Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 13
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org फलस कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची जैन हस्तलिखित साहित्य (खंड-१.१.१३) KAILASA ŚRUTASAGARA GRANTHASUCI Descriptive Catalogue of Jain Manuscripts (Vol.1.1.13) यह उमाण अण ब्रह्मगावादयांगांमु बदरिमीणामिवमा वादमञ्ज गरावति।। गानामा डिएडि आचार्य श्री महावीर माद कोबा तीर्थ बरताय Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only m कम का गाराश्रीयादी NORMS Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न १३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची (१.१.१३) श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ संचालित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागार में संगृहीत हस्तलिखित ग्रंथों की विस्तृत सूची आशीर्वाद व प्रेरणा 6 आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी सतत वि के प्रकाशक 6 श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ, गांधीनगर वीर सं. २५३८ ० वि.सं. २०६८ ० ई. २०१२ For Private and Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न १३ Acārya Shri Kailāsasāgarasūi Smrti Granthasūci - Ratna 13 कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची : १.१.१३ Kailāsa Śrutasāgara Granthasūci: 1.1.13 ०ग्रंथसूची निर्देशन समिति ० मुकेश एन. शाह (ट्रस्टी) श्रीपाल आर. शाह (ट्रस्टी) रजनीभाई एन. शाह (कारोबारी सदस्य) कनुभाई एल. शाह (नियामक) बी. विजय जैन (सलाहकार) ० संपादक मंडल ० पं. नवीनभाई वी. जैन पं. संजयकुमार आर. झा ०सह संपादक० ०संपादन सहयोग ० पं. रामप्रकाश झा डॉ. हेमंत कुमार पं. अरुण कुमार झा परबत ठाकोर ब्रिजेश पटेल संजय गुर्जर दिलावरसिंह विहोल ० कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग केतन डी. शाह For Private and Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न १३ श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ संचालित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर स्थित देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखितग्रंथानां विस्तृतसूची विभाग - १ : हस्तप्रत सूची - वर्ग - १ : जैन साहित्य खंड - १३ के आशीर्वाद व प्रेरणा से आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी Descriptive Catalogue of Manuscripts Preserved in Dēvarddhigaņi Kșamāśramaņa Hastaprata Bhāņdāgāra, Acharya Shri Kailasasagarsuri Gyanmandir under the auspices of Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth Section-I: Manuscripts' Catalogue .Class - I:Jain Literature Volume - 13 d Blessings & Inspiration 6 Acharya Shri Padmasagarsurishwarji Published by 6 Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth, Gandhinagar, (Guj.) India 2012 For Private and Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailasasagarsuri Memorial Catalogue Series - 13 Kailāsa Śrutasāgara Granthasūci Descriptive Catalogue of Manuscripts-1.1.13 Dēvarddhigani Kṣamāśramana Hastaprata Bhāṇḍāgāra, Acharya Shri Kailasasagarsuri Gyanmandir o Edition : First • प्रकाशन सौजन्य : श्री जीवदया फाउन्डेशन, यु.एस.ए. www.kobatirth.org © Copy rights: Reserved by Publisher © Vir Samvat 2538, Vikram Samvat 2068, A. D. 2012 © Published by : Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Preserved in © Available at : Shruta Sarita Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth © Printed by : Navprabhat Printing Press, Ahmedabad ISBN: 81-89177-00-1 (Set ) Koba Tirth, Gandhinagar 382007. (Guj.) INDIA Tel: (079) 23276204, 23276205, 23276252, 30927001 Fax: 23276249 Web site: www.kobatirth.org E_mail: gyanmandir@kobatirth.org © Price: Rs. 1500/ 978-81-89177-44-7 (Vol. 13) * उपलक्ष श्रुतोद्धारक आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. के 78वें जन्म - वर्धापन महोत्सव Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir के पुनीत प्रसंग पर वि. सं. २०६८, द्वि. भाद्रपद शुक्लपक्ष, पूर्णिमा, रविवार, दि. ३०-९-२०१२ श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोवा ३८२००७ For Private and Personal Use Only - Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir योगनिष्ठ आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री कीर्तिसागरसूरीश्वरजी गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी For Private and Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ।। अर्हम नमः ।। +मंगल कामना तीर्थंकरों की वाणी में सरस्वती का निवास है. श्री तीर्थंकर परमात्मा के श्रीमुख से निकली वाणी, जिसे गणधर भगवंतों ने सूत्ररूप में गुंफित किया है; ऐसे जिनागम की परंपरा को वाचना के द्वारा आज तक अविच्छिन्न रखनेवाले सभी आचार्य भगवंतों को वंदन. जिनागम को समर्पित नियुक्तिकार-भाष्यकार-चूर्णिकार-टीकाकार एवं ग्रंथों के प्रतिलेखक आदि श्रमण समूह का भी मैं ऋण स्वीकृतिपूर्वक पुण्य स्मरण करता हूँ. ___ अनेक जैन संघों, श्रेष्ठियों तथा यतिवर्ग ने आज तक जैन साहित्य का संग्रह-संरक्षण करके अनुमोदनीय कार्य किया है, वे सभी धन्यवाद के पात्र हैं. समय परिवर्तन के साथ परिस्थितिवश लोगों का गाँवों से शहर की ओर जाना प्रारंभ हुआ. यतिवर्ग भी लुप्तप्राय हुए. इन सभी कारणों से ग्रन्थभंडारों की स्थिति चिंतनीय बन गई. बहुत-से ग्रन्थ विदेश जाने लगे, कुछ भंडार लोगों की उपेक्षा से नष्टप्राय होने लगे, ग्रन्थों की सुरक्षा भी एक समस्या बन गई. इन सब बातों को देखकर, सर्वप्रथम सन् १९७४ में, अहमदाबाद के चातुर्मास दौरान, ग्रन्थ भंडारों को सुव्यवस्थित करने का मुझे विचार आया. परम श्रद्धेय आचार्य भगवंत श्रीमद् कैलाससागरसूरीश्वरजी म.सा. से इस विषय में चर्चा करके, उनके मंगल आशीर्वाद से कार्य प्रारंभ करने का संकल्प किया. श्रेष्ठीवर्य स्व. कस्तुरभाई लालभाई आदि ने भी इस कार्य में सहयोग देने की भावना दर्शाई. सन् १९७९ में श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र के नाम से, कोबा में संस्था की स्थापना हुई. अनेक स्थानों व विविध प्रान्तों में विहार करके ग्रन्थों को संग्रह करने का कार्य प्रारंभ हुआ और धीरेधीरे संग्रह समृद्ध बनता गया. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर आज भारत का एक सुव्यवस्थित-समृद्ध ज्ञानभंडार है. प्राचीन प्रणाली को कायम रखते हुए भी इस ज्ञानमंदिर में आधुनिक साधनों का सुभग समन्वय हुआ है. ज्ञानभंडार को व्यवस्थित करने के साथ-साथ इस सूची में समाविष्ट अधिकांश ग्रंथों की मूलसूची बनाने का भगीरथ कार्य हमारे मुनि श्री निर्वाणसागरजी ने किया है, तथा इस कार्य के लिए योग्य मार्गदर्शन देकर पंन्यास श्री अजयसागरजी ने जो सहयोग दिया है, वह कभी भुलाया नहीं जा सकता. अन्य मुनिराजों ने भी जो यथायोग्य बहुमूल्य सहयोग दिया है, उन सबकी मैं हार्दिक अनुमोदना करता हूँ. ज्ञानमंदिर के निदेशक श्री कनुभाई शाह की देखरेख में पंडितवर्ग ने जिस सूझ व धैर्य के साथ अस्तव्यस्त हस्तप्रतों को व्यवस्थित करने एवं प्रतों के बारीक अध्ययनपूर्वक अतिविवरणात्मक सूचीकरण के इस कार्य को अंतिम रूप दिया है वह अपने आप में अनूठा व इतिहाससर्जक है. श्री नवीनभाई जैन, श्री संजयकुमार झा, श्री रामप्रकाश झा, डॉ. हेमंत कुमार, श्री अरुण कुमार झा आदि सभी पंडितवरों, प्रोग्रामर श्री केतनभाई शाह एवं सभी सहयोगी कार्यकर्ताओं को मेरा हार्दिक धन्यवाद है. ज्ञानमंदिर का कार्य सम्भालने वाले संस्था के ट्रस्टी श्री मुकेशभाई एन. शाह, श्री श्रीपालभाई आर. शाह एवं कारोबारी सदस्य श्री रजनीभाई एन. शाह आदि सभी को उनकी बहुमूल्य सेवाओं के लिए हार्दिक आशीर्वाद देता हूँ. अनेक श्रीसंघों, व्यक्तियों और जैन-जैनेतर लोगों ने भी इस कार्य में मुझे पूर्ण सहयोग दिया है, जिन्हें मैं धन्यवाद देता हूँ. ग्रन्थों के संरक्षण, सूचीकरण व प्रस्तुत त्रयोदशम खंड के प्रकाशन में आर्थिक सहयोग प्रदान करनेवाले श्री जीवदया फाउन्डेशन, यु.एस.ए. एवं समस्त ट्रस्टीगण के प्रति भी धन्यवाद देता हूँ. बड़ी संख्या में पूज्य साधु-साध्वीजी तथा विद्वान-शोधकर्ताओं द्वारा यहाँ के ग्रंथसंग्रह का सुंदर लाभ लिया जा रहा है, जो बड़ी ही प्रसन्नता का विषय है. इस ज्ञानभंडार के हस्तप्रतों की अपने-आप में विशिष्ट प्रकार की कैलास श्रुतसागर ग्रन्थसूची का खंड १३वां प्रकाशित होने जा रहा है, यह ज्ञानमंदिर के कार्य की सफलता का एक नया सोपान है. मुझे विश्वास है कि विश्वभर के विद्वद्वर्ग इस ग्रंथसूची से महत्तम लाभान्वित होंगे. संस्था अपने विकास पथ पर उत्तरोत्तर आगे बढ़ती रहे, यही मेरी मंगल कामना है. पभसागर सरि For Private and Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रकाशकीय जिनेश्वरदेव चरम तीर्थंकर श्री महावीरस्वामी, श्रुतप्रवाहक पूज्य गणधर भगवंतों, योगनिष्ठ आचार्यदेव श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी तथा परम पूज्य गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी की दिव्यकृपा से परम पूज्य आचार्यदेव श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी के शिष्यप्रवर राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की प्रेरणा एवं कुशल निर्देशन में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखित जैन ग्रंथों की सूची के त्रयोदशम खंड को कोबागांधीनगर की पुण्यमयी धरा पर परम पूज्य आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी के ७८वें जन्म वर्धापन महोत्सव के पावन प्रसंग पर चतुर्विध श्रीसंघ के करकमलों में समर्पित करते हुए श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबातीर्थ परिवार अपार हर्ष की अनुभूति कर रहा है. विश्व में बहुत से ग्रंथालय तथा ज्ञानभंडार हैं, किन्तु प्राचीन परम्पराओं के रक्षक ज्ञानतीर्थरूप आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में हस्तलिखित ग्रंथों का जो बेशुमार दुर्लभ खजाना पूज्य गुरुदेवश्री द्वारा भारत के कोने-कोने से एकत्र किया गया है, यह ज्ञानभंडार इस भूमंडल पर अब अपना उल्लेखनीय स्थान प्राप्त कर चुका है. हस्तप्रतों की संप्राप्ति, संरक्षण, विभागीकरण, सूचीकरण तथा रख-रखाव के इस कार्य व मार्गदर्शन में पूज्य आचार्यदेव के अधिकतर शिष्य-प्रशिष्यों का अपना योगदान रहा है. तपस्वी मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी ने हस्तप्रतों के सूचीकरण हेतु वर्षों तक अहर्निश भगीरथ परिश्रम किया है. इस सूचीकरण की अवधारणा को और विकसित करने में तथा कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग के कार्य में ग्रंथालय विज्ञान की प्रचलित प्रणालियों के स्थान पर महत्तम उपयोगिता व सूझबूझ का उपयोग करने में तथा समय-समय पर सहयोगी बनने हेतु पूज्य पंन्यास श्री अजयसागरजी तथा यहाँ के पंडितजनों, प्रोग्रामरों और कार्यकर्ताओं ने अपनी शक्तियों का यथासंभव महत्तम उपयोग किया है. इसी तरह पूज्य आचार्य भगवंत के अन्य विद्वान एवं प्रज्ञाशील शिष्यों का भी इस पूरी प्रक्रिया में विविध प्रकार का सहयोग प्राप्त होता रहा है, जिससे ज्ञानमंदिर की प्रवृत्तियों को विशेष बल एवं वेग मिलता रहा है. इस अवसर पर संस्था ज्ञात-अज्ञात सभी सहयोगियों व शुभेच्छुकों की अनुमोदना करते हुए हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करती है. सभी के मिले-जुले समर्पित सहयोग के बिना यह विशालकाय कार्य संभव नहीं था. नव पंडितों के साथ करीब तीस कार्यकर्ताओं के माध्यम से, श्रीसंघ के व्यापक हितों से संबद्ध ज्ञानमंदिर की अनेकविध प्रवृत्तियों के संचालन के लिए निरंतर बड़ी मात्रा में धनराशि की आवश्यकता रहती है. किसी भी प्रकार के सरकारी या अन्य किसी भी अनुदान को न लेकर मात्र संघों व समाज की ओर से मिलनेवाले आर्थिक व अन्य सहयोग के द्वारा कार्यरत इस संस्था में हस्तप्रत सूचीकरण व संलग्न अन्य विविध प्रवृत्तियाँ निरंतर गतिशील रहती है. इस भगीरथ कार्य हेतु भारत व विदेश के श्रीसंघों, संस्थाओं व महानुभावों का भी आर्थिक सहयोग यदि नहीं मिल पाता तो यह कार्य आगे बढ़ाना मुश्किल था. समस्त चतुर्विध संघ तथा संस्था के सभी शुभेच्छुकों को इस अवसर पर साभार-धन्यवाद दिया जाता है. आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के श्रुतभक्ति के प्रत्येक कार्य में हमारे वर्तमान ट्रस्टीगण अत्यंत उत्सुक और गतिशील रहे हैं. विशेषतः ट्रस्टीवर्य श्री मुकेशभाई एन. शाह एवं श्री श्रीपालभाई आर. शाह तथा कारोबारी सदस्य श्री रजनीभाई एन. शाह का योगदान महत्वपूर्ण रहा है. तदुपरांत समय-समय पर ज्ञानमंदिर का तन-मन-धन से कार्यभार निर्वाह करनेवाले ट्रस्टीवर्य स्व. श्री शांतिलाल मोहनलाल शाह, स्व. श्री उदयनभाई आर. शाह, श्री हेमंतभाई राणा, श्री सोहनलालजी एल. चौधरी, श्री चांदमलजी गोलिया, श्री किरीटभाई कोबावाला, श्री कल्पेशभाई जे. शाह, श्री गिरीशभाई वी. शाह एवं कारोबारी सदस्य श्री मोहितभाई शाह का भी ज्ञानमंदिर को आज की ऊंचाईयों तक पहुंचाने के लिए सुंदर योगदान प्राप्त हुआ है, जिसे इस अवसर पर याद किये बिना नहीं रहा जा सकता. कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची-जैन हस्तलिखित साहित्य के इस त्रयोदशम खंड के वित्तीय सहयोग प्रदाता श्री जीवदया फाउन्डेशन, यु.एस.ए. के प्रति संस्था कृतज्ञता व्यक्त करती है. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची के इस त्रयोदशम रत्न का समाज में स्वागत किया जाएगा, ऐसा हमारा विश्वास है. श्री सुधीरभाई यु. महेता - प्रमुख श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र ट्रस्ट - कोबातीर्थ, गांधीनगर For Private and Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org With Best Wishes Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संसारसागरं घोरं तर्तुमिच्छति यो नरः । ज्ञाननौका समासाद्य पारं याति सुखेन सः ।। FROM DR. VINAY K. JAIN PRESIDENT JIV DAYA FOUNDATION 12400 COIT ROAD, SUITE 570 DALLAS, TEXAS 75251 USA Phone : +0012145930530 Fax: + 001214593 1902 E-mail : jhpi@jivdayafound.org Website: www.jivdayafound.org For Private and Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्राक्कथन कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची प्रकाशन के अविरत सिलसिले में परम श्रद्धेय आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी के ७८वें जन्म वर्धापन महोत्सव के पावन प्रसंग पर प्रकाशित हो रहे इस त्रयोदशम रत्न का प्रकाशन हमारे लिए गौरव की बात है. सूचीकरण कार्य के परिणाम स्वरूप इस बार भी प्राकृत, संस्कृत व मारुगुर्जर आदि देशी भाषाओं में मूल, टीका, अवचूरी आदि व व्याख्या साहित्य की लघु कृतियाँ प्रचुर संख्या में अप्रकाशित ज्ञात हो रही हैं. इनमें से अनेक कृतियाँ तो बड़ी ही महत्वपूर्ण हैं. अनेक विद्वानों की कृतियाँ भी अद्यावधि अज्ञात व अप्रकाशित हैं, ऐसा स्पष्ट जान पड़ता है. इस खंड में लघु प्रतों की ही सूची है. सामान्यतः ऐसी प्रतों को अल्प-महत्त्व की समझकर जत्थे में बांधकर उपेक्षित सा रख दिया जाता है. लेकिन परिशिष्टों को देखने से पता चलेगा कि ऐसी प्रतों में से भी प्रचुरमात्रा में महत्व की अप्रकाशित लघु कृतियाँ प्राप्त हुई हैं. इन लघु प्रतों के वर्गीकरण से लेकर सूचीकरण तक का संपूर्ण कार्य बडा ही कष्टसाध्य होता है, लेकिन उसका यह सुंदर परिणाम बहुत संतोष दे रहा है. प्रकरण, कुलक व चरित्र आदि अनेक प्रकार के ग्रंथ अप्रकाशित प्रतीत हुए हैं. ऐसा ही देशी भाषा की कृतियों में भी है. इस सूचीपत्र में हस्तप्रत, कृति व विद्वान/व्यक्ति संबंधी जितनी भी सूचनाएँ समाविष्ट की गई हैं, उन सबका विस्तृत विवरण व टाइप सेटिंग सम्बन्धी सूचनाएँ भाग ७ के पृष्ठ vi एवं परिशिष्ट परिचय संबंधी सूचनाएँ भाग ७ के पृष्ठ ४५४ पर है. कृपया वहाँ पर देख लें. जैन साहित्य एवं साहित्यकार कोश परियोजना के अन्तर्गत शक्यतम सभी जैन ग्रंथों व उनमें अन्तर्निहित कृतियों का कम्प्यूटर पर सूचीकरण करना; एक बहुत ही जटिल व महत्वाकांक्षी कार्य है. इस परियोजना की सबसे बड़ी विशेषता है, ग्रंथों की सूचना पद्धति. अन्य सभी ग्रंथालयों में अपनायी गई, मुख्यतः प्रकाशन और पुस्तक इन दो स्तरों पर ही आधारित, द्विस्तरीय पद्धति के स्थान पर, यहाँ बहुस्तरीय सूचना पद्धति विकसित की गई है. इसे कृति, विद्वान, प्रत, प्रकाशन, सामयिक व पुरासामग्री इस तरह छ: भागों में विभक्त कर बहुआयामी बनाया गया है. इसमें प्रत, पुस्तक, कृति, प्रकाशन, सामयिक व एक अंश में संग्रहालयगत पुरासामग्री; इन सभी का अपने-अपने स्थान पर महत्व कायम रखते हुए भी इन सूचनाओं को परस्पर संबद्धकर एकीकृत कर दिया गया है. प्रस्तुत सूची के पूर्व के सभी खंडों की तरह इस खंड में समाविष्ट अधिकांश प्रतों की मूल सूची तो श्रुतसेवी पूज्य मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी ने वर्षों की मेहनत से बनाई थी. उसी को आधार रखकर हमने यह संपादन कार्य किया है. मुनिश्री के हम अनेकशः कृतज्ञ हैं. समग्र कार्य दौरान श्रुतोद्धारक पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी तथा श्रुताराधक पंन्यास श्री अजयसागरजी की ओर से मिली प्रेरणा व मार्गदर्शन ने इस जटिल कार्य को करने में हमें सदा उत्साहित रखा है. साथ ही पूज्यश्री के अन्य शिष्यप्रशिष्यों की ओर से भी हमें सदा सहयोग व मार्गदर्शन मिलता रहा है, जिसके लिए संपादक मंडल सदैव आभारी रहेगा. इस ग्रंथसूची के आधार से सूचना प्राप्त कर श्रमणसंघ व अन्य विद्वानों के द्वारा अनेक बहुमूल्य अप्रकाशित ग्रंथ प्रकाशित हो रहे हैं, यह जानकर हमारा उत्साह द्विगुणित हो जाता है; हमें अपना श्रम सार्थक प्रतीत होता है.. प्रतों की विविध प्रकार की प्राथमिक सूचनाएँ कम्प्यूटर पर प्रविष्ट करने एवं प्रत विभाग में विविध प्रकार से सहयोग करने हेतु, त्वरा से संदर्भ पुस्तकें तथा प्रतें उपलब्ध कराने हेतु आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के सभी कार्यकर्ताओं को हार्दिक धन्यवाद. सूचीकरण का यह कार्य पर्याप्त सावधानीपूर्वक किया गया है, फिर भी जटिलता एवं अनेक मर्यादाओं के कारण क्वचित् भूलें रह भी गई होंगी. इन भूलों के लिए व जिनाज्ञा विरूद्ध किसी भी तरह की प्रस्तुति के लिए हम त्रिविध मिच्छामि दुक्कडं देते हैं. विद्वानों से करबद्ध आग्रह है कि इस प्रकाशन में रह गई भूलों की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करें एवं इसे और अधिक बेहतर बनाने हेतु अपने सुझाव अवश्य भेजें, ताकि अगली आवृत्ति व अगले भागों में यथोचित सुधार किए जा सकें. - संपादक मंडल %3D For Private and Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra मंगलकामना प्रकाशकीय प्राक्कथन अनुक्रमणिका. प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेप व संकेत हस्तप्रत सूचीकरण सहयोग सौजन्य समर्पण www.kobatirth.org अनुक्रमणिका हस्तप्रत सूची. परिशिष्ट कृति परिवार अनुसार प्रत पेटाकृति अनुक्रम संख्या... १. संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट १ २. देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir O समाविष्ट प्रतों में कुल ३५४४ कृति परिवारों का समावेश हुआ है. O इन परिवारों की कुल ४११४ कृतियों का इस सूची में समावेश हुआ है. o सूची में उपरोक्त कृतियाँ कुल ६३७० बार आई हैं. iv i .ii ..........iv For Private and Personal Use Only V .vi-vii vill ... १-४७७ ..४७८-५९६ .....४७८-५१८ इस सूचीपत्र में हस्तप्रत, कृति व विद्वान / व्यक्ति संबंधी जितनी भी सूचनाएँ समाविष्ट की गई हैं, उन सबका विस्तृत विवरण व टाइप सेटिंग संबंधी सूचनाएँ भाग ७ के पृष्ठ vi एवं परिशिष्ट परिचय संबंधी सूचनाएँ भाग ७ के पृष्ठ ४५४ पर है. कृपया वहाँ पर देख लें. . ५१९-५९६ प्रस्तुत खंड १३ में निम्नलिखित संख्या में सूचनाओं का संग्रह है. o प्रत क्रमांक- ५२०५१ से ५५६०० ● इस सूचीपत्र में मात्र जैन कृतियों वाली प्रतों का ही समावेश किए जाने के कारण वास्तविक रूप से २८८२ प्रतों की सूचनाओं का समावेश इस खंड में हुआ है. Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra (-) (+) (#) ......... उप. उपा. ऋ. क. कुं... कुल ग्रं. कुल पे. क्रीत. को. ग. गडी. प्रत क्रमांक के अंत में छोटे उर्ध्वाक्षरों में प्रत की अवदशा, पाठ नष्ट हो जाने से प्रत की उपयोगिता में कमी का सूचक. इस हेतु प्र. वि. में निम्न सूचनाएँ हो सकती हैं. मूल पाठ का टीकादि का मूल व टीका का, टिप्पणक का अंश नष्ट है. अक्षर फीके पड़ गये हैं, मिट गये हैं, पन्नों , (S) पर आमने-सामने छप गये हैं. अक्षर की स्याही फैल गई है. पत्र जीर्णतावश नष्ट होने लगे हैं, हो गये हैं. कृति परिशिष्टों में प्रत क्रमांक के अंत में उचक्षरों से प्रत की अपूर्णता सूचक अपूर्ण, त्रुटक, प्रतिअपूर्ण हेतु. (--) ............आदिवाक्य अनुपलब्ध. अप. ......... अपभ्रंश (कृति भाषा ) अंति: अंतिमवाक्य (कृतिमाहिती) आ.......... आचार्य (विद्वान स्वरूप ) आदि......... आदिवाक्य (कृतिमाहिती) ..... प्रत प्रतिलेखन उपदेशक (प्र. ले. पु. विद्वान ) . उपाध्याय (विद्वान स्वरूप) ऋषि (विद्वान स्वरूप ) कवि (विद्वान स्वरूप) .. कुंडली (कृति स्वरूप) प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेप व संकेत कृति नाम के अंत में विभिन्न अज्ञात विद्वान कर्तृक, अनेक अस्थिर टबार्थ व श्लोक संग्रह जैसी समान कृतियों के समुच्चय रूप या फुटकर कृति दर्शक संकेत. . कृति / प्रत / पेटांक नाम के बीच का, की, के, इत्यादि विभक्ति सूचक .. . प्रत क्रमांक के अंत में छोटे उर्ध्वाक्षरों में ... कोष्टक (कृति स्वरूप) गणि] (विद्वान स्वरूप) ............गडी किए हुए पत्रों वाली प्रत . ..... दुर्वाच्य, अवाच्य, अशुद्ध पाठ सूचक. . प्रत क्रमांक के अंत में छोटे उर्ध्वाक्षरों में प्रत की महत्ता सूचक इस हेतु प्र. वि. में निम्न सूचनाएँ हो सकती - हैं. कर्ता कर्ता के शिष्य-प्रसिद्ध व्यक्ति द्वारा लिखित रचना के समीपवर्ती काल में लिखित संशोधित शुद्धप्राय , - - टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पाठ में सुगमता हेतु विविध प्रकार के चिह्नयुक्त प्रत यथा - अन्वय दर्शक अंक युक्त, पदच्छेद संधि सूचक वचन विभक्ति क्रियापदसूचक चिह्न आदि वाली प्रत. कृति नाम के बाद प्रयुक्त होने पर संयुक्त कृति की पहचान - यथा आवश्यकसूत्र सह निर्युक्ति, भाष्य व तीनों की लघुवृत्ति. - ......... गु....... गुटका www.kobatirth.org मूल व टीका आदि का संयुक्तरूप से सर्व ग्रंथान परिमाण प्रत व पेटाकृति विशेष में. - - • कुल पेटाकृति (प्रतमाहिती स्तर) प्रत को खरीदनेवाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) गद्य. . गद्यबद्ध (कृति प्रकार) गा. . गाथा (कृति परिमाण) .. गुजराती (कृति भाषा ) ......... बंधे पत्रों वाली प्रत. (प्रतमाहिती स्तर) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir V For Private and Personal Use Only - Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गृही. .......... गृहीत. आदान-प्रदान में प्रत को प्राप्त करने वाला (प्र. ले. पु. विद्वान) गोल ...........गोल कुंडलाकार प्रत. (प्रतमाहिती स्तर) ग्रं. ............. ग्रंथाग्र (कृति परिमाण) जै............ जैन कृति (कृति परिशिष्ट) जै.क........ जैन कवि (विद्वान स्वरूप) जैदे............जैन देवनागरी (प्रत लिपि) ते.............. ..जैन श्वेतांबर तेरापंथी कृति. (कृति परिशिष्ट) दत्त.......... आदान-प्रदान में प्रत देनेवाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) दि............. ..जैन दिगंबर कृति. (कृति परिशिष्ट) देना............ देवनागरी (प्रत लिपि) पं. .............पंजाबी (कृति भाषा) पं........... पंन्यास, पंडित (विद्वान स्वरूप) पठ. ........... पठनार्थ. जिसके पढ़ने हेतु प्रत लिखी या लिखवाई गई हो. (प्र. ले. पु. विद्वान) प+ग ......... ..पद्य व गद्य संयुक्त (कृति प्रकार) पद्य............ पद्यबद्ध (कृति प्रकार) पा........... पाठक (विद्वान स्वरूप) पु. हिं..........पुरानी हिंदी (कृति भाषा) पू. वि. ......... पूर्णता विशेष (प्रतमाहिती, पेटाकृति माहिती व कृतिमाहिती स्तर) पूर्व ......... कृतिमाहिती में वर्ष प्रकार सूचक 'वि.' 'श.' आदि के बाद संवत् प्रवर्तन के पूर्व का वर्ष दर्शक. पृष्ठ सूचना (प्रत माहिती स्तर पर व पेटाकृति स्तर पर) पे. नाम........ पेटाकृति नाम पे. वि.......... पेटाकृति विशेष पै.............. पैशाची प्राकृत (कृति भाषा) प्र. वि.......... प्रत विशेष. प्रले........... प्रतिलेखक, लहिया, (प्रतिलेखन पुष्पिका. प्रत, पेटाकृति, कृति माहिती स्तर पर.) प्र. ले. पु...... प्रतिलेखन पुष्पिका की - (प्रत/पेटाकृति/कृति स्तर) ('सामान्य, मध्यम' आदि उपलब्धता सूचक.) प्र.ले.श्लो..... प्रत, पेटाकृति व कृति हेतु प्रतिलेखक द्वारा लिखित प्रतिलेखन श्लोक (जलात् रक्षेत्... इत्यादि) प्रा...............प्राकृत (कृति भाषा) प्रे............... प्रतलेखन प्रेरक. (प्र. ले. पु. विद्वान) बौ..............बौद्ध कृति (कृति परिशिष्ट) म...............मराठी (कृति भाषा) महा. ..........महाराष्ट्री प्राकृत (कृति भाषा) मा. ............मागधी प्राकृत (कृति भाषा) मा. गु..........मारुगुर्जर (कृति भाषा) मु. .......... मुनि (विद्वान स्वरूप) मु.............. मुस्लिम धर्म (कृति परिशिष्ट) मूपू. ...........जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक कृति (कृति परिशिष्ट) ............. यंत्र (कृति स्वरूप) रा........... राजा (विद्वान स्वरूप) रा..............राजस्थानी (कृति भाषा) राज्यकाल.... जिस राजा के राज्य शासनकाल में प्रत लिखी गई हो. राज्ये........... जिस आचार्य के गच्छनायकत्व काल में प्रत का लेखन हुआ हो. लिख.......... प्रत लिखवाने वाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) ले. स्थल...... लेखन स्थल (प्रतिलेखन पुष्पिका) वा........... वाचक (विद्वान स्वरूप) वि............ विक्रम संवत् (वर्ष माहिती) (प्रे. ले. पु., कृति रचना वर्ष) विक्र........... विक्रेता - प्रत का. (प्र. ले. पु. विद्वान) वी........... वर्ष संख्या के पूर्व होने पर 'वीर संवत' यथा वी. २०००. वर्ष संख्या पश्चात् होने पर 'वी सदी'. यथा- ८वी सदी. (७१०-८००) (प्र. ले. पु., कृति रचना वर्ष) वै. .......... ...वैदिक कृति. (कृति परिशिष्ट) व्याप. ......... व्याख्याने पठित -विद्वान द्वारा. (प्र. ले. पु. विद्वान) श............. ..शक संवत् (वर्ष माहिती - प्र. ले. पु.) श्राव......... श्रावक (विद्वान स्वरूप) श्रावि........ श्राविका (विद्वान स्वरूप) श्रोता द्वारा व्याख्यान में श्रुत. (प्र. ले. पु. विद्वान) श्वे..............जैन श्वेतांबर कृति (कृति परिशिष्ट) संस्कृत (कृति भाषा) सम............. समर्पक. ज्ञानभंडार को प्रत समर्पित करनेवाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) सा. ......... साध्वीजी (विद्वान स्वरूप) स्था............जैन श्वेतांबर स्थानकवासी (कृति परिशिष्ट) हिं. ............हिंदी (कृति भाषा) पृ. ............. ............. संस्क For Private and Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ० सुकृत के सहभागी हस्तप्रत सूचीकरण में विशिष्ट आर्थिक सहयोगियों की नामावली अहमदाबाद १. शेठ आणंदजी कल्याणजी (धार्मिक धर्मादा ट्रस्ट), पालडी २. श्री शांतिलाल भुदरमल अदाणी परिवार अहमदाबाद ३. बाबु श्री अमीचंद पन्नालाल आदीश्वर ट्रस्ट, वालकेश्वर मुंबई ४. शेठ श्री झवेरचंद प्रतापचंद सुपार्श्वनाथ जैन संघ, वालकेश्वर मुंबई ५. श्री प्लेजेंट पैलेस जैनसंघ मुंबई ६. श्री गोवालिया टैंक जैनसंघ मुंबई ७. श्री प्रेमलभाई कापडिया मुंबई ८. श्री जवाहरनगर जैन श्वे. मू. पू. जैन संघ, गोरेगांव मुंबई ९. जैन सेन्टर ऑफ नॉर्दर्न केलिफोर्निया अमेरिका अहमदाबाद १०. श्री श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन बोर्डिंग ११. श्री शंभुकुमार कासलीवाल मुंबई १२. शेठ मोतीशा जैन रिलीजियस एन्ड चेरीटेबल ट्रस्ट मुंबई १३. फेडरेशन ऑफ जैन एसोसिएसन इन नॉर्थ अमेरिका, "जैना" हस्ते डॉ. प्रेमचंदजी गडा अमेरिका १४. श्री एम. जे. फाउन्डेशन मुंबई १५. श्री कल्याण पार्श्वनाथ जैन संघ, चौपाटी मुंबई १६. श्री सांताक्रूज़ जैन तपगच्छ संघ, श्री कुंथुनाथ जैन देरासर मार्ग, सांताक्रूज़ (वे.) मुंबई अहमदाबाद सुरत १७. श्री महावीर जैन श्वे. मू. पू. संघ, पालडी १८. श्री . मू. पू. जैन संघ, नानपुरा, १९. श्री आंबावाडी मू. पू. जैन संघ अहमदाबाद २०. श्री चिंतामणी पार्श्वनाथ श्वे. मू. पू. जैन संघ, आरे रोड, गोरेगाँव मुंबई २१. श्री राजस्थान जैन श्वे. मू. पू. संघ, जयनगर, बेंग्लोर २२. श्री आदिनाथ जैन श्वे. मंदिर ट्रस्ट, चिकपेट बेंग्लोर २३. श्री महुडी जैन श्वे. मू. पू. ट्रस्ट, महुडी २४. श्री गोडीजी महाराज जैन टेम्पल एन्ड चेरीटीज, मुंबई २५. श्री जुहु स्कीम जैन संघ, विलेपार्ले (वे.) मुंबई हस्तप्रत सूचीकरण में आर्थिक सहयोगियों की नामावली १. श्रीमद् यशोविजयजी जैन संस्कृत पाठशाला, श्री जैन श्रेयस्कर मंडल २. श्री अर्बुद गिरिराज जैन श्वे. तपागच्छ उपाश्रय ट्रस्ट ४. शेठ श्री शायरचंदजी नाहर ५. श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ जैन देरासर ट्रस्ट, पालडी ६. संघवी श्री पुखराजजी हंजारीमलजी दांतेवाडीया मांडवला ७. श्री रांदेर रोड जैनसंघ श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ जैन देरासर, रांदेर रोड ८. श्री जिन आराधक मंडल, कांदीवली ९. श्री जयेशभाई हिरजीभाई शाह, नरीमान प्वाइंट १०. प. पू. आ. देव श्री जगच्चन्द्रसूरीश्वरजी महाराज की प्रेरणा से श्री सिद्धगिरि महातीर्थ चातुर्मास आराधना हेतु श्री बेतालीस के विशा श्रीमाली जैन ज्ञाति मंडल ११. श्री आदिनाथ सोसायटी जैन टेम्पल ट्रस्ट, पूना-सातारा रोड १२. श्री बिरला एकेडेमी ऑफ आर्ट एन्ड कल्चर १३. दक्षिण - पावापुरी तीर्थ, चंद्रप्रभु जैन सेवामंडल ट्रस्ट १४. श्री जवाहर जैन श्वे. मू. संघ, गौरेगाँव १५. श्री सोहनराज संघवी Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir vii For Private and Personal Use Only महेसाणा इन्दौर मुंबई अहमदाबाद चेन्नई सुरत मुंबई मुंबई मुंबई पूना कोलकाता पेन्नई मुंबई (वे.) कोलकाता Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुकृत के सहभागी हस्तप्रत सूचीकरण में १ से १३ भाग के आर्थिक सहयोगियों की नामावली १. रमेशकुमार चोथमलजी, तारादेवी रमेशकुमार & सन्स || ७. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर २. श्री जैन श्वेतांबर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर || ८. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर ३. घाणेराव (राजस्थान) निवासी श्रीमती मोहिनीबाई एस. ९. शेठश्री आणंदजी कल्याणजी पेढी अहमदाबाद देवराजजी जैन चेन्नई || १०. श्री भवानीपुर मूर्ति पूजक जैन श्वेताम्बर संघ कोलकाता ४. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर || ११. श्रीमती तारादेवी हरखचंदजी कांकरिया परिवार ५. मांडवला (राज.) निवासी संघवी मुथा मोहनलालजी कोलकाता रघुनाथमलजी सोनवाडीया परिवार चेन्नई || १२. श्री सांताक्रुज जैन श्वेताम्बर मूर्ति पूजक जैन संघ मुंबई ६. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ, मेवानगर || १३. डॉ. विनय के. जैन - प्रेसीडेन्ट (जीवदया फाउन्डेशन), यु.एस.ए. हस्तप्रत सूचीकरण में भविष्य के आर्थिक सहयोगियों की नामावली १. शेठश्री संवेगभाई लालभाई, अहमदाबाद २. शेठश्री रसिकलाल धारीवाल (माणिकचंद ग्रुप) पूना, मुंबई ३. शेठश्री रमेशभाई लुंकड भीनमाल, पवनबेन लुंकड, भीनमाल, मुंबई ४. श्री गोडीजी महाराज जैन टेम्पल एन्ड ट्रस्ट, पायधुनी-मुंबई ५. शेठश्री चंद्रप्रकाशजी अग्रवाल, कायमगंज ६. श्री बावन जिनालय, भायंदर-मुंबई ७. शेठ श्री देवीचंद विकासकुमार अनीलकुमार चोपडा (बच्छराज डेवलोपर्स) मुंबई ८. शेठश्री शांतिलाल लल्लुभाई शाह - ह. भरतभाई शाह, वालकेश्वर-मुंबई ९. शेठश्री सोहनराजजी सिंघवी, कोलकाता १०. श्री सायन जैन संघ, शीव-मुंबई 9 सादर समर्पण कल्याणस्वरूप तीर्थंकरों द्वारा स्थापित श्रमणप्रधान चतुर्विध श्रीसंघ के कर कमलों में... जिनके द्वारा यह श्रुत परंपरा अक्षुण्ण रही. ००० viii For Private and Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ श्री महावीराय नमः॥ ॥श्री बुद्धि-कीर्ति-कैलास-सुबोध-मनोहर-कल्याण-पद्मसागरसूरि सद्गुरुभ्यो नमः॥ कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५२०५१. (#) सवइया व कुंडलीयो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, १६x४३). १.पे. नाम. जीवदया सवैया, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. मु. कृपाराम, पुहि., पद्य, वि. १९३२, आदि: चोथे आरे केरा वृसतीन; अंति: कृपाराम नीत पालजो, गाथा-२६. २. पे. नाम. गीसती कुंडलिया, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. महासती सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: गीसती के घर साधने; अंति: गीसती जावै लार, गाथा-१०. ५२०५२. किर्तिधज राजा ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२५.५४१२, १३४५०). कीर्तिध्वजराजा ढाल, मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, वि. १९३१, आदि: श्रीश्रीआदजिनेसरो; अंति: हीरालाल०करी एक मन हो, गाथा-७४. ५२०५३. सचितअचित सज्झाय व दशपच्चक्खाण स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ३., (२३४११, ११४२६-३०). १. पे. नाम. सचितअचित सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. सचित्तअचित्त सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रवचन अमरी समरी गुर; अंति: नयवीजय कीधो अधीकार, गाथा-२४. २. पे. नाम. दस पछखाणरो स्तवन, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नमु; अंति: रामचंद्र तपविधि भणे, ढाल-३, गाथा-३३. ५२०५४. (+#) भक्तामर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ११४३५). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ५२०५५. (+#) नवकार अर्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. जेसलमहादुर्ग, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १६४५५). नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: नमो लोए सव्वसाहूणं, पद-९. नमस्कार महामंत्र-बालावबोध*,मा.गु., गद्य, आदि: माहरउ नमस्कार; अंति: वंदना सदा सर्वदा होइ. ५२०५६. (#) अनाथी सझाय, संपूर्ण, वि. १७२८, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५.५४११, १२४३९). अनाथीमुनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मगधाधिप श्रेणिक; अंति: इम बोलई मुनि राम कि, गाथा-३०. ५२०५८. गुरुगुणछत्तीसी कुलक सह अवचूरी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२५४१२.५, २२४४६). गुरुगुणषट्त्रिंशत्षट्त्रिंशिका कुलक, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वीरस्स पए पणमिय सिरि; अंति: भव्वा पावंतु कल्लाणं, गाथा-४०, संपूर्ण. गुरुगुणषट्त्रिंशत्षट्त्रिंशिका कुलक-टीका, सं., गद्य, आदि: आक्षेपणी विक्षेपणी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ६ तक अवचूरि लिखी है.) ५२०५९. (+) पंचमी स्तुति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२४.५४१०.५, ३४३८). For Private and Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमि: पंचरूप, अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीनेमि क० भगवंत अंतिः टावला सावधान छड़ ५२०६०. (#) स्तवन, पद व लावणी संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. २, कुल पे. ५, ले. स्थल. वडगाम, प्रले. मु. मानचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीचिंतामणिपार्श्वनाथ प्रसादात्, अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, वे (२४४१०.५, १२-१५X३३). १. पे. नाम. जिनवाणी माहात्म्य स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगम स्तवन, ग. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रुत अतिहि भलो संघ, अंति: खिमाकल्याण सदा पावै, गाथा- ७. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. चिदानंद, पुहिं, पद्म, आदि: जग सपनेकी माया समज, अंतिः चिदानंद० नेह सवाया, गाथा-५. ३. पे. नाम औपदेशिक लावणी, पृ. १अ २अ संपूर्ण. मु. जिनदास, रा. पद्य वि. १७वी आदि मनसुन रे तेरी सफल अंतिः जिनदास मन नही मार्वे, गाथा ५. o 1 ४. पे. नाम औपदेशिक लावणी, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. सुमतिकुमति लावणी, जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: तु कुमति कलसी रे नार; अति: बात खोटी मत खेडे, गाथा-४. ५. पे नाम, प्रस्ताविक गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण, जैनगाथा संग्रह *, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५२०६१. (४) नेमिनाथ रास, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै, (२५x११.५ १२४४०). नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि सारद पत्र पणमी करी, अंतिः पुनिरतन० संघ प्रसंन, गावा- ६५. ५२०६२. (#) पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, ११X३६). पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र, अंति: पातु फणींद्रपत्नी, श्लोक-२७. ५२०६३ (४) बुधि रास, संपूर्ण वि. १८६३ श्रावण अधिकमास शुक्ल, १३, सोमवार, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल. आहोरनयर, प्र. मु. शिवचंद (पुनमगच्छ), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीशांतिनाथ प्रसादात्, मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., ( २१४९.५, १२x२७-३०). बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पणमवि देवी अंबाह पंच, अंतिः सालिभद्र०टलब कलेस तो, गाथा-६३. ५२०६४. हरीयाली सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७७२, चैत्र कृष्ण, २, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. मेंडतानगर, प्रले. पं. नायसागर, पठ. पं. लाभसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५x१०.५, ६x४१). आदिजिन हरियाली, मा.गु., पद्य, आदि; एक अचंभो उपनो कहो जी, अंतिः सुणो भविक सहु संत, गाथा- १०. आदिजिन हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पुरषो आउखो हवडानै सम, अंति: रावको तुमैपिण सांभलो. ५२०६५. (४) नेमनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, वे., (२५.५४१२, १५X३४). नेमिजिन स्तवन, मु. खोडी, मा.गु., पद्य, आदि: काम आया काम की; अंति: खोडी० रथ पाछा वीलो ए, गाथा - २१. ५२०६६. (+#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९८, वैशाख कृष्ण, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, ले. स्थल. नगोर, प्र. वि. टिप्पणयुक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५४१२, १७४४०). १. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय आदि जिणंद आज; अंति: ज्यो छो तुम धाणी रे, गाथा-१२. २. पे. नाम. मुरागुण वर्णन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि: नगर वनीता भली विराजे; अंति: पामे लील विलासो जी, गाथा-१५. ३. पे. नाम. वीरथुईनाम अध्ययन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा-२९. ५२०६७. कमलावती सझाय, संपूर्ण, वि. १९०८, आश्विन शुक्ल, ४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. वीकानेर, प्रले. मु. मुलचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४११.५, १९४५०). कमलावतीसती सज्झाय, ऋ. जैमल, पुहिं., पद्य, आदि: मेहला मे वेठीजी राणी; अंति: मिच्छामिदुक्कडं मोय, गाथा-२९. ५२०६८.(-) महावीर स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५४११, १५४४३). गौतमस्वामी रास, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३४, आदि: गुण गाउगोतम तणा लबध; अंति: रायचंद० गोतमस्वाम जी, गाथा-१२. ५२०६९. (#) शनिश्वर छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११, १३४३७-४४). शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहि नर असुर सुरपति; अंति: हेम० अलगी टालि आपदा, गाथा-१५. ५२०७०. स्तोत्र व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४.५४१०.५, १३४३९). १.पे. नाम. कल्याणक स्तव, पृ. १अ, संपूर्ण. __ पंचकल्याणक स्तव, आ. हरिषेणाचार्य, सं., पद्य, आदि: ॐहीँ हँशुभ; अंति: भूयाज्जिनोनः श्रियो, श्लोक-५. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीमद्वीरं कामेवीरं; अंति: तरणा विभव वितरणा, श्लोक-४. ५२०७४. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२४.५४१०.५, १३४४३). १. पे. नाम. सिद्धचक्रजी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र नमस्कार, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत उदार कांत; अंति: निधि प्रगटै चेतन भूप, गाथा-४. २. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. __ आदिजिनसीमंधरजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय त्रिभुवन आदि; अंति: शयनंतवंत अंतरगतिगामी, गाथा-३. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पूर्व विदेह विराजता; अंति: नितप्रति करुं प्रणाम, गाथा-१. ४. पे. नाम. सीमंधर स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु जिनवर वहिरमान; अंति: कारण परम कल्याण, गाथा-२. ५.पे. नाम. भावीतीर्थंकर पद्मनाभजी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पद्मनाभजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम महेसर पदमनाभि; अंति: कारण परमकल्याण, गाथा-३. ५२०७५. (+#) स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५४११.५, ११४३४). १. पे. नाम. पार्श्वजिन संगीतबंध स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: दें कि धपमप; अंति: दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. २. पे. नाम. प्रस्ताविक गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५२०७६. (#) गीत व मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११, १४४३३). १.पे. नाम. सदारंगजी गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. सदारंग आचार्य गीत, मु. सिव, मा.गु., पद्य, वि. १८६५, आदि: गोतम गणहर पाय नमी; अंति: सिवो कहै हेत जाण, गाथा-९. २. पे. नाम. अनिष्ट निवारण मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. मंत्र संग्रह*, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५२०७७. जिन स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. कुल पे. ३, ले.स्थल. वडलु, प्रले. सा. चतुरा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४११.५, १६४३८). १. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मात प्यारो लागे छे; अंति: मारो मारो नेमजीणंद, गाथा-१०. २.पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. मु. ऋद्धिकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: संभवजिनरी सेवा; अंति: रिद्धकीरति० मोहै हो, गाथा-८. ३. पे. नाम. शांतनाथजीरो स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: श्रीशांतिजिणेसर शांत; अंति: सिद्ध श्रीसंघ धरै, गाथा-१३. ५२०७८. (+-#) गोडी पार्श्वनाथ स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, अ., (२४४१०, १५४३५-४८). १.पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, मु. रामविजय, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: नमु सारदा सार; अंति: रामेण सर्वदा, गाथा-१४. २. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन दे सरसती एह; अंति: धर्मसिह ध्यानह धरण, गाथा-२९. ५२०७९. सचितअचित विचार सझाय, संपूर्ण, वि. १६६१, आश्विन शुक्ल, ९, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४४२). असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रणमीय श्रीगौतम गण; अंति: वीरविमल कर जोडी कहि, गाथा-१७. ५२०८०. (+#) महावीरस्वामी स्तवन व गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२४४१०.५, १२४३६). १. पे. नाम. महावीरस्वामी स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-४५ आगम संख्यागर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: मगधदेस श्रेणक महाराज; अंति: धरमसी० पुस्तक देख ए, ढाल-३, गाथा-२८. २. पे. नाम. प्रस्ताविक गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ५२०८१. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ३., (२४४९.५, १४४३४-३८). १. पे. नाम. समकित स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. सम्यक्त्वसुखडी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: चाखो नर समकित सुखडली; अंति: मुनि दरसनने मीठी रे, गाथा-५. २. पे. नाम. धन्नाअणगार सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवचने वयरागी हो; अंति: श्रीदेव० विजय जयकार, गाथा-११. ५२०८२. गर्भहरण कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४११, १४४५९). For Private and Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ www.kobatirth.org अंतकृद्दशांगसूत्र- देवकी पूर्वभव कथा, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: एहवउ उत्तम एहवओ गर्भ; अंति: खानु संबंध कहु छइ. ५२०८३. (१) अभक्ष्य सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., (२५x११, १५X४८-५०). , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु, पद्य, आदि जिनसासन रे सुधी सदहण; अंति लक्ष्मीसागर सुख लहे, गाथा - ११. ५२०८४. (#) पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. समउग्राम, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५X११, १९६५). पार्श्वजिन स्तवन, मु. विनयकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमिअ गौतम गणहरू ए; अंतिः विनयकुशल मंगल करो, गाथा-४३. (-#) ५२०८५. (*) सज्झाय व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १. कुल पे २ प्र. वि. अशुद्ध पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४X१०.५, १४X३६-४०). १. पे. नाम. जंबुस्वाम सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. जंबूस्वामी सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्म, आदि राजग्रही नगरी वसे अंतिः सिद्धिवि० उवज्झाय रे, गाथा- १६. २. पे. नाम. नेमराजुल स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नेमराजिमती संवाद, मु. ऋद्धिहर्ष, रा., पद्य, आदि: हठ करी हरीय मनावीयै; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ६ अपूर्ण तक है.) ५२०८६. सज्झाय व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., ( २४१०.५, १४X३४-३८). १. पे. नाम. मनकमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नमो नमो मनक महामुने, अंति: लबधी० सुहगति सारो रे, गाथा - १०. २. पे नाम, अजितनाथ स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण अजितजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अजित जिनराज सुणि आज; अंति: नय० अधीक तुझ सेवा, गाथा- ७. ५२०८७. विजयपहुत्त स्तोत्र, संपूर्ण वि. १८४१ आश्विन कृष्ण, ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२३.५४९.५, १०x३०-३६). विजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपवासव अड अंतिः निब्भतं निच्चमच्चेह, गाधा-१४. ५२०८८. (+) चैत्यवंदन स्तोत्र, संपूर्ण वि. १८६७ श्रावण कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल, गंमधन, प्रले. पं. चारित्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२३.५X१०, १३४३२-३५), " तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंतिः करै चित्तमानंद कारै, श्लोक - १०. ५२०८९, (+) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १ (१) = १. कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०.५, १४X३६). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. कुंअरसिंह, मा.गु, पद्य, आदि: महावीरजिण बंदीह जी, अंतिः कुरसी० नाथजी सेवंता, गाथा- ९. २. पे. नाम, विमलनाथ स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. विमलजिन स्तवन, मु. कनकरतन, मा.गु., पद्य, आदि: विमलनाथ महिमा निलो अंति: कनकरतन सुखकारो जी, सुणी, गाथा-१८. २. पे. नाम. देशी औषध नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. गाथा - १३. युक्त ५२०९० (+०) अरहनक स्वाध्याय व औषध नाम, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. टिप्पण पाठ टिप्पणक का अंश नष्ट, जैवे. (२४४१०, १७२५२-५४). १. पे. नाम. अरहनक स्वाध्याय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. अरणिकमुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि धन धन जननी बे लाल जे अंतिः लबधि० गुण आगम For Private and Personal Use Only विशेष Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औषधवैद्यक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५२०९१. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४४९.५, १३४५८-६०). १.पे. नाम. बावीस अभख्य बत्रीस अनंतकाय सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: जिनसासन रे सूधी सद्द; अंति: प्राणी ते सिवसुख लहइ, गाथा-५. २.पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. धर्मसी, पुहि., पद्य, आदि: धंधही मैं नित्य धावत; अंति: धरमसी० रस उहे रसे है, सवैया-५. ५२०९२. सझाय व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११, १३४४०). १. पे. नाम. प्रतिक्रमण सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गोयम पूछे श्रीमहावीर; अंति: जस० जन भवजल पार रे, गाथा-१३. २.पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: नायक मोह नचावीयो; अंति: एम जपे जिनराजोरे, गाथा-५. ५२०९३. (+) सर्वजिनसाधारण स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७४७, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०, ११४३२-३४). २४ जिन स्तुति, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिनर्षभ प्रीणितभव्य; अंति: जिनप्रभ०लक्ष्मीश्वरा, श्लोक-८. ५२०९४. सज्झाय व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४४११.५, ९४२८-३२). १.पे. नाम. गजसुखमाल सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गजसुकुमाल सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नयरी द्वारामती जाणिय; अंति: समयसुंदर तसु ध्यान, गाथा-६. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. वखता, मा.गु., पद्य, आदि: कटक कंदो रे मोहनो हो; अंति: वखता० श्रीमाहाराज, गाथा-८. ५२०९५. श्रावक एकवीस गुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०.५, १३४३४). श्रावक २१ गुण सज्झाय, मु. धर्मचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सरस वचन वरसती; अंति: धर्मकहे ए गुण एकवीस, गाथा-१४. ५२०९६. (+#) साधारणजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४१०.५, १४४३४-३८). सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: (-), श्लोक-२८. ५२०९७. (+#) नेमनाथ रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२३४१०, १६४५४-५६). नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सारद पय पणमी करी; अंति: पुन्य० नेमिजिणंद कै, गाथा-६४. ५२०९८. (+#) भक्तामर स्तोत्र व पार्श्वजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, ११४२६). १.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. २.पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. ४आ, संपूर्ण. ___ सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. ५२०९९. जिनदत्तसूरि गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२२४१०, १३४३६). For Private and Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ जिनदत्तसूरि गीत, मा.गु., पद्य, आदि: संवत् इग्यार गुणोत्त; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १८ तक लिखा है.) ५२१००. (2) नवकार स्तव, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १९४५१). नमस्कार स्तव, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: परमिट्ठि नमुक्कार; अंति: महिम सिद्धि सुहं, श्लोक-३१. ५२१०१. भक्तामर स्तोत्र पद्यानुवाद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२४.५४११, १३४४३). भक्तामर स्तोत्र-पद्यानुवाद, मु. हेमराज, मा.गु., पद्य, आदि: आदि पुरष आदेस जिन आद; अंति: ते पावै शिवखेत, गाथा-४९. ५२१०२.(+) सूरिस्थापना विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ११४३२). पदस्थापन विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: तत्र जगुण१ कालर निस, अंति: मिगावईण० परमगुणे. ५२१०३. गुरुस्तूपप्रतिष्टा विधि व मंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. प्रतिष्ठोपयोगी आवश्यक सामग्रीसूचि दी गयी है., दे., (२५.५४१०.५, १४४३६). १.पे. नाम. गुरुस्तूपप्रतिष्टा विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गुरुप्रतिमा प्रतिष्ठा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ननु गुरूणां स्तूपस्य; अंति: शीलव्रतंच पालयति. २.पे. नाम. वर्द्धमानविद्या मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं नमो अरिहताण; अंति: वारसप्तकं वासक्षेपः.. ५२१०४. (+) सकोसलऋषि रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(२)=४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२०४१०, ११४२४-२८). सुकोशलमुनि चौपाई, मु. देवराज, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरुवयणे सांभली जी, अंति: देवराज० जिननि वांदसु, ढाल-६, गाथा-५७, (पू.वि. गाथा १४ अपूर्ण से गाथा २७ अपूर्ण तक नहीं है.)। ५२१०५. पूजा, सूतक विचार व पार्श्वजिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, दे., (२४.५४११, १६x४७-५१). १.पे. नाम. वासक्षेप पूजा, पृ. १अ, संपूर्ण. नवपद वासक्षेप पूजा स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत पद ध्यातो थकौ; अंति: भोगेरे० परमात्मने, गाथा-१०. २.पे. नाम. सिद्धचक्र वासक्षेप पूजा, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. नवपद उलाला, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: तिरथपति अरिहा नमी; अंति: देवचंद्र सूसोभता, गाथा-११. ३. पे. नाम. वस्त्रपूजा श्लोक, पृ. २अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: शक्रो यथा जिनपते; अंति: क्लेशक्षयाकांक्षया, श्लोक-२. ४. पे. नाम. सूतक विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पुत्र जन्म्यां १०; अंति: आभडे तो पहर १२ सूतक. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. जिनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मेरो निरंजन यार केसे; अंति: जिनचंद०छांडु पलक घरी, गाथा-४. ५२१०६. (-#) स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. ६, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४५०). १. पे. नाम. पद्मावतीदेवी स्तोत्र, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. __ सं., पद्य, आदि: (-); अंति: गमनं देवि पद्मावति च, श्लोक-२३, (पू.वि. श्लोक २२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. चिंतामण पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. ४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-चिंतामणि, सं., पद्य, आदि: नमद्देवनागेंद्रवृंदा; अंति: मणिः पार्श्वनाथः, श्लोक-७. ३. पे. नाम. त्रिषष्टिपुरुष मंगलश्लोक, पृ. ४अ, संपूर्ण. त्रिषष्ठिशलाकापुरुष स्तुति, सं., पद्य, आदि: नाभेयादि जिनः; अंति: कुर्वंतीहो मंगलं, श्लोक-१. ४. पे. नाम. चतुर्दशविद्यानाम श्लोक, पृ. ४अ, संपूर्ण. १४ विद्या नाम, मा.गु., गद्य, आदि: ब्रह्मज्ञानरसायनं; अंति: बुधजनै सिखाय संगीयते, श्लोक-१. ५. पे. नाम. ऋषमांडल स्तोत्र, पृ. ४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक १३ अपूर्ण तक लिखा है.) ६.पे. नाम. आशीर्वाद श्लोक संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण.. सं., पद्य, आदि: दुरतिमरहसं मोक्ष; अंति: निवृत्तानंदहेतु, श्लोक-२. ५२१०८. (+) तपागच्छीय १८ शाखा व आशीर्वाद श्लोक, संपूर्ण, वि. १९१७, वैशाख शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पं. गुलाबविजय; पठ. पं. अमृतविजय गणि (परंपरा पं. गुलाबविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२४.५४८.५, ४-६४३२-३६). १.पे. नाम. तपागच्छीय १८ शाखा, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: भूयास्युर्विजयप्रभा; अंति: श्रीमत्तपागच्छपा, श्लोक-१. २. पे. नाम. आशीर्वाद श्लोक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आशीर्वाद श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: दीर्घायु१ स्वस्ति२; अंति: सौस्तुते धर्मलाभः, श्लोक-२. ५२१०९. (#) ऋषभदेव स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४८.५, ९-११४३०-३७). आदिजिन स्तवन, मु. मनरूप, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमरूदेव्या नंदा; अंति: मन० वीसलपूरै कै माय, गाथा-९. ५२११०. अनाथि सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. राणीकग्राम, पठ. श्रावि. जेठीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५,११४२५). अनाथीमुनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मगधाधिपति श्रेणिक; अंति: इम बोले मुनि राम के, गाथा-३०. ५२१११. अठाणु बोल यंत्र, संपूर्ण, वि. १९७१, मार्गशीर्ष कृष्ण, १, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. पडधरी, प्रले. कालीदास परसोत्तम खत्री; अन्य. सा. संतोकबाई (स्थानकवासी), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२, १५४२५-२९). ९८ बोल यंत्र, मा.गु., को., आदि: सर्वथी थोडा गर्भज मन; अंति: (१)९८ सर्वजीवविसेसा, (२)४ ९८ सर्वथोडा १. ५२११३. छंद व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२४.५४११.५, १३४३१). १.पे. नाम. सीखामण छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक छंद-त्रोटकनामा, क. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वरदायक माय सलाम करी; अंति: दीपवि० नामह छंद कहो, गाथा-१०. २. पे. नाम. नंद्यानी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. निंदात्याग सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: म म कर जीवडारे निंद; अंति: सहज सुंदरनी रे वाणी, गाथा-६, (वि. अंतिम पद में प्रतिलेखक की भूल से सहजसुंदर की जगह समयसुंदर लिखा गया है.) ३. पे. नाम. सुडली सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रत में उल्लिखित नाम अस्पष्ट है. औपदेशिक पद-समस्यागर्भित, मु. जिनहर्ष*मा.गु., पद्य, आदि: डाले बेठी सुडलि तस; अंति: जिनहर्ष० मत छै रूडी, गाथा-४. ५२११४. (+) नवग्रह स्तुति व मंत्र, संपूर्ण, वि. १८५०, कार्तिक कृष्ण, १, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११,११४३३). १.पे. नाम. नवग्रह स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिमुदीरिता, श्लोक-११. २.पे. नाम. पंचपरमेष्ठि मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: ॐ ह्रींचउवीस तिर्थं; अंति: पवित्र थई गुणीजै. ५२११५. (#) स्तंभनमंडन पार्श्वजिन स्तुति सह मंत्रसाधन विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १, प्र.वि. त्रिपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२१.५४१०, ९४२८). For Private and Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ पार्श्वजिन स्तव-अट्टेमट्टेमंत्राम्नाय गर्भित, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवते श्रीपार; अंति: शुभगतामपि वांछितानि, ___ श्लोक-९. पार्श्वजिन स्तव-अट्टेमट्टेमंत्राम्नाय गर्भित-मंत्रसाधन विधि, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: कुंकुमगोरोचनकर्पूर; अंति: विलसंत्यष्टौ महा०, (वि. यंत्र सहित.) ५२११७. (+#) स्तवन व व्याकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १२४३९). १.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. नयनसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिकरण प्रभु सोलमो; अंति: नयनसुंदर० अधिक आणंद, गाथा-११. २. पे. नाम. विभक्त्यर्थ विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. व्याकरण*, सं.,प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: अथ कहतां हिवइ स्त्री, अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रथमा विभक्ति निरूपण अपूर्णतक लिखा है.) ५२११८. (#) गयसुकमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. गुणसागर रचित मनगुणतीसी सज्झाय तथा देवसूरि रचित शीलनववाड सज्झाय की मात्र प्रारंभिक दो-दो गाथा लिखकर छोड़ दिया है. इसके बाद यह कृति लिखी गयी है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, १७४३८). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. सिंहसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: सोरठ देश मझार; अंति: सिंघसोभाग० राजीयो जी, गाथा-३६. ५२११९. (#) धर्मोपदेशशतक सह टीका, अपूर्ण, वि. १६६१, पौष कृष्ण, ५, शनिवार, मध्यम, पृ. ५०-४९(१ से ४९)=१, ले.स्थल. जगत्तारणी, पठ. मु. गंगदास (गुरु ग. लब्धिकल्लोल, खरतरगच्छ); प्रले. ग. लब्धिकल्लोल (गुरु मु. कुशलकल्लोल, खरतरगच्छ); राज्यकालगच्छाधिपति जिनचंद्रसूरि (गुरु आ. जिनसिंहसूरि, बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४४९.५, २१४५८-६२). धर्मोपदेशशतक, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: संसारे पुन याति, सर्ग-५, श्लोक-१०६, (पू.वि. सर्ग ५ अपूर्ण से है., वि. श्लोकांक का उल्लेख नहीं है.) धर्मोपदेशशतक-स्वोपज्ञ टीका, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: जिनं क्षाम्यतु, ग्रं. ३२७४. ५२१२२. पुन्यछत्रीसी व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. जालोर, जैदे., (२५४११, १५४४५). १.पे. नाम. पुन्यछत्रीसी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पुण्यछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६९, आदि: पुण्यतणां फल परतिख; अंति: समयसुंदर० परतक्ष जी, गाथा-३६. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: चरचालूँकुण रीझवै नर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ५ अपूर्ण तक लिखा ५२१२३. (#) योगरत्नमाला-वश्याधिकार से गर्भधारणाधिकार सह अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पंचपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२४४१०.५, १५-१८४६८-८०). योगरत्नावली, आ. नागार्जुनाचार्य, सं., पद्य, आदि: विमलमति किरणनिकर; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. योगरत्नावली-टीका, मु. गुणाकर भिक्षु, सं., गद्य, वि. १२९६, आदि: गुरुचरणकमलममलं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५२१२५. (+) छंद संग्रह व सवैया, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१.५४१०.५, १४४३५-४२). १. पे. नाम. शनीश्वर स्तुति, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहिनर असुर सुरांपति; अंति: हेम० सनीसरवर, गाथा-१७. २. पे. नाम. सरस्वतीदेवी छंद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १० www.kobatirth.org ग. हेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ओंकारमंत्र उद्धरणं; अंति: करण वदे हेम इम वीनती, गाथा- १६. ३. पे. नाम. शरीर अस्थिरता सवैया, पृ. २आ, संपूर्ण मु. धर्मवर्धन, पुहिं., पद्य, आदि: गैन के अभ्यासा मिसि, अंति: धर्म० तन का तमासा है, सवैया- १. ५२१२६. छंद व पद, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, वे., (२०.५x१०.५, ११४३६) १. पे. नाम गौतमस्वामी छंद, पृ. ९अ १आ, संपूर्ण उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मात पृथ्वी सुत प्रात; अंति: जस सौभाग्य दोलत सवाई, जैदे., (२५.५x११.५, ११४३५). " कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गाथा - ९. २. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद- समस्यागर्भित, मु. जिनहर्ष *, मा.गु., पद्य, आदि: डाले बेठी रे शुडली; अंति: हरष० मत छे रुडीरे, गाथा-४, (वि. कवि जिनहर्ष की जगह मात्र हर्ष लिखा गया है.) ३. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. २अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.सं., पद्य, आदि: असारे सरवसंसार वाचा; अंति: भवकोडीए न छुटंती, श्लोक-२. ५२१२० (4) सनीचर स्तुति व स्तवन अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. सनीश्वरमंत्र स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. शनिश्चर स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः यः पुरा राज्यभ्रष्टा, अंति: पीडा न भवंति कदाचन, श्लोक-१०, (वि. श्लोकांक का उल्लेख नहीं है.) २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे. वि. यह कृति बाद में लिखी गयी है. आदिजिन स्तवन- अर्बुदगिरिमंडन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि आबूतीरथ अतिभली, अंति: (-), (पू. वि. गाथा ९ अपूर्ण तक है.) ५२१२९. (+) शेत्रुंज उद्धार, संपूर्ण, वि. १७७९, चैत्र शुक्ल, ६, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. हितविजय पंडित (गुरु मु. मानविजय पंडित); गुपि. मु. मानविजय पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५X११.५, १६x४७). शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु, पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल, अंतिः दर्शन जय करो, ढाल-१२, गाथा- १३७, ग्रं. १७०. ५२१३०. (8) मौनएकादशी कथा, संपूर्ण वि. १८१२, माघ कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. शुद्धवंती, प्रले. पं. मुक्तिधर्म मुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैवे. (२४४१०.५, १३४३४-३६). मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनंदिसूरि, सं., पद्य, वि. १५७६, आदि: अन्यदा नेमिरीशाने; अंतिः हम्मीरपुरसंश्रितः, लोक-११८. ५२१३१. सम्यक्त्व कुलक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. ऋ. चैनराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४.५X११.५, १२X३८). सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूवं; अंति: हवेउ सम्मत्तसंपत्ति, गाथा-२५. ५२१३३. (+) छंद व स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ८-६ (१ से ६ ) -२, कुल पे. ४, प्र. वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, जैवे., (२४४१०, ११४३५-३८). १. पे. नाम. शनिशरजीरो छंद, पृ. ७अ-८अ, संपूर्ण. शनिश्चर छंद, मा.गु., पद्य, आदि छायानंदन जग जयो रवि, अंतिः पीडा न भवंति कदाचन, गाथा- १४. २. पे. नाम. वृहस्पति स्तोत्र, पृ. ८ अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदिः ॐ वृहस्पतिः; अंतिः सुप्रीतश्च प्रजायते, श्लोक-४. ३. पे. नाम गौतमस्वामी स्तुति, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण. मा.गु. सं., पद्य, आदि अंगुठे अमृत वसै: अंति: जैन धर्मोस्तु मंगलं, गाथा-४, "" ४. पे. नाम. १२ पर्षदा स्तुति सह अनुवाद, पृ. ८आ, संपूर्ण. १२ पर्षदा स्तुति, सं., पद्य, आदि: अग्निकुणे विसदमुनियो, अंति: द्वादशाषु क्रमेण श्लोक-१. For Private and Personal Use Only 1 Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ १२ पर्षदा स्तुति-अनुवाद, मा.गु., गद्य, आदि: अग्निकुणरै विषे; अंति: तीर्थंकरनै हुवै. ५२१३४. (+) गुणस्थानक क्रमारोहण विधि व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, ले.स्थल. वीशलनगर, प्रले. मु. मेघविजय (गुरु मु. नेमिविजय); गुपि. मु. नेमिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४११, १८४५३). १. पे. नाम. गुणस्थानक्रमारोहण विधि, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम मिथ्यात्व गुण; अंति: करी मुक्ति पुहोचई. २. पे. नाम. मनुष्यभव दस दुर्लभता दृष्टांत काव्य, पृ. ३आ, संपूर्ण. मनुष्यभवदुर्लभता १० दृष्टांत काव्य, प्रा.,सं.,मा.गु., पद्य, आदि: चूल्लग१ पासगर धन्न३; अंति: स चेत् पूर्ववत्, श्लोक-११. ३. पे. नाम. अनध्याय श्लोक, पृ. ३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अष्टमी गुरुहंती च; अंति: प्रतिपत्या० नाशिनी, श्लोक-१. ५२१३५. (+) दस पच्चक्खाण व दुमिपुफ अध्ययन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४१२.५, १२४३५). १.पे. नाम. दशपच्चक्खाण, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सुरे नमुक्कारस; अंति: वत्तियागारेणं वोसिरइ. २. पे. नाम. दुमिपुफ अध्यन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. दशवकालिकसूत्र-हिस्सा द्रुमपुष्पिका प्रथम अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; ___ अंति: साहुणो त्तिबेमि, गाथा-५. ५२१३८. खेमाछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९३६, ज्येष्ठ शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. वीरमगाम, प्रले. रामजी वीरचंद भावसार, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१२८) पोथी प्यारी प्रेमकी, दे., (२४.५४११.५, १२४३४). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदर जीव खिमागुण आदर; अंति: चतुरविध संघ जगीस जी, गाथा-३६. ५२१३९. (#) सत्तरभेदी पूजा विधि, संपूर्ण, वि. १८२५, कार्तिक कृष्ण, १०, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. हरीपुरा, प्रले. मु. हेमराज (पार्श्वचंद्रसूरिंगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीसंभवनाथ प्रसादात्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १५४४६). १७ भेदी पूजा, वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंतमुखकजवासिनी; अंति: सकल० शुभफल लणीओ रे, __ढाल-१७, गाथा-१०८. ५२१४०. (+#) सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, २४४५०). १. पे. नाम. ५ स्वप्न सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ५स्वप्न गीत, सूरदास, मा.गु., पद्य, आदि: एक भिषित प्राति उठी; अंति: सुपन गति संसार, गाथा-१६. २. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पांचे इंद्री रे अहिन; अंति: बोलै विजयदेवसूरोजी, गाथा-१२. ३. पे. नाम. धन्नाकाकंदी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. तिलोकसी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिणबाणी हो धना; अंति: तिलोकसि० माही गहगया, गाथा-२२. ५२१४१. (#) गीत संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, दे., (२४.५४१०.५, १०४३८). १.पे. नाम. रेवतीजी गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. रेवतीश्राविका सज्झाय, मु. हर्षकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन संसारई नारी रे; अंति: हरष० उठी लीजै नामरे, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. चंदबाहुजिन गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ चंद्रबाहुजिन गीत, पुहि., पद्य, आदि: जोवे तुम्हारा आई उणद; अंति: करा लेख लीखा जइ है, गाथा-५. ३. पे. नाम. चेलणाराणी सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरे वखाणी राणी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ६ अपूर्ण तक है.) ५२१४२. समवसरण स्तव टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२४.५४११.५, १३४३२-३८). समवसरण प्रकरण-टीका, सं., गद्य, आदि: पडिवण्णचरम० यस्य भगव; अंति: उच्छन्नो सालरुक्खेण. ५२१४३. (#) सिद्धाचल स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १०४२७). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: माहरु मन मोह्युरे; अंति: कहेता नावे हो पार, गाथा-५. ५२१४४. संभवजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४११.५, ९४३०). संभवजिन स्तवन, मु. सुमतिविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: मुनि संभव जिनस्यु; अंति: सीस दिलमा धारो रे, गाथा-७. ५२१४५. (+#) जैनधर्मसम्मत श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-३(१ से ३)=३, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०, १७४४८-५२). जैनधर्मसम्मत श्लोक संग्रह-विविध शास्त्रोद्धृत, सं., पद्य, आदि: दशस्वपि कृता दिक्षु; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक १४४ अपूर्ण तक है.) ५२१४६. (+) दानशीलतपभाव संवाद, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०, १५४३४-३६). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिणेसर पाय निम; अंति: भणे० सुप्रसादो रे, ढाल-४, गाथा-१०१, ग्रं. १३५. ५२१४७. शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. लालविजय; पठ. श्रावि. लेहर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३३). शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमा श्रीजिनराज; अंति: पंडित रूपनो ललना, गाथा-७. ५२१४८. (+) नेमराजुल बारमासी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१०.५, १३४३६). नेमराजिमती बारमासा, उपा. सिद्धिचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजयनृपकुलतिलो; अंति: सीस कहे सिधचंदा रे, गाथा-१७. ५२१५०. (#) ऋषभदेव लावणी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १५४३६). आदिजिन लावणी-केसरियाजी, मु. लालदास, मा.गु., पद्य, आदि: सुणीये रे वाता सदा; अंति: लालदास०त्यां पास खडा, गाथा-१८. ५२१५१. (#) लघुशांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११, ७७२२). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिशांतिनिशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७, (वि. मात्र ___ प्रतिलेखनपुष्पिका नहीं लिखी गयी है.) ५२१५२. (#) पार्श्वजिन व महावीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११.५, ८४३४). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: हर्षनतासुरनिर्जरलोक; अंति: मजनशस्तनिदाघः, श्लोक-४. २.पे. नाम. वीरजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: यदहिनमनादेव देहिन; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक १ अपूर्ण तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५२१५३. (+४) श्राद्ध आराधना व जीवराशि, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २. प्रले. मु. कीर्तिसागर पंडित; अन्य श्राव दलीचंद, पूनमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, १८४५५). १. पे. नाम. श्राद्ध आराधना, पृ. १अ ४अ संपूर्ण. आवकाराधना, सं., प+ग, आदि: श्रीसर्वज्ञं प्रपंपण, अंतिः लहंति ते सासवं सुखं. २. पे. नाम. जीवराशी, पृ. ४-४आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पदमावती; अंति: कहे पा छुटे ततकाल, ढाल - ३, गाथा-३५. , " ५२१५४. (४) आखातीज व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९२८, वैशाख कृष्ण, ९, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३ ले स्थल, वीकानेर, प्रले. पं. विनयसुंदर (कवलागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे (२४.५X१२.५, १८४४६). अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, प्रा. रा. सं., गद्य, आदि उसभस्सव पारणए इक्खु, अंति: आतम कारज सार्या ५२१५५. (#) स्वाध्याय व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., "y (२५X११.५, ३०x२०). १. पे. नाम. रहनेमीराजुल स्वध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काउसग ध्याने रहनेमी, अंति: चरण नमुं वारो वार रे, गाथा - ६. २. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. १-१ आ. संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्म, आदि; सोलमा श्रीजिनराज उलग; अंतिः रंगस्यूं पंडित रूपनो, गाथा- ७. ५२१५६. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५X१०.५, ११x४८). १. पे नाम तीर्थयात्रा स्तुति, पृ. ९अ, संपूर्ण ५ तीर्थजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीशत्रुंजय मुक्ष, अंति: ते संतु भद्रंकराः, श्लोक-४. २. पे. नाम. दोवयछंदेन सर्वसामान्यजिन स्तुति, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: अविस्ल कुवलगुक्ल मुक्, अंतिः देवी श्रुतोच्चयम्, श्लोक-४. ५२१५८. (+) अंतकाल पयन्ना व सज्झाय, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७-५ (१ से ५) = २, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. जैवे. (२५x११, १३४३७). , " १. पे नाम, अंतकाल पयन्ना, पृ. ६अ ७अ संपूर्ण वि. १६०२ फाल्गुन, ले, स्थल, दसपुर नगर, प्रले. वा. माणिकमेर, प्र.ले.पु. सामान्य. आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि: अरिहंता मंगलं मज्झ, अंतिः सव्वं तिबहेन बोसिरिय, गाथा-२६. २. पे. नाम. असंखया गीत, पृ. ७आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. १३ जीवदया पालन सज्झाय, मु. ब्रह्म, मा.गु., पद्य, आदि: जीवदया पालउ खरी बोलउ, अंति: ब्रह्म० इक श्रीजगदीस, गाथा - १३, (वि. गाथांक का उल्लेख नहीं है.) ५२१५९, (४) सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९-८ (१ से ८) = १, कुल पे, २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., गाथा-७. ५२१६१. पुज्यानां भास व स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२१X९.५, ९४२४-३०). १. पे. नाम. पूज्यानां भास, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. (२४.५X१०.५, १५x५१). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ९अ - ९आ, संपूर्ण. मु. अखेराज, रा., पद्य, आदिः यो भव रतन चिंतामण सर, अंतिः अनंत जीव भव तरीयारई, गाथा १७. २. पे. नाम. श्रावकरी सज्झाय, पृ. ९आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-नवघाटी, मु. हीरा, मा.गु., पद्य, आदि: नवघाटी उलांगनेरह पाय, अंतिः हीरो जी भाईजी जीहो, For Private and Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जिनचंद्रसूरि भास, मु. शिवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: भविजन वंदौ हो गिरवा; अंति: सदा चिरजीवौ महिराण, गाथा-१३. २. पे. नाम. धर्मनाथ स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. धर्मजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हारे मारे धरमजिणंद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १ अपूर्ण मात्र है.) ५२१६२. स्तुतिचतुर्विंशतिका-स्तुति १ से २, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. मेंसाणा, प्रले. तलजाराम घेमरचंद बारोट, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४११.५, १४४३२). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५२१६३. सज्झाय व काल मांडला विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. सिद्धक्षेत्र, प्रले. करमचंद लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२, ११४३६). १.पे. नाम. सज्झायपठाववानी विधि, प्र. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रव्रज्या योगादि विधि संग्रह-सज्झाय पठाववानी विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: अनुष्ठान कर्या पछि; अंति: विधि करतां कहेवू. २. पे. नाम. कालमांडला विधि, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: सज्झाय पठाव्या पछे; अंति: समण विधि करता कहेवू. ५२१६४. (#) नवकार रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, ९४२७). नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलो जी लीजीयइं; अंति: किं रास भणीस नवकारनो, गाथा-२२. ५२१६५. जीवापांत्रीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२५.५४१२.५, १२४३६). औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. जैमल ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: मोह मिथ्यात की नींद; अंति: रिषी जेमल कहे एम, गाथा-३५. ५२१६६. कलस संग्रह, संपूर्ण, वि. १९१७, भाद्रपद कृष्ण, ९, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. वीरमगाम, प्रले. श्राव. डाया लटकचंद कपाशी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिनाथजी प्रसादे., दे., (२५.५४११.५, १५४४२). १. पे. नाम. रुषभदेव जन्माभिषेक कलस, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. स्नात्रपूजा, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: (१)मुक्तालंकार विकार, (२)अवणिय कुसुमाहरणं पयइ; अंति: जिम तुम दीओ वरमुत्ति. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ जन्माभिषेक कलस, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन कलश-नवपल्लव मांगरोलमंडन, श्राव. वच्छ भंडारी, मा.गु., पद्य, आदि: अहो भव्या तुमे सांभल; अंति: (१)जयो जयो भगवंत जी, (२)स्नात्रमहोच्छव भणीजे, (वि. पूजाविधि, लुणउतारण, आरती व मंगलदीवा सहित.) ५२१६८. पांच पांडवनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. मणाद्रगांम, पठ. श्राव. नवलमल; प्रले. मु. सवराज (गुरु पं. राजविजय); गुपि.पं. राजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (९११) पोथी प्यारी प्राणकी, दे., (२१४११.५, ११४२५). ५ पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: हस्तिनागपुर अति भलो; अंति: मुज आवागमण नीवार रे, ___ गाथा-१८. ५२१६९. (#) मौनएकादशी कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४९, १३४४६-५०). मौनएकादशीपर्व कथा, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरं नमिऊण पुच्छ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ११७ अपूर्ण तक लिखा है.) ५२१७०. श्रावक २१ गुण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२४४११, ७४२०-२२). श्रावक २१ गुण वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो गुण अक्षुद्र; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गुण १५ अपूर्ण तक लिखा है.) ५२१७१. (+) स्तवन वदोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७६, रस शैल च नागेन्दु, वैशाख शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. पीही, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ११४३९). For Private and Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ____ १५ १.पे. नाम. चोवीसतीर्थकर सप्तबोलजिन स्तवन, प्र. १अ-२आ, संपूर्ण, प्रले. मु. देवीचंद ऋषि; पठ. मु. बुधमल्ल, प्र.ले.पु. सामान्य. २४ जिन मातापितादि७ बोल स्तवन, मु. दीप, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: जिनवाणी सुरस्वती, अंति: दीपो० कुलथपुर चोमासए, गाथा-३१, (वि. गाथा २८ के बाद गाथांक नहीं लिखा है.) २.पे. नाम. दोहा संग्रह-गूढार्थगर्भित, पृ. २आ, संपूर्ण, प्रले. मु. हुकमचंद; पठ. मु. देवीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. प्रास्ताविक दोहा संग्रह *, मा.गु.,रा., पद्य, आदि: पूर्णमासी अरु अष्टमी; अंति: चार ते कुण कहिये नार, गाथा-४. ५२१७२. (+) भक्तामर भाषा, संपूर्ण, वि. १८३५, पौष शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. कंटालीयाग्राम, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १५४४९). भक्तामर स्तोत्र-पद्यानुवाद, मु. हेमराज, मा.गु., पद्य, आदि: आदि पुरुष आदीश जिन; अंति: भावसुते पामै सिवखेत, गाथा-४९. ५२१७३. (#) चिंतामणी पार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८८२, पौष शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. देवगढ नगर, प्रले. मु. मोतीराम ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १२४३२). पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजंबोधिबीज ददातु, श्लोक-११. ५२१७४. (+) उवसग्गहरं स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८७, आश्विन कृष्ण, ८, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. नंदलाल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१२, ४४२९). उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासंपास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: उपसर्गनउ हरणहार; अंति: बोधिधर्मनी जयवंत. ५२१७५. (#) चौवीसीजिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४११, १७-२०४३६-४७). स्तवनचौवीसी, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मोरादेवीनो नंद मोरो; अंति: तै संसार सारोरे, स्तवन-२४. ५२१७६. (-) पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२१४११, ११४३०-३२). १.पे. नाम. नेमराजिमती गरबी, पृ. १अ, संपूर्ण. गूलबास, मा.गु., पद्य, आदि: नवभव नारी ताहरी सामल; अंति: आपे कर्या आपे सहिए, गाथा-५. २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गूलबास, पुहि., पद्य, आदिः (१)आदम भखलनां कलियूगमें, (२)पलकलनांकल क्यूं ठहरा; अंति: गुलबास० पलक पूलटाइवे, गाथा-९. ५२१७९. (#) केवनासेठनी चोपइ, संपूर्ण, वि. १८६९, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. सडाउग्राम, प्रले. मु. जसराज ऋषि; पठ. मु. नथु ऋषि (गुरु मु. जसराज ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १८४३६). कयवन्ना चौपाई, मु. मलयचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: वंदी वीरजणेसर देव; अंति: मेलचंद्र० मती पुरीस, गाथा-१०६. ५२१८०. खंधकमहामुनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५४११, १०४३७). खंधकमुनि सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नमो नमो खंधक माहा; अंति: सेवक सुखियां कीजे रे, ढाल-२, गाथा-२०. ५२१८१. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२१४११, १३४३३-३५). १.पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. परसोत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: नेम बिना सजनी रे; अंति: जीव थाय छे नेम बिना, गाथा-६. २.पे. नाम. गौतम विलाप, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गौतमस्वामी स्तवन, मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: मे नव जाणुरे नाथजी; अंति: वली नीरंजन गुण गायो, गाथा-७. ३. पे. नाम. सुपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुपास जिनराज; अंति: गामी वाचक जसे थुणो ए, गाथा-४. ५२१८२. (+) २४ जिन गीत, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२१x१०.५, १२४३६-४०). २४ जिन गीत, आ. जिनरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: समरि समरि मन प्रथम; अंति: (-), (पू.वि. अरनाथ स्तवन गाथा ३ अपूर्ण तक है.) ५२१८३. नववाड सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, १२४३८). नववाड सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: नववाड कही जिनराज सही; अंति: होय जावे नरनारी, गाथा-११. ५२१८४. (+#) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १५४३९). १. पे. नाम. पार्श्वयक्षाष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन अष्टक, मु. सागरचंद्र, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथ हृदये; अंति: सागर तनयस्यनोदनया, गाथा-११. २. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वप्रभु स्तुति, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीज ददातु, श्लोक-११. ३. पे. नाम. पार्श्वजिनस्यशत १०८ नाम स्तोत्र, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वः पातु वो; अंति: नित्यं० श्रुभश्रियम्, श्लोक-३३. ४. पे. नाम, महालक्ष्मी स्तोत्र, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. महालक्ष्मी स्तव, सं., पद्य, आदि: आद्यं प्रणवस्ततः; अंति: सौभाग्यधनमिच्छता, श्लोक-११. ५. पे. नाम. परमात्म स्तोत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. वीतरागाष्टक, सं., पद्य, आदि: शिवं शुद्धबुद्धं; अंति: श्रीमानभ्युदय॒तः, श्लोक-९. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तव, पृ. ३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: विशदगुणविचित्र; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक २ तक लिखा है.) ७. पे. नाम. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्ली; अंति: श्रियसे पार्श्वदेवं, श्लोक-१. ५२१८५. (#) नववाड सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १२४३५). नववाड सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: नववाड कही जिनराज सही; अंति: होय जावे नरनारी, गाथा-११. ५२१८७. (#) सिद्धाचल स्त्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१४१०, १०४२३-२८). आदिजिन बृहत्स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी सयल जिणंद पाय; अंति: जिम पामो भवपार ए, गाथा-२२. ५२१८८. (-2) रास संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, १८४४४). १.पे. नाम. अगरदतरो षटढाल, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, वि. १९६९, आषाढ़ कृष्ण, ५, गुरुवार, प्रले. चुनी, प्र.ले.पु. सामान्य. अगडदत्त रास, मु. मनीराम, मा.गु., पद्य, वि. १९०९, आदि: आदिनाथ आदि करी चवीस; अंति: मनी० भौमवार सुविलास, ढाल-६, गाथा-९२. २. पे. नाम. धनासेठसुरपीयारो रास, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. धन्नासेठ रास, मा.गु., पद्य, आदि: भरतमान भरत खरो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल २ गाथा ६ तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५२१८९. नमीराजर्षि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९५९, कार्तिक कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., दे., (२५४११, १३४५८). नमिराजर्षि ढाल, ऋ. आसकर्ण, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: सासणनायक समरीये; अंति: नमीयतणां गुणग्राम ए, ढाल-७. ५२१९१. (#) थंभणपार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४९, ९४४९). पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभू प्रणमुरे पास; अंति: जाणी कुशललाभ पयंपइ, ढाल-५, गाथा-१८. ५२१९२. सझाय व यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४११, १२४३०). १. पे. नाम. साधुजीरी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: साधजी न जाइये परघर; अंति: जिनराज० घर गमण निवार, गाथा-१०. २. पे. नाम. वशीकरण यंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ५२१९५. (-) सझाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, अन्य. मु. हीरचंद ऋषि; मु. सबलदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४.५४१०.५, ३३४५२). १. पे. नाम. कार्तिकशेठ ढाल, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. कार्तिकसेठ पंचढालिया, क्र. जैमल, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहन्त सिद्ध साधु; अंति: जैमलजी जोडमै आणी, ढाल-५. २. पे. नाम. नेमिजिन सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३३, आदि: नेम सिरीख्या सिरीख्य; अंति: रायचंद० प्रीराणि जी, गाथा-१५. ३. पे. नाम. युगमंधरजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३६, आदि: महावदेव मे प्रभु रो; अंति: रायचंद० दरसण दीजे, गाथा-१०. ४. पे. नाम. मोरादेवीगुणागाता सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि: नगरी वनिता भली विराज; अंति: रिष रायचंद० माताजी, गाथा-१३. ५.पे. नाम. महावीरनी सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि: सिद्धारथ कुल दीपक; अंति: रायचंद० पुरण महावीर, गाथा-११. ५२१९६. (+#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७३, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. भावनगर, प्रले. पं. पद्मसोम (गुरु आ. आणंदसोमसूरि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के शिष्य द्वारा लिखित प्रतीत होता है., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१९.५४११, ९-११४२२-२४). १. पे. नाम. सिद्धाचलनु स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थस्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७३, आदि: सिद्धाचल सिद्ध सुहाव; अंति: होवे सीवपुर जावो रे, गाथा-११. २. पे. नाम. ऋषभदेवनुं स्तवन, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, आ. आणंदसोमसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८७२, आदि: सद्गुरु समरी सरस्वती, अंति: वंदो सुर नरनारी, गाथा-१३. ५२१९७. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९६३, कार्तिक शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. चुन्नीलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२, १७४४५). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामर प्रणत मौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक-४४. For Private and Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १८ www.kobatirth.org ५२१९८, (4) घरघर निसाणी, पद व दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे ३, प्र. मु. अमरचंदमुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४.५X१०.५, १५X४४). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. घग्घरनीसाणी, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन निसाणी- घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपत्तिदायक सुरनर, अंति: जिणगुणहर्ष गावंदा है, गाथा - २७, (वि. गाथा १५ के बाद गाथांक नहीं लिखा है.) कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. गाथा - १. औपदेशिक सवैया, मु. श्रीसार, पुहिं., पद्य, आदि: सातमौ खंड चल्यौ जब; अंति: श्रीसार० रूप किसौ, ३. पे नाम औपदेशिक दोहा, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. दोहा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: (-), गाथा-१. ५२१९९. धर्म, पाप व कर्म फल सवैया, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३. कुल पे ३, जैदे. (२४.५x११, १७४३६). "" १. पे नाम धर्म सवैयो, पृ. ९अ १आ, संपूर्ण. धर्म सवैया, मु. ब्रह्मज्ञान सागर, मा.गु., पद्य, आदि धर्म बडो संसार चउगती, अंति: मन चिंता धर्म फलइ, गाथा - ११. २. पे. नाम. पापफल सवैयो, पृ. ९आ-२आ, संपूर्ण. पापफल पद, मु. ब्रह्मज्ञान सागर, मा.गु., पद्य, आदि: पापे नार कुजात कलह, अंति: कहेत ए ज्ञानसागरजी, गाथा - ११. ३. पे. नाम. कर्मफल सवैयो, पृ. २आ- ३अ, संपूर्ण. कर्मफल पद, मु. ब्रह्मज्ञान सागर, पुहिं, पद्य, आदि: जाय चढे गिरी श्रृंग अंतिः न निज गुण परीहों, गाथा ६. ५२२०० (-) सांप्रद्युम्न प्रबंध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे., ( २१x१०.५, יי १४-१६x२८-३३). सांप्रद्युम्न प्रबंध, रा. प. वि. १९६५, आदि ऐ परजणकुवर का सामाकु, अंति: (-), (अपूर्ण. पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा ', अपूर्ण., वि. गाथा ३० तक लिखकर संपूर्ण कर दिया है, पुन उसी कृति की ६ गाथा लिखी है.) ५२२०१. (#) ढुंढणपचीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. भायचंद (पार्श्वचंद्र), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की फैल गयी है, दे. (२५४१२.५, १०x२५). ढुंढकपच्चीसी - स्थानकवासीमत निरसन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रुतदेवी प्रणमी; अंति: जिनेंद्र० अधिकार, गाथा-२५. ५२२०२. (+) साधारणजिन स्तव सह अवचूरी, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत- क्रियापद संकेत त्रिपाठ. जैदे. (२५.५x११. ३४५१). साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: देवाः प्रभो यं; अंतिः भावं जयानंदमयप्रदेया, श्लोक - १०. साधारणजिन स्तव अवचूरि, सं., गद्य, आदि हे प्रभो सत्वं सदा अंतिः कृतार्थमयट् प्रत्ययः. ५२२०३ () चक्रेश्वरीमाता स्तुति, संपूर्ण वि. १९३१ आषाढ़ कृष्ण, ६, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, दे., गाथा - ६. ३. पे. नाम. प्रस्ताविक गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. (२०.५X१०.५, ११x२०-२४). चक्रेश्वरीदेवी गरबो, आ. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अलबेली चकेसरीमात जोव, अंतिः दीपवीजे० सोभा तारी रे, गाथा - ९. ५२२०४. () छंद व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १६८९, ज्येष्ठ शुक्र, १ जीर्ण, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२५.५x१०.५, १३४३९-४४). " १. पे. नाम पद्मावती छंद, पृ. ९अ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी छंद, मु. हंस, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मंत्र पद मध्य अंति: हंस० आतम रूप विकासइ, गाथा-२. २. पे. नाम. मोक्षस्वरूप छंद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मोक्ष स्वरूप छंद, मु. कनकविजय, मा.गु., पद्य, आदि जहा रूप न रेख न वर्ण; अंतिः नमो नमो मुनि कनक वद, For Private and Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-३. ५२२०५. उपदेशएकवीसी व नक्षत्रादि नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११.५, २३४४७). १. पे. नाम. उपदेशएकवीसी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिकएकवीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२०, आदि: श्रीजिनवर दियो इसो; अंति: रायचंद० संसारना फंद, गाथा-२१. २. पे. नाम. नक्षत्र, ग्रह, राशि, वार आदि नाम, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. साथ में यंत्र दिया गया है. ज्योतिष*, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: अश्विनी भरणी कृतिका; अंति: (-). ५२२०६. (#) कमलावतीरानी इक्षुकारराजा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९५०, माघ कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. नाथाभाई काहनदास लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १२४२९). कमलावतीरानी इक्षुकारराजा भृगुपुरोहित सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: मोहोलोमा बेठा राणी; अंति: काइ मुगति मोझार, गाथा-२४. ५२२०७. (#) सकलार्थ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पठ. श्राव. हरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३५). सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: श्रीवीरजिननेत्रयोः, श्लोक-३४. ५२२०८. (-2) मुहपति बोल व जिन गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२,१२४३०). १.पे. नाम. मुहपतिना ४० बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. __ मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्रार्थ चिंतन; अंति: त्रस विराधना जाउ. २.पे. नाम. जिन गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. बाहुजिन फाग, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: होरी रेराजरंग भरी; अंति: न्याय जिन आणि खरी रे. गाथा-९. ५२२०९. (+#) सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १३४३७). १.पे. नाम. रोहिणीतप सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य नमि; अंति: अमृतना होइं सांमी हो, गाथा-११. २.पे. नाम. श्रावकदिनकृत्य सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: मन्हजिणाणं आणं मिच्छ; अंति: निच्चं सुगुरूवएसेणं, गाथा-५. ५२२१२. (-) अचितसचित विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२०x१०, १२४२८-३०). सचित्त अचित्त जल विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: अपर समोसरणने विषइ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., थूलभद्र प्रथमदेव पाठ तक लिखा है.) ५२२१४. (#) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. द्रांगद्रादुर्ग, प्रले. राजरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १५४३७). १.पे. नाम. अनुभूतिसिद्ध सारस्वत स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सिद्धसारस्वत स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: करमरालविहंगमवाहना; अंति: रंजयति स्फुटम्, श्लोक-१३. २. पे. नाम. भवानी अष्टक, पृ. १आ, संपूर्ण. शंकराचार्य, सं., पद्य, आदि: न तातो न माता न बंधु; अंति: त्वं त्वमेका भवानि, श्लोक-८. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: जलाग्नी भारी चौरारी; अंति: मम मानसेस्तु, श्लोक-३. For Private and Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५२२१५. (+) सुख सागर पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २४.५X११.५, १२X३९). पार्श्वजिन स्तवन- सुखसागर, मु. राजसागर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुखसागर पासजी, अंति: राजसागर णीवार रे, गाथा - ९. ५२२१६. स्थूलभद्र स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. आगरानगर, जैदे., ( २४.५X१०.५, १०X३५). स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लाछल दे मात मलार बहु; अंति: लीला लीख घणीजी, गाथा - १७. ५२२१७ (१) स्तंभनक पार्श्वजिन स्तवन सह अवचूरी, संपूर्ण, वि. १७३३, पौष शुरू, ५. शुक्रवार, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. दयालसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. त्रिपाठ - संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ३७१, मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११.५, ६x४९). पार्श्वजिन स्तव स्तंभन मंत्रगर्भित, ग. पूर्णकलश, प्रा. सं., पद्य, ई. १२००, आदि जसु सासण देवि वएसकया; अंतिः "3 पार्श्वस्तोत्रमेतत्, गाथा - ३७. पार्श्वजिन स्तव स्तंभनक मंत्रगर्भित स्वोपज्ञ वृत्ति, ग. पूर्णकलश, सं., गद्य, आदि: जं संथवणं विहिय तस्स अंतिः - भवतीति निश्चयेन. ५२२१८. षट् दर्शन समुच्चय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. ४ वे. (२४.५४११.५, ११४३१). "" १८५६). १. पे. नाम. दिक्पट ८४ बोल, पृ. १अ ४आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir षड्दर्शन समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: सद्दर्शनं जिनं नत्वा, अंति: सुबुद्धिभिः, अधिकार-७, श्लोक - ८७. ५२२१९, (+) बोल व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४. कुल पे ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे., (२५X११.५, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुण ज्ञान शुभध्यान; अंति: जस० मंगल रंग अभंग, गाथा-१६१. २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. " मु. आनंदघन, पुहिं, पद्य वि. १८वी, आदि: अवधू नट नागर की बाजी, अंतिः आनंदघन० सोइ पावै, गाथा ४. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभु मेरे अइसी आय; अंतिः दीजे अपने दास भनी, गाथा-४. ५२२२०. स्तुति, जीवदया गाथा व सचित अचित काल विचार, संपूर्ण, वि. १९०९, पौष कृष्ण, १, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, पे. ५. ले. स्थल, कुचेरानगर, प्रले. पं. दक्षविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५x११.५, १६x४५). १. पे. नाम. पनरेतिथिरी थुई, पृ. १अ ४अ, संपूर्ण. १५ तिथि स्तुति संग्रह, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु, पद्य, आदि: एक मिध्यात असंयम, अंतिः नयविमल० करो नित नित्य, स्तुति- १६, गाथा-६४. २. पे. नाम. नवपदजी स्तुति, पृ. ४अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तुति, मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर अति अलवेस, अंति: सानिध करज्यो माई जी, गाथा-४. ३. पे. नाम. नवपद थुई, पृ. ४अ, संपूर्ण. नवपद स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: आंखडिया दोय पांखडिया; अंति: वधावो माणक मोतिया, गाथा- १. ४. पे नाम, आद्धदया विचार सह अर्थ, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण सवाविश्वा जीवदया गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा सुहुमा थूला; अंति: विक्खा चेव निरवक्खा, गाथा-१. जीवदया गाथा- अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जीवना दोय भेद, अंति: विश्वानी जीवदया पाले. ५. पे. नाम. पकवाननो प्रमाण, पृ. ४आ, संपूर्ण. सचित्त अचित्त वस्तु काल निर्णय, मा.गु., गद्य, आदि: वरसाले १५ दिन सुधा, अंति: ३ उपरांते सचित्त थाइ. ५२२२२. (+१) नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५x११.५, ११४३२). For Private and Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: अणतभागो य सिद्धिगओ, गाथा-५५. ५२२२३. (#) पुण्यपाप कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, वैशाख कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५४१२, ६४३३). पुण्यपाप कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: भवियजण महिय मोहे; अंति: जिणकि० धम्मम्मि उजमह, गाथा-१८. पुण्यपाप कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भविकजनारोम० मथ्यो; अंति: विषेसावधान हवो. ५२२२४. (#) दश पच्चक्खाण फल, संपूर्ण, वि. १८८०, श्रावण कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. पाली, प्रले.पं. प्रतापविजय; पठ.सा. अमरश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीनवलखाजी प्रसादात्, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १०४३७). १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नमुं; अंति: रामविजय तपविधि भणे, ढाल-३, गाथा-३३. ५२२२६. आदिनाथदेशनोद्धार शतक, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. पत्र १४८, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४०). आदिनाथ देशनोद्धार, प्रा., पद्य, आदि: संसारे नत्थि सुह; अंति: सिवं जंति, श्लोक-८८. ५२२२७. प्रज्ञापनाभिधान चतुर्थोपांग तृतीयपद संग्रहणी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२६४११, १४४४८). प्रज्ञापनासूत्र-तृतीयपदसंग्रहणी, संबद्ध, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दिसि गइ इंदिय काए; अंति: अभयदेव० संगहियं, गाथा-१३३. ५२२२८. (+) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२५४१२, ११४३०). १. पे. नाम. अजितशांति स्तवन, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. २.पे. नाम. लघु अजितशांति स्तव, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अजितशांति स्तवलघु-खरतरगच्छीय, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उल्लासिक्कमनक्ख, अंति: (-), (पू.वि. गाथा १ अपूर्ण मात्र है.) ५२२२९. गुर्वावली वस्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १७८९, श्रावण शुक्ल, १, सोमवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, ले.स्थल. गुढाग्राम, जैदे., (२५.५४११, १३४३४). १.पे. नाम. गुर्वावली, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. __पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., पद्य, आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंति: दसाणकप्पाणुववहारे, श्लोक-२१. २.पे. नाम. जिनसुखसूरिस्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण, पे.वि. पत्र संख्या १आ पर लिखी हुई है. ___ सं., पद्य, आदि: प्रणत नरवरेंद्रा जैन; अंति: स्तानमु देव, श्लोक-१. ३. पे. नाम. जिनलाभसूरिस्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण, पे.वि. पत्र संख्या १आ पर लिखी हुई है. सं., पद्य, आदि: श्रीजैनभक्तेश्वर पाद; अंति: (अपठनीय), श्लोक-१. ४. पे. नाम. जिनलाभसूरिस्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण, पे.वि. पत्र संख्या १आ पर लिखी हुई है. सं., पद्य, आदि: भाग्योदयाच्छ्रीमति; अंति: तापवतो सुवितेजवंतो, श्लोक-१. ५. पे. नाम. जिनदत्तसूरिस्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. ___ सं., पद्य, आदि: दत्तपट्टमवेक्ष सत्तम; अंति: स्तेमी भवे श्रीयुताः, श्लोक-१. ५२२३०. (#) योगदृष्टि स्वाध्याय व औपदेशिक गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. राजनगर, पठ. श्रावि. सूर्यकुंवर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १४४३८). १.पे. नाम. योगदृष्टि स्वाध्याय, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शिवसुख कारण उपदेशी; अंति: वाचक जशने वयणेजी, ढाल-८, गाथा-७६. २. पे. नाम. औपदेशिक गाथा, पृ. ४आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ५२२३१. (+) स्थविरावली, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४४१०.५, १२४४८). नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: केवलनाणं च पंचमयं, गाथा-५१. ५२२३२. (+#) मुनिमालिका स्तवन, संपूर्ण, वि. १७५९, ज्येष्ठ शुक्ल, २, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. ज्वालापुर, प्रले. पं. दयामूर्त, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (९२५) जादृशं पुस्तिके द्रिष्टं, जैदे., (२०.५४१०, १७X४२). मुनिमालिका स्तवन, ग. चारित्रसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १६३६, आदि: ऋषभ प्रमुख जिन पय; अंति: चारित्रसिंघ० कल्याण, गाथा-३५. ५२२३४. चार कषाय भांगा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य. श्राव. मयाचंद जेठालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १५-१८४३१-४७). चतुष्कषाय भांगा-भगवतीसूत्रे शतक-१ उद्देशक-५, मा.गु., को., आदिः (-); अंति: (-). ५२२३५. (+-) प्रदेशीराजा सज्झाय व अनाथीमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अशुद्ध पाठ., दे., (२४.५४१०, १९४४६). १. पे. नाम. प्रदेशीराजा सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. परदेशीराजा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: जव लग धर्म पाम्यो; अंति: जीवणो केतलोक काल, गाथा-१९. २.पे. नाम. अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. ५आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक रयवाडी चड्यो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ७ अपूर्ण तक लिखा है., वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गाथा गिना है.) ५२२३६. (-) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२१४१०.५, ११४२४-३२). महावीरजिन स्तवन-निर्वाण विवरण, ग. कुमुदचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पुन्य संजोगै दर्शन; अंति: कुमुदचंद वासी रे, गाथा-११. ५२२३७. (+#) स्तुति व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ८, प्रले. पं. जीवविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत-क्रियापद संकेत-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १६x४७). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. हितविजय, सं., पद्य, आदि: संसार दावानल दाह नीर; अंति: हितविजय०भूयसे स्तात्, गाथा-४. २.पे. नाम. सुपार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: विजयदेवसंसेव्य; अंति: तीर्थेशमाहँत्यमीहे, श्लोक-१. ३. पे. नाम. अनंतजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: विजयसिंहसेनोल्लसद; अंति: रीश्वर ज्ञानलक्ष्मीः , श्लोक-१. ४. पे. नाम. नमिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: सत्पार्श्व विजयप्रभा; अंति: श्रेयस्कर सद्धितं, श्लोक-१. ५. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: शांतिसदागमनिधि परमा; अंति: कमले विमले सुपक्, श्लोक-१. ६.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. गजविजय, सं., पद्य, आदि: भजत भव्याः सदा पार्श; अंति: गजादिविजय० प्राणिनां, श्लोक-९. ७. पे. नाम. नेमि स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: संगति स्फाति कीर्ति, श्लोक-४. ८.पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने कृति का नाम ऋषभदेव स्तुति लिखा है. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: श्रेणयः सज्जनानां, श्लोक-४. ५२२३८. (#) चित्तसंभूति सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, ९x४३). चित्रसंभूति सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चित्र कहे ब्रह्मराय; अंति: कवियण० शिवपद लेसी हो, गाथा-२०. ५२२४०. (#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १३४३८). १.पे. नाम. पंचतीर्थ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ५तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: आदि ए आदि ए आदि; अंति: मुनि लावण्यसमय भणइ ए, गाथा-१२. २. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्व स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: आणी मनि सुधी आसता; अंति: समय० मोरी चिंताचूरि, गाथा-६. ५२२४१. तीर्थंकर स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, ११४४६). चतुर्विंशतिजिन स्तवन, ग. कुमुदचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: आदिहिँ आदि जिणंद; अंति: शिवचंद०मनाउ सखी सगरी, ___गाथा-८. ५२२४२. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. गोकल ऋषि; पठ. श्राव. बीठल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४३५). १.पे. नाम. गौतमपृच्छा सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: गौतमस्वामी पृच्छा; अंति: रमे ते मुक्ति मझारि, गाथा-३३. २.पे. नाम. विजयसेठविजयासेठानी सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह ऊठी रे पंचपरमेष; अंति: (-), (पू.वि. प्रथम गाथा मात्र है.) ५२२४३. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४९.५, १७४४३). १.पे. नाम. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ग. लब्धिउदय, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर रहिण चौमासे; अंति: लालचंद०सुख सवाया हो, गाथा-११. २.पे. नाम. धर्मोपदेश सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. लाल, मा.गु., पद्य, आदि: सुग्यानी जीव सीख सुण; अंति: ध्रम लाल उदार सुए, गाथा-११. ५२२४४. पार्श्वजिन छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५.५४११, १३४४५). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. रूप, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवन मझ ततसारं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा ___अपूर्ण., गाथा ३१ अपूर्ण तक लिखा है.) ५२२४६. (#) पार्श्वजिन स्तोत्र सह अवचूरि व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. पंचपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५४११, १४४४८). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र सह अवचूरि, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-स्तंभन मंत्रगर्भित, ग. पूर्णकलश, प्रा.,सं., पद्य, ई. १२००, आदि: जसु सासणदेवि वएसकया; अंति: पूर्ण स्तोत्रमेतत्, गाथा-३७. पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनक मंत्रगर्भित-स्वोपज्ञ वृत्ति, ग. पूर्णकलश, सं., गद्य, आदि: जं संथवणं विहिय तस्स; अंति: तयं होउ जगि सुक्खियं. २.पे. नाम. मायाबीज स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ह्रींकारविद्या स्तवन, सं., पद्य, आदि: सवर्णपार्श्व लयमध्य; अंति: पदं लभते क्रमात् सः, श्लोक-१६. ३. पे. नाम. मायाबीज मंत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: यो बिंदुः स पितामहो; अंति: महासरस्वती विद्या, श्लोक-२. ४. पे. नाम. भूतज्वर चिकित्सा, पृ. २आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-). ५२२४८. लघुद्रव्य संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८८, भाद्रपद कृष्ण, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. भुजनगर, प्रले. पं. रंगविजय गणि (अज्ञा. पं. मानविजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, ५४३८). लघुद्रव्य संग्रह, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि: छ दव्व पंच अत्थी; अंति: गणिणा सिरिनेमिचंदेण, गाथा-२५. लघुद्रव्य संग्रह-टबार्थ, मु. केशरविमल, मा.गु., गद्य, आदि: नत्वा नम्रसुरेंद्र; अंति: नामा ग्रंथ को. ५२२४९. सीमंधरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(१)=४, जैदे., (२५४११, १२४३४). सीमंधरजिन स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१३, आदि: (-); अंति: सिद्धविजय० मंगल करो, ढाल-७, ___गाथा-१०५, (पू.वि. गाथा १८ अपूर्ण से है.) ५२२५०. (+) जिनप्रतिमा हुंडी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १३४४४). जिनप्रतिमाहुंडि रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: सुयदेवी हीयडै धरी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २७ अपूर्ण तक है.) ५२२५१. ऋषभदेव नमस्कार व सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२७.५४१२.५, १३४३७-४२). १.पे. नाम. ऋषभदेव नमस्कार, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-रोहिणी चतुर्मुख मंडन, सं., पद्य, आदि: श्रीरोहिणी चतुर्मुख; अंति: साक्षात सुरद्रुमम, श्लोक-७. २. पे. नाम. सिमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. नगजय, सं., पद्य, आदि: श्रेयांसपुत्रं कृत; अंति: नग० शिवस्य लीलाम्, श्लोक-५. ५२२५२. (#) स्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. १८७८, ज्येष्ठ कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. लोहियाणा, प्रले. पं. प्रमाणरुचि (गुरु पं. देवरुचि); गुपि.पं. देवरुचि (गुरु पं. सदारुचि); पं. सदारुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हेमराजजी मुता द्वारा लिखित प्रत से प्रतिलिपि की गई है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१३, १६४५०). स्नात्रपूजा सविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पूर्वे बाजोट उपर; अंति: उतारी राजाकुमारपाले. ५२२५३. ज्ञानपंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२५४१२.५, १५४४१). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९३, आदि: सुत सिद्धारथ भूपनो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल ५ गाथा २ अपूर्ण तक लिखा है.) ५२२५४. (#) चोवीसी स्तवन, अपूर्ण, वि. १८९०, भाद्रपद अधिकमास शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. १३-१२(१ से १२)=१, ले.स्थल. कलापुरा, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१३, १३४६७). स्तवनचौवीसी, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: उत्तम एहवी वाणी रे, स्तवन-२४, (पू.वि. पार्श्वजिन स्तवन से है.) ५२२५५. (#) नवपद पूजा विधि, संपूर्ण, वि. १८७८, भाद्रपद कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. लोहीयांणा, प्रले. पं. प्रमाणरुचि (गुरु पं. देवरुचि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हेमराजजी मुता द्वारा लिखित प्रत से प्रतिलिपि की गई है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१३, १६४५५-५८). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: कोई नय रहिय अधूरी रे. For Private and Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५२२५६. होलीरजपर्व कथा का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८८२ फाल्गुन शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल स्वांणा, प्रले. पं. प्रमाणरुचि (गुरु पं. देवरुचि); गुपि. पं. देवरुचि (गुरु पं. सदारुचि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२७.५x१२.५, ३४४९५-१००). , होलीरजपर्व प्रबंध - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवर्धमानस्वामीने; अंतिः श्रीवीझेवानगर मध्ये. ५२२५७. उत्तराध्ययनसूत्र हिस्सा अध्ययन ३, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, वे. (२६११.५, ८४२७). उत्तराध्ययन सूत्र - हिस्सा अध्ययन ३ चतुरंगिकाध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: चत्तारि परमंगाणी: अंतिः हवइ सास तिबेमि, गाथा - २०. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir וי " ५२२५८. चेलणा चौडालियो, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. सा. अमृताजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२६४११.५, १४४३४). चेलणासती चौढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३३, आदि: अवसर जे नर अटकरे ते; अंति: रायचंद० से तसे जाण, ढाल ४. ५२२५९. (४) मौनएकादशी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२७.५x१२.५, २३X६०-६३). पौषध के १८ दोष, पुहिं. मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). " मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदिः श्रीमहावीरं नत्वा; अंति: केचिद्दिवं जग्मुः . ५२२६०. (०) स्वप्न विचार, पोसह दोष, चौदगुणस्थान विचार व पिस्तालीस आगम नामावली, संपूर्ण, वि. १८८७ माघ शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैवे. (२७.५x१२.५, २२४७२-७५) २५ १. पे. नाम. स्वप्न विचार चौपाई, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, पे. वि. मोतीजी द्वारा लिखित प्रत से प्रतिलिपि की गई है. स्वप्न चौपाई, मु. सिंघकुल, मा.गु., पद्य, वि. १५६०, आदि पहिलो मन जोड़ कर अंतिः सीध० कहीवो सुपन विचार, गाथा ४०. २. पे. नाम. पोसहव्रत अढार दोष, पृ. १आ, संपूर्ण. ३. पे. नाम. चौदगुणस्थान विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मिथ्यात्व गुणठाणा, अंतिः पंचम अक्खर प्रमाण. ४. पे. नाम. ४५ आगम नामावली, पृ. १आ, संपूर्ण. ४५ आगम नाम, मा.गु, गद्य, आदिः आचारांग‍ सुयगडांगर अंति: ४५ अनुयोगद्वारसूत्र ५२२६२. दीक्षा कल्याणक, संपूर्ण, वि. १९२८, कार्तिक शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७.५X१३, १४X३६). दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अनेक उछवे वड अथ आसु; अंति: मंगल मंगलावली. ५२२६३. मौनएकादशी व पौषदशमी कथा, संपूर्ण, वि. १९१०, फाल्गुन कृष्ण, ९, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्रले. पं. उमेदचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५x१२.५, १५x५०). १. पे. नाम. मौनएकादशी कथा. पृ. १अ २अ संपूर्ण. For Private and Personal Use Only मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि; अंतिः सादादानंदमाला लभतु. २. पे. नाम. पौषदशमी कथा, पृ. २अ ४अ, संपूर्ण. पौषदशमीपर्व कथा, मु. जिनेंद्रसागर, सं., पद्य, आदि: ध्यात्वा वामेयमर्हंत; अंतिः येन शीघ्रं रचयांचकार, श्लोक - ७४. ५२२६४. भगवती गणिपद योगविधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२७४१२, १४४४३). 1 भगवती सूत्र - गणिपद योगोद्वहनविधि, संबद्ध, मा.गु. सं., गद्य, आदि: बहु क्रियस्य बहु अंति: योगेषु निश्चिताए ५२२६५. आलोयणा संग्रह व नवनाग कुली चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, प्रले. मु. प्रमाणरुचि (गुरु पं. देवरुचि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५X१३, १७-२१x४२-७३). १. पे. नाम. आलोयण, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण. आलोयणा आराधना, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि: एगेंदियाणं जं कहवी, अंति: भगवंतनी साखै आलोया. २. पे. नाम पद्मावती आलोचना, पृ. २अ २आ, संपूर्ण . Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पद्मावती आराधना उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्य वि. १७वी, आदि हिवे राणी पद्मावती अंतिः समयसूंदर० छुटे ततकाल, ढाल ३, गाथा-३३. ३. पे. नाम. जीव सात बोल सह अनुवाद, पृ. २आ- ३अ, संपूर्ण. जीव के ७ बोल, प्रा., गद्य, आदि: अज विसाण निमते आहारे, अंतिः सतवि आज बहयंति मुचा. जीव ७ बोल- अनुवाद, मा.गु., गद्य, आदि: माठा अध्यवसाय करीने अंतिः वचन बोल्या होय तेस. ४. पे. नाम. नवनाग कुली चौपाई, पृ. ३अ- ३आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. ९ नागकुल चौपाई, मु. देवशील, मा.गु., पद्य, आदि: वाद्यवाणि पय प्रणमि, अंति: देवसील कहे एह विचार, गाथा - २९. ५२२६६. (a) मयणरेहासती रास, संपूर्ण, वि. १८९० वैशाख शुक्र, १ श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. फुंगणी गाम, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५X१३, १७X५२). www.kobatirth.org मदनरेखासती चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: विसन सातमो परनारिनो; अंति: समत बांध्यो प्राणी, गाथा-१६१. ५२२६७. स्वाध्याय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, जैवे. (२७.५x१३, १४४४५) १. पे. नाम. औपदेशिक स्वाध्याय, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्म, आदि; चडिया पडिवानो अंतर अंतिः जस० मति नवी काची रे, गाथा ४९. २. पे. नाम. सनत्कुमार स्वाध्याय, पृ. २आ- ३आ, संपूर्ण. सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कुरुदेशे गजपुर ठामे; अंति: उदयरत्न प्रणमे पाय, ढाल- ४. ३. पे. नाम. देवानंदा सज्झराय, पू. ३आ, संपूर्ण. उपा. सकलचंद्र गणि, पुहिं., पद्म, आदि: जिनवर रूप देखी मन, अंतिः सकल० प्रणमे उलट आंणी, गाथा ११. ५२२६८. (+०) मौनएकादशी व्याख्यान, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ८-४(१ से ४) ४, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे., ( २६१२, १४X४०). गाथा - १६. २. पे. नाम. अक्षरबत्रीसी, पृ. २अ - ३आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मौनएकादशीपर्व कथा, मा.गु., गद्य, आदिः ॐनमो पार्श्वनाथाय, अंति: पर्व विशेष कह्यौ छै, संपूर्ण. ५२२६९. स्तवन व बत्तीसी, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले. स्थल. पावलिप्तनगर, जैवे. (२६.५x१३, १२x२१)१. पे नाम. शत्रुजय स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु, पद्य, आदि करजोडी कहे कामनी अंतिः सेवक जिन घरे ध्यान, ककाबत्रीसी, मा.गु., पद्य, आदि: कका क्रोध न कीजीइं; अंति: वदें वीदता वीलास, गाथा-३४. ५२२७०. जीवचोनिखाण कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (२६.५४१२, ७४३१)जीवोत्पत्ति विचार, सं., पद्य, आदि: अंडजाः पक्षिसर्पाद्य, अंतिः तु ते चतुरिंद्रियाः, श्लोक-१०. जीवोत्पत्ति विचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अंडजा कहेता पखेरु, अंति: हुवइ चोरेंद्री. ५२२७१. चर्णकर्णसत्तरी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २६.५X१२.५, १०X३१). चरणसित्तरीकरणसित्तरी सज्झाय, मु. सुजस, मा.गु, पद्य, आदि: पंच महाव्रत दसविध, अंतिः जगमां सुजस वाधो जी, " गाथा- ७. ५२२७२. (+) चौदगुणठाणा विचार स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८९ माघ कृष्ण, ८, शनिवार, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. प्रेमजी (गुरुग. उदयधीर गणि); गुपि. ग. उदयधीर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है जैदे. (२६.५४१२, ६x४१). आदिजिन स्तवन- १४ गुणस्थानविचारगर्भित, वा. पद्मराज, मा.गु., पद्य, आदि: जगपसरत अनंतकंत गुण, अंति: पूरवड सुखसंपदा, गाधा- २१. For Private and Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ आदिजिन स्तवन-१४ गुणस्थानविचारगर्भित-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जगत्रयने विषे प्रसरत; अंति: संपदा पूरवा द्योत छइ. ५२२७३. (#) गौतमस्वामी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ५-१(१)=४, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १३४३२). गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: विजयभद्रसूरि भणे, ढाल-६, गाथा-६६, (पू.वि. गाथा ५ अपूर्ण से है.) ५२२७४. शेरीषा पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६९, वैशाख शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. प्रमाणरुचि (गुरु पं. देवरुचि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२.५, १४४३९). पार्श्वजिन स्तवन-शेरीसा, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: स्वामि सुहकर श्रीसे; अंति: लावण्य० त्रीभुवनधणी, गाथा-१५, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथाओं को एक गिना है.) ५२२७५. (-) लघुसंग्रहणी दस द्वार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२६४१२, १४४२५-२८). लघुसंग्रहणी-१० द्वार विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: खंड द्वारा जंबूद्वीप; अति: उत्तर कुरुक्षेत्र मै. ५२२७६. () वीरजिन स्तवन-ज्ञानादि नयमतविचारगर्भित, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. कुल ग्रं. ८१, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १७४४०). महावीरजिन स्तवन-ज्ञानदर्शनचारित्रसंवादरूप नयमतगर्भित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८२७, आदि: श्रीइंद्रादिक भावथी; अंति: लक्ष्मीसूरी० जयकार ए, ढाल-८, गाथा-८१. ५२२७७. (#) स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, कुल पे. ३, ले.स्थल. कंबोईगाम, प्रले. मु. आणंदविजय (तपागच्छ); अन्य.पं. केसरविजय; पं. सुखविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पार्श्वनाथजी प्रसादात्, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (४५७) पोथी प्यारी प्राणथी, जैदे., (२५.५४१२, ९४३१). १. पे. नाम. सिद्धसारस्वत स्तवन, पृ. २अ-३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. सिद्धसारस्वत स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: (-); अंति: रंजयति स्फुटम्, श्लोक-१३, (पू.वि. श्लोक ४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. मंगलमालिका काव्य, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: विशद शारद च प्रनीभान; अंति: हृदयं कमलायति, श्लोक-१४. ३. पे. नाम. सरस्वती छंद, पृ. ४अ-५आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: शशिकरनिकर समुज्वल; अंति: सेहजसुंदर० सरस्वती, ढाल-३, गाथा-१४. ५२२७८. शांतिनाथ स्तवन निश्चय व्यवहार गर्भित, अपूर्ण, वि. १९११, ज्येष्ठ शुक्ल, १३, बुधवार, मध्यम, पृ. १२-१०(१ से १०)=२, ले.स्थल. पाटणनगर, प्रले. पं. ऋषभविजय गणि (गुरु पं. रंगविजय गणि); गुपि.पं. रंगविजय गणि (गुरु पं. कृष्णविजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२.५, १८४४२). शांतिजिन स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: सांति जिणेसर केसर; अंति: जसविजय जयसिरी लही, ढाल-६, गाथा-४८, संपूर्ण. ५२२७९. वीरजिन पंचकल्याणक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२७.५४१२, १२४३६). महावीरजिन स्तवन-५ कल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: सासननायक सिवकरण वंदू; अंति: रामविजय० अधीक सुखवली, ढाल-३, गाथा-५६. ५२२८०. महावीरजिन स्तवन व औपदेशिक श्लोक, संपूर्ण, वि. १८६४, फाल्गुन कृष्ण, १२, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. चाणस्मा, प्रले. मु. ऋषभविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, १४४४०). १. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: विनयविजय० प्रकाश ए, ढाल-८, गाथा-१०२. For Private and Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. ४अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-३. ५२२८१. (#) पासा केवली शकुनावली, संपूर्ण, वि. १८८०, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. बुआडा, प्रले. मु. प्रमाणरुचि (गुरु पं. देवरुचि); गुपि.पं. देवरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१३, १८४५५). पाशाकेवली-भाषा*,संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवति; अंति: श्रीकार उतमोतम छे. ५२२८२. सौभाग्य पंचमी वृद्ध स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७४, कार्तिक कृष्ण, ९, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. योधपुरनगर, अन्य. श्रावि. रतनाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. सुश्राविका रतनादेवी के ज्ञानपंचमी व्रत के निमित्त यह प्रत लिखी गई है., जैदे., (२६४१२,१२४३२-३५). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिणेसर; अंति: गुणविजय रंगे गुणि, ढाल-६, गाथा-४९. ५२२८३. आनंदश्रावक संधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२७.५४१२, १३४३०). आनंदश्रावक संधि, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि: वर्द्धमानजिनवर चरण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल ४ तक लिखा है.) ५२२८४. (+) उपधान विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, १९४४३-४९). उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पहिलं नवकार; अंति: उपधान बूहा सूझै. ५२२८५. सारदा छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५.५४१२.५, १२४३०). सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता मन; अंति: शांतिकुशल० मांहरी, गाथा-३७. ५२२८६. (+) पार्श्वजिन व वीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १८९५, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. पाटणनगर, प्रले.पं. दयारत्न गणि; राज्ये गच्छाधिपति दिनेंद्रसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५.५४१२.५, ४४२६-३०). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति सह टबार्थ, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: मालामालानबाहुर्दधददध; अंति: वलयवलयश्यामदेहामदेहा, श्लोक-४. पार्श्वजिन स्तुति-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: स्या प्रति धरनो माल; अंति: श्याम शरीर छे जेहनु. २. पे. नाम. वीरजिन स्तुति सह टबार्थ, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: नमदसर सीरो रूह सवस्स; अंति: हारतारा बल क्षेमदा, श्लोक-४. महावीरजिन स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमदमरसिरोरुह स्वस्त; अंति: छइ महा मदरहित छे. ५२२८७. (+) संबोधसत्तरी, अपूर्ण, वि. १८०५, आषाढ़ शुक्ल, १०, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, ले.स्थल. वाल्हीनगर, पठ. मु. विजयमुनि (गुरु पं. जयविजय गणि); गुपि.पं. जयविजय गणि (गुरु पं. अमृतविजय गणि); पं. अमृतविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५४११.५, १३४४२). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: जयशेहर० नत्थी संदेहो, गाथा-८०, (पू.वि. गाथा २७ अपूर्ण से है.) ५२२८८. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, ९४३३). १.पे. नाम. बाहुबली सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राजतणा अति लोभीया: अंति: समयसु० प्रणमे पाय रे, गाथा-७. २.पे. नाम. अनाथी सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणीक रयिवाडी; अंति: समयसुंदर० वे कर जोडि, गाथा-९. ५२२८९. केशीगणधर राजा परदेशी संवाद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६४१२, १६४३७-४०). For Private and Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ केशीगणधर परदेशीराजा संवाद, मा.गु., गद्य, आदि: परदेसी राजा कहै छै; अंति: कुमारे प्रतिबोध दीधो. ५२२९०. स्तुतिचतुर्विंशिका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२६४१३, १८४४४). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक-९६. ५२२९१. (+) चैत्यवंदनभाष्य, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४११.५, १३४४२). चैत्यवंदनभाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १४ अपूर्ण तक है.) ५२२९२. स्तवन व स्वाध्याय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-११(१ से ७,१० से १३)=३, कुल पे. ५, जैदे., (२६४१२, १६x४८). १.पे. नाम. अंतरीक्ष पार्श्वजिन छंद, पृ. ८अ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५८५, आदि: (-); अंति: लावण्यसमय० वांछ सदा, गाथा-४९, (पू.वि. गाथा १९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. श्रावककरणी सज्झाय, पृ. ८आ-९आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: जिनहर्ष० हरणी छे एह, गाथा-२२. ३. पे. नाम. गौतमस्वामी स्वाध्याय, पृ. ९आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तवन, मु. वीर, मा.गु., पद्य, आदि: पेहलो गणधर वीरनो रे; अंति: वीर नमे निसदिस, गाथा-९. ४. पे. नाम. अष्टापदतीर्थस्तवन, पृ. ९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टापद श्रीआदिजिणंद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ५. पे. नाम. आंतरीक पार्श्वछंद, पृ. १४अ-१४आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्ष, पं. भावविजय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा ५ अपूर्ण से २८ तक है.) ५२२९३. महावीरजिन पंचकल्याणक वधावा, संपूर्ण, वि. १८९६, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. पाटणनगर, प्रले. पं. दयाविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२.५, १७X४५). महावीरजिन स्तवन-५ कल्याणक वधावा, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वंदी जगजननी ब्रह्माण; अंति: दीपविजय० फल महाराज, ढाल-५. ५२२९४. (+) श्रावक अतिचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१०.५, १७४४९). श्रावक देवसिकआलोयणासूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, गु., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० सात; अंति: करी मिच्छामिदुक्कडं. ५२२९५. यादव रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२५.५४११, १३४३९). नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सारद पाय प्रणमी करी; अंति: पुण्यरतन० नेमजिणंद, गाथा-६५. ५२२९६. महावीरजिन स्तवन व मौनएकादशीपर्व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-२(१ से २)=३, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२.५, १४४४०). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. __महावीरजिन स्तवन-छट्ठाआरागर्भित, श्राव. देवीदास, मा.गु., पद्य, वि. १६११, आदि: सकल जिणंद पाय नमी; अंति: देवीदास० संघ मंगलकरो, ढाल-५, गाथा-६६, संपूर्ण. २. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तवन, पृ. ३अ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. मौनएकादशीपर्व स्तवन-१५० कल्याणक, उपा. यशोविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: धुरि प्रणमु जिन; ___ अंति: (-), (पू.वि. ढाल ११ गाथा २ अपूर्ण तक है.) ५२२९७. विजयजिनेंद्रसूरि गहुँली व गुरुगुण गहुली संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, दे., (२६४१२.५, ११४४२). १.पे. नाम. विजयजिनेंद्रसूरिगुरु भास, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. पाटणनगर. For Private and Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची विजयजिनेंद्रसूरि गच्छरायगुरु गहुंली, पं. माणिक्यविजय, मा.गु., पद्य, आदिः सजनी श्रीगुरु चरणकमल, अंतिः माणिक्य गुरुजी तणो, गाथा- ७. २. पे नाम, गुरु स्वाध्याय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. विजयजिनेंद्रसूरिगुरु गहुली, मु. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रहसम गणधर प्रणमीये, अंतिः शांति दिये आसीसजी, गाथा- ७. ३. पे नाम, विजयजिनेंद्रसूरि भास, पृ. १आ-२अ संपूर्ण ले, स्थल, पाटणनगर, विजयजिनेंद्रसूरिगुरु भास, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजी आयारे गुणशैल, अंतिः जिनेंद्रसूरी गुणठाण, गाथा ५. ४. पे. नाम. गुरुगुण गहुली, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. दोलत, मा.गु., पद्य, आदि : आवो जईइ गुरू वांदवा, अंति: दोलत० धार हो लाल, गाथा- ९. ५२२९८. (#) गौतमस्वामी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. मढारनगर, प्रले. मु. मोहनसुंदर, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X१२.५, ११४३१). गौतमस्वामी स्तोत्र, ग. विजयशेखर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगौतम गुरु प्रभात; अंति : शेखर कहे सूवीलासे, गाथा-१३. ५२२९९. (+) विविधविचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., (२६X११.५, १३x४०). विविधविचार संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: अट्ठेव गया मुक्खं, अंति: नवभागा सत्तपलियस्स, गाथा-१०५. ५२३०० स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०२, चैत्र शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, वे. (२५.५४१२.५, १४४३८) १. पे. नाम. गौडीपार्श्वनाथ छंद, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद - गोडीजी, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सुमति आप; अंति: कुशललाभ० गोडी धणी, गाथा - १९. २. पे. नाम. गिरनारतीर्थ महात्म्य, पृ. २आ, संपूर्ण. गिरनारतीर्थ माहात्म्य - वामनपुराणे, ऋ. वेद व्यास, सं., पद्य, आदि: पद्मासनं समासीन; अंति: पुनर्जन्मो न विद्यते, श्लोक-५. ३. पे नाम, माणिभद्र स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण माणिभद्रवीर छंद, आ. अमृतरत्नसूरि, मा.गु. सं., पद्य, वि. १८५९, आदि: जयजय श्रीजगदीश्वर जय, अंति: रचितं बहु हर्षे, गाथा- ९. ५२३०१. (#) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल. आउआ, पठ. मलुकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५x१०, १३४३२-३५). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः कुमुदचं० प्रपद्यते श्लोक-४४. ५२३०२. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल, मढिया, प्रले. मु. रामचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२, २४४१५). महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी तुमे तो क्या, अंति: कहे एह वडाई प्यारा, गाथा- १२. ५२३०३. ककाबत्तीसी, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जै. (२६.५x१२, १२x२८-३३). " ककावत्रीसी, मु. जिनवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: कका करमनी बात करी अंति: जीवऋषई इम वीनवे, गाथा-३१. ५२३०४. रत्नाकरपच्चीसी सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. जैदे., (२५x११, १५X३५-४६). रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदिः श्रेयः श्रियां मंगल, अंतिः श्रेयस्कर प्रार्थये श्लोक-२५, संपूर्ण. रत्नाकरपच्चीसी वालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीरत्नाकरसुरे पोते अंतिः (-) (पूर्ण, पू. वि. प्रशस्ति का अंतिम भाग नहीं है.) For Private and Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ " ५२३०५. मुनीसुव्रत स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. वडगाँव, जैवे. (२४.५x१२.५, १५४३१)मुनिसुव्रतजिन स्तवन, पं. प्रमाणरुचि, मा.गु., पद्य वि. १८७१, आदि: श्रीसरसती चरणे नमी अंतिः तेह वांदो निसदीस, गाथा-१४. ५२३०६. सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., ( २४.५X१२.५, १९x४५). १. पे. नाम. सीखामण विचार सज्झाय, पृ. ९अ. संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकर्मी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: एक सीखामण कहुं छु; अंतिः ते सुख पामे घणु अपार, गाथा-२१. २. पे. नाम. अनाथिऋषि स्वाध्याय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि श्रेणिक रथवाडी चढ्यो अंतिः वंदे रे वे कर जोड, गाथा - १०. ३. पे. नाम. औपदेशिक स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. उदयरत्न, पुडिं, पद्म, आदि ऐआ मेवासमां वे मरदो अंतिः मुगतपुरी मे खेलो, गाथा- ७. ५२३०७. चतुर्विंशतिजिन अंतर स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७१, मार्गशीर्ष कृष्ण, १४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. ऋषभ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीचंद्रप्रभजिन प्रसादात्., जैदे., (२५X१२, १४X३६). २४ जिन आंतरा स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्म, वि. १७७३, आदि सारद सारदना सुपरे अंतिः रामे० सुजस सवाय ए, ढाल ४. ५२३०८. स्तुति व लावणी आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, जैवे. (२४.५x१२, २१४५२). १. पे. नाम. देवलोक स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण आदिजिन स्तुति-सुधर्मदेवलोकभावगर्भित, ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सौधर्म देवलोक पहिलो, अंतिः कांतिविजय गुण गाय, गाथा ४. २. पे. नाम. आध्यात्मिक धुई. पू. १अ. संपूर्ण. औपदेशिक स्तुति, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु, पद्य, आदि उठी सवारे सामायिक, अंतिः भावप्रभ० पद भोगी जी, ३१ गाथा-४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जगत भविकजन महेर अणंत; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र गाथा १ ख है.) ४. पे. नाम ऋषभदेव लावणी, पृ. ९अ १आ, संपूर्ण. आदिजिन लावणी, पुहिं., पद्य, वि. १८६०, आदि: सरस्वतीमाता सुमत की, अंति: सेहर सुलंबर मातारी, गाथा- २३. ५. पे. नाम. राजुल पद, पू. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती लावणी, मु. जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि वादरीयानुं वरसे पीया अंतिः प्रभु चरणा चीत देह, गाथा-४. ५२३०९. नंदीसूत्र सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २४.५X११.५, १४x२५). नंदीसूत्र - मंगल गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जवई जगजीवजोणीविआणओ, अंति: जए भदं दमसंघसूरस्स, गाथा- १०. ५२३१०. स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे ४, प्रले. मु. गुलाबविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., For Private and Personal Use Only (२४.५X१२.५, १५X३३). १. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. १अ. संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन वा मानविजय, मा.गु, पद्य, आदि: ओलुडी विदेह खेत्रमां अंतिः दीजो तुम पाव सेवो, गाथा ५. २. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, ग. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी आदि विजय विराजे पुखलवई, अंतिः वसजो नाथ हजूर रे, गाथा- ६. ३. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि; जिनवर ज्योतिसर जिन अंतिः वास प्रभुपद थापी, गाथा १६. Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम. धूलीभद्र गीत, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. स्थूलभद्रमुनि सज्झाच, मु. हस्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सखी मोरी आयो रे मास, अंति: हस्तिविजय जे जे करू, गाथा - १५. ५२३११. क्षमाछत्रीसी, पूर्ण, बि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३. पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. वे. (२४.५४१३.५, ९४३३). " " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः आदर जीव क्षमागुण अंति: (-) (पू. वि. गाथा ३५ अपूर्ण तक है.) ५२३१२. स्तवन व सझाव, संपूर्ण, वि. २०बी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे. (२४.५४११.५, १२४३७) "" १. पे. नाम. विमलनाथ स्तवन, पू. १अ, संपूर्ण. विमलजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु, पद्य, आदि; घर आंगण सुरतरु फल्यौ, अंतिः तुहि ज देव प्रमाण, गाथा-५. २. पे. नाम. हरिकेसी सज्झाय. पू. १अ १आ, संपूर्ण उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जगवलभ गुरजी तु वसीयो; अंति: बोले उदयविजय उवझाय, गाथा-१५. ५२३१३. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., ( २४.५x१२, १४X३४). १. पे. नाम. २० स्थानकतप स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पूछें गोतम वीरजिणंदा, अंतिः आधार वीरविजयजयकार, गाथा-४, २. पे. नाम. विसलपुरमंडन आदिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति - वीसलपुरमंडन, मु. देवकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: बीसलपुर बांदु आदि, अंतिः संघना विघ्न निवार, गाथा ४. ५२३१४. संयमश्रेणि सज्झाय सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८२५, चैत्र कृष्ण, ६, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल, गुंदवचनगर, पठ ग. विनयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कुल . २५०, जैवे. (२४४११, ५X४०-४२). " संयमश्रेणिविचार स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्म, आदिः प्रणमी श्रीगुरुना अंतिः ध्यानमां ध्यायो रे, ढाल - २, गाथा - २१. संयमश्रेणिविचार स्तवन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ऐंद्रवृंदनतं नत्वा, अंति: हेतु छइं ते भणी. ५२३१५. (+) भास संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ८. प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., ( २५X१२, २१x४२). १. पे. नाम. महावीरजिन गुरु गुहली, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन गहुली, मु. विवेक, मा.गु., पद्य, आदिः सखी सासननायक आवे छे; अंति: वीवेक० घर मंगलमाला, गाथा-६. २. पे. नाम. सौधर्म गणधार गुहली, पृ. १अ. संपूर्ण. सुधर्मास्वामी भास, मा.गु., पद्य, आदि चंपानगरी उद्यान सुरत, अंतिः साधु गुहली गीत भणेरी, गाथा- ७. ३. पे नाम, पट्प्रिंसका चतुगति गुहली, पृ. १अ संपूर्ण सुधर्मास्वामी गहुली, मु. सोहब, मा.गु., पद्य, आदि: चेलणा लावे गहुंली, अंतिः श्रीजिनशासन रीति, गाथा-७. ४. पे. नाम. सोधर्म गणधर भास, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. सुधर्मास्वामी भास, मा.गु., पद्य, आदि: ज्ञानादिक गुणखाण, अंति: गावे जिनशासन धणी जी, गाथा- ८. ५. पे. नाम गौतम गणधर भास, पृ. १आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि राजग्रही रलीवामणी अंतिः भावना वजडावो मंगलतूर, गाथा ५. ६. पे. नाम. गौतम गणधर भास, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १८९२, ज्येष्ठ शुक्ल, ३, प्रले. पं. राजेंद्ररुचि, प्र.ले.पु. सामान्य. गौतमस्वामी भाष, मु. दीपविजय, मा.गु, पद्य, आदिः चरण करण गुण आगरो रे, अंतिः कीजे कोडि जतन, गाथा- ६. ७. पे. नाम. गुरुगुण भास, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. शुभवीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८४ आदिः सुण रे सहेली रंग, अंतिः रहेज्यी हयडा हजुर, गाथा- १३. ८. पे, नाम, गुरुभास, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ गुरुगुण भास, मु. अमर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरु पद पंकजनी; अंति: ते सीवसुख ध्यावेरे, गाथा-७. ५२३१६. (+) जीवदया सझाय, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०.५, १२४३८). दयापच्चीसी, मु. विवेकचंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कहे एह विचार, गाथा-२५, (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण से है.) ५२३१७. लेस्यानो थोकडो, संपूर्ण, वि. १९७१, मार्गशीर्ष कृष्ण, १, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. पडधरी, प्रले. कालीदास परसोत्तम खत्री, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२, १६४३८). लेश्या ११ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नामाइं पण रस गंध फरस; अंति: अने सारी गतीए जाय. ५२३१९. स्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२३.५४१२, १७४३७). स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चोतिसे अतिसय जुओ वचन; अंति: सारखी कही सूत्र मझार, ढाल-८, गाथा-६०. ५२३२१. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९६७, माघ कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ६, ले.स्थल. दांतराई, प्रले. मु. पून्यवर्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपार्श्वजिन प्रसादात., दे., (२४४१३, १३४३८). १. पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-भक्तामरस्तोत्रप्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंति: भवजले पततां जनानाम्, श्लोक-४. २. पे. नाम. वीरजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति-कल्याणमंदिर प्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद; अंति: नमभिनम्य जिनेश्वरस्य, श्लोक-४. ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तुति-सकलकुशलवल्ली पादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्लीपुष्करा; अंति: वः श्रेयसे शांतिनाथः, श्लोक-४. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-रत्नाकरपच्चीसी प्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: जय ज्ञानकलानिधानम्, श्लोक-४. ५. पे. नाम. वीरजिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण... ___महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: नरेंद्रमौलिप्रपतत; अंति: लीढलोलालिमालाम्, श्लोक-४. ६.पे. नाम. जिन स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-कल्लाणकंदं पादपूर्तिमय, प्रा., पद्य, आदि: भावानयाणेगनरिंदविंद; अंति: गोखीरतुसारवन्ना, गाथा-४. ५२३२२. पडिलेहन कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४४, माघ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. जालोर, प्रले. कनक, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१२.५, १०४२८). पडिलेहण कुलक, ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, आदि: पडिलेहणाविसेस; अंति: सीसेणं विजयविमलेणं, गाथा-२८. पडिलेहण कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रतिलेखनाना विशेष; अंति: लेखणा विचार लख्यो. ५२३२३. पद्मावती स्तोत्र व जापविधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, ले.स्थल. फलोधीनगर, प्रले. पं. राजेंद्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२.५, १०x२३-२५). १.पे. नाम. पद्मावती स्तोत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी छंद, मु. हर्षसागर, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (१)श्रीकुरुकुंडणदंड, (२)श्रीपार्श्वप्रतिमा; अंति: (१)पुज्या सदा सुखकारणी, (२)हर्ष० पूजो सुखकारणी, गाथा-९. २. पे. नाम. पद्मावतीदेवी स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: स्तोत्रे पवित्र जिन; अंति: स्तोत्रमंत्रिभि, श्लोक-८. ३. पे. नाम. पद्मावती जापमंत्र विधि, प्र. २आ-३अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पद्मावतीदेवी जापमंत्र, सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं, अंति: कार्य सिद्धिर्भवति. ५२३२४. औपदेशिक श्लोक संग्रह व उठमणुं, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. गौंडल, प्र.वि. मयाचंदजी की प्रति से प्रतिलिपि., जैदे., (२३.५४११.५, १४४२९). १. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दुमपतएपांडुरेजहा; अंति: चंदा निंद रूपि हवा, श्लोक-८. २. पे. नाम. उठमj, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. असार संसार वर्णन-गौतम द्वारा प्रश्न महावीरस्वामी द्वारा जवाब, मा.गु., गद्य, आदि: हवे श्रीभगवान प्रते; अंति: प्राप्ती पामीइए. ५२३२५. डोढसो कल्याणक चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५४१३, १८४३०). १५० जिनकल्याणक चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: शासननायक जगजयो वर्धम; अंति: शिवलक्ष्मी वरीजे, गाथा-१६. ५२३२६. सझाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १८८७, आश्विन कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. मडाणा, प्रले. पं. देवरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१२, १८४४२). १.पे. नाम. झांझरीया अणगार सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. झांझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: (-); अंति: सांभलजो सहु वंदारे, ढाल-४, (पू.वि. मात्र अतिम दो गाथा है.) २. पे. नाम. रात्रिभोजन सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, आ. हेमविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अवनीतल वारू वसे जी; अंति: हेमविमलसूरी सीस रे, गाथा-२८. ५२३२७. स्तवन व पौषध विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२४४१२, १५४३४-४१). १.पे. नाम. आराधना स्तवन, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण, प्रले. पं. राजेंद्ररुचि, प्र.ले.पु. सामान्य. पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: नामे पुण्यप्रकाश ए, ढाल-८, गाथा-१०२. २. पे. नाम. पोसा लेवानी विधि, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पौषध विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही पडिक; अंति: (-), (पू.वि. सामायिक उच्चार कराने तक ५२३२८. (#) समवसरण विचार स्तवन, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षर मिट गए हैं, जैदे., (२३.५४११.५, १३४४०). नेमिजिन स्तवन-समवसरणविचारगर्भित, मु. सोमसुंदरसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: जायवकुल सिणगार सिरि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३२ अपूर्ण तक है.) ५२३२९. सझाय व गहुँली संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, दे., (२४४१३, ८x२४). १.पे. नाम. चतुः गुहली, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. प्रहेलिका हरियाली, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: एक नारी बहु पुरुष; अंति: कांतिविजय० बलिहारी, गाथा-६. २. पे. नाम. लोभनी सज्झाय, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-लोभपरिहार, मु. उदयरत्न कवि, मा.गु., पद्य, आदि: तुमे लक्षण जोजो लोभ; अंति: लोभ तजे तेहने सदा रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. भगवतीसूत्रनी वाणी, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-गहुंली, संबद्ध, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सहियर सुणीये रे भगवत; अंति: मंगल कोटि वधाई, गाथा-७. ५२३३०. छंद, दोहा व कुंडलिया, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, जैदे., (२४४१३, १५४३५). १.पे. नाम. गोडीपार्श्वदेव छंद, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ३५ पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुवचन दे मुझ शारद; अंति: कांतिविजय० गोडी धवल, गाथा-५१. २. पे. नाम. दूहा संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. दूहा संग्रह , पुहि.,मागु., पद्य, आदि: पिंपल रोवे फूल विण; अंति: पुत्र विण रोवे माय, ग्रं. १. ३. पे. नाम. औपदेशिक कुंडलिया, पृ. ३आ, संपूर्ण. दोहा संग्रह जैनधार्मिक, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: केम करे क्ये कुकडो; अंति: राज अमर कहु नह रह्या, दोहा-२. ५२३३१. (-) पार्श्वनाथ लावणी आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, ले.स्थल. फलोधी, प्रले. मु. दीपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५४१३, १६-२०४३३-४९). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ लावणी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपतदायक सुरनर; अंति: गुण गावंदा है, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) २.पे. नाम. अजितशांति स्तव, पृ. २आ, संपूर्ण.. आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ५तक लिखा है.) ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मुजरोमानीने लेजो हो; अंति: उठी ते प्रणमीजे हो, गाथा-३. ४. पे. नाम. दूहा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. काव्य/दुहा/कवित्त/पद्य, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. ५२३३२. (+) भीनमाल पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३४१२, १७४४३). पार्श्वजिन स्तवन-भिनमाल, मु. पुण्यकमल, मा.गु., पद्य, वि. १६६१, आदि: (अपठनीय); अंति: पुण्यकमल भवभय हरो, गाथा-५३, (वि. प्रत का ऊपरी भाग खंडित होने से आदिवाक्य नहीं भरा गया है.) ५२३३३. धनाशालीभद्र सझाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, दे., (२१.५४१२, २०४१६). धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: धनसे तस अवतार, गाथा-२८, (पू.वि. गाथा १४ अपूर्ण से है) ५२३३४. जिन जन्माभिषेक कलश, संपूर्ण, वि. १८८१, भाद्रपद कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. समी, प्रले. मु. तिलकविजय; अन्य.मु. हीर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीवीर प्रसादात्., जैदे., (२३४१२.५, ११-१३४२५-३२). स्नात्रपूजा, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: (१)नमो अरिहंताणं नमोर्ह, (२)मुक्तालंकार विकार; अंति: तुम्हे दीयो वरमुत्ती. ५२३३५.) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२१४१२, ६४१८). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. पार्श्वजिन स्तवन, मु. अमृत, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: अमृत० भाय गहि मेरा, गाथा-५, (पू.वि. अंतिम गाथा अपूर्ण मात्र है.) २. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. लालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: रथ चड जादुनंदन यावत; अंति: लालचंद० मंगल गावत हे, गाथा-५. ५२३३६. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१९.५४११, ९४२९). पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पर्व पज्जुसण गुणनीलो; अंति: शासने पामो जयजयकार, गाथा-९. ५२३३७. (+) संबोधसत्तरी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२१.५४१२.५, १३४३५). ___ संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोयगुरुं; अंति: सो लहइ नत्थि संदेहो, गाथा-७३. ५२३३८. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-३(१ से ३)=२, कुल पे. २, जैदे., (२०.५४११, १३४२५-२७). For Private and Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. पंचमी स्तवन, पृ. ४-५ आ, संपूर्ण वि. १८८२ फाल्गुन कृष्ण, ९, ले. स्थल. चौदड, प्रले. मु. देव ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन- बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगुरुपाय; अंति: भ भाव प्रशंसीयो, ढाल ३. २. पे. नाम. शीतलजिन विनती, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. शीतलजिन वृहद्स्तवन- अमरसर मंडन, उपा. समयसुंदर गणि, रा., पद्य, आदि: मौरा साहेब हौ श्रीसी अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ५२३३९. चित्रोडगढ नीसांणी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२०.५X११, १३-१५x२६-३६). चित्तोडगढ गजल, क. खेताक यति पुडिं, पद्य वि. १७४८, आदिः चरण चतुर्भुज धार चित; अंति: गढ़ चीतोड़ की , खूब गाई. (वि. गाधांक नहीं लिखा है.) ५२३४० (+) नवपद स्तुति, अपूर्ण, वि. १९०५ कार्तिक कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. ५-४ (१ से ४) = १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, दे., ( २०x१०.५, १२X४०). नवपद स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंतिः शिवतरू बीज खरो रे, स्तवन- ९, (पू. वि. ज्ञान पद से है.) ५२३४१. भीनमाल पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. गुलाबविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१९.५४१३.५, १५X३३). पार्श्वजिन स्तवन- भीनमाल, मु. मेरो, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिण विनमुं अंतिः आवागमण निवार के, गाथा - १८. ५२३४३. (+) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८४८, चैत्र शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल विकानेर, प्र. वि. संशोधित, जैदे (२२x१०.५, १९३३). औपदेशिक सज्झाय, रा., पद्य, आदि: पुन्य योगे नरभव लियो, अंति: दुरगत मै दुख पावै, गाथा-२६. ५२३४५, (४) दानविषये कयवन्ना सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल, इडर, प्रले. पं. मानहंस पठ. मु. लखमीचंद (गुरु पं. मानहंस), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०X११.५, १२x१९). कयवन्ना सज्झाय- दानविषये, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि आवजीनवर घ्याउ गाउ, अंति लाल विजय कहे ० उलट आणी, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ५२३४६. सिद्धाचल रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (१४१३.५, १३X१६). शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास. मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदिः विमल गिरिवर विमल, अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल १ गाथा ५ तक लिखा है.) ५२३४७ (+) औपदेशिक दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. .दे.. (२०.५x१०.५, १४X३३). दोहा संग्रह जैनधार्मिक, पुहिं., मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत सिद्ध समरू, अंतिः पावे मुकति समाध, दोहा-८७. ५२३४८. गोडीपार्श्वनाथ छंद व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १८५५ कार्तिक कृष्ण, ६, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पं. धर्मविजय, ठ ऋ. खुशालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (१७.५X१२.५, १४४२२). १. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ छंद, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद - गोडीजी, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: धवल धिंग गोडी धणी, अंति: दुखनी जाल त्रोडी, गाथा-७. २. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औषध संग्रह **, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५२३४९. सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, दे., (२५.५X१६.५, १३X२९). १. पे नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १ अ. संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन- सिरोहीमंडन, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हो जी मारा कंचनवरणी; अंति: जिनगुण संयो जी, गाथा - ११. For Private and Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ २. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: नायक मोह नचावीयो; अंति: जंपें इम जिनराजोरे, गाथा-५. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अविनाशीनि सेजडीयें; अंति: प्रीत बंधाणी जी, गाथा-६. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: स्या माटे साहिब सामु; अंति: न रह्यो लाभनो लाछो, गाथा-५. ५.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ना रे प्रभु नहीं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २ तक लिखा है.) ५२३५०. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२१.५४१०, ११४४६). पार्श्वजिन स्तवन-अयवंतीपुरमंडण, आ. गुणसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६५२, आदि: सोभागी जिनजी म्हारै; अंति: विनवै मुनि गोविंद, गाथा-११. ५२३५३. कायकुटंब स्वाध्याय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. सिद्धक्षेत्र, प्रले. श्राव. हरिचंद जयचंद गांधी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१.५४१२, ६४२६). औपदेशिक सज्झाय, मु. दयाशील, मा.गु., पद्य, आदि: नाहलु न मानइरे काइ; अंति: दया० कुटंब अटारडुरे, गाथा-११. औपदेशिक सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बार भावनामांहि; अंति: अर्थ पंडितोए विचारवो. ५२३५५. (#) महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७-५(१ से ५)=२, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (१७.५४१२, ११४१५). ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगुरुपाय; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १७ तक लिखा है.) ५२३५६. (-#) स्तवन संग्रह व सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१९.५४१०, २२४१५). १.पे. नाम. श्रीमिंदरजीरो तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. कनकसौभाग्य शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: जीरे सीमधर भगवंत; अंति: भणजो गणजो भावसुं जी, गाथा-६, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) २.पे. नाम. आदनाथजीरोतवन, पृ. १आ, संपूर्ण. __ आदिजिन स्तवन, मु. समयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: आदेसर अरिहंतजी प्रभु; अंति: समयसुंदर० लागो हाथ, गाथा-६. ३. पे. नाम. पंचमी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. पंचमीतिथि सज्झाय, मु. अमृतरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती भगवती मन वसी; अंति: अमृतरत्नसुख पद लीजे, गाथा-१३. ५२३५७. (+) चैत्यवंदन, नमस्कार व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्र १४२, संशोधित., जैदे., (४१.५४११, ५९x१५). १.पे. नाम. आदिजिन नमस्कार, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, ग. पद्मविजय, सं., पद्य, आदि: विमलकेवल ज्ञानकमला; अंति: पद्मविजय सुहितकरम्, श्लोक-८. २.पे. नाम. शांतिनाथजीनुं स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, लिख. श्रावि. खुसालीबाई; अन्य. पं. रंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. शांतिजिन स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नारी ते नर ने वीनवे; अंति: पद्म० मलपतो घेरे आवे, गाथा-५. ३. पे. नाम. अष्टमीदिन नमस्कार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पं. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चेत्र वदि आठम दिने; अंति: खीमाविजेय० ग्यानअनंत, गाथा-१४. ५२३५८. (#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८३२, फाल्गुन शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. संतपूर, प्रले. पं. रामविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१६.५४१५, २१४२५). १. पे. नाम. अंतरीकपासजी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षजी, मु. गजेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअंतरिक्ष प्रभू; अंति: पूजे पासजिणंदा, गाथा-१३. २. पे. नाम. सूरतिमंडण पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-सुरतमंडन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुरति मंडण पास जिणंद; अंति: सुख धरी ___ अविहड रंगो, गाथा-७. ५२३५९. सूतक विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (१७.५४११,११४२१). सूतक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम कोईने घरे जन्म; अंति: दोष तीन दिवसनो जी. ५२३६०. (#) औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१९.५४१०.५, ९x१५). कुगुरु परिहार, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: तेने कुगुरु कान; अंति: जिनदास और दिखाया, गाथा-४. ५२३६१. (#) नेमीश्वरचुवीसुव शृंगार काव्य, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक नहीं लिखा है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१७४११.५, १३४३०). १. पे. नाम. नेमीश्वरचुवीसु, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., वि. १५८३, चैत्र शुक्ल, १३, शुक्रवार, पठ. श्राव. जूठा शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं. नेमिजिनचौवीसी, म. श्रुतरंग, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: मन मनोरथ सवि फलइ, गाथा-२४, (पू.वि. गाथा २३ अपूर्ण से है., वि. प्रतिलेखक ने गाथांक दो-दो बार लिखा है.) २. पे. नाम. श्रृंगार काव्य, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: श्यामा यौवनशालिनी; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-७ अपूर्ण तक है.) ५२३६२. मोहनविजय लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२०x१०.५,११४२५). मोहनविजय लावणी, श्राव. लालजी, पुहिं., पद्य, वि. १९३७, आदि: मुनि मोहनविजय माहार; अंति: लाल तुमारा दास, गाथा-४. ५२३६३. बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२१.५४११.५, १९४४२-४७). १. पे. नाम. तीस बोल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ३० बोल, मा.गु., गद्य, आदि: तपस्या करी ते नियाणो; अंति: चंदनबाला० सतीनी परे. २. पे. नाम. पाँच बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. ५ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: रे जीव धनवंत सुखी; अंति: सीदडो पोयो जाणज्योजी. ५२३६४. सरस्वती छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पत्र १४२, जैदे., (१९.५४१०.५, ४२४१७). सिद्धसारस्वत स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: करमरालविहंगमवाहना; अंति: रंजयति स्फुटम्, श्लोक-१३. ५२३६५. (#) प्रतिलेखनकालमान गाथा व वीस विहरमानजिन चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०.५४११.५, १३४२४). १. पे. नाम. प्रतिलेखनकालमान गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: स्याड मास दो पग सामन; अंति: मालो वसारो सरीमान, गाथा-२२. २.पे. नाम. वीस विहरमान चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, मागु., पद्य, आदि: अनंत चउवीसी जिन नमुं; अंति: (-), पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ५२३६६. (#) आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१६.५४१२, १२४२०). आदिजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: आदिसर सुखकारी हो; अंति: प्रभु आवागमन निवार, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५२३६८. शीतलजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१८x१०, १०X२८). शीतलजिन पद, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी शीतल जिनवरदे; अंति: शिवपुर दीजिये रे, गाथा-३. ५२३६९. (#) अक्षरबत्तीसी, कवित्त संग्रह व शकुन श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., ( १७११, १६x२५). १. पे. नाम. अखरबतीसी, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. अक्षरबीसी-आत्महितशिक्षागर्भित, मा.गु, पद्य, आदि: कका ते किरीया करो; अंति: पांमै भवनो पार, गाथा-३३. २. पे. नाम. ओसवाल पोरवाल उत्पत्ति कवित्त, पृ. २आ, संपूर्ण. ओसवाल पोरवाल उत्पत्ति कवित, मा.गु., सं., प+ग., आदि: (१) सोवण पख सित ते समत, (२) वर्धमानजिन थकी वरस, अंति: नयर ओसवाल थिर थापीया, चौपाई. २. ३. पे. नाम. शकुन श्लोक, पृ. २आ, संपूर्ण. सामुद्रिक, शकुन, निमित्तादि संग्रह, मा.गु. सं., पग, आदि: काशीनं उत्तरे भागे, अंति: अपशकुनं शकुनी भवेत्, , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir काव्य / दुहा/कवित्त / पद्य, मा.गु., पद्म, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. लोक-१ ५२३७०. (-#) स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( १९x१०.५, १३x२८ ). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-मक्षीमंडन, मु. उदयकुशल पुहिं, पद्य, आदि: मगसीमंडन पासजिणेसर, अंति: उदयकुशल पूरो " इछीया, गाथा ५. २. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, आदिः सुगुण सोभागी हो साहि अंतिः माहरे तूहिज रे देव गाथा-५. " ४. पे. नाम. दूहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. जैनदुहा संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा - १. ५२३७१. चैत्यवंदन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६३-६० (२ से ६०) -३, कुल पे. ३. दे. (१६.५४१०, ७४१५). " १. पे. नाम. शेत्रुंजाजीरो चैत्यवंदन, पृ. ६१अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: गाथा - ५, २. पे. नाम. नवपदजीको चैत्यवंदन, पृ. ६१अ - ६१आ, संपूर्ण. (पू. वि. मात्र अंतिम गाथा के दो पद हैं.) २. पे. नाम. १६ शृंगार नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदिः आदौ मज्जनचारुचीरतिलक; अंति: श्रृंगारक षोडसः, श्लोक-१. ३. पे नाम औपदेशिक दोहा संग्रह. प्र. १आ, संपूर्ण, दोहा संग्रह, मा.गु., पच, आदि (-); अंति: (-). ३९ नवपद चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र पद वंदिय; अंति: करी पांमे शिवपुर वास, गाथा-४. ३. पे नाम. पजूसणांरो चैत्यवंदन, पृ. ६९आ-६३आ, संपूर्ण पर्युषण पर्व चैत्यवंदन, मु. प्रमोदसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सकल परब सिणगार हार, अंतिः पालतां होवे जय जयकार, गाथा - १३. ५२३७२. पार्श्वनाथजी स्तवन व श्लोक संग्रह, संपूर्ण वि. १९१७ वैशाख शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. १, कुल पे ३, प्रले. श्राव. केवल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२.५X११, १३X३१-३८). १. पे. नाम. पार्श्वनाथजीरो स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. कीरत, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुगुरु चिंतामणि अंति: कीरत० पारसनाथ की गाथा १५. , For Private and Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५२३७३. (-#) मुगती मारग स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१४११, १५-१७४३०). औपदेशिक स्तवन-मुक्तिमार्ग, मु. करण, रा., पद्य, आदि: मुगतीरो मारग दोयलो; अंति: करण० सीधारत नंद, गाथा-२३. ५२३७४. (#) नमस्कार महामंत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १४४३९-४५). नमस्कार महामंत्र, शाश्वत, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: पढम हवई मंगलम्, पद-९. नमस्कार महामंत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतनइ माहरउ; अंति: सकल वांछित फल पामइ. ५२३७५. (#) वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१७.५४११.५, १४४२३). महावीरजिन तप स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामीण बुध; अंति: आपोस्वामी सुख घणा, गाथा-१०. ५२३७६. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९०२, ज्येष्ठ शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. साचोर, प्रले.पं. राजेंद्ररुचि; अन्य. पं. चेनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१५.५४८.५, २६४१५). पार्श्वजिन स्तवन, मु. प्रधानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पारसनाथ पसायथी रे; अंति: दिणयर लील विलास रे, गाथा-७. ५२३७७. (#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०४११, ११४३२). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, मागु., पद्य, वि. १९४५, आदि: सुणता तन मन होलसे जी; अंति: कांई शुभ दिन मंगलवार, गाथा-७. २. पे. नाम. अईमुत्तामुनि सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. अइमत्तामुनि सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, वि. १९४४, आदि: एवंतामुनिवर नाव तराइ; अंति: गायो हीरालाल हो, गाथा-१४. ३. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, आदि: सेणकरायनो दिकरो रे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ३ अपूर्ण तक लिखा है.) ५२३७८. (#) तीन चौवीसी व आदिजिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०४११, ८x१६-२०). १.पे. नाम. तीन चोवीसी का नाम, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ३ चौवीसी नाम, सं., गद्य, आदि: १ निरवाणजी २ सागरजी; अंति: २४ अनंतवीरजी. २. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण.. मु. नवल, पुहि., पद्य, आदि: घडी धनि आजिकी एही; अंति: आज जिनवर का, गाथा-४. ५२३७९. (#) धन्नाशालिभद्र सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्र १४२, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१६४१५.५, १८x२३). धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अजीया जोरावर करमे; अंति: पाम्या भवजल तीर रे, गाथा-७. ५२३८०. (#) जंबूस्वामी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१६४११.५, २२४२२). जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसत सामीने वीनवू; अंति: पोता जी मोख्य मझार, गाथा-११. ५२३८१. दानअधिकार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. राजेंद्ररुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१४४१०.५, १७४१८). दान सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रसीयाराचौ दान तणे; अंति: तिलकविजयजयकार, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ४१ ५२३८२. पारसनाथ स्तवन, संपूर्ण वि. १९२६ आश्विन कृष्ण, ११, मध्यम, पू. १, प्र. मु. वनितसोम, अन्य श्राव. नानचंद चोधरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्र १४२, वे. (१५.५४१५, १५x२१). पार्श्वजिन स्तवन, मु. भक्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मुरत ताहरी हो राज ; अंति: उलसी हो भगतीविजय भणे, गाथा-७. ५२३८३. () धन्नाअणगार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्र १x२, अशुद्ध पाठ., दे., (२७X१०, २६X१६). धन्नाअणगार सज्झाय, मु. परमोसुदजी, मा.गु., पद्य, आदि: एक दिन वीरवाणी सुणी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा १३ तक लिखा है. ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir "" ५२३८४. शांतिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. प्रताप, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (१२.५x९, १२x२०). शांतिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिणेसर समरीइं; अंति: सांभलो ऋषभदासनी वाणी, गाथा-४. ५२३८५. स्तवन व पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (१७X१२, १२x२४). १. पे. नाम. शत्रुंजय स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, रा., पद्य, आदि: सरसती सामण वीनवु अंति: प्रेम घणे जिनचंद रे, गाथा-८. २. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीउडा जिनचरणांरी, अंतिः मोहन अनुभव मांगे, गाथा ६. ५२३८७. पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. कुल पे ४ वे. (१३४१२.५, २३x२४). १. पे नाम, साधारणजिन पद, पृ. १अ संपूर्ण अरिहंत स्तुति - प्रभातियुं, मु. स्वरूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत नमीजे; अंति: तेहनी आण वहीजे, गाथा-३. २. पे. नाम. परमेष्टि पद, प्र. १अ संपूर्ण. सिद्धपद स्तुति, मु. स्वरूपचंद, मा.गु., पद्य, आदिः परमेष्ठी आराधी सुगुण अंतिः थाए स्वरूप समाधि, गाथा-२. ३. पे. नाम. आत्मगुण पद, पृ. १अ संपूर्ण. मु. स्वरूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आतम गुण अभिलाख्यो; अंति: रमण रस चाख्यो अनुभवी, गाथा-२. ४. पे. नाम आचार्यपद स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. स्वरूपचंद, मा.गु., पद्य, आदिः आचारिज पद सेवा चहत; अंति: सिद्धि रमणी सुख मेवा, गाथा-३. ५२३८८. साधारणजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (१३४९, ९x१६ ). " साधारणजिन स्तुति-शत्रुंजय गिरनारमंडन, मु. लालविजय, मा.गु, पद्य, आदि: त्रिभुवन मांहे तीरथ अंतिः भविक जीवना संकट हरे, गाथा-४. " ५२३८९. परव पर्युषणा स्तुति, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्र १x२. दे. (१५.५४१३.५ १३x२९). पर्युषण पर्व स्तुति, मु. बुधविजय, मा.गु, पद्य, आदि: वीरजिणेसर अति अलवेसर, अंतिः बुधविजय जयकारी जी, गाथा-४. ५२३९०. आवककरणी सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. ४, दे. (१५.५४१०, ८४१५). " श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदिः श्रावक तुं उठे परभात अंतिः जिनहर्ष हरणी के एह, गाथा- २३. ५२३९१. (4) पार्श्वजिन स्तवन व सोलह सती नाम, संपूर्ण वि. २०बी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (१५.५x१०.५, १२४२५). , १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदिः ॐ नमः पार्श्वनाथाय अंतिः पूरय मे वांछितं नाथ, २. पे नाम, सोलह सती स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण १६ सती स्तुति, सं., पद्य, आदि ब्राह्मी चंदनबालिका, अंतिः कुर्वंतु वो मंगलम् श्लोक-१. ५२३९३. पार्श्वनाथ आरती व लोकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे, ३, दे. (१६४१०.५, १२x२३). For Private and Personal Use Only श्लोक- ५. Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. पार्श्वनाथ आरती, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन आरती, मु. मतिहंस, पुहिं, पद्य, आदि: पहिली आरती अश्वसेन, अंतिः प्रभुजी की आरती गाई, गाथा- ९. २. पे. नाम. अक्षीहिणीसैन्य मान, पु. १ आ. संपूर्ण. सं., पद्य, आदिः यसकोटिदसलक्षाणि सत्य, अंतिः प्रमाणं मुनयो वदति श्लोक-३. 3 ३. पे. नाम त्रिविधधूर्त लक्षण दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), दोहा-३. ५२३९५. वैराग्यपचीसी, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, दे. (१८.५x१०.५, १०x२४). वैराग्यपच्चीसी, मु. मेघलाभ, मा.गु., पद्य वि. १८७४, आदि: माताने उदरे उपनो नव; अंतिः मेघलाभ कहे हेते भावे, गाथा - २५. ५२३९६. अष्टमी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे. (१६.५४१०.५, १७५१६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु, पद्य, आदि आठम कहे आठ मदने; अंतिः लब्धि० पुन्यनी रेहरे, गाथा - ९. ५२३९७, () शनिश्चर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (१७.५x१२, २३x२१). ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य अंतिः वृद्धिं जयं कुरु श्लोक-२२. ५२३९८. (-#) स्तवन संग्रह व सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र. वि. पत्र १x२, अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२४.५४१०, ५३X२३). . , १. पे. नाम वीरजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन- दीपावलीपर्व, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मारग देशक मोक्षनो रे; अंति: देवचंद्र पद लीध रे, गाथा - ९. २. पे. नाम भाविपद्मनाभ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पद्मनाभजिन स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी आदि वाटडी वीलोकुरे भावी, अंति: देवचंद० करता परमानंद, गाथा-७. ३. पे. नाम. ममता समता सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक सज्झाय, मु. दयानंद, मा.गु., पद्य, आदि: अणसमज्यां दिलमें; अंति: अब मे पण चाकर छांजी, गाथा - २८. ४. पे. नाम संभवजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कवियण, पुहिं., पद्य, आदि: अरज करूं सांभलि मुझ; अंति: कवियण० साहिब मलीयो, गाथा - १०. ५. पे नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कवियण, पुहिं., पद्य, आदि: सहज सलूणी सोहइ प्रभू: अंति: जीनजीसुं रंग लागो, गाथा- ७. ५२३९९. (#) ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१८.५X१०.५, २०X१३). शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: चालो सखी सिद्धाचल अंतिः शिष्य कनकगुण गाव, गाथा-७. ५२४००. सीमंधर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१६X१०.५, १८x१५). . सीमंधरजिन स्तवन, मु. दीपविजय, पुहिं., पद्य, आदि: अब मेरी सार करो; अंति: दीप० तो तुम बिहो अब, गाथा-५. ५२४०१, (+) स्तवन व सवैया संग्रह, अपूर्ण, वि. १८७६, आषाद कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. ३-२ (१ से २) =१, कुलपे, ६, प्रले. मु. देवचंद्र (गुरु पं. ऋषभविजय गणि); गुपि. पं. ऋषभविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ-टिप्पणयुक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २१.५X११.५, १४X३८). १. पे नाम, गोडीजीना सवैया, पृ. ३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. हितविजय, पुहिं., पद्य, आदि: तुमहि अंब हमको कबेठ, अंति: हीत० प्रभु असण सरन, सवैया-२. २. पे. नाम, सिद्धाचलजीनो स्तवन, पृ. ३अ संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. कांतिविजयजी, मा.गु., पद्य, आदि: श्री रे सिद्धाचल, अंति: कांति० विमलाचल गायो, गाथा - ५. ३. पे. नाम. ऋषभदेवजीनो सवैयो, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. आदिजिन सवैया, मु. खेम पुहिं, पद्य, आदि: संपति दायक हे जगनायक, अंतिः खेम सदा सीर नामी, सवैया- १. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथजीनो सवैयो, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन सवैया, मु. कल्याण, पुहिं., पद्य, आदि: सदा गुण वीमल अमल, अंति: पास कल्लाण अकारि, सवैया-२. ५. पे नाम, शांतिजिन सवैयो, पृ. ३आ, संपूर्ण. शांतिजिन सवैया, मु. धर्मसिंह, पुहिं., पद्य, आदि: छोर षट्ट खंड भार, अंति: धर्मसी० बोले संत संत, सवैया- १. ६. पे. नाम, गोडीपार्श्वनाथ स्तनव, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी पुहिं, पद्म, आदि: श्रीगोडि पार्श्वनाथ, अंतिः घर दालिद्र दुरे पलाव, गाथा- १. ५२४०२. () सज्झाय व बारहमासा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, दे., (१९.५X१०, १५x२७). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. राम, पुहिं., पद्य, आदि: रे मन समज तु जगत, अंति: राम० जीव मन दीनचार, गाथा-५. २. पे. नाम. औपदेशिक बारहमासा, पृ. १अ - १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक बारमासो, मा.गु., पद्य, आदि: चेत चालाण इहइ सजाण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ६ अपूर्ण तक है.) ५२४०३. स्तवन व थुई, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २. प्र. ले. लो. (२८२) जीहा लग मेरु अडग है, वे. (१३४१०, १६x२१). १. पे नाम, चौथा महाव्रत सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. शीयलव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. २०बी, आदि: सरसती केरा रे चरणकमल, अंतिः कांतिविजय० पालो नरनार, गाथा- ८. २. पे. नाम. रोहीणरी थुइ, पृ. १आ, संपूर्ण. रोहिणीतप स्तुति, मु. लब्धिरूचि, मा.गु, पद्य, आदि जयकारी जिनवर वासपूज, अंति देवी लब्धिरूची जयकार, ४३ गाथा-४. ५२४०४ (०) शत्रुंजय स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (१५.५X१०.५, १३५२५). शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: ते दन क्यारे आवसे; अंति: उदयरतन० तुम पदवी जासु, गाथा- ८. ५२४०५. चिंतामणी पार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. विवेकवर्द्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२१.५x११, ११x२९). पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणि देवकुलपाटकस्थ, सं., पद्य, आदि: नमो देवनागेंद्रमंदार, अंतिः चिंतामणं पार्थः श्लोक- ७. ५२४०६. (-) नारकी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. धावाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे., ( १९.५x१०.५, १४४३६). नारकी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: एतत कृत महानारकि नेम; अंतिः थाले दुख ते थोस नाम, गाथा-१५. ५२४०८. पद व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (१६X१०.५, १४-१८X२१). 1 १. पे नाम, औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. गिरधर, पुहिं., पद्य, आदि: हीरा झुरवति खानिकुं; अंति: गिरधर० झुरवती हीरा, गाथा - २. २. पे. नाम. परनिंदात्याग पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं, पद्य, आदि आदिसकती इश्वरी सरणा, अंतिः सोपे जा रह मेस, गाथा-४. ३. पे. नाम महावीरतपस्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन तप स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: गोतमसामी बुधि दीयो; अंति: (-), (पू. वि. गाथा ८ तक है.) ५२४१०. (-#) पंचमी सझाय, संपूर्ण, वि. १९३४, फाल्गुन शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. हीराचंद, पठ. मु. वनेचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्र १४३, अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २९x१०.५, २१X१२). For Private and Personal Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पंचमीतिथि सज्झाय, मु. महानंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवीर इम उपदिसे; अंति: महानंद० करे ततसार, गाथा-८. ५२४११. (#) महावीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले.पं. रंगविजयजी गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०.५४११, २७४१६). महावीरजिन स्तुति-गांधारमंडन, मु. जसविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गंधारै महावीर जिणंद; अंति: जसविजय जयकारी, गाथा-४. ५२४१२. (#) गोडीपार्श्वनाथ स्तवन व प्रस्ताविक गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२२.५४१०.५, १३४२०-२२). १. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनभक्ति, सं., पद्य, आदि: जय जय गोडीजी महाराज; अंति: जिनभक्ति० सदैव, श्लोक-९. २. पे. नाम. प्रस्ताविक गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. जैनगाथा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-३. ५२४१३. (+) पार्श्वजिन स्तवन व औपदेशिक गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. प्रत के अन्त में उर्दू लिपि में कुछ लिखा हुआ है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२०.५४१०, १४४३६). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. चतुरहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: पासजिणेसरजी हो सांभल; अंति: चतुरहरष० भव आपणौ दास, गाथा-९. २. पे. नाम. गोडीपार्श्व स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. चतुरहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: पासजिणेसर अंतरजामी; अंति: चतुरहरष०बंदै पाया हे, गाथा-९. ३. पे. नाम. औपदेशिक गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ५२४१४. स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. प्रत के दोनो ओर नीचे उर्दु लिपि में कुछ लिखा हुआ है., दे., (२०x१०.५, १४४३४). स्तवनचौवीसी, श्राव. विनयचंद्र गोकलचंद कुमट, मा.गु., पद्य, वि. १९०६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्तवन १ गाथा ७ अपूर्ण से स्तवन ४ गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ५२४१५. (८) दानशीलतपभावना सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२०४११, ८x२७). दानशीलतपभावना सज्झाय, मु. जयैतादास, मा.गु., पद्य, आदि: दान एक मन देह जीवडे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १० तक है.) ५२४१६. (#) पद वस्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०.५४११,१६५३०). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जगजीव दियो मेले; अंति: जेनता पद गावता, गाथा-४. २. पे. नाम. दानशीलतपभावना सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: कर ले मनी उस दिन की; अंति: एक जो पावा भव तीर कर, गाथा-७. ३. पे. नाम. नेमराजुल स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. सोहनलाल, पुहिं., पद्य, आदि: कितना दुर गिरनारी; अंति: सोहण नमो तिन वारी, गाथा-५. ४. पे. नाम. सीताराम पद, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुहि., पद्य, आदि: रामजीरो वत भर जेना; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ५ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५२४१७. (4) पंचकल्याणक स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०.५४११, १८X५३). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंचकल्याणक स्तवन, मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, आदि नमिव पयकमल सुभ भावि अंतिः पुण्यसाग० आराहउ मुदा, गाथा - २१. ५२४१८. (*) सज्झाय व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ६-५ (१ से ५) = १. कुल पे २, ले. स्थल. डगग्राम, प्र. वि. संशोधित. दे. (२०.५X१०.५, १३४२५-३४). " १. पे. नाम औपदेशिक सज्जाय, पृ. ६अ, संपूर्ण प्रले. मु. मलजी, प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक सज्झाय, मु. धर्म, मा.गु, पद्य, बि. १९३६, आदि: प्रभु पर उपगारी जीवन, अंतिः धर्म० परसादे गाइजी, गाथा-८. २. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन प्र. ६ अ - ६आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. जेमल ऋषि, मा.गु, पद्य, आदि: श्रीसीमंदर सायाव दील, अंति: जेमल० जोडी छे हातोजी, गाथा - १०. ५२४१९. चौवीस जिनपरिवार सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. रूपरूची, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०x१०, ३१x२३). २४ जिनपरिवार सज्झाय, ग. वच्छ, मा.गु., पद्य, आदि आराही अनु दिन अरिहंत, अति गणि वछु पभणे आनंद, गाथा - १५. ५२४२० (७) वानिया जाति नाम, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १० ९(१ से १) - १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०.५X१०.५, ९४२४). ८४ वणिगजाति नाम, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-) (पू.वि. जीवाजा काचा पाठ से पंखाला पारंगत पाठ तक है.) ५२४२१. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, वे. (२०x१०.५, ६-८४१५). पार्श्वजिन स्तवन, मु. सरूपचंद, पुहिं, पद्य, आदि प्रभुजी दरसण द्यो, अतिः सरूपचंद० दाय न आवजी, गाथा- ४. ५२४२२. () धर्मजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, दे. (२१११.५, ८४१८). धर्मजिन स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि : एम करीये रे नेहडो एम, अंति: सुख रंगे वरिये जी, गाथा - ६. ५२४२३. जिनबानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९४२, पौष शुक्ल, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. अब्रस, लिख. श्राव. रामदास साह सेठ; अन्य. मु. लालचंद; मु. अनंतमल, मु. धर्मचंद, प्र.ले.पु. मध्यम, दे., (२०x११, १०X२७). साधारणजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: दुखहरण जिणेंद्र कर्म, अंति: दयो तुमे ज्ञान पाया, गाथा-१०. ५२४२५. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे. (२२.५X११, १३-१६४३३-३६). ४५ जिनवाणी सज्झाय, मु. सेरुराम, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिनवानी को पड लय; अंति: सेरुराम० सुगड सुजान, गाथा- १२. ५२४२४. (#) साधारणजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०x१०.५, १२x२२-२५). १. पे. नाम. मृगापुत्र सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि: पुर सुग्रीव सोहावणौ, अंति: खेम० सुधि परणाम हो, गाथा - १७. २. पे. नाम. सीतासती सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. हर्षकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सीता जुग मोटी सतीजी अंति: हरषकुसल० पामै लील जी, गाथा- ७. ५२४२६. पार्श्वनाथ हालरु, संपूर्ण वि. १९६५ फाल्गुन शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. २, ले, स्थल, मढार, प्रले. मु. पुनमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २१.५X११.५, १०X३२). For Private and Personal Use Only पार्श्वजिन पाल ग. उत्तमविजय, मा.गु, पद्य, आदि: माता वामादे झूलावे, अंति: उत्तमविजय विलास, गाथा-१५. ५२४२७. (4) स्तवन संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे ७. प्र. वि. पत्र १४२, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., ( २०X१०, ३६x२४). Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४६ www.kobatirth.org १. पे. नाम कीर्त्तिरत्नसूरि स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. मु. चंद्रकीर्ति, मा.गु, पद्य, आदि: कीर्तिरत्नसूरिंद तणी, अंति: चंद्रकीरति० ध्यावे, गाथा- १२. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. कीर्त्तिरत्नसूरि स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. . ललितकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: कीर्तिरत्नसूरि वंदीय, अंति: ललितकीरति० जय जयकार, गाथा- ९. ३. पे नाम कीर्तिरत्नसूरि छंद, पृ. १अ संपूर्ण. मु. जयकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: कीर्तिरतनसूरींदा, अंति: जयकीरति० पावै हो, गाथा - १२. ४. पे. नाम. कीर्तिरत्नसूरि छंद, पृ. १अ, संपूर्ण, पे. वि. पत्र का अंतिम भाग टूटा होने से कृति अपूर्ण हैं. मु. अभयविलासजी, मा.गु., पद्य, आदि: सद्गुरु चरण नमो चित अंति: (-) (वि. खड़ा पत्र का अन्तिम भाग खंडित होने कारण इस कृति की मात्र गाथा ३ अपूर्ण तक ही उपलब्ध है.) ५. पे. नाम. चोवीसी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मु. लालविनोद, मा.गु., पद्य, आदि जे जे आदि सदा अरिहंत, अंति लालविनोद० फल पाइये, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा ५. ६. पे. नाम. चौवीसजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मु. रिखजी, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु श्रीआदिनाथ अजित; अंति: रिखजी० सुखारी खाण है, गाथा-८. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनरंग, पुहि., पद्य, आदिः मे मुख देख्यो पारस अंति: तारण तरण जिहास, गाधा-५ " ५२४२८. लघु गौतम रास व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे. (१९.५x१०.५, ९१७). १. पे. नाम. लघु गोतम रासो, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी गीत, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी नित प्रणमीय; अंतिः होज्यो वंदना वारंवार, गाथा-५. २. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण मु. जिनलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ जिनेसर नित प्रति अंति: जिनलाभ० भव निसतर रे, गाथा-८. ५२४२९. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२०x१०.५, १x२१). (२०X१२, १०X२५). १. पे. नाम. गौतमस्वामी सज्झाय, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन- धुलेवामंडन, मु. सुखलाल, पुहिं., पद्य वि. १९१४, आदि: सुं करुं ए वीनती भव, अंतिः सुखलाल खाणै हो जी, गाथा-७. ५२४३०. () गौतमस्वामी सज्झाय व प्रस्ताविक श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे., आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि गौतमस्वामी पूछा करे; अंतिः पामे सुख अधाग हो, गाथा १६. , २. पे. नाम. प्रस्ताविक श्लोक, पृ. २आ, संपूर्ण. लोक संग्रह, प्रा.मा.गु. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-) श्लोक-१. " ५२४३१. () सज्झाय व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ११, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२१X११, १८x४५). १. पे. नाम. मानतुंगमानवती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मानतुंगमानवती रास, अनुपचंद-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १८७०, आदि: (-); अंतिः जयनगरे विनयचंद एकही (प्रतिपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम ढाल है.) २. पे. नाम. कर्मविपाकफल सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि देव दाणव तीर्थंकर, अंतिः नमो कर्म महाराजा रे, गाथा १८. - For Private and Personal Use Only ३. पे. नाम. श्रावकतुंगीया सज्झाय, पृ. १आ-२अ संपूर्ण तुंगीया श्रावक सज्झाय, मु. कनिराम, मा.गु., पद्य, वि. १९९७, आदि: श्रावक तुंगीया तणा, अंतिः कनिरामजी गुण गाय, गाथा १६. ४. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ संपूर्ण. Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ मु. कनिराम, मा.गु., पद्य, वि. १९३०, आदि: चतुर नर चेतज्यो निको; अंति: कनिराम० सिवपुर वास, गाथा-१३. ५. पे. नाम. दसबोल सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. १० बोल सज्झाय, मु. मगन, पुहि., पद्य, आदि: चेतन चेतोरे दशबोल; अंति: मगन०महीमाहि कहोवो रे, गाथा-७. ६.पे. नाम. आहार सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. अकल्पनीय आहारदान सज्झाय, रा., पद्य, आदि: खुसमदी कर दातारनी; अंति: भोगवै जारी हु बलिहार, गाथा-२३. ७. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. आहार गवेषणा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: तीजी समती एषणा आहार; अंति: स्त्री हुवै भोले, गाथा-९. ८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: घर त्याग दीया जव; अंति: रतन०सागर सूखसू तिरणा, गाथा-४. ९. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मात पिता सुत वंधवा; अंति: सुणनै सामो रह्यो जोय, गाथा-७. १०. पे. नाम. साधुआचार सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: कोई कहै साधु पधारिया; अंति: ग्यान तिण लाद्धोरे, गाथा-५. ११. पे. नाम. क्षुधा सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. शिवलाल, पुहिं., पद्य, आदि: वेदना क्षुधा की भारी; अंति: शिवलाल० ताकी वलिहारी, गाथा-१२. ५२४३२. (#) वैराग्य सझाय, संपूर्ण, वि. १८३१, आषाढ़ कृष्ण, २, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. मोरसी, प्रले.ग. खुशालचंद (अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२४११.५, ३३४२१). औपदेशिक सज्झाय, क. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जिणवर इम उपदिसै आगै; अंति: इम पभणै रूपचंद रे, गाथा-२१. ५२४३३. (#) तप सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२४१०.५, ११४२८). तप सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कीधा कर्मनि कहिए रे; अंति: उदय० दुरगती जाए दुरे, गाथा-७. ५२४३४. (#) बाहुबली सज्झाय व नेमराजुल स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८९, वैशाख शुक्ल, ११, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. कमेडीग्राम, पठ. ऋ. चारित्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१०.५, १२४३२). १. पे. नाम. बाहुबली सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: बाहुबलि दिक्षा ग्रही; अंति: राम०तस पद वारोवार रे, गाथा-१०. २. पे. नाम. नेमराजूल स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.. नेमिजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: दोय घडीया बेवारी; अंति: ज्ञानविमल रह जा, गाथा-७. ५२४३५. (-2) प्रतिक्रमण विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. जोगनी यंत्र दिया हुआ है., अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०x१०.५, ११४२२-२७). १. पे. नाम. पोसह विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पौषध विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम, (वि. पोषह व सामायिक दोनो की विधि लिखी हुई है.) २. पे. नाम. देवसीपडिकमणो विधि, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पहली नोकार बलजे पछै; अंति: काउसग्ग करीजे. ५२४३६. आदीत्यवार वेली कथा, संपूर्ण, वि. १८७८, आषाढ़ कृष्ण, ११, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. चाणस्मा, प्रले. पं. ऋषभविजय गणि (गुरु पं. रंगविजय गणि); गुपि.पं. रंगविजय गणि (गुरु पं. कृष्णविजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४१०, ११४३३). रविवारव्रत कथा, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: सुखकर प्रणमुं सरसति; अंति: कांति० रवी जय जयकार, गाथा-३२. For Private and Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५२४३८. (#) चतुर्विंशति तीर्थंकर राजकुमार पदवी विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४११.५, १३४३४). २४ तीर्थंकर नाम, आयुमान, देहमान, वर्ण, राज्यकाल, तपकाल आदि विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीआदिनाथ को आउषो; अंति: हाथ देहमान पीतवर्ण. ५२४३९. (#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१४१२, २३४१९). १. पे. नाम. चोवीसजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: नतसुरेंद्रजिनेंद्र; अंति: पूज्यतमा मम मंगलम्, श्लोक-९. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. भक्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मुरत ताहरी हो राज; अंति: उलसी हो भगतीविजय भणे, गाथा-७. ३. पे. नाम. वासुपूज्य स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: नायक मोह नचावीयो; अंति: जपें इम जिनराजो रे, गाथा-५. ५२४४०. (-2) सज्झाय, गाथा व औपदेशिक सवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्रले. श्राव. नथु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१.५४११.५, १३४२८). १. पे. नाम. मृगापुत्र सज्झाय, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि: सुगरीपुर नगर सोहामणौ; अंति: दीन दीन कोडकल्याण हो, गाथा-१५. २. पे. नाम. प्रस्ताविक गाथा, पृ. ३अ, संपूर्ण. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ३. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.. क. सोम, पुहिं., पद्य, आदि: एक समे वृषभाण वीसंबर; अंति: सोमरेख टरे नहे टारी, सवैया-५. ५२४४१. (#) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१०, १२४४३). १.पे. नाम. सास्वतजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: जायते मानवानाम्, श्लोक-९. २. पे. नाम. बृहस्पति स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण.. वृहस्पति स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ वृहस्पतिः; अंति: सुप्रीतश्च प्रजायते, श्लोक-४. ५२४४२. वीरजिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३४१०, १२४३२). महावीरजिन स्तवन, मु. वीर, मा.गु., पद्य, आदि: वीरकुंवरनी वातडी; अंति: सुभवीर० साधी अनंत, गाथा-१०. ५२४४४. स्तवन व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२४१०.५, १०४२०). १. पे. नाम. शांतिनाथजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८७३, ज्येष्ठ कृष्ण, ९, सम. मु. खुसाल, प्र.ले.पु. सामान्य. शांतिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिणेसर समरीइं; अंति: रिषभदासनी वाणी, गाथा-४. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैन सामान्यकृति*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा २ अपूर्ण तक है.) ५२४४५. (-#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८४५, ज्येष्ठ कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २,प्र.वि. श्रीआदिनाथजी प्रसादात्, अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१०, १२-१६४३०). १. पे. नाम. शेव॒जयतीर्थराज स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. आदिजिन बृहत्स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमीअसयल जिणंद; अंति: जिम पामो भवपार ए, गाथा-४२. For Private and Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ २.पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-जन्मबधाई, मा.गु., पद्य, आदि: आज तो वधाइ राजा नाभि; अंति: निरंजन आदिसर दयालरे, गाथा-६. ५२४४६. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२०.५४१०.५, १३४२६). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सहीयां मोरी चालो; अंति: ऋद्धिहरष जोडि हाथ हे, गाथा-१३. ५२४४७. (-2) स्तवन व सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०.५४११.५, २२४२०). १. पे. नाम. वीरतप स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-तपवर्णन, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती सामण द्यो मती; अंति: टाल स्वामी दुख घणा, गाथा-१०. २. पे. नाम. पंचमीतप सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. पंचमीतिथितप स्तवन, मु. जससौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: पासजिणेसर प्रणमी पाय; अंति: जससोभाग घणेरो लहे, गाथा-७. ३. पे. नाम. वीसस्थानक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप सज्झाय, मु. उदयहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी गोयम गणहर; अंति: उदयहरष मन भावे कहे. गाथा-८. ५२४४८. (#) उपदेशसित्तरी, सज्झाय व आलोयणछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १७९५, वैशाख कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, ले.स्थल. द्राफा, प्रले. मु. पुजा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र १४८, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०४११.५, १६-३०४२४). १.पे. नाम. उपदेशसित्तरी, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. पृष्ठ १अ पर प्रारंभ करके शेष भाग १आ पर लिखा हुआ है. औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उतपत जोज्यो आपणी मन; अंति: रंगे इम कहे श्रीसार, गाथा-७१. २. पे. नाम. पाप आलोअण ३६, पृ. १अ, संपूर्ण.. आलोयणाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६९८, आदि: पाप आलोय तूं आपणा; अंति: समय० आलोएणा उछाहि, गाथा-३६. ३. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. जीवोत्पत्तिकारण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: उतपति जोइनइ आपणी; अंति: जिम पोहोचो निरवाण रे, गाथा-३१. ४. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. राजसमुद्र, पुहि., पद्य, आदि: एक कनक और कामिनी; अति: राजसमुद्र० के सब कोई, गाथा-५. ५. पे. नाम. औपदेशिक साखी, पृ. १आ, संपूर्ण. कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: मो मन तो गाफिल भया; अंति: फंदे से न्यारा रहे, गाथा-१३. ५२४४९. (+) रत्नसार रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१४९.५, ११४२६). रत्नसारकुमार रास, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १५८२, आदि: सरसति हंसगमनि पय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १३ अपूर्ण तक है.) ५२४५०. (+) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३४१०.५, १४४३९). १. पे. नाम. अंतरिकजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षजी, ग. माणिक्य वाचक, मा.गु., पद्य, वि. १८९१, आदि: वामासुत० वदन विलोकी; अंति: माणिक्य०पाश उमंगेरे, गाथा-१३. २. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७८९, आदि: जगपति तारक श्रीजिनदे; अंति: भगवतं भावेंसू भावीआ, गाथा ५. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३. पे. नाम. संभवनाथ स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. संभवजिन स्तवन- पंचकल्याणतिथि गर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: साचो शंभवनाथ दिलमा, अंति: (-), (पू.वि. गाथा ७ अपूर्ण तक है.) ५२४५१. स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दे., (२३X११.५, १५X४०). स्तवनचौवीसी, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मरुदेवीनो नंद माहरो; अंति: (-), (पू.वि. अरजिन अपूर्ण तक है.) ५२४५२. मृगापुत्र सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैदे. (२२.५x१०.५, ३२x२५). मृगापुत्र सज्झाय, मु. सिंहविमल, मा.गु., पद्य, आदिः सुग्रीवनयर सुहामणो; अंतिः होजो तास प्रणाम रे, गाथा-२२. ५२४५३. गोडीजिन छंद व अष्टमी चेतवंदण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, दे., ( २३१०.५, ११x२७). १. पे नाम, गोडी पार्श्वनाथ छंद. पृ. १अ ३अ संपूर्ण, पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीथलपति थलदेशे; अंति: कांतिविजय० गोड धवल, गाथा ३७. २. पे नाम, अष्टमी चेतवंदण, पृ. ३आ, संपूर्ण, अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: महा सुदी आठमने दिने, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ५ अपूर्ण तक है.) ५२४५६. सीख सवासो गाथावली, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. प्रमाणरुचि शिष्य (गुरु पं. प्रमाणरुचि); गुपि. पं. प्रमाणरुचि (गुरु पं. देवरुचि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २३११, १५X४०). औपदेशिक सवैया, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसदगुरु उपदेश; अंतिः श्रीधर्मसी उवज्झाय, गाथा - ३६. ५२४५८. (४) उपधान स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २. प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे., ( २२x१२, १२X३१). महावीर जिन स्तवन- उपधानतपविधिगर्भित, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३, आदि: श्रीवीरजिणेसर सुपरें, अंतिः वेजो मुझने भवोभवे, गाथा-२६. ५२४५९. (+) स्तवन संग्रह व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८६७, वैशाख शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. पं. सदासुख, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैवे. (२३१०.५, १२४३२). , १. पे. नाम. गिरनारशत्रुंजय तीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. गिरनारशत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारो सोरठ देश देखाव; अंति: ज्ञानविमल० सिर धरीया, गाथा- ७. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. ,जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: जय बोलो पास जिनेसर, अंति: जिनचंद० सुरतरु की, गाथा-७. ३. पे. नाम. मोक्षनगर सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मोक्ष सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु, पद्य, आदि: मोक्षनगर मारुं सासरु; अंतिः छे मुक्तिनी खाण रे, गाथा-५. ५२४६०. पार्श्वजिन छंद व औपदेशिक गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२x१०.५, १३X३४). १. पे. नाम. शंखेश्वर छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरतीर्थ, ग. कुंअरविजय, मा.गु., पद्म, आदि: प्र उठी प्रणमे पास, अंतिः कुअरविजय० गुण गाया, गाथा - ११. २. पे. नाम औपदेशिक गाथा. पृ. १आ, संपूर्ण. मु. न्यानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गरझी आगल घर जीयो; अंतिः मानीयो सडफ देइने जाय, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५२४६१. नेमनाथ बारमासो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. सुरत, प्रले. मु. लखमीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४११.५,१३४३४). नेमराजिमती बारमासो, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: सरवण मासे साम मेली; अंति: कविअणनवनिधी पामीरे, गाथा-१३. ५२४६२. नवकार सार व चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२३४१०.५, १२४३१). १.पे. नाम. नवकार सार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. साधु आचार विवरण, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: दिपमाहि पनर खेत्र; अंति: त्रिकालवंदना हुओ. २.पे. नाम. शत्रुजय गिरनार चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रुजयगिरनारतीर्थ स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: तिनभुवनमांहि तीरथसार; अंति: सर्व जीव सुखसंपत करे, गाथा-४. ५२४६३. तंबाखूस्वाध्याय व द्वादस भवन विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३४११, १७४४०). १.पे. नाम. तमाखु स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-तमाकुत्याग, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतम सेती विनवे; अंति: तेहने कोडि कल्याण, गाथा-१८. २.पे. नाम. द्वादस भवन विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष , मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: तन भवन धन भवन सहज; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रारंभ करके छोड़ दिया है.) ५२४६५. (+) स्तोत्र, स्तवन, पद व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, २२४५५). १.पे. नाम. गूढार्थ श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह-गूढार्थगर्भित, सं., पद्य, आदि: पति प्रवासी च गतो; अंति: पातु देवी भग नामधेया, श्लोक-३. २.पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, आदि: मारुजी नीद नयणां बिच; अंति: दोहलो वखणरो देश हो, गाथा-३. ३. पे. नाम. पार्श्वप्रभु स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: साहिबा पास जिणेसर; अंति: दीजे पद अरचंद हो, गाथा-५. ४. पे. नाम. वीर स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी तुमे तो क्या; अंति: उदयरतन० वडाई प्यारा, गाथा-११. ५. पे. नाम. पंचासरा स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरा, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बंदा छांजी पासी खिज; अंति: मोहनविजये गायो, गाथा-७. ६. पे. नाम. दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: सोना लेवन पीउ गए; अंति: जीहां उपजन हे सोना, गाथा-२. ७. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: चईयः कीयः श्रेणी; अंति: कपर चयो दुर्लभ मतिः, श्लोक-१. ८. पे. नाम. कवित्त संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. काव्य/दहा/कवित्त/पद्य* मा.ग., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५२४६६. सज्झाय व स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४१०.५, १२४४५). १. पे. नाम. हर्षचंद सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रंग, मा.गु., पद्य, आदि: आज गछराज शिरताज; अंति: रंग कहे० रवि गगनवासी, गाथा-९. २. पे. नाम. भारती स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: विपुलसौख्यमनंतधनागमं; अंति: दिनं हृदये कमलापति, श्लोक-१५. For Private and Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५२४६८. शांतिनाथ छंद, संपूर्ण वि. १८६९ श्रावण कृष्ण, १०, बुधवार, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल, श्रीमालनगर, प्रले. मु. राजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीपार्श्वनाथ प्रसादात् जैदे (२४४११.५, १२x२७). " " , शांतिजिन स्तवन, आ. दयासागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिणेसर प्रणमुं; अंति: गावे श्रीदयासागरसूर, गाथा- १८. ५२४६९. स्थूलीभद्र सझाय, संपूर्ण, वि. १८५१, श्रावण शुक्ल, ८, सोमवार, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२३.५X११.५, १३X३४). स्थूलभद्रमुनि नवरसो ढाल व दूहा, उपा. उदयरत्न, मु. दीपविजय, मा.गु. पच, वि. १७५९, आदिः सुखसंपति दायक सदा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल ७ तक लिखा है.) ५२४७०. पार्श्वजिन स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., ( २४x११, ९X३६). पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः श्रीपार्थः पातु वो अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ३२ अपूर्ण तक है.) ५२४७१. (+) पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८०२, माघ शुक्ल, ११, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. वडग्राम, प्रले. ग. कुंअररुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मध्य फुल्लिका स्वस्तिकमय, टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैवे. (२३.५४१०.५, १३४५४). " पार्श्वजिन स्तवन- केवलाक्षर, मु. शिवसुंदर, सं., पद्य, आदि: भवदवलवन तमजलद समसम, अंति: शिवसुंदर० कदंब कद, श्लोक-११. ५२४७२. (+) संमूर्च्छिम पंचेंद्री जीवोत्पत्ति विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२४.५X१०.५, १४४४६). संमूर्च्छिम पंचेंद्रिय जीवोत्पत्ति विचार- विविध आगमोद्धृत, प्रा., गद्य, आदि: कहन्नं भंते जीवा, अंति: उयाचेव कालं करेंति. ५२४७३. जिन बर्दावली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२४४११, ११X३२). " जिनगुण बिरदावलीबत्रीसी, मा.गु., पद्य, आदि: जय संसार सागर सकल; अंति: नमस्ते नमस्ते, गाथा - ३३. ५२४७४. सज्झाच व छंद, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैवे (२३४१०.५, ९-११x२९) 3 " १. पे नाम, नवपद सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण वि. १८७६, आश्विन कृष्ण, ९, ले. स्थल, पालीताणा, प्रले. पं. सदारुचि, प्र.ले.पु. सामान्य. नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि - शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: सुरवर सीस रसाल, गाथा ६. २. पे. नाम. माणिभद्र छंद, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. माणिभद्रवीर छंद, मु. उदयकुसल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन द्यो सरसती, अंति (-), (पू. वि. गाथा १४ अपूर्ण तक है.) ५२४७६. स्थंभनक पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, जैदे. (२४४११, १३४३७). पार्श्वजिन स्तवन- स्तंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु प्रणमुं रे पास, अंति: आणी कुशललाभ पपए, ढाल - ५, गाथा - १८. ५२४७७. अध्यात्मगीता, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., ( २३११, १७x४२). अध्यात्मगीता. ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणमी विश्वहित जैन, अंति: रंगी मुनि सुप्रतीता, गाथा- ४९. ५२४७८. वीरजिन गुणस्थानक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४×१०.५, १६x४३). महावीरजिन स्तवन- १४ गुणस्थानकविचारगर्भित, ग. सहजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: महावीर जिनरायना पय; अंतिः जंपड़ वीरजिन सेवो सदा, गाथा- २३. ५२४७९. आलोयणा विधि, शाश्वत जिनविंव संख्या व संमुर्च्छिमजीव उत्पत्ति स्थान, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२३.५X११.५, १२x२७). १. पे. नाम. आलोयणा विधि, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. श्रावक मोयकाबोल की आलोयणा, मा.गु., गद्य, आदि: अणगल जल बावरै अणगलित; अंति: दोष लागे उपवा एक. २. पे. नाम. उर्ध्वलोक शास्वत जिनबिंब संख्या, पृ. १आ-२ आ. संपूर्ण For Private and Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ शाश्वतजिनबिंबप्रासाद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम सौधर्म देवलोके; अंति: ऊर्ध्वलोके वांदु. ३. पे नाम. मनुष्यने समुमि जीव उत्पत्ति स्थान, पृ. २आ, संपूर्ण मनुष्य व संमूर्च्छिम जीव उत्पत्ति स्थान, मा.गु., गद्य, आदि: मनुष्यनै समुर्छिम, अंतिः समुर्छिम उपजै. ५२४८०. पंचमीतप स्तवन, अपूर्ण, वि. २०बी, मध्यम, पृ. १. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. वे. (२४४११, १४४४०). ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन- बृहत् उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगुरुपाय अंति: (-), ( पू. वि. गाथा १९ अपूर्ण तक है) ५२४८१. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. वे. (२४४११, १७४३९-४४). पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. नेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि भाव घरी भजना करु आपो अंति: (-), (पू. वि. ढाल १६ अपूर्ण तक है.) ५२४८२. सज्झाय व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) -१, कुल पे. ३ ले स्थल. मलाड, प्रले. पं. राजेंद्ररुचि, 3 ढाल - २, गाथा - १५. २. पे. नाम. नेमजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५X११.५, ११x२९). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-दुर्मतिविषये, मा.गु., पद्य, आदि: हे दुरमतडि वेहेरण थई, अंति: घन आनंद पद तेही वरसे, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: प्यारो नेम मिले तो; अंति: रूपचंदसै वादीजीइं हौ, गाथा-४. ३. पे. नाम महावीरजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण ५३ मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: अंगीया मेरा जिनजीसु; अंति: रूपचंद० प्रभु एक घडी, गाथा- ४. ५२४८३. सज्झाय, छंद व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, जैदे., (२३.५x१०.५, १८x४०-४३). १. पे. नाम. सोल सुपन सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती सामिण वीनमुं अंति: इम भणइ सहगुरु सार ए. गाथा - २७. २. पे. नाम. अजारा सरस्वती छंद, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण सरस्वतीदेवी छंद-अजारीतीर्थ, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता मन आणी; अंति: करे अस्या फलसी ताहरी, गाथा - ३५. ३. पे. नाम. रिषभजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, उपा. कांतिसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि : आज सफल दिन माहरो; अंति: कांतिसुंदर० सरीया काज, गाथा - ९. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन स्तवन- बामणवाडजी, मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: समरवि समरथ सारदा, अंतिः ( - ), ( पू. वि. गाथा २ अपूर्ण तक है.) ५२४८४. केसरीयानाथजीरो छंद, संपूर्ण वि. १८७५, माघ शुक्ल, ७, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. पं. खुस्यालरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीनेमेश्वरजी प्रसादात्., जैदे., (२४.५X१०.५, ११x२५). आदिजिन छंद - केसरिया, श्राव. रोड गीरासिंह कवि, पुहिं., पद्य, वि. १८६३, आदि: सदाशिव राव आयो कपटकर; अंतिः रोड अवरन को नाहि, गाथा ३८. For Private and Personal Use Only ५२४८५. छंद व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ४, ले. स्थल. पाल्हणपुर, जैदे., ( २४.५X११, १२X३७). १. पे. नाम. संतरी छंद, पृ. १अ - ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद - गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदिः सुवचन संपओ सारदा, अंति: इम तवीयी छंद देसंतरी, गाथा ४९. २. पे. नाम. गोडी पार्श्वनाथ छंद, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण पार्श्वजिन छंद - गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति दे तु सुमति; अंति: धवल धींग गोडी धणी, गाथा- ९. ३. पे. नाम. चौद स्वप्न, पृ. ४अ - ४आ, संपूर्ण. Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४ स्वप्न स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम ऐरावण दीठो मुझ; अंति: घरणी निज घर जावै, गाथा-७. ४. पे. नाम. शंखेश्वर पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास शंखेश्वरो; अंति: उदय० आप तुठो, गाथा-७. ५२४८६. (+) जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, ११४४५). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. ५२४८७. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. गुढानगर, प्रले. मु. गिरधारी (गुरु मु.खुस्यालचंद ऋषि); गुपि. मु. खुस्यालचंद ऋषि; पठ. मु. प्रताप, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (९२७) खाजो पीजो खरचजो, जैदे., (२४४११.५, ११४३५). १.पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभूजी तुमे तो क्या; अंति: उदयरतन कहे एह वडाई, गाथा-६. २. पे. नाम. संभवनाथजीजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. संभवजिन स्तवन, मु. ऋद्धिकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: साहेबा संभव जिनरी से; अंति: रिद्धि० मोहे हो सुख, गाथा-६. ५२४८८. (+) गौतम कुलक सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४११.५, १८:५५). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १९ अपूर्ण तक है.) गौतम कुलक-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: लुद्धा० लोभी नरा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १८ तक बालावबोध ५२४८९. (#) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ११४३०). महावीरजिन विनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी वीनती; अंति: थुण्यो त्रिभुवन तिलो, गाथा-१९. ५२४९०. (#) स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-५(१ से ५)=३, कुल पे. ६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.. (२४.५४११, १३४३०-३४). १.पे. नाम. पर्युषणा स्तुति, पृ. ६अ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: परव पजुसण पून्ये; अंति: सांतिकुसल० गाया जी, गाथा-४. २. पे. नाम. शेव्रुज स्तुति, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पुहि., पद्य, आदि: आगे पूरब वार निनांणू; अंति: सिद्धि हमारी जी, गाथा-४. ३. पे. नाम. सुखडी स्तुति, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतक पाडल जाई; अंति: तुसे देवी अंबाई, गाथा-४. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: _दें कि धपमप; अंति: दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. ५.पे. नाम. गौतमस्वामी स्तति. प. ८अ. संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तुति, मु. भालतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: जे जे करी मंगलदीपक; अंति: भाल तिलक वीर हीर, गाथा-१. ६. पे. नाम. रोहिणी स्तुति, पृ. ८अ, संपूर्ण. रोहिणीतप स्तुति, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., पद्य, आदि: जयकारी जिनवर वासपूज; अंति: देवी लब्धिरूची जयकार, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ www.kobatirth.org (+) ५२४९१. स्वाध्याय व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२३.५X११, १४X३५). १. पे. नाम गौतमस्वामी स्वाध्याय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: गोतम स्वामी प्रीछा, अंति: पामै सुख अथाग हो, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - १५. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण मु. कपूर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम तिर्थंकर रीषभ अंतिः (-) (अपूर्ण. पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा ६ तक लिखा है.) , ५२४९२. (+) कथलाभासा स्तुति सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५x१२, ३X३०). औपदेशिक स्तुति, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः उठि सवेर सामायिक; अंतिः भावप्रभसूरि० भोगी जी, गाथा-४. औपदेशिक स्तुति - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: संसारी जीव के प्रकार, अंतिः साहूज्ये सिवपद भोगी. ५२४९३. स्त्री भरतार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८६६, आषाढ़ अधिकमास शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. ग. प्रतापविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जै, (२५४११.५, १३४३८). स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, पंडित. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: कोस्या कहे सुण चंदला, अंति: नयसुंदर तस हीर रे, गाथा- २३. ५२४९४. (+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. रायचंद (गुरु मु. गोवर्द्धन); पठ. सा. राजबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., जैदे., ( २४.५X१०.५, १९५४). १. पे. नाम. महावीरतप स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीर जिन तप स्तवन, मु. रायचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७९३, आदिः श्रीमहावीर तप सांभलो अंतिः रायचंद० गुण गाय रे, गाथा - १५. ५५ २. पे. नाम. वीसविहरमान स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन स्तवन, मु. रायचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७९१, आदि; चोवीसे जिनने प्रणमी अंतिः ऋषिरायचंद गुण गाय, गाथा - १९. ५२४९५. (+) अंतरिकजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९१, पौष शुक्ल १, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. बालापुर, प्रले. पं. राजेंद्ररुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संघसहित यात्रा का उल्लेख है., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., जै.. (२३.५५११. १२X३२). पार्श्वजिन स्तवन- अंतरिक्षजी, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, वि. १८९१, आदि: श्रीपुर नगरे सोहावे; अंति: व दुख हरीने रे, गाथा - १५. ५२४९७. लघुसंग्रहणीसूत्र सह टवार्ध, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३ ले. स्थल, उदयपुर, पठ. मु. उदयविजय (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२४.५x१०, ६X३५-४२). लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमियं जिणसव्वन्नु; अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा-३०. लघुसंग्रहणी - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करी सर्वज्ञ, अंति: हरिभद्रसूरि०पझावी छ . ५२४९८. दसवैकालिकचूलिका गीत व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८३९, कार्तिक कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, ले. स्थल. वावडी ग्राम प्रले. पं. ज्ञानप्रमोद मुनि, राज्यकाल गच्छाधिपति जिनचंद्रसूरि, प्र. ले. पु. सामान्य, जैवे. (२५x११. १२-१४X३७). १. पे नाम, दसवैकालिकचूलिका गीत, पृ. १अ ४आ, संपूर्ण, दशवैकालिकसूत्र - सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य वि. १७१७, आदिः धर्ममंगल महिमा निलो, अंतिः सदाजी जयतसी जयजय रंग, अध्याय- १०. For Private and Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५६ www.kobatirth.org २. पे. नाम. आशीर्वचन श्लोक, पृ. ४आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: भाले भाग्यकला मुखे, अति: शत्रुगण नृप हंतु सदा, श्लोक-२. ३. पे. नाम. श्लोक संग्रह. पू. ४आ, संपूर्ण श्लोक संग्रह, प्रा.सं., पद्य, आदि: व्याजे स्याद्विगुणं, अंति: पात्रेनंतगुणं स्मृतं, श्लोक - १. ५२४९९. (+) पर्वतिथि उद्यापनविधि व चैत्रीपूनम देववंदन विधि, संपूर्ण, वि. १९११, पौष शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले. स्थल. फलोधीनगर, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. वे. (२४.५४११, ११४३३). १. पे नाम, वीज, पंचमी, अष्टमी एकादशी चतुर्दशी च उद्यापनविधि, पृ. १अ, संपूर्ण. पर्वतथि उद्यापन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम तीर्थंकरने; अंति: पछै उपवास करावीजै. २. पे. नाम. चैत्री देववांदण विधि, पृ. १अ २आ, संपूर्ण, चैत्री पूर्णिमापर्व देववंदन विधि, प्रा., रा. सं., गद्य, आदि: प्रथम गुहली करी; अंति: श्रीसंघभक्ति कीजै. ५२५००. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे. (२४.५X१०, १६x४९). १. पे. नाम. इलाचीकुमार सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. गाथा - ९. ३. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाम इलापुत्र जाणीइ; अंति: लवधविजय गुण गाय, गाथा - ८. २. पे. नाम. परनिंदा सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झायनिंदात्यागविषये, मा.गु, पद्य, आदिः म करि हो जीव परताति; अंतिः एह हित सीख माने, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि धारणी मनावइ हो; अंतिः प्रीतिविजय हरख अपार, गाथा-५. ० ५२५०१. (+#) देवाप्रभो स्तोत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७४३, आश्विन कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें -संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-क्रियापद संकेत- त्रिपाठ-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५X११.५, १६x४३). साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: देवाः प्रभो यं, अंतिः भावं जयानंदमयप्रदेया, श्लोक- ९. साधारणजिन स्तव-वृत्ति, ग. कनककुशल, सं., गद्य, आदि: हे प्रभो सत्वमया तथा; अंति: कनककुशलेन० शताधिकम्, ग्रं. १४२. ५२५०२. सज्झाय, स्तवन व छंद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६-२ (१ से २-४ कुल पे. ६, जैवे. (२४.५४१०.५, १०-११x२३-३६). १. पे. नाम. कायाजीव सज्झाय, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय - काया, मु. पद्मतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पदमतिलक० खोड न लाई, गाथा-११, ( पू. वि. गाथा १ अपूर्ण से है. ) २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. ग. प्रेम वाचक, मा.गु., पद्य, वि. १८२६, आदि: हांजी संती जिनेसर, अंति: प्रेम० शांति जिणंद, गाथा-८. ३. पे. नाम. अंबिकादेवी छंद. पू. ४अ ५अ, संपूर्ण. मा.गु. पच, आदिः सदा पूर्ण ब्रह्मांड अंतिः चित्तसूं पाय लागी गाथा २०. ४. पे. नाम. नेमिनाथ विनती, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: भली भावना भेटिवा नेम; अंतिः सुधीहि जगनाथ पूजे, गाथा-५. ५. पे. नाम. वीतराग विनती, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण 3. For Private and Personal Use Only साधारणजिन स्तवन, मु. सदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: सदा भेटिए भावस्युं; अंति: सदानंद ० तुम सेव, गाथा-५. ६. पे. नाम. पार्श्वनाथ विनती, पृ. ६अ ६आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन- तिवारीपुर मंडन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह समे श्रीपास अंतिः भर जय जय जगदानंदे कर गाथा- ७. Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५२५०३. (+#) साधु प्रतिक्रमण सूत्र, संपूर्ण, वि. १८४०, आश्विन शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. कीवासी ग्राम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १५४३८). साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमोअरिहताणं करेमि; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. ५२५०४. (#) स्तवन व सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८१०, वैशाख कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. भूतिग्राम, प्रले.ग. विनयविजय; पठ. मु. ललितरूची, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १३४४१). १.पे. नाम. छिन्नुजिन स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ९६ जिन स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७४३, आदि: वरतमांन चोवीसे वंदु; अंति: सदा जिणचंदसुर ए, ढाल-५, गाथा-२३. २. पे. नाम. कलियुग सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. प्रीतिविमल, पुहिं., पद्य, आदि: यारो कूडो कलियुग आयो; अंति: सुकृत एक सवायो, गाथा-१३. ५२५०५. आराधना प्रकरण, अनशन प्रत्याख्यान व सम्यक्त्वग्रहण गाथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(१)=४, कुल पे. ३, जैदे., (२४४११, १३४३५-३८). १. पे. नाम. आराधना प्रकरण सह बालावबोध, पृ. २अ-५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: तं सरसुमणे नमुक्कार, (पू.वि. गाथा १३ से है., वि. गाथाक्रम का उल्लेख नहीं है.) पर्यंताराधना-बालावबोध *मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: देवने नमस्कार हज्यो. २.पे. नाम. अनशनप्रत्याख्यान गाथा, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. अनशन पच्चक्खाण सूत्र, प्रा., गद्य, आदि: भव सचरिमं पच्चक्खाइ; अंति: तिविहेण वोसीरियं. ३. पे. नाम. सम्यक्त्वग्रहण गाथा, पृ. ५आ, संपूर्ण. सम्यक्त्व आलावो, प्रा., गद्य, आदि: अरिहंतो महदेवो जाव; अंति: इय सम्मत्तं मए गहीयं. ५२५०६. कर्मछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १७३०, फाल्गुन कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. २, प्रले. वा. गुणनिधान, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५,११४४५). कर्मछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: करमथी को छूटइं नहि; अंति: समय० धरमतणइ परमाण जी, गाथा-३५. ५२५०७. ढुंढकपच्चीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४११.५, १५४४४). ढुंढकपच्चीसी-स्थानकवासीमत निरसन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रुतदेवी प्रणमी; अंति: जिनेंद० कारी अधिकार, गाथा-२५. ५२५०८. सिखामण छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. मेसाणा नगर, प्र.वि. श्रीमनरंगपार्श्व प्रसादे, दे., (२४.५४१२, १२४२८). औपदेशिक छंद-त्रोटकनामा, क. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वरदायक माय सलाम करी; अंति: दीपवि० नामह छंद कहो, गाथा-९. ५२५०९. (+) दंडक प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५-१(२)=४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४१०, ५४३५). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: गयसारेण० अप्पहिया, गाथा-४५, (पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., गाथा ९ अपूर्ण से गाथा १९ अपूर्ण तक नहीं है.) दंडक प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ चउवीस; अंति: तीर्थंकर वीनती आपकी, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. For Private and Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५२५१०. (-) नवकारमंत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. बिकानेर, प्रले. नंदु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४.५४१०,१७-१९४३६-४०). नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: णमो अरिहंताणं; अंति: पढम हवई मंगलम्, पद-९. नमस्कार महामंत्र-बालावबोध*,मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंत प्रति माहरो; अंति: देवता सान्निध करे. ५२५११. (+#) नेमराजुल पद व हरीयाली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. पाटणनगर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १४४४१). १.पे. नाम. नेमराजुल सात तिथि पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद-७ वारकथन, ग. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तुमे सरसति सदगुरु; अंति: रंगे० सहो जे सरस रे, गाथा-११. २.पे. नाम. औपदेशिक हरियाली, पृ. १आ, संपूर्ण. इरियावही सज्झाय, मु. मेघचंद्र-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नारी मे दीठी इक आवती; अंति: मेघ० करजो घणी सेवरे, गाथा-७. ५२५१२. (-#) स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११.५, १३-२१४३७-५०). १.पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, आदि: विनतडी अवधारोजी पाउध; अंति: करतां तुझ गुणग्राम, गाथा-५. २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. उपा. वीरसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: नवपदनो रे ध्यान धरी; अंति: नही कोइ तोले हो, गाथा-१८. ३. पे. नाम. सीता स्वाध्याय, पृ. २अ, संपूर्ण. सीतासती सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: जनकसुता हुं नाम; अंति: उदय० होज्यो प्रणाम, गाथा-७. ४. पे. नाम. चउवीसतीर्थंकर स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणमु; अंति: (अपठनीय), गाथा-२९, (वि. अंतिम वाक्य का अंशखंडित होने से पाठ अपठनीय है.) ५२५१३. समोसरण स्तवन, संपूर्ण, वि. १६३७, श्रावण कृष्ण, ६, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. वेणीदास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११,११४३७). समवसरण स्तव, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि: थुणिमो केवलीवत्थं; अंति: कुणउ सुपयत्थं, गाथा-२४. ५२५१४. (+#) सझाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १६x४५). १.पे. नाम. नीश्चयविवहारनी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. निश्चयव्यवहार सज्झाय, आ. हंसभुवनसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर रे देसना; अंति: हंसभूवन० इणी परे कहइ, गाथा-८, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथाओं को एक गिना है.) २. पे. नाम. मृगापुत्र सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. मु. सिंहविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुग्रीवनयर सुहामणो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १० अपूर्ण तक है.) ५२५१५. (#) नेमनाथजीरोचोक, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, १३४३७). नेमगोपी संवाद-चौवीसचोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: एक दिवस वसै नेमकुंवर; अंति: (-), (पू.वि. चोक २१ अपूर्ण तक है.) ५२५१६. (#) दादाजीरो छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११, १२४३३). जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. विजयसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: समरु माता सरसती; अंति: विजेसिंह लीला वरी, गाथा-३०. For Private and Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५९ ५२५१७. (#) आषाढभूति सझाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १७४४३). आषाढाभूतिमुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीश्रुतदेवी हिइ; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल ५ गाथा १ अपूर्ण तक है.) ५२५१८. स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, पठ. श्रावि. धनकुअरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११.५, १७४४७). १.पे. नाम. नवकारनी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८६१, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, शुक्रवार. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बार जपुं अरिहंतना; अंति: लबधि० नित नवकार, गाथा-९. २.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन विनती स्तवन, वा. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: मनडु माहरूं मोकलुं; अंति: उदय० वसता दुर विदेश, गाथा-९. ३.पे. नाम. सिमंधरजिन नमस्कार, पृ. १आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तुति, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिमंधर जीनवरा; अंति: प्रगटे प्रमाणंद, गाथा-४. ४. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसीमंधर साहिबा; अंति: ज्ञानविमल० हवे थाय, गाथा-७. ५२५१९. नाकोडा पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१०.५, २१x१३). पार्श्वजिन छंद-नाकोडातीर्थ, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: अपणै घरि बैठा लील; अंति: समयसुंदर० गुण जोडो, गाथा-८. ५२५२०. (#) सुकोसल कथा व नेमनाथ गीत, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. मु. दुर्गुऋषि; लिख. मु. कपूरचंद ऋषि; पठ. श्रावि. कुंताबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४९.५, १३४४६). १. पे. नाम. सुकोसल कथा, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. सुकोशलमुनि चौपाई, मु. देवराज, मा.गु., पद्य, आदि: सहि गुरूवयणे सांभली; अंति: देवराज प्रणमइ पाय, ढाल-६, गाथा-६२. २. पे. नाम. नेमनाथ गीत, पृ. ३आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, मु. गुण, पुहिं., पद्य, आदि: मेरा नेमि जिणेसर; अंति: गुण० पावउ भव पारणी, गाथा-११. ५२५२१. (-) श्राद्धप्रतिकमणावंदेतुसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पठ. मु. रतनचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६४११, १६४६२). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदेतु सव्व सिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चोवीस, गाथा-५०. ५२५२२. (#) नवकार बालावबोध व विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-११(१ से ११)=१, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १२४४३). १.पे. नाम. नवकार का बालाबोध, पृ. १२अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. नमस्कार महामंत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सुश्रावक सुश्राविका, (पू.वि. सुद्ध देव सुद्ध गुरु पाठ से २.पे. नाम. विचार संग्रह, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. विचार संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५२५२३. स्तोत्र व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ७, प्र.वि. पत्रांक खंडित होने के कारण पत्र २ लिया है., जैदे., (२५.५४११.५, १५४३९). १.पे. नाम. यमकयुक्त पार्श्व स्तुति, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पार्श्वजिन स्तव, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: भवांभोनिधिं, श्लोक-७, (पू.वि. श्लोक ५ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ६० www.kobatirth.org २. पे. नाम. शंखेस्वरजिन स्तव, पृ. २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, वि. १८२६, आदि: गौडीग्रामे स्तंभने, अति: दर्शनं यस्य तं च श्लोक ५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २अ संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, सं., पद्य, आदि: विशदसद्गुणराजिविराजि; अंति: वाग्जिनलाभशुभार्थदा, श्लोक-४. ४. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तव, प्र. २अ २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव- गोडीजी, सं., पद्य, आदिः श्रीमत्पार्श्वजिने अंतिः संसेव्यतां विश्वपाः, श्लोक-३. ५. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तव, पृ. २आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तव, सं., पद्य, आदि आद्यः श्रीऋषभस्ततो, अंतिः सद्भक्तितः प्रत्यहं श्लोक-३. ६. पे. नाम. अष्टापद स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. अष्टापदतीर्थ स्तुति, सं., पद्य, आदिः यत्र श्रीभरतेश्वर: अंति: समीहे स्वयम्, श्लोक १. ७. पे. नाम, नंदीश्वर स्तव, पृ. २आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नंदीश्वरद्वीप स्तुति, सं., पद्य, आदि: लसद्द्विपंचाशदधीश्वर अंतिः भवभीतिशांतये, श्लोक १. ५२५२४. प्रतिलेखना कुलक व विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५.५X११, १५-२०X३७-५०). १. पे नाम, प्रतिलेखना कुलक, पृ. ९अ २आ, संपूर्ण पडिलेहण कुलक, ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, आदि: पडिलेहणाविसेस, अंति: सीसेण विजयविमलेण, गाथा-२८. २. पे नाम. प्रतिलेखना विधि, पृ. २आ, संपूर्ण आवश्यक सूत्र- प्रतिलेखन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदिः इरियावही पडिकमी खमास; अंति: इरीयावही पडिकमीये. ५२५२५. महावीरजीना २७ भव वर्णन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. करझाग्राम, जैदे., (२६×११, १८X५१). महावीरजिन २७ भव वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: जै माटि आ अवसर्पणीमा, अंति: देवानंदानी कूखइ ऊपना. ५२५२७. स्तवन व सझाय, संपूर्ण वि. १८४७ फाल्गुन कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल, वाल्हीनगर, प्रले. पं. सदारुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६ १०.५, १०X३६). १. पे. नाम. नेमनाथजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मराजिमती सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि; नेम कांइ फिर चाल्या, अंतिः जिनहर्ष पर्वपे हो, गाथा- ९. २. पे. नाम. रहनेमिराजेमती सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु, पद्य, आदि राजिमती नेम भणी चाली अंतिः कडे जिनहर्ष त्रिकाल, गाथा-८. ५२५२८. (#) ख्रिमाछतीसी, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X१०, ९X३०-३३). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः आदरि जीव खिमागुण आदर, अंति: समयसुंदर०संघ जी, गाथा- ३६. 3 ५२५२९. (+#) स्याद्वादगर्भित वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३ ले. स्थल. दिवबिंदर, प्रले. श्राव. वर्द्धमान मालजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, ११x४१). ५ कारण छ ढालिया, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य वि. १७३२, आदि सिद्धारथ सुत बंदीइ अंतिः परे विनय कहि आणंद ए, ढाल - ६, गाथा - ५८. ५२५३०. (+) उपदेशमाला - गाथा१०८ पर्यंत संपूर्ण वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. भक्तिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., (२६X११.५, १४X४१). For Private and Personal Use Only उपदेशमाला. ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद अंतिः (-), प्रतिपूर्ण ५२५३१. (+) चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान व अतिचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-२ (३ से ४)=४, कुल पे. ५, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X११, १५X४०-४५). १. पे. नाम. चातुर्मासकपर्व व्याख्यान पद्धति, पृ. १अ ६अ, अपूर्ण. पू. वि. बीच के पत्र नहीं हैं. Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६५, आदि: प्रणम्य परमानंद; अंति: व्याख्यानम्, ग्रं. २१०, (पू.वि. वयाणपत्तेयं से नादीनित्ते तक का पाठ नहीं है.) २.पे. नाम. १२ तप अतिचार, पृ. ६अ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ५ अतिचार संलेखणाया; अंति: अतिचार सर्वेपि भवंति. ३. पे. नाम. श्रावक चातुर्मासिक कर्तव्य, पृ. ६अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रेयो मानसवासनोद्यत; अंति: फाल्गुनं वः श्रियो, श्लोक-४. ४. पे. नाम. गुरु प्रतिपत्ति भेद, पृ. ६आ, संपूर्ण.. गुरु प्रतिपत्ति ८ भेद श्लोक, सं., पद्य, आदि: आसनोभिग्रोभक्त्या; अंति: सप्ताष्ट पादानुगमनम्, श्लोक-८. ५.पे. नाम. साधु अतीचार संग्रह, पृ. ६आ, संपूर्ण. विचार संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५२५३२. चैत्यवंदन व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११.५, १४४४५). १.पे. नाम. आदिनाथ चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम तीर्थंकर आददेव; अंति: सिद्धि०तरीयो मुज तार, गाथा-८. २.पे. नाम. शंखेश्वरजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-शंखेश्वर, मु. महिमारुचि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेसर पास जिणंद; अंति: महिमा० दोलत मझमाई, गाथा-४. ५२५३३. (#) आलोयणा स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-४(१ से ४)=२, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०, १६x४०). सीमंधरजिन स्तवन-आलोयणाविनती, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: आज अनंता भवतणां कीधा; अंति: लावण्य० आणंद पूरितु, गाथा-४८, संपूर्ण.. ५२५३४. (#) छंद, स्तोत्र व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १६४४७). १.पे. नाम. पार्श्वनाथनो छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, शंकर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता सेवका; अंति: संकर० देवाधीवर, गाथा-७. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं धरणोर; अंति: नमामः कुशलं लभामः, श्लोक-५. ३. पे. नाम. शेजय अमृतध्वनि, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: धुनी ध्रहकती ध्रहकती; अंति: कांति० तें होय __ अजरं, गाथा-५. ५२५३५. (#) पार्श्वनाथ छंद, संपूर्ण, वि. १८०८, चैत्र शुक्ल, १५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १७४३२). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: सुवचन समापो सारदा; अंति: तवियो छंद देशांतरी, गाथा-३९. ५२५३६. (#) सझाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१०, १७४५८). १.पे. नाम. दशाणभद्र सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. दशार्णभद्र सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद बुधदायक सेवग; अंति: लालविजय निसदीस, गाथा-८, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथाओं को एक गाथा गिना है.) २. पे. नाम. नवकार सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवकारवाली सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: नवकारवाली बंदीई चिर, अंतिः लब्धि० भविक नवकारतो, गाथा - ९. ३. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ग. विजयविमल, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमहाव्रत सुधु पाल, अंति: (-). ( पू. वि. गाथा १ अपूर्ण तक है.) ५२५३७, (०) सझाय व ज्योतिष विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ७-६(२ से ६) = १ कुल पे ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२३.५४११, १६x४३). १. पे. नाम, दिनमान सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूर्यगति सज्झाय, मु. सोमविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती सामणी समरी; अंति: सोमविमल तस्यु सास, गाथा-१९. २. पे. नाम. होली विचार, पृ. ७आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पूर्व वाय वहतो जोय; अंति: झुंझे के गयवर गुंडे, गाथा - ३. ३. पे. नाम. चंद्र ग्रहण, वारज्ञानादि विचार संग्रह, पृ. ७आ, संपूर्ण. ज्योतिष, मा.गु. सं., हिं. प+ग, आदि (-): अंति: (-). सं.,हिं., ५२५३८. (७) स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७-६ (१ से ६) -१, कुल पे. ४, ले. स्थल, पोखदपुर, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १२X४५). " १. पे नाम. स्तुतिचतुर्विंशतिका, पृ. ७अ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है. वि. १७७५ आश्विन कृष्ण, ११, प्र.ले. श्लो. (२८२) जीहा लग मेरु अडग है. मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति - २४, (पू. वि. महावीरजिन स्तवन के प्रथम श्लोक अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मंगल आठ करी जस आगल; अंति: नय० कोडि कल्याण जी, गाथा- ४. ३. पे. नाम. पजुक्षण स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण. पर्युषण पर्व स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदिः परव पजुसण पुन्य अंतिः शांतिकुशल गुण गायाजी, गाथा-४. ४. पे नाम. पर्युषणा स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण, ले, स्थल, पोखदपुर. पर्युषण पर्व स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सत्तरभेवी जिनपूजा, अंति: मानविजय धरीजे जी, गाथा ४. ५२५३९. छंद व स्तवन, अपूर्ण, वि. १८७६, आषाढ़ शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ३-१ (१) = २ कुल पे. २ ले, स्थल, कैलाशनगर, पठ. मु. खांतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२३४१२, १२४२६). 1 " १. पे. नाम. माणिभद्र छंद, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. पे. वि. श्री पार्श्वप्रसादात् माणिभद्रवीर छंद, मु. उदयकुसल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: उदयकुसल० रीझां लहे, गाथा-२६, (पू. वि. गाथा २१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम बीज स्तवन, पृ. २आ-३अ संपूर्ण. बीजतिथि स्तवन, ग. गणेशरुचि, मा.गु., पद्य, वि. १८१९, आदि: वीरजिणेसर इम वदे रे; अंति: गुणेस ० नित प्रणमु पाय, गाथा - १५. ५२५४०. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२ (१ से २) = २, कुल पे. ४, जैदे., (२५x९.५, १३x४२). १. पे. नाम. पंचमी तवन तीनढाली, पृ. ३अ - ३आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन- बृहत् उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंतिः समयसुंदर० प्रसंसयो, ढाल - ३, गाथा - २५, (पू. वि. डाल १ गाथा ५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन- अमरसरपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, रा., पद्य, आदि: मोरा साहिब हो; अंतिः समयसुंदर० जीन मन मोहर, गाथा १८. For Private and Personal Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ३. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. वीर, मा.गु., पद्य, आदि: आदिजिनेसर विनती; अंति: सेनसूरी० करजोडी रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. अष्टापदजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण.. अष्टापदतीर्थ स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मनडो अष्टापद मोह्यो; अंति: समय० नाटक रंग जी, गाथा-५. ५२५४१. (#) योगशास्त्र-प्रथम प्रकाश, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४३३-४०). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: नमो दुर्वाररागादि; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५२५४२. (#) गोतमस्वामी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १२४३५). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३७ अपूर्ण तक है.) ५२५४३. (#) पार्श्वनाथ छंद, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१०.५, ११४३१). पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन दे सरसती एह; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २६ अपूर्ण तक है.) ५२५४४. (+#) स्वाध्याय, स्तवन व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११.५, १४४४७). १. पे. नाम. हीरजी सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. विजयसेनसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: बे करजोडी वीनमुंसार; अंति: सेनसूरि० मूझ आणंद, गाथा-१८. २. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-मनमोहन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मनमोहन मनमोहन पावन; अंति: मोहन० जिनजी दास हो, गाथा-५. ३. पे. नाम. सिद्धाचलजी स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पुहि., पद्य, आदि: आगे पूरव वार नीवाणु; अंति: सिद्धि हमारी जी, गाथा-४. ५२५४५. (-#) सज्झाय व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ९, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १५४४७). १.पे. नाम. धन्नारि सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. विद्याकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: विद्या०दीठा आणंद थाय, गाथा-७, (पू.वि. गाथा ६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, क. ऋषभ, पुहिं., पद्य, आदि: दरसण दीजै देव दयाकर; अंति: ऋषभ० दरसण दोलत दीजै, गाथा-६. ३. पे. नाम. हरीयाली भास, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक हरियाली, म. जिनेंद्रसागर, पुहिं., पद्य, आदि: कहेयो रे पंडित ते; अंति: जिनेंद्रसागर० वखाणे, गाथा-१३. ४. पे. नाम. आत्मशिक्षा सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चंचल जीवडारे मै तुम; अंति: कीरत जपो श्रीनवकार, गाथा-११. ५. पे. नाम. थुलभद्रऋषि सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, ग. लब्धिउदय, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर रहण चोमासै; अंति: लालचंद०सुख सवाया हो, गाथा-११. ६.पे. नाम. बाहुबलि सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. बाहुबली सज्झाय, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजी मांनो वीनती; अंति: न्यायसागर वंदना खास. गाथा-९. ७. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बे करजोडी विनवूरे; अंति: सम विषमै जिनराज रे, गाथा-५. ८. पे. नाम. चेलणा सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वांदी वलतां थकां; अंति: समयसुंदर० भव तणो पार, गाथा-६. ९.पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: तार किरतार संसार; अंति: जिनराज० जे रहइ पासइ, गाथा-४. ५२५४६. (#) मेघकुमार सज्झाय व परदर्शन संवाद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. कुल पे. २, ले.स्थल. पालणपुर, प्रले. पं. ऋषभविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १७४५२). १.पे. नाम. मेघकुमरमुनीश्वर सज्झाय, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १८८१, आषाढ़ कृष्ण, ९, ले.स्थल. मेतानयर. मेघकुमार सज्झाय, मु. जिनसागर कवि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: प्रेमे प्रणमे पाय, ढाल-६, गाथा-५२, (पू.वि. ढाल ६ गाथा १३ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. परदर्शन संवाद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. वैदिकमत खंडन काव्य, मा.गु., पद्य, आदि: मिथ्यामतिनो मत जुओ; अंति: सीवनी वाणी साची सही, गाथा-३१. ५२५४७. (#) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११, १२४३५). १.पे. नाम. क्षमासूरि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. विजयक्षमासूरिसज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीविजयरत्नसूरिंदना; अंति: मोहनविजय जयकार, गाथा-७. २. पे. नाम. पाटमोहच्छव स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. देवेंद्रसूरि गच्छाधिपतिपदप्रदान गीत, पं. माणिक्यविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८४, आदि: आज शीरताज गछराज भले; अंति: माणिक्य० श्रीतपगछराय, गाथा-९. ३.पे. नाम. गुरु गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. देवेंद्रसूरि गुण गहुली, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जगवल्लभ जगपुज्य भवि; अंति: वीर० रमणीने जइ मीले, गाथा-६. ५२५४८. (+#) इंद्रियशतक व भावना कुलक, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०, १४४४६-५२). १.पे. नाम. इंद्रियशतक, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. __ इंद्रियपराजयशतक, प्रा., पद्य, आदि: सुच्चिअसूरो सो; अंति: संवेगरसायणं निच्चं, गाथा-९९. २. पे. नाम. उगणतीस भावना प्रकरण, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. २९ भावना प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: संसारम्मि असारे; अंति: (-), (पू.वि. मात्र गाथा १ है.) ५२५४९. (+) वीरप्रभू स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, ११४३१). महावीरजिन स्तवन, मु. महानंद, मा.गु., पद्य, आदि: वीर साहिब सुखकारी; अंति: महानंद० गुण गाया रे, गाथा-१२. For Private and Personal Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५२५५०. (#) स्तवन वसझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२३४११, १५४३२). १. पे. नाम. आदिश्वरजिनजी स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. आदिजिनविनती स्तवन-शQजयतीर्थ, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: पामी सुगुरु पसाय; अंति: विनय करीने विनवे ए, गाथा-५८. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना सज्झाय, क. आसो, मा.गु., पद्य, आदि: सासननायक वीनवु लागु; अंति: आसो० समौ नही नाथ, गाथा-१०. ५२५५१. आराधना, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. विमलकुशल गणि (गुरु ग. लक्ष्मीरुचि); गुपि.ग. लक्ष्मीरुचि (गुरु पंन्या. सहजकुशल); पठ. श्रावि. रहीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११,११४२६-३०). __ पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण भणइ एवं भवयंअंति: सोम० ते सासयं सुक्खं, गाथा-७०. ५२५५३. सझाय व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १२४३९). १. पे. नाम. वीसस्थानक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप सज्झाय, पंन्या. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती निज गुरुने सदा; अंति: दीपे सदा निज ज्ञान, गाथा-१४. २. पे. नाम. मल्लिनाथजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मल्लिजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: कुंन रमे चित कौन रमे; अंति: न्याय० चित कुंन रमे, गाथा-६. ५२५५४. लोकनालीबत्तीसी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७३७, ज्येष्ठ शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. पुनांपुर, प्रले. पं. सिद्धसोम गणि (गुरु आ. विशालसोमसूरि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, ५४३५-३९). लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदसण विणा जंलोअं; अंति: धम्मकित्ति० इह भिसं, गाथा-३२. लोकनालिद्वात्रिंशिका-टबार्थ, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: भ्रमण करइ नही इहां. ५२५५५. (+) दीक्षा विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८५२, भाद्रपद कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११.५, १२४३५). १.पे. नाम. प्रवृज्या विधि, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. विधिमार्गप्रपा-प्रव्रज्या विधि, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा.,सं., गद्य, आदि: यस्य पुरुषस्य चारित; अंति: पयाहिण वास उवसग्गो. २. पे. नाम. दीक्षा विधि, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. __मा.गु.,सं., गद्य, आदि: मूलपुनर्वसुस्वाति; अंति: दिशाइ विहार करावीइ. ३. पे. नाम. दीक्षा विधि, पृ. ४अ, संपूर्ण. प्रव्रज्या विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम इरियावही पडि; अंति: धर्मोपदेश सांभले. ५२५५६. (#) स्तवन, लावणी व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, २३४५३). १.पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन विनती स्तवन, वा. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: मनडु ते माहरु मोकलु; अंति: उदेरतन० जे उदयेसार, गाथा-८, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) २.पे. नाम. नेमजीरी लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: तुम तजकर राजुलनार तज; अंति: जीणदास सूणौ जीनवर रे, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. रांणपुर स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण आदिजिन स्तवन- राणकपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: राणपुरो रलियामणो रे अंति: लाल समयसुंदर सुखकार, गाथा- ७. ४. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: एक घर घोडा हाथीया जी, अंतिः (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ३ अपूर्ण तक लिखा है.) ५२५५७. (-) साधु करणी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५X१०.५, २७१५). साधुगुण सज्झाय, आ. आनंदविमलसूरि, मा.गु., पद्म, आदिः श्रीजिनवरने करुं, अंतिः आणंदविमल० लहिस्यै तेह, गाथा - १४. ५२५५९. (०) सीतासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १. प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैवे. (२५x११. ११x४३). सीतासती सज्झाय, मु. सुखचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीब्रह्माणी हो पाए; अंति: मधुकर सीस भणइ सुखचंद, गाथा - १६. ५२५६०. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., ( २४.५x११, १३X३६). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पू. १अ संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- भीडभंजन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: स्या माटे साहिब साहम; अंति: उदय० न रह्यो लाछो, गाथा-५. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ. संपूर्ण. मु. चंद, मा.गु., पद्म, आदि; मोह्यो मोह्यौ रे माय अंतिः चंद० मुझमन भमरो भटकै, गाथा-७. ३. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. लब्धिरूचि, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीशीतलजिन सोहे देख अंतिः लबधि नमे नित पाया हो, गाथा १५. ५२५६१. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, दे., (२२.५X११, १२-२०X३९-६४). १. पे नाम. बामणवाडी छंद, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. महावीर जिन स्तवन- वामणवाडजी, मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदिः समरवि समरथ सारदा ए अंति: कमलकलशसूरीश्वर सीस, गाथा-२१. २. पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि सोभागी सुविधिजिनंद, अंतिः जेनेंद्र वंदे नितमेव गाथा-६. 2 ३. पे. नाम. सुपार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: साहिब हो साहिब मुझ अंतिः जिनहरख० आपो अविचल वास, गाथा- ७. ४. पे नाम, अष्टापदतीर्थ स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अष्टापदगिर जात्रा; अंति: ग्यानविमल० नायिक गावे, गाथा-८. ५२५६२. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५X११, १२X३५). १. पे. नाम, नेमिनाथ स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: होजी रथ फेरी चाल्यो; अंति: जिनहर्ष ० परे हा लाल, गाथा-११. २. पे नाम, शांतिनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु, पद्य, आदि जिनजी हो आज उमाहो; अंतिः कवियण० पूरो मननी आस, गाथा- ७. ५२५६३. चैत्यवंदन व औपदेशिक कवित आदि संग्रह, संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे, ५ जै. (२५.५४११.५. For Private and Personal Use Only ११x२८). १. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सीवसुखदायक सिद्धचक्र, अंतिः तणो नयविमल कहे सीष, गाथा ४. Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ २. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित, मु. कांति, पुहिं., पद्य, आदि: सरस मृदंग नाद धपधौधप; अंति: कांति०मेरो मन बाग हे, गाथा-१. ३. पे. नाम. औपदेशिक कवित, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. खेम, पुहिं., पद्य, आदि: भूख बिना कुन काम को; अंति: खेम० काम को प्राणी, गाथा-१. ४. पे. नाम. औपदेशिक कवित, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया, पुहिं., पद्य, आदि: झूठे हावी झूठे गोरा; अंति: ऐसा झूठा प्रानी हे, सवैया-१. ५.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. __कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: इस दुनिया मे झूठ; अंति: कबीर० अजब तमासा, गाथा-१. ५२५६४. भरतबाहुबली छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६४११.५, १३४४२). भरतबाहुबली छंद, मु. वादीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: कवये वृषभं नत्वा; अंति: वादीचंद० ए वखाणी ए, गाथा-६०. ५२५६५. साधारणजिन नमस्कार व स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, ११४३०). १.पे. नाम. साधारणजिन नमस्कार, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: श्रीवीर भद्रं दिश, श्लोक-२७. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तोत्र, पृ. २अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदि: जयति दलितपापः प्रस्त; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक २८ अपूर्ण तक है.) ५२५६६. (#) शनीश्चर कथा व पंचतीर्थस्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२, १६४३४). १. पे. नाम. शनिश्वर कथा, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १९०१, चैत्र शुक्ल, १३, सोमवार, ले.स्थल. जीरणगढ, प्रले.पं. राजेंद्ररुचि, प्र.ले.पु. सामान्य. शनिश्चर चौपाई, पंडित. ललितसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति सामिण मति दिओ; अंति: ललितसागर इम कहे, गाथा-३०. २.पे. नाम. पंचतीर्थ स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: तुम तरण तारण विघनवार; अंति: मारो आवागमण निवारिये, गाथा-८. ५२५६७. स्नात्र पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२६.५४११.५, ११४२८). स्नात्रपूजा, ग. महिमासागर, मा.गु., पद्य, आदि: मुक्तालंकारविकारसारस; अंति: (१)महिमासागर० जयो भगवंत, (२)कुमारपाले दिवो रे, गाथा-५१. ५२५७१. (#) अजितवीर्यजिन स्तवन व स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-५(१ से ५)=४, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १४४४३). १.पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. अजितवीर्यजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: वाचक जस इम बोलेरे, गाथा-७, (पू.वि. गाथा ४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. चोवीसी स्तवन, पृ. ६अ-९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. स्तवनचौवीसी, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: ऋषभ जिणंदा ऋषभ; अंति: (-), (पू.वि. कुंथुजिन स्तवन गाथा ३ अपूर्ण तक है.) ५२५७२. (+) स्तुतिचतुर्विंशतिका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, १५४३५). स्तुतिचतुर्विंशतिका, उपा. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, वि. १८०१-१८४१, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., संभवजिन स्तवन श्लोक १ अपूर्ण से अनंतजिन स्तवन श्लोक २ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५२५७३. (+#) द्वादशचक्रवर्ती, तीर्थंकरपूर्वभव व महाप्रभाविकादि नाम विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१०.५, १५४५१). विविधविचार संग्रह*, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५२५७४. (+#) संबोधसत्तरी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ६४५१). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३३ अपूर्ण तक संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमीनइ मन वचन काया; अंति: (-). ५२५७५. (#) महानिशीथसूत्र अध्ययन ३ व ५ का आंशिकपाठ सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पंचपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ५-८४३६-३९). महानिशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. महानिशीथसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५२५७६. गणधरवाद सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, जैदे., (२६.५४११.५, १५४४५). कल्पसूत्र-कल्पसुबोधिका टीका का हिस्सा गणधरवाद वक्तव्यता, उपा. विनयविजय, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: श्रीएकादश प्रभासगणधर, (पू.वि. चतुर्थ गणधर से है.) कल्पसूत्र-कल्पसुबोधिका टीका का हिस्सा गणधरवाद वक्तव्यता-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: वाजे जयजयकार थाई. ५२५७७. (#) शनिश्चर छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३५). शनिश्चर चौपाई, पंडित. ललितसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति सामण मती द्यो; अंति: ललितसागर इम कहे, गाथा-३१. ५२५७८. (#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२५.५४११, ४३४२३-२८). १. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-विक्रमपुरमंडन, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., पद्य, आदि: जयकारी वीरजिणेसरु; अंति: लब्धिरूचि० जगीस रे, गाथा-९. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, प्र. १अ-१आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन-नडुलाई, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमो शांतिजिणंद; अंति: लबधिरुचि०हूं तोरी रे, गाथा-२८. ३. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: नेम वयण सुणीजै मुझ; अंति: लबधि० जईयै बलिहारी, गाथा-१६. ४. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दृष्टे शत्रुजय; अंति: (-), श्लोक-२. ५२५८०. (#) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८५७, वैशाख शुक्ल, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्रले.पं. सदारुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३३). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: ॐ चिंतामणि पासनाह; अंति: परलोए सिवसुहा सुखं, गाथा-६. २. पे. नाम. वीसविहरमान स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन स्तवन, सं., पद्य, आदि: त्रैलोक्यपूज्यस्य; अंति: शांतिकारं कृतां मे, श्लोक-८. ३. पे. नाम. चतुर्विंशति जिन पंचषष्टि जंत्र, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ www.kobatirth.org २४ जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: अजीत कणिमजी तुं जेहन अंतिः ते सवे काज रगरह, गाथा २०. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र- पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदिः आदौ नेमिजिनं नौमि; अंतिः सुखनिधान० निवास, श्लोक ८. ४. पे. नाम. स्तवनचौवीसी, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. चतुर्विंशतिजिन स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथमजितं प्रभ, अंति: सर्गहरणानि सुमंगलानि, श्लोक-३. ५२५८१. (4) स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६२, भाद्रपद कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ६, ले. स्थल, पाटण, प्रले. खुशालचंद मलुकचंद वसा; पठ. श्रावि. पाणाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X१२.५, १३X३८). १. पे. नाम. चौवीसजिन स्तवन, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. गाथा-४. ४. पे. नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण नेमिजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: कुगति कुमति छोडी, अंति: नेमी सेवें सुहेवा, गाथा-४. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पू. ३अ- ३आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: कनक तिलक भाले हार; अंति: हो तुमे नाण धारा, गाथा-४. .पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण, शांतिजिन स्तुति, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदिः मयगल घरचारी नार अंतिः जस० संघने सुख देवई, पार्श्वजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि जलन जल वियोगा नाम, अंतिः चंदो जाणे अमृतबिंदो गाथा ४. ६. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. परमानंदा, गाथा १६. २. पे. नाम. पार्श्वजिन सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीरजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: कठन करम मेली काठीआ, अंतिः टाले संघना कोड पाले, गाथा-४. ५२५८२. लघुशांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२६५११, १४४५१). . लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिं शांति निशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च श्लोक-१७. ५२५८४. () गौडीपार्श्वजिन छंद व सवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे ४, ले. स्थल. पत्तन प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५.