहामणो; अंति: लाभउदय० जयकार रे, गाथा- ७.
३९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २०आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन पद, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभु पास जिणंद की; अंति: भवजल पार उतारो रे, गाथा-४.
४०. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २०आ, संपूर्ण.
मु. राजाराम, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन तूं क्या फिरे, अंतिः राजाराम हरे देखया है, पद-४ (वि. प्रतिलेखक ने गाथा सं. ४ की जगह १ लिखा है.)
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४१. पे. नाम. जिनाज्ञा सज्झाय, पृ. २१अ, संपूर्ण.
मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि जिन आणां सिर वहीये अंतिः क्षमा० पसायै लहिये, गाथा ९.
४२. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २१अ, संपूर्ण.
मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: वामाजी के नंद अरज; अंति: चाहित मुनि हर्षचंद, गाथा-४.
४३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २१अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: जैन धरम नही कीता वो, अंति: भारी करमसुं रीता, पद-४.
४४. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, पृ. २१अ, संपूर्ण.
मु. कनकमूर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: एक अरज अवधारीयै रे; अंतिः कनकमूरति० सनेह रे, गाथा - ७. ४५. पे. नाम जिनदत्तसूरि पद, पृ. २१आ, संपूर्ण,
मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: दादा चिरंजीवो सेवकजन, अंति: जिनचंद० वंछित फलज्यौ, गाथा- ११. ४६. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वजिन स्तवन- लोद्रवपुरमंडन, पृ. २९आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- लोद्रवपुरमंडन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: हो सुणि सांवलिया; अंति: क्षमाकल्याणनै रे लो, गाथा-५.
४७. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २९आ, संपूर्ण
मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मोतीडे मेह वुठारे आज, अंति: मैं हूं चरण सखाई, गाथा-५.
४८. पे नाम. नेमराजिमती पद, पृ. २१ आ. संपूर्ण.
मा.गु., पद्म, आदि: दिलडानी हि मैं केहनैः अंतिः नेमिराजुल भलीभांती, गाथा- ३.
४९. पे नाम. आहारअणाहार परिज्ञान सज्झाय, पृ. २२अ २२आ, संपूर्ण.
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
पच्चक्खाणफल सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु, पद्य, आदि: प्रभु पगलां प्रणमी अंति भवसमुद्रने तरीये, गाथा ८. ५०. पे. नाम वीरजिनतप स्तवन, पृ. २२आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: आज चलो तुमे पावापुर; अंति: लोक जै जैकार भयो री, गाथा-४.
५२. पे नाम, जीवदया चौपाई, पृ. २३अ-२५आ, संपूर्ण
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महावीरजिन स्तवन- तपवर्णन, मा.गु., पच, आदि: सरसति सामणि चो, अंति: पुहुता सिवपुर वास, गाथा ९.
५१. पे. नाम महावीरजिन पद, प्र. २२आ, संपूर्ण.
६८००५. चंपक चरित्र, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १७, दे. (२४.५४१२, १५४४१-४५).
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सु. दयाकुशल, मा.गु., पद्य वि. १७४०, आदि: चिदानंद चित्तमै धरी, अंतिः दिन घर होत वधाई रे, डाल-५, गाथा - ११५. ५३. पे नाम. धन्नामुनि सिज्झाय, पृ. २६अ २९अ संपूर्ण
धन्नामुनि सज्झाय, पं. कुशल वाचक, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि आदि नमूं श्री आदिजिन, अंति: कुशलभगत ० विचारों रे, दाल-८.
चंपकसेन रास, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु. पद्य वि. १६६९, आदि: चडवीसे जिनवर वली, अंति: ग्रंथ श्रोता मन गमे,
ढाल - २७.
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६८००६. (+) अष्टाह्निका व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९४६, आषाढ़ कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ३२ -१८ ( २ से १९)= १४,
ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले. मु. मनसाराम ऋषि (बृहत्विजयगच्छ); पठ. मु. डालचंद ऋषि (बृहत्विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२४.५४१२.५, ११४४२).
अष्टाह्निका व्याख्यान, मु. शांतिसागरसूरि शिष्य, सं., हिं., गद्य, आदिः श्रीमद्वीरं जिनं अंतिः फल की सिद्धि होवे, (पू.वि. पर्युषणपर्व माहात्म्य अपूर्ण से लोहखुर दृष्टांत अपूर्ण तक नहीं है., वि. अंत में कल्पसूत्र बालावबोध का मात्र मंगलाचरण लिखा है.)
६८००७. प्रश्नोत्तर संग्रह, संपूर्ण, वि. १९७६, वैशाख शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्रले. मु. दौलत ऋषि, पठ. मु. मनसुख ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, वे. (२३४१२.५, १९४३८).
जैन प्रश्नोत्तर संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: श्रीनवकार मंत्र में अंतिः ठाणांग विगेरेनी.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
३७५ ६८००८. स्तुति, स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६६-५४(१ से ५४)=१२, कुल पे. ५, जैदे., (२४.५४१२,
११४४०). १.पे. नाम. निगोदविचारगर्भित श्रीवीरजिनेश्वराणां स्तुति, पृ. ५५अ-५५आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन स्तवन-निगोदविचारगर्भित, मु. क्षमाप्रमोद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: क्षमाप्रमोद जगीस ए,
गाथा-४८, (पू.वि. गाथा-३३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. दशपच्चक्खाणफल गीत, पृ. ५५आ-५७आ, संपूर्ण. १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नमु; अंति: रामचंद्र
तपविधि भणे, ढाल-३, गाथा-३३. ३. पे. नाम. चउवीसदंडक स्तवन, पृ. ५७आ-५९आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: पूर मनोरथ पासजिणेसर;
अंति: गावै धरमसी सुजगीस ए, ढाल-४, गाथा-३४. ४. पे. नाम. चतुर्दशस्थानकवृद्धि स्तवन, पृ. ५९आ-६२अ, संपूर्ण. सुमतिजिन स्तवन-१४ गुणस्थानविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सुमतिजिणंद सुमति;
अंति: कहै इम मुनि धरमसी, ढाल-६, गाथा-३४. ५. पे. नाम. अग्यारअंग सज्झाय, पृ. ६२अ-६६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ११ अंग सज्झाय, मु. विनयचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि: पहिलो अंग सुहामणों; अंति: (-), (पू.वि. विपाकसूत्र
सजझाय अपूर्ण तक है.) ६८००९. (+) कालिकाचार्य कथा, अपूर्ण, वि. १९४२, मार्गशीर्ष कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. १७-५(१ से ५)=१२, प्र.वि. पदच्छेद सूचक
लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (६२०) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२५४१२.५, १३४२९). कालिकाचार्य कथा, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (१)देवलोकं प्रापुः, (२)जयवंतो प्रवर्तो, (पू.वि. गर्दभिल्ल राजा के द्वारा
साध्वी के रूप पर मोहित होने के वर्णन अपूर्ण से है.) ६८०१०. (+#) आनंदश्रावक संधि, संपूर्ण, वि. १८७४, वैशाख शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, १३४२८).
आनंदश्रावक संधि, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि: वर्द्धमान जिनवर चरण; अंति: पभणै मुनि श्रीसार,
ढाल-१५, गाथा-२५०. ६८०११. श्रीपाल चरित्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २३-९(१ से ८,२०)=१४, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२५४११, ११४३६). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-),
(पू.वि. खंड-१, ढाल-५, गाथा-१० अपूर्ण से खंड-२, ढाल-३, गाथा-५१ अपूर्ण तक है व खंड-२, ढाल-१, गाथा-९
अपूर्ण से ढाल-२, गाथा-२३ अपूर्ण तक नहीं है.) ६८०१२. (+#) आदिजिन गुणमिहमावर्णन पूजा, संपूर्ण, वि. १९४०, माघ कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. वीकानेर, राज्यकाल
रा. डूंगरसिंघ; प्रले. मु. कुशलसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४१२, १३४२५-२७).
आदिजिन गुणमहिमावर्णन पूजा, मु. कुशल, पुहि., प+ग., आदि: ऋषभादिक जिनवर नमी; अंति: कुशल प्रेम से
गावे. ६८०१३. (+) चउमासी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८८९, वैशाख कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. १६, ले.स्थल. सोजत्, प्रले. मु. उदयसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४११.५, १३४३१-३३).
चातुर्मासिक व्याख्यान, रा.,सं., पद्य, आदि: सामायकावश्यक पौषधानि; अंति: मिच्छामिदुक्कडं देवो.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
३७६
६८०१४ (+) चवदेशजरी पूजा, संपूर्ण, वि. १९५८, पौष शुक्ल ११, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १३. ले. स्थल बीकानेर, प्रले. रिद्धकरण पुरोहित, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित पदच्छेद सूचक लकीरें. दे. (२३.५x१२, ११X३१-३४).
' ,
१४ राजलोक पूजा, मु. सुमति मुनि, मा.गु. सं., प+ग. वि. १९५३, आदि: पय प्रणमी जिनराजना, अंतिः यजामहे
"
स्वाहा:.
६८०१५. (#) ऋषिमंडलपूजा, पंचज्ञान पूजा व विंशतिस्थानक पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों
की स्वाही फैल गयी है. वे. (२३.५x१२, १२४३६).
१. पे. नाम. ऋषिमंडल पूजा, पृ. १अ - ८ अ, संपूर्ण.
ऋषिमंडल स्तोत्र पूजा, संबद्ध, ग. शिवचंद्र, मा.गु. सं., पद्य, वि. १८७९, आदि: प्रणमी श्रीपारस विमल, अंति: आनंद संघ वधाया, ढाल - २४.
२. पे. नाम. पंचज्ञान पूजाविधि, पृ. ८अ - ११आ, संपूर्ण.
५ ज्ञान पूजा, मु. मोहन मुनि, मा.गु., पद्य, वि. १९४०, आदि : वर्द्धमान जिनचंदकुं; अंति: ज्ञान तणो गुण गायो, पूजा-५. ३. पे. नाम विंशतिपद पूजाविधि, पृ. १९आ-१२आ, संपूर्ण
२० स्थानक पूजा, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., पद्य वि. १८५८, आदिः सुखसंपतिदायक सदा जग, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सिद्धपद पूजा, गाथा-५ तक लिखा है.)
६८०१६. श्रावकपाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैये. (२१.५x१२.५,
१२-१३X२१).
श्रावकपाक्षिक अतिचार- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि०, अंति: (-), (पू. वि. नाणाइअड्ड स्थूल अपूर्ण तक है.)
६८०१७. दंडक बोल, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ११, जैवे. (२४४१२.५, १४४३५).
९४२४).
१. पे नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण,
२४ दंडक २५ द्वार विचार, मा.गु., प+ग, आदि: सरीरोगाहणा संघवण अंतिः (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., २१वें दंडक के १६वें द्वार अपूर्ण तक लिखा है.)
६८०१८. चैत्यवंदन स्तुत्यादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १२, कुल पे २४, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, जैदे. (२३४१२,
3
वीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न, अंतिः देहि मे सुद्धनाणं, गाथा- ४.
,
२. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. १अ २अ संपूर्ण
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सं., पद्य, आदि: पंचानंतकसुप्रपंच परमा, अंतिः सिद्धाविका नायिका श्लोक-४,
३. पे. नाम. विहरमान बीस जिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण.
विहरमान २० जिन स्तुति, मा.गु., पच, आदि: पंचविदेह विषय अंतिः जण मनवंख्यि सारै गाथा-४,
४. पे नाम, पार्श्वजिन स्तुति पलांकित, पृ. २अ २आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदि: समदमोत्तम वस्तु; अंति: जयतु सा जिनशासनदेवता,
श्लोक-४.
५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति पलांकित, पृ. २आ- ३अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञ ज्योति अंतिः वृद्धिं वैदुष्यम्, श्लोक-४.
६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: हर्षनतासुरनिर्जरलोकं अंतिः पमज्जनशस्तनिजाघ, श्लोक-४,
७. पे नाम, आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, पृ. ३ आ-४अ, संपूर्ण,
प्रा. पद्य, आदि: वरमुत्तियहार सुतारगण, अंति: सुहाणि कुणेसुसवा, गाथा ४. ८. पे. नाम महावीरजिन स्तुति, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
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सं., पद्य, आदिः यदंहिनमनादेव देहिन; अंति: नित्यम मंगलेभ्यः, श्लोक-४.
९. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण.
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मा.गु., पद्य, आदि: महामंगलं अष्ट सोहै; अंतिः विहसंति कल्याणदाता, गाथा-४.
१०. पे नाम. सेतुंजाजी स्तुति, पृ. ४-५ अ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशत्रुंजयमंडण, अंतिः सूरि तुम्ह पय सेवता, गाथा ४.
११. पे नाम, आदिजिन स्तुति, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण
सं., पद्य, आदिः युगादिपुरुषेंद्राय अंतिः कूष्मांडी कमलेक्षणा, श्लोक-४.
१२. पे. नाम वीरप्रभुजिन स्तुति, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: वालापणै डाबै पाय; अंति: काम चढै प्रमाणै, गाथा-४.
१३. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. ६अ - ६आ, संपूर्ण.
साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि अविरलकवलगवल मुक्ताफल, अंति देवी श्रुतोच्चयम्, श्लोक-४.
१४. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. ६ आ-७अ, संपूर्ण, पे. वि. प्रतिलेखक ने कृति नाम चतुर्विंशतिजिन स्तुति लिखा है. सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि; अंतिः सुखं विस्मत हृदः, श्लोक-४.
१५. पे नाम, जिनकुशलसूरि कृत स्तुति, पृ. ७अ ८अ संपूर्ण
पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: क्रेंद्रे कि धूपमप; अंतिः दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४.
१६. पे. नाम ऋषभजिन स्तुति, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: ऋषभनाथ भनाथनिभानने; अंति: तनुभातनुभातनु भारती, श्लोक-४.
१७. पे नाम, नेमनाथ जिन स्तुति, पृ. ८आ- ९अ संपूर्ण
नेमिजिन स्तुति, मा.गु, पद्य, आदि: सुर असुर बंद पाय, अंतिः मंगल करो अंबा देविये, गाथा ४.
१८. पे. नाम. नवपद सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ९अ -१०अ, संपूर्ण.
सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि निरुपम सुखदायक, अंतिः श्रीजिनलाभसूरिंदा जी, गाथा ४. १९. पे. नाम. पर्युषणा स्तुति, पृ. १०अ १० आ, संपूर्ण.
पर्युषण पर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि बलि बलि हुं ध्यावु, अंतिः करे जिनलाभसूरिंद, गाधा ४. २०. पे नाम, अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. १० आ-११अ संपूर्ण
आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्म, आदि चोवीसे जिनवर प्रणमुं अंति इम जीवत जनम प्रमाण, गाथा-४.
२१. पे नाम. पासनाथजीरो चैत्यवंदन, पृ. ११अ ११ आ. संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थ, सं., पद्य, आदि: श्रीश्रेठि टटणी टटे; अंतिः सदा ध्यायामी माणसे, श्लोक-२.
२२. पे. नाम. पासनाथजीरो चैत्यवंदन, पृ. ११ आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन चैत्यवंदन, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: चउकसाय पढमल लुरण, अंतिः जिण पासु पयठीओ वंछिय, गाथा २. २३. पे नाम, पासनाथजी चैत्यवंदन, पृ. ११ आ.१२अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति-स्तंभन, प्रा., पद्य, आदि सिरियंभणयद्वय पास, अंतिः संघस्स समुणइ निमीतम्, गाधा- २. २४. पे. नाम. तिजयपहुत्त स्तोत्र, पृ. १२अ - १२आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अड अंति: (-), (पू. वि. गाथा १० के प्रथम अक्षर तक है.) ६८०१९, (+) कृष्ण ढाल, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२३४१३,
"3
.
१२x२३-३३).
कृष्ण ढाल, मा.गु., पद्य, आदि नेमनाथ समसया, अंतिः (-). (पू.वि. ढाल १५, गाथा १० अपूर्ण तक है.) ६८०२०. (4) जादव चरित्र, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ११, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२३.५४१३,
3
१४-१५X३७-४४).
नेमिजिन चरित्र, मा.गु., गद्य, आदि: जंबुद्वीपे भरत, अंति: अध्ययन मांधी जाणवो.
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३७८
कैलास श्रृतसागर ग्रंथसूची ६८०२१. तपविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९, कुल पे. १२, ले.स्थल. वालोचर, प्रले. पंडित. गंगाराम,
प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४१२.५, १३४३२-४०). १. पे. नाम. तपस्याग्रहण विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
तपग्रहण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही पडिक; अंति: हुवै तो आप मुखै करै. २. पे. नाम. तपपारणा विधि, प्र. २अ, संपूर्ण..
प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इरियावही पडिकमी; अंति: भोजन भक्ति कीजै. ३. पे. नाम. चैत्रीपूनम देववंदन विधि, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण.
चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, प्रा.,रा.,सं., गद्य, आदि: प्रथम चउखुणी गोबररी; अंति: कीजै पछै उजमणो कीजै. ४. पे. नाम. प्रत्याख्याण भाष्य, पृ. ४आ-६अ, संपूर्ण..
प्रत्याख्यानसूत्र-बालावबोध*, पुहि.,मा.गु., गद्य, आदि: अन्नत्थणाभोगेणं अन्न; अंति: लेवै तो व्रतभंग हवै. ५. पे. नाम. चौदसतप आराधन विधि, पृ. ६अ-८अ, संपूर्ण.
पुहि.,प्रा., गद्य, आदि: प्रथम प्रभात श्री; अंति: बिंदुसारपूर्वाय नमः. ६. पे. नाम. पंचकल्याणकतप झालणै विधि, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण.
पंचकल्याणकतपउच्चरण विधि, पुहि.,प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: गुरु कै आगै इरियावही; अंति: वैठके नमोत्थुणं कहै. ७. पे. नाम. वीसस्थानकतपग्रहण विधि, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण.
२० स्थानकतप उच्चारणविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही पडिकम; अंति: सुणावी वासक्षेप कीजै. ८. पे. नाम. तिथिप्रमुख तपविधि, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण..
मा.गु., गद्य, आदि: शुभ दिन राई प्रायच्छ; अंति: चढावीजै न्यान मूकीजै. ९. पे. नाम. ब्रह्मचर्य विधि, पृ. १०अ-११आ, संपूर्ण.
ब्रह्मचर्यव्रतप्रत्याख्यान आलापक, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: श्राद्धः पठति इच्छा; अंति: नित्थारग पारगा होह. १०. पे. नाम. विविधतपाराधन विधि, पृ. ११अ-१५आ, संपूर्ण.
तपावली, मा.गु., गद्य, आदि: पुरिमढ१ एकासणार; अंति: उत्तर दिशि करिवौ. ११. पे. नाम. वीसस्थानक विधि, पृ. १६अ-१७आ, संपूर्ण.
२० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं २०००; अंति: मुखै पच्चक्खाण करै. १२. पे. नाम. चैत्रीपूनम देववंदन विधि, प्र. १८अ-१९आ, संपूर्ण.
चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: उस्सप्पिणीइ पढम; अंति: नमः जाप २००० कार्य. ६८०२२. (#) रात्रिभोजन चौपाई, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२.५४११.५, १४४३०). रात्रिभोजन चौपाई, उपा. सुमतिहंस, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: सुबुद्धि लबधि न निधि; अंति: (-),
(पू.वि. अंतिम दो गाथाएँ नहीं हैं.) ६८०२३. (+#) समयसार नाटक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६-४(१ से ४)=१२, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११, १५४३५-४०). समयसार नाटक, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. दोहा-३७ अपूर्ण से
२२२ अपूर्ण तक है.) ६८०२४. हंसराजवच्छराज चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १८-१(१६)=१७, दे., (२१.५४१२, १३-१५४२८-३६).
हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: आदिसर आदे करी चोवीसे; अंति: (-),
(पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., खंड-२, ढाल-२१ की गाथा-१८ तक लिखा है. व ढाल-१८,
गाथा-१ से ढाल-१९, गाथा९ अपूर्ण तक नहीं है.) ६८०२५. नवतत्त्व चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, अन्य. श्रावि. राजकुंवर बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४११.५,
११४२९).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
नवतत्त्व चौपाई, म. वरसिंह ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि: पास जिनेसर प्रणमी; अंति: वरसिंह० चित मे धरी,
गाथा-१३६. ६८०२६. (+-) पद व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. १५, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित., जैदे., (२३४१०,
९४२४-२६). १.पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: जय बोलो पासजिनेसर की; अंति: वीनती यह अलवेसर की, पद-५. २. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
पंडित. खीमाविजय, पुहि., पद्य, आदि: इक सुणलौ नाथ अरज; अंति: अनुपम कीरत जग तेरी, गाथा-५. ३. पे. नाम. आदिजिन होरी, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
मु. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: होरी खेली नर बहर; अंति: वारी भवभव पातिक जाय, गाथा-७. ४. पे. नाम. पद्मप्रभजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण.
पद्मप्रभजिन धमाल, मु. ज्ञान, मा.गु., पद्य, आदि: मेरे हृदय पदमप्रभु; अंति: ग्यान०लहत अक्षयनिधान, गाथा-६. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन होरी गीत, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन होरी, मु. रत्नसागर, पुहिं., पद्य, आदि: चलौ खेलीयै होरी रंग; अंति: रत्नसागर० जय जयकार, गाथा-९. ६.पे. नाम. पार्श्वजिन होरी-चिंतामणी, पृ. ३अ, संपूर्ण.
मु. जिनलाभ, पुहिं., पद्य, आदि: जिनमंदिर जयकार ऐसे; अंति: जिनलाभ०खेलत भवजल पार, गाथा-६. ७. पे. नाम. पद्मप्रभजिन पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
म. जैनरतन, पुहिं., पद्य, आदि: प्रह सम समरीजै सामि; अंति: जैनरतन० पसरै ठाम ठाम, गाथा-३. ८. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण.
आ. जिनभक्तिसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: माई रंगभर खेलेगे; अंति: जिनभक्त० जिनवर सहाय, गाथा-५. ९.पे. नाम. शीतलजिन पद, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मेरो लागो नवल सनेह; अंति: रूपचंद० आतमरामसुं, गाथा-३. १०. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ४अ, संपूर्ण.
आ. जिनभक्तिसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: ऐसे नेम कुंवर खेले; अंति: जिनभक्ति० उपजत आनंद, गाथा-४. ११. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
आ. जिनलाभसूरि, पुहि., पद्य, आदि: होरी खेलइया हारे; अंति: जिनलाभ० भव निस्तर हो, गाथा-५. १२. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
मु. ऋद्धिहर्ष, पुहि., पद्य, आदि: गढ गिरनार की तलहटी; अंति: सिद्धहरख० देवी मात, गाथा-६. १३. पे. नाम. सीमंधरजिन विनती स्तवन, पृ. ५आ-७आ, संपूर्ण.
उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार ए; अंति: भगतलाभ० आस्या मनतणी, गाथा-१८. १४. पे. नाम. महावीरजिन विनती, पृ. ८अ-१०अ, संपूर्ण. महावीरजिन विनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी वीनती; अंति:
समयसुंदर० तिलो, गाथा-१९. १५. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १०अ-१२आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगुरु पाय; अंति:
समयसुंदर० प्रशंसिओ, ढाल-३, गाथा-२०. ६८०२७. नियंठारोव संजयारो थोकडो, संपूर्ण, वि. १९७९, वैशाख शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. २, ले.स्थल. सरदारशहर,
प्रले. मु. डूंगरमल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३.५४१२, ९४२२-५६). १.पे. नाम. नियंठारो थोकडो, पृ. १आ-६आ, संपूर्ण.
नियंठा बोल, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. कोष्ठक रूप में लिखा है.)
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י'
२. पे. नाम. संजयारो थोकड़ो, पृ. ७अ ११आ, संपूर्ण.
संजय बोल, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. कोष्ठक रूप में लिखा है.)
६८०२८. (+) उत्तराध्ययन सज्झाच, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १६-४ (१ से ३,१४ ) = १२, प्र. वि. संशोधित, जैये. (२४४१२,
१५X२८-३०).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
उत्तराध्ययनसूत्र- विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. अध्ययन-१, गाथा-९ अपूर्ण से है. अध्ययन- २५, गाथा ४ अपूर्ण से
अध्ययन-२८, गाथा-४ अपूर्ण तक नहीं है व अध्ययन- ३२, गाथा-४ अपूर्ण तक लिखा है.) ६८०२९. (+) बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-४ (४,७,९,१४) =११, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित. दे. (२४४११.५,
יי
१६x४८-५३).
१. पे. नाम. कर्मविपाकधर्मकथाना बोल, पृ. १अ- ३अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-प्रश्नशतक, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीज्ञातासूत्र के; अंति: (-), (पू. वि. शरीर रोगग्रस्त होने का उत्तर अपूर्ण तक है.)
२. पे. नाम. नवतत्त्वन २५ बोल, पृ. ५अ १५अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं.
नवतत्त्व प्रकरण - २५ बोल, संबद्ध, मु. रत्नचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: पहोताने मोक्ष कहे छे, (पू.वि. संवर बोल अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठ नहीं है.)
६८०३०. (4) शत्रुंजय तीर्थमाला, संपूर्ण वि. १८६९ फाल्गुन शुक्ल, १, मध्यम, पृ. १२, ले. स्थल, भावनगर, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैवे. (२४४१२, १३-१४४२३-२७).
शत्रुंजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतरंग, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: विमलाचल वाल्हा वारू; अंतिः अमृत० गिरिराया रे, ढाल १०.
६८०३१. (+) वीसविहरमानजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ११, पठ श्रावि वालीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२२.५X१२.५, १०-११x२५-२८).
विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पुष्कलवई विजये जयो: अंतिः वाचक जश इम बोले रे, स्तवन- २०.
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६८०३२. नवकलशनी पूजा, संपूर्ण, वि. १९०६, वैशाख शुक्ल, २, रविवार, मध्यम, पृ. ११, ले.स्थल. चाणोद,
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प्रले. श्राव. खुशालचंद ओसवाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पं. विवेकसागरजी की प्रत पर से लिखे जाने का उल्लेख मिलता है. दे., (२३.५X११.५, १२x२४-२९).
नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा. मा.गु., सं., पद्य, आदि उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: अमतणा नाथ चीरंजीवो, पूजा - ९.
६८०३३. (+) हीरावेधवत्रीसी सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १० ले स्थल. लीबंडी, प्रले. मु. वीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीआदिजिन प्रसादात् संशोधित, जैदे. (२३.५x१२, ६३३).
हीरावेधद्वात्रिंशिका, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजनगर सम एह नारि; अंति: कांति० हीरावेध री, गाथा- ३२, (वि. १८८४, चैत्र शुक्ल, १३, शनिवार)
हीरावेधद्वात्रिंशिका टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हे राजा नगरने विष अंति: बत्रीसी वांचो भणो, (वि. १८८५, कार्तिक कृष्ण, १०, मंगलवार)
६८०३४. (१) पंचकल्याणक ओछ्वे अष्टप्रकारीपूजा, संपूर्ण, वि. १९२७, ज्येष्ठ शुक्ल, १ मध्यम, पृ. १० प्रले. गिरधरशंकर भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२३.५४१२, १२x२४-२६).
"
पार्श्वजिन पंचकल्याणक पूजा, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८९, आदि: श्रीशंखेसर पासजी सुर, अंति वंछितदाय सहायो रे, ढाल - ८.
६८०३५. भीषणमत प्रश्नोत्तर, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६, प्र. वि. कुल ग्रं. ४४०, जैदे., (२३.५X१२, १३-१४X३६).
.
तेरापंथी चर्चा, मु. शीलविजय, प्रा., मा.गु., पग, आदि: छे लेस्या हुति वीर, अंतिः शिवविजय० ल्यो आतमलीन.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
६८०३६. स्तुति, स्तवन, गहुंली व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ७-१(१) =६, कुल पे, ८, दे., (२०.५x१०.५,
१०-१२x२४-२७).
१. पे. नाम. नंदीसूत्र सिज्झाय, पृ. २अ अपूर्ण. पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
नंदीसूत्र सज्झाय, संबद्ध, मु. शिवचंद्र, मा.गु., पद्म, आदि (-); अंति: तरण अवतार रे सनेही, गाथा- ७, (पू. वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.)
२. पे. नाम. पंचमांग सिज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
७. पे. नाम. महावीरजिन गहुंली, पृ. ६अ - ६आ, संपूर्ण.
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पंचमांग सज्झाय, मु. शिवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सहु आगम में सोभतो रे; अंति: सिवचंद्र० विख्यात रे, गाथा-८. ३. पे. नाम. जिनवाणी स्तुति, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण.
मु. शिवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: हांरे मईया बारअंग, अंति: जस गावै सिवचंद रे, गाथा-८.
४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण.
मु. शिवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन करीये रे जिनजी अंतिः शिवचंद्र०वधतै रे रंग, गाथा- १०.
५. पे. नाम. चंद्रप्रभुजी स्तवन, पृ. ४आ - ५आ, संपूर्ण.
चंद्रप्रभजिन स्तुति, मु. शिवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे सहीया आंबेर न, अंति: शिवचंद्र उजारी रे, गाथा-६. पे. नाम महावीरजिन देशना, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
मु. शिवचंद्र, मा.गु, पद्य, आदिः आज दिवै प्रभु वीर, अंतिः शिवचंद्र० कीध सहीवारी, गाथा-४.
शिवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानयर उद्यान हो; अंति: शिवचंद० वंदन मुदा, गाथा- ७.
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मु. ८. पे. नाम. गौतमगणधर देशना सज्झाय, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण.
मु. रतन, मा.गु., पद्य, आदि: एक दिन गोतम गणधरू रे, अंतिः समकित रतन विलास रे, गाथा- ७.
६८०३७. गौतम महावीर संवाद, अपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. ५, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२०.५X११, १२x२५). गौतम महावीर संवाद, मा.गु., पद्य, आदि: गौतमस्वामी पूछे; अंति: (-), (पू.वि. प्रश्न सं. ४२ का उत्तर अपूर्ण तक है.) ६८०३८. चंदनमलयागिरी वार्ता, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७, ले. स्थल. सरसा, प्रले. पं. विजयवर्द्धन गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२x११, १५X४४).
चंदनमलयागिरि रास, मु. भद्रसेन पुहिं., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीविक्रम, अंतिः भद्रसेन० सुवंछित भोग, अध्याय-६,
गाथा - १९९.
६८०३९. शत्रुंजयउद्धार रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४X११, १२X३०-३३). शत्रुंजयतीर्धउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु, पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल, अंति: (-), (पू.वि. ढाल ११, गाधा १०७ अपूर्ण तक है.)
६८०४०. पुन्यप्रकाश स्तवन, संपूर्ण वि. १८५० भाद्रपद कृष्ण, २ शनिवार, मध्यम, पृ. ८, ले. स्थल, मेसांणा,
प्र. मु. खुशालविजय (गुरु मु. हर्षविजय); गुपि. मु. हर्षविजय, पठ. श्रावि. नंदीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४.५X११.५, १०X२३-३०).
पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धदाई सदा अंतिः नाम पुन्यप्रकास ए, ढाल ८, गाथा - १०२.
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६८०४१. मंगलकलश फाग, संपूर्ण, वि. १९०३, चैत्र शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल. बीकानेर, प्रले. पं. विजयचंद्र, पठ. श्रावि. सुजाणी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५X१२.५, १४X३५).
मंगलकलश फाग, वा. कनकसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६४९, आदि: सासणदेवीय सामिणी ए. अंतिः कनकसोम ० चरित जगीस, गाथा - १४२.
६८०४२. (+) मयणरेहा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७-१ (५) ६, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जैये., (२४.५X१२, १४X३५-३८).
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मदनरेखासती रास, मु. हीर ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८१४, आदि: जुवा मांस दारू तणो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा - १६३ अपूर्ण तक है व गाथा-८६ अपूर्ण से १११ अपूर्ण तक नहीं है.) ६८०४३. गजसिंघ चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, जैदे., ( २४४११.५, १३X३२).
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गजसिंघ चरित्र, मु. आसकरण ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५२, आदि: अरिहंत अतिसैवंत घणुं, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., डाल-११, गाथा-५ अपूर्ण तक लिखा है.)
,
६८०४४. (+) करमचेतनभाव संग्राम, संपूर्ण वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५x११.५, १४-१९४५०). कर्मचेतन संग्रामभाव रास, क. नर, मा.गु., पद्य, आदि: अनंत चोवीसी हुई गई, अंतिः कवि नर० नोबत गाजे, ढाल १७. ६८०४५. (+) वैदर्भी चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र. वि. संशोधित, दे., ( २४४१२, १५X४०-४५).
वैदर्भी चौपाई, मु. प्रेमराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जिणधर्म मांहि दीपता; अंति: प्रेमराज० मोक्ष मझार, ढाल ८. ६८०४६. शत्रुंजयउद्धार रास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., ( २४.५X१२, १५X३५-४० ).
शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: नयसुंदर ० दरसण जय करूं, ढाल - १२, गाथा - १२०.
६८०४७. गौतमपृच्छा चौपाई, संपूर्ण, वि. १८८४, माघ शुक्ल, १४, बुधवार, मध्यम, पृ. ५, प्रले. मु. उद्योतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२४.५x१२.५, १५-१६४३७).
गौतमपृच्छा चौपाई. मु. लावण्यसमय, मा.गु. पद्य वि. १५४५, आदि: सकल मनोरथ पूरवइ; अंति: लावण्य० वचने वस्युं, गाथा-१०७.
६८०४८. (+) नववाडरी ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५. प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२४४१२, १३४३६).
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नववाड सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: श्रीनेमीसर चरणयुग; अंति: जिनहर्ष० जुगती नववाड,
ढाल - ११, गाथा - ९७.
६८०५० (+) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २१, प्रले. कुंवरजी बसता पुरोहित, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २४४१२.५, १३x४१).
१. पे. नाम. साधुगुण सज्झाब, पृ. १९अ, संपूर्ण.
ग. मणिचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि श्रवण कीर्तन सेवन ए अंति: मुनिचंद० लहस्वई तेह, गाथा- ११. २. पे नाम, आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
ग. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जे देखुं ते तुज नही; अंति: मणिचंद० सिधला काज के, गाथा- ७. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
ग. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि जेहन अनुभव आतम, अंतिः मणि०सभाव में रातो रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, प्र. २अ, संपूर्ण.
ग. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आतम अनुभव जेहने होवे, अंति: मणिचंद्र० मे मन्न रे, गाथा - ५. ५. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण.
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ग. मणिचंद, मा.गु, पद्य, आदि अनुभव सिद्ध आतम जे; अंतिः श्रीहरिभद्र बुद्ध रे, गाथा ५.
६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण.
ग. मणिचंद, पुहिं., पद्य, आदि: कोइ कीनहीकुं काज न; अंति: मणिचंद्र० प्रीछे रे, गाथा- ६.
७. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण,
ग. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: चेतना चेतनकुं संभलाव, अंति: मणिचंद गुण जाणो रे, गाथा- ७. ८. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण.
ग. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन चेतन में धरि, अंति: मणीचंद होये भव अंता, गाथा-५.
९. पे नाम, आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण
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मु. मुनिचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: जगसरूप चेतना संभळावे; अंति: मुनीचंद्र गुण आवे रे, गाथा - ६. १०. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
३८३ ग. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: समकित तेह यथास्थित; अंति: मणिचंद्र०स्थिति जाणो, गाथा-५. ११. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण.
मु. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आतमरामे रे मुनि रमे; अंति: मणिचंद्र आतम तारिरे, गाथा-५. १२. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
ग. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन जब तुं ज्ञान; अंति: सुखसंपत्ति वाधे, गाथा-८. १३. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण.
ग. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अणविमास्युं करे कांइ; अंति: मणिचंद पामो ठकुराइ, गाथा-६. १४. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ५अ, संपूर्ण.
ग. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन तुमही आपे; अंति: मणिचंद्र०आपणी ठकुराई, गाथा-५. १५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५अ, संपूर्ण.
मु. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जो चेति तो चेतजे जो; अंति: पूरे शिवपुर वास, गाथा-६. १६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: शिवपुरवासना सुणो; अंति: पार न किमे नहि आवै, गाथा-४. १७. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५आ, संपूर्ण.
ग. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आदित जोइते आपणी; अंति: मणिचंद सुद्ध वाणि, गाथा-८. १८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
मु. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: शुक्लपक्ष पडवेथी; अति: मणीचंद्र एह लखाणी, गाथा-९. १९. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.
मु. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: मिच्छत्व कहीजे; अंति: मणिचंद० वस्तु न संचि, गाथा-७. २०. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ६आ, संपूर्ण.
ग. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आज का लहा लीजई कालि; अंति: मणिचंद० परमानंद साथै, गाथा-८. २१. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण.
___ ग. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सम्मदीट्ठी ते यथा; अंति: मणीचंद० सिद्ध पावे, गाथा-८. ६८०५१. आदिजिन स्तवन-आलोयणाविचारगर्भित, संपूर्ण, वि. १९०८, पौष कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ५, प्रले. पं. सुखविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२, ९४३३).
आदिजिनविनती स्तवन, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६६६, आदि: श्रीआदिसर प्रणमुं; अंति: पाप
आलोवा आपणाजी, ढाल-५, गाथा-५७. ६८०५२. (+2) ज्ञाताधर्मकथांग बोलसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, १८-२२४२७-३०).
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-प्रश्नशतक, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञाताधर्मकथा साढि; अंति: होय ते कर्मने उदै, प्रश्न-९९. ६८०५३. (#) श्रावकपाक्षिकअतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१३, १५४३०).
श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: मिच्छामि दुक्कड. ६८०५४. सुधर्मास्वामी स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. १८, दे., (२५.५४१२, १२४३५-४०). १.पे. नाम. सुधर्मास्वामी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. रामचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामी सुधर्मा हो; अंति: नित्य वंदे मुनि राम, गाथा-६. २. पे. नाम. सीमंधरजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. रामचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: महाविदेहे विराजीया; अंति: हो दीजो पार उतार, गाथा-५. ३. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. रामचंद्र, रा., पद्य, आदि: जीनजी थारे दरसणरी; अंति: मुनि राम कहे कर जोरी, गाथा-४.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम. गुरुगुण सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
मु. रामचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १९२५, आदि: जीवा मोरा मानव लीधो; अंति: ज्ञान अभ्यासजी, गाथा-६. ५. पे. नाम. श्रावकगुण सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
मु. रामचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: प्यारी लागेजी जिनजी; अंति: राम० भव थारी सेवा रे, गाथा-७. ६. पे. नाम. कुगुरु सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
मु. टीकम, रा., पद्य, आदि: तेरेपंथी फतेचंदरी; अंति: काढो लेभोला भरमाय, गाथा-१४. ७. पे. नाम. जिनवाणी पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
पुहि., गद्य, आदि: सुने सवइं इंद्र इंद; अंति: किये हिये नाणी. ८. पे. नाम. नेमिजिन लावणी, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
मु. रामचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: मे जाति हूं गिरनार; अंति: मे सरण तुम्हारि आया, गाथा-८. ९. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-वैराग्य, मु. रामचंद्र, पुहि., पद्य, आदि: तुम बात सुनो नि एक; अंति: पूठ पिछे लागा वैरी, गाथा-३. १०. पे. नाम. अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण.
मु. रामचंद्र, रा., पद्य, आदि: श्रेणिक रे वाडी चढ; अंति: भणी रे वंदु वारंवार, गाथा-६. ११. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ५अ, संपूर्ण.
मु. रामचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: फिटक सिंघासण ऊपरे; अंति: राम० तुम दास गुलाम, गाथा-५. १२. पे. नाम. श्रावकाचार पद, पृ. ५अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: नमो नमोरे जिन नमो; अंति: ओर द्वार किहुं नमो, गाथा-५. १३. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. ५आ, संपूर्ण.
मु. रामचंद्र, पुहिं., पद्य, वि. १९०१, आदि: अलिवात किम करीये; अंति: उदयापुर में गुन गाया, गाथा-११. १४. पे. नाम. चौवीसजिन पद, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
२४ जिन पद, मु. रामचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ अजित संभव अभिनंद; अंति: रामचंद्र इम भासै रे, गाथा-५. १५. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.
मु. रामचंद्र, रा., पद्य, आदि: प्रभुजीरी नोकरी अमे; अंति: राम० सेवा करने तरसे, गाथा-८. १६. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ६आ, संपूर्ण.
मु. रामचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: जिनजी भव भव दीजो चरण; अंति: सरणे आपरे हो राज, गाथा-५. १७. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण.
मु. रामचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: यादवराय आठ भवारी; अंति: राम० वंदे वारंवार, गाथा-७. १८. पे. नाम. सीमंधरजिन पद, पृ. ७अ, संपूर्ण.
मु. रामचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: महाविदेह में थे वसो; अंति: जोरे मुहीज पार लघाय, गाथा-४. ६८०५५. (#) साधुवंदना व भक्तामर गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.,
(२५४११.५, १३४३१). १.पे. नाम. साधु वंदना, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण.
साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रिसहजिण पमुह चउवीस; अंति: मनि अणंदे संथुया, ढाल-७,
___ गाथा-८८. २. पे. नाम. भक्तामरगुण स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र-गीत, संबद्ध, ग. सोमकुंजर, मा.गु., पद्य, आदि: मन समरु चकेसरी वंछत; अंति: सोमरतन० सांयतसुर,
गाथा-१४. ६८०५६. (#) पार्श्वनाथ नीसाणीव गौतम गणधर गीतादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १०४२५).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
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१. पे नाम. पार्श्वजिन की घग्घर नीसाणी, पृ. १-५ आ, संपूर्ण
पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपत्तिदायक सुरनर, अंति: गुण जिनहर्ष कहंदा है,
गाथा - २७.
२. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ५आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन पद- शंखेश्वरतीर्थ, मु. वीरविजय, पुहिं., पद्य, आदि: अजब जोत मेरे जिनकी अंति: पूरो मेरइ मन की,
३८५
गाथा - ३.
३. पे. नाम, गोतम स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण.
गौतमस्वामी गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: गौतम नाम जपउ परभाते; अंति: समयसुंदर ० गाता रे, गाथा-३.
६८०५७. (+#) गोडीपार्श्वजिन वृद्धस्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, प्र. वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे. (२३.५५१२, १०x२५).
पार्श्वजिन स्तवन- अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणी ब्रह्मावादनी, अंति: प्रीतविमल० मंते, ढाल ५, गाथा - ५५.
६८०५८. (+) श्रीपाल चरित्र बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पणयुक्त पाठ., दे., (२४.५X१२, १४x२५).
श्रीपाल चरित्र - बालावबोध, मु. देवमुनि, मा.गु., पद्य, वि. १९९७, आदि: श्रीअरिहंत सुसिद्धपद, अंति: (-), (पू. वि. मवणासुंदरी का पिता के साथ वार्त्तालाप प्रसंग अपूर्ण तक है.)
""
६८०५९. झांझरीयामुनि सज्झाबादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. ४, दे. (२५x१२, ११४३६). १. पे नाम. झांझरियामुनि सज्झाय, पृ. १अ ३अ, संपूर्ण.
मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: सरसती चरणें सीस नमा; अंतिः सहु वृंदारे, ढाल ४, गाथा ४२. २. पे. नाम. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पृ. ३अ ५आ, संपूर्ण.
मु. देवचंद्रजी, मा.गु., पद्म, आदि द्वारिका नगरी ऋद्धि, अंतिः होजो सुगुरू सहाय रे, डाल-३, गाथा ७४.
३. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. ५आ ९आ, संपूर्ण.
मु. मुक्तिकमल, मा.गु., पद्य, वि. १९७३, आदि: त्रिशलानंदन प्रणमीए अंतिः जिन आणा चित्त लाई रे, दाल-७,
गाथा-८५.
४. पे. नाम. धन्नाकाकंदी चौढालिया, पृ. ९आ - १२अ, संपूर्ण.
मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम समरु श्रुति; अंतिः पुण्यसागर०भव तणो पार, गाथा-५३.
६८०६०. (#) स्थूलिभद्र नवरसो, संपूर्ण, वि. १८६०, श्रावण शुक्ल, ४, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ५, ले. स्थल. कोटानयर, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२४४१२, १५४३० ).
""
स्थूलभद्र नवरसो, उपा. उदयरत्न, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति दायक सदा; अंति: मनोरथ वेगे फल्या रे, ढाल - ९.
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६८०६१. आनंदश्रावक संधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., ( २४.५X११.५, १६x४२). आनंदधावक संधि, मु. श्रीसार, मा.गु, पद्य वि. १६८४, आदि: वर्द्धमान जिनवर चरण, अंति: (-) (पू. वि. गाथा २१३ अपूर्ण तक है.)
६८०६२. (+) नवतत्त्व चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४x१२, १५X३३-३६). नवतत्त्व चौपाई, मु. जिनदत्त ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पढम चरण जिन हूं नमुं; अंति: या ए वंदु जिन सवसंत, ढाल-८. ६८०६३. चेलणा चौपाई, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ६, जैवे. (२४४१२, १५४३३-३६).
,
चेलणासती चौपाई. मु. दयाचंदजी ऋषि, मा.गु, पद्य, आदिः चोवीसमा महावीरजी, अंतिः यी छै जनम मरण मिटासी, ढाल - १३. ६८०६४. सुदर्शनसेट रास, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ८ जैदे. (२४४१२, १७५४).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
सुदर्शनशेठ रास, मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु श्रीमहावीर धीर, अंति: त्रिभुवन मे तारक तको, गाथा - १२१. ६८०६५. (+) गौतमस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३७, मार्गशीर्ष शुक्ल, ४, बुधवार, मध्यम, पृ. ६, ले. स्थल. वर्द्धमानपुर, प्रले. श्राव. फुलचंद महेता, पठ. मु. अमीचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., दे., ( २३X१२.५, ९x१६-१९).
गौतमस्वामी स्तवन, मु. हीराचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९३७, आदि: श्रीगौतमसामी पृच्छा; अंति: गौतम प्रीछा गुण खाण,
गाथा-४२.
६८०६६. झांझरीआमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९४३ आश्विन शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. ५, ले. स्थल, साडेरा, प्रवे. पं. लक्ष्मीचंद ( नागोरी तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. महात्मा घासीरामजी द्वारा लिखित प्रत की प्रतिलिपि प्रतीत होती है. वे., ( २३४१२, ९-१२x२९-३६).
झांझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: सरसति चरणे शीश नमावी; अंति: तुमारे मन वसीयो, डाल- ४, गाथा ४३.
६८०६७. (४) चंदराजा गुणावली लेख, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैवे., (२४.५X१२.५, १३X२१-२४).
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चंद्रराजागुणावलीराणी लेख, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदिः स्वस्ति श्रीमरुदेवीन, अंति: दा वली करसे उत्तपात रे,
गाथा- ७२.
६८०६८. (#) सुक्तमुक्तावली सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८७४, फाल्गुन कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ८, ले. स्थल. अहमदाबाद, प्रले. आ. विजयदेवसूरि (तपागच्छ विजवाणंदसूरिशाखा); गुपि. मु. रूपचंद, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. नागोरीशाला मध्ये पत्र लिखे जाने का उल्लेख है व पत्रांक- १अ पर वर्ष १८७६ में हुए भूकंप का उल्लेख है., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३४१२, १२४३१).
सूक्तमुक्तावली, प्रा.सं., पद्य, आदि: अर्थार्थवर्गहितचिंतन, अंति: जगतितेपिविरं जयति, वर्ग-४ (वि. मूल का प्रतीक पाठ
मात्र है.)
सूक्तमुक्तावली - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अरथ अरजे जेणि स्वायत, अंति: अर्थमा काम निदान छे.
६८०६९. नवतत्त्व बोल-१ से ३. संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे (२४४१३, १४X३४).
"
"
नवतत्त्व प्रकरण-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जीव १ अजीव २ पुण्य ३; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६८०७० (०) खंडाजोचण द्वार, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे.,
(२३.५x१३, १३४३३-३६)
१. पे. नाम. खंडाजोयण, पृ. १अ-७अ संपूर्ण.
लघुसंग्रहणी - खंडाजोयण बोल* संबद्ध, मा.गु, गद्य, आदि; खंडा १ जोवण २ वास ३: अंतिः पहुलो पावकोसनो
दल.
२. पे नाम. वीस विहरमान नाम, पृ. ७अ, संपूर्ण
२० विहरमानजिन विवरण, मा.गु., को. आदिः श्रीमंधरस्वामी, अंति: पोनवती रतमाला (वि. अंत में खंडाजोयण यंत्र
"
दिया गया है.)
६८०७१. (-) ऋषभजिन स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ८, कुल पे. ४८, ले. स्थल शिवपुरी, प्रले. मु. गंगाराम (खरतर गच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२३x१०.५, १६-१९x४८-५२).
१. पे नाम. आदिजिन स्तवन- जन्मबधाई. पू. १अ संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदिः आज तो बधाइ राजा नाभिः अंति: निरंजन आदिसर देआरे, गाथा- ६.
२. पे नाम. अष्टापदतीर्थ स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अष्टापद जिनजात्र करण, अंति: ज्ञानविमल० नायक भावे, गाथा-८. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन- राणकपुरमंडन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
मु. शिवसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १७१५, आदि: राणपुरो रलियामणो रे, अंतिः लाल शिवसुंदर सुखदाय, गाथा १६.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
३८७ ४. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, मु. भाव, पुहिं., पद्य, आदि: दरसण द्यो प्रभु रिषभ; अंति: भाव० टालो भव भव फेरा, गाथा-१०. ५. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण.
मु. कांतिविजयजी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीरे सिद्धाचल; अंति: कांतिविजय० गायो, गाथा-५. ६. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण.
मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अजित अरिहंत भगवंत; अंति: जैनेंद्र० देवाधीदेवा, गाथा-५. ७. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. २अ, संपूर्ण.
औपदेशिक श्लोक संग्रह*, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: आपदार्थे धनं रक्षे; अंति: जानदध्नेति भाषितम्, श्लोक-४. ८. पे. नाम. १८ भार वनस्पति भाव, पृ. २अ, संपूर्ण.
मु. सिद्ध, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम कोड अडवीस; अंति: ए अर्थ कहे मोटा जती, गाथा-१. ९. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण, आषाढ़ कृष्ण, २.
मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: घंट बाजे घनननननन; अंति: रूपचंद० भयो मननननन, गाथा-३. १०. पे. नाम. आशीर्वचन श्लोक, पृ. २आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: भाले भाग्यकला मुखे; अंति: मनहंसको मानसरोवर तीर, श्लोक-१०. ११.पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन-लघु, मु. हर्षचंद, मा.गु., पद्य, आदि: कांइ हठ मांड्यो छे; अंति: हरखचंद० मुगत रेवास,
गाथा-६. १२. पे. नाम. आदिजिन होरी, पृ. २आ, संपूर्ण.
आदिजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: बाबा ऋषभ बैठे अलवेले; अंति: रूपचंद० प्रभु भव के, गाथा-५. १३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण,
मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: हेली जेसलनगरे रे; अंति: अजर अमर पद पाया हे, गाथा-६. १४. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो प्रणमुं दिन; अंति: कहे मानविजय उवज्झाय, ढाल-४, गाथा-२५. १५. पे. नाम. १८ भार वनस्पति गाथा, पृ. ३आ, संपूर्ण.
क. शुभ, मा.गु., पद्य, आदि: छः सरसव एक जव; अंति: अढीबार कोडी कणगंमि, गाथा-३. १६. पे. नाम. मूल विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण, वि. १८८४, आषाढ़ कृष्ण, ३, ले.स्थल. शिवपुरी, प्रले. मु. गंगाराम (खरतर
गच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. जीरावला पार्श्वप्रभुजी प्रसादात्
मूल नक्षत्र पाया, सहदेव, मा.गु., पद्य, आदि: जेठ फागुण मृगिसरे; अंति: चतुर्थे मातुलक्षयं, गाथा-४. १७. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ४अ, संपूर्ण.
मु. हरखचंद, पुहि., पद्य, आदि: श्रीपासजी दीनदयाल लग; अंति: हरखचंद० भव का जंजाल, गाथा-३. १८. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ४अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, मु. हर्षचंद, पुहि., पद्य, आदि: निरमल होय भज ले; अंति: भवजल समरण पार उतारे, गाथा-५. १९. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ४अ, संपूर्ण.
मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: ढिर वताय दे पहारीयां; अंति: मौं त्यां भर थाल, गाथा-४. २०. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ४अ, संपूर्ण.
आदिजिन पद-केसरिया, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: हो केसरिया बाबा लज्य; अंति: रूपचंद० लेहस्यै हो,
गाथा-३. २१.पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. माणिक्य, पुहिं., पद्य, आदि: प्रीत बनी तो नीभाय; अंति: माणीक्यसेवा फल पइया,
गाथा-७.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २२. पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. ४आ, संपूर्ण.
मीराबाई, मा.गु., पद्य, आदि: निरमोहीडा तोसै कबुन; अंति: मीरा० कमल चितलाई रे, पद-१३. २३. पे. नाम. नाणावटी सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण.
श्राव. साहजी रुपाणी, रा., पद्य, आदि: अहो नाणावटी नाणुं; अंति: साहजी० तु मैत्राणी, गाथा-८. २४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. विनयविजय, रा., पद्य, आदि: जोर वन्यो जोर वन्यो; अंति: विनयविजय०नित नित
सेव, गाथा-९. २५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण.
मु. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: जय बोलो पास जिनेसर; अंति: जिनचंद्र० सुरतरु की, गाथा-७. २६. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण.
मु. ज्ञानउद्योत, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धाचल वंदो रे; अंति: ज्ञानउद्योत० एकतारी, गाथा-५. २७. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण.
पंन्या. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिकरण श्रीय शांति; अंति: रंगविजय गुण गाय रे, गाथा-५. २८. पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
सुविधिजिन पद, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: वांके गढ फोज चढी है; अंति: रूपचंद० न ध्याउ ओर, गाथा-५. २९. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ५आ, संपूर्ण..
मु. वृद्धिकुशल-शिष्य, रा., पद्य, आदि: जोडी थारी कुण जुडे; अंति: भव भव दीजे तुम दीदार, गाथा-६. ३०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गोडीराय अरज सुणीने; अंति: मोहन उठी प्रणमीजे रे,
गाथा-५. ३१. पे. नाम. नेमराजिमती लावणी, पृ. ५आ, संपूर्ण.
मु. चतुरकुशल, पुहिं., पद्य, आदि: नेमनाथ मेरी अर्ज; अंति: फेरा नहि फिरणे कि, गाथा-१०. ३२. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ५आ, संपूर्ण.
पुहि., पद्य, आदि: क्या तारी फकरु मेरा; अंति: मुगत दीयो सुखकारी, दोहा-४. ३३. पे. नाम. नेमजिन स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजय सुत नेम; अंति: राजुल आणंद पाया रे, गाथा-७. ३४. पे. नाम. महावीरजिन बधाई, पृ. ६अ, संपूर्ण.
. न्यायसागर, पुहिं., पद्य, आदि: बाजीत रंग वधाई नगरमा; अंति: न्यायसागर० तेज सवाई, गाथा-४. ३५. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण.
म. वीर, मा.गु., पद्य, आदि: आदिजिनेसर विनती: अंति: वीर नमे करजोडी रे. गाथा-५. ३६. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण.
मु. जैत, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीचंदाप्रभु जिनवर; अंति: भव तुम चरणां बलिहारी, गाथा-६. ३७. पे. नाम. रहनेमी स्वाध्याय, पृ. ६आ, संपूर्ण, वि. १८८५, आषाढ़ अधिकमास शुक्ल, ४. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काउसग व्रत रहनेम; अंति: देव० सुख लेहस्यै रे,
गाथा-१२. ३८. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. ६आ, संपूर्ण.
प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: कुपोदीकं बटक छाया; अंति: भला राजा भला सुजाण, श्लोक-२. ३९. पे. नाम. सुविधिजिन पद, पृ. ७अ, संपूर्ण..
मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: मुजरा साहिब मुजरा; अंति: रूपचंदनिरंजन तेरा रे, गाथा-३. ४०. पे. नाम. कुंथुजिन स्तवन, पृ. ७अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: रात दिवस नित सांभरे; अंति: पद्मने मंगलमालो लाल, गाथा-६. ४१. पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. ७अ, संपूर्ण.
मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मनना मोहन मारा दिलना; अंति: राम कहे शुभ सीस हो, गाथा-५. ४२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. श्रीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अकल मुरति अलवेसरू; अंति: श्रीविजय सुख रसाल
हो, गाथा-८. ४३. पे. नाम. शांतिजिन आरती, पृ. ७आ, संपूर्ण.
सेवक, पुहि., पद्य, आदि: जय जय आरती शांति; अंति: सेवकनार अमर पद पावै, गाथा-६. ४४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, पृ. ७आ, संपूर्ण.
मु. धीर, पुहिं., पद्य, आदि: अजब ज्योत मेरे तन की; अंति: आसापुरो मेरे मनकी, गाथा-३. ४५. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ७आ, संपूर्ण..
मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पास प्रभु दिल भाया; अंति: न्यायसागर० गाया हो, गाथा-३. ४६. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ७आ, संपूर्ण.
मु. साधुकीर्ति, पुहि., पद्य, आदि: देखो माइ अज रीखव घेर; अंति: साधुकीरति गुण गावै, गाथा-४. ४७. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. ७आ, संपूर्ण.
मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शीतलजिन सहजानंदी थयो; अंति: जिनविजय आणंद समावे, गाथा-५. ४८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भवि तुमे वंदो रे; अंति: पद्मविजय० चिरनंदो, गाथा-७. ६८०७२. (#) जैन आचार पद्धति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-२(१ से २)=८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१०.५, ९४२५-२९).
जैनाचार पद्धति, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. शारीरिकशुद्धि क्रिया अपूर्ण से अष्टप्रकारी पूजा के
प्रारंभ तक है.) ६८०७३. (#) पंचमीदेववंदन विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१२, १२४२८-३१). ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम बाजठ उपरि तथा; अंति: (-),
(पू.वि. श्रुतज्ञान स्तुति अपूर्ण तक है.) ६८०७४. (#) श्रावकपाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-२(१ से २)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१२.५, १३४२४).
श्रावकसंक्षिप्त अतिचार*, संबद्ध, मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्राणातिपात विरमण व्रत अपूर्ण से
___ तपाचार अपूर्ण तक है.) ६८०७५. (#) सुक्तिमाला, अपूर्ण, वि. १८४६, ज्येष्ठ कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ९-३(१ से ३)=६, ले.स्थल. पाटण, प्रले.ग. धनसौम्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१२, १५४४०). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदिः (-); अंति: मोक्ष साधै जि कोई, (पू.वि. द्वार-१
श्लोक-५९ अपूर्ण से है.) ६८०७६. (#) शत्रुजय रास, संपूर्ण, वि. १८७७, पौष कृष्ण, १२, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१२.५, ११४२६).
शत्रुजयतीर्थरास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंति: सुणतां आनंद
थाय, ढाल-६, गाथा-१०४. ६८०७७. (#) नवतत्त्व प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८९४, आषाढ़ शुक्ल, १४, सोमवार, मध्यम, पृ. ५-१(३)=४, प्रले.पं. कनीराम;
पठ. श्रावि. विदाम बीबी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१२, १२४२५).
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३९०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१ जीवार पुण्णं३; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-५५, (पू.वि. गाथा-२३
अपूर्ण से ३८ अपूर्ण तक नहीं है.) ६८०७८. स्नात्र पूजा व नवपद पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, जैदे., (२२.५४१२, १०४२९). १.पे. नाम. स्नात्रपूजा विधिसहित, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण.
ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चोतिसे अतिसय जुओ वचन; अंति: देवचंद० सूत्र मझार, ढाल-८, गाथा-६०. २.पे. नाम. नवपद पूजा, पृ. ७अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१, गाथा-५ तक
६८०७९. (+) चंदराजा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९५-८६(१ से ८६)=९, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३४११, १५४३५).
चंद्रराजा रास, मु. विद्यारुचि, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१२, गाथा-५ अपूर्ण से
___ ढाल-२०, गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ६८०८०. (#) मोतीकपासीया संवाद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११, १२४२९-३५). मोतीकपासीया संबंध, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: सुंदर रुप सोहामणो; अंति: सार० चतुरनरां
चमतकार, ढाल-५, गाथा-१०६. ६८०८१. (#) स्तवन व पद्मावती आराधना, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०-१(२)=९, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल
गयी है, दे., (२२.५४११, १०x२४). १.पे. नाम. पून्यप्रकास स्तवन, पृ. १अ-८अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., वि. १९१२, माघ शुक्ल, २,
ले.स्थल. सिरोहि, प्रले. मु. रंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: नामे
पूनप्रकाश ए, ढाल-८, (पू.वि. ढाल-१ गाथा-४ से ढाल-२ गाथा-२ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. पद्मावती आराधना, पृ. ८अ-१०आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पद्मावती; अंति: पापथी छुटे तत्काल, ढाल-३,
गाथा-३५. ६८०८२. (+) क्रियास्वरूप, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१२, १३४३५-३८).
जैनाचार पद्धति, पुहिं., गद्य, आदि: जिससे पाप आवे उसे; अंति: रष्टीको छोडना चाहिये, अंक-२५. ६८०८३. प्रदेशीराजा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९०७, वैशाख शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. नागोर, दे., (२४.५४१२, २५४५३-५६). प्रदेशीराजा चौपाई, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि: तिणकालनै तिणसमै जंबू; अंति: कही सूत्रथी
काढो रे, ढाल-२२. ६८०८४. (#) अष्टप्रकारी पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२.५, १७४२७). ८ प्रकारी पूजा-पिस्तालीसआगमगर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८१, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजी, अंति:
(-), (पू.वि. फलपूजा, दोहा-२ अपूर्ण तक है.) ६८०८५. बारभावना, संपूर्ण, वि. १८८०, कार्तिक शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. कलकत्ता, प्रले. पं. रंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१२, १२४२९). १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: पास जिणेसर पाय नमी; अंति: भणी जेसलमेर
मझार, ढाल-१३, गाथा-१२५, ग्रं. २००. ६८०८६. तिलोकसुंदरीरास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, जैदे., (२४४१२, १५४३६).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
३९१ त्रैलोक्यसुंदरी रास, मु. सबलदास ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: विहरमान वीसे नमु; अंति: जिण घर लील
विलासोरे, ढाल-१२. ६८०८७. साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १९६६, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., (२४४१२, २२४६५).
साधुवंदना, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: पंच भरत पंच इरवत जाण; अंति: देवमुनि ते संथुण्या, ढाल-१३, गाथा-३७७. ६८०८८. २४ जिन गणनुंव वासुपूज्य पंचकल्याणक स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८-३(१,५ से ६)=५, कुल पे. २, दे.,
(२०.५४११.५, ११४२४). १. पे. नाम. २४ जिन गणर्नु, पृ. २अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र हैं. २४ जिन मोक्ष कल्याणक गणनु, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सुविधिजिन कल्याणक से सुपार्श्वनाथ
कल्याणक तक है.) २.पे. नाम. वासुपूज्य पंचकल्याणक स्तवन, पृ. ७अ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. वासुपूज्यजिन स्तवन-पंचकल्याणक, उपा. हीरधर्म पाठक, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: जगजीव मिलोगा तेहमै,
स्तवन-५, गाथा-२५, (पू.वि. जन्मकल्याणक गाथा-१ अपूर्ण से है.) ६८०८९. (+) तिलोकसुंदरी रास, संपूर्ण, वि. १९७३, माघ कृष्ण, ८, सोमवार, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४४१२,११४३६). त्रैलोक्यसुंदरी रास, मु. सबलदास ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: विहरमान वीसे नमुं; अंति: जिण घर लील
विलासोरे, ढाल-१२. ६८०९०. साधुवंदना, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४४१२, १६४३७-४०).
साधुवंदना बडी, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अरिहंत सिद्ध साधु; अति: (-), (पू.वि. ढाल-१३,
गाथा-१० अपूर्ण तक है.) ६८०९१. बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-२(१ से २)=६, कुल पे. ३, दे., (२४४१२.५, १७X४२-४५). १. पे. नाम. समकित के ६७ बोल, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है.
सम्यक्त्व ६७ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मोक्ष जवानो उपाय छे. २.पे. नाम.६२ बोल, पृ. ३अ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: जीव १ गइ २ इंदिय ३; अंति: लेस्या ६ लाभई. ३. पे. नाम. दशार्णभद्रराजर्षि चौपाई, पृ. ८अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
___ मु. कुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७८६, आदि: सारद समरु मनरली समरु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ६८०९२. (+) प्रश्नोत्तर- २० द्वार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१२, १५४४०).
प्रश्नोत्तर २० द्वार, मा.गु., गद्य, आदि: आसीविष कहीयै दंष्टाव; अंति: ज्ञानपर्याय अनंतगुणा. ६८०९३. लघुदंडक बोलसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्रले. मु.खेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१२,
१५४३७-४०).
___ लघुदंडकभेद बोल, मा.गु., गद्य, आदि: शरीर ओगाहणा संघयण; अंति: गति नही २५ अजोगी २६. ६८०९४. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र-कथासंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१२, १८४४३-४७). उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: गुरु प्रतिनिक कुलबाल; अंति: (-), (पू.वि. सिंहरथनृप कथा अपूर्ण
तक है.) ६८०९५. (+#) शील री नववाड, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१२, ११४३२). शीलनववाड ढाल, मु. अगरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: प्रणम पंचपरमेष्ठि; अंति: वडे हरख अपार रीमाई,
ढाल-१०.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६८०९६. (#) खंधकमुनि चौढालिया, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल
गयी है, जैदे., (२४४१२, १३४३५). __खंधकमुनि चौढालिया, मु. जैमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८११, आदि: वीरजिणंद सासणधणीजी; अंति: मिच्छामि
दुक्कड होय, ढाल-४. ६८०९७. (+#) आलोवणा विधि, संपूर्ण, वि. १९२८, भाद्रपद कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. नागोर, प्रले. हरनारायण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१२, १६४३०-३३).
आलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: अतीत काल अठार पाप; अंति: साध श्रावक आराधक होय. ६८०९८. जिनपदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. १८, जैदे., (२४४१२, १५४३०). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण..
रा., पद्य, आदि: वडे गर ताल लागी रे; अंति: हारे जहर जडी कुण खाय, गाथा-६. २. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, रा., पद्य, आदि: जाने दयारी वात; अंति: तो कोई पुन्यवंत पावे, गाथा-७. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण.
मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: समझ मन मत कर कोई से; अंति: जिनदास० समझोगे कदी, गाथा-६. ४. पे. नाम. कुगुरु परिहार, पृ. २अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-कुगुरु परिहार, मु. जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: प्राणि समगत कीण वीद; अंति: जिनदास०
नहीं काई रे, गाथा-६. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद-पुण्य, पृ. २आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-पुण्योपरि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पारकी होड तुंमत कर; अंति: पुनथी लाभा
कोटानकोटी, गाथा-३. ६.पे. नाम. औपदेशिक पद- दया, पृ. २आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद, मु. हरखचंद, मा.गु., पद्य, आदि: दया विन करणी दुखदानी; अंति: हरखचंद० पाई जिनवाणी,
गाथा-४. ७. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-कामभोग परिहार, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-कामभोग परिहार, म.प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि: ममत मत कीजो राज मन; अंति: लही एक छीन
में, गाथा-६. ८. पे. नाम. परनारी सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-परनारी, मु. सेवाराम, मा.गु., पद्य, वि. १८८३, आदि: रावण मोटो राय कहीजे; अंति: भले रो
रामपुरो गढ को, गाथा-९. ९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. ___ मु. रतन, मा.गु., पद्य, आदि: पुद्गल से मत करन; अंति: रतनमुनि सर जेहारे, गाथा-३. १०. पे. नाम. संयमग्रहण सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-संयमग्रहण, मा.गु., पद्य, आदि: नव गती मे भटकत भटकत; अंति: ओछे साचो ग्यान, गाथा-८. ११. पे. नाम. लोभ सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण..
__ औपदेशिक सज्झाय-लोभपरिहार, मा.गु., पद्य, आदि: चंचल जीवडलारे तु तो; अंति: तो मुगत मुजारा जाय, गाथा-७. १२. पे. नाम. गजसुकमालमुनि सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: फरक मन रेणा हो रेणा; अंति: ने आली वाद वदाई, गाथा-१२. १३. पे. नाम. दानशीलतपभावना सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण.
रा., पद्य, आदि: चेतनजी थे वारणा मति; अंति: मुगत सीधावो रे, गाथा-७. १४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
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मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: बांधो मति कर्म चीकणा; अंति: इण दृष्टांते जाण, गाथा- ७. १५. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. ५आ, संपूर्ण.
गाथा-४.
मु. रामरतन शिष्य, पुहिं., पद्य, आदि: लारे लागो रे यो पाप; अंति: रामरतन० समता राची रे, १६. पे. नाम औपदेशिक पद मायावी संसार, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-मायावी संसार, मु. रामशिष्य, पुहिं., पद्य, आदि: एह जग सुपने की माया, अंति: राम० चरणां चितलाया, गाथा-५.
१७. पे नाम, औपदेशिक पद, पृ. ६अ, संपूर्ण,
जेष्ठ, पुहिं.रा., पद्य, आदि: चेतन तुं ध्यान आरत; अंति: ता तुरत ही आनंद पावै, गाथा- ६.
१८. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. ६अ ६आ, संपूर्ण.
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मु. कुसल पु,ि पद्य, आदि: सुकरत करले रे मुंजी अंति: (-) (अपूर्ण. पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा-५ अपूर्ण तक लिखा है.)
"
#
६८०९९, (+) साधुवंदना, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ५. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२४४१२, ११४३२). साधुवंदना बडी, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: नमुं अनंत चोवीसी, अंति: जेमलजी एह तरणनो
,י
३९३
दाव, गाथा - १११.
६८१०० (+) पुण्यप्रकाशनुं स्तवन, संपूर्ण वि. १८९०, आश्विन शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. ६, ले. स्थल. राणी, प्रले. मु. राजविजय (गुरु पं. मोहनविजय) प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे. (२४४११.५,
११x४०).
पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: नामे पुन्य प्रकाश ए, ढाल ८, गाथा - १०२.
६८१०१. विमलमंत्री सलोको, संपूर्ण, वि. १८५५ श्रावण कृष्ण, २ शनिवार, मध्यम, पृ. ६, ले. स्थल, लासुर प्र. मु. मुक्तिहर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५X१२, १६X३३-३६).
विमलमंत्री रास, पंडित, शांतिविमल, मा.गु., पद्य, आदिः समरु सरससति वे कर अंतिः शांतिविमल गुण गायो,
गाथा - १११.
६८१०२. नेमबहोत्तरी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, दे., ( २४.५x१२.५, १६X५५).
नेमिजिनबहोत्तरी, मु. सुजाणमल, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम पाद अरिहंत नमु; अंति: सफल जनमसु विलास, गाथा - ७३. ६८१०३. (७) स्तवनवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ११-२ (१, ४) = ९, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४४१२, १०x२९).
विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: वाचक जश इम बोले रे, स्तवन- २०, (पू. वि. प्रथम एक व बीच के पत्र नहीं हैं. बाहुजिन स्तवन गाथा १ अपूर्ण से ऋषभाननजिन स्तवन गाथा-६ अपूर्ण तक व चंद्रप्रभजिन स्तवन गाथा-४ अपूर्ण से है.)
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६८१०४. (a) साहपंचाणजीनो रास, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ८, ले. स्थल. वाब, प्रले. मु. लालचंद्र प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५X१२.५, ११x२२).
साह पंचाइणजी रास, मु. जयराज, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: वांदु वीरजिणंदना चरण, अंति: कडुआ गच्छने मंगल करो, गाथा- ७४.
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६८१०५. (A) मौनएकादशी व्याख्यान, संपूर्ण वि. १८४०, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, गुरुवार, मध्यम, पृ. ८, ले. स्थल, वाणारसी ( भेलुपुर, प्रले. सोम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५X११, १५X२७).
मौनएकादशीपर्व व्याख्यान - सुव्रतश्रेष्ठिकथायां, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: (१) सिरिवीरं नमिऊण, ( २ ) श्रीमहावीरनै नमस्कार, अंति: सकल सुख विभागी थाइ,
६८१०६. शेत्रुंजयउद्धार रास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६-१ (२) ५. पू. वि. बीच के पत्र हैं. जैदे. (२२x१२, १७२७).
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३९४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि (-) अंति (-) (पू. वि. ढाल १, गाथा - २२ अपूर्ण से कलश अपूर्ण तक है.)
६८१०७. शेत्रुंजयउद्धार रास, जिनप्रतिमास्थापन सज्झाय व अभिनंदनजिन गीत, संपूर्ण, वि. १७८९, मध्यम, पृ. ५, कुल पे, ३, ले. स्थल. गेरिता, जैदे., (२१X१२, १७३५).
१. पे नाम, शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास, पृ. १अ ५आ, संपूर्ण
मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: बिमल गिरिवर विमल, अंतिः द्यो दरिशन जयकरो, ढाल १२, गाथा- १३१, ग्रं. १७०.
२. पे. नाम. जिनप्रतिमा स्थापना सज्झाय, पृ. ५आ, संपूर्ण
जिनप्रतिमास्थापना सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि जिन २ प्रतिमा वंदन द अंतिः किजै तास खाण रे, गाथा - १५.
३. पे नाम, अभिनंदन गीत, पृ. ५आ, संपूर्ण,
अभिनंदनजिन पद, मु. न्यानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: जिनपति चोथा आगलि नाच, अंति: न्यानसागर० अविचल
वास, गाथा ५.
.
६८१०८, (५) मृगावती चरित्र, संपूर्ण वि. १८६८ आश्विन शुक्ल, मध्यम, पृ. ७१ ले. स्थल, साजहनावाद, प्रले. मु. देवदत्त, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २६.५X१२.५, ८x२५).
मृगावतीसती चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदिः समरु सरसति सामिणी; अंति: वृद्धि सुजगीसा छे, खंड - ३७, गाथा- ७४५, ग्रं. ११०० (वि. ३ ढाल)
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६८१०९. (+) जंबूद्वीप विचार, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जैदे (२७४१३,
"
११X३१).
लघुसंग्रहणी - खंडाजोयण बोल *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम जंबूद्वीपस्युं, अंति: (-), (पू. वि. पर्वत के ४ कुट के नाम अपूर्ण तक है.)
६८११०. (+) सुक्तावली सह बालावबोध व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७३- ३० (१ से ६, १७ से १८,२४ से २५,२९,३५ से ४८, ५६ से ५७, ६० से ६१, ६९ ) = ४३, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२७१३, १५X४४).
"
सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु. सं., पद्य, वि. १७५४, आदि (-) अंति (-) (पू. वि. वर्ग-४, गाथा- २३ तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.)
सूक्तमाला कथा*, मा.गु.. गद्य, आदि: (-) अंति: (-).
सूक्तमाला बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
६८१११. सीलसुंदरी रास, संपूर्ण, वि. १९४३, कार्तिक कृष्ण, ३०, मध्यम, पृ. ३२+१(२३) = ३३, दे., (२७X१३, १६x२९-३२). शीलसुंदरीसती चौपाई, पंन्या. राजविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९०, आदि: त्रिहुं जगनो संकर, अंति: राजविजय०श्रु तारी जी, ढाल - ३८, गाथा-८५६.
६८११२. चोमासाना चोविसजोडाना देववंदन, संपूर्ण वि. १९३३
श्रावण शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. २०, ले. स्थल, पालनपुर, प्र (२६४१३, ११४३१).
"
गोदड देवचंद खत्री, एड सा. नाहलीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. चौमासपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विमलकेवलज्ञान कमला, अंतिः वरिया सिवसुख सार रे. ६८९१४. ढुंढियामत प्रश्नोत्तर संग्रह, संपूर्ण वि. १९१६ माघ शुक्ल, १५, मध्यम, पू. १० वे. (२५.५x१३, १०x३२).
""
इंडियामत प्रश्नोत्तर संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: लुंका इम कहे छे जे; अंतिः परे पूजा कीधि
६८११५. (+#) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र नयाधिकार का विविचन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३, प्र. वि. पदच्छेद सूच लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X१३, १५X३५).
तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-नयअधिकार - विवेचन, पुहिं., गद्य, आदि: नैगमसंग्रह व्यवहारऋज; अंति: नपंचकै मानता कही आदि.
.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
३९५ ६८११६. पंचमकर्मग्रंथ सह गाथार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०+१(४)=११, जैदे., (२५४१३, १३४३६-४०).
शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१२ तक लिखा है.) शतक नव्य कर्मग्रंथ-गाथार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जिनप्रते नमीनें; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. शतक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नत्वाक० नमस्कार करी; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण. ६८११८. चोमासी कल्याणक देववांदवा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, जैदे., (२५.५४१३, १५४२८-३३).
चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम खमासमणादेइ०; अंति: शिखरगीरिने बंदीइं. ६८११९. सौभाग्यज्ञानपंचमी देववंदन विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-१(१)=१२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६४१३.५, १०४२७-३०). ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. सौभाग्यज्ञान
पंचमीना देववंदन विधि से केवलज्ञान स्तवन विधि है.) ६८१२०. बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९४८, श्रेष्ठ, पृ.८, कुल पे. २, दे., (२५४१३, १२-१५४१८-३२). १. पे. नाम. श्रावक के ३५ बोल सह अर्थ, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण.
३५ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलै बोलै गति च्यार; अंति: गुण श्रावकना कह्या.
३५ बोल-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: देवगति मनुष्यगति; अंति: छे इण प्रमाण जाणवा. २. पे. नाम. समकित के ६७ बोल सह अर्थ, पृ. ७अ, संपूर्ण.
सम्यक्त्व के ६७ बोलभेद, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: चउसद्दहण तिलिंग; अंति: रूपणी दुकान ६ थानक, गाथा-२.
सम्यक्त्व के ६७ बोलभेद-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सरणते किम१ बोलै; अंति: मोखनो उपाय छै. ६८१२१. (+) सीमंधरस्वामीजीरो चोढालीयो, संपूर्ण, वि. १९४७, मध्यम, पृ. ८, ले.स्थल. सुजाणगढ, प्रले. आ. रामचंद्रसूरि (नागोरीलुकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४१३, १०४३०). सीमंधरजिन चोढालियो, मु. अगरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८९४, आदि: श्रीजिनशासन जग जयो; अंति: भवीक लोग
सुख पाया, ढाल-४. ६८१२२. सत्तरभेदी पूजा, संपूर्ण, वि. १९४०, आश्विन कृष्ण, ३, बुधवार, मध्यम, पृ. ८, ले.स्थल. नागोर, प्रले. पं. पुण्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१३, १३४३४).
१७ भेदी पूजा, आ. विजयानंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सकल जिनंदमुनिंदनी; अंति: निजात्मरूप हुं पायो, पूजा-१७. ६८१२३. दसपच्चक्खाण, थूई व पडिक्कमणादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५-७(१ से ७)=८, कुलपे. २८, जैदे.,
(२५४१२.५,१३४३५). १.पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. ८अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं.
संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: मिच्छामि दुक्कडम्, (पू.वि. अभिग्रह पच्चक्खाण अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ८अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: नमोस्तु वर्द्धमानाय; अंति: प्राणभाजां श्रुतांगी, श्लोक-४. ३. पे. नाम. वीर स्तुति, पृ. ८आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तुति, प्रा.,सं., पद्य, आदि: परसमयतिमिरतरणं भव; अंति: मे मंगलं देवि सारं, गाथा-४. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति-विभिन्नतीर्थ मंडण, पृ. ८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-विविध तीर्थमंडण, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः श्रीसेढीतटिनी तटेपुर; अंति: पास पयच्छउ वंच्छियं,
गाथा-४. ५. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. ८आ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न; अंति: देहु मे सुद्धनाणं, गाथा-४. ६. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. ९अ, संपूर्ण.
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सं., पद्य, आदि: पंचानंतकसुप्रपंचपरमा; अंति: सिद्धायिकास्त्रायिका, श्लोक-४.
७. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. ९अ - ९आ, संपूर्ण, पे. वि. पत्र चिपके होने के कारण अंतिम वाक्य अवाच्य है. मा.गु., पद्य, आदि: महामंगलं अष्ट सोहै; अंति: (अपठनीय), गाथा-४.
८. पे. नाम. थुई संग्रह, पृ. ९आ - ११अ, संपूर्ण, पे. वि. पत्र चिपके होने के कारण पाठ अवाच्य है.
स्तुतिसंग्रह, सं., प्रा., मा.गु., पद्य, आदि: ( अपठनीय); अंति: (अपठनीय).
९. पे. नाम महावीरजिन स्तुति, पृ. ११अ ११आ, संपूर्ण, पे. वि. पत्र चिपके होने के कारण आदिवाक्य अवाच्य है.
सं., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंतिः भवतु नित्य मंगलेभ्यः, श्लोक-४.
१०. पे नाम, आदिजिन स्तुति, पृ. १९आ, संपूर्ण,
शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेतुंजमंडण आदि, अंतिः नवसूरि० पाय सेवता, गाथा- ४. ११. पे नाम, ऋषभजिन स्तुति, पृ. १९आ, संपूर्ण,
आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि ऋषभनाथ भनाधनिभानने, अंति: तनुभातनुभातनु भारती, श्लोक-४.
१२. पे. नाम. ५ तीर्थजिन स्तुति, पृ. ११ आ-१२अ संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: श्रीशत्रुंजयमुख्य अंतिः ते संतु भद्रंकराः, श्लोक-४.
१३. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १२अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदिः युगादिपुरुषेंद्राय अंतिः कूष्मांडी कमलेक्षणा, श्लोक-४.
१४. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. १२अ १२आ, संपूर्ण.
आ. जिनलाभसूरि, मा.गु, पद्य, आदि बलि बलि हुं ध्यावुं अंति: कहे श्रीजिनलाभसुरिव गाथा-४. १५. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १२आ, संपूर्ण.
आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: निरुपम सुखदायक; अंतिः श्रीजिनलाभसूरिंदा जी, गाथा-४. १६. पे. नाम. पंचमीतिथि स्तवन, पृ. १२आ- १३अ, संपूर्ण.
पंचमीतिथि स्तुति, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पंच अनंत महंत गुणाकर, अंति: कहै जिणचंद मुणिंद,
गाथा-४.
१७. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १३अ १३ आ. संपूर्ण.
अजितजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: विश्वनायक लायक; अंति: यंपे होज्यो जयजयकारी,
गाथा-४.
१८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १३ आ, संपूर्ण.
आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि; अश्वसेन नरेसर वामा; अंतिः जिनभक्तिसूरि० वित्त, गाथा ४.
१९. पे. नाम. बीस विहरमानजिन स्तुति, पृ. १३ आ. संपूर्ण
२१. पे नाम, महावीरजिन स्तुति, पृ. १४अ, संपूर्ण.
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
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विहरमान २० जिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: पंचविदेह विषय, अंति: जन मन वंछिय सारै, गाथा-४. २०. पे. नाम. नेमजिनस्तुति- गिरनारमंडण, पृ. १४अ, संपूर्ण
नेमिजिन स्तुति - गिरनारमंडन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: गिरनारसिहरि पर नेमि; अंति: जिनलाभ० फलै सुजगीस, गाथा-४.
सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं, अंति: दद्यात्सौख्यम्, श्लोक-१.
२२. पे. नाम. २४ जिन स्तुति, पृ. १४अ, संपूर्ण.
अप, पद्य, आदि: भरहेसरकारिय देव हरे; अंतिः विगणंत अनंत दहंतगुणा, गाथा २.
२३. पे. नाम. दीपावलीपर्व स्तुति, पृ. १४आ, संपूर्ण
मु. चंद्रविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धारथ ताता जगत; अंतिः जंपे एहवी वाणी, गाथा-४,
२४. पे. नाम. चंद्रप्रभु स्तुति, पृ. १४आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
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अष्टमीतिथि स्तुति, आ. जनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसे जिनवर प्रणमुं अंति: इम सासन सुर सुजाण,
गाथा-४.
२५. पे, नाम, समवसरण स्तुति, पृ. १५अ, संपूर्ण.
मु. जयत, मा.गु., पद्य, आदि: मिलि चौविह सुरवर; अंति: पामै जयति सुनाणी, गाथा- ४.
२६. पे. नाम. शीतलजिन स्तुति, पृ. १५ अ, संपूर्ण.
आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवनजन नायक दायक, अंति: भणे श्रीजिनलाभसूरिव गाथा ४.
२७. पे नाम, शीतलजिन स्तुति, पृ. १५आ, संपूर्ण.
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आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुख समकित दायक कामित, अंति: रीये कहे जिनलाभसूरीस, गाथा-४. २८. पे. नाम. जयतिहुअण स्तोत्र, पृ. १५आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है.
-
आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुअणवरकप्परुक्ख, अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ६८१२४. निगोदषट्त्रिंशिका प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८९१, आश्विन कृष्ण, ३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ६,
ले. स्थल, खंभात, प्रले. श्राव. कुंवरजी सुंदरजी पठ. श्राव. पुन्यसारजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. त्रिपाठ, जैदे. (२६४१२.५, ४x२५).
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भगवतीसूत्र टीका का हिस्सा निगोदषट्त्रिंशिका प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि लोगस्सेगपएसे जहंणयपय अंति: तेअ अणता असंखा वा, गाथा - ३६.
निगोदषट्त्रिंशिका - बालावबोध, मा.गु, गद्य, आदि: लोक चउद रज्वात्मक, अंतिः असंख्याति जाणवी. ६८१२५. दशवैकालिकसूत्र १ से ३ अध्ययन सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९०३, चैत्र कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ८, ले.स्थल. हालारदेश(नवानगर, प्रले. ऋ. नानचंदजी उकरडा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५X१३, १५X२५-३२).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि धम्मो मंगलमुक्ति, अंति: (-), प्रतिपूर्ण दशवैकालिकसूत्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जगमाहि धर्म्मरूपियउं अंतिः (-), प्रतिपूर्ण
६८१२६. (#) पद्मावती स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८१२, आश्विन कृष्ण, २, शनिवार, मध्यम, पृ. ७- २ (१ से २) = ५, प्रले. ग. गोकलसागर; पठ. श्राव. करमचंद चरणजी चौधरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१३, १२x१८-२५). पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: स्तुता दानवेंद्रैः, श्लोक-२७, (पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है., श्लोक - ११ अपूर्ण
से है.)
६८१२७. शत्रुंजय रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६- १ (१) = ५, पू. वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., ( २६.५X१३, १०X३०). शत्रुंजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल - १, गाथा-१ से दाल-६, गाथा- २ अपूर्ण तक है.)
६८१२८. द्वादशव्रत टिप्पणक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५X१२.५, ११×३१). द्वादशव्रत टिप्पणक, मा.गु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीर, अंति: (-). (पू.वि. दंड के चार भेद तक है.) ६८१२९. धूर्त्ताख्यान दृष्टांतकथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-१ (१) =५, जैदे., (२६X१३, ११X३७).
दृष्टांतकथा संग्रह, प्रा.,मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., लाखाटोक्त चोरदृष्टांत अपूर्ण से तिलवृक्षदृष्टांत अपूर्ण तक है.)
६८१३०. गौतम रासो, संपूर्ण, वि. १९४८, कार्तिक कृष्ण, २, मध्यम, पृ. १०, प्रले. मु. रतना ऋषि (गुरु मु. दुलिचंद);
पठ. मु. बुलिचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२४४१२.५, ८x१९)
गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल, अंति: विजयभद्र० इम भणे ए, गाथा - ६३.
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६८१३१. (+) चैत्रीपुनम देववांदवा आदि विधिसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१-९ (१ से ९) = १२, कुल पे. १६, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. जैवे. (२५x१२, १६३५-३९).
१. पे. नाम. चैत्री पूर्णिमा पूजा, पृ. १०अ १४आ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि, प्रा. मा.गु. सं., पद्य, आदि अवस्सपिणीइ पढमं सेतु अंतिः पवास कीजे पछे उजमीजे, पूजा ५.
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३९८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. तपस्याग्रहण विधि, पृ. १४आ-१५अ, संपूर्ण.
तपग्रहण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही पडिक; अंति: हुवै तो आप मुखै करै. ३. पे. नाम. तप पाडण विधि, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण.
तपपारणा विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरीयावहि; अंति: दान सनमान कीजै. ४. पे. नाम. पंचमीतपउच्चारण विधि, पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण.
प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पहिली गुरु आगलि आवी; अंति: काउसग्ग न करै. ५. पे. नाम. पंचमी तप पारने की विधि, पृ. १६अ-१७अ, संपूर्ण.
पंचमीतप पारने की विधि, मा.गु., गद्य, आदि: तपकरी उजमनी कीजै; अंति: अनुमान सनमान कीजै. ६. पे. नाम. मौनएकादशीतप विधि, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही तस्सु; अंति: कीजै परीलोगस्स कहीयै. ७. पे. नाम. चौदश मेलवी विधि, पृ. १७आ, संपूर्ण.
प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पहिली इरियावही तस्सु; अंति: बेसी नमोत्थुणं कहीजै. ८. पे. नाम. चैत्री पूनम उत्थापन विधि, पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण.
चैत्रीपूनम उत्थापन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: तिहां प्रथम देवभक्ति; अंति: साहमीवच्छल करै. ९. पे. नाम. चैत्री पूनम पारिवा विधि, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण..
चैत्रीपूनम पारिवा विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथ देव आगैवा ज्ञान; अंति: कहै इच्छामोणु सट्ठिए. १०. पे. नाम. साधुअतिचारचिंतवन गाथा सह बालावबोध, पृ. १८आ, संपूर्ण.
साधुअतिचारचिंतवन गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सयणासणन्नपाणे; अंति: वितहायरणेय अइयरो, गाथा-१.
साधुअतिचारचिंतवन गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अस्या गाथाया असमर्थ; अंति: हुवै ते सर्व आलोउं. ११. पे. नाम. ज्ञानपंचमी विधि, पृ. १८आ, संपूर्ण.
ज्ञानपंचमी आराधना विधि, मा.गु., पद्य, आदि: तिहां प्रथम पवित्र; अंति: पांच जेती दिवरावीइं. १२. पे. नाम. अतिचार गाथाष्टकं, पृ. १९अ, संपूर्ण.
पंचाचार अतिचार गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिअ; अंति: नायव्वो वीरियायारो, गाथा-८. १३. पे. नाम. ज्ञानपद पूजा, पृ. १९आ, संपूर्ण.
प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: अन्नाण संमोहतमोहरस्स; अंति: शुद्धं तदेव प्रमाणं. १४. पे. नाम. वीसस्थानक तप लेवानी विधि, पृ. १९आ-२०अ, संपूर्ण.
२० स्थानकतप उच्चारणविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही पडिकम; अंति: सुणावी वासक्षेप कीजै. १५. पे. नाम. तिथिप्रमुख तपविधि, प्र. २०अ-२०आ, संपूर्ण..
मा.गु., गद्य, आदि: शुभ दिन राई प्रायच्छ; अंति: पछै वासक्षेप दीजै. १६. पे. नाम. पंचमी वीसस्थानक प्रमुख तप उजवण विधि, पृ. २०आ-२१अ, संपूर्ण. पंचमीतिथितप उजमणा विधि, मा.गु., प+ग., आदि: पांचम अथवा छठिनै; अंति: (१)मने मिच्छामि दुक्कड,
(२)मिच्छामि दुक्कडम्. । ६८१३२. (#) चंपकश्रेष्ठि चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२-१(१)=२१, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१२, ११४२१-२४).
चंपकश्रेष्ठि चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से २३९ अपूर्ण तक है.) ६८१३३. चंदनमलयागीरि चौपई, संपूर्ण, वि. १९११, आश्विन कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. २८, दे., (२५.५४१३, ९४३४).
चंदनमलयागिरी चौपाई, मु. प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि: सुखसंपतिदायक नमु; अंति: पामे बह भोगविलास, ढाल-२२. ६८१३४. (+#) श्रीपालराजा रास, अपूर्ण, वि. १८४७, वैशाख कृष्ण, १, मध्यम, पृ. ६९-५(१,४७,५७,६६ से ६७)=६४,
गृही. मु. कपूरचंद महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संवत् १८७९ फाल्गुण सुद १३ को कपूरचंदजी को यह ग्रन्थ भेंट देने का उल्लेख मिलता है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२.५, १३४२८).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
३९९ श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदिः (-); अंति:
ज्ञानविशाला जी, खंड-४, गाथा-१८२५, (पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., प्रारंभ से गाथा-११ अपूर्ण तक, ७९२ अपूर्ण से ८०० अपूर्ण तक, ९५६ अपूर्ण से ९७४ अपूर्ण तक व ११२१ अपूर्ण से ११४४ अपूर्ण तक नहीं है.,
वि. ढाल ४१) ६८१३५. (+) चौमासी व्याख्यानादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९२३, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ७९, कुल पे. १५,
पठ. श्राव. कस्तूरचंदजी मुहता, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२,१३४३९). १.पे. नाम. चातुर्मासिक व्याख्यान, पृ. १अ-१७आ, संपूर्ण.
चातुर्मासिक व्याख्यान*, रा., गद्य, आदि: श्रीपार्श्व सुख; अंति: दुक्कडम् होज्यो. २.पे. नाम. अठाईपर्वरौ वखांण, पृ. १७आ-२८आ, संपूर्ण.
अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: शांतीशं शांतिकर्तार; अंति: वांछित सिद्धि हुवै. ३. पे. नाम. दीपावलीरौ व्याख्यान, पृ. २८आ-४२आ, संपूर्ण.
दीपावलीपर्व व्याख्यान, रा., गद्य, आदि: पणमिय वीरं वुच्छ; अंति: मंगलीकमाला संपजे. ४. पे. नाम. दीपावलीपर्व व्याख्यान, पृ. ४२आ, संपूर्ण.
मा.गु.,सं., प+ग., आदि: पापायां पुरि चारु; अंति: मंगलीक माला संपजै, श्लोक-४. ५. पे. नाम. सौभाग्यपंचमीपर्व व्याख्यान, पृ. ४६अ-५०आ, संपूर्ण.
वरदत्तगुणमंजरी कथा, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ज्ञानं सारं सर्व; अंति: मंगलीकमाला संपजै. ६.पे. नाम. कार्तिकपूर्णिमा व्याख्यान, पृ. ५०आ-५४अ, संपूर्ण.
प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: सिद्धो विज्जाय चक्की; अंति: आपरौजमारौ सफल करणौ. ७.पे. नाम. मौनएकादशीपर्व कथा, पृ. ५४अ-५८अ, संपूर्ण.
रा., गद्य, आदि: सिरिवीरं नमिऊण पुच्छ; अंति: तपस्या अंगेजी. ८.पे. नाम. पौषदशमीपर्व कथा, पृ. ५८अ-६०आ, संपूर्ण.
रा., गद्य, आदि: ध्यात्वा वामेयमहँत; अंति: जावजीव अंगेजी. ९. पे. नाम. मेरुत्रयोदशीपर्व कथा का भाषांतर, पृ. ६०आ-६५अ, संपूर्ण.
मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान-भाषांतर, मा.गु., गद्य, आदि: मारुदेवं जिनं नत्वा; अंति: संपत्ति प्रगट हुवै. १०. पे. नाम. होलिकापर्व व्याख्यान, पृ. ६५अ-६७आ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: फागुण सुदि पूनिम दिन; अंति: मुक्ति रूप सुख मिलै. ११. पे. नाम. चैत्रीपूनम कथा, पृ. ६७-७० अ, संपूर्ण.
चैत्रीपूर्णिमापर्व व्याख्यान, रा., गद्य, आदि: तीर्थराजं नमस्कृत्य; अंति: सुख संपदा पामै. १२. पे. नाम. अज्ञयतृतीया व्याख्यान, पृ. ७०अ-७३अ, संपूर्ण.
अक्षयतृतीया व्याख्यान, रा.,सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य प्रभुपार; अंति: मंगलीक माला संपजै. १३. पे. नाम. रोहिणीतप कथा, पृ. ७३अ-७६आ, संपूर्ण.
रा., गद्य, आदि: उच्छिट्ठम सुंदरयं; अंति: क्षय करी मुगतै गया. १४. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि स्तुति सह बालावबोध, पृ. ७६आ-७८अ, संपूर्ण.
पंचपरमेष्ठि स्तुति, सं., पद्य, आदि: अर्हतो भगवंत इंद्र; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-४. __ पंचपरमेष्ठि स्तुति-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अर्हतभगवंत अशरणशरण; अंति: मांगलिक्य माला संपजै. १५. पे. नाम. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदन का बालावबोध, पृ. ७८अ-७९अ, संपूर्ण. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अर्हत भगवंत अशरण; अंति: मंगलीक माला
संपजै. ६८१३६. (4) वीरभाणउदयभाण रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४४-३(१ से ३)=४१, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों
पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५४११.५, १२४३१-३४).
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४००
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वीरभाणउदयभाण रास, मु. कुशलसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४५, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२,
गाथा--११ अपूर्ण से ढाल-५४, गाथा-७ अपूर्ण तक है.) । ६८१३७. (+#) पौषधादि विधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६-३(३,५,९)=१३, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष
पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १३४४०). १.पे. नाम. देवसिप्रतिक्रमण विधि, पृ. १अ-८अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. देवसिप्रतिक्रमण विधि-खरतरगच्छीय, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रणम्या जिनाधीशं; अंति: रीते सामायिक पारे,
(पू.वि. बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) २. पे. नाम. पौषधादिविधि संग्रह, पृ. ८अ-१६आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. पौषधविधि सूत्रसहित-खरतरगच्छ, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम इरियावही पडिक; अंति: खरतरगच्छ
सामाचारी, (पू.वि. छमासीतप अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) ६८१३८. (#) रत्नपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १९७०, आश्विन कृष्ण, १२, शनिवार, मध्यम, पृ. १६, ले.स्थल. नायडोगरी, अन्य.
मनोहरलाल, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. प्रथम ढाल की प्रारंभिक चार गाथा प्रतिलेखक द्वारा नहीं लिखी गई है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, १६-१९४५५-५८). रत्नपालरत्नावती रास-दानाधिकारे, मु. सूरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: जंबूद्वीप लख जोयणमान; अंति:
रच्यो रास उदार, खंड-३, गाथा-७७४, (वि. ढाल ३३) ६८१३९. (+#) उत्तराध्ययनसूत्रगत कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३१, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १५४४५-४८). उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: एक आचार्यनइं एक चेलो; अंति: (-), (पू.वि. ब्रह्मदत्त रत्नवती
कथा अपूर्ण तक है.) ६८१४०. देवनारक के ५बोल १६ द्वार विचार, संपूर्ण, वि. १९०४, आषाढ़, १४, सोमवार, मध्यम, पृ. २२, ले.स्थल. पडधरी ग्राम, प्रले. श्राव. परसोत्तम वृद्धहीरजी खत्री, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२.५, ९४३२).
देवनारक के ५ बोल १६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो नारकीनो द्वार; अंति: भोगवतां थका विचरे छे. ६८१४१. (+#) मानतुंगमानवती चरित्र, संपूर्ण, वि. १८३८, आश्विन कृष्ण, १४, मंगलवार, मध्यम, पृ. ४९, ले.स्थल. बाहुआल,
प्रले. ग. उत्तमविजय (गुरु मु. सुबुद्धिविजय); गुपि. मु. सुबुद्धिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (९५८) यादृशं पुस्तिकां दृष्ट्वा, जैदे., (२५४१२, १४४३३-३६). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद
पदांबुजे; अंति: घरिघरि मंगलमाला हे, ढाल-४७, गाथा-१०१७. ६८१४२. (#) मयणरेखा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २३-१(९)=२२, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, ८x१९-२३). मदनरेखासती रास, मा.गु., पद्य, आदि: जूवा मांस दारू तणो; अंति: ते सुणि जौ चितलायो, गाथा-१८४,
(पू.वि. गाथा-६१ अपूर्ण से ६८ अपूर्ण तक नहीं है.) ६८१४३. (+#) चंदराजारी चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १४४३४-४०). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धराधव तीम; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण., ढाल-२० अपूर्ण तक है.) ६८१४४. (+#) श्रीपालराजा रास-१ से ३, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १५४३०-३६). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेलि कवियण
तणी; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६८१४५. नवतत्त्व प्रकरण का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदे., (२५४१२, १२४२९-३२).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
४०१ नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: हवे नवतत्त्वनां नाम; अंति: ने अजीवने मिश्र कहीइ.. ६८१४६. महाबलमलयासुंदरी प्रबंध, संपूर्ण, वि. १८९९, आश्विन कृष्ण, २, मध्यम, पृ. २७, प्रले. सा. हसतु (गुरु सा. बगलुजी);
गुपि. सा. बगलुजी (गुरु सा. सत्याजी); सा. सत्याजी (गुरु सा. कलुजी); सा. कलुजी, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५४१२, १८४३५). महाबलमलयासुंदरी चौपाई, मु. भक्तविमल, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: श्रीपार्श्व प्रणमी; अंति: पुगी छै मनरी
कोडरे, खंड-४. ६८१४७. (+#) नलदमयंती रास, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३१-३(१६ से १८)=२८, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १५४३५-४०). नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: सीमंधरस्वामी प्रमुख; अंति: समयसुंदर भणै
भावसुं, खंड-६, गाथा-९३१, ग्रं. १३५०, (पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., खंड-३, ढाल-५, गाथा-२० अपूर्ण से
खंड-३, ढाल-६, गाथा-७ अपूर्ण तक नहीं है., वि. ढाल-३९.) ६८१४८. (+) मृगलेखा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १८४३९).
मृगांकलेखा चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३८, आदि: आदेसर जिन आददे चोवीस; अंति: वरते कोड
कल्याण, ढाल-६२. ६८१४९. (+) ६४ प्रकारी पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४६-१(३१)=४५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१२, १०४३२).
६४ प्रकारी पूजा विधिसहित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७४, आदि: श्रीशंखेश्वर साहिबो; अंति: पधराविइ
महोत्सवे, पूजा-६४, (पू.वि. ५वीं पूजा अपूर्ण से ६ठी पूजा अपूर्ण तक नहीं है.) ६८१५०. ऋषभ चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदे., (२५४१२, १५४४३).
आदिजिन चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: अरिहंत सिद्धनै आयरिय; अंति: रिषभ चीरत
टकसालए, ढाल-४७... ६८१५१. (#) अंजनासुंदरीपवनंजयकुमार चौपाई, संपूर्ण, वि. १८२९, ज्येष्ठ शुक्ल, २, मध्यम, पृ. २८, ले.स्थल. भीनमाल, प्र.वि. श्रीशांतिनाथजी प्रसादात्., कुल ग्रं. ९४९, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १६४३०-३६).
अंजनासुंदरी रास, मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: श्रीगणधर गौतम प्रमुख; अंति: पुन्यसागर०
मंगलमाल, खंड-३, गाथा-६६७, (वि. ढाल २२) ६८१५२. (#) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक की कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४०-२३(१ से २३)=१७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७.५४१२.५, १०४३३). जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-कथा*,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कथा-९ अपूर्ण से अरणकमुनि
की दीक्षाप्रेरणा व चारित्रमहिमादृष्टांत प्रसंग अपूर्ण तक है.) ६८१५३. (+) क्षेत्रसमाससंक्षेप विचार, नवतत्त्व भेद व श्रावक १२ व्रत नाम, संपूर्ण, वि. १८१२, श्रेष्ठ, पृ. २३, कुल पे. ३,
प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११,१५४३२-३५). १.पे. नाम. क्षेत्रसमाससंक्षेप विचार, पृ. १अ-२१अ, संपूर्ण, वि. १८१२, कार्तिक कृष्ण, ५, शनिवार, ले.स्थल. नारदपुरी,
प्रले. पं. विनयविजय गणि (गुरु पं. अमृतविजय); गुपि.पं. अमृतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य.
क्षेत्रसमास विचार, मा.गु., गद्य, आदि: हिवे कांइक जंबुद्विप; अंति: शास्त्रथी जाणवो. २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण-बोल संग्रह, पृ. २१अ-२३अ, संपूर्ण, वि. १८१२, कार्तिक शुक्ल, ११.
संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम जीवतत्व १ अजीव; अंति: तत्वना ९ भेद कह्या. ३. पे. नाम. श्रावकना बारे व्रत, पृ. २३अ, संपूर्ण.
१२ व्रत नाम, मा.गु., गद्य, आदि: प्राणातिपात १; अंति: १२ मे अतिथसमभाग १२. ६८१५४. थोकडा, नवतत्व विचार व शीयल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८-३(१ से २,६)=१५, कुल पे. ३, जैदे.,
(२४४१२, १४४४०). १. पे. नाम. सत्ताइस बोलरो थोकडो, पृ. ३अ-५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २७ बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सतरे भेदे संयम पालै, (पू.वि. आश्रवभेद अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. नवतत्त्व १३ द्वार विचार, पृ. ५अ-७अ-१३आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है.
मा.गु., गद्य, आदि: (१)चवदै पूर्वनो विधान, (२)मूल दृष्टांत २ काण; अंति: समान मोक्ष जाणवो, संपूर्ण. ३. पे. नाम. शीलप्रकाश रास, पृ. १३आ-१८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीजिन वीर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२८ अपूर्ण तक है.) ६८१५५. आदिजिन स्तवन सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २२, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. कुल ग्रं. ७४५, जैदे., (२३४११, १३४४५). आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित, ग. विजयतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलउ पणमिय देव;
अंति: विजयतिलय निरंजणो, गाथा-२१. आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: हुं पहिल धुरि पणमी; अंति:
छइ निरंजणो पाप रहित. ६८१५६. (+) पंचदंड चौपाई, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १४४४४-४६).
पंचदंड चौपाई, मु. राजऋद्धि, मा.गु., पद्य, वि. १५५६, आदि: जयो पास जिराउलो जग; अंति: (-), (पू.वि. मात्र
___ अंतिम गाथा नहीं है.) ६८१५७. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सहटबार्थ व कथा, त्रुटक, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५६-३९(१ से ८,१० से १६,१८ से २५,२८,३१ से
३३,३५ से ३६,३९ से ४०,४५ से ४७,४९ से ५०,५२,५४ से ५५)=१७, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १६४३६).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (त्रुटक, पू.वि. अध्ययन-१, गाथा-१५ से ___ अध्ययन-३, गाथा-२ अपूर्ण तक व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.)
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. ६८१५८. (+#) जंबूस्वामि चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-३(१ से २,१३)=१४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२३.५४११.५, १३४४५). जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-कथा *, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मधुबिंदू कथा-१ से कथा-१९
अपूर्ण तक है.) ६८१५९. आनंदघनचोवीसी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२०, वैशाख कृष्ण, १, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले.स्थल. मक्सूदाबाद
महिमापुर, प्रले. मु. कल्याणनिधान (गुरु ग. हंसविशाल), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. सुविधिजिन प्रसादात्., दे., (२५४१२, ७X४०). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति:
ज्ञान० सुखनो सदा रे, स्तवन-२४.
स्तवनचौवीसी-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: आनंदघनस्यास्या गीत; अंति: ज्ञानविम० अति घणी. ६८१६०. सिंघासनबत्तीसी चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५४-३७(४,१० से ११,१३ से ४३,४५,४८ से ४९)=१७, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४.५४११.५, १७४२७). सिंहासनबत्रीसी चौपाई, मु. विनयलाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७४८, आदि: आदि जिणेसर आदिदेव; अंति: (-),
(पू.वि. ढाल-५ गाथा-१ अपूर्ण से ढाल-६ गाथा-१२, ढाल-११ गाथा-१२ अपूर्ण से ढाल-१२ गाथा-१२ अपूर्ण, ढाल-१४ गाथा-१२ अपूर्ण से कथानक-१० ढाल-१० गाथा-७ अपूर्ण, ढाल-११ गाथा-९ अपूर्ण से कथा-११,
कथा-१३ अपूर्ण से ढाल-१४ गाथा-९ तक व ढाल-१६ की गाथा-२३ से नहीं है.) ६८१६१. श्रावकपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १८९९, चैत्र कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. १९, ले.स्थल. अजीमगंज, जैदे., (२४.५४११.५, ८x१९).
श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दसणमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
४०३
६८१६२. (+) परमात्मप्रकाश का पद्यानुवाद, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६. प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२३.५x११, १३x२८-३०). परमात्मप्रकाश-पद्यानुवाद, मा.गु., पद्य, आदिः परम ज्योति प्रणमुं अंतिः (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. - १४, गाथा-८ अपूर्ण तक लिखा है.)
६८१६३. पद, स्तवन व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८९५, वैशाख कृष्ण, ४, गुरुवार, मध्यम, पृ. २० २ (१ से २) = १८, कुल पे. ४८, ले. स्थल. मोरबी, प्रले. श्राव. नानजी दोसी; पठ. श्राव. उकरडा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५x११.५, १५X३८-४१). १. पे नाम. झांझरीयाऋषि चौडालीओ, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
झांझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: (); अंतिः भावरतन० आनंदे रे, डाल-४, गाथा-४३, (पू.वि. ढाल-४, गाथा- ४ अपूर्ण से है.)
२. पे. नाम. संखराजानी सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण.
शंखराजा सज्झाय- सुपात्रदाने, मा.गु, पद्य, आदिः संखराजा ने जसोमती अंतिः पुन सुक्रित पायो, गाथा ६. ३. पे नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
יי
मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीभडली सुण बापडली, अंतिः प्रेम प्रतग देव रे, गाथा-२०
४. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पुखलवइ वीजइं जयो रे, अंति: जस० भयभंजन भगवंत,
गाथा-७.
५. पे. नाम. ऋषभदेव स्तवन, पृ. ४आ - ५अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि जगजीवन जगवाल हो; अंतिः जस० सुखनो पोष लाल रे, गाथा-५.
६. पे. नाम. रुपचंदना टपा, पृ. ५अ, संपूर्ण.
सम्यक्त्व पद, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: जागे सो जन भगति अंतिः रुपचंद० हमारी हे, गाथा-४.
७. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ५अ संपूर्ण.
मु. रूपचंद, पुहिं, पच, आदि मे परदेसी दूरका दरसन, अंतिः रूपचंद० गुण गाया, गाथा-४.
"
८. पे. नाम गौतमस्वामी प्रभाति, पृ. ५अ ५आ, संपूर्ण.
मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मे नवि जान्यो नाथजी; अंति: रूपचंद० चरण चित लायो, गाथा-८.
९. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ५आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: अज चित चेत प्यारे; अंति: करी करी चांनो रे, गाथा - २.
१०. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ५आ, संपूर्ण.
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पुहिं., पद्य, आदि: जाग जाग रायण गइ भुर; अंति: ज्युं नीरंजन पावे, गाथा- ४.
११. पे. नाम आदिजिन पद, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
मु. साधुकीर्ति, पुहिं, पद्य, आदि देखो माइ अज रीखव घेर, अंतिः साधुकीरत गुणगावे, गाथा ३.
"
१२. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण.
मु. चंदकुशल पुहिं पद्य, आदि देखो रे आदेसर बाचा, अंतिः चंदकुसल गुण गाया हे, गाथा ४. १३. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ६ अ-६आ, संपूर्ण.
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उपा. मानविजय, मा.गु., पद्म, आदि: अजित जणेसर चरणनी सेव, अंतिः मान० मुझ मन कांम्यो, गाथा- ७. १४. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन- पिंडस्थध्यानगर्भित, पृ. ६आ-७अ संपूर्ण.
मु. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रूप अनुप निहाली, अंतिः शांति० करो थइ एक मने, गाथा- १०. १५. पे. नाम, राजुल सज्झाय, पृ. ७अ, संपूर्ण.
नेमराजिमती स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल कहे सुणो नेमजी, अंतिः राम० नीधी कोड कल्याण,
गाथा-७.
१६. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
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गाथा-७.
२०. पे. नाम. निंदा सज्झाय, पृ. ९अ ९आ, संपूर्ण.
आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: राणी यशोदा हो वीनवे; अंतिः भावप्रभ० सेहज सुहेज, गाथा- ७.
१७. पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. ७आ-८ अ, संपूर्ण.
जंबूस्वामी गहुली, पं. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लघु वय जोग लीओ रे अंतिः पद्म० पामे शीवराज, गाथा- ७. १८. पे नाम. सुभद्रासती सज्झाय सीयल, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण
मु. सिंघ, मा.गु., पद्य, आदि: मुनीवर सोधे इरजा जीव, अंति: संघो०रहे दुजे ठाम्य, गाथा- २३.
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
१९. पे नाम, सिखामण सज्झाय, पृ. ९अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. राजसमुद्र, रा., पद्य, आदि: सुण बेहनी रे पीउडो; अंति: राजसमुद्र० सोभागी रे,
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औपदेशिक सज्झायनिंदात्याग विषये उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्म, वि. १७वी, आदि; नंचा मकरस्यो; अंति: समयसुंदर सुखकार रे, गाथा-५.
२१. पे. नाम. जुवट सज्झाय, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय- सोगठारमत परिहारविषये, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुगण सनेही सांभलो; अंति: आणंद कहे कर जोडी रे, गाथा - ११.
२२. पे. नाम एलचीकुमार सज्झाय, पृ. १०अ १० आ. संपूर्ण.
इलाचीकुमार सज्झाय, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाम ते एलापुत्र; अंति: कीर्तिविजय गुण गाय, गाथा- १३. २३. पे. नाम सिखामण सज्झाय, पृ. १०आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय परनारीपरिहार, मु. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि जीव वारू छऊं मोरा, अंतिः शांति० अवागमण नीवट, गाथा-५.
२४. पे नाम. ६ संवर सज्झाव, पृ. १० आ-११ अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: वीरजणेसर गोयमने कहे; अंति: जे महेलां वरो, गाथा-१२.
२५. पे नाम. भावपूजा स्तवन, पृ. १९अ ११आ, संपूर्ण,
ग. मेघराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्ध प्रणमी करी; अंति: मेघ० भवो भव्य सेवरे, गाथा- ६.
२६. पे. नाम. पडिकमणानी सज्झाय, पृ. ११आ - १२अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, मु. तेजसिंघ, मा.गु., पद्य, आदि: पांचप्रमाद तजी; अंति: तेजसी० भवसाहेर तरस्ये, गाथा-८. २७. पे. नाम. बारव्रत सज्झाय, पृ. १२अ, संपूर्ण.
१२ व्रत सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगौतम गणधर पाय अंतिः भवे लाहो लिया, गाथा- १४.
२८. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १२अ - १२आ, संपूर्ण.
मु.शिवजी, मा.गु., पद्य, आदि: सेगरु चरणे रे नमीए; अंति: सवजी कहे सिरनामी, गाथा-५. २९. पे नाम नेमिजिन स्तवन- सातवार गर्भित, पृ. १२आ, संपूर्ण.
मु. मूलचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नमीए ते नेमी जिनराय, अंति: मूलचंद ० सागर तरसे रे, गाथा - ८. ३०. पे. नाम. युगमंधरजिन स्तवन, पृ. १३अ संपूर्ण
पं. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काया पाम्यो अति कुडी, अंतिः जिनविजये गुण गायो रे, गाथा- ९. ३१. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. १३अ १३आ, संपूर्ण
मु. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद चोविसमा; अंतिः रुषभ० सर्वनी पुरो आस, गाथा- १८. ३२. पे. नाम. सीतासती सज्झाय, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण.
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मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: जनकसुता हु नाम धरावु, अंति: उदयरतन० मारो प्रणाम, गाथा- ८. ३३. पे नाम. चेलणासती सज्झाय, पृ. १४अ १४आ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्य, आदि: वीरे वखांणी राणी; अंतिः समयसुंदर० भवनो पार, गाथा-७. ३४. पे नाम. अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. १४आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक रयवाडिये; अंतिः समयसुंदर०बे कर जोड्य, गाथा-९. ३५. पे. नाम. रथनेमिराजुल सज्झाय, पृ. १५अ, संपूर्ण.
रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदिः प्रणमु सदगुरु पाव; अंतिः रूप० राजुल लह्यो जी,
मा.गु., पद्य, आदि: एसा अपूर्व मले कोइ; अंति: नर असत्य न भाखे जी, गाथा - ९.
४०. पे. नाम रथनेमिराजिमती सज्झाव, पृ. १८ आ- १९अ, संपूर्ण.
गाथा - १२.
३६. पे. नाम. ज्ञानपच्चीशी, पृ. १५अ - १६आ, संपूर्ण.
मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३५, आदि आद्य अनादनो जीवडो रे, अंतिः राइचंद० चौमास रे, गावा- २५. ३७. पे. नाम. नाणावटी सज्झाय, पृ. १६आ, संपूर्ण.
आव. साहजी रुपाणी, रा., पद्य, आदि: हरे हो नांणावटी अंति रवजी० भवि प्रांणी, गाथा- ९.
३८. पे. नाम. जीव रास, पृ. १६ आ-१८ अ, संपूर्ण.
पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवे राणी पद्मावती, अंति: (१) समय ० छुटज्यो तत्काल, (२) करूं ए जाणपणानुसार, ढाल - ३, गाथा-३४.
३९. पे नाम, औपदेशिक सज्झाय-सत्संग, पृ. १८अ १८ आ. संपूर्ण.
आ. कानजी, मा.गु., पद्य, आदि: काउसग थकी रहनेमि; अंति: पूज कांनजी आचारज रे, गाथा- ११. ४१. पे. नाम. नेमजीना संधेसानी सज्झाय, पृ. १९अ संपूर्ण.
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नेमराजिमती सज्झाय संदेशो, मु. कविवण, मा.गु., पद्य, आदि पोपटडा संधेसो केजे, अंतिः कवियण सदा जयकारी रे, गाथा- ७.
४२. पे नाम चोविश तीर्थंकरना नामनुं स्तवन, पृ. १९अ १९आ, संपूर्ण,
२४ जिन स्तवन, मु. जयराज, मा.गु., पद्य, आदि: रिषभ अजित संभव, अंति: जेराजे गुण गावा रे, गाथा-५.
४३. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन- भीडभंजन, पृ. १९आ, संपूर्ण.
मु. प्रेमउदय, मा.गु., पद्म, आदि: शा माटे साहेब साहमु अंति: प्रेमउद० घणो उलाछो, गाथा ५.
४४. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १९आ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु. पच, वि. १८वी, आदि: अजितजिणसु प्रितडी अंतिः वाचक यस० गुण गाय के,
गाथा-५.
४५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, पृ. २०अ, संपूर्ण.
मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि कड़वां रे फल छे क्रोध, अंतिः उदयरत्न० उपसम जल नाहि, गाथा ६.
४६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय - मानपरिहार, पृ. २०अ, संपूर्ण.
मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव मान न कीजीए, अंति: उदयरतन० देसवटो रे, गाथा-५.
४०५
४७. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय - मायापरिहार, पृ. २०अ २०आ, संपूर्ण.
मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: समकित बीज जाणज्यो; अंति: उदयरतन० रे प्रांणी, गाथा-६,
४८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय- लोभपरिहार, पृ. २०आ, संपूर्ण.
मु. उदयरत्न कवि, मा.गु., पद्य, आदि: तमे लक्षण जो जो लोभ, अंति: उदयरत्न० वांदु सदा रे, गाथा-७. ६८१६४. अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १२. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैदे. (२४.५४१२, १२५३४). अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, मा.गु. सं., गद्य, आदि: शांति का करणे वाला, अंति: (-) (पू. वि. आर्द्रकुमार कथा अपूर्ण तक है.)
६८१६५. (+) आगमसारोद्धार, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५४१२,
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१०-१३X२३-३१).
आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: अथ भव्य जीवनें; अंति: (-), (पू.वि. पर्यायार्थिक स्वरूप अपूर्ण तक है.)
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४०६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६८१६६. (+) आनंदघनचोवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१२, १३४३८). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति:
आनंदघन प्रभु जागेरे, स्तवन-२४. ६८१६७. (#) तीर्थमाला, महावीरजिन स्तवन व भगवतीसूत्र गहुंली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. ४, प्र.वि. मूल
पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१२, १६४३३). १. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थमाला स्तवन, पृ. १अ-८अ, संपूर्ण.
मु. अमृतरंग, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: विमलाचल वाहला वारु; अंति: अमृत नमो गीरीराया रे, ढाल-१०. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन-ज्ञानदर्शनचारित्रसंवादरूप नयमतगर्भित, पृ. ८अ-१२अ, संपूर्ण.
आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८२७, आदि: श्रीइंद्रादिक भावथी; अंति: लक्ष्मीसूरी० जयकार ए, ढाल-८, गाथा-८१. ३. पे. नाम. भगवतीसूत्र गहुंली, पृ. १२अ, संपूर्ण. __ भगवतीसूत्र-गहुंली, संबद्ध, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सहियर सुणीयेरे भगवत; अंति: दीप० मंगल कोटि
वधाई, गाथा-७. ४. पे. नाम. आगमिक गाथा संग्रह, पृ. १२अ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: अरिहंतो महदेवो जाव; अंति: ततं एस मतं मे ग्रह, गाथा-१. ६८१६८. (+) सीमंधरजिन स्तवन, पंचतीर्थी चैत्यवंदन व सीमंधरजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १८०७, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. ३,
प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १०४३५). १.पे. नाम. सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, पृ. १अ-१०आ, संपूर्ण, वि. १८०७, आश्विन शुक्ल, ४, रविवार. सीमंधरजिन विनती स्तवन-१२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: स्वामी सीमंधर
विनती; अंति: जसविजय बुध जयकरो, ढाल-११, गाथा-१२५. २.पे. नाम. पंचतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १०आ, संपूर्ण. ___ मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिवसुखदायक आदिजिन; अंति: रूप० पांचे आत्यमराम, गाथा-१. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. १०आ, संपूर्ण.
उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: श्रीसीमंधर वीतराग; अंति: विनय वंदे सुविहाण, गाथा-३. ६८१६९. छुटक बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९५०, भाद्रपद शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. जुनागढ, प्रले. श्राव. पानाचंद कमलशी
कोठारी; अन्य. जयानंद वसनजी जोशी; सा. वखतबाई (गुरु सा. साकरबाई); गुपि.सा.साकरबाई, प्र.ले.पु. मध्यम, दे., (२५४११.५, १४-१६४१४-२१).
बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: छ कारणे साधुने आहार; अंति: पाले सद्गुरुनो मार्ग. ६८१७०. (+) चतुर्थ कर्मग्रंथ सह अर्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४१२, १८४४५-४८). षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो
देविंदसूरीहिं, गाथा-८६, (वि. मात्र प्रतीक पाठ है.)
षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जिन श्रीभगवंत तेह; अंति: देवेंद्रसूर आचार्यै. ६८१७१. जंबूअध्ययन प्रकीर्णक की कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-१(५)=११, जैदे., (२४.५४११.५, १५४४२).
जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: एक समें श्रीमहावीर; अंति: ते आराधक जीव कह्या, (पू.वि. प्रारंभ
से वानर कथा तक व राणी महावत कथा अपूर्ण से है.) ६८१७२. (+) श्रीपाल रास-लघु, संपूर्ण, वि. १८७९, कार्तिक शुक्ल, ३, शनिवार, मध्यम, पृ. १०, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १५४४५). श्रीपाल रास-लघु, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: चउवीसे प्रणमु जिनराय; अंति: जिनहरख० सदा
कल्याण, ढाल-२०, गाथा-२७१.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
४०७ ६८१७३. नवपद पूजा, आदिजिन स्तवन व सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. ४, ले.स्थल. मक्षुदाबाद
अजीमगंज, प्रले. पं. नानजीरुचि (गुरु पं. शांतिरुचि); गुपि.पं. शांतिरुचि (गुरु पं. रामजीरुचि); पं. रामजीरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१२, १४४२९). १.पे. नाम. नवपद पूजा, पृ. १अ-११आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (१)नमोर्हत्सिद्धाचार्यो, (२)उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण; अंति: तपपद
यजामहे नमः, पूजा-९. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण.
मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: जयो जगनायक जगगुरू रे; अंति: केसर कहैदरसण सुखकंद, गाथा-५. ३. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. १२अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: शासननायक सुखकरु रे; अंति: पावै कोडि कल्याण रे, गाथा-६. ४. पे. नाम. नवपद पूजा, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण.
सिद्धचक्र स्तवन, मु. सुजस, मा.गु., पद्य, आदि: जीरे सिद्धचक्र गुण; अंति: सुजस० सुख मन गहगहै, गाथा-८. ६८१७४. (+) आषाढाभूति रास, पूर्ण, वि. १८९८, वैशाख शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ११-२(१ से २)=९, ले.स्थल. राणावश, प्रले. मु. हुकमचंद ऋषि (लुकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १२४३२-३६).
आषाढाभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: (-); अति: न्यान०परम कल्याणोरे, ढाल-१६,
गाथा-२१८, (पू.वि. ढाल-४ से है.) ६८१७५. (+) विक्रमसेनराजा चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १६४३२-३५). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: परम ज्योति प्रकास; अंति: (-),
(पू.वि. गाथा-३२९ तक है.) ६८१७६. (+) नियंठा व संजया द्वार अधिकार, संपूर्ण, वि. १८५८, ज्येष्ठ शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. २, ले.स्थल. पोरबंदर,
पठ. मु. मोतीचंद ऋषि (गुरु मु. वालचंदजी ऋषि); गुपि. मु. वालचंदजी ऋषि (गुरु मु. कान्हजीस्वामि ऋषि); मु. कान्हजीस्वामि ऋषि; पठ.सा. कुंमरबाई महासती (गुरु सा. झमकुबाई महासती); सा. झमकुबाई महासती, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११, १४४२२). १.पे. नाम. नियंठाना ३६ द्वार, पृ. १अ-७आ, संपूर्ण.
