Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 13
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३
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संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: सो लहइ नत्थि संदेहो, गाथा-२१७. संबोधसित्तरि-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करी त्रिलोक; अंतिः परिणमै सुख पामै.
५५५९०. चंद्रराजा रास, संपूर्ण, वि. १७६५, भाद्रपद शुक्ल, ११, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २७, प्रले. पं. उद्धव ऋषि (गुरु आ. सुखमल्लजी); गुपि. आ. सुखमल्लजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. ले. श्लो. (७८७) मंगलं लेखकानां च (१०१०) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, जैदे., (२६११.५, १६४५२).
चंदराजा रास, मा.गु., पद्य, आदि: सुखदायक जिनवरु नामे; अंति: तस घरि मंगल च्यारोरे, ढाल - ४३. ५५५९१. (+#) लघुमध्यसंग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५२, १, कार्तिक, ६, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २७, ले. स्थल. गढसिवाणा, प्रले. मु. उदयविजय गणि (गुरु ग. विजयजी); गुपि. ग. विजयजी (गुरु पं. अमृतविजय गणि); पं. अमृतविजय गणि (गुरु पं. लब्धिविजय गणि) पं. लब्धिविजय गणि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र. ले. श्लो. (१०११) भग्न पृष्टी कट: ग्रीवा, जैदे., (२६X११, ६x४६).
बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ, अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा- ३१८. बृहत्संग्रहणी - टवार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि नमिठं कहता नमस्कार, अंतिः तीर्थ तिहां लगे.
५५५९२. (+#) ऋषभजिन चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है- संशोधित. अक्षरों स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११. १७४३६).
आदिजिन चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य वि. १८४०, आदि: अरिहंत सिद्ध आयरिय, अंतिः रायचंदजी टंकसारण ए, ढाल - ४७.
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५५५९३ (१) नवतत्त्व थोकडा, संपूर्ण वि. १९२७ आषाद कृष्ण, ४ शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २५, ले. स्थल, जामनगर, प्रले. मु. गुलाबचंद ऋषि (गुरु मु. हर्षचंद्रजी, लौकागच्छ); गुपि. मु. हर्षचंद्रजी (लौकागच्छ) पठ. श्रावि. वखतीबाई, अन्य मु. कृष्णजी (गुरु मु. कल्याण ऋषि, लोंकागछ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५X१०.५, १५x२९). नव थोकड़ो, मा.गु, गद्य, आदि: १ जीवतत्त्व २ अजीवतत अंतिः जीव मोक्ष जाए,
५५५९५. (+०) उत्तराध्ययनसूत्र - संजयाध्ययन केशिगौतमाध्ययन सह टीका व कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. २३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. केशिगौतमाध्ययन अध्ययन- २३ पहले है तथा संजयाध्ययन-१८ बाद में है., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६X११, १४X३५).
उत्तराध्ययन सूत्र. मु. प्रत्येकयुद्ध, प्रा. प+ग, आदिः (-) अंति: (-) (प्रतिअपूर्ण. पू. वि. संजयाध्ययन गाथा ४९ तक
है.)
,
उत्तराध्ययनसूत्र- टीका #. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण.
उत्तराध्ययनसूत्र- कथा संग्रह", सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. नंदन कथा अपूर्ण तक है.) ५५५९७. (+) योगशास्त्र १-४ प्रकाश, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २१, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे.,
(१५.५X११,
१४X३७).
योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी आदि नमो दुर्वाररागादि अंतिः (-), प्रतिपूर्ण ५५६००. (+#) महादंडक द्वार, संपूर्ण, वि. १८००, ज्येष्ठ कृष्ण, १, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले. स्थल. वीकानेर, प्र. सा. साहु आर्या (गुरु सा. पुरांजी आर्या); गुपि. सा. पुरांजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखन वर्ष १८० लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X११, २९x४९).
महादंडक ३० द्वार, मा.गु., गद्य, आदि: दंडक १ लेस्या २ ठिती, अंतिः छ महीनांरी नैचवण नही.
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