५४११.५ १४५४२). " १. पे. नाम. गौडि पार्श्व छंद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, वि. १८६२, वैशाख कृष्ण, ५. पार्श्वजिन लावणी-गोडीजी, पंन्या, रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जगत भविक कज, अंतिः रूपविजट० चित . मु. धर्मसिंह, पुहिं, पद्य, आदि: ताल कंसाल मृदंग, अंतिः प्रम० जिणंद की पुजा, सवैया- १. ३. पे नाम औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण ६९ मु. कीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: भटक्यो भटक्यो अटक्यो; अंति: किर्ती० अवतार लह्यो, सवैया- १. ४. पे नाम, पार्श्वजिन सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण वि. १८६२ कार्तिक शुक्ल ९ अधिकतिथि. " जै.क. बनारसीदास, पुहिं, पद्य, वि. १७वी, आदि: जिनके वचन उर धारत, अंतिः प्रिंग लिले के ललक मै, गाथा - १. ५२५८५. सकलकुशलवली स्तुति व धर्मप्रभावक श्लोक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९बी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैवे., (२५.५X११.५, १५X४१). १. पे. नाम. सकलकुशलवली स्तुति सह बालावबोध, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, सकलकुशलवह्नि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., पद्य, आदिः सकलकुशलवल्ली, अतिः श्रियसे पार्श्वदेवं श्लोक-१. सकलकुशलवलि चैत्यवंदनसूत्र- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः एवंविधः श्रीपार्थ, अंतिः श्रेयः कल्याण संपजे. २. पे. नाम. धर्मप्रभावक श्लोक सह बालावबोध, पू. १आ, संपूर्ण. धर्मप्रभावक श्लोक सं., पद्य, आदि धर्मतः सकलमंगलावली, अंतिः एव तदहो विधीयतां श्लोक-१. धर्मप्रभावक लोक- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीभगवंत तीर्थंकर अंतिः श्रेयः कल्याण संपजे. For Private and Personal Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५२५८६. (-) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (३६.५४१३.५, ३४४२२-२५). १. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-नारदपुरीमंडन, मु. वल्लभ, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: चालो सहेली आपण सहु; अंति: पल वल्लभ करे प्रणाम, गाथा-१४, (वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गाथा गिना है.) २.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद, मु. उदयसागर, पुहि., पद्य, आदि: अब हम कुंज्ञान दीयो; अंति: उदयसागर० दीयो मुज कु, पद-७. ५२५८७. गुरुपरिपाटी कथानक सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १५४४१-६०). पट्टावली तपागच्छीय, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिमंतो सुहहेउ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ६ तक लिखा है.) पट्टावली तपागच्छीय-स्वोपज्ञ वृत्ति, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, आदि: सिरिमंतोत्ति यत्तदो; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ५२५८८. (#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १२४३०). १. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. रूपचंद, मागु., पद्य, आदि: नेमजी केरी वात रे हु; अंति: रूपचंद० दरसण पावुरे, गाथा-५. २. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अजित अरिहंत भगवंत; अंति: जैनेंद्र० देवाधीदेवा, गाथा-५. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीप्रभुजी तुमे तो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र गाथा १ लिखा है.) ५२५८९. (#) व्याख्यान पीठिका, राशिनामादिव औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२,१५४४०). १.पे. नाम. व्याख्यान पीठिका, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: जय भगवंत त्रैलोकतालण; अंति: मंगलिक पामस्ये. २. पे. नाम. राशिनामादि संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. ज्योतिष*, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. क. गद, पुहिं., पद्य, आदि: जिसो दिवसौ को चंद; अंति: गद०परष्ये माण सइस्ये, गाथा-१. ५२५९०. (#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १२४३७). १.पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन-९९ यात्रागर्भित, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धाचलमंडण; अंति: जिनहर्षे० गुण गाया, ___ गाथा-१५. २. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थस्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: यात्रा नवाणु करीए; अंति: पदम कहे भव तरीइं, गाथा-१०. ३. पे. नाम. चक्रेश्वरी स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण, ले.स्थल. कोहिला ग्राम, प्रले. मु. मोतीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. आदिश्वर प्रसादात्. चक्रेश्वरीदेवी छंद-शत्रुजयतीर्थअधिष्ठात्री, मा.गु., पद्य, आदि: मा चकेस्वरी सीधाचल; अंति: मा सेवकने फल देज्यो, गाथा-८. ४. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ www.kobatirth.org शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चालो चालोने राजा, अंतिः जिनविजेय निसवीस, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - १५. ५. पे नाम, ऋषभदेव स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बालपणे आपण ससनेहि, अंति: मोहन० लंछन बलीहारी, गाथा-७. ५२५९१. (a) सारदामाता छंद. संपूर्ण वि. १७६१, ज्येष्ठ शुक्ल १, गुरुवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. पोमा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १७x४९). सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता मनी आणि; अंतिः शांति० सिद्ध ताहरी, ३. पे. नाम. आयुमाण विचार, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. वास्तव में यह कृति १अ पर ही लिखी हुई है. आयुष्य विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मनुष्यायु १२० वर्ष अंति: (-). ५२५९३. चारमंगल स्तवन, संपूर्ण, वि. ११वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १३४३८). गाथा - ३५. ५२५९२. (+) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६X१२, १९x४४). १. पे. नाम जीव आयुष्यविचार सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीगुरुचरणकमल, अंतिः भावसागर० एम भाखी जी, गाथा- १०. २. पे. नाम. भख्य अभख्य काल सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. सचित्तअचित्त सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रवचन अमरी समरी सदा; अंति: नयविमल कहे सज्झाय, गाथा - २७. ४ मंगल पद, मु. उदयरल, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सिधारथ भूपति सोहीए, अंति: उदयरत्न भाखे एम. गाथा - २०. ५२५९४. कायाकुटुंब गीत सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८२५, पौष कृष्ण १४, श्रेष्ठ, पृ. १ ले, स्थल, सिद्धपुर, प्रले. पं. कुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६X१२, ७x४६). औपदेशिक सज्झाय, मु. दयाशील, मा.गु., पद्य, आदि: नाहलो न मांने रे; अंति : दयाशील० पंडित विचार, गाथा - ११. औपदेशिक सज्झायटवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बार भावनामांहि अंतिः अर्थ पंडितोए विचारवो. ५२५९७. भगवतीसूत्र - शतक १० उद्देशक ४, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., ( २४.५X१०.५, १३X३८). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५२५९८. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे ३, जै (२६११.५, १३४३७). १. पे. नाम. पर्युषण पर्व स्तुति, पृ. ९अ. संपूर्ण. मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सत्तरभेदी जिनपूजा, अंति: मानविजय० देवी सीधइजी, गाथा-४. २. पे नाम, अष्टमी स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण वि. १८६९ श्रावण कृष्ण, ११, प्र. मु. प्रमाणरुचि (गुरु पं. देवरुचि), प्र.ले.पु. सामान्य. अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मंगल आठ करी जस आगल, अंति: क्रोड कल्याण जी, गाथा- ४. ७१ ३. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण, प्रले. पं. सदारुचि, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिगडे बेठा, अंति: रवीविजय० द्यो चंगी जी, गाथा- ४. ५२५९९. आठकर्म १५८ प्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे. (२५.५४१०५, १५४४३). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदिः आठ कर्म ते केहा, अंतिः विषे उद्यम करतो. " ५२६००. अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १८४३, श्रावण शुक्ल, ११, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. सुरत, प्रले. पं. रंगविजय, पठ. पं. कृष्णविजय गणि (गुरु पं. रंगविजय), प्र.ले.पु. सामान्य प्र. वि. श्रीशंखेश्वरजिनराज प्रसादे, जैदे. (२५.५X११.५. १२x४१). For Private and Personal Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८ प्रकारी पूजा, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: अजर अमर अकलंक जे; अंति: मोक्षं हि वीराः, ढाल-९, गाथा-७७. ५२६०१. (#) औपदेशिक सज्झाय व गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २०, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १९४५५-६५). १.पे. नाम. आलस परिहार गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. आलस काठिया सज्झाय, मु. मेघराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पुण्यतणे बल नरभव पाम; अंति: पभणइ ऋषि मेघराज, गाथा-११. २. पे. नाम. मोह गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. मोह निवारण गीत, मु. मेघराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: बहिनी जेहनि मोहि वाह; अंति: मेघराज आपणपु इम तारि, गाथा-११. ३. पे. नाम. अवज्ञा परिहार गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. मेघराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पोति होइ जे नर पाप; अंति: मेघराज० सुख एह उपाय, गाथा-९. ४. पे. नाम. अभिमान परिहार गीत, पृ. १आ, संपूर्ण.. मु. मेघराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: भाई ए वचन विचार खमो; अंति: मेघराज० पारि उतारो, गाथा-९. ५. पे. नाम. क्रोध परिहार गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. मेघराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: क्रोध कषायइ बंध्यो; अंति: मेघराज० सुख भरपूर, गाथा-९. ६. पे. नाम. परमाद गीत, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. प्रमाद परिहार गीत-आठमद, मु. मेघराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: आठ मद वाह्यो रे केह; अंति: पभणइ ऋषि मेघराजोरे, गाथा-९. ७. पे. नाम. कृपणता परिहार गीत, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. खेमराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: कृपण पणाथी बीहतो रे; अंति: लहि सुख विस्तारोरे, गाथा-९. ८. पे. नाम. भय परिहार गीत, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. मेघराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धांत सुणेवा काजो; अंति: मेघराज इण परि भणीइ, गाथा-७. ९. पे. नाम. सोक परिहार गीत, पृ. २अ, संपूर्ण. शोक परिहार गीत, मु. मेघराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: मोहनी कर्म उदय कारणि; अंति: पभइ ऋषि मेघराज रे, गाथा-९. १०. पे. नाम. अनाण परिहार गीत, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. अज्ञान परिहार गीत, मु. मेघराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: मूर्ख भावि न हु करि; अंति: समरो श्रीभगवंत रे, गाथा-११. ११. पे. नाम. विले परिहार गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. अरती परिहार गीत, मु. मेघराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: घर घरणी चिंतार सिंजी; अंति: छूटसि जिनवर नामि, गाथा-७. १२. पे. नाम. कतुहल परिहार गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. कुतुहल परिहार गीत, मु. मेघराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: हास्य कतुहल वाह्योजी; अंति: ध्यावउ धर्म सदैव, गाथा-९. १३. पे. नाम. १३ काठीया सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. १३ काठिया सज्झाय, मु. मेघराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: रमणी रामति रमतो; अंति: जिम पामो सुख भरपूर, गाथा-८. १४. पे. नाम. स्वार्थ गीत, पृ. ३अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु.,रा., पद्य, आदि: स्वारथ की सब हेरे; अंति: साचा एक है धरम सखाई, गाथा-६. For Private and Personal Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ १५. पे. नाम. औपदेशिक गीत, पृ. ३अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतम तणो मुज ऊपरि; अंति: रंग० साचो दीन दयाल, गाथा-७. १६. पे. नाम. शियल सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-विषयपरिहार, मु. सिद्धविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रेजीव विषय न राचीइं; अंति: ते सेवो निसदीसोरे, गाथा-११. १७. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. सुमतिहंस, मा.गु., पद्य, आदि: तइ मेरइवासो वस्योरे; अंति: आदरि धर्म अथाह रे, गाथा-८. १८. पे. नाम. औपदेशिक गीत, पृ. ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. भुवनकीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: चतुर सनेही रे आतम; अंति: हुं बलिहारी रे नामि, गाथा-९. १९. पे. नाम. आध्यात्मिक फाग, पृ. ३आ, संपूर्ण.. मु. सोभचंद ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: उपसम रस जोगीसर झूलइ; अंति: सोभचंद० नाम गुलाल, गाथा-४. २०. पे. नाम. केशी गौतमगणधर संवाद सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सीस जिणेसरपासना केशी; अंति: सीस उदयरस रंगेरे, गाथा-८. ५२६०२. (#) छत्रीसी व छंद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ७, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, २१४४७). १.पे. नाम. करम छत्रीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. कर्मछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: करम थकी को छूटई नहीं; अंति: धरम तणै परमाण जी, गाथा-३६. २. पे. नाम. पून्यछत्रीसी, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पुण्यछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६९, आदि: पुण्यतणां फल परतखि; अंति: फल प्रत्यक्ष जी, गाथा-३६. ३. पे. नाम. संतोषछत्रीसी, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि: साहमीसु संतोष करिजे; अंति: कीधी संघ जगीस जी, गाथा-३६. ४. पे. नाम. दयाछत्रीसी, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. साधुरंग, मा.गु., पद्य, वि. १६८५, आदि: दयाधर्म मोटो जिन; अंति: वरसे अमदावाद मजार जी, गाथा-३६. ५. पे. नाम. गोडीजी छंद, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति द्यो मुझ; अंति: धवलद्धिग गोडी थुण्यो, गाथा-९. ६. पे. नाम. संखेसर छंद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, ग. जिनहर्ष, मागु., पद्य, आदि: सरसतीमात सदा सुखदाई, अंति: थुणता बहु परसुख कीयो, गाथा-३३. ७. पे. नाम. क्षेत्रपाल छंद, पृ. ४आ, संपूर्ण. बरडावीर छंद, आ. जयचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: एगंत एक इग चित्ते; अंति: जय० दीइ बहु दोलत, गाथा-६. ५२६०३. (#) भावप्रकरणसूत्र सह अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. १६६८, वैशाख कृष्ण, ११, रविवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. स्तंभतीर्थ, प्रले. ग. कीर्तिविजय (गुरु पं. कमलविजय गणि); गुपि.पं. कमलविजय गणि (गुरु ग. हंसविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. तपागछाधिराज भट्टारकपुरंदर भट्टारक श्रीश्रीश्री३श्री विजयदेवसूरि पाद प्रसादेन., पंचपाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११.५, ४-९४३३-४७). भाव प्रकरण, ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, वि. १६२३, आदि: आणंदभरिय नयणो आणंद; अंति: रम्माओ पुव्वगंथाओ, गाथा-३०. For Private and Personal Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भाव प्रकरण-स्वोपज्ञ टीका, ग. विजयविमल, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: नत्वा श्रीजिनशंभव, अंति: (१) सूत्रटीका लिखितम्, (२)विहितेयं विजयविमलेन, (वि. अंत में शिवमस्तु श्लोक दिया है.) ५२६०४. (#) शंखेश्वर पार्श्व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. भक्तिविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११.५, १६-१८x४४). पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पणमवि सारदमाय पाय पण अंतिः ऋद्धि सिद्धि करो, (२५.५X११.५, १८-२३x४२-५२). १. पे. नाम. ज्योतिष संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. गाथा - २१. ५२६०५. (a) सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. ५, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैवे., www.kobatirth.org ज्योतिष मा.गु. सं., हिं. प+ग, आदि (-); अंति: (-). , गाथा - १२. ३. पे. नाम. धर्मोपदेश सज्झाय, प्र. १आ, संपूर्ण २. पे. नाम. भरत सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. भरतचक्रवर्ती सज्झाय, ऋ. इंद्रजी, मा.गु., पद्य, आदि हो साहिबा प्रेम धरी, अंति: कहे भरत भजो निसदीस, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: एक घरि घोडा हाथीआ रे; अंतिः तो किम लणे सालि रे, गाथा- १०. ४. पे. नाम शीयलव्रत सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदिः सीयल तणे सुपसाउले, अंति: करे सरगमांहि लील रे, गाथा- ९. ५. पे. नाम. हनुमान आराधना विधि, पृ. १आ. संपूर्ण, पे. वि. साथ में यंत्र भी दिया है. " मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह *, उ. पुहिं, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदिः ॐनमो लंका से कोट समु; अंति: (-). " ५२६०६. (#) मेघकुमार सज्झाय, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं. जैवे. (२५.५४१२. १५४४१). मेघकुमार सज्झाय, मु. जिनसागर कवि, मा.गु, पद्य, आदिः समरी सारद स्वामिनी अंति: (-), (पू. वि. ढाल ६ गाथा १२ तक है.) יי ५२६०८. कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८९८, भाद्रपद कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. सुजांणगढ, प्रले. मु. हिंदुमल्ल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे (२४.५x१०.५ ११५३१). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुदचं० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ५२६०९ (4) स्तवन व दूहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., " (२५.५X११.५, १७X३९). १. पे. नाम. नेमराजुल स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण वि. १८१९ पौष शुक्ल ११, शनिवार नेमराजिमती गीत. ग. जीतसागर, पुहिं, पद्य, आदि: तोरण आया हे सखी कहै; अंतिः जीतसागर० जि के जी, गाथा - १४. २. पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: अधुरा पुरा दुबले कुल; अंति: मरे घरमाहि नवहचो फरे, गाथा-६. ५२६१०. (#) पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. मढाग्राम, प्रले. मु. गौतमसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५X११, १०x२८). पार्श्वजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु, पद्य, आदिः सुण सखि रे मुझ वाल, अंति: बंदु प्रभूजीना पाय, गाथा ९. ५२६११. मौन एकादशी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२७११.५, १७x४३). मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदिः श्रीमहावीरजिनं नत्वा, अंति: राधनतत्पराः सम भगवन्. For Private and Personal Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५२६१२. (-2) ग्यारह गणधर स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१०.५, १०४३१). ११ गणधर स्तवन, मु. आसकरण, मा.गु.,रा., पद्य, वि. १८४३, आदि: श्रीइंदरभूतीजी का; अंति: वंदु अग्यारे गणधार, गाथा-१४. ५२६१३. (+#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १८४४८). १.पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जीतचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासपूज्यजिन बार; अंति: जीत नमें नितमेवरे, गाथा-५. २.पे. नाम. श्रेयांसजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. मु. कल्याणहंस, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. "लिखितं स्वयमेव" का उल्लेख किया गया है. मु. कल्याणहंस, मा.गु., पद्य, आदि: जगदानंदन साहिबा कुमत; अंति: मेलो द्यो जिनराजजी, गाथा-९. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: गिरीराज तेरे आज दरिस; अंति: मे सदा तुम नेहा, गाथा-६. ४. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. लब्धिरूचि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशीतलजिन सोहे देख; अंति: लबधि नमे नित पाया हो, गाथा-१५. ५.पे. नाम. शीतल स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., पद्य, आदि: सुगण सनेही संभलो एक; अंति: लब्धि० संघजगीस, गाथा-१४. ५२६१४. भावारिवारण स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२४.५४१०.५, १३४४१). ___ महावीरजिन स्तव-समसंस्कृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक १९ अपूर्ण तक है.) ५२६१६. स्तवनवीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. पतननगर, प्र.वि. पंचासर प्रसादात्, दे., (२६.५४११.५, १६४४२). स्तवनवीसी, पंन्या. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: कहियो वंदन जाय दधि; अंति: न्यायसा० मेहरबानी रे, स्तवन-२०. ५२६१७. पार्श्वजिन स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२४४१०, १३४३८). पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. जैनचंद्र, सं., पद्य, आदि: श्रेयो दधानं कमला; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. श्लोक १५ अपूर्ण तक है.) ५२६१८. नवकार रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पठ. श्रावि. दीपुबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१२, १३४४०). नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलुंजी ले असि अरि; अंति: दिन जपयो एह नवकार कि, गाथा-२१. ५२६१९. (#) पच्चक्खाण सूत्र व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७४११,१२४२९). १. पे. नाम. पच्चक्खाण सूत्र, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण, वि. १८६२, ज्येष्ठ शुक्ल, ७, प्रले. पं. ऋषभविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: तिविहारे अ० खा० सा०. २. पे. नाम. पद्मप्रभु स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मनना मोहन मारा दिलना; अंति: राम कहे शुभ सीस हो, गाथा-५. ३. पे. नाम. नेमजी स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल कहे रथ वालो; अंति: मोहन कहे स्याबास, गाथा-७. ५२६२०. पडिलेहण व अष्टभंगी कलक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४११, १७४५४). १. पे. नाम. पडिलेहणा कुलक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पडिलेहण कुलक, ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, आदि: पडिलेहणाविसेस; अंति: सीसेण विनयविमलेण, गाथा-२८. For Private and Personal Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. अष्टभंगी कुलक, पृ. १आ, संपूर्ण. ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, आदि: देवगुरुधम्मतत्तं न; अंति: कवि विजयविमलेण, गाथा-१०. ५२६२१. (#) संबोधसत्तरी, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १९४७३). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: सोलहइ न इत्थ संदेहो, गाथा-७५. ५२६२२. (+) छंद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, १३४४२). १. पे. नाम. गोतमस्वामीनो छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: इंद्रभूतिं वसुभूति; अंति: लभते नतरं क्रमेण, श्लोक-१०. २. पे. नाम. नवकार छंद, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछित पूरे विविध; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १२ तक है.) ५२६२३. (#) वीतराग स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. हर्षविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १७७५२). रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्कर प्रार्थये, श्लोक-२५. ५२६२४. लावणी व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. आसाराम उमेदराम, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१०.५, १२४४१). १. पे. नाम. नेमराजिमती लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: लगी रही निम दरसन की; अंति: जीनदास० वीनती गाई, गाथा-४. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: तुम तजौ जगत का ख्याल; अंति: जिनदास० नरक उठ जाना, गाथा-४. ५२६२५. (#) स्वरोदय-पीठीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२६४११.५, १४४४२). स्वरोदयज्ञान, मु. कपुरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९०५, आदि: नमो आदि अरिहंतदेव; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. मात्र पीठिका तक लिखा है.) ५२६२६. मुक्ति संबंधनी सझाय, संपूर्ण, वि. १९०१, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७.५४१२, १५४३५). शिवपुरनगर सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: गोतमस्वामी प्रीच्छा; अंति: पामे सुख अथाग हो, गाथा-१६. ५२६२७. (#) समवसरण स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४३५). समवसरण स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: एक बार वछ देश आवजो; अंति: रहतां ओछवरंग वधामणां, गाथा-१५. ५२६२८. हितशीक्षा स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. विनयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२.५, ११४२९). औपदेशिक छंद, पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., पद्य, आदि: भगवति भारति चरण; अंति: रंग धरज्यो मनि चोल, गाथा-१६. ५२६२९. पार्श्वजिन लावणी, संपूर्ण, वि. १९१८, चैत्र शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. आसाराम उमेदराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मुनि माणेकचंदजी की प्रति से प्रतिलिपि की गई है., दे., (२५.५४१०.५, ११४४४). पार्श्वजिन लावणी, पुहिं., पद्य, आदि: अगडदम अगडदम वाजै; अंति: तपे तेज का अजुबाला, गाथा-१२. ५२६३०. (+#) ऋषभदेव विवाहलो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११, १८४४१). आदिजिन विवाहलो, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: आदि धरम जिणि उधों; अंति: कविता नर रिषभदासो, गाथा-७०. For Private and Personal Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५२६३१. (१) बोल संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २. कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५४११, १५x५१). १. पे. नाम. दशदृष्टांत सज्झाय, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. मनुष्यभव १० दृष्टांत सज्झाय, वा. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी परमेसर वीर, अंतिः विजयसिंह गुणधारी, गाथा - १२. २. पे. नाम. १० बाद विचार, पृ. २अ संपूर्ण मा.गु., गद्य, आदि: विधिवाद जे वीतराग इम, अंति: समते व्यवहार पक्ष. ३. पे. नाम. ढाईद्वीप विचार, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम जंबुद्वीप एक; अंति: पर ६० चंद्रमा थिर छै. ५२६३२. माणिभद्र स्तोत्र, संपूर्ण वि. १९५७, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. गुलाबविजय यति पठ. मु. यशराज (गुरु मु. गुलाबविजय यति), प्र.ले.पु. सामान्य, वे. (२६.५४१२, १०x३०). . माणिभद्रवीर स्तोत्र, मु. धरणीधर कवि सं., पद्य, आदि: गाढं दोर्भिश्चतुर्भिः अंतिः भारति वक्तिसत्यम्, श्लोक ९. ५२६३३. () सरस्वती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. ले. स्थल राजनगर, प्रले. मु. दानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं. वे. (२६.५x११.५, १३४०). ७७ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, आदि कंदात्कुंडलिनित्वदिय अंतिः तस्य वाचां विशेषः, श्लोक-१२. ५२६३४. नोकारवाली गुणनविधि फल सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. वे. (२६.५x११.५, १०४३३). नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बार जपुं अरिहंतना; अंति: लबधि० नित नवकार, गाथा - ९. ५२६३५. गोडीपार्श्व परमेश्वर छंद, संपूर्ण, वि. १८४३, ज्येष्ठ कृष्ण, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैवे. (२६.५x११.५, १४४४५) - पार्श्वजिन छंद - गोडीजी, मु. राम, मा.गु., पद्य, वि. १७७२, आदि: ऍंकार लीला ललित कलित; अंति: राम० पास जय जयकरण, गाथा- ६४. ५२६३६. (+०) छंद, स्तवन व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २. कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५X१०.५, १५x५१). १. पे. नाम, अज्झारी सरस्वती छंद, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता मनि आण; अंतिः शांति० फलस्यै ताहरी, ५२६३७. सज्झाय व स्तुति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., ( २४.५X११.५, १४X३४). १. पे. नाम. रुखमणी सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. गाथा - ३५. २. पे. नाम शत्रुंजयगिरनार स्तवन, पृ. २अ संपूर्ण, प्रले. मु. जीवणविजय (गुरुग, पुण्यविजय); गुपि. ग. पुण्यविजय (गुरु ग. भीमविजय): ग. भीमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, गिरनारशत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारो सोरठ देश दिखाङ, अंतिः ज्ञानविमल० सिर धरीया, गाथा- ७. ३. पे. नाम, नेमजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. गजानंद, मा.गु., पद्य, आदि: पीया नेमि पधारो हो, अंति: गजानंद० पावो सुखघणा, गाथा- ११. ४. पे. नाम. अर्थावग्रह अवगृहीत विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. न्यायदर्शनसंग्रह, सं., प+ग, आदि: (-): अंति: (-). For Private and Personal Use Only रुक्मणीसती सज्झाय. मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि विचरता गामो गाम, अंति: राजविजय रंगे भणे, गाथा- १४. २. पे नाम पर्युसण स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वरस दिवस मांहिं सार, अंति: जीनेंद्रसागर जयकार, गाथा-४. Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. पर्यषणपर्व स्तुति, पृ. १आ, अपर्ण, प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. बुधविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनेसर अति अलवेस; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पद है.) ५२६३८. नववाडि सझाय व जैनसामान्य कृति, संपूर्ण, वि. १८०६, आश्विन शुक्ल, ६, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. पाटण, जैदे., (२५४१०.५, १४४३४). १.पे. नाम. नववाडिनी सज्झाय, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: हो तेहनि जाउ भामणे, ढाल-१०. २. पे. नाम. जैन सामान्यकृति, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २ अपूर्ण तक लिखा है.) ५२६३९. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ६, जैदे., (२५४१०.५, १३४४२). १. पे. नाम. पार्श्व स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-नडुलाई, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., पद्य, आदि: जस महिमा जग सहू जाणे; अंति: लबधिरूचि गुण गायाजी, गाथा-२८. २.पे. नाम. ऋषभ स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-नडुलाई मंडण चैत्यपरिपाटी वर्णन, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरु चरण कमल नमी; अंति: पुरोलबधि जगिस, ढाल-१, गाथा-९. ३. पे. नाम. अजित स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण.. अजितजिन स्तवन-नडुलाई, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., पद्य, आदि: अजित जिणेसर वंदीइ; अंति: प्रभू छु तुम्ह दास, गाथा-६. ४. पे. नाम. नेमजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, प्रले.ग. नगजी, प्र.ले.पु. सामान्य. नेमिजिन स्तवन-नडुलाई, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., पद्य, आदि: भली युगतिस्युं यादवै; अंति: लब्धि० दिन पुरौ आस, ढाल-१, गाथा-१५. ५. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण, प्रले. मु. नायकरुचि गणि, प्र.ले.पु. सामान्य. शांतिजिन स्तवन-नडुलाई, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमउ सांतिजिणंद जय; अंति: जीन सेवा हूं तोरी रे, गाथा-२८. ६. पे. नाम. ऋषभ स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. आदिजिन स्तवन-जन्ममहोत्सव, वा. जयसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अम घरि आज वधामणा हो; अंति: जयसा० शिवपुर वास केइ, गाथा-११. ५२६४०. (+) चउदै पूर्व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. अबीरचंद्र; पठ. श्रावि. मृगाबीबी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, ९४२८). १४ पूर्व स्तवन, आ. सौभाग्यसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८९६, आदि: जिनवर श्रीवर्धमान; अंति: हांजी संघनै आनंद करै, ढाल-३. ५२६४१. शास्वता स्तोत्र व चतुर्दशगुणठांणा नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२, १३४४८). १. पे. नाम. शास्वताचैत्य स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: सततं चित्तमानंदकारी, श्लोक-९. २.पे. नाम. १४ गुणस्थानक नाम, पृ. १आ, संपूर्ण.. ___ मा.गु., गद्य, आदि: मिथ्यात्व गुणठाणो १; अंति: सयोगी १३ अयोगी १४. ५२६४२. (+) नयोपदेश व अष्टलक्षी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, १६४५४). For Private and Personal Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ १. पे. नाम. नयोपदेश प्रकरण, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. नयोपदेश, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, वि. १८वी, आदि: ऐंद्र धाम हृदि स्मृ; अंति: याख्याभृदाख्यातवान्, श्लोक-१४४. २. पे. नाम. अष्टलक्षी, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६४६, आदि: श्रीसूर्यः श्रेयसे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पार्वती लक्ष्मी इंदुमती सावित्री रतिश्च विवरण तक लिखा है.) ५२६४३. (#) गुणसागर पृथ्वीचंद्र कुमार केवली चरित्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११.५, १५४३७-४४). पृथ्वीचंद गुणसागर वेली, मा.गु., पद्य, आदि: सिरिनेमि जिणेसर नमिय; अंति: गुणसागर ऋषिराज, गाथा-५५. ५२६४४. गौतम कुलक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. पुनमऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२, ६४३१). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: निसेवितु सुहं लहति, गाथा-२०. ५२६४५. स्तवन व सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ५, दे., (२५.५४१२, १३४३१). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: आज आयो रे उछाह जीवडा; अंति: जिनलाभ० सुखवास, गाथा-१३. २. पे. नाम. सीतरुजारो स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आज आपे चालो सहीयां; अंति: प्रेम धरो चित आणीरे, गाथा-९. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण.. रा., पद्य, आदि: श्रीरीषभ जीणेसर भेटण; अंति: श्रीआदजीणेसर भेटण, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ४. पे. नाम. रहनेमी स्वाध्याय, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काउसग्ग ध्याने मुनि, अंति: निर्मल सुंदर देहरे, गाथा-८. ५. पे. नाम. पार्श्व स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. कीरत, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुगर चिंतामणदेव; अंति: प्रभु पारसनाथ कीयै, गाथा-१५. ५२६४६. (+#) पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. संग्रामपुर, प्रले. पं. जससोम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४४२). पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजंबोधिबीजं ___ददातु, श्लोक-११. ५२६४७. (+#) अष्टोत्तरी स्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, १५४४८). अष्टोत्तरी स्नात्रविधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तथा प्रथम उपगरण; अंति: कुंभमध्ये लिखनमंत्रः. ५२६४८. विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १७९५, माघ कृष्ण, २, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. महुदयपुर, प्रले. पंडित. श्रीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १६४४१). १.पे. नाम. गृहबिंब प्रवेशविधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गृहबिंबस्थापना विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पूर्वं भव्यमुहर्त्त; अंति: तस्य नाम स्मर्यते. २. पे. नाम. प्रासादे नवीनबिंब स्थापना विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनबिंब-जिनप्रासाद स्थापना विधि, प्रा.,सं., गद्य, आदि: प्रथम स्थाप्यमान; अंति: स्तवनानि गुण्यंते. ५२६४९. सप्तनय स्वरूप वर्णन, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १६४५१). सप्तनय संक्षिप्त स्वरूप, मा.गु., गद्य, आदि: अनंत धर्मात्मक वस्तु; अति: वइया चेव हुति नायवा. ५२६५०. (+#) सम्यक्त्व स्तव व १० संज्ञा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १०४५५). For Private and Personal Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. सम्यक्त्व स्तवन सह टबार्थ, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूवं; अंति: हवइओ सम्मत्त संपत्ती, गाथा-२५. सम्यक्त्वपच्चीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जिम सम्यक्तवनउ; अंति: सम्यक्त्वप्राप्ति हउ. २.पे. नाम. १० संज्ञा नाम, पृ. ३आ, संपूर्ण.. रा., गद्य, आदि: आहारसंज्ञा भयसंज्ञा; अंति: कच्चा शोकसं० धर्म०. ५२६५१. (+) वासक्षेपपूजा, स्तवन व पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४१३, १२४३०). १.पे. नाम. वासक्षेपपूजा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नवपद वासक्षेप पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अरिहंत पद ध्यातो थको; अंति: कोयें न रही अधुरी रे, गाथा-१५. २.पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. आ. अमृतचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंतसिद्धसूरीश्वरू; अंति: अमृत तेहनो उत्तम भाग, गाथा-४. ३. पे. नाम. सिद्धचक्र पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आ. अमृतचंदसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १९२३, आदि: (१)सिद्धचक्र ध्यान धरिय, (२)अरिहंत पद हितकारी; अंति: दरसै धनपत सिंघ हरखै, गाथा-५. ५२६५२. (+) नवपद स्तवन, संपूर्ण, वि. १९४९, नंद युग निधि रमा, आश्विन कृष्ण, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले.श्लो. (८९४) नवपदनी स्तुति कीवी, दे., (२६.५४१३, ११४३३). नवपद स्तवन, आ. अमृतचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जयजय श्रीअरिहंत परमे; अंति: अमृतसूर० फल पावै, पद-९, गाथा-३६. ५२६५३. गजसुकमाल सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. समाणा, दे., (२८x१३, ७४२०). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. रतन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन आया हो सोरठ; अंति: मझार करजोर रतनो भणैः, गाथा-१३. ५२६५४. (+#) नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८९८, कार्तिक शुक्ल, ८, रविवार, मध्यम, पृ. ३, पठ. श्रावि. भागुबेन वजा पारख, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२५.५४१२, १३४३२-३५). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाश्जीवार पुण्ण३; अंति: उक्कोसौवैउच्चणाकालो, गाथा-५१. ५२६५५. (+#) नेमिजिन स्तुति सह अवचूरी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१४, ५४३७). नेमिजिन स्तुति-अष्टकाव्य पादपूर्तिरूप, मु. राजसिंह, सं., पद्य, आदि: कश्चित्कांता विरह; अंति: स हि दीर्घदर्शिताम्, श्लोक-८, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति अष्टकाव्य पादपूर्तिरूप-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम श्लोक की अवचूरि अपूर्ण तक है.) ५२६५६. (+) सीमंधर स्तुति व चौदह स्वप्न पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२.५, १२४२७). १.पे. नाम. सीमंधर स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु जिनवर विहरमान; अंति: संपदा करण परमकल्याण, गाथा-३. २. पे. नाम. वासक्षेप पूजा, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. त्रिशलामाता १४ स्वप्न पूजा, मा.गु., प+ग., आदि: वर्तमान जिनवर नमुं; अंति: भयो प्रगट्यो जयजयकार, पूजा-१४. ५२६५७. (+#) वीरजिन स्तवन व विहरमानजिन नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२.५, १०४२८). For Private and Personal Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. महावीरजिन विनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी वीनती; अंति: समय० त्रिभुवन तिलउ, गाथा-१९. २. पे. नाम. वीसविहरमान नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सीमंधर१ युगमंधर२; अंति: श्रीअजितवीर्य २०. ५२६५८. मेरुतेरस लघुस्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२६४१२.५, १३४२९). मेरुत्रयोदशी स्तवन-लघु, मु. भूपविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १८९३, आदि: श्रीसरस्वति प्रणमी; अंति: भूपविजयशीस०वंछित फलो, ढाल-३, गाथा-२७. ५२६५९. नवपद स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२५.५४१२.५, १५४३३). १. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कृष्णविजय, पुहि., पद्य, वि. १९४७, आदि: नवपद चित नित धरियै; अंति: कृष्ण कहै हरि उठेगा, गाथा-१३. २.पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. राजचंद्र, पुहिं., पद्य, वि. १९४७, आदि: निरमल होय भजले; अंति: रामचंद्र० स्वर गाई, गाथा-७. ५२६६०. (+) नवपद स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२.५, १२४३५). नवपद स्तुति, आ. अमृतचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत द्वादशगुणा; अंति: अमृतसूरी० सुखकंदाजी, गाथा-४. ५२६६१.(+) रोहिणीतप स्तवन, संपूर्ण, वि. १९२३, माघ शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. मकसुदाबाद, प्रले. मु. अबीरचंद्र ऋषि (गुरु मु. इंद्रचंद्र, पासचंदगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२७४१२.५, १३४४१). रोहिणीतप स्तवन, मु. अबीरचंद्र ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९२३, आदि: तीरथनायक लायक; अंति: अबीरचंद गुण हेज ए, गाथा-११. ५२६६२. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२६४१२.५, ९४२४). १. पे. नाम. नवकार सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: कहज्यो चतुर नर ते कु; अंति: रूप कहै बुधि सारी रे, गाथा-५. २. पे. नाम. आत्मचोपड स्वाध्याय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. चौपटखेल सज्झाय, आ. रत्नसागरसूरि, पुहि., पद्य, आदि: प्रथम अशुभ मल झाटिके; अंति: रतनसागर कहे सूररे, गाथा-९. ३. पे. नाम. हितोपदेश, पृ. २आ, संपूर्ण. आत्मप्रबोध सज्झाय, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गरभावासै चिंतवै हिवै; अंति: जइये मुगति मजार के, गाथा-९. ५२६६३. उपदेशबत्तीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२६४१२.५, ९x१७). उपदेशबत्तीसी, मु. राज, पुहि., पद्य, आदि: आत्मराम सायाने तुमे; अंति: सदगुरु शीख सुणीजै, गाथा-३२. ५२६६४. (+#) जिनपंजर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. रतनचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१३, १०४२७). जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अहँ, अंति: सः कमलप्रभाख्यः, श्लोक-२४. ५२६६५. (#) गृहबिंब लक्षण व पूजा विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्र १४२, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (४५४१०, ५५४२०). गृहबिंब लक्षण व पूजा विधि, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: एकां अंगुलं श्रेष्ठं; अंति: तुष्टि वसु वृष्टि. ५२६६६. (+) जीव विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. कलकत्ता, पठ. श्राव. रामसुख, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४१३.५, १२४२७). For Private and Personal Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पइवं वीरं नमिउण; अंति: संतिसूरि० समुद्धाओ, गाथा-५१. ५२६६७. लावणी व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४१३, १२-१५४२५-३५). १. पे. नाम. ऋषभदेवजीरी लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन लावणी, मु. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: सुणीये बातां राव सदा; अंति: ऋषभ० तमासा फजरू में, गाथा-४. २. पे. नाम. गवरीजीरो तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगवडीपुरमंडण; अंति: क्षमाकल्याण० थाय हो, गाथा-५. ३. पे. नाम. पुंडरीक स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थस्तवन, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: पय प्रणमीरे जिनवरना; अंति: परइ साधुकीरति इम कहइ, गाथा-१३. ५२६६८. वृद्धशांति, संपूर्ण, वि. १९३८, आश्विन शुक्ल, शनिवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले. मु. ऋषभचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. भागीरथी तटे, दे., (२६४१२.५, १३४३१). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनंजयति शासनम्. ५२६६९. सरस्वती छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२६.५४१२.५, १०४२७). सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: शसिकर णीकर समुजलग्य; अंति: सबही पूजो सरस्वती, ढाल-३, गाथा-१४. ५२६७०. (#) शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९१२, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, रविवार, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (९२६) मंगलं लेखकस्यापि, दे., (२७७१३, ७४२०). शांतिजिन स्तवन, मु. गुणविनय, पुहिं., पद्य, आदि: भविजन शांतिनाथ प्रभु; अंति: गुणविनय० सदा सवोरे, गाथा-११. ५२६७१. (#) वैराग्य स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२६.५४१२.५, ९४२५). पुण्यफल सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: दया रिणसींघो बाजीयो; अंति: दीनी तीन अधिकार रे, गाथा-२२. ५२६७३. (+) अंगरक्षा स्तोत्र व स्तवनचोवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-२(४ से ५)=४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १५४३६-४०). १.पे. नाम. अंगरक्षा स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो अरिहंताणं; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. २. पे. नाम. स्तवनचोवीसी, पृ. १अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: (-), (पू.वि. १२ वें तीर्थंकर वासुपूज्यजिन स्तुति श्लोक ४ अपूर्ण से १७वें तीर्थंकर कुंथुजिन स्तुति श्लोक ४ अपूर्ण तक तथा २२वें तीर्थंकर नेमिजिन स्तुति श्लोक ४ अपूर्ण से नहीं है.) ५२६७४. मोक्षमार्गगतिनाम सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. अहिपुर, जैदे., (२४४१२.५, ६४५१). उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा मोक्षमार्गगति अध्ययन २८, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., पद्य, आदि: मोक्खमग्गइ तं च सुणे; अंति: महेसिणो त्तिबेमि, गाथा-३६. उत्तराध्ययनसूत्र का हिस्सा मोक्षमार्गगति अध्ययन २८-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आठ प्रकारना कर्मथकी; अंति: तुझ प्रतै कहुं छु. ५२६७५. (+) पोसह विधि, पौषध सज्झाय व स्थापना बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४१३, १०४३५). १.पे. नाम. पोसो विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ www.kobatirth.org पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकारेण० इरियावही अंति: मिच्छामि दुकडं. २. पे नाम, जगचुडामणी उपदेशमाला, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण पौषध सज्झाय खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि जगचूडामणिभूओ उसभो; अंतिः उप्पन्नं केवलं नाणं, गाथा - ३३. ३. पे. नाम. थापनाजी पडिलेहणा, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. स्थापनाचार्यजी पडिलेहण १३ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: सुधस्वरूप धारुं अंति: वचनगुप्त कायगुप्त, ५२६७६. (०) स्तवन संग्रह व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २. कुल पे. ५, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२६.५X११.५, १२-१६X३६). १. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. वा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: साहिब सांभलो विनति, अंति: तणी ए वीनती सुविवेक, गाथा - ७. २. पे नाम, कुंथुजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, , उपा. मानविजय, मा.गु, पद्य, आदि: कुंथु जिणेसर जाणज्यो, अंतिः लाल मानविजय उवझाय रे, गाथा ७. ३. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र सज्झाय, पृ. १आ-२अ संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशवेकालिकसूत्र - सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु, पद्म, वि. १७१७, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण, ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. मु. मनोहरविजय, मा.गु., पद्य, आदि प्रभुजी म्हारा आज अंतिः ध्यावोरे दिल धरी रे, गाधा- ६. ५. पे नाम, गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. कांतिसागर, मा.गु., पद्य, आदि आवो सहिअर सहु मिलि अंति: कांतिसागर ओलग , करे, गाथा- ११. ५२६७७. केवलज्ञान शुकुनावली, संपूर्ण वि. १९५३ वैशाख शुक्ल, ५. शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. जीवणसिंग, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र.वि. कोष्ठक सहित. वे. (२६.५४१३ १४४३९). केवलज्ञान शकुनावली, सं., पद्य, आदि: अकारे लभते ज्ञानं; अंतिः शुभाशुभ फलं भवेत्, श्लोक - ५१. ५२६७८. स्थविरावली, संपूर्ण, वि. १९८५, आश्विन शुक्ल, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. जगन्नाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., मा.गु., पद्म, आदि: जीनमारग में धरसूः अंतिः चितपाठ नगस्यही जी, गाथा-७. २. पे. नाम. संतनाथजीरो तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. (२५.५X१२, १३x४७-५१). नंदीसूत्र- स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणउ; अंति: नाणस्स परूवणा बुच्छं, गाथा-५०. ५२६७९, (७) स्तवन व सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., (२४.५X१३, १६X३७). १. पे. नाम जिनमार्ग प्रभावक सज्झाय, पृ. १अ. संपूर्ण शांतिजिन स्तवन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: गौतमनाम नमुं सिरनामी, अंति: गुणसागर० निश्चय पावे, गाथा २१ (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) गाथा - १५. २. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण. ५२६८० (+) सज्झाय व सवैचा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, पठ. श्राव. लक्ष्मीपति प्रतापसिंघ बाबुसा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५X११.५, १०x२९). १. पे नाम. काठीया १३ स्वाध्याय, पृ. ९आ-२आ, संपूर्ण. १३ काठिया सज्झाय, मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: साधु समीपे आवतोजी आल, अंति: सीस उत्तम गुण गेह, ८३ For Private and Personal Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. जैमल ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: मोह मिथ्यात की नींद; अंति: श्रीजिन भाख्यो एम, गाथा-३४. ३. पे. नाम. दोहा संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदिः सुत मानत मात पिता जब; अंति: रूप कुटुंब भए तब ते, गाथा-१. ५२६८१. व्रतोच्चार विधि, संपूर्ण, वि. १७८६, कार्तिक शुक्ल, १, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४११, १७X४५). ब्रह्मचर्यव्रतप्रत्याख्यान आलापक, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम प्रदक्षिणा; अंति: काउस्सग्गि लोगस्स. ५२६८२. (+) सिद्धाचल पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२८x१३, ७X१६). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: ते दिन क्यारे आवस्ये; अंति: चाहै नित जिणंद, गाथा-७. ५२६८३. दस पच्चक्खाण विधि स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. पालणपुर, प्र.वि. श्रीपलवीयाजी प्रसादात्., दे., (२८x१२.५, १२४३८). १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नमु; अंति: रामचंद्र तप वीधी भणी, ढाल-३, गाथा-३३. ५२६८४. चार शरणां ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. सुजानगढ, प्रले. मु. रतनचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२८x१३, ७४२०). ४ मंगल शरण, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: प्रह उठीने समरीजे हो; अंति: चोथमल० बाल गोपाल, गाथा-१२. ५२६८५. (+) सुखविपाक सूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४४१२.५, २२४४०). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: सेसंजहा आयारस्स, प्रतिपूर्ण. ५२६८६. (#) रोहिणी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१३, १६४३८). रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणदेवता सामणीए मुझ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल २ गाथा २ अपूर्ण तक लिखा है.) ५२६८७. त्रीया चरीत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२६४१२, ११४३४). स्त्री चरित्र चौढालिया, श्राव. हीराचंद, रा., पद्य, वि. १८३६, आदि: लख चोरासी मै भटकर; अंति: सांभलज्यो नरनारी जी, ढाल-४. ५२६८८. सिद्धाचल स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४१३, १२४३४-३८). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आज आपे चालो सहीयो; अंति: जिनचंद चितें आणी रे, गाथा-९. ५२६८९. (+) जंबूद्वीप संग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३९, वैशाख कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले. आ. अमृतचंदसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४१२.५, ७४३२). लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिअजिणं सव्वून्नं; अंति: रइया हरिभद्रसूरीहिं, गाथा-२८. लघुसंग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हुवो जिन; अंति: कीधी हरिभद्रसूरीने. ५२६९०. जंबूस्वामी नागला सझाय व स्थूलिभद्र रास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२५.५४१२, १६४२७). १.पे. नाम. जंबुसांमी नागीला की सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. ___जंबूस्वामी ५ भव सज्झाय, मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसारद प्रणमुंहो; अंति: होके मुनिवर रामजी, गाथा-३४. २.पे. नाम. स्थूलिभद्र रास, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७३९, आदि: सुख संपत दाय सदा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २ अपूर्ण तक लिखा है.) ५२६९१. शांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९०४, पौष कृष्ण, ६, सोमवार, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. वीरचंद ऋषि; पठ. श्राव. लक्ष्मीपति प्रतापसिंघ बाबुसा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२.५, ९४२१). For Private and Personal Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत, अंति: जैनं जयति शासनम्, श्लोक - १९. ५२६९२. (+) कर्मग्रंथ व दूहा, संपूर्ण, वि. १९३७, आषाढ कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ३ कुल पे. २, ले. स्थल. अजीमगंज, प्रले, आ. जिनअमृतचंदसूरी पठ श्रावि. रतनकुवर हर्षचंद्रजी नवलखा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, दे., (२५.५X१२.५, ८x२९). १. पे. नाम. बंधस्वामित्वसूत्र कर्मग्रंथ-३, पृ. १अ - ३ आ. संपूर्ण. स्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा. पद्य वि. १३वी २४वी, आदि: बंधविहाणविमुखं, अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं, गाथा - २५. २. पे. नाम. रोहिणीपंचमीतप दोहा, पृ. ३आ, संपूर्ण. दोहा संग्रह जैनधार्मिक, पुहिं., मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा- १. ५२६९३. (४) सात विसन सौझाव, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. अवरखयुक्त पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे., (२६X१२, ६X१५). ७ व्यसन सज्झाय, मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: सात विसननो संग रखे, अंतिः कहे भ्रमसी सुखकार, गाथा ९. ५२६९४, (४) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२.५, १५X३२). १. पे नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण יי पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हमणा आवे छे मारे मंद, अंतिः सेजे सिवसुंदरी वरी, गाथा - ९. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: संति जीनेसर सायबा रे, अंतिः मोहन जय जयकार, गाथा ७. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- पंचासरातीर्थ, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परमातम परमेसरु; अंति: पद्मविजय अक्षय राज, गाथा- ७. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७८९, आदि: जगपति तुं तो, अंति: उदय० नेउईसी सो भेटीओ, गाथा-५. ५२६९५ शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, जैदे. (२५x१०.५, ११३७). " शांतिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: परम पुरुष परमामृत भण; अंति: तवता ग्यां सात बीक, गाथा- ३१. ५२६९६, (४) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५X११, १५x५६). १. पे. नाम. सुभद्रासती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. राजरत्न पाठक, मा.गु., पद्य, आदिः साजन वंदु रे सुभद्रा; अंति: राजरत्न पाठक वाणि, गाथा-१७. २. पे नाम, बलदेवमुनि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण बलभद्रमुनि सज्झाय, उपा. राजरत्न पाठक, मा.गु., पद्य, आदि: संवेगी बलदेव साधु, अंति: राजरत्न उवज्झाय, गाथा- ७. ५२६९७. अष्टमी स्तवन, संपूर्ण वि. १९०१, पौष कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल, अजीमगंज, प्रले. मु. अवीरचंद ऋषि, पठ. श्रावि. मृगाबीबी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. भागीरथी तटे., दे., ( २४x१२.५, १०X३०). चंद्रप्रभजिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मंगल कलागुण नीलड, अंतिः पासचंदसूरि० तासु ८५ For Private and Personal Use Only घरे, गाथा - १०. ५२६९९. (+४) सरस्वती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे. (२३.५४१२, ८x२७). सरस्वतीदेवी छंद, ग. हेमविजय, मा.गु. पच, आदिः ॐकार धरा उधरणं वेद, अंतिः बंदै हेम इम वीनती, गाथा- ११. Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८६ ५२७०० (+) सवैचाचौवीसी, संपूर्ण वि. १९५१, मार्गशीर्ष कृष्ण, ११, मध्यम, पू. ३, प्रले. आ. रामचंद्रजितसूरी, अन्य. श्राव. तेजराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., दे., (२१X१२.५, १४X३६). २४ जिन सवैया, पु,ि पद्य वि. १८६९, आदि आदि जिणंद करो विनती; अंतिः साधन की सरना चितलाई, गाथा- २५. ५२७०१. शील सझाव, संपूर्ण वि. १९०२ आश्विन कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. २, प्रले. ऋ. शिवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, वे. (२२x१२, ८x१८). कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शीलव्रत सज्झाय, मा.गु., पद्म, आदि: सुगंध माणस तुमे हु, अंति लाल जोडी बैरागी साध, गाथा- १०. ५२७०२. गोडीपार्श्वजिन छंद, संपूर्ण, वि. १९५४, ज्येष्ठ कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. तेजकर्ण, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१.५X१२.५, १५x२५). पार्श्वजिन स्तवन- अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्म, वि. १७वी, आदि; वाणी ब्रह्मावादनी अंति: जिननाम अभिराम मंतः, ढाल -५, गाथा-५५. ५२७०३. (+) पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे., (१५.५X१२.५, ७X१०). पार्श्वजिन स्तवन, मु. तेज ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८९४, आदि: वामानंदन वंदिये अविच; अंति: तेजनी पुगी आश ललना, गाथा - ११. "" ५२७०४. शांतिजिन कलश, अपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. ४. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दे. (२७.५x१३, ११५२४). शांतिजिन कलश, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु. सं., पद्य, आदिः श्रेयः श्रीजयमंगलाभ, अंति: (-). (पू.वि. ढाल २ कलश अपूर्ण तक है.) ५२७०५ () भेरु पूजा व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे, ३, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, दे. (१८४१२.५, १५४१५). १. पे, नाम, भरु पूजा, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. क्षेत्रपाल पूजा, मु. सोभाचंद, पुहिं., पद्य, आदि: जैन को उद्योत भरु; अंति: सुभचंद० गीत भरुलाल को, गाथा- १२. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: धनधन क्षेत्रविदेह, अंतिः रतनचंद० चाकरी रे लाल, गाथा- १२. ३. पे. नाम. शारदा स्तवन, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. सारदा स्तुति, मु. अमर, मा.गु., पद्य, आदि: मात सदा सुरराणी है; अंतिः अमर करत जयकार, गाथा-५. ५२७०६. ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९९, फाल्गुन शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. अजीमगंज, प्रले. मु. अबीरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४x१२.५, ११x२८). आदिजिन स्तुति, आ. लब्धिचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: भलै दीठो दरसण आज ऋषभ, अंति: लब्धिचंद्र० दीजीयै, गाथा - ३. ५२७०७. अजितजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैवे. (२४.५४१२.५, १४४३०). अजितशांति स्तवलघु - खरतरगच्छीय, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि : उल्लासिक्क मनक्ख; अंति: जिणवल्लह० विधुतह, गाथा- १७. ५२७०८. दोडसो जिनकल्याणक चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२६४१२.५, १४४४३). "" १५० जिनकल्याणक चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: शासननायक जगजयो वर्धम, अंति: शिवलक्ष्मी वरीजे, गाथा - १६. ५२७०९. माणिभद्र अष्टक, संपूर्ण, वि. १९१० कार्तिक कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. १, प्र. मु. रत्नविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, वे. (२५X१२.५, ९X२६). For Private and Personal Use Only माणिभद्रवीर छंद, मु.शिवकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमाणिभद्र सदा, अंति: सिवकिरत० सुजस कहे, गाथा-८. ५२७१०. विपाकसूत्र - द्वितीय श्रुतस्कंध, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३ वे. (२३.५x१२, १७४६१). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंतिः सेवं भंते सुहविवागा, ग्रं. १२५० प्रतिपूर्ण. ५२७११. (+) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १६वी, जीर्ण, पृ. २१-१८ (१ से १८) = ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५X१०, १५X४२-४६). Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ www.kobatirth.org ८७ उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., अध्ययन १९ गाथा १६ अपूर्ण से अध्ययन २० गाथा ३८ अपूर्ण तक है.) ५२७१२. चौदह स्वप्न कवित्त, संपूर्ण वि. १९३७, मध्यम, पृ. १, दे. (२४.५४११.५, १६-४६४४६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४ स्वप्न कवित, मु. नंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुंड सरल दीपंत, अंति: नंद कहे० समुजल वन्ही, गाथा - १४. ५२७१३. (+) कल्याणमंदिर व भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६-२ (४ से ५ ) = ४, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत- अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. वे., (२५४११.५, ९४४८). १. पे नाम, कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ९अ-३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. " आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अति: (-) (पू. वि. श्लोक ४३ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि (-); अंतिः समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक-४४ (पू.वि. श्लोक ४१ अपूर्ण से है.) ५२७१४. (+) पार्श्वनाथ स्तोत्र महामंत्रगर्भित व धर्म्म स्थिति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२४.५X१०.५, ११x४२). १. पे. नाम. महामंत्रगर्भित पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. शिवनाग, सं., पद्य, आदि: धरणोरगेंद्रसुरपति, अंति: तस्यैतत्सफलं भवेत्, श्लोक-३९. २. पे. नाम. धम्मं स्थिति, प्र. २आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.सं., पद्य, आदि: शुद्धिर्वसति बौधेषु; अंति: अक्खर अडयाल जिणधम्मो, श्लोक-२, (वि. उपा. यशोविजयजी के द्वारा प्ररूपित . ) ५२७१५. ऋषभदेव सत, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२४४११, १०x२४). आदिजिन स्तवन- विविधतीर्थ मंडन, मा.गु., पद्य, आदि आदि नमो श्रीगणेशदेव, अंति: थाहरो नाम जपेश, गाथा - १२. ५२०१६. पार्श्वनाथ स्तोत्र व चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. कुल पे. २. वे. (२४.५४११.५, १०४३३). १. पे नाम, पार्श्वजिन स्तोत्र, प्र. १अ संपूर्ण, पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदिः ॐ नमः पार्श्वनाथाय अंतिः पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक ५. २. पे. नाम. साधारणजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ १ आ. संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जय जय तुं जिनराज आज; अंति: मल्यो भवजल पार उतार, गाथा- ६. ५२७१७. नवपद पूजा, आरती व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-२ (२ से ३ ) = ४, कुल पे. ५, जैदे., (२६X११, १५४४२-४६). १. पे, नाम, नवपद पूजा, पृ. ९अ ६अ, अपूर्ण, पू. वि. बीच के पत्र नहीं हैं. उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदिः उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: मोक्षसौख्यं श्रीयंति, (पू.वि. द्वितीय कलशपूजा अपूर्ण से अष्टम कलशपूजा अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. सिद्धचक्र आरती, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. मु. कुशलविजय, मा.गु., पद्य, आदिः सिद्धचक्र आरती भविजन, अंति: कुसलविजय० सिवसुख दीजे, गाथा- ११. ३. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ६आ, संपूर्ण मु. साधुकीर्ति, पुहिं, पद्य, आदि आज ऋषभ घरि आवै देखो; अंतिः फल साधुकीरत गुण गावे, गाथा ५. " ४. पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. ६आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, पुहिं., पद्य, आदि: आंगण कल्प फल्यो री; अंति: उदय० रहुं सोहलो री, गाथा- ३. ५. पे नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: म्हारे भले उगो रे, अंतिः जिनलाभसूरि० राजनो रे, गाथा-५. ५२७१८. तिजयपहुत्त स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, पठ. मु. दूदा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५x१०.५, ११४३८). तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निब्भतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. " For Private and Personal Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५२७१९. (+) चंदनबालानो रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, २२४४७-५०). चंदनबालासती रास, मु. ब्रह्मराय ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: असुभ करम के हरणकुं; अंति: ब्रह्मराई० निर्वाणतो, गाथा-१३७, (वि. प्रतिलेखक ने कहीं-कहीं एक गाथा को दो गाथा गिना है.) ५२७२०. औपदेशिक सज्झाय व कृष्ण पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, दे., (२३.५४११.५, १३४४३). १. पे. नाम. उत्पत्ति सज्झाय, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उत्पति जोज्यो आपणी; अंति: इम कहे श्रीसार ए, गाथा-७२. २. पे. नाम. कृष्ण पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. ___ मीराबाई, पुहिं., पद्य, आदि: मिल बिछुरन की प्रीत; अंति: मीरा० ऐसे कपटी मित्र, पद-५. ३. पे. नाम. कृष्ण पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. क. नरसिंह महेता, पुहिं., पद्य, आदि: गोविंदो प्राण हमारो; अंति: नरसी० हिवडा माह, पद-३. ४. पे. नाम. विरह कृष्ण विलापन, पृ. ३आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: परकी फाग मेरे पीय; अंति: विरहनि तुम चली जाय, पद-८. ५२७२१. नवपद महिमा व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४.५४११.५, १२४४०). १. पे. नाम. नवपद महिमा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. साधुविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र आराधतां; अंति: साधुविजयतणो० करजोड, गाथा-१५, (वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को तीन गाथा गिना है.) २.पे. नाम. मंत्र सग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन मंत्र संग्रह-सामान्य , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५२७२२. वीस स्थानक सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२३४११, १५४३६). २० स्थानकतप सज्झाय, मु. श्रीवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति समरि सुगुरु; अंति: श्रीवरधन० जै शिवपुरी, गाथा-११. ५२७२३. प्रश्नोत्तररत्नमाला व पच्चक्खाण, संपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४११, ५४५५). १.पे. नाम. प्रश्नोत्तररत्नमाला सह टबार्थ, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनवरेंद्र; अंति: कंठगता किंन भूषयति, श्लोक-२८. प्रश्नोत्तररत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ केवली; अंति: पहिरी कुनइ सोभइ नही. २.पे. नाम. पच्चक्खाणसूत्र सह टबार्थ, पृ. २आ, संपूर्ण. पौषध प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: करेमि भंते पोसह; अंति: अप्पाणं वोसिरामि. पौषध प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: करुंउ छउ हे भगवन; अंति: पोषधइन ऊचरवानउ आलोवउ. ५२७२४. महादेव अष्टक व सौभाग्यपंचमी कथा, संपूर्ण, वि. १७५९, कार्तिक शुक्ल, ७, मंगलवार, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. विद्यापुर, प्रले. ग. दानसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१०.५, १२४४१). १. पे. नाम. महादेव अष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: देव तु माहादेव साचि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पद ४ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. सौभाग्यपंचमी कथा, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: कार्यो भवद्भिरद्भुतं. ५२७२५. पार्श्वजिन लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. सुगणचंद मुनि; पठ. महताव बीबी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१४११, ९४२१). पार्श्वजिन लावणी, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: तु अकलंकी रूप सरूपी; अंति: उदयरतन० लीधा निरधारी, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५२७२६. स्तवन व सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२२४११.५, १२४३८). १. पे. नाम. पद्मप्रभ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: परम रस भीनो माहरो; अंति: पूरजो सकल जगीस हो, गाथा-८. २. पे. नाम. सात व्यसन सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ७ व्यसन सज्झाय, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: परउपगारी साध सुगुरु; अंति: पुन्यसागर रंगे कहे, गाथा-९. ५२७२७. महावीरजिन पारj, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४४२). महावीरजिन पारj, मु. अमीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: माता त्रिशला ए पुत्र; अंति: अमीवि०थाय लीला लेहेर, गाथा-१८. ५२७२८. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. भानुविजय; पठ. श्रावि. गूजर दे, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १०४३१). पार्श्वजिन स्तवन, मु. ज्ञानमेरु, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो सुंदर रूप; अंति: ग्यानमेरु० सुह सदा, गाथा-९. ५२७२९. (+) तप विधि वस्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत-क्रियापद संकेत-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६.५४११, १४४३८-४१). १. पे. नाम. वीसस्थानक तप आराधना विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप आराधनाविधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहताणं २०००; अंति: गोत्र उपार्जइ सही, पद-२०. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-स्तंभनतीर्थ मंडन, मु. लावण्यविमल, सं., पद्य, आदि: ग्रामे श्रीस्तंभ; अंति: लावण्य० पद्मावतीशं, श्लोक-४. ५२७३०. बावीस अभक्ष बत्तीस अनंतकाय स्वरुप सह टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. प्रेम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., दे., (२६४११, १५४५७). २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय कुलक, प्रा., पद्य, आदि: पंचुबर चउविगई हिम; अंति: परिहरिअव्वा पयत्तेणं, गाथा-७. २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय कुलक-व्याख्या, सं., गद्य, आदि: वट १ पिप्पल २ उंबर ३; अंति: वुच्छेओ संयम तवाणम्. ५२७३१. विविध विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १९४३८-४१). १.पे. नाम. तत्त्वविचार श्लोक सह विवरण, पृ. १अ, संपूर्ण.. तत्त्व विचार श्लोकसंग्रह, सं., पद्य, आदि: तत्त्वानि९ व्रत१२; अंति: ज्ञेया सुधीभिः सदा, श्लोक-१. तत्त्व विचार श्लोकसंग्रह-विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: जीव १ अजीव २ पुण ३; अंति: एरस जाणिवा. २. पे. नाम. विविध विचार संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.. विविधविचार संग्रह*, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५२७३२. (+) गुरुवंदन कुलक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११, १५४५०). गुरुवंदन कुलक, प्रा., पद्य, आदि: मुहणतय देहावस्सएसु; अंति: एवं अडनउयसयमिहई, गाथा-२९. ५२७३३. असझाय सझाय, संपूर्ण, वि. १९४३, माघ शुक्ल, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. किसन बोरा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११.५, ८४२८). असज्झाय सज्झाय, मु. ऋषभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता आदे नमीइं; अंति: ऋषभ० वरस्यो सिद्धि, गाथा-११. ५२७३४. मायाबीज स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४.५४१०.५, १४४५१). मायाबीज स्तुति, सं., पद्य, आदि: ॐनमः सवर्णपार्श्व; अंति: सभवेत्पद्मनी राज्ञः, श्लोक-१७. ५२७३५. (#) विधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ११४२६-५३). For Private and Personal Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ९० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. सूरिपद स्थापना विधि, पृ. १अ १आ, संपूर्ण पदस्थापन विधि, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि: पसत्थे दिणे शिष्य, अंतिः वंदन कान ददाति (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) २. पे. नाम. वाचनाचार्यस्थापन विधि, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा. सं., गद्य, आदि शुभतिथिवारनक्षत्रमुह अंतिः (-). (पू. वि. मात्र प्रारम्भिक अंश है.) ५२७३६. (+) नवतत्त्व सूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ३, पठ श्रावि. गुरिबाई, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे., (२४.५X११, १३x४० ). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा, अंति: अणंतभागो य सिद्धिगओ, गाथा-५६. ५२७३७. स्तवन, गीत व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८२५, ज्येष्ठ शुक्ल, ११, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ६, ले. स्थल, भीलोडा, प्रले. पं. गंभीरसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रत १x२, जैदे., (२५८.५, ३४४१८). १. पे नाम, सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण सीमंधरजिन स्तवन, मु. सुखदेव, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर जिनरायजी अंतिः जिनजी थे सांभलो, गाथा-६, २. पे. नाम. धम्मंगीतदया स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना प्रभाति, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: रे जीव जिन धरम कीजीय; अंतिः समय० छई मुगतिनी ठाम, गाथा-६. ३. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन गीत, पुहिं, पद्य, आदि: भजो श्रीऋषभ जीणंद, अंतिः उपमा मोपे वरणीने आई, गाथा-३. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन गीत, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि मेरे तो यो ही चाव है, अति आनंद० अवर न ध्यावु गाथा-३. ५. पे. नाम. शेत्रुंजा पद, पृ. २अ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि इणि रे डुंगरीये झीण; अंतिः नवविमल० भव पार उतारो, गाथा ६. ६. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि प्राणीडा रे सूतो तुं, अंतिः भगवंतने जिन बीसरे जी, गाथा- १३. ५२७३८. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, दे. (२६५११, ९-१०x३६-४४). , १. पे. नाम. अढारनातरानी सज्झाय, पृ. १अ २आ, संपूर्ण प्रले. श्राव. हठीसंग फुलचंद वोरा, प्र.ले.पु. सामान्य. १८ नातरा सज्झाय, मु. हेतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पेहेलां ने समरुं पास, अंति: कांई हेतविजय गुण गाय, ढाल -३, गाथा - ३६. २. पे. नाम. थुलीभद्र सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चांपो मोर्यों हे आंगण, अंतिः सीलधी लहीइं सुख अपार, गाथा-६. ३. पे. नाम. चेलानी सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. शिष्य सज्झाय, मु. जिनभाण, मा.गु., पद्य, आदि: चेला रहे गुरुने पास; अंति: सेवो इम कहे जिनभाण, गाथा-७. ५२७३९. चतुर्विंशति जिन स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैदे. (२५x१०, १५४५६). "" २४ जिन स्तोत्र, ग. संघविजय, सं., पद्य, आदि: वृषभलांछन लांछित, अंति: संघविजय० देहवतां सदैव, श्लोक - २९. ५२७४०. पद व स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७८५, माघ शुक्ल, १, गुरुवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५X११, १३x४४). १. पे नाम, सारदा अष्टोत्तरसत नामानि पृ. १अ संपूर्ण सरस्वतीदेवी स्तोत्र - १०८ नाम गर्भित, सं., पद्य, आदिः धिषणा धीर्मतिर्मेधा, अंति: भारती किल्विषं मे, श्लोक १५. २. पे नाम, नमस्कार स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण, For Private and Personal Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ www.kobatirth.org ९१ आध्यात्मिक पद, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अलख अगोचर अकलरूप, अंति: मानवि० नाठा सघला दुख, गाथा-५. ५२७४१. (१) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. मु. राजरत्न प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६x१२, १२X४३). १. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८१८, ज्येष्ठ शुक्ल, १०, मंगलवार. २४ जिन स्तोत्र - पंचषष्टियंत्रणभिंत, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदिः आदी नेमिजिनं नौमि अंतिः मोक्षलक्ष्मी निवासः, श्लोक- ८. २. पे. नाम. उवसग्गहरं स्तोत्र. पू. १अ १आ, संपूर्ण उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ९, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास, अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा - ९. ३. पे नाम, आणंदवली स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण, बालत्रिपुरासुंदरीदेवी स्तोत्र, मा.गु., सं., पद्य, आदिः आई आनंदवल्ली अमृतकर, अंति: सर्वदेवी नमस्ते, गाथा-६. ५२७४२. मंगलपचीशी, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैदे. (२४.५४६.५, ३५४१४-१८ ). " मंगलपच्चीशी, पं. खेमवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती माता सारज करो; अंतिः खेमवर्धन० गुण गाय, गाथा २५. ५२७४३. जिनलाभसूरि स्तुति, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२७.५X१०.५, ४१x२१). जिनलाभसूरि स्तुति- पत्रमय, पं. सूर्यमुनि, सं., पथ, वि. १८२३, आदि: स्वस्ति श्रीवरशंकराद अंतिः श्रेयो दिने दिने, , י Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्लोक-२४. ५२७४४. अष्टमी तप स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. गौतम, पठ. श्रावि देवकुंअर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., (२५x१०.५, १२४३५). अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु, पद्य, वि. १८वी, आदि हां रे मारे ठाम धर्मः अंतिः कांति सुख पामे चणु, ढाल - २, गाथा - २४. " ५२७४५. (+) साम्यशतक, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैसे, (२५X११, १३X३८). साम्यशतक, आ. विजयसिंहसूरि, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: अहंकारादिरहितं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ५५ तक है.) יי ५२७४६, (+) पार्श्व जयतिहुअण स्तोत्र, संपूर्ण वि. १५५३ भाद्रपद कृष्ण, १०, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल, श्रीपत्तन, प्रले. मं. आका, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२५४१०.५, १०x४२). " जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख, अंति: विण्णवह 3 अणिदिव गाथा ३०. ५२७४७, (+) भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे., " ( २५X११, ११x४२). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि भक्तामरप्रणतमौलि, अंति: (-) (पू.वि. श्लोक ३९ अपूर्ण तक है. ) ५२७४८. शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८००, फाल्गुन कृष्ण, १३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. जावरा, प्रले. सा. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे (२४.५४९, ११४४५). " शांतिजिन स्तवन रा., पद्य, आदि: श्रीसंत जिणेसर भणता, अंति: जाय बीराजया मोखो, गाथा - २२. ५२७४९. सवैया व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९०५, आषाढ़ कृष्ण, १०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल. पालडी, प्र. मु.] कनीराम, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४८, १४९५३). " १. पे. नाम. सप्तव्यसन फल सज्झाय - गाथा - १ से २, पृ. १अ, संपूर्ण. सप्तव्यसनफल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: जुवा रमै नर जेह माया; २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only अंति: (-), प्रतिपूर्ण. " Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, वि. १६६७, आदि: अदभुत संत जूहारीये; अंति: गुणसागर० कल्याणो जी, गाथा-९. ५२७५०. (+) दादाजी महाराज स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ., दे., (२१४७,११४४०). जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. केसरीचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९१७, आदि: समरीयै कुसलदादो गुरु; अंति: नमै केसरीचंद ए, गाथा-१२. ५२७५१. (+-) छंद, गीत व दहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित., जैदे., (२४४११, १४४३२). १. पे. नाम. शारदादेवी छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता मन; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १३ तक लिखा है.) २. पे. नाम. अमल गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. व्यसनत्याग गीत, पुहिं., पद्य, आदि: लजालो हरखारो नलीजे; अंति: लीयो कोइ अमल नन्हो, गाथा-५. ३. पे. नाम. दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सदा न सजन प्राहुणा; अंति: सदा न वरसे मेह, गाथा-१. ५२७५२. जिनपंजर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. श्राव. गुलाबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१२, १४४४०). जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अहँ, अंति: श्रीकमलप्रभाक्ष, श्लोक-२३. ५२७५३. गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११,१३४४२). १.पे. नाम. आदिनाथ गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन गीत, उपा. रत्ननिधान, मा.गु., पद्य, वि. १६४४, आदि: अभिराम सोरठ भूमि; अंति: भणइ रत्ननिधान वचन्न, गाथा-१२. २. पे. नाम. सप्तव्यसन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. ७ व्यसन सज्झाय, उपा. रत्ननिधान, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धारथ कुल कलस; अंति: जिम हुइलील विलास, गाथा-११. ५२७५४. (-) लघुशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. पंन्या. रामहर्ष गणि; पठ. सा. अषु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, ९४२८). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शंतं शंत निशतं शंत; अंति: जैनं जयति साशनं, श्लोक-१९. ५२७५५. (+) स्थापना विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४११, १२४३६). स्थापनाचार्य विधि, सं., प+ग., आदि: स्थापना विधि प्रवक्ष; अंति: तदा राजा वशंकृत्. ५२७५६. (+) पार्श्वजिन त्रोटक छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५४१२, १३४३७-४३). पार्श्वजिन स्तवन, मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८०, आदि: सुखसंपतिदायकदेव सदा; अंति: उत्तम छंद अखंड भणे, गाथा-१३. ५२७५७. (+) स्तवन व मंत्र, संपूर्ण, वि. १८४५-१८८७, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १३४३३-३६). १. पे. नाम. शाश्वतजिन स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १८४५, वैशाख कृष्ण, १२, प्रले. मु. श्रीचंद (गुरु मु. अमीचंद), प्र.ले.पु. सामान्य. मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीरिखभानंद जीन; अंति: लखमीवजे० आंणी रंगे, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) २. पे. नाम. कालभैरव मंत्र, पृ. २आ, संपूर्ण, वि. १८८७, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. ___ मा.गु., गद्य, आदि: कालौ भैरव कपली जटा; अंति: वार १०८ जाप कीजै सही. ५२७५८. (#) संग्रहणी, कुलक व स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४४१२, १९x४१). For Private and Personal Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ www.kobatirth.org १. पे. नाम. पंचनिग्रंथी संग्रहणी, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. - " , भगवतीसूत्र टीका का हिस्सा पंचनिग्रंथी प्रकरण, आ. अभयदेवसूरि, प्रा. पद्य वि. १९२८ आदि (-); अंति रइया भावत्थसरणत्थं, गाथा - १०७, (पू. वि. गाथा ८७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. लाभ कुलक, पृ. ३आ, संपूर्ण " पुण्यपाप कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा. पद्य वि. १५वी आदिः छत्तीसदिणसहस्सा अंतिः धम्मम्मि उज्जमह गाथा - १६. ३. पे. नाम, सर्वजिन स्तवन, पू. ३आ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सर्वजिन स्तव, सं., पद्य, आदिः यत्र बहुकोटिसंख्या अंतिः (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. मात्र प्रथम गाथा लिखा है.) " ५२७६१. (#) लघुशांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२४.५X११, १६X३४). श्लोक संग्रह, प्रा., सं., पद्य, आदि: सारं दंसण नाणं सारं, अंति: मिच्छामिदुक्कडं तस्स, श्लोक-२. ३. पे. नाम. अध्यात्म स्वाध्याय, पृ. ११आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, पुहिं, पद्य, आदि; चेतन जब तुं ग्यान अंतिः मारग ते निश्चइ साधैइ, गाथा-७, ५२७६४. सत्तरीसयंयंत्र स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैदे. (२४.५x११, १३४३१). ९३ लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांति निशांति, अंति: जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१९. ५२७६२. () चतुर्विंशतिजिन स्तवन व मंगलाष्टक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४x११.५, ११४३८). १. पे. नाम. चतुर्विंशति स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: नव सुरिंद्र जिनेंद्र; अंति: जिनप्रभ० मम मंगलम्, श्लोक ९. २. पे नाम, वीतरागाष्टक, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. सं., पद्य, आदि: शिवं शुद्धबुद्ध, अंति: (-), (पू. वि. गाथा ९ अपूर्ण तक है.) ५२७६३. (+) आदिनाथ देशनोद्धार, श्लोक व स्वाध्याय अपूर्ण, वि. १७३८, वैशाख कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. ११-१० (१ से १०) -१, कुल पे. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जै, (२५x११, १०x३६). १. पे. नाम. आदिनाथ देशनोद्धार सह टबार्थ, पृ. ११अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आदिनाथ देशनोद्धार, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: उप्पंजत्ता सिवंजति, श्लोक - ८८, ग्रं. ३००, (पू.वि. गाथा ८६ अपूर्ण से है.. वि. यंत्र सहित है.) आदिनाथ देशनोद्धार- बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति उपजीनइ मोक्षि जाइ (पू. वि. पाठ मरण नथी व्याधि नधी" से है.) २. पे. नाम. जैन धार्मिक श्लोक, पृ. ११अ. संपूर्ण. तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुनपयासय अट्ट अंति: निब्धंतं निच्चमच्चे, गाथा- १४. ५२७६५ (+) सवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., For Private and Personal Use Only ( २५X११, १६X५२). सवैया संग्रह, जै. क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि जिनके वचन उर धारत, अंति: कोल्हू केसे वेल की, गाथा-२६५२७६६. (+) जिन स्तुति संग्रह, संपूर्ण वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न क्रियापद संकेत. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४४१०, १५४५१). १. पे नाम वीरजिन स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण. " पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदिः स्नातस्याप्रतिमस्य अंतिः कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. २. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमि पंचरूप, अंतिः कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ९४ www.kobatirth.org ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: विश्वस्वामी जीवात्, अंतिः विशालां मंगलमालाम् श्लोक-४. ५२७६७. अनुप्रेक्षा भावना, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., ( २३X१०, ११×३१). " अनुप्रेक्षा भावना, आ. सुमतिकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि जिनस्वामी समरी करी, अंतिः सुमतिकीरत जिम छेद, गाथा - ३२. ५२७६८. (#) मुहपत्ति पडिलेहण विचार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. मु. माणिक्यविजय (गुरु पं. मेरुविजय गणि); गुप. पं. मेरुविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२४.५x१०.५, ११४३४). मुंहपत्ती पडिलेहण विचार सज्झाय, पं. तेजविजय गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर प्रणमी, अंति: वाचक तेज भाइ हितकरू, गाथा- १३. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५२७६९, (+) मालडुंगरवावनी, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५x१०, १६४५६-६१). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मालडुंगरवावनी, श्राव. पद्मनाभ, मा.गु, पद्य, वि. १५४३, आदिः ॐ कार अपार पार पावंति, अंतिः पद्मनाभ० जा मेरु धुव, गाथा-५४. ५२७७० चतुर्दशी स्तुति, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैदे. (२५x११, १०x३५). पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदिः स्नातस्याप्रतिमस्य अंतिः सर्वकार्येषु सिद्धिः श्लोक-४. ५२७७१. चतुरंगीध्ययन, संपूर्ण, वि. १९३०, आषाढ़ कृष्ण, २, गुरुवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. अग्रचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५x११, १३४३३). उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन ३ चतुरंगिकाध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: चत्तारि परमंगाणी, अंतिः हवइ सास तिबेमि, गाथा - २०. ५२७७२. जंबुस्वामी सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दे. (२३४११, ६X३०). " जंबूस्वामी सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि: जंबुस्वामि जोवन घर, अंति: (-), (पू.वि. गाथा ११ अपूर्ण तक है.) ५२७७३. रोहिणीतप स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२ (१ से २) = १, जैदे., (२५X१०.५, ११×३३). रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: (-); अंति: सकल मन आस्या फली, बाल-४, गाथा - २६, (पू.वि. गाथा १५ अपूर्ण से है.) 3 ५२७७४. सुक्तमाला, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., , (#) (२३११, ११x२७). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु., सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलकुशलवल्ली: वृंदजी, अंति: (-), (पू.वि. ३७ अपूर्ण तक है.) ५२७७५. माणीभद्र आरती संपूर्ण वि. १८९८ वैशाख शुक्ल, १०, गुरुवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. देवरत्न प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (३३.५x२१, १५x२२). माणिभद्रवीर छंद, आ. अमृतरत्नसूरि, मा.गु. सं., पद्म, वि. १८५९, आदि: जयजय श्रीजगदीश्वर जय, अंतिः रचितं बहु हर्षे गाथा- ९. ५२७७७. गुरुगुण स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., ( २३१०, २२४३२). ५२७७६. (+) चिंतामणि सहसफणा पार्श्वनाथ लघु स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पठ श्रावि. राणी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५X११, ११X३८). पार्श्वजिन स्तवन- लोद्रवपुरचिंतामणि, ग. हर्षनंदन, रा., पद्य, आदि: चिंतामणिपास पूजीयइ; अंति: हरखनंदन० सानिधि करउ, गाथा ६. For Private and Personal Use Only गुरुगुण स्तुति, सं., पद्य, आदि: (१)ॐ नत्वा श्रीवामेयं, (२) वापीकूपतडागेषु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक २० तक लिखा है.) Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५२७७८.(-) स्तवन, सज्झाय व दोहा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२१.५४११, १२४३४). १.पे. नाम. चौतीस अतिशय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ३४ अतिशय वर्णनमय साधारणजिन स्तवन, मु. केशो, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: केसर भव भव तुमपद, __ गाथा-११, (पू.वि. गाथा ५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. आत्मशिक्षा स्वाध्याय, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, वा. चारुदत्त, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवरना प्रणमी; अंति: च्यारुदिन शिवसुख लहै, गाथा-२३. ३. पे. नाम. दोहा संग्रह, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: करमै इंद्र वीगोवियो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ६ अपूर्ण तक है.) ५२७७९. (-) स्तवन व सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२४४१०.५, ३०x१३). १. पे. नाम. चौवीसजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: जीणजी पलाश्री आदनाथ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ९ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. मेतार्यमुनि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मेतारजमुनि सज्झाय, मु. खिमा, मा.गु., पद्य, आदि: महिलामांह वैठो मनरंग; अंति: खिमा० कुचामण मगई रे, गाथा-९. ५२७८०. सुदर्शनसेठ सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४४१०.५, १६x४४). सुदर्शनशेठ सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७६, आदि: सदगुरु पंकजरज नमी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २१ तक लिखा है., वि. प्रतिलेखक ने अंत में २१+२३=४५ गाथा का परिमाण लिखा है.) ५२७८१. तीर्थवंदना व नवकार फलादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२२.५४९.५, १६४४४). १.पे. नाम. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: सततं चित्तमानंदकारी, श्लोक-९. २. पे. नाम. नवकार फलबोधक गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: जिणसासणस्स सारोचउदस; अंति: दुल्लहा सुग्गई तस्स, गाथा-३. ३. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह-, सं., पद्य, आदि: रामचंद्रावतारः किं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-२ तक लिखा है.) ५२७८२. ४ पाटना भास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पठ. श्रावि. राजलदे, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, ९४२९-३४). रूप-जीव-वरसंघ-खिमा भास, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सास्त्रानिरणि; अंति: श्रीयपूज्यनी सारजो, गाथा-१५. ५२७८३. (#) कर्मछत्रीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४११.५, ३३४१३-१६). कर्मछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: करमथी को छूटो नहीं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १२ तक लिखा है.) ५२७८४. (+) चारित्रमनोरथमाला, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, ९४३९). चारित्रमनोरथमाला, आ. धनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: केसिं च स उन्नाण; अंति: भावं पार्वति परमपयं, गाथा-३०. ५२७८५. (+) माणीभद्रवीर छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४११.५, १३४३१). माणिभद्रवीर छंद, मु. उदयकुसल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वच द्यो सरसति; अंति: उदयकुसल रीझा लहे, गाथा-२६. For Private and Personal Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ९६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५२७८६. (#) सीमंधरस्वामीरौ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. अक्षर मिट गए हैं, जैदे., (२२x१०.५, ९X२९). सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार हुं, अंतिः पुरी आस्था मन तणी, गाथा - १९. ५२७८७. (#) पंचांगुली स्तोत्र मंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४X१०, १२X३०). पंचांगुली मंगल स्तोत्र. मु. हर्ष, मा.गु., पद्य, आदि सामी श्रीसीमंधरा पाय अंति: इम हरख परांपे वारोवार, गाथा-३७. ५२७८८ (+) पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. अन्त में पद्मावती मंत्र दिया गया है, संशोधित, जैदे., " (२५.५X१२, ११३२). पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र, अंतिः प्रसीद परमेश्वरि, गाथा-३२. ५२७८९, (4) नवपल्लव पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १६०७ कार्तिक शुक्ल, १३, गुरुवार, मध्यम, पृ. २, प्रले. सा. रत्नलक्ष्मी गणि (गुरुसा. विवेकलक्ष्मी गणि); गुपि. सा. विवेकलक्ष्मी गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४३६). पार्श्वजिन स्तवन- नवपल्लव, मा.गु., पद्य, आदिः एतु सुपन देई पन्नर, अंतिः निरमल धाई नवनिधिनी, गाथा-३४. ५२७९० (+) युगप्रधान गीत संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें.. जैदे., ( २५X११, १३x४८). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. युगप्रधान गीत, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. जिनचंद्रसूरि गीत. मु. समयप्रमोद, मा.गु. पच, वि. १६४९, आदि अकबर भूपति मानीय अंतिः समयप्रमोद० रवि ससी, गाथा-५. " २. पे. नाम. युगप्रधान गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. युगप्रधान जिनचंद्रसूरि गीत, मु. समयप्रमोद, मा.गु., पद्य, आदि: कबइ जाय धार इन; अंतिः समयपरमोद० आसीस जी, गाथा- ८. ५२७९१. (a) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैवे. (२५x१०.५, १७४४७). १. पे. नाम. नेमराजुल सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, रा., पद्य, आदि: हांजी नेम मनाया ना, अंतिः मुक्त मंझारो री, गाथा- २३. २. पे. नाम. गुजसुकुमाल सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि सज्झाच, मु. महिमासुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १८६५, आदि: बचन सुणी वैरागीवो रे, अंतिः मोटे माहि मरोटरे गाथा- ९. ५२७९२. स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२४X११, १७x४२). १. पे. नाम. नवकार मंत्र, पृ. १अ संपूर्ण. नवकार मंत्र गीत, पुहिं, पद्य, आदि मंत्र जपो नवकार, अंतिः नवकार सुज्ञानी मंत्र, गाथा-५. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि भवोवधि पार कीज्यो जी, अंति पार कीज्यो जी, गाथा - ५. ३. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. ९अ, संपूर्ण. जै. क. भूधरदास, पुहिं., पद्य, आदि: काया का गढ कोट बनाया; अंति: दास भूधर० राह ली तास, गाथा-५. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पू. १-१ आ. संपूर्ण. वा. उदयरतन, मा.गु., पद्य, आदि पामी प्रभुना पाय आण अंतिः कहे० दामनसु वीलगो, गाथा ६. ५२७९३. (#) मेघकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८३०, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. उदयपुर, प्रले. मु. मनसुखरायजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६X१०.५, १५X३४). मेघकुमार सज्झाय, मु. देव, मा.गु., पद्य, आदि: तेरे कारण मेहा जिनवर, अंतिः सेवक साधु गुण गाया, गाथा- १५. For Private and Personal Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५२७९४. (#) औपदेशिक लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६४१०.५, १२४२८). १.पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ऋ. रामकिसन, पुहिं., पद्य, वि. १८६८, आदि: चेत चतुर नर कहेत; अंति: ए उपदेस सुणाणां है, गाथा-१८. २. पे. नाम. कुगुरु लावणी, पृ. २आ, संपूर्ण. __ मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: तजुतजु में उन; अंति: कुगुरु संग नीवारी हे, गाथा-५. ५२७९५. (+#) सज्झाय व छंद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५-१४(१ से १४)=१, कुल पे. ३, पठ. श्रावि. श्यामबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १३४४३). १.पे. नाम. चेलणाराणी सज्झाय, पृ. १५अ, संपूर्ण. चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वांदी वलतां थकां; अंति: समयसुंदर० भवतणो पार, गाथा-७. २.पे. नाम. गौतम छंद, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिणेसर केरोसीस; अंति: तुठां संपति कोडि, गाथा-९. ३. पे. नाम. नवकार सज्झाय, पृ. १५आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवीयण समरो; अंति: सूरवरसीस रसाल, गाथा-१४. ५२७९६. (+#) अतीत अनागत जिन नाम संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. पाल्हणपुर, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, १३४३३). १.पे. नाम. अनागत चौवीस जिननाम, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन नाम-अनागत, मा.गु., गद्य, आदि: १ श्रीपद्मनाभस्वामी; अंति: २४ श्रीभद्रकृतजी. २. पे. नाम. अतीतजिन नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन नाम-अतीत, मा.गु., गद्य, आदि: १ श्रीकेवलस्वामीजी २; अंति: २४ श्रीसंप्रतिनाथजी. ५२७९७. विमलनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२१४९.५, ९४२४). विमलजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिन विमल वदन रलियामण; अंति: रामविजय गुण गाय रे, गाथा-७. ५२७९८. सज्झाय व श्रावक कर्त्तव्य, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२४४११.५, १३४३९). १.पे. नाम. इर्यापथिकी सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, ले.स्थल. द्रांगद्रानगर. इरियावही सज्झाय, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: श्रुतदेवीना चरण नमी; अंति: विनयविजय उवझायरे, ढाल-२, गाथा-२५. २.पे. नाम. श्रावक कर्त्तव्य गाथा, पृ. २अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. प्रा., पद्य, आदि: मिच्छति वे अतिगं हास; अंति: पवज्जा अत्थग्गहणेण, गाथा-५. ५२७९९. (+#) जिनकुशलसूरि अष्टप्रकारी पूजा व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४११.५, १५४४४). १.पे. नाम. पृ. १अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि अष्टप्रकारी पूजा, मु. विद्याविलास, प्रा.,सं., प+ग., आदि: सकल गुरुगरिष्टान्; अंति: निळपामि स्वाहा. २. पे. नाम. जिनकुशलसूरि स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. विद्याविलास, सं., पद्य, आदि: विपुलविशदकीर्ति; अंति: विद्याविलासं० लभंते, श्लोक-११. For Private and Personal Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ९८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५२८००. आदिजिन विनती व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८६९ आश्विन शुक्ल, ११, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४-२ (१ से २) -२, कुल पे. २, प्रले. सा. कुवरबाई; पठ. सा. अजबाई; सा. कलबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११, १२३०). १. पे. नाम. आदिजिन विनती, पृ. ३अ-४अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आदिजिनविनती स्तवन- शत्रुंजयतीर्थ, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: (-); अंति: लावनसमे० एम भणी, गाथा-४५ (पू. वि. गाथा २४ से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४-४आ, संपूर्ण. गाथा - ९. मा.गु., पद्य, आदिः येसो रे अपुरव मले को अंति: ते नरसु नीतवासो जी, ५२८०२. स्तवनचीवीसी-स्तवन-१ से ५, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जै. (२३४१०, १५X३९). " स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवालहो; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५२८०३. (+) कार्यस्थिति प्रकरण सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १६८५, मध्यम, पृ. ४-१ (१) = ३ ले, स्थल, द्वीपबंदर, अन्य श्राव. काजल (पिता श्राव. गोविंद) गुपि श्राव. गोविंद (पिता श्राव. अ) श्राव. अद (पिता श्राव. सारंग); श्राव. सारंग, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५X११, १७६०). " कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: अकायपयसंपयं देसु, गाथा - २४, (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा ८ अपूर्ण से है.) कायस्थिति प्रकरण- टीका, आ. कुलमंडनसूरि, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: (-); अंति: दत्स्व ममेति शेषः, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ५२८०४, (०) शारदा छंद व पार्श्वजिन छंद, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे... (२५.५X१०.५, १२X३१). १. पे. नाम सारदामाताजीनो छंद. पू. १अ ३अ संपूर्ण. सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता रस मन अंतिः आस्वा फलसे ताहरी, गाथा - ३३. २. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद, पृ. ३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद - अंतरीक्षजी, पं. भावविजय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात मया करी, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ३ अपूर्ण तक लिखा है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२८०५. (#) देवलोक देहमान व नव ग्रैवैयक नाम, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पं. आणंदविजय मुनि पठ. श्रावि देवकी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फेल गयी है, जैवे. (२५.५x१०.५, १२४४२). १. पे. नाम. देवलोक देहमान, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. "" देवलोक देहमान- आयुमान, मा.गु., गद्य, आदि: सौधर्मदेवलोक १ पहिलु; अंतिः आउखु जाणिवं. २. पे. नाम. नव ग्रैवैयक नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ९ ग्रैवेयक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: दिट्ठमहिम १ दिट्ठमम, अंतिः ८ उवरिमउवरिम ९. ५२८०६. सज्झाय व मंत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-२ (२ से ३ ) = २, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५X१०, १८४५६-६२). १. पे नाम, अनाथीऋषि सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण अनाथीमुनि सज्झाय, मु. सिंहविमल, पुहिं., पद्य, आदि: मगध देश को राज राजे, अंति: सीहविमल० महाव्रतधारी, ३. पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. गाथा - १८. २. पे. नाम. कमलावती सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, कमलावतीसती सज्झाय, मु. सुगुणनिधान, मा.गु., पद्य, आदि: कहइ राणी कमलावती; अंति: इम बोलइ रे कमलावती, गाथा-९, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथाओं की एक गाथा गिनी है.) मु. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभणइ रे जंबू सुणि; अंति: भणइ श्रीजंबूस्वामी, गाथा - ११. ४. पे. नाम. द्वात्रिंशदक्षरी मूलविद्या साधन व प्रयोग विधि, पृ. ४अ ४आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ व अंत के पात्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. यंत्र सहित) ५२८०७. (#) पद व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. २, कुल पे. २१, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४११, १८४४४-४६). १. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. आनंद, पुहिं., पद्य, आदि: सांवरो सलूणो सखी; अंति: मुगत सखी को पांवनो, गाथा-३. २. पे. नाम. चौवीसजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तुति, ग. अमृतधर्म, मा.गु., पद्य, आदि: तीरथपति त्रिभुवन सुख; अंति: शुद्ध अनुभव मानीये, गाथा-३, (वि. गाथांक नहीं है.) ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-सुरतमंडन, ग. जिनलाभ, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: सहसफणा प्रभु पासजी; अंति: जिनलाभ० सुख दीजै, गाथा-९. ४. पे. नाम. साधारणजिन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: तू ही निरंजन तू ही; अंति: न हुवै भव फेरा रे, गाथा-३. ५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. रामदास, मा.गु., पद्य, आदि: नैना सफल भये प्रभु; अंति: लोकशिखर को राज, गाथा-४. ६.पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: होरी मेरो पीया घर; अंति: हिल मिल सोरठ गावेरी, गाथा-३. ७. पे. नाम. आत्मस्वरूप पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहि., पद्य, आदि: जाग रे सब रैन विहानी; अंति: ग्यान० निज राजधानी, गाथा-४. ८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, मागु., पद्य, आदि: अनुभव अपनी चाल चलीजै; अंति: ना ऊपर दोस दीजै, गाथा-६, (वि. गाथा संख्या का उल्लेख नहीं है.) ९. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-२. १०. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. विमल, मा.गु., पद्य, आदि: चालो सखी वंदन जईये; अंति: पूजी विमल जिणंद, गाथा-४. ११. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. लालचंद, पुहि., पद्य, आदि: मेरो मन वश कर लीनो; अंति: सुणजे पूरो वंछित आस, गाथा-५. १२. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. आनंदराम, पुहिं., पद्य, आदि: छोटीसी जान जरासा; अंति: सुख संपति बहु कर बे, गाथा-३. १३. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. राजनंदन, पुहिं., पद्य, आदि: छवि को वरणै छवि चंद्; अंति: राजनंदन० गुण समरण कौ, गाथा-३. १४. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण.. भूधर, पुहि., पद्य, आदि: नाभिनंदनसुंलगी लवि; अंति: उपधानसी कहित भूधरयु, गाथा-४. १५. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीऊडा जिनचरणांनी; अंति: मोहन अनुभव मांगै, गाथा-५. १६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: साधो भाई अब हम कीनी; अंति: मुक्ति महानिध पाई, गाथा-७. १७. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: गि० गिरनार बोल्या; अंति: भाखै नेम गए चितचोर, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १८. पे. नाम. सुमतिजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. आनंदरूप, रा., पद्य, आदि: सुमति महाराज म्हांनु; अंति: आणंदरूप० पार उतार, गाथा-३. १९. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभू तेरी मूरत द्रग; अंति: नवल० जरण मरण मीट जाय, गाथा-३. २०. पे. नाम. परनारीपरिहार सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. _परनारी परिहार सज्झाय, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नयनां अटकमां नयनां; अंति: पावै अविचल शिवपुरमां, गाथा-३. २१. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: चेतै क्युं न गुमान०; अंति: चेत चेत न ज्य पामै, गाथा-४. ५२८०८. वीसस्थानक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९१२, मार्गशीर्ष कृष्ण, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. कुशलदत्त पुरोहित, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४११.५, १०४२३). २० स्थानकतप स्तवन, मु. वखतचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: वीशस्थानक तप सेवीयै; अंति: भावै० वसतो मुनिवरो, ढाल३, गाथा-१९. ५२८०९. (+#) पार्श्वनाथप्रभु स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. पं. विनयचंद्र (बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, ११४३८-४२). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंति: विन्नवइ आणदिइ, गाथा-३०. ५२८१०. (#) अंतरिक्षपार्श्वनाथ छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१०.५, १३-१४४३६-४०). पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, पं. भावविजय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात मया करी; अंति: भावविजय० जै जैकरण, गाथा-५१, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ५२८११. (+#) श्रावकाचार कुलक व सामान्य कृति, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४५४). १.पे. नाम. श्रावकाचार कुलं, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. श्रावकाचार चौपाई, ग. खेमराज, मा.गु., पद्य, वि. १५४६, आदि: जगबंधव सामी जिणराय; अंति: खीमकुसल तीहइ अपार, गाथा-७८. २. पे. नाम. आगमिक विचारसंग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. विचारसार संग्रह, प्रा., गद्य, आदि: भयवं के जीवा शोणीया; अंति: मोक्ख वा गच्छंति. ५२८१३. (+#) छंद संग्रह व सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १५४३८). १.पे. नाम. पार्श्व छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. विनयशील, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुरत श्रीपासतणि; अंति: सीधी सदा आनंद घणे, गाथा-११. २. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, ग. कुंअरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी प्रणमे; अंति: शिष्य गुण गाया, गाथा-११. ३. पे. नाम. संखेश्वर छंद, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७१२, आदि: जय जय जगनायक; अंति: मुदा प्रसन्नः, गाथा-३२. ४. पे. नाम. जिनदर्शन पूजन फल, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ १०१ जिनदर्शन पूजनफल स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसतिदेवी नमी मनरंग; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ५२८१५. (+) शांतिजिन स्तोत्र संग्रह व पांच आशातना, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, १५४४७). १.पे. नाम. शांतिजिन अष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८२७, प्रले. पं. अनूपचंद; पठ. श्राव. मोतीचंद शाह; उप. आ. जिनलाभसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य. सं., पद्य, आदि: सुरराजसमाजनतांहि; अंति: भवभविनां भवभीतहरम्, श्लोक-९. २.पे. नाम. जिनभवनवयं ५ आशातना, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गयी है. संबोध प्रकरण-हिस्सा जिनभवनवयं ५ आशातना, प्रा., पद्य, आदि: जिनभवणंमि अवण्णा१; अंति: किड्डाई नवि कुणंति, गाथा-७, (वि. संदर्भ हेतु बृहद्भाष्य का उल्लेख है परन्तु वास्तव में संबोध प्रकरण से उद्धृत है.) ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: शांतये शांतिकामाय; अंति: पापशांतिर्भवेभवे, श्लोक-३. ५२८१६. (+) सरस्वती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पाटण, प्रले. वलभ लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२८x११.५, १०x४५). सिद्धसारस्वत स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: करमरालविहंगमवाहना; अंति: रंजयति स्फुटम्, श्लोक-१३. ५२८१८. (#) तेरापंथीयों को दलपतरायजी द्वारा दिये गए प्रश्नोतर, संपूर्ण, वि. १९०२, चैत्र शुक्ल, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, १९४५२). तेरापंथ आचार विचार संबंधि चर्चा, मु. दलपतराय, रा., गद्य, वि. १८२४, आदि: तथा केतलाइकनि सरदा; अंति: तेरापंथाने कह्या है. ५२८२१. (+#) ज्ञानसार व विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १८४५६). १.पे. नाम. ज्ञानसार सह छाया, पृ. २अ-४आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. ज्ञानसार, मु. पद्मसिंहमुनि, प्रा., पद्य, वि. १०८६, आदि: (-); अंति: सुललियबंधेण रइयाणं, गाथा-६३, (पू.वि. गाथा १७ अपूर्ण से है.) ज्ञानसार-छाया, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: ललितबंधेन रचितानाम्, श्लोक-६३. २.पे. नाम. आगमपुरुष विवरण, पृ. ४आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: इह पुरुषस्य द्वादश; अंति: पठ्यते तदुत्कालिकम्. ३. पे. नाम. केवली आहारादि प्रश्नोत्तर, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: केवली आहार करइ किं; अंति: (-). ५२८२२. (+) सज्झाय व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२.५, १२४३६). १.पे. नाम. अक्षरबत्रीसी सीखामण सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. अक्षरबत्रीशी, मु. हिम्मतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: कका ते किरिया करो; अंति: मुनि महेस हित जाणि, गाथा-३५. २.पे. नाम. आदिजिन विनती, पृ. २अ-३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: जय पढम जिणेसर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३३ अपूर्ण तक है.) ५२८२३. (+) चैत्यवंदन व स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, १६४४४). १.पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सं., पद्य, आदि: स्तुवे पार्श्व जिना; अंति: भवं मुंबोधिलाभम्, श्लोक-६. २. पे. नाम. भागवंत स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. षटभाषा स्तवन, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: नमो महसेन नरेंद्र; अंति: सुखानि विभो वितर, श्लोक-१३. ५२८२४. अध्यात्म गीता व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९-५(१ से ५)=४, कुल पे. ४, प्र.वि. पत्रांक काल्पनिक दिया गया है., दे., (२१x१२.५, १५४४२). १. पे. नाम. अध्यात्म गीता, पृ. ६अ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., प्रले. पं. ऋद्धिरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य. अध्यात्मगीता , उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: (-); अंति: जोतसुंजोत मिलाय, ढाल-९, __गाथा-२४२, (पू.वि. ढाल ६ से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ९अ, संपूर्ण. मु. चिदानंद, पुहिं., पद्य, आदि: पुदगल जीवकु भी न पीछ; अंति: जीवन मूख हे परधानो, गाथा-४. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ९अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: कीसकी भगत करेइ हीत; अंति: दरपन जो चद्रूप, गाथा-७. ४. पे. नाम. अध्यात्म पद, पृ. ९अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. विनय, पुहिं., पद्य, आदि: काया माया खीण खीर; अंति: कछू नही तेरा उपाये, गाथा-९. ५२८२५. (#) आऊखाशिष्या सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, ८x१८). औपदेशिक सज्झाय-आयुष्य, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: आउखौ तूटो साधौ लगै; अंति: मोक्षतणा श्रीकार रे, गाथा-८. ५२८२६. व्याख्यान व स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५४, श्रावण शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. राजनगर, जैदे., (२५४११.५,१२४३६). १.पे. नाम. व्याख्यानधुर, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. मु. हर्षधीर, प्र.ले.पु. सामान्य. व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., गद्य, आदि: उत्पन्नदिव्य निर्मल; अंति: वृद्ध देशना दातव्यम्. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, ग. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परमानंद विलासी जिनेस; अंति: अनुभववाडी विकाशी, गाथा-५. ५२८२७. (+) विचार व गाथादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ९, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १२४३९). १. पे. नाम. पडिलेहण गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रतिलेखनबोल गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सुतत्थतत्थदिट्ठी; अंति: तणत्थं मुणि बिंति, गाथा-५. २. पे. नाम. अतिचार गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. श्रावकसंक्षिप्त अतिचार*, संबद्ध, मा.गु., प+ग., आदि: पण संलेहणा पनरस; अंति: पणसम्मवयाइपत्तेयं. ३. पे. नाम. बावीस अभक्ष गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. २२ अभक्ष्य गाथा, प्रा., पद्य, आदि: पंचुंबरि५ चउविगई४; अंति: विजुवज्जाणीबावीसं, गाथा-२. ४. पे. नाम. बत्तीसअनंतकाय गाथा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ३२ अनंतकाय गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सव्वाउ कंदजाई; अंति: लक्खुणजुत्तीइ तेहेया, गाथा-५. ५. पे. नाम. पकवाननी गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. पक्वान्न दिनमान, सं., पद्य, आदि: वासासु पनर दिवस; अंति: कप्पइ आरब्भ पढमदिणं, श्लोक-१. ६. पे. नाम. १० अच्छेरानी गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. १० आश्चर्य वर्णन, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: उवसग्ग १ गब्भहरणं २; अंति: १० दस विअणंते कालेण, ग्रं. ११३. ७. पे. नाम. पूजा गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ अष्टप्रकारी पूजा गाथा, प्रा., पद्य, आदि: वरपुष्प १ गंध २; अंति: जिनपूआ अट्ठहोवीइ, गाथा - १. ८. पे. नाम. मद गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. ८ मद नाम, प्रा., पद्य, आदि: जाइ कुल २ रूव ३ बल, अंति: असुहाइ बहु च संसारे, ९. पे. नाम. आवश्यकनी गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. २५ आवश्यक गाधा, प्रा., पद्य, आदि: दोवणयमहाजायं अंतिः पणवीसावसयकिइकमे, गाथा- १. ५२८२८. सीता सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४ (१ से ४) १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. दे., (२५.५x१०, १८४२८). गाथा - १. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा-८. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि; उठो नाभी दुलारे ०; अंतिः मोहन० पातक न्यारे, गाथा-३. ३. पे. नाम. दशविकालिक दशमाध्यन सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण सीतासती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. गाथा ४ से २७ तक है.) ५२८३०. सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२५x१०.५, १४४४२). " सीमंधरजिन स्तवन, मु. मुनिसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: श्री श्रीमंधर सामिया, अंति: पभणे मुनिसुंदरसीस, गाथा- १०. ५२८३१. स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. ३, प्रले. मु. पानाचंद ऋषि शिष्य, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२७४१२, १४४३९). १. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. लक्ष्मीविमल, मा.गु., पद्य, आदि: राय सिद्धारथ कमल; अंति: लखमी० शासननायक वीर के, दशवैकालिकसूत्र - अध्ययन - १० - सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: एवा मुनि वंदो रे; अंति: वृधिविजय जयकार रे, गाथा- १२. ५२८३२. (-#) सीता सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य. श्रावि. प्रेमबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, वे.. (२४.५४१२, ११४२७). १०३ सीतासती सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: जनकसुता हुं नाम, अंति: उदयरतन०भव होजो सरणां, गाथा- १०. ५२८३३. (#) थावच्छापुत्र सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य. सा. केसरबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६X१२, १३३५). थावच्चापुत्र सज्झाय, मु. तेजमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमजिणंद समोसर्य; अंति: तेज मुनि० गुण गाय रे, ढाल -३, गाथा - २१. ५२८३४. कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५७ - १५६ (१ से १५६) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५.५X११, १५x२७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गद्य, आदि: (-): अंति: (-), (पू.वि. मात्र क्षमापना विषय तक है.) " कल्पसूत्र - बालावबोध *, मा.गु., रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५२८३५. (४) स्तवन व गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फेल गयी है, वे. (२६४९.५, For Private and Personal Use Only १२४३६-३९). १. पे. नाम. चउवीसजिन स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मु. गणपति, मा.गु., पद्य, आदि: सकल जिणेसर प्रणमुं; अंति: भावई सेवता सुख पाइए, गाथा-१२. २. पे नाम, जसवंत गुरुगुण गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजसवंत गुरुज्ञान; अंति: जगतारण तारइ आप तरह, गाथा-६. ५२८३६. आदिजिन विनती व चार मांगलिक शरणा, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, दे. (२६४१२, १३४३५). १. पे नाम, आदेशनी वीनती, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: जय पढम जिणेसर; अंति: मन वयरागई इम भणीय, गाथा-४५. २.पे. नाम. चारमंगलिक शरणा, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ४ मंगल शरण, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: प्रह उठीने समरीजे हो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ६ तक है.) ५२८३७. यंत्र मंत्र व स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ६, जैदे., (२८x१३, १८४४२). १.पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीजं ददातु, श्लोक-११. २.पे. नाम. पार्श्वनाथजिन स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथ नमः; अंति: श्रीवृषभं जिनोत्तमम्, श्लोक-४. ३. पे. नाम. जिनदर्शन श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनदर्शन श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: ॐनमो विश्वनाथाय; अंति: श्रीवीरश्रेयसे स्तुव, श्लोक-९. ४. पे. नाम, करहेटकपार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-करहेटक, सं., पद्य, आदि: आनंदभंदकुमुदाकरपूर्ण; अंति: मे हृदि मेरुधीरम्, श्लोक-५. ५. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन गर्भित स्तोत्र, प्र. १आ-२अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: लक्ष्मी निवासम्, श्लोक-८. ६. पे. नाम. श्रीशंखेश्वर पार्श्वनाथ मंत्र, पृ. २अ, संपूर्ण. मंत्र संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. पैंसठियायंत्र सहित.) ५२८३८. (+) महावीरस्वामीनो पारणो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. आसपुरनगर, प्रले. मु. शुक्लचंद (गुजरातीलुकागच्छ); पठ. सा. इंद्राजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२.५, ९४२७). महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अनंत गुण; अंति: तेहने नमे मुनी माल, गाथा-३१. ५२८३९. (+) भगवतीपंचम अंग सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८७५, चैत्र शुक्ल, ६ अधिकतिथि, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. साणंदनगर, प्रले. मु. लब्धिविजय; अन्य. पं. जयविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८.५४१२.५, ११४३३). भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धन्य कुंअर त्रीशला; अंति: जिनविजय० साहाज्य हों, गाथा-१३. ५२८४०. आगमिक सूत्र नाम व वृत्ति-नियुक्ति चूर्णिमान, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७.५४१२.५, १४४४५). ४५ आगम श्लोक संख्या, सं., गद्य, आदि: आचारांगसूत्रं २५००; अंति: ७०० चूर्णि. ५२८४१. वखाण मांडणी, अपूर्ण, वि. १९४१, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(२)=३, प्रले. मु. माणेकचंद ऋषि (गुरु मु. देवजी सामी); गुपि. मु. देवजी सामी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१४१२, १३४२४). व्याख्यान पीठिका, मा.गु., गद्य, आदि: हवे इहां कोण जे श्री; अंति: सिद्धांतनो नाम कहेवो, (पू.वि. पाठ "कांगणी धजा" के पश्चात व "नीक समर्णनीक" के पूर्व का पाठ नहीं है.) ५२८४२. सज्झाय व नवनिधान, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२६४१३, १४४३६). १.पे. नाम. शीयल सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शीयलव्रत सज्झाय, रा., पद्य, आदि: सील रतन मोटो रतनरे; अंति: तो तज दो नारी को संग, गाथा-१५. २. पे. नाम. नव निधि नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ९निधि नाम, प्रा., गद्य, आदि: चक्रवर्त के रत्न १४; अंति: माणवक ८ संखे ९. For Private and Personal Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ३. पे. नाम. प्रमाद सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, वा. श्रीकरण, मा.गु., पद्य, आदि: समवसरण सिहासनेजी वीर; अंति: करण० वंदु बेकर जोड, गाथा-९. ५२८४३. (+) वृद्धिनवकार स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४१२, ९४२३). नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि: किं कप्पतरु रे आयाण; अंति: तणी सेवा देज्यो नित, गाथा-२६. ५२८४५. (#) नेमराजेमती सवैया, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४९, १०४३३-३६). नेमराजिमती बारमासो, मा.गु., पद्य, आदि: घनघोर घटा उमटी विकटा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १० अपूर्ण तक लिखा है.) ५२८४७. सोल स्वप्न सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९०४, वैशाख कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. मोडस, प्रले. हीराचंद प्रेमजी; पठ. मु. गांगजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१३, १२४२७). १६ स्वप्न सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पाडलीपुर नगरी चंद्र; अंति: तेह ज गुणनो गेह जी, गाथा-४४. ५२८४८. अष्टमी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६.५४१२, ९४३०). अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: माहा सुदि आठम दिने; अंति: मने नमता सिव सुख थाय, गाथा-७. ५२८४९. (-) महावीरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२६.५४१०.५, ८x२७). महावीरजिन स्तवन, श्राव. भूपाल, मा.गु., पद्य, आदि: महावीरजी आवी; अंति: भूपाल० मोजार रे, गाथा-७. ५२८५१. (#) महावीरसामी तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. रत्नराज (गुरु आ. जिनलाभसूरि, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१३,१३४३२). महावीरजिन स्तवन, मु. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जीणंद चोवीसमो; अंति: श्रीसंघनी पूरजो हाम, गाथा-१८. ५२८५३. (+#) रोहणी आदि स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०३, आश्विन कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७.५४१२, १२-१४४३६-४०). १.पे. नाम. रोहणी स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: शासनदेवत सामिणी ए; अंति: हिव सकल मन आस्या फली, ढाल-४, गाथा-२६, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक २५ की जगह २६ लिखा है.) २. पे. नाम. पंचतीर्थी स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. ५तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: आद ए आद ए; अंति: भणतां सुखे आवे आसना, (वि. गाथांक की जगह ढाल-५ लिखा है.)। ३.पे. नाम. सुमतिजिन समवसरण गीत, पृ. ३अ, संपूर्ण. ग. जीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आज गइति हुँ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १ तक लिखा है.) ५२८५४. (+#) मल्लिनाथजीरो वृद्धस्तवन, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. किसी आधुनिक विद्वान ने पेन्सिल से संशोधन किया है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१३.५, १०x२५). मल्लिजिन स्तवन, मु. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: नवपद समरी मन सूधै; अंति: (-), (पू.वि. ढाल ५ गाथा ७ अपूर्ण तक है.) ५२८५५. (+#) नवपद पूजा, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४४२-४५). For Private and Personal Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवपद पूजा, ग. देवचंद्र, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण; अंति: (-), (पू.वि. ढाल ९ गाथा ८६ अपूर्ण तक है.) ५२८५६. (+#) रत्नसंचय सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ८४४५). रत्नसंचय, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे उवया; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४४ अपूर्ण तक रत्नसंचय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीरने नमीने; अंति: (-). ५२८५७. (+) गौतमस्वामि रास, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५-१(२)=४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ११४३६). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: वृद्धि कल्याण करो, गाथा-४३, (पू.वि. गाथा १३ अपूर्ण से गाथा २१ तक नहीं है.) ५२८५८. प्रियादतपुरुषनी व स्त्रीने सिखामणनी सजाइ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. २, दे., (२६४११, १०४४३). १.पे. नाम. प्रियादतपुरुषनी सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. __ औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, ग. कुमुदचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कुमुद० समज्झ ल्यो, गाथा-१०, (पू.वि. गाथा ७ तक नहीं है.) २.पे. नाम. स्त्रीने सिखामणनी सजाइ, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये स्त्रीशिखामण, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: एक अनोपम सीखामण खरी; अंति: उदेय माहिजस विस्तरे, गाथा-१०. ५२८५९. (#) वीरजणदनुं तवन, अपूर्ण, वि. १८७३, वैशाख कृष्ण, ३०, मध्यम, पृ. ४४-४३(१ से ४३)=१, ले.स्थल. गोडुल, प्रले. रामजी जोशी; पठ. श्रावि. लक्ष्मीबाई; लिख. श्राव. रामजी संघाणी; अन्य. श्रावि. गोमती बा, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. कुल ग्रं. १९००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १२४३२-३९). महावीरजिन प्रभाति, मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजणद नानाडीआ प्रभु; अंति: चरण कमल चीत धावेरे, गाथा-७, संपूर्ण. ५२८६०. (#) स्यादिशब्दसमुच्चय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४४८). स्यादिशब्दसमुच्चय, आ. अमरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीशारदां हृदि; अंति: (-), (पू.वि. क्रम २ श्लोक २१ अपूर्ण तक है.) ५२८६१. (+#) जैनविधि संग्रह व गायत्री न्यास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१०.५, ९४३१). १. पे. नाम. जैनविधि संग्रह, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. जैनविधि संग्रह प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (वि. जापकरण व जैन यज्ञोपवित विधि.) २. पे. नाम. गायत्री न्यास, पृ. २आ, संपूर्ण. गायत्री मंत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ भूर्भुवः स्वः; अंति: यो नः प्रचोदयात्. ५२८६२. (+#) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १८०८, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, गुरुवार, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०, १२४३६-४०). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. ५२८६३. (+#) आदिजिन सुखडी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५४१०.५, ११४३२-३६). आदिजिन सुखडी, मा.गु., पद्य, आदि: सरसत माता देवी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४४ तक है.) For Private and Personal Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५२८६४. (#) सीमंधरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११, १२४२९). सीमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४१, आदि: पुर्व माहाविदिहे वशे; अंति: जपता जीनवर जाप, गाथा-१४, संपूर्ण. ५२८६६. (+) भगवतीसूत्र भांगा आलावो, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४४-४१(१ से ४१)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १३४४४). भगवतीसूत्र-आलापक संग्रह*, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. शतक ७ उद्देशा १० अपूर्ण व शतक ८ उद्देशा ५ अपूर्ण है.) ५२८६७. (#) मेघकुमर सज्झाय आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १०-११४३४-३७). १.पे. नाम. मेघकुमर सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मेघकुमार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणंद समोसर्या; अंति: ते पामै भवपार रे, गाथा-२१. २. पे. नाम. सेत्रुजा स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेजमंडण आदि; अंति: सूरि तुसइ दे सेवता, गाथा-४. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: दया तणउ साइर; अंति: चित समाधि पूरइ, गाथा-४. ४. पे. नाम. समस्या पद, पृ. २आ, संपूर्ण. काव्य/दुहा/कवित्त/पद्य , मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. गाथांक नहीं है.) ५२८६८. (+#) १५८ प्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०, ११४२८-३०). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणी कर्म; अंति: कर्मभेद ५ ज्ञेयं. ५२८७०. (+#) विमलगिरि पद आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. १२, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४१०,१३४४०). १.पे. नाम. विमलगिरी पद, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: म्हारू मन मोह्युरे; अंति: कहेता नावे पार, ___ गाथा-५. २. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुती, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मंगल आठ करी; अंति: तपथी कोड कल्याण जी, गाथा-४. ३. पे. नाम. क्रोध सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कडुआं फल छे क्रोधनां; अंति: उदयरतन० उपसमरस नाही, गाथा-५. ४. पे. नाम. माननी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव मान न कीजीये; अंति: मानने देजो देसवटो रे, गाथा-५. ५. पे. नाम. चेलणाजीरी सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वांदीने वलता; अंति: व्रत लीधो अभयकुमार, गाथा-७. ६.पे. नाम. वेराग सझाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मा.गु., पद्य, आदि: जंबु जगत सुपर्नु जाण; अंति: वीर मुहडे वांण रे, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १०८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७. पे. नाम. निरंजन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं, पद्य, आदि देव निरंजन भव भय अंतिः रुपचंद० सो तरीया है, गाथा ३. ८. पे. नाम. जिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: भोर भयो भोर भयो भोर, अंति: सकल सुख मंगलमाल रे, गाथा- ६. ९. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २आ- ३अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्य, आदि: प्रात भवो प्रात भयो, अंतिः विना शिवसुख कोन लहे, गाथा- ६. १०. पे. नाम, नेमिजिन पद, पृ. ३अ, संपूर्ण नेमिजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि सांभल रे सामलीया, अंति: किम वरचे वरदाई रे, गाथा-५११. पे नाम समकितलक्षण पद, प्र. ३अ संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं, पद्य, आदि जागे सो जिनभक्त कहाव अंतिः ताकुं वंदना हमारी, गाथा-४. " १२. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन अब कछु चेतीए; अंति: जय विमलनय धारी, गाथा-५. ५२८७१. असज्झाई विधि, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, जैवे. (२५.५X१०.५, ११४३९-४१). असज्झाय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: असन्झाईना बि भेद, अंति: असन्झाईमांहि जाणिवी. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२८७२. (+#) सम्यक्त्वनी ढालबंध व श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१ ( २ ) = ३, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०, १३X३८-४६). १. पे. नाम. सड़सठ बोल सम्यक्त्वनी ढालबंध, पृ. ९अ ४अ, अपूर्ण, पू. वि. बीच का एक पत्र नहीं है. सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुकृतबल्लि कादंबनी, अंतिः वाचक जस इम बोलै रे, ढाल १२, (पू. वि. ढाल ४ गाथा २ से ढाल ९ गाथा १ तक नहीं है.) २. पे. नाम. लोक संग्रह. पू. ४अ ४आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-३. ५२८७३. (#) त्रणतत्त्वनी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. गांगजी भाट, अन्य. कानजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६.५५१२.५, १५X४१). * , ३ तत्त्व सज्झाय, मु. राममुनि, मा.गु., पद्य, आदिः परम पुरष परमेस्वर; अंति: राम मुनि कहे एह सझाय, गाथा-२८. ५२८७४. (#) नेमराजेमतीनी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. सा. कस्तुरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६X११.५, १२x२८). " - नेमराजिमती सज्झाय, मु. सोमचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नेम जणेसर केसर, अंतिः सोम० सेवक एम भणे रे, गाथा १२. ५२८७५. (+#) चंदनबाला सीझाइ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्रावि. लाधा कुवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है.. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६x१०.५ १२४३०). , יי चंदनवालासती सज्झाय, मु. जेठा ऋषि, मा.गु, पच, वि. १८३३, आदि: दीसीपणे दुख देखती, अंतिः अबरु राखी , अमारो गाथा- ७. ५२८७६ (१) संबोधसत्तरी अपूर्ण, वि. १८९० वैशाख कृष्ण, १०, शनिवार, मध्यम, पृ. ८-५ (१ से ५) = ३, प्र. मु. जोधसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२४.५४९.५, १०X३२-३८). " संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सो लहइ नत्थि संदेहो, गाथा- ८६, (पू. वि. गाथा २९ तक नहीं है.) ५२८७७, (+) सेतुंज कुलक सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८३२, वैशाख शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., ( २४.५X१०.५, ६X३२-३४). शत्रुंजयतीर्थ लघुकल्प, प्रा., पद्य, आदि अहमुत्तइ केवलिणा, अंति: लहह सेतुंजजत्तफलं, गाथा-२५. For Private and Personal Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ शत्रुंजयतीर्थ लघुकल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अइमत्तइ नामइ केवली; अंति: यात्रानउ फल. ५२८७८. (+) पार्श्वनाथजीनो देसांतरी छंद, संपूर्ण वि. १८४१ फाल्गुन कृष्ण, ६, सोमवार, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल, जालोर, प्रले. पं. गणपतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५X११, ११-१२X३२-३७). पार्श्वजिन छंद - गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: सुवचन समपो सारदा; अंति: स्तव्यो छंद देशांतरी, गाथा-४७. ५२८७९. (+४) देवकीनी ढाल व पार्श्वजिन स्तवन-वाराणसी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३. कुल पे, २, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५X१०.५, २१-२३X५८-६२). १. पे नाम, देवकीनी डाल, पृ. १अ ३आ, संपूर्ण. देवकी ढाल, मा.गु., पद्य, आदि रिष्टनेमी नामे हुवा, अंतिः आणी हिरदे वीवेक, ढाल १४. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- वाराणसीमंडन, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: बाणारसीमंडण जीणपास अंति: (-), (पू. वि. गाथा २० अपूर्ण तक है.) ५२८८०. (+#) माहावीरसामीनु तवन, संपूर्ण, वि. १८५५, ज्येष्ठ कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. पोरबंदर, प्रले. श्राव. खीमजी वाघजी; अन्य. सा. केसरबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६x११, ११X३५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीरजिन स्तवन मा.गु., पद्य, आदि: जारे जनजी चविने अंतिः मोख जेम हेल्या वले, गाथा- १३. " ५२८८२ (४) जिनचंद्रसूरि निर्वाण रास व नामलजा गीत, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३. कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, १५X३५-४२). १. पे नाम, युगप्रधानजिनचंद्रसूरिनिर्वाण रास, पृ. १अ ३आ, संपूर्ण जिनचंद्रसूरिनिर्वाण रास, मु. समयप्रमोद, मा.गु., पद्य, आदि: गुणनिधान गुरु पाय; अंति: जंपइ समयप्रमोद, ढाल-४. २. पे नाम, जिनचंद्रसूरिराजा नामलजा गीत, पृ. ३आ, संपूर्ण जिनचंद्रसूरि आलजा गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि आसू मास ज आवीयो अंतिः पूजि समयसुंदर आणंद, गाथा- ११. ५२८८३. (४) ककावत्तीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २९-२६ (१ से २६ ) = ३, अन्य. सा. हेमकुवरबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६X१०.५, ११X३५). है. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२६.५x११, १०३३). " " कात्रीसी, मु. जीवण, मा.गु., पद्य, आदि: कका कहू ते कहु मान; अंति: जीवणजीए कका कया, गाथा - ३३, संपूर्ण. ५२८८४, (+) संवर सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. मु. लाडण ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं १०९ संवर सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर गोयमने, अंति: मुगती जिम हेला वरो, गाथा-६, (वि. गाथांक नहीं है.) ५२८८५. (+४) बेराग सज्झाय आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुलपे ३, प्र. वि. संशोधित, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२५x११, १२-१३४३६). " १. पे. नाम. वराग सीझाच, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-सज्झाय, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे श्रीजीनवर ईम; अंति: पभण मुन रूपचंद रे, गाथा - २१. २. पे. नाम छिनुं जीनवर स्तवन, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. जिन , १. पे नाम, विवेक सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्म, वि. १७४३, आदि: वरतमान चोइसे बांद, अंतिः सदा जिणचंदसुर ऐ गाथा- २३. ३. पे. नाम. गाथा संग्रह - समस्यागर्भित, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाधा ७ तक लिखा है.) "" ५२८८६. (४) विवेक सझाय व लक्ष्मीचंद आचार्य भास, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है.. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६.५४११.५, १३४३६). " For Private and Personal Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. तेजसी, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: बुध विना धर्म; अंति: नेत्रतणे मुख राचु, गाथा-१३. २.पे. नाम. लक्ष्मीचंदआचार्य भास, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. केशरचंद्र, पुहि., पद्य, आदि: के सरसति जां को गुण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २ तक लिखा है.) ५२८८७. (+#) खोडीदासजी स्वामीना स्वर्गवास दूहा, संपूर्ण, वि. १९२८, भाद्रपद अधिकमास कृष्ण, ६, बुधवार, मध्यम, पृ. ३, प्रले. हेमचंद व्रधभाण विद्यार्थी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४११.५, १०४३९). खोडीदास निर्वाण भास, श्राव. फूलचंद हीराचंद, मा.गु., पद्य, वि. १६२८, आदि: संघाडे सीरोमणी; अंति: काल खोडीदास सामीए, गाथा-३१. ५२८८८. जीरणशेठ सज्झाय, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., जैदे., (२६.५४११, १४४३७-४१). महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अनंतगुण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २७ अपूर्ण तक है.) ५२८९०. (4) वीर थुई व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. जेतपुर, प्रले. पुंजा परागजी गांधि; पठ. श्रावि. लाछुबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ११४२७-३२). १. पे. नाम. वीर थुई, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा-२९. २. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंचमहव्वयसुव्वयमूलं; अंति: हुंति परित्तसंसारी, गाथा-९. ५२८९१. (#) नेमिनाथ गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १५४५१). १.पे. नाम. नेमिनाथ गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन गीत, ग. कुंयरजी, मा.गु., पद्य, आदि: यदुपति चमक उलाइ; अंति: विलसइ सुख अपार रे, गाथा-११. २.पे. नाम. नेमिनाथ गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमिजिन गीत, ग. कुंयरजी, मा.गु., पद्य, आदि: सामलियओ साहेली मन; अंति: जोडीय अविचल साथ रे, गाथा-९. ५२८९२. (+#) आत्मनिंद्या, संपूर्ण, वि. १८७५, आषाढ़ शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १४४३८-४४). __ आत्मनिंदा भावना, मु. ज्ञानसार, रा., गद्य, आदि: हे आत्मा हे चेतन ऐ; अंति: नर सुगुन प्रवीन. ५२८९३. (+#) दानशीलतपभावना कुलक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १३४३५-४६). दानशीलतपभावना कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: परिहरिय रज्जसारो; अंति: सो लहइ सिद्धिसुह, वक्षस्कार-४, गाथा-८१. ५२८९५. गौतम कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८८, सिधीवसुकर्मेंदुना वर्षे, चैत्र कृष्ण, १, बुधवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. द्रांगधरा, प्रले. मु. कर्मचंद ऋषि (गुरु मु. देवजी ऋषि); गुपि. मु. देवजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, ४४३५-३७). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: ते पंडिया जे विरया; अंति: सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०, संपूर्ण. गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० तेह ज पं० पंडीत; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ४ अपूर्ण तक लिखा है.) ५२८९६. (+#) नमीरायनी ढाल आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, २०४५२-६२). १.पे. नाम. नमीरायनी ढाल, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ १११ नमिराजर्षि ढाल, ऋ. आसकर्ण, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: सासणनायक समरता; अंति: मिच्छामि दुक्कडं जी, ढाल-७. २. पे. नाम. मेघरथरायनी लावणी, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. मेघरथराजा लावणी, मु. लाल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि: भव्यजन हीयामाहे; अंति: वंदे आवागमण टारो, गाथा-३९. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. अगरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: म्हारी वीनतडी अबधीरो; अंति: जीनपद वचन वीलास, गाथा-२१. ४. पे. नाम. सनतकुमारनो चोढालियो, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. सनत्कुमारचक्रवर्ती चौढालियो, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: तिण काले ने तिण समे; अंति: ऋष चोथमल्ल सुखकार, ढाल-४. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: यतना का कहा गरब; अंति: आप ही आप मे पावे रे, गाथा-१०. ६. पे. नाम. श्रद्धापचीसी, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्रद्धापच्चीसी, मा.गु., पद्य, आदि: सरधा पचीसी सुणजो सार; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २१ अपूर्ण तक है.) ५२८९७. (+#) शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०, १५४३७-४२). शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १०८ अपूर्ण तक है.) । ५२८९८. (#) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन ६, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. श्रावि. मोतिबाई; श्रावि. हर्षा हेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४११, १२४३१). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५२८९९. (#) परनारीनी सजाइ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. सवजी; पठ.सा. हरखबाई; श्राव. प्रभुलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१०.५, ११४२७). औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, शंकर, मा.गु., पद्य, आदि: जेने परनारीसुप्रीत; अंति: कर आवे ओचीतो जाणी, गाथा-१२. ५२९००. (#) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४११, १२४३८). औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: केवल जन राम हरि; अंति: देवनां सुख भारि रे, गाथा-२०. ५२९०१. (+#) सुबाहुकुमारनी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, अन्य. सा. कस्तुरबाई (गुरु सा. कसलीबाई), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, ११४३६). सुबाहुकुमार चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: चल्यो एकलो निर्धार, ढाल-४, (पू.वि. ढाल १ गाथा २ तक नहीं है.) ५२९०२. (2) वीसवेरमाननुंतवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. पत्रांक किसी अन्य व्यक्ति द्वारा बाद में लिखा गया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, ८x२८). २० विहरमानजिन स्तवन, मु. श्रीपाल, मा.गु., पद्य, वि. १६४४, आदि: श्रीगणधर गूण सत्यूँ; अंति: (-), (वि. गाथांक नहीं है.) ५२९०३. सत्तरीसयजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पठ. श्रावि.रहकां, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र खंडित होने के कारण पत्रांक अपाठ्य है., जैदे., (२५४१०, १२४३५). तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. For Private and Personal Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५२९०४. (#) सीमंधरजिन वीनतीस्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, १२४३७). सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: स्वामी सीमंधर विनती; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ७६ अपूर्ण तक है.) ५२९०५. (+#) गयसुकमाल रास व सुभाषित दहा संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६-२(१ से २)=४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४३५). १. पे. नाम. गयसुकमाल रास, पृ. ३आ-६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गजसुकुमालमुनि रास, मु. शुभवर्द्धन शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: अविचल संपद थाइ, गाथा-९८, (पू.वि. गाथा ३४ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. सुभाषित दहा संग्रह, पृ. ६आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गयी है. दहा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अनमिलनी बहुतई मिलई; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १४ तक लिखा है) ५२९०६. (+#) मरुदेवानी सझाय आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४९-४५(१ से २१,२३ से ३९,४२ से ४८)=४, कुल पे. ११, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४११, १५४४४). १.पे. नाम. मरुदेवानी सझाय, पृ. २२अ-२२आ, संपूर्ण.. मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५०, आदि: जबृदिपेहो भरत; अंति: कीधो ज्ञान अभ्यास, गाथा-१६. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २२आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: पथरदेव देखी पुजे; अंति: जगत कुड बोति, गाथा-३. ३. पे. नाम. मिथ्यात्वी वर्णन लावणी, पृ. २२आ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: कंकर कु संकर कर माने; अंति: धर्म दुख दाता हे, गाथा-३, (वि. इस प्रत में कर्ता नाम नहीं है.) ४. पे. नाम. मलीजिन स्तवन, पृ. ४०अ-४०आ, संपूर्ण. मल्लिजिन स्तवन, म. धर्मसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: हवे दान सवछरि दिए; अंति: अविचल सूख दातार, गाथा-१८. ५. पे. नाम. दिवाली सज्झाय, पृ. ४०आ-४१अ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: पुर्व दिसे हुइ पावा; अंति: संवत अठारसे पेताला, गाथा-२०. ६. पे. नाम. माहाविरनो तवन, पृ. ४१अ-४१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. रूपसिंघ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम दीपे दीपतारे; अंति: मोटा श्रीमाहाविर के, गाथा-७. ७. पे. नाम. कुमति सझाय, पृ. ४१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अलगी रहेने अलगी रहेन; अंति: जीनगुण सुरत लटकाली, गाथा-६. ८. पे. नाम. दिशार्णणभद्रनी सझाय, पृ. ४९अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. दशार्णभद्र सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: लाल मुनि निसदिस, गाथा-२७, (पू.वि. गाथा २१ अपूर्ण से है., वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गाथा गिना है.) ९. पे. नाम. बारसातनि सझाय, पृ. ४९अ-४९आ, संपूर्ण. ७ वार सज्झाय, श्राव. माधव संघाणी; मु. कुंवरजी ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८९५, आदि: आदित वारे उदित; अंति: ते पामे भवनो पार, गाथा-८. १०. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ४९आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: लबधीवंत गुरु गोतमसाम; अंति: तारो भवदधी तिर, गाथा-६. For Private and Personal Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ www.kobatirth.org ११. पे. नाम महावीरजिन स्तुति, पृ. ४९आ, संपूर्ण, मा.गु., पद्य, आदि दं दं दं चग मृदंग, अंतिः सेणीक एसी फोज सजे, गाथा- १. ५२९०७. (+#) महावीरजिन वधावा आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-२ (१ से २) = २, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६.५x११, १२४३२-३५). १. पे. नाम. विरप्रभुना वधावा द्वादस, पृ. ३अ ३आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीरजिन स्तवन-१२ वधावा, मु. जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जाए कोड भवना पाप, गाथा-१२, (पू. वि. गाथा ५ अपूर्ण से है . ) २. पे. नाम. माहाविरनो छंद, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. महावीरजिन छंद, मु. वीर मुनि, मा.गु., पद्य, वि. १८१०, आदि: माहामंगलीक भजो आप, अंति: खंभात श्रीवृधमानं, गाथा - ११. ३. पे. नाम, औपदेशिक वारमासो, पृ. ४-४आ, पूर्ण, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरू चरणे सीर नामि, अंति: (-), (पू.वि. गाथा १५ अपूर्ण तक है.) ५२९०८. नोकरवालीनी संध्या, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. दे. (२६.५X११, ८x२२). नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: केजो चतुर नर; अंति: रूपवजे वजे बुध , , सारी, गाथा - ५. ५२९०९, (४) पारसनाथ व नवकार छंद, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ३, कुल पे २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५X१०.५, १६X३६). १. पे नाम. पारसनाथनो छंद, पृ. १अ- ३अ संपूर्ण. पार्श्वजिन निसाणी- घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुष्टिं पद्य, आदिः सुखसंपत दायक सुरीनर, अंतिः गुणी जनहरख कहंदा है, "" ११३ गाथा-२६. २. पे. नाम. नवकार छंद, पृ. ३अ - ३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछीत पूरे विविध, अंति: (-), (पू. वि. गाथा १० अपूर्ण तक है.) ५२९१०. (+#) जिनबल विचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X११.५, ५X३५-३८). १. पे. नाम. जिनबल विचार सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. मु. रायचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. जिनबल विचार, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो वीर्यबलं विसाल; अंति: अंगुली नमनं असयंतं, गाथा- ३. जिनबल विचार - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सांभलो वि० बल; अंति: नमावाने अ० असमर्थ २. पे. नाम. जिनबल विचार सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है. जिनबल विचार, मा.गु., पद्य, आदि: सूणौ वीर्य बोल्यों; अंति: नेम को अग्र ते तो, गाथा-१, (वि. १८५७, माघ शुक्ल, योगोद्वहनविधि संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: कालो याति तदा न. २. पे. नाम. जिनवीर्ज विचार, पृ. ५आ, संपूर्ण. १४, ले. स्थल. धोराजी, प्रले. मु. खीमचंदजी ऋषि (गुरु मु. कर्मसी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य ) जिनवल विचार-वार्थ, मा.गु, गद्य, आदिः सु० कहता साभलो अंतिः धणी भगवंत छेड़, (वि. १८५७, फाल्गुन शुक्र, ५, मंगलवार, प्रले. मु. कर्मसी ऋषि (गुरु मु. भूधर ऋषि); गुपि. मु. भूधर ऋषि (गुरु मु. जसराज ऋषि); पठ. मु. रायचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य ) ५२९११. (+) योगविधि व जिनवीर्ज विचार, अपूर्ण, वि. १८४२ ज्येष्ठ कृष्ण, ९. गुरुवार, मध्यम, पृ. ५-१ (१) ०४, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६ ११.५, १६x४२-४५). १. पे. नाम. योगविधि विविधविचारा, पृ. २अ-५आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. प्र. ले. श्लो. (६११) यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा. For Private and Personal Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जिनबल विचार, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो वीर्ज बोलु; अंति: अग्र कु तेम ते तौ, गाथा-१. ५२९१२. (+#) बंधस्वामित्वसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. मूल व टीका का अंश नष्ट है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ५४४३-४६). बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्क; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं, गाथा-२५. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: अभिनव कर्मनउ ग्रहि; अंति: (अपठनीय), (वि. पत्र खंडित होने से अंतिमवाक्य अवाच्य है.) ५२९१३. (+#) शियलन चोढालिउ व श्रीमंदिरस्वामिनि विनती आलोयणविधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-४(१ से ४)=४, कुल पे. २, प्रले. मु. भीमजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १३४२९-३२). १. पे. नाम. शियलनू चोढालीउ, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. शीयल चौढालियो, मु. जीवण, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: खंभातनगर गुण गावे, ढाल-४, (पू.वि. ढाल ३ गाथा २ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. श्रीमंदिरस्वामिनि विनती आलोयणविधि, पृ. ५आ-८आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन-आलोयणाविनती, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: आज अनंता भवतणां कीधा; अंति: प्रभु उगते सुर तो, गाथा-५०. ५२९१४. (#) जंबूस्वामी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, ११४३६). जंबूस्वामी सज्झाय, मु. गंग, मा.गु., पद्य, वि. १७६५, आदि: श्रीगुरु पदपंकज नमी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल ३ गाथा ३६ अपूर्ण तक है.) ५२९१६. (+) सज्झाय व पद, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १४-१३(१ से १३)=१, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४११, ११४३३). १. पे. नाम. सात वार सज्झाय, पृ. १४अ, संपूर्ण. ७वार सज्झाय, मु. धर्मदास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीब्राह्मी प्रणमी; अंति: धरमदास० राधणपुर मझार, गाथा-१०. २.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १४आ, संपूर्ण. रणछोड, मा.गु., पद्य, आदि: ओलखीने लेजो रे पराणी; अंति: तारो छुटक बारो थाय, गाथा-५. ५२९१७. (#) धन्नाकाकंदी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, ११४३३). धन्नाअणगार सज्झाय, मु. ठाकुरसी, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवाणी रे धना अमीय; अंति: गाया हे मन में गहगही, गाथा-२२. ५२९१८. (+) शंखेश्वर पार्श्वजिन गीत, संपूर्ण, वि. १८२१, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३, गुरुवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. मेदनीपुर, प्र.वि. संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२६४११.५, १३४४२). पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मंगल तणी कल्प; अंति: पास जिनवरतणी राजगीता, गाथा-३६. ५२९२०. (#) स्थूलिभद्र व स्वार्थ सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२४.५४१०.५, १७४५३). १.पे. नाम. थुलिभद्र सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. रामजी, मा.गु., पद्य, आदि: देखौ मासुंया कीनी; अंति: रामजी० थूलभद्र उछाह, गाथा-२०. २. पे. नाम. स्वार्थ सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सेमुख श्रीजिनवर उपदि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १७ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५२९२१. सीयल सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१०.५, १४४२८). शीलव्रत सज्झाय, मु. शुभवीर, मा.गु., पद्य, आदि: चोथु व्रत हवे व्रणवु; अंति: शुभवीर० अम सीर पाले, गाथा-१२. ५२९२२. सुगुरु सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४११, १२४४१). सुगुरुपच्चीसी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुरु पीछाणों एवं; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा २३ अपूर्ण तक है.) ५२९२३. (#) जीवदया सज्झाय, संपूर्ण, वि. १६९१, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. बहादरपुर, पठ. मु. भोला ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४३९). जीवदया सज्झाय, मु. सोमसुंदरसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: श्रीगोयम गुरू पाय; अंति: सासणि साचउ धर्म, गाथा-१५. ५२९२४. (+) नेमजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४९, ९४३४). नेमिजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक वरणी चुंदडी आज; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा १५ अपूर्ण तक है.) ५२९२५. सज्झाय व पद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१०.५, १३४३५-३९). १.पे. नाम. मोहप्रबल सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: मोह महाबलवंत कवण; अंति: प्रगट वचने करी रे, गाथा-७. २. पे. नाम. गौतमस्वामी विलाप, पृ. २आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी विलाप गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मुगति समय जाणी करी; अंति: समयसुंदर करजोडिरे, गाथा-७. ३. पे. नाम. २४ जिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. दौलत, मा.गु., पद्य, आदि: भविअण भावै जिन भेटी; अंति: सुख दउलति वीरजी दीजै, गाथा-३. ५२९२७. नेमिनाथ थोय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४११, ११४३३). मौनएकादशीपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमिजिनवर सयल; अंति: नय कहे सासनने सुखदाय, गाथा-४. ५२९२८. (+#) लोकनालिद्वात्रिंशिका सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पंचपाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४११, १०४३३-३८). लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदसण विणा जंलोअं; अंति: जहा भमह न इह भिसं, गाथा-३९. लोकनालिद्वात्रिंशिका-अवचूरि, आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., गद्य, आदि: वइ० प्रसारितपाद; अंति: मुपलभ्य इति ज्ञात्वा. ५२९२९. (#) सज्झाय व आराधना, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १३४३६). १.पे. नाम. सिखामण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. कल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: जिन भजवानो चोघडीयो; अंति: कल्याण० उपर पाणीजो, गाथा-८. २.पे. नाम. कमलावती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८६२, ज्येष्ठ कृष्ण, ३, पठ. श्रावि. वेणीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य. कमलावतीसती सज्झाय, मु. सुगुणनिधान, मा.गु., पद्य, आदि: कहे राणी कमलावती; अंति: हंसला रे सुगणनिधान, गाथा-१०. ३. पे. नाम. पद्मावती आराधना, पृ. १आ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पद्मावती; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २९ अपूर्ण तक है.) ५२९३०. अक्षरबावणी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५४१०.५, १२४३७). For Private and Personal Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ११६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अक्षरबावनी, मु. जसराजजी, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, वि. १७३८, आदिः ॐ यह अक्षर सार हैं; अंति: (-), (पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा ५० अपूर्ण तक है.) ५२९३१. सज्झाय, गीत व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-२ (१,३)=२, कुल पे. ५, दे., (२६.५X१०.५, १२X३१). १. पे नाम, नेमराजिमती बारमासा, पृ. २अ अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. लावण्यचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: लावनचंद्र० गुण गावति, गाथा - १६, (पू. वि. गाथा ११ अपूर्ण से है . ) २. पे. नाम. राजमतीसती गीत, पृ. २आ, अपूर्ण, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. राजिमतीसती गीत, मु. जयतसी, मा.गु, पद्य, आदि: सुण सुण चतुर सुजाण, अंति: (-), (पू. वि. गाथा ५ अपूर्ण तक है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३. पे. नाम. भरतेसर सज्झाय, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. " भरतचक्रवर्ती सज्झाय, वा. किशन, मा.गु. पच, आदि: (-); अंति: किसन सदा सुखकार हो, गाथा-९, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा ८ अपूर्ण से है.) ४. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण नेमराजिमती लावणी, मु. चतुरकुशल, पुष्टिं पद्य, आदि: नेमनाथ मेरी अर्ज अंतिः फेरा नहीं फिरनेकी, गाथा ९. ५. पे. नाम. श्रीमंधर स्वामी स्तवन, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सीमंधरजिन स्तवन, मु. हंस, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधरस्वामीजी, अंति: (-), (पू.वि. गाथा ६ अपूर्ण तक है.) ५२९३२, (+) विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे ४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें.. जैदे., (२५X१२, १४X३७). , י १. पे. नाम. स्थविरकल्पिसाधूनां १४ उपकरणानि, पृ. १अ संपूर्ण. प्रवचनसारोद्धार - हिस्सा स्थविरकल्पी साधु के १४ उपकरण, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा. पद्य वि. १२वी, आदि: जिणकपिआय दुविहा, अंति: उवही पुण थेरकप्पंमि, गाथा- ७. २. पे. नाम. विमानपालकादि गाथा संग्रह, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. जैनगाथा संग्रह", प्रा.मा.गु. सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. पौषध सामायिक पडिलेहणादि प्रतिक्रमणविधि संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - वे.मू. पू. * संबद्ध, प्रा. मा.गु. सं., प+ग, आदिः सागरचंदो कामो; अंतिः ए विधि पडिलेहण जाणवी (वि. पौषध, सामायिक, पडिलेहण आदि प्रतिक्रमणगत विधि का संकेत मात्र है.) ४. पे. नाम. आगमिक विचार प्रश्नोत्तर संग्रह, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. विचार संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: समवायांगेत्वेवंनामा; अंति: ए प्रश्न २नौ उत्तर. ५२९३३. कायस्थितिस्तव वृत्ति, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे. (२६११.५, ९८४६४-६७). " कायस्थिति प्रकरण- टीका, आ. कुलमंडनसूरि, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: वर्द्धमान जिन; अंतिः पदं ददस्व शेषः . ५२९३४. जलयात्रा विधि, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३-१ (१) -२, जै, (२५.५X११.५, ११४३२). जलयात्रा विधि, मा.गु., सं., गद्य, आदिः ॐ गुरुतत्त्वाय नमः; अंतिः च अष्टप्रमाणं कार्यं, संपूर्ण. ५२९३५. गौतमस्वामी रास, स्तवन व ऋषभवत्रीसी, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, जैदे, (२५.५४११.५, १३X३४-४०). १. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी अष्टक, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह ऊठी गौतम प्रणमी, अंति: उदय प्रगट्यौ प्रधान, गाथा-८. २. पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण. उपा. समयराज, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीवीर जिणेसर बंदी अंतिः समयराजगुरु एम थुणई, गाथा- १७. For Private and Personal Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ३. पे. नाम. ऋषभबत्रीसी, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. अष्टापदतीर्थ स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टापद श्रीआदिजिणंद; अंति: जिनहरष नमुंकर जोड, गाथा-३२. ५२९३६. (#) सुकोशलमुनि रास, संपूर्ण, वि. १६७८, आश्विन कृष्ण, २, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. रोहग्राम, प्रले. मु. सहसा (गुरु मु. गुणराज); गुपि. मु. गुणराज (गुरु पं. राजरत्न); पं. राजरत्न (गुरु पं. हर्षरत्न); पं. हर्षरत्न, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४११, १६x४४). सुकोशलसाधु रास, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रहि उठी रे भगवति; अंति: रिषि वंदुशि सिरनामी, गाथा-२३. ५२९३७. जंबूद्वीप कलश बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. मांगरोणबंदर, प्रले. श्राव. मंगलजी हरजीवन चीतलीआ, प्र.ले.पु. सामान्य, गु., (२५.५४११, १६४४०). जंबूद्वीप कलश बोल संग्रह, गु., गद्य, आदि: पहेले बोले जंबुद्वीप; अंति: मरजादा मुकतो नथी. ५२९३८. चंद्रगुप्तसोल सुपन सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४११, १३४३०-३३). चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. तेजसिंघ ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरुने चरणे नमी; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा १८ अपूर्ण तक है.) ५२९३९. (+#) उपदेशशतक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १९४५५). धर्मोपदेशशतक, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणिधाय परंज्योति; अंति: दाया दायनः शिवमासदत, सर्ग-५, श्लोक-१०३. ५२९४१. (+#) पंचांगानयन विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४३७-४९). पंचांग विधि, मु. मेघराज, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: गवरीनंद आनंद करि; अंति: मेघराज भांति सुखकाल, गाथा-५३, (वि. यंत्र सहित.) ५२९४२. (+#) दानशीलतपभावना व गौतम कूलक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १२-१५४४०-४२). १.पे. नाम. दानशीलतपभावना कुलक, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: परिहरिय रजसारो; अंति: सो लहइ सिद्धिसुह, वक्षस्कार-४, गाथा-८१. २. पे. नाम. गौतम कुलक, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १ अपूर्ण तक है.) ५२९४३. प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९-५(१ से ५)=४, जैदे., (२५.५४११, १५४४८). प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार, आ. वादिदेवसूरि, सं., प+ग., वि. ११५२-१२२६, आदि: (-); अंति: स्फूर्ति च वाच्यम्, परिच्छेद-८, सूत्र-३७९, (पू.वि. परिच्छेद ५ सूत्र ३ अपूर्ण से है.) ५२९४४. (#) बृहत्संग्रहणी सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३००-२९७(३ से २९९)=३, प्र.वि. अंतिम पत्र का पत्रांक भाग फटे होने तथा पत्रांक २ के बाद बीच के पत्र न होने से अंतिम पत्रांक काल्पनिक दिया गया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १७४५२-५८). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊं अरिहंताई थिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-२७४, (पू.वि. गाथा ५ से २७२ नहीं है.) बृहत्संग्रहणी-बालावबोध, मु. शिवनिधान, मा.गु., गद्य, वि. १६००, आदिः (१)श्रीपार्श्वनाथं फल, (२)अरहतादिकनइ नमिउ नम; अंति: (१)शिवनिधान० शोधमाधाय, (२)संसारीक सर्वसुख पामै. ५२९४५. (+) स्तवन व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ११४४०). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-अयवंतीपुरमंडण, आ. गुणसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६५२, आदि: सोभागी जिनजी म्हारै; अंति: गुणसूरि० गुणसूरिंद, गाथा-१२. For Private and Personal Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. पंचइंद्री सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. साधुगुण सज्झाय, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पांचे इंद्री रे; अंति: विजयदेवसूरि० ऐहवा, गाथा-९. ५२९४६. आबु स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२६४११, १२४३०-३३). अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अरबुदगिर रलिआमणो रे; अंति: न्यानसागर० जयकरु, गाथा-३५. ५२९४७. नवकार छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, १३४३२). नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछित पूरे विविध परे; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा १२ अपूर्ण तक है.) ५२९४८. (+#) कल्याणमंदिर पार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८८०, फाल्गुन कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. हितप्रमोद; पठ. मु. रुपचंद (गुरु मु. हितप्रमोद), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १३४३०). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुदचं० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ५२९४९. (-) महावीर चौढालीयो, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५.५४११, १०४२७). १.पे. नाम. महावीरजिन चौढालियो, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि: सिद्धारथ कुल दीपक; अंति: रायचंद रे पासजी, गाथा-१४. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, पूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सासननायक वीरजिणंद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ११ अपूर्ण तक है.) ५२९५०. (+) बार भावना, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११, १९४४१). १२ भावना, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: विरस्वामी जयो धर्म; अंति: (-), (पू.वि. भावना ८ गाथा ४३ अपूर्ण तक है.) ५२९५१. बालचंदबत्तीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., जैदे., (२५.५४११, १४४३५). अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद मुनि, पुहिं., पद्य, वि. १६८५, आदि: अजर अमर परमेसर कुं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २९ अपूर्ण तक है.) ५२९५२. वस्तुपालतेजपाल रास, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, पठ. श्रावि. मनभा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०, १४४३९). वस्तुपालतेजपालमंत्री रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: सरसति सामिणि पय नमी; अंति: समयसुंदर० परम उलास, ढाल-२, गाथा-४०. ५२९५३. (#) चंदनबाला बेलि व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. मु. तेजपाल (गुरु मु. भीमजी ऋषि, लुंकागच्छ); गुपि. मु. भीमजी ऋषि (लोंकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १६४३३-४०). १.पे. नाम. चंद्रबाला वेली, प्र. १अ-२आ, संपूर्ण. ___ चंदनबालासती वेल, आ. अजितदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: कौशंबी नयरी पधारीया; अंति: अजितदेव० आणंदपुर हो, गाथा-४६. २.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अनंत गुण; अंति: नमई मुनिमाल, गाथा-३०. ५२९५४. (+#) जीवविचार व गुणठाणा कुलं, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०, ११४२८-३५). १.पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. २अ-४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ www.kobatirth.org ११९ आ. शांतिसूर, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: रूद्धाओ सूअ समुद्धाओ, गाथा - ५१, (पू. वि. गाथा १५ अपूर्ण है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे नाम, गुणठाणा कुलं, पृ. ४-४आ, संपूर्ण, १४ गुणस्थानक कुलक, मु. शुभवर्द्धन - शिष्य, प्रा., पद्य, आदि: वांदीअ वीरजिणंद जिहि; अंति: धम्मे उज्जमं कुणहि, गाथा - १४. ५२९५५. (+४) कल्याणमंदिर स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे ३, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैसे., (२५x१०.५, १२३१-३४). " १. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १अ ४अ संपूर्ण. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः कुमुदचं० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. २. पे. नाम. श्रोता वक्ता के गुण, पृ. ४अ, संपूर्ण. वक्ता-श्रोतागुण श्लोक, सं., पद्य, आदि: वाग्मी व्याससमासवित्; अंति: स्वर्गा यशस्या इमे, श्लोक-२. ३. पे नाम. सुभाषित संग्रह, पृ. ४अ+४आ, संपूर्ण. सुभाषित लोक संग्रह *, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). (#) ५२९५७. सज्झाय, रास व गीत, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, प्र. ५-१ (१) ४ कुल पे ४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४X१०, १५X४४-४६). १. पे. नाम. चित्रसंभूत सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. चित्रसंभूति सज्झाय, मु. राजहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जाकै भवथिति आई हो, गाथा - २०, (पू. वि. गाथा१३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ रास, पृ. २अ-५अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्म, वि. १६८२, आदिः श्रीरिसहेसर पाय नमी अंतिः सुणतां आनंद थाय, ढाल-६, गाथा - ११२. ३. पे. नाम. श्रावककरणी सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात, अति करनी छे दुखहरनी एह, गाथा-२२. ४. पे नाम, धूलिभद्र गीत, पृ. ५आ, संपूर्ण, स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः प्रीतडली न कीजे नर अंतिः समयसुंदर इणि रीति, गाथा - ५. ५२९५८. (+) स्तुति व गाथादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुलपे ६ प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२४४१०, १९X२८-३५). १. पे. नाम. महावीर स्तुति, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र- हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदिः पुच्छिसुणं समणा माहण; अंतिः आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा - २९. २. पे. नाम महावीरजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: पंचमहव्वयसुव्वयमूलं; अंतिः सारं सलेहनाभरणं, गाथा-४. ३. पे. नाम. २० स्थानकतप गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: अरिहंत सिद्धप्पवणे; अंति: तित्थयरत्तं लहइ जीवो, गाथा- ३. ४. पे नाम, नमीपध्वजा अण्डायण, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण उत्तराध्ययनसूत्र - हिस्सा नमिप्रव्रज्याध्ययन ९, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., पद्य, आदि: चइऊण देवलोगाओ उवयन्न, अंतिः नमीरायरिसित्ति बेमि, गाथा- ६२. ५. पे नाम, रूपी अरूपी जीवअजीव भेद गाथा सह टबार्थ, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची रूपीअरूपी जीवअजीव भेद गाथा, प्रा., पद्य, आदि: कम्मठ पावठाणा मणवयजो; अंति: अरुविणों तिथनाहेणं, गाथा-४. रूपीअरूपी जीवअजीव भेद गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कर्म ८ पाप १८ मन जोग; अंति: बोल ६१ अरूपीना छै. ६. पे. नाम. औपदेशिक गाथा, पृ. ४आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५२९५९. (#) प्रस्ताविक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०, २०४६०-६४). प्रस्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: श्रीनाभिनंदन सकलजगत; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक ७३ अपूर्ण तक लिखा है.) ५२९६०. (+) सतर प्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११, १६x४५). १७ भेदी पूजा स्तवन, वा. मालदेव, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरहंत अनंतगुण; अंति: माल० लहइ समकितसार ए, गाथा-७२. ५२९६१. शांतिनाथजन्माभिषेक व पद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-५(१ से ५)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १४४४२). १. पे. नाम. शांतिनाथ पद, पृ. ६अ-६आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. शांतिजिन पद, आ. जिणेसरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जिणेसरसूरि० दूरि, गाथा-४, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा-४ है.) २. पे. नाम. शांतिजिन जन्माभिषेक, पृ. ६आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जय सयल सुरासुर नमि; अंति: हवउ सिव सति करो, गाथा-१८. ५२९६२. दयापच्चीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१०.५, ११४३८). दयापच्चीसी, मु. विवेकचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सयल तीर्थंकर करुं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१२ अपूर्ण तक लिखा है.) । ५२९६३. अनेकार्थनाममाला, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. प्रत के अंत में प्रतनाम हेतु अनेकार्थ निघंटुगत "निर्घटसमये संकीर्ण स्वरूपो द्वितीय परिच्छेद" का उल्लेख है परंतु वास्तविक नाम अनेकार्थ नाममाला है., जैदे., (२४४११.५, १९४५५). अनेकार्थनाममाला, जै.क. धनंजय, सं., पद्य, आदि: गंभीर रुचिरं चित्रं; अंति: शरणोत्तममंगलान्, श्लोक-४६. ५२९६५. (#) स्तुति व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. जपुर, पठ. सा. मानकंवरजी (गुरु सा. राज कंवरजी); गुपि.सा. राज कंवरजी (गुरु सा. महा कंवरीजी); सा. महा कंवरीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १७X४२). १. पे. नाम. अरणक का सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. अरणिकमुनिसज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: मनवांछित फल सीधो जी गाथा-८. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमंदर बंदिय; अंति: ध्यान धरै समझाय हो, गाथा-१४. ३. पे. नाम. नेमनाथकी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: कपूर होवे अति उजलो; अंति: वासरा वहेना तेहनु, गाथा-५. ५२९६६. (#) भोजनविधि व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३.५४१०.५, १३४४०). १.पे. नाम. भोजनविधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. लाधाजी, प्र.ले.पु. सामान्य. For Private and Personal Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ वर्धमानजिन नामकरण आश्रयी भोजन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: हवै भोजनविधि ऊपरलै; अंति: गुण सहित नाम दीधो. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पल्लविया, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परम पुरुष परमेस्वरु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- ४ अपूर्ण तक लिखा है.) ५२९६७. (+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १९४६०). १.पे. नाम. बंभणवाडी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: समरवि समरथ सारदा; अंति: कमलकलशसूरीश्वर सीस, गाथा-२१. २. पे. नाम. रिषभजिन चौत्रीस अतिसै स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-३४ अतिशयगर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: नाभिनरिंदमल्हार; अंति: अवर न काई इच्छियइ ए, गाथा-२१. ५२९६८. (+) आचारांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, १५४५४). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं तेण; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन १ उद्देश २ अपूर्ण तक है) ५२९६९. खंधक मुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११, १२४३२). खंधकमुनि सज्झाय, मु. जयसिंघ ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि: गौयम गणधर मन धरु; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., ढाल-२ गाथा- ५ तक है.) ५२९७०. (+#) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१०, १३४३५). १.पे. नाम. आदीस्वरजी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. सेवक, रा., पद्य, वि. १८२२, आदि: मुरत थारी मोहन; अंति: सेवक० सांवल सासता जी, गाथा-७. २.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. मु. जस, मा.गु., पद्य, वि. १८२७, आदि: जिनजी आदिजिनंद जुहार; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ तक है.) ५२९७१. (-) स्तवन व पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५.५४१०, १४४३७). १.पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: सखीरी चल गढ गिरनारी; अंति: जिनमुक्ति की त्यारी, गाथा-५. २.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: तारनी इंद्र फारी इंद; अंति: वर के दीज आव चालथन, गाथा-१२, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) ५२९७२. (+) वीसविहरमाण स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४१०.५, १९४३५). २० विहरमानजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: वीस विहरमान सादा; अंति: सांगणे चौमासो भवियण, गाथा-१७. ५२९७३. एकादशी स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४१०, १०४३७). ___ मौनएकादशीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९५, आदि: जगपति नायक नेमिजिणंद; अंति: (-), (पू.वि. ढाल २ गाथा ९ अपूर्ण तक है.) ५२९७४. स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. मु. गांगजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११.५, १४४३५). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मा.गु., पद्य, आदि: सरल कु सठ कहे विकता; अंति: कौ हिरदै ही मलीन है, गाथा-१. २. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमतीस्तवन, मागु., पद्य, आदि: माता सिवा देवी नेमजी; अंति: मोख मारगडोसांधा हो, गाथा-१३. ३. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ दोहा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- २ अपूर्ण तक है.) ५२९७५. नवअंगपूजन गाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४१२.५, ११४२६). नवअंगपूजा दुहा, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जल भरी संपुट पत्रमा; अंति: कहे शुभवीर मुणेद, गाथा-१०. ५२९७६. (#) पांडव रास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२, १६४४०-४४). पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: श्रीजिन आदिजिनेश्वरू; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१ गाथा ६५ अपूर्ण तक लिखा है.) ५२९७८. (+-) स्तवन व सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अशुद्ध पाठ., दे., (२५.५४११.५, १५४३२). १.पे. नाम. चौवीसजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: देवतणां गुण वर्णवं, अंति: सामी मुगत कीधा वास, गाथा-१७. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कवियण, हिं., पद्य, आदि: चेतन केम रहेवासे रे; अंति: पोती नगरी थइ समोती, गाथा-९. ५२९७९. महादंडक स्तोत्र सह चूर्णि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. आशापल्ली, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४११, २०४३०-४७). महादंडक स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: भीमे भवम्मि भमिओ; अंति: सामिणूत्तर पयंदेसु, गाथा-२०. महादंडक स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: भीमे भवेति०१ गब्भ०; अंति: गरुवूण जहन्नेति. ५२९८१. (+#) बृहच्छांति व दूहो, संपूर्ण, वि. १८११, आषाढ़ कृष्ण, ११, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. वाली, प्रले. मु. भीमसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०,१२४२७). १.पे. नाम. बृहच्छांति, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण... बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनंजयति शासनम्. २. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. २आ, संपूर्ण. दोहा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५२९८२. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२५.५४९.५, ११४४०-४५). १. पे. नाम. पच्चक्खाणनी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी दसविध पचखाण; अंति: पामी निश्चै निर्वाण, गाथा-८. २.पे. नाम. पच्चक्खाणनी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानफल सज्झाय-शत्रुजयतीर्थे, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: पचख्य पचखाण परभाते; अंति: प्रीतविमल. धरता, गाथा-७. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. मुनिचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: जग सरूप चेतन संभलावइ; अंति: मुनीचंद्र गुण आवे रे, गाथा-९. ५२९८३. भत्तपरिन्ना व संथारा पयन्ना, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११.५, १८-२१४५१-५९). १.पे. नाम. भत्तपरिन्नासत्ता, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण महाइसयं महाणु; अंति: सुक्खं लहइ मुक्खं, गाथा-१७२. २.पे. नाम. संथारा पयन्ना, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. संस्तारक प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: काऊण नमोक्कारं जिणवर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा- ४८ अपूर्ण तक For Private and Personal Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ १२३ ५२९८४. (+#) गौतम कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X१०.५, ५X३०-३३). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंतिः नी सेवितु सोहं लहंति, गाथा-२०. गौतम कुलक-वार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लोभी मनुष्य धन मेलवा, अंति: अनेक श्रावकनी परि ५२९८५. (#) अष्टमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १२X३४). अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे मारे ठाम धर्म, अंतिः कांति सुख पावे घणो, ढाल - २, गाथा - २६. ५२९८६. (#) सुभद्रासती चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ४, प्रले. पं. सुंदरहंस, पठ. मु. राजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२४.५x११.५, १४४३२-३६). सुभासती रास - शीलव्रतविषये, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सरसती सामण वीनवु, अंति: धन सीयल सदा भलो रे, दाल-४. ५२९८७. हितोपदेशयत्तीसी व सवैया संग्रह, अपूर्ण, वि. १८९७, मार्गशीर्ष कृष्ण १२, रविवार श्रेष्ठ, पृ. ८-५ (१ से ५ ) = ३, कुल पे. २. प्रले. मुरारजी वासदेव जानी अन्य. सा. नाथीबाई महासती प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५.५x१०.५, ११४३९-४२). १. पे. नाम हेतोपदेशवत्तीसिका, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. हितोपदेशबत्तीसी, मु. गंगदास, मा.गु., पद्य, वि. १८६५, आदि: (-); अंति: द्रंग रंगमन आंनीये, गाथा- ३३, (पू.वि. मात्र गाथा - ३३ वीं अपूर्ण है. ) २. पे. नाम. प्रस्ताविक सवैया, पृ. ६ अ-८आ, संपूर्ण औपदेशिक सवैया संग्रह, भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं., मा.गु., पद्य, आदि: दत्त दया बिनुं मूरख; अंति: चुप करि क्यों रहे, गाथा- २३. (वि. विविध कर्ताओं के संग्रहात्मक सवैया हैं.) ५२९८८. (+) स्तंभनकपार्श्वजिन स्तुति सह अवचूर्णि संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. संशोधित त्रिपाठ. जैवे. (२६x१०.५, १२×५५-६४). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभवदेवसूरि, प्रा. पद्य वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख, अंतिः अभयदेव विन्न० आदिउ, गाथा - ३०. जयतिहुअण स्तोत्र - अवचूरि, सं., गद्य, आदि: जय सर्वोत्कर्षेण; अंति: स्तंभनकपूरस्थितः. ५२९८९. (+) आउरपच्चक्खाण, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पठ. श्रावि. अजाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६X११, ११X३८). आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., प+ग. वि. ११वी, आदि: देसिकदेसविरओ, अंतिः खयं सव्वदुरियाणं, गाथा- ८४. ५२९९१ (+) जीव रास, संपूर्ण वि. १९४४, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२६X११.५, ९३०). पद्मावती आराधना उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्म, वि. १७वी, आदि हिव राणी पदमावती जीव; अंति: पापथी छूटे ते ततकाल, ढाल -३, गाथा-३३. ५२९९२. पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. १८७५, चैत्र शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ४, पठ. मु. मानसोम, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., (२६X१०.५, १४४३८). पाशाकेवली - भाषा *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १११ उत्तम थानक लाभ; अंति: सीध हो वैसेही करे.. ५२९९३. (+) सीमंधरस्वामी स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित. दे. (२६४११ १०x३५). सीमंधरजिन स्तवन, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., पद्म, आदिः सुणि सुणि सरसती भगवत, अंति: (-), (पू.वि. ढाल ६, गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ५२९९४. सज्झाय व गाथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १(१) = १, कुल पे. ५, अन्य. सा. कस्तुरबाई (गुरु सा. कसलीबाई), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X१०.५, १५X३३). For Private and Personal Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मोह समुद्र अथाग; अंति: भावे भक्ति सारी, गाथा-६. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. रतन, मा.गु., पद्य, आदि: मनखा भवमां मोहि; अंति: रतन० गुण साधाना गाये, गाथा-१०. ३. पे. नाम. सिखामण सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण, वि. १८६६, चैत्र शुक्ल, ३, प्रले. मु. जगनाथ ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. __ औपदेशिक सज्झाय-आयुष्य, मु. नारायण, मा.गु., पद्य, आदि: चेत चतुर नर नीज मन; अंति: जम आवागमन न होयजी, गाथा-४. ४. पे. नाम. समकितनी गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. जैनगाथा संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दंसणभट्ठाभट्ठो दंसण; अंति: दंसण रहीया न सिज्झती, गाथा-१. ५. पे. नाम. चारनिक्षेपानी गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. ४ निक्षेप विचार, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: नामजिणाजिणनामा ठवणाज; अंति: जीवो भाव जिण समोवसरण, गाथा-१. ५२९९५. (१) रतनगुरु सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १३४३३). रतनसीगुरु सज्झाय, मु. देवजी, मा.गु., पद्य, आदि: रतनगुरु गुण मीठडारे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४१ अपूर्ण तक है.) ५२९९६. (+) चंदनमलयगिरीरास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १४४३३). चंदनमलयागीरिरास, उपा. सुमतिहंस, मा.गु., पद्य, वि. १७११, आदि: स्वस्ति श्रीपूरणसदा; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा-५६ अपूर्ण तक है.) ५२९९७. सज्झाय, पद व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. १०, जैदे., (२४.५४११, २२-२६४३८-४८). १.पे. नाम. ११ अंग सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२२, आदि: आचारांग वडु कह्यु; अंति: रही रेकीधो ए सुपसाय, स्वाध्याय-११. २. पे. नाम. शंखेश्वर स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, वा. उदयरतन, मा.गु., पद्य, आदि: आप अरुपी होय नय प्रभ; अंति: तुझपद पंकज सेव हो, गाथा-७. ३. पे. नाम. भीडभंजन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन, मु. हंस, मा.गु., पद्य, आदि: भीडभंजन पासजी प्रभु; अंति: चरणयुगलनी सेव हो, गाथा-९. ४. पे. नाम. से@जय स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थ मंडन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आज अधिक भावें करी; अंति: ___ कांतिविजय गुणगाय हो, गाथा-५. ५. पे. नाम. परमार्थ अष्टपदी गीत, पृ. ३अ, संपूर्ण. परमार्थ अष्टपदी, पुहि., पद्य, आदि: ऐसै यों प्रभु पाइये; अंति: है तब को किहिं भेटै, गाथा-८. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मेरे साहिब तुम ही; अंति: दास को दीओ परमानंदा, गाथा-५. ७. पे. नाम. १४ विद्या नाम, पृ. ३आ, संपूर्ण... मा.गु., गद्य, आदि: ब्रह्मज्ञानरसायन; अंति: बुधजनै सखा कलावर्तने. ८. पे. नाम. नेमिसर स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. मतिहंस, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल बैठी उंची गोखड; अंति: मतहंस कहे धन धन, गाथा-७. ९. पे. नाम. अनंतवीर्यजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अनंतवीर्य अरदास सुणो; अंति: रूडी धरी चातुरी, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ www.kobatirth.org १०. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: तामें कोन पुरस कोन, अंतिः या कुं सीस नमाउं, दोहा ५. ५२९९८. (#) औपदेशिक सज्झाय व ऋषभदेवनं स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. गांगजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., ( २६४११.५, १३४३८). १. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, प्र. १अ १ आ. संपूर्ण. संघो, मा.गु., पद्य, आदि: माता उदरि वस्यो दस; अंति: गलु चापीने लीधो भाग, गाथा- ८. २. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ९आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: मांनखो बोत सधारो रे, अंति: सीध करी के मांनषो, गाथा-१५. २. पे नाम, ऋषभदेवनुं स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदिः आज आनंद वधामणां; अंतिः सेवना करि सुजस सवायो, गाथा-५. ५२९९९. सज्झाय व पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५.५X११.५, १२X३५). १. पे. नाम. गर्भावास सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मोतीराम, मा.गु., पद्य, आदि: रंडीमुख काली सूर; अंति: त्रोड्या हाथने टाग, गाथा-२. ३. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक सज्झाय-पुण्य, मा.गु, पद्य, आदि: पुन्य करि वसुदेवने अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- ५ तक लिखा है.) १२५ ५३०००. (४) जंबूद्वीप संघवणी, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. हाशिये में पं. अमृत का उल्लेख किया गया है., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X१२, ९४२७-२८). लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वन्नु; अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा - ३०. ५३००२. सीता सझाय, संपूर्ण, वि. १९३०, कार्तिक शुक्ल, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य. सा. कसलीबाई आर्या, गाथा संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. विचार संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X१०.५, १४४२८). सीतासती सज्झाय, मा.गु, पद्य, आदि कयुरे मानो एहना कथनी अंतिः धनधन सीता सतीजी ५३००३. सझाय, स्तवन व श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३-२ (१ से २) १. कुल पे. ३, प्र. मु. कानजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. "कुणिक राजानी सज्झाय" की मात्र प्रतिलेखन पुष्पिका है., दे., (२६X१०.५, १३X३६). १. पे. नाम. सोलजीननुं स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. १६ जिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि ऋषभ अजित संभवस्वामी, अंति कीया भवसागर तीरना, गाथा - १२. २. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ३अ- ३आ, संपूर्ण. विचार संग्रह * मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). ५३००४ (०) जिनेंद्रसूरि सज्झाय व ज्योतिष, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) १, कुल पे. २, प्रले. मु. वीरविजय, For Private and Personal Use Only प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २३X१०, ८-११X३३). १. पे. नाम. जिणेंद्रसूरि सज्झाय, पू. २अ २आ, पूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. जिनेंद्रसूरि सज्झाय, मु. वल्लभसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: लगन अडग तुज वार थापी, गाथा-९, ( पू. वि. गाथा - १ अपूर्ण से है . ) २. पे. नाम, नक्षत्र मान, पृ. २आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ज्योतिष संग्रह में, मा.गु. सं., हिं., पग, आदि: तीने उतरा पुनर्वसु, अंति: (-), (पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा- ३ 1 तक लिखा है.) Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५३००५ (+) पार्श्वनाथ छंद, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५X११, १५X३५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन स्तोत्र- शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु. सं., पद्य, वि. १७१२, आदि: जय जय जगनायक; अंतिः सुमुदा प्रसन्नात्, गाथा-३२. ५३००६. (+४) अध्यात्मगीता सह टिप्पण, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५X१०.५, ११४३९-४२). अध्यात्मगीता, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणमिए विश्वहित; अंति: देवचंद्र० सुप्रतीता, गाथा- ४९. अध्यात्मगीता- विषमस्थल टिप्पण, रा., गद्य, आदि जगत रे स्वात्म सुख, अंतिः करै इसा गीतार्थ री. ५३००८. रावणना चाबखा व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२५.५X१०.५, १०X३४). १. पे. नाम. रावणना चाबखा, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि केवल जन राम हरि अंतिः तमे मुगत जावो रे, गाथा १९. २. पे. नाम. उपदेशनी सज्झाय, पृ. २अ २आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय, प्रीतम, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु भजवानी घड़ी एक; अंति: (-), (पू. वि. गाथा- ६ अपूर्ण तक है.) ५३००९. सझाव व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे ३ वे. (२५.५x११.५, १३४३१). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण रा., पद्म, आदि: मेरो रे मेरो करे रे; अंतिः सो पर पीठव गोवे रे, गाथा- ९. २. पे. नाम. नारकीना दुख वर्णन बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. नरक यातना भेद बोल, मा.गु., गद्य, आदि: १ अननी पेरे रांधे अंतिः व्याकरण सूत्रमां छे. ३. पे. नाम. देवलोक विमानविचार संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: ८४ लाख ९७ हजार, अंतिः संखाती जोजनना है. ५३०१०. () महावीरजिन स्तुति व दुमपुप्फिया अज्झयण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे., ( २५X११, ११३० ). १. पे. नाम महावीरजिन स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंच मोवय सुवय मुलं; अंति: एगत होइ सोय जीवदया, गाथा-११. २. पे. नाम. दुमपुफीचानाम अजीण, पृ. १ आ. संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र - हिस्सा द्रुमपुष्पिका प्रथम अध्ययन, आ. शव्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: धम्मो मंगलमुकिङ, अंति: साहुणो तिब्बेमि, गाथा-५. ५३०१३. (#) स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ६, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६X११, ९X३२). १. पे नाम, पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पासजिणंदा वामानंदा, अंतिः गाती वीर घरे आवती, गाथा ४. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतकी पाडल जाई, अंति: माई जो तु से अंबाई, गाथा-४. ३. पे. नाम. रोहिणीतप स्तुति, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. लब्धिरूचि, मा.गु, पद्य, आदि जयकारी जिनवर वासपूज, अंति देवी लब्धिरूची जयकार, गाथा ४. ४. पे. नाम. पंचतीर्थ स्तुति, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. कलाकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि कलाकंद पडम, अंतिः अंब सवा पसत्था, गाथा- ४. ५. पे. नाम. नवतत्त्व स्तुति, पृ. ३-४अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-भुजनगरमंडन नवतत्त्वगर्भित, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्यने पाव अंति: गुण चित धरज्यो जी, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ६. पे. नाम. पर्युषणापर्वस्तुति, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शासनपति सोहे साचो; अंति: इदेवी पुरो मनह जगीश, गाथा-४. ५३०१४. युगमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. प्रतिलेखक ने प्रत नाम उपदेशी सज्झाय दिया है., दे., (२५४११.५, १४४२७). युगमंधरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: निसदन लली ललि शीस; अंति: समरु को घडी ए घडी, गाथा-२१. ५३०१५. शांतिनाथ चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३५-१३१(१ से १३१)=४, प्रले. पं. विद्यासुंदर गणि; अन्य. ग. माणिक्यचारित्र गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १४४४५-४९). १.पे. नाम. शांतिनाथ चरित्र, पृ. १३२अ-१३५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. __ शांतिनाथमहाकाव्य, आ. मुनिभद्रसूरि, सं., पद्य, वि. १४१०, आदि: (-); अंति: वाच्यमानं सुधीभिः, सर्ग-१९, श्लोक-५०००, ग्रं. ६२७२, (पू.वि. सर्ग-१९, श्लोक- २८ अपूर्ण से है.) ५३०१६. गजसुकुमाल सज्झाय व द्वारिका नगरी सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११, १४४३८-४७). १.पे. नाम. एवंतागजसूखमालनी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. अइमुत्ता गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३०, आदि: सासणनायक सिद्ध कीधी; ___ अंति: नाम थकी मंगलमाला, गाथा-१३. २. पे. नाम. श्रीबलतीदुवारकानी सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. द्वारिकानगरी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: बलती नगरी देखीने रे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० तक है.) ५३०१७. (#) समकितना सडसठ बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. मुदरा, प्रले. सा. रतनबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४३१). समकित ६७ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: हवे समकीतनी चार सदहण; अंति: साधवानो उपाय एज छे. ५३०१८. बोल संग्रह व सन्निवायना भांगा, संपूर्ण, वि. १९०८, पौष शुक्ल, ३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. पोरबंदर, प्रले. श्राव. अमरसी जयचंद; पठ. मु. देवजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१०.५, १४४४५-५२). १.पे. नाम. बोल संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. २६ सन्निपाद भांगा, पृ. १आ, संपूर्ण. २६ भाव भांगा, मा.गु., गद्य, आदि: हवेशनीवायना २६ भांगा; अंति: संजोगीनो भांगा १०, (वि. भांगा कोष्ठक सहित) ५३०१९. (#) गिरिनार तीर्थकल्प व शत्रुजय तीर्थकल्प, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. प्रतिलेखक के द्वारा पत्रांक न लिखा होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १४४४०-४५). १.पे. नाम. गिरनारतीर्थ कल्प, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. ब्रह्मद्र; सरस्वती, सं., पद्य, आदि: श्रीविमलगिरेस्तीर्था; अंति: संस्तवं तुष्ट्यै, श्लोक-२३. २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ कल्प, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सुय धम्मकित्तियं तं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ५३०२०. सीखामण, सज्झाय औपदेशिक छः बोल व गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. वेरावल, प्रले. मु. जयचंद ऋषि; पठ. श्रावि. वजीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १२४३९). १.पे. नाम. सिखामण सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (१)नमो अरिहंताणं नमो, (२)ए सिखामण साची कही; अंति: पक गई ताकु ए उपदेश, गाथा-१०. २. पे. नाम. औपदेशिक छ बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक ६ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: हाथनो सणगार दान देवु; अंति: वीतरागर्नु नाम लेवु. ३. पे. नाम. औपदेशिक गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५३०२१. (#) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०.५, १३x४९). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि, अंतिः समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक-४४. ५३०२२. सझाव संग्रह व ऋषभजिन प्रभाती, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे ३, प्र. मु. जयचंद ऋषि अन्य श्रावि. जुठीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५.५x१०, १३४३०). १. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. www.kobatirth.org उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मुगत नगर मारू सासरू, अंति: ते लिए सुभ नीरवाण रे. २. पे. नाम. चंदनबालासती सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण मु. जेठा ऋषि, मा.गु., पद्म, वि. १८३३, आदि दीसीपणे दुख देखती; अंतिः अवरु राखी अमारो गाथा- ७. ३. पे. नाम ऋषभजिन प्रभाती, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन प्रभाति, मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, आदिः प्रभाते पंखीडा बोले, अंति: पयंपे वंदो कर जोडी, गाथा - ५. ५३०२३. (#) शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. गोडलगाम, प्रले. मु. गांगजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. वे. (२६.५४१२, १३४३२). .. शांतिजिन स्तवन, मु. जयमल ऋषि, मा.गु, पद्य, आदि नगर हथिणापुर अति अंतिः वीनती० पातिक दूर लो Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - २९. ५३०२४. कुगुरुपच्चीसी व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५X१०.५, १३-१४X३१-३९). १. पे. नाम. कुगुरुपचीसी, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. कुगुरुपच्चीसी, मु. तेजपाल, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवर प्रणमी सदा, अंतिः नित्तारसी में, गाथा - २५. २. पे. नाम. स्वयंप्रभजिन स्तनव, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. स्वयंप्रभजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: स्वामी स्वयंप्रभ, अंति: (-), (पू.वि. गाथा ६ अपूर्ण तक है.) ५३०२५. (४) दानशीलतपभावना कूलक, अपूर्ण, वि. १६वी श्रेष्ठ, पू. १४०-१३९(१ से १३९)-१, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४X१०, २०५६). दानशीलतपभावना कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः परिहरिअ रज्जसारो, अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., तपकुलक गाथा - २० अपूर्ण तक है.) ५३०२६. (+) साध्वाचारषट्त्रिंशिका, संपूर्ण, वि. १८५७, कार्तिक शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. पालीनगर, प्रले. पं. सागरचंद्र, पठ. पं. क्षमारंगजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, जैदे., (२५x११. १५४५४). ५३०२८. साध्वाचारषट्त्रिंशिका, मु. रूपचंद्र, सं., पद्य, आदि गृहित्वा वैराग्यं, अंतिः भूयसे श्रेयसे स्तात्, गाथा- ३६. दस सुपन सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित दे. (२६५११, १२x२२). (+) " १० स्वप्न सज्झाय, मा.गु, पद्य, आदि: प्रथम आराधू अंतिः इम बोले श्रीजिनराय, गाथा १०. ५३०२९. (+#) संवाद संग्रह व सुभाषित, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५४११, १५४४९-५३). १. पे. नाम. मोतीकपासीया संवाद, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण, मोतीकपासीया संबंध, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: सुंदर रुप सोहामणो; अंति: चतुर नरां चमत्कार, יי ढाल - ५, गाथा - १०३. २. पे नाम. सुभाषितानि, पृ. ३आ, संपूर्ण सुभाषित लोक संग्रह में पुहिं, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे नाम, उंदर मीन कडीरो संवाद, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे. वि. पत्रांक ३आ का अवशेष भाग ३अ पर है. रा., गद्य, आदि: बंदसैणरो पातालसुं; अंति: हार्मोने रांड जीती. For Private and Personal Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५३०३०. असती लक्षणानि व विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११, १३४३६). १.पे. नाम. असती लक्षणानि, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: यतः द्वाविंशतिप्रति; अंति: पुरुषान्वेषणं करोति. २. पे. नाम. विचार संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. विचार संग्रह* प्रा.,मा.ग.,सं.. गद्य, आदि: (-): अंति: (-). ५३०३१. नेमबोतेरी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., दे., (२५४१०.५, १२४३६). नेमिबहुत्तरी स्तवन, मु. मूलचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: प्रथम जिणेसर पाय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६९ अपूर्ण तक है.) ५३०३२. दीवाली स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५.५४१०.५, १२४३२-३६). दीपावलीपर्व सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: भविया प्रथम जिणेसर; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा-३६ अपूर्ण तक है.) ५३०३३. (#) रामयशोरसायन- ढाल ५३ व ५४, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१०.५, १६४३२). रामयशोरसायन चौपाई, मु. केशराज, मा.गु., पद्य, वि. १६८३, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. ढाल- ५४ की गाथा- ३८ अपूर्ण तक है.) ५३०३४. (#) दशाश्रुतस्कंध सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पंचपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५४१०.५, ११४३६). दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. आठवी दसा से महावीरजिन स्तुति (नमोत्थुणं समणस्स भगवओ महावीरस्स) पाठ अपूर्ण तक है.) दशाश्रुतस्कंधसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ५३०३५. (#) मुनिपति चरित्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८-५(२ से ४,६ से ७)=३, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४३८). मनिपति चरित्र सारोद्धार, संक्षेप, सं., गद्य, आदि: नमिऊण वद्धमाणंचौतीस; अंति: (-), (पू.वि. बीच बीच के पाठ मिलते हैं.) ५३०३६. मंगल स्तुति, अपूर्ण, वि. १९५६, मार्गशीर्ष कृष्ण, ९, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ५-३(१ से ३)=२, ले.स्थल. गोंडलग्राम, दे., (२५.५४११.५, १४४३७). औपदेशिक काव्य, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: वींध्या घाले घाव, दोहा-५१, (पू.वि. गाथा- ४ अपूर्ण से है.) ५३०३७. (+) गौतम कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१८, फाल्गुन कृष्ण, ६, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. पीही, प्रले. मु. जीवणदास ऋषि (गुरु मु. कर्मचंद ऋषि); गुपि. मु. कर्मचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१०.५, ४४३८). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: निसेवितु सुहं लहति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लोभी मनुष्य लक्ष्मी; अंति: अनेक श्रावकनी परि. ५३०३८. (+#) चतुर्विंशतिदंडकगति आगति स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ७४३४)... पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुंपासनाह प्रह; अंति: पास० __परमार्थ लहै, गाथा-२३, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकगर्भित-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: थकी मोक्ष पद पामै, अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ५३०३९. (+) सोलसुपनभास, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १४४४०). १६ स्वप्न सज्झाय, मु. विद्याधर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणि वीनवू; अंति: गुरु तणा पाय, गाथा-२१. For Private and Personal Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १३० ५३०४० (+) छत्रीसी संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे २ प्र. वि. संशोधित. दे. (२५x११, १४X३७). १. पे. नाम . क्षमाछत्रीसी, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्य, आदि; आदर जीव खेमागुण अंतिः समयसुंदर० सुजगीसजी, गाथा- ३६. २. पे नाम कर्मछत्रीसी, पृ. २आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: कर्म थकी छूटे नही; अंति: ( - ), ( पू. वि. गाथा - १४ अपूर्ण तक है.) ५३०४१. ऋषभदेव मरुदेवी ढाल, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३- १ ( १ ) = २, प्रले. मु. गांगजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५X१०, १०X३२). आदिजिन मरुदेवा ढाल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: भविजन सुणजो मनजो, गाथा-३३. (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. दाल- २ गा.-२ अपूर्ण तक नही है. वि. गाथांक अनुमानित दिया गया है.) ५३०४२. (+) उपदेशपच्चीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१ (३) = ३, पू. वि. बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित., दे., (२५X१०.५, १२X३६). उपदेशपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, पुडिं, पद्य वि. १८२०, आदि जीनवर दिए एसो उपदेश अंतिः (-), (पू.वि. गाथा१३ अपूर्ण से १८ अपूर्ण व २४ अपूर्ण से २५ तक नहीं है.) ५३०४३. (+) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५X१०.५, १०X३७). १. पे नाम, चोवीसतीर्थंकरनं स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन- पांसठीयायंत्र गर्भित. मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु, पद्य, आदि: श्रीनेमीश्वर संभव, अंतिः संग मुनि नाम निधान, गाथा-७. २. पे नाम, महावीरस्वामीनुं स्तवन, पृ. १आ २अ संपूर्ण, महावीरजिन स्तवन, मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धारथ कुल शणगार; अंति: संय मुनि भाव प्रधान, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र - शंखेश्वरतीर्थ, पृ. २अ - ३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तोत्र - शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., सं., पद्य, वि. १७१२, आदि: जय जय जगनायकपार्श्व; अंति: (-), (पू. वि. गाथा - २६ अपूर्ण तक है.) ५३०४४. (+) औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित., दे., (२५X१०.५, १२३८). उपदेशपच्चीसी, मु. जेमल ऋषि, पुहिं, पद्य, आदि; मनुष जनम दुलहो लहो; अंति: (-). (पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा - २२ अपूर्ण तक है.) ५३०४५ (१) शीतलनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे., (२५४१०.५, १४४३८). शीतलजिन स्तवन- अमरसरपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, रा., पच, आदि: मोरा साहेब हो; अंतिः समयसुंदर० जनमन मोह गाथा - १५. ५३०४६. (+#) सवैयाचौवीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१ ( २ ) = २, प्रले. मु. गांगजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है. दे. (२५.५४११.५ १३४३९). " चतुर्विंशतिजिन छंद, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसें जिनवर तणा, अंतिः भाव धरीने भणो नरनारी, गाथा-२७, (पू.वि. गाथा- ९ अपूर्ण से गाधा- १७ अपूर्ण तक नही है.) ५३०४७. स्तोत्र व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४-२ (१,३)= २, कुल पे. ३, प्र. वि. पत्रांक खंडित होने के कारण अनुमानित पत्रांक २ से ४ लिया गया है., जैदे., (२३X१०.५, १४x२८-३२). For Private and Personal Use Only १. पे. नाम. अजितशांति स्तवन, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा- ४०, ( पू. वि. गाथा - ६ अपूर्ण से है. ) २. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. २आ-४अ, अपूर्ण, पू. वि. बीच के पत्र नहीं हैं. Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ १३१ आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-१३ अपूर्ण से ४१ अपूर्ण तक नहीं है.) ३. पे. नाम. वृहत्शांति स्तोत्र, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: (-), (पू.वि. पाठ "देव्यो रक्षतु वो नित्यं स्वाहा" तक है.) ५३०४८. (#) औपदेशिक सझाय, संपूर्ण, वि. १८६७, कार्तिक कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पाटण, प्रले. श्राव.खीमजी वाघजी; पठ. सा. कस्तुरबाई महासती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४४०). हुंडी सज्झाय, मु. मांडण ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: नेम कहे सेठ सांभलो; अंति: गया आवागमण निवारो, गाथा-२१. ५३०४९. (-) कमलावती सझाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२६४११, १४४२५). इषुकार कमलावती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: महले ते बेठी हो राणी; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा १५ तक है.) ५३०५०. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पोरबंदर, प्रले. श्राव. नारायणदास; पठ. सा. मोंघीबाई महासती; अन्य. देवचंदजी; पोपट; श्राव. गीरधरदास, प्र.ले.पु. मध्यम, ., (२५४१०, १३४५०). पार्श्वजिन स्तवन-भद्रावतीमंडन, मु. खोडीदास, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत देवारे सेवा; अंति: खोडा० आतमाना रे आधार, गाथा-८. ५३०५१. वीरभाणउदयभाण रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२५४११.५, ११४२९). वीरभाणउदयभाण रास, मु. कुशलसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४५, आदि: सदगुरुजी सानिध करो; अंति: (-), (पू.वि. ढाल २ गाथा १० तक है.) ५३०५२. (+#) मध्य लघुक्षेत्रसमास प्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८१६, चैत्र, १३, मध्यम, पृ. ६-२(१ से २)=४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १९४४०-४३). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. मूलसूत्र गाथांक १८७ से १९४, को प्रस्तुत प्रत में गाथांक १ से ८ लिखा है.) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५३०५३. उर्ध्व अधोलोक परिमाण विचार यंत्र, संपूर्ण, वि. १६०९, नंदांतरिक्ष शशांकवर्षे, पौष शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. जेसलमेरुदुर्ग, पठ.सा. धर्मसिद्धि (गुरु सा. विनयसिद्धि, खरतरगछ); प्रले. ग. पद्ममंदिर (गुरु वा. विजयराज, खरतरगच्छ); गुपि. वा. विजयराज (परंपरा गच्छाधिपति जिनमाणिक्यसूरि, खरतरगच्छ); राज्ये गच्छाधिपति जिनमाणिक्यसूरि (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५४११, १५४४९-५९). उर्ध्व अधोलोक परिमाण विचार यंत्र, मा.गु., को., आदि: समस्त ऊर्ध्वलोकि; अंति: ५३०५४. वंकचूल रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११, ११४३३). वंकचूल रास, मा.गु., पद्य, आदि: आदि जिनवर आदि जिनवर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १६ तक लिखा है.) ५३०५५. स्तोत्र व चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४१०.५, १०४३६). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. २. पे. नाम. साधारणजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जय जय तुं जिनराज आज; अंति: मल्यो भवजल पार उतार, गाथा-६. ५३०५६. मनकमुनिनी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४१०, १०४३९). मनकमुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नमो नमो मनक माहामुनि; अंति: पामो भवनो पारो रे, गाथा-१०. For Private and Personal Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १३२ ५३०५७. (#) पांच देवनो अधिकार, संपूर्ण, वि. १९३२, ज्येष्ठ कृष्ण, बुधवार, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल. मोरबी, प्रले. श्राव. कसलचंद कमलसी संघवी, पठ. श्रावि. रंभाबाई; अन्य. सा. कसलीबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५X११.५, ११X३२-३७). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देवताओं के ५ द्वार बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: पेहेलो नाम द्वार; अंति: असंख्या० अधिक भाव. ५३०५८. चंदनवालानी सझाय, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल, गोंडल, प्रले. कचरावृध दामजी अन्य श्रावि. अदीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५X११, १३×३७). चंदनबालासती सज्झाय, मु. मयाचंद, रा., पद्य, वि. १८२४, आदि: प्रभु आज अमारे आंगणी, अंति: मयाचंद ० बीस्तारी हो, गाथा - १३. (#) ५३०५९. नवकार सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. सा. कस्तुरबाई (गुरु सा. कसलीबाई), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे. (२४४११.५, १४४३४-३९). "" नवकारमंत्र सज्झाय, मु. आनंदहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनवकार मेहेमा घणो अंति: आणंदहर्ष अपार, गाथा-२४. ५३०६०. समाधीपचीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. घेलाजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५X१०.५, १२X३०). समाधिपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३३, आदि: अपुरव जीनधर्म पामो; अंति: रायचंद ० त अभ्यास रे, गाथा २५. ५३०६१. सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९५६, भाद्रपद कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल. सीरसात, प्रले. चंद लाकडीयाना, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२४४१०.५, १४५३५). " १. पे. नाम. भवदेवनागिला सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भूदेव भाइ घरे आवीआ; अंति: समयसुंदर सुखकार रे, गाथा- ७. २. पे. नाम. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पृ. १अ १ आ. संपूर्ण. पं. नथमल, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवर बांदता मे सूण, अंतिः स्वामी आवागमण निवार, गाथा-५. ५३०६२. (#) कुविसन सझाय, संपूर्ण, वि. १९५२, मार्गशीर्ष कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल. मोरबी, प्रले. श्राव. करसन भटजी दोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, वे., (२५x११, ११४२८) औपदेशिक सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, रा., पद्य, आदि जोग मील्यो छे रे, अंति: चोथमल० कार्य सारो, गाथा- १४. ५३०६३. स्तवन व थुइ संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८०, श्रावण, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, ले. स्थल. धोराजी, प्रले. श्राव. जुठा अमरसी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १३४३४). " १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन औपदेशिक, पृ. १अ संपूर्ण. श्राव. जुठा अमरसी, मा.गु., पद्य, वि. १८८०, आदि: वालाजी रे भजो भविक; अंति: जुठो० धरीने उलासो रे, गाथा-५. २. पे. नाम. पारसनाथ बुड़, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, श्रव. जुठा अमरसी, मा.गु., पद्य, वि. १९वी आदि भीडभंजन प्रभु पासजिण, अंतिः जुठो० ते मांगुरे, गाथा ४. ३. पे. नाम. नेमनाथराजिमती थुइ, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तुति, श्राव. जुठा अमरसी, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: वालाजी रे राजेमती; अंति: आलपंपालने छोडी रे, गाथा-४. ५३०६४. () सझाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१ (२) = ३, कुल पे. ९, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५X११, १३X३५). १. पे. नाम. जैनदूहा संग्रह, पृ. १अ संपूर्ण जैनदुहा संग्रह, प्रा., मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. अज्ञात अपूर्ण कृति हैं.) २. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. मु. रतन, मा.गु., पद्य, आदि: कुबुधी आतमा रे तु तो अंतिः रतन० बेसे केने, गाथा-५. ३. पे. नाम. राजेमतिनी सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: कालि पीलि वादली रे, अंतिः कांति नमे वारंवार, गाथा - ९. For Private and Personal Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. ___ मा.गु., पद्य, आदि: जीव चौद भुवनमां जोय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ८ अपूर्ण तक हैं.) ५.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. करुणाचंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: लाभे वंछीत कामो रे, गाथा-६, (पू.वि. गाथा ४ अपूर्ण से हैं.) ६.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: समय संभारी रे आखर; अंति: तो तरशो संसार हो रे, गाथा-९. ७.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: नीगमनी मुझ गम नहि; अंति: साथे आवे करी कमाइ, गाथा-८. ८.पे. नाम. भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. उपासमयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राजतणा अति लोभीया; अंति: राज भणे सुंदर भउरे, गाथा-६. ९.पे. नाम. चंदनबाला सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण.. चंदनबालासती सज्झाय, श्राव. जेठा, मा.गु., पद्य, आदि: आज काले अठम तप छ; अंति: जेठाने लीधो उगारी रे, गाथा-८. ५३०६६. (-) दुवारकानगरीना दाहनी सझाय, संपूर्ण, वि. १८६७, कार्तिक शुक्ल, १५, शनिवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. वेरावल, प्रले. श्राव. खीमजी वाघजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५४११, १३४३७). द्वारिकानगरी सज्झाय, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दोनु बंधवया रडे दुख; अंति: पडी आपदा आय रे, ढाल-१, गाथा-२०. ५३०६७. (#) आचारांगसूत्र का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १८४४६). आचारांगसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीजिनाधीशं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र बालावबोध का प्रारंभिक परिचय अपूर्ण तक लिखा है.) ५३०६८. (#) गौतम कुलक व सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १२४३१). १.पे. नाम. गौतम कुलक, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०. २. पे. नाम. मरुदेवा सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. मरुदेवीमाता सज्झाय, क. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: तुझ साथे नही बोलु; अंति: ऋषभने मन आणंदो जी, गाथा-४. ५३०६९. सझाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १८७४, पौष शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ७-४(१,३ से ५)=३, कुल पे. २, जैदे., (२४४११, १०४२३). १.पे. नाम. सीयल सज्झाय, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. शीयलव्रत सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल २ गाथा ५ से ढाल ४ गाथा ३ अपूर्ण तक हैं.) २.पे. नाम. कर्म सज्झाय, पृ. ६अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: नमो कर्म माहाराजा रे, गाथा-२५, (पू.वि. गाथा ९ अपूर्ण से हैं.) ५३०७०. (-#) कुलक संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. पंचपाठ-अशुद्ध पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४११.५, ९४२४). १.पे. नाम. गोतम ऋषिभाषित कुल सह भावार्थ, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०, संपूर्ण. गौतम कुलक-भावार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लुद्धा क० लोभी नर अथ; अंति: (अपठनीय), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ७ अपूर्ण से १६ तक भावार्थ नहीं लिखा है., वि. अंतिमवाक्य अशुद्धप्रायः होने से नहीं भरा है.) For Private and Personal Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. पुण्य कुलक सह भावार्थ, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुण्य कुलक, प्रा., पद्य, आदि: इंदियत्तं माणुसत्तं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ६ अपूर्ण तक है.) पुण्य कुलक-भावार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पांचइ इंद्रिय परवडा; अंति: (-). ५३०७१. सवैया उपदेश, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३४-३३(१ से ३३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५.५४११, १२४३३). औपदेशिक सवैया संग्रह , भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५३०७२. (#) जुठातपसी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १४४४१). जुठातपसी सज्झाय, श्राव. वसतो शाह, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: प्रथम समरु वितराग; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २६ अपूर्ण तक है.) ५३०७३. (#) स्तवन वसझाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३९-३६(१ से ३६)=३, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४३६). १.पे. नाम. अजितनाथ स्तवन, पृ. ३७अ-३७आ, पूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. अजितजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: हुं प्रणमु क्रिपानाथ, गाथा-१८, (पू.वि. गाथा १ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. दाननी सज्झाय, पृ. ३७आ-३८आ, संपूर्ण. ___ सुपात्रदान सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: संखराजा जसोमतीराणी; अंति: बोल्या श्रीजिनरायो, गाथा-१५. ३. पे. नाम. शिवपुरनगरनी सज्झाय, पृ. ३८आ-३९आ, संपूर्ण. शिवपुरनगर सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८२०, आदि: अहो प्रभु सिवपुर नगर; अंति: ऋषि रायचंदने उलास हो, गाथा-१६. ४. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ३९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. रा., पद्य, आदि: वांदु श्रीआदिजिणंद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ११ अपूर्ण तक है.) ५३०७५. (+#) अभिधानचिंतामणि नाममाला, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १४४३५). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कांड-१ श्लोक ४७ तक लिखा है.) ५३०७६. नमस्कार महामंत्र छंद, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२४४११.५, १४४३१). नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछीत पूरे विविध; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १२ अपूर्ण तक है.) ५३०७७. (#) सोल सुपन सझाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११, १४४३१-३८). १६ स्वप्न सज्झाय, मु. महानंद, रा., पद्य, आदि: (-); अंति: भाखे मुनिमहानंद मुदा, ढाल-२, (पू.वि. ढाल १ की अंतिम गाथा से है.) ५३०७८. (#) गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२४४११.५, १३४२६). गौतमस्वामीरास, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३४, आदि: गुण गाउ गौतम तणा; अंति: वीकानेर चोमास जी, गाथा-१३. ५३०७९. नेमराजुल सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५४११, ११४२६). नेमराजिमती सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदिः (१)वेला आवजो हो लाल जिन, (२)जिनजी नेमजिणेसर विनव; अंति: जोडि अविचल थई हो लाल, गाथा-३. For Private and Personal Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५३०८०. (8) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे २ प्रले. श्राव. प्राणजीवनदास सा. प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. जैनसाला मध्ये लीपीकृते अक्षरों की स्याही फेल गयी है, दे. (२१x११, ८x२२) " "" १. पे नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. ९अ, संपूर्ण, मु. मानविजय, पुहिं., पद्य, आदिः मन मंदिरमे पाओ मेरो अंतिः मान० झगमग जोत जगावो, गाथा-८. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदिः चरण ही सरम प्रहरे, अंतिः जेम भवदुख न लहं रे, गाथा ५. ५३०८१. खंधक मुनि चोढालीयो, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-४ (१ से ४) -२, प्रले. पं. हीरविजय, पठ. सा. मोतीजी, सा. अमृत, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २४४१०.५, १०X३५). खंधकमुनि सज्झाय, मु. जयसिंघ ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि (-); अंतिः ऋष जेसिंघ गुण गाय के, दाल-४, (पू. वि. ढाल १ गाथा ५ अपूर्ण से है.) ५३०८२. (*) सज्झाय व गहुली, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२१.५x११, ११४२५-३१). १. पे. नाम. स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. मु. अमरचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि : आवोने थुलीभद्र रंगे; अंति: तुझ चरण नमेसे, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखा है.) २. पे. नाम. महावीरजिन गहुंली, पृ. १आ, संपूर्ण. १३५ मा.गु., पद्य, आदि: नयरि राजगृहि आविया, अंति: अनुभव अक्षय सुख थाए, गाथा-७. ५३०८३. निंदकनी सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. गांगजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २३९.५, १५X३२). औपदेशिक सज्झाय- निंदक, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३५, आदि: निखरो माणस नींदक, अंतिः रायचंद० नही जावे ए. गाथा - २८. ५३०८४. राम रास ढाल - ३२ व ५३, अपूर्ण, वि. १८६१ श्रावण कृष्ण, ३०, मंगलवार, मध्यम, पृ. ५-१(३)=४, (#) ले. स्थल, जेतपुर, प्रले. श्राव. पुजाव्रधप्रागजी गांधी अन्य सा पुरीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४x११.५, १४X३६). रामयशोरसायन चौपाई, मु. केशराज, मा.गु., पद्य, वि. १६८३, आदि (-): अंति: (-) (प्रतिपूर्ण, पू. वि. डाल ३२ गाथा ५० अपूर्ण तक व ढाल ५३ गाथा १ अपूर्ण से गाथा ४८ तक है.) ५३०८६. पद्मप्रभुनुं स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७९, चैत्र अधिकमास कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. १, प्रले. आंबाराम पटेल, पठ. श्रावि. मोतीबाई. प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे. (२४४११.५, १२४३९) " ५३०८५. स्तवन व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८५६, माघ कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४८.५, १२x२४). १. पे. नाम. पारसनाथनु स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण, प्रले. मु. गांगजी ऋषि, प्र. ले. पु. सामान्य. पार्श्वजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४१, आदि: भांमाराणी एक जायो; अंति: राय० जेमलजीरो उपगारो, गाथा १४. २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक लोक संग्रह, प्रा., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, आदि: पदमप्रभु सेवक विनती, अंति: रामचंद० प्रीतसु पास, गाथा- ७. ५३०८७. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ६-५ (१ से ५) १, कुल पे. ३. जैवे. (२४४११, २०५०). १. पे. नाम. साधुजीवन सज्झाय, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only मु. खेतसी, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंतिः खेतसी० धन अणगार हो, गाथा २०, ( पू. वि. गाथा १८ अपूर्ण तक नहीं है., वि. कृति की मात्र अंतिम दो गाथा होने से सही कृतिनाम आज्ञात है.) २. पे. नाम. नेमराजीमति सज्झाय, पृ. ६अ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मु. घोडमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५७, आदिः समुदविजे सेवा देवी न; अंतिः नारी दुख ज्यारा जाइ, गाथा- २३. Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. सामायिक के ३२ दोष स्वाध्याय, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण, सामायिक सज्झाय, मु. कमलविजय-शिष्य, मा.गु, पद्य, आदि गोयम गणहर प्रणमी पाय अंतिः सामायक करजो निसदीस, गाथा-१३. ५३०८८. (4) स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२२४११, १४x२७). " १. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि : आजिनै पधारे हे सावली; अंति: सती प्रभु हाथे मनरंग, गाथा - ११. २. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १अ आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महमद, मा.गु., पद्य, आदि: भुलो मन भमरा कोई अंतिः लेखें साहेब हाथ, गाथा - ९. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. कीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मन रे भजो श्रीभगवान; अंति: धरो हिरौ ध्यान, गाथा-५. ५३०९१. (*) महासत महासती सजाय, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, वे., ( २४४११, १२४३३). महापुरुष महासती सज्झाय, क. जिन, मा.गु., पद्य, आदि: पुरस सरवे सरखा नहि, अंति: जीन० संघमा तेज सवाया, गाथा - २६. ५३०९२. (#) रात्रिभोजन सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. काना, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. जैदे. (२२x१०.५, ८४२९). " रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मु. सेवक, मा.गु., पद्य, आदि: रंभा जणणी रुयडीजी; अंति: कहै कवीयण ईम जाण रे, गाथा - २०. ५३०९३. (a) सरस्वती जयकरण छंद, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२x१०.५, १६३२). सरस्वतीदेवी छंद, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, वि. १६७८, आविः सकलसिद्धिदातार, अंति: होउ सया संघकलाणम्, गाथा- ४४. ५३०९४, (+) रास व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे ३, प्र. मु. विनीतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २३X११, १६x४१). १. पे. नाम. नवकार रास, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण, वि. १८१५, श्रावण शुक्ल, ११. नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलुजी लीजइ श्रीअरि; अंति: अवर न कोई आधार, गाथा- २३. २. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण, वि. १८१५, भाद्रपद कृष्ण, ११. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, ग. विनीतविजय, मा.गु., पद्म, आदि आज सफल दिन म्हारे आज अंतिः विनीत० मानो अरदास, गाथा ९. ३. पे. नाम. संखेश्वरजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण, वि. १८१५, भाद्रपद कृष्ण, १३. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, ग. विनीतविजय, मा.गु, पद्य, आदि आज मारे रंग वधामणा, अंतिः विनीत० निर्मल बुद्धि, गाथा - ९. ५३०९५. अर्जुनमालीनी सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२२.५x१०, १२४३६) अर्जुनमाली सज्झाय, मु. कानजी, मा.गु., पद्य, वि. १७४३, आदि: श्रीगुरुचरण नमी कहु; अंतिः सेवक कानजी गुणगाय, गाथा-१६. ५३०९६. चार मंगल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. सा. तेजबाई आर्या (गुरु सा. लीला आर्या); गुपि. सा. लीला आर्या (गुरु सा. रुपा आर्या); सा. रुपा आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२२.५x११, १४४३०). ४ मंगल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: मंगलिक पहिलुं कहुं ए; अंति: गुण समरुं निसदीस, गाथा-१५. ५३०९०. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. २, जैवे. (२२.५x१०, १३-१६x२८-४३) For Private and Personal Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: सुरग सिपाइ गायसु नेह; अंति: सूरापुरष हरखे भरो रे, गाथा-१४. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई हैं. मु. नंदलाल, रा., पद्य, आदि: मतो हो मछराला होराज; अंति: नंदलालजी गुण गायो, गाथा-१०. ५३०९८. (#) चौढालिया संग्रह, अपूर्ण, वि. १८७५, फाल्गुन कृष्ण, ११, रविवार, मध्यम, पृ. ५-२(१ से २)=३, कुल पे. २, ले.स्थल. पोरबंदर, प्रले. अंबाराम पटेल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११.५, १४४३४). १.पे. नाम. जंबुस्वामी चौढालियो, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. जंबूस्वामी सज्झाय, मु. गंग, मा.गु., पद्य, वि. १७६५, आदि: (-); अंति: मनवंछित ते सुख लहे, ढाल-४, (पू.वि. ढाल ४ गाथा ५ तक नहीं है.) २. पे. नाम. चेलणा श्रेणिकवादनी ढाल, पृ. ३आ-५आ, संपूर्ण. चेलणासती चौढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३३, आदि: अवसर ते नर अटकलेते; अंति: भाखे ____ भवियणने हितकार, ढाल-४. ५३०९९. आदिजिन लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२३४१०, १८x१०-१३). आदिजिन लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: मेरे दील्ल के मेहरम; अंति: तोरे द्यो दरसन भगवान, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) ५३१००. आणवजी सावकनी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२३४११.५,११४३२). औपदेशिक सज्झाय-श्रावक करणी, रा., पद्य, आदि: दस प्रकारे हो बधे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ८ अपूर्ण तक लिखा है.) ५३१०१. वर्धमान वधावा-स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३४११, ११४२७). महावीरजिन वधावा, रा., पद्य, आदि: सरसतसामीने समरव: अंति: धजारे जनधरम दरबार, गाथा-११. ५३१०२. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, अन्य. सा. कसलीबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२३४१०.५, १३४३२). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सखी मुझ वालमा रे; अंति: उदय० लीजे रे नाम, गाथा-९. २. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जेचंद, रा., पद्य, आदि: नेमजी रथ वालोने वाला; अंति: बलहारी हो मारा जी, गाथा-८. ५३१०३. सज्झाय व स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२२४९, ११४२६-३१). १. पे. नाम. जीवकाया सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ औपदेशिक सज्झाय-जीवकाया, पुहिं., पद्य, आदि: तुं मेरा पिय साजणा; अंति: पामीजे रंग सूख कोड, गाथा-९. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: से माटे साहेब सामु न; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ५ तक है.) ५३१०५. (#) बत्रीसदोष सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य. सा. वेलबाई आर्या; सा. अगर आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१४१०.५, ११४३५). सामायिक ३२ दोष सज्झाय, मु. कानजी, मा.गु., पद्य, वि. १७५८, आदि: श्रावक व्रतधारी गुण; अंति: गणी कान्हजी इम भासे, गाथा-८. ५३१०६. लावणी व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२१.५४१०, ११४२९). १.पे. नाम. धूलेवा आदिजिन लावणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन लावणी-केसरीयाजी, क. ऋषभदास संघवी, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुणीयो वाता सदा सेव; अंति: देख तमाशा फजरो मे, गाथा-८. For Private and Personal Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १३८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. आदिजिन पद- वर्षीतप पारणा, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन पद, मु. साधुकीर्ति, पुहिं पद्य, आदि देखो माइ आज रिषभ घर अंतिः साधुकीरति गुण गावे, गाथा- ३. ३. पे. नाम. सुविधिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. " सुविधिजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: वांके गढ फोज चढ़ी है, अंति: बोहर न पाऊं दूजी खोर, गाधा-४. ५३१०७. स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३-१ ( २ ) =२, कुल पे ४, दे. (२१४११.५, ८४२२). יי १. पे. नाम. जैनकाव्य संग्रह *, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-५, (पू. वि. मात्र अंतिम गाथा का "देखो" शब्द है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- पुरीसादाणी, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: प्रणमुं हु पासजिणंदा, अंति: छो त्रिभोवनना सामि, गाथा-११. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ- ३अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजि दिणंदा पासजि; अंति: प्यारा प्राण आधारा, गाथा-५. ४. पे. नाम, महावीरजिन सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण, मु. सेवक, मा.गु., पद्य, आदि विरजिनवर अवतसां वरसे, अंतिः सिद्धारथने दरबार के, गाथा-८. ५३१०८. (-) मृगापुत्र सझाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२१.५X११.५, ११४३३). मृगापुत्र सज्झाय, मु. सिंहविमल, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमि पासजीणंदने; अंति: (-), (पू.वि. ढाल १ गाथा २६ अपूर्ण तक है) ५३१०९. आयुष्य सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२१.५४१२ ३०x१९). औपदेशिक सझाय आयुष्य, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदिः आऊखू त्रुटूंने सांधो, अंतिः जालोर सहेर मोजार रे, गाथा १०. ५३११०. () सिवजी सामीनी जोड, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. वे. (२१.५४११, १०x२०). पार्श्वजिन स्तवन- सिवजी सामी जोड, क. हरि, मा.गु., पद्य, आदि: परसंन जीनवर हीए दरसन; अंति: कवी हरी गुन गायेन, गाथा- ८. ५३१११. औपदेशिक हरीयाली, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, वे (२२.५x१०.५, १३x२७). प्रज्ञापनासूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: कहेयो पंडित ते कुण; अंति: जस कहे ते सुख लहस्ये, गाथा - १४. ५३११३. आगम विषयवर्णन सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९४३ श्रेष्ठ, पृ. १, ये. (२२.५४११.५, ११४२९) ४५ आगम विषयवर्णन सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदिः प्रवचन वीर वदे एम अंतिः वचननी जाउ बलीहारी रे, गाथा- १९. ५३११४. स्तवन व सझाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. २, दे., (२२x११.५, ९४२५). १. पे नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. २अ अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: बाह्य ग्रह्यानी लाज, गाथा-११, (पू.वि. गाथा- १० अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. बाहुबलनी सज्झाय, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: (१)वीराजी गज थकी उतरो, (२) राजतणा अतिलोभीया, अंतिः समयसुंदर गुण गावो रे, गाथा-७, ५३११५. सुमती कुमतीनी सझाय, संपूर्ण, वि. १८८७, मार्गशीर्ष कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य. सा. राधाबाई महासती; प्रले. जेठा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखक हेतु "लखीतंग बार मासमा जे मोटो तेने नामेनाम" ऐसा संकेत किया है., जैवे. (१८.५४१२, १२x२०). सुमतीकुमती सज्झाय, वा. उदयरतन, मा.गु., पद्य, आदि: कहे सुमती चेतन सुणो; अंति: उदय० आवसे यापणे ठाअ, ढाल - १, गाथा - ९. ५३११६. मान सझाय, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. दयाशंकर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (१८.५४१०.५, ११x२७). For Private and Personal Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५३१२०. www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ १३९ औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, मा.गु., पद्य, आदि: मान म करसो रे मानवी; अंति: बाली कीधा छे राखरे, गाथा- ९. ५३११७. () सिखामण सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १. प्रले. श्रावि, नंदुबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. दे., ( १८x११, १३X१८). (-) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir .दे.. (२३४९.५. औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: धंधो करी धन मेलीउ रे; अंति: सीवनगर पोहोचे सोय रे, गाथा-७. सवैया व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे., । पद, १२X३६). १. पे. नाम. रसना त्याग पद, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद- रसनाविशे, मु. विनयचंद, पुहिं, पद्य, आदि: चेतन तेरी रसना वस कर अंतिः विनैचंद० धन संतान रे " , गाथा - ५. २. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: मांडलपुर मान कियो, अंतिः सती सीवपुर वासाह, गाथा - १. ३. पे. नाम. सुगुनकुवर महाराज सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. सा. केसरबाई, पुहिं., पद्य, वि. १९४३, आदि: धन सतीयां सुजाण, अंति: केसर० की लग रइ चाया, गाथा - ६. ४. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: चेतन चतुर कषाय उपसम, अंतिः सुजाण सुख पर चाता, गाथा ५. ५३१२१. गीत व दूहा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२.५X१०, १४X४०). १. पे. नाम, ठंडाणा गीत. पृ. १अ १आ, संपूर्ण. औपदेशिक गीत- टंडाणा, पुहिं., पद्य, आदि: टंडाणा टंडाणावे जिय; अंति: सो पद गुणनिलयं, गाथा- १६. २. पे, नाम, दूहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. " औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं, पद्म, आदि: सुबुद्धि सुगुण सुचात; अंतिः सुंदर गुण के धाम, दोहा-२ (वि. गाथा २.) ५३१२२. (+) सिद्धाचल स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पत्र १x२, पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (४४४९.५, २४x२२). शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. विनयचंद्र, मा.गु, पद्य, आदि: सिधाचल सोहामणउ उंचउ, अंतिः विनयचंद्र० सफल अवतार, गाथा - २०. ५३१२३. (#) परनारीपरिहार सज्झाय व कवित संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२३.५x११, २७४१७). " १. पे. नाम. परनारीपरिहार सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, अन्य. पं. इंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक सज्झाय- परनारी परिहार, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सीख सुणो रे पीया; अंति: हरष० हियडें आगमवाण, गाथा - ११. २. पे. नाम. कवित संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. काव्य/दुहा/कवित्त/पद्य*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. संग्रहात्मक कृति.) ५३१२५. अजितशांति स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-२ (४ से ५ )=४, जै. (२२.५१०.५, ११४१६-२९). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत, अंति: जिणवयणे आयरं कुणह गाथा-४०, (पू.वि. गाथा २२ अपूर्ण से ३५ अपूर्ण तक नहीं है.) ५३१२६. स्तवन व सझाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४-२ (१, ३) २, कुल पे. ६, दे. (२०.५x११.५, १६x२०-३४). १. पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्वाध्याय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है., प्रले. मु. गांगजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, मु. महानंद, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंतिः ताप सर्व जाई टलि, गाथा-१२, (पू. वि. गाथा ९ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. धर्मनाथजी स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. धर्मजिन स्तवन, मु. महानंद, मा.गु., पद्य, आदि: हो जिनवरजि भवसागर, अंति: अक्षण महानंद पद आपो, गाथा- ९. For Private and Personal Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. थुलभद्रनी सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्र सज्झाय, मु. महानंद, मा.गु., पद्य, आदि: हो मुनीवरजि माहरे; अंति: माहानंद० निश्चल पावे, गाथा-११. ४. पे. नाम. सुमति आत्माप्रते सीक्षा, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. औपदेशिक सज्झाय, मु. महानंद, मा.गु., पद्य, आदि: माहरे घरे आवजो रे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ८ अपूर्ण तक है.) ५. पे. नाम. सुमती कुमती संवाद, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. औपदेशिक पद-सुमतिविषये, मु. महानंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: महानंद पदमा० मलस्यै, गाथा-१४, (पू.वि. गाथा ५ अपूर्ण तक नहीं है., वि. प्रतिलेखक ने दो पद के क्रम से गाथांक १४ लिखा है.) ६. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. महानंद, मा.गु., पद्य, आदि: सासननायक समरु सदा; अंति: महानंद पदवि पामे तेह, गाथा-१३. ५३१२७. (+) घनानी सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. देवजी वैरागी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (१९.५४१०.५, १६४२७). धन्नाअणगार सज्झाय, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: जन वचन वेरागीयो हो; अंति: होवे ते जे जे कार, गाथा-१२. ५३१२८. (+) चौवीसजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (१९.५४११.५, १०४२६). २४ जिन स्तवन, मु. तेजसिंघ, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ अजित संभव सुखदाई; अंति: तेज०सेहमल्ल कहायारे, गाथा-५. ५३१२९. चैत्यवंदन सिद्धनिरंजन, संपूर्ण, वि. १९१६, आश्विन अधिकमास शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. श्राव. नराणजी मोदी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२०.५४१०.५, ११४३०). सिद्धपद स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: जगतभूषण विगत दूषण; अंति: नमो सिद्ध निरंजनं, गाथा-१३. ५३१३०. नमस्कार महामंत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. कमलसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका सुधारी गई है., जैदे., (२२४९.५, १०४३५). नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: पढम हवइ मंगलं, पद-९. नमस्कार महामंत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतनइ माहरउ; अंति: सकल वांछित फल पामइ. ५३१३१. शेजेजाजीरो तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२०४११, १०४२४). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: देव समानने अरथ समान; अंति: ज्ञानवीमल गुणपावेरे, गाथा-८. ५३१३२. देववंदन विधि, चैत्यवंदन, स्तवन व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, दे., (२४४१०.५, १२४२८). १. पे. नाम. देववंदन विधिसहित, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. देववंदन विधि, गु.,मा.गु., प+ग., आदि: जयजय नाभिनरिंद नंद; अंति: जयवीयराय कहणा. २.पे. नाम. नवपद चैत्यवंदन, स्तवन व स्तुति संग्रह, पृ. ३अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नवपद के चैत्यवंदन स्तवन व स्तुतियां, मु. हीरधर्म; मु. कुसल, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय श्रीअरिहंत; अंति: (-), (पू.वि. सिद्धपद प्रथम स्तुति अपूर्ण तक है.) ५३१३३. मेघकुमार सझाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२१.५४११.५, ७X२५). _मेघकुमार चौढालियो, मु. जादव, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गणधर गुण नीलो; अंति: (-), (पू.वि. ढाल ४ गाथा १ अपूर्ण तक है.) ५३१३५. शेव्रुजयमाहत्म्य स्तवन, संपूर्ण, वि. १९२१, मार्गशीर्ष शुक्ल, ८, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. श्राव. प्राणजीवनदास डाह्याभाई सा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. जैनसाला लीपीक्रते, श्री माहावीरस्वामी प्रसादात्., दे., (२१.५४११.५, ९x१९). शQजयतीर्थरायणवृक्ष स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.ग., पद्य, वि. १८वी, आदि: नीलडी रायणतरु तले अंति: माहात्म्यमाहिरे, गाथा-११. ५३१३७. वीरस्तुति अध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२४४१०.५,७४३६). For Private and Personal Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ १४१ सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुछेसणं समणा माहणा; अंति: आगमिस्सति त्तिबेमि, गाथा-२९, (संपूर्ण, वि. अंतिम दो गाथा का गाथांक नहीं लिखा है.) सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीतरागनी नमस्कार; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ____ अंतिम दो गाथाओं का टबार्थ नहीं लिखा है.) ५३१३८. (#) पद व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. पत्रांक नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१२, १५४३३). १.पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. सेवाराम, पुहि., पद्य, आदि: प्रभुजीसू लागो मारो; अंति: गाथा-४. २. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ पुहिं., पद्य, आदि: स्वामि माहावीरजी; अंति: समकीत प्रभु रतन दीयो, गाथा-४. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: पंथीडा पंथ चलेगो; अंति: रूपचंद० भवपार उतार, गाथा-५. ४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रामदास, मा.गु., पद्य, आदि: नेना सुफल भये दरसण; अंति: रामदास० सीखर को राज, गाथा-४. ५. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. लक्ष्मीसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सेवकनी अरजी सूणज्यो; अंति: लक्ष्मी० गुण गावेरे, गाथा-७. ५३१३९. सुरतसेरनी चैतपरवाडनु तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, दे., (२३.५४१२.५, १३-१५४३२). चैत्यपरिपाटी स्तवन-सुरतशहर, श्राव. लाधा शाह, मा.गु., पद्य, वि. १७९३, आदिः (-); अंति: लाधा० जिनबिंब जोहारी, ढाल-५, (पू.वि. ढाल ४ गाथा १२ से है., वि. अंत में सुरत शहेर स्थित जिनमंदिर, भोयरा प्रतिमादि की सूचि दी गई है.) ५३१४०. (+) महावीरजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १४४४८). महावीरजिन स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: जय जतुजणीयसुक्खं; अंति: कयपन्नो नमह धम्मनिहि, गाथा-२२, (वि. संबंधित सर्वगजसंख्या अलग से दिया गया है.) ५३१४१. (-) पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ६, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१०.५४१०.५, १३४२६). १.पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. करण, पुहि., पद्य, आदि: अरी मेरी अखीयन हरख; अंति: करण०मिल है सिद्धनगरी, गाथा-२. २.पे. नाम. मल्लिजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जिनहरख, पुहिं., पद्य, आदि: जिनमुख वांनी भव खैला; अंति: तो जीनहरख नवेनिध पाई, गाथा-४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: छवि तेरी सुहावण लागी; अंति: ज्युं सीवसुख दीधावर, गाथा-४, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) ४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु.रूप, पुहि., पद्य, आदि: हो जिन तेहे दरस पर; अंति: रूप टेर सुनता रिया, गाथा-१. ५. पे. नाम. शीतलजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. करण, पुहिं., पद्य, आदि: लगन लगी जिन नामसुं; अंति: करन० मिल हसीतलसाम, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) ६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: बावरे क्युं न भजै; अंति: मिल है ढील न काय, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) ५३१४२. सितलामाता अनुभव सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. पेमराज साधु, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३४१२.५, १३४४२). For Private and Personal Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १४२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आध्यात्मिक सज्झाय-सितलामाता, मु. तीलोक ऋषि, रा., पद्य, वि. १९३७, आदि: पूजो जीनवानी माता, अंतिः तीलोक० के मन भायो जी, गाथा १६. ५३१४३. आबुजी का स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२२.५X१०, ८x२९). अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु, पद्य, आदि: जात्रीडा भाई आबूजीनी, अंति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा १९ अपूर्ण तक लिखा है.) ५३१४४. शत्रुंजय स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२२.५x९.५, ९-१०X३५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. नयविमल, मा.गु., पद्य, आदि: माहरा आतमराम किणें; अंति: कह० प्रमानंद पद पासु, गाथा-७. ५३१४५. लघुशांतिस्तव स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८५६, कार्तिक कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. पं. अनोपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५x११.५, १०x३०). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिं शांतिनिशांत अंति: जैनं जयति साशनं श्लोक-१९. ५३१४६. पासजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (१०X८, ११X१२). पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. हरिदास, मा.गु., पद्य, आदि: प्रगटथा भला पासजी, अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. गाथा ७ अपूर्ण तक है.) ५३१४७. (-) औपदेशिक बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे., ( १७.५X१०.५, १७३२). औपदेशिक बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: पहिला बाणा संसकरत; अंति: अबिछहन वचन कहइ, पद-३५. ५३१४८, () तप सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, दे., (२२४९.५, १२३०). तप सज्झाय, ऋ. आसकर्ण, रा., पद्य, आदि: तप बडो संसार मे जीवा; अंति: जोधपुर नगर मझारो रे, गाथा - १३. ५३१५०. (a) वीतरागदेवनी आरती, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे., (१५x१०.५, १३X१९). ५ परमेष्ठी आरती जै. क. द्यानतराय, पुडिं, पद्य वि. १८वी आदिः इहविधि मंगल आरती, अंतिः सुरंग मुकति सुखदानी, गाथा- ७. ५३१५१. मोक्षनगर सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, प्रले. श्राव. हरिचंद जयचंद गांधी, प्र.ले.पु. सामान्य, वे., (२१x११.५, ७X२१). मोक्ष सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मोक्षनगर मारुं सासरु, अति: ज्ञानविमल० ठामरे, गाथा-५. ५३१५२. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२०.५X११.५, १४x२४). १. पे. नाम. गुरु-शिष्य संवाद सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. प्रहेलिका संग्रह, रा., पद्य, आदि देख्या रे चेला बीन, अंति: गुराजी बीन खार खारा, गाथा ८. २. पे. नाम. साधु- श्रावक संवाद सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर वाणी वागरी; अंतिः तैसी बात सुहाये, गाथा-६. ५३१५३. (*) परिमुडमान गाथा व गणणुं, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. २, अन्य आ. जिनराजसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें.. जैदे. (१४४११, १२४१८). , १. पे. नाम. परिमुढमान गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. गाथा - ५. प्रतिलेखनादि कालमान गाथा, प्रा., पद्य, आदि: आसाढे मासे दुपया पोस; अंति: आसाढे निट्ठिया सव्वे, २. पे. नाम अरजिनादि गणणं. पृ. १ आ. संपूर्ण जैन सामान्यकृति, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-): अंति: (-). ५३१५४. शंखेश्वर पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (१९४९, २४४१५). " पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जी प्रभु पासजी पासजी, अंति: रंगविजय० विराज रे, गाथा - ६. ५३१५५. रोहिणी स्तुति, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, ये. (१८.५४१५, १२x२१) 3 " For Private and Personal Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ १४३ रोहिणीतप स्तुति, मु. लाभरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: जयकारी जिनवर वासुपूज; अंति: लाभरूची जयकार, गाथा-४. ५३१५६. स्तवन, गीत, स्वाध्याय व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ७, जैदे., (२०४१२.५, २९४२९). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-शंखेश्वरतीर्थ, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: प्यारो पारसनाथ; अंति: उदयरतन० बहु धसमसीया, गाथा-५. २.पे. नाम. नेमी गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. गिरनारशत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारो सोरठ देस देखावो; अंति: ग्यानविमल० धरीया, गाथा-४. ३. पे. नाम. नेमी गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, आ. जिनसमुद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुंदर सारी बालकुंआरी; अंति: जिनसोमसूरि० फलीया, गाथा-६. ४. पे. नाम. शांतिआत्म स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, मु. ज्ञानउद्योत, पुहिं., पद्य, आदि: ध्यान धरम का धरना; अंति: शिवसुखकुं अनुसरणा, गाथा-५. ५. पे. नाम. सुपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. श्रीचंद, पुहिं., पद्य, वि. १७२२, आदि: अमल कमल जिम धवल; अंति: श्रीजिनचंद्र० मन आस, गाथा-९. ६.पे. नाम. शत्रुजय गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ पद, मु. धर्मसी, पुहि., पद्य, आदि: विमलगिर क्युं न भए; अंति: धर्मसी करत अरज करजोड, गाथा-४. ७. पे. नाम. गौतमस्वामी पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. हर्षचंद, पुहि., पद्य, आदि: श्रीगौतम गणधार जप मन; अंति: हरखचंद० भव पार भज मन, गाथा-५. ५३१५७. (+) स्वाध्याय व विनती संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१.५४९.५, ११४३७). १. पे. नाम. समुद्रपालमुनि स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. समुद्रपालमुनि सज्झाय, उपा. उदय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: नगरी चंपामां वसे एतो; अंति: उदयवाचक कहै। मोहनगार, गाथा-९. २. पे. नाम. संभवजिनवर विनती, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. संभवजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३०, आदि: संभव जिनवर वीनती; अंति: वाचक जस० साचुरे, गाथा-५. ५३१५९. (+) वधावो, भास, लावणी व गुहली संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०८, फाल्गुन कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., दे., (२५.५४१२.५, १६४२८). १.पे. नाम. जिनलब्धिसूरि वधावो, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लालचंद, पुहि., पद्य, आदि: सारा श्रीसंघनी हो; अंति: लालचंद० वरस प्रतपीजै, गाथा-८. २.पे. नाम. जिनलब्धिसूरि भास, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. साधु, पुहिं., पद्य, वि. १९०२, आदि: सरसत सांमण सहिया; अंति: साधु० भास रसाल हो, गाथा-१६. ३. पे. नाम. जिनलब्धिसूरि देशना, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. लावण्यकमल, पुहिं., पद्य, आदि: गुणनिध लब्धिचंद; अंति: लावन्यकमल सुख पावइ, गाथा-८. ४. पे. नाम. जिनलब्धिसूरि गहुंली, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. हर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: गुहली करो गुरु आगल; अंति: सहीया हरख लहे सुखमाल, गाथा-५. ५. पे. नाम. जिनलब्धिसूरि गीत, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: सारा तो सिंघनि हो; अंति: समकित रतन वरीजे, गाथा-३. For Private and Personal Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६.पे. नाम. लक्ष्मीचंद्रसूरि भास, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीलक्ष्मीचंद्रसूरी; अंति: बाण खिमाकल्याण हो, गाथा-९. ७. पे. नाम. लब्धिचंद्रजीनो भास, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. जिनलब्धिसूरि भास, मा.गु., पद्य, वि. १९०३, आदि: जिनलब्धिसूरीसरू रे; अंति: बालूचर चोमास, गाथा-१५. ५३१६०. उपदेशमाला स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. इंदोर, प्रले. पंडित. ॐकार पांडे, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४१३, १२४३१). पौषध सज्झाय-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति: उप्पन्नं केवलं नाणं, गाथा-३३. ५३१६१. (+) दंडक स्तवन व चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२४.५४१२, १२४२६-३५). १.पे. नाम. दंडक स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-२४ दंडक गतिआगतिविचारगर्भित, ग. धर्मसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: आदीसर हो सोवनकाय; ___ अंति: दरसण सुरतरु तोलै, ढाल-२, गाथा-२६. २.पे. नाम. नेमिजिन चैत्यवंदन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु.जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: नेमीशर तीर्थनाथ; अंति: जिनचंद्र० नेमीशर नाम, गाथा-३. ५३१६२. बृहच्छांति व चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-४(१ से ४)=२, कुल पे. २, प्रले. पंन्या. जसविजय, पठ. श्रावि. पानाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४४११.५, १३४४२). १. पे. नाम. बृहत्शांति स्तोत्र तपागच्छीय, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनं जयति शासनम्. २. पे. नाम. वीरजिन चैत्यवंदन, पृ. ६आ, संपूर्ण. महावीरजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: कृतापराधेपि जिने; अंति: तवो इय पयगं नमसामि, श्लोक-८. ५३१६३. कल्पसूत्र व्याख्यान, बृहच्छांति व मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१२, २०४४३). १. पे. नाम. कल्पसूत्र व्याख्यान, पृ. १अ, संपूर्ण. कल्पसूत्र-बालावबोध, उपा. रामविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८१९, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "प्रथम जंबूद्वीप, बीजो घातकीखंड" पाठ तक है., वि. मात्र प्रारंभिक अंश है.) २. पे. नाम. बृहत्शांति स्तोत्र तपागच्छीय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनं जयति शासनम्. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन मंत्र जापविधि व माहात्म्य, पृ. २आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह , उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ॐ ह्रीं श्रीं; अंति: विध जाणनी विशेषकर. ५३१६४. (+) महावीरजिन पारj, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१२.५, ८x१६-२५). महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अनंतगुणा; अंति: तेहने नमे मुनी माल, गाथा-३१. ५३१६५. चोरासी वणिग जाति, श्लोक संग्रह व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२३४११, १६४३५). १. पे. नाम. चोरासी वणिग जाति, पृ. १अ, संपूर्ण. ८४ वणिगजाति नाम, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमाल भीनमाल उतपत; अंति: ११ खंडेल माहेश्वरी. २.पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: भेकी मईक क्रूर; अंति: सूक्ष्मं सुधावेत्ति, श्लोक-६. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. रत्नसागर, पुहिं., पद्य, आदि: असुभ करम मल झाड के; अंति: रतनसागर कहे सुर रे, गाथा-९, (वि. आदिवाक्य खंडित है.) ५३१६६. मेघकुमार स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे. (२३४९, ६x३९). मेघकुमार सज्झाय, मु. अमर, मा.गु., पद्य, आदि: धारणी मनावे रे मेघ; अंति: अमर० भव तणा पास, गाथा-५. ५३१६७. (+) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - संधि सूचक चिह्न, दे., (२४४१२, १२४३०). १. पे. नाम. भारती स्तोत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र-मंत्रगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमस्त्रिदशवंदित अंति: मधुरोज्ज्वलागिरः, श्लोक- ९. २. पे. नाम, महालक्ष्मी मंत्रगर्भित स्तोत्र, पृ. १आ- २अ, संपूर्ण. महालक्ष्मीस्तव, सं., पद्य, आदिः आद्यं प्रणवस्ततः; अंतिः तस्य प्रदीयते, श्लोक-११. ५३१६८. शनिश्वर छंद नवग्रह मंत्र व औषध, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्रले. पं. गुणसागर, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., ( २३x१०.५, १३X३१). १. पे. नाम. शनिश्चर छंद, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण. क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अही नरासुरपति अमर; अंति: हेम० मीले सुख संपदा, गाथा - ११. २. पे. नाम. नवग्रह मंत्र, पृ. २अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदिः ॐ आदित्य सोम मंगल; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक १ अपूर्ण मात्र .) ३. पे नाम, खरजुआनो औसड, पृ. २अ संपूर्ण औषधवैद्यक संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि मरी टां२ सींदूर अंति: छाली दूधमा वाटवो. ५३१६९. स्तवन व सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१०.५X१०, १२x१८). १. पे. नाम. शंखेश्वर पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ -१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर पास, अंति: जिनचंद० रिपु जीपतौ, १४५ गाथा-५. २. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं है. औपदेशिक सज्झाव- जीवशीखामण, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः उंडोजी अरथ विचारज्यो, अंति (-). (पू.वि. गाथा- २ अपूर्ण तक है.) ५३१७०. आवक चौद नियम व दश आशातना, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे. (२४.५४१२.५, For Private and Personal Use Only १०-१२x२७). १. पे. नाम. श्रावक चौद नियम गाथा - बालावबोध, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. श्रावक १४ नियम गाथा - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: ( अपठनीय), (वि. खंडित भागों पर कागज चिपकाए होने के कारण आदिवाक्य व अंतिमवाक्य अवाच्य है.) २. पे. नाम. दश आशातना, पृ. २आ, संपूर्ण. जिन भवन १० आशातना नाम, मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: वर्जे जिणनाह जगईए, (वि. खंडित भाग पर कागज चिपकाए होने के कारण आदिवाक्य अवाच्य है.) ५३१७३. आदीश्वरजिन विनती, अपूर्ण, वि. १९३०, आषाढ़ शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ३-१ (१) = २, ले. स्थल. पाटणनगर, प्रले. नरभेराम अमुलख भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३.