Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 13
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 491
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.. श्रुतस्कंध-२, अध्ययन-२ अपूर्ण से अध्ययन-४ अपूर्ण व अध्ययन- ७ अपूर्ण तक है.) ५५५७९_ (+) अंतगडसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८६८, माघ कृष्ण, ९, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ९७-५९ (२८ से ३२,३९ से १२) ३८, ले. स्थल. अमदावाद, प्रले. श्राव. गुलाबचंद हीराचंद महेता, अन्य. ऋ. प्रागजी सा. अमरत बाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. "अमदावाद सारंगपुर दरवाजे तलीयानी पोल मध्ये लखी छे" का उल्लेख प्रत के अंत में मिलता है., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५x१०.५, ५X३१). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०: अंति: अठवणा अट्टम चेव, अध्याय-९२, ग्रं. ८९९, (पू.वि. वर्ग-३ अध्ययन- ७ के मध्यभाग अपूर्ण है.) अंतकृदशांगसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेणई काले चउथो आरो; अंतिः आठमु अंग संपूर्ण हुड. ५५५८० (+१) कल्पसूत्र - वाचना ४ से ५ सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७८२, कार्तिक कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. १२. प्र. वि. प्रतिलेखन संवत् का उल्लेख चौथी वाचना के अंत में है., संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२६X११, १६x५०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-) अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं है, वाचना-५ अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र - बालावबोध #, मा.गु. रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं है. ५५५८१. (+) आरंभसिद्धि सह सुधीशृंगारवार्तिक, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३१-३ (१ से २, १२७) = १२८. पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. ज्योतिष चक्रादि सहित संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैसे. (२६४११, १३४३९). " आरंभसिद्धि, आ. उदयप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी आदि (-); अंति: (-), (पू. वि. विमर्श- १ ग्रंथप्रयोजन अपूर्ण से 3 विमर्श-५ अपूर्ण तक है.) आरंभसिद्धि - सुधीशृंगारवार्तिक, ग. हेमहंस, सं., गद्य वि. १५१४, आदि: (-): अंति: (-). 3 ५५५८२ (क) अंगचूलीया सूत्र, संपूर्ण, वि. १९३५, श्रावण कृष्ण, ८, सोमवार, श्रेष्ठ, पू. ३५, ले. स्थल. मुंबई, प्रले. मु. केसरीसिंह ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीगोडीजी प्रासादे, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६X११.५, १०X३६). अंगचूलिका प्रकीर्णक, प्रा. गद्य, आदि: नमो सुय० नमो अरि०: अंतिः पवेइयं तिबेमि "" ५५५८३. (००) सूत्रकृत्रांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३२. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, " अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैसे. (२६११, ११५४१). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि; बुज्झेज्झ तिउज्जि अंति: (-) (पू. वि. अध्ययन- १६ सूत्र , ६३२ अपूर्ण तक है.) ५५५८४ (१) चंद्रराजारास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३-१ (१) ३२ प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६४११. १९७०). 1 चंद्रराजा रास, मु. विद्यारुचि, मा.गु. पद्य वि. १७१७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं. खंड- १, डाल१. गाथा- १६ अपूर्ण से खंड ६ डाल- १४, गाथा १५ अपूर्ण तक है.) ५५५८५ (+) चंद्रोन्मीलन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३१, प्रले. मु. देवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५X१०.५, १३x४५). चंद्रोन्मीलन शास्त्र, सं., पद्य, आदि: चंद्रप्रभं नमस्कृत्य अंतिः त्रिदशैरपि दुर्लभं प्रकरण-५५. ५५५८६. ज्ञातासूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५१-१२०(१ से ११९, १४२ से १५०) = ३१, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६X११.५, ७x४२). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. अध्ययन- ७ अपूर्ण से अध्ययन८. सूत्र ९३ अपूर्ण तक एवं पाठ- "हरयणपणियसंपु" से "अझंगवितिपोक्खरिणीउ" तक है.) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-वार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). ५५५८८. (+) संबोधसित्तरी सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २८, प्रले. पं. क्षेममाणिक्य गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे., ( २५X११, ६x२७). For Private and Personal Use Only

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