Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 13
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 488
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५५५५४. (#) सुश्रावकालोचना, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, १४X३२-३८). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रावक आलोयणा विचार, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि: प्रथमं मुहूर्तं; अंति: सज्झाये उपवास १. ५५५५५. मानवतीचौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १३-७(१ से ५,११ से १२) = ६. पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं, जैदे., (२५X११, १६X३७-४० ). मानतुंगमानवती रास - मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य वि. १७६०, आदि: (-): अंति: (-), (पू.वि. ढाल - ७, गाथा- १३ अपूर्ण से ढाल - १५ तक एवं ढाल - १९, गाथा- २ अपूर्ण से ढाल - २०, गाथा- १६ अपूर्ण तक है.) ५५५५६. (#) नारचंद्रज्योतिष, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २७-२१ (१ से ६, १२ से २६) = ६, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है. दे.. (२५४११.५, ८४२५) ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक - ६५ अपूर्ण से १२६ अपूर्ण तक एवं "एकादशी विचार" गाथा- ३६ अपूर्ण से "नक्षत्र वार योगकरण आगम" तक है.) ५५५५७. (+) वीरस्तुति अध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, अन्य सा. डाईबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - संधि सूचक चिह्न-संशोधित., जैदे., (२५.५X११.५, ४२९-३५). सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिस्सुणं समण; अंतिः हवइ , आगमिसंति तिबेमि, गाथा २९. सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पु० पूछता हूयाणं०; अंति: इम हुं बे० कहुं छु. ५५५५८. (४) उत्तराध्ययन व पुच्छिस्सुणं सूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १०-४ (१ से २, ४, ९) =६, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षर मिट गए हैं. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२५.५x१०.५, १२४४२). १. पे नाम, उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन- ३६, पृ. ३-३ आ५ अ-८आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं है.. पे. वि. वस्तुतः पेटांक पत्र-३, ५ से ८ व १०अ है, ४७३ उत्तराध्ययन सूत्र. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि (-); अति सम्मए त्ति बेमि, (प्रतिअपूर्ण. पू. वि. गाथा-५४ से ८४ अपूर्ण, ११५ अपूर्ण से २३७ अपूर्ण तक व २६७ से है.) २. पे नाम, पुच्छरसुणसूत्र, पृ. १०अ १०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण, अंति: (-), ( पू. वि. गाथा- १८ अपूर्ण तक है.) ५५५५९. (#) जंबुद्वीपसंग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९६, कार्तिक शुक्ल, १०, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल. टांपी, लिख. श्राव. हरजी दोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, ५X३१). लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं सव्वन्नं अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं गाथा-३०, (वि. ज्ञानपंचमी के अवसर पर यह ग्रन्थ लिखा गया है.) लघुसंग्रहणी - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमिय क० प्रणाम करीने; अंति: रइया हरिभद्दसूरीहिं. ५५५६०. (+#) दानशीयलतपभावनाकुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९२, कार्तिक कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. ६ . . ऋषि (गुरु मु. दीपचंद ऋषि); गुपि. मु. दीपचंद ऋषि (गुरु मु. लालचंद ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२५X१०.५, ५-७X३१-३७). יי दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., पद्य, आदि: देवाहिदेवं नमिउण वीर, अंति: असोगनाम० खमंतु तेणं, गाथा-४९. दानशीलतपभावना कुलक-टवार्थ, मा.गु गद्य, आदि देवाधिदेव श्री अंति: हुइ ते आचार्य खमज्यो. ५५५६३. (-) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१ (१) ०५, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. पत्रांक नहीं है, अशुद्ध पाठ., वे., (२५.५x११, ७X३१-३३). For Private and Personal Use Only

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