Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 16
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 440
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६ ४२५ ६८२५१. (+) धर्मध्यान द्वार विचार, संपूर्ण, वि. १९३१, आश्विन शुक्ल, ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. अमदावाद, प्रले. आशाराम ब्राह्मण; पठ. श्राव. मलीचंद जयचंद साह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२.५, १५४४१). ध्यानद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम चार प्रकारना; अंति: ध्याननांबे भेद लाभे. ६८२५२. प्रतिक्रमणसूत्र बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-३(१ से ३)=७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२५.५४१२.५, १६-१८x२८-३५). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अतिचार अपूर्ण से पच्चक्खाण अपूर्ण तक पाठ है.) ६८२५३. सुंदरराजा रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, जैदे., (२५४१२, १६-१९४३२-४०). सुंदरराजा रास, मा.गु., पद्य, आदि: ॐ सासण नायक समरिये; अंति: मुनिराज हो नरपति, ढाल-११, गाथा-३४५. ६८२५४. (+) कल्पसूत्र सह बालावबोध व कथा, संपूर्ण, वि. १८९८, फाल्गुन शुक्ल, १, गुरुवार, मध्यम, पृ. २५२-१(१५८)+१(१५९)=२५२, ले.स्थल. विक्रमनगर, राज्यकालरा. रतनसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे.. (२४४१२,१३४३६-४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६, (वि. मूल कृति प्रतीकपाठ के रूप में दी गई है.) कल्पसूत्र-बालावबोध *, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: श्रीअरिहंत भगवंत वीत; अंति: कहि भगवंते उपदेश्यु. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंत भगवंत; अंति: जोसवणाकप्पो सम्मत्तं. ६८२५५. (+) योगरत्नाकर, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३६, प्र.वि. प्रत के अंत में बीजक दिया गया है., संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १९४५२). योगरत्नाकर, वा. नयनशेखर, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: सरसति सुखदायक सदा; अंति: जेहथी लहीइं मंगलमाल, ग्रं. ९०००. ६८२५६. (+) प्रतिक्रमणसूत्र, स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२४, कुल पे. १८९, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१२,१३४३६-३९). १.पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण. साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं; अंति: समुन्नइ निमित्तं. २. पे. नाम. वंदित्तुसूत्र, पृ. ६आ-८आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्ध; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. ३. पे. नाम. अतिचार आलोचना, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. अतिचार आलोयणा-रात्रिदिवसगत, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: आजुणा चौपहुर दिवसमाह; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थ, सं., पद्य, आदि: श्रीसेढीतटिनीतटे; अंति: नाथो नृणां श्रिये, श्लोक-२. ५. पे. नाम. ऋषभजिन नमस्कार, पृ. ९आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय नाभिनरिंदनंद; अंति: निसदिन नमत कल्याण, गाथा-३. ६.पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदित पाय; अंति: मंगल करो अंबक सेवीया. गाथा-४. ७. पे. नाम. सीमंधरस्वामि चैत्यवंदन, पृ. १०अ, संपूर्ण. ___ सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु जिणवर विहरमाण; अंति: संपदा करण परमकल्याण, गाथा-३. ८.पे. नाम. वीसविहरमानजिन स्तवनम्, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only

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