५x१२.५, १४४३२). " आदिजिनविनती स्तवन- शत्रुंजयतीर्थ, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: (-); अंति: विनय करीने विनवे ए, गाथा-५८, (पू.वि. गाथा - १० अपूर्ण से है.) ५३९७४ (-) स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे, ५. प्र. वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक-३ को पत्रांक-२ लिखा है., अशुद्ध पाठ., जैदे., (१८x१२.५, १७-१९२५). Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. गोडी पार्श्वनाथ छंद, पृ. १अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. कुशलचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगोडीचा जगतगरु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. गोडी पार्श्वनाथ छंद, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कवि कुसललाभगोडी धणी, गाथा-२२, (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण से है.) ३. पे. नाम. दशार्णभद्र सज्झाय, पृ. ३आ-५अ, संपूर्ण. मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद बुधिदाई सेवक; अंति: लालविजय नीस दीस, गाथा-१७. ४. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवज्यो रे सांति; अंति: देयो दोलति दीपती रे, गाथा-५. ५. पे. नाम. गौतमस्वामी सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तवन, मु. पुण्यउदय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभाते गौतम प्रणमी; अंति: प्रगट्यो परधान, गाथा-८. ५३१७५. वीर जिन गुंहली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२२.५४११, १४४२१). महावीरजिन गहंली, मु. विद्यारंग, मा.गु., पद्य, आदि: सहीया वीर जिणंद; अंति: विद्यारंग०सहीया मारी, गाथा-५. ५३१७६. दादाजी गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१६४१०.५, १३४२७). १.पे. नाम. जिनकुशलसूरि गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. राज, पुहि., पद्य, आदि: कुशल गरीब निवाज गुरु; अंति: राज०महाराज गुरु मेरो, पद-७. २.पे. नाम. जिनकुशलसूरि गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मु. राज, पुहि., पद्य, आदि: तुं है दाता मेरो जगत; अंति: राज० कमल को हुंचेरो, पद-३. ५३१७७. मंगलकमल स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. रतनचंद ऋषि; पठ. मु. करमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१३, ९४२४). अजितशांति स्तवन, संबद्ध, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., पद्य, वि. १५वी, आदि: मंगल कमलाकंद ए सुख; अंति: मेरुनंदण उवज्झाय ए, गाथा-३२. ५३१७८. (+) दंडकवृत्ति विवरणं, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. पत्र अबरखयुक्त है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४११.५, १४४४५). दंडक प्रकरण-टीका, ग. समयसुंदर, सं., गद्य, वि. १६१६, आदि: नमिऊं चउवीस जिण; अंति: केचित् अनंताधिकाः ४, (वि. मूल टीका का संक्षिप्त स्वरूप है.) ५३१७९. पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (१६.५४११.५, १२४२१). १.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनलाभ, पुहि., पद्य, आदि: चित्त सेवा प्रभु चरण; अंति: जिनलाभ० गुणमणि गहराई, पद-३. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनराज, पुहिं., पद्य, आदि: कहा रे अग्यानी जीव; अंति: जिनराज० सहज मिटावै, गाथा-३. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा संग्रह *, मा.गु.,रा., पद्य, आदि: पपा सेती प्रीतडी; अंति: वजै कोइकू वाव, गाथा-२. ४. पे. नाम. सनत्कुमार गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जोवा आव्या रे देवता; अंति: समयसुंदर कहै सार, गाथा-५. ५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: किसही कुं सब दिन; अंति: समयसुंदर जिनधर्म सोई, गाथा-३. For Private and Personal Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५३१८०. भास व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५४१२, ११४४०). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. माणेक, पुहिं., पद्य, आदि: देख्या श्रीनाभि का; अंति: माणेक० टारीये मेरो, गाथा-५. २. पे. नाम. सेबूंजा भास, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ भास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: निलूडी राएण तरु तले; अंति: ज्ञानविमल० माहि, गाथा-६. ३. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कल्याणविमल, पुहिं., पद्य, आदि: मेरो मन मगन भयो अब; अंति: कल्याण गिरीराजना गाइ, गाथा-७. ५३१८१. नमीराय ढाला, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२३४१०, २१४४९). नमिराजर्षि ढाल, ऋ. आसकर्ण, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: सासणनायक सीमरता; अंति: आसकरणजी० तिथरो नाम, ढाल-७. ५३१८२. साधु समाचारी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पठ. मु. रंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४११.५, १०४३२). श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणमिदंसणंमि०; अंति: अनेरा जे का अतिचार. ५३१८३. (+) देववंदन विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. बालोचर, प्रले. मु. सदासुख ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, ११-१३४२३-३५). देववंदन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नवकार कहणो; अंति: पछै छोटो तवन कहणो. ५३१८६. नमस्कार देहरानो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४१२,११४२९). जिनमंदिरदर्शनफल चैत्यवंदन, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगुरुराज; अंति: प्रभु सेवाना कोड, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या नहीं लिखी है.) ५३१८७. रुक्मणी सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. देवजी वैरागी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१९.५४११, १७४२८). रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरंता गामोगाम; अंति: राजरषी रंगे भणे जी, गाथा-१४. ५३१८८. (+) सिद्धचक्र थोय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२.५, १०४२९). सिद्धचक्र स्तुति, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अंगदेश चंपापुरवासी; अंति: उदयरत्न० दीवाली, गाथा-४. ५३१८९. सज्झाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२६४१३, १६४३५). १.पे. नाम. बखाणनी सिज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. गुरुगुण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: हांरेमारा स्वामी; अंति: लारे लेवणी रे लो, गाथा-७. २. पे. नाम. पंचकल्याणक स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. वासुपूज्यजिन स्तवन-पंचकल्याणक, उपा. हीरधर्म पाठक, मा.गु., पद्य, आदि: मूरत श्रीवासुपूज्यनी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "केवलज्ञान कल्याणक स्तवन" तक लिखा है.) ५३१९०. वीरजिन गुंहली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२१४९, ७४३९). महावीरजिन गहुँली, मु. विद्यारंग, मा.गु., पद्य, आदि: सहीया वीर जिणंद; अंति: विद्यारंग०सहीया मारी, गाथा-५. ५३१९१. (+) ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. विवेकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२२.५४१०.५, ९४२६). आदिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवाल हो; अंति: सुखनो पोष लालरे, गाथा-५. ५३१९३. सज्झाय संग्रह, कोष्ठक व दोहा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२५.५४८, १८४५४). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.. मु. रतनचंद, रा., पद्य, आदि: इण कालरो भरोसो भाई; अंति: रतन० कीजो धर्म रसालो, गाथा-१३. मा For Private and Personal Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. देवानंदा सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. सकलचंद्र गणि, पुहिं., पद्य, आदि: जिनवर रूप देखी मन; अंति: मांहे बैखाण्या, गाथा-१०. ३. पे. नाम. छाया पौरुषीयमान कोष्ठक, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रतिलेखनकालमान यंत्र, संबद्ध, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, क. गद, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ५३१९४. (-) सझाय व लावणी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२४.५४११.५, १४४३३). १.पे. नाम. सुगुरु सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: सुगर की सीख हए धरणा; अंति: जनदास० जेन धरम करना, गाथा-४. २.पे. नाम. नेमनाथ लावणी, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. नेमराजिमती लावणी, मु. चतुरकुशल, पुहिं., पद्य, आदि: नेमनाथ मेरी अर्ज; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक ५३१९५.(-) दस श्रावक गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२२४१०.५, १३४३५). १० श्रावक सज्झाय, मु. सौभाग्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: दश श्रावक भगवंतना; अंति: कहै सौभाग्यरतन्न हो, गाथा-१४. ५३१९६. चोथी वाडनी सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पत्रांक न लिखा होने कारण काल्पनिक पत्रांक लिया गया है., ., (२५.५४१०.५, १२४२८). शील सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: चोथीने वाडे इम चित; अंति: त्रोडे आठे कर्म, गाथा-१०, संपूर्ण. ५३१९७. दलाली संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्रले. श्राव. नरभेराम करमचंद कोठारी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१.५४११.५, १३४३७). १.पे. नाम. धर्म दलाली सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन थाल, रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सेवो मानजे सदाय, गाथा-११, (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक दलाली, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. श्राव. कवियण, रा., पद्य, आदि: लाल लाल सहुको कहेजी; अंति: कवियण० धर्म उपगार, गाथा-१३. ५३१९८. (+) विमलजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १७७५, माघ कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. सूरत, प्रले. उपा. देवविजय (गुरु आ. विजयरत्नसूरि); पठ. सा. हीरबाई (गुरु सा. सवीरा आर्या), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., जैदे., (२३.५४१०, ९x१३-३३). विमलजिन स्तवन, उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विमल जिणंदसुं विनती, अंति: काइं वाचक देव कहत, गाथा-१२. ५३१९९. (+) आदिसरजीरो स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१.५४८.५, ९४२५). आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: राणपुरे रलीयामणो रे; अति: लाल समयसुंदर सुखकार, गाथा-७. ५३२००. (+) वीसस्थानक स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२२४१०,१०४२६-३१). २० स्थानकतप स्तवन, मु. वखतचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: वीसथानक तप सैवीयै; अंति: भावै० वसतो मुनिवरो, ढाल-३, गाथा-१८. ५३२०१. (#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४११.५, २३४१७). १. पे. नाम. राणपुरातीर्थ स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ www.kobatirth.org आदिजिन स्तवन- राणपुरमंडण, मु. शिवचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय श्रीरिसहेसरू; अंति: नमे सेवक मुनि शिवचंद गाथा ११. २. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. करमसी, मा.गु., पद्य, आदिः आय रहो मन बाग में अंतिः केल करत सिवबाग में, गाथा-५. ३. पे नाम, पार्श्वप्रभु स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, पार्श्वजिन पद - गोडीजी, मु. रत्ननिधान, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगोडी प्रभु पासजी, अंति: अरज करै दिन रातो रे, गाथा-३. ५३२०२. गौतमस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. दे. (२३४११, १०३३). . י' Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गौतमस्वामी गीत, उपा. समवसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, बि. १७वी, आदि गौतम नाम जपो परभाते, अंतिः गौतम नाम लील विलासा, गाथा-६, (वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गाथा गिना है.) ५३२०३ (०) चउदनेम सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२३१०, १५x४५). १४ नियम सज्झाय, ग. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि सारद पाय प्रणमी करी; अंतिः ऋद्धिविजय उवझाय, १४९ गाथा - २१. ५३२०४ (१) पार्श्वजिन पद संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (२२.५४८.५, २२x१२). १. पे. नाम. चिंतामणि पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद- चिंतामणि, आव. बनारसीदास, पुहिं, पद्म, आदिः सचा साहेब मेरा चिंता अंतिः करै बनारसि बंदा " तेरा, गाथा-४. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. शिवचंद, पुहिं, पद्य, आदि: अब हम है सामि सरण, अंतिः शिवचंद अरज मेरी, गाथा-५. ५३२०५. (#) मंगलिक दीवो व आदिनाथ जन्माभिषेक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्रले. पंडित. जसवंत सिंह, अन्य. श्रावि. हेजी; श्रावि. अमरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४१०, १३X२८-३६). १. पे. नाम, मंगलदीवो, पृ. १अ संपूर्ण. मांगलिक दीवो, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, आदिः दीवो रे दीवो मंगलिक; अंति: धरपार० कुमारपालै, गाथा ५. २. पे नाम, आदिजिन जन्माभिषेक कलश, प्र. ९अ ४आ, संपूर्ण. अप, पद्य, आदि (१) उगमणदिसे तथा उत्तर (२)मुक्तालंकार विकार, अंति: (१) जिम तिम दीयो वरमगति, (२) लगाउ छमंति सरीर धारा, ढाल - १६, (वि. विधि सहित) ५३२०६. साधारणजिन स्तवन व प्रभाति स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५८, ११३६). १. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: नीरंजन आर वो अब टुक; अंति: देव दूजो नहीं ओर, गाथा-५. २. पे नाम प्रभाति स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं, पद्य, वि. १८वी, आदि: अवधू नट नागर की बाजी, अंति: अगोचर परमारथसु पावें, गाथा-४. For Private and Personal Use Only ५३२०७. नाटक समयसार मध्ये नाममाला सूचिका, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४-३ (१ से ३) = १, जैदे., (२३×१०.५, १५X४७). समयसार नाटक नाममाला सूचनिका, संबद्ध, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: अनुचित असत अठीक, गाथा-५०, ( पू. वि. गाथा - ३३ अपूर्ण से है. ) ५३२०८. (+#) पार्श्वजिन स्तवन, दुहा संग्रह व वशीकरण मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र. वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२३.५५९.५, १२४३९). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सदा फल चिंतामणि; अंति: जपइ पूरो संघ जगीस ए, गाथा-७. २. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-७. ३. पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक दूहा संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-३. ४. पे. नाम. वशीकरण मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: ॐ नमो जोहणी मोहणी; अंति: १४ अंगुष्ट सुंजपीजै. ५३२०९. (#) सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२२४१०, ३१४१९). १. पे. नाम. दसश्रावक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. १० श्रावक सज्झाय, मु. सौभाग्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: दश श्रावक भगवंतना; अंति: कहि मुनि जसराज हो, गाथा-१४. २. पे. नाम. सीखामण सज्झाय, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये स्त्रीशिखामण, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: एक अनोपम शिखामण कही; अंति: उदेय माहिजस विस्तरे, गाथा-१०, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से गाथा-१० अपूर्ण तक नहीं है.) ५३२१०. (+) राजुल पचीसी, संपूर्ण, वि. १८९१, कार्तिक कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, ११४३८-४३). राजिमतीपच्चीसी, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम ही समरौं; अंति: लालचंद० को मंगल करै, गाथा-२६. ५३२११. दीक्षा कुलक व साधु प्रतिक्रमण सूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४११, १३४३७). १. पे. नाम. दीक्षा कुलक, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. प्रव्रज्या कलक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: तरंति ते भवसलिलरासिं, गाथा-३४, (पृ.वि. गाथा-२४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण. पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: चत्तारि मंगलं अरिहंत; अंति: वंदामि जेणे चउवीसं, सूत्र-२१. ५३२१२. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२३.५४१०.५, १२४२४). १. पे. नाम. पार्श्वनाथनु स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. धर्मसिंघ, सं., पद्य, आदि: वंछित आस पुरण प्रभू; अंति: रमसंघ प्रभु जग आभरणं, श्लोक-५. २. पे. नाम. महावीरस्वामी स्तवन, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है. महावीरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि: सिद्धारथ कुलदीपकचंद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण तक है.) ५३२१३. (+#) जिननाम गर्भित नवग्रह स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२२४९, १२४४२). नवग्रह स्तवन-जिननाम गर्भित, म. दानविनय, मा.गु., पद्य, आदि: जिननाम जाप जप्या; अंति: पामइ सुलभबोधि भवमाई, गाथा-११. ५३२१४. अरहन्ना गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३४१०, १०४३५). अरणिकमुनि सज्झाय, मु. दयातिलक, मा.गु., पद्य, आदि: नगर तारापुर वहिरण; अंति: जग थाए जस वास हो, गाथा-१५. ५३२१५. (#) स्तवन व लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१०.५, ११४३४). . . . For Private and Personal Use Only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ www.kobatirth.org १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि हम मगन भए प्रभुध्यान, अंति: जस कहे० मैदान में, गाथा- ६. २. पे. नाम, औपदेशिक लावणी, पृ. १अ १आ, संपूर्ण अखेमल, पुहिं., पद्य, आदि: जग में खबर नहीं पल; अंतिः न मानी विनती अखमल की, गाथा - ५. ५३२१६. सज्झाय संग्रह व पार्श्वनाथ छंद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२३४९.५, १५x५१). १. पे. नाम. स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि जगदानंदन गुणनीलो रे, अंतिः थकी सविफलें आसोरे, गाथा- १७. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १ अ - १ आ, संपूर्ण, प्रले. ग. महिमाकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक सज्झाव- रसनालोलुपतात्याग, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बापलडी रे जीभलडी तुं, अंति कहइ सुणि प्राणी रे, गाथा ८. .पे. नाम पार्श्वनाथ छंद, पृ. १आ, संपूर्ण. יי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन छंद- नाकोडातीर्थ, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदिः आपणाइ घरि वइठा लील; अंति: नाम जपी श्रीनाकोडो, गाथा-८. ५३२१७, () महावीर जिन स्तवन, संपूर्ण वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अंत में प्रतिलेखक ने एक कृति मात्र आरंभ कर के छोड़ दिया है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२८, २४४१५). महावीरजिन स्तवन, मु. मनोहरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी म्हारा आज अध; अंति: ध्यायो रे दिल धरी रे, गाथा- ६. ५३२१८. (#) पद व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, ले. स्थल. मधुबन प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.. (२४४१२, १२४२६). १. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पंडित, खीमाविजय, पुहिं. पद्य, आदि: इक सुणली नाथ अरज; अंति: अनुपम कीरत जगतरो, गाथा-५. " २. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ संपूर्ण. मु. चंद, पुहिं, पद्य, आदि; जादव मन मेरो हर लीयो, अंतिः चंद कहै मे हरखियो रे, गाथा ५. (२२.५५९.५, १०x२८). १. पे. नाम. चेलणासती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. १५१ ३. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मु. भूषण, रा., पद्य, आदि: नेम निरंजन ध्यावो; अंति: सहु जगरो जस लीनो रे, गाथा-४. ४. पे. नाम, नेमिजिन पद, पृ. १आ. संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मत छोडो म्हांने; अंति: पहिली राजुल नारी रे, गाथा-५. ५३२१९. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. श्राव. जेठा खीमजी मोदी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वखांणी राणि, अंति: पामशे भवतणो पार, गाथा- ७. २. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: अतुल करम दल फोज हरा, अंति: मनवंछित सुखपावे, गाथा-४. ३. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only मु. माणकचंद, मा.गु., पद्य, आदि: कोईना आघा पाछाम बोलो; अंति: मांणकथी बउमुल्या, गाथा-३. ५३२२१. (#) पार्श्वजिन स्तवन व सीमंधरस्वामी स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों आमने-सामने छप गए हैं. दे. (२५४११.५ ११५३३). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है .. Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १५२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. आनंदवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: अम चोभाग्य उघडीयो रे, गाथा-९, (पू. वि. अंतिम गाथा- ९ अपूर्ण है) २. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. २अ संपूर्ण. सीमंधरजिन विनती स्तवन, वा. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: मन मारु मोकलुं मारा; अंति: उदे० वशता देस विदेस, गाथा-६. ५३२२२. बार भावना, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., ( २४.५X१२, १६x४०). १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: पास जिणेसर पाय नमी; अंति: (-), ढाल-१३, गाथा-१२८, ग्रं. २००, (पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल - ६ व गाथा- ५९ तक लिखा है.) ५३२२३. दान शील तप भावना चोढालीयुं, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. पं. आसकरण, प्र.ले.पु. सामान्य, ,जैदे., (२४.५X११.५, १३X३६). . दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय नमी; अंति: भ० सुप्रसादोरे, डाल-४, गाथा- १०१, ग्रं. १३५. ५३२२४. नेमि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( २४.५X१०.५, ८X३१). राजिमती पद, मा.गु., पद्य, आदि: जगजीवनलाल अम्हें तुम; अंति: रहे तेजप्रताप अखंडरी, गाथा-५. ५३२२५. (4) समकीत लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे (२४.५x१०.५, ७X१४-४०), औपदेशिक लावणी, जैनदास, पुहिं., पद्य, आदिः आयो अब समकित के घर; अंति: नहीं मन ब्रह्मा हरमे, गाथा-४. ५३२२६. (*) अर्णिकमुनि सज्झाय व ज्योतिष, संपूर्ण, बि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे., Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२४१०.५, १४४४३). १. पे. नाम. अर्णिकमुनि सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. अरणिकमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: एक दिन आर्हणक जाम उठ, अंतिः मुनि मुगतै गयोए, गाथा-२२. २. पे. नाम. ज्योतिष संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में लिखी गई प्रतीत होती है. ज्योतिष संग्रह, सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-) ५३२२७. मेघरथराजा सझाय, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, दे. (२३.५X१०.५, ९४२०-२३). " मेघरथराजा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पुरब दिस पोषद मै; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा - १९ अपूर्ण तक है.) ५३२२८. () १४ राजलोक, आवक २१ गुण, कृष्ण भव विचारादि संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. ४. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५X१०.५, ४२x२८). १. पे. नाम. चौद राजलोक परिमाण विचार, पृ. १अ. संपूर्ण. ४. पे. नाम. विचार संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. १४ राजलोक परिमाण विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सातमी प्रथवी तेहनी, अंति: तलइ समकित लाभइ पद्मा. २. पे. नाम. श्रावकना एकवीस गुण, पृ. १अ, संपूर्ण. श्रावक २१ गुण वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मरत्न नइ योग्य; अंति: गुण श्रावक हुयइ, अंक-२१. ३. पे. नाम. कृष्णभव विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तथा तुम्हे लिख्यु छइ; अंति: प्रमाण छइ ते पृछयो. विचार संग्रह . मा.गु., गद्य, आदि: (-): अंति: (-). *, ५३२२९. (+) पार्श्वचंद्रसूरीश्वरजीकी अष्टप्रकारीपूजा व आरती, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., दे., (२५x११.५, १०x३५-३९). १. पे. नाम. पार्श्व चंद्रसूरीश्वरजी की अष्टप्रकारी पूजा, पृ. १अ ४अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ १५३ पार्श्वचंद्रसूरि अष्टप्रकारी पूजा, मु. आलमचंद, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: सदगुरु पद प्रणमी करी; अंति: देव वित्तस्य भोक्ता. २. पे. नाम. श्रीपार्श्वचंद्रसूरि आरती, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. पार्श्वचंद्रसूरि आरती, पुहिं., पद्य, आदि: जय जय आरती सद्गुरु; अंति: सदा सुख संपद पावे, गाथा-७. ५३२३०. (#) गीत संग्रह व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. पत्र १४२, मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४९.५, ३४४२२). १. पे. नाम. महावीरजिन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कनककीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजी हु ब्राह्मण धन; अंति: कनककीरति मन भायो, गाथा-३. २. पे. नाम. प्रमादीपरित्याग गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-निद्रात्याग, मु. कनकनिधान, मा.गु., पद्य, आदि: नींदडली वइरण होई रही; अंति: हो मुनि कनकनिंदान के, गाथा-८. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. वस्तुतः पत्र खंडित होने से अपूर्ण है.) ४. पे. नाम. स्थूलिभद्र सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. धनजी, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: हो कीजीइ सोइ आधार, गाथा-८, (वि. वस्तुतः पत्र खंडित होने के कारण पाठ अपूर्ण है. मात्र अंतिम गाथा है.) ५. पे. नाम. साढापचवीस आर्यदेश, पृ. १आ, संपूर्ण. आर्यदेश नाम, मा.गु., गद्य, आदि: मगधदेश १ अंगदेश २; अंति: कुशलादेश २५ कीयददेश. ५३२३१. दीक्षा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३.५४११.५, १२४३९). दीक्षाग्रहण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम संध्या चारित्र; अंति: पूर्वक छैए जाणज्यो. ५३२३२.(#) कवित्त, सज्झाय संग्रह व श्लोक, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. ४, प्रले. जादवजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४११.५,१६४३५). १. पे. नाम. प्रास्ताविक कवित्त, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. प्रास्तावित कवित्त, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: ण की पचास आण बेंर की, गाथा-१, (पू.वि. "नकुडाल लाव" पाठ से है., वि. गाथांक नहीं है) २.पे. नाम. उपदेशी सज्झाय, पृ. ५अ, संपूर्ण. __ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: देहलो बीराणोरे आपणो; अंति: पुजी मारा मन तणी आस, गाथा-५. ३. पे. नाम. विवेक सज्झाय, पृ. ५आ, संपूर्ण. मु. तेजसी, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: बुद्धि विना धरम नहिं; अंति: तेजसी० हुंगुण राचुं, गाथा-१३. ४. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक, पृ. ५आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ५३२३३. धन्नाअणगार सज्झाय व श्लोक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-६(१ से ६)=१, कुल पे. २, प्र.ले.श्लो. (९२९) जलाट रक्षे स्थलाट रक्षेः, (९३०) जिहा लगि मेरू महिधरः, जैदे., (२३.५४११, १२४३४). १. पे. नाम. धनाअणगारनी सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण, वि. १८०१. धन्नाअणगार सज्झाय, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवचनै वैरागीयो; अंति: धन्ना मोह न कीजे बे, गाथा-१५ २. पे. नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. ७आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक*, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अपुत्रस ग्रहं सुन; अंति: सर्वशून्यं दरिद्रता, श्लोक-१. ३२३४. (+) नवतत्त्वप्रकरण व पडिलेह विचारादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२४.५४११, १२-१५४३३-४५). १. पे. नाम. नवतत्वप्रकरण, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४७. २. पे. नाम. पडिलेहण विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रतिलेखनबोल गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सुतत्थतत्थदिट्ठी; अंति: तणुपेहाएअझाणमिणं, गाथा-४. ३. पे. नाम. साधुअतिचार चिंतवन गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. साधुअतिचारचिंतवन गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सयणासणन्नपाणे; अंति: वितहायणे अइयारो, गाथा-१. ४. पे. नाम. गोचरी आलोयण गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: अहो जिणेहिंसावज्जा; अंति: साहु देहस्स धारणा, गाथा-२. ५. पे. नाम. आदिजिन पारणा गाथा, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सुपात्रदानफल स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: उसभस्सय पारणए इक्खुर; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम गाथा है.) ५३२३५. (+) चंदनबाला सज्झाय व दस सुपना सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांकन लिखा होने के कारण अनुमानित पत्रांक २ लिया गया है., संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १२४३१). १.पे. नाम. चंदनबाला सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. चंदनबालासती सज्झाय, मु. नारायण, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मुझ तुठा वीरदयालो रे, गाथा-५, (पू.वि. अंतिम गाथा अपूर्ण मात्र है.) २. पे. नाम. दससुपना सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. १० स्वप्न सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम आराधू; अंति: इम बोले श्रीजिनराय, गाथा-११. ५३२३६. (#) पद संग्रह व नेमजिनफाग, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०,१५४६३). १.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवधू नाम हमारा राखे; अंति: घन० सेवक जिण बल जाही, गाथा-४. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. श्राव. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: चेतन उलटी चाल चाले; अंति: चढ बेठे ते निकले, गाथा-४. ३. पे. नाम. औपदेशिक गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: देखो भाई महाविकल; अंति: वणारसी० निधि लुटै, गाथा-८. ४. पे. नाम. नेमिजिन फाग, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. राजहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: भोगी रइ मन भावीयउरे; अंति: सुंगायउ फाग रसालोरे, गाथा-३०. ५३२३७. (+) साधु अतिचार, संपूर्ण, वि. १८१६, चैत्र शुक्ल, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. मेडतानगर, प्रले. पं. जसवंतविजय; पठ. मु. हेमता (गुरु पं. जसवंतविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १३४३३-४३). साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणमिदं सणमिअचरण; अंति: आ साधुसमाचारी विषईयो. ५३२३८. (+) विपाक सूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-३(१,३,५)=३, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११,११४४०). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मृगापुत्र प्रसंग अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) विपाकसूत्र-टिप्पण, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मृगापुत्र प्रसंग अपूर्ण है.) ५३२३९. जिनकुशलसूरि चौपाई, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. हेमविनय पंडित (गुरु ग. लब्धिमंडन), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०, १३४४०). जिनकुशलसूरि गीत, मु. हर्षकुंजर, मा.गु., पद्य, आदि: सुहगुरु समरु सुख; अंति: सगलै हवउ मंगलदायको, गाथा-१३. For Private and Personal Use Only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५३२४०. (#) बारमासा व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. सुभटपुर, पठ. सा. गुमाना, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र १४२, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०,११४३८). १.पे. नाम. नेमराजुल बारमासो, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन बारमासो, मु. लाभउदय, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: सखीरी सांभलि हे तूं; अंति: (-), गाथा-१६, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- १२ तक है.) २. पे. नाम. चिंतामणि पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, पं. नायकविजय गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चिंतामण सुणो वीनती; अंति: नायक० उठी प्रभात, गाथा-९. ३. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, पं. नायकविजय गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जिनजी नाभी नरेसरनंद; अंति: नायक० हु ताहरी, गाथा-८. ५३२४१. (#) नेमराजिमती बारमासा, सज्झाय व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४३८-४०). १.पे. नाम. नेमराजुल बारमासो, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासो, मु. अमरविशाल, मा.गु., पद्य, आदि: जादव मुझनै सांभरै; अंति: भणी विनवै अमरविशाल, गाथा-१९. २.पे. नाम. नेमनाथजीरो बारमासो, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. नेमजिन बारमासो, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: सुणज्योरी वात सहेली; अंति: श्रीसार परम सुख पायौ, गाथा-२०. ३. पे. नाम. नेमराजल स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सुण मूध सहेलडी; अंति: प्रणमै श्रीरुधराय, गाथा-७. ४. पे. नाम. राजुमती सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, म. हेमधर्म, मा.गु., पद्य, आदि: उग्रसेण की लली नेमजी; अंति: हेमधरम० बंधन छोड, गाथा-८. ५३२४२. (#) शीयलव्रत सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. सा. पुरीबा महासती (गुरु सा. अवलबा महासती); गुपि.सा. अवलबा महासती; पठ. श्रावि. फूल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, ९४२०-२५). शीयलव्रत सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो समजो सकल नरनारी; अंति: जेणे कामनी तजी जरूर, गाथा-१६. ५३२४३. (#) पद, आरती व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(२)=३, कुल पे. १९, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १४४३८-४२). १. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. पृथ्वीराज, मा.गु., पद्य, आदि: सरण लीयो जिनराज; अंति: पृथ्वीराज सरण आयो. गाथा-९. २.पे. नाम. मुनिसुव्रतजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. दौलत, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीमन सुव्रत कृपा; अंति: दोलत०कीजे संत सुधारा, गाथा-६. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. वृद्धिकुशल, रा., पद्य, आदि: तेवीसमा जिनराज जोडै; अंति: वृद्धकुशल० दीदार, गाथा-३. ४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: देव निरंजन भव भय; अंति: रूपचंद सो तरीया हें, गाथा-३. ५. पे. नाम. पुण्य पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-पुण्योपरि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पारकी होड मत कर रे; अंति: समयसुंदर० कोटानुकोटी, गाथा-३. For Private and Personal Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १५६ www.kobatirth.org ६. पे. नाम. भेरूजीरी आरती, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. भैरूजी की आरती, मा.गु., पद्य, आदि: रुमझुम रुमझुम आरती, अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम गाथा है.) ७. पे. नाम. पंचमी स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन- लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमीतप तुमे करो रे; अंति: समयसुंदर रे, गाथा-५. ८. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: निरमल होय भजलै प्रभु; अंतिः क्षमाकल्याण अपारा, गाथा-५. ९. पे. नाम, जीवहिंसाफल पद, पृ. ३अ, संपूर्ण, मु. द्यानत, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन तूं मान लै; अंतिः द्यानत० आणोनी छतीया, गाथा - ३. १०. पे. नाम. पार्श्वजिन होरी, पू. ३अ ३आ, संपूर्ण. मु. रत्नसागर, पुहिं., पद्य, आदि: फागुन के दिन चार चाल; अंति: रतन० मुख बोलो जयकार, गाथा-८. ११. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: जय बोलो पास जिनेसर; अंति: जिनचंद० सुरतरु की, गाथा- ७. १२. पे. नाम साधारणजिन फाग, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. चंद, पुहिं., पद्य, आदि: ऐसी होरी में प्रीतम, अंति: चंद० प्रीतम पाया री, गाथा-३. १३. पे. नाम औपदेशिक होरी, पृ. ३आ, संपूर्ण, मु. जीत, पुहिं., पद्य, आदि: सर्वे आण उदे भए, अंति: जीत० करम की डोरी रे, गाथा-५. १४. पे. नाम. पार्श्वप्रभूजीरी आरती, पृ. ४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन आरती, मा.गु., पद्म, आदि: पैहली आरती कमठाम अंतिः मन पूवै आस्वा, गाथा- ७. १५. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. मु. चंद, पुष्टिं पद्य, आदि; जादव मन मेरो हर लीयो; अंतिः चंद कहे मन हरखियो रे, गाथा-५. १६. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, पृ. ४अ- ४आ, संपूर्ण, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि कृपा करो गोडी पास, अंतिः रूपचंद० गुण गाईजी, गाथा - ६. १७. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि पावापुर मावीर जिनेसर, अंतिः जिनचंद्र० चितल्यावां, गाथा-४. १८. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. उदयसागर, पुहिं, पद्म, आदि: अब हमकुं ग्वान दियो अंतिः उदय० प्रभु मुझकुं, पद-७, १९. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. आनंदघन, रा., पद्य, आदि: निसदिन जोउ तोरी वाट, अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ५३२४४. (+) नमिपव्वज्जा, संपूर्ण वि. १८९८ आश्विन कृष्ण, १४, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३ ले. स्थल, विकानेर, प्रले. पं. कस्तुरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैवे. (२४४१०.५, १४४३८-४२). उत्तराध्ययन सूत्र - हिस्सा नमिप्रव्रज्याध्ययन ९. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., पद्य, आदि; चइऊण देवलोगाओ उवयन्न, अंतिः मीरायरिसित्ति बेमि, गाथा - ६३. (२५x११.५, १३४३३-४०) १. पे. नाम सवैयाष्टक, पृ. ९अ १आ, संपूर्ण. ५३२४५. () इलापुत्र सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X११, १६x४१). इलाचीकुमार चौढालिया, मु. धनराज शिष्य, मा.गु., पद्य, आदिः परथम गोणधर गुण नीलो; अंति: धनराज० दीन दीन हरख०, ढाल-४, (वि. अंतिम वाक्य का आंशिक भाग फटा हुआ है.) ५३२४६. (०) सवैया अष्टक व पद, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैये., For Private and Personal Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ जिनचंद्रसूरि अष्टक, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: ए जुं संतन के मुख; अंति: समयसुंदर० आसीस इसी, गाथा-८. २. पे. नाम. पत्रलेखन दोहा, पृ. १आ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दोहा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: कागद थोलौ हित घणो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा- ५ अपूर्ण तक है., वि. यह कृति बाद ___ में लिखी गई प्रतीत होती है.) ५३२४७. नेमिजिन स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, दे., (२४.५४११, १२४३४). १.पे. नाम. नेमनाथनुं स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. नेमजिन स्तवन, मु. अमरसी, मा.गु., पद्य, वि. १९०४, आदि: (-); अंति: गोंडल ग्रामे वास, गाथा-२२, (पू.वि. गाथा २० अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: जान सजीने जादव आवेर; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ की गाथा- ८ तक है.) ५३२४८. (+) यमकमय अजिततीर्थकर स्तवन सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४१०.५, १९४४४). अजितजिन स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: विश्वेश्वर मथित; अंति: संसारनामा रिपुः, श्लोक-२१. अजितजिन स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: दलितमदन पृथ्वीपति; अंति: पुनः पठतामित्यर्थः. ५३२४९. (+#) समकितविचार स्तोत्र सह बालावोधव दिशा नाम, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. २, प्र.वि. पंचपाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२५४१०, ६-७X२८-३२). १.पे. नाम. समकीत पचवीसी सह बालावबोध, पृ. २अ-४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: योहोइ उसमत्त संपत्ती, गाथा-२५, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है., वि. पारिभाषिक शब्दों के ऊपर स्पष्टता हेतु भेदपरक अंक दिए गए हैं.) सम्यक्त्वपच्चीसी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: संप्राप्ति होउ. २. पे. नाम. दस दिशाओं के नाम, पृ. ४आ, संपूर्ण. ज्योतिष संग्रह-, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५३२५०. (#) अवंतिसुकुमाल स्वाध्याय, अपूर्ण, वि. १८५६, चैत्र शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ७-३(४ से ६)=४, ले.स्थल. छुवाडा, प्रले. मु. लालसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपार्श्वनाथजी प्रसादात्, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१०, १२४३०). अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंति: शांतिहरष सुख पावै जी, ढाल-१३, गाथा-१०७, (पू.वि. गाथा- ४७ अपूर्ण से ९९ अपूर्ण तक नहीं है.) ५३२५२. शांतिजिन स्तुति व धन्ना सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४११, १०४२९-३६). १.पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तुति-जावरापुरतीर्थमंडन, मु. पुन्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सांतिकरि० जावरपुरधणी; अंति: टालिजे देवी अंबाविका, गाथा-४. २.पे. नाम. धन्ना सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. विद्याकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: धन धनोऋषि वंदीयैरे; अंति: विद्या०थकी निसतार रे, गाथा-७. ५३२५४. (#) पंचतीर्थस्तवन व महावीरजिन आरती, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४३४). १. पे. नाम. पंचतीर्थ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: आदि ए आदि ए आदिजिने; अंति: लावण्यसमै० दुहग आपदा, गाथा-६, (वि. प्रतिलेखक ने २ गाथा को १ गाथा गिना है.) For Private and Personal Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. महावीरजिन निर्वाण आरती, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय जय जगदीश जिनेश; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ५३२५५. (+) मेघकुमार व अनाथीमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१०.५, १९४४३). १.पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: चारित लेई चीतवैरे; अंति: श्रीसार नमइ० सिरनामि, गाथा-१४. २. पे. नाम. अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रेणिक रैवाडी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ६ अपूर्ण तक है.) ५३२५७. (+#) नेमराजुल बारेमास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४१०, १७४३०). नेमराजिमती बारमासो, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावणमासे स्वामि; अंति: एह नवनिध पामिरे, गाथा-१३. ५३२५८. सझाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, दे., (२५.५४१०,१३४३३). १.पे. नाम. मान सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: बाली कीधा छे राखरे, गाथा-९, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से हैं.) २. पे. नाम. दान सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सुपात्रदान सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: संखराजा जसोमतीराणि; अंति: बोल्या श्रीजिनरायो, गाथा-१५. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: एक घर घोडा हाथीयाजी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ तक है.) ५३२५९. (#) नागदत्त कथा व गुरुवंदनरहस्य गाथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १५४५२). १.पे. नाम. अष्टाह्निकातपोविषये नागदत्त कथानक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नागदत्त कथा-अष्टाह्निकातपविषये, सं., गद्य, आदि: (१)तपः सर्वाक्ष सारंगः, (२)अत्रैव भरते कुसुमपुर; अंति: जन्मसफलंकरोति. २. पे. नाम. गुरुवंदनरहस्य गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: वंदेण अणुजामि तहत्ति; अंति: वयणाई वंदणरहस्स, गाथा-१. ५३२६०. कवित व ज्योतिष संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, ११४३६). १. पे. नाम. औपदेशिक समस्यामय कवित, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक समस्यामय कवित्त, रघुपति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक देखी सकल जती; अंति: रुघपति दिवस राजी रहै, गाथा-५. २.पे. नाम. छायालग्न, भस्मयोगादि संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष*, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: अंगुल बारह संकु तिणै; अंति: सर्वकार्याणि साधयेत्. ५३२६१. (#) आदिप्रभु स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२४.५४११.५, ६४३३). आदिजिन पद, म. जिनराज, पुहिं., पद्य, आदि: आज सकल मंगल मिले आज; अंति: जिनराज० अनुभौरस मान, गाथा-५. ५३२६२. विदाजी गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, १०४३१). जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. कुसल कवि, रा., पद्य, आदि: हुं तो अरज करुं कर; अंति: काई पाटोधर प्रतिपाल, गाथा-६. For Private and Personal Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५३२६३. धन्नाऋषि सज्झाय व आदिनाथ वीनती, संपूर्ण, वि. १८५६, वैशाख कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२४.५X११, १५X३४). १. पे. नाम, धन्नाऋषि सज्झाय, पृ. १अ २अ संपूर्ण मा.गु., पद्य, आदि: सुभदरा कहह धना परते, अंति: गानीजी सुण इक अरदास गाथा- ३०. २. पे. नाम. आदिनाथ विनती, पृ. २आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, रा., पद्य, आदि: थे तौ आदिजिणंदजीनै, अंति: ये ही ध्यान हिये धरो, गाथा - ९. ५३२६४. सद्गुरु विनती, संपूर्ण, वि. १८८३, माघ शुक्ल, १, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५X८.५, १०x४२). गुरुगुण हुंली, मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: वे गुरु मेरे उरदेसे; अंति: लगो भूधर मांगै एह, गाथा- १४. ५३२६५. समुदपाली चौढालियो व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २. कुल पे. २, जैवे. (२४४१०.५. १९४४४). १. पे. नाम. समुदपाली चौढालियो, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. समुद्रपाल चौढालीयो, मु. लालचंद्र ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६७, आदि: बार गुण अरिहंतजी आठ; अंतिः लालचंद० मुगतिनी चीज ए. डाल-४, गाथा ६९. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. लालचंद्र ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: नगर वनीता दीपती हो; अंति: लालचंद० अरदास हो जी, गाथा- १०. ५३२६६. (#) शीतलनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०.५, १२X३३). शीतलजिन स्तवन- अमरसरपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, रा., पद्य, आदि: मोरा साहीन हो, अंतिः समवसुंदर० मन मोह, गाथा - १५. ५३२६७. (+) नवकार व एकादशीतिथि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४५-४४ (१ से ४४ ) = १, कुल पे. २, अन्य श्रावि. नाथीबाई, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५x११, १२X४०-४४). , १. पे. नाम. नवकार सज्झाय, पृ. ४५अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ले. स्थल धोराजी, प्रले. श्राव. जुठा अमरसी, प्र.ले.पु. सामान्य. १५९ मु. दुर्गादास, रा. प. वि. १८३१, आदि (-); अंति: दूरगादासो०छे टंकसालि, गाथा-१२, (पू.वि. गाथा ७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. एकादशीतिथि सज्झाय, पृ. ४५ अ - ४५आ, संपूर्ण, अन्य. श्रावि. नाथीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. मकनचंद, मा.गु., पद्य, आदिः आज एकादसि रे नणदल; अंति: तो भव सायर तरसे, गाथा- ९. ५३२६८. स्तवन व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १८६६, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३-१ (१) = २, कुल पे. १०, ले. स्थल कंटालिया, प्रले. मु. देविचंद ऋषि, गृही. मु. वेणीदास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५४१०, १४४३३-३९). १. पे नाम, पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २अ अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. वि. १८६६, पौष शुक्ल ४, ले. स्थल, सिरियारी. पार्श्वजिन स्तवन- सोजतमंडन, मु. केसर, रा., पद्य, वि. १८४०, आदि: (-): अंति: केसर० मरण निवारजी जी, गाथा-९, (पू. वि. गाथा - ५ से है.) " " २. पे. नाम. पुरुष संवाद, पृ. २अ, संपूर्ण, पे. वि. कृति अपूर्ण लिखी हुई प्रतीत होती है. स्त्रीपुरुष संवाद, मा.गु., पद्य, आदि: सिख सुणो पिउ माहरा; अंति: वरज्या लागो मारि लाल, गाथा-२. ३. पे. नाम. फूल अंगोचो, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: मन धर सारदमात जी वली, अंति: छे कमंडल कामा रे लाल, गाथा - ९. ४. पे. नाम. साधारणजिन पद. पू. २आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, मु. जिनलक्ष्मी, मा.गु., पद्य, आदि सबल भरोसा तेरा जिनवर, अंतिः संत सेवक राखोने रो, गाथा ५. For Private and Personal Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५. पे. नाम. पार्श्वजिनपद, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. ___ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: कृपा करो गोडी पास; अंति: रूपचंद पदवी पामी, गाथा-५. ६.पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानउद्योत, पुहि., पद्य, आदि: खतरा करणा दूर एक; अंति: परना सिवनारी वर वरना, पद-४. ७. पे. नाम. सर्पभय निवारण ध्यान, पृ. ३अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमलीनाथजी रो नाम; अंति: टलै सात वेला गुणीजे. ८. पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. ___पुहिं., पद्य, आदि: जला आडि चोकि रहे कसी; अंति: साथरो सगति सारु अन्न, दोहा-११. ९. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगोडीपुरमंडण; अंति: प्रभु निरमल नामी, गाथा-८. १०. पे. नाम. नारिविरहप्रसंग पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जला रे आंबलिया पाकि; अंति: एहेलौ मासउलरिहौ वीच, गाथा-५. ५३२६९. पंचमी लघुस्तवन व नेमिजिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११, ७४३३). १.पे. नाम. पंचमी लघुस्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८७४, अन्य. पं. उदैचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पांचमी तप तुम्हे करो; अंति: समयसुंदर० भेद रे, गाथा-५. २.पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: ठाडे अंगन नेमकुर पंच; अंति: हरषचंद०लीलालहिर अपार, गाथा-४. ५३२७०. मेरुपर्वत मान व वैराग्यशतक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, अन्य. सा. अगरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, १३४३५). १.पे. नाम. मेरु क्षेत्रमान विचार, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मेरुपर्वतमान, मा.गु., गद्य, आदि: मेरु लाख जोजननो उचो; अंति: सिद्धायतन नीलापानानी. २. पे. नाम. वैराग्यशतक, पृ. ३आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रारंभिक मात्र दो गाथा लिखी ५३२७१. ऋषभदेव व अजितजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०.५, ११४३७). १.पे. नाम. ऋषभदेव स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: उलगडि आदिनाथनि जो; अंति: इम रामविजय गुणगाय जो, गाथा-५. २.पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजितजिणेसर साहिबो रे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ५३२७२. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २९-२५(१ से २५)=४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, ७४३१). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., अध्ययन-६ की गाथा-२२ से अध्ययन-७ की गाथा-३ अपूर्ण तक है.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र हैं. ५३२७३. भावना विलास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२५.५४११.५, १७४३८). १२ भावना विलास, ग. लक्ष्मीवल्लभ, पुहिं., पद्य, वि. १७२७, आदि: प्रणमि चरणयुग पास; अंति: संपुटकै पीजिये, गाथा-५०. For Private and Personal Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५३२७५. (+#) स्तोत्र वस्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. ग. गुणविजय पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १२४४३). १.पे. नाम. महावीर स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जइज्जा समणे भयवं; अंति: सत्तुमित्तेसु वावि, गाथा-२१. २.पे. नाम. कल्लाणकंद स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्याणकंदं पढम; अंति: अम्ह सया पसत्था, गाथा-४. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: युगादिपुरुषंद्राय; अंति: कूष्मांडी कमलेक्षणा, श्लोक-४. ५३२७६. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११.५, १३४३२). १. पे. नाम. शीतलजिन गीत, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. शीतलजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: ए पद्मविजय कहे आज, गाथा-८, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. वज्रधर गीत, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. वज्रधरजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: विहरमान भगवान सुणो; अंति: देवचंद्र० मुझ आपज्यो, गाथा-७. ३. पे. नाम. अजितजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. अजितजिन स्तवन, मु. आनंदवर्द्धन, पुहिं., पद्य, आदि: अजित सयाने सजनी अजित; अंति: दवरधन कहे दरिसन पाऊ, गाथा-४. ५३२७७. सज्झाय व दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, अन्य श्रावि. अमरतबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१०.५, ११४३१). १.पे. नाम. रेवती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. मु. कानजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. रेवतीश्राविका सज्झाय, मु. वल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: सोवन सिंघासन रेवती; अंति: वल्लभ० हर्ष अपार रे, गाथा-१०. २. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा संग्रह *, मा.गु.,रा., पद्य, आदि: चंदन भरी तलावडी मोती; अंति: ए पांच हाथ पडे मुवा, गाथा-४. ५३२७८. (+) विजयकुमार व राजेमती लावणी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १८४४०). १.पे. नाम. विजयकुमार लावणी, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: (-); अंति: अट्ठावनें जोधपुरमाइ, गाथा-२३, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से हैं.) २. पे. नाम. राजेमती लावणी, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५७, आदि: समुद्रविजे सिवादेवी; अंति: नरनारी गुण जारा गाइ, गाथा-२३. ५३२७९. (-) सझाय व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२६४१०.५, १४४३५). १. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.. मु. माधव, मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि: शामलियो रे तोरण आवि; अंति: माधव० प्रसिद्धिरे, गाथा-१२. २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. रणछोड, मा.गु., पद्य, आदि: ओलखीने लेजो रे एणी; अंति: तारो छुटक बारो थाय, गाथा-५. ३. पे. नाम. सुभद्रासती सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर सोधे इरजा जीव; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५३२८०. (#) रतनगुरु व उपदेश सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८६६, आषाढ़ अधिकमास कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. मागरोल, प्रले.ऋ. गांगजी; पठ.सा. पुरीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३१). १. पे. नाम. रतनगुरु सज्झाय, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. रत्नगुरु सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अति: दशमी ढाल उदारे, गाथा-४५, (पू.वि. गाथा-४१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. उपदेश सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. वैराग्य सज्झाय, मु. कल्याण मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: प्राणी काया ने माया; अंति: छे मुनि कल्याण रे, गाथा-९. ५३२८१. (+) बृहत्शांति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १३४३१). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., अंतिम पाठ का कुछेक अंश नहीं है.) ५३२८२. सप्ततिजिन स्तोत्र व पार्श्वनाथ स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १३४४४). १. पे. नाम. सप्ततिजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४, (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नवग्रहगर्भित पार्श्वनाथजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: दोसावहारदुक्खो णालिय; अंति: जिणपहसूरिहि० पीडति, गाथा-१०. ५३२८३. (+#) अझारी सरस्वती छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४३०). सरस्वतीदेवी छंद-अजारीतीर्थ, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता मन आणी; अंति: शांतिकुश० फलसे ताहरी, गाथा-३५. ५३२८४. (+) रात्रिभोजन सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११, १४४३७). रात्रिभोजनपरिहार सज्झाय, मु. कुशालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८७५, आदि: अरिहंत आगम भाषियोरे; अंति: कुसाल० पोल करी पकास, गाथा-२५. ५३२८५. (+-#) नाकोडा छंद व गीत, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. रतन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १२४३१). १. पे. नाम. नाकोडापार्श्वजिन छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-नाकोडातीर्थ, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: आपण घर बेठा लील करो; अंति: समझनै भवह पथ की छो, गाथा-७. २. पे. नाम. जिनकुशलसूरि गीत, पृ. १अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: आयो आयो री समरंतो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ५३२८६. (#) सचित्तअचित्त सज्झाय व सुमतिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १५४४६). १.पे. नाम. सचितअचित सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८४४, ज्येष्ठ कृष्ण, १, ले.स्थल. गौरीपुर, प्रले. पं. जगरुप, प्र.ले.पु. सामान्य. सचित्तअचित्त सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रवचन अमरी समरी सदा; अंति: नयविमल कहै सिज्झाय, गाथा-२७. २. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ सुमतिजिन स्तवन-१४ गुणस्थान विचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सुमतिजिणंद सुमति; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ५३२८७. अष्टोत्तरी स्नात्रविधि, संपूर्ण, वि. १६७९, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११,१२४३१). अष्टोत्तरी स्नात्रविधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम १०८ कूआनउ पाणी; अंति: साह्मीवाछिल करइ. ५३२८८. (+) स्थूलभद्र रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १३४३०). स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति दायक सदा; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ की गाथा-१० अपूर्ण तक है.) ५३२८९. (+) शांतिनाथ विनती व आदिजिन पद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १३४४२). १. पे. नाम. शांतिनाथ वीनती निंदा स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद मात नमु सिरनामी; अंति: गुणसूरि० शिवसुख पावे, गाथा-२२. २. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. आनंदवर्द्धन, पुहिं., पद्य, आदि: आदि जिणंद मया करो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ५३२९०. साधुगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४४८.५, १०४४०). साधुगुण सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: मोटा पंचमहाव्रतधारी; अंति: इम कहै ऋषिरायचंदोरे, गाथा-१०. ५३२९१. (+#) स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १७७२-१७९४, मध्यम, पृ. ६-३(१ से ३)=३, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १७४५०). १.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ४अ-५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-४ अपूर्ण से है., वि. सप्तस्मरणगत ६ठे स्मरण के रूप में इसका उल्लेख मिलता है.) २. पे. नाम. बृहत्शांति, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण, वि. १७७२, फाल्गुन कृष्ण, ३, बुधवार, पठ. श्राव. रूपा (गुरु पं. श्रीविजय); प्रले. पं. श्रीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैन जयति शासनम्, (वि. सप्तस्मरणगत इसे ७वे स्मरण के रूप में उल्लेख मिलता है.) ३.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ६अ, संपूर्ण, वि. १७९४, कार्तिक शुक्ल, १४. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. ४. पे. नाम. नवग्रह स्तोत्र, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिविधिश्रुतं, श्लोक-११. ५३२९२. चार प्रत्येकबुद्ध व पंचम आरा सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १२४३४). १.पे. नाम. चार प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी अति भली; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., दूसरे प्रत्येकबुद्ध सज्झाय की गाथा-४ अपूर्ण तक लिखा है.) २.पे. नाम. पंचम आरा सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहे गौतम सुणो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण तक ५३२९३. सीमंधर स्तव, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, १४४३८). For Private and Personal Use Only Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सीमंधरजिन स्तवन, मु. ब्रह्म, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: श्रीसीमिधर जिणवरु; अंति: ब्रह्मऋषे० ठामे थापो, गाथा-२४, (वि. प्रतिलेखक ने १ गाथा को २ के क्रम से गिना है.) ५३२९४. (+#) अरणकमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११.५, १४४३४-३७). अरणिकमुनिसज्झाय, पं. हरख, मा.गु., पद्य, आदि: दत दयालु छे लाले; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) ५३२९५. खंधकमुनि चौढालियो, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२५.५४११, १३४३३). खंधकमुनि सज्झाय, मु. जयसिंघ ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि: गोयम गणधर मनधरु; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ की गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ५३२९६. पार्श्वजिन व पद्मप्रभ-वासुपूज्यजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, दे., (२६४११, १३४२७). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. __पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. रायचंद ऋषि, पुहि., पद्य, वि. १८४२, आदि: (-); अंति: ऋष रायचंद० हर्ष उलास, ___ गाथा-१३, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पद्मप्रभवासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पद्मप्रभ-वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४१, आदि: रंगभर राता हौ दाता; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ तक है.) ५३२९७. (#) ज्ञानपंचमी स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, पठ. मु. देवराजविजय (गुरु पं. दोलतविजय गणि); प्रले.पं. दोलतविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४४२). १. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण.. सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. २. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: समुद्रभूपालकुलप्रदीप; अंति: देवी जगतः किलांबा, श्लोक-४. ५३२९८. (+) विमलनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. गोपाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १२४३५). विमलजिन पंचकल्याणक स्तवन-मेदिनीतटिमंडण, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: विमलनाथ सुणउ वीनती; अंति: समयसुंदर० सुजगीस ए, गाथा-१५. ५३२९९. छंद व स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ३, दे., (२५.५४११, ११४३४). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ छंद, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षजी, मु. आनंदवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: चूरे आणंदवर्धन वीनवे, गाथा-१०, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. परमेष्टी पंजर, पृ. ३आ, संपूर्ण. वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं परमेष्ठिनम; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. ३. पे. नाम. घंटाकर्ण महावीर स्तोत्र, पृ. ३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो भगवते; अंति: (-), (पू.वि. मात्र श्लोक-१ का प्रथम पाद है.) ५३३००. (+#) पच्चक्खाण संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पच्चक्खाण यंत्र सहित., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, ६x४८). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: गारेणं वोसिरामि. प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: सूर्यना उदयथी आरंभी; अंति: वोसिरइ कहता त्याग छइ. ५३३०१. (+#) आलोयणा स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १०-११४३४). For Private and Personal Use Only Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ १६५ आदिजिनविनती स्तवन, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६६६, आदि: श्रीआदि जिणेसर प्रणम; अंति: रिषभ बोलै०आलोवा आपणा, ढाल-५, गाथा-५७. ५३३०३. (+#) ढुंढ रासो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०, १५४४४). ढुंढक रास, मु. अविचल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात मया करी; अंति: अविचल० रास ए उलास ए, गाथा-१०८. ५३३०४. (#) नवपद पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१०.५, ११४२६-३२). सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा.,मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण; अंति: (-), (पू.वि. "उपाध्याय पूजा" अपूर्ण तक है.) ५३३०५. उत्तराध्ययनसूत्र गीत, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४१०.५,११४४१). उत्तराध्ययनसूत्र-गीत, संबद्ध, उपा. राजशील, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मति अति निरमली; अंति: (-), (पू.वि. "द्वितीय अध्ययन गीत" अपूर्ण तक है) ५३३०६. (#) अबयदी प्रश्न, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. प्रतिलेखन संवत् संकेतात्मक रूप से विविध अंकसमूह में दिया गया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, १६४६५). पाशाकेवली-भाषा, पुहि., गद्य, आदि: अवयद ए च्यारि अक्षर; अंति: सत्यमेव जाण, प्रकरण-४. ५३३०७. नेमिजिन नमस्कार व महावीरजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९३९, श्रावण कृष्ण, ९, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, पठ. मु. समरथ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतनाम में पार्श्व नमस्कार लिखा हुआ है., दे., (२६.५४६.५, ४-८४३०). १. पे. नाम. नेमिजिन नमस्कार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. क. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: नेम नमु निसदीस जन्मल; अंति: ऋषभ० जस महीमा जग कीध, गाथा-३. २.पे. नाम. महावीरजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. क. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु वीर जिणंद मही; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रथम गाथा अपूर्ण मात्र है.) ५३३०८. (#) अरजनमाली व नरकनो चौढालीया, संपूर्ण, वि. १८५२, श्रावण कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४५). १.पे. नाम. अरजनमालीरो चोढालीयो, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. ___ अर्जुनमाली चौढालीयो, मा.गु., पद्य, आदि: राजगृही नगरी अति सुं; अंति: ताहरी धन ते अणगार हो, ढाल-४, गाथा-३४. २. पे. नाम. नरकरो चौढालीयो, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. नरक चौढालिया, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: आदिजिणंद जुहारीयइ मन; अंति: गुणसुरंद०सम पद पाईयै, ढाल-४, गाथा-३३. ५३३०९. (#) उतपनी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्रले. श्रावि. कला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित न होने के कारण काल्पनिक पत्रांक-२ लिया गया है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०.५, १४४३६). औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: इम कहइ श्रीसार ए, गाथा-६९, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा २९ अपूर्ण से है.) ५३३१०.(-) चौद सुपन व गर्भ पोषण, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५४११, १६४३६). १. पे. नाम. सूपन सबंध, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १४ स्वप्न विचार, मा.गु., गद्य, आदि: माता त्रसलाने; अंति: रूडा सुपन दीठा. २. पे. नाम. गर्भपोषण विधि, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन गर्भपोषण विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: हवे सुखे सुखे गर्भ; अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५३३११. बत्तीसी, स्तवन व दुहरा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-५(१ से ५)=१, कुल पे. ३, अन्य. सा. कसलीबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१०.५,१५४३८). १.पे. नाम, बालचंदनी बत्रीसी, पृ. ६अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद मुनि, पुहिं., पद्य, वि. १६८५, आदि: (-); अंति: बालचंद० सुखकंद, गाथा-३३, (पू.वि. गाथा-३१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सीतलदेवतुं तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन, ग. मेघराज, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: शीतल जिनवर देव सुणो; अंति: गणि मेघराज० मारा लाल, गाथा-६. ३. पे. नाम. औपदेशिक दुहरा, पृ. ६आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा, पुहि., पद्य, आदि: विद्याधन उद्यम विना; अंति: मिले जुं पंखे कौ पौन, दोहा-१. ५३३१२. औपदेशिक कोरडो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. जयानंद जोशी; पठ. वसनजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११.५, ११४३६). औपदेशिक कोरडा, मु. हरिसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: खोयो खोयो रे मूढमती; अंति: हरीसंग सुपन आ संसार, गाथा-२०. ५३३१३. (#) सज्झाय संग्रह वस्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, ४२४२४). १.पे. नाम. ढंढणा अणगारनी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ढंढणऋषि सज्झाय, मु. प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिनेसर वांदीने; अंति: प्रेममुनि जे जेयकार, गाथा-२१. २. पे. नाम. सालभद्रनी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. शालिभद्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन धनो सालभद्र; अंति: लबध कहे एणी देह, गाथा-१२. ३. पे. नाम. युगमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीयुगमंदिर भेटवा; अंति: जिनसागर० अवचल राज, गाथा-६. ५३३१४. (+) सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११, १४४४०). १.पे. नाम. जिनधर्म सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना प्रभाति, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: रे जीव जिनधर्म कीजीय; अंति: समयसुंदर० पामे भवपार, गाथा-१०. २. पे. नाम. ब्रह्मचर्य सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-ब्रह्मचर्य, मु. महानंद, मा.गु., पद्य, वि. १८२४, आदि: श्रीजिनवरजी उपदेशे; अंति: मुनीमाहानंद० पद पाया, गाथा-११. ३. पे. नाम. समाधि पच्चीसी, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. समाधिपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३३, आदि: अपूर्व जीव जिन धर्म; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ५३३१५. (-#) साधुगुण सज्झाय व विजयदानसूरि गीत, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१०.५, १२४३६). १. पे. नाम. साधुगुणनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: एसो अपुर मले कोइ; अंति: ते नरसु नीतवासो जी, गाथा-९. २. पे. नाम. विजयदानसूरि गीत, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___मा.गु., पद्य, आदि: विजेदान परमेसर बेठा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५३३१६. सात वारनी सज्झाय व उपदेशनी सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, दे., (२६४१०.५, १२४३५). १. पे. नाम. सातवारनी सज्झाय, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ७ वार सज्झाय, मु. कर्मचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८८१, आदि: (-); अंति: वडाले रह्या चोमास, गाथा-९, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. उपदेशनी सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. कर्मचंद ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: तन धन जोबन का गर्व; अंति: कर्मचंद०एको नहि सरना, गाथा-८. ५३३१७. सझाय संग्रह व स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-८(१ से ८)=१, कुल पे. ४, दे., (२५४१०.५, १३४३९). १.पे. नाम. नेमनाथराजेमतिनी सज्झाय, पृ. ९अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. नेमिजिन स्तवन, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कांति नमे वारो वार, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. मेघकुमारनी सज्झाय, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण.. मेघकुमार सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: धारणी मनावेरे मेघ; अंति: प्रीतमविमल अनुतर वास, गाथा-५. ३. पे. नाम. ऋषभदेवस्वामीनी सज्झाय, पृ. ९आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीरे सफल दिवस थीयो; अंति: हरखविजय० दुख जाय, गाथा-७. ४. पे. नाम. सीमंधरजिन सज्झाय, पृ. ९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सीमंधरजिन विनती स्तवन, वा. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: मनडु ते माहरु मोकलु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ तक है.) ५३३१८. (+#) पार्श्वनाथजी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८१२, वैशाख शुक्ल, २, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०, १३४३५). पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: वनारसी मंडण जिणपास; अंति: लावण्य नवनिधि आंगणे, गाथा-३७. ५३३१९ (#) अशनअनंतकाय विचार सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. पंचपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १२४३२-४५). अशनअनंतकाय विचार, प्रा., पद्य, आदि: असणं पाणगंचेव खाइम; अंति: परिहरिअव्वा पयत्तेणं, गाथा-३३. अशनअनंतकाय विचार-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: चतुर्विध चिहु; अंति: अनंतकाय जाणिवा. ५३३२०. (+#) दानशीलतपभावना संवाद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०, १०४२६). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जणेसर पाय नमी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ अपूर्ण तक है.) ५३३२२. (#) साधुसंगतनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१०.५, १०४३३). साधुसंगति सज्झाय, मु. धर्मदास, मा.गु., पद्य, आदि: प्रवचन वचन सोहामणो; अंति: भावे मुनी धर्मदाशरे, गाथा-७. ५३३२३. शाश्वता जिनबिंब संख्या वृद्धि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५, १८४४२). शाश्वत जिनप्रतिमा विचार स्तवन, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी प्रभुना पयकमल; अंति: सौभाग्य० भय गमी, ढाल-३, गाथा-२३. ५३३२४. (#) स्तवन व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १७४४०). १. पे. नाम. महावीरदेव स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महावीरजिन स्तवन-सांचोरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: धन्न दिवस मइ आज; अंति: समयसुंदरतूं परमेसरो, गाथा-१४. २. पे. नाम. धन्नैरी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. तिलोकसी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवाणी रे धन्ना; अंति: तिलोकसी० सुख पामस्यै, गाथा-२०. ५३३२५. (#) चतुःशरणसूत्र, संपूर्ण, वि. १७०२, मार्गशीर्ष शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ३, प्रले. ग. सुमतिविजय (गुरु ग. सूरविजय पंडित); गुपि.ग. सूरविजय पंडित; अन्य. मु. सौभाग्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १३४३९). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. ५३३२६. (#) चंद्रराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-५(१ से ५)=४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १६४३८). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-५, गाथा-८ अपूर्ण से ढाल-१०, गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ५३३२७. (#) स्वप्न चउद विचार, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२५४१०.५, १५४४०). कल्पसूत्र-१४ स्वप्न विचार, संबद्ध, रा., गद्य, आदि: पहिलइ स्वप्नइ सिंह; अंति: (-), (पू.वि. १२ वां स्वप्न अपूर्ण तक ५३३२८. (+-) रिषभदेवजीरो छंद, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अशुद्ध पाठ., दे., (२५४११, ९४३०). आदिजिन छंद-केसरिया, श्राव. रोड गीरासिंह कवि, पुहि., पद्य, वि. १८६३, आदि: सीदासवराय आयो कपट कर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १९ अपूर्ण तक है., वि. गाथा संख्या नहीं दी गई है.) ५३३२९. (+) आषाढभूति सज्झाय व उपदेशरसाल सत्तीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. कर्ता के शिष्य द्वारा लिखित प्रत-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०.५, १४४३७-४४). १. पे. नाम. आषाढभूति सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. पं. माणिक्यराज (गुरु ग. रूपवल्लभ); गुपि. ग. रूपवल्लभ, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. प्रतिलेखक का नाम रद्द किया गया है, परन्तु वाच्य है. आषाढाभूतिमुनि सज्झाय, ग. रूपवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: एकाकी आषाढमुनि सुमति; अंति: रुपवल्लभ० संपति पावै, गाथा-२५. २. पे. नाम. उपदेशरसाल सत्तीसी, पृ. १आ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपदेशरसालछत्तीसी, मु. रुघपति पाठक, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनचरण नमी करी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३४ तक है.) ५३३३०. (#) पर्यांताराधना सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. त्रिपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२४४१०.५, ५४३८-४२). पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४४ तक है.) पर्यंताराधना-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: नत्वा तत्त्वार्थवेत; अंति: (-). ५३३३१. (+) ऋषभदेव लावणी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, प्र.वि. गाथा संख्या अव्यवस्थित है., संशोधित., जैदे., (२५४११, १२४३४-३९). आदिजिन छंद-धुलेवा, क. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७५, आदि: (-); अंति: दीपविजय० सब कीरत कहे, ___ गाथा-६३, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-३ अपूर्ण से है.) ५३३३२. (+) सज्जनचित्त वल्लभ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १२४३८). For Private and Personal Use Only Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ १६९ सज्जनचित्तवल्लभ काव्य, आ. मल्लिषेण, सं., पद्य, आदि: नत्वा वीरजिनं जगत्त; अंति: मल्लिषेण०विच्छित्तये, श्लोक-२५. ५३३३३. (#) दंडकप्रकरण अवचूरि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १७७५३-५९). दंडक प्रकरण-स्वोपज्ञ अवचूरि, मु. गजसार, सं., गद्य, वि. १५७९, आदि: श्रीवामेयं महिमामयं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२९ की अवचूरि तक है.) ५३३३४. (+) विचारषत्रिंशिका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-५(१ से ५)=२, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १३४३१). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिऊण चउवीसजिणे तस्स; अंति: गयसारेण० अप्पहिया, गाथा-३८, संपूर्ण. ५३३३५. (#) इक्षुकारी सिंधिव अढारनात्रा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८१४, चैत्र कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. भीणाय, प्रले. सा. हीराजी आर्या, पठ. सा. गुला आर्या (गुरु सा. हीराजी आर्या), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, २४-२८४५४-६०). १.पे. नाम. इषुकारी सिंधि, प्र. १अ-३अ, संपूर्ण. इक्षुकारसिद्ध चौपाई, मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४७, आदि: परमदयाल करें आसा; अंति: खेम भणैः कोडि कल्याण, ढाल-४. २. पे. नाम. अढारनात्रा की सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. १८ नातरा सज्झाय, मु. छीतरऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: कर्म सबल जग जाणीयइ; अंति: छितर० तु रोवतौ रे, ढाल-२, गाथा-२२. ५३३३६. (#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १८४४०-५०). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: हम मगन भए प्रभुध्यान; अंति: जस कहे० मैदान में, गाथा-६. २. पे. नाम. प्रभाति स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-प्रभाति, मु. लाभउदय, मा.गु., पद्य, आदि: उठोने म्हारा आतमराम; अंति: लाभउदय० वधाई रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. साधारणजिन वीनती, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. साधारणजिन विनती स्तवन, मु. भुधर, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवनगुरु स्वामी; अंति: भूधर० कीजीयै जी, गाथा-९, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथा को एक गाथा गिना है.) ५३३३७. विमलनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५, ७४२९). विमलजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: घरि अंगण सुरतरु; अंति: जिनराज० देव प्रमाण, गाथा-४. ५३३३८. (#) विधिपचवीशी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७७७, चैत्र शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ५४५१). विधिपंचविंशतिका, मु. तेजसिंघ ऋषि, सं., पद्य, आदि: यदुकुलांबरचंद्रक नेम; अंति: जिनं शरणं परिगृह्यते, श्लोक-२६, (वि. गाथा व्युत्क्रम है.) विधिपंचविंशतिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: य० यादवना कुलरूपीया; अंति: अधिक एकदा स्रवसरइ. ५३३३९. अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १६४३८). ८ प्रकारी पूजा, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: (-); अंति: यजामहे स्वाहा, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., चंदनपूजा से है.) ५३३४१. (#) गीत संग्रह व पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १४४२६-३६). "-) For Private and Personal Use Only Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. सिसाणै गोरल रोगीत, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. रत्नगढ, प्रले.पं. आसकरण, प्र.ले.पु. सामान्य. क्षेत्रपाल गीत, खेतो, रा., पद्य, आदि: हारेलाला खेलण; अंति: खेतो० वीर रेलाला, गाथा-५. २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. खुशालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नानडियो गोद खिलावै; अंति: खुस्याल० सुख पावै छै, गाथा-७. ३. पे. नाम. आत्म उपदेशगीत, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, महमद, मा.गु., पद्य, आदि: भूलो मन भमरा कांई; अंति: महमद कहै० साहिब हाथ, गाथा-१०. ५३३४२. आउखा उपर सिज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४१०.५, १०४३२-४२). औपदेशिक सज्झाय-आयुष्य, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: आउखो तुटांनै सांधो; अंति: चोथमलजी० मझार रे, गाथा-७. ५३३४३. (-#) श्रीमंदरजीनी कागद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. गोगुंदा, प्रले. श्राव. गमाण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीआरेजी मारोजीरे पेरसादे, अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२४१०.५, १५४२८-३२). सीमंधरजिन पत्र, क. नर, मा.गु., गद्य, आदि: सरसती श्रीमाहावेदेह; अंति: नर० वेधी नोवत बाजे, पत्र-२. ५३३४४. (-#) पद व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११, १२४३३-३८). १. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. खुशालराय, पुहिं., पद्य, आदि: मेरा जीवडा लग्या जिन; अंति: खुस्याल० भव पातक भगा, गाथा-४. २. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन पद, मु. आनंदवर्द्धन, पुहिं., पद्य, आदि: आद जिणंद मया करो; अंति: आनंदवरधन० आसारे, गाथा-३. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंखेसर पास; अंति: जिनचंद० रिप जीवत्तौ, गाथा-५. ५३३४५. विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११, ११४४०). विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: अद्दामलगपाण पुढवी; अंति: ततोयं दक्षणा करे. ५३३४६. (+) थंभणपार्श्वनाथ स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-१(४)=४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १०४२२-२८). पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु प्रणमुरे पास; अंति: आणी कुसललाभ पयंपये, ढाल-५, गाथा-१८, (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से १६ अपूर्ण तक नहीं है.) ५३३४७. (#) महावीरजिन चौढालीया, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१०.५, १४४३७). महावीरजिन चौढालिया, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३९, आदि: सिधारथकुले जी उपनो; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२, गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ५३३४८. (#) सोल सुपना व नेमराजुल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०, ११४३७). १.पे. नाम. सोल सूपना सज्झाय, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. १६ स्वप्न सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पाडलपुर नामे नगर; अंति: दीयो छकाया दानोरे, गाथा-३६. २.पे. नाम. नेमराजिमती बारमासो, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: राणी राजल इण परि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५३३४९. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित टिप्पणयुक्त पाठ - अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६X११, १५x५८-६० ). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः कुमुदबं० प्रपद्यते, लोक-४४. ५३३५०. (+) सर्वसाधारण स्तोत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८४८, आषाढ़ शुक्ल, ८, सोमवार, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल राजनगर, प्र. वि. त्रिपाठ-संशोधित. प्र. ले. लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दुष्ड्डा, जैदे. (२६४११, ५४३१). ५३३५२. स्तवन गीत व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे, ४, दे., (२५.५X१२.५, ११४३७). १. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि. सं., पद्य वि. १४बी, आदिः श्रेयः श्रियां मंगल, अंतिः रत्नाकर० प्रार्थये श्लोक-२५. रत्नाकरपच्चीसी - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: हे सर्वज्ञ त्वं चिरं, अंतिः मोक्षनुं करणहारण छई. महावीर जिन विनती स्तवन- जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी वीनती; अंति: थुण्यो त्रिभुवन तिलड, गाथा-१९. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गिरुआ रे गुण तुम; अंति: जस० जीवन आधारो रे, गाथा - ५. ३. पे. नाम. संभवनाथ गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. संभवजिन स्तवन, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: संभव जिणंद गायो रसना, अति: सरण गह्यो तेरो, गाथा - ३. ४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. खुशालराय, पुहिं., पद्य, आदि: मेरा जीवडा लगा; अंति: खुश्याल० भगा मेरा, गाथा-४, (वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गाथा गिना है.) ५३३५३. पार्श्वजिन व पंचतीर्थ स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे. (२५.५x१२.५, ११४३३). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. १७१ मु. अनूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जीवन माहरा त्रेवीसमा; अंति: पसाय पभणे अनुपमचंद, गाथा-५, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथा को एक गाथा गिना है.) २. पे. नाम. पंचतीर्थ स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. ५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदिः आदए आदए आदि जिनेसरूए अंति: (-), (पू. वि. गाथा - ३ अपूर्ण तक है. वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या नहीं लिखी है.) " ५३३५४. (+) सज्झाय व स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पू. ३-२ (१ से २) -१, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित. वे. (२५.५४१२.५, १२X३२). १. पे नाम. अरणकमुनि सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. अरणिकमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: अरणक मुनिवर चाल्या, अंतिः समवसुंदर० फल सिधो जी, गाथा- ८. ५३३५६. ज्ञानपंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२६४१२.५, १६४४३). " 1 २. पे नाम महावीरस्वामीनुं पारणानुं स्तवन, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन स्तवन- पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु, पद्य, आदि श्रीअरिहंत अनंत गुण, अंति: (-), (पू.वि. गाथा - १० अपूर्ण तक है.) ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन- बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगुरुपाय; अंति: भग भाव प्रशंसीयो, ढाल -३, गाथा-२०. ५३३५७. सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण वि. १८७० आश्विन कृष्ण, ८, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३ ले, स्थल, योधपुरनगर, जैदे. (२७४१३. " १५X४२). For Private and Personal Use Only Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सिद्धचक्र स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: त्रीजै भव वर थानिक; अंति: इग्यारमी ए ढाल रे, ढाल-११, गाथा-४६. ५३३५८. (+) वृद्धनवकार स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. अहिपुर, पठ. पूनमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६.५४१३, ११४३४). नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि: किं कप्पतरु रे अयाण; अंति: सेवा देज्यो नित्त, गाथा-१३. ५३३५९. (-) गौतमस्वामी छंद, संपूर्ण, वि. १९२१, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. दर्शनविजय (गुरु मु. लक्ष्मीविजय); गुपि. मु. लक्ष्मीविजय; पठ. मु. गुलाबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२६.५४१३, १२४३६). गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिणेसर केरोसीस; अंति: लावण्यसमय० संपति कौड, गाथा-९. ५३३६०. नवपद व साधारणजिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२३.५४१३.५, १३४२२). १.पे. नाम. नवपद पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: जिन जित नमो नित नमो; अंति: ओर द्वार मत भमो भमो, गाथा-३. २. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: थारे मुखडारी हो वारी; अंति: प्रभु तुम ही सहाय, गाथा-४. ५३३६१. (+#) लघुशांति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८५, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, जीर्ण, पृ. २, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र.ले.श्लो. (६२०) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६४१२, ५४३८-६५). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. लघुशांति स्तव-टीका का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अहंक० हूं श्रीशांति; अंति: मान० कर्ता जाणवो. ५३३६३. महावीरजिन विनती, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३.५४१३, ९४२१). महावीरजिन विनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मुज विनती, अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ५३३६४. (+) जिनपाल जिनरक्षित स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. राजकुल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४१०.५, १९४४८-५८). जिनपालजिनरक्षित रास, मु. आनंदप्रमोद, मा.गु., पद्य, वि. १६२६, आदि: सरसति मझमति दिउ; अंति: आणंदप्रमोदसंपद टोलइ, गाथा-७०. ५३३६५. थरादनो लेख व वर्षावर्णन सवैया, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२०४१२.५, १६x२६). १.पे. नाम. थरादनो लेख, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. आदिजिनविनती लेख-थिरप्रद, मु. सायधण, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: स्वस्ति श्रीसुख संपत; अंति: वार शुक्र सुविचार, ढाल-४, गाथा-७७. २.पे. नाम. वर्षावर्णन सवैया, पृ. ४आ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासो, मा.गु., पद्य, आदि: घनघोर घटा घन ही; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६ तक है.) ५३३६६. नवपद स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२५४१२, १५४४५). नवपद स्तवन, मु. कुशल, पुहिं., पद्य, आदि: तेरम गुण वसकै कंत; अंति: (-), (पू.वि. "साधुपद स्तवन" अपूर्ण तक है.) ५३३६७. (-) सल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५४१२, २१४४२). शल्यछत्रीशी सज्झाय, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: अरीहंत सीध आचारजी; अंति: जेमल० सुख थायोरे, गाथा-३६. ५३३६८. (#) रोहिणी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४७, कार्तिक कृष्ण, १०, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१३.५, ११४२८). For Private and Personal Use Only Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ www.kobatirth.org १७३ रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु, पद्य वि. १७२०, आदि: सासणदेवत सामणीए मुझ, अंतिः श्रीसार० गुण आसा फली, दाल-४ गाथा २८. ५३३६९. () स्तवन व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. ३, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे., । ८x४२). १. पे नाम, आदिजिन पद, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर साहिबा, अंति: जिनहर्ष ० सुख लाल रे, गाथा ५. ३. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. आदिजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: (-); अंति: लालचंद० मझारो रे, गाथा - ११, (पू. वि. गाथा - ८ अपूर्ण से है.) २. पे नाम, सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण .वे. (२७४१२.५. कनककीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: दादोजी दोलतदाता सुख, अंतिः कनककीरत गुण दाता, गाथा-२. ५३३७०. (-) सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., ( २६.५X१२, १२X३०). १. पे. नाम. रहनेमी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. रखनेमि सज्झाय, मु. वसता मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: काउसण थकी रे अंतिः छे मुगती मझार रे, गाथा- ७. २. पे. नाम. परनारी सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय- परनारी परिहार, मु. सुमतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीववारु छु मोरा; अंति: सुमति० आवागमन निवार, गाथा - ६. ३. पे. नाम. निंदा सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय- निंदात्याग विषये, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: नंद्या एम करस्यो; अंति: (-). ( पू. वि. गाथा ३ तक है.) ५३३७१. (+) एकसो आठ नाम पार्श्वनाथजीनो छंद, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. विजापुर प्र. वि. संशोधित, जैवे., , (२७.५X१३.५, १४X३८). अंति: पार्श्वजिन अष्टोत्तरनाम छंद, मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८१, आदि: पास जिनराज सुणी आज, (१) संपदा सुख वरिवी, (२) उदयसोमसूरि इंद ठरीबी, गाथा - २१. ५३३०२. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. १, जे., (२५.५४१३.५, १५४३५). महावीरजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: माताजी तुमे धन धन रे; अंति: भक्ति वसे भगवान रे, गाथा- ११. ५३३७३. सोल सुपन सझाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२७X११.५, ८X३४). १६ स्वप्न सज्झाय, मा.गु, पद्य, आदिः सुपन देखी पेहलडे अंति: (-), (पू. वि. गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) ५३३०४. रोहिणीतप व सीमंधरजिन विनती स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, दे. (२६४१३.५, १२X३०). १. पे. नाम. रोहिणीतप स्तवन, पृ. १अ - ३आ, संपूर्ण. "" मु. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: हां रे मारे वासुपूज, अंति: रोहिणी गुण गाईया, ढाल-६, गाथा-४१. २. पे. नाम. सीमंधरजिन विनती, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सीमंधरजिन विनती स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुण सीमंधर साहिबाजी, अंति: (-), (पू. वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ५३३७५. (+) श्रावकप्रतिक्रमण सूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २. प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६.५४११, १३४३५-४०)वंदित्तसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे, अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. ५३३७७. सीमंधरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २- १ (१) =१, दे. (२७४१३, १२४३६). "" For Private and Personal Use Only सीमंधरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि (-); अंति: सुजश विलासने वरशे रे, गाथा - ३८, ( पू. वि. गाथा - २१ से है . ) Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५३३७९. क्रोधमानमायालोभ चौढालियो व नेमराजिमती सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४१३, १९४३७). १.पे. नाम. क्रोधमानमायालोभ चौढालियो-ढाल ४, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ४ कषाय चौढालिया, मु. धनिदास, मा.गु., पद्य, वि. १९०९, आदि: (-); अंति: पावेगा तु पावेगेरे, प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुहिं., पद्य, आदि: शिवरमणि जादु डार्या; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ५३३८०. आषाढाभूति सझाय, अपूर्ण, वि. २१वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ., (२७४११, ८४३१). आषाढाभूतिमुनि पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: दर्सण परिसो बाविसमो; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ की गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ५३३८१. (#) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, ११४३४). महावीरजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: हवे इंद्र आदेसे धनदत; अंति: ज्ञानविमले० एह वखाण, गाथा-३३. ५३३८२. नेमबहोत्तरी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७४१२, १३४३५-४२). नेमिबहुत्तरी स्तवन, मु. मूलचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: प्रथम जिणेसर पाय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४३ तक है.) ५३३८३. ककाबत्तीसी, सझाय व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-५(१ से ५)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२६.५४१२, १५४४०). १.पे. नाम. कका उपदेशी, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ककाबत्रीसी, मु. जिनवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: शीश जीवो ऋष्य एम भणै, गाथा-३३, (पू.वि. गाथा-३२ ___ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. जंबुस्वामी सज्झाय, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. जंबूस्वामी सज्झाय, मु. सिंहविमल, मा.गु., पद्य, आदि: संजम लैइनै सांचर्या, अंति: सिंहविन्धन्य तु अणगार, गाथा-१६. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: सरसतस्वामीने वीनवू; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ५३३८४. (+) सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४१२, १८४३०). १. पे. नाम. सीखामणनी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-काया उपरि, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्राणि काया धरि छ; अंति: सुभवीर जीणंद दीआल रे, गाथा-१२. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-जीवोपरि, अखेराम, मा.गु., पद्य, आदि: आ भवरतन चिंतामणि; अंति: कहे अखेराम० तरीया रे, गाथा-१३. ३. पे. नाम. नंदिषेण सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्री नगरीनो वासी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण तक है.) ५३३८५. पंचमीस्तवन व क्षायिक भावादि विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-६(१ से ६)=१, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१४, १६x४०). १. पे. नाम. पंचमी स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ पंचकल्याणक सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिनेश्; अंति: लक्ष्मीसूरि० थाये रे, ढाल-५, गाथा-१७. २.पे. नाम. क्षायिक भावादि विचार, पृ. ७आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: क्षायक भाव ५ लब्धि; अंति: लेसिया ४ गति ४ कषाय. ५३३८६. नंदीश्वरस्तव व पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२, १६x४५). १.पे. नाम. नंदीश्वर स्तव, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. नंदीश्वरद्वीप स्तोत्र, मु. मेरु, अप.,मा.गु., पद्य, आदि: सिरि निलय जंबुदीवाय; अंति: मेरु सुभत्तइ बोलइ, गाथा-२५. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. उपा. जयमाणिक्य, मा.गु., पद्य, वि. १८४९, आदि: प्रभु पारस प्रभुता; अंति: जयमाणिक्य० गुण वरीयै, गाथा-११. ५३३८८. (+) प्रभंजनासती सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१३.५, १६x४२). प्रभंजनासती सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गिरि वैताढ्यने उपरे; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३, गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ५३३८९. (+) मुखपोतिका विचार सह अवचूरी व पुण्यकुलक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १३४५४). १. पे. नाम. मुखपोतिका विचार सह अवचूरी, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रतिलेखनबोल गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सुतत्थतत्थदिट्ठी; अंति: तणत्थं मुणि बिति, गाथा-५. प्रतिलेखनबोल गाथा-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: सूत्रार्थ तत्त्व; अंति: सवद्य परिहरामि. २. पे. नाम. पुण्यकुलक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुण्यपाप कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: छत्तीसदिणसहस्सा; अंति: धम्ममि उज्जमह, गाथा-१६. ५३३९०. महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, दे., (२७४१४, ११४२६). महावीरजिन स्तवन, सोहनलाल ब्राह्मण, पुहि., पद्य, आदि: सिमर नर महाबीर भगवान; अंति: सोहन० मुक्ती दान, गाथा-७, संपूर्ण. ५३३९१. (+) सज्झाय संग्रह व चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२.५, ९-१२४२८-३२). १.पे. नाम. सहजानंदी सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: सेहेजानंदी रे आतमा; अंति: वीर० तरीया अनेक रे, गाथा-११. २. पे. नाम. वणझारानी सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. वणझारा सज्झाय, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नरभव नगर सोहामणुं; अंति: करे पद्म नमे वारंवार, गाथा-७. ३. पे. नाम. धोबीडानी सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: धोबीडा तुं धोजे मननु; अंति: सुखडी अमृतवेलरे, गाथा-६. ४. पे. नाम. शत्रुजय चैत्यवंदन, पृ. ३आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशेजय सिद्ध; अंति: ग्यानविमल गुण गेह, गाथा-३. ५३३९२. वर्धमानस्वामीनूंपारणूं, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२६.५४१२, १२४४०-४५). महावीरजिन पारj, मु. अमीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: माता त्रिसलाई पुत्र; अंति: कहे थास्ये लीला लेर, गाथा-१८, (वि. पत्र मूषकभक्षित होने से गाथा-१४ अपूर्ण से १७ अपूर्ण तक का पाठ नहीं है.) For Private and Personal Use Only Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५३३९३. रोहिणी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. मकसूदाबाद, प्रले. मु. गोकलचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२.५, १८४५३). रोहिणीतप स्तवन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: हारे मारे वासुपूज; अंति: रोहिणी गुण गाइये, ढाल-६, गाथा-३१. ५३३९४. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-२(१ से २)=३, कुल पे. २, दे., (२६.५४१२.५, १३४३६). १.पे. नाम. सम्मेतशिखरगिरि स्तवन, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. वीसजिन स्तवन-सम्मेतशिखरतीर्थमंडन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: पद्मविजय वीसवावीस, गाथा-९, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ४अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: श्रीगुरु चरण कमल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३४ अपूर्ण तक है.) ५३३९५. रोहिणीतप स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२४.५४१२.५, १६x४५). रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासनदेवी सामणी ए; अंति: श्रीसार०मन आस्या फली, ढाल-४, गाथा-२६. ५३३९६. कृष्ण बलभद्र चौढालीयो, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७४१२, १४४३५-३९). कृष्णबलभद्र चोढालीयो, मा.गु., पद्य, आदि: नेमजीणंद समोसर्या; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ अपूर्ण तक है.) ५३३९७. (+#) भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२५.५४११, १०x२८). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामर प्रणत मौलि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३९ अपूर्ण तक है.) ५३३९८. (#) सोल सती सझाय, संपूर्ण, वि. १९१२, माघ कृष्ण, ८, सोमवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. लाडणू, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१३.५, १४४३१). १६ सती सज्झाय, मु. प्रेमराज, पुहिं., पद्य, आदि: सील सुरंगी सुभांतक; अंति: पोमराज० सती पदमावती, गाथा-७. ५३३९९. विवेक विलास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२५४१३, २१४३९). विवेक विलास, पुहि., पद्य, आदि: श्रीजिनचरन प्रनाम कर; अंति: नहचै मुरख जानौ तेह, गाथा-७८. ५३४००. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २८-२७(१ से २७)=१, कुल पे. ४, दे., (२६.५४१२.५, १६४३९). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २८अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. साधु ऋषि, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: साधु० जे जे रेकार, गाथा-३७, (पू.वि. गाथा-३४ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. शीतलनाथनी सज्झाय, पृ. २८अ, संपूर्ण. शीतलजिन होरी, ऋ. साधु, पुहि., पद्य, आदि: श्रीसीतलजिन होरी; अंति: फाग के साधु गुण गाय, गाथा-१०. ३. पे. नाम. मृगावती सज्झाय, पृ. २८आ, संपूर्ण. मृगावतीसती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: राजर खोयुंने सीयल; अंति: आवागमन नीवारो रे, गाथा-११. ४. पे. नाम. सीताजीनी सज्झाय, पृ. २८आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सीतासती सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: जीनरखसुता नाम धरावू; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक ५३४०१. षडावश्यक स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४१२.५, १२४३२-३६). ६ आवश्यकविचार स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसें जिन चेतवी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २९ अपूर्ण तक है.) ५३४०२. (#) बुधीरास, संपूर्ण, वि. १६६७, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२८x१३, १२४३५-३९). बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणम्यवि देवि अंबाई; अंति: जेमनो हे शीअलनो भंग, गाथा-६०. For Private and Personal Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५३४०३. पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पुरुषोत्तम रेवाशंकर शास्त्री, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२८x१३.५, ९४३१). पार्श्वजिन स्तवन-नवखंडा, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९४५, आदि: घनघटा भुवन रंग छाया; अंति: एम वीरविजय गुणगाया, गाथा-६. ५३४०४. विचारषत्रिंशिकासूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. बोल ग्रामे, प्रले. मु. कीर्तिसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०.५, ११४३०-३४). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउण चउविसजिणे तसु; अंति: विन्नत्ती अप्पहिया, गाथा-४०. ५३४०५. (#) हितोपदेश सत्तरी व अवंती सुकमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२७४१२.५, १३४२८-३०). १.पे. नाम. हितोपदेश सत्तरी, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उत्पत्ति जोव जीव आपण; अंति: इम कहे श्रीसार ए, गाथा-६९. २.पे. नाम. अवंती सुकमाल सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. अवंतिसुकुमाल सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: संयमथी सुख पामीये; अंति: ख० हणीवा करम कठोर कु, गाथा-९. ५३४०६. (+) चडीया पडिया सझाय, संपूर्ण, वि. १९४५, श्रावण शुक्ल, १, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. वीजापुरनगर, पठ. हरिभाई मालजी बारोट, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. वीजापुर जैनशाला मध्ये., संशोधित., दे., (२७.५४१२.५, १३४३६). औपदेशिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चड्या पड्यानो अंतर; अंति: जस० मति नवी काची रे, गाथा-४१. ५३४०७. (#) औपदेशिक सज्झाय व पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९६७, चैत्र शुक्ल, १४, शनिवार, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१४, १०-१६४३५). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ+१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: अणी मंदर दीवलो बले; अंति: लेसी कुण छोडायो, गाथा-११. २.पे. नाम. पद्मावती आराधना, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवे राणी पद्मावती; अंति: समयससुं०छोडुं वीतराग, ढाल-३, गाथा-७१. ५३४०८. (#) कान्हड कठियारानी चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२.५, १९४४२-४७). कान्हडकठियारा रास-शीयलविशे, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: पारसनाथ प्रणमुंसदा; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., ढाल-९ गाथा-६ तक है.) ५३४०९. (+) विजयसेठ विजयासेठाणी सझाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२७४१३, १५४२९). विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. कुसल, मा.गु., पद्य, आदि: भरतक्षेत्रइ रे समुद; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-३, गाथा- ३ तक है.) ५३४१०. एकादशी चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९५९, कार्तिक कृष्ण, ९, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. लल्ल शास्त्री, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४१३.५, १२४४८). मौनएकादशीपर्व स्तवन, म. माणेक, मा.गु., पद्य, आदि: विश्वनायक मुक्तिदायक; अंति: माणिक्य मुनि० सुखवरं, गाथा-१३. ५३४११. श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(१)=४, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२५४१३, १३-१६४३१-४०). For Private and Personal Use Only Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. खण्ड- १, ढाल-१, गाथा-११ अपूर्ण से खण्ड- १, ढाल-५, गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ५३४१२. अष्टापदस्थऋषभ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. राधिकापुर, दे., (२६.५४१४, १२४३३). आदिजिन स्तवन-अष्टापदतीर्थ, मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअष्टापद ऊपरे जाण; अंति: फलें सघली आस कें, गाथा-२३. ५३४१४. (+) सिद्धाचलजीका १०८ नमस्कार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. पं. लक्ष्मणसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६.५४१३.५, १२४३२). आदिजिन १०८ नमस्कार-शत्रुजयमंडन, सं., गद्य, आदि: शासनाधीश्वर श्रीवर्ध; अंति: (१)तीर्थ प्रधान भूताय, (२)श्री ___पुंडरीकायन्मः, (वि. आराधना विधि भी संलग्न है.) ५३४१५. (+) शिक्षा छत्रीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, अन्य. पं. हरखविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१३, १२४३६). उपदेशछत्रीसी, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सांभलज्यो सज्जन नर; अंति: विर० वाणि मोहन वेलि, गाथा-३६. ५३४१६. स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. ९, प्रले. पं. विवेकसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१३, १५४४५). १.पे. नाम. ऋषभ स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. षष्ठतीर्थ स्तुति, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: शत्रुजय तीरथसार; अंति: कित इश पूरो संघ जगीश, गाथा-४. २. पे. नाम. सातम तथा १३ नी स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणकंदाहि अंदिप्य; अंति: य सा अम्ह सया पसंथा, गाथा-४. ३. पे. नाम. महावीर स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण, ले.स्थल. व्यालपुर. महावीरजिन स्तुति-गांधारमंडन, मु. जसविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गंधारे महावीर जिणंदा; अंति: जयविजय जयकारी, गाथा-४. ४. पे. नाम. पार्श्व स्तुति, पृ. ३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-गोडीजी, मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परम प्रभु परमेस; अंति: भाणनी जीत करेवी, गाथा-४. ५. पे. नाम. वासुपूज्य स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण, वि. १८९५, ज्येष्ठ शुक्ल, १२, ले.स्थल. खंभायतनगर. वासुपूज्यजिन स्तुति- आंतरोलीमंडन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वासुपूज्य जिनराज; अंति: वाणी वाचक जश सुखखाणी, गाथा-४. ६. पे. नाम. चउदशितिथि स्तुति, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. चतुर्दशीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चौद सुपन सुचित हरि; अंति: नय०सकलसंघ दुख हरणीजी, गाथा-४. ७. पे. नाम. शाश्वतजिन स्तुति, पृ. ४अ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: ऋषभ चंद्रानन वंदन; अंति: पद्मविजय नमे पाया जी, गाथा-४. ८. पे. नाम. सुमतिजिन स्तुति, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: मोटो ते मेघरथ राय रे; अंति: ऋषभ कहे रीखा करोए, गाथा-४. ९. पे. नाम. विमलगिरि स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण. ___ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, श्राव. ऋषभदास , मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशेजूंजो तिरथ; अंति: ऋषभदास गुणगाय, गाथा-४. ५३४१७. श्रुतफुल्लडकानि व आत्मस्वाध्याय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२७७१३, ४४३०). १. पे. नाम. श्रुतफुल्लडकानि सह टबार्थ, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. फूलडा सज्झाय, पुहिं.,रा., पद्य, आदि: बाइरे में कोतिक दिठ; अंति: सुखीयो किम थयो ए, गाथा-२३. फूलडा सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीरस्वामिथी; अंति: सुख पणे अनंत सुख छै. २.पे. नाम. आत्मस्वाध्याय सह टबार्थ, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. . For Private and Personal Use Only Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ www.kobatirth.org आध्यात्मिक हरियाली, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वरसे कांबल भींजे; अंति: (-), (पू. वि. गाथा ७ अपूर्ण तक है.) आध्यात्मिक हरियाली - टवार्थ, मा.गु, गद्य, आदि कांबलते इंद्री जिवार, अंतिः (-). ५३४१८. (+) रुक्मिणजी की ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित., दे., ( २६.५X१२, १९५०). रुक्मिणीसती सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: हृदा दरसण परीसो; अंति: छो दुक दु मोज हो, गाथा - २८. ५३४१९ (4) स्नात्रपूजा, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. कुल ग्रं. १३६ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २६४१२.५, १४X३८-४२). स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चोतिसे अतिसय जुओ वचन, अंति: देवचंद ० सूत्रमझार, ढाल-८, गाथा- ६०. ५३४२०. देववंदन, स्तुति व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ९, दे., ( २६१३, १०-१२x२७-३२). १. पे. नाम. दीपावली देववंदन, पृ. १अ. संपूर्ण. दीपावली पर्व देववंदन विधिसहित आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य वि. १८वी, आदि: वीर जिनवर वीर जिनवर, अंति: कहें नय तेह गुणखांण. २. पे. नाम वीर स्तुति, पृ. १- १आ, संपूर्ण. महावीर जिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य वि. १८वी आदि मनोहर मुरति माहावीर, अंतिः जिनशासनमां जयकार करे, गाथा- ४. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: महावीर मनोहरु प्रणमु अंति: ज्ञानविमल कहीये, गाथा- ९. .पे. नाम गौतमस्वामी चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३. पे. नाम महावीरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जय जय भवि हितकर वीर, अंति: गुण पूरो वंछित आस, गाथा-४. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: नमो गणधर नमो गणधर, अंति: नय० होवे जय जयकार, गाथा-३. ६. पे. नाम गौतमस्वामी स्तुति, पृ. २आ-३अ संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य वि. १८वी, आदि: इंद्रभूति अनुपम गुण, अंतिः नित्य मंगलमालिका गाथा-४. , ७. पे. नाम. गौतमगणधर स्तुति, पृ. ३अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तुति, आ. ज्ञानसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूर्ति अंतिः वरदायकाश्च श्लोक-४. ८. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. १७९ आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वीर मधुरी वाणी भाखे, अंति: नय करे प्रणाम रे, गाथा-७. ९. पे. नाम. दीपालिकापर्व चैत्यवंदन, पृ. ३आ-४अ संपूर्ण יי दीपावलीपर्व चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: दुखहरेणी दिपालिका रे; अंतिः ज्ञानविमल० गुण खाण, गाथा - ९. ५३४२१. (4) अध्यात्म गीता व मोक्षमार्ग वचनिका, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३-१ (१) =२, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६.५४१२.५, २५४५७). ५३४२२. चौवीस जिन कल्याणक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६.५X१३.५, १५X३८). १. पे. नाम. अध्यात्म गीता, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. अध्यात्मगीता. ग. देवचंद्र, मा.गु. पच, वि. १८वी, आदिः प्रणमिए विश्वहित, अंतिः देवचंद्र० रस तोलहीजे, गाथा- ४७. " २. पे. नाम. मोक्षमार्ग वचनिका, पृ. २आ-३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: भव्य जीवने प्रतिबोध, अंति: (-), (पू.वि. पाठ-आठ पुद्गलनी उदारीक१ विक्रीय२ आहारी" तक है.) For Private and Personal Use Only Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २४ जिनकल्याणक स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: प्रणमी जिन चोवीसने; अंति: श्रीजिनराया रे, ढाल-७, गाथा-४९. ५३४२३. कमलावती व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२६४१२, १२४३५). १. पे. नाम. कमलावती सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. कमलावतीसती सज्झाय, ऋ. जैमल, पुहिं., पद्य, आदि: मैलामै बैठी स्ये रां; अंति: मिच्छामिदुक्कडं मोय, गाथा-२७. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण.. मु. आसकरण ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: काल तणै कोई नहीं; अंति: भलो धर्म रसीयो रे, गाथा-७. ५३४२४. (#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२.५, १४४३३). १. पे. नाम. संभव स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. संभवजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३०, आदि: संभव जिनवर वीनती; अंति: वाचक जस० साचुरे, गाथा-५. २. पे. नाम. अभिनंदन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. अभिनंदनजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अभिनंदन जन दरशण तरसी; अंति: थकी आनंदघन महाराज, गाथा-६. ३. पे. नाम. चंद्रप्रभु स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चंद्रप्रभु मुख चंद्र; अंति: तरु आनंदघन प्रभुपाय, गाथा-७. ४. पे. नाम. श्रेयंसजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. श्रेयांसजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रेयांस जिन; अंति: आनंदघन मतवासी रे, गाथा-६. ५३४२५. स्तोत्र संग्रह व स्तुति, अपूर्ण, वि. १८७३, कार्तिक शुक्ल, ११, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(२)=३, कुल पे. ४, ले.स्थल. वगडीनगर, प्रले. श्राव. बुद्धहंस, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, १५४३८). १.पे. नाम. सकलार्हत स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है. सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक- २९ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. ऋषभदेव स्तुति, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. आदिजिन पद, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सिद्ध तिरियो मोहितार, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) ३. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधबीज ददातु, श्लोक-११. ४. पे. नाम. शास्वतजिन स्तोत्र, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: सततं चित्तमानंदकारी, श्लोक-१०. ५३४२६. (#) शीलसंबंधे सुरसुंदरी चोपई, अपूर्ण, वि. १८२९, कार्तिक कृष्ण, ९, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३०-२८(१ से २१,२३ से २९)=२, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२.५, १६४२९). सुरसुंदरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: (-); अंति: आनंद लील उमंगेजी, (पू.वि. खंड-३, ढाल-९ , गाथा-१२ अपूर्ण से खंड-४, ढाल-६, गाथा- २ अपूर्ण तक तथा खंड- ४, ढाल-११, गाथा-७ से है.) ५३४२७. (#) वैराग्य सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१३.५, १३४३६). औपदेशिक सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि: जागरे सुग्यानी जीव; अंति: सासता लहस्यो सुख मेव, गाथा-१९. For Private and Personal Use Only Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ १८१ ५३४२८. (+#) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९०६, चैत्र शुक्ल, १, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. नवानगर बंदर, पठ. श्राव. नानचंद उकरडा दोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२.५, १५४२८-३२). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक-४४. ५३४२९. (+) स्तुति सग्रह, प्रतिक्रमणसूत्र व वीनती, अपूर्ण, वि. १९१५, पौष कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ९-५(१ से ४,७)=४, कुल पे. १५, ले.स्थल. बणारस, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित., दे., (२६.५४१३, १७X४२). १.पे. नाम. नंदीश्वरद्वीप स्तुति, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. सं., पद्य, आदिः (-); अंति: प्रसादं निज दर्शनेन, श्लोक-१, (पू.वि. श्लोक का प्रथम पाद नहीं है.) २. पे. नाम. अष्टापद स्तुति, पृ. ५अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तुति, अप., पद्य, आदि: भरहेसरकारअ देवहरे; अंति: अनंत दहहं सगणा, गाथा-२. ३. पे. नाम. सीमंधर स्तुति, पृ. ५अ, संपूर्ण.. बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न; अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. ४. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ५अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: युगादिपुरषेद्राय; अंति: कूष्मांडी कमलेक्षणा, श्लोक-४. ५. पे. नाम. वीर स्तुति, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: यदंहिनमनादेव देहिन; अंति: नवतु नित्यममंगलेभ्यः, श्लोक-४. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदि: शमदमोत्तमवस्तुमहापणं; अंति: जयतिसा जिनशासन देवता, श्लोक-४. ७. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. ५आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतकसुप्रपंचपरमा; अंति: सासिधाइकात्राइका, श्लोक-४. ८. पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., पद्य, आदि: वरमुत्तिअहार सुतारगण; अंति: सुहाणि कुणे सुसया, गाथा-४. ९. पे. नाम. शत्रुजय स्तुति, पृ. ६अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सिरि सेत्तुजै मंडण; अंति: नंदिसूरि० पसाय सेवता, गाथा-४. १०.पे. नाम. विहरमान स्तुति, पृ. ६अ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: पंचविदेह विषे विहरंत; अंति: जिण मणवंछीय सारओ, गाथा-४. ११. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. ६अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टमि अष्ट प्रमाद; अंति: तसु विघ्न दूरे हरै, गाथा-४. १२. पे. नाम. नवपद स्तुति, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तुति, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमंत सुरनर पाय; अंति: पभणै चंदसमनित सुखकरू, गाथा-४. १३. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ६आ, संपूर्ण. मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जगनायक दायक सिद्ध; अंति: भाखै श्रीजिनचंद, गाथा-४. १४. पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. ६आ-८अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउव्वीसं, गाथा-५०, (पू.वि. गाथा- ४ अपूर्ण से गाथा-४० अपूर्ण तक नहीं है.) १५. पे. नाम. स्तंभनकपार्श्वनाथ वीनती, पृ. ८अ-९आ, संपूर्ण. जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंति: अभय० विन्नवइ अणिदिय, गाथा-३०. For Private and Personal Use Only Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५३४३०. (#) शांतिनाथ कलश, संपूर्ण, वि. १८९०, ज्येष्ठ शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल. रायधनपुर, प्रले. मु. विद्याविजय, लिख. श्राव. पुंजा पदमसी सेठ, पठ. श्राव. वालजी, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीशांतिनाथजी प्रसादात्, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२६.५४१२.५, १४x२८-३० ). "" शांतिजिन कलश, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु. सं., पद्य, आदि: श्रेयः श्रीजयमंगलाभ, अंति: जंपे शांतिजिन जयकार, ढाल- २, गाथा-४२. ५३४३१. उपदेशरत्नकोश सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, दे. (२६.५४१३, ६x२४-२७). उपदेशरत्नमाला, आ. पराजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि उवएसरवणकोसं नासिअ अंतिः वच्छयलि रमइ सच्छाए गाथा - २६. उपदेशरत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः उपदेसरूप रत्न तेहनुं; अंति: आवि रमे पोतानी इछाई. ५३४३२. (+) गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९२२ फाल्गुन शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल, पाटण, प्रले. पं. कल्याणविजय, अन्य. पं. अमृतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., दे., (२७१२.५, १२X३८-४०). गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु, पद्य, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल, अंतिः भद्र गुरु इम भणे ए. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ढाल - ६, गाथा - ७१. ५३४३३. (+) स्तवन, पद संग्रह व दूहा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, ...... (२५.५X१२.५, ८४२८). १. पे. नाम. नेमनाथ स्तवन, पृ. १अ २अ, संपूर्ण, प्रले. आ. अमृतचंद्रसूरि पठ श्रावि. गुलाब कुमर, प्र.ले.पु. सामान्य. नेमिजिन स्तवन, मु. दोलत, मा.गु., पद्य, आदि: मोह तणा दल मोडी रथ; अंति: नाथ सदा गुण गावे रे, गाथा- ११. २. पे नाम, नेमराजिमती पद, पृ. २अ संपूर्ण मु. चेनविजय, पुहिं., पद्य, आदिः सखी स्याम वरण बतलाब, अंतिः चरणां चित लायजा रे, गाथा ४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- शामलिया, मु. उदयरत्न, पुहिं, पद्य, आदि: कोयल टहुंकी रही मधुव अंतिः मेरी चरणकमल में, गाथा-४. ४. पे. नाम. औपदेशिक दूहा, पृ. २आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: पठनासन तारकवक्त रमा अंतिः धर्मी धर्म करे, दोहा २. ५३४३४. रिषिचत्तीसी, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २. जैवे. (२६४१२.५ १४४३५) अष्टापदतीर्थ स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टापद श्रीआदिजिणंद, अंति: जिणहरख नमुं कर जोडि, गाथा - ३२. ५३४३५. पंचज्ञानपूजा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैवे. (२७४१३, १७४३९). 1 " ज्ञानपंचमीपर्व पूजा, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८७, आदि: सकल कुशल कमलावली; अंति: (-), (पू.वि. डाल. ३, गाथा- ६ अपूर्ण तक है.) ५३४३६. (+) नेम राजुल बार मासो, अपूर्ण, वि. १९०५ पौष शुरू, ३, श्रेष्ठ, पृ. २१(१) - १ ले. स्थल. कलकत्ताबंदर, प्र.वि. प्रतिलेखकने लेखन वर्ष १९५ लिखा है, पर लेखन शैली से वर्ष १९०५ प्रतीत होता है. भागीरथी तट्टे., पदच्छेद सूचक लकीरें.. दे.. (२६.५४१३, १२४३१). नेमिजिन बारमासो, मु. खुस्यालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७९८, आदि: (-); अंति: नित नमैं सुभ भावसुं, गाथा-२८, (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गाथा १८ अपूर्ण से है.) " ५३४३७. () गौतम छंद व कुंथुनाथ स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे, २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५X१३, २६४२१). १. पे. नाम. गौतम छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी छंद. मु. लावण्यसमय, मा.गु, पद्य वि. १६वी, आदि: वीरजिणेसर केरोसीस, अंतिः गोतम तुढां संपत कोड, गाथा- ९. For Private and Personal Use Only Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ १८३ २. पे. नाम. कुंथुनाथजीनो तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. कुंथुजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: कुंथुजिन मडौ किम किम; अंति: साचो करि जाणं हो, गाथा-९. ५३४३८. सामायिक सज्झाय व सीमंधरजिन विनती, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२, १४४३१). १.पे. नाम. सामायक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सामायिक सज्झाय, मु. कमलविजय-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम गणधर प्रणमी पाय; अंति: श्रीकमलविजयगुरु शीश, गाथा-१३. २.पे. नाम. सीमंधरजिन वीनती, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन-३५० गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसीमंधर साहिब; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ५३४३९. (#) अग्यार अंग सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४११.५, १७X४८-५२). ११ अंग सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२२, आदि: आचारांग पहेलुंका ; अंति: (-), (पू.वि. अंग- ११, गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ५३४४०. महावीरस्वामीनो जन्मकुंडली स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१३.५, १२४३२). महावीरजिन जन्मकुंडली स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: सेवधी संचउ घेरियां; अंति: श्रुभवीर प्रभु मेहसे, गाथा-१०. ५३४४१. आत्मप्रबोध सज्झाय व महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, दे., (२५४१३, १२४२७). १.पे. नाम. आत्माप्रबोध सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., प्रले. श्राव. वेलचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: (-); अंति: एत्रीण काल वंदा रे, गाथा-९, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: माताजी तुमे धन धन्य; अंति: पण भति वशे भगवान रे, गाथा-१०. ५३४४२. (#) सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. श्रीअजितनाथ प्रसादात्, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१३, ११४२८). सीमंधरजिन स्तवन, मु. हंस, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधरस्वामीजी; अंति: हंस० दरिसण दिजे साथ, गाथा-१५. ५३४४३. (#) कीर्तिध्वजराजा ढाल व विजयसेठ विजयासेठानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, २५४६५). १.पे. नाम. किरतधजनी ढाल, पृ. १अ, संपूर्ण. कीर्तिध्वजराजा ढाल,म. हीरालाल, पुहिं., पद्य, वि. १९३१, आदि: श्रीश्रीआदजिनेसरो; अंति: हीरालाल० हुवा सीव हो, गाथा-६९. २. पे. नाम. विजय कुवरनो चोढालियो, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. विजयसेठ विजयासेठाणी सज्झाय, मु. रामचंद, पुहिं., पद्य, वि. १९१०, आदि: आदिनाथ आदिसरु सकल; अंति: रामचंद० मीछादोकड मोय, ढाल-३. ५३४४४. (4) पंचपरमेष्टी नमस्कार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१३, ११४३०). नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरूं; अंति: जिनप्रभ० सीस रसाल, गाथा-१४. For Private and Personal Use Only Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १८४ ५३४४५, (+) स्तवन संग्रह व गीत, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५-२ (१ से २) = ३, कुल पे, ५. प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२६.५४१२.५, १२X३०). १. पे. नाम. दत्तजिन स्तवन, पृ. ३अ- ३आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. देवचंद्रजी, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: करत निज भाव संभाळ, गाथा- १३, (पू.वि. गाथा- ४ अपूर्ण है.) २. पे. नाम. दामोदरजिन स्तवन, पृ. ३-४अ, संपूर्ण. मु. देवचंद्रजी, मा.गु., पद्य, आदि: सुप्रतीते हो करी थिर, अंति: देवचंद्र पद कारणें, गाथा-५. ३. पे. नाम. सुतेजजिन स्तवन, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण. सुतेजजिन स्तवन- अतीत, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि अति रुडीरे जिनजीनी, अंति: देवचंद्र पद पावे लाल, कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गाथा- ७. ४. पे नाम, स्वामीजिन स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण स्वामीप्रभजिन स्तवन, मु. देवचंद्रजी, मा.गु., पद्य, आदिः नमि नमि नमि नमि विनव, अंतिः शिवसुख धाम नाघरे, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - १३. ५. पे. नाम जिनेश्वर गीत, पृ. ५आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. साधारणजिन स्तवन, मु. देवचंद्रजी, मा.गु., पद्य, आदि: हुं तो प्रभु वारि छु; अंति: देवचद्र० चित्तनी, गाथा-६. ५३४४६, (+) आत्मनिंदा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित, जै. (२४४१२, १४४३५). आत्मनिंदा भावना, मु. ज्ञानसार, रा., गद्य, आदि हे आत्मा हे चेतन ऐ, अंतिः नर सुगुन प्रवीन. ५३४४७, (+) जिनदत्तसूरिजीनो छंद, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. ३, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फेल गयी है, वे.. (२५.५x१२.५, १३X२८-३३). जिनदत्तसूरि छंद, उपा. रुघपति, रा., पद्य, आदि: वरवाचक हंसवाहनी सारद, अंति: सूं रचीयो छंद मनोहरु, गाथा-३५. ५३४४८. विजयकुमारनो चौढालीयो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., ( २६१३, १३x४५). " 5 विजयसेठ विजयासेठाणी सज्झाय, मु. रामचंद, पुहिं., पद्य वि. १९१० आदि आदिनाथ आदिसर सकल, अंतिः ज्ञानादिक विचारी, दाल- ४. ५३४४९. दया छत्तीसी, संपूर्ण, वि. १९३१, ज्येष्ठ शुक्ल, ११, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., ( २६.५X१३, १२X४६). ५३४५१. (+) ५३४५०. ऋषिमंडल स्तोत्र व जैन गायत्री, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४-१ (३) = ३, कुल पे. २, जैदे., । दयाछत्रीसी, मु. चिदानंदजी, पुहिं., पद्य, वि. १९०५, आदि: चरणकमल गुरूदेव के; अंति: महरथी सफल फली मन आस, गाथा-३६. ५३४५२. पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५x२४.५, २०x१४). १४४३२-३७). १. पे नाम, ऋषिमंडल स्तोत्र, पृ. १आ ४अ, अपूर्ण, पू. वि. बीच के पत्र नहीं हैं. पे. वि. गाथा व्यतिक्रम है. आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि : आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: लभते पदमव्ययम्, श्लोक ९०, ग्रं. १५०, (पू.वि. श्लोक- ५० अपूर्ण से श्लोक - ८२ अपूर्ण तक नहीं है. प्रतिलेखक ने श्लोक - ८३, ८४ एवं ८८ नहीं लिखा है.) २. पे नाम, जैन गायत्री मंत्र जापविधि, पृ. ४अ, संपूर्ण जैन गायत्री जाप विधान, सं., प+ग, आदि: अथ चतुर्विंशति अहं, अंति: दिप सहित जानवा. ) फुलडा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. संशोधित., दे., (२५X१३, ४X३२). वज्रस्वामी गहुली, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदिः सखी रे मे कोतिक दिठु, अंतिः शुभवीरने वाल्हडा रे, गाथा-८. वज्रस्वामी गहुंली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः उपशम श्रेणे चढ्यो; अंति: अथ वल्लभ वचने कहै . For Private and Personal Use Only (२६.५X१२, पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि बोले इम सुमता साहेली, अंतिः उत्तम० नाहि केने नमी, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ १८५ ५३४५३. (#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १७४४६). १. पे. नाम. नंदीसर तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नंदीश्वरद्वीप स्तवन, मु. जैनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: नंदीसर बावन जिनालय; अंति: जैनचंद्र गुण गावोरे, गाथा-१५. २.पे. नाम. शीतलनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. शीतलजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १८२७, आदि: भविजन वंदो रेशीतल; अंति: विबुध क्षमाकल्याण, गाथा-११. ३. पे. नाम. पार्श्वस्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-लोद्रवपुरमंडन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: हो सुणि सांवलिया; अंति: क्षमाकल्याण रे लो, गाथा-१०, (वि. दो पद के हिसाब से गाथा १० लिखा है.) ४. पे. नाम. पार्श्व स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: मनमोहन महाराज तीन; अंति: वाचक इम वीनती करैजी, गाथा-७. ५. पे. नाम. समेतसिखरजी स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, आदि: साहिबा समेतशिखर गिर; अंति: आवागमन निवार हो, गाथा-५. ५३४५४. (-) सरीमतीनी ढाल, संपूर्ण, वि. १९८०, कार्तिक कृष्ण, १२, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. उदेपुर, प्रले. श्राव. मोवन; अन्य. मु. गुलाबकुवर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२४.५४१२, १९४५२). श्रीमती रास, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८९४, आदि: सील सुगरे सुख संपजे; अंति: धन जे नर कारज सारे, ढाल-६. ५३४५५. (-) प्रभंजनासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. गोदड देवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५४१२.५, १२४३७). प्रभंजनासती सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गिरि वैताढ्यने उपरे; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम ढाल लिखा है.) ५३४५६. स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७-५(१ से ५)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२०.५४१२.५, १०४२६). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. चंद्रप्रभ स्तवन ८ गाथा ३ अपूर्ण से श्रेयांसजिन स्तवन ११ संपूर्ण तक है.) ५३४५७. (+) पद्मावती ढाल, संपूर्ण, वि. १९५९, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४१२.५, १२४३१). पद्मावती ढाल-जीवराशीक्षमापना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मोटी सति पदमावती; अंति: पापथी छूटे ते तत्काल, ढाल-३, गाथा-८२. ५३४५८. (#) रतनगुरुनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०.५४१२.५, १५४२८). रतनसीगुरु सज्झाय, मु. देवजी, मा.गु., पद्य, आदि: रतनगुरु गुण मीठडारे; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा __ अपूर्ण., गाथा ४३ अपूर्ण तक लिखा है.) ५३४५९. ब्रह्मचर्यनी ढाला, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(४)=४, ले.स्थल. वीकानेर, प्रले. मु. जेठमल मात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३.५४१२, १८४४६). शीलनववाड ढाल, मु. अगरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: प्रणमूं पंच परमेसरू; अंति: धन ए व्रत वीर पयंपे, ढाल-१०, (पू.वि. ढाल ८ गाथा ६ अपूर्ण से ढाल १० गाथा १६ अपूर्ण तक नहीं है.) ५३४६०. (+) चैत्यवंदन व स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-२(१ से २)=४, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१३.५, १३४३५). For Private and Personal Use Only Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. चतुर्विंशतिपाक्षिक चैत्यवंदन, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदिः (-); अंति: वः श्रेयसे शांतिनाथः, श्लोक-३२, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा के दो पद है.) २. पे. नाम. संतिकर स्तोत्र, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं जग; अंति: स लहइ सुह संपयं परमं, गाथा-१३. ३.पे. नाम. अजिसंतो स्तवन, पृ. ३आ-६आ, संपूर्ण. अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. ४. पे. नाम. वृद्धशांति, पृ. ६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २ अपूर्ण तक है.) ५३४६१. एकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५.५४१२, ११४२५). मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरी समोसर्य; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम ढाल लिखा है.) ५३४६२. (#) सज्झाय संग्रह व चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१३, ११४३०). १.पे. नाम. सिखांमण आत्महेतो स्वाध्याय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, प्रले. प्रह्लाद, प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, ग. कुमुदचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि सुणि कंतारे; अंति: उज्जलो ते पांमस्यें, गाथा-१०. २. पे. नाम. स्त्री सिखामण, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये स्त्रीशिखामण, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: एक अनोपम सिखामणि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा अपूर्ण तक लिखा है.) ३. पे. नाम. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्ली; अंति: श्रेयसे शांतिनाथः, श्लोक-१. ५३४६३. स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(१)=४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., ., (२५४१३, १७४३०). स्तवनचौवीसी, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सुमतिजिन स्तवन ५ से मुनिसुव्रतजिन २० वें गाथा २ अपूर्ण तक है.) ५३४६४. (#) चंद्रराजागुणावलीराणी लेख, अपूर्ण, वि. १९२५, चैत्र कृष्ण, १४, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(१)=४, प्रले. जेशंकर मुलजी श्रीमाली ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. लेखन स्थल-पानश्यामजीना पाडामां, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२, ११४३०). चंद्रराजागुणावलीराणी लेख, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: हवे फळशे सहु आशरे, गाथा-७०, (पू.वि. प्रथम लेख गाथा १५ अपूर्ण से है.) ५३४६५. (#) स्तवन, छंद व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७-४(१ से ४)=३, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१२.५, १७४४७). १.पे. नाम. चोवीसजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. २४ जिन स्तवन-१० स्थानकगर्भित, मु. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: ऋषभ इम लहइ सुभ साज ए, गाथा-३०, (पू.वि. गाथा १२ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. कृष्णबलभद्रनी स्वाध्याय, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण. बलभद्रमुनि सज्झाय, मु. करुणाचंद, मा.गु., पद्य, आदि: द्वारामतिथी कृष्णबलभ; अंति: साधु गुण हइडे धरी, गाथा-१८. For Private and Personal Use Only Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ www.kobatirth.org ३. पे. नाम. माणिभद्रनो छंद. पू. ६आ- ७आ, संपूर्ण. माणिभद्रवीर छंद, आ. शांतिसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः शरसती शामनी पाय प्रण; अंतिः आपो मुझ सुख संपदा, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. पक्खीचौमासीसंवच्छरी तप विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण. प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: चटत्येणं एक उपवास अंति: करी प्रवेशजो जी. , गाथा-४३. ४. पे नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ७आ, संपूर्ण. पदेशिक पद, मा.गु., पद्य, आदिः श्वान करो उपसमभरपुर अंतिः वेहेलो मुगते सिंचरे, गाथा-४. ५३४६६. साधुअतिचार व तप विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१ (१) =२, कुल पे. २, जैदे., (२६X१२, १३X३७). १. पे. नाम. साघु अतिचार, पृ. २अ-३आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है., ले. स्थल. राधणपुर. 1 ** साधुपाक्षिक अतिचार क्षे.मू. पू. संबद्ध, प्रा. मा. गु, गद्य, आदि: (-) अंति: अतिचार पक्ष दिवस० (पू. वि. दर्शनाचार अपूर्ण से है.) ५३४६७. (+) अक्षयनीधि तप स्तवन विधिसहित अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. ४, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २३१२.५, १४x२६). अक्षयनिधितप स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु, पद्य, वि. १८७१, आदि: श्रीशंखेश्वर शिर अंतिः नाचवा घर बारणे, ढा-५, (संपूर्ण, वि. अंत में अक्षयनिधि तप की विधि दी गई है.) ५३४६८. ज्ञानपचीसी, अध्यात्म बत्तीसी व ध्यान बत्तीसी, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे ३, जैवे (२६४१२.५. १३x४५). १. पे. नाम. ज्ञानपचीसी, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, प्रले. पं. वल्लभविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. ज्ञानपच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुरनर तिर्यग योनि, अंति: आपकुं उदय करन के हेत, १८७ गाथा-२५. २. पे. नाम. अध्यात्म बत्रीसी, पृ. १आ- २आ, संपूर्ण. अध्यात्मबत्तीसी, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: शुद्ध वचन सदगुरु कहै; अंतिः तत्त लेह पावो भवपार, गाथा ३३. ३. पे. नाम. ध्यानबत्रीसी, पृ. २आ-३आ, पूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: ग्यांनरूप अनंत गुन, अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३३ अपूर्ण तक है.) ५३४६९. (#) जीवदया छंद व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, पठ. करसन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., ( २६.५X१२, ११x२६-२९). १. पे. नाम. दयापच्चीसी, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण, पे.वि. पत्रांक २ आ पर रुपये-पैसे के लेन-देन का उल्लेख है. मु. विवेकचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सयल तीर्थंकर करूं, अंति: वीवेकचंद ० परे केवाय, गाथा - २५. २. पे. नाम. मांगलिक श्लोक संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: मंगलं भगवान वीरो; अंति: गौतमसामीने नमो नम गाथा-२. ५३४७०. अक्षयतृतीया व्याख्यान, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., ( २६.५X१२.५, १२X४६). अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, प्रा. रा. सं., गद्य, आदि अंति: आतम कारज सार्या ५३४७१. चोत्रिस अतिशय व पात्रिस प्रकारनी वाणि, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पै. २, दे. (२६४१२.५, १३x४१). १. पे. नाम. चोत्रिस अतिसय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. ३४ अतिशय विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: नखकेस रोमराई वधे नहि; अंति: नवा प्रभावे नहि. २. पे नाम पात्रीस प्रकारनी वाणी, पृ. १आ, संपूर्ण. ३५ वाणीगुण वर्णन, मा.गु. सं., गद्य, आदि: संस्कार सहित वचन बोल, अंति: करता अविछिन वचन बोले. ५३४७२. नेमजिना चोक, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., ( २६.५X१४, १२X३४). For Private and Personal Use Only Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमगोपी संवाद-चौवीसचोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: एक दिवस वसें नेमकुमर; अंति: (-), (पू.वि. चोक ४ गाथा ३ अपूर्ण तक है.) ५३४७४. विजयकुमार व चौदस्वप्न सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, दे., (२६.५४११.५, १३४३०-३५). १.पे. नाम. विजयकुमार सज्झाय, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: श्रीवीतराग जिणदेव; अंति: लालचंद विहार करता, गाथा-१४. २. पे. नाम. चौदस्वप्न सज्झाय, पृ. ३अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. १४ स्वप्न सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: देव तिर्थंकर केरडी; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. गाथा ३७ अपूर्ण तक है.) ५३४७५. (#) सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९०५, ज्येष्ठ कृष्ण, ३०, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. पालीनगर, प्र.वि. प्रतिलेखकने लेखन संवत में जेष्ट वदि १५ लिखा है., मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६४१२.५, ९४२०). सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार; अंति: पूरि आस्या मनतणी, गाथा-१८. ५३४७६. थुलीभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९२१, वैशाख शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. धानेरानगर, प्रले. मु. लालचंद; लिख. श्राव. कस्तुर संघवी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२.५, १२४२५-२८). स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लाछल दे मात मल्हार; अंति: लीला लखमी लबधी कहैजी, गाथा-१६, (वि. गाथा सं. १६ को ही १७ की संख्या भी दी गई है.) ५३४७७. (#) गुणमंजरी पंचमी स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२.५, १०x२४). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमीय पासजिनेसर; अंति: (-), (पू.वि. ढाल ५ गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ५३४७८. आगमगर्भित वीर स्तवन व दसपच्चक्खाण फल स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, १९x४९). १.पे. नाम. आगमगर्भित वीर स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-४५ आगम संख्यागर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: देवानां पिण जे छै; अंति: धरमसी० पुस्तक देख ए, ढाल-३, गाथा-२८. २.पे. नाम. दसपच्चक्खाण स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण.. १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथ नंदण नमुंश; अंति: रामचंद तपविध भणै, ढाल-३, गाथा-३३. ५३४७९. (#) वीजैकंवरजीरी लावणी, संपूर्ण, वि. १९४८, वैशाख कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. पाली, प्रले. श्राव. संतोकचंद; पठ. श्रावि. गुलाबाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, १९४५३). विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: श्रीवीतराग जिणदेव; अंति: रामपुरे गुण गाया, गाथा-२२. ५३४८०. (#) जिनपंजर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९५३, आषाढ़ शुक्ल, ४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. पट्टण, प्रले.सा. सोबन्नश्री (गुरु मु. केशरतिलक); गुपि.मु. केशरतिलक; पठ. श्रावि. नाथीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१३.५, ११४२५). जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह, अंति: श्रीकमलप्रभाख्यः, श्लोक-२५. For Private and Personal Use Only Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ १८९ ५३४८१. (+#) जीवाजी सीमंधर पत्रोत्तर, अपूर्ण, वि. १९०६, कार्तिक कृष्ण, १०, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(१)=४, प्रले. मु. मुलजी ऋषि (गुरु आ. भीमजी ऋषि); गुपि. आ. भीमजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखकने लेखन वर्ष १९६ लिखा है, पर लेखन शैली से वर्ष १९०६ प्रतित होता है।, टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२.५, १२४३२-३६). सीमंधरजिन के नाम जीवाजी का पत्र, मु. रतन कवि, रा., गद्य, आदिः (-); अंति: रतन० बिधि नोबत बाजे. ५३४८२. धर्मनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१३.५, १२४२१). धर्मजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हारे मारे धर्मजिण; अंति: उलट अति घणे रेलो, गाथा-६. ५३४८३. (#) द्रौपदीसती चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, प्र.वि. पत्रांक खंडित होने के कारण कृति की अपूर्णता दर्शाने हेतु अनुमानित पत्रांक दिया गया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२.५, १४४३४). द्रौपदीसती चौपाई, वा. कनककीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६९३, आदि: (-); अंति: कनककीरति सुखकार, ढाल-३९, (पू.वि. अंतिम ढाल की गाथा ७ अपूर्ण से है.) ५३४८४. चोवीसीढालबंध स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२७४१२.५, २०४५९). स्तवनचौवीसी, श्राव. विनयचंद्र गोकलचंद कुमट, मा.गु., पद्य, वि. १९०६, आदि: श्रीआदिश्वर सामी हो; अंति: महासुति पूर्ण करी, स्तवन-२४. ५३४८५. (#) पद व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२.५, १२४३३). १.पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: प्यारो नेम मिले तो; अंति: रूप० सुख दीये रे लो, गाथा-४. २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. वल्लभीपुर, प्रले. मु. हेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. कबीरदास संत, मा.गु., पद्य, आदि: मुखडा क्या देखे दरपण; अंति: कबीर० दीन वासा वनमे, गाथा-७. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, म. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जी प्रभु पासजी पासजी; अंति: रंगविजय० सिवराज रे, गाथा-७. ५३४८६. (+) दश दिग्पाल पूजन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, १०४३०). १० दिक्पाल आवाहन विसर्जन विधि, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ऐरावतं समारूढः शक्र; अंति: (१)पति पुरतोवतिष्टंतु, (२)फल सहित धारा दीजे, पद-१०, (वि. पूजन कोष्टक सहित.) ५३४८७. जिन स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२५.५४१२.५, ११४३१). नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि: किं कप्पतरु रे अयाण; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ७ अपूर्ण तक है.) ५३४८८. (#) पद व सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, ११४३१). १. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ पद, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन पद-शत्रुजयमंडण, पुहि., पद्य, आदि: अखियां सफल भई में; अंति: त्रीभोवन हीतकार, गाथा-२. २.पे. नाम. कायाकुटंब सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. दयाशील, मा.गु., पद्य, आदि: नाहलो न माने रे; अंति: जोज्यो पंडित विचार, गाथा-११. ५३४८९. रोहीणी तपस्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२४४१२.५, १२४२८-३५). रोहिणीतप स्तवन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: हारे मारे वासुपूज; अति: रोहिणी गुण गाईया, ढाल-६. For Private and Personal Use Only Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५३४९० (०) ऋषभदेव व नेमजिन वारमासा, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१७X१३.५, १९x१४-१६). १. पे. नाम. ऋषभदेव बारमासा, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. आदिजिन बारमासा-धुलेवामंडन, क. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसदगुरु प्रणमी, अंतिः ऋषभदास गुण गासी, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - १३. २. पे. नाम. नेमजी बारमासो, पृ. २अ - ३आ, संपूर्ण, पे. वि. पत्रांक २आ का भाग खाली है. नेमराजिमती बारमासो, उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ब्रह्माणी वर हुं, अंति: देववीबुध जीनगूण गाया, गाथा - १७. ५३४९१. चंदणबाला वेली व सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २. कुल पे. २. वे. (२४.५x१२.५, १५-१८४४९). १. पे. नाम, चंदणवालारी बेल, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण चंदनवालासती बेल, आ. अजितदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि कोसंबीनगरी पधारीया, अंति: अजितदेव० आणंदपुर हो, गाथा - ५०. २. पे नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ संपूर्ण. औपदेशिक स्वाध्याय, मु. तेजसिंघ, मा.गु., पद्म, आदि पंचप्रमाद तजी पडिकमण, अंतिः तेजसी० भवसायर तीरसे, गाथा-८. , ५३४९२, (+) कुसालचंदश्रावक प्रबंध, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५-१ (१) = ४, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६४१२, १३४३५). कुसालचंद श्रावक प्रबंध, मु. उदयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., ढाल -२ से ढाल -५ दोहा-३ तक है.) (#) ५३४९३. । स्तवन चोवीशी, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ३-२ (१ से २ ) = १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२६१२.५, १५४३६). " स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. स्वयंप्रभजिन स्तवन ६ गाथा २ अपूर्ण से सूरप्रभजिन स्तवन ९ गाथा ५ अपूर्ण तक है.) ५३४९४. (-) मोहवर्णन स्तोत्र व जोबन अस्थिरनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., ., (२३४१२.५, १२-१४४२७). १. पे. नाम. मोहवर्णन स्तोत्र, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-नारीत्याग, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: बेटिसु विलुद्धो जूओ अंतिः सुंदरीथी रहे दूर जेह, गाथा - ११. २. पे नाम, जोवन अस्थिरनी सज्झाय, प्र. १आ, संपूर्ण प्रभात सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: जोबनीयानी मोजा फोजा, अंति: उदय० कहु चेती रेजो, गाथा-५. ५३४९५. हीरजी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २५.५X१२, १३X२६). हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. विजयसेनसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: बे कर जोडीजी वीनवु, अंतिः होजो मुझ आणंद, गाथा- १८. ५३४९६. (#) आलोयण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २६१२.५, १२x२५). पद्मावती आराधना उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्य, वि. १७वी आदि हिव राणी पदमावती अंतिः कहे पापथी छुटे ततकाल, ढाल -३, गाथा-३३. 3. ५३४९७. स्तुति - स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८८१ श्रावण कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. ४-२ (१ से २) = २, कुल पे. ३, ले. स्थल. आसोप, प्रले. मु. कस्तुरचंद (गुरु मु. हंसजीत); गुपि. मु. हंसजीत, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संतनाथ पार्श्वनाथ प्रसादात्, जैदे., जे. (२३४१२. १५४३५). १. पे नाम, ऋषभदेव स्तुति, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ आदिजिन स्तुति, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: तू तिरीयो मोही तार, गाथा-४, (पू.वि. गाथा २ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. चिंतामणीपार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीज ददातु, श्लोक-११. ३. पे. नाम. सास्वतजिन स्तोत्र, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: सततं चित्तमानंदकारि, श्लोक-१०. ५३४९८. (+) पुफसुचुला चीरत, संपूर्ण, वि. १९२९, वैशाख शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, १८४४८). पुष्पचूलासती नवढालियो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४७, आदि: राय बेठो छे बाजुडी; अंति: रायचंद० वीनतडी उलास, ढाल-९. ५३४९९. (-) नेमराजल स्तवन व गायत्री मंत्र, संपूर्ण, वि. १९२२, फाल्गुन शुक्ल, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, अन्य. श्राव. हीरालाल (विजयगच्छ) (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२२.५४१२, ११४२२). १.पे. नाम. नेमराजल स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. पेमचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नवभव केरी प्रीत धरी; अंति: पेम० मारी वंदना होय, गाथा-९. २.पे. नाम. गायत्री मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ भूर्भुवः स्वः; अंति: यो नः प्रचोदयात्. ५३५००. (#) अनंतनाथ स्तवन व आदिनाथ पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (१९.५४१२, २५४२२). १. पे. नाम. अनंतनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८८०, ज्येष्ठ कृष्ण, ८. साधारणजिन स्तवन-देवनाटकविचार, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु आगल नाचे सुरपत; अंति: जोवण उछक छे अति, गाथा-९. २. पे. नाम. आदिनाथ पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, बंसी, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथ पणमेर; अंति: पद मुक्त श्रीफल लेइ, गाथा-५. ५३५०१. जंबुजी की सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१३, १२४४०). जंबूस्वामी सज्झाय, रा., पद्य, आदि: राजगृही नगरीरा वासी; अंति: लीये विचारी आठु नारी, गाथा-२०. ५३५०२. (+#) चंद्रप्रभजिन पद व ऋषभदेवजी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२.५, ११४१८-२०). १. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जिनहंससूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: चालो देखोरी त्रिभवन; अंति: खेलत तत्व अबीर शुभाज, गाथा-१०. २.पे. नाम. ऋषभदेवजी वद्धि स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: ऋषभ जिणेसर त्रिभुवन; अंति: लालचंद० मझारो रे, गाथा-११. ५३५०३. नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२५.५४१२, १४४२७-३०). नेमिजिन नवरसो, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६६७, आदि: सरसति सामणि पाय नमी; अंति: नेमि जिनेश्वरो, ढाल-४, गाथा-७२. ५३५०४. लेस्या द्वार विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१२.५, १३४४५). लेश्या ११ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नामाइं पण रस गंध फरस; अंति: समयनइ विषइ काल करइ. ५३५०५. (+#) पंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७४१२.५, १४४३३). For Private and Personal Use Only Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९३, आदि: सुत सिद्धारथ भूपनो; अंति: सकल भवि मंगल करे, ढाल-६, गाथा-६८. ५३५०७. चोवीसजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४४१३, १९४३४). २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणमु; अंति: तास सीस पभणे आणंद, गाथा-२९. ५३५०८. (+) देववंदन विधि व दूहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३४, पौष कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. अजिमगंज, प्रले. मु. अबीरचंद जती; प्रे. मु. बालचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६४१२.५, ११४३५). १. पे. नाम. देववंदन बिधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम चैत्यवंदन; अंति: सर्वमंगलमांगल्यं०. २. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक दूहा, पुहि., पद्य, आदि: नीच तणो नवि कीजै संग; अंति: कै दाजै कै कालो होय, दोहा-१. ३. पे. नाम. प्रहेलिका, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रहेलिका दोहा, पुहि., पद्य, आदि: पुरुष एक जाणै संसार; अंति: तीन हजार बयालीस नैण, दोहा-१. ५३५०९. (#) कर्मविपाकछतीसी व नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२३.५४१२.५, १८४५८). १.पे. नाम. कर्मविपाकछतीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. कर्मविपाकफल सज्झाय, पं. कुशलचंद, पुहिं., पद्य, आदि: सुत्र गिनाता मे कही; अंति: कुसालचंद० गुरपरताप, गाथा-३५. २.पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. लालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: जीनजी से कहीयो मोरी; अंति: लालचंद तुमसे डोरी जी, गाथा-४. ५३५१०. (-) औपदेशिक पद, श्लोक व चौवीसजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९७१, पौष शुक्ल, १०, शनिवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२७.५४११.५, १३४३७). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, रा., पद्य, आदि: जोबनीयारी मोजां फोजा; अंति: आराधो सुख सेतीरे, गाथा-६. २.पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: वामदेवेन विप्रेण; अंति: वररुचि ब्राह्मणा यथा, श्लोक-२. ३. पे. नाम. चौबीसजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३६, आदि: रीखभ अजित संभवस्वामी; अंति: रायचंद० सोवन वरणा, गाथा-१२. ५३५११. नवपद स्तवन व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९२९, आश्विन शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, दे., (२४.५४१२, १२४३२). १.पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. __ वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: तीरथनायक जिनवरुजी; अंति: प्रति नमति कल्याण, गाथा-५. २. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जयकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: पहले पद अरिहंतनोजी; अंति: जयकीरत विसवावास, गाथा-८. ३. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन नवपद जस नामी; अंति: पावै अक्षय जिनचंदा, गाथा-६. ४. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जगनायक दायक सिद्ध; अंति: भाखै श्रीजिनचंद, गाथा-४. ५. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: निरुपम सुखदायक; अंति: श्रीजिनलाभसूरिंदा जी, गाथा-४. ५३५१२. स्तवन, छंद व श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२४.५४११.५, ३४२२). १.पे. नाम, संखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पाच सांखेसरो मन; अंति: संखेसरोजी आप तूठा, गाथा-७. २. पे. नाम. गौतमस्वामी छंद, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिणेसर केरोसीस; अंति: गोतम तुठां संपत कोड, गाथा-८. ३. पे. नाम. मांगलिक श्लोक, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदि: अंगूठे इमृत बसै लब्ध; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४ अपूर्ण तक है.) ५३५१४. विमलाचल स्तवन व शांतिनाथनी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२७.५४१२.५, १२४३९). १. पे. नाम. विमलाचल स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. श@जयतीर्थ स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विरजी आया रे विमलाचल; अंति: पद्मविजय सुपरिमाण, गाथा-७. २. पे. नाम. शांतिनाथनी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: राजत्या नवपद्मरागरु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम श्लोक अपूर्ण है.) ५३५१५. दूहा, स्तुति व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१२, १६x४०). १. पे. नाम. सम्यक्त्व दोधका, पृ. १अ, संपूर्ण. सम्यक्त्वदीपक दोधका, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जेह तणो आदेश सावद्य; अंति: पासचंद० क्रिया मिली, गाथा-१२. २.पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन नमस्कार, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: रिसह जिणवर रिसह; अंति: कीरति गति सुख सार, गाथा-२५. ३. पे. नाम. भरहेसर सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जसपडहो तिहुयणे सयले, गाथा-६, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथा को एक गाथा गिना है.) ५३५१६. चोवीसी, धमाल, होरी व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ११, जैदे., (२५४१२, १७४४८). १. पे. नाम. चोवीस जिनवराणां पदानि, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. स्तवनचौवीसी, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: देख्यौ रिषभ जिनंद तब; अंति: जिनहर्ष० प्रभु वरदाई, ढाल-२४, गाथा-३९. २. पे. नाम. नेमि धमाल, पृ. ३अ, संपूर्ण. नेमिजिन पद, मु. ऋद्धिहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: गढ गिरनार की तलहटी; अंति: रिधहरख० सिवादेवी मात, गाथा-५. ३. पे. नाम. पद्मप्रभुजी धमाल, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन धमाल, मु. ज्ञान, मा.गु., पद्य, आदि: मेरे हृदय पदमप्रभु; अंति: कविराज० अखै निधान, गाथा-६. ४. पे. नाम. नेमि धमाल, पृ. ३आ, संपूर्ण. नेमिजिन धमाल, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नित नित प्रणमीजै; अंति: जिनलाभ० को सारथवाह, गाथा-३. ५. पे. नाम. मुनिसुव्रत धमाल, पृ. ३आ, संपूर्ण. मुनिसुव्रतजिन धमाल, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिसुव्रत मेरो मन; अंति: जिनलाभ० शुद्ध कह्यौ, गाथा-३. ६. पे. नाम. नेमि धमाल, पृ. ३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमिजिन धमाल, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: बलिहारी हूं तेरा नाम; अंति: जिनहरख० दिल मेरी छकी, गाथा-३. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन धमाल, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन होरी, क. चंद, पुहिं., पद्य, आदि: आवौ हमारे साजना मिलि; अंति: खेलत है कविचंद हौ, गाथा-३. ८. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: हमतौ याहीतें रंग लगा; अंति: हरखत रूपचंद गुन गायौ, गाथा-३. ९. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ४अ, संपूर्ण.. मु. विद्याविलास, पुहि., पद्य, आदि: मेरी प्रीति लगी वामा; अंति: विद्याविलास०वालास्यु, गाथा-४. १०. पे. नाम. गौडीपार्श्व पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-गउडीपुर, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमहाराज मनावौ जिम; अंति: श्रीजिनचंद चढतौ दावौ, गाथा-४. ११. पे. नाम. संखेसरपार्श्व पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-शंखेश्वर, आ. जिनराजसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: पास की मूरति मो मन; अंति: राजसमुद्र० संपति पाई, गाथा-४. ५३५१७. (#) पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १७४४५). पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं., प+ग., आदि: ॐ अस्य श्रीमंत्रराज; अंति: क्षमस्व परमेश्वरि, श्लोक-४०. ५३५१८. (+#) सम्यक्त्व छपनी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. सम्यक्त्व का कोष्ठक दिया हुआ है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, ११४३२). सम्यक्त्वछप्पनी, मा.गु., पद्य, आदि: इम समकित मन थिर करो; अंति: तथा श्रावक है आराध, गाथा-५६. ५३५१९. (+#) पासजिणथवण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२.५, ६४३३). नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण पणय सुरगण; अंति: सयल सुअणच्चि अच्चलणो, गाथा-२१. नमिऊण स्तोत्र-टबार्थ, म. ज्ञानमेरु, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्करीनई प्रणाम; अंति: छे चरण कमल जेहना. ५३५२१. (#) ऋषभजिन लावणी संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, १२-१४४४०-४८). १. पे. नाम. ऋषभजिन लावणी, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. आदिजिन छंद-धुलेवा, क. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७५, आदि: आदि करण आदि जग आदि; अंति: दीपविजय० सब कीरत कहे, गाथा-७१. २. पे. नाम. आदिजिन लावणी, पृ. ३आ, अपर्ण, प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आदिजिन लावणी-धुलेवा, मु. कर्मचंद, रा., पद्य, आदि: गवरी के नंदन दुख के अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ५३५२२. पक्षवासो व शीतलनाथ स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२, १३४३२). १. पे. नाम. मुनिसुव्रतस्वामीजीरोपखवासैरो तप, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. पाक्षिकतपवृद्ध स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जंबुद्वीप सोहामणो; अंति: पभणे पूरो मनह जगीस, ढाल-२, गाथा-१४. २. पे. नाम. शीतलनाथ स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन-अमरसरपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, रा., पद्य, आदि: मोरा साहेब हो; अंति: समयसुंदर० जनमन मोहए, गाथा-१५. For Private and Personal Use Only Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५३५२४. नंदनसेठ चौडालिया, संपूर्ण, वि. १९७४ चैत्र कृष्ण, १३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ३ ले स्थल जीझाणाग्राम, वे, (२७.५X१२, १३x४४). नंदनशेठ चौढालिया, मु. शोभाराम ऋषि, रा., पद्य, वि. १९०२, आदि: श्रीजिनराज प्रणाम कर; अंति: सोभाराम० अधकी माम, ढाल - ४, गाथा - ७०. ५३५२५ (+) स्तुति चतुर्विशिका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५- १ ( २ ) = ४, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न वचन विभक्ति संकेत क्रियापद संकेत- अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X१०.५, १५X४८-५२). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक- ९६, (पू.वि. स्तुति-८ के श्लोक-१ से स्तुति-१३ के श्लोक-२ तक नहीं है.) ५३५२६. सज्झाय संग्रह व बारमासा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे. (२७.५x१२.५, १९४४९). १. पे. नाम. सुदर्शनसेठ सज्झाच, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुदरसन मन किजा लीजी, अंति: ओ नरगणो पछतावोजी, गाथा - १०. २. पे. नाम. संयमफल सज्झाच, पृ. १अ. संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु., पद्य, आदि: दस मारग दीखारयो तणा, अंति: दाख्यो आरोना भवका जी, ३. पे. नाम. औपदेशिक बारमासो, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मु. देदो ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम तीर्थंकर पाय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा - १५ त गाथा - १०. लिखा है.) ५३५२७. महावीरजिन व नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. कुल पे. २, दे. (२६११.५, १४४३४). १. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सासन नायक बीर जीणंद, अंति: रायचंद ० त्यारो बास, गाथा- १२. २. पे नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. चोथमल, रा., पद्य, वि. १८५२, आदि: श्रीनेमीसर साहिबा, अंतिः चोथमल० हमारी आस, गाथा-७. ५३५२८. () औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५x११.५. २९४७२). औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदिः विमल चित्त कर मित्त, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा - ११३ तक लिखा है. ) ५३५२९, (०) नेमजिन वारमास व दुहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे.. 7 (२७४११, ३५१७). १. पे. नाम. नेमजिन बारेमास, पृ. १अ संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासो, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: राणी राजुल इण परि; अंति: जिनहरख कहै० प्रीत रे, १९५ ५३५३१. नमीराजा ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., ( २४१२, १४४४). गाथा - १२. २. पे. नाम. प्रासंगिक दूहा संग्रह, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. दोहा संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: चाल सखी जिह जाइये, अंति: अजब फूल दोय नैन, दोहा - २. ५३५३०. (+४) बाहुबलनी सज्झाव, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. ३, प्र. वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, वे., (२५.५X११.५, १२X३१-३२). भरतबाहुबली सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु, पद्य वि. १७७१, आदि: स्वस्ति श्रीवरवा अंति: रामविजय जय श्रीवर, ढाल ४, गाथा- ३८. For Private and Personal Use Only नमिराजर्षि ढाल, ऋ. आसकर्ण, मा.गु., पद्य वि. १८३९, आदि: सासणनायक सीमरतां अंतिः आसकरणजी० तिथरो 1 नाम, ढाल ७. Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५३५३३. (+#) आंचलीयामत खंडण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, २१४५२). आंचलिकमत खंडन, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: सरसति सामण पय नमी रे; अंति: (-), (पू.वि. "सावणे छिमासे मासं" पाठ तक है.) ५३५३४. स्तवन, चौवीसी नाम व चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२६४१३, १४४३५). १.पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमो पंचमी दिवसेज; अंति: लक्ष्मीसूरि० गेहरे, ढाल-५. २. पे. नाम. अनागत चउवीसी नाम, पृ. २अ, संपूर्ण.. २४ जिन नाम-अनागत, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम श्रेणिकनो जीव; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., दूसरे जिन के नाम तक लिखा है.) ३. पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण. उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: श्रीसीमधर वीतराग त्; अंति: विनय धरे तुम ध्यान, गाथा-३. ५३५३५. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, जैदे., (२२.५४१३, १५४३३). १.पे. नाम. अध्यात्म सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-परदेशीजीव, मु. राजसमुद्र, पुहिं., पद्य, आदि: एक काया अरु कामनी; अंति: राजसमुद्र० को संसार, गाथा-५. २. पे. नाम. शीयल शोहामणा सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सीअल सोहामणो पालीइं; अंति: गुणहर्ष शिसे० पालीइ, गाथा-२३. ३. पे. नाम. नंदमणिआर सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ग. लाभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वंदना देव गुरुने करो, अंति: लालविजय० एकांत रे, गाथा-२०. ४. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, पं. कांतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिनेशर मुरति; अंति: कांतीविमल जस गाजै रे, गाथा-८. ५३५३६. (#) चुलेर पार्श्वनाथ छंद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३-१५४४२). पार्श्वजिन छंद-चुलेर, मु. देवीदास, मा.गु., पद्य, आदि: पय प्रणमुपदमावती, अंति: देवीदास० प्रणमंती पय, गाथा-७८. ५३५३७. वडी शांति, संपूर्ण, वि. १९१३, चैत्र कृष्ण, १२, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २, पठ. श्राव. दयालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११,१२४३२-४०). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैन जयति शासनम्. ५३५३८. स्तवन संग्रह व पच्चक्खाण विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, दे., (२७४११, १०४३७). १.पे. नाम. आठमनी ढालो, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तवन, मु. लावण्यसौभाग्य, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: पंचतिरथ प्रणमुंसदा; अंति: बुद्धीलावण्य लीओ सुख, ढाल-४, गाथा-२४. २. पे. नाम. रोहिणी स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. भक्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वासव पूजित वासुपूज्य; अंति: भगतिविजय० सुख थाय, गाथा-६. ३. पे. नाम. पच्चक्खाणपालवानी वीधि, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उगे सूरे नमुकार; अंति: तस मिच्छामी दुक्कडम्. For Private and Personal Use Only Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ १९७ ५३५३९. (+) पद, मंत्रौषध, स्तवन व बारमासा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८४५, श्रावण शुक्ल, १४, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ११, ले.स्थल. पोमावसग्राम, प्रले. पं. मानविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिनाथजी प्रसादात, संशोधित., जैदे., (३६४१२, १६४५०-५२). १.पे. नाम. कृष्ण पद, पृ. १अ, संपूर्ण. सूरदास, पुहि., पद्य, आदि: अब मोहे पोढण द्यो; अंति: सूर कहे० गोद उठाय, पद-५. २. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नेमजी केरी वात रे; अंति: रूपचंद०दरसण पावू रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह , उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः ॐ गंगा जमणी की बोलुं; अंति: वालो कदेही न नकले. ४. पे. नाम. नेमिनाथ स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वीनवे राजूल नारी विन; अंति: जिनहर्ष० पावडीइ हो, गाथा-७. ५. पे. नाम. शीतल स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: वीनतडी अवधारोजी; अंति: करतां तुझ गुणग्राम, गाथा-५. ६. पे. नाम. अनंत स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. अनंतजिन स्तवन, ग. भक्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: उलगडी चित्त आणो हो म; अंति: य कहे भगती बे कर जोड, गाथा-५. ७. पे. नाम. नेमी स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल कहे रथ फेरो हो; अंति: तस मोहन द्ये स्याबास, गाथा-७. ८. पे. नाम. पास बारेमास, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन बारमासो, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावण पालस उलर्यो; अंति: जिनहर्ष सदा आणंद रे, गाथा-१३. ९. पे. नाम. नेमि द्वादसमास, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासो, मा.गु., पद्य, आदि: आपणी सहियरने कहै सखी; अंति: होज्यो सुख विलासरे, गाथा-१४. १०. पे. नाम. सुव्रतजिन पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. मुनिसुव्रतजिन पद, मु. राज, मा.गु., पद्य, आदि: सामीजी मने तारीइं; अंति: नीवारीई रे मारा राज, पद-२. ११. पे. नाम. नेमजिन पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, म.रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: प्यारे नेम मीले तो; अंति: रूपचंद सेवा दीजीइं, गाथा-२, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथा को एक गाथा गिना है.) ५३५४१. (#) भोजन विच्छित्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४४८-५२). भोजन विच्छित्ति, मा.गु., गद्य, आदि: (१)अत्रांतरे पुनपँथ, (२)मांडो उत्तंग तोरण; अंति: प्रमुख पहिराव्या. ५३५४२. कानडकठियारी री चोपी, संपूर्ण, वि. १८६२, मार्गशीर्ष कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. फूलाजनगर, प्रले. मु. उमेदचंद ऋषि (लुकागच्छ); पठ. पं. त्रिलोकहस, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १८४४४-४६). कान्हडकठियारा रास-शीयलविशे, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: पारसनाथ प्रणमु सदा; अंति: मानसागर दिन वधते रंग, ढाल-९. ५३५४३. (+#) वीर कुंअर स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. प्रतिलेखक ने अंत में वीर कुंअर स्तवन ऐसा नाम लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७४१२, १२४२९). नंदकुमार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: जंबूद्वीपे रे भरत; अंति: तीहां हठे वीर प्रधान, गाथा-८. ५३५४४. (#) स्तवन व चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ६, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२६४१२, १३४३६). १. पे. नाम. नवकारवाली स्तवन, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवकारगुण चौपाई, उपा. राजसोम पाठक, मा.गु., पद्य, आदि: नवकारवाली मणियडा; अंति: पाठक राजसोम भणइ ए, ढाल-४. २.पे. नाम. स्तंभनकपार्श्वजिन स्तुति, पृ. ३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन नमस्कार-स्थंभनपुर, मु. कल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेढी तट मेरुधाम; अंति: पावौ पद कल्याण, गाथा-३. ३. पे. नाम. समेतशिखर चैत्यवंदन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ चैत्यवंदन, मु. कल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: पूरव देसै दीपतो ए; अंति: सुंतीरथ करण कल्याण, गाथा-३. ४. पे. नाम. सीमंधरस्वामि चैत्यवंदन, पृ. ३आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु जिनवर विहरमान; अंति: कारण परम कल्याण, गाथा-३. ५. पे. नाम. ऋषभ स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय नाभिनरिंदनंद; अंति: निसदिन नमत कल्याण, गाथा-३. ६. पे. नाम. शांति स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. शांतिजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: सोलम जिनवर शांतिनाथ; अंति: लहीयै कोडि कल्याण, गाथा-३. ५३५४५. (#) सिद्धचक्र स्तवन व चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, ११-१२४३२-३८). १.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा.,मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण; अंति: सिद्धचक्क नमामि, गाथा-६. २. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. शांतिविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र आराधता; अंति: तणो शिष्य कहे कर जोड, गाथा-४. ५३५४६. अढार नातरा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८५०, चैत्र शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. नथु ऋषि; अन्य. सा. वेलबाई आर्या; सा. कसलीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका का कुछ भाग अन्य विद्वान के द्वारा लिखा गया है., जैदे., (२६४१२,१२४३५). १८ नातरा सज्झाय, मु. भीम ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: करम सबल जग जाणीए करम; अंति: रीष भीम दीए उपदेश रे. __ढाल-२, गाथा-२३. ५३५४७. (+) गीत संग्रह व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्रले. पंडित. दौलतराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १३४३७). १.पे. नाम. थुलभद्र गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. स्थूलिभद्र गीत, मु. यशोवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: सखी मोहि थूलभद्र आणि; अंति: तुंडुक्कर दुःकर कार, गाथा-७. २. पे. नाम. जीवकाया गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. भुवनकीर्ति, पुहि., पद्य, आदि: चतुर विहारी रे आतम; अंति: रे नाम तिहारी, गाथा-९. ३. पे. नाम. थूलभद्रमहामुनि सिज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनिसज्झाय, ग. लब्धिउदय, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर रहिण चौमासै; अंति: दिन दिन सुख सवाया हो, गाथा-१०. ५३५४८. आषाढभूतनो पंचढालीयो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२६४१२, १५४५०). For Private and Personal Use Only Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ आषाढाभूतिमुनि चौढालियो, मु. माल, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: वाणी अमृत सारसी आपो; अंति: माल मुनी हितकार, ढाल-४. ५३५४९. (+) स्तवन संग्रह व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १६x४२-४६). १. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणी ब्रह्मवादिनी; अंति: प्रीतविमल० मते, ढाल-५, गाथा-५५. २. पे. नाम. जिनपद स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. ___ आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पीउडा जिन चरणांरी से; अंति: मोहन अनुभव मांगै, गाथा-६. ३. पे. नाम. धन्नारिष स्वाध्याय, पृ. २आ, संपूर्ण. धन्नाअणगार सज्झाय, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवचने वैरागीयो; अंति: कहै श्रीदेव०जय जयकार, गाथा-१२. ५३५५०. (-#) महावीरजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०६, आषाढ़ कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. पालणपुर, प्रले. पं. केशरविजय गणि; पठ. श्रावि. माणकबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अवाच्य. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१३.५, १४४३५). १. पे. नाम. चरमजिन पांच कल्याणक स्तवन, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-५ कल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: सासननायक सिवकरण वंदू अंति: नामे लहे अधिक जगीस ए, ढाल-३, गाथा-५२. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. पंन्या. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिधारथ सुत वंदिये रे; अंति: रंगे चितत उछाहे लाल, गाथा-६. ५३५५१. महावीरजिन व सिद्धदंडिकागर्भित स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(२)=२, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१३, १२४३६). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन स्तवन-उपधानतपविधिगर्भित, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: श्रीवीरजिणेसर सुपरी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. सिद्धदंडिका स्तवन, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१४, आदि: (-); अंति: पद्मविजय सुखदाया रे, ढाल-५, गाथा-३८, (पू.वि. गाथा-३२ अपूर्ण से है.) । ५३५५२. कृष्णवासुदेव रास-ढाल १२२ से १२३, संपूर्ण, वि. १८५२, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. टंकारा, प्रले. सा. कुवरबाई; पठ.सा. अजबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४११.५, १०-१२४३२). कृष्णवासुदेव रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५३५५४. (#) नमस्कार स्तव सह स्वोपज्ञ वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पंचपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२७.५४११, ७७५१). नमस्कार स्तव, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: परमिट्ठि नमुक्कार; अंति: महिम सिद्धि सुह, श्लोक-३२. नमस्कार स्तव-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १४९७, आदि: जिनं विश्वत्रयी; अंति: जलधिनंदमनुप्रमेब्दे. ५३५५५. (#) प्रासुक जल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४३०). प्रासुक जल सज्झाय, मु. वीरम, मा.गु., पद्य, आदि: पणमी वीरजीणेसरदेव; अंति: वीरम० समझो निसिदीस, गाथा-८. ५३५५६. (-2) क्षेत्रसमास चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अवाच्य. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १८४५५-६२). For Private and Personal Use Only Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-क्षेत्रसमास चौपाई, संबद्ध, मु. सुमतिसागर, मा.गु., पद्य, वि. १५९४, आदि: सरसति सामिणि करुं; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., गाथा ८५ अपूर्ण तक है.) ५३५५७. स्तवन,सझाय व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ११, जैदे., (२६४११.५, १५४३४). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति हासिये में लिखी हुई है. पुहिं., पद्य, आदि: जीया मन लै मोरी कही; अंति: मानै वारंवार नही रे, गाथा-२. २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. विजयहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४७, आदि: सकल सुरासुर सेवित; अंति: वंदै विजहरख सुविलास, गाथा-१३. ३. पे. नाम. सीमंधरजी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर साहिबा; अंति: अविचल सुख लाल रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. सीमंधरजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पूर्व विदेह पुकलावती, अंति: प्रह सम नित नमुरे, गाथा-५. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति हासिये में लिखी हुई है. मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: जागो मेरे लाल विशाल; अंति: जिनहरख० वलि जावणां, गाथा-३. ६. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. क्षमारत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८८३, आदि: सिद्धाचलगिरि भेट्या; अंति: प्रभूप्यारा रे, गाथा-५. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति हासिये में लिखी हुई है. मु. राजसमुद्र, पुहिं., पद्य, आदि: नीं के नाथ कबहूंन; अंति: युं ही जनम गमायो, गाथा-३. ८. पे. नाम. धन्ना सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. धन्नाअणगार सज्झाय, मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरवचन चित धारी चूंप; अंति: नमतां होइ नवनिद्ध, गाथा-१९. ९.पे. नाम. पार्श्वजिन पद-लोद्रवामंडन, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-लोद्रवामंडन, मु. राजरंग, मा.गु., पद्य, आदि: आज हुंजाऊ रेतीरथ; अंति: तुम्हारी सुसेवरे, गाथा-३. १०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति हासिये में लिखी हुई है. मु. ज्ञानसार, मा.गु., पद्य, आदि: जगत मैं कोण किस को; अंति: धन्यासी गायो आतमगीत, गाथा-४. ११. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति हासिये में लिखी हुई है. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: घर के घर विन मैरो; अंति: ग्यानसार गलबाही, गाथा-३. ५३५५८. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६५-६४(१ से ६४)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. महावीरस्वामी की जन्म चक्र कुंडली दी गई है., जैदे., (२७४१२, ६४३१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. महावीर जन्मकल्याणक वर्णन अपूर्ण है.) कल्पसूत्र-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदिः (-); अति: (-). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मागु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५३५५९. (#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १६x४३-४६). १.पे. नाम. चतुर्दशगुणस्थान वृद्ध स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. सुमतिजिन स्तवन-१४ गुणस्थान विचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सुमतिजिणंद सुमति; अंति: कहे इम मुनि धरमसी, ढाल-६, गाथा-३४. २. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिनानामंतरकाल देहमानायुः प्रमाण कथन स्तवन, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ २४ जिन स्तवन-देहमान आयुस्थितिकथनादिगर्भित, पा. धर्मसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: पंचपरमिट्ठ मन शुद्ध; अंति: धरमसीमुनि इम भणै, ढाल-५, गाथा-२९. ३. पे. नाम. विंसतिविहरमाणजिन स्तवन, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन स्तवन, पा. धर्मसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: वंदु मनसुध वइहरमाण; अंति: धरमसी०धरी ध्रमसी नमे, ढाल-३, गाथा-२६. ४. पे. नाम. ८४ आसातना स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. ८४ आशातना स्तवन, उपा. धर्मसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय जिनपास जगत्र; अंति: वंदइ जैन शासन ते वली, गाथा-१८. ५. पे. नाम. शत्रुजयवृद्ध स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ वृद्धस्तवन, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: तीरथ सेजेजेजी रहि; अंति: ध्रमसी०तिणआतम तार्या, गाथा-१४. ५३५६०. (+#) स्तवन चौवीसी-स्तवन १ से २२, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, २२४६४). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: रिषभ जिनेसर प्रीतम; अंति: आनंदघन पदराज, प्रतिपूर्ण. ५३५६१. बुध रासो, संपूर्ण, वि. १९०१, आषाढ़ शुक्ल, ३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२६४१२, १४४३२-४०). बुद्धिरास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पणमवि देव अंबाई; अंति: सालिभद्रन्टलय कलेस तो, गाथा-६६. ५३५६२. सनतकुमार रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. सोजितनगर, पठ. श्रावि. बीराबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४११, १३४४२-४५). सनत्कुमारचक्रवर्ति रास, मु. सेवक, मा.गु., पद्य, वि. १६१७, आदि: सुखकरि संतीसर नमुं; अंति: सेवक० मंगल लछि निवास, गाथा-८५. ५३५६३. (+) दीक्षा विधि, स्तवन व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१०, १६४५७). १.पे. नाम. दिक्षाविधि, पृ. १अ, संपूर्ण. दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरिआवही० ४ नो०; अंति: धर्मोपदेश सुणेसुणावे. २.पे. नाम. पार्श्वनाथजी संगीतछंद गीत, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८८४, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, प्रले. गंगाराम, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धितीर्थ, मु. अभयसोम, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता सेवतां बह; अंति: भगत मुगति दायक भकति, गाथा-७. ३. पे. नाम. वीरजिन स्तव, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ महावीरजिन छंद, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर जनमीया; अंति: जास घर हुई मुदा, गाथा-६. ४. पे. नाम. सवैया व दूहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. काव्य/दुहा/कवित्त/पद्य, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. गाथा-७ संग्रहरूप.) ५३५६४. (#) स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२५.५४१०, १५४३७). १.पे. नाम. कुमतिउत्थापनसुमतिस्थापन महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. श्राव. शाह वघो, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: श्रीश्रुतदेवी तणे; अंति: बधो० कुमतनी पासी रे, गाथा-३६, (वि. गाथांक ३४ दो बार लिखा है.) २. पे. नाम. गोडीजी पार्श्वजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. ___ पार्श्वजिन पद-गोडीजी, अभयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: गौडी गाइयै मनरंग एक; अंति: कदेय न होय चित्तभंग, गाथा-३. ३. पे. नाम. विहरमानजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. विहरमानजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: दीन बंध दयाल तुम हो; अंति: (अपठनीय), गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम. सुमतिजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मुजरा साहिब मुजरा; अंति: रूप० निरंजन केरा रे, गाथा-३. ५३५६५. (+) नवतत्त्व प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(२)=२, पठ. सा. ज्ञानश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४११, ११४२७). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-५१, (पू.वि. गाथा १७ अपूर्ण से ३४ अपूर्ण तक नहीं है.) ५३५६६.(-) औपदेशिक सज्झाय-नवतत्व गर्भित, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२४.५४११, १४४४२). औपदेशिक सज्झाय-नवतत्व गर्भित, म. वीरमचंद, रा., पद्य, आदि: सुन ले भवजन वानी; अंति: वीर० हार निमंतधर रूप, गाथा-१७. ५३५६७. स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ८, जैदे., (२५४११, १६४५७). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: हर्षनताशुरनिर्जर; अंति: मज्जनशस्तनिजाघः, श्लोक-४. २. पे. नाम. पार्श्वदेव स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अश्वसेन नरेसर वामा; अंति: कलित्त बहु वित्त, गाथा-४. ३. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: पंचविदेह विषय; अंति: जण मन वंछित सारइ, गाथा-४. ४. पे. नाम. सेव॒जय स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेजमंडण आदि; अंति: नंद०तुम्ह पाय सेविता, गाथा-४. ५. पे. नाम. द्वितिया स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न; अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. ६. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: वरमुत्तियहार सुतारगण; अंति: सुहाणि कुणे सुसया, गाथा-४. ७. पे. नाम. पलांकित स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदि: समुदमुत्तमवस्तु; अंति: जयतिसा जिन शासनदेवता, श्लोक-४. ८. पे. नाम. ज्ञानपंचमीनी स्तुति, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतकसुप्रपंचपरमा; अंति: (-), (पू.वि. स्तुति ३ अपूर्ण तक है.) ५३५६८. (#) स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४१०.५, १५४५७). १.पे. नाम. पार्श्वनाथजी घघरनीसांणी, प्र. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: जिनहर्ष गहंदा है, (पू.वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) २. पे. नाम. हनुमान स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: सर्वारिष्ट निसारणार; अंति: राज्य कुलादिषुः, श्लोक-२४. ३. पे. नाम. भैरवनाथ स्तोत्र, पृ. २आ, अपर्ण, प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. भैरव स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ तीक्ष्णे दंष्ट्रे०; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ४ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ २०३ ५३५६९. (+#) प्रश्नोत्तर रत्नमाला सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२२, मार्गशीर्ष कृष्ण, ८, बुधवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. सिणली, .रत्नधीर (बृहत्खरतरगच्छ); राज्ये आ. जिनलाभसरि (बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक विद्वान के गुरु का नाम अशुद्ध प्रायः होने से गुरुपरंपरा नहीं भरी है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४१२, ४४४४). प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनवरेंद्र; अंति: कंठगता किं न भूषयति, श्लोक-२९. प्रश्नोत्तररत्नमाला-टबार्थ, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: पहिली श्रीआदिनाथनै; अंति: टबार्थ बालाबुधेय. ५३५७०. (+) शोभन स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, १३४३८-४२). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक, अंति: (-), (पू.वि. श्रेयांसजिन स्तुति गाथा १ अपूर्ण तक है.) ५३५७१. (#) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८०६, कार्तिक कृष्ण, ९, सोमवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. जावद, पठ. पं. दोलतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १३४३९). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुदचं प्रपद्यते, श्लोक-४४. ५३५७२. औपदेशिक पद व बीस बोल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११.५, १५४३९). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. जालिम, पुहिं., पद्य, आदि: सुण भाई रे तेरा कीया; अंति: फेर गरभावास न आवेगा, गाथा-९. २. पे. नाम. वीसबोल सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २० बोल सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३३, आदि: किणसु वादविवाद न कीज; अंति: मेडतेनगर चोमासजी, गाथा-१६. ५३५७३. छंद, स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ७, जैदे., (२६४११, १५४५६). १. पे. नाम. दादाजी छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. विजयसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: समरूं माता सरसती; अंति: विजैसंघ लीला वरी, गाथा-३१. २. पे. नाम. दादाजी स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. जिनदत्तसूरिस्तवन, मु. लाभउदय, रा., पद्य, आदि: सदगुरुजी थे सांभलौश; अंति: लाभोदय सुख सिद्ध हो, गाथा-११. ३. पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. ___ पुहिं., पद्य, आदि: शांतिजिणंद सुखकंद; अंति: चाहत निशिदिन चंद सम, गाथा-३. ४. पे. नाम. शीतलजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. साधारणजिन पद, मु. मालदास, पुहिं., पद्य, आदि: भलै मुख देख्यौ; अंति: भव भव हुं तुम्ह चेरौ, गाथा-३. ५. पे. नाम. वीसविहरमानजिन पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीस विहरमान जिनवरराय; अंति: दर भव भव तुम पय सेवा, गाथा-४. ६. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: जिणंदा ताहरी वाणीयै; अंति: भाखैरे इम कवि कंतरे, गाथा-५. ७. पे. नाम. पार्श्वनाथजीस्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-नाकोडातीर्थ, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: अपणे घर बेठा लील करो; अंति: कहै गुण जोडो, गाथा-८. ५३५७४. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. वा. गतुजी (गुरु सा. रतुजी); गुपि. सा. रतुजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१०.५, १७४३२). For Private and Personal Use Only Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सज्झाय, मु. कुसालीचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६५, आदि: केवलीजन आगे हुआ; अंति: पामे सीवपूर वास जी, गाथा-१७. ५३५७५. नेमिनाथ बारमासो व दर्शाणभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११, १७७५४). १. पे. नाम. नेमिनाथ बारमासो, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १७८१, भाद्रपद शुक्ल, १४, शनिवार, ले.स्थल. सूर्यपुरबंदर, प्रले. पं. रंगशील, प्र.ले.पु. सामान्य. नेमराजिमती बारमासो, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: मिगसिर मासै मोहीयौ; अंति: विनय० गाया मन उल्लास, गाथा-२८. २. पे. नाम. दर्शाणभद्र सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. दशार्णभद्र सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद बुद्धिदायक सेवक, अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १४ अपूर्ण तक लिखा है.) ५३५७६. (#) सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२६४११, १०४३९). सिद्धचक्र स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: तिरथपति अरिहा नमी; अंति: देवचंद्र सुशोभता, गाथा-११. ५३५७७. (+) रावतचोर चौपाई व २४ जिन छंद, संपूर्ण, वि. १९७५, वैशाख कृष्ण, ३०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. चीतोडकोट, प्रले. मु. घीसालाल (स्थानकवासी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., दे., (२६.५४११, २४४६२). १. पे. नाम. रावतचोर चौपाई, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. मु. हर्षचंद, रा., पद्य, वि. १९७४, आदि: आदनाथ आदे करी चोवीस; अंति: जनम मरण पुरब दहुरे, ढाल-१०. २.पे. नाम. २४जिन स्तवन-गाथा १ से ३, पृ. ३आ, संपूर्ण, अन्य. मु. मनोहरलालजी, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. यंत्र सहित. २४ जिन स्तवन-पांसठीयायंत्र गर्भित, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमीसर संभव; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५३५७८. (+) वीसथानकतप स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. श्राव. रूपचंद; पठ. श्रावि. इंदु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६४१२.५, १२४३८). २० स्थानकतप स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रुतदेवी समरी करी व; अंति: वीसथानक आराधीये, गाथा-१४. ५३५७९. (+) धनमित्र कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १७४६८). धनमित्र कथा, सं., प+ग., आदि: विनयपुरे वसुश्रेष्ठी; अंति: (१)नास्तिविधेर्विलंबः, (२)अरामे प्राप्तवान, श्लोक-१७. ५३५८०. (+) पूजा प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. उंना, पठ. ग. लाभवर्द्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १३४३६). पूजा प्रकरण, वा. उमास्वाति, सं., पद्य, आदि: स्नानं पूर्वा मुखी; अंति: दिह ववसेन यौज्य, श्लोक-२२. ५३५८१. शाश्वतजिनबिंब स्तवन व कुमतिनो रास, संपूर्ण, वि. १८७५, फाल्गुन शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११.५, १३४४१-४४). १. पे. नाम. त्रिभुवनशाश्वतचैत्यसमस्त बिंब निर्णय विचार स्वरूप सूचक स्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, ले.स्थल. आवरग्राम. शाश्वतजिनबिंब स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता मन धरि; अंति: जंपइ सार ए अधिकार ए, ढाल-६, गाथा-६०. २. पे. नाम. कुमतिनो रास, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. कुमतिउत्थापनसुमतिस्थापन महावीरजिन स्तवन, श्राव. शाह वघो, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: श्रीसुतदेव तणे सुपसा; अंति: मुजने सदगुरू तूठोरे, गाथा-४०. ५३५८२. (#) स्तवन, गीत संग्रह व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२५४१०.५, १६४६५). For Private and Personal Use Only Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ १.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: जयसिरिजिणवर तिहुअणजण; अंति: नियपय सुयदाऐ अइरा, गाथा-५. २. पे. नाम. गुरुगुण गहुंली, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: कुंकुमनो रोल करी; अंति: लीला लबधि वरइरेलाल, गाथा-५. ३. पे. नाम. बाहुबलि गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. बाहुबली गीत, मु. लींबो, मा.गु., पद्य, आदि: तखसीला नगरीइ आवीया; अंति: लींबो० उल्हासि रे, गाथा-१३. ४. पे. नाम. पच्चक्खाण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानफल सज्झाय-शत्रुजयतीर्थे, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: पचखि पचक्खाण परभाति; अंति: तीर्थ अभिधान धरतां, गाथा-७. ५३५८३. जिनलाभसूरि व दीपचंद्रजी के नाम पत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११, ३५४२७). १. पे. नाम. जिनलाभसूरिक्षमापना स्तुतिपत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. रूपचंद, प्रा., पद्य, आदि: सुत्थि सिरीजहलेहे; अंति: सुहालोयणं हुज्जा, गाथा-१७. २. पे. नाम. दीपचंद्रजी वर्णि के नाम पत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. उपा. अमृतधर्म; उपा. क्षमाकल्याण, सं., प+ग., आदि: सुहद्भिः श्रीमद्भिः; अंति: सद्भिः सुहृद्भिः, श्लोक-७. ५३५८४. मूत्र परीक्षा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३१, माघ कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. खेरवाग्राम, प्रले. मु. उत्तम ऋषि (नागोरीगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, ६४४७). मूत्र परीक्षा, सं., पद्य, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिनाधी; अंति: निमज्जा त्रिदोषजे, श्लोक-२५. मूत्रपरीक्षा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथ तिर्थ; अंति: जाय बेठे ते असाध्य. ५३५८५. दंडक प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२६.५४११.५, १२४३५)... दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउ चउवीस जिणे; अंति: एसा विनति अपहिया, गाथा-४७. ५३५८६. शांतिनाथनो छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पठ. श्रावि. झूमा बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११, १०४३२). शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद माय नमुं सिरनाम; अंति: मनवंछीत सिवसुख पावे, गाथा-२१. ५३५८८. नेमिराजानि कथा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२५.५४१०.५, १३४३३). नमिराजा कथा, मा.गु., गद्य, आदि: इण जंबुद्वीपे भरतखेत; अंति: (-), (पू.वि. देवलोक से युगबाहु के जीव का मदनरेखा के पास आने और पुत्र को मिलाने के लिए मिथिनानगरीले जाने के प्रसंग तक है.) ५३५८९. प्रभंजना सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२६४११.५, १२४३६). प्रभंजनासती सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गिरि वैताढ्यने उपरे; अंति: करता मंगल लील सदाई, ढाल-३, गाथा-४९. ५३५९०. (#) पंचपरमेष्टी नमस्कार व अजितजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, ११४३०). १.पे. नाम. पंचपरमेष्टी नमस्कार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: सूरीवर सीस रसाल, गाथा-१४. २. पे. नाम. अजित स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. अजितजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अजीत जिणंद झुआरीई; अति: रे ध्याउ एजिनदेवरे, गाथा-५. ५३५९१. सुदरशनसेठ सझाय, संपूर्ण, वि. १८५२, फाल्गुन शुक्ल, १५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. शिवजी ऋषि (लुकागच्छ वृद्धपक्ष); पठ. सा. अजबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. वरधमालीजेजी प्रसादात्., जैदे., (२६.५४११, १३४४२). For Private and Personal Use Only Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सुदर्शनशेठ सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७६, आदि: सह गुरूपद पंकज नमी, अंतिः पेहरो सीयल सनीह, गाथा- ४२. ५३५९२. (#) बांभणवाडा महावीर घग्धर निसाणी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७X११, १३X३०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीरजिन निसाणी-बामणवाडजीतीर्थ, मु. हर्षमाणिक्य, मा.गु., पद्य, आदि: माता सरसती सेवकि सत्, अंति: हुइ हर्षमाणिक्य मनः, गाथा-३७. ५३५९३. आठदृष्टि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. ज्ञानविमलसूरि द्वारा लिखित प्रत से प्रतिलिपि होने की संभावना है., वे. (२४.५४११. ११४५२) " ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु, पद्म, आदि; शिवसुख कारण उपदेशी अंतिः वाचक यशने वयणेजी, ढाल-८. ५३५९४. शांतिजिन स्तवन व औपदेशिक सवैया, संपूर्ण, वि. १९०४, वैशाख शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल, राजकोट, दे., (२५.५४९.५. १०४३५). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण, प्रले. ग. धीर्यरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. गौतमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: संतिजिणंदने भेटीये छ, अंति: गोतमना छो दयाल रे, गाथा-८. २. पे नाम औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., प्रा., पद्य, आदि: देख देख गोरो गात्त; अंति: कपडे ए लगई मजिठ, गाथा-३. ५३५९६ (क) लेश्या द्वार विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, अन्य मु. कचराजी ऋषि, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६.५X११, १२४३१). "" लेश्या ११ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नाम १ वर्न २ रस, अंति: समय ते लेस्या होय ११ .. ५३५९७. (+) सौभाग्यपंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८५, भाद्रपद कृष्ण, ४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. कालद्रीनगर, प्रले. गंगाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि, संशोधित, जैदे., (२५.५x११.५, १५-१७४४६-५२). नेमिजिन स्तवन- सौभाग्यपंचमी महात्म्यगर्भित, ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य वि. १७९९, आदि: प्रणमुं पवयणदेवी रे, अंति: पामीइं मंगल अति घणो, ढाल - ९. ५३५९८. (#) चैत्यवंदनसूत्र विधिसहित, संपूर्ण, वि. २०वी, आषाढ़ शुक्ल, ८, मंगलवार, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल. रंगपुर, प्रले. मु. कपुरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २६.५X११.५, ११X३५-३८). चैत्यवंदनसूत्र - विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि इच्छामि खमासमनो, अंतिः सयल सेवा सुख करु. ५३५९९. (+#) नेमनाथजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. तेजपाल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X१२, १४X३८-४२). नेमिजिन स्तवन, मु. पावन शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: सकल सिद्ध प्रणमेव, अंति: पाठक जनने सुखकरु, ढाल - ६. ५३६००. तपागच्छीय पट्टावली, संपूर्ण वि. १८९१, भाद्रपद शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ३ ले, स्थल, बुआडानगर, प्रले. ग. ज्ञानविजय पंडित (गुरु पं. अजितविजय): गुपि. पं. अजितविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीपार्श्वनाथजी प्राशादात् जैवे. (२७४१२, १२-१६X३५-४५), पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानस्वामी; अंति: पाट्टस्थापिता ६९, (वि. ६९ पाट तक है.) ५३६०२. रत्नकोक व जैनरक्षा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे. (२६११, १२X४१). १. पे. नाम. रत्नकोक, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण कालिदास, सं., पद्य, आदि: रतनकोक शास्त्रं च अंतिः प्रौढा च मुग्धया, गाथा- ३६. २. पे. नाम जैनरक्षा स्तोत्र, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. जिनरक्षा स्तोत्र, सं., पद्य, आदि; सर्वातिशयसंपूर्णान् अंति: जैनेन्द्र० तथालिखत्, श्लोक १७. For Private and Personal Use Only Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ २०७ ५३६०३. (+) अक्षर केवली व ६३शलाकापुरुष व अंकाम्नाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१०.५, १४४३२-४१). १.पे. नाम. अक्षरचिंतन केवली, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. कोष्ठकांतर्गत. सं., गद्य, आदि: (१) ऊर्खाकं त्रिगुण, (२)आईऊऋतृऐऔअः खघचञजतठढ; अंति: शषसहकल्प १२३४५६७८९३२. २.पे. नाम. ६३ शलाकापुरुष अक्षर केवली, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: १।०२।३।अ४|आपाइाई७; अंति: ।६,६०७,६१३८,६२।९,६३. ३.पे. नाम. अंकाम्नाय सह टीका, पृ. १आ, संपूर्ण, प्रले. मु. विमलकीर्ति, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. यंत्र सहित. अंकाम्नाय परिज्ञान, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: स्वस्ति तत्रीश्वमायत; अंति: चित्त पराउं ऊपरि आणि. अंकाम्नाय परिज्ञान-टीका, सं., गद्य, आदि: ८चिंतने त्रिभिर्भागे; अंति: शेषांक परिज्ञानं. ५३६०४. एकादशी स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११, १३४३०). मौनएकादशीपर्व स्तवन, म. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरी समोसर्य; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा-९ अपूर्ण तक है.) । ५३६०५. सज्झाय, पद वस्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४११, १३४२७). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ, अपर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. उपा. उदयविजय, पुहि., पद्य, आदि: (-); अंति: उदय सदी सुख वरीये रे, गाथा-६, (पू.वि. गाथा- ५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पारसनाथ स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्राण थकी प्यारो; अंति: थलपति प्राण आधार, गाथा-५. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. आनंदराम, पुहिं., पद्य, आदि: छोटीसी जान जरासा; अंति: भवसुख फंदन करणारे, गाथा-३. ४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. सेवाराम, पुहि., पद्य, आदि: प्रभुजीसू लागो मारो; अंति: प्रीत नही छुटेरी, गाथा-३. ५३६०६. (#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, २२४३१). १.पे. नाम. अनंतजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८४१, आदि: नगरी अजोध्या अतसोवै; अंति: रायचंद० मन लीयौ मानी, गाथा-१४. २. पे. नाम. कुंथुनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. कुंथुजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४१, आदि: गजपुरी नगरी नामो; अंति: रायचद० रहीनै रीझै, गाथा-१४. ३. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: सिद्धारथ राजारी राणी; अंति: रायचंद० तवन कीयो, गाथा-११. ४. पे. नाम. सीमंधर स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: सीमंदर साहबा अरज सुण; अंति: रायचद० चौमासो लाल, गाथा-१४. ५३६०७. औपदेशिक व चंदनबालानी सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८-७(१ से७)=१, कुल पे. २, प्रले. मु. राघवऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४११, १२४२८). १. पे. नाम. जीवकाय सज्झाय, पृ.८अ, संपूर्ण. ____ औपदेशिक सज्झाय, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतम तणो मुज ऊपरि; अंति: हेरे जीवदया प्रतपाल, गाथा-८. २. पे. नाम. चंदनबालासती सज्झाय, पृ. ८आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. नारायण, मा.गु., पद्य, आदि: आज अमारे आंगनडे सुकृ; अंति: नारायण वीरदयालजी, गाथा-५. ५३६०८. (+#) भरतबाहुबली सलोको व चौवीसजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (६२५) जलात् रक्षेत् तैलात् रक्षेत्, जैदे., (२५.५४११.५, १२-१८४४०-४७). १.पे. नाम. भरतबाहुबली सलोको, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण, प्रले. मु. लाभविमल (गुरु ग. अमृतविमल), प्र.ले.पु. सामान्य. क. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम प्रणमूं माता; अंति: उदयरत्न सफली फली आसा, गाथा-६७. २. पे. नाम. चौवीस जिन स्तुति, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई प्रतीत होती है. २४ जिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ब्रह्मसुता वाणी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा- ११ अपूर्ण तक ५३६०९. महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., दे., (२४.५४१०.५, १४४३९). महावीरजिन स्तवन-१४ स्वप्नगर्भित, क. जैत, मा.गु., पद्य, आदि: एक मन वंदु वीरजिणंद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २५ अपूर्ण तक है.) ५३६१०. (#) स्तवन, गीत, सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे.८, प्र.वि. अक्षर मिट गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, २९४७९). १. पे. नाम. जंबूपूर्ववर्ती अढारै नात्रानी चौपाई, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. मु. उदयसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य. १८ नातरा चौपाई-जंबूपूर्ववर्ती, मु. नयरंग, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवर चरण नमी हितकार; अंति: भणता गुणता जंबू पसाइ, गाथा-७४. २. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: चारित्र लेइने चिंतवे; अंति: त्रिविध शिर नामरे, गाथा-१४. ३. पे. नाम. नेमिजिन फाग, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. राजहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: भोगीरै मन भावीयो रे; अंति: राजहरख मन भावइ रे, गाथा-१३. ४. पे. नाम. औपदेशिक हमची, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक हमची-जीवहितशिक्षा, मु. वर्धमान, मा.गु., पद्य, आदि: सरसतिनि चरणे नमिने; अंति: वर्धमान० ऊजवाले रे, गाथा-२२. ५. पे. नाम. सीतासती गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: छोडी हो पिउ छोडि; अंति: जिनरंग-मन भावै करीजी. गाथा-११. ६. पे. नाम. विमलगिरि स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सांभलि हे सखी सांभलि; अंति: राज सिवसुख संवरइ, गाथा-७. ७. पे. नाम. अरणिकमुनि गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: विहरण वेला पांगुर्यउ; अंति: त्रिकरण सुद्ध प्रणाम, गाथा-८. ८. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. जिनवर्द्धमान, मा.गु., पद्य, आदि: जीव करीने जाणती वलि; अंति: जिनवधमान आसरे, गाथा-८. ५३६११. सवैया व दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११.५, १५४३९). १.पे. नाम. प्रस्ताविक सवैया, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. पुहिं., पद्य, आदि: न काहु कै साथ चलै; अंति: जग मै कहि कौ नर है, गाथा-१३. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: एती वात घटी इस कलियु; अंति: उपजै वैठासो है पास, गाथा-१९. ३. पे. नाम. प्रासंगिक दोहा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ दोहा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि हे सखी किसविध तजीया, अंति कीजे इह वडा की रीत, गाथा-४. ५३६१२. स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५X११, ११x४१). १. पे. नाम. सिद्ध स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिद्धपद स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: जगतभूषण विगतदूषण; अंतिः ध्यान अनंत दरशनं, गाथा- १३. २. पे. नाम भरतवाहुवल सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण भरतवाहुबली सज्झाय, उपा, समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राजतणो अतिलोभीया भरथ, अंति वंदे तम पाया रे, गाथा-७. ३. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. "" मा.गु., पद्म, आदि जे विरले संसार नेह; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा- २ तक लिखा है.) ५३६१३. जीवविचार व दंडक विचार, संपूर्ण, वि. १७८०, चैत्र कृष्ण, ४, मंगलवार, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्रले. मु. रामचंद्र ऋषि (गुरु मु. हरनाथजी ऋषि); गुपि. मु. हरनाथजी ऋषि (गुरु मु. हरिचंदजी ऋषि); मु. हरिचंदजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X१०, ११४४३). १. पे. नाम. जीवविचार, पृ. १अ ३अ संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिकण, अंतिः सदाउ सूयसमुद्दाओ, गाथा-५१. २. पे. नाम. दंडक विचार, पृ. ३अ ४आ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीसजिणे तस्स, अंति: गजसारेण० अप्पहिआ, - २०९ गाथा- ४५. ५३६१४. (#) साधु अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५X११, १२X३९). साधुपाक्षिक अतिचार श्वे. मू. पू., संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: करि मिच्छामि दुक्कडं. ५३६१५. भक्तामरादि भंडारगाथा संग्रह, स्तोत्र व अक्षरबावनी, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे ६, जैदे., (२५.५४११, २०४५९). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र - भंडारगाथा का बालावबोध, पृ. १अ संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र शेषकाव्य का वालावबोध, मा.गु. गद्य, आदि: अहो श्रीआदिनाथ तारइ अंतिः तीर्थंकारी भाषा For Private and Personal Use Only समझइ. २. पे. नाम. जयतिहुचण स्तोत्र-भंडारगाथा, पृ. १अ संपूर्ण जयतिहुअण स्तोत्र-भंडार गाधा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि परमेसर सिरिपासनाह; अंतिः सिद्धि मह वंछिवपूरण, गाथा-२. ३. पे. नाम. नमिऊण स्तोत्र - अंतिम ३ गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: भव वासइ एतस्स दूरेण प्रतिपूर्ण ! ४. पे. नाम. उपसर्गहर स्तोत्र - गाथा ५ की भंडारगाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा ५ की भंडारगाथा * संबद्ध, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: तुह दंसणेण सामिय अंति: अट्टगणाधारे वंदे. ५. पे. नाम. पार्श्वधरणेंद्रपद्यावती मंत्र, पृ. १अ संपूर्ण प्रा. गद्य, आदिः ॐ धुणमि पास ही अंतिः पउमावइ पेवडीए स्वाहा. ६. पे. नाम. दहा बावनी, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण, अक्षरवावनी, मु. माल, पुहिं., पद्य, आदिः ॐकार अक्षर जिम अलख अंति: माल० जनम नरनारी अवतार, गाथा-५२. ५३६१६. दशवैकालीक सूत्र अध्ययन १० भिक्खु अध्ययन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, जैवे (२६११.५, ९४३२). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: ( - ), प्रतिपूर्ण. ५३६१७. (+) ऋषमंडल स्तोत्र व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२६X११, १५X४८). Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २१० www.kobatirth.org २. पे. नाम औषध संग्रह. पू. २अ संपूर्ण. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम ऋषमंडल स्तोत्र. पू. १अ २अ संपूर्ण. ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य, अंति: क्षमश्व परमेश्वरि, श्लोक-७५, ग्रं. १५०. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औषध संग्रह *, मा.गु, गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५३६१८. (+) नंदीसूत्र व व्याख्यान संग्रह, संपूर्ण वि. १८०७ भाद्रपद शुक्ल, १३, रविवार, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. ग. मुनिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. जैवे. (२५४११.५, १०x३५). १. पे. नाम. नंदीसूत्र, पृ. १अ - ३आ, संपूर्ण. नंदीसूत्र - स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणीविआणओ, अंति: केवलनाणं च पंचमयं, गाथा-५१. २. पे. नाम. व्याख्यान संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. व्याख्यान संग्रह प्रा. मा.गु. रा. सं., गद्य, आदि: देवपूजा दयादानं अंतिः मृत्युजन्मफलाष्टकं. ** ५३६१९. (+) वंदितु सुत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५४११.५, १३X३७). दिसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदेतु सव्वसिद्धे, अंतिः वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. ५३६२०. (+) अढारनातरा सझाय व नेमनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले. स्थल. पत्तन, प्रले. ग. भानुविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X११, १३X३८). १. पे. नाम. अढार नातरा सज्झाय, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. १८ नातरा सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु, पद्य, आदि पहिलो प्रणमुं पास, अंतिः रिद्धिविजय० मन रंगिला, डाल- ३, गाथा ३२. २. पे. नाम. नेमनाथ स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: तोरण आवी जोर न कीजें, अंति: उदयरतन० वीनती रे लो, गाथा-८. ५३६२१. वीस विहरमानजिन गीत, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २, दे. (२५.५४११.५, ९४३३). " २० विहरमानजिन स्तवन, मु. लीवो ऋषि, मा.गु, पद्य, आदि पेहेला स्वामि सिमंधर, अंति: लीनउ० अविचल पदवी मागु, गाथा- ११. 19 ५३६२२. (+) लघुशांति सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५.५x११.५, ४X३४). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत, अंति: जिनेश्वरे, श्लोक १८. लघुशांति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: शांतिनाथ शांतिनुं घर, अंतिः धर्के जिनेश्वरनई. ५३६२३. शीयल व शिलोपरी सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. मु. अविचल ऋषि पठ. सा. डाइबाइ आर्या श्रावि कुरवाई, प्र. ले. पु. सामान्य, जैये. (२५.५४११, १४४३०). १. पे. नाम. शियल सज्झाय, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय- शीलविषये खीशिखामण, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि; एक अनोपम सीखामण खरी; अंतिः उदेय माहिजस विस्तरे गाधा- १०. २. पे. नाम. शिलोपरी सज्झाय, पृ. २अ- ३आ, संपूर्ण, प्रले. ऋ. अवचलजी, पठ. सा. कुवरबाई, सा. डाईबाई, प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक सज्झाय परनारी परिहार, ग. कुमुदचंद्र, मा.गु, पद्य, आदिः सुणि सुणि कंता रे, अंतिः कुमुद० समज्झ ल्यो, गाथा - १०. ५३६२५. (#) शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५९, माघ कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. ३, ले. स्थल. विजापूर, प्रले. पं. दोलत, पठ. श्रावि. नंदी, अन्य. पं. कांति, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X१२, १४X३६). For Private and Personal Use Only Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ २११ शांतिजिन स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: शांतिजिणेसर अरचित जग; अंति: वाचक जसविजय सिरि लही, ढाल-६, गाथा-४८. ५३६२६. चतुर्विशति तीर्थंकर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४११, १३४४२). २४ जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदिजिन पढम; अंति: दिये सेवक सिवपुरा, गाथा-३२. ५३६२७. (+#) जीव विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ९४३०-३३). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि० समुद्धाओ, गाथा-५१. ५३६२९. (#) पद्मावतीसझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, भाद्रपद कृष्ण, ५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. पोरबंदर, प्रले. श्रावि. नंदुबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११, १३४२६). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पद्मावती; अंति: इमभणे सुटु ततकार ते, ढाल-३, गाथा-४१. ५३६३०. वीशविहरमान स्तवन व श्रीमंदिरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८८, पौष शुक्ल, २, गुरुवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. कस्तुरचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १५४३६). १. पे. नाम. वीसविहरमान स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. २० विहरमान स्तवन, मु. शिवलाल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीक्षेत्र विदेहे; अंति: शिव० भवसायरथी तार, गाथा-७. २. पे. नाम. श्रीमंदिरस्वामी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. शिवलाल, मा.गु., पद्य, वि. १८८१, आदि: श्रीमिंदर जिन मोरा; अंति: वंदो एह जिन तारणहारो, गाथा-९. ५३६३१. (+) आदीसर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १५४४४). आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित, ग. विजयतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलउ पणमिय देव; अंति: विजयतिलय निरंजणो, गाथा-३६. ५३६३२. खंदक ऋषि चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२५४१२, १६४३७-४३). खंधकमुनि चौढालिया, मु. जैमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८११, आदि: नमु वीर सासणधणीजी; अंति: हो ___मिच्छामिदुक्कडम, ढाल-४. ५३६३३. ज्ञानपंचमी सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११, १२४३२). ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: अनंतसिद्धने करी; अंति: अमृत पदनाथी बोध घणी, गाथा-११. ५३६३४. (+-#) रमतियालप्रबंध सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ११४४२). फूलडा सज्झाय, पुहि.,रा., पद्य, आदि: बाई हे मइ अचरिज दीठ; अंति: भवतीति भावार्थः, गाथा-२२. फूलडा सज्झाय-टीका, सं., गद्य, आदि: श्रीवीर निर्वाणात्; अंति: क्रमेण सेत्स्यतीति. ५३६३५. (#) पाक्षिक नमस्कार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ११४३२). सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., श्लोक-२१ अपूर्ण तक है.) ५३६३६. (#) महावीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. सेरपुर, प्रले. मु. रत्ना; पठ. मु. अमरविजय (गुरु पं. हर्षविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ११४३८). महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: समरवि समरथ सारदा; अंति: कमलकलससूरीश्वर सीस, गाथा-२१. For Private and Personal Use Only Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५३६३७. (+) सौभाग्य पंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. आहोर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १६४३२). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिणेसर; अंति: प्रभु गुणगण मुणी, ढाल-६, गाथा-४९. ५३६३८. (+#) दंडकप्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ५४३६). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: गयसारेण० अप्पहिया, गाथा-३८, संपूर्ण. दंडक प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ ऋषभ; अंति: एह भगवंतनी वीनती, संपूर्ण. ५३६३९. श्राद्ध प्रतिक्रमण व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. जालोर, पठ. मु. माणिक्यविजय (गुरु पं. मेरुविजय गणि); गुपि. पं. मेरुविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, ११४३५). १.पे. नाम. श्राद्ध प्रतिक्रमण, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, ले.स्थल. जालोरनगर, पठ. ग. माणकमेरु, प्र.ले.पु. सामान्य. __ वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. २.पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. ३अ, संपूर्ण. औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५३६४०. (#) नेमिराजा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, कार्तिक, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. जोती ऋषि; मु. कातिक ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, २०४४६). नेमराजा चौपाई, पुहि., पद्य, आदि: चरणकमल चितसुंनमुं; अंति: (१)ताला सदाईपुर मतवाला, (२)मिच्छामि दुक्कडंजी, ढाल-७. ५३६४१. (+#) जयतिहुयणस्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पंचपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १२४४२). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंति: अभय० विनिवइ आणंदिय, गाथा-३०. जयतिहुअण स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, आदि: अत्रायं वृद्धसंप्रदा; अंति: स्तवन पार्श्वसितं, ग्रं. २५०. ५३६४३. (#) संबोध सत्तरि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. चकारडा, पठ. मु. हीरा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४४२). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: सो लहई नत्थि संदेहो, गाथा-१२५. ५३६४४. (+#) चेलणा ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. दोलतराम ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, २०४५०). चेलणासती चौढालियो, म. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३३, आदि: अवसर जे नर अकलेंतो; अंति: वीतराग वचन प्रमाण, ढाल-४, गाथा-३७. ५३६४५. शत्रुजयकल्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२५.५४११.५, ६४३९-४३). शत्रुजयतीर्थ कल्प, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सुय धम्मकित्तियं तं; अंति: सित्तुंजए सिद्धिं, गाथा-३९. शत्रुजयतीर्थ कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रुत भणीइ सिद्धांत; अंति: नइ जय तेहनी सिद्धि. ५३६४६. (+-#) अध्यात्म सवैया व संभवनाथ स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-३(१ से ३)=३, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अशुद्ध पाठ-संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२४४१०, १३४३८). १.पे. नाम. अध्यात्म सवैया, पृ. ४अ-६अ, संपूर्ण. अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद मुनि, पुहिं., पद्य, वि. १६८५, आदि: अजर अमर तिहा; अंति: (-), गाथा-२२, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- २३ अपूर्ण तक लिखा है.) २.पे. नाम. संभवनाथ स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई प्रतीत होती है. For Private and Personal Use Only Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ संभवजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८९४, आदि: विणजारा रे नायक संभव; अंति: जिनराज० मूल नको कलइ, गाथा-५. ५३६४७. (#) स्तोत्र संग्रह व स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११,१६४५७). १.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. २. पे. नाम. अजितशांति स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: अजिअसंति जिणनाहस्स, गाथा-४३. ३. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ४आ, संपूर्ण. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-२ अपूर्ण तक लिखा है.) ५३६४८. द्वारिकानगरी ऋद्धिवर्णन सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११, १६४३९). द्वारिकानगरी ऋद्धिवर्णन सज्झाय, मु. जयमल, मा.गु., पद्य, आदि: बावीसमा श्रीनेमिजिण; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा- २३ तक है.) ५३६४९. (+) अष्टापदतीर्थ स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १२४४८). अष्टापदतीर्थस्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टापद श्रीआदिजिणंद; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा- २४ अपूर्ण तक है.) ५३६५०. साधुजन अतिचार, संपूर्ण, वि. १८३६, आश्विन शुक्ल, ४, बुधवार, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. दलिचंद (गुरु पं. माणिक्यसागर); पठ. मु. चंद्रभाण; मु. नानचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५-११.६, ९४२८). साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमिदं सणंमिअचरणं; अंति: करी मिच्छामि दुक्कडं. ५३६५१. (+#) मुनिगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. जालोर, अन्य. श्राव. अमर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१०, ११४२६). मुनिगुण सज्झाय, मु. विनय, मा.गु., पद्य, आदि: वे मुनि मेरे मन वस्य; अंति: विनय मांगे जी सोय, गाथा-१२. ५३६५२. (+) ग्यानपचीसी, अध्यात्मबत्रीसी व ध्यानबत्तीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, वैशाख अधिकमास कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्रले. पं. ज्ञानविजय गणी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १४४४०-४४). १. पे. नाम. ग्यांनपचीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ज्ञानपच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुरनर तिर्यग योनि; अंति: बनारसी० करण के हेतु, गाथा-२५. २. पे. नाम. अध्यात्मबत्रीसी, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. अध्यात्मबत्तीसी, श्राव. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: शुद्ध वचन सदगुरु कहै; अंति: तत्त जेह पावौ भव पार, गाथा-३३. ३. पे. नाम. ध्यानबत्रीसी, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. श्राव. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: ग्यांनरूप अनंत गुन; अंति: बनारसी० सकति परवान, गाथा-३६. ५३६५३. (-) गीत व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४.५४१०.५, १४४४२). १.पे. नाम. च्यारे प्रत्येकबुद्ध समेल गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चिहुं दिसथी च्यारे; अंति: समयसुंदर कहे०परसिद्ध, गाथा-६. २. पे. नाम. मधुबिंदु सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मुझरे माता; अंति: चंदनप्रमोदमै पामियौ, ढाल-५, गाथा-१०. For Private and Personal Use Only Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५३६५५. कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल, प्राणकपुर, प्रले. पं. भक्तिसागर, पठ पंन्या हर्षविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१०.५, १९३०). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंतिः कुमुदचं० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३६५६. पार्श्वनाथजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १७०९ पौष कृष्ण, ११, शनिवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. विमलजय (गुरु पं. भीमविजय गणि); गुपि. पं. भीमविजय गणि, पठ. श्रावि. कुंयरी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४.५X१०, ९-११×३५). पार्श्वजिन स्तवन, पा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: पासजिणंदा हो साहिब, अंति: राजरत्न० काम सुखाकर, गाथा - १०. ५३६५७. साधुगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., ( २४.५X१०.५, १०x४१). साधुगुण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर गणधर, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा - २७ तक लिखा है.) ५३६५८. (-) धन्ना अणगार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे.. (२४.५X१०.५, ११X३० ). धन्ना अणगार सज्झाय, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: जीणवचन वरागीया हो धन, अंति: जजकार हे मोरी अमां, गाथा - १३. ५३६५९. समवसरण व साधारणजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८८६, पौष शुक्ल, १०, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र. ग. ज्ञानविजय पं. प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे (२४.५४१०.५, १३३७-३९). १३x४०). १. पे. नाम. महावीरजी स्तव, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. ". १. पे. नाम. समवसरण स्तवन, पृ. १आ- २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- समवसरणविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनशासन सेहरो जग; अंति: पाठक धर्मवर्धन धार ए. डाल- २, गाथा २७. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: रात गई रवि उगीयो रे, अंति: (-), (पू. वि. मात्र प्रथम गाथा अपूर्ण है.) ५३६६०. महावीरजी व सीमंधरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८२४, ज्येष्ठ शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैवे. (२३.५४११.५, महावीरजिन विनती स्तवन- जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी वीनती, अंति थुण्यो त्रिभुवनतिलो, गाधा- १९. २. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार; अंति: भगतिलाभै० मन तणी, गाथा - १८. (-#) ५३६६१. (७) पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे १०, प्र. वि. पत्र १४३, अशुद्ध पाठ मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (२१.५x११.५, २२४१५). " १. पे नाम. आदिजिन प्रभाती, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन- जन्मबधाई, मा.गु., पद्य, आदिः आज तो बधाइ राजा नाभि, अंति: नीरंजन आदेसर दयाल रे, गाथा-६. २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद. पू. १अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: रे घडीआले बाहो रे मत; अंति: आनंदघन० कोइ पावे, पद- ३. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: राम कहो रहेमान कहो, अंतिः आणंदघन० नीज कर्म रे, गाथा ४. ४. पे. नाम. साधारणजिन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: तु छे सक देवनो देवता, अंति: भगति रूपचंदनी रे, गाथा- ३. For Private and Personal Use Only Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ www.kobatirth.org ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद - काया, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदिः आ तन काची मीटी का; अंति: रूपचंद० तोरे तारणहार, गाथा-४. ६. पे. नाम संभवनाथ पद, पृ. १आ, संपूर्ण. संभवजिन पद, मा.गु., पद्य, आदि: वांके गढ फोजा चले है; अंति: पकर ल्याउ सब चोर, गाथा-४. ७. पे नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण चेतन, पुहिं., पद्य, आदि ऐसा ऐसा सहेर बीच कोन, अंतिः चेतन० ज्ञान कवान है, गाथा-४. ८. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मे परदेसी दूर का, अंति: रूपचंद० गुण गाया, गाथा-४. ९. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं, पद्य, आदि नेम मले तो बांतां की, अंतिः रूपकूं० सुख दीजीइ हो, गाथा-४, " १०. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि पारसनाथ सहाई जाके अंति: लालचंद० सदा सुखदाई रे, गाथा-३, ५३६६२. (#) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७७६, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल. विजेवानगर, पठ. मु. मयाचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संध्यासमयै श्री वरकाणपार्श्वपार्श्वे लिखता, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४X१०.५, १२X३४). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि. सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः कुमुदचं० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ५३६६३. (४) ज्ञानपंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैवे. (२४.५४१०, १४४४५). ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन- बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगुरु पाय; अंति: समयसुंदर० प्रसंसीयौ, ढाल - ३, गाथा-२०. " ५३६६४. अजितजिन स्तवन व प्रास्ताविक दोहा, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (२४४१०.५, ९४३२). १. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अजित जिणंदस्यु प्रीत; अंति: वाचक जस० गाय कई, गाथा-५. २. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. दोहा संग्रह, पुहिं, पद्य, आदि जो नेवणे तुम निरखते; अंतिः अब लागे दुख देवन, दोहा-१. ५३६६५. (४) संतिकरं स्तवन सह अवचूरि, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. पंचपाठ. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे., (२५X११, ५X३४-३९). संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि प्रा. पद्य वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं जग; अंतिः सिद्धी भणई सीसो, 3 २१५ गाथा - १४. संतिकरं स्तोत्र - अवचूरि, सं., गद्य, आदि: संतिकरं संतिजिणमिति; अंति: मुनिसुंदरसूरि भणति ५३६६६. (+-#) गीत व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, लिख. श्रावि. अखुबाई, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X१०.५, १४X३६). १. पे. नाम. तीर्थावली गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सेतुंजे ऋषभ समोसर, अंति: समयसुंदर कहे एम गाथा - १६, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथा को एक गाथा गिना है.) २. पे. नाम. चंतामणजीरो स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, आ. जिनमहेंद्रसूरि, मा.गु, पद्य, आदि: मन मांहांरो चंतामण, अंतिः अवधारो वारूं वार, गाथा-५. Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. अष्टापदजीरो स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. अष्टापदतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अष्टारे पद गिर जात्र; अंति: ज्ञानविमल० गुण गावै, गाथा-८. ५३६६७. (+-) मार्गानुसारी ३५ गुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १३४३३-३९). मार्गानुसारी ३५गुण सज्झाय, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कइह भविजिन; अंति: मान कहई शुभ वाणि हो, गाथा-१६. ५३६६८.(#) विनयाध्ययन स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, दे., (२४.५४८.५, १२४३२). विनयअध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पवयण देवी चीत धरीजी; अंति: विनय सयल सुखकंद, गाथा-८. ५३६७०. स्तुति व विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२४.५४१०.५, १४४३२). १.पे. नाम. वीरजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुरति मनमोहन कंचन; अंति: इम श्रीजिनलाभसूरिंद, गाथा-४. २. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: गिरनार सिहरि पर नेमि; अंति: आस फले सुजगीस, गाथा-४. ३. पे. नाम. अर्द्धपुद्गलपरावर्तन विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: आधो पुडल परावर्त्त; अंति: १४ उवगरणाइंच साहूणं. ४. पे. नाम. समवसरण विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. इंद्रादि द्वारा रचित समवसरण कालमान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सोधर्मो इंद्रनु; अंति: कृतोकृच्छ दिन १५ रहै. ५३६७१. (#) पार्श्वनाथ स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २,प्र.वि. प्रत्रांक न होने से काल्पनिक पत्रांक २ लिया गया है., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४७.५, २८x१२-१४). १.पे. नाम. अंतरीक पार्श्वनाथजी स्तवन, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५८५, आदि: (-); अंति: (अपठनीय), गाथा-४९, (पू.वि. गाथा-२८ से है., वि. अंतिमवाक्य कटा हुआ है.) २.पे. नाम. अंतरिक्ष पार्श्वजिन छंद, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, पं. भावविजय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात मया करी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण तक है., वि. आदिवाक्य वाला भाग कटा हुआ है.) ५३६७२. (#) विचार स्तवन व सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१०, १६x४०). १.पे. नाम. पुद्गलपरावर्तन विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __मा.गु., गद्य, आदि: द्रव्य क्षेत्र काल; अंति: परावर्त हुवई. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मात तात गुरु बंधव; अंति: सत वचन बोले सही, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या नहीं लिखी है.) ३. पे. नाम. रतनकवर सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. रतनकुमार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: रतनकवर गुण आगला आगला; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ५३६७३. (+#) पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३३). पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: नमवि पय कमल चउवीस; अंति: दयाकलस सुसीस० करो, गाथा-१३. For Private and Personal Use Only Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५३६७४. औपपातिकसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२५४११, ८४४५-४९). औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "अविराइए पुव्व ___ पुरिस पण्णत्ते" पाठ तक लिखा है., वि. कृति अपूर्ण होते हुए भी प्रतिलेखक ने पूर्णतासूचक संकेत दे दिया है.) औपपातिकसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, आदि: प्रायोन्यग्रंथ; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ५३६७५. (#) सिद्धाचल स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१०, ११४३१). आदिजिन स्तवन, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८७१, आदि: सुगुण सहेजा साभलो; अंति: जिनभक्तिसुरिंद कि, गाथा-११. ५३६७६. (#) सत्तावीस भव अधिकार, संपूर्ण, वि. १७३६, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. वडोदनगर, प्रले. मु. बलदेव, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १४४४०). महावीरजिन २७ भव वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: भरथेश्वरपृछ्या नविती; अंति: एहवी कर्म विचित्रता. ५३६७७. (#) गहुंली संग्रह व स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२४१२.५, २२४१८). १. पे. नाम. गणधरवंदन गहुंली, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीरे कामनी कहे सुणो; अंति: दीपविजय० शणगार रे, गाथा-६. २. पे. नाम. जंबूगुरुनी गहुंली, पृ. १आ, संपूर्ण. जंबूस्वामी गहुँली, पं. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजब किओरे मुनीराय; अंति: सुणि पामें शिवराज, गाथा-७. ३. पे. नाम. दीवाली स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दीपावलीपर्व स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: मारे दीवाली थई आज; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण तक ५३६७८. (+-) भोजन छोडावण पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक नहीं लिखा है., अशुद्ध पाठ-संशोधित., जैदे., (२३४१०,७४२०). भोजन पद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जनेसर लागु पाय; अंति: वात कही छे वीसवावीस, गाथा-१८, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा सं. नहीं लिखी है.) ५३६७९. (+) चौंसठयोगीनी स्तोत्र व यंत्रलेखन विधि, संपूर्ण, वि. १८७१, मार्गशीर्ष शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले.पं. सागरचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१२, ९४३०). १.पे. नाम. चउसठियोगिणी स्तोत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ६४ योगिनी स्तोत्र, मु. धर्मनंदन, प्रा., पद्य, आदि: जगमज्झवासिणीणं; अंति: धम्मनंदणेन० जयोलोए, गाथा-१५. २. पे. नाम. चौंसठयोगिनी यंत्रलेखन विधि, पृ. २अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में अन्य प्रतिलेखक के द्वारा लिखी गई है. ६४ योगिनी यंत्रलेखन विधि, पं. भाग्यधीरगणि, पुहिं.,सं., गद्य, आदि: गुरुपुष्य पुष्यार्क; अंति: तदा सर्वजनं वशी भवति. ५३६८०. (+) भजगोव्यंद स्तोत्र व धर्मनाथ स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४१०.५, १२४३१). १.पे. नाम. भजगोव्यंद स्तोत्र, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गोविंद स्तोत्र, शंकराचार्य, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: स्वप्नविचारम्, गाथा-१४, (पू.वि. श्लोक-६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. धर्मनाथ स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. धर्मजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हा रे म्हारे धर्म; अंति: उलट अति घणी रे लो, गाथा-७. ५३६८१. स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(३)=३, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२४४११.५, १२४२६-३३). For Private and Personal Use Only Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अजितजिन स्तवन से पद्मप्रभुजिन स्तवन गाथा-३ अपूर्ण तक व सुविधिजिन स्तवन गाथा-१ अपूर्ण से श्रेयांसप्रभजिन स्तवन गाथा-४ तक है.) ५३६८२. मातंगमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३.५४१०.५, १०४३५). हरिकेशिमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: मुनि मातंग महारिषी; अंति: हइडइ धरी गुण गानो जी, गाथा-१२. ५३६८३. कर्मप्रकृति अधिकार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३.५४१०.५, ११४३३). कर्मप्रकृति विचार*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसद्गुरु प्रणमी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "गुरगम धार गुणवंत है." पाठ तक लिखा है.) ५३६८४. (2) अनाथीमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. प्रतिलेखकने एक ही सज्झाय दूसरी बार अधूरी लिखकर छोड दी है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४१०.५, १४४४५). अनाथीमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, वि. १७७४, आदि: थान भलो राजगरही रे; अंति: घर सदा ही कल्याण रे, गाथा-१२. ५३६८५. आषाढभूति चोढालियो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. वीकानेर, दे., (२३.५४१०.५, १९४४०). आषाढाभूतिमुनि पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: दरसण परिसो बाविसामौ; अंति: ते मीछीदुकर होय, ढाल-७. ५३६८६. (#) वंगचूलिया प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं. जैदे.. (२३.५४११, १५४३८). वंगचूलिका प्रकीर्णक, आ. यशोभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भत्तिब्भरनमियसुरनर; अंति: दउचित्तो होइय इंदिय. ५३६८७. (#) औपदेशिक लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४११.५, १२४२७). औपदेशिक लावणी, ऋ. रामकिसन, पुहि., पद्य, वि. १८६८, आदि: चेत चतुर नर कहते; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१४ तक लिखा है.) ५३६८८. (#) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२.५४१०.५, १०४३१). औपदेशिक सज्झाय-संसार अनित्यता, मा.गु., पद्य, आदि: अरे जीव जगत सुपनो; अंति: जीन भज्यां भल होय, गाथा-१०. ५३६८९. (+) प्रभातियुं व स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२३.५४११.५, १०४२६-२८). १. पे. नाम. दानशीलतपभावना प्रभातियु, पृ. २अ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना प्रभाति, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: रे जीव जिनधरम कीजीये; अंति: समयसुंदर० फल त्यांह, गाथा-६. २. पे. नाम. अष्टापद स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. अष्टापदतीर्थस्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: तिरथ अष्टापद नित नमी; अंति: जिनेंद्र० नेहा रे, गाथा-८. ५३६९०. औपदेशिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. मु. मानीया, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४११, ९४३०). नंदीसूत्र-मंगल गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: भदं दम संघ सुरस्स, गाथा-१०. ५३६९१. (-#) खंधकमुनि चौढालीयो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१.५४११, १३४२७). खंधकमुनि चौढालियो, मु. संतोषराय, मा.गु., पद्य, वि. १८०५, आदि: आज से नवकार गुरु; अंति: भावो रतन नरभव पाए के, ढाल-४. ५३६९२. (-#) बलभद्रमुनि सज्झाय व नेमिजिन होरी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२४१०, १२४३५). For Private and Personal Use Only Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ १. पे. नाम. बलभद्रमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: मासखमणने पारणे तपसी; अंति: तीनु सरिखा भावरे, गाथा-१४. २.पे. नाम. नेमिजिन होरी, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नेमिजिन फाग, मु. वर्द्धमान, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेम जिनेश्वर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ५३६९३. (#) लोकनालिद्वात्रिंशिका सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पंचपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४६०-६५). लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदसण विणा जंलोअं; अंति: जहा भमह न इह भिसं, गाथा-३२. लोकनालिद्वात्रिंशिका-अवचूरि, आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., गद्य, आदि: वइ० प्रसारितपादं; अंति: भंशमत्यर्थमिति. ५३६९४. (#) वृद्धसांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८७५, पौष कृष्ण, १०, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३, प्रले. ग. विवेकविजय; पठ. श्रावि. सुरजबा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपलवीहारजी प्रसादात्, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११.५, १३४२२-२४). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जईनं जयति शासनं. ५३६९५. (+) अष्टमी व एकादशी स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४११, १३४३५). १. पे. नाम. अष्टमी स्तवन, पृ. ५अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: कांति सुख पामे घणु, ढाल-२, ____ गाथा-२३, (पू.वि. गाथा-२३ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. एकादशी स्तवन, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानगरी समोसर्य; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ५३६९७. (#) दान शील तप भावना चोढालीयो, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१०.५, ११४३२). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२, गाथा-५ तक है.) ५३७००. (#) दान शील तप भावना संवाद, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४११,१२४२८). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिणेसर पाये; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ की गाथा-३६ अपूर्ण तक है.) ५३७०१. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८-१७(१ से १७)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४४२). १.पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नणदल हे के नणदल; अंति: प्रीतविजयगुण गाय, गाथा-१५. २. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. १८आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चंद्रप्रभुनी चाकरी; अंति: अविगति खेल नवीन हो, गाथा-५. ३. पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. १८आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पदमप्रभु तुम सेवना; अंति: मोहन कहे०साचो नेह हो, गाथा-५. ५३७०२. (#) इचालीपुत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५४११, ११४२३). इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नामे ईलापुत्र जाणीयै; अंति: लबधिविजै गुण गाय, गाथा-९. ५३७०३. चतुर्दशगुणस्थानक स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१३, आश्विन शुक्ल, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. पादरु, जैदे., (२४४१०,७४५७). For Private and Personal Use Only Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिन स्तवन- १४ गुणस्थानविचारगर्भित, वा. पद्मराज, मा.गु., पद्य, आदि: जगपसरत अनंत कंतगुण, अंतिः राजइ पूरवौ सुख संपदा, गाथा - २१. आदिजिन स्तवन १४ गुणस्थानविचारगर्भित टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जगत्रने विषे प्रसरी, अंतिः संपदाना दाता हुजी, ५३७०४. स्तोत्र व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २- १ ( १ ) = १, कुल पे. ६, प्र. वि. पत्र का प्रारंभिक भाग उपलब्ध न होने के कारण अनुमानित पत्रांक २ दिया गया है., जैदे., (२१X७, ३४X१६). १. पे नाम, जिनस्तुति संग्रह, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. बीच के पत्र हैं. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. श्लोक सं. २१ अपूर्ण से २८ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. वीतराग विज्ञप्तिका, पृ. २आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं सं., पद्य, आदि: (-); अंतिः श्रेयस्कर प्रार्थये, श्लोक-२५, (पू. वि. श्लोक-२४ अपूर्ण से है.) ३. पे. नाम. आदिजिन नमस्कार, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: तौ ददासि यदि तत्वधिय; अंति: वन्मयं जगदपत्रपदशेषं, श्लोक - १. ४. पे नाम, महावीरजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण, सं., पद्य, आदि: वीर सर्वसुरासुरेंद्र, अंतिः वीरखिलोकीगुरुः, श्लोक-३. ५. पे नाम, आदिजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण, सं., पद्य, आदि आदी सार्धपतिर्धनो, अंतिः ऋषभं जिनोत्तमम्, श्लोक ६. ६. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तुति, पृ. २आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदिः श्रीश्रीधर्मनृपः; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम श्लोक अपूर्ण है.) ५३७०६. (+) उपदेश बत्तीसी, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. अबरखयुक्त पाठ, संशोधित, जैवे., " (२१.५X११, ११x२५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपदेशबत्तीसी, मु. राज, पुहिं., पद्य, आदि: आतमराम सयाने तूं, अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२७ अपूर्ण तक है.) ५३७०७. स्थूलिभद्र नवरसो, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-१० (१ से १०) = २, जैदे., ( २१.५X१०, ८-१०X२६-२८). स्थूलभद्रमुनि नवरसो ढाल व दूहा, उपा. उदयरत्न, मु. दीपविजय, मा.गु, पद्य, वि. १७५९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं, ढाल २ से ४ अपूर्ण तक है.) ५३७०८ (+) उपधान विधि, मालारोपण विधि व कोष्ठक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३ कुल पे ३, प्र. वि. संशोधित, जैबे, (२५X१०.५, १२X४४). १. पे नाम, उपधान विधि, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. उपधानतप विधि, प्रा., मा.गु. सं., पग, आदि: पहिलइ उपधानि उपवास, अंतिः पूर्वक वाचना दीजइ. २. पे. नाम. मालारोपण विधि, पृ. ३आ, संपूर्ण. प्रा., मा.गु., पद्य, आदि: पहिलं मुहपत्ती, अंतिः उपधान उपदेस दीजइ. ३. पे. नाम. उपधानविधि कोष्ठक, पृ. ३आ, संपूर्ण. जैनयंत्र संग्रह *, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). ५३७१० (+) शनिश्चर छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, दे. (२३.५X१०.५, १५X३३). शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहिनर असुर सुरांपति, अंतिः कहै हेम० शनिसरवर, गाथा- १२. ५३७११. (४) स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १८७९ माघ शुक्ल १२, मध्यम, पृ. ५-२ (१ से २ ) = ३, कुल पे. ५, ले. स्थल, जावला, प्रले. मु. जयवंतविजय, प्र. ले. पु. सामान्य प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२१.५x११, १३४३०). १. पे. नाम. नेमनाथजी बारमास्या, पृ. ३अ - ३आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. नेमराजिमती बारमासो, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कवियण० निधी पांमि रे, गाथा-१३, ( पू. वि. गाथा - १ अपूर्ण से है . ) For Private and Personal Use Only Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ २. पे. नाम. संखेश्वर पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अंतरजामी सुण अलवेसर; अंति: जिनहर्ष० सायरथी तारौ, गाथा-५. ३. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: वंछितपूरण आदि नमो; अंति: शांतिकुशल० सुख थयो, गाथा-५. ४. पे. नाम. रांणपुराजीकी स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडन, मु. शिवसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १७१५, आदि: राणपुरोरलीयामणो रे; अंति: सिवसुंदर सुख थाय, गाथा-१४. ५. पे. नाम. नवकारवालि सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बारे जपु अरीहंतना; अंति: लबदी कहै। नित नवकार, गाथा-९. ५३७१३. परमेश्वर प्राथूर्णक स्तवन व औपदेशिक सवैया, संपूर्ण, वि. १६८४, माघ कृष्ण, ८, शनिवार, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्रले. आ. विनयकीर्तिसूरि; पठ. श्रावि. नानीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. वाचनार्थ का नाम अस्पष्ट है., जैदे., (२५.५४११, ११४४७). १.पे. नाम. परमेश्वर प्राथूर्णक स्तवन, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवनतारक जिनवर; अंति: अविचल सुख दातार, गाथा-५८. २. पे. नाम. सवइया इकवीसा, पृ. ४आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. औपदेशिक सवैया, पुहिं., पद्य, आदि: नान्हरो कंत विचिक्षण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., दोहा-६ तक लिखा है.) ५३७१४. समीनापास स्तवन व दोहा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (१६४८.५, ६४१०). १. पे. नाम. समीना पासजीको स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-समीना, मु. माणक, मा.गु., पद्य, आदि: समीना पासजी म्हारी; अंति: भणीजी माणक करै अरदास, गाथा-३. २. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहि., पद्य, आदि: हलको बचन न बोलवा; अंति: सदा न भैगी प्रीत, दोहा-१. ५३७१५. (+) स्रावकछत्तीसी व श्रावकना २१ गुण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२१४११.५, १६४२७). १.पे. नाम. स्रावक छत्तीसी, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. श्रावकछत्रीशी, मु. गोरधन ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: श्रावकजी तू उठे; अंति: रिष गोधनजी रीइ महने, गाथा-३६. २. पे. नाम. श्रावकना २१ गुण, पृ. २आ, संपूर्ण. श्रावक २१ गुण नाम, मा.गु., गद्य, आदि: अखुद्रिक १ जसवंत २; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., २०वें गुण तक लिखा है.) ५३७१६. ज्वर छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. चतुर; अन्य. पं. कस्तुरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४१२.५, ११४२९). ज्वर छंद, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: ॐ नमो आणंदपुर अजेपाल; अंति: काति० नवला लखमी भोग, गाथा-१४. ५३७१७. (#) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. पाडलीपुर, प्रले. मु. रामचंद्र ऋषि; पठ. श्राव. गोविंदबाबु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १२४३२). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामर प्रणत मौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. For Private and Personal Use Only Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५३७१९. (#) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४११, ११४३३). १.पे. नाम. गौतम स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूति वसुभूत; अंति: देवानंद० क्रमेण, श्लोक-९. २.पे. नाम. सरस्वती अष्टक, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण, वि. १८४१, कार्तिक कृष्ण, ११, पठ. भायेसिंह, प्र.ले.पु. सामान्य. सरस्वत्याष्टक, सं., पद्य, आदि: जाग्रज्जाड्य जल; अंति: वाग्देवते श्रेयसे, श्लोक-९. ३. पे. नाम. ६४ योगिनी स्तोत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ नमो दिव्ययोगी; अंति: सर्वग्रह निवारिणी, श्लोक-१०. ५३७२०. पार्श्वजिन पद, संपूर्ण, वि. १९३५, माघ शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. भीनासर, दे., (२१.५४१०, २३४९-११). पार्श्वजिन पद, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (१)सांवरीया साहिबा तारो, (२)अश्वसेन वामारानी के; अंति: श्रीजिनचंदसुरिंदा, गाथा-५. ५३७२१. शनिश्चर छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२३.५४१२, १५४२४-२७). शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहिनर असुरांसुरापती; अंति: हेम० अलगी टाले आपदा, गाथा-१७. ५३७२२. मेघरथ सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२१.५४११.५, १३४२२-२५). मेघरथराजा सज्झाय-पारेवडाविनती, मा.गु., पद्य, आदि: दया बराबर धर्म नही, अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३३ अपूर्ण तक है.) ५३७२६. विवाहपट्टल लघु, संपूर्ण, वि. १८८३, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२४.५४१०.५, १३४३८). विवाहपडल-पद्यानुवाद, वा. अभयकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: वाणी पद वांदी करी; अंति: अभयकुशल०सुख पामै सदा, गाथा-६२. ५३७२७. ढोलामारवणी दुहा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५, २६४५०). ढोलामारवणी दुहा, मा.गु., पद्य, आदि: दीधावागा सावटू कोडी; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., दोहा-१ से ३९ तक क्रमश: है तथा बाद के दोहे क्रमरहित हैं.) ५३७२९. ५२ बोल साधु क्रिया, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५४११, ९४३१). ५२ अनाचार वर्णन-साधु जीवन के, मा.गु., गद्य, आदि: झीयइ माहि दाज हवइ; अंति: ते यती दाझिवंत कहीयइ. ५३७३१. साधारणजिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१४.५४११.५, ११४२२). साधारणजिन पद, मु. दया, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमु; अंति: दया पुकारे०धरी मनरंग, पद-५. ५३७३२. नंदिषेण चउढालिया व कका बत्तीसी, अपूर्ण, वि. १८१३, माघ कृष्ण, १०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्रले. मु. खुस्यालचंद्र (गुरु मु. नथमल्ल, लुंकागच्छ वृद्धपक्ष); गुपि. मु. नथमल्ल (गुरु मु. पूर्णमुनि, लुंकागच्छ वृद्धपक्ष); मु. पूर्णमुनि (गुरु मु. इंद्राज, लुकागच्छ वृद्धपक्ष); मु. इंद्राज (गुरु मु. गदराज, लुकागच्छ वृद्धपक्ष); मु. गदराज (लुकागच्छ वृद्धपक्ष); पठ. मु. बालचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक न लिखा होने के कारण प्रत की अपूर्णता दर्शाने हेतु काल्पनिक पत्रांक लिया गया है., जैदे., (१७.५४११,११४२७). १. पे. नाम. नंदिषेण चउढालिया, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. नंदिषेणमुनि चौढालिया, मु. पूर्णमुनि, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: पुर्णमुनि० कोडिरे, ढाल-४, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा है.) २. पे. नाम. कका बत्तीसी, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ककाबत्रीसी, मा.गु., पद्य, आदि: कका करि कछु काम धर्म; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ५३७३५. (#) जीवविचार प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. त्रिपाठ. मूल व टीका का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ८-१३४३८). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. For Private and Personal Use Only Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ जीवविचार प्रकरण-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: भुवन त्रिभुवन तणउ; अंति: कहता अगाध उंडउ छइ. ५३७३६. अरणिकमुनि रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४४१०.५, १७४४५). अरणिकमुनि रास, मु. बुधमल, मा.गु., पद्य, आदि: पारसजीन पारस इधक करी; अंति: बुधमलजी० परहरो पेमो, ढाल-४, गाथा-२०. ५३७३७. (+) महावीरजिन गहुँली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३.५४१२.५, २३४२०). महावीरजिन गहुंली, मु. खुसालरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी आव्या रे; अंति: खुसाल० तस घर मंगलमाल, गाथा-७. ५३७३८. (-) अंगफुरण आदि विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२३.५४१३, १४४३०). १.पे. नाम. अंगफुरण विचार चौपाई, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. अंगफुरकण चौपाई, पं. हेमाणंद, मा.गु., पद्य, वि. १६३९, आदि: श्री हरख प्रभु पयवंद; अंति: हेमाणंद० मुखि भणी, गाथा-२३. २.पे. नाम. दुर्गा-काली देवी विचार, पृ. २अ-४अ, संपूर्ण. शुकनविचार संग्रह, रा., गद्य, आदि: देवी डाबी मणी आवैतो; अंति: मनुष्य मुवो सुणावै. ३. पे. नाम. कागरुत विचार, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. कागस्वरसकुन विचार, मा.गु., गद्य, आदि: गाम चालता वायस डाबो; अंति: (-), (पू.वि. "कोलाहल करे तो गामने दुख थाय" पाठ तक है.) ५३७३९. शंखेश्वर छंद व गोडीपार्श्व दोहा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२१.५४१०.५, १०४२७). १.पे. नाम. संखेश्वर छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास संखेसरा मन्; अंति: उदयरत्न० आप तूठा, गाथा-७. २. पे. नाम. गोडीपार्श्व विघ्ननिवारक मंत्रमय दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन दोहा-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: भागा भूला भमरीया; अंति: सदा किल्याण होसी, दोहा-६. ५३७४०. (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४-२०(१ से २०)=४, प्रले.पं. देवीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ११४३०-३२). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुदचं० प्रपद्यते, श्लोक-४४, संपूर्ण. ५३७४१. आदिजिन व जिनकुशलसूरि छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १४४५८-६३). १. पे. नाम. आदिजिन छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन छंद-शत्रुजयतीर्थ मंडण, मु. कविराज, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: श्रीगणधर जिनकुशलगुरु; अंति: कविराज लच्छि वरि, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या नहीं लिखी है.) २. पे. नाम. जिनकुशलसूरि छंद, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. मु. कविराज, मा.गु., पद्य, आदि: वदनकमल वाणी विमल; अंति: कविराज० धन खरतरधणी, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या नहीं लिखी है.) ५३७४२. (+#) षडावश्यकसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(१)-४, पृ.वि. बीच के पत्र हैं..प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०.५, १७४४८-५२). आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. काउसग्ग अध्ययन अपूर्ण से शक्रस्तव अपूर्ण व साक्षिपाठ गाथा-१३ से ६३ तक है., वि. प्रतिक्रमण समाचारी आदि ग्रंथों की गाथा साक्षिपाठरूप में उद्धृत षडावश्यकसूत्र-टीका, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५३७४४. (#) स्तवन, सज्झाय, ग्रहण फल व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ५, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४११, १२४३९-४८). १. पे. नाम. पंचमी स्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिणेसर; अंति: गुणविजय रंगि मुणी, ढाल-६, गाथा-४९. २. पे. नाम. अनाथीनीग्रंथ स्वाध्याय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक रयवाडी चड्यो; अंति: समयसुंदर० कर जोडि, गाथा-९. ३. पे. नाम. वारग्रह फल, पृ. ३आ, संपूर्ण. ग्रहण विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जो आदित्यवारें ग्रहण; अंति: ग्रहे तो ३ मासे लाभ. ४. पे. नाम. ज्योतिष पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. ज्योतिष अपूर्ण ग्रंथ*, सं.,प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ५.