नियंठा बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पन्नवणा वेय रागे; अंति: कुशीलना संखात गुणा ६. २. पे. नाम. संजयानो अधिकार, पृ. ७आ-११आ, संपूर्ण.
संजया बोल, मा.गु., गद्य, आदि: सामायक चारित्र-१; अंति: धणी संख्यातगुणा अधिक. ६८१७७. (+) नर्मदासुंदरी आदि कथा संग्रह, त्रुटक, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६-६(१,३ से ५,८,१५)=१०, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १६४३८). कथा संग्रह**, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. बुद्धिमती बहु-ससुर कथा अपूर्ण से
अजितसेनशीलवती कथा अपूर्ण तक, नर्मदासुंदरी कथा अपूर्ण से शृंगारमंजरी कथा अपूर्ण तक व कनकमंजरी कथा
__ अपूर्ण से कामकुंभराजा कथा अपूर्ण तक है.) ६८१७८. शेजेजा उद्धार, संपूर्ण, वि. १८५१, श्रावण शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले.पं. जीवराज; पठ. श्राव. रामसुख, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १२४३०-३६). शत्रुजयतीर्थरास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंति: समयसुंदर०
आणंद थाय, ढाल-६, गाथा-११२. ६८१७९. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ यंत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७+१(७)=८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२५४१२.५,
१०-१४४६-४७).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मा.गु., पं., आदिः श्रीवर्धमान जिनचंद्र, अंति: (-), (पू.वि. १४वें गुणस्थानक, ४ मूल हेतु तक है.)
६८१८०. पच्चक्खाण स्तवन, गर्भवहुत्तरी सज्झाय व पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे ७, दे., (२४.५X१२.५, १४X३२).
१. पे. नाम. आत्म सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: हुं तो प्रणमुं सदगुर; अंति: नित आनंदघन सुख थाई,
गाथा - ११.
२. पे. नाम. आत्म सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय दुर्मति विषये, मु. आनंदघन, मा.गु, पद्म, आदि: हे दुरमतडी थे बेरण; अंतिः घनआनंद० ज बरस्ये हो, गाथा - १३.
३. पे. नाम, कायावाडी सज्झाय, पृ. २अ २आ, संपूर्ण
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मु. पद्यतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: कावारे वाडी कारमी, अंतिः पदमतिलक० ज्यो संभाली, गाथा- ११.
४. पे. नाम. जीवउत्पत्ती सज्झाय, पृ. २आ-५अ, संपूर्ण, वि. १९०९, फाल्गुन शुक्ल, ५, ले. स्थल. गोगाबंदर, प्रले. सुखानंद, प्र.ले.पु. सामान्य
औपदेशिक सज्झाय- गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि उतपति जौज्यो रे, अंतिः रंगे० कहे श्रीसार ए.
गाथा - ७२.
५. पे. नाम. पच्चक्खाण गाथा, पृ. ५अ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: फासियं पालियं चेव; अंति: समणधम्मं पवत्तए, गाथा-२.
गाथा - ३१.
७. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ६आ, संपूर्ण.
६.
. पे. नाम. १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पृ. ५अ - ६आ, संपूर्ण.
पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथ नंदण नमुं श अंतिः रामचंद तपविधि भणे, डाल-३,
,
मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: पीया पीया पीया बोल; अंति: चिदानंद० जगत जस लिया, गाथा- ३. ६८१८१. (+) स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९- २ (१ से २) =७, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२६११.५, १४X३६-३९).
स्तवनचीवीसी, मु. आनंदघन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८५, आदि (-); अंति: (-), (पू. वि. स्तवन-५, गाथा-५ अपूर्ण से स्तवन- २२ तक है.)
६८१८२. (+) दीपावलीपर्व व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित., जैदे.,
(२५.५X१२.५, १७X३९).
दीपावलीपर्व व्याख्यान, मा.गु. सं., प+ग, आदि: पापाया पुरि चारु, अंति: मंगलीकमाला संपजइ.
६८१८३. (+) लघुदंडक, संपूर्ण, वि. १९०९, पौष कृष्ण, ८, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल. गेंता, प्रले. ऋ. रामचंद्र (गुरु मु. लालजी); गुपि. मु. लालजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, दे. (२४४१२, १२-१४४३२-४२)
"
लघुदंडकभेद बोल, मा.गु., गद्य, आदि: शरीर ओगाहणा संघयण, अंतिः को चववो कहे जे.
६८१८४. (+) बालचंदबत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, ले. स्थल. सोजत, प्र. वि. प्रतिलेखक नाम अवाच्य है., संशोधित., जैदे.,
( २३×११.५, ११x२६-३१).
अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद मुनि, पुहिं., पद्य, वि. १६८५, आदि: सकल पाति हर विमलकेवल; अंति: इंग रंग नी आणीए, गाथा-३३.
६८१८५. लघुदंडक बोल, भगवती बोल व ५६३ जीव भेद विचार, संपूर्ण, वि. १९३०, श्रेष्ठ, पृ. ९ कुल पे. ३, प्र. मु. जवाहर ऋषि (गुरु मु. उत्तमचंद ऋषि); गुपि. मु. उत्तमचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५X१२.५, २१x४५-५३). १. पे. नाम. लघुदंडकभेद बोल, पृ. १आ-७अ संपूर्ण
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
४०९ मा.गु., गद्य, आदि: शरीर ओगाहणा संघयण; अंति: ०दर्शन २५ जोग नथी २६. २. पे. नाम. भगवतीसूत्र बोल संग्रह, पृ. ७अ-९आ, संपूर्ण. ___ भगवतीसूत्र-बोलसंग्रह *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: भगवतीसूत्र मध्ये सतक; अंति: द्वारनी परे जाणवा. ३. पे. नाम. ५६३ जीवभेद विचार, पृ. ९आ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: ५६३ भेद में एकत; अंति: सनीत्रिजंचने ७ नारकी. ६८१८६. श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संपूर्ण, वि. १८९८, आश्विन अधिकमास शुक्ल, २, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ७,
ले.स्थल. पालणपुर, प्रले. माधवजी राधवजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पालवाहा पार्श्वनाथ प्रसादत्य., जैदे., (२५.५४१२.५, १२४३५).
श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणमिदंसणंमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ६८१८७. व्याख्यान संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८, जैदे., (२५४११.५, १५४४०). __ व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., गद्य, आदि: देवपूजा दया दानं; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
भरतचक्री गंगादेवी संवाद अपूर्ण तक है.) ६८१८८. (+) महावीरजिन २७ भव स्तवन व मंत्रसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित., जैदे.,
(२५.५४११.५, १०४२८). १.पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. दमणबंदर, प्रले. श्राव. मलुकचंद मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य.
मंत्र संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ नमः काली नै; अंति: श्रीहडुमाताय नमः. २.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन-२७ भव सह बालावबोध, पृ. १अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
महावीरजिन स्तवन-२७ भव, मा.गु., पद्य, आदि: पवयणमाता पदकजे; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-९ गाथा-४ अपूर्ण तक
है.)
महावीरजिन स्तवन-२७ भव-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र
त्रिदंडी उत्सूत्र प्ररूपणा अधिकार का बालावबोध लिखा है) ६८१८९. महावीरजिन २७ भव स्तवन व गूढ श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, पठ. श्रावि. पुजीबाई,
प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १२४२३). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन-२७ भवविचारगर्भित, पृ. १आ-९अ, संपूर्ण. ___ मु. हंसराज, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति भगवति दिओ मति; अंति: हंसराज० मुझ ए गुरु, ढाल-१०,
गाथा-९६. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह-गूढार्थगर्भित, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: श्रीस्त स्वष्ट श्व ग; अंति: में सूत्रं नुमां. ६८१९०. ज्ञानपंचमी देववंदन वघंटाकर्ण माहात्म्य, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११.५,
१३-१५४२८-४५). १. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, पृ. ७अ-८अ, संपूर्ण, वि. १८९५, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३०, ले.स्थल. राजपुर,
प्रले. मु. कस्तूरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. श्रीअभीनंदणजी प्रसादे.
आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम बाजोठ उपरे तथा; अंति: विजयलक्ष्मी शुभ हेत, पूजा-५. २.पे. नाम. घंटाकर्ण महात्म्य, पृ. ८अ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
घंटाकर्ण मंत्रसाधन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम मांडीइं तिवारे; अंति: (-), (पू.वि. घंटाकर्णमंत्र अपूर्ण तक है.) ६८१९१. साघुवंदना, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२५४१२, २०४४६).
साधुवंदना, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: पंच भरत पंच एरवय; अंति: श्रीदेव० ते संथूण्या, ढाल-१३, गाथा-३७७. ६८१९२. समाधिमरण विचार, संपूर्ण, वि. १९३५, चैत्र कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ८, दे., (२५.५४१२.५, १५४५५).
अंतसमाधि विचार, पुहिं., गद्य, आदि: हे भव्य तु सुण सोही; अंति: महिमा वचन अगोचर है.
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४१०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६८१९३. (+#) सील विषय कांनड कठीयारारी चोपड़, संपूर्ण, वि. १८६६, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ.७, ले.स्थल. रासनगर, प्रले. मु. महिमाविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १३४४२). कान्हडकठियारा रास-शीयलविशे, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: पारसनाथ प्रणमुं सदा; अंति:
मानसागर०दिन वधते रंग, ढाल-९. ६८१९४. (+) ६२ बोल विचार, अपूर्ण, वि. १८८४, फाल्गुन कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. १०-१(१)=९, प्रले. पं. विनयचंद्र (खरतरगच्छ); पठ. श्रावि. सूर्यकवर (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१२, ११४७-३३).
६२ बोल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: ६ स्तोका जाणवा, (पू.वि. बोल-३ अपूर्ण से है.) ६८१९५. (+) होली सज्झाय, अंतरीक्षजी स्तवन, आदिजिन बारमासो व पदादि संग्रह, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-१(१)=९,
कुल पे. ७, ले.स्थल. फलोधी, प्रले. मु. मिश्रीलाल महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११, ११४३०-३३). १. पे. नाम. होलिकापर्व सज्झाय, पृ. २अ-२आ, पूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है.
मु. वीर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: राखे सबसे वात अधुरी, गाथा-१६, (पू.वि. मात्र प्रथम एक शब्द नहीं है.) २.पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण, वि. १९६९, चैत्र शुक्ल, १५, सोमवार.
मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि: राणी राजुल कर जोडी; अंति: कांतिगाय श्रीकार रे, गाथा-१५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षजी, पृ. ४अ-७आ, संपूर्ण. __ वा. विनयराज, मा.गु., पद्य, वि. १७७२, आदि: परम उपगारी परम गुरु; अंति: विनैराज त्रिभुवन धणी, ढाल-४,
गाथा-२९. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-अंतरिक्षतीर्थमंडन, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण.
मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८५५, आदि: अंतरीक प्रभू; अंति: जिनचंद०करी जयकारैरे, गाथा-९. ५. पे. नाम. शांतिजिन दूहा, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिणेसर सोलमा; अंति: जाणनै क्रपा करौ, गाथा-३. ६. पे. नाम. आदिजिन बारमासो-धुलेवामंडन, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण.
मूलचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिणंद प्रणमु; अंति: मूलचंद० तणा देवा रे, गाथा-१४. ७. पे. नाम. विनति सज्झाय, पृ. ९अ-१०अ, संपूर्ण. रतनमहाराजविनंति गीत-मेडता, श्राव. हजारीमल, मा.गु., पद्य, आदि: विनतडी अवधारीय नेह; अंति: हजारीमल०
पाय चित्तधर, गाथा-१०. ६८१९६. (+) महाबलमलयासुंदरी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५६-४८(१ से ४८)=८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १७४३५-३८). मलयासुंदरीरास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५१, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१, गाथा-२ अपूर्ण से
ढाल-११, गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ६८१९७. विजयशेठविजयाशेठाणी रास, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १८-१२(१ से १२)=६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२४४१०, १६४४०-४३). विजयशेठविजयाशेठाणी रास, मु. राजरत्न वाचक, मा.गु., पद्य, वि. १६९६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१९
की गाथा-३ अपूर्ण से ढाल-३१ की गाथा-७६ अपूर्ण तक है.) ६८१९८. नेमिजिन चोवीसचोक व सीतासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८६३, आषाढ़ शुक्ल, १, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २,
ले.स्थल. कृष्णगढ, जैदे., (२५४१२, १६४३२). १.पे. नाम. नेमगोपी संवाद-चौवीसचोक, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण.
मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: एक दिवस वसै नेमकुंवर; अंति: सीसे अमृत गुण गाया, चोक-२४. २. पे. नाम. सीतासती सज्झाय-शीलविषये, पृ. ६आ, संपूर्ण.
ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जलजलती मिलती घणी रे; अंति: कहै जिनहरख० पाय रे, गाथा-९.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
४११
६८१९९. (+) चोघडीया चक्र, ६२ मार्गणा विचार, दुषमकाल बोल आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ७, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५४१२, १७४९-३९).
१. पे. नाम. ५६३ जीवभेद ६२ मार्गणा विचार, पृ. १अ - ४अ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: १ नर्कना १४ भेद साते; अंति: ५६३ भेद कलाया छै. २. पे. नाम. ६ कावजीव उत्पत्ति आयुष्यादि विचार, पू. ४अ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: पृथ्वीकायनो आऊखो ३०; अंतिः कहो छे ते जाणज्यो ३. पे. नाम. २९ बोल - दुषमकाल, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण
मा.गु., गद्य, आदिः श्रीमहावीरजी गुणतीस; अंति: बल घटतो होसी.
४. पे. नाम. चोघडीया चक्र, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि आदीतवारे दिनरा ८ अंतिः ७ कालवेला ८ लाभवेला.
५. पे. नाम. प्रतिक्रमणहेतु विचार, पृ. ५अ-६आ, संपूर्ण.
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संबद्ध, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गद्य, आदि: साधु अने श्रावक दोइ; अंतिः क्षमाकल्याण० मुदा. ६. पे. नाम. श्रीसंघ स्थिति भविष्यवाणी श्लोक - पंचमारके, पृ. ६आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: पंचमारक पर्यंते, अंतिः क्षयमेष्यति, श्लोक-३.
७. पे नाम. ४५ लाखयोजन प्रमाण ४ वाना, पृ. ६आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मा.गु, गद्य, आदि : ४५ लाख योजन प्रमाणे अंति (-) (पू. वि. सिद्धसिला वर्णन अपूर्ण तक है.) ६८२००. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २१-१४ (१ से २,६,९ से १९ ) = ७, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. जैदे. (२४४१२, १३४४९).
"
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. नमुत्थुणं अपूर्ण से अतिचार अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.)
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-)
६८२०१. (#) प्रश्नोत्तररत्नमाला, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४४१२, ९४२२). प्रश्नोत्तररत्नमाला के प्रश्नोत्तर संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि हवे शिष्य पूछे है, अंतिः घणा ज दुर्लभ है, प्रश्न- ६५.
६८२०२. जुठातपसी सलोको व वारव्रतनां छपा, संपूर्ण वि. १८९४ आश्विन शुक्ल, १५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ७. कुल पे. २, ले. स्थल. उमराळा, प्रले. मु. रामचंद ऋषि (गुरु मु. जयराम ऋषि); गुपि. मु. जयराम ऋषि, प्रले. सा. माणकबाई महासती अन्य. सा. वखतबाई (गुरु सा. शाकरबाई); गुपि. सा. शाकरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५X१२, १४x२७). १. पे. नाम जुठातपसी सज्झाय, पृ. १अ ६अ, संपूर्ण.
श्राव. वसतो शाह, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: प्रथम समरुं वितराग; अंति: जुठानो नाम जगोजग रहे, गाथा- ८६. २. पे. नाम, बारव्रत छपा, पृ. ६अ-७आ, संपूर्ण
-
मु. प्रकाशसंघ, मा.गु., पद्य, वि. १८७५, आदि जीवदया रे नीत पाली, अंतिः ते मोक्षना सुख मालशे, गाधा १३. ६८२०३. (+) साधु आचार विवरण- विविध शास्त्रोक्त, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९-१ (१) = ८, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. प्र. वि. संशोधित. दे. (२४.५४१२, ११४३२).
साधु आचार विवरण, प्रा. मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. भीषणजीये जोड करी" पाठ से "परधान
"
राजाने मारै" पाठ तक है.)
६८२०४. नवतत्त्व हुंडी संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७. दे. (२४४११, १४४४०).
नवतत्त्व प्रकरण-प्रश्नोत्तर, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: नवतत्व माह्यथी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. प्रश्न-५६ अपूर्ण तक लिखा है.)
६८२०५. () विधिपक्षगच्छ प्रतिक्रमणसामाचारी संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ८, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११.५, १४X३४).
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४१२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रतिक्रमण समाचारी-विधिपक्षगच्छीय, प्रा.,सं., गद्य, आदि: तत्रादावनगारस्य दैवस; अंति: (-), (पू.वि. पच्चक्खाण
विवरण अपूर्ण तक है.) ६८२०७. (+) चारध्यान व १४गुणठाणाध्यान विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ.,
दे., (२५४१२, २१४४२-४५). १.पे. नाम. चारध्याननो थोकडो, पृ. १अ-८अ, संपूर्ण.
४ ध्यान थोकडो, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: से किं तं झाणे चउविह; अंति: चोथी अणुपेहा जाणवी. २. पे. नाम. गुणठाणा ध्यान, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण.
१४ गुणस्थानक ध्यान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: पहुता ध्यान नथी. ६८२०८. जंबूद्वीप विचार व पंचपरावर्तन संबंध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, २०४४२). १. पे. नाम. जंबुद्वीप विचार, पृ. १अ-९अ, संपूर्ण.
लघुसंग्रहणी-खंडाजोयण बोल*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: हिवै जंबूद्वीप जोजन; अंति: ओर ग्रंथांतरसुजाणवौ. २. पे. नाम. पंचपरावर्तन संबंध, पृ. ९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
५ परावर्तन संबंध, मा.गु., गद्य, आदि: पंचविध: संसार प्रथम; अंति: (-), (पू.वि. "दूसरी वार उपवहुरितीस" पाठ तक है.) ६८२०९. द्विसत्तपणवीस, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८, ले.स्थल. नागोर, प्रले. गोकलदास वोरा, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ४००, दे., (२५४११.५, १५४५४). नूतन ढालसागर, मु. चोथमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: श्रीमत् शांतिप्रभू; अंति: ज्यारो चोथमल गावे, गाथा-२२४,
(वि. गाथाक्रम-२२३ के बाद अंतिम गाथांक मात्र २५ लिखा है.) ६८२१०. आलोयण विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०, ले.स्थल. जामनगर, पठ. श्राव. अदेकरण वोरा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२, १३४२४-२८). श्रावक आलोयणा विधि, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टविधिविज्ञान आशात; अंति: मिच्छामि दुकडं दीई, (वि. गाथांक नहीं
लिखा है.) ६८२११. मानतुंगमानवती रास व पंचकारण स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.८, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२,
१७४३६-४२). १. पे. नाम. मानतुंगमानवती रास, पृ. १अ-८आ, संपूर्ण.
उपा. अभयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२७, आदि: प्रणमुं माता सरसती; अंति: भेद मतिमंदिर लहै, ढाल-१४. २.पे. नाम. ५ कारण छ ढालिया, पृ. ८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सिद्धारथसुत वंदिये; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१, गाथा-७ अपूर्ण
तक है.) ६८२१२. सुरसुंदरी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-३(१,४ से ५)=९, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५४१२, १७४३०).
सुरसुंदरी रास, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा- ५ अपूर्ण से ढाल-३
___ गाथा-१६ अपूर्ण तक व ढाल-६ अपूर्ण से ढाल-१४ गाथा-३१ तक है.) ६८२१३. (+#) आलोयण स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल
गयी है, जैदे., (२४.५४११, १५४४४). १.पे. नाम. आलोयण स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण.
आदिजिनविनती स्तवन, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६६६, आदि: श्रीआदिसर प्रणमु; अंति: बोले
__ सकलसंघ भवभय हरु, ढाल-५, गाथा-५४. २. पे. नाम. अंतरीक पार्श्वस्तवन, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५८५, आदि: सरस वचन द्यो सरसति; अंति: ते जे
जिनवचन सद्दहै, गाथा-५५.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६ ३. पे. नाम. शेत्रुजगिरिमंडण आदिस्वर स्तवन, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण.
आदिजिन बृहत्स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमिय सयल जिणंद; अंति: ते पामे भव पार
ए, गाथा-२२. ४. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार हुँ; अंति: पुरि आस्या मन
तणी, गाथा-१८. ५. पे. नाम. कुमतिनि सण स्वाध्याय, पृ. ५-७अ, संपूर्ण. कुमतिउत्थापनसुमतिस्थापन महावीरजिन स्तवन, श्राव. शाह वघो, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: श्रीश्रुतदेवी तणे;
अंति: मुजने सदगुरू तूठो रे, गाथा-४०. ६. पे. नाम. २४ जिन चंद्रावला, पृ. ७अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: निजगुरु चरणकमल नमी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण तक है.) ६८२१४. (+) स्तवन, सज्झाय व व्याख्यानादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-४(१ से ३,५)=६, कुल पे. १९,
प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४११.५, २०४५०-५३). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: करो प्रभु हेत धरी, गाथा-५, (पूर्ण, पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण.
मु. आनंदविमल, मा.गु., पद्य, आदि: धरमेशरजी तुज दरशन; अंति: आनंदविमल जिनंद करणा, गाथा-५. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण.
मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: नाभिजी के नंदजी से; अंति: ज्ञानसार० नही गहिरा, गाथा-५. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, पृ. ४अ, संपूर्ण.
मु. राजसमुद्र, रा., पद्य, आदि: सुणि बहिनी प्रीउडो; अंति: राजसमुद्र० सोभागी रे, गाथा-७. ५. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. ____ आ. जिनभक्तिसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: सुणि सुणि सेव॒जै; अंति: श्रीजिनभक्तिमुनिंदा, गाथा-११. ६.पे. नाम. स्थंभनक पार्श्व स्तव, पृ. ४आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थ, सं., पद्य, आदि: श्रीसेढीतटिनीतटे; अंति: नाथो नृणां श्रिये, श्लोक-२. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. ४आ, संपूर्ण.
हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: चउक्कसाय पडिमल्लयल्ल; अंति: पासु पयच्छउ वंछिउ, गाथा-२. ८. पे. नाम. ऋषभ स्तव, पृ. ४आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय नाभिनरिंदनंद; अंति: निसदिन नमत
कल्याण, गाथा-३. ९.पे. नाम. शांति स्तव, पृ. ४आ, संपूर्ण. शांतिजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमा जिनवर शांतिनाथ; अंति: लहिये कोड कल्याण,
गाथा-३. १०. पे. नाम. नेम स्तव, पृ. ४आ, संपूर्ण.
नेमिजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह सम प्रणमो नेमि; अंति: क्षमा० करै प्रणाम, गाथा-३. ११. पे. नाम. पार्श्वस्तव, पृ. ४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-गोडीजी, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: पुरसादाणीय पासनाह; अंति: प्रगटे परम
कल्याण, गाथा-३. १२. पे. नाम. वीर स्तव, पृ. ४आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
महावीरजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु जगदाधार सार सिव, अंति: कल्याण करी सुपसाय, गाथा - ३.
१३. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
सिद्धचक्र नमस्कार, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीअरिहंत उदार कांत अंतिः (-), (पू.वि. गाथा- २ अपूर्ण तक है.)
१४. पे. नाम. चैत्रीपूनमरौ व्याख्यान, पृ. ६अ - ६आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
चैत्री पूर्णिमापर्व व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मंगलिकमाला संपजै, (पू. वि. सात चैत्यवंदन विधि से है.) १५. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व व्याख्यान, पृ. ६आ-८अ, संपूर्ण.
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मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (१) ज्ञानं सारं सर्व, (२)ज्ञान ते संसार माहि; अंति: अनंत सुख पाम्या.
१६. पे. नाम. कातीपुनमरी व्याख्यान, पृ. ८अ ९आ, संपूर्ण.
कार्तिक पूर्णिमा व्याख्यान, प्रा., मा.गु., गद्य, आदिः सिद्धो विज्जाय चक्की अंति: आपरो जनम सफल करै छै. १७. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. ९आ, संपूर्ण.
६८२१५.
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन- ९९ यात्रागर्भित, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धाचलमंडण; अंति: सिद्धाचल गुण गाईये, गाथा १५.
१८. पे नाम, मुहपत्तीपडिलेहण विधि, पृ. ९आ, संपूर्ण
मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्र अरथ साचौ सहदहु; अंति: तीन जीमणे गै परिहरु.
१९. पे. नाम. आखात्रीज व्याख्यान, पृ. १०अ १० आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अक्षयतृतीया व्याख्यान, रा. सं., गद्य, आदि: श्रीचिंताणिपार्थना, अंति: (-), (पू. वि. देवता द्वारा पांच दिव्य प्रकट करने के प्रसंग अपूर्ण तक है.)
(#)
| नवपद पूजा, पूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ९- १ (६) =८, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२४४११ ११x२५-२९).
नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि उपन्नसन्नाणमहोमयाणं, अंतिः कोई नयेन अधूरी रे, पूजा-९, (पू. वि. चारित्रपूजा अपूर्ण है.)
६८२१६. (+#) जीवदया स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, अन्य श्रावि. रतनबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२४४११, ११४३३).
,
जीवदया सज्झाय, श्राव. मोतीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: कृष्णजीए दया पलावी, अंति: बिना मुत्ति नहि होय,
गाथा - १०४.
६८२१७. (#) कयवन्नाश्रेष्ठि चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, प्र. वि. अंत में कोई अज्ञात कृति की एक गाथा लिखी हुई है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X११, १५X३७).
कयवन्ना चौपाई, ऋ. फतेचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८१, आदि: पुरहथणापति वंदिये, अंति: पोषवद इग्यारस सुहाय,
ढाल-४.
६८२१८. देवसिकादिप्रतिक्रमणादि विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८, जैवे. (२४.५४११, १५४२८).
प्रतिक्रमणविधि संग्रह - खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: खमासमण देई इच्छा० सं; अंतिः वंदामि सूधी कहै, (वि. पंचप्रतिक्रमण, सामायिक लेने, पारने तथा देववंदन विधि सहित.)
६८२१९. द्वादसव्रतनी पूजा संपूर्ण वि. १९१९, मध्यम, पृ. ६, ले. स्थल, रापूर, प्रले. मु. नानचंद (गुरु पंन्या. रूपविजय); गुप. पंन्या. रुपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. गोडीजिन प्रसादात्., दे., (२५X१२, १६X३८-४३).
१२ व्रत पूजाविधि, पं. वीरविजय, मा.गु. सं., पच, वि. १८८७, आदि: (१) उच्चैर्गुणैर्यस्य, (२) सुखकर शंखेश्वर प्रभु अंति: (१)जग जस पडह वजायो रे, (२) टालवा १२४ दीवा करीइं, ढाल १३, गाथा- १२४.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
४१५ ६८२२०. (#) नवपद पूजा, संपूर्ण, वि. १९१०, पौष शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. बालोतरानगर, पठ.पं. गुलाबविजय; प्रले. मु. कस्तुरसागर; अन्य. पं.सौभाग, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, १६x४०). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजीगणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: परम मंत्र प्रणमी करी; अंति: कोई नये न अधूरी रे,
पूजा-९. ६८२२१. (#) आत्मनिंदा भावना व सीमंधरजिन पत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ७, कुल पे. २, प्र.वि. पत्र जीर्ण होने से पाठ
अवाच्य है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १२४३२-३६). १. पे. नाम. आत्मनिंदा भावना, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण.
मु. ज्ञानसार, रा., गद्य, आदि: हे आत्मा हे चेतन ऐ; अंति: सो नर सुगुण प्रवीन. २.पे. नाम. सीमंधरजिन पत्र, पृ. ४अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
क. नर, मा.गु., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रीमहाविदेह; अंति: (-). ६८२२२. (#) अट्ठाई व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २१-१२(१ से १२)=९, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, १४४४१).
अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: वंछित सिद्ध हुवै, (पू.वि. आर्द्रकुमार प्रसंग अपूर्ण से है.) ६८२२३. (+#) अष्टकर्मनी १५८ प्रकृति विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, १४४३०).
८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो ज्ञानावरणी कहइ; अंति: (-), (पू.वि. गोत्रकर्म अपूर्ण तक है.) ६८२२४. (+) स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२, १५४३६-३९).
स्तवनचौवीसी, मु. हर्षचंद, मा.गु., पद्य, आदि: उठत प्रभात नाम जिनजी; अंति: हरखचंद० करौ दुखपीर, स्तवन-२४. ६८२२५. (#) अंतिम आराधना, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-२(१ से २)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२, ८४३०).
अंतिम आराधना, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३२ अपूर्ण से ९४ अपूर्ण तक है.) ६८२२६. बालचंदबत्तीसी, संपूर्ण, वि. १९३८, मार्गशीर्ष शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. वडोदरा, प्रले.ऋ. मोतीचंद डुंगरशी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२, ११४३९-४२).
अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद मुनि, पुहि., पद्य, वि. १६८५, आदि: अजर अमर पद परमेसरकुं; अंति: रंग मन आणिये,
गाथा-३३. ६८२२७. पंचमीतप स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदे., (२५४१२, १२४३२-३७). __ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९३, आदि: सुत सिद्धारथ भूपनो; अंति: सकल भवि
___ मंगल करे, ढाल-६. ६८२२८. (+#) शांतिनाथ स्तोत्र व चोविसतिर्थंकर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष
पाठ. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ९४२५-२८). १. पे. नाम. शांतिनाथ स्तोत्र, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण.. शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारदमाय नमुं सिरनामी; अंति: मनवंछित
शिवसुख पावे, गाथा-२१. २. पे. नाम. २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, पृ. ३अ-५आ, संपूर्ण.
मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणमु; अंति: तास सीस पभणे आणंद, गाथा-२९. ६८२२९. अवंतीसुकमाल चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्रले. मु. नरसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १२४४५-४८). अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंति: शांतिहरष सुख पावेरे,
ढाल-१३, गाथा-१०३.
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४१६
६८२३०. () सज्झाय व मांगलिक श्लोकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३१, आषाढ़ शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. १२,
प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे., ( २५X११.५, १६३१-३५).
१. पे. नाम. धम्मो मंगल सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.
दशवेकालिकसूत्र - हिस्सा द्रुमपुष्पिका प्रथम अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि धम्मो मंगलमुकिहं अंतिः तेन मूचंती साहणं, गाथा-५.
२. पे. नाम. चार शरणा, पृ. १अ संपूर्ण.
४ मंगल, प्रा., पद्य, आदि: चत्तारि मंगलं अरिहंत, अंतिः धम्मं सरणं पवज्जामि, गाथा-३.
३. पे. नाम. चार शरणा माहात्म्य पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
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४ शरणा माहात्मय गाथा, मा.गु., पद्य, आदि: च्यार शरण छे सारना; अंति: अखै अमर पद होय, गाथा - १.
४. पे. नाम. गौतमस्वामी छंद, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदिः श्रीवीर जीणेसर केरो; अंति: गीतम तुठे संपत्ति कोड, गाथा- ९. ५. पे. नाम, पार्श्वजिन छंद. पू. १आ, संपूर्ण.
६. पे. नाम. सोलसती नाम, पृ. २अ, संपूर्ण.
१६ सती स्तुति, सं., पद्य, आदि: ब्राह्मी चंदनबालिका; अंतिः कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-१.
७. पे. नाम. श्रावककरणी सज्झाय, पृ. २अ - ३अ, संपूर्ण.
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पार्श्वजिन छंद- शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास शंखेश्वरो अंतिः पास संखेसरो आप तूठा, गाथा-७, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या नहीं लिखी है.)
मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: करणी दुखहरणी छे एह, गाथा-२१. ८. पे नाम, लघुशांति स्तव, पृ. ३अ ४अ, संपूर्ण.
श्लोक-१९.
लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: जैनं जयति शासनम्, ९. पे नाम, उवसग्गाहर स्तोत्र, पृ. ४अ, संपूर्ण.
उवसग्गाहर स्तोत्र - गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि उवसग्गहरं पासं पासं, अंतिः भवे भवे पास जिणचंद,
गाथा ५.
१०. पे नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ४अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति प्रार्थना रा., पद्य, आदिः पार्श्वनाथ के नामथी, अंति: जैनं जयति शासनम्, गाथा- ३. ११. पे. नाम. सामायिक लेने की विधि, पृ. ४अ - ५आ, संपूर्ण.
संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: पहेला ३ नवकार गुणीजे, अंतिः स्तवन सजाय कहीजे.
१२. पे. नाम. सामायिक पारने की विधि, पृ. ५आ, संपूर्ण.
संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: पेहली तौ ईरीयावही कह, अंतिः पछै तीन नौकार गुणीजै.
६८२३१. सम्यक्त्वकौमुदी कथा, अपूर्ण, वि. १८६४, मध्यम, पृ. ७१-३ (१ से ३) = ६८, प्रले. गोपाल ब्राह्मण; लिख. श्राव. मोहनराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कुल ग्रं. १५००, जैदे., (२६X१२, १०X३३).
सम्यक्त्वकौमुदी कथा, क. जोधराज साह, मा.गु, पद्य, वि. १७२४, आदिः (-); अंतिः योधराज लग जैनप्रकास, सर्ग-११, (पू.वि. परिच्छेद - १, गाथा - २६ अपूर्ण से है.)
६८२३२. विचाररत्नसार का बालावबोध, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ८३+१ (११) ८४, जैदे., (२५४१२.५, ११४३४-३८). विचारसार प्रकरण-बालावबोध, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: (१) कारणभूतं मुणेयव्वं, (२) सर्व मंगल जिनशासन छे,
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६८२३३. (+) चौढालिया व चौपाई संग्रह, संपूर्ण वि. १९६३ वैशाख शुक्ल, १, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २६, कुल पे, ४,
प्र. मु. मोतीचंद ऋषि (गुरु मु. तेजकरण ऋषि); गुपि. मु. तेजकरण ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. दे., (२६१२.५, १०X२३-२७).
१. पे. नाम. जिनपालजिनरक्षित चोढालीयो, पृ. १-५आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
४१७ जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: पाप अढारै जिणेसर; अंति: माहाविदेह जासी मोक्ष, ढाल-४. २. पे. नाम. खंधकऋषि चोढालीयो, पृ. ५आ-१२आ, संपूर्ण.
खंधकमुनि चौढालियो, रा., पद्य, वि. १८११, आदि: नमुंवीर सासणधणी जी; अंति: करणी करज्यो सहु कोय, ढाल-४. ३. पे. नाम. सनतकुमार चोढालीयो, पृ. १३अ-१७आ, संपूर्ण. सनत्कुमारचक्रवर्ति चौढालियो, मु. कुशलनिधान, मा.गु., पद्य, वि. १७८९, आदि: सुखदायक सासणधणी; अंति:
निवर चरम नमु सुखकंद, ढाल-४. ४. पे. नाम. आषाढामुनि चउपाई, पृ. १८अ-२६आ, संपूर्ण. आषाढाभूतिमुनि चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७३७, आदि: सासणनायक सुखकरूं; अंति: मानसागर
वाण रेलाल, ढाल-७. ६८२३४. (+#) स्नात्रपूजा, स्तवन, स्तुति आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८५०, आषाढ़ शुक्ल, २, मध्यम, पृ. २६, कुल पे. २३,
ले.स्थल. रतलाम, प्रले.पं. रतनचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, १७४४९-५३). १.पे. नाम. स्नात्रपूजा विधिसहित, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण.
ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चोतिसे अतिसय जुओ वचन; अंति: देव० सौख्यं श्रयंति, ढाल-८. २. पे. नाम. सिद्धचक्र नवपद गुणवर्णन स्तवन, पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण.
सिद्धचक्र स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: तीरथपति अरिहा नमु; अंति: देवचंद्र सुशोभता, गाथा-११. ३. पे. नाम. दश प्रत्याख्यान, पृ. ७अ-८अ, संपूर्ण.
प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: वत्तियागारेण वोसिरइ. ४. पे. नाम. आगार संख्या गाथा, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण.
प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: दो चेव नमोक्कारे; अंति: हवंति सेसेसु चत्तारि, गाथा-४. ५. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. ८आ, संपूर्ण.
मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अति: कहे पुरो मनोरथ माय, गाथा-४. ६. पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तुति, प्र. ८आ-९अ, संपूर्ण.
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतकसुप्रपंचपरमा; अंति: सिद्धायिका त्रायिका, श्लोक-४. ७. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. ९अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: महामंगलं अष्ट सोहै; अंति: सुह संति कल्लाणदाता, गाथा-४. ८. पे. नाम. मौनेकादशीपर्व स्तुति, पृ. ९अ, संपूर्ण.
मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि; अंति: विपदः पंचकमदः, श्लोक-४. ९. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण.
पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. १०. पे. नाम. पुण्यप्रकाश आराधन वीरजिन स्तवन, पृ. ९आ-१२आ, संपूर्ण. पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति:
विनयविजय० प्रकाश ए, ढाल-८, गाथा-१००. ११. पे. नाम. निश्चयव्यवहार संवाद शांतिजिन स्तवन, पृ. १२आ-१४अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: शांतिजिनेसर
केसर; अंति: जसविजय जयसिरी लही, ढाल-६, गाथा-४८. १२. पे. नाम. दिवसगत प्रतिक्रमण गाथा, पृ. १४अ, संपूर्ण.
संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जिणमुणिवंदण अइयार; अंति: वंदणत्ति थुई थुत्तं, गाथा-२. १३. पे. नाम. प्रतिक्रमण विधि संग्रह, पृ. १४अ-१६अ, संपूर्ण.
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पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि: मुहपत्तिवंदणय; अंति: तुह नाह पणाम करणेणं, (वि. सामायिक, पौषध तथा संथारापोरसीसूत्र विधि आदि.)
१४. पे नाम. हितशिक्षा स्वाध्याय, पृ. १६अ १७अ, संपूर्ण.
अमृतवेल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि; चेतन ज्ञान अजुआलीये, अंति: लहे सूजस रंग रेल रे, गाथा २९.
१५. पे नाम, औपदेशिक पद, पृ. १७अ, संपूर्ण
मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: तुं है हि तुहमारो रे; अंति: आनंदघन० जीत नगारो रे, गाथा - ३.
१६. पे. नाम. छमासीतप विधि, पृ. १७अ १७आ, संपूर्ण.
छमासीतपचितवन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: कोसंचि नगरीमां भगवन्, अंति; तो १६ नवकार चिंतवै.
१७. पे. नाम. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, पृ. १७आ, संपूर्ण
सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके, अंतिः सततं चित्तमानंदकारि, श्लोक-९.
१८. पे. नाम. पोरसीमान गाथा, पृ. १७आ १८ अ, संपूर्ण.
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प्रा., पद्य, आदि: चउहिं पएहिं कत्तिए; अंतिः ठायंतो कुणेइ पडिलेहं, गाथा-५. १९. पे नाम, प्रतिलेखना कुलक, पृ. १८अ १८आ, संपूर्ण, पे. वि. यंत्र सहित.
प्रतिलेखनकालमान गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि आसाडे पउणपहरो दो पवछ अंतिः छाया एहिंसहणि अद्धा,
.
गाथा - १३.
२०. पे. नाम. साधुदीक्षाग्रहण विधि, पृ. १९ अ २० आ. संपूर्ण.
प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: दीक्षा थकी पहिलै, अंति: प्रथम विहार करावीजै.
२१. पे. नाम. गुरुस्तूप प्रतिष्टा विधि, पृ. २० आ-२१अ संपूर्ण.
गुरुपादुका प्रतिष्ठाविधि, सं., गद्य, आदि: तत्र रात्रिजागरणं; अंतिः शीलवृत्तं च पालयति
२२. पे नाम, सिमंधरजिन स्तवन, पृ. २१अ-२४अ, संपूर्ण.
सीमंधरजिन विनती स्तवन- १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: स्वामी सीमंधर विनती, अंति: जसविजय बुध जयकरो, ढाल ११, गाथा - १२५.
२३. पे. नाम. सेडुंजय रास, पृ. २४अ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु. पच, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी अंतिः समयसुंदर आनंद धाय, बाल-६, गाथा- ११२.
६८२३५. निगोदविचार स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण वि. १८९९ कार्तिक शुक्ल, १४, गुरुवार, मध्यम, पृ. ८. कुल पे. ५, जैदे.,
( २६१२, ९X२५-३० ).
१. पे. नाम निगोदविचार स्तवन, पृ. १आ- ५आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तवन- निगोदविचारगर्भित, मु. क्षमाप्रमोद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी नमिवें सदा, अंतिः क्षमाप्रमोद जगी ए, गाथा- ४८.
२. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अंग उमाहो म्हारे अत, अंतिः प्रेम घणे जिणचंद रे, गाथा - ७. ३. पे नाम, कायोपरि हितोपदेश स्तवन, पृ. ६अ ६आ, संपूर्ण,
आध्यात्मिक पद - कावा, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: अब चल संग हमारे री, अंतिः आनंद० महारे री काया,
"
ढाल -३, गाथा - १३.
५. पे नाम, पंचमी स्तुति, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण.
गाथा-७.
४. पे. नाम. पुंडरीकगिरि स्तवन, पृ. ७अ-८अ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, वा. साधुकीर्ति, मा.गु, पद्म, आदिः पय पणमी रे जिणवरना; अंति: परइ साधुकीरति इम कहइ,
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतकसुप्रपंचपरमा; अंति: सिद्धायिका त्रायिका, श्लोक-४. ६८२३६. (#) उत्तमकुमारचरित्रनो रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १२४३०). उत्तमकुमारचरित्र रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४५, आदि: चरमजिणेसर चित्त धरुं; अंति: (-),
(पू.वि. ढाल-६, दोहा-४ अपूर्ण तक है.) ६८२३७. (+#) स्तवन व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८८-५८(१ से ५८)=३०, कुल पे. ४९, प्रले. मु. शिवदास
ऋषि; पठ. मु. शिवचंद (गुरु मु. मुहुरचंद, अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२.५, १३-१६x२८-३२). १. पे. नाम. नेमनाथ स्तवन, पृ. ५९अ-६१आ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तवन, म. तीकम, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल कर रेनरवर नेमि; अंति: टीकम०करो कुसल शरीर ए, गाथा-३०. २. पे. नाम. सेव॒जा स्तवन, पृ. ६१आ-६२अ, संपूर्ण..
शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: विलु बोले रे पंथीडा; अंति: प्रेम घणै जिनचंदरे, गाथा-७. ३. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. ६२अ-६२आ, संपूर्ण.
शत्रुजयतीर्थस्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: यात्रा निनाणुं करियै; अंति: पदम कहै भव तरियै, गाथा-६. ४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ६२आ, संपूर्ण.
आदिजिन पद-धुलेवामंडन, मु. हरजी मुनि, पुहि., पद्य, आदि: हो जती मोकू जंतर कर; अंति: हरजी० ज्ञान बताय दे,
गाथा-५. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन लावणी, पृ. ६२आ-६३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन लावणी-मगसी, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: मूलक वीच मगसी पारस; अंति: जीनदास० पारस का
डंका, गाथा-४. ६.पे. नाम. धर्मजिन स्तुति, प्र. ६३अ-६३आ, संपूर्ण. धर्मजिन स्तवन, मु. केसर, पुहिं., पद्य, वि. १८४२, आदि: धर्मजिनेस्वर साहिवा; अंति: केसर० अंतरगत हित आण,
गाथा-७. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ६३आ-६४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. केसर ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४२, आदि: प्रणमुपास जिनेसरु; अंति: ऋख केसर मनचंगैरे,
गाथा-८. ८. पे. नाम. पार्श्वजिन लघुस्तवन, पृ. ६४अ-६४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-लघु, मु. केसर, पुहिं., पद्य, वि. १८५९, आदि: राज श्रीअश्वसेन सुत; अंति: कहै आवागमण निवार
हो, गाथा-७. ९. पे. नाम. दस पचखाण सज्झाय, पृ. ६४आ-६५अ, संपूर्ण.
१० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: दसविह प्रह उठी; अंति: आगम अरथ प्रमाण, गाथा-८. १०. पे. नाम. गोडीचा स्तवन, पृ. ६५अ-६५आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. नेम, पुहिं., पद्य, आदि: आसणरा रेजोगी पासजिण; अंति: नेम० जात्रा पामीरे, गाथा-७. ११.पे. नाम. नेमराजिमतीस्तवन, पृ. ६५आ-६६अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. वल्लभकुशल, रा., पद्य, आदि: जो थे चालो सिवपुरी; अंति: (१)निवार हो हठीला नेमजी, (२)इम
वीनवैरे साहिबा, गाथा-४. १२. पे. नाम. फलोधी पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६६अ-६६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-फलोधी, म. केसरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६४, आदि: चालौ सखी प्रभुजीनै; अंति: मुझ देव
प्रमाणजी काई, गाथा-७. १३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, प्र. ६६आ-६७अ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
मु. रतन ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: पाशजिणेसर सामी हइडा; अंति: रतन ० पूरे मन तणी आसह, गाथा-६. १४. पे. नाम. औपदेशिक प्रहेलिका, पृ. ६७अ- ६७आ, संपूर्ण.
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पुहिं., पद्य, आदि आधी तो नीरूतो न एलची, अंति: कर करूरे सीलामजी, गाथा-७
"
१५. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६७आ, संपूर्ण
पार्श्वजिन स्तवन- सोजत, मु. केसर, पुहिं., पद्य, वि. १८४२, आदि: पासजिणेसर साहिबाजी, अंति: केसर मनोरथ मालजी, गाथा-७.
१६. पे. नाम. पारसनाथ स्तवन, पृ. ६८अ - ६८आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, मु. कीरत, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुगुरु चिंतामणि, अंति: कीरत० नाम सदा जयकार, गाथा- १७. १७. पे. नाम. ऋषभदेव स्तवन, पृ. ६८-६९अ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है. आदिजिन स्तवन- जन्मबधाई, मा.गु., पद्य, आदिः आज बधाई नाभिराय घरे, अंतिः तुम चरणां की सेवा, गाथा - ६. १८. पे. नाम. दादाजी स्तवन, पृ. ६९अ - ६९आ, संपूर्ण.
दादाजी स्तवन-नागोरीगच्छ, मु. परमानंद, मा.गु., पद्य, आदि: देव सकल सेहरो हो; अंति: वीरनो० जपै परमानंद,
गाथा - ९.
१९. पे. नाम. दादा स्तवन, पृ. ६९-७० अ, संपूर्ण
दादाजी स्तवन- नागोरीगच्छ, मु. परमानंद, मा.गु., पद्म, आदि: दोलत दो दादा सदगुरु अंति: गुण गावै परमानंद,
गाथा - ९.
२०. पे नाम, गोडी पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ७०अ संपूर्ण
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगीडीपुरमंडण प्रभ, अंति: कल्याण सवाई थायै हो, गाथा ६.
२१. पे. नाम. ऋषभदेव स्तुति, पृ. ७०अ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है.
आदिजिन स्तवन- जन्मबधाई, मा.गु., पद्य, आदि : आज बधाई नाभिराय घरे; अंतिः तुम चरणां की सेवा, गाथा-५. २२. पे नाम, संवछरी दानाधिकार, प्र. ७१अ. संपूर्ण,
संवत्सरीदान स्तवन, मु. केसरविजय, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीवरदाईना चरण नमी, अंतिः केसर० दानसंवछरी महिमा,
गाथा - २८.
२३. पे. नाम. आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. ७९आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिनेसर ऋषभदेव, अंति: मानविजय गुण गाय, गाथा- ३. २४. पे नाम. अजितजिन स्तुति, पृ. ७१आ, संपूर्ण.
मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजित जिनेसर अरचिये, अंतिः मान करे गुणगान, गाथा- ३.
२५. पे. नाम. संभवजिन स्तुति, पृ. ७१आ, संपूर्ण.
मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: संभवनाथ अनाथ साथ, अंतिः मान नमे हितकार, गाथा- ३. २६. पे नाम, सुपार्श्वजिन स्तुति, पृ. ७१आ-७२अ, संपूर्ण.
मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदिः सुपार्श्वजिन सेवीये, अंतिः मानविजय गुण गात, गाथा- ३. २७. पे. नाम, रूखमणी सज्झाय, पृ. ७२अ संपूर्ण.
रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरता गामो गाम; अंति: जाय राजविजय रंगे भणे, गाथा - १४.
२८. पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. ७२अ - ७२आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु, पद्य, आदि आज भलो दिन उगो हो, अंतिः सीसनो राम सफल अरदास, गाथा ५.
२९. पे. नाम. सेडुंजय रास, पृ. ७२ आ-७६आ, संपूर्ण वि. १८८३, प्र. मु. शिवदास ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
४२१ शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पय नमी; अंति: समयसुंदर०
आणंद थाय, ढाल-६, गाथा-११२. ३०. पे. नाम. अष्टाविंशतिलब्धि स्तवन, पृ. ७७अ-७७आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-२८ लब्धिगर्भित, म. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: प्रणमुंप्रथम जिणेसर; अंति: प्रगट
ज्ञान प्रकास ए, ढाल-३, गाथा-२५. ३१. पे. नाम. रोहिणी स्तवन, पृ. ७७आ-७९अ, संपूर्ण. रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणदेवत सामिणी मुझ; अंति: हिव सकल मन
आस्या फली, ढाल-४, गाथा-२८. ३२. पे. नाम. सौभाग्य पंचमी स्तवन, पृ. ७९अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमीतप तुमे करो रे; अंति: ज्ञाननो पंचमो भेद
रे, गाथा-५. ३३. पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तवन, पृ. ७९अ-८०अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी सद्गुरु पाय; अंति: भगति
भाव प्रशंसीयो, ढाल-३, गाथा-२०. ३४. पे. नाम. रोहिणीतप स्तवन-लघु, पृ. ८०अ-८०आ, संपूर्ण. रोहिणीतप स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: रोहिणी तप भावि आदरो; अंति: समय० तपथी सिवसुख
सार, गाथा-५. ३५. पे. नाम. मल्लिनाथ स्तवन, पृ. ८०आ-८१अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समवसरण बैठा भगवंत; अंति:
समयसुंदर कहो द्याहडी, गाथा-१३. ३६. पे. नाम. दशपचखाण स्तवन, पृ. ८१अ-८२अ, संपूर्ण. १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नमु: अंति: रामचंद
तपविधि भणै, ढाल-३. ३७. पे. नाम. आलोयण स्तवन, पृ. ८२अ-८३आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-अतिचारगर्भित, उपा. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: ए धन सासन वीर जिनवर; अंति: कीधौ चौपनै
फलवधिपुरै, ढाल-४, गाथा-३०. ३८. पे. नाम. धन्नासालिभद्र सज्झाय, पृ. ८३आ-८४अ, संपूर्ण. शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गोवाल तणे भवे; अंति: गयोजी सहजसुंदरनी वाण,
गाथा-१८. ३९. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ८४अ-८४आ, संपूर्ण.
ग. समयसुंदर, पुहिं., पद्य, आदि: अंगन कलप फल्योरी हमा; अंति: हरहिस्यु सोहलोरी, गाथा-३. ४०. पे. नाम. वीसविहरमान स्तवन, पृ. ८४आ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: वीसे विहरमान जिनराया; अंति: क्षमाकल्याण में
पाउ, गाथा-५. ४१. पे. नाम. ५ आरानी सज्झाय, पृ. ८४आ-८५अ, संपूर्ण. पंचमआरा सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहै गोयम सूणो; अंति: भाख्या वयण रसालो रे,
गाथा-२१. ४२. पे. नाम. क्रोध सज्झाय, पृ. ८५आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कडवां फल छे क्रोधनां; अंति: निर्मली
उपशमरसे नाही, गाथा-६.
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४२२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४३. पे. नाम. मान सज्झाय, पृ. ८५आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव मान न कीजीए; अंति: उदयरत्न० दीजइ
देसोटो, गाथा-५. ४४. पे. नाम. माया सज्झाय, पृ. ८५-८६अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: समकितनुं मुल जाणीये; अंति: ए मारग छे शुद्ध,
गाथा-६. ४५. पे. नाम. लोभ कषाय सज्झाय, पृ. ८६अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-लोभपरिहार, मु. उदयरत्न कवि, मा.गु., पद्य, आदि: तुमे लक्षण जोजो लोभ; अंति: लोभ तजे
तेहने सदारे, गाथा-७. ४६. पे. नाम. दश श्रावक सझाय, पृ. ८६अ-८६आ, संपूर्ण.
१० श्रावक सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठि प्रणमुंदसे; अंति: कहे मुनि श्रीसार रे, गाथा-१४. ४७. पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, पृ. ८७अ-८७आ, संपूर्ण.
गच्छा. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८४६, आदि: आज भलै मै भेट्या हो; अंति: थई जात्र सफल जयकार, गाथा-९. ४८. पे. नाम. ज्ञानपंचमी उद्यापन विधि, पृ. ८७-८८अ, संपूर्ण.
ज्ञानपंचमीतपउद्यापन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम समस्त ज्ञानोपग; अंति: ठवणी साजसमेत इत्यादी. ४९. पे. नाम. दीपावलीपर्वगुणन विधि, पृ. ८८अ, संपूर्ण.
मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्री महावी; अंति: गौतमस्वामी केवलज्ञान. ६८२३८. (-#) मेतारजमुनि चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, प्रले. सा. उमेदा (गुरु सा. मानाजी); गुपि.सा. मानाजी (गुरु
सा. लछुजी); सा. लछुजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, १६४३५). ___ मेतारजमुनि चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४९, आदि: सासणनायक समरीयै; अंति: कीयो आसोज
मास अभ्यास, ढाल-२०. ६८२३९. (+) नमस्कारचौवीसी व चतुर्विंशतिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९१२, आश्विन शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. २,
प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२६४१२, १४४४०-४५). १.पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन नमस्कार, पृ. १आ-६अ, संपूर्ण, वि. १९१२, श्रावण शुक्ल, १२.. नमस्कारचौवीसी, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १८५६, आदि: जय जय जिनवर आदिदेव; अंति: गणि सीस
क्षमाकल्याण, अध्याय-२४, गाथा-१४४. २. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. ६आ-१२अ, संपूर्ण.
२४ जिन स्तुति, मु. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, आदि: श्रीमंत परमानंद; अंति: सा जयतादजस्त्रम्, स्तुति-२४, श्लोक-४९. ६८२४०. (+) रामयशोरसायन चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-३(१ से ३)=१२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, ११४३६). रामयशोरसायन चौपाई, मु. केशराज, मा.गु., पद्य, वि. १६८३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व
प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-२, गाथा-९ अपूर्ण से है.) ६८२४१. स्थूलिभद्र नवरसो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, दे., (२६४१२, १३४२२).
स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपत्ति दायक सदा; अंति: मनना मनोरथ
सवि फल्या, ढाल-९. ६८२४२. दानशीलतपभावनाकुलक सह टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, दे., (२६४१३, १३४३२-३९).
दानशीलतपभावना कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: परिहरिय रजसारो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण., शीलकुलक गाथा-१० तक लिखा है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
४२३
दानशीलतपभावना कुलक-धर्मरत्नमंजूषा टीका, ग. देवविजय, सं., गद्य, वि. १६६६, आदि: परिहरिअत्ति परिहृतं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, अजितसेन कथा अपूर्ण तक है.) ६८२४३. (+) व्याख्यान संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५-५ (१ से २, ७ से ९) = १०, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१३, १३४३६).
व्याख्यान संग्रह *, प्रा.मा.गु., रा. सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-), पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.
६८२४५. (४) गुणावली चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५, प्र. वि. कुल ग्रं. ६०६, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे., (२६.५X१२.५, १५-१८x४२-५७).
गुणावलि चौपाई, मु. दीपचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७५७, आदि: संपत सुखदायक सरस; अंति: थिर संपत पावैजी, दाल- २८.
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६८२४६. चोवीस तीर्थंकरना आंतरा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, दे., (२६X१३, १३X३०). २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, आदि: पेहला श्रीआदिनाथ; अंति: ऊणानुं आंतरू जाणवु.
६८२४७. प्रतिष्ठादि विधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ८४-७८ (१ से ७८ ) = ६. पू. वि. बीच के पत्र हैं, जैदे. (२६४१३,
"
१३४३०).
जिनबिंबप्रवेशप्रतिष्ठादि विधि, सं., प्रा., मा.गु., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कुंभस्थापना अपूर्ण से अंत में पूजन सामग्री लिस्ट अपूर्ण तक हैं.)
,
६८२४८, (+) दंडक बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६ प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६.५४१३, १३४३५). २४ दंडक बोल संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: साते नारकीरो एक दंडक अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "प्राण- १०, योग-३" तक लिखा है)
६८२४९. सज्झाय, स्तवन व पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २२, लिख. श्राव. बापुलाल, अन्य. पं. मोहनविजय (गुरु पं. जसविजय, देवसूरगच्छ); गुपि. पं. जसविजय (गुरु पं. रत्नविजय, देवसूरगच्छ) पं. रत्नविजय (देवसूरगच्छ ), प्र.ले.पु. मध्यम, दे. (२६.५४१२.५, ११४३७).
१. पे. नाम. शिखामण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.
יי
कुलवधू सज्झाय, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती सामणी करो रे; अंति: आणंदघन० सुख हुवे ए, गाथा - ५. २. पे नाम रीखयजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
"
आदिजिन स्तवन- झाबुआमंडन, मु. जसविजय, मा.गु., पद्य वि. १९२८ आदि आदेसर अरहंत अरज सुण; अंति गुरु गाइ, गाथा-७.
३. पे. नाम. रीखबजिन स्तवन - झाबुआमंडन, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन - झाबुआमंडन, मु. जसविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९२८ आदिः आवेश्वर त्रीभुवनतिलो अंति: जस० मरणना फंद हो लाल, गाथा-८.
४. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
मु. जसविजय, मा.गु., पद्य, आदि: त्रीभुवन नायक सांती; अंति: दरसण वेलो पावु रे, गाथा- ७.
५. पे. नाम वीरजिन स्तवन, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तवन, मु. जसविजय, मा.गु, पद्म, आदि: जीया सुख चावे तेरो अंति: जसवीजे हीत गावे, गाथा-४. ६. पे. नाम रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, पृ. ३आ-४अ संपूर्ण
मु. जसविजय, मा.गु., पद्म, आदि: गरु समरु रे बाणी बबे, अंतिः पाप दुरे परीहरो जी (वि. गावांक नहीं लिखा है.) ७. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण.
,जसविजय, पुहिं., पद्य, आदिः यादव मेरो मन हर लीयो; अंति: जस कहे मन हरखीयो रे, गाथा - ५. ८. पे. नाम. धर्मजिन पद, पृ. ४अ, संपूर्ण,
मु.
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४२४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची धर्मजिन स्तवन, पंडित. खीमाविजय, पुहिं., पद्य, आदि: इक सुणलैनाथ अरज मेरी; अंति: दुर करो दुख की बेरी,
गाथा-४, (वि. इस प्रत में कर्ता का नाम नहीं लिखा है.) ९. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. जिनचंद, पुहि., पद्य, आदि: धुसो वाजे रे रीषभजी; अंति: रस तो पायो मुगत पदको, गाथा-७, (वि. इस प्रत में कर्ता
का नाम नहीं लिखा है.) १०. पे. नाम. जिनपूजा स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. महावीरजिनपूजा स्तवन, मु. जयसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पूजा करजो रे मुक्ति; अंति: पभणे मुगतितणा फल होय,
गाथा-९. ११. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण.
मु. जसविजय, पुहिं., पद्य, आदि: सब तिरथमें मोटको सिध; अंति: जस० सुख पावे भरपुर, गाथा-५. १२. पे. नाम. सिधगिरि स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थस्तवन, मु. जसविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९५२, आदि: गीरीवर चाल्यो आदेस्व; अंति: जसविजे० भवदुख
भाजेरे, गाथा-७. १३. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
मु. जसविजय, पुहि., पद्य, वि. १९३०, आदि: सांतिजिनेस्वर सायब; अंति: जय० सरण तुमारो रे, गाथा-९. १४. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन-मयामंडन, मु. जसविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९३०, आदि: एकवार मुखथी बोलावीये; अंति: सांती
जरणमे सदाइ हो, गाथा-९. १५. पे. नाम. आदिजिन प्रभाती, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण.
मु. जसविजय, पुहिं., पद्य, आदि: नाभीराय मोरादेवीनंद; अंति: जस० मोक्षे जाय वसोरी, गाथा-१०. १६.पे. नाम. धनासालीभद्र सझाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. जसविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजीया करम जोरावर; अंति: जसवीजे सुख भरपुर,
गाथा-८. १७. पे. नाम. कर्म सझाय, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-कर्म, मु. जसविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कर्म जोरावर जालमी; अंति: जस० वंदणा कीजो रे,
गाथा-१०. १८. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण.
मु. प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि: सेवकनी अरदास दुर देस; अंति: प्रेम०देजो अविचल ठाम, गाथा-५. १९. पे. नाम. सिधाचल स्तवन, पृ. ८आ, संपूर्ण.
शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जसविजय, पुहिं., पद्य, आदि: डुगर सेवे पाप तोड; अंति: जस० मुज गये रे पयाल, गाथा-४. २०. पे. नाम. आध्यात्मिक पद-काया, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण.
मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, आदि: अब चल संग हमारे री; अंति: मानले आनंदघन उपगारे, गाथा-५. २१. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: करता कुन कहावे साधु; अंति: मेरा बाकी खबर बतावे, गाथा-६. २२. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ९आ, संपूर्ण.
मु. श्रीराम, पुहिं., पद्य, आदि: जीस घडी मोत आवेगी; अंति: भगवंत से पार होगी, गाथा-४. ६८२५०. (+) आठदृष्टिनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९०३, मार्गशीर्ष शुक्ल, ७, बुधवार, मध्यम, पृ. ५, प्रले. सिवराम पानाचंद ठाकोर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४१२.५, १२४३२-३६). ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शिवसुख कारण उपदिशी; अंति: वाचक
जशने वयणेजी, ढाल-८.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
४२५ ६८२५१. (+) धर्मध्यान द्वार विचार, संपूर्ण, वि. १९३१, आश्विन शुक्ल, ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. अमदावाद, प्रले. आशाराम ब्राह्मण; पठ. श्राव. मलीचंद जयचंद साह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२.५, १५४४१).
ध्यानद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम चार प्रकारना; अंति: ध्याननांबे भेद लाभे. ६८२५२. प्रतिक्रमणसूत्र बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-३(१ से ३)=७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२५.५४१२.५, १६-१८x२८-३५). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अतिचार अपूर्ण से
पच्चक्खाण अपूर्ण तक पाठ है.) ६८२५३. सुंदरराजा रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, जैदे., (२५४१२, १६-१९४३२-४०).
सुंदरराजा रास, मा.गु., पद्य, आदि: ॐ सासण नायक समरिये; अंति: मुनिराज हो नरपति, ढाल-११, गाथा-३४५. ६८२५४. (+) कल्पसूत्र सह बालावबोध व कथा, संपूर्ण, वि. १८९८, फाल्गुन शुक्ल, १, गुरुवार, मध्यम,
पृ. २५२-१(१५८)+१(१५९)=२५२, ले.स्थल. विक्रमनगर, राज्यकालरा. रतनसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे.. (२४४१२,१३४३६-४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९,
ग्रं. १२१६, (वि. मूल कृति प्रतीकपाठ के रूप में दी गई है.) कल्पसूत्र-बालावबोध *, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: श्रीअरिहंत भगवंत वीत; अंति: कहि भगवंते उपदेश्यु.
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंत भगवंत; अंति: जोसवणाकप्पो सम्मत्तं. ६८२५५. (+) योगरत्नाकर, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३६, प्र.वि. प्रत के अंत में बीजक दिया गया है., संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १९४५२). योगरत्नाकर, वा. नयनशेखर, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: सरसति सुखदायक सदा; अंति: जेहथी लहीइं मंगलमाल,
ग्रं. ९०००. ६८२५६. (+) प्रतिक्रमणसूत्र, स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२४, कुल पे. १८९, प्र.वि. संशोधित., दे.,
(२४.५४१२,१३४३६-३९). १.पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण. साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं; अंति: समुन्नइ
निमित्तं. २. पे. नाम. वंदित्तुसूत्र, पृ. ६आ-८आ, संपूर्ण.
संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्ध; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. ३. पे. नाम. अतिचार आलोचना, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण.
अतिचार आलोयणा-रात्रिदिवसगत, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: आजुणा चौपहुर दिवसमाह; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थ, सं., पद्य, आदि: श्रीसेढीतटिनीतटे; अंति: नाथो नृणां श्रिये, श्लोक-२. ५. पे. नाम. ऋषभजिन नमस्कार, पृ. ९आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय नाभिनरिंदनंद; अंति: निसदिन नमत
कल्याण, गाथा-३. ६.पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदित पाय; अंति: मंगल करो अंबक सेवीया. गाथा-४. ७. पे. नाम. सीमंधरस्वामि चैत्यवंदन, पृ. १०अ, संपूर्ण. ___ सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु जिणवर विहरमाण; अंति: संपदा करण
परमकल्याण, गाथा-३. ८.पे. नाम. वीसविहरमानजिन स्तवनम्, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २० विहरमानजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बीसे विहरमान जिनराया; अंति: समयसुंदर० पाय
सेवा, गाथा-४. ९. पे. नाम. मुहपत्ती पडिलेहन, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. ___मुहपति पडिलेहण के २५ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्र अर्थ साचौ सरदह; अंति: अंगनी पडिलेहण जाणवी. १०. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ११अ-१२अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार हं; अंति: प्रभु आसा अमतणी,
गाथा-१८. ११.पे. नाम. पार्श्वप्रभु स्तवन, पृ. १२अ-१४आ, संपूर्ण.. जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंति: अभयदेव
विन० आणंदिउ, गाथा-३०. १२. पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तवन, पृ. १४आ-१६अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्वमहावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगुरु पाय; अंति:
समयसुंदर० प्रसंसीयौ, ढाल-३, गाथा-२०. १३. पे. नाम. ज्ञानपंचमी लघु स्तवन, पृ. १६अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमीतप तुमे करोरे; अंति: समयसुंदर० भेद
रे, गाथा-५. १४. पे. नाम. मंगल पाठ, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण.
साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दर्शनं देव देवस्य; अंति: हन्यते जिन वंदनात्, गाथा-१०. १५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १६आ, संपूर्ण.
मु. जिनचंद, रा., पद्य, आदि: प्राण पीराजी हो पास; अंति: जिनचंद० प्रभु सुखवास, गाथा-५. १६. पे. नाम. चिंतामणिजिन स्तवन, प्र. १६आ-१७अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: श्रीचिंतामणि पास; अंति: जिनचंद्र०
जुगतिसु, गाथा-५. १७. पे. नाम. संखेस्वरा पार्श्वनाथजी लघु स्तवन, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक
बार जुडी हुई है. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजिन; अंति: जिनचंद सयलरिपु
जीपतो, गाथा-५. १८. पे. नाम. वैराग्य पद, पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. राजसमुद्र, रा., पद्य, आदि: सुणि बहिनी प्रीउडो; अंति: राजसमुद्र० सोभागीरे,
गाथा-७. १९. पे. नाम. शिखरजी चैत्यवंदन, पृ. १८अ, संपूर्ण..
सम्मेतशिखरतीर्थ चैत्यवंदन, मु. कल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: पूरव दिसे दीपतो; अंति: तीरथ करण कल्याण, गाथा-३. २०. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. १८अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र नमस्कार, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत उदार कांत; अंति: कल्याण० चेतन भूप,
गाथा-६. २१. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी
जिनबिंबपूजा स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: भविका श्रीजिनबिंब; अंति: श्रीजिनचंद्र सहाई रे,
गाथा-११. २२. पे. नाम. आदीसरजिन स्तवन, पृ. १८आ-२०अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
४२७ आदिजिन स्तवन, उपा. सहजकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: विमलगिरि सिखिर गजराज; अंति: सहिजकीरति इम कहै,
गाथा-१७. २३. पे. नाम. कर्म स्तुति, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण. कर्मविपाकफल सज्झाय, म. ऋद्धिहर्ष, मा.ग., पद्य, आदि: देव दाणव तीर्थंकर: अंति: नमो कर्म महाराजा रे.
गाथा-१७. २४. पे. नाम. औपदेशिक स्वाध्याय, पृ. २०आ-२१अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय. मा.ग.. पद्य, आदि: विषिया लालच रस तणो: अंति: फिटकर मी संनेह. गाथा-१३ २५. पे. नाम. स्वारथ वीसी, पृ. २१अ-२२अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-स्वार्थ विषये, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: सैं मुख जिनवर उपदिसै; अंति: श्रीसार०करो
विचार रे, गाथा-२०. २६. पे. नाम. पंचपरमेष्ठी स्तवन, पृ. २२अ-२३आ, संपूर्ण. ___ नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि: किं कप्पतरु रे आयाण; अंति: जिनवल्लभ०
देज्यो नित, गाथा-१३. २७. पे. नाम. अष्टापदतीर्थ स्तवन, पृ. २३आ-२४अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अष्टापद कि जात्रा; अंति: ज्ञानवि० नायक गावे, गाथा-८. २८. पे. नाम. से@जय स्तवन, पृ. २४अ-२४आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीविमलाचल सिरतिलौ; अंति: राजसमुद्र० लील विलास,
गाथा-११. २९. पे. नाम. शीतलनाथजिन स्तवन, पृ. २४आ-२५अ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन-अमरसरपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, रा., पद्य, आदि: मोरा साहेब हो; अंति: समयसुंदर०
जनमन मोह ए, गाथा-१५. ३०. पे. नाम. वर्द्धमानजिन स्तवन, पृ. २५अ-२६अ, संपूर्ण. महावीरजिन विनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मुज विनती; अंति:
समयसुदर०त्रिभुवनतिलो, गाथा-१९. ३१. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. २६अ-२६आ, संपूर्ण.
शत्रुजयतीर्थस्तवन, आ. जिनभक्तिसूरि, पुहि., पद्य, आदि: सुणि सुणि सेव॒जै; अंति: श्रीजिनभक्तिसुरंदा, गाथा-११. ३२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २६आ-२७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन बृहत्स्तवन-गोडीजीदशमीतिथि, मु. समयरंग, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिनेसर जगतिलोए; अंति: समयरंग
इण परि बोले, ढाल-५, गाथा-२३. ३३. पे. नाम. चिंतामणि पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २७आ-२८अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी
जिनबिंबपूजा स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: भविका श्रीजिनबिंब; अंति: श्रीजिनचंद्र सहाई रे,
गाथा-११. ३४. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. २८अ-२९आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ बृहत्स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बे करजोडी विनवूजी; अंति: समयसुंदर गणि भणै,
गाथा-३२. ३५. पे. नाम. आदीसरस्वामीजिन स्तवन, पृ. २९आ-३०आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार
जुडी हुई है. आदिजिन स्तवन, उपा. सहजकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: विमलगिरि सिखर गजराज; अंति: सहिजकीरति इम कहै,
गाथा-१७.
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४२८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३६.पे. नाम. ८ शरीर नाम, पृ. ३०आ, संपूर्ण.
५शरीर नाम, मा.गु., गद्य, आदि: औदारिक१ वैक्रियर; अंति: तैजस४ कार्मण५. ३७. पे. नाम. ६ संघयण नाम, पृ. ३०आ, संपूर्ण.
प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: वज्रऋषभनाराच१ ऋषभ; अंति: नाराच४ कीलका५ छेवठं६. ३८. पे. नाम. संज्ञा नाम, पृ. ३०आ, संपूर्ण.
१० संज्ञानाम, मा.गु., गद्य, आदि: आहारसंज्ञा१ भयसंज्ञा; अंति: जोइजै विविकीनै सही. ३९. पे. नाम. संस्थान नाम, पृ. ३०आ-३१अ, संपूर्ण.
६संस्थान नाम, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: समचौरस १ न्यग्रोध २; अंति: कुब्ज ५ हुंडण ६. ४०. पे. नाम. कषाय नाम, पृ. ३१अ, संपूर्ण.
४ कषाय नाम, मा.गु., गद्य, आदि: क्रोध १ मान २ माया; अंति: माया ३ लोभ ४. ४१. पे. नाम. लेश्या नाम, पृ. ३१अ, संपूर्ण.
६ लेश्या नाम, मा.गु., गद्य, आदि: कृष्ण लेश्या १ नील; अंति: शुक्ल लेश्या ६. ४२. पे. नाम. समुदघात नाम, पृ. ३१अ, संपूर्ण.
७ समुद्धात नाम, मा.गु., गद्य, आदि: वेदना समुद्धात १; अंति: केवली समुद्धात ७. ४३. पे. नाम. दृष्टि नाम, पृ. ३१अ, संपूर्ण.
३ दृष्टि नाम, मा.गु., गद्य, आदि: मिथ्यादृष्टि १ सम्यग; अंति: सम्यग्मिथ्यादृष्टि ३. ४४. पे. नाम. दर्शन नाम, पृ. ३१अ, संपूर्ण.
४ दर्शन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: चक्षुदर्शन १ अचक्षु; अंति: केवलदर्शन ४. ४५. पे. नाम. ज्ञान व अज्ञान नाम, पृ. ३१अ, संपूर्ण.
५ ज्ञान व ३ अज्ञान नाम, मा.गु., गद्य, आदि: मतिज्ञान १ श्रुत; अंति: ज्ञान २ विभंगज्ञान ३. ४६. पे. नाम. योग नाम, पृ. ३१अ, संपूर्ण.
१५ योग नाम-मनवचनकाया के, मा.गु., गद्य, आदि: सत्यमनोयोग १ असत्य; अंति: कार्मण काययोग १५. ४७. पे. नाम. पर्याप्ति नाम, पृ. ३१अ-३१आ, संपूर्ण.
६ पर्याप्ति नाम, मा.गु., गद्य, आदि: आहारपर्याप्ति १ शरीर; अंति: मनःपर्याप्ति ६. ४८. पे. नाम. प्राण नाम, पृ. ३१आ, संपूर्ण.
१० प्राण नाम, मा.गु., गद्य, आदि: स्पर्शन १ रसन २; अंति: वचनवल ९ कायवल १०. ४९. पे. नाम. कर्म नाम, पृ. ३१आ, संपूर्ण..
८ कर्म नाम, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरण १ दर्शना; अंति: अंतरायकर्म ८. ५०. पे. नाम. नंदीषणमुनि सज्झाय, पृ. ३१आ-३२अ, संपूर्ण. नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वैरागे संयम लीयो हो; अंति: लालविजय० पुंहचा जगीस,
गाथा-११. ५१. पे. नाम. जिन पद, पृ. ३२अ, संपूर्ण.
४ मंगल पद, मु. सकलचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आज म्हारै च्यारुं; अंति: आनंदघन उपगार, गाथा-६. ५२. पे. नाम. आदिनाथ स्तोत्र, पृ. ३२अ-३२आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: जय जय जगदानंदन जय; अंति: भगवते ऋषभाय नमोनमः, श्लोक-५. ५३. पे. नाम. शांतिनाथजिन स्तोत्र, पृ. ३२आ, संपूर्ण.
शांतिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: किं कल्पद्रुमसेवया; अंति: सेव्यतां शांतिरेष स, श्लोक-५. ५४. पे. नाम. नेमिनाथ स्तुति, पृ. ३२आ-३३अ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: परमानं क्षुधात; अंति: कथं धन्यतमो न गण्यः, श्लोक-५. ५५. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. ३३अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: अभिनवमंगलमालाकरणं, अंतिः वामुराः पुण्यभासुराः, श्लोक ५. ५६. पे. नाम वीरजिन स्तुति, पृ. ३३अ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तव, सं., पद्य, आदिः कनकाचलमिव धीर, अंतिः बोधाः बोधिलाभाय संतु श्लोक ६. ५७. पे. नाम पद्मावती आलोचना, पृ. ३३२-३४आ, संपूर्ण.
पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवे राणी पद्मावती; अंति: समयसुंदर ०
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तत्काल, ढाल -३, गाथा - ३५.
५८. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३४आ, संपूर्ण
वैराग्य सज्झाय, मु. रतनतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: काया रे वाडी कारमी, अंति: रतनतिलक० रखवाली, गाथा-८. ५९. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ३४-३५अ, संपूर्ण.
राजिमती स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीत पुराणि आय लगि; अंति: रूपचंद सुख अपार, गाथा-५. ६०. पे. नाम, सीताजी सज्झाच, पृ. ३५अ- ३५आ, संपूर्ण
सीतासती सज्झाय - शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु. पच, वि. १८वी, आदिः जलजलती मिलती घणी रे; अंति जिनहर्ष ० पाय रे, गाथा - ९.
יי
४२९
६१. पे नाम, बाहुबली रिखभराय सिज्झाय, पृ. ३५-३६अ, संपूर्ण
भरतबाहुबली सज्झाय, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि बाहुबल चारित लीयो, अंतिः विमलकीरति गुणगाय,
गाथा - १२.
६२. पे. नाम. जंबुकुमार सिझाय, पृ. ३६अ ३६आ, संपूर्ण.
जंबूस्वामी सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजगृही नयरी वसे ऋषभ, अंतिः सिद्धिवि० सुपसाया रे,
गाथा - १४.
६३. पे. नाम. रोहिणतप स्तवन, पृ. ३६आ-३८अ, संपूर्ण.
3
रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु. पद्य वि. १७२०, आदि: सासणदेवता सामणीए मुझ; अंतिः श्रीसार०मन आस्या फली, ढाल ४, गाथा - २६.
६४. पे. नाम. नेमजी स्तवन, पृ. ३८अ - ३८आ, संपूर्ण.
मिजिन स्तवन, पं. मनरूपसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सौरीपुर नगर सुहामणो, अंति: मनरूप प्रणमई पाय, गाथा-१६. ६५. पे. नाम बाहुबली सिज्झाय, पृ. ३८-३९अ, संपूर्ण
भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि राजतणा अति लोभीया, अंतिः समयसुंदर० गज थकी उतरो, गाथा- ८.
६६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३९अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- फलवर्द्धितीर्थ, मु. उत्तम, मा.गु, पद्य, आदि: वंछित फलदायक स्वामी, अंतिः जब उतम जिन गुण गावे. गाथा ८.
६७. पे. नाम. दसपचखाण स्तवन, पृ. ३९ अ - ४० आ, संपूर्ण.
१० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नमुं अंतिः रामचंद तपविधि भणे, ढाल -३, गाथा-३३.
६८. पे. नाम, अदीदीप बीसविहरमान स्तवन, पृ. ४० आ-४२अ संपूर्ण
विहरमान २० जिन स्तवन, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: वंदु मन सुध विहरमाण; अंति: धरमसी०धरी ध्रमसी नमे, ढाल - ३, गाथा २६.
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६९. पे. नाम. चवदे गुणठाणाविचार स्तवन, पृ. ४२अ -४४अ, संपूर्ण.
सुमतिजिन स्तवन- १४ गुणस्थानविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सुमतिजिणंद सुमति; अंतिः कहे एम मुनि धरमसी, डाल- ६, गाथा- ३४.
७०. पे नाम, चौदहनियम गाथा सह टवार्थ, पृ. ४४आ, संपूर्ण
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सच्चित्त दव्व विगई; अंति: दिसि न्हाण भत्तेसु, गाथा-१.
श्रावक १४ नियम गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पाणि फल लूण पान; अंति: काय को परिमण करै. ७१. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. ४४आ-४५आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जयज्जा समणे भयवं; अंति: एअंपढह कय
अभयसूरीहि, गाथा-२३. ७२. पे. नाम. अष्टमीदिन स्तुति, पृ. ४५आ-४६अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसे जिनवर प्रणमुं; अंति: जिनसुख० सुरि सुह जाण,
गाथा-४. ७३. पे. नाम. इग्यारस स्तुति, पृ. ४६अ, संपूर्ण..
मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: अरनाथ जिनेश्वर; अंति: जिनचंद्र० करो कल्याण, गाथा-४. ७४. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ४६अ-४६आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है.
सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: निरुपम सुखदायक; अंति: श्रीजिनलाभसूरिंदा जी, गाथा-४. ७५. पे. नाम. शीतलनाथ स्तवन, पृ. ४६आ-४७अ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवन जननायक दायक; अंति: भणे श्रीजिनलाभसूरिंद,
गाथा-४. ७६. पे. नाम. पार्श्व स्तुति, पृ. ४७अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदि: समदमुत्तमवस्तु महाफण; अंति: जयतु सा
जिनशासनदेवता, श्लोक-४. ७७. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. ४७अ-४७आ, संपूर्ण.
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतकसुप्रपंचपरमा; अंति: सिद्धायिका त्रायिका, श्लोक-४. ७८. पे. नाम. वर्द्धमान स्तुति, पृ. ४७आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: यदहिनमनादेव देहिन: अंति: नित्यं मम मंगलेभ्यः, श्लोक-४. ७९. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ४७आ-४८अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., पद्य, आदि: वरमुक्तियहार सुतार; अंति: सुहाणि कुणेसु सया, गाथा-४. ८०.पे. नाम. सीमंधर स्तुति, पृ. ४८अ, संपूर्ण.
बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न; अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. ८१. पे. नाम. सेव॒जै स्तुति, पृ. ४८अ, संपूर्ण.
शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेजमंडण आदि; अंति: नंदसूरि पाय सेवता, गाथा-४. ८२. पे. नाम. बीर स्तुति, पृ. ४८अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: दद्यात्सौख्यम, श्लोक-१, (वि. प्रतिलेखक ने चारों पदों को
चार श्लोक के रूप में लिखा है.) ८३. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. ४८आ, संपूर्ण.
साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: अविरलकमलगवल; अंति: देवी श्रुतोच्चयम, श्लोक-४. ८४. पे. नाम. वीसविहरमाण स्तुति, पृ. ४८आ-४९अ, संपूर्ण.
विहरमान २० जिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: पंचविदेह विषय; अंति: जण मनवंछिय सारै, गाथा-४. ८५.पे. नाम. उतपति बहत्तरी, पृ. ४९अ-५१आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उतपति जोज्यो आपणी मन; अंति: कहै मुनि श्रीसार
ए, गाथा-७२. ८६. पे. नाम. गौडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५१आ-५४अ, संपूर्ण.
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मु. मालदास, पुहिं., पद्य, आदि: भलै मुख देख्यौ, अंतिः मलदास० हुं तुम तेरो, गाथा- ३.
९२. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ५६अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु, पच, वि. १७वी, आदि; वाणी ब्रह्मवादिनी, अंति: प्रीतविमल० राम जपंतै, ढाल - ५, गाथा - ५५.
८७. पे. नाम. अजितशांतिजिन स्तवन, पृ. ५४-५५आ, संपूर्ण.
अजितशांति स्तवन, संबद्ध, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., पद्य, वि. १५वी, आदि: मंगल कमलाकंद ए सुख, अंति: मेरुनंदण उवज्झाय ए, गाथा - ३२.
८८. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. ५५आ, संपूर्ण.
मु. जिनराज, पुर्हि, पद्म, आदि कहारे अग्यानी जीव अंतिः जिनराज० सहज मिटावे, गाथा-३.
८९. पे नाम, वैराग्य पद, पृ. ५५ आ-५६अ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद, मु. जिनरंग, पुहिं., पद्य, आदि: सब स्वारथ के मीत है, अंतिः जिनरंग० आपा संभारा, गाथा-३. ९०. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ५६अ, संपूर्ण.
मु. चंद, पुहिं., पद्य, आदि: बिराजत रूप भलो जिनजी; अंति: चंद० जगजीवन सबही को, गाथा - ३.
९१. पे नाम, साधारणजिन पद, पृ. ५६अ, संपूर्ण.
मु. धर्मसी, पुहिं., पद्य, आदि: मेरे मन मानी साहिब, अंति: धर्मसी० कनक करि लेवा, गाथा- ३. ९३. पे. नाम. अजितनाथ पद, पृ. ५६ अ-५६आ, संपूर्ण.
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अजितजिन पद, मु. खुशालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: जै जै जै जगदीसर; अंतिः सेवक चंद खुस्याल, गाथा - ५. ९४. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ५६आ, संपूर्ण.
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मु. खुशालचंद, पुहिं, पद्य, आदि देखोजी आदीश्वरस्वामी, अंति: चंदखुस्याल जुगाया है, गाथा ४.
९५. पे. नाम. वीरजिन पद, पृ. ५६-५७अ, संपूर्ण.
महावीरजिन पद, मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पावापुर महावीर जिणेस; अंति: जिनचंद्र० चितल्यावां, गाथा-५. ९६. पे नाम. सुविधिजिन पद, पृ. ५७अ, संपूर्ण.
मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मुजरा साहिब मेरा; अंति: रूपचंद० तेरा रे, गाथा-५.
९७. पे नाम. साधारणजिन पद, पृ. ५७अ संपूर्ण.
गाथा - ५.
९९. पे नाम, आदिजिन पद, पृ. ५७आ, संपूर्ण.
मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदिः उठत प्रभात नाम जिनजी, अंति: हरखचंद० संपदा बधाइये, गाथा-४.
१०० पे नाम, आदिजिन पद, पृ. ५७-५८ अ, संपूर्ण.
साधारणजिन गीत, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: तुं ही निरंजन० इष्ट; अंति: रूपचंद० भव फेरा रे, गाथा-४. ९८. पे. नाम. पार्श्वजिन पद. प्र. ५७अ ५७आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन प्रभाति, मु. लाभउदय, मा.गु, पद्य, आदिः उठोने रे म्हारा आतम अंतिः लाभउदय० सिद्धबधाई रे,
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आदिजिन स्तवन, पंडित. टोडरमल, पुहिं., पद्य, आदिः उठ तेरो मुख देखुं; अंति: टोडर० धरत लागो बंदा, गाथा - ५. १०१. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ५८अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: सोयो तुं बहुत दिन, अंति: वान इह शिव माग रे, गाथा- ४.
१०२. पे. नाम. पंचतीर्थी स्तवन, पृ. ५८अ ५८आ, संपूर्ण.
५ तीथंजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु. पद्य, आदिः आदए आदए आदिजिणेसरु ए; अंति: लावण्यसमै ० दुहग आपदा, गाधा-६, (वि. प्रतिलेखक ने २ गाथा को १ गाथा गिनकर लिखा है.)
१०३. पे. नाम. नवकार स्तवन, पृ. ५९अ, संपूर्ण.
नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, मु. पद्मराज, मा.गु, पद्य, आदिः श्रीनवकार जपो मनरंगे अंतिः पदमराज० अपार रे माइ,
गाथा - ९.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
१०४. पे. नाम. नाकोडा पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५९अ ५९आ, संपूर्ण
पार्श्वजिन छंद - नाकोडातीर्थ, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि अपने घर बैठा लील करो; अंति समयसुंदर०कहै गुणजोडो, गाथा - ८.
१०५. पे. नाम. तीर्थावली स्तवन, पृ. ५९आ-६०अ, संपूर्ण.
२४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि सेजुजे रिषभ समोसर, अंति: समयसुंदर कहे एम, गाथा-१६, (वि. प्रतिलेखक ने १ गाथा को २ गाथा गिनकर लिखा है.)
१०६. पे. नाम महावीरस्वामी पारणो पू. ६०-६१आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तवन- पारणागभिंत, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीअरिहंत अनंत गुण; अंति; तेहने नमे मुनि माल,
गाथा - २८.
१०७. पे नाम, गौतम रास, पृ. ६१ आ-६५अ, संपूर्ण
गौतमस्वामी रास, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनेसर चरण कमल, अंति: वृद्धि कल्याण करो, गाथा-४६. १०८. पे. नाम ऋषभजिन पद, पृ. ६५ ६५आ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: भाव धर धन्य दिन आज, अंति: जिनचंद सुरतरु कहायो,
गाथा - ३.
१०९. पे नाम ऋषभजिन पद, पृ. ६५आ, संपूर्ण
आदिजिन पद, ग. महिमराज, मा.गु., पद्य, आदि: जाग जग मुगटमणि नाभि, अंति: महिमराज० दुख फंदा, गाथा- ३. ११०. पे नाम, ऋषभजिन पद, पृ. ६५आ, संपूर्ण
आदिजिन पद, मु. साधुकीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: देखो माइ आज रिषभ घर; अंति: साधुकीरति गुण गावै, गाथा- ३. १११. पे नाम. शांतिजिन पद, पृ. ६५ आ-६६अ, संपूर्ण.
शांतिजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, पुष्टिं पच आदि अंगण कलप फल्यौ री; अंतिः समयसुंदर० सोहिलौरी,
3
गाथा - ३.
११२. पे नाम. सुमतिजिन पद, पृ. ६६अ, संपूर्ण.
मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: निरख वदन सुख पायो मै; अंति: हरखचंद० देव नहीं आयो, गाथा-४.
१९१३. पे. नाम. ऋषभजिन पद, पृ. ६६अ -६६आ, संपूर्ण.
आदिजिन पद. मु. जिनराज, पुहिं., पद्य, आदिः आज सकल मंगल मिलै आज अंतिः जिनराज० रस मांणे, गाथा ५. ११४. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ६६आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन गीत, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मेरे इतनो चाहिये; अंति: करो कछु ओर न चाहु, गाथा-३. ११५. पे. नाम ऋषभजिन पद, पृ. ६६-६७अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन-जन्मबधाई, मा.गु., पद्य, आदि: आज तो बधाइ राजा नाभि; अंति: निरंजन आदिसर दयाल रे,
गाथा- ६.
११६. पे. नाम. पार्श्वनाथजिन पद, पृ. ६७अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन पद, मु. जसराज, पुहिं., पद्य, आदि: जागी मेरे लाल विसाल, अंति: जस० त्रिभुवना मोहना, गाथा- ३. ११७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ६७अ - ६७आ, संपूर्ण.
दानशीलतपभावना प्रभाति, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: रे जीव जिनधर्म, अंतिः समयसुंदर० फल तांह, गाथा- ६.
११८. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. ६७-६८ अ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदिः आज आपे चालो सहीयो; अंति: जिनचंद्र० चित आणी रे,
गाथा - ९.
११९. पे. नाम. सिद्धाचलजी स्तवन, पृ. ६८अ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदिः यात्रा नेवाणु करीये अंतिः पद्म कहै भव तरीये, गाथा ६.
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१२०. पे नाम, रिषभजिन स्तवन, पृ. ६८अ ६८आ, संपूर्ण
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: म्हारौ मन मोह्यौ रे; अंति: ज्ञानविमल० नावै
पार, गाथा-५.
१२१. पे नाम सेडुंजय स्तवन, पृ. ६८आ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सेत्रुजानो वासी; अंति: नयणविमल० पार उतारो,
गाथा - ६.
१२२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६८-६९अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरतीर्थ, ग. जिनहर्ष, मा.गु, पद्य, आदि: अंतरजामी सुण अलवेसर, अंतिः जिनहर्ष ० भवसायथी तारी, गाथा ५.
१२३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६९अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन पद, मु. कनककीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: तुं मेरे मन मै तुं; अंति: कनककीरत० तीन भुवन में, गाथा-३. १२४. पे. नाम, गौडीजी स्तवन, पृ. ६९अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. दीपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुणिज्यो गवडीजी, अंति: दीपचद० कीजै एतो काम,
गाथा-५.
१२५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६९ अ - ६९आ, संपूर्ण.
जिनप्रतिमा स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनप्रतिमा हो; अंतिः समय० प्रतिमासुं नेह, गाथा- ७. १२६. पे. नाम, पार्श्वजिन पद, प्र. ६९-७०अ संपूर्ण
पार्श्वजिन स्तवन, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुण सोभागी हो साहि अंति: जैतसी० तुंहिज हो देव, गाथा ५. १२७. पे. नाम. संखेश्वरपार्श्वजिन पद, पृ. ७०अ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंखेसरपास जिणेसर, अंति: जिनचंद सयलरिपु जपतो, गाथा-५.
१२८. पे. नाम. मुनिमालिका, पृ. ७०आ-७३अ, संपूर्ण.
मुनिमालिका स्तवन, ग. चारित्रसिंह, मा.गु, पद्य, वि. १६३६, आदि: ऋषभ प्रमुख जिन पय, अंतिः सदा कल्याण
कल्याण, गाथा - ३६.
१२९. पे. नाम. सेत्रुंजय रास, पृ. ७३अ-७७आ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी अंतिः समयसुंदर० आणंद थाय, ढाल ६, गाथा - ११२.
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१३०. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ७८अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: जय बोलौ पास जिणेसर, अंति: जिनचंद० सुरतरु की, गाथा-७. १३१. पे नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. ७८अ संपूर्ण
पार्श्वजिन स्तवन- सम्मेतशिखरतीर्थ, मु. खुशालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: तुम तो भले विराजो जी; अंति; चंदखुस्वाल० गुण गावे, गाथा ५.
१३२. पे. नाम. दानसीलतपभाव चौढालीयौ, पृ. ७८अ - ८२आ, संपूर्ण.
दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिणेसर पाय निम, अंतिः समयसुंद० सुप्रसादो रे, ढाल - ४, गाथा - १०१, ग्रं. १३५.
१३३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ८२आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन पद- गोडीजी, मु. दीपविजयशिष्य, मा.गु., पद्म, आदि: मुजरो मांनी लीजै हो; अंतिः दीपविबुध० प्रणमीजै हौ,
गाथा-४.
१३४. पे नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. ८२आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि हो जी बामजू की छावी, अंति: पंचमगति पद पावो, गाधा ४.
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१३५. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ८२-८३अ, संपूर्ण.
गाथा ५.
मु. करमसी, मा.गु., पद्य, आदिः आय रहो दिल बाग में; अंति: करमसी० करत शिववाग मै, १३६. पे नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ८३अ, संपूर्ण.
पु., पद्य, आदि: प्रभु पास जिणंद की; अंति: भवजल पार उतारो रे, गाथा-४.
१३७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ८३अ, संपूर्ण.
मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: जैन धरम पायौ दोहिलौ; अंति: नवल० भजीये भगवान्, गाथा- ४. १३८. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. ८३२-८३आ, संपूर्ण.
मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि विसवासावो पुदगल की अंति; लवल० घट में सासा रे, गाथा-४.
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१३९. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ८३आ, संपूर्ण.
मु. आनंदघन, पं., पद्य, आदि देखो कुडी दुनियांदा अंतिः आनंदघन गया जग सारा, गाथा-४. १४०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ८३-८४अ, संपूर्ण.
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
मु. चेतन, पुहिं., पद्य, आदि: कोन करै जंजार जगमै; अंति: चेतन०जिम पावौ भव पार, गाथा- ६. १४१. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ८४अ, संपूर्ण.
मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: बेर बेर नहीं आवे; अंति: आनंदघन० गुण गावे लो, गाथा- ३. १४२. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. ८४अ, संपूर्ण.
मु. गुणविलास, हिं., पद्य, आदि: दया विन करणी दुख, अंति: गुणविलास० नर जिनवाणी, गाथा-४. १४३. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. ८४अ-८४आ, संपूर्ण.
मु. जैत, पुहिं, पद्य, आदि: श्रीचंद्राप्रभु जिन अंतिः जैत०तुम चरणन बलिहारी, गाथा-३, (वि. प्रतिलेखक ने २ गाथा को १ गाथा गिनकर लिखा है.)
१४४. पे नाम, गोडीजी स्तवन, पृ. ८४आ, संपूर्ण
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदिः कृपा करीनि गीडि पास अंतिः रूपचंद पदवी पाई, गाथा - ६. १४५. पे. नाम. चार मंगल पद, पृ. ८४आ, संपूर्ण
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४ मंगल पद, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदिः आज म्हारे च्यारु, अंति: आनंदघन उपगार, गाधा -४. १४६. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ८४आ, संपूर्ण.
मु. विमल, मा.गु., पद्य, आदि: चालो सखी वंदन जईये, अंति: हेते वंदो विमल जिणंद, गाथा - ५.
१४७. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ८४-८५अ, संपूर्ण.
मु. लालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मेरो मन वश कर लीनो, अंति: लालचंद ० पूरो वंछित आस, गाथा-३. १४८. पे. नाम. साधारणजिन पद पृ. ८५अ, संपूर्ण.
मु. खुशालराब, पुहिं., पद्य, आदि: अंखीया मेरी बावरी रे, अंतिः खुस्याल० को दाव री, गाथा-४ (वि. प्रतिलेखक ने १ गाथा को २ गाथा गिनकर लिखा है.)
ज्ञानवर्द्धन, पुहिं., पद्य, आदि: नेहडो हमारौ राज, अंति: ग्यानवर्द्धन० भाग्यौ, गाथा- ४.
१४९. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ८५अ, संपूर्ण.
मु. आनंदघन, मा.गु, पद्य, आदि: आछी गति छवि मोरे मन अंतिः आनंदघन रहित मतवाला, गाथा-४,
१५०. पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. ८५अ, संपूर्ण.
मु. १५१. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ८५अ-८५आ. संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि जग दीठा तुं मेरा अंतिः दरसन म्यान आधार छे, गाथा- ३.
१५३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ८५आ, संपूर्ण.
मु. आनंदराम, पुहि., पद्य, आदि छोटीसी जान जरासे जीव, अंति: आणंदराम० बहु करणावे, गाथा ४.
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१५२. पे नाम, साधारणजिन पद पृ. ८५आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
पुहिं., पद्य, आदि: मोतियन थाल भरकै करहु; अंति: (-), (पूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा
१५४. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन पद, पृ. ८५आ, संपूर्ण.
मु. राजनंदन, पुहि., पद्य, आदि: को वरणै छवि को वरणै; अंति: राजनंदन० गुण समरण कौ, गाथा-३. १५५. पे. नाम. मरुदेवीमाता सज्झाय, पृ. ८५आ-८६अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: सहस चउसट्ठि वरमणि; अंति: माता मुगति पासी, गाथा-५. १५६. पे. नाम. साधारणजिन पद, प्र. ८६अ, संपूर्ण.
मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: लोक चवदै कै पार किना; अंति: रूपचंद० का दासा है, गाथा-६. १५७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ८६अ-८६आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-षड्दर्शनप्रबोध, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: ओरन से रंगन्यारा; अंति: रूपचंद तुम्हारी है,
गाथा-९. १५८. पे. नाम. मंगल पद, पृ. ८६आ, संपूर्ण.
___ पुहि., पद्य, आदि: अरिहंत नमो नमो सिद्ध; अंति: भगत भण नित नित्य नमो, गाथा-३. १५९. पे. नाम. विमलजिन पद, पृ. ८६-८७अ, संपूर्ण.
विमलजिन स्तवन, म. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: प्राण धणीसुप्रीति; अंति: तौ जिनहरख सदा सुखदाई, गाथा-५. १६०. पे. नाम. समेतसिखर स्तवन, पृ. ८७अ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थस्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४४, आदि: तोह नमो तोह नमो समेत; अंति: रिद्ध०
चैत्यवंदन करी, गाथा-५, (वि. प्रतिलेखक ने २ गाथा को १ गाथा लिखा है.) १६१. पे. नाम. घृतपतने तद्दोप निवारण विधि, पृ. ८७आ, संपूर्ण.
घृतपतनदोषनिवारण विधि, सं., गद्य, आदि: अथ कदाचित रभसवृत्त; अंति: यः ततो जनादि क्रियते. १६२. पे. नाम. मार्जारीदोषनिवारण विधि, पृ. ८७आ, संपूर्ण.
प्रतिक्रमणमध्ये मार्जारीदोष निवारण विधि, सं., गद्य, आदि: ननु यदि दैवसिक १; अंति: त्रयं भूमिराहन्यते च. १६३. पे. नाम. क्षुत्करणे दोष निवारण विधि, पृ. ८७आ-८८अ, संपूर्ण.
क्षुद्रोपद्रवनिवारण विधि, सं., गद्य, आदि: नुनु पाक्षिक १; अंति: प्रवाह ए वति. १६४. पे. नाम. असिज्झाय विचार, पृ. ८८अ-८९अ, संपूर्ण.
असज्झाय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ●अरिपडैतां सीम असि; अंति: न करै पछई पूजा करै. १६५. पे. नाम. शुद्ध खरतरगच्छ समाचारी, पृ. ८९अ-९०अ, संपूर्ण.
शुद्ध सामाचारी-खरतरगच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: जउ प्रतिपदादिक तिथि; अंति: पांचमै पजूसण आराधीयै. १६६. पे. नाम. अतीत अनागत वर्तमान चौबीसी, पृ. ९०अ-९१अ, संपूर्ण. ____ मौनएकादशीपर्व गणगुं, सं., को., आदि: जंबूद्वीप प्रथम भरते; अंति: अरण्यनाथनाथाय नमः. १६७. पे. नाम. पर्युषण स्तुति, पृ. ९३अ-९३आ, संपूर्ण.
पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वली वली हुं ध्यावं; अंति: कहै जिनलाभसूरींद, गाथा-४. १६८. पे. नाम. महावीर स्तुति, पृ. ९३आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुरति मनमोहन कंचन; अंति: इम श्रीजिनलाभसूरिंद,
गाथा-४. १६९. पे. नाम. नवपद स्तुति, पृ. ९३आ-९४अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है.
सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: निरुपम सुखदायक; अंति: श्रीजिनलाभसूरिंदा जी, गाथा-४. १७०. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ९४अ-९६आ, संपूर्ण.
आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. १७१. पे. नाम. शांति स्तोत्र, पृ. ९६आ-९७आ, संपूर्ण.
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४३६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. १७२. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ९७आ-१००अ, संपूर्ण.
आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. १७३. पे. नाम. शांतिकर स्तवन, पृ. १००अ-१००आ, संपूर्ण. संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं जग; अंति: सिद्धी भणइ सिसो,
गाथा-१३. १७४. पे. नाम. सप्ततिशतजिन स्तोत्र, पृ. १००आ-१०१अ, संपूर्ण.
तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. १७५. पे. नाम. पार्श्वजिनराज नवग्रहगर्भित स्तोत्र, पृ. १०१अ-१०१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहस्तुतिगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: दोसावहारदक्खो नालिया; अंति:
जिणप्पहसूरिन पीडति, गाथा-१०. १७६. पे. नाम. सप्त स्मरण, पृ. १०१आ-१०९अ, संपूर्ण. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअसव्वभयं; अंति: भवे भवे पास
जिणचंद, स्मरण-७. १७७. पे. नाम. परमेष्टी अंगरक्षा कवच, पृ. १०९अ-१०९आ, संपूर्ण.
वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीपरमेष्ठिनमस्कार; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. १७८. पे. नाम. पंचषष्टी संख्या स्तव, पृ. १०९आ-११०अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: सुखनिधानं०
निवासम्, श्लोक-८. १७९. पे. नाम. वृद्धिशांति स्तोत्र, प्र. ११०अ-११२अ, संपूर्ण.
बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनधर्मोस्तुमंगलम्. १८०. पे. नाम. दीक्षाग्रहण विधि, पृ. ११२अ-११४आ, संपूर्ण.
साधुदीक्षाग्रहण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: संध्यायां चारित्रो; अंति: याहिण८ वास९ उसग्गो१०. १८१. पे. नाम. जिन कल्याणक कोष्ठक, पृ. ११४आ-११६आ, संपूर्ण.
२४ जिन १२० कल्याणक कोष्टक, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: कार्तिकवदि १ नाणं; अंति: सुदी चवणं नमिनाहस्सउ. १८२. पे. नाम. जन्मकल्याणक दिन तिथि, पृ. ११६आ, संपूर्ण.
जन्मकल्याणकादि दिन तिथि संख्या, मा.गु., गद्य, आदि: चवण जम्मणर चउथ सवि; अंति: २२२ तिथि निनाणु जाणु. १८३. पे. नाम. वीसस्थानिकतप करवानी विधि, पृ. ११६आ-११७अ, संपूर्ण.
२० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं देवपूज; अंति: प्रभावना लोग० ५. १८४. पे. नाम. २० स्थानक नाम, पृ. ११७अ, संपूर्ण.
प्रा., गद्य, आदि: अरिहंत १ सिद्धा २; अंति: सुय १९ पवयणे २०. १८५. पे. नाम. १२० कल्याणक विचार, पृ. ११७अ-११७आ, संपूर्ण.
प्रा.,सं., गद्य, आदि: एगो वासो १ दु आविला; अंति: प्रते कल्याणक संख्या. १८६. पे. नाम. चोवीसतीर्थंकर कथन, पृ. ११७आ-१२०आ, संपूर्ण, वि. १९०२, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७, ले.स्थल. जयनगर,
प्रले. पं. मुक्तिलाभ, प्र.ले.पु. सामान्य. २४ तीर्थंकर नाम, आयुमान, देहमान, वर्ण, राज्यकाल, तपकाल आदि विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीरिषभदेव
आदि देई; अंति: राजा वधामणी आपी. १८७. पे. नाम. प्रव्रज्या कुलक, पृ. १२०आ-१२२अ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: संसार विसमसायर भवजल; अंति: तरंति ते भवसलिलरासिं, गाथा-३४. १८८. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १२२अ-१२४आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
४३७ पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: (१)चत्तारि मंगलं अरिहंत, (२)इच्छं इच्छामि पडिकमी; अंति: वंदामि जिणे
चउवीसं, सूत्र-२१. १८९. पे. नाम. पोषधविधि संग्रह, पृ. १२४आ, अपूर्ण, प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: खमासण देइ१ इच्छाकारे; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्राथमिक पाठ है.) ६८२५७. (+) पांडवचरित्र रास, संपूर्ण, वि. १८८२, चैत्र शुक्ल, १, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १०६, ले.स्थल. मुक्षदावाद-वालु,
प्रले. पं. मोहनरुचि (तपागच्छ); पठ. मु. माणिकविजय (गुरु मु. फतेंद्रविजय, तपगच्छ); गुपि.मु. फतेंद्रविजय (गुरु पंन्या. भूपविजय, तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन स्थल के लिये "दुतीय नाम रेणुकापूरी मध्ये. भागीरथी गंगा तटै. श्रीशुपार्श्वनाथजी चैत्य प्रासाद पार्श्वे. श्रीतपागच्छ पोषदसाला मध्य" लिखा है., संशोधित., जैदे., (२४.५४१२.५, १५४३८).
पांडवचरित्र रास, उपा. लाभवर्द्धन पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७६७, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदा; अंति: लाभवर्धन
___ पा० लहै तेह, खंड-६, ग्रं. ३७९७, (वि. ढाल१५०) ६८२५८. (+) चंदकेवली रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १३४३१). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धराधव तीम; अंति: (-), (पू.वि. उल्लास-४,
ढाल-१०, गाथा-२ अपूर्ण तक है., वि. ढाल १०८) ६८२६०. (+) चंद्रचरित्र चौपाई, संपूर्ण, वि. १८८९, फाल्गुन शुक्ल, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ८३, ले.स्थल. अठाणानगर,
प्रले. पंन्या. माणेकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ३०५५, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (२०१) कटी कूबड कर बेगडी, जैदे., (२४.५४१२.५, १६४३३). चंद्रराजा रास, मु. विद्यारुचि, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: श्रीजिननायक समरीइं; अंति: विद्यारुचि० सुख लील,
खंड-६, गाथा-२५०५, ग्रं. ३०५५, (वि. ढाल १०३) ६८२६१. चंदराजारास, अपूर्ण, वि. १८७१, मध्यम, पृ. १००-१७(१ से १७)=८३, ले.स्थल. पाटडीनगर, प्रले. ग. निधानविजय
(गुरु पंन्या. हेमविजय); गुपि.पंन्या. हेमविजय (गुरु पंन्या. गौतमविजय); पंन्या. गौतमविजय (गुरु पंन्या. धनविजय); पंन्या. धनविजय (गुरु पंन्या. माणिक्यविजय); पंन्या. माणिक्यविजय (गुरु पंन्या. हितविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीशांतिनाथजी प्रासादात्., जैदे., (२४.५४१२, १५४३८-४२). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदिः (-); अंति: मोहनविजये० गुण चंदना, उल्लास-४,
गाथा-२६७९, (पू.वि. उल्लास-१ ढाल-१८ गाथा-२ अपूर्ण से है., वि. ढाल १०८) ६८२६२. वीसस्थानकतप विधि विस्तार, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२५४११.५, ९४२९).
२० स्थानकतप विधि, मु. ज्ञानसागर-शिष्य, पुहिं., प+ग., आदि: तिहां प्रथम शुभ दिन; अंति: (-),
(पू.वि. स्थानक-२० अपूर्ण तक है.) ६८२६३. (+#) श्रीपालराजा रास, संपूर्ण, वि. १८१७, श्रावण अधिकमास कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ६७, ले.स्थल. सुरत, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १३४३२). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कवियण
तणी; अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, खंड-४, गाथा-१८२५, (वि. ढाल ४१) ६८२६४. (+#) अंबडनृ चरित्र, संपूर्ण, वि. १८७९, श्रावण शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. ६६, ले.स्थल. आसोपनयर, प्रले. ग. प्रधानहस (गुरु
ग. युक्तिहस); गुपि. ग. युक्तिहस (गुरु पंन्या. कनकहंस), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. २८४५, मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र.ले.श्लो. (१४) जलाद्रक्षेत् तैलाद्रक्षेत्, (१०३२) जब लग मेरु अडग है, (१२१७) मंगलं लेखकानां च, (१२१८) पढण गुणण कवि चातुरि, जैदे., (२५४१२.५, १६४३७). अंबडनृप चरित्र, मु. गजविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७९, आदि: स्वस्ति श्रीसोहगस्तु; अंति: गजविजय० आनंदाजी,
खंड-७, गाथा-१३५५, ग्रं. २८४५, (वि. ढाल ५१) ६८२६५. (+) नर्मदासुंदरी रास, अपूर्ण, वि. १९४२, ज्येष्ठ कृष्ण, ४ अधिकतिथि, श्रेष्ठ, पृ. ५०-१(३४)=४९, ले.स्थल. बीदासर,
प्रले. मु. शिखरचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४१२, १७४३१-४३).
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४३८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नर्मदासुंदरी रास-शीलव्रतविषये, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५४, आदि: प्रभुचरणांबुजरजतणी; अंति:
मोहन० वचन विलासजी, ढाल-६३, गाथा-१४५४, ग्रं. १४६६, (पू.वि. ढाल-४५ दुहा- ४ अपूर्ण से ढाल-४८ गाथा
४ अपूर्ण तक नहीं है.) ६८२६६. (+) चंद्रलेखा चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४०, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५४१२.५, ११४३१). चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सरसति भगवति नमी करी; अंति: मतिकलश होवें
तेह, ढाल-२९, गाथा-६२४. ६८२६७. (+) सुभद्रासती चोढालिया, दानशीलतपभावना चौढालिया व आनंदश्रावक संधी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०,
कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४१२, ११४२९). १.पे. नाम. सुभद्रासती चौढालीयो, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण.
सुभद्रासती रास-शीलव्रतविषये, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सरसति सामणं वीनवं; अंति:
___ मानसागरगणि०मनोरथ माल, ढाल-४. २. पे. नाम. दानसीलतपभावना चोढालीयो, पृ. ६आ-१३अ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति:
समयसुंद०सुप्रसादो रे, ढाल-४, गाथा-१०१, ग्रं. १३५. ३. पे. नाम. आणंदश्रावक संधी, पृ. १३अ-३०अ, संपूर्ण.
आनंदश्रावक संधि, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि: वर्द्धमानजिनवर चरण; अंति: पभणे श्रीमुनिसार,
ढाल-१५, गाथा-२५२. ६८२६८.(+) नलदमयंतीचौपाई कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४२, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११.५, १४४३१-३५). नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: सीमधरस्वामी प्रमुख; अंति: समयसुंदर०
सचितवसी, खंड-६, गाथा-९३१, ग्रं. १३५०, (वि. ढाल ३९) ६८२६९. (+) अजाराजा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१२, १८४२९-५०).
अजापुत्र चौपाई, मु. भावप्रमोद, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: पारस प्रणमु सदा; अंति: भावप्रमोद० सुखदाइ रे,
ढाल-३३. ६८२७०.(+) वीसस्थानकतपविधि, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ३१, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १५४२९-३६). २० स्थानकतप विधि, मु. ज्ञानसागर-शिष्य, पुहिं., प+ग., आदि: श्रीमदहँतमानम्य; अंति: (-), (पू.वि. स्थानक-१८
के प्रारम्भिक पाठ तक है.) ६८२७१. (+) पिंडविशुद्धिप्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४१२.५, १३४३२). पिंडविशुद्धिप्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: देविंदविंदवंदिय पयार; अंति: बोहिंतु सोहिंतु य,
गाथा-१०३. पिंडविशुद्धि प्रकरण-बालावबोध, ग. संवेगदेव, मा.गु., गद्य, वि. १५१३, आदिः (१)श्रीमद्वीरजिनेशं, (२)देविंदए
देवताना; अंति: इसिउं जाणीवउं. ६८२७२. (+) कयवन्ना चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १०४३२). कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदा; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१६,
दुहा- ५ अपूर्ण तक है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
६८२७३. (+#) हरचंदराजा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २६, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.,
(२४.५X१२, ११४३१).
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ढाल- २३.
६८२७४. श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०, जैदे., ( २४.५X१२, १५x२१-३५).
हरिचंद्रराजा चौपाई, म. प्रेम, रा. पद्य वि. १८३४, आदिः आदेसर आदी करी वीतराग, अंति: ग मे नाम तीकारा होये, मु.
7
श्रीपाल रास, मु. चेतनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८५३, आदि: देव धरम गुरु सेवके; अंति: चेतन० मंगलिक माला,
ढाल - ९.
६८२७५. (+) एकविंशतिविधाजिनेंद्र पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित., दे., (२५X१२, ११४३०-३५).
४३९
२१ प्रकारी पूजा, ग. शिवचंद्र, मा.गु. सं., पद्य, वि. १८७८, आदि: मंगल हरिचंदन रूचिर, अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. पूजा-२९ अपूर्ण तक है.)
"
६८२७६. लघुदंडक चोवीस नाम सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १३. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. वे., (२५४११.५, १७x४२-५०).
२४ दंडक २५ द्वार विचार, मा.गु., प+ग., आदि: सरीरोगाहणा संघयण, अंति: चवणगइ रागइ चेव, गाथा-२, संपूर्ण.
२४ दंडक २५ द्वार विचार - बालावबोध, मा.गु, गद्य, आदि: प्रथम चोवीस दंडक तेन, अंति: (-). (अपूर्ण,
पू. वि. द्वार २४ अपूर्ण तक है.)
६८२७७. लीलावती चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ११-१ (१) १०, पू.वि. बीच के पत्र हैं, जैदे. (२४४११.५,
१४-१६x४२-४४).
विक्रमचौबोली रास-पुण्यफलकथने, वा. अभयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल २ से डाल- १२ दुहा- ५ अपूर्ण तक है.)
६८२७८. आनंदश्रावक संधी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६-४ (१ से २, ५, १२) = १२, जैदे., (२३.५X१२, ११४३३). आनंदश्रावक संधि, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि: (-); अंति: पभणे मुनि श्रीसार, ढाल - १५, गाथा-२५२, (पू.वि. ढाल -२ गाथा ३ अपूर्ण तक, ढाल ६ गाथा- ४ अपूर्ण से गाथा १४ अपूर्ण तक व ढाल १२ गाथा- ७ अपूर्ण - १३ गाथा १ अपूर्ण तक नहीं है.)
६८२७९. (+) नेमिनाथ विवावहलो, अपूर्ण, वि. १९०८, पौष कृष्ण २, मध्यम, पू. १५-३ (८,१२,१४) १२, ले. स्थल. पालणपुर, प्रले. उगरा लीला भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पलवीयाजी प्रसादात् संशोधित, दे., ( २४४१२, १३x२६).
नेमिजिन विवाहलो, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४९, आदि: सरसती चरण सरोज रमी; अंति: वीरविजय०
झमाला लाल, डाल- २२, (पू. वि. डाल-१२ गाथा- ६ अपूर्ण से ढाल १३ गाथा-५ अपूर्ण तक, ढाल १७ गाथा-५ अपूर्ण से ढाल १८ गाथा-७ अपूर्ण तक व ढाल २० गाथा १ अपूर्ण से ढाल २२ गाथा ३ अपूर्ण तक नहीं है.)
६८२८०. नवतत्त्व बोल व औपदेशिक श्लोक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४४, माघ कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. १८, कुल पे. २,
ले. स्थल, कालावाड, प्रले. आंचामाडण खत्री, पठ सा वखतचाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कुल ग्रं. ५५०, दे. (२५.५४११.५, १३x४१-४४).
१. पे नाम, नवतत्व बोल, पृ. १आ-१८अ, संपूर्ण.
नवतत्त्व प्रकरण- बोल, संबद्ध, मा.गु, गद्य, आदि: विवेकी श्रावक, अंतिः ए वितरागनो मारग छे.
२. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक सह टबार्थ, पृ. १८ अ, संपूर्ण.
सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: न चोर चोरियं नृप, अंति: (-), गाथा-१. सुभाषित श्लोक संग्रह - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: विद्या धन ते केहवु, अंति: (-).
६८२८१. छत्तीसबोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैदे., (२५x१२, १५४९-५२)(पू.वि. बोल- ३३ अपूर्ण तक है.)
छत्तीसबोल संग्रह, प्रा. मा.गु., गद्य, आदि: एगविहे असंयमे एगे अंतिः (-)
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४४०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६८२८२. सत्तरभेदी पूजा, संपूर्ण, वि. १८४७, कार्तिक शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. जंबूसर, प्रले.पं. ऋषभसागर; पठ. श्राव. माणिकचंद खुशाल पुंजा सा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१३, १३४२८). १७ भेदी पूजा, वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत मुखपंकजवासिनी; अंति: सकल० सुभफल लुणिओ रे,
ढाल-१७. ६८२८३. चारध्यान विचार व १४ गुणठाणा ध्यान, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, जैदे., (२०४१२.५, १९४५०). १. पे. नाम. चार ध्यान विचार, पृ. १अ-८आ, संपूर्ण.
४ ध्यान थोकडो, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: से किं तं झाणे चउविह; अंति: ४ तेहना ४८ भेद कह्या. २. पे. नाम. १४ गुणठाणा ध्यान, पृ. ८आ, संपूर्ण.
१४ गुणस्थानक ध्यान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलै बीजै गुण ठाणै; अंति: भेद नथी ध्यान नथी. ६८२८४. स्तवन, सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. १२, जैदे., (२४.५४११.५, ९-१४४२३-२६). १.पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सीतलजिन सहेज सुरंगा; अंति: सुबुद्धिकुसलगाया रे, गाथा-६. २. पे. नाम. अरणिकमुनिवर सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: रूपविजय० फल सीधो जी,
गाथा-८. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, मु. कनककुशल, मा.गु., पद्य, आदि: प्यारा प्रभु जो मुझ; अंति: कनककुशल० पूरो आसा,
गाथा-६. ४. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२२, आदि: नेमजी हो पेखी पशु; अंति: ऋद्धिहर्ष करजोडि,
गाथा-१९. ५.पे. नाम. नेमिजिनगीत, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
नेमराजिमती सज्झाय,म. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: काय रिसाणा हो नेमि; अंति: जिनहर्ष० मुगति पोहति, गाथा-९. ६. पे. नाम. बीज थुई, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बिज; अंति: लबधि० पूरि मनोरथ माय,
गाथा-४. ७. पे. नाम. पोषध प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
पौषध प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: करेमि भंते पोसह; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ८.पे. नाम. पोसह विधि, पृ. ५आ, संपूर्ण.
पौषधविधिसंग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सागरचंदो कमोचंद; अंति: जीवडा जोयरे विचारि. ९. पे. नाम. मनमांकड सज्झाय, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: मन मांकडलो आण न माने; अंति: लावण्यसमे०फल लीजे रे, गाथा-६. १०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण. __ पार्श्वजिन स्तवन-वरकानकपुर मंडन, मु. जिनलब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवन नायक सब अघ; अंति:
जिनलबधि० मोरी अरात, गाथा-१०. ११. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
मु. कनककुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७५८, आदि: सरसति सामणि भावै; अंति: कनक० साहिब मेरा छे, गाथा-९. १२. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ जिणंद कृपा करौ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६ ६८२८५. (+) गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १३४३०-३३). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. नेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: प्रणमुंनित परमेश्वर; अंति: (-),
(पू.वि. ढाल-१४, गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ६८२८६. वीसविहरमानजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९०७, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. वडगाम, प्रले. अमौलक भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४४१२, १८४३५). विहरमानजिन स्तवनवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसीमंधर जिनवर; अंति: देव० महोदय वृंदोरे,
स्तवन-२०. ६८२८७. नवतत्त्वसार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५४,प्र.वि. कृति से संबंधित कोष्ठक व यंत्र दिये गये हैं., दे.. (२४.५४१२.५, २०-२२४४०). नवतत्त्व प्रकरण-बोल संग्रह, संबद्ध, श्राव. दलपतराय, मा.गु., गद्य, वि. १८१२, आदि: श्रीवर्द्धमानायन्मः; अंति: को
ग्रंथ समाप्त ठाम. ६८२८८. (+) आलोचना विधि, अपूर्ण, वि. १८९९, माघ शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. ९-३(१ से ३)=६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १३४३७).
आलोयणा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: वाचनीया विवेकीभि, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., सूक्ष्म
बादर जीव आलोचना पाठ अपूर्ण से है.) ६८२८९. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-४(१ से ४)-६, कुल पे. ६, दे., (२४.५४१२, १८४४२). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ नीसाणी, पृ. ५अ-७अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहि., पद्य, आदि: सुखसंपत्तिदायक सुरनर; अंति: गुण जिनहर्ष कहंदा हे,
गाथा-२७. २. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथवृद्ध स्तवन, पृ. ७अ-९अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, म. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणी
ब्रह्मवादिनी; अंति: प्रीतविमल०अभिराममंतै, ढाल-५, गाथा-५३. ३. पे. नाम. दादाजी स्तवन, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. प्रशमशील, मा.गु., पद्य, आदि: राज श्रीजिनकुशलसूरीश; अंति: प्रहसम प्रणमै पाय हो,
गाथा-५. ४. पे. नाम. दादाजी स्तवन, पृ. ९आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि गीत, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८३३, आदि: पूजो रे पूजौ पूजौ; अंति: चंद० चढतो दावैरे,
गाथा-९. ५. पे. नाम. ऋषभदेव स्तवन, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: ऋषभ जिणेसर त्रिभुवन; अंति: लालचंद० मझारो रे,
गाथा-११. ६.पे. नाम. मुक्ति वर्णन, पृ. १०आ, संपूर्ण.
शिवपुरनगर सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: गोतमस्वामी प्रीच्छा; अंति: पामो सुख अथाग हो, गाथा-१६. ६८२९०. वज्रस्वामी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४.५४११, ९४३६).
वज्रस्वामी रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: अरध भरतमांहि शोभतो; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१०,
गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ६८२९१. छ आराना बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, लिख. श्रावि. माणकबाई; पठ. श्रावि. अंदरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. बाद में किसी विद्वान द्वारा पेंसिल से सुधार किया गया है., दे., (२५४१२, १२-१६४३९).
६ आरा बोल, मा.गु., गद्य, आदि: दस कोडाकोड सागरोपमना; अंति: ते जीव सुखि थासे, ग्रं. १८०.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
६८२९२. गतागतिना बोल, संपूर्ण, वि. १९३२, माघ कृष्ण, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. श्रावि. ईदरबाई, श्रावि. जेठी बाई, पठ श्रावि. अंदरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५X१२, १२-१३३०-३२).
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""
५६३ जीवभेद ६२ मार्गणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पेहलि नरकनी आगती २५; अंति: कृत नपुंसक मेल्या छइ. ६८२९३. शीलव्रत महिमा रास, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैदे. (२५x११, १५X३२-३६). विजयशेठविजयाशेठाणी रास, मु. राजरत्न वाचक, मा.गु., पद्य, वि. १६९६, आदि: श्रीविमलाचल मंडणो अंतिः (-), (पू.वि. ढाल - २०, गाथा - ३०२ अपूर्ण तक है.)
६८२९४ (४) कर्मप्रकृति बोल, संपूर्ण, वि. १९३३ आषाढ़ कृष्ण, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. ७. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (२४.५४१२, १२X४०).
८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पेहेलुं ज्ञानावरणीय अंतिः प्रकृती जाणवा. ६८२९५ (+) धर्मसी बावनी, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. मु. भाणजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे., (२४.५X१२, १६x४२).
अक्षरबावनी, मु. धर्मवर्धन, पुहिं., पद्य, वि. १७२५ आदिः ॐकार उदार अगम अपार, अंतिः नाम धर्मबावनी,
गाथा-५७.
६८२९६. (१) तीरथमाला स्तवन, अपूर्ण, वि. १८८३ श्रावण कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. १०-५ (१ से ५) ५, ले. स्थल. पालणपुर, प्रले. पं. भक्तिविजय, पठ. मु. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पल्लवीदाय प्रसादात्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४x११.५, १२X३२).
शत्रुंजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: (-); अंति: अमृत० नमो गिरिराया रे,
ढाल- १०, (पू.वि. ढाल -५ गाथा - १४ अपूर्ण से है.)
६८२९७. (+)
सुक्तमाला, संपूर्ण, वि. १८३८, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्रले. ग. गुलालविजय (गुरु पंन्या. रामविजय); गुपि. पंन्या. रामविजय (गुरु पंन्या. रंगविजय); पंन्या. रंगविजय (गुरु पंन्या. रत्नविजय); पंन्या. रत्नविजय (गुरु पंन्या. नयविजय); पंन्या. नयविजय (गुरु आ. विजयदेवसूरि) आ. विजयदेवसूरि (तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. संशोधित, जैये.,
(२५X११.५, १७x४२).
