Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 16
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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४६१
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि: आबालबभयारि नेमि; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३० तक लिखा है.) शीलोपदेशमाला-बालावबोध+कथा, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५५१, आदि: श्रीवामेयममेयश्रीसहि; अंति:
(-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ६८३८२. स्तवन व रास संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७८, मध्यम, पृ. १६, कुल पे. ४, ले.स्थल. पालणपुर, लिख. पंन्या. अभयसोम,
प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१४, १०४२६-३०). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण, वि. १८७८, आश्विन कृष्ण, १. महावीरजिन स्तवन-५ कल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: शासननायक शिवकरण वंदु;
अंति: रामविजय०अधिक जगीसरे, ढाल-३, गाथा-५६. २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, प्र. ४अ-५अ, संपूर्ण.
उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो प्रणमु दिन; अंति: कहे मानविजय उवज्झाय, ढाल-४, गाथा-२५. ३. पे. नाम. सेबूंज उद्धार, पृ. ५अ-१५आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: नयसुंदर० दरिसण
जयकरो, ढाल-१२, गाथा-१२०, ग्रं. १७०. ४. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १५आ-१६आ, संपूर्ण.
मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समरी सारद माय प्रणमी; अंति: अमर नमे तुझ लली लली, गाथा-८. ६८३८३. चोमासी देववंदन, संपूर्ण, वि. १९५६, वैशाख कृष्ण, ८, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. रामपुर, प्रले. मु. ईश्वरचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१३.५, १२४३७). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विमलकेवलज्ञान कमला; अंति: पद्मविजय सामल
चेईरइ. ६८३८४. अट्ठाई महोत्सव व कामनासिद्धि मंत्र, संपूर्ण, वि. १९११, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. २, ले.स्थल. कोटानगर, प्रले. मु. मोतीचंद (गुरु मु. लालचंद); गुपि. मु. लालचंद (गुरु मु.खेमचंद); मु.खेमचंद; गुभा. मु. मोहनचंद; मु. रायचंद;
द; मु. रूपचंद (गुरु आ. सुविधिसागरसूरि); गुपि. आ. सुविधिसागरसूरि; पठ. मु. गोकलचंद ऋषि; गुभा.मु. चतुर्भुजजी (गुरु मु. दुलीचंद); गुपि. मु. दुलीचंद (गुरु मु. मीयाचंद ऋषि); मु. मीयाचंद ऋषि, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, दे., (२६.५४१३, १४४३४-३९). १.पे. नाम. अट्ठाई महोत्सव, पृ. १आ-१२आ, संपूर्ण. पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., पद्य, वि. १७८९, आदि: ॐकारविंद संयुक्तं; अंति: हस्ति यादृशम्,
श्लोक-६२४. २.पे. नाम. कामनासिद्धि मंत्र, पृ. १२आ, संपूर्ण.
___ मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ६८३८५. (+) पिस्तालीस आगम बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३६, ज्येष्ठ शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले.स्थल. मंमाई, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२८x१३, १०x४१).
सिद्धांतबोल संग्रह, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम प्रश्न अष्टोत; अंति: एतला पाठ लिख्या छइ. ६८३८६. अंजनासती रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-१(८)=१३, दे., (२८.५४१४.५, १६-२०४२८-३०).
अंजनासुंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदि: पहलेने कडावै हो पाय; अंति: (-), (पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-६३
अपूर्ण से ७३ अपूर्ण तक एवं १३३ अपूर्ण के पश्चात नहीं है.) । ६८३८७. (+) दृष्टांतकथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७७, चैत्र कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८.५४१३.५, १४-१६४३०-३४).
दृष्टांतकथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: जवनां में ऋषी वृद्धा; अंति: तीवारे सुख पाम्या.
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