Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 13
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 349
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५४४६५. (+) प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टबार्थ-श्रुतस्कंध १, संपूर्ण, वि. १८८२, आश्विन शुक्ल, ३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १०६, ले.स्थल. वांकानेर, प्रले. श्राव. जेसंग वर्धजेचंद शेठ; अन्य. सा. तेजुबाई महासती (गुरु सा. हेमकुवरबाई महासती); गुपि.सा. हेमकुवरबाई महासती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. कुल ग्रं. ३५००, जैदे., (२५.५४११, ४४२८). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: जंबू इणमो अण्हयसंवर; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अएह० अपिविधिनाएह०; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५४४६६. नंदीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७८, गृही. मु. नानजी ऋषि; अन्य. सा. वेलबाई आर्या; श्रावि. सुंदरबाई; सा. मोतीबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका बाद मे लिखी गई है., त्रिपाठ., जैदे., (२५.५४११, १२४३८). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: वीसमणुन्नाई नामाई, सूत्र-५७, गाथा-७००, (वि. प्रथम परिशिष्ठ अणुन्नानंदी सहित.) नंदीसूत्र-टबार्थ*, मागु., गद्य, आदि: नंदी कहतां आणंदनो; अंति: अनुज्ञाना नाम जाणवा. ५४४६७. भरत राजा रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-१(१)=१३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२५४११, १४४३०). भरतचक्रवर्ती रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल १ गाथा ६ अपूर्ण से ढाल १० गाथा १६ अपूर्ण तक ५४४६८. (+#) पाच खामणां, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १३४३४). ५ खामणा, मा.गु., गद्य, आदि: पेला खामणा अढीदीप; अंति: (-), (पू.वि. चोथा खामणा अपूर्ण तक है.) ५४४६९. (+) महानिशीथसूत्र अध्ययन ४-५ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३८, भाद्रपद कृष्ण, १४, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ८७, प्रले. शंकर हरजीवन व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२५.५४११, ६४३१). महानिशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. महानिशीथसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५४४७१. (#) हितोपदेश बत्रीसी सवैया, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३८). ___ अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद मुनि, पुहि., पद्य, वि. १६८५, आदि: अजर अमर पद परमेसर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३३ रचना प्रशस्ति अपूर्ण तक है.) ५४४७२. बावीस परीसह उदाहरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४.५४११.५, १२४३९). २२ परिषह दृष्टांत, मा.गु., गद्य, आदि: उजेणी नगरीयइ हस्तमित; अंति: (-), (पू.वि. सुनंद वणिक द्रष्टांत अपूर्ण तक है.) ५४४७३. अमरसेन रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४१). अमरसेन वज्रसेन रास, मु. तेजपाल, मा.गु., पद्य, वि. १८२४, आदि: प्रथम जिणेशर प्रणमीय; अंति: (-), (पू.वि. खंड ४ ढाल १२ अपूर्ण तक है.) ५४४७४. महावीरजिन विवरण संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १६-५(१ से ४,१५)=११, दे., (२५४१०.५, १२४४२). महावीरजिन जीवन प्रसंग, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बालक रूपे देवता के साथ रमत-गमत से भगवान का साधु-साध्वी आदि परिवार तक है.) ५४४७५. (+#) प्रश्नव्याकरण सूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९३-८७(१ से ८७)=६, प्र.वि. अंत में 'ऋषि गणसजीनी प्रत छे रुषी रवजीनी छे परत रुष गागजीनी प्रत छे'. ऐसा लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ७४३५). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (१)भविस्सत्ती तिबेमि, (२)अंगंजहा आयारस्स, अध्याय-१०, गाथा-१२५०. प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: हुस्यइ एहवू कहिउ. For Private and Personal Use Only

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