सूक्तमाला मु. केशरविमल, मा.गु. सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृत्यवल्लीवृंद, अंतिः केसरविमलेन विबुधेन, वर्ग-४ लोक-१७२.
६८२९८. (+) बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९४६, माघ कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. १०-१ (६) = ९ कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित. वे. (२४.५४१२,
१२X३०).
१. पे. नाम. ३५ बोल, पृ. १अ - ५ आ + ८आ, अपूर्ण, पू. वि. बीच का एक पत्र नहीं है.
मा.गु., गद्य, आदि: पहिलै बोलै गति च्यार; अंति: छे इण प्रमाणे जाणवा, (पू.वि. बोल- २२ अपूर्ण है.) २. पे नाम समकितना ६७ बोलभेद, पृ. ८आ-१० आ. संपूर्ण.
सम्यक्त्व के ६७ बोलभेद, प्रा., मा.गु., पद्य, आदि: चउद्दहणा ४ तिलिंग ३; अंति: मोक्षनो उपाय छे. ६८२९९. बारभावनाबेली, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८-९ (१) =७, ले. स्थल. साणंद, प्रले. ग. रामविजय पठ श्रावि. अक्लदे, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४X११.५, १०-१२३१-३४).
१२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि (-); अंतिः भणी जेसलमेर मझार, ढाल १३, गाथा- १२८, ग्रं. २००, ( पू. वि. ढाल -२ से है.)
7
६८३००. जंबूपृच्छा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११-६ (१ से ६) =५, ले. स्थल दसाडा, प्रले. ग. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२४.५४११.५, १४४३८).
"
जंबूपृच्छा, मु. वीरजी, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: (-); अंति: वीरजीमुनि सुखकारी, ढाल - १३, (पू.वि. ढाल - ८
है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
६८३०१. (1) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८६ माघ शुक्ल, २, बुधवार, मध्यम, पृ. ९, कुल पे ४, अन्य उपा. सुमतिसोम, पंन्या. राजेंद्रसोम, पंन्या. लावण्यसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५४१२, १५४३०).
१. पे. नाम. विहरमानजिन बीस स्तवन, पृ. १अ-८अ संपूर्ण
विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पुष्कलवई विजये जयो; अंति: वाचक इम बोले रे, स्तवन- २०.
२. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. ८आ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. क्षमारत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८८३, आदि: सिद्धाचलगिरि भेट्या, अंतिः खेभारतन० प्यारा रे,
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गाथा - ५.
३. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. ८आ- ९अ, संपूर्ण.
सुमतिजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: निरख बदन सुख पायो मे अंतिः हरखचंद० देव नहीं आयो, गाथा- ४. ४. पे. नाम. सिद्धगिरि स्तवन, पृ. ९अ ९आ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सिद्धगिरि ध्यावो, अंति: ज्ञानविमल० गुण
गावइ, गाथा ८.
६८३०२, (४) स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ९, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे.,
1
५. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण
मु. हर्ष, मा.गु., पद्य वि. १८४६, आदि: जिणवर पुरच महादेव अंतिः हरख० ढील न कीजै, गाथा- ९.
६. पे. नाम गौतमस्वामी छंद, पू. ३आ-४अ, संपूर्ण.
४४३
(२५x११.५, १३-१६x३०-४२).
१. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, पृ. १अ. संपूर्ण.
मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लाखीणो सोहावें जिनजी; अंतिः दीपविजय०बंदु बिजयहीर, गाथा- ७.
२. पे. नाम. आतमशिक्षा सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, महमद, मा.गु., पद्य, आदि: भुले मन भवरा तूं; अंति: महंमद० लेखो साहिब हाथ, गाथा - ९.
३. पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक नरवर राजिओ, अंति: पोहुता छै मुगति मझार, गाथा - १६.
४. पे. नाम, राजेमतीरी सज्झाय, प्र. २अ-३अ संपूर्ण.
मराजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसत सांमण वीनवु, अंति: पोती निरवाणो हे सजना, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या नहीं लिखी है.)
मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: इंद्रभूति गौतमस्वामी, अंतिः लीयो घणो सुख पावै, गाथा-१४. ७. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण.
मु.
. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदिः पीया सुंदर मूरति गुण, अंति: जिनहरखसुं० ताहरा पायो, गाथा- ९.
८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण.
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ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: पासजिणेसर वाल्हा अरज; अंति: जिनहर्ष ० वंदा लाल, गाथा-७, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथा को एक गाथा गिना है. )
९. पे. नाम. विजयसेठ विजयासेठानी सज्झाय, पृ. ५अ - ५आ, संपूर्ण.
विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु, पद्य, आदि: (१) धन धन सरावक पुन, (२) सुकलपख विजया वरत लीध, अंति: केवल पाम्या निर्वाणी, गाथा-१६, (वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गाथा गिना है.) ६८३०३. पद व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३-८ (२ से ५,८,१० से १२) = ५, कुल पे. २५, दे., (२५x१२, १६x३९-४२).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. २० बोल सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३३, आदि: किणसुंवाद विवाद न; अंति: मेडतेनगर चोमासजी, गाथा-१७. २. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. रतनतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: काया रे वाडी कारमी; अंति: रतनतिलक० रखवाली, गाथा-६. ३. पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: धन धन धन जंबूकुंवरजी; अंति: नाम लीयाथी सुख थाई, गाथा-१०. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
जालिम, पुहिं., पद्य, आदि: सुण भाई रे तेरा कीया; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: घाल्या पर घर सोगरे, गाथा-८, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) ६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ६अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: उठ चलणा एक लिगार में; अंति: क्या खाणा अहंकार में, गाथा-५. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ६अ, संपूर्ण.
___ कबीर, पुहि., पद्य, आदि: मन मगन भया जब क्या; अंति: कबीर० पाया त्रिण ओले, पद-४. ८. पे. नाम. कुगुरुत्याग पद, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.
कुगुरूत्याग पद, मु. जिनदास, पुहि., पद्य, आदि: तजु तजु में उन कूगर; अंति: जिनदास० संग खवारी हे, गाथा-४. ९. पे. नाम. सुगुरु लावणी, पृ. ६आ, संपूर्ण.
मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: नमु नमु में गुरू; अंति: जिनचरणांसु प्यारी है, गाथा-४. १०. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ६आ, संपूर्ण.
मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: हरे पेड पर पंछी बैठे; अंति: भूधर० मुरदै संग जली, पद-४. ११. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ६आ, संपूर्ण.
मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: पुद्गल का क्या; अंति: लवल० घट में सासारे, गाथा-३. १२. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण.
मु. रतनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: ओतो गढ़ वांको राज; अंति: रतनचंदजी०अभिलाषो राज, पद-४. १३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ७अ, संपूर्ण.
शंभुनाथ, पुहि., पद्य, आदि: मन लागो हे मा रतन; अंति: सिंभुनाथ० भर नीरसुं, पद-५. १४. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. ७अ, संपूर्ण.
मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: अगमपंथ चलणा है रे; अंति: जिनदास० लीजै चितलाई, गाथा-४. १५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ७अ, संपूर्ण.
मु. रतनचंद ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: तन धन जोबन पलक मे; अंति: रतनचंदजी० चरणे आया, गाथा-८. १६. पे. नाम. औपदेशिकदृष्टांत पद, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
रा., पद्य, आदि: हुंड्या हाले रे चिहु; अंति: आगलो नांख्यो फोड रे, गाथा-८. १७. पे. नाम. उपदेशपच्चीसी, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है.
मु. रतनचंद, रा., पद्य, वि. १८७८, आदि: नीठ नीठ नरभव लह्यो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) १८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ९अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है.
मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: (-); अंति: रायचंद०थारो चैन पावै, गाथा-१७, (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण से है.) १९. पे. नाम. गुरुगुण सज्झाय, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण.
मु. रतनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: आज नैणभर मुख निरख्यो; अंति: रतनचंद०सो वारो एमाय, गाथा-१०. २०. पे. नाम. गुरुगुण सज्झाय, पृ. ९आ, संपूर्ण.
मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पुण्य जोगे गुरु; अंति: रीखराय० अमर पद पावो, गाथा-१७.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६ २१. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: नटवा थई मत नाचो राज, गाथा-४, (पू.वि. अंतिम गाथा अपूर्ण मात्र है.) २२. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १३अ, संपूर्ण.
मु. रतन, रा., पद्य, आदि: आंटो करमारोराज; अंति: रतन भणे० दल नाटो राज, पद-४. २३. पे. नाम. अध्यात्म पद, पृ. १३अ, संपूर्ण.
मु. कुशल, पुहिं., पद्य, आदि: चेतानंद मान कया मेरा; अंति: कुसल० निज आतम हेरा, गाथा-१०. २४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण.
मु. रामचंद्र, रा., पद्य, आदि: भवसागर में भटकत भटकत; अंति: रामचंद्र० पार उतारो, गाथा-१२. २५. पे. नाम. समवसरणमान स्तवन, पृ. १३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है., वि. प्रतिलेखक ने प्रथम गाथा नहीं लिखी है.) ६८३०४. (+#) आठ कर्म १५८ प्रकृति विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १३४२४). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: इहां सुशिष्य पूछै; अंति: (-), (पू.वि. नामकर्म की प्रकृति जस नामकर्म
अपूर्ण तक है.) ६८३०५. (+) चंदप्रबंध रास, पूर्ण, वि. १९४०, श्रेष्ठ, पृ. २२३-१(२०३*)+१(१०६)=२२३, ले.स्थल. लक्ष्मणापुरी,
प्रले. मु. गोकुलचंद्र ऋषि (गुरु आ. शांतिसागरसूरि, विजयगच्छ पूर्णिमापक्ष), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में बीजक लिखा है. ऋषभ मंदिरे., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२७४१३, १३४३९-४३). श्रीचंद्रकेवली रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७७०, आदि: सुखकर साहेब सेवीयें; अंति: थइ भणतां
मंगलमालाजी, उल्लास-४, गाथा-२३९५,ग्रं. ६९३९, (संपूर्ण, वि. ढाल १११) ६८३०६. समयक्त्वपरीक्षा सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८५९, पौष शुक्ल, १२, मंगलवार, मध्यम, पृ. १९७, ले.स्थल. लिंबडी,
प्रले.पं. क्षमावर्द्धन गणि (गुरु पं. धर्मवर्द्धन गणि); गुपि.पं. धर्मवर्द्धन गणि (गुरु पं. विवेकवर्द्धन गणि); पं. विवेकवर्द्धन गणि (गुरु पं. मेघवर्द्धन गणि); पं. मेघवर्द्धन गणि (गुरु पं. कल्याणवर्द्धन गणि); पं. कल्याणवर्द्धन गणि (गुरु पं. धीरवर्द्धन गणि); पं. धीरवर्द्धन गणि (गुरु पं. रिद्धिवर्द्धन); पं. रिद्धिवर्द्धन (गुरु उपा. रविवर्द्धन गणि); उपा. रविवर्द्धन गणि, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. द्विपाठ., प्र.ले.श्लो. (६११) यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा, (६१७) भग्नपृष्टि कटि ग्रीवा, जैदे., (२५४१३, १६४५३).
सम्यक्त्व स्वरूप, आ. विबुधविमलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य पार्श्वनाथेश; अंति: मिथ्यादुःकृतं मेस्तु. सम्यक्त्व स्वरूप-बालावबोध, आ. विबुधविमलसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १८१३, आदि: प्रणम्य कहेता प्रणा; अंति:
च्छामीदुक्कडं होज्यो. ६८३०७. (+#) चंद्रकेवली रास, संपूर्ण, वि. १७८२, माघ कृष्ण, १, रविवार, मध्यम, पृ. १६९, ले.स्थल. स्तंभ तीर्थ,
प्रले.ग. विनीतसोम (गुरु ग. गुणसोम); गुपि.ग. गुणसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में बीजक लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १७४४५-५०). श्रीचंद्रकेवली रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७७०, आदि: सुखकर साहिब सेवीइं; अंति: थइ भणतां
मंगलमालाजी, उल्लास-४, गाथा-२३९४, ग्रं. ६८३९, (वि. ढाल १११) ६८३०८. (+) चंदराजा की चौपई, संपूर्ण, वि. १९२३, वैशाख शुक्ल, २, मंगलवार, मध्यम, पृ. १२०, ले.स्थल. अजीमगंज, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६४१३, १३४३५-३८). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धराधव तिम; अंति: मोहनविजये० गुण चंदना,
उल्लास-४, गाथा-२७०१, (वि. ढाल १०८)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
४४६
६८३०९, (+४) शत्रुंजयमहातीर्थ माहात्म्य, अपूर्ण, वि. १८३६, भाद्रपद कृष्ण, १०, रविवार, मध्यम, पृ. १९३-६१ (१ से ५,३० से ३१,३३,४२ से ५६, ५८ से ७४, १३३ से १३९,१४२ से १५४,१५७) = १३२, ले. स्थल. कालाऊना, प्रले. मु. भाग्यधीरगणि (गुरु ग. दर्शनराज, खरतरगच्छ); गुपि. ग. दर्शनराज (गुरु ग. राजतिलक, खरतरगच्छ); ग. राजतिलक (गुरु ग. क्षमासुंदर, खरतरगच्छ); ग. क्षमासुंदर (गुरु ग. महिमाकुशल, खरतरगच्छ); ग. महिमाकुशल (गुरुग, महिमाविमल, खरतरगच्छ); ग. महिमाविमल (गुरु ग. चारित्रविजय, खरतरगच्छ); ग. चारित्रविजय (गुरु उपा. सुमतिशेखर, खरतरगच्छ); उपा. सुमतिशेखर (गुरु आ जिनचंद्रसूरि खरतरगच्छ); आ, जिनचंद्रसूरि (गुरु आ जिनप्रभसूरि, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैसे, (२५.५४१२, १७४३९-४५%
,
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शत्रुंजयतीर्थ रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि: (-); अंति: रचीयो रास रसाल, खंड-९, गाथा - ६५२५, प्र. ८५८१, (पू.वि. खंड-१. ढाल, ८, गाधा १५ अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठ नहीं है.) ६८३१०. (+#) स्तुति, स्तवन, सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५९ - २ (२९ से ३०) = ५७, कुल पे. ५६, अन्य. मु. जेठा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२६.५४१२, १५४२४)१. पे. नाम, चेलणाराणी चौडालीयो, पृ. ९आ-४अ, संपूर्ण.
चेलणासती चौढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३३, आदि: ओसर जे नर अटकलै ते; अंति: रायच० भवियणने हेतकार, दाल-४, गाथा-३७.
२. पे. नाम. ककावत्रीसी, पृ. ४-५ आ, संपूर्ण.
मु. जिनवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: कका करमनी बात नीवार, अंतिः सीस जीवो रुषी एम भणे, गाथा- ३३.
३. पे. नाम, जोवनपच्चीसी, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण.
यौवनपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: पुन्यजोगे नरभव लहीयो; अंति: गुणवंतरा गुण गावे,
गाथा - २५.
४. पे. नाम. ज्ञानपच्चीशी. पू. ६आ-८अ संपूर्ण.
मु. रायचंद ऋषि, मा.गु, पद्य, वि. १८३५, आदि आदि अनादनो जीवडो रे, अंति रायचंद० रही चौमास रे, गाथा २५. ५. पे. नाम. लोभपच्चीसी, पृ. ८अ - ९अ, संपूर्ण.
मु. रायचंद ऋषि, पुहिं., पद्य, वि. १८३४, आदि: लोभी मनुषसुं तो, अंति: रायचंद० में वासो जी, गाथा - २५.
६. पे. नाम. कृपणपच्चीसी, पृ. ९आ- १०आ, संपूर्ण
मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: निठ निठ नरभव लह्यो, अंति: रायचंद० जोधपुर चोमास, गाथा-२५.
७. पे. नाम. कपट पच्चीसी, पृ. १० आ-१२अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-कपटोपरि, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३३, आदि: कपटी मनुषनो विसास न; अंति: रायचंद० धर्म पारो रे, गाथा २५.
८. पे. नाम. समाधिपच्चीसी, पृ. १२-१३अ संपूर्ण
मु. रायचंद ऋषि, मा.गु, पद्य, वि. १८३३, आदि: अपूर्व जीव जिनधर्म, अंतिः रायचंद० नगर चोमास रे, गाथा-२५. ९. पे. नाम. गौतमसामी सज्झाय, पृ. १३आ - १४अ, संपूर्ण.
गौतमस्वामी स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२७, आदि: जंबूदिप दिमाहे सोभे; अंति: रायचंदजी भ उलास रे, गाथा-१०.
१०. पे. नाम. गौतमस्वामी छंद, पृ. १४अ १४आ, संपूर्ण.
मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: इंद्रभूति गौतमस्वामी; अंति: रायचंद० तमे छिटकावो, गाथा-१५. ११. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, पृ. १४- १६अ, संपूर्ण.
मु. जैमल ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: मोह मिथ्यात की नींद, अंति: रिषि जेमल कहे एमजी, गाथा - ३५.
१२. पे. नाम, सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १६अ १७अ, संपूर्ण.
मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८६८, आदि: महाविदेह मे विराजीया; अंति: रायचंद ० धरी चाउ जी, गाथा - १२. १३. पे नाम, मरुदेवामाता सज्झाय, पृ. १७अ १७आ, संपूर्ण
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
४४७ मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि: नगरी विनीता भलीय; अंति: रायचंदजी०
चोमासो जी, गाथा-१३. १४. पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. १७आ-१९अ, संपूर्ण.
मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३४, आदि: गुण गाउ गौतम तणा; अंति: रतनचंद० चोमास जी, गाथा-१४. १५. पे. नाम. साधुवंदणा मोटी, पृ. १९अ-२३अ, संपूर्ण. साधुवंदना बडी, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: नमुं अनंत चोवीसी; अंति: जेमलजी एह तरणनो
दाव, गाथा-१०७. १६. पे. नाम. शांतिनाथनुंतवन, पृ. २३अ-२४आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. जयमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: नयरी हत्थणापुर अती; अंति: जेमलजी० पातक दूर हरो,
गाथा-२२. १७. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २४आ-२५अ, संपूर्ण.
म. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८२५, आदि: पूर्व माहाविदेहे वशे; अंति: रायचंद० मन आणी उलास, गाथा-१०. १८. पे. नाम. सुगुरु सज्झाय, पृ. २५अ-२५आ, संपूर्ण.
___ मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३५, आदि: तीर्थनाथ त्रिभोवनसाम; अंति: रायचंद०में राजध्यानी, गाथा-११. १९. पे. नाम. कुगुरु सज्झाय, पृ. २५आ-२६अ, संपूर्ण.
मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: जीव आदि अनादिरोगोधा; अंति: रायचंद० बोले अलिया, गाथा-११. २०. पे. नाम. सीखामणनी सज्झाय, पृ. २६अ-२६आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: आदिनाथ अरिहंत ध्यावो; अंति: रायचंद० होसे नीसतारो,
गाथा-१२. २१. पे. नाम. मुनिगुण सज्झाय, पृ. २६आ-२७अ, संपूर्ण.
मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: मानवभव पायो टाणो नो; अंति: रायचंद० राखो टेको, गाथा-९. २२. पे. नाम. समकित सज्झाय, पृ. २७अ-२७आ, संपूर्ण. सम्यक्त्व सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८४०, आदि: जीव फिरे दुखरोदाधो; अंति: रायचंद दियो ठाई,
गाथा-१५. २३. पे. नाम. गुरुगुणपच्चीसी, पृ. २७आ-२८आ, संपूर्ण.
मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: गुरु अमृत जेम लागे; अंति: रायचंद० आवे जावे, गाथा-२०. २४. पे. नाम. आषाढभूतिना पंचढालिया, पृ. २८आ-३२आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. आषाढभूति पंचढाळिया, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३२, आदि: दर्शन परिषह बावीसमो; अंति: आगे निर्णय
सांभळो ए, ढाल-५, (पू.वि. ढाल-१ गाथा-३ अपूर्ण से ढाल-४ गाथा-११ अपूर्ण तक नहीं है.) २५. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ३२आ-३३आ, संपूर्ण.
मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जंबूदिपना भरथ मे; अंति: रायचंद० क्रिपानाथ, गाथा-१८. २६. पे. नाम. दान सज्झाय, पृ. ३३आ-३४अ, संपूर्ण.
मु. जिनराय, रा., पद्य, आदि: संखराजा जसोमति राणि; अंति: बोल्या श्रीजिनरायो, गाथा-१५. २७. पे. नाम. शिवपुरनगर सज्झाय, पृ. ३४आ-३५अ, संपूर्ण.
मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८२०, आदि: अहो प्रभु सिवपुर नगर; अंति: ऋषि रायचंदने उलास हो, गाथा-१६. २८. पे. नाम. चोवीसतीर्थंकर-तवन, पृ. ३५अ-३६अ, संपूर्ण.
२४ जिन स्तवन, मु. रिखजी, मा.गु., पद्य, आदि: वांदु श्रीआदिजिणंद; अंति: रखजी कहे. दरशण दीजै, गाथा-२५. २९. पे. नाम. केशीगौतम सज्झाय, पृ. ३६आ-३७अ, संपूर्ण. केशी गौतमगणधर सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८४२, आदि: सावत्थी नगरी सोभे; अंति: रायचंद०
रखो उलासो जी, गाथा-१७.
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४४८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३०. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३७अ-३८अ, संपूर्ण.
मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: प्यारो मोहनगारो राज; अंति: रायचंद० पद निरवाणि, गाथा-१३. ३१. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. ३८अ-३८आ, संपूर्ण.
मु. भुदर, पुहिं., पद्य, आदि: वंदु श्रीजिनगुरु चरण; अंति: भुदर० सरण ऐसे धीर, गाथा-८. ३२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३८आ-३९अ, संपूर्ण.
मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४१, आदि: वामाराणीये एक जायो; अति: रायचंद०जेमलजी उपगारो, गाथा-१४. ३३. पे. नाम. मलीनाथ नेमनाथनुं स्तवन, पृ. ३९अ-४०अ, संपूर्ण. मल्लिजिन-नेमिजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८४२, आदि: मलीकुमरी ने नेमनाथो; अंति: रायचंद०
महा उपगारी, गाथा-१६. ३४. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ४०अ-४१अ, संपूर्ण.
मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पूर्व पुखला विजय कहि; अंति: ऋष जैमल० भवनी खामी, गाथा-२१. ३५. पे. नाम. चंदनबालानी सज्झाय, पृ. ४१अ-४१आ, संपूर्ण. चंदनबालासती सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८४२, आदि: चित चोखी चंदणबाला; अंति: हई साधवाया
रेपेहली, गाथा-१२. ३६. पे. नाम. मताग्रही सज्झाय, पृ. ४१आ-४२अ, संपूर्ण.
मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८४०, आदि: इण जगमा केई नरनारी; अंति: रायचंद०पंथ देजो टाली, गाथा-१०. ३७. पे. नाम. २० विहरमानजिन स्तवन, पृ. ४२अ-४२आ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन स्तवन, मु. जैमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८२४, आदि: श्रीमंधिर जुगमंधिर; अंति: जेमल० अठारसे
चौवीसो, गाथा-१०. ३८. पे. नाम. मल्लीनाथ पार्श्वनाथनुं स्तवन, पृ. ४२आ-४३आ, संपूर्ण. मल्लिजिन-पार्श्वजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८४२, आदि: हरियाने रंग भरिया; अंति: रायचंद० हर्ष
उल्लास, गाथा-१३. ३९. पे. नाम. मोक्षनगर सज्झाय, पृ. ४३आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मुगत नगर मारू सासरू; अंति: समयसुंदर नीरवाण
रे,गाथा-६. ४०. पे. नाम. दीवा सज्झाय, पृ. ४३आ-४४आ, संपूर्ण. मु. मूलचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८८५, आदि: दस धारो दीवो कह्यो ए; अंति: ए तो दीवातणी सज्झाय, ढाल-२,
गाथा-१७. ४१. पे. नाम. वाडी सज्झाय, पृ. ४४आ-४५आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-वाडीफूलदृष्टांत, मा.गु., पद्य, आदि: वाडी राव करे करजोडी; अंति: वीर न सके वारी जी,
गाथा-१४. ४२. पे. नाम. छकाय सज्झाय, पृ. ४५आ-४६अ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: हुवाने होसे आज छे जी; अंति: रे सावक देसे साज, गाथा-१३, (वि. प्रतिलेकक ने दो गाथा को एक गाथा
गिनकर लिखा है.) ४३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, पृ. ४६अ-४८अ, संपूर्ण.
मु. लब्धिरूचि, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७१२, आदि: जय जय जगनायक; अंति: सुमुदा प्रसन्नात्, गाथा-३२. ४४. पे. नाम. रामयशोरसायन-अधिकार-२, ढाल३२ सीतासती चरित्र, पृ. ४८अ-५१अ, संपूर्ण.
रामयशोरसायन चौपाई, मु. केशराज, मा.गु., पद्य, वि. १६८३, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ४५. पे. नाम. रथनेमिराजिमती सज्झाय, पृ. ५१अ-५१आ, संपूर्ण.
मु. हेतविजय, रा., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगुरु पाय; अंति: हितवि०राजुल लह्यो जी, गाथा-१०.
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४४९
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६ ४६. पे. नाम. चंद्रमा सज्झाय, पृ. ५१आ-५२अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: चांदो ते छायो वादल; अंति: निश्चे मुगते लइ जाय, गाथा-७. ४७. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-दानफल, पृ. ५२अ-५२आ, संपूर्ण.
मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: एक घर घोडा हाथीयाजी; अंति: पुण्य प्रमाण रे, गाथा-१२. ४८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-संतोष, पृ. ५२आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: सज्झाय भली संतोषनी; अंति: तेने मुगतीनु घरजो, गाथा-६. ४९. पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. ५३अ-५५आ, संपूर्ण.
मु. गंग, मा.गु., पद्य, वि. १७६५, आदि: श्रीगुरु पदपंकज नमी; अंति: गंगमुनि० ते सुख लहे, ढाल-४, गाथा-४७. ५०. पे. नाम. जिनभक्तिपद लावणी, पृ. ५५-५६अ, संपूर्ण.
मु. जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: वारि जिनचरण उपरंग; अंति: जिनभक्तिकुं रचावता, गाथा-७. ५१. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. ५६अ, संपूर्ण.
मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: सुगुरु की सिख हइये; अंति: जिनदास० चाउ जिन सरणा, गाथा-४. ५२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-भीड़भंजन, पृ. ५६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: स्या माटे साहिब साहम; अंति: प्रेमउदय अतिघणी
लाछो, गाथा-५, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथा को एक गाथा गिना है.) ५३. पे. नाम. सीखामणनी सज्झाय, पृ. ५६आ-५७अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंतजीनो नाम मारे; अंति: दया पलावे दइने, गाथा-१२. ५४. पे. नाम. नेमराजेमती सज्झाय, पृ. ५७अ-५८अ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मु. मुनिसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १७९१, आदि: राणी राजुल करजोडी; अंति: सुंदरगाया
सुखकार रे, गाथा-१५. ५५. पे. नाम. रुकमणीसती सज्झाय, पृ. ५८अ-५८आ, संपूर्ण. रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीचरंता गामो गाम; अंति: राजविजय रंगे भणे जी,
गाथा-१४. ५६. पे. नाम. वंकचूलनी सज्झाय, पृ. ५९अ-५९आ, संपूर्ण. वंकचूल सज्झाय, मु. तेजमुनि, मा.गु., पद्य, वि. १७०७, आदि: आ जंबुदिपतो रे लाल; अंति: लाल तेजमुनि गुण गाय,
गाथा-११. ६८३११. (#) सिद्धांतसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १७९२, ज्येष्ठ कृष्ण, ६, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ८४, ले.स्थल. रूपनगर, प्रले. मु. नेणसागर; पठ. पंन्या. केशवसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १३४४९).
सिद्धांतसारोद्धार, मा.गु., गद्य, आदि: ५२६ योजण ६ कला; अंति: भेदे मिच्छामिदुक्कड. ६८३१३. (#) रामयशोरसायण, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१३, १६४३२-३५). रामयशोरसायन चौपाई, मु. केशराज, मा.गु., पद्य, वि. १६८३, आदि: मुनिसुव्रतस्वामीजी; अंति: (-),
(पू.वि. अधिकार-३, ढाल-४५, गाथा ४५ अपूर्ण तक है.) ६८३१४. (+) विक्रमसेननरेश्वर चौपाई, पूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७०-१(२६)=६९, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२, ११४३८). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: परमज्योति प्रकाशकर; अंति: मइ उत्तमना
गुणगाया, ढाल-६४, संपूर्ण. ६८३१५. (+) ऋषभ संहिता, संपूर्ण, वि. १९६९, फाल्गुन शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ६१, प्रले. केसरीचंद दरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२७४१२.५, ११४३९-४२).
रामनिदान-ऋषभसंहिता, संबद्ध, पुहिं., प+ग., आदि: वंदू श्रीचोवीसजिन; अंति: शक्ति का हुय नास.
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६८३१६. (+) विचारसारोद्धार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५५, प्र. वि. संशोधित., दे., (२७.५X१२.५, १६x३९). सिद्धांतसारोद्धार, मा.गु., गद्य, आदि: ५२६ योजण ६ कला भरत, अंति: भेदे मिच्छामिदुक्कडं. ६८३१७. (+#) श्रीपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १८५५, श्रावण अधिकमास कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. ५६, ले. स्थल. अजीमगंज, प्रले. मु. विजयसागर (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीपार्श्वनाथजीरो पोसाल मध्ये, पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७१२, १३३६-४०).
सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदिः अरिहाई नवपयाई; अंति: वाइज्झता कहा एसा, गाथा - १३३८, ग्रं. १६७५.
६८३१८. नलदमयंती चउपई, संपूर्ण, वि. १८९६, वैशाख कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. ५३, ले. स्थल. वीकानेर, प्रले. य. अक्षयमिंदिर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६.५X१२, १२३४).
नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: सीमंधरस्वामी प्रमुख अंतिः समवसुंदर ० सचितवसी, खंड-६, गाथा- ७८८, (वि. ढाल ३८.)
६८३१९. (+) गुणठाणाद्वार स्वरूप, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ६३-१ (४०) ६२. प्र. वि. पत्रांक-४० के बाद के पत्रांक अव्यवस्थित हैं., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५X१२.५, ११X३०).
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१४ गुणस्थानक ८८ द्वार, मा.गु., गद्य, आदि: नामद्वार ते १४ गुणठा, अंति: (-), (पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., लेश्याद्वार अपूर्ण तक है. व समतिद्वार का कुछ भाग नहीं है.)
६८३२१. (+) श्रीपालरास सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९९० कार्तिक कृष्ण, ९, गुरुवार, मध्यम, पृ. ६७-४१ (१ से ४९) २६. ले. स्थल. आनंदपुर, प्रले. मु. सदानंद ऋषि (लूंकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६X१२, ६X३६-४३).
श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य वि. १७३८, आदिः (-); अंति: ज्ञान
विशाला जी, खंड-४, गाथा - १८२५, (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., खंड-३ ढाल -५ दोहा-१ से है., वि. ढाल ४१.) श्रीपाल रास-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., वि. प्रतिलेखक ने बीच-बीच में टवार्थ नहीं लिखा है.)
"
६८३२२. (+) समयसार नाटक, संपूर्ण, वि. १८८१, माघ शुक्ल, ३, शनिवार, मध्यम, पृ. २५, ले. स्थल. लावा, प्रले. मु. धर्मचंद्र (गुरु
आ. कांतिसागरसूरि विजयगच्छ); श्राव. जीवोजी ब्रह्मचारी गुपि. आ. कांतिसागरसूरि, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले. श्लो. (६०४) जब लग मेरु अडिग है, (६१६) यादृशं पुस्तकं दृष्टा, (१९४४) जलात् रक्षेत स्थलात् रक्षेत्, (१२१६) पोथी प्यारी प्राणथी, जैदे., (२५.५X१३, १४X३६-४१).
समयसार नाटक, जै. क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: (-); अंति: मैं परमारथ विरतंत, अधिकार - १३, गाथा- ७२७, (वि. प्रतिलेखक ने मोक्षमार्ग के साधक का विचार अपूर्ण से लिखा है.)
६८३२३. (#) सिद्धांतसारोद्धार व पांचबोल विचार, संपूर्ण, वि. १८७९, आश्विन शुक्ल, ९, मंगलवार, मध्यम, पृ. ४६, कुल पे. २,
ले. स्थल, पेथापुर, प्रले. मु. गुलाबविजय (गुरु पं. निधानविजय गणि) गुपि. ग. निधानविजय (गुरु पंन्या. हेमविजय):
पंन्या. हेमविजय (गुरु पंन्या. गौतमविजय); पंन्या. गौतमविजय (गुरु पंन्या. धनविजय), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६४१२, १८४४१-४६).
१. पे. नाम सिद्धांतसारोद्धार, पृ. १आ-४६अ, संपूर्ण
मा.गु., गद्य, आदि: ५२६ योजण ६ कलानुं अंतिः भेदे मिच्छामिदुक्कडं.
२. पे. नाम. पांचबोल विचार, पृ. ४६ अ ४६ आ. संपूर्ण.
५ बोल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: केवलीना जोगथी जीव; अंति: सम्यक्त्व जाये. ६८३२४. रात्रिभोजन रास, संपूर्ण, वि. १९१७, श्रावण कृष्ण, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३१, ले. स्थल. सुरत, प्रले. श्राव. लवजी मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७१२, ११३१-३५).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
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अमरसेन जयसेननृप चौपाई, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य वि. १७५९, आदि: श्रीसंखेश्वर पास, अंतिः जिन० सुणतां लीलविलास, ढाल - २५, गाथा-४७७.
६८३२६. (#) बावीसपरिसह सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैसे. (२६.५X१२.५, २२X४५-४९).
२२ परिसह सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य वि. १८२२, आदि: श्रीआदेसरजिन आद दे, अंति: (-), (पू.वि. ढाल-९ तक है.)
६८३२७. (#) समाधितंत्र का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३०, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५x१२, १३x४६).
समाधिशतक - बालावबोध, मु. पर्वतधर्मार्थी, मा.गु., गद्य, आदि: जिनान् प्रणम्याखिलकर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-४३ का बालावबोध अपूर्ण तक लिखा है.)
६८३२८. (+०) नवपदपूजा विधि, संपूर्ण, वि. १८३७, ज्येष्ठ शुक्ल ३, मध्यम, पृ. ६, ले. स्थल गोत्रकानगर, प्रले. मु. उदय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. विश्वंभरानृप मांगल्यसुत प्रसादात्, संशोधित अक्षर फीके पड़ गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६४१२, १४४३५).
नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा. मा.गु. सं., पद्य, आदि उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंतिः कोई नये न अधूरी रे, पूजा - ९.
"
६८३२९ वृद्धस्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २७, प्र. वि. बीच के पत्र पर ग्रहस्थापना यंत्रादि हैं. दे. (२६.५४१२, ११X३४).
बृहत्शांतिस्नात्र विधि संग्रह, मु. ज्ञानसागर-शिष्य, मा.गु. सं., गद्य वि. १८१४, आदि: प्रणम्य पार्श्वपादा, अंतिः शोध्यं हि बुधैः वरैः.
६८३३०. अखेवणी आदि च्यार धर्मकथा वर्णन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २५, ले. स्थल, बर्द्धमानपुर, प्रले जेठा देवकृष्ण उपाध्याय; अन्य. सा. नंदु आर्या महासती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. द्विपाठ., दे., ( २६.५X१३, १२X४२).
धर्मध्यान चतुर्विध आलंबन कथा, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि धर्मकथा तेसु जे भाव, अंतिः परमानंद सुख पामइ, कथा-४. ६८३३१. आनंदघनजी बाहोत्तरी, संपूर्ण, वि. १९१६ आश्विन शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. २६, ले. स्थल. पाहाणपर, प्रले. लक्ष्मीचंद
तलसी; अन्य. जोरावरखान दीवान पासचाकर, श्राव. ईश्वर मोतीचंद मेहता, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७१२.५, ९३०). आनंदघन गीतवहोत्तरी, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: क्या सोवे उठ जाग अंति: आनंदघन लाभ आनंदघन,
,
४५१
पद-७६.
.
६८३३२. () भृगुपुरोहित चौपाई, संपूर्ण, वि. १८७५, ज्येष्ठ शुक्ल, ८, शनिवार, मध्यम, पृ. २१, ले. स्थल. अजीमगंज, प्रले. चक्रपाण पं. प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीनेमिनाथजी प्रसादात् अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२६१२, १३४३४).
"
भृगुपुरोहित चौपाई, मु. जयरंग, मा.गु., पद्य, वि. १८७२, आदि: वर्धमान जिनवर चरण, अंति: समृद्ध मे रहस्यांजी,
ढाल - २३, गाथा - १४४०.
६८३३३. . (+) वडीदीक्षा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, प्र. वि. संशोधित., दे., (२७X१२, १२X३९-४२).
अनुयोग विधि, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: काजो पूंजी डंडा पडिल, अंतिः पण्णत्ते तिबेमि.
६८३३४. (+०) नवतत्त्व बोल, संपूर्ण, वि. १८६६ माघ कृष्ण, ५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १६, ले. स्थल, लखनऊ, प्रले. मु. गंगाविसन ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैवे., (२७४१२.५, १२४३४).
नवतत्त्व प्रकरण- बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १ जीवतत्त्व २ अजीव, अंति: पनरे भेदे सिध सीझै. ६८३३५, (+) प्रतिष्ठाविधि संग्रह, संपूर्ण वि. १९६२, पौष शुक्ल ३, मध्यम, पृ. १२, लिख. मु. हर्षमुनि (गुरु आ मोहनमुनि); गुपि. आ. मोहनमुनि प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. बीच-बीच में यंत्र- कोष्ठक आदि हैं., संशोधित., दे., ( २६.५X१२.५, १५-३०x१६-४१)
जिनबिंब प्रतिष्ठाविधि संग्रह, मा.गु. सं., गद्य, आदि: प्रणम्य स्वस्ति; अंति: वेरी खोदीने लावे १०८.
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४५२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६८३३६. (#) चेतनकर्मचरित्र, संपूर्ण, वि. १८४७, फाल्गुन शुक्ल, मध्यम, पृ. १०,ले.स्थल. आगरा, प्रले.पं. चेतनविजय,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र दीमकभक्षित होने के कारण प्रतिलेखन पुष्पिका अवाच्य है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, १६४३५-४३).
चेतन वृतांत, श्राव. भगवतीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७३६, आदि: श्रीजिनचरण प्रणाम; अंति: पाईये कहै भगौतीदास,
गाथा-२९६. ६८३३७. पार्श्वजिन १० भव वर्णन, महावीरजिन २७ भवादि वर्णन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९१०, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. ४, दे.,
(२७४१२, १८४४४). १. पे. नाम. पार्श्वनाथदशभव वर्णन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन १० भव वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: पोतनपुर नगर तिहा; अंति: आया पण चाल्या नही. २. पे. नाम. ऋषभदेव पारणा, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण..
आदिजिन वर्षीतपपारणा विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: श्रेयांसकुमार बाहुबल; अंति: तीज थई हाथ को विसतार. ३. पे. नाम. महावीर २७ भव, पृ. ४अ-८आ, संपूर्ण, वि. १९१०, भाद्रपद शुक्ल, ४, बुधवार, ले.स्थल. जावला,
प्रले.सा. रायकवरी (गुरु सा. पाराजी); गुपि.सा. पाराजी, प्र.ले.पु. सामान्य.
महावीरजिन २७ भव वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: सतावीस भव सम्यक्त; अंति: उपना पिण जनम थयो. ४. पे. नाम. महावीरजिन जन्ममहोत्सव वर्णन, पृ. ८आ-१२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. महावीरजिनजन्म महोत्सव, मा.गु., गद्य, आदि: अचेतना अपियदसा भगवंत; अंति: (-), (पू.वि. इन्द्र द्वारा
जिनबलवर्णन प्रसंग अपूर्ण तक है.) ६८३३८. (+#) लीलावतीचौबोली चौपाई, संपूर्ण, वि. १८४७, आषाढ़ शुक्ल, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. १३, ले.स्थल. विशाला,
प्रले.ग. रंगसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. लालाबाबू के कूचे में तपीयाजी की पोशाला में प्रत के लिखे जाने का उल्लेख है., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, १२४३८). विक्रमचौबोली रास-पुण्यफलकथने, वा. अभयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: वीणा पुस्तक धारणी; अंति:
अभयसोम० काजै कही, ढाल-१७. ६८३३९. (+) तपागच्छ-खरतरगच्छ संवाद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५४१२, १२४३७).
खरतर तपागच्छ ३० उत्सूत्र बोल, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तपागच्छीय श्रीविजय; अंति: शुद्धमार्गः सुखावहः. ६८३४०. (+) कल्पसूत्रटीका की वाचना-१ का बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४१३, १२४३१-३५). कल्पसूत्र-टीका का हिस्सा वाचना-१ का बालावबोध, मु. शांतिसागरसूरिशिष्य, पुहि., गद्य, आदि: प्रणम्य परमं
ज्योतिः; अंति: समुद्रकुंतारे है. ६८३४१. (+) समयक्त्वसप्ततिका बालावबोध व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४२-१२७(१ से १२७)=१५, पू.वि. बीच के पत्र हैं..प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १३४२७-३०). सम्यक्त्वसप्ततिका-सम्यक्त्वरत्नप्रकाशक बालावबोध+कथा, उपा. रत्नचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १६७६, आदिः (-);
अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३८ के बालावबोध अपूर्ण से गाथा-४१ के बालावबोध अपूर्ण तक है.) ६८३४२. (+) ऋषभ चरित्र, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १३४६२-६५).
आदिजिन चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: अरिहंत सीधने आरीया; अंति: (-),
(पू.वि. ढाल-४७, गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) ६८३४३. (#) श्रीपालरास चयन, संपूर्ण, वि. १९००, कार्तिक कृष्ण, १, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. स्थलनाम खंडित है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२.५, १२४२७).
श्रीपाल रास-चयन, मा.गु., पद्य, आदि: आवो जमाई प्राहुणा; अंति: सुजस सुख तो पाईजै.
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जनन
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६ ६८३४४. (+#) छंद व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. १४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
जैदे., (२६४१३, १५४४४-४७). १. पे. नाम. शनिश्चर छंद, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. शनिश्चर चौपाई, पंडित. ललितसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति सांमिणि मति; अंति: ललितसागर इम
कहे, गाथा-३१. २. पे. नाम. सनिसर लघुछंद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
शनिश्चर छंद, मा.गु., पद्य, आदि: छायानंदन जग जयो; अंति: वलि सनिसरदेव वखाणीइं, गाथा-१७. ३. पे. नाम. सनीदेवि नाम, पृ. २आ, संपूर्ण.
शनिभार्या नाम, सं., पद्य, आदि: ध्वजनी धामनी चैव; अंति: पीडा न भवंति कदाचिन, श्लोक-१. ४. पे. नाम. गोडीजीरो छंद, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: धवल धिंग गोडी धणी; अंति: उदयरत्न० जाल तोडी,
गाथा-८. ५. पे. नाम. संखेस्वर छंद, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुरासुर सेवे; अंति: जिनहर्ष अकल अविनास, गाथा-८. ६. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि छंद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति:
जिनप्रभसूरि०सीस रसाल, गाथा-१४. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद, पृ. ३आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, मु. भोज, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुंपासजिणंद; अंति: भोज० कल्याणनी कोडी, गाथा-११. ८. पे. नाम. शांतिजिन छंद, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. ____वा. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति भगवति वाणि; अंति: गुणविजये गुण गाईयो, गाथा-९. ९.पे. नाम. थंभणपुरपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, मा.गु., पद्य, आदि: थंभणपुरवर पासजिणंदो; अंति: पार्श्वनाथ सुरसालो, गाथा-४,
(वि. प्रतिलेखक ने चार गाथा को एक गाथा गिना है.) १०. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. ४आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: ॐ नमो पार्श्वनाथाय; अंति: पूरिय मे वंछितं नाथ, श्लोक-५. ११. पे. नाम. लघुगौतम रास, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिणेसर केरोसीस; अंति: तूठा संपति कोडि,
गाथा-८. १२. पे. नाम. पल्लवियापार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पल्लविया, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात चित्त; अंति: दीपविजय०संघ मंगल
करे, गाथा-३०. १३. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन छंद, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. कुशलचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगोडीचा जगतगरु; अंति: कुशलचंद विनती करे,
गाथा-२४, (वि. प्रतिलेखक ने एकगाथा को दो गाथा गिना है.) १४. पे. नाम. सरस्वतीदेवी छंद, पृ. ६आ, संपूर्ण.
सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: नमोस्तु शारदादेवी; अंति: निशेषजाड्यापहा, श्लोक-११. ६८३४५. नववाडि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, दे., (२६४१२, ११४३८).
नववाड सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: श्रीनेमीसर चरणयुग; अंति: धारी हो जुगती नववाडि,
ढाल-११, गाथा-९६.
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४५४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६८३४६. पिस्तालीस आगम गणj, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (२६.५४१२, १५४१७-३५).
४५ आगम गणj, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम बीजे श्रीनंदी; अंति: उपांगसूत्राय नमः. ६८३४७. (#) चैत्रीपूनमदेववंदन विधिव शत्रुजयतीर्थ एकवीस नाम, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०-३(५,७ से ८)=७, कुल
पे. २, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. कल्याण लक्ष्मीचंद पटेल; लिख. श्रावि. रुखमणि बेन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२, ११४३२-३५). १. पे. नाम. चैत्रीपूनमदेववंदन विधि, पृ. १आ-१०अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं.
चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम प्रतिमा ४ माडी; अंति:
ज्ञानविमल घरि आवइ रे, (पू.वि. प्रारंभ से पुंडरीकगिरि स्तवन, गाथा-३ अपूर्ण तक है, शत्रुजयतीर्थ थोय-२ से
थोय-४ की गाथा-१ तक व चैत्रीपूनम थोय, गाथा-१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ एकवीस नाम, पृ. १०आ, संपूर्ण.
शत्रुजयतीर्थ २१ नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सेव॒जो १ श्रीपुंड; अंति: २० अकर्म २१ सर्वकामद. ६८३४८. चतुर्विंशतिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७-१(१)=६, जैदे., (२७X१२, १४४३६-४७).
स्तवनचौवीसी, श्राव. विनयचंद्र गोकलचंद कुमट, मा.गु., पद्य, वि. १९०६, आदि: (-); अंति: महास्तुती पुरण करी,
स्तवन-२४, (पू.वि. स्तवन-३, गाथा-३ अपूर्ण से है.) ६८३४९. (+) व्याख्यान संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१३, १३४३२).
व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., गद्य, आदि: जीवदया रमिज्जइ; अंति: मंगलीकमाला संपजइ. ६८३५०. मौनएकादशी देववंदन, संपूर्ण, वि. १९१३, चैत्र शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ८, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. गोविंदजी बारोट, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२.५, ११४३१). मौनएकादशीपर्व देववंदन विधि, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सयल संपत्ति सयल; अंति: लाल नामे
नवनिध थाय. ६८३५१. स्तवन सज्झायादिसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-२(६,८)=९, कुल पे. १५, जैदे., (२६४१२.५,
१२४२६-३०). १. पे. नाम. सीतासती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. हर्षकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: जल जलती वलती खरी रे; अंति: हरखकुशल०शील सुधीर रे, गाथा-९. २. पे. नाम. राजिमती सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: उड उड कागलीयाजी राजल; अंति: हमरी महर ना आइया. ३. पे. नाम. नेमिजिन बारमासो, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण.
मु. लाभउदय, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: सखीरी सांभल एतु बाण; अंति: मुकत मझार हो लाल, गाथा-१४. ४. पे. नाम. चोवीसजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: रिषभ अजित संभ अभिनंद; अंति: लालचंदजी के सीरदारो,
गाथा-७. ५. पे. नाम. सामायिक ३२ दोष स्तवन, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिणवरजी के प्रणम; अंति: भवसागर सुहेली तरो, गाथा-१३. ६. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण.
मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: प्रथम श्रीअरहंतदेवा; अंति: रायचंदजी० तो धरम करो, गाथा-१३. ७. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
श्राव. बंसी, पुहि., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथ पणवेसर; अंति: वंसी० पद मोह दिजीये, गाथा-६. ८. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: तुम भजो निरंजन नाम; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
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९. पे नाम, पुण्यफल सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
मु. रिखजी, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: रिषजी कहे चितलाय, गाथा - १३, (पू. वि. गाथा - १ अपूर्ण से है.) १०. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्व स्तुति, पृ. ७आ-९अ, अपूर्ण, पू. वि. बीच का एक पत्र नहीं है.
पार्श्वजिन स्तुति - चिंतामणी, मा.गु., पद्य, आदि: अचिंत चिंतामनि पारस, अंति: प्रभुजी आपो सेव ए, गाथा-८, (पू.वि. गाथा- २ अपूर्ण से ८ अपूर्ण तक नहीं है.)
११. पे. नाम. साधुलक्षण सज्झाय, पृ. ९अ- ९आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: तारण तारण संसारमा; अंति: मुकत मझार मुनीसर, गाथा - १४.
१२. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ९आ - १० आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: समदवीजे सेवादेवी माए; अंति: जीव जावे मुकत मझार, गाथा-१९. १३. पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. १०आ ११अ, संपूर्ण.
मीराबाई, पुहिं., पद्य, आदि; बीडी बनाई नागर पान; अंतिः मीरा० राधाश्याम की, पद-५. १४. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय-चरखा, पृ. ११अ ११ आ. संपूर्ण.
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मा.गु., पद्म, आदि: गढ सुरतसु चरखा आया, अंतिः वरती जय जयकारो, गाथा- १०. १५. पे. नाम. कर्मफल सज्झाय, पृ. ११आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि जैसा वरद फीरत तेली, अंति: लघुआ मतलब की गरजी, गाथा-४.
"
६८३५३ (०४) महावीरजिन सत्तावीसभव स्तवन, संपूर्ण वि. १९३२, माघ शुक्त, ८, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल, बेरा, प्रले. सा. हरखश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. कुल ग्रं. १२५, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७X१२.५, १०X३२).
४५५
महावीरजिन स्तवन- २७ भव, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: विमल कमलदल लोयणा; अंतिः शुभ विजय शिष्य जय करो, ढाल ६.
६८३५४. (+) पंचमहाव्रत, रात्रिभोजन व नंदिषेणऋषि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२६X१२, १०X३०).
१. पे. नाम. पंचमहाव्रत सज्झाय, पृ. १अ - ३आ, संपूर्ण.
५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पूरवे रे; अंति: कांति० भणै ते सुख लहे,
ढाल-५.
२. पे. नाम. रात्रिभोजन सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल धरममांहे राजा; अंति: कांतिविजय० अवतार रे,
गाथा-७.
३. पे. नाम. नंदिषेणऋषि सज्झाय, पृ. ४अ - ५आ, संपूर्ण.
नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु, पद्य, आदि राजगही नगरीनो वासी अंतिः मेरुविजय० कोई तोलै हो, ढाल-३, गाथा - १४.
"
६८३५५ स्तवन चौवीसी, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दे. (२६.५४१२, १७४३८). स्तवन चौवीसी, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि; जगजीवन जग जन उपगारी अंति (-) (पू. वि, अरजिन स्तवन तक है.)
1
६८३५६. (+) अष्टमी अष्टप्रकारीपूजान्वित समवसरणपूजा, अपूर्ण, वि. १९३८ श्रावण शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. ८-३ (१,३ से ४) =५, ले. स्थल. अमदावाद, प्रले. कुबेरवास रणछोडदास पटेल (पिता रणछोडदास पटेल), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित प्राथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., दे., ( २४४१२.५, ११x२०-३५).
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समवसरण पूजा, मु. गुलाबविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९३८, आदि: (-); अंतिः कृष्णे बनायो रे, पूजा-८, (पू. वि. प्रथम पुष्पपूजा, गाथा-२ अपूर्ण से है व द्वितीय धूपपूजा अपूर्ण से पंचमी चंदनपूजा अपूर्ण तक नहीं है.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
६८३५७. पुगलगीता, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल. अजीमगंज, प्रले. मु. अबीरचंद जती पठ श्राव. मेघराज कोठारी,
प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२६.५x१२.५, १३४३७).
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पुद्गलगीता, मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: संतो देखीये बे परगट; अंति: चिदानंद सुखकारी, गाथा- १०८. ६८३५८. अट्ठाई व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७x१२, १४X३९). अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, मा.गु. सं., गद्य, आदि: शांतीशं शांतिकर्तार, अंति: (-), (पू. वि. अभयकुमार दृष्टांत अपूर्ण तक है.)
६८३५९. (+४) पानेरीचचरो धोकडो संपूर्ण वि. १९२७, चैत्र शुक्ल, मध्यम, पृ. ५, ले. स्थल, कलकत्ता, प्रले. मु. जगतचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६x१३, १३४३१).
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नवत्त्व छुटाबोलनो थोकडो, मा.गु., गद्य, आदि जीव अरूपीके रूपी अरू; अंति दोय जीवने १ आश्रव २. ६८३६०. नवतत्त्व विवरण, संपूर्ण, वि. १९४०, चैत्र शुक्ल, १०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ११ ले स्थल विक्रमपुर, प्रले. मु. पुण्यविजय,
प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१३, १३४०-४२).
नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व १ अजीवतत्त; अंति: दान१ शील२ तप३ भावना४. ६८३६१. चौपाई, रासादिसंग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २५-१(१) = २४, कुल पे. ३ ले, स्थल, जावला,
प्रले. श्रावि. रायकंवरी, प्र. ले. पु. सामान्य, दे., (२८x१४, १८X३३-३७).
१. पे. नाम. जंबूवती चौपाई, पृ. २अ १४अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है.
मु. सूरसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सूरसागर० अविचल पाट तो, डाल- १३, (पू. वि. डाल-१ गाथा १८ से है.) २. पे. नाम. वैदर्भी चौपाई, पृ. १४अ - १९आ, संपूर्ण.
मु. प्रेमराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि जिणधर्म मांहि दीपता, अंतिः प्रेमराज० मोक्ष मझार, गाथा २०९ ग्रं. २५०. ३. पे. नाम. चंदणासती रास. पू. २० अ-२५आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
יי
चंदनबालासती रास, मु. ब्रह्मराय ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: असुभ करम के हरणकुं, अंति: (-), (पू.वि. गाथा - १४६ अपूर्ण तक है., वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गाथा गिनकर लिखा है.)
६८३६२. (+) श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १८५९, वैशाख कृष्ण, ७, शनिवार, मध्यम, पृ. ६४, ले. स्थल. मूंडेठा, प्रले. पं. अमरविजय,
पठ. ग. फतैविजयजी (गुरु पं. रामविजय); गुपि. पं. रामविजय, राज्ये आ. जिनेंद्रसूरि (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित कुल ग्रं. ३७८, प्र. ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैवे. (२८४१३, १०३७). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेलि कवियण भणी, अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, खंड-४, गाथा- १८२५, (वि. दाल ४१)
६८३६३. कल्पसूत्र व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११२ ८५ (१ से ८५ ) + १ (१०१) - २८, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. कहीं-कहीं मूल पाठ भी है. जैदे. (२६.५४१३, १३३३-३७).
"
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. भगवान महावीर के नामकरण प्रसंग से गोशालक दृष्टांत अपूर्ण तक है.)
६८३६४. (+) मलयासुंदरी चरित्र व प्रास्ताविक श्लोक, संपूर्ण, वि. १८७७, ज्येष्ठ शुक्ल, २, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ७७, कुल पे. २, ले. स्थल, अणहीलपुरपाटण, प्रले. मु. कृष्णजी (बृहत्खरतर), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. पंचासरा प्रसादात् श्रीसंभवनाथ प्रसाद छै.. संशोधित कुल ग्रं. ३५०० जीवे. (२७.५x१३.५, १७४३९-४२).
१. पे नाम, मलयासुंदरी रास, पृ. १अ ७७अ संपूर्ण.
मलयसुंदरी रास, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७५, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदा, अंतिः चोथा खंडनी ढाल रे, खंड-४, गाथा-१०५२, ग्रं. ३४८८, (वि. ढाल ९१)
२. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक, पृ. ७७अ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: जादिनं पतिते बिंदु, अंति: वृद्धि सुखं दुःखं, श्लोक-१.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
४५७ ६८३६५. (+) श्रीपाल रास ढाल-३ से ४ सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८८६, कार्तिक कृष्ण, १०, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ८६,
प्रले.पं. कपुरविजय; पठ. मु. देवीचंद ऋषि (गुजराती लोंकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. नवलखाजी प्रसादात्., जैदे., (२७४१३.५, ७४३६).
श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: लहसे ज्ञान
विशाला जी, (प्रतिपूर्ण, वि. प्रतिलेखक ने ढाल-३ की गाथा-५ से लिखना प्रारंभ किया है.)
श्रीपाल रास-बालावबोध, ग. गणेशरुचि, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: पूर्ण उत्कंठित थाओ, प्रतिपूर्ण. ६८३६६. हरिबलनो रास व क्षेत्रपाल मंत्र, अपूर्ण, वि. १८९२, कार्तिक कृष्ण, १३, बुधवार, मध्यम, पृ. ७०-६(१० से १५)=६४,
कुल पे. २, ले.स्थल. सरधार, प्रले. मु. जयरामजी ऋषि (गुरु मु. केशवजी ऋषि); गुपि.मु. केशवजी ऋषि (गुरु मु. धन्नाजी ऋषि); मु. धन्नाजी ऋषि (गुरु मु. जयसिंहजी ऋषि); मु. जयसिंहजी ऋषि (गुरु मु. कृष्णाजी ऋषि); मु. कृष्णाजी ऋषि (गुरु मु. दल्लाजी ऋषि); मु. दल्लाजी ऋषि (गुरु मु. कुसलाजी ऋषि); मु. कुसलाजी ऋषि (गुरु मु. तेजसिंह ऋषि); मु. तेजसिंह ऋषि;
अन्य. मु. जेठाजी ऋषि, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.ले.श्लो. (४९०) अज्ञानाच्च मतिभ्रंसा, (१२२३) मंगलं लेखकानांच, जैदे., (२७.५४१३, १८४३९). १.पे. नाम. हरिबल रास, पृ. १आ-७०अ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. हरिबल चौपाई, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१०, आदि: प्रथम धराधर जगधणी; अंति: लब्धिनी० फलज्यो
रे, उल्लास-४, (पू.वि. उल्लास-१, ढाल-८, गाथा-१ से उल्लास-२, ढाल-३, गाथा-३१ अपूर्ण तक नहीं है., वि. ढाल
२. पे. नाम. क्षेत्रपाल मंत्र, पृ. ७०अ, संपूर्ण.
मंत्र संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवते तुभ्यं; अंति: लीं श्रीं ऐं नमो नमः. ६८३६७. (+) मुनिपति रास, संपूर्ण, वि. १८८७, श्रावण अधिकमास शुक्ल, १, मंगलवार, मध्यम, पृ. ७९, ले.स्थल. लींबडी,
प्रले. मु. दानविजय; पठ. ग. तेजविजय (गुरु पंन्या. रत्नविजय); गुपि. पंन्या. रत्नविजय (गुरु ग. देवविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिनाथजी प्रसादात्., संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१२२५) जेसो दीठो परत मे, जैदे., (२५.५४१४, २०-२१४४६). मुनिपतिरास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६१, आदि: सकल सुख मंगल करण; अंति: संघ मनोरथ फलीया रे,
ढाल-९३, गाथा-४००५. ६८३६८. प्रतिष्ठाकल्प, संपूर्ण, वि. १९९५, चैत्र शुक्ल, २, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ४०, ले.स्थल. वीजापुर, प्रले. पंन्या. पद्मसागर (गुरु
ग. विमलसागर, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में कूर्मयंत्र व प्रतिष्ठा सामग्री की सूची दी गई है., दे., (२६.५४१४.५, १४४३१).
जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, आ. रत्नशेखरसूरि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वेशो विभा; अंति: पछी ध्वजा चढाववी. ६८३६९. क्षेत्रविचार, संपूर्ण, वि. १९३९, माघ शुक्ल, ७, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३८, ले.स्थल. घीवटा, प्रले. जयशंकर मूलजी ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक-१४ के बाद के पत्रों पर अंक नहीं लिखे हैं., दे., (२६४१४, १२४३१).
जंबूद्वीप प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जंबूद्वीपमाहे छ; अंति: द्वीपना गणितपद जाणवो. ६८३७०. आनंदघनजी बहोत्तरी, संपूर्ण, वि. १९५३, आश्विन शुक्ल, ५, रविवार, मध्यम, पृ. २९, ले.स्थल. बनारस, पठ. मु. मेघराज, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४१४.५, १२-१३४२९-३१).
आनंदघन पद संग्रह, मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, आदि: क्या सोवे० जाग; अंति: आनंदघन घट रह्यो समाइ, पद-१०८. ६८३७१. (+) आगमसारोद्धार सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८७४, वैशाख शुक्ल, ८, गुरुवार, मध्यम, पृ. २९, ले.स्थल. देवगढ, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७४१४.५, १६x४१).
आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: अनादि मिथ्यात्वी; अंति: तिथि सफल फली मन आस. आगमसारोद्धार-स्वोपज्ञ बालावबोध, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: तिहां प्रथम जीव; अंति: ते
समकिति जाणवो. ६८३७२. आतमप्रबोध दूहा व औपदेशिक सुभाषित संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २४-५(१४ से १७,२०)=१९, कुल
पे. २, जैदे., (२५.५४१३, १४४५०).
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४५८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. आत्मप्रबोध दुहा, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: निरविकार निरदोष शुचि; अंति: तिम अनंत गुण हुंति, गाथा-५०. २. पे. नाम. विविध विषयक औपदेशिक सुभाषित संग्रह, पृ. २आ-२४आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं.
औपदेशिक श्लोक संग्रह", पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: तरुणी वय तप साथिया; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण., बीच-बीच के पाठ नहीं है.) ६८३७३. कल्पसूत्र-सातमी वाचना, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२७७१३, १३४४२).
कल्पसूत्र-वाचन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
महावीर जन्मवांचन, आमलकी क्रीडा तक लिखा है.) ६८३७४. (#) चोमासी देववंदन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १९, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१४.५, १२-१३४२७-३०). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विमलकेवलज्ञान कमला; अंति: (-),
(पू.वि. सम्मेतशिखरजी स्तवन, गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ६८३७५. दानशीयल चोढालीयो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२७४१३, ८x२५-२६).
दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति:
समयसुंद०सुप्रसादो रे, ढाल-४, गाथा-१०१. ६८३७६. (+) चतुर्मासिक देववंदन, संपूर्ण, वि. १८८६, कार्तिक शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. १६, ले.स्थल. मीयानगर,
प्रले. मु. ऋषभविजय; पठ. श्राव. सूरचंदभाई; राज्ये आ. विजयदिणिंदसूरि (तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१३.५, १४४२७-३१). चौमासी देववंदन सविधि, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर ईस्वर; अंति: विजय शिव मंदिरीइंरे,
गाथा-४२५. ६८३७७. (+) नयचक्र कीटीका, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५४१३.५, १३४३२-३५). नयचक्र-भाषावचनिका, श्राव. हेमराज शाह, पुहिं., गद्य, वि. १७२६, आदि: वंदौ श्रीजिनके वचन; अंति: (-),
(पू.वि. विशेष स्वभाव की व्युत्पत्ति अपूर्ण तक है.) ६८३७८. (+) आनंदघनचउवीसी सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २७-८(१ से ८)=१९, प्रले. मु. गोकलचंद ऋषि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४१३, १३४४८-५१). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदिः (-); अंति: आनंदघन प्रभु जागरे,
स्तवन-२४, (पू.वि. शीतलजिन स्तवन, गाथा-२ अपूर्ण से है.)
स्तवनचौवीसी-बालावबोध, पं. देवचंद्र गणि, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: चंद्र गणिए लिख्यो छे. ६८३७९. (+) दंडकद्वार विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मार्गशीर्ष शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. १३-१(१)=१२, प्रले. मु. गुणचंद; पठ. मु. शिवचंद,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक ने प्रतिलेखन वर्ष हेतु मात्र १८ लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७.५४१४, १३-१६४३४). २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: द्वार २४ दंडक जाणवा, (पू.वि. पूर्वधर, साधु आदि के द्वारा
वैक्रियशरीर धारण करने के प्रसंग से है.) ६८३८०. (-) बारहभावना, स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९१२, पौष शुक्ल, ३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २०, कुल पे. ३०,
ले.स्थल. सुर्यपुर, प्रले.मु. निधानविजय; पठ. पंन्या. सूरठसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. सूर्यमंडणजी प्रसादात., अशुद्ध पाठ., दे., (२२.५४१३, १५४४१). १.पे. नाम. १२ भावना सज्झाय, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण, ले.स्थल. सुरत, प्र.ले.श्लो. (१२२६) जलं रक्षे थलं रक्षे,
पे.वि. सूर्यमंडन प्रसादात् धर्मनाथजी प्रसादात्.
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उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: पास जिणेसर पाय नमी; अंति: भणी जेसलमेर मझार, ढाल - १३, गाथा - १२९.
२. पे. नाम. त्रिविध धूर्तलक्षणं पृ. ६अ, संपूर्ण.
औपदेशिक श्लोक सं., पद्य, आदि: मुखं पद्मदलाकार, अंतिः त्रिविध धूरत लक्षणं, श्लोक १.
३. पे नाम. आषाढाभूति सज्झाय, पृ. ६आ-८अ संपूर्ण
,
आषाढाभूतिमुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीश्रुतदेवी हिइ; अंति: भावरत्न सुजगीस रे, ढाल ५, गाथा - ३७.
४. पे. नाम. कायानी सझाय, पृ. ८ अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय - कायाविषे, मा.गु., पद्य, आदि: भुलो मनभमरा काई भम्य; अंतिः रिया लेखो साहीब हाथ,
गाथा- ७.
५. पे नाम, सालीभद्रनी सज्झाय, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण
शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि प्रथम गोवाल्या तणो अंतिः गवोजी सहजसुंदरनी वाण,
४५९
गाथा - १६.
६. पे. नाम. रोहिणीतप वर्णन स्वाध्याय, पृ. ९अ, संपूर्ण
रोहिणीतप सज्झाय, आ. विजयलक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिणंद, अंतिः विजयलक्ष्मीसूरि भूप,
गाथा - ९.
७. पे. नाम. सीतामहासती सिझाय, पृ. ९आ, संपूर्ण.
सीतासती सज्झाय- शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि जलजलती मिलती घणी रे; अंतिः जिनहर्ष० पाय रे, गाथा - ९.
८. पे. नाम. अदत्तादान पापस्थानक सज्झाय, पृ. १० अ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चोरी व्यसन निवारीये अंतिः जस० पुन्यसुं प्रेमके, गाथा- ६.
९. पे नाम, नेमराजुल सिझाय, पृ. १०आ, संपूर्ण,
नेमराजिमती स्तवन, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवल गोखने अवल झरुंखे, अंतिः सेवक देव कहे ज अकारि, गाथा- ७.
१०. पे. नाम. पंचमआरानी सझाय, पृ. ११अ ११आ, संपूर्ण.
पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहे गौतम सुणो; अंति: जिन० भाख्या वयण रसाल,
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गाथा - २१.
११. पे नाम पनरतिथि सझाय, पृ. १२-१२आ, संपूर्ण.
मराजिमती स्तवन- १५ तिथिगर्भित, ग. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि; जे जिनमुखकमले विराजे अंतिः रंगविजय वधते रंगे, गाथा- २३.
१२. पे. नाम. पंचमी सझाय, पृ. १२आ - १३आ, संपूर्ण, ले. स्थल. सुरत.
ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि श्रीवासुपूज्य जिणेसर, अंति: संघ सकल सुखदाय रे, ढाल - ५, गाथा - १६.
१३. पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. १३आ - १४अ, संपूर्ण.
मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंतिः रूपविजे० फल लिए जी, गाथा- ७. १४. पे. नाम क्रोध सझाय, पृ. १४अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु, पद्य, आदि: कडुवां फल छे क्रोधना, अंति: उदयरतन० उपसम रसनांही गाथा ६.
१५. पे. नाम. गोतमनी छंद, पृ. १४आ, संपूर्ण.
गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: इंद्रभूतिं वसुभूति अंतिः लभते नितरा क्रमेण श्लोक- ९.
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१६. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. १४-१५अ, संपूर्ण.
मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: धारणी मनावे रे मेघ; अंतिः कवियण० मन हर्ष अपार, गाथा - ६.
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
१७. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १५अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य वि. १८वी, आदि: रिषभ जिणेसर पीतम, अंति: आनंदघन पद रेह,
गाथा-६.
१८. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १५आ, संपूर्ण.
मु. विनय, पुहिं, पद्य, आदि: किसके वे चेले किसके अंतिः विनयः सुखे भरपूर, गाथा- ४.
१९. पे नाम नेमिजिन स्तवन, पृ. १५आ, संपूर्ण.
मराजिमती स्तवन, मु. दीप, मा.गु, पद्य, आदि: सुण सामलीवा नेम नगीन; अंतिः दीप० जावुं बलीहारि, गाथा- ९. २०. पे. नाम. सुमतिनाथजी तवन, पृ. १६अ, संपूर्ण.
"
सुमतिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु, पद्य, वि. १८वी, आदिः सुमतिनाथ गुणस्युं अंति: जश० मुज प्रेम प्रकार, गाथा ५.
२१. पे नाम, आत्मबोध सिझाय, पृ. १६अ, संपूर्ण
औपदेशिक सज्झाय परनारीपरिहार, मु. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीव बारु खुं मोरा, अंति: सांतिविजे० थिर थापो, गाथा ५.
२२. पे नाम. चोथाव्रतनी सझाय, पृ. १६ आ, संपूर्ण.
शीयलव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती केरा रे चरणकमल, अंति: कांतिविजे०पाले नरनार,
गाथा-८.
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२३. पे. नाम. अढारनातरानी सिज्झाय, पृ. १६आ - १८अ, संपूर्ण.
१८ नातरा सज्झाय, मु. हेतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पहेला ते समरूं पास, अंति: कांई हेतविजय गुण गाय, ढाल -३,
गाथा-३६.
२४. पे नाम, तेरकाठियानी सझाय, पृ. १८अ १८आ, संपूर्ण.
१३ काठिया सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८बी, आदि आलस पहेलो काठीयो धरम, अंतिः भाव० चित निवारो, गाथा - ७.
२५. पे. नाम. नेमराजुल सज्झाय, पृ. १८ आ-१९अ, संपूर्ण.
रथनेमिराजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्म, आदि: काउसग थकि रे नेमी अंतिः धन धन बलि अणगार रे, गाथा ११. २६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १९अ, संपूर्ण.
मु. धर्मचंद्र, पुहिं, पद्य, आदि धनसार केसर बहुं घोली, अंतिः धर्मचंद्र० जय बोली, गाथा- ६.
२७. पे. नाम. द्रव्यआत्माभाव सझाय, पृ. १९अ - १९आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: धोबीडा तू धोजे रे, अंति: सहजसुंदर० सुख दायरे, गाधा-६. २८. पे नाम वीरजिन स्तवन, पृ. २०अ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तवन, मु. धर्मचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: विर साथे लागि मुंने; अंति: धर्मचंद्र० पडह वजाया, गाथा-५. २९. पे नाम. आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. २०अ संपूर्ण.
औपदेशिक गाथा संग्रह * पुहिं. मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-).
7
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रिषभ जिणंद नमे नरइंद; अंति: सुख थाय श्री आदिजिनं, सवैया- १. ३०. पे. नाम. औपदेशिक, सुभाषित श्लोक व गाथा संग्रह, पृ. २०अ, संपूर्ण, पे. वि. प्रतिलेखक ने प्रायः प्रत्येक पत्र पर अन्त
में औपदेशिक व सुभाषित श्लोक गाथा या दोहा लिखा है, जिसका अलग-अलग पेटांक नहीं बनाकर सबको एक पेटांक में संकलित किया गया है.
६८३८१. शीलोपदेशमाला सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १७, दे. (२६४१३.५, १४४३६).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि: आबालबभयारि नेमि; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३० तक लिखा है.) शीलोपदेशमाला-बालावबोध+कथा, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५५१, आदि: श्रीवामेयममेयश्रीसहि; अंति:
(-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ६८३८२. स्तवन व रास संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७८, मध्यम, पृ. १६, कुल पे. ४, ले.स्थल. पालणपुर, लिख. पंन्या. अभयसोम,
प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१४, १०४२६-३०). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण, वि. १८७८, आश्विन कृष्ण, १. महावीरजिन स्तवन-५ कल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: शासननायक शिवकरण वंदु;
अंति: रामविजय०अधिक जगीसरे, ढाल-३, गाथा-५६. २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, प्र. ४अ-५अ, संपूर्ण.
उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो प्रणमु दिन; अंति: कहे मानविजय उवज्झाय, ढाल-४, गाथा-२५. ३. पे. नाम. सेबूंज उद्धार, पृ. ५अ-१५आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: नयसुंदर० दरिसण
जयकरो, ढाल-१२, गाथा-१२०, ग्रं. १७०. ४. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १५आ-१६आ, संपूर्ण.
मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समरी सारद माय प्रणमी; अंति: अमर नमे तुझ लली लली, गाथा-८. ६८३८३. चोमासी देववंदन, संपूर्ण, वि. १९५६, वैशाख कृष्ण, ८, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. रामपुर, प्रले. मु. ईश्वरचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१३.५, १२४३७). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विमलकेवलज्ञान कमला; अंति: पद्मविजय सामल
चेईरइ. ६८३८४. अट्ठाई महोत्सव व कामनासिद्धि मंत्र, संपूर्ण, वि. १९११, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. २, ले.स्थल. कोटानगर, प्रले. मु. मोतीचंद (गुरु मु. लालचंद); गुपि. मु. लालचंद (गुरु मु.खेमचंद); मु.खेमचंद; गुभा. मु. मोहनचंद; मु. रायचंद;
द; मु. रूपचंद (गुरु आ. सुविधिसागरसूरि); गुपि. आ. सुविधिसागरसूरि; पठ. मु. गोकलचंद ऋषि; गुभा.मु. चतुर्भुजजी (गुरु मु. दुलीचंद); गुपि. मु. दुलीचंद (गुरु मु. मीयाचंद ऋषि); मु. मीयाचंद ऋषि, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, दे., (२६.५४१३, १४४३४-३९). १.पे. नाम. अट्ठाई महोत्सव, पृ. १आ-१२आ, संपूर्ण. पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., पद्य, वि. १७८९, आदि: ॐकारविंद संयुक्तं; अंति: हस्ति यादृशम्,
श्लोक-६२४. २.पे. नाम. कामनासिद्धि मंत्र, पृ. १२आ, संपूर्ण.
___ मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ६८३८५. (+) पिस्तालीस आगम बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३६, ज्येष्ठ शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले.स्थल. मंमाई, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२८x१३, १०x४१).
सिद्धांतबोल संग्रह, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम प्रश्न अष्टोत; अंति: एतला पाठ लिख्या छइ. ६८३८६. अंजनासती रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-१(८)=१३, दे., (२८.५४१४.५, १६-२०४२८-३०).
अंजनासुंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदि: पहलेने कडावै हो पाय; अंति: (-), (पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-६३
अपूर्ण से ७३ अपूर्ण तक एवं १३३ अपूर्ण के पश्चात नहीं है.) । ६८३८७. (+) दृष्टांतकथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७७, चैत्र कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८.५४१३.५, १४-१६४३०-३४).
दृष्टांतकथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: जवनां में ऋषी वृद्धा; अंति: तीवारे सुख पाम्या.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६८३८८. (#) अनुकंपा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है,
जैदे., (२६.५४१४, २०४३०).
__ अनुकंपा सज्झाय, रा., पद्य, आदि: पोतै हण हणावै नही; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१०, गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ६८३८९. सडसठि बोल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९२८, फाल्गुन शुक्ल, १३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. सुरजपुर, दे., (२६४१४, १०४२५).
सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुकृतवल्लि कादंबिनी; अंति:
___ वाचक जस इम बोले रे, ढाल-१२, गाथा-६८. ६८३९०. चोमासी देववंदनविधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-३(१ से ३)=६, जैदे., (२७७१३.५, १३-१६x४५).
चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पास सामलनु चेई रे, (पू.वि. वासुपूज्य
देववंदन अपूर्ण से है.) ६८३९१. मौनएकादशी व्याख्यान का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९५५, आषाढ़ शुक्ल, ८, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. कोटा(रामपुर), प्रले. मु. ईश्वरचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१३.५, १५४३८).
मौनएकादशीपर्व कथा-बालावबोध, पुहिं., गद्य, आदि: एक दिन के समय में; अंति: वर्णव दिखाया. ६८३९२. नवतत्त्व बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. कहीं-कहीं गुजराती लिपि भी मिलती है., दे., (२७.५४१३.५, २८x१५-२०). नवतत्त्व प्रकरण-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जे कोई एम कहे छै नव; अंति: (-), (पू.वि. साधु आचार बोल
अपूर्ण तक है.) ६८३९३. अवंतीसुकुमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९२१, वैशाख कृष्ण, ८, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, दे., (२७७१३.५, १४४३८).
अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: प्रणमी पास जिणंदने; अंति: आवी भइद्रा एम
भाइआखे, ढाल-१३, गाथा-१०६. ६८३९४. मेरुतेरश कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, दे., (२७४१४, १५४३८).
मेरुत्रयोदशीपर्व कथा, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य भारती भक्त; अंति: अवचल सुख पामैं. ६८३९५. (#) चोमासी व रोहिणीतप कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.,
(२७.५४१३, १६४३८). १. पे. नाम. चातुर्मासिक व्याख्यान, पृ. १अ-८अ, संपूर्ण.
चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: सामाइकावश्यक पौषधानि; अंति: दुक्कडं देवै. २. पे. नाम. रोहिणीतप व्याख्यान, पृ. ८अ-९अ, संपूर्ण. रोहिणीतप सज्झाय, ग. भक्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जय शंखेसर जिनपति वाम; अंति: भक्ति नमें नित पाय,
ढाल-३, गाथा-४१. ६८३९६. शिखरजीरोरास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, दे., (२६.५४१३.५, ११४३६).
सम्मेतशिखरतीर्थरास, मु. गुलाबविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४६, आदि: सांवलिया श्रीपासजी; अंति: गुलाब०
नवनिधि पायाजी, ढाल-६. ६८३९७. गौतमगणधर स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. १५, प्रले. पं. रामचंद्र; पठ. सा. समजणीबाई,
प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१३.५, १५४२४-२८). १.पे. नाम. गौतमस्वामी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी छंद, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: इंद्रभूति गौतमस्वामी; अंति: रायचंद० तमे छिटकावो,
गाथा-१५. २. पे. नाम. नवकारमंत्र सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. दुर्गादास, रा., पद्य, वि. १८३१, आदि: अरिहंत पहले पद जानी; अंति: दुरगदासो० छे
टंकसाली, गाथा-१५.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
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३. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण.
मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४१, आदि: वामाराणीये एक जायो; अंति: रायचंद ० जेमलजी उपगारो, गाथा- १४. ४. पे. नाम. मल्लिजिन - नेमजिन स्तवन, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण.
मल्लिजिन नेमिजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा. पद्य वि. १८४२, आदि: मलीकुमारी ने नेमनाथ, अंतिः रच्या बाल ब्रह्मचारी, गाथा - १६.
५. पे. नाम. वीसविहरमान स्तवन, पृ. ३-४अ, संपूर्ण.
विहरमान २० जिन स्तवन, मु. जैमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८२४, आदिः श्रीमंधीर जुगमंदीर, अंति: श्रीविहरमान दुवीसो, गाथा- १०.
६. पे. नाम, चेलणासती सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण
मु. रायचंद ऋषि, मा.गु, पद्य, आदि: चेडारा जानी बेटी अंतिः रायचंद० सेरमाहे जाणी, गाथा- ९.
७. पे. नाम. चंदनबालासती सज्झाच, पृ. ४-५ अ, संपूर्ण
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मु. रायचंद ऋषि, रा. पद्य वि. १८४२ आदि चीत चोखे चंदनबाला अंतिः साधवीया रे पेहेली, गाथा- १२.
"
८. पे. नाम. पंचमआरा सज्झाय, पृ. ५अ - ५आ, संपूर्ण.
रा., पद्य, वि. १८४०, आदि: अरिहंत सिद्ध साधु; अंति: मांहा हलाहल एहकालो, गाथा - १३.
९. पे. नाम. सुगुरु सज्झाय, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३५, आदि: तीर्थनाथ त्रिभोवनसाम; अंति: रायचंद ० में राजध्यानी, गाथा- ११.
१०. पे नाम, गुरुगुण पच्चीसी, पृ. ६अ-७अ संपूर्ण.
गुरुगुणपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: गुरु अमृत जेम लागे, अंतिः विना ग्यान नहीं पावे,
गाथा - २५.
११. पे. नाम. कुगुरु सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: जीव आदि अनादिरो गोधा, अंति: रायचंद० मांठा मलीया, गाथा - ११. १२. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. ७आ-८अ संपूर्ण
मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि आदिनाथ अरिहंत ध्यावो, अंतिः रायचंद० मांगे मतीहारो, गाथा १२. १३. पे. नाम. मुनिगुण सज्झाय, पृ. ८अ, संपूर्ण.
गाथा - १५.
१५. पे. नाम औपदेशिक सज्झाव, पृ. ९अ- ९आ. संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि बैठे साधु साध्वी, अंतिः शंका नहीं छे काय के, गाथा २२.
४६३
मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: मानवभव पायो टाणो नो; अंतिः रायचंद० दरसण देखो, गाथा- ९. १४. पे. नाम. समकित सज्झाय, पृ. ८अ - ९अ, संपूर्ण.
सम्यक्त्व सज्झाब, मु. रायचंद ऋषि, रा. पद्य वि. १८४०, आदि: जीव फिरे दुखरो दाधो अंतिः रायचंद दियो ठाई,
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६८३९८. गौतम रास, संपूर्ण, वि. १९५२, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल. भीनमाल, दे., (२८X१५, ११x२७).
गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: विजयभद्र० इम भणे ए, गाथा- ४६.
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६८३९९. श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ८-१(१)=७, वे. (२६.५x१२.५, ११४२६-३२).
श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-) अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., ढाल - २ गाथा - १ अपूर्ण से ढाल - ६ गाथा - २० अपूर्ण तक है.) ६८४०० शत्रुंजयउद्धार रास, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ७, दे. (२६.५x१३.५, १२४३४).
"
शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदिः विमल गिरिवर विमल, अंति: नयसुंदर० जय करूं, ढाल - १२, गाथा - १२०, ग्रं. १७०.
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४६४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
६८४०१. पद, सज्झाय, स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६-१ (५) ५, कुल पे. १५, जैदे. (२७.५X१४.५,
१३४३२).
१. पे. नाम. आछामुनि पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
कर्मयुद्ध सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि धर्म के विलास वास, अंतिः सुजस० पाउ हम लगे हैं, गाथा - ५.
२. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: सबल या छाक मोह मदिरा, अंति: जस० उनकी में बलिहारी,
गाथा-८.
३. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं, पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रभु मेरे अइसी आय अंति: पावे सुख जलील धणी, गाथा - ६.
४. पे. नाम. औपदेशिक गीत, पृ. २अ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अब में साचो साहिब, अंतिः सो जस लीला पावइ, गाथा- ७. ५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय - कुमार्गत्याग, पृ. २आ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन राह चले उलटे; अंति: सुजस० ग्यान प्रकटे, गाथा-६.
६. पे. नाम औपदेशिक गीत, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि; सजन राखत रीत भली अंतिः सेवा ते सुखजस रंगरली,
"
गाथा-५.
७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण.
आध्यात्मिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि: अजब गति चिदानंद घन; अंति: जस० उनको सुमरन की, गाथा-५.
८. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ३अ- ३आ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्म, वि. १८वी, आदि प्रभु मेरे अइसी आय अंतिः जसकुं० अपने दास भनी,
गाथा-४.
९. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभु तेरो गुण ज्ञान, अंतिः तास जस प्रभु छायो हे, गाथा-४,
१०. पे. नाम. औपदेशिक पद - ज्ञानदृष्टि, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, पुर्हि, पद्म, वि. १८वी, आदि; चेतन ज्ञान की दृष्टि अंतिः सुजस० हृदय पखालो, गाथा- ६. ११. पे. नाम औपदेशिक पद, प्र. ४-४आ, संपूर्ण
उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन मोह को संग; अंतिः जस० सधी एक भावको होय, गावा- १५.
"
१२. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मु. विनय, पुहिं., पद्य, आदि: जोगी एसा होय फीरु, अंति: (-), (पू. वि. गाथा- २ अपूर्ण तक है.)
१३. पे. नाम. औपदेशिक ध्रुव पद, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
औपदेशिक ध्रुवपद, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सुजस प्रभु चित आयो, गाथा-४, (पू. वि. अंतिम गाथा मात्र है.)
१४. पे नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ६अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: पवन को करे तोल रवि, अंतिः सो ही मेरो गोर है, गाथा - २.
१५. पे. नाम. उपशम सज्झाय, पृ. ६अ - ६आ, संपूर्ण.
मु. हेमविजय, पुहिं., पद्य, आदि जब लगे उपशम नाहि रति, अंति: हेम प्रभु सुखसंपती, गाथा- ७.
"
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४६५
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६ ६८४०२. (+#) नवपद पूजा, संपूर्ण, वि. १९३३, चैत्र शुक्ल, ७, मंगलवार, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. पाटण, प्रले. नरभेराम अमुलख
ठाकोर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपंचासरा प्रसादात्. प्रतिलेखक ने प्रतिलेखनवर्ष हेतु १९३ लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१४, १४४२८). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाण; अंति: जस० को नहि
अधूरी रे, पूजा-९. ६८४०३. (-) श्रावकपाक्षिक अतिचार व औपदेशिक श्लोक, संपूर्ण, वि. १९३४, फाल्गुन शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २,
ले.स्थल. सूरत, प्रले. सेमचंद्र; लिख. श्रावि. गुलाबबाई; पठ. श्रावि. रतनबेन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हर्षविजयजी की प्रति पर से लिखे जाने का उल्लेख है., अशुद्ध पाठ., दे., (२६४१४, ११४२७-३०). १.पे. नाम. नवपद पूजा, पृ. १अ-९आ, संपूर्ण.
श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. ९आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदिः येषां न विद्या न तपो; अंति: रूपेण मृगाश्चरंति, श्लोक-१. ६८४०४. (#) बारभावना पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१४, १२४२७-३०).
१२ भावना पद, रा., पद्य, आदि: हेरे जीव गढ मड; अंति: मोरा देवी माताने भाई, भावना-१२. ६८४०५. शत्रुजयतीर्थमाला स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(१)-७, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६४१३, १२४३४-३८).
शत्रुजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतरंग, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: (-); अति: (-), (पू.वि. ढाल-१, गाथा-१५
___ अपूर्ण से ढाल-१०, गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ६८४०६. आठदानविषे कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७४१४, १५४३१-३५).
कथा संग्रह-दान ऊपर, मा.गु., गद्य, आदि: कुणालदेशमां सावत्थी; अंति: (-), (पू.वि. कुमारपाल कथा अपूर्ण तक है.) ६८४०७. साधुवंदणा, संपूर्ण, वि. १९४८, चैत्र कृष्ण, २, गुरुवार, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. नवानगर, पठ. श्रावि. इंदरबाइ, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१३.५, १५४३५). साधुवंदना बडी, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: नमुअनंत चोवीसी; अंति: रमा ए कह्यो अधीकार,
गाथा-१११. ६८४०८. (+) सज्झाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ४, अन्य. श्रावि.समरतबाई, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१३, १४४३८-४२). १. पे. नाम. राजिमतीसती इकवीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: सासननायक सुमरीइं; अंति: चोथमल० पांचम मंगलवार, गाथा-२१. २.पे. नाम. मोरादेवीमाता सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५०, आदि: जंबुदीपे हो भरतक्षेत; अंति: रायचंद० ज्ञान
अभ्यास, गाथा-१६. ३. पे. नाम. सिवपुरनगर सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. शिवपुरनगर सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८२०, आदि: अहो प्रभु सिवपुर नगर; अंति: रायचंद० अरदास
हो, गाथा-१७. ४. पे. नाम. स्तवन चौवीसी, पृ. ३अ-५आ, संपूर्ण. स्तवनचौवीसी, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मरुदेवीनो नंद माहरो; अंति: उदय० संसार सारो रे.
स्तवन-२४. ६८४०९. (+) श्रावकपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९३९, भाद्रपद कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. पं. प्रधानविजय; पठ. श्रावि. चुनी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७७१३, १४४३६).
श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणमि दसणमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
६८४१०. समकित ६७ बोलनी सजाय व नववाड सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५. कुल पे. २, जैवे. (२६४१३.५,
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१४X३९).
१. पे. नाम. सम्यक्त्व सडसठबोल सज्झाय, पृ. १अ - ४अ, संपूर्ण.
सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी आदिः सुकृतवद्धि कादंबिनी, अंति वाचक जस इम बोले रे, ढाल - १२, गाथा-६८.
२. पे. नाम. नववाडी सज्झाय, पृ. ४अ-५आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी अंतिः (-), (पू. वि. दाल-७ तक है.)
',
""
६८४११. (+) ज्ञानपंचमी देववंदन विधि, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६X१४, १७२४-२८).
ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्म, आदि: प्रथम बाजठ उपरि तथा अंतिः (-),
(पू.वि. अवधिज्ञान पूजाविधि अपूर्ण तक है.)
६८४१२, (#) पद व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९०६, आषाढ़ कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ३२-५ (१ से ३, १६ से १७) =२७, कुल पे. ४८, ले. स्थल. मकसूदाबाद, प्रले. मु. राम ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१२, १३-१६X३८-४५).
१. पे. नाम. आतमप्रबोध सज्झाय, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंतिः जिम पामो भव पार रे, गाथा-५ (पू. वि. गाथा ४ से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४-४आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय मायापरिहार, महमद, मा.गु., पद्य, आदि: भूलो ज्ञान भमरा कांई, अंतिः महंमद० लेखो साहिब हाथ, गाथा - ११.
३. पे. नाम. इलापुत्ररी सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण.
इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नामेलापुत्र जाणीयै; अंति: लबधविजै गुण गाय, गाथा- ९. ४. पे. नाम. नेमनाथजीरो स्तवन, पृ. ४आ-५अ संपूर्ण.
मिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदिः समुद्रविजय सुत नेम; अंतिः राजुल आणंद पाया रे, गाथा-१०.
५. पे नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: अरणक मुनिवर चाल्या; अंतिः समयसुंदर० फल कीधोजी, गाथा-८. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ५आ, संपूर्ण.
श्राव. बनारसीदास, पुहिं, पद्य, आदि: करम भरम जगतिमर हरन, अंति: दलन जिन नमत बनरसी, सवैया- १.
"
७. पे. नाम प्रहेलिका संग्रह, पृ. ५आ, संपूर्ण.
प्रहेलिका दोहा, पुहिं., पद्य, आदि लछमण लछी बाहिरा नरलह, अंतिः करे लाकटकारे घोडो, दोहा-७.
८. पे. नाम. मानवदेह सज्झाय, पृ. ६अ- ६आ, संपूर्ण.
मानपरिहार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: मान न कीजै रे मानवी, अंति: मृत्युसुख लेह रे, गाथा-२०. ९. पे. नाम. काकंदीधन्नाजीरी विनती, पृ. ६आ-८अ, संपूर्ण.
काकंदीधन्ना सज्झाय, मु. रूप ऋषि, पुहिं, पद्य, आदि: वाणी सुण जिनराज की अंतिः रूपऋषि० दुरगति निवार,
गाथा - २४.
१०. पे. नाम. नेमनाथजी तवन, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तवन, पं. मनरूपसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सोरीपुरनगर सुहामणो अंति: नितप्रत प्रणमुं पाय, गाथा - १५. ११. पे. नाम कर्मविपाकफल सज्झाय, पृ. ८आ. ९आ, संपूर्ण.
मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देव दाणव तीर्थंकर; अंति: कर्मनु लागै सांधो रे, गाथा-१८.
१२. पे. नाम. ७ व्यसन सज्झाय, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
४६७ मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: पर उपगारी साधु सुगुर; अंति: सीस रंगे जेयरंग कहै, गाथा-९. १३. पे. नाम. मेघकुमार सिज्झाय, पृ. १०अ-११अ, संपूर्ण. मेघकुमार चौढालियो, मु. जादव, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गणधर गुण नीलो; अंति: जादव० रे गुण सुख थाय,
ढाल-४, गाथा-२२. १४. पे. नाम. दानशीलतपभावना सज्झाय, पृ. ११अ-१५अ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पय नमी; अंति:
समृद्धि सुप्रसादो रे, ढाल-४, गाथा-१०१. १५. पे. नाम. गोडीजीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १५अ-१५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणी
ब्रह्मवादिनी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ गाथा-२ अपूर्ण तक है.) । १६. पे. नाम. उपदेशबत्तीसी, पृ. १८अ-१९अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
मु. राज, पुहि., पद्य, आदि: (-); अंति: सदगुरु शीख सुणीजै, गाथा-३२, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) १७. पे. नाम. क्षमाछत्तीसी, पृ. १९अ-२१अ, संपूर्ण. क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदर जीव खिमागुण आदर; अंति: समयसुंदर०संघ जगीस
जी, गाथा-३६. १८. पे. नाम. बुढापा सज्झाय, पृ. २१अ-२२अ, संपूर्ण. सुगणबत्तीसी, ग. रुघपति, मा.गु., पद्य, वि. १८८६, आदि: सुगण बूढापो आवियो लख; अंति: श्रीरुघपत० ससनेह,
गाथा-३२. १९. पे. नाम. शील सज्झाय, पृ. २२अ-२३अ, संपूर्ण.
शीयलव्रत सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: अबला इंद्री जोवतारे; अंति: रे पामे परमानंद, गाथा-२५. २०. पे. नाम. सोलैसुपन सज्झाय, पृ. २३अ-२४आ, संपूर्ण. चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पाडलीपुर नामे नगर; अंति: एह कह्यौ अधिकार,
गाथा-४०. २१. पे. नाम. चेलणासती सज्झाय, पृ. २४आ-२५अ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वादी वलता हुता; अंति: समय० पामसी भवतणो पार, गाथा-७. २२. पे. नाम. पार्श्वनाथजीरी घग्घर नीसाणी, पृ. २५अ-२७अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपतदायक सुरनर; अंति: गुण जिनहरष कहंदा है,
गाथा-२८. २३. पे. नाम. प्रास्ताविक कुंडलिया, पृ. २७अ, संपूर्ण.
प्रास्ताविक कवित्त, क. गिरधर, पुहिं., पद्य, आदि: सांइ घोडन के गए गधन; अंति: सांझ उठ चलियै सांई, दोहा-१. २४. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. २७आ, संपूर्ण..
पुहि., पद्य, आदि: ग्यान घटै नरमूढ की; अंति: धरो नवनिध उपर हाथ, पद-४. २५. पे. नाम. श्रावककरणी सज्झाय, पृ. २७आ-२८अ, संपूर्ण.
मु. नित, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक धर्म करो; अंति: मेतो० पडिमाधारी जी, गाथा-११. २६. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. २८अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: कैसे कैसे अवसरमें; अंति: तेरा वडा भरोसा भारी, गाथा-४. २७. पे. नाम. जयराजसूरि भास, पृ. २८अ-२८आ, संपूर्ण.
क. केसरचंद, मा.गु., पद्य, आदि: कांमत कामगवीय सुगुर; अंति: मन मेरो केसरचंद कवीय, गाथा-५. २८. पे. नाम. आदिजिन होरी, पृ. २८आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
मु.
,जिनचंद्र, पुहिं, पद्य, आदि: होरी खेली नर बहुर अंतिः श्रीजिनचंद० पातक जाय, गाथा-४ (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथा को एक गाथा गिना है. )
२९. पे. नाम. परनिंदात्याग पद, पृ. २८आ - २९अ, संपूर्ण.
मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: किसी की खोटी नही कही, अंति: जिनदास० जिनदरसण चहिये,
,गाथा - ५.
३०. पे. नाम. माणिभद्रवीर आरती, पृ. २९अ, संपूर्ण.
श्राव. श्यामसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: रिमझिम रिमझिम करुं; अंतिः श्यामसुंदर० सिरनामी, गाथा-५. ३१. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. २९अ-२९आ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्म, वि. १८वी, आदि; गिरवारे गुण तुम तणा; अंतिः वाचक जस० आधारो रे,
गाथा-५.
३२. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २९आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि संकट छुडावो म्हारा, अंतिः ताने बेहज रांणो रांण, गाधा-४.
३३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २९आ, संपूर्ण.
मु. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: जय बोलो पास जिनेसर, अंति: जिनचंद० सुरतरु की, गाथा- ७.
३४. पे. नाम औपदेशिक लावणी, पृ. २९-३० अ, संपूर्ण.
1
मु. अखमल, पुहिं, पद्य, आदि जब तन दुःस्ती है अह अंतिः जासे विनती अखमल की गाथा ८. ३५. पे. नाम. इगारैपाटरी भास, पृ. ३० अ-३०आ, संपूर्ण.
;
११ पाट भास- लुकागच्छीय, मु. सुखमल, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमु श्रीजिन पास, अंतिः सुखमल० मिले सुख सासता, गाथा- ७.
३६. पे नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ३० आ, संपूर्ण
मु. राजाराम, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन तुं क्या फिरे अंतिः राजाराम० अरज है मोरी, पद-७.
३७. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय - काया, पृ. ३०-३१अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदिः या काया थिर नाहि मत; अंतिः धर्म निज जाना ही गाथा ५.
३८. पे. नाम. गुरुगुण पद, पृ. ३१अ, संपूर्ण.
पुहिं, पच, आदि: गुरु दीनदयाल मिले; अंतिः बिन ओर नहीं कोणुं, गाथा-४,
३९. पे नाम, औपदेशिक पद, पृ. ३९अ-३१आ, संपूर्ण.
मु. ब्रह्मगुलाल, हिं., पद्य, आदिः ए दिन युं ही जात टी, अंति: ब्रह्मगुलाल० हो हमरे, गाथा ५.
४०. पे नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ३१आ, संपूर्ण.
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आध्यात्मिक पद - कृषिफलगर्भित, मु. चेनविजय, पुहिं., पद्य, आदि: मनवंछित फल खेती रे, अंति: चैनविजे० प्रभु सेती, गाथा-३.
४१. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. ३१ आ. संपूर्ण.
जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: कित गए पंच कृसान, अंति: वनारसी० गए सिंचनहारे, गाथा-४. ४२. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ३१आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: भली छबि देखी सुंदर, अंति: सुख के मंदिर वे, गाथा-४.
"
४३. पे, नाम, अध्यात्म पद, पृ. ३२अ, संपूर्ण
सम्यक्त्व पद, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: जागे सो जिनभक्त कहाव; अंति: रूप० वंदणा हमारी है, गाथा-३.
४४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३२अ, संपूर्ण.
श्राव.
आव. हठु, पुहिं., पद्य, आदिः एते पर एता क्या करणा, अंति: हठु एह सब फुरमावा, गाथा-४.
४५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ३२अ-३२आ, संपूर्ण.
मु. नयनसुख, पुहिं, पद्म, आदि: मेटो विधा रे हमारी अंतिः नैनसुख सरन तुमारी, गाथा-४, ४६. पे. नाम. गुरुगुण पद, पृ. ३२आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
४६९ पुहिं., पद्य, आदि: वे गुरु ही भ्रमरोग; अंति: वैदसिरोमण सो जग गावै, गाथा-३२. ४७. पे. नाम. गुरुगुण पद, पृ. ३२आ, संपूर्ण.
मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: अब मोय साध मिलियो हो; अंति: नवल० रस घुलिया हो, गाथा-४. ४८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
__ पुहिं., पद्य, आदि: चेत चेतन प्राणी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ६८४१३. (+#) संदेहपद प्रश्नोत्तरशत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२, १७४३६). सिद्धांत प्रश्नोत्तरी, वा. मेरुसुंदर गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, वि. १५३५, आदि: श्रीसिद्धांतनइं अनुस; अंति: जे वर्जइ ते
भाग्यवंत, प्रश्न-१०१. ६८४१४. (+) श्रीपाल चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५३-१(१)=५२, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. १२७५, जैदे., (२८x१२, ११४३३). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-),
(पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१, गाथा-१० अपूर्ण से है व ढाल-३ तक लिखा है.) ६८४१५. (#) सिंघलकुंवर चोपई व श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १८७६, मार्गशीर्ष कृष्ण, २, गुरुवार, मध्यम, पृ. १०३-५८(१ से
५८)=४५, कुल पे. २, ले.स्थल. पाडलीया, प्रले.मु. करमचंद ऋषि (गुरु मु. जीवणदास ऋषि, नागोरीगच्छ); गुपि.मु. जीवणदास ऋषि (गुरु मु. सांवलदास, नागोरीगच्छ); पठ. मु. करमचंदजी ऋषि (गुरु मु. दुर्गादासजी ऋषि); गुपि.मु. दुर्गादासजी ऋषि (गुरु मु. सुखानंदजी ऋषि); मु. सुखानंदजी ऋषि (गुरु मु. अभैराज ऋषि); मु. अभैराज ऋषि (गुरु मु. अमरसिंह ऋषि); मु. अमरसिंह ऋषि, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १७-२०४४३-४६). १. पे. नाम. प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, पृ. ५९अ-६५अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: प्रणमु सिदगुरु पाय; अंति: समयसु० अधिक परमोद, ढाल-११,
गाथा-२२०. २. पे. नाम. श्रीपाल रास, पृ. ६५अ-१०३अ, संपूर्ण. उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवैल कवियण भणी; अंति: ज्ञान
विशालाजी, खंड-४, गाथा-१२३६, ग्रं. १८००, (वि. ढाल-३९) । ६८४१६. (+) छठा कर्मग्रथनां भांगा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६, ले.स्थल. सुरत बंदर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८.५४१३, १४-१७४२२).
सप्ततिका कर्मग्रंथ-यंत्रसंग्रह, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). ६८४१७. (-) पांच बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०, ले.स्थल. चुडा, प्रले. कृष्णराम वीरजी भट्ट, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. कुल ग्रं. ३५०, जैदे., (२७.५४१२.५,१०४३०).
देवनारक के ५ बोल १६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पेलो नर्कनो द्वार; अंति: भोगवतां थका विचरे छे. ६८४१८. (+) तृतीयकर्मग्रंथ कोष्टक, अपूर्ण, वि. १८३८, कार्तिक शुक्ल, १२, रविवार, मध्यम, पृ. १७-१(१)=१६, प्रले. ग. मुक्तिविजय; मु. प्रेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२९.५४१३, ७-१७४२३-६३).
बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम नरक वर्णन अपूर्ण से है.) ६८४१९. २४ दंडकविचार, संपूर्ण, वि. १६९९, कार्तिक शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. १४, जैदे., (२९x१२, १७४६८-७३).
२४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: दंडक १ लेसा २ ठिइ ३; अति: विषइ अतिउद्यम करियइ. ६८४२०. (+#) पांच बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३, प्रले. मु. मुगतिचंद्र ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१२.५, १४४२८-३२).
देवनारक के५ बोल १६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पेहलो नरकनो द्वार; अंति: भोगवतां थका विचरे छे.
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४७०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६८४२१. (+#) कुमतिबोध स्तवन सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८८५, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. २०-५(१ से ५)=१५,
ले.स्थल. अहमदबाद, प्रले. मु. हेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. नागोरीशाला, झवेरीवाड में प्रत लिखे जाने का उल्लेख है. श्रीशंखेश्वर पार्श्वनाथ प्रसादे., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१२२८) जिहां द्रुहतारो चंद रवी, जैदे., (२८x१२, ४-१२४३२-४३). पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, म. धर्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: धर्म साथे मन बालीइं, ढाल-४, गाथा-१२८,
(पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., ढाल-१, गाथा-९ अपूर्ण से है.) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा
___ अपूर्ण., गाथा-९ अपूर्ण से है व अंतिम दो गाथाओं का टबार्थ नहीं लिखा है.) ६८४२२. (+) दंडक त्रीस द्वार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८x१२.५, १२४४०-४४).
२४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजो; अंति: एत्रीसमुंद्वार. ६८४२३. दंडक त्रीस द्वार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, जैदे., (२८x१२.५, १२४४०-४४).
२४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजो; अंति: एत्रीसमुंद्वार. ६८४२४. (+) चोमासी देववंदन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२-२(१६,२०)=२०, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४११.५, ९४२५-२९). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विमलकेवलज्ञान कमला; अंति: (-), (पू.वि. बीच व अंत
के पत्र नहीं हैं., सम्मेतशिखरजी स्तवन, गाथा-२ तक है व पार्श्वजिन स्तवन, गाथा-६ अपूर्ण से महावीरजिन स्तवन,
गाथा-१ अपूर्ण तक नहीं है.) ६८४२५. भाष्यत्रय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७७, कार्तिक कृष्ण, १०, गुरुवार, मध्यम, पृ. २१, ले.स्थल. बीजापुर,
प्रले. पं. निधानविजय गणि; पठ. मु. गुलाबचंद (गुरु पं. निधानविजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. चिंतामणि पार्श्वनाथजी प्रसादात्., जैदे., (२८x१२, ५४३४). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३,
गाथा-१४८.
भाष्यत्रय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वांदीने वांदवा योग्य; अंति: एहवू स्थानक पामइ. ६८४२६. (+#) चौबीसदंडक यंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८-१(१)=१७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७.५४११, ८-११४३०-३६).
२४ दंडक यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. आरंभ व अंत के कुछ पाठांश नहीं हैं.) ६८४२७. (+#) हंसराजवच्छराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८-४(१,८ से १०)=१४, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१२, १८४३३-३८). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-१, ढाल-३,
गाथा-११ अपूर्ण से खंड-३, ढाल-८, गाथा८७ अपूर्ण तक है व बीच के खंड-२, ढाल-४ गाथा-३ अपूर्ण से ढाल-९,
गाथा-३५ अपूर्ण तक नहीं है.) ६८४२८. (+) आनंदघनचोवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२, ८४३३).
स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति:
अनंत सुखनो सदा रे, स्तवन-२४. ६८४२९. माधवानल चौपाई, संपूर्ण, वि. १८११, फाल्गुन कृष्ण, १, सोमवार, मध्यम, पृ. १४, ले.स्थल. देवास, प्रले. मु. खिमसागर
(गुरु पंन्या. धनसागर); गुपि. पंन्या. धनसागर (गुरु ग. विजयसागर); ग. विजयसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x११.५, १६x४७-५०). माधवानल चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६१६, आदि: देवि सरसति देवि सरसत; अंति: तिहां मिलइ
नवे निध, गाथा-५२०. ६८४३०.(-) सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. ६, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२७४१२, १०४३४-३८).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
४७१ १.पे. नाम. संवेगी सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. कुगुरु सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुध संवेगी कीरिआधारी; अंति: करी सुधमारग झालो,
गाथा-२७. २. पे. नाम. सेझानंदी सज्झाय, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. सहजानंदी सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: सेहजानंदी रे आतीमा; अंति: भवजल तरीया अनेक
रे, गाथा-११. ३. पे. नाम. अढारनातरानी सज्झाय, पृ. ३आ-६आ, संपूर्ण. १८ नातरा सज्झाय, मु. हेतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पेहला ने समरु रे पास; अंति: ऋद्धिविजय गुण गाय रे, ढाल-३,
गाथा-३५. ४. पे. नाम. सोलस्वप्न सज्झाय, पृ. ६आ-९आ, संपूर्ण. १६ स्वप्न सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पाडलीपुर नयरी चंद्र; अंति: ज्ञानविमल० गुणनो गेह,
गाथा-३६. ५. पे. नाम. पंचमआरा सज्झाय, पृ. ९आ-१०आ, संपूर्ण.
मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहे रे गौतम शुणो; अति: भाख्या वयण रसाल ए, गाथा-१९. ६. पे. नाम. इलापुत्र सज्झाय, पृ. १०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
__उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नांमिलापुत्र जाणीए; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण मात्र है.) ६८४३१. (+#) सिद्धांतविचार रास, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ११-१(१)=१०, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष
पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२९.५४१२.५, १२-१५४३९-५३).
सिद्धांतविचार रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२५ अपूर्ण से गाथा-३२६ अपूर्ण तक है.) ६८४३२. २४ दंडक ३० द्वार विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, जैदे., (२८.५४१३, १२४४२-४५).
२४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजो; अति: एत्रीसमुंद्वार. ६८४३३. (#) भवनद्वार विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२९x१२, १९४३४-३९).
नारकीभवनद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नरक ७ ना भवन सासता; अंति: सगुणो करी संयुक्त छे. ६८४३४. (+#) श्रावकपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १८६३, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२८x१२.५, १४४३४-३७).
श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणमिदंसणंमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम. ६८४३५. (+#) गुणठाणा कोष्ठक, अपूर्ण, वि. १८३८, आश्विन कृष्ण, ९, गुरुवार, मध्यम, पृ. ९-२(१,३)=७, ले.स्थल. बुहनिपुर, प्र.वि. * अक्षरपंक्ति अनियमित., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२९x१३, १२४१२-२५). ६२ मार्गणास्थाने १४ गुणस्थानके १२२ उत्तरप्रकृति का उदय यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ
व बीच के किंचित् पाठ अनुपलब्ध हैं.) ६८४३६. (+#) प्रश्नोत्तर बोल, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१३, ८-११४३३-३६).
प्रश्नोत्तर बोल, रा., गद्य, आदि: प्रथम गुणठाणारा धणी; अंति: (-), (पू.वि. बोल-१२२ अपूर्ण तक है.) ६८४३७. (+) गोडीपार्श्वनाथ चोढालीयो, संपूर्ण, वि. १८९८, फाल्गुन शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८x१२, १४४२९-३५). पार्श्वजिन ढालिया-गोडीजी, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सानिधकारी भारती; अंति: विरविजये सुखकरु,
ढाल-१७. ६८४३८. नेमिनाथ नवभवरास भास, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १०, जैदे., (२९x१२, १७४४९-५५).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
नेमिजिन ९ भव रास, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: नेमिश्वर जिन तणा; अंति: माल० दुख टाल ए, गाथा- ३३०. ६८४३९. दानसुपात्रविषये धन्ना चउपई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३-४ (८ से ११) = ९, प्रले. मु. हेमा ऋषि, पठ. सा. नयण आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२८४१२, १२-१५४३३-४०).
अन्ना रास, वा. मतिशेखर, मा.गु, पच, वि. १५१४, आदि पहिलडं पणमी पयकमल अंतिः मतिशेखर० नवइ निधान, गाथा- ३२८, (पू.वि. गाथा - १७५ अपूर्ण से २९३ अपूर्ण तक नहीं है.)
,
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६८४४० (+०) प्रदेसीराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ११-४(७ से १०) =७. पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित अक्षर फीके पड गये हैं, जैवे. (२९x१२.५, १८४४८-५२).
"
प्रदेशीराजा रास *, मा.गु., पद्य, आदि: वंदण करीने इम कहई हू; अंति: (-), (पू.वि. ढाल १० की गाथा-१३ अपूर्ण से ढाल-१७ तक व ढाल - १९ की गाथा - ८ अपूर्ण से नहीं है.)
६८४४१, चौमासीपर्व देववंदन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२-७ (१ से ७) = ५, पू. वि. बीच के पत्र हैं, जै, (२८x१२,
११X३०).
चौमासपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. शांतिनाथ नमस्कार गाथा-१ अपूर्ण से पार्श्वनाथ स्तवन गाथा - १ अपूर्ण तक है.)
६८४४२. (#) धनरथराजा चित्रहारीरानी प्रतिबोधक कथा, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २८-५ (१ से ४,२७) = २३, प्र. वि. प्रत अन्त में बाद में किसी विद्वान द्वारा यात्रा फल लिखा गया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६x११, १५X४०-४५). धनरथराजाचित्रहारीरानी प्रतिबोधक कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: पामी मुक्ति जासिहं, (पू.वि. सुंदरी कथा अपूर्ण से है व दान माहात्म्य वर्णन प्रसंग का कुछ अंश नहीं है.)
६८४४३. () रास व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १८१६ श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ४. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैसे.. (२७४१२, ११४३४).
१. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र छंद, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण.
उपा. कुशललाभ, मा.गु, पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछित श्रीजिनशासन अंतिः कुसललाभ० वंछित लहड़ गाथा १८. २. पे. नाम. गणपति अष्टक, पृ. २अ २आ, संपूर्ण, वि. १८१६, आषाढ़ कृष्ण, ८.
गणेशाष्टक, शंकराचार्य, सं., पद्य, आदिः ॐ नमोगंगजकर्ण वह, अंति: रूपं गणेशं नमस्तै, श्लोक ८.
३. पे. नाम. अकल रास, पृ. २आ-५अ संपूर्ण वि. १८१६, आषाढ कृष्ण, ११ प्रले. पंन्या. हीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. बुद्धिराम आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु, पद्म, आदि: प्रणमुं देवी अंबाई: अंतिः सालिभ० टले कलेसितो, गाथा ६३. ४. पे. नाम. ३४ अतिशय छंद, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुमति दायक दुरित, अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ६८४४४. शत्रुंजयतीर्थ रास, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२८x१२, १२X३०-३५).
शत्रुंजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी, अंति: (-). (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है, ढाल ६ गाथा १९ अपूर्ण तक है.)
६८४४५. (+) शत्रुंजयतीर्थ रास, पूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ६, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैवे.,
(२८x१२.५, ११x२७-३९).
शत्रुंजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी, अंति: (-), (पू.वि. ढाल ६ गाथा २० अपूर्ण तक है.)
६८४४६. शैत्रुंजय एक सौ आठ नाम, संपूर्ण, वि. १९२१ कार्तिक शुक्ल, ३. बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, दे. (२७.५x१२, १३४३३-३८). शत्रुंजयतीर्थ १०८ खमासमण दूहा, मु. कल्याणसागरसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धाचल समरो सदा, अंतिः पाम्या कहिक पामस्ये, गाथा- १०८.
६८४४७. मौनएकादशी देववंदन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८-३ (१ से ३) =५, जैदे., (२८.५X१२, ११४३३). मौनएकादशीपर्व देववंदन विधि, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: बेसी ११ नोकार गणी, (पू.वि. मल्लिजिन नमस्कार- १ गाथा- ३ से है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६ ६८४४८. (+) पंचमी स्तवन व झाझरियाऋषि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८९०, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २,
ले.स्थल. वल्लभीनगर, प्रले. श्राव. चाणोद; पठ. मु. फतेचंद; मु. अमरचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीमत् मोहनजी प्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२८x१२, ११४३७-४१). १.पे. नाम. पंचमी स्तवन, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमीय पासजिनेसर; अंति: गुणविजय रंगे भण्यो, ढाल-६,
गाथा-४९. २. पे. नाम. झाझरिया ऋषि सज्झाय, पृ. ३आ-६आ, संपूर्ण. झांझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: सरसति चरणे शीश नमावी; अंति:
भाव०सांभलतां आणंद के, ढाल-४, गाथा-४३. ६८४४९. श@जय रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-१(१)=६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२८x१२, १२४३२-३७).
शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ गाथा-१७ अपूर्ण
से ढाल-१२ गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) ६८४५०. मार्गणा कोष्टक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२९x१३, १०४३०).
६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: देवगति मनुष्यगति; अंति: (-), (पू.वि. मार्गणा-४३ तक है.) ६८४५१. गोडीपार्श्वजिन स्तवनादिसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २३, जैदे., (२८x१२, १७४५०-५५). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: वाल्हेसर मुझ विनती; अंति: इम जपे जिनराज हो, गाथा-७. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सूरत मूरत मोहनगारी; अंति: जिनहर्ष धरै मन ध्यान, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. जिनचंद्र, पुहि., पद्य, वि. १७२२, आदि: अमल कमल जिम धवल; अंति: मोरी जा चढी परमाण, गाथा-९. ४. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुझ हियडुं हेजा लुउं; अंति: जिनराज० मूकोजी वीसार, गाथा-७. ५. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बेकरजोडी वीनवुरे; अंति: समविषमी जिनराज रे, गाथा-५. ६. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
मु. सुविधिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाभिनंदन जगवंदन देव; अंति: सुविधविजै० की बगसीस, गाथा-७. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजिन; अंति: जिनचंद० रिपु जीपतौ,
गाथा-५. ८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति-चिंतामणी, मा.गु., पद्य, आदि: अचिंत चिंतामनि पारस; अंति: स्वामीजी आपो सेव, गाथा-७. ९. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. ___ मु. नेत, मा.गु., पद्य, आदि: वींद अधिक प्रभु; अंति: नेत० रह्या मनमान, गाथा-६. १०. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण.
महावीरजिन पद, म. कांतिविजय, रा., पद्य, आदि: महावीर थारी वाणी; अंति: गावे इम कवि कांति रे, गाथा-५. ११. पे. नाम. आत्मप्रतिबुद्धि स्वाध्याय, पृ. २आ, संपूर्ण. कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देव दाणव तीर्थंकर; अंति: नमो नमो कर्म राजा रे,
गाथा-१८. १२. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मा.गु., पद्य, आदि: विषीया लाल वरसतणैरे; अंति: भूलइ महा अथिर संसार, गाथा-१३. १३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणामंडन, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: काइ रे जीव तुं मन; अंति: जिनहरष० रंगरली,
गाथा-९. १४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. ___मु. लाल, मा.गु., पद्य, आदि: तेवीसमो जिन ताहरोजी; अंति: साहिबा एम पयंपै लाल, गाथा-७. १५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: गुण गिरुऔगोडी धणी; अंति: जिनहरख० प्राण आधार,
गाथा-७. १६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, म. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंखेसर पासजी तुझ; अंति: नित चाहे दीदार रे,
गाथा-८. १७. पे. नाम. धन्नाकाकंदी सज्झाय, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. धन्नाअणगार सज्झाय, आ. कल्याणसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: काकंदीवासी सकज भद्रा; अंति: कल्याणसुरंगैरे,
ढाल-२, गाथा-१५. १८. पे. नाम. महावीरजिन विनती, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. महावीरजिन विनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी वीनती; अंति:
थुण्यो त्रिभुवनतिलो, गाथा-१९. १९. पे. नाम. शीतलनाथ स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण.
शीतलजिन स्तवन, मु. श्रीसार, पुहिं., पद्य, आदि: सीतल जिणवरराया तुम; अंति: श्रीसार० सुखकारी हो, गाथा-१८. २०. पे. नाम. भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राजतणा अति लोभीया; अंति: समयसुंदर० पाया रे, गाथा-७. २१.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ६अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. राजसमुद्र, रा., पद्य, आदि: सुणि बहिनी प्रीउडो; अंति: नारि विण सोभागीरे,
गाथा-७. २२. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण.
आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वंशइख्यागइं राजीओ; अंति: पासचंद० सफल करेहो जी, गाथा-७. २३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.
मनुष्यजन्म सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुरतरूनी परोदोहिलोज; अंति: श्रीविजयदेवसूरकें, गाथा-१५.
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१
ॐकार गुरुमहिमा स्तुति, सं., गा. ८, पद्य, मूपू., (ॐकार बिंदुसंयुक्तं), ६६९२२-२(-) ४ ध्यान थोकडो, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (से किं तं झाणे चउविह), ६८२०७-१(+), ६८२८३-१ ५ तीर्थजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुजयमुख्य), ६३२४७-२८(+#), ६३००६-२, ६८१२३-१२, ६३०४६-१९(#) ५ परमेष्ठि १०८ गुण वर्णन, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (बारस गुण अरिहंता), ६५१९३-१३(+#) ५ परमेष्ठि स्तोत्र, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (अहँतस्त्रिजगद्), ६३१५३-११(+#), ६४८३०-६(+) ५ समकित स्वरूप विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलो उपशम समकित), ६३६२८-२ ६ काय बोल, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (पेहले बोले छ कायना), ६४२२७(+) ६ संघयण नाम, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (वज्रऋषभनाराच१ ऋषभ), ६८२५६-३७(+), ६३५२१-५ ६ संस्थान नाम, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (समचौरस १ न्यग्रोध २), ६८२५६-३९(+), ६३५२१-६ ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु.,सं., ढा. ८, श्लो. ८, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (गंगा मागध क्षीरनिधि), ६३४०२-७(+),
६५३२५-३(+-), ६७८७२-२ ८ प्रकारी पूजाकथा संग्रह, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (वरगंधधूयचोक्खक्खएहिं), ६२९७३(#$) ८ प्रकारी पूजा विधि, मु. ज्ञानसागर-शिष्य, सं.,मा.गु., वि. १७४३, गद्य, मूपू., (प्रथम हुति सगली), ६७९६९(+$) ८ प्रातिहार्य श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (असोखवृक्ष्यसूरपुष्फ), ६७०३१-३ १२भवन विचार, सं., श्लो. १२, पद्य, वै., (लग्नस्थितो दिनकरः), ६३९३१-२(+#) १२ व्रत पूजाविधि, पं. वीरविजय, मा.गु.,सं., ढा. १३, गा. १२४, वि. १८८७, पद्य, म्पू., (उच्चैर्गुणैर्यस्य), ६८२१९, ६४१४४-१(#),
६७७००-३(-) १२ व्रत प्रायश्चित, प्रा.,मा.गु., प+ग., श्वे., (--), ६५१९८(-$) १३ काठिया गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (आलस मोह अवन्ना थंभा), ६३०४६-५(2) १४ गुणठाणा नाम, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (मिच्छे सासण मीसे), ६३५२१-२, ६३९९९-४(#) १४ जीवस्थान-कर्मविशुद्धिमार्गणा अपेक्षाए, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवठाणा नाम १ लक्षण), ६३५६२(+) १४ पूर्वनाम, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (१श्रीउत्पादपूर्व), ६५२०४-४४(+) १४ राजलोक पूजा, मु. सुमति मुनि, मा.गु.,सं., वि. १९५३, प+ग., मूपू., (पय प्रणमी जिनराजना), ६८०१४(+) १६ शृंगार नाम, सं., श्लो. १, पद्य, (आदौ मज्जनचारुचीरतिलक), ६४०५४-३(+) १६ सतीनाम, मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (ब्राह्मी १ चंदनबाला), ६३२६०-२(+), ६५२०९-६ १६ सती स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (ब्राह्मी चंदनबालिका), ६८२३०-६(-) १८ हजार शीलांगरथ, प्रा., गा. १८, पद्य, मूपू., (जे नो करंति मणसा), ६३११५(+) २० स्थानकतप उच्चारणविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रथम इरियावहि पडिकम), ६८१३१-१४(+), ६८०२१-७ २० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (१ नमो अरिहंताणं २०००), ६८२५६-१८३(+), ६८०२१-११, ६७५६०(६) २० स्थानक नाम, प्रा., गद्य, मूपू., (अरिहंत १ सिद्धा २), ६८२५६-१८४(+) २१ प्रकारी पूजा, ग. शिवचंद्र, मा.गु.,सं., वि. १८७८, पद्य, मूपू., (मंगल हरिचंदन रूचिर), ६८२७५(+) २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., गा. ६६, पद्य, मूपू., (चवण विमाणा नयरी जणया), ६३११९(+), ६३३१४(+#$),
६४६३९(+) (२) २१ स्थान प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (चोवीस तीर्थंकरना २१), ६३११९(+), ६३३१४(+#$), ६४६३९(+) २२ परिषह नाम, प्रा., गद्य, मूपू., (खुहा पिवासा सीत उण्ह), प्रतहीन. (२) २२ परिषह नाम-विवेचन, मा.गु., गद्य, मूपू., (खुहा क्षुधा परीसइ), ६५१८२-१(+)
परिशिष्ट परिचय हेतु देखें खंड ७, पृष्ठ ४५४
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४७६ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१
२४ क्षेत्रपाल नाम, सं., प+ग., श्वे., (वंदेहं सन्मतिं देवं), ६५२५७-३(#) २४ जिन १२० कल्याणक कोष्टक, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (कार्तिकसुदि १ सुविधि), ६७४४३-२(+#), ६८२५६-१८१(+) २४ जिन यक्षिणी नाम, सं., गद्य, मूपू., (चक्रेश्वरी अजिता), ६५२५७-२(2) २४ जिन स्तव-चतुःषष्टियंत्रगर्भित, मु. जयतिलकसूरि-शिष्य, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (आदौ नेमिजिनं नौमि), ६५९५८-४(#) २४ जिन स्तुति, मु. क्षमाकल्याण, सं., स्तु. २४, श्लो. ४९, पद्य, मूपू., (श्रीमतं परमानंद), ६८२३९-२(+) २४ जिन स्तुति, अप., गा. २, पद्य, मूपू., (भरहेसरकारिय देव हरे), ६३२४७-२२(+#), ६७०६७-३(+), ६३००६-२३, ६८१२३-२२ २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु.सुखनिधान, सं., श्लो. ८, पद्य, म्पू., (आदौ नेमिजिनं नौमि), ६३१५३-४(+#), ६७५७७-३(+),
६८२५६-१७८(+) २४ दंडक स्तुति, आ. जिनेश्वरसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (रुचितरुचिमहामणि), ६३२४७-१५(+#), ६४१५१-१९(+), ६३००६-१३ ३६ बोल संग्रह, प्रा.,मा.गु., गा. ३६, गद्य, मूपू., (एगविहे असंयमे एगे), ६८२८१(६) ४५ आगम गणगुं, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रथम श्रीनंदीसूत्र), ६८३४६ ६४ योगिनी नाम, सं., प+ग., म्पू., वै., (दिव्ययोगिनी सिद्धमहा), ६५२५७-४(#) ६४ योगिनी स्तोत्र, सं., श्लो. ११, पद्य, वै., (ॐ दिव्ययोगी महायोगी), ६५५७२-२ ७२ कला नाम-पुरुष, सं., श्लो. ३, पद्य, श्वे., (लिखित१ पठित२ संख्या३), ६७८६३-१ १२० कल्याणक विचार, प्रा.,सं., गद्य, श्वे., (एगो वासो१ दु आविलाइ), ६८२५६-१८५(+) १७० तीर्थंकर नाम, सं., गद्य, मूपू., (श्रीजयदेवसर्वज्ञाय), ६५२६५-२ अंतकृदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. ९२, ग्रं. ८९९, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं० चंपा०), ६३०६५(+), ६३०७४(+),
६३०८८(+), ६३३३८(+#), ६४६०१(+), ६३०१४, ६३२०६ (२) अंतकृद्दशांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., वर्ग.८, वि. १२वी, गद्य, मूपू., (अथांतकृतदशासु किमपि), ६३०६५(+),
६३०८८(+), ६३१०७(+#), ६३३३८(+#), ६३०७८, ६३१४१ (२) अंतकृद्दशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अंतगड शब्दस्य कः), ६४६०१(+), ६३२०६, ६३०१४(६) अंबामाता स्तुति, सं., श्लो. २, पद्य, वै., (माया कुंडलिनी क्रिया), ६६९२२-५(२) अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., ग्रं. ७०, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य प्रभु), ६५९२२-१(+) अक्षयतृतीया व्याख्यान, रा.,सं., गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य प्रभु पार), ६८१३५-१२(+), ६८२१४-१९(+$) अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., गा. ४०, पद्य, मूपू., (अजियं जियसव्वभयं संत), ६२९४७-५(+#), ६५९५७(+),
६७६९०(+), ६७९२३(+), ६७७६७-५(६), ६७५९२(-) (२) अजितशांति स्तवन, संबद्ध, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., गा. ३२, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (मंगल कमलाकंद ए सुख),
६३९५६-१७(+#$), ६४१५१-२५(+), ६७९१३-३(+#$), ६८२५६-८७(+) । अतीतअनागतवर्तमान २४ जिन नाम, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (अथ जंबूद्वीपे दक्षिण), ६५१९३-१७(+#) अध्यात्मोपनिषद्, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., अधि. ४, श्लो. २०९, पद्य, मूपू., (ऐंद्रवृंदनतं नत्वा), ६३३२६(+#) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. ३३, ग्रं. १९२, प+ग., मूपू., (तेणं कालेणं० नवमस्स), ६२९८९(+),
६३१३३(+), ६३१४६(+), ६७६२८(+#) । (२) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते काल चउथा आराने), ६७६२८(+#) अनुयोग विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, म्पू., (मुहपत्ती पडिलेही), ६८३३३(+) अनेकार्थनाममाला, जै.क. धनंजय, सं., श्लो. ४६, पद्य, दि., (गंभीर रुचिरं चित्र), ६४०३८-२(+$) अबयदीशुकनावली, सं., प्रक. ४, गद्य, मूपू., (संसारपासनाशार्थं), प्रतहीन. (२) अबयदीशुकनावली-अनुवाद, पुहि., गद्य, मूपू., (--), ६५१९७-१(६) अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., कां. ६, ग्रं. १४५२, वि. १३वी, पद्य, मूपू., (प्रणिपत्यार्हतः),
६३०७३(+$), ६३९३०(+#$), ६३९३३(+#$), ६३९३७(+#$), ६३९४३(+#$), ६४०४५(+$), ६४८६७(+$), ६५०५०+), ६६९७०(+६), ६७६१७(+#$), ६७६१८(+$), ६३९४०($)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६
४७७
(२) अनेकार्थ संग्रह, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., अ. ६+१, श्लो. १९३१ वि. १२वी, पद्य, मूपू. ( ध्यात्वार्हतः कृते), ६३२१६(१) ६४०४०(5)
(३) अनेकार्थ संग्रह-कैरवाकरकौमुदी टीका, आ. महेंद्रसूरि, सं., ग्रं. १४०००, गद्य, मूपू., (परमात्मानमानम्य निज), ६३२१६(#) (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला-शिलोंछ, संबद्ध, आ. जिनदेवसूरि, सं. कां. ६, श्लो. १३९, वि. १४३३, पद्य, मूपू (अहं बीजं नमस्कृत्य), प्रतहीन.