पे. नाम. सुमतिजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. ___ मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मुजरा साहिब मुजरा; अंति: रूप० निरंजन तेरा रे, गाथा-३. ५३७४५. स्तवन संग्रह व स्वाध्याय, अपूर्ण, वि. १८४२, मार्गशीर्ष शुक्ल, ४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, प्रले. मु. लखमीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १२-१३४३३-४०). १. पे. नाम. प्रभंजना स्तवन, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. प्रभंजनासती सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गिरि वैताढ्यने उपरि; अंति: देवचंद्र० लील सदाइ, ढाल-३, गाथा-४९. . २. पे. नाम. मयणरेहा स्वाध्याय, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. मदनरेखासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मोरा प्रितमजी तु सूण; अंति: समयसुंदर० विलाप अपार, गाथा-१४. ३.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. __मु. हंस, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधरसामीजी जीव; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण तक है.) ५३७४६. (+) वृहच्छांति सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-त्रिपाठ., जैदे., (२५४११, ५४३४). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: शिवं भवतु स्वाहा. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६५६, आदि: स्ताच्छांतिः शांत; अंति: विहिता बृहत्छातिः. ५३७४७. (+#) सरस्वती छंद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१४१०,११४२६). १. पे. नाम. सारदारो छंद, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सहजसुंदर० सरस्वती, ढाल-३, गाथा-१४, (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सरस्वतिजीरो छंद, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बुध विमल करणी विबुध; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक ५३७४८. (#) प्रियमेलक चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, __ जैदे., (२६४११.५, १९४४७-५८). For Private and Personal Use Only Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ www.kobatirth.org २२५ प्रियमेलक चौपाई - दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: प्रणमुं सद्गुरु पाय; अंति: (-), (पू. वि. ढाल - ९, गाथा २३ तक है.) ५३७४९, (+०) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण वि. १८१८ पौष कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ३, ले. स्थल, नागपुर, प्र. वि. श्लोक संख्या ३७ एकाधिक बार संशोधित किए जाने के कारण अवाच्य है, संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., , (२१.५x१२.५, ११-१३४३३). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामर प्रणत मौलि, अति समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. ५३७५०. (+) केसीगोयमज्झयण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल. सीरोहीनगर, प्रले. ग. खीमारुचि, पठ. ग. लावण्यचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२४.५४१०.५, १२४३४-३६). " उत्तराध्ययन सूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदि (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. अध्ययन- २३वाँ, केशीगीतम अध्ययन मात्र है.) ५३७५१. (#) शंखेश्वरपार्श्व व शत्रुंजय स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (१८x१०.५. १६४२४). १. पे. नाम. शंखेश्वर पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास शंखेश्वरो, अंति: उदयरत्न० आप तूठा, गाथा- ७. २. पे. नाम. शेत्रुजा स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंतिः श्रीआदीसरजी तूठा रे, गाथा-७, (वि. पत्र का ऊपरी भाग कटा होने के कारण आदिवाक्य का चयन नहीं किया गया है.) ५३७५३. सरस्वती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९०७, भाद्रपद, २, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. नागौर, दे., (२३.५X११, १०X३२). सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु, पद्य, आदि; शसिकर णीकर समुजलग्य, अंतिः सवही पूजो सरस्वती, ढाल -३, गाथा - १४. ५३७५८. प्रस्ताविक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे. (२३४१२, १२४३१). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir יי प्रस्ताविक पद पु,ि पद्य, आदि: बादल की छाया सुपनां; अंतिः दिन कोउ नांहि सरनां, गाथा-४. ५३७६२. (+#) स्तवन, पच्चीसी व पद संग्रह, संपूर्ण वि. १७८३ वैशाख कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, ले. स्थल. हीडोणनगर, प्र. वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., ( २४४१०.५, ३६x२१). १. पे नाम चतुर्विंशति जिन स्तवन, पृ. ९अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, प्रा., पद्य, आदि: अमरनररायमहिए सिद्धे, अंतिः जिणाणं सवामरपूर्ववदे, गाथा- ९. २. पे. नाम. साधुगुणपच्चीसी, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १७८३, ले. स्थल. उजीरपुर, प्रले. मु. जगनाथ ऋषि; पठ. मु. मोहण (गुरु मु. जगनाथ ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य. आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: कहिये मलसेरे मुनिवर, अंतिः श्रीबीजेदेवसुरोजी, गाथा-२५. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण, ले. स्थल. हीडोणनगर. मु. गुणसागर, पुहिं., पद्य, आदि: कंत चतुर दलियांनी अंतिः सुनो भव्य जिनवानी हो, गाथा-६. " ४. पे. नाम. नेम पद, पृ. १आ, संपूर्ण. नेम राजिमती पद, मा.गु., पद्य, आदि: जडा कै छाडी छु रे; अंति: शिवमारग सुख पावइ, गाथा-५. ५३७६४. (+) जिनप्रतिमा वंदन विचार, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२१.५x१०.५, १२४३१). जिनप्रतिमा वंदन विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पंचमाहाकल्प छेद, अंतिः छित्तं उवदं सिद्धा. " ५३७६५. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. सायपुरा, जैदे., (१२x१२, २१x१८). औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: ओर बसत तो सहु मीली र अंति: निकल गया असवारे, गाथा-९. ५३७६६. दिपावली पर्व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (१७.५X१३.५, २३x२१). "" For Private and Personal Use Only Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दीपावली पर्व स्तुति, मु. रत्नविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सासणनायक श्रीमहावीर; अंति: द्यो सरसती वर वाणी, गाथा-४. ५३७६७. (#) शिखर गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१४.५X८, १६X१५). सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: हुं तो जाउं रे सिखर, अंति: पभणे श्रीजिनचंद रे, गाथा- ७. ५३७६८, (+) नेमपद, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जै, (२२.५४१०.५, ७४२४). राजिमती पद, मु. शिवरतन, मा.गु., पद्य, आदि: बावीस सुभटांन जीपवा; अंति: सिवरतन० चीर चरर नेम, गाथा-५. ५३७७०. नमस्कार महामंत्र, अपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैवे. (१२४८.५, १०x१३). नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछितपूरण विध परे, अंति: (-), " (पू.वि. गाथा- ६ अपूर्ण तक है.) ५३७७१. गौतमस्वामी छंद व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. हीरानंद (खरतरगच्छ क्षेमकीर्तिशाखा); पठ. मु. अमरचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २३१२, ११x२६). १. पे. नाम. गौतमस्वामी छंद, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. www.kobatirth.org मु. लावण्यसमय, मा.गु, पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिनेसर केरो शीश, अंति: गोतम तूठे संपति कोड, गाथा- ९. २. पे. नाम गौतमस्वामी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण, मा.गु., सं., पद्य, आदि: अंगुठे अमृत वसे लवधि; अंति: जैन धर्मोस्तु मंगलं, गाथा-५. ५३७७२ (-) औपदेशिक पच्चीसी, कवित्त, सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ४, प्र. वि. अशुद्ध पाठ.. (२०X११, १५X३१). १. पे. नाम. औपदेशिकपच्चीसी, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदिः आचारज उवझाय साधु सकल; अंति: प्रभु सुमरण को चाव, गाथा-२५. २. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण मा.गु., पद्य, आदि: सिधां जैसो जीव है; अंति: झरै देखत वाका मुख, गाथा - ३५. ३. पे नाम, औपदेशिकपच्चीसी, प्र. ३अ-४अ संपूर्ण, वि. १९३५. मा.गु., पद्य, आदि: पान झरंतो इम कहे सुन, अंति: जीव ही गया अनंता मोख, गाथा - २५. ४. पे. नाम औपदेशिक दोहे, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण. , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक कवित संग्रह पुहिं मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५३७७३. (-) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९२१, पौष शुक्ल १३, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. श्राव. प्राणजीवनदास सा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. महावीरस्वामी प्रसादात्, अशुद्ध पाठ. वे. (२०.५४११, ८x२३) औपदेशिक सज्झायरसनालोलुपतात्याग, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बापडली रे जीभलडी तु अंति सुणि प्राणी रे, गाथा-८. " ५३७७४. शांतिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, जैवे. (२२.५x११.५, १०x३०). शांतिजिन स्तवन, मु. कल्याणनिधान; श्राव. चंदगोपालदास, मा.गु., पद्य, आदि: अरजकरूं कर जोडीने; अंतिः पुरता चंदगोपालदास गाथा- १५. ५३७७५. सीमंधर व युगमंधर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१९.५X११, १०x२९). १. पे नाम, सीमंधर स्तवन प्र. १-१ आ. संपूर्ण सीमंधरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पुष्कलवइ विजये जयो; अंतिः भयभंजण भगवंत, गाथा- ७. २. पे. नाम. श्री युगमंदिर, पृ. १आ, संपूर्ण युगमंधरजिन स्तवन, मु. नयविजयजी - शिष्य, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीयुगमंधर माहरे रे, अंति: (-), गाथा-६, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- ५ अपूर्ण तक लिखा है.) ५३७७७, (+) वीस बोल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२२.५X११, १४X३०). , For Private and Personal Use Only Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ २० बोल सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३३, आदि: किणशुंवाद विवाद न; अंति: मेडतानगर मझारजी, गाथा-१६. ५३७७८. (#) जिवकाया सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. सा. नानबाई आर्या (गुरु सा. वल्हादेजी आर्या); गुपि. सा. वल्हादेजी आर्या (गुरु सा. डाहीजी आर्या); सा. डाहीजी आर्या; पठ. सा. सुजाणदेजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४९.५, ८४३०). औपदेशिक सज्झाय-जीवकाया, पुहिं., पद्य, आदि: तुं मेरा पिय साजणा; अंति: कामनि वीनवे रे लाल, गाथा-९. ५३७८१. (+) चौद स्वप्न सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८९४, माघ शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. पं. रंगविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१५४६,११४३१). १४ स्वप्न सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीदेव तीर्थंकर केर; अंति: लावन० ते पामे भवपार, ढाल-४, गाथा-१७. ५३७८३. (#) जिनपाल रक्षित जिन चौढालियो, अपूर्ण, वि. १८७२, माघ शुक्ल, १०, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३-१(२)=२, पठ. पुंजा जीवा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३४११.५, १४४३७). जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, रा., पद्य, आदि: अनंत सिद्ध आगे हवा; अंति: जासी मोखरे, ढाल-४, गाथा-६८, संपूर्ण. ५३७८८. (#) स्तवन व स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(२)=३, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१५.५४११, ११४१६). १.पे. नाम. आदिनाथ स्तवन, पृ. १अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., पठ. केसरीदास, प्र.ले.पु. सामान्य. ___ आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित, ग. विजयतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलउं पणमीय देव; अंति: विजयतिलय निरंजणो, गाथा-२९, (पू.वि. गाथा १२ अपूर्ण तक व गाथा २१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तोत्र-समस्याबंध, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथं तमहं; अंति: (-), (पृ.वि. श्लोक-३ अपूर्ण तक है.) ५३७८९. नेम राजीमती बारमासा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१२.५४७.५, १३४२२). १. पे. नाम. नेमराजुल बारमासो, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासो, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वैशाखै वन मोरीया; अंति: मिलीया मुगति मझार, गाथा-१५. २.पे. नाम. नेमराजमति बारमासो, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नेमराजिमती बारमासो, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: राणी राजुल इणपरि वीन; अंति: (-), (पू.वि. गाथा- २ अपूर्ण तक है.) ५३७९१. (+) पार्श्वनाथ अष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२२४१०, १५४४३). पार्श्वजिन अष्टक, ग. मयाचंदजी, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सुमति आप; अंति: मयाचंद० सामी चित रहै, गाथा-११. ५३७९७. एकादशी सझाय व पच्चक्खाण सूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (१९.५४९.५, ९४२३-२६). १. पे. नाम. एकादशी तिथी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. एकादशीतिथि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: आज एकादशीए नणदिल मोन; अंति: अवीचल लीला लेहसे, गाथा-५. २.पे. नाम. नवकारशी पोरसी सूत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. नवकारसी-पोरसीसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गएसूरे नमुक्कार; अंति: हिवतियागरेणं वोसिरे. ५३७९९. (#) शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१३.५४१०.५, १२४२२). शांतिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: हम मगन भए प्रभुध्यान; अंति: जीत लह्यो मैदान में, गाथा-६. For Private and Personal Use Only Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २२८ ५३८०५. स्तवन, पद व सज्झाय, संपूर्ण वि. १८४५, आषाढ़ शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे, ३, ले. स्थल, सोझत, अन्य. मु. ताराचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२x११, १४X३१). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: वालेसर मुज विनति; अंति: इम जंपे जिनराज रे, गाथा- ७. २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पु.ि, पद्य, वि. १७वी, आदि: तुं आतमगुण जाण रे; अंतिः वनारसी०कवण छुडावणहार, गाथा-८, (वि. एक गाथा को दो गाथा गिनी गयी है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३. पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाच, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु, पद्य, आदि: अरणक मुनिवर चाल्या ग; अंतिः लब्धिविजय० फल सीधो जी, गाथा ८. पाठ., जैवे. (३२.५x११.५, ३१x१७) " १. पे. नाम. वडगच्छशाखा कवित्त, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं, पद्म, आदि: वडो तपो वडगच्छ कोटी अंतिः तपगच्छ तखत वणाणीए पद १. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५३८०६. - गच्छ कवित, ८४ गच्छ नाम व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र. वि. पत्र १४२ अशुद्ध (-) २. पे. नाम. औपदेशिक लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: विवेकहीणा तज देसरामा; अंति: वदंतीध्वौलोटी तक्रं, श्लोक - १. ३. पे. नाम. ८४ गच्छ नाम, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: बृहत् तपागच्छ१ ओसवाल, अंति: गच्छ८३ नाडउलागच्छ८४. ४. पे. नाम. आशीर्वाद श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. आशीर्वाद लोकसंग्रह, सं., पद्य, आदि: राजोत्पले हरिभुजामपि अंतिः तनया विपुलं ददातु लोक-१. ५३८०९. (४) मानछत्रीसी सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२०.५X११, १२४३४). मानपरिहारछत्रीसी, मा.गु., पद्य, आदि मान न कीजे रे मानवी अंतिः एही जीतीनो डाण रे, गाथा ३७. ५३८१०. (+) आषाढभूति सज्झाय - ढाल १ से ३, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. संशोधित, दे., (२१x११, १०X२८). आषाढाभूतिमुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीश्रुतदेवी हैडे, अंतिः (-), प्रतिपूर्ण, ५३८१३. (४) आलोयणा, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२०.५x११, ४३x२३) आलोयणा, मा.गु., पद्य, आदि: पंच परमेष्ठिदेवनो; अंति: होय मीछामी दुक्कडं. ५३८१४. सुमतिजिन समवसरण गीत, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, बे. (२२.५x११, ९४२२). सुमतिजिन समवसरण गीत, ग. जीतविजय, मा.गु., पद्य, आदिः आज गई थी हुं समवसरण अंतिः जीतना डंका वाजे रे, गाथा- ७. ५३८१५. स्तवन संग्रह व शालिभद्रमुनि चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. पत्र १आ की पंक्ति - १ सीमंधरजिन स्तवन प्रारंभ करके छोड़ दिया है. जैवे. (२२x१०.५, १६४३७). For Private and Personal Use Only १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- लघु, मु. वसतो, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवन साहिब सांभल, अंति: वसतो० वंदना त्रिकाल, गाथा-७. २. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मरुदेवीमाता सज्झाय, क. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: तुम्हे साथ नाही बोला; अंतिः सेवक मन आणंदो जी, गाथा-७. ३. पे. नाम. शालिभद्रमुनि चौपाई. पू. १आ, संपूर्ण. मु.] मतिसार, मा.गु. पच, वि. १६७८, आदिः (-); अंतिः (-) (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., इम धन्नो धने परचावे पाठ से पालै प्रीत अभंगे रे तक लिखा है., वि. ग्रंथमध्य की ढाल है. ढालक्रम स्पष्ट नहीं है.) ५३८१६. सारदा स्तोत्र व गायत्री मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैवे. (१७.५-१८.५x११, ९-१०x२२-२५). Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ १. पे. नाम. सारदा स्तोत्र, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. सिद्धसारस्वत स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: कलमरालविहंगमवाहना; अंति: रंजयति स्फुटम, श्लोक-१३. २. पे. नाम. रूद्र व ब्रह्मगायत्री मंत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. गायत्री मंत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं; अंति: सर्वसुख० प्रचोदयात्. ५३८१८. जिनदत्तसूरि गीत व सज्जन पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२०.५४९.५, २५४१५-१८). १.पे. नाम. जिनदत्तसूरि गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनदत्तसूरि स्तवन, मु. लाभउदय, रा., पद्य, आदि: सदगुरुजी तुम्हे; अंति: लाभउदय सुख सिद्धि जी, गाथा-११. २.पे. नाम. सज्जन पद, पृ. १आ, संपूर्ण... ___ पुहिं., पद्य, आदि: सज्जन तुंहीयडै वसै; अंति: भमसी भाडायत थकौ, गाथा-७. ५३८२३. (+) नवकारमहिमा व प्रास्ताविक दोहा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, प्रले. मु. कस्तुरचंद; पठ. श्राव. करमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२०४९.५, ८x१९). १. पे. नाम. नवकार महिमा, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछितपुरण विविध परे; अंति: कुशल रिद्ध वंछित लहै, गाथा-१७. २. पे. नाम. भाववंदना, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. त्रिकालभाव वंदना, मा.गु., पद्य, आदि: पढो मंत्र नवकार ताप; अंति: प्राणी काई पढे. ३. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. ४आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा संग्रह *, मा.गु.,रा., पद्य, आदि: गोखड दीया पय हुवै पय; अंति: आंतरो एह पटंतर जोय, गाथा-१. ५३८३०. (#) मधुबिंदु सझाय व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्र १४२, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (३०.५४१०.५, ३०x१५). १. पे. नाम. मधुबिंदु सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मुझने रे मात; अंति: पे परम सुख इम मांणीइ, गाथा-१०. २.पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५३८३९. (+) ऋषभनाथ सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२१.५४१०.५, १५४२८). मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. कल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: रीषभजी वन वास वस्या; अंति: कील्यान० इम भणे रे, गाथा-२६, (वि. गाथा-१ को २ के क्रम से गिनी गयी है.) ५३८५१. चौढालीया संग्रह, अपूर्ण, वि. १८२६, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (१८x११, २५४४८-५८). १.पे. नाम. खंधककुमर चउढालीयो, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १८२६, चैत्र शुक्ल, ४, सोमवार, ले.स्थल. फतेपुर, प्रले. श्राव. दयाल. खंधकमुनि चौढालियो, मु. संतोषराय, मा.गु., पद्य, वि. १८०५, आदि: (-); अंति: करजोरत्न नरभव पाइके, ढाल-४, (पू.वि. ढाल-४ की गाथा-७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. मृगापुत्र चोढालीयो, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, वि. १८२६, कार्तिक कृष्ण, १४, शनिवार. मृगापुत्र चौढालिया, मु. प्रेमचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८२०, आदि: प्रथम नमो अरिहंतकू; अंति: प्रेमचंद इम गावै जी, ढाल-४. ५३८६१. (-#) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (१९.५४१०.५, १५४२५). १.पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसतल जीनदेव नीरजा; अंति: रीषब गुण गाया जीणराज, गाथा-६, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या नहीं लिखी है.) २.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आदिजिन सुखडी, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती देही मात चरण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१९ अपूर्ण तक है., _ वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या नहीं लिखी है.) ५३८६३. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-१२(१ से १२)=२, कुल पे. २, जैदे., (२०x१०, १४४३७). १.पे. नाम. जीवरासि सज्झाय, पृ. १३अ-१४अ, संपूर्ण. पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पदमावती; अंति: कहै पापथी छूटै ततकाल, ढाल-३, गाथा-३७. २.पे. नाम. क्षमा छत्रीसी, पृ. १४अ-१४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदरि जीव क्षमागुण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) ५३८६८. रामकवच व पद्मावत्यष्टक, अपूर्ण, वि. १८५५, श्रावण अधिकमास शुक्ल, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. २, जैदे., (२१४९.५,११४३१). १.पे. नाम. राम कवच, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. रामरक्षा कवच, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मुक्ति प्रदायकं, श्लोक-२७, (पू.वि. श्लोक-२ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. पद्मावत्यष्टक, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. __ पद्मावतीदेवी अष्टक, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: स्तुता दानवेंद्रैः, श्लोक-८. ५३८७०. स्तवन, सज्झाय व चैत्यवंदन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, प्र.वि. पत्र १४२, दे., (२०x१०, २८x१८). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आज भलो दिन उगो हो; अंति: सीसनो राम सफल अरदास, गाथा-५. २. पे. नाम. नवकाररी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: कही चतुर नर ते कुण; अंति: रूप कहै बुध सारी रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: तु ही अकलंकि रूप; अंति: उदयरतन सोभा वहु सारी, गाथा-५. ४. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नवपद स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र आराधिय; अंति: कहे नय कविराज के, गाथा-७. ५. पे. नाम. नेमजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कीर्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नेमजिन बावीसमों; अंति: कीर्तीवीजय० नीतमेंव, गाथा-६. ६.पे. नाम. वीशविहरमान चैत्यवंदन, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. २० विहरमानजिन स्तवन, मु. माणेकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिरी सीरीमिंदर पहला; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ तक है.) ५३८७१. (#) शनिश्चर कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प्र. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११.५, १५४३७-४२). शनिश्चर चौपाई, पंडित. ललितसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति सामण दीओ मुझ; अंति: ललीतसागर एम कहे, गाथा-२७. ५३८७५. स्तोत्र व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३४९.५, ११४३५-४०). १.पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. श्राव. वीरा, प्र.ले.पु. सामान्य. For Private and Personal Use Only Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ २३१ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. मलयकीर्ति, सं., पद्य, आदि: (१)देवीश्री श्रुतदेवतै, (२)जलदनंदनचंदनचंद्रमा; अंति: कल्पलताफलमश्नुते, श्लोक-१०. २. पे. नाम. मयणरेहासती सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, पठ. मु. लाधाजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. मदनरेखासती सज्झाय, मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: लघुबांधव जुगबाहुने; अंति: राजसमुद्र० त्रिणकाल, गाथा-८. ५३८७६. स्तवन व सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२-३१(१ से ३१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १०४३१). १.पे. नाम. ९६ तीर्थंकर स्तवन, पृ. ३२अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.. ग. लब्धिकल्लोल, मा.गु., पद्य, वि. १६५६, आदि: (-); अंति: लबधि कलोल मुणंद, गाथा-२२, (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. धनारिष सज्झाय, पृ. ३२आ, संपूर्ण. धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. विद्याकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: धन धनो रिष वंदीयेरे; अंति: विद्या० निस्तार रे, गाथा-७. ५३८७८. सोलसती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१९४७.५, ११४३५). १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आदेनाथ२ आदेरे जिनवर; अंति: उदयरतन० सुखसंपदा ए, गाथा-१७. ५३८८१. (#) सीमंधरजिन विनती १२५ गाथा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पत्र की दूसरी ओर अनुपयोगी कुछ हिसाब किताब दिया गया है., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०x१०.५, ११४२७). सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: स्वामि सीमंदरा विनती; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ५३८८२. जीवनचरित्र व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (१९.५४१२, १५-१८४४०). १. पे. नाम. सोहणलालगुरु जीवनचरित्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सोहनलालगुरु जीवनचरित्र, मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १९०१, आदि: ॐकार प्रण ग्यान; अंति: गावै जैन बधाई, गाथा-१७. २. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. ठाकरसी ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: दांतन कीजीयै ग्यान; अंति: ठाकरसी० पाछै पछताए, गाथा-९. ५३८८३. (#) शनीश्चर छंद वस्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७८५, वैशाख कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. कासमाबाजार, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (१९.५४१०.५, ११४३२). १.पे. नाम. शनीश्वर छंद, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.. शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अही नर असुर सुरापती; अंति: कहै हेम० शनिसरवर, गाथा-१७. २. पे. नाम. शनीश्वर स्तोत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. शनिश्चर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: यत्पुरा राज्यभ्रष्टा; अंति: पीडा न भवंति कदाचन, श्लोक-६. ५३८८५. अहिंसाष्टक सह टीका व बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. त्रिपाठ., दे., (२०.५४१०.५, १०x१८-२९). हिंसाष्टक, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: अविधायापि हि हिंसां; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३ तक है.) हिंसाष्टक-टीका, सं., गद्य, आदि: चिदानंदमयं ज्योतिः; अंति: (-). हिंसाष्टक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: एक कोईक जीव; अति: (-). ५३८८६. (#) लावणी व पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०४१३, १४४३३). १.पे. नाम. मल्लिजिन लावणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. मोहन, रा., पद्य, वि. १९६३, आदि: श्रीमल्लीनाथ हु; अंति: मोहन० बलिहारी जी, गाथा-५. २. पे. नाम. आदेसरसीमंधर जिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तुला २३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिनसीमंधरजिन पद-राजपुरमंडन, पुहि., पद्य, आदि: श्रीराजपुर नगर के; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक __ द्वारा अपूर्ण., वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखे हैं.) ५३८८८. पंचतीर्थी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, फाल्गुन कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. मु. तेजराज, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२.५४१०.५, १३४४३). ५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: आदए आदए आद जिनेसरू; अंति: भणे ए० सुख आवे सासता, गाथा-५, (वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गाथा गिना है.) ५३८८९. (#) शीतलजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१०, १५४५१). शीतलजिन स्तवन, गच्छा. विजयक्षमासूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीमान् मानैक; अंति: विजयक्षमा० श्रेयसे, श्लोक-१७. ५३८९०. (#) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२३४११.५, १२४३६). औपदेशिक सज्झाय, जै.क. भूधरदास, पुहि., पद्य, आदि: अहो जगत गुरदेव सुनीय; अंति: प्रभु ढील न कीज्यौ, गाथा-१२. ५३८९१. सुविधिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. मु. वीर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४१०, ९४३५). सुविधिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुबधिजिनेसर जागतो जग; अंति: जपता लालजिन गुणमाला, गाथा-७. ५३८९४. सज्झाय व दूहो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. सा. चंदाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०.५४१०.५, १३४२२). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रामचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: नोमासा तें गरभावार; अंति: रामचंद्र० पार उतारो, गाथा-१०. २.पे. नाम. औपदेशिक दूहो, पृ. १आ, संपूर्ण.. दोहा संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: काहा बसो दीसो नही; अंति: मीलतेसो सो बार, दोहा-१. ५३८९६. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२०.५४११.५, १३४२९). १. पे. नाम. महावीरजिन जन्म बधाई, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन जन्मबधाई, रा., पद्य, आदि: त्रिसला दे माता; अंति: भवसागर से त्यार, गाथा-१३. २.पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. भवानीदास ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: गीरनारी की बता दो; अंति: दास भवानी० की पावडी, गाथा-४. ५३८९८. स्तवन संग्रह व नमस्कार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, दे., (२०.५४१०,१६४३१-३६). १.पे. नाम. सीमंधरस्वामीवृद्धि स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार; अंति: भगतलाभे० आस्या मनतणी, गाथा-१९. २.पे. नाम. पंचपरमेष्टि नमस्कार, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि: किं कप्पतरु रे आयाण; अंति: जिनवल्लभ० देज्यो नित, गाथा-१३. ३.पे. नाम. शीतलनाथ स्तवन, प्र. ३अ-३आ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन-अमरसरपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, रा., पद्य, आदि: मोरा साहिव हो; अंति: समयसुंदर० जन मन मोहए, गाथा-१५. ५३८९९. (#) नेमराजिमती स्तवन-पंदरतिथि गर्भित, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्र १४२, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०७१०, २१४१७). नेमराजिमती स्तवन-१५ तिथिगर्भित, ग. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जे जिनमुखकमले राजे; अंति: रंगविजये वधते रंगे, गाथा-२३. For Private and Personal Use Only Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५३९००. (#) अष्टमी स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१.५४११.५, १४४२९). अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हारे मारे ठाम धर्म; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम ढाल है.) ५३९०१. औपदेशिक पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२३४१२, १७-६१४२२-४२). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: प्रथमदेव अरिहंत मनाउ; अंति: दानत० सनमुख पाय है, चौपाई-५. २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. ____ पुहिं., पद्य, आदि: कांई झूमर बसै वाणी; अंति: परम आत्महित ठाणी रे, पद-३. ३. पे. नाम. ९१ बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. ९१ बोल श्रावक के, मा.गु., गद्य, आदि: जीवदया मैं राचीवइ; अंति: सुख अधिकौ जाणवौ. ५३९०३. (#) पद, छंद व स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१२, १८x१६). १. पे. नाम. दिगंबरी स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तोत्र, मु. कनककीर्ति, पुहि., पद्य, आदि: वंदू श्रीजिनराय मनवच; अंति: कनक० सुरगासुख लहोजी, गाथा-१२. २. पे. नाम. शकडालयुद्ध पद, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: फजर उगता दियडा आव; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंत के पाठ नहीं है., वि. गाथाक्रम का उल्लेख नहीं है.) ३. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र छंद, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: (-), (पू.वि. पद-३ अपूर्ण तक है.) ५३९०४. (#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१x१०, १०४३०-३९). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-तिमरीपुरमंडन, मु. ज्ञानउदय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीतिमरीपुर पासजी; अंति: ज्ञान० वंछित काजो जी, गाथा-७. २.पे. नाम. भगवंतजी विनती, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, मु. कनककीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: वांदु श्रीजिनराय मन; अंति: सुणतां सुख लहोजी, गाथा-१७. ५३९०५. (+) स्तोत्र, स्तवन व रास, संपूर्ण, वि. १८४७, आषाढ़ अधिकमास, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, ले.स्थल. मेडतानगर, प्रले. सा. रायकंवर (गुरु सा. महाकंवरी); गुपि.सा. महाकंवरी; अन्य. मु. मनोहर; राज्यकालरा. विजयसिंघ, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२१४११, १६४४७). १.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र भाषा, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र-पद्यानुवाद, मु. हेमराज, मा.गु., पद्य, आदि: आदि पुरूष आदिस जिन; अंति: हेमराज० पावै शिवखेत, गाथा-४८. २.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. केसर, पुहिं., पद्य, आदि: जय बोलो त्रिशलानंदन; अंति: कीजै हरख वढावन की, गाथा-१०. ३. पे. नाम. गौतमस्वामि रास, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी रास, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३४, आदि: गुण गाउ गौतम तणा; अंति: रायचंद० मैं गुण घणा, गाथा-१२. For Private and Personal Use Only Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५३९०६. (#) प्रज्ञाप्रकाशपत्रिंशका, संपूर्ण, वि. १८०७, आश्विन शुक्ल, ११, रविवार, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. भीमजी ऋषि; पठ. मु. मेघराज ऋषि; मु. वंतजी ऋषि (गुरु मु. मूलजी ऋषि); गुपि.मु. मूलजी ऋषि (गुरु मु. कृष्णदास ऋषि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०४११, ११४२६-३०). प्रज्ञाप्रकाशषविंशिका, मु. रूपसिंह, सं., पद्य, आदि: प्रज्ञाप्रकाशाय नवीन; अंति: मयका प्रणीता, श्लोक-३७. ५३९०८.(#) शनिसर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १७४३५). शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहि नर असुर सुरपति; अंति: हेमो० परसन सनीस्वरै, गाथा-१७. ५३९०९. (#) दानशीलतपभावना कुलक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२२.५४११.५, १३४२६). दानशीलतपभावना कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: परिहरिय रजसारो; अंति: (-), (पू.वि. भावना तप की ___ गाथा-१९ तक है.) ५३९१०. सज्झाय व कर्मक्षयफल बोल, संपूर्ण, वि. १८३१, कार्तिक शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२३४१२, ११४३१). १. पे. नाम. अनाथी साधरी सज्झाय, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. अनाथीमुनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मगधाधिप श्रेणिक सुख; अंति: इम बोलै कवि राम कै, गाथा-३०. २.पे. नाम.८ कर्मक्षय फल, पृ. ३आ, संपूर्ण. ८ कर्मक्षयफल बोल, श्राव. बनारसीदास, मा.गु., प+ग., आदि: ज्ञानावरणी करमक्षय; अंति: लखै नमै वनारसी ताहि. ५३९११. (+#) पुण्यपाल स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-२(२ से ३)=३, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, ११४३८). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ की गाथा-४ अपूर्ण से ढाल-४ की गाथा-६ अपूर्ण तक तथा अंतिम ढाल के कलश नहीं हैं.) ५३९१२. (#) स्तवनवीसी, आशीर्वचन श्लोक व औपदेशिक दोहे, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-११(१ से ११)=३, कुल पे. ३, प्र.वि. श्रीमहावीरजी प्रसादात्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१०.५, ११४३७). १.पे. नाम. स्तवनवीसी, पृ. १२अ-१४आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: वाचक जस इम बोले रे, स्तवन-२०, (पू.वि. चंद्रबाहुजिन स्तवन गाथा-३ से है.) २.पे. नाम. आशीर्वचन श्लोक, पृ. १४आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: भाले भाग्यकला मुखे; अंति: दिनं क्षोणीपतौराजते, श्लोक-१. ३. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १४आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहि., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), दोहा-२. ५३९१३. भास व नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२३४११.५,१०४२५-३९). १. पे. नाम. सालिभद्र भास, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, पठ. मु. लक्ष्मीसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. धन्नासालिभद्र भास, आ. हर्षसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नरपति नारि प्रतिइ; अंति: हर्षसागर० पुहचइ कोड, गाथा-१५. २. पे. नाम. सीमंधरजिन नमस्कार, पृ. २आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पूर्वदिशि ईशानकूणि; अंति: हरषु० पूरु संघ जगीस, गाथा-३. ५३९१४. द्रौपदी की ढाल, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. मु. मोतीचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १४४३०). नागश्री सज्झाय, मु. विनयचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: धर्मघोष आचार्यना; अंति: सब दुख जात परेरा रे, ढाल-२, गाथा-४६. For Private and Personal Use Only Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ २३५ ५३९१५. (-) सौभाग्यपंचमी कथा श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५४११.५, १०४३७). __सौभाग्यपंचमी कथा, सं., प+ग., आदि: प्रणम्य श्रीजिनाधीशं; अंति: राधने यत्न कर्तव्यः, श्लोक-६१. ५३९१६. (+#) कायस्थिति स्तव, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. विनयविजय; पठ. मु. हर्षविजय (गुरु मु. विनयविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १५४४०). कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जह तुह दंसणरहिओ काय; अंति: अकायपयसंपयंदेसू, गाथा-२४. ५३९१७. (+) महावीरजिन स्तवन सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४४१०.५, ५४४४). महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जइज्जा समणे भयवं महा; अंति: सत्तुमित्तेसु वावि, गाथा-२१. महावीरजिन स्तवन-बृहत्-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जयवंता वर्त्तइ श्रमण; अंति: शत्रु अनइ मित्र विषइ. ५३९१८. (+#) क्षमाछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१०.५, १७४५०). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदरि जीव क्षमागुण; अंति: समयसुंदर०संघ जगीस जी, गाथा-३६. ५३९१९. (+) सात महाव्रत सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४१२, १२४३४). १. पे. नाम. ५ महाव्रत सज्झाय, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पुरवे रे; अंति: भणै ते सुख लहे, ढाल-५. २. पे. नाम. रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल धरमनो सार ते कही; अंति: कांतिविजय० अवतारो रे, गाथा-६. ३. पे. नाम. सुंदरीतप सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती सामनी करो पसा; अंति: कांतिविजय०शिरनामी रे, गाथा-८. ५३९२०. (#) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, २०४३६). औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये, मा.गु., पद्य, आदि: दानतणा फल जाणीयै भाष; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-२ की गाथा-७ तक लिखा है.) ५३९२१. (#) जंबुस्वामी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२३.५४१२, १३४२७). जंबूस्वामी सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही नगरी वसै; अंति: रुधिविजय सुख पाया रे, गाथा-१४. ५३९२२. (+) साधुविधि प्रकाश, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १८४४०). साधुविधि प्रकाश, उपा. क्षमाकल्याण, प्रा.,सं., गद्य, वि. १८३८, आदि: प्रणम्य तीर्थेशगणेश; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., द्वितीयं कायोत्सर्गं कृत्वा ज्ञानशुद्धिनिमित्तं तक पाठ लिखा है.) ५३९२३. (+#) जीवविचार प्रकरण, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पत्रांक-२ पर मध्य फुल्लिका की जगह सुंदर स्वस्तिक है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १२४३०). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४९ अपूर्ण तक है.) ५३९२४. (+#) जीवविचार सह बालाबोध, संपूर्ण, वि. १८८१, चैत्र कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. शिवचंदजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, २१४५४). For Private and Personal Use Only Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २३६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा. पद्य वि. ११वी आदि भुवणपईवं वीरं नमिकण; अंतिः रुदाओ " सुयसमुद्दाओ, गाथा - ५४. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जीवविचार प्रकरण-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: भुवनत्रिभुवनतणु दीवु; अंति: मांहि थिको उद्धरिउ. ५३९२५, पद व होरी संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ११-१०(१ से १०) = १, कुल पे. ५, जै.. (२३.५x११, ११४२६). १. पे. नाम. आध्यात्मिक होरीपद, पृ. ११अ संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: पीया विन केसे खेलूं; अंतिः द्यानत० कहै कर जोडी, गाथा - ३. २. पे. नाम. आध्यात्मिक होरी पद, पृ. १९अ. संपूर्ण जै.क. धानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: भली भइ यह होरी आइ आए अंतिः सो वरन्यो नहि जाय, गाथा-४. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ११अ, संपूर्ण. साधारणजिन पद, जै. क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: मोहतारा हो देवाधिदेव; अंति: यानत अजरामर भव तृतीय, गाथा ४. ४. पे नाम, पार्श्वजिन होरीपद, पृ. १९अ-१९आ, संपूर्ण पार्श्वजिन पद, आ. जिनलाभसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: होरी के खिलईया हारे; अंति: अनोपम भव निसतिर रे, गाथा-५. ५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ११आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: नहि थारो नहि थारो रे; अंति: (-), (पू. वि. गाथा - १ मात्र तक है.) ५३९२७. (+४) अनुयोगचतुष्टय व्याख्या, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २. पू. वि. अंत के पत्र नहीं है., प्र. वि. संशोधित पदच्छेद . सूचक लकीरें. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२६११, १७४५१). अनुयोगचतुष्टय व्याख्या, आ. जिनप्रभसूरि, सं., गद्य, वि. ९४वी, आदि: इह प्रवचने चत्वारो अंति: (-), (पू.वि. धर्मकथानुयोगव्याख्या अपूर्ण तक है.) 13 ५३९२८. (४) जिनपाल जिनरक्षित चौडालियो, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम पू. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२५.५X१२, १६X३४). जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, रा., पद्य, आदि: अनंत चोवीसी आगे हुई; अंति: शिवरमणि वेगी वरसी, ढाल-४, गाथा - ६८. י: ५३९२९. (+४) अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका सह स्वाद्वादमंजरीवृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६११, १७६१). अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य वि. १२वी, आदि: अनंतविज्ञानमतीतः अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., श्लोक - ३ तक है.) अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका - स्याद्वाद्मंजरी वृत्ति, आ. मल्लिषेणसूरि, सं., गद्य, श. १२१४, आदिः यस्य ज्ञानमनंतवस्तु अंति: (-). (पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. लोक-३ की टीका अपूर्ण तक है.) ५३९३० (-) स्तुति स्तोत्र व मंत्रसंग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है. वे. (२३४११.५, ५१x११). १. पे नाम, पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र - जीरावला महामंत्रमय, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदिः ॐ नमो देवदेवाय नित्य, अंतिः सर्वसिद्धिकरः परः श्लोक-१४. For Private and Personal Use Only २. पे. नाम पद्मावती स्तोत्र, पृ. ९अ- १ आ. संपूर्ण. पद्मावतीदेवी स्तोत्र, पंडित. श्रीधराचार्य, सं., पद्य, आदि: जयंती भद्र मातंगी, अंति: सुखार्थी लभते सुखम्, ३. पे. नाम पद्मावतीदेवी स्तोत्र जापविधि, पृ. १आ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी स्तोत्र जापविधि, संबद्ध, सं., प+ग, आदि: अस्य बीजमंत्रं यथा ॐ अंतिः (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक -५ अपूर्ण तक लिखा है.) श्लोक-१०. Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ २३७ ५३९३१. (+#) चउसरण प्रकर्ण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३,प्र.वि. संशोधित. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२४.५४१२, १४४२९). चतःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोगविरई उक्कित; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. ५३९३२. (#) स्तवन व छंद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, १७४३६). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-शजयतीर्थमंडन, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, वि. १८वी, आदि: आदिजिनं वंदे गुणसदनं; अंति: वितनोतु सतां सुखानि, श्लोक-६.. २. पे. नाम. मरुदेवात्मजजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८१७, चैत्र शुक्ल, १, ले.स्थल. विज्जेवा नगर, गुपि.पं. कृष्णविमल; पठ. पं. हिमतसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य. आदिजिन स्तवन, वा. विनयविजय, सं., पद्य, आदि: श्रीमरुदेवातनुजन्मान; अंति: स्वीयं सदावांछितम, श्लोक-७. ३. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन छंद, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनमुख पंकज; अंति: उदय सुसेवक तास तणो, गाथा-७. ५३९३३. स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७४, चैत्र कृष्ण, ३०, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. रतनचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४१०.५, १६४३७). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: तुम तरणतारण भव निवार; अंति: नमो सिद्ध निरंजनं, गाथा-१४. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: एह संसार खार सागर; अंति: दिल दिदु बध्या खोइ, गाथा-१०. ३. पे. नाम. रहनेमीराजमति सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. सेवक, मा.गु., पद्य, आदि: नव भव केरी प्रीत धरी; अंति: भवभवरा बंधण त्रोडे, गाथा-९. ५३९३४. (+#) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १७८५, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १५४३९). १.पे. नाम. पद्मावतीदेवी स्तोत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, ले.स्थल. पटणा, प्रले. पंडित. केसरीसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य. पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र, अंति: पद्मावतीस्तोत्रम्, श्लोक-२२. २.पे. नाम. चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीचक्रे चक्रभीमे; अंति: चक्रदेव्याः स्तवेन, श्लोक-९. ३. पे. नाम. महालक्ष्मीदेवी स्तोत्र, पृ. ३अ, संपूर्ण. महालक्ष्मी स्तव, सं., पद्य, आदि: आद्यः प्रणवस्तावत्; अंति: सर्वदाभूतिमिच्छति, श्लोक-१०. ५३९३५. (#) श्रावक आराधना बालावबोध व वैराग्य सझाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-११(१ से ११)=३, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११, ११४३०-३३). १.पे. नाम. श्रावक आराधना बालावबोध, पृ. १२अ-१४आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १९०२, पौष शुक्ल, ६, ले.स्थल. फलौदी, प्रले. पं. हंससुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य. श्रावक आराधना-बालावबोध, उपा. राजसोम, मा.गु., गद्य, वि. १७१५, आदि: (-); अंति: वय॑श्चाराधना चक्रे, (पू.वि. ओरसिओ सूकडि धोतिया प्रमुख उपगरण पाठ से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, महमद, मा.गु., पद्य, आदि: भूलो ज्ञान भमरा काई; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ५३९३६. महावीर विज्ञप्ति द्वात्रिंशिका, संपूर्ण, वि. १६७७, श्रावण शुक्ल, ७, मंगलवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. मंगलपुर, जैदे., (२६४११, १६४५२). महावीरविज्ञप्तिद्वात्रिंशिका, उपा. धर्मसागरगणि, सं., पद्य, वि. १६१९, आदि: श्रीमत्स्वर्गिजनार्च; अंति: स्मादृशेषु प्रभो, श्लोक-३२. ५३९३७. (#) गौतमस्वामी रास व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९०३, माघ कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. जालंधर, प्रले. पं. श्रीचंद; पं. वृद्धिचंद (गुरु मु. देवीचंदजी); गुपि.मु. देवीचंदजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. खरतरगच्छ खेमशाखा में प्रत लिखी गयी है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १४४३६-३९). १.पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. __ उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: सयल संघ आणंद करो, गाथा-४७. २.पे. नाम. गौतमस्वामी गीत, पृ. ४आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तवन, मु. पुण्यउदय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी गौतम प्रणमी; अंति: पुण्य प्रगटीउ प्रधान, गाथा-८. ५३९३८. (#) लावणी संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७०, भाद्रपद शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. चतुर्भुज (खरतरबृ.आचार्यग.), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११.५, २५४१५). १. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, पुहि., पद्य, आदि: चेतन इक बात सुन लैना; अंति: मोह पार करना, गाथा-४. २. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. अखपत, पुहि., पद्य, आदि: खबर नहीं है जग में; अंति: जिनकु विनती अखपतकी, गाथा-१०. ५३९४०. (+) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३४१०.५, १२४४७). १.पे. नाम. अजितशांति लघुस्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. अजितशांति स्तवन, संबद्ध, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., पद्य, वि. १५वी, आदि: मंगल कमलाकंद ए सुख; अंति: मेरुनंदण उवज्झाय ए, गाथा-३२. २.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ तक है.) ५३९४२. (+) सझाय, स्तवन व बारमासा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-९(१ से ९)=३, कुल पे. १०, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१०.५, १७X४२). १.पे. नाम. बारहमासा वर्णन, पृ. १०अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पुहि., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मार्गशीर्ष से है तथा फाल्गुन मास तक लिखा है.) २. पे. नाम. नेमराजिमती बारमासीयो, पृ. १०आ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासो, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: राणी राजुल इण परि; अंति: पाले अविहड प्रीत रे, गाथा-१३. ३. पे. नाम. थुलिभद्र सज्झाय, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीऊडा मानौ बोल हमा; अंति: कहइ प्रणमुपाया रे, गाथा-४. ४. पे. नाम. थुलिभद्र सज्झाय, पृ. ११अ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतडली न कीजै हे; अंति: समयसुंदर इणि रीति, गाथा-४. ५. पे. नाम. च्यारमास थूलिभद्रजी रास, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ स्थूलिभद्र चौमासा, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावण आयो साहिबारे; अंति: जगत जिनहरष भलाई, गाथा-५. ६.पे. नाम. थुलिभद्र स्वाध्याय, पृ. ११आ, संपूर्ण... कोशा स्थूलिभद्र सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: धन दीहाडौरे धन दीहा; अंति: नामग्रहण करसी सही, गाथा-९. ७. पे. नाम. नेमिनाथ सज्झाय, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. नेमिजिन सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: नेम काइ फिर चालौ हो; अंति: तुं पिव हं नारी हौ, गाथा-६. ८.पे. नाम. नेमिजिन चतुर्मास, पृ. १२अ, संपूर्ण. नेमिजिन चौमासा, पंडित. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: राजीमति राणी कई रूप; अंति: भावसागर०राजुल मनहतणी, गाथा-१४. ९. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: हुं तो लागुलागु सरसत; अंति: भाव० नेमीसरू हो लाल, गाथा-९. १०. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय-कालप्रभाव, मु. सिंहसागर, मा.गु., पद्य, आदि: समरूं सरसतिदेवि दयाल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० तक है.) ५३९४३. (+#) निसाणी व सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. सा. चंदुजी (गुरु सा. लाछाजी); गुपि.सा. लाछाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंशखंडित है, दे., (२३.५४११, १९४४०). १.पे. नाम. पार्श्वजिन निसाणी, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपत्तिदायक सुरनर; अंति: गुणी जनहरख कहंदा हे, गाथा-१०९. २.पे. नाम. नवकार सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: प्रभु सुंदर सीस रसाल, गाथा-७, (वि. दो गाथा को एक गाथा गिनी गयी है.) ५३९४४. स्तुति, सझाय व स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४१०.५, १३४४८). १.पे. नाम. विंशति विहरमान स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. २०विहरमानजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: महाविदेहावनिमंडलश्री, अंति: संतु मनीषिताप्त्यै, श्लोक-७. २. पे. नाम. पच्चक्खाण सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: दसविध प्रह उठी; अंति: पामो निश्चै निरवाण, गाथा-८. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सकल भविकचेतः कल्पना; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ५३९४५. (#) सिद्धचक्र स्तवन व थुई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १२४३१). १.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, प्र. १अ, संपूर्ण. वा. भोजसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र सुणो; अंति: भणे ए उत्तम अधिकार, गाथा-८. २. पे. नाम. सिद्धचक्र थुइ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तुति, ग. उत्तमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसिद्धचक्र सेवो; अंति: वाचक० उत्तम सीस सवाई, गाथा-४. ५३९४८. (+#) स्तुति व स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १३४३४). १.पे. नाम. सिचियायमाता स्तुति, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ता For Private and Personal Use Only Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २४० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सिचिवायमाता छंद. आ. सिद्धसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुझ मनि आसा आज फली, अंतिः सिद्धसूरि० प्रसन सही, गाथा - २१. २. पे. नाम. सिचीयायमाता छंद, पृ. २अ, संपूर्ण. सिचीयायदेवी छंद, हेम, मा.गु., पद्य, आदि: सानिधि साचल मात तणी, अंति: इम कहै सिचीयाय तणा, गाथा-५. ३. पे नाम. सिचीयाचमाता स्तुति, पृ. २अ संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदिः साचीनुं सिचीयाव अचलओ, अंतिः सके पूजता फल पाईय, गाथा- १. ४. पे. नाम. सत्यकाया स्तोत्र, पृ. २अ - ३अ, संपूर्ण. सत्यकामाता स्तोत्र, मु. देवतिलक, सं., पद्म, आदि: भक्तिप्रसुरेंद्र अंतिः देवः स्फुरत्युच्चकै श्लोक- ९. ५३९४९. स्तवन संग्रह सह टबार्थ व प्रार्थना स्तव, संपूर्ण, वि. १८३८, कार्तिक शुक्ल, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, ले. स्थल. कोटानगर, प्रले. पं. विनयविजय गणि (गुरु पं. अमृतविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कर्मवाट्यां, श्रीवीरप्रभूप्रसादात्., जैदे. (२५x११.५, ५४४६). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन सह टबार्थ, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: ध्रुवपद रामी हो, अंति: आनंदघन मुझमांहि, गाथा-८, (वि. आनंदघनकृत स्तवनचौवीसीगत यह स्तवन ज्ञानविमलसूरि द्वारा पूर्ण किया गया है.) पार्श्वजिन स्तवन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हवै निश्चल पद देखा, अंति: रूप पारस घटमयी ज छइं. २. पे. नाम वीरजिन स्तवन सह टवार्थ, पृ. १आ- २आ, संपूर्ण महावीरजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु, पद्य, आदि वीरजीने चरणे लागुढं अंतिः आनंदघन प्रभु जागे रे, गाथा-७, (वि. आनंदघनकृत स्तवनचौवीसीगत यह स्तवन ज्ञानविमलसूरि द्वारा पूर्ण किया गया है.) महावीरजिन स्तवन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हिवे ध्रुवपद पाम्यो; अंति: उजमालपण जागई है. ३. पे नाम, जगदुरुजी प्रार्थनास्तव, पृ. २आ, संपूर्ण, आदिजिन स्तुति - शत्रुंजयतीर्थमंडन, सं., पद्य, आदि: श्रीसिद्धाचलशैलमंडण, अति: कुशलं बंदे अहं भावतः, श्लोक-१. ५३९५०. पद व छंद संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३) १, कुल पे. २, वे. (२४.५x११, १०x३९). " १. पे नाम. आदिजिन पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. मु. इंद्र, पुहिं., पद्य, आदिः उठ तेरा मुख देखु नाभ; अंति: में हुं तुमारे बंदा, गाथा-५. २. पे. नाम. सरस्वती छंद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., पद्य, आदिः बुध विमल करणी विबुध, अंतिः दया० नित नमेवि जगपति, गाथा - ९. ५३९५२. (*) सझाच संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. १४-१२ (१ से १२) -२, कुल पे. ५. प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., ( २४x१०, १४-१६X५२-६६ ). १. पे. नाम. चौदनेम सज्झाय, पृ. १३अ अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. १४ नियम सज्झाय, मु. विवेकविजय, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: विवेक० चउद नेमसु सहे, गाथा-१५, (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सालिभद्र सिलोको, पृ. १३-१४अ, संपूर्ण. शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. विनीतविमल, मा.गु., पद्य, आदिः राजगरि नगरी श्रेणिक, अंतिः आवे सुखसंपत्ति दोडी, गाथा - ३२. ३. पे. नाम. सालिभद्र सज्झाय, पृ. १४अ - १४आ, संपूर्ण. शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि प्रथम गोवाल तणे भवे, अंतिः सहजसुंदरनी वाणी, गाथा - १८. ४. पे. नाम. वैराग्यनी सज्झाय, पृ. १४आ, संपूर्ण. वैराग्य सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ते गिरुआ रे भाई ते, अंति: तेहना पर प्रणमीजे रे, गाथा-६ For Private and Personal Use Only Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ २४१ ५. पे. नाम. विजयदेवसूरि सज्झाय, पृ. १४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. विजयप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: तेतरिया भाई तेतरिया; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ५ अपूर्ण तक है.) ५३९५४. स्तवन व जिन नाम, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-६(१ से ६)=१, कुल पे. २, पठ. श्रावि. हर्षबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११, १५४३६). १.पे. नाम. मोहराजा स्तवन, पृ. ७अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. धर्मजिन स्तवन-आत्मज्ञानप्रकाश, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१६, आदि: (-); अंति: विनयविजय रसपूरि, गाथा-१३८, (पू.वि. गाथा १२२ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. एरवतकक्षेत्रे आवती चोवीस तीर्थंकर नाम, पृ. ७आ, संपूर्ण. ऐरावतक्षेत्रे आवतीचौवीसी तीर्थंकर नाम, मा.गु., गद्य, आदि: चंद्रानन१ सुचंदर; अंति: पुत्र२३ वारिषेण२४, अंक-२४. ५३९५५. (#) गौतम स्वामी रास,स्तुति व पद, संपूर्ण, वि. १८२९, कार्तिक कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, ले.स्थल. कोयलापुरवर, प्रले.ग. विनयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री महावीर प्रशादात, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १५४३७-४०). १.पे. नाम. गौतमस्वामिनो राश, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: विजयभद्र० इम भणइ ए, गाथा-८१. २. पे. नाम. पर्युषणपर्व पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: आवे साधु आदेस साह; अंति: ऐवासै साह वणाणीय, गाथा-१. ३. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तुति प्रार्थना, पृ. ३आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तुति-प्रार्थना, मा.गु., पद्य, आदि: कामधेन गो शब्दथी ते; अंति: वंछित सुख घमंड फतेरी, गाथा-२. ५३९५६. (#) स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १८२०, ज्येष्ठ कृष्ण, २, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २६, प्रले. पं. विनयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, १७४४५-४८). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: या चेतन की सब सुधि; अंति: तब सुख लहै बनारसीदास, गाथा-४. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, जै.क. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: चेतन तूं तिहुं काल; अंति: वणारसी० सहज सुरझेला, गाथा-४. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: मगन होइ आराधो साधो; अंति: वनारसि वह जैसेकातैसा, गाथा-६. ४. पे. नाम. जिनप्रतिमा स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनप्रतिमा स्तवन, पुहिं., पद्य, आदि: जिन प्रतिमा जिन सारख; अंति: अवंदनी निरदै संसारी, गाथा-९. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मूढशिक्षा अष्टपदी, पुहि., पद्य, आदि: ऐसे क्यों प्रभु पाईय; अंति: विना तूं समजत नाही, गाथा-८. ६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. परमार्थ अष्टपदी, पुहिं., पद्य, आदि: ऐसौ यो प्रभु पाईयै; अंति: एक है तब को कहि भेटै, गाथा-८. ७. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण.. जै.क. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: तुं आतम गुन जानि रे; अंति: ओर न तोहि छुडावनहार, गाथा-७. ८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. श्राव. बनारसीदास, पुहि., पद्य, आदि: रे मन करि सदा संतोष; अंति: को नृपति को रंक, गाथा-३. ९. पे. नाम. उधवावर वैराग्य, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: वालभ तु हूंत न; अंति: वनारसि० नरोत्तम हेतु, गाथा-२२. For Private and Personal Use Only Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २४२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०. पे. नाम औपदेशिक पद, पू. २आ, संपूर्ण. आव. बनारसीदास, पुहिं, पद्य, वि. १७वी, आदि: चेतन उलटी चाल चाले, अंतिः चढि बैठे ते निकले, गाथा ४. " ११. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदिः चेतन नैकल तोहि संभार, अति: सुमिरन भजन अपार, गाथा-४. " १२. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: दुविधा कब जे है या अंति: बलिहारी वा छिनकी गाथा ४. १३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. पु,ि पद्य, आदि हम बैठें अपनी मोनसी अंतिः सुरझै आवागौनसों, गाथा ४. , १४. पे. नाम औपदेशिक पद, प्र. २आ-३अ. संपूर्ण. साधारणजिन पद, जै. क. बनारसीदास पुहिं, पद्म, आदि सुखदायक सुख एव जगत; अंतिः करत वनारसि सेव गाथा-४. १५. पे. नाम. रामायन अष्टपदी, पृ. ३अ संपूर्ण. पु.ि, पद्य, आदिः विराजे रामायन घटमां अंतिः निहवै केवल राम, गाथा ८. १६. पे. नाम. सद्गुरुआलाप दोहरा, पृ. ३अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि ज्यौं बातार दयाल होइ, अति: तुं चात्रिक हुं मेह, गाथा- ६. १७. पे. नाम, औपदेशिक अष्टपदी, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक अष्टपदी-भोंदुभाई, पुहिं., पद्य, आदि: भोदूभाई समुझि सब ईह, अंतिः कै गुरुसंगति खोलै, गाथा-८. १८. पे. नाम औपदेशिक अष्टपदी, पृ. ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक अष्टपदी-भोंदुभाई, पुहिं, पद्य, आदि भोदूभाई देखि हिरदे; अंतिः निरविकलप पद पावै, गाथा ८. १९. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण जै.क. बनारसीदास, पुहिं, पद्म, आदि; तूं भ्रम भूलिन रे, अंतिः ना कर होड विरानी, गाथा-२. २०. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद- चिंतामणि, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: चिंतामनि स्वामी; अंति: करै बनारसि बंदा तेरा, गाथा ४. २१. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. जै. क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: चेति चेति चेतन प्रान; अंति: देखहु आप नीसानी, गाथा- ३. २२. पे, नाम, परमारथ हिंडोलना, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. परमार्थहिंडोल अष्टपदी, केसोदास, पुहिं., पद्य, आदि: सहज हिंडोलना हरख; अंति: विधि सौ नमत केसोदास, गाथा - ९. २३. पे नाम, औपदेशिक पद, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण, भाव. बनारसीदास, पु,ि पद्य, वि. १७वी, आदि देखौ माई महाविकल, अंतिः अलख अखैनिधि छूटै, गाथा-८. " २४. पे. नाम. अध्यात्म पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: आस्या ओरन की कहां, अंति: खेलैं देखैखलकतमासी, गाथा ४. २५. पे. नाम. अध्यात्म पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: राम कहौ रहिमान कहौ क; अंति: चेतनमय नही क्रमरी, गाथा ४. २६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. कबीरदास संत, पुहिं., पद्य, आदि: क्यौं लीजै गढवंका; अंति: राज दीया अविन्यासी, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५३९५७. (+#) सोम शतक, बारपर्षदा गाथा व ८ कर्मविचार गाथा सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १५०३, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, ले.स्थल. पोसालीया, प्रले. मु. माणिक्यमंदिर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (९३३) यादृसां पुस्तक दृष्टा, जैदे., (२५४१०.५, १५४६६-७०). १.पे. नाम. सोमशतक, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदुर प्रकर स्तपः; अंति: ज्ञानगुणास्तनोति, द्वार-२२, श्लोक-९८. २.पे. नाम. बारपरषद गाथा, पृ. ४आ, संपूर्ण. १२ पर्षदा गाथा, मा.गु., पद्य, आदि: मुणि वेमाणिणि समणी; अंति: तिग्गेयाइ विदिशासु, गाथा-१. ३. पे. नाम. कर्मविचार गाथा सह बालावबोध, पृ. ४आ, संपूर्ण.. ८ कर्मविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: इह नाण दंसणावरण वेय; अंति: चउ तिसय दुपणविहं, गाथा-१. ८ कर्मविचार गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नाणावरणी कर्मना ५; अंति: अंतरायकर्मना ५ भेद. ५३९५८. श्रीदेवी सुपन व आदीसर चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. २, जैदे., (२४४१०.५, १६x४९). १.पे. नाम. श्रीदेवी ४ चोथोसुपन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., वि. १७७६, ज्येष्ठ कृष्ण, ११, ले.स्थल. फलवद्धी नगर. श्रीदेवी कमलस्वरुप वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: त्यां की स्वामणी छै. २. पे. नाम. आदिश्वर चरित्र, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. आदिजिन चरित्र, मा.गु., गद्य, आदि: आदीसरजी सरवारथसिध; अंति: पग देख्या बंग दीधी. ५३९५९. शनीश्चर छंद व स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११, १३४३६). १. पे. नाम. शनिश्चरजीरो छंद, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहिनर असुर सुरापति; अंति: हेम०सुप्रसन्न शनीसवर, गाथा-१७. २.पे. नाम. शनिश्चरजी स्तोत्र, पृ. २अ, संपूर्ण.. शनिश्चर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: यत्पुरा राज्यभ्रष्टा; अंति: पीडा न भवंति कदाचिन, श्लोक-१०. ५३९६०. (+#) स्तवन, गीत व स्वाध्याय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. १०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०, १६x४५). १.पे. नाम. सुमतिनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सुमतिजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीवडा तज विषयारी हेव; अंति: कांति सेवा नित मागे, गाथा-७. २. पे. नाम. पद्मप्रभु स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपदमप्रभू राजियो; अंति: नेण हूअ धन धन्य, गाथा-५. ३. पे. नाम. सुपार्श्व स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल समिहीत सूरतरु रे; अंति: कांति+ लोकामांसाबास, गाथा-५. ४. पे. नाम. चंद्रप्रभ गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीचंद्रप्रभु चितथी; अंति: वागागु हीर निसांण, गाथा-५. ५. पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ताहरी अजवसी जोगनी; अंति: कति मनमंदर आवोरे, गाथा-५. ६.पे. नाम. कुंथुजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. ___ मु. कांतिविजय, पुहिं., पद्य, आदि: कठिन भगत हो रीत हेरी; अंति: कुंथु भगति रस प्रीत, गाथा-५. ७. पे. नाम. अरजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कागल तोनें रे किम लख; अंति: वारू जग जाचो व्यवहार, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८. पे. नाम. मुनिसुव्रतजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गुण बोलतां जो नवि; अंति: करत पलकमां अजाची हे, गाथा-५. ९. पे. नाम. नेमिजिन गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: कालीने पीली वादली; अंति: कांति नमे वारंवार, गाथा-७. १०. पे. नाम. औपदेशिक स्वाध्याय, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: सदहणा साची हीइंए समक, अंति: माल० दुखसायरथी तरीइं, गाथा-७. ५३९६१. (+#) जयतिहुअण स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०, ९४३२). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २० अपूर्ण तक है.) ५३९६२. (+) प्रश्नोत्तर विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित-संशोधित., जैदे., (२६.५४१०.५, १२४४२). प्रश्नोत्तर विधि, सं., पद्य, आदि: श्रीमत्तीर्थेश्वरान्; अंति: आदव हार्दव यादव, श्लोक-१३. ५३९६३. (#) दानसीलतपभावना संवाद व ज्योतिष संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १५४३९). १. पे. नाम. दानसीलतपभावना संवाद, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: समृद्धि सुप्रसादोरे, ढाल-४, गाथा-९९. २. पे. नाम. ज्योतिष संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. ___ ज्योतिष , मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ५३९६४. माहावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. गोलगाम, पठ. भट्टा. गोरधनजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, १२४३०). महावीरजिन स्तवन-१४ स्वप्नगर्भित, क. जैत, मा.गु., पद्य, आदि: एक मन वंदो श्रीवीर; अंति: जैत० देह मनवंछित घणी, गाथा-२९. ५३९६५. साचियायमाता छंद संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ३., (२५४११.५, १०४२१). १.पे. नाम. सिचीयायमाता स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सिचीयायदेवी छंद, हेम, मा.गु., पद्य, आदि: सानिध साचल मात तणी; अंति: हेम कहे सिचियाय तणा, गाथा-५. २. पे. नाम. सिचीयायमाताजी छंद, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सिचियायमाता छंद, आ. सिद्धसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुझ मन आस्या आज फली; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४ ___ अपूर्ण तक है.) ५३९६६. (#) स्तवन व स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२, १२४३८). १. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद-नाकोडाजी, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पार्श्वजिन छंद-नाकोडातीर्थ, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: समयसुंदर० गुण जोडो, गाथा-८, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथाका अंश हैं.) २. पे. नाम. गौतमस्वामी छंद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.. गौतमस्वामी स्तोत्र, ग. विजयशेखर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगौतमगुरु परभात; अंति: वीजयसीखरकहे सुवीलासे, गाथा-१३. ३.पे. नाम. काव्य संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. काव्य/दुहा/कवित्त/पद्य*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५३९६७. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. मलूकचंद ऋषि; अन्य. हिराजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, २०४४७). औपदेशिक सज्झाय-दयाधर्म, रा., पद्य, आदि: श्रीजिन जीव सहुनी; अंति: अंत होसी नीरवाणो रे, गाथा-३६. ५३९६८. छंद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४२४). १.पे. नाम. माणभद्रजीरो स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. वगडीनगर. माणिभद्रवीर छंद, मु. शिवकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमाणिभद्र सदा; अंति: सिवकिरत० सुजस कहे, गाथा-९. २. पे. नाम. गोडीजीरो छंद, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: धवल धिंग गोडी धणी; अंति: (-), (वि. गाथांक नहीं लिखा ५३९६९. सझाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५,१५४३८). १. पे. नाम. अईवंतारी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अईमुत्तामुनि सज्झाय, उपा. रत्नसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर वांदीनै; अंति: रतनागर०धन ते मतिवंता, गाथा-१८. २. पे. नाम. मेतारजमुनि सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. रा., पद्य, आदि: मासखमणरो पारणो मुनि, अंति: (-), (पू.वि. गाथा ८ अपूर्ण तक है.) ५३९७०. (#) कीर्तिध्वजराजा सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५४११, १५४२९). कीर्तिध्वजराजा सज्झाय, मु. खिमा, मा.गु., पद्य, आदि: नगर अजोध्याजी राय; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल २ गाथा १० अपूर्ण तक है.) ५३९७१. भरतबाहुबली सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६.५४११.५, १०४३६). भरतबाहुबली सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि: तव भरतेसर वीनवेरे; अंति: रामवीजे जय सीरीवरे, गाथा-११, (वि. अंतिम गाथांक नहीं लिखा है.) ५३९७२. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०, १८४५७). औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: इम सदगुर जीवन्ये समझ; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ४२ तक लिखा है.) ५३९७३. (#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११, १६x४७). १. पे. नाम. श्रुतज्ञान पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-श्रुतवाणी स्तवन, मु. मुनिचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: श्रुत लोभाणी रे प्रभ; अंति: समृत श्रुत वाणी रे, गाथा-६. २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. मुनिचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: मोहन मुरत सुरत प्यार; अंति: मुनी० श्रुत पावेरे, गाथा-६. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मुनिचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: सुरत प्यारी रे प्रभुः अंति: छत्र बिराजे रे, गाथा-६. ४. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मुनिचंद्र, पुहि., पद्य, आदि: अलख अकल गत सुरत ताहर; अंति: केवल भक्त विचारी रे, गाथा-६. ५. पे. नाम. केवलज्ञान कल्याणक महोत्सव स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मुनिचंद्र, पुहि., पद्य, आदि: केवल ओछव इंद्र उलासे; अंति: मुनी० प्रेम जगावेरे, गाथा-६. ५३९७४. (#) स्तवन संग्रह व सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१२, १७४४९). For Private and Personal Use Only Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. परमात्मजिन द्वात्रिंशका, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १८२४, चैत्र शुक्ल, ११, ले.स्थल. ध्राणपुरनगर, प्रले.पं. विनयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. परमात्मस्वरूप स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: चिदानंद रूप सरूप अरू; अंति: तत्सिशुदाननामा, गाथा-३२. २. पे. नाम. युगमंधरजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण, वि. १८२४, वैशाख शुक्ल, १०, ले.स्थल. भिन्नमाल. पं. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हो काया पांमी अति कू; अंति: पंडित जिनविजये गायो, गाथा-९. ३. पे. नाम. पांचइंद्रिय विषय स्वाध्याय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ५ इंद्रिय २३ विषय सज्झाय, मु. सुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: उतपति मानव एह जाणे; अंति: सुंदर एम कहे सहिए, गाथा-१५. ५३९७५. (#) सज्झाय संग्रह, सुगुरुपचीसी व दूहा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १५४४२-४६). १. पे. नाम. नववाड सज्झाय, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: श्रीनेमीसर चरण जुग; अंति: धारी हो जुगती नववाडि, ढाल-११, गाथा-९८. २. पे. नाम. गुरुपचीसी, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. सुगुरुपच्चीशी, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सांभलजो सहूऐ मन आंण; अंति: रूप०गुणै नमता पुरीसा, गाथा-२५. ३. पे. नाम. कृष्णबलभद्र स्वाध्याय, पृ. ४आ, संपूर्ण. कृष्णबलभद्र सज्झाय, मु. सारंगधर, मा.गु., पद्य, आदि: ब्रह्मा नाम युगादि; अंति: सारंगधर साचो कीजै, गाथा-२०. ४. पे. नाम. ज्ञानमहत्व दहो, पृ. ४आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय), श्लोक-१, (वि. आदि-अंतिमवाक्य अवाच्य होने से नहीं भरा है.) ५३९७६. ढंढणऋषि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२३.५४१०.५, १०४२९). ढंढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढण रिषनै वंदना; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ७ तक लिखा है.) ५३९७७. (#) गौतमस्वामी गहुंली, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४११, १०x१९). गौतमस्वामी गहुंली, मु. सुखसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सखि गुयली करो गुरु; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. गाथा ४ तक है., वि. गाथांक-३ व ४ नहीं लिखा है.) ५३९७८. स्तवन व स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४११.५, १३४३०). १.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो सांति जिणंद सोभ; अंति: इम उदयरतननी वाणी, गाथा-१०. २. पे. नाम. रोहिणीतप स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. पद्मसागर, मा.गु., पद्य, आदि: जयानंदन दीपतो एवासु; अति: ए पदमसागर सुख दायतो, गाथा-४. ५३९७९. (#) स्तवन, सज्झाय व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ८,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२३.५४१२, ३९४२३). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: चित चाहत सेवा चरण; अंति: भीत मिटावो मरण की, गाथा-७. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. श्रीधर, पुहि., पद्य, आदि: नीकी मूर्त भामानंद; अंति: दाता प्रमानंद की, गाथा-५. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, रा., पद्य, आदि: म्हेतो नजरि रहस्यांज; अंति: उदयरत्न० श्रीमहावीर, गाथा-६. For Private and Personal Use Only Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ४. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. हरखचंद, पुहिं., पद्य, आदि: अजत जिन को ध्यान कर; अंति: कहत न आवै ग्यान कर, गाथा-४. ५. पे. नाम. नेमराजीमति सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: नेमजी सुं कहीयो मोरी; अंति: दर्श उनही को करोरी, गाथा-५. ६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. भद्रसेन, पुहि., पद्य, आदि: सहै घोर संकट समुद्र; अंति: पसारे हाथ जावेगे, गाथा-४. ७. पे. नाम. कर्म सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: कर्मगति काहूसुंन टर; अंति: दुख छिन में जाहि टरइ, गाथा-७. ८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: समायक पूजा नही कीनी; अंति: तई निज मैल न धोयो, गाथा-४. ५३९८०. ढंढणऋषि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४११.५, १२४२९). ढंढणऋषि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: कृष्णनरेसर पुंछीयो ज; अंति: पहुंते मुक्त मंझार, गाथा-९. ५३९८१. मंगलाष्टक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३.५४११.५, ९४२३). २४ जिन स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: नतसुरेंद्रजिनेंद्र; अंति: पूज्यतमा मम मंगलम्, श्लोक-९. ५३९८२. (#) स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ९, प्र.वि. पत्र १४२, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, ५४४३५). १. पे. नाम. दश त्रिकविचार गर्भित नेमिजीकी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन-दशत्रिक, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३३, आदि: सद्गुरु चरण नमी करी; अंति: लाल० तवन कीधो चितधरी, ढाल-४. २. पे. नाम. मुहपतिपडिलेहण स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-मुहपत्तिपडिलेहणविधिगर्भित, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: वरधमान जिनवर तणा जी; अंति: लछिवल्लभ गणि कही, गाथा-१५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. हीरधर्म, मा.गु., पद्य, आदि: वामानंदनपासजी जाणौ; अंति: वीनती आगलि तुज्झ हो, गाथा-५. ४. पे. नाम. पार्श्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. जिनलाभ, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: सेवो प्रभु शिव सुखका; अंति: जिनलाभ महा सुखकार, गाथा-७. ५. पे. नाम. अतिशय स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पंचकल्याणक स्तवन-केवलज्ञान, मु. हीरधर्म, पुहिं., पद्य, आदि: जिनवरकी महिमा वरनी; अंति: हीर० रह्यो है लुभाय, गाथा-५. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, रा., पद्य, आदि: सरणैरहिस्यां जी; अंति: ध्यावौ मन हितकारी, गाथा-५. ७. पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रंगविजय, रा., पद्य, आदि: शिखरसम्मेत जुहारस्या; अंति: रंगै फल्या सब काज, गाथा-७. ८. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कुशल, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीतेरमगुण वसकै कंत; अंति: नवपद कुशलाकुं भासैरे, स्तवन-९. ९. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. खेम, रा., पद्य, आदि: चाकर रहिस्यांजी गौड; अंति: पदवी सेवा भक्ति सदीव, गाथा-५. ५३९८३. (+) गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४४१२, १४४३८-४०). For Private and Personal Use Only Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गौतमस्वामी रास, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनेसर चरण कमल; अंति: वृद्धि कल्याण करो, गाथा-४४. ५३९८४. बडो नवकार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२४.५४१०.५, १०x२९-३२). नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछित पूरे विविध परे; अंति: ऋद्धि वांछित लहे, गाथा-१७. ५३९८५. नवपद के चैत्यवंदन स्तवन व स्तुतियां, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४.५४१२, ११४३०-३२). नवपद के चैत्यवंदन स्तवन व स्तुतियां, मु. हीरधर्म; मु. कुसल, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय श्रीअरिहंत, अंति: (-), (पू.वि. छट्ठा दर्शन पद तक है.) ५३९८६. नेमिजिन स्तवन व खंधकमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८८५, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. कसनगढ, प्रले. श्रावि. रतु, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, १७४३७). १. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमीसरजी नीत; अंति: लोग सुखीया वस, गाथा-१७. २. पे. नाम. खंधकमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. सबलदास ऋषि, पुहिं., पद्य, वि. १८७६, आदि: जवरनी मलगत मलगत; अंति: सबलदास० जरता हे, गाथा-१३. ५३९८७. मेघकुमार चौढालियो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४११.५, १४४३७). मेघकुमार चौढालियो, मु. जादव, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गणधर गुण नीलो; अंति: जादव कइ० सुख थाय, ढाल-४. ५३९८८. तुंबडानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४४११.५, ९४३५). द्रौपदीसती सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: साधुजीने तुंबडु; अंति: जासे मुकति मोंझार रे, गाथा-१०. ५३९८९. (#) सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-२(१ से २)=४, कुल पे. ४, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१०.५, ११४३२-३६). १.पे. नाम. विजयसेठ सेठाणीनी स्वाध्याय, पृ. ३अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. कुसल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कुशल नित घर अवतरे, ढाल-३, गाथा-३०, (पू.वि. गाथा ४ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. बाहुबली स्वाध्याय, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. भरतबाहुबली सज्झाय, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: बाहुबली चारित लीयोजी; अंति: विमलकीर्ति सुख पाय, गाथा-१२. ३. पे. नाम. धनासेठ स्वाध्याय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन-संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: धनी धनी संप्रति साचौ; अंति: भवि भवि सेवरे, गाथा-९. ४. पे. नाम. खामणाकी स्वाध्याय, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण. खांमणा सज्झाय, पंन्या. ऋषभसागर, मा.गु., पद्य, आदि: खामो इण विधि खामणा; अंति: युं पामो सिवराणी रे, गाथा-१४. ५३९९०. (+#) वीरजिन स्तुति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१२, मध्यम, पृ. ४, प्रले. उदेराजजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, ५४३३-३६). सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिस्सणं समणा; अंति: हवइ आगमिसंति तिबेमि, गाथा-२९. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन काटबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पुच्छताया साधु; अंति: कुशील ते कहि छि. For Private and Personal Use Only Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ २४९ ५३९९२. (+) आर्यवसुधारानाम धारिणी महाविद्या संपूर्ण वि. १८२१ कार्तिक कृष्ण, ३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. चुली, प्रले. पं. विनयविजय गणि, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीइष्टदेव प्रशादात्, संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १५X४६). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य अंतिः तो भाषितम भनंदन्निति ५३९९३. नेमीजन स्तवन, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्रले. पंडित, अमरअम, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५x११.५, ५X३३-३९). - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मिजिनद्वयक्षर स्तोत्र, मु. शालिन, सं., पद्य, आदि: मानेनाअर्जुन मानेन नो, अंति: वीधवाः परीभोगजोग्या श्लोक-१. ५३९९४. उपदेश छतीसी कवितबंध, संपूर्ण वि. १८९२ ज्येष्ठ शुक्र ९, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल, मडुलाइ नगर, प्र. ग. विनयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य प्र. वि. श्रीआदीश्वर प्रसादात्., प्र. ले. लो. (६१६) यादृशं पुस्तकं दृष्टा, जैदे., (२५x११. १२X४३). יי उपदेशछत्रीसी, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सरुप यामें प्रभु; अंति: जिनह० मोनुं दिजीउं, गाथा-३६. ५३९९५. (४) उपासगदशांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३५-३४ (१ से ३४ ) = १, प्र. वि. प्रत खंडित होने के कारण कृति की अपूर्णता दर्शाने हेतु अनुमानित पत्रांक ३५ दिया गया है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५X११.५, १२x२९-३२). उपासक दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि (-); अंति: दिवसेसु अंगं तहेव, अध्ययन १० नं. ८१२, ग्रं. ( पू. वि. अध्ययन १० अपूर्ण से है.) ५३९९६. चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. जैवे. (२४.५४११, १३४३०). पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस, अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. श्लोक ११ अपूर्ण तक है.) ५३९९७. (४) नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे., (२५X१०.५, १९-२३x४५-५०). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. मूल का मात्र प्रतिकपाठ दिया गया है.) नवतत्त्व प्रकरण- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि दसविध प्राण धरइ ते अंतिः जीवानां आयुः. ५३९९८. अंजनासुंदरी सज्झाच, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. आणंदविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२४.५४९, १३४३२-३८). अंजनासुंदरी सज्झाय, ग. हेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६८३, आदि: समरी सरसति मात वचन, अंति: हेमविजय गुण गाय, गाथा ६८. ५३९९९, (४) महावीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., ( २४४१०.५, ११X३४). महावीरजिन स्तुति - गांधारमंडन, मु. जसविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गणधारे माहावीर जीणंद, अंति: जसविजय जयकारी, गाथा-४. ५४००० पर्यंताराधना, संपूर्ण वि. १६८३, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल, नागपुर, प्रले. पं. मानविजय मुनि पठ सा. धनसिद्धि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X१०, १३x४२-४७). पर्यंत आराधना विधिसहित, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: (१) पहिली इरिआवही पडिकमा, (२) अहन्नं भंते तुम्हाणं; अंतिः ध्यान करिज्यो. ५४००१. लगन सुबोधी दोहरा, संपूर्ण, वि. १९५४ माघ शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल. मांडवाडा, प्रले. पं. रूपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २१.५X११.५, १०X२५). लमसुबोधी एकोत्तरी, मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८०८ आदि गुरु सारद पाय नमी अंतिः चातुरजन के चीज, गाथा - ७१. ५४००२. नारचंद्र योतिस सह अर्थ, संपूर्ण, वि. १९६५, चैत्र कृष्ण, ९, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २६, ले. स्थल. सांदुर (मांडवाड, प्रले. पं. रूपविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, वे. (२१.५४११.५, १०x२७). For Private and Personal Use Only Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअहंतजिनं नत्वा; अंति: शस्यांता मधि पेरवो, श्लोक-२९४. ज्योतिषसार-बालावबोध*,मा.गु., गद्य, आदि: पडवा सठइग्यारस सूर्य; अंति: दिशानो फल जाणवो. ५४००३. स्तवन संग्रह व सझाय, संपूर्ण, वि. १८४७, माघ कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, जैदे., (२३४११.५, ११४२९). १. पे. नाम. सीमंधरजिन चंद्राउलौ, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, ग. उत्तमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर वीनमुरे; अंति: उत्तम० अधिक जगीस, गाथा-२३. २.पे. नाम. सीअल सझाय, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. शीयलव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४७, आदि: श्रीसंखेशरपासनारे; अंति: कांतिवि०एह सज्झाय रे, गाथा-२५. ३. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. सुमतिजिन स्तवन-उदयापुरमंडण, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजीथी बांधी; अंति: मुझ वालो जिनवर एह, गाथा-७. ५४००४. (+) चंदराजारास, संपूर्ण, वि. १८१७, चैत्र शुक्ल, २, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ९२, ले.स्थल. मढाड नगर, प्रले.ग. अमृतविजय (गुरु पं. लालविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित.,प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२३.५४११, १४४४४). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धरा धवति प्रथम; अंति: वर्णव्या गुण चंदना, उल्लास-३३, गाथा-२६३३, ग्रं. ३८४४. ५४००५. समकित वेली - प्रथम पल्लव, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. साचोर नगर, प्रले. पं. सुखविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१.५४९.५,१५४३८). समकित सुरतरु वेली, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७३०, आदि: श्रीसंखेसरपासना चरण; अंति: नयविमल० प्रथम पल्लव, ढाल-९. ५४००७. स्तवन चौवीसी व गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, कुल पे. २, पठ. मु. गजइंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४१०.५, ११४२५). १. पे. नाम. गुरुगुण गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: सखिगुरुजीये गमतु; अंति: दिलयाल स्याह सखी. २.पे. नाम. चोवीसी स्तवन, पृ. १आ-१३आ, संपूर्ण. स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवाला हो; अंति: जीवन प्राण आधारोरे, स्तवन-२४, गाथा-१२१. ५४००८. मेणरेहा सती रास, संपूर्ण, वि. १८५१, ज्येष्ठ शुक्ल, ७, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. बाबाग्राम, पठ. ग. दोलतरुचि, प्रले. मु. सवाईसागर (गुरु पं. भीमसागर); गुपि.पं. भीमसागर (गुरु पं. युक्तिसागर); पं. युक्तिसागर (गुरु पं. सुजाणसागर); पं. सुजाणसागर (गुरु ग. मानसागर); ग. मानसागर (अज्ञा. वा. राजकीर्ति), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (४२४) जब लग मेरु गिरंद हे, जैदे., (२२.५४११, १४४३०). मदनरेखासती चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: विसन सातमो परनारिनो; अंति: समत बांध्यो प्राणी, गाथा-१६१. ५४००९. (+) नेमि चोक, संपूर्ण, वि. १८६०, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. ८, ले.स्थल. मेदनीपुर, प्रले. मु. केसरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२२.५४१०.५, १२४२७). नेमगोपी संवाद-चौवीसचोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: एक दिवस वसै नेमकुंवर; अंति: तस सीस अमृत गुण गाया, चोक-२४. । ५४०१०. श्लोकसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२२.५४११, १०४२३). व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., गद्य, आदि: देवपूजा दया दानं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा- १२४ तक है.) ५४०१२. विवाहपडल व चवरी कालचक्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११.५, १४४३०). For Private and Personal Use Only Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ २५१ १. पे. नाम. विवाहपडल सह टबार्थ, पृ. १आ-२७आ, संपूर्ण, वि. १८९३, वैशाख शुक्ल, ६, गुरुवार, ले.स्थल. बुआडा, पठ. मु. मोतीविजय (गुरु मु. रामविजय); प्रले. मु. रामविजय, प्र.ले.प. सामान्य, पे.वि. बालावबोध टबार्थ शैली में है. विवाहपडल, सं., पद्य, आदि: (१)प्रणम्य परमानंद दाय, (२)जभाराति पुरोहिते; अंति: विवाहे मरणप्रदं, श्लोक-२०६. विवाहपडल-बालावबोध, मु. अमरसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य शिरसा पार्श; अंति: विषे मरण उपजावै. २. पे. नाम. चवरीकाल, पृ. २८आ, संपूर्ण. चवरी कालपट्ट दोहा, मु. हीर, मा.गु., पद्य, आदि: कालपट साहिने जाणी वर; अंति: हीर० लेता फले जगीस, दोहा-८, (वि. चवरीकाल यंत्र युक्त.) ५४०१३. (+) अंजना सती रास, संपूर्ण, वि. १८८३, ज्येष्ठ शुक्ल, २, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २१, ले.स्थल. परगनाचंदोड, प्रले. श्राव. नथमल; अन्य. पं. देवरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११, १४४३०). अंजनासुंदरीरास, मा.गु., पद्य, आदि: सील समोवर को नही; अंति: भार्या जगतनी माय तो, गाथा-१६१. ५४०१४. संग्रहणी सूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२४४११.५, २१४५०). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), गाथा-३४९, (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५४ तक लिखा है.) बृहत्संग्रहणी-बालावबोध, ग. दयासिंह, मा.गु., गद्य, वि. १४९७, आदि: नत्वा श्रीवीरजिनं; अंति: (-), ग्रं. १७५७, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ५४०१५. (+) योगशास्त्र प्रकाश १-४, संपूर्ण, वि. १८०९, पौष शुक्ल, २, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २०, ले.स्थल. लींबडी, प्रले. रंगनाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१०.५, १२४३६). __ योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: नमो दुर्वाररागादि; अंति: ता ध्यातोद्यतो भवेत्, (प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रकाश-१-४ तक है.) ५४०१६. (+#) भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ व दंडान्वय, संपूर्ण, वि. १७५२, माघ शुक्ल, ११, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. सालिया, प्रले. पं. विबुधरुचि गणि (गुरु पं. राजरुचि गणि); गुपि.पं. राजरुचि गणि; पठ. मु. आणंदजी (गुरु पं. विबुधरुचि गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १७४४३-६३). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, पंन्या. विबुधरुचि, मा.गु., गद्य, आदि: किल कहता निश्चय करी; अंति: नई वशिवत्ती छई. भक्तामर स्तोत्र-दंडान्वय, सं., गद्य, आदि: किल इति सत्ये अहमपि; अंति: लक्ष्मी कथंभूता अवशा, श्लोक-४४. ५४०१७. पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्रले.क. कृष्ण; पं. राजरत्न (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १५४३७). पट्टावली, मा.गु., गद्य, आदि: वर्द्धमानस्वामी चोथा; अंति: घणोज महोच्छव जाणवो. ५४०१८. (+) मृगांकलेखा चोपई, संपूर्ण, वि. १८२३, आश्विन कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ३४, ले.स्थल. राधनपुर, प्र.वि. गोडीजी प्रसादात्, संशोधित. कुल ग्रं. ८००७७, जैदे., (२४४१०.५, १५४३४). मृगांकलेखा रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४८, आदि: श्रीजिनवर हितकर सदा; अंति: तणो कहे जिनहरषमुणिंद, ढाल-४१, गाथा-८७६. ५४०१९. शालिभद्र चौपि, संपूर्ण, वि. १८८२, आषाढ़ कृष्ण, २, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४७, ले.स्थल. दक्षिण देश, प्रले. मु. राजेंद्ररुचि (गुरु पं. देवरुचि); गुपि.प. देवरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१२, १२४३५). __ शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै; अंति: मनवंछित फल लहस्येजी, ढाल-२९, गाथा-५१०. ५४०२१. सिंदूर प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८१२, वैशाख कृष्ण, २, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले. ग. कुंअररुचि (गुरु ग. दयारुचि, तपागच्छ); गुपि. ग. दयारुचि (तपागच्छ); राज्ये आ. विजयधर्मसूरि (तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४९.५, १२४३३). For Private and Personal Use Only Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदुर प्रकर स्तपः; अंति: सूक्तमुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक-१००. ५४०२२. (+) भाव प्रकरण सह अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. १७१८, आश्विन शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. आल्हण गाम, प्रले. कर्पूरसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१३, १८४३५-५१). भाव प्रकरण, ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, वि. १६२३, आदि: आणंदभरिय नयणो आणंद; अंति: रम्माओ पुव्वगंथाओ, गाथा-३०. भाव प्रकरण-स्वोपज्ञ टीका, ग. विजयविमल, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: नत्वा श्रीजिनशंभव; अंति: विहितेयं विजयविमलेन. ५४०२३. (+) वीस स्थानक पूजा, संपूर्ण, वि. १८८६, मार्गशीर्ष अधिकमास कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्र.वि. पत्र अबरखयुक्त है., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२३.५४११.५, १५४३७). २० स्थानक पूजा, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८३, आदि: सुरपति श्रीपति नरपति; अंति: (१)शरो० रुपविजय सुहकरो, (२)भक्ति संघभक्ति करवी, ढाल-२१. ५४०२४. (+) साधुपाक्षिकादिअतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२२.५४११, ११४२६). साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ५४०२५. (+) उत्तमकुमार रास, संपूर्ण, वि. १८५८, पौष कृष्ण, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २०, ले.स्थल. पाटणनगर, प्रले. मु. नान्नचंद (गुरु ग. फतेविजय); गुपि.ग. फतेविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित.,प्र.ले.श्लो. (१३६) मंगलं लेखकानां च, जैदे., (२४४११.५, १५४३९). उत्तमकुमारचरित्र रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४५, आदि: चरम जिणेसर चित्त; अंति: जिनहर्ष सदा आणंदोरे, ढाल-२९, गाथा-५८७. ५४०२७. (+) दिलरंजनी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, १५४३३). दिलरंजनी, पुहि.,सं., पद्य, आदि: श्री श्री ॐकार आदे; अंति: (-), (पू.वि. प्रेमकुमर जन्मोत्सव निसाल उत्सवाधिकार तक है.) ५४०२८. प्रश्नोत्तर संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२४.५४११.५, १७४४०-४५). प्रश्नोत्तर संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: इरियावही केतले थानके अंति: (-), (पू.वि. ४३ प्रश्न अपूर्ण तक है.) ५४०२९. प्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-११(१ से ७,९ से १२)=६, दे., (२४.५४११, ८४३०). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: निच्चं सुगुरुवएसेण, (पू.वि. "अणसणमूणोयरिया" पाठ से "तिन्हंगुणत्वया" तक व "जलिकरिरासे" से है.) ५४०३०. बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. ३, दे., (२४४११, ११४४२). १. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि १०८ गुणवर्णन सह अर्थ, पृ. १आ-९आ, संपूर्ण. पंचपरमेष्ठि १०८ गुणवर्णन, प्रा.,सं., पद्य, आदि: अरिहंतगुणा बारस; अंति: गाथा-१. पंचपरमेष्ठि १०८ गुणवर्णन-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बारसगुण अरिहंता कहता; अंति: धर्म धुंकइ नहीं. २. पे. नाम. मिथ्यात्व के २१ भेद, पृ. ९आ-११आ, संपूर्ण. मिथ्यात्व २१ भेद, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: लोकिक देवगत मिथ्यात; अंति: अमुत्ते मुत्त मन्नाक. ३. पे. नाम. वचन भांगा, पृ. ११आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सम्यक्त्व आठ वचन भांगा, मा.गु., गद्य, आदि: न जाणइन आदरइ न पालइ; अंति: (-), (पू.वि. "स्यामाटई कहइ" पाठ तक है.) ५४०३१. कथा कोस संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७८, प्र.ले.श्लो. (४५) भग्न पृष्टी कटी ग्रीवा, (८५६) जाद्रिसं पुस्तकं द्रीष्टा, जैदे., (२४.५४१२, १४४३९). For Private and Personal Use Only Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ २५३ कथाकोश, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम मृषावाद व्रतउप; अंति: परइं सुखीआ थया. ५४०३५. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७९, चैत्र अधिकमास शुक्ल, १०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. २, ले.स्थल. थीरा, प्र.वि. श्रीपार्श्वनाथ सुप्रसादात, प्र.ले.श्लो. (४) जलं रक्षेत् स्थलं रक्षेत्, (९९०) जब लगि मेरु अडग है, जैदे., (२५४११.५, १५४४१). १.पे. नाम. स्तवन चौवीसी, पृ. १आ-११अ, संपूर्ण, वि. १८७९, चैत्र कृष्ण, १०, रविवार, ले.स्थल. थीरा, प्रले. ग. तेजविजय (गुरु ग. हेमविजय, तपागच्छ); गुपि.ग. हेमविजय (गुरु मु. भीमविजय, तपागच्छ); मु. भीमविजय (गुरु ग. रंगविजय, तपागच्छ); ग. रंगविजय (गुरु मु. कृष्णविजय, तपागच्छ); मु. कृष्णविजय (गुरु पं. रूपविजय); पं. रूपविजय (गुरु मु. सिद्धिविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.ले.श्लो. (४) जलं रक्षेत् स्थलं रक्षेत्, (१२२) जब लग मेरु स्थिर रहें. स्तवनचौवीसी, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम तीर्थंकर सेवना; अंति: वसीयो तु विसवावीस रे, स्तवन-२४. २. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. ११आ, संपूर्ण, ले.स्थल. थरानगर, प्रले.पं. रत्नविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. महावीरजिन स्तवन, श्रीपति, मा.गु., पद्य, आदि: मुख मटके अटके मारूं; अंति: श्रीपतिनें दीपकें, गाथा-७. ५४०३६. पंचाख्यान चोपाइ, संपूर्ण, वि. १७४८, माघ कृष्ण, १३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ६८, ले.स्थल. सांडेरानगर, प्रले. मु. गंगरुचि (गुरु पं. विमलरुचि); गुपि.पं. विमलरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (१३६) मंगलं लेखकानांच, जैदे., (२४.५४११, १६४५६). पंचाख्यान चौपाई, मु. रत्नसुंदरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६२२, आदि: प्रणम्य पूर्वं; अंति: सुगुरू कवि पूरइ आस, अधिकार-५, गाथा-२६१६. ५४०३७. (+) गौतम कुलक सह टबार्थ+कथा, संपूर्ण, वि. १८१२, चैत्र शुक्ल, १०, शनिवार, मध्यम, पृ. १४, ले.स्थल. खोडनगर, प्रले. मु. देवेंद्ररुचि (गुरु ग. दयारुचि, तपागच्छ); राज्यकाल आ. धर्मसूरि (तपागच्छ.), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, २१४४९). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: निसेवितु सुहं लहंति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टबार्थ+कथा, मा.गु., गद्य, आदि: अर्थोपार्जनइं तत्परा; अंति: तउ भलिगति जाई. ५४०३८.(+) सम्यक्त्वपच्चीसी सह टबार्थ, बालावबोध, पंचींद्रिय विवरण व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ३. प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१२, १८४५६). १.पे. नाम. पंचेंद्रिय विवरण, पृ. १अ, संपूर्ण. ५ इंद्रिय विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: स्पर्शेद्रिय १ रस; अंति: संवरी कहीइं. २. पे. नाम. सम्यक्त्वपच्चीसी सह टबार्थ व बालावबोध, पृ. १आ-७अ, संपूर्ण. सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूवं; अंति: (-), गाथा-२५, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- १५ तक लिखा है.) सम्यक्त्वस्वरूप-बालावबोध, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धिमार्गोपदेष्टार; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. सम्यक्त्वपच्चीसी-टबार्थ, मा.गु., पद्य, आदि: जिम उपसमिकादि प्रकार; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. ७आ, संपूर्ण. सुभाषित संग्रह *, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-३. ५४०३९. स्तवन चोवीसी सज्झाय व औषध संग्रह, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-१(७)=१२, कुल पे. ४, जैदे., (२४.५४११.५, १०४२६). १.पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: झोली पाया पत्तर पाया; अंति: रखे हाथ पराने जाहि, गाथा-१२. २. पे. नाम. स्तवन चोवीसी, पृ. १आ-१३अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. स्तवनचौवीसी, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुण सुगुण सोभागी; अंति: मालाबाला ते वर रेलो, स्तवन-२४, (पू.वि. विमलनाथ स्तवन के गाथा-३ अपूर्ण से धर्मनाथ स्तवन के गाथा-४ अपूर्ण तक नहीं है.) For Private and Personal Use Only Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २५४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पू. १३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- वरकाणामंडन, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: कांई रे जीव तुं मन; अंतिः श्रीपास रंगरली, गाथा - ९. ४. पे. नाम औषध संग्रह. पू. १३आ, संपूर्ण. औषध संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५४०४० (+) लघुक्षेत्र समास प्रकरण संपूर्ण वि. १८७४, ज्येष्ठ शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले. स्थल, पालणपुर, प्रले. मु. देवचंद (गुरु मु. ऋषभविजयजी); गुपि. मु. ऋषभविजयजी (गुरु पं. कृष्णविजय गणि); पं. कृष्णविजय गणि (गुरु पं. राजविजय गणि); पं. राजविजय गणि (गुरु पं. कांतिविजय गणि); पं. कांतिविजय गणि (गुरु पं. प्रेमविजय गणि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित., जैदे. (२४.५४११.५, १२x४१). बृहत्क्षेत्रसमास - जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभन्द्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण; अंतिः लोगो चउदसरज्जुओ, गाथा १७५. ५४०४१. माधवानल चोपाइ, संपूर्ण, वि. १७९९, भाद्रपद शुक्ल, ७, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले. स्थल. रायपूरीया, प्रले. पं. ऋषभसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११.५, २०x४२). माधवानल चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६१६, आदि: देव सरसति देव सरसति; अंति: दिवस वीरची आदितवार, गाथा- ५८४. ५४०४२. (+) गुणावली चोपाई, संपूर्ण वि. १८८२ ज्येष्ठ शुक्ल १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २५, ले. स्थल, परगनाचंदोड, प्रले. मु. राजेंद्ररुचि (गुरु पं. देवरुचि); गुपि. पं. देवरुचि (गुरु मु. नरेंद्ररुचि); मु. नरेंद्ररुचि (गुरु ग. कुंअररुचि); ग. कुंअररुचि (गुरु ग. दयारुचि, तपागच्छ); ग. दयारुचि (तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २४.५X११.५, १२x२९). गुणकरंडकगुणावली रास- बुद्धिविषये, मु. जिनहर्ष, मा.गु, पद्य, वि. १७५१, आदि: श्रीअरिहंत अनंतगुण; अंतिः पभने ही जिनहरष जगीस, दाल- २६, गाथा ४९३. ५४०४३. (+) अणुत्तरोववाइ दसांग सूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. २६ प्र. वि. पवच्छेद सूचक लकीरें संशोधित., जैये., (२४.५x१०.५, १०x२३-३३). अनुत्तरीपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि: तेणं कालेणं तेणं समए, अंतिः अयमठ्ठे पण्णत्ते, अध्याय ३३, ग्रं. १९९२. अनुत्तरीपपातिकदशांगसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेण कालि तेणि समझ, अंतिः अर्थ कहिओ प्रकास्यओ. ५४०४४. (+) गुणावली चोपाई, संपूर्ण, वि. १७६३, माघ शुक्ल, ४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले. स्थल. जालोर नगर, प्र. मु. भाग्यविजय (गुरु आ. देवरतनसूरि); गुपि आ. देवरतनसूरि प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे (२४.५४११, १४४३९). - गुणकरंडक गुणावली रास - बुद्धिविषये, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य वि. १७५१, आदि: श्रीअरिहंत अनंत गुण अंतिः हो दिनदिन आणंद, ढाल - २६, गाथा- ४९३. ५४०४५. (+) नल दमयंति चोपाई, संपूर्ण, वि. १७४६, चैत्र शुक्ल, १३, शनिवार, मध्यम, पू. ३३, ले. स्थल. लुगोरा, प्रले. पं. पद्मविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., प्र. ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (९८७) योगी जंगम जिहावसे, (९८८) सज्जन फलजो फूलजो, जैदे., ( २४.५X११, १५X४६). अंक्ति: नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु. पच वि. १६७३ आदि सीमंधरस्वामी प्रमुख सचितवसी, खंड ६, गाथा- ९३१. ग्रं. १४८५ (वि. हाल ३८) चतुरमाणा ५४०४६. उत्तमकुमार रास, संपूर्ण, वि. १८७६, ज्येष्ठ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. १८, प्रले. पं. मोतिविजय, क्रीत. पं. दयाविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. गाथा-५८७ ग्रंथानं ८०९, जैदे. (२५४११, १४४४९). उत्तमकुमारचरित्र रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, बि. १७४५, आदि: चरम जिणेसर चित्त, अंतिः जिनहर्ष सदा आणंदोरे, ढाल- २९, गाथा-५८७. ५४०४७, (+) जीवविचार सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६, जै, (२५.५४११.५, १२४२२-३१). For Private and Personal Use Only Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पईवं वीरं नमुऊण; अंति: रूद्धाओ सूअ समुद्धाओ, गाथा-५२. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: भुवनपइवंवीरं नमिऊणभण; अंति: जो समुद्र तेह थकी. ५४०४८. साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७५४, आषाढ़ शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. भाटग्राम, प्रले. ग. कुशलरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १७४३८-५१). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: करेमि भंते० चत्तारि०; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. पगाम सज्झायसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कारहओ अरिहंतनई; अंति: जिन चउवीस प्रतइं. ५४०५०. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७४८, आश्विन कृष्ण, १४, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. पाटण, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ५२०, प्र.ले.श्लो. (९८९) जेहवो पुस्तकई दीठओ तेहवओ, जैदे., (२५४१०.५, १४४३८-५४). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणंतभागोय सिद्धिगओ, गाथा-५१. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व प्राणधरइं; अंति: हजी सिद्धि गयओ छइ. ५४०५१. (#) दशवैकालिक सूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५०, प्रले. ग. विबुधरुचि गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ३००९, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११,५४४६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किटुं; अंति: भविआण विबोहणट्ठाए, अध्ययन-१०, (वि. २ चूलिका सहित.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मकेवलीरो भाख्यौ; अंति: प्रतिबोधवानेत्यर्थई. ५४०५३. (+) उत्तमकुमार रास, संपूर्ण, वि. १८६४, भाद्रपद शुक्ल, १४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २२, ले.स्थल. चाणसमा, प्रले. मु. ऋषभविजय (गुरु मु.रंगविजय गणि); गुपि.मु. रंगविजय गणि (गुरु पं. कृष्णविजय गणि); पं. कृष्णविजय गणि (गुरु पं.राजविजय गणि); पं. राजविजय गणि (गुरु पं. कातिविजय गणि); पं. कातिविजय गणि (गुरु पं.प्रेमविजय गणि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्री भट्टेवाजी प्रसादात्, संशोधित. कुल ग्रं. ८०१, जैदे., (२४४११.५, १५४३९). उत्तमकुमारचरित्र रास, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७४५, आदि: चरम जिणेसर चित्त; अंति: जिनहर्ष सदा आणंदोरे, ढाल-२९, गाथा-५८७. ५४०५४. (+#) विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४१०.५, ९४३०). १.पे. नाम. छकायना भेद, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण. कायजीव उत्पत्ति आयुष्यादि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथविकाअ१ अपकाय २; अंति: ३३ सागरौपमनुं. २. पे. नाम. चोवीसदंडकना भेद, पृ. ४आ-६अ, संपूर्ण.. २४ दंडक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथवीकायनो १ दंडक; अंति: १ दंडकमां आवै. ३. पे. नाम. नवतत्त्वप्रकरण सह बालावबोध, पृ. ६अ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवापुन्नं पावा; अंति: (-), (पू.वि. निर्जरा के भेद तक है.) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवाक० जीवतत्त्व; अंति: (-). ५४०५५. (#) स्तवन संग्रह व सझाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-१(१०)=११, कुल पे. ९, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ११४३०-३३). १. पे. नाम. रोहिणीतप स्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणदेवति सामणीए; अंति: श्रीसार०मन आस्या फली, ढाल-४, गाथा-३२. २. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तवन, पृ. ३अ-६अ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरि समोसर्य; अंति: कहे कांति० मंगल घणो, ढाल-३, गाथा-२७. For Private and Personal Use Only Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २५६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पृ. ६अ ९अ. संपूर्ण. मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमीअ पासजिनेसर, अंति: गुणविजय रंगे भणे, ढाल-६, गाथा-४९. ४. पे नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. ९अ ११अ, अपूर्ण, पू. वि. बीच का एक पत्र नहीं है. आदिजिन स्तवन- अर्बुदगिरितीर्थ मंडन, वा. प्रेमचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७७९, आदि आबु शिखर सोहामणो जिह, अंति: प्रेमचंद० परमानंद, गाथा - ३४, (पू. वि. गाथा - ११ अपूर्ण से ३१ अपूर्ण तक नहीं है.) ५. पे नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. १९अ- १९आ. संपूर्ण. मु. उदयरत्न, रा., पद्य, आदि: साहिबनी सेवा में अंतिः उदयरत्न० श्रीमहावीर, गाथा- ७. ६. पे. नाम. संखेसरजिन स्तवन, पृ. ११आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरतीर्थ, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अंतरजामी सुणि अलवेसर, अंति: जिनहर्ष तारी, गाथा-५. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ११आ- १२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्राण थकी प्यारो; अंति: कवि रूपनो० प्राण आधार, गाथा-५. ८. पे. नाम. मौनइग्यारस स्तवन, पृ. १२अ- १२आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समोसरण बेठा भगवंत, अंति: समयसुंदर कहुं दीहडी, गाथा- १३. ० ९. पे नाम, दयापच्चीसी, पृ. १२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. विवेकचंद, मा.गु., पद्य, आदिः सवल तीर्थंकर करूं अंति: (-). (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ५४०५६. (७) महासती द्रौपदी चोपाई, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५०, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे., (२५४११, १३X३८). द्रौपदीसती चौपाई. वा. कनककीर्ति, मा.गु. पच. वि. १६९३, आदि: पुरिसादाणी पासजिण अंतिः कनककीरति सुखकार, ढाल ३९, गाथा- १११७. ५४०५७. (+) नाराचंद्र ज्योतिष व श्लोक, संपूर्ण, वि. १७५८ माघ शुक्ल, ३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २९, कुल पे. २, ले. स्थल. नडुलाई, प्रले. पं. रुपरुचि (गुरु मु. राजरुचि पंडित); गुपि. मु. राजरुचि पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पच्छे सूचक लकीरें - संशोधित., जैदे., (२६X११, ६X३९). १. पे. नाम. नारचंद्रे ज्योतिष - प्रथम परिच्छेद सह टिप्पणक, पृ. १आ - २९आ, संपूर्ण. ज्योतिषसार आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि; अर्हतजिनं नत्वा, अंतिः (-), (प्रतिपूर्ण, पू. वि. प्रथम परिच्छेद मात्र.) ज्योतिषसार-यंत्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: सरस्वती प्रसादेन, अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक, पृ. २९आ, संपूर्ण. ज्योतिष संग्रह, मा.गु., प+ग, आदि: समि आरा विस्वा; अंति: निहचै काल हडोहड बैठी. ५४०५८. (०) वीर वंशावली, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५९, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२५.५४११.५, १४४४४). वीर वंशावलि, मा.गु., प+ग, आदि आदिदेवादि जिनान्; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्रीविजयसेनसूरि के स्वर्गगमन तक का पाठ है.) ५४०५९. चैत्यवंदन चौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल. सुरतबिंदर, अन्य. मु. रुपचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्री धर्मनाथजी प्रसादात् श्री संखेश्वरजी प्रसादात्, जैदे., (२५X११, ११३०). चैत्यवंदनचौवीसी, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम नमुं श्रीआदि, अंति: रुपविजय गुण गाय, चैत्यवंदन-२५, For Private and Personal Use Only गाथा - ७५. ५४०६०. उत्तराध्ययन सूत्र सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, जैदे., ( २६११.५, १३-१५X४३). उत्तराध्ययनसूत्र- विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पवयणदेवि चित्त धरीजी अंति: उदयवीजय० नवनीध थाय, सज्झाय ३६, Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५४०६१. (+) सिद्धांत शतक सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १६. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५x११.५, ६x४८). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिद्धांतसार, मु. तेजसिंह, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्वीरजिनं प्रणम; अंति: शास्त्र दक्षेस्तदा, गाथा-१०२, संपूर्ण. सिद्धांतसार- बार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीमहावीरदेवन, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. अंतिम गाथा - १२. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. गाथा का बार्थ अपूर्ण है.) ५४०६२. (+४) चंद महाराय चौपाई, संपूर्ण, वि. १७६१, चैत्र कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ७७+१२ (१८ से २१,४२,४८ से ४९, ५१ से ५३,५५,५८)=८९, ले.स्थल. सादडीनगर, प्रले. ग. कुशलरूचि (गुरु ग. हंसरुचि, तपगच्छ); गुपि. ग. हंसरुचि (गुरु ग. हर्षरूचि, तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे (२५X११, १७४३८). चंद्रराजा रास, मु. विद्यारुचि, मा.गु., पद्य वि. १७१७, आदि: श्रीजिननायक प्रणमीई, अंतिः विद्यारुचि०सुप्रसन्न, खंड-६, गाथा- २५०५, ग्रं. ३०५५ (वि. डाल १०३.) " २५७ ५४०६३. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८. कुल पे, १९, जैदे. (२४.५४१०, १०३८). 1 " १. पे. नाम. सेत्रूंजयमंडण स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. पार्श्व चंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सफल एह अवतार मांहो, अंतिः बीनति सफल करेज्यो, मु. हर्षचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: अहिपुरमंडण सोलमी, अति हर्ष० मनोरथ सवि फल्या, गाथा - ११. .पे. नाम. पार्श्वनाथजी स्तवन, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन-रूपवर्णन, आ. चंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुरासुर वइक्रिय; अंति: चंदसूर० मन भाया हो, गाथा - १२. पे, नाम, सुमतिनाथ स्तवन, पृ. ३आ-४अ संपूर्ण सुमतिजिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बंस इख्यागै राजियौ, अंति: पासचंद० सफल करेज्योजी, गाथा - ६. ५. पे नाम, फलवधि पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ३आ-४अ संपूर्ण, पार्श्वजिन स्तवन- फलोधि मंडन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु नमिकिंपि उणजग, अंति: पूजपासचंदसूर इम उचरए, गाथा ८. ६. पे. नाम. शांतनाथ स्तवन, पृ. ४अ - ५आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. जिनेंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: जिनेंद्र शांतिसुर, अंति: जिनेंद्र० जिनेश्रिये, गाथा - २२. ७. पे नाम. युगमंदिर स्तुति, पृ. ५आ- ६अ, संपूर्ण. युगमंधरजिन स्तवन, आ. पद्मचंद्रसूरि, मा.गु. पद्य, आदिः युगमंदिर जिनवर सुनो अंतिः पदमचंद० दयानिधि, गाथा ६. ८. पे. नाम. जीवदया सज्झाच. पू. ६ अ-७अ, संपूर्ण. मनुष्यभवदुर्लभता सझाय, मु. पासचंद, मा.गु., पद्य, आदि: दुलहो नर भवर भमता अंतिः पासचंद० उजवाले रे, For Private and Personal Use Only गाथा - १४. ९. पे नाम. शीतलनाथजी स्तवन, पृ. ७अ ८अ संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन, आ. पार्थचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि सफल आज तणौ दिन आवियी अंतिः पासचंदसूर इम उचरै गाथा - १५. १०. पे नाम. अतिसच स्तवन, पृ. ८ अ-८आ, संपूर्ण. ३४ अतिशय स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु, पद्य, आदि जिन चौतीस अतिसय सुत: अंतिः पासचंदसूर हर थुणिय, गाथा - १०, (वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गाथा गिना है.) ११. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ८आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमिजिन पद, मु. भूषण, रा., पद्य, आदिः नेम निरंजन ध्यावो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ५४०६४. (+#) विक्रमसेन नरेस्वर चौपाई, संपूर्ण, वि. १७५०, पौष कृष्ण, १३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ४०, ले. स्थल. संडेरानगर, प्र. ग. कुशलरूचि (गुरुग, हंसरुचि, तपगच्छ); गुपि. ग. हंसरुचि (गुरुग. हर्षरूचि, तपगच्छ); ग. हर्षरूचि (गुरु मु, उदयरुचि कवि, तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र. ले. लो. (२) वादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६X११, १७x४५). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदिः परम ज्योति प्रकाशकर, अंतिः परमसागर आणंदारे, ढाल ६४. ५४०६६. (+#) स्तवन चौवीसी, संपूर्ण, वि. १७५२, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले. स्थल. सूर्यपुरबंदिर, प्रले. ग. भावविजय (गुरु ग. तत्त्वविजय, तपागच्छ); गुपि. ग. तत्त्वविजय (गुरु उपा. यशोविजयजी गणि* *, तपागच्छ); उपा. यशोविजयजी गणि** (गुरु मु. नयविजय, तपागच्छ); पठ. श्रावि माणिकबाई, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. अंत में स्थलसूचक 'नविनपाटक मध्ये' लिखा है., कर्ता के शिष्य द्वारा लिखित प्रत. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X१०.५, ११x४०). स्तवनचौवीसी, ग. तत्त्वविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ जिणंद मया करी रे; अंति: तत्त्वविजय० दवाजै रे, स्तवन- २४, गाथा - १२०. ५४०६७. उपदेशमाला सह कथा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदे., (२५.५X१२, ४-१२X३०-४१). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपदेशमाला. ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद अंतिः (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- ३१ तक लिखा है.) उपदेशमाला - कथा, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गद्य, आदि: (१) वंदित्वा वीरजिनं, (२) हवे साध्वी आश्री; अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ५४०६८. (+) मौनएकादशी माहात्म्य सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६X११.५, ६X३५). मौनएकादशीपर्व कथा, पं. रविसागर, सं., पद्म, वि. १६५७, आदिः प्रणम्य ऋषभदेवं; अंतिः सागरशररसशशिप्रमिते, श्लोक-२०१, (वि. १७८३ माघ कृष्ण १४, सोमवार) मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, वि. १६५७, आदि: प्रणम्य क० - नमस्कार, अंति: १६५७ वने कथा जोडी छई, (वि. १७८३, माघ शुक्ल, १, गुरुवार, प्रले. उपा. मेघविजय (गुरु भट्टा. धीररत्नसूरीश्वर); गुपि. भट्टा. धीररत्नसूरीश्वर पठ. मु. रामविजय शिष्य (गुरु ग. रामविजय); गुपि. ग. रामविजय, प्र.ले.पु. मध्यम ) ५४०६९. सौभाग्यपंचमी माहात्म्यगर्भित नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६७ आश्विन कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पू. ६, ले. स्थल. रायधन्यपुर, प्रले. पं. ऋषभविजय गणि (गुरु पं. रंगविजय गणि); गुपि. पं. रंगविजय गणि (गुरु पं. कृष्णविजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखन समय 'संध्या समये' लिखा है., प्र. ले. श्लो. (६४९) जब लग मेरू थीर रहे, (९३६) यादृसं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे. (२५.५४११, १४४४३). नेमिजिन स्तवन-सौभाग्यपंचमी महात्म्यगर्भित, ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९९, आदि: प्रणमुं पवयणदेवी रे अंतिः कांति० मंगल घणो, डाल- ९. ५४०७० (+०) दस दृष्टांत, संपूर्ण वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल, सादडीनगर, प्रले. ग. कुशलरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५.५४१०.५, १७५३). " १० दृष्टांत, मा.गु. गद्य, आदि: चुलग १ पासग २ धन्न, अंतिः ते बीजी वार न पांमई. ५४०७१, (+०) भक्तामर स्तोत्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९ प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित. कुल ग्रं. ४८३, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५X११.५, ४४४१). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामर प्रणत मौलि, अंतिः समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र - टवार्थ, मा.गु. गद्य, आदिः किलक० निश्चये करीनई अंतिः लक्ष्मी कथंभूता अवशा. ५४०७३. (+#) चौपाई, स्तवन व विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७, कुल पे. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, १९५२). For Private and Personal Use Only Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ २५९ १.पे. नाम. श्रीपालनृपचौपाई, पृ. १अ-१७अ, संपूर्ण. श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: सकल सुरासुर जेहना; अंति: न्यांनसागर चंग ले. ढाल-४०, गाथा-७५६, ग्रं. ११३१. २. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १७आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ५३ से ५७ तक है, __वि. पत्र घिसा होने के कारण अपठनीय है.) ३. पे. नाम. देशी विचार, पृ. १७आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र बीच के कुछ अंश हैं., वि. पत्र घिसा होने के कारण अपठनीय है.) ५४०७४. जीवविचार सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.७, जैदे., (२६४१०.५, १६x४५). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुय समुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भुवण कहीइ त्रिभोवन; अंति: धर्म रत्न सरिखउ छइ. ५४०७५. (+) प्रियंकर चरित्र, संपूर्ण, वि. १८८८, आश्विन शुक्ल, ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ८२, ले.स्थल. प्रह्लादनपुर, प्रले. पं. ऋषभविजय गणि (गुरु पं. रंगविजय गणि); गुपि.पं. रंगविजय गणि (गुरु पं. कृष्णविजय गणि); पं. कृष्णविजय गणि (गुरु पं. राजविजय गणि); पं. राजविजय गणि (गुरु पं. कांतिविजय गणि); पं. कांतिविजय गणि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. प्रतिलेखन समय 'मध्याह्नसमये लिखा है., संशोधित., प्र.ले.श्लो. (८५) जलाद्रक्षे स्थलाद्रक्षे, (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (६४७) मंगलं लेखकानांच, (९०४) जब लग मेरू थिर रहें, (९३७) ज्ञान हंदा दोय गुण, जैदे., (२५.५४१०, १३४३६). प्रियंकर चरित्र, मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वामासुत समरीइं ॐ; अंति: उत्तम० होवे काया जी, खंड-४. ५४०७६. (#) कल्पसूत्र व्याख्यान १-२ सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १८९९, श्रावण कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. ४६, ले.स्थल. पालिताणा, प्रले. मु. मूलराज (गुरु मु. मनरुपराज); गुपि.मु. मनरुपराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ५-१६४३३-३९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (१)णमो अरिहंताणं पढम, (२)तेणं कालेणं तेणं; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. व्याख्यान-१ व २ मात्र है.) कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हो अरिहतने; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य शारदादेवीं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५४०७७. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १८२३, फाल्गुन कृष्ण, ११, मंगलवार, मध्यम, पृ. १५७-३७(१ से ३७)=१२०, ले.स्थल. कालद्रीनगर, प्रले. मु. देवेंद्ररुचि; पठ. मु. नरेंद्ररुचि (गुरु ग. कुंअररुचि); गुपि.ग. कुंअररुचि (गुरु ग. दयारुचि, तपागच्छ); ग. दयारुचि (तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, ६-१४४३०-३७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: अज्झयणं सम्मत्तं, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६, (पू.वि. व्याख्यान-३, गाथा-४५ अपूर्ण से है.) कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सहित इम कहता हता. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: खमावयौ निश्चै करीनई. ५४०७८. (+#) कल्पसूत्र सह व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १८८-८(७ से १३,१२६)=१८०, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४४४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (१)नमो अरिहंताणं नमो, (२)तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा, मु. हेमविमलसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: सकलार्थसिद्धिजननी; अंति: (१)सहित वार वार परूप्यउ, (२)श्रीसिंघ प्रवर्तउ. For Private and Personal Use Only Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५४०७९. सुक्तावली संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. ५, अन्य. पंडित. भाणजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १४४४०). १.पे. नाम. सूक्ति संग्रह, पृ. १आ-११अ, संपूर्ण. सूक्तावली संग्रह, सं., पद्य, आदि: लक्ष्मीविवेकेन मति; अंति: भजत शांत रसेंद्र, अधिकार-५, श्लोक-२८९. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ११अ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह, सं.,प्रा., पद्य, आदि: विषभार सहस्रेण; अंति: स्मुश्चदुर्गेहिनी, श्लोक-२. ३. पे. नाम. औपदेशिक गाथा, पृ. ११अ, संपूर्ण. गाथा संग्रह*प्रा., पद्य, आदि: सीहोजएण गहिओ; अंति: पिच्छंतो हरिण जूहाई, गाथा-१. ४. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ११आ, संपूर्ण. सवैया संग्रह', पुहि., पद्य, आदि: या दिन प्राणिथी पंड; अंति: सोमो पिय एकन साथ, सवैया-३. ५. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. ११आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दशसूनासमश्चक्री; अंति: में न बहुत्तिर में, श्लोक-३. ५४०८०. (+#) पाखी सूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. वडोदरा, प्रले. मु. डुंगरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२५.५४१२, १३४३१). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे अतित्थे; अंति: अस्सायारभत्ती. ५४०८१. (+) साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०२, पौष, श्रेष्ठ, पृ. २१, अन्य. पं. दयाविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. सं.१९०२ के पोस मास में इस प्रत के खरीदे जाने का उल्लेख है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२६४१२, ५-१४४३१-४१). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: पगाम सिज्झाए निगाम; अंति: वंदामि जिण चउवीसं, सूत्र-२१. पगामसज्झायसूत्र-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १७४९, आदि: ऍनत्वा पार्श्वनाथ; अंति: तीर्थंकर जिन प्रति. ५४०८२. (+) कल्पसूत्र सह कल्पदीपिका भाषाटीका, संपूर्ण, वि. १८१४, चैत्र शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. १४४, ले.स्थल. काचोलीनगर, प्रले. पं. सुंदरविजय (गुरु पं. जीवणविजय गणि); गुपि.पं. जीवणविजय गणि (गुरु पं. रंगविजयजी); पं. रंगविजयजी (गुरु भट्टा. विजयक्षमासूरीश्वर); भट्टा. विजयक्षमासूरीश्वर; राज्यकालरा. अणदसिंघ दलजी ठाकुर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीपार्श्वनाथ प्रसादात्., संशोधित. कुल ग्रं. ७०००, प्र.ले.श्लो. (४८२) भग्न पुष्टी कटी ग्रीवा, (५२०) जिहां लग मेरु अडग्ग है, जैदे., (२६४१२, १५४४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: अज्झयणं सम्मत्तं, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६. कल्पसूत्र-कल्पदीपिका भाषाटीका, मा.गु., गद्य, आदि: सकलार्थसिद्धिजननी; अंति: गुरोक्त हेतु जणाविओ. ५४०८३. (#) स्तवन चौवीसी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४५१). स्तवनचौवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मनमधुकर मोही राउ; अंति: जिनराजदउलति पावउ जी, स्तवन-२४. ५४०८४. (+) उत्तराध्ययन सूत्र सह टबार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१०.५, १६x४५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा ___ अपूर्ण., अध्ययन-३ की गाथा-१ तक लिखा है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: पूर्वसंयोग मातादिकनो; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: एक आचार्यनइं एक चेलो; अंति: (-), अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ २६१ ५४०८५. विक्रमादित्य चौपाई, संपूर्ण, वि. १८३४, माघ शुक्ल, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २३ ले स्थल. रोहितासपुर, प्रले. मु. नरेंद्ररुचि (गुरु ग. कुंअररुचि); गुपि. ग. कुंअररुचि (गुरु ग. दयारुचि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीमाहावीर प्रसादात्., प्र. ले. श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे. (२६४१२, १५X३०). विक्रमादित्य चौपाई. मु. लाभवर्द्धन, मा.गु., पद्य वि. १७२३, आदि: पुरिसावाणी प्रणमी, अंति: तेहने सदा हुई कल्याण, ढाल - २७, गाथा-५८५. ५४०८६. अढारपापस्थानक सज्झाय संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १२. प्र. वि. कुल ग्रं. २२५, दे. (२५.५x११.५, १०x३५). १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्म, आदि: पापथानक पहिलं का अंतिः वाचकजस इम आखै जी, सज्झाय- १८, ग्रं. २११. " ५४०८७. () आठ कर्म प्रकृति बोल, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ६. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. अशुद्ध पाठ., .दे.. (२४४११.५, १३४३३). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो ग्यानावरणीकर्म अंति: (-), (पू.वि. "कठोर भारी जाणीने" पाठ तक है.) ५४०८८. (क) मानतुंग मानवती रास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २६ प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२५.५x११.५, १३x४२). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद पदांबुजे, अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, ढाल ३० की गाथा- २ तक लिखा है.) ५४०८९. (+) वसुधारा, संपूर्ण वि. १८८९, मार्गशीर्ष शुक्ल, ४, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ७, ले. स्थल, पत्तन प्र. वि. टिप्पण पाठ., जैवे. (२६११.५, ११४३४). युक्त विशेष वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैनस्य, अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति ५४०९०. (+#) हंस वछ चौपाई, संपूर्ण, वि. १७८६, मार्गशीर्ष कृष्ण, ९, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३२, ले. स्थल. सांगानेर, प्रले. ग. गुणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (४०६) मूषकानलचौरेभ्यः (८५६) जाद्रिसं पुस्तकं द्रीष्टा, जैदे., (२५.५X११, १५X४०). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि आदिसर आदे करी चोविसे, अंति: जिनोदयसूरि० अनइ वछराज, खंड-४, गाथा- ९०५, (वि. ढाल ४८) ५४०९१. (+) उत्तराध्ययन सूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १७९३, चैत्र शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. १९१, ले. स्थल. भाद्रज नगर, प्रले. पंन्या. खीमरुचि (गुरु पंन्या. राजरुचि); गुपि पंन्या. राजरुचि, राज्यकाल उदेराजजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अशुद्ध पाठ. मूल व टीका का अंश नष्ट है, प्र. ले. श्लो. (९३८) यादृष्टं पुस्तके द्रिष्टा, जैदे., (२५.५x११, ६४३३). उत्तराध्ययनसूत्र. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., पग, आदि: संजोगा विप्यमुक्कस्स, अतिः सम्मए त्ति बेमि, अध्ययन- ३६. ग्रं. २०००. For Private and Personal Use Only उत्तराध्ययनसूत्र- -टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: संयोग बाह्य मातापिता, अंति: जे निर्वाणप्राप्त. ५४०९३. (+#) मानतुंग मानवती चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, ले. स्थल. नाही ग्राम, प्रले. पं. विबुधरुचि गणि प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५x१०.५, १६४४५). मानतुंगमानवती रास, उपा. अभयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२७, आदि: प्रणमुं माता सरसती; अंति: अभयसोम० मतिमंदिर लहै, ढाल १४. ५४०९४. (+) इकवीस ठाणा व विचार संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ५. कुल पे. ४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५X११.५, ७X४४). १. पे. नाम. इकवीस ठाणा सह टबार्थ, पृ. १अ - ५अ, संपूर्ण. २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाणा नयरी जणया, अंति: असेस साहारणा भणिया, गाथा - ६६. २१ स्थान प्रकरण- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि; जेह विमान हुति चव्य; अंतिः साधारण सरीखा कह्या. Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. समवसरण गाथा सह टबार्थ, पृ. ५अ, संपूर्ण. समवसरणविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: नागेसु उसभपिआ सेसाण; अंति: अट्ठतेरस वासछउमत्थं, गाथा-४. समवसरणविचार गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीआदिनाथ पिता नाभि; अंति: १३ मास ३ १४ मसबिनिवउ. ३. पे. नाम. मृतक सूतक, पृ. ५अ, संपूर्ण. जातमृतसूतक गाथा, प्रा., पद्य, आदि: एगिदिअजीवाणं एइय; अंति: गित्था सोगधम्माई, गाथा-१. ४. पे. नाम. भरतक्षेत्र-महाविदेहक्षेत्र मान विचार-बृहत्क्षेत्रसमासगत सह टबार्थ, पृ. ५आ, संपूर्ण. विचार संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). विचार संग्रह का टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५४०९५. क्षेत्रसमास सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, जैदे., (२६.५४११.५, ७४४६). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिण वदिय; अंति: बुहजणत्थं जहा लिहिअं,गाथा-७७. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीर वांदी काई; अंति: वैताढ्ये १६ प्रासादा, (वि. टबार्थ की शैली में लिखा गया है.) ५४०९६. मच्छोदर चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८६, माघ कृष्ण, ४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २५, ले.स्थल. पालनपुरनगर, प्रले. पं. ऋषभविजय गणि (गुरु पं. रंगविजय गणि); गुपि.पं. रंगविजय गणि (गुरु पं. कृष्णविजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (८५) जलाद्रक्षे स्थलाद्रक्षे, (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (७०६) भग्नपृष्टि कटीग्रीवा, (९३७) ज्ञान हंदा दोय गुण, (९४७) जब लगें मेरू थीर रहे, (९८२) मंगलं लेखकानांच, (९८४) जिहां द्रुसायर चंद रवि, जैदे., (२६४११.५, १२४३७-४९). मत्स्योदर चरित्र, सं., पद्य, आदि: तत्रैवमुनीराचख्यो; अंति: संप्राप्ता परमपदम्, श्लोक-२९९. मत्स्योदर चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेहवामां धर्मोपदेश; अंति: प्रतई पामस्यई. ५४०९७. (+) सनत्कुमार चक्रवर्ति चौपई, संपूर्ण, वि. १७६६, माघ कृष्ण, १०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २२, प्रले.पं. राजविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १५४४०). सनत्कुमारचक्रवर्ती रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७३७, आदि: प्रणमूं पारसनाथ; अंति: न्यानसागर० रसालो रे, ढाल-३१, गाथा-५१५, ग्रं. ७५१. ५४०९८. (#) उपासकदशांग सूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६२, ज्येष्ठ शुक्ल, २, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ५६, ले.स्थल. सादडीनगर, प्रले.ग. ललितरूचि (गुरु पंन्या. राजरुचि); गुपि. पंन्या. राजरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, ६x४३). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं० चंपा नामं नयरी; अंति: दिसंति अणुणविज्झई, अध्ययन-१०, ग्रं. ८१२. उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेणे काले तेणे समय; अंति: अनुज्ञामर्थेइ जइ. ५४०९९. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७५४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. ४३, ले.स्थल. भटाड, प्रले.ग. कुशलरूचि (गुरु ग. हंसरुचि, तपगच्छ); गुपि.ग. हंसरुचि (गुरु ग. हर्षरूचि, तपगच्छ); ग. हर्षरूचि (गुरु मु. उदयरुचि कवि, तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ७४३३). दशवकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि, अध्ययन-१०. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मरूपीओ मंगलीक; अंति: श्री महावीर कहइ. ५४१००. भुवनभानुकेवली चरित्र का बालावबोध, पूर्ण, वि. १५४५, फाल्गुन कृष्ण, १०, बुधवार, मध्यम, पृ. ५७-१(२०)=५६, प्रले. श्राव. गोपाल; लिख. श्राव. खिमराज; उप.पं. कुलकमल गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १६४६३). भुवनभानुकेवली चरित्र-बालावबोध, मु. हरिकलश, मा.गु., गद्य, आदि: सिरिवीरं नमीअजिणं; अंति: रहई ज्ञानवृद्धि For Private and Personal Use Only Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ २६३ ५४१०१. (+#) कल्पसूत्र सह बालावबोध, त्रुटक, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८७-१४८(१ से १२०,१२२ से १३४,१३८ से १३९,१४१ से १४४,१४८,१७०,१७२ से १७६,१८०,१८३)=३९, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, ११४३६-४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-२२ से स्थविरावली अपूर्ण तक हैं.) कल्पसूत्र-बालावबोध *, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५४१०२. (+) कालसत्तरी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. आलिपा, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, ४-५४३४-४०). कालसप्ततिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि: देविंदनयं विज्जाणंद; अंति: धम्मघोष० किमवि भणिअं, गाथा-७४. कालसप्ततिका-टबार्थ, पंडित. उदयरुचि, मा.गु., गद्य, आदि: देविंद्र नमिउ विद्या; अंति: कालस्वरूप काएक कहिउ. ५४१०३. (+#) ढोला मारव चौपई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, ले.स्थल. भींडरनगर, प्रले. पं. विबुधरुचि गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १७४५३). ढोलामारु चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६७७, आदि: सकल सुरासुर सामिणी; अंति: कुशललाभ० ते सुख लहै, गाथा-७६१. ५४१०४. (#) अजापुत्र रास, संपूर्ण, वि. १६४७, आश्विन शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ८, प्रले. मु. विवेकलाभ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, २०४५५). अजापुत्र चौपाई, मु. धर्मदेव, मा.गु., पद्य, वि. १५६१, आदि: अट्ठ महासिद्धि पामीइ; अंति: णतां हुइ मंगल रिद्धि, गाथा-३८२. ५४१०५. (#) प्रवचनसारोद्धार सह बालावबोध, सिद्धगुण व कर्म विचार, संपूर्ण, वि. १८३४, आषाढ़ कृष्ण, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. १४६, कुल पे. ३, पठ. ग. कुंअररुचि (गुरु ग. दयारुचि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. उपयोगी स्थलों पर यंत्र दिया गया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०, १८४४१-४४). १. पे. नाम. प्रवचनसारोद्धार सह बालावबोध, पृ. १आ-१४६आ, संपूर्ण, पे.वि. टबार्थलेखन बालावबोध शैली में है. प्रत में प्रतिलेखक द्वारा बालावबोध की जगह सूत्रावचूरि उल्लिखित है. प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊण जुगाइजिणं; अंति: (-), द्वार-२७६, गाथा-१६०७, ग्रं. २०००. प्रवचनसारोद्धार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करी जुगादी; अंति: करी समृद्धपणउ वाधउ, ग्रं.८८००. २. पे. नाम. सिद्ध के ३१ गुण, पृ. १४६आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: लांबउ १ बादलउ २; अंति: नपुंसक ३० उतपति ३१. ३.पे. नाम. ८ कर्म के भेद, पृ. १४६आ, संपूर्ण. ८ कर्मभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणीयकर्म; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., असातावेदनी कर्म तक लिखा है.) ५४१०६. (+#) ऋषिमंडल स्तोत्र सह बालावबोध व कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३७, प्र.वि. संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १६-२०४५२). ऋषिमंडल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: भत्तिब्भरनमिरसुरवर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३२ तक लिखा है.) ऋषिमंडल प्रकरण-बालावबोध*,मा.गु., गद्य, आदि: वली श्रीऋषभदेव केहवा; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ऋषिमंडल प्रकरण- कथा, मा.गु., गद्य, आदि: भरत ऋषीश्वरनो संबंध; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५४१०७. (+#) द्विप्राहरिकराम कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, प्रले. ग. कुशलरूचि (गुरु ग. हंसरुचि, तपगच्छ); गुपि.ग. हंसरुचि (गुरु ग. हर्षरूचि, तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. १५६, अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२६४११, १४४४५-५०). द्विप्राहरिकराम कथा, सं., गद्य, आदि: भाग्येन सर्वसंपत्ति; अंति: भावेण सकलसंपदो भवंति. ५४१०८. भववैराग्य शतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, प्रले. श्राव. जीवा; पठ. पं. माणिक्यविजय गणि; अन्य. ग. कुशलरूचि (गुरु ग. हंसरुचि, तपगच्छ); गुपि.ग. हंसरुचि (गुरु ग. हर्षरूचि, तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, ३-८४३२-३६). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जिउ सासयं ठाणं, गाथा-१०३. वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आज कालि पउरपरारि; अंति: जीव सास्वतुं ठाम. ५४१०९. शीलोपदेशमाला प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४, पठ. श्रावि. रहीया बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, ५४३५). शीलोपदेशमाला, आ. जयवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: आबाल बंभयारि नेमि; अंति: जयवल्लहा० बोहि फलं, गाथा-११६. शीलोपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बालपणा लगइं ब्रह्म; अंति: पामइ भवांतरि बोधि फल. ५४११०. (-2) सुक्तावली, संपूर्ण, वि. १८८०, आषाढ़ शुक्ल, ९, बुधवार, मध्यम, पृ. ११, ले.स्थल. मालति नगर, प्रले. मु. राजरुचि (गुरु पं. देवरुचि); गुपि.पं. देवरुचि (गुरु पंन्या. नरेंद्ररुचि); पंन्या. नरेंद्ररुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४३१). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृतवल्लिवृंद; अंति: मोक्ष साधै जि कोई, वर्ग-४, श्लोक-१८१. ५४१११. (+) श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६.५४१०.५, १५४४५-४८). श्रीपाल रास-लघु, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: चउवीसे प्रणमु जिनराय; अंति: तणो कहै जिनहरषसुसीस, ढाल-२०, गाथा-२८२. ५४११२. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदे., (२६.५४११.५, १६x४५). स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवालहो; अंति: तुं जीवजीवन आधारोरे, स्तवन-२४, गाथा-१२१. ५४११३. (+#) आराधनासूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, ६४३२). पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण भणइ एवं भयवं; अंति: सोम० ते सासयं सुक्खं, गाथा-७०. पर्यंताराधना-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीर नमस्करी, अंति: ते शाश्वतां सुख पामइ. ५४११४. उपदेशरत्नकोश सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, प्रले. पं. राजरुचि गणि; पठ. मु. रुपरुचि (गुरु पं. राजरुचि गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १२४३१-३५). उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उवएसरयणकोसं नासिअ; अंति: वच्छयले रमइ सच्छाए, गाथा-२६. उपदेशरत्नमाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीर चउमउ; अंति: पामइ सुखीउ थाइ. ५४११५. (+#) सिंदूर प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, ६४३७-४४). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक-९७. सिंदरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सिंदरनो प्रकर कहीइ; अंति: एहवी पंक्ति वर्णवी. For Private and Personal Use Only Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ २६५ ५४११७. (+#) शत्रुजय उद्धार व अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २, पठ. सा. ज्ञानश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५,११४३२). १. पे. नाम. शेव्रुजय उद्धार रास, पृ. १अ-९अ, संपूर्ण, वि. १८४४, फाल्गुन शुक्ल, ६. शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: नयसुंदर० जय करु, ढाल-१२, गाथा-१२३, ग्रं. १७०. २. पे. नाम. अष्टमी चैत्यवंदन, प्र. ९अ-९आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अट्ठावअ गिरितुंग; अंति: रंगविजय जय जयकार, गाथा-४. ५४११८. (+) भाष्यत्रय सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७११, चैत्र कृष्ण, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १४-१(१)=१३, ले.स्थल. निबाजनगर, प्रले. पं. मानविजय गणि (गुरु पं. विद्याविजय गणि); गुपि.पं. विद्याविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपार्श्वनाथ प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ६x४५-४८). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: (-); अंति: सासयसुक्खं अणाबाह, भाष्य-३, गाथा-१५१, (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण से है.) भाष्यत्रय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: शास्वतां सुख पामइ. ५४११९. (+#) शुकराजा चरित्र, संपूर्ण, वि. १७६१, चैत्र शुक्ल, ६, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३४, प्रले. मु. माणिक्यविजय (गुरु पं. मुक्तिविजय गणि); गुपि.पं. मुक्तिविजय गणि (गुरु उपा. मानविजय); उपा. मानविजय (गुरु ग. भावविजय); ग. भावविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५-१८४४१). शुकराज चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७०१, आदि: सकल सिद्धि दातार वर; अंति: ज्ञान सहित सुजाणोरे, खंड-४, गाथा-११२७, ग्रं. १४५९, (वि. सर्वढाल-३७.) ५४१२०. (+) आराधनासूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५, पठ. श्राव. कमू, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, ११४३६). पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण भणइ एवं भयवं; अंति: तं सरसुमणे नमुक्कार, (वि. कहीं-कहीं ही मूलपाठ है.) पर्यंताराधना-बालावबोध*मा.गु., गद्य, आदि: देव वांदी आराधना कीज; अंति: तीर्थन ध्यान करीइ. ५४१२१. (+) श्रेणिकराजा रास, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २४-१(२०)=२३, ले.स्थल. उमरगिरि नगर, प्रले. आ. सोमविमलसूरि (गुरु आ. सौभाग्यहर्षसूरि, तपागच्छ); अन्य. पं. दयाविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., जैदे., (२६४११, १६x४५-४९). श्रेणिकराजा रास, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६०३, आदि: सकल ऋद्धि मंगलकरण; अंति: एम नितु मंगल जयकार, खंड-४, गाथा-६८७, (पू.वि. ३४९+ खंड-४ गाथा-९६ अपूर्ण से गाथा-१२९ नहीं है.) ५४१२३. उत्तराध्ययनसूत्र, मुंहपत्ति पडिलेहण विचार, बोल आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७११, कुल पे. ४, ले.स्थल. कालद्रीनगर, प्रले.पं. चारित्रविजय (गुरु पं. चैनविजय); गुपि.पं.चैनविजय (गुरु पं. राजविजय); पं. राजविजय (गुरु पं. विनयविजय); पं. विनयविजय (गुरु आ. विजयधर्मसूरि); आ. विजयधर्मसूरि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीमहावीर प्रसादात्., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (६८०) भग्नपृष्टी कटिग्रीवा, (९१९) गगन धरा वीच मेरुगीर, (९७६) जलात्क्षे त् तैलात् रक्षेत्, (९९३) जिहां सायर चंद रवि, (९९४) कामधेनु गौशब्दथी, दे., (२८.५४११.५, ६४३५-४०). १.पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ+कथा, पृ. १आ-७०९आ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स; अंति: (१)सम्मए त्ति बेमि, (२)पुव्वरिसी एव __भासंति, अध्ययन-३६, ग्रं. ९०००, (वि. १९३०, फाल्गुन शुक्ल, ४, शुक्रवार, वि. उत्तराध्ययननियुक्ति से उद्धृत माहात्म्यगाथाएँ भी संलग्न है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा संग्रह, मु. पार्श्वचंद्रसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रीवर्धमानजिनं, (२)पूर्वसंजोग मातापिता; अंति: जंबूप्रतई कहइ छइ, ग्रं. १६०००, (वि. १९३०, चैत्र कृष्ण, १४, मंगलवार) २.पे. नाम. मुंहपती पडीलेहणाविधी विचार सह टबार्थ, पृ. ७०९आ-७१०अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रतिलेखनबोल गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सुतत्थतत्थदिट्ठी; अंति: तणत्थं मुणि बिंति, गाथा-५. प्रतिलेखनबोल गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्र अर्थ तत्त्व उप; अंति: इम प्रभुयै कह्यौ. ३. पे. नाम. २५ मुंहपती सरीरस्थानक पडिलेहण, पृ. ७१०अ, संपूर्ण. मुहपति पडिलेहण के २५ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्र अर्थ तत्त्व उप; अंति: टालु जिमणै पगै. ४. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययननाम सह टबार्थ, पृ. ७१०अ-७१०आ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन नाम, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: विणय१ परीसहर चउरंगी३; अंति: उत्तरायणै पणीवयामी. उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन नाम- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: विनय अध्ययन गाथा ४६; अंति: तेह प्रतें नमुंछु. ५४१२४. (#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, पूर्ण, वि. १८९०, ज्येष्ठ कृष्ण, ९, शनिवार, मध्यम, पृ. १३२-१(९२)+१(७२)=१३२, ले.स्थल. कलापरा, प्रले. पं. प्रमाणरुचि (गुरु पं. देवरुचि); गुपि.पं. देवरुचि (गुरु मु. नरेंद्ररुचि); मु. नरेंद्ररुचि (गुरु ग. कुंअररुचि); ग. कुंअररुचि (गुरु ग. दयारुचि, तपागच्छ); ग. दयारुचि (तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. आश्विन मास में प्रतिलेखन कार्य प्रारंभ हुआ तथा ज्येष्ठ मास में पूर्ण किया गया., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२९.५४१३.५, १२-१७X४४-५८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (१)णमो अरिहंताणं० पढम, (२)तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२६६, (पू.वि. पार्श्वनाथ नेमिनाथ कल्याणक अंतरा के बाद का आंशिक व्याख्यान पाठ नहीं है.) कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतनइ माहरो; अंति: परंपरापणो देखाड्या. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: सकलार्थसिद्धिजननी; अंति: ख्यान संपूरण लिखाणा. ५४१२५. (#) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१६, चैत्र कृष्ण, १३, शुक्रवार, जीर्ण, पृ. ८, प्र.वि. अक्षर मिट गए हैं, दे., (२९.५४१४,५४२३-२८). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: तिन्निवि एए उवाएया, गाथा-५४. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व१ अजीव; अंति: योग्य योग्य जाणवा. ५४१२६. (#) हरीबलमच्छी रास, संपूर्ण, वि. १८९८, चैत्र अधिकमास शुक्ल, १, सोमवार, मध्यम, पृ. ५३, ले.स्थल. मडाडनगर, प्रले. मु. राजेंद्ररुचि (गुरु पं. देवरुचि); गुपि.पं. देवरुचि; राज्यकालरा. रावजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीधर्मनाथजी वीरप्रभूजी प्रसादतः., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (१०००) मे मेरी मत से लिख्यौ, जैदे., (२९.५४१३.५, १८-२२४४२-५०). हरिबल चौपाई, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१०, आदि: प्रथम धराधव जगधणी; अंति: ए वाचा फलजोरे, ___ उल्लास-४ ढाल ५९, ग्रं. ३७५१. ५४१२७. (#) दीपोत्सव कल्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९, ले.स्थल. लोहियाणानगर, प्रले. पं. प्रमाणरुचि (गुरु पं. देवरुचि); गुपि.पं. देवरुचि (गुरु मु. नरेंद्ररुचि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२९.५४१३.५, ८४५२-५७). दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदि: श्रीवर्द्धमानमांगल्य; अंति: चंद्रार्कजगत्त्रये, __ श्लोक-४३७, ग्रं. १५००, (वि. १८७८, आषाढ़ कृष्ण, १०) दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, ग. सुखसागर, मा.गु., गद्य, वि. १७६३, आदि: अर्हन् बालबोधानां; अंति: (१)सुख० दिनत्रये पुनः, (२)प्रवर्तो प्रतपो, ग्रं. १२००, (वि. १८७८, आषाढ़ कृष्ण, १३) ५४१२८. नन्याणुप्रकार पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, पठ.पं. दानरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२९x१३.५, १४-१७४३३-३७). ९९ प्रकारी पूजा-शबुजयमहिमागर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८४, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजी; अंति: आतिम आप ठरायो रे, ढाल-११. For Private and Personal Use Only Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५४१२९. उपदेशप्रासाद सह वार्थ स्तंभ- ३ से ४, संपूर्ण वि. १८८०, माघ शुक्ल ५, श्रेष्ठ, पृ. ७९, ले. स्थल, बुआडा, प्र. मु. प्रमाणरुचि (गुरु पं. देवरुचि) गुपि. पं. देवरुचि, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रानुक्रम स्तंभानुसार अलग-अलग दिया गया है. स्तंभ ३ के पत्र १-३१ व स्तंभ ४ के पत्र १ से ४० है. प्रत्येक स्तंभ में प्रतिललेखन पुष्पिका दी गयी है., जैवे., (२९.५४१३.५, १७×५१-६७). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपदेशप्रासाद, आ. लक्ष्मीसूरि, सं. प+ग, वि. १८४३, आदि (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण, " उपदेशप्रासाद - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण ५४१३०. (७) भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध व कथा, संपूर्ण, वि. १८७७, मार्गशीर्ष कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. २९, ले. स्थल. मडाड, प्रले. पं. प्रमाणरुचि (गुरु पं. देवरुचि) गुपि. पं. देवरुचि (गुरु मु. नरेंद्ररुचि) मु. नरेंद्ररुचि (गुरुग, कुंअररुचि); ग. कुंअरुचि (गुरु ग. दयारुचि, तपागच्छ); ग. दयारुचि (तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२९.५X१३.५, १५X३८-४१). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामर प्रणतमौलि, अंतिः समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र- बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५२७, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर, अंति: मंगलिक वस्तु पामी. पंचमआरा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहे गोतम सूणो, अंति: भाख्या वचन रसाल, गाथा-२१. २. पे नाम शालिभद्रमुनि सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र - कथा. ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीउजेणिनाम्नि नगरी, अंति: पिण सुख पामस्येइ, कथा-२९५४१३२. (+#) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. ५६, ले. स्थल. मढिया, प्र. वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५X१३, २३×८०). १. पे. नाम. पंचमारक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ग. समयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गोवाला तिणे भव, अंतिः समय० भवभव तुमचो वास, गाथा २०, ३. पे. नाम. झंझरीयारीषी सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. झांझरिवामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, बि. १७५६, आदि: सरसती चरणे शीस नमावी, अंतिः भाव० सह वृंदा रे, ढाल-४, गाथा-४२. २६७ ४. पे नाम, नवांगीपूजा दुहा, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. नवांगी पूजा के अवशेष पाठ पत्र-३ आ ४आ व ६आ पर है. नवअंगपूजा दुहा. मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि जल भरी संपुट पत्रना, अंतिः कहे शुभवीर मुनिंद, गाथा- १०. ५. पे. नाम. बाहुबल स्वाध्याय, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. भरतबाहुबली सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि: स्वस्ति वरवा भणी, अंति: रामविजय जयजय वरे, ढाल - ४, गाथा- ५३. ६. पे. नाम. बलिभद्रमुनि स्वाध्याय, पृ. २आ, संपूर्ण. बलभद्रमुनि सज्झाय, मु. कविषण, मा.गु., पद्य, आदि द्वारिका हुंती निकल, अंतिः कवियण० नहीं कोई तोले, गाथा - ३०. ७. पे नाम, परनारी सिखामण सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण वि. १८८२ श्रावण शुक्ल, ११, ले. स्थल, मांडोली. परनारी परिहार सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: नेह न कीजे रे जीव पर, अंति: सुख लह्या अभंगोजी, गाथा - २०. १०. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. गाथा-५. ८. पे. नाम. रात्रीभोजन स्वाध्याय, पृ. ३अ, संपूर्ण. रात्रिभोजन निवारण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: अवनितल वारु वसेजी; अंतिः सार्या आतम काज रे, गाथा - १९. ९. पे नाम. अइमुत्तामत्ता स्वाध्याय, पृ. ३अ संपूर्ण. अमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर वांदीने अंतिः वंदे अइमुत्तो अणगार, For Private and Personal Use Only Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: एक घर घोडा हाथीआ जी; अंति: पुण्यतणे परमाण रे, गाथा-१२. ११. पे. नाम. निंदा सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-निंदात्यागे, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: जीवडा तुंम कर रे; अंति: म भणीस ओछारे बोल, गाथा-६. १२. पे. नाम. बाहुबलमुनि स्वाध्याय, पृ. ३आ, संपूर्ण. भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राजतणा अति लोभीया; अंति: समयसुंदर गुण गायो रे, गाथा-७. १३. पे. नाम. मृगापुत्रमुनि स्वाध्याय, पृ. ३आ, संपूर्ण. मृगापुत्र सज्झाय, मु. सिंहविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुग्रीवनयर सुहामणो; अंति: होजो तास प्रणाम रे, गाथा-२४. १४. पे. नाम. जंबुकुमार स्वाध्याय, पृ. ३आ, संपूर्ण. जंबूस्वामी सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजगृही नयरीतणो रे; अंति: रूप प्रभूपद सिद्धरे, गाथा-७. १५. पे. नाम. क्रोध सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: क्रोध न करिये भोला; अंति: उपशम आणो पासे रे, गाथा-९. १६. पे. नाम. मान सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: रेजीव मान न कीजीए; अंति: मानने दीज्यो देसोटो, गाथा-५. १७. पे. नाम. माया सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: समकितनुं मूल जाणीइं; अंति: उदय० छे मारग सुधरे, गाथा-६. १८. पे. नाम. लोभ स्वाध्याय, पृ. ४अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-लोभोपरि, पंडित. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: लोभ न करीये प्राणीया; अंति: भावसागर० सयल जगीस, गाथा-८. १९. पे. नाम. बीजतिथि सज्झाय, प्र. ४अ, संपूर्ण. उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: बीज तणे दिन दाखवू; अंति: देवनां सर्यां काजरे, गाथा-९. २०. पे. नाम. पंचमीतिथि सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण. मु. अमृतरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती भगवती मनवसी; अंति: अमृतरत्नसुख पद लीजे, गाथा-१३. २१. पे. नाम. अष्टमीतिथि सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसरस्वती चरणे नमी; अंति: देव० तेहने नमीये सीस, गाथा-७. २२. पे. नाम. एकादशी स्वाध्याय, पृ. ४आ, संपूर्ण. एकादशीतिथि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: आज एकादशी नणदल मौन; अंति: वाचक० लीला लेहस्य, गाथा-७. २३. पे. नाम. कर्मविपाकफल सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देव दाणव तीर्थंकर; अंति: नमोनमो कर्मराजा रे, गाथा-१८. २४. पे. नाम. वैराग्य स्वाध्याय, पृ. ४आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, क. मानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: मानवनो भव पामीयो; अंति: मानसागर०सुख लहो रसाल, ढाल-२, गाथा-११. २५. पे. नाम. मनमांकड सज्झाय, पृ. ५अ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: मन मांकडलो आण न माने; अंति: लावण्यसमे०फल लीजे रे, गाथा-६. For Private and Personal Use Only Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६. पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. ५अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या, अंति: मनवंछित फल लीधो जी, गाधा-८. २७. पे. नाम. नंदिषेणमुनि सज्झाय, पृ. ५अ, संपूर्ण. मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि राजग्रही नगरीनो वासी अंतिः कोइ न तोलें हो, ढाल ३, गाथा- १२. २८. पे. नाम. सुभद्रासती सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण सुभद्रासती सज्झाय सीयल, मु. सिंघो, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर सोजे ईरज्या अंतिः सीधो रहे सोना रे ठाम, गाथा - २२. २९. पे. नाम औपदेशिक सज्झायनिंदात्यागे, पृ. ५आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय - निंदात्यागविषये, मा.गु., पद्य, आदि: मकर हो जीव परतात; अंतिः भावसु ए हितशिख माने, गाथा - ९. ३०. पे नाम. सुलसाश्राविका सज्झाय, पृ. ५आ, संपूर्ण. मु. कल्याणविमल, मा.गु., पद्य, आदि धन धन सुलसा साची; अंतिः कल्याणविमल गुणगाय रे, गाथा १०. ३१. पे. नाम. सीतासती सज्झाय, पृ. ५आ, संपूर्ण. सीतासती सज्झाय - शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जलजलती मिलती घणुं रे; अंति: प्रणमीजे पाय रे, गाथा- ९. ३२. पे. नाम. नवकारमंत्र छंद, पृ. ५आ, संपूर्ण, नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: समर हो जीव नवकार निज, अंतिः आपणा कर्म आठे विछोडी गाथा.६. ३३. पे. नाम. रात्रिभोजन सज्झाय, पृ. ६अ, संपूर्ण. रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. वसता मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: पुन्य संयोगे नरभव, अंति: मुनि वखता० अधिकार रे, गाथा - १३. ३४. पे. नाम. मेतार्यमुनि स्वाध्याय, पृ. ६अ, संपूर्ण. तार्यमुनि सज्झाच, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुमती गुपतीना आगरु, अति रंग० साधुतणि ए सीझाव, गाथा - १४. ३५. पे. नाम. तप सज्झाय, पृ. ६अ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि कीधा कर्म निकंदीये, अंति: उदय० दुर्गति जावे दूर, गाथा-७. ३६. पे. नाम. राजुल स्वाध्याय, पृ. ६अ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि काली ने पीली वादली, अंतिः कांति नमे वारंवार, गाथा- ७. ३७. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय-परदेशीजीव, पृ. ६ अ-६आ, संपूर्ण. मु. राजसमुद्र, पुहिं, पद्य, आदि: एक काया अरु कामनी, अंति: राजस० स्वारधीओ संसार, गाथा ५. ३८. पे. नाम. करकंडुमुनि सज्झाय, पृ. ६आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी अतिभली हुं; अंति: प्रणम्या पातक जाय रे, गाथा-५. ३९. पे नाम, अखी ऋतुवती आसातना स्वाध्याय, पृ. ६आ, संपूर्ण. २६९ . असज्झाच सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पवयण देवी समरी मात, अंतिः ज्ञाने सीवली ते बरे, गाधा १६. ४०. पे नाम, जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. ६आ, संपूर्ण. मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक नरवर राजीयो; अंति: गुणनिधि कहे करजोड, गाथा- १८. ४१. पे. नाम. नवांगीपूजामहिमा - श्रावकयोग्य, पृ. ६आ, संपूर्ण. नवांगी पूजामहिमा - आवक योग्य, मा.गु, गद्य, आदि: नीलाटतिलक शिवगतिनी, अंतिः पूजा भक्तगुणभंडारु४. ४२. पे. नाम. रहनेम स्वाध्याय, पृ. ७अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . २७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काउसग व्रत रहनेम; अंति: सास्वतासुख लेसीरे, गाथा-१२. ४३. पे. नाम. सप्तवीसन स्वाध्याय, पृ. ७अ, संपूर्ण. ७ व्यसन सज्झाय, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: पर उपगारी साधु सहगुर; अंति: सीस सूरींद्र इम कहे, गाथा-९. ४४. पे. नाम. मुहपत्ति पडिलेहण स्वाध्याय, पृ. ७अ, संपूर्ण. मुहपत्ति पडिलेहण सज्झाय, मु. कुसलहंससीस, मा.गु., पद्य, वि. १५८३, आदि: वर दरीसण रे द्यो; अंति: कुशलहस० आवे तेह तणे, गाथा-८. ४५. पे. नाम. मधुबिंदूआ स्वाध्याय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. मधुबिंदु सज्झाय, मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मुझने रे मात; अंति: परम सुख में मागीये, ढाल-५, गाथा-५, (वि. गाथा-२ को गाथा-१ गिनी गयी है.) ४६. पे. नाम. पंचेंद्री स्वाध्याय, पृ. ७आ, संपूर्ण.. ५ इंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: कामांध गजराज अगाध; अंति: लहो सुख शाश्वता, गाथा-६. ४७. पे. नाम. जीवहित सज्झाय, पृ. ७आ, संपूर्ण. जीवहित सज्झाय-गर्भावासगर्भित, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गरभावासमै चिंतवैए; अंति: क्षमा०मुकति मझारि कि, गाथा-८. ४८. पे. नाम. प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, पृ. ७आ, संपूर्ण. मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमु तुमारा पाय; अंति: दीठा एह प्रत्यक्ष, गाथा-६. ४९. पे. नाम. अनाथीऋषि सज्झाय, पृ. ८अ, संपूर्ण. अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक रेवाडि चढ्यो; अंति: वंदेरेबेकर जोड, गाथा-८. ५०. पे. नाम. धन्नाअणगार सज्झाय, पृ. ८अ, संपूर्ण. मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवचने वयरागी हो; अंति: देवविजय० जय जयकार रे, गाथा-१२. ५१. पे. नाम. नववाड स्वाध्याय, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. ९वाड सज्झाय, क. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पहिला प्रणमुंगोयम; अंति: सीयलवंतनइ जाउ भामणे, गाथा-२७. ५२. पे. नाम. वीर सज्झाय, पृ. ८आ, संपूर्ण. देवानंदा सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहिं., पद्य, आदि: जिनवर रूप देखी मन; अंति: पूछे उलट मनमां आणी, गाथा-११. ५३. पे. नाम. क्रोध सज्झाय, पृ. ८आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कडुआं फल छे क्रोधनां; अंति: उदयरतन० उपसमरस नाही, गाथा-६. ५४. पे. नाम. इलाचीकुमार सज्झाय, पृ. ८आ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नामेलापूत्र जाणीयै; अंति: लब्धिविजे गुण गाय, गाथा-१२. ५५. पे. नाम. पंचपांडव स्वाध्याय, पृ. ९अ, संपूर्ण. ५ पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: हस्तिनापुर नगर भलो; अंति: कवि० आवागमण निवार रे, गाथा-२०. ५६. पे. नाम. अढारनातरा स्वाध्याय, पृ. ९अ, संपूर्ण. १८ नातरा सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभवो कहै जंबू प्रत; अंति: विमल नय कहै उपदेश ए, गाथा-९. ५४१३३. आगम सारोद्वार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३०, जैदे., (२७४१२, १४४३७-४२). आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: प्रथम भव्य जीवनै; अंति: सफल फली मन आस. For Private and Personal Use Only Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५४१३४. (+#) स्तवन, स्तोत्र, छंद, चैत्यवंदन व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-१(३)-७, कुल पे. २१, ले.स्थल. लोहियाणानगर, प्रले. पं. प्रमाणरुचि (गुरु पं. देवरुचि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१३, २२४५७)... १. पे. नाम. शेव्रुजय ४१ नाम स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: कल्याणानि समुल्लसेत्, श्लोक-३७. २. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन पाक्षिक नमस्कार, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. श्लोकानुक्रम पूर्व पेटांक से सम्बद्ध श्लोक-३८ से ४२ है. किन्तु यह स्वतन्त्र कृति होने से पेटांक भी स्वतन्त्र किया गया है. २४ जिन पाक्षिक नमस्कार, सं., पद्य, आदि: पातु वो श्रीमहावीरं; अंति: तीर्थपतीं नमामि, श्लोक-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: ॐ चिंतामणि पासनाह; अंति: परलोए सिवसुहा सुखं, गाथा-६. ४. पे. नाम. विसवहेरमानजिन स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन स्तवन, सं., पद्य, आदि: त्रैलोक्यपूज्यस्य; अंति: शांतिकारं कृतां मे, श्लोक-८. ५. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिनानां पंचषष्टीयंत्र स्तोत्र, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तव-चतुःषष्टियंत्रगर्भित, मु. जयतिलकसूरि-शिष्य, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: __मोक्षलक्ष्मीनिधानम्, श्लोक-८. ६. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र, पृ. २अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथमजितं प्रभ; अंति: सर्गहरणानि सुमंगलानि, श्लोक-३. ७. पे. नाम. जिनऋषभ स्तोत्र, पृ. २अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: देवाःप्रभो यं विधिना; अंति: भावं जयानंदमयप्रदेया, श्लोक-९. ८. पे. नाम. चिंतामणी पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणी, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीज ददातु, श्लोक-११. ९. पे. नाम. तीर्थमाला स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंतिः सततं चित्तमानंदकारी, श्लोक-१०. १०. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. आदिजिन नमस्कार, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाभि नरेसर कुल कमल; अंति: प्रीत० आवागमन निवार, गाथा-१. ११. पे. नाम. नेमिनाथ चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण, वि. १८७८, माघ शुक्ल, १५. नेमिजिन नमस्कार, क. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: नेम नमु निसदीस जन्मल; अंति: जस महीमा जगमे रह्या, गाथा-१. १२. पे. नाम. शंखेश्वर पार्श्वनाथ स्तवन छंद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, पं. महिमारूचि गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सरसति सूखदाता तुं जग; अंति: महिमारुचि०सगली संपदा, गाथा-२४. १३. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. विजयशील, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मुरती श्रीपास; अंति: विजयसील० आणंद घणे, गाथा-११. १४. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, प्र. ४आ, संपूर्ण. जिनभक्तिमहिमा श्लोक, मा.गु., पद्य, आदि: भावे जिनवर पूजीऐ भाव; अंति: जे रचे० मोख्य विमान, गाथा-२. १५. पे. नाम. अंतरीक पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, पं. भावविजय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात मया करी; अंति: भावविजय०देव जय जसकरन, गाथा-५१. १६. पे. नाम. अष्टभयनिवारिण गौडि पार्श्वनाथजीनो छंद स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन दे सरसती एह; अंति: धर्मसिंह ध्यान धरण, गाथा-२९. १७. पे. नाम. शेजय स्तुति, पृ. ६आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थस्तुति, श्राव. ऋषभदास , मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेव॒जेगिरि; अंति: पाय ऋषभदास गुण गाय, गाथा-४. १८. पे. नाम. गोडी पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणी ब्रह्मवादिनी; अंति: प्रीति० संघ मंगलकरो, ढाल-५, गाथा-५५. १९. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण, वि. १८७८, फाल्गुन कृष्ण, ३. साधारणजिन प्रार्थना दोहा, मा.गु., पद्य, आदि: सुख देवो दुख मेटवो; अंति: तेहनि आणि न लोपे कोय, दोहा-२. २०. पे. नाम. गोडीपार्श्व स्तवन छंद, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीथलपति थलदेशें; अंति: कांतिविजय० गोडी धवल, गाथा-३७. २१. पे. नाम. गोडीपार्श्व छंद, प्र. ८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद, मु. नारायण ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: वामामात उवर जगवंदह; अंति: नारीयणघाट टालै विघन, गाथा-१४. ५४१३५. शीलोपदेशमाला सह बालावबोध व कथा, संपूर्ण, वि. १८७२, ज्येष्ठ शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. ३९, ले.स्थल. लोहागढ, प्रले. मु. प्रमाणरुचि (गुरु पं. देवरुचि); गुपि.पं. देवरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१३, १९-२२४४५-६२). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि: आबालबंभयारि नेमि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४५ तक लिखा है.) शीलोपदेशमाला-बालावबोध कथा, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५५१, आदि: (१)श्रीवामेयममेयश्रीसहि, (२)आबाल ब्रह्मचारी आजन; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. शीलोपदेशमाला-कथा संग्रह, संबद्ध, मु. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि: लक्षयोजन प्रमाण जंबु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सुदर्शनश्रेष्ठि कथा २१वीं कथा तक है.) ५४१३६. (+#) लघु स्तव सह टबार्थ (त्रिपुर भेरवी स्तोत्र), संपूर्ण, वि. १८१७, आषाढ़, रविवार, मध्यम, पृ. ८, ले.स्थल. लोहागढ, प्रले. पं. गोतमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१३, ३४३३). त्रिपुराभवानी स्तोत्र, आ. लघ्वाचार्य, सं., पद्य, आदि: ऐंद्रस्यैव शरासनस्य; अंति: लक्ष्मिश्च रोगक्षयं, श्लोक-२२. त्रिपुराभवानी स्तोत्र-टबार्थ, पा. रूपचंद्र गणि, पुहिं., गद्य, वि. १७९८, आदि: (१)ज्याकि गति प्रभाव ते, (२)जो त्रिपुरा भगवति; अंति: (१)रूप० पुरं न पहुचि आस, (२)तरुणार्कबिंबरूचिरसो०. ५४१३७. जंबूस्वामी चरित्र, संपूर्ण, वि. १८४७, श्रावण कृष्ण, ३०, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३४, ले.स्थल. कोठारिया, प्रले. प्राणजीवण त्रिवाडी; पठ. य. कपूरचंदजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२.५, ११४३४-३८). जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: सप्रभावं जिनं पार्श; अंति: वरधी कल्याण कही चौ. ५४१३८.(+) द्रव्यगुणपर्याय रास सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-त्रिपाठ., जैदे., (२८x१३, १५-१८४३९-४७). द्रव्यगुणपर्याय रास, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: श्रीगुरु जितविजय मन; अंति: ___ जसविजय बुध जयकरी, ढाल-१७, गाथा-३८४.. द्रव्यगुणपर्याय रास-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: ऐंद्र धाम हृदि; अंति: सर्वार्थसंसिद्धिः. For Private and Personal Use Only Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २७३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५४१४० (+) वैद्यवल्लभ व नाडी परीक्षा संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १२, कुल पे २, प्रले. मु. न्यानविजय गणि (गुरु पं. नेमविजय गणि); गुपि. पं. नेमविजय गणि, क्रीत. पं. दयाविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२९x१२.५, ११x४८-५१). १. पे. नाम. वैद्यवल्लभ सह टबार्थ - क्वाथाधिकार से शेषप्रयोगाधिकार, पृ. १अ - ११आ, संपूर्ण. वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., पद्य, वि. १७२६, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. वैद्यवल्लभ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम, नाडीपरीक्षा सह टबार्थ, पृ. १९आ-१२अ संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नाडीपरीक्षा, सं., पद्य, आदि: स्नायुर्नाडी न साहिस, अंति: नाडीदूरेण वर्ययेत् श्लोक-२०. नाडीपरीक्षा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ० नाम नाडि कहियें अन; अंति: विषे आवे ते आस्या०. ५४१४१ (+) दिलरंजनी, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २२, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैदे., (२८x१२, १४४४४-५७). दिलरंजनी, पुहिं. सं., पद्य, आदिः स्वस्ति श्रीसुखसंपदा, अंतिः देखो जोति बरसाती है, गाथा- ७४७. ५४१४२, (+) उपदेशमाला सह टवार्थ, टीका व कथा, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १०४, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२८.५४१३, ६-१७x४३-४९). " उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंदन, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा- १६४ तक लिखा है.) उपदेशमाला - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमिऊण कहेता नमस्कार; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा - २८ तक बार्थ लिखा है.) उपदेशमाला - वृत्ति, ग. रामविजय, सं., गद्य, वि. १७८१, आदिः श्रेयस्करे कामितदान, अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा- ६४ की टीका अपूर्ण तक लिखी है.) , उपदेशमाला - कथा संग्रह, सं., गद्य, आदि: जंबूद्वीपे भरते समूद, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कथा- ४८वी तक लिखी है.) ५४१४३, (+) कल्पसूत्र, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३० प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५X१३, 1 १५X४१-४७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (१) णमो अरिहंताणं० पढमं (२)तेणं कालेणं० समणे, अंति: उवयंसेड़ त्ति बेमि, व्याख्यान - ९, ग्रं. १२१६. ५४१४४. (+#) श्रीपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १८७३, चैत्र कृष्ण, ६, बुधवार, मध्यम, पृ. २४, ले. स्थल. कौलागपूर, प्रले. पं. प्रमाणरुचि (गुरु पं. देवरुचि); गुपि. पं. देवरुचि (गुरु पं. सदारुचि); पं. सदारुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्याही फैल गयी है. प्र. ले. श्रो. (७२५) जहां लग मेरु अडग है, जैवे. (२७.५४१३ १४४३५-३९). श्रीपाल चरित्र, ग. शुभविजय पंडित, सं., गद्य, वि. १७७४, आदिः ॐ नमः स्पर्द्धिशक्रा, अंति : शुभविजय० दिवस एवैतत्. ५४१४५. (०) गौतमपृच्छा सह बालावबोध व कथा संपूर्ण, वि. १८७३ वैशाख कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ४३, ले. स्थल. लोहागढ, प्रले. मु. प्रमाणरूचि (गुरु मु. देवरुचि); गुपि. मु. देवरुचि (गुरु पं. सदारुचि गणि); पं. सदारुचि गणि (गुरु पं. पद्मरुचि गणि); पं. पद्मरुचि गणि (गुरु पं. कुंअररुचि गणि); पं. कुंअररुचि गणि (गुरु पं. दयारुचि गणि); पं. दयारुचि गणि, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. श्रीगोडीजी प्रसादात्, अक्षरों की स्थाही फैल गयी है, जैवे. (२७.५४१३.५, १३-१७४३५-४८). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाहं, अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न- ४८, गाथा-६४. गौतमपृच्छा-वालाबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अंतिः जाणवा० मुनिसुंदरवाचक, गौतमपृच्छा - कथा संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि एक गामेड़ वाणीउ बसे, अंति: हुओ मोक्ष पामिसिहं, कथा-३५. ५४१४६. पार्श्वजिन छंद व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. ५, दे., (२७.५X१२, १५X४२-४६). १. पे. नाम अंतरीक पार्श्वनाथ स्तवन छंद, पृ. १अ - ३आ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, पं. भावविजय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात मया करी; अंति: भणै जयो देव जय जयकरण, गाथा-५१. २. पे. नाम. गोडीजी छंद, पृ. ३आ-५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीथलपति दलदेशे वसि; अंति: कांतिवजे० गोडीधवल, गाथा-३७. ३. पे. नाम. गोडी पार्श्वजिन छंद, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जीतचंद, मा.गु., पद्य, आदि: ॐकाररूप परमेश्वरा; अंति: जीत कहे हरषे सदा, गाथा-२३. ४. पे. नाम. गोडी पार्श्वजिन छंद, पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण, वि. १९०१, आषाढ़ कृष्ण, २. पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, मु. रामविजय, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: नमु सारदा सार; अंति: रामेण सर्वदा, गाथा-१४. ५. पे. नाम. देशांतरी छंद, पृ. ७अ-९अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: सुवचन आपो शारदा मया; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४५ अपूर्ण तक लिखा है.) ५४१४७. (+#) वीरजिन स्थापनानिक्षेपप्रमाण स्तवन सह बालावबोध, त्रुटक, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११-६(३ से ६,८ से ९)=५, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. त्रिपाठ-द्विपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११, १३४३३-३९). महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदि: प्रणमी श्रीगुरुना पय; अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठ अपूर्ण से ढाल-३ गाथा-१४ तक है.) महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)जत्थय जंजाणिज्जा, (२)ए अनुयोगद्वारनो पाठ; अंति: (-). ५४१४८. (#) सौभाग्यपंचमी व्याख्यान सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, प्रले. पं. प्रमाणरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२.५, ९x४४-५१). वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: मेडतानगरे, श्लोक-१५१. वरदत्तगुणमंजरी कथा-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिनेश; अंति: मेडतानगरने वीषे. ५४१४९. (+) नवस्मरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २७, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२७७१३, ६४३१-३४). नवस्मरण, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: जैन जयति शासनं, स्मरण-८, (संपूर्ण, वि. कल्याणमंदिर स्तोत्र नहीं है.) नवस्मरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंत विहरमाननई; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., नमिऊण स्तवन तक टबार्थ लिखा है.) ५४१५०. सदयवच्छ सावलिंगा रास, संपूर्ण, वि. १८७७, श्रावण शुक्ल, १४, मंगलवार, मध्यम, पृ. १११, ले.स्थल. प्रह्लादनपुर, प्रले. मु. ऋषभविजय (गुरु मु. रंगविजय गणि); गुपि.मु.रंगविजय गणि (गुरु पं. कृष्णविजय गणि); पं. कृष्णविजय गणि (गुरु पं. राजविजय गणि); पं. राजविजय गणि (गुरु पं. कांतिविजय गणि); पं. कांतिविजय गणि (गुरु पं. प्रेमविजय गणि); पं. प्रेमविजय गणि (गुरु आ. विजयप्रभसूरि); आ. विजयप्रभसूरि (गुरु पं. सदारुचि गणि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. श्रीपल्लवीहार पार्श्वनाथ सुप्रसादे लिखित., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (५५८) एकएक अक्षर भणे, (७२४) जलाद रक्षे थलाद्रक्षे, (९८२) मंगलं लेखकानांच, (९८३) जब लग मेरु थीर रहे, (१००३) पोथी प्यारी प्राण की, (१००४) जीहांद्र सायर चंद रवि, जैदे., (२७४१२, १४४३८-४५). सदयवच्छ रास, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८५६, आदि: स्वस्ति श्रीरमणि रमण; अंति: रंगे० मनोरथमालि जी, खंड-४ ढाल ८३, गाथा-२६८८, ग्रं. ४१८४. For Private and Personal Use Only Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५४१५१. (#) मौन एकादशी कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८०, ज्येष्ठ शुक्ल, ९, मध्यम, पृ.८, ले.स्थल. बुआडा, अन्य. मु. प्रमाणरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपार्श्वनाथजी प्रसादात्. पं. मोहनविजयजी के प्रत पर से लिखी गई है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१२, ९x४४-४८). सुव्रतश्रेष्ठी कथा, मु. रविसागर, सं., पद्य, वि. १६५७, आदि: प्रणम्य वृषभं देवं व; अंति: सागरशररसशशिप्रमिते, श्लोक-२०१. सुव्रतश्रेष्ठी कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणमुंछु श्री; अंति: कह्यो छे एकादसीनो, सूत्र-२०१. ५४१५२. (+) चित्रसेनपद्मावतीरास व भारती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८०१, आश्विन शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ३४, कुल पे. २, ले.स्थल. कंबोईगाम, प्रले. पं. उदेविजय (गुरु मु. प्रमोदविजय); गुपि. मु. प्रमोदविजय (गुरु पं. जिनविजयजी गणि, तपगच्छ); पं. जिनविजयजी गणि (अज्ञा. आ. विजयदेवसूरि, तपगच्छ); आ. विजयदेवसूरि (तपगच्छ); अन्य. पं. दयाविजय गणि (गुरु पं. रत्नविजय गणि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीसंभनाथ प्रशादात् श्रीगोडिचाजी प्रसादात्, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (९३९) जाद्रिस पुस्तकं द्रीष्टवा, (९४०) श्रीयं आरोग्य अमृतस्स श्रृंगार करुणा रुपं ममा, जैदे., (२७४११.५, १९४५०). १. पे. नाम. सस्वती स्तोत्र-१०८ नाम गर्भित, पृ. १अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र-१०८ नाम गर्भित, सं., पद्य, आदि: धिषणा धीर्मतिर्मेधा; अंति: भारती किल्विषं मे, श्लोक-१५. २. पे. नाम. चित्रसेनपद्मावती रास, पृ. १आ-३४आ, संपूर्ण. मु. कांतिसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७५७, आदि: आदि जिनेसर आदिकर; अंति: कांतिसागर० संध सहुने, ढाल-४९. ५४१५३. (#) थूलीभद्र नवरसो, संपूर्ण, वि. १९०४, चैत्र शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७७१३, ११४३१). स्थूलिभद्रमुनि नवरसो ढाल व दूहा, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति दायक सदा; अंति: उदय० भणतां मंगलमाल, ढाल-९, गाथा-७४. ५४१५४. (+) स्तवन चौवीसी व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४१२.५, १५४४१). १. पे. नाम. स्तवनचौवीसी, पृ. १अ-७आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम तीर्थंकर सेवता; अंति: मोहन० विसवाविस रे, स्तवन-२४. २.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ७आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बालपणे आपण ससनेहि; अंति: मोहन० लंछन बलीहारी, गाथा-७. ५४१५५. (+) भाष्यत्रय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७१, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७, जीर्ण, पृ. १५, पठ. मु. गंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७७१३.५, १३४४२). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाह, भाष्य-३, गाथा-१४५. भाष्यत्रय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वांदीनई वांदवानइं; अंति: सास्वतासुख आबाधारहित. ५४१५७. क्षेत्रसमास प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्रले. मु. देवेंद्ररुचि (गुरु पं. दयारुचि गणि); गुपि. पं. दयारुचि गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२.५, ७४३७). लघुक्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊणसजलजलहर निभस्सण; अंति: झाएज्जा सम्मदिट्ठीए, अध्याय-५. लघुक्षेत्रसमास-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने भर्या; अंति: झाएद्या समद्दीट्ठीए. ५४१५८. (#) होलीरजपर्व कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८६, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. मढाड, प्रले.पं. प्रमाणरुचि (गुरु पं. देवरुचि); गुपि.पं. देवरुचि (गुरु पं. सदारुचि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१३, ९४४६). होलीरजपर्व प्रबंध, ग. फतेंद्रसागर, सं., पद्य, वि. १८२२, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: श्रीविद्याकाख्यपुरे, श्लोक-१३८. For Private and Personal Use Only Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची होलीरजपर्व प्रबंध-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्धमानस्वामि; अंति: फतेंद्रसागर० लिख्यौ. ५४१६०. (+) दंडक २९ द्वार विचार, संपूर्ण, वि. १८९८, मार्गशीर्ष कृष्ण, ९, बुधवार, मध्यम, पृ. १२, अन्य. श्राव. कप्ररश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मुनिसुव्रतस्वामी प्रसादात्, संशोधित., जैदे., (२८.५४१२.५, १२४३५). २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजु; अंति: जीव अनंतगुणाधिका. ५४१६१. (+#) सौभाग्यपंचमी व तप विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १५, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, ६४३१). १.पे. नाम. सौभाग्यपंचमी कथा सह टबार्थ, पृ. १आ-१५आ, संपूर्ण. वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: भुतेषुरसिंदुमितवर्षे, श्लोक-१५०, संपूर्ण. सौभाग्यपंचमीकथा-टबार्थ, ग. पद्मविजय; पं. भीमविजय, मा.गु., गद्य, वि. १६५५, आदि: प्रणम्य श्री महावीरं; ___ अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम गाथा का टबार्थ अपूर्ण है.) २.पे. नाम. तप विचार, पृ. १५आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: तप चोविहार करी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "मासक्षमण तप" तक का वर्णन ५४१६२. (+) श्रीपालरास चतुर्थ खंड सहटबार्थ, पूर्ण, वि. १९१५, ज्येष्ठ शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ८०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ले.स्थल. पालणपुर, प्रले. श्राव. लखमीचंद नायक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. २५००, दे., (२७४१२, ३४२८-३०). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदिः (-); अंति: लहेशे ज्ञान विशालाजी, प्रतिपूर्ण. श्रीपाल रास-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: ज्ञान विसाला जी, प्रतिपूर्ण. ५४१६४. (+) श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १८७३, पौष शुक्ल, १५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ८२, ले.स्थल. कैलाशपुर, प्रले. मु. प्रमाणरूचि (गुरु पं.शदारुचि गणि); गुपि.पं.शदारुचि गणि (गुरु पं. पद्मरूचि गणि); पं. पद्मरूचि गणि (गुरु पं. कुंअररूचि गणि); पं. कुंअररूचि गणि (गुरु पं. दयारूचि गणि); पं. दयारूचि गणि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीगोडिजी प्रशादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२८x१३, १०-२०४४३-४८). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेलि कवियण तणी; अंति: हस्यइं ज्ञानविशालाजी, खंड-४, गाथा-१८२५, (वि. ढाल ४१) ५४१६५. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६.५४१२, ६x२८-३०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: अज्झयणं सम्मत्तं, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६. कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: तेणि कालि तेणि समि; अंति: ते मोक्षफलदाई हुई. ५४१६६. (+) आगमसारोद्धार बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८२३, आश्विन कृष्ण, ४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले.स्थल. कालद्रीनगर, प्रले. मु. देवेंद्ररुचि (गुरु ग. दयारुचि, तपागच्छ); गुपि.ग. दयारुचि (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११, १९-२२४४२-५०). आगमसारोद्धार-स्वोपज्ञ बालावबोध, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: तिहां प्रथम जीव; अंति: ते समकिति जाणवो. ५४१६७. (+) चौवीस दंडक व नवतत्त्व विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५४११.५, ११४२८). १.पे. नाम. चउवीस दंडक विचार, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण. २४ दंडक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: छकायना भेद लखीइ छै; अंति: आवै एकमणी सनवाय. For Private and Personal Use Only Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ छप गए हैं. दे. (२६.५४१२, १३४३५). , www.kobatirth.org २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण विवेचन, पृ. ५आ-८अ, संपूर्ण. नवतत्त्व विचार, मा.गु., गद्य, आदि जीवाजीवा पुत्रं पावा, अंतिः सिद्धना पनर भेद बा ५४१६८, (+०) रत्नपाल रास, पूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ६६, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. प्र. वि. संशोधित, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रत्नपाल- रत्नावती चौपाई, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: सकल श्रेणि में दुर; अंति: (-), (पू.वि. डाल- ६६ की गाथा १८ अपूर्ण तक है.) ५४१६९. (+) अशोकचंद्र नृप रोहिणी रास, संपूर्ण, वि. १८४५, मार्गशीर्ष कृष्ण, १४, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ४४, ले. स्थल. राधनपुर, विजय प्रले. पं. फत्तेविजय गणि (गुरु पं. कूशलविजय गणि); गुपि. पं. कूशलविजय गणि (गुरु पं. राजविजय गणि); पं. (गुरु पं. कांतिविजय गणि); पं. कांतिविजय गणि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. श्रीआदिजिन प्रशादात्, संशोधित., जैदे., १६-१८४४१). (२५.५X१२, रोहिणी रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७७४, आदि: सुखकर श्रीशंखेसरु, अंति: ज्ञानविमलसूरि० आ रे, ढाल - ३१. ५४१७०. नेमिजिन चौवीस चोक, संपूर्ण, वि. १८८२ आषाढ कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ७ जैवे. (२६.५४११.५, १६x४०). मगोपी संवाद- चौवीसचोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्म, वि. १८३९, आदिः सरसति चरणांबुज नमी अंति अमृत भरवछ गुण गाया, चोक-२४. ५४१७१. (४) गौतमपृच्छा सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८८१, ज्येष्ठ शुरू, २ रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४०, ले. स्थल. इचुरगाम २७७ प्रले. पं. राजेंद्ररूचि (गुरु पं. देवरूचि गणि); गुपि. पं. देवरूचि गणि (गुरु पं. नरेंद्ररूचि गणि); पं. नरेंद्ररूचि गणि (गुरु पं. कुंयररूची गणि); पं. कुंयररूची गणि (गुरु पं. दयारूची गणि) पं. दयारूची गणि (गुरु पं. रूपरुचि गणि); अन्य पं. तीर्थसोमजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. श्रीचंद्रप्रभु प्रसादात् अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२६.५x१२.५, १४४३२). "" गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नत्वा वीरजिनं बाला; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न-४८, गाथा-६४. गौतमपृच्छा वालावबोध, मा.गु, गद्य, आदि: तीर्थनाथ श्रीमहावीर, अंतिः जाणवा० मुनिसुंदरवाचक. ५४१७२. () चित्रसेन पद्मावती चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२३, मध्यम, पृ. १०४, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५४१२, ५४३२-३७). चित्रसेनपद्मावती चरित्र, आ. महीतिलकसूरि, सं., पद्य, वि. १५२४, आदि: नत्वा जिनपतिमाद्यं अंतिः कथां पाठकराजवल्लभः, श्लोक-१२३२. ५४१७३. (+#) रूपसेन राजा कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३०, श्रावण कृष्ण, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ५९, ले. स्थल. पुरबिंदर, प्रले. मु. सुग्यांनसागर गणि (गुरु पं. दोलतसागर गणि); गुपि. पं. दोलतसागर गणि (गुरु पं. भाग्यसागर गणि); पं. भाग्यसागर गणि; अन्य. पं. आगमसागर गणि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. शांतिनाथजी प्रसादात्, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की फैल गयी है, जैदे. (२६.५४१२, ७४३८-३९). , , रूपसेनकनकावती चरित्र चतुर्थव्रतपालने, आ. जिनसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीमंतं विदुरं शांत, अंतिः सुकृताय कृता कथा, श्लोक-२२४, ग्रं. १५३०, संपूर्ण. रूपसेनकनकावती चरित्र-टबार्थ, मा.गु, गद्य, आदि अतिशय लक्ष्मी सहित अंति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., रूपसेन राजा के लीलावन में गमन वृत्तांत तक का टबार्थ है.) ५४१७४, (०) ध्यानचतुष्क रास व आत्मशिक्षा ज्ञान दोधक, संपूर्ण वि. १९११, ज्येष्ठ शुक्ल १२, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २, ले. स्थल. पट्टन नगर, प्रले. पं. ऋषभविजय गणि (गुरु पं. रंगविजय गणि); गुपि. पं. रंगविजय गणि (गुरु पं. कृष्णविजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पोलीये उपासरे पंचेस्वरा पास पसायश्री, मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं. दे.. (२७४१०, १४४३८). १. पे. नाम. शुभाशुभध्यान चतुष्क, पृ. १अ - ७आ, संपूर्ण. ध्यानस्वरूपनिरूपण प्रबंध, मु. भावविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६९६, आदि: सकल जिणेसर पाय वंदे, अंतिः भावविजय चित्त रंगे, बाल-९, गाथा- १६३. For Private and Personal Use Only Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. आत्मशिक्षा, पृ. ७आ-१०आ, संपूर्ण. क. हंसरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७८६, आदि: सकल सास्त्रे वर्णव्य; अति: घरि जय कमला थीर थाय, गाथा-११०. ५४१७५. प्रतिष्टा कल्प, संपूर्ण, वि. १९५२, चैत्र शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ३८, ले.स्थल. सीलदर, प्रले. पं. विनयरूचजी; अन्य. पं. गुलाबविजय गणि; पं. क्षिमावत, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (८८९) यादृसं पुस्तकं दृष्टवा, (९४१) एक पोथी दूजी पदमणी, (९४२) जलात रक्षे तेलात र, (९४३) भग्नपृष्टी कटी ग्रीवा, दे., (२७४१२.५, ११४३४). प्रतिष्ठा कल्प, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रणम्य स्वस्ति; अंति: वाजिंत्राणी वाद्यतै. ५४१७६. ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८३, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. १३९१०, जैदे., (२६.५४११.५, ६४३४-३८). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० चंपाए; अंति: सुयस्कंधो सम्मत्तो, अध्ययन-१९, ग्रं. ८४१०, (वि. १८१५, भाद्रपद कृष्ण, ४, मंगलवार, ले.स्थल. रामसिणनगर, प्रले. पं. दीपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, उपा. कनकसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: टबार्थ संपूर्णम्, ग्रं. ५५००, (वि. १८१५, कार्तिक कृष्ण, ३, गुरुवार, ले.स्थल. पालीनगर, प्रले. पं. ललितरूचि (गुरु पं.रूपरूचि गणि); गुपि.पं.रूपरूचि गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, वि. श्री आदिवर्द्धमानजिन प्रशादात्) ५४१७८. (#) षट्त्रिंशिका विवरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, १८४३८). गुरुगुणषट्त्रिंशत्पत्रिंशिका कुलक-स्वोपज्ञ बीजक, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, आदि: च्यार देशना च्यार; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ३५ षट्त्रिंशिका तक लिखा है.)। ५४१७९. (#) गुणावली चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. बोहीया, प्रले. पं.रूपरूचि (गुरु पं. राजरूचि); गुपि.पं. राजरूचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १७X४६). गुणावलि चौपाई, ग. गजकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७१४, आदि: सकल मनोरथ पूरवे; अंति: नितनित सुख आणंदा, ___ढाल-२९, गाथा-५१९. ५४१८०. (+#) स्तवन चौवीसी सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८१९, चैत्र शुक्ल, २, बुधवार, मध्यम, पृ. ४३, ले.स्थल. स्याणा, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४११.५, ४-१४४३९-५५). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: रिषभ जिनेसर प्रीतम; अंति: अनंत सुखनो सदा रे, स्तवन-२४. स्तवनचौवीसी-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदिः (१)चिदानंदमय जिनवरु सदा, (२)शुद्ध चेतना अने आत्म; अंति: अखय संपद अति घणी. ५४१८१. चौवीस जिन वर्णन यंत्र व पडिलेहन बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, १३४३३). १. पे. नाम. चौविश जिन विवरण यंत्र, पृ. १अ-७आ, संपूर्ण. २४ जिन विवरण यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. मुहपत्ती पडिलेहण बोल, पृ. ७आ, संपूर्ण. मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सम्यक्त्वमोहनीय१; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "भेइसोग उगसा परिहरू" पाठ तक लिखा है.) ५४१८२. (#) रास, सज्झाय व कवित, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १५४४१). १. पे. नाम. ढुंढा पवाडो, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. ढुंढक रास, मु. अविचल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात मया करी; अंति: अविचल रास ए उलास ए, गाथा-१०८. २.पे. नाम. ढुंढा सज्झाय, पृ. ४-५अ, संपूर्ण. ढुंढक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: गढ़ जालंधर विचें; अंति: सातें परीया चारी, गाथा-१७. For Private and Personal Use Only Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ३. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. ५अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: खत्री होई परधान; अंति: वडो प्रधानज वाणीयो, गाथा-१. ५४१८३. (+#) स्तवन व सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, ११४३३). १. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. ___ मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमीअपासजिनेसर; अंति: गुणविजय रंगे मुणी, ढाल-६, गाथा-४९. २.पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व लघुस्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पांचमी तप तुमे करो; अंति: समयसुंदर० भेद रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. पंचकल्याणक सज्झाय, पृ. ४आ-६अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिणेशर; अंति: संघ सयल सुखकारी रे, ढाल-५, गाथा-१६. ४. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण, वि. १८७७, माघ कृष्ण, ८, रविवार. उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सद्गुरुना हुं प्रणमी; अंति: वाचकदेवनी पुरो जगीश, गाथा-५. ५. पे. नाम. भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. ६आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राजतणारे अती लोभीया; अंति: समयसुंदर वंदे पाय रे, गाथा-७. ५४१८४. (+-) पंचपरमेष्ठि गुणवर्णन, आठ मद व सात भयना नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ३, ले.स्थल. अवरंगाबाद, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, ११४३६). १.पे. नाम. पंचपरमेष्ठि गुणवर्णन, पृ. १आ-६आ, संपूर्ण. पंचपरमेष्ठि १०८ गुण, मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं कहिता; अंति: उत्कृष्ट मंगलीक होइं. २. पे. नाम. आठ मदना नाम, पृ. ६आ, संपूर्ण. ८मद नाम, मा.गु., गद्य, आदि: जातमद कुलमद बलमद; अंति: लाभमद ठकुराइ मद. ३. पे. नाम. सात भयना नाम, पृ. ६आ, संपूर्ण. ७ भय नाम, मा.गु., गद्य, आदिः ये लोकनो भय परलोक; अंति: आजीवकानो भय मरननो भय. ५४१८५. षडावश्यकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७४०, मध्यम, पृ. २२, जैदे., (२६.५४१२, ५४३१). आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: करी मिच्छामि दुक्कड. षडावश्यकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हो अरिहंत; अंति: मिच्छामि दुक्कड. ५४१८६. कर्मग्रंथ १-४, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. ४, प्रले. पं. रत्नविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, १५४३७). १.पे. नाम. कर्मविपाक, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं, गाथा-६३. २. पे. नाम. कर्मस्तव, पृ. ३आ-५आ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३४. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउ, गाथा-२४. ४. पे. नाम. षडशीति, पृ. ६आ-१०आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा-९०. ५४१८८. (#) पाक्षिकसूत्र व दोहा, संपूर्ण, वि. १८६२, ज्येष्ठ शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. २, ले.स्थल. मडवाडानगर, प्रले. पं. चतुरविजय गणि (गुरु पं. आणंदविजय गणि); गुपि.पं. आणंदविजय गणि (गुरु पं. हस्तिविजयजी); पं. हस्तिविजयजी (गुरु भट्टा. विजयक्षमासूरीश्वरजी); भट्टा. विजयक्षमासूरीश्वरजी; पठ. मु. मनरूप (गुरु पं. चतुरविजय गणि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीपार्श्वनाथ प्रशादात्, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, १५४४५). १.पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १अ-८आ, संपूर्ण. हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: गुरुगुणेहि बुढामि. २. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. ८आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहि., पद्य, आदि: नेणां तेरी अलख गत; अंति: ससनेही पे जाय, दोहा-१. ५४१८९. संग्रहणीसूत्र सह टबार्थ, अट्ठावीस लब्धि नाम व सुभाषित श्लोक, संपूर्ण, वि. १८११, आश्विन शुक्ल, ६, रविवार, मध्यम, पृ. ३२, कुल पे. ३, ले.स्थल. षोडनगर, प्रले. मु. कल्याणविजय (गुरु पं. वनितविजय गणि); गुपि.पं. वनितविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीगोडीजी प्रसादात्., प्र.ले.श्लो. (९४४) जाधृसं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६.५४१२, ५४३०-३६). १.पे. नाम. संग्रहणी सूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-३२अ, संपूर्ण. सिद्धांतविचार गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: कंचणगिरि पव्वेसुं; अंति: साहु सगवीस नायव्वा, गाथा-२८२. सिद्धांतविचार गाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कंचनगिरि पर्वतनइ; अंति: तिवारइं एक सउ आठ थाइ. २.पे. नाम. अट्ठावीस लब्धिगाथा, पृ. ३२आ, संपूर्ण. २८ लब्धि विचार, प्रा., पद्य, आदि: आमोसहि विप्पोसहि; अंति: एमाई हुति लद्धीओ, गाथा-४. ३. पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. ३२आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक*, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: रूपविक्रम सौवर्णं; अंति: शांतिकुर्यादनामिका, श्लोक-३. ५४१९०. योगदृष्टिसज्झाय सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०, अन्य. पं. दयाविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, ४-१७४३७-४३). ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शिवसुख कारण उपदेशी; अंति: वाचक यशने वयणेजी, ढाल-८, गाथा-७६. ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (१)ऐंद्रश्रेणिनतं, (२)शिव कहतां निरुपद्रव; अंति: ज्ञानविमल० लीख्यो छे. ५४१९१. श्रीपालकथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९७, जैदे., (२६४१२, ७X३९). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदि: अरिहंताई नवपयाई; अंति: नायजंता कहाएसा, गाथा-१३४३, (वि. १८४६, चैत्र कृष्ण, १, सोमवार, ले.स्थल. बूट, प्रले.ग. अमीविजय (गुरु पं. जीवणविजयजी); गुपि. पं. जीवणविजयजी (गुरु पं. गुणविजयजी); पं. गुणविजय (गुरु गच्छाधिपति लब्धिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य) सिरिसिरिवाल कहा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंत प्रमुख नवपद; अंति: वाचतां थकां कथा एह, (वि. १८४६, आषाढ़ शुक्ल, ३, सोमवार, ले.स्थल. बूआडानगर, प्रले. पं. जीवणविजय (गुरु पं. गुणविजय); गुपि.पं. गुणविजय (गुरु गच्छाधिपति लब्धिविजय); गच्छाधिपति लब्धिविजय (गुरु आ. विजयरत्नसूरि); आ. विजयरत्नसूरि, प्र.ले.पु. मध्यम, वि. श्रीपार्श्वजिन प्रसादात्.) ५४१९२. (+#) स्तवन चौवीसी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९२, फाल्गुन कृष्ण, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. २९, ले.स्थल. बुरहानपुरनगर, प्रले. पं. राजेंद्ररूचि (गुरु पं. देवरूचि गणि); गुपि.पं. देवरूचि गणि (गुरु पं. नरेंद्ररूचि गणि); पं. नरेंद्ररूचि गणि (गुरु पं. कुंयररूची गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीमंदिरजी प्रसादात्. गोडीचाजी प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल वटीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४१२, ५-१७४३६-४७). For Private and Personal Use Only Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ www.kobatirth.org - स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८५, आदि रिषभ जिनेसर प्रीतम, अंति: अनंत सुखनो सदा रे, स्तवन- २४. स्तवनचीवीसी टवार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीऋषभ जिनेश्वर, अंतिः आप सरुपइ भोक्ता छो. ५४१९३. (+) शांतिजिन रास, संपूर्ण, वि. १८२५ फाल्गुन कृष्ण, १०, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २०४, ले. स्थल, पालनपुरनगर, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रले. मु. रंगविजय गणि (गुरु पं. कृष्णविजय गणि); गुपि. पं. कृष्णविजय गणि (गुरु पं. राजविजय गणि); पं. राजविजय गण (गुरु पं. कांतिविजय गणि); पं. कांतिविजय गणि (गुरु पं. प्रेमविजय गणि); पं. प्रेमविजय गणि (गुरु आ. विजयप्रभसूरि); आ. विजयप्रभसूरि (गुरु पं. सदारुचि गणि, तपागच्छ), प्र. ले. पु. विस्तृत, प्र. वि. पलवीहारजी पार्श्वनाथ प्रसादात् श्री पार्श्वनाथ प्रशादात् श्री गोडीपार्श्वनाथ प्रसादे लख्यो छे, संशोधित. कुल ग्रं. ६९५१, प्र. ले. श्लो. (६४७) मंगलं लेखकानां च, (९४६) जलाद रक्षे थलं रक्षे, (९४७) जब लगे मेरू थीर रहे, (९४८) भणें गूणे जे सांभलें, (९४९) भग्न प्रष्टि कटि ग्रीवा, (९५०) जाद्रीसं पुस्तकं द्रवा (९५१) जीहा थ्रू सावर चंद रवी, जैदे. (२६४१२, १५-१९३५-५२). ,, शांतिजिन रास, मु. रामविजय, मा.गु, पद्य, वि. १७८५, आदि: सकल श्रेयवरदायिनी अंतिः आनंद अंग नमाया, खंड-६, गाथा-६९५१. ५४१९४. (+) उत्तराध्ययन सूत्र सह टबार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १८३२, माघ कृष्ण, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २४१, ले. स्थल. पोहकर्णनगर, प्रले. पं. जीवणविजय गणि (गुरुमु. ऋद्धिविजय): गुपि मु. ऋद्धिविजय (गुरुग, प्रमोदविजय): ग. प्रमोदविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीपार्श्वनाथ प्रसादात्, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैवे. (२६४१२, ६-१५X४१-४४) २८१ उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स, अंति: पुव्वरिसी एव भासंति, अध्ययन- ३६. उत्तराध्ययन सूत्र - टवार्थ+कथा संग्रह, मु. पार्श्वचंद्रसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदिः पूर्वसंजोग मातापिता; अंति: एट वचन भाष्यकारनी, उत्तराध्ययनसूत्र- कथा संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: एक आचार्यनई एक चेलो; अंति: पामी मुक्तगति पहुंता, कथा-४. ५४१९५. (+#) रत्नपाल रत्नवती रास, संपूर्ण, वि. १७६१, पौष शुक्ल १, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३४, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल लिखित संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., ( २६११.५, १९५१). रत्नपाल-रत्नावती चौपाई, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: सकल श्रेणि में दुर; अंति: मोहनविजय विलासजी, खंड-४, गाथा - १३७२, (वि. ढाल ६६ ) ५४१९६. (+) श्रीपालनृप रास, संपूर्ण, वि. १७८५, वैशाख शुक्ल, १, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले. स्थल. पत्तननगर, प्रले. पं. मणिविजय गणि (गुरु उपा. उदयविजय गणि); गुपि उपा. उदयविजय गणि (गुरु भड्डा. विजयप्रभसूरीश्वर ); भट्टा. विजयप्रभसूरीश्वर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., ( २६.५X११.५, १६५०). श्रीपाल रास- लघु, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्म, वि. १७४२, आदि: चवीसे प्रणमु जिनराय, अंतिः सुणतां सदा कल्याण, ढाल - २०, गाथा - २७१. ५४१९७. (#) भाषाबंध नयचक्र, संपूर्ण, वि. १८१२, आश्विन शुक्ल, ५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ९, ले. स्थल. गुदोचनगर, प्रले. पं. पासचंद्र, पठ. मु. दीपचंद्र (गुरु पंन्या. दयारूचजी); गुपि. पंन्या. दयारूचजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की फैल गयी है, जैदे., (२५. ५X११.५, १५X४५). नवचक्र-भाषावचनिका का बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: (१) स्यात्कारमुद्रिता, (२) अनंत धर्मात्मक वस्तु, अंति: रसथीज सिद्धि थाई. ५४१९८. (+०) लीलावती रास, संपूर्ण वि. १७८५ वैशाख अधिकमास कृष्ण, २ रविवार श्रेष्ठ, पृ. १३ ले स्थल, पत्तननगर, अन्य. ग. दयाविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२६११.५ १६३६). "" लीलावती सुमतिविलास रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्म, वि. १७६७, आदि परम पुरुष प्रभु पास अंति: पामी सुखसंपद रसालजी, दाल- २१, गाथा-३४८. , ५४१९९. सूक्तमाला, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ८, वे., (२७४१३.५, ९४२४) For Private and Personal Use Only Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૨૮૨ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृतवल्लिवृंद; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-५० अपूर्ण तक लिखा है.) ५४२०१. (+) समयसार नाटक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४१२, ५४३६). समयसार नाटक, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर हरन; अंति: (-), (पू.वि. सर्व विशुद्ध द्वार (१०वाँ अधिकार) अपूर्ण, पाठ "याही भांति वस्तु की व्यवस्था अवधारि बुध" तक है.) समयसार नाटक-पद्यानुवाद का टबार्थ, उपा. रामविजय, पुहि., गद्य, आदि: जिन वचन समुद्रकौ; अंति: (-), (पू.वि. अष्टकर्म नासतै अष्टगुण प्रकाश वर्णन- तक का टबार्थ है.) ५४२०२.(+) नवतत्त्व भेद विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(१)=७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७४१२, १८४४५-५०). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-६०, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ से २३ तक लिखा है.) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ५४२०३. (+) उपदेशप्रसाद स्तंभ २ से ३ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३६, आश्विन अधिकमास कृष्ण, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ११४, ले.स्थल. कालद्रीनगर, प्रले. पं. चारीत्रविजय (गुरु पं. चेनविजयजी); गुपि.पं. चेनविजयजी (गुरु पं. राजविजयजी); पं.राजविजयजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र ५८+५६ हैं. श्रीमहावीर प्रसादात्, पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४१३, ६x४०). उपदेशप्रासाद, आ. लक्ष्मीसूरि, सं., प+ग., वि. १८४३, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. उपदेशप्रासाद-टबार्थ* मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५४२०४. (+) श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १८६२, भाद्रपद शुक्ल, १२, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २६, ले.स्थल. नीबडी, प्रले. मु. उमेदचंद्र ऋषि (गुरु मु. चंद्रभाण ऋषि); गुपि.मु. चंद्रभाण ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२.५, १५४५५). श्रीपाल रास-बृहद्, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४०, आदि: अरिहंत अनंतगुण धरीये; अंति: पातिकवन लुणिज्यौ रे, ढाल-४९,गाथा-८६१. ५४२०५. (+#) ढालमंजरी, अपूर्ण, वि. १८२३, वैशाख कृष्ण, ७, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १४३-१४(१ से १४)=१२९, ले.स्थल. उदयपुरनगर, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका में बीजक दिया हुआ है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (६२०) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२७४१२, १५४४०-४५). ढालमंजरी, मु. सुज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: (-); अंति: मुक्ति रमणी ते वरै, खंड-६, (पू.वि. खंड-१, ढाल- १३, गाथा- ३२ अपूर्ण से है.) ५४२०६. (+) षडावश्यकसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८०२, माघ शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ७८-१(१२)=७७, ले.स्थल. खेरवानगर, प्रले.पं. दीपविजयगणि (गुरु पं. जसवंतविजय गणि); गुपि. पं. जसवंतविजय गणि; पठ. मु. रंगरूचि; मु. कुंअररुचि (गुरु पं. दयारूचि गणि); गुपि.पं. दयारूचि गणि (गुरु मु. अमरचंद), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीशांतिजिन प्रशादात. पत्रांक ५५ नहीं है एवं पत्रांक ५४ दो है किन्तु पाठ क्रमशः है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२,५-१४४३७-३९). आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: मिच्छामि दुक्कडं, (पू.वि. तीसरे महावत का आंशिक पाठ नहीं है.) । षडावश्यकसूत्र-टबार्थ, ग. दीपविजय, मा.गु., गद्य, आदि: बारगुणइं सहित अरिहंत; अंति: मिथ्या फोकट होज्यो. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-वंदारूटीका का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: हवे पंचपरमेष्ठी महाम; अंति: उदयथी पचक्खाण. For Private and Personal Use Only Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ २८३ ५४२०७. (+) स्तवन व सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १७८३-१७८४, श्रेष्ठ, पृ. २३, कुल पे. ८, प्रले. श्राव. खुशाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १५४३५-४६). १.पे. नाम. सम्यक्त्व सडसठबोल सज्झाय, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुकृतवल्लि कादंबिनी; अंति: वाचक जस इम बोलइ जी, ढाल-१२, गाथा-७६. २. पे. नाम. सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, पृ. ४अ-८अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १८वी, आदि: स्वामी सीमंधर विनती; अंति: जसविजय बुध जयकरो, ढाल-११, गाथा-१३०, ग्रं. १८८. ३. पे. नाम. धर्मजिन आत्मज्ञानप्रकाश स्तवन, पृ. ८अ-१२आ, संपूर्ण. धर्मजिन स्तवन-आत्मज्ञानप्रकाश, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१६, आदि: चिदानंद चित चिंतवू; अंति: विनय विनय रस पूर, गाथा-१३८. ४. पे. नाम. ५ कारण छढालिया, पृ. १२आ-१४आ, संपूर्ण. ५ कारण छ ढालिया, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सुत सिद्धारथ वंदीइं; अंति: विनय कहै आणंद ए, ढाल-६, गाथा-६१. ५. पे. नाम.८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, पृ. १४आ-१७आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शिवसुख कारण उपदेशी; अंति: वाचक यशने वयणेजी, ढाल-८, गाथा-७६. ६.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, पृ. १७आ-२३अ, संपूर्ण, वि. १७८३, कार्तिक कृष्ण, १३, गुरुवार. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदि: प्रणमी श्रीगुरुना पय; अंति: आणा सिर वहेस्येजी, ढाल-६, गाथा-१४८, ग्रं. २२८. ७. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, पृ. २३अ, संपूर्ण. मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: समरेवि समरथ सारदाय; अंति: (-), गाथा-२१, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- २ अपूर्ण तक लिखा है.) ८. पे. नाम. संसार अवतारना विस्तारनी सज्झाय, पृ. २३अ-२३आ, संपूर्ण, वि. १७८४, माघ कृष्ण, ३, गुरुवार. विचार सज्झाय, मु. वीर मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: एह संसार अवतार विस्त; अंति: वीरमुनि० काम सारो, गाथा-१३. ५४२०८. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १८१७, माघ शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. १३७, ले.स्थल. मढाड, प्रले. पं. लक्ष्मीविजय (गुरु पं. लालविजय); गुपि.पं. लालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक ५ पर भगवान पार्श्वनाथ का रंगीन चित्र है., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२,७-१५४४०-४७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (१)नमो अरिहंताणं नमो, (२)तेणं कालेणं तेणं; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६. कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हो अरिहंतने; अंति: कल्पसूत्र एहदूं कहे. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *मा.गु., गद्य, आदि: सकलार्थसिद्धिजननी; अंति: मिच्छादुक्कड देवओ. ५४२०९. (+) स्तोत्र, स्तुति, चैत्यवंदन संग्रह व विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. १७, अन्य. पं. नानवर्द्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, १४४३२). १.पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: आदिनाथ जगनाथ विमला; अंति: शासनंते भवेभवे, श्लोक-५. २.पे. नाम. शांतिजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. कुशलसागर, सं., पद्य, आदि: सकलदेवनरेश्वरवंदितं; अंति: संपदः प्राप्नुवंति, श्लोक-१३. ३. पे. नाम. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: करै चित्तमानंद कार, श्लोक-१०. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. ____आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीजं ददातु, श्लोक-११. ५. पे. नाम. सकलार्हत् स्तोत्र, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: श्रीवीरभद्रंदीस, श्लोक-३०. ६. पे. नाम. साधारणजिन चैत्यवंदन संग्रह, पृ. ४आ-७अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीशैत्रुजय मुख्य; अंति: तक्षशिलापुरवरे जयति, श्लोक-४६. ७. पे. नाम. रत्नाकरपच्चीसी, पृ. ७अ-८अ, संपूर्ण. आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्कर प्रार्थये. श्लोक-२५. ८.पे. नाम. नवपद लघु पूजा, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: विजयचक्कं सिद्धनमामि, ढाल-९. ९. पे. नाम. सिद्धचक्र जयति विधि, पृ. ८आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र वासक्षेपपूजन विधि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं परम परमात्म; अंति: विजयचक्क सिद्धनमामि, श्लोक-१. १०. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. ८आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशेजूंजो सिद्ध; अंति: जिनवर करुं प्रणाम, गाथा-३. ११. पे. नाम. शत्रुजय चैत्यवंदन, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. पंचतीर्थ चैत्यवंदन, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुखदायक आदिजिन; अंति: साहिबा पांचे आतमराम, गाथा-३. १२. पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. ९अ, संपूर्ण. उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: श्रीमंदिर वीतराग; अंति: विनय धरे शुभ ध्यान, गाथा-३. १३. पे. नाम. पंचतीर्थी चैत्यवंदन, पृ. ९अ, संपूर्ण. पंचतीर्थजिन चैत्यवंदन, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: शेर्जेजेश्री आददेव; अंति: ऋषभ० पुगे वंछित आश, गाथा-५. १४. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. ९अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: नगरी तो चंपापुरी; अंति: लहे ते लहे सर्वसंजोग, गाथा-३. १५. पे. नाम. आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. क. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अरिहंत नमु; अंति: आदिदेव महिमा घणो, गाथा-१. १६. पे. नाम. आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. ९आ, संपूर्ण, पठ. मु. कल्याण, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कल्पवृक्षनी छांहडी; अंति: उदयरत्न परिणाम, गाथा-५. १७. पे. नाम. चैत्यवंदनचौवीसी, पृ. ९आ-१०आ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम नमुं श्रीआदि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., चंद्रप्रभस्वामी तक लिखा है.) ५४२१०. चैत्री पूनम देववंदन विधि, संपूर्ण, वि. १८८८, चैत्र कृष्ण, ८, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२६४१३, ११४३६). चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम प्रतिमा च्यार; अंति: प्राणि थाई छई. ५४२११. (+) पाखी सूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५०, आषाढ़ कृष्ण, ७, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २२, ले.स्थल. पोहकर्णनगर, प्रले. पं. चुतुर्विजय गणि; पठ. मु. रामविजय (गुरु पं.चुतुर्विजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं.७२५, प्र.ले.श्लो. (३) भग्नपृष्टि कटिग्रीवा, (८२४) मंगलं लेखकानांच, जैदे., (२६.५४१३.५, ७X३८). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे अतित्थे; अंति: देवसीयंपडिकमामि. पाक्षिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थंकर सिद्ध तीर्थ; अंति: आलावो चोमासीई लेवो. For Private and Personal Use Only Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५४२१२. (#) आर्य वसुधारा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२.५, १२४३०). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैनस्य; अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति. ५४२१३. (+) जंबुस्वामी चौपाई, संपूर्ण, वि. १८०५, माघ शुक्ल, ७, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ३१, ले.स्थल. शांतलपुर, प्रले. मु. केशरविजय (गुरु पं. लालविजय गणि); गुपि.पं. लालविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन वर्ष १८५ लिखा है. श्रीशांतिनाथ प्रसादात्, संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १३४४१). जंबूस्वामी रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: प्रणमी पासजिणंदना; अंति: नितु कोण कल्याण छे, ढाल-३५, गाथा-६०८, ग्रं. १०३५. ५४२१४. (+) संग्रहणी सूत्र, संपूर्ण, वि. १९०३, फाल्गुन कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले.स्थल. शंकरानयर, प्रले. मु. रूपचंद (गुरु मु. रत्नविजय); गुपि.मु. रत्नविजय (गुरु पं. फतेविजयजी); पं. फतेविजयजी (गुरु पं. भांणविजयजी); पं. भांणविजयजी (गुरु पं. मेघविजय); पं. मेघविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीशांतिनाथ प्रसादात्, टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४१२, १३४३४). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३४९. ५४२१५. (+#) अढार पाप स्थानक सझाय, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १४४४९). १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पापस्थानक पहिलुंकहि; अंति: (-), (पू.वि. अष्टादश स्वाध्याय, गाथा- ५ अपूर्ण तक है.) ५४२१७. (+#) नवपद पूजा, स्तवन संग्रह व जिनाभिषेक कलश, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२.५, ११४३५-६३). १.पे. नाम. नवपद पूजा, पृ. १आ-९अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाण; अंति: कोई नये न अधूरी रे. २. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. पं. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्रपद वंदी; अंति: कविइं पाय निरास, गाथा-९. ३. पे. नाम. जिनाभिषेक कलश, पृ. ९आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्री परमात्म; अंति: जाणवो श्रेयोस्तु, गाथा-१. ४. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ९आ, संपूर्ण. साधारण जिन स्तवन, पंन्या. दयानंद, मा.गु., पद्य, आदि: गाइइं गाइई गाइई; अंति: दयानंद पद पाइइं रे, गाथा-८. ५४२१८. (+#) आर्द्रकुमार रास, अपूर्ण, वि. १७५५, ज्येष्ठ शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १२-१(१०)=११, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. मु. मानरत्न; अन्य. मु. दानरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३६). आर्द्रकुमार रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२७, आदि: सकल सुरासुर जेहना; अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१६, गाथा-३ अपूर्ण से ढाल-१७, गाथा-१० अपूर्ण नहीं है एवं ढाल- १८, गाथा-९ तक लिख कर इतिश्री कर दिया गया है.) ५४२२०. (+) शांतिनाथ रास, संपूर्ण, वि. १८२३, कार्तिक शुक्ल, १०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ६०, ले.स्थल. कालंद्री नगर, प्रले. मु. देवेंद्ररूचि (गुरु पं. दयारूचि गणि); गुपि.पं. दयारूचि गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीमहावीरस्वामी प्रसादात्, संशोधित. कुल ग्रं. २२०५, जैदे., (२६४१२, १५४३७).. शांतिजिन रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सकलसुखसंपतिकरण गउडि; अंति: सरस सुरंगइरे, ___ ढाल-६६, गाथा-१४२८, ग्रं. २२०५. ५४२२१. (+) जंबु कुमार रास, संपूर्ण, वि. १७९३, माघ कृष्ण, ४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १२४३६). जंबूस्वामीरास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: प्रणमी पासजिणंदना; अंति: नित कोडि कल्याण, ढाल-३५, गाथा-६०८, ग्रं. १०३५. For Private and Personal Use Only Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५४२२२. (+) जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५०, माघ शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. पीलूचाग्राम, अन्य. पं. प्रतापविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीजीरावलपार्श्व प्रसादात, पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१२, ५४३२). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुदाउ सूयसमुद्दाओ, ___ गाथा-५३, संपूर्ण. जीवविचारप्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भुवन कहेंतात्रण; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ___ गाथा- २५ का अपूर्ण टबार्थ "सिद्धना पनर भेद" तक है.) ५४२२३. शेजय उद्धार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्रले. मु. नरेद्ररुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४३६). श@जयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: नयसुंदर० जय करं, ढाल-१०, गाथा-११६, ग्रं. १७०. ५४२२४. (+) स्तवन व सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८५५, ज्येष्ठ शुक्ल, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. १३, ले.स्थल. पाटणनगर, प्रले. मु. नान्नचंद (गुरु ग. फतेविजय); गुपि.ग. फतेविजय; पठ. मु. प्रतापविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १२४३५). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-पल्लविया, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परम पुरुष परमेस्वरु; अंति: अविचल पद निरधार, गाथा-७. २.पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरमंडण, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: तत थेई तत थेई राज; अंति: कांति०तस घर नित नौबत, गाथा-९. ३. पे. नाम. अजितनाथजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका में ऋषभदेवजिन स्तवन लिखा है. अजितजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: विजयानंदन जिनजी मूझ; अंति: रे अजीत जिणंदसु रे, गाथा-१०. ४. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: साहिब आंगी तुमारी; अंति: प्रभुस्यु झसगीस हो, गाथा-९. ५. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: ते दिननो विसवास छे; अंति: रूपचंद रस माणे, गाथा-८. ६. पे. नाम. प्रहेलिका हरियाली, पृ. ३आ, संपूर्ण.. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: एक नारी बहु पुरुष; अंति: कहे जे सजननी बलिहारी, गाथा-६. ७. पे. नाम. भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राजतणोरे अतिलोभियो; अंति: वंदे तम पाया रे, गाथा-७. ८. पे. नाम. श्रेयांसजिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मनडु ते सहियां मोरु; अंति: हे कांतिविजय सुख थाय, गाथा-५. ९.पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. मु. कांतिविजयजी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीरे सिद्धाचल भेट; अंति: श्रीसिद्धाचल गायो, गाथा-५. १०. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. __ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, पं. फतेविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर साहेबा; अंति: फतेविजय० कर जोडी पाय, गाथा-९. ११. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पं. फत्तेविजय गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आज सफल दिन माहरो; अंति: हे हुओ जयजयकार के, गाथा-७. १२. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. पं. फत्तेविजय गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मुरती ताहरी अनोपम; अंति: फत्ते० गुण गाया रे, गाथा-५. १३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ २८७ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अंतरजामी सुणि अलवेसर; अंति: मुझने भवसायरथी तारो, गाथा-५. ५४२२५. शेव॒जय उद्धार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. पालपूर, प्रले. पं. कपूरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पार्श्वनाथ प्रसादात्, जैदे., (२५.५४१२, १४४३१). शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: दर्शन जय करो, ___ ढाल-१२, गाथा-१००, ग्रं. १७०. ५४२२६. (+#) वीसस्थानिकपद स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९६, आश्विन शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, ले.स्थल. पालणपुर, प्रले. मु. दयाविजय (गुरु ग. ऋषभविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १४४३५). १. पे. नाम. वीरस्थानक पद वर्णन, पृ. १आ-८अ, संपूर्ण. २० स्थानकतप स्तवन, मु. दयाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुखसंपतिदायक सदा चोव; अंति: पसाइं कहे दया हितकार, ढाल-२०, गाथा-१२९. २. पे. नाम. वीसस्थानक स्तवन, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. २० स्थानक तप स्तवन, मु. दयाविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८९५, आदि: अरिहंत सिद्ध पवयण; अंति: दया० नमोभले भावसू. गाथा-९. ५४२२७. (+) जंबूअध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१२, ज्येष्ठ शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. ४१, ले.स्थल. फलोधी नगर, प्रले. मु. देवचंद ऋषि; अन्य.मु. रामचंद; मु. गुलाबचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. १९५००, दे., (२५.५४१२, १७४४५). जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: से आराहगा भणिया, उद्देशक-२१, ग्रं. ७५८. जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते काल चउथो आरो तेवा; अंति: ते आराधक कह्या, ग्रं. १२०००. ५४२२८. (+#) श्रीपालरास चतुर्थ खंड सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२०, कार्तिक कृष्ण, ६, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ५२, लिख. श्राव. दुलभदास शाह; अन्य. सा. नान्ही, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ६४३३). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: हस्य ज्ञानविशालाजी, (प्रतिपूर्ण, पू.वि. मात्र चतुर्थ खंड है.) श्रीपाल रास-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: ज्ञान विसाला जी, प्रतिपूर्ण. ५४२२९. मलय सुंदरी चौपाई, संपूर्ण, वि. १८७४, चैत्र शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ९०, ले.स्थल. मालण, प्रले. पं. फतेविजयजी (गुरु पं. भाणविजयजी); गुपि.पं. भांणविजयजी (गुरु पं. मेघविजय); पठ. मु. रत्नविजय (गुरु पं. फतेविजयजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीचंद्रप्रभु प्रसादात्, जैदे., (२६४१२, १४-१६४३८-५०). मलयसुंदरी रास, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७५, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदा; अंति: चोथा खंडनी ढाल रे. खंड-४, गाथा-१०५२. ५४२३०. (+#) उपदेशमाला सह टबार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १८१३, माघ कृष्ण, ५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १५९, ले.स्थल. खीमेल नगर, प्रले.मु.कुंअररुचि (गुरु पं. दयारूचि गणि); गुपि.पं. दयारूचि गणि (गुरु मु. अमरचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, प्र.ले.श्लो. (६११) यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा, जैदे., (२५.५४११.५, १८-२२४३२-४५). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५४४. उपदेशमाला-बालावबोध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७१३, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: पाठक लेइ इति तत्वं. For Private and Personal Use Only Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उपदेशमाला-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: नमिऊण कहितां नमस्कार; अंति: थकी नीकली एहवी वाणी. ५४२३१. (#) स्तवन चौवीसी, अपूर्ण, वि. १८९२, ज्येष्ठ कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. ८-३(१ से ३)=५, प्रले. पं. राजेंद्ररुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, १६४४१). स्तवनचौवीसी, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: मानविजय नितु ध्यावे, स्तवन-२४, (पू.वि. चतुर्थ तीर्थंकर अभिनंदनजिन स्तवन के गाथा- १ अपूर्ण से है.) ५४२३२. (+) पारसनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७९, फाल्गुन कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. मढाडनगर, प्रले. पं.सदारुचि, पठ. मु. क्षमारूचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीमहावीरजी प्रसादात, संशोधित., प्र.ले.श्लो. (९५२) जिहां लग मेरू अडग है, जैदे., (२५.५४११.५, १५४३९). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. नेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: प्रणमुं नित्य; अंति: इम नेमविजय जयकार, ढाल-१५, गाथा-१३७. ५४२३३. (+) सिंदूर प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८६४, वैशाख कृष्ण, ४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. चंद्रावती, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १३४३५). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सूक्तिमुक्तावलीं, द्वार-२२, श्लोक-१००. ५४२३४. (#) कानड कठीयार चौपाई, संपूर्ण, वि. १८६४, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३२). कान्हडकठियारा रास-शीयलविशे, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: पारसनाथ प्रणमुंसदा; अंति: ___ मानसागर०दिन वधते रंग, ढाल-९. ५४२३५. नेसाल गरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. मांडवाडा, प्रले.पं. गुलाबविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१२.५, १२४२९). भले का अर्थ-महावीरजिन पाठशालापंडित संवादगर्भित, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्यं परमं ज्योति; अंति: आपणे ग्रह गण आव्या. ५४२३७. (#) विक्रम चबोली लीलावती कतोहल वार्ता, संपूर्ण, वि. १८४२, फाल्गुन शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. २०, ले.स्थल. पालरीनगर, प्रले. पं. दीपजी; पठ. पं. शांभूरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२,१३४३५). विक्रमचौबोली रास-पुण्यफलकथने, वा. अभयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: वीणा पुस्तक धारणी; अंति: कीयो ते जयजयकार ए, ढाल-१७, ग्रं. ३२५. ५४२३८. स्तवन चौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२४.५४११.५, १३४३४). स्तवनचौवीसी-१४ बोल, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: ऋषभदेव नितु वंदिये; अंति: (-), स्तवन-२४, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., १७ वें तीर्थंकर कुंथुनाथ स्तवन तक ही लिखा है.) ५४२३९. (+#) वीतराग स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १०४२५). वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: यः परात्मा परं; अंति: (-), (पू.वि. प्रकाश-१७ तक है.) ५४२४०. (+#) चंदन मलयगिरी चौपाई, संपूर्ण, वि. १८८२, ज्येष्ठ शुक्ल, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले.स्थल. चौदड, प्रले. मु. नथु (गुरु पंन्या. देवरूचि); पंन्या. देवरूचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. चंद्रप्रभु प्रसादात्, संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४४११.५, १३४२५). चंदनमलयगिरी चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवर चरणे नमी गाईस; अंति: जिम पांमे भव पार, ढाल-८, गाथा-२७३. ५४२४१. विवाह पडल का पद्यानुवाद, संपूर्ण, वि. १९३१, आषाढ़ कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ७, दे., (२५.५४११.५, १०४३०). For Private and Personal Use Only Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ २८९ विवाहपडल-पद्यानुवाद, वा. अभयकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: वाणी पद वंदी करी; अंति: शासत्र जोय कहीयो सार, गाथा-६४. ५४२४२. (+) सिंदूरप्रकर सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८९२, वैशाख शुक्ल, २, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ७९, ले.स्थल. आमलनेरनगर, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१२.५, १६४३९). सिंदरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: मानेति शमेति नाशम्, द्वार-२२, श्लोक-९८. सिंदूरप्रकर-बालावबोध+कथा, पा. राजशील, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: शारदाचरणयुग्ममतीतपाप; अंति: मये ___मूखेकृतकृपे. ५४२४३. (#) राजसिंह रत्नावती रास, पुरुष षोडश श्रृंगार व स्त्री षोडश श्रृंगार, संपूर्ण, वि. १८३४, फाल्गुन कृष्ण, १०, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २२, कुल पे. ३, ले.स्थल. रोहितासनगर, प्रले. मु. नरेंद्ररुचि (गुरु ग. कुंअररुचि); गुपि.ग. कुंअररुचि (गुरु ग. दयारुचि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीमाहावीर प्रसादात्, श्रीशांतिनाथ प्रसादात्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२,१६x४१). १. पे. नाम. राजसिंहरत्नवती कथा, पृ. १अ-२२आ, संपूर्ण. मु. गौडीदास, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि: सारद शुभमतिदायिनी; अंति: भणो सकल संघ मंगल करो, ढाल-२४, गाथा-६०५, ग्रं. ८८५... २. पे. नाम. पुरुष श्रृंगार, पृ. २२आ, संपूर्ण. पुरुष के १६ श्रृंगार, मा.गु., गद्य, आदि: क्ष्योरं मंजनं चारु; अंति: धननी श्रृंगार षोडसा, अंक-१६. ३. पे. नाम. स्त्री षोडश श्रृंगार नाम श्लोक, पृ. २२आ, संपूर्ण. १६ शृंगार नाम, सं., पद्य, आदि: आदौ मज्जनचारुचीरतिलक; अंति: श्रृंगारक षोडसः, श्लोक-१. ५४२४४. (#) स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. १३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१२, १२-१५४४१). १. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. २.पे. नाम. दीपावलीपर्व स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रत्नविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सासणनायक श्रीमहावीर; अंति: द्यो सरसती वर वाणी, गाथा-४. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. पुण्यरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: महावीर मोटो जगनाथ; अंति: पुन्यरुचि० दोलत करे, गाथा-४. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति-वरकाणा, पृ. २अ, संपूर्ण. पंन्या. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वरकाणइं वर मंडण पास; अंति: कमलविजय० सुखसंपदा, गाथा-४. ५. पे. नाम. पुरिसादाण्णी पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण..। पार्श्वजिन स्तुति-भीनमालमंडन पुरुषादाणी, उपा. कुशलसागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु पास जिणंद पुरि; अंति: ए तुठी उत्तम कामगवी, गाथा-४. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति-पौषदशमी, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पौषदशमीपर्व, आ. उदयसमुद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जय पास देवा करूं; अंति: संघ आस्या पूरणी, गाथा-४. ७. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण... ग. उत्तमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसिद्धचक्र सेवो; अंति: उत्तम सीस सवाई, गाथा-४. ८. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८उ, आदि: पहिले पद जपीइ अरिहंत; अंति: कांतिविजये गुण गाया, गाथा-४. ९. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. बुधविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर अतिअलवेसर; अंति: बुधविजय हितकारी जी, गाथा-४. १०. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. ४अ, संपूर्ण... मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतक पाडल जाई; अंति: जो तुसे देवी अंबाई, गाथा-४. ११. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति-शंखेश्वर, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. महिमारुचि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेसर पास जिणंद; अंति: द्यो दोलति मुज माई, गाथा-४. १२. पे. नाम. आदिजिन स्तुति-मरुदेवामाता केवलज्ञान, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गजकुंभे बेसी आवे; अंति: धनो मोहन कहइ धरी नेह, गाथा-४. १३. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ५अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-सुधर्मदेवलोकभावगर्भित, ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुधर्म देवलोक पहिलो; अंति: कांतिविजय गुण गाय, गाथा-४. ५४२४५. (+) चंद्रलेखा रास, संपूर्ण, वि. १८८८, भाद्रपद कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. २४, ले.स्थल. कोपरगांम, प्रले. पं. राजेंद्ररूचि (गुरु पं. देवरूचि गणि); गुपि.पं. देवरूचि गणि (गुरु पं. नरेंद्ररूचि गणि); पं. नरेंद्ररूचि गणि (गुरु पं. कुंयररूची गणि); पं. कुंयररूची गणि (गुरु पं. दयारूची गणि); पं. दयारूची गणि (गुरु पं. रूपरुचि गणि); राज्यकाल फीरंगीराजा, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. इष्टदेवजी माणभद्रजी प्रसादात्, श्रीगोडीजी प्रसादात्, गांगाजी श्रीगोदावरी तटे परगने कुंभारी., संशोधित., प्र.ले.श्लो. (९५३) पोथी प्यारी प्राणथी, जैदे., (२४४१२, १५४३८). चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सरसति भगवति नमी करी; अंति: भुवनपति हुवें तेंह, ढाल-२९, गाथा-६२४. ५४२४६. (#) श्रीपालराजा रास, संपूर्ण, वि. १८८९, ज्येष्ठ कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ६४, ले.स्थल. फूगणी, प्रले. मु. प्रमाणरूचि (गुरु पं. देवरूचि गणि); गुपि.पं. देवरूचि गणि (गुरु पं. नरेंद्ररूचि गणि); पं. नरेंद्ररूचि गणि (गुरु पं. कुंयररूची गणि); पं. कुंयररूची गणि (गुरु पं. दयारूची गणि); पं. दयारूची गणि (गुरु पं. रूपरुचि गणि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१२, ५-१४४३५-४०). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कवियण तणी; अंति: हस्यई ज्ञानविशालाजी, खंड-४, गाथा-१८२५, (वि. यत्र-तत्र टबार्थ है.) ५४२४७. (+) होलिकाप्रबंध सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९४, चैत्र शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. पाटणनगर, प्रले. पं. दयाबाहादर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२३.५४११.५,७४३२). होलिकापर्व प्रबंध, ग. पुण्यराज, सं., पद्य, वि. १४८५, आदि: प्रणम्य सम्यक् परमार; अंति: श्चिरं वाच्यताम्, श्लोक-३४. होलिकापर्व प्रबंध-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणाम करीने भले; अंति: चीरकाल लगे वांचवी. ५४२४८. (#) सुदरशन सेठ कवित, परीसह नाम व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८७०, श्रेष्ठ, पृ. १७, कुल पे. ३, ले.स्थल. नीतोडाग्राम, प्रले. पं. सदारुचि; पठ. मु. प्रमाणरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (९५४) जिहां लग मेरू अडग है, जैदे., (२२.५४११.५, १३४३४). १. पे. नाम. सुदर्शनसेठ रास, पृ. १आ-१७अ, संपूर्ण. सुदर्शनशेठ रास, मु. दीपचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: वांदु श्रीजिन वीर; अंति: कहे इम दीपो कवित्त, गाथा-१२१. २. पे. नाम. बावीस परीसहो, पृ. १७आ, संपूर्ण. २२ परिषह नाम-अनुवाद, मा.गु., गद्य, आदि: भूख १ तृषा २ शीत ३; अंति: २१ सम्यक्दर्शन २२. ३. पे. नाम. मंगल श्लोक, पृ. १७आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथ जिनेश्वरा; अंति: रुषा कुर्वंतनो मंगलं, श्लोक-१. ५४२४९. (+) ऋषभ दत्त चौपाई व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, चैत्र कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. २३, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४११.५, १३४३५). १.पे. नाम. ऋषभदत्त चोपाई, पृ. १आ-२३अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ www.kobatirth.org २९१ ऋषभदत्त चौपाई, मु. अभयकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७३७, आदि: पास जिणेसर प्रणमतां; अंति: अभयकु० वाधइ मंगलमाल, ढाल - २७, गाथा- ४८९. २. पे. नाम. राधाकृष्ण सवैया संग्रह, पृ. २३आ, संपूर्ण. सवैया संग्रह " पुहिं, पद्य, आदि: (-); अंति: (-). 1 ३. पे. नाम औपदेशिक कवित्त, पृ. २३आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कवित्त संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५४२५०. (#) भाष्य त्रय, संपूर्ण, वि. १८०८, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले. स्थल. वापीनगर, पठ. श्राव. मणक्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२३.५४११.५ १४x२७). " भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. ९४वी, आदि: वंदित्तु वदणिज्जे; अंति: पउंजियव्वं तु कारणए, भाष्य- ३, गाथा-१४५. ५४२५३, (+) स्तुतिचौवीसी, संपूर्ण वि. १८३८, चैत्र शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ११ ले स्थल सिरोहीनगर, प्रले. मु. देवेंद्ररुचि (गुरु ग. दयारुचि, तपागच्छ); गुपि. ग. दयारुचि (तपागच्छ); पठ. मु. हरचंद (गुरु मु. देवेंद्ररुचि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीजीराउलाजी प्रसादात्., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२२.५X१२, ११x२७-२९). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदिः भव्यांभोजविबोधनैक, अंतिः हारताराबलक्षेमदा, स्तुति- २४, श्लोक- ९६. ५४२५५. (#) राजसिंघ रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५१, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र. ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (१२८) पोथी प्यारी प्रेमकी, (३१६) ध्रुव मेरु फूंनी चंद रवी, (६०८) जिहां लगे मेरू अडग हैं, (१००५) देवीतणे प्रसाद कवि, (१००६) कवि कपूर रचना करी (१००७) मंगलं पाठकानां च (१००८) जलादि रक्षेत् स्थलादि रक्षेत्, जैदे. (२२४१२, . १६-१९३०-३३). राजसिंघ रास, ग. कपूरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८२०, आदि ऋषी पडिलाभे भावधी, अंति: लहीड़ लगी बालाजी, ढाल - ५३, गाथा - १३८५. ५४२५७. (+) ज्ञानार्णव प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४६, प्र. वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. दे. (२१.५x१३.५, ५-८x२२-४३). ज्ञानार्णव, आ. शुभचंद्र, सं., पद्य, आदि: ज्ञानलक्ष्मीघनाश्लेष, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रकरण ६ तक लिखा है.) ज्ञानार्णव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१) ज्ञान सुरूप अनुप जो, (२) किसो छै परमात्मा; अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ५४२५९. अजितशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, दे. (२३४११.५, २०७४१६-३७). अजितशांति स्तवन, संबद्ध, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., पद्य, वि. १५वी, आदि मंगल कमलाकंद ए सुख, अंतिः मेरुनंदण उवज्झाय ए, गाथा - ३३. ५४२६०. भाष्यत्रय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९११, कार्तिक शुक्ल, ११, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३१, प्रले. मु. महानंद (गुरु मु. लालचंद, विजयगच्छ); गुपि. मु. लालचंद (गुरु मु. गणेश, विजयगच्छ); पठ. भगवानजी करमचंदजी (बीज गच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३×१३.५, ४४२७-३२). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे, अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३, गाथा - १५२. भाष्यत्रय - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वंदितु कहियै वांदव, अंतिः सुख० पूरु थयुं, ५४२६१. (+#) नवपद पूजा आरती, संपूर्ण, वि. १८८८, आषाढ़ कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. ९, ले. स्थल. ध्रांणकपुर, प्रले. मु. रविंद्रसागर (गुरु पं. जीतसागर); गुपि. पं. जीतसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैसे. (२३१२, १४४३१-३५). For Private and Personal Use Only Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अरिहंतदेव अपार गुण; अंति: (१)जस०कोई नहीं अधूरी रे, (२)नरनारी अमरपद पावै, पूजा-९. ५४२६२. (#) धर्मकल्पद्रुम सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३०८, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४१३.५, ७४३२-३५). धर्मकल्पद्रम, पंडित. उदयधर्म, सं., पद्य, आदिः श्रियं दिशतु वो; अंति: वैराग्यकारिणी, पल्लव-८, संपूर्ण. धर्मकल्पद्रुम टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीनाभिराजानो पुत्र; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-७०० तक टबार्थ लिखा है.) ५४२६४. २८ लब्धी रास सह लब्धीप्रकाश चौपाई व टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९७२, भाद्रपद कृष्ण, ३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २६, ले.स्थल. जोधपुर, दे., (२४.५४१२, १९-२२४६२). लब्धिप्रकाश, क. नंदलाल, प्रा., पद्य, वि. १९०३, आदि: नमिऊण महावीरं वंदामि; अंति: स मिच्छामि दुक्कडम्, गाथा-३५. लब्धिप्रकाश-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने श्रीमह; अंति: पाप मिथ्या करुं छु. लब्धिप्रकाश-स्वोपज्ञ चौपाई, क. नंदलाल, मा.गु., पद्य, वि. १९०३, आदि: रामचंद्र बनवास में; अंति: की कृपा थायच. ५४२६५. (#) सदेवछ दोहा, पद संग्रह व सीयाल विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. ४, प्रले. पं. सौभाग्यविजय (गुरु मु. न्यानविजय); गुपि. मु. न्यानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १६-१९४४५-४८). १. पे. नाम. सदेवछजीरा दोहा, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण, ले.स्थल. मणोदनगर. सदेववत्स सावलिंगा दोहा, क. संघकविसर, मा.गु., पद्य, वि. १७९७, आदि: सातलख्य संध राख वा; अंति: करी संघ कवीसर सचमान, गाथा-२१९. २. पे. नाम. कुलच्छन सुलच्छन कवित्त, पृ. ७अ, संपूर्ण. कुलच्छन सुलच्छन कवित, मु. केसवदास, पुहिं., पद्य, आदि: सोवे नगन्न वजावत अंग; अंति: केसव० एते सुलच्छन्न, गाथा-२. ३. पे. नाम. भूतलमान विवरण कवित, पृ. ७अ, संपूर्ण. मु. हीर, मा.गु., पद्य, आदि: भूतल छन्नुकोडि नगर; अंति: हीर० अग्यारे मानवी, गाथा-१. ४. पे. नाम. सीयाल विचार यंत्र, पृ. ७आ, संपूर्ण. सीयालशुकना विचार यंत्र, मा.गु., गद्य, आदि: ईशानकूणि उत्पात अग्न; अंति: रोग भय लाभ राजमान. ५४२६६. (#) वंकचूल रास, संपूर्ण, वि. १७४६, वैशाख अधिकमास कृष्ण, १०, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. रायपुर, प्रले. ग. जयचंद्रगणि (गुरु ग. भाग्यचंद्र); गुपि.ग. भाग्यचंद्र (गुरु पं. सुबुद्धिचंद्रगणि); पं. सुबुद्धिचंद्रगणि (गुरु उपा. सिद्धिचंद्रगणि); उपा. सिद्धिचंद्रगणि (गुरु उपा. भानुचंद्रगणि); उपा. भानुचंद्रगणि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. लिखावट के आधार से प्रतीत होता है कि वि.सं.१७४६ में लिखित प्रत की प्रतिलिपि है. वस्तुतः प्रत का लेखन काल २०वी होना चाहिये., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १२४३७). वंकचूल रास, मा.गु., पद्य, आदि: आदि जिनवर आदि जिनवर; अंति: ते पामि सही भवनो पार, गाथा-९१. ५४२६७. (+#) बार भावना, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्रले. पं. जयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पत्रांक-४ से ९., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १५४३१). १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: पास जिणेसर पाय नमी; अंति: रची जेसलमेर मझार, ढाल-१३, गाथा-१२८, ग्रं. २००. ५४२६८. नारक दःखवर्णन लावणी व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११.५, २४४६-५०). For Private and Personal Use Only Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ २९३ १.पे. नाम. नारक दःखवर्णन लावणी सह नारकदृष्टांत दोहा, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण, पे.वि. नारकीय प्राणियों का रेखाचित्र चित्रित है. नारकीदुखवर्णन लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: दुख दुष्ट भुक्त्या; अंति: सरणे जिनदास आयो, गाथा-१०, संपूर्ण. नारकीदुखवर्णन दुहा, संबद्ध, पुहिं., पद्य, आदि: पांच आश्रव मत करो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., दोहा-५८ तक लिखा है.) २.पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. ५आ, संपूर्ण. मंत्र संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५४२६९. (#) विद्वचिंतामणि व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२५४११.५, ८x२६). १.पे. नाम. सारस्वत व्याकरण का पद्यानुवाद विद्वचिंतामणि, पृ. १अ-९आ, संपूर्ण. सारस्वत व्याकरण-पद्यानुवाद विद्वचिंतामणि, उपा. विनयसागर गणि, सं., गद्य, आदि: श्रीमद्वागीश्वरीवक्त; अंति: विनेयसागर०बत सत्वरम्, श्लोक-१२६. २. पे. नाम. प्रदेशानुसार हास्यादि रसवर्णन, पृ. ९आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, सं., पद्य, आदि: लाटी हास्यरसै प्रयोग; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-३ अपूर्ण तक लिखा है.) ५४२७०. (#) ऋषिभाषितभावना कुलक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. पालिताणा, पठ. मु. कुशलविजय; अन्य. पं. दयाविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ४४३२). भावना कुलक, प्रा., पद्य, आदि: निसाविरामे परिभावयाम; अंति: निवाणसुहं लहंति, गाथा-२२, (वि. १८७३, वैशाख कृष्ण, ९, गुरुवार) भावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: निसा क० रात्रि तेहनइ; अंति: मुक्तिसुख लहि पामि, (वि. १८७३, वैशाख कृष्ण, ११, शुक्रवार) ५४२७१. (#) सुपन पाठक विचार व गंगा तेली दृष्टांत, संपूर्ण, वि. १८६३, श्रावण अधिकमास शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. वासोनगर, प्रले. पं. देवरूचि गणि (गुरु पं. नरेंद्ररूचि गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १२४२६). सुपन पाठक विचार व गंगा तेली दृष्टांत, मा.गु., गद्य, आदि: हवे सुपन पाठक भेला; अंति: सर्व परम सुखी थया. ५४२७३. रघुवंश रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४, जैदे., (२६४१२, १५४४२). ढालमंजरी, मु. सुज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: मंगल सहजानंद सुख; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१९ की गाथा-३४ का दोहा-१ अपूर्ण तक लिखा है.) ५४२७४. (+#) भाष्यत्रय, जीवविचार व बृहन्नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. ३, पठ. मु. सत्यविजय; अन्य पं. मेघविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १४४४८). १.पे. नाम. चैत्यवंदनगुरुवंदनप्रत्याख्यान भाष्यत्रय, पृ. १आ-६आ, संपूर्ण. भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३, गाथा-१५२. २. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ६आ-८आ, संपूर्ण. __आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. ३. पे. नाम. बृहन्नवतत्व सूत्र, पृ. ८आ-१०अ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४५. For Private and Personal Use Only Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५४२७५. (#) स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२,१४४३८). १.पे. नाम. शत्रुजयतीर्थमाला स्तवन, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण. मु. अमृतरंग, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: विमलाचल वाला वारु रे; अंति: नित नमो गिरिराया रे, ढाल-१०. २. पे. नाम. नेमिजिन टपो, पृ. ७आ, संपूर्ण. नेमिजिन पद, पुहि., पद्य, आदि: तुंबालब्रह्मचारी भल; अंति: कुं सुखकारी हितकारी, गाथा-३. ३. पे. नाम. अंतरीक पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-अंतरीक्ष, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: समोवसरण सोभे त्रीगडे; अंति: प्रभु सिर छत्र धराहि, गाथा-४. ४. पे. नाम. आदिजिन पद, प्र. ७आ, संपूर्ण. मु. विनय, पुहिं., पद्य, आदि: सयन सलुने लाल चरण न; अंति: तेरो अमी को अंजन है, गाथा-४. ५४२७६. (+) संबोधसत्तरी व ज्ञानपंचमी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, फाल्गुन कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, ले.स्थल. मंडार, प्रले. पं. विवेकवर्धन (गुरु पं. हंसवर्धन); गुपि.पं. हंसवर्धन; पठ. मु. जयचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, १५४३७). १.पे. नाम. संबोधसत्तरी, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोयगुरु; अंति: सोलहइ नत्थि संदेहो, गाथा-१२४. २.पे. नाम. ज्ञानपंचमी सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिणेसर; अंति: संघ सयल सुखदाय रे, ढाल-५, गाथा-१६. ५४२७७. (#) मानतुंगमानवती रास, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३२, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १८४३८). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद ___पदांबुजे; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम ढाल-४७वी की गाथा-१३ तक है.) ५४२७८. (+#) सत्तरभेदी पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. राधनपूर, प्रले. मु. मोहनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १०-१३४३३-३७). १७ भेदी पूजा, वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंतमुखकजवासिनी; अंति: सकल० शुभफली चलीयो रे, ढाल-१७, गाथा-१०८. ५४२७९. (+) थूलभद्र नवरसोव दहा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १५४३७). स्थूलिभद्रमुनि नवरसो ढाल व दूहा, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: (१)सुखसंपति दायक सदा, (२)कहे थुलभद्र सुण भूपत; अंति: उदयरतन० सहु फल्यारे, ढाल-९, गाथा-६८, (वि. प्रतिलेखक ने अंत के संबंधित दोहे-१७ तक ही लिखा है.) ५४२८०. (4) प्रवचनसारोद्धार सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८८४, वैशाख कृष्ण, ४, रविवार, मध्यम, पृ. २४२, ले.स्थल. जयपुर, प्रले. मु. सागरचंद्र (गुरु पं. उमेदचंद); गुपि.पं. उमेदचंद (गुरु मु. रतनचंद); मु. रतनचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीनेमनाथजी प्रसादात्. संवत् १९२१ चैत्रशुक्ल २ को श्री सागरचंद्रगणि के प्रपौत्र पं. राजू ने इस प्रत को भंडार में रखा., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, १५४४३-५०). प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊण जुगाइजिणं; अंति: नंदउ बहु पढिजतो, द्वार-२७६, गाथा-१५९९, ग्रं. २०००. प्रवचनसारोद्धार-अर्थप्रदीप बालावबोध, ग. पद्ममंदिर, मा.गु., गद्य, वि. १६५१, आदि: (१)श्रीमन्नाभेयादीन, (२)नमीऊण नमी करीनइ जुगा; अंति: पूर्णीकृतो ग्रंथः, ग्रं. १२००८. For Private and Personal Use Only Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५४२८१. (+#) घन्नाशालीभद्र चौपाई, संपूर्ण, वि. १८७०, माघ कृष्ण, ५, रविवार, मध्यम, पृ. ८०, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैवे. (२४.५४१३, १४४३५). धन्नाशालिभद्र चौपाई, मु. चेतनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६७, आदि: चरनकमल श्रीवीर के; अंति: चेतन० तस घर मंगलमाल, गाथा - १८१४. ५४२८२. (७) अष्टोत्तरी स्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. १८२४ माघ कृष्ण, १. बुधवार, मध्यम, पृ. १५, ले. स्थल, बुरहाणपुर, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रले. मु. हर्षचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीधर्मनाथजी प्रसादात्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१२, १२X३१). अष्टोत्तरी स्नाप्रविधि, मा.गु. सं., गद्य, आदि: प्रथम उपगरण लख्यते; अंतिः प्रमुखने दान दीजे. ५४२८३. सीतासती चरित्र, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३, दे. (२५x१३, १५४३२). सीतासती चरित्र, मा.गु, गद्य, आदि: मिथिला नगरीय जनकराज, अंतिः बेऊं मोक्ष पामिस्यै, ५४२८४. (+) पद्मावती चौपाई, संपूर्ण, वि. १९४२, मध्यम, पृ. ५२, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२४.५x१२, १२x२४). पद्मावती चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: चतुर चतुर मुख जगतगुर, अंति: देहु सुपात्रह दान, गाथा - ८०५. ५४२८५. (०) धन्नाशालीभद्र चौपाई, संपूर्ण, वि. १८३८, फाल्गुन शुरू, २. गुरुवार, मध्यम, पृ. ९९, ले. स्थल मकसूदाबाद, प्रले. पं. सुमतिरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैवे. (२४.५४१३, १५४३२). धन्नाशालिभद्र रास, मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९९, आदि: ऐंद्रश्रेणि नत क्रम; अंतिः बुध जिनविजय छायो रे, खंड- ४, गाथा - २२५०, ग्रं. ३०४५. ५४२८६. (+) सज्झाय, स्तोत्र व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ९ कुल पे. १५, प्रले. मु. धनसुख यति, पठ. श्राव. लक्ष्मीपति शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, दे., (२५X१३, १२X४१). १. पे नाम, भक्तामर स्तोत्र, पृ. ९आ-४अ, संपूर्ण. गाथा-५. ४. पे. नाम गौतमस्वामी स्तुति, पृ. ५अ, संपूर्ण. मा.गु., सं., पद्य, आदि: अंगुठे अमृत वसे लब्ध; अंति: घरकुशल लच्छिलील लहंत, गाथा- ३. ५. पे. नाम. सोलसती स्तुति, पृ. ५अ, संपूर्ण. १६ सती स्तुति, सं., पद्य, आदि: ब्राह्मी चंदनवालिका, अंतिः कुर्वंतु वो मंगलम् श्लोक-१ ६. पे. नाम. पंचपरमेष्टिनमस्कार स्तुति, पृ. ५अ - ५आ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमीलि अंतिः समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक-४४. २. पे. नाम. शांति स्तोत्र, पृ. ४अ - ५अ, संपूर्ण. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांति निशांति अंतिः सूरिः श्रीमानदेवश्च श्लोक-१७, ३. पे. नाम. उपसर्गहर स्तोत्र, पृ. ५अ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि : उवसग्गहरं पासं पास; अंतिः भवे भवे पास जिणचंद, , २९५ ५ परमेष्ठि नमस्कार स्तुति, सं., पद्य, आदि: अर्हतो भगवंत इंद्र, अंतिः कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-१. ७. पे नाम, नित्य मंगलस्मरण स्तुति, पृ. ५आ, संपूर्ण, पे. वि, पत्र- ७ पर भी संबंधित प्रातः नित्यमंगल स्मरण दिया गया है. मंगल स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: सर्वमंगलमांगल्यं; अंति: जैनधर्मोस्तु मंगलम्, श्लोक-२. ८. पे. नाम. जिनपिंजर स्तोत्र, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण. जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ ह्रीं श्रीं अह, अंति: श्रीकमलप्रभाख्यः, श्लोक-२४. ९. पे. नाम. संखेश्वर पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर मंडण, सं., पद्य, आदि नमः पार्श्वनाथाय अंतिः पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. १०. पे नाम. ग्रहशांति स्तोत्र, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य अंति: ग्रहशांतिमुदीरिता, श्लोक-११. ११. पे. नाम. दशवैकालिक सूत्र अध्ययन १. पृ. ७अ ७आ, संपूर्ण Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २९६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दशवेकालिकसूत्र - हिस्सा द्रुमपुष्पिका प्रथम अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि धम्मो मंगलमुकि अंतिः साहूणो तिमि, गाथा-५. १२. पे. नाम चतुर्विंशतिजिन नाम, पृ. ७आ-८-अ, संपूर्ण. २४ जिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीऋषभदेवजी, अंतिः श्रीवर्द्धमान२४. १३. पे. नाम. वीशवहरमानजिन नाम, पृ. ८अ संपूर्ण. २० विहरमानजिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सीमंधर १ युगमंधर, अंति: १९ अजितवीर्य २०. १४. पे. नाम, आवककरणी सज्झाय, पृ. ८अ ९अ, संपूर्ण, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: करणी दुखहरणी छे एह, गाथा-२२. १५. पे. नाम. काल चक्र व जोगनी चक्र, पृ. ९आ, संपूर्ण, पे. वि. पत्र - १ अ पर कालचक्र तथा पत्र- ९आ पर योगिनीचक्र है. ज्योतिषयंत्र संग्रह, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ५४२८७. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह अवचूरी, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १८, प्र. - (२४.५X१२, १३x४४). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा, अंतिः अणागबद्धा अनंतगुणा, गाथा- ४९. नवतत्त्व प्रकरण अवचूरि, आ. साधुरत्नसूरि, सं. गद्य, आदि: (१) जयति श्रीमहावीर, (२) एतानि नवानां तत्वाना वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. जैवे., अंतिः शीघ्रं प्राप्नुवंति, ग्रं. ५००. ५४२८८. (+) नेमिजिन चौवीस चोक, संपूर्ण, वि. १८८६, मार्गशीर्ष शुक्र १३, सोमवार, मध्यम, पृ. ७, ले. स्थल. मडाड, प्रले. मु. नायकरुचि (गुरु पं. देवरुचि); गुपि. पं. देवरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीधरमनाथजी प्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२३.५X१२, १३X२७-३०). मगोपी संवाद- चौवीसचोक, मु. अमृतविजय, मा.गु, पद्य, वि. १८३९, आदि एक दिवस वसै नेमकुंवर, अंतिः तस सीस अमृत गुण गाया चोक-२४. ५४२८९. (+४) आराधनापताका सह टबार्थ व विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १५, कुल पे. ३, प्र. वि. पवच्छेद सूचक . लकीरें अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५.५X१२, ७-१४४४२-५१). " १. पे नाम, आराधनापताका सह टबार्थ व बालावबोध, पृ. १आ-१५आ, संपूर्ण वि. १८३१ आषाढ़ कृष्ण, ५, ले. स्थल. गुंडल, प्रले. मु. रामजीमनजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० नमो; अंति: ते सासयं सोक्खं, गाथा-६३. पर्यताराधना-वार्थ" मा.गु, गद्य, आदिः श्रीमहावीर प्रति नमस; अंतिः सुख अनुक्रमे पामै पर्यंताराधना - बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: हिवै आत्मसाधन करवा, अंतिः आराधनापताका० ग्रंथ. २. पे. नाम. शिलव्रत उच्चारण विधि, पृ. १५आ, संपूर्ण. ब्रह्मचर्यव्रतप्रत्याख्यान आलापक, प्रा.मा.गु., गद्य, आदि (१) प्रथम इरियावहि, (२) अहं भंते दिव्वं मेहु, अंति तियागारेणं बोसिरामि For Private and Personal Use Only ३. पे. नाम. दीक्षा विधि, पृ. १५आ, संपूर्ण. दीक्षाविधि *, प्रा.सं., मा.गु., प+ग, आदि: प्रथम इरियावही पडिकम; अंति: ए वाचना ४ कहीजै. ५४२९०. (+) नंद्यध्ययनटीका, संपूर्ण, वि. १६४९, पौष शुक्ल, १, रविवार, मध्यम, पृ. २०६, ले. स्थल. असारुआ, प्र. वि. संशोधित., जैदे. (२६.५४१२, १४४४०-४५). " नंदीसूत्र- टीका, आ. मलयगिरिसूरि सं., गद्य, आदि: जयति भुवनैकभानु: अंति: (१) जैनोधर्मच मंगलम्, (२) तदेतत्परोक्षमिति, ग्रं. ७७३२. ५४२९१. सीताराम रास, संपूर्ण वि. १८१९ फाल्गुन कृष्ण, ४, बुधवार, मध्यम, पृ. ९६, जै. (२६१२, १४४४३). रामसीता रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदा, अंति: समयसुंदर ० कल्याणो रे, खंड - ९, गाथा - २४१२, ग्रं. ३७०४. Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५४२९२. (+) सूयगडांग सूत्र, संपूर्ण, वि. १८५८, श्रावण शुक्ल, १३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ४८, ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले. मु. मोतीचंद (गुरु पं. केसरीचंद गणि, खरतरगच्छ-भट्टारक); गुपि.पं. केसरीचंद गणि (गुरु ग. लालचंद वाचक, खरतरगच्छ-भट्टारक); ग. लालचंद वाचक (परंपरा गच्छाधिपति जिनहर्षसूरि, खरतरगच्छ-भट्टारक); राज्ये गच्छाधिपति जिनहर्षसूरि (खरतरगच्छ-भट्टारक), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२, १५४४३). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज्ज तिउद्देज; अंति: विहरति त्ति बेमि, अध्याय-२३, ग्रं. २१००. ५४२९३. देवागम स्तोत्र सह वृत्ति व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १९, कुल पे. २, ले.