Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 16
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतकसुप्रपंचपरमा; अंति: सिद्धायिका त्रायिका, श्लोक-४. ६८२३६. (#) उत्तमकुमारचरित्रनो रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १२४३०). उत्तमकुमारचरित्र रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४५, आदि: चरमजिणेसर चित्त धरुं; अंति: (-),
(पू.वि. ढाल-६, दोहा-४ अपूर्ण तक है.) ६८२३७. (+#) स्तवन व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८८-५८(१ से ५८)=३०, कुल पे. ४९, प्रले. मु. शिवदास
ऋषि; पठ. मु. शिवचंद (गुरु मु. मुहुरचंद, अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२.५, १३-१६x२८-३२). १. पे. नाम. नेमनाथ स्तवन, पृ. ५९अ-६१आ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तवन, म. तीकम, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल कर रेनरवर नेमि; अंति: टीकम०करो कुसल शरीर ए, गाथा-३०. २. पे. नाम. सेव॒जा स्तवन, पृ. ६१आ-६२अ, संपूर्ण..
शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: विलु बोले रे पंथीडा; अंति: प्रेम घणै जिनचंदरे, गाथा-७. ३. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. ६२अ-६२आ, संपूर्ण.
शत्रुजयतीर्थस्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: यात्रा निनाणुं करियै; अंति: पदम कहै भव तरियै, गाथा-६. ४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ६२आ, संपूर्ण.
आदिजिन पद-धुलेवामंडन, मु. हरजी मुनि, पुहि., पद्य, आदि: हो जती मोकू जंतर कर; अंति: हरजी० ज्ञान बताय दे,
गाथा-५. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन लावणी, पृ. ६२आ-६३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन लावणी-मगसी, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: मूलक वीच मगसी पारस; अंति: जीनदास० पारस का
डंका, गाथा-४. ६.पे. नाम. धर्मजिन स्तुति, प्र. ६३अ-६३आ, संपूर्ण. धर्मजिन स्तवन, मु. केसर, पुहिं., पद्य, वि. १८४२, आदि: धर्मजिनेस्वर साहिवा; अंति: केसर० अंतरगत हित आण,
गाथा-७. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ६३आ-६४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. केसर ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४२, आदि: प्रणमुपास जिनेसरु; अंति: ऋख केसर मनचंगैरे,
गाथा-८. ८. पे. नाम. पार्श्वजिन लघुस्तवन, पृ. ६४अ-६४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-लघु, मु. केसर, पुहिं., पद्य, वि. १८५९, आदि: राज श्रीअश्वसेन सुत; अंति: कहै आवागमण निवार
हो, गाथा-७. ९. पे. नाम. दस पचखाण सज्झाय, पृ. ६४आ-६५अ, संपूर्ण.
१० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: दसविह प्रह उठी; अंति: आगम अरथ प्रमाण, गाथा-८. १०. पे. नाम. गोडीचा स्तवन, पृ. ६५अ-६५आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. नेम, पुहिं., पद्य, आदि: आसणरा रेजोगी पासजिण; अंति: नेम० जात्रा पामीरे, गाथा-७. ११.पे. नाम. नेमराजिमतीस्तवन, पृ. ६५आ-६६अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. वल्लभकुशल, रा., पद्य, आदि: जो थे चालो सिवपुरी; अंति: (१)निवार हो हठीला नेमजी, (२)इम
वीनवैरे साहिबा, गाथा-४. १२. पे. नाम. फलोधी पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६६अ-६६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-फलोधी, म. केसरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६४, आदि: चालौ सखी प्रभुजीनै; अंति: मुझ देव
प्रमाणजी काई, गाथा-७. १३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, प्र. ६६आ-६७अ, संपूर्ण.
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