"
יי
(३) अभिधानचिंतामणि नाममालाशिलोंछ-वृत्ति, वा. वल्लभ वाचक, सं., वि. १६६७, गद्य, मूपू., (श्रीमदर्हतमानम्य), ६३९४०($) (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला - शेष नाममाला, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. २०४, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (प्रणिपत्यार्हतः), ६३९६९(+)
3
अमरचंद्र कथा- भावनाविषये, सं., गद्य, मृपू. (अत्रैव भरतक्षेत्रे), ६३०४७-७१)
अरिहंत १२ गुण श्लोक, मा.गु., सं., श्लो. २, पद्य, मूपू., (अशोकवृक्ष १ सुर), ६७०३१-२
अर्हन्नामसहस्र समुच्चय, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. १०, वि. १२वी - १३वी, पद्य, मूपू., (अर्हन्नामापि कर्ण),
६७६६०-१(+), ६५९४२, ६६७१५ ६५४४३
अवर्गादि वर्णज्ञान श्लोक, सं., श्लो. २, पद्य, वै., (अवर्गो गरुडो ज्ञेयो), ६४०२७-२(+), ६७२०१-३ (+#) (२) अवर्गादि वर्ण ज्ञान श्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, वै., (आ इ उ ऋ नृ एहवो गरुड), ६४०२७-२(+) अशोकदत्त कथा-वंचनाविषये, सं., गद्य, वे (दक्षिणमथुरायां अशोक) ६३०४७-१(७)
"
',
अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., वि. १८६०, गद्य, मूपू., (शांतीशं शांतिकर्त्ता), ६३०५१-२ (+), ६३४७७(+#) अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, मा.गु. सं., गद्य, म्पू, (शांतीशं शांतिकर्तारं ) ६८१३५-२(+), ६८२२२(१), ६८१६४(४), ६८३५८(डा
""
अष्टाह्निका व्याख्यान, मु. शांतिसागरसूरि शिष्य, सं., हिं., गद्य, मूपू., (श्रीमद्वीरं जिन ), ६८००६ (+$) अष्टोत्तरी स्नानविधि, मा.गु. सं., गद्य, मूपू., (ते मांहिली शांतिकविध), ६४४३८-१०+), ६३१४२-१ असज्झाय विचार, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (महिया जाव पडंति), ६३१५३-१७(+#), ६३६३१-७(+) असनपाणादि कालमान विचार, प्रा., मा.गु., गा. ६, प+ग. वे. (पकवानीर सुखडी च्यार), ६३६३१-५ (+) आगमनामादिविचार संग्रह मा.गु. प्रा. सं., पद्य, मूपू. (सूत्र ८४ नां नाम), ६५२०४-११(०)
आगमादि में पाठांतर के कारण उत्पन्न शंकासमाधान विषयक चर्चा, प्रा., मा.गु., प+ग., मूपू., (श्रीजिनागम बोहित्थ), ६४४४६१) ६४४७०+)
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आगमिक गाथा संग्रह, प्रा. पद्य, मूपू (जे भिक्खू वा भिखूणी), ६३११०-२ (४०), ६८१६७-४(क)
७
(२) आगमिक गाथा संग्रह - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नारकी वैक्रीय शरीर), ६३११०-२(+#) आगमिकपाठ संग्रह, प्रा. सं., गद्य, म्पू, (कप्पइ निगंधाण वा), ६३३२० (+)
आचारप्रदीप, आ. रत्नशेखरसूरि सं., प्रका. ५, ग्रं. ४०६५, वि. १५१६, गद्य, मूपू. (श्रीवर्द्धमानमनुपमवि), ६३०५० (MS)
आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. अध्य. २५ नं. २६४४, प+ग, भूपू (सुयं मे आउसं० इहमेगे), ६३०३२ (०९), ६३१५५ (+९),
"
""
६३१५६(+), ६३१६४+०) ६३१९२(+), ६४०३५-१० (+६), ६७६०२ (+४), ६३०३४, ६३०१२ (०४)
..
(२) आचारांगसूत्र-प्रदीपिका टीका, गच्छा. जिनहंससूरि, सं. ग्रं. ९५०० वि. १५७३, गद्य, म्पू. (शासनाधीश्वरं नत्वा), ६३१९२(+) (२) आचारांगसूत्र-विषमपद पर्याय टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (जयतीति स्कंदकं छंदः), ६४०३५-१०(+$)
(२) आचारांगसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, (श्रीवीतरागने नमस्कार), ६३१५५ (+३), ६३१५६)
1
(२) आचारांगसूत्र-द्वितीयश्रुतस्कंध - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते चारित्रीओ मुलगुण), ६३२३४(+#)
יי
-
(२) आचारांगसूत्र - हिस्सा श्रुतस्कंध २ आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. १६, पण मूपू. से भिक्खु वा भिक्खु), ६३२३४(+) आचारोपदेश, उपा. चारित्रसुंदर, सं. वर्ग ६, श्लो. २४६ वि. १५वी, पद्य, मूपू (चिदानंदस्वरूपाय), ६३२५४-२(*)
"
(२) आचारोपदेश-टबार्थ, ग. राजकुशल, मा.गु., वि. १७५२, गद्य, म्पू., (ज्ञान अने आनंद तेह ज), ६३२५४-२ (०) आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. ७१, वि. ११वी, प+ग, मूपू., (देसिक्कदेसविरओ), ६२९४६-१(+#), ६३०६२-२(+) आत्मप्रबोध, आ. जिनलाभसूरि, सं., प्रका. ४, श्लो. १८१, वि. १८३३, प+ग., मूपू., (अनंतविज्ञानविशुद्ध), ६३२१३(+#) (२) आत्मप्रबोध - बीजक, सं., गद्य, भूपू., (तत्राद्य प्रकाशे यथा), ६३२१३(+)
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ आत्मावबोध कुलक, आ. जयशेखरसूरि *, प्रा., गा. ४३, पद्य, मूपू., (धम्मप्पहारमणिज्जे), ६३२७३(+) (२) आत्मावबोध कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्मनी प्रभा कांति), ६३२७३(+)
आदिजिन महिम्न स्तोत्र, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., श्लो. ३८, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (महिम्नः पारं ते परम), ६४४३८-१४(+) आदिजिन स्तवन- समतामुखलतागुणगर्भित, वा. सकलचंद्र, प्रा., मा.गु, गा. ३१, पद्य, भूपू (विबुहहियामयदिडि), ६३५७४- २(क) आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (ऋषभनाथ भनाथनिभानने), ६३२४७-२६(+#), ६३००६-१४, ६८१२३-११,
६३०४६-१७(#), ६८०१८-१६()
आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ५, पद्य, म्पू., (जय जय जगदानंदन जय), ६८२५६-५२(१)
आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (जय वृषभ वृषभवृषविहित), ६४१७७-७(#)
आदिजिन स्तुति, सं., लो. ४, पद्य, मूपू. (युगादिपुरुषंद्राय), ६३२४७-२७२+०१, ६३००६-१०, ६७८६६ ६, ६८१२३ १३,
६८०१८-११(-)
आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (वरमुक्तियहार सुतार), ६३२४७-१३ (+#), ६७०७४-६(+), ६८२५६-७९(+), ६३००६-३, ६३०४६-१४००१ ६८०९८-७खान
आदिजिन स्तुति-भक्तामरस्तोत्रप्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (भक्तामरप्रणतमौलिमणि), ६४८२१-१ आदिनाथ देशनोद्धार, प्रा., गा. ८८, पद्य, मूपू., (संसारे नत्थि सुह), ६७६३९-२(+) आराधनापताका, प्रा., गा. ९३२, ग्रं. १०७०, पद्य, मूपू., (सम्मं नरिददेविंदवंद), ६३०५५ (+) आलोषणा विधि, प्रा.मा.गु. सं., गद्य, मूपू., (प्रथम गृहस्थी अविरत ), ६८२८८(छ) आलोयणा विधि, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, भूपू (प्रथम मुहूर्त) ६७४४३-१ (+) आवश्यकसूत्र, प्रा., अध्य. ६, सू. १०५, प+ग, मूपू., (णमो अरहंताणं० सव्व), ६३१७५ (+$)
,
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(२) आवश्यकसूत्र - निर्युक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. २५५०, ग्रं. ३१००, पद्य, म्पू, (आभिणिबोहियनाणं), ६४६१४
(३) आवश्यकसूत्र-निर्युक्ति का हिस्सा पीठिका, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गा. ८१, पद्य, मूपू (आभिणिबोहिवनाणं), ६३०४५(१)
"
(४) आवश्यकसूत्र - नियुक्ति का हिस्सा पीठिका का बालावबोध, ग. संवेगदेव, मा.गु., वि. १५१५, गद्य, मूपू.,
(श्रीवर्द्धमानजिननायक), ६३०४५(१
(२) आवश्यकसूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमो० नमस्कार होवउ), ६३१७५ (+$)
(२) आयरियउवज्झायसूत्र प्रतिक्रमणसूत्रगत हिस्सा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू (आयरिय उवज्झाव सीसे), ६३०४६-२(१)
(२) आवश्यकसूत्र - खरतरगच्छीय चैत्यवंदनसूत्र विधिसहित हिस्सा, प्रा., प+ग, मूपू. (णमो अरिहंताणं णमो), ६५३२५-१(+)
(२) चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, प्रा., सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), ६५१९१-२(+#)
(३) चैत्यवंदनसूत्र संग्रह - लघुटीका, आ. तिलकाचार्य, सं., ग्रं. ५५०, गद्य, मूपू., (श्रीवीरजिनवरेंद्र), ६३२५७-१
(३) चैत्यवंदनसूत्र - विधिसंग्रह, संबद्ध, प्रा. रा., गद्य, मूपू., (प्रथम घर सै नीकल जिन), ६७०७६-१२(+)
(२) शक्रस्तव, हिस्सा, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., ( नमुत्थुणं अरिहंताणं), ६६००६ (#)
(२) सकलकुशलवलि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (सकलकुशलवल्ली), प्रतहीन.
(३) सकलकुशलवलि चैत्यवंदनसूत्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मृपू, (अर्हत भगवंत अशरण), ६८१३५-१५(१)
(२) अतिचार आलोयणा-रात्रिदिवसगत, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू (आजुणा चौपहूर दिवसमाह), ६८२५६-३(*), ६७६९४-३
(२) आवश्यकसूत्र-श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग., मूपू., स्था., (नमो अरिहंताणं० तिखुत),
६५९७० ($)
(२) आवश्यकसूत्र पडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, म्पू, नमो अरिहंताणं नमो, ६७६५२+७)
(३) षडावश्यकसूत्र - टवार्थ, मा.गु. गद्य, भूपू (वीतराग१२ गुण विराजमा), ६७६५२ (०३)
(३) आवश्यक सूत्र- पडावश्यकसूत्र कथा संग्रह, मा.गु, गद्य, मूपू.. (भरतक्षेत्रि पोतनपुर), ६७६५२+६)
(२) इरियावही १८२४१२० भेद, संबद्ध, मा.गु., गद्य, वे., (१५ करम भूम ५ भरत ५), ६५२०४-१३(+) (२) कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (कल्लाणकंदं पढमं), ६५२४८-२(+), ६४०११-६(#) (२) गुरुवंदनसूत्र- छे.मू. पू. संबद्ध, प्रा. गद्य, म्पू, (इच्छा० संदि० अब्भु), ६३२६२-३(+), ६७५७५-३(+)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६
(२) दिवसगत प्रतिक्रमण गाधा, संबद्ध, प्रा., गा. २, पद्य, भूपू (जिणमुणिवंदण अश्यार), ६८२३४-१२(+#) (२) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं), ६७९५५-१, ६४६१७(#), ६५२४६-२(#)
(२) देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा.गु. सं. पण, मूपू. ( नमो अरिहंताणं नमो), ६५२४८-१(०) (२) पंचप्रतिक्रमण विधि संग्रह, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (इच्छामि० इरियावहि०), ६४६४७-१(-) (२) पंचप्रतिक्रमणसूत्र - अंचलगच्छीय, संबद्ध, गु., प्रा. सं., प+ग, मूपू (प्रथम संध्या समये), प्रतहीन.
"
(३) श्रावक पाक्षिक अतिचार- अंचलगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (इच्छा० गुरुपर्वभणी), ६४००९ (+४)
(२) पंचप्रतिक्रमणसूत्र - खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा. सं., प+ग. म्पू, णमो अरिहंताणं० जयउ), ६७५६५-१(+१३), ६५९५४(०३)
"
,
(२) पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा.गु. सं., प+ग, भूपू, नमो अरिहंताणं), प्रतहीन.
(३) पौषध प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (करेमि भंते पोसह), ६८२८४-७
(२) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीतप आलापक, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (इच्छाकारेण संदिसह), ६३२६२-४(+) (२) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा. मा.गु., पग, मृपू. (मुहपत्तिवंदणय), ६८२३४-१३(+) (२) पौषध विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम इरियावही पडिक), ६४४३८-१२(+)
',
(२) पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (हरियावहि चार नवकारनो), ६८२५६-१८९(०३), ६८२८४-८
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,
(२) प्रतिक्रमणगर्भहेतु, संबद्ध, आ. जयचंद्रसूरि, प्रा.सं., वि. १५०६, पद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ६३०९९ (२) प्रतिक्रमणविधि संग्रह खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू (पाछिली रात्रइ शय्या), ६३३८४(+), ६३५४४, ६८२१८
"
,
(२) प्रतिक्रमणविधि संग्रह - तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., ( देवसिय आलोइय पडिक्कं), ६५९३५ (+)
(२) प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु. गा. ६, पद्य, मूपू (कर पडिकमणुं भावशुं), ६३३७४-८(*), ६५२६१-११(+), ६७९००-११+४ ६७९६१-१०(mm)
(२) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे. मू. पू. * संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., प+ग. म्पू, नमो अरिहंताणं नमो), ६२९८३ (+५७), ६३२७९(+),
-
,
,
६७५८८(+), ६७६६५, ६७५७९ (५३), ६२९९७(३), ६७६९४-१(३)
(३) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - श्वे. मू. पू. - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हे वीतरागदेव तुमे), ६७५८८ (+$)
(२) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - श्वेतांबर", संबद्ध, प्रा.सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं० करेमि), ६३३२५(+)
(२) प्रतिक्रमणहेतुगर्भित स्वाध्याय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. १९, वि. १७४४, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवर प्रणमी),
६४२१२(*)
(२) प्रतिक्रमणहेतु विचार, संबद्ध, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गद्य, मूपू., (साधु अने श्रावक दोड़), ६८१९९-५१)
(२) प्रतिलेखनकालमान गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (आसाढे मासे दुप्पया), ६८२३४-१९(+#)
(२) प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा., गद्य, भूपू (उगाए सूरे नमुकार), ६३०६३-३ (+३), ६३२५३-१२(३) ६३२५९-२(१), ६४४३८-४(१), ६४४४५-३(*), ६४५७५-३(+४), ६५९८४-२ (००३), ६७०७४-२१(+), ६८२३४-३ (+), ६३३५३-२ ६७६६४, ६३००२-१ (०३), ६८१२३-१($)
(३) प्रत्याख्यानसूत्र-बालावबोध *, पुहिं., मा.गु., गद्य, मूपू., (अन्नत्थणाभोगेणं अन्न), ६८०२१-४, ६७९३०($)
(३) प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (वाग्वादिनी नमस्कृत्य), ६३००२-१(#$)
(३) प्रत्याख्यानसूत्र- टवार्थ" मा.गु, गद्य, मूपु (सूर्यनइ उदये वै घटिक), ६३०६३-३(०४)
""
(३) प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू. (दो चेव नमोक्कारे), ६२९७९-३(०) ६८२३४-४००)
(२) महावीरजिन स्तुति, संबद्ध, सं., श्लो. ३, पद्य, भूपू (विशाललोचनदल), ६५२४६-३(१)
',
४७९
(२) मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (तत्त्वदृष्टि सम्यक्त), ६७०३६-३१(+), ६८२१४-१८(+)
(२) राई प्रतिक्रमणसूत्र तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., पग, मृपू, नमो अरिहंताणं नमो ), प्रतहीन.
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(३) भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., गा. १३, पद्य, मूपू., (भरहेसर बाहुबली अभय), ६७८३९-१२($)
"
(२) बंदिसूत्र, संबद्ध, प्रा., गा. ५०, पद्य, मृपू. ( वंदित्तु सव्वसिद्धे), ६३०८९-२(+), ६४६३७-८(+), ६७८६४-२(१०), ६८२५६-२(+), ६३२९७(१) ६५२४६-४(१) ६७७६२.१(३)
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४८०
(३) वंदित्सूत्र- लघुटीका, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, मूपू. (प्रणिधाय श्रीवीर), ६३२५७-२
(३) वंदित्सूत्र- टवार्थ* मा.गु., गद्य, मृपू., (वंदितु क० वांदीने), ६३२९७ (४)
संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१
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"
,
(३) सामायिकपारणसूत्र, हिस्सा, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (सामाइअवयजुत्तो जाव), ६३०४६-१(#$)
(२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा.गु. सं., पग, मूपू, णमो अरिहंताणं णमो ), ६३०७६(+), ६३०८६(+०), ६३०८९-१(०३), ६३२४७-१(+), ६३५५६ (+), ६४४३८-३(+), ६७०७४- १(०६), ६७०४७-५ (5)
(३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - खरतरगच्छीय-टबार्थ, मा.गु, गद्य, मूपू.. (माहरउ नमस्कार अरहंत), ६३०७६ (+४), ६३०८६ (+१), ६३५५६०० ६४४३८-३(३)
1
(३) पौषध सज्झाय-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., गा. ३३, पद्य, मूपू., (जगचूडामणिभूओ उसभो), ६३३३३-४(+)
(२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. सं., प+ग, भूपू (नमो अरिहंताणं० पंचिं), ६४४४५-१(+३), ६७०७६-१३(+), ६७५७६(१६) ६७५७२(३)
(३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र तपागच्छीय का वालावबोध, पं. हेमहंस गणि, मा.गु., वि. १५०१, गद्य, भूपू ( श्रेयांसि श्रीमहावीर), ६७५९३(०३)
""
(३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र तपागच्छीय का बालावबोध, मा.गु., गद्य, भूपू (अरिहंतनई नमस्कार), ६८२५२(३)
(३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (माहरउ नमस्कार अरिहंत), ६७५७६ (०३)
-
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(२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह (श्वे. मू. पू.), संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग., मूपू., ( नमो अरिहं० सव्वसाहूण), ६३१६०(#), ६३१८२(+#$), ६७६७२ (+), ६५९५०, ६३२६८(#$), ६७९५८-१(#$), ६७६८२ (६), ६८२००($)
(३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - बंदारू टीका, आ. देवेंद्रसूरि सं., प्र. २७२०, गद्य, मूपू (वृंदारुवृंदारकवृंद), ६३१६० (+),
६३१८२००३)
(३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू. (पहिलुं सकल मंगलिकन), ६८२०० (३)
(३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- टवार्थ, मा.गु, गद्य, मूपू (अरिहंतनइ नमस्कार हुआ), ६७६७२ (*)
(३) पंचाचार अतिचार गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ८, पद्य, मूपू., (नाणम्मि दंसणम्मिअ), ६८१३१-१२ (+)
(३) श्रावक देवसिकआलोयणासूत्र- तपागच्छीय, संबद्ध, मा.गु., पद्य, म्पू., (सातलाख पृथ्वीकाय), ६५२०४-३०(+), ६७०२०-२(४), ६७६८१-३(०६)
(३) श्रावकपाक्षिक अतिचार तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, भूपू (नाणंमि दंसणंमि०), ६३३८७ (*), ६४१६०-२(०),
"
६४६४८(+), ६५३०४(+), ६७९७४(+), ६८४०९(+), ६८४३४(+१) ६३४१९, ६३५५३ ६५१९९, ६५३०२, ६७०६१, ६८१६१.
६८१८६, ६५२०२(#), ६५२६९(#), ६८०५३(#), ६७०५१-१(s), ६७७६७-७($), ६८०१६ ($), ६८४०३-१(-)
(२) श्रावकसंक्षिप्त अतिचार, संबद्ध, मा.गु., प+ग., मूपू., (पण संलेहणा पनरस), ६५१८९-१(#), ६८०७४(#$)
(२) संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (संसारदावानलदाहनीरं), ६४६३७-७(+#) (२) साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र - खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., पग, मूपू, णमो अरिहंताणं० करेमि ), ६३०६३-१(०) (३) साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र - खरतरगच्छीय का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार हुवउ अर्हत ), ६३०६३-१(+)
(२) साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा.गु, प+ग, भूपू ( नमो अरिहंताणं), ६३३२८(+०३), ६४४४५-२(०) (२) साधु प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., प+ग, मूपू, णमो अरिहंताणं० आवस्स), ६३२८६, ६५९५२(३)
+
"
(२) साधु प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह अंचलगच्छीय, संबद्ध, प्रा. सं., मा.गु. प+ग. म्पू, णमो अरिहंताणं० इच्छा), ६४५७५-१(क) (२) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे. मू. पू., संबद्ध, प्रा. सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं), ६७५८३(+#), ६७६२७(+#)
(३) क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., आला. ४, गद्य, भूपू (इच्छामि खमासमणो पिय), ६२९६३-२(+), ६२९८१-२(*), ६३२६२-२(+), ६४५६१-२(+#), ६७५७५-२ (+), ६७६७०-२(+#), ६७६३१-२(#)
(३) पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा. सू. २१, गद्य, मृपू., (करेमि भंते० चत्तारि०) ६३२५३-१(३) ६३९५१ (४) ६४६३३(१),
६४६३७-१(+), ६७६४८-२(*), ६८२५६-१८८(*), ६७६४३, ६३०४६-३४(३) ६३०४६-३७/०३), ६३३३७ (४७), ६७५९०(क) (४) पगामसज्झायसूत्र- टीका, सं., गद्य, म्पू, (शुभयोगेभ्यो शुभयोग), ६३३३७/१६)
(४) पगामसज्झायसूत्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, भूपू (निवर्तवा वांछु प्रक), ६३९५१(+)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६
(४) पगामसज्झायसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (चार बोल तेम मंगलिक), ६३९५१(००), ६४६३३)
"
(३) पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा. प+ग, मूपू (तित्थंकरे व तित्थे), ६२९६३-१(०) ६२९७७ (+), ६२९८१-१(+), ६३११४(+), ६३२६२-१(+), ६३२७१(+०३), ६४५६१-१(+०), ६७५७५-१(+), ६७६७०-१(१) ६३०९०, ६३३०३-१, ६७६७९, ६३२८२ (०४), ६७६३१.१०) ६४५६७ (३)
(३) साधुअतिचारचिंतवन गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (सयणासणन्नपाणे), ६२९७९-२(+), ६८१३१-१० (+) (४) साधु अतिचारचिंतवन गाथा - बालावबोध, मा.गु., गद्य, भूपू (सयणा क० सोवाना संधार), ६८१३१-१०(+)
(३) साधुपाक्षिक अतिचार श्वे. मू. पू., संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (नाणम्मि दंसणम्मि०), ६४१८० (+), ६५२१२ (+), ६७६४८-१(+), ६४००४-१, ६७०२०-१ (#$), ६७९३२($)
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(२) साधुधावकप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा.गु, सं., प+ग, भूपू (नमो अरिहंताणं), ६७६४४(*७), ६४६१९ (५७), ६६३३७-१ ($)
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(३) पार्श्वजिन चैत्यवंदन, हिस्सा, प्रा. गा. २, पद्य, भूपू (चउकसायपडिमलुल्लूरण), ६८२१४०७ (+), ६३०४६-६(१), ६८०१८-२२०) (२) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - लोंकागच्छीय, संबद्ध, प्रा., सं., प+ग., स्था., (णमो अरिहंताणं), ६३२५९-१(+), ६३२६०-१(+) (२) साधुआवकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा. सं., प+ग, मृपू, णमो अरिहंताणं), ६३२६४-२(+३),
६३२९० (+), ६४०१२(+), ६८२५६-१(+), ६३३४९-१, ६५९४४३, ६७६९२-१(३)
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(२) साधुआवकप्रतिक्रमणसूत्र स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा. मा.गु, प+ग, भूपू स्था. ( नमो अरिहंताणं०), ६३०३०+) (३) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - स्थानकवासी - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., स्था., (नमस्कार हो कर्मरूप), ६३०३०(+) (२) सामायिक पारने की विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपु (प्रथम खमासमण देई), ६७०७४-२ (+), ६७६८१-२(५) ६४६४७-३(),
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६८२३०-१२ (-)
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(२) सामायिक लेने की विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, भूपू (प्रथम वस्त्र उतारी), ६७६८१-१(१) ६४६४७-२१, ६८२३०-११) (२) सामायिकसूत्र - स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग., मूपू., ( णमो अरहंताणं० तिक्खु), ६७५५३
(३) सामायिकसूत्र - स्थानकवासी टबार्थ, मा.गु, गद्य, म्पू, (नमस्कार श्री अरिहंत), ६७५५३ आशीर्वचन श्लोक सं., श्लो. १०, पद्य, वे (भाले भाग्यकला मुखे), ६५१९२-५ (+), ६७७३४-४ ६८०७१-१०) आषाढपूर्णिमा विचार श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., ( आषाढंत पूर्णमायां), ६४२४०-२(+) (२) आषाढपूर्णिमा विचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, (आसादने सुदि १५) ६४२४०-२ (+४) आस्रवत्रिभंगी, मु. श्रुतमुनि, प्रा., अ. ३, गा. ६२, वि. १४वी, पद्य, दि. (पणमिव सुदिपूजिय), ६३१२१(+) इंद्राक्षी स्तोत्र, ऋ. वेद व्यास, सं., श्लो. १३, पद्य, वै., (ॐ अस्य श्री ॐ अं ६७४४०-१ उत्तमकुमार चरित्र, ग. चारुचंद्र, सं., श्लो. ५७२, पद्य, मूपू., ( वंदित्वा स्वगुरुन), ६३३०१
"
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., अध्य. ३६ ग्रं. २०००, प+ग, भूपू (संजोगाविष्यमुक्कस्स), ६२९५६+७), ६२९७१ (+),
६२९९६ (*७), ६३०१० (+5), ६३०१९(+), ६३०४० (+), ६३०४१(+), ६३०४२(+), ६३०४३(७), ६३०६२-३(+), ६३०९३(०७), ६३११३(+), ६३१६९ (७), ६३१८३(+), ६३१८८(+), ६३१९१(+), ६३२०३ (+), ६३२४१(०३), ६३६३१६(+), ६७५६७(+#$), ६८१५७ (+#$), ६३१७६ (#$), ६३१८४-१ (# ), ६३०३७ ($), ६३१०५ ($), ६७४१५ ($) (२) उत्तराध्ययनसूत्र- दीपिका टीका, मु. विनयहंस, सं., वि. १५७२, गद्य, मूपू., (उत्तराध्ययनस्येमां), ६३१६२ (०३)
(२) उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा टीका, आ. नेमिचंद्रसूरि, सं., ग्रं. १२०००, वि. ११२९, गद्य, मूपू., (प्रणम्य विघ्नसंघात), ६३१८८(०३) ६३१७६ (०६)
(३) उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा टीका की कथा, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., गद्य, मूपू., (--), प्रतहीन.
(४) उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा टीका की कथा का अनुवाद, मु. मुनिसुंदरसूरि-शिष्य, सं., गद्य, मूपू., (अर्हतः सर्वसिद्धाश्च),
६३०६७
(२) उत्तराध्ययनसूत्र- बालावबोध #. मा.गु., गद्य, म्पू. (संसारतणा संबंधधी), ६३०९३ (०४)
1
"
(२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (संयोग बे प्रकारे), ६२९५६ (+), ६३०१० (+$), ६३०४१ (+), ६३०४२(+#$),
६३०४३ (०६), ६३०९३ (०७), ६३१६९०७), ६३१९१(+), ६३२०३ (+३), ६३२४१ (+४७), ६७५६७(+१६), ६३०३७/६)
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १
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४८२
(२) उत्तराध्ययनसूत्र- टवार्थ+कथा " मा.गु, गद्य, मूपू (उत्तराध्ययनो स्यु), ६८१५७ (+०३)
,
""
(२) उत्तराध्ययनसूत्र- कथा संग्रह", मा.गु., कथा. ४, गद्य, मूप. (एक आचार्यनई एक चेलो), ६७९१२(+४), ६८०९४(+०६), ६८१३९(+#$)
१
(२) उत्तराध्ययनसूत्र- कथा संग्रह, सं., पद्य, भूपू (एकस्य आचार्यस्य), ६३०४१+७), ६३०४२+०७), ६३०४३ (+) (२) उत्तराध्ययनसूत्र - हिस्सा नमिप्रव्रज्याध्ययन ९, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. गा. ६२, पद्य, मृपू., (चइऊण देवलोगाओ उवयन्न),
,
६७५६२-३(१)
(२) उत्तराध्ययनसूत्र माहात्म्य गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ९, पद्य, म्पू (जे किर भवसिद्धीया), ६३१८४-२ (०)
',
(२) उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., सज्झा. ३६, पद्य, मूपू., (पव धरीजी), ६४२३९(+) ६८०२८ (+३), ६३५८५- १ (ख)
(२) उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन - सज्झाय, संबद्ध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., ढा. ३६, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर प पणमेवि), ६४४५६(+)
उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., गा. ५४४, पद्य, म्पू., (नमिऊण जिणवरिंदे इंद), ६३०७५ (०), ६३०८४(७), ६३१८६ (+),
६३२४०(+), ६३५१९(+), ६५२४४-२ (+$), ६७६४६-५ (+), ६७५६१(#), ६२९७४($)
(२) उपदेशमाला-बालावबोध, आ. सोमसुंदरसूरि, मा.गु., ग्रं. ५९००, वि. १४८५, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानजिनवर), ६३४५६(+#$)
(२) उपदेशमाला-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करीने तीर्थं), ६३५१९(+$)
(२) उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिऊण कहीइ नमीनइ), ६३२४० (+$)
"
(२) उपदेशमाला कथा संग्रह, प्रा., मा.गु., पद्य, मूपू (श्रीउपदेसमालासु प्रन), ६३१५९(३) उपदेश रसाल, सं., अ. ५२, गद्य, मूप (एसो मंगलनिलओ भवविलओ), ६३००१(+) उपधानतप विधि, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, मूपू. (पहिलं नवकारनुं), ६४२१३, ६३९४९(४) उपधानतप विधि, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, भूपू (प्रथम शुभदिवसई पोषध), ६३४४९ उपस्थापना विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, भूपू (खमासमण० मुहप० खमा० ), ६४०१५-२ (०)
उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. अध्य. १०, ग्रं. ८१२ प+ग. मृपू., (तेणं० चंपा नाम नयरी), ६३०१३ (+४), ६३१८१ (+०३), ६३२७७(+३), ६७५९५+३) ६७६००(३) ६५९३१(5)
(२) उपासकदशांगसूत्र- टबार्थ, मु. हर्षवल्लभ, मा.गु., वि. १६९३, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), ६३०१३(+$), ६३१८१(+#$), ६७५९५ (+३)
(२) उपासकदशांगसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ६३२७७(+$)
उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ५, पद्य, म्पू., ( उवसगहरं पासं पास), ६४६२४-५ (*), ६५९२०-२(+),
"
६७५७०-२(+१), ६७९६५-३(४), ६५९७४-१ (४) ६८२३०- ९(-)
(२) उवसग्गहर स्तोत्र- गाथा ५- टीका, आ. जयप्रभसूरि, सं., गद्य, मूपू (प्रणिपत्य जिनं पार्श), ६७५७० २(क)
(२) उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा ५-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., ( उपसर्ग जे विघ्न तेहन), ६४६२४-५ (+)
(२) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की भंडारगाथा *, संबद्ध, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, मूपू., (तुह दंसणेण सामिय), ६४८३०-१००), ६७५६९-८(००)
ऋषिदत्तासती कथा, सं., गद्य, मूपू., (शीलं नाम नृणां), ६३०४७-१२(#)
ऋषिमंडल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., गा. २०९, ग्रं. २५९, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (भत्तिब्भरनमिरसुरवर), ६३१९० (+#) (२) ऋषिमंडल प्रकरण-कथार्णवांक वृत्ति, ग. पद्ममंदिर, सं. ग्रं. ७२६१, वि. १५५३, गद्य, मृपू., (जयाय जगतामीशो युगादी), ६३१९० (+#)
ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., श्लो. ९२, ग्रं. १५०, पद्य, मूपू., (आद्यंताक्षरसंलक्ष्य), ६३१५३-१०(+#), ६७६९३(+), ६३२६६-७, ६६७१३-१, ६७५८०, ६७९३३, ६७९५७, ६५५९८-४(१) ६५९५८-२ (०३), ६५२२२-१(३), ६७५५७-२ (३), ६७५६६९९ ६७५८२ (-)
ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर सं . ६३, पद्य, भूपू (आचंताक्षरसंलक्ष्य), ६७६८४
"
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६
(२) ऋषिमंडल स्तोत्र वालावबोध, मा.गु, गद्य, म्पू.. (-), ६५२२२-१(३)
(२) ऋषिमंडल स्तोत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (आदिको अक्षर अंतको), ६५२२२-१(३)
(२) ऋषिमंडल स्तोत्र पूजा, संबद्ध, ग. शिवचंद्र, मा.गु., सं., ढा. २४, वि. १८७९, पद्य, मूपू., (प्रणमी श्रीपारस विमल), ६३४९३ (+#$), ६८०१५-१०१
(२) ऋषिमंडल स्तोत्र पूजाविधि, संबद्ध, सं., ग्रं. ३८३, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीजिनाधीश), ६५९५८-१(#)
',
एकाक्षर नाममाला, मु. सुधाकलश मुनि आ. हिरण्याचार्य, सं., श्लो. ५०, पद्य, वे (श्रीवर्धमानमानम्य), ६४०४८ (३) एकाग्रचित्ततापस कथा, सं., गद्य, श्वे., (ध्रुवमेकाग्रया भक्त), ६५९२६-७($)
एकादशी तिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (मल्लिदेव सुजन्म संयम), ६५२१३-११ (+#) एकीभाव स्तोत्र, आ. वादिराजसूरि, सं., श्लो. २६. ई. ११वी, पद्य, दि. एकीभावं गत इव मया), ६५५९८-५१ (२) एकीभाव स्तोत्र - पद्यानुवाद, जे.क. भूधरदास, मा.गु., गा. २७, पद्य, वि., (नमो आदि आदीश जिन नमो), ६७९६४ (०६), ६५२००-७(5)
औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं., प्रा., मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., ( काम वली सवही पुरहे), ६४५७५-६ (+#), ६५१९२-२१(+#$), ६५९७२-२(+#), ६७०५५-६(#)
औपदेशिक श्लोक सं., श्लो. १, पद्य, म्पू, (क्रोध मान यथा लोभ), ६३३१२-१(+), ६८३८०-२), ६८४०३-२०१ औपदेशिक लोक- वृद्धवाक्य हितशिक्षा, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे. ? (वृद्धवाक्य सदा मान्य), ६४६३७-१२(४०) औपदेशिक लोक संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., श्लो. ५०, ग्रं. ५६८, पद्य, मूपू., (किं लक्ष्मीं गजवाज), ६८०७१-३८)
3
1
औपदेशिक श्लोक संग्रह पुहिं प्रा. मा.गु. सं., श्लो. ६१, पद्य, वे धर्मे रागः श्रुतौ), ६३२८९ (+), ६७८७५-२, ६३९५८ (३),
.
י'
औषध - यंत्र-मंत्रसंग्रह, मा.गु., सं., गद्य, (--), ६७७६७-८ ($)
औषधवैद्यक संग्रह, पु.ि, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, (अनार दाणा टां. ८०), ६५२३२-७(+), ६५९३८-३, ६६३१२-२ (१)
"
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६८३७२-२($), ६८०७१-७ (-)
औपपातिकसूत्र, प्रा. सू. ४३, ग्रं. १६००, पद्य, भूपू (तेणं कालेणं० चंपा०), ६३०३८ (+), ६३१६६ (+), ६३१७७-१(+), ६७६१० (२) औपपातिकसूत्र टीका, आ. अभवदेवसूरि, सं. ग्रं. ३१२५, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्ब), ६३१७७-१(+) (२) औपपातिकसूत्र - टबार्थ, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू.. ( वंदित्वा श्रीजिनं), ६३१६६ (४)
"
औषध आदिसंग्रह, मा.गु. सं., गद्य, (अथ दाडमाष्टकाम छे), ६७९७८-१४
कथा संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, मूपू., (हिवे छ आरानुं नाम), ६८१७७ (+$), ६३००८(#$)
कथा संग्रह - शांतिजिन चरित्रोत, सं., गद्य, मूपू (--), ६२९६४(+३)
कनकरथराजा कथा-सुपात्रदानविषये, प्रा., सं., गद्य, मूपू., (अत्रैव भरते वैताढ्य), ६३५३७-६(+)
करेराज कथा, सं., गद्य, मूपू., (मंगलपुरे राजा पृथ्वी), ६३५३७-५ (+) कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., श्लो. १७९, पद्य, मूपू (कर्पूरप्रकरः शमामृत), ६३४६५(४)
(२) कर्पूरप्रकर- बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, मूपू., (पार्श्वश्रिये सोस्तु), ६३४६५ ($) (२) कर्पूरप्रकर-कथा " मा.गु., गद्य, म्पू, (आदनदेसि आदनपुरनगर), ६३४६५४)
"
कर्पूरमंजरी, क. राजशेखर, प्रा. अ. ४ जवनिका, पद्य, वै., (भदं भोदुसरस्सईइकक्षण), ६३२४५ (+४३)
"
"
४८३
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(२) कर्पूरमंजरी - टीका, ग. धर्मचंद्रगणि, सं., गद्य, मूपू., वै., (--), ६३२४५ (+#$)
कर्मदहन पूजा, आ. शुभचंद्र, सं., पद्य, दि., (सकल कर्म विप्रमुक्ता), ६६८५०
कर्मप्रकृति, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., गा. १६१, पद्य, दि., (पणमिय सिरसा मिं), ६३१०२ (+#)
कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ६०, वि. १३वी २४वी, पद्य, भूपू (सिरिवीरजिणं वंदिय), ६२९८७(+),
६३२१०-१(+), ६३२२०-१(००), ६३२३३-१(+४), ६३३२२(+४७), ६४४४८-२(०), ६४५९६ (+०३), ६७६०४-१(०), ६३८९६-१, ६३०२२-१(१, ६३२१७-१ (१)
(२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ स्वोपज्ञ सुबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं. ग्रं. १८८२, गद्य, मूपू. (दिनेशवध्यानवर), ६३२१०-१ (+), ६३२३३-१(०) ६७६०४-१(+)
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १ (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ बालावबोध, मु, मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, म्पू, (श्रेयोमार्गस्य वक्ता), ६३०२२-१ (४), ६३२१७-१(१) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (श्रीवीरजिन वांदी), ६२९८७/*), ६३३२२ (+०३) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ स्तबकार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., वि. १८०३, गद्य, भूपू., (प्रणिपत्य जिनं वीरं), ६३२२०-१ (+४) कर्मविपाक प्राचीन कर्मग्रंथ, ऋ. गर्ग महर्षि, प्रा. गा. १६८, पद्य, मूपू (ववगवकम्मकलंकं वीरं), ६३०६९-५(४०) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ३४, वि. १३वी - १४वी, पद्य, मूपू., (तह थुणिमो वीरजिणं), ६२९४३-१(+#$),
""
६३२१०-२(+#), ६३२२०-२ (+#), ६३२३३-२(+#), ६४४४८-३ (+), ६७६०४-२ (+), ६३८९६-२, ६३०२२-२ (#), ६३२१७-२(#) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-स्वोपज्ञ सुखबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं. गद्य, भूपू (बंधोदवोदीरण सत्पदस्थ), ६३२१०-२(+), ६३२३३-२ (+#), ६७६०४-२ (+)
"
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(२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ बालावबोध, मु, मतिचंद्र, मा.गु, गद्य, मूपु. ( वीरं बोधनिधिं धीरं), ६३०२२-२(१) ६३२१७-२(१) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., वि. १८०३, गद्य, मूपू., ( तथा तिणे प्रकारे), ६३२२०-२(+#) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-विचार, संबद्ध, मा.गु, गद्य, मूपू (हिवइ श्रीमहावीरभगवान), ६३४४१-२ (+०)
कर्मस्तव प्राचीन कर्मग्रंथ, प्रा., गा. ५५, पद्य, मृपू., (नमिऊण जिणवारिंदे तिहु), ६३०६९-४+०) कलिकालप्रबंध द्रष्टांत संग्रह, सं., प+ग, श्वे., (धर्माद्धनं धनत एव सम), ६७६३४
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. व्याख. ९ नं. १२९६, गद्य, म्पू, (तेणं कालेनं० समणे), ६२९७२-७), ६२९७५ (+४३),
६३०२१(+), ६३०३९(+७), ६३०६८ (+), ६३१४३ (+), ६३१७३ (+), ६३१८९(+), ६३१९७(+०६), ६३२०५ (+०६), ६३२०८(+#$), ६३२१४ (+#$), ६३२३१(+#), ६३२३६(+#), ६३२३९(+#$), ६३३४५ (+$), ६३३६० (+$), ६३४४५ (+$), ६३५०७(+5), ६३५९२(+४३), ६४०२९(+), ६४४४२-१(+), ६४६०६(+), ६४६१० (+३), ६४६२५ (+३), ६४६२७(+३), ६७६०५ (+७), ६७६२२(+), ६८२५४(+), ६३२०४, ६३३७५ ६३६०६, ६२९५९ (०४), ६३०९२ (०७), ६३२३५-१(१), ६२९९५ ($), ६३०३६ ($), ६७६०७ ($)
(२) कल्पसूत्र - कल्पकिरणावली टीका, उपा. धर्मसागरगणि, सं., प्र. ५२१६, वि. १६२८, गद्य, मूपू., (प्रणम्य प्रणताशेष), ६३२३५-१(०३)
(२) कल्पसूत्र कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., प्र. ४१०९, गद्य, भूपू. (श्रीवर्द्धमानस्य), ६३३४४+३)
"
"
(२) कल्पसूत्र - कल्पलता टीका, उपा, समयसुंदर गणि, सं. ग्रं. ७७००, वि. १६८५, गद्य, भूपू (प्रणम्य परमं ज्योतिः), ६२९६१(+), ६३२३१(+#)
(२) कल्पसूत्र- टीका, सं., गद्य, म्पू, (नमस्कृत्य चिदानंद), प्रतहीन,
"
(३) कल्पसूत्र टीका का हिस्सा वाचना-१, सं., गद्य, म्पू, (--), प्रतहीन.
-
(४) कल्पसूत्र- टीका का हिस्सा वाचना-१ का (पु.हि.) बालावबोध, मु. शांतिसागरसूरिशिष्य, पुहिं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमं ज्योतिः), ६८३४०(+)
*
(३) कल्पसूत्र - टीका का हिस्सा वाचना-६, सं., गद्य, मूपू., (--), प्रतहीन.
(४) कल्पसूत्र टीका का हिस्सा वाचना-६ का (पु.हि.) बालावबोध, मु. शांतिसागरसूरिशिष्य, पुहिं, गद्य, मूपू, (जिनवर शासनदेव को), ६६६०२(४)
(२) कल्पसूत्र टीका. सं., गद्य, भूपू (प्रणम्य प्रणताशेष), ६३०२१(०३), ६३०२५(*), ६३१४३(+४६)
""
(२) कल्पसूत्र - संदेहविषौषधि टीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं. ग्रं. २२६८, वि. १३६४, गद्य, भूपू (ते इति प्राकृतशीलीवश), ६३२२७ (२) कल्पसूत्र - अवचूरि *, सं., गद्य, मूपू., (अत्राध्ययने त्र्यं), ६३३४५ (+$)
(२) कल्पसूत्र - बालावबोध, उपा. रामविजय, मा.गु., वि. १८१९, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), ६३१८९(+)
(२) कल्पसूत्र - बालावबोध, मु. शिवनिधान, मा.गु., वि. १६८०, गद्य, म्पू., ( नमः श्रीवर्द्धमानाय), ६३२१४+४७), ६३३७५,
६३६०६
(२) कल्पसूत्र - बालावबोध " मा.गु. रा. गद्य, म्पू, नमो अरिहंताणं). ६३२०८(+), ६३५०७/३) ६३५९२+०७), ६४०२९०), ६८२५४(*), ६२९९५ (३) ६३५२३(३)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६
४८५ (२) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतनइ माहरो), ६२९७२(+$), ६३०६८(+#$), ६३१७३(+#), ६३२०५(+#$),
६३२३९(+#$), ६३३६०(+$), ६४४४२-१(+), ६४६१०(+$), ६४६२७(+$), ६७६२३(+),६३०९२(#$), ६३०३६($) (२) कल्पसूत्र-टबार्थ *, सं., गद्य, मूपू., (श्रीमद्वीरचरित्रबीज), ६३१९७(+#$) (२) कल्पसूत्र-टबार्थ+व्याख्यान+कथा, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (सकलार्थसिद्धिजननी), ६३२३६(+#) (२) कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, सं., गद्य, मूपू., (तत्रादौ श्रीऋषभदेव), ६२९७२(+$), ६३१९७(+#s), ६३०९२(#S), ६३०३६(६) (२) कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमः श्रीवर्द्धमानाय), ६३२०५(+#$), ६३३६०(+$), ६३४८८+),
६४४४२-१(+), ६७६२२(+$), ६८२५४(+), ६४०१९-२(s), ६८३६३($), ६५२७२(-#) (२) कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, सं.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य प्रणताशेष), ६४६०६(+) (२) कल्पसूत्र-हिस्सा आदिजिन चरित्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, मपू., (तेणं कालेणं तेण), ६३३७२(+) (३) कल्पसूत्र-हिस्सा आदिजिन चरित्र का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (नत्वा जगत्), ६३३७२(+) (२) स्थविरावली, हिस्सा, प्रा., प+ग., म्पू., (तेणं कालेणं तेणं समए), प्रतहीन. (३) स्थविरावली-टीका, सं., गद्य, मूपू., (तस्मिन्काले तस्मिन), ६४४६३(६) (२) कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मु. हेमविमलसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, मूपू., (सकलार्थ सिद्धिजननी), ६७०२९(+) (२) कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अल्त भगवंत उत्पन्न), ६७०२६(६) (२) कल्पसूत्र महिमा गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. २, पद्य, म्पू., (जं उत्तिमं तित्थो), ६४४४२-२(+) (३) कल्पसूत्र महिमा गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जो उत्तिम तीर्थ), ६४४४२-२(+) (२) कल्पसूत्र-वाचन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम दोय वांदणा), ६८३७३(७) (२) कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य, सं., गद्य, मूपू., (चतुर्विंशतिजिनान), ६३१७२(+#$) (३) कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (कल्याणना समूह समुल्ल), ६३१७२(+#$) कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., अध्य. १०, गद्य, मूपू., (जति णं भंते समणेणं०), ६४६५१-२(+) (२) कल्पावतंसिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (जौ हे भगवंत समण०), ६४६५१-२(+) कल्पिकासूत्र, प्रा., अध्य. १०, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं तेणं०), ६४६५१-१(+) (२) कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीतरागदेवने नमस), ६४६५१-१(+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., श्लो. ४४, वि. १वी, पद्य, मूपू., (कल्याणमंदिरमुदार), ६२९५४-२(+),
६३०९१-१(+), ६३१०६(+), ६३१३०(+#), ६३२५३-७(+), ६३३००-२(+), ६४५६३(+), ६४६२४-२(+), ६५९२०-५(+), ६५९३२-२(+), ६५९६०-१३(+$), ६६८९६-२(+), ६७६३३(+), ६७६४६-१(+$), ६७६६६(+), ६८२५६-१७२(+), ६३१५०,
६५९७७-३, ६७०८२-३, ६७६२६, ६७६३६(#), ६५९७३-४(६), ६६३३७-५(६), ६५९७४-२(-2) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, मु. कनककुशल, सं., ग्रं. ६५०, वि. १६५२, गद्य, मूपू., (प्रणम्य पार्श्व), ६३३००-२(+) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, पा. हर्षकीर्ति, सं., गद्य, मूपू., (श्रीमत्पार्श्वजिन), ६४५६३(+), ६७६३६(#) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, मूपू., (किल इति संभावनायां), ६२९५४-२(+), ६३१०६(+) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (केहQछे कमल ते), ६७६२६ (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (पार्श्वनाथजीरा चरण), ६३०९१-१(+$), ६३१३०(+#), ६४६२४-२(+) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. ४४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., दि., (परम ज्योति परमातमा),
६५०९७-२४(+#), ६७०६०-४(+$), ६५९८२-२, ६४१९९-२(#), ६५९७३-१(६) कविशिक्षा, श्राव. अरिसिंह , सं., प्रता. ४, वि. १३वी, पद्य, मूपू., (वाचं नत्वा महानंदकर), ६३६५४+#), ६३७६८(+#$),
६३८३१(+S) (२) कविशिक्षा-काव्यकल्पलतावृत्ति, य. अमरचंद्र, सं., ग्रं. ३३५७, वि. १३वी, गद्य, मूपू., (विमृश्य वाङ्मय), ६३६५४(+#),
६३७६८(+#$), ६३८३१(+$) कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (जह तुह दसणरहिओ काय), ६४६४३(+) (२) कायस्थिति प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (जिम ताहरे दर्शनइ), ६४६४३(+)
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४८६
संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ कार्तिकपूर्णिमा व्याख्यान, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (सिद्धो विजाय चक्की), ६८१३५-६(+), ६८२१४-१६(+) कालज्ञान, शंभूनाथ, सं., श्लो. २५५, पद्य, वै., (कालज्ञानं कलायुक्त), ६३४५४-६(+#$) (२) कालज्ञान-भाषा, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., समु. ५, गा. १७७, वि. १७४१, पद्य, मूपू., वै., (शकति शंभूसंभूसुतन), ६४२७२(+#$) कालभैरवाष्टक-काशीखंडे, सं., श्लो. ११, पद्य, जै., वै., (यं यं यं यक्षरूपं दश), ६५५७२-३($) कालमांडलादियोग विधि-साधु, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (अथ मोटा जोग वहे तेने), ६३६३१-८(+) कालिकाचार्य कथा, आ. विनयचंद्रसूरि, सं., श्लो. ८८, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (उत्पत्ति विगम ध्रौव), प्रतहीन. (२) कालिकाचार्य कथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीर चरमतीर्थं), ६३१४९ कालिकाचार्य कथा, सं., गद्य, मूपू., (वंदामि भद्दबाहु), ६३५१८(+$), ६८००९(+$) कालिकाचार्य कथा, सं., श्लो. ६५, पद्य, मूपू., (श्रीवीरवाक्यानुमत), ६३५००(#$) (२) कालिकाचार्य कथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीरदेवना वचन), ६३५००(#$) काव्य संग्रह, मा.गु.,स., पद्य, श्वे., (--), ६७९४७-२०) कुमतिउत्थापन चर्चा, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (मनोमती झूठी प्ररूपणा), ६३४४३-१(+#) कुम्मापुत्त चरिअ, मु. जिनमाणिक्य, उपा. अनंतहस, प्रा., गा. १९८, ग्रं. १०००, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (नमिऊण वद्धमाणं असुरं),
६४५६२ (२) कुम्मापुत्त चरिअं-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (वर्द्धमानस्वामीने नम), ६४५६२ कुरुचंद्र कथा-वसतिदाने, सं., गद्य, मूपू., (वसही सयणासण भत्तपाण), ६३५३७-३(+) कुस्त्री कथा, सं., गद्य, श्वे., (वरं रंक दरिद्रत्वं), ६५९२६-६ क्षुद्रोपद्रवनिवारण विधि, सं., गद्य, मूपू., (नतु पाक्षिक १ चतुर्म), ६८२५६-१६३(+) क्षेत्रपाल छंद, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., (यं यं यं यक्षरूप), ६६७५२-३ खरतर तपागच्छ ३० उत्सूत्र बोल, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (तपः यतयः उत्सूत्र), ६८३३९(+) गणधरविद्या मंत्र, सं., गद्य, म्पू., (ॐ नमो जिणाणं इत्यादि), ६७७१४-१(#$) गणधरसार्धशतक, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., गा. १५०, पद्य, मूपू., (गुणमणिरोहणगिरिणो), ६३०५७(+) (२) गणधरसार्धशतक-लघुवृत्ति#, ग. सर्वराज, सं., गद्य, मूपू., (प्रतन्यात्प्रथमजिनपत), ६३०५७(+) गणरत्नमहोदधि, आ. वर्द्धमान, सं., अ.८, श्लो. ४६०, वि. ११९७, गद्य, मूपू., (वाग्देवतायाः क्रम), ६३०७७(+$) (२) गणरत्नमहोदधि-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. वर्द्धमान, सं., वि. ११९७, गद्य, म्पू., (सुखेनैव ग्रहीष्यन्ति), ६३०७७(+$) गणेशसरस्वती स्तुति, सं., श्लो. ३, पद्य, वै., (शुंडाईंड प्रचंडमेक), ६६९२२-३(-) गणेश स्तोत्र, सं., श्लो. १०, पद्य, वै., (गलदल्ह दान प्रवाह), ६४१७७-१() गणेशाष्टक, शंकराचार्य, सं., श्लो. ८, पद्य, वै., (उमांगजं कर्णवक्र), ६८४४३-२(#) गर्भपरावर्तन विचार-अन्यशास्त्रोक्त, सं., गद्य, मूपू., (अत्राह कोपि शिवशासनी), प्रतहीन. (२) गर्भपरावर्तन विचार-कथा-अन्यशास्त्रोक्त, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रत्यक्ष गुरु राज्ञ), ६७९१६-६ गाथा संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, वै., (कजल विज्जल गुंद), ६७०५५-३२(-#$) गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, श्वे., (सत्तइ रत्ता मत्तइ), ६३२५४-१(+), ६६९६०-४ गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., श्लो. १३५, वि. १४४७, पद्य, मूपू., (गुणस्थानक्रमारोहहत), ६३३१८(+$), ६३९९९-६(#) (२) गुणस्थानक्रमारोह-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., वि. १४४७, गद्य, मूपू., (अर्ह पदं हृदि), ६३३१८(+$) गुरुपादुका प्रतिष्ठाविधि, सं., गद्य, मूपू., (तत्र रात्रिजागरण), ६८२३४-२१(+#) गौतम कुलक, प्रा., गा. २०, पद्य, मूपू., (लुद्धा नरा अत्थपरा), ६३३०९-५(+#), ६३३३२-२(+#$), ६५९४८-१(६) (२) गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (लोभीया मनुष्य अर्थनइ), ६३३३२-२(+#$), ६५९४८-१($) गौतमगणधर बीज मंत्र, प्रा.,सं., गद्य, स्पू., (ॐ नमो भगवओ गोयमसामि), ६५१९१-५(+#) गौतमपृच्छा, प्रा., प्रश्न. ४८, गा. ६४, पद्य, मूपू., (नमिऊण तित्थनाह), ६७६४०(+$) (२) गौतमपृच्छा-टीका, मु. मतिवर्द्धन, सं., ग्रं. १६८२, वि. १७३८, गद्य, मूपू., (वीरजिनं प्रणम्यादौ), ६७६४०(+$)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६
४८७ गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (इंद्रभूतिं वसुभूति), ६३३५८, ६८३८०-१५(२) (२) गौतमस्वामी स्तोत्र-टीका, ग. रूपचंद्र, सं., ग्रं. १७७, वि. १७६६, गद्य, मूपू., (सरस्वत्या प्रसादेन), ६३३५८ ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (जगद्गुरुं नमस्कृत्य), ६३२४७-४८(+#$), ६४४३८-७(+), ६४४३८-८(+),
६३२६६-४, ६३३५३-१, ६३०४६-३१(#$) घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, म्पू., (ॐ घंटाकर्णो महावीरः), ६५३८३-२(+) घृतपतनदोषनिवारण विधि, सं., गद्य, मूपू., (अथ कदाचित् भसवृत्त), ६८२५६-१६१(+) चंद्रधवलभूप धर्मदत्तश्रेष्ठि कथा, आ. माणिक्यसुंदरसूरि, सं., श्लो. ९८, पद्य, मूपू., (चतुर्थी कथा प्रोक्ता), ६३०६६(+) (२) चंद्रधवलभूपधर्मदत्तश्रेष्ठिकथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (चउथी कथा कही पोसह), ६३०६६(+) चंद्रप्रभजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, मपू., (ॐ चंद्रप्रभः), ६४८३०-५(+) चंद्रावेध्यक प्रकीर्णक, प्रा., गा. १७५, पद्य, मूपू., (जगमत्थयत्थयाणं विगसि), ६३०६२-६(+) चंपकश्रेष्ठि कथा, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., वि. १५वी, गद्य, मूपू., (चंपानाम नगरी सौगंधिक), ६२९५७(+) चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. ६३, वि. ११वी, पद्य, मूपू., (सावज्जजोग विरई), ६३००४(+#), ६३०६२-१(+),
६३१३९(+#), ६३३०९-४(+#), ६३४००(+), ६७६८८(+), ६३४५३-१(#) (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (चउसरणपइनाना अर्थ०), ६३१३९(+#), ६३४००(+) (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., ग्रं. ३४१, गद्य, मपू., (प्रणिपत्य महावीर), ६३००४(+#) चतुर्दशीतप पारने की विधि, सं.,मा.गु., प+ग., म्पू., (प्रथम इरिया वही पछै), ६३५८८-७(+) चतुर्विंशतिजिन स्तुति, मु. सागरचंद्र, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (जगति जडिमभाजि व्यंजि), ६३१२५-३(+) (२) चतुर्विंशतिजिन स्तुति-टीका, सं., गद्य, मूपू., (अज्ञानत्वयुक्ते), ६३१२५-३(+) चतुर्विंशतिजिन स्तुति, सं., स्तु. २४, पद्य, मूपू., (--), ६७७६५(६) चमत्कारचिंतामणि, राजऋषिभट्ट, सं., श्लो. १११, पद्य, वै., (क्वणत्किंकिणी जालकोल), ६७२८६(+#$) (२) चमत्कारचिंतामणि-बालावबोध, मा.गु., गद्य, श्वे., वै., (श्रीवामेय जिनं नत्वा), ६७२८६(+#$) चाणक्यवृद्धराजनीति, कौटिल्य, सं., अ. १८, पद्य, वै., (प्रणम्य शिरसा विष्णु), प्रतहीन. (२) चाणक्यलघुराजनीति, संक्षेप, कौटिल्य, सं., अ. ८, पद्य, वै., (प्रणम्य शंकर देव), ६७८५१-२($) चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., ग्रं. ४०१, गद्य, मूपू., (स्मारं स्मारं स्फुरद), ६३०५१-१(+), ६३०९६(+) चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (सामाइकावश्यक पौषधानि), ६३४७९(+#), ६४४६०, ६८३९५-१(#) चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान, उपा. समयसुंदर गणि, सं., वि. १६६५, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमानंद), ६३०९४-१(+#), ६३१२८(+) चातुर्मासिक व्याख्यान, मु. सुरचंद्र ऋषि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीर), ६७६६९(+#) चातुर्मासिक व्याख्यान, रा.,सं., पद्य, मूपू., (सामायिकावश्यकपौषधानि), ६८०१३(+) चातुर्मासिक व्याख्यान, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (सामायिकावश्यकपौषधानि), ६३३५०(+#) चामुंडा मंत्र विधि, सं., गद्य, वै., (ॐ नमो ॐ चामुंडे हन), ६५२०१-९(+) चार मंगल, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (चत्तारि मंगलं अरिहंत), ६८२३०-२(-) चित्रसेनपद्मावती चरित्र, आ. महीतिलकसूरि, सं., श्लो. १२३२, वि. १५२४, पद्य, मूपू., (नत्वा जिनपतिमाद्यं), ६३०८१ चैत्रीपूनम उत्थापन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (तिहां प्रथम देवभक्ति), ६८१३१-८(+) चैत्रीपूनम पारिवा विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथ देव आगैवा ज्ञान), ६८१३१-९(+) चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (उस्सप्पिणीहि पढम), ६३३१९-२, ६८०२१-१२ चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, प्रा.,रा.,सं., गद्य, मूपू., (प्रथम गोबररी गुंहली), ६८०२१-३ चैत्रीपूर्णिमापर्व व्याख्यान, सं., गद्य, मूपू., (सिद्धो विज्जाइ चक्की), ६३३१९-१ चैत्रीपूर्णिमा पूजा, उपा. समयसुंदर गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पूजा. ५, पद्य, म्पू., (उसप्पणइ पढम से), ६८१३१-१(+) चोरनाम ज्ञान श्लोक, सं., श्लो. २, पद्य, श्वे., (नामांक दशकं कृत्वा), ६७३७२-४(+#) चौदश मेलवी विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिली इरियावही तस्सु), ६८१३१-७(+)
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४८८ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१
चौदसतप आराधन विधि, पुहि.,प्रा., गद्य, मूपू., (प्रथम प्रभात श्री), ६८०२१-५ छंदोनुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., अ.८, गद्य, मूपू., (वाचं ध्यात्वार्हती), ६४०३६(+) (२) छंदोनुशासन-स्वोपज्ञ छंदचूडामणि वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, मूपू., (शब्दानुशासनविरचनानंत),
६४०३६(+) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., उ. २१, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं० रायगिहे), ६३१६३(48). ६३२९९(+#$) (२) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते काल चउथो आरो तेवा), ६३१६३(+$), ६३२९९(+#$) (२) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (सुप्रभावं जिनं नत्वा), ६८१७१(६) (२) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-कथा*, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (--), ६८१५८(+#$), ६८१५२(#$) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., वक्ष. ७, ग्रं. ४१४६, गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं० तेणं), ६३१९८(+#), ६३२१५(+$), ६३३२९(+#$),
६७५९७-१(+), ६३१५४(#) (२) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते० ते काल चउथा आरा), ६३२१५(+$), ६३३२९(+#$) जंबूद्वीपसमास, वा. उमास्वाति, सं., अ. ४, गद्य, मूपू., (सर्वजन नयनकांत नखले), ६३२७५(+) जंबूस्वामी चरित्र, प्रा., गद्य, मूपू., (--), प्रतहीन. (२) जंबूस्वामी चरित्र-चयनित संक्षेप कथा संग्रह, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पुरुष ते जीव १ अटवी), ६३५१०($) जन्मपत्री पद्धति, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., अधि. ३३, पद्य, मूपू., (प्रणम्य सारदां ज्योत), ६५०२४(+$) जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., गा. ३०, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (जय तिहुयणवरकप्परुक्ख), ६२९४७-३(+#),
६२९७०(+), ६३०६३-२(+), ६३०८९-३(+), ६३२४७-२(+#), ६३२५३-२(+), ६३२६४-३(+#$), ६५३५२-१(+#), ६५९३३(+),
६७५६५-२(+#$), ६८२५६-११(+), ६५९३८-२, ६७९६३, ६३०४६-३३(#$), ६८१२३-२८(६) (२) जयतिहअण स्तोत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (जयवंतो वर्ति), ६२९७०(+), ६३०६३-२(+) (२) जयतिहुअण स्तोत्र-भंडार गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (परमेसर सिरिपासनाह), ६७९६५-४(#) जयविजय चरित्र, सं., श्लो. ४७३, पद्य, श्वे., (जीवाई नव पयत्थे जो), ६५९२४(६) (२) जयविजय चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (जीवादीक नवपदार्थ ते), ६५९२४($) जयशेखरराजा सोममंत्रिकथा-उपकारविषये, सं., गद्य, श्वे., (विस्मरत्युपकारं नो स), ६५९२६-१(६) जयानंदकेवलि चरित्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., स. १४, ग्रं. ७५००, पद्य, मूपू., (जयश्रीर्द्विविधारीणा), ६३१७०(#$) जातकपद्धति, मु. हर्षविजय, सं., श्लो. ९३, वि. १७६५, पद्य, मूपू., (प्रणम्य पार्श्वदेवेश), ६४२२३-१(+) (२) जातकपद्धति सह टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (प्रणाम करीने), ६४२२३-१(+) जिनकुशलसूरि स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (श्रीजिनकुशल मुनींद्र), ६४८३०-११(+) जिनदर्शन श्लोक संग्रह, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (दर्शनं देवदेवस्य), ६३२६६-९ जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह), ६३१५३-३(+#), ६४८३०-३(+), ६३२६६-६,
६७९४९, ६५५९८-१(2) जिनबिंद प्रतिष्ठा कल्प, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीर), ६४५५९(+$) जिनबिंब प्रतिष्ठा कल्प, मा.गु.,सं., पद्य, श्वे., (तद्यथा सह वारक बहेंड), ६३०७२(#$) जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, आ. रत्नशेखरसूरि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वेशो विभा), ६८३६८ जिनबिंब प्रतिष्ठा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, म्पू., (पूर्वोक्त शुभ दिवसे), ६३९६४-१(+) जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), ६७६५७-४(+#) जिनबिंब प्रतिष्ठाविधि संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य स्वस्ति), ६८३३५(+) जिनबिंबप्रवेशप्रतिष्ठादि विधि, सं.,प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (--), ६८२४७($) जिनबिंबप्रवेश स्थापना विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पहिलु मुहूर्त भलु), ६४०३५-९(+) जिनमंदिर ध्वजारोहण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (तिहां प्रथम भुमी), ६६९६०-२ जिनरक्षा स्तोत्र, सं., श्लो. १८, पद्य, मूपू., (श्रीजिनं भक्तितो), ६३१५३-६(+#)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६
जिनरक्षा स्तोत्र, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., (सर्वातिशयसंपूर्णान), ६४८३०-४(+) जिनसहस्रनाम लघुस्तोत्र, सं., श्लो. ४१, पद्य, मूपू., (नमस्त्रिलोकनाथाय), ६५२३७-६(#) जिनस्तुत्यादि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (श्रीअहँतो भगवंत), ६५१९३-२४(+#) जिनाभिषेक विधि, सं., श्लो. २०, पद्य, दि., (श्रीमज्जिनेंद्रमभिवं), ६७६९५ जीवउत्पत्ति के १४ स्थान, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (वली नीत ने विषे उपजे), ६५२०४-२(+), ६४१४१-२ जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., गा. ५१, वि. ११वी, पद्य, मूपू., (भुवणपईवं वीरं नमिऊण), ६२९५५(+), ६३२५३-११(+$),
६३२८५(+), ६३३०२-१(+#), ६३३०९-१(+#), ६३३३३-१(+), ६३३४०-१(+#), ६३३५७-२(+), ६४४४३-४(+), ६४५६८-२(+), ६४५७४(+#), ६५३५२-३(+#), ६५९४६-२(+), ६५९८१(+), ६७६४६-३(+$), ६७६८५-२(+$), ६३००९-१, ६४५८८,
६५९४८-२, ६५९५६-२, ६७६४१, ६२९८५(#), ६३०४६-४२(#) (२) जीवविचार प्रकरण-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (कथं भूतंवीरं किं कृत), ६३३०२-१(+#) (२) जीवविचार प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीनभुवन विषै दीवा), ६३३४०-१(+#) (२) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीन भुवन रै विषै), ६२९५५(+), ६३२८५(+$), ६४५६८-२(+), ६४५७४(+#),
६५९८१(+), ६७६८५-२(+$), ६४५८८, ६५९४८-२, ६२९८५(#) (२) जीवविचार प्रकरण-पद्यानुवाद, मु. ज्ञानसार, मा.गु., गा. २९, वि. १८६१, पद्य, मूपू., (भुवन प्रदीपक वीर), ६३३८८-१ जीवानुशासन, आ. देवचंद्रसूरि, प्रा., अधि. ३८, गा. ३२३, वि. ११६२, पद्य, मूपू., (निम्महियरायरोसं वीरं), ६३०२७ (२) जीवानुशासन-वृत्ति, आ. देवचंद्रसूरि, सं., ग्रं. २२००, वि. ११६२, गद्य, मूपू., (अल्पश्रुतमतिसम्मत), ६३०२७ जीवाभिगमसूत्र, प्रा., प्रतिप.१०, सू. २७२, ग्रं. ४७५०, गद्य, मूपू., (णमो उसभादियाणं चउवीस), ६७६०८(+) (२) जीवाभिगमसूत्र-कठिनपद टिप्पण*, सं.,मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ६७६०८(+) जैन गाथा, प्रा., पद्य, श्वे., (उस्सासट्ठारमे भागे), ६३४९१-४२(+) जैनगाथा संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (सललमथघ्रतकाज निक्खु), ६३२६७-२(+#), ६३४८०-२, ६७९७८-९, ६७७२१-३(#) जैन धार्मिक प्रश्नोत्तर-विविधग्रंथोक्त, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (द्वादशव्रतधारक केवल), ६४६३४(+#) जैन प्रश्नोत्तर संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (श्रीनवकार मंत्र में), ६८००७ जैन मंत्र संग्रह-सामान्य, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (ॐ नमो अरिहंताणं), ६४८३०-१२(+), ६५२४७-४(+#) जैनविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (उतरासण नांखी चावलदान), ६५२३२-२(+#) जैन सामान्यकृति, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (त्रीणि स्थानानि), ६५२४४-४(+-$), ६७९३७-२(+#$). ६७९८०-१७($) जैनाचार पद्धति, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (--), ६८०७२(#$) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. १९, ग्रं. ५५००, प+ग., मूपू., (तेणं कालेणं० चंपाए), ६३०७१(+$),
६३१७१(+#$), ६३१८५(+$), ६३१९६(+#), ६३२२४(+#), ६३१९३(#$), ६७६५८() (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., अध्य. १९, ग्रं. ३८००, वि. ११२०, गद्य, मूपू., (नत्वा श्रीमन्महावीर),
६३०११ (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार श्रीमहावीरने), ६३०७१(+$), ६३१७१(+#$) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-प्रश्नशतक, संबद्ध, मा.गु., प्रश्न. १००, गद्य, मूपू., (ज्ञाताधर्मकथा साढि), ६४४८१(+), ६८०२९-१(+$),
६८०५२(+#) ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (तिहां प्रथम पवित्र), ६४५९५-५(+$) ज्ञानपंचमीपर्व व्याख्यान, मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (ज्ञानं सारं सर्व), ६८२१४-१५(+) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (पंचानंतकसुप्रपंचपरमा), ६३२४७-१७(+#), ६८२३४-६(+#), ६८२५६-७७(+),
६७८३३-२, ६८१२३-६, ६८२३५-५, ६३०४६-९(#), ६८०१८-२(-) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (शैवेयः शंखकेतुः कलित), ६४८२१-७ ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीनेमिः पंचरूप), ६४६३७-२(+#), ६७९२०-८(+) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (समुद्रभूपालकुलप्रदीप), ६७८६६-३ ज्ञानपंचमी माहात्म्य, सं., गद्य, मूपू., (यथा गुणमंजरी वरदत्ता), ६३३४२(+)
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १
४९०
(२) ज्ञानपंचमी माहात्म्य-टबार्थ, मा.गु, गद्य, मूपू (ज्ञानंसारं सर्वसंसार), ६३३४२(*) ज्ञानपद पूजा, प्रा., मा.गु., गद्य, भूपू (अन्नाण संमोहतमोहरस्स) ६८१३१-१३(+)
,
ज्ञान पहिरावणी गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (नमंत सामंतमही विनाह), ६३४०२-९(+), ६४४३८-१५(+) ज्ञानमाहात्म्यशतक, पंडित हीरालाल हंसराज, सं., श्लो. १०१, वि. १९५९, पद्य, म्पू, नत्वा जिनं वीरविभु), ६७६५० (+) ज्ञानसार, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., अष्ट. ३२, श्लो. २७३, वि. १८वी, पद्य, मूपू (ऐंद्रश्रीसुखमन), ६३२४८ (+) (२) ज्ञानसार-स्वोपज्ञ टबार्थ, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऐंद्रवृंदनतं नत्वा), ६३२४८(+#)
ज्योतिष, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., जै., वै., (--), ६३७३२-३ (+$), ६३७४९-२ (+), ६५०९७-१ (+#), ६५९३९-२(+#$), ६५९४६-३(+),
"
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६५९३८-१
ज्योतिष लोक, मा.गु., सं., पद्य, वै., (ज्येष्टार्क पश्चिमो), ६७८५२-२ (-$)
ज्योतिष श्लोक संग्रह, सं., श्लो. ३०, पद्य, श्वे., (राजयोग अजवृषकर्क), ६४२४४-२(+), ६४२४६-२(+)
ज्योतिषसार आ. नरचंद्रसूरि सं., श्लो. २९४, पद्य, म्पू, (श्रीअर्हतजिनं नत्वा), ६३४९५ (+), ६३६५९-१(+), ६३९३१-१००), ६३९४६(+*), ६४०२७-१(+), ६४०४२(+३), ६४०४३(०), ६४०४४४• ६४०७६ (+०६), ६४२४०-१(०), ६४२४२(+), ६४२४४-१(+), ६४२४६-१(०३), ६३९३४(५) ६३९३५ (४), ६५०४८ (४७)
(२) ज्योतिषसार-यंत्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचंद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (सरस्वतीं नमस्कृत्य), ६४२४२ (+), ६४२४४-१ (+), ६४२४६-१(०) ६३९३५(१)
(२) ज्योतिषसार-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीअरिहंतभगवानने), ६३९३१-१(+#), ६४०२७-१ (+), ६४२४०-१(+) (२) ज्योतिषसार - लघुनारचंद्र ज्योतिष, संक्षेप, मा.गु., सं., प+ग., मूपू., (अर्हतं जिनं नत्वा), ६३७३६(+) ज्योतिष सारणी, पंडित. चंडू, सं., पद्य, वै., (श्रीमद्योधपुरे), ६५१९२-१८+माड)
"
ज्योतिषसारोद्धार, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., अ. ३, श्लो. ३३७, ग्रं. ५००, पद्य, म्पू., ( तं नमामि जिनाधीश), ६७५९८-२(+) ज्वालामालिनी स्तोत्र, सं., गद्य, मूपू., (ॐ नमो भगवते श्रीचंद), ६७५६९-३००, ६५५१३-३०)
तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक, प्रा., प+ग., मूपू., (निज्जरिय जरामरणं), ६७६१९(+)
"
(२) तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू. (तप जप संजमनइ वलइ), ६७६१९(*) तत्वार्थाधिगमसूत्र वा उमास्वाति सं., अ. १०, गद्य, म्पू, दि., (सम्यग्दर्शनशुद्ध), ६३१४७-१(+), ६५०९७) (२) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-नयअधिकार, हिस्सा, वा. उमास्वाति, सं., पद्य, मूपू., (नैगमसंग्रहव्यवहारज), प्रतहीन. (३) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र - नयअधिकार- विवेचन, पुहिं, गद्य, मूपू., दि., ( नैगमसंग्रह व्यवहारऋज), ६८११५ (+०) तपग्रहण विधि, प्रा.मा.गु., गद्य, भूपू (प्रथम हरियावही पडिक), ६८१३१-२(+), ६८०२१-१
तपग्रहणविधि संग्रह, प्रा. मा.गु. सं., पद्य, मूपू (प्रथम इरियावही पडिकम) ६२९४५-३(*)
.
तपपारणा विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम इरीयावहि), ६८१३१-३ (+), ६८०२१-२
तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., गा. १४, पद्य, मूपू. (तिजयमहुत्तपवासय अट्ट), ६३१५३-७(+), ६३२४७-४(+०), ६३२५३-५(१),
६५९२०-४(+), ६८२५६-१७४(+), ६३०४६-३९(१), ६८०१८-२४(४)
तिथिनक्षत्र वेध, सं., श्लो. ४, पद्य, श्वे. (नंदा च रोहिणी वेधाः), ६४२४४-४(+)
तीर्थमाला स्तोत्र, आ. महेंद्रसिंहसूरि प्रा. गा. १११, वि. १४बी, पद्य, मूपू., (अरिहंतं भगवंत), ६७६८०
"
तीर्थयात्रा नमस्कार, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू (-), ६७५६९-१ (+०३)
"
"
तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू (सद्भक्त्वा देवलोके), ६३२५२-३ (+), ६७९८१-२ (०) ६८२३४-१७(+), ६३२६६-८ तेजसारनृप कथा, प्रा., गद्य, मूपू., (जिणबिंबाणं पुरउ दीव), ६२९५१ (+)
तेरापंथी चर्चा, मु. शीलविजय, प्रा., मा.गु., प+ग, वे., (छ लेस्या हुंति वीर ), ६८०३५
त्रिपुराभवानी स्तोत्र, आ. लघ्वाचार्य, सं., श्लो. २४, पद्य, वै., (ऐंद्रस्यैव शरासनस्य), ६७६९६-३ (#)
""
त्रिवर्णाचार प्ररूपण, मु. सोमसेन, सं., अ. १३, श्लो. २७००, वि. १६६७, पद्य, दि. (श्रीचंद्रप्रभदेवदेव), ६३१७४/+#5) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पर्व. १०. ग्रं. ३५०००, वि. १२२०, पद्य, मूपू..
(सकलार्हत्प्रतिष्ठान), प्रतहीन.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६
(२) सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. २६, वि. १२वी, पद्य, मृपू., (सकलात्प्रतिष्ठान),
६४१६०-१(+), ६४४४३-२ (७), ६७६४५, ६७६७८-१(०)
दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., गा. ४५, वि. १५७९, पद्य, मूपू., (नमिउं चउवीसजिणे तस्स), ६२९८४(+), ६२९८८ (+), ६३०८३ (+$),
६३३०२-३(+०), ६३३०९-३ (+४), ६३३३३-२(+), ६३३५५-१(+), ६४४४३-६(+), ६५३५२-५ (+०), ६५९३२-१(+४),
६७५५६(+), ६७५८६(+), ६७६४६-४१+१, ६७६४७(+६), ६७६६२-१(+४), ६३००९-२ ६३९६० ६५९७५ ६५९८३, ६७६३८, ६३०४६-४४(#), ६५९५६-३(5), ६७६७८-२ (-#)
(२) दंडक प्रकरण- व्याख्या, मा.गु., गद्य, मूपू., (चवीस तीर्थंकर) ६३९६०
(२) दंडक प्रकरण- टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (नत्वा चतुर्विंशति), ६५९३२-१ (+5)
(२) दंडक प्रकरण- टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (नत्वा चतुर्विंशतिजिन), ६३३०२-३(+#)
(२) दंडक प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (थमा १ वंसा २ सेला ३), ६३०८३(+$)
(२) दंडक प्रकरण- टबार्थ, मु. यशसोम-शिष्य, मा.गु., गद्य, म्पू., (ऐंद्रराजं जिनं नत्वा), ६२९८८(+), ६७६४७ (+६)
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(२) दंडक प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऋषभादिक २४ जिननै), ६२९८४(+), ६३०८३ (+$), ६७५८६(+), ६५९८३ (२) दंडक प्रकरण - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिउं क० नमस्कार), ६७६३८
(२) दंडक प्रकरण पद्यानुवाद, मु. ज्ञानसार, मा.गु. गा. २६. वि. १८६९, पद्य, मूपू (ऋषभादिक चौवीस नमि), ६३३८८-३ दक्षिणावर्त्तख विधि, सं., गद्य, वै., (ॐ ह्रीँ श्रीधर ), ६६९६०-५
,
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि प्रा. अध्य. १० चूलिका २ वी. रवी, पद्य, मृपू., (धम्मो मंगलमुट्ठि), ६३०२८ (+), ६३०६१(+३), ६३०७९(+), ६३०९७(+०३), ६३१६७/**७), ६३१७९(+४७), ६३२०७(+), ६३२४४(+), ६३२४७-४ जना), ६३२५५ (+३), ६३३३३-३(+), ६४५६९(+), ६४६२९(+), ६४६३१(+), ६५९२९-३(+), ६७६१६ (+४), ६७६२३(+७), ६७६७५(+), ६७६७६(+), ६३१६१, ६७६०६, ६८१२५, ६७५५२ (#$), ६३२८४ (६), ६३४८१(३)
(२) दशवैकालिकसूत्र- टीका, आ. तिलकाचार्य, सं. ग्रं. ७०००, वि. १३०४, प+ग., मूपू., (अर्हतः प्रथयंतु), ६७६७५ (+) (२) दशवैकालिकसूत्र - बालावबोध, उपा. राजहंस, मा.गु., गद्य, मूपू. (नत्वा श्रीवर्द्धमान), ६७६०६
(२) दशवैकालिकसूत्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, भूपू., (धर्म सर्वोत्तम मांगल), ६८१२५
६४२३८
दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. दशा १० ग्रं. १३८०, पद्य, मूपु. ( नमो अरिहंताणं० हवइ), ६३०१८
"
1
(२) दशवैकालिकसूत्र - टबार्थ, मु. श्रीपाल, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीजिनधर्म उत्कृष्ट), ६४६३१(+#)
(२) दशवैकालिकसूत्र - टवार्थ * मागु, गद्य, भूपू (ध० जीवन दुर्गति), ६३०२८ (+), ६३०६१(+), ६३०९७ (+४७),
"
६३१६७/**७), ६३१७९(+*३), ६३२०७(+), ६३२५५ (+5), ६४५६९(+), ६४६२९(+), ६७६२३ (+३), ६७६७६(*), ६३१६१ (२) दशवैकालिकसूत्र-गुढार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (उदेसीयं केता आधाकरमी), ६३९९५
(२) दशवैकालिकसूत्र - हिस्सा द्रुमपुष्पिका प्रथम अध्ययन, आ. शव्यंभवसूरि, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू (धम्मो मंगलमुट्ठि), ६३२६०-४(+), ६८२३०-१(
(२) दशवैकालिकसूत्र - सज्झाय, संबद्ध, वा. कमलहर्ष, मा.गु., अ. १०, वि. १७२३, पद्य, मूपू., (मंगलिक महिमा निलो रे), ६४२३६(१)
(२) दशवैकालिकसूत्र - सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., अ. १०, वि. १७१७, पद्य, मूपू., (धर्ममंगल महिमा निलो),
६३४३२-१(+), ६३५६६ (+), ६४१७९-१(०), ६४५७५-५ (०१), ६७०७६-१५०, ६३४२३-१, ६४४७८, ६४१५५-६०(A) (२) दशवैकालिकसूत्र - सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., सज्झा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीगुरूपदपंकज नमीजी), ६७०२४(+$),
"
(२) दशाश्रुतस्कंधसूत्र - नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गा. १४९, पद्य, म्पू. (वंदामि भदबाहु), ६३०१८ (२) दशाश्रुतस्कंधसूत्र - चूर्णि#, प्रा., सं. ग्रं. २२२५, गद्य, मूपू., (मंगलादीणि सत्थाणि०), ६३०१८ दानप्रकाश, ग. कनककुशल, सं., प्रका. ८. ग्रं. ८३४, वि. १६५६, पद्य, मूपू. (श्रीपार्थः पार्थ), ६३०६४(*) दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा. गा. ५०, पद्य, स्था. (देवाहिदेवं नमिऊण), ६२९९३ (+) (२) दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, स्था., (देवाधिदेवनइं नमस्कार), ६२९९३(+#) दानशीलतपभावना कुलक, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. वक्ष ४, गा. ८१, पद्य, मूपू (परिहरिय रज्जसारो) ६७६१४, ६८२४२(६)
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १ (२) दानशीलतपभावना कुलक-धर्मरत्नमंजूषा टीका, ग. देवविजय, सं. ग्रं. १२०१६, वि. १६६६, गद्य, मूपू. (ॐ नमो नाभिभूपाल संभव), ६८२४२(३)
(२) दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (परिहरिउं छाडिउ स ग), ६७६१४
दिनकृत्य पूजाविधि, मा.गु. सं., प+ग, थे. (प्रथम इरिवावही ४) ६७५८५-१(+)
"
दिवालीकल्प, सं., गद्य, भूपू (श्रीगौतम गणाधीशो), ६३३२३-२
1
दीपशिखराजा कथानक - दीपपूजा विषये, सं., गद्य, मूपू., (दाऊण दीव यं जा), ६३०४७-११(#)
दीपावली पर्व कथा, सं., गद्य, मूपू., (--), ६२९९४-१ (+०६)
दीपावली पर्व कल्प, आ. जिनसुंदरसूरि सं., श्लो. ४३७, ग्रं. १५०० वि. १४८३, पद्य, मूपू. (श्रीवर्द्धमानमांगल्य), ६३०४८(४०), ६३३०८(०) ६३४३० (+)
(२) दीपावलीपर्व कल्प- बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (मंगलिक दीवा सरीखी), ६३४३० (+$)
(२) दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, (अर्हते बालबोधीनां), ६३०४८(+)
दीपावलीपर्व कल्प, आ. विनयचंद्रसूरि, सं., श्लो. २७८, वि. १३४५, पद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ६३३२३-१
दीपावलीपर्व कल्प, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. २७८, पद्य, मूपू., (संतु श्रीवर्द्धमान), ६५९४५ (+)
दीपावली पर्व कल्प, सं., गद्य, भूपू., (चतुरशीतिलब्धनिधानस्य), ६२९९४-२ (+०)
दीपावली पर्वगुणन विधि, मा.गु. सं., गद्य, से., (ॐ ह्रीं श्रीं महावी), ६८२३७-४९(+४)
"
दीपावलीपर्व व्याख्यान, सं., प्रा., गद्य, मूपू., (जाते वीरजिनस्य निवृत), ६४६२१
दीपावलीपर्व व्याख्यान, मा.गु. सं., श्लो. ४, प+ग, भूपू (पापायां पुरि चारु), ६८१३५-४०), ६८१८२(५)
दीपावलीपर्व स्तुति, गच्छा. जिनचंद्रसूरि, सं., श्लो. ४, वि. १७वी, पद्य, म्पू, (पापायां पुरि चारु), ६३२४७-८(१), ६३०४६-२१(१) दुरिअरवसमौर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. ४४, पद्य, मूपू. (दुरिअरयसमीर मोहपंको), ६३२५३-९(+), ६६३६३-१(+३),
६३५३० - २, ६३०४६-४१ (#$)
दुर्गा स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, वे. (या अंबा मधुकैटभप्रमथ), ६६९२२-४-०
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,
दुषमकाल आगमिक श्रुतस्थिती प्रमाणादि प्रश्नोत्तर विचार, पुठि, प्रा. सं., अधि. ५, गद्य, मूपू. (इस वक्त में श्रीजिन), ६४२३२ (५) दुहा संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, ? (अनमिलनी बहुतई मिलई), ६७९५०.५)
दृष्टांतकथा संग्रह, प्रा.मा.गु. सं., गद्य, मूपू (रे दालिवियक्खणवत्), ६८३८७(+), ६३४०१-१(३), ६८१२९(६)
देवपूजा, प्रा.मा.गु., प+ग. म्पू, णमो अरहंताणं णमो सिद), ६५५८१-१
देवपूजा विधि, सं., प+ग., दि., ( जय जय जय णमोस्तु०), ६५०९७-४(+#)
देववंदन विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (नमोत्थुणं कहीने भगवन), ६४६४७-६(-$)
देवसिप्रतिक्रमण विधि- खरतरगच्छीय, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, भूपू (इच्छामि खमासमणो बंदि), ६७०७४-३(+), ६७६५७-३(०),
"
६८१३७-१००६), ६७६९४-२(३)
द्रव्यगुण शतश्लोकी, त्रिमल्ल भट्ट, सं., श्लो. १०९, पद्य, वै., (श्रीकंठं गिरिजागणेशस), ६४३०४(+#$)
(२) द्रव्यगुण शतश्लोकी-टबार्थ, क. रूपचंद, रा., वि. १८३१, गद्य, मूपू., वै., (गिरिजा क० पार्वती), ६४३०४(+#$)
द्रव्य संग्रह, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा. अधि. ३, गा. ५८, पद्य, दि., (जीवमजीवं दव्वं जिणवर), ६७६५५ (का धनंजयनाममाला, जे. क. धनंजय, सं. लो. २११, पद्य, दि., (तन्नमामि परं ज्योति), ६४०३८-१(+), ६७४३३(+)
"
धनपति कथा-सुपात्रदाने, सं., गद्य, मूपू., (अचलपुरे नगरे सुरतेजो), ६३५३७-१० (+)
धन्यपुण्यकर्मकर कथानक पानाहारे, सं., गद्य, भूपू (कांत्यानगय), ६३५३७-७(०) धरणेंद्रपद्मावतीमंत्रसाधनविधि संग्रह, सं., गद्य, म्पू, (35 हीं हम्लव्य), ६७६९६-२ (४)
धरणोरगेंद्र महाविद्या स्तोत्र, सं. लो. ३९ प+ग. जे. बी. (अथातो जांगुलीनाम महा), ६७८५८-३(३)
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,
+
धर्मध्यान चतुर्विध आलंबन कथा, प्रा., मा.गु., कथा. ४, गद्य, मूपू (धर्मकथा तेसु जे भाव), ६८३३० धर्मध्यान लक्षण, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (धम्मेज्झाणे चडविहे), ६३४१३-१(+)
धर्मपरीक्षा, मु. मतिसागर सं., पद्य, भूपू., (-), प्रतहीन.
(२) धर्मपरीक्षा रास, संबद्ध, पुहिं., पद्य, मूपू., (पणऊं अरिहंत देव गुरु), ६४६५६(+)
י
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४९३
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६
धूपपूजा श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (वनस्पती रसोत्पन्न), ६५१९२-१६(+#) धूर्ताख्यान, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., आख्या. ५, पद्य, मूपू., (नमिऊण जिणवरिंदे तिअस), प्रतहीन. (२) धूर्ताख्यान-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सदुपनिषदनेकग्रंथसंदर), ६७६६८(#$) ध्वजभुजंग कथा-वस्त्रदाने, सं., गद्य, मूपू., (उज्जयिनी प्रत्यासन्न), ६३५३७-९(+) नंदीद्वीपस्थजिनालय स्तुति, सं., श्लो. ५३, पद्य, मूपू., (दिशि श्रीपूर्वस्या), ६४१७९(+#) नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., सूत्र. ५७, गा. ७००, प+ग., मूपू., (जयइ जगजीवजोणीवियाणओ), ६३२१९(+), ६३३६३(+#$),
६३३०५(#), ६३३१६(#$), ६४५७३(#) (२) नंदीसूत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, म्पू., (अथ नंदि इति कः), ६३२१९(+) (२) नंदीसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (नंदी ते आनंदनी देण), ६३२१९(+) (२) नंदीसूत्र सज्झाय, संबद्ध, मु. शिवचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुगुण सोभागी हो), ६४६२२-३, ६८०३६-१(६) नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद. ९, पद्य, मूपू., (णमो अरिहंताण), ६४६२४-३(+), ६७५७७-१(+), ६४०१९-१ (२) नमस्कार महामंत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मूपू., (बारसगुण अरिहंता), ६३२९४(+), ६३४०४(+), ६३४४७(+), ६४०१९-१ (३) नमस्कार महामंत्र-बालावबोध का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (बार गुण अरिहंताना १२), ६३२९४(+) (२) नमस्कार महामंत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार अरिहंतनइ काज), ६४६२४-३(+) (२) नमस्कार महामंत्र-कथा संग्रह, मा.गु., कथा. ६, गद्य, मूपू., (एह श्रीनउकार भावसहित), ६३४६८(#$) (२) नमस्कार महामंत्र-गुणन दोहा, संबद्ध, रा., दोहा. ३, पद्य, मूपू., (आठ सहस त्रिणसै अधिक), ६३००२-२(#) नमस्कारमहामंत्र कल्प, सं., गद्य, मूपू., (पंचादिपदानां परमेष्ट), ६३१४४ नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, पं. धर्मसिंह पाठक, प्रा.,मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (कामितसंपय करणं तिम), ६५१९२-१(+#) नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (नमिऊण पणयसुरगण), ६२९४७-२(+#), ६७५७०-१(+#) (२) नमिऊण स्तोत्र-टीका, आ. जयप्रभसूरि, सं., गद्य, मूपू., (अहं मुनेः श्रीपार्श), ६७५७०-१(+#) नयचक्र, मु. माइल्लधवल, प्रा., गा. ४२५, पद्य, दि., (दव्वाविस्स सहावा), प्रतहीन. (२) नयचक्र-भाषावचनिका, श्राव. हेमराज शाह, पुहिं., वि. १७२६, गद्य, दि., (वंदो श्रीजिनके वचन), ६८३७७(+$) नरपतिजयचर्या, क. नरपति, सं., अ.५, वि. १२३२, प+ग., वै., (अव्यक्तमव्ययं शांत), ६७५९८-३(+) नलदमयंती चरित्र, सं., पद्य, म्पू., (--), ६३०९५(#$) नवग्रह पूजा, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., श्लो. २०, पद्य, मूपू., (पद्मप्रभजिनेंद्रस्य), ६५९३४-१ नवग्रहपूजा प्रकार विधिसहित, सं., गद्य, मूपू., (कस्मिन् रिष्टग्रह), ६५९३४-२ नवग्रह शुभाशुभफल श्लोक, सं., श्लो. १६, पद्य, श्वे., (भानुः षष्ठस्तृतीयश्च), ६४०२७-३(+) नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., गा. ६०, पद्य, मूपू., (जीवाजीवा पुण्णं पावा), ६२९७९-१(+), ६३१००(+), ६३११२(+$), ६३१२३(+),
६३१२९(+), ६३१३२(+#$), ६३१३५(+#), ६३१३६(+), ६३२५३-१०(+), ६३२६९(+), ६३२७०(+#$), ६३२७२(+s), ६३२८८(+), ६३३०२-२(+#), ६३३३६(+), ६३३५६(+#), ६३३५७-१(+), ६४४४३-५(+), ६४५६८-१(+), ६५३५२-४(+#), ६५९२८(+), ६५९३९-१(+#), ६५९४६-१(+), ६६९२९(+#), ६७५५८(+#), ६७६४६-२(+), ६७६८५-१(+), ६३००९-३,
६३१४०, ६५९५६-१, ६७५७१, ६३०४६-४३(#), ६३४७२(#s), ६४४७४(#$), ६८०७७(#s), ६७९९३($) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टिप्पण*, सं., गद्य, मूपू., (जीवति दशविधान), ६३३०२-२(+#) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, पं. सुमतिकलश, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिऊण महावीरं नरिंद), ६३१००(+) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, पू., (१ जीवतत्त्व २ अजीवतत), ६३३५६(+#) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व अजीवतत्त्व), ६३२७०(+#$), ६३६१७(+$), ६५३०५, ६८१४५,
६८३६०, ६३४७२(#$), ६७९९३($) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (साचउ वस्तुनउ स्वरूप), ६३११२(+5), ६३१२३(+) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीव कहतांच्यार), ६२९७९-१(+), ६३१२९(+), ६३१३२(+#$), ६३१३५(+#),
६३१३६(+), ६३२६९(+), ६३२७२(+5), ६३२८८(+), ६४५६८-१(+), ६५९३९-१(+#), ६६९२९(+#), ६७५५८(+#), ६७६८५-१(+)
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४९४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१
(२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (दश प्राण धारई ते), ६३३३६(+) (२) नवतत्त्व प्रकरण-पद्यानुवाद, मु. ज्ञानसार, मा.गु., गा. ३३, वि. १८६१, पद्य, मूपू., (नमस्कार अरिहंतने), ६३३८८-२ (२) नवतत्त्व प्रकरण-गाथार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ६४४७४(#$) (२) नवतत्त्व प्रकरण-२५ बोल, संबद्ध, मु. रत्नचंद्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ६८०२९-२(+$) (२) नवतत्त्व प्रकरण-प्रश्नोत्तर, सबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (नवतत्व माह्यथी), ६८२०४(5) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहेलो जीवतत्त्व बीजो), ६३४७३(+), ६८३३४(+#) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवे विवेकि सम्यग्दृष), ६८२८०-१ (२) नवतत्त्व प्रकरण-बोल संग्रह, संबद्ध, श्राव. दलपतराय, मा.गु., वि. १८१२, गद्य, मूपू., दि., (श्रीवर्द्धमानाय श्री), ६८२८७ (२) नवतत्त्व प्रकरण-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व अजीवतत्त्व), ६८१५३-२(+), ६७९९४, ६८०६९,
६८३९२(६), ६७९४६-२१(-) नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., गा. १०७, पद्य, मूपू., (जीवाजीवापुन्नं पावा), ६३३०९-२(+#) नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पूजा. ९, पद्य, मूपू., (उपन्नसन्नाणमहोमयाण), ६३५२०-१(+), ६५२९७(+),
६७९६८(+), ६८३२८(+#), ६८४०२(+#), ६४१७३, ६७९९८-२,६८०३२,६८१७३-१, ६८२१५(#), ६८२२०(#),
६८०७८-२(5) नवपद स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु.,सं., गा. १४, पद्य, मूपू., (अरिहंत पद ध्यातो), ६३४०२-१(+) नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., स्मर. ९, प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं हवइ), ६३२५२-१(+), ६३३०४(+#),
६४४३८-२(+६), ६७५७३(+#$), ६७५८१(+$), ६७६२९-१(+#), ६७९५२(+$), ६२९४१-१, ६३२६६-१, ६५९६४, ६३१११(#$),
६३९५३-१(2) (२) नवस्मरण-टबार्थ *मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतनई माहरो), ६३२५२-१(+), ६४४३८-२(+$), ६३२६६-१ नागदत्त कथा-अष्टाह्निकातपविषये, सं., गद्य, मपू., (अत्रैव भरते कुसुमपुर), ६३०४७-५(#) नाभाकराज चरित्र, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., श्लो. २९५, वि. १४६४, पद्य, मूपू., (सौभाग्यारोग्यभाग्योत), ६३३३० निर्वाणकांड, प्रा., गा. ४७, पद्य, दि., (अद्वावय मिउसहो चंपार), ६५२००-४ (२) निर्वाणकांड-(पु.हि.)पद्यानुवाद, जै.क. भैया, पुहिं., गा. २२, वि. १७४१, पद्य, दि., (वीतराग वंदों सदा भाव), ६५२००-२,
६५५८१-५, ६५२५७-५(#) निशीथसूत्र, प्रा., उ. २०, ग्रं. ८१५, गद्य, मूपू., (जे भिखु हत्थ कम्म), ६३२४३(+#) (२) निशीथसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जे जे साधु ह० हस्तक), ६३२४३(+#) नीतिशतक, भर्तृहरि, सं., श्लो. १०९, पद्य, वै., (दिक्कालाधनवच्छिन्न), ६४३९९(+$), ६७४४०-२ (२) नीतिशतक-टीका, पा. धनसार उपाध्याय, सं., वि. १५३५, गद्य, मूपू., वै., (युगादिदेवोप्ययुगादि), ६४३९९(+$) नेमिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (कमलवल्लपनं तव राजते), ६४८२१-५ नेमिजिन स्तुति, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (जिगाय यः प्राज्यतरः), ६४१७७-८(१) नेमिजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (परमानं क्षुधात), ६८२५६-५४(+) पंचकल्याणकतपउच्चरण विधि, पुहिं.,प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (नवविहे पुन्ने पन्नते), ६८०२१-६ पंचकल्याणक स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (नाभेयं संभवं तं अजिय), ६३२४७-१४(+#), ६६३६३-५(+), ६३००६-१(६) पंचजिन स्तवन-हारबंध, आ. कुलमंडनसूरि, सं., श्लो. २३, पद्य, मूपू., (गरीयो गुण श्रेण्यरीण), ६४१७७-१९(#$) पंचपरमेष्ठि स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (अहँतो भगवंत इंद्र), ६८१३५-१४(+) । (२) पंचपरमेष्ठि स्तुति-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अहँतभगवंत अशरणशरण), ६८१३५-१४(+) पंचमीतपउच्चारण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम गुरु आगल आवी), ६३५८८-४(+), ६८१३१-४(+), ६३३१९-४ पंचसंग्रह, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., गा. ९९१, पद्य, स्पू., (नमिउण जिणं वीरं सम्म), ६४४५८($) (२) पंचसंग्रह-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., ग्रं. १८८५०, गद्य, मूपू., (अशेषकर्मद्रुमदाहदाव), ६४४५८($) पंचाख्यान वार्तिक, सं., श्लो. ४८, पद्य, श्वे.?, (कुश्रितं कुप्रनष्ट), ६७९११(+#$) (२) पंचाख्यान वार्तिक-बालावबोध, मा.गु., ग्रं. १५००, गद्य, श्वे.?, (दक्षिणदेश तिहां महिल), ६७९११(+#S)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६
(२) पंचाख्यान वार्तिक- कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे. ? (कोइक नगरे श्रीपतीसेठ), ६७९११ (००६) पंचिंदियसूत्र, प्रा. गा. २, पद्य, भूपू (पंचिदिअ संवरणो तह), ६४६२४-४(+)
יי
पउमचरिय, आ. विमलसूरि, प्रा., पर्व. ११८, गा. ८६५१, ग्रं. १२०००, ई. ३वी, पद्य, मूपू., (सिद्ध सुर किन्नरोरग), ६३२११(+#$)
पक्खि चमासी संवत्सरी पडिक्रमण विधि, प्रा. गा. ३, पद्य, म्पू (मूहपत्ति वंदिणय), ६४९४९.९(३)
पच्चक्खाण गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., ( फासियं पालियं चेव), ६८१८०-५
पट्टावली*, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीर), ६३२३५-२(#), ६३६२० (#$), ६५३१२(s) पट्टावली खरतरगच्छीय, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (गुब्बरग्रामवासी वसु), ६३०९४-२ (+#) पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य त्रिविधं ), ६७०३४
पद्माकर कथा, सं., गद्य, मूपू., (पुष्पपुरे शेखरोराजा), ६३५३७-४(+)
पद्मावतीदेवी अष्टक, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (श्रीमद्गीर्वाणचक्र), ६५९६८($)
"
(२) पद्मावतीदेवी अष्टक पार्श्वदेवीय वृत्ति, ग. पार्श्वदेव, सं. ग्रं. ५००, गद्य, म्पू, (प्रणिपत्यं जिनं देवं), ६४८४७, ६५९६८(इ) पद्मावतीदेवी स्तव, सं., लो. २७, पद्य, मृपू (श्रीमद्गीर्वाणचक्र), ६३५५४(+०३), ६५९५५ (+), ६६५९६-२(+), ६७५६९-४(+०),
3
६७९८१-१(+), ६५४६२, ६५९६३, ६७६८७, ६७९५३, ६५५१३-२(#), ६७६९६-१(#), ६८१२६ (#S), ६५५७२-१ ($), ६५९६२(६)
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पद्मावतीदेवी स्तोत्र - पूजनविधि सहित, आ. पृथ्वीभूषणसूरि, मा.गु. सं., श्लो. ३९, पद्य, वे (अस्य श्रीमंत्रराजस्य), ६५९६१(३) पद्मावती मंत्रजाप विधि सहित, सं., प+ग, मूपू., (ॐ ह्रीं नमो भगवती), ६६५९६ - १ (+), ६७९९१-३(+#) पद्मावतीसहस्रनाम स्तोत्र, सं., शत. १०, श्लो. ११६, पद्य, मूपू., (प्रणम्य परया भक्त्या), ६७६६०- २ (+), ६७९९१-२(+#) परमाणुपरिणाम भांगा कोष्टक, ग. नयविजय, प्रा., मा.गु., पद्य, मूपु (परमाणु पोलेणं), ६३३१७(*) परमात्म प्रकाश, मु. योगींद्रदेव, अप., गा. ३४५, वि. ६वी, पद्य, दि., (जे जाया झाणग्गियए), प्रतहीन. (२) परमात्मप्रकाश-पद्यानुवाद, मा.गु., पद्य, म्पू, दि., (परम ज्योति प्रणम्), ६८१६३ (+४)
पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ५, पद्य, मृपू., (ॐ नमः पार्श्वनाथाय), ६८३४४-१० (+४ पार्श्वजिन चैत्यवंदन - चिंतामणि, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (पार्श्वनाथ नमस्तुभ्य), ६४४४३-१ (+$)
परमात्म स्तुति, सं. श्री. ६, पद्य, भूपू (दर्शनं देवदेवस्य), ६३२५२-४/+
"
५
परमानंद स्तोत्र, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., श्लो. २५, वि. १८वी, पद्य, भूपू (परमानंदसंपन्न), ६७९९१-१४ (००), ६५५१३-४/०१ पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., गा. ७०, ग्रं. २४५, पद्य, मूपू., (नमिउण भणइ एवं भयवं), ६३३१० (+), ६३६६१(+#), ६३२८३ (२) पर्यंताराधना-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करिने), ६३३१० (+), ६३६६१ (+#), ६३२८३
(२) पर्यताराधना चयन, प्रा., गा. ४०, पद्य, मूपू. (नमिउण भणइ एवं भवनं), ६४२०८-१(३)
(३) पर्यताराधना-चयन का बालावबोध, मा.गु., गद्य, भूपू. (पहिली पहिकमि इरियावह), ६४२०८-१(३) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., श्लो. ६२४, वि. १७८९, पद्य, म्पू. (स्मृत्वा पार्थ), ६३१८७(+०३), ६८३८४-१ (२) पर्युषणाष्ठाह्निका व्याख्यान टवार्थ *, मा.गु., गद्य, भूपू (स्मृ० श्रीपार्श्वनाथ), ६३१८७ (+) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, आ. लक्ष्मीसूरि, सं., व्याख. ३, वी. १६६९, गद्य, मूपू., (सामायिकप्रमुखशिक्षाव), ६३२९८ (२) पर्युषणाष्ठाह्निका व्याख्यान टबार्थ, मा.गु, गद्य, मूपू (हिवे सामायक प्रमुख), ६३२९८
"
पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि सं., श्लो. ४, पद्य, भूपू (स्नातस्याप्रतिमस्य), ६३२५२-२(+), ६४२२२-२ (+), ६४४५९-१(+), ६४६३७-३(+४), ६७५७०-३(+०), ६८२३४-९(+४) ६३२६६-१०, ६७०५१-२ ६७७२६-४, ६७८९२-१३, ६४०११-८) (२) पाक्षिक स्तुति - टीका, आ. जयप्रभसूरि, सं., गद्य, मूपू., (स श्रीवर्द्धमानो), ६७५७०-३(+#)
(२) पाक्षिक स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्नान कराव्यु छे), ६३२५२-२ (+), ६३२६६-१०
पार्श्वजिन अष्टक - महामंत्रगर्भित सं. लो. ८, पद्य, भूपू (श्रीमदेवेंद्रवृंदा), ६७९५६
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पार्श्वजिन चैत्यवंदन- यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (वरसं वरसं वरसं वरसं), ६४९७७-४(#) पार्श्वजिन पद्मावतीदेवी छंद, मु. हेम, मा.गु., सं., गा. १२, पद्य, मूपू., (श्रीकलिकुंडंतुंड), ६३५८५-२ (#) पार्श्वजिन मंत्रविधान- कलिकुंड, मा.गु. सं., मंत्र. १, गद्य, मूपू., (ॐ नमो भगवते ॐ हाँ), ६५१९१-८(+) पार्श्वजिन मंत्रविधान-नमिऊण, प्रा. मा.गु., मंत्र. १, गद्य, भूपू (ॐ ह्रीं अहं नमीऊण), ६५१९१-७ (क)
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., श्लो. ३३, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वः पातु वो), ६३१५३-९(००), ६४८३०-२०), ६७५७७-२(+), ६७९५४(५)
पार्श्वजिनमहिम्न स्तोत्र, आ. रघुनाथ, सं., श्लो. ४१, वि. १८५७, पद्य, स्था., (महिम्नः पारं ते परम), ६७३७२- १(+#) पार्श्वजिन यमकाष्ठकवद्ध स्तोत्र- रावणमंडन, मु. कर्मसागर पाठक, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपु. ( ध्यायंति राज्ञो विभव), ६३१२५-२(*) (२) पार्श्वजिन यमकाष्टकबद्ध स्तोत्र - रावणमंडन - अवचूर्णि, मु. देवकल्लोल, सं., गद्य, मूपू., (सवणकि रावणग्रामे के), ६३१२५-२(+)
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पार्श्वजिन लघुस्तवन- इरियापथिकी मिथ्यादुष्कृत विचारगर्भित, उपा. समयसुंदर गणि, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (मणुयातिसव तिडुत्तर न), ६५९७८-६(+)
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पार्श्वजिन वृद्धस्तवन, मु. रत्नसोम, सं., श्लो. १४, पद्य, मूपू., (श्रीगीर्वाणप्रणतां), ६४१५१-३२(+) पार्श्वजिनसहस्रनाम स्तोत्र, सं., श्लो. १२९, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथं वामे), ६७५७४(+) पार्श्वजिन स्तव, मु. जिनचंद्र, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू (भुजंगलक्षणलक्षिण), ६४९७७-१३(१) पार्श्वजिन स्तव, श्राव. वेल्हण, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (जयति भुजगराजप्राज्य), ६३१२५-१(+) (२) पार्श्वजिन स्तव टीका, मु. देवकल्लोल, सं., गद्य, मूपू. (तन्यातमाल द्रगण), ६३१२५-१(+) पार्श्वजिन स्तव - अट्टेमट्टेमंत्राम्नाय गर्भित, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (ॐ नमो भगवते श्री), प्रतहीन..
(२) पार्श्वजिन स्तव - अमट्टेमंत्राम्नाय गर्भित मंत्रसाधन विधि, संबद्ध, सं., गद्य, मूपू.. ( कुंकुमगोरोचनकर्पूर), ६७८५८- २ (६) पार्श्वजिन स्तव - कलिकुंड, आ. मुनिचंद्रसूरि सं., श्लो १०, पद्य, भूपू ( नमामि श्रीपा), ६७८५८-४ पार्श्वजिन स्तवन, मु. नवरंग, मा.गु. सं., गा. १२, पद्य, मूपू., (जवउ रिषभवर्द्धमानी), ६४९७७-१७/४) पार्श्वजिन स्तवन, मु. रूपचंद्रोदय, सं., गा. ८, पद्य, मूपू (जय जिन तारक हे), ६७४४०-३, ६४९७७-१५ (०)
पार्श्वजिन स्तवन, ग. श्रीसुंदर, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (प्रणुतपार्श्वपतेः), ६४९७७-१४(#)
पार्श्वजिन स्तवन, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (तं नमह पासनाहं धरणिं), ६४८३०-८(+)
पार्श्वजिन स्तवन- पंचकल्याणक, मु. पुण्यसागर, अप., डा. ३, गा. १९, पद्य, मूपू. (पणमि पर परम पयत), ६५२४४-१(+) पार्श्वजिन स्तवन- वृद्ध, मु. जिनराजसूरि शिष्य, सं., श्लो. २२, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रिये पार्श), ६४१५१-३१(+)
पार्श्वजिन स्तवन-शृंखलाबंध, मु. जैनचंद्र, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (सर्वदेवसेवितपदपद्मं), ६४१७७-१८(#) पार्श्वजिन स्तव स्तंभन, अप., पद्य, भूपू (ॐ गह भूय जख रखस डाइण), ६४८३०-९ (+)
पार्श्वजिन स्तव स्तंभनतीर्थ, सं., श्लो. २, पद्य, भूपू (श्रीसेडीतटिनीतटे), ६८२१४-६(+), ६८२५६-४(+), ६३०४६-३(०),
६८०१८-२१)
पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थमंडन, मु. जयसागर सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (योगात्मनां यं मधुरं), ६४१७७-११(#) पार्श्वजिन स्तुति, आ, जिनभक्तिसूरि, सं. वो ४, पद्य, मूपू (कौमारे कमठस्य दुर्मत), ६७६८३-२ (+३)
"
पार्श्वजिन स्तुति, आ, जिनलाभसूरि, सं. लो. ४, पद्य, भूपू (विशदसद्गुणराजिविराजि), ६३२४७-४१ (+)
"
,
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पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (कल्याणानि समुल्लसंति), ६७८६६-१०
पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (तवेशनामतस्त्वरा दरा), ६४१७७-९(#) पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (यस्य मूर्ध्नि वाभातू), ६७५९७-२ (+)
पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (हर्षनतासुरनिर्जरलोकं, ६३२४७-११+४), ६३००६-९, ६३०४६-१३०१, ६८०१८-६ (-) पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (प्रें दें कि धप), ६३२४७-२५ (+#), ६३०४६-२२(#), ६८०१८-१५)
पार्श्वजिन स्तुति - पलांकित, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू (श्रीसर्वज्ञ ज्योति), ६३२४७-१९ (4) ६३००६-४, ६३०४६-१६ (क), ६४०११-१०(१) ६८०१८.५१
पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (शमदमोत्तमवस्तुमहापणं), ६३२४७-१२ (+#), ६८२५६-७६(+),
६३०४६-१५(१) ६८०१८-४११
पार्श्वजिन स्तुति - रत्नाकरपच्चीसी प्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., श्लो. ४, पद्य, मृपू. ( श्रेयः श्रियां मंगल), ६४८२१-४ पार्श्वजिन स्तुति-विविध तीर्थमंडण, प्रा., मा.गु., सं., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीसेढीतटिनी तटेपुर), ६८१२३-४
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६
४९७ पार्श्वजिन स्तुति-समवसरणभावगर्भित, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (हर्षनतासुरनिर्जरलोकं), ६७८०९-२ पार्श्वजिन स्तुति-स्तंभन, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (सिरिथंभणयट्ठिय पास), ६७०७४-२३(+$), ६८०१८-२३(-) पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीं धरणोर), ६४८३०-७(+) पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. सुमति, सं., गा. ५, पद्य, म्पू., (शिरसि यस्य विभाति), ६५२४४-५(+-) पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (अभिनवमंगलमालाकरण), ६८२५६-५५(+) पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (प्रणमामि सदा प्रभु), ६७७८८-३ पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (किं कर्पूरमयं सुधारस), ६७५६९-२(+#) पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहस्तुतिगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., गा. १०, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (दोसावहारदक्खो नालिया),
६३१५३-८(+#), ६३२४७-५(+#), ६८२५६-१७५ (+), ६३०४६-४०(#$) पार्श्वजिन स्तोत्र-यमकबंध, उपा. समयसुंदर गणि, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (प्रणत मानव मानव मानव), ६५९५९-३ पार्श्वजिन स्तोत्र-लक्ष्मीनामांकित, मु. पद्मप्रभदेव, सं., श्लो. ९, पद्य, दि., (लक्ष्मीर्महस्तुल्य), ६५९७३-३ पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु.,सं., गा. ३२, वि. १७१२, पद्य, मूपू., (जय जय जगनायक), ६७९००-९(+#),
६८३१०-४३(+#), ६७९१०, ६७९५१-१, ६७५९१(#) पार्श्वजिन स्तोत्र-समस्याबंध, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथं तमह), ६५९५९-२ पाशाकेवली, मु. गर्गऋषि, सं., श्लो. १९६, पद्य, श्वे., (महादेवं नमस्कृत्य), ६३५६८(+#), ६५०४७(+$), ६५३९९(+#), ६४०४१,
६४२४५, ६७७९३, ६३१५१(#), ६३३९८(#$), ६३५६०(#$), ६३९७६(), ६५०१४(#), ६६३१२-१(#), ६७५५९($),
६७६९७($), ६७९८२-१(६) (२) पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, श्वे., (१११ उत्तम थानक लाभ), ६३७३२-१(+), ६५०८२(+), ६४०८७, ६४५७१,
६४१३२(#), ६७७०९(१), ६७७०३($) पिंडविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. १०३, पद्य, मूपू., (देविंदविंदवंदिय पयार), ६८२७१(+) (२) पिंडविशुद्धि प्रकरण-बालावबोध, ग. संवेगदेव, मा.गु., वि. १५१३, गद्य, मूपू., (श्रीमद्वीरजिनेश), ६८२७१(+) पुराणहुंडी, मा.गु.,सं., श्लो. २७८, पद्य, श्वे., वै., (श्रूयतां धर्मः), ६२९९९(+), ६६६११-१(६) (२) पुराणहुंडी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., वै., (ध० धर्म सघलाइं सांभल), ६२९९९(+) पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., अध्य. १०, गद्य, मूपू., (जइ णं भंते समणेणं०), ६४६५१-४(+) (२) पुष्पचूलिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीतरागदेवने नमस), ६४६५१-४(+) पुष्पिकासूत्र, प्रा., अध्य. १०, गद्य, मूपू., (जति णं भंते समणेणं०), ६४६५१-३(+) (२) पुष्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, पू., (जौ हे पूज्य०), ६४६५१-३(+) पोरसीमान गाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, म्पू., (चउहि पएहिं कत्तिए), ६८२३४-१८(+#) पौषदशमीपर्व कथा, मु. जिनेंद्रसागर, सं., श्लो. ७५, पद्य, म्पू., (ध्यात्वा वामेयमहँत), ६३०५१-६(+) पौषदशमीपर्व कथा, सं., गद्य, मूपू., (अभिनवमंगलमालाकरण), ६३३२३-५ पौषदशमीव्रत कथा, सं., गद्य, मूपू., (सम्यक्त्व प्रपितो दश), ६३३२३-६ पौषध पारने की विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (इरियावही पडिकमी), ६४६४७-५(-) पौषध लेने की विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (प्रथम इरियावही पडिकम), ६४६४७-४(-) पौषध विधि, मु. सुमतिविजय, प्रा.,मा.गु., गा. ३७, प+ग., मूपू., (पहिला प्रणमुं सरसति), ६७९९१-१२(+#) पौषधविधि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., ग्रं. १५०, पद्य, मूपू., (जस्सुद्धट्ठियमुल्लसि), ६३०६९-६(+#) पौषधविधिसूत्रसहित-खरतरगच्छ, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (प्रथम इरियावही पडिक), ६८१३७-२(+#$) प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., पद. ३६, सू. २१७६, ग्रं. ७७८७, गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं० ववगय), प्रतहीन. (२) प्रज्ञापनासूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (कहजो रे पंडित ते), ६७९१९-३३(+) प्रज्ञाप्रकाशपत्रिंशिका, मु. रूपसिंह, सं., श्लो. ३७, पद्य, श्वे., (प्रज्ञाप्रकाशाय नवीन), ६३००७(+) (२) प्रज्ञाप्रकाशपत्रिंशिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रज्ञा प्रकाश करवान), ६३००७(+) प्रतिक्रमणमध्ये मार्जारीदोष निवारण विधि, सं., गद्य, श्वे., (ननु यदि दैवसिक १), ६८२५६-१६२(+)
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४९८
संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १
',
""
प्रतिक्रमण समाचारी, आ जिनवल्लभसूरि प्रा. गा. ४०, पद्य, भूपू (सम्मं नमिठं देविंद), ६३०६९-७ (+) प्रतिक्रमण समाचारी - विधिपक्षगच्छीय, प्रा. सं., गद्य, मृपू. (तत्रादावनगारस्य दैवस), ६८२०५ (०३) प्रतिष्ठासार संग्रह, आ. वसुनंदि सैद्धांतिक, सं., अ. ६, पद्य, दि., (सिद्धं सिद्धात्म), ६२९६२-२(+), ६३२५६-२ प्रत्याख्यान भाष्य, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. गा. ४८, पद्य, मूपू., (दस पच्चकखाण चविहि), ६७५५५-२(+) (२) प्रत्याख्यान भाष्य-अवचूर्णि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, मूपू., (दस० दश प्रत्याख्याना), ६७५५५-१(+) प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार, आ. वादिदेवसूरि, सं. परि. ८. सू. ३७९, वि. १९५२-१२२६ प+ग. म्पू (रागद्वेषविजेतारं), प्रतहीन. (२) प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार- स्याद्वादरत्नाकर स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. वादिदेवसूरि, सं. परि. ८, गद्य, मूपू (नमः
11
"
"
"
परमविज्ञानदर्शना), ६३१०९(+)
(३) प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार- स्याद्वादरत्नाकर स्वोपज्ञ वृत्ति की रत्नाकरावतारिका टीका, आ. रत्नप्रभसूरि, सं. परि. ८,
ग्रं. ५६८०, वि. १३वी, प+ग, मूपू., (सिद्धये वर्द्धमान), ६४५७७ (+$)
प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा. द्वा. २७६ गा. १५९९, प्र. २०००, वि. १२वी, पद्य, मृपू., (नमिऊण जुगाईजिणं).
६३०३३(+), ६३१९९(+)
יי
(२) प्रवचनसारोद्धार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू. (नमस्कार करीनई ऋषभ), ६३१९९(+)
प्रव्रज्या कुलक, प्रा., गा. ३४, पद्य, भूपू (संसार विसमसायर भवजल), ६८२५६-१८७०), ६३०४६-३५ (०४), ६३३४९-२(३) प्रश्नबोल संग्रह, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, प्रा., मा.गु., प्रश्न. ७४, गद्य, मूपू., (मूलसूत्रना बीजा तु), ६४४४९(+)
प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. १०, गा. १२५०, ग्रं. १३००, प+ग, मूपू., (जंबू अपरिग्गहो संवुड), ६३०२४(+$),
६३१८००) ६३२०२ (०१)
(२) प्रश्नव्याकरणसूत्र - टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., अ. १०, प्र. ५६३०, वि. १२वी, गद्य, म्पू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ६३१८०(+#), ६३२०२(+#)
(२) प्रश्नव्याकरणसूत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, मृपू, (श्रीसुधर्मास्वामी), ६३०२४(+8)
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יי
प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि सं., श्लो. २९, पद्य, मूपू. (प्रणिपत्य जिनवरेंद्र), ६३१७८ (०३)
(२) प्रश्नोत्तररत्नमाला - कल्पलतिका वृत्ति, आ. देवेंद्रसूरि, सं. ग्रं. ७३२६, वि. १४२९, गद्य, मूपु. ( श्रीनाभिभूर्जिनवरः),
६३१७८(#$)
יי
बीजकोश, सं., प+ग. वै., (प्रणव वाग्भव माय). ६७८५८-१
"
(२) प्रश्नोत्तररत्नमाला-कथा, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, मूप. (इहैव जंबूद्वीपप्रज्ञ), ६३९२७ (०३)
प्रश्नोत्तर संग्रह, उपा. विनयविजय, प्रा., मा.गु., गद्य, म्पू, (नत्वा श्रुतज्ञानमनंत), ६५९२३ प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक, उपा. क्षमाकल्याण, सं., प्रश्न. १५१, वि. १८५१, गद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञं नत्वा), प्रतहीन.