स्थल. जयपुर, प्रले. देवकृष्ण जोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-पंचपाठ., अ., (२६४१२.५, १-३४३४-३७). १.पे. नाम. देवागम स्तोत्र सह वृत्ति, पृ. १आ-१९आ, संपूर्ण. आप्तमीमांसा, आ. समंतभद्र, सं., पद्य, आदि: देवागमनभोयानचामरादि; अंति: नाना परे समुपासते, परिच्छेद-१०, __श्लोक-११५, (वि. १९४६, आषाढ़ शुक्ल, ६) आप्तमीमांसा-देवागम वृत्ति, आ. वसुनंदि सैद्धांतिक, सं., गद्य, आदि: श्रीमत्समंतभद्राचार; अंति: भव्यैर्वसुनंदिसमागमः, (वि. १९४६, श्रावण कृष्ण, १) २. पे. नाम. श्लोक, पृ. १९आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक*, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-२. ५४२९४. स्थविरावली व कालिकाचार्य कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २४, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १४४४७). १. पे. नाम. स्थविरावली सह टीका, पृ. १आ-१२अ, संपूर्ण. स्थविरावली, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: अजवयरे गोयमगोत्रे. स्थविरावली-टीका, सं., गद्य, आदि: तस्मिन्काले तस्मिन्; अंति: श्रीहरिभद्रसूरि. २. पे. नाम. कालिकाचार्य कथा, पृ. १२अ-२४आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा.,सं., गद्य, आदि: (१)तत्र श्रीकालिकाचार्य, (२)तत्र श्रीकालिकाचार्य; अंति: स्थविरा बभूवुः. ५४२९५. (+) कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९४२, आषाढ़ शुक्ल, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ५५, ले.स्थल. लखनेउ, प्रले. मु. गोकुलचंद्र ऋषि (विजयगच्छ पूर्णिमापक्ष), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीऋषभदेवप्रसादात्., संशोधित., दे., (२६४१२, १०४३२-४९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (१)णमो अरिहंताणं० पढम, (२)तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६. ५४२९६. स्वरोदय व सुभाषित, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २१, कुल पे. २, दे., (२५.५४१३, १४४२८). १. पे. नाम. स्वरोदय, पृ. १आ-२१अ, संपूर्ण, वि. १९४२, आश्विन शुक्ल, १५, प्रले. पं. धनसुख, प्र.ले.पु. सामान्य. स्वरोदयज्ञान, मु. कपुरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९०५, आदि: नमो आदि अरिहंतदेव; अंति: नंदचंद चितधार, गाथा-४३८. २.पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. २१अ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा, मा.गु., पद्य, आदि: उपजे जहाँ बोवे नहीं; अंति: फुनि वचन न दीनो जान, गाथा-५. ५४२९७. तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३९, दे., (२६४१२.५, १८४४७-५०). तंदलवैचारिक प्रकीर्णक, प्रा., प+ग., आदि: निजरिय जरामरणं; अंति: मुच्चह सव्वदुक्खाणं. तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक-लघुवृत्ति, मु. विशालसुंदर-शिष्य, सं., गद्य, वि. १६५५, आदि: सकलत्रिभुवनपरिवृटिक; अंति: (१)जर्षिवदिति गाथार्थः, (२)नागपुरनगरे लिखिता. ५४२९८. राम चरित्र, संपूर्ण, वि. १९२०, पौष कृष्ण, २, रविवार, मध्यम, पृ. १३९, ले.स्थल. लाणुनग्र, प्रले. पूसा खंडेलवाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२६.५४१३, १३४३९). रामयशोरसायन चौपाई, मु. केशराज, मा.गु., पद्य, वि. १६८३, आदि: मुनिसुव्रतस्वामीजी; अंति: जपे सदा हरख वधामणी, अधिकार-४ ढाल ६२, गाथा-३१९१, ग्रं. ४३७५. For Private and Personal Use Only Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २९८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५४२९९, () सुकनावली व औषधग्रहण विधि, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ८. कुल पे. २. प्र. वि. अक्षर फीके पड़ गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X१२, १६x२८-३३). १. पे. नाम. पाशाकेवली. पृ. १आ-८अ, संपूर्ण. मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो भगवती, अंतिः सत्योपाशक केवली, श्लोक-१९६. २. पे. नाम. औषधवैद्यक संग्रह, पृ. ८आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह प्रा. मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४३०० (+४) सिंहासणवत्रीसी चतुष्पदिका, संपूर्ण, वि. १७७८, चैत्र कृष्ण, १३, रविवार, मध्यम, पृ. २५८, ले. स्थल. कासमाबाजार, पठ. श्राव. सदाकुंवरि प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५४१२, ११४३२-३६). सिंहासनबत्रीसी चौपाई - दानाधिकारे, पंन्या. हीरकलश, मा.गु., पद्य, वि. १६३६, आदिः आराही श्रीहरषप्रभु, अंतिः यथा भोजनरेश्वरः, कथा-३२, गाथा-४११४. ५४३०१. (+) भगवती सूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८८१, माघ शुक्ल, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. ९७७+१(७२६)=९७८, ले. स्थल, बालूचरपुर, लिख श्रावि, भामाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. त्रिपाठ संशोधित प्र. ले. श्लो. (४८५) यावल्लवणसमुद्रो, जैदे., (२५.५X१२, १२X३८). " יי भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. गद्य, आदि: नमो अरहंताणं० सव्ब, अंति: देव अविग्धं लिहंतस्स, शतक-४१, सूत्र-८६९. प्र. १५७५२. भगवतीसूत्र- टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं. गद्य वि. १९२८ आदिः सर्वज्ञमीश्वरमनंत अंतिः श्लोकमानेन निश्चितम् " शतक - ४१, ग्रं. १८६१६. ५४३०२. (+०) कल्पसूत्र सह अंतर्वाच्य व अंतर्वाच्य का टवार्थ व्याख्यान १-८, संपूर्ण वि. १८४९ कार्तिक शुक्ल, ४, सोमवार, मध्यम, पृ. १७५, ले. स्थल हरिदुर्ग, प्रले. पं. भुपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र. ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., ( २६१२.५, ९x४२-४५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं, अंति: (-), ग्रं. १२१६ (प्रतिपूर्ण, पू. वि. १ से ८ व्याख्यान तक है.) कल्पसूत्र - अंतर्वाच्य का टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने श्री, अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. बीच-बीच में टवार्थ नहीं लिखा गया है.) कल्पसूत्र - अंतर्वाच्य सं. गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीजिनं अंति: (-), प्रतिपूर्ण, ५४३०३. (+#) शांतिजिन रास व कवित संग्रह, संपूर्ण, वि. १८३१, कार्तिक कृष्ण, ५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २८२, कुल पे. ३, प्रले. श्राव. माणेकचंद, श्राव. मथ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११.५, ११x४३). १. पे. नाम. शांतिजिन रास, पृ. १आ- २८२अ, संपूर्ण. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८५, आदि: सकल श्रेयवरदायिनी अंतिः केरी आणंद अधिक उपाया, खंड-६, गाथा- ६९५१. २. पे. नाम. शांतिजिन कवित्त, पृ. २८२अ संपूर्ण. शांतिजिन पद, मु. कीर्ति, पुहिं, पद्य, आदि: कंचन वर्ण पद लंछन, अंतिः तिहुं शांतिजगदीशा, गाथा- १. ३. पे. नाम. शांतिजिन कवित्त, पृ. २८२अ संपूर्ण. मु. कीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: मुख पूनम सारद चंदलसै; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रथम कवि अपूर्ण है. ) ५४३०४. (+) पर्यंत आराधना सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. १४, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६४११.५, १३X३८). पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: ते सासयं सोक्खं, गाथा-६९. For Private and Personal Use Only Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ पर्यंताराधना-बालावबोध*,मा.गु., गद्य, आदि: संप्रत्याराधना विधि; अंति: अंते यामति सागति. ५४३०५. (+) उत्तराध्ययन सूत्र सह टबार्थ व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १७३१, मार्गशीर्ष शुक्ल, १०, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ९२, कुल पे. ६, प्रले. मु. धनजी (गुरु मु. सोमजी ऋषि); गुपि. मु. सोमजी ऋषि (गुरु पं. सांणजी ऋषि); पं. सांणजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले.श्लो. (९५०) जाद्रीसं पुस्तकं द्रष्ट्वा, जैदे., (२६.५४१२, ७X४८). १.पे. नाम. उत्तराध्ययन सूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-९२अ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स; अंति: सम्मए त्ति बेमि, अध्ययन-३६, ग्रं. २०००. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: संयोग बाह्यभीतरथी; अंति: कहेता हुया विबेमि. २.पे. नाम. अनागतचौवीसजिन नाम व जीव नाम, पृ. ९२आ, संपूर्ण. २४ जिन नाम-अनागत, मा.गु., गद्य, आदि: पद्मनाभ श्रेणिकनो; अंति: स्वातबूधनो जीव. ३. पे. नाम. १४ अशुचिस्थान गाथा, पृ. ९२आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: उच्चारेसुवा १ पासवणे; अंति: असुइ ठाणेसुवा, गाथा-२. ४. पे. नाम. केवली परिसह नाम, पृ. ९२आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: क्षुधा १ तृषा २ शीत; अंति: ९ रोग १० तृण स्पर्श. ५. पे. नाम. विदेह तीर्थंकर स्थिति, पृ. ९२आ, संपूर्ण. विदेहतीर्थंकर स्थिति, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धानि गोयजीवा; अंति: भव्वायं ४ चउथीयं २, गाथा-५. ६. पे. नाम. इंद्रिय अवगाहना, पृ. ९२आ, संपूर्ण. पंचेंद्रिय स्थूल मानविचार, मा.गु., गद्य, आदि: पन्नवणा मध्ये पाँचें; अंति: रहेता होताई रहई. ५४३०६. (+) सरस्वती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६४११.५, ६x२०). सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: शसिकर णीकर समुजलग्य; अंति: सबही पूजो सरस्वती, ढाल-३, गाथा-१४. ५४३०७. पंचप्रतिक्रमणविधिसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४१२, १२४३५). १. पे. नाम. देवसिप्रतिक्रमण विधि, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. देवसिप्रतिक्रमणविधि, मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम इरियावही पडिकम; अंति: ए आचार श्रावकनो छै. २. पे. नाम. राइप्रतिक्रमण विधि, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. राईप्रतिक्रमण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम ईरियावहि; अंति: कहीजै पछै वंदना कीजै. ३. पे. नाम. पाक्षिक चौमासी सम्वत्सरी विधि, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: देवसि पडिक्कमणोचीतरि; अंति: देवसी पाटी ___ कहता, गाथा-३. ४. पे. नाम. पौषह विधि, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पौषध विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पोसहसाला आवी प्रथम; अंति: (-), (पू.वि. पाठ "पोसह समो इक ठावे वा नवकार भणु" तक है) ५४३०८. (+) चौद सुपन, संपूर्ण, वि. १९३७, आश्विन कृष्ण, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. मकसुदाबाद, प्रले.ऋ. अबीरेंदु (वडतपगच्छ); पठ. ऋ. सुमतिचंद्र (वडतपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., दे., (२६.५४१२.५, १३४३७). १४ स्वप्न पूजा, मु. अबीरचंद, पुहिं., पद्य, वि. १९३१, आदि: आगम अगोचर अलख अज अवि; अंति: अबीर० सैं करु बंदना, पूजा-१४. ५४३०९. (+) कल्याणमंदिरस्तोत्र वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले.स्थल. सूरतबिंदर, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, ११४५४). कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, पा. हर्षकीर्ति, सं., गद्य, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिनं; अंति: पार्श्वनाथप्रसादतः. For Private and Personal Use Only Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५४३१०. (i) व्याख्यान संग्रह, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १७-१ (१६) = १६ प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै.. (२६.५x१२, १२४३७). चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., गद्य, आदि: स्मारं स्मारं स्फुरद, अंतिः सुविशदं व्याख्याभूत ग्रं. ४०१, (अपूर्ण. पू. वि. पाठ तवप्रेस्वाभिप्रा" के पश्चात एवं "भीतापौरलोका:" के पूर्व के पाठ नहीं हैं.) ५४३१२. (*) कल्पसूत्र, श्लोक संग्रह व अणगार गुणवंदन स्तुति, संपूर्ण वि. १९०६ वैशाख कृष्ण, ५. गुरुवार, मध्यम, पृ. ६६, कुल पे. ३, ले. स्थल. लक्ष्मणानगर, प्रले. मु. मुक्तिरुचि (गुरु पं. लब्धिरुचि); गुपि. पं. लब्धिरुचि (गुरु पं. शितलरुचिजी); पं. शितलरुचिजी; अन्य. पं. अमृतविजयजी (तपगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. पं श्रीविनेचंदजी महराज के प्रसादते., संशोधित., प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (९५५) यावन्मेरुर्द्धरा पीठे, (९५६) जलाद्रक्षे तैलाद्रक्षै, (९५७) पोथी प्यारि प्राथि, दे., (२७४१३, १३X२७). १. पे. नाम. कल्पसूत्र, पृ. १आ - ६६अ, संपूर्ण. आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (१) णमो अरिहंताणं० पढमं (२) तेणं कालेणं तेणं, अंतिः अज्झयणं सम्मतं, व्याख्यान- ९, ग्रं. १२१६. २. पे नाम, श्लोक संग्रह, पृ. ६६अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह*, प्रा.,मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-५. ३. पे नाम, अणगारगुणवंदन स्तुति, पृ. ६६अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: पापपंथ परिहरे मोक्षप, अंति: झाकुं वंदना हमारी है, गाथा-२. ५४३१३. (+) शांतिनाथ चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५५, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २६.५X१२, १५X४५). शांतिनाथ चरित्र, आ. भावचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. १५३५, आदि: प्रणिपत्यार्हतः सर्व, अंति: (-), प्रस्ताव-६, (पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रस्ताव - ३ तक लिखा है.) ५४३१५. (+) सीता चरीत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्र. वि. संशोधित., दे., (२५.५X१३.५, १६X३७). रामसीता चरित्र, मु. चेतनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८५१, आदि: सारद मात दया करो; अंति: सिवसुख शीवधाम को, ढाल - २३, गाथा - ४१५. ५४३१६. (+४) पंचमहाव्रत दृष्टांत, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ५९, प्र. वि. संशोधित दुर्वाच्य मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे., (२७१४, १४x२३). पंचमहाव्रत कथासंग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: बालक जीवने हितने अंति: भवना विस्तार कह्यो, अध्याय ५. ५४३१७. दंडक स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३६, आश्विन शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल. डीसानगर, प्रले. श्राव. रायचंद, लिख. सा. रंभाश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीमहावीरस्वामी प्रसादात्, दे. (२६.५X१३.५, ५४४१). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य वि. १५७९, आदि नमिठं चडवीसजिणे तस्स अंतिः एसा विणाति अप हिवा गाथा - ४१, संपूर्ण. दंडक प्रकरण-वार्थ * मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करी चोवीस अंति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा 3 अपूर्ण. गाथा १२ तक टवार्थ है.) ५४३१८. (+) उपासकदशांग सूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९२३, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, २, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४१, ले. स्थल. वालुचर नगर, प्रले. पं. नरायणचंदमुनि, लिख. श्राव. बाबुइंद्रचंदजी डुगड, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित - त्रिपाठ - पदच्छेद सूच लकीरें, दे., (२७X१३.५, १६x४३). उपासक दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: दिवसेसु अंगं तहेव, अध्ययन- १०, ग्रं. ८१२. उपासक दशांगसूत्र- वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि, सं. गद्य वि. १९१७ आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः कुर्वतां प्रीतये मे, अध्ययन - १०. ५४३१९_ (+) दीपावली देववंदन, संपूर्ण, वि. १९४७, वैशाख कृष्ण, १३, गुरुवार, जीर्ण, पृ. ५, प्रले. पं. हर्षचंद, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२८.५X१३.५, १०X३०). For Private and Personal Use Only Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ www.kobatirth.org दीपावली पर्व देववंदन विधिसहित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु. पद्य वि. १८वी, आदि: वीरजिनवर वीरजिनवर, अंतिः प्रगटे सकल गुणखाणि ५४३२०. (#) शेत्रुंजयरास, स्तवनसंग्रह स्तोत्र व सूर्यकिरण संख्या, संपूर्ण, वि. १८८०-१८८१, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ७, प्रले. पं. प्रमाणरुचि (गुरु पं. देवरुचि); गुपि. पं. देवरुचि (गुरु पं. सदारुचि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७१२.५, १८४५५). १. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ रास, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण, वि. १८८०, फाल्गुन शुक्ल, १२, ले. स्थल. बुआडा. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी, अंतिः ए सुणतां आनंद श्राय, डाल-६, गाथा-११२. २. पे. नाम. पुण्यप्रकाश वीरजिन स्तवन, पृ. ३अ -५अ, संपूर्ण, वि. १८८०, चैत्र कृष्ण, ५. पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा, अंति: नामे पुण्यप्रकाश ए, ढाल ८, गाथा-१०२. ३. पे. नाम, मंगल स्तोत्र, पृ. ५अ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में हाशिये में लिखी गई है. सं., पद्य, आदि: मंगलो भूमिपुत्रञ्च अतिः प्राप्नोति नित्यशः श्लोक-४. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४. पे नाम, छाया प्रतिलेखन, पृ. ५अ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में हाशिये में लिखी गई है. छाया प्रमाण, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३०१ ५. पे. नाम. समवसरण स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण, वि. १८८०, चैत्र कृष्ण, ५. समवसरण रचनां स्तवन, मु. अमरविबोध, मा.गु, पद्य, आदि; वीर जिणेसर चरण कमल, अंतिः तेहने सिद्ध फलदाखे, गाथा- २३. ६. पे. नाम. आदिनाथजीरो स्तवनाष्टक, पृ. ५आ, संपूर्ण, वि. १८८१, फाल्गुन शुक्ल, ५. ले. स्थल. चेखला. आदिजिन छंद-धुलेवामंडन, आ. गुणसूरि, मा.गु, पद्य, आदि: प्रमोद रंग धारणी, अंतिः षडदेस आदिदेव ध्याइए, , गाथा - १०. २. पे. नाम. लघुशांति, पृ. २अ २आ, संपूर्ण गाथा-८. ७. पे. नाम. अढारसाखा नाम, पृ. ५आ, संपूर्ण. १८ शाखा तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: विजय शाखा १ हंस शाखा, अंति: शाखा १७ सोम शाखा १८. ५४३२१, (+) जीवाजीवाभिगमसूत्र, संपूर्ण वि. १५४० आश्विन कृष्ण, ३०, मध्यम, पृ. १११, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे., (२७.५४११.५, १५X४९). जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः णमो उसभादियाणं चडवीस अंतिः सेत्तं सव्वजीवाभिगमे, प्रतिपत्ति १० सूत्र- २७२, ग्रं. ४७००. ५४३२२. (+) ज्ञानसम्मत आगमिक विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, दे., (२७४१२, १३X३२). ज्ञानसम्मत आगमिक विचारसंग्रह, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: वंगचूलियासूत्रमां कह, अंति: (-), (पू.वि. पाठ परिणाहि जीवागच्छंतिपालोयं" तक है.) ५४३२३, (+) उवसग्गहर, लघुशांति नवस्मरण स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण वि. १९३६ माघ शुक्ल ९, श्रेष्ठ, पृ. १८, कुल पे. ९, ले.स्थल. पल्लिकानगर, प्रले. अमरदत्त मेवाडा, पठ. सा. सुग्यांन (गुरु सा. सोभागश्रीजी); गुपि. सा. सोभागश्रीजी (गुरु सा. सिणगारश्री) सा. सिणगारश्री, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. दे. (२६.५x१३, ११४३३-३७). १. पे. नाम. उवसग्गाहर स्तोत्र, पृ. १आ-२अ संपूर्ण. " उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा, आ. भद्रवाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि उवसग्गहरं पासं पासं, अंतिः भवे भवे पास जिणचंद, For Private and Personal Use Only Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं जग; अंति: सिद्धी भणई सीसो, गाथा-१४. ३. पे. नाम. तिजयपहुत्त स्तोत्र, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ४. पे. नाम. नमिऊण स्तोत्र, पृ. ३आ-५अ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणयसुरगण; अंति: भय नासइ तस्स दूरेण, गाथा-२४. ५. पे. नाम. अजितशांति स्तोत्र, पृ. ५अ-८आ, संपूर्ण. अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. ६.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ८आ-१२अ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भगतामर प्रणति मोलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ७. पे. नाम. वृहच्छांति स्तोत्र, पृ. १२अ-१४अ, संपूर्ण. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनंजयति शासनम्. ८. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १४अ-१७आ, संपूर्ण. ___ आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुदचं० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ९. पे. नाम. लघुशांति नवस्मरण, पृ. १७आ-१८आ, संपूर्ण. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांति निशांत; अंति: जैनंजयति शासनम्, श्लोक-१९. ५४३२४. (#) नंदीसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३७, प्र.वि. अंतिम पत्र नया है., पंचपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१०.५, १२४३१). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइजगजीवजोणीवियाणओ; अंति: वीस अणुस्माइं नामाइं, सूत्र-५७, गाथा-७००. नंदीसूत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: ए परोक्ष श्रुतज्ञान, (वि. आदिवाक्य खंडित है.) ५४३२५. (+#) कालिकाचार्य कथानक, संपूर्ण, वि. १४९७, भाद्रपद कृष्ण, १२, बुधवार, मध्यम, पृ. ११, ले.स्थल. सरस्वतीपत्तन, प्रले. नथु; लिख. श्रावि. सखी; उप. मु. पद्मतिलक (गुरु आ. सिद्धसूरीश्वर, उपकेशगच्छ); गुपि. आ. सिद्धसूरीश्वर (गुरु आ. देवगुप्तसूरि, उपकेशगच्छ); आ. देवगुप्तसूरि (गुरु आ. कक्कसूरि, उपकेशगच्छ); आ. कक्कसूरि (उपकेशगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संवत् १५९३ मागसर वदि २ नांखरतर गच्छे श्री प्रभसूरि पट्टानुक्रमेण जिनभद्रसूरि विजय राज्ये श्री तिलक शिष्येण उ. माणिकचंद्रेण श्री कल्पागम पुस्तकं प्रदते., पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११, ११४२८). कालिकाचार्य कथा, प्रा., प+ग., आदि: जो कुणइ ससत्तीए संघस; अंति: भावणं कुणह भो निच्चं, ग्रं. २११. ५४३२६. (+) सुयगडांगसूत्र श्रुतस्कंध-२ सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८२१, माघ कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ७६+१(२८)-७७, ले.स्थल. मक्सूदाबाद, प्रले.पं. दयामाणेक; पठ. पं. नायकविजय गणि (परंपरा भट्टा. विजयधर्मसूरि, तपागच्छ); गुपि. भट्टा. विजयधर्मसूरि (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (९५८) यादृशं पुस्तिकां दृष्ट्वा, जैदे., (२७४११, १९४५०). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: विहरति त्ति बेमि, प्रतिपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: तुम्ह प्रति कहउ छउ, प्रतिपूर्ण. ५४३२७. (+) सूयगडांग सूत्र सह टबार्थ प्रथम श्रुत स्कंध, संपूर्ण, वि. १८२१, कार्तिक शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. ९०, लिख. श्राव. सुखालचंद साहजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६.५४११, ४४४१). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज तिउट्टेज; अंति: (-), ग्रं. २१००, (प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रथम श्रुतस्कंध, वि.) For Private and Personal Use Only Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ३०३ सूत्रकृतांगसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य सद्गुरुन; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रथम श्रुतस्कंध, वि. टबार्थ शैली में बालावबोध लिखा गया है) ५४३२८. (+) तत्त्वार्थसारदीपक, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १३-१६४५३). तत्त्वार्थसारदीपक, आ. सकलकीर्ति भट्टारक, सं., पद्य, आदि: ज्ञानानंदैकरूपाय; अंति: (-), (पू.वि. अध्याय-७ की गाथा-१३४ अपूर्ण तक है.) ५४३२९. (#) महावीर चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५७१, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१०.५, ९४३७). महावीरचरित्र, आ. गुणचंद्रसूरि, प्रा., प+ग., वि. ११३९, आदि: पयडियसमत्थपरमत्थवित्; अंति: रइयं सिरिवीरचरियमिमं, प्रस्ताव-८, ग्रं. १२०२५. ५४३३०. (#) पन्नवणा सूत्र, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १६१-४६(१८ से ६३)=११५, प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२६.५४१०.५, १५४५५). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० ववगय; अंति: सुही सुहं पत्ता, पद-३६, सूत्र-२१७६, ग्रं. ७७८७, (पू.वि. द्वितीय पद के पाठ-"गाणट्ठाणापणत्ता गा सट्ठा" से "लएविएवांववणवरं सट्ठा" तक नहीं है) ५४३३१. (+) षड्दर्शन समुच्चय सह लघुवृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६.५४११, ११४४०). षड्दर्शन समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-८२ तक लिखा है., वि. मूलपाठ श्लोक-२ से मिलता है.) षड्दर्शन समुच्चय-लघुवृत्ति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., गद्य, वि. १३९२, आदि: सज्ज्ञानदर्पणतले; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ५४३३२. आराधना प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, जैदे., (२६.५४११, ६४३४). पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिण भणइ एवं भयवं; अंति: सोम० ते सासयं सुक्ख, गाथा-७०. पर्यंताराधना-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: गुरु नमस्करीनइ गिलाण; अंति: लहइ ते सासतउ सुख. ५४३३३. (+) उत्तराध्ययन सूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १६७०, मध्यम, पृ. २१२-२०(१३१ से १५०)=१९२, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१०.५, ५४३२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स; अंति: पुव्वरिसी एव भासंति, अध्ययन-३६, ग्रं. २०००, (पू.वि. २९ अध्ययन से ३० अध्ययन गाथा-९ अपूर्ण तक नहीं है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: वर्द्धमानजिनं नत्वा०; अंति: एह वचन भाष्यकारचं. ५४३३४. (#) कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. १०, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १५४४७). १.पे. नाम. कर्णेद्रिय विषय दृष्टांत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. कर्णेद्रिय विषय दृष्टांत काव्य, सं., पद्य, आदि: (१)कुरंगमातंगपतंगधंग, (२)कर्णरयारोचते सर्व, अंति: लोकद्वय सुखप्रद, गाथा-२२. २. पे. नाम. समुद्रदत्त कथानक, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: दृष्टिरागाधितो जंतुर; अंति: रतिकार्यानसाधुभिः, श्लोक-४०. ३. पे. नाम. घ्राणेंद्रिय दृष्टांत, पृ. ३अ, संपूर्ण. घ्राणेंद्रिय दृष्टांत श्लोक, सं., पद्य, आदि: घ्राणेंद्रियस्य लोल; अंति: बहुपाय निबंधनं, गाथा-५. ४. पे. नाम. जिह्वेदिय मधुरा मंगु दृष्टांत, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. जितेंद्रिय मधुरा मंगु दृष्टांत, सं., पद्य, आदि: जिह्वालौल्येन को नाम; अंति: क्रियते रसलालसोः, गाथा-१३. ५.पे. नाम. स्पर्शन विषये सुकुमालिका कथानक, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. सुकुमालिका कथानक-स्पर्शनविषये, सं., पद्य, आदि: स्पर्शेद्रिय प्रसक; अंति: कालधर्मेमुपेयुवान्, गाथा-२६. For Private and Personal Use Only Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३०४ www.kobatirth.org ६. पे. नाम. क्रोधे धनदत्त कथा, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण. धनदत्त कथा - क्रोधोपरि, सं., पद्य, आदि: मुंचति धार्मिकोपि, अंति: क्रोध न कारयेत्, गाथा- ११. ७. पे. नाम क्रोध दृष्टांत, पृ. ४-५ अ, संपूर्ण क्रोध सुभाषित, सं., पद्य, आदि: क्रोधोहि शत्रु प्रथम, अंति: मार्गविव्याश्रुतिः श्लोक-१५. ८. पे. नाम. मान दृष्टांत, पृ. ५अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि मान बाहुबलीमरीचि रचय अंति: मोक्षमार्गेण गच्छति, गाथा- ९. ९. पे. नाम. वज्रस्वामी कथा, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सं., पद्य, आदि: वज्रस्वामी साहसिकः; अंतिः चउप्पनदिनपहिली हुई, गाथा-३३. १०. पे. नाम. शीलोपरि दृष्टांत कथा, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दृष्टांतकथा संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), संपूर्ण. ५४३३५. (+०) महाबल मलय सुंदरी चौपाई, संपूर्ण, वि. १६१८, चैत्र कृष्ण, ७, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३५ प्रले. मु. शिवजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले. श्लो. (९५९) याशं पुस्त द्रिष्टं, जैदे., (२६X५, १६ X५५). मलयासुंदरी चौपाई, पंडित. उदयधर्म, मा.गु., पद्य, वि. १५४३, आदि: सयल जिनवर सयल जिनवर; अंति: त० नवनिधि संपद मिलह, प्रस्ताव ४, गाथा- ११९५. ग्रं. १८००. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४३३६. (+) संग्रहणीसूत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १६५५, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ७३ - ११ (१ से ११)+१ (५०)=६३, ले. स्थल, भिनमाल नगर, प्रले. मु. दर्शनसागर पंडित (गुरु पं. विमलसागर गणि); गुपि. पं. विमलसागर गणि (गुरु उपा. धर्मसागर गणि); उपा. धर्मसागर गणि, अन्य. मु. धनराज पंडित, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. इस प्रत को पंडित धनराज द्वारा अनुपूरित किए जाने उल्लेख मिलता है., संशोधित, जैदे., ( २६ ११, १९x४७). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: सन्नि गईरागई वेए, गाथा - ३२३, (पू.वि. गाथा - २४ से है.) बृहत्संग्रहणी - टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: लोकानां सर्वसंख्यया, ग्रं. ३५००. ५४३३७. (+) प्रवचनसारोद्वारवृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७५-१०२ (१ से ८९,११९ से १३०, १३५) =७३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २६११, १५x५५). प्रवचनसारोद्धार-तत्त्वज्ञानविकासिनी वृत्ति, आ. सिद्धसेनसूरि, सं., गद्य वि. १२४२, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. द्वार-५ मूलोत्तरगुणविषयातिचार अपूर्ण से द्वार ७० अपूर्ण तक है.) ५४३३८, (+) ठाणांग सूत्र, संपूर्ण वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४१, प्र. वि. संशोधित, जै. (२६.५x११, ११४३९). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउस तेण; अंति: अणता पण्णत्ता, स्थान- १०, सूत्र- ७८३, ग्रं. ३७७०. ५४३३९. (+) सूयगडांगसूत्रवृत्ति, संपूर्ण वि. १७वी, मध्यम, पृ. २०४, प्र. वि. अबरखयुक्त स्याही का उपयोग किया गया है., संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जै. (२६.५x१०.५, १९६५). " सूत्रकृतांगसूत्र- बृहद्वृत्ति, आ. शीलांकाचार्य, सं., गद्य, वि. १०वी, आदि: स्वपरसमयार्थसूचकमनंत, अंतिः कल्याणभाग् भवतु, ग्रं. १२८५३. ५४३४० (+) भक्तामरस्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३४, प्र. वि. संशोधित-दुर्वाच्य, जैदे. (२६४११, १७४४७). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंतिः समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र - गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि, सं., गद्य, वि. १४२६, आदि: पूजाज्ञानवचोपायापगमा; अंति: पमतिः ० प्रायशः संति, ग्रं. १५७२. For Private and Personal Use Only יי ५४३४१. (+) सूयगडांग सूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८६, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५X११, ११X३८). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि बुज्झिज्ज तिउद्देज, अंतिः विरति तिबेमि, अध्याय २३, ग्रं. २२००. Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ३०५ ५४३४२.(+) श्रीपाल चरित्र की टीका, संपूर्ण, वि. १५३३, चैत्र शुक्ल, २, सोमवार, मध्यम, पृ. १०, ले.स्थल. पालडी ग्राम, प्रले. ग. विनयसागर (गुरु पं. सहजज्ञानगणि); गुपि.पं. सहजज्ञानगणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १६४५१). सिरिसिरिवाल कहा-अवचूरि, मु. हेमचंद्र, सं., गद्य, आदि: अरिहाइं नवपयाई०; अंति: वनदओ चाइझता कहा एसा, ग्रं. ४०२२, (वि. मूल पाठ आशिक है.) ५४३४३. (#) उत्तराध्ययन सूत्र सह वृत्ति, पूर्ण, वि. १६४९, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २९५-१(४)=२९४, ले.स्थल. विक्रमनगर, प्रले. पं. उदयतिलक; पठ. मु. लब्धिविजय (गुरु ग. शिवविजय); गुपि.ग. शिवविजय (गुरु पं. पद्मविजय गणि); पं. पद्मविजय गणि (गुरु आ. हीरविजयसूरि); आ. हीरविजयसूरि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१०.५,१५४५१). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स; अंति: भवसिद्धीय समंतए, अध्ययन-३६, ग्रं. २०००, (पूर्ण, पू.वि. गाथा-१२ की टीका अपूर्ण से गाथा-१४ की टीका अपूर्ण तक नहीं है.) उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा टीका, आ. नेमिचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. ११२९, आदि: प्रणम्य विघ्नसंघात; अंति: रक्तेन गुणवजने, ग्रं. १२०००, संपूर्ण. ५४३४४. (+) उत्तराध्ययन सूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २७५, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६४११, ४४३०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स; अंति: सम्मए त्ति बेमि, अध्ययन-३६, ग्रं. २०००. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा संग्रह, मु. पार्श्वचंद्रसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: पूर्वसंजोग मातापिता; अंति: सांभल्यो हुतो तिम, ग्रं. १३०००. ५४३४५. (+) वीतरागस्तव, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-४(५ से ८)=५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४३९). वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदिः यः परात्मा परं; अंति: फलमीप्सितम, प्रकाश-२०, (पू.वि. प्रकाश १० गा.४ से प्रकाश १९ तक नहीं है.) ५४३४६. आचारांग सूत्र नियुक्ति, संपूर्ण, वि. १६२१, चैत्र कृष्ण, ५, मंगलवार, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. जेसलमेरुदुर्ग, प्रले. मु. पद्मचंद्र (गुरु उपा. नयशेखरगणि, धर्मघोषगच्छ); गुपि. उपा. नयशेखरगणि (गुरु आ. कुमुदचंद्रसूरि, धर्मघोषगच्छ); आ. कुमुदचंद्रसूरि (धर्मघोषगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १८४५५). आचारांगसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: वंदितु सव्वसिद्धे; अंति: होति अज्झयणा, गाथा-३७०. ५४३४७.(+) कल्पसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७५८, आश्विन शुक्ल, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. १००, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १५४४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६. कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: प्रथम जिह्वारइं वषाण; अंति: चारी परीपूर्ण संघनी. ५४३४८. (+) उपासक दशांग सूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ९१२, जैदे., (२६४१०.५, १३४५३). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: दिवसेसु अंगं तहेव, अध्ययन-१०, ग्रं. ९१२. ५४३४९. (+) अष्ट कर्म स्थिति व जीव विचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२८, संवदंगनेत्रकरौंदु, वैशाख कृष्ण, ७, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, ले.स्थल. बाडेलाग्राम, प्रले. मु. रायचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६४११, १५४४५). १.पे. नाम. अष्ट कर्म स्थिति सहटबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण. ८ कर्मस्थिति विचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: नाणे दंसणावरणे वेयणि; अंति: तं एअंबंधठिई पमाणं, गाथा-३. ८ कर्मस्थिति विचार गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञाणावरणीकर्म १; अंति: स्थितिनो मान कदाओ. For Private and Personal Use Only Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. जीवविचार सह टबार्थ, पृ. १आ-६अ, संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पईवं वीरं नमुऊण; अंति: रूद्धाओ सूअ समुद्धाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिभुवनस्वर्गमृत्यु; अंति: सूपजे समुद्र ते थकी. ५४३५०. (+#) कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य की पीठिका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४३६). कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य*, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीजिनपार्श; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५४३५१. (#) नंदी सूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १२४४८). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइजगजीवजोणीवियाणओ; अंति: अणुजाणामि, सूत्र-५७, गाथा-७००. ५४३५२. ठाणांग सूत्र, संपूर्ण, वि. १६५०, मार्गशीर्ष शुक्ल, ६, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ८४+१(७१)=८५, ले.स्थल. तलसारणि ग्राम, प्रले. मु. आणंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ३७५०, प्र.ले.श्लो. (९६०) यादृश्यं पुस्तके दृष्वाः, जैदे., (२६४१०.५, १५४४९). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं तेणं; अंति: एहिं दसदिसा पण्णत्ता, स्थान-१०, सूत्र-७८३, ग्रं. ३७००. ५४३५३. (+) गौतमपृच्छा चौपाई, संपूर्ण, वि. १७३६, भाद्रपद शुक्ल, १५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. खंभाइत, प्रले.पं. कनककल्याण (गुरु मु. राजधीर); गुपि. मु. राजधीर (गुरु आ. जिनराजसूरि); आ. जिनराजसूरि; पठ. श्रावि. राजबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, ९४३६). गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५४५, आदि: सकल मनोरथ पूरवइ; अंति: लावण्यसमइ० वछित लहइ, गाथा-१२२. ५४३५४. पृथ्वीचंद्र रास, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५.५४११, ११४४०). पृथ्वीचंद गुणसागर वेली, मा.गु., पद्य, आदि: सिरिनेमि जिणेसर नमिअ; अंति: गूणसागर रिषराज, गाथा-४८. ५४३५५. (+#) महावीर स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६९१, चैत्र शुक्ल, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. स्तंभ तीर्थ, प्रले. ग. ज्ञाननंदी वाचक (गुरु ग. हेमसोम); गुपि. ग. हेमसोम (गुरु ग. पद्मनिधान वाचक); ग. पद्मनिधान वाचक (गुरु उपा. शिवसुंदर); उपा. शिवसुंदर (गुरु ग. क्षेमकीर्ति); ग. क्षेमकीर्ति, राज्यकाल आ. जिनराजसूरि (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ५४३७). महावीरजिन स्तव-समसंस्कृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: दृष्टि दयालो मयि, श्लोक-३०. महावीरजिन स्तवन-टबार्थ, मा.गु., पद्य, आदि: भवसंसार संबंधीया; अंति: तुम्ह पासि मांगु छउं. ५४३५६. (+#) जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६५७, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, रविवार, मध्यम, पृ. ३८८, ले.स्थल. अहमदावाद, प्र.वि. प्रतिलेखन वर्ष में अलाइ ४५ प्रवृत्तमाने लिखा हैं., संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४५७). जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: उवदसेइ त्ति बेमि, वक्षस्कार-७, ग्रं. ४१४६. जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-प्रमेयरत्नमंजूषा टीका, उपा. शांतिचंद्र, सं., गद्य, वि. १६५१, आदि: जयति जिनः सिद्धार्थः; अंति: नामकथनं चरममंगलमिति, ग्रं. १२०००. ५४३५७. (+) प्रवचन सारोद्धार सूत्र सह वृत्ति, त्रुटक, वि. १५९९, भाद्रपद शुक्ल, ८, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४७४-२६(१९ से ४०,१५६ से १५७,१५९ से १६०)+४(३२३,३३०,३८६,४६७)=४५२, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १३४४३). प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊण जुगाइजिणं; अंति: नंदउ बहु पढिज्जतो, द्वार-२७६, गाथा-१५९९, ग्रं. २०००, (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) प्रवचनसारोद्धार-तत्त्वज्ञानविकासिनी वृत्ति, आ. सिद्धसेनसूरि, सं., गद्य, वि. १२४२, आदि: सन्नद्धैरपि यत्तमोभि; अंति: समृद्धिमासादयतु, ग्रं. १८०००. For Private and Personal Use Only Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५४३५८. (#) सिद्धांतविचार रास, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६७-१(१)=६६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४५९). सिद्धांतविचार रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: केवल तु पार न लहु, गाथा-१८१८, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा १६ अपूर्ण से है.) ५४३५९. (+#) कल्पसूत्र का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८१६, कार्तिक शुक्ल, १३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ७४, प्रले. य. रूपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १६४३९). कल्पसूत्र-बालावबोध *, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: अज्ञान तिमिरांधानां; अंति: संघनै जयवंतो वर्तो. ५४३६०. (+#) रत्नपाल रास, संपूर्ण, वि. १८२९, फाल्गुन शुक्ल, १३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ५१, ले.स्थल. आडा ग्राम, प्रले.पं. अमृतविजय (गुरु पं. चंद्रविजय); गुपि.पं.चंद्रविजय (गुरु पं. सुखविजय); पं. सुखविजय (गुरु पं. मेघविजय गणि); पं. मेघविजय गणि (गुरु पं. जयविजय गणि); पं. जयविजय गणि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४२). रत्नपाल-रत्नावती चौपाई, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: सकल श्रेणि में दुर; अंति: मोहनविजय विलासजी, खंड-४, गाथा-१३७२. ५४३६१. (+#) मौनएकादशी कथा सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८३८, माघ शुक्ल, १०, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २५-१(१)=२४, ले.स्थल. विजापुर, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११.५, ६४३४). मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनंदिसूरि, सं., पद्य, वि. १५७६, आदि: (-); अंति: हम्मीरपुरसंश्रितैः, श्लोक-११९, (पू.वि. श्लोक ८ अपूर्ण से है.) मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मु. सौभाग्यचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: नगरे चातुर्मास रहीने. ५४३६२. (+#) प्रायश्चित विधि व अस्वाध्याय विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४११, १३४४२). १. पे. नाम. श्रावक आलोचना विधि, पृ. १अ-८आ, संपूर्ण. श्रावक आलोयणा विधि, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: स्मारं स्मारं जिनें; अंति: तावद स्वाध्यायः. २.पे. नाम. अस्वाध्याय विचार, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: नगरमै प्रधान पुरुष; अंति: होवै तो आठ प्रहर टलै. ५४३६३. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १२७-२(१२०,१२५)=१२५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४११, ७X२६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. गुणशील चैत्य में भगवान महावीर के समवशरण का वर्णन अपूर्ण तक है.) ५४३६४. (+) सूयगडांग सूत्र, संपूर्ण, वि. १५५५, वैशाख कृष्ण, ७, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ५५+१(३३)=५६, ले.स्थल. क्रेसीणारा नगर, पठ. ग. उदयसिह (गुरु आ. हेमविमलसूरि, तपागच्छ); गुपि. आ. हेमविमलसूरि (गुरु आ. सुमतिसाधुसूरि, तपागच्छ); आ. सुमतिसाधुसूरि (गुरु उपा. लक्ष्मीसागरसूरि, तपागच्छ); उपा. लक्ष्मीसागरसूरि (गुरु आ. रत्नशेखरसूरि, तपागच्छ); प्रले. मांडण जोसी; लिख. श्राव. रामा श्रीपाल (पिता श्रावि. सवीरी फला संघवी); गुपि. श्रावि. सवीरी फला संघवी (पति श्राव. फला माडण संघवी); श्राव. फला माडण संघवी (पिता श्रावि. नाल्हु माडण संघवी); श्रावि. नाल्हु माडण संघवी; अन्य. श्राव. सहिसकरण वच्छा साह, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. कुल ग्रं. २१००, जैदे., (२६४११, १३४४९). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज्ज तिउट्टेज; अंति: विहरति त्ति बेमि, अध्याय-२३. ग्रं. २१००. ५४३६५. (+#) निरयावलिकादिपंचोपांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४५, कुल पे. ५, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, ११४४०). १. पे. नाम. कल्पिकासूत्र, पृ. १आ-१८आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं०; अंति: अयमढे पण्णत्ते, अध्ययन-१०. For Private and Personal Use Only Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र, पृ. १८आ-२०आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: जइणं भंते समणेणं०; अंति: महाविदेहे सिज्झीहिति, अध्ययन-१०. ३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र, पृ. २०आ-३७आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: जति णं भंते समणेणं०; अंति: चेइयाइं जहा संगहणीए, अध्ययन-१०. ४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र, पृ. ३७आ-४०अ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: वासे सिज्झिहिंति, अध्ययन-१०. ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र, पृ. ४० अ-४५अ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: जइणं भंते० पंचमस्स; अंति: मइरित्त एक्कारससु वि, अध्ययन-१२. ५४३६७. (+) पर्यंताराधना सह अवचूरि व अणसण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हई है-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, ९४२८). १. पे. नाम. पर्यंताराधना सह अवचूरि, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-७०. पर्यंताराधना-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: शिष्य गुरुं नत्वा; अंति: तं सुखं प्राप्नुवंति. २. पे. नाम. अणसणविधि, पृ. ५आ, संपूर्ण. __संथारा विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: वेला पामीइ त; अंति: सर्व शब्द जाणिवा. ५४३६९. (+) सिद्धांतहुंडि बीजक, संपूर्ण, वि. १८३३, आषाढ़ शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १९४५७). सिद्धांतहंडी बीजक, सं., गद्य, आदि: द्रव्यभावमनोधिकार; अंति: तधिकारः प्रज्ञापनायं. ५४३७०. (+#) नारचंद्र ज्योतिषसार सह यंत्रकोद्धार टिप्पण, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४, प्रले. मु. विनयविजय (गुरु उपा. सुमतिविजय वाचक); गुपि. उपा. सुमतिविजय वाचक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १४४४५). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: रुचिरावासराः संभवंति, श्लोक-२९४. ज्योतिषसार-यंत्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: सरस्वतीं नमस्कृत्य; अंति: (अपठनीय). ५४३७१. सिद्धहेम शब्दानुशासन धातुपाठ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, लिख. श्राव. समय सत्केन; पठ. मु. सीहाजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १५४५३). सिद्धहेमशब्दानुशासन-हैमधातुपाठ, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि: भू सत्तायां पा पाने; अंति: बहुलमेतन्निदर्शनम्, ग्रं. ३००. ५४३७२. (+#) दानादि चतुष्क कुलक व दान कुलक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, प्रले. ग. दीप्तिविजय (गुरु ग. दर्शनविजय); गुपि.ग. दर्शनविजय (गुरु ग. मेरुविजय); ग. मेरुविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, ११४३८). १.पे. नाम. दानशीलतपभावना कुलक, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: परिहरिय रजसारो; अंति: सो लहइ सिद्धिसुहं, वक्षस्कार-४, गाथा-८१. २. पे. नाम. दानादि चतु कुलक, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना कुलक, आ. जयघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि: निऊण महिय मोहं वीर; अंति: जयघोस० शिवं सपावेइ, गाथा-३०. ५४३७५. (+#) द्रूपदी चउपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४४, प्रले. ग. पुण्यसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४३६). द्रौपदीसती चौपाई, वा. कनककीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६९३, आदि: पुरिसादाणी पासजिण; अंति: कनककीरति सुखकार, ढाल-३९, गाथा-११११. For Private and Personal Use Only Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५४३७७. (+) चतुःशरणप्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२८, माघ कृष्ण, १४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. मु. कांतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे (२२.५X१०.५, ६x४२). " चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई, अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा - ६३. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सावद्ययोग मनबचनकायाक; अंति: बाध विकारादि श्रेय. ५४३७८. (+) सत्तर भेदी पूजा, संपूर्ण, वि. १९२४, फाल्गुन शुक्ल, ९, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले. स्थल. लक्ष्मणा पुर प्रले. ऋ. गोकलचंद (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - संशोधित., दे., (२१x१०.५, ११×३२). १७ भेदी पूजा, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६१८, आदि: भाव भले भगवंतनी पूजा; अंति: सब लीला सुख साजै, मा.गु., पद्य, आदि: धरमीना सेठने रमनी आठ, अंतिः करी लीधो संयम साथ. ३. . पे. नाम. सुभद्रा सज्झाय, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ढाल- १७. ५४३७९. (+) सज्झाय संग्रह व छ लेश्या विचार, अपूर्ण, वि. १९३१, आषाढ़ अधिकमास कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. कुल पे. १०, ले. स्थल. अजीमगंज, प्रले. श्राव. पन्नालाल शिष्य, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. दे. (२१x११, १०X२६). " १. पे. नाम. चंदनबाला मृगावती सज्झाय, पृ. २अ अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. चंदनबाला मृगावती केवलज्ञान सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: नमतडां केवल कमला लाध, गाथा-७, (पू. वि. गाथा १ अपूर्ण से है . ) २. पे. नाम. धन्नाशालिभद्र सज्झाय, पृ. २अ संपूर्ण. सुभद्रासती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सतीसुभद्रा साधुनां; अंति: पोलमेंउ घाडो सहु कोय, गाथा-४. ४. पे. नाम एलाचीकुमारनी सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. इलाचीकुमार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: नाम इला सुत सेठनो; अंतिः पोहता भावोदधि पार, ५. पे. नाम. सीतासती सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्म, आदि: रावण सीता लेइ गय जीत; अंतिः देवता जग बोले जसवाद, गाथा-४, ६. पे नाम. बलभद्रमुनि सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्म, आदि वन उध्यान विचरता अंतिः उपन्ना सरग चोथे धाम, गाथा- ४. गाथा - ५. ७. पे. नाम. प्रसन्नचंद्रराजर्षिनी सज्झाय, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रसनचंद्र तजि राज्य; अंति: उपन्ना सर चोथे ध्यान, गाथा-५. ८. पे नाम. सुकोशलमुनि सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: समता सागर संजमी, अंति: सिव सुख श्रेण, गाथा - २. ९. पे. नाम. अवंतिसुकुमाल सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: ऐवंति सुकमाल संयइ; अंति: नलिनी गुल्म विमाण, गाथा-४. For Private and Personal Use Only १०. पे. नाम. छलेश्या परिणाम विचार, पृ. ४अ - ११आ, संपूर्ण, पे. वि. पृष्ठ ७-८ के बीच गाथा संख्या भेद है. ६ लेश्या परिणाम विचार, मा.गु, पद्य, आदिः पाप करमथी प्राणिया, अंतिः वाघनां रूप करिने खाय, गाथा ११५. ५४३८०. (+) गौतम पृच्छा सह टीका, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४३-१ (१३)+१ (२८)-४३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. दे. (२०.५x१०.५, १२४३३). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तित्थनाहं अति: (-), (पू. वि. गाथा ४८ तक है.) गौतमपृच्छा- टीका, मु. मतिवर्द्धन, सं., गद्य, वि. १७३८, आदिः ॐ नत्वा वीरजिन, अंति: (-). ५४३८९. विक्रमसेनराजा रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३१-१ (१) १३०, पू. वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं, वे.. (२०.५X१०.५, ९२३). ३०९ Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल १ गाथा ७ पूर्ण अंतिम ढालगाथा १२ अपूर्ण तक है.) ५४३८२. (a) गरव बहोत्तरी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, वे., (२०.५x११, १२-१४x२३)गर्व बहोत्तरी, मु. ऋषभ ऋषि, रा., पद्य, वि. १९३३, आदि: अरे गरव मति कर रे; अंति: रिखब० सातम रविई स्योग, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा-७७. ५४३८४. (+) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १४-२ (१२ से १३) १२, कुल पे. १७, अन्य. मु. लवजी ऋषि, मु. जेठाऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५X१२, १३X२६). १. पे. नाम. तीर्थंकर स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: देवतणां गुण वर्णवं; अंति: सामी मुगत कीधा वास, गाथा - १७. २. पे. नाम. प्रभाती, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण, प्रले. श्राव. दामजी भाई, पठ. मु. व्रधमान ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. यह कृ इस प्रत के साथ एक से अधिक बार आई है. औपदेशिक प्रभाती, मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, आदि: चोप करीने तमे चेतो; अंति: रामचंद० सूणो भाई रे, गाथा - ७. ३. पे नाम. प्रभाती, पृ. ३अ संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार आई है. औपदेशिक प्रभाती, मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, आदि: चोप करीने तमे चेतो, अंतिः रामचंद० सूणो भाई रे, गाथा- ७. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: श्री सीधार्थ कुल सण, अंतिः धर्मसंग० भाव प्रधान, गाथा-५. ५. पे. नाम. १६ सती सज्झाय, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आदिनाथ आदि जिनवर, अंति: उदयरतन० सुखसंपदा ए, गाथा- १७. ६. पे. नाम. नमस्कारमंत्र स्तोत्र, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, मु. पाराज, मा.गु, पद्य, आदिः श्रीनवकार जपो मनरंग, अंतिः पद्मराज० जास अपार रे, गाथा - ९. ७. पे. नाम. दानशीलतपभावना प्रभाती, पृ. ५अ - ५आ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना प्रभाति, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्म, वि. १७वी आदि रे जीव जिन धरम कीजीय; अंतिः समयसुंदर० पामे भवपार, गाथा-१०. ८. पे. नाम. बाहुजिन स्तवन, पू. ६अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि साहिब बाहु जिणेसर अंति जश कहे सुख अंनहो, गाथा ५. ९. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. ६अ - ६आ, संपूर्ण. महावीर जिन स्तवन, मु. हीर, मा.गु., पद्य, आदि: सासण भुषण सामी सधीर, अंति: हरखे देजो समकित हीर, गाथा- ६. १०. पे. नाम गौतमस्वामी स्तवन, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२७, आदि: जंबू दिप दिप माहे; अंति: चंदजी भणे उल्लास रे, गाथा-१०. ११. पे. नाम पद्मप्रभवासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. ७अ ८अ संपूर्ण. पद्मप्रभ-वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु, पद्म, वि. १८४९, आदि रंगभर राता हो दाता अंति रायचंद० जिनवर जाय, गाथा- १४. १२. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ८अ - ९आ, संपूर्ण. मु. विजयभद्र, मा.गु, पद्य, आदि: मंगल करण नमीजे चरण; अंतिः विजैभद्र० नवि अवतरै गाथा- २३. १३. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. ९आ- १०आ, संपूर्ण. आ. आनंदविमलसूरि, मा.गु, पद्य, आदि: श्रीजिनवरने करूं, अंतिः विमल० पदवी पांमे तेह, गाथा-१८. १४. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन नालंदापाडा, पृ. १०-११आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ www.kobatirth.org ३११ महावीर जिन स्तवन- नालंदापाडा, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: मगध देशमांहि विराजे, अंति (-), (पू. वि. गाथा १७ अपूर्ण तक है.) १५. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १४अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जिन मोटीजी महिमा थाय, गाथा - ५, (पू. वि. मात्र गाथा ५ पूर्ण है.) १६. पे. नाम. पासजिन स्तवन, पृ. १४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. जेतसी, मा.गु., पद्य, आदि: सुगण सोभागी साहब, अंति: जेतसी मारे तुहिज देव, गाथा ५. १७. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. १४अ - १४आ, संपूर्ण. मु. खुशालमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: अभिनंदन अरिहंतजी रे, अंतिः शुसाल० देवने रे लो, गाथा-५. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४३८५, (४) रत्नपाल रत्नावती रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २९-२० (१ से २०) =९, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., ( २३१३, २०x१२). रत्नपाल- रत्नावती रास - दानाधिकारे, मु. सूरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: ऋषभादिक जिननमुं; अंतिः (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल ६ गाथा १२ अपूर्ण तक है.) ५४३८६. (+) राम रस, अपूर्ण, वि. १८९७, मार्गशीर्ष शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. १७५-११५ (१ से ११५ ) =६० प्रले. मुरारजी वासुदेव जानी; पठ. सा. लडकीबाई महासती अन्य श्राव वछराज संघाणी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे (२४.५४११.५, १२X३३). रामयशोरसायन चौपाई, मु. केशराज, मा.गु., पद्य, वि. १६८३, आदि (-); अंति: केसराज० हर्षे वधामणी, अधिकार-४, गाथा-३१९१, ग्रं. ४३७५, (पू.वि. ढाल ४७ गाथा ७६ अपूर्ण से है.) ५४३८७. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ६९-६४ (१ से २३, २८ से ६८ ) -५ प्र. वि. पवच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५X१०.५, ४X३३). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्रथम उदेशक पंचम अध्ययन की गाथा १ अपूर्ण से गाथा ३१ अपूर्ण तक है.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र हैं. ५४३८८. (+) औपदेशिक गाथा संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र. वि. संशोधित. दे. (२५x११.५, १४x२८). 3 औपदेशिक गाथा, मु. मोहन, पुहिं., पद्य, आदि: दाढ खटके काकरो कणुः अंतिः मोहन० आचार मेलीया, गाथा- १८. ५४३८९. (+) जिनप्रतिमा आलापक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५X११, १२X३७-४३). आगमों में जिनप्रतिमा के आलापक, प्रा. मा.गु., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं समए: अंतिः निप्रापंतना विचार. ५४३९० (४) अनुत्तरोववाईदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १८५२ आषाढ शुक्ल, ३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३०, ले. स्थल धोराजी, प्रले. दामजी देवचंद, पठ. श्राव. लीलाधर आणंदजी सेठ, अन्य. मु. रामचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांक १४ एवं १५ एक ही पत्र पर लिखा हुआ है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४.५४११.५, ५४२४). " अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं कालेणं तेणं समए अंतिः अवमठ्ठे पण्णत्ते, अध्याय ३३, ग्रं. १९२. अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते काल चउथाआराने; अंति: वर्गना ए अर्थ कह्या. ५४३९१ (+) श्राद्धप्रतिक्रमणविधि लोकागच्छीय सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८४७ माघ शुक्र. ५. शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४९, ले. स्थल. मंगलपुर, प्रले. मु. जगसी ऋषि (गुरु मु शिवजी ऋषि, बृहद्धकागच्छ); गुपि. मु. शिवजी ऋषि (गुरु मु. गांगजी ऋषि, बृहल्लौंकागच्छ); मु. गांगजी ऋषि (बृहल्लौंकागच्छ); अन्य. मु. मोहन ऋषि, मु. लाधा ऋषि, मु. खीमजी ऋषि, मु. गुलाबचंद ऋषि (परंपरा मु शिवजी ऋषि, बृहल्लाकागच्छ); पठ श्राव. जीवन मालजी राज्यकालमु सोमचंद ऋषि, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित प्र. ले. श्लो. (९६२) जलाद्रक्षे तिलाद्रक्षे, जै, (२५.५x११.५, ३४२७). , श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - लोंकागच्छीय-टबार्थ, मु. जगसी ऋषि, गु., गद्य, वि. १८४७, आदि: नमो कहेतां नमस्कार, अंति: मालिकाः प्राप्नुवंति For Private and Personal Use Only Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-लोंकागच्छीय, संबद्ध, मु. जैनश्रमण, प्रा.,गु., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं०० श्री; अंति: स्स मिच्छामि दुक्कड. ५४३९२. (+#) चौवीस दंडक तीस बोल विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १५४४५). २४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: दंडक लेश्या ठित्ति; अंति: (-), (पू.वि. द्वार २९ अपूर्ण तक है.) ५४३९५. नवतत्त्व विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-१३(१ से १३)=६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२५४११.५, १३४४३-४८). नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अजीव तत्त्व वर्णन अपूर्ण से बंध तत्त्व वर्णन अपूर्ण तक है.) ५४३९६. चौवीस तीर्थंकर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९२३, पौष कृष्ण, ८, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. गोंडलग्राम, प्रले. मु. नानचंद ऋषि (गुरु मु. स्वामजी ऋषि); गुपि.मु. स्वामजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११.५, १०४३२-४०). स्तवनचौवीसी, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मरुदेवीनो नंद माहरो; अंति: उदय० संसार सारो रे, स्तवन-२४. ५४३९७. (+-) गौतम पृच्छा सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-६(२ से ७)=६, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अशुद्ध पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४११.५, ११४३२). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाहं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २ तक एवं गाथा १८ से २५ तक है.) गौतमपृच्छा-बालावबोध, मु. वृद्धिचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: नत्वा वीरजिनं बालाव; अंति: (-). ५४३९८. (+#) मुनिपति चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-६(१ से ६)=११, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११.५, १७४५१). मुनिपति चौपाई, मु. सिंहकुल, मा.गु., पद्य, वि. १५५०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा २०५ अपूर्ण से गाथा ५९७ अपूर्ण तक है.) ५४४०१. (+) खंडाजोयन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६०-५(१,६,४६ से ४७,५२)=५५, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४१२, १४४४०). लघुसंग्रहणी-१० द्वार विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., द्वार-१ अपूर्ण से समयक्षेत्र अधिकार अपूर्ण तक है.) ५४४०२. (+) ठाणांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९५, आश्विन शुक्ल, १४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २३७, प्रले. मु. जगाजी ऋषि (गुरु पं. मांडणजी ऋषि); गुपि.पं. मांडणजी ऋषि (गुरु पं.चोखाजी ऋषि); पं.चोखाजी ऋषि; गृही. पं. भवानजी ऋषि; अन्य. मु. कानजी स्वामी ऋषि (गुरु मु. भाणजी ऋषि); गुपि. मु. भाणजी ऋषि, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ७४३८). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं तेणं; अंति: अणता पण्णत्ता, स्थान-१०, सूत्र-७८३, ग्रं. ३७५०. स्थानांगसूत्र-टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रीमद्वीरजिनं नत्वा, (२)श्रीसुधर्मास्वामी; अंति: कह्या ए दसमो ठाणो, ग्रं. १०५००. ५४४०३. (+) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)-५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२,५४३०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१ गाथा-१ अपूर्ण से गाथा-४७ अपूर्ण तक है.) ५४४०४. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८३-२३(१ से २३)=६०, अन्य. मु. घेलाजी ऋषि; मु. गांगजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-क्रियापद संकेत-संशोधित., दे., (२६४११.५, ४४३२). For Private and Personal Use Only Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ३१३ दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: गई त्ति बेमि, अध्ययन-१० चूलिका २, (पू.वि. अध्ययन-५, उद्देश-१२ अपूर्ण से है.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: तीर्थंकरनु प्ररुप्यु. ५४४०५. (+) सुसढ चरित्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२६४११.५, ५४४३). सुसढ चरित्र, प्रा., पद्य, आदि: जे परमाणंदमय परप्पमा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४५ अपूर्ण तक है.) सुसढ चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य श्रीमहावीरं, (२)जे परम आनंदमय सिद्ध; अंति: (-). ५४४०६. (+) सूयगडांगसूत्र श्रुतस्कंध-२ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५५, श्रावण अधिकमास कृष्ण, ११, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २०९, ले.स्थल. भुजनगर, प्रले. हरदेव छगनजी त्रेवाडीया; क्षेमजी छगनजी त्रेवाडीया; अन्य. सा. राजकुंवरबाई महासती; सा. कसुंबाबाई; सा. केसरबाई आर्या, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६.५४११, ३४३२). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: विहरति त्ति बेमि, प्रतिपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: तुम प्रतई कहूं छउं, ग्रं. ९४९६, प्रतिपूर्ण. ५४४०७. (#) सूत्रकृतांगसूत्र-श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-१, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-२(६,८)=९, अन्य. सा. कुवरबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १४४३४). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. मध्यभाग के पाठांश नहीं है.) ५४४०८. उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४६-१२८(१ से १२६,१३७ से १३८)+२(१३६,१४६)=२०, प्र.वि. बढते पत्रांक-१४६ प्र.द्वि. तृतीय. कुल पत्र-२२., दे., (२६.५४१२, ४४२५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन-१९ की अंतिम गाथा अपूर्ण से है तथा अध्ययन-२३ की गाथा-३ तक लिखा है.) ५४४०९. (+#) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५९-३(१ से ३)=५६, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल व टीका का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, ४-७४३०-४०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: गई त्ति बेमि, अध्ययन-१०, (पू.वि. अध्ययन-२ गाथा-७ अपूर्ण से है.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: तुज प्रति कहु छु. ५४४१०. (+#) साधु आचार सझाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-१०(१ से १०)=५, कुल पे. ३, अन्य. सा. कमरबाई (गुरु सा. कस्तुरबाई); गुपि. सा. कस्तुरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२, १५४३५). १. पे. नाम. साधुआचार सज्झाय, पृ. ११अ-१२अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: आहार उपधिने अपासरो; अंति: तो हुए अणंत संसारी, गाथा-२८. २. पे. नाम. साधु आचार सज्झाय, पृ. १२अ-१४आ, संपूर्ण. साधुआचार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पेला अरहंतने नमु; अंति: तो डुबे वली वसेष जी, गाथा-४५. ३. पे. नाम. साधुआचार परिचय सज्झाय, पृ. १४आ-१५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: समदृष्टि आरे पांचमे; अति: (-), (पू.वि. गाथा-१८ तक है.) ५४४११. (+) कल्पसूत्र सह व्याख्यान+कथा, त्रुटक, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२१-११२(१ से ५४,५६ से ७१,७३,७६ से ९१,९३ से १०३,१०६,१०८ से १२०)=९, प्रले. मु. माहवजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२, ५-१४४२७-३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पृ.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.. शरीरलक्षण, निर्वाणाधिकार, नेमि वरसीदानादि अधिकार के आंशिक पाठ है) कल्पसूत्र-व्याख्यान कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३१४ ५४४१२. (+) संजया ६२ मार्गणा व बंधी विचार, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ७ कुल पे. २, प्रले. मु. नेणसी ऋषि, अन्य. सा. हेमकुवरबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., दे., (२५.५X११, १६३५). १. पे. नाम. ६२ मार्गणाद्वार विचार, पृ. १आ- ६आ, संपूर्ण, पे. वि. यंत्र सहित. मा.गु., गद्य, आदि: जीव गई ईदिव का अंति: (-). 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. बंधी विचार, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: कृष्णपखी समामिछदिठि, अंति: त्रिजो भागो लाभे. , ५४४१३. बासठ मागंना विचार, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, ले. स्थल. जेतपर, प्रले श्राव. पूंजा प्रागजी गांधी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६.५X११.५, १२४३९-४९). ६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जीवदिसि१ गई२ ईदिय३; अंति: उपीउग९ लेस्या१. ५४४१४. (+) संग्रहणीसूत्र वालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २२-७ (२ से ८) = १५, प्र. वि. संशोधित, दे. (२७४११.५, १६x४४). बृहत्संग्रहणी- बालावबोध, ग. दयासिंह, मा.गु., गद्य वि. १४९७, आदि (१) नात्वा श्रीवीरजिनं, (२) अरहंत आदि देई पंचपरम, अति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., परमाणुगाथा का बालावबोध अपूर्ण तक है., वि. गाथाक्रम का उल्लेख नहीं है.) ५४४१५. शांतिनाथ रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५७-५२(१ से ५२ ) =५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. पत्रानुक्रम ३१ से ३५ भी है., जैदे., ( २६.५X११, १४X३६). शांतिजिन रास, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८५, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल - २३ की गाथा-६ अपूर्ण से दाल- २८वी की गाथा १ अपूर्ण तक है.) ५४४१६. (+) आचारांगसूत्र- श्रुतस्कंध १ सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८९९ वैशाख शुक्र, २. बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १२१, अन्य. सा. लाडकीबाई (गुरु सा. हेमकुवरबाई महासती); गुपि. सा. हेमकुवरबाई महासती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रत के अंत में "ते संघाणीना थानकना भंडार खाते छे. संवत १९५१" ऐसा उल्लिखित है. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न. कुल ग्रं. ४५००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७११.५, ४x२९). आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: सुयं मे आउसं० इहमेगे; अंति: (-), प्रतिपूर्ण आचारांगसूत्र- टबार्थ, मु. धर्मसी, मा.गु., गद्य, आदि: (१) श्रीश्रीपार्श्वजिनं, (२) सांभल्यु मे हे आउखा; अंति: (-), प्रतिपूर्ण, ५४४१७. (+) उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२५, अन्य. सा. केसरबाई आर्या, सा. राजकुंवरबाई महासती; सा. कसुंबाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - संशोधित, जैदे., ( २६.५X११, ४X३८). " उपासक दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि: तेणं कालेणं तेणं, अंति दिवसेसु अंगं तहेव, अध्ययन- १०. उपासक दशांगसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेणे कालई चोथे आरई, अंति: (-), ग्रं. ३५४४. ५४४१८. (०) उपदेशमाला सह टबार्थ व कथा, त्रुटक, वि. १९१वी, मध्यम, पृ. १६८-४६ (१ से ३,९,१६ से १७, २२ से ५६,७२,८७,९०,१५१,१५३) = १२२, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६X११.५, ४-१३X३९). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं. गाथा - १४ अपूर्ण गाथा-५२९ अपूर्ण तक है.) उपदेशमाला - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू. वि. बीच के पत्र हैं. For Private and Personal Use Only उपदेशमाला - कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., कथा- २ से ७१ तक है.) ५४४१९. (+#) अनुत्तरोववाइदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५४, श्रेष्ठ, पृ. २१, ले. स्थल. भुजनगर, प्रले. रूपजी त्रवाडी; कल्याणजी वाडी, लिय. श्राव, अमरचंद लालजी साह, अन्य सा. केसरबाई आय, सा. राजकुंवरबाई महासती सा. कसुंबाबाई, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै.. (२६.५५११, ५४३५). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं कालेणं० नवमस्स, अंतिः अणुत्तरोववाईदसाणं, अध्याय-३३. ग्रं. १९२. Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते कालने विषे ते; अंति: धर्मकथानी परे जाणवा. ५४४२०. (+) अणुत्तरोववाइदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४११.५, ६४३२). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: जहा धम्मकहाणेयव्वा, __ अध्याय-३३, ग्रं. १९२. अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते कालने विषे ते; अंति: थत कहा धर्मकथा जाणवा. ५४४२१. (+) सुयगडांगसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-१(७)=१८, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १७४६०). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अध्ययन-१ सूत्र १५ अपूर्ण तक है.) सूत्रकृतांगसूत्र-बालावबोध *,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ५४४२२. (+) पच्चीसी व सझाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(८)=८, कुल पे. ७, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२, १२४३६). १. पे. नाम. निरंजनपचीसी, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. मु. खोडीदास, मा.गु., पद्य, वि. १९१६, आदि: नमीये नाथ निरंजनदेव; अंति: खोडोजी० चुमास हो लाल, गाथा-२५. २.पे. नाम. जुगटपचवीसी, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. जुगटपचीसी, मु. खोडीदास, मा.गु., पद्य, वि. १९१६, आदि: छेल छबीलारेसणजो; अंति: खोडीदास द्यो छोडी, गाथा-२५. ३. पे. नाम. जोवनपचवीसी सज्झाय, पृ. ४आ-६अ, संपूर्ण. यौवनपच्चीसी, मु. खोडीदास, मा.गु., पद्य, वि. १९१६, आदि: जोवनियानो लटको दहाडा; अंति: सिष्य कहे खोडिदास जो, गाथा-२५. ४. पे. नाम. तस्करपच्चीशी, पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण. तस्करपच्चीशी सज्झाय, मु. खोडीदास, मा.गु., पद्य, वि. १९१६, आदि: चोरी चित्तना धरो नर; अंति: खोडी० पुर फते चोमासु, गाथा-२५. ५.पे. नाम. उपदेश सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय, मु. खोडीदास, मा.गु., पद्य, वि. १९१६, आदि: घडी एकतणो वीसवास सास; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ६. पे. नाम. शीलवती सीखामण सज्झाय, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये, मु. खोडीदास ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: निसुणो सकल सोभागणि; अंति: जोडी ऋषि खोडीदासे, गाथा-१७. ७. पे. नाम. क्षमा सज्झाय, पृ. ९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. खोडीदास, मा.गु., पद्य, आदि: क्षमा करो क्रोध दूरे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१अपूर्ण तक है.) ५४४२३. (+) उत्तराध्ययन सूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८५६, ज्येष्ठ शुक्ल, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २९२-५०(१ से ५०)=२४२, अन्य.सा. कमरबाई; गृही. श्रावि. अवलबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ४४३३). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: सम्मए त्ति बेमि, अध्ययन-३६, ग्रं. २०००, (पू.वि. अध्ययन-११की गाथा-११अपूर्ण से है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: तुज प्रते कहुंछु. ५४४२४. (#) कुंडरीकपुंडरीक चोढालियो व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२, १५४३५). १.पे. नाम. कुंडरीकपुंडरीकनु चोढालियो, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण, प्रले. मु. गांगजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. For Private and Personal Use Only Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कुंडरिकपुंडरिक चोढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: आदिनाथ आदे नमी चोविस; अंति: ते होजो पाय पेमाल, ढाल-४, गाथा-८०. २.पे. नाम. नवकारनी सज्झाय, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. नवकारमंत्र सज्झाय, मु. आनंदहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनवकार मेमा घणो; अंति: आणंदहर्ष अपार, गाथा-२४. ३. पे. नाम. कोणिकनृप सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ मा.गु., पद्य, आदि: भंभसार सुत नृप हवे; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२, गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ५४४२५. (+) समवायांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८३, चैत्र शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. १७४, अन्य. सा. लाडकीबाई (गुरु सा. हेमकुवरबाई महासती); गुपि. सा. हेमकुवरबाई महासती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रत के अंत में "ते शंघाणीना थानकना भंडार खाते छे. संवत १९५१' ऐसा उल्लिखित है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. कुल ग्रं. ८७००, जैदे., (२७.५४१३, ३-५४२८). समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: सुयमे आउसं तेणं भगवय; अंति: अज्झयणंति त्तिबेमि, अध्ययन-१०३, सूत्र-१५९, ग्रं. १६६७. समवायांगसूत्र-टबार्थ, वा. मेघराजजी, मा.गु., गद्य, वि. १७उ, आदि: (१)देवदेवं जिनं नत्वा, (२)पांचमो गणधर सुधर्मा; अंति: बहूमानपणे देखाड्यो. ५४४२६. (+) हैमीनाममाला सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६८-१८६९, आषाढ़ शुक्ल, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १५९, ले.स्थल. गोंडल, प्रले. गांगजी जसवंत जोसी; अन्य. छगनजी त्रवाडी; मु. रामचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. भुजनगर निवासी त्रवाडी छगनजी की प्रत पर से प्रतिलिपि की गयी है. संवत १८६८ वैसाख प्रथम सुद ५ को प्रत लिखने हेतु दी गयी., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ७०००, जैदे., (२७.५४११.५, ५४३४). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: रोषोक्तावु नतौ नमः, कांड-६. अभिधानचिंतामणि नाममाला-टबार्थ, हरदेव, मा.गु., गद्य, वि. १८६१, आदि: (१)नमस्कृत्वार्हतः सम्य, (२)साष्टांग प्रणाम करीन; अंति: (१)बुद्धिप्रवृद्ध्यै, (२)नमः एहविषे प्रवर्ते. ५४४२७. (+) प्रश्नव्याकरणसूत्र-श्रुतस्कंध १ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७८, आषाढ़ शुक्ल, ११, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ७६, ले.स्थल. नवानगर, प्रले. मु. आणंद (गुरु मु. हरिलाभ, अंचलगच्छ); गुपि.मु. हरिलाभ (गुरु पं. प्रेमलाभ, अंचलगच्छ); पं. प्रेमलाभ (गुरु मु. रूपवर्धन, अंचलगच्छ); मु. रूपवर्धन (गुरु मु. भुवनसुंदर वाचक, अंचलगच्छ); मु. भुवनसुंदर वाचक (गुरु आ. राजेंद्रसागरसूरि, अंचलगच्छ); राज्ये आ. राजेंद्रसागरसूरि (अंचलगच्छ); अन्य. सा. नाथीबाई महासती, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. अंत में 'श्री मामासाहेबजी बिराजे छे, गोडीपार्श्वनाथजी प्रसादात्, श्रीशांतिनाथजी बिराजे छे.' ऐसा लिखा है., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ७०००, प्र.ले.श्लो. (२५२) जिहां लगे मेरु महिधर, (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२९.५४१३.५, ६४३९). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: जंबू इणमो अण्हयसंवर; अंति: (-), ग्रं. १५००, प्रतिपूर्ण. प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अहो जंबूए प्रतख्य; अंति: (-), ग्रं. ५५००, प्रतिपूर्ण. ५४४२८. (#) चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३२-१(१)=३१, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२९.५४११.५, १५४६२). चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पाहुड-१ अपूर्ण से १९ अपूर्ण तक है.) ५४४३०. संजया बोल, संपूर्ण, वि. १९१९, ज्येष्ठ कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. मोरबि, प्रले. वजेराम मोंनजी रावल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संवत हेतु मात्र १९ लिखा है., दे., (२८.५४१२.५, १४४४७-५१). चारित्र के ५ भेद के ३६ द्वार यंत्र, संबद्ध, मा.गु., को., आदि: पनवणा १ वेद २ रागे ३; अंति: तेथी सामा० ना संखे०५. ५४४३१. नवतत्त्व बोल, संपूर्ण, वि. १८६५, श्रावण कृष्ण, १०, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. जेतपुर, प्रले. श्राव. पूजा प्रागजी गांधी; अन्य. सा. अमरबाई, सा. कमरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक ने मुंहपत्ती बाँधकर जतनापूर्वक प्रत लिखने का उल्लेख किया है. लेखन के परवर्ती काल में किसी ने प्रत लेन-देन संबंधी प्रक्रिया लिखी है., जैदे., (२७४११.५, १२४३५). For Private and Personal Use Only Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ नवतत्त्व प्रकरण-बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जीव१ अजीवर पुन्य३; अंति: ए १५ भेदे सिध जाणवा. ५४४३२. (+) भगवतीसूत्र प्रश्नोत्तर संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २५-२०(१ से २०)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२७७१३, १३४३९). भगवतीसूत्र-प्रश्नोत्तर संग्रह, संबद्ध, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रश्नपद्य-४५९ अपूर्ण से ५८७ अपूर्ण तक है.) ५४४३३. (+) पच्चीसी संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४, कुल पे. २६, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११, १४४३५). १.पे. नाम. लोभपच्चीसी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३४, आदि: लोभि मनुषसू तो प्रीत; अंति: करसे अमरापुरवासोजी, गाथा-२५. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-कपटोपरि, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३३, आदि: कपटी माणसरो विश्वास; अंति: जिणधर्म प्यारो रे, गाथा-२५. ३. पे. नाम. जोबनपच्चीसी, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: पुनजोग नरभव लहो टाणो; अंति: गुणवंतरा गुण गावे, गाथा-२७. ४. पे. नाम. गुरुपच्चीसी, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. गुरुगणपच्चीसी, म. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: गुरु अमृत जेम लागे: अंति: रायचंद० मारे मन भावे. गाथा-२५. ५. पे. नाम. दंडकपच्चीसी, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: दंडक चोविसमांजीव; अंति: क्रोध न कर देजो नारा, गाथा-२५. ६. पे. नाम. कृपणपच्चीसी, पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: नित नित नरभव लह्यो; अंति: जोधपुरे चोमास हो, गाथा-२५. ७. पे. नाम. नंदकपचीसी, पृ. ७अ-८अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-निंदक, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३५, आदि: निखरो माणस नींदक; अंति: रायचंद नही जावे ए, गाथा-२५. ८. पे. नाम. समाधपचीशी, पृ. ८अ-९अ, संपूर्ण. समाधिपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३३, आदि: अपूरव जीव जिनधर्म; अंति: रायचंद तणो अभ्यास रे, गाथा-२५. ९. पे. नाम. सुज्ञानपचिशी, पृ. ९अ-१०आ, संपूर्ण. ज्ञानपच्चीशी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३५, आदि: आदि अनादिनो जीवडो; अंति: जोधपुर रहि चोमासरे, ___ गाथा-२५. १०. पे. नाम. सुगुरुपचीसी, पृ. १०आ-११आ, संपूर्ण. सुगुरुपच्चीसी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुरु पीछाणों एवं; अंति: हर्षचंद उछाह जी, गाथा-२५. ११. पे. नाम. कुगुरुपच्चीसी, पृ. ११आ-१२आ, संपूर्ण. मु. तेजपाल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर प्रणमी; अंति: तेजपाल भणे सुखदाय, गाथा-२५. १२. पे. नाम. कर्मपचीसी, पृ. १२आ-१३आ, संपूर्ण. कर्मपच्चीसी, मु. हर्ष ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: देव दानव तिर्थंकर; अंति: ऋद्धि० सदा सुखदाइरे, गाथा-२७. १३. पे. नाम. नारीपरिहारपच्चीसी, पृ. १३आ-१४आ, संपूर्ण. मु. माणकमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन नर जे नारी; अंति: माणक कहे उछरंगरे, गाथा-२६. १४. पे. नाम. पापिधर्मीपचीसी, पृ. १४आ-१५आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, वा. चारुदत्त, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवरनां प्रणमी; अंति: चारुदत० शिवसुख लहे, गाथा-२६. १५. पे. नाम. टाकरीयापच्चीसी, पृ. १५-१६आ, संपूर्ण. टाकरिया पच्चीसी, मा.गु., पद्य, आदि: लांबा जुहार करे; अंति: कर्ममां कांइ न समझे, गाथा-२५. For Private and Personal Use Only Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३१८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १६. पे. नाम. ज्ञानपच्चीसी, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण. " जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, बि. १७वी आदि सूरिनर तिरजग जोन मे; अंति: आपकुं उदय करन के हेत, गाधा- २५. १७. पे. नाम स्वार्थपच्चीसी, पृ. १७-१८अ संपूर्ण मु. चोथमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५८, आदि: सवार्थ जगवलभ लागे; अंति: चोथमल० जोधपुर के माइ, गाथा - २५. १८. पे. नाम. पापपच्चीसी, पृ. १८अ १९अ संपूर्ण. मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पोत पाप हेयवे जेहने; अंति: परहरे ते चतुर सुजाण, गाथा-२५. १९. पे. नाम. पुन्यपच्चीसी, पृ. १९अ - २०आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुण्यपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३५, आदि: पोते पुन्य हुवे जेहन; अंति: जेमल०पुनपचिि कहि, गाथा - २५. २०. पे. नाम. उपदेशपच्चीसी, पृ. २०आ- २५अ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, पुहिं., पद्य, वि. १८२०, आदि: जीनवर दिए एसो उपदेश; अंति: रायचंद० सुखना कंद, गाथा - २५. २१. पे नाम उपदेशपच्चीसी, पृ. २५अ-२८आ, संपूर्ण मु. जेमल ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: मनुष जनम दुलहो लहो, अंतिः रिखे जेमल कहे इम रे, गाथा - २६. २२. पे नाम, लाजपच्चीसी, पृ. २८आ-२९आ, संपूर्ण श्राव. गोवर्धन कवि, मा.गु., पद्य, आदिः सुण जीव पहिलो उपशम; अंति: गोवर्धन० चतुर सुजाण, गाथा-२६. २३. पे. नाम. गोतमपुच्छापच्चीसी, पृ. ३०-३१अ, संपूर्ण. - गौतमपृच्छा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि गौतमस्वामी पृच्छा अंतिः भले ते पामे सुख अपार, गाथा २५. २४. पे. नाम. दयापच्चीसी, पृ. ३१-३२आ, संपूर्ण मु. विवेकचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सयल तीर्थंकर करु रे; अंति: कहे एह विचार, गाथा - २४. २५. पे नाम, आवकगुण सज्झाय, पृ. ३२-३३आ, संपूर्ण उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: कहिए मलसे रे सावक एह; अंति: सफल जन्म तिण लाधो जी, गाथा-२६. २६. पे. नाम. साधुगुणपच्चीसी, पृ. ३३-३४आ, संपूर्ण आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: कहिये मलसे रे मुनिवर, अंतिः श्रीवीजेदेवसुरोजी, गाथा - २५. ५४४३४. (+) रुपसेन रास, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५१, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, दे., ( २६४११.५, . "" १४४३८). रूपसेन रास, मु. ज्ञानमूर्ति, मा.गु., पद्य वि. १६९४, आदि: तीर्थंकर श्रेवीसमो अंतिः (-), (पू. वि. खंड-६ गा. २०० अपूर्ण तक है.) , ५४४३५, (+०) उत्तराध्ययनसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ११६, पू. वि. अंत के पत्र नहीं है. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५. ५X११.५, ४x२४). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स, अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१५ की गाथा-३ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययन सूत्र टवार्थ " मा.गु., गद्य, आदिः उत्तराध्ययननो ए अर्थ, अंति: (-). 2 , ५४४३६. (+#) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८६५, फाल्गुन शुक्ल, १५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ९० - ३ (२ से ४)=८७, ले. स्थल. भुजनगर, प्रले. खीमजी छगनजी त्रवाडी; अन्य. सा. राजकुंवरबाई महासती; सा. कसुंबाबाई, श्रावि. हकुबाई पारेख, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अंत में इस प्रत हेतु "कसुंबाबाई स्वामीए राजकोट स्थानक खाते आपेल छे." ऐसा उल्लेख है, पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न संशोधित कुल ग्रं. ३००० अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे (२६११, ४४३२). दशवैकालिकसूत्र, आ. शव्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि धम्मोमंगलमुक अंतिः गई ति बेमि, अध्ययन- १०, " ( पू. वि. अध्ययन- १ की गाथा-३ अपूर्ण से अध्ययन-३ की गाथा ६ अपूर्ण तक नहीं है.) दशवैकालिकसूत्र - टवार्थ * मा.गु. गद्य, आदिः प० धर्म म० मंगलिक, अंतिः तीर्थंकरे प्ररूप्यं " For Private and Personal Use Only Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५४४३७. (+) जीवाभिगमसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७६-२१७(१ से २१६,३०१)+२(२४३,३६१)=१६१, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२६४११,५४३५). जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पडिवत्ति-३ अपूर्ण है.) जीवाभिगमसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५४४३८. (+) सप्तस्वर विवरण सहटबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४१०.५, ५४२८). स्थानांगसूत्र-सप्तमस्थानक का हिस्सा सप्तस्वर विवरण, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सत्तसरा पन्नत्ता तंज; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१९ अपूर्ण तक है.) स्थानांगसूत्र-सप्तमस्थानक का हिस्सा सप्तस्वर विवरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: स० सातस्वर प० परूप्य; अंति: (-). ५४४३९. (+#) दशवैकालिकसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४७-६(१ से ३,३२,३८,४३)=४१, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अंत में 'ऋषि गांगजी' लिखा है., पंचपाठ-त्रिपाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१०.५, ९-१२४२५). दशवकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खुड्डियायार अध्ययन गाथा-४ अपूर्ण से अध्ययन-१० की गाथा-१२ तक है.) दशवैकालिकसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५४४४०. (+) सज्झाय, पद व ढालादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८६६, कार्तिक कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. २४०-१७१(१,३ से ४२,४४ से ७३,८९ से १८८)=६९, कुल पे. ६१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १६x४८). १. पे. नाम. नेमराजमति सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. नेमराजिमती सज्झाय, मु. मुनिसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १७९१, आदि: (-); अंति: सुंदरगाया सुखकार रे, गाथा-१५, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा अपूर्ण है.) २. पे. नाम. उपदेश शिखामण सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. __ औपदेशिक सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सद्गुरु चरणे कमल नमी; अंति: रूपविजय गुण गाय, गाथा-१८. ३. पे. नाम. मेतारजमुनी सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मेतार्यसाधु सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: भीख्या सारु सोनी घरे; अंति: विजेभदरमुनिःसंकट हणे, गाथा-८. ४. पे. नाम. नाणावटी सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्राव. साहजी रुपाणी, रा., पद्य, आदि: हो नाणावटी नरभे नाणु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ५. पे. नाम. गौतमस्वामीनो रास, पृ. ४३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गौतमस्वामी रास, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३४, आदि: (-); अंति: रतनचंद० चोमास जी, गाथा-१३, (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण से है.) ६. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. ४३अ-४३आ, संपूर्ण. मु. भुदर, पुहिं., पद्य, आदि: वंदु श्रीजिनगुरु चरण; अंति: भुदर० सरण ऐसे धीर, गाथा-८. ७. पे. नाम. अभव सज्झाय, पृ. ४३आ, संपूर्ण. अभव्य सज्झाय, रा., पद्य, आदि: अभव न समझे किमहिन; अंति: नवि समझे जीव अनाणी, गाथा-८. ८. पे. नाम. कीर्तिध्वजराजा सज्झाय, पृ. ४३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि: कीरतधज राजान सूरज; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ९. पे. नाम. पुण्य सज्झाय, पृ. ७४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. श्रावककर्तव्य सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: भाइ सफल करो अवतार, गाथा-४४, (पू.वि. गाथा-३८ से हैं.) For Private and Personal Use Only Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०. पे. नाम. त्रण तत्त्व सज्झाय, पृ. ७४अ-७५अ, संपूर्ण. ३ तत्त्व सज्झाय, मु. राममुनि, मा.गु., पद्य, आदि: परम पुरुष परमेश्वर; अंति: राम मुनि कहे एह सझाय, गाथा-२८. ११. पे. नाम. मंगल करण सज्झाय, पृ. ७५अ-७६अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल करण नमीजे चरण; अंति: गरभावासमांन अवतरे, गाथा-२३. १२. पे. नाम. केशीगौतम सज्झाय, पृ. ७६अ-७६आ, संपूर्ण. केशीगौतमगणधर सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ए दोय गणधर प्रणमीये; अंति: रुपविजय गुण गाय रे, गाथा-१६. १३. पे. नाम. पांच संवर सज्झाय, पृ. ७६-७७अ, संपूर्ण. संवर सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर गोयमने कह; अंति: मुगती जिम हेला वरो, गाथा-६. १४. पे. नाम. शिखामण सज्झाय, पृ. ७७अ-७७आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि: सिवानंदन हेतकारी रे; अंति: खेम लहो जेम संपदा, गाथा-९. १५. पे. नाम. सीखामण सज्झाय, पृ. ७७आ, संपूर्ण. सुपात्रदान सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: संखराजा जसोमति राणी; अंति: किया होय सुख सायो, गाथा-११. १६. पे. नाम. साधुगुणवर्णन सज्झाय, पृ. ७७आ-७८अ, संपूर्ण. साधुगुण सज्झाय, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पांचे इंद्री रे; अंति: दीए देहने आधारो जी, गाथा-१२. १७. पे. नाम. श्रावकगुण सज्झाय, पृ. ७८अ-७८आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: कहिए मलसे रे सावक एह; अंति: सफल जन्म तिण लाधो जी, गाथा-२१. १८. पे. नाम. जिनपाल जिनरक्षित चोढालीयो, पृ. ७८आ-८१अ, संपूर्ण. जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, रा., पद्य, आदि: अनंता सिद्ध आगैहुआ; अंति: महाविदेह जासी मोख, ढाल-४, गाथा-६८. १९. पे. नाम. मतग्रही सज्झाय, पृ. ८१अ, संपूर्ण. मताग्रही सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८४०, आदि: एणे जगमें केइ नरनारी; अंति: या परो पंथ दियो टाल, गाथा-१५. २०. पे. नाम. गुरुपच्चीसी, पृ. ८१अ-८२अ, संपूर्ण. गुरुगुणपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: गुरु अमृत जेम लागे; अंति: रायचंद आवे ने जावे. गाथा-२१. २१. पे. नाम. सीखामण सज्झाय, पृ. ८२अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: आदिनाथ अरिहंत ध्यावो; अंति: रायचंद० होसे नीसतारो, गाथा-१२. २२. पे. नाम. छ काय सज्झाय, पृ. ८२अ-८२आ, संपूर्ण. ६काय सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु सोभागी साधु; अंति: थयो वेमाणीक वासी रे, गाथा-१२. २३. पे. नाम. भरत बाहुबलीनो चोढालीयो, पृ. ८२आ-८४आ, संपूर्ण. __ भरतबाहुबली सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि: स्वस्त श्रीवरवा भणी; अंति: रामविजय जय जय वरे, ढाल-४, गाथा-४४. २४. पे. नाम. सीखामण सज्झाय, पृ. ८४आ-८५अ, संपूर्ण. शील सज्झाय, श्राव. संघो, मा.गु., पद्य, आदि: उतम कहु सिखामण सारी; अंति: यल रहे ते वचन ज भाखो, गाथा-८. २५. पे. नाम. राजेमती सज्झाय, पृ. ८५अ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: देवरीया मुनीवर छेडो; अंति: ज्ञानविमल गुणमाला, गाथा-६. For Private and Personal Use Only Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ३२१ २६. पे. नाम. सीतासतीशील सज्झाय, पृ. ८५अ-८५आ, संपूर्ण. सीतासती सज्झाय-शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जलजलती बलती घणुरे; अंति: जिनहरष०प्रणमुपाय रे, गाथा-९. २७. पे. नाम. वंकचूल सज्झाय, पृ. ८५आ-८६अ, संपूर्ण. मु. तेजमुनि, मा.गु., पद्य, वि. १७०७, आदि: आ जंबुदिपे दिपतो रे; अंति: लाल तेजमुनी गुणगाय, गाथा-११. २८. पे. नाम. शीयल चौढालिया, पृ. ८६अ-८६आ, संपूर्ण. शीयल चौढालियो, मु. जीवण, मा.गु., पद्य, आदि: चोविसे जिन आगमेरे; अंति: वे खंभात नगर गुणगावे, ढाल-४, गाथा-२०. २९. पे. नाम. ब्रह्मचर्य सज्झाय, पृ. ८६आ-८७अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-ब्रह्मचर्य, मु. महानंद, मा.गु., पद्य, वि. १८२४, आदि: श्रीजिनवरजी उपदेशे; अंति: सुणी संघ सकल सुख पाय, गाथा-१२. ३०. पे. नाम. नागेसरी सज्झाय, पृ. ८७अ-८७आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जंबुदिप वखाण्णीये जी; अंति: जासे मुगती मोझार रे, गाथा-११. ३१. पे. नाम. नववाड सज्झाय, पृ. ८७आ-८८अ, संपूर्ण. ९वाड सज्झाय, मु. लाला ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमीज; अंति: रेसीयले सीव सुख थाय, गाथा-१३. ३२. पे. नाम. प्रदेशीराजा सज्झाय, पृ. ८८अ-८८आ, संपूर्ण. मु.रूपमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: विमलजणेसर पाय नमी; अंति: हां रुपमुनि जयकार, ढाल-२, गाथा-१७. ३३. पे. नाम. चेलणासती सज्झाय, पृ. ८८आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. चेलणारानी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: चेडाराजानी बेटी सात; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ३४. पे. नाम. देवदतानी ढाल, पृ. १८९अ-१९१अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. देवदत्ता पंचढालियो, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२५, आदि: (-); अंति: नागोर रिष जेमलजी कहे, ढाल-५, (पू.वि. ढाल-३ की गाथा-१७ अपूर्ण से है.) ३५. पे. नाम. अर्जुनमाली ढाल, पृ. १९१अ-१९४अ, संपूर्ण. मु. जेमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८२०, आदि: वर्धमान जिनवर नमुं; अंति: सुद पुनम सुभ ठाया, ढाल-९, गाथा-११६. ३६. पे. नाम. श्रेणिकराजा चोढालीयो, पृ. १९४अ-१९६अ, संपूर्ण. सम्यक्त्व चौढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३३, आदि: समकीत माहे दीढ रह्या; अंति: रायचंद पांच दोष हो, ढाल-४. ३७. पे. नाम. आषाढाभूति पंचढालिया, पृ. १९६अ-१९८अ, संपूर्ण. आषाढाभूतिमुनि पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: दरशण परिसो वावीसमो; अंति: ते जाणो जगमे धन हो, ढाल-७. ३८. पे. नाम. छ जीव ढाल, पृ. १९८अ-२०१अ, संपूर्ण. ६ जीव पंचढालियो, मु. सुगुणनिधान, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमि पास जिणंदने; अंति: हसला जी सुगुणनिधान, ढाल-६, गाथा-११२. ३९. पे. नाम. कार्तिकसेठ चोढालिया, पृ. २०१अ-२०३आ, संपूर्ण. कार्तिकसेठ पंचढालिया, ऋ. जैमल, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहन्त सिद्ध साधु; अंति: जेमलजी उपीउग राखी, ढाल-५, गाथा-९१. ४०.पे. नाम. अमरकुमार सज्झाय, पृ. २०३आ-२०४आ, संपूर्ण. मु. सेवक, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रहि नगरी वसे भल; अंति: लेसे सीवसुख ठायो रे, गाथा-५२. ४१. पे. नाम. निनवछत्रीसी, पृ. २०४आ-२०६अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३२२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची निह्नवछत्रीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३३, आदि: इण आरे निन्हव उगडीया; अंति: पणमति जाण रागदोस जी, गाथा - ३८. ४२. पे. नाम. तेरापंथी सज्झाय, पृ. २०६अ २०७आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि आदिजीन आदे नमी चउवेस, अंतिः न करो खींचाताणो रे, " ४३. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. २०७आ- २०८आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: दुरलभ लाधो मनूष जमार, अंति: क्रोध लोभ अहंकार नही, गाथा-२०. ४४. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. २०८ आ. संपूर्ण. सांधो रे, गाथा - ११. ४६. पे. नाम औपदेशिक पद, प्र. २०९अ संपूर्ण. गाथा - ६५. औपदेशिक पद-इंद्रियदमनविषये, मु. जेमल ऋषि, मा.गु, पद्य, आदि: दया तणो मारग सुध, अंतिः जेमल० दमी लीजे रे, गाथा - ९. ४५. पे. नाम औपदेशिक पद, प्र. २०८ २०९अ, संपूर्ण. पदेशिक पद संसारस्वप्नबोधे, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: नरक निगोद भमंत रे, अंति: जेमल० जाय - मा.गु., पद्य, आदि जति साधानो विरुद धरा, अंतिः अकल जीणारी खोटी रे, गाथा-७, ४७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २०९अ २०९आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जीवा जोयणे मे भमतो; अंति: जेमल० केइ सरमायो रे, गाथा- १०. ४८. पे. नाम. औपदेशिक पद - नरभव, पृ. २०९आ-२१०अ, संपूर्ण. मु. जेमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: निट्ठ निट्ठ नरनो भव; अंति: जेमल कूणीने ढूको रे, गाथा-११. ४९. पे. नाम औपदेशिक पद मानवभव, पृ. २१०अ संपूर्ण. मु. जेमल ऋषि, पुहिं, पद्य, आदि मानव को भव पाय के अंतिः जेमल करो छती सकतो रे, गाथा ६. , ५०. पे. नाम. औपदेशिक पद - मनुष्यजन्मदुर्लभता, पृ. २१०अ, संपूर्ण. मु. जेमल ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: मनूख जमारो पाय के; अंति: जेमल० मोख में सटकी र, गाथा- ६. ५९. पे. नाम उपदेशी पद, प्र. २१०अ २१० आ. संपूर्ण औपदेशिक पद, मु. जेमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: दिवसमें माया मेली; अंति: जेमल० दीधी छोडि रे, गाथा-१९. ५२. पे. नाम संजती चौढालीयो, प्र. २१० आ-२१२अ, संपूर्ण. संजतीगुण चौढालीयो, मा.गु., पद्य, आदि: चरमजीणेसर पाय नमी, अंति: हो रहो पातिक जाय, ढाल -४, गाथा-४९. ५३. पे. नाम. इक्षुकार कमलावती चौडालीयो, पृ. २१२ अ-२१४अ, संपूर्ण. मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि देवता हता ते पूर्व, अंतिः मिच्छाम्मीदुकडं मो, ढाल ४, गाथा- ७२. ५४. पे. नाम. नियाणा सज्झाय, पृ. २१४अ - २१५आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: देवलोकना जे देवतां; अंतिः प्रायच्छीत लिधो रे, गाथा - ५३. ५५. पे. नाम. पांचइंद्री संवाद ढाल, प्र. २१५आ-२१९आ, संपूर्ण. ५ इंद्रिय संवाद ढाल, मु. रूपचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत देव नमी करी; अंति: रुपचंद कहे इमो रे, ढाल - ६, गाथा - १३०. ५६. पे. नाम. तेलीपुत्र चौढालिया, पृ. २१९आ- २२४आ, संपूर्ण मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य वि. १८२५, आदि: अरिहंत सिधने आयरिया, अंति: अनुसारे भासो रे, डाल- ४, गाथा - १६३. For Private and Personal Use Only ५७. पे नाम. सुबाहुकुमार चरित्र, पृ. २२४आ- २३०अ संपूर्ण. ऋ. जैमल, मा.गु., पद्य, आदि: नमु वीर सासनधणी सर्व, अंति: सांभलजो सहु भवि कोइ, ढाल -८, गाथा-१९०. ५८. पे. नाम. जुठातपसी सज्झाय, पृ. २३०अ २३२आ, संपूर्ण. श्राव. वसतो शाह, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: प्रथम समरुं वितराग; अंति: वसतो० जगो जग अमर रहे, गाथा- ७७. Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५९. पे. नाम. कुंडरिकपुंडरिक चोढालीयो, पृ. २३२आ-२३५अ, संपूर्ण. कुंडरिकपुंडरिक चोढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: आदिनाथ आदे नमी चोविस; अंति: ते होजो पाय पेमाल, ढाल-४, गाथा-८३. ६०. पे. नाम. कृष्णबलभद्र चोढालीयो, पृ. २३५अ-२३९अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमजिणंद समोसर्य; अंति: निसदीन जिनवर्धमान रे, ढाल-४, गाथा-१२५. ६१. पे. नाम. खंधककुमार चोढालीयो, पृ. २३९अ-२४०अ, संपूर्ण. मु. जेसंग ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि: गोतम गुणधर मनधुरु; अंति: ऋषी जेसंग गुणगाय, ढाल-४, गाथा-२८. ५४४४१. (+) स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३६-३१(१ से १४,१७ से ३३)=५, कुल पे. ७, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११, १४४३२-३४). १. पे. नाम. सोलसती प्रभाती, पृ. १५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: उदयरत्न० सुखसंपदा ए, गाथा-१७, __ (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. साधुगुण स्तवन, पृ. १५अ-१६अ, संपूर्ण. साधुगुण सज्झाय, आ. आनंदविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवरने करूं; अंति: श्रीआणंदवीमल सुरेंद, गाथा-१६. ३. पे. नाम. सीमंधरजिनविनती स्तवन, पृ. १६अ-१६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार एह; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) ४. पे. नाम. वीसवेहरमान तवन, पृ. ३४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. २० विहरमानजिन स्तवन, मु. श्रीपाल, मा.गु., पद्य, वि. १६४४, आदि: (-); अंति: श्रीपाल० सुख पायसुं, ढाल-३, गाथा-३०, (पू.वि. अंतिम ढाल गाथा-६ अपूर्ण से है.) ५.पे. नाम. १४ स्वप्न सज्झाय, पृ. ३४अ-३६अ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: देव तिर्थंकर केरडी; अंति: लावनसमे इम भणे ए, ढाल-४, गाथा-४६, (वि. गाथा-१ को २ के क्रम से गिनी गयी है.) ६. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ३६अ-३६आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि: सिद्धारथ कुलदीपकचंद; अंति: रायचंद० प्रभुजी पीर, गाथा-११. ७. पे. नाम. महावीरजिन तप स्तवन, पृ. ३६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ____ मा.गु., पद्य, आदि: गोतमस्वामिरे बुद्धि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ५४४४२. (+) सूयगडांगसूत्र-प्रथम श्रुतस्कंध सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५४, चैत्र कृष्ण, ९, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १०५, प्रले. श्राव. खीमजी छगनजी त्रवाडी; अन्य. सा. केसरबाई आर्या, सा. राजकुंवरबाई महासती; सा. कसुंबाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. कुल ग्रं. ३५००, जैदे., (२६.५४११.५, ४४३३). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झेज्झ तिउट्टिज; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रथम श्रीआचारांग, (२)कहता जाणइ पछइ संजम; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५४४४३. उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)+१(६)=६, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पत्रांक-६ के ३ पत्र है., दे., (२६४१०.५, ५४३७). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१ गाथा-६ से अध्ययन-२ गाथा-२४ अपूर्ण तक है.) ५४४४४. (+) केसवबावनी व सवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१०.५, १६४५०). १.पे. नाम. अक्षरबावनी, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३२४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. केशवदास, पुहिं., पद्य, वि. १७३६, आदिः ॐकार सदा सुख देत है, अंतिः केसवदास सदा सुख पावै, गाथा- ६१. २. पे. नाम. सवैया संग्रह, पृ. ५अ -५आ, संपूर्ण. सवैया संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: लक्षण१ स्वामर फल३; अंति: मिटे तरूमास चटपट में, सवैया- १२. ५४४४५. षड्द्रव्यगुणपर्यायभाव विचार, पूर्ण, वि. १९३२ ज्येष्ठ शुक्ल, ८, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १४-१ (३) १३ ले. स्थल. मोरबी, प्रले. श्राव. हीराचंद मेता दमाणी पठ. सा. कसरीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, वे (२६४११.५. १४४४२). द्रव्यगुणपर्यावभाव विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मोख्य ते आठ कर्मनु अंतिः छे ते धारवो जी. ५४४४६. (+) स्तवन, सज्झाय आदि संग्रह, पूर्ण, वि. १९०३ आषाढ शुक्ल ११, श्रेष्ठ, पू. २५-२ (१,८) २३, कुलपे ३८, प्र. वि. संशोधित, दे. (२६.५४१०.५, १२४३८) १. पे. नाम. महावीर तवन, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. चंदनबालासती सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: दिक्षा लेइने विरजणेस; अंति: कहे तुम नामे परमानंद, गाथा - ११. २. पे नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: थोरा जीव भवने कारणे; अंति: करकर दिल रिख करि छे, गाथा - १०. ३. पे नाम, परनारीपरिहार सज्झाय, पू. ३अ-३आ, संपूर्ण. परनारीत्याग सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जीव वारु छु मोरा, अंतिः अलगा रहेजो आपो रे, गाथा - १३. ४. पे. नाम. गजसुकुमाल सज्झाय, पृ. ३आ-५अ, संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. रामकृष्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६४, आदि: सोरठ देश में दुआरामत, अंति रामकिसन ० उपदेस विचारो, गाथा - ३४. ५. पे. नाम. गजसुकुमाल सज्झाय, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण. राजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्म, वि. १८५८, आदि: गजसुकुमाल देवकिरो, अंतिः जोधाणे होस करी गाइ, गाथा - २४. ६. पे. नाम. नेमनाथ सज्झाय, पृ. ६अ - ६आ, संपूर्ण. नेमिजिन सज्झाय, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अमे रे प्रदेसी प्राह; अंतिः रुपचंद० छै गढ गरनार, गाथा- ११. ७. पे. नाम. परनारीपरिहार सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय परनारी परिहार, शंकर, मा.गु, पद्य, आदि जेने परनारीसु प्रीत अंतिः हवे काल उठी जावु छे, गाथा - १२. ८. पे. नाम. एकादशीतिथि सज्झाच, पृ. ७आ, संपूर्ण. मु. मकनचंद, मा.गु., पद्य, आदिः आज एकादसि रे नणदल अंतिः धरसे ते भव सागर तरसे, गाथा- ९. ९. पे. नाम. देवानंदामाता सज्झाय, पृ. ९अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. देवानंदा सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: (-); अति: चोथमल ० दोउ गया मोखरे, गाथा-८, (पू. वि. गाथा - ७ अपूर्ण से है.) १०. पे. नाम. नेमराजेमतीनो टपो, पृ. ९अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: घेर आवोने नेम वरणागी; अंति: मनोरथ सवि फल्या रे, गाथा- ७. ११. पे. नाम. राजेमती सज्झाय, पृ. ९अ - ९आ, संपूर्ण. राजिमती सज्झाय, मु. सुरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गोखे चडि राणी राजुल अंतिः सुरविजे सुखकारे रे, गाथा- ७. १२. पे. नाम. समकित सज्झाय, पृ. ९आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदिः नरग निगोदमां किया अंतिः श्रद्धापुरि चटक्यो, गाथा ९. १३. पे. नाम. उपदेशी सज्झाय, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. कवियण, हिं. पद्य, आदिः चेतन केम रहेवासे रे, अंतिः जासे भव लता जे कापे, गाथा- ९. For Private and Personal Use Only Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ રૂરલ १४. पे. नाम. १३ काठिया सज्झाय, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आलस पेलो काठियो धर्म; अंति: रनो भाव साधु धन तेह, गाथा-७. १५. पे. नाम. नेमराजुल सज्झाय, पृ. १०आ, संपूर्ण, ले.स्थल. गोंडल, प्रले. मु. गांगजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. नेमराजिमती सज्झाय, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: कपूर हुइ अति निरमलुं; अंति: सुरविमल०अविचल जोड रे, गाथा-८. १६. पे. नाम. जूवटानि सज्झाय, पृ. ११अ, संपूर्ण. ७ व्यसन सज्झाय, मु. नंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुगण सनेही हो सांभले; अंति: आणंदजी कहे करजोडिरे, गाथा-११. १७. पे. नाम. ढंढणऋषि सज्झाय, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढणऋषिने वंदणा; अंति: जिनहर्ष सुजाण रे, गाथा-९. १८.पे. नाम. करकंडुमुनि सज्झाय, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी अतिभली हुं; अंति: प्रणम्या पातक जाय रे, गाथा-६. १९. पे. नाम. नेमराजेमतीबारमासो, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासो, मा.गु., पद्य, आदि: नमो नमो नेम नमि करी; अंति: यो वली करु प्रणाम रे, गाथा-१७. २०. पे. नाम. सीखामण सज्झाय, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण. वैराग्य सज्झाय, मु. कल्याण मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: प्राणी काया ने माया; अंति: छे मुनि कल्याण रे, गाथा-९. २१. पे. नाम. प्रतिमाचर्चा सज्झाय, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण, ले.स्थल. गोंडल, प्रले. मु. गांगजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. मा.गु., पद्य, आदि: विरजणेसर विनति एसो; अंति: समझे ते सुखीया थाय, गाथा-१७. २२. पे. नाम. २४ तीर्थंकरपुत्र आसरे तवन, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण. २४तीर्थंकरपुत्र स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: राजाराणी कुटुंबो घणो; अंति: रायचंदनंदन दीधा छोड, गाथा-१६. २३. पे. नाम. केशीगौतम स्वाध्याय, पृ. १४आ-१५आ, संपूर्ण. केशीगौतमगणधर सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ए दोय गुणधर प्रणमीये; अंति: रुपविजय गुण गाय रे, गाथा-१९. २४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरुचरण पसाउले क; अंति: रूपविजय गुण गाय, गाथा-१७. २५. पे. नाम. गढपण सज्झाय, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. मु. केशव कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: गढपण तुने केणे तेडिय; अंति: कहे वात तणो ए मर्म, गाथा-१५. २६. पे. नाम. नमिराजर्षि सज्झाय, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो मथुरानगरि नो; अंति: समयसुंदर० पामे भवपार, गाथा-८. २७. पे. नाम. विजयशेठ विजयाशेठाणी सज्झाय, पृ. १७अ-१९अ, संपूर्ण. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: श्रीवीतरागदेव नमु; अंति: लालचंद० धरि गुण गाया, गाथा-१७. २८. पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. १९अ-२०अ, संपूर्ण. पं. हरख, मा.गु., पद्य, आदि: दत दयालु छे लाले; अंति: हरख० गुण आगम सूणा, गाथा-१५. २९. पे. नाम. निद्रापरिहार सज्झाय, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण. जै.क. चांपशी मोदी, मा.गु., पद्य, वि. १८६८, आदि: नठारि निद्रडिरे तुन; अंति: चांपशी० राजजी पसाय, गाथा-१२. ३०.पे. नाम. उपदेशी सज्झाय, पृ. २०आ-२१अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, ग. केशव, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन चेत प्राणीया रे; अंति: ए वात तणो छे मर्म, गाथा-११. ३१. पे. नाम. नरभव सज्झाय, पृ. २१अ-२१आ, संपूर्ण. मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पुर्व सुकृत पुन करिन; अंति: मेडते काया कारज सारो, गाथा-१४. For Private and Personal Use Only Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३२६ www.kobatirth.org ३२. पे. नाम. कमलावतीसती सज्झाय, पृ. २१ आ - २२अ, संपूर्ण. मु. सुगुणनिधान, मा.गु., पद्य, आदि कहे राणी कमलावती, अंति: हंसला रे सुगणनिधान, गाथा १६. ३३. पे. नाम. चेतन उपदेशी सज्झाय, पृ. २२अ - २२आ, संपूर्ण. आत्मोपदेशिक सज्झाय, रा., पद्य, आदि: चैतन अनंत गुणरो रे; अंति: भगवंते भावप्रकाशीया, गाथा-१४. ३४. पे. नाम. मान सज्झाय, पृ. २३अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झायमानपरिहार, मु. कवियण, मा.गु, पद्य, आदि मान म करस्यो रे मानव अंतिः वाली किधा छे י' יי राखरे, गाथा - ९. ३५. पे नाम. रेवतीश्राविका सज्झाय, पृ. २३अ - २३आ, संपूर्ण. मु. वल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि सोवन सिंघासणे रेवती; अंति: उचरे आणंदहरण अपार रे, गाथा- ११. ३६. पे. नाम. वाडीनी सज्झाय, पृ. २३-२४आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय वाडीफूलदृष्टांत, मा.गु., पद्य, आदि: वाडी राव करे करजोडी, अंतिः वीर न सके वारी जी, स्वस्तिकयुक्त है., पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे. (२६११, १५X४५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गाया- १५. ३७. पे. नाम. धर्मरुचिअणगार सज्झाय, पृ. २४आ, संपूर्ण. मु. • चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: धर्मरुचि मुनिवर भणी; अंति: चोथमल० प्रणमिजे पाय, गाथा - ९. ३८. पे. नाम. धर्मरुचिमुनि सज्झाय, पृ. २५अ - २५आ, संपूर्ण. धर्मरुचिअनगार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: अतुल सुखमां उपना; अंति: सहि इढिवंत दातार हो, गाथा - ११. ५४४४७. (+) मानतुंगमानवती रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. बीच का एक पत्र मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद चरणांबुजे, अंति: (-), (पू. वि. डाल- ४५ की गाथा १० अपूर्ण तक है.) ५४४४८. (+) अभिधानचिंतामणी नाममाला, संपूर्ण वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६९, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२५.५X१०, ११x४१). अंति: अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; . रोषोक्ता नतौ नमः, कांड-६, ग्रं. १४५२. ५४४४९, (+) उपासकदशांगसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८६८ वैशाख शुक्ल ८, श्रेष्ठ, पृ. ११४, ले. स्थल, भुजनगर, प्रले. श्राव. खीमजी छगनजी त्रवाडी, अन्य. मु. कानजी ऋषि (गुरु मु. भाणजी ऋषि); मु. भाणजी ऋषि (गुरु मु. जयचंद्र ऋषि); मु. जयचंद्र ऋषि (गुरु मु. रामचंद्र ऋषि); मु. रामचंद्र ऋषि (गुरु मु. वनीत ऋषि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. अंत में "आ संघाणीना थानकना भंडार खाते छे" उल्लिखित है., पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ३५००, जैदे. (२६४१०.५. ५X३०). उपासक दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि; तेणं कालेणं तेणं; अंति: दिवसेसु अंगं तहेव, अध्ययन- १०, प्र. ८१२. उपासक दशांगसूत्र- टवार्थ, मा.गु, गद्य, आदि: तेणई काले चोथे आरे अंतिः तिमज पूर्वली परे ५४४५० (+) नलदवदंती रास, संपूर्ण वि. १७९६ आश्विन शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ३५, ले. स्थल, खाखर महानगर, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२६X११.५, १५X३९). नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: सीमंधरस्वामी प्रमुख अंति: चतुर माणस चित्त वसी, खंड-६ दाल ३९, गाथा- ९३१. ग्रं. १३००. ५४४५१. (+) समवायांग सूत्र, अपूर्ण, वि. १६६७, मध्यम, पृ. ६४-५६ (४ से ५ ९ ) = ८, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२७X११, ११x४०-४२). For Private and Personal Use Only Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ३२७ समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: सुयमे आउसंतेणं भगवय; अंति: अज्झयणति त्तिबेमि. अध्ययन-१०३, सूत्र-१५९, ग्रं. १६६७, (पू.वि. समवाय ३ अपूर्ण से पइण्णय समवाओ १२ चक्रवर्ती पाठ तक नहीं ५४४५२. जीवाभिगम सूत्र, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १८०-४(१ से ४)=१७६, जैदे., (२६४११.५, ११४४१). जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: सव्वजीवा पण्णत्ता, प्रतिपत्ति-१०, सूत्र-२७२, ग्रं. ५४७०, (पू.वि. प्रारंभिक पाठ नहीं है.) ५४४५३. (+#) समवायांग सूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५९-३(१ से ३)+१(३२)=५७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-पंचपाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११, ११४४२). समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. समवाय ४ अपूर्ण तक नहीं है.) ५४४५४. (+#) पण्णवना सूत्र, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २९५+१(२७४)=२९६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११, ११४३५). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: (१)नमो अरिहंताणं० ववगय, (२)ववगयजरमरणभये सिद्धे; अंति: सुही सुहं पत्ता, पद-३६, सूत्र-२१७६, ग्रं. ७७८७. ५४४५५. (+) उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन १-२२ व २७, संपूर्ण, वि. १८९८-१८९९, कार्तिक शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ४५, ले.स्थल. दीवबंदर, प्रले. मु. गांगजी ऋषि; गृही. सा. रतुबाई आर्या; अन्य. श्रावि. वजूबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४१०.५, १२४३०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. परिमाण अध्याय-१-२२ तथा २७ लिखा है. प्रति.ले.वर्ष-अध्याय १-९ सं.१८९८ में और अध्याय-१०-२२ तथा २७ सं.१८९९ में लिखा गया है.) ५४४५६. (+-) उत्तराध्ययन सूत्र सह टबार्थ अध्ययन-५ अकामसकाम मरण अध्ययन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. दुर्वाच्य-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, ३४२९). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५४४५७. (+) ज्ञाताधर्म कथांग सूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २८६, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, ९४३१). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० चंपाए; अंति: धम्मकहाओ सम्मत्ताउ, अध्ययन-१९, ग्रं. ५३७५. ५४४५८. (+) आचारांग सूत्र सह टबार्थ-श्रुतस्कंध-१, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०७+१(३२)=१०८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११, ४४३२). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं तेणं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. आचारांगसूत्र-टबार्थ, मु. धर्मसी, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वजिनं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५४४५९. (+#) उत्तराध्ययन सूत्र सहटबार्थ अध्ययन-१ से २२, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४६+२(४०,४०)=१४८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ४४३३). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: उत्तराध्ययननो ए अर्थ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५४४६०. (+) पण्हावागरण सूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८९७, आषाढ़ कृष्ण, २, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १०५-३१(७४ से १०४)=७४, प्रले. मुरारजी वासुदेव जानी; अन्य. सा. लालकीबाई (गुरु सा. हेमकुवरबाई महासती); गुपि.सा. हेमकुवरबाई महासती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में "ते शंघाणीना थानकना भंडार खाते छे. संवत १९५१" लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५४११, ४४२८). For Private and Personal Use Only Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: त्तिमगास्स फलिह भूतो, (प्रतिपूर्ण, पू.वि. श्रुतस्कंध १ अध्ययन ५ की अंतिम ५ गाथाओं से लिखा है.) प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: जंबूप्रते कह्यु, प्रतिपूर्ण. ५४४६१. (+) संथारा पयन्न सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३८, वैशाख शुक्ल, ११, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले.स्थल. भावनगर, प्रले.ऋ. शिवचंद; अन्य. मु. गांगजी ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अंत में 'रुष गांगजीनी छे'. ऐसा लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ४४३९). संस्तारक प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: काऊण नमोक्कारं जिणवर; अंति: संकमणं सया मम दितु, गाथा-१२३. संस्तारक प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (१)अभिशेकावर्द्धनविभु, (२)का० करीनइ न० नमस्कार; अंति: द्यो मुझने हइ भगवान्. ५४४६२. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, त्रुटक, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४४-५२(१ से ७,१२ से १३,१८ से २२,३२,४८,५४ से ५५,५९ से ६०,६५ से ६७,६९,७२ से ८२,८६ से ९०,९७,१०२ से १०४,११२ से ११५,१२१ से १२४)=९२, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, ६-१५४३८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., बीच-बीच के पाठांश व अंत में स्थविरावली गाथा ३६ अपूर्ण से नहीं है.) कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हो अरिहतने; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. ५४४६३. (+#) श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५१-५(१ से २,३९ से ४०,४८)=४६, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१०.५, १६४४८). श्लोक संग्रह जैनधार्मिक , प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. अलग-अलग विषयों पर श्लोक-दूहा आदि का संग्रह है.) ५४४६४. विविध धार्मिकबोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८०-१३(३५ से ३७,४० से ४७,५२ से ५३)=६७, कुल पे. ९८, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४३४). १.पे. नाम. आवती चौवीसी में होनेवाले तीर्थंकर गति जीव व नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन नाम-अनागत, मा.गु., गद्य, आदि: नरग पेलीथी श्रेणिकनो; अंति: सातिबूधिनो अनंतवीर्य. २.पे. नाम. बत्रीस चौवीसी जिन नाम, पृ. १आ-९आ, संपूर्ण. ३२ चौवीसीजिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीकेवलज्ञान निर्वा; अंति: २४ श्रीत्रिकमकना, खंड-३२. ३. पे. नाम. चोवीस तिर्थंकरों के नाम-नक्षत्र माता पितादि विवरण, पृ. १०अ-१२आ, संपूर्ण. २४ जिन राशि नक्षत्रादि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: रिषभदेव उतराषाढा धन; अंति: क्षत्रीयकुंड नगरी. ४. पे. नाम. सातप्रकारे ज्ञानावरणी कर्म, पृ. १३अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुइ है. ७ ज्ञानावरणी कर्म, मा.गु., गद्य, आदि: शात्रसिद्धांत वेचे; अंति: तेहने ज्ञान नावडे. ५. पे. नाम. नवखंड नाम, पृ. १३अ, संपूर्ण. ९खंड नाम, मा.गु., गद्य, आदि: भरतखंड १ हरीवर्षखंड; अंति: केतुपाल ८ देवखंड ९. ६. पे. नाम. आदिजिन ८४ गणधर नाम, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पुंडरिक सर्वज्ञ१; अंति: ८४ वितसोग सर्वज्ञ, अंक-८४. ७. पे. नाम. नवाणु पाटणना नाम, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण. पाटण के ९९ नाम, मा.गु., गद्य, आदि: बऊलीपाटण१ कणयापुरपाट; अंति: पाटण ९९ नाकफामालपाटण, अंक-९९. ८.पे. नाम. गर्भाधान के अयोग्य १५ प्रकारे स्त्री, पृ. १५अ, संपूर्ण. १५ प्रकारे गर्भाधान के अयोग्य स्त्री-ठाणांगे, मा.गु., गद्य, आदि: अप्राप्त योवना बार; अंति: जोनी विध गर्भ न धरे. ९. पे. नाम. स्त्रीगर्भाधान के ५ प्रकार, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ३२९ ५ प्रकारे स्त्री पुरुषबिना गर्भधारण विधि, मा.गु., गद्य, आदि: स्त्री वस्त्र रहित; अंति: नाय तेणे गर्भ धरे. १०. पे. नाम. धर्मकथाना अधन, पृ. १५आ, संपूर्ण. धर्मकथा के अधन, मा.गु., गद्य, आदि: चमर इंद्रनी देवी ५; अंति: इसानइंद्रनीदेवी ८. ११. पे. नाम. मनुष्यने सातसे नाडी विवरण, पृ. १५आ, संपूर्ण. मनुष्य की ७०० नाडी, मा.गु., गद्य, आदि: १६० नाडी नाभीथी मस्त; अंति: नपुंसकने६५० नाडी होइ. १२. पे. नाम. आचारांगादि अध्ययन के नाम, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. आचारांगादि अध्ययनों के नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सस्त्रप्रगनाना उदेसा; अंति: ३६ जीव जीव विभति. १३. पे. नाम. प्राचीन नगरों के नाम, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: अजोध्यानगरी१ चंपानगर; अंति: ७४ त्रंबावतिनगरी. १४. पे. नाम. इंद्रादि द्वारा रचित समवसरण विचार, पृ. १८अ, संपूर्ण. इंद्रादि द्वारा रचित समवसरण कालमान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सौधर्मेंद्रनुं कर्यु; अंति: समोवसरण १५ दिन रहे. १५. पे. नाम. तेर क्रीया स्थानक, पृ. १८आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुइ है. १३ बोल-इरियावही क्रिया, मा.गु., गद्य, आदि: यथा स्वभावे अथवा; अंति: इर्यापथकि क्रीया १३. १६. पे. नाम. १४ विद्या नाम, पृ. १८आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: ऋग्वेद १ यजूरवेद २; अंति: पुराणशास्त्र १४. १७. पे. नाम. १४ नियम-श्रावक, पृ. १८आ, संपूर्ण. १४ नियम नाम-श्रावक, मा.गु., गद्य, आदि: सचितद्रव्य १ अचित; अंति: १३ स्नान० १४ भातपाणी. १८. पे. नाम. १४ अभ्यंतर गांठ, पृ. १८आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: मिथ्यात्व १ स्त्री; अंति: माया १३ लोभ १४. १९. पे. नाम. १४ रतनना भेद, पृ. १८आ-१९अ, संपूर्ण. १४ रत्न उत्पत्तिस्थान, मा.गु., गद्य, आदि: चक्ररतन आउधसालामा; अंति: वेताढ्यनितलाटीइ उपजे. २०. पे. नाम. १५ तिथिना नाम, पृ. १९अ, संपूर्ण. १५ दिवस नाम, मा.गु., गद्य, आदि: पुर्वागसिद्ध १ मनोरम; अंति: १४अग्नीवेसाम १५ उपसम. २१. पे. नाम. १५ रात्रीना नाम, पृ. १९अ, संपूर्ण. १५ तिथियों की रात्रि का नाम, मा.गु., गद्य, आदि: उत्तमा १ सुरक्षत्रा; अंति: अतितेजा१४ देवनंदा१५. २२. पे. नाम. १६ युगप्रधान नाम, पृ. १९आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: दयाविने कहै१ वादी; अंति: १६ वचनसीद्धी. २३. पे. नाम. १८ व्याकरण नाम, पृ. १९आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: इंद्रव्याकरण १ पाणी; अंति: १८ सीद्धसेनव्याकरण. २४. पे. नाम. १८ पुराणना नाम, पृ. १९आ, संपूर्ण. १८ पुराण नाम व ग्रंथ संख्या, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: ब्रह्मपुराण १ भोरूह; अंति: चउलखा ग्रंथ संख्या. २५. पे. नाम. अढारभार वनस्पतिना नाम, पृ. २०अ, संपूर्ण. १८ भार वनस्पति मान, मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (१)चत्वारोपुप्फीताभाराः, (२)कल्पवृक्ष १ पारिजात; अंति: मण थाए सरवाले जाणवा. २६. पे. नाम. १८ प्रकारे जीव धर्म पामे, पृ. २०आ, संपूर्ण. धर्मपालन के १८ प्रकार, मा.गु., गद्य, आदि: लाजथी धर्म पाम्यो; अंति: जंबूस्वामीवत्. २७. पे. नाम. १८ दोष रहित भाव चारित्र, पृ. २०आ-२१अ, संपूर्ण. १८ दोष रहित भावचारित्री, मा.गु., गद्य, आदि: आठ वरस मध्यनाने; अंति: आज्ञा पाखे दिक्षा. २८. पे. नाम. पंचथावरनो वर्ण, पृ. २१अ, संपूर्ण. ५ स्थावर वर्णविचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथविनो निलो वर्ण १; अंति: वनस्प० नाना प्रकारनो. For Private and Personal Use Only Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २९. पे. नाम. श्रावकना ८ गुण, पृ. २१अ, संपूर्ण. श्रावक के ८ गुण, मा.गु., गद्य, आदि: अणगल पाणी न पीइ १; अंति: सेवा करे ८ नोकारगणे. ३०.पे. नाम. ७ प्रकार ग्यान नावडे, पृ. २१अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुइ है. ७ ज्ञानावरणी कर्म, मा.गु., गद्य, आदि: जैनसास्त्र वेचे १; अंति: ७ मिथ्यात उपदेसे. ३१. पे. नाम. अढिदीप बाहिर एतला वाना नहि, पृ. २१अ-२१आ, संपूर्ण. अढीद्वीप के बाहर की स्थिति का वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: मेघनी उत्पति नहि १; अंति: ७ कालनो मान हुवे नहि. ३२.पे. नाम. श्रावकने घरे नव चंद्रवा जोईए, पृ. २१आ, संपूर्ण. श्रावक के घर में ९ चंद्रवा का विधान, मा.गु., गद्य, आदि: पाणीहारे १ उखले २; अंति: पोषधसाल उपर ९. ३३. पे. नाम. सात गरणा जोइए, पृ. २१आ, संपूर्ण. गरणा-श्रावक के घरमें, मा.गु., गद्य, आदि: पाणीनु गरणु १ छाणानु; अंति: गरणु ६ तेलनु गरणु ७. ३४. पे. नाम. भारनुमान, पृ. २१आ, संपूर्ण. भारमान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: षट सरसवे एक जव थाय; अंति: (१)दस धडीए एक भार, (२)संख्या कहि सास्तोक्त. ३५. पे. नाम. नव नियाणा नाम, पृ. २१आ-२२अ, संपूर्ण. ९नियाणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: राजाने नियाणे बोधबीज; अंति: पामे पण मोख न जाय ९. ३६. पे. नाम. आठ बोल जाण पणाना, पृ. २२अ, संपूर्ण. ८ बोल-जाणपणा के, मा.गु., गद्य, आदि: न जाणे न आदरे न पाले; अंति: पाले ते चारित्रीयो ८. ३७. पे. नाम. २१ गुण श्रावकना, पृ. २२अ, संपूर्ण. श्रावक २१ गुण वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: अक्षुद्र १ रूपवंत २; अंति: विषये लब्ध लक्ष, अंक-२१. ३८. पे. नाम. २४ बोल जाणे तब गणधर १४ पूर्व रचे, पृ. २२आ, संपूर्ण. गणधरलब्धि विधि, मा.गु., गद्य, आदि: उपनेएवा १ धुवएवा २; अंति: २४ बोल गणधर सर्व रचे. ३९. पे. नाम. चोविसतिर्थंकर के मातापिता की गति विवरण, पृ. २२आ, संपूर्ण. २४ तिर्थंकर के मातापिता की गति विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: ऋषभदेवनो पीता नाग; अंति: अच्यूय देवलोके जाणवा. ४०. पे. नाम. आचार्यना ३६ गुण, पृ. २३अ-२३आ, संपूर्ण. ३६ गुण आचार्य, मा.गु., गद्य, आदि: आर्य देसना उपना ते; अंति: विनयादिक० सहित ३६. ४१. पे. नाम. देवादिगतिमांथी जीव आवे तेहना लक्षण, पृ. २३आ, संपूर्ण. देवादिचतुर्गति आगत जीवलक्षण, मा.गु., गद्य, आदि: उदारचित्त १ सूरवंत २; अंति: ए लक्षण जाणवा. ४२. पे. नाम. कर्मबंध भेदप्रभेद विचार, पृ. २३आ-२५आ, संपूर्ण. ८ कर्मबंध विचार, मा.गु., गद्य, आदि: दयावंत १ दानवंत २; अंति: (१)१७ अदत १८ बधीर, (२)एवं १८ बोल अंतरायना. ४३. पे. नाम. तीर्थंकर सिद्धिगमन आसन विचार श्लोक, पृ. २५आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुइ है. २४ तीर्थंकर सिद्धिगमन आसन वर्णन गाथा, प्रा., पद्य, आदि: उसभे नेमी विरोः तिनी; अंति: संतिकरा पुइया गीहे, गाथा-२. ४४. पे. नाम. पांचसमवाय विचार, पृ. २५-२६आ, संपूर्ण. ५ समवाय विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम कालवादी बोल्यो; अंति: सम्यक्त्ववंत जाणवो. ४५. पे. नाम. जल माणसा अधिकार, पृ. २६आ-२७अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पनर भेदना परमाधामी; अंति: माणसने पीडाकरी न सके. ४६. पे. नाम. सात ठामे वंदणा नीषेध, पृ. २७अ-२७आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ गुरुवंदन निषेध समय, मा.गु., गद्य, आदि: विग्रह चित्ते गुरू; अंतिः करता होय ७ ए सात ठाम. ४७. पे. नाम. सात मंडलीना नाम, पृ. २७आ, संपूर्ण. मांडली ७ नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सुत्रनी मंडली १ अर्थ, अंति: ७ ए सात मंडली जाणवी. ४८. पे नाम, गुरुवंदन के ८ स्थान, पृ. २७आ, संपूर्ण. गुरुवंदन के ८ स्थान, मा.गु, गद्य, आदि: पडिकमणु करतां १ अंतिः ८ ठामे गुरूने चांदवा. ४९. पे. नाम. पनरभेदे सीद्ध नाम, पृ. २७-२८अ, संपूर्ण. सिद्ध के १५ द्वार बोल, मा.गु., गद्य, आदि: जीन सीद्धा ते रिषभदे, अंति: ते भरत पुत्रादिक. ५०. पे. नाम. सोल उद्धार नाम, पृ. २८अ, संपूर्ण. १६ उद्धार - शत्रुंजयतीर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भरतनो १ दंडविर्धनो २ अंति: (-). ५१. पे नाम. पांच समकितनी स्थिति, पृ. २८अ, संपूर्ण, ५ सम्यक्त्व का कालमान, मा.गु., गद्य, आदिः खायकनो काल ३३ सागरोप; अंति: काल ६ आवलिकानो जाणवो. ५२. पे. नाम. तीर्थंकर सिद्धिगमन आसन विचार श्लोक, पृ. २८अ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक जुहु २४ तीर्थंकर सिद्धिगमन आसन वर्णन गाथा, प्रा., पद्य, आदि: उभे नेमी विरो: तिनी, अंति: काउसगांमी सीद्धाय, गाथा - १. ५३. पे. नाम. बत्रीस असज्झाय नाम, पृ. २८अ - २८आ, संपूर्ण. ३२ असज्झाय विचार, मा.गु., गद्य, आदिः उल्कापात ते तारो खरे; अंति: ३ उतकष्ट दिन असझाय. ५४. पे. नाम मिच्छामि दुकडं बोल संग्रह, पृ. २८आ, संपूर्ण ५६३ जीवों के साथ मिच्छामिदुक्कडं, मा.गु., गद्य, आदि: ५६३ जीवना भेद, अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ५५. पे. नाम. वीसविहरमानजिन विवरण, पृ. २९-३० आ. संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दान के १० प्रकार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: अनुकंपादान १ संग्रह, अंतिः सुपात्रदान १० अभवदान. ५८. पे. नाम. दस पड़नाना नाम, पृ. ३३अ, संपूर्ण. ३३१ २० विहरमानजिन विवरण, मा.गु., को., आदिः श्रीमंधरस्वामी, अंति: अं० १० २० अं० १२०. ५६. पे. नाम. मिथ्यात्व भेद, पृ. ३१अ - ३२आ, संपूर्ण, पे. वि. "यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है " मिथ्यात्व भेद विचार संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि जे लौकिक देवता हरीहर, अंतिः व्रतना राति जगा करे. ५७. पे नाम, दस दानना नाम, पृ. ३३अ, संपूर्ण. १० प्रकीर्णक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: चउसरण पइनू १ संथारा, अंति: पचखाण १० माहापचखाण. ५९. पे. नाम. दस वाना छद्यस्थ न देखे, पृ. ३३अ संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है. १० वाना छद्मस्थ न देखे, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मास्तीकायने न देख, अंतिः दुखनो अंत कहिय थासेए. ६०. पे. नाम. समकिती तथा देसविरति ११ बोल जाणे. प्र. ३३२-३३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only . सम्यग्दृष्टि, देशविरति व सर्वविरति ११ बोल, मा.गु, गद्य, आदि: विधिवाद १ जे वितरागड़ अंतिः गम्यतइ निश्चयवाद. ६१. पे. नाम. समवसरण मान, पृ. ३३आ, संपूर्ण. २४ जिन समवसरणमान विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: ऋषभदेवने १२ जोजन समो; अंति: महावीर स० गा० ४. ६२. पे. नाम, पल्योपम-सागरोपम त्रण प्रकार, पृ. ३४-३४आ, संपूर्ण, मा.गु., गद्य, आदि: पल्योपमना त्रण भेद, अंति: अनु० मध्ये घणो है. ६३. पे. नाम. १८ भावदिस नाम, पृ. ३४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., गद्य, आदि: पृथवीदस १ पाणीदीस २ अंतिः अदार द्रव्य दस जाणवी, संपूर्ण ६४. पे. नाम. ६ दर्शने ९६ पाखंडी नाम उत्पत्ति आदि विवरण, पृ. ३८अ - ३९अ, संपूर्ण. ६ दर्शने ९६ पाखंडी नाम, मा.गु, गद्य, आदि: (१) जैन दर्शननान१७ भेद, (२) जैनदर्शन श्वेतांबर, अति: देव इश्वर गुरु जोगी, Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६५. पे. नाम. लाडवाना ३१ नाम, पृ. ३९अ-३९आ, संपूर्ण. ३१ प्रकार के लाडु नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सेवैया लाडू१ मोतिया; अंति: ३१ जीरजलाडू. ६६. पे. नाम. छत्रीस राजकुलना नाम, पृ. ३९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. ३६ राजकुल नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सूर्यवंश १ सोमवंश २; अंति: होडवंसी ३६ मार्गवंसी, संपूर्ण. ६७. पे. नाम. तेर क्रीया थानक, पृ. ४८अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से ___ अधिक बार जुडी हुइ है. १३ बोल-इरियावही क्रिया, मा.गु., गद्य, आदि: यथा स्वभावे अथवा; अंति: इर्यापथकि क्रीया १३, संपूर्ण. ६८. पे. नाम. ज्योतिष संग्रह, पृ. ४८अ-४८आ, संपूर्ण. ज्योतिष*, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ६९.पे. नाम. श्रावकना १२४ अतिचार, पृ. ४८आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हैं. श्रावक व्रत १२४ अतिचारविचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानना अतिचार ८; अंति: एव १२४ जाणवा. ७०.पे. नाम. दस सुख विपाकी जीव विवरण, पृ. ४९अ-४९आ, संपूर्ण. १० सुख विपाकीया जीव के नाम मातापिता नगरादि विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: जीव नाम नगरनो नाम; अंति: सुखे सुखे मोक्ष जासे. ७१. पे. नाम. दुख विपाकियाना नाम मातापिता पुर्वभव आदि विवरण, पृ. ५०अ-५०आ, संपूर्ण. दुख विपाकीया जीव के नाम मातापिता नगरादि विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: मृगालोढीयो १ मृगा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रथम १० नाम के ६ बोल तक लिखा है.) ७२. पे. नाम. काक शुकन यंत्र, पृ. ५१अ-५१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ७३. पे. नाम. ज्योतिषचक्र कोष्टक, पृ. ५४अ, संपूर्ण. ज्योतिषगणित कोष्टक, अज्ञा., को., आदि: (-); अंति: (-). ७४. पे. नाम. दूहा संग्रह, पृ. ५४अ-५४आ, संपूर्ण. दूहा संग्रह*, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: मेरू वडो नहि डूगरो; अंति: तब हरि भयो उदास, (वि. संग्राहात्मक गाथा-१०) ७५. पे. नाम. एकसोसित्तेर १७० तीर्थंकरनो नाम, पृ. ५५अ-५८आ, संपूर्ण, वि. १८८२, पौष शुक्ल, ७, शनिवार, पे.वि. अंत में मुनइग्यारसी कल्याणक १५० ऐसा लिखा है. १७० जिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजयदेव श्रीकर्णभद; अंति: श्रीआरणनाथाय. ७६. पे. नाम. अठाविस लब्धि नाम, पृ. ५९अ-६०अ, संपूर्ण. २८ लब्धि नाम, मा.गु., गद्य, आदि: जे ऋषीसरने हस्तादिक; अंति: ते पुलाक लबधी कहिइ. ७७. पे. नाम. साधुने बारकुलनी गोचरी खपे, पृ. ६०अ, संपूर्ण. १२ कुल गोचरी, मा.गु., गद्य, आदि: उगा कुलाणी वा १ भोग; अंति: १२ पोकसाल कुलाणी वा. ७८. पे. नाम. अढार प्रकारे जीव धर्म पामे, पृ. ६०आ-६१अ, संपूर्ण. १८ प्रकार से धर्म प्राप्ति, मा.गु., गद्य, आदि: लाजथी धर्म पामे; अंति: विजोगे सनतकुमारवत्. ७९. पे. नाम. अठारजणने दीक्षा नावे, पृ. ६१अ-६१आ, संपूर्ण. १८ प्रकार अयोग्य दीक्षा, मा.गु., गद्य, आदि: आठ वरसनो नानो छे; अंति: कृता माणस माराने. ८०. पे. नाम. सीताजीना १६ भव, पृ. ६१आ, संपूर्ण. सीतासती १६ भव विचार, मा.गु., गद्य, आदि: गुणवंति सेठनि पुत्री; अंति: तिर्थंकर महाविदेह १६. ८१. पे. नाम. लखमणना २६ भव, पृ. ६१आ-६२अ, संपूर्ण. लक्ष्मणजी २६ भव वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: वसुदतसेठ १ हरिण; अंति: ६ तिर्थंकर महाविदेहे. ८२. पे. नाम. रावणना भव २८, पृ. ६२अ, संपूर्ण. रावण २८ भव वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीकांतसेठ १ मृग; अंति: २८तीर्थंकर माहाविदेह. For Private and Personal Use Only Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ८३. पे. नाम. सडसठ बोल समकित, पृ. ६२अ-६४अ, संपूर्ण, पे.वि. "यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई ६७ सम्यक्त्व भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रथम च्यार सदहणा, (२)प्रमार्थ जाणवाने; अंति: कारण समकित छै. ८४. पे. नाम. १० दस वाना छद्मस्थ न देखे, पृ. ६४अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई १० वाना छद्मस्थ न देखे, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मास्तीकायने न देख; अंति: दुखनो अंत कहिय थासेए. ८५. पे. नाम. ११ पडिमाना नाम, पृ. ६४अ-६४आ, संपूर्ण. श्रावक ११ प्रतिमा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहेली दर्शन पडि निरत; अंति: पडीमा धारी श्रावक छै. ८६. पे. नाम. आचार्यना ३६ गुण, पृ. ६५अ-६५आ, संपूर्ण. आचार्य ३६ गुणवर्णन, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: आरजदेसना उपनो ते देस; अंति: प्रगट कावि निसल करे. ८७. पे. नाम. ३३ आशातना नाम, पृ. ६६अ-६६आ, संपूर्ण.. ___३३ आशातना विचार-गुरुसंबंधी, मा.गु., गद्य, आदि: गुरू आगले चाले तो आस; अंति: उचे बेसे तो आसातना. ८८. पे. नाम. युगप्रधान, साधु, साध्वी, राजा, श्रावक और श्राविका संख्या गाथा, पृ. ६७अ-६७आ, संपूर्ण. युगप्रधान साधुसाध्वी राजा श्रावकश्राविका संख्या गाथा, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: जुगपहाण समणा एकारस; अंति: सावया विति परम गुरू, गाथा-१०. ८९. पे. नाम. देवादिगति आयुष्यबंध विचार बोल, पृ. ६७आ-६९आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने भूल से पत्रांक ६९ दो पत्रों पर लिखा है. मा.गु., गद्य, आदि: अल्प कषाइ १ विणवेग; अंति: धन छेदन अंतराय१८. ९०.पे. नाम. ६३ सीखामण बोल, पृ. ७०अ-७१आ, संपूर्ण. औपदेशिक ६३ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पेले बोले सदगुरुने; अंति: छतिरूधीना त्यागी. ९१. पे. नाम. समकित ६७ बोल, पृ. ७१आ-७३आ, संपूर्ण, पे.वि. "यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई ६७ सम्यक्त्व भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जीवादिक पदार्थ जाणवा; अंति: मोक्ष जावानो उपाय छे. ९२. पे. नाम. उपदेश द्रष्टांत, पृ. ७३आ-७५अ, संपूर्ण. औपदेशिक दृष्टांत, मा.गु., गद्य, आदि: (१)कोहोपियंपणासेइ माणोव, (२)क्रोध प्रीत नसाडे ते; अंति: ए बहू सुखी थीया. ९३. पे. नाम. बोल संग्रह, पृ. ७५अ-७७अ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (वि. विविध बोल संग्रह है.) ९४. पे. नाम. मिथ्यात्व भेद विचार, पृ. ७७अ-७९आ, संपूर्ण, पे.वि. "यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई मिथ्यात्व भेद विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अभिग्रहि मिथ्यात; अंति: आसातना मीथात कहिइ. ९५. पे. नाम. जीव को धर्म का सहारा बोल संग्रह, पृ. ७९-८०अ, संपूर्ण. बोल संग्रह *प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: बीहता जीवने जेम सरणा; अंति: दयामातानो आधार जाणवो. ९६. पे. नाम. चरणसित्तरीकरणसित्तरी बोल संग्रह, पृ. ८०अ, संपूर्ण. चरणसित्तरी के ७० व करणसित्तरी के ७०बोल, मा.गु., गद्य, आदि: ५ महाव्रत १० जतिधर्म; अंति: करणसित्तरीना जाणवा, (वि. अंत में परचूरण नोट लिखा है.) ९७. पे. नाम. २० स्थानक बोल, पृ. ८०अ-८०आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप आराधनाविधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं २०००; अंति: २००० लोगस २५ नो का०. ९८. पे. नाम. श्रावकना १२४ अतिचार, पृ. ८०आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई हैं. श्रावक व्रत १२४ अतिचार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानना अतिचार ८; अंति: एव १२४ जाणवा. For Private and Personal Use Only Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५४४६५. (+) प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टबार्थ-श्रुतस्कंध १, संपूर्ण, वि. १८८२, आश्विन शुक्ल, ३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १०६, ले.स्थल. वांकानेर, प्रले. श्राव. जेसंग वर्धजेचंद शेठ; अन्य. सा. तेजुबाई महासती (गुरु सा. हेमकुवरबाई महासती); गुपि.सा. हेमकुवरबाई महासती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. कुल ग्रं. ३५००, जैदे., (२५.५४११, ४४२८). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: जंबू इणमो अण्हयसंवर; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अएह० अपिविधिनाएह०; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५४४६६. नंदीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७८, गृही. मु. नानजी ऋषि; अन्य. सा. वेलबाई आर्या; श्रावि. सुंदरबाई; सा. मोतीबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका बाद मे लिखी गई है., त्रिपाठ., जैदे., (२५.५४११, १२४३८). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: वीसमणुन्नाई नामाई, सूत्र-५७, गाथा-७००, (वि. प्रथम परिशिष्ठ अणुन्नानंदी सहित.) नंदीसूत्र-टबार्थ*, मागु., गद्य, आदि: नंदी कहतां आणंदनो; अंति: अनुज्ञाना नाम जाणवा. ५४४६७. भरत राजा रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-१(१)=१३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२५४११, १४४३०). भरतचक्रवर्ती रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल १ गाथा ६ अपूर्ण से ढाल १० गाथा १६ अपूर्ण तक ५४४६८. (+#) पाच खामणां, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १३४३४). ५ खामणा, मा.गु., गद्य, आदि: पेला खामणा अढीदीप; अंति: (-), (पू.वि. चोथा खामणा अपूर्ण तक है.) ५४४६९. (+) महानिशीथसूत्र अध्ययन ४-५ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३८, भाद्रपद कृष्ण, १४, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ८७, प्रले. शंकर हरजीवन व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२५.५४११, ६४३१). महानिशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. महानिशीथसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५४४७१. (#) हितोपदेश बत्रीसी सवैया, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३८). ___ अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद मुनि, पुहि., पद्य, वि. १६८५, आदि: अजर अमर पद परमेसर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३३ रचना प्रशस्ति अपूर्ण तक है.) ५४४७२. बावीस परीसह उदाहरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४.५४११.५, १२४३९). २२ परिषह दृष्टांत, मा.गु., गद्य, आदि: उजेणी नगरीयइ हस्तमित; अंति: (-), (पू.वि. सुनंद वणिक द्रष्टांत अपूर्ण तक है.) ५४४७३. अमरसेन रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४१). अमरसेन वज्रसेन रास, मु. तेजपाल, मा.गु., पद्य, वि. १८२४, आदि: प्रथम जिणेशर प्रणमीय; अंति: (-), (पू.वि. खंड ४ ढाल १२ अपूर्ण तक है.) ५४४७४. महावीरजिन विवरण संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १६-५(१ से ४,१५)=११, दे., (२५४१०.५, १२४४२). महावीरजिन जीवन प्रसंग, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बालक रूपे देवता के साथ रमत-गमत से भगवान का साधु-साध्वी आदि परिवार तक है.) ५४४७५. (+#) प्रश्नव्याकरण सूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९३-८७(१ से ८७)=६, प्र.वि. अंत में 'ऋषि गणसजीनी प्रत छे रुषी रवजीनी छे परत रुष गागजीनी प्रत छे'. ऐसा लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ७४३५). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (१)भविस्सत्ती तिबेमि, (२)अंगंजहा आयारस्स, अध्याय-१०, गाथा-१२५०. प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: हुस्यइ एहवू कहिउ. For Private and Personal Use Only Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ३३५ ५४४७६. (#) दसवैकालिक सूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७८-६४(१ से ६४)=१४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ५४३२). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: गई त्ति बेमि, अध्ययन-१०, (पू.वि. अ.८ ___गा.६१ तक नही है.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: तीर्थंकरनु प्ररुप्यु. ५४४७७. स्तवन व छंद संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(७)=८, कुल पे. ९, दे., (२५४१०.५, १३४४१). १.पे. नाम. चोवीसजिन छंद, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन-पांसठीयायंत्र गर्भित, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमीसर संभव; अंति: संग मुनि नाम निधान, गाथा-७. २. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिधार्थ कुल; अंति: मुनी भाव प्रधान, गाथा-५. ३. पे. नाम. आदेसरनी वीनती, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: जय पढम जिणेसर; अंति: लावण्यसमय० इम भणीया, गाथा-४४. ४. पे. नाम. सुपन मोटा, पृ. ३आ-५आ, संपूर्ण. १४ स्वप्न सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: देव तिर्थंकर केरडी; अंति: लावनसमे इम भणे ए. ढाल-४. गाथा-४६. ५. पे. नाम. चोवीस तिर्थंकर स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: आदि जिणेसर पहेला; अंति: मानवभव जे थया वरति, गाथा-७. ६. पे. नाम. सीमंधरनो छंद, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. गंग मुनि शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि: श्रीसीमंदिरस्वामी; अंति: कहे करी प्रणाम, गाथा-१३. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्ष, पृ. ६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षजी, मु. आनंदवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु पासजी ताहरूं; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. गाथा ९ कलश के अंतिम पद नहीं है.) ८. पे. नाम. पार्श्वनाथनो छंद, पृ. ८अ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७१२, आदिः (-); अंति: मुदा प्रसन्नात्, गाथा-३२, (पू.वि. गाथा २० अपूर्ण तक नहीं है.) ९.पे. नाम. घग्घरपार्श्वजिन निसाणी, पृ. ८आ-९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहि., पद्य, आदि: सुखसंपत्तिदायक सुरनर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १८ अपूर्ण तक है.) ५४४७८. (+#) सूयगडांगसूत्र- अध्ययन ५ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७६३, आश्विन शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ११-६(१ से ६)=५, प्रले. मु. हीरचंद (गुरु मु. जेसिंघजी ऋषि); गुपि. मु. जेसिंघजी ऋषि; पठ. श्रावि. सुहासणबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में 'रुषि डुगरसी स्वामीनी छे अने रुषि नेणसीने आपी छे. रुषी डुगरजी स्वामीनी छे लीडणजी सामी आपी छे'. ऐसा लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ५४४०). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., अ०५ गाथा १८ अपूर्ण तक नहीं है व वीरस्तुति अध्ययन तक लिखा है., वि. वीर स्तुति अध्ययन संपूर्ण है.) सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ५४४७९. स्तवन व सझायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. ११, दत्त. सा. नाथीबाई आर्या; गृही. श्रावि. कमलाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२५४१०.५, १६x४१). For Private and Personal Use Only Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. नेम राजुल गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, पंडित. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पोपटडा संदेसो केजे; अंति: ते उपर जाउ बलहारी रे, गाथा-७. २.पे. नाम. अणगोस सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ____ अणगस गीत, मु. माणिक, रा., पद्य, आदि: अणगस करवो कालि बाई; अंति: करज्यो वारोवार, गाथा-२३. ३. पे. नाम. स्त्रीयोना कथलानी सज्झाय, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. विकथा सज्झाय-स्त्रियों के कथला, मु. महानंद, रा., पद्य, वि. १८१०, आदि: आठम पाखी परव पजोसण; अंति: कीधो विकथानो विसतार, गाथा-४७. ४. पे. नाम. संवेगबावीसी, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. श्राव. तेजपाल सा, मा.गु., पद्य, आदि: सुध संवेगी किरीया; अंति: तेजपाल० किम पामे पार, गाथा-२३. ५. पे. नाम. कुलवधूसज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामी सुपसाय; अंति: सुणता सुख वहु ए, गाथा-५. ६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-मांकण, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. माणेक, मा.गु., पद्य, आदि: मांकणनो चटको दोहिलो; अंति: माणक० वाधी ख्यात, गाथा-८. ७. पे. नाम. ग्यान गरबो, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. भूधर, मा.गु., पद्य, आदि: आदिशकति आस्युं नोरतै; अंति: भूधर० जयकारमांजी, गाथा-१०. ८. पे. नाम. धर्म कथा सज्झाय, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण. २० सखी सज्झाय, मु. गोरधन, मा.गु., पद्य, आदि: उतम साध पधारीया गुण; अंति: भव भव तेहनो विगोसी, गाथा-२७. ९.पे. नाम. नेमराजुलचौवीस चोक, पृ. ५आ-९अ, संपूर्ण. नेमगोपी संवाद-चौवीसचोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: एक दिवस वसे नेमकुमर; अंति: तस सीस अमृत गुण गाया, चोक-२४. १०. पे. नाम. नेम राजुल सज्झाय, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवल गोख अमुल झरूखा; अंति: सेवक देव नमे हेतकारी, गाथा-८. ११. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, प्र. ९आ, संपूर्ण. मु. चोथमल, रा., पद्य, आदि: हारे भाई नरग निगोद; अंति: चोथमल चरणारी बलीहारी, गाथा-१२. ५४४८०. लघु दंडक द्वार विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२५.५४११.५, १२४३७). २४ दंडक २५ द्वार विचार, मा.गु., प+ग., आदि: सरीरोगाहणा संघयण; अंति: (-), (पू.वि. प्राणद्वार-२५ तक है.) ५४४८१. गांगेयभंग विचार सह बालावबोध, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-१(१०)=११, दे., (२६४१०.५, १७X४०-४८). गांगेयभंग विचार, मा.गु., पद्य, आदि: एतो सुत्र तणे अनूसार; अंति: संख्यं रूपकं भवेत्, गाथा-३१. गांगेयभंग विचार-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अथ गांगीयाना भांगानी; अंति: (-). ५४४८२. (+#) तंदलवैचारिकप्रकीर्णक सूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६४, श्रेष्ठ, पृ. ३०, प्रले. मु. गांगजीजी ऋषि (गुरु म्. हरजीजी स्वामी); गुपि.मु. हरजीजी स्वामी (गुरु मु. शीवचंदजी ऋषि); मु. शीवचंदजी ऋषि (गुरु मु. वणारसीजी ऋषि); मु. वणारसीजी ऋषि (गुरु मु. वनाजी ऋषि); मु. वनाजी ऋषि (गुरु मु. मुलचंदजी ऋषि); मु. मुलचंदजी ऋषि (गुरु मु. धर्मदासजी ऋषि); मु. धर्मदासजी ऋषि, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ५४४०). तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक, प्रा., प+ग., आदि: निजरिय जरामरणं; अंति: मुच्चह सव्वदुक्खाणं, (वि. १८६४, फाल्गुन कृष्ण, ११, शुक्रवार) For Private and Personal Use Only Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ३३७ ___ तंदलवैचारिक प्रकीर्णक-टबार्थ, रा., गद्य, आदिः (१)नमस्कार हुजो श्रीवीत, (२)तप जप संजमनइ वलइ; अंति: - मानसीयादि दुख थकी, (वि. १८६४, चैत्र शुक्ल, ३, मंगलवार) ५४४८३. (+#) भगवतीसूत्र, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १४१, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४०-५३). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० णमो ब; अंति: (-), (पू.वि. शतक ११ उद्देशा १ अपूर्ण तक है.) ५४४८४. (+#) ढालसागर-हरीवंश प्रबंधे, संपूर्ण, वि. १८५६, श्रावण शुक्ल, १, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १७१, ले.स्थल. धोराजी, प्रले. श्राव. लीलार शेठ; अन्य. मु. रामचंद ऋषि (लोंकागछ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४४२). पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: श्रीजिन आदिजिनेश्वरू; अंति: जपे संघ रंग वधामणो, खंड-९, ग्रं. ६०१२, (वि. ढाल १५१.) ५४४८५. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२१, पौष शुक्ल, ७, शनिवार, मध्यम, पृ. ४११, ले.स्थल. वेरावलबंदर, प्रले. मु. प्रागजी ऋषि (गुरु मु. वणारसी ऋषि, बृहत् लौकागच्छ); गुपि.मु. वणारसी ऋषि (गुरु मु. खीमजी ऋषि, बृहत् लौकागच्छ); मु.खीमजी ऋषि (गुरु मु. वर्धमानजी ऋषि, बृहत् लौकागच्छ); मु. वर्धमानजी ऋषि (गुरु मु. सगालजी ऋषि, बृहत् लौकागच्छ); मु. सगालजी ऋषि (गुरु मु. सहसकर्णजी ऋषि, बृहत् लौकागच्छ); मु. सहसकर्णजी ऋषि (बृहत् लौकागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. अंत में 'परत बाइ सुंदरबाइ तथा बेन वेलकुअरिनी छे ते आरजी मोतिबाइने आपी छे, ऋषी भाणजीने आघडु आपुछे'. ऐसा लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२५.५४१०.५, ५४४३). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० चंपाए; अंति: सुयखधो समत्तो, अध्ययन-१९, ग्रं. ५५००. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, उपा. कनकसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि: अंति: बीजो संपूर्ण थयो, ग्रं. १६००. ५४४८६. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५३३-१६५(२११ से २८७,३०३,३७९ से ४६५)=३६८, अन्य. सा. नाथीबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले.श्लो. (९६३) यादशं पुस्तकं द्रष्टा, जैदे., (२५.५४११, ५४३०). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: धम्मकहाओ सम्मत्ताउ, अध्ययन-१९, ग्रं. ५३७५. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: ते० तेणे काले चउथे; अंति: सं० संपूर्ण थयो. ५४४८७. (+) आचारांगसूत्र सह टबार्थ श्रुतस्कंध-२, संपूर्ण, वि. १८५९, श्रावण शुक्ल, ११, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २७६, ले.स्थल. भुजनगर, प्रले. हरदेवजी छगनजीत्रवाडी; श्राव. खीमजी छगनजी त्रवाडी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. १२५५४, जैदे., (२५४११, ४४२८). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: विमुच्चइ त्ति बेमि, ग्रं. ८५५४, प्रतिपूर्ण. आचारांगसूत्र-टबार्थ, मु. धर्मसी, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: होइं इम हुंकहुंछउ, ग्रं. ६४००, प्रतिपूर्ण. ५४४८८. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११, ४४२५-२८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन ५ गाथा ३ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (१)उत्तराध्ययननो ए अर्थ, (२)सं० बाह्यअभ्यंतर; अंति: (-). ५४४८९. उत्तराध्ययनसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २१९-२१४(१ से २१४)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२५.५४११, ९४२६). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन २८ वाँ अपूर्ण है.) For Private and Personal Use Only Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उत्तराध्ययनसूत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५४४९०. (+) दशवैकालिकसूत्र अध्ययन-६ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२५४११.५, ४४२९). दशवकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अध्ययन ६ गाथा ६८ अपूर्ण तक है.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: ना० श्रुतज्ञानादि; अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ५४४९१. (+) दशवैकालिकसूत्र अध्ययन-५ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९५०, कार्तिक शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. २५-१६(१ से १६)=९, ले.स्थल. मोरबी, प्रले. श्राव. करसन भटाजी दोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२४.५४१०.५, ४४२९). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अ० ५ उद्देसो १ गाथा ९८ अपूर्ण से अ०५ उद्देसा २ संपूर्ण तक है.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ५४४९२. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १३२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ९४३०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन ३६ गाथा २६१ अपूर्ण तक है.) ५४४९३. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ५४३३). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अध्ययन १६ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: परीसादिक सहवानो वात; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन १६ अपूर्ण तक टबार्थ लिखा है.) ५४४९४. (+) प्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह सह टबार्थ (स्थानकवासी), संपूर्ण, वि. १८६९, कार्तिक शुक्ल, २, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ७५, ले.स्थल. भुजनगर, प्रले. श्राव. खीमजी छगनजी त्रवाडी; अन्य. मु. कानजी ऋषि (गुरु मु. भाणजी ऋषि); गुपि. मु. भाणजी ऋषि (गुरु मु. जयचंद्र ऋषि); मु. जेचंदजी ऋषि (गुरु मु. रामचंद्र ऋषि); मु. रामचंद्र ऋषि (गुरु मु. वनीत ऋषि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अंत में 'रूषि रामचंदजीना छे' ऐसा लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. कुल ग्रं. २०००, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५.५४११, १५४२५). साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं०; अंति: गुणधारणा ६ चेव. साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: न० नमस्कार हो अ०; अंति: ए छठो आवस्यक. ५४४९५. दशाश्रुतस्कंध सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६३, मार्गशीर्ष कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ८४, ले.स्थल. धारोजी, प्रले. श्राव. लीलाधर आणंदजी सेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में "आ प्रत संघणीना थानकना भंडारनी छे. आरजा जसोदाना छे, रूषी जेचंदजी रूषी भाणजीनी छे". ऐसा लिखा है., जैदे., (२५.५४११, ५४३०). दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (१)नमो अरिहंताणं० हवइ, (२)सुयं मे आउसं तेण; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, दशा-१०. दशाश्रुतस्कंधसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (१)श्रीदशाश्रुतस्कंध, (२)न० नमस्कार हुओ; अंति: जंबू प्रते कहों. For Private and Personal Use Only Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५४४९६. (+#) संग्रहणीसूत्र सह बालावबोध व बोल संग्रह, पूर्ण, वि. १८२० आश्विन शुक्ल, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ७४-१(१)=७३, कुल पे. २, ले.स्थल. गुडल, प्रले. मु. कासीजी ऋषि (गुरु मु. धनजी ऋषि); गुपि. मु. धनजी ऋषि (गुरु मु. जेंसिंघजी ऋषि); मु. . जेंसिंघजी ऋषि (गुरु मु. जगनाथ ऋषि); मु. जगनाथ ऋषि (गुरु मु. किसनाजी ऋषि); मु. किसनाजी ऋषि (गुरु मु. रूपाजी ऋषि); मु. रूपाजी ऋषि (गुरु मु. बलाजी ऋषि), मु. बलाजी ऋषि (गुरु मु. कुसलाजी ऋषि); मु. कुसलाजी ऋषि, अन्य. जगनाथ, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- त्रिपाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४४२). १. पे. नाम. संग्रहणीसूत्र सह बालावबोध, पृ. २अ - ७४अ, पूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा- ३३५, संपूर्ण. बृहत्संग्रहणी- बालावबोध मे, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: तिहां लगि आणंदो, पूर्ण. २. पे. नाम बोल संग्रह, पृ. ७४आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. आश्रव, संवर आदि बोल संग्रह.) ५४४९७. मृगालोढा ढाल, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १० - १ (१) = ९, जैदे., (२५.५X११, १३X२७). मृगलोढा रास, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८१२, आदि: (-); अंति: जेमल० मुहडे जेणा राख, ढाल -८, (पू.वि. ढाल १ गाथा ६ अपूर्ण तक नहीं है.) ३३९ ५४४९८. (+) सूयगडांग सूत्र सह टबार्थ श्रुतस्कंध - १९, पूर्ण, वि. ९८४४, आश्विन कृष्ण, १४, बुधवार, मध्यम, पृ. ५९-१(२४)=५८, ले. स्थल. बीकानेरनयर, प्र. वि. अंत में आ प्रत माहासती पानबाइ सांमीनी छे. ऐसा लिखा है. टिप्पण युक्त विशेष " पाठ-संशोधित. प्र. ले. शे. (६१२) यादृशं पुस्तके दुष्ट, जै, (२५X११, ६३७-३८). , सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि: बुज्झेज्झ तिउज्जि, अंति: (-) (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. अ. ४.उ.१ गा.१७ से गा.२८ तक नही है.) सूत्रकृतांगसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१) श्रीआचारांग० छकाय, (२) श्रीजंबूस्वामी, अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ५४४९९. (+) उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १८५६, भाद्रपद शुक्ल, १४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १११ + १ (५१) = ११२, ले. स्थल. पोरबंदर, लिख. श्राव. खीमजी वाघजी; अन्य. सा. केसरबाई आर्या, सा. देवबाई स्वामी (गुरु सा. हेमकुवरबाई महासती); गुपि. सा. हेमकुंवरबाई महासती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अंत में 'प्रत शंघाणीना थानकना भंडारनी छे'. ऐसा लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. जै.. (२५x११, ११४३९). " उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स, अंति: सम्मए त्ति बेमि, अध्ययन-३६. ५४५०० (+) पण्णवणासूत्र व ठाणांग गाथा, संपूर्ण, वि. १८९७ फाल्गुन शुक्ल, २. गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १७४ कुल पे. २, जैदे., प्रले. मु. जैचंद ऋषि; पठ. मु. भाणजी ऋषि (गुरु मु. जयचंद्र ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., (२५X१०.५, १६-१८X३८). १. पे नाम, प्रज्ञापनासूत्र. पू. १आ- १७३ आ. संपूर्ण. वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० ववगय; अंतिः सुही सुहं पत्ता, पद- ३६, सूत्र - २१७६. २. पे. नाम. स्थानांगसूत्र - हिस्सा, पृ. १७३ - १७४अ, संपूर्ण. कम स्थानांगसूत्र- आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि (-); अंति: (-). ५४५०१. रत्नचूड रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२५.५x११, १२X३३-३९). रत्नचूड रास, मा.गु., पद्य, आविः प्रेम धरी प्रभु आदि, अंति: (-), (पू. वि. बाल- २२ की गाथा १५ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only ५४५०२. (+#) कल्पसूत्र सह टीका व टबार्थ, त्रुटक, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२४-७४ (१,८ से ११,१४ से १७,२०,२३ से ३१,३३ से ४७,४९ से ५३,५६ से ५८, ६१ से ६४,६८,७० से ७१,८३ से ८५,९१ से ९६,९८ से १०१, १०५ से १११,११६ से १२०)=५०, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जै.. (२५X११, १५४३७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३४० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची , कल्पसूत्र- टीका *. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-) (पू. वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) " कल्पसूत्र - टवार्थ *, मा.गु, गद्य, आदि: (-); अंति: (-) (पू. वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४५०३. (#) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४२, ले. स्थल. झोटाणा, प्र. वि. कुल ग्रं. ५५००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X१०.५, ७X३४-४३). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि: तेणं कालेणं० चंपाए, अंतिः पुरिसवरगंधहत्थिणं, अध्ययन-१९. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र- टबार्थ, उपा. कनकसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर, अति: माहे गंधहस्ति समान. ५४५०४, (4) स्तवन, पद, गीत व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २८-५ (१०,१२,२० से २१,२५)= २३, कुल पे. ३७. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जै. (२४.५x११, ११५२७). " - १. पे. नाम ऋषभदेव स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन प्रभाति, मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, आदिः प्रभाते पंखीडा बोले; अंति: राम० बे कर जोडी, गाथा-५. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ- २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन प्रभाति, मु. लाभउदय, मा.गु., पद्य, आदिः उठोने रे मारा आतमराम, अंति: लाभउदे० सीध वडाई रे, गाथा-५. ३. पे नाम. साधारणजिन प्रभातियुं पृ. २अ २आ, संपूर्ण, साधारणजिन प्रभातीयुं, मु. रायचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: वेणलुं वाउं रे वाला; अंति: रायचंद्र० सुखने वरिए, गाथा- ६. ४. पे. नाम. शांतिनाथ विनती स्तवन, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: शारद माय नमुं शिर, अंति: गुणसागर० शिवसुख पावे, गाथा २१. ५. पे. नाम ऋषभदेवस्वामी स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण आदिजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभजिन तुं मोहटो; अंति: केसर ० दरसण सुखकंद, गाथा-५. ६. पे. नाम. बाहुजिन स्तवन, पू. ४अ ४आ, संपूर्ण. ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: रांमत रमवा हु गइ, अंति: जिनहरख० अवतार रे माय, गाथा-८. ७. पे नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. ४-५ अ, संपूर्ण. सुमतिजिन समवसरण गीत, ग. जीतविजय, मा.गु., पद्य, आदिः आज गई हुं समोसरण में, अंति: जितना डंका वाजे रे, गाथा ६. ८. पे. नाम. श्रीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. ५अ -५आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि वे कर जोडीने वीनवुं अंतिः आवे पोताने साथ रे, गाथा ८. ९. पे. नाम. पारसनाथ स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. शिवजी, मा.गु., पद्य, आदि सांभल शिवपुरगामी हुं, अंतिः वषताने सुख साता रे, गाथा-८. १०. पे. नाम, महावीरस्वामी स्तवन, पृ. ६आ-७अ संपूर्ण महावीरजिन स्तवन, मु. महानंद, मा.गु., पद्य, आदि: वीर साहिब सुखकारी, अंतिः महानंद० गुण गाया रे, गाथा- १२. ११. पे. नाम. शीतलनाथ स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन, ग. मेघराज, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि शीतल जिनवर देव सुणो अंति: गणि मेघराज० मारा लाल, गाथा ६. १२. पे. नाम. शीतलनाथ स्तवन, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन, मु. सहजसागर, मा.गु. पच, वि. १७८१, आदि शीतल जिनवर सेवी अंति: सहजसागर ० गुणगाय, गाथा - १२. For Private and Personal Use Only Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३. पे. नाम. पारसनाथ स्तवन, पृ. ८- ९अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- भीडभंजन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि से माटे साहेब सामुं अंतिः प्रेमउदव० घणो लाछो, गाथा-५, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथा को एक गाथा गिना है.) १४. पे. नाम. आदिनाथ स्तवन, पृ. ९अ- ९आ, संपूर्ण आदिजिन स्तवन, मु. अक्षयचंदसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी आदीसर अलवेसर, अंति: अखेचंदसूरि० वाध रे, गाथा - ५. १५. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ९आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. जिनराज, मा.गु, पद्य, आदिः भविक कमल प्रतिबोधता, अंतिः (-) (पू. वि. गाथा ४ अपूर्ण तक है.) १६. पे. नाम. चौवीस तीर्थंकर स्तवन, पृ. ११अ ११आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. २४ जिन स्तवन, मु. भाइजी ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १६४०, आदि: (-); अंति: भाईजी० जय जयकार, गाथा-१५, (पू. वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) १७. पे. नाम. धर्मनाथ स्तवन, पृ. ११आ, अपूर्ण, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. धर्मजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि हरे मुनें धरमजीनंदस, अंतिः (-) (पू.वि. गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ३४१ १८. पे. नाम. पारसनाथ स्तवन, पृ. १३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. पार्श्वजिन स्तवन, मु. गंग, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: गंगमुनि० अवर न कोय, गाथा-११, (पू. वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) १९. पे. नाम. ऋषभदेव स्तवन, पृ. १३अ १३आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. सुमतिविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि आदि जीणंद मया करो, अंतिः सुमति० सेवक जाणी रे, गाथा- ७. २०. पे. नाम. सुबुधीनाथ स्तवन, पृ. १३आ-१४आ, संपूर्ण. सुविधिजिन स्तवन, मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदिः सुणो सुविधि जिणंद, अति तो जिनपद उत्तम पावे, गाथा-११. २१. पे नाम, नोकारवाली सज्झाय, पू. १४आ- १५अ, संपूर्ण. नवकार सज्झाय, मु. दुर्गादास, रा., पद्य, वि. १८३१, आदि: श्रीअरिहंत पहले पद, अंति: दुरगदासो० छे टंकसाली, गाथा - १२. २२. पे. नाम, नवकारमंत्र सज्झाय, पृ. १५-१६अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: प्रथम श्रीअरीहंत देव, अंति: रायचंदजी ० जतन करो, गाथा - १४. २३. पे, नाम, पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १६अ १६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरतीर्थ, ग. जिनहर्ष, मा.गु, पद्य, आदि: अंतरजामी सुण अलवेसर, अंतिः जिनहरष० भवसावरथी तारी, गाथा ५. २४. पे नाम, पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १६आ १७अ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन, मु. जेतसी, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सोभागी हो साहब, अंति: जेतसी० तुहिज देव, गाथा-५. २५. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १७अ १७आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु वामानंदकुमार; अंति: पसाय पद्म इम बोले रे, गाथा- ६. २६. पे. नाम. सिखामण सज्झाय, पृ. १७आ-१९अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल करण नमीजे चरण; अंति: विजयभद्र० नवी अवतरे, गाथा- २३. २७. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १९ अ - १९आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. प्रीतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नणदल हे नणदल सौधारथ, अंति: (-), (पू. वि. गाथा - ९ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २८. पे. नाम. ऋषभदेव स्तवन, पृ. २२अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आदिजिन स्तवन, मु. वीरजी, मा.गु., पद्य, वि. १७९७, आदि: (-); अंति: वीर करे प्रणाम, गाथा-७, (पू.वि. गथा-१ अपूर्ण से है.) २९. पे. नाम. ऋषभदेव स्तवन, पृ. २२अ-२२आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, पं. नित्यलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: आदेसर सुंलागुंमारु; अंति: नितलाभ० समकित दान, गाथा-७. ३०. पे. नाम. आदिसर स्तवन, पृ. २२आ-२३अ, संपूर्ण. आदिजिन पद, मु. जिनराज, पुहिं., पद्य, आदि: आज सकल मंगल मिला आज; अंति: जिनराज० रस माणे, गाथा-५. ३१. पे. नाम. अजितनाथ स्तवन, पृ. २३अ-२३आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी है. अजितजिन स्तवन, मु. खुशालमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: अजित जिनेसर देव मोरा; अंति: खुसाल० गुण गायेरे, गाथा-५. ३२. पे. नाम. महावीर तपस्तवन, पृ. २३आ-२४अ, संपूर्ण. महावीरजिन तप स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: गोतमसामी बुद्धि दीयो; अंति: थाप्या तिर्थ च्यार, गाथा-९. ३३. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २४अ-२४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो शांतिजिणंद; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम गाथा अपूर्ण है.) ३४. पे. नाम. भुजंगदेव स्तवन, पृ. २६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. भुजंगजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: वाचक जस० मान लाल रे, गाथा-६, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) ३५. पे. नाम. अजितनाथ स्तवन, पृ. २६अ-२६आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी है. अजितजिन स्तवन, मु. खुशालमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: अजित जिणेसरदेव मोरा; अंति: खुसालमुनि०गुण गाय रे, गाथा-५. ३६. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. २६आ-२८अ, संपूर्ण. महावीरजिन विनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी वीनती; अंति: थुण्यो त्रिभुवन तिलो, गाथा-२०. ३७. पे. नाम. श्रीमंदर स्तवन, पृ. २८अ-२८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर साहीब; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ५४५०५. बार भावना, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२४४११, ९४२७-३८). १२ भावना विलास, ग. लक्ष्मीवल्लभ, पुहिं., पद्य, वि. १७२७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "अनित्य भावना" अपूर्ण से "संवर भावना" अपूर्ण तक है.) ५४५०६. (+#) जंबुस्वामी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २८-१(१)=२७, पृ.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं.. प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०.५, १३४४०). जंबूस्वामी रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-१२ अपूर्ण से ढाल-३४ गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) ५४५०७. (+) आराधना चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११, ११४२८-३३). आराधनासूत्र, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १५९२, आदि: जिनवर चरण युगल पणमेस; अंति: (-), __(पू.वि. गाथा-३८८ अपूर्ण तक है.) ५४५१०. चौरासी वाणीया जात विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२४.५४११, ७४१३-१९). ८४ वणिगजाति नाम, मा.गु., गद्य, आदि: १ श्रीमाली आज छे; अंति: ८४ सोदरा उना गाम.. ५४५११. (+#) आदिनाथ देशनोद्धार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ५४३३-३७). For Private and Personal Use Only Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ आदिनाथ देशनोद्धार, प्रा., पद्य, आदि: संसारे नत्थि सुह; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८६ अपूर्ण तक है.) आदिनाथ देशनोद्धार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसारमांहि सुख नथी; अंति: (-). ५४५१५. (#) अट्ठाईधर व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८४०, कार्तिक कृष्ण, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३६). अष्टाह्निकाधुराख्यान, आ. भावप्रभसूरि, सं., गद्य, आदि: नत्वा गुरुं गिरं; अंति: जिनशासन प्रभावात्. ५४५१६. सामुद्रिकशास्त्र अध्याय-१ से २ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७२९, आश्विन कृष्ण, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. १०, ले.स्थल. औरंगाबाद, प्रले. मु. केसरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, ८४४७-५३). सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदि: आदिदेवं प्रणम्यादौ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. सामुद्रिकशास्त्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: शास्त्रनई धुरि आदि; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५४५१७. (+) कल्याणमंदिर स्तवन, संपूर्ण, वि. १६७५, वैशाख शुक्ल, ७, शनिवार, मध्यम, पृ. ६, पठ. चतुर्भुज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ३, जैदे., (२५.५४११, ९४२९-३३). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुदचं० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ५४५१९. वीर पाट, ८४ गच्छ प्रतिमा अधिकार व लोंकागच्छ विवरण, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-६(१ से ६)=५, कुल पे. ३, दे., (२५.५४१०.५,१३४३७). १. पे. नाम. थिरावली, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीवीरात् सुधर्मा; अंति: नमस्कार होजो. २. पे. नाम. ८४ गच्छ प्रतिमादि अधिकार, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण. ८४ गच्छ विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: हवे श्री वीरप्रभुथी; अंति: मुक्तिना सुख पामशो. ३. पे. नाम. पट्टावली, पृ. ८आ-११आ, संपूर्ण. पट्टावली लोंकागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: सं. १५२८ श्रीअणहलपुर; अंति: आगन्या प्रवर्ते छे. ५४५२१. (+) श्रुतबोध सह टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत-क्रियापद संकेत-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-त्रिपाठ., दे., (२५.५४१२, ३४३३-३८). श्रुतबोध, कालिदास, सं., पद्य, आदि: छंदसां लक्षणं येन; अंति: रग्धरा सा प्रसिद्धा, श्लोक-४१. श्रुतबोध-मनोरमा टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीमत्सारस्वतं धाम; अंति: रलाकरादिभ्यो वसेयानि. ५४५२२. (#) अष्टप्रकारीपूजा कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३२-१(१)=३१, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, १५४३८). अष्टप्रकारी पूजा-कथासंग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., "अशोकदत्त कथा" अपूर्ण से "धन्य कथा" अपूर्ण तक है.) ५४५२६. (+#) कयवन्ना रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-३(८ से १०)=८, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १२४३७). कयवन्ना चौपाई, म. जयतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदा; अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-८, गाथा-१ अपूर्ण से ढाल-१३, गाथा-५ अपूर्ण तक व ढाल-१४, गाथा-६ अपूर्ण से आगे नहीं है.) ५४५२७. (#) नाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४०-२५(१ से २५)=१५, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२६४११, १३४३२). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कांड-३, श्लोक-२३८ अपूर्ण से है व श्लोक-५७२ अपूर्ण तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची (#) ५४५३०. ) कल्पसूत्र - स्थविरावली सह कल्पद्रुमकलिका टीका, अपूर्ण, वि. १८९६, कार्तिक कृष्ण, ११, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २७-६(१ से ६)=२१, ले. स्थल. सुजाणगढ, प्रले. ग. सदाभक्ति, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२४.५४१२.५. १४४३१). कल्पसूत्र- कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. भद्रबाहुस्वामी और वराहमिहिर दृष्टांत अपूर्ण से है.) ५४५३२. (४) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १८-१२ (१ से १२) = ६ प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जै, (२४.५४१२.५, १०x२१-२३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. देवानंदा के गर्भापहरण से सातवें स्वप्न के प्रारम्भ तक का वर्णन है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४५३४. श्रीपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १८२७, भाद्रपद कृष्ण, ८, मंगलवार, मध्यम, पृ. १८, ले. स्थल. चांणोदनगर, प्रले. पं. विनयविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांक- ६ पर नवपद यंत्र आलेखित है. जैवे. (२४.५४१२, १५४४५). श्रीपाल चरित्र, ग. शुभविजय पंडित, सं., गद्य, वि. १७७४, आदिः ॐ नमः स्वर्द्धिशक्र, अंतिः शुभविजय० दिवस एवैतत्. ५४५३५. बोल व विचार संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ८, कुल पे. ९, जैवे. (२४.५४१२, १५४४६). १. पे. नाम. ८ कर्म १५८ भेद प्रकृति विचार, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानवरणीय दर्शनावरण; अंति: १५८ भेद जाणिवा. २. पे. नाम. चौद गुणठाणा नाम, पृ. १आ- २अ संपूर्ण. १४ गुणस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: मिथ्यात्व गुणठाणो १; अंतिः सयोगी १३ अयोगी १४. ३. पे, नाम, बासठ मार्गणाना नाम, पृ. २अ संपूर्ण. ६२ मार्गणा नाम, मा.गु., गद्य, आदि देवगति मनुष्यगति, अंति: आहारक १ अनाहारक २. ४. पे. नाम. ५३ भावना भेद, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. ५ भावना के ५३ उत्तरभेद नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सत्य मनोयोग असत्य; अंति: एवं ५३ भावना जाणवा. ५. पे. नाम संख्याताना ३ भेद, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण संख्यातादि भेद, मा.गु, गद्य, आदि: जयन्यसंख्यातो; अंतिः मध्यम अनंतानंतौ३. ६. पे. नाम. विचार संग्रह. पू. ३अ ५आ, संपूर्ण. विचार संग्रह प्रा.मा.गु. सं., गद्य, आदिः कर्मानां बंध उदय अंतिः एक अधिक जाणिवी, ७. पे. नाम. कल्पकल्पातीत देवलोके बासठ प्रतर आऊखा विचार, पृ. ५आ- ६अ, संपूर्ण. ६२ प्रतर आयुष्य विचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: दो अबरार जहन्ना, अति: जाउवरिगेविजा, गाथा- १०. ८. पे. नाम, वैमानिक देहमान, पृ. ६अ ६आ, संपूर्ण. वैमानिकदेव देहमान, प्रा., पद्य, आदि: प्रति प्रतरदेहमानं; अंतिः सव्वट्टे देवतणुमान, श्लोक - १३. ९. पे. नाम बोल संग्रह. पू. ६ आ-८अ, संपूर्ण. बोल संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: वासहकहन सजिंदिय, अंतिः निश्चयकेवलीगम्यः, ५४५३७. रघुवंश सह शिशुहितैषिणी टीका, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. १०-४ (२७ से ९) =६, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं है., प्र. वि. त्रिपाठ.. जैवे. (२५४१३, ३x४२-४६). " रघुवंश, कालिदास, सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू. वि. सर्ग-९ श्लोक-२ से २९ व श्लोक ६१ अपूर्ण से ६९ तक है.) रघुवंश - शिशुहितैषिणी टीका, सं., गद्य, आदि: प्रत्यूहव्यूहनाशं, अंति: (-). ५४५३८. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, जैदे., (२५. ५X११.५, ६-१३x४२). For Private and Personal Use Only Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ३४५ उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अध्ययन-२ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: पूर्व संयोग मातादि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., __ अध्ययन-१ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: जिम एक आचार्यनइ; अंति: जाणी अणसण लीधो, कथा-४, संपूर्ण. ५४५४०. (+#) चतुर्मास व्याख्यान संग्रह, संपूर्ण, वि. १८४०, आश्विन कृष्ण, ७, बुधवार, मध्यम, पृ. १५, कुल पे. २, ले.स्थल. सूरधणा, प्रले.पं. भावविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १३४३६). १.पे. नाम. चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, पृ. १अ-१३अ, संपूर्ण. उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., गद्य, आदि: स्मारं स्मारं स्फुरद, अंति: सर्वेष्टार्थसिद्धिः. २. पे. नाम. फाल्गुन चतुर्मासिक होलिका व्याख्यान, पृ. १३अ-१५आ, संपूर्ण. होलिकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८३५, आदि: किंचिद्विशेषोदीत; अंति: __ व्याख्यानमाख्यानभृत्. ५४५४१. (+#) भक्तामर स्तोत्र की वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १६x४५). भक्तामर स्तोत्र-टीका, वा. मेघविजय, सं., गद्य, वि. १७०१-१७८२, आदि: श्रीशंखेश्वरपार्श्व; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२८ अपूर्ण तक की टीका है.) ५४५४२. सिंदूरप्रकर सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८१, ज्येष्ठ कृष्ण, २, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १६, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. मु. ओमचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, ६४४१). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: ज्ञानगुणास्तनोति, द्वार-२२, श्लोक-१०२. सिंदूरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथना पग; अंति: पुरुष होय सो कहै. ५४५४३. (+) प्रतिक्रमणविधि व कुमति उत्थापन चर्चा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-५(१ से ५)=७, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२.५, ११४३१). १.पे. नाम. प्रतिक्रमण विधि, पृ. ६अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: आगै देवसीनी विधि करे, (पू.वि. रात्रिप्रतिक्रमण का अंतिम भाग है.) २.पे. नाम. कुमतिउत्थापन चर्चा, पृ. ६आ-१२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुहि.,प्रा., गद्य, वि. १८८४, आदि: मनोमती झूठी प्ररूपणा; अंति: (-), (पू.वि. अष्टापदतीर्थ पर भरत चक्रवर्ती के द्वारा २४ भगवान का देहरा बनाये जाने तक का वर्णन है.) ५४५४४. (+) प्रकरण चतुष्क सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०-१(११)=१९, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, ४४३४). १.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-८अ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४४. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*मा.गु., गद्य, आदि: जीवा क० जीवतत्त्व; अंति: एक सिद्ध अनेक सिद्ध. २.पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. ८अ-१५आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१, (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण से २४ अपूर्ण तक नहीं है.) । जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तीनै भवनरै विषै; अंति: अगाध श्रुतसमुद्र थकी, (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण से २५ अपूर्ण तक का टबार्थ नहीं है.) For Private and Personal Use Only Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. दंडक प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १६अ-२०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३१ अपूर्ण तक है.) दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमिउं कहितां नमस्कार; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३१ अपूर्ण तक का टबार्थ ५४५४५. (+#) चंदराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, १७४३६). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धरा धवति प्रथम; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-६, गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ५४५४६. (#) सूत्र, स्तोत्र, स्तुति, सज्झाय व विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३-५(१ से ५)=१८, कुल पे. ३५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, १६४४३). १.पे. नाम. श्रावक प्रतिक्रमण, पृ. ६अ-६आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीस, गाथा-५०, (पू.वि. गाथा-२९ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. थंभणा पार्श्वनाथ नमस्कार, पृ. ६आ-८अ, संपूर्ण. ___ जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंति: अभय० विन्निवइ आणदिय, गाथा-३०. ३. पे. नाम. ज्ञान पहेरामणी, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. ज्ञान पूजा, प्रा., पद्य, आदि: नमंति सामंति महीवनाह; अंति: लाभाय भवक्खयाय, गाथा-२. ४. पे. नाम. द्वितीया स्तुति, पृ. ८आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने कृतिनाम प्रतिपदा स्तुति लिखा है. बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन; अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. ५. पे. नाम. विहरमानजिन स्तुति, पृ. ८आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने कृतिनाम बीज स्तुति लिखा है. विहरमान २० जिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: पंचविदेह विषय; अंति: जन मन वंछिय सारै, गाथा-४. ६. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशचुंजयमंडण; अंति: नंदसूरि० पाय सेवता, गाथा-४. ७. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. ९अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञज्योति; अंति: वृद्धि वैदष्यम, श्लोक-४. ८. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतकसुप्रपंचपरमा; अंति: सिद्धायिका त्रायिका, श्लोक-४. ९.पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. ९आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदू पाय; अंति: जिनवर मंगलाकर देवियै, गाथा-४. १०. पे. नाम. शीतलजिन स्तुति, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवन जिननायक; अंति: भणे श्रीजिनलाभसूरिंद, गाथा-४. ११. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. १०अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: महामंगलं अष्ट सोहइ; अंति: संति कल्याणदाता, गाथा-४. १२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १०अ, संपूर्ण. आ. जिनभक्तिसूरि, मागु., पद्य, आदि: अश्वसेन नरेसर वामा; अंति: जिनभक्तिसूरि० चित्त, गाथा-४. १३. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदि: समदमोत्तम वस्तु महाप; अंति: सा जिनशासन देवता, श्लोक-४. १४. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. १०आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि; अंति: विपदः पंचकमदः, श्लोक-४. १५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १०आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-समवसरणभावगर्भित, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: हर्षनतासुरनिर्जरलोकं; अंति: मज्जन स्वस्तिनजाघः, श्लोक-४. १६. पे. नाम. आदिनाथ स्तुति, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., पद्य, आदि: वरमुत्तियहार सुतारगण; अंति: सुहाणि कुणेसुसया, गाथा-४. १७. पे. नाम. चतुर्दशी स्तुति, पृ. ११अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: दें दें कि धप; अंति: दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. १८. पे. नाम. वीर स्तुति, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मूरति मनमोहन कंचन; अंति: इम श्रीजिनलाभसूरिंद, गाथा-४. १९. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ११आ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: निरुपम सुखदायक; अंति: श्रीजिनलाभसूरिंदा जी, गाथा-४. २०. पे. नाम. पर्युषणा स्तुति, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बलि बलि हुंध्यावं; अंति: कहै जिनलाभसूरिंद, गाथा-४. २१. पे. नाम. दिवाली स्तुति, पृ. १२अ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तुति, गच्छा. जिनचंद्रसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: पापायां पुरि चारु; अंति: शार्दूलविक्रीडितं, श्लोक-४. २२. पे. नाम. वीर स्तुति, पृ. १२अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: दद्यात्सौख्यम्, श्लोक-१. २३. पे. नाम. पव्वजाविहाण सूत्तं, पृ. १२अ-१३आ, संपूर्ण. प्रव्रज्या कुलक, प्रा., पद्य, आदि: संसार विसमसायर भवजल; अंति: तरंति ते भवसलिल रासं, गाथा-३४. २४. पे. नाम. पगाम सज्झाय, पृ. १३आ-१५अ, संपूर्ण. __ पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: चत्तारि मंगलं अरिहत; अंति: वंदामि जिणे चउवीस, सूत्र-२१. २५. पे. नाम. विचारगाथा संग्रह, पृ. १५अ-१७अ, संपूर्ण. विचारसार प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: बारस गुण अरिहंत सिद; अंति: खिवेइ ऊसासमत्तेणं, गाथा-४२, (वि. प्रतिलेखक ने ४२ गाथा लिखकर ही कृति संपूर्ण कर दी है.) २६. पे. नाम. विहरमानलंछन गाथा, पृ. १७अ, संपूर्ण. विहरमानजिनलंछन गाथा, प्रा., पद्य, आदि: वसह १ गय २ हरिण; अंति: वीसाइक्क मेणनायत्था, गाथा-२. २७. पे. नाम. भरतजिनभव गाथा, पृ. १७अ, संपूर्ण. २४ जिन भव गाथा-भरतक्षेत्र, प्रा., पद्य, आदि: उसह १ ससि २ संति ३; अंति: दसगवीसाय तिन्निभवा, गाथा-१. २८. पे. नाम. वर्तमानजिन नाम, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण. २४ जिन नाम, सं., पद्य, आदि: ऋषभ १ अजित २ संभव ३; अंति: जिनेभ्यो नमः, श्लोक-१. २९. पे. नाम. सोल सती नाम, पृ. १७आ, संपूर्ण. १६ सती स्तुति, सं., पद्य, आदि: ब्राह्मी चंदनबालिका; अंति: कुर्वंति वो मंगलम्, श्लोक-१. ३०. पे. नाम. भक्तामर महास्तोत्र, पृ. १७आ-१९आ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामर प्रणत मौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक-४४. ३१. पे. नाम. लघुशांति स्तवन, पृ. १९आ-२०अ, संपूर्ण. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. For Private and Personal Use Only Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३२. पे. नाम. सप्ततिशतजिन स्तोत्र, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण. तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अठ्ठ; अंति: निब्भतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ३३. पे. नाम. नवग्रह स्तुति गर्भित पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. २०आ-२१अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: दोसावहारदक्खो नालिया; अंति: जिणपहसूरिहि० पीडति, गाथा-१०. ३४. पे. नाम. कल्याण मंदिर, पृ. २१अ-२३अ, संपूर्ण.. कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुदचं० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ३५. पे. नाम. चतुर्विशति, पृ. २३अ-२३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: (-), (पू.वि. "अजितचलार दुरितारि" पाठ तक है.) ५४५४८. (+) कर्मग्रंथ-१ से ५, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३-१(१)=२२, कुल पे. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, ९४२७-३२). १. पे. नाम. कर्मविपाक, पृ. २अ-६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: (-); अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं, गाथा-६२, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. कर्मस्तव, पृ. ६अ-८आ, संपूर्ण.. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३४. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व, पृ. ८आ-१०अ, संपूर्ण. ___ बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं, गाथा-२५. ४. पे. नाम. षडशीति, पृ. १०आ-१६आ, संपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. ५. पे. नाम. शतक, पृ. १६आ-२३आ, अपूर्ण, प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१०० अपूर्ण तक है.) ५४५४९. (-#) गौतमपृच्छा सह कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३-७(१ से ७)=१६, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, २२४४७). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३२५८ तक है.) गौतमपृच्छा-कथा संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "सुबुद्धि दुर्बुद्धि कथा" अपूर्ण से "मोहलक्षण कथा" तक है.) ५४५५०. (+) संग्रहणीसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १५४४१). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६३ अपूर्ण तक है) ५४५५१. (#) विचार संग्रह नव कर्त्तव्य, आठ सामायिक,पडिक्कमण व श्रावक अतिचार विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २३-३(१ से ३)=२०, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, १२४३२). १.पे. नाम. २८ लब्धि विचार, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ www.kobatirth.org मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सारु अखंड आखडी लेवी. २. पे. नाम. आठ सामायिक भेद विचार, पृ. ४अ- १२ आ. संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सामायिक दृष्टांत, मा.गु., गद्य, आदि: हिवै प्रथम सामायकरा; अंति: आठमो दृष्टांत जाणवो. ३. पे. नाम. प्रतिक्रमण विचार, पृ. १२ आ. १६आ, संपूर्ण संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि वले उत्तम विवेकी, अंतिः मिच्छामि दुक्कड दीजे. ४. पे. नाम. श्रावक व्रत १२४ अतिचार विचार, पृ. १६आ - २३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., गद्य, आदि: जहगेहपईदेहं विसोहीय; अंति: (-), (पू.वि. पाठ- "संविभागव्रत कीधो छै तिवारै साधु" तक है.) ५४५५२. (#) पोषदशमी कथा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८८५, मार्गशीर्ष कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ७-१ (१) = ६, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. मु. रतनचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., ( २६.५X१३, ६-८x४१). पौषदशमीपर्व कथा, आ. कनकसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंतिः सुखं प्राप्स्यन्ति, (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पाठ"सेनोस्तिभूपति" से है.) पौषदशमीपर्व कथा - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंतिः तथा मोक्षना सुख पामे, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ५४५५३. (+) ज्ञानसार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २५, प्रले. पं. विनयविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. च्छे सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैदे., ( २६११.५, ५x४४). ज्ञानसार, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, वि. १८वी, आदि: ऐंद्रश्रीसुखमग्न; अंति: कृतिः प्रीतये, अष्टक - ३२, श्लोक-२७३. ज्ञानसार-बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि ऐंद्र क० इंद्र संबंध, अंतिः पोतानु ज मंगलीक कीधु ५४५५५ (4) स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे, २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७X१२, १२X३०). १. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण. ३४९ आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुदचं० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. २. पे नाम, जयतिहुअण स्तोत्र, पृ. ४आ-६आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख, अंति: (-), (पू.वि. श्लोक - २३ तक है.) ५४५५७ (+) कर्मग्रंथ १ से ४ अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे ४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., ( २६.५X१२.५, १३४३४). १. पे. नाम. कर्मविपाक, पृ. १अ ३आ, संपूर्ण, कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी- १४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं गाथा ६०. २. पे. नाम. कर्मस्तव, पृ. ३आ-५आ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी १४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वंदियं नमह तं वीरं, गाथा - ३५. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ५आ - ७अ संपूर्ण. For Private and Personal Use Only आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी १४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्तः अंतिः नेवं कम्मत्थयं सोडं, गाथा २५. ४. पे. नाम. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ७अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी १४वी आदि नमिय जिणं जियमग्गण, अंति: (-) (पू. वि. गाथा १५ अपूर्ण तक है.) ५४५५८. (+#) श्रीपाल चरित्र, अपूर्ण, वि. १८५०, ज्येष्ठ शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. २३- ४ (१३ से १४,१९ से २० ) = १९, ले.स्थल. सैणाग्राम, प्रले. पं. प्रेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. सुविधिनाथ प्रसादात्, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५x११, १२X४३). Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रीपाल चरित्र, ग. शुभविजय पंडित, सं., गद्य वि. १७७४, आदिः ॐ नमः स्वर्द्धिशक्र, अंतिः शुभविजय० दिवस एतत् (पू.वि. पाठ- "कृत प्रणाम पोतखंभसीको" से "इनर निश्चय आवीसलेवि" तथा "पुनरेकदागतोश्वरम" से "निजसैन्य अथश्रीपाल तक नहीं है.) ५४५५९. (०) स्तवन व सझाय संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे १३, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., (२६.५X११, १३x४५). १. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. शिव, मा.गु., पद्य, आदि: भूलो मन भमरा कांई भम, अंति: लेखो साहिब हाथ, गाथा - ९. २. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मु. रतनतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: काया रे वाडी कारमी, अंति: जिमखोड न लागे, गाथा- ८. ३. पे नाम, १६ सती सज्झाय, पृ. १आ-२अ संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि आदिनाथ आदि जिनवर, अंति: उदचरतन० सुखसंपदा ए, गाथा-१७. ४. पे नाम, विनयनी सज्झाय, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. विनयअध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पवयण देवी चीत धरीजी; अंति: विनय सयल सुखकंद, गाथा ८. ५. पे नाम, अनाथीऋषि स्वाध्याय, पृ. २आ- ३अ, संपूर्ण अनाधीमुनि सझाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि मगध देस राजग्रही अंतिः साधुतणा गुण गाय रे, गाथा-१३. ६. पे. नाम. उत्तराध्ययननां एकवीस मां अध्ययननी सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. समुद्रपालमुनि सज्झाय, उपा. उदय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: पूज्य पधारो पाटिये; अंति: उदयवाचक कहै ० मोहनगार गाथा- ९. ७. पे. नाम. मेतारजमुनि सज्झाय, पृ. ३-४आ, संपूर्ण. मु. राजविजय, मा.गु., पद्म, आदिः समदम गुणना आगरु जी अंतिः साधुतणी रे साझाय, गाथा- १४. ८. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तवन, पृ. ४आ-७अ संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरी समोसर्य, अंति: कहे कांति० मंगल घणो, ढाल -३, गाथा - २६. ९. पे. नाम. एकादशीतिथि सज्झाय, पृ. ७अ, संपूर्ण. उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदिः आज एकादसी रे नणदल, अंति: उदय० लीला लहिस्यै, गाथा- ७. १०. पे नाम, अष्टमीतिथि स्तवन, पृ. ७अ-८आ, संपूर्ण मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि हां रे मारे ठाम धर्म, अंतिः कांति सुख पाये घणो, डाल- २, गाथा- २३. ११. पे नाम, अष्टमीतिथि सज्झाय, पृ. ८आ, संपूर्ण उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसरसतिने चरणे; अंति: वाचक देव सुसीस, गाथा- ७. १२. पे नाम ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पृ. ८आ- १० आ, संपूर्ण. . गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिणेसर अंति: गुणविजय रंगे मुनी, ढाल ६, गाथा ४९. १३. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, पृ. १० आ-११अ संपूर्ण. पंचमीतिथि सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सद्गुरू चरण पसाउले, अंतिः कांतिविजय गुण गाय, गाथा-७. ५४५६१. (+) योगशास्त्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३९ - १ (३७) + १ (११) ३९. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६११.५, १७५४). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: नमो दुर्वाररागादि, अंति: (-), (पू. वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., तृतीय प्रकाश, श्लोक १ से ८६ एवं ८८ से ९० तक है.) For Private and Personal Use Only Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १ से ४ का बालावबोध, आ. सोमसुंदरसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य जिनसिद्धादीन, (२)हिवडां श्रीमहावीरना; अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ५४५६३. (+) सौभाग्य पंचमी कथा सह टबार्थ व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८६, फाल्गुन कृष्ण, ३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, कुल पे. २, ले.स्थल. स्याणानगर, प्रले. पं. जसवंतविजय; पठ.पं. रंजतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. सुवधिनाथ प्रसादात्, पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१२, ७४२९). १.पे. नाम. सौभाग्य पंचमी कथा सह टबार्थ, पृ. १आ-१४आ, संपूर्ण. वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: मेडतानगरे, श्लोक-१५०. सौभाग्यपंचमी कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीज्ञानलक्ष्मीवंत; अंति: मेडतानगरइं लिखितं. २. पे. नाम. लक्ष्मीमाता मंत्र, पृ. १४आ, संपूर्ण. यंत्र-मंत्र संग्रह, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५४५६४. (#) कल्पसूत्र बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २००-१३३(१ से १०,१३ से १०२,१६० से १९२)=६७, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१३, १३४३७). कल्पसूत्र-बालावबोध *, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. वाचना-७-८ अपूर्ण है.) ५४५६५. (+) गजसिंह रास, संपूर्ण, वि. १९०६, चैत्र शुक्ल, ४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५७, ले.स्थल. कालद्रीनगर, प्रले. पं. रंगविजयजी (गुरु पं. मानविजयजी); गुपि.पं. मानविजयजी (गुरु पं. अजितविजय); पं. अजितविजय; अन्य. पं. विनयविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीमाहावीरजी प्रसादात्, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२७.५४११.५, १४४३८). गजसिंहकुमार रास, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८५३, आदि: श्रीजिन चोविसे नमु; अंति: (१)हस्य ऋद्धि विशालजी, (२)कीर्त्तिकमला ते लहे, ढाल-१९. ५४५६६. (+#) श्रीपाल कथा, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३५, अन्य. श्राव. आसकरण शाह; गुपि. श्राव. कुंरा शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६४१०.५, १४४५९). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदि: अरिहाइ नवपयाई झायित; अंति: वाइज्जता कहा एसा, गाथा-१३४१, ग्रं. १८००. ५४५६८. (+#) जंबुअध्ययन सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६०-१(१)=५९, ले.स्थल. विरमग्राम, प्रले. मु. जयानंद ऋषि (गुरु मु. हीराजी ऋषि); गुपि. मु. हीराजी ऋषि (गुरु मु. तेजाजी स्थविर); मु. तेजाजी स्थविर (गुरु मु. भीमजी स्थविर); मु. भीमजी स्थविर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७४११.५, ६४३३). जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: से आराहगा भणिया, उद्देशक-२१, (वि. १८५३, कार्तिक कृष्ण, ३, गुरुवार, पू.वि. पाठ-प्रारंभ से "शीलेवंछिय सुहफल तवे कमषयफलं छमेउपय" तक नहीं है) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: जिव आराधक थासइसही, (वि. १८५३, कार्तिक कृष्ण, ७, सोमवार) ५४५६९. (+) सिंदरप्रकरण सह टीका व श्लोक, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-१(१)=१६, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १५४५०). १.पे. नाम. सिंदूर प्रकरण सह अवचूरी, पृ. २अ-१७आ, पूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. सिंदरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदिः (-); अंति: निशमेति नाशम, द्वार-२२, श्लोक-९९, (पू.वि. श्लोक-३ से है. यत्र-तत्र बालावबोध है.) सिंदूरप्रकर-टीका, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: ज्ञानगुणास्तनोति, (पू.वि. श्लोक-२ की अवचूरि अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. १७आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-५. For Private and Personal Use Only Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५२ ५४५७० (+) नर्मदासुंदरी राख, संपूर्ण वि. १८२१ वैशाख शुक्ल, ३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४८, ले, स्थल, विझेवानगर, प्रले. पं. विनयविजय गणि (गुरु ग. देवेंद्रविजय); गुपि. ग. देवेंद्रविजय (गुरु पंन्या. अमृतविजय); पंन्या. अमृतविजय (गुरु पंन्या. सिंहविजय); पंन्या. सिंहविजय (गुरु आ. विजयरत्नसूरि); आ. विजयरत्नसूरि (गुरु आ. विजयप्रभसूरि); अन्य पं. जयविजय गणि (गुरु पं. अमृतविजय गणि), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (१५x१०.५, १४४५०). नर्मदासुंदरी रास - शीलव्रतविषये, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५४, आदि: प्रणमुं चरणांबुज, अंति: मोहन वचन विलासजी, डाल- ६३. गाथा- १४५४, प्र. १४६६. ५४५७२. कल्पसूत्र का बालावबोध वाचना-१ से ५, अपूर्ण, वि. १८५५, मध्यम, पृ. १२६-८१ (७ से ४४,६५ से ८०,८६ से ११२)=४५, प्र.वि. कुल ग्रं. १०००, जैदे., (२७४१३, १३x४२). कल्पसूत्र - बालावबोध *, मा.गु. रा. गद्य, आदि: (१) अज्ञान तिमिरांधानां (२) अर्हत भगवंत उत्पन्न, अंति: (-), " " प्रतिअपूर्ण. ५४५७३, (+४) स्नात्र व प्रायश्चित्त विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दे., (२५.५x१०, १३x४२). " १. पे. नाम. स्नात्रपूजा विधिसहित, पृ. १अ ५अ, संपूर्ण. ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चोतिसे अतिसय जुओ वचन; अंति: देवचंद० सही सूत्रमझार, ढाल-८, गाथा - ६०. २. पे. नाम. प्रायचित प्रदान विधि, पृ. ५अ - ६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञान आशातनाइ जघन्य, अंति: (-), (पू. वि. पाठ - "देडी घर भंगे उ० १० ब" तक है.) ५४५७४. आठ कर्म १५८ प्रकृति विचार, अपूर्ण, वि. १७६२, मध्यम, पृ. ११-६ (१ से ५, ७) २५, ले. स्थल. रुपनगर, प्रले. ग. दयासागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६X१०.५, ८x२५-३०). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: विषें उद्यम करवो, (पू. वि. प्रारम्भ से पाठ - "ते कहीयइ छ " तक एवं "साखि कुडीतरइं ८ गंधमिश्रित" से "देह ११ आहारकदेह १२" पाठ तक नहीं है.) " ५४५७६. (+) कल्पसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५x१०.५, १२५३५-३६). कल्पसूत्र - बालावबोध * मा.गुरा, गद्य, आदिः नमो अरिहंताणं अंतिः (-) (पू.वि. पाठ- "हाथ पडती राखी , तपनी" तक है. (पीठिका का भाग भी अपूर्ण है)) "" ५४५७८. (+) दस वैकालिक सूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १०-२ (२१, ३) = ८, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६४११.५, १५-१८x४५-५३). दशवैकालिकसूत्र, आ. शव्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि (-); अंति: (-) (पू. वि. तृतीय अध्ययन, गाथा २८ अपूर्ण से अध्ययन ४ ३६वीं सूत्र पाठ "अहावरे पंचमे भंते" तक "अध्ययन ४ सूत्र- ४६ "सिवा गुच्छमंसिवा अंडगंसिवा से अष्टम अध्ययन गाथा ३ अपूर्ण तक है.) ५४५७९. धन्ना शालीभद्र आदि दृष्टांत, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६-१५ (१ से १५) = ११, पू. वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५X११, १३४३४-४३). धन्नाशालिभद्र संबंध, मा.गु., गद्य, आदि: (-) अंति: (-) (पू.वि. पाठ- "श्री वीतराग बोल्या" से "हाथीने घोडा चतुरंगी सेना" तक है.) For Private and Personal Use Only ५४५८० (४) स्तुतिचतुर्विंशतिका सह टीका, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २४-१२(१ से १२) १२. पू. वि. बीच के पत्र हैं.. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. दे. (२६४१०.५, १५X३८). " स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सुपार्श्वजिन स्तुति श्लोक-४ से विमलजिन स्तुति श्लोक-३ तक है.) Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नवास हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ३५३ स्तुतिचतुर्विंशतिका-टीका, मु. देवचंद्र, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५४५८१. (+#) श्राद्ध प्रतिक्रमण सूत्र वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १४०, अन्य. मु. सिंहसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६x१०.५, १५४५१-६०). वंदित्तुसूत्र-अर्थदीपिका टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४९६, आदि: जयति सततोदयश्रीः; अंति: जीयादियं च चिरम्, अधिकार-५, ग्रं. ६६४४. ५४५८२. भक्तामरस्तोत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २८-१७(९ से २५)=११, जैदे., (२६.५४११, १५४३१). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (पू.वि. बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं., श्लोक- १३ से ४० तक एवं ४४ नही है.) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५२७, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: (-), पू.वि. बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं. ५४५८३. (+) दानविषये हंसराजवच्छराज सरस संबंध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २०-१(१)=१९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०, १५४६२). हंसराजवच्छराज रास-दानशीलतपभावविषये, मु. मानसिंह कवि, मा.गु., पद्य, वि. १६७५, आदि: (-); अंति: मान० सदा सुख लाल रे, गाथा-५५०, (पू.वि. गाथा-२८ अपूर्ण से है.) ५४५८६. (#) वासक्षेप,स्नात्र पूजा व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १५-१६५३६). १. पे. नाम. वासक्षेप पुजा, पृ. १अ, संपूर्ण. नवपद वासक्षेप पूजा स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत पद ध्यातो थको; अंति: भोगेरे० परमात्मने, गाथा-१०. २.पे. नाम. स्नात्रपूजा विधिसहित, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चोतिसे अतिसय जुओ वचन; अंति: देवचंद० सूत्र मझार, ढाल-८, गाथा-६०. ३. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण. वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: तीरथनायक जिनवरू रे; अंति: (-), गाथा-५, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है.) ५४५८८. (+#) मृगांग चरित्र सहटबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३-७(१६ से २२)=१६, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४११.५, ६४३०-३२). मृगांक चरित्र, मु. ऋद्धिचंद्र, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वः प्रत्यह; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१ से १६१ अपूर्ण व २३८ अपूर्ण से २४९ अपूर्ण तक है.) मृगांकचरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्री पार्श्वशं अहं; अंति: (-). ५४५८९. (+) गौतमकुलक सह वृत्ति, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १५४३१-५२). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०, संपूर्ण. गौतम कुलक-टीका+कथा, मु. ज्ञानतिलक, सं., गद्य, वि. १६६०, आदि: नत्वा श्रीदेवगुरुन; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रशस्ति अपूर्ण है.) ५४५९०. दशवकालीक सूत्र-अध्ययन ३ से ४, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-१(१)=६, जैदे., (२४.५४९.५, ११४४०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अध्ययन-३ गाथा-१० अपूर्ण से अध्ययन- ४ तक है) ५४५९१. (+#) अभिधानचिंतामणी नाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६३-२०(१ से २०)=४३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ११४४०). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: रोषोक्ता नतौ नमः, कांड-६, (पू.वि. तृतीय अध्ययन- मर्त्यकाण्ड, श्लोक-१३४ से है.) For Private and Personal Use Only Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५४ ५४५९३, (+) लंघन पथ्य निर्णय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५X११.५, १२X३०-३५ ). लंघनपथ्य निर्णय, मु. दयातिलक शिष्य, सं., पद्य, वि. १७९२, आदि: श्रीसर्वज्ञं नमस्कृ, अंति: (-), (पू.वि. गाथा कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची " १३४ तक है.) ५४६००. (+#) सजनचित्त वल्लभ, पूर्ण, वि. १८७५, पौष शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ७-१ (१) = ६, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४x१०.५, ६x२५-३०). सज्जनचित्तवल्लभ काव्य, आ. मल्लिषेण, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मल्लिषेण० विच्छित्तये, श्लोक-२५, (पू. वि. श्लोक२ अपूर्ण से है.) ५४६०१. (+#) विवाहपडल सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४४११, १६४५०). विवाहपडल, सं., पद्य, आदि: जंभाराति पुरोहिते, अंति (-), (पू.वि, श्लोक ८५ तक है.) विवाहपडल-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवामेय जिनं नत्वा, अंति: (-). ५४६०२. सुरसुंदरी रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैदे. (२४४१०५ १६x४९). " , सुरसुंदरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य वि. १७३६, आदि: सासण जेहनउ सलहियइ अंति: (-), (पू.वि. खंड ४ ढाल ६ गाथा ४ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only ५४६०३. आराधनासूत्र, पूर्ण, वि. १८५२, वैशाख कृष्ण १४ शनिवार, मध्यम, पृ. १२-१ (१) =११, ले. स्थल, विक्रमपुर, प्रले. श्राव. वसंतराय मुमुक्षु, पठ. मु. चंद्रभाण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २३x१०, १७x४५). आराधनासूत्र, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १५९२, आदि: (-); अंति: करी भणयो चतुर विचारि, गाथा- ४०६, (पू.वि. गाथा ३१ अपूर्ण से है.) ५४६०६, (४) नवतत्त्व, अपूर्ण, वि. १८४४ वैशाख शुक्ल, ३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ७-१ (१) = ६, ले. स्थल, बडाग्राम, प्रले. मु. बीनीराम ऋषि; पठ. श्रावि. गंगाबिशन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २१.५X१०.५, ८x२१). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-५४, (पू. वि. गाथा ९ अपूर्ण से है . ) ५४६०८, (+४) धर्मदत्तधनवंती रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३५१७(१ से १५२१ से २२) = १८ पू. वि. प्रारंभ, बीच व अंत के 1 पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २२x१०.५, १०X३०-३२). धर्मदत्तधनवती चौपाई, मु. कुशलहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७८८, आदि: (-); अंति: (-). ५४६११. सेत्रुंजय रास, संपूर्ण, वि. १८९४, भाद्रपद कृष्ण, ६, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले. स्थल. सुजांणगढ, प्रले. मु. आसकरण जती, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३×१०.५, ११×३०). शत्रुंजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी, अंतिः सुणतां आनंद थाय, ढाल ६, गाथा - १०९. ५४६१२. (+) स्तवन, सझाय व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २२, कुल पे. ६, प्र. वि. संशोधित - त्रिपाठ., जैदे., (२३.५x११, १५४४३). १. पे. नाम. वीसविहरमानजिन स्तवन, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन स्तवन, मु. हर्षचंद, मा.गु, पद्य, वि. १८१४, आदिः समरूं मन सुंधै सदा, अंतिः कारण हरखचंद सुगाव ए. बाल-५ गावा- ३१. २. पे. नाम. १० बोल सज्झाय, पृ. २अ- ३अ, संपूर्ण. मु. श्रीसार, मा.गु, पद्य, आदिः स्यादवादमत श्रीजिनवर, अंतिः सिद्धांत रतन बहुमोल, गाथा २०. ३. पे. नाम. समकीत आलोवा कुमती उत्थान स्तवन सह बालावबोध, पू. ३अ १७अ, संपूर्ण जिनप्रतिमा स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., पद्म, आदि: श्रीजिन जिनप्रतिमां अंतिः मान० सुगुरुनै सीस, ढाल २, गाथा - २१. जिनप्रतिमा स्तवन- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: केतलाएक कुमती प्राण; अंति: व्युक्ति न मांडीयै. Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ४. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १७अ, संपूर्ण. www.kobatirth.org लोक संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५. पे. नाम. शीलनववाड सज्झाय, पृ. १७- २१अ, संपूर्ण, प्रले. पं. मानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. जिनहर्ष, मा.गु, पद्य, वि. १७२९, आदि: श्रीनेमिसर चरणयुग अंतिः तथआरी हो यूगति नववाड, ढाल ११. ६. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन १४ गुणस्थान विचारगर्भित पृ. २१अ २२आ, संपूर्ण. मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सुमतिजिनंद सुमति; अंतिः कहे एम मुनि धरमसी, ढाल-६, गाथा-३४. ५४६१३. स्तवन चोवीसी व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ८. कुल पे. १८, जैदे. (२५x११, १७३५-४०). १. पे. नाम. स्तवन चोवीसी, पृ. १अ ४आ, संपूर्ण. " स्तवनचौवीसी, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: ऋषभ जिणंदा ऋषभ, अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. पार्श्वनाथ स्तवन तक लिखा है.) " २. पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरज सुणो एक सुविधि; अंतिः मोहनविजय कहे सिरनामी, गाथा-७. ३. पे नाम, अजितजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजित अजित जिन, अंतिः रस आनंदशुं चाखे, गाथा- ९. ४. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण. मु. ६. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण. स्वरूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: शुभ भावेंकरी सेवी, अंति: स्वरूप० पयंपें वाणि, गाथा-८. आदिजिन स्तवन, मु. स्वरूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभजिणेसर दरसण दीजे; अंति: सुख युगते वंछित, गाथा - ६. ५. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. मु. स्वरूपचंद्र, मा.गु., पथ, आदि: हिमवंत गिरि शिरपच अंतिः स्वरूपचंद्रे० आणी रे, गाथा ६. ७. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. ६अ ६आ, संपूर्ण. मु. स्वरूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अतुल बल अरिहंत नमीजे, अंतिः स्वरूपचंद्र० गुण गाया गाथा- ६. ८. पे. नाम, पद्मजिनस्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण. मु. स्वरूपचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: चंद्रप्रभुजिनराज मन, अंति: स्वरूपचंद० विनवे जी, गाथा- ८. १०. पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. ७अ, संपूर्ण. मु. स्वरूपचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: साहिब सुविधिजिणंद, अंतिः आत्म स्वरूप पसाय, गाथा ५. ११. पे. नाम. विमलजिन स्तवन, पृ. ७अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. स्वरूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपद्मप्रभजिनराजजी; अंति: स्वरूपचंद गुण भास हो, गाथा- ८. ९. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. मु. स्वरूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: विमलविमल गुणें राजता; अंति: में स्वरूप नित पायजि, गाथा- ६. १२. पे. नाम, अनंतजिन स्तवन, पृ. ७अ ७आ, संपूर्ण मु. स्वरूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: हा रे लाल चतुरसिरोमण; अंतिः तिम स्वरूप जिन सेव, गाथा- ६. १३. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ७आ, संपूर्ण. ३५५ मु. स्वरूपचंद, मा.गु., पद्य, आदिः सेवो शांति जिणंद सने अंतिः द्यो स्वरूप अनुपेहा, गाथा-६. " १४. पे. नाम. कुंथुजिन स्तवन, पृ. ७-८ अ, संपूर्ण. मु. स्वरूपचंद, मा.गु, पद्य, आदि: कुंथुनाथ सत्तरमा जिन अंतिः सत् स्वरूप सुख होय, गाथा ६. १५. पे नाम. मल्लिजिन स्तवन, पृ. ८अ संपूर्ण. For Private and Personal Use Only मु. स्वरूपचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: जीरे महिमां मल्लि, अंतिः स्वरूप० लब्धि विशेष, गाथा - ७. १६. पे नाम. सुपार्श्व स्तवन, पृ. ८अ संपूर्ण सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. नित्यलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: मुज मन भमरे प्रभु, अंतिः नित्यलाभ० लहुं सुखसार, गाथा-५. Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३५६ www.kobatirth.org १७. पे नाम, पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. ८आ, संपूर्ण मु. जिनराज, मा.गु., पद्म, आदि: कागलिउ किरतार भणी: अंतिः जिनराज० धर एही रीत का गाथा ५. १८. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. ८आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्म, वि. १७७०, आदि: समकित दाता समकित आपो अंतिः मोहन० रसना पावन कीधी, गाथा-७. ५४६१६. नवतत्त्व वृति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, दे., (२३X११, १०X२८). कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५४६१५. (+) वसुधारा विधि कल्प, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९-३ (२ से ४) ६ प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२४४१०.५, ११४३१). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य अंतिः महामंगल्यकारिणी भवतु (पू.वि. "दरिद्रो हं भगवन" पाठ से "उपहृदयं" पाठ के बीच का अंश नहीं है.) , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नवतत्व प्रकरण अवचूरि, आ. साधुरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: जयति श्रीमहावीर, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पुण्य तत्त्व अपूर्ण तक लिखा है.) ५४६२४. (०) प्रकरण संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १०, कुल पे. ३, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२१X११, १६X३४). १. पे. नाम. चतुः शरण प्रकीर्णक, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा- ६३. २. पे. नाम, उपदेशमाला, पू. ४अ १०आ, संपूर्ण. ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद, अंति: (-), गाथा- १५२, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १५२ तक लिखा है.) ३. पे. नाम. दंडक प्रकरण, पृ. १०आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. राजसार, प्रा., पद्य वि. १५७९, आदिः नमिठं चउवीसजिणे तस्स अंति: (-), (पू.वि. गाथा १० अपूर्ण तक है.) ५४६२९. (+४) सिंदूर प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९९९, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले. स्थल. लसकर, प्रले श्राव. नवलचंद, पठ. श्राव. नराणजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२१X११, १०X२४). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्म, वि. १३वी आदि सिंदूरप्रकरस्तपः अंतिः सूक्तमुक्तावलीयम्, द्वार - २२, श्लोक-१००. ५४६३० (+) भुवनदीपक, षट्पंचाशिका व शीघ्रवोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३१-१५ (१ से १४,३०) = १६, कुल पे, ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें- अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ- संशोधित., जैदे., (२१X११, १२X३६). १. पे. नाम. भुवनदीपक, पृ. १५अ-२२अ, संपूर्ण. आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३५, आदि सारस्वतं नमस्कृत्य अंतिः श्रीपद्मप्रभसूरिभिः श्लोक-१८३. २. पे. नाम. षट्पंचाशिका, पृ. २२अ - २४आ, संपूर्ण. आ. पृथुयशा, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य रविं; अंति: जातिश्च लग्नपात्, अध्याय-७, श्लोक-५६. ३. पे नाम, शीघ्रबोध, पृ. २४- २९आ- ३१अ अपूर्ण, पू. वि. बीच का एक पत्र नहीं है. , काशीनाथ भट्ट, सं., पद्य, आदि: भासयंतं जगद्भासा०; अंति: (-), (पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. प्रथम प्रकरण श्लोक ११२ अपूर्ण से १३६ अपूर्ण तक नहीं है तथा मात्र द्वितीय प्रकरण श्लोक ९ अपूर्ण तक लिखा है., वि. कृति के साथ दृष्टांत, स्पस्टता सूचक कोष्ठक आदि दिये गये हैं.) ५४६३३. (*) पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ७. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०.५X११, ७X२०). For Private and Personal Use Only पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र, अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १९ लिखा है.) "" ५४६३९. स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७-१ (१) =६, कुल पे, ३, जैदे. (२२.५x११.५, ११४२४). १. पे. नाम. भक्तामरमहा स्तोत्र, पृ. २अ ५आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ३५७ भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अतिः समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक-४४, (पू. वि. श्लोक ९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. लघुशांति, पृ. ५आ-७अ संपूर्ण. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिं शांतिनिशांत अंतिः सूरिः श्रीमानदेवश्च श्लोक-१७. ३. पे. नाम. तिजयपहुत्त स्तोत्र, पृ. ७अ-७आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तवासं अद्रुम, अंति: (-), (पू. वि. गाथा १३ अपूर्ण तक है.) ५४६४२. थूलभद्र नवरसो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, दे., ( २२x१२, १०X२३). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्थूलभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपत्ति दायक सदा, अंतिः उदयरतन० सघला फल्या रे, ढाल - ९. ५४६४७, (+०) नवतत्व का वालावबोध, संपूर्ण वि. १८१५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २५, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., ( २४४१२, १६x३३). नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंतिः सिद्धा अनेक सिद्धा, (वि. मूलकृति मात्र प्रथम गाथा दी गई है . ) ५४६४८. (+) जीव विचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२२.५X१२, ४X१७). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुवसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिभुवन मांहि; अंतिः श्रुत समुद्र तेह थकी.. ५४६५१. (+#) पर्यूषणाष्टाह्निका व्याख्यान सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७५, आषाढ़ शुक्ल, १४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ५६, प्रले. मु. श्रीमंतविजय (गुरु पं. फतेविजय); गुपि. पं. फतेविजय (गुरु पं. जीवणविजय); पं. जीवणविजय (गुरु पंन्या. पुन्यविजय); पंन्या. पुन्यविजय (गुरु उपा. ऋद्धिविजय); उपा. ऋद्धिविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. टबार्थकार प्रप्रशिष्य द्वारा लिखित प्रत., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-कर्ता के शिष्य द्वारा लिखित प्रत प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. कुल ग्रं. १४००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५X१२, ५X३३). पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., पद्म, वि. १७८९, आदिः स्मृत्वा पार्श्व, अंतिः करगामिनी भवति, श्लोक-६२४. पर्युषणाष्ठाह्निका व्याख्यान- टवार्थ, ग. ऋद्धिविजय, मा.गु, गद्य, आदिः समरीने श्रीपार्थ; अंति: परंपरा हाथे आवता होय. ५४६५४. (०) नवपद ३४६ भेद संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६११, १२४३४). नवपद खमासण विचार, पुहिं. सं., गद्य, आदिः तिहां प्रथम पदे अंतिः सर्वभेदे नवपदना ३४६. ५४६५५. (+) दानशीलतपभावना कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. मु. लखराज ऋषि; पठ. मु. नागजी ऋषि; अन्य. मु. मेघराज ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., प्र. ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५.५X११, ५X३८). दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., पद्य, आदि: देवाहिदेवं नमिऊण; अंति: हिया सूरि खमंतु तेणं, 1 गाथा - ५०. दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: देवाधिदेवनै नमस्कार, अंति: आचार्य ए अपराध खमयो. ५४६५६. (+) जिनप्रतिमापूजा अधिकार सह वालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०, प्र. वि. संशोधित. दे. (२६४११.५, "" १२-१५X४१). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र - हिस्सा १६ अध्ययन जिनप्रतिमापूजा अधिकार, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: मज्जाणथए उपडिणिक्खमइ अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण आश्रवसंवर निरूपण अपूर्ण तक लिखा है.) "" ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र - हिस्सा १६ अध्ययन जिनप्रतिमापूजा अधिकार - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: मज्जणघरमांहि थी नीकल; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३५८ ५४६५८. (+) आउर पचन्ना सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८ प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X११.५, ७X३३). आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा. प+ग. वि. ११वी, आदि: देसिकदेसविरओ, अंतिः खयं सव्वदुक्खाणं, "" गाथा - ६०. आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: छकायना देस आसिरी देस; अंति: सुख उपजइ ते उपार्जर, ५४६५९. (+) जन्मपत्री पद्धति, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २७, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. उदाहरणरूप यंत्रकोष्ठक दिये गये हैं.. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२६४११, २१४५०) जन्मपत्री पद्धति, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य सारदां ज्योत अंति: (-), (पू.वि. शनिगति अपूर्ण पाठ तक है.) ५४६६०. समयसार नाटक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., ( २६ ११.५, १७x४८). " समयसार नाटक, जै. क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर हरन, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा- १२१ अपूर्ण तक लिखा है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४६६२. (०) नवतत्त्व चौपाई, संपूर्ण, वि. १८७५, माघ कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले. स्थल. राणाग्राम, प्रले. पं. खातिसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५X१३.५, १६५३६). नवतत्त्व चौपाई, मु. वरसिंह ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि: पास जिनेसर प्रणमी; अंति: वरसिंह० चित मे धरी, गाथा - १३६. ५४६६५. (०) सुक्तमाला, संपूर्ण, वि. १९५९, चैत्र कृष्ण, ११, मंगलवार, श्रेष्ठ, पू. १३, प्रले. पं. रूपविजय, पठ मु. जयचंद (गुरु पं. विनयरूचजी पंडित); गुपि. पं. विनयरूचजी पंडित, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. शांतिनाथ माहाराजजि साहाय छे.. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२४.५४१४.५ १३४३२). " " सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु. सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलकुशलवल्ली: वृंदजी, अंतिः मोक्ष साधे जि केड़, वर्ग-४, श्लोक-१७६. ५४६६८. महावीरजिन धूई, प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह व उपसर्गहर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९३२, वैशाख शुक्ल १२, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १७, कुल पे. ४, ले. स्थल. मकसुदाबाद (अजीम, प्रले. श्राव. छोकचंद, अन्य. श्राव. मंसारामजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२.५X१३.५, १३X२८). १. पे नाम, महावीरजिन थुई. पू. १अ संपूर्ण. महावीर जिन स्तुति पुहिं, पद्य, आदि तरण तारण दुख निवारण, अंतिः श्रीवर्धमानजिनेश्वरो, गाथा १. ', २. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १आ - १४अ, संपूर्ण. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - . पू. पू. ३. पे. नाम. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. , संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि नमो अरिहंताणं नमो अंतिः मिच्छामि दुक्कडं. १४अ - १७अ, संपूर्ण. वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे, अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. ४. पे नाम, उवसग्गाहर स्तोत्र, पृ. १७अ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि उवसग्गहरं पास पास अंतिः भवे भवे पास जिणचंद, . गाथा-५. " ५४६६९, (+) कर्मग्रंथ ४ षडशीति सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ७-२ (१ से २) = ५ पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२१.५X१५.५, ५२०). "" षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से २० तक है.) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). ५४६७०. कानड कठियारा चौपई, संपूर्ण, वि. १८७९, माघ कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले. स्थल. गुवालेर, पठ. मु. परसराम ऋषि (गुरु मु. परमानंदजी ऋषि): गुपि. मु. परमानंदजी ऋषि, अन्य दोलतरावजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (१७.५४१२, १२४२३). , For Private and Personal Use Only Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ३५९ कान्हडकठियारा रास-शीयलविशे, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: पारसनाथ प्रणमुंसदा; अंति: ___ दिनदिन बधते रंग, ढाल-९, (वि. प्रशस्ति में मानसागर की जगह सामसागर का उल्लेख है.) ५४६७२. (+#) इलाकुमार रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. नंदासण, प्रले. मु. लालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथकार व प्रतिलेखक एक होने की संभावना है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४१२.५, २१४३६). इलाचीकुमार रास, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८१, आदि: वाणारसी कासीधणी; अंति: लाल कहे०भावीइरे लाल, ढाल-१६, गाथा-३२३. ५४६७४. (+#) कर्मविपाक प्रथम कर्मग्रंथ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९०५, श्रावण शुक्ल, १, मध्यम, पृ. १३-२(३ से ४)=११, ले.स्थल. दानपुर, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२२४१५.५, ५४१७). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं, गाथा-६१, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से १९ नहीं है.) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वीरजणेसर प्रते वांदन; अंति: देवेंद्रसूरि० लख्यो. ५४६७५. (+#) बंधस्वामित्व तृतीय कर्मग्रंथ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(७)=७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२४१५.५, ५४१५). बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं, गाथा-२५, (पू.वि. गाथा-१९ अपूर्ण से गाथा-२३ अपूर्ण तक नहीं है.) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: बंधरा भेद थकी विमुक; अंति: स्तव सुणीने जाणना. ५४६७६. (+) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २८-१७(१ से १७)=११, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२२४१५.५, ४-६४१६). षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: (-); अंति: लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा-९०, (पू.वि. गाथा-५७ अपूर्ण से है.) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सूत्ररे अनुसारसु. ५४६७९. (#) नवपद पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१४.५, १३४२२-३०). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: कोइ न रही अधूरी रे, पूजा-९. ५४६८३. अंतरीक्ष पार्श्वनाथजी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., (२३.५४१५, १२४२२). पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५८५, आदि: सरस वचन द्यो सरसति; अंति: दरसण हुवाछु सदा, गाथा-५२. ५४६९८. निर्वाणक्षेत्र पूजा, औपदेशिक पद व आरती संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-१(६)=१०, कुल पे. ५, दे., (२०४१५, ८x११-१४). १. पे. नाम. सम्मेतशिखर पूजाविधि, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण. निर्वाणक्षेत्र पूजा, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: परम पूज्य चौबीस जिहँ; अंति: के गुण को बुध उचरै, दोहा-२२. २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ७अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: द्यानत० अमूर्ति लीन, गाथा-१३, (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण से है.) ३. पे. नाम. गोतकरमनाम सिद्ध आरती, पृ. ७अ-८आ, संपूर्ण. गोत्रकर्मनाम सिद्ध आरती, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: ज्यौ कुम्हार छोटे बड; अंति: द्यानत० वंदौ सदा, गाथा-६. ४. पे. नाम. अंतरायकर्मनास आरती, पृ. ८आ-९आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३६० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अंतरायकर्मनाश आरती, जै.क. धानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: भूप दिलावे दर्ज की, अंतिः धानत० पाउं भव अंत, , गाथा-७. ५. पे. नाम. सिद्ध आठगुण आरती, पृ. ९आ-११अ, संपूर्ण. सिद्धगुण आरती, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदिः आठ कर्म को नास आठगुन, अंतिः द्यानत सेवे ते वड, गाथा-८. ५४७१२. (+) कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३९. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६११, ११४३८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (१) नमो अरिहंताणं नमो, (२) तेणं कालेणं० समणे, अंति: जंबु नामे थेरेअं, व्याख्यान- ९. ५४७१४. (+) श्रीपालमहानरेंद्र चौपाई, संपूर्ण वि. १८८६, मार्गशीर्ष शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ४६, ले. स्थल, साहाजिहानाबाद, प्रले. मु. अखैचंद महात्मा (कवलागच्छ). प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. जैवे. (२५x११, ११४३२). श्रीपाल रास वृहद्, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य वि. १७४०, आदि: श्रीअरिहंत अनंतगुण; अंतिः निज पातकविण लूणजो रे, ढाल - ४९. ५४७१६. दशाश्रुतस्कंध सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६९, पौष कृष्ण, ११, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४०, ले. स्थल. सरदारशहर, प्रले. मु. रेवतमल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११.५, ६४५०). दशाgतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः णमो अरिहंताणं० सुर्य अंति: उवदंसेइ ति बेमि, दशा- १०. दशाश्रुतस्कंधसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१) वर्द्धमानं जिनं, (२) नमस्कार होवो अरिहंत अंतिः ते बार बार उपदिसह. ५४७१७. (+#) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६४, दत्त. नंदलाल, प्र. वि. संशोधित टिप्पणयुक् पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५x१०.५, ५४३२-३९). " दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा. पद्य, वी. रवी, आदि धम्मो मंगलमुकि अंतिः गई ति बेमि अध्ययन- १०. दशवैकालिकसूत्र - टवार्थ * मा.गु, गद्य, आदि: श्रीजिनधर्म उत्कृष्ट अंतिः मनक प्रति कहिउ ५४७१८. (+) साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२९, मार्गशीर्ष शुक्ल, १४, बुधवार, मध्यम, पृ. ३०, ले. स्थल. कोयलापुरपट्टण, प्रले. पं. विनयविजय, पठ. पं. कुशलविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. प्र. ले. लो. (५०६ ) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा (९६६) जलाद्रक्षे थलाद्रक्षे, जैदे (२४.५४११.५, ३-१२४३०-३९). "" पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: पगाम सिन्झाए निगाम, अंति: बंदामि जिणे चडवीस, सूत्र- २१. पगामसज्झायसूत्र - टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १७४९, आदि: ऐं नत्वा पार्श्वनाथ; अंति: श्रीराजधन्यपुरे, ५४७२०. . (#) नलदवदंती रास, संपूर्ण, वि. १७४४, श्रावण शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ४०, प्रले. मु. देवविजय (गुरुग. आणंदविजय); गुपि. ग. आणंदविजय (गुरु ग. गुणविजय गणि); ग. गुणविजय गणि (गुरु पं. जीवविजय गणि); पं. जीवविजय गणि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. अक्षरों की स्थाही फैल गयी है, जैवे. (२५४१०.५, १४४३८) नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: सीमंधरस्वामी प्रमुख; अंति: समयसुंदर भावसुं खंड ६, गाथा- ९६१, प्र. १२००५ (वि. परिमाण खंड ६ डाल ३७.) ५४७२२. (+) छंदोनुशासन सह स्वोपज्ञवृत्ति, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६४-१ (१) = ६३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें - अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. कुल ग्रं. २९९९, जैदे., (२३.५x१०.५, १३-१७X४४-५६). छंदोनुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: द्विघ्नानेकाध्वयोगः, अध्याय-८, (पू.वि. वर्गणा अपूर्ण से हैं.) छंदोनुशासन-स्वोपज्ञ छंदचूडामणि वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: (-) अंतिः रणात्त्वस्माभिरुक्तः, For Private and Personal Use Only Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ३६१ ५४७२३. (+) तंदुलवैचारिकप्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३६, माघ कृष्ण, ७, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४२, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. २०००, प्र.ले.श्लो. (९५८) यादृशं पुस्तिकां दृष्ट्वा, दे., (२५.५४११, ४४४२). तंदलवैचारिक प्रकीर्णक, प्रा., प+ग., आदि: निजरिय जरामरणं; अंति: कारणं लहिइ शिवसुखं. तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कल्याणवल्लीततिवारि; अंति: मुक्ति होचे ए भाव. ५४७२४. (+) उपाशकदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७७३, भाद्रपद कृष्ण, ५, जीर्ण, पृ. ३६, ले.स्थल. भट्टन्नेरकोट्ट, पठ. सा. सहजोजी महासती; दत्त. श्रावि. सद्दोबाई; गृही. सा. किशोरीजी महासती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१०.५, ८४५२-५५). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं० चंपा नामं नयरी; अंति: दिवसेसु उद्दिसंति, अध्ययन-१०. उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तिण काल विषइ; अंति: दसदिवसने विषे कहइ. ५४७२६. (+) कल्पसूत्र सहटबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६७-११(१ से ४,५७,५९ से ६३,६६)=५६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०, ७४४४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., बीच-बीच के पाठांश नहीं है व अंत में महावीर चरित्र तक हैं.) कल्पसूत्र-टबार्थ *मा.गु., गद्य, आदि: तेणे काले जे चोथो; अंति: (-), पृ.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*,मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., दशप्रकार के कल्प वर्णन से गणधरों के मोक्ष गमन वर्णन तक हैं.) ५४७२७. (+) उपदेशसप्तति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४८, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. २७५१, जैदे., (२६४११, १७-२०४६०). उपदेशसप्ततिका, ग. सोमधर्म, सं., पद्य, वि. १५०३, आदि: श्रीसोमसुंदरगुरूज्जव; अंति: स्यात्तथा चिंतनीयम्, अधिकार-५. ५४७२८. साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह व सप्तस्मरणादि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २६-१(१)=२५, कुल पे. ६, जैदे., (२६४११, १२४३२). १. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. २अ-१०आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. देवसिप्रतिक्रमण विधि-खरतरगच्छीय, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीस, (पू.वि. चैत्यवंदन जगचिंतामणी अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पार्श्वनाथ नमस्कार, पृ. १०आ-१३आ, संपूर्ण. जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंति: विण्णवइ अणिंदिय, गाथा-३०. ३. पे. नाम. सप्तस्मरण खरतरगच्छिय, पृ. १३आ-२२आ, संपूर्ण. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअसव्वभयं; अंति: नमामि साहम्मिया तेवि, स्मरण-७. ४. पे. नाम. लघुशांतिस्तव, पृ. २२आ-२३आ, संपूर्ण. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ५. पे. नाम. तिजयपहुत्त स्तोत्र, पृ. २३आ-२४आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तयासं अट्ठम; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ६. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. २४आ-२६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३२ तक हैं.) २९. (+#) चंद्रलेहा चौपाई, संपूर्ण, वि. १८१४, आश्विन अधिकमास कृष्ण, १३, बुधवार, मध्यम, पृ. १८, ले.स्थल. कानमेर नगर, प्रले. मु. भावविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११.५, १८४३८). For Private and Personal Use Only Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सरसति भगवति नमी करी; अंति: त्रिभुवनपति हुवे तेह, ढाल-२९, ग्रं. ११००. ५४७३०. (#) सिद्धहेमशब्दानुशासन सह वृत्ति--आख्यात प्रकरण, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १९-५(११ से १३,१५,१८)=१४, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. दुर्वाच्य. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १८४५७). सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अ.४ पाद ४ सूत्र ४ अपूर्ण से पाद ४ सूत्र ४४ अपूर्ण तक नहीं हैं.) सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ५४७३१. (+#) महासती दृपदी चरित्र व शत्रुजयतीर्थ स्तुति, संपूर्ण, वि. १७५५, माघ शुक्ल, ७, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३१, कुल पे. २, ले.स्थल. मरोटकोट, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १५-१७X५०-५६). १.पे. नाम. द्रौपदी चौपाई, पृ. १आ-३१आ, संपूर्ण. द्रौपदीसती चौपाई, वा. कनककीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६९३, आदि: पुरिसादाणी पासजिण; अंति: कनककीरति सुखकार, ढाल-३९. २.पे. नाम. सीमंधरस्वामि स्तुति, पृ. ३१आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने सीमंधरस्वामि स्तुति लिखा है, वास्तव में यह कृति शत्रुजयतीर्थ स्तुति है. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सिरि सेज मंजण; अंति: तुम्ह पाय सेवता, गाथा-४. ५४७३३. (+) शालिभद्र महामुनि चरित्र व पंचेंद्रिय स्वाध्याय, अपूर्ण, वि. १८४२, अठारइसयबयालीसा, आश्विन शुक्ल, १२, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १८-६(१ से ६)=१२, कुल पे. २, ले.स्थल. नागोरनगर, अन्य. मु. उदयचंद ऋषि; मु. वीरचंद ऋषि; श्राव. परमानंद वैरागी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १४४४५). १.पे. नाम. शालिभद्र महामुनी चरित्र, पृ. ७अ-१८अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: (-); अंति: मनवंछित फल लहिस्यइजी, ढाल-२९, (पू.वि. ढाल ११ गाथा ११ अपूर्ण से हैं.) २. पे. नाम. पंचेंद्रिय स्वाध्याय, पृ. १८अ, संपूर्ण.. ५ इंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: काम अंध गजराज अगाज; अंति: जिनहर्ष० सुख सासता, गाथा-६. ५४७३८. (+) अभिधानचिंतामणिनाममाला-कांड ४ से ६, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, १०x४२-४८). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदिः (-); अंति: नतौ नमः, प्रतिपूर्ण. ५४७४०. (+#) संघयणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ११४३१). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३११. ५४७४१. बासठीयो मोटोव छआरा मान विवरण, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २, दे., (२५४११, १२-१४४३६). १. पे. नाम. बासठीयो मोटो, पृ. १अ-९आ, संपूर्ण. ५६३ जीव बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, आदि: जीव गइ इंदीये काए; अंति: एवं ४ लेस ३ पेली. २. पे. नाम. छ आरा विवरण, पृ. ९आ-१०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ६ आरा बोल, मा.गु., गद्य, आदि: दस कोडाकोड सागरोपमना; अंति: (-), (पू.वि. आरा २ अपूर्ण तक विवरण हैं.) ५४७४२. (+) नवतत्व सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७७८, पौष शुक्ल, २, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्रले. मु. केसरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. बालावबोध टबार्थ शैली में लिखा है., संशोधित., जैदे., (२५.२-२५.५४११, ४४३०-३२). For Private and Personal Use Only Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ www.kobatirth.org " नवव प्रकरण, आ. मणिरत्नसूरि, प्रा., पद्य, आदि; जीवा‍ जीवार पुण्णं३ अंतिः लिहिओ मणिरयणसूरिहिं गाथा-५१. नवतत्त्व प्रकरण- बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य वि. १७३९, आदि: जीवनुं स्वरुप ते अंति नयविमल० कृतोयत्रः. . " ५४७४३. (+) अणुत्तरोववाईसूत्र, संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ५. प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६४११, १५x५०). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं कालेणं तेणं, अंति: अयमट्ठे पण्णत्ते, अध्याय-३३, ग्रं. १९२. ५४७४४ (०) स्तवन चौवीसी व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९६ वैशाख कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. १४, कुल पे. २, ले.स्थल. घांणोरानगर, प्रले. पं. रंगसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १०X२८). १. पे. नाम. स्तवन चौवीसी, पृ. १अ १३आ, संपूर्ण. , स्तवनचीवीसी, मु. मोहनविजय, मा.गु, पद्य, आदि: प्रथम तीर्थंकर सेवना; अंतिः मोहन० विसवाविस रे स्तवन- २४. २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १३-१४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- पंचासरातीर्थ, पंन्या पद्मविजय, मा.गु., पद्म, आदिः परमातम परमेसरु, अंतिः पद्म० अक्षय अविचलराज, गाथा- ७. ५४७४५. (+#) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ६, प्रले. मु. जैमल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२५X११.५, ५x२४-३३). वंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा. पद्य वि. १३वी २४वी आदि बंधविहाणविमुक्तं, अंतिः नेयं " कम्मत्थयं सोउं, गाथा - २५. ५४७४६. (+#) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बंध का विधाण करण तिण, अंति: कही ते कर्मस्तवथी. । चतुशरण प्रकरण सह अवचूरि, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, प्र. वि. पंचपाठ-संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, १८५०-६० ). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा. पद्य वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई, अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा - ६२. "3 चतुःशरण प्रकीर्णक- अवचूरि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, आदि: इदमध्ययनं परमपद, अंतिः भवतीति गाथार्थः. ५४७४७. गौतमपृच्छा सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैवे. (२६.५४११.५, १२४३९-४३). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तित्वनाहं, अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न- ४८, गाथा- ६५. गौतमपृच्छा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थनाथ श्रीमहावीर, अंति: महावीर महार्थ हुता. ५४७५०. कल्पसूत्र की कल्पकिरणावली टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३०-२४ (१ से २४ से ७९ से १२,१४ से २६,२८)=६, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., ( २६ १०.५, ११X३६-३८). कल्पसूत्र - कल्पकिरणावली टीका, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, वि. १६२८, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. श्लोक ३५ अपूर्ण से गणधरवाद अपूर्ण तक हैं.) ५४७५१. (#) विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४-८ (१ से ७, १३) = ६, कुल पे. ७, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, २१x४५-५०). " १. पे. नाम. २४ दंडक २६ द्वार विचार, पृ. ८अ १२अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: अल्प बहुत्व काउ, (पू.वि. यंत्र का प्रथमांश अनुपलब्ध है. ) २. पे. नाम. बारह पार्षदा विचार, पृ. १२अ, संपूर्ण. १२ पर्षदा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: अग्निकूण में पार्षदा, अंति: (-). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३. पे. नाम. जीव आयु विचार, पृ. १२अ, संपूर्ण. ६ कायजीव उत्पत्ति आयुष्यादि विचार, मा.गु, गद्य, आदिः पृथिवीकाय १२ कोडि अंति: (-). ४. पे. नाम. तेरह काठिया नाम पू. १२ आ. संपूर्ण. 3 For Private and Personal Use Only ३६३ Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३६४ www.kobatirth.org १३ काठिया नाम, मा.गु., गद्य, आदि : आसल १ मोह २ बन्ना ३; अंति: ११ कोउहला १२ रमणा १३. ५. पे. नाम. चौदह रत्न नाम, पृ. १२आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४ रत्न नाम, मा.गु., गद्य, आदि: चक्र रत्न छत्र रत्न; अंति: रत्न स्त्री रत्न. ६. पे. नाम औषध संग्रह. पू. १४अ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह " प्रा. मा.गु. सं., गद्य, आदि: सूरणकंद वज्रकंद नील, अंति (-). ७. पे. नाम. सिद्धांतसारविचार सज्झाय, पृ. १४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. आणंदवर्द्धनसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्री जगनाथइ सइ मुख; अंति: (-), (पू. वि. गाथा १३ अपूर्ण तक है.) ५४७५३ (०) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, अपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २२-१६ (१ से १९१३ से १७) = ६, पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, १४X३८). जंबू अध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. उद्देशक २ अपूर्ण से उद्देशक १७ अपूर्ण तक है.) ५४७५४. (+) अनुत्तरोववादसा सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४-१ (१) १३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. जैवे.. (२५X११, ६४३४). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: जहा धम्मकहाणेयव्वा, अध्याय-३३, ग्रं. १९२, (पू. वि. प्रथम वर्ग अपूर्ण से है.) , י अनुत्तरीपपातिकदशांगसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंतिः ए धर्मकथा जाणवी. ५४७५६. (#) भगवतीसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २१०-१९१(१ से १४५,१४९ से १६६, १६९, १७३ से १८२,१८९ से २०५) = १९, प्र. वि. अंतिम पत्र खंडित होने के कारण अनुमानित अंक लिया है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे (२४X११, १५X३८). प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११. १५४५-५६). १. पे नाम, त्रेपनक्रिया रासी, पृ. २अ ३आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. " भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-) अंति: (-) (पू. वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. मात्र बीच-बीच का पाठांश है. ) ५४७५७. (+) शत्रुंजयतीरथउद्धार रास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित, जैवे., (२५X११.५, १२X३४-३६). शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु, पद्य, वि. १६३८, आदिः विमल गिरिवर विमल, अंतिः (-), (पू.वि. गाथा ९९ अपूर्ण तक है.) ५४७५८ () रास, स्तोत्र, सज्झाय व लावणी संग्रह, पूर्ण, बि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-१ (१) ६, कुल पे. १०, ले. स्थल. सोगोद, ५३ क्रिया रास, मु. ब्रह्मगुलाल, मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: (-); अंति: ब्रह्मगुलाल० पद पावै, गाथा-११, (पू. वि. प्रथम गाथा अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. शांतिजिन स्तोत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. गुणभद्र, सं., पद्य, आदि: नानाविचित्रं बहुदुख, अंति: भद्रकायेषु नित्यं, श्लोक - ९. ३. पे. नाम. साधारणजिन आरती, पृ. ४अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only मु. शुभचंद, पुहिं., पद्य, आदि आरती जिणराज तुहारी, अंतिः शुभचंद० मगनमे गाजे, गाथा - ७. ४. पे. नाम. मनोरथमाला, पृ. ४-४आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, आव. अचला साह, मा.गु., पद्य, आदि: जिणवर वाणी मनिधरी, अंतिः अचला० है जिणजी, गाथा - १५. ५. पे. नाम. गुणठाणा, पृ. ४-५आ, संपूर्ण. १४ गुणस्थान वर्णन, मु. ब्रह्मज्ञान, मा.गु., पद्य, आदि : गोयम गणधर गरवामनि धर; अंति: ब्रह्म० भवियण सुख करौ, गाथा - १७. Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ३६५ ६. पे. नाम. लूहरी, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. औपदेशिक लोरी, मु. मनोहर, मा.गु., पद्य, आदि: सहल्यौहेयो संसार; अंति: मनोहर० सिवजायसी जी, गाथा-८. ७. पे. नाम. नेमराजिमती लावणी, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सगरी हू नेमजी नेमजी; अंति: न हई जुहारा जुहारा, गाथा-१३. ८. पे. नाम. नेमराजिमती लावणी, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: तोरण आया काल सबंधीया; अंति: विधुवा लै सो नारि, गाथा-१७. ९.पे. नाम. नेमराजुलरी लूहरी, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. नेमराजिमती लावणी, मा.गु., पद्य, आदि: पसुय देखी पाछा फिर्य, अंति: सुप्यानौ सजनी ने, गाथा-२०. १०.पे. नाम. नेमीश्वरजीको कडखौ, पृ. ७आ, संपूर्ण. नेमिजिन कडखो, मा.गु., पद्य, आदि: तोस्यौ कौण सरभर करै; अंति: खिलै सरणि देवातदेवी, गाथा-५. ५४७५९. (#) प्रतिक्रमणसूत्र व स्तुति संग्रह, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-१(१२)=१२, कुल पे. ८, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ११४३०-३७)... १.पे. नाम. पजुसण थुई, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. हीर, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर अति अलवेस; अंति: हीरने करो मंगलमालाजी, गाथा-४. २. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पंचमीतिथि स्तुति, ग. अमरचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुरासुर साथे; अंति: पुरजो चीत्त जगीसजी, गाथा-४. ३. पे. नाम. बीज स्तुति, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पुरो मनोरथ माय, गाथा-४. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पौषदशमीपर्व, आ. उदयसमुद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जय पास देवा करूं; अंति: केरी संघ आस्या तुरणी, गाथा-४. ५. पे. नाम. चउदस थुइ, पृ. ३आ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम, श्लोक-४. ६. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. ४अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टमी अष्ट परमाद; अंति: अष्टसुख सानिध करे, गाथा-४. ७. पे. नाम. मौनएकादशी स्तुति, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: निवारो संघतणा निशदिश, गाथा-४. ८. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. ४आ-१३आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: समुन्नय निमित्तं, (पू.वि. वंदितुसूत्र गाथा ११ अपूर्ण से गाथा ३२ अपूर्ण तक नहीं है.) ५४७६०. (+#) दानशीलतपभावना, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, पू.वि. प्रथम व अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ११४३०-३५). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल १ अपूर्ण से ढाल ४ अपूर्ण तक है.) ५४७६२. (+#) युगादिदेव स्तव वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, २२-२३४५३-६९). भक्तामर स्तोत्र-गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि, सं., गद्य, वि. १४२६, आदि: यः संयुतः अहंपितं; अंति: स्वधिया व्याख्येयः, ग्रं. १५७२. For Private and Personal Use Only Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३६६ ५४७६६. (+#) जैनकथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १९-१३ (१ से १०,१२ से १३, १८) = ६, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२५.५४११, १३४३३-४१). कथा संग्रह **, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा २७४ अपूर्ण से ५१३ अपूर्ण तक हैं, बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) ५४७६७. पासाकेवली भाषा, अपूर्ण, वि. १९००, श्रावण कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ८- १ ( ४ ) = ७, प्रले. व्यास, पठ. सेवकजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२६४११.५ ९४३६). "" पाशाकेवली भाषा संबद्ध, मा.गु, गद्य, आदि: १११ ए सुकन घणो अंतिः कियां भलो थास्यै, (पू. वि, श्लोक २२२ पूर्ण लोक २४४ अपूर्ण तक की भाषाटीका नहीं है.) ५४७६८. (+#) प्रतिक्रमण विधिसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १८-१२ (१ से १२) = ६, पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, १५X३५-३८). प्रतिक्रमणविधि संग्रह- खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रभात पोसह से प्रतिक्रमण स्थापन विधि अपूर्ण तक का पाठ है. ) ५४७७० (+) शतक नव्य कर्मग्रंथ सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पू. ३३-२४ (१ से २३,२७) = ९ प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे. (२४४१०५ ७३० ). शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १३वी १४वी, आदि (-); अंतिः सयगमिणं आयसरणड्डा, " 3 " गाथा - १००, (पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं., गाथा ६ अपूर्ण से गाथा ३४ अपूर्ण तक व गाथा ४२ अपूर्ण से है.) शतक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. ५४७७१. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५७-५० (१ से ४७,५४ से ५६) =७ जैदे. (२४.५४११.५, ५-११४२५-२९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्रारंभ, बीच व अंत के पाठांश नहीं हैं.) ५४७७२, (+०) उत्तराध्ययनसूत्र- अध्ययन १ से २५ सह कथा, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४४-३७(१ से २९, ३५ से ४२) =७, - " प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. १२५०, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., ( २४.५X११, १३X३७-३९). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं., अध्ययन- १३ अपूर्ण से है., वि. मूलपाठ संक्षिप्त रूप से है. ) उत्तराध्ययनसूत्र- कथा संग्रह", सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. ५४७७३. श्रावकपाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५६-५१ (१ से ५०,५३) = ५, पठ. श्राव. धर्मसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रत १७वीं की लगती है, परंतु अंत में किसी अन्य व्यक्ति के द्वारा "सं १३२४ वरसे मिसासु १५ बुधवारे ग्रंथसंख्या १५१" लिखा गया है., प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., ( २४.५X१०.५, ११४३८). श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्, (पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., गाथा ६ अपूर्ण से गाथा ११ अपूर्ण तक नहीं है.) ५४७७४, (+०) नाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, १३X३०-४० ). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः (-). (पू.वि. कांड २ श्लोक ८५ अपूर्ण तक है.) ५४७७५. (+) आठकर्म १५८ प्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५X१०.५, १४X३८). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदिः आठकर्मना नाम पहिलो; अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. जैवे.. ५४७७७. (+) समकितबत्रीसी व दोहरा शतक, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५X१०, १५X४५-५०). For Private and Personal Use Only Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ १.पे. नाम. समकित बत्रीसी, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. समकितबत्रीसी, श्राव. कवरपाल, मा.गु., पद्य, आदि: केवलरूप अनूपम आतम; अंति: कवरपाल०आदर करिलिन्हे, गाथा-३२. २.पे. नाम. दोहरा संग्रह, पृ. ३अ-५आ, संपूर्ण. औपदेशिक दूहा संग्रह, ऋ. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: अपनौ पद न विचारहु; अंति: रूपचंद० पंथ दिखाइ, गाथा-१००. ५४७७८. (+#) संग्रहणी सूत्र, अपूर्ण, वि. १७०४ कृष्ण, २, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १४-४(१,६,८ से ९)=१०, ले.स्थल. आगरनगर, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ३५००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १२४३८). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३७५, (पू.वि. गाथा १२ से ८९ अपूर्ण तक, गाथा १०९ अपूर्ण से १३३ अपूर्ण तक व गाथा १७५ अपूर्ण से है.) ५४७७९. (+) हीरप्रश्नोत्तर बीजक, संपूर्ण, वि. १९१३, आषाढ़, श्रेष्ठ, पृ. २९, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११.५, १०४३६). हीरप्रश्न-बीजक, सं., गद्य, आदि: तत्र प्रथम महोपाध्या; अंति: मितिपर्यंत श्लोकः. ५४७८०. (+) लोकनालीबत्तीसी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, ४४३५-४१). लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदसण विणा जंलोअं; अति: जहा भमह न इह भिसं, गाथा-३३. लोकनालिद्वात्रिंशिका-टबार्थ, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: परिभ्रमण झाझं न करि. ५४७८१. (#) सांबप्रद्युम्न रास, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ९-१(१)=८, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १३४३१-४५). सांबप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६५९, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा ५ अपूर्ण से गाथा २०० तक है.) ५४७८२. (+#) प्रतिक्रमणसूत्र की वृत्ति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१०.५, १०४३२). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.-टीका*, सं., गद्य, आदि: यत उपदेशपदे एअंच; अंति: सावगधम्माइआरस्स. ५४७८५. (+) जीरापल्लिपार्श्वनाथ स्तोत्र पंजिका व यंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, १५४४४-४६). १. पे. नाम. चौबीस जिन अधिष्ठायक देवी देवता यंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. जैनयंत्र संग्रह*, मा.गु., यं., आदिः (-); अंति: (-). २.पे. नाम. जीरापल्लिपार्श्वनाथ स्तोत्र पंजिका, पृ. १आ-११आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-पंजिका टीका, मु. पुण्यसागर, सं., गद्य, वि. १७२५, आदि: श्रीपार्वं जीरिकाप; अंति: श्रीश्रीमालाभिधेनगरे. ५४७८६. (+#) नारचंद्र ज्योतिष, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १३४३०-४०). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: कृनांदोष कृत्य, (वि. प्रतिलेखक ने श्लोकांक नहीं लिखा है.) ५४७८७. (+) जीवविचार प्रकरण सह टीका, संपूर्ण, वि. १७१०, कार्तिक शुक्ल, ३, गुरुवार, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. व्यालपुर, प्रले. पंन्या. पंचायन (भावहर्षिया गच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, ४४५९). For Private and Personal Use Only Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-अक्षरार्थदीपिका अवचूरि, सं., गद्य, आदि: अहं किंचिदपि जीव; अंति: सकलसंघाय श्रेयसेस्तु. ५४७८८. पार्श्वजिन प्रबंध स्वर्णगिरिमंडन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदे., (२५.५४११, १३४४५). पार्श्वजिन प्रबंध-स्वर्णगिरि मंडन, अप., पद्य, आदि: जालोरदुर्ग सिरिसेने; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १०७ तक लिखा है.) ५४७९३. (+#) २४ तीर्थंकर यक्षयक्षिणी स्वरूप वर्णन, राजवल्लभ-जिन चैत्यद्वार निर्माण विधि व जिन प्रतिमा गुणदोष वर्णन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४०-३२(१ से ३२)=८, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४११, १०-१२४३०-३४). १.पे. नाम. २४ तीर्थंकर यक्षयक्षिणी स्वरूप वर्णन, पृ. ३३अ-३६अ, संपूर्ण. २४ जिन यक्षयक्षिणी स्वरूप वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ ऋषभ यक्ष गोमुख १; अंति: बीजोरु वीजे विणा. २. पे. नाम. राजवल्लभ-जिन चैत्यद्वार निर्माण विधि, पृ. ३६आ, संपूर्ण, प्रले. पं. दीपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. राजवल्लभ, विश्वकर्मा, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३. पे. नाम. प्रतिमास्वरूप गुणागुण विभाग, पृ. ३६आ-४०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जिन प्रतिमा स्वरूप गुणदोष विचार, मा.गु., गद्य, आदि: रोद्र प्रतिमा करावणह; अति: (-), (पू.वि. अष्टम वृत के मध्य स्थापित प्रतिमा वर्णन अपूर्ण तक है.) ५४७९५. (+#) दशवैकालिकसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६१-४७(१,६ से ७,१६ से ५८,६०)=१४, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११, ९४३५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., उद्देशक १ अध्ययन १ गाथा ४ अपूर्ण से अध्ययन ५ गाथा २७ अपूर्ण तक व प्रथम चूलिका अपूर्ण तक है.) दशवैकालिकसूत्र-टीका*, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), पृ.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. ५४७९६. (#) भगवतीसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४८-३७(१ से ३७)=११, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ५-१४४८१-८८). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. शतक-२ उद्देशक १ खंदकमुनि अधिकार अपूर्ण मात्र है.) भगवतीसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. ११२८, आदि: (-); अंति: (-). ५४७९८. (#) शील रास, पूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.२४११, १५४३६-४०). शीलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलुं प्रणाम करूं; अंति: (-). ५४७९९. (+#) सिंहलकुमार रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९-४(१ से ४)=५, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, ९४२५-२७). प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल ३ से ढाल ५ अपूर्ण तक है.) ५४८०२. (+) कुलक, विचार आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८-२(१ से २)=६, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, १२-१८४४८-६२). १. पे. नाम. नवतत्त्वना भेद, पृ. ३अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. नवतत्त्व भेद, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: विचारणा करिवी, (पू.वि. ज्ञानावरणीय कर्म अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. परमाणुमान कुलक सह बालावबोध, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. परमाणुमान गाथा, प्रा.,सं., पद्य, आदि: पुढवाइ आसत्ता सव्व; अंति: च पावंमुणेयव्वं, गाथा-३. परमाणुमान गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: समय अत्यंत सूखिम काल; अंति: घडी कालमान जातइ जायइ. For Private and Personal Use Only Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ३६९ ३. पे. नाम. चक्रवर्ती नवनिधान विचार, प्र. ८अ-८आ, संपूर्ण. चक्रवर्तिऋद्धि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: निसर्व्वनिधान; अंति: अनइ निधान भरियउ. ४. पे. नाम. आठ कर्मनी एक सो अट्ठावन उत्तरप्रकृति, पृ. ८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ८ कर्म१५८ प्रकृति विचार, पुहि.,मा.गु., गद्य, आदि: न्यानावरणी की ५; अंति: प्रकृति १५८ जाणिवी, संपूर्ण. ५४८०३. सुकन प्रदीप, संपूर्ण, वि. १९०९, भाद्रपद शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. सापोरनगर रामगंज, प्रले. मु. वादस ऋषि (गुरु आ. राजेंद्रकीर्ति); गुपि.आ. राजेंद्रकीर्ति; अन्य. मु. जीवाजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११, १५४३०-३४). शकुन प्रदीप-पद्यानुवाद, श्राव. गोरधनदास नंदलाल, पुहिं., पद्य, वि. १७६२, आदि: सदगुरु लिखमीचंद के; अंति: गोरधनदास० लेह सुधार, गाथा-१२०. ५४८०५. (+#) आवश्यकसूत्र सहटबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, ४४२३). आवश्यकसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: तिखुत्तो आयाहिणं; अंति: (-), (पू.वि. सामायिक विधि तक है.) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तिखुत्तो० त्रिनवार; अंति: (-), (पू.वि. सामायिक विधि तक है.) ५४८०६. (+#) भक्तामरस्तोत्र सह अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. १६४४, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. जेसलमेरदुर्ग, प्रले. नाथा लाखण वाघमारे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११, ५-७७५२-५५). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामर प्रणत मौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: सम्यग् जिनपादयुग; अंति: समागच्छति. ५४८०७. (+) जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. ग. तेजविजय (गुरु ग. श्रीविजय); गुपि.ग. श्रीविजय; पठ. श्राव. मेरु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ५४३१-३६). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिभुवननइ विषइ; अंति: रूपी समुद्र तेहथी. ५४८०८. (+) भक्तामर स्तोत्र सह सुखबोधिका टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, प्रले. मु. मतिसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १२४४२-४५). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामर प्रणत मौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-सुखबोधिका टीका, आ. अमरप्रभसूरि, सं., गद्य, आदि: किल इति निश्चये अहम; अंति: विबुधैः शोध्यतामियम्. ५४८०९. (#) शीलोपदेशमाला सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११,१४४४५-४७). