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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६३२३९. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८२ - १ (१) = ८१, पू. वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षर फीके पड़ गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै, (२५x१०.५, ७३३-३९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू. वि. जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र का वर्णन अपूर्ण से वर्षाकाल में साधु-साध्वी द्वारा गोचरी हेतु जाने के समय पालन करने योग्य नियम वर्णन अपूर्ण तक का पाठ है.) कल्पसूत्र - टवार्थ में, मा.गु, गद्य, आदि: (-); अंति: (-). *, ६३२४० (+) उपदेशमाला सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७३९ आश्विन शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ६३, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२४.५x११, ५x२९). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: जयंमि थिर थावरा होउ, गाथा-५४४, संपूर्ण. उपदेशमाला - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमिऊण कहीइ नमीनइ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५२२ अपूर्ण तक लिखा है.) ६३२४१. (+४) उत्तराध्ययनसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २८४-२१० (१ से १८,२४ से १२४, १४४ से १५४,१७९ से १९९,२०४,२१२ से २६१ ) = ७४, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ४x२४). उत्तराध्ययनसूत्र. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश हैं.) उत्तराध्ययन सूत्र- टवार्थ मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). ६३२४२. (+) श्रीपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें -संधि सूचक चिह्न-संशोधित - टिप्पणयुक्त विशेष पाठ, जैये. (२४४१०.५, ११४३३). " श्रीपाल चरित्र, आ. ज्ञानविमलसूरि, सं., गद्य वि. १७४५, आदिः सकलकुशलवल्ली सेचने, अंतिः कालस्यं सदा 1 वाच्यं. ६३२४३. (+#) निशीथसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८६, पौष कृष्ण, ११, बुधवार, मध्यम, पृ. ८६, ले. स्थल. मांडवी (कच्छ), प्रले. मुरारजी वासदेवजी जानी लिख. मु. मुरारजी, अन्य ऋ. गुलाबचंद्र, श्राव. सुंदरजी देवराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ३०००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०.५, ५x२८). निशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जे भिखु हत्थ कम्मं; अंति: तेण परत्थ, उद्देशक- २०. निशीथसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे० जे साधु ह० हस्त; अंतिः सयसिस्सोवभोज्झइ. ६३२४४. (+४) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३९-१ (२) ३८, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४,५५११.५, ९४२४-३० ). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि धम्मो मंगलमुकि अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन- १ गाथा ८ अपूर्ण से गाथा- २३ अपूर्ण तक नहीं है व चूलिका १ अपूर्ण तक है.) ६३२४५. (+४) कर्पूरमंजरी सह टीका, अपूर्ण, वि. १९५४ माघ कृष्ण, २. शुक्रवार, मध्यम, पृ. १०७-६७(१ से ६७)=४०, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६४१०, ८४३२-३८). " - कर्पूरमंजरी, क. राजशेखर, प्रा., पद्य, आदि (-); अंति: गोविदा कप्पूरमंजरी (पू. वि. जवनिका २ अपूर्ण से है.) कर्पूरमंजरी टीका. ग. धर्मचंद्रगणि, सं., गद्य, आदि (-); अंति: गमत्वाच्च न विक्रियत ६३२४६. (+) स्थानांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२२-७२ (१ से ७१,१०९) = ५०, प्र. वि. पदच्छेद लकीरें, जैदे., (२५x१०.५, ६४३६-४० ). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. बीच-बीच के पाठ हैं.) स्थानांगसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बीच-बीच के पाठ हैं व चत्तारि आशिविषाधिकार अपूर्ण तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only
SR No.018062
Book TitleKailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2013
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size11 MB
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