(२) प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक - बीजक, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., प्रश्न. १५१, वि. १८५३, गद्य, मूपू., (पहिलै बोलै तीर्थंकर), ६३९९७($) प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गा. २८, पद्य, मूपू., (पंचमहव्वयसुव्वयमूलं), ६३१३४ (+$), ६५९२९-२(+), ६५९४०-२($),
६७५८९(३)
प्रास्ताविक लोक संग्रह, प्रा., सं., श्लो. ५७, पद्य, जै. ?, (दाता दरीद्री कृपणो), ६३१४७-२ (+), ६५१९२-२(+#), ६५२०४-४७(+) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गा. ६१, पद्य, मूपू., (धर्माज्जन्मकुले शरीर), ६३२८० (+), ६५१९२-९(+#), ६७६२५(#) प्रास्ताविक लोक संग्रह, सं., श्लो. २४, पद्य, श्वे. (त्रिष्टे संग: श्रुते), ६७८९८-३ बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. गा. २५. वि. १३वी १४वी, पद्य, मूपू., (बंधविहाणविमुकं), ६२९४३-२(+),
""
६३२१०-३(+#), ६३२२०-३(+#), ६३२३३-३ (+#), ६४४४८-४(+), ६७६०४-३ (+), ६३८९६-३, ६३०२२-३ (#$), ६३२१७-३(#) (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ अवचूर्णि सं., गद्य, भूपू., (सम्यम्बंधस्वामित्व), ६३२१०-३(४) ६३२३३-३(+०), ६७६०४-३(+) (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ- बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, मूपू. (सर्वशर्मप्रदं नत्वा), ६३०२२-३ (०३), ६३२१७-३(४) (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., वि. १८०३, गद्य, मूपू., (जीवप्रदेश साथे कर्म), ६३२२०-३(+#) (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मा.गु., यं., मूपू., (श्रीवर्द्धमान जिनचंद), ६८१७९(s)
बगलामुखी स्तोत्र, सं., श्लो. २७, पद्य, वै. (ॐ अस्य श्रीबगलामुखी), ६७३७२-३(+०)
.
बिंबप्रवेश विधि, मा.गु., सं., प+ग, मूपू., (पहिलं मूहूर्त्त ), ६३१४२-२
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४९९
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६ बीजतिथि स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (महीमंडणं पुन्नसोवन), ६३२४७-१६(+#), ६७०७४-४(+), ६८२५६-८०(+), ६७८३३-१,
६८१२३-५, ६३०४६-८(#), ६८०१८-१(-) बुद्धिसिद्धिस्त्रीद्वय कथा-अतिलोभे, सं., गद्य, श्वे., (अतिलोभो न कर्तव्यः), ६५९२६-३ बृहत्क्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., अधि. ५, गा. ६५५, वि. ६वी, पद्य, मूपू., (नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण),
प्रतहीन. (२) बृहत्क्षेत्रसमास-जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., गा. १४२, पद्य, मूपू., (नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण),
६३२९३(+) (३) जंबूद्वीप प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जंबूद्वीपमाहे छ), ६८३६९ (३) बृहत्क्षेत्रसमास-जंबूद्वीप प्रकरण का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिऊण कहेतां नमस्कार), ६३२९३(+$) बृहत्शांति स्तोत्र-खरतरगच्छीय, सं., प+ग., मूपू., (भो भो भव्याः शृणुत), ६६३६३-६(+$), ६७३२६(#) बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., मूपू., (भो भो भव्याः शृणुत), ६३१५३-१(+#$), ६६८९६-३(+), ६७६५७-१(+#),
६७६९१(+), ६८२५६-१७९(+), ६५३९४, ६५९७१, ६५९८२-३, ६३०४६-३२(#), ६७७६७-४(६), ६७६८९(-) बृहत्शांतिस्नात्र विधि संग्रह, मु. ज्ञानसागर-शिष्य, मा.गु.,सं., वि. १८१४, गद्य, मूपू., (प्रणम्य पार्श्वपादा), ६८३२९ बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., गा. ३४९, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (नमिउं अरिहंताई ठिइ), ६३०००(+#$), ६३०१५(+), ६३०१७(+#),
६३०३५(+#), ६३०४९(+#), ६३०५४(+$), ६३२०१(+#), ६३२२९(+#), ६३२७४(+), ६३३३४(+$), ६४४६५(+), ६४५९३(+#),
६४६५५-१(+#), ६५९३२-३(+$), ६५९३६(+#$), ६३१५२(#$), ६३२६१(#s), ६३१०३() (२) बृहत्संग्रहणी-टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., ग्रं. ३५००, गद्य, मूपू., (अत्यद्भुतं योगिभि), ६३०००(+#5), ६३०१५(+),
६३०१७(+#), ६३०३५(+#), ६३२०१(+#) (२) बृहत्संग्रहणी-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (सुष्ठ राजते शोभते), ६४६५५-१(+#) (२) बृहत्संग्रहणी-बालावबोध, ग. दयासिंह, मा.गु., ग्रं. १७५७, वि. १४९७, गद्य, मूपू., (नत्वा श्रीवीरजिन), ६३०५४(+$) (२) बृहत्संग्रहणी-बालावबोध*,मा.गु., गद्य, मूपू., (ॐ नत्वा अरिहंतादी), ६३३३४(+$) (२) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार अरिहंता), ६३३३४(+$), ६४५९३(+#) बृहत्संग्रहणी, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., गा. ३५३, वि. ७पू, पद्य, मूपू., (निट्ठवियअट्ठकम्म), ६३०४६-४६(#S) (२) बृहत्संग्रहणी-यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (देवता नारकी मनुष्य), ६३५१७(+$) बृहत् संग्रहणीप्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., गा. ५७९, वि. १२७८, पद्य, मूपू., (नियट्ठवियअट्ठकम्म), प्रतहीन. (२) बृहत्संग्रहणी प्रकरण-जीवआयुष्यबंध विचारगाथा संग्रह, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (आउस्स बंध कालो अबाह),
६३३४०-२(+#) (३) बृहत्संग्रहणी प्रकरण-जीवआयुष्यबंध विचारगाथा संग्रह का-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (वरस सत एकवीस सहित),
६३३४०-२(+#) बृहद्विचाररत्नाकर, आ. देवेंद्रसूरि, सं., ग्रं. १४५७३, गद्य, मूपू., (आद्यं भावारोग्यं मनो), ६३२१२(+) बोल संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (जीवाय १ लेसा ८ पखीय), ६४४०९-६(+#), ६४४४७(+), ६४५६८-३(+), ६४५७५-२(+#),
६४६५५-२(+#), ६५१९२-४(+#), ६५२०४-४६(+$), ६७६६३(+#), ६७९७९(+-#$), ६८१६९, ६३५६४(#$), ६७७३७-११(#$),
६२९६५(६), ६३५५२() बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (हिवै शिष्य पूछ), ६३३४७(+#s), ६३४४२-२(+), ६५३०९(+$), ६३२८७($) ब्रह्मचर्यव्रतप्रत्याख्यान आलापक, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम इरियावही), ६८०२१-९ ब्रह्मांडपुराणे-सरस्वती स्तोत्र, सं., श्लो. १०, पद्य, वै., (शुक्लां ब्रह्म विचार), ६५५१३-१(#) भंजकविप्र कथा-परगृहभंजने, सं., गद्य, श्वे., (असमंजसवाक्लोको न), ६५९२६-४ भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. १७२, पद्य, मूपू., (नमिऊण महाइसयं महाणु), ६२९४६-२(+#), ६३०६२-४(+)
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५०० संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. ४४, पद्य, मपू., (भक्तामरप्रणतमौलि), ६२९४७-४(+#), ६२९५४-१(+), ६३२५३-६(+),
६३२६७-१(+#), ६३३००-१(+), ६३३३२-१(+#), ६३३५१-१(+), ६३३५५-२(+#), ६४४१५(+), ६४४६६(+), ६४५९९(+), ६४६२४-१(+), ६५९५३(+#), ६५९६०-८(+), ६५९६९(+), ६५९७२-१(+#), ६५९७६(+), ६५९८०(+), ६५९८४-१(+#$), ६६८९६-१(+), ६७०६०-२(+), ६७०७६-१८(+$), ६७६६१(+#$), ६७६६७(+), ६८२५६-१७०(+), ६५९६६, ६५९७७-२, ६७०४७-३, ६७९५५-२, ६२९५०(#), ६३११७(#$), ६३४५९(#), ६५३२३(#), ६७६८६(#$), ६३९६५ (६), ६५९४७(s),
६५९७३-२(%), ६६३३७-२(६), ६७०८२-२(६), ६७७६२-२($) (२) भक्तामर स्तोत्र-बालहितैषिणी टीका, मु. कनककुशल, सं., ग्रं. ६९३, वि. १६५२, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमानंददायक),
६३३००-१(+) (२) भक्तामर स्तोत्र-सुखबोधिका टीका, आ. अमरप्रभसूरि, सं., गद्य, मूपू., (किल इति निश्चये अहम), ६४५९९(+) (२) भक्तामर स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (किल इति सत्ये अहमपि), ६२९५४-१(+) (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (किल इसइ सत्यवचनि इहउ), ६३३५१-१(+) (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, ग.शुभवर्धन, मा.गु., वि. १६वी, गद्य, मूपू., (श्रीमदादिजिनं नत्वा), ६३४५९(#) (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (किल इति सत्ये), ६३२५८(+#$) (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध कथा, मु. आगममाणिक्य, मा.गु., कथा. २७, गद्य, मूपू., (श्रीमद्जिनहसगुरु), ६७०६२($) (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध+ कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ६३९६५ (5) (२) भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, ऋ. नारायणजी, मा.गु., गद्य, मूपू., (भक्त सेवक तीर्थंकरना), ६३३३२-१(+#) (२) भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (भक्तिवंत जे देवता), ६३२६७-१(+#), ६४६२४-१(+), ६५९५३(+#) (२) भक्तामर स्तोत्र-पद्यानुवाद, मु. हेमराज, मा.गु., गा. ४८, पद्य, मूपू., (आदि पुरूष आदिस जिन), ६७०६०-३(+5), ६७८८४(+),
६५९८२-१, ६४१९९-१(#), ६७९४६-७(-) (२) भक्तामर स्तोत्र-कथा*, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमालवदेशमाहि), ६३४५९(#) (२) भक्तामर स्तोत्र-शेषकाव्य, हिस्सा, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., दि., (गंभीरताररवपुरिदिग्वि), ६३३५१-२(+) (३) भक्तामर स्तोत्र-शेषकाव्य का बालावबोध, श्राव. मेघराज, मा.गु., गद्य, मूपू., दि., (रवे दुंदुभिः ध्वनति), ६३३५१-२(+) (२) भक्तामर स्तोत्र-गीत, संबद्ध, ग. सोमकुंजर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (मन समरु चकेसरी वंछत), ६८०५५-२(#) (२) भक्तामर स्तोत्र-मंत्राम्नाय, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (ॐनमोवृषभनाथाय मृत्यु), ६४२०९(+) भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., शत. ४१, सू. ८६९, ग्रं. १५७५२, गद्य, मूपू., (नमो अरहताणं० सव्व), ६३२२५ (+$),
६३२२६(+#s), ६७६१२(६) (२) भगवतीसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., शत. ४१, ग्रं. १८६१६, वि. ११२८, गद्य, मूपू., (सर्वज्ञमीश्वरमनंत), प्रतहीन. (३) भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा निगोदषट्त्रिंशिका प्रकरण, प्रा., गा. ३६, पद्य, मूपू., (लोगस्सेगपएसे जहणयपय), ६८१२४ (४) निगोदषत्रिंशिका-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (इम लोकाकाश प्रदेशने), ६८१२४ (२) भगवतीसूत्र-पर्यायार्थ, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (अथ विवाहपन्नत्तित्ति), ६५२५४(+#$) (२) भगवतीसूत्र-टबार्थ, उपा. पद्मसुंदर, मा.गु., ग्रं. ५२०००, वि. १८पू, गद्य, मूपू., (श्रेयः श्रीसेविताह), ६३२२५(+$) (२) भगवतीसूत्र-जमाली आलावा, हिस्सा, प्रा., गद्य, मूपू., (तस्सणं माहणकुंडगाम), ६३००५ (२) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-२५ उद्देश-६गत नियंट्ठा-संजया आलापकगाथा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू.,
(पनवणा १ वेय २ रागे ३), प्रतहीन. (३) भगवतीसूत्र-नियंट्ठा-संजया आलापक-बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (हिवै पनवणा द्वार), ६४०३५-८(+), ६७०८० (२) भगवतीसूत्र-(प्रा.मा.गु.)बोल संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (तिविहं तिविहेणं न), ६३९८७(+) (२) भगवतीसूत्र-गहुंली, संबद्ध, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सहियर सुणीये रे भगवत), ६८१६७-३(#) (२) भगवतीसूत्र-बोलसंग्रह *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (एक मासनी दिक्षा सुभ), ६५२०४-२२(+), ६७९२४(+$), ६८१८५-२ (२) भगवतीसूत्र-बीजक, मु. हर्षकुल, सं., ग्रं. ४०९, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परया भक्त्या ), ६३२६५(+) भरटकद्वात्रिंशिका, ग. आनंदरत्न, सं., वि. १५वी, गद्य, मूपू., (देवदेवं नमस्कृत्य), ६५९६५(+) भवभावना, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., गा. ५३१, पद्य, मूपू., (णमिऊण णमिरसुरवर मणि), ६४५८६(+)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६
(२) भवभावना- टबार्थ, उपा. मानविजय, मा.गु. ग्रं. ३४२५, वि. १७२५, गद्य, मूपू. (प्रणिपत्य जिनवरेंद्र), ६४५८६ (+) (२) भवभावना कथा, उपा. मानविजय, मा.गु., वि. १७२५, गद्य, भूपू (जम्बूद्वीपे भरत), ६४५८६ (*) भाव प्रकरण, ग. विजयविमल, प्रा., गा. ३०, वि. १६२३, पद्य, मूपू., (आणंदभरिय नयणो आणंद), ६३३६१-१ (+), ६३४२०-२(+) भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., भाष्य. ३, गा. १४५, वि. १४वी, पद्य, भूपू (वंदित्तु वंदणिज्जे), ६२९९२(+), ६३०७०-१(०),
"
६३२६३ (+s), ६५९२७(+#), ६५९५१ (+), ६७६३० (+), ६३३२४, ६८४२५
(२) भाष्यत्रय - अवचूरि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, मूपू., (वंदि० वंदनीयान् सर्व), ६२९९२ (+), ६५९२७(+#)
(२) भाष्यत्रय - टिप्पण के, मा.गु., गद्य, मूपू., (-), ६५९२७ (+)
"
(२) भाष्यत्रय-बालावबोध, मु. धर्मरत्नसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमद्वीरजिनस्वामी), ६३०७०-१(+) (२) भाष्यत्रय - टबार्थ, मु. लावण्यविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्यतानंदकारकं), ६५९५१ (+)
(२) भाष्यत्रय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (वंदित्तु क० वांदीने), ६३२६३ (+), ६८४२५
भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., श्लो. १७०, वि. १३पू, पद्य, म्पू, (सारस्वतं नमस्कृत्य), ६३६४९(+१), ६३७४९-१(+),
',
६३९४४(+#$), ६६९९५ (+$), ६३७०८, ६३७२७, ६३८३९ (#$), ६४२८५ (#), ६३८०५($), ६४२४७($)
६८३८४-२
मंत्र संग्रह *, मा.गु., सं., गद्य, जै., वै., बौ., ( ॐ नमः काली नै), ६४१३५-३ (+#), ६५१९१-६ (+#), ६८१८८-१(+)
मंत्र संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, श्वे. (ॐ नमो भगवओ बाहूबलि), ६८३६६-२
"
मदनरेखासती कथा, सं., प+ग, वे. (शीलं प्रधानं न कुलं), ६३०४७-४०
(२) भुवनदीपक-टीका, आ. सिंहतिलकसूरि, सं., वि. १३२६, गद्य, मूपू., (अर्हदादीन् प्रणम्याथ), ६३७०८ (२) भुवनदीपक बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रग्रहाधिपति १ उच्च) ६३६७८(+)
(२) भुवनदीपक बालावबोध *, मा.गु., गद्य, मूपू., (सरस्वती नाम जो देवी), ६६९९५ (०३), ६४२८५ (१)
(२) भुवनदीपक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सरस्वती संबंधीओ मह), ६३६४९ (+#$), ६३९४४ (+#$), ६३७२७ ($), ६३८०५ ($), ६४२४७(s)
भैरवाष्टक, शंकराचार्य, सं., श्लो. ११, पद्य, वै., (एकं खट्टांगहस्त), ६७६९६-४(१) ६५५७२-४)
"
भोजराजा भूकंडद्विज कथा-अनित्यताविषये सं., गद्य, वे. (धारानगर्या भोजराजः), ६५९२६-२ मंडलविचार, सं., गा. २६, पद्य, वै., (कृतिका च विशाखा च), ६४०४६-२ (+$)
मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, उ. पुहिं., प्रा., मा.गु. सं., प+ग, वै. श्री ॐ नमः आदि सुदिन), ६३४५४-२ (+९१) ६५२१७-६(२०), ६६९६०-१,
"
मदनावली कथानक-गंधपूजा विषये, सं., गद्य, मूपू., (पणमह तं नाभिसुयं), ६३०४७-९(#)
महादशा श्लोक सं., श्लो. ५, पद्य, जे., (आद्रादी गणयेत्सूर्यो), ६४२२३-२(१)
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महादेवीग्रहसाधन, सं., गा. ९८, पद्य, (वस्वाग्नि सूर्यै ), प्रतहीन.
(२) महादेवीग्रहस्पष्ट विधि, संबद्ध, मु. हीरमुनि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम घटी काढीजै), ६४०७० (+) महानिशीथसूत्र, प्रा., अध्य. ६ चूलिका २, ग्रं. ४५४४, गद्य, मूपू., ( ॐ नमो तित्थस्स ॐ), ६५३२१(#$)
,
महालक्ष्मी स्तुति-मंत्रमय, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीँ श्रीचंद्र), ६७५६९-५ (+#), ६३२६६-५ महावीरजिन २७ भव वर्णन, सं., गद्य, श्वे. (जंबूद्रीपापरविदेहे), ६३१४५-१००)
"
महावीरजिन पारणा स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (यत्पारणासु प्रथमासु), ६३००६-७, ६३०४६-२९००)
महावीरजिन स्तव, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (कनकाचलमिव धीरं), ६८२५६-५६(+)
महावीर जिन स्तवन- समस्यामय, मु. धर्मवर्धन, सं, श्लो. १२, पद्य, भूपू (श्रीमद्वीर तथा ६४९५१-२२(*)
६६३६३-४(+$), ६३५३०-१
महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, म्पू, नमोस्तु वर्द्धमानाव), ६८१२३-२
महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., ( नमोस्तु वर्द्धमानाय), ६७०७४-२२(+)
महावीरजिन स्तुति, प्रा., मा.गु. सं., गा. ११, पद्य, मूपू. (पंचमहव्वयसुव्वयमूल), ६७५६२-२(क)
५०१
महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (जइज्जा समणे भगवं), ६३१५३-२ (+#), ६८२५६-७१(+) महावीरजिन स्तव-समसंस्कृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.सं., श्लो. ३०, पद्य, मूपू., (भावारिवारणनिवारणदारु), ६३२५३-८(+),
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५०२ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१
महावीरजिन स्तुति, प्रा.,सं., गा. ४, पद्य, मूपू., (परसमयतिमिरतरणिं भव), ६८१२३-३ महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (यदेहिनमनादेव देहिन), ६३२४७-२०(+#), ६७०७४-५(+), ६८२५६-७८(+),
६३००६-२१, ६८१२३-९, ६३०४६-११(#), ६८०१८-८(-) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (योचीचलद्दश्च्यवनो), ६४१७७-१०(#) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (वीरं देवं नित्यं), ६३२४७-१०(+#), ६८२५६-८२(+), ६३००६-२४, ६८१२३-२१,
६३०४६-१०(#), ६७६७३-२(#) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, म्पू., (श्रीदेवार्यं विश्ववर), ६३२४७-४३(+#) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (स्फूर्जद्भक्तिनतेंद), ६४८२१-६ महावीरजिन स्तुति-कल्याणमंदिर प्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (कल्याणमंदिरमुदारमवद), ६४८२१-२ महावीरजिन स्तोत्र, मु. रूप, सं., श्लो. ७, पद्य, स्था., (विबुधरंजकवीरककारको), ६३२५९-४(+) महीपालराजा कथा, ग. वीरदेव, प्रा., गा. १८०९, ग्रं. २५००, पद्य, मूपू., (नमिऊण रिसहनाहं केवल), ६२९९०(+$), ६३२३०(+#),
६३२३७(+#$), ६७६०९(+$) । (२) महीपालराजा कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (नमस्कार करी श्रीऋषभ), ६३२३७(+#$) मांगलिक श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (सर्वमंगल मांगल्य), ६५९२०-३(+) मांगलिक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, मूपू., (कृतापराधेपिजने कृपा), ६४४४३-३(+) मिथ्यात्व २१ भेद, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (जे लौकिक देवता हरिहर), ६३६२८-५ मुनिपति चरित्र, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ६४६, ग्रं. ६४४, वि. ११७२, पद्य, मूपू., (नमिऊण महावीर चउ), प्रतहीन. (२) मुनिपति चरित्र सारोद्धार, संक्षेप, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (मुनिपतिचरित्रसारोद्ध), ६३३०७ मुहूर्तमुक्तावली, सं., श्लो. ७७, वि. १५३९, पद्य, वै., (श्रीशं श्रीहरशारदा), ६३१२७-१(+) (२) मुहूर्तमुक्तावलि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., वै., (श्रीपार्श्वनाथ), ६३१२७-१(+$) मुहूर्त संग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (श्वेतवस्त्र परिधान), ६३१२७-२(+) मूत्रपरीक्षा, सं., श्लो. ३०, पद्य, श्वे., (श्रीमत्पार्धाभिध), ६३४५४-४(+#) मृगसुंदरी कथा-चुल्हकोपरि चंद्रोदयदाने, सं., गद्य, मूपू., (चंद्रोदयं च कुर्वंति), ६३५३७-१(+) मृत्युयोग विचार श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे., (उरग वरुण रुद्रा वासव), ६७५९८-४(+) मेघमाला, मु. केवलिकीर्ति, प्रा.,सं.,मा.गु., अ. १२, पद्य, दि., (तियसिंदनरिंदनयंपणमि), ६४०४६-१(+) मेघमाला विचार, आ. विजयप्रभसूरि, सं., पद्य, मूपू., (युगादिप्रभं जिन), प्रतहीन. (२) मेघमाला विचार-बालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू., (ऋषभदेव प्रभुने), ६७७९१(६) मेरुत्रयोदशीपर्व कथा, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य भारती भक्त), ६४०१७(+), ६८३९४ मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., ग्रं. १६५, वि. १८६०, गद्य, मूपू., (मारुदेवं जिनं नत्वा), प्रतहीन. (२) मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान-भाषांतर, मा.गु., गद्य, मूपू., (मारुदेवं जिनं नत्वा), ६८१३५-९(+) मौनएकादशीगणj, सं., गद्य, मूपू., (जंबूद्वीपे भरतक्षेत), ६३५१२-२(+#), ६३५७६-२ मौनएकादशीपर्व कथा, पं. रविसागर, सं., श्लो. २०१, वि. १६५७, पद्य, मूपू., (प्रणम्य ऋषभदेव), ६७५५४(+#$) (२) मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (पार्श्वदेवं नमस्कृत), ६७५५४(+#$) मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनंदिसूरि, सं., श्लो. ११६, वि. १५७६, पद्य, मूपू., (अन्यदा नेमिरीशाने), ६३०५१-५(+) मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवीरं नत्वा गौतमः), प्रतहीन. (२) मौनएकादशीपर्व कथा-(पु.हि.)बालावबोध, पुहिं., गद्य, मूपू., (एक दिन के समय में), ६८३९१ मौनएकादशीपर्व कथा, प्रा., गा. १५७, पद्य, मूपू., (सिरिवीरं नमिऊण पुच्छ), ६३५७६-१(६) (२) मौनएकादशीपर्व कथा बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीरदेवने), ६३५७६-१ मौनएकादशीपर्व गणगुं, सं., को., मूपू., (जंबूद्वीपे भरते), ६८२५६-१६६(+), ६५२६५-३ मौनएकादशीपर्व व्याख्यान-सुव्रतश्रेष्ठिकथायां, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (सिरिवीरं नमिऊण), ६३५१२-१(+#), ६८१०५(#)
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५०३
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६ मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (अरस्य प्रव्रज्या नमि), ६३२४७-९(+#), ६८२३४-८(+#), ६३०४६-१८(#),
६७७६७-२(5), ६८०१८-१४(-) मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (दीक्षा श्रीअरनाथकस्य), ६३२४७-३१(+#), ६३००६-१७ यंत्रराज, आ. महेंद्रसूरि, सं., अ. ५, श. १२९२, पद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञपदांबुज), ६५७८६(+#$) यंत्र संग्रह", मा.गु.,सं., को., जै., वै., (--), ६७८६३-१३ यशोभद्र कथा-प्रस्तावोक्तविषये, सं., गद्य, श्वे., (इहैव भरते साकेतनपुर), ६३०४७-३(#) युगप्रधान साधुसाध्वी राजा श्रावकश्राविका संख्या गाथा, प्रा.,मा.गु., गा. १०, प+ग., मूपू., (जुगपहाण समणा एकारस),
६३३२३-३ योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., अ.७, वि. १७वी, पद्य, मपू., (यत्र वित्रासमायांति), ६३६९९(+#$), ६३९०६-२($),
६४५७९(६) (२) योगचिंतामणि-बालावबोध *,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम स्त्री योग्य), ६४५७९(5) (२) योगचिंतामणि-टबार्थ *मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ६३६९९(+#$) योगप्रवेश विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, म्पू., (ठवणी कांबलीइं पडिलेह), ६३६३१-३(+) योग विधि, प्रा.,मा.गु., पद्य, मूपू., (आवश्यकयोगे वग्धारित), ६२९४४(+#) योग विधि-खरतरगच्छीय, मु. शिवनिधान, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (हर्षसार गुरुचरणद्वय), ६२९४५-१(+), ६३४६३(+#),
६३४९७-१(#) योग विधि-साधु, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (नाणं पंचविहं पन्नत्त), ६३३३९ योगशतक, धन्वंतरी, सं., श्लो. १११, पद्य, वै., (कृत्नस्य तंत्रस्य), ६३४५४-१(+#) (२) योगशतक-टीका, मु. पूर्णसेन, सं., गद्य, श्वे., वै., (कृत्यस्येति० कृत्स्न), ६३४५४-१(+#) योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. १२, श्लो. १०००, वि. १३वी, पद्य, मूपू., (नमो दुर्वाररागादि), ६७६७४(+$),
६२९६८(६) (२) योगशास्त्र-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, मूपू., (अत्र महावीरायेति), ६३०९८ (२) योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १ से ४, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, मूपू., (नमो दुर्वाररागादि), ६३०२६ (३) योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १ से ४ की अवचूरि, आ. अमरप्रभसूरि, सं., प्रका. ४, गद्य, मूपू., (नमस्कारोस्तु विशेषण),
६३०२६(६) योगोत्तारण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (खमासण देई मुहपुत्ती), ६३६३१-४(+) योगोद्वहनविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीआवश्यक सुअक्खधो), ६३६३१-२(+) रणसूर कथा-पौषधे, सं., गद्य, मूपू., (अट्ठमिचउद्दसीपमुह), ६३५३७-२(+) राग नाम विचार, सं., श्लो.७, पद्य, (स्त्रीरागो वसंतश्च), ६७०३६-३९(+) राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., सू. १७५, ग्रं. २१००, गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं० तेणं), ६३२२१(+#$), ६३२२२ (२) राजप्रश्नीयसूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., ग्रं. ३७००, गद्य, मूपू., (प्रणमत वीरजिनेश्वर), ६३२२२, ६३०२९(#) (२) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार हुवउ० चउथा), ६३२२१(+#$) (२) राजप्रश्नीयसूत्र-दृष्टांतकथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (हिवे सेवइया नामे), ६७८८० (२) राजप्रश्नीयसूत्र-बीजक, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं० तेणं), ६३९४८(#$) रामनिदान, सं., पद्य, मूपू., (श्रियं स दद्यात् भवत), प्रतहीन.. (२) रामनिदान-ऋषभसंहिता, संबद्ध, पुहिं., प+ग., मूपू., (वंदू श्रीचोवीसजिन), ६८३१५(+) राशिज्ञानमूल, पुहि.,सं., गा. १, पद्य, (ए अष्ट त्रिशून्यं), ६७२०१-४(+-#) रूद्रयामल-भवानीकवच स्तोत्र, सं., श्लो. १६, पद्य, वै., (भगवन् सर्वमाख्यात), ६४८३०-१३(+$) रूपसेनकनकावती चरित्र-चतुर्थव्रतपालने, आ. जिनसूरि, सं., श्लो. २२४, ग्रं. १५३०, पद्य, मूपू., (श्रीमंत विदुर शांत), ६३०५३(+),
६३९६२(+#$), ६३०८७(#) रेवतीसती कथा-भेषजदाने, प्रा.,सं., गद्य, म्पू., (भेसज्जं पुण दिंतो), ६३५३७-८(+)
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५०४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१
लग्नस्पष्ट विधि, सं., श्लो. ५, पद्य, मपू., (अयनांश युते स्पष्टे), ६४२२३-३(+) (२) लग्नस्पष्ट विधि-बालावबोध, मा.गु., गद्य, पू., (हिवे स्पष्ट सूर्य), ६४२२३-३(+) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., अधि.६, गा. २६३, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (वीरं जयसेहरपयपयट्ठिय), ६३०२३(+),
६३३६१-३(+$), ६४४४८-१(+), ६५९२१(+$) (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीर श्रीमहावीर केहवा), ६३०२३(+) लघुनाममाला, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., कां. ३, श्लो. ४६१, ग्रं. ५५०, पद्य, म्पू., (प्रणम्य परमात्मान), ६५०४९(+#) लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., (शांति शांतिनिशांत), ६२९४७-६(+#$), ६३१३१-२(+), ६३२५३-४(+),
६५९२०-१(+$), ६६८९६-४(+), ६७६२९-२(+#), ६८२५६-१७१(+), ६३२६६-२, ६३२७८-२, ६७०८२-४, ६५२४६-६(#),
६२९४१-२($), ६५९८२-५($), ६७७६७-३($), ६८२३०-८(-) लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ३०, पद्य, मूपू., (नमिय जिणं सव्वन्नु), ६७६३५ (२) लघुसंग्रहणी-टबार्थ,मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिय क० नमस्कार करी), ६७६३५ (२) लघुसंग्रहणी-१० द्वार विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (खंडा जोयण वासा पव्वय), ६३५१४-१ (२) लघुसंग्रहणी-खंडाजोयण बोल*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (लाख जोयणनो जंबूद्वीप), ६३४९९-१(+), ६७९२७(+#$),
६८१०९(+$), ६८२०८-१, ६८०७०-१(#) लीलावती, भास्कराचार्य, सं., श्लो. २७९, प+ग., वै., (प्रीतिं भक्तजनस्य), प्रतहीन. (२) लीलावती-भाषानुवाद, मु. लालचंद, मा.गु., अ. १६, गा. ७०७, वि. १७३६, पद्य, मूपू., वै., (सोभित सिंदूर पुर), ६४१२३(+#$) लूण उतारण गाथा, प्रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (सह पडिभग्गापसर पया), ६५१८६-३(+) लूणपाणी विधि, प्रा., गा. ८, गद्य, मूपू., (उवणेउ मंगलं वो जिणाण), ६३५७३-२(+$) लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., गा. ३२, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (जिणदसणं विणा ज), ६३२६४-१(+#$),
६३२८१(+#), ६३४९२(+#$), ६४४४८-८(+), ६४६१२(+) (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका-व्याख्या, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीर), ६३२८१(+#) (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका-बालावबोध, पं. नयविलास, मा.गु., गद्य, म्पू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), ६३४९२(+#$) (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हे वीतराग देव ताहरु), ६४६१२(+) वज्रपंजर स्तोत्र, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (ॐ परमेष्ठि), ६३१५३-१२(+#), ६८२५६-१७७(+), ६३२६६-३, ६७६९४-४, ६५९५८-३(#) वरदत्तगुणमंजरी कथा, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (ज्ञानं सारं सर्व), ६५९२२-२(+), ६८१३५-५(+), ६३९८१ वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., श्लो. १५०, वि. १६५५, पद्य, मूपू., (श्रीमत्पार्श्वजिन),
६२९७६(+), ६३०५१-३(+), ६३३५९(+#), ६५९३०-१(+), ६३३२३-४, ६५९२५, ६५९३७ (२) वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीर), ६५९३७ वर्तमान २४ जिनयक्ष नाम, सं., गद्य, मूपू., (गौमुख यक्ष महायक्ष), ६५२५७-१(१) वर्द्धमान कथा-लोभविषये, सं., गद्य, मूपू., (सभ्यलोकरहितं जगत्रये), ६३०४७-२(#) वर्धमान बासठीयो, प्रा.,मा.गु., को., मूपू., (भावगइइंद्रीकाए जेए), ६४४६४(+) वसंतराजशाकुन, वसंतराज, सं., वर्ग. २०, पद्य, वै., (विरंचिनारायणशंकरेभ्य), ६४५५६(+#) (२) वसंतराजशाकुन-टीका, उपा. भानुचंद्र, सं., गद्य, मूपू., वै., (लक्ष्मीलीलाकटाक्ष), ६४५५६(+#) वसतिदानादि विषयक कथासंग्रह, प्रा.,सं., कथा. ८, गद्य, मूपू., (वसही सयणासण भत्तपाणे), ६३३८५(2) वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, मूपू., बौ., (संसारद्वयदैन्यस्य), ६३१२४(+), ६३२९२(+), ६३३५२(+), ६३८५६(+), ६४४२९(+),
६५३८३-१(+), ६५७८३(+#), ६७१८८(+#), ६७३०६(+#), ६३८५१, ६४६८४, ६७२२६, ६३८३८-१(#), ६७४२७(#) (२) वसुधारा स्तोत्र-विधि, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., बौ., (पुत्रवती स्त्री पासे), ६४४२९(+) वसुराजादि कथा-पंचाणुव्रतोपरि, सं., पद्य, मूपू., (--), ६३३३५(+#$) । वस्त्रपूजा श्लोक, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू., (शक्रो यथा जिनपते), ६३४०२-८(+), ६७०६८-२(+) वाक्यप्रकाश, ग. उदयधर्म, सं., श्लो. १२५, वि. १५०७, पद्य, मूपू., (प्रणम्यात्मविद), ६३९४२, ६३००३-१(#) (२) वाक्यप्रकाश-टीका, मु. हर्षकुल, सं., वि. १५८०, गद्य, मूपू., (श्रीमजिनेंद्रमानम), ६३९४२
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६
वाग्भटालंकार, जे. क. वाग्भट्ट, सं. परि. ५, वि. १२वी, पद्य, मूपू., ( श्रियं दिशतु), ६२९५३-१(+), ६३३११(+) (२) वाग्भटालंकार- टीका, आ. जिनवर्धनसूरि, सं. परि. ४, गद्य, भूपू (श्रीमान् श्रीआदिनाथः), ६३३११(००)
"
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विचारपंचाशिका. ग. विजयविमल, प्रा. गा. ५१, पद्य, भूपू (वीरपयकयं नमिउं देवा), ६२९७८ (+)
(२) विचारपंचाशिका - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीर पर क० महावीरदेव), ६२९७८ (+)
(२) वाग्भटालंकार- टीका, ग. सिंहदेव, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानसंतति), ६२९५३-१(+)
"
वासुपूज्यजिन चरित्र, आ. वर्द्धमानसूरि, सं. स. ४, श्लो. ५४४७, ग्रं. ५४९४, वि. १२९९, पद्य, मूपू (अर्हतं नौमि नाभेयं), ६३१९४ वास्तु प्रकरण, सं. पद्य, वे (आयुर्व्यवक्षशिक), ६६९७२-२(६)
""
वास्तुसार प्रकरण, ठक्कर फेरु, प्रा. प्रक. ३, गा. २०५, वि. १३७२, पद्य, मूपु. ( सयलसुरासुरविंद दंसण), ६२९६२-१(+), ६३२५६-१, ६६९७२-१(३)
विचार संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (समरवीर राजा महावीरनउ), ६३४१३-२(+)
विचारसार प्रकरण, ग. देवचंद्र, प्रा. अधि. २ गा. ३२०, वि. १७९६, पद्य, मृपू., (नमिय जिणं गुणठाणे), प्रतहीन
',
(२) विचारसार प्रकरण बालावबोध, ग. देवचंद्र, मा.गु. ग्रं. २१२५, गद्य, म्पू., (--), ६८२३२
विचारसार प्रकरण, प्रा., गा. ५७६, पद्य, मूपू., (बारस गुण अरिहंत सिद), ६७५६८(#) विचित्रविचार सार, प्रा., गा. १७६, पद्य, वे., (चुल्लग १ पासग २ धन्न ), ६३०८५ (+)
विजयचंद्रकेवली चरित्र, मु. चंद्रप्रभ महत्तर, प्रा., कथा. ८, वि. ११२७, पद्य, मूपू., (सयलसुरासुरकिन्नर), ६२९४२ (+$) विजयरत्नसूरि स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (विजयरत्नगणाधिप धीमता), ६७०३६-२१(+)
विदग्धमुखमंडन काव्य, आ. धर्मदाससूरि, सं., परि. ४, श्लो. २७६, पद्य, बौ., (सिद्धौषधानि भवदुःख), ६३१२२(+#) विद्यासागरगुरुगुण स्तुति, मु. लावण्यसागर, अप., गा. १२, पद्य, मूपू (पवरगुणनिउण मुनिगण), ६७९९१ २४(+) विधिमार्गप्रपा नाम सुविहितसमाचारी, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा. ग्रं. ३५७४, वि. १३६३, पद्य, मूपू., (नमिय महावीरजिणं सम्म),
"
प्रतहीन.
(२) दीक्षा विधि-विधिमार्गप्रपानुसारी, प्रा. सं., गद्य, मूपू. (संध्यायां चारित्र), ६२९४५-२(+)
"
विधिशतक, आ. पार्श्वचंद्रसूरि प्रा. मा.गु. गा. १०० प+ग, मूपू (वंदिय वीरजिणंद नमिय), ६४४५१(+)
.
.
"
(२) विधिशतक - टवार्थ, मा.गु, गद्य, भूपू (--), ६४४५१०६)
विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., श्रु. २ अध्ययन २० नं. १२५०, गद्य, म्पू, (तेणं कालेणं तेणं), ६३२४९(+०)
1
(२) विपाकसूत्र टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., श्रु. २, प्र. ९००, गद्य, भूपू (नत्वा श्रीवर्द्धमान), ६३२४९(+)
-
विप्रजैनमत खंडनमंडन श्लोक, सं., श्लो. ६, पद्य, जै., वै., (नो वापी नैव कूपो न च), ६३१७७-२ (+) विप्रपालितशुक कथा - अविचारितकर्मणि, सं., गद्य, श्वे., (विचारितं च कर्तव्यं), ६५९२६-५ विवाहपडल, सं., श्लो. १६०, पद्म, वै., जंभाराति पुरोहिते), ६३६५९-२ (*)
"
י:
(२) विवाहपडल-पद्यानुवाद, वा. अभयकुशल, मा.गु., गा. ६३, पद्य, मूपू., वै., (वाणी पद वांदी करी), ६३५४१ (#) (२) विवाहपडल-पद्यानुवाद, मोतीराम, मा.गु गा. ६६, वि. १८३६, पद्य, वै., (सद्गुरु चरण नमीकरी) ६७७२३-२ (४) विविधविचार संग्रह, गु., प्रा., मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (--), ६८००२ (+#$)
"
"
विवेकमंजरी, श्राव. आसड कवि, प्रा. गा. १४४, वि. १२४८, पद्य, मूपू. (सिद्धिपुरसत्थवाह), ६३१९१६-२(+)
विवेकविलास, आ. जिनदत्तसूरि, सं. उल्ला. १२, पद्य, मूपू (शाश्वतानंदरूपाय तमस), ६४६४९ (+), ६३०१६(१)
"
"
(२) विवेकविलास - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते को एक परमात्मानइ), ६३४११-१(+)
(२) विवेकविलास-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू
(ग्रंथकर्ता कहे छइ), ६४६४९(*)
वीतराग आज्ञा विविध आगमोक्त, प्रा. मा.गु. प+ग, भूपू (जगन्नाथ जगत्रात कृपा), ६४४६९
"
י:
वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. २०, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (यः परात्मा परं), ६३१२० वीतरागाष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, भूपू (शिवं शुद्धबुद्ध), ६३१५३-५ (+)
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वृष्णिदशासूत्र प्रा. अध्य. १२, गद्य, मूपू (जइ णं भंते० पंचमस्स), ६४६५१-५१
(२) वृष्णिदशासूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जौ हे पूज्य० पांचमान), ६४६५१-५ (+) वैद्यक पद्धति, सं., श्लो. ४१, पद्य, वै., (नाभेरथः प्रसृतयो), ६३४५४-३(+#)
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१
वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., विला. ९, श्लो. ३२६, वि. १७२६, पद्य, मूपू., (सरस्वतीं हृदि), ६४४७९(+)
वैराग्यशतक, प्रा. गा. १०५, पद्य, भूपू (संसारंमि असारे नत्थि), ६७६३९-१(+), ६३३२१-१, ६७६२४(१), ६७५६३(३)
"
"
(२) वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सं० चार गतिरूप संसार), ६७५६३($)
(२) वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (संसार असारमाहि नथी), ६३३२१-१, ६७६२४०० व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. उ. १०. ग्रं. ३७३, गद्य, मूपू. (जे भिक्खु मासिय), प्रतहीन.
(२) व्यवहारसूत्र - चुलिका सोलह स्वप्न विचार, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं० पाडलीपु), ६४००६(+)
(३) व्यवहारसूत्र - चुलिका सोलह स्वप्न विचार का टवार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू. (ते काल पांचमा आराने), ६४००६(+)
*
-
י'
व्याख्यान संग्रह प्रा.मा.गु. रा. सं., गद्य, म्पू, (देवपूजा दया दानं), ६८२४३(०७), ६८३४९(*), ६३८९५, ६३४०६ (३), ६८१८७ (३)
""
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3
व्रतोच्चार विधि संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, मूपू., ( महोत्सवपुर्वका नालिक), ६२९५२(+)
शक्र स्तव अर्हन्नामसहस्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., प+ग, मृपू, ॐ नमोर्हते भगवते), ६४८३०-१(+), ६७५६९-७(+४),
६५९५९-१
शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. गा. १०० वि. १३वी १४वी, पद्य, मूपू., (नमिय जिणं धुवबंधोदय), ६२९४३-४(१),
६३२१०-५ (+#), ६३२२०-५ (+#), ६३२३३-५ (+#), ६४४४८-६ (+), ६३८९६-५, ६३२१७-५(#), ६८११६ ($)
(२) शतक नव्य कर्मग्रंथ स्वोपज्ञ टीका, आ. देवेंद्रसूरि सं., प्र. ४३४०, गद्य, मूपू. (यो विश्वविश्वभविना), ६३२१०-५ (+), ६३२३३-५ (+#)
, י
(२) शतक नव्य कर्मग्रंथ - बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (रत्नत्रयोपदेष्टारं), ६३२१७-५(#)
(२) शतक नव्य कर्मग्रंथ - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., ( वीतराग नमस्करीनइ), ६८११६ ($)
(२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., वि. १८०३, गद्य, मूपू., (जिनप्रति नमस्कार), ६३२२०-५ (+) (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ - गाथार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जिनप्रते नमीनें), ६८११६ ($)
शतपंचाशिका प्रकरण, प्रा., गा. १५९, पद्य, मूपू. (चडवीसं तित्थवरा बारस), ६३१४५-२(+४३)
शनिभार्या नाम, सं. लो. २, पद्य, वै., (ध्वजनी धामनी चैव), ६८३४४-३ (क)
शांतिजिन चरित्र, आ. भावचंद्रसूरि सं. प्र. ६. वि. १५३५, गद्य, मूपू (प्रणिपत्यार्हतः सर्व), ६३१९५ (+45), ६३२२३(+),
"
11
६३२३८ (+#), ६३२०९ (#$)
शांतिजिन स्तुति, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (किं कल्पद्रुमसेवया), ६८२५६-५३(+)
शांतिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (देवदेवाधिपैः सर्वतो), ६३२४७-२९(+#), ६३००६-१५
शांतिजिन स्तुति-सकलकुशलवल्ली पादपूर्तिमय, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (सकलकुशलवल्ली), ६४८२१-३
शांतिजिन स्तोत्र, मु. गुणभद्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (नानाविचित्रं बहुदुख ), ६७९५०-४(+)
शांतिजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू (शांतये शांतिकामाव), ६३१३१-३(+)
शांतिनाथचरित, आ. माणिक्यचंद्रसूरि सं., स. ८ श्लो. ५४५८, ग्रं. ५५७४, पद्य, मूपू (तेपि ब्रह्मादयो यस्य), ६३१५७(+०३) शांतिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., प्र. ६, श्लो. १६३२, ग्रं. ५०००, वि. १३०७, पद्य, मूपू (श्रेयोरत्नकरोद्भूता), ६७६०१ (५)
"
शांतिपाठ सं., श्लो. १०+२ प+ग, भूपू (शांतिजिनं शशिनिर्मल), ६५१९३-१९(१)
शारदाष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, भूपू. (ऐं ह्रीं श्रीं मंत्र), ६४१७७-३(०)
,
शिष्यमंडली स्थापन विधि, प्रा. मा. गु. सं., गद्य, मूपू., (मुहपत्ती पडिलेही), ६३६३१-१(०)
शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., कथा. ४३, गा. ११५, वि. १०वी, पद्य, मूपू., ( आबालबंभयारिं नेमि), ६४५८४(#$), ६७६४९ (४), ६३१२६(३) ६८३८१(३)
(२) शीलोपदेशमाला-बालावबोध + कथा, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., ग्रं. ६२५०, वि. १५५१, गद्य, मूपू., (श्रीवामेयममेयश्रीसहि), ६४५८४(५७), ६८३८१७)
(२) शीलोपदेशमाला-टवार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, (बालपणा लगइ ब्रह्मचार), ६३१२६ (४)
(२) शीलोपदेशमाला - कथा संग्रह, संबद्ध, मु. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, मूपु (पोतनपुर नगरि नर विक), ६३५९६ (+०) शीलोपदेशमाला, आ. जयवल्लभसूरि प्रा. गा. ११६, पद्य, म्पू., ( आबाल बंभवारिं नेमि), ६७५९४(+०)
,
3
"
(२) शीलोपदेशमाला - टवार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू (बालपणा लगई ब्रह्म), ६७५९४)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६
शुकराज कथानक-अक्षतपूजा विषये, सं., गद्य, मूपू., (अखंड फुडिय चक्खुक्ख), ६३०४७-८(2) श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ३४१, ग्रं. ३९०, पद्य, मूपू., (वीरं नमिऊण तिलोयभाणु), ६३०५८(#$) (२) श्राद्धदिनकृत्य-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवीरं नत्वा श्राद), ६३०५८(#$) श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (सच्चित्त दव्व विगई), ६३२४७-४६(+#), ६४४३८-५(+), ६६३४६-५(+),
६७०६७-२(+), ६८२५६-७०(+), ६३३१९-३, ६५२१४-१, ६३०४६-४(#) (२) श्रावक १४ नियम गाथा-(पु.हि.)बालावबोध, पुहिं., गद्य, मूपू., (श्रावक नित प्रति), ६७०६७-२(+), ६३३१९-३ (२) श्रावक १४ नियम गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पाणी फल बीज दातण ते), ६८२५६-७०(+) (२) श्रावक १४ नियम गाथा-विवरण, रा., गद्य, म्पू., (किनहीक श्रावक पांच), ६५२१४-१ (२) श्रावक १४ नियम गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पाणी फल बीज दातण), ६६३४६-५(+) श्रावक २१ गुण गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (धम्मरयणस्स जुग्गो), ६४६३७-११(+#) श्रावक आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, सं., अधि. ५, ग्रं. १६६, वि. १६६७, गद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञ प्रणिपत), ६७६२१-१(+) श्रावक पाक्षिकादि अतिचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नाणंमि दसणंमि अचरण), ६७९७३(#$) श्रावकविधि प्रकाश, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु.,सं., वि. १८३८, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीजिनाधीश), ६३५८०(+$), ६३६०५-३(+#$),
६७६५७-५(+#$) श्रावकाराधना, सं., प+ग., श्वे., (श्रीसर्वज्ञ प्रपंपण), ६२९५८(+) श्रीपाल चरित्र, ग. जयकीर्ति, सं., प्र. ४, वि. १८६८, गद्य, मूपू., (प्रणम्य सिद्धचक्र), ६३०५२ (२) श्रीपाल चरित्र-बालावबोध, मु. देवमुनि, मा.गु., प्र. ४, ग्रं. १८००, वि. १९१७, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत सुसिद्धपद),
६८०५८(+) श्रीपाल चरित्र, आ. ज्ञानविमलसूरि, सं., वि. १७४५, गद्य, मूपू., (सकलकुशलवल्ली सेचने), ६३२४२(+) (२) श्रीपाल रास, मु. चेतनविजय, मा.गु., ढा. ९, वि. १८५३, पद्य, मूपू., (देव धरम गुरु सेवके), ६८२७४ श्रीसंघ स्थिति भविष्यवाणी श्लोक-पंचमारके, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (पंचमारक पर्यंते), ६८१९९-६(+) श्रुतबोध, कालिदास, सं., श्लो. ४१, पद्य, वै., (छंदसां लक्षणं येन), प्रतहीन. (२) श्रुतबोध-मनोरमा टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, मूपू., वै., (श्रीमत्सारस्वतं धाम), ६३७४४(+) श्लोक संग्रह, सं., श्लो. ११, पद्य, (अस्मान् विचित्रवपुषि), ६८३६४-२(+) श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (कलकोमलपत्रयुता), ६२९६७-२(+#), ६३६०२-२(+), ६४१४९-२(+),
६४२००-५(+), ६५२४७-१३(+#$), ६५२४९-४(+#), ६५९७२-३(+#), ६७३७२-५(+#), ६७९७१-९(+#), ६७९९१-५(+#),
६३९०६-१, ६७६३७-२, ६७६३२(६), ६७०५५-२४(-2) । (२) श्लोक संग्रह-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंत भगवंत असरण), ६७६३२($) श्लोक संग्रह-, स., पद्य, जै., वै., (जिनेंद्र पूजा गुरु), ६४४४३-७(+) श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, (--), ६३६१६-२ श्लोक संग्रह-गूढार्थगर्भित, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., वै., (गोश्रावः किमयंग), ६७८६३-११, ६८१८९-२ श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, श्वे., (देहे निर्ममता गुरौ), ६३३९०-९(+), ६५२०४-३१(+), ६५२१३-१७(+#), ६३४०१-३,
६३००३-२(#), ६३४५२-२(#$) षट्प्राभृत, आ. कुंदकुंदाचार्य, प्रा., प्राभृ. ६, गा. ४४१, पद्य, दि., (काऊण णमुक्कारं जिणवर), ६३१०१(#$) (२) षट्प्राभृत-टीका, सं., गद्य, दि., (--), ६३१०१(१६) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ८६, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मपू., (नमिय जिणं जियमग्गण), ६२९४३-३(+#),
६३२१०-४(+#), ६३२२०-४(+#), ६३२३३-४(+#), ६४४४८-५(+), ६७६०४-४(+), ६८१७०(+), ६३८९६-४, ६३२१७-४(#) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-स्वोपज्ञ सुखबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., ग्रं. २८००, गद्य, मूपू., (यद्भाषितार्थलवमाप्य),
६३२१०-४(+#), ६३२३३-४(+#), ६७६०४-४(+) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य शिरसा वीर), ६३२१७-४(2) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., वि. १८०३, गद्य, मूपू., (जिनने नमस्कार करीने), ६३२२०-४(+#)
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १
५०८
(२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ - अर्थ, मा.गु. गद्य, भूपू (जिन श्रीभगवंत तेह), ६८१७० (+) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ- विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिली १४जीवस्थानकना), ६३४४१-३(+#) षडशीति प्राचीन कर्मग्रंथ, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. ८६, पद्य, मूपू., (निच्छिन्नमोहपासं), ६३०६९-२(+#$) षष्टिशतक प्रकरण, श्राव. नेमिचंद्र भंडारी, प्रा. गा. १६१+४, पद्य, मूपू (अरिहं देवो सुगुरू), ६३११०-१(+) (२) षष्टिशतक प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., ( राग अनइ द्वेषरुप), ६३११०-१(+#)
संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., गा. १४, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (संतिकरं संतिजिणं जग ), ६२९४७-१(+#), ६४६२४-६(+$), ६७९९१-१५००१, ६८२५६-१७३(+)
संधारापोरसीसूत्र, प्रा. गा. १४, पद्य, भूपू (निसीहि निसीहि निसीहि), ६३०४६-३६(४)
""
संदेहदोलावली प्रकरण, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा. गा. १५०, पद्य, मूपू (पडिबिंचिय पणय जय), ६३०६९-१(+४७)
संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. गा. १२५, पद्य, म्पू, (नमिऊण तिलोअगुरु), ६३१०८(+), ६३११८(+), ६४४५०(+), ६४६३५, ६७६७७, ६७६७८-३-०६)
(२) संबोधसप्ततिका - बालावबोध, वा. धर्मकीर्ति, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करीनइ तिनि), ६३११८(+#)
(२) संबोधसमतिका बालावबोध, मा.गु, गद्य, मूपू (वंदिय पासजिणंद तह), ६४६३५
(२) संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मु. विमल, मा.गु., वि. १७२३, गद्य, मूपू., (ॐ नमस्ते जगत्त्रात), ६४४५० (+)
(२) संबोधसप्ततिका बार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू (नमस्कार करीनइ तिन), ६३१०८(+३)
७
संयममंजरी, आ. महेश्वरसूरि प्रा. गा. ३४, पद्य, म्पू., (नमिऊण नमिर तियसिंद), ६३११६-१(+)
"
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संस्तारक प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. १२२, पद्य, मूपू., (काऊण नमुक्कारं जिणवर), ६२९४६-३(+#$), ६३०६२-५(+) सनत्कुमारचक्रवर्ति कथा-तपविषये, सं., गद्य, मूपू. (इहैव भरते कुरुदेशे), ६३०४७-६(क
,
सन्मतितर्क प्रकरण, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, प्रा. कां. ३, गा. १६८, वि. ११वी, पद्य, मूपू., (सिद्धं सिद्धाणं), ६४५०८ सप्ततिका कर्मग्रंथ, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., श्लो. ९१, पद्य, मूपू., (सिद्धपएहिं महत्थं), ६३२१०-६ (+#), ६३२२०-६(+#), ६४४४८-७(+) ६३२१७-६(१)
(२) सप्ततिका कर्मग्रंथ - टीका, आ. मलयगिरिसूरि सं. ग्रं. ४०००, गद्य, म्पू, (अशेषकम्मांशतमः), ६३२९० ६ (+)
"
,
(२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (अभिगम्यजगद्धीरं वीरं), ६३२१७-६(#) (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिद्धपदा निश्चला), ६३२२०-६(+#)
सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., गा. ७२. वि. १३वी १४वी, पद्य, मृपू. (सिद्धपएहिं महत्व), ६२९४३-५ (+१) ६३८९६-६ (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ - यंत्रसंग्रह, मा.गु., यं., मूपू., (--), ६८४१६ (+)
सप्तनय, प्रा., गा. ७, पद्य, श्वे. (तत्थणेगेहि माणेहिं), प्रतहीन,
"
(२) सप्तनय - बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि प्रा. मा.गु., गद्य, म्पू, (सेकिं तं सत्तमूल नया), ६३९९९-५ (4) सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., स्मर ७, पद्य, म्पू, णमो अरिहंताणं० हवइ), ६२९४९(+), ६३०५६ (+),
६३१३१-१(+), ६३२४७-३(+#), ६३२५३-३(+), ६३२६४-४ (+#$), ६५३५२-२ (+#), ६६३६३-२ (+$), ६७५६५-३ (+#$), ६७६५९(+३), ६८२५६-१७६(+), ६३०४६-३८(०), ६३०८२ (०), ६५९७९ (AS)
(२) सप्तस्मरण- खरतरगच्छीय- बालावबोध, मा.गु, गद्य, मूपू., (नत्वा श्रीपार्श्वजिन), ६३०५६ (+)
(२) सप्तस्मरण- खरतरगच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अजितनाथ जीता छह सर्व), ६३०८२(१) समयसार, आ. कुंदकुंदाचार्य, प्रा., अधि. ९, गा. ४१५, पद्य, दि., ( वंदितु सव्वसिद्धे), प्रतहीन.
(२) समयसार - आत्मख्याति टीका, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं. अधि ९ श्लो. २७८, प+ग. दि., ( नमः समयसाराय स्वानुभ), प्रतहीन
1
(३) समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., अधि. १२, श्लो. २७८, पद्य, दि., ( नमः समयसाराय), प्रतहीन,
"
(४) समयसार नाटक, जैक बनारसीदास, पुहिं, अधि. १३ गा. ७२७ नं. १७०७ वि. १६९३, पद्य, दि., (करम भरम जग तिमिर हरन), ६८०२३+३) ६८३२२(+)
(५) समयसार नाटक पद्यानुवाद के चयनित पद्य, पुहिं., पद्य, दि., (शोभित निज अनुभूति), ६३१४८(#), ६७७२७-७($)
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५०९
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६ समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. १०३, सू. १५९, ग्रं. १६६७, गद्य, मूपू., (सुयं मे० इह खलु समणे), ६३०४४(+#$),
६३२००(+#) (२) समवायांगसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि , सं., ग्रं. ३५७५, वि. ११२०, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ६३१६८(+#),
६३२००(+#) समाधिशतक, आ. देवनंदी, सं., श्लो. १०६, ई. ५वी, पद्य, दि., (येनात्माबुध्यतात्मैव), प्रतहीन. (२) समाधिशतक-बालावबोध, मु. पर्वतधर्मार्थी, मा.गु., गद्य, दि., (जिनान् प्रणम्याखिलकर), ६८३२७(#S) समासपरिचय श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, (द्वि गु द्वि द्वो), ६५९३०-३(+) । समुर्छिममनुष्योत्पत्ति १४ स्थान विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (उच्चारेसु वा क०), ६४६३७-१९(+#) सम्यक्त्व कुलक, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (वेसागिहेसुगमणं जहाव), ६६६११-३ सम्यक्त्व के ६७ बोलभेद, प्रा.,मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (चउसद्दहण तिलिंग), ६८२९८-२(+), ६८१२०-२ (२) सम्यक्त्व के ६७ बोलभेद-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सरणते किम१ बोलै), ६८१२०-२ सम्यक्त्व कौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद. ४४४, ग्रं. १६७५, वि. १४५७, पद्य, मूपू., (श्रीवर्धमानमानम्य), ६३२२८(+#$) सम्यक्त्वसप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ७०, पद्य, मूपू., (दसणसुद्धिपयास), प्रतहीन. (२) सम्यक्त्वसप्ततिका-सम्यक्त्वरत्नप्रकाशक बालावबोध कथा, उपा. रत्नचंद्र, मा.गु., वि. १६७६, गद्य, मूपू., (नत्वा
श्रीपार्श्वमर), ६८३४१(+9) सम्यक्त्व स्वरूप, आ. विबुधविमलसूरि, सं., पद्य, मूपू., (प्रणम्य परया भक्त्या ), ६८३०६ (२) सम्यक्त्व स्वरूप-बालावबोध, आ. विबुधविमलसूरि, मा.गु., वि. १८१३, गद्य, मूपू., (प्रणम्य कहेता प्रणां), ६८३०६ सम्यक्त्वादिद्वादशव्रत आलापक संग्रह, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (अहन्नं भंते तुम्हाणा), ६३४८०-१ सरस्वतीदेवी के १६ नाम स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., वै., (नमस्ते शारदा देवी), ६७६९४-५, ६६९२२-१(-) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. हेमाचार्य, सं., श्लो. ११, वि. १५२७, पद्य, मूपू., (कमलभूतनया मुखपंकजे), ६६७५२-२ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. १०, पद्य, वै., (नमोस्तु शारदादेवी), ६८३४४-१४(+#) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., (राजते श्रीमती देवता), ६७९५०-२(+) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (व्याप्तानंतसमस्तलोक), ६४१७७-२(#) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ११, पद्य, वै., (ह्रीं ह्रीं हृद्यैक), ६७३७२-२(+#), ६७५६९-६(+#) सरस्वतीदेवी स्तोत्र-मंत्रगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (ॐ नमस्त्रिदशवंदित), ६४१७७-६(#) सरस्वतीमाता स्तुति, आ. दयासूरि, मा.गु.,सं., गा. ४, पद्य, मूपू., (सणरण सरण करहु जिनदरस), ६७८९२-१७ सरस्वतीसूत्र, सं., पद्य, वै., (--), प्रतहीन. (२) सारस्वत व्याकरण, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, वै., (प्रणम्य परमात्मान), प्रतहीन. (३) सारस्वत व्याकरण-क्षेमेंद्रीवृत्ति, आ. क्षेमेंद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., वै., (तदर्थतत्त्वाभिनिविष), ६३९४१(+) (३) सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., वृ. ३, ग्रं. ७५००, वि. १६२३, गद्य, मूपू., वै., (नमोस्तु
सर्वकल्याणपद), ६३८९३(+$), ६४०२२(+#$), ६३९३९($), ६४२८९($) सर्वज्ञशतक, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., श्लो. १२३, पद्य, मूपू., (पणमिय सिरिवीरजिण), ६३२१८ (२) सर्वज्ञशतक-स्वोपज्ञ टीका, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीर), ६३२१८ सवाविश्वा जीवदया गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (जीवा सुहमा थूला), ६४०३५-६(+) (२) जीवदया गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवना दोय भेद), ६४०३५-६(+) साधारणजिन स्तुति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (श्रीतीर्थराजः पदपद्म), ६३२४७-३५(+#), ६३००६-२५ साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (अविरलकमलगवल), ६३२४७-२१(+#), ६८२५६-८३(+), ६३००६-८,
६३०४६-२०(2), ६८०१८-१३(-) साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (पाताले यानि बिंबानि), ६६७१३-२ साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (स्तुवंतु जिन), ६४१७७-५(१)
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५१० संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा.८, पद्य, मूपू., (मंगलं भगवान वीरो), ६३२६०-३(+), ६७९९१-१(+#),
६८२५६-१४(+) साधारणजिन स्तोत्र-अष्टमहाप्रातिहार्यगर्भित, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (स्वर्ण सिंहासन), ६४१७७-१२(#) साधु ७ मांडलीतप विधि, प्रा.,मा.गु., पद्य, श्वे., (सुत्ते अत्थे भोयणकाल), ६३४९७-२(2) साधु आचार विवरण, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (अत्र केचन जिनशासन), ६८२०३(+$) साधु आराधना, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (पूर्वं ग्लानस्य संपू), ६७६२१-२(+) साधुदीक्षाग्रहण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (संध्यायां चारित्रो), ६८२३४-२०(+#), ६८२५६-१८०(+) साधुप्रव्रज्या विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (दीक्षा लेता एतला), ६४०१५-१(+) साधुवंदना, प्रा., गा. १०७, पद्य, श्वे., (वंदियं ते वीरजिणं), ६३२९६ साधु समाचारी, प्रा.,मा.गु., गा. २९२, प+ग., मूपू., (वीरजिण नमिऊणं अमरिंद), ६४४५५(+) सामायिक अतिचार, प्रा., गद्य, मूपू., (नमो चउवीसाए), ६३९९३(#) सामायिक विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मपू., (नमो अरिहंताणं नमो), ६४६३७-९(+#) सामायिक विवरण, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (सिक्खावयंव पढम सामा), ६३३१३-१(+#) सामायिकव्रतग्रहण विचार, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (इत्थं पुण सामायारी), ६३३१३-२(+#) सामायिकसूत्रे इरियावही साक्षिपाठ, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीमहानिशीथसूत्रनो), ६३६०५-४(+#) सामुद्रिकशास्त्र, सं., अ. ३६, श्लो. २७१, पद्य, मूपू., (आदिदेवं प्रणम्यादौ), ६३९४५(+#) (२) सामुद्रिकशास्त्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिला आउखु जौइजै), ६३९४५(+#) सारस्वत यंत्र पूजा, सं., प+ग., दि., (ह्रीं हंसः परमंत्रवर), ६७७८२ सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., द्वा. २२, श्लो. १००, वि. १३वी, पद्य, मूपू., (सिंदूरप्रकरस्तपः), ६२९६७-१(+), ६३३१२-२(+#),
६३३३१(+), ६३३५४(+), ६४४३८-१(+), ६५९४३(+$), ६७५८७(+$), ६७६५६(+), ६७६८३-१(+), ६७८६१(+#S),
६३०४६-४५(#$), ६३३४८-१(#), ६३४५२-१(#$), ६७६३७-१(६) (२) सिंदूरप्रकर-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., वि. १६५५, गद्य, मूपू., (श्रीमत्पार्श्वजिन), ६२९६७-१(+#), ६५९४३(+$),
६७६३७-१(६) (२) सिंदूरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिंदूरनउ समूह तापरूप), ६४४३८-१(+) (२) सिंदूरप्रकर-पद्यानुवाद भाषा, श्राव. बनारसीदास, पुहि., अधि. २२, गा. १०१, वि. १६९१, पद्य, मूपू., दि., (सोभित तप
गजराज सीस), ६५२९२(+#$) (२) सिंदूरप्रकर-बालावबोध+कथा, पा. राजशील, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (शारदाचरणयुग्ममतीतपाप), ६७८६१(+#S),
६३४५२-१(#$) सिद्ध के १५ भेद, प्रा., गद्य, स्पू., (तित्थसिद्धा १ अतित्थ), ६७९४६-२२(-) सिद्धचक्र आराधना विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रथमवर्ष मास दिन), ६७०३१-१ सिद्धचक्रपूजाविधान नवपदमहिमा मंत्राह्वान विधि, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (सुलग्ने प्रथम उद्याप), ६७६११ सिद्धचक्र महापूजन विधान, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., दि., (--), ६५२००-१(६) सिद्धपंचाशिका प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ५०, पद्य, मूपू., (सिद्ध सिद्धत्थसुओ, ६३३६१-२(+), ६४१४९-१(+) (२) सिद्धपंचाशिका प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिद्ध आपणो अर्थ), ६४१४९-१(+) सिद्धपद पूजा, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (ॐ ऊ र्ध्वाघोरज्युत), ६५५८१-२ सिद्धसारस्वत स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., श्लो. १३, वि. ९वी, पद्य, मूपू., (करमरालविहंगमवाहना), ६५३५२-६(+#), ६७६९४-६ सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., अ.८, सू. ४६८५, ग्रं. २१८५, वि. ११९३, गद्य, मूपू., (अर्ह सिद्धिः
स्याद), ६३९७४(+#$), ६४०३९ (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., ग्रं. ६०००, गद्य, मूपू., (अर्हमित्येतदक्षरं),
६३९७४(+#s), ६४०२८+) (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-षट्पादावचूरि, सं., गद्य, मूपू., (अहँ णामं वह्नत्वे), ६४०३९
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६
(२) प्राकृत व्याकरण, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पाद. ४, सू. १११९, वि. १२वी, गद्य, मूपू., (अथ प्राकृतम् बहुल), ६३९७१(२०)
(३) प्राकृत व्याकरण-हिस्सा अपभ्रंश व्याकरण, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., सू. १२०, वि. १३वी, गद्य, मूपू., (स्वराणां स्वराः प्रा), प्रतहीन.
(४) प्राकृत व्याकरण - हिस्सा अपभ्रंशव्याकरण की स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., वि. १३वी, गद्य, मूपू., (अपभ्रंशे स्वराणां), प्रतहीन.
-
(५) प्राकृत व्याकरण-हिस्सा अपभ्रंशव्याकरण की स्वोपज्ञ वृत्तिगत उदाहृत दोधकटीका, मु. चिरंतनमुनि, अप., गा. २५३, पद्य भूपू (खोला सामला धण चंपा), ६४०३४(+)
(६) प्राकृत व्याकरण हिस्सा अपभ्रंशव्याकरण की स्वोपज्ञ वृत्तिगत उदाहृत दोधकटीका की दोधकव्याख्यालेशटीका, ग. सुमतिरत्नगणि, सं., गद्य, मूपू., (ढोल्लानायकः सामली), ६४०३४(+)
(२) सिद्धहेमशब्दानुशासन हैमलघुप्रक्रिया, उपा. विनयविजय, सं. वि. १७१०, गद्य, मूपू (अर्हमित्यक्षरं ध्येय), ६३७७४(+5) सिद्धांत प्रश्नोत्तरी, वा. मेरुसुंदर गणि, प्रा. मा.गु. सं., प्रश्न. १०१, वि. १५३५, गद्य, मूपू (श्रीसिद्धांतनई), ६३५११(+०३), ६४१५६ (+३), ६८४१३(०५)
सिद्धांतबोल संग्रह, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम प्रश्न अष्टोत), ६८३८५ (+)
सिद्धांतसार, पं. विवेकविजय, प्रा., गा. १०३, पद्य, भूपू., ( चत्तारि परिमंगाणि), ६३३४१(१)
(२) सिद्धांतसार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवे श्रीउत्तराध्ययन), ६३३४१(७)
सिद्धिप्रिय स्तोत्र, आ. देवनंदी, सं., श्लो. २६, ई. ६वी, पद्य, दि., (सिद्धिप्रियैः प्रति), ६५५९८-२(#)
सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. गा. १३४१ ग्रं. १६७५. वि. १४२८, पद्य, मूपू (अरिहाइ नवपवाई झावित).
',
१
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(२) श्रीपाल चरित्र, ऋ. केशव, सं., वि. १८७७, गद्य, मूपू., (प्रणम्य वीरं घनकर्मम), ६४४७५ (+)
सीमंधरजिन स्तोत्र, प्रा., गा. २१, पद्य, मूपू., (नमिरसुर असुर नरवंदि), ६६६११-२($)
सुभाषित श्लोक संग्रह पुहिं. प्रा. मा.गु. सं., गा. ४०, पद्य, वे (दानं सुपात्रे विशुद), ६३८४६ (+४३) ६८२८०-२
""
,
६८३१७(+)
(२) सिरिसिरिवाल कहा- हिस्सा सिद्धचक्र स्तव, आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. गा. ३६, वि. १४२८, पद्य, भूपू., (गवणमकलियायतं उड्डाह), ६७६५३(+)
"
(३) सिरिसिरिवाल कहा का हिस्सा सिद्धचक्र स्तव अवचूरि, मु. हेमचंद्र, सं., गद्य, मूपू. (अथ ग्रंथकार एकादश), ६७६५३(+)
,
3
(२) सुभाषित श्लोक संग्रह - टवार्थ, मा.गु. गद्य, भूपू (सकल क० समस्त कुसल), ६८२८०-२
"
सुभाषित श्लोक संग्रह *, सं., पद्य, (विद्यालक्ष्मीसंपन्ना), ६२९५३ -२ (+), ६३२६०-६(+)
सुभाषित संग्रह में, प्रा., मा.गु. सं., श्लो. २००, प+ग. ., (ॐकारबिंदु संयुक्त), ६३३४६, ६३३४८-२०)
"
सुभाषित संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., गा. ७७, पद्य, श्वे., (अन्ना सत्थे पेमं पाव), ६३३२१-२
सुभिक्षदुर्भिक्षज्ञान गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, वे. (संबच्छरस्स अंके), ६७५९८-१
"
सुसढ चरित्र, प्रा., गा. ५१६, पद्य, मूपू., (जे परमाणंदमय परप्पमा), प्रतहीन.
(२) सुसद चरित्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), ६५२७३(४)
सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु., सं., वर्ग. ४, श्लो. १७६, वि. १७५४, पद्य, मूपू., (सकलसुकृत्यवल्लीवृंद), ६३३९४(+),
६४२०७(+5), ६४६४४(+#5), ६८११० (+३), ६८२९७(+), ६८०७५ (४७), ६३५३६ (६)
(२) सूक्तमाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सकल सर्व जे शुभ करणी), ६८११० (+$)
(२) सूक्तमाला कथा, मा.गु., गद्य, भूपू., (--), ६८११० (+३) सूक्तमुक्तावली, प्रा. सं., वर्ग. ४, पद्य, मूपू., (अर्थार्थवर्गहितचिंतन), ६८०६८/
५११
(२) सूक्तमुक्तावली - बालावबोध, मा.गु. गद्य, मूपू (अरथ अरजे जेणि स्वायत), ६८०६८ (क) सूक्ष्मार्थविचारसारोद्धार, ग. जिनवल्लभ, प्रा., गा. १५०, पद्य, मृपू (सवलंतरारि वीरं बंदिय), ६३०६९-३ (+ सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. अ. २३, ग्रं. २१००, प+ग, भूपू (बुज्झिज्ज तिट्टेज), ६४६१३(+), ६३०६० (५६) (२) सूत्रकृतांगसूत्र - बालावबोध, मु. रत्नसीशिष्य, मा.गु., वि. १७४४, गद्य, मूपू., (श्रीआचारांग कहिनइ), ६४६१३ (+)
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १
५१२
(२) सूत्रकृतांगसूत्र- बालावबोध * मा.गु., गद्य, मूपू., (बुज्झेज्ज कहता जाणइ), ६३०६० (४७)
1
(२) सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. गा. २९, पद्य, म्पू., (पुच्छिसुणं समणा मारण), ६५९२९-१(+), ६५९४०-१, ६७६१५, ६७५६२-१(३)
(३) सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन का टवार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (पु० पुछता हवा कोण), ६७६१५(३)
सूरिमंत्रपूजा विधि, प्रा. सं., गद्य, मूपू., (ॐ क्रीं ह्रीं श्रीं), ६७७१४-२ (४३)
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सूरिमंत्राराधन विधिसंग्रह - अंचलगच्छीय विस्तृत, मा.गु. सं., गद्य, मूपू., (--), ६७५८४(४) सूर्य मंत्र विधि, मा.गु., सं., गद्य, वै., (ॐ नमो श्रीसूरजदेवाय), ६५२०१-१२(+)
सूर्याष्टक, सं. ११, पद्य, वै. ॐ रक्तवर्णो महातेज), ६४४३८- ९(+)
"
स्तुतिचतुर्विंशतिका, उपा. क्षमाकल्याण, सं., स्तु. २४, श्लो. ७७, वि. १८०१-१८४१, पद्य, मूपू., (सद्भक्त्या नतमौलि), ६२९८२(+), ६४९४८(+)
स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं. स्तु. २४, श्लो. ९६, पद्य, भूपू., (भव्यांभोजविबोधनैक), ६२९६९(+), ६४२०५ (+४),
६४३२८(+३), ६४६४६ (+), ६७६५१(+०), ६७६६२-३ (+), ६३५४७, ६७६७३-१(०३), ६३५४०(5)
स्तुतिसंग्रह, सं., प्रा., मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ६८१२३-८
स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., स्था. १०, सू. ७८३, ग्रं. ३७००, प+ग., मूपू., (सुयं मे आउस तेणं), ६३२४६ (+$), ६४६५२(+), ६३०३१(०३), ६३२५१(०३)
(२) स्थानांगसूत्र-टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., ग्रं. १३५००, गद्य, मूपू., ( श्रीमद्वीरजिनं नत्वा), ६४६५२ (+)
(२) स्थानांगसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीसुधर्मा कहि हे), ६३२४६ (+$), ६३२५१ (#$) (२) स्थानांगसूत्र- प्रव्रज्याभेदादि विवरण, प्रा., गद्य, मूप. (दसविहा पव्वज्जा), ६३१३८ (+)
""
(३) स्थानांगसूत्र- प्रव्रज्याभेदादि विवरण का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (त्रिण पुरुष बुधिवंत), ६३१३८(+$)
स्नात्रपूजा, श्राव. देपाल भोजक, प्रा., मा.गु., कुसु. ५, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (पवित्र उदक लेइ अंग), ६७९९८-१, ६७७२४($)
स्नात्रपूजा विधिसहित, पंन्या. रूपविजय, प्रा., मा.गु., पद्य, मूपू., (मुक्तालंकार विकारसार), ६४००८
स्नात्रपूजा सविधि, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, मूपू (पूर्वे तथा उत्तरदिसे), ६७९७५*)
,
हनुमत् अष्टक, सं. लो. १०, पद्य, वै. (संसंस सिद्धिनाथं प), ६५२५७-६(4)
हनूमच्चरित्र, श्राव. अजित ब्रह्मचारी, सं., स. १२, श्लो. २०००, पद्य, दि., (सद्दोधसिंधु चंद्रायस), ६३१५८(#) हरिहर प्रबंध, आ. राजशेखरसूरि सं. वि. १५वी, गद्य, मृपू., (श्रीहर्षवंशे हरिहरः), ६७६२०-३(5) हर्षकवि प्रबंध, आ. राजशेखरसूरि सं. वि. १५वी, गद्य, मूपू., (पूर्वस्यां वाराणस्या), ६७६२०-२
हवन विधि, मा.गु., सं., पग से., (भूमिशुद्ध अंगन्यास), ६७५८५-२(+)
हालिक कथानक-नैवेद्यपूजा विषये, सं., गद्य, मूपू., (ढोअइजो नेवज्जं जिण), ६३०४७-१०(#) हेमसूरि प्रबंध, आ. राजशेखरसूरि सं. वि. १५वी, गद्य, मृपू., (पूर्णतगच्छे), ६७६२०-१(5)
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"
हैमलिंगानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रक. ८, श्लो. १३९. वि. १२वी, पद्य, मूपू (पुलिंग करणथपभमयर),
१
६३९७५ (+), ६४२४३ (+)
(२) मलिंगानुशासन - अवचूरि, सं., गद्य, मूपु. ( नमः सर्वविदेकादयोवंत), ६३९७५ (+)
(२) हैमलिंगानुशासन - स्वोपज्ञ विवरण, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं. ग्रं. ३३००, गद्य, मूपू. (श्रीसिद्धहेमचंद्र),
६४०२६(+), ६४०३७
(३) हैमलिंगानुशासन-स्वोपज्ञ विवरण की दुर्गपदप्रबोधटीका, वा. वल्लभ वाचक, सं., वि. १६६१, गद्य, मूपू., (स्वस्तिश्रीदायकं देवा), ६४०२६ (+३)
होलिकापर्व कथा, आ. जिनसुंदरसूरि सं श्लो. ५३, पद्य, भूपू (वर्द्धमानजिनं नत्वा), ६३३६२ (+)
"
(२) होलिकापर्व कथा - अनुवाद, मा.गु., गद्य, म्पू, ( श्रीमहावीरने नमीने), ६३३६२(+)
होलिकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., वि. १८३५, गद्य, मूपू., (होलिका फाल्गुने मासे), ६३०५१-४(+)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
३ दृष्टि नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (मिथ्यादृष्टि १ सम्यग), ६८२५६-४३(+) ४ कषाय नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (क्रोध १ मान २ माया), ६८२५६-४०(+) ४ गरणा विगत, रा., गद्य, मूपू., (१ धरतीरो गलणौ ईरज्या), ६५२०४-६४(+) ४ जाति आसीविष, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीछू जाति विषै१), ६५२०४-१८(+) ४ दर्शन नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (चक्षुदर्शन १ अचक्षु), ६८२५६-४४(+) ४ ध्यान विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम आरितध्यान जीका), ६७९५९-२ ४ प्रत्येकबुद्ध कथा, मा.गु., कथा. ४, गद्य, श्वे., (करकंडु कलिंगेसु० कलि), ६३५२८-३(#) ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. ४ ढाल ४५, गा. ८६२, ग्रं. ११२०, वि. १६६५, पद्य, मूपू., (सिद्धारथ
शशिकुलतिलो), ६३३७७(+$), ६३६०२-१(+), ६४६००(+#$), ६७०४०(+) ४ मंगल गीत, उपा. रत्ननिधान, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (--), ६७९१३-६(+#$) ४ मंगल पद, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चारो मंगल चार आज), ६८००४-३७(+), ६८२५६-१४५(+) ४ मंगल पद, क. पद्मविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सासन देवता समरि आगाय), ६७०५७-२ ४ मंगल पद, मु. सकलचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज म्हारै च्यारु), ६८२५६-५१(+), ६७७२९-४(#) ४ मंगल रास, मु. जेमल ऋषि, रा., ढा. ४, गा. ११०, पद्य, श्वे., (अनंत चोवीसी जे नमु), ६७८७९-१(+), ६३५२९ ४ शरणा, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहिलो शरणो अरिहंत), ६७९४१-२, ६७९४६-१८(-) ४ शरणा माहात्मय गाथा, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (च्यार शरण छे सारना), ६८२३०-३(-) ४ शरणा सज्झाय, मु. चौथमल ऋषि, मा.गु., गा. ११, पद्य, स्था., (हीरदे धारीजे हो), ६३४९१-४५(+) ५ अनुत्तरविमान नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (विजय १ वैजयंत २ जयंत), ६५२०४-३५(+) ५ अनुष्ठान नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (विषानुष्ठान १), ६३६२८-४ ५ आरागत कुगुरु सज्झाय, रा., गा. ६१, पद्य, मूपू., (भेषधारी बिगड्या घणा), ६४१९५-६(+) ५ इंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (काम अंध गजराज अगाज), ६३३९७-३(+), ६७९४०-१६, ६४१५५-४८(#) ५ इंद्रिय सज्झाय, मु. प्रेम ऋषि, पुहि., गा. १२, पद्य, श्वे., (करुणाले हो जिनराज), ६३६२५-१(+) ५ कारण छ ढालिया, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ६, वि. १७३२, पद्य, मूपू., (सिद्धारथसुत वंदिये), ६३१०४-३(+#$),
६८२११-२(5) ५ कुगुरु सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ६, गा. ३९, पद्य, मूपू., (सेवो सदगुरु गुण), ६३३९९-१(+) ५ चारित्र विचार, मा.गु., गद्य, म्पू., (--), ६५१८२-४(+$) ५ ज्ञान पूजा, मु. मोहन मुनि, मा.गु., पूजा. ५, वि. १९४०, पद्य, मूपू., (वर्द्धमान जिनचंदकुं), ६८०१५-२(#) ५ ज्ञान व ३ अज्ञान नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (मतिज्ञान १ श्रुत), ६८२५६-४५(+) ५ ज्योतिषी नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (चंद्रमा १ सूर्य २), ६५२०४-३८(+) ५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (आदि हे आदिजिणेसरु ए), ६४२०२-४(+), ६८२५६-१०२(+),
६४२२६-५(#), ६७०५५-९(-2) ५ देव बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहिलुं नामद्वार बिजु), ६५२०४-३९(+) ५ परमेष्ठी आरती, जै.क.द्यानतराय, पुहि., गा.८, वि. १८वी, पद्य, दि., (इहविधि मंगल आरती), ६५३०८-११(+) ५ परावर्तन संबंध, मा.गु., गद्य, श्वे., (पंचविध: संसार प्रथम), ६८२०८-२(6) ५ पांडव सज्झाय, मु. अमी ऋषि, पुहिं., गा. ११, वि. १९५३, पद्य, श्वे., (पांडव सुखकारी समता), ६४६०७-३०(+) ५ पांडव सज्झाय, मु. कानजी, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (हस्तिनागपुर दीपतो), ६५१८७-२ ५ बोल विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (केवलीना जोगथी जीव), ६८३२३-२(#) ५ भावना के ५३ उत्तरभेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्मास्तिकाय १ अधर्म), ६३४४१-४(+#)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ पूरवैरे), ६८३५४-१(+) ५ महाव्रत सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (सुरतरुनी परि दोहिलो), ६८४५१-२३, ६४१५५-५१(#) ५ महाव्रत स्वरूप विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सर्वप्राणातिपातविरमण), ६३६२८-३ ५ शरीर नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (उदारिक१ वैक्रिय२), ६८२५६-३६(+) ५ साधु चौपाई-अभयकुमारसंबंधे, मु. कान्हजी, मा.गु., ढा. १३, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (जगगुरु प्रणमु वीरजिन), ६४२२४(+) ६ आरा बोल, मा.गु., ग्रं. १८०, गद्य, मूपू., (दस कोडाकोड सागरोपमना), ६८२९१ ६ कायजीव उत्पत्ति आयुष्यादि विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पृथ्वीकाय अपकाय), ६३५७१-२(+#), ६५२०४-१(+), ६७०२३(+),
६८१९९-२(+), ६३६२८-१।। ६ काय सज्झाय, मु. वाल मुनि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जिनवर दीए धर्मदेशना), ६३३७४-२१(+) ६ जीव पंचढालियो, मु.सुगुणनिधान, मा.गु., ढा. ६, गा. ११२, पद्य, मूपू., (प्रणमि पास जिणंदने), ६३१०४-२(+#) ६ जीवपर्याप्ति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (एकेंद्री ४ पर्याप्ती), ६५२०४-२३(+) ६ पर्याप्ति नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (आहारपर्याप्ति १ शरीर), ६८२५६-४७(+) ६ लेश्या नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (कृष्ण लेश्या १ नील), ६८२५६-४१(+) ६ लेश्या विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (कृष्णलेस्या १ सर्व), ६५२०४-२४(+) ६ संवर सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर गोयमनें कह), ६८१६३-२४ ७ नरक गोत्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (रत्नप्रभा १), ६५२०४-४१(+), ६५२०४-५९(+) ७ नरक नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (धम्मा १वंसा २ सेला ३), ६५२०४-४०(+), ६५२०४-५८(+) ७ वार कर्तव्य सज्झाय, मु. थावर ऋषि, पुहिं., गा. ८, पद्य, मूपू., (चतुरनर सुण सतगुरु), ६४१६६-११ ७ व्यसन सज्झाय, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पर उपगारी साध सुगुरु), ६३४१०-२, ६८४१२-१२(#) ७ व्यसन सज्झाय, मु. सौभाग्य, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सगुण सनेहि हो सांभल), ६७७२८-४(#) ७ व्यसन सज्झाय, मा.गु., गा.८, पद्य, श्वे., (काया कामण जीवसुं इम), ६३३९७-१७(+) ७ समुद्घात नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (वेदना समुद्धात १), ६८२५६-४२(+) ७ सहेली संवाद, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (पहिली सखी उठि बोलीयु), ६७९४७-४(-) ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, पू., (मूल कर्म आठ तेहनी), ६३५७१-१(+#), ६७८१३(+), ६८२२३(+#$), ६८३०४(+#s),
६३९४७, ६३९७९-१, ६४१९३, ६८२९४(#) ८ कर्म नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञानावर्णनी १), ६४४३८-६(+), ६५१९२-६(+#), ६८२५६-४९(+) ८ कर्मप्रकृति विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम ज्ञानावरणी), ६३३८०(+), ६३५२१-१ ८ कर्मस्थिति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञानावरणीनी स्थिति), ६५२०४-७(+) ८ जिन स्तवन-वर्ण प्रभातियुं, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १०, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (प्रभातें उठीने), ६३९५७-९(+),
६४६०५-३(+) ८ प्रकारी पूजा, मु. देवविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. ७७, वि. १८२१, पद्य, मूपू., (अजर अमर निकलंक जे), ६४६४०($), ६५३०६($) ८ प्रकारी पूजा, मा.गु., पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसुख पूरव), ६५१८६-२(+) ८ प्रकारी पूजा-पिस्तालीसआगमगर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., वि. १८८१, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पासजी), ६४१४४-२(#),
६८०८४(48) ८ प्रकारी पूजा विधिसहित, मु. अमृतधर्म, पुहिं., गा. ९, प+ग., मूपू., (शुचि सुगंध वर कुसुम), ६७०७४-१३(+) ८ बोल-वादनिवारण, पुहिं., गद्य, श्वे., (राजासु वाद कीजै नही१), ६७९४६-२४(-) ८ बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहली बोलै दया पालै), ६७९४६-२३(-) ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ८, गा.७६, पद्य, मूपू., (शिवसुख कारण उपदेशी), ६८२५०(+),
६५२२६(#) ८ वाणव्यंतर नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (अणपनी १ पणपनी २), ६५२०४-४३(+)
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,
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६
८ व्यंतरदेव नाम, मा.गु. गद्य, भूपू (पिसाच १ भूत २ यक्षः), ६५२०४-३७(+)
९ ग्रैवेयक नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (भद्दे १ सुभद्दे२ सुज), ६५२०४-३४(+)
९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. १०, गा. ४३, वि. १७६३, पद्य, मूपू., (श्रीगुरुने चरणे नमी), ६४४५९-५ (+), ६८४१०-२ (६)
९ वाड सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (रमणी पशु पंडग तणी रे), ६३३९७-४(+), ६४१५५-५०(#)
१० ठाणा बोल, मा.गु., गद्य, वे. (एणे आवार एगे अणाया२), ६४६१६
"
१० बोल सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू (स्यादवादमत श्रीजिनवर) ६४१५५-१(७)
"
"
१० भुवनपतीदेव नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (असुरनिकाय १ नागनिकाय), ६५२०४-३६(+)
१० यतिधर्म भेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (खंती क० साधु क्षमा), ६५१८२-२ (+), ६५२०४-१७(+)
१० दिक्पाल आरती, मा.गु., गा. १०, पद्य, वै., (करध्वजानु धरता दुख), ६७९८२-२
१० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (दसविह प्रह उठी), ६३३७४-७(+), ६४६३७-१५ (+#), ६७९९१-१७(+#), ६८२३७-९(+४), ६३५४५-११
१० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ३३, वि. १७३१, पद्य, मूपू., (सिद्धारथनंदन नमुं), ६४२००-१(+), ६४२०६-२(१४), ६४५९५-४(+), ६८२३७-३६(+०१, ६८२५६-६७(+), ६८००८-२ ६८१८०-६
१० प्राण नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्पर्शन १ रसन २), ६८२५६-४८ (+)
१० प्राण विचार, मा.गु., गद्य, मूपू. (१ श्रोतेंद्री क० कान), ६५२०४-२६ (+)
१० लक्षण साधु पद, रा. गा. ११, पद्य, वे. (प्रथम लंछन साधनोजी), ६७८९४-३
"
"
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"
१० श्रावक गीत, मु. जयतसी, मा.गु., गी. १०, गा. १४६, पद्य, मूपू., (वाणियगामि गाथापती), ६३९६७(+#) १० श्रावक विचार- उपासकदशांगसूत्रगत, मा.गु., गद्य, म्पू, (श्रावक अणंदर सिवानंदा), ६५२०४-२५ (+) १० श्रावक सज्झाय, मु. ऋषभदास, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (वाणिय गाम आणंद भलो), ६३३७४-१८ (+) १० श्रावक सज्झाय, आ. नन्नसूरि, मा.गु., गा. ३२, वि. १५५३, पद्य, मृपू., (जिण चुवीसी करूं), ६५३०८-१७(१) १० श्रावक सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (प्रह उठि प्रणमुं दसे), ६८२३७-४६ (+#), ६४१५५-४०(#$)
१० संज्ञा नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (आहारसंज्ञा भयसंज्ञा), ६५२०४-२७(+), ६८२५६-३८(+)
"
११ अंग सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्वा. ११, वि. १७२२, पद्य, मृपू. ( आचारांग पहेलुं कह्यु), ६५२८६-१ ११ अंग सज्झाय, मु. विनयचंद्र, मा.गु., ढा. १२, वि. १७५५, पद्य, मूपू., (पहिलो अंग सुहामणों), ६८००८-५ ($)
११ उपदेश बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ विधवादोपदेस २), ६५२०४-९(+)
११ गणधर नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (इंद्रभूति अग्निभूति), ६५२०४-२८ (+), ६५२०९-५
११ पाट भास-लुंकागच्छीय, मु. सुखमल, मा.गु., गा. ७, पद्य, स्था., (प्रणमु श्रीजिन पास), ६८४१२-३५ (#)
"3
',
१२ उपयोग नियमा भजना के २०१ बोल, मा.गु., को. वे. (१ समच जीवमे नियमा ० ), ६५२५१ १२ चक्रवर्ति कथा, मा.गु., कथा. १२, गद्य, श्वे. (अजोध्याइ भरतेश्वर), ६३५२८-१(#$)
.