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि: आबालबंभयारि नेमि; अंति: आराहिय लहह बोहिसुह, कथा-४३, गाथा-११५. शीलोपदेशमाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: आबाल ब्रह्मचारी; अंति: मोक्षफल परिणमउ. आर्यवसधाराधारिणी, संपूर्ण, वि. १७९५, कार्तिक कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. जावदनगर, प्रले. म. गुणसागर (विजयगच्छ); पठ. मु. मानजी ऋषि (गुरु भट्टा. विनयसागरसूरि, विजयगच्छ); गुपि. भट्टा. विनयसागरसूरि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, १३४३२-३५). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: शृणोति भोगं च करोति. ५४८११. (#) धम्मिल रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (९६७) याद्रस्यं पुस्तके द्रष्ट्वा, जैदे., (२६४११, १२४३३). For Private and Personal Use Only Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३७० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची धम्मिल रास, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १५९१, आदि: सरसति मुझ मति दिओ; अंति: ते पाम्म ह निधान, गाथा - २७७. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४८१२. (+#) संग्रहणीरत्न, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल है, जैदे., (२५X१०.५, १५X३८). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा. पद्य वि. १२वी आदि नमिठं अरिहंताई दिइ, अंतिः जा वीरजिण तित्यं गाथा-२८३. ५४८१३. सिद्धांतसार, संपूर्ण, वि. १५३१, मध्यम, पृ. ८, जैवे. (२५.५x११, १०४३३). सिद्धांतसार, आ. जिनेंद्राचार्य, प्रा., पद्य, आदि जीवगुणठाण सण्णा, अंति: सिवमगजुत्ता, गाथा ७९ (वि. संबंधित स्थापना विधि दी गई है. ) ५४८१४ (१) पट्टावली तपागच्छीय, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६ प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२५.५x११. १५X४३-४६). पट्टावली-तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीजिनशासन संप्रति अंतिः श्रीविजयधर्मसूरि ६५. ५४८१५ (१) दंडक प्रकरण सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८०५, भाद्रपद कृष्ण, ८, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले. मु. सुंदर ऋषि, पठ. श्राव. वसता, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११.५, ४X३०-३२), दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीसजिणे तस्स; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४४. दंडक प्रकरण-वार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: चडवीस तीर्थंकरनई: अंतिः पोताना हितने काजे. ५४८१६. बारव्रत पूजाविधि व श्लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९२२, माघ शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. २, प्र. वि. कुल ग्रं. १२४, वे. (२६११, १०x३२). १. पे. नाम. बारव्रतपूजा, पृ. १अ -११आ, संपूर्ण. १२ व्रत पूजाविधि, पं. वीरविजय, मा.गु. सं., पद्य, वि. १८८७, आदिः उच्चैर्गुणैर्यस्य; अंति: जग जस पडह वजायो रे, ढाल - १३, गाथा - १२४. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ११आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: अन्नहीनो दधाधातुं; अंति: नरके गतायुः, श्लोक-४. ५४८१७. (+#) सत्तरभेदीपूजा सविधि व साधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६५, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, ले. स्थल. लसकर, दोलतराव, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैसे. (२५X११, ११४३८). प्रले. १. पे. नाम. १७ भेदी पूजा, पृ. १अ- ९आ, संपूर्ण. वा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६१८ आदि भाव भले भगवंतनी पूजा, अंतिः तार तार प्रभु तार, बाल- १७, (वि. अंत पूजा सामग्री दी गई है.) २. पे. नाम. सामान्यजिन स्तवन, पृ. ९आ, संपूर्ण. 1 साधारणजिन पद, मु. खुशालराय पुहिं, पद्य, आदि मेरा जीवडा लम्बा, अंतिः खुस्याल० भव पातिक भगा, गाथा - २. ५४८१९. (+) द्वारकानगरी विस्तार, संपूर्ण वि. १८३७, चैत्र शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल, निवोल, प्रले. सा. अखु (गुरु सा. गुमानाजी); गुपि. सा. गुमानाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५X११, २१x४४). द्वारिकानगरी विस्तार, मा.गु., पद्य, आदि: बावीसमा श्रीनेमजिणंद, अंतिः जिनवृद्धिमान रे, डाल- १२. ५४८२० (4) स्तुतिचौवीसी, संपूर्ण वि. १७७६ वैशाख कृष्ण, ८, बुधवार, मध्यम, पृ. ८. कुल पे २ प्रले. पं. रामविजय, , प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, १४X३३). .पे. नाम. स्तुति चौवीसी, पृ. १आ-८अ, संपूर्ण. स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्म, आदिः भव्यांभोजविबोधनैक, अंतिः हारताराचलक्षेमदा, स्तुति- २४, , श्लोक- ९६. २. पे. नाम. औपदेशिक कवित, पृ. ८आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ औपदेशिक कवित्त, मा.गु., पद्य, आदि: टके वार केटली जिस्यौ; अंति: ते जासै नारकी रे, गाथा- ३. ५४८२१, (+४) व्यवहारशुद्ध चौपाई, संपूर्ण वि. १८२० वैशाख शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ५, ले. स्थल, सुहाई, प्रले. पं. यसकर्ण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५X१०.५, १७×३९). व्यवहारशुद्धि चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६९६, आदि: शांतिनाथ जिन सोलमो अंतिः समयसुंदर वंछित काज, ढाल-९, गाथा- १६१. ५४८२२. (#) प्रतिक्रमणसूत्र व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९ - १ (१) = ८, कुल पे. ९, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे (२६४११. १०-१३४३४-३६). १. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. २अ-७अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. आवक प्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. सं., प+ग, आदि: (-); अंति: मणसा मत्वरण वंदामि, (पू.वि. "चिहुंदिसि विदिसि जं" पाठ से है.) २. पे. नाम. स्नातस्या स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंतिः कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ३. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. ७आ-८अ संपूर्ण. ३७१ ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंतिः कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ४. पे. नाम. लघुपंचमी स्तुति, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: समुद्रभूपालकुलप्रदीप, अंति: देवी जगतः किलांबा, श्लोक-४. ५. पे. नाम. कल्लाणकंद स्तुति, पृ. ८आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणकंदं पढमं; अंति: अम्ह सया पसत्था, गाथा-४, (वि. प्रतिलेखक ने समाप्तिसूचक संके नहीं दिया है.) ६. .पे. नाम, साधारणजिन शतार्थी स्तुति, पृ. ८.आ, संपूर्ण. आ. सोमतिलकसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: कल्याणसारसवितानीय, अंतिः भाव परमागम सिद्धसूरे, श्लोक - १, (वि. प्रतिलेखक ने लोक सं. ४ लिखा है.) पे, नाम, बीज स्तुति, पृ. ८आ- ९अ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि दिन सकल मनोहर बीज, अंति: कहे पुरो मनोरथ माय, गाथा- ४. ८. पे नाम, मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. ९अ ९आ, संपूर्ण मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी, अंतिः सीस० संघतणा निशदिश, गाथा- ४. ९. पे. नाम. स्थूलिभद्र सज्झाच, पृ. ९आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, आ. रत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि कोश्या ऊभी विनवैरे, अंतिः (-) (पू. वि, गाथा-५ अपूर्ण , तक है.) ५४८२३. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८२, प्र. वि. संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५X११, ७-१६x४५-५०). उत्तराध्ययन सूत्र. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: संजोगा विप्यमुक्कस्स: अंतिः पुव्वरिसी एवं भासति अध्ययन-३६. उत्तराध्ययनसूत्र - बालावबोध मैं मा.गु., गद्य, आदि: संसारतणा संबंधधी, अंतिः पूर्व ऋषीश्वर इम कहइ. 3 * For Private and Personal Use Only ५४८२४ (+४) रायपसेणइयंसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १७९९ चैत्र कृष्ण, १२, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १०५-३५ (१ से २८,९८ से १०४)+१(९६)=७१, ले.स्थल. सीतामोहग्राम, प्रले. मु. कर्पूरचंद ऋषि (गुरु मु. केसाजी ऋषि); गुपि मु. केसाजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र. ले. श्लो. (९६८) यादृशं पुस्तके दृशं जैसे. (२५४११, ७४४६) " राजप्रनीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); . अंति: परस सुपरसवणीए णमो (पू.वि. "सयाई एवं सहस्साई पाठ से "उस्कुवाडिति वाख" तक तथा "तं करेहि छ सेवं भंते " से अंत तक है.) राजप्रश्नीयसूत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: तेह भणी नमस्कार थाउ Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५४८२५. (+) चितसंभूतरुषि चौपई व रास संग्रह, संपूर्ण, वि. १८१९, आषाढ़ अधिकमास कृष्ण, १२, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ५४, कुल पे. ७, ले.स्थल. सांडेरानगर, प्रले. पं. विनयविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १५४४३). १.पे. नाम. चित्रसंभूति चौपाई, पृ. १आ-२७आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: प्रथम नमुं परमेसरु; अंति: दीइंदोलति दीदारु रे, ढाल-३९. २. पे. नाम. वंकचुलनृप रास, पृ. २७आ-३१आ, संपूर्ण. मु. कनकविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: त्रिभुवननायक गुणनि(त; अंति: घर घर लछि विशाला रे, ढाल-८. ३. पे. नाम. स्थूलिभद्र नवरसो ढाल व दूहा, पृ. ३१आ-३६आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि नवरसो ढाल व दूहा, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति दायक सदा; अंति: मनोरथ वेगे फल्यारे, ढाल-९, गाथा-७४. ४. पे. नाम. कान्हडकठियारा रास, पृ. ३६आ-४२आ, संपूर्ण. ___ कान्हडकठियारा रास-शीयलविशे, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: पारसनाथ प्रणमुं सदा; अंति: मानसागर दिन वधते रंग, ढाल-९. ५. पे. नाम. दानशीलतपभावना संवाद, पृ. ४२आ-४५अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: वीर जिनेसर पाय नमी; अंति: भणे० सुप्रसादोरे, ढाल-४, ___ गाथा-१०१. ६. पे. नाम. कृष्ण स्तुति, पृ. ४५अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: तं भूसुता मुक्तिमुदा; अंति: मुक्ति मुता सुभूतं, श्लोक-१. ७. पे. नाम. विक्रमचौबोली रास पुण्यफलकथन, पृ. ४५आ-५४अ, संपूर्ण. विक्रमचौबोली रास-पुण्यफलकथने, वा. अभयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: वीणा पुस्तक धारणी; अंति: मितिमिदिर कजे कही, ढाल-१७. ५४८२६. (+#) दशवकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६१, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. कुल ग्रं. ३१००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, ५४४२). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: निच्चला होसु, ___ अध्ययन-१०, (वि. चूलिका-२) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: धर्म केवली भगवंतनो; अंति: धर्म हुती चलावउ नही. ५४८२८. (+) विक्रमसेनराजा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४१, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १६४४७). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: परम ज्योति प्रकासकर; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-६०, गाथा-१० तक है.) ५४८२९. (+#) योगचिंतामणि, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ६६-७(२ से ३,८ से ११,२४)=५९, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४३५-४०). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: यत्र वित्रासमायांति; अंति: (-), (पू.वि. "सौभाग्य-सौंदर्य प्रकरण" अपूर्ण से "नालेरपाक" अपूर्ण तक, "भिलावापाक" अपूर्ण से "तालीसादि चूर्ण" अपूर्ण तक, "प्रचेतन गुटी" अपूर्ण से "पंचाननरस गुटी" अपूर्ण तक नहीं है व "पंचाननरस गुटी" अपूर्ण" से "रुधिरस्राव प्रकरण" अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५४८३०. (+१) वैराग्यशतक सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८५९ फाल्गुन कृष्ण, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३०, ले. स्थल रामसीण, प्रले. ग. मानविजय (गुरु पं. अजितविजय गणि); गुपि. पं. अजितविजय गणि (गुरु पं. विनयविजय गणि); पं. विनयविज (गुरु पं. जयविजय गणि); पं. जयविजय गणि (गुरु पं. अमृतविजय गणि); पं. अमृतविजय गणि; राज्यकालरा. रामसिंह, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. श्रीमाहावीरजी श्री आदिनाथजी प्रसादात्, पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. प्र. ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृद्धा, जै, (२५.५४१९, ४४३६-४५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वैराग्यशतक, भर्तृहरि, सं., पद्य, आदि: दिक्कालाद्यनवच्छिन्न, अंति: भुवि भेदः परस्परं, श्लोक-१३८. (+#) वैराग्यशतक - टबार्थ, य. रूपचंद्र कवि, मा.गु., गद्य, आदि: सर्वदर्शिनमांनस्य, अंति: भेद परस्परक० महोमाहै. ५४८३१. ) व्यवहारसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८८८, मार्गशीर्ष शुक्ल, ८, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३६, ले. स्थल, सर्वाण्या, प्रले. मु. खुमाणचंद्र ऋषि (परंपरा ऋ. खुमाणचंद्र, लुकागच्छ); राज्यकालरा. अभयसिंह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प् विशेष पाठ संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र. ले. श्लो. (९६९) याद्रसं पुस्तकं दृष्ट्वा, (९७०) पोथी प्यारी प्राणभी, जैदे., (२६१२, ९५५३). व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि जे भिक्खु मासिवं, अंतिः भवंति तिमि, उद्देशक- १० प्र. ३७३, संपूर्ण. ३७३ व्यवहारसूत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे भिक्षुक साधु एक अंति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., उद्देशक - १० अपूर्ण तक है.) ५४८३२. (+) अंतगडदशांगसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९१७, मार्गशीर्ष कृष्ण, ६, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ५४, ले. स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मगनीराम महात्मा; अन्य. मु. उत्तमचंदजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. प्र. ले. श्लो. (५०६) वादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (९७७) जलादि रक्षे स्तैलादि रक्षे, (९७८) कर पृष्टी कटी ग्रीवा, दे., (२५X११.५, ७x४६). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं, अंति: जहा नायाधम्मकहाणं, अध्याय-९२, , ग्रं. ८९९. अंतकृद्दशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अंतकृद्दशा कहता; अंति: धर्मकथानी परइ जाणवो. ५४८३४. (+) विक्रमादित्य रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. ६७-१ (१) = ६६ प्र. वि. संशोधित, जैवे (२५४११, १५४४६-५१). विक्रमराजा चौपई, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, वि. १७२८ आदि (-); अंतिः अहनिस उच्छवरंग बधाइ, खंड-६, गाथा-३१६८, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है., वि. ढाल ७५) ५४८३६. (+#) अभिधानचिंतामणी, अपूर्ण, वि. १७९४, वैशाख कृष्ण, ८, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४७-३ (१ से ३) =४४, ले. स्थल. कटारीयानगर, प्रले. मु. भीमविजय (गुरु भट्टा. विजयदयासूरीश्वर ); गुपि. भट्टा. विजयदयासूरीश्वर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीमहावीर प्रसादात्, संशोधित अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६४११, १५X४२). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, बि. १३वी आदि (-); अंति: रोषोक्ताव नतौ नमः, कांड-६, ग्रं. १४५२, (पू. वि. कांड-१, श्लोक - ७५ अपूर्ण से है.) ५४८३७ (+) श्रेणिक चरित्र खंड-२, संपूर्ण वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३६ प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ५४८३९. पुजासंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २१, कुल पे. ३, जैदे., (२६X११, ११x२८-३३). १. पे, नाम, स्नात्र पूजा, पृ. १आ-८अ संपूर्ण, For Private and Personal Use Only (२५-२५.५X११, १५X४३-५१). श्रेणिकराजा चौपाई, मु. नारायण, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि: श्रीजिननायक भावशु; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५४८३८. (+) नवस्व प्रकरण सह वालावबोध, संपूर्ण, वि. १८२५ कार्तिक कृष्ण, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४५, नवतत्त्व ले. स्थल. गुंदगिरीनगर, प्रले. पं. विनयविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. प्र. ले. श्लो. (१२) मंगलं लेखकानां च (९७३) चोरान लादु दकेभ्यो, जैदे., (२५X१०.५, १६x४७). नवतत्त्व प्रकरण - बालावबोध, मा.गु, गद्य, आदि: जीव उपयोगमव कहीये, अंतिः मुक्ति निश्चये हुई. नवतत्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा, अंतिः अनंतभागोय सिद्धिगओ, गाथा-३४. Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची स्नात्रपूजा, श्राव. देपाल भोजक, प्रा.,मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: पूर्वदिसें तथा उत्तर; अंति: अमतणा देवदेवाधिदेवो, कुसुमांजलि-५. २.पे. नाम. अष्टप्रकारी पूजा, पृ. ८अ-१३आ, संपूर्ण. ८ प्रकारी पूजा, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: अजर अमर अकलंक जे; अंति: मोक्षं हि वीराः, ढाल-९, गाथा-७७. | ३. पे. नाम. नवपद पूजा, पृ. १३आ-२१आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजीगणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: कोई नय रहिय अधूरी रे, पूजा-९. ५४८४०. (+#) संग्रहणीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५४११, ५४३५). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: नंदउ जा जिणमयं लोए, गाथा-३०७. बृहत्संग्रहणी-टबार्थ, ऋ. वच्छराज, मा.गु., गद्य, आदि: विलिख्यते टबार्थोय; अंति: सोधी खडु कर्यो. ५४८४१. (+) मानतुंगमानवती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४४-२(८,२८)=४२, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १४४३७-४०). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद पदांबुजे; अंति: घरिघरि मंगलमाला हे, ढाल-४७, गाथा-१०१७, (पू.वि. ढाल-७ की गाथा-१३ अपूर्ण से ढाल-८ की गाथा १५ अपूर्ण तक व ढाल-२९ नहीं है.) ५४८४३. (+) विक्रमसेन लीलावती चोपाई, अपूर्ण, वि. १७८१, आश्विन शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ३०-१(१)=२९, ले.स्थल. बलुदा, प्रले. मु. तेजा ऋषि (गुरु मु. मेहाजी ऋषि); गुपि.मु. मेहाजी ऋषि (गुरु मु. गोरधनजी ऋषि); मु. गोरधनजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १५४४५). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: (-); अंति: दिन दिन दोलति पाईजी, ढाल-५२, गाथा-११६२, ग्रं. १६२४, (पू.वि. ढाल-२ की गाथा-७ अपूर्ण से है.) ५४८४५. (+) अंतगडसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३७, अन्य. रणधीरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. २२११, जैदे., (२५.५४११.५, ७४५२-५८). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: जहा नायाधम्मकहाणं, अध्याय-९२, (वि. १७२०, श्रावण शुक्ल, ५, गुरुवार, ले.स्थल. पाली, प्रले. मु. बलू ऋषि (गुरु मु. पांचाजी ऋषि); गुपि. मु. पांचाजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (९७५) याद्रिसं पूस्तकं दृष्ट्वा, (९७६) जलात् रक्षेत् तैलात् रक्षेत्) अंतकृद्दशांगसूत्र-टबार्थ, मु. उत्तम, मा.गु., गद्य, आदि: तेणई कालई चउथई; अंति: धर्मकथामाहि छिई तिम, (वि. १७२२, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, सोमवार, प्रले. मु. बलू ऋषि (गुरु मु. पांचाजी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य) ५४८४८. (+#) षडावश्यक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१०.५, ४४२६-२८). आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहताणं नमो; अंति: निच्चलं तस्स, (वि. १९०१, माघ कृष्ण, ७) षडावश्यकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: माहरो नमस्कार अरिहंत; अंति: समकित निश्चल जाणवो, (वि. १९०१, माघ ५४८४९. (+#) मृगावती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ३०, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४३५-४१). मृगावतीसती चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: समरु सरसति सामिणी; अंति: (-), (पू.वि. खंड-३, ढाल-११ गाथा-४ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५४८५२. स्तोत्र, स्तवन, रास व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १८-३ (१ से ३) १५. कुल पे. २०, ले. स्थल विसनगर, प्रले. पं. लक्ष्मीविजय गणि (गुरु पं. कांतिविजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे (२६११, ११३०-३४). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि (-); अंतिः समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक-४४ (पू. वि. गाथा ३९ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे नाम, दशवैकालिकसूत्र का हिस्सा प्रथम अध्ययन, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशवैकालिकसूत्र - हिस्सा द्रुमपुष्पिका प्रथम अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अति साहु तिबेमि, गाथा ५. ३. पे. नाम. ४ मंगल, पृ. ४आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: चत्तारि मंगलं अरिहंत, अंति: धम्मं सरणं पवज्जामि, गाथा - ३. ४. पे. नाम. धर्मनुं साधुं सगपण पद. पू. ४आ, संपूर्ण, धर्म सगाई दूहा, मा.गु., पद्य, आदि: धरम सगो संसार मै अवर, अंति: अवचल अखे पद होय, गाथा - १. ५. पे. नाम चोबीस तीर्थकर स्तवन, पृ. ४-५ अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मु. क्षेमकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ अजित संभव अंतिः ज्यां घर परम कल्याणो, गाथा-५, ६. पे. नाम. सोल सतीयांरी सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण १६ सती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सीतल जिनवर करूं, अंतिः एह नाम समरो निसदीस, गाथा-५. ७. पे नाम, स्तुति संग्रह, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. मांगलिक स्तुति संग्रह, सं., पद्य, आदि: अर्हतो भगवंत इंद्रम, अंतिः समरीये चवदेसे बावन, श्लोक ८. ८. पे. नाम. गौतमस्वामीरी सज्झाय, पू. ६ अ-६आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिणेसर केरो सीस; अंति: गौतम तुठै संपति कोड, गाथा- ९. ९. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तुति, पृ. ६आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: गौतम नाम प्रभात जपो; अंति: लब्धिनि० फतेरी फतेरी, गाथा - १. १०. पे. नाम. संखेश्वरापार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंखेसर पासजिन, अंतिः सयल रिपु जीपतो, गाथा-५. ११. पे नाम. रिषभदेवजीरो स्तवन, पृ. ७अ ८अ संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. किसन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीऋषभ जिणेसर जगत, अंति: कीरत ए मुनी किसन भणी, ए, गाथा - १७. १३. पे नाम, चौवीस तीर्थंकर स्तवन, पृ. ९अ-१०अ संपूर्ण ३७५ गाथा - १८. १२. पे. नाम. सोल सतीयांरी सज्झाय, पृ. ८अ - ९अ, संपूर्ण. १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि : आदिनाथ आदि जिनवर, अंति: उदयरतन० सुखसंपदा २४ जिन स्तवन, मु. अभयराज, मा.गु., पद्य, आदि: देवतणा गुण वर्णवं; अंति: प्रभु चरणे द्यौ वास, गाथा-१८. १४. पे. नाम. चोवीस तीर्थंकर स्तवन, पृ. १०अ ११आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन- मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणमुं; अंतिः तास सीस पणे आणंद, गाथा-२९. १५. पे. नाम. सोलतीर्थंकर सोवनवर्ण स्तवन, पृ. ११आ - १२अ, संपूर्ण. १६ जिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: ऋषभ अजित संभवस्वामी, अंति: रायचंद ० भवसागर तीरणा, गाथा - ११. १६. पे नाम, श्रावकनी सज्झाय, पृ. ९२-९३अ. संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: जिनहर्ष० हरणी छे एह, गाथा-२१. १७. पे. नाम. नवकार सज्झाय, पृ. १३अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवीयण समरो; अंति: जिनगुण सुंदर सीसरसाल, गाथा-७. १८. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. १३आ-१४आ, संपूर्ण. शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद मात नमु सिरनामी; अंति: गुणसागर० शिवसुख पावे, गाथा-२१. १९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १४आ-१५अ, संपूर्ण. मु. कीरत, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुगर चिंतामणदेव; अंति: चैव ॐकाराय नमो नमः, गाथा-१७. २०. पे. नाम. बुधी रास, पृ. १५अ-१८आ, संपूर्ण. बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमवि देव अंबाई; अंति: सालिभ० टले कलेसितो, गाथा-६७. ५४८५३. (+#) जैन कथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. ७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १८४५६). १.पे. नाम. १२ चक्रवर्ति कथा, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: अजोध्याइ भरतेश्वर; अंति: करी मोक्ष पुहुतु, (पू.वि. ९वें हरिषेण कथा तक है.) २. पे. नाम. दशार्णभद्र कथा, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण.. दशार्णभद्रराजर्षि कथा, मा.गु., गद्य, आदि: दशार्णपुरनगरि दशार्ण; अंति: स्तव रूपनु माणनीया. ३. पे. नाम. ४ प्रत्येकबुद्ध कथा, पृ. ५अ-९अ, संपूर्ण. ___मा.गु., गद्य, आदि: (१)करकंडु कलिंगेसु० कलि, (२)कलिंगदेश चंपानगरीइ द; अंति: एकइ समइ मोक्ष पुहुता, कथा-४. ४. पे. नाम. उदायनराजर्षि कथा, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: (१)सोवीरराय वसभो० सिंधु, (२)सिंधु सोवीरिदेशि वीत; अंति: उदायन मोक्ष पहुतु. ५. पे. नाम. दत्त वासुदेव, पृ. ९आ, संपूर्ण. दत्त वासुदेव कथा, मा.गु., गद्य, आदि: कासीदिशि अग्निशिखर; अंति: करी मोक्ष पुहुतो. ६. पे. नाम. महाबल कथा, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. महाबलराजर्षि कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (१)तहेव विजउराया० गजपुर, (२)गजपुरिनगरि बलराजा; अंति: चारित्र०मोक्ष पुहुतु. ७.पे. नाम. हरिकेश कथा, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. हरिकेशीमुनि कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (१)सोवागकुल संभूउ० अथ, (२)अथ हरिकेश बल दृष्टां; अंति: अहं इत्यादि सूत्र. ५४८५४. (#) ऋषिदत्ता महासती रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४, प्रले. मु. थावर ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १४४४४). ऋषिदत्तामहासती रास, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १५७२, आदि: हंस गमनि चालइ मलपंती; अंति: धन परिवारनी जोडिउ, गाथा-३८०. ५४८५५. (#) हरिबल चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६-२(१ से २)=२४, पू.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १८४४१). हरिबल रास, मु. जीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५४८५७. (+#) सुरसुंदरी रास, संपूर्ण, वि. १८३२, फाल्गुन शुक्ल, १२, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २१, ले.स्थल. जालोर, प्रले. ग. अजितविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४४२). For Private and Personal Use Only Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ३७७ सुरसुंदरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: श्रीसासण जेहनउ सलहिय; अंति: आनंद लील उमंगेजी, खंड-४, ग्रं. ९००, (वि. परिमाण-४ ढाल ४०) ५४८५८. (+#) षडशीती कर्मग्रंथ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ६४३६). षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा ७० अपूर्ण तक है.) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम ही अभीष्ट देव; अंति: (-), पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. ५४८५९. श्रावक करणी सज्झाय व भक्तामर सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२२-१०१(१ से १०१)=२१, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, ९-१४४२९-३५). १. पे. नाम. श्रावक विधि कुलं, पृ. १०२अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. श्रावक विधि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जन मुक्षण वीसरउ, गाथा-३१, (पू.वि. गाथा २६ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र सह बालवबोध, पृ. १०२आ-१२२अ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: किल इति सत्ये; अंति: तेह रहइ लक्ष्मी छइजी. ५४८६३. (#) इंद्रियपराजयशतक, भववैराग्यशतक व आदिनाथदेशनाद्वार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २६, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ६४३७). १. पे. नाम. इंद्रियपराजयशतक सह टबार्थ, पृ. १अ-९आ, संपूर्ण. इंद्रियपराजयशतक, प्रा., पद्य, आदि: सुच्चिअसूरो सो; अंति: संवेगरसायणं निच्चं, गाथा-१०२. इंद्रियपराजयशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेहजि सूर तेहजि; अंति: संवेग रसायन नित्यं. २. पे. नाम. भववैराग्यशतक सह टबार्थ, पृ. ९आ-१८आ, संपूर्ण. वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जिउ सासयं ठाणं, गाथा-१०२. वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसार असारमाहि नथी; अंति: लहइ जीव शाश्वतुं ठाम. ३. पे. नाम. आदिनाथदेशनाद्वार सह टबार्थ, पृ. १८आ-२६अ, संपूर्ण. आदिनाथ देशनोद्धार, प्रा., पद्य, आदि: संसारे नत्थि सुह; अंति: सिवं जंति, गाथा-८८. आदिनाथ देशनोद्धार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसारमाहि नथी सुख; अंति: शिव मोक्ष पहुंचइ. ५४८६५. (+) स्तवन, सज्झाय व दुहादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. १३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १४४४४). १. पे. नाम. शीयलनववाड सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ९वाड सज्झाय, क. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलुं प्रणमुंगोयम; अंति: सीयलवंतनइ जाउ भामणे, गाथा-२७. २. पे. नाम. वैराग्यभाव सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: मोह तणी जाणे ए माया; अंति: तेओसविसुख लहीरे जी, गाथा-१७. ३. पे. नाम. अनाथिमुनि सज्झाय, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. अनाथीमुनि सज्झाय, मु. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: देश मगध मुख मंडणु; अंति: कमल० जयऊ साधु पुरंद, गाथा-३३. ४. पे. नाम. अजितनाथजिन स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. अजितजिन स्तवन-तारंगागढ, मु. आगम, मा.गु., पद्य, आदि: साहिबा अजितजिणेसर; अंति: शिवसुख आपज्योरे लो, गाथा-७. ५. पे. नाम. काव्य/दुहा/कवित्त/पद्य , पृ. ४अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. कोयल वर्णन आदि दूहा संग्रह.) For Private and Personal Use Only Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६. पे. नाम. हिंगलादिदेवी नाम स्तुति-रहस्य, पृ. ४आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., पद्य, आदि: तुंहि देवी हिंगुलाज; अंति: ज्येष्ट उच्यते, गाथा-६. ७. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुमति सुमति सलूणा; अंति: राम लहे जयका, गाथा-५. ८. पे. नाम. मुनिसुव्रतजिन स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मुनिसुव्रतस्युं मोहन; अंति: राम कहै शुभ सीस हो, गाथा-५. ९. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ताहरी मुद्रानी बलिहा; अंति: रामे आणंद पायो रे, गाथा-५. १०. पे. नाम. पारकर गौडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्यारोपारकर देस; अंति: होस्यु सीवरमणी रसीया, गाथा-७. ११. पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण. मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: नाडूलनगर विराजे तिहा; अंति: अमृत० सिरनामी रे, गाथा-५. १२. पे. नाम. सुपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण. ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: साहिब हो साहिब मुझ; अंति: जिनहर्षने० अविचल वास, गाथा-७. १३. पे. नाम. रहस्य दूहा संग्रह, पृ. ५आ, संपूर्ण. पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: सीसडो तुम चरणेह आतम; अंति: जपता तुमारा नाम, गाथा-५. ५४८६६. (+) शीलविषये कानडकठीयारा चउपदी, संपूर्ण, वि. १८४७, आश्विन अधिकमास कृष्ण, २, रविवार, मध्यम, पृ. ८, प्रले. मु. वीरचंद ऋषि; पठ. सा. चेनाबाई (गुरु सा. अगरा); गुपि.सा. अगरा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १५४२८). कान्हडकठियारा रास-शीयलविशे, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: पारसनाथ प्रणमुंसदा; अंति: मानसागर०दिन वधते रंग, ढाल-९. ५४८६७. धर्मफलप्राप्ति विषये धर्मबुद्धि प्रधान संबंध, संपूर्ण, वि. १८७१, ज्येष्ठ शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ९, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४३). कामघट संबंध-धर्मप्राप्तिविषये, सं., प+ग., आदि: (१)उद्वाहे प्रथमोवरः, (२)धर्मतः सकल मंगलावली; अंति: स्वयमेवावसेयम्, श्लोक-५३. ५४८६८. कर्पूरप्रकर, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-१(७)=९, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४११.५, १३४४९). कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., पद्य, आदि: कर्पूरप्रकरः शमामृत; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १७२ अपूर्ण तक हैं.)। ५४८६९. (#) विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १९४५४). १.पे. नाम. योगोद्वहनादि विधि, पृ. १अ-१७अ, संपूर्ण. योगोद्वहनविधि यंत्रसंग्रह, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: श्रीहर्षसार वाग्गुरु; अंति: (-). २.पे. नाम. विधिप्रपानुसारेण दीक्षाविधि, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण. दीक्षाग्रहण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: संध्यायां चारित्रो; अंति: याहिण८ वास९ उसग्गो१०. ५४८७०. (+#) चारप्रत्येकबुद्ध चोपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३९-१४(१ से १४)=२५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४३८). ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: (-); अंति: आणंद लील विलास, खंड-४, ग्रं. १२००, (पू.वि. खंड २ तक नहीं है.) ५४८७२. (+#) दंडकबोल विचार, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १३-४(४ से ७)=९, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १६x४९). For Private and Personal Use Only Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ www.kobatirth.org " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नारकीनो १ दंडक एवं अंतिः (-). ५४८७४. (+४) नवतत्त्व सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५. ५X११, ४X३१). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१जीवार पुण्ण३; अंतिः अणागयद्धा अनंतगुणा, गाथा-५०. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, आ. गजचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: दश विध प्राण धरे; अंति: वचनहुइ ते प्रमाणछई. ५४८७५. भक्तामर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. मु. जसवंतविजय पठ. श्राव. खूबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., (२५४११, १०X२५-२८). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंतिः समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक-४४. ५४८७९. (+) सप्ततिसयस्थान, संपूर्ण, वि. १६७३ आश्विन कृष्ण, ८, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्रले. मु. विनयविजय (गुरु उपा. सुमतिविजय वाचक) गुपि उपा. सुमतिविजय वाचक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है - संशोधित., जैदे., (२५.५X११.५, १५X३५). सप्ततिशतस्थान प्रकरण, आ. सोमतिलकसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३८७, आदि सिरिरिसहाइ जिणिदे, अंति: जाइ सो सिद्धिठाणे, गाथा - ३५९. ५४८८५. मार्गणाद्वार विचार, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७-१ (३) =६, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, जैदे., (२५x११.५, १५४४३). ६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: गाइ१ इंविअर काए३ जोए४; अंति: (-). ५४८८६, (+) कर्मविपाक सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५X११.५, ४X२३-२५). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी १४बी, आदि सिरिवीरजिणं वंदिय, अंति: (-), ३७९ (पू.वि. गाथा २२ अपूर्ण तक है. ) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ( १ ) प्रकृति समुदायस्यात्, (२) श्रीवीरजिन वांदी, अंति: (-). ५४८८९. (+) सिंदूर प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७९१, पौष कृष्ण, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. १९, ले. स्थल. नागपुर, प्रले. मु. भीमराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - संधि सूचक चिह्न अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पणयुक्त विशेष पाठ- संशोधित., जैदे., ( २६.५X११, १५x५२-५७). सिंदूरकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं. पद्य वि. १३वी आदि सिंदूरप्रकरस्तपः अंति: सूक्तमुक्तावलीयम्, द्वार- २२, " श्लोक-१००. सिंदूरकर - वार्तिक, मु. नेतृसिंह कवि, मा.गु., सं., गद्य, आदि: श्रीवामेयं जिनं, अंति: मोतीयाकी श्रेणि कीधी. ५४८९० (१) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३०-१६ (१ से १६) १४, पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल " गयी है, जैदे., (२५.५X११, १५X४३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गद्य, आदि (-): अंति: (-), (पू.वि. गाथा ७४४ अपूर्ण से व्याख्यान ९ अपूर्ण तक है.) ५४८९२. (४) सुक्तिमुक्तावली, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे., (२५.५४११.५, १३४४७). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं. पच, वि. १३वी आदि सिंदूरप्रकरस्तपः अंतिः सूक्तमुक्तावलीयम्, द्वार- २२, श्लोक-१००. ', ५४८९३. (+) जयतिहुअणस्तोत्र की त्रिभुवनत्रिंशका वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ८, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे., (२५.५X११.५, १४X३८). जयतिहुअण स्तोत्र- टीका, सं., गद्य, आदि: जय० अत्रायं वृद्ध, अंतिः खिलोकलोकश्वापितः ग्रं. २५० ५४८९६. (#) नवतत्त्व सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८२५, माघ शुक्ल, १५, सोमवार, मध्यम, पृ. १४, ले. स्थल. कर्णपुरनगर, प्र. वि. बालावबोध बार्थ शैली में लिखा गया है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५.५४११, ४४२९). " " For Private and Personal Use Only Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३८० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१जीवार पुण्णं३; अंति: अनंतभागो य सिद्धिगओ, गाथा-५१. नवतत्त्व प्रकरण - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्व ते १० प्राण, अंतिः उत्तर करे पूछणहारने. ५४८९७ (क) रहस्य कुतुहल, छंद व भावनाविलासादि संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १२, कुल पे. १५, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे., (२५X११. १७४५७). १. पे. नाम. रहस्य कुतुहल, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: अलसीयो सूकौ हीरवणरी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रयोग १९ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. सरस्वती छंद, पृ. १आ-२अ संपूर्ण. सरस्वतीदेवी छंद, ग. हेमविजय, मा.गु., पद्य, आदिः ॐकार धुरा उच्चरणं; अंति: करण वदे हेम इम वीनती, गाथा- १६. ३. पे. नाम. गौडी पार्श्वनाथ छंद, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. करमसी, मा.गु., पद्य, आदि: गवरीपुत्र गणेशवर, अंतिः पार्श्वनाथ अपरंपार गाथा-८. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथ छंद, पृ. २आ- ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद, मु. खेतसी ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: विमल बुधदायक ब्रह्मा; अंति: सोइज देव भव भव सरण, गाथा - १४. ५. पे. नाम. सरस्वतीदेवी पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धारूपी साचीदेवा, अंतिः धर्मसीह ध्यायी है, गाथा- १. ६. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह -, सं., पद्य, आदिः यथा चतुर्भिः कनकं, अंतिः शीले न तपो दया गुणै, श्लोक - १. ७. पे. नाम औपदेशिक कवित, पृ. ४-४आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु., पच, आदि: मेरुगिर सिर परि धरा, अंति दिन कोई नांहि सरणा, गाथा-८, ८. पे. नाम. भावना विलास, पृ. ५अ-१०अ, संपूर्ण. १२ भावना विलास, ग. लक्ष्मीवल्लभ, पुहिं., पद्य, वि. १७२७, आदि: प्रणमि चरणयुग पास; अंतिः बुद्धि न होइ विरुद्ध, गाथा - ५२. ९. पे नाम, औपदेशिक पद काया अनित्यता, पृ. १०अ, संपूर्ण. जिनहर्ष, हिं., पद्य, आदि: काहे काया रूप देखी, अंति: जिनह० सनतकुमार की गाथा-१, (वि. गाथा क्रमशः १ ) १०. पे नाम ज्योतिष लोक, पृ. १०अ संपूर्ण. मु. 3 , ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: पंचम प्रवीण वार; अंति: राशि ओपमा लहीजीयै, गाथा - १, (वि. गाथा क्रमशः - २) ११. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १०अ, संपूर्ण. पुहिं, पद्य, आदिः प्रभावती राणी कुं: अंतिः सोच कहा करिहुं गाथा- २ (वि. गाथा क्रमश- ३-४) " १२. पे. नाम. आत्मशरीरार्थं झूलना, पृ. १० आ-१२अ संपूर्ण. आध्यात्मिक झूलना, य. छत्रसेन पुहिं, पद्य, आदि: महबूब शरीर सहिरमैजी; अंतिः हम पाई फते युग जीया, गाथा - २५. १३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १२अ- १२आ, संपूर्ण. हिं., पद्य, आदि: जिन आपकुं जोया नहि, अंति: हूआ तौ क्या हूया, गाथा- ६. १४. पे नाम, औपदेशिक पद, पृ. १२आ, संपूर्ण. पुहिं, पद्य, आविः प्रीतमनाथ अनाथ सुनी, अंतिः मृगनेणी कहां मृगवाला, गाथा २. " १५. पे नाम, साधारणजिन स्तुति, पृ. १२आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदिः योयोयोगीर्जगजगजग; अंति: ऋषभं जिनोत्तमम्, श्लोक-४. ५४८९८. लघुशांति व तिजयपहुत्त सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, वे., (२५.५x१०.५, ४x२२-३९). १. पे नाम, लघुशांतिस्तव सह टवार्थ, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ३८१ लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. लघुशांति स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमानदेव आचार्य; अंति: पद स्थानक पामइ. २. पे. नाम. सत्तरिसोजिनस्तवन सह टबार्थ, पृ. ५आ-७अ, संपूर्ण. तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निभंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. तिजयपहुत्त स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तीन जगत्रन प्रभुताना; अंति: रहित निश्चइ थइजी. ५४८९९. (#) महासती अंजना सीलसंबंध विवरण, संपूर्ण, वि. १९११, श्रावण कृष्ण, ३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ.८, ले.स्थल. महेसरसहर, प्रले. मु. रणधीर (गुरु मु. मलुकचंद); गुपि. मु. मलुकचंद (गुरु ऋ. आणंदजस), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१०१७) पोथी प्यारी प्राणथी, (१०१८) पोथी अरु पदमनी, (१०१९) भणज्यो गुणज्यो वाचज्यो, (१०२०) पोथी अरु पदमणी, (१०२१) जल की सोभा कमल है, दे., (२५.५४११, १७४४३). अंजनासुंदरी रास, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: परमेष्ठिपद मंत्रथी; अंति: विनय नमें निसदीस ए, ढाल-११. ५४९००. (-#) चंदनबालानो रास, अपूर्ण, वि. १८६९, मध्यम, पृ. ९-४(१ से ४)=५, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-अशुद्ध पाठ-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १५४३२). चंदनबालासती रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (अपठनीय), गाथा-१४९, (पू.वि. गाथा ६८ अपूर्ण तक नहीं है., वि. अक्षरो अशुद्ध प्रायः होने से अंतिमवाक्य नहीं भरा है.) ५४९०२. प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार की टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. ६, दे., (२६४११.५, १०४३३-३७). प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार-स्याद्वादरत्नाकर स्वोपज्ञ वृत्ति कीरत्नाकरावतारिका टीका, आ. रत्नप्रभसूरि, सं., प+ग., वि. १३वी, आदि: सिद्धये वर्द्धमान; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पद्मनाभादिकल्पित कथा प्रसंग तक लिखा है.) ५४९०३. (+) ऋषभ चरित्र, संपूर्ण, वि. १८७०, माघ कृष्ण, ६, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले.स्थल. नवा कटला, प्रले. मु. लालजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, २०-२२४५३-५७). आदिजिन चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: अरिहंत सिद्धनै आयरिय; अंति: ऋषभ चरीत टकसाल ए, ढाल-४७. ५४९०४. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६९५, कार्तिक कृष्ण, ७, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ८, प्रले. उद्धव जोसी; लिख. श्रावि. सोनाबाई वछराज उसवाल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, ५४३६-४१). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुदचं० प्रपद्यते, श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथजीनई; अंति: मोक्ष प्रति पामइ सही, ग्रं. ३००. ५४९०५. (+) त्रैलोक्यप्रकाश, अपूर्ण, वि. १९३५, आषाढ़ कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ३६-२३(१ से २३)=१३, ले.स्थल. ममाई, प्रले. नथुराम ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११, १०४३८-४०). त्रैलोक्यप्रकाश, आ. हेमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (१)दर्शिता स्वयं, (२)अमावस्यां प्रवर्षति, श्लोक-१२५०, (पू.वि. द्वितीयराशिपद्धतिपंचकत्रिक से है.) ५४९०६. (+#) संग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १७६५, माघ शुक्ल, ५, बुधवार, मध्यम, पृ. १०, ले.स्थल. बालोतरानगर, पठ. ग. भाणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१०,१३४४०-४९). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊं अरिहंताई थिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-२८५. ५४९०८. (+#) पर्यंताराधना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंशखंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ६४३६). पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण भणइ एवं भयवं; अंति: ते सासयं सोक्ख, गाथा-६९. पर्यंताराधना-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमीनइ नमस्करीनइ कल्य; अंति: (-). ५४९०९. (#) लघुसंग्रहणी व श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२६४११.५, ५४३५). For Private and Personal Use Only Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. लघुसंग्रहणी, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण जिणममोह जयपूज; अंति: रइया भद्दसूरिहिं, गाथा-२६, (वि. गाथा १ से २६ __ लघुसंग्रहणी तथा २७ अन्य कृति है. किंतु दोनो कृति का गाथाक्रम क्रमशः है.) २.पे. नाम. जैनधार्मिकश्लोक संग्रह सह टबार्थ, पृ. ३आ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक , प्रा.,सं., पद्य, आदि: कथमुत्पद्यते धर्म कथ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६६ अपूर्ण तक है., वि. गाथा १ से २६ लघुसंग्रहणी तथा २७ से श्लोकसंग्रह है. किंतु दोनो कृति का गाथाक्रम क्रमशः है.) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: किम उपजइ धर्म किम; अंति: (-). ५४९११. (+#) क्षेत्रसमास सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७००, फाल्गुन कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. धंधा, प्रले. मु. गोदाजी ऋषि; पठ. मु. कचरा (गुरु मु. गोदाजी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (९७९) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५.५४१०.५, ७४४२). बृहत्क्षेत्रसमास-जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण; __ अंति: जंबुद्दीवो इमा लक्खं, गाथा-१३०. बृहत्क्षेत्रसमास-जंबूद्वीप प्रकरण काटबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनि भर्या; अंति: द्वीप १लाख योजननी छइ. ५४९१२. (+) रूपसेनकनकावती चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २८-१८(१ से १७,२६)=१०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १३४३९). रूपसेनकनकावती चरित्र-चतुर्थव्रतपालने, आ. जिनसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१६९ से २५५ तक है.) ५४९१३. श्रेणिक रास, संपूर्ण, वि. १९२०, आषाढ़ शुक्ल, ७, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ५४, ले.स्थल. सेयांणानगर, प्रले. पं. भाग्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. सुविधिनाथ प्रसादात्., दे., (२५.५४११.५, १३४३८). श्रेणिकराजा चरित्र, मु. वल्लभकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७७४, आदि: आदिसर आदे नमुं शिवसु; अंति: वल्लभ० तास प्रमाण बे, ढाल-५०, गाथा-१२३६. ५४९१४. (+#) कल्पसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६२-३४(४७ से ८०)=१२८, प्र.वि. टीकागत दृष्टांतकथा संलग्न है., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १३४४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढम; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., साधुधर्मसमाचारी अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्य; अंति: (-), पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ५४९१५. (+) सम्यक्त्वकौमुदी कथानक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०७, आश्विन शुक्ल, १४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ९९, प्रले. मानसिंह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ७४३४). सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४५७, आदि: श्रीवर्धमानमानम्य; अंति: स्वर्गमश्नुते, पद-४४४, ग्रं. १६७५. सम्यक्त्वकौमुदी-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमान चतुर्व; अंति: ते नर मोक्षसुख पामे. ५४९१६. (+#) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १२९-१३(१ से १०,३१ से ३३)+१(५५)=११७, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४४३-४८). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ अपूर्ण से श्रुतस्कंध-२ वर्ग-८ अपूर्ण तक है.) ५४९१७. (#) राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०९-११(१ से ९,११,५२)=९८, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०, ६x४०). For Private and Personal Use Only Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ www.kobatirth.org ३८३ राजप्रनीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-): अंति: (-), (पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. सूर्याभदेव अधिकार अपूर्ण से केशीकुमार व प्रदेशीराजा संवाद अपूर्ण तक है.) राजप्रश्रीयसूत्र- टवार्थ, मा.गु, गद्य, आदि: (-): अंति: (-). पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. ५४९१८. (+) नंदीसूत्र सह टबार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १८१३, आश्विन कृष्ण, ५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ५१, ले. स्थल. झीरण ग्राम, प्रले. मु. उदयभाण ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५-२५.०X१०-११.०, ५-२४४४१-५०% नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा. प+ग, आदि; जवइ जगजीवजोणीवियाणओ अंति: वीसमणुन्नाई नामाई, सूत्र- ५७, गाथा-७००, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir יי नंदीसूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जय हो विषयकषाय जित्य; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अनुज्ञानंदी का टवार्थ नहीं लिखा है.) नंदीसूत्र - कथा संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: हिवइ ते ज्ञाननउ स्वर; अंति: विशाला नगरी भांजी, कथा-८९, संपूर्ण. ५४९१९. (+) शतकत्रय व श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १८५२ श्रावण शुक्ल, १५. शुक्रवार, मध्यम, पू. ६६-७(५१ से ५५,६४ से ६५) =५९, कुल पे. २, ले. स्थल. मसुदानगर, प्र. वि. श्रीपार्श्वनाथ प्रशादात्., संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैये., (२५१०, ४X३५-३७). १. पे. नाम. शतकत्रय सह बालावबोध, पृ. १अ-६६अ, अपूर्ण, पू. वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., पे. वि. बालावबोध बा शैली में लिखा गया है. शतकत्रय, भर्तृहरि, सं., पद्य, ई. ७वी, आदि: चूडोत्तंसितचारुचंद्र; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम्, शतक- ३, श्लोक-३०१, (पू.वि. वैराग्यशतक में श्लोक-३१ अपूर्ण ५० अपूर्ण व श्लोक - ८२ अपूर्ण से ९० तक नहीं है., वि. शतकक्रम शृंगार, नीति व वैराग्य इस क्रम से है.) शतकत्रय - ज्ञानदीपक बालावबोध, पं. मोहनकुशल, मा.गु., गद्य, आदिः किं० हरः चू० चूडा, अंति: (-), (वि. अंतिम श्लोक का टवार्थ नहीं लिखा है.) २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ६६आ, संपूर्ण. लोक संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१३. ५४९२०. (+#) नारचंद्र ज्योतिष सह यंत्रकोद्धार टिप्पण, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४६, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५X११, १३x२५). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा, अंति: (-), (पू. वि. सामान्यफल निरूपण चतुर्थ प्रकरण तक है.) ज्योतिषसार-यंत्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि सरस्वतीं नमस्कृत्य अंतिः (-). ५४९२१. (#) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १८५१, श्रावण शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ९५-५२ (३ से ५४) =४३, ले. स्थल. कालू, प्रले. पं. कुशला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अबरखयुक्त अंत के पत्र., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, ८x२९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पडम, अंति: उबवसेइ ति बेमि, व्याख्यान- ९, ग्रं. १२१६, (पू.वि. समणे भगवं० वइरसामित्ति पाठ से संभिन्नवरनाणदंसण के बीच के पाठ नहीं है.) ५४१२३. (+) चंदराजा चउपई, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४६-१९ (१ से ३,८,१० से १२,१५,१७,१९ से २०,२२,२५ से २६, २८ से २९,३९ से ४०,४३)=२७, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल है, जैदे., (२५X१०.५, २०७२). चंद्रराजा रास, मु. विद्यारुचि, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. ढाल ४ का दोहा - १ अपूर्ण से ढाल-२४ की गाथा-७ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only ५४९२४. (+#) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २७-३ (१ से ३) = २४, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X१०.५, १३X३९). Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कांड-१ का श्लोक-७६ अपूर्ण से श्लोक-५०४ अपूर्ण तक है.) । ५४९२५. (+#) उपासकदशांगसूत्र व अग्यार प्रतिमानो विचार, संपूर्ण, वि. १७६१, फाल्गुन शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. ३५, कुल पे. २, प्रले. पं. जिनविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१२) मंगलं लेखकानां च, (४८५) यावल्लवणसमुद्रो, (९८०) अदृष्ट दोषान्मति विभ्रमाद्वा, जैदे., (२६४११, ९x४३). १.पे. नाम. उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-३५अ, संपूर्ण. उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं० चंपा नामं नयरी; अंति: दिवसेसुयगता तहेव, अध्ययन-१०,ग्रं. ८६०. उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य पार्श्वनाथस, (२)तेणं कालेणं चतुर्थार; अंति: तेहने प्रायश्चित आवे. २. पे. नाम. अग्यार प्रतिमानो विचार, पृ. ३५अ-३५आ, संपूर्ण. श्रावक ११ प्रतिमा, मा.गु., गद्य, आदि: दसण १ वय २ सामाइय; अंति: थया पूठे घरे आवे. ५४९२६. (+) शीलसुंदरीसती रास, संपूर्ण, वि. १८२५, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. २२, ले.स्थल. गुंदवचनगर, प्रले. पं. विनयविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १६४४९). शीलसुंदरीसती चौपाई, पंन्या. राजविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९०, आदि: त्रिहुं जगनो शंकर; अंति: राजविजय०ध्रु तारी जी, ढाल-३८, गाथा-८५६. ५४९२९. (+#) सदयवछसावलिंगा चउपई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, प्रले. मु. सिंहविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११, १२४३८). सदयवत्स सावलिंगा चउपई, मु. कीर्तिवर्द्धन, मा.गु., पद्य, वि. १६९७, आदि: स्वस्ति श्रीसोहगसुजस; अंति: लह्यो सदयवछ सुभधा, गाथा-४३१. ५४९३०. (+#) प्रस्ताविकश्लोक संग्रह सह अर्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१०.५, ११४२८). औपदेशिक श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दानं दयादमरींद्रियाण; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२८ तक है.) औपदेशिक श्लोक संग्रह-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: अहँत भगवंत असरण; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२८ का बालावबोध अपूर्ण तक है.) ५४९३१. (#) कयवन्ना चरित्र चतुष्पदी, संपूर्ण, वि. १८२७, फाल्गुन कृष्ण, १३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २०, ले.स्थल. गुढा, प्रले. मु. धीरविजय (गुरु पं. थिरविजय गणि); गुपि.पं. थिरविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १६४४४). कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदा; अंति: जैतसी० मन उलस्ये जी, ढाल-३१, गाथा-५८४, ग्रं. ७९२.। ५४९३४. (#) कल्पसूत्र सह टबार्थ+व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२७-११०(१ से ११०)=१७, प्रले. ग. दोलतरूचि पंडित (गुरु ग. मतिरुचि पंडित); गुपि.ग. मतिरुचि पंडित (गुरु पं. हर्षरूचि गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं.५००७, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१२५) अदृष्टदोषान् मतिविभ्रमाद्वा , जैदे., (२५.५४११.५, ६४३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उवदसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-८, ग्रं. १२१६, (पू.वि. एग पायंजले किच्चा पाठ से है.) कल्पसूत्र-टबार्थ+व्याख्यान+कथा, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (१)ते जे हेतु ते जाणवलं, (२)मनोवाक्कायशुद्धितः, ग्रं. १८८४, (वि. कथा ग्रं.१९९३. कल्पसूत्रवाचन विधि संलग्न है.) For Private and Personal Use Only Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ३८५ ५४९३५. (+) कल्पसूत्र, पूर्ण, वि. १८१८, श्रावण शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ५६-१ (१) = ५५, ले. स्थल. फलवद्धी नगर, पठ. मु. राजविनय पंडित (गुरुमु. जीवमाणिक्य पंडित); गुपि. मु. जीवमाणिक्य पंडित (गुरुग, लोकवल्लभजी); ग. लोकवलभजी (परंपरा आ. जिनचंद्रसूरि) आ जिनचंद्रसूरि प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५.५४११, ११४४९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उवदंसेइ ति बेमि, व्याख्यान ९ ग्रं. १२१६. (पू.वि. प्रारंभिक पाठ नहीं है.) , ५४९३७ (+) चित्रसेनपद्मावती व वसतिदानादि कथा संग्रह, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९, कुल पे. २. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५x१०.५, १८४४५-५६) १. पे. नाम. चित्रसेनपद्मावती चरित्र, पृ. १अ १३अ संपूर्ण वि. १७२३ फाल्गुन कृष्ण, १४, सोमवार, ले. स्थल. जयतारण, 3 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रले. पं. दानचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य. आ. महीतिलकसूरि, सं., पद्य, वि. १५२४, आदि: नत्वा जिनपतिमाद्यं, अंति: पाठक राजवल्लभः, श्लोक ५२६. २. पे. नाम. वसतिदानविषये कुरुचंद्र कथा, पृ. १३अ -१९आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. वसतिदानादि विषयक कथासंग्रह, प्रा. सं., गद्य, आदि: (१) वसही सयणासण भत्तपाणे, (२) कुणालदेशे श्रावस्त्य; अंतिः (-), (पू.वि. पात्रदान कथा प्रारंभिक अंश तक है.) ५४९३८. पासनाम, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैवे. (२६४११.५, ७४२७). "" पार्श्वजिन नामावली, मु. प्रेम, मा.गु., गद्य, आदि: पंचजीन चउदसरदसच्यार, अंतिः त्रीभोवन तेहनो दास. ५४९३९. (१) वर्द्धमान देशना, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६-१ (१) १५. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६४११, ९४२४-२६). वर्द्धमानदेशना ग. राजकीर्ति, सं., गद्य, आदि: (-): अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं, आनंदश्रेष्ठि प्रसंग से आरामशोभा प्रसंग अपूर्ण तक है.) ५४९४०. (4) ढोलामारुवणी चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २६, ले. स्थल. देवसूरीग्राम प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६११, १५X४० ). ढोलामारु चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६७७, आदि: सकल सुरासुर सामिनी, अंति: वृद्धि सुख ि सदा, गाथा- ७४४. ५४९४१. (+) गुणावली रास बुद्धिविषये संपूर्ण वि. १८२६ वैशाख शुक्ल, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्रले. पं. विनयविजय गणि प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५X१०.५, १४४४९). गुणकरंडक गुणावली रास - बुद्धिविषये, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५१, आदि: श्री अरिहंत अनंतगुणः अंतिः हो जिनहर्ष सुसीस, डाल- २६, गाथा-४९३. ५४९४२. (+) अंजना रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२६X११, १५X४८). अंजनासुंदरी चौपाई, ग. भुवनकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १७०६, आदि करता सघली साधना सत्य, अंति: भुवनकीरति इण परि भणई, खंड-३ ढाल ४३, गाथा - २५३, ग्रं. ७०७. " ५४९४३. (+) नलदमयंती रास, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २१-२ (१ से २ ) = १९, पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं.. प्र. वि., संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५५४११. १७५५३). " नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य वि. १६७३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-१, डाल- ३, गाथा-१३ अपूर्ण से खंड-६, ढाल-८ गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ५४९४४. (+#) कल्पसूत्र सह बालावबोध व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्वाही फेल गयी है, जैवे. (२५.५४११.५, १४४४१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढमं अंतिः (-). (पू. वि. पीठिका अपूर्ण तक है.) " 3 कल्पसूत्र - बालावबोध, मा.गु. रा., गद्य, आदि: प्रथम माहरो नमस्कार, अंति: (-). कल्पसूत्र- कथा, मा.गु., गद्य, आदि: ए जंबूद्वीप भरतखंडने, अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५४९४६. (+) आवश्यकसूत्र प्रथम पीठिका सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६४१, चैत्र शुक्ल, १४, शनिवार, मध्यम, पृ. २३, ले.स्थल. उनंतदुर्ग, प्रले. सखीदास बलराज ठाकर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-संशोधित., जैदे., (२६४११,१५४४६). आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का हिस्सा पीठिका, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: आभिणिबोहियनाणं; अंति: अणुओग पईव दिट्ठतो, गाथा-८१. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का हिस्सा पीठिका का बालावबोध, ग. संवेगदेव, मा.गु., गद्य, वि. १५१५, आदि: (१)श्रीवर्द्धमानजिननायक, (२)श्रीभद्रबाहुस्वामि; अंति: (१)त्स्वपरार्थसिद्ध्यै, (२)रकाशइ इस्यूंजाणिवउ. ५४९४७. (+#) गोराबादल चोपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १९४४४). गोराबादल चौपाई, आ. हेमरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६४७, आदि: सुखसंपत्तिदाइक सकल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४१९ तक है.) ५४९४८. (+#) भुवनदीपक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०,७४३८). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१७२, संपूर्ण. भुवनदीपक-टबार्थ*मा.गु., गद्य, आदि: सरस्वती संबंधी नमस्क; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१६६ तक टबार्थ लिखा है.) ५४९५०. (+#) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, १४ नियम व पच्चक्खाण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १२४३२). १. पे. नाम. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १आ-१०अ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहं० पंचिंदिय; अंति: नौमिबुधैर्नमस्कृतं. २. पे. नाम. श्रावक १४ नियम गाथा, पृ. १०अ, संपूर्ण.. प्रा., पद्य, आदि: सच्चित्त दव्व विगई; अंति: दिसि न्हाण भत्तेसु, गाथा-१. ३. पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र संग्रह, पृ. १०अ-११अ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पोरसी पच्चक्खाण अपूर्ण तक है.) ५४९५१. स्नात्रपूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ.८, प्रले.पं.रंगविजयजी गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, ९४२७-५२). स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चोतिसे अतिसय जुओ वचन; अंति: सारखी कही सूत्र मझार, ढाल-८, गाथा-५६. ५४९५२. (+#) विचारषविंशिका का टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२२, वैशाख कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्रले. पंडित. राजसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १५४५०). दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमद्विद्यागुरुं; अंति: कृतोयं हिनदाग्रहात. ५४९५३. (+) अवंतिसुकुमाल सज्झाय व दानशीयलतपभावना रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १५४४२). १. पे. नाम. अवंतिसुकुमाल रास, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंति: शांतिहरष सुख पावै जी, ढाल-१३, ___गाथा-१०७. २. पे. नाम. दानशीलतपभावना संवाद, पृ. ४आ-७आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: समयवाचक० सुखकारोरे, ढाल-४, गाथा-१०१, ग्रं. १३५. For Private and Personal Use Only Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ३८७ ५४९५४. (+) शतक व सप्ततिका कर्मग्रंथ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १२-१५४४०). १. पे. नाम. शतक नव्य कर्मग्रंथ, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति: सयगमिणं आयसरणट्ठा, गाथा-१००. २.पे. नाम. सप्ततिका कर्मग्रंथ, पृ. ५आ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिद्धपएहि महत्थं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ५४९५५. हेमदंडक व पद्यानुवाद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १३४४५-४९). १.पे. नाम. हेमदंडक, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: जीवभेया सरीराहार; अंति: अप्पाबहुदंडगम्मि, गाथा-५. २.पे. नाम. हेमदंडक पद्यानुवाद, पृ. १आ-७आ, संपूर्ण. हेमदंडक-पद्यानुवाद, मु. ज्ञानसार, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: जो ध्रुव अलख अमूरती; अंति: कीनों हेमदंडग सुजगीस, गाथा-१०७. ५४९५६. (#) अष्टाह्निका व्याख्यान व श्लोकसंग्रह, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(१)=७, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १५४५८). १.पे. नाम. पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, पृ. २अ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. नंदलाल, सं., पद्य, वि. १७८९, आदि: (-); अंति: त्रिभिर्विशेषकं, (पू.वि. "धन-धान्यादि नवविधि" पाठ से है.) २. पे. नाम. श्लोकसंग्रह, पृ. ८आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मंत्राणां परमेष्ठि; अंति: सम्यक् वाचा शुभावहा, श्लोक-१४. ५४९५७. (+#) भाष्यत्रय, संपूर्ण, वि. १७९१, श्रावण शुक्ल, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. मुंडाडानगर, प्रले. ग. पृथ्वीसागर; पठ. ग. देवेंद्रविजय (गुरु पंन्या. अमृतविजय); गुपि. पंन्या. अमृतविजय (गुरु पंन्या. सिंहविजय); अन्य. ग. जयंतसागर पंडित, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीपार्श्वप्रभु प्रसादात्, पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १४४३७-४२). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाह, भाष्य-३, गाथा-१४५. ५४९५८. (+#) नवस्मरण तथा लघुशांति, संपूर्ण, वि. १७४३, भाद्रपद शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. २, ले.स्थल. खिमेलमहानगर, प्रले. पं. सिद्धिविजय; पठ. श्राव. खिमा; राज्यकाल जेसिंघ राणा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिनाथ प्रसादात्., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३२). १.पे. नाम. नवस्मरण, पृ. १आ-११आ, संपूर्ण. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: शिवं भवतु स्वाहा, स्मरण-९. २.पे. नाम. लघुशांति, पृ. ११आ-१२आ, संपूर्ण. ___ आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ५४९५९. चोवीस दंडकना द्वार, संपूर्ण, वि. १८५३, ज्येष्ठ कृष्ण, ३०, मध्यम, पृ. १३, ले.स्थल. लींबडी, अन्य. मु. भगवान ऋषि (गुरु ऋ. खुशालचंद); सा. दीवालीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १३४३५-४५). २४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सरीरोग्गहण संघयण; अंति: काययोगर सिद्धअजोगी. ५४९६०. विविध भांगा कोष्ठकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, दे., (२५४११, २२४९-२१). जैनयंत्र संग्रह*, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). ५४९६२. (+) स्नात्रपूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, १०-१२४३१-३९). For Private and Personal Use Only Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३८८ www.kobatirth.org (+) स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चोतिसे अतिसय जुओ वचन, अंति: (-), (पू.वि. अक्षतपूजा अपूर्ण तक है.) ५४९६३. गुरु स्तुप - प्रतिमा प्रतिष्ठा विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. दे. (२५.५४११.५, १०३९). " " गुरुप्रतिमा प्रतिष्ठा विधि, मा.गु. सं., गद्य, आदि: शुभ नक्षत्रेषु शुभवे; अंति: (-), (पू.वि. शुचि प्रक्रिया तक है.) ५४९६४. उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन- ३६, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ८, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैवे. (२५४११.५. १३४३९). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. गाथा - २२८ अपूर्ण तक है) ५४९६७ (+) भाष्यत्रय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७. प्र. वि. यत्र-तत्र प्राकृत कठिन शब्दों के संस्कृत में सरलार्थ दिये गए हैं., अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५X११, ११x४६-५०). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे, अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३, गाथा - १४८. ५४९६८. चंद्रलेहा चोपाई, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ६, जैवे. (२५.५४११, १४४४२-४४). "" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चंद्रलेखा रास, मु.] मतिकुशल, मा.गु. पच, वि. १७२८, आदि: सरसति भगति नमी करी, अंति: (-), (अपूर्ण, , पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल ७ की गाथा १० अपूर्ण तक लिखा है.) ५४९७० (+४) चतुः शणप्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६८, माघ शुक्ल, १२, सोमवार, जीर्ण, पृ. ५, ले. स्थल. मोहनगड, प्र. मु. दूडा (गुरु आ. जीवणदासजी); गुपि. आ. जीवणदासजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे. (२६११, ५४५४) चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई, अंतिः कारणं निव्वुह सुहाणं, गाथा - ६३. चतुः शरण प्रकीर्णक-टवार्थ, ग. लाभकुशल, मा.गु. गद्य, आदि: मंगलिक भणी पहिलउ, अंतिः सुखनुं कारण छइ. ५४९७१. (+) आरामसोभा चडपई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६-९ (१ से १) - ७, ले. स्थल. नागपुर, पठ. श्राव. जेसिंघ संघवी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे., (२५X१०.५, १३X३८-४०). आरामशोभा चौपाई, मु. समयप्रमोद, मा.गु., पद्य, वि. १६५१, आदि: (-); अंतिः समयप्रमोद० सुखकार, ढाल - १९, गाथा २७३ (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं, ढाल १४ की गाथा १६० से है.) ५४९७२. (+#) स्तवन, कवित्त, सवैया गीत आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८२२-१८२३, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. ७९, प्रले. पं. विनयविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५x११, २४X६१-७१). १. पे. नाम. शृंगाररस सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी है. सवैया संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: होठ सो तो हरिद्वार, अंति: खंडनवाडी षोडसी, सवैया-२. २. पे नाम, पातिसाही को दृष्टांत, पृ. १अ संपूर्ण पातशाही दृष्टांत, पुहिं., पद्य, आदिः व्याह उमाह उछाह विचै, अंति: जब ग्यान आय गह्यो है, दोहा-४. ३. पे. नाम. सवैया संग्रह, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी है. सवैया संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: करिकें अनेक भांति, अंति: मत वारो हीरपुत्र है, सवैया- २५. ४. पे. नाम. च्यार प्रत्येकबुद्ध दृष्टांत, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. ४ प्रत्येकबुद्ध दृष्टांत श्लोक, सं., पद्य, आदि: श्वेतं सुजातां, अंति: जिनराज धर्म्म, श्लोक-४. ५. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. २अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदिः एकोपिय सकल कार्य अंतिः समुदिताप्यसमर्थ अव, श्लोक १. ६. पे. नाम. मेषादि राशिपति सवैया, पृ. २अ, संपूर्ण. क. गोडी कवि, पुहिं., पद्य, आदि: मेषपति सोये वृष के; अंति: पिउ चरणे परतु है, पद- १. For Private and Personal Use Only Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ७. पे. नाम. विमलजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: घर आंगण सुरतरु फल्यौ, अंति: जिनराज० देव प्रमाण, गाथा-५. ८. पे. नाम. गोडीपार्श्व स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ताहरे उपै आंगी प्राह; अंति: ज्ञानविमल० हिवै मोटी, गाथा-३. ९. पे. नाम. गुणमाला सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. वीरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्ध अनंत वांदु भगव; अंति: वीरविमल एहना गुण वहै, गाथा-७. १०.पे. नाम. पद्मप्रभु स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण, वि. १८२३, आषाढ़ कृष्ण, २, मंगलवार, ले.स्थल. वीठुजानगर, प्रले. पं. विनयविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य. पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतडली पदमप्रभु; अंति: मोहन कहै मुकुं केडकै, गाथा-९. ११. पे. नाम. राठौर मुगल शौर्य गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: असपति सुंलिखैति; अंति: राजविषाय तवकार हो, कडी-७. १२. पे. नाम. औपदेशिक गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: पेहरूं नह चीर सवारै; अंति: छोग विगर अलूणो बैल, कडी-५. १३. पे. नाम. शृंगारवर्णन गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. धर्मसिंह पाठक, पुहिं.,सं., पद्य, आदि: द्राक्षारस सम बाला; अंति: वृद्धाश्च नालिकेरवत्, गाथा-१. १४. पे. नाम. कटुवचन सवैया, पृ. २आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: सज्जन दुरजन दोहतणी; अंति: हियडामै दस बार, पद-१. १५. पे. नाम. भोजनरस वर्णन गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. भोजनरस वर्णन श्लोक, सं., पद्य, आदि: त्रिवदति सुअन्नं; अंति: भोजमष्टं दशांश, श्लोक-१. १६. पे. नाम. प्रहेलिका दोहा, पृ. २आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: एक पर्यो बीजो कर्यो; अंति: मुसकल पड्यो जगदीस, दोहा-२. १७. पे. नाम. चोर ज्ञान, पृ. २आ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, आदि: चोर अंक दस गुणे करी; अंति: इणविध चोरज आषीदं, गाथा-३. १८.पे. नाम. औषधिवर्णन दोहा, पृ. २आ, संपूर्ण. औषधिवर्णन पद, सं., पद्य, आदि: टंकैकं मिरचं पलंघृत; अंति: नवैते दृष्टिमध्यमा, श्लोक-२. १९. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी है. औपदेशिक दहा संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: रावरंक मनरंजणो सरणै; अंति: जण-जण पाथरीयाह, गाथा-२. २०. पे. नाम. शृंगार गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: प्रीतज रोज रिजाह सखी; अंति: प्रीत कीयै सुख पईयै, कडी-२. २१. पे. नाम. कुश्रीकथन, पृ. २आ, संपूर्ण. शृंगार गीत, पुहिं., पद्य, आदि: कहै नारि भरतारसुं; अंति: वजैति को मीठो, कडी-४. २२. पे. नाम. सुश्रीगीत, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. सुश्री गीत, मा.गु., पद्य, आदि: कहै कथसुंदुहु कुल; अंति: छुटै तिके सची परणे, कडी-४. २३. पे. नाम. सवैया संग्रह, पृ. ३अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी है. औपदेशिक सवैया, पुहिं., पद्य, आदि: हंसा तो जब लग चुगै; अंति: सोनावै सैझाचल्ल, पद-१५. २४. पे. नाम. औपदेशिक काव्य, पृ. ३अ, संपूर्ण. ____ पुहि., पद्य, आदि: बाघकुं बद्ध कै कौन; अंति: अनप्यारी तोहिं करिहै, दोहा-२. २५. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ३अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी है. पुहि., पद्य, आदि: प्रिय राजन दुग्ध; अंति: राजन वारि तृषापहरं, पद-५. For Private and Personal Use Only Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३९० www.kobatirth.org २६. पे नाम, साधुसंगति फलवर्णन पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. साधुसंगति पद पु,ि पद्य, आदि: तात मिलै कुनि मात; अंतिः दुरलभ साधु समागम भाई, पद-१. २७. पे. नाम. पार्श्व स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- वाडी, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिनजी ए गुन मेरो जान, अंतिः मोहन० करूणा कल्याण, गाथा - ११. २८. पे. नाम. अभिनंदन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण अभिनंदनजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पच. वि. १८वी, आदि अकलकला अविरुद्ध, अंतिः मोहन० उमा है अतिघणै, गाथा-१०. २९. पे. नाम. नेमीजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. रंग, मा.गु., पद्य, आदि प्रीतम संभालो हो निज, अंतिः राया हो शिव सुख पाया, गाथा- ७. ३०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. कविराज, मा.गु., पद्य, आदि : आज अरदास निजदास जाणी; अंति: ये मुगति रमणी सहेली, गाथा-७. ३१. पे. नाम. पार्श्वजिन जन्म महोच्छव, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन जन्मोत्सव पद, पंडित. शुभविजय, मा.गु., पद्य, आदि पोस मास बदि दशमी, अंतिः शुभ बहुत दिवाजे, गाथा - ९. ३२. पे नाम, बाहुजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण सीमंधरजिन स्तवन, मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: जो मुझ उपरि हित भर्य; अंतिः दिजीई रामतणी महाराण, गाथा- ६. ३३. पे. नाम. युगमंधरजिन विहरमान स्तवन, पृ. ३-४ अ, संपूर्ण. युगमंधरजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: हीयडुं मिलवा रे; अंतिः जिनहरष० दरसण सुखकार, गाथा-६. ३४. पे. नाम. पार्श्व स्तवन, पू. ४अ संपूर्ण. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि : आज सफल थयो अवतार हो; अंति: थी शिवरामा हुवै चेटी, गाथा - ५. ३५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदिः एकरस्यो जिनराज मया अंतिः सदा माहरी वाहि ज टेव गाथा ७. , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६. पे. नाम. आदीश्वर स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लाहो लीजे रे भविया; अंति: म दान कहै वारोवार कै, गाथा-७. ३७. पे नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. मु. मेघविजय, मा.गु., पद्य, आदिः यांन लेई यदुपति, अंति: मेघविजय० परमाणंद, गाथा- ७. ३८. पे नाम. तक्रगुण वर्णन श्लोक, पृ. ४अ संपूर्ण. सं., पद्म, आदि: सैंधवेन समायुक्तं अंतिः शक्रस्य दुर्लभं श्लोक-१. ३९. पे नाम. शांतिजिन श्लोक, पृ. ४अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: शांति शांतिकर, अंतिः शांतिर्गृहे गृहे, श्लोक - १. गाथा- ७. ४२. पे नाम, धन महिमा कवित्त, पृ. ४आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: वामहि ते आदर वडाई, अंति: दांमहि मे दाम है, दोहा-१. ४०. पे. नाम. अध्यात्म धमाल, पृ. ४-४आ, संपूर्ण. अध्यात्म फाग, जै. क. बनारसीदास, पुहिं. पद्य वि. १७वी आदि अध्यातम विनुं की पा, अंति: बनारसीदास ० मोहदल पास, गाथा - १८. ४१. पे. नाम. सप्तफणीपार्श्व स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- समफणी, मु. मेघ, मा.गु., पद्य, आदिः आज मनोरथ माहरो फळियो, अंतिः मेघ कहे ० दादलियो रे, For Private and Personal Use Only Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ४३. पे. नाम. औपदेशिक दहा, प्र. ४आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहे, पुहिं., पद्य, आदि: आगै उत्तर कीयो जिको; अंति: होइगो सो हारैगो, दोहा-४. ४४. पे. नाम. सोल शृंगार दोहरा, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. १६ शृंगार दोहरा, पुहि., पद्य, आदि: च्यार चतुष्पद च्यार; अंति: ए फल कहिजै च्यार, दोहा-५. ४५. पे. नाम. यौवन वर्णन पद, पृ. ५अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: नत्थन केलि फंदा गलि; अंति: तेरे पूरे पुन पाए है, दोहा-२. ४६. पे. नाम. शृंगार रस सवैया, पृ. ५अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी है. शृंगाररस सवैया, पुहि., पद्य, आदि: एक दीप तै गेह की; अंति: हुं सरही मनमाहि, दोहा-७. ४७. पे. नाम. राधा-कृष्ण रास वर्णन, पृ. ५अ, संपूर्ण. ___पुहिं., पद्य, आदि: आज मनमोहन सों ऐसी; अंति: मारि कै मारि गरदन्न, दोहा-४. ४८. पे. नाम. लिगपुराणे शिवंउक्तं, पृ. ५अ, संपूर्ण. जलग्रहण विधि, सं., पद्य, आदि: संवच्छरेण यत्पापं; अंति: स जाति परमं गति, श्लोक-२. ४९. पे. नाम. ऋषभ स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. भुवनकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: साहिब तुमै मन धर्यो; अंति: भुवनकीरति० अवतार, गाथा-६. ५०. पे. नाम. ऋषभजिन सवैया, पृ. ५अ, संपूर्ण. आदिजिन पद-धूलेव, पुहि., पद्य, आदि: जाके जात आवत हैं; अंति: आज हाजरा हजूर हैं, पद-१. ५१. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. ५अ, संपूर्ण, प्रले. पं. विनयविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक श्लोक संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: भुक्त्वा शतपदं; अंति: ग्यानी जाणे बंध, श्लोक-३. ५२. पे. नाम. कामगुण वर्णन पद, पृ. ५अ, संपूर्ण. कामगुण वर्णन, सं., पद्य, आदि: अधरामृतेन पित्तं वात; अंति: कामचाष्टगुणं स्मृतं, श्लोक-२. ५३. पे. नाम. शेव्रुजय स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. नयविमल, मा.गु., पद्य, आदि: माहरा आतमराम किण दिन; अंति: दिन परमानंद पद पासुं, गाथा-७. ५४. पे. नाम. पार्श्व स्तुति, पृ. ५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-शंखेश्वर, मु. महिमारुचि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेसर पास जिणंद; अंति: द्यो दोलति मुज माई, गाथा-४. ५५. पे. नाम. मेघ गीत, पृ. ५आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: चढे साहर दश आकाश; अंति: सघन घन वरसात लागो, पद-४. ५६. पे. नाम. प्रहेलिका श्लोक, पृ. ५आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी है. श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: शृणु सखि कौतुकमेकं; अंति: जो कोइ हत्था विलंबेई, श्लोक-५. ५७. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया* पुहिं., पद्य, आदि: सारंग उलट लाग्यौ; अंति: पोरस सोर प्रतापसी, पद-११. ५८. पे. नाम. चार प्रत्येक बुद्ध स्वाध्याय, पृ. ६अ, संपूर्ण. ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानयरी अति भली हु; अंति: चोथो प्रत्येकबुध हे, __ढाल-५. ५९. पे. नाम. शुक्लपक्षी कृष्णपक्षी स्तुति, पृ. ६अ, संपूर्ण. शुक्लपक्ष कृष्णपक्षतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सासयने असासय चैत्यतण; अंति: सूरि लीला लब्धि लहत, गाथा-४. ६०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ६अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: ईष अढार उत्तम कनक; अंति: जाहं घडी योज खरो, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३९२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६१. पे नाम, पनरैतिधनी स्तुति, पृ. ६आ- ७आ, संपूर्ण, वि. १८२३, आषाद कृष्ण, १०, सोमवार, ले. स्थल, वीठुजानगर, प्रले. पं. विनयविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य. १५ तिथि स्तुति संग्रह, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु, पद्य, आदि: एक मिथ्यात्व असंयम, अंतिः नयविमल० करो नित नित्य, स्तुति- १६, गाथा- ६४. ६२. पे. नाम. अष्टभंगी स्वाध्याय, पृ. ७आ, संपूर्ण. अष्टभंगी सज्झाय, मु. जससोम - शिष्य, मा.गु., पद्य, आदिः सुविहित गुरु मुख कमल, अंति: जससोमसीस०कहै लवलेस, गाथा- १२. ६३. पे. नाम. आत्म खामणा, पृ. ७आ, संपूर्ण. क्षमापना पद, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदिः सव्वे जीवा कम्म वस; अंति: ताणि सव्वाणी वोसिरयं, गाथा-४. ६४. पे नाम, ऋषभजिन स्तवन, पृ. ७आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ अनोपम माहरे साहि; अंति: धरज्यो नेह संभारीरे, गाथा-७. ६५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ७आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी है. श्लोक संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: राजा राष्ट्रकृतं पाप; अंतिः पापं न कुर्यात् पुनः, श्लोक ७. ६६. पे. नाम. सुभाषित गाथा संग्रह, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: चक्की वीसे भागं; अंति: सभाव गहै जाई हाडकूं, गाथा-१९. ६७. पे नाम, अनंतजिन स्तवन, पृ. ८अ संपूर्ण. मु. ऋद्धिविजय, पुहिं., पद्य, आदि: अनंतनाथ जगनाथ कैं; अंतिः सेवैसु नित्य सुख बणी, गाथा - ५. ६८. पे. नाम. सवैया संग्रह, पृ. ८अ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी है. सवैया संग्रह, पु, पद्य, आदि: अजहुं क्रोध न हुं, अंतिः पाथरो हुओ लोह को हेम, सवैया ५. ६९. पे नाम. सिद्धचक्र स्तोत्र, पृ. ८अ संपूर्ण. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा., मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि : उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण; अंतिः सिद्धचक्कं नमामि गाथा - ६. ७०. पे. नाम. मौनएकादशी स्तुति, पृ. ८अ संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमिनै पूछै हरि; अंति: पद्मविजय० संघ जगीस, गाथा-४. ७१. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. ८अ, संपूर्ण, प्रले. पं. विनयविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी है. लोक संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: गर्व्वं मा कुरु अंतिः जातं न किंचित् फलं श्लोक-१. ७२. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. ८आ, संपूर्ण, पे. वि. प्रतिलेखक ने कृति नाम "अनंतजिन स्तवन" लिखा है. मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: धर्म जिणेसर धर्म, अंति: समान होवे ते शिव धणी, गाथा-५. ७३. पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. ८आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी है. लोक संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: मेघानां च घटा घटघटा, अंतिः यदि गुरु न पश्यति, श्लोक- ७ ७४. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ८आ, संपूर्ण, वि. १८२२, आषाढ़ कृष्ण, १३, ले. स्थल. सिवाना गढ, प्रले. पं. विनयविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य. पंन्या. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवाणी प्रणमेवि समर; अंति: विजय जिन उपदिस्यो जी, ७५. पे. नाम. सज्झाय निंदानी, पृ. ८आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय- निंदात्याग विषये, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: नंद्या न कीजैं केहनी; अतिः समयसुंदर कहे सार रे, गाथा-५. ७६. पे. नाम. शृंगाररस सवैयो, पृ. ८आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी है. शृंगाररस सवैया, पुहिं., पद्य, आदि: प्यारी करै विपरीत; अंति: कीरचु गावत मोती, दोहा-१. ७७. पे नाम. दुहा संग्रह, पृ. ८आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी है. For Private and Personal Use Only गाथा - १६. Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ औपदेशिक दूहा संग्रह, पुहिं, पद्य, आदि एक समै अति सींधकूं, अंति मिले युं रोवइं न काज, गाथा १२. ७८. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ८आ, संपूर्ण. मराजिमती स्तवन, मु. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: तुमे रहो रे यादव, अंतिः हरखित मेरी आंखडीयां, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा-६. ७९. पे. नाम. लोडण पार्श्व स्तवन, पृ. ८आ, संपूर्ण, वि. १८२३, आषाढ़ शुक्ल, ३. पार्श्वजिन स्तवन- लोढणमंडण, मु. शुभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीलोढण प्रभु पासजी, अंतिः शुभ नमें करजोडि, गाथा-५. ५४९७५ (+) कल्पसूत्र की पीठिका, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ६. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. द्विपाठ संशोधित, जैदे., (२५x११, १८४३९-४९) ३९३ कल्पसूत्र पीठिका, संबद्ध, मु. हेमविमलसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदिः सकलार्थ सिद्धिजननी, अति: (-). ५४९७६, (+०) माधवानल चौपड़, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १७, प्रले खुस्यालचंद्र ( अज्ञा. पं. फतेचंद्र) गुपि. पं. फतेचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X१०, १५X४२-४७). माधवानल चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६१६, आदि: देव सरसति देव सरसति; अंति: नर सुख पाइ संसारि, गाथा- ५६२. ५४९७८, (+०) सप्तस्मरण, संपूर्ण, वि. १७०२ आश्विन कृष्ण, ४ शनिवार, मध्यम, पृ. ८, ले, स्थल, मूलत्राण, प्रले. पं. क्षेमहर्ष (गुरु ग. विशालकीर्ति वाचनाचार्य, बृहत्खरतरगच्छ-सागरचंद्रसूरिशाखा); गुपि. ग. विशालकीर्त्ति वाचनाचार्य (परंपरा י आ. सागरचंद्रसूरि, बृहत्खरतरगच्छ-सागरचंद्रसूरिशाखा); आ. सागरचंद्रसूरि (बृहत्खरतरगच्छ-सागरचंद्रसूरिशाखा); पठ. श्रावि. छबीली; राज्ये भट्टा. जिनरत्नसूरि (बृहत्खरतरगच्छ-सागरचंद्रसूरिशाखा), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११.५, १३x४१). सप्तस्मरण- खरतरगच्छीय, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभवं संत अंतिः भवे भवे पास जिणचंद, स्मरण- ७. ५४९७९, (+) पडिकमणाविधि सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १७६३, ज्येष्ठ कृष्ण, १, गुरुवार, जीर्ण, पृ. १५, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५X११, ५X३६). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - धे. मू. पू. संबद्ध, प्रा. मा.गु. सं., पग, आदि इच्छामि खमा० वंदिउं अंतिः खमामि सव्वस्स अहयपि. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - वे.मू. पू. - टवार्थ, मा.गु, गद्य, आदि इच्छामि कहता वांछाउ, अंतिः छतउ सर्व खमावीनइ. ५४९८० (+) जीवविचारादि स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X११, १४४४२). १. पे. नाम जीवविचार स्तवन, पृ. १आ- ३अ, संपूर्ण जीवविचार प्रकरण-पद्यानुवाद, मु. ज्ञानसार, मा.गु., पद्य, वि. १८६९१, आदि: भुवन प्रदीपक वीर, अंति: कीनो जैपुर For Private and Personal Use Only नगर मझार, गाथा - २९. २. पे. नाम. नवतत्त्व स्तवन, पृ. ३अ ५अ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण-पद्यानुवाद, मु. ज्ञानसार, मा.गु., पद्य, वि. १८६९, आदि: नमस्कार अरिहंतने; अंति: तत्वकथा भ नर फल लीध, गाथा-३३. ३. पे. नाम चौवीसदंडक स्तवन, पृ. ५अ ६आ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण-पद्यानुवाद, मु. ज्ञानसार, मा.गु., पद्य, वि. १८६९, आदि: ऋषभादिक चौवीस नमि, अंति: कर जैपुरनगर मझार, गाथा २६. ५४९८१. सुरसुंदरी अमरकुमार रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६ - २ (२ से ३ ) = १४, जैदे., (२५.५X११, १७x४०). सुरसुंदरी रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६४४, आदिः आदि धर्मनी करवाए, अंति: इम भणि आणंदपुरी, ढाल - २१, गाथा-५२३. (पू. वि. गाथा २९ अपूर्ण से गाथा-८४ अपूर्ण तक नहीं है.) Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५४९८४. (+) जीवविचार व नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. ३, पठ. श्रावि. दीपा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.२४१०, ४४४१-४५). १.पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-७अ, संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुय समुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: भुवण क० स्वर्गमृत्यु; अंति: सूत्रसमुद्र थकी. २. पे. नाम. नवतत्त्वप्रकरण सह टबार्थ, पृ. ७अ-१३अ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: अणंतभागो असिद्धाओ, गाथा-६०. नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: दसविध प्राण धरै ते; अंति: मोष गया छै ए उत्तर. ३. पे. नाम. इंद्रजीवनमे देवीसंख्या गाथा, पृ. १३आ, संपूर्ण. इंद्रजीवन में देवीसंख्यासूचक गाथा, प्रा., पद्य, आदि: दो कोडाकोडीओ पच्यासी; अंति: चवंति इंदस्स आवयंमि, गाथा-२. ५४९८५. (#) लघुजातक टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२-११(१ से ६,१० से १४)=११, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११, १७४४४-५०). लघुजातक-बालावबोध, उपा. मतिसागर, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., "दिशाबल" अपूर्ण से "विषमराशि" अपूर्ण तक व "लग्नार्क" अपूर्ण से "प्रश्नकाल" अपूर्ण तक है.) ५४९८६. (+) भक्तामरस्तव वृत्तगीत, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, ९४४०-४३). भक्तामरस्तोत्र-भक्तास्तोत्र पद्यानुवाद, संबद्ध, आ. ज्ञानचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अमर अविचलभाव भगति; अंति: ज्ञान जिन तणउ दास. ५४९८९. (+#) नारचंद्रज्योतिष सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ३४-२३(१ से ४,७ से १०,१२ से १५,१७ से २१,२३ से २४,२६,२८ से ३०)=११, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. मूल व टीका का अंश नष्ट है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, ५४४४). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२९ अपूर्ण से ४५ अपूर्ण, श्लोक-७५ अपूर्ण से श्लोक-११२ अपूर्ण तक है.) ज्योतिषसार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५४९९१. (+) वसुधाराकल्प व विधि, अपूर्ण, वि. १८०५, कार्तिक कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. ९-१(१)=८, कुल पे. २, ले.स्थल. नाथूसर, प्रले. मु. पद्मकुशल (गुरु ग. पुण्योदयजी वाचक); गुपि. ग. पुण्योदयजी वाचक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, ११४३१). १.पे. नाम. वसुधारा कल्प, पृ. २अ-९अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. __वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति, (पू.वि. "अथ शुचंद्रो गृहपतिः" पाठ से है.) २.पे. नाम. वसुधारा विधि, पृ. ९अ, संपूर्ण. वसुधारा स्तोत्र-विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: इयं वसुधारा धनद; अंति: इति गुम्निाय. ५४९९२. मुहुर्त संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, अन्य. सा. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११.५, १०x४३). मुहूर्त संग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: श्वेतवस्त्र परिधान; अंति: कृष्णपक्ष तिथि शुभा. ५४९९३. (#) जयतिहुअण स्तोत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७०८, चैत्र शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १३४४७). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंति: विण्णवइ अणिदिय, गाथा-३०. जयतिहुअण स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जयवंतउ था हे; अंति: भगवंत अनंदित निंद्यउ. For Private and Personal Use Only Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ___३९५ ५४९९४. (+#) हंसराज वच्छराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २८-२३(१ से २३)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४१). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३४ की गाथा-१६ अपूर्ण से ढाल-४२ की गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ५४९९५. भाष्यत्रय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)-५, जैदे., (२५४११.५, १४४४३-४७). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: (-); अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३, गाथा-१५३, (पू.वि. चैत्यवंदनभाष्य की गाथा-१४ अपूर्ण से है.) ५४९९६. (+#) संविभागवत कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.२४११, १८४४७-५२). चंद्रधवल कथा-अतिथिसंविभागव्रते, आ. माणिक्यसुंदरसूरि, सं., गद्य, आदि: इह भरतक्षेत्रे; अंति: (-), (पू.वि. "समुदितः तमाहूय प्रांजलि" पाठ तक है.) ५४९९७. (#) चमरेंद्र कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१४११, १०४३१-४१). चमरेंद्र कथा, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: चोसठ असुराणं चौरासीय; अंति: खपावीने मोक्षे जासे. ५४९९९. (#) नेमिजिन चरित्र, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४५७-५८). कल्पसूत्र-हिस्सा नेमिजिन चरित्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० अरिहा; अंति: निगच्छइ निगच्छित्ता, संपूर्ण. कल्पसूत्र-नेमिजिन चरित्र का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: तेणइंकाले तेणे समे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., नेमिजिन के जन्मवर्णन तक है.) ५५०००. (+#) रत्नरासो, संपूर्ण, वि. १८४१, फाल्गुन शुक्ल, १, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ.७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १६x४९). रत्नरास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५८, आदि: सकल समीहित पूरण; अंति: मोहन० जयकर जगतगुरु. ५५००२. (+#) अवंतीसुकुमाल महर्षि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८१३, ज्येष्ठ शुक्ल, ११, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. रिणी, प्रले. श्राव. सुंदरा संघाणी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३२-३६). अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंति: शांतिहरष सुख पावे रे, ढाल-१३. ५५००३. (+#) अढारपापस्थानक चौपाइ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-२(१ से २)=६, प्रले. मु. केसराज; पठ. मु. मेघा ऋषि; अन्य. मु. अर्जुन ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १०x४१-४४). १८ पापस्थानक चौपाई, मु. गोविंद, मा.गु., पद्य, वि. १६५२, आदि: (-); अंति: गोविंद० हर्ष अपार, ढाल-१८, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., ढाल ४ गाथा १ अपूर्ण से हैं.) ५५००४. (+#) अवंतिसुकुमाल रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०.५, ११४२२-२७). अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंति: शांतिहरष सुख पावेरे, ढाल-१३. ५५००५. (+#) चतुर्विंशतिजिन स्तुति व दूहा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, ले.स्थल. शिवपुर, पठ. श्राव. माहासिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १४४३८-४२). १. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण. स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: लोकत्वमांबांबिकेपरमव, स्तुति-२४, श्लोक-९६. For Private and Personal Use Only Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. सामान्य दूहा संग्रह, पृ. ५आ, संपूर्ण. दूहा संग्रह , पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५५००६. नरग वेल, संपूर्ण, वि. १८७०, श्रावण शुक्ल, २, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, अन्य. सा. गंगाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, ९४३६). ४ गति वेलि, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: देवदया परनमीय निरंजन; अंति: हुं वांछु गुणठाण, गाथा-१३६. ५५००७. तपभेद विवरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र.वि. अंत में "पाना गीरधर पानाचंदनी पारवतीना छे." ऐसा लिखा है., दे., (२६४११, १३४१८-२०). १२ तपभेद विवरण, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: अणसण१ उणोदरिर भिक्खा; अंति: विउसग्गह तपना२० कहां. ५५००८. (+) कालसत्तरी, पदार्थ, लघुद्रव्यसंग्रह, विचारसार सह टबार्थव शांतिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, ६-७४५०-५३). १.पे. नाम. कालसत्तरी सह टबार्थ, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण, वि. १८०१, वैशाख कृष्ण, ७, ले.स्थल. विनातट, प्रले. मु. उदयचंद्र (नागोरीलुंकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. कालसप्ततिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि: देविंदणयं विज्जाणंद; अंति: धम्मघोष० किमवि भणिअं, ___ गाथा-७५. कालसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: देवेंद्रै नमितं विद; अंति: काइ एक का. २. पे. नाम. जैन पदार्थ संग्रह, पृ. ६अ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. तंदुलमच्छ आदि जीवों के आयुष्यादि विविध बोल संग्रह.) ३. पे. नाम. लघुद्रव्य संग्रह सह टबार्थ, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण. लघुद्रव्य संग्रह, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि: छ दव्व पंच अत्थी; अंति: गणिणा सिरिनेमिचंदेण, गाथा-२५. लघुद्रव्य संग्रह-टबार्थ, मु. केशरविमल, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंतदेवइ षट्; अंति: तेणई ए ग्रंथ कीधो. ४.पे. नाम. विचारसार सह टबार्थ, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. विचारसार, प्रा., पद्य, आदि: अह चउदससु गुणेसु; अंति: सिव पासाए सयावसह, गाथा-८. विचारसार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हिवें चउदई गुणस्थान; अंति: पावडीआंरे अनुक्त. ५.पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. जयतिलक, प्रा., पद्य, आदि: पणमिय सुरवर सेहर; अंति: महं संति देहि जगतिलय, गाथा-९. ५५००९. जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६८, पौष शुक्ल, १०, सोमवार, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. उदयपुरनगर, प्रले. मु. हितराज (अचलगच्छ); पठ. वा. क्षमाचंदजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अबरखयुक्त प्रत., जैदे., (२५४११, ५४३१-३६). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: स्वर्ग मर्त्य पाताल; अंति: जे समुद्र तेहथी तरवो, (वि. १७६८, पौष शुक्ल, १०, सोमवार, प्रले. मु. हरिसिंह (गुरु मु. नगराज, अंचलगच्छ); गुपि.मु. नगराज (अंचलगच्छ); राज्यकाल रा. संग्राम समर सिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य) ५५०११. (+) साधुवंदना चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. अंत में "मोहननेसरा छे" ऐसा लिखा है., संशोधित., दे., (२५.५४११.५, १४४४०-४३). साधुवंदना, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: पंच भरत पंच एरवय; अंति: देवमुनि ते संथुण्या, ढाल-१३. ५५०१२. (4) पौषधादि विधिसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०.५, १७४५५). For Private and Personal Use Only Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ३९७ विधि मार्गप्रपा-कल्पत्रेप विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम आसु सुदि बीज; अंति: ऊचरी काउसग्ग पारइ. ५५०१४. (+#) कर्मविपाक व कर्मस्तव कर्मग्रंथ, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ११४३४-४०). १.पे. नाम. कर्मविपाकसूत्र, पृ. १आ-५अ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं, गाथा-६१. २. पे. नाम. कर्मस्तव कर्मग्रंथ कर्मग्रंथ २, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १६ अपूर्ण तक हैं.) ५५०१६. नवतत्त्वप्रकरण का बालावबोध, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७-१(१६)=१६, जैदे., (२५.५४११, १३४४९). नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध*,रा., गद्य, आदिः (१)केतलाएक नवतत्वना, (२)६ पर्याप्ताभेद आहार; अंति: श्रीवीतरागनी साखि. ५५०१७. (+) जीवविचार प्रकरण सह अवचूरि, पूर्ण, वि. १६५७, मार्गशीर्ष कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(१)=६, प्रले. मु. धर्मचंद्र (गुरु पं. अभयचंद्र गणि); गुपि.पं. अभयचंद्र गणि; पठ. ग. हिरचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४३०-४२). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१, (पू.वि. गाथा ५ अपूर्ण से हैं.) जीवविचार प्रकरण-अर्थलेश अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: सिद्धांत समुद्रात. ५५०२०. (+#) रास व पार्श्वजिन छंद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-५(१ से ५)=५, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १३४५०). १. पे. नाम. वस्तुपाल तेजपाल रास, पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण. वस्तुपालतेजपालमंत्री रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: सरसति सामिणि पय नमी; अंति: समयसुंदर० परम उलास, ढाल-२, गाथा-३९. २. पे. नाम. पार्श्वनाथजीरौ देसंतरी छंद, पृ. ७अ-१०अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: सुवचन संपोसारदा मया; अंति: तवियो छंद देशांतरी, गाथा-४७. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन निसाणी, पृ. १०अ-१०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहि., पद्य, आदि: सुखसंपति दायक सुरनर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १४ अपूर्ण तक है.) ५५०२१. (+) औपपातिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७१, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२, ५४४१). औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: (-). औपपातिकसूत्र-टबार्थ, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: तिणे कालै चउथा आराने; अंति: (-). ५५०२४. (+) दशवकालिकसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५७, प्र.वि. पत्रांक १ आ पर मांगलिक लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १८४४८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि, अध्ययन-१०. दशवैकालिकसूत्र-बालावबोध, उपा. राजहंस, मा.गु., गद्य, आदि: (१)नत्वा श्रीवर्धमान, (२)धम्मो० धर्मरूपिउ; अंति: इम कहिउ इम हउ बोलउ. For Private and Personal Use Only Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५५०२७. (+) अंजनासतीनो मोटो रास, संपूर्ण, वि. १९६९, आषाढ़ अधिकमास शुक्ल, ६, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ४६, ले.स्थल. पडधरी, प्रले. कालीदास परसोत्तम खत्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२५.५४११, १६४५४). अंजनासुंदरी रास, मु. खोडीदास, मा.गु., पद्य, वि. १९१९, आदि: प्रणवीर जीणंद; अंति: सकल संघने सुख करु, ढाल-६३, ग्रं. २५००. ५५०२८. (+) सतरिसयठाण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. कुल ग्रं. १६००, जैदे., (२५.५४१०.५, ६४३३). सप्ततिशतस्थान प्रकरण, आ. सोमतिलकसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३८७, आदि: सिरिरिसहाइ जिणिदे; अंति: जाइ सो सिद्धिठाणे, गाथा-३६०. सप्ततिशतस्थान प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीऋषभादिकजिनेंद्र; अंति: सिद्धिस्थानकनई विषइ. ५५०३०. (+#) अभिधानचिंतामणिनाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. तृतिय कांड के अंतमें "मानविजय" दिया हैं., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १८४४५). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), (पू.वि. कांड ४ के श्लोक २८० अपूर्ण तक हैं.) ५५०३१. (+#) षडावश्यकसुत्र, स्तुति, स्तोत्र, स्तवन व प्रकरणादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४०, कुल पे. ४१, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १५४४०). १. पे. नाम. षडावश्यकसूत्र, पृ. १आ-१०आ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. २. पे. नाम. प्रवज्याभिधान कुलक, पृ. १०आ-११आ, संपूर्ण. प्रव्रज्या कुलक, प्रा., पद्य, आदि: संसार विसमसायर भवजल; अंति: तरंति ते भवसलिलरासिं, गाथा-३४. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ११आ, संपूर्ण. आदिजिन नमस्कार, सं., पद्य, आदि: वंदे देवाधिदेवं तं; अंति: मम भूयात् भवे भवे, श्लोक-३. ४. पे. नाम. शांतिलघु, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. जिनस्तुत्यादि संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय), श्लोक-३, (वि. आदि-अंतिमवाक्य दोनो अपठनीय हैं.) ५. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: अमरतरु कामधेनु चिंता; अंति: कुणसु पह पास, गाथा-३. ६. पे. नाम. पार्श्वनाथ पंचकल्याणक स्तोत्र, पृ. १२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-वाराणसी, प्रा., पद्य, आदि: चित्तबहुलाइ चविउं; अंति: वियसे बोहिलाभम्मि, गाथा-३. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. मु. जयसागर, सं., पद्य, आदि: धर्ममहारथसारथिसारं; अंति: जय० नंदतु जूयमखंडम्, श्लोक-५. ८. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. १२आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: राजते श्रीमती देवता; अंति: मेधामाह्वयति नियमेन, श्लोक-९. ९. पे. नाम. सरस्वती नमस्कार, पृ. १२आ, संपूर्ण. शारदादेवी स्तुति, सं., पद्य, आदि: या कुंदेंदुतुषारहारध; अंति: निश्शेष जाड्यापहा, श्लोक-१. १०. पे. नाम. सारदा स्तुति, पृ. १३अ, संपूर्ण. सरस्वती स्तुति, मु. धर्मवर्धन, पुहिं., पद्य, आदि: अगम आगम अरथ उतारै; अंति: धरमसी० श्रुतदेवता, गाथा-४. ११. पे. नाम. आदिसरनो स्तोत्र, पृ. १३अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: जय जय जगदानंदन जय; अंति: भगवते ऋषभाय नमोनमः, श्लोक-५. For Private and Personal Use Only Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ १२. पे. नाम. शांति स्तोत्र, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: किं कल्पद्रुमसेवया; अंति: सेव्यतां शांतिरेष स, श्लोक-५. १३. पे. नाम. नेमि स्तोत्र, पृ. १३आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: परमानं क्षुधार्तेन; अंति: कथं धन्यतमो नगण्यः, श्लोक-५. १४. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: अभिनवमंगलमालाकरणं; अंति: वासुराः पुण्यभासुराः, श्लोक-५. १५. पे. नाम. पंचतीरथी स्तोत्र, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव, सं., पद्य, आदि: कनकाचलमिव धीरं; अंति: बोधाः बोधिलाभाय संतु, श्लोक-६. १६. पे. नाम. पार्श्व स्तुति, पृ. १४अ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: हर्षनतासुरनिर्जरलोकं; अंति: मज्जनशस्तनिजाघः, श्लोक-४. १७. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतकसुप्रपंचपरमा; अंति: सिद्धायिका त्रायिका, श्लोक-४. १८. पे. नाम. बीज स्तुति, पृ. १४आ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्निसोवन; अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. १९.पे. नाम. दीपमालिका स्तुति, पृ. १४आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पापायां पुरि चारु; अंति: स्तौमि वीर प्रभुम्, श्लोक-१. २०. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १४आ-१५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदि: शमदमोत्तमवस्तुमहापणं; अंति: जयतु सा जिनशासनदेवता, श्लोक-४. २१. पे. नाम. महावीरजिन वर्धमान स्तुति, पृ. १५अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: यदह्रिनमनादेव देहिन; अंति: नित्यं मम मंगलेभ्यः, श्लोक-४. २२. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १५अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: युगादिपुरुषंद्राय; अंति: कृष्मांडी कमलेक्षणा, श्लोक-४. २३. पे. नाम. अर्बुदाचल स्तुति, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., पद्य, आदि: वरमुक्तियहार सुतार; अंति: सुहाणि कुणे सुसया, गाथा-४. २४. पे. नाम. पलांकित स्तुति, पृ. १५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञं ज्योति; अंति: वृद्धिं वैदुष्यम्, श्लोक-४. २५. पे. नाम. शत्रुजय स्तुति, पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेजमंडण आदि; अंति: नंदसूरि० पाय सेवता, गाथा-४. २६. पे. नाम. थानक थुइ, पृ. १६अ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: पंच विदेहि विषइ विहर; अंति: जण मन वंछित सारइ, गाथा-४. २७. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १६अ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थ, सं., पद्य, आदि: श्रीसेढीतटिनीतटे; अंति: नाथो नृणां श्रिये, श्लोक-२. २८. पे. नाम. पार्श्वनाथ नमस्कार, पृ. १६अ-१८अ, संपूर्ण. ___ जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंति: विण्णवइ अणिदिय, गाथा-३०. २९. पे. नाम. सप्तस्मरण, पृ. १८अ-२४आ, संपूर्ण. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: मंगल कलाण आवासं, स्मरण-७. ३०. पे. नाम. लघुशांति स्तवन, पृ. २४आ-२५आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ३१. पे. नाम. तिजयपहुत्त स्तोत्र, पृ. २५आ-२६अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहत्तपयासय अट्ठ; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ३२. पे. नाम. दोषावहार स्तोत्र, पृ. २६अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: दोसावहारदक्खो नालिया; अंति: जिणपहसूरिहि० पीडंति, गाथा-१०. ३३. पे. नाम. भक्तामरदिकमृषभजिन स्तोत्र, पृ. २६अ-२८आ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ३४. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. २८आ-३१अ, संपूर्ण.. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुदचं० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ३५. पे. नाम. वीरजिन स्तव, पृ. ३१अ-३२आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव-समसंस्कृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: दृष्टिं दयालो मयि, श्लोक-३०. ३६. पे. नाम. वीरजिन चरित्र, पृ. ३२आ-३४आ, संपूर्ण. दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दुरिअरयसमीरं मोहपंको; अंति: सया पायप्पणामो तुह, गाथा-४४. ३७. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ३४आ-३६अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४८. ३८. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ३६आ-३८अ, संपूर्ण. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. ३९. पे. नाम. विचारषट्विंशिकारूप स्तवन, पृ. ३८अ-३९आ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४०. ४०. पे. नाम. पौषध सज्झाय, पृ. ३९आ-४०आ, संपूर्ण. पौषध सज्झाय-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति: उप्पन्नं केवलं नाणं, गाथा-३३. ४१. पे. नाम. दूहा संग्रह, पृ. ४०आ, संपूर्ण. सामान्य कृति ,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (वि. दूहा-२.) ५५०३२. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६१-२५(२ से ४,१३,२४,२६ से ३८,४५ से ४७,५१,५३ से ५५)=३६, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, ५४३५). दशवकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (पू.वि. चूलिका २ गाथा ३ अपूर्ण तक है.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: धर्म उत्कृष्टउ मांगल; अंति: (-). ५५०३३. (+) मानतुंगमानवती चरित्र, संपूर्ण, वि. १८०९, ज्येष्ठ शुक्ल, १०, सोमवार, मध्यम, पृ. ३५, ले.स्थल. कर्मवाट्या, प्रले. ग. लब्धिविजय (गुरु ग.शांतिविजय, तपागच्छ); गुपि.ग. शांतिविजय (तपागच्छ); पठ. पं. सुंदरविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १६४३७). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद पदांबुजे; अंति: घरिघरि मंगलमाला हे, ढाल-४७, गाथा-१०१७. For Private and Personal Use Only Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५५०३४. (+#) त्रिशष्टिशलाकापुरुषचरित्र चतुर्थपर्व, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६१-२७(१ से २६,५२)=३४, प्र.वि. प्राप्ति स्त्रोत अज्ञात लिया हैं पर प्रत पर देवीलाल शर्मा, कांकरौली का स्टेम्प लगा हैं., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. कुल ग्रं. २०५, मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १६x४१). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. पर्व ४ सर्ग २ अपूर्ण से सर्ग ७ संपूर्ण तक है.) ५५०३६. (+) जंबूस्वामी रास व बावीसपरिसह चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १६४५३). १. पे. नाम. जंबूस्वामी रास, पृ. १अ-२०आ, संपूर्ण, वि. १८२४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ७, शनिवार, प्रले. पं. विनयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: प्रणमी पासजिणंदना; अंति: दिन कोडि कल्याण छै, ढाल-३५. २. पे. नाम. बावीस परिषह रास, पृ. २०आ-३२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. २२ परिषह चौपाई, मु. ज्ञानमूर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिनेशर पय नमु; अंति: (-), (पू.वि. समकित वर्णन तक हैं.) ५५०३७. गौतमपृच्छा सह टबार्थ व कथा अपूर्ण, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४९-१७(१ से १७)=३२, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., दे., (२६४११, १३४४६). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न-४८, गाथा-६४, (पू.वि. गाथा २८ से है.) गौतमपृच्छा-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: अर्थ भाव मोटा छइ. गौतमपृच्छा-बालावबोध, आ. मुनिसुंदरसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सुधाभूषण सेविता. ५५०३९. (+#) सत्तरिसयठाण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८४, वैशाख अधिकमास शुक्ल, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २६, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. १३२०, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, ८४४२). सप्ततिशतस्थान प्रकरण, आ. सोमतिलकसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३८७, आदि: सिरिरिसहाइ जिणिंदे; अंति: जाइ सो सिद्धिठाणे, गाथा-३५९. सप्ततिशतस्थान प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ऋषभादिक जिनेंद्र; अंति: सिद्धिस्थानकनई विषइ. ५५०४०. (+#) रत्नचूडमुनि चतुष्पदी, संपूर्ण, वि. १७९७, फाल्गुन शुक्ल, १४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २६, ले.स्थल. मांडवपुरनगर, प्रले.पं. दीपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४४५). रत्नचूड चौपाई, मु. कनकनिधान, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: स्वस्ति श्रीशोभामति; अंति: संपति लील कल्याणो रे, ढाल-२४. ५५०४१. (+-) ज्योतिष संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २८-३(१८ से २०)=२५, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित-अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १३४३८). १.पे. नाम. ज्योतिषसार, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. मुंजादित्य विप्र, सं., पद्य, आदि: विघ्नराजं नमस्कृत्य; अंति: वामेचंद्रे धन क्षयः. २.पे. नाम. विवाहपटल, पृ. ४आ-२३अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. विवाहपडल, सं., पद्य, आदि: जंभाराति पुरोहिते; अंति: मान पछै ३० जाणना, श्लोक-३००. ३. पे. नाम. दोहाविवाह पडल, पृ. २३अ-२८आ, संपूर्ण. विवाहपटल दोहा, मु. हीर, मा.गु., पद्य, आदि: हरसेणा धन मीन मल मास; अंति: हीर० जे जोवैते जाण, गाथा-१३४. ५५०४२. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४३५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन १६ अपूर्ण "जे भिक्खू सोच्चा निसम्म संजमबहुले" पाठ तक हैं.) ५५०४३. (#) खंदक अधिकार सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, प्र.वि. अंत में किसी आधुनिक विद्वान के द्वारा 'माहासरी साकरबाईनी चेली वखतबाईनी छे.' ऐसा लिखा है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ५४३८). For Private and Personal Use Only Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची खंदक अधिकार, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: दुक्खाणमंतं करेहिति.. खंदक अधिकार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते कालने विषे ते सम; अंति: तेहथी विस्तार जाणवो. ५५०४४. (+#) उपदेशमाला, पूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-पंचपाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४१०.५, ११४३६-४३). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., गाथा ५४० अपूर्ण तक है.) ५५०४६. (+) चौपाई व रासादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४-११(१ से ११)=२३, कुल पे. ६, ले.स्थल. पुरनगर, प्रले. मु. रायचंद ऋषि (गुरु मु. देवीचंदजी पंडित); गुपि. मु. देवीचंदजी पंडित (गुरु मु. शीतलजी); मु. शीतलजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, २३-२५४४०-५६). १.पे. नाम. प्रत्येकबुद्ध चौपाई, पृ. १२अ-१६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १८२३, चैत्र शुक्ल, १०. ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: (-); अंति: आणंद लील विलास, खंड-४, (पू.वि. खंड ३ ढाल १६ गाथा ४ अपूर्ण तक नहीं है., वि. ढाल ४५) २. पे. नाम. कांनजी अणगार कठियारा कानजी को रास, पृ. १६आ-१९अ, संपूर्ण, वि. १८२३, चैत्र शुक्ल, ११, शनिवार. कान्हडकठियारा रास-शीयलविशे, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: पार्श्वनाथ परणमु मुद; अंति: श्रीबीजैरत्न मुणिंद, ढाल-९. ३. पे. नाम. वंकचूल चउपइ, पृ. १९अ-२१आ, संपूर्ण, वि. १८२३, चैत्र शुक्ल, १२, रविवार. वंकचूल रास, मु. गंगदास, मा.गु., पद्य, वि. १६७१, आदि: सांतिकरण जीनराज वंक; अंति: प्रबंध कह्यो गंगदास, ढाल-६, गाथा-१२८. ४. पे. नाम. खंधक अणगार सबंध, पृ. २१आ-२२आ, संपूर्ण, वि. १८२३, चैत्र शुक्ल, १४, मंगलवार. खंधकमुनि चौपाई, ग. दुर्गदास, मा.गु., पद्य, वि. १६३५, आदि: मुनिसुव्रत जिन वीसमउ; अंति: पामै कोडिकल्याणो रे, ढाल-३. ५. पे. नाम. चंद्रलेहा रास, पृ. २२आ-३४अ, संपूर्ण, वि. १८२३, वैशाख शुक्ल, ३, रविवार, ले.स्थल. पुरपइठाणनगर. चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सरसति भगवति नमी करी; अंति: त्रिभुवनपति हुवे तेह, ___ ढाल-२९, गाथा-६३४. ६. पे. नाम. विक्रमादित्य चौपाई, पृ. ३४अ-३४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. विक्रमचौबोलीरास-पुण्यफलकथने, वा. अभयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: बीना पुस्तक धारणी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल ३ गाथा ३ अपूर्ण तक है.) ५५०४८. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२-१(१)=२१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, ५-१४४३३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-). संपूर्ण. कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: आठ करम रूपीया वैरी; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र हैं. ५५०५०. वीरजिनचरित्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. २१-१(१)=२०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४११, १४-१६४३६-३८). महावीरजिन चरित्र, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सूत्र ५८ के बालावबोध अपूर्ण से सूत्र ९५ तक हैं.) महावीरजिन चरित्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५५०५१. (+) मृगावती चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२-२(१८ से १९)=२०, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १४४४१). मृगावतीसती चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: समरु सरसति सामिणी; अंति: (-), (पू.वि. खंड २ ढाल १२ गाथा १ अपूर्ण से गाथा ८६ तक व खंड ३ ढाल ७ गाथा ९५ अपूर्ण से नहीं है.) For Private and Personal Use Only Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ४०३ ५५०५२. (+#) तपोधिकारे राजर्षिकृतकर्म चउपदी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २०, प्रले. पं. धर्मसुंदर मुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४१०.५, १६x४१-४७). कृतकर्मराजर्षि चौपाई-तपोधिकार, उपा. कुशलधीर, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: परम पुरुष परमेष्टि; अंति: कुशल गृह मंगलमाल, ढाल-२९, गाथा-६३०, ग्रं. ९१७. ५५०५३. अंजणानो रास, संपूर्ण, वि. १८९६, वैशाख शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. १८, प्रले. श्राव.जेचंद धर्मसी सेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं.६००, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४४०). अंजनासुंदरीरास, मा.गु., पद्य, आदि: सील समोवड को नही सील; अंति: सति रे सिरोमणि गाई ऐ, गाथा-१६१. ५५०५४. (+#) गोराबादल चरित्र खंड-१, अपूर्ण, वि. १७१५, आश्विन कृष्ण, १२, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २७-९(१ से ६,१६ से १८)=१८, ले.स्थल. पाली, प्रले. पं. विद्याभाभ पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४३९). गोराबादल चौपाई, आ. हेमरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६४५, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा १४८ तक नहीं है.) ५५०५५. (+#) बृहत् संग्रहणी, संपूर्ण, वि. १८०७, पौष शुक्ल, ३, गुरुवार, मध्यम, पृ. १७, पठ. मु. मानसिंघ ऋषि (गुरु मु. कर्मसी ऋषि); गुपि. मु. कर्मसी ऋषि (गुरु मु. मोहणसीजी ऋषि); मु. मोहणसीजी ऋषि (गुरु आ. सुखमलजी); आ. सुखमलजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका के अक्षर अत्यंत फीके पड गये हैं., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १५४३३-३६). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमियो अरिहंताई ठिई; अंति: इय लोयंमि दुल्लहा, गाथा-३८२. ५५०५६. (+#) रत्नचूड चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. जालोर महादुर्ग, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४४). रत्नचूड चौपाई, मु. कनकनिधान, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: स्वस्ति श्रीसोभा; अंति: संपद लील कल्याणोरे, ढाल-२४. ५५०५८. (+) गुणस्थानक्रमारोह की टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १५-१७X४२-४५). गुणस्थानक्रमारोह-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४४७, आदि: अहँ पदं हृदि; अंति: (-), (पू.वि. क्षपकश्रेणि गुणस्थान अपूर्ण तक हैं.) ५५०५९. (+#) प्रकरण संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६९५, आश्विन कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. १४, कुल पे. ३, प्रले. पं. विशाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ६४३६). १. पे. नाम. नवतत्प प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: बुद्धबोहिक्कणिक्काय, गाथा-४९, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्व१ अजीवतत्व२; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ३३ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ६अ-१०आ, संपूर्ण. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. ३. पे. नाम. विचारसार दंडकसूत्र, पृ. १०आ-१४अ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिऊंचउवीस जिणे तस: अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-३८. ५५०६१. (+#) वीरथूइअध्ययन सह अर्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३, प्र.वि. बाद मे "पुज भगवन रुषजीनी, दीवालीबईसामी छे" लिखा हैं., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११.५, ९४२८-३०). For Private and Personal Use Only Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४०४ www.kobatirth.org सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन का अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सुधर्मास्वामिनि जंबू; अंति: बे मि० हुं कहुं छि. ५५०६२. पद्मावती सज्झाय व आराधना प्रकरण सह अर्थ, संपूर्ण, वि. १९१६, भाद्रपद कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. १३, कुल पे. २, दे., (२५.५X११, ११x२८-३३). १. पे. नाम पद्मावती सिज्झाच, पृ. १आ ३आ, संपूर्ण, ले. स्थल. जेतारणनगर, प्रले. पं. रुपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. पद्मावती आराधना उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवै रांणी पदमावती अंतिः पापथी छुटे (+) कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सूत्रकृतांगसूत्र- हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधमांस्वामी, प्रा. पद्म, आदि: पुच्छिमुणं समणा मारण, अंतिः देवाहिव आगमिस्संति, गाथा - २९. तत्काल, ढाल -३, गाथा-३६. २. पे. नाम. आराधना प्रकरण सह अर्थ, ,पृ. ३आ- १३आ, संपूर्ण. पर्यताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा. पद्य, आदि: नमिऊण भगइ एवं भयवं अंतिः सोम० ते सासवं सुक्खं गाथा-७१. " पर्यंताराधना- अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजिनेश्वर प्रत्यै; अंति: सास्वता सुख पामस्यै. ५५०६३. । कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण. वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२०-१९०७ (१ से १०७) १३. पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. पत्रांक २ से १४ भी दीए हैं. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें जै., (२५४११.५, ६-१७X३८-५०). , (+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). कल्पसूत्र - टवार्थ, मा.गु, गद्य, आदि: (-); अंति: (-). कल्पसूत्र- व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५५०६४. सूक्तमाला सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैवे. (२६४१२, ६४५१). " सूक्तावली, सं., पद्य, आदि: राज्यं निःसचिवं गत; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक १०७ अपूर्ण तक लिखा है.) सूक्तावली संग्रह - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सचिवं गतं क० प्रधान, अंतिः (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ५५०६७. सप्तस्मरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, दे., ( २६११, ११४३६). सप्तस्मरण- खरतरगच्छीय, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअं जिअ सव्वभयं; अंतिः भवे भवे पास जिणचंद, स्मरण- ७, (वि. अंतिम स्मरण उवसग्गहरं का मात्र प्रतिक पाठ लिखा है.) ५५०६९. (#) भगवतीसूत्र ना गम्मा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११, ले. स्थल. नवानगर, प्रले. मु. गुणसागर गणि (गुरु पं. देवसागर गणि); गुपि. पं. देवसागर गणि, प्रले. मु. जिनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मुनि श्रीगुणसागरजी गणि के लिखने के बाद उनके भ्राता श्री जिनसागरजीने नकल की हो ऐसा प्रतीत होता है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र. ले. श्लो. (९९१) जादृसं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६X११.५, २१x४२). भगवतीसूत्र - विचार संग्रह, संबद्ध, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ५५०७० (+) चतुर्मासिकत्रयीव्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८५०, गगनाद्वाणाष्टविश्वंभरा, माघ शुक्ल, १३, मध्यम, पू. ११, ले. स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. गजसार पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें- अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ.. जैदे., (२५x११, १४४३७-५०). चातुर्मासिक व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., गद्य, आदि: स्मारं स्मारं स्फुरद, अंतिः व्याख्यानमाख्यानभृत्, ग्रं. ४०१. ५५०७२, (+) सुक्तिमुक्तावली भाषा, संपूर्ण, वि. १७५५, माघ कृष्ण, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. ११, पठ अमराबालचंद, अन्य पं. जिणदास लालजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५X१०.५, ११x४५). For Private and Personal Use Only सिंदूरकर - पद्यानुवाद भाषा, भाव, बनारसीदास, पुहिं. पद्य वि. १६९१, आदि: सोभित तप गजराज सीस, अंतिः करनछत्र सित पाख, अधिकार- २२, गाथा - १०४. Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५५०७३. वीसवीसी प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदे., (२६४११.५, १४-१५४४७-५२). विंशतिविंशिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण वीरनाहं सव्व; अंति: लहंतु जिणसासणे बोहिं, अधिकार-२०. ५५०७४. (+#) रात्रीभोजन चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. अंत में कुछ तांत्रिक प्रयोग दिए गए हैं., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४५२-५४). रात्रिभोजन चौपाई, उपा. सुमतिहंस, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: सुबुधि लबधि नव निध; अंति: संघ सकल चित्तनंदैजी, ढाल-२४. ५५०७५. (+) पूजा संग्रह व अक्षौहिणीमान श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १२४४५). १. पे. नाम. स्नात्रपूजा, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. ग. महिमासागर, मा.गु., पद्य, आदि: मुक्तालंकारविकारसारस; अंति: भिन्नत्तिभागवती, (वि. लुणउतारण, आरति व मंगलदिपक भी साथ में है.) २.पे. नाम. नवपद पूजा, पृ. ४अ-१०अ, संपूर्ण, वि. १८४७, मार्गशीर्ष कृष्ण, ८, सोमवार. मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: श्रीगोडीपासजी नित; अंति: उत्तमविजय जगीस रे, ढाल-९. ३. पे. नाम. अक्षौहिणीसैन्यमान प्रमाण संग्रह, पृ. १०अ, संपूर्ण, ले.स्थल. ध्राणपुरनगर. प्रा.,सं., पद्य, आदि: एकेभैकरथा अश्वा: पंच; अंति: सज्जनतू परक्षण, श्लोक-२. ४. पे. नाम. नवपदपूजानी विधि, पृ. १०आ, संपूर्ण, वि. १८४७, भाद्रपद कृष्ण, ३. नवपद पूजाविधि, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नव प्रकारनी सुखडी नव; अंति: करवो पछै भावना भाववी. ५५०७६. कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-३(१ से ३)=१०, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३२-४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., भगवान महावीर देवानंदा की कुक्षीमें आये वहां तक का पाठ है.) कल्पसूत्र-बालावबोध *मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्रारंभिक परिचय अपूर्ण से भगवान महावीर का देवानंदा की कुक्षी मे आये वहां तक का वर्णन है.) । ५५०७८. (+) घट्यादिफलपत्र यंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र.वि. द्विपाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १८४३२). घट्यादिफल विचार यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ५५०८०. (#) अभिधानचिंतामणीनाममाला सह स्वोपज्ञ टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १९१-१८२(१ से १८२)=९, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १६४४४-५०). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. कांड ४ अपूर्ण से कांड ६ अपूर्ण तक है.) अभिधानचिंतामणि नाममाला-स्वोपज्ञ तत्त्वाभिधायिनी विवृति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. १२१६, आदि: (-); अंति: (-). ५५०८१. (#) गजसुकुमाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-३(१ से ३)=९, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १७४४६-४७). गजसुकुमाल चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६९९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल ८ गाथा १२ से ढाल २६ गाथा ५ अपूर्ण तक हैं.) ५५०८५. (+#) भाष्यत्रय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११, ११४३७-४३). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाह, भाष्य-३, गाथा-१५२. For Private and Personal Use Only Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४०६ www.kobatirth.org 1 ५५०८७. (+) शीखर रास, पच्चक्खाण, व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-९ (१ से ९) = ९, कुल पे. १०, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६×११, १२X४४-५५). १. पे. नाम. पच्चक्खाण संग्रह. पू. १०अ १०आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: (-): अंतिः बत्तियागारेणं वोसिरइ (वि. पोरसी साढपोरसी, एकासण, बीवासण, आयंबील आदि पच्चक्खाण संग्रह) २. पे. नाम. शिखरजीरो राश, पृ. १० आ-१४आ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ रास, मु. गुलावविजय, मा.गु, पद्य, वि. १८४६, आदि: सांवलिया श्रीपासजी, अंति: गुलाब० नवनिधि पायाजी, दाल-६. ३. पे. नाम. पंचमीतपउच्चारण विधि, पृ. १४-१५आ, संपूर्ण. प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम गुरु आगल आवी; अंति: लोगस्स कही निस्तरे. ४. पे. नाम. पंचमीपारवानी विधि, पृ. १५ आ-१६अ, संपूर्ण. पंचमीतप पारने की विधि, मा.गु., गद्य, आदि: ए तप करी उजमणो कीजै; अंति: याचकानें दान दीजै. ५. पे. नाम. चतुर्दशीतप पारने की विधि, पृ. १६अ - १६आ, संपूर्ण. सं., मा.गु., पग, आदि: प्रथम हरिया वही पछे अंतिः संपूर्ण गाथा कहीजे. ६. पे नाम, ज्ञानपंचमी स्तवन प्र. १६आ- १७आ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन- बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगुरुपाय; अंति: भ भाव प्रशंसीयो, ढाल -३ गाथा २१. ७. पे. नाम. पंचमी लघु स्तवन, पृ. १७-१८अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन- लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमीतप तुमे करो रे, अंति: ज्ञाननो पंचमो भेद रे, गाथा-५. ८. पे. नाम. एकादशी स्तवन, पृ. १८अ - १८आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदिः समवसरण बैठा भगवंत, अंति: है कही ग्राहडी गाथा १३. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. गाथा ३ से ४३ अपूर्ण तक हैं.) नवतत्त्व प्रकरण- टवार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). ९. पे. नाम. अष्टमी स्तवन, पृ. १८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. श्रीचंद, पुहिं., पद्य, वि. १७२२, आदि: अमल कमल जिम धवल; अंति: सफल फल सहु आस, गाथा - ९. १०. पे. नाम. आदिजिन स्तवन- २८ लब्धिगर्भित, पृ. १८आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: प्रणमुं प्रथम जिनेसर, अंति: (-), (पू.वि. ढाल १ गाथा १ अपूर्ण तक हैं.) ५५०८८. (४) नवतत्त्व सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १०- १(१ ) - ९, पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, ३X३४-३७). ५५०८९. (+#) चौवीसथो सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७५५, पौष शुक्ल, ५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्रले. मु. ईश्वरविजय (गुरु भट्टा. विजयरत्नसूरिश्वर); गुपि. भट्टा. विजयरत्नसूरिश्वर (गुरु मु. विजयप्रभ); पठ. श्रावि. प्रेमाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. जैवे. (२५.५४११, १५४३०-३२). , For Private and Personal Use Only लोगस्ससूत्र, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: लोगस्स उज्जोअगरे; अंतिः सिद्धिं मम दिसंतु, गाथा-७. लोगस्ससूत्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: चौदराजलोक माहे उद्यो; अंति: सेष थाकता हलुआ. ५५०९० (+) एकविंशतिस्थान सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८ प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे., (२६X११.५, ५X३७). Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ४०७ २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाणा नयरी जणया; अंति: असेस साहारणा भणिया, गाथा-६९, संपूर्ण. २१ स्थान प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ६७ अपूर्ण तक लिखा है., वि. उपरी भाग खंडित होने के कारण आदिवाक्य नहीं भरा है.) ५५०९१. (+) धनाजीरी चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१-१३(१,३ से १०,१२ से १३,१८,२०)=८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १६x४१-४४). धन्नाअणगार चौपाई, मु. सबलदास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, ढाल १ गाथा १३ अपूर्ण तक, ढाल ३ गाथा ९ अपूर्ण से ढाल१८ गाथा ६ अपूर्ण तक, ढाल २० गाथा ४ अपूर्ण से ढाल २४ के दूहा १ अपूर्ण तक, ढाल ३१ गाथा १२ अपूर्ण से ढाल ३३ गाथा ६ अपूर्ण तक, ढाल ३५ गाथा १२ अपूर्ण से ढाल ३७ गाथा ८ अपूर्ण तक नहीं है. अंत में ढाल ३९ तक हैं.) ५५०९२. (+) बुढापारी चौपई, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ९-१(२)=८, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १६४३७-४१). . बुढ़ापा चौपाई, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: जंबुद्वीपनै भरतमै; अंति: (-), (पू.वि. ढाल ३ गाथा १३ अपूर्ण से ढाल ५ गाथा १ अपूर्ण तक नहीं है व अंत में ढाल १६ गाथा ८ अपूर्ण तक हैं.) ५५०९३. (+#) जैनधार्मिक बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०-२(१ से २)=८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १६४३५-४२). बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५५०९४. (+) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ७, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले.पं. केसरीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १३४४१-४३). १. पे. नाम. सिद्धविंशिका स्तोत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. श्राव. दलपतराय श्रमणोपासक, सं., पद्य, आदि: मुनीनां दुस्तर्व्यः; अंति: कर्हिचित् परिभूयते, श्लोक-२०. २. पे. नाम. प्रश्नाष्टक, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. श्राव. दलपतराय श्रमणोपासक, सं., पद्य, आदि: अनाद्येयं सिद्धि; अंति: महिमाश्वासनविधिम्, श्लोक-८. ३. पे. नाम. सुप्रणिधान स्तोत्र, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: प्रभवतिहदिखेदोयस्य; अंति: सौख्यं कदैवभावनीदशा, श्लोक-२०. ४. पे. नाम. आत्मवाद, पृ. ३आ-५आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: जयति परमाधाम प्रोल्ल; अंति: कलमहंशब्दाभिधेयं महः, श्लोक-३३. ५. पे. नाम. प्रमदाष्टक, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. ___ सं., पद्य, आदि: भुवौचापंवीणाःसुनिशित; अंति: भाजोयमतःसंत्यजंति, श्लोक-८. ६. पे. नाम. एकत्वाष्टक, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: एगेअताणेधणवंधवेहिं; अंति: एवंखएगेनियमं ममप्पा, श्लोक-८. ७. पे. नाम. मोक्षमार्ग पयडी, पृ. ६आ-८अ, संपूर्ण. श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: इक्क समैं रुचिवंतनों; अंति: यों मूढ न समझैलेस, गाथा-२४. ५५०९६. प्रतिक्रमणादि विधि व चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. ७, जैदे., (२५४१२, १२४३५-३८). १. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. २. पे. नाम. सामायक पडिकमण, पृ. ६अ-९अ, संपूर्ण. आलोचनासूत्र-देवसिप्रतिक्रमणगत, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदेसह; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ३. पे. नाम. त्रिकाल भाववंदना, पृ. ९अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४०८ www.kobatirth.org त्रिकालभाव वंदना, मा.गु., पद्य, आदि: पढो मंत्र नवकार दूख, अंतिः भाव वंदना होयजी, पद- १. ४. पे. नाम. पोसहलेण विधि, पृ. ९अ, संपूर्ण. पौषध विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० इरिया, अंति: (-). ५. पे. नाम. पोस पारणा गाथा, पृ. ९आ, संपूर्ण. पौषधपारणसूत्र तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा.गु., प+ग, आदि सागरचंदो कम्मी अंतिः सेसो संसारफल हेड, 3 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६. पे. नाम. चतुशरण स्वाध्याय, पृ. ९आ-१०अ संपूर्ण, ले. स्थल. फलवद्धिका प्रले. मु. रतनचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. भैरव प्रशादात् ४ शरण सज्झाय, क. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलो मंगलिक कहु हिव; अंतिः वास जीवडो नवि लहै, गाथा ६. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति सह बालावबोध, पृ. १०अ १० आ. संपूर्ण. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्ली; अंतिः श्रेयसे पार्श्वनाथः, श्लोक-१. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सकल० संपूर्ण कुशल; अंति: मंगलीक माला संपजे. ५५०९७. (#) भगवतीसुत्रनी टीप जाणवा सरुप शतक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८, प्र. वि. पत्रांक ४ तक लिखा है बाद में नही लिखा है. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (२६४१२, ३१७-२६). भगवतीसूत्र - हुंडी, ऋ. धर्मसिंह, मा.गु., गद्य, वि. १८८२, आदि: नौकारना दस उद्देशाना; अंति: शतक सर्व शतक १३८. ५५०९८. (+) गौतमस्वामी रास, संपूर्ण वि. १९३०, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३ मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले. स्थल, बेगुग्राम, प्रले राधाकृष्ण ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., दे., (२५.५X११.५, ९×३२-३५). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल, अंति: विनय० आप कीरत पूरि, गाथा -४५. " ५५०९९, (0) सनत्कुमार चौपड़, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२५.५x११, १३४३५). सनत्कुमारचक्रवर्ति चौपाई, मु. गोविंद, मा.गु., पद्य, वि. १८४९, आदि: एक दिवस सुर इंदजी, अंति: गोयंद० " चोमासोजी, ढाल ८. ५५१०१. (+) जीवविचार, दंडकादि स्तोत्र संग्रह, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे ४, प्र. वि. अवरख युक्त स्वाही, संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X१०.५, १०X३४-३७). १. पे. नाम, जीवविचार प्रकरण, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पईवं वीरं नमुऊण अंतिः शांतिसूरि० समुदाओ, गाथा ५१. २. पे. नाम. विचारषट्त्रिंशिका, पृ. ३अ ५अ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीसजिणे तस्स, अंति: गयसारेण० अप्पहिया, गाथा ३८. ३. पे. नाम वर्द्धमान स्तोत्र, पृ. ५अ-७आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव- समसंस्कृत, आ. जिनवल्लभसूरि प्रा. सं., पच आदि भावारिवारणनिवारणदारु, अंतिः दृष्टिं दयालो मयि, श्लोक - ३०. ४. पे. नाम. इरियावही कूलक, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. इरियावही कुलक, प्रा., पद्य, आदि: चउदस पय अडचत्ता, अंति: (-), (पू.वि. गाथा ५ अपूर्ण तक है. ) ५५१०२. (+#) दस आश्चर्य वर्णन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र. वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६X११, १६x४३-४६). १० आश्चर्य वर्णन, प्रा., मा.गु. प+ग, आदिः उवसग्ग १ गब्भहरणं २ अंतिः (-), ग्रं. ११३ (पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण पाठ "कुमार वासमजे" तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५५१०४. (+#) महावीरषत्रिंशिकादि स्तोत्र संग्रह, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. ८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२५४११, १७४४६). १.पे. नाम. महावीरषट्त्रिंशिका, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. महावीर जिनपत्रिंशिका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: पराक्रमेणेव पराजितोय; अंति: वरदपूर्णतावता, श्लोक-३६. २.पे. नाम. नमस्कार स्तवन, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: कनककांतिधनुशतपंचकोच; अंति: युपरमं परमं परमंबिका, श्लोक-२९. ३. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तवन, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तुति, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ऋषभनम्रसुरासुरशेखर; अंति: काव्यैः स्तुतयः, श्लोक-२९. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: कामे वामेय शक्तिर्भव; अंति: जिनप्रभसूरिचार्ये, श्लोक-१७. ५. पे. नाम. पार्श्वस्तव, पृ. ५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्व भावतः; अंति: जिनप्रभविष्णुता, श्लोक-९. ६. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: कंसारिक्रमनिर्यदापगा; अंति: भावना भावितानाम्, श्लोक-२५. ७. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तवन, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तुति-यमकमय, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: तत्त्वानि तत्त्वानि; अंति: लोक्य लक्ष्मीश्वरा, श्लोक-२८. ८. पे. नाम. वर्द्धमान निर्वाणकल्याणक स्तवन, पृ. ७आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है. महावीरजिन निर्वाणकल्याणक स्तवन, सं., पद्य, आदि: श्रीसिद्धार्थनरेश; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१० अपूर्ण तक ५५१०७. (+#) गौतमस्वामीनोरास, संपूर्ण, वि. १८८७, ज्येष्ठ शुक्ल, १०, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. धौर्यपुर, प्रले. श्राव. खीमचंद शिवराज साह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिनाथ प्रसादात्., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १०४३३-३५). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीर जिनेसर चरणकमल; अंति: लास सयल संघ आनंद करो, गाथा-७७. ५५१०८. (+#) बारह राशि भावफल, नरक चौढालीयो व जंबूस्वामी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १५४३९-४३). १. पे. नाम. द्वादश राशि भावफल, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. द्वादशराशि भावफल, सं., पद्य, आदि: मूत्रैरिविस्तीद्रकरा; अंति: स्वस्वभुक्ति प्रमाणत. २.पे. नाम. नरक चौढालियो, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण. नरक चौढालिया, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: आदिजिणंद जुहारीयइ मन; अंति: सकल कलेस हो स्वामी, ढाल-४, गाथा-३१. ३. पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. ६अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक नरवर राजिओ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- ८ अपूर्ण तक है.) ५५१०९. पर्यंताराधना सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६, जैदे., (२६४११, १३४४९-५६). पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवंसम; अंति: सोम० ते सासयं सुक्खं, गाथा-७०, ग्रं. २४५, (वि. अक्ष- २४) पर्यंताराधना-बालावबोध*मा.गु., गद्य, आदि: नमस्करीनइ आराधना; अंति: शाश्वतुं सोख्य लहइ. For Private and Personal Use Only Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची " ५५११० (+) सिंदूरप्रकर सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २३-१७(१ से १७) = ६. पू. वि. बीच के पत्र हैं.. प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जै, (२५४१०.५, ४४३८-४२). सिंदूरकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. लोक ७१ से १६ अपूर्ण तक है.) सिंदूरकर-वार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). ५५११२. (+) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१५, ?, भाद्रपद शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ६, ले. स्थल. इंटाली ग्राम, पठ. मु. सावल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखन वर्ष खंडित हैं., पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. वे., (२५.५४११. ४-५x२९-३९). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा. पद्य वि. ११वी, आदि भुवण पईवं वीरं नमुऊण अंतिः रूद्धाओ सूअ " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समुद्धाओ, गाथा - ५१, संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिणिभुवनमै प्रदिपक, अंति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा - २५ तक के ही टबार्थ हैं.) ५५११३. (+१) कल्पसूत्र - १४ स्वप्न वर्णन सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७-१ (१) ०६, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५X११, ७X३०-३२). कल्पसूत्र - हिस्सा त्रिशलारानी १४ स्वप्नदर्शन, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. वृषभस्वप्नदर्शन से स्वप्नफल वर्णन के प्रारंभ तक है.) कल्पसूत्र - हिस्सा त्रिशलारानी १४ स्वप्नदर्शन का टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५५११५. (#) पंचांगुलीमंत्रजपसाधन विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५X११, १३X३८). पंचांगुलीदेवी मंत्रजपसाधन विधि, सं., प+ग., आदि: अज्ञानतिमिरध्वंसि; अंति: (-), (पू. वि. अन्त के पाठांश है.) ५५११६. (i) भगवतीसुत्रशतक २५ उदेश ६ तथा ७ नियंठासंजयान अधिकार, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, २०X१७). भगवतीसूत्र - नियंट्ठा - संजया आलापक- बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पन्नवणा १ वेइ २ रगे; अंति: (-), (पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., पाठ- "तथा खाता वेदी हुई हारे" तक है.) ५५११७. सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण वि. १८७८, माघ शुक्ल, १०, रविवार श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३. ले. स्थल धागध्रा, प्रले श्राव नथु रंगनाथ महेता, राज्यकालरा. अमरसंघी माहाराणा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अंत में 'गंगाबाई सामीना छे.' लिखा है., जैदे., (२५.५X११, ९X३२). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ- २अ, संपूर्ण. वा. मोनी, रा., पद्य, आदि: अजिया रात अंधारी मीण; अंति: मोनी० धरम धोरी रे, गाथा ८. २. पे. नाम. चंद्रगुप्त सोलस्वप्न, पृ. २अ - ३आ, संपूर्ण. १६ स्वप्न सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सपन देखी रे पालडे; अंति: चंद्रगुपतराजा, गाथा-१७. ३. पे. नाम. जैनेत्तर सामान्य कृति पृ. ३आ-५आ, संपूर्ण. जैनेतर सामान्य कृति, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-). ५५११८. (क) अमरकुमार, रात्रिभोजन व परनिंदा सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे, ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३३). १. पे. नाम. अमरकुमार सज्झाय, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. मु. सेवक, मा.गु., पद्य, आदि राजग्रही नगरी भली अंतिः सीझे वंछित काजो रे, गाथा-५२. २. पे. नाम. रात्रीभोजननी सज्झाय पु. ४अ-५आ, संपूर्ण. रात्रिभोजन त्याग सज्झाय, आ. हेमविमलसूरि, मा.गु, पद्य, आदि अवनीतलें वासो वसेजी अंति, विनयविबुधनो सीस रे, गाथा - ३१. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय - निंदात्याग, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only 11 Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ www.kobatirth.org पदेशिक सज्झायनिंदात्याग विषये, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: निंदा म करजो कोईनी, अंति: (-), (पू.वि. गाथा - ३ अपूर्ण तक है.) ५५११९, (+) बृहत्शांति- खरतरगच्छ संपूर्ण वि. १९२० पौष शुक्ल १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल. कोटारामपुरा, प्रले. पं. हर्ष कल्याणमुनि (बृहदद्वारक खरतरगच्छ); पठ. श्राव. धनराजजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीमज्जिनदत्तसूरि प्रसादात् संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २६११, १०X२४-२६). लघुसंग्रहणी - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमीय कहता नमस्कार, अंतिः श्रीहरिभद्रसूरिणा . २. पे. नाम. धडाबंध कवित्त सह टबार्थ, पृ. ४-५ अ, संपूर्ण. औपदेशिक लोक संग्रह, प्रा. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). "" , वृहत्शांति स्तोत्र - खरतरगच्छीय, सं., प+ग, आदिः भो भो भव्याः शृणुत; अंतिः पूज्यमाने जिनेश्वरे. ५५१२० (+) लघुसंग्रहणी व धडाबंध कवित सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १७९४ श्रावण कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ५. कुल पे. २, ले.स्थल. लाटाड़ा, प्रले. पं. हरिरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे. (२४.५४१०५ ५५३१-३६). " १. पे नाम, लघुसंग्रहणी सह टवार्थ, पृ. १अ ४आ, संपूर्ण लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि नमिव जिणं सव्वन्नुं अंतिः रईवा हरिभद्दसूरिहिं, गाथा-३०. 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक लोक संग्रह - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५५१२१. (+) संदेहदोहलावली व आगमिकवस्तुविचारसार, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ७- २ (३ से ४) ५, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित, जैदे., (२५.५X११, १३x४६-५०). १. पे. नाम संदेहदोलावली प्रकरण, पृ. १अ २आ-५अ ६अ, अपूर्ण, पू. वि. बीच के पत्र नहीं है. आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: पडिबिंबिय पणय जयं; अंति: जिणवल्लहसूरिसीसेण, ( पू. वि. गाथा- ४८ अपूर्ण ११३ अपूर्ण तक नहीं है.) ४११ २. पे नाम, पडशीति प्राचीन कर्मग्रंथ, पृ. ६अ-७आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं है. आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि निच्छिन्नमोहपास अंति: ( ) ( पू. वि. गाथा ५० अपूर्ण तक है.) ५५१२२. (#) जयतिहुअण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८२७, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. श्राव. डाहा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६११, १३५२). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख, अंति: विण्णवह अनिंदिय गाथा-३०. जयतिहुअण स्तोत्र - बालावबोध, मा.गु, गद्य, आदि; जयवंत था है; अंतिः अनंदित निंद्यउ नहीं. ५५१२३. (+#) पासाकेवली व १२ लग्न पृच्छा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५४११, १६४३२-३६). १. पे नाम, शुकनावली, पृ. ९आ-५अ, संपूर्ण, पाशाकेवली भाषा से संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदिः ॐ नमो भगवति, अंतिः सत्यवात जाणवी. २. पे. नाम. लग्न १२ प्रीछा, पृ. ५अ -५आ, संपूर्ण. - For Private and Personal Use Only मदोषावली, मा.गु. गद्य, आदि: मेष लग्ने क्षेत्रपाल, अंति: सुख होई १२ मीनफलं ५५१२५. (+) सप्ततिशतस्थान प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७-१२ (१ से १२) ५. पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६X११.५, ७X३६-४०). सप्ततिशतस्थान प्रकरण, आ. सोमतिलकसूरि, प्रा. पद्य वि. १३८७, आदि (-) अंति (-), (पू.वि. गाथा १२२ अपूर्ण से १७३ तक हैं.) सप्ततिशतस्थान प्रकरण- टवार्थ, मा.गु, गद्य, आदि (-): अंति: (-). ५५१२६. (+) ऋषिमंडल स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७-२ (४६) =५, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४११.५, ९४२८). Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: लभ्यते पदमुत्तमं, श्लोक-८९, __ ग्रं. १५०, (पू.वि. गाथा- ३४ अपूर्ण से ४७ अपूर्ण एवं ६९ अपूर्ण से ७५ अपूर्ण तक नहीं है.) ५५१२७. (+) आचारांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ६४३६). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं तेणं; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१ से ३, सूत्र ३१ अपूर्ण तक है.) आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसुधर्मास्वामी; अंति: (-). ५५१२८. (+#) पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २५, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, ११४३६-३८). १.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, मा.गु., पद्य, आदि: मनडानी अमै केनै जो; अंति: जोतौ जे ख्याल खेलातौ, गाथा-५. २. पे. नाम. आत्मस्वरूप पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: जागरे सब रैन विहानी; अंति: ग्यान० निज राजधानी, गाथा-४. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: यूंही जनम गमायो भेख; अंति: ग्यानको मरम न पायो, गाथा-४. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहि., पद्य, आदि: भाई मति खेलै तू माया; अंति: ख्यान० निज ख्यालसूं, गाथा-२. ५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: घर के घर विन मैरो; अंति: ग्यानसार गलबाही, गाथा-३. ६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. म. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: भोर भयो भोर भयो भोर; अंति: ग्यानसार जोत ठानी, गाथा-४. ७. पे. नाम. भक्तिपरक पद, प्र. २अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: जब हम तुम इक ज्योत; अंति: भज आतम पद केरी, गाथा-४. ८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: तेरो दाव बन्यो है; अंति: ज्ञानसार० पद निरवाण, गाथा-५. ९. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभु दीनदयाल दया; अंति: सहिजै भवसायर तिरियै, गाथा-३. १०.पे. नाम. प्रभाती पद, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: भोर भयो अब जाग; अंति: तामें जागरता निसानी, गाथा-३. ११. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. वैराग्यपरक पद, मु. ज्ञानसार, पुहि., पद्य, आदि: कहा भरोसा तन का औधू; अति: नाही जनम मरण भवपासा, गाथा-४. १२. पे. नाम. वैराग्यपरक पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, मा.गु., पद्य, आदि: औधूए जगका आकारा; अंति: सब सिट्ठ काडे रासा, गाथा-९. १३. पे. नाम. साधारणजिननुं स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहि., पद्य, आदि: दरबाजा छोटा रे निकळ्; अंति: नाए या सिद्धसनोठरि, गाथा-४. १४. पे. नाम. वैराग्यपरक पद, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, मा.गु., पद्य, आदि: औधूहम विन जग कछ; अंति: चिदघनघन अभिधासी, गाथा-५. १५. पे. नाम. आत्मज्ञान पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, मा.गु., पद्य, आदि: औधू आतम मततगति छूझै; अंति: र पद अव्याबाध अनंता, गाथा-३. १६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ मु. ज्ञानसार, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतम पतियां कौन; अंति: तावत तौ कहारोय बतावै, गाथा-३. १७. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहि., पद्य, आदि: नाथ तुमारी तुमही; अंति: आए वीतल दुख विसराणौ, गाथा-३. १८. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, मा.गु., पद्य, आदि: कहा कहियै हो आप सयान; अंति: कौन्न गरज लजियान्न, गाथा-३. १९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: प्रीतम पतियां क्यौं; अंति: घर हिलमिल प्रीत वढाई, गाथा-३. २०.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ५अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: अनुभौ हम तौरा उरै खो; अंति: कर कैसैं मूंछ मरोरै, गाथा-३. २१. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ५अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: अनुभौ ग्यान्न नयन; अंति: ग्यान०सूझै सहि जसथाज, गाथा-३. २२. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: क्या करियै अरदास साध; अंति: ग्यानसार० जड वेदासा, गाथा-४. २३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ५आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: अनुभौ ढौलन कब घर; अंति: विन तेडै उठ आव, गाथा-४. २४. पे. नाम. भक्तिपरक पद, पृ. ५आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहि., पद्य, आदि: हमारी अखियां अति ऊलस; अंति: ग्यानसार रसदानी, गाथा-३. २५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: एही अजब तमासा औधू; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण है.) ५५१३१. (+) विपाकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६२, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ७X४६-५२). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: सेवं भंते सुहविवागा, श्रुतस्कंध-२, ग्रं. १२५०, (वि. अध्ययन २०) विपाकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अथ विपाकश्रुत किसउ; अंति: एहवा अर्थ १० कह्या. ५५१३३. उत्तराध्ययन सूत्र सह टबार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०४-५२(१ से ३,२६ से ५२,८१ से १०२)=५२, जैदे., (२५४११.५, ५-१५४४४-५४). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्रथम अध्ययन, गाथा-१३ अपूर्ण से अध्ययन- २ तक, अध्ययन-९ से अध्ययन- १२ गाथा- ३१ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. ५५१३४. (+) सूत्रकृतांगसूत्र सह टबार्थ-श्रुतस्कंध १, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, ६x४२-५०). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज्ज तिउट्टेज; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बुझि० छकायनू स्वरूप; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५५१३५. (+#) अभिधानचिंतामणिनाममाला, संपूर्ण, वि. १७८७, श्रावण शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ३९, ले.स्थल. दांतडी नगर, प्रले.मु. मयासागर (गुरु पं. मणिसागर); गुपि.पं. मणिसागर (गुरु पं. माणिक्यसागर गणि); पं. माणिक्यसागर गणि (गुरु पं. ऋषभसागर गणि); पं. ऋषभसागर गणि (गुरु पं. ऋद्धिसागर गणि); पं. ऋद्धिसागर गणि; राज्यकाल रा. मुकतसिंघजी, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १७४५१). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: रोषोक्तावु नतौ नमः, कांड-६, ग्रं. १४५२. ५५१३६. व्यवहारसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८, दे., (२५४११, ६४४४-५७). For Private and Personal Use Only Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४१४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: जे भिक्खु मासिवं; अंति: महापञ्जवसाणे भवइ, उद्देशक- १०, ग्रं. ३७३. "" "" व्यवहारसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे० जे कोइ भि० साधु, अंति: क्षय करवा रूप फल. ५५१३७, () विधि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३९-५ (१ से ५) = ३४, प्र. वि. संशोधित. दे. (२५.५X११, ११४३५). विविधतपविधि संग्रह, मा.गु. सं., गद्य, आदि आवश्यकसूत्र स्कंध, अंतिः तिविहेण वोसिरियं, संपूर्ण. ५५१३८. उत्तराध्ययनसूत्र सज्झाय संग्रह, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३४, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., जैदे., (२५X११, ८x२५-२७), उत्तराध्ययनसूत्र- विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा, उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पवयणदेवि चित्त धरीजी; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन- ३६, गाथा - ३ अपूर्ण तक है.) ५५१३९. (+०) बृहत्संग्रहणी सूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ४८-१८ (१ से १३,१९,२२,२८,३१ से ३२) ३०, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२५.५x११.५, ६x४४). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा. पद्य वि. १२वी आदि (-); अंति: (-), (पू. वि. गाधा- ८७ अपूर्ण से १२६ अपूर्ण तक, ! 2 १३३ से २०१ अपूर्ण तक, २०९ अपूर्ण से २२५ अपूर्ण, २३३ अपूर्ण से ३६९ अपूर्ण तक है.) बृहत्संग्रहणी - टबार्थ, मु. धर्ममेरु, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५१४०. (+#) राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २८, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैवे. (२५४११. ८४४८). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं सम; अंति: (-), (पू. वि. गौतम गणधर द्वारा पूछे गए प्रश्न का उत्तर महावीर स्वामी सूर्याभदेव की चर्चा कर रहे हैं इस प्रसंग तक हैं.) राजप्रश्नीयसूत्र - टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हुवो अरिहंत, अंति: (-). ५५१४१. (+) नंदीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २९, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२६X११, ११X३४). וי नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा. पग, आदि जवइजगजीवजोणीवियाणओ अति: बीसमणुन्नाई नामाई, सूत्र- ५७, , मा.गु., गद्य, आदि: दंडक१ लेस्या २ ठिति, अंति: छ मासनु आंतर पडई. २. पे. नाम. निक्षेप विचार, पृ. २९अ, संपूर्ण. गाथा ७००. ५५१४२. सीतारामप्रबंध रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५X११, १६X५४-५७). रामसीता रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदा, अंति: (-), (पू.वि. खंड५, ढाल - ७ तक है.) ५५१४३. (+) २४ दंडक ३० द्वार विचार व निक्षेप विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २९, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., जै., (२५.५X११, १५४३७). १. पे. नाम. २४ दंडक ३० द्वार विचार, पृ. १आ-२९अ, संपूर्ण. (२५.५x११, १३४४१). १. पे. नाम. आस्रवत्रिभंगी, पृ. १आ-६आ, संपूर्ण. संबद्ध, मा.गु, गद्य, आदिः १ रतन प्रभानई प्रथम, अंतिः दृष्टांत कह्या छे. ५५१४५. (+) भाव संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २६, कुल पे. ५, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित., जैदे., For Private and Personal Use Only मु. श्रुतमुनि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: पणमिय सुरिंदपूजिय; अंति: बालिंदो चिरं जयऊ, गाथा-६२. २. पे. नाम. गोम्मटसार बंधत्रिभंगी, पृ. ६आ, संपूर्ण. " गोम्मटसार-बंधत्रिभंगी, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा. पद्म, आदिः णमिऊण णेमिचंदं असहाय, अंतिः बंधस्सं तो अणतोय, त्रिभंगी - ३, गाथा - ४१. ३. पे. नाम. गोम्मटसार उदयत्रिभंगी. पू. ११ अ १६आ, संपूर्ण. Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गोम्मटसार- उदयत्रिभंगी, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि: पंचणवदोणिअट्ठावीसं, अंति: चंदच्चियणेमिचंदेण, त्रिभंगी - ३, गाथा - ७४. ४. पे. नाम. गोम्मटसार सत्तात्रिभंगी, पृ. १६आ - १९अ, संपूर्ण. गोम्मटसार सत्तात्रिभंगी, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि: पंचणवदोणि अड्डावी, अंतिः सिद्धिं समाहिंच, त्रिभंगी - ३, गाथा- ३४. ५. पे. नाम. भावत्रिभंगी, पृ. १९अ - २६आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. श्रुतमुनि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदिः खविदघणघादिकम्मे, अंति: (-), (पू. वि. गाथा- ६८ अपूर्ण तक है.) ५५१४८. (+) योगचिंतामणि सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२९ - १०४ (१ से ७२,८८ से ११९) =२५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., ( २४४१०.५, ७x४३). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य वि. १७वी, आदि: (-); अंति: (-) (पू.वि. "गुग्गुल प्रकरण" अपूर्ण से "द्राक्षासव" अपूर्ण तक "विष चिकित्सा" अपूर्ण से प्रशस्ति श्लोक अपूर्ण तक है.) योगचिंतामणि- टवार्थ * मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). *, ५५१४९. (+) दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १७९५, चैत्र कृष्ण, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २४, प्रले. पं. मानचंद्र (गुरु पं. उदयचंद्रजीगणि); गुपि. पं. उदयचंद्रजीगणि (गुरुग. धर्मदासजी); ग. धर्मदासजी, पठ. सा. केसर (गुरु सा. रतनाजी); गुपि. सा. रतनाजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०.५, १२x४९). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंतिः गई त्ति बेमि, अध्ययन - १० चूलिका २. ५५१५० (+) चारप्रत्येकबुद्धचौपाई, अपूर्ण, वि. १७७९ श्रावण अधिकमास कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. २७-३ (१ से ३)= २४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X१०.५, १४X५६). (२५.५X११, १४-१६X३४-४३). १. पे. नाम. अढारनात्रा स्वाध्याय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. ४१५ ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि (-); अंति: आनंद लील विलास, खंड-४ ढाल ४४, गाथा-८७०, ग्रं. १९२० (पू. वि. खंड- १, डाल- ४, गाथा ३ अपूर्ण से है. ) ५५१५१. (१) सज्झाय व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १२, कुल पे. १३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., १८ नातरा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वेद न सही मानव भव लह, अंति: वधु जिम लीले वरो, गाथा-१६. २. पे नाम. थूलभद्र स्वाध्याय, पृ. १आ-२अ संपूर्ण स्थूलभद्र सज्झाय, पंडित, सिंहविमल, मा.गु, पद्य, आदि: कोश्या कहे थुलभद्रने अंतिः घर नित्य रंग रोल रे, गाथा - १५. ३. पे. नाम. विचार स्वाध्याय, प्र. २अ २आ, संपूर्ण. सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु. पच, आदि जगदानंदन गुणनीलो रे; अंतिः पुन्य थकी फले आसोरे, गाथा- १६. " ४. पे. नाम. च्या प्रत्येकबुद्धि स्वाध्याय, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी अति भली, अंति: या हो पाटण प्रसिद्ध, ढाल - ५. For Private and Personal Use Only ५. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र स्वाध्याय- १ व ५ सज्झाय, पृ. ३आ-४अ संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र - सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीगुरुपदपंकज नमीजी अंति: (-), प्रतिपूर्ण, ६. पे. नाम. नारकीविचार स्तवन, पृ. ४आ - ५आ, संपूर्ण. नरक चौढालिया, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि : आदिजिणंद जुहारीयइ मन; अंति: गुणसागर० सरणे पाइईं, ढाल-४, गाथा - ३५. Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७. पे. नाम. नोकार स्वाध्याय, पृ. ५आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: समर हो जीव नवकार निज; अंति: आपणा कर्म आठे विखोडी, गाथा-६. ८. पे. नाम. ९ रस गीत, पृ. ५आ-९अ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रनवरस सज्झाय, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: करी श्रृंगार कोश्या; अंति: कहि० हुंजाउ बलिहारी, ढाल-९, गाथा-७८. ९. पे. नाम. बाहुबली महामुनि स्वाध्याय, पृ. ९अ-१०अ, संपूर्ण. बाहुबली सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बाहुबली सुकल ध्याने; अंति: मोहन० समकित सिंधुरा, गाथा-६. १०. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १०अ-११अ, संपूर्ण. महावीरजिन विनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी वीनती; अंति: थुण्यो त्रिभुवन तिलो, गाथा-१९. ११. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ११अ, संपूर्ण. नवपद स्तवन, मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम नाणी हो केसुं; अंति: जपे हो बहु सुख पाया, गाथा-५. १२. पे. नाम. दशार्णभद्रराजरूषी स्वाध्याय, पृ. ११अ-१२आ, संपूर्ण. दशार्णभद्र सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद बुधदाइ सेवक, अंति: बोले लालविजय नीस दीस, गाथा-१८. १३. पे. नाम. पंचमी स्तवन, पृ. १२आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नेमिजिन स्तवन-सौभाग्यपंचमी महात्म्यगर्भित, ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९९, आदि: प्रणमुपवयणदेवी रे; अंति: (-), (पृ.वि. मात्र गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ५५१५२. (+#) उपदेशमाला सह टबार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २२, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, ४-१६४३९-४२). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४५ तक है.) उपदेशमाला-बालावबोध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७१३, आदि: (१)प्रणम्य श्रीमहावीर, (२)नमिऊण क० नमस्कार करी; अंति: (-), (वि. बालावबोध टबार्थ शैली में लिखा है.) उपदेशमाला-कथा, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गद्य, आदि: (१)वंदित्वा वीरजिनं, (२)हवि साध्वीश्री विनय; अंति: (-), (पू.वि. हरिकेशी कथा तक है.) ५५१५३. नारचंद्र ज्योतिष, अपूर्ण, वि. १९१०, वैशाख शुक्ल, ४, सोमवार, मध्यम, पृ. २१-१०(१ से १०)=११, ले.स्थल. थोभ, प्रले. मु. अखैचंद (गुरु पं. आणंदहर्ष मुनि, बृहत्खरतरगच्छ श्रीजिनभद्रसूरिशाखा); गुपि.पं. आणंदहर्ष मुनि (गुरु ग. कमलकलश, बृहत्खरतरगच्छ श्रीजिनभद्रसूरिशाखा); ग. कमलकलश (परंपरा आ. जिनचंद्रसूरि, बृहत्खरतरगच्छ श्रीजिनभद्रसूरिशाखा); आ. जिनचंद्रसूरि (बृहत्खरतरगच्छ श्रीजिनभद्रसूरिशाखा); पठ. श्राव. दलीचंद, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीजिनकुशलजी प्रसादात्. श्रीजिनचंद्रसूरिशाखायां., दे., (२५.५४११, ११४३३). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: कृतानि पुष्पं, श्लोक-२९४, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., दिशाशूल प्रकरण से है.) ५५१५४. स्नात्र विधि, छत्रभ्रमण, शतौषधि नाम व विसर्जन मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, कुल पे. ५, जैदे., (२५४११, १४४४१-५०). १.पे. नाम. सामान्य स्नात्रविधि, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण. स्नात्रपूजा सविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: स्नान करी पवित्र नवी; अंति: करी भक्ति करै. २. पे. नाम. छत्रभ्रमण विधि, पृ. ७अ-१५आ, संपूर्ण.. छत्रभ्रमण प्रतिमापूजन स्नात्र विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: हिवै विशेष पर्वादिक; अंति: दिने शांतिपर्व करीयै. For Private and Personal Use Only Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ३. पे. नाम. शांतिस्नात्र विधि, पृ. १५आ-२०अ, संपूर्ण. __ शांतिस्नात्रपूजा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: तिहां चंद्रबलयोगे गत; अंति: साहमीनी भक्ति कीजै. ४. पे. नाम. शतौषधि नाम, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: मोरशिखा सहदेवी तुलसी; अंति: कांची मुलं यव सर्षप. ५. पे. नाम. विसर्जन मंत्र, पृ. २०आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: यांतु देवगणाः सर्वे; अंति: त्वमेव शरणं मम, गाथा-३. ५५१५५. लघुदंडकनां बोल, संपूर्ण, वि. १९२७, कार्तिक कृष्ण, ३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले.स्थल. मोरबी, प्रले. कल्याणजी नानजी दवे; पठ. श्रावि. लाडकीबाई; अन्य. सा. वखतबाई महासती (गुरु सा. साकरबाई महासती); गुपि. सा. साकरबाई महासती (गुरु सा. कस्तुरबाई), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४११, ११४३८-४५). लघुदंडकभेद बोल, मा.गु., गद्य, आदि: शरीर ओगाहणा संघयण; अंति: नथी सिद्धने जोग नथी. ५५१५६. (+#) हरिवंश प्रबंध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५९-४०(१ से ४०)=१९, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४३८-४१). पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४३ की गाथा-२४ से ढाल-६३ की गाथा-४२ अपूर्ण तक है.) ५५१५७. (+) संग्रहणी सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ५५-१५(१ से २,२० से ३२)=४०, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, १४४४३). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-८ से ९१ व १६० से २६७ तक है.) बृहत्संग्रहणी-बालावबोध *मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पृ.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. ५५१५९. (+) स्थविरावलीसह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १०४३७). स्थविरावली, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: उसभस्स णं अरहो कालगय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., समाचारी अपूर्ण तक है.) स्थविरावली-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जगन्नाथ श्रीआदिनाथना; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ५५१६०. (+) चोविश तीर्थंकर कल्याणकादि विवरण, संपूर्ण, वि. १८९४, माघ कृष्ण, २, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले.स्थल. तोलीयाशर, प्रले. पं. गजमंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १३४४५). २४ जिन पंचकल्याणक मातापितादिनाम वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: तिर्थंकरनाम श्रीआदि; अंति: कल्याणक काति वदि०. ५५१६१. (+#) रास व चौपाई संग्रह, अपूर्ण, वि. १८१४, पौष कृष्ण, १४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १६-१(१)=१५, कुल पे. ३, प्रले. मु. हीर ऋषि; पठ. सा. फूलाजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (९६) यादृशं दृष्ट, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४२-५३). १. पे. नाम. सुभद्रानो चोढालीयो, पृ. २अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. सुभद्रासती रास-शीलव्रतविषये, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: (-); अंति: फलीया मनोरथ माल, ढाल-४, (पू.वि. ढाल-२ की गाथा-२ से है.) २.पे. नाम. रात्रिभोजन चोपइ, पृ. ३आ-११अ, संपूर्ण. जयसेन चौपाई-रात्रिभोजन विषये, वा. धर्मसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमिय गणहर गोयमराय; अंति: सिद्ध संपद ते लहइ, गाथा-२५७, ग्रं. ३६५. ३. पे. नाम. वैदरवी चउपई, पृ. ११अ-१६आ, संपूर्ण. वैदर्भी चौपाई,ऋ. प्रेमराज, मा.गु., पद्य, आदि: जैन धर्ममाहि जागतो; अंति: गावता पामइ लीलविलास, ढाल-९, गाथा-१८७. For Private and Personal Use Only Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५५१६२. (+#) मंडल प्रकरण सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १५-२(१,१४)=१३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. उपयोगी यंत्र व चक्र सहित., त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११, २-५४४८-५३). मंडल प्रकरण, मु. विनयकुशल, प्रा., पद्य, वि. १६५२, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से ९६ अपूर्ण तक है.) मंडल प्रकरण-स्वोपज्ञ टीका, मु. विनयकुशल, सं., गद्य, वि. १६५२, आदि: (-); अंति: (-). ५५१६३. (+) पट्टावली तपागच्छीय सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-५(१ से ५)=१४, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, १४४५५). पट्टावली तपागच्छीय, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: दिंतु सिद्धिसुह, गाथा-२१, (पू.वि. गाथा-८ से है.) पट्टावली तपागच्छीय-स्वोपज्ञ वृत्ति, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: शिवविजयगणिरलिखत्. ५५१६४. (+#) भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९२, कार्तिक कृष्ण, १०, मंगलवार, मध्यम, पृ. १४, ले.स्थल. उदयपुर, प्रले. पं. क्षमाधीर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ३४३७). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्त जे अमर कहता; अंति: नाम पिण मानतुंग छे. ५५१६५. (+#) वृद्धसंग्रहणी, संपूर्ण, वि. १८०७, मार्गशीर्ष कृष्ण, १४, रविवार, मध्यम, पृ. १४, पठ. मु. पीतांबर ऋषि (गुरु मु. मानसिंघ ऋषि); गुपि. मु. मानसिंघ ऋषि (गुरु मु. कर्मसी ऋषि); मु. कर्मसी ऋषि (गुरु मु. मोहणसीजी ऋषि); मु. मोहणसीजी ऋषि (गुरु आ. सुखमलजी); आ. सुखमलजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १७४३८-४०). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊं अरिहंताई थिइ; अंति: इय लोयंमि दुल्लहा, गाथा-३८१. ५५१६७. कल्पसूत्र का व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४९-३७(१ से २२,३३,३५ से ४८)+१(४९)=१३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४११.५, १०४३०-४७). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मेघकुमार दृष्टांत से स्वप्नफल अपूर्ण तक ५५१६९. (#) आनंदश्रावक संधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१०, १५४३०). आनंदश्रावक संधि, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि: वर्द्धमानजिनवर चरण; अंति: पभणइ मुनि श्रीसार, ढाल-१५, गाथा-२५२. ५५१७०. (2) स्तवनचोवीशी, अपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. १३-१(१)=१२, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, ९-११४३६). स्तवनचौवीसी, मु. कमलविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९४५-१९४६, आदि: (-); अंति: पूर्णमनोरथ पाया रे, स्तवन-२४, (पू.वि. अजितजिन स्तवन से है.) ५५१७१. (+) संबोधसत्तरी व श्लोक संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७१६, नरपतिमुनिशशि, चैत्र कृष्ण, ७, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. २, ले.स्थल. वीकानेर, प्रले.पं. जगजीवन; पठ. सा. लखमा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, ५४३९-६७). १.पे. नाम. संबोधसत्तरीसूत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-१२आ, संपूर्ण. संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: सोलहइ नत्थि संदेहो, गाथा-१२८. संबोधसप्ततिका-टबार्थ, पं. नरसिंह मुनि, मा.गु., गद्य, वि. १७१६, आदि: श्रीवितराग तनिलोकनउ; अंति: ल करिवा भणी संकली छे. For Private and Personal Use Only Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम संयमपरिवार लोक सह टवार्थ, पृ. १२आ, संपूर्ण, संयमपरिवार लोक, सं., पद्य, आदि: श्रीचारित्रनरेश्वर, अंतिः कार्या भवद्भिः सदा श्लोक-२. संयमपरिवार श्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: चारित्र रूपीवड राजा; अंतिः कार करिव सदा सर्वदा. ५५१७२. (+#) रत्नपाल रास, संपूर्ण, वि. १८०९, चैत्र शुक्ल, १, रविवार, मध्यम, पृ. १२, ले. स्थल. सुरांण, प्रले. पं. गजेंद्रसोम (गुरु पं. अजितसोम गणि); गुपि. पं. अजितसोम गाणि (गुरु पं. विजयसोम गणि); पं. विजयसोम गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीपार्श्वनाथेन प्रसादात्., संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६४११, १८-२२X४७-५०). . " रत्नपाल - रत्नावती रास-दानाधिकारे, मु. सूरविजय, मा.गु. पच, वि. १७३२, आदि: ऋषभादिक जिन नमुं अंतिः सूरविजय जय जयकार हो, खंड-३ ढाल ३४, गाथा-७५६. - ५५१७३. (+०) उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन १ से १०, संपूर्ण वि. १८७४ श्रावण शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र. मु. रूपचंद (तपगच्छ); पड, मु. अखेचंद (गुरु मु. वृधमोहन) गुपि. मु. वृधमोहन, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, १४X३९-४२). " ४१९ उत्तरझवणसूत्तं, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: संजोगाविप्यमुक्कस्स, अंति: (-), प्रतिपूर्ण ५५१७४, (+०) व्याख्यान संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X११, १३X३८). "" व्याख्यान संग्रह, प्रा.मा.गु. रा. सं., गद्य, आदिः सकलकुशलवल्ली पुष्कर, अति: मंगलीकमाला संपजड़ ५५१७५ () विद्याविलास चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २७-१६ (१ से १६) = ११. पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २४.५X१२, १२-१७३०-३८). विद्याविलास चौपाई, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७११, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. डाल- १६ की गाथा- १ अपूर्ण से डाल - २६ अपूर्ण तक है.) ५५१७७. (#) पुरंदर चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-१ (१) = १०, पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल है. जैवे. (२६११, १४४४४-४७). " पुरंदरकुमार रास, वा. मालदेव, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. गाव १६ अपूर्ण से ३११ अपूर्ण तक है.) ५५१७८. (#) संबोधसत्तरी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. अक्षरों की स्याही गयी है. दे. (२५.५x११.५, ४४२७-३१) "" संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं, अंति: (-) (पू.वि. गाथा- ६४ अपूर्ण तक (४.) संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिलोक गुरु प्रति; अंति: (-). ५५१८०. (a) कल्पसूत्र सह टवार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १४-४(१ से ४) १०. पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १६x४७-५६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-) (पू.वि. चरमतित्थयरे पुव्यतित्थयरे निदिट्ठे तक पाठ है.) कल्पसूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). कल्पसूत्र व्याख्यान+कथा, मा.गु, गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५५१८२. पुच्छिस्सुणं, महावीरजिन स्तुति व द्रुमपुष्पिकाध्ययन सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८९८, माघ शुरू, ५, श्रेष्ठ, पू. ९. कुल पे. ३, प्रले. श्राव. देवचंद भगवान दोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कुल ग्रं. ४१०, जैदे., ( २६११, ५x२८). For Private and Personal Use Only १. पे. नाम वीरथुई सह टवार्थ, पृ. १आ-७अ संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदिः पुत्विस्सुणं समणा, अंतिः आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा - २९. सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन का टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसुधर्मास्वामी अंतिः काले इम हुं कहुं हुँ. Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४२० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति सह टबार्थ, पृ. ७अ-८आ, संपूर्ण. महावीर जिन स्तुति, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: पंच महव्वय सुव्वयमुल, अंतिः एगंत होइ सोय जीवदवा, गाथा-११, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पं० पंच महाव्रत अने; अंति: (-), (पूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ९ तक बार्थ लिखा है.) ३. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र का हिस्सा प्रथम अध्ययन सह टबार्थ, पृ. ८आ९आ, संपूर्ण दशवेकालिकसूत्र - हिस्सा द्रुमपुष्पिका प्रथम अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदिः धम्मो मंगलमुकि अंतिः साहूणो तिथेमि, गाथा-५. दशवैकालिकसूत्र - हिस्सा प्रथम अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: धर्म मंगलीक उत्कृष्ट; अंति: चारित्रिया कहु छु. ५५१८३. (+) जीरिकापल्ली पार्श्वजिन स्तव सह वृत्ति, पूर्ण, वि. १७४३, मध्यम, पृ. १०-१ ( २ ) =९, ले. स्थल, दीवबंदर, प्र. वि. यंत्र सहित., पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, १३x४८). पार्श्वजिन स्तोत्र - जीरावला महामंत्रमय, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदिः ॐ नमो देवदेवाय नित्य; अंतिः लभेत् ध्रुवम् श्लोक-१४ (पू.वि. लोक-२ व ३ नहीं है.) पार्श्वजिन स्तोत्र - पंजिका टीका, मु. पुण्यसागर, सं., गद्य, वि. १७२५, आदि: श्रीपार्श्वं जीरिकाप; अंतिः कृता टीका सुबोधिका. ५५१८४, (+) विचारषट्त्रिंशिका सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८९३ माघ कृष्ण, १ श्रेष्ठ, पृ. ९ प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५.५४११.५ ४४३५). " दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीसजिणे तस्स; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा- ४४. दंडक प्रकरण- टवार्थ * मा.गु, गद्य, आदिः नमिठं कहितां नमस्कार अंतिः वीनती आपणा हितनइ काज. 3 ५५१८५. (+०) हुताशनी कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, ले. स्थल. कटोसण, प्रले. पंन्या. हर्षसौभाग्य (गुरु उपा. जयसौभाग्य); गुपि उपा. जयसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीआदीश्वर प्रसादात्., संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है. प्र. ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा (७३३) जलां रक्षे थलां रक्षे, (९९५) भगन पृष्टि कटी ग्रीवा (९९६) जाद्रिसी जायते बुधी, (९९७) कागल मसिडा बडी, (९९८) जब लग्ग मेरु थर रहें, जैदे., (२५.५X११, ४-९X३३). होलिकापर्व कथा, सं., पद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानजिनं; अंति: विज्ञानां वाचनोचित, श्लोक - ५१, (वि. १८२४, कार्तिक कृष्ण, ८, शुक्रवार) होलिकापर्व कथा-टबार्थ, आ. जिनसुंदरसूरि, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानस्वामी; अंति: ए संबंध प्रकास्यो, (वि. १८२४, कार्तिक कृष्ण १२, बुधवार, प्र. ले. लो. (९९९) जादूसं पुस्तकं द्रीष्टा) ५५१८६. यंत्रराज सह टीका- अध्याय १ से ४ अपूर्ण, बि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३१-२२ (१ से ११,१३ से २३)=९, बे.. (२५.५X१०.५, १२X३६-३९). यंत्रराज, आ. महेंद्रसूरि, सं., पद्य, श. १२९२, आदि: (-); अंति: (-) (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. अध्याय-९ श्लोक-४५ से ४६ व अध्याय-२ श्लोक-६ से है.) यंत्रराज -टीका, आ. मलयेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. अध्याय-९ श्लोक-४४ की टीका अपूर्ण से ४६ की टीका अपूर्ण तक व अध्याय-२ श्लोक- ५ की टीका अपूर्ण से है.) ५५१८७. (+०) चोविश तीर्थकरों के माता, पिता नामादि विवरण, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १७-७(१ से २,५,७ से ८,११,१३)=१०, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५.५४११, १४४३८-४८). २४ जिन माता-पिता नामादि यंत्र, मा.गु, को. आदि (-); अंति: (-). (पू.वि. कोष्ठक -१ से २० के विवरण नहीं है.) For Private and Personal Use Only Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५५१८८.(+) आठकर्म १५८ प्रकृति विवरण, संपूर्ण, वि. १७५५, कार्तिक कृष्ण, ९, सोमवार, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. उदयपुर, प्रले. मु. ईश्वरविजय (गुरु भट्टा. विजयरत्नसूरिश्वर); गुपि. भट्टा. विजयरत्नसूरिश्वर (गुरु मु. विजयप्रभ); मु. विजयप्रभ (गुरु आ. विजयदेवसूरि); आ. विजयदेवसूरि; पठ. श्रावि. प्रेमाबाई; राज्यकालरा. अमरसिंघ, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५.५४११, १२४३०-३४). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: आठ कर्म ते कहिये छइ; अंति: विषई सदाई उद्यम करै. ५५१९०. (+#) नवस्मरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७६३, आश्विन, ३, मध्यम, पृ. १९-१०(१ से १०)=९, पू.वि. बीच के पत्र हैं., ले.स्थल. मसुदा, प्र.वि. प्रतिलेखनपुष्पिकादि विवरण भक्तामरस्तोत्र के बाद उल्लिखित है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१००१) मूषकानलचोरेभ्योः , जैदे., (२५.५४११, ५४३९). नवस्मरण, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. भक्तामरस्तोत्र संपूर्ण व बृहत्शांति नवग्रह अपूर्ण पाठ तक है.) नवस्मरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५५१९१. (+#) भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. मूल व टीका का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ४४३८). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-३९ अपूर्ण तक है.) भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्त भक्तिवंत अमरदेव; अंति: (-), अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ५५१९२. (+#) भावना स्वाध्याय, कर्मछत्रीसी व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-१(१)=८, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२५४११.५, १२४२७). १. पे. नाम. भावना स्वाध्याय, पृ. २अ-३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. भावना सज्झाय, मु. कुशलसंयम, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जोइ कुसलसंयम इम कहे, गाथा-१८, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. कर्मछत्रीसी, पृ. ३अ-६अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: करमथी को छूटे नही; अंति: समय० सविसुख लेस्यो, गाथा-३६. ३. पे. नाम. रायखुकार सज्झाय, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. कमलावतीसती सज्झाय, मु. सुगुणनिधान, मागु., पद्य, आदि: कहइ राणी कमलावती; अंति: हसला रे सुगुणनिधान, गाथा-१०. ४. पे. नाम. शालिभद्र सज्झाय, पृ. ७अ-८अ, संपूर्ण. शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गोवालीया तणइ; अंति: सुंदर सुनि वखाणो, गाथा-१८. ५. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. ८अ-९आ, संपूर्ण. मु. पुनो, रा., पद्य, आदि: श्रीवीरजिणंद समोसर्य; अंति: पुण्य पामे सब पार हो, गाथा-२०. ६. पे. नाम. ९ वाड सज्झाय-ढाल-३, पृ. ९आ, संपूर्ण. ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५५१९३. (+#) सुरसुंदरी रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-१०(१ से १०)=८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४३८-४४). सुरसुंदरी रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६४४, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२२२ व ढाल-१२ अपूर्ण से गाथा-४३० व ढाल-१७ अपूर्ण तक है.) ५५१९४. (#) स्तवनचोविशी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १४४४१-४५). For Private and Personal Use Only Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची स्तवनचौवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७७६, आदि: ऋषभ जिणिंदसुप्रीतडी; अंति: (-), (पू.वि. महावीरजिन स्तवन गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ५५१९५. (+#) वैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८, प्रले. मु. दोलतरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४११, ६४३६-४३). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जीओ सासयठाणं, गाथा-१०४. वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसार असारमाहि नथी; अंति: जीव सास्वतुं ठाम. ५५१९६. (+) नयचक्र बालावबोध, नयकर्णिका व सप्तनयस्वरूप विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १८४५०-५३). १. पे. नाम. सप्तनय विचार का बालावबोध, पृ. १आ-८अ, संपूर्ण. नयचक्र-भाषावचनिका का बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: (१)स्यात्कारमुद्रिता, (२)अनंत धर्मात्मक वस्तु; अंति: (१)मतिच० परोपकृतिहेतवे, (२)मत अनुकूल हुस्यै. २. पे. नाम. नयकर्णिका, पृ. ८आ, संपूर्ण. उपा. विनयविजय, सं., पद्य, वि. १७उ, आदि: वर्द्धमानं स्तुमः; अंति: सिंहगुरोश्चतुष्ट्यै, श्लोक-२३. ३. पे. नाम. सप्तनयस्वरूप विचार, पृ. ८आ, संपूर्ण. नयस्वरूप विचार, सं., पद्य, आदि: शुद्धं द्रव्यं समा; अंति: नत्वादेवभूतभिमन्यते, श्लोक-९. ५५१९७. (+#) संग्रहणीसूत्र, अपूर्ण, वि. १७६१, वैशाख कृष्ण, ३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(१)=८, ले.स्थल. जपुर, प्रले. मु. रामचंद्र (गुरु पं. उद्धव ऋषि); गुपि.पं. उद्धव ऋषि (गुरु आ. सुखमल्लजी); आ. सुखमल्लजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (६४५) यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा, जैदे., (२६४१२, १८४३९). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३९२, (पू.वि. गाथा-४१ से है.) ५५१९८. सिंदूरप्रकर, संपूर्ण, वि. १७९५, बाणांगपारावारकुमुदबांधव, वैशाख शुक्ल, ९, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. कर्मवाटी, प्रले. मु. रामचंद्र (गुरु पं. उद्धव ऋषि); गुपि.पं. उद्धव ऋषि (गुरु आ. सुखमल्लजी); आ. सुखमल्लजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३६-३९). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सूक्तमुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक-९५. ५५१९९. (+#) पिंडविशुद्धि प्रकरण, द्विदल विचार व २१ प्रकार के पानी, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १९४३४-३८). १. पे. नाम. पिंडविशुद्धि प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-८आ, संपूर्ण. पिंडविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: देविंदविंदवंदिय पयार; अंति: जिणवल्लहे० सोहिंतु अ, गाथा-१०३. पिंडविशुद्धि प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: देव भुवनपति इंद्र; अंति: सोधउ निर्दोष करूं. २. पे. नाम. द्विदल विचार सह टबार्थ, पृ. ८आ, संपूर्ण. द्विदल विचार, प्रा., पद्य, आदि: जं मिओ पिल्लिजते; अंति: नेहजुयं होइ तं विदलं, गाथा-१. द्विदल विचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जीणइ पीलीइकुंतइ चोपड; अंति: ते विदल कठउल न कहीयइ. ३. पे. नाम. इकीस प्रकार के पानी सह टबार्थ, पृ. ८आ, संपूर्ण. २१ प्रकार के पानी, प्रा., पद्य, आदि: उस्सेइम १ संसेइम २; अंति: वरिससिरे वासासुजलं०, गाथा-२. २१ प्रकार के पानी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पीठा हाथ भरीया धोई; अंति: पूठई सचित्त जाणिवउं. ५५२००. (+#) शीलोपदेशमाला-शीलतरंगिणी वृत्तिगत सीताप्रबंध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्ट, जैदे., (२६४११, १६x४८). For Private and Personal Use Only Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ शीलोपदेशमाला-शीलतरंगिणी वृत्ति-हिस्सा सीतासती चरित्र, आ. सोमतिलकसूरि, सं., गद्य, आदि: (१)तिहुयणपहुणाविहु रावण, (२)त्रिभुवनप्रभुणापि जग; अंति: रामोपि शिवं समेत, श्लोक-३१६. ५५२०१. (#) प्रतिक्रमणसूत्र, चउक्कसायसूत्र व १४ नियमगाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०, १०४३७). १. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १आ-८आ, संपूर्ण. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: जिनदत्तसूरिः. २. पे. नाम. चउक्कसायसूत्र, पृ. ८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: चउक्कसायपडिमलुल्लरण; अंति: पासु पयच्छउ वंछिउ, गाथा-२. ३. पे. नाम. १४ नियम गाथा, पृ. ८आ, संपूर्ण. श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सचित्त१ दव्वर विगइ३; अंति: न्हाण१३ भक्तिसु१४, गाथा-१. ५५२०२. (+) अनुत्तरोपपातिकसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. सीरोहीनगर, प्रले. मु. हेमविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४३६). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० नवमस्स; अंति: जहा धम्मकहा णेयव्वा, अध्याय-३३, ग्रं. १९२. अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: अथानुत्तरौपपातिकदशा; अंति: शेषमंतकृद्दशांगवदिति, वर्ग-३. ५५२०३. (+) साधुप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ११४३१). साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: खमामि सव्वस्स अहयंपि. ५५२०५. (+) साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, ५४३७). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि पडिक्कमिउ; अंति: (-), (पू.वि. सूत्र २५ अपूर्ण तक है.) पगामसज्झायसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वांछउवाकउ आचरिवा थकी; अंति: (-). ५५२०६. (+#) साधुवंदना, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-३(१,४,७)=७, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११, १३४३९). साधुवंदना, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पाठांश नहीं है.) ५५२०८. (#) संबोधसप्ततिका सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७९९, मध्यम, पृ. ९-२(१ से २)=७, ले.स्थल. जगत्तारणी, प्रले. मु. विजयमुनि (गुरु ग. विनयविजय); गुपि.ग. विनयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४४०). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: सोलहई नत्थि संदेहो, गाथा-८०, (पू.वि. गाथा १५ से है.) संबोधसप्ततिका-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: पामै इहां संदेह नही. ५५२११. (+) विक्रमादित्य चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४४३). विक्रमादित्य चौपाई, मु. हर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सदा फल गुण भंडार; अंति: हर्ष० सिरिपालइ आण, गाथा-२०२. ५५२१३. (+) अषाढाभूतिचौपाई, संपूर्ण, वि. १७६८, माघ शुक्ल, ११, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ.७, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. पं. राजसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ३५१, प्र.ले.श्लो. (१००२) जलात् ख्येत् स्थलारक्षेत्, जैदे., (२५.५४११, १७४४९). आषाढाभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: सकल ऋद्धि समृद्धिकर; अंति: होज्यो इम कल्याणो रे, ढाल-१६, गाथा-२१८, ग्रं. ३५१. For Private and Personal Use Only Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९.) ४२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५५२१४. (+) जिन स्तवन द्वाविंशतिम्, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. सत्यपुर, प्रले. श्राव. खेमचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, १५४४०). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: ऋषभ जिनेसर प्रीतम; अंति: आनंदघन पदराज, (प्रतिपूर्ण, पू.वि. नेमिजिन स्तवन तक लिखा है.) ५५२१६. (+#) नारचंद्रज्योतिष, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २७-२०(१ से १९,२५)=७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १२४३१). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक२५१ अपूर्ण से श्लोक ३७८ तक है.) ५५२१७. (+) शजय रास, संपूर्ण, वि. १८०७, श्रावण कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. मु. मयानंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४२५). शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंति: ए सुणतां आणंद थाय, ढाल-६, गाथा-१०९. ५५२१८. (+#) वसुधारा स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(१)=६, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३३). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति, (पू.वि. अपुत्राश्चसत्वा बहुत्रा भवेयु पाठ से आगे है.) ५५२१९. (+#) स्तवनचोवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-४(१,५ से ६,९)=६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०.५, १०४४४). स्तवनचौवीसी, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: मानविजय नितु ध्यावे, स्तवन-२४, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., अजितजिन स्तवन अपूर्ण से सुपार्श्वजिन स्तवन अपूर्ण तक व अनन्तजिन स्तवन अपूर्ण से नमिजिन स्तवन अपूर्ण तक व महावीरजिन स्तवन अपूर्ण तक है.) ५५२२०. (+) दशाश्रुतस्कंधसूत्र सहटबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ७-१(४)=६, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, ६x४४). दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: (-), त्रुटक. दशाश्रुतस्कंधसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार थावो अरिहंत; अंति: (-), त्रुटक. ५५२२२. चतु:शरणप्रकीर्णक सह बालावबोध व आदिजिन स्तवन सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(१)=६, कुल पे. २, जैदे., (२६४१०.५, १७४६०). १. पे. नाम. चउशरणपइन्नं सह बालावबोध, पृ. २अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३, (पू.वि. गाथा १४ अपूर्ण से है.) चतुःशरण प्रकीर्णक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सुखनुं दैणहार छै. २. पे. नाम. आदिजिनविनती स्तवन सह बालावबोध, पृ. ५आ-७अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित, ग. विजयतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलु पणमिअ देव; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १४ तक लिखा है.) । आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: धुरि नमस्करी देव; अंति: (-), ___ अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ५५२२३. (+#) पुराणहुंडी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ७४३७). पुराणहुंडी, सं., पद्य, आदि: श्रूयतां धर्मः; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक ७२ तक है.) पुराणहुंडी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: धर्म सघलाइ सांभलीइ; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५५२२५. (+१) आदित्यवार व्रतकथा, संपूर्ण वि. १८६१ श्रावण कृष्ण, १ शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल, पंचपाठ, प्रले. मु. किशोरचंद्र ऋषि, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X११, ११४३१). आदित्यवार व्रतकथा, मु. उत्तमविजय, मा.गु, पद्य, वि. १८५७, आदि: प्रथम नमु ते श्रीपार, अंतिः सीस उत्तम गुण गाय, गाथा- ७३. 1 ५५२२६. नयचक्रसार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२५.५X११, १५X४०). नयचक्रसार, ग. देवचंद्र, सं., गद्य, वि. १८वी, आदि: गुणानां विस्तर, अंति: यथा जीवस्य शरीरमिति. ५५२२७. (+) रामरसरसायण, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११४-१०८ (१ से १०८) = ६ प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६४११, १४-१६X५०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रामयशोरसायन चौपाई, मु. केशराज, मा.गु., पद्य, वि. १६८३, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., सीता हरण अपूर्ण से हनुमान मिलन का प्रसंग अपूर्ण तक है.) ५५२२९. (#) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टीकादि का अं नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X१०.५, ६x४५). "9 पंचप्रतिक्रमणसूत्र - खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा. सं., प+ग, आदिः णमो अरिहंताणं० जवड, अंतिः (-) (पू.वि. श्रुतदेवी स्तुति तक पाठ है.) पंचप्रतिक्रमणसूत्र - खरतरगच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: माहरउ नमस्कार अरिहंत, अंति: (-). ५५२३० (+) चारित्र के ५ भेद के ३६ स्थान यंत्र, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ५, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६४११.५, २०X३३-६८). चारित्र के ५ भेद के ३६ द्वार यंत्र, संबद्ध, मा.गु., को., आदि: पनवणा १ वेद २ रागे ३; अंति: संख्यातगुणा ३. ५५२३१. (4) दशवैकालीकसूत्र सह वालावबोध, त्रुटक, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६-११(१ से २४ से ५,७ से ८,१० से १२,१४ से १५)=५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६X१२, ४x२५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि (-); अति (-). दशवैकालिकसूत्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५५२३२. (+#) दुरिअरयसमीर सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४ - ९ (१ से २९) = ५, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ क खंडित है, जैदे., (२६X११, १५X४२). दुरिअरयसमीर स्तोत्र - वृत्ति, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा २४ से गाथा ३५ तक है.) ५५२३५. (+) लेश्याद्वार व चौदगुणस्थानक पचीसद्वार, संपूर्ण, वि. १८८०, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५X११, २१४५५). १. पे. नाम. लेश्याद्वार विचार, पृ. १अ २अ संपूर्ण. लेश्या ११ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नाम १ वर्ण २ रस ३; अंति: परम शुक्ल लेशाः. २. पे. नाम. चौदगुणस्थानक पच्चीसद्वार, पृ. २अ -५ आ, संपूर्ण. ४२५ १४ गुणस्थानक २५ द्वार, मा.गु., गद्य, आदि: नामदुवार १ लखणदुवार, अंति: अनंतगुणा नीगोद जीव. ५५२३६. (+#) मानतुंगमानवती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १० -५ (१ से २, ५ से ७) = ५, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., ( २४.५X११.५, १४X३३). For Private and Personal Use Only मानतुंगमानवती रास - मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल २ दुहा १ से ढाल ६ गाथा ९ अपूर्ण तक व ढाल १० गाथा १ से ढाल १३ गाथा ७ अपूर्ण तक है.) ५५२३७. (+) आठ कर्म १५८ प्रकृति विचार, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५. प्र. वि. संशोधित. जैवे. (२५४१२, १३३७). Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि : आठ कर्म ते केहा; अंति: विषइ उद्यम करिव ५५२३८. (+) दंडक प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७५८, फाल्गुन कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. पं. उद्धव ऋषि (गुरु आ. सुखमल्लजी); गुपि. आ. सुखमल्लजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., प्र.ले. श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, जै.., (२६X११.५, ५X४० ). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पथ, वि. १५७९, आदिः नमिठं चठवीसजिणे तस्स अंति: गयसारेण० अप्पहिया, गाथा- ३८, संपूर्ण दंडक प्रकरण - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने चउवीस; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा १० तक का टबार्थ लिखा है.) ५५२३९. (+) दशवैकालिकसूत्र गीत, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित. दे. (२५x११, ११४३३). दशवैकालिकसूत्र - सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु. पद्य वि. १७१७, आदि: धर्ममंगल महिमा निलो अंति: (-), (पू.वि. ढाल १० गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ५५२४० (४) स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण वि. १७२३-१८४१ मध्यम, पृ. ६१, कुल पे. ५२, ले. स्थल, टुकरवाड (कुशल र प्रले. मु. राजकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५४११.५, ९x१९). १. पे नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ २अ संपूर्ण, " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दानशीलतपभावना सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु, पद्य, आदि: सरसति सामिणी विनवं अंति: लावण्य० प्रमाण रे, गाथा- ९. २. पे. नाम औपदेशिक सज्झाच, पृ. २अ ३अ संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय- निंदात्यागविषये, मा.गु., पद्य, आदि: मकर हो जीव परतात; अंति: एह हित सीख माने, गाथा - ९. ३. पे. नाम. अनंतजिन स्तवन, पृ. ३अ ४अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: धार तरुआरनि सोहेली; अंति: आनंदघन राज पावे, गाथा- ७. ४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ४-४आ, संपूर्ण. मु. विनय, पुहिं., पद्य, आदि: किसके चेले किसके; अंतिः विनय० दिलमा निलो हा, गाथा- ७. ५. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. मु. लाभसागर, पुहिं., पद्य, आदि: क्युं न भए हम मोर, अंतिः लाभ० जनम जरा नहीं उर गाथा ५. ६. पे. नाम. शत्रुंजय स्तवन, पृ. ५अ- ६आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन- शत्रुंजयतीर्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: लाहो लीज्यो रे लाहो, अंतिः नयनविमल० ध्याने रहियो, गाथा- ६. ७. पे. नाम औपदेशिक पद, पू. ६ आ-७अ संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मारुजी हो फूल कुमर अंतिः अटक सदारी सोक जाइ, गाथा ५. ८. पे. नाम औपदेशिक पद पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण पुहिं, पद्म, आदि: सजन गमन किये मिलन; अंतिः जे काटतो नहुवे आपे, गाथा- ७. ९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. श्रीचंद, पुहिं. पद्य वि. १७२२, आदि: अमल कमल जिम धवल, अंति: जिनचंद ० " 3 फल सहु आस, गाथा- ९. १०. पे. नाम. शांति स्तव, पृ. ८- ९अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. मेघविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सांत महारस सागरू सेव, अंति: मेघ समो कहेवाय हो, गाथा ५. For Private and Personal Use Only Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ११. पे. नाम. चैत्यवंदना, पृ. ९अ- ११आ, संपूर्ण, वि. १७२३, वैशाख कृष्ण, ५, बुधवार, ले. स्थल. सीरोही नगर, प्रा. पं. महिमारुचि गणि अन्य मु. सुंदरकुशल पं. सुखकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, पे. वि. प्रत देखने से १९वी शताब्दी की प्रतीत होती है, किन्तु प्रत में प्रतिलेखन वर्ष विक्रम १७२३ दिया गया है, जो उस वर्ष में लिखित प्रत पर से प्रतिलिपि जाने की संभावना है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४ जिन स्तवन, मु. खेमो ऋषि, मा.गु, पद्य, आदि: पहिला प्रणमं प्रथम, अंतिः खेमौ० पामै सुख अनंत, गाथा-८. १२. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १९आ - १२आ, संपूर्ण. मु. खोडीदास ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि धीरज तात क्षमा जननी, अंतिः खड्गे तापिहि ते शिव, गाथा - ३. १३. पे नाम, नेमराजिमती बारामासी, पृ. १२ आ. १४आ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासो, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावणमासे स्वामि; अंति: कवियण० निधी पांमिरे, गाथा - १३. १४. पे. नाम. नेमराजिमती बारामासी, पृ. १४आ- १५आ, संपूर्ण. राजिमती बारमासो, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: बैसाखै बन मोरीया मोर; अंति: जिनहरखे० मुगति आवास, ४२७ गाथा-१४. १५. पे, नाम, इग्यारसि तवन, पृ. १५आ- १९आ, संपूर्ण वि. १८४९, भाद्रपद कृष्ण, १४, ले, स्थल, टुंकरवाड, प्रले. मु. राजकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य. मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणमी पूछे वीरने; अंति: जिनेंद्र०भवियण सादरे, ढाल - ३, गाथा - २८. १६. पे. नाम. गोडी पार्श्वजिन सतवन, पृ. १९आ-२२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी मंडन, मु. ज्ञानकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७१२, आदि: कल्याणांबुज बोधने, अंति ज्ञानकुशल० दिन फली आस, गावा- १९. १७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २२आ- २३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र - जीरापल्लि, सं., पद्य, आदि: नत्वा प्रभुपार्श्व; अंतिः प्रणमेय विभुर्सततं, श्लोक - ७. १८. पे नाम, संखेश्वर प्रभु स्तवन, पृ. २३-२४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मानो मानो मानो रे; अंति: मोहन० करी जाणो रे, गाथा - १०, (वि. प्रतिलेखक ने एक पद को दो पदो में लिखा है.) १९. पे नाम मुनिसुव्रतजिन स्तवन, पृ. २४-२५अ, संपूर्ण. मु. , रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मुनिसुव्रतशुं मोहनी, अंति: राम कहै शुभ सीस हो, गाथा - ५. २०. पे. नाम. शेडुंजाजीरो स्तवन, पृ. २५ अ-२६अ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु, पद्य, आदि: सेनुगिरना वासीरे अंति: उदयरतन० दुख भांजसी रे, गाथा-५. , २१. पे. नाम. शत्रुंजयगीरनार स्तवन, पृ. २६अ - २६आ, संपूर्ण. गिरनारशत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारो सोरठ देश देखाओ, अंतिः नयविमल० सिर धरिया, गाथा- ७. २२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २६आ- २८अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: तुम हो बहु उपगारी; अंति: ज्ञान० मे बलिहारी, गाथा-६. २५. पे. नाम. अजितजिन स्तवन. प्र. ३३२-३३आ, संपूर्ण. मु. कविराज, मा.गु., पद्य, आवि: आज अरदास निजदास जाणी, अतिः कविराज० रमणी सहेली, गाथा - ७. २३. पे, नाम, बंधणवाडिजिन स्तवन, पृ. २८अ- ३२अ संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन- बामणवाडजी, मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: समरवि समरथ सारदा; अंतिः श्रीकमलकलससूरीसर सीस, गाथा-२१. २४. पे नाम, सुमतिजिन स्तवन, पृ. ३२-३३अ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: तुमसुं प्रीत बंधाणी; अंति: शिवसुख रयणना खाणी, गाथा-५. २६. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ३३आ-३४अ, संपूर्ण. मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अतुलबल अरिहंतजी शिवद; अंति: भावसागर० अति श्रीकार, गाथा-५. २७. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. ३४अ-३४आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: इणि रेडुंगरीई; अंति: नयविमल० भव पार उतारो, गाथा-६. २८. पे. नाम. शंखेश्वर पास स्तवन, पृ. ३४आ-३५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७८०, आदि: पासजी प्रणमु तोरा रे; अंति: उदयरतन०तोसुं लगन लगी, गाथा-९. २९. पे. नाम. रहनेमि स्वाध्याय, पृ. ३५आ-३८अ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, म. ऋद्धिहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: देखी मन देवर का; अंति: ऋद्धिहर्ष कहे एम, गाथा-२०. ३०. पे. नाम. सुवधिजिन स्तवन, पृ. ३८अ-३८आ, संपूर्ण. सुविधिजिन स्तवन, मु. सुमतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी प्रीतम प्राण; अंति: सुमतिकुशल गुण गाय, गाथा-६. ३१. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. ३८आ-३९आ, संपूर्ण. मु. सुमतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी श्रीशीतलजिन; अंति: सुमतिकुशल०मन अति घणो, गाथा-७. ३२. पे. नाम. श्रेयांसजिन स्तवन, पृ. ३९आ-४०आ, संपूर्ण. मु. सुमतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेयांस जिणेशरु; अंति: सुमतिकुशल० गुणगाय के, गाथा-६. ३३. पे. नाम. मुनिसुव्रतजिन स्तवन, पृ. ४०आ-४१आ, संपूर्ण. मु. सुमतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिसुव्रत जिन वीनति; अंति: करज्यो प्रतिपाल के, गाथा-७. ३४. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. ४१आ-४२आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुरासुर सेवित; अंति: राम० सुख सदाजी, गाथा-५. ३५. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४२आ-४३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लाखीणो सोहावें जिनजी; अंति: दीपविजय०बंदु बिजयहीर, गाथा-७, (वि. प्रतिलेखक ने दो-दो गाथाओं को एक गिना है.) ३६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४३आ-४४अ, संपूर्ण. मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: या सुंदर मुरति पासकी; अंति: हरषचंद गुण गातरी, गाथा-५. ३७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४४अ-४४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, श्राव. बनारसीदास, पुहि., पद्य, आदि: चिंतामणिस्वामी सच्चा; अंति: करे बनारसी बंदा तेरा, गाथा-४. ३८. पे. नाम. रामायन अष्टपदी, पृ. ४४आ-४५अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: विराजै रामायन घटमा; अंति: निहचै केवल राम, गाथा-८. ३९. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ४५आ-४६अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-जन्मबधाई, मा.गु., पद्य, आदि: आज तो बधाइ राजा नाभि; अंति: आदिसर दियालरे, गाथा-६. ४०. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. ४६अ-४६आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. सिंहकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेशर वीनती; अंति: सिंहकुशल सफली थाय के, गाथा-४. ४१. पे. नाम. रहनेमि सज्झाय, पृ. ४६आ-४७आ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: छेडोनाजी३ देवरिया; अंति: ज्ञानविमल गुण माला, गाथा-५. ४२.पे. नाम. नंदिषेणऋषि स्वाध्याय, पृ. ४७आ-४९अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि राजगही नगरीनो वासी, अंति: मेरुविजय० न तोले हो, ढाल -३, गाथा - १६. ४३. पे नाम, नंदिषेण स्वाध्याय, पृ. ४९अ ४९आ, संपूर्ण नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदिः रहो रहो रहो वालहा; अंति: रुपविजय जयकार, गाथा-५. ४४. पे. नाम. चेलणारी सज्झाय, पृ. ४९आ - ५०आ, संपूर्ण. वेणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि वीर वखाणी राणी चेलना, अंतिः समयसुंदर० भवतणो पार, गाथा -६. ४५. पे. नाम. कुमति सज्झाय, पृ. ५० आ-५१अ, संपूर्ण पंचमहाव्रत सज्झाय, उपा. सकलचंदजी, मा.गु, पद्य, आदि; पंच महाव्रत तणो रे, अंतिः महीर कांइ ताणइ रे, गाथा-५. ४६. पे. नाम. पच्चखाण सज्झाय, पृ. ५१ अ -५२आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यान सज्झाय-दुविहार, मु. मानविजय, मा.गु., पद्म, आदि पहिलु प्रणमु सरस्वती अंतिः मान० दीपड तपगच्छ नाह, गाथा - १६. ४७. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ५३अ - ५६अ, संपूर्ण. मु. दयानंद, मा.गु, पद्य, आदि: अणसमज्यां दिलमें अंतिः दवानंद० सेवक छांजी, गाथा २९. ४८. पे. नाम. कर्मोपरि सज्झाय, पृ. ५६-५६आ, संपूर्ण. कर्म सज्झाय, मु. दान, मा.गु., पद्य, आदिः सुखदुःख सिरज्या पामी, अंति: दान० सदा सुखकार रे, गाथा-८. ४९. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. ५७-५८ अ, संपूर्ण. मु. सुमतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सेनादेना जाया हो मनि, अंतिः सुमतिकुशल गुण गाव, गाथा - ६. ५०. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. ५८-५९आ, संपूर्ण. मु. सुमतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: प्यारा प्रभु अभिनंदन; अंति: सुमति० सुजस लहे घणा, गाथा - ११. ५१. पे नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ५९ आ-६०अ, संपूर्ण, वि. १८४१ कार्तिक कृष्ण, ७. वा. उदयविजय, मा.गु, पद्य, आदि पशु पुकार सुण्या अंतिः उदय० मिलस्ये नयणां, गाथा ६. ५२. पे. नाम. वयरसूरी स्वाध्याय पू. ६० आ-६१आ, संपूर्ण 3 वज्रस्वामी सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गणधर दश पूरवधर सुंदर; अंति: ऋद्धिविजय प्रभु वंदा, ४२९ गाथा - १३. ५५२४१. (+) सूत्रकृतांगसूत्र व नियुक्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५७-१ (१) ५६ कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित - अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. जैवे. (२५.५४११, १५४४२). १. पे. नाम. सूत्रकृतांगसूत्र, पृ. २अ -५२आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है . आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: विहरति त्ति बेमि, अध्याय- २३, ग्रं. २१००, ( पू. वि. प्रथम श्रुतस्कंध प्रथम अध्ययन गाथा १८ से है.) २. पे. नाम. सूत्रकृतांगसूत्रनिर्युक्ति, पृ. ५२आ-५७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सूत्रकृतांगसूत्र- निर्युक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: तित्खकरे व जिणवरे, अंति: (-). (पू.वि. द्वितीय श्रुतस्कंध अध्ययन ३ अपूर्ण तक है.) ५५२४३. (#) सूआबहुत्तरीवार्ता, संपूर्ण, वि. १७६२, आश्विन कृष्ण, १०, शनिवार, मध्यम, पृ. ४७, ले. स्थल. दुर्ग, प्रले. पं. रूपचंद्र ( अज्ञा. मु. भक्तिविशाल): गुपि मु. भक्तिविशाल, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १३x४२). For Private and Personal Use Only शुकबहोत्तरी, मा.गु., गद्य, आदि: करि प्रणाम श्रीसारदा; अंति: समझता हिवै सर्व समझै. ५५२४४. (#) लीलावती की भाषा व चौगुणोत्तर विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६४११.५. १३४३०). Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir x30 कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. लीलावती की भाषा, पृ. १अ-१६अ, संपूर्ण. लीलावती-भाषानुवाद, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: सोभित सिंदूर पुर; अंति: ऐ वरतो जनसुख काज, अध्याय-१६, गाथा-७०७. २. पे. नाम. चौगुणोत्तर विधि, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. लीलावती-भाषानुवाद का संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: थानकमां है हान इक; अंति: (-). ५५२४५. (+) श्रेणिक चरित्र सर्ग-१ से ८, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८-१(३६)=३७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १४४४१). श्रेणिक चरित्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३३५, आदि: सिद्धोवर्णसमाम्नायः; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सर्ग ९ श्लोक १३ तक लिखा है.) ५५२४६. (+) उपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५, पठ. मु. दर्शनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६४११, ९४३८). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५४४. ५५२४८. (+#) श्रीपालनृपचौपाई, संपूर्ण, वि. १८११, पौष शुक्ल, १४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३२, प्रले. पं. माणकविजय (गुरु पं. लब्धिविजय); गुपि.पं. लब्धिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १४४४५). श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: सकल सुरासुर जेहना; अंति: न्यान० चक्र आराधो, ढाल-४०, गाथा-७५६, ग्रं. ११३१. ५५२४९. (+) सामुद्रिकशास्त्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७-८(२६ से २७,३० से ३५)=२९, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, ११४३८). सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदि: आदिदेवं प्रणम्यादौ; अंति: (-), त्रुटक. सामुद्रिकशास्त्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: पुरुष स्त्रीनां; अंति: (-), त्रुटक. ५५२५०. (+#) मुनिपति रास, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४३५-४२). मुनिपति चौपाई, मु. सिंहकुल, मा.गु., पद्य, वि. १५५०, आदि: गोयम गणहर गोयम गणहर; अंति: सुणतां हर्ष अपार, ढाल-२७, गाथा-६०६. ५५२५२. (+#) स्तवन, सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २७-१(१)=२६, कुल पे. २४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १७४३२-३६). १.पे. नाम. बंभणवाडि महावीर स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन स्तवन-बामणवाड, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: लालमोहन प्रभु वीरजी, गाथा-१४, (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. जावर शांतिजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन-जावर, मु. भानुचंद शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: शुभ सुख सारद दाइला; अंति: भाणुसीस०मेरे सांइरे, गाथा-७. ३. पे. नाम. पार्श्वफलवर्द्धि स्तवन, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. सुमतिचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १६८५, आदि: गजगति गामिनि सारदा; अंति: सुमतिचंद सुहकरु, गाथा-१६. ४. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. सुमतिचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७०२, आदि: ओलगडि ओलगडि अवधारे; अंति: शांति समति सुखकार, गाथा-९. ५. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. ३-४अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ग. अमीचंद, मा.गु. पच, आदि: सुमतिजिणंद जुहारी अंतिः कहई अमीचंद ललना, गाथा- ११. ६. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ४अ ५अ, संपूर्ण. ग. अमीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: संतिसर अलवेसर नयणा, अंतिः शांतिजिणंदनई ए किं, गाथा - १३. ७. पे. नाम, नेमिजिन स्तवन प्र. ५ अ-५आ, संपूर्ण. ग. अमीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: कहें सखी प्रीतम; अंति: विनय नमई अमीचंद हो, गाथा - १४. ८. पे. नाम. चिंतामणि पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५आ - ६अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, ग. अमीचंद, मा.गु, पद्य, आदि: श्रीमति सुखकर पास, अंति: अमीचंद० जपें निसविस, गाथा - १३. ९. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण, औपदेशिक छंद, पंडित लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., पद्य, आदि: भगवति भारति चरणन, अंतिः रंग धरज्यो मनि चोल, गाथा - १६. १०. पे. नाम. उपसम सज्झाय, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. उपशम सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि भयभंजन रंजन जगदेव, अंति: गर्भवासि० नही अवतार, गाया- १२. ११. पे. नाम. गुरु स्वाध्याय, पृ. ७अ-८आ, संपूर्ण. गुरु सज्झाय, ग. मानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सयल मनोरथ पूरवा; अंति: मानसागर० गुरु सीस, गाथा- १६. १२. पे. नाम. चतुर्दशगुणथानक बंधउदयउदीरणा सत्ताकमंप्रकृति विचारगर्भित महावीरजिन स्तवन, पृ. ८आ-१३आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन- १४स्थानक गुणगर्भित, आ. समरचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः सवल गुणनिधि० वीरजिन, अंति समरचंद्र० शिवरमणि वरई, गाथा ५३. १३. पे. नाम. चउदगुणठाणा सज्झाय, पृ. १३-१४आ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक सज्झाय, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु, पद्य, आदि: जिणवर पय वंदीय मन; अंतिः पासचंद० आण शिवसुख लहै, गाथा - ३३. १४. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १४-१५आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन- कुमरगिरिमंडण, ग. हर्षरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १५६३, आदि संपय सुह कारण दुरिअ अंतिः हरखइं० सेवकनी आसे, गाथा-३०. ४३१ १५. पे नाम. सती सज्झाय, पू. १५आ-१७अ संपूर्ण मु. भानु, मा.गु. पच, आदि: प्रथम नमुं ते सारद, अंतिः भानो बोलि० मुझनें छोड, गाथा-४५. १६. पे. नाम. ऋषभ स्तवन, पृ. १७अ १७आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन- शत्रुंजयतीर्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: लाहो लेज्यो रे लाहो, अंतिः नयनविमल० ध्याने रहियो, गाथा- ७. For Private and Personal Use Only १७. पे. नाम. आदिनाथ गीत, पृ. १७-१८अ संपूर्ण आदिजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि मन मधुकर मोही रह्यो, अंति: जिनराज० कर जोडि रे, गाथा-५. १८. पे. नाम. विहरमानबाहू गीत, पृ. १८ अ, संपूर्ण. बाहुजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: बाहु समापउ बाहुजी, अंति: जीवी जड़ जिनराज रे, गाथा-५. १९. पे. नाम. लुंकामत सिद्धांतविचार, पृ. १८ अ-२१आ, संपूर्ण. लुंकामतीय प्रश्नबोल, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीडवाईसूत्रमांहि अंति: (१) तो गृहस्थ किम भणई, (२)तो केहूं ज्ञान कहीइ. २०. पे. नाम. छबीस द्वार गर्भित वीनती श्री महावीरजिन स्तवन, पृ. २१आ - २५अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन- २४ दंडक २६ द्वारगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः सुखकर स्वामी जिन; अंतिः श्रीपासचंद० अविचल ठाइ, गाथा- ९१. प्र. १६२. Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २१. पे. नाम. शनिश्वर कथा, पृ. २५अ-२६आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: उजेणीनगरीइं विक्रम; अंति: शनीसर पीडा करि नही. २२. पे. नाम. नेमजिन बारमासा, पृ. २६आ-२७अ, संपूर्ण. नेमिजिन बारमासो, पुहिं., पद्य, आदि: अब सखी आयो है श्रावण; अंति: सुख विलसइं आणंदा, गाथा-१३. २३. पे. नाम. मन मधुकर पद, पृ. २७अ-२७आ, संपूर्ण. मु. सिद्धिचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: मेरे मन मधुकर सुंदर; अंति: सिद्धिचंद्र० मन लाई, गाथा-४. २४. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. २७आ, संपूर्ण. ग. अमीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिणंदा अति; अंति: अमीचंद० पद ए देवाजी, गाथा-४. ५५२५३. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १७९४, फाल्गुन कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. १२४-९८(१ से ९८)=२६, प्रले. मु. बुद्धविजय (गुरु पं. मोहनविजय गणि); गुपि.पं. मोहनविजय गणि (गुरु पं. सुमतिविजय गणि); पं. सुमतिविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ५०००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ६-१८४४०-५०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: अज्झयणं सम्मत्तं, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६, (पू.वि. स्थविरावली के आर्य प्रभवस्वामी के पाठ से है.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मनोवाक्य शुद्धतत्. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: शासन बाहिर करिवो. ५५२५५. (+#) वाग्भट्टालंकार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १०x२२-३०). वाग्भटालंकार, जै.क. वाग्भट्ट, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: श्रियं दिशतु; अंति: (-), (पू.वि. परिच्छेद-४ का श्लोक-९४ __ अपूर्ण तक है.) ५५२५६. (+#) स्तवन, सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८९९, चैत्र अधिकमास कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. २४-३(९,१५,२२)+१(१४)=२२, कुल पे. १४, प्रले. सुखराम; पठ. श्राव. अमरचंद मोती; अन्य. पं. गुमानविजय; पं. रूपविजय; पं. भावविजय; पं. गंगविजय; पं. विनयविजय गणि; पं. माणिक्यविजय; पं. व्रद्धविजय, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, ११-१३४२५). १. पे. नाम. पंचमतप स्तवन, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण, प्रले. मु. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. कांतिसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरुचरणे नमी करी; अंति: कांतिसुंदर० गुण गाता, ढाल-५. २. पे. नाम. नवकार छंद, पृ. ५अ-६आ, संपूर्ण, प्रले. मु. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछित पूरे विविध; अंति: कुशललाभ० वंछित लहे, गाथा-१८. ३. पे. नाम. मायानी सीझाय, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, महमद, मा.गु., पद्य, आदि: कुंभ काचो काया कारमी; अंति: वाणीओ संबल लेजो शाथ, गाथा-९. ४. पे. नाम. मायानी सीज्झाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, मु. गंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: माया कारमी रे माया; अंति: स्वामी गंगवजे गुणगाय, गाथा-१०. ५. पे. नाम. इग्यारस स्तवन, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समवसरण बैठा भगवंत धर; अंति: समयसुंदर०कहु द्याहडी, गाथा-१२. ६. पे. नाम. चैत्यवंदन, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ जगचिंतामणि सूत्र, संबद्ध, आ. गौतमस्वामी गणधर, प्रा., प+ग., आदि: जगचिंतामणी जगनाह; अंति: जिणइ ताइ वाइ वंदामी, गाथा-७. ७. पे. नाम. १४ स्वप्न स्तवन, पृ. ८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम रावण दीठो नयणे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ८. पे. नाम. पजुसननी थोय, पृ. १०अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (१)श्रीलालविजे हितकरणी, (२)श्रीसंघ विघन ___निवारी, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) ९. पे. नाम. पजुसननी थोय, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परव पजुषण पुण्ये; अंति: सुभविजे० विद्धाई जी, गाथा-४. १०. पे. नाम. यादीनाथ स्तवन, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवाल हो; अंति: जसविजे० पोष लाल रे, गाथा-५. ११. पे. नाम. सीतलनाथ स्तवन, पृ. ११अ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन, म. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सीतलजिन सहेजानंदी; अंति: जीनवीजयानंद गावे, गाथा-५. १२. पे. नाम. दानसीयलतपभावनो रास, पृ. ११अ-१४आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., पठ. श्राव. अमरचंद मोती, प्र.ले.पु. सामान्य. दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जणेसर पाय नमी; अंति: समयसुंदर० सुवृद्ध रे, ढाल-४, गाथा-१०१, (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से ३४ अपूर्ण तक नहीं है.) १३. पे. नाम. झांझरीयानी सीझाय, पृ. १६आ-२०अ, संपूर्ण. झांझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: सती चरणे सीस नमावी; अंति: महिमा० सहु वंद रे, ढाल-४, गाथा-४३. १४. पे. नाम. आषाढाभुतनी सीझाय, पृ. २०अ-२४आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. आषाढाभूतिमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दरसन परिसह बाविसमो; अंति: मकितमा द्रढता लहो रे, ढाल-५, (पू.वि. ढाल-२ की गाथा-७ अपूर्ण से ढाल-४ की गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ५५२५८. (+#) दशवैकालिकसूत्र अध्ययन १-४ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६१, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, गुरुवार, मध्यम, पृ. २४, लिख. श्राव. वीरजी साह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ४४२७). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: जिनधर्म उत्कृष्ट; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५५२५९. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६३-१३९(१ से १३९)=२४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ५४२७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मात्र स्थविरावली आर्य वयरस्वामी के चरित्र से है.) कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५५२६०. (#) सम्यक्त्व सत्तरी सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. त्रिपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, २४४०). सम्यक्त्वसप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दसणसुधि पयासं तित्थ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२० तक है.) सम्यक्त्वसप्ततिका-सम्यक्त्वरत्नप्रकाश बालावबोध कथा, उपा. रत्नचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १६७६, आदि: नत्वा श्रीपार्श्वमर; अंति: (-). ५५२६२. (+#) नलदवदंती चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. १३०५, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १७४४८). For Private and Personal Use Only Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: सीमंधरस्वामी प्रमुख, अंतिः समयसुदर० सचितवी, खंड-६, गाथा - ९३१, (वि. ढाल ३९ ) । ५५२६३. (+) वरदत्तगुणमंजरी चौपाई, संपूर्ण वि. १७९५, श्रवण शुक्ल, २. शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २२, ले. स्थल, चांपानेर-भणांय, प्रलेसा, सरुपा (विजयगच्छ); पठ, सालमसीप अन्य मु. रषभदासजी ऋषि (गुरु मु. वस्तपालजी ऋषि, विजयगच्छ); गुपि. मु. वस्तपालजी ऋषि (गुरुमु, हरचंदजी ऋषि, विजयगच्छ); मु. हरचंदजी ऋषि (गुरु मु. भगवानजी ऋषि, विजयगच्छ): मु. भगवानजी ऋषि (गुरु मु. मनोहर ऋषि, विजयगच्छ); मु. मनोहर ऋषि (गुरु मु. मल्लिदास, विजयगच्छ); मु. मल्लिदास (गुरु मु. देवराज, विजयगच्छ); मु. देवराज (गुरु आ. पद्मसूरि, विजयगच्छ); अन्य श्राव मयाराम, श्राव. धरमा, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५४११.५ १३४३५). " वरदत्तगुणमंजरी चौपाई - ज्ञानपंचमीफलमाहात्म्ये, मु. ऋषभसागर, मा.गु., पद्य, आदिः प्रणमुं जगदानंदकर, अंतिः ऋषभसागर० चित्तै जी, ढाल - २१. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५२६४. (+४) विक्रमसेन चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २९-७ (५, ९, ११, १३, १८, २५, २८) = २२, पू. वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., " (२५x१०.५, १५X४५-५२), विक्रमसेनराजा चौपाई. मु. मानसागर, मा.गु., पद्य वि. १७२४, आदि: सुखदाता संखेश्वरो, अंति: (-), (पू. वि. बीच-बीच के पाठ व ढाल की गाथा - ९ अपूर्ण से आगे के पाठ नहीं हैं.) ५५२६६. भरतचक्री चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २२. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दे., (२५x११.५, १५X३५). भरतचक्रवर्ती रास, पासो पटेल, मा.गु., पद्य, वि. १८१८ आदि अरि हणवे अरिहंतजी, अंति: (-), (पू.वि. डाल- २० की गाथा - ६ तक है.) ५५२६७. अंजनासुंदरी रास, अपूर्ण, वि. १९४३ माघ कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. २३-१ (१) =२२, ले. स्थल, जालणालश्कर, दे., (२६X११, १२X३० ). अंजनासुंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सति रे सिरोमणि गाई ऐ, गाथा - १६१, (पू. वि. गाथा- ४ अपूर्ण से है.) ५५२६८. चमत्कारचिंतामणी व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २१. कुल पे. २, दे., (२५.५४११.५ १५३४-३६). १. पे. नाम चमत्कारचिंतामणि सह टवार्थ, पृ. १अ २०आ, संपूर्ण " चमत्कारचिंतामणि, राजऋषिभट्ट, सं., पद्य, आदि: नचेत् खेचराः स्थापित, अंति: मृषिर्नाम चिंताणीयम्, श्लोक-१०९. चमत्कारचिंतामणि- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१) श्रीवामेय जिनं नत्वा, (२) चक्र में जन्मकुंडली, अंति: राजऋषि ० ग्रंथं करोति २. पे. नाम. ज्योतिष लोकसंग्रह, पृ. २० आ-२१आ, संपूर्ण. ज्योतिष श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: मीने मेषे त्रिघटिका; अंति: छदिना पंचरात्रा, श्लोक-४. ५५२७४. (+) पाक्षिकसूत्र, दशवैकालिकसुत्र व देववंदन भाष्य, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९, कुल पे. ३, प्र. वि. पवच्छेद सूचक लकीरें संशोधित., जैदे., (२६X११, १३X३३-३९). १. पे नाम, पाक्षिकसूत्र, पृ. १आ-११ आ. संपूर्ण, हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि तित्थंकरे व तित्थे, अति: जेसिं सुअसारे भत्ति. २. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र, पृ. ११आ-१७आ, संपूर्ण. 1 आ. शव्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी आदि धम्मो मंगलमुकि, अंति: जासि तिवेमि, अध्ययन- १०, ( वि. चूलिका-२) ३. पे. नाम. देववंदन भाष्य, पृ. १७आ-१९आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. चैत्यवंदनभाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे, अंति: (-), (पू. वि. गाथा - ५४ तक है.) ५५२७५. (#) छकाय बोल थोकडा व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९५२, वैशाख कृष्ण, ९, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, कुल पे. २, ले. स्थल. अमदावाद, प्रले. शिवशंकर लहिया रवचंद रणछोडदास मोदी, अन्य श्रावि दीवालीबाई, सा. परसनबाई चेली, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र. ले. श्लो. (५६५) यासं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२५.५X१२, १३X३५). १. पे. नाम. छकाय बोल थोकडा, पृ. १आ-१८अ संपूर्ण. , For Private and Personal Use Only Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ मा.गु., गद्य, आदि: अंदी थावरकाय बंभी; अंति: समेसमे वंदणा होजो. २.पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. १८आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: कृत कर्म क्षयो नास्त; अंति: मकागका कागकाम, श्लोक-४. ५५२७६. (+) अनुत्तरौपपातिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, ६४३०). अनुत्तरोपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेण; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र ___नहीं हैं., "ठाणं संपत्तेणं अणुत्तरोवाइ" पाठ तक है.) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेणे काले चोथा आरेने; अंति: (-), पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. ५५२७७. अजितशांति सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, प्र.वि. कुल ग्रं. ४५०, जैदे., (२६.५४११,११४३२-४१). अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअसव्वभयं संत; अंति: पुव्वुप्प० विणासंति, ___गाथा-३९. अजितशांति स्तव-बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि: अजितनामा बीजउ तीर्थं; अंति: सविहुनइं कल्याण हुवउ, ग्रं. ४५०. ५५२७९. प्रस्ताविक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७३, आश्विन कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले.स्थल. जैनगर, प्रले.ऋ. माणेकचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक ऋ०मा०चं०ण लिखा है., जैदे., (२६.५४१२, ९४३६). प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: सुवर्णवर्णं गजराज; अंति: लघु विशेषो न विहितः, श्लोक-१४२. ५५२८०. (+#) षड्द्रव्य गुण, पर्याय व भाव, संपूर्ण, वि. १८३८, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. चुडाग्राम, प्रले.ऋ. श्रीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३-१५४३८). षड्द्रव्य गुणपर्याय भाव, मा.गु., गद्य, आदि: सो होइ निच्छयनउं जो; अंति: लिख्यो छे ते धारवो. ५५२८१. (+#) साधुपाक्षिकसूत्र व खामणासूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १०-१५४२७-४०). १.पे. नाम. पाक्षिकपडिकमणा सूत्र, पृ. १आ-१६आ, संपूर्ण. पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति २.पे. नाम. पाक्षिक क्षामणासूत्र, पृ. १६आ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदिसह; अंति: नित्थार पारगा होह, आलाप-४. ५५२८२. (#) सुक्तमुक्तावली, अपूर्ण, वि. १९३८, कार्तिक शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. १७-१(१)=१६, ले.स्थल. मुंबइ, प्रले. लल्लू रलियातराम; अन्य. मु.सौभाग्यविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. गोडी पार्श्वनाथ., मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५४११, ११४३०-३३). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: (-); अंति: केसरविमलेन विबुधेन, वर्ग-४, - श्लोक-१७६, (पू.वि. वर्ग-१, गाथा-९ अपूर्ण से है.) ५५२८३. (+#) स्तवन, सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-१(१)=१४, कुल पे. ४२, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १५४५०). १.पे. नाम. संखेश्वरपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सयल रिपुजीपतो, गाथा-५, (पू.वि. प्रथम गाथा अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मागु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समोवसरण बेठा भगवंत; अंति: कहै कहौ द्याहडी, गाथा-१३. ३. पे. नाम. गौडी स्तव, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. दीपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुणज्यौ गोडीजी; अंति: दीजै कीजै एतो काम, गाथा-५. ४. पे. नाम. पार्श्व स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: पीया सुंदर मूरति गुण; अंति: भेटस ताहरा पायो, गाथा-९. ५.पे. नाम. चिंतामणिपार्श्व स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: आणी मनसुधी आसता देवि; ___ अंति: समयसुंदर० सुख भरपूरि, गाथा-६. ६. पे. नाम. २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शत्रुजे ऋषभ समोसर्य; अंति: समयसुंदर कहै एम, गाथा-१६, (वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा दो गाथा गिना है.) ७. पे. नाम. पंच प्रभाव स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना प्रभाति, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदिः रे जीव जिनध्रम कीजीय; अंति: समयसुंदर० फल ताहि, गाथा-६. ८.पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. श्रीचंद, पुहिं., पद्य, वि. १७२२, आदि: अमल कमल जिम धवल; अंति: श्रीजिनचंद्र० मन आस, गाथा-९. ९. पे. नाम. आत्म पद, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, महमद, मा.गु., पद्य, आदि: भूलो मन भमरा कांई; अंति: मुहम्मद० साहिब हाथ, गाथा-९. १०. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धिका, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: देवसकल सिर सेहरौलाल; अंति: जिनचंद भेट्या आज, गाथा-७. ११. पे. नाम. रांणपुरा आदिनाथ स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने कृति नाम "राणपुरा पार्श्वनाथ स्तवन" लिखा है. आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: राणपुरौ रलीयामणौ रे; अंति: लाल समयसुंदर सुखकार, गाथा-७. १२. पे. नाम. नेमनाथजी सिलोको, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. नेमराजिमती श्लोक, मु. कुशलविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: समरु सारद4 गुणपति; अंति: कुसलविजय० __ जगवीसौ, गाथा-९, (वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गाथा गिना है.) १३. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ५अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पीउडा जिनचरणांनी; अंति: मोहन अनुभवि मांगै, गाथा-४. १४. पे. नाम. नेमिनाथ द्रूपद, पृ. ५अ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, मु. रामविजय, पुहि., पद्य, आदि: सुन साइ प्यारा बे; अंति: राम लहे जयकारा बे, गाथा-७. १५. पे. नाम. नेमराजुल स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मा.गु., पद्य, आदि: महाराज चढे गजरथ; अंति: खंभाइती राजुल जोरिया, गाथा-१२. १६.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण. जिनप्रतिमा स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनप्रतिमा हो; अंति: जिन प्रतिमासु नेह, गाथा-७. १७. पे. नाम. तेवीसमाजिन पद, पृ. ५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद, मु. वृद्धिकुशल, रा., पद्य, आदि: तेवीसमा जिनराज जोड; अंति: विरधकुसल० दीदार, गाथा-३. १८. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ५आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: अब मोहि यादव जीवन; अंति: जिनहरख० मै मांनी हो, गाथा-४. १९. पे. नाम. पार्श्वजिन गीत, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: मुगट परवारीया हो; अंति: दो दरसण दुख टारीया, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ४३७ २०. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वयण हमारा लाल हीयडै; अंति: जिनहरष० हुं बंदालाल, गाथा-८. २१. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: पासजी मन मान्यौ; अंति: ध्रमसी० जस गावै, गाथा-७. २२. पे. नाम. मृगापुत्र सिझाय, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. मृगापुत्र सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि: सुगरीपुर नगर सोहामणौ; अंति: खेम० सुद्ध परिणाम हो, गाथा-१७. २३. पे. नाम. ढंढणरिष सिज्झाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. ढंढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढणऋषनै वंदना हु; अंति: कहि जिनहरष सुजाण रे, गाथा-९. २४. पे. नाम. वैराग्य सिज्झाय, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, पा. धर्मसिंह, पुहिं., पद्य, आदि: करिज्यौ मत अहंकार; अंति: धरमसीह०धरम मन मै धरो, ___गाथा-११. २५. पे. नाम. थूलभद्र सिज्झाय, पृ. ८अ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनिसज्झाय, ग. लब्धिउदय, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर रहण चोमासे; अंति: ऋषि लालचंद०सुख सवाया, गाथा-११. २६. पे. नाम. चेलणा सिज्झाय, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वांदी वलतां थका; अंति: समयसुंदर० भवतणो पार, गाथा-७. २७. पे. नाम. पांचेंद्री सिज्झाय, पृ. ८आ, संपूर्ण. ५ इंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: काम अंध गजराज अगाज; अंति: सुजाण लहो सुख सासता, गाथा-६. २८. पे. नाम. धन्ना सज्झाय, पृ. ९अ, संपूर्ण. धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. विद्याकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन्नो रिष बंदीये; अंति: नाम थकी निस्तार रे, गाथा-७. २९. पे. नाम. वैराग्य सिज्झाय, पृ. ९अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद-काया, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि बहिनी पीउडो; अंति: नारी विण सोभागीरे, गाथा-७. ३०. पे. नाम. इलापुत्र सिज्झाय, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाम इलापुत्र जाणीयौ; अंति: लब्धिविजय गुण गाय, गाथा-९. ३१. पे. नाम. वैराग्य सिज्झाय, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देव दानव तीर्थंकर; अंति: रिद्धहरष० महाराजारे, गाथा-१८. ३२. पे. नाम. नववाडि ब्रह्मचर्य सिज्झाय, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. नारीरूप सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: चित्रलिखित जे पूतली; अंति: कहै जिनहर्ष प्रबंध, गाथा-८. ३३. पे. नाम. अनाथी सिज्झाय, पृ. १०आ, संपूर्ण. अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणीक रयिवाडी; अंति: समयसुंदर० बे कर जोडि, गाथा-९. ३४. पे. नाम. सात व्यसन सिज्झाय, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. ७ व्यसन सज्झाय, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: पर उपगारी साध सुगुर; अंति: सीस रंगै जयरंग कहै, गाथा-९. ३५. पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन-संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन संप्रति साचो; अंति: कनकने० भव सेवरे, गाथा-९. For Private and Personal Use Only Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४३८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३६. पे, नाम, भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. ११ आ. संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राजतणा अति लोभीया; अंति: समयसुंदर० पाया रे, गाथा- ७. ३७. पे नाम, आत्मशिक्षा सज्झाय, पृ. १९ आ-१२अ संपूर्ण, औपदेशिक सज्झाय, मु. कर्मसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: वली वली नरभव दोहिलो अंतिः आउह अल्हे सुभावी रे, गाथा - १३. ३८. पे. नाम. राचा बत्तीसी, पृ. १२अ १३अ, संपूर्ण. राचाबत्तीसी, श्राव. राचो, मा.गु., पद्य, आदि: जीवडा जाग रे सोवे; अंति: रुडां कहै छे राचो, गाथा - ३२. ३९. पे. नाम. साधु अध्ययन, पृ. १३अ - १३आ, संपूर्ण. साधुगुण सज्झाय, मु. ब्रह्म, मा.गु., पद्म, आदि: पंच महाव्रत जे धरइ, अंतिः ब्रह्म० सुजगीसे रे, गाथा ८. ४०. पे. नाम. श्रावकगुण सज्झाय, पृ. १३आ - १४अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्य, आदि कईयै मिलस्यै रे, अंतिः समैसुंदर० तिण लाघो जी, गाथा २१. ४१. पे नाम, छित्रुजिन स्तवन, पृ. १४-१५ अ, संपूर्ण. ९६ जिन स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७४३, आदि: वरतमान चोवीसे बंदु, अंतिः सदा जिनचंदसूरिए Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ढाल - ५, गाथा- २३. ४२. पे नाम, सप्तोगर्भत विचार स्तवन, पृ. १५अ- १५आ, संपूर्ण, उपधानतप स्तवन-वृद्ध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीमहावीर धरम, अंति भणे बंछिव सुखकरो, ढाल- ३, गाथा - १८. ५५२८५ (+१) जिनबिप्रवेश स्थापनाविधि, पूजाविधि आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १५+१ (८) =१६, कुल पे. ६, ले. स्थल. औरंगाबाद, प्र. वि. पत्रांक अव्यवस्थित होने के कारण संशोधित किया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६X११.५, १५X४४). १. पे. नाम. जिनबिंबप्रवेशस्थापना विधि, पृ. १आ - ५आ, संपूर्ण. मा.गु. सं., गद्य, आदि: पहिलं मुहूर्त्त भलुः अंतिः नाम १०८ बार स्मरे. २. पे. नाम. अष्टोत्तरीस्नात्र विधि, पृ. ५आ-८अ, संपूर्ण, ले. स्थल. रंगावादे, प्रले. पं. भीमविजयगणि, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. धर्मनाथ प्रसादात् बृहत्शांतिस्नात्र विधि संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि तथा प्रथम उपरण मेलवा, अंतिः कुंभमध्ये लिखनमंत्र. ३. पे. नाम. कुसुमांजलि विधि, पृ. ८अ - ८आ, संपूर्ण. आदिजिन जन्माभिषेक कलश, अप., पद्य, आदि: मुक्तालंकार विकार, अंतिः रह इव कुसुमांजली ताह, दाल- १६. ४. पे. नाम. आदिजिन जन्माभिषेक कलश, पृ. ८- ९आ, संपूर्ण प्रा., मा.गु., पद्य, आदि: विणयनयरी विणयनयरी; अंति: जिम तुअ दइ वरमुत्ति, गाथा - १९. ५. पे नाम, स्नात्र पूजा, पृ. १०अ १२अ, संपूर्ण. मा.गु., पग, आदिः पूर्वे बाजोट उपरि, अंतिः उतारी राजा कुमारपाळे. ६. पे. नाम. सत्तरभेदीपूजा, पृ. १२अ १४आ, संपूर्ण. १७ भेदी पूजा, वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंतमुखकजवासिनी; अंति: सुरपति जिम थुणियो, ढाल -१७, गाथा - १०८. ५५२८६. (A) नवतवादि सिद्धांतबोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १६-१ (१) = १५, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६११.५, २०५६२). सिद्धांत बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: एक कालचक्र जाणवो, (पू.वि. "संठण हुंडक" पाठ से है.) ५५२८७. सुक्तावली, संपूर्ण, वि. १८६८, पौष कृष्ण, १४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले. स्थल. पारोतीया, प्रले. मु. हीरोचंद (गुरु मु. सकलसोमजी, लोढीपोसालगच्छ); गुपि. मु. सकलसोमजी (गुरु पं. चंद्रसोम, लोदीपोसालगच्छ) पं. चंद्रसोम (लोडीपोसालगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीनेमिनाथ प्रसाद, जैवे. (२५.५४१२, १२४३१) For Private and Personal Use Only Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ www.kobatirth.org ४३९ सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु. सं., पद्य, वि. १७५४, आदिः सकलसुकृत्यवीवृंद, अंतिः केसरविमलेन विबुधेन, वर्ग-४, लोक-१७९. ५५२८८. (#) पद्मिनी चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९-१३ (१,५ से १६) = ६, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, १३-१७३७-५०). गोराबादल रास, ग. लब्धिउदय, मा.गु., पद्य, वि. १७०७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल १ गाथा ५ अपूर्ण तक, बीच-बीच के पाठांश व ढाल ५ गाथा १५ अपूर्ण से नहीं है. ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५२९०. (+०) जीवविचार प्रकरण सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३-१ (१) १२. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४.५४१९, ३४३३). " जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५२, ( पू. वि. गाथा- ४ अपूर्ण से है . ) जीवविचार प्रकरण-वार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः (-) अंतिः ए जिन परंपराये कह्यो. ५५२९१. (+#) आरंभसिद्धि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५-२ (१, ३) = १३, पू. वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें- अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X११.५, १२X३४). आरंभसिद्धि, आ. उदयप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. विमर्श-१ के श्लोक - ९ अपूर्ण से २५ अपूर्ण तक व ४१ अपूर्ण से विमर्श- ४ के श्लोक ८ अपूर्ण तक है.) ५५२९२. (+#) भाष्यत्रय अवचूरि, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १८- ४(१ से ४) = १४, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५X११, १५X४५-६२). भाष्यत्रय-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. चैत्यवंदन की गाथा- ३४ अपूर्ण से पच्चक्खाण की गाथा - ३० अपूर्ण तक है.) ५५२९५ (+) मोटा नवतत्त्व का थोकडा, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२, अन्य श्रावि. गेली, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित कुल ग्रं. ४२०, जैदे. (२६४११.५, १४४४५). नवतत्त्व प्रकरण- बोलसंग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि जीवतत्त्व अजीवतत्त्व अंति: होय ते मोक्षमां जाय. ५५२९८. (#) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११- २ (१ से २ ) = ९, कुल पे. २३, अन्य. सा. रूडीबाई माहासति, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२५.५x११.५ १२४३९). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. यशोवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जसनधन० प्रभु आस, गाधा-८, (पू.वि. प्रथम गाथा अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण, मु. माव, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी पारसदेव अरज, अंतिः माव० सफल ज करजो रे, गाथा-८. ३. पे. नाम. अजितनाथनुं स्तवन, पृ. ३-४अ, संपूर्ण. अजितजिन स्तवन, मु. खुशालमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: अजित जिणेसरदेव मोरा अंतिः खुसालमुनि गुण गाय रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. ४-४आ, संपूर्ण. वा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु तुम दर्पण; अंतिः मानविजय० महिलो एकताने, गाथा ७. ५. पे. नाम ऋषभदेवस्वामीनुं स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, आ, जिनराजसूरि, मा.गु, पद्य, आदि मन मधुकर मोहि रह्यो अंतिः सेवे ते वे करजोडी रे, गाथा-४. ६. पे. नाम. पद्मप्रभुजीनु स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: कागलीयो किरतार भणी, अंतिः जिनराज० घर आबी रीत, गाथा-५. ७. पे. नाम. वासपुजजिननुं स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४४० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: नायक मोह नचावीयो, अंति: एम जपे जिनराजो रे, गाथा-५. ८. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. ५अ -५ आ. संपूर्ण. मु. नित्यलाभ, मा.गु, पद्य, आदिः शीतल जिनवर सांभलो रे, अंतिः नितलाभ मुनि गुणगाय, गाथा- १०. ९. पे. नाम, आदजिन स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आदिजिन स्तवन, मु. जीतचंद, मा.गु., पद्य, आदि आदिदेव अरिहंतजी रे, अंतिः सीस नमे जिनचंद रे, गाथा - १०. १०. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजगनायक जगगुरु रे; अंति: केसर० दर्पण सुखकंद, गाथा-५. ११. पे. नाम. अजित स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण. अजितजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अलगडी अजित जिणंदनी; अंति: मोहन० जिन अंतरजामी, गाथा - ५. १२. पे नाम. श्रीमंधिरजिन स्तवन, पृ. ६ अ- ६आ. संपूर्ण. विहरमानजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३५, आदि: पूर्व माहाविदेह, अंति: रायचंद० अरदासा जी, गाथा - ११. १३. पे. नाम. श्रीजेन नेमीसवर वसंत तवन, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. सेवक, मा.गु., पद्य, आदिः आयो मास बसंत सखी रे; अंतिः सेवक० प्रणमे पाय, गाथा-१२. १४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- वालही, मु. कृष्णविमल, मा.गु., पद्य, आदि: वामानंदन विनवुजी, अंति: कृष्णविमल० पुरो आस, गाथा-८. १५. पे. नाम. पारसजिन स्तवन, पृ. ८अ८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरतीर्थ, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अंतरजामी सुणो अलवेसर, अंतिः जिन० भवसावरथी तारो, गाथा-५. १६. पे. नाम. नेमीसरजिन स्तवन, पृ. ८आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नेमजी चालो तो तुमने; अंति: रूपविजय जयकार जो, गाथा - ७, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथाओं को एक गाथा गिना है.) १७. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ८- ९अ. संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि अजीतजीणंदसुं प्रीतडी, अंति: जस हो नीते गुण गायके, गाथा - ५. १८. पे नाम, सुपासजीन स्तवन, पृ. ९अ, संपूर्ण, सुपार्श्वजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुपास जिनराज तुं, अंतिः वाचक जस थुणो जी, गाथा-५. १९. पे नाम, वासपुजजिन स्तवन, पृ. ९अ ९आ, संपूर्ण. वासुपूज्यजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: स्वामि तुमे कामण, अंति: जस कहे हेजे हलसु, गाथा-५. २०. पे नाम, माहाविरस्वामीनं तवन, पृ. ९आ, संपूर्ण महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गरुया रे गुण तुम तणा, अंति: जस कहे० आधारो रे, गाथा-५. २१. पे नाम, आदेस्वर स्तवन, पृ. ९आ-१०आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. माधव, मा.गु., पद्य, वि. १८५५, आदि: सवारथ सीध थकि चवि, अंति: माधवजी ० हरख न माय, गाथा - १४. For Private and Personal Use Only Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ४४१ २२. पे. नाम. श्रीमंदिरस्वामीनुं तवन, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण, वि. १९०७, आषाढ़ शुक्ल, १३, प्रले. श्राव. नानजी आणंदजी साह; पठ.सा. रूडीबाई माहासति, प्र.ले.पु. सामान्य. सीमंधरजिन स्तवन, मु. हंस, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमधिर स्वामीनी, अंति: हंस कहे दो मारा नाथ, गाथा-१६. २३. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ११अ-११आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जंबूदीपना भरथमा अजोध; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) ५५२९९. (#) रात्रिभोजन परिहार चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११-१(१)=१०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४११, १२४४३). रात्रिभोजन परिहार चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा ११ अपूर्ण से २४१ अपूर्ण तक हैं.) ५५३०१. (#) पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, १६x४०). पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, मु. नेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८११, आदि: सरसतीने समरु सदा; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२५ की गाथा-९ तक है.) ५५३०३. (+#) चोवीस दंडक, ९ द्वार व २३ पदवी विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. ३, प्रले. श्राव. वलभ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १५४२१). १.पे. नाम. २४ दंडकद्वार विचार, पृ. १आ-८अ, संपूर्ण. २४ दंडक २४ द्वार विचार, मा.गु., को., आदि: (१)सरीरोगाहणा संघयणो, (२)शरीर ५ना नाम औदारिक; अंति: पांचमी गति पणि जाइ. २. पे. नाम. ५ देव के ९ द्वार, पृ. ८अ-१०अ, संपूर्ण. ५देव बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलुं नामद्वार बिजु; अंति: गुणा अधिका भावदेव. ३. पे. नाम. २३पदवी विचार, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. २३ पदवी विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिली तीर्थंकरनी पदव; अंति: शेष १८ पदवी पामे. ५५३०६. (#) शत्रुजयउद्धार रास, संपूर्ण, वि. १९०९, कार्तिक कृष्ण, १२, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र.वि. कुल ग्रं. २१४, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२५.५४१२, १०४३४). शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: नयसुंदर० दरसण जयकरउ, ढाल-१२, गाथा-१२२, ग्रं. १७०. ५५३०९. (+#) वसंतसेनराजा धर्ममतिमंत्री कथा व प्रस्ताविकश्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २, ले.स्थल. झाक, प्रले. मु. हमीर; पठ. मु. जिनकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १२४३७)... १.पे. नाम. वसंतसेनराजा धर्ममतिमंत्री कथा, पृ. १अ-९अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: धर्मचिंतामणिश्रेष्ठो; अंति: मोक्षं च यास्यसि. २. पे. नाम. औपदेशिक गाथा, पृ. ९अ, संपूर्ण. गाथा संग्रह * प्रा., पद्य, आदि: सुट्ठ गाइअंसुट्ठ; अंति: सुराजिणा बिति, गाथा-२. ५५३११. (+) दशवैकालिकसूत्र स्वाध्याय, अपूर्ण, वि. १७३३, श्रावण शुक्ल, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(१)=८, ले.स्थल. शाहपुर, प्रले. ग. सौभाग्यहर्ष (गुरु पं. पद्महर्ष गणि); गुपि.पं. पद्महर्ष गणि (गुरु पं. कल्याणहर्षगणि); पं. कल्याणहर्षगणि (गुरु पं. उदयहर्षगणि); पं. उदयहर्षगणि; पठ. श्रावि. राजकुंवरि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ११४२९-३४). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: गायो सफल जगीसइरे, सज्झाय-११, (पू.वि. अध्ययन-२ गाथा-३ से है.) ५५३१२. (#) दोढसो गाथार्नु स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ९४३७). For Private and Personal Use Only Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, ___ आदि: प्रणमी श्रीगुरुना पय; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-५ की गाथा-१३ तक है.) ५५३१३. (#) सज्झाय, कवित्त व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ११, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १३४३६). १.पे. नाम. दशार्णभद्र रिषनी सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. दशार्णभद्र सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद बुद्धिदाई सेवक, अंति: लालविजय निश दिश, गाथा-१८. २. पे. नाम. आबुगढनी मंडणी स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. अर्बुदगिरितीर्थयात्रा स्तवन, मु. सुखनेहविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८२०, आदि: जिवो प्रणमुं आदिजिण; अंति: सुखनेहविजय गुण गाय, गाथा-८. ३. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समरूं सारदमाय प्रणमु; अंति: अमर नमे लली ललीजी, गाथा-१५. ४. पे. नाम. अष्टप्रकारी सतरप्रकारी अष्टोत्तरी महिमा स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. जिनपूजा स्तवन, मु. जयसागर, मा.गु., पद्य, आदि: भवि जिन पूजा करजो; अंति: जयसा० मुगततणा फल होय, गाथा-१०. ५. पे. नाम. औपदेशिक कवित, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित्त-राजादृष्टांतयुत, पुहि., पद्य, आदि: वडो वैण चक्कवै पहय; अंति: नर धुंधमार वखाणीयै, गाथा-१३. ६. पे. नाम. सिखामणनी सज्झाय, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण. दयापच्चीसी, मु. विवेकचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सयल तीरथंकर प्रणाम; अंति: विवेकचंद० एह विचार, गाथा-२५. ७. पे. नाम. सैāजानो स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. नवपद स्तवन, मु. विनीतसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७८८, आदि: सहु नरनारी मिलकर आवो; अंति: विनितसागर मुनीसरु, गाथा-७. ८.पे. नाम. सास्वताजीन असास्वताजीन स्तवन, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. शाश्वतअशाश्वतजिन चैत्यवंदन, मु. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह ऊठीनें प्रणमीई; अंति: क्षिमा० पामे मगलमाल, गाथा-१५. ९.पे. नाम. परनारीनी स्वाध्याय, पृ. ७अ-८अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, ग. कुमुदचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सुण कंतारे सिख; अंति: कुमुदचंद सम उजलो, गाथा-१०. १०. पे. नाम. प्रभाती जिनपद, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: इसें जिन चरणे चित; अंति: आनंदघन० श्रीभगवान रे, गाथा-५. ११. पे. नाम. जिनपद स्तवन, पृ. ८आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवनासीनी सेजडीइं रंग; अंति: रूपचंद० बंधाणी जी रे, गाथा-६. ५५३१४. (#) पुराणश्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११.५, १०४२९). पुराणहुंडी, सं., पद्य, आदि: श्रूयतां धर्मसर्वस्व; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१०३ अपूर्ण तक है.) ५५३१५. (+#) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२८, ज्येष्ठ शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ८, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. अमरचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११.५, ४४३६). For Private and Personal Use Only Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ४४३ नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बुद्धबोहिक्कणिक्काय, गाथा-४८. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: साची वस्तुनउंस्वरूप; अंति: सिद्ध ऋषभदेव प्रमुख. ५५३१६. (+#) षडावश्यकसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ.८, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, ५-१०४५०). आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: णमो अरहताणं० सव्व; अंति: गारेणं वोसिरामि, अध्ययन-६, सूत्र-१०५. आवश्यकसूत्र-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंतनइं नमस्का; अंति: करइंतउ पुण भंग नहीं. ५५३१७. (+) सामुद्रिकशास्त्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.७, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११.५, १५४४२). सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदि: आदिदेवं प्रणम्यादौ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., हाथ-पाँव में राजयोगसूचक उत्तम चिह्न तक लिखा है.) ५५३१८. (+) नवतत्त्व व जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ६४३७). १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-७अ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बुद्धबोहिक्कणिक्काय, गाथा-५४. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जीव दसप्राण धरै ते; अंति: एक समइ अनेग सिद्ध१५. २. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. ७अ, संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१ अपूर्ण तक लिखा है.) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिभुवनरै विषै दीवा; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ५५३१९. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६-९(१ से ९)=७, कुल पे. ३, अन्य.सा. सेजुबाइसामी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.३, ११४२६). १.पे. नाम. थावच्चामुनीनुं चोढालीउं, पृ. १०अ-१०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. थावच्चाकुमार चौढालिया, मु. तेजसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: तेज० थावचागुण गाय रे, ढाल-४, (पू.वि. ढाल-३ गाथा-८ से है.) २. पे. नाम. थावरचाकुमार चोढालीयूं, पृ. १०आ-१६अ, संपूर्ण. थावच्चाकुमार चोढालीयो, मु. हर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७९५, आदि: द्वारामती नयरी वसे; अंति: श्रीसंघ फलजो आस. ढाल-४, गाथा-५६. ३. पे. नाम. साधुनी संगतनी सझाय, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. साधुसंगति सज्झाय, मु. धर्मदास, मा.गु., पद्य, आदि: प्रवचन वचन सोहामणां; अंति: भावे मुनि धरमदास रे, गाथा-७. ५५३२०. (#) पासाकेवलीभाषा, संपूर्ण, वि. १७५१, वैशाख कृष्ण, १२, रविवार, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १४४३६). पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १११स्थानलाभ पुत्रलाभ; अंति: भक्ति करे सही. ५५३२२. (#) नेमिजिन चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११, १२४२९-३२). नेमिजिन चरित्र*, सं., गद्य, आदि: मथुरायां हरिवंशे बहु; अंति: दानं दत्वा व्रतं ललौ. ५५३२३. (+) अंजनशलाका स्तवन व नेमजीनी लावणी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११,१०४२७). १.पे. नाम. अंजनसिलाका स्तवन, पृ. १आ-७अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थे मोतीशाट्रंक स्तवन-इतिहासयुक्त, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: उठी प्रभाते प्रभु; अंति: कहे विरविजय महाराज, ढाल-७. २.पे. नाम. नेमजीनी लावणी, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमिजिन लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: तुम तजकर राजल नार तज; अंति: जीनदास सुणौ जीनबर रे, गाथा-४. ५५३२४. धर्मध्यान लक्षण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.७, अन्य. सा. कसलीबाई माहासती (गुरु सा. माणकबाई माहासती); गुपि.सा. माणकबाई माहासती; अन्य. सा. वखतबाई महासती (गुरु सा. साकरबाई महासती); गुपि. सा. साकरबाई महासती (गुरु सा. कस्तुरबाई); सा. कस्तुरबाई (गुरु सा. कसलीबाई); अन्य. सा. केसरबाई महासती (गुरु सा. प्रेमकुवरबाई महासती); गुपि.सा. प्रेमकुवरबाई महासती; अन्य. सा. मानकुवर आर्या, प्र.ले.पु. विस्तृत, दे., (२५४१०.५, १२४४२). धर्मध्यान लक्षण, प्रा., गद्य, आदि: धम्मेज्झाणे चउविहे; अंति: संसाराणुप्पेहा४. धर्मध्यान लक्षण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: हवे धर्मध्यानना; अंति: जेम परम सुख पामीइं. ५५३२५. (+) पुच्छिस्सुणं, पंचमहव्वयसूत्र व २० स्थानकतप सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२४.५४११, ४४३०). १.पे. नाम. वीरथुइ सह टबार्थ, पृ. १आ-६आ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: ___ आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा-२९. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पू० पुछानी इच्छा धरी; अंति: इम हूं बे० कहूं छू. २.पे. नाम. महावीरजिन स्तुति सह टबार्थ, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंचमहव्वयसुव्वयमुलं; अंति: सिझिं संति तहावरे, गाथा-५. महावीरजिन स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सु० हे सुव्रत जंबु; अंति: अ० अनेरा ५ अनंताजीव. ३. पे. नाम. २० स्थानकतप नाम सह टबार्थ, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. २० स्थानकतप गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अरिहंत सिद्ध पवयण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) २० स्थानकतप गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतना गुणग्राम कर; अंति: (-). ५५३२६. (+#) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४-७(१ से ४,७,१० से ११)=७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १६४५१). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पर्व-८, सर्ग-६ श्लोक-१५४ से सर्ग-७ श्लोक-४४ तक है.) ५५३२८. (+#) शोभनस्तुति, संपूर्ण, वि. १८०४, आश्विन कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. भुजनगर, प्रले. पं. जसविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीआदिनाथ प्रसादात्., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १२-१५४३८). