Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 16
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
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४३३
१२०. पे नाम, रिषभजिन स्तवन, पृ. ६८अ ६८आ, संपूर्ण
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: म्हारौ मन मोह्यौ रे; अंति: ज्ञानविमल० नावै
पार, गाथा-५.
१२१. पे नाम सेडुंजय स्तवन, पृ. ६८आ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सेत्रुजानो वासी; अंति: नयणविमल० पार उतारो,
गाथा - ६.
१२२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६८-६९अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरतीर्थ, ग. जिनहर्ष, मा.गु, पद्य, आदि: अंतरजामी सुण अलवेसर, अंतिः जिनहर्ष ० भवसायथी तारी, गाथा ५.
१२३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६९अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन पद, मु. कनककीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: तुं मेरे मन मै तुं; अंति: कनककीरत० तीन भुवन में, गाथा-३. १२४. पे. नाम, गौडीजी स्तवन, पृ. ६९अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. दीपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुणिज्यो गवडीजी, अंति: दीपचद० कीजै एतो काम,
गाथा-५.
१२५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६९ अ - ६९आ, संपूर्ण.
जिनप्रतिमा स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनप्रतिमा हो; अंतिः समय० प्रतिमासुं नेह, गाथा- ७. १२६. पे. नाम, पार्श्वजिन पद, प्र. ६९-७०अ संपूर्ण
पार्श्वजिन स्तवन, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुण सोभागी हो साहि अंति: जैतसी० तुंहिज हो देव, गाथा ५. १२७. पे. नाम. संखेश्वरपार्श्वजिन पद, पृ. ७०अ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंखेसरपास जिणेसर, अंति: जिनचंद सयलरिपु जपतो, गाथा-५.
१२८. पे. नाम. मुनिमालिका, पृ. ७०आ-७३अ, संपूर्ण.
मुनिमालिका स्तवन, ग. चारित्रसिंह, मा.गु, पद्य, वि. १६३६, आदि: ऋषभ प्रमुख जिन पय, अंतिः सदा कल्याण
कल्याण, गाथा - ३६.
१२९. पे. नाम. सेत्रुंजय रास, पृ. ७३अ-७७आ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी अंतिः समयसुंदर० आणंद थाय, ढाल ६, गाथा - ११२.
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१३०. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ७८अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: जय बोलौ पास जिणेसर, अंति: जिनचंद० सुरतरु की, गाथा-७. १३१. पे नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. ७८अ संपूर्ण
पार्श्वजिन स्तवन- सम्मेतशिखरतीर्थ, मु. खुशालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: तुम तो भले विराजो जी; अंति; चंदखुस्वाल० गुण गावे, गाथा ५.
१३२. पे. नाम. दानसीलतपभाव चौढालीयौ, पृ. ७८अ - ८२आ, संपूर्ण.
दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिणेसर पाय निम, अंतिः समयसुंद० सुप्रसादो रे, ढाल - ४, गाथा - १०१, ग्रं. १३५.
१३३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ८२आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन पद- गोडीजी, मु. दीपविजयशिष्य, मा.गु., पद्म, आदि: मुजरो मांनी लीजै हो; अंतिः दीपविबुध० प्रणमीजै हौ,
गाथा-४.
१३४. पे नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. ८२आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि हो जी बामजू की छावी, अंति: पंचमगति पद पावो, गाधा ४.

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