१२ चक्रवर्ती ९ बलदेव कालमान, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीरिषभदेववारै१ भरत), ६४६३७-२३(+#$)
१२ देवलोक इंद्र संख्या, मा.गु., गद्य, मूपू (पहिलें देवलोके ५०), ६३५२८-४(बा
१२ देवलोक नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., ( पहिलो सौधर्मइ देवलोक), ६५२०४-३३ (+)
१२ भावना, उपा. जयसोम, मा.गु., ढा. १२ गा. ७२, वि. १६४६, पद्य, मूपू (आदिसर जिणवर तणा पद), ६७९१३-८(+०३),
,
६५७९९
१२ भावना, मा.गु., गा. २०, पद्य, भूपू
१२ भावना पद, रा. भा. १२, पद्य, मूपू. (हे रे जीव गड मड), ६८४०४१०)
१२ भावना विचार, मा.गु., गद्य, मृपू. (पहिली अनित भावना ते), ६५१८२-३ (+), ६५२०४-१६ (+)
१२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु. दा. १३, गा. १२८, ग्रं. २००, वि. १७०३, पद्य, भूपू (पास जिणेसर पाय नमी), ६७९०० १०(+०), ६८०८५, ६८२९९(३) ६८३८०-१(-)
(सिद्ध अनंत समरी करी) ६७०३६-१३(५)
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५१६
देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ १२ भावना सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., ढा. १४, पद्य, मूपू., (विमलकुलकमलना हंस तु), ६३५१५ १२ मास दूहा, मु. जसराज, पुहि., गा. १२, पद्य, मूपू., (पीउचाल्यौ पदमण कहे), ६३६१६-७ १२ मासीय साधुभक्ति, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (आज आसाढीकउ नह्यो), ६३३७४-२(+) १२ व्रत नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्राणातिपातव्रत मृषा), ६५२०४-२९(+), ६८१५३-३(+) १२ व्रत सज्झाय, मु. केसराज, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (बारै भावन भावो रे भव), ६३५४५-१४ १२ व्रत सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १५, वि. १६८२, पद्य, मूपू., (श्रावकना व्रत सुणिज), ६७०५२-२ १२ व्रत सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (गौतम गणधर पाय नमीजे), ६८१६३-२७ १३ काठिया सज्झाय, मु. आसकरण ऋषि, रा., गा. २२, वि. १८६१, पद्य, श्वे., (रतन चिंतामण जे एवोजी), ६७८७९-२(+) १३ काठिया सज्झाय, मु. उत्तम, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (सोभागी भाई काठीया), ६७७३५-७(+#$) १३ काठिया सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आलस पेलो काठियो धर्म), ६८३८०-२४(-) १३ पंथी चर्चापत्र, आ. प्रभाकरसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ६५२७७(+) १४ गुणस्थानक १२० प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (मिथ्यात्वगु० आहारक), ६३९९९-१(#$) १४ गुणस्थानक २८ द्वार, मा.गु., गद्य, श्वे., (ज्ञानद्वार १ समकित), ६३४०३($) १४ गुणस्थानक २८ द्वार, मा.गु., द्वा. २८, गद्य, मूपू., (नामद्वार लक्षणद्वार), ६४०२०-१(+) १४ गुणस्थानक ३३ द्वार बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), ६३४२०-१(+$) १४ गुणस्थानक ४१ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (नामद्वार लक्षणद्वार), ६३५१४-२ १४ गुणस्थानक ८८ द्वार, मा.गु., द्वा. ८८, गा. ८८, गद्य, मूपू., (नामद्वार ते १४ गुणठा), ६८३१९(+#$) १४ गुणस्थानक के कर्मप्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (उधि बंध १२० प्रकृति), ६३५१३ १४ गुणस्थानक ध्यान विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहिलै बीजै गुण ठाणे), ६८२०७-२(+), ६८२८३-२ १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (बंधप्रकृतयस्तासां), ६३५२१-३ (२)१४ गुणस्थानक विवरण-यंत्र, मा.गु., को., म्पू., (मिथ्यात्व सास्वादन), ६७७२७-३ १४ गुणस्थानके कर्मबंधउदयसत्ता व उदीरणा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञानावरणी ५ दर्शना), ६३४४१-१(+#) १४ पूर्व विषय और लेखनप्रमाण, रा., गद्य, म्पू., (उत्पात पुरब में सरव), ६३६०५-२(+#) १४ विद्या नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (विद्याकला रसायण), ६७८६३-८ १४ स्वप्न स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रथम ऐरावण दिठो), ६५२३८-२(#$) १५ तिथि ७ वार चरित्र, मु. लब्धिविजय, मा.गु., ढा. १५, पद्य, मूपू., (श्रीमत् गौडी जगधणी), ६५२७५() १५ तिथि दुहा, मा.गु., गा. १६, पद्य, वै., (पख पिडवा थी उलसे), ६३९८९-२(#), ६७०८१-३(#) १५ तिथि सज्झाय, मु. हीरालाल, पुहि., पद. ४, पद्य, स्था., (पनरे तिथि का करु मे), ६३४९१-१४(+) १५ योग नाम-मनवचनकाया के, मा.गु., गद्य, मूपू., (सत्यमनोयोग १ असत्य), ६८२५६-४६(+) १६ जिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १२, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (ऋषभ अजित संभवस्वामी), ६३९५७-८(+) १६ सती नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (ब्राह्मी१ चंदन२ बालि), ६५५८१-९ । १६ सती लावणी, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (श्रीवीरणी तणां तु), ६७०४२-७(+) १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., गा. १७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आदिनाथ आदि जिनवर), ६५२४९-३(+#) १६ सती सज्झाय, मु. प्रेमराज, पुहि., गा. १४, पद्य, श्वे., (सील सुरंगी भांलि ओढी), ६५२४०-७, ६४१५५-५६(#) १६ सती सज्झाय, मु. सौभाग्यचंद्र, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीसरसति पय प्रममी), ६५३०८-२२(+) १६ सती सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शीतल जिणवर करी), ६७९५५-३ १६ स्वप्न सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (पाडलीपुर नयरी चंद्र), ६८४३०-४(-) १६ स्वप्न सज्झाय, मु. महानंद, रा., ढा. २, पद्य, श्वे., (श्रुतदेवी रे ध्यान), ६७९००-२(+#) १६ स्वप्न सज्झाय, मा.गु., गा. २९, पद्य, श्वे., (पाडलिपुर नामे नगर), ६७९६७-२ १६ स्वप्न सज्झाय, मा.गु., ढा. २, गा. २७, पद्य, श्वे., (सरस्वति सामिण विनवू), ६७८९९-७(+#)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६
५१७ १७ भेदी पूजा, आ. विजयानंदसूरि, मा.गु., पूजा. १७, पद्य, मूपू., (सकल जिणंद मुणिंदनी), ६५२८५(+#), ६८१२२ १७ भेदी पूजा, वा. सकलचंद्र, मा.गु., ढा. १७, पद्य, मूपू., (अरिहंत मुखपंकजवासिनी), ६५२४१(+), ६७०४८, ६८२८२ १७ भेदी पूजा, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., ढा. १७, वि. १६१८, पद्य, मूपू., (भाव भले भगवंतनी पूजा), ६४६१८, ६५२२१ १७ भेदी पूजा नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (गंधोदकि स्नानपूजा १), ६५२०४-४(+) १८ नातरा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (मथुरा नगरी मे कुबेर), ६५९३०-२(+$) १८ नातरा विवरण, मा.गु., गद्य, श्वे., (बालक सूउ सगपम भाई एक), ६४४४६-२(+) १८ नातरा सज्झाय, मु. हेतविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, पद्य, मूपू., (पहेला ते समरूं पास), ६८३८०-२३(-), ६८४३०-३(-) १८ नातरा सज्झाय, रा., ढा. ५, पद्य, मूपू., (--), ६७९४४ ।। १८ पापस्थानक आलोयणा, मा.गु., गद्य, मूपू., (कोई भव्यजीव कोई), ६३५३१-१(+) १८ पापस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहलो प्राणातिपात), ६५२०४-६(+), ६७९४६-२०(-) १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., सज्झा. १८, ग्रं. २११, पद्य, मूपू., (पापस्थानक पहिलुंकहि),
६७०१६-१(+$), ६७०३७(+), ६७९१८, ६५२९५(#) १८ पापस्थानक सज्झाय, मु. धर्मदास, मा.गु., पद्य, श्वे., (प्रथम जिणेसर पाए), ६५२९४ १८ प्रकार की लिपि नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (हंसलिपि १ भूयलिपि २), ६७८६३-३ १८ भक्ष्य भोजन नाम, मा.गु., गद्य, जै., (सिरो १ सींग २ घाट ३), ६५२०४-४८(+) १८ भार वनस्पति गाथा, क. शुभ, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रथम कोडि अडतीस), ६३३९०-१५(+), ६८०७१-१५(-) १८ भार वनस्पति भाव, मु. सिद्ध, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (प्रथम कोड अडवीस), ६८०७१-८(-) १८ भार वनस्पतिमान कवित, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. २, पद्य, श्वे., (तीन कोडि तरु जात), ६४६३७-१६(+#) १८ लिपि नाम-विशेष नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (लाटी१ चौटी२ डाहला३), ६७८६३-४ १८ व्याकरण नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ऐंद्रव्याकर्ण २ पाण), ६७८६३-७ १८ हजारशीलांगरथधारी भेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (चेतन १ अचेतन २ एवं), ६३५८८-२(+) २० जिन स्तवन-सम्मेतशिखरमंडन, ग. हीररुचि, मा.गु., स्त. २०, पद्य, मूपू., (गुण गिरूआ गुरुने), ६३६२४(+) २० बोल-तीर्थंकर नामकर्मबंध के, रा., गा. ४, पद्य, श्वे., (गुण गाउ अरिहंत सिधां), ६४६०२-११(-) २० बोल-तीर्थंकर नामकर्मबंध के, मा.गु., गद्य, मूपू., (पैले बोले अरहतना), ६५२०४-५०(+) २० बोल सज्झाय, मु. जसराज ऋषि, मा.गु., गा. १८, वि. १८७७, पद्य, स्था., (करम हनी केवल लही), ६७५६२-५(#) २० बोल सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १९, वि. १८३३, पद्य, स्था., (किणसुंवाद विवाद न), ६३५२७-५(+), ६८३०३-१ २० वसा जीवदया-साधु, मा.गु., गद्य, मूपू., (बसने थावर तेमां), ६४०३५-७(+) २० विहरमानजिन नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (सीमंधर १ युगमंधर), ६७९८४-२(+), ६७९६७-८ २० विहरमानजिन विवरण, मा.गु., को., मूपू., (श्रीमंधरस्वामी), ६८०७०-२(#) २० विहरमानजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (वीस विहरमान जिनवरराय), ६८२५६-८(+), ६७०८२-५ २० स्थानकतप गणj, मा.गु., गद्य, श्वे., (ॐ नमो अरिहंताणं), ६५२६५-१($) २० स्थानकतप विधि, मु. ज्ञानसागर-शिष्य, पुहिं., प+ग., मूपू, (तिहां प्रथम शुभ दिन), ६८२७०(+$), ६८२६२ २० स्थानक पूजा, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., पूजा. २०, वि. १८५८, पद्य, मूपू., (सुखसंपतिदायक सदा जग), ६८०१५-३(#$) २१ कायोत्सर्गदोष, रा., गद्य, मूपू., (घोडानी पर उंचौ नीचौ), ६४६३७-१४(+#) २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (जिनशासन रेशुद्ध), ६३५४५-८ २२ परिषह सज्झाय, रा., गा. २०, पद्य, श्वे., (साधरो मारगरेकठण), ६४६०२-२६-) २२ परिसह सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. २२, वि. १८२२, पद्य, स्था., (श्रीआदेसर आद दै), ६८३२६(#$) २३ पदवी विचार - पन्नवणासूत्रगत, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीर्थंकर चक्रवर्ति), ६५२०४-५(+) २३ पदवी सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (गणधर गौतमस्वामी जी), ६४६०२-२४(-) २३ पदवी स्तवन, आ. उदयप्रभसूरि, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवर पाय), ६८००४-४(+), ६७८६२-५
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२४ जिन अष्टक, आ. उदयसागरसूरि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (अविचल थानक पहुता), ६७८६५-५(+#) २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, म्पू, (५० कोडि लाख सागर), ६७०७०, ६७९२९, ६८२४६
,
२४ जिन कलश स्तवन, आ. राजेंद्रसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., ( आज मनोरथ फल्या), ६७०७५-१६
२४ जिन कवित्त, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (आद रिषभ अरिहंत अजित), ६५२३७-५(#)
देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २
२४ जिन गणधरसंख्या स्तवन, मु. कुंभ ऋषि, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (सकल जिणेसर प्रणमुं), ६७०३६-१(+) २४ जिन चंद्रावला, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (निजगुरु चरणकमल नमी), ६८२१३-६(+#$) २४ जिन चोढालिये, मु. खोडीदास, मा.गु., डा. ४, गा. २८, पद्य, वे (प्रभुजी आदि जिणेशरना), ६५२६६.५ (+) २४ जिन छप्पय, पुहिं., का. १, पद्य, मूपू., ( रिषबदेव रिषभदेव बीर), ६५२३७-९(#)
२४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु. गा. ८, पद्य, मूपू (शत्रुंजे ऋषभ समोसर्व), ६७८६५-४(+०),
६७९७१-४(+१), ६७९९१-१८(+०१, ६८२५६-१०५(०), ६७६९२-३, ६३९९८-४(१), ६७०५५-३
२४ जिन नाम- अनागत, मा.गु., गद्य, म्पू, (पद्मनाभ श्रेणिकनो), ६७९६७-७
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२४ जिन नाम - वर्तमान, मा.गु., गद्य, भूपू (श्रीऋषभदेवजी अजित) ६५२०४-५२(+), ६५२०९-४
२४ जिन पंचकल्याणक विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (कार्त्तिक वदि ५), ६७८९४ ($)
२४ जिन पद, मु. रामचंद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ऋषभ अजित संभव अभिनंद), ६८०५४-१४
२४ जिन पद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जीउ जपिजपि जिनवर), ६७८५६-७(+), ६४१५५-९(
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२४ जिनपरिवार सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू (चोवीसे जिनना सुखकार) ६५३०८-१९(१)
२४ जिन भववर्णन स्तवन, मु. श्रीदेव, मा.गु, गा. ५, पद्य, मूपू (प्रणमीय चोवीसे जिन), ६७८१८-६ (+)
२४ जिन मातापिता, आयु, देहमान, पर्याय, शासनकाल, शासनदेव, संपदादि बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), ६५२४२ (#$) २४ जिन मातापितादि ७ बोल स्तवन, मु. दीप, मा.गु., गा. ३१, वि. १७१९, पद्य, श्वे., (श्रीजिनवाणी सरस्वती), ६३९५६-१९(+#) २४ जिन मोक्ष कल्याणक गणनुं, मा.गु., को. मृपू., (काती वदि मुक्खो), ६८०८८- ११४)
२४ जिन लंछन दोहा, मु. नवमल, पुहिं. दोहा ३, पद्य, वे (जिह्र कहू जिनराज के), ६५५८१-७
"
"
२४ जिन लेखो, मा.गु., गद्य, भूपू (पहला बांदु श्रीऋषभ), ६५२६०-२(5)
"1
२४ जिन विवरण- अनागत, मा.गु., गद्य, मूपू., ( आगामि कालै भावि जिन), ६५२०४-५३(+)
२४ जिन सज्झाय, मु. हेत ऋषि, पुहिं., गा. ९, पद्य, श्वे. (श्रीआदनाथ अजत संभव), ६३५५१-२(+)
"
सवै. २५, वि. १८५५, पद्य, श्वे., (सुरतरु जिन समरुं सदा), ६५२५३-२(#) ( रिषभ अजित संभव), ६८१६३-४२ (शासनपति चोवीसनी जे), ६७९००-३(+#)
""
(ऋषभ अजित संभव देवा), ६३९५७-१०+)
२४ जिन सवैयापच्चीसी, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., २४ जिन स्तवन, मु. जयराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, वे २४ जिन स्तवन, ग. तेजसी, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., २४ जिन स्तवन, मु. दुर्गादास, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू. २४ जिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (चोवीसे जिन गाईये), ६४५८३-२(#$) २४ जिन स्तवन, मु. रिखजी, मा.गु., गा. २५, पद्य, ओ., (समरू श्रीआदि जिणंद), ६८३१०-२८(१) २४ जिन स्तवन, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., ( रिषभ अजित संभ अभिनंद), ६८३५१-४ २४ जिन स्तवन, मु. शिवलाल, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (समर सदा चोवीसे जिनवर), ६७८१४-६ २४ जिन स्तवन, मा.गु., गा. ८, पद्य, वे. (आदि नमी अरिहंतने ६४१५५-३५१०१
""
1
२४ जिन स्तवन, पुहिं., गा. २५, वि. १८१५, पद्य, मूपू., (आया तै जग भरम के), ६५२२३
२४ जिन स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, वे. (पहिला ऋषभ जिणेसरवेव), ६३२५९-३(+)
२४ जिन स्तवन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू. (पहला ऋषभदेव बीजा), ६७८१८-५ (०)
"
२४ जिन स्तवन- कल्याणकभूमिगर्भित, मु. अजयराज, मा.गु., गा. ११, पद्य, खे, (रे मन पांच परम गुरु), ६५२२०-२
"
२४ जिन स्तवन- गणधरसंख्यागर्भित, उपा. जवसोम, मा.गु., ढा. ५, गा. १७, वि. १६५७, पद्य, मूपू ( पासजिणेसर प्रणमु पाय),
"
६५९७८-७(*)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६ २४ जिन स्तवन-देहमान आयस्थितिकथनादिगर्भित, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., ढा. ५, गा. २९, वि. १७२५, पद्य, मूपू.,
(पंचपरमिट्ठ मन शुद्ध), ६५२३६-१(+$), ६५९७८-११(+), ६७८६२-६ २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., गा. २९, वि. १५६२, पद्य, मूपू., (सयल जिणेसर प्रणमु),
६७९६१-१(+#), ६७९९१-२३(+#), ६८२२८-२(+#) २४ जिन स्तुति, मागु., गा. १, पद्य, मूपू., (अष्टापदगिरि आदिजिणेस), ६३२४७-४२(+#), ६७०७६-१४(+) २४ जिन स्तुति-अतीत अनागत वर्तमान, पुहिं., पद्य, मूपू., (--), ६७७५६($) २४ तीर्थंकर नाम, आयुमान, देहमान, वर्ण, राज्यकाल, तपकाल आदि विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीआदिनाथ को आउषो),
६४६३७-२१(+#), ६८२५६-१८६(+) । २४ दंडक २५ द्वार विचार, मा.गु., गा. २, प+ग., मूपू., (सरीरोगाहणा संघयण), ६८२७६, ६८०१७(६) (२) २४ दंडक २५ द्वार विचार-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सरीर पांच ते किहां), ६८२७६($) २४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (शरीर अवगाहणा संघयण), ६३४४६(+#$), ६७८७०(+$) २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम नामद्वार बीजु), ६८३७९(+$), ६४४७७(६) २४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (दंडक लेश्या ठित्ति), ६८४२२(+), ६४४६१, ६४६०९, ६८४१९, ६८४२३, ६८४३२ २४ दंडक गतिआगति सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा.१०, पद्य, मूपू., (समरी सरसति सामण देव), ६५३०८-७(+) २४ दंडक चौपाई, मु. दोलतराम, मा.गु., गा. ५७, पद्य, श्वे., (वंदो धीरसु पीर हर), ६७९४२-१(-) २४ दंडक बोल संग्रह*, मागु., गद्य, मूपू., (दंडक २४ ना शरीर ५), ६५२०४-२१(+), ६७९८४-३(+), ६८२४८(+$), ६३५७९ २४ दंडक यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (--), ६८४२६(+#$) २४ दंडक स्तवन, मु. भीमसागर, मा.गु., ढा. २, गा. ३२, पद्य, मूपू., (सिरिजिन शासन मन धरी), ६५३०८-८(+) २४ विष्णु अवतार स्तुति, मा.गु., का. १, पद्य, वै., (जै जैमान वराह कमठ नर), ६५१९२-१२(+#) २५ भावना विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (मनोगुप्ति १ एषणासमित), ६३९७९-३($) २७ बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), ६८१५४-१(६) २८ लब्धि विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जे मुनिना हाथ पगना), ६४६३७-१०(+#) २९ बोल-दुषमकाल, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीरस्वामिजी), ६८१९९-३(+) ३० बोल-दुषमकाल, मा.गु., गद्य, श्वे., (नगर ते गामसरखा थशे), ६४६३७-२२(+#) ३२ आगम विषय दर्शन, मु. तेजसिंघजी, मा.गु., गद्य, स्था., (--), ६५१९४(+#$) ३३ आशातना विचार-गुरुसंबंधी, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहलो बोल गुरु आगल), ६४६३७-१३(+#) ३४ अतिशय छंद, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीसुमतिदायक कुमति), ६८४४३-४(#$) ३४ अतिशय पद, पुहि., गा. २, पद्य, श्वे., (अचल कीरत जग जस धरण), ६३४९१-२८(+) ३५ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहेले बोले गति चार), ६८२९८-१(+$), ६८१२०-१ (२) ३५ बोल-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (देवगति मनुष्यगति), ६८१२०-१ ३६ गुरुगुण सज्झाय, मु. भावविजय शिष्य, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सरसति० गुरुनां रे), ६७९७८-५ ३६ बोल थोकडो, मा.गु., गद्य, मूपू., (एगे असंजमे १ एगे), ६४१५९ ३६ रागरागिनी नाम, गोपाल, पुहिं., पद्य, वै., (भैरुमै विलावल मिलावत), ६७०३६-४०(+) ४५ लाखयोजन प्रमाण-४ वाना, मा.गु., गद्य, मूपू., (सीमंत नामे नरकावासे), ६८१९९-७(+$) ४५ लाख योजन मनुष्यक्षेत्र संख्यामान, मा.गु., गद्य, मूपू., (मेरपर्वतथी हरकाणी), ६५२०४-५७(+) ४७ गोचरीदोष सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ६७८३७-४($) ५७ कर्मबंधहेतु विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पेहलुं कर्मबंधन), ६३५६७(+) ६२ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (देवगति जीवना भेद), ६८०९१-२ ६२ बोल विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (च्यार दिशामांहे केही), ६८१९४(+$) ६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिउं अरिहंताई बोले), ६३५८३(+$)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., म्पू., (देवगति मनुष्यगति), ६८४५०($) ६२ मार्गणास्थाने १४ गुणस्थानके १२२ उत्तरप्रकृति का उदय यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (--), ६८४३५(+#$) ६३ शलाकापुरुष रास, ग. दयाकुशल, मा.गु., ढा. ७, गा. ५९, वि. १६८२, पद्य, मूपू., (जिनचरण पसाउले मनह), ६४२०६-३(+#$) ६४ प्रकारी पूजा विधिसहित, पं. वीरविजय, मा.गु., पूजा. ६४, वि. १८७४, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर साहिबो), ६८१४९(+$) ६७ सम्यक्त्व भेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीन सुद्ध मन सुद्ध), ६५२१०(+), ६७९६५-१(#) ६८ तीर्थजिन स्तवन, वा. सोमहर्ष, मा.गु., गा. २५, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (पाली तीरथ परगडौ), ६५९७८-१०(+) ७२ कला नाम-पुरुष, मा.गु., गद्य, मूपू., (लेखककला भणवोकला कवित), ६७८६३-५ ७२ शिक्षा नाम-श्रावकसंबंधी, मा.गु., गद्य, मूपू., (इष्टदेवता उपरी मति), ६३४११-२(+$) ८४ आशातना स्तवन, उपा. धर्मसिंह, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (जय जय जिण पास जगडा), ६४१८३-३(+) ८४ गच्छ नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ बेवंदनीक २ धर्मघोष), ६४४३८-१३(+) ८४ बोल कवित्त, क. हेम, पुहिं., गा. ९०, पद्य, श्वे., (सुनय पोषहत दोष मोख), ६४१९१(+) ९६ जिन नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (केवलज्ञानी सर्वज्ञाय), ६७८९९-८(+#$) ९६ जिन स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., ढा. ५, गा. २३, वि. १७४३, पद्य, मूपू., (वरतमान चोवीसै वंदु), ६४१५१-२१(+),
६५९७८-३(+) ९६ जिन स्तवन, उपा. मूला ऋषि, मा.गु., ढा. ८, पद्य, मूपू., (केवलनाणी श्रीनिरवाणी), ६७७३०(#) ९७ बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (आगमीया कालरा केवलीया), ६७०१५ ९८ बोल-जीवअल्पबहत्व विषयक, मा.गु., गद्य, मूपू., (अहमंते सव्व जीवा), ६५२०४-२०(+), ६७०७८-१(+) ९८ भेद जीव अल्पबहुत्वविचारगर्भित स्तवन, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., ढा. ३, गा. २२, वि. १७७२, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर वंदिये),
६५२३६-१२(+) १५४ आगमिक प्रश्नोत्तर, मा.गु., प्रश्न. १५४, गद्य, श्वे., (अथ प्रश्न १५४ मूक्या), ६४४६८(+) ४०१ बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (जीव रूपी के अरुपी), ६७८९५-१(+) ५६३ जीव बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, स्था., (जीव गइ इंदीये काए), ६४५६६-१ ५६३ जीवभेद६२ मार्गणा विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (सात नारकी पर्याप्ता), ६८१९९-१(+), ६८२९२ ५६३ जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (उंचा लोक में ५६३), ६५२०४-१२(+), ६३५२१-४, ६८१८५-३ ५६३ जीवभेद स्तवन, मु. ऋषभदास, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (मिच्छामि दुकडं इन पर), ६३३७४-१६(+) ५६३ जीवविचार बोलसंग्रह *, मा.गु., गद्य, म्पू., (जीव का भेद बेइंद्री), ६४१३६-२(+) अंजनासुंदरी चौपाई, सा. पार्वतीजी, पुहिं., ढा. १६, वि. १९७६, पद्य, स्था., (पंचपरमेष्ठिदेवको वंद), ६७९०१(+) अंजनासुंदरी चौपाई, ग. भुवनकीर्ति, मा.गु., खं. ३ ढाल ४३, गा. २५३, ग्रं.७०७, वि. १७०६, पद्य, मूपू., (करतां सगली साधना),
६३४५५-१(+) अंजनासुंदरी रास, मु. पुण्यसागर, मा.गु., खं. ३ ढाल २२, गा. ६३२, वि. १६८९, पद्य, मूपू., (गणधर गौतम प्रमुख), ६४२३३(+#),
६७९९७, ६८१५१(#) अंजनासुंदरी रास, मा.गु., ढा. २२, गा. १६५, पद्य, मूपू., (शील समो वड को नही), ६४१६२(+#), ६५३१९(+), ६७९०३(+),
६३६१४, ६३९६३(१), ६४१५२(#), ६८३८६($) अंतसमाधि विचार, पुहिं., गद्य, म्पू., (हे भव्य तुंसुण समाध), ६८१९२ अंतिम आराधना, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ६८२२५(#$) अंबडनृप चरित्र, मु. गजविजय, मा.गु., खं. ७ ढाल ५१, गा. १३५५, ग्रं. २८४५, वि. १७७९, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसोहगस्तु),
६८२६४(+#) अंबिकामाता छंद, मा.गु., पद्य, वै., (हे कलसहणी नगनोपीबाला), ६७८५२-१०(-६) अंबिकामाता स्तुति, रमाकांत, मा.गु., गा. ६, पद्य, वै., (स्तुति अंबेवकी वरण), ६७८५२-८(-) अइमुत्तामुनि सज्झाय, क. आणंदचंद, मा.गु., गा. १३, वि. १५९७, पद्य, मूपू., (श्रीवृद्धमानरे पाय), ६३३९७-५(+)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६
५२१ अइमुत्तामुनि सज्झाय, मु. राजसमुद्र, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (आजक काल्हि चले), ६३६२३-३(+) अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (वीरजिणंद वांदीने), ६५२३६-१०(+), ६७७३४-१ अइमुत्तामुनि सज्झाय, रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (--), ६७९४६-६(-) अकल्पनीय आहारदान सज्झाय, रा., गा. २०, पद्य, मूपू., (खुसामदी कर दाताररी), ६७७३७-५(#) अक्षरबत्रीशी, मु. हिम्मतविजय, मा.गु., गा. ३५, वि. १७२५, पद्य, मूपू., (कका ते किरिया करो), ६४२०२-२(+) अक्षरबावनी, वा. किशन, पुहिं., गा. ६१, वि. १७६७, पद्य, श्वे., (ॐकार अमर अमार अज), ६४५३७ (२) अक्षरबावनी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (ॐकार पद पंचने समवेय), ६४५३७ अक्षरबावनी, मु. धर्मवर्धन, पुहि., गा. ५७, वि. १७२५, पद्य, मूपू., (ॐकार उदार अगम अपार), ६५२९९(+#), ६८२९५(+),
६७०३३(६) अक्षरबावनी, मु. मान, पुहिं., गा. ५७, पद्य, श्वे., (ॐकार अपार अलख्य), ६४१८६(+) अक्षरबावनी, मु. लालचंद, पुहिं., गा. ५८, वि. १८७०, पद्य, स्था., (सरस वचन सरस्वति तणा), ६७८०८(#) अक्षरबावनी, मु. सुमति कविराज, मा.गु., का. ५२, पद्य, मूपू., (ॐकार अणपार सार सतरूप), ६३६२६(+#) अगडदत्त चौपाई, मु. ललितकीर्ति, मा.गु., ढा. १७, गा. ३९६, वि. १६७९, पद्य, मूपू., (नाभिमहीपति शिरतलो), ६३५७८ अजापुत्र चौपाई, मु. भावप्रमोद, मा.गु., ढा. ३३, वि. १७२६, पद्य, मूपू., (पारस प्रणमुंसदां), ६८२६९(+) अजापुत्र चौपाई, मु. सुमतिप्रभ, मा.गु., ढा. ४८, वि. १८२२, पद्य, मूपू., (परमज्योति त्रिभुवनपत), ६७९८५(+) अजितजिन पंचकल्याणक स्तवन, उपा. शांतिविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीगुरुदेव नमेवि), ६८००४-१२(+) अजितजिन पद, मु. कुशलधीर, पुहिं., पद. ३, पद्य, मूपू., (अजितजिन तो सम सुभट न), ६३६१६-१३ अजितजिन पद, मु.खुशालचंद, पुहिं., गा.५, पद्य, मूपू., (जै जै जै जगदीसर), ६८२५६-९३(+) अजितजिन स्तवन, मु. अमी ऋषि, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (रे जीव अजीत जिनेश्वर), ६४६०७-३(+) अजितजिन स्तवन, मु. आत्मारामजी, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (तुम सुणजयोजी अजित), ६७७१९-१८(-) अजितजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पंथडो निहालुं रे), ६४१८८-२ अजितजिन स्तवन, मु. क्षेमकरण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जय जय अजिय जिणंद,), ६३९५६-५(+#) अजितजिन स्तवन, पंन्या. खुशालविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (अजितजिणंदरी सेवा भवि), ६७०४४-७(+) अजितजिन स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १३, वि. १७३५, पद्य, म्पू., (अजित जिणेसर प्रणमु), ६४१५१-७(+) अजितजिन स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (विश्वत्रय सुखकारिका), ६८००४-१४(+) अजितजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अजित अरिहंत भगवंत), ६८०७१-६(-) अजितजिन स्तवन, मु. नेत, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (वींद अधिक प्रभु), ६८४५१-९ अजितजिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (अजित जिणेसर चरणनी), ६८१६३-१३ अजितजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अजित जिणंदस्यु प्रीत), ६७०७५-४,
६८१६३-४४ अजितजिन स्तवन, आ. राजेंद्रसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (हो जिन रंगीला अर्हन), ६७०७५-२० अजितजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १९, पद्य, स्था., (जंबूदीपना भरत मे), ६८३१०-२५(+#) अजितजिन स्तवन, मु. विजयानंदन, मा.गु., गा.११, पद्य, मूपू., (अजित जिणंद दयाल सुणो), ६७०३६-३५(+) अजितजिन स्तवन-चोथा आरा, मु. तेजसिंह, मा.गु., गा.५, पद्य, श्वे., (चोथो आरो जिनवर वारो), ६७८१०-४ अजितजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (विश्वनायक लायक), ६८१२३-१७ अजितजिन स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (अजित जिनेसर अरचिय), ६८२३७-२४(+#) अजितजिन स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (विजयासुत वंदो तेजथी), ६४४५९-३(+) अजितसेनकनकावती रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ४३, गा. ७५८, ग्रं. १०१४, वि. १७५१, पद्य, मूपू., (वीणापुस्तकधारणी),
६४५९०(#$) अट्ठाई व्याख्यान, मु. ऋद्धिसार, मा.गु., वि. १९४८, गद्य, मूपू., (शांतिकरण श्रीशांति), ६५३११(+)
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५२२
देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ अढीद्वीपे ज्योतिष विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (जंबूधीप मै २ चंद्रमा), ६५२०४-५६(+) अणोझा विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (चैत्र सुदि पांचमिइ), ६४०३५-२(+) अतीतचौवीसी जिन नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (केवलज्ञानी निर्वाणी), ६५२०४-५१(+), ६७९८४-१(+) अदत्तादान पापस्थानक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चोरी व्यसन निवारीये), ६८३८०-८(-) अध्यात्मगीता, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ४९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रणमियै विश्वहित), ६३९६४-२(+) अध्यात्म पद, मु. कुशल, पुहि., गा. १०, पद्य, मूपू., (चितानंद मन कहारे), ६८३०३-२३ अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद मुनि, पुहिं., गा. ३३, वि. १६८५, पद्य, स्था., (अजर अमर पद परमेसर), ६७०३९(+#), ६८१८४(+),
६५२०९-१, ६८२२६, ६४०११-११(2) अध्यात्म सज्झाय, मु. आनंदघन, हिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (अध्यातम प्रीत लागी), ६५२२९-२ अनंतजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (धार तलवारनी सोहली), ६४६०८-८(-#) अनंतजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अनंत जिनराजना चरणनी), ६३४६४-१२२(#) अनंतजिन स्तवन, मु. धीरविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आवो सहिली भेंटवा०), ६७९७८-११ अनंतजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अनंतजिनशुंकरो), ६४५९५-३(+$) अनाथीमुनि सज्झाय, मु. रामचंद्र, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रेणिक रेवाडी चढ), ६८०५४-१० अनाथीमुनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मूपू., (मगधाधिप श्रेणिक), ६४६०५-१(+$), ६५२८८-१, ६७९६७-६,
६४१५५-३३(#), ६७८८३-५(-2) अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रेणिक रयवाडी चड्यो), ६७९१३-७(+#), ६४४८०-८,
६५१८५-२, ६८१६३-३४, ६४१५५-५८(#$) अनुकंपा सज्झाय, रा., ढा. ९, पद्य, श्वे., (पोतै हण हणावै नही), ६८३८८(#$) अनुभव महिमा, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (कहूं शुद्ध निश्चे कथ), ६३४९९-२(+) अबयद शुकनावली, मु. सुजाणसिंह, पुहि., वि. १७९४, गद्य, श्वे., (महावीर कौ ध्याइके), ६४१३५-१(+#$) अभिनंदनजिन पद, मु. कुशलधीर, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (अभिनंदन सेवीयै रिद्ध), ६३६१६-१५ अभिनंदनजिन पद, मु. न्यानसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जिनपति चोथा आगलि नाच), ६८१०७-३ अभिनंदनजिन स्तवन, मु. अमी ऋषि, पुहि., गा.७, पद्य, श्वे., (श्रीअभिनंदन करुणा), ६४६०७-५(+) अभिनंदनजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (बे करजोडी वीनवु रे), ६८४५१-५ अभिनंदनजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (दीठी हो प्रभु दीठी), ६७०७५-५ अममजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अममजिनेसर बारमा हो), ६३४६४-१११(#) अमरसेन जयसेननृप चौपाई, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. २५, गा. ४७७, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (श्रीसंखेश्वर पास), ६८३२४ अमावस्यातिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अमावस्या तो थई उजली), ६५२१३-१६(+#) अमृतवेल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. २९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चेतन ज्ञान अजुवालीए), ६८२३४-१४(+#),
६७०५७-४, ६७८२६-३ अरणिकमुनि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (विहरण वेला पांगुर्यउ), ६३४५५-३(+) अरणिकमुनि रास, मु. आणंद, मा.गु., ढा. ८, वि. १७०२, पद्य, मूपू., (सरसति सामिणि वीनQ), ६४२०१ अरणिकमुनि सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. २४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (इक दिन अरणक नाम उठया), ६४१५५-५(2) अरणिकमुनि सज्झाय, मु. कीर्तिसोम, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (इक दिन अरणक जाम), ६३४२२-५(+#$), ६७९७०-२ अरणिकमुनि सज्झाय, मु. खीमा, पुहिं., गा. १२, पद्य, श्वे., (कचा था सोई चल गया), ६४१७२-१० अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (अरणिक मुनिवर चाल्या), ६३३९७-१३(+), ६४४८०-१०,
६७९४०-१३, ६८२८४-२, ६८३८०-१३-) अरणिकमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (अरणिक मुनिवर चाल्या), ६७७३५-२(+#), ६५२८८-१६,
६८४१२-५(#)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६
५२३ अर्जुनमाली रास, मा.गु., ढा. ६, पद्य, श्वे., (तिणकाले ने तिणसमै), ६४६०२-३५(-) अर्जुनमाली लावणी, मु. हीरालाल, रा., गा. १७, वि. १९३२, पद्य, स्था., (उरजनमाली नाम जणाको), ६३४९१-३८(+) अर्जुनमाली सज्झाय, मु.खेमा, मा.गु., गा.३१, पद्य, श्वे., (मगध देसमाही राजगरी), ६४१६६-३ अर्बुदादितीर्थोद्धार ऐतिहासिक विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ६७७०२($) अल्पबहुत्व विचार, आ. सोमसुंदरसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (पृथ्वी मध्य जे मेरु), ६३४८५(+#) अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. १३, गा. १०७, वि. १७४१, पद्य, मूपू., (मुनिवर आर्य सुहस्ति), ६३६१८(+$),
६५३०८-३(+), ६५२९८, ६७९०४, ६८२२९, ६८३९३, ६४१७८(#), ६७०५९-४(#$), ६७८२१-१(६) अवंतिसुकुमाल सज्झाय, मु. शांतिहर्ष, मा.गु., ढा. १३, वि. १७४१, पद्य, म्पू., (पास जिनेश्वर सेविये), ६४५६५(+) अशरण भावना सज्झाय, मु. नवल, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (पल पल छीजे आउखु अं), ६७९४०-२५ अश्वशुभलक्षण छंद, पुहिं., चौपा. १३, पद्य, वै., (पडताल पयाल ध्रमंक), ६७०५५-१७(-#) अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. महानंद, मा.गु., गा. ९, वि. १८४०, पद्य, मूपू., (आ छे लाल जी गणधर), ६७९००-६(+#) अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (हारे मारे ठाम धर्म), ६७६९९-२(+#) अष्टमीतिथि स्तवन, मु. लावण्यसौभाग्य, मा.गु., ढा. ४, गा. २४, वि. १८३९, पद्य, मूपू., (पंचतिरथ प्रणमुंसदा), ६७९७२-१(६) अष्टमीतिथि स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चोवीसे जिनवर प्रणमुं), ६३२४७-२३(+#), ६८२५६-७२(+),
६३००६-१२, ६७७६७-१, ६८१२३-२४, ६७८३३-३($), ६८०१८-२०(२) अष्टमीतिथि स्तुति, मु. जीवविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चौवीसे जिनवर प्रणमु), ६७०७४-९(+) अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अभिनंदन जिनवर परमान), ६५२१३-८(+#) अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मंगल आठ करी जिन आगल), ६७९२०-१२(+$),
६७७२६-२ अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अष्टमी अष्ट परमाद), ६३२४७-३४(+#), ६४६३७-६(+#), ६३००६-२०, ६७८६६-५,
६७८९२-२१ अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू, (महामंगलं अष्ट सोहै), ६८२३४-७(+#), ६८१२३-७, ६३०४६-१२(#), ६८०१८-९(-) अष्टापदतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अष्टापदगिरि जात्रा), ६८२५६-२७(+), ६८०७१-२(-) अष्टापदतीर्थ स्तवन, ग. भाणविजय, मा.गु., गा. २३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अष्टापद उपरे जाणी), ६४१९४-३ अष्टापदतीर्थ स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (जिणवर भक्ति समुल्लसि), ६५९७८-५(+) अष्टापदतीर्थ स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मनडो अष्टापद मोह्यो), ६७६९२-४ अष्टापदतीर्थ स्तवन, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (सरसती अमृत संति मुखि), ६४१६९-१(+) असज्झाय विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (चउहा महा पडिवा), ६४०३५-४(+) असज्झाय विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सूक्ष्म रज आकाश थकी), ६४०३५-१(+), ६८२५६-१६४(+), ६३३१९-७($) असनपाणादि विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (मुंगरुं लेकें सर्व), ६३०७०-२(+) असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., गा. १८, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (प्रणमुं श्रीगौतम), ६४६३७-१८(+#) आगमगत चर्चा बोल-विविध प्रश्नोत्तर, मा.गु., प्रश्न. ४९, गद्य, श्वे., (श्रीउत्ताधेन सुत्त), ६४५७६(#) आगमवर्णन गीत, मु. लावण्यचंद्र, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (जिनभाखड़ भव तरवा), ६७९९१-२२(+#) आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., वि. १७७६, गद्य, मूपू., (हिवै भव्यजीवने), ६३४५१(+#), ६७९८६(+#), ६८१६५(+s),
६८३७१(+) (२) आगमसारोद्धार-स्वोपज्ञ बालावबोध, ग. देवचंद्र, मा.गु., वि. १७७६, गद्य, मपू., (तिहां प्रथम जीव), ६८३७१(+) आगमिक प्रश्नोत्तर संग्रह, मु. ऋषिराज, पुहिं., गद्य, श्वे., (सूधर्मास्वामी के), ६५२३५ (+-) आचारछत्रीसी, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ३७, पद्य, श्वे., (गुर समज मेको नही), ६७८८३-८(-#$) आणंदश्रावक सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, रा., ढा. २, गा. २३, वि. १८३४, पद्य, स्था., (आज पछे अण तीरथीरे), ६४१७२-७ आत्मनिंदा भावना, मु. ज्ञानसार, रा., गद्य, मूपू., (हे आत्मा हे चेतन ऐ), ६८२२१-१(#)
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५२४
देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ आत्मप्रबोध दुहा, पुहि., गा. ५०, पद्य, श्वे., (निरविकार निरदोष शुचि), ६८३७२-१ आत्मशिक्षा बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (तिहां प्रथम ए आत्मा), ६४४५२ आत्मारामजी का पत्र, मु. आत्मारामजी, मा.गु., गद्य, मूपू., (पेहेला प्रश्नमा २२), ६७८९३-१ आदिजिन गीता, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्यारी रे जीवन जिन), ६५२६८-१(#) आदिजिन गुणमहिमावर्णन पूजा, मु. कुशल, पुहि., प+ग., मूपू., (ऋषभादिक जिनवर नमी), ६८०१२(+#) आदिजिन चरित्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (जंबुद्वीपइं पश्चिम), ६३४१६(+) आदिजिन चरित्र-संक्षेप, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ६३४२५-१(+$) आदिजिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., सवै. १, पद्य, मूपू., (रिषभ जिणंद नमे नरइंद), ६८३८०-२९(-) आदिजिन चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ४७, वि. १८४०, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिद्धनै आयरिय), ६८३४२(+), ६८१५० आदिजिन छंद, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (सत्यगुरू कहि सुगुररा), ६७०४३-३(+) आदिजिन छंद-धुलेवा, क. दीपविजय, मा.गु., गा. ६३, वि. १८७५, पद्य, मूपू., (आदि करण आदि जग आदि), ६७९३४६-६) आदिजिन छंद-धुलेवामंडन, आ. गुणसूरि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (प्रमोदरंगकारणी कला), ६७०४३-४(+), ६७८५०-२,
६७९८२-३ आदिजिन पद, मु. करमसी, मा.गु., गा.५, पद्य, श्वे., (आय रहो दिल बाग में), ६८२५६-१३५(+), ६४१८८-७ आदिजिन पद, मु. कुशलधीर, पुहिं., पद. ३, पद्य, मूपू., (रुषभजिन भाग्यदसा हम), ६३६१६-४, ६३६१६-१२ आदिजिन पद, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आदिसर जिनराय), ६७७२९-३(#) आदिजिन पद, मु.खुशालचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (देखो आदिस्वर स्वाम्म), ६५१९३-२५(+#), ६८२५६-९४(+) आदिजिन पद, मु. जिनराज, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (आज सकल मंगल मिलै आज), ६५२२५-७(+), ६८२५६-११३(+),
६३९९८-६(२) आदिजिन पद, मु. धीरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शेजूंजामंडण आदि), ६७९७८-२ आदिजिन पद, मु. नवल, पुहिं., गा. ४, पद्य, मपू., (घडी धन आजकी मेरी), ६७७१९-१०(-) आदिजिन पद, मु. बालचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (ऋषभदेव साम रे तेरे), ६२९९१-६(#) आदिजिन पद, मु. भूधर, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (आज गई मरुदेवि के), ६८००४-९(+) आदिजिन पद, मु. भूधर, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (लगी लो नाभिनंदनसुं), ६३३९०-७(+) आदिजिन पद, ग. महिमराज, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (जाग जगमुगटमणि नाभि), ६५२३६-१४(+), ६८२५६-१०९(+) आदिजिन पद, आ. महेंद्रसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जंगा जाडमे आप विराजो), ६७०४६-१ आदिजिन पद, मु. मान, पुहिं., पद. ४, पद्य, मूपू., (देख सखी प्रभु कंठ), ६५०९६-२(+#) आदिजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (तुम्हारे सिर राजत), ६७९१९-२(+) आदिजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (बाबा ऋषभ बैठे अलवेले), ६८०७१-१२(-) आदिजिन पद, मु. विमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चालो सखी वंदन जाइये), ६८२५६-१४६(+) आदिजिन पद, मु. साधुकीर्ति, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (आज ऋषभ घर आवे देखो), ६८२५६-११०(+), ६८१६३-११,
६५२४०-१३(६), ६८०७१-४६(-) आदिजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (उगत प्रभात नाम जिनजी), ६८२५६-९९(+) आदिजिन पद, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (रिसह जिणेसर पढम नाह), ६३१५३-१९(+#) आदिजिन पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (--), ६७९८०-८ आदिजिन पद-केसरिया, मु.रूपचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (हो केसरिया बाबा लज्य), ६८०७१-२०(-) आदिजिन पद-धुलेवा, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जगभूलो किउ भटके छै), ६४६०८-४५(-2) आदिजिन पद-धुलेवामंडन, मु. हरजी मुनि, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (हो जती मोकू जंतर कर), ६८२३७-४(+#) आदिजिन पद-श@जयमंडण, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (हां हो श्रीविमलाचल), ६४१५५-१०(#) आदिजिन पद-संध्याकाल, मु. जिनदास, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (सांझ समें जिन वंदु), ६७९४६-१४(-)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६
आदिजिन प्रभाति, मु. रामचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभाते पंखीडा बोले), ६३३७४-१५(+) आदिजिन प्रभाती, मु. जसविजय, पुहिं., गा. १०, पद्य, मपू., (नाभीराय मोरादेवीनंद), ६८२४९-१५ आदिजिन बारमासो-धुलेवामंडन, मूलचंद, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (प्रथम जिणंद प्रणमु), ६८१९५-६(+) आदिजिन बृहत्स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (प्रणमविसयल जिणंद), ६७९६०-३(+#$),
६८२१३-३(+#), ६५२४०-५, ६४२२६-१(#S) आदिजिन लावणी, मु. ऋषभदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सुणीये रे वातां सदा), ६४१८८-६ आदिजिन लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (सीस नित नमु नाभीनंदन), ६५२२९-७ आदिजिन वर्षांतपपारणा विवरण, मा.गु., गद्य, श्वे., (श्रेयांसकुमार बाहुबल), ६८३३७-२ आदिजिनविनती स्तवन, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., ढा. ५, गा. ५७, वि. १६६६, पद्य, मूपू., (श्रीआदीसर वंदुं पाय),
६८२१३-१(+#), ६८०५१ आदिजिनविनती स्तवन, मा.गु., गा. ५५, पद्य, मूपू., (सकल आदि जिणंद जुहारि), ६४५७२(#) आदिजिन विवाहलो, मा.गु., ढा. ४४, गा. २४३, पद्य, म्पू., (सासनदेवीय पाय प्रणमे), ६३५०८-१(+#), ६४१७६(+$), ६७८८१(+#$) आदिजिन सुखडी, मा.गु., गा. ५४, पद्य, मूपू., (सरसति माता देवी चरण), ६७८२२-१(#$) आदिजिन स्तवन, मु. अमी ऋषि, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (प्रथम जीनेश्वर नित), ६४६०७-२(+) आदिजिन स्तवन, मु. अमी ऋषि, पुहि., गा. ७, पद्य, श्वे., (वंदू आदिजिनेश्वर भाव), ६४६०७-१३(+) आदिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा.६, वि. १८वी, पद्य, म्पू., (ऋषभ जिणेसर प्रीतम), ६८३८०-१७(-) आदिजिन स्तवन, मु. कनककुशल, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (अईयो अइयो नाटक नाचे), ६३६१६-९ आदिजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जे जगनायक जगगुरु जी), ६८१७३-२ आदिजिन स्तवन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभु मया करी दिल), ६८२१४-१(+) आदिजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रात उठि समरिय), ६४६०५-७(+) आदिजिन स्तवन, मु. क्षेमकरण, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (आदिजिणेसर आज अम्हीणो), ६३९५६-४(+#) आदिजिन स्तवन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सुरत मोहण वेलडीजी), ६३३९७-६(+) आदिजिन स्तवन, मु. गोपालसागर, पुहिं., पद्य, मूपू., (धुलेवा नगर में विराज), ६७०७३-२(5) आदिजिन स्तवन, मु. चंदकुशल, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (देखोने आदेसर बाबा), ६५२२९-१४, ६८१६३-१२ आदिजिन स्तवन, मु. जिनचंद, पुहि., गा.८, पद्य, श्वे., (धूसो वाजे रे माहराज), ६८२४९-९ आदिजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (मन मधुकर मोही रह्यउ), ६३९६४-३(+) आदिजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा.७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (एसो अनोपम साहिब मेरो), ६३४६४-८३(#) आदिजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, पू., (गिरिराज तेरे दरिसन), ६३४६४-४७(#) आदिजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (त्रिभुवननायक तुंही), ६३४६४-२३(#) आदिजिन स्तवन, पंडित. टोडरमल , पुहिं., गा. ६, पद्य, दि., (उठ तेरो मुख देखु), ६८२५६-१००(+), ६५२२०-४ आदिजिन स्तवन, मु. दीपसौभाग्य, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (जय जय आदि जिनंद आज), ६५२२०-७ आदिजिन स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ६, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणंदशुंप्रीतडी), ६५२३१-२(+) आदिजिन स्तवन, मु. देवसौभाग्य, मा.गु., गा. ११, वि. १७४८, पद्य, मूपू., (सरसत मात मया करो गाउ), ६४२२६-६(#) आदिजिन स्तवन, श्राव. बंसी, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (श्रीआदिनाथ पणमेर), ६८३५१-७ आदिजिन स्तवन, मु. बालचंद पंडित, पुहिं., गा. ६, वि. १७८४, पद्य, मूपू., (सीतलजिन सहज सुरंगा), ६५१९३-२०+#) आदिजिन स्तवन, मु. भाव, पुहि., गा.८, पद्य, मूपू., (दरसण द्यो प्रभु रिषभ), ६५२४०-१२, ६८०७१-४(-) आदिजिन स्तवन, वा. भोजसागर, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (ऋषभजिनेसर साहिबो आतम), ६७९४०-१७ आदिजिन स्तवन, मु. माणकचंद, पुहि., गा. १०, वि. १८७८, पद्य, मूपू., (श्रीआदनाथ श्रृष्ट को), ६४६०५-६(+) आदिजिन स्तवन, मु. मान, मा.गु., गा. १३०, पद्य, मूपू., (सर्व जिनेश्वर पाय), ६४०१४(#) आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पीउडा जिनचरणानी सेवा), ६७०६९-३(#)
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५२६
देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ आदिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, म्पू., (जगजीवन जगवाल हो), ६८१६३-५,
६७९८३-५(२) आदिजिन स्तवन, मु. राजसमुद्र, मा.गु., गा.१०, पद्य, मूपू., (मनमोहन महिमा निलउ), ६७०३६-११(+) आदिजिन स्तवन, आ. राजेंद्रसूरि, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (प्रेमसुं जिनपति), ६७०७५-१९ आदिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आज भले दिन उगो हो), ६८२३७-२८(+#), ६७७३७-१(#) आदिजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ११, वि. १८३९, पद्य, श्वे., (ऋषभ जिणेसर त्रिभुवन), ६८२८९-५ आदिजिन स्तवन, मु. विक्रम, मा.गु., वि. १७२१, पद्य, मूपू., (प्रथम आदिजिनंद वंदत), ६३९५६-३(+#) आदिजिन स्तवन, मु. वीर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (आदिजिनेसर विनती), ६८०७१-३५८) । आदिजिन स्तवन, उपा. सहजकीर्ति, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (विमलगिरि सिखर गजराज), ६८२५६-२२(+), ६८२५६-३५(+) आदिजिन स्तवन, मु. सुविधिविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (नाभिनंदन जगवंदन देव), ६८४५१-६ आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणंद कृपा करौ), ६८२८४-१२($) आदिजिन स्तवन, पुहिं., वि. १९३२, पद्य, श्वे., (ऋषभजिणेसर साहिब साचो), ६२९९१-१०(#$) आदिजिन स्तवन, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (जिन रिषभ भजीयो सदा), ६३९५६-२(+#) आदिजिन स्तवन, पुहिं., पद्य, मूपू., (रंग लागो त्रिभवननाथ), ६३९५६-१६(+#$) आदिजिन स्तवन-२४ दंडक गतिआगतिविचारगर्भित, ग. धर्मसुंदर, मा.गु., ढा. २, गा. २६, पद्य, मूपू., (आदीसर हो सोवनकाय),
६५२३६-१८(+) आदिजिन स्तवन-२८ लब्धिगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., ढा. ३, गा. २६, वि. १७२६, पद्य, मूपू., (प्रणमुंप्रथम जिनेसर),
६४१६३-२(+६), ६८२३७-३०(+#) आदिजिन स्तवन-३४ अतिशयगर्भित, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (नाभिनरिंदमल्हार), ६७९५८-२(#$) आदिजिन स्तवन-अर्बुदगिरितीर्थ मंडन, वा. प्रेमचंद, मा.गु., गा. ३४, वि. १७७९, पद्य, मपू., (आबु शिखर सोहामणो जिह),
६७९६७-३ आदिजिन स्तवन-आडंपुरमंडन, मु. गुणसागर, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (जिन जीम जाणे होते), ६३९५६-२३(+#$) आदिजिन स्तवन-जन्मबधाई, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (आज तो बधाइ राजा नाभि), ६८२३७-१७(+#), ६८२३७-२१(+#),
६८२५६-११५(+), ६८०७१-१०) आदिजिन स्तवन-झाबुआमंडन, मु. जसविजय, मा.गु., गा.८, वि. १९२८, पद्य, मूपू., (आदेश्वर त्रीभुवनतिलो), ६८२४९-३ आदिजिन स्तवन-झाबुआमंडन, मु. जसविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १९२८, पद्य, मूपू., (आदेसर अरीहत अरज सुण), ६८२४९-२ आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित, ग. विजयतिलक, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (पहिलु पणमिअ देव),
६३४७६(+), ६५९७८-८(+), ६८१५५ (२) आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (हु पहिलु धुरि), ६३४७६(+), ६८१५५ आदिजिन स्तवन-धुलेवामंडन, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चालो री सखी धूलेवै), ६७०८१-५(#) आदिजिन स्तवन-धुलेवामंडन, मु. ऋषभदास, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (मरुदेवीना नंद थारा), ६४६०८-४२(-2) आदिजिन स्तवन-धुलेवामंडन, आ. कीर्तिसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीधुलेवै सुखकरुं र), ६७८९२-१५ आदिजिन स्तवन-धुलेवा मंडन, मु. चारित्रविजय, मा.गु., गा. ९, वि. १९१७, पद्य, मूपू., (ऋषभ प्रभु मोहना सुख), ६७०७५-६ आदिजिन स्तवन-धुलेवामंडन, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (धूलेवगढ श्रीऋषभ), ६५२३१-७(+) आदिजिन स्तवन-नारदपुरीमंडन, मु. वल्लभ, मा.गु., गा.७, वि. १८४०, पद्य, मूपू., (चालो सहेली आपण सहु), ६४६०८-४(-#$) आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडन, मु. शिवसुंदर, मा.गु., गा. १६, वि. १७१५, पद्य, मूपू., (राणपुर नमौ हियो रे), ६४२२६-८(#),
६८०७१-३(-) आदिजिन स्तवन-वटपद्रमंडन, मा.गु., पद्य, मूपू., (जी हो सरसति सामिनी), ६३६१२-३(+$) आदिजिन स्तवन-वर्षीतप पारणा, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (पसारी कर लीजे ईक्षु), ६७९१९-३१(+) आदिजिन स्तवन-वृद्ध, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (करजोडी इम वीनवु), ६५२३६-४(+)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६
५२७ आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (दूरि रे माहरूं रूडां), ६३४६४-१५३(#) आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आण मिलावें कोई ऋषभ), ६३४६४-७३(#) आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (तुं त्रिभुवन सुखकार),
६३४६४-४३(#) आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (क्यों न भये हम मोर), ६३६१६-५ आदिजिन स्तवन-शत्रुजयमंडन, मु. रत्नचंद्र, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (श्रीविमलाचल तीरथ), ६४१८३-४(+) आदिजिन स्तव-शत्रुजयमंडन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (गिरि श्रीसिजो), ६३४६४-१८(#) आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (प्रह उठी वंदु ऋषभदेव), ६७९२०-३(+),
६४०११-४(#), ६७७२६-६($) आदिजिन स्तुति, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रणमुं परमपुरुष परम), ६३२४७-४५(+#) आदिजिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मरुदेवी कहे भरतने हो), ६३४६४-५२(#) आदिजिन स्तुति, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (नाभजू के नंदाजी से), ६५२४५-१(+), ६८२१४-३(+) आदिजिन स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (आदि जिनवर राया जास), ६४४५९-२(+) आदिजिन स्तुति, आ. पद्मसागरसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीनाभिनंदन जगतवंदन), ६७८९२-१० आदिजिन स्तुति, मु. पुण्यरुचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (नयरी वनिता केरो राय), ६७९२०-६(+) आदिजिन स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रथम जिनेसर ऋषभदेव), ६८२३७-२३(+#) आदिजिन स्तुति, मु. मेघविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (आदिजिणेसरराय जस नामै), ६५२४६-५ (2) आदिजिन स्तुति, मु. सौभाग्य, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (पुंडरिकगिर स्वामी), ६७८६६-१२ आदिजिन स्तुति-सुधर्मदेवलोकभावगर्भित, ग. कांतिविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सुधर्म देवलोक पहिलो),
६७९२०-१३(+) आदिजिन होरी, मु. जिनचंद्र, पुहिं., गा.७, पद्य, मपू., (होरी खेलियै नर बहुर), ६८०२६-३(+-), ६८४१२-२८(#) आध्यात्मिक कडी, मु. जिनराज, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (लालण मेरा हो जीवन), ६३११०-४(+#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (किन गुन भयो रे उदासी), ६४१८८-३ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (चेतन ममता छारी परी), ६३३९९-३(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पं., गा. ४, पद्य, मूपू., (देखो कुडी दुनियांदा), ६८२५६-१३९(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (निसदीन जोउं थारी), ६८००४-२५(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा.५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (बेर बेर नहीं आवे), ६८२५६-१४१(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., पद. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., रेघरियारी बाउरे मत), ६३६१६-२२ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (रे परदेसी भमरा यौ), ६४१८८-४ आध्यात्मिक पद, गोपीचंद, पुहिं., गा. ४२, पद्य, वै., (सोनारी कुंडीरे गोपी), ६४१७२-२३ आध्यात्मिक पद, मु. चिदानंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (अपने पदको तजके चेतन), ६७०७५-२७(5) आध्यात्मिक पद, मु. चिदानंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पीया पीया पीया बोल), ६८१८०-७ आध्यात्मिक पद, मु. चिदानंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (समज परी मोहे समज), ६५२२९-९ आध्यात्मिक पद, मु. जिनराज, मा.गु., चौपा. ३, पद्य, मूपू., (अबहइ मदन नृपति कउ), ६३११०-३(+#) आध्यात्मिक पद, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहि., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आतम पाया धरम वसाया), ६३४६४-७५(#) आध्यात्मिक पद, मु. दौलत, मा.गु., दोहा. ५, पद्य, मूपू., (नीरापेखी जग वीरला), ६७७२१-६(#) आध्यात्मिक पद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, दि., (चेतन तूं तिहु काल), ६७८३७-३ आध्यात्मिक पद, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, दि., (तुं आतमगुण जाण रे), ६४१५१-८(+), ६३४०१-२,
६४१५५-१३(#) आध्यात्मिक पद, मु. भूधर, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (देख्या दुनियां बीचि), ६३३९०-३(+)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ आध्यात्मिक पद, मु. भूधर, पुहिं., पद. ४, पद्य, श्वे., (हरे पेड पर पंछी बैठे), ६८३०३-१० आध्यात्मिक पद, महमद काजी, मा.गु., गा. ४, पद्य, (अरे घरियारे वावरे मत), ६४१५५-६(#) आध्यात्मिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (अजब गति चिदानंद घन), ६७९१९-२७(+), ६८४०१-७ आध्यात्मिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (जब लगे आवे नही मन), ६३३९९-५(+), ६७९१९-१६(+) आध्यात्मिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा.८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सबल या छाक मोह मदिरा), ६७९१९-२०(+),
६८४०१-२ आध्यात्मिक पद, मु. रतनचंद, पुहिं., पद. ४, पद्य, मूपू., (ओतो गढ़ वांको राज), ६८३०३-१२ आध्यात्मिक पद, मु. राजाराम, पुहिं., पद. ५, पद्य, श्वे., (चेतन तूं क्या फिरै), ६८००४-४०(+), ६७०२०-८(#), ६८४१२-३६(#) आध्यात्मिक पद, मु. विनय, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (किसके बेचेले किसके), ६८३८०-१८(-) आध्यात्मिक पद, शंभुनाथ, पुहि., पद. ५, पद्य, वै., (मन लागो हे मा रतन), ६८३०३-१३ आध्यात्मिक पद, मु. हर्षचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अलख अगोचर आत्मा घट), ६७९६५-६(2) आध्यात्मिक पद, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (करता कुन कहावे साधु), ६८२४९-२१ आध्यात्मिक पद, पुहिं., गा. ६, पद्य, दि., (जो दातार दयाल ), ६७७२७-४ आध्यात्मिक पद, पुहिं., गा. २, पद्य, मूपू., (पवन को करे तोल रवि), ६८४०१-१४ आध्यात्मिक पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (सुन रे सुजान प्यारे), ६४१९६-१६(+) आध्यात्मिक पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (सोयो तुं बोहोत काल), ६८२५६-१०१(+) आध्यात्मिक पद-काया, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (अब चलो संग हमारे), ६८२३५-३, ६८२४९-२० आध्यात्मिक पद-कृषिफलगर्भित, मु. चेनविजय, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (मनवंछितफल खेती रे), ६८४१२-४०(#) आध्यात्मिक सज्झाय, मु. उत्तम, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (श्रेयं प्रांनपुरीन), ६५३०१-२, ६७९०६-२ आध्यात्मिक सज्झाय, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (समझ मन मत कर कोई से), ६८०९८-३ आध्यात्मिक सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अजुही आतम अनुभव नायो), ६८००४-२६(+) आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणिचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अणविमास्युं करइ कांइ), ६८०५०-१३(+) आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणिचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अनुभव सिद्ध आतम जे), ६८०५०-५(+) आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणिचंद, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (आतम अनुभव जेहनई), ६८०५०-४(+) आध्यात्मिक सज्झाय, मु. मणिचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आतमरामे रे मुनि रमे), ६८०५०-११(+) आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणिचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चेतन चेतन में धरि), ६८०५०-८(+) आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणिचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चेतन तुमही आपे), ६८०५०-१४(+) आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणिचंद, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (चेतना चेतनकुं), ६८०५०-७(+) आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणिचंद, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (जे देखु ते तुज नही), ६८०५०-२(+) आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणिचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जेहनइं अनुभव आतम), ६८०५०-३(+) आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणिचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (समकित तेह यथास्थित), ६८०५०-१०(+) आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणिचंद, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सम्मदीट्ठी ते यथा), ६८०५०-२१(+) आध्यात्मिक सज्झाय, मु. महिमाविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सासरडे इम जइ जइ रे), ६४४०९-४(+#) आध्यात्मिक सज्झाय, मु. मुनिचंद्र, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जग सरूप चेतन संभलावइ), ६८०५०-९(+) आध्यात्मिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चेतन जो तुंग्यान), ६७९१९-२६(+) आध्यात्मिक सज्झाय, मु. हीरालाल ऋषि, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (वाजा नगारा जीत्या), ६४१९६-१०(+) आध्यात्मिक सवैया, ईसरदास, पुहि., सवै. १, पद्य, वै., (कहां जाणुं दीनानाथ), ६७८९९-४(+#) आध्यात्मिक स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (परमातम परमानंदरूप), ६३४६४-१४७(#) आध्यात्मिक होरी, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (चेतन खेले होरी हो), ६५०९७-१९(+#) आनंदघन गीतबहोत्तरी, मु. आनंदघन, पुहिं., पद. ७८, पद्य, मूपू., (क्या सोवेउठि जाग), ६८३३१
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६
आनंदघन पद संग्रह, मु. आनंदघन, पुहिं., पद. १०८, पद्य, मूपू., ( क्या सोवे उठ जाग), ६८३७०
आनंदधावक संधि, मु. श्रीसार, मा.गु, डा. १५, गा. २५२, वि. १६८४, पद्य, भूपू (वर्द्धमानजिनवर चरण), ६३५२४(७), ६३५३४(+$), ६५२५६-१(+#), ६८०१० (+#), ६८२६७-३ (+), ६२९४८(s), ६८०६१ ($), ६८२७८ ($) आयुष्य सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, वे., (आऊ तूटीने सांधो लागे), ६३३९०-१६(+) आराधना कुलक, मा.गु., गा. १२५, पद्य, मूपू., (वंदिय चउवीसमउ जिणिंद), ६३५७७ (+#) आराधना पाठ, जै. क. द्यानतराय, पुहिं., गा. १६, पद्य, मूपू., ( मैं देव नित अरहंत), ६५०९७-२० (+#)
आराधनासूत्र, आ. पार्थचंद्रसूरि, मा.गु. गा. ४०६, वि. १५९२, पद्य, मूपू. (जिनवर चरण युगल पणमेस ), ६४४४० (+) आलोयणा गाथा, मा.गु., प+ग, मूपू., (पंच परमेष्ठिदेवनो), ६५३१६
"
आलोयणाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६. वि. १६९८, पद्य, भूपू (पाप आलोयु आपणां सिद), ६५२३६-२ (०) आलोयणापच्चीसी, मु. जडाव, रा., गा. २५, वि. १९६२, पद्य, श्वे. (अहो नाथजी पाप आलोउ), ६४६०७-१(+$)
"
आलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, श्वे., (अतीत काल अठार पाप), ६८०९७(+#)
आलोयणा विधि, मा.गु., ग्रं. ११७, गद्य, मूपू., (देववंदन अकरणे पुरिमढ), ६७८९८-२
आश्रय स्थापन, मा.गु., दोहा. ५, पद्य, वै., (राजाजी युष्टरा मंदर), ६४२४४-३ (+)
आश्रव के ४२ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू (हवे आश्रवना वीर), ६३३७९(+)
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आषाढभूति पंचढाळिया, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा. ५, वि. १८३२, पद्य, मूपू., (दर्शन परिषह बावीसमो), ६८३१०-२४(+#$) आषाढाभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. १६, गा. २१८. ग्रं. ३५१, वि. १७२४, पद्य, मूपू (सकल ऋद्धि समृद्धिकर),
"
६८१७४(१)
,
आषाढाभूति प्रबंध - मायापिंडग्रहणे, मु. साधुकीर्ति, पुहिं. गा. १९० वि. १६२४, पद्य, मूपू (सुखनिधान जिनवर मनि), ६७८१२ (+) आषाढाभूतिमुनि चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., डा. ७, वि. १७३७, पद्य, मूपू., (सासणनायक सुरवरूं बंद), ६८२३३-४(+) आषाढाभूतिमुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., डा. ५. गा. ३७, वि. १८वी, पद्य, मूपू. (श्रीश्रुतदेवी हिड़), ६३५३३-२(७),
६८३८०-३ (-)
इक्षुकारसिद्ध चौपाई, मु. खेम, मा.गु., ढा. ४, वि. १७४७, पद्य, मूपू., (परम दयाल दयाकरु आसा), ६३४५३-२(#$)
इरियावही मिच्छामिदुक्कडं संख्या स्तवन, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., ढा. ४, गा. १५, पद्य, मूपू., (पद पंकज रे प्रणमी), ६५९७८-१ (+) इलाचीकुमार चौपाई भावविषये, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., डा. १६, गा. १८७, ग्रं. २९९ वि. १७१९, पद्य, मूपू (सकल सिद्धदायक
,
"
सदा), ६३३९१, ६७०६६ (5)
इलाचीकुमार सज्झाय, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (नामे एलापुत्र जाणीए), ६८१६३-२२
इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु गा. ९, पद्य, म्पू., (नाम इलापुत्र जाणीए), ६७७३५-४(+), ६४४८०-७,
"
६७९४०-११. ६८४१२-३(४)
श्वे.
इलापुत्र सज्झाय, उपा, समयसुंदर गणि, मा.गु गा. २७, पद्य, मूपू (नाम इलापुत्र जाणीये), ६८४३०.६ (३) उत्तमकुमारचरित्र रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., डा. २९, गा. ५८७, वि. १७४५, पद्य, मूपू. (चरमजिणेसर चित्त धरुं), ६८२३६ (४७) उदयचंदगुरु स्तुति, मु. हीरालाल, पुहिं., गा. ५, पद्य, स्था., (पूज उदेचंदजी को सरणो), ६३४९१-१२(+) उदयापुर की गजल, मा.गु., गा. ८२, पद्य, वे (-), ६७९३६-१ (७)
५२९
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उदाइराजा सप्त ढालीयो, मा.गु., ढा. ७, गा. ६५, वि. १८४२, पद्य, मूपू., (तिण कालेने तिण समे), ६४६०२-४४ (-) उदाइरो वखाण, मु. जैमल ऋषि, रा., ढा. ६, पद्य, श्वे., (चंपानगर पधारीया), ६३९५७-२३(+) उपदेशगुणतीसी सज्झाय, मु. ब्रह्म, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (वरसे पुष्करावर्त), ६३५४५-१ उपदेशछत्रीसी, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., गा. ३६, वि. १८६६, पद्य, स्था., (सबद करी सतगुरु समझाव), उपदेशपच्चीसी, मु. जेमल ऋषि, पुहिं, गा. २६, पद्य, स्था., (मनुष जनम दुलहो लहो), ६३८९४-२ उपदेशपच्चीसी, मु. रतनचंद, रा., गा. २७, वि. १८७८, पद्य, श्वे., (निठ निठ नर भवे लहो), ६८३०३-१७($), ६७८८३-४(#) उपदेशबत्तीसी, मु. राज, पुहिं., गा. ३०, पद्य, मूपू., (आतमराम सयाने तें), ६८४१२-१६(#$)
उपधानतप स्तवन-वृद्ध उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., डा. ३, गा. १८, पद्य, मूपू. (श्रीमहावीर धरम) ६४१५१-९(०), ६५९७८-४(१)
६७७३७-४(#$)
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५३०
देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ उपशम सज्झाय, मु. हेमविजय, पुहिं., गा.७, पद्य, मूपू., (जबलग उपशम नाहि रति), ६८४०१-१५ उपशम सज्झाय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (शिवसुखदाता श्रीअरिह), ६५३०८-२१(+) उपादान निमित्त दोहा, जै.क.बनारसीदास, पुहि., गा. ७, वि. १७वी, पद्य, दि., (गुरु उपदेश निमित्त ब), ६७७२७-५ ऋषभाननजिन पद, मु. आनंदविजय, पुहि., गा.५, पद्य, मूपू., (लगनलागी जिन से अवर), ६७९८०-१० ऋषिदत्तासती रास, आ. जयवंतसूरि, मा.गु., ढा. ४१, गा. ५६२, ग्रं. ८५०, वि. १६४३, पद्य, मूपू., (उदय अधिक दिन दिन),
६३६०७(+) एकमतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू., (एक मिथ्यात असंयम), ६५२१३-१(+#) एकादशीतिथि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज एकादसी रे नणदल), ६५२१७-१०(+#$), ६४४८०-५,
६७९४०-१० एकादशीतिथि स्तुति, मा.गु., गा.४, पद्य, म्पू., (श्रीश्रेयांसजिन), ६७८९२-२० औपदेशिक कवित्त, मु. उदयराज, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जहाँ जाउं तहाँ जहर न), ६७८७५-१ औपदेशिक कवित्त, मु. गिरधर, पुहिं., पद्य, श्वे., (ए कवत गीरधर रा), ६७०५५-२९(-#$) औपदेशिक कवित्त, मु. दीपविजय, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (घोडें कुंघोडा अरु), ६३८४९-२(+#) औपदेशिक कवित्त, पुहि., पद. ४, पद्य, वै., (ग्यान घटै नरमूढ की), ६८४१२-२४(#) औपदेशिक कवित्त, पुहिं., का. २, पद्य, मपू., (देह अचेतन प्रेत दरै), ६५१९३-१२(+#) औपदेशिक कवित्त-कृपण, क. दुर्जनसालसिंघ, पुहिं., का. १, पद्य, वै., (आव जावरे भाट बहुत), ६५१९२-१५(+#) औपदेशिक कवित्त-कृपण, पुहि., का. १, पद्य, वै., (गुंब कवित नहीं), ६५१९२-१४(+#) औपदेशिक कवित्त संग्रह*, पुहि.,मा.गु., पद्य, मूपू., (कीमत करन बाचजो सब), ६७८५६-४(+$), ६३६१६-६, ६५२३७-४(#),
६५२७८(#s), ६७०५५-५(-2) औपदेशिक गजल, मु. हीरालाल, पुहि., गा. ६, पद्य, स्था., (अब ज्ञान का दरपण देख), ६३४९१-१९(+) औपदेशिक गजल-अहिंसापालन, मु. हीरालाल, पुहि., गा. ७, पद्य, स्था., (दयाधार हिंसाटार वचन), ६३४९१-२०(+) औपदेशिक गजल-तकदीर, मु. हीरालाल, पुहि., गा. ६, पद्य, स्था., (अपनी अपनी तगदीर के), ६३४९१-१८(+) औपदेशिक गजल-नशीयत, मु. हीरालाल, उ.,पुहिं., गा. ७, पद्य, स्था., (मुरशद की नशीयत को), ६३४९१-१५(+) औपदेशिक गजल-हिदायत, मु. हीरालाल, उ.,पुहिं., गा. ५, पद्य, स्था., (आलिम से मालूम होना), ६३४९१-१६(+) औपदेशिक गाथा, खेम, पुहिं., गा. ४, पद्य, (उपना पुरसाणी उडा), ६७०५५-१६(-#) औपदेशिकगाथा संग्रह *, पुहिं.,मा.गु., पद्य, श्वे., (अजो कृष्ण अवतार कंस), ६७०१६-१०(+), ६७०५५-३०(-2), ६८३८०-३०(-) औपदेशिक गीत, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (काया कामणि वीनवैजी), ६४१५५-३९(#) औपदेशिक गीत, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अब में साचो साहिब), ६८४०१-४ औपदेशिक गीत, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, म्पू., (सजन राखत रीत भली), ६८४०१-६ औपदेशिक-चेतनवणजारा सज्झाय, मु. अमी ऋषि, पुहिं., गा. १०, पद्य, श्वे., (गाफिल मत रहे बनजारा), ६४६०७-३७(+) औपदेशिक छंद, पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (भगवति भारति चरण), ६५२३२-३(+#), ६७९००-७(+#),
६३३७८-६ औपदेशिक दूहा*, पुहि., दोहा. १, पद्य, (सोरठ गढथी उतरी कंस), ६५१९३-२(+#) औपदेशिक दहा-चतुर, पुहि., गा. १, पद्य, जै.?, (छल बल कल विद्या), ६४६३७-१७(+#) औपदेशिकदृष्टांत पद, रा., गा.८, पद्य, श्वे., (हुड्या हाले रे चिहु), ६८३०३-१६ औपदेशिक दोहा, मु. मुनिचंद, पुहिं., गा. १, पद्य, मूपू., (कामिनी की बात माने), ६७७२१-२(#) औपदेशिक दोहा, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (सजन फल जिम फूलजो वड), ६४२००-२(+) औपदेशिक दोहा संग्रह, क. गद, पुहि., गा. २०, पद्य, जै.?, (कनक दान कुर खेत का), ६७०५५-७(-#) औपदेशिक दोहा संग्रह*, पुहिं., दोहा. ४६, पद्य, वै., (चोपड खेले चतुर नर), ६५३००-२, ६७०५५-१(-#$) औपदेशिक ध्रुवपद, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (ए परम ब्रह्म परमेश्व), ६८४०१-१३($)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६
५३१ औपदेशिक पद, मु. अमी ऋषि, पुहि., गा.८, पद्य, श्वे., (इम सुख मिलसी रे चेतन), ६४६०७-४७(+) औपदेशिक पद, मु. अमी ऋषि, पुहि., गा. ११, पद्य, श्वे., (किम सुख मिलसीरे चैत), ६४६०७-४६(+) औपदेशिक पद, मु. अमी ऋषि, पुहिं., पद. ४, पद्य, श्वे., (चित्त चेतो रे सुजान), ६४६०७-३५(+) औपदेशिक पद, मु. अमी ऋषि, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (निज गुण भुलोरे चेतन), ६४६०७-४५(+) औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (तुं है हि तुहमारो रे), ६८२३४-१५(+#) औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मनवा जिणंद गुण गाय), ६७७९५-२ औपदेशिक पद, मु. आनंदराम, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (छोटीसी जान जरासा), ६८२५६-१५१(+) औपदेशिक पद, कबीर, पुहि., पद. ४, पद्य, वै., (मन मगन भया जब क्या), ६८३०३-७ औपदेशिक पद, मु. कुसल, पुहि., गा. ५, पद्य, म्पू., (सुकरत करले रे मुंजी), ६८०९८-१८($) औपदेशिक पद, मु. गुणविलास, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (दया विन करणी दुःखदान), ६८२५६-१४२(+) औपदेशिक पद, मु. गोपालसागर, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (--), ६७०७३-३($) औपदेशिक पद, मु. चेतन, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (कोण करे जंजाल जगमें), ६८२५६-१४०(+) औपदेशिक पद, मु. चोथमल ऋषि, पुहि., गा.७, पद्य, स्था., (अब लगा खलक मोय खारा), ६३४९१-१३(+) औपदेशिक पद, जालिम, पुहिं., गा. ९, पद्य, जै.?, (सुण भाई रे तेरा कीया), ६८३०३-४(६) औपदेशिक पद, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (तुम तजौ जगत का ख्याल), ६७०४२-६(+) औपदेशिक पद, मु. जिनरंग, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (सब स्वारथ के मित्र), ६८२५६-८९(+) औपदेशिक पद, मु. जिनराज, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (कहारे अग्यानी जीव), ६५२३६-११(+), ६७९६१-१३(+#), ६८२५६-८८(+) औपदेशिक पद, जेष्ठ, पुहिं.,रा., गा. ६, पद्य, जै., (चेतन तुं ध्यान आरत), ६८०९८-१७ औपदेशिक पद, श्राव. जोधमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (समकित विन जीव जगत), ६७७५५-६ औपदेशिक पद, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (हां रे तुमे जोजो रे), ६३४६४-६३(#) औपदेशिक पद, मु. दयाचंद, मा.गु., गा. ७, वि. १८७८, पद्य, मूपू., (सुमताई सागर गुण), ६४६०८-३४(-2) औपदेशिक पद, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (परम अध्यात्म ने लखे), ६३५३१-२(+) औपदेशिक पद, मु. देवीचंद, मा.गु., पद. ४, पद्य, श्वे., (करम सतु मारो काइ), ६४६०८-१७(-2) औपदेशिक पद, ऋ. देवीदासजी, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (दुरमति दूर खडी रहो), ६३६२५-११(+) औपदेशिक पद, मु. दौलत, पुहि., दोहा. ४, पद्य, मूपू., (गुणीजन गायन सुणो मोय), ६७७२१-८(#) औपदेशिक पद, मु. दौलत, मा.गु., दोहा. ५, पद्य, मूपू., (बुड्या तेहिज जाणो), ६७७२१-७(#) औपदेशिक पद, मु. दौलत, मा.गु., दोहा. ९, पद्य, मूपू., (बेठा भागी नावमा रे), ६७७२१-५(#) औपदेशिक पद, मु. दौलत, मा.गु., दोहा. ९, पद्य, मूपू., (सेठ वेठ कोई तुं नहीं), ६७७२१-४(#) औपदेशिक पद, मु. नवल, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (जैनधर्म पायो दोहिलो), ६८२५६-१३७(+) औपदेशिक पद, मु. नवल, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (नही ऐसा जनम बारूंबार), ६५१९३-८(+#) औपदेशिक पद, मु. नवल, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (पुद्गल क्या विसवासा), ६८२५६-१३८(+), ६७९८०-३, ६८३०३-११ औपदेशिक पद, परतापगिरि यति, पुहि., गा. ५, पद्य, वै., (गगन मंडल में रेणा), ६७७५५-१३ औपदेशिक पद, जै.क.बनारसीदास, पुहिं., गा. ३, वि. १७वी, पद्य, दि., (कित गये पंच किसान), ६८४१२-४१(2) औपदेशिक पद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. ३, पद्य, दि., (धरम करत संसार सुख), ६३३९०-२०(+$), ६३६२५-१४(+$) औपदेशिक पद, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, दि., (वा दिन को कछु सोच रे), ६३३९०-४(+) औपदेशिक पद, मु. ब्रह्मगुलाल, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (ए दिन युं ही जात टरै), ६८४१२-३९(2) औपदेशिक पद, मु. भूधर, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (चरखा भया पुराना रे), ६३६२५-२७(+) औपदेशिक पद, मु. भूधर, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (ते मेरा दरद न पाया), ६३६२५-७(+) औपदेशिक पद, जै.क. भूधरदास, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (समज के सिर धूल ऐसी स), ६५०९७-१०(+#) औपदेशिक पद, मु. भूधर, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (मारै गुरांदीनो माने), ६३६२५-१०(+)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक पद, मु. मान, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जाग जाग जाग जाग रे), ६४६०८-२५(2) औपदेशिक पद, मु. मान, पुहिं., पद. ४, पद्य, मूपू., (पाग समारतो मुंछ मरोर), ६५०९६-३(+#) औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (अजब बनी हे जोरी अर्द), ६७९१९-८(+) औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (कंत विण कहो कुण गति), ६३३९९-४(+), ६७९१९-२३(+) औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. ६, पद्य, म्पू., (चेतन अब मोहे दरशन), ६७९१९-२१(+) औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (चेतन ममता छार परिरी), ६७९१९-१७(+) औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. १६, पद्य, मूपू., (चेतन मोह को संग निवा), ६८४०१-११ औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. १०, पद्य, मूपू., (परम गुरु जैन कहो), ६५१९१-४(+#) औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (मन की तहुन लाहे), ६७९१९-३४(+) औपदेशिक पद, मु. रतन, रा., पद. ४, पद्य, श्वे., (आंटो करमारो राज), ६८३०३-२२ औपदेशिक पद, मु. रतनचंद ऋषि, पुहि., गा.८, पद्य, स्था., (तन धन जोबन पलक मे), ६८३०३-१५ औपदेशिक पद, मु. रतनचंद, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (मानव को भव पायके मत), ६७७३७-६(#$) औपदेशिक पद, मु. रतन, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (पुद्गल से मत करन), ६८०९८-९ औपदेशिक पद, मु. रामचंद्र, रा., गा. १२, पद्य, मूपू., (भवसागर में भटकत भटकत), ६८३०३-२४ औपदेशिक पद, मु. रामरतन शिष्य, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (लारे लागो रे यो पाप), ६८०९८-१५ औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (आपे खेल खेलंदा), ६३६१६-२१ औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, रा., गा. ३, पद्य, श्वे., (जीवाजी थाने वरजु छु), ६४६०८-२९(-2) औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (--), ६७९४६-१७-६) । औपदेशिक पद, मु. विनय, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (जोगी एसा होय फीरु), ६८४०१-१२(६) औपदेशिक पद, श्राव. विनोदलाल, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (कहेता है तु मेरी), ६४१९६-२१(+) औपदेशिक पद, मु. श्रीराम, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (जीस घडी मोत आवेगी), ६८२४९-२२ औपदेशिक पद, श्राव. हठु, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (एते पर एता क्या करणा), ६८४१२-४४(#) औपदेशिक पद, मु. हरखचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (दया विन करणी दुखदानी), ६८०९८-६ औपदेशिक पद, मु. हीरालाल, पुहि., गा. ९, पद्य, स्था., (माइ मारो प्राण बचायो), ६३४९१-२३(+) औपदेशिक पद, मु. हीरालाल, पुहिं., गा.८, पद्य, स्था., (माया मत कर तु मेरी), ६३४९१-२२(+) औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (अजॉन चेतै तुं), ६५२३६-१७(+) औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (अपर्नु सोच अपना मन ने), ६४१९६-१८(+) औपदेशिक पद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (आज चेत चेत प्यारे), ६८१६३-९ औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (उठ चलणा एक लिगार में), ६८३०३-६ औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (ऐसी विध तेने पाई रे), ६७७१९-२०(-) औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (कौंन भरम मैं भूल्यौ), ६५१९३-९(+#) औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (गरीसी नदिया नाव), ६५२६१-२(+-) औपदेशिक पद, पुहिं., पद्य, श्वे., (चेत चेतन प्राणी), ६८४१२-४८(#$) औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (चेतन मानवै असाडी), ६३६१६-१९ औपदेशिक पद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (जागि जागिरेन गइ भोर), ६८१६३-१० औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (जागो जी जागो तुम), ६५१९३-५(+#) औपदेशिक पद, पुहिं., पद. ४, पद्य, श्वे., (जैन धरम नही कीना हो), ६८००४-४३(+) औपदेशिक पद, पुहि., पद. ५, पद्य, मूपू., (तु का ढूंडे यौवन), ६७०४२-१(+) औपदेशिक पद, पुहिं., पद. ८, पद्य, मूपू., (तुम दुरस दिलदरसिक), ६५२००-५ औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (बाराजी मागे नव पडे), ६४१९६-१७(+)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६
५३३ औपदेशिक पद, पुहि., गा. २, पद्य, पू., (भईया है रुपईया बाप), ६८००४-१६(+) औपदेशिक पद, पुहि., गा. ८, पद्य, वै., (भरिम जलशमें कहुं), ६७७२८-१(#) औपदेशिक पद, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (मनवा समज लो ओ वीर), ६४१९६-२३(+) औपदेशिक पद, पुहि., गा. ५, पद्य, दि., (युं साधु संसार में), ६४१५५-११(#) औपदेशिक पद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (वो तेरी भीग गई जो), ६७७१९-२() औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शिवपुरवासना सुख सुणो), ६८०५०-१६(+) औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (संतचरण की जाउ बलिहार), ६४००२-५(+), ६४१७२-१८ औपदेशिक पद, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (सरल कौसठ कहै वकता), ६५१९३-१४(+#) औपदेशिक पद , पुहि., गा. ७, पद्य, श्वे., (साधो भाई अब हम कीनी), ६३६२५-२८(+) औपदेशिक पद, रा., गा. ६, पद्य, श्वे., (सुकृत कर ले रे मुजी), ६५२८८-१४ औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (--), ६८३०३-५(६) । औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (--), ६८३०३-२१(६) औपदेशिक पद-४ वर्ण, पुहि., गा.५, पद्य, दि., (जो निहचे मारग गहे), ६७९४२-४(-) औपदेशिक पद-अंगीकार, पुहिं., गा.८, पद्य, श्वे., (कोई प्रकृतिहि छाणणी), ६५९३४-३ औपदेशिक पद-अभक्ष्य वस्तु परिहार, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (सौ वाजैरेमाहाराजा), ६७७५५-१० औपदेशिक पद-आत्म प्रमोद, रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (ओ जुग चलीयो जासी रे), ६४६०८-६(-2) औपदेशिक पद-उपकार, मु. धर्मसी, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (करनी कर उपगार की सब), ६४१५१-२६(+) औपदेशिक पद-कर्मगति, मु. हीरालाल, पुहिं., गा. ७, पद्य, स्था., (क्या केणा कुछ करमगति), ६३४९१-२५(+) औपदेशिक पद-कर्मफल, मु. भूधर, मा.गु., पद. ३, पद्य, श्वे., (सवविधि करन उतावला), ६३६२५-१८(+) औपदेशिक पद-कायाअनित्यता, पुहि., पद. ४, पद्य, मूपू., (अव घर जा मोरे वीर), ६३६२५-१२(+) औपदेशिक पद-गुरुभक्ति, मु. धर्मसी, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (ग्यान गुण चाहइ तो), ६४१५१-२७(+) औपदेशिक पद-जीवदया, ऋ. केवल, पुहिं., गा. ११, वि. १९५५, पद्य, स्था., (धर्मरुचिने दयाके), ६३४९१-१(+) औपदेशिक पद-जैनधर्म, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद. ३, पद्य, दि., (जेनधरम नहि कीताबे नर), ६३६२५-३०(+) औपदेशिक पद-ज्ञान, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (जीम जीम बहुश्रुत), ६७९५१-२ औपदेशिक पद-ज्ञानदृष्टि, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चेतन ज्ञान की दृष्टि), ६७९१९-२२(+),
६८४०१-१० औपदेशिक पद-तकवीर, पुहिं., गा. ४, वि. १९६४, पद्य, स्था., (लीखते सोइ सरी पूछी), ६३४९१-१७(+) औपदेशिक पद-दया, मु. हीरालाल, पुहि., गा. ५, पद्य, स्था., (दया विन जनम गयो), ६३४९१-२४(+) औपदेशिक पद-नरभव दुर्लभता, पुहि., दोहा. १०, पद्य, म्पू., (ऐसो उत्तमकुल नर पाय), ६३३९०-८(+) औपदेशिक पद-नरभव निष्फलता, मु. जिनदत्त, पुहिं., पद. ८, पद्य, मूपू., (नरभव पाय कहा कियो रे), ६३६२५-१३(+) औपदेशिक पद-नरभव प्रमाद, मा.गु., पद. ४, पद्य, मूपू., (खोयो रे गमार ते), ६३६२५-८(+) औपदेशिक पद-नश्वरता, मु. लाल, पुहि., पद. ३, पद्य, श्वे., (समझ मन मूरख वोरा रे०), ६३६२५-२९(+) औपदेशिक पद-नारीपरिहार गर्भित, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (मांडीरी घंटा घरररर), ६४१७२-१९ औपदेशिक पद-परनारी, पुहि., गा.७, पद्य, मूपू., (चतुर नर नारी मत निरख), ६४१९६-७(+) औपदेशिक पद-परभावे, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मपू., (जिउ लागी रह्यो परभाव), ६७९१९-२८(+) औपदेशिक पद-पुण्योपरि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पारकी होड मत कर रे), ६३४४३-३(+#),
६८००४-३२(+), ६८०९८-५ औपदेशिक पद-मन शिक्षा, मु. भूधर, मा.गु., पद. ४, पद्य, श्वे., (मनहंस हमारी ले), ६३६२५-१६(+) औपदेशिक पद-मायावी संसार, मु. रामशिष्य, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (एह जग सुपने की माया), ६८०९८-१६ औपदेशिक पद-मेघवर्णन, पुहि., पद. १, पद्य, श्वे., (आयो वर्षाकाल चिंहु), ६५९८४-४(+#)
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५३४
देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक पद-रुपये का महत्त्व, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (कोलाहल करे टका सिर), ६७९६१-२(+#) औपदेशिक पद-लालच परिहार, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (आकरे खरेख जाने केइ), ६७९६१-३(+#) औपदेशिक पद-वसंत, मु.रूपचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (रतनी की सहज वसंत की), ६४४०९-३(+#) औपदेशिक पद-वैराग्य, मु. जिणदास, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (तेरी मेरी करता जनम), ६७७५५-५ औपदेशिक पद-वैराग्य, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (मुसाफिर चोकस रइयो ठग), ६४१९६-२२(+) औपदेशिक पद-वैराग्य, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (करहु वसि सजन मन वचन), ६४१५१-३०(+) औपदेशिक पद-वैराग्य, मु. रामचंद्र, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (तुम बात सुनो नि एक), ६८०५४-९, ६७८८३-३(-2) औपदेशिक पद-शीलविषये, मु. जिनदास, पुहि., गा. ३, पद्य, मपू., (सील सिणगार करोरी), ६४००२-७(+) औपदेशिक पद-संयम पालन, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. ६, पद्य, स्था., (चतुर नर देखो ग्यान), ६३४९१-२७(+) औपदेशिक पद-समकित, मु. गोपालसागर, पुहिं., गा. १२, पद्य, मूपू., (परमंत्र परमेष्टी जपी), ६७०७३-१ औपदेशिक पद-साधु, कबीरदास संत, पुहि., कडी. ८, पद्य, वै., (नाही धोइ तिलक ज छापा), ६३९५७-२६(+) औपदेशिक पद-स्वार्थ, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सुग्यानी संभाल तु अब), ६४१५१-२८(+) औपदेशिक प्रहेलिका, पुहि., गा. ७, पद्य, श्वे., (आधी तो नीरूतो न एलची), ६८२३७-१४(+#) औपदेशिकबहोत्तरी, मु.रूप, मा.गु., गा. ७३, वि. १८९५, पद्य, मूपू., (सुग्यानी जीवडा सुध), ६७०७६-१६(+) औपदेशिक बारमासा, मु. हीरालाल, पुहिं., गा. १४, पद्य, स्था., (चेत मास में चेत चिता), ६३४९१-३१(+) औपदेशिक रेखता, श्राव. जिनबगस, पुहि., गा. ८, पद्य, श्वे., (कुलकर्म को सौधर्म), ६५२००-६ औपदेशिक रेखता, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (सिव का धर्म में फंद), ६४६०२-९(-) औपदेशिक लावणी, मु. अखपत, पुहि., गा. ८, पद्य, श्वे., (खबर नहिं हे पलकी), ६४१६६-४ औपदेशिक लावणी, मु. अखमल, पुहि., गा. ८, पद्य, श्वे., (अब तन दोस्ती है इह), ६८४१२-३४(#), ६४६०२-२१(-) औपदेशिक लावणी, अखेमल, पुहि., गा. ११, पद्य, श्वे., (खबर नही आ जगमे पल), ६४१९६-१(+), ६७७१९-१५(-) औपदेशिक लावणी, मु. अमी ऋषि, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (करे जिनधर्म सोहि जीत), ६४६०७-४४(+) औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (अगम पंथ जाना हे भाइ), ६८३०३-१४ औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (कब देखु जिनवर देव), ६५२२९-११ औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (कुमत कलेसण नार लगी), ६७७१९-७८) औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, म्पू., (तुम भजो निरंजन नाम), ६७०४२-५(+), ६८३५१-८(5) औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (बल जावो रे मुसाफर), ६४६०५-११(+) औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (सुगुरु की सिख हइये), ६८३१०-५१(+#) औपदेशिक लावणी, मु. देवचंद, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (चतुर नर मनकुंरे समज), ६४६०२-२२८) औपदेशिक लावणी-गुरुज्ञान, मु. जिनदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (साब विना तन मन की), ६७०४२-२(+) औपदेशिक लावणी-जिनभक्ति, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (हारे किसी की भुंडी), ६४१६६-९ औपदेशिक लावणी- लोभ परिहार, मु. जिनदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पापमाही रात दिवस), ६७०४२-४(+) औपदेशिक लावणी संग्रह, मु. हीरालाल, पुहि., गी. १२, वि. १९०१, पद्य, श्वे., (पंच इंद्रि का जगडा), ६४५७०(+) औपदेशिक विचार-ब्रह्मचर्यविशे, मु. रायचंद, रा., प+ग., श्वे., (हिराचंद आमोली साधरमी), ६७८२६-५ औपदेशिक विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (आपरी सकत सारं दान), ६७८९९-२(+#) औपदेशिक व्याख्यान, मा.गु., गद्य, श्वे., (णमो अरिहंताणं० णमो), ६३४७८-२(#), ६३९८९-१(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. अमी ऋषि, पुहि., गा. १०, पद्य, श्वे., (सीखसुध मानो भवप्रानी), ६४६०७-२६(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. अमी ऋषि, पुहि., गा. ७, पद्य, श्वे., (सुणजो भव प्राणी धारो), ६४६०७-४१(+) औपदेशिक सज्झाय, ऋ. अमीचंद, पुहिं., गा. ८, पद्य, मूपू., (क्यु नायक कष्ट उठाव), ६४१९६-१९(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. आनंदघन, मा.गु., गा.११, पद्य, मूपू., (हु तो प्रणमुंसदगुर), ६८१८०-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चतुर तुंचाखि मुज), ६३३७८-१६
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६
५३५ औपदेशिक सज्झाय, मु. कान्हाजी ऋषि, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (ते भणीया भाई ते भणीय), ६३३७४-१(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. कृपाराम, पुहिं., गा. ९, वि. १९४४, पद्य, श्वे., (जिन की वाणी सुणज्यो), ६५२४९-५(+#) औपदेशिक सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (जाग रे सुग्यानी जीव), ६५२३६-१९(+) औपदेशिक सज्झाय, चेतन, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (देसतो विराना अपनां), ६३३९०-१०(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. चौथमल ऋषि, मा.गु., गा. १४, पद्य, स्था., (सुकरत पूरब पून करीने), ६३४९१-३७(+) औपदेशिक सज्झाय, श्राव. जिनबगस, पुहि., गा. ७, पद्य, श्वे., (तुक दिल की चसम खोल), ६३३९०-६(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. जिनराय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (भगवंत भाखे देसना सुण), ६४००२-१०(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. तेजसिंघ, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (पंचप्रमाद तजी पडिकमण), ६७८५६-८(+$), ६७९६१-११(+#$),
६८१६३-२६, ६४१५५-३७(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. नाथू, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (प्राणीडा रे तू काई), ६५१९३-२२(+#) औपदेशिक सज्झाय, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (जीभडलि सुण बापडलरि), ६८१६३-३ औपदेशिक सज्झाय, मु. भूधर, पुहिं., गा. ९, पद्य, जै., (या संसार क्षारसागर), ६५१९३-१(+#) औपदेशिक सज्झाय, ग. मणिचंद, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (आज का लाहा लीजीई), ६८०५०-२०(+) औपदेशिक सज्झाय, ग. मणिचंद, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (आदित जाइने आपणी), ६८०५०-१७(+) औपदेशिक सज्झाय, ग. मणिचंद, पुहिं., गा. ६, पद्य, म्पू., (कोइ कीनहीकोउ काज न), ६८०५०-६(+) औपदेशिक सज्झाय, ग. मणिचंद, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (चेतन जब तुंज्ञान), ६८०५०-१२(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. मणिचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जो चेते तो चेतजे जो), ६८०५०-१५(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. मणिचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मिच्छत्व कहिजे), ६८०५०-१९(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. मणिचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (शुक्लपक्ष पडवेथी), ६८०५०-१८(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. मान ऋषि, पुहिं., गा.५, पद्य, श्वे., (माया काया गरभ), ६५०९६-६(+#) औपदेशिक सज्झाय, क. मान, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (सोवननगरी हंस नरेस्वर), ६५०९६-७(+#) औपदेशिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. ६, पद्य, म्पू., (चिदानंद अविनाशि हो), ६७९१९-३५(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. रतनचंद ऋषि, पुहिं., गा.८, पद्य, स्था., (हां रे ए जग जाल सुपन), ६३९५७-२४(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (चेत चेत रे चेत चतुर), ६४००२-११(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. रतनचंद, पुहिं., गा.७, पद्य, श्वे., (हारेकर गुजरान), ६४१९६-९(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. राम, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (बांधो मति कर्म चीकणा), ६८०९८-१४ औपदेशिक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १२, पद्य, स्था., (आदिनाथ अरिहंत ध्यावो), ६८३१०-२०(+#), ६८३९७-१२ औपदेशिक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १२, वि. १८४०, पद्य, श्वे., (प्यारो मोहनगारो राज), ६८३१०-३०(+#) औपदेशिक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १७, वि. १८५५, पद्य, श्वे., (मारो मन लागो हो), ६४६०५-९(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १७, पद्य, श्वे., (--), ६८३०३-१८(६) औपदेशिक सज्झाय, मु. रूप, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (ऐसैं काल गयो सब बीति), ६५१९३-१०(+#) औपदेशिक सज्झाय, श्राव. लाधो साह, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवर करी), ६४४०९-५(+#) औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (आदित्य जोइने जीवडा), ६४१५५-४६(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ९, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (सुधो धर्म मकिस विनय), ६७६९९-३(+#), ६३५४३-१ औपदेशिक सज्झाय, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (समकित वाहिरो जिनभा), ६७०३६-१९(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (मंगल करण नमीजे चरण), ६३४२२-२(+#$), ६७७५९ औपदेशिक सज्झाय, मु. शिवचंद्र, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (चेतन करीयै रेजिनजि), ६४६२२-२, ६८०३६-४ औपदेशिक सज्झाय, वा. श्रीकरण, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (समवसरण सिहासनेजी वीर), ६४४८०-१ औपदेशिक सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मुगत नगर मारू सासरू), ६८३१०-३९(+#) औपदेशिक सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु.,रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (स्वारथ की सब हेरे), ६४१९६-८(+)
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औपदेशिक सज्झाय, मु, सहजसुंदर, मा.गु, गा. ६, पद्य, मूपू, (धोबीडा तुं धोजे मननु), ६८३८०-२७) औपदेशिक सज्झाब, मु. हीमत, मा.गु., गा. ९, वि. १९१५, पद्य, मूपू., (भलाई करले रे बंदा इण), ६७७५५-३ औपदेशिक सज्झाय, मु. हीरालाल, पुहिं., गा. ६, पद्य, स्था., (ललचे मती नार कुमतकार), ६३४९१-३(+) औपदेशिक सज्झाब, मा.गु., गा. १२, पद्य, म्पू, (अरिहंताजीनो नाम मारे), ६८३१०-५३(०) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (उंचा मंदिर बोहत धन), ६७९६१-१४ (६)
देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
६८३१०-७(+)
(किया दिया लिया जिया), ६७०८१-४११ खे, (गरवी की देसी इम), ६४००२-८(क) (जाने दवारी वात) ६८०९८-२
"
औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू औपदेशिक सज्झाब, मा.गु., गा. १३, पद्य, औपदेशिक सज्झाय, रा., गा. ७, पद्य, वे. औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. ८, पद्य, औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (पुहे महीने सापडे मक), ६३५४६-१(+#$)
,
श्वे. (तेरा नही ते सरब), ६३३९०-१२ (+)
"
औपदेशिक सज्झाय, मा.गु. गा. २२, पद्य, भूपू
(बैठे साधु साध्वी, ६८३९७-१५
7
""
(भविजीवो आविजिणेसर वी), ६५२६१-४(+)
""
औपदेशिक सज्झाव, मा.गु., गा. ३२, पद्य, वे औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (भवियण औपदेशिक सज्झाय, रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (वडे गर ताल लागी रे), ६८०९८-१
भव सायर तिरीया), ६७०५५-२ (#$)
"
औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे. औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १२, पद्य, वे औपदेशिक सज्झाब, मा.गु., गा. ४, पद्य, खे, औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. २४, पद्य, म्पू. (--), ६४६०८-१(३) औपदेशिक सज्झाब, मा.गु., गा. ११, पद्य, खे., (--), ६७८८३-१(७)
औपदेशिक सज्झाय-अज्ञानता, मु. अमी ऋषि, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., ( क्यों नाहक कष्ट), ६४६०७-३२(+)
औपदेशिक सज्झाय- अष्टमदनिवारक, मु. अमी ऋषि, पुहिं. गा. १४, वि. १९५३, पद्य, वे. (तुम सुणजो सहु भव),
""
"
(विषिया लालच रस तणो), ६८२५६-२४(+), ६८४५१-१२ (सरसति सामणि करु), ६४१५५-२७(१) (--), ६८४१२-१(०६)
יי
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६४६०७-२४(+)
औपदेशिक सज्झाय - आत्मशिक्षा, मु. महानंद, मा.गु., गा. १५, वि. १८१५, पद्य, श्वे., (आसणरा रे योगी गहां), ६७९००-४(+#) औपदेशिक सज्झाय आयुष्य, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. ८, पद्य, खे, (आउ तुट्याने सांधो, ६३९५७-३०(*) औपदेशिक सज्झाय-कपटोपरि, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. २४, वि. १८३३, पद्य, श्वे. (कपटी माणसरो विश्वास), ६३५२७-३(+),
"
औपदेशिक सज्झाय-कर्म, मु. जसविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, भूपू., (कर्म जोरावर जालमी), ६८२४९-१७ औपदेशिक सज्झाव - कर्मफल स्वरुप, आ. गुणसूरि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू (त्रिभुवनस्वामी शिवपु), ६३४२२-८(+०३),
६३५४५-४
औपदेशिक सज्झाय-कामभोग परिहार, मु. प्रेम, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (ममत मत कीजो राज मन), ६८०९८-७ औपदेशिक सज्झाय - कायदृष्टांत गर्भित, मु. रतनचंद, पुहिं. गा. ५, पद्य, श्वे. (तेरी फुल सी देह पलक), ६३९५७-२५(१),
६७७५५-१२
""
औपदेशिक सज्झाय - काया, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (या काया थिर नाहि मत), ६८४१२-३७ (#) औपदेशिक सज्झाय कायाविषे, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू (भुलो मनभमरा काई भम्य), ६८३८०-४(-) औपदेशिक सज्झाय-काल, मु. अमी ऋषि, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (मन मान सुगुरुका कहना), ६४६०७-३३(+) औपदेशिक सज्झाय-कुगुरु, मा.गु., गा. २३, पद्य, म्पू., (दावानल लाघो अधक बले), ६४९९५-५ (१) औपदेशिक सज्झाव- कुगुरु परिहार, मु. जिनदास, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्राणि समगत कीण वीद), ६८०९८-४ औपदेशिक सज्झाय-कुमार्गत्याग, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (चेतन राह चले उलटे नख), ६८४०१-५ औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु, उदयरत्न, मा.गु, गा. ६, पद्य, भूपू
(कडवा फल छे क्रोधना), ६८२३७-४२(+),
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६८१६३-४५, ६८३८०-१४९१
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६ औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. ७२, पद्य, मूपू., (उत्पति जोज्यो आपणी), ६३९५७-१९(+),
६७०३६-४२(+), ६७०४१(+), ६८२५६-८५(+), ६८१८०-४ औपदेशिक सज्झाय-गर्व, मु. खोडीदास, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (गरवि लोको ग्यानि गुर), ६५२६६-१(+) औपदेशिक सज्झाय-गुरुवाणी, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (चेत चतुर नर कहे), ६४१६६-५ औपदेशिक सज्झाय-चरखा, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (गढ सुरतसुंकबाडी आयौ), ६८३५१-१४ औपदेशिक सज्झाय-चेतन, मु. अमी ऋषि, पुहि., गा. ७, पद्य, श्वे., (जाग मुसाफिर समज सयान), ६४६०७-३८(+) औपदेशिक सज्झाय-जिह्वा, गच्छा. विजयक्षमासूरि, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (जीभडली सुण बापडली), ६३९५७-२२(+) औपदेशिक सज्झाय-जीव, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आरंभ करतां रे जीव), ६७२०१-२(+-#) औपदेशिक सज्झाय-जीवकाया, मु. कुशल, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सदगुरु भाखे देसना), ६३५२७-६(+) औपदेशिक सज्झाय-जीवकाया, ऋ. रत्न, मा.गु., गा. २०, पद्य, श्वे., (श्रीजिनवरनी वाणी रे), ६५२८८-११ औपदेशिक सज्झाय-जीवकाया, पुहि., गा. ९, पद्य, मूपू., (तुं मेरा पिय साजणा), ६७०५५-२७(-2) औपदेशिक सज्झाय-जीवशिक्षा, मु. सिद्धविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (बापडलारे जीवडला), ६३५४५-१२ औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. १४, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (एक घर घोडा हाथीया जी),
६३३७४-१४(+), ६८३१०-४७(+#) औपदेशिक सज्झाय-दुर्मति विषये, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (हे दुरमतडी थे बेरण), ६८१८०-२ औपदेशिक सज्झाय-नरकदुःख वर्णन सज्झाय, मा.गु., ढा. १, गा. १८, पद्य, मूपू., (श्रीवीर जिणेसर भाखी), ६४६०२-२५(-) औपदेशिक सज्झाय-नारी चरित्र, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (धणी धणीयांणी इम), ६३५२७-२(+) औपदेशिक सज्झाय-नारी शिक्षा, मु. रूपकमल, मा.गु., गा. ३१, वि. १५८२, पद्य, मूपू., (आपैइ आप संभालीइ रे),
६७०३६-२७(+) औपदेशिक सज्झाय-निंदक, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २८, वि. १८३५, पद्य, श्वे., (नवरो माणस तो नंदक),६७८७३-३(+$) औपदेशिक सज्झाय-निंदात्याग विषये, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (निंदा म करजो कोईनी),
६८१६३-२० औपदेशिक सज्झाय-परदेशीजीव, मु. राजसमुद्र, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (एक काया दुजी कामनी), ६५२४७-८(+#), ६७९४०-९ औपदेशिक सज्झाय-परनारी, मु. सेवाराम, मा.गु., गा. ९, वि. १८८३, पद्य, श्वे., (रावण मोटो राय कहीजे), ६८०९८-८ औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, ग. कुमुदचंद्र, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सुण सुण कंतारे सिख), ६४१५५-२८(#) औपदेशिक सज्झाय-परनारीपरिहार, मु. शांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जीव वारु छु मोरा), ६७९४०-४, ६८१६३-२३,
६८३८०-२१(-) औपदेशिक सज्झाय-परनारीपरिहार, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सुण चतुर सुजाण परनार), ६५२८८-९ औपदेशिक सज्झाय-ब्रह्मचर्यवाड, पं. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. १, गा. ९, पद्य, मूपू., (संयोगी पासै रहै ब्रह), ६७९४०-१४ औपदेशिक सज्झाय-माननिषेध, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मानीडा मत कीजो मान), ६३४९१-२६(+) औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (रे जीव मान न कीजीए), ६८२३७-४३(+#),
६७७५५-१४, ६८१६३-४६ औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (समकितनुं मुल जाणीये), ६८२३७-४४(+#),
६८१६३-४७ औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, महमद, मा.गु., गा. ११, पद्य, जै.?, (भूलो ज्ञान भमरा काई), ६८३०२-२(#), ६८४१२-२(2) औपदेशिक सज्झाय-लालच परिहार, मु. भवनकीर्ति, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (लाज गमाइरेलालची), ६७०३६-३०(+) औपदेशिक सज्झाय-लोभपरिहार, मु. उदयरत्न कवि, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (तमे लक्षण जो जो लोभ), ६८२३७-४५(+#),
६८१६३-४८ औपदेशिक सज्झाय-लोभपरिहार, ग. पद्मसुंदर, मा.गु., गा. ३६, पद्य, म्पू., (भगवंत भाखइ भवियण), ६७०३०-१(+#) औपदेशिक सज्झाय-लोभपरिहार, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चंचल जीवडलारे तु तो), ६८०९८-११
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २ औपदेशिक सज्झाय-लोभोपरि, पंडित. भावसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (लोभ न करीये प्राणीया), ६७०८५-७(+$),
६४४८०-६
',
औपदेशिक सज्झायवाडीफूलदृष्टांत, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू (वाडी राव करे करजोडी), ६८३१०-४१ (+) औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. जैमल ऋषि, पुहिं., गा. ३५, पद्य, स्था., (मोह मिथ्यात की नींद), ६८३१०-११(+#) औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. राजसमुद्र, रा. गा. ७, पद्य, म्पू., (आज की काल चलेसी रे ), ६८२१४-४(+), ६८२५६-१८(१),
६५२८८-४ ६८१६३-१९, ६८४५१-२१. ६४१५५-६१(०१)
"
औपदेशिक सज्झाय - शीलविषये, मु. खोडीदास ऋषि, मा.गु., गा. १७, पद्य, वे., (निसुणो सकल सोहमण), ६५२९०-३ औपदेशिक सज्झाय- श्रावकाचार, मा.गु., पद्य, म्पू. (सप्तगरुराय तवण चीत) ६७९६७-४(३)
.
औपदेशिक सज्झाय-षड्दर्शनप्रबोध, मु. रूपचंद, पुहिं. गा. ९, पद्य, मूपू. ( ओरन से रंग न्यारा), ६८२५६-१५७(+), ६७७००-३(-) औपदेशिक सज्झाय- संतोष, मा.गु., गा. ६, पद्य, भूपू (सज्झाय भली संतोषनी), ६८३१०-४८ (+०) औपदेशिक सज्झाय-संयमग्रहण, मा.गु गा. ८, पद्य, मूपू (नव गती मे भटकत भटकत) ६८०९८-१० औपदेशिक सज्झाय-संसारसगपण स्वार्थ, रा. गा. १५, पद्य, खे, (माता पिता बंधव भाइ), ६४६०२-२७) औपदेशिक सज्झाय-सत्संग, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (एसा अपूर्व मले कोइ), ६८१६३-३९ औपदेशिक सज्झाय-समता, मा.गु गा. १५, पद्य, मूपू (रे जीव ममता मुकीयइ), ६३५४५-७
औपदेशिक सज्झाय - साधु, मु. खोडीदास, मा.गु., गा. १८, वि. १९७०, पद्य, श्वे., (नारीने संगे मुनिवरने ), ६५२६६-३(+$) औपदेशिक सज्झाय- सोगठारमत परिहारविषये, मु. आनंद, मा.गु. गा. ११, पद्य, मूपू (सुगुण सनेही हो सांभल),
"
६७९९९-२५(+१ ६८१६३-२१
औपदेशिक सज्झाय - स्वार्थ परिहार, मा.गु., गा. ५९, पद्य, मूपू., (इण रे प्रस्तावइ चित), ६७०४९-१ (+)
औपदेशिक सज्झाय- स्वार्थ विषये, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (सैं मुख जिनवर उपदिसै), ६८२५६-२५ (+) औपदेशिक सज्झाय-हिंसा निवारण, रा. गा. ३९, पद्य, भूपू (-), ६४१९५-१(+३)
"
औपदेशिक सवैया, मु. धनमुनि पुहिं., गा. २, पद्य, मूपू., ( कबहु वनिता मृदु वाच), ६७७२१-१(#)
औपदेशिक सवैया, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मृपू. (श्रीसद्गुरु उपदेश), ६३३९७-१५(+), ६४१५१-२०(+) औपदेशिक सवैया, श्राव. विनोदलाल, पुहिं. सबै ११, पद्य, मूपू. ( उजलभावको भेद उमेद सो), ६३३९०-१४(+)
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औपदेशिक सवैया, पुहिं., सवै. १, पद्य, श्वे., (करन परपंच इन पंचभवे), ६७०५५-२० (-#) औपदेशिक सवैया, रा. गा. ३, पद्य, श्वे. (सील संतोष खिम्या तप), ६४६०२-१०)
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१, पद्य, मूपू., (डुलत देखि कराडि ते), ६७९६१-४ (+) (विणजत सीसो सार कसाया), ६४६०२-८)
औपदेशिक सवैया-कुसंगति परिहार, मा.गु., सवै औपदेशिक सवैया-फुटकर, रा. गा. ७, पद्य, श्वे. औपदेशिक सवैया संग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं., मा.गु., पद्य, जे. वे. ? (पांडव पांचेही सूरहरि), ६७८५३-२ औपदेशिक सवैया - साधुगुण, श्राव. महेस, रा., गा. २१, पद्य, श्वे., (सासन के नायक सव जीवा), ६४६०२-१७(-)
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औपदेशिक होली, मु भूधर, मा.गु., पद. ४, पद्य, वे (होरी खेलोंगी घर आए), ६३६२५-२५ (+)
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औषध संग्रह, मा.गु., गद्य, वै., (--), ६७०१६-७/+३), ६७९७८-८, ६७८५२-१३
कंसकृष्ण विवरण लावणी, मु. विनवचंद ऋषि, पुहिं, ढा. २७ गा. ४३, पद्य, वे., (गाफल मत रहे रे मेरी), ६७०६०-१(+5)
"
कात्रीसी, मु. जिनवर्द्धन, मा.गु., गा. ३३, पद्य, मूपू., (कका करमनी वात करी), ६८३१०-२(+#)
कात्रीसी, मु. सिवसागर, मा.गु, गा. ३७, वि. १८०८, पद्य, म्पू, (कका करे प्रणाम सुणे), ६५१९६ (३)
कक्कसूरि गुणाष्टक, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जे आराध्या तुम एक ), ६४०११-१२(#)
कडवा बोल, मु. कवियण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जउ फटउ आकाश तउ किम), ६३४३८-२(+)
कथा संग्रह-दान ऊपर, मा.गु. कथा. ८, गद्य, भूपू (कुणालदेशमां सावत्थी), ६८४०६ (३)
कनकावती रास - शीलविषये, पं. कांतिविमल, मा.गु, डा. ४१, वि. १७६७, पद्य, म्पू., (सकल सुरासुर सामनी) ६४२१९(+),
६४२१४
कपट छत्तीसी, मु. अमी ऋषि, पुहिं. गा. ४०, वि. १९५१, पद्य, . (प्रणमु श्रीजिनरायने), ६४६०७-४२(+)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६
५३९ कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., ढा. ३१, गा. ५५५, वि. १७२१, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसुखसंपदा), ६३४६६(+#),
६८२७२(+$), ६४०३०, ६७८१५ कयवन्ना चौपाई, ऋ. फतेचंद, मा.गु., ढा. ४, वि. १८८१, पद्य, श्वे., (पुरहथणापति वंदिये), ६८२१७(#) करकंडुमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चंपानगरी अतिभली हु), ६७९९१-२९(+#) कर्मचेतन संग्रामभाव रास, क. नर, मा.गु., ढा. १६, पद्य, श्वे., (अनंत चोवीसी हुई गई), ६८०४४(+) कर्मप्रकृति स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ६७, पद्य, मूपू., (आदि स्वयंभु शंकर शिव), ६३५८१-१ कर्मफल सज्झाय, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (जैसा वरद फीरत तेली), ६८३५१-१५ कर्मबंध भांगा, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ६७९४६-१९(-$) कर्मयुद्ध सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (धर्म के विलासवास), ६३३९९-६(+),
६७९१९-१८(+), ६८४०१-१ कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (देव दाणवतीर्थंकर), ६३९५७-१७(+), ६८२५६-२३(+),
६७८१०-१, ६८४५१-११, ६५१८९-२(#), ६८४१२-११(#) कर्महींडोल सज्झाय, म. हर्षकीर्ति, मा.ग., गा. ९, पद्य, मप., (कर्म हीडोल नामाई), ६७०३६-२९(+) कलियुग सज्झाय, मु. कुशलधीर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मुनिवरहोईमजूर वदै ऊष), ६५२४७-१०(+#) कलियुग सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, पुहिं., गा. १२, पद्य, मूपू., (यारो कूडो कलियुग), ६३५४५-१० कवित संग्रह, पुहि.,मा.गु.,रा., पद्य, श्वे., (आसराज पोरवार तणै कर), ६७९४७-३(-) काकंदीधन्ना सज्झाय, मु. रूप ऋषि, पुहिं., गा. २४, पद्य, श्वे., (वाणी सुण जिनराज की), ६८४१२-९(#) कान्हडकठियारा रास-शीयलविशे, मु. मानसागर, मा.गु., ढा. ९, वि. १७४६, पद्य, मूपू., (पारसनाथ प्रणमुंसदा), ६३६१५(+),
६४१६४-१(+), ६४२१०(+$), ६५२५०(+#), ६८१९३(+#), ६७०१७, ६७९०८(#$) कामदेवकुमार रास, मु. सोमचंद्र, मा.गु., गा. ३१४, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (पहिलउ प्रणमिसि अनुक), ६५२२४ कामदेव श्रावक सज्झाय, मु.खुशालचंद, मा.गु., गा. १६, वि. १८८६, पद्य, श्वे., (एक दिन इंद्रे), ६३४९१-४४(+), ६४६०५-२(+),
६४१७२-८ कायस्थिति २२ द्वार वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीव १ गई २ इदिय ३), ६४६५० काया कमल नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (सिरकमल १ नयणकमल २), ६३११०-५(+#) कायावाडी सज्झाय, मु. पद्मतिलक, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (कायावाडी कारमि सिचंत), ६८१८०-३ कार्तिकसेठ चौढालियो, श्राव. उदयभाण, मा.गु., ढा. ४, वि. १८४६, पद्य, श्वे., (श्रीआदिश्वर आदि नमु), ६५२६७(#) कालभैरव मंत्र, मा.गु., गद्य, वै., (ॐ नमो कालभैरव कबरी), ६५२०१-८(+) कालिकाचार्य कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (अहँत भगवंत उत्पन्न), प्रतहीन. (२) कालिकाचार्य कथा-बालावबोध, मा.गु., ग्रं. ३८१, गद्य, मूपू., (अहँत भगवंत उत्पन्न), ६४१४७(5) कालिकाचार्य कथा*, मा.गु., गद्य, म्पू., (तिहां पूर्वइ स्थविरा), ६४१३९(#$) कुंथुजिन स्तवन, मु. अमी ऋषि, पुहि., गा. ७, पद्य, श्वे., (कुंथुजिन वंदू सुखदाई), ६४६०७-१९(+) कुंथुजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १९वी, पद्य, म्पू., (रात दिवस नित सांभरो), ६४६०८-१६(-१), ६८०७१-४०(-) कुगुरु पच्चीसी, श्राव. महेस, रा., गा. २५, पद्य, श्वे., (पांचमहाव्रत मोटा लेव), ६४६०२-१५(-) कुगुरु परिहार पद, मु. हीरालाल, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (सुत विन कुण सुणो), ६४१९६-१४(+) कुगुरु सज्झाय, मु. टीकम, रा., गा. १४, पद्य, श्वे., (तेरेपथी फतेचंदरी), ६८०५४-६ कुगुरु सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (शुद्ध संवेगी कीरिया), ६८४३०-१(-) कुगुरु सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. ११, पद्य, स्था., (जीव आदि अनादिरो गोधा), ६८३१०-१९(+#), ६८३९७-११ कुगुरु सज्झाय, रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (विनारा भाव सुण सुण), ६४१९५-७(+) कुगुरुसाधुपद, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (भेखधारी भगवानरा साधु), ६४१९५-८(+) कुगुरुसाधु सवैया, श्राव. माईदास मुहता, रा., गा. ८, पद्य, श्वे., (उंची क्रिया धारिके), ६४६०२-१८(-)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २
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कुगुरूत्याग पद, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (तजु तजु में उन ), ६८३०३-८ कुदेवकुगुरुकुधर्मस्वरूप विवेचन, मा.गु., गद्य, श्वे. (देवधरमगुरु बंदी पद), ६४४४४ कुमतिसुमति पद, मु. जिनदास, पुहिं. पद १, पद्य, मूपू (सरक जा कुमति नार), ६५२२९-६ कुमतिसुमति सज्झाय, मु. लालविनोद, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे. (साधो छोडो कुमति), ६५१९०-३(#) कुमारपाल रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु.. गा. ४९४९, नं. ५८००, वि. १६७०, पद्य, भूपू (सकल सिद्ध सुपरि नम) ६४०२३३) कुलवधू सज्झाय, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सरसति सामनि करुरे), ६८२४९-१ कृतकर्मराजर्षि चौपाई, मु. लब्धिकल्लोल, मा.गु., गा. ४०७, वि. १६६५, पद्य, मूपू., (अजर अमर अकलंक जिन), ६३५०६ कृपणपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, रा. गा. २५ पच, स्था., (नित नित नरभव लह्यो), ६८३१०-६ (+)
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कृष्ण ढाल, मा.गु. डा. १८, पद्य, भूपू (नेमनाथ समस), ६८०१९ (+४)
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कृष्णभक्ति गीत, मा.गु., गा. ९, पद्य, वै., (सत्यभामाइ रूसणा लीधा), ६७०३६-३२(*) कृष्णभक्ति पद, क. नरसिंह महेता, पुहिं., गा. ९, पद्य, वै., (जी मात जसोदा जलभर), ६४१७२-२६ कृष्णभक्ति पद, क. नरसिंह महेता, मा.गु. गा. ३, पद्य, वै. (प्रीया धारै भुधरीयो), ६४१५५-१५(१) कृष्णभक्ति पद, क. मान, पुहिं., पद, ५, पद्य, वै., (सब सखीयनमें मोहिन), ६५०९६.९(२०)
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कृष्णभक्ति पद, मीराबाई, मा.गु., पद. १३, पद्य, वै., (निरमोहीडा तोसै कबु न ), ६८०७१-२२ ( ) कृष्णभक्ति पद, मीराबाई, पुहिं. पद. ५, पद्य, वै., (वीडी बनाई नागर पान), ६८३५१-१३
कृष्णभक्ति पद, मीराबाई, पुहिं., गा. ३, पद्य, वै., (व्रजमंडल देश दिखाओ), ६४१५५-१६(#), ६७७२२-३(#)
कृष्णभक्ति पद, सूरदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, वै., (माखण मेरो खायो मटकी), ६४१७२-२२
कृष्णभक्ति पद, पुहिं. गा. १२, पद्य, वै., (नगर दवारकासु कसन), ६४१७२-२५
कृष्णमहाराजा स्तुति, मु. हीरालाल, पुहिं., गा. ११, पद्य, स्था., (मात जसोदा दइ रे), ६३४९१-२९(+)
कृष्णरुक्मणी चौपाई, मा.गु., पद्य, वे (--), ६३२७६ (+४)
कृष्णलीला वर्णन गीत- त्रिकूटबंध, क. जस कवि, पुहिं., चौपा. ४, पद्य, वै., ( वर किसन रुखमणि ले वल), ६७०५५-१४/०१ केशीगौतमगणधर संवाद रास, मु. अदेसंगजी, मा.गु., ढा. १४, गा. २१६, वि. १८४८, पद्य, श्वे., (वांदी जिन चोवीसने), ६४५८९(+) केशीगौतमगणधर संवाद सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू. (सीस जिणेसरपासना केशी), ६४१५५-५५(क) केश गौतम गणधर सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १७, वि. १८४२, पद्य, वे., (सावत्थी नगरी सोभे), ६८३१०-२९(+#) कोकसार, आ. नर्बुदाचार्य, मा.गु., प्रका. १० गा. १४९२, वि. १६५६, पद्य, मूपू (मातंगी मति आपीये), ६५६०६ (३), ६५७७३(३) क्रोधमानमायालोभ सज्झाय, मु. गुणसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (भजीय श्रीजिन चरण), ६३५४५-५ क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (आदर जीव क्षमागुण), ६५२४९-१ (+#), ६७०३६-३८(+),
+
छे
, י
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६७९१३-२(+०६), ६७०५७-६, ६४२३०(१) ६८४१२-१७(१)
क्षमासूरि स्तुति, मा.गु, गा. १, पद्य, भूपू (जय जय गणधारक विजय), ६७०३६-२२(०)
क्षुधा सज्झाय, मु. शिवलाल, पुहिं, गा. १२, पद्य, वे (वेदना क्षुधा की भारी) ६४१९६-११(०) क्षेत्रपाल स्तवन, मु. मेह, पुहिं., गा. १७, पद्य, श्वे., (खेल लचिर ते खेलता), ६७०५५-२२ (-#)
क्षेत्रसमास विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवे कांइएक बोल जंबूद), ६३४१२(+), ६५२०४-७० (+), ६८१५३-१(+)
खंदकमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे. (सरसत मण विनमुंजी), ६७८९९-१(क)
खंधकमुनि चौढालिया, मु. जैमल ऋषि, रा., ढा. ४, वि. १८११, पद्य, स्था., ( नमुं वीर सासनधणीजी), ६८०९६(#), ६७०७१($)
खंधकमुनि चौढालियो, रा. डा. ४, वि. १८११, पद्य, खे, ( नमूं वीर शासनधणी जी), ६८२३३-२(+)
1
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,
खंधकमुनि चौढालीयो, मु. केवल, मा.गु., गा. ४६, पद्य, वे (--), ६७९४६-९ (-६) खंधकसाधु सज्झाय, रा., गा. ३०, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर पाय नमुजी), ६४६०८-४७(#) खरतरगुरूगुणवर्णन छप्पय, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (सो गुरू सुगुरू जु), ६४२१७(+#$) गंगाजी स्तवन, केसवदास, पुहिं., गा. २१, पद्य, वै., (ब्रह्म कमंडल मझे), ६७०५५-२३(#)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६
५४१ गजसिंघकुमार रास, मु. सुंदरराज, मा.गु., खं. ४, गा. ४३४, वि. १५५६, पद्य, मूपू., (पासजिणेसर पाय नमी), ६४१५३(+),
६३४४०(#$) गजसिंघ चरित्र, मु. आसकरण ऋषि, रा., ढा. ४६, वि. १८५२, पद्य, श्वे., (अरिहंत अतिसैवंत घणु), ६८०४३() गजसिंहगुणमाला चरित्र, ग. खेमचंद कवि, मा.गु., खं. ६, वि. १७६१, पद्य, मूपू., (--), ६५२९३(+#$) गजसुकुमाल चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., ढा. ३०, गा. ५००, वि. १६९९, पद्य, मूपू., (नेमीसर जिनवरतणा चरण),
६७९१५(+$) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. कांति, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (श्रीजिन आव्या हे सोर), ६७८१४-१०($) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. २४, वि. १८५८, पद्य, श्वे., (गजसुकुमाल देवकिरो), ६७७५५-८ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. चोथमल, मा.गु., गा. २३, वि. १८५८, पद्य, श्वे., (गजसुखमाल देवकीनंदन), ६३९५७-५(+) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. देवचंद्रजी, मा.गु., ढा. ३, गा. ७४, पद्य, मूपू., (द्वारिका नगरी ऋद्धि), ६८०५९-२ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. नथमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (जिनवर आवंता मे सुण्य), ६५२९६-२(+$), ६५२८८-८,
६४१५५-३१(#) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. रतन, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (श्रीजिन आया हो सोरठ), ६४१९६-१२(+) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु.शीलांग मुनि, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (देवकीनंदन गुणवंतो), ६३३७८-१० गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. सिंहसौभाग्य, मा.गु., गा. ५०, पद्य, मूपू., (सोरठ देश मझार), ६४१५५-३०(#), ६७७३६($) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, रा., गा. २१, पद्य, श्वे., (गजसुकमाल देवकीनंदन), ६४६०२-३०(८) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (फरक मन रेणा हो रेणा), ६८०९८-१२ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. ४१, पद्य, मूपू., (वाणी श्रीजिनराजतणी), ६३५२७-७(+) गणधरपट्टावली सज्झाय, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ७२, वि. १७१०, पद्य, मूपू., (ब्रह्माणी वाणी दिओ), ६४००५(+) गणपति कवित्त, केसवदास, मा.गु., का. १, पद्य, वै., (एक रदन गजवदन कदन), ६५१९२-११(+#) गणपति छंद, अभयराम कवि, मा.गु., गा. ९, पद्य, वै., (जै जै गुणनायक व्रध), ६७८५२-३(-) गणेश निसांणी, मा.गु., गा. ३, पद्य, वै., (सब देवा नायक तु), ६७८५२-१२(-) गणेश स्तोत्र, मा.गु., गा. ६, पद्य, वै., (नर सुरनायक आदि), ६७८५२-११(-) गम्माशतक यंत्र-भगवतीसूत्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (नारकी सर्व सघात ऊपना), ६७९४५(#$) गर्भावास सज्झाय, संघो, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (माता उदरि वस्यो दस), ६३३७४-२४(+) गिरनारतीर्थस्तवन, मु. लाभउदय, मा.गु., गा. ७, वि. १८५१, पद्य, मूपू., (श्रीगिरनार सोहामणो), ६८००४-३८(+) गिरनारश@जयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सारो सोरठ देश देखाओ), ६३४६४-६९(#) गुणकरंडकगुणावलि चौपाई, मु. दीपचंद ऋषि, मा.गु., ढा. २८, गा. १६०३, वि. १७५७, पद्य, श्वे., (संपति सुखदायक सरस),
६४४७६(#), ६८२४५(#) गुणकरंडकगुणावलि चौपाई-पुण्य विषये, मु. जसराज, मा.गु., ढा. १८, गा. ७०३, वि. १७११, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथ प्रणम),
६३४३८-१(+) गुणस्थानक द्वार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नाम लक्षण करिया कामा), ६३४७४(+$), ६४५६६-२ गुणावलि चौपाई, ग. गजकुशल, मा.गु., ढा. २९, गा. ५१९, वि. १७१४, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ पूरवे), ६३३७३(+$) गुणावली रास, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ६३४३९(+$) गुरुगुण गहुँली, मु. भूधर, पुहिं., गा. १३, पद्य, श्वे., (ते गुरु मेरे उर वसे), ६४१५५-६३(#) गुरुगुण गहुँली, मु. हीरालाल, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (ज्ञानी गुरु विना कोण), ६४१९६-१३(+) गुरुगुणपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २५, वि. १८४०, पद्य, स्था., (गुरु अमृत जेम लागे), ६५२६१-७(+-), ६८३१०-२३(+#),
६८३९७-१० गुरुगुण पद, मु. नवल, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (अब मोय साध मिलियो हो), ६८४१२-४७(#) गुरुगुण पद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (गुरु दीनदयाल मिले), ६८४१२-३८(१)
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५४२
देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ गुरुगुण पद, पुहिं., गा. ३२, पद्य, मूपू., (वे गुरु ही भ्रमरोग), ६८४१२-४६(#) गुरुगुण भाष, ग. जयविजय मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू., (राजग्राही उद्यान के), ६७०३६-२५ (०) गुरुगुण सज्झाब, मु. कुशलविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, म्पू, (सगुरु सरसति पाय), ६७०३६-२० (+) गुरुगुण सज्झाय, मु. रतनचंद, पुहिं., गा. १०, पद्य, श्वे., (आज नैणभर मुख निरख्यो), ६८३०३-१९ गुरुगुण सज्झाय, मु. रामचंद्र, मा.गु., गा. ६, वि. १९२५, पद्य, मूपू., (जीवा मोरा मानव लीधो), ६८०५४-४ गुरुगुण सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु.. गा. २१, पद्य, वे (पुण्य जोगे गुरु), ६८३०३-२०
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गुरुगुण सज्झाय, ऋ. रायचंदजी, पुहिं., गा. २१, वि. १८४०, पद्य, स्था., (गुरु अमृत ज्युं लागे), ६३९५७-६(+) गुरुगुण सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आज आनंद मुज अतिघणौ र ), ६५२८८-१७($)
(--) ६५२३६-१३ (+)
गुरुगुण सज्झाय, पुहिं. गा. ५, पद्य, भूपू गुरुगुण स्तवन, मु. अमी ऋषि, पुहिं. गा. १२, पद्य, थे. ( सतगुरुजी म्हारा मारग), ६४६०७-४३(+) गुरुगुण स्तुति, मु. हीरालाल, मा. गु, गा. ६, पद्य, स्था., (जगतगुरु तारो तारो रे), ६३४९१-३५ (+)
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(गुरसम जग में कुण), ६७८८३-६(-)
गुरुमहिमा लावणी, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे. गुरुशिक्षा सज्झाय, मु. चोथमल, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (सांभली सीख गुरां तणी), ६७८८३-२(-#) गुरुशिष्य कथन निसानी, मु. धर्मसी, मा.गु, गा. ७, पद्य, श्वे. (इण संसार समुद्र को), ६४१४५-३(५)
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गूढार्थ सवैया, गोस्वामी तुलसीदास, पुहिं., सवै. १, पद्य, वै., (हंस परि चढ्यौ गयंद), ६५१९२-१९(+#)
गोचरी ४२ दोष, मा.गु., गद्य, मूपू., (उद्गम दोष श्रावकथी), ६३४४३-२(+#)
गोचरी ४२ दोष वर्जन सज्झाय, मु. रुघनाथ, मा.गु., गा. ३६, वि. १८७८, पद्य, वे. (शासनपति चौवीसमो), ६७८६२-४ गोराबादल चौपाई, आ. हेमरत्नसूरि, मा.गु., गा. ६१७, वि. १६४५, पद्य, मूपू., (सुखसंपतिदायक सकल), ६४२६०-१(+#$) गौतम गणधर देशना सज्झाय, मु. रतन, मा.गु., गा. ७, पद्य, भूपू (इकदिन गोतमगणधरू रे), ६८०३६-८
गौतम गणधर पद, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (प्रह उठीने प्रणमीये), ६७९६१-७(+#)
गणधर बीज मंत्र विधि, मा.गु, गद्य, भूपू (पाछिली राति जाप कीजे), ६५१९१-५ (+) गौतमगणधर स्तवन, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., ( वांदी करी सीस नमाओ), ६७९६७-१
गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. १२९, वि. १५४५, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ पूरवे), ६५२८६-२, ६८०४७ गौतम महावीर संवाद, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., ( इक दिन पूछे गोयम), ६८०३७($)
गौतमस्वामी अष्टक, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (प्रह ऊठी गौतम प्रणमी), ६७८१४-५
गौतमस्वामी गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (गौतम नाम जपो परभाते), ६८०५६-३(#) गौतमस्वामी छंद, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १५, पद्य, वे. (इंद्रभूति गीतमस्वामी), ६८३१०-१० (०) ६८३९७-१, ६८३०२-६(०) गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ९, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (वीरजिनेश्वर केरो शिष), ६८३४४-११(+#), ६५२४०-६, ६७६९२-२, ६७९८०-४(३), ६८२३०-४(-)
गौतमस्वामी प्रभाति, मु. रूपचंद, पुहिं. गा. ७, पद्य, मूपू (मे नवि जान्यो नाथजी), ६८१६३-८
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गौतमस्वामी रास, मु. उदयवंत, मा.गु., गा. ४६, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर चरण कमल), ६५९७८-१४(+)
""
गौतमस्वामी रास, मु. रायचंद ऋषि, रा. गा. १४, वि. १८३४, पद्य, स्था. (गुण गाउ गौतम तणा), ६३३९७-१९(+), ६८३१०-१४(१०) गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., ढा. ६, गा. ६६, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर चरणकमल कमल), ६५९६७, ६५२४०-४($) गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., गा. ६३, वि. १४१२, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर चरणकमल कमल), ६२९८६ (+#),
६३५६५ (+), ६५२३६- २४(+३), ६५२४३-१(*), ६६३६३-३ (+३), ६७०३८(+), ६७०६७-१ (०३), ६७६९८ (*), ६७९४८- १ (०३), ६५२२२-२, ६५९४१-१, ६७०४७-१, ६७८२३, ६८१३०, ६८३९८, ६५१८९-३ (#$), ६७९६२ (#$), ६७०६३-२ ($) गौतमस्वामी रास, मा.गु, गा. ४६, पच, भूपू (वीर जिनेसर चरण कमल), ६८२५६-१०७(५), ६३२७८-१ गौतमस्वामी स्तवन, मु. पुण्यउदय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू. (प्रभाते गोतम प्रणमी), ६५२२५-८(+), ६५२३६-३(+) गौतमस्वामी स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १०, वि. १८२७, पद्य, स्था., (जंबूदिप दिपा रे बिचम), ६८३१०-९(+०) गौतमस्वामी स्तवन, मु. विजयकीर्ति, रा. गा. ११, पद्य, मूपू. (गीतमनाम जपो जी प्रभा), ६५२६१-१० (+)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६