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक, अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक-९६. ५५३२९. (+#) गजसुकुमाल रास, संपूर्ण, वि. १७२२, पौष शुक्ल, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. खंभाइतबंदीर, पठ. श्रावि. राजकुंवरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४१०.५, ११४३७). गजसुकुमालमुनि रास, मु. शुभवर्द्धन शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: देस सोरठ द्वारापुरी; अंति: वली अविचल संपदा थाइ, गाथा-७९. ५५३३०. (+#) जैनधार्मिकश्लोक संग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-१(२)=६, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२५४११, ४४३२). श्लोक संग्रह जैनधार्मिक , प्रा.,सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्ली; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ व गाथा--७ अपूर्ण से ३४ तक है.) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: सकल कहतां समस्त कुशल; अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ४४५ ५५३३१. (+#) समकितसार प्रश्नोत्तर पच्चीसीनी सझाय व बीजक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, अन्य. सा. डाइबाइ आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६११.५, १८x४०-४६). १. पे. नाम. समकीतसार प्रश्नोत्तरपच्चीसी, पृ. १अ - ६अ, संपूर्ण. समकितसार प्रश्नोत्तरपच्चीसी सज्झाय, मु. जेठमल्ल, मा.गु., पद्य, वि. १८७८, आदि: चरणकमल गुरुदेवना नमी; अंति: समकिती दें साबासरे, दाल ५, गाथा १८८. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. समकीतसारपच्चीसी बीजक, पृ. ६आ, संपूर्ण. समकितसार प्रश्नोत्तरपच्चीसी सज्झाय- प्रश्नसूची, मा.गु., गद्य, आदिः सूरिये पुस्तकरत्न, अंतिः प्रथ थी पूछवाना छे. ५५३३३. (+#) दंडक प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८२, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ६, ले. स्थल. विक्रमपुर, प्रले. पंडित. मानचंद, पठ. सा. खुस्याला (गुरु सा. हर्षमाला); गुपि. सा. हर्षमाला, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पणयुक्त पाठ-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६X११.५, ४X३८). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदिः नमिउंचवीसजिणे तस्स अंति: एसा विनति अप्पहिआ गाथा - ३९. दंडक प्रकरण - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ चउवीस; अंति: आपणा हितनेंकाजे लिखी. ५५३३४. (+) नारचंद्र ज्योतिष सह यंत्रकोद्धार टीप्पण, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६ प्र. वि. यंत्रकोद्धार टिप्पण टवार्थ शैली में है.. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ- संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६ ११.५, ६X३१). ज्योतिषसार-लघुनारचंद्र ज्योतिष, संक्षेप, मा.गु. सं., प+ग., आदि: पडिवा१ छट्ठ६ इग्यारस; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-२३ अपूर्ण तक लिखा है.) लघुनारचंद्र ज्योतिष टिप्पण, आ. सागरचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (१) सरस्वतीप्रसादेन यंत, (२) पडिवार छठर एकादशी११; अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ५५३३६. (a) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र व श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ५. कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२५x११, १५४४६). १. पे. नाम. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, पृ. १अ ५आ, संपूर्ण. वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि (१) सर्वजीवनिकावस्य सर्व, (२) सम्यग्दर्शनज्ञान, अंति: बहुत्वतः साध्याः अध्याय १०. . For Private and Personal Use Only २. पे. नाम. जैनधार्मिकश्लोक संग्रह, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक *, प्रा.सं., पद्य, आदि: स्वामिन स्वपनामयाद्य, अंति: (-). ५५३३७. (+०) त्रिभुवन शास्वत चैत्यप्रवाडि, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल सूरितविंदर, प्र. वि. श्रीपद्मप्रभुजिन प्रसादात, संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे (२५४१०.५, १५X३८). त्रिभुवन शास्वतजिनचैत्यपरिपाटी स्तवन, आ. सोमदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अंति: सोमदेव० तिहि सुख अपार, गाथा - १०४. ५५३३९. (+) दशवैकालिकसूत्र सह बालाववोध, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १०-५ (१ से ५) =५, पू. वि. बीच के पत्र हैं.. प्र. वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे. (२६४११.३, ८x२१). " से दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी आदि (-); अंति: (-), (पू. वि. अध्ययन-३ की गाथा-८ अध्ययन-४ अपूर्ण तक है.) दशवैकालिकसूत्र - बालावबोध, मा.गु, गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५५३४०. (+) वरदत्तगुणमंजरी कथानक, उद्यापन विधि व १८ नातरा, संपूर्ण, वि. १८३५, कार्तिक शुक्ल, १४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ५. कुल पे. ३, ले. स्थल. मेदनीपुर प्रले. पं. कर्मसुंदर (गुरु आ. देवगुप्तसूरि, उपकेशगच्छ); गुपि. आ. देवगुप्तसूरि (उपकेशगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित, जैदे., (२५x११, १६x४१). १. पे. नाम. वरदत्तगुणमंजरी कथानक, पृ. १अ ५अ, संपूर्ण. , 1 Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४४६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " , वरदत्तगुणमंजरी कथा - सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं. पद्य वि. १६५५ आदि श्रीमत्पार्श्वजिन, अंति: मेडतानगरे, श्लोक १४८. 2 कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. ज्ञानपंचमी उद्यापन विधि, पृ. ५अ - ५आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीतपउद्यापन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: ५ ठवणी ५ पुस्तक पूर्व, अंति: भक्ति गुरुभक्ति करवी.. ३. पे. नाम. १८ नातरा विचार, पृ. ५आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदिः १भाई एकमा भणी१; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., नातरा- ७ तक लिखा है.) ५५३४१. (+) प्रश्नव्याकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४-९ (१ से ८,१०) ०५, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित, जैदे.. (२६११.५, ६४३२). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. दुक्खसंकडंनिरय अपूर्ण सूत्रपाठ से अहं अणूणएहिं पाठ अपूर्ण तक है.) प्रश्नव्याकरणसूत्र टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-): अंति: (-). ५५३४२. (#) धन्नाशालिभद्र चोपाई, अपूर्ण, वि. १७७८-१७७९, मध्यम, पृ. ७-२ (१,६)=५, कुल पे. ३, ले. स्थल. उदैपुर, प्रले. मु. श्रीचंद ऋषि (गुरु मु. पदमसी ऋषि, लौकागच्छ); गुपि. मु. पदमसी ऋषि (गुरु मु. मनजी ऋषि, लौंकागच्छ); मु. मनजी ऋषि (गुरु मु. मेघजी ऋषि, लौंकागच्छ); मु. मेघजी ऋषि (परंपरा आ. भागचंद ऋषि, लौंकागच्छ); आ. भागचंद ऋषि (लौकागच्छ); राज्यकालरा संग्राम समर सिंघ, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६५११, २५४६७). १. पे. नाम. धन्नाशालिभद्र चौपाई. पू. २अ-७अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम एक व बीच के पत्र नहीं हैं. वि. १७७८, आषाढ़ शुक्ल, ४, शनिवार, ले. स्थल. उदैपुर. शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: (-); अंति: वंछित फलस्ये जी, ढाल-२९, गाथा-५१०, (पू.वि. ढाल - ३ की गाथा - १२ अपूर्ण से है . ) २. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. ७अ, संपूर्ण. कवित्त संग्रह, क. गद्द, मा.गु., पद्य, आदि: भागा लागीअ च्यारु, अंति: कवि गद० गुण कांई करे, गाथा- १. ३. पे. नाम. औपदेशिक सवैया संग्रह, पृ. ७आ, संपूर्ण, वि. १७७९ पौष शुक्ल, ४, रविवार, ले. स्थल. हथ्याणी. मेवाडदेश. औपदेशिक सवैया संग्रह" भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं. मा.गु., पद्य, आदि: बालापणे बुडी भई भर अंतिः सुदिन तारा गाम. ५५३४३. (०) द्विजवचनचपेटा अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५. पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, १६५० ). पुराणहुंडी, सं., पद्य, आदि: श्रूयतां धर्मसर्वस्व; अंति: (-), (पू. वि. श्लोक-२२६ तक है.) ५५३४४. (+#) | दससूत्र सिद्धांत व लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, १५x५०). १. पे नाम तत्वार्थाधिगमसूत्र, पृ. १४- ५आ, संपूर्ण, वा. उमास्वाति सं., गद्य, आदि: (१) त्रैकाल्यं द्रव्य, (२) सम्यग्दर्शनज्ञान, अंति: बहुत्वतः साध्याः, अध्याय- १०. २. पे. नाम. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र प्रशस्तिश्लोक संग्रह, पृ. ५आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only संबद्ध, प्रा.,सं., पद्य, आदि: अक्षरमात्रपदस्वरहीना; अंति: मरणं चउगइदुख निवारेई, गाथा-५. ३. पे. नाम. जैनधार्मिक श्लोक, प्र. ५आ. संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.सं., पद्य, आदि: व्योमापगाद्योतमतीर्थ; अंति: त्रिजगत्पुनातु, श्लोक - १. ५५३४५. (+) इरियावही मिच्छामि दुक्कडम, व संख्यागाथादि विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १८१७, श्रावण अधिकमास कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पू. ५. कुल पे. ११, ले. स्थल. पोहकर्णनगर, प्रले. पं. चतुरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५X११, १८x४०-५५). १. पे. नाम. इरियावही मिच्छामिदुक्कडं भेद, पृ. १अ, संपूर्ण. Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ४४७ ईर्यापथिकी मिच्छामिदुकडं भेद, प्रा., मा.गु, गद्य, आदि: अट्ठारसलक्खाय चोवीसस अंतिः हुआ दुकृत मिथ्या हुआ. २. पे नाम. सामायिक ३२ दोष कुलक सह वालावबोध, पृ. ९अ १आ. संपूर्ण सामायिक ३२ दोष गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: पालत्थी अथिरासण२; अंति: वसे सव्व सुहलच्छी, गाथा-४. सामायिक ३२ दोष गाथा - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: कायना १२ दोष जोगवटो, अंति: एवं ३२ दोष सामाइक. ३. पे. नाम. १५ परमाधामी विचार, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: अंब१ अंबरीष२ शामशबल, अंति: तेहने महाघोक कहिइ. ४. पे नाम, जुगलीया के १० प्रकार कल्पवृक्ष सह अर्थ, पृ. २अ २आ, संपूर्ण, १० कल्पवृक्षनाम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: तेसिमत्तंग १ भिंगा २; अंति: गेहागारा९ अणियेणा१०, गाथा - १. १० कल्पवृक्षनाम गाथा अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: मनंगा कहतां मदिरा, अंतिः वस्तू मनोवंछित दिई. ५. पे. नाम. आठखाणि गाथा सह अर्थ, पृ. २आ, संपूर्ण जीवोत्पत्ति विचार, सं., पद्य, आदि: अंडजाः पक्षिसर्पाद्य, अंति: घोए उपपातक देवनारकाः, श्लोक-२. जीवोत्पत्ति विचार- अर्थ, मा.गु, गद्य, आदि: पंखीजात सर्पजाति ए अंतिः लाख जीवाजोनिनी छै ६. पे. नाम. ३ वेदगाथा सह अर्थ, पृ. २आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुरुषस्त्रीनपुंसकवेद गाथा, प्रा., पद्य, आदि: पुंसा दसकोडिणं पनर, अंति: ठिवमाण नपुंसगा हुंती, गाथा- १. पुरुषखीनपुंसकवेद गाथा-अर्थ, मा.गु, गद्य, आदि: पुरुषवेदनी स्थित दस अंतिः स्थिति तीनवेदनी छै ७. पे. नाम. पंच सम्यक्त्व पंच मिथ्यात्व भेदगाथा सह अर्थ, पृ. २आ- ३अ, संपूर्ण ५ सम्यक्त्व ५ मिथ्यात्व भेद, प्रा., पद्य, आदि: ख्यायिक१ उपसम२ वेदो३; अंति: ए ए सो होई मित्तट्ठी, गाथा-२. ५ सम्यक्त्व ५ मिथ्यात्व भेद - अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो क्षायक सम्यक्त; अंति: पंचद्री ते हुइ. ८. पे. नाम. विचारगाथा संग्रह सह अर्थ, पृ. ३अ- ३आ, संपूर्ण. विचारगाथा संग्रह, प्रा. सं., गद्य, आदि: तिनिसहस्ससत्तसय तिहो, अंतिः प्रचलाप्रचला ४थीणदी. विचारगाथा संग्रह - अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तीन हजार सातसे तिहोत; अंति: सारसमुद्रमाहे रलावै. ९. पे. नाम. पंचपरमेष्ठी गुण सह अर्थ, पृ. ३आ-४अ संपूर्ण पंचपरमेष्ठि १०८ गुणवर्णन, प्रा. सं., पद्य, आदि बारसगुण अरिहंता, अंतिः साहु सगवीस असयं, गाथा १. " पंचपरमेष्ठि १०८ गुणवर्णन-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतना गुण बारै ते; अंतिः सहै क्रिया सुद्ध करै. १०. पे नाम, साधु आचारसंख्या गाथा सह अर्थ, पृ. ४-५आ, संपूर्ण. साधु आचारसंख्या गाथा, प्रा., पद्य, आदि: इह जीविय अनिमित्ता, अंतिः व पउंजिज इमं विही, गाथा- ३२. साधु आचारसंख्या गाथा- अर्थ, मा.गु., गद्य, आदिः जिके अग्यानी जीव अंतिः साधु अणगार कहवाइ ११. पे. नाम. तत्त्वनाम संग्रह, पृ. ५आ, संपूर्ण. तत्त्व संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: हिवै ३ तत्त्वना नाम, अंतिः ऊपर वीर्य फेरवेणी. ५५३४६, (+) अनुयोगद्वार २१ द्वार, कायापुर पाटणनो कागल व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे, ४, अन्य. सा. पानकवरजी मोतीलाल, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १७x४५). १. पे. नाम. अणजोग दुवार, पृ. १आ-५ अ, संपूर्ण. अनुयोगद्वारसूत्र - २१ बोल अधिकार, संबद्ध, मा.गु, गद्य, आदि: पहिले बोलै नय ७ दुजैः अंतिः सेवं भंते सेवं भंते. २. पे. नाम. कायापुर पाटणनो कागल, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण, वि. १९३१, कार्तिक शुक्ल, २, मंगलवार, ले. स्थल. खिचंद, प्रले. मानमल, प्र.ले.पु. सामान्य. कायापुर पाटण का कागज, मा.गु., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रीसिद्धसिल, अंतिः विगत सहित लिखवा जी. ३. पे. नाम. जीवकायासंबंधेबेराग्य सिज्झाय, पृ. ५आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. राजसमुद्र, रा., पद्य, आदिः आज के काल चले सीर कह, अंतिः राजसमुद्र० सोभागी रे, गाथा- ७. For Private and Personal Use Only Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम. पच्चक्खाण पालवा सूत्र, पृ. ५आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: फासिअ१ पालियर सोहिय; अंति: तस्समिच्छामी दुकडं, गाथा-१. ५५३४७. (+) नियंठाबोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १८०४, पौष कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. वडलु, प्रले. मु. माणकचंद ऋषि; पठ. सा. चंदुजी महासती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक ने लेखन संवत् हेतु मात्र १८४ लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १९४३९). भगवतीसूत्र-नियंठा विचार, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पन्नवण वेय रागे कप्प; अंति: संख्यातगुणा अधिकहुवै, द्वार-३६. ५५३४८.(+) लोकनालिका व चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र-प्राभृत-१०, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, २२४६६). १.पे. नाम. लोकनालि सह बालावबोध, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण. लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि,प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदसण विणा जंलोअं; अंति: जहा भमह न इह भिसं, गाथा-३२. लोकनालिद्वात्रिंशिका-बालावबोध, पं. नयविलास, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य श्रीमहावीरं, (२)जिन वीतराग तेहना; अंति: (१)नयविलासेन शास्त्रस्य, (२)विषे अतिसय करीनई. २.पे. नाम. चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र-दसमे पाहुडे सत्तरसमं पाहुडं, पृ. ५आ, संपूर्ण. चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण.. ५५३४९. (+) शत्रुजयतीर्थकल्प सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, ४४३०). शत्रुजयतीर्थ कल्प, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से गाथा-३३ अपूर्ण तक शत्रुजयतीर्थ कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ५५३५०.(+) अढारपापस्थानक स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. राधनपुर, प्रले. मु. देवविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १७४३८). १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पापथानक पहिल्का ; अंति: वाचकजस इम आखिजी, सज्झाय-१८, ग्रं. २११. ५५३५१. (#) योगचिंतामणि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ११४४१). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: यत्र वित्रासमायांति; अंति: (-), (पू.वि. मिश्रकाधिकार में तालकेश्वर विधि तक है.) ५५३५५. (+#) भक्तामर स्तोत्र की वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६९५, आश्विन कृष्ण, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. ४३, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. कुल ग्रं.१५७२, मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १५४४३). भक्तामर स्तोत्र-गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि, सं., गद्य, वि. १४२६, आदि: पूजाज्ञानवचोपायापगमा; अंति: पमतिः० प्रायशः संति, ग्रं. १५७२. ५५३५६. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७२८, कार्तिक शुक्ल, १५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १२५-८३(१ से २,४,६,१२,१७ से ५०,५२ से ५५,६५,६८,७० से ७३,७८,८१,८९ से ११८,१२१,१२३)=४२, ले.स्थल. नीबली, प्रले. मु. जीवण ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ६x४६). For Private and Personal Use Only Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: सम्मए त्ति बेमि, अध्ययन-३६, ग्रं. २०००, (पू.वि. प्रथम अध्ययन गाथा २३ अपूर्ण से है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: गुर समायइ धास्योनिमः. ५५३५७. (+#) समयसार नाटक, अपूर्ण, वि. १७८१, पौष कृष्ण, १३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४४-३(१५ से १७)=४१, ले.स्थल. जावालपुर, प्रले. पं. अनंतसागर गणि (गुरु पं. केसरसागर गणि); गुपि.पं. केसरसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४४). समयसार नाटक, जै.क. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर हरन; अंति: नाममइ परमारथ विरतंत, अधिकार-१३, गाथा-७२७, ग्रं. १७०७, (पू.वि. गाथी २०१ अपूर्ण से २४२ अपूर्ण तक नहीं है.) ५५३५९. (+) विवाहपन्नत्ति शतक ९ उद्देशक ३३ जमाली अधिकार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९६५, वैशाख कृष्ण, १, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३९-७(१ से ७)=३२, ले.स्थल. लींबडी, प्रले. श्राव. त्रंबकलाल सुंदरजीभाई शेठ; अन्य. वेलबाई आर्या (गुरु सा. दाइबाइ आर्या); गुपि.सा. दाइबाइ आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५४११, ६४३९). भगवतीसूत्र-हिस्सा नवमशतक का ३३वां उद्देशक, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: भंते सेवं भंते ति, प्रतिअपूर्ण. भगवतीसूत्र-हिस्सा नवमशतक का ३३वां उद्देशक का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: तहति हे भगवंत तहती, प्रतिअपूर्ण. ५५३६१. विक्रमादित्य नव सौ कन्या चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५, ले.स्थल. मंदसौर महानगर धर्मपुरा, प्रले. पं. सत्यमेरू (गुरु पं. गुणमेरू); गुपि.पं. गुणमेरू (गुरु पं. खीमाहर्षजी); पं.खीमाहर्षजी (गुरु पं. नगराजजी); पं. नगराजजी (गुरु पं. भागचंदजी); पं. भागचंदजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीमल्लिजिन प्रशादे, श्रीशांतिनाथ प्रसादै., जैदे., (२५.५४११, १२४३५). विक्रमादित्य चौपाई, मु. लाभवर्द्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: पुरसादाणी प्रणमीयै; अंति: लाभवर्धन० कल्याण, ढाल-२७, गाथा-५८५. ५५३६२. (+#) हेमीनाममाला, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५४-२१(१ से २१)=३३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १३४४०). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कांड ३ श्लोक ३६१ अपूर्ण से कांड ५ श्लोक १७५ अपूर्ण तक है.) ५५३६४. (+#) प्रतिक्रमणसूत्र, स्तवन संग्रह, संबोधसत्तरी वसंघयणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८६४, वैशाख शुक्ल, ३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २९, कुल पे. २०, ले.स्थल. लूणकर्णसरनगर, प्रले. पं. नैणसा; पठ. अणदू,प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १२४३७). १. पे. नाम. आलोचनासूत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आलोचनासूत्र-देवसिप्रतिक्रमणगत, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदेसह; अंति: अप्पाणं वोसरामि. २.पे. नाम. प्रतिक्रमणविधि, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. प्रतिक्रमणविधि संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: भयवंदसण्णभद्दो सुदं; अंति: हस्तिपदेष्ट विष्टा. ३. पे. नाम. वर्द्धमान स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदिः यदंहिनमनादेव देहिन; अंति: नित्यं मम मंगलेभ्यः, श्लोक-४. ४. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण.. सं., पद्य, आदि: युगादिपुरुषंद्राय; अंति: कूष्मांडी कमलेक्षणा, श्लोक-४. ५. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसुवन्न; अंति: भेरई देह मे सुधनाणं, गाथा-४. ६.पे. नाम. पार्श्व स्तुति, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: हर्षनतासुरनिर्जरलोकं; अंति: मजनशस्तनिजाघः, श्लोक-४. For Private and Personal Use Only Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७. पे. नाम. पार्श्व स्तुति, पृ. ४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदि: शमदमोत्तमवस्तुमहापणं; अंति: जयतु सा जिनशासनदेवता, श्लोक-४. ८. पे. नाम. अर्बुदाचल स्तुति, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., पद्य, आदि: वरमुत्तिअहार सुतारगण; अंति: सुहाणि कुणे सुसया, गाथा-४. ९. पे. नाम. शत्रुजय स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजयमंडण; अंति: नंदसूरि० पाय सेवता, गाथा-४. १०. पे. नाम. थानक स्तुति, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: पंचविदेह विषै विहरंत; अंति: जिण मनवंछति सारै, गाथा-४. ११. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. ५अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: महामंगलं अष्ट सोहै; अंति: सुह संत कल्याणदाता, गाथा-४. १२. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ५अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: बाला पणै डावै पाय; अंति: काज चढे प्रमाणे, गाथा-४. १३. पे. नाम. महावीर स्तुति, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: दया तणो सायर मुक्ति; अंति: चित्त समाधि पुरै, गाथा-४. १४. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतकसुप्रपंचपरमा; अंति: सिद्धायिका त्रायिका, श्लोक-४. १५. पे. नाम. जिन स्तुति, पृ. ६अ, संपूर्ण. ५ तीर्थजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजयमुख्य; अंति: संतु भद्रंकराः, श्लोक-४. १६. पे. नाम. जिन स्तुति, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतक पाडल जाई; अंति: जो तूसै देव अंबाई, गाथा-४. १७. पे. नाम. वीसविहरमान स्तुति, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन स्तवन, मु. महिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीज बहुल उजवालीय वंद; अंति: महिमा० कोइ न तोलै, गाथा-४. १८. पे. नाम. सर्वजिन स्तुति, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तुति, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: नाभेयाजितवासुपूज्यसु; अंति: नेताः प्रयच्छंतु नः, श्लोक-४. १९. पे. नाम. संबोधसप्ततिका प्रकरण, पृ. ७आ-११अ, संपूर्ण. संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: जयसेहर० नत्थि संदेहो, गाथा-१२७. २०. पे. नाम. बृहत्संग्रहणीसूत्र, पृ. ११अ-२९अ, संपूर्ण. बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३९२. ५५३६५. (+) भक्तामर स्तोत्र की कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४४५). भक्तामर स्तोत्र-कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमालवदेशमाहि; अंति: (-), (पू.वि. संबंध १९ अपूर्ण तक है.) ५५३६६. (+#) आचारांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २९-२(१ से २)=२७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०, १४४५०). आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्रथम श्रुतस्कंध अध्ययन १ उद्देशक ३ अपूर्म से द्वितीय श्रुतस्कंध अध्ययन १ उद्देशक ८ अपूर्ण तक है.) ५५३६७. (+#) विचारछत्रीसी प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०, २१४५७). For Private and Personal Use Only Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ४५१ विचारछत्रीसी प्रकरण, प्रा., पद्य, वि. १६४५, आदि: नमिय परमिट्ठ कहिय; अंति: वुच्छमि नियकज्जे. विचारछत्रीसी प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: एकविधि सम्यक्त्व; अंति: सातना वर्जनीयाः. ५५३६९. (+#) थोकडा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, कुल पे. १८, प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२५.५४१२, १२४५८). १. पे. नाम. षद्रव्यनो थोकडो, पृ. १अ, संपूर्ण. __षद्रव्य थोकडा, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणाम १ जीव २ मुता; अंति: भंते तेह त भगवान. २.पे. नाम. छकायना जन्म मरण थोकडा, पृ. १अ, संपूर्ण. छकाय जन्ममरण थोकडा, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीगौतमस्वामी हाथ; अंति: भवकरे जनममरण कया. ३. पे. नाम. प्रज्ञापनासूत्र पर संज्ञापद थोकडा, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी प्रज्ञापनासूत्र-थोकडा संग्रह , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: गोतमस्वामी हाथजोडी; अंति: संज्ञा संखेज गुणी, प्रश्न-८. ४. पे. नाम. भगवतीसूत्र पर रूपीअरूपी का थोकडा, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी है. भगवतीसूत्र-थोकडा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: गौतमस्वामी हाथजोडी; अंति: थ्यात २ समामिथ्यात ३. ५. पे. नाम. प्रज्ञापनासूत्र नवमुंजोनी पद थोकडा, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी है. प्रज्ञापनासूत्र-थोकडा संग्रह , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: गोतमस्वामी हाथजोडी; अंति: (-), प्रश्न-८. ६. पे. नाम. भगवतीसूत्र पर आरंभअनारंभ का थोकडा, पृ. ३अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी है. भगवतीसूत्र-थोकडा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७. पे. नाम. प्रज्ञापनासूत्र पर जीव के सासउसास का थोकडा, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी है. प्रज्ञापनासूत्र- थोकडा संग्रह*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: गोतमस्वामी हाथजोडी; अंति: (-), प्रश्न-८. ८. पे. नाम. पचीसबोल थोकडा, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. २५ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पहले बोले गति च्यार; अंति: चारित्र जाणं. ९. पे. नाम. भगवतीसूत्र भव्यद्रव्यदेव थोकडा, पृ. ४अ-५आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी है. भगवतीसूत्र-थोकडा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: गौतमस्वामी हाथजोडी; अंति: (-). १०. पे. नाम. प्रज्ञापनासूत्र अवधिपद का थोकडा, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी है. प्रज्ञापनासूत्र-थोकडा संग्रह , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: गोतमस्वामी हाथजोडी; अंति: (-), प्रश्न-८. ११. पे. नाम. भगवतीसूत्र पर देवतासुख का थोकडा, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी है. भगवतीसूत्र-थोकडा*, संबद्ध, मागु., गद्य, आदि: गौतमस्वामी हाथजोडी; अंति: (-). १२. पे. नाम. प्रज्ञापनासूत्र भाषापद का थोकडा, पृ. ६आ-८आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी है. प्रज्ञापनासूत्र-थोकडा संग्रह , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: गोतमस्वामी हाथजोडी; अंति: (-), प्रश्न-८. १३. पे. नाम. नय प्रमाण थोकडा, पृ. ८आ-१७अ, संपूर्ण. नय प्रमाण का थोकडा, मा.गु., गद्य, आदि: नय सात निक्षेप चार; अंति: त्यारे मोक्ष जासे. For Private and Personal Use Only Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४. पे. नाम. प्रज्ञापनासूत्र पर आहारपद का थोकडा, पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी है. प्रज्ञापनासूत्र- थोकडा संग्रह , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रश्न-८. १५. पे. नाम. भगवतीसूत्र पर मुनि की निर्जरा परिमाण थोकडा, पृ. १८अ-१९अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी है. भगवतीसूत्र-थोकडा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १६. पे. नाम. प्रज्ञापनासूत्र पद पनरमे रूप का थोकडा, पृ. १९अ-२०आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी है. प्रज्ञापनासूत्र-थोकडा संग्रह , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रश्न-८. १७. पे. नाम. भगवतीसूत्र पर अल्पबहुत्व का थोकडा, पृ. २०आ-२३आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी है. भगवतीसूत्र-थोकडा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १८. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन २४ के पांच समिति व तीन गुण का थोकडा, पृ. २३आ२५अ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन २४ का ५ समिति ३ गुप्ति का थोकडा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: इरीयासुमति १ __ भाषा; अंति: कार्यमा प्रवरताववी. ५५३७०. (+) कल्पसूत्र सातवीं वाचना, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १२४४५). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*,मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. सातवाँ व्याख्यान अपूर्ण मात्र ५५३७१. (+#) सालिभद्र चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २४, प्रले. पं. सहजविमल मुनि (अज्ञा. आ. जिनरंगसूरि); गुपि. आ. जिनरंगसूरि; पठ. श्रावि. रूकमा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०, १३४४२). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: शासननायक समरीयइ; अंति: मनवंछित फल लहिस्यइजी, ढाल-२९, गाथा-५११. ५५३७२. (#) बृहत्कल्पसूत्र व प्रायश्चित्तविधि सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६९, माघ कृष्ण, १४, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २४, कुल पे. २, प्रले. मु. मलुक (गुरु मु. हरिदास); गुपि. मु. हरिदास (गुरु मु. नथमल ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ७X४०-५०). १.पे. नाम. बृहत्कल्पसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-२४अ, संपूर्ण. बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नो कप्पइ निग्गंथाण; अंति: कप्पट्टिई त्तिबेमि, उद्देशक-६, ग्रं. ४७३. बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार अरिहंत सिद्ध; अंति: तेहनी विधि मर्यादा. २.पे. नाम. बृहत्कल्पसूत्र की प्रायश्चित्तविधि सह टबार्थ, पृ. २४अ-२४आ, संपूर्ण. बृहत्कल्पसूत्र-प्रायश्चित्तविधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: नीवी मास भिन्न; अंति: वृत्तिमाहे छई. बृहत्कल्पसूत्र-प्रायश्चित्तविधि का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नीवीने मास भिन्न कही; अंति: (-). ५५३७३. (+#) ढोलामारुचौपाई, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है.,प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १५-१७४४०-४५). ढोलामारु चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६७७, आदि: सकल सुरासुर सामिनी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ७३० अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ४५३ ५५३७४ (+) मुनिपति चौपाई, संपूर्ण वि. १६५८, ज्येष्ठ शुक्ल, ९, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २४, ले. स्थल, चाड, प्रले. मु. मनोहर ऋषि (गुरुमु. उदयचंद ऋषि); गुपि मु. उदयचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X१०.५, ११-१५X४५-४७). मुनिपति चौपाई, मु. सिंहकुल, मा.गु., पद्य, वि. १५५०, आदि : गोयम गणहर गोयम गणहर; अंति: सुणतां हर्ष अपार, ढाल- २७, गाथा- ६०६. ५५३७५. (+४) सिंदुर प्रकरण सह टीका व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १७९८, वैशाख कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. २४, कुल पे. २, ले.स्थल. बाबरा, प्रले. मु. प्रतापविजय (गुरु पं. विरमविजय); गुपि. पं. विरमविजय (गुरु पं. विनयविजय); पं. विनयविजय (गुरु पं. प्रीतविजयजी) पं. प्रीतविजयजी (गुरु भट्टा, विजयप्रभसूरि); भट्टा. विजयप्रभसूरि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. त्रिपाठ - संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५x११, २-५X३६). १. पे. नाम. सिंदुर प्रकरण सह टीका, पृ. १आ-२४आ, संपूर्ण. सिंदूरकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः अंतिः सोमप्रभ० मुक्तावलीयम्, द्वार- २२, श्लोक-१००. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिंदूरप्रकर- टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य वि. १६५५ आदिः श्रीमत्पार्श्वजिन, अंतिः वृत्तिमिमामकार्षीत्२. पे. नाम औषध संग्रह, पृ. २४आ, संपूर्ण. औषध संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५५३७६. (#) देवसीप्रतिक्रमणसूत्र, स्तुति व प्रत्याख्यानसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, कुल पे. ५, प्र. वि. अक्षरों की फैल गयी है, दे., (२५X११, १०x२६). १. पे. नाम. देवसिपडिकमणो, पृ. १आ१८अ, संपूर्ण. देवसिप्रतिक्रमणसूत्र - तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., पग, आदि: नमो अरिहंताणं, अति रि तस्स० नवकार गुणना. २. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. १८अ १८आ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज, अंति: लब्धिविजय० मनोरथ माय, गाथा-४. ३. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. १८ आ-१९अ संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीनेमि: पंचरूप, अंतिः कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. , ४. पे. नाम. एकादसी स्तुति, पृ. १९अ - १९आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: इग्यारसि अती रूअडी; अंति: गुणहर्ष० तणा निसदी, गाथा-४. ५. पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. २०अ २२आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः उगए सूरे नमुक्कार, अंति: गारेणं बोसिरामि, . ५५३७७. ठाणांगसूत्र- नवतत्त्व विवरण, संपूर्ण, वि. १९२५, आश्विन कृष्ण, ६, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २२, ले. स्थल. नवानगर, प्रले. अमरसी लीलाधर खत्री, अन्य मु. जसराजजी मु. हिराचंद, मु. हीर, सा. कस्तुरबाई, प्र.ले.पु. मध्यम, वे., (२५x१०.५, १३४३२-३९). स्थानांगसूत्र - नवतत्त्व विवरण, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: पेहलो नामद्वार० पहिल; अंति: एवो वीतरागनो मारग छे. ५५३८० (+४) पक्खिसूत्र सह टवार्थ व खामणासूत्र, संपूर्ण, वि. १७८१, चैत्र अधिकमास कृष्ण, ४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २१, कुल पे. २, ले. स्थल राजनगर, पठ. मु. मेरुविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित अक्षरों की स्थाही फैल गयी है, जैदे., (२६X१२, ५-९X३६). १. पे नाम, पाक्षिकसूत्र सह टवार्थ, पृ. १आ- २१अ संपूर्ण पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति, संपूर्ण. पाक्षिकसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थंकरसिद्ध, अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २. पे. नाम. खामणासूत्र. पू. २१अ संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४५४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. वंदामि तुब्भे पाठ तक लिखा है.) ५५३८१. (+#) सालिभद्र चौपाई, संपूर्ण, वि. १८५०, चैत्र कृष्ण, १२, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २०, ले. स्थल. गेहरसर, प्रले. मु. हीरा (गुरु मु. सवाईराम); गुपि. मु. सवाईराम (गुरु मु. नैणचंदजी); मु. नैणचंदजी (गुरु मु. मेघराजजी); मु. मेघराजजी (गुरु मु. वणारसजी); मु. वणारसजी, पठ. डुंगर, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. संशोधित. कुल ग्रं. ५०८, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५X१०.५, १२४५०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदिः सासननायक समरियै, अंतिः वंछित सुख मिलस्यैजी, ढाल - २९, गाथा-५११. ५५३८२. (+) श्रीपाल चरित्र, अपूर्ण, वि. १८७०, फाल्गुन शुक्ल, १, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४०-२० (१ से ५,९ से १७,२८ से ३३)=२०, ले. स्थल. रतनगढ़, प्रले. मु. सदाभक्ति, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें जै (२५x१०.५, १४४४१). , श्रीपाल चरित्र, मु. जयकीर्ति-शिष्य, सं., गद्य वि. १८६८ आदि (-); अंतिः श्रीसद्गुरु प्रसादतः प्रस्ताव ४, 3 ग्रं. १२५७, त्रुटक (#) ५५३८५. ) कल्पसूत्र - व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८५४, मार्गशीर्ष शुक्ल, १२, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले. स्थल, कुंभाणानगर, पठ. पं. खुस्याला (गुरु पं. हिमंत सिघ); गुपि. पं. हिमंतसिघ (गुरु पं. जगरूप); पं. जगरूप ( गुरु वा. ईसरदास गणि); वा. गणि (गुरु उपा. सुखमल गणि); उपा. सुखमल गणि (गुरु उपा. दर्शणसुंदर गणि) उपा. दर्शणसुंदर गणि, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. श्रीगोडीजी सहाय छइ., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १५-१८x४३). कल्पसूत्र- व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: अर्हत भगवंत उत्पन्न, अंति: मंगल भणी कहीछइ. ५५३८६. (+) उपदेशमाला प्रकरण, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. २०- ३ (१ से ३ ) - १७, प्र. वि. संशोधित. जैवे. (२५.५x१०.५. " १३x४५). " 3 For Private and Personal Use Only उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सोहियव्वं पयत्तेण, गाथा-५४३, (पू.वि. गाथा ६८ अपूर्ण से है.) ५५३८७. (+) प्रतिक्रमणसूत्र, स्तुति संग्रह व सप्तस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १७, कुल पे. ६, प्र. वि. संशोधित, जै.., (२५.५X११, १३३६-४०). १. पे. नाम. पडिकमणासूत्र, पू. १ आ ६अ, संपूर्ण. साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र - खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., पग, आदि नमो अरिहंताणं नमो अंतिः करेमि कावसग्गं. २. पे. नाम. तीर्थंकर धूई. पू. ६आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतक पाडल जाई, अंति: ज्यो तुझे देव अंबाई, गाथा ४. ३. पे. नाम. पलाकेति श्री पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. ७अ संपूर्ण पार्श्वजिन स्तुति - पनांकित, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वशं ज्योति, अंतिः वृद्धिं वैदुष्यम्, श्लोक-४. ४. पे. नाम. प्रवज्या कुलक, पृ. ७अ-८आ, संपूर्ण. प्रव्रज्या कुलक, प्रा., पद्य, आदि: संसार विसमसायर भवजल, अंति: तरंति ते भवसलिलरासिं, गाथा- ३७. ५. पे. नाम. पार्श्व स्तुति, पृ. ८आ-११, संपूर्ण. जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंति: अभयदेव विनवइ आदि, गाथा - ३०. ६. पे. नाम. सप्तस्मरण- खरतरगच्छीय, पृ. ११अ १७आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअं जिअ सव्वभयं, अंति: (-), (पू.वि. स्मरण ७ गाथा २ अपूर्ण तक है.) Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ४५५ ५५३८८. (+) अंगस्फुरन विचार व सुकनविचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १८२७, फाल्गुन शुक्ल, ५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १७, कुल पे. ३, ले. स्थल. भाणुदा, प्रले. पं. गोकल (गुरु पं. हररूप); गुपि. पं. हररूप ( गुरु मु. जुगतमाणक्य); मु. जुगतमाणक्य (गुरु ग. अमरविसाल वाचक); ग. अमरविसाल वाचक (गुरु उपा. सदासुख गणि) उपा. सदासुख गणि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५.५४११, १४४३०-४० ). , "" १. पे. नाम. अंगस्फुरण विचार, पृ. १आ- २अ, संपूर्ण. मु. हीररत्न, मा.गु, पद्य, आदि: माथै फुरके पुहवीराज; अंतिः वाणि जिसी गुरु भणी, गाथा-२१. २. पे. नाम शकुन विचार संग्रह, पृ. २१-१५अ, संपूर्ण शकुनविचार संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: वार उघाड तांगि लोई, अंति: आपा छीक अलग कर. ३. पे. नाम. शकुन विचार, पृ. १५अ १७आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सारस सांड तुरंग खर; अंति: सफल मनोरथ थाइ, गाथा- ७२. ५५३८९. (+०) धन्नाशालिभद्र चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १७, ले. स्थल हांसी, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १६४३८). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु.] मतिसार, मा.गु., पद्म, वि. १६७८ आदि शासननायक समरीयइ, अंतिः मनवंछित फल लहस्यजी, बाल- २९. गाथा-५११. ५५३९१. (+) चीमासीव्याख्यान, संपूर्ण वि. १७६५ कार्तिक शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १६, ले. स्थल, विक्रमपुर, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५X११.५, १३४३८-४६). चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, मा.गु., सं., प+ग, आदि: ( १ ) प्रणम्य परमानन्द, (२) सामाइकावश्यक पौषधानि; अंतिः चोबीस इम अतीचार थाइ. ५५३९२ (००) लघुदंडक, संपूर्ण, वि. १८७३ वैशाख शुक्त, १५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले. स्थल, वांकानेर प्रले आव जेचंद धर्मसी सेठ; अन्य. सा. आमर आर्या (गुरु सा. कुवरबाई); गुपि. सा. कुवरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. कुल ग्रं. ४५०, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है. जैवे. (२५.५४११. १४४३७-४१). २४ दंडक २५ द्वार विचार, मा.गु., प+ग., आदि: सरीरोगाहणा संघयण, अंति: केवलज्ञान केवलदर्शन. ५५३९३. (+) कर्मप्रकृति विचार, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५. प्र. वि. द्विपाठ संशोधित, जैदे (२६४११.५, २६x४६). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रकृति १५८ मतन्यान; अंति: उदय कर्म आवइ भोगवइ. ५५३९५. (a) गौतमस्वामी रास, संपूर्ण वि. १७५१, मध्यम, पृ. ५, प्रले. ग. उद्योतविजय, पठ. श्राव. गुलालबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै, (२५.५X११, ११४३०-३६). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: नित मंगल जय करो ए, गाथा- ४५. ५५३९७, (+०) नवतत्त्व प्रकरण सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १७५६ आश्विन शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ५, ले. स्थल, पानिलाग्राम, प्रले. मु. विनयशेखर (गुरु उपा. उदयशेखर); गुपि. उपा. उदयशेखर, पठ. श्रावि. फता, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण विशेष पाठ. मूल व टीका का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, प्र. ले. नो. (१) यादृशं पुस्तकं वृष्ड्डा, जैवे. (२५४११, ६x२९). नवतत्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुत्रं पावा, अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा ६० (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) नवतत्त्व प्रकरण-वार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व, अंति: (-) (वि. प्रतिलेखकने अंतिमगाथा का बार्थ नहीं लिखा है.) ५५३९८. (+०) नवतत्त्व प्रकरण सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १६१३, ज्येष्ठ अधिकमास शुरु, ५, सोमवार, जीर्ण, पृ. ६-१ (१) ५. ले. स्थल. नडुलाई ( नाडोल), प्रले. मु. राजमेर, पढ. सा. लोचा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित मूल व टीका का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २५X१०.५, ५X३५). नवस्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: (-) अंतिः अणागयद्धा अनंतगुणा, गाथा ४१ (पू. वि. गाथा १० अपूर्ण से है. ) " For Private and Personal Use Only Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: कालइ अनंतगुणा छइ. ५५३९९. (+) चंदनमलयागिरी वार्ता, संपूर्ण, वि. १८०१, आश्विन कृष्ण, २, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. मांडवीबिंदर, पठ. मु. जगनाथ ऋषि (गुरु मु. आसकरण ऋषि); गुपि.मु. आसकरण ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १७४५१). चंदनमलयागिरि रास, मु. भद्रसेन, पुहिं., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीविक्रम; अंति: भए सुख सवंछित भोग, अध्याय-५, गाथा-१८४. ५५४००. पार्श्वनाथ दसभव विवाहलो, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, जैदे., (२६४११, १४४४१-४४). पार्श्वजिन १० भव विवाहलो, श्राव. पेथो श्रीमाल, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: सरसति सामिणि करुअ; अंति: इम बोलइ० अविचल रिधि, गाथा-२०६. ५५४०१. (+) दानशीयलतपभावनाचौढालीयो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १५४३७). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: समृद्धि सुप्रसादोरे, ढाल-५. ५५४०२. (+) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११.५, ११४२३-२५). १. पे. नाम. पंचमी स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. पंचमीतिथि स्तवन, ग. उदयसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सांमिणि समरी; अंति: उदयल्सयल संघ मंगल करो, ढाल-३, गाथा-२०. २. पे. नाम. इग्यारस स्तवन, पृ. २आ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरी समोसर्य; अंति: (-), (पू.वि. ढाल २ गाथा १८ अपूर्ण तक हैं.) ५५४०३. (+) भाष्यत्रय सह टीका व बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १८-१३(५ से १७)=५, कुल पे. २, ले.स्थल. रोहीटनगर, प्रले. मु. गंगदास (गुरु ग. लब्धिकल्लोल, खरतरगच्छ); गुपि.ग. लब्धिकल्लोल (गुरु मु. कुशलकल्लोल, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४४८). १.पे. नाम. भाष्यत्रय सह टीका, पृ. १आ-४आ-१८अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: नमिऊण वद्धमाणं मिच्छ; अंति: तिकाल सीयाल भंग सयं, भाष्य-३, (पू.वि. चैत्यवंदनभाष्य गाथा ३२ अपूर्ण से पच्चक्खाणभाष गाथा ४२ अपूर्ण तक नहीं है.) भाष्यत्रय-टीका, सं., गद्य, आदि: चैत्यवंदना वरभाष्यं; अंति: अनाहारे अंतर्भवति. २.पे. नाम. समकितना ६७ भेद, पृ. १८अ, संपूर्ण.. सम्यक्त्व के ६७ बोलभेद, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: चउसद्दहण तिलिंग दस; अंति: वचनवीर्य कायवीर्य३, गाथा-२. ५५४०४. (+) प्रतिक्रमणादिसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ९४२७-३६). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (वि. पचक्खाण, संथारापोरसी आदि संलग्न हैं.) ५५४०५. (+#) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५८-४३(१ से ४३)=१५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ५४४८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन ८ गाथा ६३ से चूलिका २ गाथा ९ अपूर्ण तक हैं.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ४५७ ५५४०६. (+#) पक्खिसूत्र, संपूर्ण, वि. १८७४, आश्विन शुक्ल, १५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले. स्थल. सिवपुरीनगर, पठ. मु. राजेंद्रसागर (गुरु पं. खुसालसागर); गुपि. पं. खुसालसागर ( अज्ञा. पं. सरूपसागर) प्रले. पं. सरूपसागर (गुरु पं. योग्यसागर): गुपि. पं. योग्यसागर (गुरु पं. भक्तिसागर), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. श्रीजीरावल पारसनाथजी प्रसादात्., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैये. (२५x११.५, १३४३०). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. ५५४०० साधुप्रतिक्रमणविधि सह सूत्रो, प्रवज्याविधानकुलक, बृहत्शांति, पच्चक्खाणसंग्रह, जयतिहुअणस्तोत्र व सप्तस्मरण, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४ कुल पे. ७ जैवे. (२६११, १३४५१-५४). १. पे. नाम. साधु प्रतिक्रमणविधि सह सूत्रो, पृ. १आ-६आ, संपूर्ण. साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र - खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं नमो, अंतिः वंदामि जि चउन्चीसं. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. प्रवज्याविधान कुलकम्, पृ. ६आ-८अ, संपूर्ण. प्रव्रज्या कुलक, प्रा., पद्य, आदि: संसार विसमसायर भवजल, अंति: तरंति ते भवसलिलरासिं, गाथा-३४. ३. पे. नाम. वृहशांति, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: सुखी भवतु लोकः. ४. पे. नाम. पच्चक्खाणसूत्र संग्रह, पृ. ९अ ९आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि उगए सूरे नमुक्कार, अंति: वत्तिआगारेणं बोसिरह ५. पे. नाम. पौषध प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. ९आ, संपूर्ण संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: करेमि भंते पोसहं, अंति: अप्पाणं वोसिरामि. ६. पे. नाम. पार्श्व स्तुति, पृ. ९आ-११अ, संपूर्ण. जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंतिः अभवदेव विनवह आणदिव गाथा- ३०. , ७. पे. नाम. सप्तस्मरण, पृ. ११अ-१४आ, संपूर्ण. सप्तस्मरण - खरतरगच्छीय, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअं जिअ सव्वभयं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., नमिऊण की गाथा ९ अपूर्ण तक लिखा हैं.) ५५४०८. (+) उपदेशमाला की कथा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६X११.५, १६x४०). उपदेशमाला-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: इहेव जंबूद्रीपनामा अंति: (-), (पू. वि. परसुराम कथा अपूर्ण तक हैं.) ५५४०९. (+) आवश्यकसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १३, ले. स्थल नागोर, प्रले. सा. कुशला आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., ( २६११.५, ३-५X३६). साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह से.मू. पू. संबद्ध, प्रा. सं., प+ग, आदि: नमोअरिहंताणं० करेमि अंतिः सपत्ताणं नमो जिणाणं. ५५४१०. (+#) ऋषिदत्तासतीचौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३, प्रले. पं. धर्मसोम गाणि पठ. पं. श्रीसोम गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५X१०.५, १६x४५-५५). ऋषिदत्तासतीचौपाई, उपा. धर्मकीर्ति वाचक, मा.गु., पद्य, वि. १६९२, आदि: सुअदेवी समरी करी, अंतिः कहइ श्रीसंघ झाकझमाल, ढाल १६, गाथा- ३८८. ५५४१२. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र व सिंदुरप्रकर, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३ कुल पे २ प्र. वि. संशोधित, जैदे (२५X११.५, १५X४५). १. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह कल्याणमंजरी टीका, पृ. १आ-१३ आ. संपूर्ण वि. १८४७ वारिधिवेदवारणमही, चैत्र शुक्ल, १२, ले. स्थल. महेश्वरपुर, प्रले. मु. हर्षविजय (गुरु मु. कीर्त्तिरत्न); गुपि. मु. कीर्त्तिरत्न, प्र. ले. पु. सामान्य, पे.वि. श्रीमत्पार्शजिन प्रसादवशतः For Private and Personal Use Only Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुदचं० प्रपद्यते, श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-कल्याणमंजरी टीका, मु. विनयसागर, सं., गद्य, वि. १६७२, आदि: स्वर्वापीवीचिखेलज्जन; अंति: (१)हो येषां ते तादृशाः, (२)हि श्रीमद्यवनपत्तने. २. पे. नाम. सिंदूरप्रकर सह टीका, पृ. १३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक २ तक हैं.) सिंदूरप्रकर-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिनं; अंति: (-). ५५४१४. (+#) नवतत्त्व सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. प्रत जीर्ण होने के कारण पत्रांक अस्पष्ट एवं अदृश्य है., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२५.५४११, १३४४१). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाश्जीवार पुण्णं३; अंति: (-), (पू.वि. बंधतत्व-८ अपूर्ण तक हैं.) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध *, रा., गद्य, आदि: ए नवतत्व कहीयइ कुण; अंति: (-). ५५४१५. (+#) भाष्यत्रय सहटबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-३(३ से ५)=१२, प्र.वि. संशोधित. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२५.५४११.५, ६४३६). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाह, भाष्य-३, गाथा-१५२, (पू.वि. चैत्यवंदनभाष्य गाथा २२ अपूर्ण से गाथा ४० तक नहीं है.) भाष्यत्रय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वांदीनइ केहनइ जे; अंति: लक्षण अबाधारहित. ५५४१७. (+#) संग्रहणीसूत्र व ज्योतिष, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. २, पठ. हरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक ने कृति का नाम लघुसंग्रहणी लिखा है, वास्तव में यह बृहत्संग्रहणी हैं., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४४०). १. पे. नाम. लघुसंग्रहणीसूत्र, पृ. १अ-१२अ, संपूर्ण. बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊं अरिहंताई थिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-२७४. २. पे. नाम. ज्योतिष संग्रह, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. ___ ज्योतिष,मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ५५४२०. (#) खरतरगच्छीय प्रतिक्रमणादिविधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १२४४४). १.पे. नाम. पौषधविधि सूत्रसहित, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. पौषधविधि सूत्रसहित-खरतरगच्छ, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम इरियावही पडिक; अंति: खरतरगच्छ सामाचारी. २.पे. नाम. राईयदेवसीपाक्षीकचौमासीसंवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सूत्रसहित, पृ. ३आ-११आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रतिक्रमणविधि संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही पडिकम; अंति: (-), (पू.वि. क्षुद्रोपद्रव काउसग्ग अपूर्ण तक हैं.) ५५४२१. (+) सम्यक्त्व स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११,प्र.वि. श्रीधर्मनाथजी प्रसादात्. प्रथम पत्र पर 'रतनचंद उत्तम नाणावट, वमल' लिखा है., संशोधित., प्र.ले.श्लो. (७६८) जादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२४.५४११, ३४२१). सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूवं; अंति: हवेउसम्मत्तसंपत्ति, गाथा-२५. सम्यक्त्वपच्चीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जह कहतांजे उपशमादिक; अंति: प्राप्ति थाओ. ५५४२६. (+) मौनएकादशी कथा व ज्ञानपंचमी कथा, संपूर्ण, वि. १८९२, मार्गशीर्ष कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २, प्रले. पं. मतिमंदिर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११.५, १३४३६). १.पे. नाम. मौनएकादशी कथा, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ www.kobatirth.org ४५९ मौनएकादशीपर्व व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदि: (१) सिरिवीरं नमिऊण, (२) श्रीमहावीरदेवनै; अंति: सकल सुख विभाग थाइ. २. पे. नाम. गुणमंजरी वरदत्त कथानक, पृ. ७अ १० आ. संपूर्ण. वरदत्तगुणमंजरी कथा, मा.गु., सं., गद्य, आदि: (१)ज्ञानं सारं सर्व, (२) ज्ञान छै ते संसार; अंति: मुक्ति गया. ५५४२८. श्रावकनां १२४ अतिचार व शत्रुंजयतीर्थोद्धार रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २, जैदे., (२६×११, ११x४१). १. पे. नाम. आयकरासाठि अतीचार, पृ. १आ- ९अ, संपूर्ण श्रावकव्रत १२४ अतिचारभेद वर्णन, प्रा., सं., गद्य, आदि: ( १ ) जेहगेहंपइदियहं विसोह, (२) हिवै श्रावकना व्रतनै, अंतिः मिच्छामि दुकडं देवौ. २. पे. नाम. सेन्रुजैरो रास, पृ. ९अ- १०आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शत्रुंजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी, अंति: (-), (पू. वि. ढाल ३ गाथा १० अपूर्ण तक हैं.) ५५४२९. (+) सिद्धांकचंद्रिका की सुबोधिनी टीका ण्यंतप्रक्रिया, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित., ., (२५.५X११.५, ११X३३). - ५५४३०. सिद्धांतचंद्रिका -सुबोधिनी वृत्ति, ग. सदानंद, सं., गद्य, वि. १७९९, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, व्यन्तप्रक्रिया से सान्तप्रक्रिया का प्रारंभ मात्र तक लिखा हैं.) (+#) शत्रुंजयउद्धार, पूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १० - १ ( १ ) = ९, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५X११, ९३०). शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास, मु. नवसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आवि: (-) अंति: नयसुंदर० दरसण जब करो, डाल- १२, गाथा - १२१, (पू.वि. ढाल १ की अंतिम गाथा अपूर्ण तक नहीं है.) ५५४३१. चोविसदंडक स्तवन, संपूर्ण वि. १८५५ आश्विन शुक्ल, ५, रविवार श्रेष्ठ, पृ. ९, ले, स्थल, राजनगर, प्र. ले. श्लो. (७८५) याद्रीसं पुस्तकं दृष्टा, जैवे. (२५४११.५, ११४२७) महावीरजिन स्तवन २४ दंडकगर्भित, क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी सरसति भगवती, अंतिः पद्मविजय - गुण गाय, ढाल-६, गाथा- ८९. ५५४३२. (०) स्तवन वीसी, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ९. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १२X३७). स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्म, आदि: पुक्खलवई विजये जयो; अंतिः वाचक जस इम बोले रे, स्तवन- २०. ५५४३४. (+) नवतत्त्व सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र. वि. संशोधित, जैये. (२६४११, १७४४४). नवस्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा, अंतिः अणागवद्धा अनंतगुणा, गाथा ४२. नवतत्त्व प्रकरण- बालावबोध *, रा., गद्य, आदि: यथावस्थिर साचउ जे; अंति: आज्ञानी प्रमाण करिवी. ५५४३६. (०) इलापुत्रचीपाई व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १७४३, भाद्रपद कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, ले. स्थल. सावडी, प्रले. मु. सुखदेव ऋषि (गुरु मु. त्रिलोकसी ऋषि); गुपि. मु. त्रिलोकसी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६ ११, १२X३८). १. पे. नाम. इलापुत्र चतुप्पदी, पृ. १आ- ९अ, संपूर्ण. इलाचीकुमार चौपाई भावविषये, मु. ज्ञानसागर, मा.गु, पद्य, वि. १७१९, आदि: सकल सिद्धिदाई सदा अंतिः भावतणा गुण हवा जाणी, ढाल १६, गाथा- १८६. २. पे. नाम. रिषभजी स्तवन, पृ. ९आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि जगजीवन जगवाल हो, अंतिः सुखनो पोष लाल रे, गाथा - ५. For Private and Personal Use Only Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५५४३७. (+#) अषाढाभूति चौपाई-पिंडविशुद्धि विषये, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४८). आषाढाभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: सकल ऋद्धि समृद्धिकर; अंति: होज्यो इम ___ कल्याणोरे, ढाल-१६, गाथा-२११. ५५४३८. (+#) मौनएकादशी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८,प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११, १२४३१). मौनएकादशीपर्व व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदि: सिरिवीरं नमिऊण; अंति: सकल सुख विभागी थाइ. ५५४३९. (#) अढारपापस्थानकपरिहार भास, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११,१५४३५-३९). १८ पापस्थानकपरिहार कुलक, मु. ब्रह्म, मा.गु., पद्य, आदि: सुंदर रूप विचार चतुर; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र ___ नहीं हैं., ढाल १७ तक हैं.) ५५४४०. (+#) बंधस्वामित्व कर्मग्रंथ सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १७४४८-५५). बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं, गाथा-२५. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, ग. पुण्यकलश, मा.गु., गद्य, आदि: बंधविधान कर्मबंधना; अंति: मात्रेण बालावबोध. ५५४४१. (+#) दस अछेरा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४११, १३४३६). १० आश्चर्य वर्णन, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: उवसग्ग १ गब्भहरणं २; अंति: विछेदिइ असंजतीनीपूजा. ५५४४३. (+#) कुलकरादि नाम, बासठबोल व औषध संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-१(७)=७, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १७४२७-४६). १. पे. नाम. जैन सामान्यकृति, पृ. १अ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति*, प्रा.,मागु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (वि. कुलकर, तीर्थंकर भव, प्रथमपारणा आदि बोल संग्रह.) २.पे. नाम. बासठबोल-२रद्वार, पृ. १आ-६आ-८आ, पूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. ६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जीव गई ईदिय काए; अंति: तुल्याने विशेसाइया. ३. पे. नाम. औषधवैद्यक संग्रह, पृ. ८आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५५४४५. (+) सुक्तावली व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १७८७, मार्गशीर्ष कृष्ण, ८, सोमवार, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, ले.स्थल. कटारियानगर, प्रले. पं. नयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १७X४६). १.पे. नाम. श्लोक सुक्तावली, पृ. १अ-७आ, संपूर्ण. सूक्तावली संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: नास्त्यहिंसा समो; अंति: प्रमादरजसानरैः, गाथा-३२२. २.पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ७आ, संपूर्ण... श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-११. । ५५४४६. (+) उत्तराध्ययनसूत्र- अध्ययन ११ से १४, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४४४). ___ उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. अध्ययन ११ से १४ लिखा है.) ५५४४७. (+) प्रास्ताविकश्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४५५). For Private and Personal Use Only Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ४६१ प्रास्ताविक श्लोक, सं., पद्य, आदि: वीरःसर्वसुरासुरेंद्र; अंति: रम्यागिर: पातुवः, श्लोक-२३२. ५५४४८. (#) पद संग्रह, सज्झाय, सवैया व निर्वाणकांड-भाषा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. १७, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ९४३१). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. दोलत, पुहिं., पद्य, आदि: सुनौ जिया यह सतगुरु; अंति: निवडो दुंद दसातै, गाथा-५. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___पुहिं., पद्य, आदि: मोही जीव भमत मतै; अंति: विलास निकास हृदय सैं, गाथा-४. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जीव तु अनादही भल; अंति: नीच रैलवा जीवत, गाथा-३. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. ___पुहि., पद्य, आदि: सुन जियारे खोवै छै; अंति: मानो सतगुरुदी बातडि, गाथा-३. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. म. टोडरमल, पुहिं., पद्य, आदि: जीया तोसों केतक बार; अंति: डोटर० तिहुं लोक नही, गाथा-४. ६.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. जगतराम, पुहिं., पद्य, आदि: कैसा ध्यान धर्या है; अंति: जगतराम० नमो ऊचरा है, गाथा-४. ७. पे. नाम. निर्वाणकांड भाषा, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण. निर्वाणकांड-पद्यानुवाद, जै.क. भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७४१, आदि: वीतरागिवंदौ सदा भाव; अंति: निर्वाणकांड गुणमाल, गाथा-२२. ८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. जादवराय, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन तेरी बुधि कौन; अंति: पडौगे नर्क नगरी रे, गाथा-२. ९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. जगराम, पुहिं., पद्य, आदि: जोगी जुगति जानी नही; अंति: सुख चाहो भवोदधि तिरो, गाथा-२. १०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जिआ जिनराज विनारे; अंति: भवसागर तिरणां रे, गाथा-५. ११. पे. नाम. साधारणजिन वीनती, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. साधारणजिन वीनति, मु. भूदरदास, पुहि., पद्य, आदि: अहो जगत गुरुदेव सुनी; अंति: भूदर० सुन लिजो भगवान, गाथा-१२. १२. पे. नाम. वैराग्य पद, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. मु. रामविजय, पुहिं., पद्य, आदि: ऐसे मुनिवर देखे बनमै; अंति: नित प्रत ध्यान जतनमै, गाथा-५. १३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ६अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: कहै पसु दीन सुनौ जग्; अंति: जगदिस कछु आइ है, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) १४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. मु. भूधर, पुहि., पद्य, आदिः जिनराज ना विसारो मत; अंति: भुदर० दगा है यारो, गाथा-१, (वि. प्रतिलेखकने ४ गाथा को १ही गीना है, आगेगाथा क्रमशः) १५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ६आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जिनराज उरमै धारौ वसु; अंति: अव सिव महल सिदारो, गाथा-१. १६. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. लालविनोद, पुहिं., पद्य, आदि: मैरा चसमों दा प्यारा; अंति: निर्वाण पद लहा है, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) १७. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ७आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: तुम तारण हम जाणी तार, अंति: मै पावं मुक्त निसानि, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) ५५४४९, (+) चतु:शरणप्रकीर्णक सह वालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, अन्य मु. ऋषभदास ऋषि, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखक ने बालावबोध लिखा है, वास्तव में यह स्वार्थ है, पदच्छेद सूचक लकीरें, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६x११.५, ६X३६). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा. पद्य वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - ६४. चतुः शरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सावद्यव्यापार त्याग, अंतिः ए चउसरण अध्ययन गणीवर. ५५४५०. पार्श्वनाथ छंद, आदिश्वर विनती, पुच्छिसुणं व प्रास्ताविक श्लोक, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८-२ (१ से २)=६, कुल पे. ५, जैदे., (२५.५X११.५, १४X३१-३३). १. पे. नाम. पार्श्वनाथनो छंद, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तोत्र - शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, ..स., पद्य, वि. १७१२, आदि: (-); अंति: मुदा प्रमत्तात्, गाथा-३२, (पू. वि. मात्र अंतिम गाथा अपूर्ण से है . ) २. पे. नाम. पार्श्वनाथनो छंद, पृ. ३अ- ५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन निसाणी - घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपत्तिदायक सुरनर, अंति: जिनहरष० कहंदा है, गाथा ४९. ३. पे. नाम. आदेसरनी विनति, पृ. ५अ-७अ, संपूर्ण. आदिजिनविनती स्तवन- शत्रुंजयतीर्थ, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: जइ पढम जिणेसर अति; अंतिः मन वैरागे इम भणियं, गाथा ४५. ४. पे. नाम वीरत्थुइ नामायणं, पृ. ७अ-८आ, संपूर्ण सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण, अंतिः आगमिस्संति तिबेमि, गाथा-२९. ५. पे नाम. प्रास्ताविकगाथा संग्रह, पृ. ८आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि पंचमहव्वयसुव्ववमूलं, अंति: (-), (पू.वि. गाधा ७ अपूर्ण तक हैं.) ५५४५१. (+) चौबीस दंडक २९ द्वार, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष " पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६ ११, १८४५० ). २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजु, अंति: (-), (पू.वि. द्वार- २५ अपूर्ण तक है.) ५५४५२. नवतत्त्व प्रकरण व विचारषट्त्रिंशिका, संपूर्ण वि. १८६१ १८६५, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, ले. स्थल, मेडता, प्रले. पं. अमरविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६×११.५, १०x२९). १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. १अ ४अ संपूर्ण, वि. १८६१ आश्विन शुक्ल. २. प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा ४८. २. पे. नाम. दंडक प्रकरण, पृ. ४अ ६आ, संपूर्ण वि. १८६५ आश्विन शुक्ल ४ रविवार मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि नमिउं चउवीसजिणे तस्स अंति: एसा विनति अप्यहिआ, गाथा ४०. ५५४५५. (+#) द्रौपदी रास, संपूर्ण, वि. १८२५, फाल्गुन कृष्ण, मध्यम, पृ. ६, प्रले. नगजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, १७५२). द्रौपदीसती रास, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: नमुं वीर सासण धणी, अंति: मिच्छामिदुक्कडं मोव, डाल-९. ५५४५६, (+४) नवतत्त्वप्रकरण सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १६९३, मध्यम, पृ. ६, प्रले. सा सूवट आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, ५X३१). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अनंतगुणा, गाथा-४४. नवतत्व प्रकरण-वार्थ * मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्व १ अजीवतत्व २ अंतिः कालि वली अनंतगुणा छ For Private and Personal Use Only Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ४६३ ५५४५७. (०) प्रतिक्रमणविधि, स्तुतिसंग्रह व दोहा, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७-१ (१) ६, कुल पे ७, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X११, १२-१७X२०-४८). १. पे नाम, लोगस्स सूत्र, पृ. २आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. लोगस्ससूत्र, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि (-); अंतिः सिद्धिं मम दिसंतु, गाधा-७, (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पडिकमणाविध आलोयण, पृ. २आ-६आ, संपूर्ण. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू. पू. *, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग., आदि: (१) इच्छाकारेण संदिसह, (२) जगचिंतामणी० जगगुरु अंतिः करिमिच्छामि दुकडं. ३. पे नाम, बीजरी धूड़, पृ. ६आ, संपूर्ण. वीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि दिन सकल मनोहर बीज अंति; लब्धिविजय० मनोरथ माय, गाथा-४. ४. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु, पद्य, आदि इकादसी अति रुअडि; अंति: गुणहर्ष० तणा निसदीस, गाथा ४. ५. पे. नाम. पंचमरी थूइ, पृ. ७अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमि पंचरूप, अंतिः कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ६. पे. नाम. पाक्षिक स्तुति, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदिः स्नातस्याप्रतिमस्य अंतिः सर्वकार्येषु सिद्धिः, श्लोक-४. ७. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. ७आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दोहा संग्रह जैनधार्मिक, पुहिं., मा.गु., पद्य, आदि: सेसकरण कासवा सूतन; अंति: सूरज उगते सूर, गाथा- १. ५५४५८. (#) चंदनमलयगिरी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५X११, १५X४५). चंदनमलयागिरि रास, मु. भद्रसेन, पुहिं., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीविक्रम; अंति: भए सुख सवंछित भोग, अध्याय-५, गाथा - २१४. ५५४५९. (+) भरतबाहुबली सलोको, संपूर्ण, वि. १८६७, पौष शुक्ल, ६, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल. धोराजी, प्रले. मु. बाजी ऋषि; अन्य. सा. साकरबाई महासती (गुरु सा. कस्तुरबाई); गुपि. सा. कस्तुरबाई (गुरु सा. कसलीबाई); सा. कसलीबाई, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित. जैवे. (२५४११, ९३०). भरतबाहुबली सलोको, क. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम प्रणमुं माता, अंति: उदयरतन० लीलविलास, गाथा- ७१. ५५४६०. (+) विचारषट्त्रिंशिका व कार्यठिई स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ६, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७X११, ६x४५). १. पे नाम, विचारषट्त्रिंशिका सह टवार्थ, पृ. १अ ४आ, संपूर्ण दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीसजिणे तस्स; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा - ३७. दंडक प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ चउवीस, अंति: आपणा हितनइ अर्थइ. २. पे. नाम. कायठिई स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. ४-६ आ, संपूर्ण. कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जह तुह दंसणरहिओ काय, अंति: अकायपयसंपयं देसु, गाथा - २४. कावस्थिति प्रकरण बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि हे जिन ताहरा दर्शनथी, अंतिः हवि मोक्षपद शीघ्र दइ. ५५४६१. (+) पौषध सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५. प्र. वि. संशोधित. जे. (२४४११, ७४२१) " पौषध सज्झाय खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि जगचूडामणिभूओ उसभो; अंतिः उप्पन्नं केवलं नाणं, गाथा-३३. " For Private and Personal Use Only Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५५४६२. (+) अंतगडदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५२, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ३०००, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५.५४१०.५, ६x४५). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: जहा नायाधम्मकहाणं, अध्याय-९२. अंतकृद्दशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० तेणे काले चउथो; अंति: ज्ञाताधर्मकथानी परे. ५५४६३. (+#) षडावश्यक अध्ययन-१ से ४ सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १५१६, भाद्रपद शुक्ल, ११, शनिवार, मध्यम, पृ. ५१-२(१,३)=४९, पठ. मु. डुंगर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०.५, १७-१९४५३-५८). आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. सती श्रीमतीकथा अपूर्ण से है.) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का बालावबोध, पं. हेमहंस गणि, मा.गु., गद्य, वि. १५०१, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ५५४६४. (+#) उवासगदशांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ४७-१(२)=४६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ७४३८-४२). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं० चंपा नामं नयरी; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अधययन-१-श्री महावीरस्वामी द्वारा वर्णित दस अध्ययनों के नाम से लेकर आनंद श्रावक के दृष्टांत प्रारंभ तक नहीं है, व अध्ययन-९, नंदिनीपिता दृष्टांत अपूर्ण तक है.) उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तिणै काले तस्मिन्; अंति: (-), पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ५५४६५. (+#) मनुष्यभव दुर्लभता दशदृष्टांत व विक्रमादित्य यात्रा वर्णन, संपूर्ण, वि. १७९१, फाल्गुन कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ३१, कुल पे. २, ले.स्थल. देवगाव, प्रले. पं. विनोदसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४४३). १. पे. नाम. मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टांत, पृ. १आ-३१आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: संसारे चतसृषु गतिषु; अंति: न शक्यते जीवेन. २. पे. नाम. विक्रमादित्य यात्रा, पृ. ३१आ, संपूर्ण. विक्रमादित्ययात्रा वर्णन, सं., पद्य, आदि: शकटानि कोटिरैका; अंति: कांचनदेवालयानांच. ५५४६६. (+#) राम चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३१-१(१८)=३०, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३-१८४४५-५०). रामयशोरसायन चौपाई, मु. केशराज, मा.गु., पद्य, वि. १६८३, आदि: मुनिसुव्रतस्वामीजी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३४८ अपूर्ण से ३६८ अपूर्ण तक व ८५८ अपूर्ण से आगे नहीं है.) ५५४६८.(+#) प्रत्येकबुद्ध चौपाई, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ३९-१०(१३ से २२)=२९, प्रले. मु. हीरशेन (गुरु वा. हर्षवल्लभ गणि); गुपि.वा. हर्षवल्लभ गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक खंडित होने के कारण अनुमानित घटते पत्र लिए गए हैं., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४५०). ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: सिद्धारथ शशिकुलतिलो; अंति: उदय० आणंद लीलविलास, खंड-४ ढाल ४५, गाथा-८३५, (पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., खंड-२, ढाल-५, गाथा-१९ अपूर्ण से खंड-३, ढाल-१३, गाथा-२ अपूर्ण तक व बीच-बीच के कुछ पाठांश नहीं हैं.) ५५४६९. (+#) दीपावलीकाकल्प सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३३-४(२,३० से ३२)=२९, ले.स्थल. सादडी, प्रले.पं. सुंदरविजय (अज्ञा. पं. वनीतविजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२५४११, ६४३६-४५). दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदि: श्रीवर्धमानमांगल्य; अंति: चंद्रार्क जयत्त्रये, श्लोक-४३७, (पू.वि. श्लोक-७ अपूर्ण से २० अपूर्ण तक व ३८४ अपूर्ण से ४२४ अपूर्ण तक नहीं है.) For Private and Personal Use Only Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ४६५ दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, ग. सुखसागर, मा.गु., गद्य, वि. १७६३, आदि: अर्हन् बालबोधीनां; अंति: करि त्यार लगे प्रतपो. ५५४७०. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ३२-४(१ से ४)=२८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल व टीका का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ६४४६-५०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. इक्कीस तीर्थंकरों के कुल-वर्णन से सिद्धार्थ राजा के स्वप्न वर्णन तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अति: (-). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ५५४७४. (+) चित्रसेनपद्मावती चौपाई, संपूर्ण, वि. १८७१, कार्तिक शुक्ल, १४, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २६, ले.स्थल. गढसर, प्रले. मु. ऋद्धिसागर (गुरु वा. दयाराज गणि, खरतरगच्छ-क्षेमशाखा); गुपि. वा. दयाराज गणि (गुरु वा. विद्याविशाल गणि, खरतरगच्छ-क्षेमशाखा); वा. विद्याविशाल गणि (खरतरगच्छ-क्षेमशाखा), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. इष्टदेव प्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १३४३५-३८). चित्रसेनपद्मावती चौपाई, उपा. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१४, आदि: रिसहेसर पायकमल पणमिय; अंति: व्याल्यो सोभाग सवायौ, गाथा-४९५. ५५४७६. (+) इंद्रियपराजय शतक, आदिनाथ देशना सह टबार्थव विचारादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २३, कुल पे. ६, प्र.वि. पं. सौभाग्यमाणिक्य गणि के द्वारा संशोधित., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. कुल ग्रं. ८००, जैदे., (२५४११, ५४३१). १.पे. नाम. नारी लक्षण विचार, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी है. विचार संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. जीव अजीव विचार, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी है. विचार संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. इंद्रियपराजय शतक सह टबार्थ, पृ. १आ-१३आ, संपूर्ण. इंद्रियपराजयशतक, प्रा., पद्य, आदि: सुच्चिअसूरो सो; अंति: संवेगरसायणं निच्चं, गाथा-१०२. इंद्रियपराजयशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेहजि सूर तेहजि; अंति: रसायण सेवी नित्य. ४. पे. नाम. आदिनाथ देशना सह टबार्थ, पृ. १३आ-२३आ, संपूर्ण. आदिनाथ देशनोद्धार, प्रा., पद्य, आदि: संसारे नत्थि सुह; अंति: उप्पंजत्ता सिवंति, गाथा-८८. आदिनाथ देशनोद्धार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसारमाहि नथी सुख; अंति: शिव मोक्ष पहुंचइ. ५. पे. नाम. बत्रीशलक्षणनाम, पृ. २३आ, संपूर्ण. ३२ लक्षण श्लोक, सं., पद्य, आदि: सप्तरक्त षडुन्नतः; अंति: ग्रीवा१ जंघारमिहन३, श्लोक-१. ६.पे. नाम. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, पृ. २३आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: निव१ सिद्धिर इत्थि३; अंति: सर्दैहुजानव निआणा, श्लोक-१. ५५४७७. (#) चार प्रत्येकबुद्ध चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २७-४(१ से ४)=२३, प्र.वि. कुल ग्रं. १२१९, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४४८). ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: (-); अंति: आणंद लील विलास, खंड-४ ____ ढाल ४५, गाथा-८६२, (पू.वि. खंड-१, ढाल-७ की गाथा-९ अपूर्ण तक नहीं है.) ५५४८०. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५९-३७(१ से ३६,५७)=२२, अन्य. खुसलजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पणयुक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. २१५७, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४५०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: संबुडे त्ति बेमि, अध्ययन-३६, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., अध्ययन-२८ की गाथा-२१ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५५४८४. (+#) भगवतीसूत्र - शतक - २४ गमा विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, ४७X३०). गम्माशतक यंत्र- भगवतीसूत्र, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५५४८५ (+१) ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २०, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जै. (२५x११, ९४२६) ऋषिमंडल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि प्रा. पद्य वि. २४वी आदि भक्तिभर नमिरसुरवर अंतिः धम्मघोस० सिद्धिसुहं, " 1 गाथा- २३१. ५५४८६. छत्रीस बोलनो थोकडो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २०, प्रले. अमरसी लीलाधर खत्री; अन्य. श्रावि. रलियात बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७X११, १६x६९). ३६ बोल थोकडो, मा.गु, गद्य, आदि: एगे संजमे१ एगे असंजम अंतिः रेतनी रक्षा करवी. ५५४८७. कयवन्नाशेठ चौपाई, संपूर्ण, वि. १८८२, फाल्गुन शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. २०, ले. स्थल. थोभ, प्रले. पं. अक्षयरुचि (गुरु पं. आणंदहर्षमुनि, बृहतखरतरगच्छ); गुपि. पं. आणंदहर्षमुनि (गुरु वा. सोभाग्यविनय गणि, बृहतखरतरगच्छ); वा. सोभाग्यविनय गणि (गुरु वा. कमलकलश गणि, बृहत्खरतरगच्छ); वा. कमलकलश गणि (गुरु वा. कुशलमूर्ति गणि, बृहत्खरतरगच्छ); वा. कुशलमूर्त्ति गणि (गुरु उपा. सुमतिधर्म गणि, बृहत्खरतरगच्छ); उपा. सुमतिधर्म गणि (परंपरा आ. जिनचंद्रसूरि, बृहत्खरतरगच्छ); आ. जिनचंद्रसूरि (बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, जैदे., (२६X११.५, १६x४०). कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२१९, आदिः स्वस्ति श्रीसुखसंपदा, अंति: धरम करण मन उलस्यै जी, ढाल - ३१, गाथा - ५५५. " ५५४८८. (+) दशठाणा बोलविचार, संपूर्ण, वि. १७७१ आश्विन शुक्ल, २, सोमवार श्रेष्ठ, पृ. २०, प्रले आवि. लखमणा; मु. कुशलचंद ऋषि, लिख. सा. हीरबाई (गुरु सा. सवीरा आर्या); गुपि सा. सवीरा आर्या, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैवे. (२५.५x१०.५, १०-१३४३१). १० ठाणा बोल, मा.गु., गद्य, आदि: एगे आया १ एगे अणायार; अंतिः पीया९ ललतांगपीया१०. ५५४८९ (+) सूत्रकृतांगसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९. पू. वि. अंत के पात्र नहीं हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैवे. (२५.५X११.५, ५४३३). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: बुज्झिज्जति तिउट्टिज; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२, उद्देश-३ गाथा- २ अपूर्ण तक है.) सूत्रकृतांगसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः छकाय सरूप जाणइ, अंति: (-). ५५४९०. (+) मेघदूत की शिष्यहिता टीका, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १९, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५X१०.५, १५×५२). मेघदूत - शिष्यहितैषिणी टीका, वा. लक्ष्मीनिवास, सं., गद्य, आदिः श्रीमद्वीरं महावीर, अंतिः सुखं यथा भवति तथा. ५५४९७. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ४९-३४(१ से ३४) १५. पू. वि. बीच के पत्र हैं.. प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५X११, ५X३४-३७). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि (-); अति: (-). (पू. वि. अध्ययन-६ की गाथा - ५६ अपूर्ण से अध्ययन- ९ की गाथा - १२ अपूर्ण तक है.) दशवैकालिकसूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५५४९८ (१) प्रत्येकबुद्ध कथानक, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४, प्रले. मु. धनरत्न (गुरु आ हीररत्नसूरि, तपागच्छ); गुपि. आ. हीररत्नसूरि (गुरु आ रत्नविजयसूरि, तपागच्छ), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैसे., (२५X११, १६३७). ४ प्रत्येकबुद्ध चरित्र, सं., पद्य, आदि: करकंडु कलिंगेषु, अंतिः मोक्षं गताः, अध्याय-९. ५५४९९ (+#) संघपटग्रंथ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६४११, ४४२९-३३) " संघपट्टक, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., पद्य, आदि: वह्निज्वालावलीढं, अंति: यापीत्थं कदर्थ्यामहे, श्लोक-४०. For Private and Personal Use Only Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ संघपट्टक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अग्नि तेहनी ज्वालाई; अंति: महापराभव पामीइं छई. ५५५०२. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र-पर्याय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-५(१ से ५)=१२, अन्य. सा. मदीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१०.५, १७-२१४३६-३९). उत्तराध्ययनसूत्र-पर्याय टिप्पण, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., द्वितीय अध्ययन से नौवा अध्ययन तक है.) ५५५०५. गच्छाचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३९, आश्विन शुक्ल, १०, जीर्ण, पृ. १२, प्रले. भोजलधु, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११,७४३०). गच्छाचार प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण महावीर; अंति: इच्छंता हियमप्पणो, गाथा-१३७. गच्छाचार प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करी श्रीमहाव; अंति: करई वांछता आत्महित. ५५५०७. हरिवंशप्रबंध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ.७१-५९(१ से ५९)=१२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४०-४२). पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मागु., पद्य, वि. १६७६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा १८४२ अपूर्ण से २१९७ तक है.) ५५५०८. (+#) उपदेशबत्रीशी व उदराजबावनी, अपूर्ण, वि. १८५२-१८५३, श्रेष्ठ, पृ. १२-४(१ से ४)=८, कुल पे. २, ले.स्थल. कंटालिया, प्रले.ऋ. पेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १३४३०-३३). १.पे. नाम. उपदेशबत्रीसी, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है., वि. १८५३, फाल्गुन शुक्ल, ६, सोमवार. अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद मुनि, पुहिं., पद्य, वि. १६८५, आदि: (-); अंति: इंद रंग मन आनिये, गाथा-३३, (पू.वि. गाथा ३१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. उदेराजबावनी, पृ. ५आ-१२आ, संपूर्ण, वि. १८५२, फाल्गुन शुक्ल, १२, रविवार. अक्षरबावनी, मु. उदराज, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: अकल अवतार अपरंपर; अंति: तिको अनैक वातां कहे, गाथा-५८. ५५५०९. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १२९-११७(१ से ११०,१२२ से १२८)=१२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ४४३६). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.. अध्ययन १९ अपूर्ण से अध्ययन २० तक व अध्ययन २१ की अंतिम दो गाथा है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. ५५५१०. भुवनदीपक सह टबार्थ व पाटी विचार, अपूर्ण, वि. १७९९, चैत्र शुक्ल, ३, शनिवार, मध्यम, पृ. १३-२(११ से १२)=११, कुल पे. २, जैदे., (२६४१०.५, ७४३६). १.पे. नाम. भुवनदीपक सह टबार्थ, पृ. १अ-१३अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१७८, (पू.वि. गाथा १४९ अपूर्ण से १७७ अपूर्ण तक नहीं है.) भुवनदीपक-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: सरस्वती संबंधी ज्ञान; अंति: सूरै कह्यो ए ग्रंथ. २. पे. नाम. पाटी विचार, पृ. १३आ, संपूर्ण, पे.वि. यंत्र भी दी गई है. ___ ज्योतिष*, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: आचारे नगरे ग्रामे नव; अंति: सुखिनो भवेत्. ५५५११. (+#) ऋषिमंडल स्तोत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ६x४१-४५). ऋषिमंडल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: भत्तिब्भरनमिरसुरवर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १४७ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ऋषिमंडल प्रकरण- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्तिनउ भर समूह तिणइ, अति: (-). ५५५१३. (#) भुवनदीपक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५X११, ६×५९). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंतिः श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१७१. ५५५१४. (+) महावीरजिन स्तवन सताइसभवगर्भित, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २६११.५, १०X३१-३३). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीरजिन स्तवन- २७ भव, पंन्या. ज्ञानकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: पूरण प्रेमे प्रणमीइ; अंति: (-), (पू. वि. गाथा ७४ तक है.) ५५५१५. (#) वैद्यवल्लभ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५- ४ (१ से ४) = ११, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११.५, ७X३२). वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., पद्य, वि. १७२६, आदि: (-); अंति: (-) (पू. वि. विलाश-२ श्लोक १३ अपूर्ण से विलाश- ६ श्लोक १४ अपूर्ण तक है.) वैद्यवल्लभ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. विलाश - २ श्लोक १३ अपूर्ण से विलाश-६ श्लोक १४ अपूर्ण तक है. ५५५१६, (४) नेमिजिन रास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४०-३० (१ से ३० ) = १०. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५.५४१०.५, १५४४२-४८). नेमिजिन रास, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अति: (-). (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., देवकी पिता के पास देवकी के जाने का वर्णन अपूर्ण से कृष्ण शिशुपाल वार्ता अपूर्ण तक है.) . ५५५१७, (+) कालिकाचार्य कथा, पूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ११-१ (१) १०, प्रले. पं. बालचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, १५X४५). कालिकाचार्य कथा, उपा. समयसुंदर गणि, प्रा. मा. गु., सं., प+ग., वि. १६६६, आदि: (-); अंति: चक्रे बालावबोधिकाम्, ग्रं. ४४१, (पू.वि. गाथा ४ से है.) ५५५१९, (+) चोवीसजिनपरिवारादि विवरण, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, अन्य. सा. दीवालीबाई. प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५X११, १३४५२). २४ जिन च्यवनागम, नगर, पिता, मातादिविचार कोष्ठक, मा.गु., को, आदि: (-); अंति: (-). ५५५२० (+) आवकपाक्षिक अतिचार व पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १३-४ (१ से ४)-९, कुल पे, २, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X१०.५, १३x४४). १. पे. नाम. पाक्षिक अतिचारसूत्र, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. श्रावकपाक्षिक अतिचार- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: हुइ पक्ष दिवस माहि, (पू.वि. २२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. साधुपाक्षिकादिसूत्र, पृ. ५अ -१३अ, संपूर्ण. पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि: अन्नाणमोह दलणी जणणी, अंति: जेसिं सुवसायरे भत्ति , ५५५२१. (+) भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०-२ (१ से २ ) = ८, प्रले. मु. हीरा; पठ. श्राव. जादव पटणी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५X११, ५X३०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-) अंतिः समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४ (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., श्लोक ८ अपूर्ण से है.) ५५५२२. (+) उत्तराध्ययनसूत्र- अध्ययन १६ व २६ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८८९ कार्तिक शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ११-२(२ से ३ )=९, कुल पे. २, प्रले. मु. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२६X११.५, ५X३४-३८). १. पे नाम, उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन १६ सह टवार्थ, पृ. ९अ ४अ ६आ, अपूर्ण, पू. वि. बीच के पत्र नहीं हैं. उत्तराध्ययनसूत्र - हिस्सा अध्ययन- १६, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: सुअं मे आउस तेणं, अंतिः सिन्झिस्संति तहावरे (पू. वि. गाथा २ से गाथा ७ अपूर्ण तक नहीं है.) , For Private and Personal Use Only Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ४६९ उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन-१६ का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सु सांभल्यो मै आउषवं; अंति: इम कहिउ श्रीगुरु. २. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन २६ सह टबार्थ, पृ. ६आ-११आ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा-अध्ययन २६, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: सामायारी पव्वक्खामि; अंति: संसार सागरं त्तिबेमि, गाथा-५३. उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा सामाचारी अध्ययन काटबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: विशिष्ट जनाचरणरूप; अंति: संसार समुद्र. ५५५२३. (+) क्षेत्रसमास, अपूर्ण, वि. १५३५, पौष शुक्ल, १४, गुरुवार, मध्यम, पृ. २८-१९(१ से १९)=९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १०-१२४३५-४०). बृहत्क्षेत्रसमास नव्य, आ. सोमतिलकसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३७३, आदि: (-); अंति: सोहेयव्वो सुअहरेहि, गाथा-३८९, (पू.वि. गाथा २७२ अपूर्ण से है.) ५५५२४. (+#) वीवाहपडल सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८७३, फाल्गुन शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. १७-८(१ से ८)=९, प्रले. मु. पद्महस (बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १७४४२). विवाहपडल, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मूर्ध्नि संस्थितः, श्लोक-१६०, (पू.वि. एकार्गल दोष कथन अपूर्ण से है.) विवाहपडल-बालावबोध, मु. अमरसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: रच्यौ इण विधि अमर. ५५५२६. (+) वैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७३६, कार्तिक कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. वेलाउलबंदर, पठ. मु. कल्याणजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (८४६) जाद्रसं पुस्तके द्रष्टुं, जैदे., (२७४११,७४३७). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारम्मि असारे नत्थ; अंति: लहइ जिओ सासयं ठाणं, गाथा-१०४. वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसार असारमाहि नथी; अंति: तुंशाश्वतुं ठाम. ५५५२७. (+#) दंडक प्रकरण सह टबार्थ व विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १७९२, वैशाख कृष्ण, ४, बुधवार, जीर्ण, पृ. ८, कुल पे. २, ले.स्थल. राधणपुर, प्रले. ग. ज्ञानसागर; पठ. श्रावि. आणंदबाई हेमजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ऋषभदेवजी प्रसादात्., संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५४११.५, ४४२७-३१). १. पे. नाम. दंडक प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ-८अ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ. गाथा-४३. दंडक प्रकरण-टबार्थ *मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करी चउवीस; अंति: निमित्तइ प्रकास्यउ. २. पे. नाम. जीव आयु आदि विचार संग्रह, पृ. ८आ, संपूर्ण. विचार संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५५५२८. (+#) नारचंद्र ज्योतिष, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-३(१,७,१३)=११,प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ९-११४२८-३२). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: विवर्जितशशिवत्, श्लोक-१६४, (पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) ५५५२९. (+) चंद्रधवलधर्मदत्त कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-६(१ से ६)=८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४२९-३५). चंद्रधवलभूपधर्मदत्तश्रेष्ठि कथा, आ. माणिक्यसुंदरसूरि, सं., प+ग., वि. १४८४, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मात्र बीच का पाठांशही है.) ५५५३०. केशीगौतमप्रश्न, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २४-१६(१ से १६)=८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२७४११, ११४३३). केशीकुमार गौतमगणधर प्रश्नोत्तर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल ५ गाथा ३ अपूर्ण से ढाल १४ गाथा ५ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५५५३२. (+#) हैमीनाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २२-१४(१ से १४)=८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४४५-५२). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कांड ३ श्लोक ७९ अपूर्ण से श्लोक ३४२ अपूर्ण तक है.) ५५५३४. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ, व्याख्यान व कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १२३-११६(१ से ११६)=७, प्रले. सा. रंभा आर्या (गुरु सा. रतना आर्या); गुपि. सा. रतना आर्या (गुरु पं. वाघा ऋषि); अन्य. मु. वाघा ऋषि (गुरु मु. भोजाजी ऋषि); गुपि.मु. भोजाजी ऋषि (गुरु मु. जसवंत ऋषि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ४५५१, टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५४११, ६४३३-३७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उवदसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६, (पू.वि. गाथा २४६ अपूर्ण से है.) कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: स्वामि पूर्वोद्धृतः. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: ते धन्य सुख पामइ. ५५५३५. (+#) दंडक प्रकरण, सीमंत्यादि क्षेत्र क्षेत्रमान विचार व पंचेंद्रियजीव विचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ४४३३-३६). १.पे. नाम. दंडक प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउण चउविसजिणे तसु; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ, गाथा-३८. दंडक प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइं ऋषभ; अंति: पोताना हितने काजे. २.पे. नाम. सीमंत्यादि क्षेत्र क्षेत्रमान विचार सह टबार्थ, पृ. ७अ, संपूर्ण. सीमंत्यादि क्षेत्रमान गाथा, प्रा., गद्य, आदि: पणयालीसं लक्खा सीमंत; अंति: ३ दीवो अ४ इगलक्खं. सीमंत्यादि क्षेत्र क्षेत्रमान विचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पस्तालीस लाख जोयनना; अंति: ४ लाख जोजन प्रमाण. ३. पे. नाम. पंचेंद्रियजीव भेद सह टबार्थ, पृ. ७अ, संपूर्ण. पंचेंद्रियजीव भेद विचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: नरगय पणिदि तस भव; अंति: चउहा पंचेंदि आजीवा, गाथा-२. पंचेंद्रियजीव भेद विचार गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: च्यारगतिमाहेथी मनुष; अंति: तेतला सर्वजीवा कहीइं. ५५५३६. (+-) सवैया संग्रह, अपूर्ण, वि. १९४८, माघ शुक्ल, ९, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(६)=७, कुल पे. ४, ले.स्थल. कणजेडा, प्रले. मु. हीरालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-अशुद्ध पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४११, १४४५३). १. पे. नाम. औपदेशिक सवैया संग्रह, पृ. १अ-५आ+७आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, वि. १९३२, आदि: श्रीजिनराज मुज माज; अंति: हीरालाल सरयो आधार है, सवैया-७६, (पू.वि. सवैया ५९ अपूर्ण से सवैया ७० अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. दसारणभद्रराजा सवैया, पृ. ७आ, संपूर्ण. दशार्णभद्रराजा सवैया, मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, वि. १९३८, आदि: विचरत विचरत आया श्री; अंति: हीरालाल० सुखेकरीयौ, सवैया-४. ३. पे. नाम. संतकुमारचक्रवर्ती सवैया, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. सनत्कुमारचक्रवर्ती सवैया, मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, आदि: सुरलोगमाही सुर पती; अंति: हीरालाल करो नरनार है, सवैया-४. ४. पे. नाम. चंदराजागुणवती सवैया, पृ. ८अ८आ, संपूर्ण. चंद्रराजागुणवती सवैया, मु. हीरालाल, पुहि., पद्य, वि. १९३१, आदि: कुसुमपुरी को राज चनण; अंति: हीरालाल० माइ है, सवैया-६. For Private and Personal Use Only Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ४७१ ५५५३७. (+) जीवविचार सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. मु. हरख, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, ४X३६). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा. पद्य वि. ११वी, आदिः भुवण पइवं वीरं नमिउण, अंतिः संतिसूरि० " , समुद्धाओ, गाथा ५१. जीवविचार प्रकरण टवार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: त्रण भुवनने विषे अंति: जे समुद्र तेह थक्की. - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५५३८. (+) आलापपद्धति सह टिप्पण व नयचक्र-असद्भूत व्यवहार विवरण सह अर्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २. प्र. वि. संशोधित टिप्पन युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें, जै, (२५.५४११.५, १३४३६-५० ). १. पे. नाम. नयचक्र अलापपद्धति सह टिप्पण, पृ. १आ-६अ, संपूर्ण. आलाप पद्धति, आ. देवसेन, सं., पद्य, वि. १०वी, आदि: गुणानां विस्तर, अंति: यथा जीवस्य शरीरमिति, अधिकार १९ सूत्र- २२८, (वि. प्रतिलेखक ने सूत्र संखाय क्रमबद्ध नहीं लिखा है.) आलाप पद्धति - टिप्पण, सं., गद्य, आदि: द्रव्यलोक० कायत्वं; अंति: युक्तं च युक्तवत्. २. पे नाम, नयचक्र-असद्भूत व्यवहारनय विवरण सह अर्थ, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण नयचक्र-चयन, प्रा., पद्य, आदि: एइंदियाइदेहा निव्वत; अंति: होइ उत्तमं रूव, गाथा- ९. नवचक्र - चयन का अर्थ, पुहिं., गद्य, आदि: एकेंद्रीजीव के देह, अंति: असद्भूत व्यवहार. ५५५३९. (+#) अभिधानचिंतामणीनाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११ - ४ (१ से ४) = ७, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, ११-१५X३८-४०). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., कांड २ श्लोक १८० अपूर्ण तक है.) " ५५५४०, (+) वाग्भटालंकार, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १३x४५). वाग्भटालंकार, जै.क. वाग्भट्ट, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: श्रियं दिशतु; अंति: (-), (पू. वि. परिच्छेद ४ श्लोक १३८ तक है.) ५५५४१. (+#) पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १७७७, ज्येष्ठ कृष्ण, १०, मंगलवार, मध्यम, पृ. ७, प्रले. श्राव. देवीचंद, पठ. ग. रुपहंस; अन्य. पं. अमृतहंस, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैवे. (२६.५x११.५, १६x४१). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. ५५५४२. (+४) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १६६८, ज्येष्ठ कृष्ण, ९ रविवार, मध्यम, पृ. १२-५ (१८ से ११) - ७, ले. स्थल स्तंभतीर्थनगर, प्रले. ग. कीर्तिविजय (गुरु पं. कमलविजय गणि); गुपि. पं. कमलविजय गणि (गुरु ग. हंसविजय); राज्यकालच्छ विजयसेनसूर (गुरु आ . हरसूरि *, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अंतिम पत्र का पत्रांक खंडित है, अनुमान से पत्रांक १२ दिया गया है. प्रतिलेखक द्वारा यह ६२वाँ ग्रंथ लिखा गया है ऐसा उल्लेख मिलता है, पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६x११, ११X३३-४०). नवस्मरण, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.सं., प+ग, आदि: (-); अंति: शिवं भवतु स्वाहा, स्मरण - ९, (पू. वि. उवसर्गहर स्तवन गाथा ४ अपूर्ण से अजितशांति स्तवन तक है व बृहशांति स्तोत्र नवग्रह स्मरण से है.) ५५५४४. (+) बंध, उदय, उदीरणा, सत्ता कोष्ठक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, अन्य. सा. दीवालीबाई स्वामी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे., (२५.५४११.५, १७४२७) १४ गुणस्थानके कर्मबंधउदयसत्ता व उदीरणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५५५४५. (+#) गौतमपृच्छा प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, प्रले. पं. हीरोदय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्वाही फेल गयी है, जैवे., (२५x१०.५, ५X३७) गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न- ४८, गाथा-६४. गौतमपृच्छा-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ तीर्थ, अंति: अर्थ जे हनउ एहवी कही. For Private and Personal Use Only Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५५५४६. (+) वैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०२, वैशाख शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले. स्थल. इलखान, प्रले. पं. सुखहेम गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित., जैदे., (२५.५X११, ६X५१). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहसि जह सासयं ठाणं, गाथा-१०४. वैराग्यशतक - बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसार असारमाहि नथी; अंति: शाश्वता ठामनई विषइ. ५५५४८. गुणावलिचौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ६. जैवे. (२६११, १५x५०) गुणावलि रास, मु. ज्ञानमेरु, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: प्रणमुं चउवीसे जिनरा; अंति: पद सवि मनवंछित पावंत, ढाल १६. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५५४९. (+) प्रतिक्रमणविधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७-१ (५) ६ प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५.५४११, १२४२८). प्रतिक्रमणविधि संग्रह- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा.गु., गद्य, आदि प्रथम इरियावही पडकमी, अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्राविका पोषह विधि का बीच का पाठ अनुपलब्ध है.) ५५५५० (1) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६ प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६.५४११.५, १३X३२). मंत्र संग्रह, मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ- २अ, संपूर्ण. , י "" साधुवावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह- खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा. सं., प+ग, आदिः णमो अरिहंताणं णमो अंतिः करेमि काउसग्गं. ५५५५३. (+) मंत्र व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०बी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे ९, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्थाही फैल गयी है, दे., (२५.५x११.५ १२५३४). १. पे. नाम कर्णपीसाचनी मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १९३७, वैशाख शुक्ल, ६. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पुष्कलवइ विजये जयो; अंति: भयभंजण भगवंत, गाथा- ७. ३. पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तवन, पृ. २अ - ३आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-वृहत् उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी सद्गुरु पाय अंतिः भगवंत भाव प्रशंसी, ढाल -३ गाथा २५. ४. पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तवन, पृ. ३-४अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन- लघु उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमीतप तुमे करो रे, अंतिः समयसुंदर० भेद रे गाथा-५. ५. पे. नाम. जिन स्तवन, पृ. ४-४आ, संपूर्ण. जिनमंदिर दोष निवारण स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: करि निसिही देहरामांह, अंतिः होज्यो नित मेवा रे, गाथा- ७. ६. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. आदिजिन पद, मु. जिनसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि देख्यो दरशन श्रीजिन, अंतिः सफल दिवस भयो आजको गाथा-३. ७. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only 1 मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: सांभल रे सांवललीयां; अंति: मति विरचो वरदाइ रे, गाथा - ५. ८. पे. नाम. अष्टमी स्तवन, पृ. ५अ ६आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि हां रे मारे ठाम धर्म, अंतिः कांति सुख पाये घणु, ढाल - २, गाथा - २४. ९. पे नाम ऋषभजिन स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण अष्टापदतीर्थ स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मनडो ते मोह्यो अष्टा, अंतिः इहा थकी प्रणाम रे, गाथा-५. Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५५५५४. (#) सुश्रावकालोचना, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, १४X३२-३८). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रावक आलोयणा विचार, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि: प्रथमं मुहूर्तं; अंति: सज्झाये उपवास १. ५५५५५. मानवतीचौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १३-७(१ से ५,११ से १२) = ६. पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं, जैदे., (२५X११, १६X३७-४० ). मानतुंगमानवती रास - मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य वि. १७६०, आदि: (-): अंति: (-), (पू.वि. ढाल - ७, गाथा- १३ अपूर्ण से ढाल - १५ तक एवं ढाल - १९, गाथा- २ अपूर्ण से ढाल - २०, गाथा- १६ अपूर्ण तक है.) ५५५५६. (#) नारचंद्रज्योतिष, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २७-२१ (१ से ६, १२ से २६) = ६, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है. दे.. (२५४११.५, ८४२५) ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक - ६५ अपूर्ण से १२६ अपूर्ण तक एवं "एकादशी विचार" गाथा- ३६ अपूर्ण से "नक्षत्र वार योगकरण आगम" तक है.) ५५५५७. (+) वीरस्तुति अध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, अन्य सा. डाईबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - संधि सूचक चिह्न-संशोधित., जैदे., (२५.५X११.५, ४२९-३५). सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिस्सुणं समण; अंतिः हवइ , आगमिसंति तिबेमि, गाथा २९. सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पु० पूछता हूयाणं०; अंति: इम हुं बे० कहुं छु. ५५५५८. (४) उत्तराध्ययन व पुच्छिस्सुणं सूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १०-४ (१ से २, ४, ९) =६, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षर मिट गए हैं. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२५.५x१०.५, १२४४२). १. पे नाम, उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन- ३६, पृ. ३-३ आ५ अ-८आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं है.. पे. वि. वस्तुतः पेटांक पत्र-३, ५ से ८ व १०अ है, ४७३ उत्तराध्ययन सूत्र. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि (-); अति सम्मए त्ति बेमि, (प्रतिअपूर्ण. पू. वि. गाथा-५४ से ८४ अपूर्ण, ११५ अपूर्ण से २३७ अपूर्ण तक व २६७ से है.) २. पे नाम, पुच्छरसुणसूत्र, पृ. १०अ १०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण, अंति: (-), ( पू. वि. गाथा- १८ अपूर्ण तक है.) ५५५५९. (#) जंबुद्वीपसंग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९६, कार्तिक शुक्ल, १०, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल. टांपी, लिख. श्राव. हरजी दोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, ५X३१). लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं सव्वन्नं अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं गाथा-३०, (वि. ज्ञानपंचमी के अवसर पर यह ग्रन्थ लिखा गया है.) लघुसंग्रहणी - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमिय क० प्रणाम करीने; अंति: रइया हरिभद्दसूरीहिं. ५५५६०. (+#) दानशीयलतपभावनाकुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९२, कार्तिक कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. ६ . . ऋषि (गुरु मु. दीपचंद ऋषि); गुपि. मु. दीपचंद ऋषि (गुरु मु. लालचंद ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२५X१०.५, ५-७X३१-३७). יי दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., पद्य, आदि: देवाहिदेवं नमिउण वीर, अंति: असोगनाम० खमंतु तेणं, गाथा-४९. दानशीलतपभावना कुलक-टवार्थ, मा.गु गद्य, आदि देवाधिदेव श्री अंति: हुइ ते आचार्य खमज्यो. ५५५६३. (-) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१ (१) ०५, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. पत्रांक नहीं है, अशुद्ध पाठ., वे., (२५.५x११, ७X३१-३३). For Private and Personal Use Only Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४७४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध १ अध्ययन १६ अंतिम भाग अपूर्ण से अध्ययन- १७ अपूर्ण तक है.) ५५५६४. (+) वैराग्यसूत्र, वंदनकविधि सह टबार्थ, सुभाषितानि, व संवर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ५, ले. स्थल. महेश्वर नगर, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैवे. (२६११, १५X३६). १. पे नाम, वैराग्यसूत्र, प्र. १आ-५अ संपूर्ण वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जीओ सासयठाणं, गाथा-१०४. २. पे नाम. सुभाषितानि पृ. ५अ, संपूर्ण सुभाषित काव्य संग्रह, प्रा. सं., पद्य, आदि (-) अंतिः (-), श्लोक ५. " ३. पे. नाम. प्रातः व सांध्यवंदनकविधि सह मा.गु. दवार्थ, पृ. ५अ, संपूर्ण, ले. स्थल. विक्रमपुर, प्रले. पं. हर्षविजय गणि प्र.ले.पु. सामान्य. देवसिप्रतिक्रमणनिरूपक गाथा, संबद्ध, मा.गु, पद्य, आदि: इरिया कुसुमिणुस्सा अंतिः चत्थोभदुसज्झाओ, गाथा - १. देवसिप्रतिक्रमणनिरूपक गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: इरियावही पडिकमी राइ, अंति: मांगी सिज्झाय करे. ४. पे. नाम. सांध्यवंदनक विधि, पृ. ५अ, संपूर्ण. राईप्रतिक्रमणनिरूपक गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: हरिया कुसुमिणुस्सग, अंतिः वसुस्सगो दुसजाउ, गाथा- १. राई प्रतिक्रमणनिरूपकगाथा - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: इरियावही पडिकमें; अंति: मास मणे सिज्झाय करे. ५. पे. नाम. संबर स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण, ले. स्थल. महेश्वर नगर. संवर सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनेसर गौतमने, अंति: मुगत जिम हेला बरो, गाथा- ६. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५५६५ (+) इंद्रियशतक, संपूर्ण वि. १८४४ पौष शुक्ल ९, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल, विक्रमपुर, प्रले. पं. हरिचंद्र मुनि (गुरु पं. सत्यमूर्ति मुनि); गुपि. पं. सत्यमूर्ति मुनि, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न. अक्षरों की फैल गयी है, जैवे. (२६४११.५. १३४३५-३८). इंद्रियपराजयशतक, प्रा., पद्य, आदि: सुच्चि सूरो सो; अंतिः संवेगरसायणं निच्चं, गाथा- १०२. ५५५६६. (-) दीपावलीकल्प, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५, प्र. वि. अवाच्य, जैदे. (२६११.५, ७४३५). " दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., पद्य वि. १४८३, आदि: श्रीवर्द्धमानमांगल्य, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा- ५८ अपूर्ण तक लिखा है.) ५५५६७. कल्पसूत्र की पीठिका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६X११.५, १७५४). कल्पसूत्र - बालावबोध *, मा.गु. रा., गद्य, आदि: प्रथम माहरो नमस्कार, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पीठिका भाग अपूर्ण तक है.) ५५५६८. (+) उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन - १ सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. ग. दामा गणि (गुरु पं. मेहा); गुपि. पं. मेहा; पठ. मु. धर्मकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २६११, १७३९). उत्तराध्ययनसूत्र. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: संजोगा विप्पमुकस्स, अंति: (-). (प्रतिपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम अध्ययन है.) उत्तराध्ययनसूत्र- टवार्थ * मा.गु, गद्य, आदि: बाह्य संयोग सचित्त द अंतिः (-), प्रतिपूर्ण 1 ... ५५५६९. (+) वीरजिन सत्तावीश भव स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ७५, (२५X११.५, १०X२८-३०). 3 महावीरजिन स्तवन- २७ भवविचारणभिंत, पं. वीरविजय, मा.गु, पद्य वि. १९०१ आदिः श्रीशुभविजय सुगुरू: अंतिः सेवक वीरविजय जयकरो, ढाल-५, गाथा - ५१. ५५५७०. नेमबहोत्तरी व नाणावटी सज्झाव, संपूर्ण, वि. १८९९ चैत्र अधिकमास शुक्ल, २, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, ले.स्थल. नवानगर, प्रले. मु. अभेचंदवीरधरामजी ऋषि; पठ. श्रावि. वालबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X११, १२X३६). For Private and Personal Use Only Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ १. पे. नाम. नेमिबहुत्तरी स्तवन, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. मु. मूलचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: प्रथम जिणेसर पाय; अंति: नेमजि छयल छबिला, गाथा-७४. २. पे. नाम. नाणावटी सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. श्राव. साहजी रुपाणी, रा., पद्य, आदि: हो नाणावटी नरभे नाणु; अंति: नाणु जोई परखि लेजे, गाथा-८. ५५५७१. (#) शीलोपदेशमाला सह बालावबोध+कथा, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४१०, ११४४०-४५). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि: आबालबंभयारि नेमि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ तक है.) शीलोपदेशमाला-बालावबोध+कथा, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५५१, आदि: श्रीवामेयममेयश्रीसहि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ तक बालावबोध है.) ५५५७२. (+#) नंदीसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११, ५४३०-३४). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइजगजीवजोणीवियाणओ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४० अपूर्ण तक है.) नंदीसूत्र-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि: नंदी कहतां आणंदनो; अंति: (-). ५५५७३. (+#) अध्यात्मकल्पद्रुम सह अधिरोहिणी टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८-३(२ से ४)=५, पू.वि. बीच व अंत के ____ पत्र नहीं हैं., प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२५.५४११, १-५४४१). अध्यात्मकल्पद्रुम, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: अथायं श्रीमान् शांत; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण है एवं गाथा-३ अपूर्ण से गाथा- २३ अपूर्ण तक है.) अध्यात्मकल्पद्रुम-अधिरोहिणी वृत्ति, उपा. धनविजय, सं., गद्य, आदि: ॐ नमः परमाप्ताय; अंति: (-). ५५५७४. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १७६-१७१(१ से ३,५ से १७२)=५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ६४३६-४४). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा- ३१ से ४३ अपूर्ण तक एवं गाथा १६२ अपूर्ण से २१५ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५५५७५. सतरभेदीपूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. जेसलमेर, प्रले. मु. विजयचंद; पठ. श्राव. रुधनाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १२४४४). १७ भेदी पूजा, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६१८, आदि: ज्योति सकल जग जागती; अंति: ते जीव रणे सुख राजइ, ढाल-१७. ५५५७६. भगवतीसूत्र-शतक-२५ उद्देश-६ अंतर्गत ५ निग्रंथ ३६ द्वार विचार व गाथा, संपूर्ण, वि. १८२१, पौष शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १७४१७-४२). १.पे. नाम. ३६द्वार प्रतिबद्ध पंचनिग्रंथ विचार, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-नियंट्टा-संजया आलापक का विवरण, सं., को., आदि: पुलाको द्विविधो लब्ध; अंति: मोह १सयोगी २अयोगी. २. पे. नाम. ३६द्वार प्रतिबद्ध पंचनिग्रंथविचार गाथा, पृ. ५आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-२५ उद्देश-६गत नियंट्ठा-संजया आलापकगाथा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पण्णवण वेयरागे कप्प; अंति: अप्पावयं नियट्ठाणं, गाथा-३. ५५५७७. (+#) सूत्रकृतांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२७-६७(२४ से ८६,११० से ११३)=६०, प्र.वि. अध्ययन-७ में मूलपत्रानुक्रम का उल्लेख नहीं है, इन पत्रों के कोने में अदृष्ट रूप से लिखा गया पत्रांक-१ से २३ वह अध्ययन का पेटापत्रक्रम रूप से ज्ञेय है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, ४४२८). For Private and Personal Use Only Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.. श्रुतस्कंध-२, अध्ययन-२ अपूर्ण से अध्ययन-४ अपूर्ण व अध्ययन- ७ अपूर्ण तक है.) ५५५७९_ (+) अंतगडसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८६८, माघ कृष्ण, ९, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ९७-५९ (२८ से ३२,३९ से १२) ३८, ले. स्थल. अमदावाद, प्रले. श्राव. गुलाबचंद हीराचंद महेता, अन्य. ऋ. प्रागजी सा. अमरत बाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. "अमदावाद सारंगपुर दरवाजे तलीयानी पोल मध्ये लखी छे" का उल्लेख प्रत के अंत में मिलता है., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५x१०.५, ५X३१). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०: अंति: अठवणा अट्टम चेव, अध्याय-९२, ग्रं. ८९९, (पू.वि. वर्ग-३ अध्ययन- ७ के मध्यभाग अपूर्ण है.) अंतकृदशांगसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेणई काले चउथो आरो; अंतिः आठमु अंग संपूर्ण हुड. ५५५८० (+१) कल्पसूत्र - वाचना ४ से ५ सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७८२, कार्तिक कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. १२. प्र. वि. प्रतिलेखन संवत् का उल्लेख चौथी वाचना के अंत में है., संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२६X११, १६x५०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-) अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं है, वाचना-५ अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र - बालावबोध #, मा.गु. रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं है. ५५५८१. (+) आरंभसिद्धि सह सुधीशृंगारवार्तिक, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३१-३ (१ से २, १२७) = १२८. पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. ज्योतिष चक्रादि सहित संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैसे. (२६४११, १३४३९). " आरंभसिद्धि, आ. उदयप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी आदि (-); अंति: (-), (पू. वि. विमर्श- १ ग्रंथप्रयोजन अपूर्ण से 3 विमर्श-५ अपूर्ण तक है.) आरंभसिद्धि - सुधीशृंगारवार्तिक, ग. हेमहंस, सं., गद्य वि. १५१४, आदि: (-): अंति: (-). 3 ५५५८२ (क) अंगचूलीया सूत्र, संपूर्ण, वि. १९३५, श्रावण कृष्ण, ८, सोमवार, श्रेष्ठ, पू. ३५, ले. स्थल. मुंबई, प्रले. मु. केसरीसिंह ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीगोडीजी प्रासादे, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६X११.५, १०X३६). अंगचूलिका प्रकीर्णक, प्रा. गद्य, आदि: नमो सुय० नमो अरि०: अंतिः पवेइयं तिबेमि "" ५५५८३. (००) सूत्रकृत्रांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३२. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, " अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैसे. (२६११, ११५४१). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि; बुज्झेज्झ तिउज्जि अंति: (-) (पू. वि. अध्ययन- १६ सूत्र , ६३२ अपूर्ण तक है.) ५५५८४ (१) चंद्रराजारास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३-१ (१) ३२ प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६४११. १९७०). 1 चंद्रराजा रास, मु. विद्यारुचि, मा.गु. पद्य वि. १७१७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं. खंड- १, डाल१. गाथा- १६ अपूर्ण से खंड ६ डाल- १४, गाथा १५ अपूर्ण तक है.) ५५५८५ (+) चंद्रोन्मीलन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३१, प्रले. मु. देवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५X१०.५, १३x४५). चंद्रोन्मीलन शास्त्र, सं., पद्य, आदि: चंद्रप्रभं नमस्कृत्य अंतिः त्रिदशैरपि दुर्लभं प्रकरण-५५. ५५५८६. ज्ञातासूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५१-१२०(१ से ११९, १४२ से १५०) = ३१, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६X११.५, ७x४२). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. अध्ययन- ७ अपूर्ण से अध्ययन८. सूत्र ९३ अपूर्ण तक एवं पाठ- "हरयणपणियसंपु" से "अझंगवितिपोक्खरिणीउ" तक है.) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-वार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). ५५५८८. (+) संबोधसित्तरी सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २८, प्रले. पं. क्षेममाणिक्य गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे., ( २५X११, ६x२७). For Private and Personal Use Only Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: सो लहइ नत्थि संदेहो, गाथा-२१७. संबोधसित्तरि-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करी त्रिलोक; अंतिः परिणमै सुख पामै. ५५५९०. चंद्रराजा रास, संपूर्ण, वि. १७६५, भाद्रपद शुक्ल, ११, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २७, प्रले. पं. उद्धव ऋषि (गुरु आ. सुखमल्लजी); गुपि. आ. सुखमल्लजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. ले. श्लो. (७८७) मंगलं लेखकानां च (१०१०) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, जैदे., (२६११.५, १६४५२). चंदराजा रास, मा.गु., पद्य, आदि: सुखदायक जिनवरु नामे; अंति: तस घरि मंगल च्यारोरे, ढाल - ४३. ५५५९१. (+#) लघुमध्यसंग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५२, १, कार्तिक, ६, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २७, ले. स्थल. गढसिवाणा, प्रले. मु. उदयविजय गणि (गुरु ग. विजयजी); गुपि. ग. विजयजी (गुरु पं. अमृतविजय गणि); पं. अमृतविजय गणि (गुरु पं. लब्धिविजय गणि) पं. लब्धिविजय गणि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र. ले. श्लो. (१०११) भग्न पृष्टी कट: ग्रीवा, जैदे., (२६X११, ६x४६). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ, अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा- ३१८. बृहत्संग्रहणी - टवार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि नमिठं कहता नमस्कार, अंतिः तीर्थ तिहां लगे. ५५५९२. (+#) ऋषभजिन चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है- संशोधित. अक्षरों स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११. १७४३६). आदिजिन चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य वि. १८४०, आदि: अरिहंत सिद्ध आयरिय, अंतिः रायचंदजी टंकसारण ए, ढाल - ४७. ४७७ ५५५९३ (१) नवतत्त्व थोकडा, संपूर्ण वि. १९२७ आषाद कृष्ण, ४ शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २५, ले. स्थल, जामनगर, प्रले. मु. गुलाबचंद ऋषि (गुरु मु. हर्षचंद्रजी, लौकागच्छ); गुपि. मु. हर्षचंद्रजी (लौकागच्छ) पठ. श्रावि. वखतीबाई, अन्य मु. कृष्णजी (गुरु मु. कल्याण ऋषि, लोंकागछ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५X१०.५, १५x२९). नव थोकड़ो, मा.गु, गद्य, आदि: १ जीवतत्त्व २ अजीवतत अंतिः जीव मोक्ष जाए, ५५५९५. (+०) उत्तराध्ययनसूत्र - संजयाध्ययन केशिगौतमाध्ययन सह टीका व कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. २३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. केशिगौतमाध्ययन अध्ययन- २३ पहले है तथा संजयाध्ययन-१८ बाद में है., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६X११, १४X३५). उत्तराध्ययन सूत्र. मु. प्रत्येकयुद्ध, प्रा. प+ग, आदिः (-) अंति: (-) (प्रतिअपूर्ण. पू. वि. संजयाध्ययन गाथा ४९ तक है.) , उत्तराध्ययनसूत्र- टीका #. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र- कथा संग्रह", सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. नंदन कथा अपूर्ण तक है.) ५५५९७. (+) योगशास्त्र १-४ प्रकाश, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २१, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (१५.५X११, १४X३७). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी आदि नमो दुर्वाररागादि अंतिः (-), प्रतिपूर्ण ५५६००. (+#) महादंडक द्वार, संपूर्ण, वि. १८००, ज्येष्ठ कृष्ण, १, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले. स्थल. वीकानेर, प्र. सा. साहु आर्या (गुरु सा. पुरांजी आर्या); गुपि. सा. पुरांजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखन वर्ष १८० लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X११, २९x४९). महादंडक ३० द्वार, मा.गु., गद्य, आदि: दंडक १ लेस्या २ ठिती, अंतिः छ महीनांरी नैचवण नही. For Private and Personal Use Only Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ३ चौवीसी नाम, सं., गद्य, श्वे., (केवलज्ञानी १ निर्वाण), ५२३७८-१(१) ४ निक्षेप विचार, प्रा.,मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (नाम निक्षेप स्थापना), ५२९९४-५ ४ प्रत्येकबुद्ध चरित्र, सं., अ. ९, पद्य, मूपू., (करकंडूकलिंगेषु), ५५४९८(#) ४ प्रत्येकबुद्ध दृष्टांत श्लोक, सं., श्लो. ४, पद्य, श्वे., (श्वेतं सुजातां), ५४९७२-४(+-#) ५ तीर्थजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुजयमुख्य), ५५३६४-१५(+#), ५२१५६-१ ५ परमेष्ठि नमस्कार स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (अर्हतो भगवंत इंद्र), ५४२८६-६(+) ५ समवाय विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (काल सभाव नियति पुव्व), ५४४६४-४४ ५ सम्यक्त्व ५ मिथ्यात्व भेद, प्रा., गा. २, पद्य, श्वे., (ख्यायिक१ उपसमर वेदो३), ५५३४५-७(+) (२) ५ सम्यक्त्व ५ मिथ्यात्व भेद-अर्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहिलो क्षायक सम्यक्त), ५५३४५-७(+) ८ कर्मविचार गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (इह नाण दंसणावरण वेय), ५३९५७-३(+#) (२) ८ कर्मविचार गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीव करइ ते कर्म कहीइ), ५३९५७-३(+#) ८ कर्मस्थिति विचार गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, श्वे., (नाणे दंसणावरणे वेयणि), ५४३४९-१(+) (२)८ कर्मस्थिति विचार गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (नाणावरणीकर्म १ दर्शन), ५४३४९-१(+) ८ मद नाम, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (जाइ कुल २ रूव ३ बल), ५२८२७-८(+) ९ निधि नाम, प्रा., गद्य, श्वे., (नेसप्पीय पलुए पागले), ५२८४२-२ १० आश्चर्य वर्णन, प्रा.,मा.गु., ग्रं. ११३, प+ग., मूपू., (उवसग्ग १ गब्भहरणं २), ५२८२७-६(+), ५५१०२(+#$), ५५४४१(+#) १० कल्पवृक्षनाम गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (तेसिमत्तंग १ भिंगा २), ५५३४५-४(+) (२) १० कल्पवृक्षनाम गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (मनंगा कहतां मदिरा), ५५३४५-४(+) १०दिक्पाल आवाहन विसर्जन विधि, मा.गु.,सं., पद. १०, प+ग., श्वे., (ॐ नमो इंद्राय पूर्व), ५३४८६(+) १२ तप अतिचार, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (५ अतिचार संलेखणाया),५२५३१-२(+) १२ तपभेद विवरण, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (अणसण उमोयरिया), ५५००७ १२ पर्षदा स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (आग्नेयां गणभृद्विमान), ५२१३३-४(+) (२) १२ पर्षदा स्तुति-अनुवाद, मा.गु., गद्य, मूपू., (अग्निकुणरै विषे), ५२१३३-४(+) १२ भावना, मा.गु.,सं., भा. १२, पद्य, श्वे., (श्रीवीरस्वामी जयो), ५२९५०(+$) १२ व्रत पूजाविधि, पं. वीरविजय, मा.गु.,सं., ढा. १३, गा. १२४, वि. १८८७, पद्य, मूपू., (उच्चैर्गुणैर्यस्य), ५४८१६-१ १४ अशुचिस्थान गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (उच्चारे १ पासवणे २), ५४३०५-३(+) १४ गुणस्थानक कुलक, मु. शुभवर्द्धन-शिष्य, प्रा., गा. १४, पद्य, मपू., (वांदीअवीरजिणंद जिहि), ५२९५४-२(+#) १६ शृंगार नाम, सं., श्लो. १, पद्य, (आदौ मज्जनचारुचीरतिलक), ५२३७२-२, ५४२४३-३(2) १६ सती स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (ब्राह्मी चंदनबालिका), ५४२८६-५(+), ५२३९१-२(#), ५४५४६-२९(#) १८ पुराण नाम व ग्रंथ संख्या, प्रा.,मा.गु., गद्य, वै., (ब्रह्मपुराण१ विष्णु), ५४४६४-२४ १८ भार वनस्पति मान, मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (३८ अडत्रीस कोडि ११), ५४४६४-२५ २० विहरमानजिन स्तवन, सं., श्लो.८, पद्य, मूपू., (त्रैलोक्यपूज्यस्य), ५४१३४-४(+#), ५२५८०-२(#) २० विहरमानजिन स्तुति, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (महाविदेहावनिमंडलश्री), ५३९४४-१ २० स्थानकतप आराधनाविधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (नमो अरिहताणं अरिहंत), ५२७२९-१(+), ५४४६४-९७ २० स्थानकतप गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (अरिहंत सिद्ध पवयण), ५२९५८-३(+), ५५३२५-३(+$) (२) २० स्थानकतप गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतभक्ति सिद्ध), ५५३२५-३(+$) २१ प्रकार के पानी, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (उस्सेयम संसेयम उदल), ५५१९९-३(+#) (२) २१ प्रकार के पानी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पीठानो धवण ते पाणी), ५५१९९-३(+#) परिशिष्ट परिचय हेतु देखें खंड ७, पृष्ठ ४५४ For Private and Personal Use Only Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ ४७९ २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., गा. ६६, पद्य, मूपू., (चवण विमाणा नयरी जणया), ५४०९४-१(+), ५५०९०(+#) (२) २१ स्थान प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (चोवीस तीर्थंकरना २१), ५५०९०(+#) (२) २१ स्थान प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जेह विमान हुति चव्य), ५४०९४-१(+) २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय कुलक, प्रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (पंचुबर चउविगई हिम), ५२७३० (२) २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय कुलक-व्याख्या, सं., गद्य, मूपू., (वट १ पिप्पल २ उंबर ३), ५२७३० २२ अभक्ष्य गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (पंचुंबर चउविगई हिम), ५२८२७-३(+) २२ परिषह नाम, प्रा., गद्य, मूपू., (खुहा पिवासा सीत उण्ह), प्रतहीन. (२) २२ परिषह नाम-अनुवाद, मा.गु., गद्य, मूपू., (भूख १ तृषा २ शीत ३), ५४२४८-२(#) २४ जिन नाम, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे., (ऋषभ १ अजित २ संभव ३), ५४५४६-२८(१) २४ जिन पाक्षिक नमस्कार, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (पातु वो श्रीमहावीर), ५४१३४-२(+#) २४ जिन भव गाथा-भरतक्षेत्र, प्रा., गा. १, पद्य, श्वे., (उसह १ ससि २ संति ३), ५४५४६-२७(#) २४ जिन स्तव, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (आद्यः श्रीऋषभस्ततो), ५२५२३-५ २४ जिन स्तव-चतुःषष्टियंत्रगर्भित, मु. जयतिलकसूरि-शिष्य, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (आदौ नेमिजिनं नौमि), ५४१३४-५(+#) २४ जिन स्तवन, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. २९, पद्य, मूपू., (कनककांतिधनुशतपंचकोच), ५५१०४-२(+#) २४ जिन स्तवन, प्रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (अमरनररायमहिए सिद्धे), ५३७६२-१(+#) २४ जिन स्तुति, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, म्पू., (नाभेयाजितवासुपूज्यसु), ५५३६४-१८(+#) २४ जिन स्तुति, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. २९, पद्य, मूपू., (ऋषभनम्रसुरासुरशेखर), ५५१०४-३(+#) २४ जिन स्तुति, अप., गा. २, पद्य, मूपू., (भरहेसरकारिय देव हरे),५३४२९-२(+) २४ जिन स्तुति-यमकमय, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. २८, पद्य, मूपू., (तत्त्वानि तत्त्वानि), ५५१०४-७(+#) २४ जिन स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (नतसुरेंद्रजिनेंद्र), ५३९८१, ५२४३९-१(#), ५२७६२-१(-) २४ जिन स्तोत्र, ग. संघविजय, सं., श्लो. २९, पद्य, मूपू., (वृषभलांछन लांछित), ५२७३९ २४ जिन स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (श्रीआदिनाथाजितसंभवेश), ५४१३४-६(+#), ५२५८०-४(#) २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (आदौ नेमिजिनं नौमि), ५२८३७-५, ५२५८०-३(#), ५२७४१-१(#) २४ तीर्थंकर सिद्धिगमन आसन वर्णन गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (उसभे नेमी विरोः तिनी), ५४४६४-४३, ५४४६४-५२ २५ आवश्यक गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (दोवणयमहाजायं), ५२८२७-९(+) २८ लब्धि विचार, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (आमोसहि विप्पोसहि), ५४१८९-२ २९ भावना प्रकरण, प्रा., गा. ३०, पद्य, श्वे., (संसारम्मि असारे), ५२५४८-२(+#$) ३२ अनंतकाय गाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (सव्वाउ कंदजाई), ५२८२७-४(+) ३२ लक्षण श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, (छत्रंतामरसं धनु घवर), ५५४७६-५(+) ३५ वाणीगुण वर्णन, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (संस्कारत्वं संस्कृत), ५३४७१-२ ४५ आगम श्लोक संख्या, सं., गद्य, मूपू., (१ आचारांग २५००२), ५२८४० ६२ प्रतर आयुष्य विचार गाथा, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (दो अयराइ जहन्ना), ५४५३५-७ ६३ शलाकापुरुष अक्षर केवली, सं., गद्य, श्वे., (१।०२।३।अ४|आपाइदाई७), ५३६०३-२(+) ६४ योगिनी यंत्रलेखन विधि, पं. भाग्यधीरगणि, पुहि.,सं., गद्य, मूपू., (गुरुपुष्य पुष्यार्क), ५३६७९-२(+) ६४ योगिनी स्तोत्र, मु. धर्मनंदन, प्रा., गा. १५, पद्य, मूपू., (जगमज्झिवासिणीण), ५३६७९-१(+) ६४ योगिनी स्तोत्र, सं., श्लो. ११, पद्य, वै., (ॐ दिव्ययोगी महायोगी), ५३७१९-३(#) अंकाम्नाय परिज्ञान, मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (स्वस्ति तत्रीश्वमायत), ५३६०३-३(+) (२) अंकाम्नाय परिज्ञान-टीका, सं., गद्य, श्वे., (८चिंतने त्रिभिर्भागे), ५३६०३-३(+) अंगचूलिका प्रकीर्णक, प्रा., गद्य, मूपू., (नमो सुय० नमो अरि०), ५५५८२(2) For Private and Personal Use Only Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८० संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. ९२, ग्रं. ८९९, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं० चंपा०), ५४८३२(+), ५४८४५(+), ५५४६२(+), ५५५७९(+$) (२) अंतकृद्दशांगसूत्र-टबार्थ, मु. उत्तम, मा.गु., ग्रं. २२११, गद्य, मूपू., (तेणइं कालइं चउथई), ५४८४५(+) (२) अंतकृद्दशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अंतगड शब्दस्य कः), ५४८३२(+), ५५४६२(+), ५५५७९(+$) (२) अंतकृद्दशांगसूत्र-देवकी पूर्वभव कथा, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (एहवउ उत्तम एहवओ गभी, ५२०८२ अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, प्रा.,रा.,सं., गद्य, मूपू., (उसभस्सय पारणए इक्खु), ५३४७०, ५२१५४(#) अक्षरचिंतन केवली, सं., गद्य, श्वे., (ऊर्ध्वाकं त्रिगुण), ५३६०३-१(+) अक्षौहिणीसैन्य मान, सं., श्लो. १, पद्य, (दशलक्षदंति त्रिगुणां), ५२३९३-२ अक्षौहिणीसैन्यमान प्रमाण संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. २, पद्य, श्वे., (एकेभैकरथा अश्वाः पंच), ५५०७५-३(+) अजितजिन स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. २१, पद्य, भूपू., (विश्वेश्वरं मथित), ५३२४८(+) (२) अजितजिन स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मपू., (मथितो दलितो मन्मथनृप), ५३२४८(+) अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., गा. ४०, पद्य, मूपू., (अजियं जियसव्वभयं संत), ५२२२८-१(+), ५३४६०-३(+), ५४३२३ ५(+), ५५२७७, ५३६४७-२(#), ५३०४७-१(६), ५३१२५(६), ५२३३१-२(-) (२) अजितशांति स्तव-बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., ग्रं. ४५०, गद्य, मूपू., (अजितनामा बीजउ तीर्थं), ५५२७७ (२) अजितशांति स्तवन, संबद्ध, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., गा. ३२, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (मंगल कमलाकंद ए सुख), ५३९४०-१(+), __५३१७७, ५४२५९ अजितशांति स्तवलघु-खरतरगच्छीय, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. १७, पद्य, मूपू., (उल्लासिक्कमनक्ख), ५२२२८-२(+$), ५२७०७ अध्यात्मकल्पद्रुम, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., अधि. १६, श्लो. २७२, पद्य, मूपू., (जयश्रीरांतरारीणा), ५५५७३(+#$) (२) अध्यात्मकल्पद्रुम-अधिरोहिणी वृत्ति, उपा. धनविजय, सं., गद्य, मूपू., (ॐ नमः परमाप्ताय), ५५५७३(+#$) अनंतजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (विजयसिंहसेनोल्लसद्), ५२२३७-३(+#) अनध्याय श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, वै., (अष्टमी गुरुहंती च), ५२१३४-३(+) अनशन पच्चक्खाण सूत्र, प्रा., गद्य, मूपू., (भव सचरिमं पच्चक्खाइ), ५२५०५-२ अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. ३३, ग्रं. १९२, प+ग., मूपू., (तेणं कालेणं० नवमस्स), ५४०४३(+), ५४४१९(+#), ५४४२०(+), ५४७४३(+), ५४७५४(+), ५५२०२(+), ५५२७६ (+$), ५४३९०(#) (२) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., वर्ग.३, वि. १२वी, गद्य, मूपू., (अथानुत्तरौपपातिकदशा), ५५२०२(+) (२) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते काल चउथाआराने), ५४०४३(+), ५४४१९(+#), ५४४२०(+), ५४७५४(+), ५५२७६(+$), ५४३९०(#) । अनुयोगचतुष्टय व्याख्या , आ. जिनप्रभसूरि, सं., ग्रं. १४०, वि. १४वी, गद्य, मूपू., (इह प्रवचने चत्वारो), ५३९२७(+#S) अनुयोगद्वारसूत्र , आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., प्रक. ३८, प+ग., मूपू., (नाणं पंचविह), प्रतहीन. (२) अनुयोगद्वारसूत्र-२१ बोल अधिकार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलै बोलै नय ७ दुजै), ५५३४६-१(+#) अनेकार्थनाममाला, जै.क. धनंजय, सं., श्लो. ४६, पद्य, दि., (गंभीरं रुचिरं चित्र), ५२९६३ अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. ३२, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (अनंतविज्ञानमतीत), ५३९२९(+#$) (२) अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका-स्याद्वामंजरी वृत्ति, आ. मल्लिषेणसूरि, सं., श. १२१४, गद्य, मूपू., (यस्य ज्ञानमनंतवस्तु), ५३९२९(+#$) अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., कां. ६, ग्रं. १४५२, वि. १३वी, पद्य, मूपू., (प्रणिपत्यार्हतः), ५३०७५ (+#$), ५४४२६(+), ५४४४८(+), ५४५९१(+#$), ५४७३८+), ५४७७४(+#$), ५४८३६(+#$), ५४९२४(+#$), ५५०३०(+#s), ५५१३५(+#), ५५३६२(+#$), ५५५३२(+#s), ५५५३९(+#s), ५४५२७(#s), ५५०८०(#$) For Private and Personal Use Only Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ ४८१ (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला - स्वोपज्ञ तत्त्वाभिधायिनी विवृति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., वि. १२१६, गद्य, भूपू (धर्मतीर्थकृतां वाचां), ५५०८०(३) www.kobatirth.org " (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला-टबार्थ, हरदेव, मा.गु., वि. १८६९, गद्य, मूपू., वै., (नमस्कृत्वार्हतः सम्य), ५४४२६(+) अर्द्धपुद्गलपरावर्तन विचार, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (आधो पुडल परावर्त्त), ५३६७०-३ अशन अनंतकाय विचार, प्रा., गा. ३२, पद्य, मृपू, ( असणं पाणगं चेव खाइम), ५३३१९(१) (२) अशनअनंतकाय विचार - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (चतुर्विध चिहु), ५३३१९(#) अष्टप्रकारी पूजा, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (स्वर्वासिवासे सुतरां ), प्रतहीन. (२) अष्टप्रकारी पूजा कथासंग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५४५२२(०४) 1 अष्टप्रकारी पूजा गाधा, प्रा. गा. १, पद्य, मूपू (वरगंध १ व २ चोखख) ५२८२७-७(१) अष्टभंगी कुलक, ग. विजयविमल, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (देवगुरुधम्मतत्तं न), ५२६२०-२ अष्टलक्षी, उपा. समयसुंदर गणि, सं., वि. १६४६, गद्य, भूपू (श्रीसूर्यः श्रेयसे) ५२६४२-२(+३) - , अष्टापदतीर्थ स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, भूपू (यत्र श्रीभरतेश्वरः), ५२५२३-६ अष्टाह्निकाधुराख्यान, आ. भावप्रभसूरि, सं., गद्य म्पू.. ( नत्वा गुरुं गिरं), ५४५१५११ अष्टोत्तरी स्नानविधि, मा.गु. सं., गद्य, मृपू., (ते मांहिली शांतिकविध), ५२६४७/**), ५३२८७, ५४२८२(१) असती लक्षणानि, सं., गद्य, श्वे., (यतः द्वाविंशतिप्रति), ५३०३०-१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आंचलिकमत खंडन, प्रा. मा. गु., पग, भूपू (सरसति सामण पव नमी रे) ५३५३३(०३) आगमपुरुष विवरण, सं., गद्य, श्वे. (इह पुरुषस्य द्वादश), ५२८२१-२ (+) आगमों में जिनप्रतिमा के आलापक, प्रा., मा.गु., गद्य, श्वे., (तेणं कालेणं तेणं), ५४३८९(+) " आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. २५, ग्रं. २६४४, पग, मूपू (सुयं मे आउ० इहमेगे), ५२९६८ (५७), १४४१६(+), ५४४५८(+), ५४४८७(+), ५५१२७ (+$), ५५३६६ (+#$) (२) आचारांगसूत्र-निर्युक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ३४६, पद्य, मूपू., ( वंदितु सव्वसिद्धे), ५४३४६ (२) आचारांगसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीजिनाधीशं), ५३०६७(#$) (२) आचारांगसूत्र - टबार्थ, मु. धर्मसी, मा.गु., ग्रं. १२५५४, गद्य, मूपू., (भगवंत श्रीसुधर्मा), ५४४१६ (+#), ५४४५८(+), ५४४८७(+) ५३९३२-१(१) आदिजिन स्तुति, सं. आदिजिन स्तुति, सं. (२) आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीतरागने नमस्कार), ५५१२७(+$) आचार्य ३६ गुणवर्णन, प्रा., मा.गु., पद्य, मूपु. ( पडिवाई चउदस१४ खंती), ५४४६४-८६ आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. ७१. वि. ११वी, प+ग, भूपू (देसिक्कदेसविरओ), ५२९८९०), ५४६५८(१) (२) आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (छकावना देस आसिरी देस), ५४६५८०) + आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, प्रा., गा. ३०, पद्य, भूपू (अरहंता मंगलं मज्झ), ५२१५८-१(०) आत्मवाद, सं., श्लो. ३३, पद्य, मूपू., ( जयति परमाधाम प्रोल्ल), ५५०९४-४(+) आदिजिन १०८ नमस्कार - शत्रुंजयमंडन, सं., गद्य, मूपू., (शासनाधीश्वर श्रीवर्ध), ५३४१४ (+) आदिजिन जन्माभिषेक कलश, अप. डा. १६ काव्य, पद्य, मूपू (मुक्तालंकार विकार), ५५२८५-३(+), ५३२०५-२०१ " आदिजिन जन्माभिषेक कलश, प्रा., मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (विणयनयरी विणयनयरी), ५५२८५-४(+#) " आदिजिन नमस्कार, सं., श्लो. १, पद्य, वे (तौ ददासि यदि तत्वधिय), ५३७०४-३ आदिजिन नमस्कार, सं., श्लो. ३, पद्य, भूपू (वंदे देवाधिदेवं तं). ५५०३१-३(+) " आदिजिन स्तवन वा विनयविजय, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू. ( श्रीमरुदेवातनुजन्मान), ५३९३२-२(४) आदिजिन स्तवन- रोहिणी चतुर्मुख मंडन, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (श्रीरोहिणी चतुर्मुख), ५२२५१-१ आदिजिन स्तवन- शत्रुंजयतीर्थमंडन, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., श्लो. ६. वि. १८वी, पद्य, मूपू (आदिजिनं वंदे गुणसवन), י' लो. ५, पद्य, मूपू (जय जय जगदानंदन जय), ५५०३१-११ (+) ु ४, पद्य, मूपु. ( युगादिपुरुषेंद्राय), ५३२७५-३ (+), ५३४२९-४(+), ५५०३१-२२ (०) ५५३६४-४(+) For Private and Personal Use Only Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८२ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (श्रियं दिशतु वो देवः), ५३७०४-५ आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (वरमुक्तियहार सुतार), ५३४२९-८(+), ५५०३१-२३(+#), ५५३६४-८(+#), ५३५६७-६, ५४५४६-१६(#) आदिजिन स्तुति-कल्लाणकंदं पादपूर्तिमय, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (भावानयाणेगनरिंदविंद), ५२३२१-६ आदिजिन स्तुति-भक्तामरस्तोत्रप्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (भक्तामरप्रणतमौलिमणि), ५२३२१-१ आदिजिन स्तुति-शत्रुजयतीर्थमंडन, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धाचलशैलमंडण), ५३९४९-३ आदिनाथ देशनोद्धार, प्रा., गा. ८८, पद्य, मूपू., (संसारे नत्थि सुह), ५२७६३-१(+$), ५४५११(+#$), ५५४७६-४(+), ५२२२६, ५४८६३-३(#) (२) आदिनाथ देशनोद्धार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (संसारमांहि नथी सुख), ५२७६३-१(+६), ५४५११(+#$), ५५४७६-४(+), ५४८६३-३(#) आप्तमीमांसा, आ. समंतभद्र, सं., परि. १०, श्लो. ११५, पद्य, दि., (देवागमनभोयानचामरादि), ५४२९३-१ (२) आप्तमीमांसा-देवागम वृत्ति, आ. वसुनंदि सैद्धांतिक, सं., गद्य, दि., (सार्वश्रीकुलभूषण), ५४२९३-१ आरंभसिद्धि, आ. उदयप्रभसूरि, सं., विम. ५, श्लो. ४१३, ग्रं. ४६०, वि. १३वी, पद्य, मूपू., (ॐ नमः सकलारंभसिद्धि), ५५२९१(+#$), ५५५८१(+#$) (२) आरंभसिद्धि-सुधीशृंगारवार्तिक, ग. हेमहंस, सं., विम.५, वि. १५१४, गद्य, मूपू., (शं सुखाय भवतीत्येवं), ५५५८१(+#$) आलाप पद्धति, आ. देवसेन, सं., अधि. १९, सू. २२८, वि. १०वी, पद्य, दि., (गुणानां विस्तर), ५५५३८-१(+) (२) आलाप पद्धति-टिप्पण, सं., गद्य, दि., (द्रव्यलोक० कायत्वं), ५५५३८-१(+) आलोचनासूत्र-देवसिप्रतिक्रमणगत, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (इच्छाकारेण संदेसह), ५५३६४-१(+#), ५५०९६-२ आलोयणा आराधना, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (एगेदियाणं जं कहवी), ५२२६५-१ आवश्यकसूत्र, प्रा., अध्य. ६, सू. १०५, प+ग., मूपू., (णमो अरहताणं० सव्व), ५५३१६(+#) (२) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. २५५०, ग्रं. ३१००, पद्य, मूपू., (आभिणिबोहियनाणं), प्रतहीन. (३) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का हिस्सा पीठिका, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ८१, पद्य, मूपू., (आभिणिबोहियनाणं), ५४९४६(+) (४) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का हिस्सा पीठिका का बालावबोध, ग. संवेगदेव, मा.गु., वि. १५१५, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानजिननायक), ५४९४६(+) । (२) आवश्यकसूत्र-बालावबोध , मा.गु., गद्य, मूपू., (नमो अ० इत्यादि एहनो), ५५३१६(+#) (२) चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, प्रा.,स., प+ग., मूपू., (नमो अरिहताणं नमो), प्रतहीन. (३) चैत्यवंदनसूत्र-विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (इछामि खमासमणो कही), ५३५९८(#) (२) लोगस्ससूत्र, हिस्सा, प्रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (लोगस्स उज्जोअगरे), ५५०८९(+#), ५५४५७-१(#S) (३) लोगस्ससूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (लोगस्सउजोयगरे कहतां,), ५५०८९(+#) (२) सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (सकलकुशलवल्ली), ५२१८४-७(+#), ५२५८५-१, ५५०९६ ७,५३४६२-३(#) (३) सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत भगवंत), ५२५८५-१ (३) सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सकल कहेता समक्ष कुसल), ५५०९६-७ (२) आवश्यकसूत्र-प्रतिलेखन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (इरियावही पडिकमी), ५२५२४-२ (२) आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), ५३७४२(+#$), ५४२०६(+), ५४८४८(+#), ५५०३१-१(+#), ५५४६३(+#$), ५४१८५ (३) षडावश्यकसूत्र-टीका, सं., गद्य, म्पू., (श्रीमन्नाभिकुलाब्जबो), ५३७४२(+#$) (३) षडावश्यकसूत्र-टबार्थ, ग. दीपविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (बारगुणइ सहित अरिहंतन), ५४२०६(+) (३) षडावश्यकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, पू., (वीतराग१२ गुण विराजमा), ५४८४८(+#), ५४१८५ (२) आवश्यकसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., स्था., (नमो अरिहंताणं० तिखुत), ५४८०५(+#$) For Private and Personal Use Only Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., स्था., (नमस्कार हो कर्मरूप), ५४८०५(+#$) (२) इरियावही सज्झाय, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २५, वि. १७३४, पद्य, मूपू., (श्रुतदेवीना चरण नमी), ५२७९८-१ (२) कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (कल्लाणकंदं पढम), ५३२७५-२(+#), ५३०१३-४(#), ५४८२२-५(#) (२) जगचिंतामणि सूत्र, संबद्ध, आ. गौतमस्वामी गणधर, प्रा., गा.७, प+ग., मूपू., (जगचिंतामणी जगनाह), ५५२५६-६(+#) (२) देववंदन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम दोय गाथारो नम), ५३१८३(+) (२) देवसिप्रतिक्रमणनिरूपक गाथा, संबद्ध, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (इरियाचियवंदणं पुत्ति), ५५५६४-३(+) (३) देवसिप्रतिक्रमणनिरूपक गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (इरियावही पडिकमे चैत), ५५५६४-३(+) (२) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताण), ५५३७६-१(#) (२) नवकारसी-पोरसीसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (उग्गएसूरे नमुक्कार), ५३७९७-२ (२) निक्षेप विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीअनुयोगद्वार मध्य),५५१४३-२(+) (२) पंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (णमो अरिहंताणं० जयउ),५५२२९(#$) (३) पंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (माहरउ नमस्कार अरिहंत), ५५२२९(#$) (२) पंचप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताण), प्रतहीन. (३) पौषधपारणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (सागरचंदो कामो), ५५०९६-५ (३) पौषध प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (करेमि भंते पोसह), ५२७२३-२, ५५४०७-५ (४) पौषध प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (करुं छु हे भगवान), ५२७२३-२ (३) मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (मन्हजिणाणं आणं मिच्छ), ५२२०९-२(+#) (२) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मुहपत्तिवंदणयं), ५४३०७-३ (२) पौषध विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम इरियावही पडिक), ५५०९६-४, ५२३२७-२(६), ५२४३५-१(-#) (२) पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (इरियावहि चार नवकारनो), ५२६७५-१(+) (२) प्रतिक्रमण विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (वले उत्तम विवेकी), ५४५५१-३(#) (२) प्रतिक्रमणविधि संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (पाछिली रात्रइ शय्या), ५४७६८(+#$), ५५३६४-२(+#), ५५४२०-२(#$) (२) प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (देवसिय आलोइय पडिक्क), ५४५४३-१(+$), ५५५४९(+$), ५२४३५-२(-2) (२) प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (गोयम पूछे श्रीमहावीर), ५२०९२ (२) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), ५२९३२-३(+), ५४९७९(+), ५५४०४(+$), ५४६६८-२, ५५०९६-१,५५४५७-२(#) (३) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.-टीका*, सं., गद्य, मूपू., (इह चैत्यवंदनादर्शनशु), ५४७८२(+#) (३) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (हे वीतरागदेव तुमे), ५४९७९(+) (२) प्रतिलेखनकालमान गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (आसाढे मासे दुप्पया), ५२३६५-१(#) (२) प्रतिलेखनकालमान यंत्र, संबद्ध, मा.गु., को., मूपू., (--), ५३१९३-३ (२) प्रतिलेखनबोल गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुतत्थतत्थदिट्ठी), ५२८२७-१(+), ५३२३४-२(+), ५३३८९-१(+), ५४१२३-२ (३) प्रतिलेखनबोल गाथा-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (सूत्रार्थ तत्त्व), ५३३८९-१(+) (३) प्रतिलेखनबोल गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिली पडिलेहणानु), ५४१२३-२ (२) प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (उग्गए सूरे नमुक्कार), ५२१३५-१(+), ५३३००(+#), ५४९५०-३(+#$), ५५०८७-१(+$), ५३५३८-३, ५५४०७-४, ५२६१९-१(#), ५५३७६-५(#) For Private and Personal Use Only Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (३) प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (सूर्यनइ उदये बै घटिक), ५३३००(+#) (३) प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (दो चेव नमोक्कारे), ५५३४६-४(+#) (२) मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (तत्त्वदृष्टि सम्यक्त), ५४१८१-२(७), ५२२०८-१(-2) (२) राईप्रतिक्रमणनिरूपक गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (इरियाकुसुमिणुस्सग्गो), ५५५६४-४(+) (३) राईप्रतिक्रमणनिरूपकगाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम इरियावही पडिकम), ५५५६४-४(+) (२) राईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), प्रतहीन. (३) भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., गा. १३, पद्य, मूपू., (भरहेसर बाहुबली अभय), ५३५१५-३ (२) वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., गा. ५०, पद्य, मूपू., (वंदित्तु सव्वसिद्धे), ५२८६२(+#), ५३३७५(+), ५३४२९-१४(+$), ५३६१९(+#), ५३६३९-१,५४६६८-३,५४५४६-१(#$), ५२५२१(-) (३) वंदित्तुसूत्र-अर्थदीपिका टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., अधि. ५, ग्रं. ६६४४, वि. १४९६, गद्य, मूपू., (जयति सततोदयश्रीः), ५४५८१(+#) (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (णमो अरिहंताणं णमो), ५४७५९-८(#S), ५५२०१ (३) पौषध सज्झाय-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., गा. ३३, पद्य, मूपू., (जगचूडामणिभूओ उसभो), ५२६७५-२(+), ५५०३१-४०(+#), ५५४६१(+), ५३१६० (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., म्पू., (नमो अरिहंताणं), ५४८२२-१(#$), ५४०२९($) (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का बालावबोध, पं. हेमहंस गणि, मा.गु., वि. १५०१, गद्य, मूपू., (श्रेयांसि श्रीमहावीर), ५५४६३(+#$) (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-लोंकागच्छीय, संबद्ध, मु. जैनश्रमण, प्रा.,गु., प+ग., स्था., (णमो अरिहंताणं०० श्री), ५४३९१(+) (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-लोंकागच्छीय-टबार्थ, मु. जगसी ऋषि, गु., वि. १८४७, गद्य, स्था., (नमो कहेतां नमस्कार), ५४३९१(+) (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह(श्वे.मू.पू.), संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (नमो अरिहं० सव्वसाहूण), ५४९५०-१(+#) (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-वंदारू टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., ग्रं. २७२०, गद्य, मूपू., (वृंदारुबंदारकवृंदव), प्रतहीन. (४) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-वंदारूटीका का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवे पंचपरमेष्ठी महाम), ५४२०६(+) (३) श्रावक देवसिकआलोयणासूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, गु., पद्य, मूपू., (सातलाख पृथ्वीकाय), ५२२९४(+) (३) श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नाणमि दसणमि०), ५५५२०-१(+#$), ५३१८२, ५४७७३(७) (२) श्रावकसंक्षिप्त अतिचार*, संबद्ध, मा.गु., प+ग., मूपू., (पण संलेहणा पनरस), ५२८२७-२(+) । (२) साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (णमो अरिहंताण करेमि), ५५३८७-१(+), ५५४०७-१ (२) साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), ५२५०३(+#) (२) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), ५५२०३(+), ५५४०९(+#) (३) क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., आला. ४, गद्य, मूपू., (इच्छामि खमासमणो पियं), ५५२८१-२(+#), ५५३८०-२(+#$) (३) पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., सू. २१, गद्य, मूपू., (करेमि भंते० चत्तारि०), ५४०८१(+), ५४७१८(+), ५५२०५(+६), ५३२११ २,५४०४८, ५४५४६-२४(#) (४) पगामसज्झायसूत्र-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., वि. १७४९, गद्य, मूपू, (एँ नत्वा पार्श्वनाथ), ५४०८१(+), ५४७१८(+) (४) पगाम सज्झायसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (चार बोल तेम मंगलिक), ५४०४८ (४) पगामसज्झायसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (वांछउ निवर्तवउ वस्त), ५५२०५(+$) (३) पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., मूपू., (तित्थंकरे य तित्थे), ५४०८०(+#), ५४२११(+), ५५२७४-१(+), ५५२८१-१(+#), ५५३८०-१(+#), ५५४०६(+#), ५५५२०-२(+#), ५५५४१(+#), ५४१८८-१(#) For Private and Personal Use Only Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org - कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ (४) पाक्षिकसूत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, मूपु. (४) पाक्षिकसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (३) साधुअतिचारचिंतवन गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. १, पद्य, भूपू (सयणासणन्नपाणे), ५३२३४-३(+) (३) साधुपाक्षिक अतिचार घे. मू. पू. संबद्ध, प्रा. मा.गु., गद्य, मृपू., (नाणम्मि दंसणम्मि०), ५३२३७ (+), ५४०२४(+), ५३६५०, 2 श्वे. ५३६१४०१, ५३४६६-१(३) (२) साधु श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो ), प्रतहीन. (३) पार्श्वजिन चैत्यवंदन, हिस्सा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (चउकसायपडिमलुरण), ५५२०१-२०१ "" ', (२) साधु श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह खरतरगच्छीय संबद्ध प्रा. सं., प+ग, मूपू णमो अरिहंताणं णमो) ५५५५० मा (२) साधु श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग, भूपू स्था. ( नमो अरिहंताणं०), ५४४९४(१) (३) साधुआवक प्रतिक्रमणसूत्र स्थानकवासी टवार्थ, मा.गु, गद्य, म्पू, स्था (नमस्कार हो कर्मरूप), ५४४९४(*) (२) सामायिक ३२ दोष गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (पालद्धी अथिरासण दिसि), ५५३४५-२ (+) (३) सामायिक ३२ दोष गाथा - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., ( वचनना दोष १० कुवचन), ५५३४५ - २ (+) आशीर्वचन लोक सं., श्लो. १०, पद्य, वे (भाले भाग्यकला मुखे), ५२४९८-२, ५३९१२-२(१) आशीर्वाद लोकसंग्रह, सं., श्लो. १, पद्य, वै., (आयुर्बलं विपुलमस्तु), ५३८०६-४() " आशीर्वाद लोक संग्रह, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू., (वीर्घायुर्भव भण्यते), ५२१०८-२०, ५२१०६-६(-१) आस्रवत्रिभंगी, मु. श्रुतमुनि, प्रा. गा. ६२, वि. १४वी, पद्य, दि. (पणमिय सुरिंदपूजिय), ५५१४५-१(०) इंद्रजीवन में देवीसंख्या सूचक गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, थे. (दो कोडाकोडीओ पंचासी), ५४९८४-३(+) " " इंद्रियपराजयशतक, प्रा. गा. १००, पद्य, मूपू (सुचिअ सूरो सो). ५२५४८-१(+), ५५४७६-३(०), ५५५६५ (+), ५४८६३-१(क) (२) इंद्रियपराजयशतक - टवार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, (तेहिज सूर तेहिज), ५५४७६-३(+), ५४८६३-१(७) इरियावही कुलक, प्रा., गा. १०, पद्य, म्पू., (चउदस पय अडचत्ता तिगह), ५५१०१-४(००६) ईर्यापथिकी मिच्छामिदुक्कडं भेद, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (अढारसलाखई चउवीससहसइ), ५५३४५-१(+) उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., अध्य. ३६. ग्रं. २००० प+ग, भूपू (संजोगाविष्यमुक्कस्स), ५२७११(०४), ५३७५०(१), ५४०८४(१४), ५४०९१(+४), ५४१९४(+), ५४३०५-१(+), ५४३३३(+४), ५४३४४(+), ५४४०३(+४), ५४४२३(+४), ५४४३५ (985), ५४४५ ५१०), ५४४५ ६+), ५४४५ ९(+), ५४४८८(०९), ५४४९२(४०), ५४४९३(+०३), ५४४९९(+), ५४७७२(+45), ५४८२३(०), ५५०४२(+०३), ५५१७३१, ५५३५६००३), ५५४४६(+), ५५४८० (+#5), ५५५०९(+४७), ५५५६८०), ५५५७४(+४), ५५५९५ (००६), ५४१२३-१, ५२८९८८) ५४३४३(०), ५५५५८-१(०३) ५४४०८(5), ५४४४३(७), ५४४८९(३), ५४५३८(४), ५४९६४(४), ५५१३३(5) (२) उत्तराध्ययनसूत्र- टीका, सं., गद्य, म्पू., (--), ५५५९५ (००8) " (२) उत्तराध्ययन सूत्र - सुखवोधा टीका, आ. नेमिचंद्रसूरि सं. ग्रं. १२००० वि. १९२९, गद्य, भूपू (प्रणम्य विघ्नसंघात), ५४३४३(#) ( तीर्थंकर प्रते वांदउ), ५५३८०-१+४$) (तीर्थंकर सिद्ध तीर्थ), ५४२११ (०) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only ४८५ (२) उत्तराध्ययनसूत्र- पर्याय टिप्पण, मा.गु., गद्य, म्पू., (--), ५५५०३ (+45) (२) उत्तराध्ययन सूत्र - बालावबोध * मा.गु, गद्य, मृपू (संसारतणा संबंधथी), ५४८२३(०), ५४४८९ (३) 3 (२) उत्तराध्ययनसूत्र- टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (संयोग बे प्रकारे), ५४०८४ (+$), ५४०९१ (+#), ५४३०५-१(+), ५४४२३(+$), ५४४३५ (85) ५४४५ ६(-), ५४४५ ९(+), ५४४८८ (+३), ५४४९३ (+*5), ५५३५६ (+45), ५५५०९(+#5), ५५५६८), ५५५७४/०डा, ५४५३८३) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ + कथा संग्रह, मु. पार्श्वचंद्रसूरि - शिष्य, मा.गु., गद्य, मूपू., (पूर्वसंजोग मातापिता), ५४१९४(+), ५४३४४(१), ५४१२३-१ (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ + कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (वर्द्धमानजिनं नत्वा०), ५४३३३ (+), ५५१३३ (६) (२) उत्तराध्ययनसूत्र - कथा संग्रह *, मा.गु., कथा. ४, गद्य, मूपू., (एक आचार्यनइं एक चेलो), ५४०८४ (+), ५४१९४(+), ५४५३८ (२) उत्तराध्ययनसूत्र- कथा संग्रह", सं., पद्य, म्पू. (एकस्य आचार्यस्य), ५४७७२(+०३), ५५५९५ (+बड) " Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८६ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन-१६, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, मूपू., (सुअंमे आउसं तेणं), ५५५२२-१(+S) (३) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन-१६ का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सु सांभल्यो मै आउषवं), ५५५२२-१(+$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन २४, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., मूपू., (--), प्रतहीन. (३) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन २४ का ५ समिति ३ गुप्ति का थोकडा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (इरीयासुमति १ भाषा), ५५३६९-१८(+#) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा-अध्ययन २६, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., गा. ५३, प+ग., मूपू., (सामायारी पव्वक्खामि), ५५५२२-२(+) (३) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा सामाचारी अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पंचवीसमि अध्ययनि), ५५५२२-२(+) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन ३ चतुरंगिकाध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गा. २०, पद्य, मूपू., (चत्तारि परमंगाणी), ५२२५७, ५२७७१ (२) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा नमिप्रव्रज्याध्ययन ९, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., गा. ६२, पद्य, मूपू., (चइऊण देवलोगाओ उवयन्न), ५२९५८-४(+), ५३२४४(+#) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा मोक्षमार्गगति अध्ययन २८, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., गा. ३६, पद्य, मूपू., (मोक्खमग्गइ तं च सुणे), ५२६७४ (३) उत्तराध्ययनसूत्र का हिस्सा मोक्षमार्गगति अध्ययन २८- टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (आठ प्रकारना कर्मथकी), ५२६७४ (२) उत्तराध्ययनसूत्र-गीत, संबद्ध, उपा. राजशील, मा.गु., गी. ३६, पद्य, मूपू., (सरसति मति अति निरमली), ५३३०५(5) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन नाम, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (विणय१ परीसह२ चउरंगी३), ५४१२३-४ (३) उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन नाम-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (विनय अध्ययन गाथा ४६), ५४१२३-४ (२) उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., सज्झा. ३६, पद्य, मूपू., (पवयणदेवी चित्त धरीजी), ५४०६०, ५५१३८ (२) विनयअध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (पवयण देवी चीत धरीजी), ५३६६८(#), ५४५५९ ४(#) उपदेशप्रासाद, आ. लक्ष्मीसूरि, सं., वि. १८४३, प+ग., मूपू., (स्वस्ति श्रीदो नाभि), ५४२०३(+), ५४१२९ (२) उपदेशप्रासाद-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५४२०३(+), ५४१२९ उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., गा. ५४४, पद्य, मूपू., (नमिऊण जिणवरिंदे इंद), ५२५३०+), ५४१४२(+$), ५४२३०(+#), ५५०४४(+#), ५५१५२(+#$), ५५२४६(+), ५५३८६(+$), ५४४१८(#$), ५४६२४-२(#$), ५४०६७($) (२) उपदेशमाला-वृत्ति, ग. रामविजय, सं., ग्रं. ७६००, वि. १७८१, गद्य, म्पू., (श्रेयस्करं कामितदान), ५४१४२(+$) (२) उपदेशमाला-बालावबोध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., वि. १७१३, गद्य, मूपू., (नमस्कार करीनइ जिण), ५४२३०(+#), ५५१५२(+#$) (२) उपदेशमाला-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (नमिऊण कहीइ नमीनइ), ५४१४२(+$), ५४४१८(#$) (२) उपदेशमाला-कथा, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (वंदित्वा वीरजिन), ५५१५२(+#S), ५४०६७(5) (२) उपदेशमाला-कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवे श्रीउपदेशमाला), ५४२३०(+#), ५५४०८(+$), ५४४१८(#$) (२) उपदेशमाला-कथा संग्रह, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य गुरुपादाब्ज), ५४१४२(+$) उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., गा. २६, पद्य, मूपू., (उवएसरयणकोसं नासि),५३४३१, ५४११४ (२) उपदेशरत्नमाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीर चउवीसमु), ५४११४ (२) उपदेशरत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (उपदेशरूप रतन तेहनो), ५३४३१ उपदेशसप्ततिका, ग. सोमधर्म, सं., अधि. ५, वि. १५०३, पद्य, मूपू., (श्रीसोमसुंदरगुरूज्जव), ५४७२७(+) उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पहिलुं नवकारनु), ५२२८४(+) उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (प्रथम शुभदिवसे पोषध), ५३७०८-१(+) उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. १०, ग्रं. ८१२, प+ग., मूपू., (तेणं० चंपा नाम नयरी), ५४३१८(+), ५४३४८(+), ५४४१७(+), ५४४४९(+), ५४७२४(+), ५४९२५-१(+#), ५५४६४(+#$), ५३९९५(#$), ५४०९८(#) For Private and Personal Use Only Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ (२) उपासकदशांगसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि, सं., अध्य. १०, वि. १११७, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ५४३१८(+) (२) उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., ग्रं. १९००, गद्य, मूपू., (प्रणम्य पार्श्वनाथस), ५४९२५-१(+#) (२) उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ५४४१७(+), ५४४४९(+), ५४७२४(+), ५५४६४(+#$), ५४०९८(2) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (उवसग्गहरं पासं पास), ५२१७४(+), ५४२८६-३(+), ५४६६८-४ (२) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (उपसर्गजे विघ्न तेहन), ५२१७४(+) (२) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की भंडारगाथा*,संबद्ध, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, मूपू., (तुह दंसणेण सामिय),५३६१५-४ उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ९, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (उवसग्गहरं पासं पासं०), ५४३२३-१(+), ५२७४१-२(#) ऋषिमंडल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., गा. २०९, ग्रं. २५९, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (भत्तिब्भरनमिरसुरवर), ५४१०६(+#$), ५५४८५(+#), ५५५११(+#$) (२) ऋषिमंडल प्रकरण-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, पू., (वली श्रीऋषभदेव केहवा), ५४१०६(+#$) (२) ऋषिमंडल प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (भक्ति घणी करी नम्या), ५५५११(+#$) (२) ऋषिमंडल प्रकरण- कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (भरत ऋषीश्वरनो संबंध), ५४१०६(+#$) ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., श्लो. ९२, ग्रं. १५०, पद्य, मूपू., (आद्यताक्षरसंलक्ष्य), ५३६१७-१(+), ५५१२६(+#$), ५३४५०-१(६) ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., श्लो. ६३, पद्य, मूपू., (आद्यंताक्षरसंलक्ष्य), ५२१०६-५(-#S) एकत्वाष्टक, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू, (एगेअताणेधणवंधवेहि), ५५०९४-६(+) ओसवाल पोरवाल उत्पत्ति कवित, मा.गु.,सं., चौपा. २, प+ग., श्वे., (वर्द्धमानजिन पछी वरस), ५२३६९-२(-#) औपदेशिक दूहा संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (काम वली सवही पुरहे), ५३२०८-३(+#) औपदेशिक श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (क्रोध मान यथा लोभ), ५४९७२-५(+-#), ५५२७५-२(#), ५३५१०-२(-),५३८०६-२(-) औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. ५०, ग्रं. ५६८, पद्य, मूपू., (किं लक्ष्मी गजवाज), ५२३२४-१ औपदेशिक श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. ६१, पद्य, श्वे., (धर्मे रागः श्रुतौ), ५४९३०(+#$), ५४९७२-५१(+-#) (२) औपदेशिक श्लोक संग्रह-(मा.गु..)बालावबोध*, मा.गु., गद्य, श्वे., (अहँत भगवंत सर्ण), ५४९३०(+#$) औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. २६९, पद्य, जै., वै., (महतामपि दानानां काले), ५५१२०-२(+#), ५३०८५-२ (२) औपदेशिक श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, जै., वै., (अ० अक्रोधीपणु), ५५१२०-२(+#) औपदेशिक श्लोक संग्रह, सं.,प्रा., श्लो. २७, पद्य, मूपू., (सकल कुशलवल्ली पुष्कर), ५४०७९-२ औपदेशिक सवैया, पुहि.,प्रा., गा. ३, पद्य, श्वे., (देख देख गोरो गात्त), ५३५९४-२ औपपातिकसूत्र, प्रा., सू. ४३, ग्रं. १६००, पद्य, मूपू., (तेणं कालेणं० चंपा०), ५५०२१(+$), ५३६७४($) (२) औपपातिकसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., ग्रं. ३१२५, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ५३६७४($) (२) औपपातिकसूत्र-टबार्थ, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (वंदित्वा श्रीजिन), ५५०२१(+$) औषधवैद्यक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, (अनार दाणा टां.८०), ५२०९०-२(+#), ५५४४३-३(+#), ५३१६८-३, ५३८३०-२(#), ५४२९९-२(१), ५४७५१-६(#) औषध संग्रह *, सं., गद्य, (--), ५२३४८-२ औषधिवर्णन पद, सं., श्लो. २, पद्य, (टंकैकं मिरचं पलंघृत), ५४९७२-१८(+-#) कथा संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (हिवे छ आरानुं नाम), ५४७६६(+#$) कर्णेद्रिय विषय दृष्टांत काव्य, सं., श्लो. २२, पद्य, मूपू., (कुरंगमातंगपतंगधंग), ५४३३४-१(2) कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., श्लो. १७९, पद्य, मूपू., (कर्पूरप्रकर: शमामृत), ५४८६८($) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा.६०, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूपू., (सिरिवीरजिणं वंदिय), ५४५४८-१(+$), ५४५५७-१(+), ५४६७४(+#$), ५४८८६(+5), ५५०१४-१(+#), ५४१८६-१ For Private and Personal Use Only Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४८८ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट १ (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीरजिन वांदी), ५४६७४ (+#$), ५४८८६ (+$) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ३४, वि. १३वी - १४वी, पद्य, मूपू., (तह थुणिमो वीरजिणं), ५४५४८-२(+), ५४५५७ २(+), ५५०१४-३(+) ५४९८६-२ कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., व्याख. ९, ग्रं. १२१६, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं० समणे), ५४०७७(+$), ५४०७८(+#$), ५४०८२(+), ५४१०१(+), ५४१४३(+), ५४९६५ (+), ५४२०८(+), ५४२९५(१), ५४३० (+), ५४३१२-१(+), ५४३४७(+), ५४४११(१६), ५४४६२(15), ५४५०२(१६), ५४७१२ (००), ५४७२६ (+5), ५४९१४(+), ५४९३५(+), ५४९४४(७), ५५०४८(+), ५५०६३ (+), ५५२५३ (+), ५५२५९(+४), ५५४७० (+), ५५५३४(5), ५५५८० (MS), १४०७६(०), ५४१२४(#), ५४५३०(#$), ५४५३२ (#$), ५४८९०(#S), ५४९२१(#$), ५४९३४(#$), ५५१८० (#$), ५२८३४ ($), ५३५५८ ($), ५४३६३(३), ५४७७१(३), ५५०७६(३) (२) कल्पसूत्र- कल्पकिरणावली टीका, उपा. धर्मसागरगणि, सं., ग्रं. ५२१६, वि. १६२८, गद्य, मूपू., (प्रणम्य प्रणताशेष), ५४७५० (5) (२) कल्पसूत्र - कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं. ग्रं. ४१०९, गद्य, मूपु. ( श्रीवर्द्धमानस्य) ५४९१४(+१३), ५४५३० (45) (२) कल्पसूत्र - टीका, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य प्रणताशेष), ५४५०२ (+#$) (२) कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका, उपा. विनयविजय, सं., ग्रं. ६५८०, वि. १६९६, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमश्रेयस्कर), प्रतहीन. (३) कल्पसूत्र-कल्पसुबोधिका टीका का हिस्सा गणधरवाद वक्तव्यता, उपा. विनयविजय, सं., गद्य, मूपू., (वेदपदानि च विज्ञान), ५२५७६(६) (४) कल्पसूत्र - कल्पसुबोधिका टीका का हिस्सा गणधरवाद वक्तव्यता- बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू.. (हिवे श्रीमहावीर), ५२५७६ (5) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) कल्पसूत्र - बालावबोध, उपा. रामविजय, मा.गु., वि. १८१९, गद्य, जै., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), ५३१६३-१($) (२) कल्पसूत्र - बालावबोध *, मा.गु., रा., गद्य, मूपू., ( नमो अरिहंताणं), ५४१०१ (+#S), ५४३४७(+), ५४३५९(+#), ५४५७६ (+$), ५४९४४ (००९), ५५५८० (+०३), ५४५६४ (०३), ५२८३४(३), ५४५७२(३), ५५०७६(३), ५५५६७/३) (२) कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतन माहरो ), ५४०७७ (+), ५४१६५ (+#), ५४२०८(+), ५४४६२ (+#$), ५४५०२(+#$), ५४७२६ (+$), ५५०४८ (+$), ५५०६३ (+), ५५२५३ (+#$), ५५२५९ (+#$), ५५४७० (+#$), ५५५३४(+#$), ५४०७६०, ५४१२४००१, ५५१८०(३), ५३५५८(5) (२) कल्पसूत्र-टबार्थ+व्याख्यान+कथा, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (सकलार्थसिद्धिजननी), ५४९३४(#$) (२) कल्पसूत्र - कल्पदीपिका भाषाटीका, मा.गु., गद्य, मूपू., (सकलार्थसिद्धिजननी), ५४०८२ (+) " (२) कल्पसूत्र व्याख्यान+कथा, मु. हेमविमलसूरि-शिष्य, मा.गु, गद्य, मूपू., (सकलार्थसिद्धिजननी) ५४०७८ (+) (२) कल्पसूत्र - व्याख्यान + कथा *, मा.गु., गद्य, मूपू., ( नमः श्रीवर्द्धमानाय), ५४०७७ (+$), ५४२०८ (+), ५४४११ (+$), ५४४६२(+#$), ५४७२६ (+$), ५५०४८ (+$), ५५०६३ (+), ५५२५३ (+#$), ५५३७० (+), ५५४७० (+#$), ५५५३४(+#$), ५४०७६(४), ५४१२४(१), ५५१८० (88), ५५३८५१०१, ५३५५८(8) ५५१६७(5) (२) कल्पसूत्र - कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (ए जंबूद्वीप भरतखंडनै), ५४९४४(+#$) (२) कल्पसूत्र - हिस्सा त्रिशलारानी १४ स्वप्नदर्शन, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गद्य, म्पू., (जं रयणि चं णं समणे), ५५११३(+) (३) कल्पसूत्र - हिस्सा त्रिशलारानी १४ स्वप्नदर्शन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५५११३(+#$) (२) कल्पसूत्र - हिस्सा नेमिजिन चरित्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, मूषू.. (तेणं कालेणं० अरिष्टा), ५४९९९ (७) (३) कल्पसूत्र - नेमिजिन चरित्र का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (तेणई काले तेणे समे), ५४९९९ (#$) (२) स्थविरावली, हिस्सा, प्रा., प+ग., मूपू., (तेणं कालेणं तेणं समए), ५५१५९ (+$), ५४२९४-१ (३) स्थविरावली- टीका, सं., गद्य, भूपू (तस्मिन्काले तस्मिन्), ५४२९४-१ " (३) स्थविरावली - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू. (जगन्नाथ श्रीआदिनाथना), ५५१५९(३) (२) कल्पसूत्र - १४ स्वप्न विचार, संबद्ध, रा., गद्य, भूपू (परिलाइ स्वप्नइ सिंह), ५३३२७ (३) (२) कल्पसूत्र - पीठिका, संबद्ध, मु. हेमविमलसूरि - शिष्य, मा.गु., गद्य, मूपू., (सकलार्थ सिद्धिजननी), ५४९७५ (+$) For Private and Personal Use Only Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ (२) कालिकाचार्य कथा, संबद्ध, प्रा.सं., गद्य, मूपू., ( नमः श्रीवर्धमानाय), ५४२९४-२ (२) कल्पसूत्र- अंतर्वाच्य ०. सं., गद्य, मूपु.. (कल्याणांपुरिम इह), ५४३५/ (२) कल्पसूत्र - अंतर्वाच्य, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीजिनं), ५४३० (+#) (३) कल्पसूत्र - अंतर्वाच्य का टवार्थ मे, मा.गु., गद्य, म्पू., (नमस्कार करीने), ५४३०२ (+) कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., अध्य. १०, गद्य, मूपू.. (जति णं भंते समणेणं०), ५४३६५-२(क्या कल्पिकासूत्र, प्रा., अध्य. १०, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं तेणं०), ५४३६५-१(+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि सं. लो. ४४, वि. १वी, पद्य, म्पू, (कल्याणमंदिरमुदार), ५२७१३-१(+४), ५२९४८(+#), ५२९५५-१(+#), ५३३४९(+), ५३७४० (+#), ५४३२३-८ (+), ५४५१७(+), ५५०३१-३४(+#), ५५४१२-१(+), ५२६०८, ५३६५५, ५४९०४, ५२३०१, ५३५७१(१), ५३६४७-३(०३), ५३६६२(१), ५४५४६-३४४०९, ५४५५५-१०) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-कल्याणमंजरी टीका, मु. विनयसागर सं., वि. १६७२ गद्य, मूपू. (स्वर्वापीवीचिखलजन), ५५४१२ (१(+) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र - टीका, पा. हर्षकीर्ति, सं., गद्य, मूपू., ( श्रीमत्पार्श्वजिनं), ५४३०९ (+) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पार्श्वनाथजीनइ), ५४९०४ कामगुण वर्णन, सं. श्री. २, पद्य, वै. (अधरामृतेन पित्तं वात). ५४९७२-५२(+) कामघट संबंध- धर्मप्राप्तिविषये, सं., श्लो. ५३, प+ग, श्वे. (उद्वाहे प्रथमोवरः), ५४८६७ " " कार्यस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा. गा. २४, पद्य, मृपू., (जह तुह दंसणरहिओ काय), ५२८०३ (+), ५३९१६(+), ५५४६०-३(+) (२) कायस्थिति प्रकरण- टीका, आ. कुलमंडनसूरि, सं., वि. १५वी, गद्य, मूपू., (वर्द्धमानं जिन), ५२८०३ (+#$), ५२९३३ (२) कार्यस्थिति प्रकरण टवार्थ से मा.गु., गद्य, मूपू., (जिम ताहरे दर्शन), ५५४६०-२ (+) कालमांडला विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू. (प्रथम पाटलि पडिलेहि), ५२१६३-२ कालसप्ततिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., गा. ७४, पद्य, मूपू., (देविंदणयं विज्जाणंद), ५४१०२(+), ५५००८-१(+) (२) कालसप्ततिका-टबार्थ, पंडित. उदयरुचि, मा.गु., गद्य, मूपू., (देविंद्र नमिउ विद्या), ५४१०२ (+) (२) कालसप्ततिका टवार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (इंद्र महाराय पण), ५५००८-१०) " कालिकाचार्य कथा, उपा. समयसुंदर गणि, प्रा., मा.गु. सं. ग्रं. ४४१, वि. १६६६, प+ग., मूपू., (प्रणम्य श्रीगुरुं), ५५५१७(+#) " कालिकाचार्य कथा, प्रा. ग्रं. २११, पग मूपू., (जो कुणइ ससत्तीए संघस), ५४३२५ मण " कुमतिउत्थापन चर्चा, पुहिं. प्रा. वि. १८८४, गद्य, मूपू. (मनोमती झूठी प्ररूपणा), ५४५४३-२ (+३) . कृष्णभव विचार, मा.गु. सं., गद्य, मृपू, (तथा तुम्हे लिख्खु छड़), ५३२२८-३(१) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कृष्ण स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, वै., (तं भूसुता मुक्तिमुदा), ५४८२५-६(५) केवलज्ञान शकुनावली, सं., श्लो. ५१, पद्य, वे (अकारे लभते ज्ञानं), ५२६७७ " केवली आहारादि प्रश्नोत्तर, मा.गु., सं., गद्य, श्वे., (केवली आहार करइ किं), ५२८२१-३(+#$) क्रोध सुभाषित सं . ३४, पद्य, भूपू (क्रोधो मूलमनर्थानां), ५४३३४-७) .. " क्षमापना पद, प्रा., मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (सव्वे जीवा कम्म वस), ५४९७२-६३(+-#) खंदक अधिकार, प्रा., गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं तेणं), ५५०४३(#) (२) खंदक अधिकार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते कालनें विषे ते सम), ५५०४३(#) गच्छाचार प्रकीर्णक, प्रा., गा. १३७, पद्य, मूपू., (नमिऊण महावीरं), ५५५०५ (२) गच्छाचार प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू (नमस्कार करी श्रीमहाव), ५५५०५ गाथा संग्रह, प्रा.मा.गु., सं., पद्य, वै., (कज्जल विज्जल गुंद), ५२०८०-२ (५०), ५२४१३-३ (+), ५३००३-२ गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, वे (सत्तइ रत्ता मत्तइ), ५२०७५-२ (०) ५२९५८-६(+), ५५३०९-२ (+४), ५३०२०-३, ५४०७९-३, "" ५२२०४-३ (#), ५२२३०-२(#), ५३२५९-२(#) गायत्री मंत्र, सं., पद्य, वै., (ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ तत), ५२८६१-२(४), ५३८१६-२, ५३४९९-२ For Private and Personal Use Only ४८९ Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४९० www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ गिरनारतीर्थ कल्प, मु. ब्रह्मेद्र सरस्वती सं., श्लो. २३, पद्य, मृपू (श्रीविमलगिरेस्तीर्था), ५३०१९-१(१) गिरनारतीर्थ माहात्म्य-वामनपुराणे, ऋ. वेद व्यास, सं., श्लो. ५, पद्य, वै., (पद्मासनं समासीन), ५२३००-२ गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि सं. लो. १३५, वि. १४४७, पद्य, भूपू (गुणस्थानक्रमारोहहत) प्रतहीन. (२) गुणस्थानक्रमारोह-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि सं. वि. १४४७, गद्य, मूपू., (अर्ह पदं हृदि), ५५०५८(98) गुरुगुणषट्त्रिंशत्यट्त्रिंशिका कुलक, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., षट् ३६ गा. ४०, पद्य, मूपू.. ( वीरस्स पाए पणमिव सिरि), ५२०५८ (२) गुरुगुणषट्त्रिंशत्यट्त्रिंशिका कुलक- टीका, सं., गद्य, मृपू., (आक्षेपणी विक्षेपणी), ५२०५८(३) " " " (२) गुरुगुणषट्त्रिंशत्षट्त्रिंशिका कुलक-स्वोपज्ञ बीजक, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, मूपू., (देशना कथा भावना धर्म), י' ५४१७८ (#$) गुरुगुण स्तुति, सं., पद्य, थे. (ॐ नत्वा श्रीवामेवं), ५२७७७($) , गुरु प्रतिपत्ति ८ भेद लोक, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (आसनोभिग्रोभक्त्या), ५२५३१-४(+) गुरुप्रतिमा स्तुप प्रतिष्ठा विधि, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (शुभ नक्षत्रेषु शुभवे), ५४९६३(+$), ५२१०३-१ गुरुवंदन कुलक, प्रा. गा. २९, पद्य, वे (मुहणतय देहावस्सएस), ५२७३२(+) "" गृहबिंब लक्षण व पूजा विधि, मा.गु., सं., प+ग, मूपू., (एकां अंगुलं श्रेष्ठ), ५२६६५ (#) गृहविस्थापना विधि, मा.गु. सं., गद्य, म्पू, (पूर्व भव्यमुहूर्त) ५२६४८-१ " गोरी आलोयण गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (अहो जिणेहिं असावज्जा), ५३२३४-४(+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गोम्मटसार, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., कां. २ अधिकार ३१, गा. १७०५, पद्य, दि., (सिद्धं सुद्धं पणमिय), प्रतहीन. (२) गोम्मटसार- उदयत्रिभंगी, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., त्रिभं. ३, गा. ७३, पद्य, दि. (पंचणवदोणिअट्ठावीसं), ५५१४५ , (२) गोम्मटसार-बंधत्रिभंगी, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा. त्रिभं. ३, गा. ४१, पद्य, दि., (णमिऊण णेमिचंदं असहाय), ५५१४५-२(+) (२) गोम्मटसार- सत्तात्रिभंगी, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., त्रिभं. ३, गा. ३५, पद्य, वि., (पंचणवदोणिअट्ठावीसं०), ५५१४५ " मुनका गोविंद स्तोत्र, शंकराचार्य, सं., श्लो. १४, पद्य, वै., (भज गोविंद भज गोविंद), ५३६८०-१(+$) गौतम कुलक, प्रा. गा. २०, पद्य, भूपू (लुद्धा नरा अत्थपरा) ५२४८८ (३), ५२९४२-२(+०३), ५२९८४(+०), ५३०३७(१), ५४०३७(+), ५४५८९(+), ५२६४४, ५२८९५, ५३०६८-१(१), ५३०७०- १(1) (२) गौतम कुलक-टीका + कथा, मु. ज्ञानतिलक, सं., कथा. ६९, वि. १६६०, गद्य, मूपू., (नत्वा श्रीदेवगुरुन), ५४५८९(+) (२) गौतम कुलक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, भूपू., (लुद्धा० लोभी नरा), ५२४८८(+8) (२) गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (लोभीया मनुष्य अर्थनइ), ५२९८४(+#), ५३०३७(+), ५२८९५($) (२) गौतम कुलक-टवार्थ+कथा, मा.गु., गद्य, मूपू (अर्थोपार्जन तत्परा), ५४०३७(+) (२) गौतम कुलक- भावार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (लुद्धा क० लोभी नर अथ), ५३०७०-१(-#$) गौतमपृच्छा, प्रा. प्रश्न ४८ गा. ६४, पद्य, भूपू (नमिऊण तित्वनाह), ५४३८० (+5), ५४३९७(+-३), ५५५४५ (क), ५४७४७, " ५४१४५(#), ५४१७१(#), ५५०३७(s), ५४५४९ (#$) (२) गौतमपृच्छा - टीका, मु. मतिवर्द्धन, सं., ग्रं. १६८२, वि. १७३८, गद्य, मूपू., (वीरजिनं प्रणम्यादौ), ५४३८० (+$) (२) गौतमपृच्छा-बालावबोध, आ. मुनिसुंदरसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (महावीरजी गोतमपृच्छा), ५५०३७($) (२) गौतमपृच्छा - बालावबोध, मु. वृद्धिचंद्र, मा.गु., गद्य, मूपू (नत्वा वीरजिनं बालाव), ५४३९७(+७) (२) गौतमपृच्छा-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीर्थनाथ श्रीमहावीर), ५४७४७, ५४१४५ (#), ५४१७१(#) (२) गौतमपृच्छा-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीर्थनाथ श्रीमहावीर), ५५५४५ (#), ५५०३७($) (२) गौतमपृच्छा- कथा संग्रह *, मा.गु, कथा. ३५, गद्य, मूपू (वसंतपुर नगरने विषे) ५४९४५(४), ५४५४९(१४) गौतमस्वामी स्तुति, आ. ज्ञानसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीइंद्रभूतिं), ५३४२०-७ गौतमस्वामी स्तुति, मा.गु., सं., गा. ५, पद्य, मूपू., (अंगुठे अमृत वसे लब्ध), ५२१३३-३ (+), ५४२८६-४ (+), ५३७७१-२ For Private and Personal Use Only Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ ४९१ गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (इंद्रभूतिं वसुभूति), ५२६२२-१(+), ५३७१९-१(#) ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (जगद्गुरुं नमस्कृत्य), ५२११४-१(+), ५३२९१-४(+#), ५४२८६-१०(+), ५२३९७(#) घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (ॐ घंटाकर्णो महावीरः), ५३२९९-३($) घ्राणेंद्रिय दृष्टांत श्लोक, सं., श्लो. ५, पद्य, श्वे., (घ्राणेंद्रियस्य लोल), ५४३३४-३(#) चंद्रधवल कथा-अतिथिसंविभागव्रते, आ. माणिक्यसुंदरसूरि, सं., ग्रं. ४००, गद्य, मूपू., (इह भरतक्षेत्रे), ५४९९६(+#$) चंद्रधवलभूपधर्मदत्तश्रेष्ठि कथा, आ. माणिक्यसुंदरसूरि, सं., श्लो. ६५, वि. १४८४, प+ग., मूपू., (आरोग्यं सौभाग्य), ५५५२९(+$) चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र, प्रा.,प्राभृ. २०, ग्रं. १८५४, पद्य, मूपू., (नमो अरि० जयति नवणलिण), ५५३४८-३(+), ५४४२८(#S) चंद्रप्रभजिन स्तुति, सं., पद्य, श्वे., (श्रीश्रीधर्मनृपः), ५३७०४-६($) चंद्रोन्मीलन शास्त्र, सं., प्रक. ५५, पद्य, मूपू., (चंद्रप्रभं नमस्कृत्य), ५५५८५(+) चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, स्पू., (श्रीचक्रे चक्रभीमे), ५३९३४-२(+#) चतु:शरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. ६३, वि. ११वी, पद्य, मूपू., (सावज्जजोग विरई), ५३९३१(+#), ५४३७७(+), ५४७४६(+#), ५४९७०(+#), ५५४४९(+#), ५३३२५(#), ५४६२४-१(#), ५५२२२-१(६) (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-अवचूरि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, मूपू., (इदमध्ययनं परमपद), ५४७४६(+#) (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सावद्य योग विरति ते), ५५२२२-१($) (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, ग. लाभकुशल, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीर), ५४९७०(+#) (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (चउसरणपइनाना अर्थ०), ५४३७७(+), ५५४४९(+#) चतुर्दशीतप पारने की विधि, सं.,मा.गु., प+ग., मूपू., (प्रथम इरिया वही पछ), ५५०८७-५(+) चतुर्विंशतिजिन स्तुति, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ८, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (जिनर्षभ प्रीणितभव्य), ५२०९३(+) चमत्कारचिंतामणि, राजऋषिभट्ट, सं., श्लो. १११, पद्य, वै., (क्वणत्किंकिणी जालकोल), ५५२६८-१ (२) चमत्कारचिंतामणि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., वै., (श्रीवामेय जिनं नत्वा), ५५२६८-१ चमरेंद्र कथा, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (चोसठ असुराणं चौरासीय), ५४९९७(#) चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., ग्रं. ४०१, गद्य, मूपू., (स्मारं स्मारं स्फुरद), ५४५४०-१(+#), ५५०७०(+), ५४३१०(#$) चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (सामाइकावश्यक पौषधानि), ५५३९१(+) चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान, उपा. समयसुंदर गणि, सं., वि. १६६५, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमानंद), ५२५३१-१(+$) चार मंगल, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (चत्तारि मंगलं अरिहंत), ५४८५२-३ चारित्रमनोरथमाला, आ. धनेश्वरसूरि, प्रा., गा. ३०, पद्य, मूपू., (केसिं च स उन्नाणं), ५२७८४(+) चित्रसेनपद्मावती चरित्र, आ. महीतिलकसूरि, सं., श्लो. १२३२, वि. १५२४, पद्य, मूपू., (नत्वा जिनपतिमाद्य), ५४९३७-१(+#), ५४१७२(#) चैत्यवंदनभाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ६३, पद्य, मूपू., (वंदित्तु वंदणिज्जे), ५२२९१(+$), ५५२७४-३(+$) चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, प्रा.,रा.,सं., गद्य, मूपू., (प्रथम गोबररी गुंहली), ५२४९९-२(+) छंदोनुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., अ. ८, गद्य, मूपू., (वाचं ध्यात्वार्हती), ५४७२२(+) (२) छंदोनुशासन-स्वोपज्ञ छंदचूडामणि वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, मूपू., (शब्दानुशासनविरचनानंत), ५४७२२(+) छत्रभ्रमण प्रतिमापूजन स्नात्र विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (प्रथम असुरिंद सुरिंद), ५५१५४-२ जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., उ. २१, गद्य, मूपू., (तेणं कालेण० रायगिहे), ५४२२७(+), ५४५६८(+#), ५४७५३(+#S) (२) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते काल चउथो आरोतेवा), ५४२२७(+), ५४५६८(+#) (२) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (सुप्रभावं जिनं नत्वा), ५४१३७ जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., वक्ष. ७, ग्रं. ४१४६, गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं० तेणं), ५४३५६(+#) For Private and Personal Use Only Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९२ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-प्रमेयरत्नमंजूषा टीका, उपा. शांतिचंद्र, सं., ग्रं. १२०००, वि. १६५१, गद्य, मूपू., (जयति जिनः सिद्धार्थः), ५४३५६(+#) (२) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-क्षेत्रसमास चौपाई, संबद्ध, मु. सुमतिसागर, मा.गु., उल्ला. ६, गा. ५७८, वि. १५९४, पद्य, मूपू., (सरसति सामिणि करुं), ५३५५६(-#$) जन्मपत्री पद्धति, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., अधि. ३३, पद्य, मूपू., (प्रणम्य सारदांज्योत), ५४६५९(+#$) जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., गा. ३०, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (जय तिहुयणवरकप्परुक्ख), ५२७४६(+), ५२८०९(+#), ५२९८८(+),५३४२९-१५(+), ५३६४१(+#), ५३९६१(+#$), ५५०३१-२८(+#), ५५३८७-५(+), ५४७२८-२,५५४०७-६, ५४५४६-२(#), ५४५५५-२(#$), ५४९९३(३), ५५१२२(2) (२) जयतिहुअण स्तोत्र-टीका, सं., ग्रं. २५०, गद्य, मूपू., (अत्रायं वृद्धसंप्रदा), ५३६४१(+#), ५४८९३(+) (२) जयतिहुअण स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (जयतिहुअणेत्यादि अत्र), ५२९८८(+) (२) जयतिहुअण स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जयवंतउ था हे), ५४९९३(#), ५५१२२(#) (२) जयतिहुअण स्तोत्र-भंडार गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (परमेसर सिरिपासनाह), ५३६१५-२ जलग्रहण विधि, सं., श्लो. २, पद्य, वै., (संवच्छरेण यत्पापं), ५४९७२-४८(+-2) जलयात्रा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (जलयात्रा योग्य उपगरण), ५२९३४ जातमृतसूतक गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, श्वे., (एगिदिअजीवाणं एइय), ५४०९४-३(+) जिनकुशलसूरि अष्टप्रकारी पूजा, मु. विद्याविलास, प्रा.,सं., गा. २१, प+ग., मूपू., (सकल गुरुगरिष्टान्०), ५२७९९-१(+#) जिनकुशलसूरि स्तुति, मु. विद्याविलास, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (विपुलविशदकीर्ति), ५२७९९-२(+#) जिनदत्तसूरि स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (दत्तपट्टमवेक्ष सत्तम), ५२२२९-५ जिनदर्शन श्लोक संग्रह, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (दर्शनं देवदेवस्य), ५२८३७-३ जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीँ श्रीँ अर्ह), ५२६६४(+#), ५४२८६-८(+), ५२७५२, ५३४८०(#) जिनबिंब-जिनप्रासाद स्थापना विधि, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (नमस्कारत्रयेण), ५२६४८-२ जिनबिंबप्रवेशस्थापना विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पहिलु मुहूर्त भलु), ५५२८५-१(+#) जिनरक्षा स्तोत्र, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., (सर्वातिशयसंपूर्णान), ५३६०२-२ जिनलाभसूरिक्षमापना स्तुतिपत्र, उपा. रूपचंद, प्रा., गा. १७, पद्य, मूपू., (सुत्थि सिरीजहलेहे), ५३५८३-१ जिनलाभसूरि स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (भाग्योदयाच्छ्रीमति), ५२२२९-४ जिनलाभसूरिस्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (श्रीजैनभक्तेश्वर पाद), ५२२२९-३ जिनलाभसूरिस्तुति-पत्रमय, पं. सूर्यमुनि, सं., श्लो. २४, वि. १८२३, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीवरशंकराद), ५२७४३ जिनसुखसूरि स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (प्रणत नरवरेंद्रा जैन), ५२२२९-२ जिनस्तुति संग्रह, सं., श्लो. २२, पद्य, श्वे., (कः प्रौढि मंचति जनें), ५३७०४-१(६) जिनस्तुत्यादि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (श्रीअहँतो भगवंत), ५५०३१-४(+#) जिनाभिषेक कलश, मा.गु.,सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्री परमात्म), ५४२१७-३(+#) जितेंद्रिय मधुरा मंगु दृष्टांत, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (जिह्वालौल्येन को नाम), ५४३३४-४(#) जीव के ७ बोल, प्रा., गद्य, मूपू., (अज विसाण निमते आहारे), ५२२६५-३ (२) जीव ७ बोल-अनुवाद, मा.गु., गद्य, मूपू., (माठा अध्यवसाय करीने), ५२२६५-३ जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., गा. ५१, वि. ११वी, पद्य, म्पू., (भुवणपईवं वीरं नमिऊण), ५२४८६(+), ५२६६६(+), ५२९५४-१(+#$), ५३६२७(+#), ५३९२३(+#S), ५३९२४(+#), ५४०४७(+), ५४२२२(+), ५४२७४-२(+#), ५४३४९-२(+), ५४५४४-२(+$), ५४६४८(+), ५४७८७(+), ५४८०७(+), ५४९८४-१(+), ५५०१७(+), ५५०३१-३८(+#), ५५०५९-२(+#), ५५१०१-१(+#), ५५११२(+), ५५२९०(+#S), ५५३१८-२(+$), ५५५३७(+#), ५३६१३-१, ५४०७४, ५५००९,५३७३५ (#) (२) जीवविचार प्रकरण-अक्षरार्थदीपिका अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (अहं किंचिदपि जीव), ५४७८७(+) (२) जीवविचार प्रकरण-अर्थलेश अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (भुवनदीपसमं श्रीवीर), ५५०१७(+) For Private and Personal Use Only Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ (२) जीवविचार प्रकरण-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मूपू., (भुवनमाहि मिथ्यात्व), ५३९२४(+#) (२) जीवविचार प्रकरण-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्वर्ग मृत्यु पाताल), ५३७३५ (#) (२) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीन भुवन रै विष), ५४०४७(+), ५४६४८(+), ५४८०७(+), ५४९८४-१(+), ५५२९०(+#$), ५५३१८-२(+$), ५५५३७(+#), ५५००९ (२) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (त्रिणिभुवनमै प्रदिपक), ५५११२(+$) (२) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (त्रिभुवनदीप निभं), ५४५४४-२(+$) (२) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (त्रिभुवनस्वर्गमृत्यु), ५४३४९-२(+) (२) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (भुवण कहीइ त्रिभोवन), ५४०७४ (२) जीवविचारप्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (भुवन कहेंता त्रण), ५४२२२(+$) (२) जीवविचार प्रकरण-पद्यानुवाद, मु. ज्ञानसार, मा.गु., गा. २९, वि. १८६१, पद्य, मूपू., (भुवन प्रदीपक वीर), ५४९८०-१(+) जीवाभिगमसूत्र, प्रा., प्रतिप. १०, सू. २७२, ग्रं. ४७५०, गद्य, मूपू., (णमो उसभादियाणं चउवीस), ५४३२१(+#), ५४४३७(+$), ५४४५२ (२) जीवाभिगमसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५४४३७(+$) जीवोत्पत्ति विचार, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (अंडजाः पक्षिसर्पाद्य), ५५३४५-५(+), ५२२७० (२) जीवोत्पत्ति विचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, स्पू., (पंखीने सर्पादि इंडा), ५२२७० (२) जीवोत्पत्ति विचार-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पंखीजात सर्पजाति ए), ५५३४५-५(+) जैनगाथा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (सललमथघ्रतकाज निक्खु), ५२९३२-२(+), ५२९९४-४, ५२४१२-२(#), ५२०६०-५(-2) जैन गायत्री जाप विधान, सं., प+ग., मूपू., (अथ चतुर्विंशति अर्ह), ५३४५०-२ जैनदुहा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, श्वे., (चिहु नारी नर नीपजइ), ५२३७०-४(-१), ५३०६४-१(-) जैनधर्मसम्मत श्लोक संग्रह-विविध शास्त्रोद्धृत, सं., पद्य, श्वे., (दशस्वपि कृता दिक्षु), ५२१४५(+#$) जैन मंत्र संग्रह-सामान्य, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (ॐ नमो अरिहंताणं), ५२७२१-२ जैनविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (उतरासण नांखी चावलदान), ५२८६१-१(+#) जैन सामान्यकृति, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (त्रीणि स्थानानि), ५३१५३-२(+), ५५००८-२(+), ५५४४३-१(+#), ५३३८५-२, ५४४६४-९३, ५२४४४-२(६), ५२६३८-२(६) जैनेतर सामान्य कृति, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., वै., (--), ५५११७-३ ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. १९, ग्रं. ५५००, प+ग., मूपू., (तेणं कालेण० चंपाए), ५४४५७(+), ५४४८५(+), ५४४८६(+s), ५४९१६(+#s), ५४१७६, ५४५०३(#), ५५५८६($), ५५५६३(-5) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, उपा. कनकसुंदर, मा.गु., ग्रं. ८५००, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीर), ५४४८५(+), ५४१७६, ५४५०३(# (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार श्रीमहावीरने), ५४४८६(+$), ५५५८६($) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-हिस्सा १६अध्ययन जिनप्रतिमापूजा अधिकार, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., मूपू., (मज्जाणथए उपडिणिक्खमइ), ५४६५६(+$) (३) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-हिस्सा १६अध्ययन जिनप्रतिमापूजा अधिकार-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (मज्जणघरमांहि थी नीकल), ५४६५६(+$) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (पंचानंतकसुप्रपंचपरमा), ५३४२९-७(+), ५५०३१-१७(+#), ५५३६४-१४(+#), ५४५४६-८(#), ५३५६७-८() ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीनेमिः पंचरूप), ५२०५९(+), ५२२३७-७(+#), ५२७६६-२(+#), ५३२९७-१ (#), ५४२४४-१(#), ५४८२२-३(#), ५५३७६-३(#), ५५४५७-५(#) (२) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीनेमीनाथ पांच), ५२०५९(+) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (समुद्रभूपालकुलप्रदीप), ५३२९७-२(#), ५४८२२-४(#) For Private and Personal Use Only Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प.प .५४ ४९४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ज्ञान पूजा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (नमंति सामंति महीवनाह), ५४५४६-३(#) ज्ञानसम्मत आगमिक विचारसंग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (ज्ञानधनो धणीउ संसार), ५४३२२(+$) ज्ञानसार, मु. पद्मसिंहमुनि, प्रा., गा. ६३, ग्रं. ७४, वि. १०८६, पद्य, दि., (सिरिवड्डमाणसामी सिरस), ५२८२१-१(+#$) (२) ज्ञानसार-छाया, सं., श्लो. ६३, पद्य, दि., (श्रीवर्धमानस्वामिन), ५२८२१-१(+#$) ज्ञानसार, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., अष्ट. ३२, श्लो. २७३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ऐंद्रश्रीसुखमग्नेन), ५४५५३(+) (२) ज्ञानसार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऍद्रक० इंद्र संबंध), ५४५५३(+) ज्ञानार्णव, आ. शुभचंद्र, सं., स. ४२, श्लो. २०७७, पद्य, दि., (ज्ञानलक्ष्मीघनाश्लेष), ५४२५७(+$) (२) ज्ञानार्णव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, दि., (ज्ञान सुरूप अनुप जो), ५४२५७(+$) ज्योतिष, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., जै., वै., (--), ५५४१७-२(+#), ५२२०५-२,५३२६०-२,५४४६४-६८, ५५५१०-२,५२५३७-३(२), ५२५८९-२(#), ५२६०५-१(#), ५३००४-२(#$), ५३९६३-२(#), ५२४६३-२($) ज्योतिष अपूर्ण ग्रंथ, सं.,प्रा.,मा.गु., प+ग., ?, (--), ५३७४४-४(१) ज्योतिष श्लोक संग्रह, सं., पद्य, वै., (इष्टस्यावधिसंस्थितौ), ५५२६८-२ ज्योतिष संग्रह-, सं., पद्य, (इष्ठेदुर्भप्रवेशे), ५३२४९-२(+#), ५३२२६-२(१) ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., श्लो. २९४, पद्य, मूपू., (श्रीअर्हतजिनं नत्वा), ५४०५७-१(+), ५४३७०(+#), ५४७८६(+#), ५४९२०(+#$), ५४९८९(+#$), ५५२१६(+#$), ५५५२८(+#$), ५४००२, ५५५५६(#$), ५५१५३($) (२) ज्योतिषसार-यंत्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचंद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (सरस्वतीं नमस्कृत्य), ५४०५७-१(+), ५४३७०(+#), ५४९२०(+#$) (२) ज्योतिषसार-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, मूपू., (पडवा सठइग्यारस नंदा), ५४००२ (२) ज्योतिषसार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत प्रते), ५४९८९(+#$) (२) ज्योतिषसार-लघुनारचंद्र ज्योतिष, संक्षेप, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (अहँत जिनं नत्वा), ५५३३४(+#$) (३) लघुनारचंद्र ज्योतिष-टिप्पण, आ. सागरचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (सरस्वतीप्रसादेन यंत), ५५३३४(+#$) ज्योतिषसार, मुंजादित्य विप्र, सं., श्लो. २८४, पद्य, वै., (विघ्नराजं नमस्कृत्य), ५५०४१-१(+-) तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक, प्रा., प+ग., मूपू., (निजरिय जरामरण), ५४४८२(+#), ५४७२३(+), ५४२९७ (२) तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक-लघुवृत्ति, मु. विशालसुंदर-शिष्य, सं., वि. १६५५, गद्य, मूपू., (सकलत्रिभुवनपरिवृटिक), ५४२९७ (२) तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (कल्याणवल्ली नतिथार), ५४७२३(+) (२) तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक-टबार्थ, रा., गद्य, मूपू., (तप जप संजमनइ वलइ), ५४४८२(+#) तक्रगुण वर्णन श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, वै., (सैंधवेन समायुक्तं), ५४९७२-३८(+-#) तत्त्व विचार श्लोकसंग्रह, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (तत्त्वानि७ व्रत१२), ५२७३१-१ (२) तत्त्व विचार श्लोकसंग्रह-विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीव १ अजीव २ पुण ३), ५२७३१-१ तत्त्वार्थसारदीपक, आ. सकलकीर्ति भट्टारक, सं., अ. १२, पद्य, मूपू., (ज्ञानानंदैकरूपाय), ५४३२८(+$) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., अ. १०, गद्य, मूपू., दि., (सम्यग्दर्शनशुद्ध), ५५३४४-१(+#), ५५३३६-१ (#) (२) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र प्रशस्तिश्लोक संग्रह, संबद्ध, प्रा.,सं., गा. ५, पद्य, मूपू., दि., (अक्षरमात्रपदस्वरहीना), ५५३४४-२(+#) तपागच्छीय १८ शाखा, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (भूयास्युर्विजयप्रभा), ५२१०८-१(+) । तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., गा. १४, पद्य, मूपू., (तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ), ५४३२३-३(+), ५५०३१-३१(+#), ५२०८७, ५२७१८, ५२७६४, ५२९०३, ५४७२८-५, ५४८९८-२, ५४५४६-३२(#), ५३२८२-१(६), ५४६३९-३($) (२) तिजयपहत्त स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीन जगत्रन प्रभुताना), ५४८९८-२ तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (सद्भक्त्या देवलोके), ५२०८८(+), ५४१३४-९(+#), ५४२०९-३(+), ५२६४१-१, ५२७८१-१,५३४२५-४, ५३४९७-३,५२४४१-१(#) त्रिपुराभवानी स्तोत्र, आ. लघ्वाचार्य, सं., श्लो. २४, पद्य, वै., (ऐंद्रस्यैव शरासनस्य), ५४१३६(+#) (२) त्रिपुराभवानी स्तोत्र-टबार्थ, पा. रूपचंद्र गणि, पुहिं., वि. १७९८, गद्य, मूपू., वै., (ज्याकी भगति प्रभावते), ५४१३६(+#) For Private and Personal Use Only Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पर्व. १०, ग्रं. ३५०००, वि. १२२०, पद्य, मूपू., (सकलार्हत्प्रतिष्ठान), ५५०३४(+#$), ५५३२६ (+#$) (२) सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. २६, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (सकलार्हत्प्रतिष्ठान), ५२०९६(+#), ५३४६०-१(+5), ५४१३४-१(+#), ५४२०९-५(+), ५२५६५-१, ५२२०७(#), ५३६३५(#$), ५३४२५-१(६) त्रिषष्ठिशलाकापुरुष स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (नाभेयादि जिनः), ५२१०६-३(-2) त्रैलोक्यप्रकाश, आ. हेमप्रभसूरि, सं., श्लो. १२५०, पद्य, मूपू., (श्रीमत्पार्थाभिध), ५४९०५(+$) दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., गा. ४५, वि. १५७९, पद्य, मूपू., (नमिउंचउवीसजिणे तस्स), ५२५०९(+$), ५३३३४(+), ५३६३८(+#), ५४५४४-३(+$), ५४८१५(+#), ५५०३१-३९(+#), ५५०५९-३(+#), ५५१०१-२(+#), ५५१८४(+#), ५५२३८(+), ५५३३३(+#), ५५४६०-१(+), ५५५२७-१(+#), ५५५३५-१(+#), ५३४०४, ५३५८५, ५३६१३-२, ५४३१७, ५५४५२-२, ५४६२४-३(#s) (२) दंडक प्रकरण-टीका, ग. समयसुंदर, सं., वि. १६१६, गद्य, मूपू., (भो भव्या यूयं श्रृणु), ५३१७८(+) (२) दंडक प्रकरण-स्वोपज्ञ अवचूरि, मु. गजसार, सं., ग्रं. २१६, वि. १५७९, गद्य, मूपू, (श्रीवामेयं महिमामेय), ५३३३३(#$) (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ* मा.गु., गद्य, मूपू., (ऋषभादिक २४ जिननै), ५२५०९(+$), ५३६३८(+#), ५४८१५(+#), ५५१८४(+#), ५५२३८(+5), ५५३३३(+#), ५५४६०-१(+), ५५५२७-१(+#), ५५५३५-१(+#), ५४३१७(5) (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमी करी चउवीस तीर्थं), ५४५४४-३(+S), ५४९५२(+#) (२) दंडक प्रकरण-पद्यानुवाद, मु. ज्ञानसार, मा.गु., गा. २६, वि. १८६१, पद्य, मूपू., (ऋषभादिक चौवीस नमि), ५४९८०-३(+) दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., अध्य. १० चूलिका २, वी. रवी, पद्य, मूपू., (धम्मो मंगलमुक्किट्ठ), ५३२७२(+$), ५४०९९(+), ५४३८७(+$), ५४४०४(+$), ५४४०९(+#), ५४४३६(+#), ५४४३९(+#$), ५४४९०(+६), ५४४९१(+$), ५४५७८(+#$), ५४७१७(+#), ५४७९५(+#S), ५४८२६(+#), ५५०२४(+), ५५०३२(+$), ५५१४९(+#), ५५२५८+#), ५५२७४ २(+), ५५३३९(+$), ५५४०५(+#$), ५५४९७(+$), ५३६१६, ५४०५१(#), ५४४७६(#S), ५५२३१(#$), ५४५९०($) (२) दशवैकालिकसूत्र-टीका*, सं., गद्य, मूपू., (--), ५४७९५(+#$) (२) दशवैकालिकसूत्र-बालावबोध, उपा. राजहंस, मा.गु., गद्य, मूपू., (नत्वा श्रीवर्द्धमान), ५५०२४(+) (२) दशवैकालिकसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्म सर्वोत्तम मांगल), ५४४३९(+#s), ५५३३९(+$), ५५२३१(#$) (२) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (ध० जीवनइ दुर्गति), ५३२७२(+$), ५४०९९(+), ५४३८७(+$), ५४४०४(+$), ५४४०९(+#), ५४४३६(+#), ५४४९०(+$), ५४४९१(+६), ५४७१७(+#), ५४८२६(+#), ५५०३२(+S), ५५२५८(+#), ५५४०५(+#s), ५५४९७(+s), ५४४७६(#$) (२) दशवकालिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्मकेवलीरो भाख्यौ), ५४०५१(#) (२) दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा द्रुमपुष्पिका प्रथम अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (धम्मो मंगलमुक्किट्ठ), ५२१३५-२(+), ५४२८६-११(+), ५४८५२-२, ५५१८२-३, ५३०१०-२(-) (३) दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा प्रथम अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्म मंगलीक उत्कृष्ट), ५५१८२-३ (२) दशवकालिकसूत्र-अध्ययन-१०-सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (ते मुनि वंदो ते मुनि), ५२८३१-३ (२) दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., अ. १०, वि. १७१७, पद्य, मूपू., (धर्ममंगल महिमा निलो), ५५२३९(+$), ५२४९८-१, ५२६७६-३#) (२) दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., सज्झा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीगुरूपदपंकज नमीजी), ५५३११(+#$), ५५१५१-५(#) दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., दशा. १०, ग्रं. १३८०, पद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं० हवइ), ५५२२०(+S), ५४४९५, ५४७१६,५३०३४(#) (२) दशाश्रुतस्कंधसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५३०३४(#$) (२) दशाश्रुतस्कंधसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीदशाश्रुतस्कंध), ५५२२०(+$), ५४४९५, ५४७१६ 1००७६१) For Private and Personal Use Only Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४९६ " संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., गा. ५०, पद्य, स्था. (देवाहिदेवं नमिऊण), ५४६५५ (०) ५५५६०(क) (२) दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू. (वेवाधिदेवनई नमस्कार), ५४६५५ (+), ५५५६०/कम दानशीलतपभावना कुलक, आ. जयघोषसूरि, प्रा., गा. ३०, पद्य, मूपू., (निऊण महिय मोहं वीर), ५४३७२-२(+#) दानशीलतपभावना कुलक, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. वक्ष ४, गा. ८१, पद्य, भूपू (परिहरिय रज्जसारो) ५२८९३ (+४), ५२९४२-१(+१), " , ५४३७२-१(+#), ५३०२५(#S), ५३९०९(#$) दिलरंजनी, पुहिं. सं., गा. ७४७, पद्य, जे. वै., (स्वस्ति श्रीसुखसंपदा), ५४०२७(+३), ५४१४१(०) "3 दीक्षाग्रहण विधि, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, म्पू, (संध्यायां चारित्रो) ५३२३१, ५४८६९-२(५) दीक्षाविध, प्रा.सं., मा.गु., प+ग., मूपू., (दीक्षा देन्हार पूरवे), ५४२८९-३(+#) दीक्षा विधि, प्रा.मा.गु. सं., गद्य, मूपू, (पुच्छा वासे चिड़ वेसे), ५२२६२ दीक्षा विधि, मा.गु. सं., गद्य, म्पू, (मूलपुनर्वसुस्वाति), ५२५५५-२(+) विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (योग्य पुरुष स्त्री), ५३५६३-१(+) दीपचंद्रजी वर्ण के नाम पत्र, उपा. अमृतधर्म, उपा, क्षमाकल्वाण, सं., श्लो. ७ प+ग, भूपू (सुरुद्धिः श्रीमद्भिः), ५३५८३-२ दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., श्लो. ४३७, ग्रं. १५००, वि. १४८३, पद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमांगल्य), ५५४६९(+#$), ५४१२७(#), ५५५६६ (-$) . (२) दीपावली पर्व कल्प-टबार्थ, ग. सुखसागर, मा.गु. ग्रं. १२००, वि. १७६३, गद्य, म्पू, (अर्हतं बालबोधाना), ५५४६९(+#5), ५४१२७११ दीपावली पर्व स्तुति, गच्छा. जिनचंद्रसूरि सं., वो ४, वि. १७वी, पद्य, भूपू (पापायां पुरि चारु), ५४५४६-२१(०) दीपावली पर्व स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, भूपू (पापायां पुरि चारु), ५५०३१-१९(+) " (२) द्विदल विचार - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीणड़ पीलीइकुंतइ चोपड), ५५१९९-२(क) , दुरिअरबसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. ४४, पद्य, म्पू, (दुरिअरयसमीर मोहपंको), ५५०३१-३६(४), ५५२३२(+) . (२) दुरिअरयसमीर स्तोत्र - वृत्ति, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, मूपू., (अहं तस्य महावीरदेव), ५५२३२(+#$) दुहा संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, ? (अनमिलनी बहुत मिलई). ५२९०५-२००६) दृष्टांतकथा संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, मूपू., (रे दालिद्दवियक्खणवत्), ५४३३४-१०(#) देववंदन विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (नमोत्थुणं कहीने भगवन), ५३५०८-१ (+) देवसिप्रतिक्रमण विधि- खरतरगच्छीय, प्रा., मा.गु. सं. प+ग, भूपू (इच्छामि खमासमणो बंदि), ५४७२८-१(३) द्वात्रिंशदक्षरी मूलविद्या साधन व प्रयोग विधि, सं., गद्य, वै., (-), ५२८०६-४(४) द्वादशराशि भावफल, सं., पद्य, (मूत्रैरिविस्तीद्रकरा), ५५१०८-१(+#) द्विदल विचार, प्रा., गा. १, पद्य, मृपू., (जं मिओ पिलिज्जते), ५५१९९-२(+) द्विप्राहरिकराम कथा, सं., गद्य, श्वे. (भाग्येन सर्वसंपत्ति), ५४१०७(+#) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir , धनदत्त कथा- क्रोधोपरि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू (मुंचति धार्मिकोपि), ५४३३४-६(१) धनमित्र कथा, सं., श्लो. १७, प+ग, मूपू., (विनयपुरे वसुश्रेष्ठी), ५३५७९ (+) धर्मकल्पद्रुम, पंडित उदयधर्म, सं., पल्ल. ८, पद्य, मूपू (श्रियं दिशतु वो), ५४२६२ (७) (२) धर्मकल्पद्रुम टवार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., ( श्रीनाभिराजानो पुत्र), ५४२६२ (०३) धर्मध्यान लक्षण, प्रा., गद्य, मूपू., (धम्मेज्झाणे चउविहे), ५५३२४ (२) धर्मध्यान लक्षण - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मृपू., ( आणावीज कहेता वीतरागन), ५५३२४ धर्मप्रभावक श्लोक सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (धर्मतः सकलमंगलावली), ५२५८५-२ (२) धर्मप्रभावक लोक बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू (अहो भव्य जीवो इणि), ५२५८५-२ धर्मोपदेशशतक, आ. मेरुतुंगार, सं. स. ५, श्लो. १०६, ग्रं. ७४८, पद्य, म्पू (प्रणिधाय परं ज्योतिर), ५२९३९(+४), ५२११९ (०६) " १ For Private and Personal Use Only " (२) धर्मोपदेशशतक- स्वोपज्ञ टीका, आ. मेस्तुंगसूरि, सं. ग्रं. ३२७४, गद्य, मूपू (जयति स परमात्मा केवल), ५२११९ (१३) नंदीश्वरद्वीप स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, भूपू (नंदीश्वरद्वीप महीपर), ५३४२९-१ (+) "" Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ नंदीश्वरद्वीप स्तुति, सं. नंदीश्वरद्वीप स्तोत्र, मु. मेरु, अप., मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सिरि निलय जंबुदीवो), ५३३८६-१ नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., सूत्र. ५७ गा. ७०० प+ग, भूपू (जयइ जगजीवजोणीवियाणओ) ५४९९८(०), ५५१४१(०), " ५५५७२ (००३), ५४४६६, ५४३२४०) ५४३५१११ (२) नंदीसूत्र- टीका, आ. मलयगिरिसूरि सं. ग्रं. ७७३२, गद्य, मृपू., (जयति भुवनैकभानुः), ५४२९० (+) 3 " (२) नंदीसूत्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अथ नंदि इति कः), ५४३२४(#) (२) नंदीसूत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू (नंदी ते आनंदनी देण), ५४९९८ (०३), ५५५७२(MS), ५४४६६ " www.kobatirth.org १, पद्य, भूपू (लसद्द्विपंचाशदधीश्वर), ५२५२३-७ " (२) नंदीसूत्र - कथा संग्रह *, मा.गु., कथा. ८९, गद्य, मूपू., (नंदनं नंदि प्रमोदोहर), ५४९१८(+) (२) नंदीसूत्र - मंगल गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (जयइ जगजीवजोणीवियाणओ), ५२३०९, ५३६९० (२) नंदीसूत्र - स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., गा. ५०, पद्य, भूपू.. (जयह जगजीवजोणीवियाणओ), ५२२३१(+), ५३६१८-१(+), ५२६७८ (२) नंदीसूत्र - स्थविरावली, संबद्ध, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (श्रीवीरात् सुधर्मा), ५४५१९-१ नमस्कार महामंत्र, शाश्वत, प्रा. पद ९, पद्य, म्पू, णमो अरिहंताणं), ५२०५५ (-१), ५३१३०, ५२३७४(१), ५२५१०१ (२) नमस्कार महामंत्र- बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतन माहरउ), ५३१३०, ५२३७४ (#), ५२५२२-१(#$) (२) नमस्कार महामंत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (बारसगुण अरिहंता), ५२०५५ (+#), ५२५१० (-) नमस्कार स्तव, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., श्लो. ३३, पद्य, म्पू, (परमिडि नमुक्कार), ५२१००१), ५३५५४००१ (२) नमस्कार स्तव - स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., वि. १४९७, गद्य, मूपू., (जिनं विश्वत्रयी), ५३५५४(#) नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., गा. २४, पद्य, मूपु. ( नमिऊण पणयसुरगण), ५३५१९(+०), ५४३२३-४(+), ५३६१५-३ (२) नमिऊण स्तोत्र - टबार्थ, मु. ज्ञानमेरु, मा.गु., गद्य, मूपु. ( नमस्करीनई प्रणाम), ५३५१९(+१) יי नमिजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (सत्पार्श्व विजयप्रभा), ५२२३७-४(+#) नयकर्णिका, उपा. विनयविजय, सं., श्लो. २३ वि. १७उ, पद्य, मूपू (वर्द्धमानं स्तुमः), ५५१९६-२ (+) नयचक्र, मु. माइलधवल, प्रा. गा. ४२५, पद्य, दि., (दव्वाविस्स सहावा). प्रतहीन, " , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - (२) नयचक्र - भाषावचनिका, श्राव. हेमराज शाह, पुहिं., वि. १७२६, गद्य, दि., (वंदो श्रीजिनके वचन), प्रतहीन. (३) नयचक्र-भाषावचनिका का बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, मूपू., दि., (स्यात्कारमुद्रिता), ५५१९६-१(+), ५४१९७(#) (२) नयचक्र - चयन, प्रा.. गा. ९, पद्य, दि. (एइंदियाइदेहा निव्वत), ५५५३८-२० " (३) नयचक्र - चयन का अर्थ, पुहिं., गद्य, दि., (एकेंद्रीजीव के देह), ५५५३८-२ (+) नयचक्रसार, ग. देवचंद्र, सं., वि. १८वी, गद्य, मूपू. (प्रणम्य परमब्रह्म), ५५२२६ नयस्वरूप विचार, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (शुद्धं द्रव्यं समा), ५५१९६-३ (+) नयोपदेश, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., श्लो. १४४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ऐंद्र धाम हृदि स्मृ), ५२६४२-१(+) नवकार फलबोधक गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, भूपू (जिणसासणस्स सारो चउदस), ५२७८१-२ "" नवग्रह मंत्र, सं., गद्य, भूपू (ॐ आदित्य सोम मंगल), ५३१६८- २ (६) ', नवतत्त्व प्रकरण, आ. मणिरत्नसूरि, प्रा., गा. ५५, पद्य, मूपू., (जीवाजीवापुन्नं पावा), ५४७४२ (+) (२) नवव प्रकरण वालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु. वि. १७३९, गद्य, भूपू (जीवनुं स्वरूप ते), ५४७४२(*) नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., गा. ६०, पद्य, मूपू., (जीवाजीवा पुण्णं पावा), ५२२२२ (+#), ५२६५४(+#), ५२७३६(+), ५३२३४-१(+), ५३५६५ (+$), ५४०५० (+), ५४२०२ (+), ५४२७४-३(+#), ५४२८७(+), ५४५४४-१ (+), ५४८३८ (+), ५४८७४(+#), ५४९८४२(+), ५५०३१-३७(+०), ५५०५९-१००), ५५३१५(००), ५५३१८-११०१, ५५३९७/-), ५५३९८(+०७), ५५४१४(+४७), ५५४३४९९९, ५५४५६(+४), ५५४५२.१, ५३९९७ (४), ५४१२५(१), ५४६०६ (४७), ५४८९६ (०) ५५०८८ (AS) (२) नवतत्व प्रकरण अवचूरि, आ. साधुरत्नसूर, सं., गद्य, भूपू (जयति श्रीमहावीर), ५४२८७(+), ५४६१६ (७) (२) नवतत्त्व प्रकरण बालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू. ( जीवतत्त्व अजीवतत्त्व), ५४६४७ (-१), ५४८३८(+), ५४९८४-२(१), ५३९९७(१), ५४८९६(५) ५४३९५(३) ४९७ For Private and Personal Use Only Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९८ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवा क० जीवतत्व), ५४२०२(+$) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध *, रा., गद्य, मूपू., (जीवाजीवा० जीवतत्त्व), ५५४१४(+#$), ५५४३४(+), ५५०१६ (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, आ. गजचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (दश विध प्राण धरे), ५४८७४(+#) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीव कहतांच्यार), ५४०५०(+), ५४५४४-१(+), ५५०५९-१(+#$), ५५३१५(+#), ५५३९७(+#), ५५३९८(+#$), ५५४५६(+#), ५५०८८(#$) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (दश प्राण धारई ते), ५५३१८-१(+), ५४१२५ (#) (२) नवतत्त्व प्रकरण-पद्यानुवाद, मु. ज्ञानसार, मा.गु., गा. ३३, वि. १८६१, पद्य, मूपू., (नमस्कार अरिहंतने), ५४९८०-२(+) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहेलो जीवतत्त्व बीजो), ५४४३१ (२) नवतत्त्व प्रकरण-बोलसंग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व अजीवतत्त्व), ५५२९५(+) नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., गा. १०७, पद्य, मूपू., (जीवाजीवापुन्नं पावा), ५४०५४-३(+#) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवे नवतत्त्वना नाम), ५४०५४-३(+#$) नवपद खमासण विचार, पुहि.,सं., गद्य, मूपू., (तिहां प्रथम पदै), ५४६५४(#) नवपद पूजा, ग. देवचंद्र, प्रा.,मा.गु., पूजा. ९, पद्य, मूपू., (उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण), ५२८५५(+#) नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पूजा. ९, पद्य, मूपू., (उपन्नसन्नाणमहोमयाण), ५४२१७-१(+#), ५४२६१(+#), ५४८३९-३, ५२२५५(#), ५४६७९(), ५२७१७-१(६) नवपद पूजाविधि, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नवपद मंडल विधि लिख्य), ५५०७५-४(+) नवपद लघु पूजा, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा.,मा.गु.,सं., ढा. ९, पद्य, मूपू., (उपन्नसन्नाणमहोमयाण), ५४२०९-८(+) नवपद स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु.,सं., गा. १४, पद्य, मूपू., (अरिहंत पद ध्यातो), ५२६५१-१(+) नवस्मरण, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., स्मर. ९, प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताण० हवइ), ५४१४९(+), ५४९५८-१(+#), ५५१९०(+#s), ५५५४२(+#S) (२) नवस्मरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतनइं माहरो), ५४१४९(+$), ५५१९०(+#$) नागदत्त कथा-अष्टाह्निकातपविषये, सं., गद्य, मूपू., (अत्रैव भरते कुसुमपुर), ५३२५९-१(#) नाडीपरीक्षा, सं., श्लो. २०, पद्य, वै., (स्नायुर्नाडी न साहिस), ५४१४०-२(+#) (२) नाडीपरीक्षा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, वै., (० नाम नाडि कहियें अन), ५४१४०-२(+#) निर्वाणकांड, प्रा., गा. ४७, पद्य, दि., (अद्वावय मिउसहो चंपार), प्रतहीन. (२) निर्वाणकांड-(पु.हि.)पद्यानुवाद, जै.क. भैया, पुहि., गा. २२, वि. १७४१, पद्य, दि., (वीतराग वंदों सदा भाव), ५५४४८-७(#) नेमिजिन चरित्र *, सं., गद्य, श्वे., (मथुरायां हरिवंशे बहु), ५५३२२(2) नेमिजिनद्वयक्षर स्तोत्र, मु. शालिन, सं., श्लो. ९, पद्य, दि., (मानेनानून मानेनानोन), ५३९९३ नेमिजिन स्तुति-अष्टकाव्य पादपूर्तिरूप, मु. राजसिंह, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (कश्चित्कांता विरह), ५२६५५(+#) (२) नेमिजिन स्तुति अष्टकाव्य पादपूर्तिरूप-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (जनचित प्रज्ञाज्ञान), ५२६५५ (+#S) नेमिजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (परमान्नं क्षुधार्तेन), ५५०३१-१३(+#) न्यायदर्शनसंग्रह, सं., प+ग., (--), ५२६३६-४(+#) पंचकल्याणक स्तव, आ. हरिषेणाचार्य, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (ॐहीं हें शुभ), ५२०७०-१ पंचपरमेष्ठि १०८ गुणवर्णन, प्रा.,सं., गा. १, पद्य, मूपू., (बारसगुण अरिहंता), ५५३४५-९(+), ५४०३०-१ (२) पंचपरमेष्ठि १०८ गुणवर्णन-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (बारसगुण अरिहंता कहता), ५५३४५-९(+), ५४०३०-१ पंचमीतपउच्चारण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम गुरु आगल आवी), ५५०८७-३(+) पंचांगुलीदेवी मंत्रजपसाधन विधि, सं., प+ग., मूपू., वै., (अज्ञानतिमिरध्वंसि), ५५११५(#s) पंचेंद्रियजीव भेद विचार गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (नरगय पणिदि तस भव), ५५५३५-३(+#) (२) पंचेंद्रियजीव भेद विचार गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (च्यारगतिमाहेथी मनुष), ५५५३५-३(+#) पक्खीचौमासीसंवच्छरी तप विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (चउत्थेणं एक उपवास), ५३४६६-२ For Private and Personal Use Only Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ ४९९ पक्वान्न दिनमान, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे., (वासासु पनर दिवस), ५२८२७-५(+) पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., श्लो. १४, पद्य, म्पू., (नमः श्रीवर्द्धमानाय), ५२२२९-१ पट्टावली तपागच्छीय, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., गा. २१, पद्य, मूपू., (सिरिमंतो सुहहेउ), ५५१६३(+$), ५२५८७($) (२) पट्टावली तपागच्छीय-स्वोपज्ञ वृत्ति, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, मूपू., (सिरिमंतोत्ति यत्तदो), ५५१६३(+5), ५२५८७(१) पडिलेहण कुलक, ग. विजयविमल, प्रा., गा. २८, पद्य, मूपू., (पडिलेहणाविसेस), ५२३२२, ५२५२४-१,५२६२०-१ (२) पडिलेहण कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रतिलेखनाना विशेष), ५२३२२ पदस्थापन विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (जइगुण१ कालर निसिज्जा), ५२१०२(+), ५२७३५-१(#) पद्मावतीदेवी अष्टक, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (श्रीमद्गीर्वाणचक्र), ५३८६८-२ पद्मावतीदेवी छंद, मु. हर्षसागर, मा.गु.,सं., गा. १०, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रींकलिकुंडदंड), ५२३२३-१ पद्मावतीदेवी जापमंत्र, सं., गद्य, मूपू., (ॐहीश्रीऑक्राँ), ५२३२३-३ पद्मावतीदेवी स्तव, सं., श्लो. २७, पद्य, मूपू., (श्रीमद्गीर्वाणचक्र), ५२७८८(+), ५३९३४-१(+#), ५४६३३(+#$), ५२०६२(#) पद्मावतीदेवी स्तोत्र, पंडित. श्रीधराचार्य, सं., श्लो. १०, पद्य, वै., (जयंती भद्र मातंगी), ५३९३०-२(-2) (२) पद्मावतीदेवी स्तोत्र-जापविधि, संबद्ध, सं., प+ग., वै., (अस्य बीजमंत्रं यथा ॐ), ५३९३०-३(-#S) पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ४१, प+ग., मूपू., (ॐ अस्य श्रीमंत्रराज), ५३५१७(#) पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ८, पद्य, म्पू., (स्तोत्रे पवित्र जिन), ५२३२३-२ पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. २३, पद्य, मूपू., (--), ५२१०६-१(-#$) परमाणुमान गाथा, प्रा.,सं., गा. ४, पद्य, श्वे., (पुढवाइ आसत्ता सव्व), ५४८०२-२(+) (२) परमाणुमान गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, श्वे., (समय अत्यंत सूखिम काल), ५४८०२-२(+) परमात्मस्वरूप स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु.,सं., गा. ३२, पद्य, मूपू., (चिदानंदरूपं सुरूप), ५३९७४-१(#) पर्यंत आराधना विधिसहित, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (अहन्नं भंते तुमाण), ५४००० पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., गा. ७०, ग्रं. २४५, पद्य, मूपू., (नमिउण भणइ एवं भयवं), ५४११३(+#), ५४१२०(+), ५४२८९ १(+#), ५४३०४(+), ५४३६७-१(+), ५४९०८(+#), ५२५५१, ५४३३२, ५५०६२-२,५५१०९, ५३३३०(#$), ५२५०५-१(5) (२) पर्यंताराधना-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (नत्वा तत्त्वार्थवेत), ५३३३०(#$) (२) पर्यंताराधना-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (शिष्य गुरुं नत्वा), ५४३६७-१(+) (२) पर्यंताराधना-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमीनइ नमस्करीनई), ५४१२०(+), ५४२८९-१(+#), ५४३०४(+), ५५१०९, ५२५०५-१($) (२) पर्यंताराधना-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करिने), ५४११३(+#), ५४२८९-१(+#), ५४९०८(+#), ५४३३२ (२) पर्यंताराधना-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीजिनेश्वर प्रत्ये), ५५०६२-२ पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., श्लो. ६२४, वि. १७८९, पद्य, मूपू., (स्मृत्वा पार्श्व), ५४६५१(+#), ५४९५६-१(#$) (२) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान-टबार्थ, ग. ऋद्धिविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्मृत्वा समरीने श्री), ५४६५१(+#) पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (स्नातस्याप्रतिमस्य), ५२२३७-८(+#), ५२७६६-१(+#), ५२७७०, ५४७५९ ५(#), ५४८२२-२(#), ५५४५७-६(#) पार्श्वचंद्रसूरि अष्टप्रकारी पूजा, मु. आलमचंद, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (सदगुरु पद प्रणमी करी), ५३२२९-१(+) पार्श्वजिन अष्टक, मु. सागरचंद्र, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथ हृदये), ५२१८४-१(+#) पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (ॐ नमः पार्श्वनाथाय), ५२०९८-२(+#), ५३२९१-३(+#), ५२७१६-१, ५३०५५-१, ५२३९१-१(#) पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ५, वि. १८२६, पद्य, मूपू., (गौडीग्रामे स्तंभने), ५२५२३-२ पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथ नमः), ५२८३७-२ पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ६, पद्य, म्पू., (स्तुवे पार्श्व जिना), ५२८२३-१(+) पार्श्वजिन प्रबंध-स्वर्णगिरि मंडन, अप., पद्य, मूपू., (जालोरदुर्ग सिरिसेने), ५४७८८($) For Private and Personal Use Only Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०० संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., श्लो. ३३, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वः पातु वो), ५२१८४-३(+#), ५२४७०(६) पार्श्वजिन स्तव, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (लक्ष्मीनिदानं गुरु), ५२५२३-१(६) । पार्श्वजिन स्तव, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (विशदगुणविचित्र), ५२१८४-६(+#) पार्श्वजिन स्तव-अट्टेमट्टेमंत्राम्नाय गर्भित, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (ॐ नमो भगवते श्री), ५२११५(#) (२) पार्श्वजिन स्तव-अट्टेमट्टेमंत्राम्नाय गर्भित-मंत्रसाधन विधि, संबद्ध, सं., गद्य, मूपू., (कुंकुमगोरोचनकर्पूर), ५२११५(#) पार्श्वजिन स्तव-करहेटक, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (आनंदभंदकुमुदाकरपूर्ण), ५२८३७-४ पार्श्वजिन स्तव-गोडीजी, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (श्रीमत्पार्श्वजिने), ५२५२३-४ पार्श्वजिन स्तवन, मु. गजविजय, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (भजत भव्याः सदा पार्श), ५२२३७-६(+#) पार्श्वजिन स्तवन, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., (कामे वामेय शक्तिर्भव), ५५१०४-४(+#) पार्श्वजिन स्तवन, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्व भावतः), ५५१०४-५(+#) पार्श्वजिन स्तवन-केवलाक्षर, मु. शिवसुंदर, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (भवदवलवन तमजलद समसम), ५२४७१(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनभक्ति, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (जय जय गोडीजी महाराज), ५२४१२-१(#) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर मंडण, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (नमः पार्श्वनाथाय), ५४२८६-९(+) पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थ, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू., (श्रीसेढीतटिनीतटे), ५५०३१-२७(+#) पार्श्वजिन स्तव-स्तंभन मंत्रगर्भित, ग. पूर्णकलश, प्रा.,सं., गा. ३७, ई. १२००, पद्य, मूपू., (जसु सासणदेवि वएसकया), ५२२१७(+#), ५२२४६-१(#) (२) पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनक मंत्रगर्भित-स्वोपज्ञ वृत्ति, ग. पूर्णकलश, सं., गद्य, मूपू., (जं संथवणं विहिय तस्स), ५२२१७(+#), ५२२४६-१(#) पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (विशदसद्गुणराजिविराजि), ५२५२३-३ पार्श्वजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (मालामालानबाहुर्दधददध), ५२२८६-१(+) (२) पार्श्वजिन स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्या प्रतिं धरनो माल), ५२२८६-१(+) पार्श्वजिन स्तुति, मु. हितविजय, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (संसार दावानल दाह नीर), ५२२३७-१(+#) पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. ३, पद्य, म्पू., (जलाग्नी भारी चौरारी), ५२२१४-३(#) पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, म्पू., (विश्वस्वामी जीयात्), ५२७६६-३(+#) पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (हर्षनतासुरनिर्जरलोक), ५५०३१-१६(+#), ५५३६४-६(+#), ५३५६७-१, ५२१५२-१(#) पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (नै दें कि धप), ५२०७५-१(+#), ५२४९०-४(#), ५४५४६-१७() पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञ ज्योति), ५५०३१-२४(+#), ५५३८७-३(+), ५४५४६-७(#) पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (शमदमोत्तमवस्तुमहापण), ५३४२९-६(+), ५५०३१-२०(+#), ५५३६४-७(+#), ५३५६७-७, ५४५४६-१३(#) । पार्श्वजिन स्तुति-रत्नाकरपच्चीसी प्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रेयः श्रियां मंगल), ५२३२१-४ पार्श्वजिन स्तुति-समवसरणभावगर्भित, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (हर्षनतासुरनिर्जरलोक), ५४५४६-१५(#) पार्श्वजिन स्तुति-स्तंभनतीर्थ मंडन, मु. लावण्यविमल, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (ग्रामे श्रीस्तंभ), ५२७२९-२(+) पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. जयसागर, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (धर्ममहारथसारथिसारं), ५५०३१-७(+#) पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीं धरणोर), ५२५३४-२(#) पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. जैनचंद्र, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., (श्रेयो दधानं कमला), ५२६१७ पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. धर्मसिंघ, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (वंछित आस पुरण प्रभू), ५३२१२-१ पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. शिवनाग, सं., श्लो. ३९, पद्य, मूपू., (धरणोरगेंद्रसुरपति), ५२७१४-१(+) पार्श्वजिन स्तोत्र, प्रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (ॐचिंतामणिं पासनाह), ५४१३४-३(+#), ५२५८०-१(#) पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू, (अभिनवमंगलमालाकरण), ५५०३१-१४(+#) For Private and Personal Use Only Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ ५०१ पार्श्वजिन स्तोत्र, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (अमरतरु कामधेनु चिंता), ५५०३१-५(+#) पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, मु. रामविजय, मा.गु.,सं., गा. १४, पद्य, मूपू., (नमु सारदा सार), ५२०७८-१(+-), ५४१४६-४ पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, मा.गु.,सं., गा. ९, पद्य, मपू., (सकल भविकचेतः कल्पना), ५३९४४-३($) पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (किं कर्पूरमयं सुधारस), ५२१८४-२(+#), ५२६४६(+#), ५४१३४-८(+#), ५४२०९-४(+), ५२८३७-१, ५३४२५-३, ५३४९७-२,५३९९६, ५२१७३(#) पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि देवकुलपाटकस्थ, सं., श्लो.७, पद्य, मूपू., (नमो देवनागेंद्रमंदार), ५२४०५, ५२१०६-२(-2) पार्श्वजिन स्तोत्र-जीरापल्लि, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (नत्वा प्रभुपार्श्व), ५५२४०-१७-#) पार्श्वजिन स्तोत्र-जीरावला महामंत्रमय, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., श्लो. १४, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (ॐ नमो देवदेवाय नित्य), ५५१८३(+#), ५३९३०-१(-2) (२) पार्श्वजिन स्तोत्र-पंजिकाटीका, मु. पुण्यसागर, सं., वि. १७२५, गद्य, मूपू., (श्रीपार्श्व जीरिकाप), ५४७८५-२(+), ५५१८३(+#) पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., गा. १०, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (दोसावहारदक्खो नालिया), ५५०३१ ३२(+#), ५३२८२-२,५४५४६-३३(#) पार्श्वजिन स्तोत्र-वाराणसी, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (चित्तबहुलाइ चविङ), ५५०३१-६(+#) पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु.,सं., गा. ३२, वि. १७१२, पद्य, मूपू., (जय जय जगनायक), ५२८१३-३(+#), ५३००५(+#), ५३०४३-३(+$), ५४४७७-८(s), ५५४५०-१($) पार्श्वजिन स्तोत्र-समस्याबंध, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथं तमह), ५३७८८-२(#$) पार्श्वधरणेद्रपद्मावती मंत्र, प्रा., गद्य, मूपू., (ॐ थुणमि पास ही), ५३६१५-५ पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., श्लो. १९६, पद्य, श्वे., (महादेवं नमस्कृत्य), ५४२९९-१(#) (२) पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, श्वे., (१११ उत्तम थानक लाभ), ५५१२३-१(+#), ५२९९२, ५२२८१(#), ५५३२०(#), ५४७६७($) (२) पाशाकेवली-(पु.हि.)भाषा, पुहि., प्रक. ४, गद्य, श्वे., (अवजद ए च्यार अक्षर), ५३३०६(#) पिंडविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. १०३, पद्य, मूपू., (देविंदविंदवंदिय पयार), ५५१९९-१(+#) (२) पिंडविशुद्धि प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (देव भुवनपति इंद्र), ५५१९९-१(+#) पुण्य कुलक, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (सपुन्न इंदिअत्त माणु), ५३०७०-२(-#$) (२) पुण्य कुलक-भावार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पांचइ इंद्रिय परवडा), ५३०७०-२(-#$) पुण्यपाप कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., गा. १६, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (छत्तीसदिवस सहस्सा), ५३३८९-२(+), ५२२२३(#), ५२७५८-२(#) (२) पुण्यपाप कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवै सो वर्षना दिन), ५२२२३(१) पुराणहुंडी, सं., श्लो. २७८, पद्य, श्वे., वै., (श्रूयतां धर्मः), ५५२२३(+#$), ५५३१४(#$), ५५३४३(#$) (२) पुराणहंडी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., वै., (ध० धर्म सघलाइं सांभल), ५५२२३(+#$) पुरुषस्त्रीनपुंसकवेद गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, श्वे., (पुंसा दसकोडिणं पन्नर), ५५३४५-६(+) (२) पुरुषस्त्रीनपुंसकवेद गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (पुरुषवेदनी स्थित दस), ५५३४५-६(+) पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., अध्य. १०, गद्य, मूपू., (जइ णं भंते समणेणं०), ५४३६५-४(+#) पुष्पिकासूत्र, प्रा., अध्य. १०, गद्य, मूपू., (जति णं भंते समणेणं०), ५४३६५-३(+#) पूजा प्रकरण, वा. उमास्वाति, सं., श्लो. १९, पद्य, मूपू., (स्नानं पूर्वोन्मुखी), ५३५८०(+) पौषदशमीपर्व कथा, आ. कनकसूरि, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य पार्श्वनाथ), ५४५५२(#$) (२) पौषदशमीपर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करीने), ५४५५२(#$) पौषदशमीपर्व कथा, मु. जिनेंद्रसागर, सं., श्लो. ७५, पद्य, मूपू., (ध्यात्वा वामेयमहँत), ५२२६३-२ पौषध विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम इरियावही पडीकम), ५४३०७-४($) पौषधविधि सूत्रसहित-खरतरगच्छ, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (प्रथम इरियावही पडिक), ५५४२०-१(#) For Private and Personal Use Only Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५०२ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट १ प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा. पद. ३६, सू. २१७६ नं. ७७८७, गद्य म्पू, नमो अरिहंताणं० ववगय), ५४४५४९००), ५४५००१(+), ५४३३० (AS) , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) प्रज्ञापनासूत्र- तृतीयपदसंग्रहणी, संबद्ध, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., गा. १३३, पद्य, मूपू., (दिसि १ गइ २ इंदिय ३), ५२२२७ (२) प्रज्ञापनासूत्र - थोकडा संग्रह में, संबद्ध, प्रा., मा.गु., प्रश्न. ८, गद्य, भूपू., (इदा अगीए जमी नीरती), ५५३६९-३(+४), ५५३६९ ५(+#), ५५३६९-७(+#), ५५३६९-१० (+#), ५५३६९-१२(+#), ५५३६९-१४(+#), ५५३६९-१६(+#) (२) प्रज्ञापनासूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (कहजो रे पंडित ते), ५३१११ प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका, मु. रूपसिंह, सं., श्लो. ३७, पद्य, श्वे. (प्रज्ञाप्रकाशाय नवीन), ५३९०६ (#) प्रतिलेखनादि कालमान गाथा, प्रा., गा. ६, पद्य, म्पू. (आसाढे मासे दुपया पोस), ५३१५३-१(+) प्रतिष्ठा कल्प, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु. सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), ५४१७५ प्रमदाष्टक, सं., भो. ८, पद्य, भूपू (भुवीचापंवीणाः सुनिशित), ५५०९४-५ (का प्रमाणनयतत्वालोकालंकार, आ. वादिदेवसूरि, सं. परि. ८. सू. ३७९, वि. १९५२-१२२६, प+ग. मूपु (रागद्वेषविजेतारं), ५२९४३(३) "" " (२) प्रमाणनयतत्वालोकालंकार- स्याद्वादरत्नाकर स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. वादिदेवसूरि, सं. परि. ८, गद्य, मूपू, (नमः परमविज्ञानदर्शना), प्रतहीन. (३) प्रमाणनवतत्त्वालोकालंकार- स्याद्वादरत्नाकर स्वोपज्ञ वृत्ति की रत्नाकरावतारिका टीका, आ. रत्नप्रभसूरि, सं. परि. ८, प्र. ५६८०, वि. १३वी, प+ग., मूपू., (सिद्धये वर्द्धमान), ५४९०२ ($) प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., द्वा. २७६, गा. १५९९, ग्रं. २०००, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (नमिऊण जुगाईजिणं), ५४३५७/१७), ५४९०५-१(१), ५४२८०१०१ " (२) प्रवचनसारोद्धार-तत्त्वज्ञानविकासिनी वृत्ति, आ. सिद्धसेनसूरि, सं. ग्रं. १८००० वि. १२४२, गद्य म्पू. (सन्नद्धैरपि यत्तमोभि), ५४३३७ (+), ५४३५७ (+$) (२) प्रवचनसारोद्धार-अर्धप्रदीप बालावबोध, ग. पद्ममंदिर, मा.गु. नं. १२००८, वि. १६५१, गद्य, भूपू (श्रीमन्नाभेयादीन), , ५४२८०(४) (२) प्रवचनसारोद्धार - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करीनई ऋषभ), ५४१०५-१ (#) (२) प्रवचनसारोद्धार हिस्सा स्थविरकल्पी साधु के १४ उपकरण, आ. नेमिचंद्रसूरि प्रा. गा. ७. वि. १२वी, पद्य, भूपू "" ( जिणकप्पिआय दुविहा), ५२९३२-१(+) प्रव्रज्या कुलक, प्रा., गा. ३४, पद्य, मूपू., (संसार विसमसायर भवजल), ५५०३१-२ (+#), ५५३८७-४ (+), ५५४०७-२, ५४५४६ २३ ५३२१११(३) प्रव्रज्या योगादि विधि संग्रह, आ. प्रेमसूरि, गु., प्रा., सं., वि. २१वी, गद्य, श्वे. (पुच्छा वासे चेई वेस), प्रतहीन. (२) प्रव्रज्या योगादि विधि संग्रह-सज्झाय पठाववानी विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (स्थापनाचार्य खुल्ला), ५२१६३-१ प्रव्रज्या विधि, प्रा.मा.गु., प+ग, मृपू., (दीक्षा लेतां एतला), ५२५५५-३(+) प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. १०. गा. १२५० ग्रं. १३०० प+ग. म्पू. (जंबू अपरिग्गहो संबुड), ५४४२७), ५४४६०(+), ५४४६५ (+), ५४४७५ (+#S), ५५३४१ (+$) (२) प्रश्नव्याकरणसूत्र-वार्थ, मा.गु. गद्य, भूपू (हे जंबू एह प्रत्यक्ष), ५४४२७*), ५४४६०), ५४४४५(+), ५४४७५ (+#5), ५५३४१+७) प्रश्नाष्टक, श्राव. दलपतराय श्रमणोपासक, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (अनाद्येयं सिद्धि), ५५०९४-२(+) प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., श्लो. २९, पद्य, भूपू (प्रणिपत्य जिनवरेंद्र), ५३५६९(+०), ५२७२३-१ (२) प्रश्नोत्तररत्नमाला - टबार्थ, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिली श्रीआदिनाथनै), ५३५६९ (+#) (२) प्रश्नोत्तररत्नमाला - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., ( नमी करी श्रीमहावीर), ५२७२३-१ प्रश्नोत्तर विधि, सं., श्रो. १३, पद्य, श्रीमतीर्थेश्वरान् ५३९६२(+) " प्रश्नोत्तर संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, श्वे. (विसालसुरसहस्सरस्सिए), ५४०२८ (5) " For Private and Personal Use Only Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ प्रस्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ६१, पद्य, मूपू., (धर्माज्जन्मकुले शरीर), ५२९५९(#$) प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. २८, पद्य, मूपू., (पंचमहव्वयसुव्वयमूल), ५२८९०-२(#), ५५४५०-५(६), ५२४४०-२(-2) प्रास्ताविक श्लोक, सं., श्लो. १८१, पद्य, मूपू., (नमोस्तु देवदेवाय), ५५४४७(+) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. ५७, पद्य, जै.?, (दाता दरीद्री कृपणो), ५५२७९ बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. २५, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूपू., (बंधविहाणविमुक्क), ५२६९२-१(+), ५२९१२(+#), ५४५४८-३(+), ५४५५७-३(+), ५४६७५(+#$), ५४७४५(+#), ५५४४०(+#), ५४१८६-३ (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, ग. पुण्यकलश, मा.गु., गद्य, मूपू., (बंधविधान कर्मबंधना), ५५४४०(+#) (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (कर्म बंधना प्रकारथी), ५२९१२(+#), ५४६७५ (+#$), ५४७४५(+#) बालत्रिपुरासुंदरीदेवी स्तोत्र, मा.गु.,सं., गा. ६, पद्य, वै., (नित्यानंदकरी आई आणंद), ५२७४१-३(#) । बीजतिथि स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (महीमंडणं पुन्नसोवन्न), ५३४२९-३(+), ५५०३१-१८(+#), ५५३६४-५(+#), ५३५६७-५, ५४५४६-४(#) बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., उ. ६, ग्रं. ४७३, गद्य, मूपू., (नो कप्पइ निग्गथाण), ५५३७२-१(#) (२) बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, पू., (कव० कश्चित नगर), ५५३७२-१(#) (२) बृहत्कल्पसूत्र-प्रायश्चित्तविधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, म्पू., (नीवी मास भिन्न), ५५३७२-२(#) (३) बृहत्कल्पसूत्र-प्रायश्चित्तविधि का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नीवीने मास भिन्न कही), ५५३७२-२(#) बृहत्क्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., अधि. ५, गा. ६५५, वि. ६वी, पद्य, मूपू., (नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण), प्रतहीन. (२) बृहत्क्षेत्रसमास-जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., गा. १४२, पद्य, मूपू., (नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण), ५४०४०(+), ५४९११(+#) (३) जंबूद्वीप प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिऊण कहेतां नमस्कार), ५४९११(+#) (२) लघुक्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., अ.५, गा. ८८, पद्य, मूपू., (नमिऊणसजलजलहर निभस्सण), ५४१५७ (३) लघुक्षेत्रसमास-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमीने जे भगवंत सजल), ५४१५७ बृहत्क्षेत्रसमास नव्य, आ. सोमतिलकसूरि, प्रा., गा. ३८७, वि. १३७३, पद्य, मपू., (सिरिनिलयं केवलिणं), ५५५२३(+S) बृहत्शांति स्तोत्र-खरतरगच्छीय, सं., प+ग., मूपू., (भो भो भव्याः शृणुत), ५५११९(+#) बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., मूपू., (भो भो भव्याः शृणुत), ५२९८१-१(+#), ५३२८१(+), ५३२९१-२(+#), ५३४६० ४(+S), ५३७४६(+), ५४३२३-७(+), ५२६६८, ५३१६२-१, ५३१६३-२,५३५३७, ५५४०७-३, ५३६९४(#), ५४५४६-३५(#s), ५३०४७-३(5) (२) बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., वि. १६५६, गद्य, मूपू., (स्ताच्छांतिः शांति), ५३७४६(+) बृहत्शांतिस्नात्र विधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (नमोर्हत्सिद्धाचार्यो), ५५२८५-२(+#) बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., गा. ३४९, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (नमिउं अरिहंताई ठिइ), ५४२१४(+), ५४३३६(+5), ५४४९६ १(+#), ५४५५०(+$), ५४७४०(+#), ५४७७८(+#$), ५४८१२(+#), ५४८४०(+#), ५४९०६(+#), ५५०५५(+#), ५५१३९(+#$), ५५१५७(+s), ५५१६५(+#), ५५१९७(+#$), ५५३६४-२०(+#), ५५४१७-१(+#), ५५५९१(+#), ५२९४४(#$), ५४०१४(5) (२) बृहत्संग्रहणी-टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., ग्रं. ३५००, गद्य, मूपू., (अत्यद्भुतं योगिभि), ५४३३६(+६) (२) बृहत्संग्रहणी-बालावबोध, ग. दयासिंह, मा.गु., ग्रं. १७५७, वि. १४९७, गद्य, मूपू., (नत्वा श्रीवीरजिन), ५४४१४(+$), ५४०१४() (२) बृहत्संग्रहणी-बालावबोध, मु. शिवनिधान, मा.गु., वि. १६००, गद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथं फल), ५२९४४(#S) (२) बृहत्संग्रहणी-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, मूपू., (ॐ नत्वा अरिहंतादी), ५४४९६-१(+#), ५५१५७(+$) (२) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ , मु. धर्ममेरु, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करीने अरिहंत), ५५१३९(+#$) (२) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ, ऋ. वच्छराज, मा.गु., ग्रं. १६४९, गद्य, भूपू., (लेलिख्यते टबार्थोय), ५४८४०(+#) (२) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ*मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार अरिहंता), ५५५९१(+#) For Private and Personal Use Only Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ बोल संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (जीवाय १ लेसा ८ पखीय), ५५०९३(+#$), ५३०१८-१,५४५३५-९ बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (हिवै शिष्य पूछ), ५४४६४-९५ ब्रह्मचर्यव्रतप्रत्याख्यान आलापक, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम इरियावही), ५४२८९-२(+#), ५२६८१ भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. १७२, पद्य, मूपू., (नमिऊण महाइसयं महाणु), ५२९८३-१ भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. ४४, पद्य, मूपू., (भक्तामरप्रणतमौलि),५२०५४(+#), ५२०९८-१(+#), ५२७१३-२(+$), ५२७४७(+$), ५३२९१-१(+#$), ५३३९७(+#$),५३४२८(+#), ५३७४९(+#), ५४०१६(+#), ५४०७१(+#), ५४२८६-१(+), ५४३२३-६(+), ५४३४०(+-), ५४८०६(+#), ५४८०८(+), ५५०३१-३३(+#), ५५१६४(+#), ५५१९१(+#$), ५५५२१(+S), ५२१९७, ५४८५९-२, ५४८७५, ५३०२१(२), ५३६४७-१(२), ५३७१७(#), ५४१३०(#), ५४५४६-३०(#), ५३०४७-२(६), ५४५८२($), ५४६३९-१($), ५४७२८-६($), ५४८५२-१($) (२) भक्तामर स्तोत्र-गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि, सं., ग्रं. १५७२, वि. १४२६, गद्य, मूपू., (पूजाज्ञानवचोपायापगमा), ५४३४०(+-), ५४७६२(+#), ५५३५५(+#) (२) भक्तामर स्तोत्र-टीका, वा. मेघविजय, सं., ग्रं. १०००, वि. १७०१-१७८२, गद्य, म्पू., (श्रीशंखेश्वरपार्श्व), ५४५४१(+#$) (२) भक्तामर स्तोत्र-सुखबोधिका टीका, आ. अमरप्रभसूरि, सं., गद्य, मूपू., (किल इति निश्चये अहम), ५४८०८(+) (२) भक्तामर स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, म्पू., (सम्यग जिनपादयुगं), ५४८०६(+#) (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., वि. १५२७, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीर), ५४१३०(#), ५४५८२($) (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (किल इति सत्ये), ५४८५९-२ (२) भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, पंन्या. विबुधरुचि, मा.गु., गद्य, मूपू., (किल कहता निश्चयै करी), ५४०१६(+#) (२) भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (किलक० निश्चये करीनई), ५४०७१(+#) (२) भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (भक्तिवंत जे देवता), ५५१६४(+#), ५५१९१(+#$) (२) भक्तामर स्तोत्र-पद्यानुवाद, मु. हेमराज, मा.गु., गा. ४८, पद्य, मूपू., (आदि पुरूष आदिस जिन), ५२१७२(+), ५३९०५-१(+), ५२१०१ (२) भक्तामर स्तोत्र-दंडान्वय, सं., श्लो. ४४, गद्य, मूपू., (किल इति सत्ये अहमपि), ५४०१६(+#) (२) भक्तामर स्तोत्र-कथा, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., कथा. २८, गद्य, मूपू., (एकदा जिनमतना द्वेषी), ५४१३०(#) (२) भक्तामर स्तोत्र-कथा*, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमालवदेशमाहि), ५५३६५(+$) (२) भक्तामर स्तोत्र-शेषकाव्य, हिस्सा, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., दि., (गंभीरताररवपुरिदिग्वि), प्रतहीन. (३) भक्तामर स्तोत्र-शेषकाव्य का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., दि., (अहो श्रीआदिनाथ ताहरइ), ५३६१५-१ (२) भक्तामरस्तोत्र-भक्तास्तोत्र पद्यानुवाद, संबद्ध, आ. ज्ञानचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, मूपू., (अमर अविचलभाव भगति), ५४९८६(+) भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., शत. ४१, सू. ८६९, ग्रं. १५७५२, गद्य, मूपू., (नमो अरहताण० सव्व), ५४३०१(+), ५४४८३(+#$), ५२५९७, ५४७५६(#$), ५४७९६(#$) (२) भगवतीसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., शत. ४१, ग्रं. १८६१६, वि. ११२८, गद्य, मूपू., (सर्वज्ञमीश्वरमनंत), ५४३०१(+), ५४७९६(#$) (३) भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा पंचनिग्रंथी प्रकरण, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., गा. १०६, वि. ११२८, पद्य, मूपू., (पन्नवण वेय रागे कप्प), ५२७५८-१(#$) (२) भगवतीसूत्र-हिस्सा नवमशतक का ३३वां उद्देशक, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, मूपू., (तेणं कालेण० माहणकुंड), ५५३५९(+s) (३) भगवतीसूत्र-हिस्सा नवमशतक का ३३वां उद्देशक का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते० तेणें काले ते), ५५३५९(+$) (२) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-२५ उद्देश-६गत नियंट्ठा-संजया आलापकगाथा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (पनवणा १ वेय २ रागे ३), ५५५७६-२ (३) भगवतीसूत्र-नियंट्ठा-संजया आलापक का विवरण, सं., को., मूपू., (पुलाको द्विविधो), ५५५७६-१ (३) भगवतीसूत्र-नियंट्ठा-संजया आलापक-बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (हिवै पनवणा द्वार), ५५११६(#$) For Private and Personal Use Only Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ ५०५ (२) चारित्र के ५ भेद के ३६ द्वार यंत्र, संबद्ध, मा.गु., को., मूपू., (पनवणा १ वेद २ रागे ३), ५५२३०(+), ५४४३० (२) भगवतीसूत्र-(प्रा.+मा.गु.)नियंठा विचार, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., द्वा. ३६, गद्य, मूपू., (पण्णवय १ बेय २ रागे), ५५३४७(+) (२) भगवतीसूत्र-आलापक संग्रह *, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (कहण्णं भंते जीवा गुर), ५२८६६(+$) (२) भगवतीसूत्र-गणिपद योगोद्वहनविधि, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (बहु क्रियस्य बहु), ५२२६४ (२) भगवतीसूत्र-गहुंली, संबद्ध, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सहियर सुणीये रे भगवत), ५२३२९-३ (२) भगवतीसूत्र-थोकडा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (गौतमस्वामी हाथजोडी), ५५३६९-४(+#), ५५३६९-६(+#), ५५३६९-९(+#), ५५३६९-११(+#), ५५३६९-१५(+#), ५५३६९-१७(+#) (२) भगवतीसूत्र-प्रश्नोत्तर संग्रह, संबद्ध, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ५४४३२(+$) (२) भगवतीसूत्र-विचार संग्रह , संबद्ध, मा.गु., को., मूपू., (अत्थिणं भंते समणवि), ५५०६९(#) (२) भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (धन्य कुंवर त्रिसला), ५२८३९(+) (२) भगवतीसूत्र-हंडी, ऋ. धर्मसिंह, मा.गु., वि. १८८२, गद्य, मूपू., (नवकार नमो बंभीए लिवी), ५५०९७(#) भवानी अष्टक, शंकराचार्य, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., (न तातो न मातो नबंधुर), ५२२१४-२(#) भावत्रिभंगी, मु. श्रुतमुनि, प्रा., गा. ११६, वि. १४वी, पद्य, दि., (खवियघणघाइकम्मे अरहत), ५५१४५-५(+$) भावना कुलक, प्रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (निसाविरामे परिभावयाम), ५४२७०(#) (२) भावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नि० रात्रीनइ अंतिइ), ५४२७०(4) भाव प्रकरण, ग. विजयविमल, प्रा., गा. ३०, वि. १६२३, पद्य, मूपू., (आणंदभरिय नयणो आणंद), ५४०२२(+), ५२६०३(#) (२) भाव प्रकरण-स्वोपज्ञ टीका, ग. विजयविमल, सं., वि. १६२३, गद्य, भूपू., (नत्वा श्रीजिनशंभव), ५४०२२(+), ५२६०३(#) भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., भाष्य. ३, गा. १४५, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (वंदित्तु वंदणिज्जे), ५४११८(+$), ५४१५५(+), ५४२७४ १(+#), ५४९५७(+#), ५४९६७(+), ५५०८५(+#), ५५४०३-१(+$), ५५४१५(+#), ५४२६०, ५४२५०(#), ५४९९५(६) (२) भाष्यत्रय-टीका, सं., गद्य, मूपू., (चैत्यवंदना वरभाष्यं), ५५४०३-१(+$) (२) भाष्यत्रय-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (वंदनीयान् दशत्रिकाणि), ५५२९२(+#$) (२) भाष्यत्रय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (वंदित्तु क० वांदीने), ५४११८(+$), ५४१५५(+), ५५४१५(+#), ५४२६० भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., श्लो. १७०, वि. १३पू, पद्य, मूपू., (सारस्वतं नमस्कृत्य), ५४६३०-१(+), ५४९४८(+#), ५५५१३(#), ५५५१०-१(६) (२) भुवनदीपक-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (सरस्वती संबंधीओ मह), ५४९४८(+#), ५५५१०-१(६) भैरव स्तोत्र, सं., पद्य, वै., (ॐ तीक्ष्णे दंष्ट्र०), ५३५६८-३(#$) भोजनरस वर्णन श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, (त्रिवदति सुअन्नं), ५४९७२-१५(+-#) मंगल श्लोक, प्रा.,सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (अर्हमित्यक्षरं), ५४२४८-३(#) मंगल स्तोत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, वै., (मंगलो भूमिपुत्रश्च), ५४३२०-३(#) मंगल स्तोत्र, सं., श्लो. ७, पद्य, स्था., (वीरः सर्वसुरासुरेंद), ५४२८६-७(+) मंडल प्रकरण, मु. विनयकुशल, प्रा., गा. ९९, वि. १६५२, पद्य, मूपू., (पणमिअवीरजिणिंद), ५५१६२(+#$) (२) मंडल प्रकरण-स्वोपज्ञ टीका, मु. विनयकुशल, सं., वि. १६५२, गद्य, मूपू., (श्रीमद्वीरजिनं नत्वा), ५५१६२(+#$) मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, उ.,पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., वै., (श्री ॐ नमः आदि सुदिन), ५३५३९-३(+), ५२१९२-२, ५३१६३-३, ५२२४६-४(2), ५२६०५-५(#) मंत्र संग्रह , मा.गु.,सं., गद्य, जै., वै., बौ., (--), ५५५५३-१(+#), ५२०७६-२(#) मंत्र संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (--), ५२८३७-६ मत्स्योदर चरित्र, सं., श्लो. २९९, पद्य, म्पू., (तत्रैवमुनीराचख्यो), ५४०९६ (२) मत्स्योदर चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (तेहवामां धर्मोपदेश), ५४०९६ मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टांत, सं., गद्य, श्वे., (संसारे चतसृषु गतिषु), ५५४६५-१(+#) मनुष्यभवदुर्लभता १० दृष्टांत काव्य, प्रा.,सं.,मा.गु., श्लो. ११, पद्य, श्वे., (चुल्लग पासग धन्ने), ५२१३४-२(+) For Private and Personal Use Only Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०६ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ महादंडक स्तोत्र, प्रा., गा. २०, पद्य, मूपू., (भीमे भवम्मि भमिओ), ५२९७९ (२) महादंडक स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (भीमे भवेति० १ गब्भ०), ५२९७९ महानिशीथसूत्र, प्रा., अध्य. ६ चूलिका २, ग्रं. ४५४४, गद्य, मूपू., (ॐ नमो तित्थस्स ॐ), ५४४६९(+), ५२५७५(#) (२) महानिशीथसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, पू., (भवसयसहस्स० अर्हत), ५२५७५(#) (२) महानिशीथसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५४४६९(+) महालक्ष्मी स्तव, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (आद्यं प्रणवस्ततः), ५२१८४-४(+#), ५३१६७-२(+), ५३९३४-३(+#) महावीरचरित्र, आ. गुणचंद्रसूरि, प्रा., प्र.८, ग्रं. १२०२५, वि. ११३९, प+ग., मूपू., (पयडियसमत्थपरमत्थवित्), ५४३२९(#) महावीरजिन गर्भपोषण विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (हवे सुखे सुखे गर्भ), ५३३१०-२(-१) महावीरजिन चरित्र, प्रा., प+ग., मूपू., (--), ५५०५०(६) । (२) महावीरजिन चरित्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५५०५०($) महावीरजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (कृतापराधेपि जिने), ५३१६२-२ महावीरजिन निर्वाणकल्याणक स्तवन, सं., श्लो. १९, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धार्थनरेश), ५५१०४-८(+#$) महावीरजिन स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (कंसारिक्रमनिर्यदापगा), ५५१०४-६(+#) महावीरजिन स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ३६, पद्य, मूपू., (पराक्रमेणेव पराजितोय), ५५१०४-१(+#) महावीरजिन स्तव, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (कनकाचलमिव धीर), ५५०३१-१५(+#) महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (जइज्जा समणे भगव), ५३२७५-१(+#), ५३९१७(+) (२) महावीरजिन स्तवन-बृहत्-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जइज्जा समणेनो अर्थ), ५३९१७(+) महावीरजिन स्तव-समसंस्कृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., श्लो. ३०, पद्य, पू., (भावारिवारणनिवारणदारु), ५४३५५(+#), ५५०३१-३५(+#), ५५१०१-३(+#), ५२६१४(६) (२) महावीरजिन स्तवन-टबार्थ, मा.गु., पद्य, मूपू., (भवसंसार संबंधीया), ५४३५५(+#) महावीरजिन स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (कल्लाणकंदाहि अंदिप्य), ५३४१६-२ महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (नमदसर सीरो रूह सवस्स), ५२२८६-२(+) (२) महावीरजिन स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमदमरसिरोरुह स्वस्त), ५२२८६-२(+) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (नमेंद्रमौलिप्रपतत), ५२३२१-५ महावीरजिन स्तुति, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ११, पद्य, मूपू., (पंचमहव्वयसुव्वयमूल), ५२९५८-२(+), ५५३२५-२(+), ५५१८२-२, ५३०१०-१(-) (२) महावीरजिन स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पं० पंच महाव्रत अने), ५५३२५-२(+), ५५१८२-२ महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (यदेहिनमनादेव देहिन), ५३४२९-५(+), ५५०३१-२१(+#), ५५३६४-३(+#), ५२१५२ २(#$) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (वीरं देवं नित्यं), ५४५४६-२२(#) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ३, पद्य, श्वे., (वीर सर्वसुरासुरेंद्र), ५३७०४-४ महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीमद्वीर कामेवीर), ५२०७०-२ महावीरजिन स्तुति-कल्याणमंदिर प्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (कल्याणमंदिरमुदारमवद), ५२३२१-२ महावीरजिन स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., गा. ५, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (जयसिरिजिणवर तिहुअणजण), ५३५८२-१(#) महावीरजिन स्तोत्र, प्रा., गा. २२, पद्य, मूप., (जय जतुजणीयसुक्ख), ५३१४०(+#) महावीरविज्ञप्तिद्वात्रिंशिका, उपा. धर्मसागरगणि, सं., श्लो. ३२, वि. १६१९, पद्य, मूपू., (श्रीमत्स्वर्गिजनाच), ५३९३६ मांगलिक श्लोक, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (ॐकार बिंदु संयुक्त), ५३५१२-३($) मांगलिक स्तुति संग्रह, सं., श्लो. २१, पद्य, मूपू., (अहँतो भगवंत इंद्रम), ५४८५२-७ माणिभद्रवीर छंद, आ. अमृतरत्नसूरि, मा.गु.,सं., गा. ९, वि. १८५९, पद्य, मूपू., (जयजय श्रीजगदीश्वर जय), ५२३००-३, ५२७७५ माणिभद्रवीर स्तोत्र, मु. धरणीधर कवि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (गाढं दोर्भिश्चतुर्भि), ५२६३२ For Private and Personal Use Only Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ मान दृष्टांत, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (मान बाहुबलीमरीचि रचय), ५४३३४-८(#) मायाबीज मंत्र, सं., श्लो. २, पद्य, श्वे., (यो बिंदुः स पितामहो), ५२२४६-३(#) मायाबीज स्तुति, सं., श्लो. १६, पद्य, मूपू., (ॐनमः सवर्णपार्श्व), ५२७३४ मालारोपण विधि, प्रा.,मा.गु., पद्य, मूपू., (महरत प्रथम दिवसे), ५३७०८-२(+) मिथ्यात्व २१ भेद, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (जे लौकिक देवता हरिहर), ५४०३०-२ मिथ्यात्व भेद विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (अभिग्रहि मिथ्यात), ५४४६४-५६, ५४४६४-९४ मुनिपति चरित्र, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ६४६, ग्रं. ६४४, वि. ११७२, पद्य, मूपू., (नमिऊण महावीरं चउ), प्रतहीन. (२) मुनिपति चरित्र सारोद्धार, संक्षेप, सं., गद्य, मूपू., (मुनिपतिचरित्रसारोद्ध), ५३०३५ (#$) मुहर्त संग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (श्वेतवस्त्र परिधान), ५४९९२ मूत्र परीक्षा, सं., श्लो. २३, पद्य, मूपू., (श्रीमत्पार्श्वजिना), ५३५८४ (२) मूत्रपरीक्षा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथजी), ५३५८४ मृगांक चरित्र, मु. ऋद्धिचंद्र, सं., श्लो. २८८, पद्य, भूपू., (श्रीपार्श्वः प्रत्यह), ५४५८८(+#$) (२) मृगांकचरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्री पार्श्वेशं अहं), ५४५८८(+#$) मेघदूत, कालिदास, सं., श्लो. ११५, ग्रं. ३५०, पद्य, वै., (कश्चित्कांताविरहगुरु), प्रतहीन. (२) मेघदूत-शिष्यहितैषिणी टीका, वा. लक्ष्मीनिवास, सं., गद्य, म्पू., वै., (कश्चित् अनिर्दिष्ट), ५५४९०(+) मौनएकादशीपर्व कथा, पं. रविसागर, सं., श्लो. २०१, वि. १६५७, पद्य, मूपू., (प्रणम्य ऋषभदेव), ५४०६८(+) (२) मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., वि. १६५७, गद्य, मूपू., (प्रणम्य क०-नमस्कार), ५४०६८(+) मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनंदिसूरि, सं., श्लो. ११६, वि. १५७६, पद्य, मूपू., (अन्यदा नेमिरीशाने), ५४३६१(+#), ५२१३०(#) (२) मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मु. सौभाग्यचंद्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (मौनएकादशीपर्वस्य), ५४३६१(+#) मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, मूपू., (अरस्य प्रव्रज्या नमि), ५२२६३-१ मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवीरं नत्वा गौतमः), ५२६११, ५२२५९(#) मौनएकादशीपर्व कथा, प्रा., गा. १५७, पद्य, मूपू., (सिरिवीरं नमिऊण पुच्छ), ५२१६९(#$) मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (अरस्य प्रव्रज्या नमि), ५४५४६-१४(#) यंत्र-मंत्र संग्रह, सं., गद्य, वै., (--), ५४५६३-२(+) यंत्रराज, आ. महेंद्रसूरि, सं., अ.५, श. १२९२, पद्य, म्पू., (श्रीसर्वज्ञपदांबुज), ५५१८६(5) (२) यंत्रराज-टीका, आ. मलयेंद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य सर्वज्ञपदारव), ५५१८६($) युगप्रधान साधुसाध्वी राजा श्रावकश्राविका संख्या गाथा, प्रा.,मा.गु., गा. १०, प+ग., मूपू., (जुगपहाण समणा एकारस), ५४४६४-८८ योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., अ.७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (यत्र वित्रासमायांति), ५४८२९(+#s), ५५१४८(+$), ५५३५१(#$) (२) योगचिंतामणि-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५५१४८(+$) योगरत्नावली, आ. नागार्जुनाचार्य, सं., श्लो. १४०, पद्य, वै., (विमलमति किरणनिकर), ५२१२३(#) (२) योगरत्नावली-टीका, मु. गुणाकर भिक्षु, सं., ग्रं. ७८०, वि. १२९६, गद्य, मूपू., वै., (गुरुचरणकमलममलं), ५२१२३(#) योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. १२, श्लो. १०००, वि. १३वी, पद्य, मूपू., (नमो दुर्वाररागादि), ५४०१५(+), ५४५६१(+#$), ५५५९७(+), ५२५४१(#) (२) योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १ से ४, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, मूपू., (नमो दुर्वाररागादि), प्रतहीन. (३) योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १ से ४ का बालावबोध, आ. सोमसुंदरसूरि, मा.गु., प्रका. ४, गद्य, मूपू., (प्रणम्य जिनसिद्धादीन), ५४५६१(+#$) योगोद्वहनविधि यंत्रसंग्रह, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (आवश्यकाद्युत्कालिकेष), ५४८६९-१(#) For Private and Personal Use Only Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०८ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ योगोद्वहनविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीआवश्यक सुअक्खंधो), ५२९११-१(+#$) रघुवंश, कालिदास, सं., स. १९, पद्य, वै., (वागर्थाविव संपृक्तौ),५४५३७($) । (२) रघुवंश-शिशुहितैषिणी टीका, सं., गद्य, मूपू., वै., (प्रत्यूहव्यूहनाश), ५४५३७(5) रत्नकोक, कालिदास, सं., श्लो. ३६, पद्य, वै., (रतनकोक शास्त्रं च), ५३६०२-१ रत्नसंचय, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., गा. ५५०, पद्य, मूपू., (नमिऊण जिणवरिंदे उवया), ५२८५६(+#$) (२) रत्नसंचय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, स्पू., (श्रीमहावीरनै नमस्कार), ५२८५६(+#$) रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., श्लो. २५, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (श्रेयः श्रियां मंगल), ५३३५०(+), ५४२०९-७(+), ५२३०४, ५२६२३(#) (२) रत्नाकरपच्चीसी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अहो कल्याण लक्ष्मीनु), ५३३५०(+), ५२३०४ राईप्रतिक्रमण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम इरियावहिया० कु), ५४३०७-२ राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., सू. १७५, ग्रं. २१००, गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं० तेणं), ५४८२४(+#$), ५५१४०(+#$), ५४९१७(#S) (२) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., ग्रं. ५५००, गद्य, म्पू., (देवदेवं जिनं नत्वा), ५५१४०(+#$) (२) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार हुवउ० चउथा), ५४८२४(+#$), ५४९१७(#$) राजवल्लभ, विश्वकर्मा, सं., पद्य, वै., (कंबासुत्रांबुपात्र), ५४७९३-३(+#) रामरक्षा कवच, सं., श्लो. २७, पद्य, वै., (--), ५३८६८-१(६) रूपसेनकनकावती चरित्र-चतुर्थव्रतपालने, आ. जिनसूरि, सं., श्लो. २२४, ग्रं. १५३०, पद्य, भूपू., (श्रीमंतं विदुरं शांत), ___५४१७३(+#), ५४९१२(+S) (२) रूपसेनकनकावती चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अतिशय लक्ष्मीइं सहित), ५४१७३(+#$) रूपीअरूपी जीवअजीव भेद गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, श्वे., (धम्माधम्मागासा तिय), ५२९५८-५(+) (२) रूपीअरूपी जीवअजीव भेद गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (कर्म ८ पाप १८ मन जोग),५२९५८-५(+) लंघनपथ्य निर्णय, मु. दयातिलक शिष्य, सं., श्लो. ३०४, वि. १७९२, पद्य, मूपू., वै., (श्रीसर्वज्ञ नमस्कृ), ५४५९३(+$) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., अधि. ६, गा. २६३, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (वीरं जयसेहरपयपयट्ठिय), ५३०५३(+#) (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध*मा.गु., गद्य, मूपू., (वीरं ग्रंथनोकरणहार), ५३०५३+#) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, प्रा., गा.७७, पद्य, स्पू., (सिरिवीरजिण वंदिय), ५४०९५ (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीर वांदी काई), ५४०९५ लघुजातक, वराहमिहिर, सं., पद्य, (प्रणम्य परमानंद तं), प्रतहीन. (२) लघुजातक-बालावबोध, उपा. मतिसागर, मा.गु., गद्य, मूपू., वै., (--), ५४९८५(#S) लघुद्रव्य संग्रह, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., गा. २५, पद्य, दि., (छ दव्व पंच अत्थी), ५५००८-३(+), ५२२४८ (२) लघुद्रव्य संग्रह-टबार्थ, मु. केशरविमल, मा.गु., गद्य, मूपू., दि., (अरिहंत देवई षद्रव),५५००८-३(+), ५२२४८ लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., (शांति शांतिनिशांत), ५३३६१(+#), ५३६२२(+), ५४२८६-२(+), ५४३२३ ९(+), ५४९५८-२(+#), ५५०३१-३०(+#), ५२५८२, ५२६९१, ५३१४५, ५४६३९-२, ५४७२८-४, ५४८९८-१, ५२१५१(#), ५२७६१(#), ५४५४६-३१(#), ५२७५४(-#) (२) लघुशांति स्तव-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., वि. १६४४, गद्य, मूपू., (सर्वंसर्व सिद्ध्यर्थ), प्रतहीन. (३) लघुशांति स्तव-टीका का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीसार्व सर्वसिद्ध), ५३३६१(+#) (२) लघुशांति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीशांतिनाथ शांति), ५३६२२(+) (२) लघुशांति स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमानदेव आचार्य), ५४८९८-१ लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ३०, पद्य, मूपू., (नमिय जिणं सव्वन्नु), ५२६८९(+), ५५१२०-१(+#), ५२४९७, ५३०००(4), ५४९०९-१(#), ५५५५९(#) (२) लघुसंग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिय क० नमस्कार करी), ५२६८९(+), ५५१२०-१(+#), ५२४९७, ५५५५९(#) (२) लघुसंग्रहणी-१० द्वार विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (खंडा जोयण वासा पव्वय), ५४४०१(+$, ५२२७५(-) For Private and Personal Use Only Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ लब्धिप्रकाश, क. नंदलाल, प्रा., गा. ३५, वि. १९०३, पद्य, श्वे., (नमिऊण महावीरं वंदामि), ५४२६४ (२) लब्धिप्रकाश-वार्थ, मा.गु., गद्य थे., (नमस्कार करीने श्रीमह), ५४२६४ (२) लब्धिप्रकाश - स्वोपज्ञ चौपाई, क. नंदलाल, मा.गु., वि. १९०३, पद्य, वे., (रामचंद्र बनवास में ), ५४२६४ लीलावती, भास्कराचार्य, सं., श्लो. २७९, प+ग, वै., (प्रीतिं भक्तजनस्य), प्रतहीन. . (२) लीलावती भाषानुवाद, मु. लालचंद, मा.गु., अ. १६, गा. ७०७, वि. १७३६, पद्य, मूपू. वै. सोभित सिंदूर पुर), ५५२४४ १ (#) (३) लीलावती भाषानुवाद का संबद्ध, मा. गु, गद्य, मृपू. वै., (थानकमां है हान इक), ५५२४४-२(१) लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि प्रा. गा. ३२, वि. १४बी, पद्य, मूपू., (जिणदंसणं विणा जं), ५२९२८(+), ५४७८०(+), ५५३४८-१(+), ५२५५४, ५३६९३(०) (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका - अवचूरि, आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., गद्य, मूपू., (वइ० प्रसारितपादं), ५२९२८(+#), ५३६९३(#) (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका - बालावबोध, पं. नयविलास, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), ५५३४८-१(+) (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका - टबार्थ, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीर), ५४७८० (+), ५२५५४ वंगचूलिका प्रकीर्णक, आ. यशोभद्रसूरि, प्रा., पद्य, मूपू., (भत्तिब्भरनमियसुरवर), ५३६८६ (#) वक्ता श्रोतागुण श्लोक, सं., श्लो. २, पद्य, म्पू, (वाग्मी व्याससमासवित्), ५२९५५-२(०) वज्रपंजर स्तोत्र, सं., श्लो. ८, पद्य, भूपू (ॐ परमे४ि), ५२६७३-१(+), ५३२९९-२ " वज्रस्वामी कथा, सं., श्लो. ३३ पद्य म्पू. (वज्रस्वामी साहसिकः), ५४३३४-९(१) 7 " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वरदत्तगुणमंजरी कथा, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (ज्ञानं सारं सर्व), ५५४२६-२(+) वरदत्तगुणमंजरी कथा - सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., श्लो. १५०, वि. १६५५, पद्य, मूपु. ( श्रीमत्पार्श्वजिन), ५४१६१-१(+), ५४५६३-१(०), ५५३४०-१(०), ५४१४८(m) वर्द्धमानदेशना, ग. राजकीर्ति, सं., उल्ला. १०, ग्रं. ४३००, गद्य, मूपू., ( नमः श्रीपार्श्वनाथाय), ५४९३९ (#$) वर्द्धमानविद्या मंत्र, प्रा., गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीँ नमो अरिहंता), ५२१०३-२ (२) वरदत्तगुणमंजरी कथा - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथ प्रतै), ५४१४८(#) (२) सौभाग्यपंचमीकथा-टबार्थ, ग. पद्मविजय, पं. भीमविजय, मा.गु., वि. १६५५, गद्य, मूपू., ( श्रीमतपार्श्वजिनेश्व), ५४१६१-१(+#$) (२) सौभाग्यपंचमी कथा-टवार्थ, मा.गु, गद्य, मूपू., (श्रीज्ञानलक्ष्मीवंत), ५४५६३-१(१) ५०९ वाग्भटालंकार, जै.क. वाग्भट्ट, सं., परि. ५, वि. १२वी, पद्य, मूपू., ( श्रियं दिशतु), ५५२५५ (+#S), ५५५४० (+#$) वाचनाचार्यस्थापन विधि, प्रा.