Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 16
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
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१३५. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ८२-८३अ, संपूर्ण.
गाथा ५.
मु. करमसी, मा.गु., पद्य, आदिः आय रहो दिल बाग में; अंति: करमसी० करत शिववाग मै, १३६. पे नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ८३अ, संपूर्ण.
पु., पद्य, आदि: प्रभु पास जिणंद की; अंति: भवजल पार उतारो रे, गाथा-४.
१३७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ८३अ, संपूर्ण.
मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: जैन धरम पायौ दोहिलौ; अंति: नवल० भजीये भगवान्, गाथा- ४. १३८. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. ८३२-८३आ, संपूर्ण.
मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि विसवासावो पुदगल की अंति; लवल० घट में सासा रे, गाथा-४.
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१३९. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ८३आ, संपूर्ण.
मु. आनंदघन, पं., पद्य, आदि देखो कुडी दुनियांदा अंतिः आनंदघन गया जग सारा, गाथा-४. १४०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ८३-८४अ, संपूर्ण.
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
मु. चेतन, पुहिं., पद्य, आदि: कोन करै जंजार जगमै; अंति: चेतन०जिम पावौ भव पार, गाथा- ६. १४१. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ८४अ, संपूर्ण.
मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: बेर बेर नहीं आवे; अंति: आनंदघन० गुण गावे लो, गाथा- ३. १४२. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. ८४अ, संपूर्ण.
मु. गुणविलास, हिं., पद्य, आदि: दया विन करणी दुख, अंति: गुणविलास० नर जिनवाणी, गाथा-४. १४३. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. ८४अ-८४आ, संपूर्ण.
मु. जैत, पुहिं, पद्य, आदि: श्रीचंद्राप्रभु जिन अंतिः जैत०तुम चरणन बलिहारी, गाथा-३, (वि. प्रतिलेखक ने २ गाथा को १ गाथा गिनकर लिखा है.)
१४४. पे नाम, गोडीजी स्तवन, पृ. ८४आ, संपूर्ण
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदिः कृपा करीनि गीडि पास अंतिः रूपचंद पदवी पाई, गाथा - ६. १४५. पे. नाम. चार मंगल पद, पृ. ८४आ, संपूर्ण
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४ मंगल पद, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदिः आज म्हारे च्यारु, अंति: आनंदघन उपगार, गाधा -४. १४६. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ८४आ, संपूर्ण.
मु. विमल, मा.गु., पद्य, आदि: चालो सखी वंदन जईये, अंति: हेते वंदो विमल जिणंद, गाथा - ५.
१४७. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ८४-८५अ, संपूर्ण.
मु. लालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मेरो मन वश कर लीनो, अंति: लालचंद ० पूरो वंछित आस, गाथा-३. १४८. पे. नाम. साधारणजिन पद पृ. ८५अ, संपूर्ण.
मु. खुशालराब, पुहिं., पद्य, आदि: अंखीया मेरी बावरी रे, अंतिः खुस्याल० को दाव री, गाथा-४ (वि. प्रतिलेखक ने १ गाथा को २ गाथा गिनकर लिखा है.)
ज्ञानवर्द्धन, पुहिं., पद्य, आदि: नेहडो हमारौ राज, अंति: ग्यानवर्द्धन० भाग्यौ, गाथा- ४.
१४९. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ८५अ, संपूर्ण.
मु. आनंदघन, मा.गु, पद्य, आदि: आछी गति छवि मोरे मन अंतिः आनंदघन रहित मतवाला, गाथा-४,
१५०. पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. ८५अ, संपूर्ण.
मु. १५१. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ८५अ-८५आ. संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि जग दीठा तुं मेरा अंतिः दरसन म्यान आधार छे, गाथा- ३.
१५३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ८५आ, संपूर्ण.
मु. आनंदराम, पुहि., पद्य, आदि छोटीसी जान जरासे जीव, अंति: आणंदराम० बहु करणावे, गाथा ४.
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१५२. पे नाम, साधारणजिन पद पृ. ८५आ, संपूर्ण.
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