५४३ गौतमस्वामी स्तवन, मु. हीराचंद, मा.गु., गा. ४२, वि. १९३७, पद्य, मूपू., (श्रीगौतमसामी पृच्छा), ६८०६५(+) घंटाकर्ण मंत्रसाधन विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (धतुरा धुतारा धरति), ६८१९०-२($) घडपण सज्झाय, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (वडपण तुंकां आवियो), ६५२४७-१२(+#) घणसीराम चौपई, मु. कनीराम, मा.गु., ढा. ९, गा. १९८, पद्य, स्था., (अरिहंत सिद्धने हुँ), ६३६३२(+) चंडपिंगलचोर कथा-नवकार विषये, मा.गु., गद्य, मूपू., (वसंतपुर नगर जितशत्रु), ६७९१६-४ चंदनबालासती चौपाई, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., गा. १२८, पद्य, मूपू., (वीरजिणवर पाय पणमेवि), ६५१९५ चंदनबालासती चौपाई, मु. ब्रह्म, पुहिं., गा. १६०, पद्य, मूपू., (मोह पिसाच वसकरणकुं), ६५२७४(#$) चंदनबालासती ढाल, रा., ढा. २, पद्य, मूपू., (चंदणवालारी वारता कथा), ६४६०२-४१(-) चंदनबालासती रास, मु. ब्रह्मराय ऋषि, मा.गु., गा. ८३, पद्य, श्वे., (असुभ करम के हरणकुं), ६८३६१-३($) चंदनबालासती सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. ४२, पद्य, मूपू., (कोसंबीनगरी पधारिया), ६५२०६(+) चंदनबालासती सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, रा., गा. २८, पद्य, श्वे., (जी सासणनायक संजम), ६३९५७-४(+) चंदनबालासती सज्झाय, पं. देवविजय, मा.गु., वि. १६७०, पद्य, मूपू., (--), ६३५३३-१(६) चंदनबालासती सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. २०, पद्य, श्वे., (अंगदेस चंपानगरी आठो), ६३९५७-२९(+) चंदनबालासती सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १२, वि. १८४२, पद्य, श्वे., (चित चोखी चंदणबाला), ६८३१०-३५(+#),
६८३९७-७ चंदनबालासती सज्झाय, मा.गु., गा.५५, पद्य, मूपू., (कसुंबी नगरी पधारीया), ६७९४६-१०-) चंदनमलयागिरि रास, मु. भद्रसेन, पुहि., अ. ५, गा. १९९, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीविक्रम), ६३४३६(+#), ६३५५८(+#$), ६३६१३,
६८०३८, ६३३८६-२() चंदनमलयागिरी चौपाई, मु. प्रेम, मा.गु., ढा. २२, पद्य, श्वे., (सुखसंपतिदायक नमु), ६८१३३ चंदनमलयागिरी रास, पं. क्षेमहर्ष, मा.गु., ढा. १३, वि. १७०४, पद्य, मूपू., (जिनवर चउवीसे नमी), ६३९९०(#$) चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., गा. ४०, पद्य, स्था., (पाडलीपुर नामे नगर), ६८४१२-२०(#) चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मा.गु., ढा. २, गा. ३५, पद्य, मूपू., (पाडलीपुर नामे नगर), ६४६०२-४५(-) चंद्रप्रभजिन पद, श्राव. केवलराम, पुहिं., पद. ५, पद्य, मूपू., (चंदाप्रभु महाराज दरस), ६३३९०-५(+) चंद्रप्रभजिन पद, मु. राजनंदन, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (छबि चंद्राप्रभु की), ६८००४-१०(+), ६८२५६-१५४(+), ६७७२९-२(#) चंद्रप्रभजिन पद, मु. रूप, मा.गु., पद. ६, पद्य, मूपू., (चंदाजी जिनंदा वंदन), ६३६२५-४(+) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. अमी ऋषि, पुहि., गा. ७, पद्य, श्वे., (करजोडी अरजी करूँ शीव), ६४६०७-१५(+) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. अमी ऋषि, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (चंदा प्रभु जिनराया), ६४६०७-७(+) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चंद्रप्रभु मुखचंद), ६७०७५-१ चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. जैत, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीचंदाप्रभु जिनवर), ६८२५६-१४३(+), ६८०७१-३६(-) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., गा. १२, वि. १८५४, पद्य, स्था., (चंद्रप्रभु चितमोह), ६४१६६-७ चंद्रप्रभजिन स्तुति, मु. शिवचंद्र, मा.गु., गा.६, पद्य, मूपू., (हां रेसहीया आंबेर न), ६८०३६-५ चंद्रमा सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (चांदो ते छायो वादलेज), ६८३१०-४६(+#) चंद्रराजागुणावलीराणी लेख, मु. दीपविजय, मा.गु., गा.७४, पद्य, म्पू., (स्वस्ति श्रीमरुदेवीन), ६५२८२(+), ६८०६७(#),
६७७२२-१(-#S) चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., उल्ला. ४ ढाल १०८, गा. २६७९, वि. १७८३, पद्य, मूपू., (प्रथम धराधव तीम), ६४६५३(+#),
६७९२६(+#$), ६८१४३(+#$), ६८२५८(+$), ६८३०८(+), ६८००१(६), ६८२६१(६) चंद्रराजा रास, मु. विद्यारुचि, मा.गु., खं. ६ ढाल १०३, गा. २५०५, ग्रं. ३०५५, वि. १७१७, पद्य, मूपू., (श्रीजिननायक समरीई),
६८०७९(+$), ६८२६०(+) चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., ढा. २९, गा. ६२४, वि. १७२८, पद्य, मूपू., (सरसति भगवति नमी करी), ६३५८२(+$),
६३६०३(+), ६३६०८(+), ६३८०३(+#), ६८२६६(+), ६३४८७
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ चंद्रावतीभीमसेन सज्झाय, मु. विवेकहर्ष, मा.गु., गा. २१, पद्य, मू चंपकश्रेष्ठि चौपाई, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ६८१३२(#$) । चंपकसेन रास, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., ढा. २७, वि. १६६९, पद्य, मूपू., (चउवीसे जिनवर वली), ६८००५ चतुर्थीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सर्वारथसिद्धथी चवी ए), ६५२१३-४(+#) चतुर्दशीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वासुपूज्य जिनेसर), ६५२१३-१४(+#) चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान, अज्ञा., जै., (--), प्रतहीन. (२) चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान- बालावबोध, मु. सूरचंद्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीर सूरचंद्र), ६४१४२($) चातुर्मासिक व्याख्यान *, रा., गद्य, मूपू., (पंचापि परमेष्टिन), ६८१३५-१(+) चातुर्मासिक व्याख्यान, मा.गु., प+ग., मूपू., (प्रणम्य परमानंद), ६३४८३(#) चित्तब्रह्मदत्त सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (चित्त कहे ब्रह्मराय), ६७८५६-३(+$), ६४६०८-२७(-2) चित्रकूट गहिलोत रत्नसेन राजवंशावली, मा.गु., गद्य, वै., (राणा श्रीरतनसिंह), ६४२६०-२(+#) चित्रसंभूति सज्झाय, मु. त्रिकम, मा.गु., ढा. ४, वि. १७३१, पद्य, मूपू., (प्रणमुंसरसति सामणी), ६६३८८-५(#) चित्रसेन चरित्र*, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ६४१५०(+$) चेतन वृतांत, श्राव. भगवतीदास, पुहिं., गा. २९८, वि. १७३६, पद्य, मूपू., (जिनचरण प्रणाम करि), ६८३३६(2) चेलणासती अधिकार, रा., ढा. ४, वि. १८३९, पद्य, श्वे., (राजग्रहीनो अधिपती), ६४६०२-४३(-) चेलणासती चौढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा. ४, गा. ३७, वि. १८३३, पद्य, स्था., (अवसर जो नर अटकलो ते),
६३९५७-२१(+), ६८३१०-१(+#) । चेलणासती चौपाई, मु. दयाचंदजी ऋषि, मा.गु., ढा. १३, पद्य, श्वे., (चोवीसमा महावीरजी), ६८०६३ चेलणासती सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (चेडाभूपतिनी साते धूय), ६८३९७-६ चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वीरे वखाणी राणी), ६७८३९-८, ६८१६३-३३,
६८४१२-२१(#) चैत्यवंदनचौवीसी, मु. रूपविजय, मा.गु., चैत्यव. २५, गा. ७५, पद्य, मूपू., (प्रथम नमुं श्रीआदि), ६७९०२-१ चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, म्पू., (प्रथम प्रतिमा ४ माडी), ६८३४७-१(#$) चैत्रीपूर्णिमापर्व व्याख्यान, रा., गद्य, मूपू., (तीर्थराजं नमस्कृत्य), ६८१३५-११(+) चैत्रीपूर्णिमापर्व व्याख्यान, मा.गु., गद्य, मूपू., (सा चैत्री पूर्णिमा), ६८२१४-१४(+$) चोघडीया चक्र, मा.गु., गद्य, (उद्वेगवेला चलवेला), ६८१९९-४(+) । चोथमलजी स्तुति, मु. हीरालाल, पुहि., गा. ४, पद्य, स्था., (पूज्य श्रीचौथमलजी), ६३४९१-११(+) चोबोल प्रबंध, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सभापुरि विक्रमराय), ६७०१४(+#) चौमासी देववंदन सविधि, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ४२५, पद्य, मूपू., (प्रथम ईरियावहि पछे), ६८३७६(+) चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, मूपू., (विमलकेवलज्ञान कमला), ६८४२४(+$), ६८११२, ६८११८, ६८३८३,
६८३७४(#$), ६८३९०(s), ६८४४१(६) छकाय सज्झाय, रा., गा. २२, पद्य, श्वे., (हुवाने होसे आज छे जी), ६८३१०-४२(+#) छट्ठतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीनेमि जिणेसर लैं), ६५२१३-६(+#) छमासीतपचिंतवन विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (रे जीव महावीर भगवंत), ६८२३४-१६(+#) जंबू चरित्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (राजगृही नामे नगरी), ६८००३(-) जंबूद्वीप विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जंबुद्वीप लांबो पहुल), ६४०२०-२(+) जंबूपृच्छा, मु. वीरजी, मा.गु., ढा. १३, वि. १७२८, पद्य, मूपू., (सकल पदारथ सर्वदा), ६८३००(६) जंबूवती चौपाई, मु. सूरसागर, मा.गु., ढा. १३, पद्य, मूपू., (पहिली ढाल सोहामणी), ६३४८९(+#), ६७८२७, ६८३६१-१(६) जंबूस्वामी ५ भव सज्झाय, मु. राम, मा.गु., गा. ३३, पद्य, मूपू., (सारद प्रणमु हो के), ६४१७२-१ जंबूस्वामी गहुंली, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (शासननायक वीरजी गणधर), ६५२१९-२(+$)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६
जंबूस्वामी गहुली, पं. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सोल वरसें संयम लिओ), ६८१६३-१७ जंबूस्वामी गीत, मु. जयतसी, मा.गु., गा. ८, पद्य, स्था., (राजगिरी नगरीकु जाण), ६३४३२-२(+), ६४१७१-२(+) जंबूस्वामी चरित्र, श्राव. आणंद जेठमल, मा.गु., ढा. ३५, वि. १९२०, पद्य, मूपू., (शासनपति वर्धमाननो), ६७९९० (+) जंबूस्वामी चरित्र, मु. पद्मचंद्र, मा.गु., डा. ५८, गा. १५०० ग्रं. १५११, वि. १७१४, पद्य, मूपू., (शारद पाय प्रणमु), ६३५९४(+) जंबूस्वामी रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ढा. ३५, गा. ६०८, ग्रं. १०३५, वि. १७३८, पद्य, मूपू., (प्रणमी पासजिणंदना),
६४०१८(+$), ६४२३४ ($)
י:
जंबूस्वामी रास, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., गा. १८५, वि. १५२२, पद्य, मूपु (गोयम गणहर पर नमी), ६३४२९(३) जंबूस्वामी रास, मु. राजपाल, मा.गु., गा. ५२५, वि. १६२२, पद्य, मूपू., (सकल जिनवर सकल जिनवर ), ६३६१०(+) जंबूस्वामी लावणी, मु. चोथमल ऋषि, रा. गा. ३१, वि. १८५८, पद्य, ओ., (सेठ रिषभवत पिता जंबु), ६४१६६-१०
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जंबूस्वामी सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., ( श्रेणीक नरवर राजीयों), ६५२८८-२
जंबूस्वामी सज्झाय, मु. गंग, मा.गु., ढा. ४, गा. ४७, वि. १७६५, पद्य, श्वे., (श्रीगुरु पदपंकज नमी), ६८३१०-४९(+#), ६५२८४-२
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जंबूस्वामी सज्झाय, मु. बुधमल, मा.गु., गा. १२, पद्य, स्था., (जंबुकुंवर वैरागीया), ६४१७२-९
जंबूस्वामी सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (राजग्रही नगरी वसे), ६८२५६-६२ (+), ६३९८३-२
,
जंबूस्वामी सज्झाव, मु. हर्षमुनि, मा.गु. गा. ११, पद्य, मूपू., ( आवे ते रमणी आवे अति), ६३४५५-२(+) जंबूस्वामी सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. ७, पद्य, स्था., ( आलीजा म्हारी विनंती), ६३४९१-३३(+) जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (धन धन धन जंबूकुंवरजी), ६८३०३-३ जंबूस्वामी सज्झाब, मा.गु., गा. १६, पद्य, भूपू (श्रेणिक नरवर राजिओ), ६३४२२-१(+), ६८३०२-३(४) जन्मकल्याणकादि दिन तिथि संख्या, मा.गु., गद्य, वे., (चवण जम्मणर चउथ सवि), ६८२५६-१८२ (+) जयराजसूरि भास, क. केसरचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू. (कांमत कामगवीय सुगुर), ६८४१२-२७(१) जयसेन चौपाई रात्रिभोजन विषये वा धर्मसमुद्र, मा.गु. गा. २५५, पद्य, मूपू (प्रणमीस गोवम गणहरराय), ६४१९८३)
जल गालन विधि, रा., गा. ३०, पद्य, श्वे. (प्रथम वंदि जिनदेव), ६७९४२-२ (-)
जिणरस, मु. वेणीराम, मा.गु.. गा. १९५, वि. १७९९, पद्य, भूपू (गणपद सारद पाय नमी), ६३३९२(+), ६७९२५ (०)
जिनकुशलसूरि गीत आ जिनचंद्रसूरि, मा.गु गा. ९, वि. १८३३, पद्य, मूपू (पूजो रे पूजौ पूजी), ६८२८९-४
"
"
जिनकुशलसूरि पद, मु. लालचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू.. (कुशल गुरु देखता), ६५२१४-४
जिनकुशलसूरि पद, पुहिं, गा. ४, पद्य, मूपू., (कैसे कैसे अवसरमें), ६७९७१-८(४०), ६५२१४-२ ६८४१२-२६(१) जिनकुशलसूरि पद, रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (हु तो मोही रह्योजी), ६५२१४-३
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जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. प्रशमशील, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू (राज श्रीजिनकुशलसूरीश), ६८२८९-३ जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. राजसागर कवि, मा.गु., गा. ९, पद्य, भूपू (अरे लाला श्रीजिनकुशल), ६७८२०-२ जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. विजयसिंह, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (समरुं माता सरसती), ६४२००-६(+) जिनचंद्रसूरि पद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु.. गा. ६, पद्य, भूपू (सगुरु जिणचंद सोभाग), ६५१९२-८ (+४) जिनचंद्रसूरि भास, मु. शिवचंद्र मा.गु. गा. १३, पद्य, मूपू., (भविजन बंदी हो गिरवा), ६८००४-२० (+) जिनचंद्रसूरि भास, मु. शिवचंद्र मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू (हांरे औठो एम कहै), ६८००४-१९(+)
,
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जिनचंद्रसूरि भास- गच्छनायक, मु. जयकीर्ति, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., ( वांकानेर समोसर्या रे), ६८००४-१८(+)
जिनदत्तसूरि पद, मु. जिनचंद, मा.गु गा. ११, पद्य, मृपू.. (दादा चिरंजीवो सेवक), ६८००४-४५ (+)
"
जिनदत्तसूरि स्तवन, मु. लाभउदय, मा.गु., गा. ११, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सदगुरुजी तुम्हे), ६७८२०-१, ६३९९८-११(#$)
जिनदर्शन पद, मु. हीरालाल, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (दरसण करस्या जी माराज), ६३४९१-४(+)
जिनदास श्रावक कथा, मा.गु, गद्य, मूपु (नउकारनइ प्रभावि), ६७९१६-३
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जिनधर्म सज्झाय, मु. कनककुशल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू. (श्रीजिनधर्मतणाफल जोउ), ६३३७८-८
जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., ढा. ४, गा. ७३, पद्य, स्था., (अनंतचौवीसी आगे हुइ), ६३९५७-२(+) जिनपालजिनरक्षित चौडालियो, रा. डा. ४, गा. ६८, पद्य, मूपू (अनंत चोवीसी आगे हुई), ६३९५२-१ (+), ६३५४२
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
जिनपालजिनरक्षित चौडालियो, मा.गु., डा. ४, पद्य, वे (पाप अठार जिन कह्या), ६८२३३-१(+) जिनपालजिनरक्षित सज्झाय, मा.गु., ढा. ४, गा. ६६, पद्य, मूपू., (अनंत सिद्ध आगे हुआ व), ६४६०२-३६(-) जिनपूजाविधि छंद, मु. प्रीतिविमल, मा.गु.. गा. १३, पद्य, भूपू (सुविधिनाथनी पूजा), ६५३०८-२५ (+) जिनप्रतिमापूजा चर्चा, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., प्रश्न. १३, गद्य, मूपू., (ॐ नमो अरिहंताणं), ६४४५३(+) जिनप्रतिमापूजासिद्धि विचार, मा.गु., गद्य, म्पू, (पुष्पादि किसी रीतिइ), ६३५७५ (+४)
जिनप्रतिमा स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीजिनप्रतिमा हो), ६८२५६-१२५ (+) जिनप्रतिमास्थापना सज्झाच, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १५, पद्य, म्पू. (जिन जिन प्रतिमा वंदन ), ६४४८०-४,
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६८१०७-२
जिनबल विचार, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे. (सुणो वीर्य बोलु), ६७९७८-१०
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जिनबलविचार गाथा, मु. जयमल, मा.गु. गा. १, पद्म, थे., (नर बारा बल ब्रषभ), ६५२३७-३(१)
जिनबिंबपूजा स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मृपू. (भविका श्रीजिनबिंब), ६५९६०-६(+), ६८२५६-२१(+),
६८२५६-३३(+), ६७७६४
जिनबिंबस्थापना स्तवन, मा.गु., वि. १७९४, पद्य, मूपू., (हां मोरा लाल मलका सम), ६७०१६ ४(+8) जिनभक्तिपद लावणी, मु. जिनदास, मा.गु. गा. ७, पद्य, म्पू, (वारि जिनचरण उपरंग), ६८३१०-५० (+)
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जिनभवन ८४ आशातनापरिहार स्तवन, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर प्रणमइ), ६५३०८-१८(+) जिनमहिमा साखी, मु. जगराम, पुहिं. गा. ३, पद्य, भूपू (भगतिवछल विरद सही जिन), ६५१९३- ३(+) जिनमाता १६ स्वप्न विचार, रा., गद्य, वे. (अथ जिनवर भगवान को), ६५२३७-२(१)
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जिनवंदनविधि स्तवन, मु. कीर्त्तिविमल, मा.गु. गा. ११, पद्य, मूपू., (जिन चडवी करु), ६७०३६-३४(+) जिनवाणी पद, मु. आनंदविजय, मा.गु.. गा. ४, पद्य, म्पू., (वानीचे मन मोह्यो रे), ६७९८०-७
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जिनवाणी पद, पुहिं., पद. ५, गद्य, मूपू., (सुने सवई इंद्र इंद्), ६८०५४-७ जिनवाणी स्तुति, मु. शिवचंद्र, मा.गु गा. ८, पद्य, भूपू., (हां रे मईया आरअंग), ६८०३६-३
जिनाज्ञा सज्झाय, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (जिनआणा सिर वहीयै), ६८००४-४१(+)
जीव आयुष्यविचार सज्झाय, मु. भावसागर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू.. (गुरुचरणकमल प्रणमीने), ६३५२७-८(+)
जीवदया चौपाई, मु. दयाकुशल, मा.गु., ढा. ५, गा. ११५, वि. १७४०, पद्य, मूपू., (चिदानंद चित्तमै धरी), ६८००४-५२(+)
जीवदया सज्झाय, श्राव. मोतीचंद, मा.गु., गा. १०४, पद्य, मूपू., (कृष्णजीए दया पलावी), ६८२१६ (+#)
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जीवदया सज्झाय- विविधमत सम्मत, मु. चौथमलजी, पुहिं., गा. ५, वि. १९६०, पद्य, स्था., (दयाकू पालत है), ६३४९१-४०(+) जीवराशि क्षमापना रास, आ. अजितदेवसूरि, मा.गु. गा. १५०, वि. १५९७, पद्य, मूपू (चरणकमल श्रीवीरना), ६३५०२ (+) जीवहिंसाफल पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ३, पद्य, दि., (चेतन मानी ले सारी), ६३६२५-३१(+) जीवोत्पत्तिकारण सज्झाय, मा.गु., गा. ३१, पद्य, म्पू, (उत्पति जोइनइ आपणी), ६४१५५-५३(१) जुगपचीसी, मु. खोडीदास, मा.गु., गा. २५, वि. १९१६, पद्य, मूपू., (छेल छबीला रे सुणजो), ६५२९०-२
जुठातपसी सज्झाय, श्राव. वसतो शाह, मा.गु., गा. ९०, वि. १८३६, पद्य, स्था., (प्रथम समरुं वितराग), ६८२०२-१
जैनकाव्य संग्रह, मा.गु., पद्य, वे., (--), ६७९८०-२ ($)
जनलक्षण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं. गा. १०, वि. १८वी, पद्य, मूपू.. (जैन कहो क्युं होवे), ६७९१९-२४(१)
जैनशतक, मु. भूधरमल, पुहिं. गा. १०७, वि. १७८१, पद्य, वे., (ग्वान जिहाजि बैठि), ६५३०७
जैनाचार पद्धति, पुहिं., अंक. २५, गद्य, मूपू., (जिससे पाप आवे उसे), ६८०८२(+) ज्ञान गरबो, मु. भूधर, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे. (आदिशकति आस्युं नोरते), ६३३७४-९(+) ज्ञानपंचमी आराधना विधि, मा.गु., पद्य, मूपू., ( तिहां प्रथम पवित्र), ६८१३१-११(+) ज्ञानपंचमीतपडद्यापन विधि, मा.गु., गद्य, मूपू (बिंब ५ पुस्तक ५ झलमल), ६८२३७-४८(+)
ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु, पूजा ५ पच, भूपू (श्रीसौभाग्यपंचमी) ६८४११००६) ६८१९०-१,
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६८०७३(१६) ६८११९ (६)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६ ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. २५, पद्य, मूपू., (प्रणमुं श्रीगुरु पाय),
६३३७४-११(+), ६४१५१-३३(+), ६७९१३-१२(+#), ६८०२६-१५(+-), ६८२३७-३३(+#), ६८२५६-१२(+), ६३४१०-४,
६५२२२-३ ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., ढा. ५, गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीवासुपूज्य जिणेसर), ६८३८०-१२(-) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ४९, पद्य, मूपू., (प्रणमी पास जिणेसर), ६८४४८-१(+), ६७७३८-२ ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ६८, वि. १७९३, पद्य, मूपू., (सुत सिद्धारथ भूपनो), ६३९८६, ६८२२७ ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पंचमीतप तुमे करो रे), ६५२१७-१(+#$),
६८२३७-३२(+#), ६८२५६-१३(+), ६५२२२-४, ६७९०२-२ ज्ञानपच्चीशी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २५, वि. १८३५, पद्य, स्था., (आदि अनादिनो जीवडो), ६८३१०-४(+#), ६८१६३-३६ ज्ञानपच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. २५, वि. १७वी, पद्य, दि., (सुरनर तिर्यग जग जोनि), ६५२३२-१(+#) ज्ञान सुखडी, मु. सभयचंद, मा.गु., वि. १७६७, प+ग., मूपू., (--), ६७७२७-१(६) ज्योतिषसार, पंन्या. हीरकलश, मा.गु., त. २, गा. ९१६, वि. १६२७, पद्य, मूपू., (सहगुरु सांनिधि सरस्व), ६३६५०(+$) ज्योतिषी विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (चंद्रमानौ आउखो), ६५२०४-६३(+) झवेरलालगुण स्तुति, मु. हीरालाल, पुहि., गा. ८, पद्य, स्था., (संत जगत में केहना), ६३४९१-२१(+) झाझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., ढा. ४, गा. ४३, वि. १७५६, पद्य, मूपू., (सरसति चरणे शीश नमावी), ६७७२५(+#),
६८००४-१३(+), ६८४४८-२(+), ६८०५९-१,६८०६६,६८१६३-१(६) झाझरियामुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ३८, पद्य, मूपू., (महियलिमाहि मुनिवरु), ६५२६८-६(#) डुंगरदेवी स्तवन, पुहि., गा. २१, पद्य, वै., (आदिस गति अघटा० जुगाद), ६७०५५-२१(-#) ढंढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (ढंढणऋषिने वंदणा), ६७७३५-३(+#), ६७८५६-१(+$), ६७९४०-१२ ढंढणऋषि सज्झाय, रा., ढा. ३, पद्य, मूपू., (तिण कालेने तिण समें), ६४६०२-३७-) ढाईद्वीप विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (खंडा ८ हजार ५५०), ६३५१४-३($) ढुंढकमत पट्टावली वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (गुजरात देशना अमदावाद), ६७८९३-२ ढुंढकमत प्रश्नोत्तर संग्रह, पुहि.,मा.गु., गद्य, मूपू., स्था., (ओर तुम टीका का भाष्य), ६७८९३-५ ढुंढिया नवबोल चर्चा, मु. दीपविजय, रा., वि. १८७६, गद्य, मूपू., (श्रीमंत्तपागछिय भेद), ६७८९३-३ ढुंढियामत प्रश्नोत्तर संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (लुका इम कहे छे जे), ६८११४ ढुंढिया मत सवैया, मु.खेतसी ऋषि, पुहि., गा. १, पद्य, श्वे., (जोगी मैन जती मैन), ६७८९३-४ ढोलामारु चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. ७००, वि. १६७७, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर सामिनी), ६४२५२(+#$), ६३५९९(१) तत्त्वसार, मु. आस, मा.गु., गा. ५५, पद्य, श्वे., (सारदा सुप्रसनहुव सुज), ६७०५५-१३(-#) तपविधि संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (नांदल मांडीजे), ६४४३८-११(+) तपावली, मा.गु., गद्य, मूपू., (पुरिमढ१ एकासणां२), ६८०२१-१० तस्करपच्चीशी सज्झाय, मु. खोडीदास, मा.गु., गा. २५, वि. १९१६, पद्य, स्था., (चोरी चित्तना धरो नर), ६५२९०-१ तिथिप्रमुख तपविधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (शुभ दिन राई प्रायच्छ), ६८१३१-१५(+), ६८०२१-८ तीर्थंकर चक्रवर्ती ऋद्धि वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (तित्थयरा गणहारी चक्क), ६४२२८-१(+) तीर्यंचगति आगत जीव ६ लक्षण, मा.गु., गद्य, मूपू., (लोभघणो १ विसेष लालच), ६५२०४-६६(+) तृतीयातिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू., (श्रेयांस जिणेसर शिव), ६५२१३-३(+#) तृतीयातिथि स्तुति, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (संभव सुखदाता जेह), ६४४५९-४(+) तृष्णा सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (क्रोध मान मद मच्छर), ६३३९०-१८(+) तेरापंथ साधु अवगुण वर्णन, रा., ढा. १, गा. १५, पद्य, श्वे., (भेखधारी भर्म घालदे), ६४६०२-१६(-) त्रयोदशीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पढम जिनेसर शिवपद), ६५२१३-१३(+#) त्रिशलामाता १४ स्वप्न स्तवन, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (राए सिद्धारथ घर पट), ६७८५२-४(-)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २
त्रेसठशलाकापुरुष नाम गाम लक्षण वर्ण मातापितादि चरित्र अंतराल, मा.गु., गा. ६०, पद्य, श्वे., (--), ६७७५७($) त्रैलोक्यसुंदरी रास, मु. सबलदास ऋषि, मा.गु., डा. १२, वि. १८५२, पद्य, खे, (विहरमान वीसे नमुं), ६८०८९ (+), ६८०८६ धावच्चाकुमार गीत, मा.गु, पद्य, मृपू., (नवरी इरकानाथ अपूरब), ६४१५५-४४)
"
धुलिभद्र सज्झाब, मु. मेरुविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू. (अकल अरूपी आतमा अविना), ६६३८८-४(४
יי
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दंडक २६ बोल विचार यंत्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (शरीर३ वैक्रिय१ तैजस२), ६३४३५ (+#)
दंडक ३० बोल विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ६३३७६ (+)
दंतनष्ट असज्झाय विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (दांत गाममाहि जउ रहड़), ६४०३५-३(+)
दमयंती चौपाई, उपा. अभयसोम, मा.गु., ढा. १३, गा. १९१, वि. १७११, पद्य, मूपू., ( पास जिणेसर परगडो), ६५३१८(+)
दयापच्चीसी, मु. विवेकचंद, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सयल तीर्थंकर करु रे), ६५३०८-२३(+)
दशमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि मा.गु. गा. ४, पद्य, म्पू., (अर नेमि जिणंदा टाळीय), ६५२१३-१०(+) दशार्णभद्रराजर्षि कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (दशार्ण नामा देशने), ६३५२८-२(१)
दशार्णभद्रराजर्षि चौपाई, मु. कुशल, मा.गु., डा. ४, वि. १७८६, पद्य, मूपू (सारदमात मनरली समरु), ६५२०१-१(+), ६४१८८-१,
६८०९१-३(३)
दशार्णभद्रराजर्षि सज्झाय, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., ढा. ६, वि. १७५७, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर वंदिने), ६५२३६-२३(+$),
६३५३५
दशार्णभद्र सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सारद बुधदाइ सेवक), ६३३७८-४, ६७९४०-६, ६४१५५-४५(#$),
६७८३७-१ (३)
दसविध चित्तसमाधि वर्णन, मु. अमी ऋषि, पुहिं., गा. १२, पद्य, श्वे., (सांभलजो भवि प्राणी), ६४६०७-२८(+) दादाजी स्तवन-नागोरीगच्छ, मु. परमानंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (देव सकल सेहरो हो), ६८२३७-१८(+#) दादाजी स्तवन- नागोरीगच्छ, मु. परमानंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (दौलत दो दादा सदगुरु), ६८२३७-१९००) दानशीलतपभावना प्रभाति, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (रे जीव जिन धरम कीजीय),
६४१९६-३(+), ६५२२५-६(०), ६८२५६-११७/* ६५२४०-११, ६७६९२-६, ६३९९८-३(१)
दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ४, गा. १०१, ग्रं. १३५, वि. १६६२, पद्य, मूपू., (प्रथम जिनेसर पाय),
६४१६५(+#), ६४४५९-६(+), ६५२१८ (+#), ६५३०८-१ (+), ६५९६०-५ (+), ६७८७३-१(+), ६७९३१ (+), ६७९४८-२ (+), ६८२५६-१३२(*), ६८२६७-२(*), ६३६३०, ६३९९९, ६८३७५ ६३५५९(०), ६७९३९-३(४) ६८४१२-१४(१) ६५१८५-१(३),
६७८२१-२(३), ६७९४६-१(७)
दानशीलतपभावना सज्झाय, मु. जयैतादास, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (दान एक मन देह जीवडे), ६७९४६-१६(-$)
दानशीलतपभावना सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे. (आज काल में कुच होने ), ६४९६६-८ दानशीलतपभावना सज्झाय, रा. गा. ७, पद्य, मूपू (चेतनजी थे वारणा मति), ६८०९८-१३ दान सज्झाय, मु. जिनराय, रा. गा. १६, पद्य, भूपू (शंखराजाने यशोमति), ६८३१०-२६ (००)
"
"1
दान सज्झाय, मु. दीप्तिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू (प्रणमी श्रीगोयम गणधा), ६७९८३-१०६)
दीपावलीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वीरजिनवर वीरजिनवर), ६५३१७ दीपावलीपर्व व्याख्यान, रा., गद्य, मूपू., (पणमिय वीरं वुच्छ), ६८१३५-३(+)
दीपावलीपर्व स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., ( प्रभु विण वाणी कोण), ६३४६४-८९(#) दीपावली पर्व स्तुति, मु. चंद्रविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सिद्धारथ ताता जग), ६८१२३-२३
दीपावलीपर्व स्तुति, मु. भालतिलक, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., ( जय जय कर मंगलदीपक), ६७८६६-८
दीपावलीपर्व स्तुति, मु. रत्नविमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सासननायक श्रीमहावीर), ६७८६६-१४ दीपावलीपर्व स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (जय मानव सेवित), ६७८६६-९
दीवा सज्झाय, मु. मूलचंद ऋषि, मा.गु., ढा. २, गा. १७, वि. १८८५, पद्य, स्था., (दश धारो दीवो कह्नो), ६८३१०-४०(+#) दूहा संग्रह, पुहिं. मा.गु., पद्य, जै.? (गांमंतरुं घर गोरडी), ६५२०१-४(+)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६
दृष्टिरागनिवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ११, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (दृष्टि राग विरागीइ), ६५३१३-३(+) देवकीपुत्र ढाल, मा.गु, पद्य, वे., (-), ६५२८३(०३)
देवकी सज्झाय, मु. लावण्यकीर्ति, मा.गु. हा १०, पद्य, मूपू (रथनेमि नामे हुवा), ६३९५२-२(+४)
देव गति आगत जीव ५ लक्षण, मा.गु., गद्य, मूपू (दातार १ मधुरवाणी २) ६५२०४-६८(+)
देवदत्ता पंचढालियो, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., ढा. ५, वि. १८२५, पद्य, श्वे., ( नमु अरिहंत सिध आचार), ६७२०१-१(+-#) देवनारक के ५ बोल १६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलो नारकीनो द्वार), ६८४२० (+#), ६८१४०, ६८४१७(-) देवराजवच्छराज चौपाई, मा.गु., पद्य, मूपू., (परमोदय कारण पवार), ६३४७५ (+)
देवलोक विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहलो सोधर्म देवलोकेइ), ६५२०४-४५(+$), ६५२०४-५५(+) देवसीराइय प्रतिक्रमणादि विचार, मा.गु., गद्य, मूपू (पंच विहावारविसुद्धि), ६३४४१-५ (०३)
13
देवानंदामाता सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहिं. गा. १२, पद्य, मूपू., (जिनवर रूप देखी मन), ६७९०२-३
"
हां उपमा, मा.गु., गद्य, मूपू., (निलाड चंद्र नासिका), ६५२०४-४९(+)
दोहा संग्रह, पुहिं., पद्य, (ओस ओस सबको कहें मरम), ६३६१६-२७
दोहा संग्रह, मा.गु, गा. ५, पद्य, श्वे. (दसे बालो वीसे भोलो), ६४१३५-२+०)
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दोहा संग्रह, मा.गु, पद्य, (सजन तोरा गुण घणा), ६४२००-३(०७), ६३६२१-४१०१, ६७९८३-२(४६)
दोहा संग्रह - गूढार्थ गर्भित, मा.गु., गा. ६७, पद्य, खे, (पृथवी मंडण तास पति), ६४१४५-४(+), ६५२४७-१६(१), ६५१९७-३(5) दोहा संग्रह जैनधार्मिक, पुहिं, मा.गु गा. १, पद्य, भूपू., (अष्टापद श्रीआदजिनवर ), ६५९३४-४
द्रव्यप्रकाश, ग. देवचंद्र, पुहिं. द्वा. २ गा. २६८, वि. १८वी, पद्य, मूपू (अज अनादि अक्षयगुणी), ६३४७० (+#६)
द्रौपदीसती चौपाई, वा. कनककीर्ति, मा.गु., ढा. ३९, गा. १११७, वि. १६९३, पद्य, मूपू., (पुरिसादाणी पासजिण), ६७८५७(+#),
६७९८९(२६)
द्रौपदीसती चौपाई, आ. हीरविजयसूरि, मा.गु. दा. १४, गा. २१८, पद्य, मृपू (सील वडो संसारमै मध्य), ६३९९६
द्रौपदीसती रास, मु, सोभ, मा.गु., ढा. २७, पद्य, मूपू., (कृष्णनरेसर आदलेहे सह), ६७८९६
"
द्वादशव्रत टिप्पणक, मा.गु., गद्य, म्पू., (प्रणम्य श्रीमहावीर), ६८१२८(३)
धनरथराजाचित्रहारीरानी प्रतिबोधक कथा, मा.गु., गद्य, श्वे. (--), ६८४४२ (#S)
"
धन्ना अणगार सज्झाय, आ. कल्याणसूरि, मा.गु., डा. २ गा. १५, पद्य, मूपू. (काकंदीवासी सकज भद्रा), ६७८१८-७(+),
',
६८४५१-१७
धन्ना अणगार सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (वे कर जोडि नइ बिनबु), ६७०४९-२(+)
धन्ना अणगार सज्झाय, मु. कुशल, मा.गु, गा. १२, पद्य, भूपू (सुणवाणी वैरागीयोजी ए), ६३६२१-१ (०३) धन्नाअणगार सज्झाय, मु. ठाकुरसी, मा.गु., गा. २२, पद्य, श्वे., (जिनवाणी रे धना अमीय), ६४१५५-४१(#) धन्नाअणगार सज्झाय, मु. श्रीदेव, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (जिनवचने वयरागी हो), ६५२४७-५ (+#), ६६३८८-१(#),
६७०५५-२६(45)
धन्नाऋषि सज्झाय-काकंदी, मा.गु., गा. २०, पद्य, वे., (श्रीजिनवाणी रे धन्ना), ६५२८८-३
धन्नाकाकंदी चौढालिया, मु. पुण्यसागर, मा.गु. गा. ५३, पद्य, भूपू., (प्रथम समरु श्रुति), ६८०५९-४
,
धन्नाकाकंदी सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवाणी रे धना), ६५१८५-३, ६७९४६-१२(७) धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. १२, वि. १९३२, पद्य, स्था., (काकंदी नगरीसुं नीसर), ६३४९१-३०(+) नाकाकंदी सज्झाय, मा.गु. गा. १६, पद्य, श्वे. (सतगुरु वचन विचार कर), ६५३१५-२ धन्नामुनि सज्झाय, पं. कुशल वाचक, मा.गु., डा. ८. वि. १८२२, पद्य, मूपु (आदि नमूं श्री आदिजिन), ६८००४-५३(१) अन्ना रास, वा मतिशेखर, मा.गु., गा. ३३०, वि. १५१४, पद्य, मूपू. (पहिलउं पणमी पवकमल), ६८४३९ (5)
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धन्नाशालिभद्र सज्झाय, उपा. उदय वाचक, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अजिया मुनि० वेभारगिर), ६३६३३-११(+#) धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. जसविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (अजीया करम जोरावर), ६८२४९-१६ धन्नाशालिभद्र सज्झाव, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. ८, पद्य, स्था (अहो माहरा प्राण का), ६३४९१-३४(+)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ धर्मजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (धरमजिनेश्वर गाउं रंग), ६४६०८-११(-१) धर्मजिन स्तवन, मु. आनंदविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धरमेशरजी तुज दरशन), ६८२१४-२(+) धर्मजिन स्तवन, मु. केसर, पुहिं., गा. ७, वि. १८४२, पद्य, मूपू., (धर्मजिनेस्वर साहिवा), ६८२३७-६(+#) धर्मजिन स्तवन, पंडित. खीमाविजय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (इक सुणलौ नाथ अरज), ६८०२६-२(+-), ६८२४९-८ धर्मजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धर्मजिणेसर धर्मधुर), ६३४६४-१५४(#) धर्मजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (हां रे मारे धरमजिणंद), ६३३९७-७(+) धर्मजिन स्तवन, आ. राजेंद्रसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धरम धरम जग ढूंढे), ६७०७५-२५ धर्मजिन स्तवन-वृद्ध, वा. गुणवर्द्धन, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (प्रणमु प्रभुरे), ६७९१३-१३(+#) धर्मजिन होरी, मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., पद. ८, पद्य, मूपू., (मधुवन मै धूम मची होर), ६३९५७-२८(+) धर्मतत्त्वभास्कर, श्राव. नारण हीराचंद अमदावादकर, पुहि., अ. २०, गद्य, श्वे., (--), ६५२४९-११(+#) धर्मदत्तधनवती चौपाई, मु. कुशलहर्ष, मा.गु., खं. २ ढाल ३२, वि. १७८८, पद्य, श्वे., (प्रथम नमूचोवीस जिन), ६४२२५ (+$) धर्मदत्त रास, आ. दयासागरसूरि, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ६४०१०(+$), ६४११८(+$), ६४१८४(+$) धर्मरुचिअणगार लावणी, मु. अमी ऋषि, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (तपसी गुणधारी पूरन), ६४६०७-३६(+) धर्मरुचिअणगार सज्झाय, मु. रतनचंद ऋषि, रा., गा. १५, वि. १८६५, पद्य, स्था., (चंपानगरनी रुप सुंदर), ६४१७२-३ धर्मरुप जहाज, मा.गु., गद्य, मूपू., (जमरूपी जिहाज व्रतरुप), ६५२०४-६९(+) धर्मविमुख जीव ५ भेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (अहंकारीजीव १ अपणपो), ६५२०४-१४(+) धर्माभिमुख जीव८ भेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (हासो न करै १), ६५२०४-१५(+) ध्यानद्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम चार प्रकारना), ६८२५१(+) ध्वजभुजंगकुमार चौपाई, मु. लब्धिसागर, मा.गु., गा. २७३, वि. १७७७, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ पूरिवा), ६७०२२ नंदनमणियार चौढालियो, रा., ढा. ४, वि. १८३४, पद्य, श्वे., (ग्यातारा तेरमां अधेन), ६४६०२-४०(-) नंदमणियार सज्झाय, ग. चारुचंद्र, मा.गु., गा. ३८, वि. १५८७, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर चरण नमेवी), ६७९१३-९(+#$) नंदिषेणमुनि चौढालिया, मु. पूर्णमुनि, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (सारद पाय प्रणमी करी), ६७८१७(5) नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. १६, पद्य, मूपू., (राजगृही नयरीनो वासी), ६३६३३-६(+#), ६८३५४-३(+) नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (वैरागे संयम लीयो हो), ६८२५६-५०(+) नंदिषणमुनि सज्झाय, मु. श्रुतरंग कवि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मुनीवर महिअल विचरइ), ६७०४९-३(+) नंदीश्वरद्वीप स्तवन, मु. जैनचंद्र, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (नंदीसर बावन जिनालये), ६७०७२-१(+) नक्षत्रमंडल विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (इहाथिकुं प्रथम सात), ६५२०४-१९(+) नमस्कारचौवीसी, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., अ. २४, गा. १४४, वि. १८५६, पद्य, मूपू., (जय जय जिनवर आदिदेव), ६८२३९-१(+) नमस्कार महामंत्र गीत, मु. मानसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (महा मुनि इम जपाइ), ६४१५५-१२(#) नमस्कार महामंत्र चौढालिया, उपा. राजसोम पाठक, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (नवकारवाली मणियडा), ६३४१०-१ नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. १८, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (वंछित० श्रीजिनशासन), ६३३७४-५(+),
६८००४-११(+), ६८४४३-१(#) नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सुखकारण भवियण समरो), ६८३४४-६(+#),
६३९९८-८(#) नमस्कार महामंत्र पद, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, मूपू., (तुम जपो मंत्र नवकार), ६५२२९-५ नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., गा. १३, वि. १२वी, पद्य, म्पू., (किं कप्पतरु रे आयाण), ६६३४६-६(+),
६७६५७-२(+#), ६८२५६-२६(+) । नमस्कार महामंत्रपद लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (तुम जपों मंत्र नोकार), ६४१९६-४(+) नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. आणंदरुचि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीवरकाणइ सोहई पास), ६५३०८-१६(+) नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. आनंदहर्ष, मा.गु., गा. २१, पद्य, पू., (श्रीनवकार महिमा घणो), ६३९८३-५(६)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६
५५१
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नमस्कार महामंत्र सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ढा. ५, गा. ४१, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वारी जाउ अरिहंतनें), ६७०५७-५ नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. दुर्गादास, रा. गा. १४, वि. १८३१, पद्य, वे. (अरिहंत पहले पद जानी), ६५२६१-९(+), ६८३९७-२ नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. प्रभुसुंदर शिष्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुखकारण भवियण समरो), ६७९७१-२ (+४), ६७६९२-५ नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (कहेजो चतुर नर ए कोण), ६३६३३-४(+#),
६७७५५-२
नमस्कार महामंत्र स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १३, पद्य, स्था., (प्रथम श्रीअरिहंतदेवा), ६३१५३-२० (+#$), ६३३९७-१८(+), ६८३५१-६
नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, मु. पद्मराज, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीनवकार जपो मनरंग), ६३३९७-२(+), ६८२५६-१०३(+), ६७९४६-३ ($)
नमिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु. गा. ११. वि. १८वी, पच, म्पू, षट् दरिसण जिनअंग भणी), ६७०७५-३ नमिजिन स्तवन, मु. जीवराज कवि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (चिदानंदकारी भवतापचूर), ६७०३६-१७(+) नमराजर्षि कथा, मा.गु., डा. १०, पद्य, म्पू, (हिवे नमीरावनी वारता), ६४६०२-३८
नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, गा. ८, पद्य, मूपू (जी हो मिथीला नगरीनो), ६६३८८-३(१)
नरकगति आगत जीव ६ लक्षण, मा.गु., गद्य, मूपू., (दीरघ कषाय १ अमेलता २), ६५२०४-६५ (+)
नरक चौढालिया, मु. गुणसागर, मा.गु.. ढा. ४, गा. ३१, पद्य, मूपु. ( आदिजिनंद जुहारीवइ मन), ६४१६३-३ (०३), ६५९६०-२ (*) नरक विचार, मा.गु., गद्य, श्वे. (पहिली नरग एक लाख), ६५२०४-६०(+)
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नरभव सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे. (पुर्व सुकृत पुन करिन), ६५२८८-६
,
नर्मदासुंदरी रास - शीलव्रतविषये, मु. मोहनविजय, मा.गु., ढा. ६३, गा. १४५४, ग्रं. १४६६, वि. १७५४, पद्य, मूपू.,
(प्रभुचरणांबुजरजतणी), ६८२६५ (+$)
नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, खं. ६ ढाल ३९, गा. ९३१. ग्रं. १३५०, वि. १६७३, पद्य, भूपू (सीमंधरस्वामी प्रमुख), ६३३६६ (२), ६३३८३+३), ६३४२७+७), ६७०१२(+), ६७८६८(+), ६८१४७(१६), ६८२६८(+), ६८३१८, ६३३७० (#)
नवकारवाली सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (कहिये चतुर नर ते कुण), ६७९४०-२ नवकारवाली सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (नोकारवाली वंदीइ चिर), ६७९६५-२(#) नवग्रह छंद, क. संकरकवि, मा.गु., ढा. ९, पद्य, जै., वै.?, (काशपकुल शिणगारं दीण), ६७८५०-१
नवतत्त्व ९३ द्वार विचार, मा.गु. गद्य, श्वे. (जीव चेतन १ अजीव), ६८१५४-२
नवतत्त्व २७६ भेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व १४ भेद), ६५२०४-८ (+), ६५२०४-१० (+), ६४१६७ नवतत्त्व चौपाई, मु. जिनदत्त ऋषि, मा.गु., ढा. ८, पद्य, श्वे., (पढम चरण जिन हूं नमुं), ६८०६२ (+)
नवतत्त्व चौपाई, मु. भावसागरसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. ९५१, ग्रं. १३०५, वि. १५७५, पद्य, मूपू., (आदि नमी आणंदहपूर), ६४१३७(+)
नवतत्त्व चौपाई, मु. वरसिंह ऋषि, मा.गु., गा. १३५, वि. १७६६, पद्य, स्था., ( पास जिनेसर प्रणमी), ६४५६४, ६८०२५ नवतत्त्व छुटाबोलनो थोकडो, मा.गु., गद्य, वे., (जीव अरूपीके रूपी अरू), ६८३५९(+#)
नवपद आरती, मु. जयकीर्ति, पुहिं गा १०, पद्य, मृपू., (जै जै आरती नौपदजी की), ६३५२०-२ (+)
नवपद पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु., ढा. ९, पद्य, मूपू., (परम मंत्र प्रणमी), ६५३२५-४(+)
नवपद सज्झाय, मु. महानंद, मा.गु., ढा. १०, वि. १८३९, पद्य, श्वे., (समरूं जिनशासन धणी), ६७९००-१(+#) नवपद स्तवन, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु, गा. ५, पद्य, भूपू (तीरथनायक जिनवरू रे), ६३४०२-३(+)
"
नवपद स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., गा. २३, वि. १७६२, पद्य, मूपू., (सकल कुशल कमलानो), ६४६०८-२(-#) नवपद स्तवन, मा.गु, स्त. ९, पद्य, म्पू., (अरिहंतपद आराधीये आणी), ६७०५८(३)
नवपद स्तवन, मु. मोहनमुनिजी, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नवपद ध्यान सदा जयकार), ६७७१९-८(-)
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५५२
देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ नवपद स्तवन, मु. विनीतसागर, मा.गु., गा.७, वि. १७८८, पद्य, मूपू., (सहु नरनारी मली आवो), ६५२४०-१, ६७९४०-१९,
६७८३८-२(#S) नवपद स्तवन, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जीया चतुर सुजाण नवपद), ६७९४०-२३ नवपद स्तवन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (शासननायक सुखकर रे), ६८१७३-३ नवमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सुव्रत सुविधि सुमति), ६५२१३-९(+#) नववाड सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ११, गा. ९७, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (श्रीनेमीश्वर चरणयुग), ६३१०४-१(+#),
६५९६०-४(+), ६८०४८(+), ६८३४५, ६७८३८-१(#), ६७०५५-१०(-2) नववाड सज्झाय, मु. पद्म, मा.गु., वि. १७९९, पद्य, मूपू., (अनंत चोविसी जिन नमु), ६५१८१-२(+$) नववाड सज्झाय, मु. पुण्यसागर, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (श्रीजिनशासन नंदनवन), ६७९१३-५(+#$) नववाड सज्झाय, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., गा. १५, पद्य, स्था., (सोलमो अधेनउत्ताधेनको), ६४१७२-१५ नागश्री चौपाई, मु. गणेश, मा.गु., गा. २३४, वि. १९४८, पद्य, श्वे., (श्रीजिनचरण प्रणामकर), ६७८९१-१(+) नागिलाभवदेव सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (भवदेव भाई घेर आवीया), ६५२२९-४, ६४१५५-२९(#) नाणावटी सज्झाय, श्राव. साहजी रुपाणी, रा., गा.८, पद्य, श्वे., (हो नाणावटी नाणु), ६८१६३-३७, ६८०७१-२३८) नारकी आयुमान विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (रतनप्रभा जघन्य १००००), ६५२०४-४२(+) नारकीभवनद्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नरक ७ ना भवन सासता), ६८४३३(#) नारकीवेदनाएकवीसी, मु. अमी ऋषि, पुहिं., गा. २१, वि. १९५२, पद्य, श्वे., (श्रीजिनराज प्रकाशियो), ६४६०७-३१(+) नारी सज्झाय, पुहिं., गा. २३, पद्य, मूपू., (मूरख के भावै नहीं), ६३५२७-१(+) निंदा परिहार सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चावत म करो परतणी), ६४१५५-४(#) नित्यकृत्य लोकोत्तरव्यापार वर्णन, मु. अमी ऋषि, पुहि., गा. ८, पद्य, श्वे., (पूर्वे पून्ये प्रगट), ६४६०७-२९(+) नियंठा बोल, मा.गु., गद्य, स्था., (पन्नवणा वेय रागे), ६८१७६-१(+), ६८०२७-१ नियतानियत प्रश्नोत्तर प्रदीपिका, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ६४, पद्य, मूपू., (श्रीजिनशासन जगि आधार), ६४४५४(+) (२) नियतानियत प्रश्नोत्तर प्रदीपिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीजिनशासन जगत्रयनइ), ६४४५४(+) निरंजनपचीसी, मु. खोडीदास, मा.गु., गा. २५, वि. १९१६, पद्य, मूपू., (नमीये नाथ निरंजनदेव), ६५२९६-१(+) नूतन ढालसागर, मु. चोथमल ऋषि, रा., गा. २२४, पद्य, स्था., (श्रीमत् शातिप्रभू), ६८२०९ नेमगोपी संवाद-चौवीसचोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., चोक. २४, वि. १८३९, पद्य, मूपू., (एक दिवस वसै नेमकुंवर), ६४१८७(+#),
६४१९७(+), ६७९४८-३(+), ६८१९८-१, ६७०२५(#), ६४२०४(६), ६५३००-१($) नेमराजिमती ९ भव वर्णन स्तवन, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (कीम आया कीम फिर), ६४१७२-५ नेमराजिमती कवित्त, पुहिं., पद्य, श्वे., (राज्यद मांन कुलमंडन), ६५०९७-५(+#) नेमराजिमती गीत, ग. जीतसागर, पुहिं., गा. १५, पद्य, मूपू., (तोरण आया हे सखी कहे), ६७९३६-३(-$) नेमराजिमती गीत, मु. दीप ऋषि, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (समुद्रवजय शिवादेवी), ६४१५५-१८(#) नेमराजिमती गीत, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. २, पद्य, मूपू., (बालारूप शाला गले माल), ६७९१९-१५(+) नेमराजिमती गीत, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वीनतडि केंहजो रे मोर), ६७९१९-३८(+) नेमराजिमती गीत, आ. रत्नसागरसूरि, रा., गा. ८, पद्य, मूपू., (समुद्रविजय कौ नेम), ६४१५५-४३(2) नेमराजिमती गीत, मु.शांतिहर्ष, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सखीरी बोलइ राजल नारी), ६३६१६-८ नेमराजिमती गीत, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सामलीआ घर आव कि राजु), ६४६०८-४३(-2) नेमराजिमती गीत, मु. सुंदरजी ऋषि, पुहि., गा. १६, पद्य, श्वे., (जादूबंसी नेमजिणेसर), ६७८१८-१(+$), ६७७२९-१(#) नेमराजिमती गीत-१५ तिथिगर्भित, मु. मूलचंद ऋषि, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (श्रीऋषभजिणंद प्रणमी), ६७८६९-१ नेमराजिमती पद, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (बोल बोल रेप्रीतम), ६५२०८-७ नेमराजिमती पद, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (पती मेरो वसीयो वनमे), ६४६०८-१४(-2) नेमराजिमती पद, मु. प्रमाणसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (नव भव केरी प्रीत), ६७९४०-५
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६
राजिमती पद, मु. भानुकीर्ति, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे. ?, (सावरो नेम भावे री), ६५१९३-२३(+#) नेमराजिमती पद, मु. भूदर, पुहिं, गा. ३, पद्य, क्षे., (भगवंत भजन कुं भूला), ६३६२५-१९(+) नेमराजिमती पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (देखत हि चित चोर लीओ), ६७९१९-६(+) नेमराजिमती पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (या गति कोन हे सखि), ६७९१९-५(+) नेमराजिमती पद, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, खे, (रहो रहो सांवलीया), ६४६०५-८(+)
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नेमराजिमती पद, मु. रतन, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (नेम तोरी चाहि मौ पैं), ६५१९३-६(+#) नेमराजिमती पद, मु. रामचंद्र, रा. गा. ४, पद्य, मूपू (जीनजी धारे दरसणरी) ६८०५४-३ नेमराजिमती पद, मु. राम, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (टुक निजर महिर भी), ६५२२०-३ नेमराजिमती पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., ( मेतो जोति फिरु जिन), ६२९९१-३(#) नेमराजिमती पद, मु. बल्लभकुशल, रा. गा. ४, पद्य, मूपू. (जो थे चालो सिवपुरी), ६८२३७-११(+) नेमराजिमती पद, मु, शिवरतन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपु. ( बावीस सुभटने जीपवा), ६४१६४-३ (+) नेमराजिमती पद, मु. हर्षचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (राजुल तेरे बिहा मैं), ६५२०८-२ नेमराजिमती पद, पुहिं. गा. ४, पद्य, म्पू, (आछी लग दिलोदिल भर), ६५२०८५ नेमराजिमती पद, पुहिं., दोहा. ४, पद्य, मूपू., (क्या तारी फकरु मेरा), ६८०७१-३२(-) नेमराजिमती पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (दिलडानी हि मैं केहनै), ६८००४-४८(+) नेमराजिमती पद, मा.गु, गा. १२, पद्य, श्वे. (महाराज चढे गजरथ), ६४१५५-१४मक नेमराजिमती पद, मा.गु., पद्य, मूपू., (राजुल बोले सुन हो सय), ६७९१९-४० (+8) नेमराजिमती पद, पुहिं. गा. ४, पद्य, भूपू (संजम ल्युंगी सार), ६५१९३-११(+) नेमराजिमती फाग, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (डफवारे तेरे संग), ६७०३६-२८(+)
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नेमराजिमती बारमासा, मु, लक्ष्मीचंद, मा.गु., गा. १४, पद्य, भूपू (नेमजीसुं राजुल विनवे), ६७७५८
नेमराजिमती बारमासा, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (हो सांमी क्युं आव्यु), ६५२६१-३ (+), ६५९८४-३(+#) नेमराजिमती बारमासो, आ. कीर्तिसूरि, रा. गा. १४, पद्य, मृपू, (श्रावण मास सुहामणाजी), ६७८६९-२(३)
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नेमराजिमती बारमासो, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (राणी राजुल इण परि), ६३५२७ - ४(+), ६४१५५-२(#)
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नेमराजिमती बारमासो, श्राव. जीवा मयाराम, मा.गु., गा. २६, वि. १८२५, पद्य, खे, (सरसती अंबे माता नमु), ६७८६९-३ नेमराजिमती बारमासो, मु, मान, मा.गु., गा. २७, पद्य, म्पू., (--), ६५०९६.१(+) नेमराजिमती बारमासो, मु. लालविनोद, पुहिं., गा. २६, पद्य, मूपू., (विनवे उग्रसेन की), ६५२४०-२ ($)
राजिमती बारमासो, मु. विनयविजय, मा.गु. गा. २८, वि. १७२८, पद्य, मूपू (मागसर मासे मोहिनीयो) ६७९९१-२६(+४) नेमराजिमती बारमासो, मु. हर्षकीर्ति, पुहिं. गा. २६, पद्य, मृपू. (हो सामी क्युं आये), ६७९३६-२ (-३)
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नेमराजिमती बारमासो, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (गुणानीधे गुणपत लागु), ६४१७२-२४
नेमराजिमती रास, मु. पुण्वरत्न, मा.गु., गा. ७०, पद्य, म्पू., (सारद पय पणमी करी), ६५३२४(+), ६३५७२(७), ६५२०५(१),
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६७०५९-३(#$), ६७९३५-१(#)
नेमराजिमती रेकता, मु. चंद्रविजय, पुहिं. गा. ५, पद्य, मूपु (राजुल पुकारे नेम), ६५२०८-४
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,
मराजिमती लावणी, मु. चतुरकुशल, पुहिं., गा. १०, पद्य, मूपू., (नेमनाथ मेरी अर्ज), ६७९७१-६ (+#), ६८०७१-३१(-)
राजिमती लावणी, मु. जिनदास, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सजन विना गुना तजी हम ), ६७०४२-३ (+) नेमराजिमती लेख, मु. कांतिविजय, मा.गु, गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीजिनपद पंकज नमी), ६७९७८-१२(३) नेमराजिमती श्लोक, मु. कुशलविजय, मा.गु., गा. २०, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (समरु गणपतिनै सारिद), ६५२०१-३(+) नेमराजिमती संवाद, मु. ऋद्धिहर्ष, रा. गा. ३२, पद्य, भूपू., (हठ करी हरीय मनावीर्य), ६३५६१-२(४) नेमराजिमती सज्जाय, मु. सरूप ऋषि, पुहिं., गा. २०, पद्य, श्वे., (सांवरासै लागी मोरी), ६७८३८-३(#)
"
"
"
राजिमती सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. १५, वि. १७७१, पद्य, मूपू., (राणी राजील करजोडी), ६८१९५-२(+) मराजिमती सज्झाय, मु. जसवर्द्धन, मा.गु गा. ११, पद्य, मूपु.. (कविमाता करज्यो मया), ६३९५६-१२ (+)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ नेमराजिमती सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अरज सुणउ सहेलीया रे), ६३६१६-२३ नेमराजिमती सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (काइ रिसाणो हो नेम), ६८२८४-५ नेमराजिमती सज्झाय, मु. नवलराम, पुहिं., गा.८, पद्य, श्वे., (नेमजी की जान ववी), ६४१९६-५(+) नेमराजिमती सज्झाय, मु. मुनिसुंदर, मा.गु., गा. १५, वि. १७९१, पद्य, मूपू., (राणी राजील कर जोडी), ६८३१०-५४(+#) नेमराजिमती सज्झाय, मु. रंगसोम, रा., गा. ११, पद्य, मूपू., (विनवे राजुल नारी हो), ६७०२०-३(#) नेमराजिमती सज्झाय, मु. रामचंद्र, पुहिं., वि. १९०१, पद्य, मूपू., (अलिवात किम करीये), ६८०५४-१३ नेमराजिमती सज्झाय, मु. विजयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मात सिवादेवी जाया रा), ६४१५५-२२(#) नेमराजिमती सज्झाय, मु. विनीतसागर, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (समुद्रविजय रायहस), ६७०८५-३(+$) नेमराजिमती सज्झाय, मु. शिवजी, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (श्रीगुरुचरणे रे नमीय), ६८१६३-२८ नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (उड उड कागलीयाजी राजल), ६८३५१-२ नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (सरसति सामण वीनवु लाग), ६८३०२-४(#) नेमराजिमती सज्झाय-संदेशो, मु. कवियण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पोपटडा संधेसो केजे), ६८१६३-४१ नेमराजिमती स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (स्यानै आवीनै मुझनै), ६७९८३-४(#$) नेमराजिमती स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. २०, वि. १७२२, पद्य, मूपू., (नेमजी हो पेखी पशु), ६८२८४-४ नेमराजिमती स्तवन, मु. कुसालचंद, रा., गा. १५, पद्य, श्वे., (अहो अहो उग्रसेन घर), ६४१७२-१७ नेमराजिमती स्तवन, मु. गोपालसागर, पुहि., गा. ९, पद्य, मूपू., (समुद्रविजय सुत लाडलो), ६७०७३-६ नेमराजिमती स्तवन, मु. जसविजय, पुहिं., गा. ५, पद्य, म्पू., (यादव मेरो मन हर लीयो), ६८२४९-७ नेमराजिमती स्तवन, मु. जिनदास, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (उभा रोहनी मुगतीफाकत), ६४६०८-३९(-#) नेमराजिमती स्तवन, मु. दीप, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सुण सामलीया नेम नगीन), ६८३८०-१९(-) नेमराजिमती स्तवन, मु. देवविजय, मा.गु., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अवल गोखने अजब जरोखे), ६८३८०-९(-) नेमराजिमती स्तवन, क. राजन, रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (रथडो मत वालो मत वालो), ६४६०८-३५(-2) नेमराजिमती स्तवन, मु. रामचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (यादवराय आठ भवांरी), ६८०५४-१७ नेमराजिमती स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (राजुल कहे सुणो नेमजी), ६८१६३-१५ नेमराजिमती स्तवन, मु.रूपचंद, रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (आज भल आयो रे राणी), ६४६०८-३६(-2) नेमराजिमती स्तवन, मु.रूपचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (कुमरी ल्यावो समजाये), ६४६०८-२८(-2) नेमराजिमती स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रीत पुराणी आयलाग), ६८२५६-५९(+) नेमराजिमती स्तवन, पुहिं., गा. २०, पद्य, श्वे., (क्यु आया किम फीर), ६४००२-१३(+) । नेमराजिमती स्तवन-१५ तिथिगर्भित, ग.रंगविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (जे जिनमुखकमले विराजे), ६८३८०-११-) नेमराजिमती स्तवन-लघु, मु. हर्षचंद, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (काइ हठ मांड्यो छे), ६८०७१-११(-) नेमराजीमती बारमासा, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (मीगसरयो भल आवीयो), ६७९६७-५ नेमिजिन ९ भव रास, मु. माल, मा.गु., गा. ३३०, पद्य, मूपू., (नेमिश्वर जिन तणा), ६८४३८ नेमिजिन ख्याल, बालकृष्ण, रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (नेम विन की कहां होजी), ६७७२९-७(#) नेमिजिन गहंली, मु. सौभाग्य, मा.गु., पद. १९, पद्य, मूपू., (गंधारि कहे लाडी विना), ६७७२८-३(#) नेमिजिन गीत, पंन्या. खुशालविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (भविजन भावे रे सेवो), ६७०४४-९(+) नेमिजिन गीत, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (नेमि मोहि लागत प्यार), ६३४६४-१४१(#) नेमिजिन गीत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (साहिबाजी मांसे बोलो), ६३४६४-११०(#) नेमिजिन गीत, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. ९, पद्य, मूपू., (हरी नारी टोले मिली), ६७९१९-३६(+) नेमिजिन चरित्र, मा.गु., गद्य, म्पू., (जंबूद्वीप भरतक्षेत्र), ६८०२०(#) नेमिजिन चरित्र, मा.गु., गा. ५१, पद्य, श्वे., (नगरी सोरिपुर राजीयो), ६४६०२-३९(-)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६ नेमिजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रह सम प्रणमूनेम), ६७०७४-१७(+), ६७०७६-४(+),
६८२१४-१०(+) नेमिजिन चौमासो, मा.गु., पद्य, मपू., (सोभागी नेमजी चतो), ६७७१९-९(-$) नेमिजिन तपकल्याणक, मु. सुनंदलाल, मा.गु., ढा. ९, गा. ४२, वि. १७४४, पद्य, श्वे., (अरि गुरु गणधर देव), ६५२३७-१०(#) नेमिजिन पद, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (आछी गति छवि मोरै मन), ६८२५६-१४९(+) नेमिजिन पद, मु. ईश्वर विजय, मा.गु., का. ४, पद्य, मूपू., (उमगी हो घटा घरघरर), ६५१८७-३ नेमिजिन पद, मु. ऋद्धिहर्ष, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (गढ गिरनार की तलहटी), ६८०२६-१२(+-) नेमिजिन पद, मु. कीर्तिसागर, मा.गु., पद. ५, पद्य, मूपू., (गढ गिरनारे नेम वंदनक), ६२९९१-४(#) नेमिजिन पद, आ. जिनभक्तिसूरि, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (ऐसे नेम कुंवर खेले), ६८०२६-१०(+-) नेमिजिन पद, मु. धर्मपाल, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (गरज गरज घन वरसै देखो), ६३६२५-२१(+) नेमिजिन पद, मु. नवल, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (लागि रही ऐह ढोरी इह), ६५०९७-११(+#) नेमिजिन पद, मु. नवल, पुहिं., पद. ३, पद्य, मूपू., (सांवरी सूरति मेरें), ६३६२५-२३(+) नेमिजिन पद, मु. न्यायसागर, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्यारे नेम मिले तौ), ६४६०८-२१(-2) नेमिजिन पद, मु. भूधर, पुहि., पद. ४, पद्य, श्वे., (देखौ गरब गहेलीरी), ६३६२५-२६(+) नेमिजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. २, पद्य, मूपू., (देखो भाई अजब रूप), ६७९१९-१३(+) नेमिजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. २, पद्य, मूपू., (सयन की नयन की वयन), ६७९१९-४(+) नेमिजिन पद, मु. राजाराम, पुहिं., पद. ४, पद्य, श्वे., (मेरा नेमजी मिलै तो), ६३६१६-२५ नेमिजिन पद, मु. लालचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (जगतपति नेम जिनराया), ६७७१९-११-) नेमिजिन पद, मु. हरख, मा.गु., पद. ३, पद्य, मूपू., (नेम जिणंद गिरनारी), ६७७२९-६(#) नेमिजिन पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीनेम कवर जागे हैं), ६५०९७-१२(+2) नेमिजिन पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, म्पू., (--), ६५२०८-१(६) नेमिजिन फाग, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (सब सखियन मिल केसर), ६४१५५-१९(#) नेमिजिनबहोत्तरी, मु. सुजाणमल, मा.गु., गा. ७३, पद्य, श्वे., (प्रथम पाद अरिहंत नमु), ६८१०२ नेमिजिन बाग, मु. सवाजी, पुहि., का. १०, पद्य, श्वे.?, (श्रीचरणकरण जुहार करी), ६५०९७-२१(+#) नेमिजिन बारमासो, मु. कवियण, मा.गु., गा. ४५, पद्य, श्वे., (प्रेम बिलूधी पदमणी), ६७८७३-२(+) नेमिजिन बारमासो, मु. लाभउदय, मा.गु., गा. १६, वि. १६८९, पद्य, मूपू., (सखीरी सांभलि हे तूं), ६८३५१-३ नेमिजिन बारमासो, मु. सौभाग्य, मा.गु., गा.१३, पद्य, मूपू., (श्रावण मासे साहेलि), ६७७२८-२(#) नेमिजिन रास, ग. शुभविजय, मा.गु., गा. ८१, पद्य, मूपू, (नेमि प्रणमइ सूरनइंदा), ६४२११(+#) नेमिजिन लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (तुम तजीय कर राजुल), ६३९५७-७(+), ६७९७७(६), ६७७१९-१४(-) नेमिजिन लावणी, मु. रामचंद्र, पुहि., गा. ८, पद्य, मूपू., (मे जाति हूं गिरनार), ६८०५४-८ नेमिजिनवंदन सज्झाय, मु. हीरालाल, पुहिं., गा. १३, पद्य, श्वे., (सुण सुण रे जिनवरजी), ६३४९१-२(+) नेमिजिन विवाहलो, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. २२, वि. १८४९, पद्य, मूपू., (सरसती सरण नमी रे), ६८२७९(+$) नेमिजिन व्याहलो, मु. गुमानचंद, मा.गु., ढा. ४, गा. ३०, वि. १८६३, पद्य, श्वे., (छपनकोड जादव मिल आया), ६४१७२-२८ नेमिजिन सलोक, मा.गु., पद्य, श्वे., (सरसत सीमरू सामण सुर), ६५२६०-१(६) नेमिजिन सिलोको, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (श्रीनेमीसरने सिरनाम), ६७९६१-६(+#) नेमिजिन सिलोको, मा.गु., गा. ५३, पद्य, मूपू., (समरूं सारद सुण माता), ६७७९५-४ नेमिजिन स्तवन, मु. अमी ऋषि, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (श्रीजिन नेम परम उप), ६४६०७-११(+) नेमिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. १७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अष्टभवांतर बालही रे), प्रतहीन. (२) नेमिजिन स्तवन-विषमपद व्याख्या, मा.गु., गद्य, मूपू., (धारणो ज्ञानदशाइ), ६४५८०-२ ।। नेमिजिन स्तवन, मु. उदयसिंघऋषि, मा.गु., ढा. ४, गा. २८, वि. १७६५, पद्य, मूपू., (श्रीनेमीसर नित नमुं), ६५२०१-६(+)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ नेमिजिन स्तवन, मु. कांति, मा.गु., गा.७, पद्य, म्पू., (कालीने पीली वादली), ६४६०८-३८(-2) नेमिजिन स्तवन, मु. जीवराज कवि, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (सदावदूरे वाविसमो), ६७०३६-१८(+) नेमिजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (गिरनारे साहिब श्याम), ६३४६४-७९(#) नेमिजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (छपरीया तुं गिरनार), ६३४६४-१००(#) नेमिजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (छोडी चल्यो यदुवंशी क), ६३४६४-१०४(#) नेमिजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (दोय घडीया बेवारी), ६३४६४-१०७(#) नेमिजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (निसनेहा न थईए हो), ६३४६४-११३(#) नेमिजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नेमिजिणंद सोहावे), ६३४६४-६६(#) नेमिजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १०, वि. १८वी, पद्य, म्पू., (नेमिजिणेसर नायक माहर), ६३४६४-१०३(#) नेमिजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (प्राण मोकी नेमि हो), ६३४६४-१०(#) नेमिजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीयादवकुल नभचंदा), ६३४६४-१३१(#) नेमिजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (हाजीअलेबु जीरे), ६३४६४-१०९(#) नेमिजिन स्तवन, मु. तीकम, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मूपू., (मंगल कर रेनरवर नेमि), ६८२३७-१(+#) नेमिजिन स्तवन, पं. मनरूपसागर, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सौरीपुर नगर सुहामणो), ६८२५६-६४(+), ६८४१२-१०(#),
६४६०८-२०(-2) नेमिजिन स्तवन, श्राव. महमद जैन, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (तासु कौन सरवर करै), ६४१५५-६२(#) नेमिजिन स्तवन, मु. मेघविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पसूअपोकार सूण्या), ६७०३६-९(+) नेमिजिन स्तवन, मु. मोहनरुचि, रा., गा. ३, पद्य, मपू., (नेम निरंजनदेव सेवा), ६७८३९-६ नेमिजिन स्तवन, मु. रतनचंद, रा., गा. ६, पद्य, श्वे., (सांवलिया साहेब), ६७७३७-८(#$) नेमिजिन स्तवन, आ. राजेंद्रसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नेमि जिणंद नमुंसदा), ६७०७५-१४ नेमिजिन स्तवन, श्राव. लोधो शाह, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (केसरवां वहु गइ रे), ६७०४४-१२(+) नेमिजिन स्तवन, मु. शिवलाल, मा.गु., गा. ११, वि. १८९२, पद्य, मूपू., (बावीसमाजिन स्वामी कर), ६७८१४-४ नेमिजिन स्तवन, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (गीरनारी की बता दो), ६७७१९-१३(-) नेमिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (जनपति द्वारका नयरी), ६७०३६-२४(+) नेमिजिन स्तवन, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (दरसण दो मो कुं नेम), ६७७१९-१६(-) नेमिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (भागलीडी रे भागलीडी), ६७७१९-३(-) नेमिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मायरि गीरि जानदे मुझ), ६७९९१-१९(+#) नेमिजिन स्तवन, पुहि., गा.४, पद्य, मूपू., (मेरे मन की षट करसन), ६७७१९-१७(-) नेमिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (राखी लो जी राज सयाए), ६५२२९-३ नेमिजिन स्तवन, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (समदवीजे सेवादेवी माए), ६८३५१-१२ नेमिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (समुद्रविजय सुत नेम), ६७०७६-१७(+$), ६८४१२-४(#), ६८०७१-३३(-) नेमिजिन स्तवन-गिरनारमंडन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, पद्य, म्पू., (नेमि निरंजन देवके), ६३४६४-११(#) नेमिजिन स्तवन-ज्ञानपंचमीपर्व, ग. दयाकुशल, मा.गु., ढा. ३, गा. ३४, पद्य, मूपू., (शारद मात पसाउले निज), ६३५६१-१(#) नेमिजिन स्तवन-नवभव गर्भित, मु. नयशेखर, मा.गु., गा. ४२, पद्य, मूपू., (श्रीसहगुरुना पायइ), ६३४२३-२ नेमिजिन स्तवन-मगरोपमंडण, मु. मोहन, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (सरस्वति सामणि भेटू), ६४२२६-४(#) नेमिजिन स्तवन-समवसरणविचारगर्भित, मु. सोमसुंदरसूरि-शिष्य, मा.गु., कडी. ३६, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (जायवकुल सिणगार
सिरि), ६३५७४-१(+#) नेमिजिन स्तवन-सातवार गर्भित, मु. मूलचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (नमीए नेमजीणंद गढ), ६८१६३-२९ । नेमिजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सुर असुर वंदित पाय), ६३१५३-१३(+#), ६७०७४-१०(२), ६७९२०-१०(+),
६८२५६-६(+), ६७८६६-७, ६७८९२-१, ६३०४६-२६(३), ६४०११-२(१), ६७७६७-६(), ६८०१८-१७(-)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६
५५७ नेमिजिन स्तुति-गिरनारमंडन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (गिरनारसिहरि पर नेमि), ६३२४७-३२(+#),
६३००६-१८, ६८१२३-२०,६३०४६-२४(#) नेमिजिन हालरडूं, मु. अमी ऋषि, पुहिं., गा. ११, पद्य, श्वे., (गावे हालरियो मा शिवा), ६४६०७-३४(+) नेमिजिन होरी, पुहिं., गा.८, पद्य, मूपू., (एसे स्यांम सलुणे), ६४६०८-४१(-#) नेमिबहुत्तरी स्तवन, मु. मूलचंद्र, मा.गु., गा. ७४, वि. १८३६, पद्य, मूपू., (प्रथम जिणेसर पाय), ६७९२८($) नौनवकडी ढाल, रा., ढा. २, गा. ५८, वि. १८३३, पद्य, मूपू., (दुषमो आरोपांचमो), ६४१९५-३(+$) पंचकल्याणक मंगल, मु. रूपचंद्र, मा.गु., ढा. ५, गा. २५, पद्य, श्वे., (पणमवि पंच परम गुरु), ६३९५६-१८(+#) पंचजिन पद, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (श्रीविमलागिरि रिसह), ६३१५३-१८(+#) पंचतीर्थ चैत्यवंदन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (श्रीसिद्धाचल), ६७०७६-११(+) पंचतीर्थ चैत्यवंदन, मु.रूपविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सुखदाइ श्रीआदिजिणंद), ६८१६८-२(+) पंचतीर्थस्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहि., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, भूपू., (चलो अब जइइं हो सेत्र), ६३४६४-९८(#) पंचतीर्थ स्तवन, मु. सुखलाभ शिष्य, मा.गु., ढा. ४, गा. २८, वि. १७४८, पद्य, मूपू., (अष्टापद तीरथ भलौ), ६८००४-५(+) पंचतीर्थ स्तुति, आ. रतनसूरि, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (सद्गुरु प्रसादस्यु), ६७८९२-८ पंचतीर्थी गीत, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (हरषमनधार दुखवार महि), ६३२४७-३६(+#) पंचदंड चौपाई, मु. राजऋद्धि, मा.गु., ढा. ५ आदेश, गा. ४१८, वि. १५५६, पद्य, मूपू., (जयु पास जिराउलउ जगम), ६८१५६(+) पंचपद वंदना, मा.गु., पद. ५, पद्य, स्था., (पहेले पद श्रीसीमंदिर), ६७८९५-२(+) पंचपरमेष्ठि आरती, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (पहिली आरती अरिहंत), ६३३९७-२०(+) पंचपरमेष्ठि गुणवर्णनरूप स्तुति, पं. लब्धि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वीर जपुं अरिहंतना), ६८००४-२१(+) पंचपरमेष्ठि स्तवन, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (त्रिभुवननाथ त्रिगुणा), ६७७२७-६ पंचभावस्वरूप विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (मोहनी कर्मना उपशमथी), ६७७२७-२ पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (वीर कहे गौतम सुणो), ६७७५५-११, ६८३८०-१०(-), ६८४३०-५(-) पंचमआरा सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, रा., गा. १३, पद्य, श्वे., (श्रीजिन चरणकमल नमी), ६३३९७-९(+) पंचमआरा सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (वीर कहै गोयम सूणो), ६८२३७-४१(+#) पंचमआरा सज्झाय, रा., गा. १३, वि. १८४०, पद्य, मूपू., (अरिहंत सिद्ध साधु), ६८३९७-८ पंचमांग सज्झाय, मु. शिवचंद्र, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सहु आगम में सोभतो रे), ६४६२२-१, ६८०३६-२ पंचमीतप पारने की विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (तपकरी उजमणो कीजै), ६३५८८-५(+), ६८१३१-५(+), ६३३१९-५ पंचमीतिथितप उजमणा विधि, मा.गु., प+ग., श्वे., (पांचम अथवा छठिनै), ६८१३१-१६(+) पंचमीतिथि स्तवन, मु. वर्धमान ऋषि, मा.गु., ढा. ४, गा. ४३, वि. १४८४, पद्य, मूपू., (सारद प्रणमी पाये सकल), ६७८६४-१(+#) पंचमीतिथि स्तुति, आ. उदयसागरसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पंचमी संभव ज्ञान), ६७८९२-१४ पंचमीतिथि स्तुति, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पंच अनंत महंत गुणाकर), ६३२४७-३९(+#), ६७०७४-८(+),
६८१२३-१६ पंचमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (धरमजिणंद परमपद पाया), ६५२१३-५(+#) पंचमीतिथि स्तुति, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सिद्धवधु केरो सिणगार), ६७८६६-४ पंचमीतिथि स्तुति, मु. हेतविजय पंडित, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पंचमीने दिन चोसठइंद), ६७७२६-१(६) पंचमीतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पंचरूप करि मेरुशिखर), ६७०८५-६(+$) पंचमेरु जयमाल, मु. भूधर, मा.गु., पद्य, श्वे., (जनम जनमपीठं ममगनईद), ६५५८१-६ पंचांगगणित विधि, उपा. महिमोदय, मा.गु., गा. १६४, वि. १७३३, पद्य, मूपू., (परम जोति प्रभुकुं), ६३८३५(+#) पच्चक्खाणफल सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (प्रभु पगलां प्रणमी), ६८००४-४९(+) पट्टावली*,मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानतीर्थं), ६३५२५ पट्टावली-तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीजिनशासन संप्रति), ६४६४५($)
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५५८
देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमान तीर्थं), ६७०७८-२(+) पट्टावली-नागोरीलंकागच्छीय, मा.गु., गद्य, स्था., (पूज्याचार्यजी), ६३२६०-५(+) पद्मनाभजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रथम महेसर पद्मनाभ), ६७०७६-१०(+) पद्मनाभजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (माहरा मनडां मांहि), ६३४६४-११२(#) पद्मप्रभजिन धमाल, मु. ज्ञान, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मेरे रदय पदमप्रभु), ६८०२६-४(+-) । पद्मप्रभजिन पद, मु. जैनरतन, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रह सम समरीजै सामि), ६८०२६-७(+-) पद्मप्रभजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (जिनचरणन चित लीनौ अली), ६३६१६-२८ पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू., (श्रीपद्मप्रभुना नाम), ६७८२२-२(#$) पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मनना मोहन मारा), ६८०७१-४१(-) पद्मप्रभजिन स्तवन-संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (धन धन संप्रति साचो), ६७०३६-३३(+) पद्मरत्नसूरि गुणरास, आ. हर्षरत्नसूरि, मा.गु., ढा. ६, वि. १८१४, पद्य, मूपू., (कविजन वंछितदायिनी), ६७०२१(+) पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (हवे राणी पद्मावती), ६३९५७-१५(+),
६७८५९(+), ६७९९१-७(+#), ६८२५६-५७(+), ६३५४५-१६, ६५२८४-१, ६७०५३-२, ६७९५९-१, ६८१६३-३८,
६८०८१-२(#), ६४२०८-२($), ६५२०९-२($), ६७०५५-११(-2) (२) पद्मावती आराधना-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हिवे पद्मावती राणी), ६७८५९(+$) पद्मावतीदेवी आरती, आ. कांतिसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (--), ६५१८४-१(#$) परनिंदात्याग पद, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (किसी की नंद्या न करी), ६४१८८-५, ६८४१२-२९(#) पर्युषणपर्व स्तवन, मु. गोपालसागर, पुहिं., गा. १०, वि. १९५४, पद्य, मूपू., (परव पजुसण आव्या जाणी), ६७०७३-८ पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वली वली हुं ध्या), ६८२५६-१६७(+), ६८१२३-१४,
६३०४६-३०(#$), ६८०१८-१९(-) पर्युषणपर्व स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सत्तरे भेदे जिन पूजा), ६७८९२-२, ६४०११-३(#) पर्युषणपर्व स्तुति, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पर्व पजुसण पुण्ये), ६७८९२-७ पहाडा, मा.गु., गद्य, वै., (एक कां एकउ बिइ कां), ६७९६७-९ पांच पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (हस्तिनापुर वलभलुंजी), ६७०३६-५(+) पांडवचरित्र रास, उपा. लाभवर्द्धन पाठक, मा.गु., खं. ६ ढाल१५०, ग्रं. ३७९७, वि. १७६७, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसुखसंपदा),
६८२५७(+) पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., खं. ९ ढाल १५१, ग्रं. ५७५०, वि. १६७६, पद्य, मूपू., (श्रीजिन आदिजिनेश्वरू), ६३५९१(+),
६४०२५(+$), ६३५८९ पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री रास, मु. लालचंद, मा.गु., ढा. ३९, गा. ५३५, वि. १७४२, पद्य, मूपू., (प्रथम जिणेसर परगडो),
६३६०९(+) पार्श्वजिन १० भव चौपाई, क. नंदलाल, मा.गु., ढा. १०, वि. १८७६, पद्य, श्वे., (प्रथम नमो अरिहंतजी), ६७९४६-८(-5) पार्श्वजिन १० भव वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (जंबूद्वीप भरतक्षेत्र), ६८३३७-१ पार्श्वजिन आरती, य. अगरचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (आरती करत श्रीपासजिण), ६५२०८-८ पार्श्वजिन आरती, मु. मतिहस, पुहिं., गा. १०, पद्य, मूपू., (पहिली आरती आससेण), ६५३०८-२४(+) पार्श्वजिन केरवो, मु. कीर्तिसागर शिष्य, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (बे करजोडी वीनवुजी), ६७७९५-१ पार्श्वजिन गीत, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मेरे एही ज चाहीइ), ६५१९३-२१(+), ६८२५६-११४(+),
६३९९८-५(#) पार्श्वजिन गीत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीसुखसागरपास जेहना), ६३४६४-३३(#) पार्श्वजिन गीत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सुणो साहिबा मन की), ६३४६४-४९(2) पार्श्वजिन गीत-गोडीजी, मु. धर्मसीह, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (जग जागे पास गोडी), ६८००४-८(+)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६ पार्श्वजिन चैत्यवंदन-गोडीजी, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पुरसादाणीय पासनाह), ६७०७४-१८(+),
६७०७६-५(+), ६८२१४-११(+) पार्श्वजिन छंद, मु. द्यानत, पुहिं., गा. १०, पद्य, मूपू., (नरेंद्रं फणींद्र), ६७५६२-४(#) पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ५५, वि. १५८५, पद्य, मूपू., (सरस वचन दियो सरसति), ६८२१३-२(+#),
६७९४७-१(-१) पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, मा.गु., पद्य, मूपू., (सरस्वति मात माया करि), ६३४५०-२($) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (धवल धिंग गोडी धणी), ६८३४४-४(+#) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. कुशलचंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीगोडिचा जगतगरु), ६८३४४-१३+#) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (सरसति सुमति आप), ६५२४७-१(+#) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. जीवणविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (पार्श्वनाथ परमपूर), ६७८८५-३(+) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., गा. ४६, पद्य, मूपू., (सुवचन आपो शारदा मया), ६३४५०-१ पार्श्वजिन छंद-नाकोडातीर्थ, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (आपण घर बेठा लील करो),
६७९१३-१०(+#), ६८२५६-१०४(+) पार्श्वजिन छंद-भीडभंजन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (भीडभंजन भवभयभीतिहर), ६५३०८-२९(+) पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर सेवे), ६८३४४-५(+#) पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. नयप्रमोद, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सरस वदन सुखकारसारं), ६५३०८-२८(+) पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. शील, मा.गु., गा. ६४, पद्य, मूपू., (प्रणव पणव प्रहु पय), ६७९९१-८(+#) पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सेवो पास शंखेश्वरो), ६३१५३-१६(+#), ६८२३०-५(-) पार्श्वजिन छंद-स्थंभनपुर, मु. अमरविसाल, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (थंभणपूरवर पासजिणंदो), ६७०७७(5) पार्श्वजिन ढालिया-गोडीजी, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. १७, पद्य, मूपू., (सानिध्यकारी भारती पद), ६८४३७(+) पार्श्वजिन द्रुपद, मु. धर्मशील, पुहिं., गा. ४, पद्य, म्पू., (केवल वाला० कोइ बतावे), ६७०६९-२(१) पार्श्वजिन नमस्कार-स्थंभनपुर, मु. कल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (श्रीसेढी तट मेरुधाम), ६७०७४-२०(+$), ६७०७६-७(+) पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहि., गा. २७, पद्य, मूपू., (सुखसंपत्तिदायक सुरनर), ६३९५७-१(+), ६४२००-४(+),
६५३०८-२(+), ६५९६०-३(+), ६७९९१-११(+#), ६८२८९-१, ६८०५६-१(#), ६८४१२-२२(#), ६७८५१-१(६) पार्श्वजिन पंचकल्याणक पूजा, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा.८, वि. १८८९, पद्य, मूपू., (संखेश्वर साहेब सुर), ६८०३४(#) पार्श्वजिन पद, मु. आनंदविजय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (देखी सूरत पास जिनंद), ६७९८०-१३ पार्श्वजिन पद, मु. आनंदविजय, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (पासजिनेसर प्यारा हो), ६७९८०-१६ पार्श्वजिन पद, मु. आनंदविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्यारो मेरो पास जिन), ६७९८०-१५ पार्श्वजिन पद, मु. कनककीर्ति, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (तूं मेरै मन में तूं), ६८२५६-१२३(+) पार्श्वजिन पद, मु. गुणविलास, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (करो ऐसी बगसीस प्रभु), ६७०६७-५(+) पार्श्वजिन पद, मु. चंदखुसाल, मा.गु., पद. ५, पद्य, श्वे., (नन्नडायो गोद खिलावै), ६७७३४-६ पार्श्वजिन पद, मु. चंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (रूप भलौ जिनजी कौ), ६८२५६-९०(+) पार्श्वजिन पद, मु. जसराज, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (जागो मेरे लाल विसाल), ६८२५६-११६(+) पार्श्वजिन पद, मु. जिनचंद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू., (आज बधाई म्हारै आज), ६५२३१-१(+), ६८००४-३६(+) पार्श्वजिन पद, आ. जिनभक्तिसूरि, पुहिं., गा. ४, पद्य, म्पू., (माई रंगभर खेलेगे), ६८०२६-८(+-) पार्श्वजिन पद, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुनिजर कीजै हो जिनवर), ६७७२०-५(+-) पार्श्वजिन पद, आ. जिनलाभसूरि, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (होरी के खिलईया हारे), ६८०२६-११(+-) पार्श्वजिन पद, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (आजनै अम्हारै मन आसा), ६४१५१-३(+) पार्श्वजिन पद, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आणी आणी अधिकउ माह), ६४१५१-४(+) पार्श्वजिन पद, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (नित नमीयै पारसनाथजी), ६४१५१-५(+)
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५६०
देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पार्श्वजिन पद, मु. धर्मसी, पुहिं., गा. ३, पद्य, म्पू., (मेरे मन मानी साहिब), ६४१५१-२९(+), ६५२३६-१५(+), ६८२५६-९२(+),
६३९९८-२(#) पार्श्वजिन पद, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पास प्रभु जिनराया ओ), ६८०७१-४५(-) पार्श्वजिन पद, वा. पदमसी, पुहिं., गा.५, पद्य, मूपू., (पासजिनेसर अतिअलवेसर), ६६३४६-४(+) पार्श्वजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वामानंदन जगदानंदन), ६७९१९-१(+) पार्श्वजिन पद, मु. रामचंद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जिनजी भव भव दीजो चरण), ६८०५४-१६ पार्श्वजिन पद, मु. रूप, पुहिं., गा. ३, पद्य, स्पू., (मे हो सरन तिहारै), ६६३४६-२(+) पार्श्वजिन पद, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (ढिर वताय दे पहारीयां), ६८०७१-१९(-) पार्श्वजिन पद, मु. लालचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (मेरो मन वश कर लीनो), ६८२५६-१४७(+) पार्श्वजिन पद, मु. वृद्धिकुशल-शिष्य, रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (जोडी थारी कोन जुडे), ६८०७१-२९(-) पार्श्वजिन पद, मु. सदारंग, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (पास दरस लगै अब मोहै), ६८००४-६(+) पार्श्वजिन पद, मु. साधु, रा., गा. ५, पद्य, म्पू., (म्हारा हो जिनजीने), ६४१५५-२०(2) पार्श्वजिन पद, मु. हरखचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (श्रीजिनपास दयाल लगा), ६८०७१-१७) पार्श्वजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (वामाजी के नंद अरज), ६८००४-४२(+) पार्श्वजिन पद, पुहि., पद. ५, पद्य, मूपू., (जय बोलो पासजिनेसर की), ६८०२६-१(+-), ६७६९२-७ पार्श्वजिन पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (पारसनाथ प्रगट परमेसर), ६७८६५-६(+#) पार्श्वजिन पद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रभु पास जिणंद की), ६८००४-३९(+), ६८२५६-१३६(+) पार्श्वजिन पद, पुहिं., पद. ४, पद्य, मूपू., (मोतियन थाल भरकै करहु), ६८२५६-१५३(+) पार्श्वजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (सकलसुर राज सेवित), ६४१८३-५(+) पार्श्वजिन पद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (साधो भाई चित्त जिन), ६३९५६-१०(+#$) पार्श्वजिन पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (हो जी वामजू कौ छावौ), ६८२५६-१३४(+) पार्श्वजिन पद-अंतरिक्ष, मु. माणक, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सोहे अंतरीक पास जिण), ६३६१६-१ पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. दीपविजयशिष्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मुजरो मांनी लीजै हो), ६८२५६-१३३(+) पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. धरमसी, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (सरस वचन दे सरसती एह), ६७०८४(+), ६७०५३-१(६) पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, मु. ऋषभविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पासकि पासकि पासकि), ६४०५४-२(+) पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, श्राव. बनारसीदास, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (चिंतामणिसामी साचा), ६३९९८-७(#) पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, मु. भानुचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रभु को दरिशण पायो), ६७०८१-६(2) पार्श्वजिन पद-शंखेश्वरतीर्थ, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू., (प्यारोपारसनाथ), ६८००४-२३(+) पार्श्वजिन पद-शंखेश्वरतीर्थ, मु. वीरविजय, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (अजब जोत मेरे प्रभु), ६८०५६-२(#) पार्श्वजिन बृहत्स्तवन-गोडीजीदशमीतिथि, मु. समयरंग, मा.गु., ढा. ५, गा. २३, पद्य, मूपू., (पास जिनेसर जगतिलोए),
६८२५६-३२(+) पार्श्वजिन लघुस्तवन-गोडीजी, मु. रुघनाथ, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सद्गुरु वचने सांभल्य), ६३४३२-३(+#) पार्श्वजिन लावणी-मगसी, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (मुगतगढ जीत लिया वंका), ६८२३७-५(+#) पार्श्वजिन विवाहलो, मु. रंगविजय, मा.गु., ढा. १८, वि. १८६०, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीदायक), ६४२२१(+$) पार्श्वजिन वृद्धछंद-अंतरिक्ष, वा. भावविजय, मा.गु., गा. ६३, पद्य, मूपू., (सरसति मात मयाकरी आपो), ६७८०९-१ पार्श्वजिन सलोको, जोरावरमल पंचोली, रा., गा. ५६, वि. १८५१, पद्य, श्वे., वै., (प्रणमुं परमातम अविचल), ६३५१६(+),
६७८७४(+) पार्श्वजिन सवैया, मु. गौतम, पुहिं., सवै. १, पद्य, मूपू., (प्यारे पारसलाल तुम), ६३६३३-१०(+#) पार्श्वजिन स्तव, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सकल सुकृत विधि), ६३४६४-२७(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. अजयराज, पुहिं., गा. ११, पद्य, श्वे., (रागद्वेष दोय मोहसदन), ६५२२०-१
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६
पार्श्वजिन स्तवन, मु. अनूपचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (जीवन माहरा तेवीसम ज), ६५२३१-६(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. अमृत, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (रे दरवाजे ठाढे खोल), ६३६१६-१८ पार्श्वजिन स्तवन, मु. उदय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (वादल दहदीस उनह्या), ६४१५५-२१(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (बलिहारी हुं उस पासकी), ६५३२२-२(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. कान कवि, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (पारस भज ले वारंवार), ६७७१९-५(-) पार्श्वजिन स्तवन, मु. कीरत, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (श्रीसुगुरु चिंतामणि), ६७८१८-४(+), ६८२३७-१६(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. कृष्णचंद्र, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (अरे म्हारे लगी मिलन), ६७०७५-१२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. केसर ऋषि, मा.गु., गा.८, वि. १८४२, पद्य, मूपू., (प्रणमुंपास जिनेसरु), ६८२३७-७(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, पुहि., गा.५, पद्य, मूपू., (सुगुण नर श्रीजिनगुण), ६४५९५-१(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. क्षेमकरण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (--), ६३९५६-७(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. गंग, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (पासजिणेसर पूरण आसा), ६५२२५-३(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. चंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (प्राण पीयारा जी हो), ६७७९५-५ पार्श्वजिन स्तवन, मु. जसवर्द्धन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अरिहंतजीरी अजबसूरति), ६३६२५-२(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जसवर्द्धन, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (मन मोहनगारो साम सहि), ६३९५६-११(+#$) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्राण पीराजी हो पास), ६८२५६-१५(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रात उठी ने मेरा), ६५२३२-५(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (हेली जेसलनगरे रे), ६८०७१-१३(-) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (जय बोलो पास जिनेसर), ६८२५६-१३०(+), ६८४१२-३३(#),
६८०७१-२५(-) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (मोतीडे मेह वुठारे), ६८००४-४७(+) पार्श्वजिन स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, पुहिं., गा. ५, पद्य, पू., (पूजौ पासजिणेसर), ६५२३६-२१(+) पार्श्वजिन स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (पासजिणेसर वाल्हा अरज), ६८३०२-८(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुरत मुरत मोहनगारि), ६८४५१-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. जैतसी, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुगुण सोभागी हो साहि), ६८२५६-१२६(+) पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा.५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अब मनु हरखत साई), ६३४६४-१०६(#) पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अमारुं मन लाग्युं प्), ६३४६४-१३६(2) पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (आज मनमंदिर आवशे पूरश), ६३४६४-२९(#) पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (पास परमप्रभु महिम), ६३४६४-६७(#) पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (पास प्रभु प्रणमु), ६४५८०-३ पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पूरि प्रभु पूरि), ६३४६४-५७(#) पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रभु के आगे गुमान), ६३४६४-१२६(#) पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभु पासजी तुं), ६३४६४-५६(#) पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वामादे नंदना हमारी), ६३४६४-२६(#) पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (हां रे वामादेवीनो), ६३४६४-११७(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. तिलोकचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सुंदर मूरति सोहइ), ६८००४-२४(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. दानविनय, पुहिं., गा. ८, पद्य, मूपू., (नितप्रति प्रभुकुं), ६७९१३-१५(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. धर्मचंद्र, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (धनसार केसर बहु धोळी), ६८३८०-२६(-) पार्श्वजिन स्तवन, मु. धर्मसिंघ, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (सबकोइ जपो जिन जस वास), ६३९५६-१४(+#) पार्श्वजिन स्तवन, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., गा. ७, वि. १७३०, पद्य, मूपू., (महिमा मोटी महीयलै), ६४१५१-१५(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज सफल अवतार असाडा), ६४१५१-१४(+), ६८००४-१(+)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. धर्मसी, पुहि., गा.७, पद्य, मूपू., (ऊगौ धन दिन आज सफले), ६४१५१-१०(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (महिमा मोटी महीयलै हो), ६४१५१-१२(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. भाग्यउदय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (साचो पारसनाथ कहावै), ६६३४६-१(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. भोज, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (प्रणमुपासजिणंद), ६८३४४-७(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. मान, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (पास जिनेश्वर तुं जग), ६५०९६-४(+#) पार्श्वजिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीपासजी प्रगट), ६५३१३-२(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. मोटा ऋषि, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (पारस तु तो परतक्षदेव), ६७८१०-६ पार्श्वजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मेरे साहिब तुम ही), ६७९१९-२९(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. रंग, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पास जिणेसर म्हारो), ६४६०८-१२(-#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. रतन ऋषि, मा.गु., गा. ५, वि. १८४५, पद्य, श्वे., (पाशजिणेसर सामी हइडा), ६८२३७-१३(+#), ६५२८४-४ पार्श्वजिन स्तवन, आ. राजेंद्रसूरि, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (पारस पतिने पूजीए लही), ६७०७५-२४ पार्श्वजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १४, वि. १८४१, पद्य, श्वे., (वामाराणीये एक जायो), ६८३१०-३२(+#), ६८३९७-३ पार्श्वजिन स्तवन, मु. लाभउदय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (हारे लाल वंछित आपो), ६३३७४-६(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. लाल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (त्रेवीसमा जिन ताहरो), ६५२२५-११(+), ६५२३६-६(+), ६८४५१-१४ पार्श्वजिन स्तवन, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (मात वामादेरा नंदा), ६७०१६-५(+$) पार्श्वजिन स्तवन, मु.शांतिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अश्वसेन कुल चंद्रमा), ६३९५६-२१(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. सुरत ऋषि, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (सुगण जिणंदजीसु), ६७८९९-५(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. सेवक, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (--), ६७९४६-४(-$) पार्श्वजिन स्तवन, मु. हर्षचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (निरमल होय भज ले), ६८०७१-१८(-) पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (जगगुर पाशजिनंद २), ६३९५६-६(+#$) पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (जगपति श्रीचिंतामणपास), ६७८३९-४(६) पार्श्वजिन स्तवन, पुहिं., पद्य, मूपू., (दरसणरी मुने चाय छे), ६७०७३-७(६) पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (पास प्रभु तेरो छे), ६७७१९-२१(-$) पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (संकट छुडावो म्हारा), ६८४१२-३२(2) पार्श्वजिन स्तवन, रा., गा.७, पद्य, श्वे., (सानिधिकारी पाशजिणेसर), ६३९५६-८(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सारां गुणवंतानै), ६३९५६-९(+#) पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, मु. धरमसी, मा.गु., ढा. ४, गा. ३४, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (पूर मनोरथ पासजिणेसर),
६४२०६-१(+#$), ६५३०८-६(+), ६५९७८-९(+), ६७६६२-२(+), ६७८६२-१, ६८००८-३ पार्श्वजिन स्तवन-अंतरिक्षतीर्थमंडन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ९, वि. १८५५, पद्य, मूपू., (अंतरीक प्रभू), ६८१९५-४(+) पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्ष, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जय जय जय जय पास जिणं),
६७९१९-३९(+) पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्ष, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सलुने प्रभु भेटे), ६७९१९-३७(+) पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षजी, वा. विनयराज, मा.गु., ढा. ४, गा. २७, वि. १७७२, पद्य, मूपू., (पर उपगारी परम गुरु), ६८१९५-३(+) पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., ढा. ५, गा. ५५, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (वाणी
ब्रह्मवादिनी), ६५१९१-१(+#), ६५९६०-१२(+), ६८०५७(+#), ६८२५६-८६(+), ६३९८२, ६५९८२-४, ६८२८९-२,
६८४१२-१५(#$) पार्श्वजिन स्तवन-अमीझरा, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (परतखि पास अमीझरौ भेट), ६७९१३-१७(+#) पार्श्वजिन स्तवन-अवंतिपुर, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ८, वि. १७६१, पद्य, मूपू., (आज सफल अवतार फली), ६४१५१-१६(+),
६८००४-२८(+)
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५६३
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६
पार्श्वजिन स्तवन-अवंती, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (पांथीया पंथ चलेगो), ६४६०८-२४(-#) पार्श्वजिन स्तवन-कल्हारा, मा.गु., पद्य, मपू., (श्रीगुरुचरणकमल नमी), ६५२४६-७(#$) पार्श्वजिन स्तवन-गुगडी पारकर, मु. आगम, मा.गु., गा. ९, वि. १८०६, पद्य, मूपू., (पारकर देसनो राजीओ रे), ६४६०८-१९(-#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. कमलसुंदर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सांचो साहिब निरधारी), ६७०६७-६(+), ६२९९१-८(#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीगवडीपुरमंडण), ६८२३७-२०(+#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु.खुशालविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सेवो हे सहीया जिन), ६७०४४-१(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जयसागर, मा.गु., गा. ५, वि. १७९४, पद्य, मूपू., (प्रमा पांच प्यारी रे), ६७०१६-३(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जसवंत, मा.गु., गा. ९, वि. १८१३, पद्य, मूपू., (भवियां वांदो भावसुं), ६८००४-७(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनचंद्र, पुहि., गा. ९, वि. १७२२, पद्य, मूपू., (अमल कमल जिम धवल), ६५२२५-१३(+$),
६७०८५-४(+), ६७७३५-५ (+#), ६३५४५-१७, ६७९४०-२०, ६८४५१-३ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वाल्हेसर मुझ विनती), ६४२००-७(+), ६७९१३-११(+#),
६८४५१-१ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (विनय सजीने साहिबा), ६७७२०-४(+-) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीगौडीपुर साम हो), ६७७२०-३(+-) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (गुण गिरूऔ गोडी धणी), ६५२३६-७(+), ६८४५१-१५ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पीया सुंदर मूरति गुण), ६८३०२-७(#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. दीपचंद, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (सुणज्यौ गोडीजी), ६५२२५-१२(+), ६८२५६-१२४(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (लाखीणो सोहावें जिनजी), ६४१७२-११, ६८३०२-१(#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. नित्यलाभ, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (दरिसण बेहिलोनी देडे), ६७९९१-२७(+#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. नेम, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (आसणरा रे जोगी पासजिण), ६८२३७-१०(+#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. नेमविजय, मा.गु., ढा. १५, गा. १३७, वि. १८१७, पद्य, मूपू., (प्रणमु नित परमेश्वर), ६५३१४(+),
६८२८५(+$) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. नैणसी, मा.गु., गा.१०, पद्य, मूपू., (गुण गिरूवा गौडी धणी), ६५२३६-९(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मान, मा.गु., गा. १५, वि. १७५५, पद्य, म्पू., (प्रभु श्रीगोडीपासजी), ६७९३५-२(-#$) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्राण थकी प्यारो), ६७७२२-२(-2) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मोहनविजय, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (मुजरोथें मानो हो), ६४६०८-४६(#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (मुजरो मानीने लेजो हो), ६८०७१-३०-) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, ग. रुघपति गणि, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (थारो थलवटदेस सुहावे), ६३६१६-११ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (कृपा करो गोडी पास), ६८२५६-१४४(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. रूपविजय, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (पुरसादाणी पासजी थे), ६४०५४-५(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. विनयविजय, रा., गा. ९, पद्य, म्पू., (जोर वन्यो जोर वन्यो), ६८०७१-२४(८) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ४१, वि. १६६७, पद्य, मूपू., (वदन अनोपम चंदलो गोडि), ६५२२७(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. श्रीविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अकल मुरति अलवेसरू), ६७०१६-६(+), ६८०७१-४२(-) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजीमंडण, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (श्रीगोडी नमा नमो नमा), ६७०८५-५(+) पार्श्वजिन स्तवन-घोघामंडण नवखंडा, मु. अरदास, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आजि आणंद लील प्रमोद), ६७०३६-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. कनकमूर्ति, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (एक अरज अवधारीयै रे), ६८००४-४४(+) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, पं. केसरीचंद गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, म्पू., (श्रीचिंतामणि पासरे), ६७०४६-३ पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १८३०, पद्य, मूपू., (श्रीचिंतामणि पास), ६८२५६-१६(+) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रणमुंपास चिंतामणी), ६३४६४-३९(#)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (प्रणमुंपास चिंतामणी), ६३४६४-४०(#) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. भावरत्न, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (चिंतामणि चित धर रे), ६८००४-१५(+) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. राजसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (साहीबा श्रीचिंतामणी), ६७०८१-१(#) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (आणी मनसुध आसता देव),
६५२२५-९(+), ६७८६५-३(+#), ६३९९८-९(#) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. हर्षचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चिंतामणजिण चिंतवी हो), ६४५७५-४(+#) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (श्रीचिंतामणि पास), ६७९५०-१(+) पार्श्वजिन स्तवन-जगवल्लभ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जय जय श्रीगुणगणनिधान), ६३४६४-३१(#) पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (जीराउला देव करङ), ६७९१३-१८(+#) पार्श्वजिन स्तवन-तिमरीपुरमंडन, मु. ज्ञानउदय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (श्रीतिमरीपुर पासजी), ६५२४५-३(+) पार्श्वजिन स्तवन-नवलखा, मु. ललितचंद्र, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (भवत्रय जस अभिधांन), ६५१९२-१७(+#) पार्श्वजिन स्तवन-नारंगपुरमंडन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नारंगपुरवर पास निहार), ६३४६४-२०(#) पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरा, पंन्या. खुशालविजय, रा., गा. १४, पद्य, मूपू., (थारी सूरति लागे प्या), ६७०४४-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरा, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पास पंचासरा प्रगट), ६३४६४-१४४(#) पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरा, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीपंचासर पासजिनेसर), ६३४६४-१४८(#) पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरा, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीपंचासर पास महिमा), ६३४६४-१९(#) पार्श्वजिन स्तवन-पल्लविया, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मूपू., (सरसति मात चित्त), ६८३४४-१२(+#) पार्श्वजिन स्तवन-पुरिसादानी, मु. अमी ऋषि, पुहि., गा. १६, वि. १९५१, पद्य, श्वे., (नाथ कैसे नागनी नाग), ६४६०७-२७(+) पार्श्वजिन स्तवन-पुरुषादाणी, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहि., गा.८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वामानंद वसंत यु), ६३४६४-१४९(#) पार्श्वजिन स्तवन-पुरुषादानी, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ९, वि. १८३४, पद्य, मूपू., (जयकारी जिनराज पुरसाद), ६८००४-२२(+) पार्श्वजिन स्तवन-पुरुषादानी, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा.८, पद्य, मूपू., (दीनानाथ को दयारस), ६३४६४-४५(#) पार्श्वजिन स्तवन-पुरुषादानी, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (परम पुरुष तुं), ६३४६४-४१(#) पार्श्वजिन स्तवन-प्रभाति, मु. लाभउदय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (उठोरे मारा आतमराम), ६५२३१-४(+), ६८२५६-९८(+) पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. गोपालसागर, मा.गु., गा. १२, वि. १९१७, पद्य, मूपू., (वारी जाउ फलोधी पारस), ६७०७३-५ पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, उपा. रामविजय पाठक, मा.गु., गा. ७, वि. १८२३, पद्य, मूपू., (भलै दीठौ फलौदी गांम),
६५२३६-२०(+) पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धितीर्थ, मु. उत्तम, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (वंछित फलदायक स्वामी), ६५२४५-२(+), ६८२५६-६६(+) पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धितीर्थ, मु. चंद्रभाण, मा.गु., गा. ७, वि. १८५२, पद्य, मूपू., (श्रीजिण महाराज बहोत), ६७९७१-५(+#) पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धितीर्थ, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (परतापूरण प्रणमीइ अरि), ६५३०८-२६(+), ६७०४३-१(+),
६४२२९(१) पार्श्वजिन स्तवन-फलोधी, मु. केसरचंद, मा.गु., गा. ७, वि. १८६४, पद्य, मूपू., (चालौ सखी प्रभुजीन), ६८२३७-१२(+#) पार्श्वजिन स्तवन-भटेवा, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (भटेवा पासजी रे भेट), ६३४६४-३८(#) पार्श्वजिन स्तवन-भाभा, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आज सखी मनमोहनो मोरो), ६३४६४-१३८(#) पार्श्वजिन स्तवन-भाभा, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (भले भावे भाभा पासनी), ६३४६४-१३५(#) पार्श्वजिन स्तवन-भाभा, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (भले भावे भाभो भेटीइ), ६३४६४-१३७(#) पार्श्वजिन स्तवन-भाभा, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीभाभो पास जुहारि), ६३४६४-१३४(#) पार्श्वजिन स्तवन-भाभा, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सुकृत समीहित सुरलता), ६३४६४-१५(#) पार्श्वजिन स्तवन-भाभा, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सुमति करण कुमति हरण), ६३४६४-१३९(#) पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (स्या माटे साहिब सामु), ६५२१७-७(+#$), ६८३१०-५२(+#)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६ पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन, मु. प्रेमउदय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शा माटे साहेब साहमु), ६८१६३-४३ पार्श्वजिन स्तवन-भीनमाल, मु. पुण्यकमल, मा.गु., गा. ५३, वि. १६६१, पद्य, मूपू., (सरसति भगवति नमीय पाय),
६५२४७-११(+#), ६७७३८-१ पार्श्वजिन स्तवन-मक्षीजी मंडन, पुहिं., गा. १०, पद्य, मूपू., (ऐसा मुख मगसी का), ६३०९१-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-मगसीपुर, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आदरजीव री भवीयण भाव), ६४१५१-११(+) पार्श्वजिन स्तवन-मगसीपुरमंडण, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा.७, वि. १७६१, पद्य, मूपू., (सकलदेव सिर सेहरोहो),
६४१५१-१७(+) पार्श्वजिन स्तवन-मनमोहन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मनमोहन पासजी भवि), ६३४६४-६५(#) पार्श्वजिन स्तवन-लघु, मु. केसर, पुहिं., गा.७, वि. १८५९, पद्य, मूपू., (राज श्रीअश्वसेन सुत), ६८२३७-८(+#) पार्श्वजिन स्तवन-लोद्रवपुर, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा.८, वि. १७४३, पद्य, मूपू., (पासजिणेसर पूजीयै रे), ६८००४-२९(+) पार्श्वजिन स्तवन-लोद्रवपुरमंडण, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (लुलि लुलि वंदो हो), ६४१५१-१३(+) पार्श्वजिन स्तवन-लोद्रवपुरमंडन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (हो सुणि सांवलिया), ६८००४-४६(+) पार्श्वजिन स्तवन-लोद्रवपुरमंडन चिंतामणि, मु. शांतिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (उछरंग धर मनमाहि), ६८००४-३०(+) पार्श्वजिन स्तवन-लोद्रवमंडन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (वाल्हा सांभलि सेवक), ६७७२०-२(+-) पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणा, मु. जिण, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (वरकाणै वरमंडण पास), ६४२२६-७(२) पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणा, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वरकाणापुर राजीया), ६५२३६-२२(+) पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणा तीर्थ, ग.शांतिविजय पंडित, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (वरकाणै पास विराजै), ६७०३६-४१(+) पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणामंडन, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (काइ रे जीव तुं मन), ६८४५१-१३ पार्श्वजिन स्तवन-वरकानकपुर मंडन, मु. जिनलब्धि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (त्रिभुवन नायक सब अघ), ६८२८४-१० पार्श्वजिन स्तवन-वाराणसीमंडन, मा.गु., गा. ६, वि. १९००, पद्य, मूपू., (पास मोरी वीनतडी हो), ६७७१९-१(-) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, ग. कल्याणसागर, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (समरथ साहिब सांवलो), ६७०४३-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पासजिन), ६५२२५-१०(+), ६५२४५-४(+),
६८२५६-१७(+), ६८२५६-१२७(+), ६७७३४-२, ६८४५१-७, ६२९९१-५(#) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. ज्ञानविमलसूरि, म.,मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आवो अम्हचे चित्त), ६३४६४-९७(#) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (एहीज उत्तम काम बीजु), ६३४६४-९४(#) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पास संखेसर भेटीइ रे), ६३४६४-३६(#) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभुजी पास संखेसरो), ६३४६४-३७(#) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. धर्मविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. १२८, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर समरीने), ६८४२१(+#$) (२) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीउपासगदशांगसूत्र), ६८४२१(+#$) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. धीर, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (अजब ज्योत हेरी जिन), ६८०७१-४४(-) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (भवि तुमे वंदो रे), ६८०७१-४८(२) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. माणिक्य, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रीत बनी तो नीभाय), ६८०७१-२१.) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा.६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अब मोहे ऐसी आय बनी श),
६७९१९-११(+), ६८४०१-३ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. रंग, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (दिलरंजन जिनराजजी), ६७८३९-११ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. विजयहर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तार श्रीपाससंखेसरा), ६३३७८-९ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. विनयशील, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सकल मुरत श्रीपास), ६७७२२-६(-2) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. हंसभुवनसूरि, मा.गु., गा. ४६, वि. १६१०, पद्य, मूपू., (सासना देवी मन धरीए), ६७९९१-२१(+#)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २
पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (लगी लगी आंखीआने रही), ६३६२१-२(#), ६४६०८-१०-०१
पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अंतरजामी सुण अलवेसर), ६८२५६-१२२(+) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (रहिनें रहिनें रहिनें), ६३३७४-१०(+) पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरतीर्थ, मु. शांतिविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (श्रीसंखेसर पासजी तुझ), ६८४५१-१६ पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरमंडण, मु. विद्याचंद्र, मा.गु. गा. २७. वि. १६६०, पद्य, मूपु. ( सरसति मात पसाउले एतो), ६७९८३-३(५),
',
६७९७८-१३(३)
पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरमंडन, मु. भावमुनि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू. (प्रभु नेक नजरि करि ), ६३६१२-२(+) पार्श्वजिन स्तवन- श्रीपुरमंडण, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रीपुर पास सुहामणो), ६३५४५-१५ पार्श्वजिन स्तवन-समवसरण विचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., ढा. २, गा. २७, पद्य, मूपू., (श्रीजिनशासन सेहरो जग),
६५३०८-५ (+), ६७८६२-२
"
पार्श्वजिन स्तवन- सम्मेतशिखरतीर्थ, मु. खुशालचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे. (तुम तो भले विराजो जी), ६८२५६-१३१(+) पार्श्वजिन स्तवन- सामल, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, म्पू, (आज सुखी सुविहाणडा हे), ६३४६४-१३२(१) पार्श्वजिन स्तवन- सोजत, मु. केसर, पुहिं., गा. ७, वि. १८४२, पद्य, मूपू., ( पासजिणेसर साहिबाजी), ६८२३७-१५(+#) पार्श्वजिन स्तवन- स्तंभन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, भूपू (सदा आनंद नयन मेरे), ६३४६४-२८(१) पार्श्वजिन स्तवन- स्तंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु, डा. ५, गा. १८, पद्य, मूपू., (प्रभु प्रणमुं रे पास), ६४१५१-२४(+), ६४८३४ पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (थंभणपुर श्रीपास जिणं), ६८३४४-९(+#)
"
:
पार्श्वजिन स्तुति, पन्या, खुशालविजय, मा.गु गा. ९ वि. १९वी पद्य, भूपू (प्रभूजी माहरा रे साह), ६७०४४-११(*)
,
+
पार्श्वजिन स्तुति, पंन्या. खुशालविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वंछितपुरण पास जिणंदा), ६७०४४-६ (+)
पार्श्वजिन स्तुति, आ.जिनभक्तिसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू. (अश्वसेन नरेसर वामा), ६३२४७-२४(+०), ६७०७४-७(+),
६३००६-११, ६८१२३-१८
पार्श्वजिन स्तुति, श्राव, बनारसीदास, पुहिं, सवै ३, पद्य, दि., (करम भरम जग तिमर हरन), ६८४१२-६ (०)
पार्श्वजिन स्तुति - चिंतामणी, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अचिंत चिंतामनि पारस), ६५२४९-१० (+#), ६८४५१-८, ६८३५१-१०($) पार्श्वजिन स्तुति - प्रार्थना, रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (पार्श्वनाथ के नामथी), ६८२३०-१०)
पार्श्वजिन स्तुति- फतेपुरमंडन, मु. कनक कवि, मा.गु.. गा. ४, पद्य, भूपू (फतेपुरमंडण पासजिणेसर), ६७८९२-४
,
पार्श्वजिन स्तुति-भीनमालमंडन पुरुषादाणी, उपा. कुशलसागर, मा.गु, गा. ४, पद्य, म्पू, (प्रभु पास जिणंद पुरि), ६४६०८-३ (-*३) पार्श्वजिन स्तुति-वरकाणा, पंन्या. कमलविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वरकाणई वर मंडण पास), ६७८६६-११ पार्श्वजिन स्तुति - सादडीमंडन, मु. वल्लभसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सादडीये पासजीणंद सोह), ६४६०८-३१(#) पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. चरणप्रमोद - शिष्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सकल सदा फल चिंतामणि), ६७०८५-१ पार्श्वजिन स्तोत्र - रोगप्रहार, मु. राम, पुहिं., गा. १५, पद्य, मूपू., ( पारश प्रभू तुम नाम), ६५५९८-३(#) पार्श्वजिन स्तोत्र- शंखेश्वरतीर्थ, मु. मेघराज, मा.गु.. गा. ५. पद्य, भूपू (श्रीसकल सार सुरतरु), ६७७८८-२ पार्श्वजिन हमची गोडीजी, मु. लब्धिसागर, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (पाटणधी पाराकर आव्या), ६५२४७-६ (+) पार्श्वजिन होरी, मु. जिनचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (मेरे पास प्रभुजी के), ६३६१६-२६ पार्श्वजिन होरी, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (रंग मच्यो जिनद्वार), ६७९९१-४(+#)
पार्श्वजिन होरी, मु. रत्नसागर, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (रंग मच्यो जिनद्वार), ६८०२६-५(+), ६४६०८-४०(#) पार्श्वजिन होरी - चिंतामणी, मु. जिनलाभ, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (जिन मिंदिर जयकार ऐसे), ६८०२६-६ (+) पार्श्वपुराण, जै.क. भूधरदास, पुहिं., अ. ९, वि. १७८९, पद्य, दि., (मोह महातम दलन दिन,), ६५१९०-२(#$) पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., डा. ८. गा. १०२, वि. १७२९, पद्य, म्पू. (सकल सिद्धिदायक सदा), ६३४१५(*),
"
६८१००(+०), ६८२३४-१० (+), ६७७६०, ६८०४०, ६८०८१-१(०३), ६७९५१-५ (5)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६
पुण्यफल सज्झाय, मु. रिखजी, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (--), ६८३५१-९(5) पुण्यसार रास-पुण्याधिकारे, मु. पुण्यकीर्ति, मा.गु., ढा. ९, गा. २०५, वि. १६६६, पद्य, पू., (नाभिराय नंदन नमु), ६३५३८(+),
६७०२७(+#), ६३४३४(#), ६७८८९(#) पुद्गलगीता, मु. चिदानंद, मा.गु., गा. १०८, पद्य, मूपू., (संतो देखीयें बे प्रग), ६८३५७ पुरंदरकुमार रास, वा. मालदेव, मा.गु., ढा. १२, गा. ३७६, पद्य, मूपू., (वरदाई श्रुतदेवता), ६३४८६(#), ६३४३३($) पुरुष ७ सुखदुख वर्णन पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, वै., (पहिलौ सुख निरोगी काय), ६७८६३-९ पूर्णिमातिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जिनपति संभव संजम), ६५२१३-१५(+#) पेढालजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रह समे प्रणमुं), ६३४६४-११४(#) पौषदशमीपर्व कथा, रा., गद्य, मूपू., (ध्यात्वा वामेयमहँत), ६८१३५-८(+) प्रतिक्रमण सज्झाय, मु. गंगविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (कर पडिकमणुंभावसुं), ६३६३३-३(+#) प्रतिक्रमण सज्झाय, मु. रामचंद, मा.गु., गा.८, पद्य, श्वे., (मन जाणे पडिकमणो कीधो), ६५२८८-१२ प्रदेशीराजा केशीगणधरसंबंध चौपाई, मु. रतन, मा.गु., गा. ९३, पद्य, श्वे., (प्रदेसीराजाने चीत), ६५२५९(+#) प्रदेशीराजा चौपाई, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., ढा. २२, वि. १८७७, पद्य, स्था., (तिणकालनै तिणसमै जंबू), ६८०८३ प्रदेशीराजा रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. ३३, ग्रं. ११००, वि. १७३४, पद्य, मूपू., (सकल सिद्ध संपद करण), ६४६१५(+) प्रदेशीराजा रास, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. २६१, ग्रं. ३००, पद्य, मूपू., (त्रिभोवन नयणानंदकर), ६३६२२(+#) प्रदेशीराजा रास*, मा.गु., पद्य, म्पू., (वंदण करीने इम कहई ह), ६८४४०(+#$), ६३४६७(#$) प्रभंजनासती सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., ढा. ३, गा. ४९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (गिरि वैताढ्यने उपरे), ६५१८१-१(+$) प्रश्नोत्तर २० द्वार, मा.गु., गद्य, मूपू., (आसीविष कहीयै दंष्टाव), ६८०९२(+) प्रश्नोत्तर बोल, रा., गद्य, मूपू., (प्रथम गुणठाणारा धणी), ६८४३६(+#$) प्रश्नोत्तररत्नमाला के प्रश्नोत्तर संग्रह, मा.गु., प्रश्न. ६५, गद्य, मूपू., (हवै प्रश्नोत्तर रत्न), ६८२०१(#) प्रश्नोत्तर संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (केई कहइ श्रीवीतरागनी), ६३३१५(+#) प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू., (प्रणमुं तुमारा पाय), ६५२१७-५(+#$), ६७९४०-८ प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, मु. कुंअरविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (मन वसि करवू दोहिलू), ६५३०८-१५(+) प्रहलाद कवित, पुहि., का. १, पद्य, वै., (सुरति की तो बरो), ६५०९७-२३(+#) प्रहेलिका दोहा, पुहि., दोहा. १, पद्य, वै., (अहिफण कमल चक्र टणकार), ६८४१२-७(#) प्रहेलिका संग्रह, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (पवन को करें तोल गगन), ६७८६३-१२ प्रहेलिका हरियाली-सज्झाय, मु. ऋषभसागर, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (हं तुज पूछ वात हे), ६३४२२-३(+#) प्राणातिपात प्रथमपापस्थानक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पापस्थानिक पहिलू), ६७८२६-४ प्राणातिपात विरमणव्रत स्वाध्याय, मु. तिलकविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जी हो पहिला समकित), ६३६३३-९(+#) प्रायश्चित्तप्रदान बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञान आसातनाइं जघन्य), ६३५८८-८(+$) प्रास्ताविक कवित्त, क. गिरधर, पुहिं., दोहा. २, पद्य, वै., (साई अपने भ्रात को), ६८४१२-२३(#) प्रास्ताविक कवित्त संग्रह, पुहि., गा. २५, पद्य, (प्रीतिकाज छंडिजै), ६५१९२-३(+#) प्रास्ताविक दोहा संग्रह *, मा.गु.,रा., गा. २५, पद्य, वै., (बुरी प्रती भमर की), ६५२४७-२(+#), ६५२४७-१५(+#), ६५१८७-४ प्रियतमविरह पद, मुहम्मद काजी, मा.गु., गा. ६, पद्य, (झरी झरी मेरी नाव), ६४१७२-२० प्रियदर्शनासती सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (सतीया ए समीप रुपोयो), ६४००२-९(+), ६४१७२-१६ प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ११, गा. २२०, वि. १६७२, पद्य, मूपू., (प्रणमुंसद्गुरु पाय),
६३३९६(+), ६३६२३-१(+), ६४१६८(+$), ६४१८१(+#), ६४२३५(+$), ६३४३१(#$), ६५२५२(#), ६८४१५-१(#) प्रेमचंद दोहा संग्रह, क. प्रेमचंद, मा.गु., दोहा. ४, पद्य, जै.?, (प्रेमा प्रेम दिखाल), ६५२४७-१४(+#) प्रेमपत्री, मा.गु., पत्र. ५, दोहा. १३९, प+ग., वै., (ससिवदनी मृगलोचनी), ६४२०२-१(+)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
"
बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (--), ६८४१८ (+) बलचंद रास, ऋ. सबलदास, मा.गु., डा. १३. वि. १८६०, पद्य, वे (श्रीशांतिनाथ जिनना), ६४००७ बलभद्रमुनि सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मूपू., (द्वारिका हुती निकल), ६७६९९-१(+#) बारराशि वर्णमाला, मा.गु., गद्य, (चु चे चो ला लिलु), ६४००४-२
"
बारव्रत छपा, मु. प्रकाशसंघ, मा.गु, गा. १३. वि. १८७५, पद्य, श्वे. (जीवदया रे नीत पाली), ६८२०२-२ बारसतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जे बारसने दिने ज्ञान), ६५२१३-१२(+#) बीजतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (बीज कहे भव्य जीवने), ६५२१७-९(+#) बीजतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जंबूद्वीपे अहनीस), ६५२१३-२(+#)
बीजतिथि स्तुति, आ. ज्ञानसागरसूरि, मा.गु गा. ४. वि. १५वी, पद्य, मूपू (अजवाली बीजे चंदा), ६७८९२-१६
""
तिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (दिन सकल मनोहर बीज), ६४६३७-४(+#), ६५२४८-३(+$),
६७९२०-१(+), ६८२३४-५ (१), ६७७२६-५, ६७८९२-३ ६८२८४-६ ६४०११-१(०)
बुढापा रास, मु. चंद, रा. ढा. २२, वि. १८३६, पद्य, मूपू., (दया ज माता वीनवु), ६३५८७(+), ६७०६५ (+), ६३६२१-३(#) बुढ़ापा रास, श्राव. मोतीचंद, रा. ढा. २२, वि. १८३६, पद्य, मूपू (दया ज माता वीनवु), ६७७६१)
"
बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., गा. ६२, पद्य, मूपू. (प्रणमुं देवी अंबाई), ६७९९१-६ (०) ६३३८६-१, ६६३३७-३,
,
६७८३७-२, ६५२४६-१(#5), ६८४४३-३ (#), ६३३८८-४($)
बुध रास, मा.गु, गा. ५, पद्य, श्वे. (एक अमृत तजि विष पीजे), ६७७२२-४(क)
"
ब्राह्मीसुंदरी सज्झाय, रा., गा. २२, पद्य, श्वे. (रिषभदेवजी रै राणी दो), ६४६०२-३३ ()
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भजन संग्रह, कबीरदास संत, मा.गु., अ. २६, पद्य, वै., ( खलक सब रेनका स्वप्ना), ६७९६१-८ (+)
भरतचक्रवर्ती चौपाई, क. नंदलाल, मा.गु., गा. १८, वि. १८९७, पद्य, श्वे., (नगर आजु दाने विषे), ६५२४९-२(+#) भरतचक्रवर्ती रत्नविचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (भरतचक्रवर्तिनइ चक्र), ६३४२५-२(+)
भरतचक्रवर्ती सज्झाय, मु. इंद्रजी ऋषि, मा.गु., गा. ११, पद्य, वे., ( साहेबा प्रेम धरी प्र), ६४९९६ - १५ (+)
(आरीसारा भुवनमें बेठा), ६३९५७-२०(+)
"
भरतचक्रवर्ती सज्झाय, रा. डा. २, पद्य, मूपू. भरतचक्रवर्ती सज्झाय, रा. गा. ५, पद्य, वे (एक जणारा मन मे ऊपनी), ६३३९०-१७(+) भरतबाहुबली छंद, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु. गा. ८०, पद्य, म्पू., (--), ६७९३७-१(००३) भरतबाहुबली संवाद, मु, कुशल, मा.गु, गा. ६४, पद्य, भूपू (सारद माता समरीयें), ६३५७०(४)
"
भरतबाहुबली सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (वीरा सुणो बाहुबलि), ६३४६४-४६(#)
भरतबाहुबली सज्झाच, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू. (बाहुबल चारित लीयो), ६७८५६-२(+), ६८२५६-६१(-),
६४९५५-५४(#)
भरतबाहुबली सज्झाव, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (राजतणा अति लोभीया), ६३३७४-४(०), ६३३९७-१६(+), ६४१९६-२(+), ६८२५६-६५ ६५२८८-१५, ६७९४० ७, ६८४५१-२०
भले का अर्थ- महावीरजिन पाठशालापंडित संवादगर्भित, मु. महानंद, मा.गु., वि. १८३९, गद्य, थे. (प्रभु नीशाले बैठा),
"
६७९००-८(+४)
भवदेवनागिला सज्झाय, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., गा. ११, वि. १८७२, पद्य, स्था., ( भवदेव जागी मोहनी तज), ६४००२-२ (+), ६३८९४-३, ६४९७२-१२, ६७७३७-९(5)
भवदेवनागिला सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (भवदेव भाई घरे आवीयो), ६३९८३-१($), ६७७१९-१९) भवनपतीदेव देह आयु भवनादि विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (भवनपती देवतानउ), ६५२०४-६१ (+) भवानीदेवी छंद, उदोजी, मा.गु., गा. ४३, पद्य, वै., (ॐ समधरन सचीवाय इम्रत), ६७३७२-६(+४) भाग्यमहिमा सवैया, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., ( भाग्य थकी ऋद्धि), ६७९९१-३०(+#) भारमलजी गुण स्तवन, रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (सोवन रतन जराय हो मत), ६४६०२-३)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६
भारमलजी महाराज गुण ढाल, रा., ढा. २, गा. १५, वि. १८७२, पद्य, श्वे., (भगवंत श्रीमहावीरजी), ६४६०२-२(-) भारमलजी महाराज गुण ढाल, रा., ढा. १, गा. २७, वि. १८७७, पद्य, श्वे., (व्रधमान जिणवर तणो), ६४६०२-४(-) भारमलजी महाराज गुण ढाल, रा., गा. २१, वि. १८७८, पद्य, श्वे., (सामी भारीमल गुण भारी), ६४६०२-५(-) भावपूजा सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (ज्ञाननीर नीरमल आणी), ६४१५५-२६(#) भावपूजा स्तवन, ग. मेघराज, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (सरसत गुरुदेव प्रणमी), ६५२८८-१३, ६८१६३-२५ भिखणजीस्वामिगुण सज्झाय, श्राव. गिरधरदास, रा., गा. ४९, पद्य, ते., (पहु उठी प्रणमु सदा), ६४६०२-१(-) भीमविजयगुणवर्णन रास, मु. लाल, मा.गु., गा. १०२, पद्य, स्था., (सरसतिमाता वचन सुभ), ६७०१९ भृगुपुरोहित चौपाई, मु. जयरंग, मा.गु., ढा. २३, गा. १४४०, वि. १८७२, पद्य, मूपू., (वर्धमान जिनवर चरण), ६८३३२(#) भैरव गीत, पुहि., गा. १२, पद्य, वै., (--), ६७०५५-१९(-#$) भैरवदेव छंद, रा., पद्य, मूपू., वै., (नमो आद भैरु भूजा तेज), ६३९५३-२(#) भोजनछत्रीसी-महावीरजिनस्तुतिगर्भित, आ. दयासागरसूरि, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (त्रिशला राणी कहै), ६४२२६-९(#$) मंगलकलश चौपाई, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. २१, वि. १७१४, पद्य, मूपू., (पास जिनेसर पय कमल), ६७७०१(+#) मंगलकलश चौपाई, मु. लक्ष्मीहर्ष, मा.गु., ढा. २७, वि. १७१९, पद्य, मूपू., (प्रह उठी नीत प्रणमीय), ६४५९२(+) मंगलकलश फाग, वा. कनकसोम, मा.गु., गा. १४२, वि. १६४९, पद्य, मूपू., (सासणदेवीय सामिणी ए), ६३५४६-२(+#),
६३५८६(+#), ६८०४१ मंगलकलश रास, मु. दीप्तिविजय, मा.गु., वि. १७४९, पद्य, मूपू., (प्रणमुंसरसति स्वामी), ६७९९२(2) मंगल पद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (अरिहंत नमो नमो सिद्ध), ६८२५६-१५८(+) मंगल स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (प्रणमीय शासन देवता), ६७०५७-१(६) मंत्र संग्रह*, मा.गु., गद्य, वै., (लीली बलकी तुंबडी), ६३३०३-२, ६७८५२-६(-) मताग्रही सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १५, वि. १८४०, पद्य, स्था., (एणे जगमें केइ नरनारी), ६८३१०-३६(+#) मत्स्योदरकुमार रास, ग.साधुकीर्ति, मा.गु., गा. १५७, पद्य, मूपू., (--), ६३४१४(+#$) मदनरेखासतीरास, वा. मतिशेखर, मा.गु., गा. ३६०, वि. १५३७, पद्य, मूपू., (श्रीजिणचउवीसइ नमी), ६७०२८(+) मदनरेखासतीरास, मु. विनयचंद, मा.गु., ढा. ६, वि. १८७०, पद्य, स्था., (आदि धरम धोरी प्रथम), ६४०१३(#$) मदनरेखासती रास, मु. हीर ऋषि, मा.गु., गा. १५७, वि. १८१४, पद्य, मूपू., (जोवो मांस दारु थकी), ६८०४२(+$) मदनरेखासती रास, मा.गु., गा. १८८, पद्य, मूपू., (जूआ मांस दारु तणी), ६३९५७-३(+), ६८१४२(#$) मदनरेखासती सज्झाय, मु. राजसमुद्र, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (लघु बंधव जुगबाहूनो), ६३५४५-९ मधुबिंदु सज्झाय, मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., ढा. ५, गा. १०, पद्य, मूपू., (सरसति मुझने रे मात), ६३३७८-२, ६४४८०-२,
६४१५५-५२(#), ६५१८४-२(#) मनकमुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा.१०, पद्य, मूपू., (नमोरे नमो मनक), ६३३७८-१४ मनगुणतीसी सज्झाय, मु. गोविंद, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (जीवडा म मेलै मन मोकल), ६७०३६-२३(+) मनमांकड सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मन मांकडलो आण न माने), ६८२८४-९ मनुष्यगति आगत जीव ५ लक्षण, मा.गु., गद्य, मूपू., (नीर्लोभी १ विनैवंत २), ६५२०४-६७(+) मरद वर्णन कवित्त, मु. उदयराज, पुहि., का. १, पद्य, मूपू., (मरद देग अर तेग मर्द), ६५१९२-१३(+#) मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १६, वि. १८५०, पद्य, स्था., (जंबुदीपै हो भरत), ६८४०८-२(+) मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १३, वि. १८३७, पद्य, श्वे., (नगरी वनीता भली वीर), ६८३१०-१३(+#) मरुदेवीमाता सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (श्रीमातामरूदेव्या रे), ६७८१०-७ मरुदेवीमाता सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सहस चउसट्ठि वरमणि), ६८२५६-१५५(+) मलयसुंदरी रास, मु. कांतिविजय, मा.गु., ख. ४ ढाल ९१, गा. १०५२, वि. १७७५, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसुखसंपदा), ६८३६४-१(+)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ मलयासुंदरीरास, मु. जिनहर्ष, मा.गु.,खं. ४ ढाल १४८, गा. ३००६, वि. १७५१, पद्य, मूपू., (श्रीशांतिसर सोलमो), ६४५७८(+#),
६८१९६(+$) मल्लिजिन-नेमिजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १६, वि. १८४२, पद्य, स्था., (मलीकुमरी ने नेमनाथो), ६८३१०-३३(+#),
६८३९७-४ मल्लिजिन-पार्श्वजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १३, वि. १८४२, पद्य, श्वे., (हरिआने रंग भरिआ हो), ६८३१०-३८(+#) मल्लिजिन स्तवन, मु. अमी ऋषि, पुहिं., गा.७, पद्य, श्वे., (नाथ कैसे भूपति को सम), ६४६०७-२०(+) मल्लिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा.११, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सेवक कीम अवगणीये हो), ६५२३२-६(+#) मल्लिजिन स्तवन, मु. कुशललाभ, मा.गु., ढा. ५, वि. १७५६, पद्य, मूपू., (नवपद समरी मन शुद्ध), ६७०५४ मल्लिजिन स्तवन, मु. जीवराज कवि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (पंच जिनवर जांणियइ इम), ६७०३६-१५(+) मल्लिजिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (त्रिभुवन प्रभु रे), ६७८६४-३(+#) मल्लिजिन स्तवन, ग. फतेंद्रसागर, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (मल्लिजिणेसर गाउरंग), ६७९४०-२१ मल्लिजिन स्तवन, आ. राजेंद्रसूरि, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (मोह कहो किम मेटु), ६७०७५-२३ मल्लिजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहिं., गा.५, पद्य, मूपू., (मोहे केसे तारोगे दीन), ६३६१६-२४ महाकाली मंत्र, मा.गु., गद्य, वै., (ॐ नमो आदेस गुरु कुः), ६५२०१-१३(+) महादंडक चौपाई, मु. विजयकीर्ति भट्टारक, मा.गु., अधि. ४१, वि. १८२९, पद्य, मूपू., (वर्द्धमान नित्य प्रत), ६४४७२ महाबलमलयासुंदरी चौपाई, मु. भक्तविमल, मा.गु., खं. ४, वि. १८५२, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथ प्रणम), ६७९९६(+), ६८१४६ महाभद्रजिन स्तवन, मु. शांतिविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (विहरमान अढारमा रे), ६५२१७-४(+#s), ६४१५५-२३(#) महावीर-गौतम संवाद, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., गा. ११८, पद्य, मूपू., (वरदै तूं वरदायनी), ६५२०७ महावीरजिन २७ भव, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहीले भवे जंबुधीप), ६३९६६(5) महावीरजिन २७ भव वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (अथ हिवइ श्रीमहावीरस), ६८३३७-३ महावीरजिन २७ भव स्तवन, पुहिं., पद्य, श्वे., (नमो देव अरिहंत को), ६५१९०-१(#$) महावीरजिन गरबी, मु. अमी ऋषि, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (माने महेर करीने वेगा), ६४६०७-४८(+) महावीरजिन गहुंली, मु. विद्यारंग, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (सहीया वीर जिणंद), ६४६२२-६ महावीरजिन गहुली, मु. शिवचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चंपानयर उद्यान हो), ६८०३६-७ महावीरजिन गहुली, मु. शिवचंद्र, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (वनपालक इम वीनवे रे), ६४६२२-८ महावीरजिन गहुंली, मु. शिवचंद्र, पुहि., गा. ९, पद्य, मूपू., (सिरी विरजिणेसर सामि), ६४६२२-७ महावीरजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वंदु जगदाधार सार सिव), ६७०७४-१९(+), ६७०७६-६(+),
६८२१४-१२(+) महावीरजिन चौढालियो, मु. उदेसींघ, मा.गु., ढा. ४, गा. ३४, वि. १७६८, पद्य, मूपू., (महावीर प्रणमुंसदा), ६५२०१-२(+$) महावीरजिनजन्म महोत्सव, मा.गु., गद्य, मूपू., (हिवइ भगवंत नइ चउसठि), ६८३३७-४($) महावीरजिन तप स्तवन, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (गौतमस्वामीजी बुद्धि), ६३३९०-११(+), ६७९६१-१२(+#$), ६५२४०-९ महावीरजिन देशना, मु. शिवचंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (आज दियै प्रभुवीर), ६८०३६-६ महावीरजिन देशना-विशालानगरी, मु. शिवचंद्र, पुहिं., गा.८, पद्य, मूपू., (इक दिन वीरजिणेसरू रे), ६४६२२-५ महावीरजिन निसाणी-बामणवाडजीतीर्थ, मु. हर्षमाणिक्य, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (श्रीमाता सरसती सेवक), ६७९८३-६(#$) महावीरजिन पद, मु. कांतिविजय, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (महावीर थारी वाणी), ६८४५१-१० महावीरजिन पद, मु. जगराम, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (भेरु महावीर जिनमुक्त), ६५०९७-८(+#) महावीरजिन पद, मु. जिनचंद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पावापुर महावीर जिणेस), ६८२५६-९५(+) महावीरजिन पद, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (हाजी प्रभु चंपानगर), ६७७३७-७(#) महावीरजिन पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ११, पद्य, मूपू., (मै ऐसा देख्या सतगुरु), ६५३१५-३
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६ महावीरजिन पद, मु. शिवचंद्र, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (इक दिन प्रभु वीर सम), ६४६२२-४ महावीरजिन पद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (आज चलो तुमे पावापुर), ६८००४-५१(+) महावीरजिन पद-कुंडलपुरमंडन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद. ४, पद्य, मूपू., (मेरे मन वस रह्यो), ६३६१६-३ महावीरजिन परिवार स्तवन, क. कमलविजय, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (वीरजिनेसर सासनसार), ६७९९१-१३(+#) महावीरजिनपूजा स्तवन, मु. जयसागर, मा.गु., गा.१०, पद्य, मूपू., (पूजा करज्यो रे भवियण), ६८२४९-१० महावीरजिन बधाई, मु. न्यायसागर, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (बाजीत रंग वधाई नगरमा), ६८०७१-३४(-) महावीरजिन बधाई, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (होये बाजत रंग बधाई), ६७७१९-४(-) । महावीरजिन विज्ञप्तिस्तवन, पं. दोलतरुचि, मा.गु., ढा. ५, गा. ५७, पद्य, मूपू, (वंदु सुमति पार्श्वजी), ६७७२१-९(#) महावीरजिन विनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (वीर सुणो मुज विनती),
६३३७४-२५(+), ६४१५१-६(+), ६५२२५-१(+$), ६७९७१-३(+#), ६८०२६-१४(+-), ६८२५६-३०(+), ६८४५१-१८,
६७७००-१(-) महावीरजिन सवैया, मु.हीर, मा.गु., गा. २, पद्य, श्वे., (श्रीमहावीर वीर सुर), ६७७२२-७(-2) महावीरजिन स्तवन, मु. अमी ऋषि, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (आज हम महाविरजिनंद के), ६४६०७-१२(+) महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, वि. १७८९, पद्य, मूपू., (जगपति तारक श्रीजिनदे), ६७८३९-३ महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (नीजरां रहस्यांजी), ६३३७४-१३(+), ६३६१६-२० महावीरजिन स्तवन, मु. ऋषभदास, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (वीर जीणंद चोवीसमो), ६८१६३-३१ महावीरजिन स्तवन, उपा. क्षमाकल्याण, पुहिं., गा.५, पद्य, म्पू., (सो प्रभु मेरे वीर), ६८००४-१७(+) महावीरजिन स्तवन, पंन्या. खुशालविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (मोरा जिनजी वीरजिणेसर), ६७०४४-१०(+) महावीरजिन स्तवन, मु. चिदानंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (नवारे नागरमां भेटीइ), ६७९७२-३ महावीरजिन स्तवन, मु. चोथमल ऋषि, रा., गा. १३, पद्य, श्वे., (सासननायक सुखकारी), ६७८१४-२ महावीरजिन स्तवन, मु. जगजीवन, मा.गु., गा. ५, वि. १८२४, पद्य, मूपू., (वालो वीर जिणेशर शिव), ६७८१०-५ महावीरजिन स्तवन, मु. जसविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जीया सुख चावे तेरो), ६८२४९-५ महावीरजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (करुणा कल्पलता श्रीमह), ६४५८०-४ महावीरजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, पुहिं., गा. ९, पद्य, मूपू., (वीर विना वाणी कोण), ६४४०९-१(+#) महावीरजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (वाटडी विलोकुं रे), ६३४६४-४२(#) महावीरजिन स्तवन, मु. ज्ञान, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (सोई अचरीज मन भायो), ६५२३१-३(+) महावीरजिन स्तवन, मु. धर्मचंद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वीर साथे लागी मने), ६८३८०-२८(-) महावीरजिन स्तवन, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (राणी यशोदा हो वीनवे), ६८१६३-१६ महावीरजिन स्तवन, मु. मुक्तिकमल, मा.गु., ढा. ७, गा. ८५, वि. १९७३, पद्य, मूपू., (त्रिशलानंदन प्रणमीए), ६८०५९-३ महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (गिरुआ रे गुण तुम), ६५२४५-५(+),
६२९९१-७(2), ६८४१२-३१(2), ६५२१४-५(६) महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रभु धरी पीठ वैताल), ६७९१९-१०(+) महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रभु बल देखी सुरराज), ६७९१९-९(+) महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (साहिब ध्याया मन मोहन), ६७९१९-७(+) महावीरजिन स्तवन, मु. रतन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रमण पाठक गणधर जसु), ६३३९०-२(+) । महावीरजिन स्तवन, आ. राजेंद्रसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (हारे लाला जोग जुगत), ६७०७५-१७ महावीरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १२, वि. १८३७, पद्य, श्वे., (सिद्धारथ कुल दीपक), ६४१७२-६ महावीरजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (घंट बाजे घनननननन), ६८०७१-९(.) महावीरजिन स्तवन, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., गा. ९, वि. १८६२, पद्य, श्वे., (वीर जिणंद सासण धणी), ६३४९१-४६(+)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ महावीरजिन स्तवन, मु. वल्लभ, पुहिं., गा.१०, पद्य, मूपू., (चरणकमल सेवासुंचाव), ६३९५६-१३(+#) महावीरजिन स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा.८, गा.७९, वि. १७२९, प+ग., मूपू., (सकलसिधदायक सदा चोवीस),
६४४७३(+) महावीरजिन स्तवन, मु. हर्ष, मा.गु., गा. ९, वि. १८४६, पद्य, मूपू., (जिणवर पुरब महादेव), ६८३०२-५(#) महावीरजिन स्तवन, रा., गा. २३, पद्य, मूपू., (सिद्धारथ कुल जनमिया), ६४६०२-२८(-) महावीरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ६७७३५-८(+#$) महावीरजिन स्तवन-२४ दंडक २६ द्वारगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ९१, ग्रं. १६२, पद्य, मूपू., (सुखकर स्वामी वीरजिन),
६३४४२-१(+$) (२) महावीरजिन स्तवन-२४ दंडक २६ द्वारगर्भित-टबार्थ, आ. राजचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ६३४४२-१+$) महावीरजिन स्तवन-२७ भव, मु. लालविजय, मा.गु., ढा. ६, वि. १६६२, पद्य, मूपू., (विमल कमलदल लोयणा), ६३५६९(+#),
६८३५३(+#) महावीरजिन स्तवन-२७ भव, मा.गु., पद्य, मूपू., (पवयणमाता पदकजे), ६८१८८-२(+$) (२) महावीरजिन स्तवन-२७ भव-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ६८१८८-२(+$) महावीरजिन स्तवन-२७ भवविचारगर्भित, मु. हंसराज, मा.गु., ढा. १०, गा. १००, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (सरसति भगवति दिओ
मति), ६३९९२,६८१८९-१, ६४१९४-१(६) महावीरजिन स्तवन-५ कल्याणक, मु.रामविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ५६, वि. १७७३, पद्य, मूपू., (शासननायक शिवकरण वंदु),
६५३०१-१, ६७९०६-१, ६८३८२-१ महावीरजिन स्तवन-अतिचारगर्भित, उपा. धर्मसी, मा.गु., ढा. ४, गा. ३०, पद्य, मूपू., (ए धन सासन वीर जिनवर),
६८२३७-३७(+#) महावीरजिन स्तवन-उपधानतपविधिगर्भित, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. २७, वि. १७उ, पद्य, म्पू., (श्रीवीरजिणेसर सुपरे),
६४१९४-४ महावीरजिन स्तवन-कुंडणपुर, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (कुंडणपुर वरनगर), ६४१६६-२ महावीरजिन स्तवन-कुमतिउत्थापन सुमतिस्थापन, श्राव. शाह वघो, मा.गु., गा. ४०, वि. १७२६, पद्य, मूपू., (श्रीश्रुतदेवीने चरण),
६८२१३-५(+#) महावीरजिन स्तवन-छमासीतप वर्णनगर्भित, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सरसति सामण दो मति), ६७८५६-५(+$), ६७९७०-३ महावीरजिन स्तवन-ज्ञानदर्शनचारित्रसंवादरूपनयमतगर्भित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., ढा.८, गा. ८१, वि. १८२७, पद्य, मूपू.,
(श्रीइंद्रादिक भावथी), ६८१६७-२(2) महावीरजिन स्तवन-तपवर्णन, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सरसत सांमण द्यो मति), ६८००४-५०(+) महावीरजिन स्तवन-निगोदविचारगर्भित, मु. क्षमाप्रमोद, मा.गु., गा. ४८, पद्य, मूपू., (प्रह उठी नमियें सदा), ६८२३५-१,
६८००८-१(६) महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत अनंत गुण), ६७७३५-१(+#), ६७९३८-२(+$),
६८२५६-१०६(+), ६४१९४-५($) महावीरजिन स्तवन-पावापुरी में अंतिमचातुर्मास, रा., गा. १२, पद्य, श्वे., (शासणनायक श्रीवीरजिण), ६४६०२-३२(-) महावीरजिन स्तवन-बांभणवाडा, मा.गु., गा. २, पद्य, श्वे., (अरब देसरो आइय मंडल), ६७७२२-५(-2) महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (समरवि समरथ सारदा), ६७९६५-५(#) महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ६, गा. १४८, ग्रं. २२८,
वि. १७३३, पद्य, मूपू., (प्रणमी श्रीगुरुना पय), ६३४२४($), ६७०८३($) महावीरजिन स्तुति, मु. कुशल, मा.गु., गा.४, पद्य, मूपू., (त्रिभुवनपति ध्यावो), ६७९२०-४(+)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६
५७३ महावीरजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मुरति मनमोहन कंचन), ६३२४७-३०(+#), ६८२५६-१६८(+),
६३००६-१६, ६३०४६-२३(#) महावीरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (बालपणे डाबो पाय चाप), ६३२४७-७(+#), ६३००६-२२, ६३०४६-२७(#),
६८०१८-१२(-) महावीरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वर्धमानजिनवर परम), ६७८९२-११ महावीरिजिन चरित्र-गर्भवास विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवे श्रीवर्द्धमान), ६५२३८-१(#) माणिभद्रवीर आरती, श्राव. श्यामसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (रिमझिम रिमझिम करु), ६८४१२-३०(#) माणिभद्रवीर छंद, मु. उदयकुसल, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (सरस वचन द्यो सरसती), ६७९८०-५(६) माणिभद्रवीर छंद, मनो, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (साचो मणिभद्र वीर), ६७७२१-१०(#$) माणिभद्रवीर छंद, मु. लालकुशल, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (सरसति भगवती भारती), ६७७८८-१ माणिभद्रवीर छंद-मगरवाडामंडन, पा. राजरत्न, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सूरपति सेवित शुभ खाण), ६७०६३-१(६) माधवानल चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. ५५२, वि. १६१६, पद्य, मूपू., (देवि सरसति देवि), ६३३७१(+), ६३०८०,
६८४२९ मानतुंगमानवती रास, अनुपचंद-शिष्य, मा.गु., ढा. ८, वि. १८७०, पद्य, मूपू., (सरी संत जणेसरु नमतां), ६३९७८-२(+#$),
६५२९१(2) मानतुंगमानवती रास, उपा. अभयसोम, मा.गु., ढा. १४, वि. १७२७, पद्य, मूपू., (प्रणमुं माता सरसती), ६८२११-१ मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., ढा. ४७, गा. १०१५, वि. १७६०, पद्य, मूपू.,
(ऋषभजिणंद पदांबुजे), ६३९३२(+), ६४१४०(+#$), ६७९८८(+$), ६८१४१(+#) मानपरिहार सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (मान न करसो रे मानवि), ६७८१०-२ मानपरिहार सज्झाय, मु. सुरत ऋषि, मा.गु., गा. २०, पद्य, श्वे., (मान न करज्यौ रे मानव), ६७८९९-६(+#) मानपरिहार सज्झाय, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (मान न कीजै रे मानवी), ६८४१२-८(#) मानवभव दुर्लभता सज्झाय, नरसिंघदास, रा., गा. ९, वि. १८७९, पद्य, स्था., (दुलभ लाधो मानवभव का), ६४१७२-२ मिच्छामिदुक्कडं भांगा, मा.गु., गद्य, मूपू., (१४ भेद नरकना सातनरकम), ६३५८८-१(क) मुनिगुण जयमाल, मु. जिणदास, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (सकल मुनीस्वरो नमि), ६५५८१-४ मुनिगुण सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. ९, पद्य, स्था., (मानवभव पायो टाणो नो), ६८३१०-२१(+#), ६८३९७-१३ मुनिगुण सवैया, रा., गा. ३६, पद्य, श्वे., (पाप पंथ परहर मोख पंथ), ६४६०२-६(-) मुनिपति चौपाई, मु. धर्ममंदिर, मा.गु., खं. ४ ढाल ६५, गा. १०२०, वि. १७२५, पद्य, मूपू., (शंखेसर सुखकरू नमता), ६३४६०,
६३३६५($) मुनिपति रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. ९३, गा. ४००५, वि. १७६१, पद्य, मूपू., (सकल सुख मंगल करण), ६८३६७(+) मुनिमालिका स्तवन, ग. चारित्रसिंह, मा.गु., गा. ३६, वि. १६३६, पद्य, मूपू., (ऋषभ प्रमुख जिन पय), ६५२७०(+),
६७९१३-१६(+#), ६७९६०-१(+#s), ६८२५६-१२८(+), ६७०५२-४ मुनिविजयतिलक सूरिपदस्थापन रास, मु. दर्शनविजय, मा.गु., गा. १९८, वि. १६७३, पद्य, मूपू., (आदिजिनादिक जिनवरु),
६३५०९(8) मुनिसुव्रतजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीजिनना गुण गाउं), ६३४६४-५९(#) मुनिसुव्रतजिन स्तवन, आ. राजेंद्रसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मुनीसुव्रत महाराज का), ६७०७५-१८ मुहपति पडिलेहण के २५ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (सूत्र अर्थसाचो सद्द), ६८२५६-९(+), ६३९९९-३(#) मुहपत्तिपडिलेहणविधि स्तवन, ग. लब्धिवल्लभ, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (वर्धमान जिनवर तणा), ६५९७८-२(+) मूढशिक्षा अष्टपदी, पुहिं., गा. ८, पद्य, दि., (ऐसे क्युं प्रभु पाईइ), ६७९७०-४(६) मूत्रपरीक्षा, मा.गु., श्लो. ३४, पद्य, वै., (पश्चात् रजनीयामे घटि), ६३४५४-५(+#)
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५७४
देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ मूल नक्षत्र पाया, सहदेव, मा.गु., गा. ४, पद्य, (जेठ फागुण मृगिसरे), ६८०७१-१६(-) मृगांककुमार रास, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., गा. १९४, वि. १६४९, पद्य, मूपू., (सरसति सामिणि वीनवु), ६३१३७(+#$) मृगांकलेखा चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ६२, वि. १८३८, पद्य, श्वे., (आदेसर जिन आददे चोवीस), ६८१४८(+),
६५२८१(६) मृगापुत्र चौपाई, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. १०, गा. १२८, वि. १७१५, पद्य, मूपू., (परतक्षि प्रणमुवीर), ६५२६३(+) मृगापुत्र सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (पुरसुग्रीव सोहामणो), ६४१५५-३८(#) मृगापुत्र सज्झाय, मु.खेम, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (सुगरीपुर नगर सोहामणौ), ६५९६०-११(+), ६७७३५-६(+#) मृगावतीसती चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु.,खं. ३ ढाल ३७, गा. ७४५, ग्रं. ११००, वि. १६६८, पद्य, मूपू., (समरु सरसति
सामिणी), ६३९५५(+#), ६८१०८(+) मृगावतीसती रास, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., गा. ४२१, पद्य, मूपू., (सिद्धारथ नरपति कुलिं), ६३३८१(+$) मृगावतीसती सज्झाय, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., गा. ३९, पद्य, मूपू., (साधवीयै ज्ञान लह्यो), ६७०३६-२६(+) मेघकुमार चौढालिया, क. कनक, मा.गु., ढा. ४, गा. ४७, पद्य, मूपू., (देस मगधमाहे जाणीयइ), ६७९१३-४(+#), ६७०५९-१(#) मेघकुमार चौढालियो, मु. जादव, मा.गु., ढा. ४, गा. २३, पद्य, श्वे., (प्रथम गणधर गुण नीलो), ६८४१२-१३(#), ६७०५५-२८(-2) मेघकुमार सज्झाय, मु. अमर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धारणी मनावे रे मेघ), ६७९९१-९(+#), ६३५४५-६ मेघकुमार सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धारणी मनावे रे मेघ), ६८३८०-१६(-) मेघकुमार सज्झाय, मु. पुनो, रा., गा. २२, पद्य, श्वे., (वीरजिणंद समोसर्या जी), ६७९४६-११(-) मेघकुमार सज्झाय, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (धारणी मनावे रे मेघकु), ६७९७८-६(5) मेघकुमार सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धारणी मनावेरे मेघ), ६४४८०-३, ६७९४०-१५ मेघकुमार सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. १४, पद्य, स्था., (मगधाधिप मोटा महीपाल), ६३४९१-३६(+) मेघमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. १७, पद्य, स्था., (मेघकुंवर सेणकनो बेटो), ६४१६६-१ मेघरथराजा लावणी, मु. अमी ऋषि, पुहि., गा. १४, वि. १९५१, पद्य, मूपू., (श्रीमेघरथ राजा जीव), ६४६०७-२५(+) मेघरथराजा सज्झाय, मु. रायचंद, मा.गु., गा. २१, वि. १७९७, पद्य, श्वे., (दशमें भवे श्रीशांति), ६३३७४-१७(+) मेतारजमुनि चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. २०, वि. १८४९, पद्य, श्वे., (सासणनायक समरीये), ६८२३८(-2) मेतारजमुनि सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रेणिक राजा तणौ रे), ६७८९९-३(+#), ६७९४०-२२(६) मेवाडदेश वर्णन छंद, क. जिनेंद्र, रा., गा. १२, वि. १८१४, पद्य, श्वे.?, (मन धरी माता भारती), ६६६८९-२ मोतीकपासीया संबंध, मु. श्रीसार, मा.गु., ढा. ५, गा. १०३, वि. १६८९, पद्य, मूपू., (सुंदर रुप सोहामणो), ६७०४५, ६८०८०(#) मोहनीय कर्मबंध के ३० स्थानक बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (एजे त्रस पाणी जीवनइ), ६४६३७-२०(+#) मौनएकादशीतप विधि, मा.गु., गद्य, मपू., (प्रथम इरियावही तस्सु), ६३५८८-६(+), ६८१३१-६(+), ६३३१९-६($) मौनएकादशीपर्व कथा, रा., गद्य, मूपू., (सिरिवीरं नमिऊण पुच्छ), ६८१३५-७(+) मौनएकादशीपर्व देववंदन विधि, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, मूपू., (सयल संपत्ति सयल), ६८३५०, ६८४४७(5) मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. २५, वि. १७६९, पद्य, मूपू., (द्वारिकानयरी समोसय), ६३६२७(+),
६४१६९-४(+) मौनएकादशीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. ४२, वि. १७९५, पद्य, मूपू., (जगपति नायक नेमिजिणंद), ६७०५७-८ मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., ढा. ५, गा. ४२, वि. १७८१, पद्य, मूपू., (शांतिकरण श्रीशांतिजी), ६५२८४-३ मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १३, वि. १६८१, पद्य, मूपू., (समवसरण बेठा भगवंत), ६५२२५-४(+),
६५९६०-१०(+), ६८२३७-३५(+#), ६५२२२-५, ६३५६१-३(#) मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (एकादशी अति रुअडी), ६४१६९-३(+), ६४६३७-५(+#),
६७९२०-२(+), ६७८९२-५, ६४०११-५(#)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६
५७५ मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. जिनचंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अरनाथ जिनेश्वर), ६३२४७-४०(+#), ६७०७४-१२(+),
६८२५६-७३(+) मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (गौतम बोले ग्रंथ), ६७७२६-३ मौनएकादशीपर्व स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (नेमिजिन उपदेशी मौनएक), ६४०११-९(#) मौनएकादशी स्तवन, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (सरसती सामीनि पाय नमी), ६४१६९-२(+) यादवकुलविस्तार वर्णन, मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रथम हरीवर्ष क्षेत), ६५२५८(+#$) युगप्रधान विवरण कोष्टक, मा.गु., को., मूपू., (--), ६४९४५(१) युगमंधरजिन गीत, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सइमुख हुन सकुं कही), ६३५४३-४(5) युगमंधरजिन स्तवन, पं. जिनविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (काया रे पामी अति), ६८१६३-३०, ६७०२०-७(#) योगरत्नाकर, वा. नयनशेखर, मा.गु.,ग्रं. ९०००, वि. १७३६, पद्य, मूपू., (सरसति सुखदायक सदा), ६८२५५(+) यौवनपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २५, वि. १८४०, पद्य, स्था., (पुन जोग नर भव लहो), ६८३१०-३(+#), ६३६२१-५(#$) रतनमहाराजविनंति गीत-मेडता, श्राव. हजारीमल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (विनतडी अवधारीयै नेह), ६८१९५-७(+) रतनसीगुरु सज्झाय, मु. देवजी, मा.गु., ढा. १०, गा. ४५, पद्य, श्वे., (रतनगुरु गुण मीठडारे), ६३३७४-२०(+) रत्नपालरत्नावती रास-दानाधिकारे, मु. सूरविजय, मा.गु., खं. ३ ढाल ३२, गा. ७७४, वि. १७३२, पद्य, मूपू., (रीषभादिक जिनवर
नमुं), ६८१३८(#) रत्नसारकुमार रास, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. २९९, वि. १५८२, पद्य, मप्., (सरसति हंसगमनि पय), ६३४१७(+$), ६३५०८-२(+#$) रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा.११, पद्य, मूपू., (काउसगव्रत रहनेमि), ६७९४०-३ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, पुहि., गा. १९, पद्य, मूपू., (देखी मन देवर का), ६४१५५-२५(2) रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (पेखी पसु रथ वालीयो), ६५२४७-७(+#) रथनेमिराजिमती सज्झाय, आ. कानजी, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (काउसग थकी रहनेमि), ६८१६३-४० रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. जिनचंदसूरि शिष्य, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (देखी मन देवर का), ६३४२३-३ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (राजिमती नेम भणी चाली), ६३५४५-१३ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. तेजहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (यादव कुलना रे तुझने), ६३९७९-२($) रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (काउसग व्रत रहनेम), ६३३७४-२३(+), ६७८३९-१(६),
६८०७१-३७(-) रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु.रूपविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (प्रणमु सदगुरु पाय), ६८१६३-३५ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. हितविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (प्रणमी सदगुरु पाय), ६४१५५-३२(#) रथनेमिराजिमती सज्झाय, म. हेतविजय. रा..गा. ११. पद्य, मप.. (प्रणमी सदगुरु पाय), ६८३१०-४५(+#) रथनेमिराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (काउसग्ग थकी नेमी), ६८३८०-२५(-) रथनेमिराजीमति गीत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (देवरिया मुनिवर छेडो), ६३४६४-२४(#) रमलशुकनावली, उ., पद्य, (फाल फतेकी अरे यार), ६४०५४-१(+) रमलशुकनावली, पुहि., गद्य, जै., (लहीयान १ कुबजतुदाखील), ६३७३२-२(+) रागमाला, पुहि., दोहा. ३६, पद्य, वै., (स्याम वर्ण तन दुख हर), ६५१९२-१०+#) राजसिंघ कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ६४१८५(+$) राजसिंघ रास, ग. कपूरविजय, मा.गु., ढा. ५३, गा. १३८५, वि. १८२०, पद्य, मूपू., (ऋषी पडिलाभे भावथी), ६४२१८(#$) राजसिंहरत्नवती कथा, मु. गौडीदास, मा.गु., ढा. २४, गा. ६०५, ग्रं.८८५, वि. १७५५, पद्य, मूपू., (सारद शुभमतिदायिनी),
६७९९९(#$), ६७८७१(६) राजिमती द्वारा नेमिजिन को पत्र, मु. जिनविजय, रा., गा. १३, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीयदुपय नम), ६४१५५-४२(#) राजिमतीपच्चीसी, मु. लालचंद, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (प्रथम हि समरुं अरिह), ६३९८८(+)
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५७६
देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ राजिमतीसती इकवीसी, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. २१, वि. १८५२, पद्य, श्वे., (सासननायक सुमरिय), ६८४०८-१(+) राजिमतीसती विलाप लावणी, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (दे गया दगा दिलदार), ६५२२९-१२ रात्रिभोजन चौपाई, मु. अमरविजय, मा.गु., ढा. २३, वि. १७८७, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंतसुसिद्धजी), ६४२१६($) रात्रिभोजन चौपाई, उपा. सुमतिहस, मा.गु., ढा. २४, वि. १७२३, पद्य, मूपू., (सुबुधि लबधि नव निध), ६८०२२(#) रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सकल धरममांसारज कहिइ), ६८३५४-२(+) रात्रिभोजन निवारण सज्झाय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (अवनितलि वारू वसइजी), ६७९९१-१०(+#), ६४१५५-३४(#) रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मु. जसविजय, मा.गु., पद्य, मूपू., (गरू समरु रे वाणी वदे), ६८२४९-६ रात्रिभोजन रास, वा. चारुचंद्र, मा.गु., गा. २६६, पद्य, मूपू., (पणमवि गणहर गोयमराय), ६७०१८(+) राधाकृष्ण बारमासो, रतनासागर, पुहिं., गा. १६, पद्य, वै., (पेलो रे महीनो सखी), ६४१७२-१४ राधिका सवैया, पुहिं., सवै. २, पद्य, वै., (तरीया सारी वणी सारी), ६५१९२-२०(+#) रामकृष्ण चौपाई, मु. लावण्यकीर्ति, मा.गु., खं. ६ ढाल ६८, गा. १२५१, वि. १६७७, पद्य, मूपू., (जगत आदिकर जगतगुरु आद),
६३४५७(#$) रामभक्ति पद, मलुकदास वैष्णव, मा.गु., गा. ४, पद्य, वै., (राम भजि राम भजि), ६४१५५-८(#) रामयशोरसायन चौपाई, मु. केशराज, मा.गु., अधि. ४ ढाल ६२, गा. ३१९१, ग्रं. ४३७५, वि. १६८३, पद्य, मूपू.,
(मुनिसुव्रतस्वामीजी), ६३५९०(+), ६८२४०(+$), ६८३१०-४४(+#), ६४१३८(#$), ६८३१३(#$) रामसीता रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु.,खं. ९, गा. २४१२, ग्रं. ३७०४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसुखसंपदा),
६४२४९(+#$), ६४१६१(#$) रायचंदजी गुण वर्णन, श्राव. महेस, पुहिं., गा. १०, पद्य, श्वे., (आज को दिहाडोजी भलाई), ६४६०२-१३(-) रावण पद, मु. जवाहर ऋषि, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (रावण कुं समझावै रानी), ६५२२९-१३ । रावणमंदोदरी सज्झाय, मु. जिनदास, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (ढलकंतढाल फरूक तनेजा), ६४००२-३(+) रावण सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (कै भभीकण सूण हौ रावण), ६५१७१-१(-) रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (विचरता गामोगाम नेमि), ६८२३७-२७(+#), ६८३१०-५५(+#),
६५२८८-५, ६७९४०-१ रुक्मिणी रास, मु. नंदलाल, रा., गा. ७९८, पद्य, श्वे., (वीर जिनेश्वर वंदिये), ६३९८४($) रूपकमाला-शीलविषये, मु. पुण्यनंदि, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (आदि जिणेसर आदिसउ), ६५२४४-३(+-) रेवतीश्राविका सज्झाय, पंन्या. खुशालविजय, मा.गु., गा. ११, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (सोवनने सिघासण हो रे), ६७०४४-५(+) रेवतीश्राविका सज्झाय, मु. वल्लभ, मा.गु., गा.१०, पद्य, मूपू., (सोवन सिहासन रेवति), ६४१५५-३(2) रोहक सज्झाय-बुद्धिविषये, मा.गु., पद्य, मूपू., (नामें सीस वंदो), ६३९७८-१(+#$) रोहिणीतप कथा, रा., गद्य, मूपू., (उच्छिट्ठम सुंदरय), ६८१३५-१३(+) रोहिणीतपचैत्यवंदन, पंन्या. भक्तिविजय, गु., गा.६, पद्य, मूपू., (वासव पूजित वासुपूज्य), ६७९७२-२(5) रोहिणीतप सज्झाय, ग. भक्तिविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ४१, पद्य, मूपू., (जय शंखेसर जिनपति वाम), ६८३९५-२(#) रोहिणीतप सज्झाय, आ. विजयलक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीवासुपूज्य जिणंद), ६८३८०-६(-) रोहिणीतपस्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., ढा. ४, गा. ३२, वि. १७२०, पद्य, मूपू., (सासणदेवता सामणीए मुझ), ६८२३७-३१(+#),
६८२५६-६३(+) रोहिणीतप स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (रोहिणी तप भावि आदरो), ६८२३७-३४(+#) लंपकपचास, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ५०, पद्य, मूपू., (देव सही अरिहंथ है), ६५२१६(+$) लघुदंडकभेद बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (शरीर ओगाहणा संघयण), ६८१८३(+), ६८०९३, ६८१८५-१ लाजरक्षण सवैया, पुहिं., सवै. १, पद्य, वै., (हम हुंज तजी कुल लाज), ६३६३३-२(+#) लोकनालि स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. ७६, वि. १६८७, पद्य, पू., (सरसति दरसति शक्ति), ६३४२६
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६
५७७ लोभपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, पुहिं., गा. २५, वि. १८३४, पद्य, श्वे., (माहालोभी मनुषसू), ६३९५७-११(+), ६८३१०-५(+#) वंकचूल रास, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, श्वे., (जिनवर चरणकमल नमु), ६७८७७(+$) वंकचूल रास, मु. विवेकसागर, मा.गु., ढा. १५, गा. ३११, वि. १८७२, पद्य, मूपू., (प्रणमुंगोडी पासजी), ६३९५९ वंकचूल सज्झाय, मु. तेजमुनि, मा.गु., गा. ११, वि. १७०७, पद्य, श्वे., (आ जंबुदिप दिपतो रे), ६८३१०-५६(+#) वच्छराजहंसराज चतुष्पदी, असाइत नायक, मा.गु., खं. ४, गा. ४३७, वि. १४१७, पद्य, मूपू., वै., (अमरावई समाणां पंखि),
६३४८४(#) वज्रधरजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (विहरमान भगवान सुणो), ६७०७५-१० वज्रसेठ चौढालियो, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., ढा. ४, वि. १८६९, पद्य, मूपू., (शील वडो संसार सुरतरु), ६५२६१-१(-5) वज्रस्वामी रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. १५, गा. ८९, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (अरध भरतमांहि शोभतो), ६३४२८(+$), ६८२९०(5) वणजारा सज्झाय, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (विणजारा रे तुं तो नग), ६३४२२-६(+#), ६३५४५-२ वर्णमाला, मा.गु., गद्य, श्वे., (अ आ इ ई उ ऊ ऋऋ लु), ६५३१५-१ वर्षफल उदाहरण, मा.गु., गद्य, (प्रथम जन्म शाकौ मांड), ६७९६१-९(+#) वल्कलचीरी चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २२९, ग्रं. ३५०, वि. १६८१, पद्य, मूपू., (प्रणमुंपारसनाथनइ), ६३३६७-२(+) वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. अमी ऋषि, पुहिं., गा.७, पद्य, श्वे., (वासुपूज्यस्वामीसु), ६४६०७-१८(+) वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वासुपूज्य जिन त्रिभु), ६७०७५-११ वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नायक मोह नचावीयो), ६७०६९-५(#) वासुपूज्यजिन स्तवन-पंचकल्याणक, उपा. हीरधर्म पाठक, मा.गु., स्त. ५, गा. २५, पद्य, मूपू., (मूरत श्रीवासुपूज्यनी),
६८०८८-२($) वासुपूज्यजिन स्तुति, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वसुपूज्य नरेश्वर मात), ६३१५३-१४(+#) वासुपूज्यजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीवासुपूज्य नरेसर), ६३१५३-१५(+#), ६३२४७-४४(+#) विक्रमचौबोली रास, मु. कीर्तिसुंदर, मा.गु., ढा. ११, गा. २३०, वि. १७६२, पद्य, मूपू., (श्रीजिनशासन मे सकल), ६३६१९(+) विक्रमचौबोली रास-पुण्यफलकथने, वा. अभयसोम, मा.गु., ढा. १७, ग्रं. ३२५, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (वीणा पुस्तक धारणी),
६३५८४(+#), ६३९८०(+#$), ६८३३८(+#), ६८२७७(5) विक्रमराजा चौपई, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., खं. ६ ढाल ७५, गा. ३१६८, वि. १७२८, पद्य, मूपू., (प्रणमुपासजिणंद पय), ६४०२४(+) विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मा.गु., ढा. ६४, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (परम ज्योति प्रकास), ६७६१३(+$), ६८१७५ (+s),
६८३१४(+), ६३०२०(2) विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., ढा. ५२, गा. ११६२, ग्रं. १६२४, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (सुखदाता संखेश्वरो),
६३३६४(+), ६३६००(+#), ६५२६४(+#), ६७८६५-८+#), ६४०३१(#$) विचार संग्रह *, मा.गु., गद्य, श्वे., (ठाणांगमाहिंत्रीजे), ६५९६०-९(+) विजयक्षमासूरि सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीविजयरत्नसूरिंदना), ६३६३३-५(+#) विजयतिलकसूरि स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (समरी सरति सहिगुरु), ६७९७८-७($) विजयशेठविजयाशेठाणी रास, मु. राजरत्न वाचक, मा.गु., ढा. ३१, कडी. ४६०, वि. १६९६, पद्य, मूपू., (श्रीविमलाचल मंडणो),
६५३०३(), ६८१९७(६), ६८२९३($) विजयसेठविजयासेठाणी अधिकार, मा.गु., ढा. २, गा. ३१, पद्य, श्वे., (व्रतामे चोथोव्रत मोट), ६४६०२-४२(८) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. रतन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अहो लाल सुंदर रूप), ६४१५५-४७(#) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., गा.८, पद्य, श्वे., (शुक्लपक्ष विजया व्रत), ६३३९७-१०(+), ६८३०२-९(#) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., गा. १७, वि. १८६१, पद्य, स्था., (प्रथम नमु श्रीअरिहंत),
६३९५७-१४(+)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., ढा. ३, गा. २४, पद्य, मूपू., (प्रह उठी रे पंच), ६५२०१-७(+$),
६३३७८-१५ विधिविचार चौपाई, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १५१, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर पय प्रणमे), ६४४६७ विमलजिन पद, मु. रूप ऋषि, पुहिं., पद. ४, पद्य, श्वे., (पुन कहवा मे प्रभूपद), ६३६२५-५(+) विमलजिन स्तवन, मु. अमी ऋषि, पुहि., गा. ७, पद्य, श्वे., (विमल जिनेश्वर साहिब), ६४६०७-१०(+) विमलजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (घर आंगण सुरतरु फल्यौ), ६२९९१-२(), ६७०६९-४(#) विमलजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, पुहिं., गा. ५, पद्य, म्पू., (प्राण धणीसुप्रीति), ६८२५६-१५९(+) विमलजिन स्तवन, मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, म्पू., (विमलजीरो सरसेवीई), ६७९७८-४($) विमलमंत्री प्रबंध, मु. लावण्यसमय, मा.गु., खं. ९, गा. ३८७, ग्रं. १७००, वि. १५६८, पद्य, मूपू., (आदिजिनवर आदिजिनवर),
६३४६२(#$) विमलमंत्री श्लोक, पंन्या. विनीतविमल, मा.गु., गा. १०९, पद्य, म्पू., (सरसति समरूं बे करजोड), ६७०६४-१ विमलमंत्री सलोको, पंडित. शांतिविमल, मा.गु., गा. १११, पद्य, मूपू., (सरसती सामण बे करजोडी), ६८१०१ विवाहपटल दोहा, मु. हीर, मा.गु., गा. १३४, पद्य, मूपू., (हरिसयणा धन मीन मलमास), ६४१३४(+) विवेकवार्ता, केशवदास, मा.गु., प+ग., वै., (ॐ कार अरुप रुप निरग), ६४१४५-१(+) विषय निवारक सज्झाय, मु. विद्याचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (मयगल मातोरे वनमांहि), ६४४८०-९(5) विषापहार स्तोत्र, आ. अचलकीर्ति, पुहिं., गा. ४२, वि. १७१५, पद्य, दि., (आत्मलीन अनंतगुण), ६५०९७-२५(+#$), ६७८७६ विहरमान २० जिन जयमाल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सीमंधरजिन सेइस्या जग), ६५५८१-३ विहरमान २० जिन नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (सीमंधरस्वामी श्रीजुग), ६५१९३-१८(+#), ६५२०४-३२(+), ६५२०४-५४(+),
६५२०९-३ विहरमान २० जिन पूजा, मु. नित्यविजय, मा.गु., पूजा. २०, ग्रं. २७०, वि. १९१९, पद्य, मूपू., (मनमोहन पासजी सकल),
६७९०५(+s) विहरमान २० जिन स्तवन, मु. अमी ऋषि, पुहि., गा. ७, पद्य, श्वे., (सुणो सुगणारे तुम वह), ६४६०७-२३(+) विहरमान २० जिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वीसे विहरमान जिनराया), ६८२३७-४०(+#) विहरमान २० जिन स्तवन, मु. जैमल ऋषि, रा., गा. १०, वि. १८२४, पद्य, स्था., (सीमंधर युगमंधरस्वामी), ६८३१०-३७(+#),
६८३९७-५ विहरमान २० जिन स्तवन, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (वंदु मन सुध विहरमाण),
६८२५६-६८(+), ६५१८५-४(६), ६७०५२-५($) विहरमान २० जिन स्तवन-मातपितानामगर्भित, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., गा. १८, पद्य, पू., (प्रथम सीमंधरजिन), ६३३९७-१(+) विहरमान २० जिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पंचविदेह विषय), ६३२४७-१८(+#), ६५९७८-१३(+), ६८२५६-८४(+),
६३००६-६, ६८१२३-१९, ६३०४६-२५(#), ६८०१८-३(-) । विहरमानजिन स्तवनवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., स्त. २०, पद्य, मूपू., (मुज हीयडौ हेजालूवौ), ६७०८२-१(६) विहरमानजिन स्तवनवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., स्त. २०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर जिनवर), ६७८४९-१, ६८२८६ विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्त. २०, पद्य, मूपू., (पुखलवई विजये जयो रे), ६८०३१(+),
६७०७९(#$), ६८१०३(#$), ६८३०१-१(-#) वीतराग गुणवर्णन पद, मु. रूपचंद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जय वीतमोह जय वीतदोष), ६४१७७-१६(#) वीरभाणउदयभाण रास, मु. कुशलसागर, मा.गु., ढा. ६५, वि. १७४५, पद्य, मूपू., (सदगुरुजी सानिध करो), ६८१३६(#$) वैदर्भी चौपाई, मु. प्रेमराज ऋषि, मा.गु., गा. २०९, पद्य, श्वे., (जिणधरमसुंजागता हुवो), ६३५२२(+), ६५३२२-१(+), ६८०४५(+),
६५१८७-१, ६८३६१-२, ६३४१८(#$) वैदर्भी चौपाई, रा., गा. १८१, पद्य, मूपू., (सरसति सामणि वीनमु), ६७००३(+#)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६
वैराग्यपच्चीसी, मु. सदारंग, मा.गु., ढा. २, गा. २५, पद्य, मूपू., (ए संसार अथिर करि जाण), ६७९४६-१३(-5) वैराग्य सज्झाय, मु. अमर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सुणि सुणि प्राणी रे), ६३३७८-५ वैराग्य सज्झाय, मुहम्मद काजी, पुहिं., गा. ५, पद्य, (गाफल वंदे नीदडली), ६४१७२-२१ वैराग्य सज्झाय, मु. रतनतिलक, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (काया रेवाडी कारमी), ६८२५६-५८(+), ६८३०३-२ वैराग्य सज्झाय, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (हक मरना हक जाना), ६३४९१-४१(+) वैराग्य सज्झाय, मु. विनयविजय, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (सज्झाय भली संतोषनी), ६५१९१-३(+#) वैराग्य सज्झाय, शिव, मा.गु., गा. २३, पद्य, श्वे., (परमातम प्रणमी करी), ६४००२-१२(+), ६४१७२-४ वैराग्य सज्झाय, रा., गा. ७, पद्य, श्वे., (सखरो धर्म छै साचो), ६४६०२-२०(२) वैराग्य सज्झाय, मा.गु., गा. २७, पद्य, श्वे., (सदगुरु आगम साखिथी), ६४६०२-२९(-) वैराग्य सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ६५२१४-६($) व्यंतरदेव विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (वंतर देवतानो उ० आ०), ६५२०४-६२(+) शंखराजा सज्झाय-सुपात्रदाने, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (संखराजा ने जसोमती), ६८१६३-२ शतौषधि नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (मोरशिखा सहदेवी तुलसी), ६६९६०-३ शत्रुजयगिरनारतीर्थ स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (त्रिभुवनमांहे तिरथ), ६७७२६-७(5) शत्रुजयतीर्थ १०८ खमासमण दूहा, मु. कल्याणसागरसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. १०८, पद्य, मूपू., (सिद्धाचल समरो सदा), ६८४४६ शत्रुजयतीर्थ २१ नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (सेव॒जो १ श्रीपुंड), ६८३४७-२(#) शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., ढा. १२, गा. १२०, ग्रं. १७०, वि. १६३८, पद्य, मूपू., (विमल गिरिवर विमल),
६७९८४-४(+), ६८०४६, ६८१०७-१, ६८३८२-३, ६८४००, ६८०३९(६), ६८१०६(६), ६८४४९(5) शत्रुजयतीर्थ गजल, उपा. कल्याणविजय गणि, मा.गु., गा. ४६, श. १६२३, पद्य, म्पू., (सारदमात की सेवाकू), ६४१४५-२(+) शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जय जय नाभिनरिंदनंद), ६७०७४-१५(+), ६७०७६-२(+),
६८२१४-८(+), ६८२५६-५(+) शत्रुजयतीर्थ बृहत्स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (बे करजोडी विनवू जी), ६४१६३-१(+), ६५२४७-९(+#),
६७८१८-३(+), ६७९६०-६(+#), ६८२५६-३४(+) शत्रुजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतरंग, मा.गु., ढा. १०, वि. १८४०, पद्य, मूपू., (विमलाचल वाहला वारु), ६८०३०(#),
६८१६७-१(#), ६८४०५(5) शत्रुजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., ढा. १०, वि. १८४०, पद्य, मूपू., (जगजीवन जालम जादवा), ६८२९६(#$) शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. १०४, पद्य, मूपू., (सिद्धाचलगिरि सिखरि), ६३४०५(+#) शत्रुजयतीर्थ रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., खं. ९, गा. ६४५२, ग्रं. ८९९४, वि. १७५५, पद्य, मूपू., (विश्वनाथ चरणे नमु), ६८३०९(+#$) शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ६, गा. ११२, वि. १६८२, पद्य, मूपू., (श्रीरिसहेसर पाय नमी), ६५२१५(+),
६५२३१-८(+), ६५२४३-२(+), ६५२५६-२(+#), ६५३०८-९(+), ६५३१०(+), ६५९६०-१(+$), ६६८९६-५(+), ६७०५०(+), ६७९३८-१(+$), ६७९६०-२(+#), ६८२३४-२३(+#), ६८२३७-२९(+#), ६८२५६-१२९(+), ६८४४५(+), ६३४४४, ६५९७७-१,
६८१७८, ६८४४४, ६७९३९-१(#$), ६८०७६(#), ६८१२७(६) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (डुगर ठंडोरे डुगर), ६५२१७-२(+#$), ६३५६१-४(#) शत्रुजयतीर्थस्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सहीयां मोरी चालो), ६४६०८-५(-2) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कांतिविजयजी, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (श्रीरे सिद्धाचल), ६७०३६-८(+), ६७९७१-११(+#),
६७०२०-५(#), ६८०७१-५(-) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. क्षमारत्न, मा.गु., गा. ५, वि. १८८३, पद्य, मूपू., (सिद्धाचलगिरि भेट्या), ६८३०१-२(-#) शत्रुजयतीर्थस्तवन, मु. चतुरकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चालो वीमलगीर जाइये भ), ६७९७१-७(+#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जसविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १९५२, पद्य, मूपू., (गीरीवर चाल्यो आदेस्व), ६८२४९-१२
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जसविजय, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (डूंगर सेवे पाप तोड), ६८२४९-१९ शत्रुजयतीर्थस्तवन, मु. जसविजय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (सब तिरथमें मोटको सिध), ६८२४९-११ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अंग उमाहो अति घणो), ६८२३५-२ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आज आपे चालो सहीयां), ६८२५६-११८(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (विलु बोले रे पंथीडा), ६८२३७-२(+#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (भाव धर धन्य दिन आज), ६८२५६-१०८(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. जिनभक्तिसूरि, पुहिं., गा. १०, पद्य, मूपू., (सुण सुण शत्रुजयगिरि), ६८२१४-५(+), ६८२५६-३१(+),
६७०७५-७ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (करजोडी कहे कामनी), ६४६०८-४४(-#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., गा. ११, वि. १७६५, पद्य, मूपू., (अधिक आणंदै हो वंद्यो), ६३९९८-१०(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानउद्योत, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सिद्धाचल वंदो रे), ६७९४०-१८, ६८०७१-२६(-) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (शत्रुजय नो वासी), ६७०४६-२($) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आपो आपो ने लाल मोंघा), ६५२११-२(+), ६७०३६-६(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (इण डुगरीयानी झिणी), ६८२५६-१२१(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ऊंचो गढ शेत्तुंज तणो), ६३४६४-९१(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहि., गा. ९, पद्य, मूपू., (गिरिराज का परम जस), ६३४६४-४४(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चढवू सेत्तुंजे नग्ग), ६३४६४-११८(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (माहरु मन मोह्युरे), ६७९७१-१०(+#),
६८००४-३५(+), ६८२५६-१२०(+), ६७०२०-६(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वंदना वंदना वंदना रे), ६३४६४-८४(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (वारी जाउं विमलगिरिंद), ६३४६४-५५(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (विमलगिरइं चले जाउ रे), ६३४६४-५०(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (शुभ परिणाम वधारो तुम), ६३४६४-४८(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (शेजानो वासी), ६७८२०-३ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सिद्धगिरि ध्यायो), ६८३०१-४(-#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु.,गा. ४, पद्य, मूपू., (चालोने प्रीतमजी), ६७७३४-५ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (लोहो लीजे रे भविया), ६७०३६-७(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चालो सखी जिन वंदन जइ), ६५२३१-५(+), ६७०३६-४(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (यात्रा नवाणु करीए), ६८२३७-३(+#), ६८२५६-११९(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, मूपू., (रूडो पालीतणो गांम जो), ६५२४७-३(+#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (विमलाचल नित वंदीये), ६७९१९-१२(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. रंग विजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (प्यारी पीउनें विनवें), ६७०३६-१०(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. राजसमुद्र, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (विमलाचल सिर तिलो), ६८२५६-२८(+) शत्रुजयतीर्थस्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रभुजी रे संग आयो), ६२९९१-१(2) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., ढा. ३, गा. १३, पद्य, मूपू., (पय पणमी रे जिणवरना), ६८२३५-४, ६७०५९-२(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, रा., गा. ३४, पद्य, मूपू., (सितरुजो परबत कह्यो।), ६४१९५-२(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (सेजूंजतीरथ भेटीय), ६७९४६-२५(-$) शत्रुजयतीर्थ स्तवन-९९ यात्रागर्भित, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धाचलमंडण), ६८२१४-१७(+) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुजय तीरथसार), ६७९२०-७(+), ६७८६६-२
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६
शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीसेत्रुंजयतीरथ धण), ६७९२०-५(+)
शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुंजयमंडण), ६३२४७-६(+#), ६५९७८-१२(+), ६८२५६-८१(+),
६३००६-५, ६८१२३-१०, ६३०४६-७ (# ), ६८०१८-१० (-)
शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू (पुंडरिकमंडण पाय), ६७८६६ १३ ६४०११-७(A)
शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., ( आगे पूरव वार नीवाणु), ६७९२०-११(+$)
शनिश्चर चौपाई, पंडित. ललितसागर, मा.गु., गा. ४७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (सरसती सामिणी मन दियो), ६८३४४-१(+#) शनिश्चर छंद, मा.गु, गा. १६, पद्य, वै., (छायानंदन जग जयो रवि), ६८३४४-२ (+)
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शांतरस सज्झाय, पंन्या रूपविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू (शांतरस शांतरस पीजो), ६५२२९-१
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शांतिजिन आरती, सेवक, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (जय जय आरती शांति), ६८०७१-४३(-)
शांतिजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सोलमा जिनवर शांतिनाथ), ६७०७४-१६(+), ६७०७६-३(+), ६८२१४-९(*)
शांतिजिन छंद, वा. गुणविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सरसति भगवति वाणि), ६८३४४-८(+#)
शांतिजिन छंद - हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सारद माय नमुं सिरनाम), ६४२२८-२(५), ६५३०८-२७(+), ६७८८५-२ (+), ६८२२८-१(+#), ६७०४७-२
शांतिजिन दूहा, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (शांतिजिणेसर सोलमा), ६८१९५-५ (+)
शांतिजिन पद, मु. आनंद, पुहिं. गा. ८, वि. १८३८, पद्य, मूपू., ( देखणनु चालो जिनजी), ६७९८० १२ शांतिजिन पद, मु. ज्ञानवर्द्धन, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., ( नेहडो हमारौ राज), ६८२५६-१५०(+)
शांतिजिन रास, मु. रामविजय, मा.गु., खं. ६, गा. ६९५१, वि. १७८५, पद्य, मूपू., (सकल श्रेयवरदायिनी), ६३९६१ शांतिजिन स्तवन, पंन्या. खुशालविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जिनवर मुरति ताहरी रे ), ६७०४४-८(+) शांतिजिन स्तवन, मु. गजाणंद, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (सरसति सांमणि पाय नमि), ६७०३६-१२(+) शांतिजिन स्तवन, मु. जयमल ऋषि, मा.गु., गा. २९, पद्य, वे., (नगर हक्षिणापुर अतिहि), ६८३१०-१६ (+४) शांतिजिन स्तवन, मु. जसविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू. ( त्रीभुवन नायक सांती), ६८२४९-४
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י
शांतिजिन स्तवन, मु. जसविजय, पुहिं. गा. ९, वि. १९३०, पद्य, मूपू ( सांतिजिनेस्वर सायच), ६८२४९-१३ शांतिजिन स्तवन, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शांति जिनेश्वर साचो), ६४०५४-४(+), ६५१८४-४(#) शांतिजिन स्तवन, मु. जीवराज कवि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (इंद्र चउसठिमिया देव), ६७०३६-१४(+) (तार मुज तार तार तार), ६३४६४-१२(#)
"
"
शांतिजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., शांतिजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु. गा. १०, पद्य, मूपू (भगति करूं थिर होइ), ६३४६४-३०(४) शांतिजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू. (मृदंग बजाय मांका), ६३४६४-६(१) शांतिजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मेरे दिल मांहि वसो), ६३४६४-१५०(#) शांतिजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., ( मोरा साहिब हो), ६३४६४-१५१(#) शांतिजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (शयणां रे श्रीशांति), ६३४६४-१२८(#) शांतिजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (शांति जिनेसर साहिबा ), ६३४६४-९०(#) शांतिजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू. (सुखकर साहिब शांतिजिन), ६३४६४-५४मण शांतिजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सुखदाई हो श्रीशांति), ६३४६४-१५५(#) शांतिजिन स्तवन, मु. धीरविजय, मा.गु गा. ५१, पद्य, भूपू (सिरि श्रुतदेवी सारदा), ६७९७८-१ शांतिजिन स्तवन, मु. प्रीतविजय, मा.गु. कडी. ९, पद्य, मूपु. शांतिजिन स्तवन, पं. भक्तिविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., शांतिजिन स्तवन, मु. भोज, मा.गु., गा. १९, वि. १७२३, पद्य, वे (श्रीसद्गुरूना चरण नम), ६३९५६-२० (+#$)
"
',
(अचला माय हुलरावती), ६३३७४-२२(*) (प्रभुजी शांतिजिणंदने), ६७८३९-२
शांतिजिन स्तवन, मु. मान, पुहिं, गा. ८, पद्य, भूपू (जगतारक जिनराज जगतपती), ६५०९६-५ (+)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू. (शांतिजिन एक मुज विनत), ६७८३९-१०, ६७७००-४) शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (शांति जिनेश्वर साहिब), ६५२४९-९(+४), ६७०८१-२०१ शांतिजिन स्तवन, पंन्या. रंगविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शांतिकरण श्रीय शांति), ६८०७१-२७(-) शांतिजिन स्तवन, मु. रतनचंद, रा. गा. ५, पद्य, श्वे. (तुं धन तुं धन तुं). ६४६०५-५ (०), ६४६०८-१३(०१
"
.,
"
शांतिजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, वे., (प्रात उठ श्रीसंतिजिण), ६४६०८-२२ (#) शांतिजिन स्तवन, आ. राजेंद्रसूरि, मा.गु. गा. ५, पद्य, मूपू., (शांति रसे श्रीशांति), ६७०७५-१५ शांतिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जिनपती संती जिणंद), ६५२६८-३(#) शांतिजिन स्तवन, मु. राम, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (शांतिकरण श्रीशांति), ६४४०९-२(+#) शांतिजिन स्तवन, मु. शांतिकुशल, मा.गु, गा. ५, पद्य, भूपू (वंछितपूरण आदि नमो), ६५२४०-१०
"
शांतिजिन स्तवन, मु. शिवलाल, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (सोलमा श्रीजिनराज तणा), ६७८१४-९ शांतिजिन स्तवन, ग. समयसुंदर, पुहिं. गा. ३, पद्य, मूपू., (अंगन कलप फल्योरी हमा), ६८२३७-३९(+)
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शांतिजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (मेरइ आंगन कल्प फल्यो), ६८२५६-१११(+), ६३९९८-१(#) शांतिजिन स्तवन, पुहिं. गा. ११, पद्य, मूपू (संतनाथ जिन संति के), ६४९६६-६
६५२६८-५ (#$)
शांतिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (सुखकर समतासायरू आतम), शांतिजिन स्तवन- १४ गुणस्थानकगर्भित, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ८५, पद्य, मूपू., (शांतिजिणेसर जग हित), ६३५८१-२ शांतिजिन स्तवन- निश्वव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., डा. ६. गा. ४८, वि. १७३४, पद्य, मूपू.।
(शांतिजिणेसर
अरचित जग ), ६८२३४-११(+#)
शांतिजिन स्तवन- मयामंडन, मु. जसविजय, मा.गु. गा. ९, वि. १९३०, पद्य, म्पू.. (एकवार मुखधी बोलावीये), ६८२४९-१४ शांतिजिन स्तवन-सारंगपुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, पुहिं., गा. २२, पद्य, मूपू., (सारद मात नमु सिरनामि), ६७८६५-१(+#) शांतिजिन स्तवन-सिरोहीमंडन, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (हो जी मारी सहीया सेव), ६७८३९-७ शांतिजिन स्तुति- जावरापुरतीर्थमंडन, मु. पुण्यविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू (शांतिकर शांतिकर) ६७८९२-६, ६७८९२-१९ शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., ढा. २९, गा. ५१०, वि. १६७८, पद्य, मूपू. (सासननायक समरिये ६३३९५ (+),
""
६३४६९(+), ६३५०१(+$), ६३५०४ (+#), ६३५०५ (+), ६३९५४(+#), ६३९५० (#), ६३९७७ ($), ६४१९२ ($) शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. विनीतविमल, मा.गु., गा. ३२१, पद्य, मूपू (राजगृही नगरीनें), ६७०६४-२ शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (प्रथम गोवाल तणे भवे), ६३३९७-१२ (+), ६७८५६-६(+$), ६८२३७-३८(+९१) ६३३७८-३, ६५९४१-२३) ६८३८०-५)
"
,
शाश्वतजिन स्तवन, मु. माणिकविमल, मा.गु ढा. ७. गा. ८४, वि. १७१४, पद्य, भूपू (वीर जिणेसर पाय नमी), ६७०५७-७ शाश्वताचैत्य जिनविंयसंख्या कोष्टक, मा.गु. को. मृपू. (-), ६५२४४-६ (+-६)
"
1
शाश्वताचैत्यनमस्कार स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., डा. ५, गा. २०, पद्य, मूपू., (रिषभानन ब्रधमान चंद), ६७८६२-३ शाश्वताशाश्वताजिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १८, पद्य, म्पू, (सकल मंगलकार एही सिद्), ६३४६४-६१(०) शिवकुमार कथा - नमस्कार महामंत्र विषये, मा.गु., गद्य, म्पू., ( नवकारनइ प्रभाविइ), ६७९१६-२
शिवपुरनगर सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १६, वि. १८२०, पद्य, स्था., (अहो प्रभु सिवपुर नगर), ६८३१०-२७(+#),
६८४०८-३(+)
""
शिवपुरनगर सज्झाय, मा.गु.. गा. १६, पद्य, मूपू (गोतमस्वामी पुछा करी), ६७८१४-१, ६८२८९-६ शिवलाल स्तुति, मु. हीरालाल, पुहिं., गा. ७, वि. १९३८, पद्य, स्था., (आज पूजजी का दर्शन ), ६३४९१-६(+) शिवलाल स्तुति, मु. हीरालाल, पुहिं., गा. ९, पद्य, स्था., (करले पूज चरण का ), ६३४९१-८(+)
शिवलाल स्तुति, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. ८, पद्य, स्था., (पूजजी आया रतनपुरी), ६३४९१-९ (+) शिवलाल स्तुति, मु. हीरालाल, पुहिं. गा. ७. वि. १९४४, पद्य, स्था. (पूजजी का दर्शन की), ६३४९१-७(+) शिष्यगुण वर्णन, श्राव, हेमजी साम, पुहिं. गा. १५, पद्य, वे.. (भेट भव चरण ले सरणी), ६४६०२-१२ (-)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६
५८३ शीतलजिन पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (मेरौ लागो नवल सनेह), ६८०२६-९(+-) शीतलजिन स्तवन, मु. अमी ऋषि, पुहि., गा. ७, पद्य, श्वे., (प्यारा लागो प्यारा), ६४६०७-९(+) शीतलजिन स्तवन, मु. अमी ऋषि, पुहिं., गा.७, पद्य, श्वे., (शीतलजिनराज भजो भाई म), ६४६०७-१६(+) शीतलजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (शीतल जिनपति ललीत), ६७०७५-९ शीतलजिन स्तवन, मु. जिनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शीतलजिन सहजानंदी थयो), ६८०७१-४७८) शीतलजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, म्पू., (शीतल जिनवर साहिब), ६३४६४-१३३(2) शीतलजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीशीतलजिन तणा चरण), ६३४६४-३(#) शीतलजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीशीतल जिननुं धरि), ६३४६४-२(#) शीतलजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुगुण सोभागी साहिबा), ६३४६४-१(2) शीतलजिन स्तवन, मु. दानविनय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (दसम जिणेसर सेवीयइ), ६७९१३-१४(+#) शीतलजिन स्तवन, मु. भोजसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (उदयापुरमंडण श्रीशीतल), ६७०८५-२(+) शीतलजिन स्तवन, ग. मेघराज, मा.गु., गा. ६, वि. १८२२, पद्य, श्वे., (शीतल जिनवर देव सुणो), ६७८१०-८ शीतलजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (शीतल जिन मोहि प्यारा), ६७९१९-३२(+) शीतलजिन स्तवन, आ. राजेंद्रसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शीतल जिननी सप्त सुरं), ६७०७५-२२ शीतलजिन स्तवन, मु. श्रीसार, पुहिं., गा. १८, पद्य, मूपू., (सीतल जिणवरराया तुम), ६५२०१-५(+), ६८४५१-१९ शीतलजिन स्तवन, मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सीतलजिन सहेज सुरंगा), ६७८६५-२(+#), ६७८१४-७, ६८२८४-१ शीतलजिन स्तवन, मु. हर्ष, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (सखी नवी नवेरी भगति), ६७०३६-३६(+) शीतलजिन स्तवन-अमरसरपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, रा., गा. १५, पद्य, मूपू., (मोरा साहेब हो), ६४१५१-२३(+),
६५२२५-२(+), ६८२५६-२९(+), ६७०५५-१२(-१), ६७९४६-२(-$) शीतलजिन स्तवन-रिणीयपुरमंडन, उपा. रुघपति, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (रिणीयपुरै रलियामणो), ६५२२५-५(+) शीतलजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू., (त्रिभुवन जननायक दायक), ६३२४७-३८(+#), ६८२५६-७५(+),
६८१२३-२६ शीतलजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू., (सुख समिकित दायक कामि), ६८१२३-२७ शीयलव्रत चौढालियो, मु. जीवण, मा.गु., ढा. ४, गा. २०, पद्य, मूपू., (चोविसे जिन आगमे रे), ६३९८३-३ शीयलव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सरसती केरा रे चरणकमल), ६८३८०-२२(-) शीयलव्रत सज्झाय, मु. विजय मुनि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (मनमधुकर पडीई नही रे), ६३३७८-११ शीयलव्रत सज्झाय, मा.गु., गा. २५, पद्य, श्वे., (अबला इंद्री जोवता रे), ६८४१२-१९(#) शीयलव्रत सज्झाय, रा., गा. १३, पद्य, श्वे., (समज पीउ चपल मति रमे), ६३३९७-११(+) शीयलव्रत सज्झाय-नारीचरित्र विषे, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (मुखडानो मटको देखाडी), ६५३०८-४(+) शीलनववाड ढाल, मु. अगरचंद, मा.गु., ढा. १०, वि. १८३६, पद्य, मूपू., (प्रणमु पंचपरमेष्ठि), ६८०९५(+#) शीलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., गा. ६८, ग्रं. २५१, पद्य, मूपू., (पहिलुं प्रणाम करूं), ६५२८७(+#), ६३४२१,
६३५५०(#$), ६३५३९(), ६८१५४-३($) शीलसुंदरीसती चौपाई, पंन्या. राजविजय, मा.गु., ढा. ३८, गा. ८५६, वि. १७९०, पद्य, मूपू., (त्रिहुं जगनो शंकर), ६८१११ शुकराज रास, मु. मतिहस, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ६३५९७(+#$) शुक्रोदय विचार, मा.गु., गद्य, वै., (भरणीथी ८ आठ नक्षत्रम), ६३८३८-२(१) शुद्धगुरु स्वरूप सज्झाय, मु. अमी ऋषि, पुहि., गा. ८, पद्य, श्वे., (विषय कषाय से दूरा रे), ६४६०७-३९(+) शुद्धधर्म स्वरूप सज्झाय, मु. अमी ऋषि, पुहिं., गा. ९, पद्य, श्वे., (जीवदया उर धारे रे), ६४६०७-४०(+) शुद्ध सामाचारी-खरतरगच्छीय, मा.गु., गद्य, मूपू., (जउ प्रतिपदादिक तिथि), ६८२५६-१६५(+) श्रद्धामंडण, मु. रत्नविजय, पुहिं., प्रश्न. ११, वि. १९०६, प+ग., मूपू., (सर्वज्ञ कुं प्रणमु), ६७८८८(+)
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५८४
देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ श्रावक ११ प्रतिमा विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिली प्रतिमा मास १), ६३६०५-१(+#) श्रावक ११ प्रतिमा सज्झाय, मा.गु., गा. ५७, पद्य, दि., (पांच उदंवर तीन मकार), ६५१८८ श्रावक १२ व्रत विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ६५९४९($) श्रावक २१ गुण वर्णन, मा.गु., अंक. २१, गद्य, मूपू., (धर्मनई विषइ १ मन वचन), ६७९५१-४ श्रावक ३ मनोरथ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रावकना तीन मनोरथ), ६७९४१-१ श्रावक आलोयणा, रा., गद्य, मूपू., (अणगल जल वावर्यै लाख), ६७८९८-१ श्रावक आलोयणा विधि, मा.गु., पद्य, मूपू., (अष्टविधियिज्ञान आशात), ६८२१० श्रावकइकवीसी, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (श्रावक नाम धरायने), ६७७३७-३(#$) श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (श्रावक तुं उठे परभात), ६७९६०-४(+#), ६७९७१-१(+#),
६७०४७-४, ६७०५२-१, ६७८५२-७(-), ६८२३०-७(-) श्रावककरणी सज्झाय, मु. नित, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (श्रावक धर्म करो), ६४२०२-३(+), ६८४१२-२५(#) श्रावककरणी सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (श्रावकनी करणी सांभलो), ६७०५२-३ श्रावकगुण सज्झाय, मु. रामचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्यारी लागेजी जिनजी), ६८०५४-५ श्रावकधर्म सज्झाय, मु. गोपालसागर, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (ज्ञानी का गुन सुनके), ६७०७३-४ श्रावकलक्षण सवैया, मा.गु., पद्य, श्वे., (सरावग लछ एह सुणी सहु), ६५२५३-३(#$) श्रावकव्रत १२४ अतिचार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञानना ८ दर्शनना ८), ६७८६७ श्रावकव्रत शिक्षा सज्झाय, मु. पार्श्वचंद्र, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (देवगुरु संघ कारण), ६४१५५-३६(#) श्रावकव्रत सज्झाय, रा., गा. ११, पद्य, श्वे., (कोई करे छै बेला तेला), ६५२६१-८(+-) श्रावकाचार पद, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (नमो नमोरे जिन नमो), ६८०५४-१२ श्रीकृष्णभक्ति पद, नंददास, पुहि., गा. ४, पद्य, वै., (चिरीया चहिचानी चकवै), ६४१५५-७(#) श्रीकृष्णलीला चौपाई, मा.गु., चौपा. ६१, पद्य, वै., (--), ६७०५५-८(-#$) श्रीचंद्रकेवली रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., उल्ला. ४ ढाल १११, गा. २३९५, ग्रं. ६९३९, वि. १७७०, पद्य, मूपू., (सुखकर साहिब
सेवीई), ६८३०५(+), ६८३०७(+#) श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. ३२३, वि. १५३१, पद्य, मूपू., (करकमल जोडि करि सिद्ध), ६४१५४(+) श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., खं. ४ ढाल ४१, गा. १८२५, वि. १७३८, पद्य, मूपू., (कल्पवेल
कवियण तणी), ६४४७१(+), ६८१३४(+#$), ६८१४४+#), ६८२६३(+#), ६८३२१(+$), ६८३६२(+), ६८३६५(+), ६८४१४(+$), ६७८२६-१, ६३४५८(#$), ६७९२२(#$), ६८४१५-२(#), ६४२१५(६), ६४६३०(), ६७५९९(), ६८०११(६),
६८३९९($) (२) श्रीपाल रास-बालावबोध, ग. गणेशरुचि, मा.गु., ग्रं. २४००, गद्य, मूपू., (ते गुणसुंदरी कुमरी), ६८३६५(+) (२) श्रीपाल रास-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीजो खंड पूरो थयो), ६४४७१(+), ६८३२१(+$) (२) श्रीपाल रास-चयन, मा.गु., पद्य, मूपू., (आवो जमाई प्राहुणा), ६८३४३(#) श्रीपाल रास-बृहद, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ४९, गा. ८६१, वि. १७४०, पद्य, मूपू., (अरिहंत अनंतगुण धरीये), ६३४०२-६(+),
६५१९२-७(+#), ६७८१८-३(+) श्रीपाल रास-लघु, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. २०, गा. २७१, वि. १७४२, पद्य, मूपू., (चउवीसे प्रणमु जिनराय), ६८१७२(+) श्रीपाल विनतीस्तुति, मा.गु., गा. २२, पद्य, श्वे., (ॐनम सिधे मनधरि संत), ६५२३७-८(#) श्रीपाल स्तुति, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (मात पिता पाये लागिने), ६५३२०-१ श्रीमती कथा-नमस्कार महामंत्र विषये, मा.गु., गद्य, मूपू., (भरतक्षेत्र पोतनपुरनय), ६७९१६-१ श्रेयांसजिन पद, मु. कुशलधीर, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (जिनंदराय ऐसै क्यूंन), ६३६१६-१६ श्रेयांसजिन स्तवन, मु. अमी ऋषि, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (श्रीश्रेयांस जिनंदा), ६४६०७-१७(+)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६
श्रेयांसजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीश्रेयांस जिन), ६७०७५-२ षट्काय संग्रह, मु. रूपचंदजी ऋषि, मा.गु., वि. १९वी गद्य, स्था., (राजत खट चालीश गुण), ६३४९८ षड्दर्शनाष्टक, पुहिं., गा. ८, पद्य, दि., (शिवमत बोध सुवेदमत), ६७९४२-३(-)
द्रव्य विचार, मा.गु, गद्य, भूपू (धर्मास्तिकाय १ अधर्म), ६३९९९-२(
"
संजया बोल, मा.गु., गद्य, स्था., (पन्नवणा वेय रागे), ६८१७६-२ (+), ६८०२७-२
संजोग विलास, मु. दौलत, मा.गु गा. ४९, पद्य, श्वे. (प्रणमु श्रीवीर पत्कज), ६७८५३-१
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संभवजिन गीत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., ( लीनो रे मन संभवजिन), ६३४६४-१२४(#) संभवजिन पद, मु. कुशलधीर, मा.गु., पद. ३, पद्य, मूपू., (ऐसो नरभव लाहो लीजे), ६३६१६-१४ संभवजिन स्तवन, मु. अमी ऋषि, पुहिं, गा. ७, पद्य, वे (संभव जिनवर सांभलो रे), ६४६०७-४(+) संभवजिन स्तवन, आ. उदयसागरसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू., (संभवजिननी सेवा प्यार), ६७७५५-७, ६७८३९-५ संभवजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ७, वि. १८९४, पद्य, मूपू (विणजारा रे नायक संभव), ६७०६९-१(३) संभवजिन स्तवन, आ. राजेंद्रसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (संभवजिन सीरेस सुख्या), ६७०७५-१३, ६७०७५-२१ संभवजिन स्तवन, मु. हस्तिविजय शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (संभवजिन सुप्रसन्न थई), ६७०४४-३(+) संभवजिन स्तुति, आ. दयासूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (संभव सुखदाय सेवै सूर), ६७८९२-१८ संभवजिन स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु. गा. ३, पद्य, मूपू (संभवनाथ अनाथ साथ), ६८२३७-२५(+४)
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,
संयम के १७ भेद नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (पृथिवीकाय संजमे १), ६५२०४-३ (+)
संयमश्रेणी स्तवन, मु. उत्तमविजय, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (केवलज्ञान दिवाकरुजी), ६७८४९-२ संवत्सरीदान स्तवन, मु. केसरविजय, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (वरदाईना चरण नमीने), ६८२३७-२२(+०)
संवर सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर गौतमने ), ६३४९१-४३(+)
सगपण व्यवहारपच्चीसी, मु. लालचंद, मा.गु.. गा. २९, वि. १८६३, पद्य, श्वे. (श्रीअरिहंत सिद्ध), ६३९५७-१२(+)
"
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सत्यबावीशी, मु. खोडीदास, मा.गु., गा. २२, पद्य, श्वे., (टेक म मूको रे धरीये), ६५२६६-२(+$)
सत्संगति पद, मु. रत्न ऋषि शिष्य, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे. (संगत कर ले रे साधु), ६४१९६-२० (+)
"
,
सदयवत्स सावलिंगा चउपई, मु. कीर्तिवर्द्धन, मा.गु., गा. ३९०, वि. १६९७, पद्य, मूपू. (स्वस्ति श्रीसोहासुजस), ६३६२९ (१६) सदैवच्छसावलिंगा वार्ता, मा.गु., गद्य, वै., ( आनंदपुरम्मि नयर), ६७०८२-६ ($) सनत्कुमारचक्रवर्ति चौढालियो, मु. कुशलनिधान, मा.गु., ढा. ४, वि. १७८९, पद्य, मूपू., (सुखदायक सासणधणी तिभु),
६८२३३-३(+)
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सनत्कुमारचक्रवर्ति रास, मु. महानंद, मा.गु., डा. ९+कलश, वि. १८३९, पद्य, वे. (श्रीश्रुतदेवी शारदा), ६७९००-4 (40) सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु. गा. १७, पद्य, म्पू. (हस्थिणाऊरपुर जाणीइ), ६५३०८-१४(+) सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, मु. राज ऋषि, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे. (अमर तणी वाणी सुणी), ६५३०८-१३(५) सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सांभलि सनतकुमार हो), ६७०५५-१८/-चडा सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. खेम, मा.गु, गा. १७, वि. १७४६, पद्य, मूपू (सुरपति प्रशंसा करे), ६३३९७-१४(१),
"
६४१५५.६४४०१
सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (सरसति सरस वचन रस), ६५३०८-१२(५), ६४१९४-२(६) सपखरो गीत, क. भैरुदास, पुहिं. दोहा. ५, पद्य, वै., (भृंगी ऊमंगी सुचंगी), ६७०५५-१५ (-१)
सप्तमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चंद्रप्रभजिन ज्ञान), ६५२१३-७(+#) सप्तव्यसनफल सज्झाय, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे. (जूवै रमें नर जेह), ६४६०२-७-१
समवसरण पूजा, मु. गुलाबविजय, मा.गु., पूजा. ८, वि. १९३८, पद्य, मूपू., (--), ६८३५६(+$)
समवसरणमान स्तवन, रा., पद्य, श्वे., (--), ६८३०३-२५ ($)
समवसरण रचना स्तवन, मु. अमरविबोध, मा.गु., गा. २३, पद्य, श्वे., (वीर जिणेसर चरण कमल), ६७९९१-२०(+#)
וי
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ समवसरण स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आज गइती हुं समवसरणमा), ६८००४-२(+) समवसरण स्तुति, मु. जयत, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मिलि चौविह सुरवर), ६८१२३-२५ । समाधिपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २५, वि. १८३३, पद्य, स्था., (अपुरव जीव जिनधर्मने), ६७८७९-३(+$),
६८३१०-८(+#) सम्मेतशिखरतीर्थ चैत्यवंदन, म. कल्याण, मा.ग., गा. ३, पद्य, मप., (पुरव दिसे दीपतो), ६७०७६-९(+), ६८२५६-१९(+) सम्मेतशिखरतीर्थ पद, मु. नवलदास, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (सीखरगीर वांदन जाना), ६५२२९-८ सम्मेतशिखरतीर्थ पद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (--), ६४६०८-३३(-2) सम्मेतशिखरतीर्थरास, मु. गुलाबविजय, मा.गु., ढा. ६, वि. १८४६, पद्य, मूपू., (सांवलिया श्रीपासजी), ६८३९६ सम्मेतशिखरतीर्थरास, मु. सत्यरत्न, मा.गु., ढा. ७, गा. १९६, वि. १८८०, पद्य, मूपू., (अजितादिक प्रभुपाय), ६४१५७,
६५२५५(#) सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. अमृत, पुहिं., गा. ७, वि. १८४३, पद्य, मूपू., (चालो सहीया आपा जासा), ६८००४-३४(+) सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. १०, वि. १७४४, पद्य, मूपू., (तोह नमो तोह नमो समेत), ६८२५६-१६०(+) सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (हुं तो जाउंरे सिखर), ६५९६०-७(+) सम्मेतशिखरतीर्थस्तवन, गच्छा. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ९, वि. १८४६, पद्य, मूपू., (आज भलै मै भेट्या हो), ६८२३७-४७(+#) सम्यक्त्व ६७ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवादिक पदार्थ जाणवा), ६८०९१-१(६) सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. १२, गा. ६८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सुकृतवल्लि कादंबिनी),
६३५२६(+), ६४१७४, ६८३८९, ६८४१०-१ सम्यक्त्व कौमुदी कथा, क. जोधराज साह, मा.गु., स. ११, वि. १७२४, पद्य, श्वे., (--), ६८२३१($) सम्यक्त्व चौढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा. ४, वि. १८३३, पद्य, श्वे., (समकीत माहे दीढ रह्या), ६३५५१-१(+) सम्यक्त्व पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (जागे सौ जिनभक्ति), ६८१६३-६, ६८४१२-४३(#) सम्यक्त्व भाव पद, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (दढ समगत नर० विना सम), ६५२६१-६(+-) सम्यक्त्व सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जिनवाणी घन वुठडो), ६३६३३-८(+#) सम्यक्त्व सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (देव नीरंजन गुरनीर), ६५२४९-७(+#) सम्यक्त्व सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १५, वि. १८४०, पद्य, स्था., (जीव फिरे दुखरो दाधो), ६८३१०-२२(+#), ६८३९७-१४ सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (बुद्धि विमल करणी), ६५२३२-४(+#), ६७९५०-३(+) सरस्वतीदेवी छंद, मु. पूंजा ऋषि, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (माता तुहीज माये पिता), ६७८५२-९(-) सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (सरस वचन समता मन), ६६९२२-६(-) सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., ढा. ३, गा. १४, पद्य, मूपू., (शशिकर जिनकर समुज्व), ६७८८५-१(+) सरस्वतीदेवी छंद, ग. हेमविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (ॐकार धुरा उच्चरणं), ६६७५२-१ सर्पखिलण मंत्र, मा.गु., गद्य, वै., (ॐ नमो खीलणी भई), ६५२०१-११(+) सर्पखिलण मंत्र विधि, पुहिं., गद्य, वै., (ॐ नमो आदेस गुरु कुं), ६५२०१-१०(+) सवैया संग्रह, पुहिं., पद्य, वै., (अली आय खरी सन्मुख), ६३६२३-२(+) सहजानंदी सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., गा.११, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (सहजानंदी रे आतीमा),६८४३०-२(-) सांबप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. २ ढाल २२, गा. ५३५, ग्रं.८००, वि. १६५९, पद्य, मूपू., (श्रीनेमीसर गुणनिलउ),
६३३६७-१(+), ६३४३७(+#), ६७८९०(+#) सागरश्रेष्ठी कथा-दानाधिकारे, मु. सहजकीर्ति कवि, मा.गु., ढा. १३, वि. १६७५, पद्य, मूपू., (प्रणमुंलवधि पास), ६४००१(+) साढापच्चीस आर्यदेश विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (मगध देश राजगृही बे), ६३५८८-३(+) साधारणजिनआंगीस्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (अजब बनी छे आंगी), ६३४६४-२२(#) साधारणजिन कवित, पुहिं., पद. १, पद्य, श्वे., (परस फरस नर सरस दरस), ६३३९०-१३(+)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६
साधारणजिन कवित्त, क. बनारसीदास, पुहि., गा. १, पद्य, दि., (जामै लोकालोक को सभाव), ६५०९७-७(+#) साधारणजिनगीत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., कडी. ३, पद्य, मूपू., (आय बसे मनमाहि), ६३४६४-६८(#) साधारणजिन गीत, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (एसो सदागम खीर जलधि), ६३४६४-८२(#) साधारणजिन गीत, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रभु तेरी भक्ति सदा), ६३४६४-३४(#) साधारणजिन गीत, आ. ज्ञानविमलसूरि, रा., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (म्हे छांधणी याता), ६३४६४-१४२(#) साधारणजिन गीत, मु. मान, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सरसति देवी मनरंग), ६८००४-३(+) साधारणजिन गीत, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (तु निरंजन इष्ट हमेरा), ६८२५६-९७(+) साधारणजिन चैत्यवंदन, मु. राम, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (जगन्नाथने ते नमै हाथ), ६८००४-३१(+) साधारणजिन पंचवीस दोहा, मु. नवल, पुहिं., गा. २६, पद्य, श्वे., (सीस धार कर नमत ह), ६५२००-३ साधारणजिन पद, मु. आनंदविजय, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (आज घडी जिन गाईया), ६७९८०-९ साधारणजिन पद, मु. आनंदविजय, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (जिनंद मेरो मोहना सूर), ६७९८०-११ साधारणजिन पद, मु. उत्तमविजय, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (मेरो दिल बस कीयो जिन), ६७९८०-१४ साधारणजिन पद, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद. ३, पद्य, मूपू., (वीसरे मति नाम), ६३९५७-२७(+) साधारणजिन पद, मु.खुशालराय, पुहि., गा. २, पद्य, म्पू., (अखीया मेरी वावरी), ६८२५६-१४८(+) साधारणजिन पद, मु. चंद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रभु के दरसण पाये), ६५२०८-६ साधारणजिन पद, मु. जगतराम, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत सरन तेरी), ६५१९३-४(+#) साधारणजिन पद, मु. जगराम, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (प्रभु विन कोंन हमारो), ६३६२५-२२(+) साधारणजिन पद, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वाल्हा आज सफल दिन), ६७७२०-१(+-) साधारणजिन पद, मु. नयनसुख, पुहि., गा. ४, पद्य, भूपू., (प्रभु सिमेटो व्यथा), ६८४१२-४५(#) साधारणजिन पद, मु. नवल, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (घडी दिन आज की एही), ६५२२०-५ साधारणजिन पद, मु. भूधर, पुहिं., गा. २, पद्य, मूपू., (अरे मन मत विसरे), ६३६२५-२४(+) साधारणजिन पद, मु. भूधर, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (जप माला जिनवर नामकी), ६३६२५-२०(+) साधारणजिन पद, मु. भूधर, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (जिनराज ना विसारो मत), ६३६२५-१७(+), ६५०९७-१६(+#) साधारणजिन पद, मु. मालदास, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (भलै मुख देख्यौ), ६५२३६-१६(+), ६८२५६-९१(+) साधारणजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ८, पद्य, मूपू., (अब में साचो साहिब), ६७९१९-३(+) साधारणजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (परम प्रभु सब जन शब्द), ६७९१९-२५(+) साधारणजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रभु तेरो गुण गान), ६८४०१-९ साधारणजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रभु मेरे अइसी आय), ६८४०१-८ साधारणजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मेरे प्रभुस्यु प्रगट), ६७९१९-३०(+) साधारणजिन पद, मु. रामचंद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (फिटक सिंघासण ऊपरे), ६८०५४-११ साधारणजिन पद, मु.रूपचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (तेरे दरसकी खुमारीया), ६५२२९-१० साधारणजिन पद, मु.रूपचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (देख्या दरसण तिहारा), ६७७२९-५(#) साधारणजिन पद, मु.रूपचंद, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (लोक चहुद के पार), ६८२५६-१५६(+), ६४६०८-१५(-2) साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. २, पद्य, मूपू., (वा पदवी कब पावू), ६६३४६-३(+) साधारणजिन पद, श्राव. वखतराम, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (जिन चरनन लगिरहो रे), ६५०९७-१५(+#) साधारणजिन पद, मु. वखता, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (तारण तरण जिहाज प्रभु), ६५०९७-१८(+#) साधारणजिन पद, मु. श्रीविजय, पुहिं., गा. २, पद्य, मूपू., (जागी मा जागी जागी मा), ६७०१६-९(+) साधारणजिन पद, उपा. समयसुंदर गणि, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (रूप वण्यो अति नीको), ६३६१६-१० साधारणजिन पद, मु. सेवक, बं., पद.७, पद्य, मूपू., (तोमी देखो जिनराज), ६३६२५-३(+)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ साधारणजिन पद, मु. सेवाराम, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (प्रभुजीसू लागो मारो), ६४६०८-१८(-#) साधारणजिन पद, क. हरिसिंघ, पुहिं., पद. ४, पद्य, मूपू., (मोहि देखि जिणवर), ६५०९७-२(+#) साधारणजिन पद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (अब कैसे तिरनौ ), ६५०९७-२२(+#) साधारणजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (आज मैं परम पदारथ), ६५०९७-१७(+#) साधारणजिन पद, पुहिं., पद्य, मूपू., (आसिरा जिनराज तेरा), ६५१९३-२६(+#$) साधारणजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (कांन तिहारो जस), ६५०९७-१३(+#) साधारणजिन पद, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (चोसठि चौथाई भावनासू), ६५२३७-७(#) साधारणजिन पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जग दीठा तुं मेरा), ६८२५६-१५२(+) साधारणजिन पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (जिन चरणन छबि देखिवा), ६५१९३-१६(+#) साधारणजिन पद, रा., पद. ३, पद्य, मूपू., (जिनजी अरज करां छा), ६३६२५-९(+) साधारणजिन पद, रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (तारो तारो म्हाराज), ६७७३४-३ साधारणजिन पद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तीरथ करता दुख हरता), ६७८९१-२(+) साधारणजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (तेरे दरसण के देखे), ६७७१९-१२(-) साधारणजिन पद, पुहि., गा. ४, पद्य, म्पू., (बीतराग तेरी या छबि), ६५१९३-१५(+#) साधारणजिन पद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (भली छबि देखी सुंदर), ६८४१२-४२(#) साधारणजिन पद, पुहि., गा. ४, पद्य, म्पू., (मनि मेरे यह आई या), ६५०९७-९(+#) साधारणजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, म्पू., (मैं बलिहारी० सांईया), ६५०९७-१४(+#) साधारणजिन पद, मा.गु., पद्य, मपू., (सेवोरेसदा सुखदाई), ६७७२९-८(#$) साधारणजिन पद-औपदेशिक, मु. आनंदविजय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुन मेंडा श्रीजिनराज), ६७९८०-६ साधारणजिन पद-साचादेव, मु. भागचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (बुधजन पक्षपात तज), ६५२४९-८(+#) साधारणजिन भक्तिपद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (भजन बिनु जीवित जेसे), ६३३७४-३(+) साधारणजिन विनती, रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (प्रभुजी सेवा हो कारण), ६४२२६-३(१) । साधारणजिन स्तव, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (देव नमो भवि देव नमो), ६३४६४-१२३(#) साधारणजिन स्तव, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मोह नृपतिने जीतिइ), ६३४६४-१२९(#) साधारणजिन स्तवन, मु. कनककुशल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्यारा प्रभु जो मुझ), ६८२८४-३ साधारणजिन स्तवन, आ. जिनमहेंद्रसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १८९८, पद्य, मूपू., (मेतो भेट्या प्रभु सर), ६२९९१-९(#) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अब मेरे नरभव सफल भये), ६३४६४-९२(#) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहि., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अरज सुणो जिनराज मेरे), ६३४६४-७१(#) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आज माहरा प्रभुजी), ६३४६४-८८(#) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (एता लाभ लीजीइं जिनभक), ६३४६४-५ (#) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ओढणियां आपो प्रभु), ६३४६४-५८(#) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (करम कसाला मांहि दिल), ६३४६४-७(#) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (कहीइं जो कहवे की होइ), ६३४६४-७४(#) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (कोहिकुं करत विगारी), ६३४६४-७७(#) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (गाओगाओ रे जिणंद), ६३४६४-८५(#) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जाणे रे प्रभु वाता), ६३४६४-७६(#) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जाण्यो रे मै मन), ६३४६४-१२५(#) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जिन तुम्ह दरिसन सुमत), ६३४६४-१५२(#) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जिनदरिसनथी दुख जावे), ६३४६४-११५(#)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६
५८९ साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (जिनराज जुहारण जास्या), ६३४६४-७२(#) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, म्पू., (जोगी सोही जोग जगावे), ६३४६४-१२०(#) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (तेरी सूरति मोहि), ६३४६४-१०१(#) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहि., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (तोरे चरणारे निरखत), ६३४६४-११९(#) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (दरिसण मुझने आपोरे), ६३४६४-१०२(#) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धन आ वेला रेजिहां), ६३४६४-६२(#) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पीउडा मदमतवाला झोला), ६३४६४-२५(#) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्यारे प्रभु दीदार ह), ६३४६४-६०(#) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रभु की भक्ति विना), ६३४६४-७८(#) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रभु तेरो मोहन हे), ६३४६४-३२(#) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (भलुंकीधुंरे मारा न), ६३४६४-३५(#) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (भवतारणी हितकारणी), ६३४६४-१४५(#) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहि., गा.७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (भोर भयो भयो भयो जागी), ६७०१६-८(+) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (माहरा भव भवना भय जाय), ६३४६४-१०८(#) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (माहरा साहिबा हो राज), ६३४६४-२१(#) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मिल जाज्यो रे साहिब), ६३६१६-१७ साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मिली जायो रे साहिबा), ६३४६४-१३०(#) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.८, वि. १८वी, पद्य, म्पू., (मुगति को मारग मस्त), ६३४६४-१४३(#) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मुजने चित्तमां अवधार), ६३४६४-८६(2) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मेरे दिल वसीया साहिब), ६३४६४-६४(#) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मेरो मन अलि लगि), ६३४६४-९५(#) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मेरो मन हरखे प्रभु), ६३४६४-९६(2) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (लग गई अँखिया मेरी रे), ६३४६४-९९(#) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (लीनो रे मन दुंदुभि), ६३४६४-१०५(#) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (विनती कैसे करे रे), ६३४६४-८७(#) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (शरणां वे मेरे दिल मे), ६३४६४-१२७(#) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवरने वंदना ए), ६३४६४-१७(#) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सकल कुसल वन सेचन), ६३४६४-१४६(#) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सकल जिनराज दिन राज), ६३४६४-५१(2) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (समता राणीना वालिम छो), ६३४६४-९३(#) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (समवशरण सुख देत है), ६३४६४-१२१(२) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (साहिब सारा प्यारा), ६३४६४-११६(#) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुंदर सूरति तेरी जी), ६३४६४-१६(#) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सुकृत कमाई फल पति), ६३४६४-१४० (#) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (हम लीने प्रभु ध्यान), ६८००४-२७(+) साधारणजिन स्तवन, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सुगुण सुग्यानी सामनै), ६४१५१-२(+) साधारणजिन स्तवन, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (--), ६४१५१-१(+$) साधारणजिन स्तवन, मु. नवल, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (अटके नेणुदीजे जिन), ६५१९३-७(+#) साधारणजिन स्तवन, मु. भूधरदास, मा.गु., गा.८, पद्य, श्वे., (करुणा लेहो जिनराज), ६७९४६-१५८)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ साधारणजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ३, पद्य, म्पू., (जिन तेरे चरण सरण), ६७९१९-१४(+) साधारणजिन स्तवन, मु. राजकीर्ति, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (नेना सफल भइ हो० जीन), ६४६०८-३२(-#) साधारणजिन स्तवन, मु. रामचंद्र, रा., गा. ८, पद्य, मूपू., (प्रभुजीरी नोकरी अमे), ६८०५४-१५ साधारणजिन स्तवन, मु. रूप ऋषि, बं., गा. ५, पद्य, श्वे., (मौन लागीलो रे तुमार), ६३६२५-६(+) साधारणजिन स्तवन, मु.रूपचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (मे परदेसी दूरका दरसन), ६८१६३-७ साधारणजिन स्तवन, मु. वल्लभ, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ६३३९०-१(+$) साधारणजिन स्तवन, मु. सुबुद्धिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चितराजा सुणवू पसुं), ६७९४०-२७ साधारणजिन स्तवन, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. ११, पद्य, स्था., (स्वामी आज्यो मंदरीये), ६३४९१-३२(+) साधारणजिन स्तवन, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (अजब बणी हो माराज अंग), ६४६०८-३७(-2) साधारणजिन स्तवन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रभूजी म्हारी अरज), ६५२३७-१२(#) साधारणजिन स्तवन, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (मुजे हे चाह दरसन), ६५२०८-३ साधारणजिन स्तवन, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (मेरो अब कैसे निकसन), ६५२३७-११(#) साधारणजिन स्तवन-औपदेशिक, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (प्रभु माहरो वांक), ६३४६४-५३(#) साधारणजिन स्तवन-जन्मकल्याणक, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मे जिनमुख देखण जाउं), ६३४६४-७०(#) साधारणजिन स्तवन-भावनगर मंडन, मु. आसकरण, मा.गु., गा. १४, वि. १७९७, पद्य, श्वे., (--), ६७०१६-२(+$) साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चंपक केतकी पाडल जाई), ६३२४७-३३(+#), ६७०३०-२(+#),
६३००६-१९, ६७८६६-१ साधारणजिन स्तुति, आ. दयासूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (ऋषभअजितसंभवअभिनंदन), ६७८९२-१२ साधारणजिन स्तुति, आ. रतनसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जिनप्रतिमा जिनसारखी), ६७८९२-९ साधारणजिन होरी, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (चोरी कर कर होरी रचाई), ६४००२-६(+) साधु ३० उपमा सज्झाय, रा., गा. ३६, वि. १८५६, पद्य, श्वे., (कासी जल नहिं भेदै), ६४६०२-३१(-) साधु अनाचार परिहार, मा.गु., गा. ७२, वि. १८३४, पद्य, मूपू., (कुगुरुतणा चरत चावा), ६४१९५-९(+) साधु आचार विवरण, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मूपू., (जाणइ अनइ पुछइ पुन्य), ६६३३७-४ साधुआचार सज्झाय, मु. कुसालचंद ऋषि, मा.गु., गा. ३६, पद्य, श्वे., (वीर जिणेसर उपदिस्यो), ६७८८३-७(-#$) साधु आचार सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अरज करुं छु छोडो रीस), ६७७५५-९ साधु आचार सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (अणा साधज त्यारां भेष), ६४१९५-१०(+$) साधु आचार सज्झाय, मा.गु., गा. ४६, पद्य, श्वे., (पेला अरहंतने नमु), ६४१९५-४(+) साधुगुणमाला, श्राव. हरजसराय जैन, पुहि., गा. १२५, वि. १८६४, पद्य, मूपू., (श्रीत्रैलोकाधीस को), ६४४६२, ६५२६२($) साधुगुणवर्णन सवैया, मु. चंद्रभाण, मा.गु., गा. १७, पद्य, श्वे., (अकल बहोत ऊंडी साचौ), ६५२५३-१(#) साधुगुण सज्झाय, मु. आसकरण, पुहिं., गा. १०, वि. १८३८, पद्य, श्वे., (साधुजीने वंदना नीत), ६३९५७-१३(+$), ६५२६१-५(+-) साधुगुण सज्झाय, मु. धर्मचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (हुं तुज पुर्छ वात), ६३४२२-४(+#) साधुगुण सज्झाय, मु. भुदर, पुहिं., गा. ८, पद्य, श्वे., (वंदु श्रीजिनगुरु चरण), ६८३१०-३१(+#) साधुगुण सज्झाय, ग. मणिचंद्र, मा.गु., गा.११, पद्य, मूपू., (श्रवण कीर्तन सेवन ए), ६८०५०-१(+) साधुगुण सज्झाय, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (--), ६७९१३-१(+#$) साधुगुण सज्झाय, रा., गा. ३६, वि. १८७७, पद्य, श्वे., (ज्यां पांचमहाव्रत आद), ६४६०२-१४(-) साधुगुण सज्झाय, रा., गा. १४, पद्य, श्वे., (समकित धारी सुधमती), ६४६०२-१९(-) साधुप्रायश्चित विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञानना अतिचार कहै), ६४०३५-५(+) साधुलक्षण सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (तारण तिरण जिहाज तुम), ६५२४९-६(+#), ६८३५१-११ साधु वंदना, मु. खोडीदास, मा.गु., गा. १५, वि. १९७०, पद्य, श्वे., (चालो साधुजीने वांदवा), ६५२६६-४(+)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६ साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., ढा.७, गा.८८, पद्य, मूपू., (रिसहजिण पमुह चउवीस), ६५२११-१(+), ६८०५५-१(#),
६२९९८(६) साधुवंदना, मु. श्रीदेव, मा.गु., ढा. १३, गा. ३७७, पद्य, मूपू., (पंच भरत पंच एरवय), ६४००२-१४(+), ६४५८५, ६८०८७, ६८१९१,
६७९१७(६) साधुवंदना बडी, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. १११, वि. १८०७, पद्य, स्था., (नमुं अनंत चोवीसी), ६८०९९(+), ६८३१०-१५(+#),
६८४०७, ६७९४६-५(-६) साधुवंदना बडी, ग. देवचंद्र, मा.गु., ढा. १३, गा. १९०, वि. १८वी, पद्य, म्पू., (अरिहंत सिद्ध साधु), ६८०९०(६) साधुसंख्या सज्झाय, मु. मान, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (गोयम पमुहा गुरु चित्), ६५३०८-२०(+) सामायिक ३२ दोष स्तवन, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (जिनवरना प्रणमुंपाय), ६४१८३-२(+), ६८३५१-५ सामायिक लेवा-पारवानीविधि, मा.गु., प+ग., श्वे., (इच्छामि खमासमण देइ), ६७९८०-१(६) सामायिक सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (गोतम गणधर पाय प्रणमी), ६७०३६-३(+) सामायिक सज्झाय, मु. नेमसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सामायिक मन सुधे करो), ६५३२२-३(+), ६७९९१-२८(+#),
६५२४०-८ सामायिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चतुर नर साय नायक), ६७९१९-१९(+) साह पंचाइणजीरास, मु. जयराज, मा.गु., गा. ७४, वि. १७८३, पद्य, मूपू., (वांदुवीरजिणंदना चरण), ६४२२२-१(+#), ६८१०४(#) सिंहासनबत्रीसी, ग. संघविजय, मा.गु., गा. १५४७, ग्रं. १६००, वि. १६७८, पद्य, मूपू., (सकल मंगल धर्म धुरि), ६३५९५(+),
६४०३२($) सिंहासनबत्रीसी चौपाई, मु. विनयलाभ, मा.गु., खं. ३, ढाल ६८, वि. १७४८, पद्य, म्पू., (आदि जिणेसर आदिदेव), ६८१६०() सिचियायमाता छंद, आ. सिद्धसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (मुज मन आस्था अज फली), ६७०५५-३१(-2) सिचीयायदेवी छंद, हेम, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सानिधि साचल मात तणी), ६७८५२-५(-) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १५, वि. १८वी, पद्य, मूपू, (सिद्धचक्र आराधता), ६७८२६-२ सिद्धचक्र नमस्कार, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत उदार कांत), ६३४०२-२(+), ६७०७४-१४(+),
६७०७६-१(+), ६८२१४-१३(+$), ६८२५६-२०(+) सिद्धचक्र पूजा, मा.गु., प+ग., मूपू., (अरिहंत पद ध्यातो), ६४०२१(६) सिद्धचक्र सज्झाय, मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू., (नवपद महिमा सार सांभल), ६४६०८-७(-2) सिद्धचक्र स्तवन, मु. अमरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (समरी सारद माय प्रणमी), ६८३८२-४ सिद्धचक्र स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सुरमणि सम सहू मंत्र), ६३४०२-५(+), ६८००४-३३(+) सिद्धचक्र स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत अवनीतले), ६३४६४-८१(#) सिद्धचक्र स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र आराधीये), ६३४६४-८०(#) सिद्धचक्र स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीजयति तीरथपति), ६८२३४-२(+#), ६७०५७-९ सिद्धचक्र स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. २५, पद्य, मूपू., (जी हो प्रणमु दिन), ६८३८२-२, ६८०७१-१४) सिद्धचक्र स्तवन, मु. सुजस, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जी रे सिद्धचक्र गुण), ६८१७३-४ सिद्धचक्र स्तुति, ग. उत्तमसागर, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धचक्र सेवो), ६४६०८-३०(-2) सिद्धचक्र स्तुति, ग. कांतिविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पहिले पद जपीइ अरिहंत), ६७९२०-९(+) सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (निरुपम सुखदायक), ६३२४७-३७(+#), ६७०७४-११(+$),
६८२५६-७४(+), ६८२५६-१६९(+), ६८१२३-१५, ६३०४६-२८(#), ६८०१८-१८(-) सिद्धचक्र स्तुति, मु. नयविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर अति अलवेसर), ६७९२०-१४(+) सिद्धदंडिका स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., ढा. ५, गा. ३८, वि. १८१४, पद्य, मूपू., (श्रीरिसहेसर पाय नमी), ६७०५७-३ सिद्धपद पूजा स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (समय पएसंतर अणफरसी), ६७९५१-३(5)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ सिद्धपावडीया सज्झाय, रा., गा. ४८, वि. १८७५, पद्य, श्वे., (शासणनायक समरिय), ६४६०२-३४(-) सिद्धांत बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (जे इम कहइ छइ अम्हारई), ६३४०९(+$) सिद्धांतविचार रास, मा.गु., गा. १८२८, पद्य, मूपू., (ॐकाराक्षररूपाय), ६८४३१(+#$) सिद्धांतसारोद्धार, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम जंबूद्वीपविचार), ६४१३६-१(+), ६८३१६(+), ६८३११(१), ६८३२३-१(#) सिरोहीदेश वर्णन, क. राज, मा.गु., गा. ३३, पद्य, श्वे., (प्रणमुप्रेम धरी), ६६६८९-१($) सीतासती सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जनकसुता हुं नाम), ६८१६३-३२ सीतासती सज्झाय, मु. चोखचंद, रा., गा.५, पद्य, श्वे., (सीता सत राख्यो वनमे), ६४६०५-१०(+) सीतासती सज्झाय, मु. लक्ष्मीचंद, पुहिं., गा. १६, पद्य, मूपू., (मुनिसुवरतस्वामी कुं), ६७९६१-५(+#), ६४१५५-५७(#) सीतासती सज्झाय, लछिदास, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (पिया मेरी एक न मानी), ६७७५५-४, ६५१७१-२५-६) सीतासती सज्झाय, मु. हर्षकुशल, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (जल जलती वलती खरी रे), ६८३५१-१ सीतासती सज्झाय-शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जलजलती मिलती घणी रे), ६३९५७-१८(+),
६८२५६-६०(+), ६४४८०-११, ६५५८१-८, ६८१९८-२, ६८३८०-७-) सीताहरण पद, सूरदास, मा.गु., गा. ३, पद्य, वै., (भैया लक्षमण सीता कौन), ६४१५५-१७(#) सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वंदुं जिणवर विहरमाण), ६७०७६-८(+), ६८२५६-७(+) सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ३, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (श्रीसीमधर वीतराग), ६८१६८-३(+) सीमंधरजिन चोढालियो, मु. अगरचंद, मा.गु., ढा. ४, वि. १८९४, पद्य, मूपू., (श्रीजिनशासन जग जयो), ६८१२१(+) सीमंधरजिन पत्र, क. नर, मा.गु., पत्र. २, गद्य, श्वे., (स्वस्ति श्रीमहाविदेह), ६८२२१-२(#S), ६३९८३-४(६) सीमंधरजिन पद, मु. भूधर, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (सीमंधरस्वामी मे चरनन), ६३६२५-१५(+) सीमंधरजिन पद, मु. रामचंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (महाविदेह में थे वसो), ६८०५४-१८ सीमंधरजिन पद, मु. रामचंद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (महाविदेहे विराजीया), ६८०५४-२ सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन-३५० गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. १७, गा. ३५०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीसीमधर
साहिब), ६४६५४(+) (२) सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन-३५० गाथा-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ग्रं. १२०१, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीपार्श्व),
६४६५४(+) सीमंधरजिन विनती स्तवन, मु. अगरचंद, मा.गु., गा. २१, वि. १८६१, पद्य, मूपू., (त्रिभुवनस्वामी अरज), ६४००२-१(+) सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (सफल संसार अवतार हु), ६४१५१-३४(+), ६४१८३-१(+),
६७९६०-५(+#), ६८०२६-१३(+-), ६८२१३-४(+#), ६८२५६-१०(+) सीमंधरजिन विनती स्तवन-१२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ११, गा. १२५, ग्रं. १८८, वि. १८वी, पद्य, मूपू.,
(स्वामी सीमंधर विनती), ६३३६८(+$), ६४२०३(+$), ६५२१९-१(+), ६८१६८-१(+), ६८२३४-२२(+#), ६४०००(4) (२) सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा-टबार्थ, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य पार्श्वदेव), ६३३६८(+$) सीमंधरजिन स्तवन, मु. अगरचंद, मा.गु., गा. २३, वि. १८२१, पद्य, मूपू., (मारी वीनतडी अवधारो), ६३४९१-३९(+) सीमंधरजिन स्तवन, मु. अमी ऋषि, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (श्रीसिमंधरस्वामी हो), ६४६०७-२१(+) सीमंधरजिन स्तवन, मु. गंग, मा.गु., गा. १३, वि. १७७१, पद्य, मूपू., (श्रीसीमधरस्वामी सुण), ६७७५५-१(६) सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सुगुण सनेही साजन), ६३४०२-४(+), ६७०७२-२(+) सीमंधरजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (मुज हीयडु हेजालवू), ६३५४३-३, ६८४५१-४, ६७७३७-२(#$) सीमंधरजिन स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (चांदलिया संदेशो), ६५२३६-५(+) सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (श्रीसीमधर साहिबा), ६५२३१-९(+) सीमंधरजिन स्तवन, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. २१, पद्य, स्था., (पुखलावती विजय पूर्व), ६३३९७-८(+), ६८३१०-३४(+#) सीमंधरजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तारी मुद्राए मन मोह्), ६३४६४-८(#)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६
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सीमंधरजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वीनतडी अवधारि हां रे), ६३४६४-४(#) सीमंधरजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु गा. ७, पद्य, म्पू, (श्रीसीमंधर साहिबा, ६३४६४-१३(०) सीमंधरजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., ( श्रीसीमंधरु रे मारा), ६३४६४-९(#) सीमंधरजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु.. गा. ५, पद्य, मृपू., (सीमंधर साहिबा विनतडी), ६३४६४-१४) सीमंधरजिन स्तवन, क. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुणो चंदाजी सीमंधर), ६७८३९-९, ६७९४०-२६ सीमंधरजिन स्तवन, मु. प्रेम, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सेवकनी अरदास दूर देस), ६८२४९-१८ सीमंधरजिन स्तवन, मु, मतिहंस, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू (सीमंधरजिन साहिबा स्व), ६७०५५-४(4) सीमंधरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ७. वि. १८वी, पद्य, भूपू (पुष्कलवर विजये जयो), ६८१६३-४ सीमंधरजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., ( धनधन क्षेत्रविदेह), ६७७३७-१०(#$) सीमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा. गा. १०. वि. १८२५, पद्य, श्वे. (पुरव माहाविदेह भलो), ६८३१०-१७(+०) सीमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा. गा. ११. वि. १८६८, पद्य, स्था. (महाविदेह विराजीया), ६८३१०-१२ (+)
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सीमंधरजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधरजी सुणजो), ६७०२०-४(#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. शिवलाल, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (महावीदेहे श्रीमिंदर), ६७८१४-८ सीमंधर जिन स्तवन, मु. हर्षकुशल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चंदलीया जिनजीसुं), ६४१५५-२४(#) सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (आज भलो दिन उग्यो जी), ६५१८४-३(#) सीमंधरजिन स्तवन, रा., गा. १०, पद्य, मूपू., ( श्रीमंदिरजिनजीने), ६४६०२-२३(-) सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीमींदर जिन स्याम), ६७७१९-६(-) सीमंधरजिन स्तुति, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., गा. १४, पद्य, भूपू सुंदरराजा रास, मा.गु., ढा. ११, गा. ३४५, पद्य, मूपू., (ॐ सासण नायक समरिये), ६८२५३ सुकोशलमुनि सज्झाय, मु. सूरचंद, मा.गु., गा. ४३, पद्य, भूपू (नवरी अयोध्या जयवती), ६३३७८-१(३) सुखदेव रास, वा. कर्मतिलक, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (सुरग थकी सुर अवतर्यो), ६४१५५-५९(४)
(सीमंधर नित बंदीय), ६३९५६-२२ (+)
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सुगणबत्तीसी, ग. रुघपति, मा.गु., गा. ३२, वि. १८८६, पद्य, मूपू., (सुगण बूढापो आवियो लख), ६८४१२-१८(#)
सुगुरुपच्चीसी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सुगुरू पिछाणो एणे), ६३३९०-१९(+s), ६३९५७-१६(+), ६७०३६-३७(+)
गुरु लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (नमुं नमुं में गुरू), ६८३०३-९
सुगुरु सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ४, गा. ४०, पद्य, मूपू., (सद्गुरु एहवा सेविइ), ६३३९९-२(+)
सुगुरु सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. ११, वि. १८३५, पद्य, स्था., (तीर्थनाथ त्रिभोवनसाम), ६८३१०-१८(+#), ६८३९७-९ सुजात चौपाई, मु, लाल ऋषि, मा.गु, डा. ४. वि. १८९७, पद्य, थे. (आदिनाथ सुरतरु समो मन), ६४९६४.२(+)
,
सुदर्शनशेठ रास, मु. दीपचंद ऋषि, रा., गा. १२१, पद्य, श्वे., (वंदु श्रीजिन महावीर), ६३४७८-१(#) सुदर्शनशेठ रास, मु. धरमसी, मा.गु., गा. १२१, पद्य, मूपू., (बंदु श्रीमहावीर धीर), ६८०६४
सुदर्शनशेठ रास, मु. रायमल्ल ब्रह्म, मा.गु. गा. २०१, पद्य, दि. (प्रथम प्रणमू स्वामी), ६७८२४(+)
"
सुदर्शनशेठ सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ४५, वि. सुधर्मास्वामी स्तवन, मु. रामचंद्र, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., सुपात्रदान महिमा सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (तिर्थंकर चोवीसे), ६४६०५-४(+) सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. अमी ऋषि, पुहिं., गा. ७, पद्य, से, (देव सुपास सेव सुखकार), ६४६०७-१४(+) सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. अमी ऋषि, पुहिं., गा. ७, पद्य, वे., (स्वामी सुपार्श्व आस), ६४६०७-६(+)
सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु. गा. ७, पद्य, मूपू. (सहज सलुणो हो मिलियो), ६३४२२-७(+), ६३५४५-३, ६४२२६-२(१) सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सकल समिहीत सूरतरु रे), ६५२१७-३(+#$)
सुपार्श्वजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीसुपास जिनराज), ६७०७५-८
सुपार्श्वजिन स्तवन- जयपुर मंडन, मु. रत्नविजय, पुहिं, गा. १०, वि. १९००, पद्य, मूपु. ( हो जिनवरजी मरजी करने, ६७०६७-४(+)
१७७६, पद्य, म्पू, (श्रीगुरु पद पंकज नमी) ६७९९१-१६ (+४) (स्वामी सुधर्मा हो), ६८०५४-१
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २
सुपार्श्वजिन स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू. (सुपार्श्वजिन सेवी), ६८२३७-२६(+) सुबाहुजिन स्तवन, मु. अमी ऋषि, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (देव सुबाहु दीजिये उप), ६४६०७-२२(+) सुभद्रासती चौपाई, ग. रूपवल्लभ, मा.गु. डा. २५, गा. ५४०, वि. १८२५, पद्य, म्पू., ( आदिकरण आदिसरुं सांति), ६३६११(०) सुभद्रासती रास- शीलव्रतविषये, मु, मानसागर, मा.गु., ढा. ४, वि. १७५९, पद्य, भूपू (सरसति सामणि बीनवु), ६५३१३-१(+),
"
६८२६७-१(+)
सुभद्रासती सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (मुनिवर सोधइ ईरजा), ६४१७२-१३
सुभद्रासती सज्झाय, मा.गु., गा. २५, पद्य, म्पू, (मुनिवर सोधे रे झजा), ६७०५५-२५ (98)
सुभद्रासती सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू (सकल जिनेसर पाय), ६३३७८-१२
,
सुभद्रासती सज्झाय-सीयल, मु. सिंघो, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (मुनीवर सोधे इरया जीव), ६८१६३-१८ पद्य, मूपू., (सुमति की अरज सुणीजे), ६३३७४-१९(+)
सुमतिकुमति सज्झाय, मु. सुमति, मा.गु., गा. ७,
,
सुमतिजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहिं. गा. ४, पद्य, म्पू, (निरखत बदन सुख पायो), ६८२५६-११२(+), ६४६०८-२६(*), ६८३०१-३(*) सुमतिजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रभुजी जो तुम तारक), ६५२२०-६
सुमतिजिन पद, पुहिं. गा. ४, पद्य, क्षे., (मेरे मन तुही हे ओर), ६४६०८-२३(०)
"
सुमतिजिन समवसरण गीत, मा.गु., गा. ८, पद्य, खे, (आज हुं गई थी समोसरण), ६४१७२-२७
सुमतिजिन स्तवन, मु. कनककुशल, मा.गु., गा. ९. वि. १७५८, पद्य, मृपू (सरसति सामणि भावे), ६८२८४-११
सुमतिजिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वंशइख्यागई राजीओ), ६८४५१-२२
सुमतिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सुमतिनाथ गुणस्युं), ६८३८०-२० (-) सुमतिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मृपू.
(वाल्हा सुमतिजिणेसर), ६५२६८-४० सुमतिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु. गा. १२, पद्य, मूपू (सुमतिजिणेसर स्वाम), ६५२६८-२ (०) सुमतिजिन स्तवन, मु. सुबुद्धि, मा.गु, गा. ५, पद्य, भूपू (सुमतिजिणेसर सुमतत), ६७९४०-२४ सुमतिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, भूपू. (जय जय सुमति जिनेश्वर), ६४५९५-२(६)
,
सुमतिजिन स्तवन १४ गुणस्थानविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु. डा. ६, गा. ३४, वि. १७२९, पद्य, मृपू., ( सुमतिजिणंद सुमति), ६५३०८-१०(+), ६८२५६-६९ (+), ६८००८-४
सुमतिजिन स्तवन- पिंडस्थध्यानगर्भित, मु. शांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (रूप अनुप निहाळी सुमत), ६८१६३-१४ सुरपतिराजा रास- दानधर्मे, मु. दामोदर, मा.गु., गा. ३६१, वि. १६६५, पद्य, मूपू., (प्रणमुं स्वामि शांति), ६३४९०(+#)
सुरसुंदरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., खं. ४ ढाल ४०, गा. ६१३, वि. १७३६, पद्य, मूपू., (सासण जेहनउ सलहियइ), ६३४०८ (+$), ६३४९६(१) ६४६२६(३) ६७८८७३)
,
सुरसुंदरी रास, क. केसर, मा.गु., ढा. १५, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवर श्रीऋषभजी), ६३६०४, ६३३८२(#)
सुरसुंदरी रास, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, खे, (--), ६८२१२(३)
श्वे.,
सुलसाश्राविका सज्झाय, मु. कल्याणविमल, मा.गु. गा. १०, पद्य, भूपू (धन धन सुलसा साची), ६७८१०-३
"
י
सुविधिजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (मुजरा साहिब मेरा रे), ६८२५६-९६(+), ६८०७१-३९(-) सुविधिजिन पद, मु. रूपचंद, मा.गु. गा. ५, पद्य, भूपू (वांके गढ फोज चढ़ी है), ६८०७१-२८(१
"
13
सुविधिजिन स्तवन, मु. अमी ऋषि, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (सुविधिजिन समरो नरनार), ६४६०७-८(+) सुविधिजिन स्तवन, मु. रतनचंद, पुहिं. गा. १०, पद्य, भूपू (कैसे वीरह देगा उरमे), ६४६०८-९(१) सुविधिजिन स्तवन, आ. राजेंद्रसूरि, मा.गु. गा. ५, पद्य, मूपू सुविधिजिन स्तवन, मु. सुमतिकुशल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूषू, (प्रभुजी प्रीतम प्राण), ६७०३६-४३(+)
(सुबुद्धि विचारुं रे), ६७०७५-२६
सुव्रतजिन स्तवन, मु. जीवराज कवि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू (चरणकमल श्रीसद्गुरु), ६७०३६-१६ (+)
सुव्रतजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू (मुनिसुव्रतजी मोहन), ६७८६५-७(+)
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सूत्र स्थापना विचार, मा.गु., गद्य, भूपू (टीका नियुक्ति विघइ), ६४४५७
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१६
सूरतबंदर गजल, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ८३, पद्य, भूपू (श्रीगुरू प्रेमप्रताप), ६३८४९-१(०४) सूर्यदेव श्लोक, मा.गु., गा. १९, पद्य, वै., ( सरसति सामणि करुं), ६५१९७-२, ६७९३९-२(#$) सूर्य सलोको, मा.गु, गा. १७, पद्य, ओ., (सरसति सांमणि करोने), ६६९५५ (+), ६३४१०-३, ६७७९५-३ स्तवनचौवीसी, मु. अमृतविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (जगजीवन जग जन उपगारी), ६८३५५ ($) स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., स्त. २४, वि. १८पू, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम), ६५२३३ (+$), ६७०३५ (+), ६८१६६(+), ६८१८१ (+३), ६८३७८(+४), ६८४२८(+), ६८१५९, ६४५८०-१(३), ६७०१३(३) (२) स्तवनचीवीसी बालावबोध, पं. देवचंद्र गणि, मा.गु., गद्य, म्पू, (-), ६८३७८(+३)
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(२) स्तवनचीवीसी टवार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु. ग्रं. ८२८, गद्य, मूपू (आनंदघनस्यास्या गीत) ६८१५९ स्तवनचौवीसी, मु. उदयरत्न, मा.गु., स्त. २४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मरुदेवीनो नंद माहरो), ६८४०८-४(+) स्तवनचीवीसी, मु. कांतिविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू. (सुगुण सुगुण सोभागी), ६४१९० (+) स्तवनचौवीसी, पंन्या. खुशालविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (आदिजिणेसर विनती दीजे), ६७०४४-१३(+) स्तवनचौवीसी, मु. गजमुख, मा.गु., स्त. २४, वि. १७०५, पद्य, वे., (श्रीजिनजी नाभिकुल), ६५२७१ स्तवनचीवीसी, मु. गुणविलासजी, पुहिं स्त. २४ वि. १७५७, पद्य, मूपू., (अब मोहीगे तारो दीनदय), ६५२३४(+) स्तवनचौवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (मनमधुकर मोही रह्यो), ६३४०७ (+), ६३९५६-१(+#$), ६४५९७(+#),
६३५४३-२
स्तवनचौवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., स्त. २४, वि. १७७६, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणिंदसु प्रीतडी), ६४५८३-१(#)
स्तवन चौवीसी, मु. नेत, मा.गु., गी. २४, पद्य, मूपू., (ऋषभदेव राजा लही अलग), ६३५३२(+) स्तवनचौवीसी, मु. भावमुनि, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (--), ६३६१२-१ (+$) स्तवनचीवीसी, उपा. मानविजय, मा.गु. स्त. २४ वि. १८वी, पद्य, मूपू स्तवनचीवीसी उपा. मेघविजय, मा.गु. स्त. २४, वि. १८वी, पद्य, भूपू
(ऋषभ जिणंदा ऋषभ), ६७८५२-१ (श्रीजिन जगआधार), ६३९५६-१५ (+१३)
,
स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्त. २४, गा. १२१, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जगजीवन जगवालहो), ६४००३(+),
६४६२० (+), ६५२४०-३(३), ६७९०९(३)
स्त्री ७ सुखदुख पद, मा.गु., गा. २, पद्य, वै. (पहिली सुख पीहर गाम), ६७८६३-१०
स्त्री लक्षण, मा.गु, गा. ४, पद्य, (पुण्फवास पदमनी सहज), ६५२३७-१(१६)
स्तवनचौवीसी, मु. रत्नविमल, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (-), ६४१८९ (+)
.
स्तवनचौवीसी, मु. रामविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (ओलगडी आदिनाथनी जो), ६५२२८(+#), ६७०४४-१४ (+), ६४२२०(#) स्तवनचीवीसी, श्राव. विनयचंद्र गोकलचंद कुमट, मा.गु., स्त. २४, वि. १९०६, पद्य, वे. (श्रीआदिश्वर सामी हो), ६३८९४-१,
६८३४८ ($)
स्तवनचौवीसी, मु. हर्षचंद, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., ( उठत प्रभात नाम जिनजी), ६८२२४ (+) स्त्री ६४ कला नाम, मा.गु., गद्य, मूपू. (नृत्य १ उचित्य), ६७८६३ २ ६७८६३-६
५९५
स्थूलभद्र एकवीसो, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ४२, वि. १५५३, पद्य, मूपू., (आव्यो आव्यो रे जलहर), ६४१७५ (+)
स्थूलभद्र नवरसो, उपा. उदयरत्न, मु. दीपविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. ७४, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (सुखसंपति दायक सदा), ६८०६०), ६७९७०-१४), ६७९७८-३(३)
स्थूलिभद्र पद, श्राव, नीबा शाह, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपु. (चतुर चौमासो पडिकमी ह), ६५२३६-८ (+)
स्थूलभद्रमुनि गीत, मु. नित्यलाभ, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (कोसवो ए मुझी मावडी), ६३३७४-१२(+)
स्थूलभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदवरत्न, मा.गु., डा. ९ वि. १७५९, पद्य, मूपू., (सुखसंपत्ति दायक सदा), ६४१७० (+), ६३५०३,
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६५३२०-२, ६८२४१
स्थूलभद्रमुनि शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मा.गु, ढा. १८, वि. १८६२, पद्य, मूपू (सयल सुहंकर पासजिन ), ६४१४६, ६४२३७/०), ६७७२३-१(३)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. महानंद, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (अहो मुनिवरजी माहरी), ६५२८८-७ स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, ग. लब्धिउदय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (मुनिवर रहण चोमासे), ६३४२३-४(३) स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. शांति, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (बोली गयो मुख बोल), ६३६३३-७(+#) स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. शिवचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू (थूलभद्र मुनीसर आवो), ६३३७८-७ स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७. पच, भूपू (प्रीतडली न किजीये), ६५२८८-१०, ६४१५५-४९(१) स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (धुलिभद्र मुनिसर आवो), ६४१५१-१८ (०) स्थूलभद्र रसवेल, मु. माणिक्यविजय, मा.गु., डा. १७ गा. १३५, वि. १८६७, पद्य, भूपू (पार्श्वदेवने प्रणमीइ), ६४१५८ (६) स्थूलिभद्र सज्झाय, पंन्या, खुशालविजय, मा.गु गा. १५, पद्य, भूपू (एहवे गुरुने आदेसे), ६७०४४-४(+) स्थूलिभद्र सज्झाय, मु. लींबो, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू (चतुर चोमासुं पडिक्कम), ६६३८८-२ (०)
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स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., ढा. ८, गा. ६०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चोतिसे अतिसय जुओ वचन), ६३५७३-१(+), ६५१८६-१(+), ६५२१७-८(+), ६५३२५-२(+), ६७०६८-१(+), ६८२३४-१(+४), ६५२८०, ६७५५७-१, ६७८७२-१, ६७९४३, ६७९७६ ६८०७८-१, ६५२७६ (०३), ६५२३०(३)
स्वरोदयसार, मु. कपुरचंद, मा.गु., गा. ४५३. ग्रं. ५५०, वि. १९०७, पद्य, भूपू (नमो आदि अरिहंत देव), ६५७८१(४) स्वार्थविषे लावणी, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू. (कोन जगतमें हारा, ६४१९६-६ (+)
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हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., खं. ४ ढाल ४८, गा. ९०५, वि. १६८०, पद्य, मूपू., (आदिसर आदे क
चोवीसे), ६३३९३ (+३), ६८४२७(+३) ६३५४८ (०३), ६३५९८(०), ६४५८७), ६७९८७ (३), ६८०२४(३)
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हनुमान लंका दहण पद, मु. जिनदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पूछे अंजनी के कुवर ), ६४००२-४(+)
हरिबल चौपाई, मु. लब्धिविजय, मा.गु., उल्ला. ४ डाल ५९, ग्रं. ३७५१, वि. १८१०, पद्य, मृपू, (प्रथम धराधर जगधणी), ६३५९३, ६४२३१(#$), ६८३६६-१ ($)
हरिबल रास, मु. जीतविजय, मा.गु., डा. ३५, गा. ८४९, पद्य, भूपू (सुखदाई समरूं सदा), ६३३६९ (+5)
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हरिश्चंद्रराजा चौपाई, मु. कनकसुंदर, मा.गु., खं. ५ डाल ३९ गा. ७८१, वि. १६९७, पद्य, मूपू (पासजिणेसर पाय नम), ६३४६१(३) हरिश्चंद्रराजा चौपाई, मु. प्रेम, मा.गु., ढा. ४७, पद्य, श्वे., (आदिजिनेश्वरे पाय नमु), ६५२७९(+#)
हरिश्चंद्रराजा चौपाई, मु, प्रेम, रा. ढा. २३, वि. १८३४, पद्य, श्वे. (आदेसर आदी करी वीतराग), ६८००० (+), ६८२७३ (+)
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हितशिक्षाबत्रीसी, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३३, पद्य, मूपू., (सकल विमल गुन कलित), ६७०७४-२४ (+$) हीरविजयसूरि सलोको, ग. कुंअरविजय, मा.गु., गा. ८१, पद्य, मूपू. (सरसती वरसती वाणी), ६३६३३-१(+)
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वेध बीसी, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (राजनगर सम एह नारि), ६८०३३ (+), ६४२५७ (२) हीरावेधि बत्रीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अथ मंदोदरी रावणने), ६८०३३ (+), ६४२५७ हुंडकचोर कथा - नवकार प्रभाव, मा.गु., गद्य, मूपू. (मधुरनगरी शत्रुमर्दन), ६७९१६-५ हुकमीचंद आदि गुरु गीत, मु. हीरालाल, रा. गा. ६, पद्य, स्था., ( इस भरत खंड में तरण), ६३४९१-१० (+) हुकमीचंदजी दुढालिया, मु. हीरालाल, पुहिं., डा. २, पद्य, स्था. (बृद्धमात्र वृद्धिकरन ), ६३४९१-५ (+) होरी - राधाकृष्ण, क. मान, पुहिं., कडी. ७, पद्य, वै., (इतसुं आयो स्यांम), ६५०९६-८(+#)
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होलिकापर्व व्याख्यान, मा.गु., गद्य, मूपु., (फागुण चौमासी पर्वनें), ६८१३५-१०) होलिकापर्व सज्झाय, मु. बीर, मा.गु., गा. १६, पद्य, मृपू. (नवगाटी नवल वर पाया), ६८१९५-१(+) होली ज्ञान गाली कुमति सज्झाय, श्राव. विनोदीलाल, पुहिं. गा. १७, वि. १७४३, पद्य, श्वे. (प्रथम ही सुमति), ६५०९७-३(०)
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