सं., गद्य, मूपू., (शुभतिथिवारनक्षत्रमुह), ५२७३५-२(#$) विंशतिविंशिका, आ. हरिभद्रसूरि प्रा. अधि. २० नं. ५००, पद्य, मूपू (नमिऊण वीवरायं सव्व), ५५०७३ " वशीकरण मंत्र, सं., गद्य, वे (ऊँ ह्रीं क्लीं अमुका), ५३२०८-४(+) वसंतसेनराजा धर्ममतिमंत्री कथा, सं., गद्य, श्वे. (धर्मचिंतामणिश्रेष्ठो), ५५३०९-१(+#) " वसतिदानादि विषयक कथासंग्रह, प्रा., सं., कथा. ८, गद्य, मूपू., (वसही सयणासण भत्तपाणे), ५४९३७-२(+#$) " वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, भूपू बौ., (संसारद्वयदैन्यस्य), ५३९९२ (+४), ५४०८९(+), ५४६१५ (+३), ५४९९१-१ (०३), ५५२१८ (+5), ५४८१०, ५४२१३(१ (२) वसुधारा स्तोत्र - विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., बौ., (पुत्रवती स्त्री पासे), ५४९९१-२(+) वखपूजा श्लोक सं., श्रो. २, पद्य, भूपू (शक्रो यथा जिनपते), ५२१०५-३ , " विक्रमादित्ययात्रा वर्णन, सं., पद्य, श्वे. (शकटानि कोटिरैका), ५५४६५-२ (+#) विचारगाथा संग्रह, प्रा. सं., गा. ३, गद्य, म्पू. (बत्तीसं कवलाहारो), ५५३४५-८) " (२) विचारगाथा संग्रह - अर्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, (तीन हजार सातसे तिहोत), ५५३४५-८) विचारछत्रीसी प्रकरण, प्रा. वि. १६४५, पद्य, म्पू. (नमिय परमिट्ठ कहिय), ५५३६७(१) (२) विचारछत्रीसी प्रकरण - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (एकविधि सम्यक्त्व), ५५३६७(+#) विचार संग्रह, प्रा.मा.गु., गद्य, थे., (अद्दामलग पमाणे पूढवि), ५३३४५ " For Private and Personal Use Only Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१० संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (समरवीर राजा महावीरनउ), ५२५३१-५(+), ५२९३२-४(+), ५४०९४-४(+), ५५४७६-१(+), ५५४७६-२(+), ५३०३०-२,५४५३५-६,५२५२२-२(#) (२) विचार संग्रह का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५४०९४-४(+) विचारसार, प्रा., गा.८, पद्य, मूपू., (अह चउदससु गुणेसु), ५५००८-४(+) (२) विचारसार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हिवें चउदई गुणस्थान), ५५००८-४(+) विचारसार प्रकरण, प्रा., गा. ५७६, पद्य, मूपू., (बारस गुण अरिहंत सिद), ५४५४६-२५(#) विचारसार संग्रह, प्रा., गद्य, मूपू., (कहन्नं भंते जीवाः), ५२८११-२(+#) । विदेहतीर्थंकर स्थिति, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (सिद्धानि गोयजीवा), ५४३०५-५(+) विधिपंचविंशतिका, मु. तेजसिंघ ऋषि, सं., श्लो. २६, पद्य, श्वे., (यदुकुलांबरचंद्रक नेम), ५३३३८(#) (२) विधिपंचविंशतिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (यादव- कुल ते रूपी), ५३३३८(१) विधिप्रपा, प्रा., पद्य, जै., (संपयंपुण सम्मत्तारो), प्रतहीन. (२) विधिमार्गप्रपा-प्रव्रज्या विधि, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (संध्यायां चारित्रोप), ५२५५५-१(+) विधि मार्गप्रपा, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (--), प्रतहीन. (२) विधिमार्गप्रपा-कल्पत्रेप विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम आसु सुदि बीज), ५५०१२(#) विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., श्रु. २ अध्ययन २०, ग्रं. १२५०, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं तेणं), ५२६८५(+), ५३२३८(+$), ५५१३१(+), ५२७१० (२) विपाकसूत्र-टिप्पण, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५३२३८(+$) (२) विपाकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अथ विपाकश्रुत किसउ), ५५१३१(+) विवाहपडल, सं., श्लो. १६०, पद्य, वै., (जभाराति पुरोहिते), ५४६०१(+#$), ५५०४१-२(+-5), ५५५२४(+#s), ५४०१२-१ (२) विवाहपडल-बालावबोध, मु. अमरसुंदर, मा.गु., गद्य, मूपू., वै., (प्रणम्य शिरसा पार्श), ५५५२४(+#$), ५४०१२-१ (२) विवाहपडल-बालावबोध, मा.गु., गद्य, श्वे., वै., (श्रीवामेय जिनं नत्वा), ५४६०१(+#$) (२) विवाहपडल-पद्यानुवाद, वा. अभयकुशल, मा.गु., गा. ६३, पद्य, मूपू., वै., (वाणी पद वांदी करी), ५३७२६, ५४२४१ विविधतपविधि संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (अथ पिस्तालिस आगमनो), ५५१३७(+) विविधविचार संग्रह, प्रा., गा. ११०, पद्य, मूपू., (वासासु सगदिण उवरि), ५२२९९(+#) विविधविचार संग्रह , गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (--), ५२५७३(+#), ५२७३१-२ विसर्जन मंत्र, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू., (यांतु देवगणाः सर्वे), ५५१५४-५ विहरमानजिनलंछन गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, श्वे., (वसह १ गय २ हरिण), ५४५४६-२६(#) वीतराग विज्ञप्तिका, सं., श्लो. २५, पद्य, श्वे., (--), ५३७०४-२(६) वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. २०, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (यः परात्मा परं), ५४२३९(+#$), ५४३४५(+$) वीतरागाष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (शिवं शुद्धबुद्ध), ५२१८४-५(+#), ५२७६२-२(-$) वृष्णिदशासूत्र, प्रा., अध्य. १२, गद्य, मूपू., (जइ णं भंते० पंचमस्स), ५४३६५-५(+#) वृहस्पति स्तोत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, वै., (वृहस्पतिर्देवगुरुं), ५२१३३-२(+), ५२४४१-२(#) वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., विला. ९, श्लो. ३२६, वि. १७२६, पद्य, मूपू., (सरस्वतीं हृदि), ५४१४०-१(+#), ५५५१५(#$) (२) वैद्यवल्लभ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीसरस्वती देवता), ५४१४०-१(+#), ५५५१५(#$) वैमानिकदेव देहमान, प्रा., श्लो. १३, पद्य, स्पू., (प्रति प्रतरदेहमान), ५४५३५-८ वैराग्यशतक, भर्तृहरि, सं., श्लो. ११६, पद्य, वै., (चूडोत्तसितचंद्रचारु), ५४८३०(+#) (२) वैराग्यशतक-टबार्थ, य. रूपचंद्र कवि, मा.गु., गद्य, मूपू., वै., (सर्वदर्शिनमांनस्य), ५४८३०(+#) वैराग्यशतक, प्रा., गा. १०५, पद्य, मूपू., (संसारंमि असारे नत्थि), ५५१९५(+#), ५५५२६(+), ५५५४६(+), ५५५६४-१(+), ५४१०८, ५४८६३-२(१), ५३२७०-२($) For Private and Personal Use Only Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ ५११ (२) वैराग्यशतक - टवार्थ, मा.गु, गद्य, भूपू (संसार असारमाहि नथी), ५५१९५ (+), ५५५२६(+), ५५५४६(+), ५४१०८, ५४८६३ २(4) व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., उ. १०, ग्रं. ३७३, गद्य, मूपू., (जे भिक्खू मासिय), ५४८३१(+#), ५५१३६ (२) व्यवहारसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जे० जे कोइ भि० साधु), ५४८३१ (+#$), ५५१३६ व्याकरण, सं., प्रा., मा.गु., प+ग., वै., (रंते भव: दंत्य : देत), ५२११७-२ (+#$) व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु., रा., सं., गद्य, मूपू., (देवपूजा दया दानं), ५३६१८-२(+), ५५१७४(+#), ५२८२६-१, ५४०१० ($) शकुन प्रदीप, सं. लो. १२०, पद्य, भूपू (-) प्रतहीन, " . (२) शकुन प्रदीप-पद्यानुवाद, श्राव. गोरधनदास नंदलाल, पुहिं., गा. १२०, वि. १७६२, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीजिनराज), ५४८०३ शतकत्रय, भर्तृहरि, सं., शत. ३, ई. ७वी, पद्य, वै., (यां चिंतयामि सततं), ५४९१९-१(+$) י (२) शतकत्रय-ज्ञानदीपक बालावबोध, पं. मोहनकुशल, मा.गु., गद्य, मूपू., वै., (किं० हरः चू० चूडा), ५४९१९-१ (+$) शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. गा. १००, वि. १३वी १४बी, पद्य, मूपू. (नमिय जिणं धुवबंधोदय), ५४५४८-५ (98), ५४७७० (+#5) ५४९५४-१(०) (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-टवार्थ, मा.गु, गद्य, भूपू (परमात्मानई भव्य), ५४७७० (+as) शत्रुंजयतीर्थ कल्प, आ. धर्मघोषसूरि प्रा. गा. ३९, पद्य, म्पू, (सुअधम्मकित्तिअं तं). ५५३४९ (४), ५३६४५, ५३०१९-२ (४) (२) शत्रुंजयतीर्थं कल्प- टवार्थ, मा.गु, गद्य, मूपू (श्रुतं कही सिद्धांत), ५५३४९(+३), ५३६४५ शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, ग. पद्मविजय, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (विमलकेवल ज्ञानकमला), ५२३५७-१(+) शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू. (श्रीआदिनाथ जगन्नाथ), ५४२०९-१(*) शत्रुंजयतीर्थ लघुकल्प, प्रा., गा. २५, पद्य, म्पू, (अइमुत्तयकेवलिना कहिअ). ५२८७७ (+४) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शांतिजिन चरित्र, आ. भावचंद्रसूरि, सं., प्र. ६, वि. १५३५, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्यार्हतः सर्व), ५४३१३(+$) शांतिजिन चैत्यवंदन, उपा. कुशलसागर, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (सकलदेवनरेश्वरवंदितं), ५४२०९-२(+) शांतिजिन श्लोक सं., श्लो. १, पद्य, मूपू. (शांति शांतिकर), ५४९७२-३९(+-*) शांतिजिन स्तवन, मु. जयतिलक, प्रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (पणमिय सुरवर सेहर ), ५५००८-५ (+) शांतिजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (राजंत्या नवपद्मरागरु), ५३५१४-२ ($) शांतिजिन स्तुति, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू. (किं कल्पद्रुमसेवया), ५५०३१-१२(+) (२) शत्रुंजयतीर्थं लघुकल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू. ( अइमुत्तइ केवलीइं), ५२८७७(+) शनिश्चर स्तोत्र, सं., श्लो. १०, पद्य, वै., (यः पुरा राज्यभ्रष्टा), ५३९५९-२, ५२१२७-१०१, ५३८८३-२(५) शांतिजिन अष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, भूपू (सुरराजसमाजनतांहि), ५२८१५-१०) "" शांतिजिन कलश, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु. सं. बा. २ गा. ४२, पद्य, म्पू, (श्रेयः श्रीजयमंगलाभ), ५३४३०(०) ५२७०४(३) "3 शांतिजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (शांतिसदागमनिधि परमा), ५२२३७-५ (+#) शांतिजिन स्तुति सकलकुशलवही पादपूर्तिमय, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (सकलकुशलवली), ५२३२९-३ शांतिजिन स्तोत्र, मु. गुणभद्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (नानाविचित्रं बहुदुख ), ५४७५८-२ (#) शांतिजिन स्तोत्र, सं. श्री. ३, पथ, भूपू (शांतये शांतिकामाय), ५२८१५-३(१) " , (१(३) शांतिस्नात्रपूजा विधि, प्रा., मा.गु. सं., प+ग., मूपू., ( तिहां चंद्रबलयोगे गत), ५५१५४-३ शारदादेवी स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, वे. (या कुंदैदुतुषारहारध), ५५०३१-९ (+०) "" शीघ्रबोध, काशीनाथ भट्ट, सं., अ. ४. ग्रं. ५६१, पद्य, वै., (भासयंतं जगद्भासा० ), ५४६३०-३(+5) " शांतिनाथमहाकाव्य, आ. मुनिभद्रसूरि, सं. स. १९, श्लो. ५००० नं. ६२७२, वि. १४१०, पद्य, मूपू (प्रभाकरो यः परमः ), ५३०१५ " " For Private and Personal Use Only शीतलजिन स्तवन, गच्छा. विजयक्षमासूरि, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., (श्रीमान् मानैक), ५३८८९(#) शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा. कथा ४३ गा. ११५, वि. १०वी, पद्य, मूपू. ( आबालगंभवारि नेमि), ५४८०९१०), ५५५७१(१३), ५४१३५(३) Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१२ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) शीलोपदेशमाला-शीलतरंगिणी वृत्ति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., गद्य, म्पू., (यस्योपदेशसमये दशनांश), प्रतहीन. (३) शीलोपदेशमाला-शीलतरंगिणी वृत्ति-हिस्सा सीतासती चरित्र, आ. सोमतिलकसूरि, सं., श्लो. ३१६, गद्य, मूपू., (तिहुयणपहुणाविहु रावण), ५५२००(+#) (२) शीलोपदेशमाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (आबाल ब्रह्मचारी बालक), ५४८०९(#) (२) शीलोपदेशमाला-बालावबोध+कथा, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., ग्रं. ६२५०, वि. १५५१, गद्य, मूपू., (श्रीवामेयममेयश्रीसहि), ५५५७१ (#S), ५४१३५ ( (२) शीलोपदेशमाला-कथा संग्रह, संबद्ध, मु. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, मूपू., (पोतनपुर नगरि नर विक), ५४१३५(६) शीलोपदेशमाला, आ. जयवल्लभसूरि, प्रा., गा. ११६, पद्य, मूपू., (आबाल बंभयारि नेमि), ५४१०९ (२) शीलोपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (बालपणा लगइं ब्रह्म), ५४१०९ शृंगारवर्णन गीत, मु. धर्मसिंह पाठक, पुहि.,सं., पद्य, मूपू., (ठाढे कुच गाढे देखे), ५४९७२-१३(+-#) श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (सच्चित्त दव्व विगई), ५४९५०-२(+#), ५५२०१-३(#) (२) श्रावक १४ नियम गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सचित्त पृथिव्यादि), ५३१७०-१ श्रावक आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, सं., अधि. ५, ग्रं. १६६, वि. १६६७, गद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञं प्रणिपत), प्रतहीन. (२) श्रावक आराधना-बालावबोध, उपा. राजसोम, मा.गु., वि. १७१५, गद्य, मूपू., (इहां आराधनाने विर्षे), ५३९३५-१(#$) श्रावक आलोयणा विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (प्रथम मुहूर्त), ५५५५४(१) श्रावक आलोयणा विधि, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (स्मारं स्मारं जिनें), ५४३६२-१(+#) श्रावक कर्त्तव्य गाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (मिच्छति वे अतिगंहास), ५२७९८-२ श्रावक चातुर्मासिक कर्तव्य, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रेयो मानसवासनोद्यत), ५२५३१-३(+) श्रावकव्रत १२४ अतिचारभेद वर्णन, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (अथ ५ अतिचारा: अथ), ५५४२८-१ श्रावकाराधना, सं., प+ग., श्वे., (श्रीसर्वज्ञ प्रपंपण), ५२१५३-१(+#) श्रीपाल चरित्र, मु. जयकीर्ति-शिष्य, सं., प्र. ४, ग्रं. १२५७, वि. १८६८, गद्य, मूपू., (प्रणम्य सिद्धचक्र), ५५३८२(+$) श्रीपाल चरित्र, ग. शुभविजय पंडित, सं., वि. १७७४, गद्य, मूपू., (ॐ नमः स्वर्द्धिशक्र), ५४१४४(+#), ५४५५८(+#$), ५४५३४ श्रुतबोध, कालिदास, सं., श्लो. ४१, पद्य, वै., (छंदसां लक्षणं येन), ५४५२१(+) (२) श्रुतबोध-मनोरमाटीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, मूपू., वै., (श्रीमत्सारस्वत धाम), ५४५२१(+) श्रेणिक चरित्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., स. १८, वि. १३३५, पद्य, मूपू., (सिद्धोवर्णसमाम्नाय:), ५५२४५(+$) श्लोक संग्रह, सं., श्लो. ११, पद्य, (अस्मान् विचित्रवपुषि), ५२८०७-९(१) श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (कलकोमलपत्रयुता), ५२४६५-७(+), ५४३१२-२(+), ५४५६९-२(+), ५४६१२-४(+), ५४९१९-२(+), ५४९७२-६५(+-#), ५४९७२-७१(+-#), ५४९७२-७३(+-#), ५४९७२-५६(+-#), ५५४४५-२(+), ५२२८०-२, ____५४०७९-५, ५४८१६-२, ५२३६१-२(#S), ५२५७८-४(#), ५३२३२-४(#), ५३९७५-४(#), ५४९५६-२(#), ५२४३०-२(-) श्लोक संग्रह-, सं., पद्य, जै., वै., (जिनेंद्र पूजा गुरु), ५४८९७-६(१), ५२७८१-३($) श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. ४१, पद्य, मूपू., (नेत्रानंदकरी भवोदधि), ५२७६३-२(+) श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, (--), ५२४९८-३ श्लोक संग्रह-गूढार्थगर्भित, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., वै., (गोश्रावः किमयंग), ५२४६५-१(+) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, श्वे., (देहे निर्ममता गुरौ), ५२७१४-२(+), ५२८७२-२(+#), ५४४६३(+#$), ५५३३०(+#$), ५५३४४-३(+#), ५५४७६-६(+), ५२१२६-३, ५३१६५-२, ५४२९३-२, ५४९०९-२(#$), ५५३३६-२(#$) (२) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (एकाग्रचित्ते जिन), ५४९०९-२(#$) (२) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सकल कहतां समस्त कुशल), ५५३३०(+#$) षट्पंचाशिका, आ. पृथुयशा, सं., अ.७, श्लो. ५६, पद्य, वै., (प्रणिपत्य रविं), ५४६३०-२(+) षटभाषा स्तवन, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा.,सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (नमो महसेन नरेंद्र), ५२८२३-२(+) For Private and Personal Use Only Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ८६, वि. १३वी-१४वी, पद्य, म्पू., (नमिय जिणं जियमग्गण), ५४५४८-४(+), ५४५५७-४(+$), ५४६६९(+#$), ५४६७६(+$), ५४८५८(+#$), ५४१८६-४ (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (हवई चउथा कर्मग्रंथ), ५४६६९(+#$), ५४६७६(+$), ५४८५८(+#$) षडशीति प्राचीन कर्मग्रंथ, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. ८६, पद्य, मूपू., (निच्छिन्नमोहपास), ५५१२१-२(+$) षड्दर्शन समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., अधि. ७, श्लो. ८७, पद्य, मूपू., वै., बौ., (सद्दर्शनं जिनं नत्वा), ५४३३१(+S), ५२२१८ (२) षड्दर्शन समुच्चय-लघुवृत्ति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., ग्रं. १२५२, वि. १३९२, गद्य, मूपू., वै., बौ., (सज्ज्ञानदर्पणतले), ५४३३१(+s) संघपट्टक, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., श्लो. ४०, पद्य, मूपू., (वह्निज्वालावलीढं), ५५४९९(+#) (२) संघपट्टक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अग्नि तेहनी ज्वालाई), ५५४९९(+#) संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., गा. १४, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (संतिकरं संतिजिणं जग), ५३४६०-२(+), ५४३२३-२(+), ५३६६५(2) (२) संतिकरं स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (संतिकरं संतिजिणमिति), ५३६६५(#) संथारा विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम नवकार तीन भणी), ५४३६७-२(+) संदेहदोलावली प्रकरण, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., गा. १५०, पद्य, मूपू., (पडिबिंबिय पणय जयं), ५५१२१-१(+$) संबोधप्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., अधि. ११, गा. १६१७, पद्य, मूपू., (नमिऊण वीयरायं सव्वन), प्रतहीन. (२) संबोध प्रकरण-हिस्सा जिनभवनवयं ५ आशातना, प्रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (जिनभवणमि अवण्णा१), ५२८१५-२(+) संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., गा. १२५, पद्य, मूपू., (नमिऊण तिलोअगुरु), ५२२८७(+$), ५२३३७(+), ५२५७४(+#$), ५४२७६-१(+), ५५१७१-१(+), ५५३६४-१९(+#), ५५५८८(+), ५२६२१(#), ५३६४३(#), ५५१७८(#$), ५५२०८(#s), ५२८७६( #$) (२) संबोधसप्ततिका-बालावबोध, मा.गु., गद्य, स्पू., (वंदिय पासजिणंदं तह), ५५२०८(#$) (२) संबोधसित्तरि-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करी त्रिलोक),५५५८८(+) (२) संबोधसप्ततिका-टबार्थ, पं. नरसिंह मुनि, मा.गु., वि. १७१६, गद्य, मूपू., (श्रीवितराग तनिलोकनउ), ५५१७१-१(+) (२) संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करीनइ तिन), ५२५७४(+#S), ५५१७८(#S) संमूर्छिम पंचेंद्रिय जीवोत्पत्ति विचार-विविध आगमोद्धत, प्रा., गद्य, मपू., (कहन्नं भंते जीवा), ५२४७२(+) संयमपरिवार श्लोक, सं., श्लो. २, पद्य, श्वे., (श्रीचारित्रनरेश्वर), ५५१७१-२(+) (२) संयमपरिवार श्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (चारित्र रूपीयउराजा), ५५१७१-२(+) संस्तारक प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. १२२, पद्य, मूपू., (काऊण नमुक्कारं जिणवर), ५४४६१(+), ५२९८३-२($) (२) संस्तारक प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (श्रीवीरं० करीनई), ५४४६१(+) । सचित्त अचित्त जल विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., श्वे., (अपर समोसरणने विषइ), ५२२१२(-१) सजनचित्तवल्लभ काव्य, आ. मल्लिषेण, सं., श्लो. २५, पद्य, दि., (नत्वा वीरजिनं जगत्त्), ५३३३२(+), ५४६००(+#) सत्यकामाता स्तोत्र, मु. देवतिलक, सं., श्लो. ९, पद्य, मपू., (किंतु समुद्रसंचरी), ५३९४८-४(+#) सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., गा.७२, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूपू., (सिद्धपएहिं महत्थं), ५४९५४-२(+S) सप्ततिशतस्थान प्रकरण, आ. सोमतिलकसूरि, प्रा., गा. ३६०, वि. १३८७, पद्य, मूपू., (सिरिरिसहाइ जिणिंदे), ५४८७९(+), ५५०२८(+), ५५०३९(+#), ५५१२५(+#$) (२) सप्ततिशतस्थान प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऋषभादिक जिनेंद्र), ५५०२८(+), ५५०३९(+#), ५५१२५(+#$) सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., स्मर.७, पद्य, मूपू., (णमो अरिहंताण० हवइ), ५४९७८(+#), ५५०३१-२९(+#), ५५३८७-६(+$), ५४७२८-३, ५५०६७, ५५४०७-७(६) समयसार, आ. कुंदकुंदाचार्य, प्रा., अधि. ९, गा. ४१५, पद्य, दि., (वंदितु सव्वसिद्धे), प्रतहीन. (२) समयसार-आत्मख्याति टीका, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., अधि. ९, श्लो. २७८, प+ग., दि., (नमः समयसाराय स्वानुभ), प्रतहीन. For Private and Personal Use Only Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (३) समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., अधि. १२, श्लो. २७८, पद्य, दि., (नमः समयसाराय), प्रतहीन. (४) समयसार नाटक, जै.क. बनारसीदास, पुहि., अधि. १३, गा. ७२७, ग्रं. १७०७, वि. १६९३, पद्य, दि., (करम भरम जग तिमिर हरन), ५४२०१(+६), ५५३५७(+#$), ५४६६०(६) (५) समयसार नाटक-पद्यानुवाद का टबार्थ, उपा. रामविजय, पुहिं., गद्य, मूपू., दि., (जिन वचन समुद्रको), ५४२०१(+$) समयसार प्रकरण, आ. देवानंदसूरि, प्रा., अ. १०, वि. १४६९, गद्य, मूपू., (सव्वन्नु मोक्खमक्खंत), प्रतहीन. (२) समयसार नाटक नाममाला सूचनिका, संबद्ध, पुहिं., गा. ५०, पद्य, दि., (--), ५३२०७($) समवसरण प्रकरण, प्रा., गा. २१, पद्य, मूपू., (तिहुयणकुलसिरतिलयं), प्रतहीन. (२) समवसरण प्रकरण-टीका, सं., गद्य, मूपू., (पडिवण्णचरम० यस्य भगव), ५२१४२ समवसरणविचार गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, श्वे., (नागेसु उसभवैया सेसाण), ५४०९४-२(+) (२) समवसरणविचार गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीआदिनाथ पिता नाभि), ५४०९४-२(+) समवसरण स्तव, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (थुणिमो केवलीवत्थं), ५२५१३ समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. १०३, सू. १५९, ग्रं. १६६७, गद्य, मूपू., (सुयं मे० इह खलु समणे), ५४४२५(+), ५४४५१(+$), ५४४५३(+#$) | (२) समवायांगसूत्र-टबार्थ, वा. मेघराजजी, मा.गु., ग्रं. ४४७४, वि. १७उ, गद्य, म्पू., (देवदेवं जिनं नत्वा), ५४४२५(+) समुद्रदत्त कथानक, सं., श्लो. ४०, पद्य, श्वे., (दृष्टिरागाधितो जंतुर), ५४३३४-२(१) सम्यक्त्व आलावो, प्रा., गद्य, मूपू., (अहमन्नं भते तुम्हाण), ५२५०५-३ सम्यक्त्व के ६७ बोलभेद, प्रा.,मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (चउसद्दहण तिलिंग दस), ५५४०३-२(+) सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद. ४४४, ग्रं. १६७५, वि. १४५७, पद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ५४९१५(+) (२) सम्यक्त्व कौमुदी-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमान चतुर्व), ५४९१५(+) सम्यक्त्व पच्चीसी, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (जह सम्मत्तसरूव), ५२६५०-१(+#), ५३२४९-१(+#$), ५४०३८-२(+$), ५५४२१(+), ५२१३१ (२) सम्यक्त्वपच्चीसी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (मनोवांछितदातारं), ५३२४९-१(+#S) (२) सम्यक्त्वस्वरूप-बालावबोध, मा.गु., पद्य, जै., (सिद्धिमार्गोपदेष्टार), ५४०३८-२(+$) (२) सम्यक्त्व पच्चीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जह कहतांजे उपशमादिक),५५४२१(+) (२) सम्यक्त्वपच्चीसी-टबार्थ, मा.गु., पद्य, जै., (जिम उपसमिकादि प्रकार), ५४०३८-२(+$) (२) सम्यक्त्व पच्चीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जिम सम्यक्तवनउ), ५२६५०-१(+#) सम्यक्त्व सप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ७०, पद्य, मूपू., (दसणसुद्धिपयास), ५५२६०(#$) (२) सम्यक्त्वसप्ततिका-सम्यक्त्वरत्नप्रकाश बालावबोध कथा, उपा. रत्नचंद्र, मा.गु., वि. १६७६, गद्य, मूपू., (नत्वा श्रीपार्श्वमर), ५५२६०(#s) सरस्वतीदेवी छंद, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ४४, वि. १६७८, पद्य, श्वे., (सकलसिद्धिदातारं), ५३०९३(#) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., श्लो. १२, पद्य, मूपू., (कदाकुंडलिनित्वदीयवपु), ५२६३३(#) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. मलयकीर्ति, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (जलधिनंदनचंदनचंद्रमा), ५३८७५-१ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., (राजते श्रीमती देवता), ५५०३१-८(+#) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. १५, पद्य, श्वे., (विपुलसौक्षमनंतधनागम), ५२४६६-२ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. १४, पद्य, वै., (विशद शारद च प्रनीभान), ५२२७७-२(#) सरस्वतीदेवी स्तोत्र-१०८ नाम गर्भित, सं., श्लो. १५, पद्य, वै., (धिषणा धीमतिर्मेधा), ५४१५२-१(+), ५२७४०-१ सरस्वतीदेवी स्तोत्र-मंत्रगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (ॐ नमस्त्रिदशवंदित), ५३१६७-१(+) सरस्वतीसूत्र, सं., पद्य, वै., (--), प्रतहीन. (२) सारस्वत व्याकरण, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, वै., (प्रणम्य परमात्मानं), प्रतहीन. For Private and Personal Use Only Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८१५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ (३) सारस्वत व्याकरण-पद्यानुवाद विद्वच्चिंतामणि, उपा. विनयसागर गणि, सं., श्लो. १२६, गद्य, मूपू., वै., (श्रीमद्वागीश्वरीवक्त), ५४२६९-१(2) (२) सिद्धांतचंद्रिका, आ. रामाश्रम, सं., गद्य, वै., (नमस्कृत्य महेशानं मत), प्रतहीन. (३) सिद्धांतचंद्रिका-सुबोधिनी वृत्ति, ग. सदानंद, सं., प्रक. १९, वि. १७९९, गद्य, मूपू., वै., (पुराणपुरुष ध्यात्वा), ५५४२९(+$) सरस्वत्याष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., (जाग्रज्जाड्य जल), ५३७१९-२(2) सर्वजिन स्तव, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (यत्र बहुकोटिसंख्या), ५२७५८-३(#$) सवाविश्वा जीवदया गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (जीवा सुहमा थूला), ५२२२०-४ (२) जीवदया गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवना दोय भेद), ५२२२०-४ साधारणजिन चैत्यवंदन संग्रह, सं., श्लो. ४६, पद्य, मूपू., (श्रीशैत्रुजय मुख्य), ५४२०९-६(+) साधारणजिन शतार्थी स्तुति, आ. सोमतिलकसूरि ,सं., श्लो. १, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (कल्याणसारसवितानीय), ५४८२२-६(#) साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (देवाः प्रभो यं), ५२२०२(+), ५२५०१(+#), ५४१३४-७(+#) (२) साधारणजिन स्तव-वृत्ति, ग. कनककुशल, सं., ग्रं. १४२, गद्य, मूपू., (हे प्रभो सत्वं मया), ५२५०१(+#) (२) साधारणजिन स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (हे श्रेयः हे प्रभो), ५२२०२(+) साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (अविरलकमलगवल), ५२१५६-२ साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (योयोयोगीर्जगजगजग), ५४८९७-१५(#) साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ८, पद्य, मूपू., (मंगलं भगवान वीरो), ५३४६९-२(-2) साधारणजिन स्तोत्र, सं., पद्य, मूपू., (जयति दलितपापः प्रस्त), ५२५६५-२($) साधु आचार विवरण, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (अत्र केचन जिनशासन), ५२४६२-१ साधु आचारसंख्या गाथा, प्रा., गा. ३२, पद्य, श्वे., (इह जीविय अनिमित्ता), ५५३४५-१०(+) (२) साधु आचारसंख्या गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (जिके अग्यानी जीव), ५५३४५-१०(+) साधुविधि प्रकाश, उपा. क्षमाकल्याण, प्रा.,सं., वि. १८३८, गद्य, मूपू., (प्रणम्य तीर्थेशगणेश), ५३९२२(+$) साध्वाचारषट्त्रिंशिका, मु. रूपचंद्र, सं., श्लो. ३६, पद्य, मूपू., (गृहित्वा वैराग्य), ५३०२६(+) सामान्य कृति, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., ?, (--), ५५०३१-४१(+#) सामुद्रिक, शकुन, निमित्तादि संग्रह, मा.गु.,सं., श्लो. १, प+ग., (काशीनं उत्तरे भागे), ५२३६९-३(-#) सामुद्रिकशास्त्र, सं., अ. ३६, श्लो. २७१, पद्य, मूपू., (आदिदेवं प्रणम्यादौ), ५५२४९(+$), ५५३१७(+$), ५४५१६ (२) सामुद्रिकशास्त्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिला आउखु जौइजै), ५५२४९(+$) (२) सामुद्रिकशास्त्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (शास्त्रनई धुरि आदि), ५४५१६ । साम्यशतक, आ. विजयसिंहसूरि, सं., श्लो. १००, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (अहंकारादिरहित), ५२७४५(+$) सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., द्वा. २२, श्लो. १००, वि. १३वी, पद्य, मूपू., (सिंदूरप्रकरस्तपः), ५३९५७-१(+#), ५४११५(+#), ५४२३३(+), ५४२४२(+), ५४५६९-१(+), ५४६२९(+#), ५४८८९(+), ५५११०(+#S), ५५३७५-१(+#), ५५४१२-२(+5), ५४०२१, ५४५४२,५५१९८, ५४८९२(#) (२) सिंदूरप्रकर-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., वि. १६५५, गद्य, मूपू., (श्रीमत्पार्श्वजिन), ५५३७५-१(+#), ५५४१२-२(+$) (२) सिंदूरप्रकर-टीका, सं., गद्य, मूपू., (पार्श्वप्रभोः क्रमयो), ५४५६९-१(+) (२) सिंदूरप्रकर-वार्तिक, मु. नेतृसिंह कवि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीवामेयं जिन), ५४८८९(+) (२) सिंदूरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिंदूरनउ समूह तापरूप), ५५११०(+#$), ५४५४२ (२) सिंदूरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिंदूरनो प्रकर कहीइ), ५४११५(+#) (२) सिंदूरप्रकर-पद्यानुवाद भाषा, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., अधि. २२, गा. १०१, वि. १६९१, पद्य, मूपू., दि., (सोभित तप गजराज सीस), ५५०७२(+#) (२) सिंदूरप्रकर-बालावबोध+कथा, पा. राजशील, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (शारदाचरणयुग्ममतीतपाप), ५४२४२(+) For Private and Personal Use Only Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा.,मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण), ५४९७२-६९(+-#), ५३३०४(#$), ५३५४५-१(#) सिद्धचक्र वासक्षेपपूजन विधि, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं परम परमात्म), ५४२०९-९(+) सिद्धविंशिका स्तोत्र, श्राव. दलपतराय श्रमणोपासक, सं., श्लो. २०, पद्य, मूपू., (मुनीनां दुस्तर्व्यः), ५५०९४-१(+) सिद्धसारस्वत स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., श्लो. १३, वि. ९वी, पद्य, मूपू., (करमरालविहंगमवाहना), ५२८१६(+), ५२३६४, ५३८१६-१, ५२२१४-१(#), ५२२७७-१(#$) सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., अ.८, सू. ४६८५, ग्रं. २१८५, वि. ११९३, गद्य, मूपू., (अर्ह सिद्धिः स्याद), ५४७३०(-#) (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., ग्रं. ६०००, गद्य, मूपू., (अर्हमित्येतदक्षरं), ५४७३०(-#$) (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-हैमधातुपाठ, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., ग्रं. ३००, वि. ११९३, गद्य, मूपू., (भूसत्तायां पांपाने), ५४३७१ सिद्धांतविचार गाथा संग्रह, प्रा., गा. २२२, पद्य, मूपू., (कंचणगिरि पव्वेसु), ५४१८९-१ (२) सिद्धांतविचार गाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (कंचनगिरि पर्वतनइ), ५४१८९-१ सिद्धांतसार, आ. जिनेंद्राचार्य, प्रा., गा. ७९, पद्य, दि., (जीवगुणठाण सण्णा), ५४८१३ सिद्धांतसार, मु. तेजसिंह, सं., श्लो. १०२, पद्य, श्वे., (श्रीमद्वीरजिनं प्रणम), ५४०६१(+#) (२) सिद्धांतसार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (श्रीमहावीरदेवनइ), ५४०६१(+#$) सिद्धांतहंडी बीजक, सं., गद्य, मूपू., (द्रव्यभावमनोधिकार), ५४३६९(+) सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., गा. १३४१, ग्रं. १६७५, वि. १४२८, पद्य, मूपू., (अरिहाइ नवपयाई झायित), ५४५६६(+#), ५४१९१ (२) सिरिसिरिवाल कहा-अवचूरि, मु. हेमचंद्र, सं., ग्रं. ४०२२, गद्य, म्पू., (ध्यात्वा नवपदी), ५४३४२(+) (२) सिरिसिरिवाल कहा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंत प्रमुख नवपद), ५४१९१ सीमंत्यादि क्षेत्रमान गाथा, प्रा., गद्य, मूपू., (पणयालीसं लक्खा सीमंत), ५५५३५-२(+#) (२) सीमंत्यादि क्षेत्र क्षेत्रमान विचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पस्तालीस लाख जोयनना), ५५५३५-२(+#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. नगजय, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (श्रेयंसपुत्रं कृतभू), ५२२५१-२ सुकुमालिका कथानक-स्पर्शनविषये, सं., श्लो. २६, पद्य, मूपू., (स्पर्शेद्रिय प्रसक), ५४३३४-५ (#) सुपात्रदानफल स्तोत्र, प्रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (उसभस्सय पारणए इक्खुर), ५३२३४-५(+$) सुपार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (विजयदेवसंसेव्य), ५२२३७-२(+#) सुप्रणिधान स्तोत्र, सं., श्लो. २०, पद्य, मूपू., (प्रभवतिहदिखेदोयस्य), ५५०९४-३(+) सुभाषित काव्य संग्रह, प्रा.,सं., गा. १५७, पद्य, मूपू., (नित्यानंदपदप्रयाण), ५५५६४-२(+) सुभाषित श्लोक*, मा.गु.,सं., श्लो. २, पद्य, श्वे., (अपुत्रस्य गृहं सुन), ५३२३३-२, ५४१८९-३ सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ४०, पद्य, श्वे., (दानं सुपात्रे विशुद), ५२९५५-३(+#), ५३०२९-२(+#), ५४९७२ सुभाषित श्लोक संग्रह *, सं., पद्य, (विद्यालक्ष्मीसंपन्ना), ५४२६९-२(#$) सुभाषित संग्रह *, सं., श्लो. ८, पद्य, (नागो भाति मदेन कंजलर), ५४०३८-३(+) सुव्रतश्रेष्ठी कथा, मु. रविसागर, सं., श्लो. २०१, वि. १६५७, पद्य, मूपू., (प्रणम्य वृषभं देवं व), ५४१५१(2) (२) सुव्रतश्रेष्ठी कथा-टबार्थ, मा.गु., सू. २०१, गद्य, मूपू., (प्रणमुंछ श्री), ५४१५१(2) सुसढ चरित्र, प्रा., गा. ५१६, पद्य, मूपू., (जे परमाणंदमय परप्पमा), ५४४०५(+$) (२) सुसढ चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीर), ५४४०५(+$) For Private and Personal Use Only Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., वर्ग. ४, श्लो. १७६, वि. १७५४, पद्य, मूपू., (सकलसुकृत्यवल्लीवृंद), ५५२८७, ५२७७४(#S), ५४६६५ (#), ५५२८२(#S), ५४१९९(s), ५४११०(-2) सूक्तावली, सं., श्लो. १३८, पद्य, श्वे., (राज्यं निःसचिवं गत), ५५०६४(+$) (२) सूक्तावली संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (राज्य प्रधान बिना न), ५५०६४(+$) सूक्तावली संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ५६१, पद्य, मूपू., (नास्त्यहिंसा समो), ५५४४५-१(+) सूक्तावली संग्रह, सं., अधि. ५, श्लो. २८९, पद्य, श्वे., (लक्ष्मीविवेकेन मति), ५४०७९-१ सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. २३, ग्रं. २१००, प+ग., मूपू., (बुज्झिज्ज तिउट्टेज), ५४२९२(+), ५४३२६(+), ५४३२७(+), ५४३४१(+), ५४३६४(+), ५४४०६(+), ५४४२१(+$), ५४४४३५+), ५४४७८(+#$), ५४४९८(+), ५५१३४+), ५५२४१-१(+s), ५५४८९(+$), ५५५७७(+#$), ५५५८३(+#S), ५४४०७(#$) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-निर्युक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. २०५, पद्य, मूपू., ते., (तित्थयरे य जिणवरे), ५५२४१-२(+$) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-बृहद्वृत्ति #, आ. शीलांकाचार्य, सं., ग्रं. १२८५०, वि. १०वी, गद्य, मूपू., (स्वपरसमयार्थसूचकमनंत), ५४३३९(+#) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य सद्गुरुन्), ५४३२६(+) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य सद्गुरुन), ५४३२७(+) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-बालावबोध *मा.गु., गद्य, मूपू., (बुज्झेज कहता जाणइ), ५४४२१(+$) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (बुज्झि० छकाय जीवना), ५४४०६(+), ५४४४३(+), ५४४७८(+#$), ५४४९८(+$), ५५१३४+), ५५४८९(+$), ५३१३७ (२) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गा. २९, पद्य, मूपू., (पुच्छिसुणं समणा माहण), ५२०६६ ३(+#), ५२९५८-१(+), ५३९९०(+#), ५५०६१(+#), ५५३२५-१(+), ५५५५७(+), ५३१३७, ५५१८२-१, ५५४५०-४, ५२८९० १(#), ५५५५८-२(#$) (३) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पु० पुछता हवा कोण), ५३९९०(+#), ५५३२५-१(+), ५५५५७(+), ५५१८२-१ (३) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन का अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सुधर्मास्वामिनि जंबू), ५५०६१(+#) सौभाग्यपंचमी कथा, सं., श्लो. ६१, प+ग., मूपू., (प्रणम्य श्रीजिनाधीश), ५३९१५(-) सौभाग्यपंचमी कथा, सं., गद्य, मूपू., (श्रीमत्पार्श्वजिन), ५२७२४-२ स्तुतिचतुर्विंशतिका, उपा. क्षमाकल्याण, सं., स्तु. २४, श्लो. ७७, वि. १८०१-१८४१, पद्य, मूपू., (सद्भक्त्या नतमौलि), ५२५७२(+$) स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., स्तु. २४, श्लो. ९६, पद्य, मूपू., (भव्यांभोजविबोधनैक),५२६७३-२(+$), ५३५२५(+#$), ५३५७०(+$), ५४२५३(+), ५५००५-१(+#), ५५३२८(+#), ५२२९०, ५२१६२,५२५३८-१(#$), ५४५८०(#s), ५४८२०-१(#) (२) स्तुतिचतुर्विंशतिका-टीका, मु. देवचंद्र, सं., गद्य, म्पू., (श्रेयःस्तोमतरंगिणीप), ५४५८०(#S) स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., स्था. १०, सू. ७८३, ग्रं. ३७००, प+ग., मूपू., (सुयं मे आउसं तेणं), ५४३३८(+), ५४४०२(+), ५४३५२ (२) स्थानांगसूत्र-टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., ग्रं. १३५००, गद्य, मूपू., (श्रीमद्वीरजिनं नत्वा), ५४४०२(+) (२) स्थानांगसूत्र-(हिस्सा)*, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., मूपू., (--), ५४५००-२(+) (२) स्थानांगसूत्र-सप्तमस्थानक का हिस्सा सप्तस्वर विवरण, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गा. ३२, प+ग., मूपू., (सत्तसरा पन्नत्ता तंज), ५४४३८(+$) (३) स्थानांगसूत्र-सप्तमस्थानक का हिस्सा सप्तस्वर विवरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (स० सातस्वर प० परूप्य), ५४४३८(+$) (२) स्थानांगसूत्र-नवतत्त्व विवरण, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (पेहलो नामद्वार० पहिल), ५५३७७ स्थापनाचार्य विधि, सं., प+ग., मूपू., (स्थापनाविधि), ५२७५५(+) स्नात्रपूजा, श्राव. देपाल भोजक, प्रा.,मा.गु., कुसु. ५, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (पवित्र उदक लेइ अंग), ५४८३९-१ स्नात्रपूजा, प्रा.,मा.गु., पद्य, मूपू., (मुक्तालंकार विकार), ५२१६६-१, ५२३३४ For Private and Personal Use Only Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५१८ www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ स्नात्रपूजा सविधि, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, मूपू., (पूर्वे तथा उत्तरदिसे), ५५१५४-१, ५२२५२ (#) स्यादिशब्दसमुच्चय, आ. अमरचंद्रसूरि सं., उल्ला. ४, पद्य, म्पू. (श्रीशारदां हृदि), ५२८६० (३) हनुमान स्तोत्र, सं., लो, २४, पद्य, वै., (सर्वारिष्ट निसारणार), ५३५६८-२(१ हिंगलादिदेवी नाम स्तुति-रहस्य, मा.गु. सं., गा. ६, पद्य, जै. वै.2, (तुहि देवी हिंगुलाज), ५४८६५-६ (+) " हिंसाष्टक, आ. हरिभद्रसूरि सं., श्लो. ८, पद्य, भूपू (अविधावापि हि हिंसा, ५३८८५ (३) (२) हिंसाष्टक - टीका, सं., गद्य, मूपू., ( चिदानंदमयं ज्योतिः), ५३८८५ ($) (२) हिंसाष्टक -बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (एक कोईक जीव), ५३८८५ ($) हीरप्रश्न, उपा कीर्तिविजय, सं., प्रका. ४, गद्य, भूपू (स्वस्ति श्रियो निदान), प्रतहीन. , (२) हीरप्रश्न - बीजक, सं., गद्य, मूपू., (तत्र प्रथम महोपाध्या), ५४७७९ (+) हेमदंडक, प्रा., गा. ५, पद्य, म्पू, (जीवभेया सरीराहार), ५४९५५-१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir , (२) हेमदंडक - पद्यानुवाद, मु. ज्ञानसार, मा.गु. गा. १०७, वि. १८६१, पद्य, मूपू., (जो ध्रुव अलख अमूरती), ५४९५५-२ होलिकापर्व कथा, सं., श्लो. ५०, पद्य, मूपू., (वर्द्धमानं जिनं), ५५१८५ (+#) " (२) होलिकापर्व कथा - टवार्थ, आ जिनसुंदरसूरि, मा.गु, गद्य, भूपू (श्रीवर्द्धमानस्वामी), ५५१८५ (+) होलिकापर्व प्रबंध, ग. पुण्यराज, सं., श्लो. ३४, वि. १४८५, पद्य, मूपू., (प्रणम्य सम्यक् परमार), ५४२४७(+) (२) होलिकापर्व प्रबंध-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, (प्रणाम करीने भले), ५४२४७(+) ', होलिकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्वाण, सं., वि. १८३५, गद्य, मूपू. (होलिका फाल्गुने मासे) ५४५४०-२(+) होलीरजपर्व प्रबंध, ग. फतेंद्रसागर, सं., श्लो. १३९, वि. १८२२, पद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ५४१५८(#) (२) होलीरजपर्व प्रबंध-बालावबोध, मा.गु., गद्य, भूपू (श्रीवर्धमानस्वामीने) ५२२५६ (२) होलीरजपर्व प्रबंध-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्धमानस्वामी प्), ५४१५८(#) ह्रींकारविद्या स्तवन, सं., श्लो. १६, पद्य, म्पू., (सवर्ण पार्श्व लव), ५२२४६-२० For Private and Personal Use Only Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ३ तत्त्व सज्झाय, मु. राममुनि, मा.गु., गा. २८, पद्य, श्वे., (परम पुरुष परमेश्वर), ५४४४०-१०(+), ५२८७३(#) ४ कषाय चौढालिया, मु. धनिदास, मा.गु., ढा. ४, वि. १९०९, पद्य, श्वे., (क्रोध म कर रे प्राणि), ५३३७९-१ ४ गति वेलि, मा.गु., गा. १३५, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (आदि देव अरिहंतजी आदि), ५५००६ ४ प्रत्येकबुद्ध कथा, मा.गु., कथा. ४, गद्य, श्वे., (करकंडु कलिंगेसु० कलि), ५४८५३-३(+#) ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. ४ ढाल ४५, गा. ८६२, ग्रं. ११२०, वि. १६६५, पद्य, मूपू., (सिद्धारथ शशिकुलतिलो), ५४८७०(+#$), ५५०४६-१(+$), ५५१५०(+#s), ५५४६८(+#$), ५५४७७(#$) ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (चिहुं दिसथी च्यारे), ५३६५३-१(-) ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (नगर कंपिलानो धणी रे), ५४९७२-५८(+-#), ५५१५१-४(#), ५३२९२-१(६) ४ मंगल पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. २०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सिद्धार्थ भूपति सोहे), ५२५९३ ४ मंगल शरण, मु. चोथमल ऋषि, मागु., गा. १२, वि. १८५२, पद्य, श्वे., (पो उठीने समरीजै हौ), ५२६८४, ५२८३६-२(5) ४ मंगल सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (मंगलिक पहिल्क हुं ए), ५३०९६ ४ शरण सज्झाय, क. विजयभद्र, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पहिलो मंगलिक कहु), ५५०९६-६ ५ इंद्रिय २३ विषय सज्झाय, मु. सुंदर, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (उतपत मानव एहरे), ५३९७४-३(#) ५ इंद्रिय विवरण, मा.गु., गद्य, श्वे., (स्पर्शेद्रिय १ रस), ५४०३८-१(+) ५ इंद्रिय संवाद ढाल, मु. रूपचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ६, गा. १३०, पद्य, स्था., (अरिहंत देव नमी करी), ५४४४०-५५(+) ५ इंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (काम अंध गजराज अगाज), ५४१३२-४६(+#), ५४७३३-२(+), ५५२८३ २७(+#) ५ कारण छ ढालिया, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ५८, वि. १७३२, पद्य, मूपू., (सिद्धारथसुत वंदिये), ५२५२९(+#), ५४२०७-४(+) ५ खामणा, मा.गु., गद्य, मूपू., (पेला खामणा अढीदीप), ५४४६८(+#$) ५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ११, पद्य, म्पू., (आदि हे आदिजिणेसरु ए), ५२८५३-२(+#), ५३८८८,५२२४० १(#), ५३२५४-१(#), ५३३५३-२() ५ देव बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहिलुं नामद्वार बिजु), ५५३०३-२(+#) ५ परमेष्ठी आरती, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा.८, वि. १८वी, पद्य, दि., (इहविधि मंगल आरती), ५३१५०(#) ५पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (हस्तिनापुर नगर भलो), ५२१६८ ५ पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (हस्तीनागपुर अतिभलो), ५४१३२-५५(+#) ५ प्रकारे स्त्री पुरुषबिना गर्भधारण विधि, मा.गु., गद्य, श्वे., (वस्त्र रहीत पंडा), ५४४६४-९ ५ बोल, मा.गु., गद्य, पू., (पहिलो नारकिनो द्वार), ५२३६३-२ ५ भावना के ५३ उत्तरभेद नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (१. उपसम भाव भेद २), ५४५३५-४ ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ पूरवैरे), ५३९१९-१(+) ५ सम्यक्त्व का कालमान, मा.गु., गद्य, मूपू., (खायकनो काल ३३ सागरोप), ५४४६४-५१ ५ स्थावर वर्णविचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पृथवीकायनो वर्ण नीलौ), ५४४६४-२८ ५ स्वप्न गीत, सूरदास, मा.गु., गा. १६, पद्य, वै., (एक भीक्षक प्राति), ५२१४०-१(+#) ६ आरा बोल, मा.गु., ग्रं. १८०, गद्य, मूपू., (दस कोडाकोड सागरोपमना), ५४७४१-२($) ६ आवश्यकविचार स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ४४, पद्य, मूपू., (चोवीसई जिन चीतवीं), ५३४०१(६) ६ कायजीव उत्पत्ति आयुष्यादि विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पृथ्वीकाय अपकाय), ५४०५४-१(+#), ५४७५१-३(#) ६ काय सज्झाय, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (वंदु सोभागी साधु), ५४४४०-२२(+) For Private and Personal Use Only Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ६ जीव पंचढालियो, मु. सुगुणनिधान, मा.गु., ढा. ६, गा. ११२, पद्य, मूपू., (प्रणमि पास जिणंदने), ५४४४०-३८(+) ६ दर्शने ९६ पाखंडी नाम, मा.गु., गद्य, म्पू., (जैनदर्शने श्वेतांबर), ५४४६४-६४ ६ लेश्या परिणाम विचार, मा.गु., गा. ११५, पद्य, मूपू., (पाप करमथी प्राणिया), ५४३७९-१०(+-) ७ गरणा-श्रावक के घरमें, मा.गु., गद्य, मूपू., (पाणीनु गरणु १ छाणानु), ५४४६४-३३ ७ ज्ञानावरणी कर्म, मा.गु., गद्य, मूपू., (शात्रसिद्धांत वेचे), ५४४६४-४, ५४४६४-३० ७ भय नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (इहलोक भय १ परलोक भय), ५४१८४-३(+-) ७ वार सज्झाय, मु. कर्मचंद ऋषि, मा.गु., गा. ९, वि. १८८१, पद्य, श्वे., (--), ५३३१६-१($) ७ वार सज्झाय, मु. धर्मदास, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (श्रीब्राह्मी प्रणमी), ५२९१६-१(+) ७ वार सज्झाय, श्राव. माधव संघाणी; मु. कुंवरजी ऋषि, मा.गु., गा. ८, वि. १८९५, पद्य, श्वे., (आदित वारे उदित), ५२९०६-९(+#) ७ व्यसन सज्झाय, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पर उपगारी साध सुगुरु), ५४१३२-४३(+#), ५५२८३-३४(+#), ५२७२६-२ ७ व्यसन सज्झाय, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सात व्यसननो रे संग), ५२६९३(#) ७ व्यसन सज्झाय, मु. नंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सुगण सनेही हो सांभले), ५४४४६-१६(+) ७ व्यसन सज्झाय, उपा. रत्ननिधान, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सिद्धारथनृप कुलतिलो), ५२७५३-२ ८ कर्म१५८ प्रकृति विचार, पुहि.,मा.गु., गद्य, श्वे., (न्यानावरणी की ५), ५४८०२-४(+) ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (मूल कर्म आठ तेहनी), ५२८६८(+#), ५४७७५ (+$), ५५१८८(+), ५५२३७(+), ५५३९३(+), ५२५९९, ५४५३५-१, ५४५७४(६), ५४०८७(-६) ८ कर्मक्षयफल बोल, श्राव. बनारसीदास, मा.गु., प+ग., दि., (ज्ञानावरणी करमक्षय), ५३९१०-२ ८ कर्मबंध विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (घट पटादिशेषरूप वस्तु), ५४४६४-४२ ८ कर्मभेद विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (ज्ञानावरणीयकर्म), ५४१०५-३(#$) ८ प्रकारी पूजा, मु. देवविजय, मा.गु., ढा. ९, गा.७७, वि. १८२१, पद्य, मूपू., (अजर अमर निकलंक जे), ५२६००, ५४८३९-२ ८ प्रकारी पूजा, पं. वीरविजय, मा.गु., वि. १८५८, पद्य, मूपू., (सरस वचन रस वरसती), ५३३३९($) ८ बोल-जाणपणा के, मा.गु., गद्य, मूपू., (न जाणे न आदरे न पाले), ५४४६४-३६ ८ मद नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (जातिमद), ५४१८४-२(+-) ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ८, गा. ७६, पद्य, मूपू., (शिवसुख कारण उपदेशी), ५४२०७-५(+), ५३५९३, ५४१९०, ५२२३०-१(#) (२)८ योगदृष्टिगुण सज्झाय-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऐंद्रश्रेणिनतं), ५४१९० ९खंड नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (भरतखंड १ हरीवर्षखंड), ५४४६४-५ ९ ग्रैवेयक नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (भद्दे १ सुभद्दे२ सुज), ५२८०५-२(१) ९ नागकुल चौपाई, मु. देवशील, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (वाद्यवाणि पय प्रणमि), ५२२६५-४ ९नियाणा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (राजाने नियाणे बोधबीज), ५४४६४-३५ ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. १०, गा. ४३, वि. १७६३, पद्य, मूपू., (श्रीगुरुने चरणे नमी), ५५१९२-६(+#), ५२६३८ ९ वाड सज्झाय, मु. लाला ऋषि, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (श्रीगुरुने चरणे नमीज), ५४४४०-३१(+) ९ वाड सज्झाय, क. विजयभद्र, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (पहेला प्रणमुंगोयम), ५४१३२-५१(+#), ५४८६५-१(+) १० ठाणा बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (एगे आया१ एगे अणाया२), ५५४८८(+) १० दृष्टांत, मा.गु., गद्य, मूपू., (चुल्लग १ पासग २ धन्न), ५४०७०(+#) १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (दसविह प्रह उठी), ५२९८२-१, ५३९४४-२ १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ३३, वि. १७३१, पद्य, मूपू., (सिद्धारथनंदन नमुं), ५२०५३-२, ५२६८३, ५३४७८-२,५२२२४(2) १० प्रकीर्णक नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (चउसरण पइनू १ संथारा), ५४४६४-५८ For Private and Personal Use Only Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ १० बोल सज्झाय, मु. मगन, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (चेतन चेतो रे दशबोल), ५२४३१-५(-) १० बोल सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (स्यादवादमत श्रीजिनवर), ५४६१२-२(+) १० वाद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (विधिवाद जे वीतराग इम), ५२६३१-२(2) १० वाना छद्मस्थ न देखे, मा.गु., गद्य, श्वे., (धर्मास्तीकायने न देख), ५४४६४-५९, ५४४६४-८४ १० श्रावक सज्झाय, मु. सौभाग्यरत्न, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (दश श्रावक भगवंतना), ५३२०९-१(#), ५३१९५(-) १० संज्ञा नाम, रा., गद्य, मूपू., (आहारसंज्ञा भयसंज्ञा),५२६५०-२(+#) १० सुख विपाकीया जीव के नाम मातापिता नगरादि विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीव नाम नगरनो नाम), ५४४६४-७० १० स्वप्न सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (प्रथम आराधू), ५३०२८(+), ५३२३५-२(+) ११ अंग सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्वा. ११, वि. १७२२, पद्य, मूपू., (आचारांग पहेलुका ), ५२९९७-१, ५३४३९(#$) ११ गणधर स्तवन, मु. आसकरण, मा.गु.,रा., गा. १२, वि. १८४३, पद्य, स्था., (इंद्रभुतिना लीजे), ५२६१२(-#) १२ कुल गोचरी, मा.गु., गद्य, श्वे., (उग्र कुलाणी वा कहता), ५४४६४-७७ १२ चक्रवर्ति कथा, मा.गु., कथा. १२, गद्य, श्वे., (अजोध्याइ भरतेश्वर), ५४८५३-१(+#) १२ पर्षदागाथा, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (मुणि वेमाणिणि समणी), ५३९५७-२(+#) १२ पर्षदा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (अग्निकूण में पार्षदा), ५४७५१-२(#) १२ भावना विलास, ग. लक्ष्मीवल्लभ, पुहिं., गा. ५२, वि. १७२७, पद्य, मूपू., (प्रणमि चरणयुग पास), ५३२७३, ५४८९७-८(), ५४५०५(६) १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., ढा. १३, गा. १२८, अं. २००, वि. १७०३, पद्य, मूपू., (पास जिणेसर पाय नमी), ५४२६७(+#), ५३२२२(5) १३ काठिया नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (आलस १ मोह २ बने ३), ५४७५१-४(2) १३ काठिया सज्झाय, मु. उत्तम, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (सोभागी भाई काठीया), ५२६८०-१(+) १३ काठिया सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आलस पेलो काठियो धर्म), ५४४४६-१४(+) १३ काठिया सज्झाय, मु. मेघराज ऋषि, मा.गु., गा.८, पद्य, श्वे., (रमणी रामति रमतो), ५२६०१-१३(#) १३ बोल-इरियावही क्रिया, मा.गु., गद्य, मूपू., (यथा स्वभावे अथवा), ५४४६४-१५, ५४४६४-६७ १४ अभ्यंतर गांठ, मा.गु., गद्य, मूपू., (मिथ्यात्व १ स्त्री), ५४४६४-१८ १४ गुणस्थानक २५ द्वार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नामद्वार लक्षणद्वार), ५५२३५-२(+) १४ गुणस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (मिथ्यात्व गुणठाणो १), ५२६४१-२,५४५३५-२ १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (बंधप्रकृतयस्तासा), ५२२६०-३(१) १४ गुणस्थानक सज्झाय, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ३३, पद्य, मूपू., (जिणवर पय वंदीय मन), ५५२५२-१३(+#) १४ गुणस्थानके कर्मबंधउदयसत्ता व उदीरणा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५५५४४(+) १४ गुणस्थान वर्णन, मु. ब्रह्मज्ञान, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (गोयम गणधर गरवामनि धर), ५४७५८-५(#) १४ नियम नाम-श्रावक, मा.गु., गद्य, मूपू., (सचितद्रव्य १ अचित), ५४४६४-१७ १४ नियम सज्झाय, ग. ऋद्धिविजय, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सारद पाय प्रणमी करि), ५३२०३(2) १४ नियम सज्झाय, मु. विवेकविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सकल सार मे श्रीजिनधर), ५३९५२-१(#$) १४ पूर्व स्तवन, आ. सौभाग्यसूरि, मा.गु., ढा. ३, वि. १८९६, पद्य, मूपू., (जिनवर श्रीवर्धमान), ५२६४०(+) १४ रत्न उत्पत्तिस्थान, मा.गु., गद्य, श्वे., (चक्र १ छत्र २ असि ३), ५४४६४-१९ १४ रत्न नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (खड्गरत्न चर्मरत्न), ५४७५१-५(१) १४ राजलोक परिमाण विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सातमी प्रथवी तेहनी), ५३२२८-१(#) १४ विद्या नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (ऋग्वेद १ यजूरवेद २), ५४४६४-१६ १४ विद्या नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (विद्याकला रसायण), ५२९९७-७, ५२१०६-४(-2) For Private and Personal Use Only Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ १४ स्वप्न कवित, मु. नंद, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (सूढ सरल दीपत्त दंतु), ५२७१२ १४ स्वप्न पूजा, मु. अबीरचंद, पुहिं., पूजा. १४, वि. १९३१, पद्य, मूपू., (आगम अगोचर अलख अज अवि), ५४३०८(+) १४ स्वप्न विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्वप्न पाठक कहइ छइ), ५३३१०-१(-) १४ स्वप्न सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., ढा. ४, गा. २०, पद्य, मूपू., (श्रीदेव तीर्थंकर केर), ५३७८१(+), ५४४४१-५(+), ५३४७४-२,५४४७७-४ १४ स्वप्न स्तवन, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (प्रथम ऐरावण दिठो), ५५२५६-७(+#s), ५२४८५-३ १५ तिथियों की रात्रि का नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (उत्तमा १ सुरक्षत्रा), ५४४६४-२१ १५ तिथि स्तुति संग्रह, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., स्तु. १६, गा. ६४, पद्य, मूपू., (एक मिथ्यात असंयम), ५४९७२-६१(-2), ५२२२०-१ १५ दिवस नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (पुर्वागसिद्ध १ मनोरम), ५४४६४-२० १५ परमाधामी विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (अंब१ अंबरीष२ शामशबल), ५५३४५-३(+) १५ प्रकारे गर्भाधान के अयोग्य स्त्री-ठाणांगे, मा.गु., गद्य, मूपू., (अप्राप्त योवना बार), ५४४६४-८ १६ उद्धार-शत्रुजयतीर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीभरत महाराजानो), ५४४६४-५० १६ जिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १२, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (ऋषभ अजित संभवस्वामी), ५३००३-१, ५४८५२-१५ १६ युगप्रधान नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (दयाविने कहै१ वादी), ५४४६४-२२ १६ शृंगार दोहरा, पुहि., दोहा. ५, पद्य, वै., (च्यार चतुष्पद च्यार), ५४९७२-४४(+-#) १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., गा. १७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आदिनाथ आदि जिनवर), ५४३८४-५(+#), ५४४४१-१(+$), ५३८७८, ५४८५२-१२, ५४५५९-३(#) १६ सती सज्झाय, मु. प्रेमराज, पुहि., गा. १४, पद्य, श्वे., (सील सुरंगी भालि ओढी), ५३३९८(#) १६ सती सज्झाय, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (शीतल जिणवर करी), ५४८५२-६ १६ स्वप्न सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (पाडलीपुर नयरी चंद्र), ५२८४७, ५३३४८-१(#) १६ स्वप्न सज्झाय, मु. महानंद, रा., ढा. २, पद्य, श्वे., (श्रुतदेवी रे ध्यान), ५३०७७(#$) १६ स्वप्न सज्झाय, मु. विद्याधर, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (सरसति सामणि वीनj), ५३०३९(+) १६ स्वप्न सज्झाय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (सुपन देखी पेहलडे), ५५११७-२,५३३७३($) १७ भेदी पूजा, वा. सकलचंद्र, मा.गु., ढा. १७, गा. १०८, पद्य, मूपू., (अरिहंत मुखपंकजवासिनी), ५४२७८(+#), ५५२८५-६(+#), ५२१३९(#) १७ भेदी पूजा, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., ढा. १७, वि. १६१८, पद्य, मूपू., (भाव भले भगवंतनी पूजा), ५४३७८(+), ५४८१७-१(+#), ५५५७५ १७ भेदी पूजा स्तवन, वा. मालदेव, मा.गु., गा. ७२, पद्य, मूपू., (श्रीअरहंत अनंतगुण), ५२९६०(+) १८ दोष रहित भावचारित्री, मा.गु., गद्य, मूपू., (अठारै दोष रहित भाव), ५४४६४-२७ १८ नातरा चौपाई-जंबूपूर्ववर्ती, मु. नयरंग, मा.गु., गा.७४, पद्य, मूपू., (जिनवर चरण नमी हितकार), ५३६१०-१(#) १८ नातरा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (मथुरा नगरी मे कुबेर), ५५३४०-३(+$) १८ नातरा सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ३२, पद्य, मूपू., (पहिलो प्रणमुपास), ५३६२०-१(+) १८ नातरा सज्झाय, मु. छीतरऋषि, मा.गु., ढा. २, गा. २३, पद्य, मूपू., (कर्म सबल जग जाणीई कर), ५३३३५-२(#) १८ नातरा सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (मथुरापुरी रे कुबेर), ५४१३२-५६(+#) १८ नातरा सज्झाय, मु. भीम ऋषि, मा.गु., ढा. २, गा. २३, पद्य, श्वे., (करम सबल जग जाणीए करम), ५३५४६ १८ नातरा सज्झाय, मु. हेतविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, पद्य, मूपू., (पहेला ते समरू पास),५२७३८-१ १८ नातरा सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (वेदन सही मानव भव लही), ५५१५१-१(#) १८ पापस्थानक चौपाई, मु. गोविंद, मा.गु., ढा. १८, वि. १६५२, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवरनै नामुसीस), ५५००३(+#$) For Private and Personal Use Only Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ ५२३ १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., सज्झा. १८, ग्रं. २११, पद्य, मूपू., (पापस्थानक पहिलुं कहि), ५४२१५(+#), ५५३५०(+), ५४०८६ १८ पापस्थानकपरिहार कुलक, मु. ब्रह्म, मा.गु., ढा. १८, ग्रं. ३५०, पद्य, श्वे., (सुंदर रूप विचार चतुर), ५५४३९(4) १८ प्रकार अयोग्य दीक्षा, मा.गु., गद्य, मूपू., (आठ वरसनो नानो छे), ५४४६४-७९ १८ प्रकार से धर्म प्राप्ति, मा.गु., गद्य, मूपू., (अढारे दोष रहित भाव), ५४४६४-७८ १८ भावदिस नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (पृथवीदस १ पाणीदीस २), ५४४६४-६३ १८ व्याकरण नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ऐंद्रव्याकर्ण २ पाण), ५४४६४-२३ १८ शाखा तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, मूपू., (विजय शाखा १ हंस शाखा), ५४३२०-७(१) २० बोल सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १९, वि. १८३३, पद्य, स्था., (किणसुंवाद विवाद न), ५३७७७(+), ५३५७२-२ २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (अनंत चउवीसी जिन नमु), ५२३६५-२(#$) २० विहरमानजिन नाम, मा.गु., गद्य, म्पू., (सीमंधर १ युगमंधर), ५४२८६-१३(+) २० विहरमानजिन विवरण, मा.गु., को., भूपू., (श्रीमंधरस्वामी), ५४४६४-५५ २० विहरमानजिन स्तवन, मु. महिमाविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (बीज बहुल उजवालीय वंद), ५५३६४-१७(+#) २० विहरमानजिन स्तवन, मु. माणेकविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सीमंधर पेहेला नमुं), ५३८७०-६($) २० विहरमानजिन स्तवन, मु. रायचंद, मा.गु., गा. १९, वि. १७९१, पद्य, श्वे., (चोवीसे जिनने प्रणमी), ५२४९४-२(+) २० विहरमानजिन स्तवन, मु. लीबो ऋषि, मा.गु., गा.१८, पद्य, श्वे., (पहिला स्वामी सीमंधर), ५३६२१ २० विहरमानजिन स्तवन, मु. श्रीपाल, मा.गु., ढा. ३, गा. ३०, वि. १६४४, पद्य, मूपू., (श्रीगणधर गुण स्तवू), ५४४४१-४(+$), ५२९०२(#$) २० विहरमानजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीस विहरमान जिनवरराय), ५३५७३-५ २० विहरमानजिन स्तवन, मा.गु., गा. १७, वि. १८५९, पद्य, मूपू., (वीस विहरमान सादा), ५२९७२(+) २० विहरमान स्तवन, मु. शिवलाल, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (श्रीक्षेत्र विदेहे), ५३६३०-१ २० सखी सज्झाय, मु. गोरधन, मा.गु., गा. २३, पद्य, श्वे., (उतम साध पधारीया गुण), ५४४७९-८ २० स्थानकतप सज्झाय, मु. उदयहर्ष, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (प्रणमी गोयम गणहर), ५२४४७-३(-2) २० स्थानकतप सज्झाय, पंन्या. दीपविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सरसती निज गुरुने सदा), ५२५५३-१ २० स्थानकतप सज्झाय, मु. श्रीवर्द्धन, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (सरसति समरि सुगुरु), ५२७२२ २० स्थानकतप स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सुअदेवी समरी कह), ५३५७८(+) २० स्थानक तप स्तवन, मु. दयाविजय, मा.गु., गा. ९, वि. १८९५, पद्य, मूपू., (अरिहंत सिद्ध पवयण), ५४२२६-२(+#) २० स्थानकतप स्तवन, मु. दयाविजय, मा.गु., ढा. २०, गा. १२०, पद्य, मूपू., (सुखसंपतिदायक सदा चोव), ५४२२६-१(+#) २० स्थानकतप स्तवन, मु. वखतचंद्र, मा.गु., ढा. ३, गा. १९, पद्य, भूपू., (वीशस्थानक तप सेवीय), ५३२००(+), ५२८०८ २० स्थानकतप स्तुति, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पुछे गौतम वीरजिणंदा), ५२३१३-१ २० स्थानक पूजा, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., ढा. २१, वि. १८८३, पद्य, मूपू., (सुरपति श्रीपति नरपति), ५४०२३(+) २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., गा.१०, पद्य, मूपू., (जिनशासन रे शुद्धि), ५२०८३(#) २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जिनशासन रेशुद्ध), ५२०९१-१ २२ परिषह चौपाई, मु. ज्ञानमूर्ति, मा.गु., पद्य, मूपू., (प्रथम जिनेशर पय नमु), ५५०३६-२(+$) २२ परिषह दृष्टांत, मा.गु., गद्य, मूपू., (उजेणी नगरीयइ हस्तमित), ५४४७२($) २३ पदवी विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सात एकेंद्री रत्ननी), ५५३०३-३(+#) २४ जिन आंतरा स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., ढा. ४, वि. १७७३, पद्य, मूपू., (सारद सारदना सुपरे), ५२३०७ २४ जिनकल्याणक स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., ढा. ७, गा. ४९, वि. १८३६, पद्य, मूपू., (प्रणमी जिन चोवीशने), ५३४२२ २४ जिन गीत, आ. जिनरत्नसूरि, मा.गु., गी. २४, पद्य, मूपू., (समरि समरि मन प्रथम), ५२१८२(+$) २४ जिन च्यवनागम, नगर, पिता, मातादिविचार कोष्ठक, मा.गु., को., मूपू., (चवणविमान नयरि जिण), ५५५१९(+) For Private and Personal Use Only Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (शत्रुजे ऋषभ समोसर्य), ५३६६६-१(+-#), ५५२८३ २४ जिन नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीऋषभदेवजी अजित), ५४२८६-१२(+) २४ जिन नाम-अतीत, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीकेवलज्ञानी), ५२७९६-२(+#) २४ जिन नाम-अनागत, मा.गु., गद्य, मूपू., (पद्मनाभ श्रेणिकनो), ५२७९६-१(+#), ५४३०५-२(+), ५४४६४-१,५३५३४-२(5) २४ जिन पंचकल्याणक मातापितादिनाम वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (नाम वण विमान नगरीमा), ५५१६०(+) २४ जिन पद, मु. दौलत, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (भविअण भावै जिन भेटी), ५२९२५-३ २४ जिनपरिवार सज्झाय, ग. वच्छ, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (आराही अनु दिन अरिहंत), ५२४१९ २४ जिन मातापितादि ७ बोल स्तवन, मु. दीप, मा.गु., गा. ३१, वि. १७१९, पद्य, श्वे., (श्रीजिनवाणी सरस्वती), ५२१७१-१(+) २४ जिन माता-पिता नामादि यंत्र, मा.गु., को., श्वे., (--), ५५१८७(+#$) २४ जिन यक्षयक्षिणी स्वरूप वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (ॐ ऋषभ यक्ष गोमुख १), ५४७९३-१(+#) २४ जिन राशि नक्षत्रादि विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (रिषभदेव उतराषाढा धन), ५४४६४-३ २४ जिन विवरण यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (--), ५४१८१-१ २४ जिन समवसरणमान विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऋषभ समोसर्ण गाउ ४६), ५४४६४-६१ २४ जिन सवैया, पुहिं., गा. २५, वि. १८६९, पद्य, मूपू., (आदि जिणंद करो विनती), ५२७००(+) २४ जिन स्तवन, मु. अभयराज, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (देवतणा गुण वर्णवू, ५४८५२-१३ २४ जिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (पहेला श्रीआदिनाथ), ५२७७९-१(-१) २४ जिन स्तवन, मु. क्षेमकल्याण, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (ऋषभ अजित संभव), ५४८५२-५ २४ जिन स्तवन, मु.खेमो ऋषि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (पहिला प्रणमुप्रथम),५५२४०-११(-2) २४ जिन स्तवन, मु. गणपति, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सकल जिणेसर प्रणमु), ५२८३५-१(#) २४ जिन स्तवन, मु. तेजसिंघ, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (ऋषभ अजित संभव सुखदाई), ५३१२८(+) २४ जिन स्तवन, मु. भाइजी ऋषि, मा.गु., गा. १५, वि. १६४०, पद्य, श्वे., (प्रथम जीनरे आदि जीणे), ५४५०४-१६(#S) २४ जिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १२, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (रीखभ अजित संभवस्वामी), ५३५१०-३(-) २४ जिन स्तवन, मु. रिखजी, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (वंदु श्रीआदिनाथ अजित), ५२४२७-६(#) २४ जिन स्तवन, मु. लालविनोद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जय जय आदि नमुं अरिह), ५२४२७-५(#) २४ जिन स्तवन, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (अजीत कणिमजी तुं जेहन), ५२५८१-१(#) २४ जिन स्तवन, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (आदि जिणेसर पहेला),५४४७७-५ २४ जिन स्तवन, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (देवतणां गुण वर्णवू), ५२९७८-१(+-), ५४३८४-१(+#) २४ जिन स्तवन, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (श्रीआदिजिन पढम), ५३६२६ २४ जिन स्तवन-१० स्थानकगर्भित, मु. ऋषभदास, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (चउवीसे जिनवर करूं), ५३४६५-१(#$) २४ जिन स्तवन-देहमान आयुस्थितिकथनादिगर्भित, पा. धर्मसिंह, मा.गु., ढा. ५, गा. २९, वि. १७२५, पद्य, मूपू., (पंचपरमिट्ठ मन शुद्ध), ५३५५९-२(#) २४ जिन स्तवन-पांसठीयायंत्र गर्भित, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीनेमीश्वर संभव), ५३०४३-१(+), ५३५७७ (+), ५४४७७-१ २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., गा. २९, वि. १५६२, पद्य, मूपू., (सयल जिणेसर प्रणमुं), ५३५०७, ५४८५२-१४, ५२५१२-४(-#) २४ जिन स्तुति, ग. अमृतधर्म, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (तीरथपति त्रिभुवन सुख), ५२८०७-२(2) २४ जिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (ब्रह्मसुता गिर्वाणी), ५३६०८-२(+#$) २४ तिर्थंकर के मातापिता कीगति विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऋषभदेवनो पीता नाग), ५४४६४-३९ For Private and Personal Use Only Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ ५२५ २४ तीर्थंकर नाम, आयुमान, देहमान, वर्ण, राज्यकाल, तपकाल आदि विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीआदिनाथ को आउषो), ५२४३८(२) २४तीर्थंकरपुत्र स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १६, पद्य, स्था., (राजाराणी कुटुंबो घणो), ५४४४६-२२(+) २४ दंडक २४ द्वार विचार, मा.गु., को., मूपू., (दंडक २४ नामानि शरीर), ५५३०३-१(+#) २४ दंडक २५ द्वार विचार, मा.गु., गा. २, प+ग., मूपू., (सरीरोगाहणा संघयण), ५५३९२(+#), ५४४८०(5) २४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (शरीर अवगाहणा संघयण), ५४८७२(+#$), ५४९५९, ५४७५१-१(#$) २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम नामद्वार बीजु), ५४१६०(+), ५५४५१(+#$) २४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (दंडक लेश्या ठित्ति), ५४३९२(+#$), ५५१४३-१(+) २४ दंडक विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथवीकायनो १ दंडक), ५४०५४-२(+#), ५४१६७-१(+) २५ बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (नरकगति १ तिर्यंचगति), ५५३६९-८(+#) २६ भाव भांगा, मा.गु., गद्य, श्वे., (उपशम भाव क्षायक भाव), ५३०१८-२ २८ लब्धि नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (आमोसही विप्पोसही), ५४४६४-७६ २८ लब्धि विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (अट्ठावीस लब्धि भव्य), ५४५५१-१(#S) ३० बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (कर्म आठनुं विवरु), ५२३६३-१ ३१ प्रकार के लाडु नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (सेवैया लाडू१ मोतिया), ५४४६४-६५ ३२ असज्झाय विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (उकाबाइ कहता तारो तूट), ५४४६४-५३ ३२ चौवीसीजिन नाम, मा.गु., खं. ३२, गद्य, मूपू., (श्रीकेवलज्ञान निर्वा), ५४४६४-२ ३३ आशातना विचार-गुरुसंबंधी, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहलो बोल गुरु आगल), ५४४६४-८७ ३४ अतिशय वर्णनमय साधारणजिन स्तवन, मु. केशो, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (स्वेद रोगमल रहित), ५२७७८-१(-६) ३४ अतिशय विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहेलो अतिशय तीर्थंकर), ५३४७१-१ ३४ अतिशय स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जिन चउवीसे अतिशय), ५४०६३-१० ३६ गुण आचार्य, मा.गु., गद्य, मूपू, (आर्य देसना उपना ते), ५४४६४-४० ३६ बोल थोकडो, मा.गु., गद्य, मूपू., (एगे असंजमे १ एगे),५५४८६ ३६ राजकुल नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (सूर्यवंश १ सोमवंश २), ५४४६४-६६ ४५ आगमनाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (आचारांग१ सुयगडांगर), ५२२६०-४(2) ४५ आगम विषयवर्णन सज्झाय, मा.गु., गा. १९, पद्य, श्वे., (प्रवचन वीर वदे एम), ५३११३ ५२ अनाचार वर्णन-साधु जीवन के, मागु., गद्य, मूपू., (उद्देशिक आहार लेवें), ५३७२९ ५३ क्रिया रास, मु. ब्रह्मगुलाल, मा.गु., गा. ११, वि. १६६५, पद्य, मूपू., (--), ५४७५८-१(#$) ६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिउं अरिहंताई बोले), ५४४१२-१(+), ५५४४३-२(+#), ५४४१३, ५४८८५(5) ६२ मार्गणा नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (देवगति मनुष्यगति), ५४५३५-३ ६७ सम्यक्त्व भेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीन सुद्ध मन सुद्ध), ५४४६४-८३, ५४४६४-९१ ८४ आशातना स्तवन, उपा. धर्मसिंह, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (जय जय जिण पास जग), ५३५५९-४(#) ८४ गच्छ नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (ओसवालगच्छ १ खरतरगच्छ), ५३८०६-३(-) ८४ गच्छ विवरण, मा.गु., गद्य, श्वे., (गच्छपरंपरा श्रीमहावी), ५४५१९-२ ८४ वणिगजाति नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (श्रीमाल१ ओसवाल२), ५३१६५-१, ५४५१०, ५२४२०(#s) ९१ बोल श्रावक के, मा.गु., गद्य, श्वे., (जीवदया मैं राचीवइ), ५३९०१-३ ९६ जिन स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., ढा. ५, गा. २३, वि. १७४३, पद्य, मूपू., (वरतमान चोवीसै वंदु), ५२८८५-२(+#), ५५२८३-४१(+#), ५२५०४-१(२) ९६ तीर्थंकर स्तवन, ग. लब्धिकल्लोल, मा.गु., गा. २२, वि. १६५६, पद्य, मूपू., (--), ५३८७६-१(६) ९८ बोल यंत्र, मा.गु., को., श्वे., (सरवथी थोडा गर्भज), ५२१११ For Private and Personal Use Only Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ९९ प्रकारी पूजा-शत्रुजयमहिमागर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ११, वि. १८८४, पद्य, पू., (श्रीशंखेश्वर पासजी), ५४१२८ १५० जिनकल्याणक चैत्यवंदन, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (शासननायक जगजयो वर्धम), ५२३२५, ५२७०८ १७० जिन नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीप्रसन्नचंद्र), ५४४६४-७५ ५६३ जीव बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, स्था., (जीव गइ इंदीये काए), ५४७४१-१ ५६३ जीवों के साथ मिच्छामिदुक्कडं, मा.गु., गद्य, भूपू., (जीवना पांचसइंत्रिसठ), ५४४६४-५४ अंगफुरकण चौपाई, पं. हेमाणंद, मा.गु., गा. २३, वि. १६३९, पद्य, मूपू, (श्रीहर्ष प्रभु गुरू), ५३७३८-१(-) अंगस्फुरण विचार, मु. हीररत्न, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (माथै फुरके पुहवीराज), ५५३८८-१(+) अंजनासुंदरी चौपाई, ग. भुवनकीर्ति, मा.गु., खं. ३ ढाल ४३, गा. २५३, ग्रं. ७०७, वि. १७०६, पद्य, मूपू., (करतां सगली साधना), ५४९४२(+) अंजनासुंदरी रास, मु. खोडीदास, मा.गु., ढा. ६३, ग्रं. २५००, वि. १९१९, पद्य, स्था., (प्रणमूवीर जीणंद), ५५०२७(+) अंजनासुंदरी रास, मु. विनयचंद, मा.गु., ढा. ११, पद्य, स्था., (परमेष्ठिपद मंत्रथी), ५४८९९(#) अंजनासुंदरी रास, मा.गु., गा. १६५, पद्य, मूपू., (शील समो वड को नही), ५४०१३(+), ५५०५३, ५५२६७($) अंजनासुंदरी सज्झाय, ग. हेमविजय, मा.गु., गा. ६८, वि. १६८३, पद्य, मूपू., (समरी सरसति मात वचन), ५३९९८ अंतरायकर्मनाश आरती, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा.७, पद्य, दि., (भूप दिलावै दर्व कौं), ५४६९८-४ अंबिकादेवी छंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, वै., (सदा पूर्ण ब्रह्मांड), ५२५०२-३ अइमुत्ता गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, रा., गा. १३, वि. १८३०, पद्य, श्वे., (सासणनायक सिद्ध कीधी), ५३०१६-१ अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (वीरजिणंद वांदीने), ५४१३२-९(+#) अइमुत्तामुनि सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. १४, वि. १९४४, पद्य, श्वे., (एवंतामुनिवर नाव तराइ), ५२३७७-२(#) अईमुत्तामुनि सज्झाय, उपा. रत्नसागर, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (वीर जिणंद वांदीने), ५३९६९-१ अकर्मी सज्झाय, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (एक सीखामण कहुं छु), ५२३०६-१ अकल्पनीय आहारदान सज्झाय, रा., गा. २०, पद्य, मूपू., (खुसामदी कर दाताररी), ५२४३१-६(-) अक्षयनिधितप स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ५, गा. ५१, वि. १८७१, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर शिर), ५३४६७(+#) अक्षरबत्रीशी, मु. हिम्मतविजय, मा.गु., गा. ३५, वि. १७२५, पद्य, मूपू., (कका ते किरिया करो), ५२८२२-१(+) अक्षरबत्रीसी-आत्महितशिक्षागर्भित, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (कक्का किरिया), ५२३६९-१(-#) अक्षरबावनी, मु. उदैराज, मा.गु., गा. ५९, वि. १६७६, पद्य, श्वे., (अकल अवतार अपरंपर),५५५०८-२(+#) अक्षरबावनी , मु. केशवदास, पुहिं., गा. ६२, वि. १७३६, पद्य, मूपू., (ॐकार सदा सुख देत), ५४४४४-१(+) अक्षरबावनी, मु. जसराजजी; मु. जिनहर्ष, पुहिं., गा.५६, वि. १७३८, पद्य, मूपू., (ॐकार अपार जगत आधार), ५२९३०($) अक्षरबावनी, मु. माल, पुहिं., गा. ५२, पद्य, मूपू., (ॐकार अक्षर जिम अलख), ५३६१५-६ अगडदत्त रास, मु. मनीराम, मा.गु., ढा. ६, गा. ९२, वि. १९०९, पद्य, श्वे., (आदिनाथ आदि करी चवीस), ५२१८८-१(-#) अजापुत्र चौपाई, मु. धर्मदेव, मा.गु., गा. ३८२, वि. १५६१, पद्य, मूपू., (अट्ठ महासिद्धि पामीइ), ५४१०४(#) अजितजिन स्तवन, मु. आनंदवर्द्धन, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (अजित सयाने सजनी सयान), ५३२७६-३ अजितजिन स्तवन, मु. खुशालमुनि, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (अजित जिणेसरदेव मोरा), ५४५०४-३१(#), ५४५०४-३५(#), ५५२९८ अजितजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तार किरतार संसार), ५२५४५-९(-2) अजितजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अजित अरिहंत भगवंत), ५२५८८-२(2) अजितजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू., (अजित जिन तुह्म सीङ), ५५२४०-२५(-#) अजितजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अजित जिनराज सुणि आज), ५२०८६-२ अजितजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (अजित अजित जिन), ५४६१३-३ अजितजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ओलग अजित जिणंदनी), ५५२९८-११(#) For Private and Personal Use Only Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ ५२७ अजितजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अजित जिणंदस्यु प्रीत), ५३६६४-१, ५३५९०२१ ५५२९८-१७(४) अजिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अजितजिणेसर साहिबो रे), ५३२७१-२($) अजितजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ताहरी मुद्रानी बलिहा ), ५४८६५-९(+) अजितजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १९, पद्य, स्था., (जंबूदीपना भरत मे), ५३०७३-१(#), ५५२९८-२३(#$) अजितजिन स्तवन, मु. स्वरूपचंद, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (शुभ भावेंकरी सेवीइं), ५४६१३-५ " अजितजिन स्तवन, मु. हरखचंद, पुहिं. गा. ४, पद्य, भूपू (अजित जिन को ध्यान कर), ५३९७९-४(१) अजितजिन स्तवन, मा.गु., गा. १०, पद्य, भूपू., (विजयानंदन जिनजी मूझ), ५४२२४-३(+) अजितजिन स्तवन- तारंगागढ, मु. आगम, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (साहिबा अजितजिणेसर), ५४८६५-४(+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अजितजिन स्तवन- नडुलाई, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अजित जिणेसर वंदीइ), ५२६३९-३ अजितवीर्घजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु, गा. ७. वि. १८वी, पद्य, मूपू., (दीव पुष्करवर पश्चिम), ५२५७१-१(१६) अज्ञान परिहार गीत, मु. मेघराज ऋषि, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (मूर्ख भावि न हु करि), ५२६०१-१० (#) अढीद्वीप के बाहर की स्थिति का वर्णन, मा.गु., गद्य, भूपू (मेघनी उत्पति नहि १), ५४४६४-३१ अणगस गीत, मु. माणिक, रा., गा. २३, पद्य, मूपू., (अणगस करवो कालि बाई), ५४४७९-२ अणगारगुणवंदन स्तुति, पुहिं., गा. २, पद्य, मूपू., (पापपंथ परिहरे मोक्षप), ५४३१२-३(+) . अध्यात्मगीता, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ४९, वि. १८वी, पद्य, मूपू. (प्रणमिये विश्वहित) ५३००६ (+४), ५२४७७, ५३४२१-१(७) (२) अध्यात्मगीता - विषमस्थल टिप्पण, रा., गद्य, मूपू., (जगत रै स्वात्म सुख), ५३००६ (+#) अध्यात्मगीता, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. २४२, ग्रं. ३३०, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (इष्टदेव प्रणमी करी), ५२८२४-१($) अध्यात्म फाग, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. १८, वि. १७वी, पद्य, दि., (अध्यातम बिनु क्यों), ५४९७२-४०(+#) अध्यात्मवत्तीसी, श्राव. बनारसीदास पुहिं. गा. ३२ वि. १७वी, पद्म, दि., (सुध वचन सदगुरु करें), ५३६५२-२ (५), ५३४६८-२ अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद मुनि, पुहिं., गा. ३३, वि. १६८५, पद्य, स्था., (अजर अमर पद परमेसर), ५३६४६-१(+#$), ५५५०८ " १(+४३), ५४४७१(७), ५२९५१(३), ५३३११-१(३) अनंतजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (धार तलवारनी सोहली), ५५२४०-३(-#) अनंतजिन स्तवन, मु. ऋद्धिविजय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (अनंतनाथ जगनाथ कैं), ५४९७२-६७(+#) अनंतजिन स्तवन, ग. भक्तिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ओलगडी चित आणो हो मत), ५३५३९-६(+) अनंतजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा. गा. १४. वि. १८४१, पद्य, म्पू, (नगरी अजोध्या अतसोवै), ५३६०६-१(०) "" अनंतजिन स्तवन, मु. स्वरूपचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (हा रे लाल चतुरसिरोमण), ५४६१३-१२ अनंतवीर्यजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५. वि. १८वी, पद्य, मूपू (अनंतवीर्य अरदास सुणो), ५२९९७-९ अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (मगध देस राजग्रही), ५४५५९-५ (#) (देश मगध मुख मंडण), ५४८६५-३(+) अनाथीमुनि सज्झाय, मु. कमलविजय, मा.गु., गा. ३३, पद्य, मृपू. अनाश्रीमुनि सज्झाय, पन्या, रामविजय, मा.गु., गा. ३०, पद्य, भूपू अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, "" (मगधाधिप श्रेणिक), ५२११०, ५३९१०-१, ५२०५६) मूपू., (श्रेणिक रयवाडी चड्यो), ५२२३५-२(+$), ५३२५५-२(+$), ५४१३२-४९(+#), ५५२८३-३३ (+#), ५२२८८-२, ५२३०६-२, ५३७४४-२ (#) अनाथीमुनि सज्झाय, मु. सिंहविमल, पुहिं. गा. १९, पद्य, मूपू (मगध देश को राज राजे), ५२८०६-१ अनाथीमुनि सज्झाय, मा.गु गा. १०, वि. १७७४ पद्य, मूपू (धान भलो राजग्रही रे), ५३६८४(०) अनुप्रेक्षा भावना, आ. सुमतिकीर्तिसूरि, मा.गु. गा. ३२, पद्य, मूपू. (जिनस्वामी समरी करी), ५२७६७ अभव्य सज्झाय, रा., गा. ८, पद्य, श्वे., (अभव न समझे किमहि न), ५४४४०-७(+) . अभिनंदनजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अभिनंदन जिन दरिसण), ५३४२४-२(#) अभिनंदनजिन स्तवन, मु. खुशालमुनि, मा.गु. गा. ५, पद्य, मूपू (अभिनंदन अरिहंतजी रे) ५४३८४-१७ (+१) अभिनंदनजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मृपू., (जे करजोडी बीनवुरे), ५२५४५-खाचा For Private and Personal Use Only Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ अभिनंदनजिन स्तवन, वा. मानविजय, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभु तुम दर्सण), ५५२९८-४(#) अभिनंदनजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अकल कला अविरुद्ध), ५४९७२-२८(+-#) अभिनंदनजिन स्तवन, मु. सुमतिकुशल, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (प्यारा प्रभु अभिनंदन), ५५२४०-५०(-#) अभिनंदनजिन स्तवन, मु.स्वरूपचंद्र, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (हिमवंतगिरसिरिपदमद्रह), ५४६१३-६ अभिमान परिहार गीत, मु. मेघराज ऋषि, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (भाई एवचन विचार खमो), ५२६०१-४(#) अमरकुमार सज्झाय, मु. सेवक, मा.गु., गा. ५२, पद्य, मूपू., (पुरव कृत करमां तणो), ५४४४०-४०(+), ५५११८-१(#) अमरसेन वज्रसेन रास, मु. तेजपाल, मा.गु., खं. ४, वि. १८२४, पद्य, श्वे., (प्रथम जिणेशर प्रणमीय), ५४४७३(६) अरजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (कागल तुन्ने रे किम), ५३९६०-७(+#) अरणिकमुनि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (विहरण वेला पांगुर्यउ), ५३६१०-७(#) अरणिकमुनि रास, मु. बुधमल, मा.गु., ढा. ४, पद्य, श्वे., (पारसजीन पारस इधक करी), ५३७३६ अरणिकमुनि सज्झाय, मु. दयातिलक, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (नगर तारापुर वहिरण), ५३२१४ अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (अरणिक मुनिवर चाल्या), ५२९६५-१(#) अरणिकमुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (अरणिक मुनीवर चाल्या), ५३८०५-३ अरणिकमुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (धन धन जननी रेलाल), ५२०९०-१(+#) अरणिकमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (अरणिक मुनिवर चाल्या), ५३३५४-१(+), ५४१३२-२६(+#) अरणिकमुनि सज्झाय, पं. हरख, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (दत दयालु छे लाले), ५३२९४(+#$), ५४४४६-२८(+) अरणिकमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (एक दिन अर्हणक जाम उठ), ५३२२६-१(#) अरती परिहार गीत, मु. मेघराज ऋषि, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (घर घरणी चिंतार सिंजी), ५२६०१-११(#) अरिहंत स्तुति-प्रभातियु, मु. स्वरूपचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, भूपू., (श्रीअरिहंत नमीजे), ५२३८७-१ अर्जुनमाली चौढालीयो, मा.गु., ढा. ४, गा. ३४, पद्य, मूपू., (राजगृही नगरी अती), ५३३०८-१(#) अर्जुनमाली ढाल, मु. जेमल ऋषि, रा., ढा. ९, गा. ११६, वि. १८२०, पद्य, श्वे., (वर्धमान जिनवर नमु), ५४४४०-३५(+) अर्जुनमाली सज्झाय, मु. कानजी, मा.गु., गा. १६, वि. १७४३, पद्य, श्वे., (सदगुरु चरण नमी कहू), ५३०९५ अर्बुदगिरितीर्थयात्रा स्तवन, मु. सुखनेहविजय, मा.गु., गा.८, वि. १८२०, पद्य, मूपू., (जिवो प्रणमुं आदिजिण), ५५३१३-२(#) अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (अरबुदगिर रलिआमणो रे), ५२९४६ अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (जात्रीडा भाई आबूजीनी), ५३१४३(5) अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. १३, गा.१०७, वि. १७४१, पद्य, मूपू., (मुनिवर आर्य सुहस्ति), ५४९५३-१(+), ५५००२(+#), ५५००४(+#), ५३२५०(#$) अवंतिसुकुमाल सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (ए संसार असार छ साचो), ५३४०५-२(#) अवंतिसुकुमाल सज्झाय, मा.गु., गा. ४, पद्य, पू., (ऐवंति सुकमाल संयइ), ५४३७९-९(+-) अवज्ञा परिहार गीत, मु. मेघराज ऋषि, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (पोति होइ जे नर पाप), ५२६०१-३(#) अष्टभंगी सज्झाय, मु. जससोम-शिष्य, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सुविहित गुरु मुख कमल), ५४९७२-६२(+-#) अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पं. खिमाविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (चैत्र वदी आठम दिने), ५२३५७-३(+) अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (महा सुदी आठमने दिने), ५२८४८, ५२४५३-२(5) अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अठावअगिरितुंग), ५४११७-२(+#) अष्टमीतिथि सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (श्रीसरसतिने चरणे), ५४१३२-२१(+#), ५४५५९-११(#) अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आठम कहे आठिम दिने), ५२३९६ अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (हां रे मारे ठाम धर्म), ५३६९५-१(+$), ५५५५३ ८(+#), ५२७४४, ५२९८५(#), ५३९००(#$), ५४५५९-१०(#) अष्टमीतिथि स्तवन, मु. लावण्यसौभाग्य, मा.गु., ढा. ४, गा. २४, वि. १८३९, पद्य, मूपू., (पंचतिरथ प्रणमुसदा), ५३५३८-१ For Private and Personal Use Only Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मंगल आठ करी जिन आगल), ५२८७०-२(+#), ५२५९८-२, ५२५३८-२(#) अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अष्टमी अष्ट परमाद), ५३४२९-११(+), ५४७५९-६(#) अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (महामंगलं अष्ट सोहै), ५५३६४-११(+#), ५४५४६-११(#) अष्टापदतीर्थ स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (अष्टापद श्रीआदिजिणंद), ५३६४९(+६), ५२९३५-३, ५३४३४, ५२२९२-४() अष्टापदतीर्थस्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (तिरथ अष्टापद नित), ५३६८९-२(+) अष्टापदतीर्थस्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अष्टापदगिरि जात्रा), ५३६६६-३(+-#), ५२५६१-४ अष्टापदतीर्थ स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (मनडो अष्टापद मोह्यो), ५५५५३-९(+#), ५२५४०-४ असज्झाय विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (असज्झाईना बि भेद एक), ५२८७१ असज्झाय सज्झाय, मु. ऋषभविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, म्पू., (सरसति माता आदे नमीइं), ५२७३३ असज्झाय सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (पवयण समरी सासणमाता), ५४१३२-३९(+#) असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., गा. १८, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (प्रणमु श्रीगौतम), ५२०७९ असार संसार वर्णन-गौतम द्वारा प्रश्न महावीरस्वामी द्वारा जवाब, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवे श्रीभगवान प्रते), ५२३२४-२ अस्वाध्याय विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (नगरमै प्रधान पुरुष), ५४३६२-२(+#) आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., वि. १७७६, गद्य, मूपू., (हिवै भव्यजीवने), ५४१३३, ५३४२१-२(#$) (२) आगमसारोद्धार-स्वोपज्ञ बालावबोध, ग. देवचंद्र, मा.गु., वि. १७७६, गद्य, मूपू., (तिहां प्रथम जीव), ५४१६६(+) आगम स्तवन, ग. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (श्रुत अतिहि भलो संघ), ५२०६०-१(-2) आचारांगादि अध्ययनों के नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (सस्त्रप्रगनाना उदेसा), ५४४६४-१२ आचार्यपद स्तुति, मु. स्वरूपचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (आचारिज पद सेवा चहत), ५२३८७-४ आत्मगुण पद, मु. स्वरूपचंद, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (आतम गुण अभिलाख्यो), ५२३८७-३ आत्मज्ञान पद, मु. ज्ञानसार, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (औधू आतम मततगति छूझै), ५५१२८-१५(+#) आत्मनिंदा भावना, मु. ज्ञानसार, रा., गद्य, मूपू., (हे आत्मा हे चेतन ऐ), ५२८९२(+#), ५३४४६(+) आत्मशिक्षा, क. हंसरत्न, मा.गु., गा. ११०, वि. १७८६, पद्य, मूपू., (सकल सास्त्रे वर्णव्य), ५४१७४-२(#) आत्मस्वरूप पद, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (जाग रे सब रैन विहानी), ५५१२८-२(+#), ५२८०७-७(#) आत्मोपदेशिक सज्झाय, रा., गा. १७, पद्य, श्वे., (चैतन अनंत गुणरो रे), ५४४४६-३३(+) आदिजिन ८४ गणधर नाम, मा.गु., अंक. ८४, गद्य, मूपू., (पुंडरिक सर्वज्ञ१), ५४४६४-६ आदिजिन गीत, उपा. रत्ननिधान, मा.गु., गा. १२, वि. १६४४, पद्य, मूपू., (अभिराम सोरठ भूमि), ५२७५३-१ आदिजिन गीत, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (भजो श्रीऋषभ जीणंद), ५२७३७-३ आदिजिन चरित्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (जंबुद्वीपई पश्चिम), ५३९५८-२ आदिजिन चैत्यवंदन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (कल्पवृक्षनी छांहडी), ५४२०९-१६(+) आदिजिन चैत्यवंदन, क. ऋषभ, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (आदिदेव अरिहंत नमु), ५४२०९-१५(+) आदिजिन चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ४७, वि. १८४०, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिद्धनै आयरिय), ५४९०३(+), ५५५९२(+#) आदिजिन छंद-केसरिया, श्राव. रोड गीरासिंह कवि, पुहि., गा. ४४, वि. १८६३, पद्य, मूपू., (सदाशिव राव आव्यो), ५३३२८(+-$), ५२४८४ आदिजिन छंद-धुलेवा, क. दीपविजय, मा.गु., गा. ६३, वि. १८७५, पद्य, मूपू., (आदि करण आदि जग आदि), ५३३३१(+$), ५३५२१-१(#) आदिजिन छंद-धुलेवामंडन, आ. गुणसूरि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (प्रमोदरंगकारणी कला), ५४३२०-६(#) आदिजिन छंद-शत्रुजयतीर्थमंडण, मु. कविराज, मा.गु., गा. १८, वि. १८५२, पद्य, श्वे., (श्रीगणधर जिनकुशलगुरु), ५३७४१-१ आदिजिन नमस्कार, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (नाभि नरेसर कुल कमल), ५४१३४-१०(+#) For Private and Personal Use Only Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५३० - www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ आदिजिन पद, मु. आनंदवर्द्धन, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (आदि जिणंद मया करो), ५३२८९-२ (+$), ५३३४४-२ (-#) आदिजिन पद, मु. इंद्र, पुहिं. गा. ५, पद्य, वे उठ तेरा मुख देख नाभ), ५३९५०-१ आदिजिन पद, मु. करमसी, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (आय रहो दिल बागमें), ५३२०१-२(#) " आदिजिन पद, मु. जिनराज, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (आज सकल मंगल मिलै आज), ५३२६१(#), ५४५०४-३०(#) आदिजिन पद, मु. जिनसमुद्र, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (देख्यो दरशन श्रीजिन), ५५५५३-६(+) आदिजिन पद, मु. नवल, पुहिं. गा. ४, पद्य, मूपू., (घडी घन आजकी मेरी), ५२३७८-२०१ आदिजिन पद, भूधर, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (नाभ नंदनसूं लगी लव), ५२८०७-१४(#) आदिजिन पद, मु. विनय, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (सयन सलुने लाल चरण न), ५४२७५-४(#) आदिजिन पद, मु. विमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चालो सखी वंदन जाइये), ५२८०७-१० (#) आदिजिन पद, मु. साधुकीर्ति, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (आज ऋषभ घर आवे देखो), ५२७१७-३, ५३१०६-२ आदिजिन पद, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू (प्रभु छोरे श्रीनाभि), ५३४२५-२(5) आदिजिन पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (मारुजी नीद नयणां बिच), ५२४६५-२(+) " आदिजिन पद- धूलेव, पुहिं. पद. १, पद्य, मूपू., (जाके जात आवत हैं), ५४९७२-५०(क्या आदिजिन पद- शत्रुंजयमंडण, पुहिं., गा. २, पद्य, मूपू., (अखियां सफल भई में), ५३४८८-१(#) आदिजिन प्रभाति, मु. रामचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभाते पंखीडा बोले), ५३०२२-३, ५४५०४-१(#) आदिजिन बारमासा धुलेवामंडन, क. ऋषभदास, मा.गु. गा. १३, पद्य, मूपू (श्रीसदगुरु प्रणमी), ५३४९०१(क) .. आदिजिन बृहत्स्तवन- शत्रुंजयतीर्थ, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (प्रणमवि सयल जिणंद), ५२१८७(#), ५२४४५-१(#) आदिजिन मरुदेवा ढाल, मा.गु., गा. ३३, पद्य, मूपू., (--), ५३०४१ ($) आदिजिन लावणी, मु. ऋषभदास, मा.गु. गा. ४, पद्य, भूपू (सुणीये रे वातां सदा), ५२६६७-१ " 2 आदिजिन लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ८, पद्य, श्वे. (मेरे दिल्लके मेहरम), ५३०९९ " आदिजिन लावणी, पुहिं., गा. २४, वि. १८६०, पद्य, मूपू., (सरस्वतीमाता सुमत की), ५२३०८-४ יי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आदिजिन लावणी-केसरियाजी, मु, लालदास, मा.गु गा. १८, पच, भूपू (सुणीये रे वाता सदा), ५२१५०(ण , " आदिजिन लावणी-केसरीयाजी, क. ऋषभदास संघवी, पुहिं., गा. ७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (सुनीओ बात सदासीवजी), ५३१०६ १ आदिजिन लावणी-धुलेवा, मु. कर्मचंद, रा. गा. ७, पद्य, म्पू, (सुनीयो बातां सदा), ५३५२१-२(०३) आदिजिनविनती स्तवन, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., डा. ५, गा. ५७, वि. १६६६, पद्य, मूपू (श्रीआदीसर बंदु पाय), ५३३०१ (+) आदिजिनविनती स्तवन- शत्रुंजयतीर्थ, मु, लावण्यसमय, मा.गु. गा. ४५, वि. १५६२, पद्य, मूपू (जय पदम जिणेसर), ५२८२२२(+३), ५२८३६-१, ५४४७७-३, ५५४५०-३, ५२८००-१ (३) आदिजिनविनती स्तवन- शत्रुंजयतीर्थ, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ५७, वि. १७, पद्य, मूपू., (आदिश्वरप्रभुने विनंत), ५२५५० १(२) ५३१७३(३) आदिजिन विवाहलो, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ६७, पद्य, मूपू., (आदि धर्म जिणि उधयों), ५२६३० (+) आदिजिन सवैया, मु. खेम, पुहिं., सवै १, पद्य, मूपू., ( संपति दायक हे जगनायक), ५२४०१-३ (+) आदिजिनसीमंधर जिन पद-राजपुरमंडन, पुहिं., पद्य, मूपु. ( श्रीराजपुर नगर के), ५३८८६-२(०७) आदिजिनसीमंधर जिन स्तुति, मा.गु गा. ३, पद्य, मूपू. ( जय जय त्रिभुवन आदि), ५२०७४-२ आदिजिन सुखडी, मा.गु., गा. ५४, पद्य, मूपू., (सरसति माता देवी चरण), ५२८६३(०३), ५३८६१-२(-) "" יי आदिजिन स्तवन, मु. अक्षयचंदसूरि शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभुजी आदीसर अलवेसर), ५४५०४-१४(#) आदिजिन स्तवन, मु. अमरविजय, मा.गु ढा. ४, गा. ३६, वि. १९वी, पद्य, भूपू (श्रीगुरु चरण कमल), ५३३९४-२(४) आदिजिन स्तवन, आ. आणंदसोमसूरि, मा.गु., गा. १३, वि. १८७२, पद्य, मूपू. (सद्गुरु समरी सरस्वती), ५२१९६-२(+) आदिजिन स्तवन, क. ऋषभ, पुहिं. गा. ६, पद्य, म्पू, (दरसण दीजै देव दयाकर), ५२५४५-२(क) आदिजिन स्तवन, मु. कपूर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., ( प्रथम तिर्थंकर रीषभ), ५२४९१-२(+$) , For Private and Personal Use Only Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ आदिजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (ऋषभ अनोपम माहरे साहि), ५४९७२-६४(+-#) आदिजिन स्तवन, उपा. कांतिसुंदर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आज सफल दिन माहरो), ५२४८३-३ आदिजिन स्तवन, मु. किसन, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (श्रीऋषभजिणेसर जगत), ५४८५२-११ आदिजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ऋषभजिन तुं मोहटो), ५४५०४-५(#) आदिजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जे जगनायक जगगुरु जी), ५५२९८-१०(#) आदिजिन स्तवन, मु. जस, मा.गु., गा. ९, वि. १८२७, पद्य, मूपू., (जिनजी आदिजिनंद जुहार), ५२९७०-२(+#$) आदिजिन स्तवन, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., गा. १२, वि. १८७१, पद्य, मूपू., (सुगुण सहेजा सांभलो), ५३६७५ (2) आदिजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (मन मधुकर मोही रह्यउ), ५५२५२-१७(+#), ५५२९८-५(#) आदिजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आदिसर सुखकारी हो), ५२३६६(#) आदिजिन स्तवन, मु. जीतचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (आदिदेव अरिहंतजी रे), ५५२९८-९(2) आदिजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (गिरिराज तेरे दरिसन), ५२६१३-३(+#) आदिजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आज आनंद वधामणां), ५२९९८-२(#) आदिजिन स्तवन, पं. नायकविजय गणि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (जिनजी नाभी नरेसरनंद), ५३२४०-३(#) आदिजिन स्तवन, पं. नित्यलाभ, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आदेसर सुंलागुंमारु), ५४५०४-२९(१) आदिजिन स्तवन, बंसी, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (श्रीआदिनाथ पणमेर), ५३५००-२(#) आदिजिन स्तवन, मु. भुवनकीर्ति, मा.गु., गा. ६, पद्य, पू., (साहिब तुमै मन धर्यो), ५४९७२-४९(+-#) आदिजिन स्तवन, मु. मनरूप, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (श्रीमरूदेव्या नंदा), ५२१०९(#) आदिजिन स्तवन, मु. माणेक, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (देख्या श्रीनाभि का), ५३१८०-१ आदिजिन स्तवन, मु. माधव, मा.गु., गा. १४, वि. १८५५, पद्य, श्वे., (सर्वारथ सीधथी चवी), ५५२९८-२१(#) आदिजिन स्तवन, मु. मानविजय, पुहिं., गा. ८, पद्य, मूपू., (मन मंदिरमे पाओ मेरो), ५३०८०-१(१) आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (उठ हो नाभि दूलारे), ५२८३१-२ आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पीउडा जिनचरणानी सेवा), ५३५४९-२(+), ५५२८३-१३(+#), ५२३८५-२,५२८०७-१५(#) आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (बालपणे आपण ससनेहि), ५४१५४-२(+), ५२५९०-५(-2) आदिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जगजीवन जगवाल हो), ५३१९१(+), ५५२५६ १०(+#), ५५४३६-२(+#) आदिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आज भले दिन उगो हो), ५३८७०-१ आदिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (ओलगडी आदिनाथनी जो), ५३२७१-१ आदिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर सेवित), ५५२४०-३४(-#) आदिजिन स्तवन, मु. लाभसागर, पुहिं., गा.५, पद्य, मूपू., (क्युं न भए हम मोर), ५५२४०-५(-2) आदिजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ११, वि. १८३९, पद्य, श्वे., (ऋषभ जिणेसर त्रिभुवन), ५३५०२-२(+#), ५३३६९-१(-६) आदिजिन स्तवन, मु. लालचंद्र ऋषि, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (नगर वनीता दीपती हो), ५३२६५-२ आदिजिन स्तवन, मु. वीर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आदिजिनेसर विनती), ५२५४०-३ आदिजिन स्तवन, मु. वीरजी, मा.गु., गा. ७, वि. १७९७, पद्य, मूपू., (--), ५४५०४-२८(#S) आदिजिन स्तवन, मु. समयसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, पू., (आदेसर अरिहंतजी प्रभु), ५२३५६-२(-2) आदिजिन स्तवन, मु. सुमतिविजय शिष्य, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (आदि जीणंद मया करो), ५४५०४-१९(#) आदिजिन स्तवन, मु. सेवक, रा., गा.७, वि. १८२२, पद्य, मूपू., (मुरत थारी मोहन), ५२९७०-१(+#) आदिजिन स्तवन, मु. स्वरूपचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (ऋषभजिणेसर दरीसण दीजे), ५४६१३-४ आदिजिन स्तवन, मु. हर्षविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (जी रे आज सफळ दिन), ५३३१७-३ आदिजिन स्तवन, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (जय जय आदि जिणंद आज), ५२०६६-१(+#) For Private and Personal Use Only Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५३२ www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " आदिजिन स्तवन, पुहिं. गा. १४, पद्य, मूपू., (तुम तरणतारण भव निवार), ५३९३३-१ आदिजिन स्तवन रा. गा. ९, पद्य, थे. (थे ती आदिजिणंदजीने), ५३२६३-२ आदिजिन स्तवन, रा., पद्य, वे., (वांदु श्रीआदिजिणंद), ५३०७३-४(#$) आदिजिन स्तवन, रा., पद्य, मूपू., (श्रीरीषभ जीणेसर भेटण), ५२६४५-३ आदिजिन स्तवन मा.गु., गा. ५, पद्य, वे (--), ५४३८४-१५ (+४३) " आदिजिन स्तवन- १४ गुणस्थानविचारगर्भित, वा. पद्मराज, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (जगपसरत अनंतकंत गुण), ५२२७२(+#), ५३७०३ (२) आदिजिन स्तवन- १४ गुणस्थानविचारगर्भित टवार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, (जगत्रयने विषे प्रसरत), ५२२७२(+), ५३७०३ आदिजिन स्तवन- २४ दंडक गतिआगतिविचारगर्भित, ग. धर्मसुंदर, मा.गु., ढा. २, गा. २६, पद्य, मूपू., (आदीसर हो सोवनकाय), ५३१६१-१(+) आदिजिन स्तवन- २८ लब्धिगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., ढा. ३, गा. २६, वि. १७२६, पद्य, मूपू., (प्रणमुं प्रथम जिनेसर), ५५०८७Po(+8) आदिजिन स्तवन-३४ अतिशयगर्भित, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (नाभिनरिंदमल्हार), ५२९६७-२(+) आदिजिन स्तवन- अर्बुदगिरितीर्थ मंडन, वा. प्रेमचंद, मा.गु., गा. ३४, वि. १७७९, पद्य, मूपू., ( आबु शिखर सोहामणो जिह), ५४०५५-४०डा आदिजिन स्तवन- अर्बुदगिरिमंडन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., ( आजूतीरथ अतिभली), ५२१२७-२(१६) आदिजिन स्तवन-अष्टापदतीर्थ, मु. भाणविजय, मा.गु, गा. २३, पद्य, मूपू (श्रीअष्टापद ऊपरे जाण), ५३४१२ आदिजिन स्तवन - औपदेशिक, श्राव. जुठा अमरसी, मा.गु., गा. ५, वि. १८८०, पद्य, श्वे., (वालाजी रे भजो भविक), ५३०६३-१ आदिजिन स्तवन- जन्मबधाई, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (आज तो बधाइ राजा नाभि, ५२४४५-२ (#), ५३६६१-१(#), ५५२४०(३९(ख) आदिजिन स्तवन-जन्ममहोत्सव, वा. जयसागर, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (अम घरि आज वधामणा हो), ५२६३९-६ आदिजिन स्तवन- देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित, ग. विजयतिलक, मा.गु. गा. २१, पद्य, मूपू. (पहिलु पणमिअ देव), ५३६३१(+), ५३७८८-१(३) ५५२२२.२(४) , (२) आदिजिन स्तवन- देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (धुरि नमस्करी देव), ५५२२२-२($) आदिजिन स्तवन- धुलेवामंडन, मु. सुखलाल, पुहिं., गा. ७, वि. १९१४, पद्य, मूपू., (सुं करूं ए वीनती भव), ५२४२९ आदिजिन स्तवन- नडुलाई मंडण चेत्यपरिपाटी वर्णन, मु. लब्धिरूचि, मा.गु. दा. १, गा. ९, पद्य, भूपू (सदगुरु चरण कमल नमी), ५२६३९-२ आदिजिन स्तवन- नारदपुरीमंडन, मु. बल्लभ, मा.गु., गा. ७, वि. १८४०, पद्य, मूपू., (चालो सहेली आपण सह), ५२५८६-१९ आदिजिन स्तवन- राणकपुरमंडन, मु. शिवसुंदर, मा.गु., गा. १६, वि. १७१५, पद्य, मूपू., (राणपुर नमौ हियो रे), ५३७११-४(#) आदिजिन स्तवन- राणकपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १६७६, पद्य, मूपू., (राणपुरे रलीयामणो रे), ५३१९९(+), ५५२८३-११००), ५२५५६-३१ आदिजिन स्तवन- राणपुरमंडण, मु. शिवचंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., ( जय जय श्रीरिसहेसरू), ५३२०१-१(#) आदिजिन स्तवन- विविधतीर्थ मंडन, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे. (आदि नमो श्रीगणेशदेव), ५२७१५ " आदिजिन स्तवन- शत्रुंजयतीर्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मृपू., (लाहओ लेयो रे लाहो), ५५२५२-१६(४०), ५५२४०-६(क) आदिजिन स्तवन- शत्रुंजयतीर्थमंडन, मु. कांति, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धुनी ध्रहकती ध्रहकती), ५२५३४-३(#) आदिजिन स्तवन- शत्रुंजयतीर्थं मंडन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आज अधिक भावें करी). ५२९९७-४ आदिजिन स्तुति, आ. लब्धिचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (भलै दीठो दरसण आज ऋषभ), ५२७०६ आदिजिन स्तुति, मु. सिद्धिविजय, मा.गु. गा. ४, पद्य, भूपू (-), ५३४९७-१(४) आदिजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू, (कनक तिलक भाले हार), ५२५८१-२०१ For Private and Personal Use Only Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ आदिजिन स्तुति-भुजनगरमंडन नवतत्त्वगर्भित, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जीवाजीवा पुण्यने पाव), ५३०१३-५(#) आदिजिन स्तुति - मरुदेवामाता केवलज्ञान, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू (गजकुंभे जेसी आवे), ५४२४४-१२(१) आदिजिन स्तुति-वीसलपुरमंडन, मु. देवकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (विसलपुर वांदु), ५२३१३-२ आदिजिन स्तुति-सुधर्मदेवलोकभावगर्भित, ग. कांतिविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सुधर्म देवलोक पहिलो), ५२३०८-१, ५४२४४-१३(#) आदिजिन हरियाली, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (एक अचंभो उपनो कहो जी), ५२०६४ (२) आदिजिन हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पुरुष कउ आउखु हवडा), ५२०६४ आदित्यवार व्रतकथा, मु. उत्तमविजय, मा.गु. गा. ७३ वि. १८५७, पद्य, मूपू (प्रथम नमु ते श्रीपार), ५५२२५ म आध्यात्मिक झूलना, य. छत्रसेन, पुहिं., गा. २५, पद्य, जै.?, (महबूब शरीर सहिरमैंजी), ५४८९७-१२(#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं. गा. ४. वि. १८वी, पद्य, म्पू, (अवधू नट नागर की बाजी), ५२२१९-२(+), ५३२०६-२ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं. गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू. आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं. गा. ४. वि. १८वी, पद्य, भूपू " " (अवधू नाम हमारा राखे), ५३२३६-१ (५) (आस्या औरन की कहा), ५३९५६-२४४का יי " आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं. गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (कोउ राम कहो रहमान), ५३९५६-२५(#), ५३६६१-३(-#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, रा. गा. ५, पद्य, मूपू., (निसदीन जोडं थांरी), ५३२४३-१९ (४७) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., पद. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (रे घरियारी बाउ रे मत), ५३६६१-२(-#) आध्यात्मिक पद, मु. गुणसागर, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., ( कंत चतुर दलिआनि हो), ५३७६२-३(+#) आध्यात्मिक पद, चेतन, पुहिं, गा. ४, पद्य, वे (ऐसा ऐसा सहेर बीच कोन), ५३६६१-७ (-१) आध्यात्मिक पद, मु. जगतराम, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., ( कैसा ध्यान धर्या है), ५५४४८-६(#) आध्यात्मिक पद, मु. जिनलाभ, पुहिं. पद. ३, पद्य, भूपू (चित्त सेवा प्रभु चरण), ५३१७९-१ आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., ( अनुभौ ढौलन कब घर), ५५१२८-२३(+#) आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (एही अजब तमासा औधू), ५५१२८-२५ (+#$) आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., ( कहा कहियै हो आप सयान), ५५१२८-१८(+#) आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुडिं, गा. ३, पद्य, म्पू., (घर के घर विन मैरो), ५५१२८-५ (१०), ५३५५७-११ आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मनडानी अमै केनै जो), ५५१२८-१(+#) आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं, गा. ४, पद्य, मूपू ( यूंही जनम गमायो भेख), ५५१२८-३(००) आध्यात्मिक पद, जै. क. बनारसीदास, पुहिं., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, दि., (चेतन तूं तिहुं काल), ५३९५६-२(#) आध्यात्मिक पद, जे.क. बनारसीवास, पुहिं, गा. ४, वि. १७वी, पद्य, वि., (तुं आतमगुण जाण रे), ५३८०५-२, ५३९५६-७(१) आध्यात्मिक पद, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अलख अगोचर अकलरूप), ५२७४०-२ आध्यात्मिक पद, रणछोड, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे. (ओलखीने लेज्ये रे), ५२९१६-२(+), ५३२७९-२(-) आध्यात्मिक पद, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अविनाशीनि सेजडीयें), ५२३४९-३, ५५३१३-११(#) आध्यात्मिक पद, मु. विनय, पुहिं. गा. ७, पद्य, म्पू, (किसके वे चेले किसके), ५५२४०-४-०) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आध्यात्मिक पद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रात भयो प्रात भयो), ५२८७०-९(+#) आध्यात्मिक पद, पुर्हि, पद. ३, पद्य, थे. (कांई झूमर बसै वाणी), ५३९०१-२ , आध्यात्मिक पद, मा.गु., पद्य, वे., ( नहि धारो नहि धारो रे), ५३९२५-५(३) आध्यात्मिक पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (हम बैठें अपनी मोनसौ), ५३९५६-१३(#) आध्यात्मिक पद- काया, मु. जिनराज, मा.गु गा. ७, पद्य, मूपू आध्यात्मिक फाग, मु. सोभचंद ऋषि, पुहिं, गा. ४, पद्य, भूपू (सुणि बहिनी पीउडो), ५५२८३-२९(+) (उपसम रस जोगीसर झूलइ). ५२६०१-१९१०) आध्यात्मिक सज्झाय, मु. दयानंद, मा.गु., गा. २९, पद्य, श्वे. (अणसमज्यां दिलमें), ५२३९८-३ (#), ५५२४०-४७(-#) आध्यात्मिक सज्झाय, मु. मुनिचंद्र, मा.गु., पद्य, भूपू., (जग सरूप चेतन संभलावइ), ५२९८२-३ आध्यात्मिक सज्झाय- सितलामाता, मु. तीलोक ऋषि, रा. गा. १६. वि. १९३७, पद्य, खे, (पूजो जीनवानी माता), ५३१४२ For Private and Personal Use Only ५३३ Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ आध्यात्मिक हरियाली, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., गा. ६, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (वरसे कांबल भींजे), ५३४१७-२(७) (२) आध्यात्मिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (कांबली कहतां इंद्री), ५३४१७-२($) आध्यात्मिक होरीपद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ३, पद्य, दि., (पीया विन केसे खेलु), ५३९२५-१ आध्यात्मिक होरी पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (भली भइ यह होरी आइ आए), ५३९२५-२ आनंदश्रावक संधि, मु. श्रीसार, मा.गु., ढा. १५, गा. २५२, वि. १६८४, पद्य, मूपू., (वर्द्धमानजिनवर चरण), ५५१६९(#), ५२२८३($) आयुष्य विचार*, मा.गु., गद्य, मूपू., (१२० हाथीनो आयु १२०), ५२५९२-३(+) आराधनासूत्र, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ४०६, वि. १५९२, पद्य, मूपू., (जिनवर चरण युगल पणमेस), ५४५०७(+$), ५४६०३ आरामशोभा चौपाई, मु. समयप्रमोद, मा.गु., ढा. १९, गा. २७०, वि. १६५१, पद्य, मूपू., (सयल सुखाकर पास जिणंद), ५४९७१(+$) आर्द्रकुमार रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. १९, गा. ३०१, ग्रं. ४५१, वि. १७२७, पद्य, भूपू., (सकल सुरासुर जेहना), ५४२१८(+#$) आर्यदेश नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ मगधदेश राजग्रहीनगर), ५३२३०-५(2) आलस काठिया सज्झाय, मु. मेघराज ऋषि, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (पुण्यतणे बल नरभव पाम), ५२६०१-१(#) आलोयणा, मा.गु., पद्य, मूपू., (पंच परमेष्ठिदेवनो), ५३८१३(१) आलोयणाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, वि. १६९८, पद्य, मूपू., (पाप आलोयु आपणां सिद), ५२४४८-२(#) आलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, श्वे., (अतीत काल अठार पाप), ५४५७३-२(+#$) आषाढाभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. १६, गा. २१८, ग्रं. ३५१, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (सकल ऋद्धि समृद्धिकर), ५५२१३(+), ५५४३७(+#) आषाढाभूतिमुनि चौढालियो, मु. माल, मा.गु., ढा. ४, वि. १८३०, पद्य, स्था., (वाणी अमृत सारसी आपो), ५३५४८ आषाढाभूतिमुनि पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ७, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (दरसण परिसोह बावीसमो), ५४४४०-३७(+), ५३६८५, ५३३८०() आषाढाभूतिमुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., ढा. ५, गा. ३७, वि. १८वी, पद्य, पू., (श्रीश्रुतदेवी हिइ), ५३८१०(+), ५२५१७(#$) आषाढाभूतिमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (दरसन परिसह बाविसमो), ५५२५६-१४(+#$) आषाढाभूतिमुनि सज्झाय, ग. रूपवल्लभ, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (एकाकी आषाढमुनि सुमति), ५३३२९-१(+) आहार गवेषणा सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (तीजी समती एषणा आहार), ५२४३१-७(-) इंद्रादि द्वारा रचित समवसरण कालमान विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सोधर्मो इंद्रनु), ५३६७०-४, ५४४६४-१४ इक्षुकार कमलावती चौढालीयो, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., ढा. ४, गा. ७२, पद्य, स्था., (देवता हता ते पुर्व), ५४४४०-५३(+) इक्षुकारसिद्ध चौपाई, मु. खेम, मा.गु., ढा. ४, वि. १७४७, पद्य, मूपू., (परम दयाल दयाकरु आसा), ५३३३५-१(#) इरियावही सज्झाय, मु. मेघचंद्र-शिष्य, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (नारी मे दीठी इक आवती), ५२५११-२(+#) इलाचीकुमार चौढालिया, मु. धनराज शिष्य, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (परथम गोणधर गुण नीलो), ५३२४५(#) इलाचीकुमार चौपाई-भावविषये, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. १६, गा. १८७, ग्रं. २९९, वि. १७१९, पद्य, मूपू., (सकल सिद्धदायक सदा), ५५४३६-१(+#) इलाचीकुमार रास, मु. लालविजय, मा.गु., ढा. १६, गा. ३२३, वि. १८८१, पद्य, मूपू., (वाणारसी कासीधणी), ५४६७२(+#) इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (नाम इलापुत्र जाणीए), ५४१३२-५४(+#), ५५२८३-३०(+#), ५२५००-१,५३७०२(2) इलाचीकुमार सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नाम इला सुत सेठनो), ५४३७९-४(+-) उंदर मीन कडीरोसंवाद, रा., गद्य, (बंदसैणरोपाताल), ५३०२९-३(+#) उत्तमकुमारचरित्र रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. २९, गा. ५८७, वि. १७४५, पद्य, मूपू., (चरम जिणेसर चित्त), ५४०२५(+), ५४०५३(+), ५४०४६ उदायनराजर्षि कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (सोवीरराय वसभो० सिंधु), ५४८५३-४(+) उधवावर वैराग्य, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. २६, पद्य, दि., (वालभ तु हूंत न), ५३९५६-९(२) उपदेशछत्रीसी, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (सकल सरूप यामें), ५३९९४ For Private and Personal Use Only Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ " उपदेशछत्रीसी, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (सांभलज्यो सज्जन नर), ५३४१५ (+) उपदेशपच्चीसी, मु. जेमल ऋषि, पुहिं, गा. २६, पद्य, स्था. (मनुष जनम दुलहो लहो), ५३०४४(४), ५४४३३-२१(+) उपदेशपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, पुहिं., गा. २५, वि. १८२०, पद्य, स्था., (जीनवर दिए एसो उपदेश), ५३०४२(+$), ५४४३३-२०(+) उपदेशयत्तीसी, मु. राज, पुहिं. गा. ३०, पद्य, म्पू, (आतमराम सयाने तें), ५३७०६ (+३), ५२६६३ उपदेशरसालछत्तीसी, मु. रुघपति पाठक, मा.गु., गा. ३७, पद्य, वे (श्रीजिनचरण नमी करी), ५३३२९-३ (+) ऐरावतक्षेत्रे आवतीचौवीसी तीर्थंकर नाम, मा.गु., अंक. २४, गद्य, मूपू., (चंद्रानन१ सुचंद२), ५३९५४-२ औपदेशिक ६३ बोल, मा.गु., गद्य, वे. (शिष्ये पूछयो गुरुने) ५४४६४-९० " औपदेशिक ६ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (हाथनो सणगार दान देव), ५३०२०-२ औपदेशिक अष्टपदी-भोंदुभाई, पुहिं., गा. ८, पद्य, दि., (भोंदूभाई ते हिरदै), ५३९५६-१८(#) , औपदेशिक अष्टपदी भोंदुभाई, पुहिं. गा. ८, पद्य, दि., (भोंदूभाई समुझु सबद), ५३९५६-१७) " " उपधानतप स्तवन-वृद्ध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. १८, पद्य, मूपू., (श्रीमहावीर धरम), ५५२८३-४२(+#) उपशम सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (भयभंजण रंजण जगदेव), ५५२५२-१० (+#) उर्ध्व अधोलोक परिमाण विचार यंत्र, मा.गु., को. मूपू., (समस्त ऊर्ध्वलोकि), ५३०५३ " "" ऋषभदत्त चौपाई. मु. अभयकुशल, मा.गु. दा. २७ गा. ४८९, वि. १७३७, पद्य, मूपु. ( पास जिणेसर प्रणमतां), ५४२४९-१(+) ऋषिदत्तामहासती रास, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ३६८, वि. १५७२, पद्य, भूपू (पणमवि सरसति जगि जव), ५४८५४०१ ऋषिदत्तासतीचौपाई, उपा धर्मकीर्ति वाचक, मा.गु., डा. १६ गा. ३८८, वि. १६९२, पद्य, मूपू. (सुअदेवी समरी करी), ५५४१० (+) एकादशीतिथि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., ( आज एकादसी रे नणदल), ५४१३२-२२(+#), ५३७९७-१, ५४५५९-९(#) एकादशीतिथि सज्झाय, मु. मकनचंद, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे. (आज मारे एकादशी रे), ५३२६७-२ (+), ५४४४६-८(+) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक एकवीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २१, वि. १८२०, पद्य, स्था., (श्रीजिनवर दीजीई सिरी), ५२२०५-१ (सरस मृदंग नाद धपधीधप), ५२५६३-२ , औपदेशिक कवित, मु. कांति, पुहिं. गा. १, पद्य, भूपू औपदेशिक कवित, मु. खेम पुहिं. गा. १, पद्य, भूपू (भूख बिना कुन काम को), ५२५६३-३ औपदेशिक कवित, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (मेरुगिर सिर परि धरा), ५४८९७-७(#) औपदेशिक कवित्त, पुहिं., गा. १, पद्य, श्वे., (रावण राज करे त्रिहुं), ५४१८२-३(#) औपदेशिक कवित्त, मा.गु., गा. २, पद्य, श्वे., (समर एक अरिहंत रयण), ५४८२०-२(#) औपदेशिक कवित्त - राजादृष्टांतयुत, पुहिं, गा. ७+६, पद्य, वै., (वडो वैण चकवै पहय), ५५३१३-५ (१) " औपदेशिक कवित्त संग्रह, पुहिं., मा.गु., पद्य, मूपू., (कीमत करन बाचजो सब), ५३७७२-४(-) औपदेशिक काव्य, पुहिं. दोहा ५१, पद्य, मूपू (बायकुं बद्ध के कौन), ५४९७२-२४(+), ५३०३६ (६) (खोयो खोयो रे मूढमती), ५३३१२ औपदेशिक कोरडा, मु. हरिसिंह, मा.गु., गा. २०, पद्य, मृपू, औपदेशिक गाथा, मु. न्यानविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे. (गरझी आगल घर जीयो), ५२४६०-२ औपदेशिक गाथा, मु. मोहन, पुहिं., गा. १८, पद्य, श्वे., (दाढ खटके काकरो कणु), ५४३८८(+) औपदेशिक गीत, पुहिं., कडी. ५, पद्य, खे, (पाणी माहि पाषाण वसि), ५४९७२-१२(४) औपदेशिक गीत- टंडाणा, पुहिं. गा. १६, पद्य, वे.. (टंडाणा टंडाणावे जिय), ५३१२१-१ " " औपदेशिक छंद, पंडित लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु, गा. १६, पद्य, मूपू (भगवति भारति चरण), ५५२५२-९ (+४), ५२६२८ औपदेशिक छंद - त्रोटकनामा, क. दीपविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वरदायक माव सलाम करी), ५२११३-१, ५२५०८ औपदेशिक दलाली, श्रव, कवियण, रा. गा. १३, पद्य, वे. (लाल लाल सहको कहेजी), ५३९९७-२ "" " औपदेशिक दूहा, पुहिं. दोहा. ८, पद्य, श्वे. (प्यावैधा जब पीया नहीं), ५३४३३-४(१), ५३५०८-२(१) ', " औपदेशिक दूहा संग्रह, ऋ. रूपचंद, पुहिं, गा. १००, पद्य, मूपू., (अपनी पद न विचारहु), ५४७७७-२(+) औपदेशिक दूहा संग्रह, पुहिं., गा. १३, पद्य, ?, (एक समे जब सींह कूं), ५४९७२-७७(+#), ५४९७२-१९(+#) औपदेशिक दृष्टांत, मा.गु., गद्य, भूपू., (कोहोपियपणासेइ माणोव), ५४४६४-९२ For Private and Personal Use Only ५३५ Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक दोहा, मा.गु., गा. २, पद्य, श्वे., (सजन बोलावी अमोवला), ५४२९६-२ औपदेशिक दोहा, पुहि., दोहा. १, पद्य, वै., (सिद्ध कसिवै कुंकाल), ५३३११-३ औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहि., दोहा. ४६, पद्य, वै., (चोपड खेले चतुर नर), ५२३९३-३, ५३१२१-२,५३२६८-८,५३७१४-२, ५२६०९-२(#), ५३९१२-३(#), ५४१८८-२(2) औपदेशिक दोहे, पुहि., दोहा. २, पद्य, मूपू., (खेतीपाती वीणती), ५४९७२-४३(+#) औपदेशिकपच्चीसी, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (आचारज उवझाय साधु सकल), ५३७७२-१(-) औपदेशिकपच्चीसी, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (पान झरंतो इम कहै सुन), ५३७७२-३(-) औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जिनचरणे चित ल्याव मन), ५५३१३-१०(#) औपदेशिक पद, मु. आनंदराम, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (छोटीसी जान जरासा), ५३६०५-३, ५२८०७-१२(#) औपदेशिक पद, कबीर, पुहि., गा. १, पद्य, वै., (इस दुनिया मे झूठ), ५२५६३-५ औपदेशिक पद, कबीर, पुहि., दोहा. ५, पद्य, वै., (तामैं कोन पुरस कोन), ५२९९७-१० औपदेशिक पद, कबीरदास संत, पुहि., गा. ७, पद्य, वै., (क्यौं लीजै गढवंका), ५३९५६-२६(#) औपदेशिक पद, कबीरदास संत, मा.गु., गा.७, पद्य, वै., (मुखडा क्या देखे दरपण), ५३४८५-२(#) औपदेशिक पद, क. गद, पुहिं., गा. १, पद्य, श्वे., (गई मान मरजाद गई लोड), ५३१९३-४ औपदेशिक पद, क. गद, पुहिं., गा. १, पद्य, श्वे., (जिसो दिवसौ को चंद), ५२५८९-३(#) औपदेशिक पद, मु. गिरधर, पुहिं., गा. २, पद्य, श्वे., (हीरा झुरवति खानिकुं), ५२४०८-१ औपदेशिक पद, गूलबास, पुहिं., गा. ९, पद्य, जै.?, (आदम भखलनां कलियूगमें), ५२१७६-२८) औपदेशिक पद, मु. चिदानंद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (पुदगल जीवकु भी न पीछ), ५२८२४-२ औपदेशिक पद, मु. जगराम, पुहिं., गा. २, पद्य, श्वे., (जोगी जुगति जानी नही), ५५४४८-९(#) औपदेशिक पद, मु. जादवराय, पुहि., गा. २, पद्य, श्वे., (चेतन तेरी बुधि कौन), ५५४४८-८(१) औपदेशिक पद, जालिम, पुहिं., गा. ९, पद्य, जै.?, (सुण भाई रे तेरा कीया), ५३५७२-१ औपदेशिक पद, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (तुम तजौ जगत का ख्याल), ५२६२४-२ औपदेशिक पद, मु. जिनराज, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (कहारे अग्यानी जीव), ५३१७९-२ औपदेशिक पद, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (जीवा जोयणे मे भमतो), ५४४४०-४७(+) औपदेशिक पद, मु. जेमल ऋषि, रा., गा. १९, पद्य, स्था., (दिवसमें माया मेली), ५४४४०-५१(+) औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अनुभव अपनी चाल चलीजै), ५२८०७-८(#) औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (अनुभौ ग्यान्न नयन), ५५१२८-२१(+#) औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (अनुभौ हम तौरा उरै खो), ५५१२८-२०(+#) औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (जगत मैं कोण किस को), ५३५५७-१० औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (तेरो दाव बन्यो है), ५५१२८-८(+#) औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (दरबाजा छोटा रे निकळ्), ५५१२८-१३(+#) औपदेशिक पद, मु.ज्ञानसार, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रीतम पतियां कौन्न), ५५१२८-१६(+#) औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रीतम पतियां क्यौं), ५५१२८-१९(+#) औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. २, पद्य, मूपू., (भाई मति खेलै तू माया), ५५१२८-४(+#) औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (भोर भयो भोर भयो भोर), ५५१२८-६(+#) औपदेशिक पद, मु. टोडरमल, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (जीया तोसों केतक बार), ५५४४८-५(#) औपदेशिक पद, मु. ठाकरसी ऋषि, पुहि., गा. ९, पद्य, श्वे., (दातन कीजीयै ग्यान), ५३८८२-२ औपदेशिक पद, मु. दोलत, पुहि., गा.५, पद्य, श्वे., (सुनौ जिया यह सतगुरु), ५५४४८-१(#) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., चौपा. ५, पद्य, दि., (प्रथमदेव अरिहंत मनाउ),५३९०१-१ औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. १३, पद्य, दि., (--), ५४६९८-२(६) For Private and Personal Use Only Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ ५३७ औपदेशिक पद, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, दि., (चेतन उलटी चाल चाले), ५३२३६-२(#), ५३९५६-१० (#) औपदेशिक पद, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (चेतन नैकुन तोहि), ५३९५६-११(#) औपदेशिक पद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. ३, पद्य, दि., (चेति चेति चेतन प्रान), ५३९५६-२१(#) औपदेशिक पद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. २, पद्य, दि., (तूं भ्रम भूलि नरे), ५३९५६-१९(१) औपदेशिक पद, श्राव. बनारसीदास, पुहि., गा.८, वि. १७वी, पद्य, दि., (देखो भाई महाविकल),५३२३६-३(2), ५३९५६-२३(#) औपदेशिक पद, श्राव. बनारसीदास, पुहि., गा. ८, वि. १७वी, पद्य, दि., (या चेतन की सब सुधि), ५३९५६-१(#) औपदेशिक पद, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (रे मन कुरु सदा संतोष), ५३९५६-८(#) औपदेशिक पद, मु. भद्रसेन, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (सहै घोर संकट समुद्र), ५३९७९-६(#) औपदेशिक पद, जै.क. भूधरदास, पुहिं., गा. ५, पद्य, दि., (काया का गढ कोट बनाया), ५२७९२-३ औपदेशिक पद, महमद, मा.गु., गा. १०, पद्य, जै., (कुंभ काचो रे काया), ५३०८८-२(#) औपदेशिक पद, मु. माणकचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (कोईना आघा पाछाम बोलो), ५३२१९-३ औपदेशिक पद, मु. मोतीराम, मा.गु., गा. २, पद्य, श्वे., (रंडीमुख काली सूर), ५२९९९-२ औपदेशिक पद, वा. मोनी, रा., गा. ८, पद्य, श्वे., (अजिया रात अंधारी मीण), ५५११७-१ औपदेशिक पद, मु. रतनचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (घर त्याग दीयो), ५२४३१-८(-) औपदेशिक पद, मु. रतनचंद, रा., गा. ६, पद्य, श्वे., (जोबनीयारी मोजां फोजा), ५३५१०-१(-) औपदेशिक पद, मु. रत्नसागर, पुहि., गा.८, पद्य, श्वे., (असुभ करम मल झाड के), ५३१६५-३ औपदेशिक पद, मु. राजसमुद्र, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (निकै नाथनै कवहु न), ५३५५७-७ औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मपू., (पंथीडा रे पंथ चलेगा), ५३१३८-३(#) औपदेशिक पद, मु. विनय, पुहि., गा. ९, पद्य, श्वे., (काया माया खीण खीर), ५२८२४-४ औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (अतुल करम दल फोज हरा), ५३२१९-२ औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (आजचेत चेत प्यारे), ५४९७२-६०(+-#) औपदेशिक पद, पुहिं., पद्य, श्वे., (कहै पसु दीन सुनौ जग्), ५५४४८-१३(#) औपदेशिक पद, पुहि., गा. ७, पद्य, श्वे., (कीसकी भगत करेइ हीत), ५२८२४-३ औपदेशिक पद, पुहिं., पद्य, श्वे., (चरचालूँ कुण रीझवै नर), ५२१२२-२(६) औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (चेतन एक बात सुणी), ५३९३८-१(१) औपदेशिक पद, पुहिं., गा.८, पद्य, मूपू., (चेतन जब तुंग्यान),५२७६३-३(+) औपदेशिक पद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (जग जीव दियो मेले), ५२४१६-१(-#) औपदेशिक पद, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (जति साधानो विरुद धरा), ५४४४०-४६(+) औपदेशिक पद, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (जिआ जिनराज विना रे), ५५४४८-१०(#) औपदेशिक पद, पुहिं., गा. २, पद्य, मूपू., (जीया मन लै मोरी कही), ५३५५७-१ औपदेशिक पद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (जीव तु अनादहीतै भुल), ५५४४८-३(#) औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (दुविद्या कबजे है या), ५३९५६-१२(#) औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (पथरदेव देखी पुजे), ५२९०६-२(+#) औपदेशिक पद, पुहि., गा. २, पद्य, श्वे., (प्रीतमनाथ अनाथ सुनौ), ५४८९७-१४(#) औपदेशिक पद, पुहिं., पद्य, श्वे., (बावरे क्युं न भजै), ५३१४१-६(-#) औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मारुजी हो फूल कुमर), ५५२४०-७(-2) औपदेशिक पद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (मोही जीव भमत मते), ५५४४८-२(#) औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (सजन गमन किये मिलन), ५५२४०-८(-2) औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (समायक पूजा नही कीनी), ५३९७९-८(2) औपदेशिक पद, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (सरल कौसठ कहै वकता), ५२९७४-१ For Private and Personal Use Only Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक पद , पुहि., गा.७, पद्य, श्वे., (साधो भाई अब हम कीनी), ५२८०७-१६(2) औपदेशिक पद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (सुन जिया रेखोवै छै), ५५४४८-४(#) औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (स्नान करो उपसमरसपूर), ५३४६५-४(#) औपदेशिक पद-इंद्रियदमनविषये, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. ९, पद्य, स्था., (दया तणो मारग सुध), ५४४४०-४४(+) औपदेशिक पद-काया, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (आ तन काची मीटी का), ५३६६१-५ (-2) औपदेशिक पद-कायाअनित्यता, मु. जिनहर्ष, हिं., गा. १, पद्य, मूपू., (काहे काया रूप देखी), ५४८९७-९(#) औपदेशिक पद-नरभव, मु. जेमल ऋषि, रा., गा. ११, पद्य, श्वे., (निट्ठ निट्ठ नरनो भव), ५४४४०-४८(+) औपदेशिक पद-निद्रात्याग, मु. कनकनिधान, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (निंदरडी वेरण हुइ), ५३२३०-२(#) औपदेशिक पद-पुण्योपरि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पारकी होड मत कर रे), ५३२४३-५(#) औपदेशिक पद-मनुष्यजन्मदुर्लभता, मु. जेमल ऋषि, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (मनूख जमारोपाय के), ५४४४०-५०(+) औपदेशिक पद-मानवभव, मु. जेमल ऋषि, पुहिं., गा. ६, पद्य, स्था., (मानव को भव पाय के), ५४४४०-४९(+) औपदेशिक पद-रसनाविशे, मु. विनयचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (चेतन तेरी रसना वस कर), ५३१२०-१(-) औपदेशिक पद-संसारस्वप्नबोधे, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. ११, पद्य, स्था., (नरक निगोद भमंत रे), ५४४४०-४५(+) औपदेशिक पद-समस्यागर्भित, मु. जिनहर्ष*, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (डाले बेठी सुडलि तस), ५२११३-३, ५२१२६-२ औपदेशिक पद-सुमतिविषये, मु. महानंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (हो सुमतीजी एवडो मुझ), ५३१२६-५(६) औपदेशिक प्रभाती, मु. रामचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, पू., (चूप कीरने तमे चेतो र), ५४३८४-२(+#), ५४३८४-३(+#) औपदेशिक बारमासो, मु. देदो ऋषि, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (परथम तीर्थंकर पाय), ५३५२६-३($) औपदेशिक बारमासो, मा.गु., पद्य, श्वे., (सदगुरू चरणे सीर नामि), ५२९०७-३(+#) औपदेशिक बारमासो, मा.गु., पद्य, श्वे., (चेत चालाण इहइ सजाण), ५२४०२-२(-$) औपदेशिक बोल संग्रह, मा.गु., पद. ३५, गद्य, श्वे., (पहिला बाणा संसकरत), ५३१४७(-) औपदेशिक लावणी, मु. अखपत, पुहिं., गा. ८, पद्य, श्वे., (खबर नहिं हे पलकी), ५३९३८-२(#) औपदेशिक लावणी, अखेमल, पुहि., गा. ११, पद्य, श्वे., (खबर नही आ जगमे पल), ५३२१५-२(#) औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, रा., गा.५, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (मन सुण रे थारी सफल), ५२०६०-३(-2) औपदेशिक लावणी, जैनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (आयो अब समकित के घर), ५३२२५ (2) औपदेशिक लावणी, मु. पृथ्वीराज, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (सरण लीयो जिनराज), ५३२४३-१(#) औपदेशिक लावणी, ऋ. रामकिसन, पुहि., गा. १९, वि. १८६८, पद्य, श्वे., (चेत चतुर नर कहे तेरे), ५२७९४-१(#), ५३६८७(#$) औपदेशिक लोरी, मु. मनोहर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सहल्यौहेयो संसार), ५४७५८-६(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. अखेराज, रा., गा. १३, पद्य, श्वे., (यो भव रतन चिंतामण), ५२१५९-१(#) औपदेशिक सज्झाय, श्राव. अचला साह, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (जिणवर वाणी मनिधरौ), ५४७५८-४(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. आसकरण ऋषि, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (काल तणै कोई नहीं), ५३४२३-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. उदयरत्न, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (यामें वास में बें), ५२३०६-३ औपदेशिक सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (समय सांभळो रे आखर), ५३०६४-६(-) औपदेशिक सज्झाय, उपा. उदयविजय, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (--), ५३६०५-१(६) औपदेशिक सज्झाय, मु. कनिराम, मा.गु., गा. १३, वि. १९३०, पद्य, श्वे., (चतुर नर चेतज्यो निको), ५२४३१-४(-) औपदेशिक सज्झाय, मु. करुणाचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (--), ५३०६४-५(-$) औपदेशिक सज्झाय, मु. कर्मचंद ऋषि, पुहि., गा.८, पद्य, श्वे., (तन धन जोबन का गर्व), ५३३१६-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. कर्मसिंह, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (वली वली नरभव दोहिलो), ५५२८३-३७(+#) औपदेशिक सज्झाय, मु. कल्याण, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जिन भजवानो चोघडीयो), ५२९२९-१(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. कवियण, हिं., गा. १०, पद्य, मूपू., (चेतन केम रहेवासे रे), ५२९७८-२(+-), ५४४४६-१३(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (चंचल जीवडारे में), ५२५४५-४(-2) For Private and Personal Use Only Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ औपदेशिक सज्झाय, मु. कुसालीचंद, मा.गु., गा. १७, वि. १८६५, पद्य, श्वे., (केवलीजन आगे हुआ), ५३५७४ औपदेशिक सज्झाय, ग. केशव, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (चेतन चेत प्राणीया रे), ५४४४६-३०(+) औपदेशिक सज्झाय, मु.खेम, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (जाग रे सुग्यानी जीव), ५३४२७(#) औपदेशिक सज्झाय, मु.खेम, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (सिवानंदन हेतकारी रे), ५४४४०-१४(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. खोडीदास, मा.गु., गा. २४, वि. १९१६, पद्य, स्था., (घडी एक तणो विश्वास), ५४४२२-५(+$) औपदेशिक सज्झाय, वा. चारुदत्त, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवरनां प्रणमी), ५४४३३-१४(+), ५२७७८-२(-) औपदेशिक सज्झाय, मु. चिदानंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (जग सपनेकी माया समज), ५२०६०-२(-#) औपदेशिक सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, रा., गा. १४, पद्य, श्वे., (जोग मील्यो छे रे), ५३०६२(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. चोथमल, रा., गा. १२, पद्य, श्वे., (हा रे भाई नरग निगोद), ५४४७९-११ औपदेशिक सज्झाय, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (सुगर की सीख हए धरणा), ५३१९४-१८) औपदेशिक सज्झाय, मु. जिनहर्ष, पुहिं., गा. १९, पद्य, मूपू., (एती वात घटी इस कलियु), ५३६११-२ औपदेशिक सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (चेतन अब कछु चेतीए), ५२८७०-१२(+#) औपदेशिक सज्झाय, मु. दयाशील, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (नाहलो न माने रे), ५२३५३, ५२५९४, ५३४८८-२(#) (२) औपदेशिक सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (बार भावनामाहि), ५२३५३, ५२५९४ औपदेशिक सज्झाय, मु. धर्म, मा.गु., गा. ८, वि. १९३६, पद्य, श्वे., (प्रभु पर उपगारी जीवन), ५२४१८-१(+) औपदेशिक सज्झाय, पा. धर्मसिंह, पुहिं., गा. ११, पद्य, मूपू., (करयो मती अहंकार तन), ५५२८३-२४(+#) औपदेशिक सज्झाय, मु. नंदलाल, रा., गा. १०, पद्य, श्वे., (मतो हो मछराला हो राज), ५३०९७-२ औपदेशिक सज्झाय, प्रीतम, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (प्रभु भजवानी घड़ी एक), ५३००८-२(६) औपदेशिक सज्झाय, मु. भुवनकीर्ति, पुहि., गा.८, पद्य, मूपू., (चतुर विहारी आतम माहर), ५३५४७-२(+), ५२६०१-१८(#) औपदेशिक सज्झाय, जै.क. भूधरदास, पुहिं., गा. १२, पद्य, दि., (अहो जगत गुर एक सुणिय), ५३८९०(#) औपदेशिक सज्झाय, क. मानसागर, मा.गु., ढा. २, गा. ११, पद्य, मूपू., (मानव भव पामीयो पाम्य), ५४१३२-२४(+#) औपदेशिक सज्झाय, मु. माल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सदहणा साची हिये ए), ५३९६०-१०(+#) औपदेशिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ४१, पद्य, मूपू., (चड्या पड्यानो अंतर), ५३४०६(+), ५२२६७-१ औपदेशिक सज्झाय, मु.रंगविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रीतम तणो मुज ऊपरि), ५३६०७-१, ५२६०१-१५(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. रतन, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (कुबुधी आतमा रे तु तो), ५३०६४-२(-) औपदेशिक सज्झाय, मु. रतनचंद, रा., गा. १३, पद्य, श्वे., (इण कालरो भरोसो भाई), ५३१९३-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. रतन, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (मनखा भवमा मोहि), ५२९९४-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. रामचंद्र, पुहिं., गा. १०, पद्य, मूपू., (नोमासा तें गरभावार), ५३८९४-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. राम, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (रे मन समज तु जगत), ५२४०२-१(-) औपदेशिक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १२, पद्य, स्था., (आदिनाथ अरिहंत ध्यावो), ५४४४०-२१(+) औपदेशिक सज्झाय, क. रूपचंद, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (जिणवर इम उपदिसै आग), ५२४३२(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (सद्गुरु चरणे कमल नमी), ५४४४०-२(+), ५४४४६-२४(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. लाल, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सुग्यानी जीव सीख सुण), ५२२४३-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ९, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (सुधो धर्म मकिस विनय), ५३४४१-१($) औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (मंगल करण नमीजे चरण), ५४३८४-१२(+#), ५४४४०-११(+), ५४५०४-२६(#) औपदेशिक सज्झाय, शिव, मा.गु., गा. ९, पद्य, जै.?, (भूलो मन भमरा काई भम), ५४५५९-१(#) औपदेशिक सज्झाय, वा. श्रीकरण, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (समवसरण सिहासनेजी वीर), ५२८४२-३ औपदेशिक सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (धोबीडा तुंधोजे मननु), ५३३९१-३(+) औपदेशिक सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मुगत नगर मारू सासरू), ५३०२२-१ For Private and Personal Use Only Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५४० www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ औपदेशिक सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (स्वारथ की सब हे रे), ५२६०१-१४(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. साधु ऋषि, मा.गु., गा. ३७, पद्य, स्था. (रतन चिंतामणि नर भव). ५३४००-१(5) औपदेशिक सज्झाय, मु. सुमतिहंस, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (तइ मेरइवासो वस्यो रे), ५२६०१-१७(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. हर्षचंद, पुहिं, गा. ४, पद्य, मूपू (चेते क्युं न गुमान०) ५२८०७-२१(०१) " , (इम सद्गुरु जीवने), ५३९७२ (एह संसार खार सागर), ५३९३३-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. ७, वि. १९४५, पद्य, वे (सुणता तन मन होलसे जी), ५२३७७-१(१) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु. गा. ११, पद्य, भूपू (अणी मंदर दीवलो बले), ५३४०७-१(4) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (असो रे अपूरव मले), ५२८००-२, ५३३१५-१(-#) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ४७, पद्य, श्वे. औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. १०, पद्य, श्वे., औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, भूपू औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १९, पद्य, श्वे. (केवल जन राम हरि रे), ५३००८-१, ५२९०० (4) औपदेशिक सज्झाय, पुहिं. गा. ५, पद्य, चे., (चेतन चतुर कषाय उपसम), ५३१२०-४(-) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु. गा. ६, पद्य, मूपू., (जीव चौद भुवनमा जोय), ५३०६४-४१-४) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू (जे विरले संसार नेह), ५३६१२-३ (३) (ओर बसत तो सहु मीली र), ५३७६५ "3 " औपदेशिक सज्झाय, मा.गु. गा. १०, पद्य, श्वे. (थोरा जीव भवने कारणे), ५४४४६-२(+) " औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. २०, पद्य, मूपू., (दुर्लभ लाधो मनुष्य), ५४४४०-४३(+) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, वे., (देहलो बीराणो रे आपणो), ५३२३२-२(१) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, खे, (धंधो की धन मेलीउरे), ५३११७/१ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, भूपू (नमो अरिहंताणं नमो ), ५३०२०-१ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (नीगमनी मुझ गम नहि), ५३०६४-७(-) औपदेशिक सज्झाय, रा., गा. २६, पद्य, वे., (पुन्य योगे नरभव लियो), ५२३४३ (+) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु गा. १३, पद्य, मूपू (प्राणीडा रे सूतो कां), ५२७३७-६ " औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ९, वि. १८४०, पद्य, श्वे., (मन धर सारदमात जी वली), ५३२६८-३ औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. १५, पद्य, मूपू., (मांनखो बोत सधारो रे), ५२९९८-१(#) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir יי औपदेशिक सज्झाय, मा.गु. गा. ७, पद्य, वे (मात पिता सुत बंधवा), ५२४३१-९) " (मोह तणी जाणे ए माया), ५४८६५-२२*) (मोह समुद्र अथाग), ५२९९४-१ " " औपदेशिक सज्झाय, रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (मेरो रे मेरो करे रे), ५३००९-१ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु. गा. १७, पद्य, मूपू औपदेशिक सज्झाय, मा.गु. गा. ६, पद्य, भूपू औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. १०, पद्य, श्वे., (यतना का कहा गरब), ५२८९६-५ (+#) औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., पद्य, श्वे., (विमल चित्त कर मित्त), ५३५२८(#$) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (सिधां जैसो जीव है), ५३७७२-२() औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (सुरग सिपाइ गायसु नेह), ५३०९७-१ पदेशिक सज्झाय आयुष्य, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु.. गा. ८, पद्य, वे. (आउखु तुट्याने सांधो, ५३१०९, ५३३४२, ५२८२५(१) औपदेशिक सज्झाय - आयुष्य, मु. नारायण, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (चेत चतुरनर निज मन), ५२९९४-३ औपदेशिक सज्झाय - कपटोपरि, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. २४, वि. १८३३, पद्य, श्वे., (कपटी माणसरो विश्वास), ५४४३३-२(+) औपदेशिक सज्झाय - काया उपरि, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (काया धरी छे कारमी रे), ५३३८४-१(+) औपदेशिक सज्झाय- कालप्रभाव, मु. सिंहसागर, मा.गु., गा. १४, पद्य, म्पू., (समरं सरसति देवदयाला), ५३९४२-१० (+३) औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (कडवां फल छे क्रोधनां), ५२८७०-३(+#), ५४१३२५३(+#) औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. भावसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू. (क्रोध न करिये भोला), ५४१३२-१५(१) For Private and Personal Use Only Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ ५४१ औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., गा.७२, पद्य, मूपू., (उत्पति जोज्यो आपणी), ५२७२०-१, ५२४४८-१(#), ५३३०९(#$), ५३४०५-१(#) औपदेशिक सज्झाय-जीवकाया, पुहिं., गा. ९, पद्य, मूपू., (तुं मेरा पिय साजणा),५३१०३-१,५३७७८(2) औपदेशिक सज्झाय-जीवशीखामण, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मूपू., (उंडोजी अरथ विचारज्यो), ५३१६९-२(5) औपदेशिक सज्झाय-जीवोपरि, अखेराम, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (ओ भवरत्न चीतो मणसर), ५३३८४-२(+) औपदेशिक सज्झाय-तमाकुत्याग, मु. कवियण, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (प्रीतम सेती वीनवे), ५२४६३-१ औपदेशिक सज्झाय-दयाधर्म, रा., गा. ३६, पद्य, श्वे., (श्रीजिन जीव सहुनी), ५३९६७ औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. १४, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (एक घर घोडा हाथीया जी), ५४१३२ १०(+#), ५२५५६-४(#$), ५२६०५-३(#), ५३२५८-३(5) औपदेशिक सज्झाय-दुर्मतिविषये, मा.गु., ढा. २, गा. १५, पद्य, मूपू., (दुरमतडी वरण थई लीधो), ५२४८२-१ औपदेशिक सज्झाय-नवघाटी, मु. हीरा, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (नवघाटी उलंघन हो पायो), ५२१५९-२(#) औपदेशिक सज्झाय-नवतत्व गर्भित, मु. वीरमचंद, रा., गा. १७, पद्य, श्वे., (सुन ले भवजन वानी), ५३५६६(-) औपदेशिक सज्झाय-नारीत्याग, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (बेटी से विलुधो जुवो), ५३४९४-१(-) औपदेशिक सज्झाय-निंदक, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २८, वि. १८३५, पद्य, श्वे., (नवरो माणस तो नंदक), ५४४३३-७(+), ५३०८३ औपदेशिक सज्झाय-निंदात्याग विषये, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (निंदा म करजो कोईनी), ५४९७२-७५(+-#), ५५११८-३(#$), ५३३७०-३(-६) औपदेशिक सज्झाय-निंदात्यागविषये, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (म कर हो जीव परतांत), ५४१३२-२९(+#), ५२५००-२, ५५२४०-२(-2) औपदेशिक सज्झाय-निंदात्यागे, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (गुण छे पुरा रे), ५४१३२-११(+#) औपदेशिक सज्झाय-परदेशीजीव, मु. राजसमुद्र, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (एक काया दुजी कामनी), ५४१३२-३७(+#), ५३५३५-१ औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, ग. कुमुदचंद्र, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सुण सुण कंतारे सिख), ५३६२३-२, ५३४६२ १(#), ५५३१३-९(#), ५२८५८-१(६) औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सीख सुणो रे पीया), ५३१२३-१(#) औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, शंकर, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (जेने परनारिसु प्रीत), ५४४४६-७(+), ५२८९९(#) औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मु. सुमतिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जीववार छु मोरा), ५३३७०-२(-) औपदेशिक सज्झाय-पुण्य, मा.गु., पद्य, मूपू., (पुन्य करि वसुदेवने), ५२९९९-३(5) औपदेशिक सज्झाय-ब्रह्मचर्य, मु. महानंद, मा.गु., गा. १२, वि. १८२४, पद्य, श्वे., (श्रीजिनवरजी उपदेशे), ५३३१४-२(+), ५४४४० २९(+) औपदेशिक सज्झाय-मांकण, मु. माणेक, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (मांकणनो चटको दोहिलो), ५४४७९-६ औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा.५, पद्य, मपू., (रे जीव मान न कीजीए), ५२८७०-४(+#), ५४१३२ १६(+#) औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, मु. कवियण, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (मान म करस्यो रे मानव), ५४४४६-३४(+) औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (मान म करसो रे मानवी), ५३११६, ५३२५८-१(६) औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (समकितनुं मुल जाणीये), ५४१३२-१७(+#) औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, मु. गंगविजय, मा.गु., गा.१०, पद्य, मूपू., (माया कारमी रे माया), ५५२५६-४(+#) औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, महमद, मा.गु., गा. ११, पद्य, जै.?, (भूलो ज्ञान भमरा काई), ५५२५६-३(+#), ५५२८३-९(+#), ५३३४१-३(#), ५३९३५-२(#S) औपदेशिक सज्झाय-रसनालोलुपतात्याग, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मपू., (बापलडी रे जीभलडी तुं), ५३२१६-२, ५३७७३ For Private and Personal Use Only Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक सज्झाय-लोभपरिहार, मु. उदयरत्न कवि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (तमे लक्षण जो जो लोभ), ५२३२९-२ औपदेशिक सज्झाय-लोभोपरि, पंडित. भावसागर, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (लोभ न करीये प्राणीया), ५४१३२-१८(+#) औपदेशिक सज्झाय-वाडीफूलदृष्टांत, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (वाडीराव करे करजोडी), ५४४४६-३६(+) औपदेशिक सज्झाय-विषयपरिहार, मु. सिद्धविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (रे जीव विषय न राचीई),५२६०१-१६(#) औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. जैमल ऋषि, पुहि., गा. ३५, पद्य, स्था., (मोह मिथ्यात की नींद), ५२६८०-२(+), ५२१६५ औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. राजसमुद्र, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज की काल चलेसी रे), ५५३४६-३(+#) औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, उपा. समयसुंदर गणि, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (किसीकुं सब दिन सरखे), ५३१७९-५ औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जंबु जगत सुपर्नु जाण), ५२८७०-६(+#) औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये, मु.खोडीदास ऋषि, मा.गु., गा. १७, पद्य, श्वे., (निसुणो सकल सोहमण), ५४४२२-६(+) औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (शील सोहामणु पालीए), ५३५३५-२ औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये, मा.गु., पद्य, श्वे., (दानतणा फल जाणीयै भाष), ५३९२०(#$) औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये स्त्रीशिखामण, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (एक अनोपम शिखामण कही), ५२८५८-२, ५३६२३-१, ५३२०९-२(#$), ५३४६२-२(#$) औपदेशिक सज्झाय-श्रावक करणी, रा., पद्य, श्वे., (दस प्रकारे हो बधे), ५३१००($) औपदेशिक सज्झाय-संसार अनित्यता, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (रे जीव जगत सुपनो), ५३६८८(#) औपदेशिक सज्झाय-सज्झाय, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (हारे श्रीजीनवर ईम), ५२८८५-१(+#) औपदेशिक समस्यामय कवित्त, रघुपति, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (श्रावक देखी सकल जती), ५३२६०-१ औपदेशिक सवैया, मु. कीर्ति, पुहिं., सवै. १, पद्य, मूपू., (भटक्यो भटक्यो अटक्यो), ५२५८४-३(#) औपदेशिक सवैया, मु. खोडीदास ऋषि, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (धीरज तात क्षमा जननी), ५५२४०-१२(-#) औपदेशिक सवैया, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (श्रीसद्गुरु उपदेश), ५२४५६ औपदेशिक सवैया, मु. धर्मसी, पुहिं., सवै. ५, पद्य, मूपू., (धंधही मैं नित्य धावत), ५२०९१-२ औपदेशिक सवैया, मु. श्रीसार, पुहि., सवै. १, पद्य, मूपू., (सातमौ खंड चल्यौ जब), ५२१९८-२(#) औपदेशिक सवैया, क. सोम, पुहिं., सवै.५, पद्य, वै., (एक समे वृषभाण वीसंबर), ५२४४०-३(-2) औपदेशिक सवैया, पुहिं., पद. १, पद्य, वै., (जीन कुंहुवा कपखान), ५४९७२-२३(+-#), ५४९७२-२५(+-#) औपदेशिक सवैया, पुहि., सवै. १, पद्य, मूपू., (झूठे हावी झूठे गोरा), ५२५६३-४ । औपदेशिक सवैया * पुहिं., पद. १, पद्य, श्वे., (देह अचेतन प्रेत धरी), ५४९७२-५७(+-#) औपदेशिक सवैया, पुहिं., पद्य, (नान्हरो कंत विचिक्षण), ५३७१३-२($) औपदेशिक सवैया, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (मांडलगढे पायकर मालपू), ५३१२०-२(-) औपदेशिक सवैया संग्रह , भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहि.,मा.गु., पद्य, जै., वै.?, (पांडव पांचेही सूरहरि), ५२९८७-२, ५५३४२-३(#), ५३०७१(६) औपदेशिक सवैया संग्रह, मु. हीरालाल, मा.गु., सवै.७६, वि. १९३२, पद्य, स्था., (श्रीजिनराज मुज माज), ५५५३६-१(+-5) औपदेशिक साखी, कबीर, पुहि., गा. १३, पद्य, वै., (मो मन तो गाफिल भया),५२४४८-५(#) औपदेशिक स्तवन-मुक्तिमार्ग, मु. करण, रा., गा. २३, पद्य, श्वे., (मुगतीरो मारग दोयलो), ५२३७३(-2) औपदेशिक स्तुति, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (उठी सवेरे सामायिक), ५२४९२(+), ५२३०८-२ (२) औपदेशिक स्तुति-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (संसारि जीव छइ प्रकार), ५२४९२(+) औपदेशिक स्वाध्याय, मु. तेजसिंघ, मा.गु., गा.८, पद्य, श्वे., (पंचप्रमाद तजी पडिकमण), ५३४९१-२ औपदेशिक हमची-जीवहितशिक्षा, मु. वर्धमान, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सरसती सामिण पाये नमी), ५३६१०-४(#) औपदेशिक हरियाली, मु. जिनेंद्रसागर, पुहिं., गा. १३, पद्य, मूपू., (कहेयो रे पंडित ते), ५२५४५-३(-#) औपदेशिक होरी, मु. जीत, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (समें आण उदे भए), ५३२४३-१३(#) औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, वै., (--), ५३६१७-२(+), ५५३७५-२(+#), ५३६३९-२, ५४०३९-४ For Private and Personal Use Only Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ ५४३ ककाबत्रीसी, मु. जिनवर्द्धन, मा.गु., गा. ३३, पद्य, मूपू., (कका करमनी वात करी), ५२३०३, ५३३८३-१(६) ककाबत्रीसी, मु. जीवण, मा.गु., गा. ३३, पद्य, श्वे., (कका कहू ते कहु मान), ५२८८३(#) ककाबत्रीसी, मा.गु., गा. ३३, पद्य, श्वे., (कका कर कुछ काज धर्म), ५३७३२-२(६) ककाबत्रीसी, मा.गु., गा. ३४, पद्य, श्वे., (कका क्रोध निवारीय), ५२२६९-२ कटुवचन सवैया, पुहिं., पद. १, पद्य, (सज्जन दुरजन दोहतणी), ५४९७२-१४(+-#) कथाकोश, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम मृषावाद व्रतउप), ५४०३१ कमलावतीरानी इक्षुकारराजा भृगुपुरोहित सज्झाय, मा.गु., गा. ३४, पद्य, मूपू., (महिला में बैठी राणी), ५२२०६(#), ५३०४९(-5) कमलावतीसती सज्झाय, ऋ. जैमल, पुहिं., गा. २९, पद्य, श्वे., (महिला में बेठी राणी), ५२०६७, ५३४२३-१ कमलावतीसती सज्झाय, मु. सुगुणनिधान, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (कहे राणी कमलावती), ५४४४६-३२(+), ५५१९२-३(+#), ५२८०६-२, ५२९२९-२(#) . कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., ढा. ३१, गा. ५५५, वि. १७२१, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसुखसंपदा), ५४५२६(+#$), ५५४८७, ५४९३१(२) कयवन्ना चौपाई, मु. मलयचंद्र, मा.गु., गा. १०६, पद्य, मूपू., (वंदी वीरजणेसर देव), ५२१७९(#) कयवन्ना सज्झाय-दानविषये, मु. लालविजय, मा.गु., गा. २७, वि. १६८०, पद्य, मूपू., (आदि जिनवर ध्याउं), ५२३४५(#) करकंडुमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चंपानगरी अतिभली हुं), ५४१३२-३८(+#), ५४४४६-१८(+) कर्मछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, वि. १६६८, पद्य, मूपू., (कर्म थकी छूटे नही), ५३०४०-२(+5), ५५१९२-२(+#), ५२५०६, ५२६०२-१(#), ५२७८३(#s) कर्मपच्चीसी, मु. हर्ष ऋषि, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (देव दानव तिर्थंकर), ५४४३३-१२(+) कर्मप्रकृति विचार*, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीसद्गुरु प्रणमी), ५३६८३($) कर्मफल पद, मु. ब्रह्मज्ञान सागर, पुहिं., गा. ६, पद्य, दि., (जाय चढे गिरी श्रृंग), ५२१९९-३ कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (देव दाणव तीर्थंकर), ५४१३२-२३(+#), ५५२८३-३१(+#), ५३०६९-२($), ५२४३१-२(-) कर्मविपाकफल सज्झाय, पं. कुशलचंद, पुहि., गा. ३५, पद्य, श्वे., (सुत्र गीनाण मे कह्यो), ५३५०९-१(२) कर्म सज्झाय, मु. दान, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सुखदुःख सरज्यां पामी), ५५२४०-४८(#) कर्म सज्झाय, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (कर्म गति काहूसुन), ५३९७९-७(१) कलियुग सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, पुहिं., गा. १२, पद्य, मूपू., (यारो कूडो कलियुग), ५२५०४-२(#) कवित्त संग्रह, क. गद्द, मा.गु., पद्य, जै.?, (पंडित वस्यौ कुंवास),५५३४२-२(2) कवित्त संग्रह, मा.गु., पद्य, जै., (--), ५४२४९-३(+) काक शुकन यंत्र, मा.गु., को., श्वे., (--), ५४४६४-७२(६) कागस्वरसकुन विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (ग्रामांतरि चालना), ५३७३८-३(-$) कान्हडकठियारा रास-शीयलविशे, मु. मानसागर, मा.गु., ढा. ९, वि. १७४६, पद्य, मूपू., (पारसनाथ प्रणमुंसदा), ५४८२५-४(+), ५४८६६(+), ५५०४६-२(+), ५३५४२, ५४६७०, ५३४०८(#S), ५४२३४(#) कायापुर पाटण का कागज, मा.गु., गद्य, श्वे., (स्वस्ति श्रीसिद्धसिल), ५५३४६-२(+#) कार्तिकशेठ पंचढालियो, ऋ. जैमल, मा.गु., ढा. ५, गा. ९१, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिध साधु सर्व), ५४४४०-३९(+), ५२१९५-१(-) कालभैरव मंत्र, मा.गु., गद्य, वै., (ॐ नमो कालभैरव कबरी), ५२७५७-२(+) काव्य/दुहा/कवित्त/पद्य, मा.गु., पद्य, ?, (--), ५२४६५-८(+), ५३५६३-४(+), ५४८६५-५(+), ५२८६७-४(#), ५३१२३-२(#), ५३९६६-३(#S), ५२३३१-४(-), ५२३७०-२(-2) कीर्तिध्वजराजा ढाल, मु. हीरालाल, पुहि., गा. ७४, वि. १९३१, पद्य, श्वे., (श्रीआदि जिनेश्वरू), ५२०५२, ५३४४३-१(#) कीर्तिध्वजराजा सज्झाय, मु. खिमा, मा.गु., ढा. २, गा. २८, पद्य, श्वे., (नगर अजोध्या रायजी), ५३९७०(#S) कीर्तिध्वजराजा सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (कीरतधज राजान सूरज), ५४४४०-८(+$) For Private and Personal Use Only Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ कीर्तिरत्नसूरि छंद, मु. अभयविलासजी, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सद्गुरु चरण नमो चित), ५२४२७-४(#) कीर्तिरत्नसूरि छंद, मु. जयकीर्ति, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (कीर्तिरतनसूरींदा), ५२४२७-३(#) कीर्तिरत्नसूरि स्तवन, मु. चंद्रकीर्ति, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (कीर्तिरत्नसूरिंद तणी), ५२४२७-१(#) कीर्तिरत्नसूरिस्तवन, मु. ललितकीर्ति, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (कीर्तिरत्नसूरि वंदीय), ५२४२७-२(#) कुंडरिकपुंडरिक चोढालियो, मा.गु., ढा. ४, गा. ८०, पद्य, मूपू., (आदिनाथ आदे नमी चोविस), ५४४४०-५९(+), ५४४२४-१(#) कुंथुजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (कुंथुजिन मनडु किमहि), ५३४३७-२(#) कुंथुजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (कठीन भगत की प्रीत), ५३९६०-६(+#) कुंथुजिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (कुंथु जिणेसर जाणज्यो), ५२६७६-२(#) कुंथुजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १४, वि. १८४१, पद्य, मूपू., (गजपुरी नगरी नामो), ५३६०६-२(#) कुंथुजिन स्तवन, मु. स्वरूपचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (कुंथुनाथ सत्तरमा जिन), ५४६१३-१४ कुगुरुपच्चीसी, मु. तेजपाल, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (जिनवर प्रणमी सदा), ५४४३३-११(+), ५३०२४-१ कुगुरु परिहार, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (तेने कुगुरु कान), ५२३६०(१) कुगुरु लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ५, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (तर्जु तनुं में उन), ५२७९४-२(#) कुतुहल परिहार गीत, मु. मेघराज ऋषि, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (हास्य कतुहल वाह्योजी), ५२६०१-१२(#) कुलच्छन सुलच्छन कवित, मु. केसवदास, पुहि., गा. २, पद्य, वै., (मानत हे गुरुदेव कुं), ५४२६५-२(#) कुलवधूसज्झाय, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सरसति सामनि करुरे), ५४४७९-५ कुसालचंदश्रावक प्रबंध, मु. उदयचंद, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ५३४९२(+#$) कृतकर्मराजर्षि चौपाई-तपोधिकार, उपा. कुशलधीर, मा.गु., ढा. २९, गा. ६३०, ग्रं. ९१७, वि. १७२८, पद्य, मूपू., (परम पुरुष परमेष्टि), ५५०५२(+#) कृपणता परिहार गीत, मु. खेमराज ऋषि, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (कृपण पणाथी बीहतो रे), ५२६०१-७(#) कृपणपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. २५, पद्य, स्था., (नित नित नरभव लह्यो), ५४४३३-६(+) कृष्ण पद, क. नरसिंह महेता, पुहिं., पद. ३, पद्य, वै., (गोविंदो प्राण हमारो), ५२७२०-३ कृष्ण पद, मीराबाई, पुहिं., पद. ५, पद्य, वै., (मिल बिछुरन की प्रीत), ५२७२०-२ कृष्ण पद, सूरदास, पुहिं., पद. ५, पद्य, वै., (अब मोहे पोढण द्यो), ५३५३९-१(+) कृष्णबलभद्र चोढालीयो, मा.गु., ढा. ४, गा. १२५, पद्य, मूपू., (नेमजीणंद समोसा), ५४४४०-६०(+), ५३३९६(5) कृष्णबलभद्र सज्झाय, मु. सारंगधर, मा.गु., गा. २०, पद्य, श्वे., (ब्रह्मा नाम युगादि), ५३९७५-३(#) कृष्णवासुदेव रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ५३५५२ केवलज्ञान कल्याणक महोत्सव स्तवन, मु. मुनिचंद्र, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (केवल ओछव इंद्र उलासे), ५३९७३-५(#) केवली परिसह नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (क्षुधा १ तृषा २ शीत), ५४३०५-४(+) केशीकुमार गौतमगणधर प्रश्नोत्तर, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ५५५३०($) केशीगणधर परदेशीराजा संवाद, मा.गु., गद्य, मूपू., (परदेसी राजा कहै छै), ५२२८९ केशी गौतमगणधर संवाद सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सीस जिणेसरपासना केशी), ५२६०१-२०(#) केशीगौतमगणधर सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (ए दोय गणधर प्रणमीये), ५४४४०-१२(+), ५४४४६-२३(+) कोणिकनृप सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (भंभसार सुत नृप हवे), ५४४२४-३(#$) कोशा स्थूलिभद्र सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, म्पू., (धन दीहाडौरे धन दीहा), ५३९४२-६(+) क्रोध परिहार गीत, मु. मेघराज ऋषि, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (क्रोध कषायइ बंध्यो), ५२६०१-५(#) क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (आदर जीव क्षमागुण), ५३०४०-१(+), ५३९१८(+#), ५२१३८, ५२३११, ५२५२८(#), ५३८६३-२() क्षमा सज्झाय, मु. खोडीदास, मा.गु., गा. १२, पद्य, स्था., (क्षमा करो क्रोध दूरे), ५४४२२-७(+$) क्षुधा सज्झाय, मु. शिवलाल, पुहि., गा. १२, पद्य, श्वे., (वेदना क्षुधा की भारी), ५२४३१-११(-) For Private and Personal Use Only Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ ५४५ क्षेत्रपाल गीत, खेतो, रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (हां रे लाला खेलण), ५३३४१-१(#) क्षेत्रपाल पूजा, मु. सोभाचंद, पुहिं., गा. १३, पद्य, मूपू., (जैन को उद्योत भैरु), ५२७०५-१(-) खंधककुमार चोढालीयो, मु. जेसंग ऋषि, मा.गु., ढा. ४, गा. २८, वि. १७५५, पद्य, श्वे., (गोतम गुणधर मनधुरु), ५४४४०-६१(+) खंधकमुनि चौढालिया, मु. जैमल ऋषि, रा., ढा. ४, वि. १८११, पद्य, स्था., (नमुं वीर सासनधणीजी), ५३६३२ खंधकमुनि चौढालियो, मु. संतोषराय, मा.गु., ढा. ४, वि. १८०५, पद्य, श्वे., (आदि सिद्ध नमोकार), ५३८५१-१(६), ५३६९१(-2) खंधकमुनि चौपाई, ग. दुर्गदास, मा.गु., ढा. ३, गा. ६६, वि. १६३५, पद्य, मूपू., (मुनिसुव्रत जिन वीसमउ), ५५०४६-४(+) खंधकमुनि सज्झाय, मु. जयसिंघ ऋषि, मा.गु., ढा. ४, गा. २८, वि. १७५५, पद्य, श्वे., (गौयम गणधर मन धरु), ५२९६९($), ५३०८१(६), ५३२९५(5) खंधकमुनि सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २०, पद्य, मूपू., (नमो नमो खंधक महामुनि), ५२१८० खंधकमुनिसज्झाय, मु. सबलदास ऋषि, पुहिं., गा. १२, वि. १८७६, पद्य, श्वे., (धन धन जगम खंधक मुनी), ५३९८६-२ खांमणा सज्झाय, पंन्या. ऋषभसागर, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (खामो इण विधि खामणा),५३९८९-४(2) खोडीदास निर्वाण भास, श्राव. फूलचंद हीराचंद, मा.गु., गा. ३१, वि. १६२८, पद्य, श्वे., (संघाडे सीरोमणी), ५२८८७(+#) गजसिंहकुमार रास, मु. मानविजय, मा.गु., ढा. ६४, वि. १८५३, पद्य, मूपू., (श्रीजिन चोविसे नमु), ५४५६५(+) गजसुकुमाल चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., ढा. ३०, गा. ५००, वि. १६९९, पद्य, मूपू., (नेमिसर जिनवरतणा चरण), ५५०८१(#$) गजसुकुमालमुनि रास, मु. शुभवर्द्धन शिष्य, मा.गु., गा. ९१, पद्य, भूपू., (देस सोरठ द्वारापुरी), ५२९०५-१(+#$), ५५३२९(+#) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. २४, वि. १८५८, पद्य, श्वे., (गजसुकुमाल देवकिरो), ५४४४६-५(+) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पं. नथमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (जिनवर आवंता मे सुण्य), ५३०६१-२ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. महिमासुंदर, मा.गु., गा. ९, वि. १८६५, पद्य, मूपू., (बचन सुणी वैरागीयो रे), ५२७९१-२(#) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. रतन, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (श्रीजिन आया हो सोरठ), ५२६५३ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. रामकृष्ण ऋषि, मा.गु., गा. ३४, वि. १८६४, पद्य, श्वे., (सोरठ देश में दुआरामत), ५४४४६-४(+) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (नयरी द्वारामती जाणिय), ५२०९४-१ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. सिंहसौभाग्य, मा.गु., गा. ५०, पद्य, मूपू., (सोरठ देश मझार), ५२११८(#) गढपण सज्झाय, मु. केशव कवियण, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (गढपण तुने केणे तेडिय), ५४४४६-२५(+) गणधरलब्धि विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (पढ० तीन पद तीर्थंकर), ५४४६४-३८ गणधरवंदन गहुंली, आ. दीपविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जीरे कामनी कहे सुणो), ५३६७७-१(#) गम्माशतक यंत्र-भगवतीसूत्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५५४८४(+#) गर्भावास सज्झाय, संघो, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (माता उदरि वस्यो दस), ५२९९९-१ गर्व बहोत्तरी, मु. ऋषभ ऋषि, रा., गा. ७७, वि. १९३३, पद्य, श्वे., (अरे गरवमति कर रे), ५४३८२(#) गांगेयभंग विचार, मा.गु., गा. ३१, पद्य, श्वे., (एतो सुत्र तणे अनूसार), ५४४८१ (२) गांगेयभंग विचार-बालावबोध, मा.गु., गद्य, श्वे., (अथ गांगीयाना भांगानी), ५४४८१ गाथा संग्रह-समस्यागर्भित, मा.गु., पद्य, (--), ५२८८५-३(+#$) गिरनारशत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सारो सोरठ देश देखाओ), ५२४५९-१(+), ५२६३६ २(+#), ५३१५६-२, ५५२४०-२१(-2) गुणकरंडकगुणावली रास-बुद्धिविषये, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. २६, गा. ४९३, वि. १७५१, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत अनंत गुण), ५४०४२(+), ५४०४४(+), ५४९४१(+) गुणमाला सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू., (सिद्ध अनंत वांदु भगव), ५४९७२-९(+-#) गुणस्थानक्रमारोहण विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम मिथ्यात्व गुण), ५२१३४-१(+) गुणावलि चौपाई, ग. गजकुशल, मा.गु., ढा. २९, गा. ५१९, वि. १७१४, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ पूरवे), ५४१७९(2) गुणावलि रास, मु. ज्ञानमेरु, मा.गु., ढा. १६, वि. १६७६, पद्य, मूपू., (प्रणमुचउवीसे जिनरा), ५५५४८ For Private and Personal Use Only Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५४६ गुरुगुण गहुली, मु. बोलत, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपु. ( आवो जईइ गुरू बांदवा), ५२२९७-४ गुरुगुण हुंली, मु. भूधर, पुहिं., गा. १३, पद्य, श्वे. (ते गुरु मेरे उर वसे), ५३२६४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ गुरुगुण गहुली, मु. लब्धि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (कुंकुमनो रोल करी), ५३५८२-२(#) गुरुगुण गीत, मा.गु. गा. २, पद्य, वे (सखिगुरुजी गमत ५४००७-१ " गुरुगुणपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २५, वि. १८४०, पद्य, स्था., (गुरु अमृत जेम लागे), ५४४३३-४(+), ५४४४०-२० (+) गुरुगुण भास, मु. अमर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीगुरु पद पंकजनी), ५२३१५-८(+) गुरुगुण भास, मु. शुभवीरविजय, मा.गु., गा. १३, वि. १८८४, पद्य, मूपू., (सुण रे सहेली रंग), ५२३१५-७(+) गुरुगुण सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे. (हां रे मारा स्वामी), ५३१८९-१ गुरु सज्झाच, ग. मानसागर, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ पूरवा सुरत), ५५२५२-११(००) गुरुवंदन के ८ स्थान, मा.गु., गद्य, मूपू., (पडिकमणु करतां १ ), ५४४६४-४८ गुरुवंदन निषेध समय, मा.गु., गद्य, म्पू, (विग्रह चित्ते गुरू), ५४४६४-४६ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गोत्रकर्मनाम सिद्ध आरती, जै. क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ६, पद्य, दि., ( ज्यौ कुम्हार छोटे बड), ५४६९८-३ गोराबादल चौपाई, आ. हेमरत्नसूरि, मा.गु. गा. ६१७ वि. १६४५, पद्य, मूपू (सुखसंपतिदायक सकल), ५५०५४००३) " 23 गोराबादल चौपाई, आ. हेमरत्नसूरि, मा.गु. गा. ९१७ वि. १६४७, पद्म, मृपू, (सुख संपत्ति दायक), ५४९४७ (+) गोराबादल रास, ग. लब्धिउदय, मा.गु., खं. ३ ढाल ३९, गा. ८१६, ग्रं. ११५७, वि. १७०७, पद्य, मूपू., (श्रीआदिसर प्रथम जिण), ५५२८८(०३) गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. १२४, वि. १५४५, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ पूरवे), ५४३५३(+) गौतमपृच्छा सज्झाय, मा.गु., गा. ३८, पद्य, मूपू., (गौतमस्वामी पृच्छा), ५४४३३-२३(+), ५२२४२-१ गीतमस्वामी अष्टक, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू (प्रह ऊठी गौतम प्रणमी), ५२९३५-१ गौतमस्वामी गहुली, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चरण करण गुण आगरो रे), ५२३१५-६ (+) गौतमस्वामी गहुली, मु. सुखसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सखी गूहली करो गुरु), ५३९७७(१) गौतमस्वामी गीत, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रह उठी नित प्रणमीय), ५२४२८-१ गौतमस्वामी गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (गौतम नाम जपो परभाते), ५३२०२ गौतमस्वामी चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (नमो गणधर नमो गणधर ), ५३४२०-५ गौतमस्वामी छंद, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ९. वि. १८वी, पद्य, भूपू (मात पृथ्वी सुत प्रात), ५२१२६-१ गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ९, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (वीरजिनेश्वर केरो शिष), ५२७९५-२(+#), ५३५१२-२, ५३७७१-१, ५४८५२-८, ५३४३७-१(१) ५३३५९/-) गौतमस्वामी पद, मु. हर्षचंद, पुहिं. गा. ५, पद्य, म्पू, (श्रीगौतम गणधार जप मन), ५३१५६-७ गौतमस्वामी प्रभाति, मु. रूपचंद, पुहिं. गा. ७, पद्य, मूपू., (मे नही जाण्वो नाथजी), ५२१८१-२ " गौतमस्वामी रास, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १४, वि. १८३४, पद्य, स्था., (गुण गाउ गौतम तणा), ५३९०५- ३(+), ५४४४०-५(+$), ५३०७८), ५२०६८) गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., ढा. ६, गा. ६६, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर चरणकमल कमल), ५३४३२(+), ५२२७३ (#$), ५३९५५-१(#) गीतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु गा. ६३, वि. १४१२, पद्य, मूपू (वीरजिणेसर चरणकमल कमल), ५२८५७/+३), ५५०९८१), ५५१०७(+१) ५२५४२(४३), ५३९३७-१(१), ५५३९५(४) , For Private and Personal Use Only गौतमस्वामी रास, उपा. समयराज, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (श्रीवीर जिणेसर वंदी), ५२९३५-२ गीतमस्वामी रास, मा.गु, गा. ४६, पद्य, मृपू, (वीर जिनेसर चरण कमल), ५३९८३(+) गौतमस्वामी विलाप गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, भूपू., (मुगति समउ जानी करी), ५२९२५-२ गौतमस्वामी सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (गौतमस्वामी पूछा करे), ५२४९१-१(+), ५२४३०-१() गीतमस्वामी स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु. गा. ७. वि. १८वी, पद्य, म्पू, (वीर मधुरी वाणी भाखे) ५३४२०-८ Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ ५४७ गौतमस्वामी स्तवन, मु. पुण्यउदय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (प्रभाते गोतम प्रणमी),५३९३७-२(#), ५३१७४-५(-) गौतमस्वामी स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १०, वि. १८२७, पद्य, स्था., (जंबूदिप दिपारे बिचम), ५४३८४-१०+#) गौतमस्वामी स्तवन, मु. वीर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पहेलो गणधर वीरनो रे), ५२२९२-३ गौतमस्वामी स्तवन, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (राजग्रही रलीयामणी), ५२३१५-५(+) गौतमस्वामी स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (इंद्रभूति अनुपम गुण), ५३४२०-६ गौतमस्वामी स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (गौतम नाम प्रभात जपो), ५४८५२-९ गौतमस्वामी स्तुति-प्रार्थना, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (कामधेन गो शब्दथी ते), ५३९५५-३(#) गौतमस्वामी स्तोत्र, ग. विजयशेखर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रीगौतम गुरु प्रभात), ५३९६६-२(#), ५२२९८(-2) ग्रहण विचार, मा.गु., गद्य, (जो आदित्यवारें ग्रहण), ५३७४४-३(#) घट्यादिफल विचार यंत्र, मा.गु., को., श्वे., (--), ५५०७८(+) चंदनबाला मृगावती केवलज्ञान सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (--), ५४३७९-१(+-$) चंदनबालासती रास, मु. ब्रह्मराय ऋषि, मा.गु., गा. ८३, पद्य, श्वे., (असुभ करम के हरणकुं), ५२७१९(+) चंदनबालासती रास, मा.गु., गा. १४९, पद्य, श्वे., (--), ५४९००(-#$) चंदनबालासती वेल, आ. अजितदेवसूरि, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (कौशंबी नयरी पधारीया), ५३४९१-१, ५२९५३-१(#) चंदनबालासती सज्झाय, श्राव. जेठा, मा.गु., गा.८, पद्य, श्वे., (आज काले अठम तप छे), ५३०६४-९(-) चंदनबालासती सज्झाय, मु. जेठा ऋषि, मा.गु., गा. ७, वि. १८३३, पद्य, श्वे., (दीसीपणे दुख देखती), ५२८७५(+#), ५३०२२-२ चंदनबालासती सज्झाय, मु. नारायण, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (आज अमारे आंगनडे सुकृ), ५३२३५-१(+$), ५३६०७-२ चंदनबालासती सज्झाय, मु. मयाचंद, रा., गा. १३, वि. १८२४, पद्य, श्वे., (प्रभु आज अमारे आंगणी), ५३०५८ चंदनबालासती सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (दीक्षा लइने वीरजिणेस), ५४४४६-१(+) चंदनमलयगिरी चौपाई, मा.गु., ढा. ८, गा. २७३, पद्य, मूपू., (जिनवर चरणे नमी गाईस), ५४२४०(+#) चंदनमलयागिरि रास, मु. भद्रसेन, पुहिं., अ. ५, गा. १९९, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीविक्रम), ५५३९९(+), ५५४५८(#) चंदनमलयागिरी चौपाई, उपा. सुमतिहस, मा.गु., ढा. १६, गा. २६५, वि. १७११, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीपूरण सदा), ५२९९६(+$) चंदराजा रास, मा.गु., ढा. ४३, पद्य, मूपू., (सुखदायक जिनवरु नामे), ५५५९० चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. तेजसिंघ ऋषि, मा.गु., ढा. २, गा. २१, पद्य, श्वे., (सद्गुरुने चरणे नमी), ५२९३८(६) चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सरसति सामिणि एम नमु), ५२४८३-१ चंद्रप्रभजिन पद, मु. जिनहससूरि शिष्य, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (चालो देखोरी त्रिभवन), ५३५०२-१(+#) चंद्रप्रभजिन पद, मु. राजनंदन, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (छबि चंद्राप्रभु की), ५२८०७-१३(#) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चंद्रप्रभु मुखचंद), ५३४२४-३(#) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (श्रीचंद्रप्रभु चितथी), ५३९६०-४(+#) चंद्रप्रभजिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सकल मंगल कलागुण नीलउ), ५२६९७ चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चंद्रप्रभुनी चाकरी), ५३७०१-२ चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु.स्वरूपचंद्र, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (चंद्रप्रभुजिनराज मन), ५४६१३-९ चंद्रबाहुजिन गीत, पुहिं., गा.५, पद्य, श्वे., (जोवे तुम्हारा आई उणद), ५२१४१-२(#) चंद्रराजागुणवती सवैया, मु. हीरालाल, पुहिं., सवै. ६, वि. १९३१, पद्य, स्था., (कुसुमपुरी को राज चनण), ५५५३६-४(+-) चंद्रराजागुणावलीराणी लेख, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ७४, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीमरुदेवीन), ५३४६४(#S) चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., उल्ला. ४ ढाल १०८, गा. २६७९, वि. १७८३, पद्य, मूपू., (प्रथम धराधव तीम), ५४००४(+), ५४५४५(+#$), ५३३२६(#$) चंद्रराजा रास, मु. विद्यारुचि, मा.गु., खं. ६ ढाल १०३, गा. २५०५, ग्रं. ३०५५, वि. १७१७, पद्य, मूपू., (श्रीजिननायक समरीई), ५४०६२(+#), ५४९२३(+#S), ५५५८४(#$) For Private and Personal Use Only Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५४८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २ चंद्रलेखा रास, मु, मतिकुशल, मा.गु. दा. २९, गा. ६२४, वि. १७२८, पद्य, मूपू (सरसति भगवति नमी करी), ५४२४५(१), ५४७२९(००) ५५०४६-५(१) ५४९६८) चक्रवर्ति ऋद्धि विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (छ खंड भरतक्षेत्र), ५४८०२-३(+) चक्रेश्वरीदेवी गरवो, आ. दीपविजय, मा.गु. गा. ९, पद्य, मृपू, (अलवेली रे चक्केसरी), ५२२०३(-) चक्रेश्वरीदेवी छंद - शत्रुंजयतीर्थ अधिष्ठात्री, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (मा चकेश्वरी सिद्धाचल), ५२५९०-३(-) चतुर्दशीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चौद सुपन सुचित हरि), ५३४१६-६ चतुर्विंशतिजिन छंद, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. २७, पद्य, भूपू (चोवीसें जिनवर तणा), ५३०४६(१६) चतुर्विंशतिजिन स्तवन, ग. कुमुदचंद्र, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., ( आदिहिं आदि जिणंद), ५२२४१ चतुर्विंशतिजिन स्तुति, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (रिसह जिणवर रिसह), ५३५१५-२ चतुष्कषाय भांगा भगवतीसूत्रे शतक - १ उद्देशक- ५, मा.गु., को. मृपू., (-), ५२२३४ चरणसित्तरीकरणसित्तरी सज्झाव, मु. सुजस, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पंच महाव्रत दशविधि), ५२२७१ चरणसित्तरी के ७० व करणसित्तरी के ७०बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (५ महाव्रत १० जतिधर्म), ५४४६४-९६ चवरी कालपट्ट दोहा, मु. हीर, मा.गु., दोहा. ८, पद्य, मूपू., (कालपट साहिने जाणी वर), ५४०१२-२ चित्तोडगढ गजल, क. खेताक यति, पुर्हि गा. ५७, वि. १७४८, पद्य, मूपू (चरण चतुरभुज पाईए चित), ५२३३९ "" चित्रसंभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. ३९, गा. ७४५, ग्रं. ११००, वि. १७३१, पद्य, मूपू., ( प्रथम नमुं परमेसरु), ५४८२५ १(+) " चित्रसंभूति सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू चित्रसंभूति सज्झाय, मु. राजहर्ष, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू " (चित्त कहे ब्रह्मराय), ५२२३८(१) (बांधव बोल मानो जी), ५२९५७-१(१६) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चित्रसेनपद्मावती चौपाई, उपा. रामविजय, मा.गु., गा. ४९१, वि. १८१४, पद्य, मूपू., (रिसहेसर पायकमल पणमिय), ५५४७४ (+) चित्रसेनपद्मावती रास, मु. कांतिसागर, मा.गु. दा. ४९, वि. १७५७, पद्य, मूपू (आदि जिनेसर आदिकर) ५४१५२-२(+) " चेलणारानी सज्झाय, मा.गु., पद्य, वे., (चेडाराजानी बेटी सात), ५४४४०-३३(+$) चेलणासती चौढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा. दा. ४, गा. ३७, वि. १८३३, पद्म, स्था., ( अवसर जो नर अटकलो ते), ५३६४४(+), . ५२२५८ ५३०९८.२) चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वीरे वखाणी राणी), ५२७९५-१ (+#), ५२८७०-५(+#), -५५२८३-२६(+), ५३२१९-१, ५२१४१-३०), ५२५४५-८(४), ५५२४०-४४९१ चैत्यपरिपाटी स्तवन- सुरतशहर, श्राव. लाधा शाह, मा.गु., डा. ५. वि. १७९३, पद्य, मूपू., (--), ५३१३९(३) चैत्यवंदनचौवीसी, मु. रूपविजय, मा.गु., चैत्यव. २५, गा. ७५, पद्य, मूपू., (प्रथम नमुं श्रीआदि), ५४२०९-१७ (+$), ५४०५९ चैत्री पूर्णिमापर्व देववंदन विधि, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, मूपू. (प्रथम प्रतिमा ४ माडी), ५४२१० चोर ज्ञान, मा.गु., गा. १, पद्य, (चोर अंक दस गुणे करी), ५४९७२-१७(+-#) चौपटखेल सज्झाय, आ. रत्नसागरसूरि, पुहिं., गा. २३, पद्य, मूपू., (प्रथम अशुभ मल झाटिके), ५२६६२-२ काय जन्ममरण थोकडा, मा.गु, गद्य, भूपू (श्रीगौतमस्वामी हाथ), ५५३६९-२(क) " छकाय बोल धोकडा, मा.गु., गद्य, स्था., (अंदी थावरकाय गंभी), ५५२७५-१(४) छावा प्रमाण, मा.गु., गद्य थे. (आसाढे मासे दुप्पया), ५४३२०-४(१) ५४२१३(+), ५४२२१(+), ५४५०६ (०३), ५५०३६-१(+) (+#$), जंबूद्वीप कलश बोल संग्रह, गु., गद्य, श्वे., (पहेले बोले जंबुद्वीप), ५२९३७ , जंबूस्वामी ५ भव सज्झाय, मु. राम, मा.गु., गा. ३३, पद्य, मूपू., (सारद प्रणमु हो के), ५२६९०-१ जंबूस्वामी गहुंली, पं. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सोल वरसें संयम लिओ), ५३६७७-२(#) जंबूस्वामी रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ढा. ३५, गा. ६०८, ग्रं. १०३५, वि. १७३८, पद्य, मूपू (प्रणमी पासजिणंदना), ', जंबूस्वामी सज्झाय, मु. कनक, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (पभणे रे जंबु सुण मो), ५२८०६-३ जंबूस्वामी सज्झाय, मु, गंग, मा.गु, डा. ४. गा. ४७, वि. १७६५, पद्य, वे (श्रीगुरु पदपंकज नमी), ५२९१४/०६), ५३०९८.१ (०६) For Private and Personal Use Only Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ जंबूस्वामी सज्झाय, मु. गुणसागर, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (श्रेणिक नरवर राजीयो), ५४१३२-४० (+#) जंबूस्वामी सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., ढा. ७, वि. १७५५, पद्य, मूपू., (जंबुस्वामि जोवन घर), ५२७७२($) जंबूस्वामी सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (राजग्रही नयरी वसे रे), ५४१३२-१४ (+#) जंबूस्वामी सज्झाय, मु. सिंहविमल, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (संजम लेवा संचरा रे), ५३३८३-२ जंबूस्वामी सज्झाच, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, म्पू.. (राजग्रही नगरी वसे), ५३९२१(७), ५२०८५-१(म जंबूस्वामी सज्झाय, रा. गा. २०, पद्य, भूपू (राजगृही नगरीरा वासी), ५३५०१ , जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रेणिक नरवर राजिओ), ५५१०८-३(+#$) जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, भूपू (सरसति सामीने बीन), ५२३८० जयसेन चौपाई - रात्रिभोजन विषये, वा. धर्मसमुद्र, मा.गु., गा. २५५, पद्य, मूपू., (प्रणमीस गोयम गणहरराय), ५५१६१-२(+#) जल माणसा अधिकार, मा.गु., गद्य, मूपू. (पनर भेदना परमाधामी), ५४४६४-४५ जसवंत गुरुगुण गीत, मा.गु., गा. ६, पद्य, भूपू., (श्रीजसवंत गुरुज्ञान), ५२८३५-२ शा जिनकुशलसूरि गीत, मु. राज, पुहिं., पद. ७, पद्य, श्वे., (कुशल गरीब निवाज गुरु), ५३१७६-१ जिनकुशलसूरि गीत, मु. राज, पुहिं., पद. ३, पद्य, खे, (तु है दाता मेरो जगत), ५३१७६-२ जिनकुशलसूरि गीत, उपा. समवसुंदर गणि, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., ( आयो आयो री समरंतो), ५३२८५-२(+-०३) जिनकुशलसूरि गीत, मु. हर्षकुंजर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सुहगुरु समरं सुख), ५३२३९ जिनकुशलसूरि छंद, मु. कविराज, मा.गु., गा. ५०, पद्य, मूपू., ( वदनकमल वाणी विमल), ५३७४१-२ जिनकुशलसूरि पद, मु. कनककीर्ति, पुहिं गा २, पद्य, भूपू जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. कुसल कवि, रा., गा. ६, पद्य, मूपू जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. केसरीचंद, मा.गु., गा. १२, वि. १९९७, पद्य, मूपू. (समरीये कुसलदादो गुरु), ५२७५०+) जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. विजयसिंह, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (समरुं माता सरसती), ५३५७३-१, ५२५१६(#) जिनगुण बिरदावलीबत्रीसी, मा.गु., गा. ३२, पद्य, श्वे., (जय संसार सागर सकल), ५२४७३ जिनचंद्रसूरि अष्टक, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं, गा. ८, पद्य, भूपू., (ए जुं संतन के मुख), ५३२४६-१(४) जिनचंद्रसूरि आलजा गीत, उपा. समवसुंदर गणि, मा.गु. गा. ११, पद्य, मूपू (आसू मास वलि आवीय), ५२८८२-२ (१०) जिनचंद्रसूरि गीत, मु. समयप्रमोद, मा.गु., गा. ५, वि. १६४९, पद्य, मूपू., (अकबर भूपति मानीयउ), ५२७९०-१(+) जिनचंद्रसूरिनिर्वाण रास, मु. समयप्रमोद, मा.गु. दा. ४, गा. ७०, पद्य, मूपू (गुणनिधान गुरु पाय), ५२८८२-१ (४०) जिनचंद्रसूरि भास, मु. शिवचंद्र, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू (भविजन बंदी हो गिरवा), ५२१६१-१ (संवत् इग्वार गुणोत्त), ५२०९९(३) " जिनदत्तसूरि गीत, मा.गु., पद्य, भूपू. जिनदत्तसूरि छंद, उपा. रुपपति, रा. गा. ३५, पद्य, भूपू (वरदायक हंसवाहनी सारद), ५३४४७(+) 3 "" (दादो दोलत दाता सुख), ५३३६९-३ (-) (हांजी कांइ अरज करें), ५३२६२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनदत्तसूरि स्तवन, मु. लाभउदय, रा., गा. ११, पद्य, मूपू., (सदगुरुजी तुम्हे ), ५३५७३-२, ५३८१८-१ जिनदर्शन पूजनफल स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सरसती देवी धरी मनरंग), ५२८१३-४(+#$) जिनपालजिनरक्षित चौडालियो, रा. डा. ४, गा. ६८, पद्य, म्पू., (अनंत चोवीसी आगे हुई), ५४४४०-१८(+), ५३७८३(५), , ५३९२८(#) जिनपालजिनरक्षित रास, मु. आनंदप्रमोद, मा.गु., गा. ७०, वि. १६२६, पद्य, मूपू., (सरसति मझ मति दिउ), ५३३६४(+) जिनपूजा स्तवन, मु. जयसागर मा.गु., गा. १०, पद्य, म्पू. (भवि जिन पूजा करजो), ५५३१३-४(१) " जिनप्रतिमा वंदन विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पंचमाहाकल्प छेद), ५३७६४(+) जिनप्रतिमा स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २१, पद्य, मूपू., (जिन जिन प्रतिमा वंदण), ५४६१२-३(+) (२) जिनप्रतिमा स्तवन- बालावबोध, मा.गु., गद्य, जै., (केतलाएक कुमती प्राण), ५४६१२-३(+) जिनप्रतिमा स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीजिनप्रतिमा हो), ५५२८३-१६(+#) जिनप्रतिमा स्तवन, पुहिं, गा. १०, पद्य, दि., (जिन प्रतिमा जिन सारख), ५३९५६-४ , जिन प्रतिमा स्वरूप गुणदोष विचार, मा.गु., गद्य, म्पू, (रोद्र प्रतिमा करावणह), ५४७९३-३ (+) For Private and Personal Use Only ५४९ Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५५० www.kobatirth.org + " देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ जिनप्रतिमाहुडि रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु. गा. ६७, वि. १७२५, पद्य, भूपू (सुयदेवी हीवडे धरी), ५२२५० (+5) जिनबल विचार, मा.गु. गा. १, पद्य, थे. (सुणो वीर्य बोलु), ५२९१०-१(०) ५२९१०-२(+), ५२९११-२(+४) (२) जिनबल विचार - टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (बार नरे मिली एक), ५२९१०-१(+#), ५२९१०-२(+#) जिनभक्तिमहिमा लोक, मा.गु, गा. २, पद्य, भूपू (भावे जिनवर पूजीऐ भाव), ५४१३४-१४(+०) जिन भवन १० जघन्य आशातना विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (तंबोल१ पाण२ भोयण३), ५३१७०-२ जिनमंदिरदर्शनफल चैत्यवंदन, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू (प्रणमी श्रीगुरुराज), ५३१८६ जिनमंदिर दोष निवारण स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु, गा. ७, पद्य, मूपू (करि निसिही देहरामांह), ५५५५३-५ला जिनमार्ग प्रभावक सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (जीनमारग मै धुरसू), ५२६७९-१(#) जिनलब्धिसूरि गहुंली, मु. हर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (गुहली करो गुरु आगल), ५३१५९-४(+) जिनलब्धिसूरि गीत, पुहिं, गा. ३, पद्य, मूपू (सारा तो सिंघनि हो), ५३१५९-५ (+) " जिनलब्धिसूरि देशना, मु. लावण्यकमल, पुहिं., गा. ८, पद्य, मूपू., (गुणनिध लब्धिचंद), ५३१५९-३(+) जिनलब्धिसूरि भास, मु. साधु, पुहिं. गा. १६. वि. १९०२, पद्य, भूपू (सरसत सांमण सहिया), ५३१५९-२(+) जिनलब्धिसूरि भास, मा.गु., गा. १५, वि. १९०३, पद्य, मूपू. (जिनलब्धिसुरीसरू रे), ५३१५९-७(+) निलब्धिसूरि वधावो, मु. लालचंद, पुहिं. गा. ८, पद्य, मूपू., (सारा श्रीसंघनी हो), ५३१५९-१(+) जिनवाणी सज्झाय, मु. सेरूराम, पुहिं. गा. १२, पद्य, वे (श्रीजिनवानी को पड लय), ५२४२३ जिनेंद्रसूरि सज्झाय, मु. वल्लभसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आज गच्छराज महाराज), ५३००४-१(#) " ! जीव आयुष्यविचार सज्झाय, मु. भावसागर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (गुरु चरण कमल प्रणमीन), ५२५९२-१(+) जीवदया पालन सज्झाय, मु. ब्रह्म, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (जीवदया पालउ खरी बोलउ), ५२१५८-२(+) जीवदया सज्झाय, मु. सोमसुंदरसूरि - शिष्य, मा.गु., गा. १५. वि. १६वी, पद्य, मूपू. (गोवम गणहर पय पणमेवि), ५२९२३(१) जीवदया सवैया, मु. कृपाराम, पुहिं., गा. २६, वि. १९३२, पद्य, श्वे., (चोथे आरे केरा वृसतीन), ५२०५१-१(#) जीवहिंसाफल पद, मु. द्यानत, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (चेतन मानी ले सारी), ५३२४३-९(#) जीवहित सज्झाय - गर्भावासगर्भित, मु. क्षमाविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (गरभावासमे चिंतवइ है), ५४१३२-४७(+#), ५३०७२/०३) जैनकाव्य संग्रह, मा.गु., पद्य, वे (--), ५३१०७-१(३) "" ५२६६२-३ जीवोत्पत्तिकारण सज्झाय, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (उतपति जोइनइ आपणी), ५२४४८-३(#) जुगटपचीसी, मु. खोडीदास, मा.गु., गा. २५, वि. १९१६, पद्य, मूपू., (खेल छबीला रे सुणजी), ५४४२२-२(+) जुठातपसी सज्झाय, श्राव. वसतो शाह, मा.गु. गा. ९०, वि. १८३६, पद्य, स्था. (प्रथम समरं वितराग), ५४४४०-५८(+), " " जैनयंत्र संग्रह (कोष्ठक), मा.गु., यं., मूपू., (--), ५३७०८-३ (+), ५४७८५-१(+), ५४९६० जोबनपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २५, वि. १८४०, पद्य, स्था., (पुन जोग नर भव लहो), ५४४३३-३(+) ज्ञान गरबो, मु. भूधर, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (आदिशकति आस्युं नोरतै), ५४४७९-७ ज्ञानपंचमीतपउद्यापन विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (बिंब ५ पुस्तक ५ झलमल), ५५३४०-२ (+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्ञानपंचमीपर्व पूजा, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., ढा. ११, वि. १८८७, पद्य, मूपू., (सकल कुशल कमलावली), ५३४३५($) ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन- बृहत् उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., डा. ३, गा. २५, पद्य, म्पू, (प्रणमुं श्रीगुरुपाय), ५५०८७ ६(+), ५५५५३-३(+०), ५२३३८-१, ५३३५६, ५२३५५(१३) ५३६६३(१), ५२४८०(३), ५२५४०-१(5) 7 ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, मु. अमृत, मा.गु., गा. ११, पद्य, भूपू. (अनंतसिद्धने करु), ५३६३३ " ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सद्गुरुना प्रणमुं), ५४१८३-४(+#) ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, मु. महानंद, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (--), ५३१२६-१($) ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., डा. ५, गा. १६, पद्य, मूपू., ( श्रीवासुपूज्य जिणेसर), ५४१८३-३(००), ५४२७६-२(+), ५३३८५-१ For Private and Personal Use Only Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. कांतिसुंदर, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीगुरुचरणे नमी करी), ५५२५६-१(+#) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., डा. ६, गा. ४९, पद्य, भूपू (प्रणमी पास जिणेसर), ५३६३७(+), ५४१८३-१(००), ५२२८२, ५३४७७(१६), ५३७४४-१(०), ५४०५५-३(क) ५४५५९-१२(क ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ६८, वि. १७९३, पद्य, मूपू., (सुत सिद्धारथ भूपनो), ५३५०५ (+#), ५२२५३ ($) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (प्रणमो पंचमी दिवसे), ५३५३४-१ ! ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन- लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पंचमीतप तुमे करो रे), ५४१८३-२(+#), ५५०८७-७(+), ५३४६८-१ ज्योतिषगणित कोष्टक, अज्ञा., को., (ब्रह्म पक्षे गुणा), ५४४६४-७३ ज्योतिषयंत्र संग्रह, मा.गु.. को.. (--). ५४२८६ १५१) ज्योतिष श्लोक, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १, पद्य, जे.? (पंचम प्रवीण वार), ५४८९७- १०() ५५५५३-४(०९), ५३२६९-१, ५३२४३-७(१) ज्ञानपच्चीशी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २५, वि. १८३५, पद्य, स्था., (आदि अनादिनो जीवडो), ५४४३३-९(+) ज्ञानपच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. २५, वि. १७वी, पद्य, दि., (सुरनर तिर्यग जग जोनि), ५३६५२-१ (+), ५४४३३-१६(+), ५५१ ज्योतिष संग्रह, मा.गु, प+ग, (समि आरा विस्वा), ५४०५७-२(+) ज्वर छंद, मु. कांति, मा.गु., गा. १६, पद्य, भूपू (ॐ नमो आनंदपुर अजयपाल), ५३७१६ झांझरियामुनि सज्झाच, मु. भावरत्न, मा.गु, डा. ४, गा. ४३, वि. १७५६, पद्य, म्पू., (सरसति चरणे शीश नमावी), ५४१३२-३ (+४), ५५२५६-१३(०५), ५२३२६.१(३) टाकरिया पच्चीसी, मा.गु., गा. २५, पद्य, श्वे., (लांबा जुहार करे), ५४४३३-१५ (+) ढंढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (ढंढणऋषिने वंदणा), ५४४४६ -१७ (+), ५५२८३-२३(+#), ५३९७६($) ढणऋषि सज्झाय, मु. प्रेम, मा.गु., गा. २१, पद्य, वे (प्रथम जिनेशर वांदिने), ५३३१३-१(१) "" ढणऋषि सज्झाय, मा.गु, गा. ९, पद्य, मूपू (क्रसन नरसर पुछीयो जी), ५३९८० ढाई विचार, मा.गु., गद्य, श्वे. (खंडा ८ हजार ५५०), ५२६३१-३(#) " ढालमंजरी, मु. सुज्ञानसागर, मा.गु., खं. ६. वि. १८२२, पद्य, मृपू., (मंगल सहजानंद सुख), ५४२०५ (+), ५४२७३ (६) ढुंढकपच्चीसी स्थानकवासीमत निरसन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपु. ( श्रीश्रुतदेवी प्रणमी), ५२५०७, ५२२०१(४) ढुंढक रास, मु. अविचल, मा.गु., गा. १०८, पद्य, श्वे., (सरसति मात मया करी आप), ५३३०३ (+#), ५४१८२-१(#) ढुंढक सज्झाय, मा.गु., गा. १७, पद्य, श्वे., (गढ़ जालंधर विचें), ५४१८२-२ (#) ५४९४०) तत्त्व संग्रह, मा.गु, गद्य, श्वे. (एक वर्ण बीजो गंध), ५५३४५-११(०) तप विचार, मा.गु., गद्य, भूपू. (तप चोविहार करी), ५४१६१-२००३) ', ढोलामारवणी दुहा, मा.गु., पद्य, श्वे., (दीधावागा सावटू कोडी), ५३७२७($) ढोलामारु चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. ७००, वि. १६७७, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर सामिनी), ५४१०३(+#), ५५३७३(+#), तप सज्झाय, ऋ. आसकर्ण, रा. गा. १४, पद्य, थे. (तप बडो रे संसार मे), ५३१४८) " तप सज्झाय, मु. उदवरन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मृपू., (कीधा कर्म नीकंदवा रे), ५४१३२-३५ (+), ५२४३३(१) तस्करपच्चीशी सज्झाय, मु. खोडीदास, मा.गु., गा. २५, वि. १९९६, पद्य, स्था., (चोरी चित्तना धरो नर), ५४४२२-४(+) For Private and Personal Use Only तुंगीया श्रावक सज्झाय, मु. कनिराम, मा.गु., गा. १६, वि. १९९७, पद्य, श्वे. (श्रावक तुंगीया तणा), ५२४३१-३) तेतलीपुत्र चौढालिया, मु. जेमल ऋषि, मा.गु. दा. ४, गा. १६३. वि. १८२५, पद्य, वे (अरिहंत सिधन आयरिया), ५४४४०-५६) तेरापंथ आचार विचार संबंधि चर्चा, मु. दलपतराय, रा., वि. १८२४, गद्य, ते., (तथा केतलाइकनि सरदा), ५२८१८(#) तेरापंथी सज्झाय, मा.गु., गा. ६५, पद्य, श्वे., (आदिजीन आदे नमी चउवेस), ५४४४०-४२(+) त्रिकालभाव वंदना, मा.गु, पद. १, पद्य, भूपू (पढो मंत्र नवकार ताप), ५३८२३-२(५), ५५०९६-३ Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ त्रिभुवन शास्वतजिनचैत्यपरिपाटीस्तवन, आ. सोमदेवसूरि, मा.गु., गा. १०४, पद्य, मूपू., (भावसहित प्रणमी जिन), ५५३३७(+#) त्रिशलामाता १४ स्वप्न पूजा, मा.गु., पूजा. १४, प+ग., पू., (वर्तमान जिनवर नमु), ५२६५६-२(+) थावच्चाकुमार चोढालीयो, मु. हर्ष, मा.गु., ढा. ४, गा. ५६, वि. १७९५, पद्य, श्वे., (द्वारामती नयरी वसो), ५५३१९-२ थावच्चाकुमार चौढालिया, मु. तेजसिंह, मा.गु., ढा. ४, पद्य, श्वे., (सरसति चरणकमल नमी), ५५३१९-१(६) थावच्चापुत्र सज्झाय, मु. तेजमुनि, मा.गु., ढा. ३, गा. २१, पद्य, श्वे., (श्रीजिन नेम समोसा), ५२८३३(#) थिरप्रद लेख, मु. सायधण, मा.गु., ढा. ४, गा. ६५, वि. १७३६, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसुख संपत), ५३३६५-१ दंडकपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २५, वि. १८३६, पद्य, स्था., (दंडक चोविसमां जीव), ५४४३३-५(+) दत्तजिन स्तवन, मु. देवचंद्रजी, मा.गु., गा. १३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जिन सेवनथें पाइएहो), ५३४४५-१(+$) दत्त वासुदेव कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (कासीदिशि अग्निशिखर), ५४८५३-५(+#) दयाछत्रीसी, मु. चिदानंदजी, पुहिं., गा. ३६, वि. १९०५, पद्य, मूपू., (चरणकमल गुरूदेव के), ५३४४९ दयाछत्रीसी, मु. साधुरंग, मा.गु., गा. ३६, वि. १६८५, पद्य, मूपू., (दयाधर्म मोटो जिन), ५२६०२-४(#) दयापच्चीसी, मु. विवेकचंद, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सयल तीर्थंकर करु रे), ५२३१६(+), ५४४३३-२४(+), ५४०५५-९(#$), ५५३१३-६(#), ५२९६२(६), ५३४६९-१(-#) दशार्णभद्रराजर्षि कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (दशार्णनामा देशने), ५४८५३-२(+#) दशार्णभद्रराजा सवैया, मु. हीरालाल, मा.गु., सवै. ४, वि. १९३८, पद्य, स्था., (विचरत विचरत आया श्री), ५५५३६-२(+-) दशार्णभद्र सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सारद बुधदाइ सेवक), ५२९०६-८(+#$), ५३५७५-२, ५२५३६ १(#), ५५१५१-१२(#), ५५३१३-१(#), ५३१७४-३(-) दसोटण विधि, मा.गु., गद्य, श्वे., (मांड्यो उतंग तोरण), ५३५४१(#) दान के १० प्रकार विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (अणुकंपा दाणे कृपण), ५४४६४-५७ दानशीलतपभावना प्रभाति, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (रे जीव जिन धरम कीजीय), ५३३१४ १), ५३६८९-१(+),५४३८४-७(+#), ५५२८३-७(+#), ५२७३७-२ दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ४, गा. १०१, ग्रं. १३५, वि. १६६२, पद्य, मूपू., (प्रथम जिनेसर पाय), ५२१४६(+), ५३३२०(+#$), ५४७६०(+#$), ५४८२५-५(+), ५४९५३-२(+), ५५२५६-१२(+#$), ५५४०१(+), ५३२२३, ५३६९७(#$), ५३७००(#$), ५३९६३-१(#) दानशीलतपभावना सज्झाय, क. आसो, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सासननायक वीनवु लागु), ५२५५०-२(#) दानशीलतपभावना सज्झाय, मु. जयैतादास, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (दान एक मन देह जीवडे), ५२४१५(-$) दानशीलतपभावना सज्झाय, मु. लावण्यसमय , मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सरसति सामिणी विनवू), ५५२४०-१(-2) दानशीलतपभावना सज्झाय, पुहिं., गा.७, पद्य, श्वे., (कर ले मनी उस दिन की), ५२४१६-२(-#) दान सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., गा.६, पद्य, मूपू., (रसीया राचौ दान तणे), ५२३८१ दामोदरजिन स्तवन, मु. देवचंद्रजी, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुप्रतीते हो करि थिर), ५३४४५-२(+) दिक्पट ८४ बोल, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १६१, पद्य, मूपू., (सुगुण ज्ञान शुभध्यान), ५२२१९-१(+) दीपावलीपर्व चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (दुःखहरणी दीपालिका रे), ५३४२०-९ दीपावलीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वीरजिनवर वीरजिनवर), ५४३१९(+#), ५३४२०-१ दीपावलीपर्व सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २०, वि. १८४५, पद्य, स्था., (पुर्व दिसे हुइ पावा), ५२९०६-५(+#) दीपावलीपर्व सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. ३७, वि. १८५८, पद्य, श्वे., (भविया प्रथम जिणेसर), ५३०३२(5) दीपावलीपर्व स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मारे दीवाली थई आज), ५३६७७-३(#$) दीपावलीपर्व स्तुति, मु. भालतिलक, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (जयजय कर मंगलदीपक), ५२४९०-५(2) दीपावलीपर्व स्तुति, मु. रत्नविमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सासननायक श्रीमहावीर), ५३७६६, ५४२४४-२(#) दुख विपाकीया जीव के नाम मातापिता नगरादि विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (मृगालोढीयो १ मृगा), ५४४६४-७१(६) For Private and Personal Use Only Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ ५५३ दूहा संग्रह , पुहि.,मा.गु., पद्य, जै.?, (गांमंतरं घर गोरडी), ५५००५-२(+#), ५२३३०-२,५४४६४-७४ देवकी ढाल, मा.गु., ढा. १४, पद्य, मूपू., (रिष्टनेमी नामे हुवा), ५२८७९-१(+#) देवताओं के ५ द्वार बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (पेहेलो नाम द्वार), ५३०५७(#) देवदत्ता पंचढालियो, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., ढा. ५, वि. १८२५, पद्य, श्वे., (--), ५४४४०-३४(+$) देवलोक देहमान-आयुमान, मा.गु., गद्य, मपू., (सौधर्मदेवलोक सात), ५२८०५-१(#) देवलोक विमानविचार संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (देव दीवे एगो दो नागु), ५३००९-३ देववंदन विधि, गु.,मा.गु., प+ग., मूपू., (जयजय नाभिनरिंद नंद), ५३१३२-१ देवसिप्रतिक्रमणविधि, मा.गु., प+ग., मूपू., (प्रथम इरियावही पडिकम), ५४३०७-१ देवादिगति आयुष्यबंध विचार बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (अल्प कषाइ १ विणवेग), ५४४६४-८९ देवादिचतुर्गति आगत जीवलक्षण, मा.गु., गद्य, मपू., (देवता माहेथि आव्याना), ५४४६४-४१ देवानंदा सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, रा., गा. ७, पद्य, श्वे., (दरसण आव हो देवानंदा), ५४४४६-९(+$) देवानंदा सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहि., गा. १२, पद्य, मूपू., (जिनवर रूप देखी मन), ५४१३२-५२(+#), ५२२६७-३, ५३१९३-२ देवेंद्रसूरि गच्छाधिपतिपदप्रदान गीत, पं. माणिक्यविजय, मा.गु., गा. ९, वि. १८८४, पद्य, मूपू., (आज शीरताज गछराज भले), ५२५४७-२(#) देवेंद्रसूरि गुण गहुली, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जगवल्लभ जगपुज्य भवि), ५२५४७-३(2) देशी विचार, मा.गु., गद्य, जै.?, (--), ५४०७३-३(+#$) दोहा संग्रह, पुहिं., पद्य, (ओस ओस सबको कहें मरम), ५३६६४-२,५३८९४-२, ५३५२९-२(#) दोहा संग्रह, मा.गु., पद्य, (सजन तोरा गुण धणा), ५२७५१-३(+-), ५२९८१-२(+#), ५२३७२-३, ५३६११-३, ५२१९८-३(#), ५३२४६-२(#s), ५२९७४-३($), ५२७७८-३(-5) दोहा संग्रह जैनधार्मिक, पुहिं.,मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (अष्टापद श्रीआदजिनवर), ५२३४७(+), ५२६९२-२(+), ५२३३०-३, ५५४५७-७(#) द्रव्यगुणपर्याय रास, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. १७, गा. ३८४, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (श्रीगुरु जितविजय मन), ५४१३८(+) (२) द्रव्यगुणपर्याय रास-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (इहमुचित पदार्थोल्लाप), ५४१३८(+) द्रौपदीसती चौपाई, वा. कनककीर्ति, मा.गु., ढा. ३९, गा. १११७, वि. १६९३, पद्य, मूपू., (पुरिसादाणी पासजिण), ५४३७५(+#), ५४७३१-१(+#), ५३४८३(#S), ५४०५६(2) द्रौपदीसती रास, मु. जैमल ऋषि, मागु., ढा. ९, पद्य, स्था., (नमुवीर सासण धणी), ५५४५५(+#) द्रौपदीसती सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (साधुजीने तुंबडु), ५३९८८ द्वारिकानगरी ऋद्धिवर्णन सज्झाय, मु. जयमल, मा.गु., गा. ३२, पद्य, श्वे., (बावीसमा श्रीनेमिजिण), ५३६४८(5) द्वारिकानगरी विस्तार, मा.गु., ढा. १२, पद्य, मूपू., (बावीसमा श्रीनेमजिणंद), ५४८१९(+) द्वारिकानगरी सज्झाय, मु. विनयविजय, मा.गु., ढा. १, गा. २४, पद्य, मूपू., (दोनुबंधवा रडे दुःख), ५३०६६) द्वारिकानगरी सज्झाय, मा.गु., ढा. १, गा. २२, पद्य, श्वे., (धेनु बंधवा रडे दुःख), ५३०१६-२(5) धन महिमा कवित्त, पुहिं., दोहा. १, पद्य, वै., (दांमहि ते आदर वडाई), ५४९७२-४२(+-#) धन्नाअणगार चौपाई, मु. सबलदास, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ५५०९१(+$) धन्नाअणगार सज्झाय, मु. अमरविजय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (वीर वचन चित्तधारी), ५३५५७-८ धन्नाअणगार सज्झाय, मु. ठाकुरसी, मा.गु., गा. २२, पद्य, श्वे., (जिनवाणीरे धना अमीय), ५२९१७(#) धन्नाअणगार सज्झाय, मु. परमोसुदजी, मागु., गा. २८, पद्य, श्वे., (एक दिन वीरवाणी सुणी), ५२३८३(-5) धन्नाअणगार सज्झाय, मु. श्रीदेव, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (जिनवचने वयरागी हो), ५३१२७(+), ५३५४९-३(+), ५४१३२ ५०(+#), ५२०८१-२,५३२३३-१,५३६५८(-2) For Private and Personal Use Only Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५५४ www.kobatirth.org भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ अन्नाऋषि सज्झाय, मा.गु, गा. ३१, पद्य, भूपू (सुभद्रा कहे धन्ना), ५३२६३-१ धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. तिलोकसी, मा.गु., गा. २२, पद्य, क्षे. (श्रीजिनवाणी रे धन्ना), ५२१४०-३(+), ५३३२४-२(क) धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. विद्याकीर्ति, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (धन धन्नो ऋषि वंदीयै), ५५२८३-२८(+#), ५३२५२-२, ५३८७६२,५२५४५-१(१६) धन्नाशालिभद्र चौपाई, मु. चेतनविजय, मा.गु., गा. १८१४, वि. १८६७, पद्य, मूपू., (चरनकमल श्रीवीर के), ५४२८१(७) धन्नाशालिभद्र रास, मु. जिनविजय, मा.गु., खं. ४ ढाल ८५, गा. २२४२, ग्रं. २५००, वि. १७९९, पद्य, मूपू., (ऐंद्रश्रेणि नत क्रम), ५४२८५ (#) धन्नाशालिभद्र संबंध, मा.गु., गद्य, मूपू., (राजगृहि नगरी श्रे), ५४५७९(३) अन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, भूपू (अजीया जोरावर कारमी), ५२३७९ (#) " धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (धरमीना सेठने रमणी आठ), ५४३७९-२(+) धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मा.गु., गा. २८, पद्य, भूपू.. (-), ५२३३३(5) धन्नासालिभद्र भास, आ. हर्षसागरसूरि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (नरपति नारि प्रतिइं), ५३९१३-१ धन्नासेठ रास, मा.गु., पद्य, श्वे., ( भरतमान भरत खरो), ५२१८८-२(-#$) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धम्मल रास, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., गा. २८२, वि. १५९१, पद्य, मूपू., (सरसति मुझ मति दिओ), ५४८११(#) धर्मकथा के अधन, मा.गु., गद्य, वे., ( चमर इंद्रनी देवी ५ ), ५४४६४-१० धर्मजिन स्तवन, पंडित, खीमाविजय, पुहिं. गा. ५, पद्य, मूपू., ( इक सुणली नाथ अरज), ५३२१८-१(क) धर्मजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धर्म जिणेसर धर्म), ५४९७२-७२(+#) धर्मजिन स्तवन, मु. महानंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (हो जिनवरजि भवसागर), ५३१२६-२ धर्मजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (हां रे मारे धरमजिणंद), ५३६८०-२(+), ५३४८२, ५४५०४-१७(#$), ५२१६१.२(६) धर्मजिन स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १९ वी, पद्य, मूपू., (एम करीये रे नेडो एम), ५२४२२ ( ) धर्मजिन स्तवन- आत्मज्ञानप्रकाश, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. १३८, वि. १७१६, पद्य, मूपू. (चिदानंद चित चिंत), ५४२०७ ३(०), ५३९५४-१(३) धर्मदत्तधनवती चौपाई, मु. कुशलहर्ष, मा.गु., खं. २ ढाल ३२, वि. १७८८, पद्य, श्वे., ( प्रथम नमू चोवीस जिन), ५४६०८(+#$) धर्म पालन के १८ प्रकार, मा.गु., गद्य, मूपू., (लजा थकी धर्म पाडै), ५४४६४-२६ धर्मरुचि अणगार सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. ११, पद्य, थे. (धर्मरुचि मुनिवर भणी), ५४४४६ ३७(+) " धर्मरुचिअनगार सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (अतुल सुखमां उपना), ५४४४६-३८(+) धर्म सगाई दूहा, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., ( धरम सगो संसार मै अवर), ५४८५२-४ (धर्म वडो संसार चउगती), ५२१९९-१ धर्म सवैया, मु. ब्रह्मज्ञान सागर, मा.गु., गा. ११, पद्य, दि. ध्यानबत्रीसी, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., गा. ३६, वि. १७वी, पद्य, दि., (ग्यान सरूप अनंतगुन), ५३६५२-३ (+), ५३४६८-३ ध्यानस्वरूपनिरूपण प्रबंध, मु. भावविजय, मा.गु. दा. ९, गा. १६३, वि. १६९६, पद्य, भूपू (सकल जिणेसर पाय वंदे), ५४१७४ , + १(५) नंदकुमार सज्झाय, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे. (जंबूद्वीपे रे भरत), ५३५४३ (०) नंदनशेठ चौढालिया, मु. शोभाराम ऋषि, रा., ढा. ४, गा. ७०, वि. १९०२, पद्य, वे., (श्रीजिनराज प्रणाम कर), ५३५२४ नंदमणिआर सज्झाय, ग. लाभविजय, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (वंदन देव गुरुनि करुं), ५३५३५-३ नंदिषेणमुनि चौढालिया, मु. पूर्णमुनि, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (सारद पाय प्रणमी करी), ५३७३२-१($) नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. जिनराज, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (साधुजी न जइए रे परघर ), ५२१९२-१ नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. १६, पद्य, मूपू., (राजगृही नयरीनो वासी), ५३३८४-३(+$), ५४१३२-२७(+#), ५५२४०-४२(#) नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (रहो रहो रहो वालहा), ५५२४०-४३(७) For Private and Personal Use Only Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ नंदीश्वरद्वीप स्तवन, मु. जैनचंद्र, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (नंदीसर बावन जिनालये), ५३४५३-१(#) नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. १८, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (वंछित० श्रीजिनशासन), ५२६२२-२(+$), ५३८२३-१(+), ५५२५६-२(+#), ५३९८४, ५२९०९-२(#$), ५२९४७($), ५३०७६(६), ५३७७०(६) नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सुखकारण भवियण समरो), ५२७९५-३(+#), ५३९४३ २(+#), ५२४७४-१, ५४८५२-१७, ५३४४४(#), ५३५९०-१(#), ५३९०३-३(#$) नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., गा. १३, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (किं कप्पतरु रे आयाण), ५२८४३(+), ५३३५८(+), ५३८९८-२, ५३४८७() नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (पहिलो लीजि), ५३०९४-१(+#), ५२६१८, ५२१६४(#) नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (समर रे जीव नवकार नित), ५४१३२-३२(+#), ५५१५१-७(#) नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (कहेजो चतुर नर एकोण), ५२६६२-१, ५२९०८, ५३८७०-२ नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (बार जपुंअरिहंतना), ५२५१८-१, ५२६३४, ५३७११-५(#) नमस्कार महामंत्र स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १३, पद्य, स्था., (प्रथम श्रीअरिहंतदेवा), ५४५०४-२२(#) नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, मु. पद्मराज, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीनवकार जपो मनरंग), ५४३८४-६(+#) नमिराजर्षि ढाल, ऋ. आसकर्ण, मा.गु., ढा. ७, वि. १८३९, पद्य, श्वे., (सासणनायक समरीये), ५२८९६-१(+#), ५२१८९, ५३१८१, ५३५३१ नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.८, पद्य, मपू., (जी हो मिथीला नगरीनो), ५४४४६-२६(+) नमिराजा कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (इण जंबुद्वीपे भरतखेत), ५३५८८(६) नय प्रमाण का थोकडा, मा.गु., गद्य, मूपू., (नय सात निक्षेपचार), ५५३६९-१३(+#) नरक चौढालिया, मु. गुणसागर, मा.गु., ढा. ४, गा. ३१, पद्य, मूपू., (आदिजिणंद जुहारीयइ मन), ५५१०८-२(+#), ५३३०८-२(2), ५५१५१-६(2) नरक यातना भेद बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ अननी पेरे राधे), ५३००९-२ नरभव सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (पुर्व सुकृत पुन करिन), ५४४४६-३१(+) नर्मदासुंदरी रास-शीलव्रतविषये, मु. मोहनविजय, मा.गु., ढा. ६३, गा. १४५४, ग्रं. १४६६, वि. १७५४, पद्य, मूपू., (प्रभुचरणांबुजरजतणी), ५४५७०(+) नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. ६ ढाल ३९, गा. ९३१, ग्रं. १३५०, वि. १६७३, पद्य, मूपू., (सीमंधरस्वामी प्रमुख), ५४०४५(+), ५४४५०(+), ५४९४३(+#$), ५५२६२(+#), ५४७२०(#) नवअंगपूजा दुहा, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (जल भरी संपुट पत्रमा), ५४१३२-४(+#), ५२९७५ नवकारगुण चौपाई, उपा. राजसोम पाठक, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (नवकारवाली मणियडा), ५३५४४-१(#) नवकार मंत्र गीत, पुहिं., गा.५, पद्य, म्पू., (मंत्र जपो नवकार), ५२७९२-१ नवकारमंत्र सज्झाय, मु. आनंदहर्ष, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (श्रीनवकार महिमा घणो), ५३०५९(#), ५४४२४-२(#) नवकारवाली सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (नोकारवाली वंदीइ चिर), ५२५३६-२(#) नवकार सज्झाय, मु. दुर्गादास, रा., गा. १४, वि. १८३१, पद्य, श्वे., (अरिहंत पहले पद जानी), ५३२६७-१(+$), ५४५०४-२१(#) नवग्रह स्तवन-जिननाम गर्भित, मु. दानविनय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (जिननाम जाप जप्या), ५३२१३(+#) नवतत्त्व चौपाई, मु. वरसिंह ऋषि, मा.गु., गा. १३५, वि. १७६६, पद्य, स्था., (पास जिनेसर प्रणमी), ५४६६२(#) नवतत्त्व थोकड़ो, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवे विवेकी सम्यक्त्व), ५५५९३(#) नवतत्त्व भेद, मा.गु., गद्य, श्वे., (जीवतत्त्वना ५६३ भेद), ५४८०२-१(+$) नवतत्त्व विचार*, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवाजीवा पुन्नं पावा), ५४१६७-२(+) नवपद उलाला, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. २१, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (तीर्थपति अरिहा नमुं), ५२१०५-२ नवपद के चैत्यवंदन स्तवन व स्तुतियां, मु. हीरधर्म; मु. कुसल, मा.गु., पद्य, मूपू., (जय जय श्रीअरिहंत), ५३१३२-२(६), ५३९८५(5) For Private and Personal Use Only Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ नवपद चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र पद वंदिय), ५२३७१-२ नवपद पद, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (जिन नित नमु नित नमु), ५३३६०-१ नवपद पूजा, मु. उत्तमविजय, मा.गु., ढा. ९, वि. १८३०, पद्य, मूपू., (श्रीगोडी पासजी नीति), ५५०७५-२(+) नवपद वासक्षेप पूजा स्तवन, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (अरिहंत पद ध्यातो थको), ५२१०५-१,५४५८६-१(#) नवपद स्तवन, आ. अमृतचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अरिहंतसिद्धसूरीश्वरू), ५२६५१-२(+) नवपद स्तवन, आ. अमृतचंद्रसूरि, मा.गु., पद. ९, गा. ३६, पद्य, मूपू., (जयजय श्रीअरिहंत परमे), ५२६५२(+) नवपद स्तवन, मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (गोयम नाणी हो कहै), ५५१५१-११(#) नवपद स्तवन, मु. कुशल, पुहिं., स्त. ९, गा. ४५, पद्य, मूपू., (तेरम गुण वसकै कंत), ५३९८२-८(१), ५३३६६($) नवपद स्तवन, मु. कृष्णविजय, पुहिं., गा. १३, वि. १९४७, पद्य, मूपू., (नवपद चित नित धरिय), ५२६५९-१ नवपद स्तवन, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तीरथनायक जिनवरू रे), ५३५११-१, ५४५८६-३(#$) नवपद स्तवन, मु. जयकीर्ति, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (पहले पद अरिहंतनोजी), ५३५११-२ नवपद स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धचक्र आराधीए), ५३८७०-४ नवपद स्तवन, पं. रंगविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धचक्रपद वंदी), ५४२१७-२(+#) नवपद स्तवन, मु. राजचंद्र, पुहि., गा.७, वि. १९४७, पद्य, मूपू., (निरमल होय भज ले), ५२६५९-२ नवपद स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., स्त. ९, पद्य, श्वे., (--), ५२३४०(+$) नवपद स्तवन, मु. विनीतसागर, मा.गु., गा. ७, वि. १७८८, पद्य, मूपू., (सहु नरनारी मली आवो), ५५३१३-७(#) नवपद स्तुति, आ. अमृतचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अरिहंत द्वादशगुणा), ५२६६०(+) नवपद स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (आंखडिया दोय पांखडिया), ५२२२०-३ नववाड सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ११, गा. ९७, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (श्रीनेमीश्वर चरणयुग), ५४६१२-५(+), ५३९७५-१(#) नववाड सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (नववाड सही जिनराज), ५२१८३, ५२१८५(१) नवांगी पूजामहिमा-श्रावक योग्य, मा.गु., गद्य, मूपू., (नीलाटतिलक शिवगतिनी), ५४१३२-४१(+#) नागश्री सज्झाय, मु. विनयचंद्र, मा.गु., ढा. २, गा. ४६, पद्य, मूपू., (धर्मघोष आचार्यना), ५३९१४ नागेसरी सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (जंबुदिप वखाण्णीये जी), ५४४४०-३०(+) नाणावटी सज्झाय, श्राव. साहजी रुपाणी, रा., गा. ८, पद्य, श्वे., (हो नाणावटी नाणु), ५४४४०-४(+$), ५५५७०-२ नारकीदुखवर्णन लावणी, मु. जिनदास, पुहि., गा. १०, पद्य, श्वे., (दुःख दुष्ट भुगता हुय), ५४२६८-१ (२) नारकीदुखवर्णन दुहा, संबद्ध, पुहि., गा. ६७, पद्य, श्वे., (पांच आश्रव मत करो), ५४२६८-१(६) नारकी सज्झाय, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (एतत कृत महानारकि नेम), ५२४०६(-) । नारिविरहप्रसंग पद, मा.गु., गा.५, पद्य, वै., (जला रे आंबलिया पाकि), ५३२६८-१० नारीपरिहारपच्चीसी, मु. माणकमुनि, मा.गु., गा. २६, पद्य, श्वे., (धन धन नर जे नारी), ५४४३३-१३(+) नारीरूप सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (चित्रलिखित जे पूतली), ५५२८३-३२(+#) निंदात्याग सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (म म कर जीवडारे निंद), ५२११३-२ निद्रापरिहार सज्झाय, जै.क. चांपशी मोदी, मा.गु., गा. १२, वि. १८६८, पद्य, मूपू., (नठारि निद्रडि रे तुन), ५४४४६-२९(+) नियाणा सज्झाय, मा.गु., गा. ५३, पद्य, श्वे., (देवलोकना जे देवतां), ५४४४०-५४(+) निरंजनपचीसी, मु.खोडीदास, मा.गु., गा. २५, वि. १९१६, पद्य, मूपू., (नमीये नाथ निरंजनदेव), ५४४२२-१(+) निर्वाणक्षेत्र पूजा, जै.क. द्यानतराय, पुहि., दोहा. २२, वि. १८वी, पद्य, दि., (परम पूज्य चौबीस जिह), ५४६९८-१ निश्चयव्यवहार सज्झाय, आ. हंसभुवनसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीय जिनवर रे देशना), ५२५१४-१(+#) निह्नवछत्रीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. ३८, वि. १८३३, पद्य, श्वे., (इण आरे निन्हव उगडीया), ५४४४०-४१(+) नेमगोपी संवाद-चौवीसचोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., चोक. २४, वि. १८३९, पद्य, मूपू., (एक दिवस वसै नेमकुंवर), ५४००९(+), ५४२८८(+), ५४१७०, ५४४७९-९, ५२५१५(#$), ५३४७२($) । नेमजिन चैत्यवंदन, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (नेमजिन बावीसमों), ५३८७०-५ For Private and Personal Use Only Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नेमराजिरबा, गूलबास मागपू., (चरणकमल कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ ५५७ नेमजिन बारमासो, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (सुणज्योरी वात सहेली), ५३२४१-२(#) नेमजिन स्तवन, मु. अमरसी, मा.गु., गा. २२, वि. १९०४, पद्य, मूपू., (--), ५३२४७-१(६) नेमराजा चौपाई, पुहिं., ढा. ७, पद्य, मूपू., (चरणकमल चितसुं नमु), ५३६४०(१) नेमराजिमती गरबी, गूलबास, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (नवभव नारी ताहरी सामल), ५२१७६-१(-) नेमराजिमती गीत, मु. गुण, पुहिं., गा. ११, पद्य, मूपू., (मेरा नेमि जिणेसर), ५२५२०-२(2) नेमराजिमती गीत, मु. जिनवर्द्धमान, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जीव करीने जाणती वलि), ५३६१०-८(#) नेमराजिमती गीत, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (होजी रथ फेरी चाल्या), ५२५६२-१ नेमराजिमती गीत, ग. जीतसागर, पुहि., गा. १५, पद्य, मूपू., (तोरण आया हे सखी कहे), ५२६०९-१(#) नेमराजिमती गीत, मु. रामविजय, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुन साई प्याराबे), ५५२८३-१४(+#) नेमराजिमती गीत, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (नेम मले तो बाता), ५३५३९-११(+), ५२४८२-२, ५३४८५-१(#), ५३६६१ ९(-2) नेमराजिमती गीत, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (आ जिनइ पधारइ सामलीयो), ५३०८८-१(#) नेमराजिमती पद, मु. चंद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (यादव मन मेरो हर लीयो), ५३२१८-२(#), ५३२४३-१५(#) नेमराजिमती पद, मु. चेनविजय, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (तेरे दरस को चाव लग्य), ५३४३३-२(+) नेमराजिमती पद, मु. लालविनोद, पुहि., पद्य, श्वे., (मैरा चसमों दा प्यारा), ५५४४८-१६(#) नेमराजिमती पद, मु. शिवरतन, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू., (बावीस सुभटने जीपवा), ५३७६८(+) नेमराजिमती पद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जगजीवनलाल अम्हें तुम), ५३२२४ नेम राजिमती पद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जडा कै छाडी छ रे), ५३७६२-४(+#) नेमराजिमती पद, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (महाराज चढे गजरथ), ५५२८३-१५(+#) नेमराजिमती पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (सखीरी चल गढ गिरनारी), ५२९७१-१(-) नेमराजिमती पद-७ वारकथन, ग. रंगविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (तुमे सरसति सदगुरु), ५२५११-१(+#) नेमराजिमती बारमासा, मु. लावण्यचंद्र, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (--), ५२९३१-१(६) नेमराजिमती बारमासा, उपा. सिद्धिचंद्र, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (समुद्रविजयनृपकुलतिलो), ५२१४८(+) नेमराजिमती बारमासो, मु. अमरविशाल, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (यादव मुझनें सांभरै), ५३२४१-१(#) नेमराजिमती बारमासो, मु. कवियण, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सांवण मासे स्वाम), ५३२५७(+#), ५२४६१, ५३७११-१(#$), ५५२४०-१३(-2) नेमराजिमती बारमासो, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (राणी राजुल इण परि), ५३९४२-२(+), ५३३४८-२(#$), ५३५२९ १(#), ५३७८९-२() नेमराजिमती बारमासो, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (वेसाखे वन मोरिया), ५३७८९-१,५५२४०-१४(-2) नेमराजिमती बारमासो, उपा. देवविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मपू., (ब्रह्माणी वर हु), ५३४९०-२(#) नेमराजिमती बारमासो, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. २८, वि. १७२८, पद्य, मूपू., (मागसर मासे मोहिनीयो), ५३५७५-१ नेमराजिमती बारमासो, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (आपणी सहियरने कहै सखी), ५३५३९-९(+) नेमराजिमती बारमासो, मा.गु., गा. १०, पद्य, म्पू., (घनघोर घटा घन की उनई), ५२८४५(#S), ५३३६५-२($) नेमराजिमती बारमासो, मा.गु., गा. १७, पद्य, श्वे., (नमो नमो नेम नमि करी), ५४४४६-१९(+) नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., गा. ७०, पद्य, म्पू., (सारद पय पणमी करी), ५२०९७(+#), ५२२९५, ५२०६१(#) नेमराजिमती लावणी, मु. चतुरकुशल, पुहिं., गा. १०, पद्य, मूपू., (नेमनाथ मेरी अज), ५२९३१-४, ५३१९४-२(-5) नेमराजिमती लावणी, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (लग रही रे नेम दरसन), ५२६२४-१ नेमराजिमती लावणी, मु. जिनदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वादरीयानुंवरसे पीया), ५२३०८-५ नेमराजिमती लावणी, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (तोरण आया काल सबंधीया), ५४७५८-८(#) नेमराजिमती लावणी, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (पसुय देखी पाछा फिर्य), ५४७५८-९(#) For Private and Personal Use Only Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५५८ www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नेमराजिमती लावणी, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सगरी हू नेमजी नेमजी), ५४७५८-७ (#) " नेमराजिमती श्लोक, मु. कुशलविजय, मा.गु गा. २० वि. १७५९, पद्य, म्पू., (समरु गणपतिनै सारिद), ५५२८३-१२(+०) नेमराजिमती संवाद, मु. ऋद्धिहर्ष, रा. गा. ३२, पद्य, म्पू.. (हठ करी हरीय मनावीर्य), ५२०८५-२ (45) नेमराजिमती सज्झाय, मु. कांति, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (राजंद वरसे मेहल गारी), ५४१३२-३६(+#) " नेमराजिमती सज्झाव, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. २३, वि. १८५७, पद्य, श्वे. (समुद्रविजे सिवादेवी), ५३२७८-२(+), ५३०८७-२ नेमराजिमती सज्झाय, आ. जिनसमुद्रसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सुंदर सारी बालकुंआरी), ५३१५६-३ नेमराजिमती सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ८, पद्य, म्पू, (नेम कांइ फिर चाल्या), ५२५२७-१ नेमराजिमती सज्झाव, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वीनवे राजुलबाला वीनत), ५३५३९-४(+) नेमराजिमती सज्झाय, मु. परसोत्तम, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (नेम बिना सजनी रे), ५२१८१-१ मराजिमती सज्झाय, मु. माधव, मा.गु., गा. १२, वि. १८७७, पद्य, से. (शाम लियो रे तोरण आवि), ५३२७९-१() राजिमती सज्झाय, मु. मुनिसुंदर, मा.गु., गा. १५, वि. १७९१, पद्य, मूपू., (राणी राजील कर जोडी), ५४४४०-१(+$) नेमराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (नेमजी जाओ तो तुमने), ५५२९८-१६(#) नेमराजिमती सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वेला आवजो हो लाल जिन), ५३०७९ नेमराजिमती सज्झाय, मु. सोमचंद, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (नेम जणेसर केसर), ५२८७४(#) राजिमती सज्झाय, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., ( कपूर होवे अति उजलो), ५४४४६ १५(+), ५२९६५-३(#) नेमराजिमती सज्झाय, मु. हेमधर्म, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., ( उग्रसेण की लली नेमजी), ५३२४१-४(#) नेमराजिमती सज्झाय, रा. गा. २३, पद्य, थे. (अरी नेम मनाया ना मनइ), ५२७९१-१(०) " " राजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (जान सजीने जादव आवेर), ५३२४७-२($) मराजिमती सज्झाव, पुहिं. गा. ५, पद्य, श्वे. (नेमजी से कहियो मोरी), ५३९७९-५ (क) " नेमराजिमती सज्झाय, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (शिवरमणि जादु डार्या), ५३३७९-२ ($) नेमराजिमती स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (हां रे एतो तोरण आवी), ५३६२०-२ (+) नेमराजिमती स्तवन, मु. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (तुमे रहो रे यादव), ५४९७२-७८(+#) राजिमती स्तवन, मु. देवविजय, मा.गु, गा. ८. वि. १८वी, पद्य, मूपू (अवल गोखने अजब जरोखे), ५४४७९-१० नेमराजिमती स्तवन, मु. पेमचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (नवभव केरी प्रीत धरी), ५३४९९-१(-) नेमराजिमती स्तवन, मु, मतिहंस, मा.गु गा. ७, पद्य, मूपू (राजुल बेठी उंची गोखड), ५२९९७-८ मराजिमती स्तवन, पंडित मानविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, भूपू (पोपटडा संदेसो कहेजे), ५४४७९-१ "" 1 राजिमती स्तवन, मु. मोहन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (राजुल कहे रथ वालो), ५३५३९-७ (+), ५२६१९-३(#) नेमराजिमती स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू.. (नेमजी करी वात रे), ५३५३९-२(+), ५२५८८-१८) नेमराजिमती स्तवन, मु. लब्धि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (नेम वयण सुणीजै मुझ), ५२५७८-३(#) नेमराजिमती स्तवन, मु. लालचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, वे., (रथ चड जादुनंदन यावत), ५२३३५-२ (-) नेमराजिमती स्तवन, मु. सोहनलाल, पुहिं, गा. ५, पद्य, थे. (कितना दुर गिरनारी), ५२४१६-३(१) मराजिमती स्तवन, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू. (माता सिवा देवी नेमजी), ५२९७४-२ मराजिमती स्तवन मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे. (सुणि २ मूंद सहेलडी), ५३२४१-३शक "" , नेमराजिमती स्तवन- १५ तिथिगर्भित, ग. रंगविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, म्पू, (जे जिनमुखकमले विराजे), ५३८९९(१) " नेमराजिमती स्तुति, श्राव. जुठा अमरसी, मा.गु., गा. ४, वि. १९वी पद्य, वे, वालाजी रे राजेमती), ५३०६३-३ नेमिजिन कडखो, मा.गु, गा. ५, पद्य, भूपू (तोस्यौ कौण सरभर करे) ५४७५८- १०१) नेमिजिन गीत ग. कुंवरजी, मा.गु., गा. ११, पद्य, खे, (यदुपति चमक उलाइ), ५२८९१-१०) मिजिन गीत, ग. कुंरजी, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (सामलियओ साहेली मन), ५२८९१-२ (#) नेमिजिन चैत्यवंदन, मु. जिनचंद्र, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (नेमजिणंद आणंद कंद), ५३१६१-२(+) नेमिजिन चौमासा, पंडित भावसागर, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (राजीमति राणी कई रूप), ५३९४२-८(+) For Private and Personal Use Only Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ नेमिजिनचौवीसी, मु. श्रुतरंग, मा.गु, गा. २४, पद्य, भूपू (-), ५२३६१-१ (०३) १ " नेमिजिन धमाल, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु गा. ३, पद्य, मृपू., (नित नित प्रणमीजे), ५३५१६-४ नेमिजिन धमाल, मु. जिनहर्ष, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (बलिहारी हूं तेरा नाम), ५३५१६-६ नेमिजिन नमस्कार, क. ऋषभ, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (नेम नमु निसदीस जन्मल), ५४१३४-११(+#), ५३३०७-१ नेमिजिन नवरसो, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., ढा. ४, गा. ७२, वि. १६६७, पद्य, मूपू., (सरसति सामिनी पाय नमी), ५३५०३ "" नेमिजिन पद, मु. ऋद्धिहर्ष, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (गढ गिरनार की तलहटी), ५३५१६-२ नेमिजिन पद, मु. जिनहर्ष, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (अब मोहि यादव जीवन), ५५२८३-१८(+#) नेमिजिन पद, मु. भूषण, रा., गा. ४, पद्य, श्वे. (नेम निरंजन ध्यावो), ५३२१८-३००१, ५४०६३-११४) नेमिजिन पद, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (हेली गिरनारै बोल्या), ५२८०७-१७(#) नेमिजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहिं. गा. ४, पद्य, भूपू (ठाडे अंगन नेमकुर पंच), ५३२६९-२ नेमिजिन पद, पुहिं. गा. ३, पद्य, वे. (तुं बालब्रह्मचारी भल), ५४२७५-२(४) मिजिन पद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., ( मत छोडो म्हांने), ५३२१८-४(#) नेमिजिन फाग, मु. राजहर्ष, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मूपू., (भोगी रै मन भावीयो रे), ५३२३६-४(#), ५३६१०-३(#) नेमिजिन फाग, मु. वर्द्धमान, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपु. ( श्रीनेम जिनेश्वर), ५३६९२-२(-*$) , नेमिजिन बारमासो, मु. लाभउदय, मा.गु., गा. नेमिजिन बारमासो, पुर्हि, गा. १४, पद्य, भूपू " नेमिजिन बारमासो, मु. खुस्यालचंद, मा.गु., गा. २८, वि. १७९८, पद्य, मूपू., (समरुं सरसति मातने), ५३४३६(+$) १६, वि. १६८९, पद्य, मूपू., (सखीरी सांभलि हे तूं), ५३२४०-१(#$) (अब सखी आयो है सावण), ५५२५२-२२(+) जिन रास, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ५५५१६(#$) नेमिजिन लावणी, मु. जिनदास, पुहिं. गा. ४, पद्य, भूपू., (तुम तजीय कर राजुल), ५५३२३-२(+), ५२५५६- शन " " "" नेमिजिन सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा. गा. १५. वि. १८३३, पद्य, वे (नेम सिरीख्या सिरीख्य), ५२९९५-२०१ नेमिजिन सज्झाय, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (अमे रे प्रदेसी प्राह), ५४४४६-६ (+) नेमिजिन सज्झाय, मा.गु, गा. ६, पद्य, मूपू, (नेम कांइ फिर चालौ हौ), ५३९४२-७(१) नेमिजिन स्तवन, ग. अमीचंद, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (कहें सखी प्रीतम), ५५२५२-७(+#) मिजिन स्तवन, मु. आनंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (सांवरो सलूणो सखी), ५२८०७-१ (#) नेमिजिन स्तवन वा उदयविजय, मा.गु, गा. ७, पद्म, मूपू., (पशु पुकार सुण्या), ५५२४०.५१(क) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मिजिन स्तवन, मु. कांति, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (कालीने पीली वादली), ५३९६०-९ (+#), ५३३१७-१($), ५३०६४-३(-) मिजिन स्तवन, मु. खोडी, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., ( काम आया काम की), ५२०६५ (#) नेमिजिन स्तवन, मु. गजानंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू.. (पीया नेम पधारो हो), ५२६३६-३ (+) नेमिजिन स्तवन, मु. चोथमल, रा., गा. ७, वि. १८५२, पद्य, श्वे. (श्रीनेमीसर साहिबा ), ५३५२७-२ नेमिजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सांभल रे सांवलीया), ५२८७०-१० (+#), ५५५५३-७(+#) नेमिजिन स्तवन, मु. जेचंद, रा. गा. ८, पद्य, म्पू., (नेमजी रथ वालोने वाला), ५३१०२-२ " नेमिजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (चंपकवर्णी चूंदडी हो), ५२९२४(+$) नेमिजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (दोय घडीया बे वारी), ५२४३४-२ (#) नेमिजिन स्तवन, मु. दोलत, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (मोह तणा दल मोडी रथ), ५३४३३-१(+) . नेमिजिन स्तवन, मु. पावन शिष्य, मा.गु., ढा. ६, गा. ४२, वि. १६८२, पद्य, श्वे. (सकल सिद्ध प्रणमेव), ५३५९९(+#) नेमिजिन स्तवन, मु. भवानीदास ऋषि, पुहिं., गा. ४, पद्य, वे., ( गीरनारी की बता दो ), ५३८९६-२ नेमिजिन स्तवन, मु. भावसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (हुं तो लागुलागु सरसत), ५३९४२-९(+) नेमिजिन स्तवन, मु. मेघविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (यांन लेई यदुपति), ५४९७२-३७(+#) नेमिजिन स्तवन, मु. रंग, मा.गु गा. ७, पद्य, मृपू., (प्रीतम संभालो हो निज), ५४९७२-२९(+४) नेमिजिन स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (घेर आवोने नेम वरणागी), ५४४४६-१० (+) . For Private and Personal Use Only ५५९ Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ नेमिजिन स्तवन, मु. लालचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (जीनजी से कहीयो मोरी), ५३५०९-२(#) नेमिजिन स्तवन, मु. सेवक, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (आयो मास बसंत सखी रे), ५५२९८-१३(#) नेमिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (भली भावना भेटिवा नेम), ५२५०२-४ नेमिजिन स्तवन, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (मात प्यारो लागे छे), ५२०७७-१ नेमिजिन स्तवन, मा.गु., गा. १७, पद्य, श्वे., (श्रीनेमीसरजी नीत), ५३९८६-१ नेमिजिन स्तवन-दशत्रिक, मु. लालचंद, मा.गु., ढा. ४, वि. १८३३, पद्य, मूपू., (सद्गुरु चरण नमी करी), ५३९८२-१(2) नेमिजिन स्तवन-नडुलाई, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., ढा. १, गा. १५, पद्य, मूपू., (भली युगतिस्युं यादवै), ५२६३९-४ नेमिजिन स्तवन-समवसरणविचारगर्भित, मु. सोमसुंदरसूरि-शिष्य, मा.गु., कडी. ३६, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (जायवकुल सिणगार सिरि), ५२३२८(#) नेमिजिन स्तवन-सौभाग्यपंचमी महात्म्यगर्भित, ग. कांतिविजय, मा.गु., ढा. ९, वि. १७९९, पद्य, मूपू., (प्रणमुपवयणदेवी रे), ५३५९७(+), ५४०६९, ५५१५१-१३(#$) नेमिजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (गिरनार सिहरि पर नेमि), ५३६७०-२ नेमिजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (कुगति कुमति छोडी), ५२५८१-४(# नेमिजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सुर असुर वंदित पाय), ५४५४६-९(#) नेमिबहुत्तरी स्तवन, मु. मूलचंद्र, मा.गु., गा.७४, वि. १८३६, पद्य, मूपू., (प्रथम जिणेसर पाय), ५५५७०-१, ५३०३१($), ५३३८२($) पंचकल्याणक स्तवन, मु. पुण्यसागर, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (नमिय पयकमल सुभ भावि),५२४१७(#) पंचकल्याणक स्तवन-केवलज्ञान, मु. हीरधर्म, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (जिनवरकी महिमा वरनी), ५३९८२-५(#) पंचतीर्थ चैत्यवंदन, मु.रूपविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सुखदाइ श्रीआदिजिणंद), ५४२०९-११(+) पंचतीर्थजिन चैत्यवंदन, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ५, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (आज देव अरिहंत नमु), ५४२०९-१३(+) पंचतीर्थ स्तवन, पुहिं., गा. ८, पद्य, मूपू., (तुम तरण तारण विघनवार), ५२५६६-२(2) पंचपरमेष्ठि १०८ गुण, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतना गुण बारा), ५४१८४-१(+-) पंचपरमेष्ठि मंत्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं चउवीस तिर्थ), ५२११४-२(+) पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (वीर कहे गौतम सुणो), ५३२९२-२($) पंचमआरा सज्झाय, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (पंच आराना भाव रे), ५४१३२-१(+#) पंचमहाव्रत कथासंग्रह, मा.गु., अ. ५, गद्य, मूपू., (बालक जीवने हितने), ५४३१६(+-#) पंचमहाव्रत सज्झाय, उपा. सकलचंदजी , मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पंच महाव्रत तणो रे), ५५२४०-४५(-2) पंचमीतप पारने की विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (तपकरी उजमणो कीजै), ५५०८७-४(+) पंचमीतिथितप स्तवन, मु. जससौभाग्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पासजिणेसर प्रणमी पाय), ५२४४७-२(-2) पंचमीतिथि सज्झाय, मु. अमृतरत्न, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सरसती भगवती मन वसी), ५४१३२-२०(+#), ५२३५६-३(-#) पंचमीतिथि सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सद्गुरू चरण पसाउले), ५४५५९-१३(#) पंचमीतिथि सज्झाय, मु. महानंद, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (श्रीजिन वीर इम), ५२४१०(-१) पंचमीतिथि स्तवन, ग. उदयसौभाग्य, मा.गु., ढा. ३, गा. २०, पद्य, मूपू., (सरसति सांमिणि समरी), ५५४०२-१(+) पंचमीतिथि स्तुति, ग. अमरचंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर साथे), ५४७५९-२(#) पंचांग विधि, मु. मेघराज, मा.गु., गा. ५८, वि. १७२३, पद्य, मूपू., (गवरीनंद आनंद करि), ५२९४१(+#) पंचांगुलीदेवी स्तोत्र, मु. हर्ष, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (सामी सीमंधर पइ नमेवि), ५२७८७(#) पंचाख्यान चौपाई, मु. रत्नसुंदरसूरि, मा.गु., अधि. ५, गा. २६१६, वि. १६२२, पद्य, मूपू., (प्रणम्य पूर्व), ५४०३६ पंचेंद्रिय स्थूल मानविचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (पन्नवणा मध्ये पाँचें), ५४३०५-६(+) पट्टावली, मा.गु., गद्य, मूपू., (वर्द्धमानस्वामी चोथा), ५४०१७ पट्टावली-तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीजिनशासन संप्रति), ५४८१४(#) पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, मपू., (श्रीवर्द्धमान तीर्थ), ५३६०० For Private and Personal Use Only Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ पट्टावली लोंकागच्छीय, मा.गु., गद्य, श्वे. (हिवै अनुक्रमै पाट), ५४५१९-३ " पद्मनाभजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, म्पू, (प्रथम महेसर पद्मनाभ) ५२०७४-५ पद्मनाभजिन स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ७. बि. १८वी, पद्य, मूपू. (वाटडी वीलोकुरे भावी), ५२३९८-२शका पद्मप्रभजिन धमाल, मु. ज्ञान, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू. (मेरे रदय पदमप्रभु), ५३५१६-३ पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. अमृत, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नाडूलनगर विराजे तिहा), ५४८६५-११(+) पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीपदमप्रभू राजियो), ५३९६०-२(+#) पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु गा. ५, पद्य, मृपू., (कागलीयु करतार भणी). ५४६१३-१७, ५५२९८-६(४) पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू. (पद्मप्रभु तुम सेवना), ५३७०१-३ , " पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७. वि. १८वी, पद्य, मूपू (परम रस भीनो म्हारो), ५२७२६-१ पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु. गा. ९, पद्य, भूपू (प्रीतडली पदमप्रभु) ५४९७२-१० (+1) पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. रामचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू. (पदमप्रभु सेवक विनती), ५३०८६ १ पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मनना मोहन मारा), ५२६१९-२(#) पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. स्वरूपचंद, मा.गु., गा. ८, पद्य, भूपू. (श्री पद्मप्रभुजिनराज), ५४६१३-८ पद्मप्रभजिन स्तवन-संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु., गा. ९, पद्य, वे., (धन धन संप्रति साचो), ५५२८३-३५(+#), , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " ५३९८९-३ (#) पद्मप्रभ - वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १४, वि. १८४१, पद्य, वे. (रंगभर राता ही वाता), ५४३८४-११(+४), ५३२९६-२(३) " पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (हवे राणी पद्मावती), ५२१५३-२(+#), ५२९९१(+), ५२२६५-२, ५३८६३-१, ५५०६२-१, ५२९२९-३(४३) ५३४०७-२(१) ५३४९६(४), ५३६२९(१) पद्मावती चौपाई, मा.गु., गा. ८०५, पद्य, धे., (चतुर चतुर मुख जगतगुर), ५४२८४(*) पद्मावती ढाल - जीवराशीक्षमापना उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ८२, पद्य, मूपू., (हिवे राणी पद्मावति), ५३४५७(+) पद्मावतीदेवी छंद, मु. हंस, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू. (सकल मंत्र पद मध्य), ५२२०४-१(०) परदेशीराजा सज्झाय, मा.गु गा. १९, पद्य, मूपू (जब लग धर्म पाम्यो), ५२२३५-१(+) , 13 परनारीत्याग सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., ( जीव वारु छु मोरा), ५४४४६-३(+) परनारी परिहार सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नेह न कीजे रे जीव पर), ५४१३२-७(+#) परनारी परिहार सज्झाय, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (नयनां अटकमां नयनां), ५२८०७-२० (#) परनिंदात्याग पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (आदिसकती इश्वरी सरणा), ५२४०८-२ परमार्थ अष्टपदी, पुहिं. गा. ८, पद्य, वि., (ऐसे ज्यौं प्रभु पाई), ५२९९७-५, ५३९५६-६(१) " परमार्थहिंडोल अष्टपदी, केसोदास, पुहिं. गा. ८, पद्य, ? (सहन हिंडोलना हरख), ५३९५६-२२(4) पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. प्रमोदसागर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सकलपर्व शृंगारहार), ५२३७१-३ पर्युषण पर्व चैत्यवंदन, पं. वीरविजय, मा.गु, गा. ९, पद्य, मूपू (पर्व पर्युषण गुणनीलो), ५२३३६ पर्युषणपर्व पद, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., ( आवे साधु आदेस साह), ५३९५५-२(#) "3 पर्युषणपर्व स्तुति, मु. अमरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (परव पजुसण पुण्ये), ५५२५६-९(+#) पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु गा. ४, पद्य, मूपू (वली वली हुं ध्यावु), ५४५४६-२०१७) पर्युषण पर्व स्तुति, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वरस दिवसमा अषाड), ५२६३७-२ 2 पर्युषण पर्व स्तुति, मु. बुधविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू पर्युषण पर्व स्तुति, मु. बुधविजय, मा.गु, गा. ४, पद्य, मूपू पर्युषण पर्व स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू पर्युषणपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पुण्यवंता पोशाले), ५५२५६-८(+#$) (वीरजिणेसर अतिअलवेसर), ५२३८९, ५४२४४-९०) (वीर जिनेसर अति अलवेस), ५२६३७-३(३) " (सत्तरे भेदे जिन पूजा), ५२५९८-१, ५२५३८-४११ , पर्युषण पर्व स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू (परव पजुसण पुन्य), ५२४९०-१(०) ५२५३८-३(४) ५६१ For Private and Personal Use Only Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पर्युषणपर्व स्तुति, मु. हर्षविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शासनपति सोहे साचो), ५३०१३-६(#) पर्युषणपर्व स्तुति, मु. हीर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर अति अलवेस), ५४७५९-१(#) पर्वतिथि उद्यापन विधि, मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रथम तीर्थंकरने), ५२४९९-१(+) पल्योपम-सागरोपमत्रण प्रकार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पल्योपमना त्रण भेद), ५४४६४-६२ पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., खं. ९ ढाल १५१, ग्रं. ५७५०, वि. १६७६, पद्य, मूपू., (श्रीजिन आदिजिनेश्वरू), ५४४८४(+#), ५५१५६(+#$), ५२९७६(#$), ५५५०७(5) पाक्षिकतपवृद्ध स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. २, गा. १४, पद्य, मूपू., (जंबुद्वीप सोहामणो), ५३५२२-१ पाटण के ९९ नाम, मा.गु., अंक. ९९, गद्य, मूपू., (बऊलीपाटण१ कणयापुरपाट), ५४४६४-७ पातशाही दृष्टांत, पुहि., दोहा. ४, पद्य, (व्याह उमाह उछाह विचै), ५४९७२-२(+-) पापपच्चीसी, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. २५, पद्य, स्था., (पोत पाप हेयवे जेहने), ५४४३३-१८(+) पापफल पद, मु. ब्रह्मज्ञान सागर, मा.गु., गा. ११, पद्य, दि., (पापे नार कुजात कलह), ५२१९९-२ पार्श्वचंद्रसूरि आरती, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (जय जय आरती सद्गुरु), ५३२२९-२(+) पार्श्वजिन १० भव विवाहलो, श्राव. पेथो श्रीमाल, मा.गु., गा. २०६, वि. १६वी, पद्य, म्पू., (सरसति सामिणि करुअ), ५५४०० पार्श्वजिन अष्टक, ग. मयाचंदजी, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सरसति सुमति आप), ५३७९१(+) पार्श्वजिन अष्टोत्तरनाम छंद, मु. उत्तमविजय, मा.गु., गा. २१, वि. १८८१, पद्य, मूपू., (पास जिनराज सुणी आज), ५३३७१(+) पार्श्वजिन आरती, मु. मतिहंस, पुहि., गा. १०, पद्य, मूपू., (पहिली आरती आससेण), ५२३९३-१ पार्श्वजिन आरती, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पैहली आरती कमठाम), ५३२४३-१४(2) पार्श्वजिन कलश-नवपल्लव मांगरोलमंडन, श्राव. वच्छ भंडारी, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (श्रीसौराष्ट्र देश), ५२१६६-२ पार्श्वजिन गीत, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मेरे एही ज चाहीइ), ५२७३७-४ पार्श्वजिन छंद, मु.खेतसी ऋषि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (विमल बुधदायक ब्रह्मा), ५४८९७-४(#) पार्श्वजिन छंद, मु. नारायण ऋषि, मा.गु., गा.१०, पद्य, श्वे., (वामामात उयर जगवंदन), ५४१३४-२१(+#) पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, पं. भावविजय वाचक, मा.गु., गा.५१, पद्य, पू., (सरसत मात मना करी), ५४१३४-१५(+#), ५४१४६ १,५२८०४-२(#$), ५२८१०(#), ५३६७१-२(#$), ५२२९२-५(६) पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ५५, वि. १५८५, पद्य, मूपू., (सरस वचन दियो सरसति), ५४६८३, ५३६७१-१(#$), ५२२९२-१(६) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (धवल धिंग गोडी धणी), ५२३४८-१, ५३९६८-२(5) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. करमसी, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (गवरीपुत्र गणेशवर), ५४८९७-३(#) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा.५१, पद्य, मूपू., (सुवचन दे मुझ शारद), ५२३३०-१ पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. कुशलचंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीगोडिचा जगतगरु), ५३१७४-१(-$) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (सरसति सुमति आप), ५२३००-१,५३१७४-२(-5) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. राम, मा.गु., गा. ६४, वि. १७७२, पद्य, मूपू., (ॐकार लीला ललित कलित), ५२६३५ पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु.रूप, मा.गु., गा. ११२, पद्य, मूपू., (त्रिभुवन मझ ततसार), ५२२४४(६) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (सरसति द्यो मुझ), ५२४८५-२,५२६०२-५(#) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., गा. ४६, पद्य, मूपू., (सुवचन आपो शारदा मया), ५२८७८(+), ५५०२०-२(+#), ५२४८५-१, ५२५३५(#), ५४१४६-५($) पार्श्वजिन छंद-चुलेर, मु. देवीदास, मा.गु., गा. ७८, पद्य, श्वे., (पय प्रणमुपदमावती), ५३५३६(#) पार्श्वजिन छंद-नाकोडातीर्थ, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (आपण घर बेठा लील करो), ५३२८५ १-#), ५२५१९, ५३२१६-३,५३५७३-७, ५३९६६-१(#$) पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (सरसतीमात सदा सुखदाई), ५२६०२-६(#) पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, पं. महिमारूचि गणि, मा.गु., गा. २४, वि. १७२०, पद्य, मूपू., (सरसति सूखदाता तुं जग), ५४१३४-१२(+#) For Private and Personal Use Only Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ ५६३ पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सेवो पास शंखेश्वरो), ५२४८५-४, ५३५१२-१, ५३७३९-१, ५३७५१-१(#) पार्श्वजिन जन्मोत्सव पद, पंडित. शुभविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पोस मास वदि दशमीइं), ५४९७२-३१(+-#) पार्श्वजिन थाल, रा., गा. ११, पद्य, श्वे., (--), ५३१९७-१(६) पार्श्वजिन दोहा-गोडीजी, मा.गु., दोहा. ६, पद्य, श्वे., (भागा भूला भमरीया), ५३७३९-२ पार्श्वजिन नमस्कार-स्थंभनपुर, मु. कल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (श्रीसेढी तट मेरुधाम), ५३५४४-२(#) पार्श्वजिन नामावली, मु. प्रेम, मा.गु., गद्य, श्वे., (पंचजीन चउदसरदसच्यार), ५४९३८ पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., गा. २७, पद्य, मूपू., (सुखसंपत्तिदायक सुरनर), ५३९४३-१(+#), ५५०२०-३(+#$), ५५४५०-२,५२१९८-१(२), ५२९०९-१(#), ५३५६८-१(#$), ५४४७७-९८६), ५२३३१-१(-) पार्श्वजिन पद, मु. उदयसागर, पुहिं., पद. ७, पद्य, मूपू., (अब हम कुं ज्ञान दीयो), ५३२४३-१८(#), ५२५८६-२(-) पार्श्वजिन पद, मु. खुशालचंद, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (नांनडीयो गोद खिलावे), ५३३४१-२(#) पार्श्वजिन पद, मु. जिनचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (मेरो निरंजन यार केसे), ५२१०५-५ पार्श्वजिन पद, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सांवरीया साहिबा तारो), ५३७२० पार्श्वजिन पद, आ. जिनलाभसूरि, पुहिं., गा.७, पद्य, मूपू., (होरी के खिलईया हारे), ५३९२५-४ पार्श्वजिन पद, मु. जिनहर्ष, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (जागो मेरे लाल विसाल), ५३५५७-५ पार्श्वजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (हमतौ याहीतें रंग लगा), ५३५१६-८ पार्श्वजिन पद, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद. ३, पद्य, श्वे., (श्रीजिनराज सदाइ जाकै), ५३६६१-१०(-2) पार्श्वजिन पद, मु. लालचंद, पुहि., गा.५, पद्य, मूपू., (मेरो मन वश कर लीनो), ५२८०७-११(#) पार्श्वजिन पद, मु. विद्याविलास, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (मेरी प्रीति लगी वामा), ५३५१६-९ पार्श्वजिन पद, मु. वृद्धिकुशल, रा., गा. ३, पद्य, स्पू., (तेवीसमा जिनराज जोडी), ५५२८३-१७(+#), ५३२४३-३(#) पार्श्वजिन पद, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (छवि तेरी सुहावण लागी), ५३१४१-३(-2) पार्श्वजिन पद, पुहि., गा. २, पद्य, श्वे., (प्रभावती राणी कुं), ५४८९७-११(#) पार्श्वजिन पद-अंतरीक्ष, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (समोवसरण सोभे त्रीगडे), ५४२७५-३(#) पार्श्वजिन पद-गउडीपुर, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीमहाराज मनावउ जिम), ५३५१६-१० पार्श्वजिन पद-गोडीजी, अभयचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (गोडी गाइएं मन रंग), ५३५६४-२(2) पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. धरमसी, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (सरस वचन दे सरसती एह), ५२०७८-२(+-#), ५४१३४-१६(+#), ५२५४३(#$) पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. धर्मसी, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (पासजी मन मान्यौ), ५५२८३-२१(+#) पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. रत्ननिधान, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (श्रीगोडी प्रभु पासजी), ५३२०१-३(#) पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (चिंतामणिसामी साचा), ५३२०४-१(#), ५३९५६-२०(#), ५५२४०-३७(#) पार्श्वजिन पद-शंखेश्वर, आ. जिनराजसूरि, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (पास की मूरति मो मन), ५३५१६-११ पार्श्वजिन पद-शंखेश्वरतीर्थ, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्यारो पारसनाथ), ५३१५६-१ पार्श्वजिन पद-श्रुतवाणी स्तवन, मु. मुनिचंद्र, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रुत लोभाणी रे प्रभ), ५३९७३-१(#) पार्श्वजिन पालj, ग. उत्तमविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (माता वामादे झूलावे), ५२४२६ पार्श्वजिन बारमासो, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रावण पावस उलह्यो), ५३५३९-८(+) पार्श्वजिन लावणी, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तु ही नकलंकी रुप), ५२७२५, ५३८७०-३ पार्श्वजिन लावणी, पुहि., गा. १८, पद्य, श्वे., (अगडदम अगडदम वाजै), ५२६२९ पार्श्वजिन लावणी, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (जगत भविक कज महेर), ५२३०८-३($) पार्श्वजिन लावणी-गोडीजी, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (जगत भविक जिन पास), ५२५८४-१(#) For Private and Personal Use Only Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५६४ www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ (सदा गुण वीमल अमल), ५२४०१-४(+) (ताल कंसाल मृदंग), ५२५८४-२०१ יי 3 पार्श्वजिन सवैया, मु. कल्याण, पुहिं, सवै २, पद्य, मूपू पार्श्वजिन सवैया, मु. धर्मसिंह, पुर्हि सवै १, पद्य, मूपु पार्श्वजिन सवैया, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. १, वि. १७वी, पद्य, दि., (जिनके वचन उरधारति), ५२५८४-४(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. अनूपचंद, मा.गु.. गा. १०, पद्य, म्पू, (जीवन मांहरा तेवीसम ज), ५३३५३-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. अमृत, पुहिं., गा. ५, पद्य, खे, (ए सुनो मेरे पासजी) ५२३३५-१-४) पार्श्वजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ध्रुवपद रामी हो), ५३९४९-१ (२) पार्श्वजिन स्तवन- टवार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (हवे निश्चल पद देखाई), ५३९४९-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. उत्तमविजय, मा.गु., गा. १३, वि. १८८०, पद्य, मूपू. (सुखसंपतिदायकदेव सवा), ५२७५६(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सुण सखि रे मुझ वाल), ५३१०२-१, ५२६१० (#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु. गा. ७, पद्य, मृपू., (ए करस्यु जिनराज सवा), ५४९७२-३५ (+-०) पार्श्वजिन स्तवन, मु. कविराज, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज अरदास निजदास जाणी), ५४९७२-३० (+#), ५५२४०-२२(#) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन स्तवन, मु. कीरत, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (श्रीसुगुरु चिंतामणि), ५२३७२-१, ५२६४५-५, ५४८५२-१९ पार्श्वजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू (निरमल होय भजले प्रभु), ५३२४३-८(०) "" पार्श्वजिन स्तवन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू (मनमोहन महाराज तीन), ५३४५३-४(A) पार्श्वजिन स्तवन, मु. गंग, मा.गु., गा. १०, पद्य, स्था., (प्रणमीए सरसती मायेने), ५४५०४-१८(#$) पार्श्वजिन स्तवन, मु. चंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मोह्यो मोह्यो री), ५२५६०-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. चतुरहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., ( पासजिणेसरजी हो सांभल), ५२४१३-१(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (जय बोलो पास जिनेसर), ५२४५९-२(+), ५३२४३-११(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनरंग, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (मे मुख देख्यो पारस), ५२४२७-७(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनलाभ, मा.गु., गा. १३, पद्य, भूपू (आज आयो रे उछाह जीवडा), ५२६४५-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनलाभ, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिनेसर नित प्रति), ५२४२८-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वयण अम्हारा लाल हीयड), ५५२८३-२० (+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जेतसी, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुगण सोभागी साहब), ५४३८४-१६ (+#), ५४५०४-२४(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जैतसी, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुगुण सोभागी हो साहि), ५२३७०-३(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. ज्ञानमेरु, मा.गु., गा. ९, पद्य, भूपू (जी हो सुंदर रूप), ५२७२८ पार्श्वजिन स्तवन, मु. ते ऋषि, मा.गु., गा. ११, वि. १८९४, पद्य, श्वे. (वामानंदन वंदिये अविच), ५२७०३(+#) " पार्श्वजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मुगट परि वारीयां), ५५२८३-१९(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मृपू (प्रभु वामानंदकुमार) ५४५०४-२५०) पार्श्वजिन स्तवन, मु. प्रधानसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पारसना पसायथी रे), ५२३७६ पार्श्वजिन स्तवन, मु. भक्तिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मुरत ताहरी हो राज), ५२३८२, ५२४३९-२ (#) " पार्श्वजिन स्तवन, मु. माव, मा.गु. गा. ८, पद्य, म्पू, (प्रभुजी पारसदेव अरज), ५५२९८-२ (०) पार्श्वजिन स्तवन, मु. मुनिचंद्र, पुहिं. गा. ६, पद्य, मूपू (मोहन मुरत सुरत प्यार), ५३९७३-२(A) पार्श्वजिन स्तवन, मु. यशोवर्द्धन, मा.गु गा. ८, पद्य, म्पू. (-), ५५२९८-१(०३) . पार्श्वजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं, गा. ५, वि. १८बी, पद्य, मूपू. मेरे साहिब तुम ही), ५२९९७-६ पार्श्वजिन स्तवन, पा. राजरत्न, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (पासजिणंदा हो साहिब), ५३६५६ पार्श्वजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १४, वि. १८४१, पद्य, श्वे., (वामाराणीयें एक जायो), ५३०८५-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. विजयशील, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सकल मुरती श्रीपास), ५४१३४-१३(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. विनयकुशल, मा.गु., गा. ४३, पद्य, मूपू., (प्रणमिअ गौतम गणहरू ए), ५२०८४(#) पार्श्वजिन स्तवन, शंकर, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे. ?, (सरसति माता सेवकां), ५२५३४-१(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. शिवचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., ( अब हम है श्याम सरण), ५३२०४-२(#) For Private and Personal Use Only Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra - www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ पार्श्वजिन स्तवन, मु. शिवजी, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (सांभल शिवपुरगामी), ५४५०४-९(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. श्रीधर, पुहिं. गा. ५, पद्य, भूपू. (नीकी मूरति पास जिणंद), ५३९७९-२(४) पार्श्वजिन स्तवन, मु. सरूपचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रभुजी दरसण द्यो), ५२४२१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. हर्षचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू (या सुंदर मुरति पासकी), ५५२४०-३६ (०) पार्श्वजिन स्तवन, मु. हीरधर्म, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वामानंदनपासजी जाणी), ५३९८२-३(१) पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु. गा. १३, पद्य, भूपू (नमवि पय कमल चडवीस), ५३६७३(+) पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभुजि दिणंदा पासजि), ५३१०७-३ पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (मात तात गुरु बंधव), ५३६७२-२(#) पार्श्वजिन स्तवन रा. गा. ५, पद्य, मूपू. (सरण रहिस्यां जी), ५३९८२-६(४) पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (साहिबा पास जिणेसर), ५२४६५-३(+) पार्श्वजिन स्तवन- २४ दंडकविचारगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (प्रणमुं पारसनाथ प्रह), ५३०३८(+#) (२) पार्श्वजिन स्तवन २४ दंडकगर्भित टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, (प्रह समे पारस्वनाथजी), ५३०३८(+) - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन स्तवन- अंतरिक्षजी, मु. कवियण, मा.गु., गा. १५, वि. १८९१, पद्य, मूपू., (श्रीपुर नगरे सोहावे), ५२४९५(4) पार्श्वजिन स्तवन- अंतरीक्षजी, मु. आनंदवर्द्धन, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (प्रभु पासजी ताहरो), ५४४७७-७, ५३२९९-१ ($) पार्श्वजिन स्तवन- अंतरीक्षजी, मु. गजेंद्रसागर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रीअंतरिक्ष प्रभू), ५२३५८-१(#) पार्श्वजिन स्तवन- अंतरीक्षजी, ग. माणिक्य वाचक, मा.गु., गा. १३, वि. १८९१, पद्य, मूपू., (वामासुत० वदन विलोकी), ५२४५०१ (+) ५४१४६-२ पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. कांतिसागर, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (आवो सहिअर सहु मिलि), ५२६७६-५ (#) पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जगगुरु श्रीगोडीपुर), ५३२६८-९ पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, मा.गु., गा. ५. पद्य, भूपू. (श्रीगवडीपुरमंडण), ५२६६७-२ पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. खेम, रा. गा. ५, पद्म, मूपू (चाकर रहिस्यां जी गौड), ५३९८२-९(१) " पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. चतुरहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., ( पासजिणेसर अंतरजामी), ५२४१३-२(+) पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. जिनराज, मा.गु. गा. ७, पद्य, मूपू (वाल्हेसर मुझ विनती), ५३८०५-१ " こ יי पार्श्वजिन स्तवन- अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., डा. ५, गा. ५५, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (वाणी ब्रह्मवादिनी), ५३५४९-१(०), ५४१३४-१८(१), ५२७०२ पार्श्वजिन स्तवन- अयवंतीपुरमंडण, आ. गुणसूरि, मा.गु. गा. ११. वि. १६५२, पद्य, मृपू. (सोभागी जिनजी म्हारै), ५२९४५-१(१), ५२३५० पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. आनंदबर्द्धन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू (रमजम रमजम चरण नेउर), ५३२२१-१(०३) " पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, मूपू., (बोले इम सुमता साहेली), ५३४५२ पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (श्रीथलपति थलदेशें), ५४१३४-२० (+#), ५२४५३-१, ५६५ पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पीया सुंदर मूरति गुण), ५५२८३-४ (+#) पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. जीतचंद, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (ॐकाररूप परमेश्वरा), ५४१४६-३ पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, म्पू, (ताहरे उप आंगी प्रा४), ५४९७२-८ाबा पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. दानविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., ( आज सफल थयो अवतार हो), ५४९७२-३४(+-#) पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. दीपचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुणज्यौ गोडीजी), ५५२८३-३(+#) पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू (लाखीणो सोहावें जिनजी), ५५२४०-३५(४) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. नेमविजय, मा.गु., ढा. १५, गा. १३७, वि. १८१७, पद्य, मूपू., (प्रणमुं नित परमेश्वर), ५४२३२(+) पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. नेमविजय, मा.गु., ढा. १४, वि. १८७७, पद्य, मूपू., (भावधरी भजन करु आपे), ५२४८१($) पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, पं. फत्तेविजय गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, भूपू., ( आज सफल दिन माहरो), ५४२२४-११(+) "" For Private and Personal Use Only Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५६६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २ पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. मोहनविजय, मा.गु, गा. ५, पच, भूपू (प्राण थकी प्यारो), ५३६०५-२, ५४०५५०खाण पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मुजरो मानीने लेजो हो), ५२३३१-३) पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्यारो पारकर देस), ५४८६५-१० (+) ', पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (कृपा करो गोडी पास), ५३२६८-५, ५३२४३-१६(#) पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, ग. विनीतविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, म्पू., ( आज सफल दिन म्हारे आज), ५३०९४-२००) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. श्रीचंद, पुहिं., गा. ९, वि. १७२२, पद्य, मूपू., ( अमल कमल जिम धवल), ५५०८७-९(+), ५५२८३८(+#), ५३१५६-५, ५५२४०-९ (-#) पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. हरिदास, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रगटधा भला पासजी), ५३१४६ पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी मु. हितविजय, पुहिं सबै २, पद्य, मूपू (तुमहि अंब हमको कवेठ), ५२४०१-१(+) पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, पुहिं., गा. १, पद्य, मूपू., (श्रीगोडि पार्श्वनाथ), ५२४०१-६(+) " पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी मंडन, मु. ज्ञानकुशल, मा.गु. गा. १९, वि. १७१२, पद्य, मूपू (कल्याणांबुज बोधने), ५५२४०-१६ (-) पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, ग. अमीचंद, मा.गु.. गा. १३, पद्म, मृपू, ( श्रीमति सुखकर पास), ५५२५२-८(+) पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, आ. जिनमहेंद्रसूरि, मा.गु. गा. ५, पद्य, मूपू., (मन माहारो चंतामण), ५३६६६-२(+) पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, पं. नायकविजय गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू (ढोला रे कारण हु फिरी), ५३२४०-२(क पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, मु. रायचंद ऋषि, पुहिं., गा. १३, वि. १८४२, पद्य, श्वे., (हरीया रंग भरीया हो), ५३२९६-१($) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (आणी मनसुध आसता देव), ५५२८३ " ५०० ५२२४०-२ "" पार्श्वजिन स्तवन- जीरावला, मु. लावण्यसमय, मा.गु, गा. ३८, पद्य, मूपू (जीराउलि मंडण श्रीपास), ५३३१८(१) पार्श्वजिन स्तवन- तिमरीपुरमंडन, मु. ज्ञानउदय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीतिमरीपुर पासजी), ५३९०४-१५) पार्श्वजिन स्तवन- तिवरीपुर मंडन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रह समे श्रीपास), ५२५०२-६ " (ए तु सुपन देई पन्नर), ५२७८९(१) पार्श्वजिन स्तवन- नड्डुलाई, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (जस महिमा जग सहू जाणे), ५२६३९-१ पार्श्वजिन स्तवन- नवखंडा, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. ६. वि. १९४५, पद्य, मूपू (घनघटा भुवन रंग छाया), ५३४०३ पार्श्वजिन स्तवन- नवपल्लव, मा.गु, गा. ३४, पद्य, मूपू पार्श्वजिन स्तवन- पंचासरा, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (छांजि छांजि छांजी), ५२४६५-५ (+) पार्श्वजिन स्तवन- पंचासरातीर्थ, पंन्या पद्मविजय, मा.गु. गा. ७, पद्य, मूपू (परमातम परमेश्वरु), ५२६९४-३०१, ५४७४४-२ (क) पार्श्वजिन स्तवन- पल्लविया, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (परम पुरुष परमेसरु), ५४२२४-१ (+), ५२९६६-२(#$) पार्श्वजिन स्तवन- पुरीसादाणी, रा., गा. ११, पद्य, मूपू., (प्रणमुं हु पासजिणंदा), ५३१०७-२ , " पार्श्वजिन स्तवन प्रभाति, मु. लाभउदय, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू (उठो रे मारा आतमराम), ५३३३६-२ (४), ५४५०४- २(ख) पार्श्वजिन स्तवन- फलवर्द्धि, मु. सुमतिचंद्र, मा.गु., गा. १६, वि. १६८५, पद्य, मूपू., (गजगति गामिनि सारदा), ५५२५२-३(+#) पार्श्वजिन स्तवन- फलवर्द्धिका, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (देवसकल सिर सेहरौ लाल), ५५२८३-१० (+#) पार्श्वजिन स्तवन- फलवर्द्धितीर्थ, मु. अभयसोम, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू (सरसति माता सेवकां), ५३५६३-२(+) पार्श्वजिन स्तवन- फलोधि मंडन, आ. पार्थचंद्रसूरि, मा.गु, गा. ८, पद्य, मूपू., (प्रभु नमिकिंपि उगजग), ५४०६१-५ पार्श्वजिन स्तवन-भद्रावतीमंडन, मु. खोडीदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (अरिहंत देवारे सेवा), ५३०५० पार्श्वजिन स्तवन- भिनमाल, मु. पुण्यकमल, मा.गु., गा. ५३, वि. १६६१, पद्य, मूपू.. (सरसति भगवति नमीय पाय), ५२३३२(+) पार्श्वजिन स्तवन- भीडभंजन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (स्या माटे साहिब सामु), ५२३४९-४, ५२५६०-१, ५४५०४ १३(#), ५३१०३-२($) + पार्श्वजिन स्तवन- भीडभंजन, मु. हंस, मा.गु, गा. ९, पद्य, मूपु पार्श्वजिन स्तवन- भीनमाल, मु. मेरो, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (भीडभंजन पासजी प्रभु), ५२९९७-३ (सरसति सामिण बिनमु), ५२३४१ पार्श्वजिन स्तवन-मक्षीमंडन, मु. उदयकुशल, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (मगसीमंडन पासजिणेसर), ५२३७०-१(-#) पार्श्वजिन स्तवन- मनमोहन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू (मनमोहन पावन देहडीजी), ५२५४४-२(+०) For Private and Personal Use Only Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ " पार्श्वजिन स्तवन- रूपवर्णन, आ. चंद्रसूरि, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर वइक्रिय), ५४०६३-३ पार्श्वजिन स्तवन- लघु, मु. वसतो, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे. (त्रिभुवन साहिब सांभल), ५३८१५-१ पार्श्वजिन स्तवन- लोढणमंडण, मु. शुभविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीलोढण प्रभु पासजी), ५४९७२-७९(+#) पार्श्वजिन स्तवन- लोद्रवपुरचिंतामणि, ग. हर्षनंदन, रा. गा. ६, पद्य, भूपू (चिंतामणिपास पूजीये), ५२७७६ (+) पार्श्वजिन स्तवन- लोद्रवपुरमंडन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू., (हो सुणि सांवलिया), ५३४५३-३(०) पार्श्वजिन स्तवन- लोद्रवामंडन, मु. राजरंग, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (आज हुं जाऊ रे तीरथ), ५३५५७-९ पार्श्वजिन स्तवन- वरकाणामंडन, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु गा. ९, पद्य, मृपू., (कांई रे जीव तु मन), ५४०३९-३ पार्श्वजिन स्तवन- वाडी, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू. (जिनजी ए गुन मेरो जान), ५४९७२-२७/१ पार्श्वजिन स्तवन- वाराणसीमंडन, मु. लावण्यसमय, मा.गु, गा. ३७, पद्य, मूपू (वाणारसीमंडण जिणपास), ५२८७९-२+५३) पार्श्वजिन स्तवन-वालही, मु. कृष्णविमल, मा.गु., गा. ८, पद्य, भूपू (वामानंदन विनवुजी), ५५२९८-१४/१ पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, वा. उदयरतन, मा.गु गा. ८, पद्य, मूपू (आप अरुपी होय नव प्रभ), ५२९९७-२ पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, वा. उदयरत्न, मा.गु., गा. १०, वि. १७८०, पद्य, मूपू., (पासजी तोरा पाय पलक), ५५२४०-२८(-#) पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. ३६, पद्य, भूपू (सकल मंगल तणी कल्प), ५२९१८(०) पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, ग. कांतिविजय, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू. (पणमवि सारदमाय पाय घण), ५२६०४(१) पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पासजिन), ५५२८३-१(+#$), ५३१६९-१, "" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 3 ५४८५२-१०, ५३३४४-३(#) पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, मु. जिनलाभ, मा.गु., गा. ७, वि. १८२२, पद्य, जै., (सेवो प्रभु शिव सुखका), ५३९८२-४(#) पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, पं. फतेविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर साहेबा), ५४२२४-१०(+) पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (समय समय सो बार संभार), ५५२४० - १८/१ पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, मु. विनयशील, मा.गु. गा. ११, पद्य, मूपू. (सकल मुरत श्रीपास), ५२८१३-१ (+) पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, ग. विनीतविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., ( आज मारे रंग वधामणा), ५३०९४-३(+#) पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरतीर्थ, ग. कुंअरविजय, मा.गु गा. ११, पद्य, भूपू (प्रह उठी प्रणमे), ५२८१३-२ (+), ५२४६०-१ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अंतरजामी सुण अलवेसर), ५४२२४-१३ (+), ५३७११-२(#), " ५६७ ५४०५५-६(#), ५४५०४-२३(#), ५५२९८-१५(#) , 1 पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरतीर्थ, मु, मोहनविजय, मा.गु, गा. ६. वि. १८वी, पद्य, मूपू (रहिनें रहिनें रहिनें), ५२९०६-७(+) पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरतीर्थ, मु. रंगविजय, मा.गु. गा. ६, पद्य, मृपू, (जी प्रभु पासजी पासजी), ५३१५४, ५३४८५-३० पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरमंडण, मु. कांति, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (तत थेई तत थेई राज), ५४२२४-२(+) पार्श्वजिन स्तवन- शामलिया, मु. उदयरत्न' पुडिं, गा. ७, पद्य, मूपू (कोयल टहुकी रही मधुवन), ५३४३३-३(५) पार्श्वजिन स्तवन- शेरीसा, मु. लावण्यसमय, मा.गु. गा. ३०. वि. १५६२, पद्य, मृपू., (स्वामि सुहंकर श्रीसे), ५२२७४ पार्श्वजिन स्तवन- सप्तफणी, मु. मेघ, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (आज मनोरथ माहरो फळियो), ५४९७२-४१(+#) पार्श्वजिन स्तवन- समवसरणविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., डा. २ गा. २७, पद्य, भूपू (श्रीजिनशासन सेहरो जग), ५३६५९- १ For Private and Personal Use Only पार्श्वजिन स्तवन- समीना, मु. माणक, मा.गु., गा. ३, पद्य, भूपू (समीना पासजी म्हारी). ५३७१४-१ . पार्श्वजिन स्तवन- सिवजी सामी जोड, क. हरि, मा.गु., गा. ८, पद्य, वे., (परसंन जीनवर हीए दरसन), ५३११० (-) पार्श्वजिन स्तवन- सुखसागर, मु. राजसागर शिष्य, मा.गु. गा. ९, पद्य, भूपू. श्रीसुखसागर पासजी), ५२२१५ (+) पार्श्वजिन स्तवन- सुरतमंडन, ग. जिनलाभ, मा.गु., गा. ९, वि. १८१७, पद्य, मूपू.. (सहसफणा प्रभु पासजी), ५२८०७-३(१) पार्श्वजिन स्तवन- सुरतमंडन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु, गा. १४, पद्य, भूपू (सुरति मंडण पास जिणंद), ५२३५८-२ (१) पार्श्वजिन स्तवन- सोजतमंडन, मु. केसर, रा. गा. ९. वि. १८४०, पद्य, भूपू. (--), ५३२६८-१(३) पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु., ढा. ५, गा. १८, पद्य, मूपू., (प्रभु प्रणमुं रे पास), ५३३४६ (+$), ५२४७६, ५२१९१(#) पार्श्वजिन स्तवन- स्तंभनतीर्थं, मु. नेमविजय, मा.गु., डा. २८ गा. ३२३, वि. १८११, पद्य, मृपू (सरसतीनें समरुं सवा), ५५३०१ (१) Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पार्श्वजिन स्तुति, उपा. जयमाणिक्य, मा.गु., गा. ११, वि. १८४९, पद्य, मूपू., (प्रभु पारस प्रभुता), ५३३८६-२ पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अश्वसेन नरेसर वामा), ५३५६७-२, ५४५४६-१२(#) पार्श्वजिन स्तुति, श्राव. जुठा अमरसी, मा.गु., गा. ४, वि. १९वी, पद्य, श्वे., (भीडभंजन प्रभु पासजिण), ५३०६३-२ पार्श्वजिन स्तुति, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पासजिणंदा वामानंदा), ५३०१३-१(2) पार्श्वजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जलण जल वियोगा नाम), ५२५८१-५(#) पार्श्वजिन स्तुति-गोडीजी, मु. भाणविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (परम प्रभु परमेश्वर), ५३४१६-४ पार्श्वजिन स्तुति-पौषदशमीपर्व, आ. उदयसमुद्रसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, पू., (जय पास देवा करूं), ५४२४४-६(#), ५४७५९-४(#) पार्श्वजिन स्तुति-भीनमालमंडन पुरुषादाणी, उपा. कुशलसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रभु पास जिणंद पुरि), ५४२४४-५(#) पार्श्वजिन स्तुति-वरकाणा, पंन्या. कमलविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वरकाणइंवर मंडण पास), ५४२४४-४(#) पार्श्वजिन स्तुति-शंखेश्वर, मु. महिमारुचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शंखेसर पास जिणंद), ५४९७२-५४(+-#), ५२५३२-२, ५४२४४-११(#) पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सकल सदा फल चिंतामणि), ५३२०८-१(+#) पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (श्रीजिनमुख पंकज), ५३९३२-३(#) पार्श्वजिन होरी, क. चंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (आवौ हमारै साजना मिलि), ५३५१६-७ पार्श्वजिन होरी, मु. रत्नसागर, पुहिं., गा.७, पद्य, मूपू., (रंग मच्यो जिनद्वार), ५३२४३-१०(#) पुण्यछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, वि. १६६९, पद्य, मूपू., (पुण्यतणां फल परतखि), ५२१२२-१, ५२६०२-२(#) पुण्यपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २९, वि. १८३५, पद्य, श्वे., (पोते पुन्य हुवे जेहन), ५४४३३-१९(+) पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ८, गा. १०२, वि. १७२९, पद्य, पू., (सकल सिद्धिदायक सदा), ५३९११(+#$), ५२२८०-१, ५२३२७-१, ५४३२०-२(#) पुण्यफल सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (दया निरसींगो बाजीयो), ५२६७१(#) पुद्गलपरावर्तन विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (द्रव्य क्षेत्र काल), ५३६७२-१(#) पुरंदरकुमार रास, वा. मालदेव, मा.गु., ढा. १२, गा. ३७६, पद्य, मूपू., (वरदाई श्रुतदेवता), ५५१७७(#$) पुरुष के १६ श्रृंगार, मा.गु., अंक. १६, गद्य, (१खिजमत २ सनान), ५४२४३-२(१) । पुष्पचूलासती नवढालियो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ९, वि. १८४७, पद्य, श्वे., (राय बेठो छे बाजुडी), ५३४९८(+) पृथ्वीचंदगुणसागर वेली, मा.गु., गा. ५४, पद्य, मूपू., (सिरिनेमि जिणेसर नमिय), ५४३५४, ५२६४३(#) पौषध के १८ दोष *, पुहि.,मा.गु., गद्य, मूपू., (विना पुछ्या आग्या),५२२६०-२(#) प्रतिमाचर्चा सज्झाय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (विरजणेसर विनति एसो), ५४४४६-२१(+) प्रत्याख्यानफल सज्झाय-शत्रुजयतीर्थे, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (पचखि पचक्खाण परभाति), ५२९८२-२, ५३५८२-४(#) प्रत्याख्यान सज्झाय-दुविहार, मु. मानविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (पहिला प्रणमी सरसति), ५५२४०-४६(-2) प्रदेशीराजा सज्झाय, मु. रूपमुनि, मा.गु., ढा. २, गा. १७, पद्य, श्वे., (विमलजणेसर पाय नमी), ५४४४०-३२(+) प्रभंजनासती सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., ढा. ३, गा. ४९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (गिरि वैताढ्यने उपरे), ५३३८८(+$, ५३५८९, ५३७४५-१, ५३४५५(-) प्रभात सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जोबनीयानी मोजो फोजो), ५३४९४-२(-) प्रभाती पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (भोर भयो अब जाग), ५५१२८-१०(+#) प्रमाद परिहार गीत-आठमद, मु. मेघराज ऋषि, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (आठ मद वाह्यो रे केह), ५२६०१-६(#) प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रणमुंतुमारा पाय), ५४१३२-४८(+#) प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू., (प्रसनचंद्र तजि राज्य), ५४३७९-७(+-) प्रस्ताविक पद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (बादल की छाया सुपना), ५३७५८ प्रस्ताविक सवैया, पुहिं., गा. १३, पद्य, श्वे., (न काहु कै साथ चलै), ५३६११-१ For Private and Personal Use Only Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ प्रहेलिका दोहा, पुहिं., दोहा. १, पद्य, वै., (अहिफण कमल चक्र टणकार), ५३५०८-३(+), ५४९७२-१६(+-#) प्रहेलिका संग्रह, रा., गा.८, पद्य, श्वे., (देख्यां रे चेला बीन), ५३१५२-१ प्रहेलिका हरियाली, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (एक नारी बहु पुरुष), ५४२२४-६(+), ५२३२९-१ प्राचीन नगरों के नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (अजोध्यानगरी१ चंपानगर), ५४४६४-१३ प्रासुक जल सज्झाय, मु. वीरम, मा.गु., गा.८, पद्य, श्वे., (पणमी वीरजीणेसरदेव), ५३५५५(#) प्रास्ताविक दोहा संग्रह, मा.गु., गा. ७, पद्य, वै., (एक गोरी दुजी सामलि), ५३२३०-३(#) प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पुहि.,मा.गु., गा. ७१, पद्य, श्वे., (पडिवन्नइ माछा भला बग), ५२४६५-६(+), ५२६८०-३(+), ५३२०८-२(+#) प्रास्ताविक दोहा संग्रह *,मा.गु.,रा., गा. २५, पद्य, वै., (बुरी प्रती भमर की), ५२१७१-२(+), ५३८२३-३(+), ५३१७९-३, ५३२७७ प्रास्तावित कवित्त, मा.गु., गा. १, पद्य, (आज हींग आण तेल आण), ५३२३२-१(#$) प्रियंकर चरित्र, मु. उत्तमविजय, मा.गु., खं. ४, पद्य, मूपू., (वामासुत समरीइं ॐ), ५४०७५(+) प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ११, गा. २२०, वि. १६७२, पद्य, मूपू., (प्रणमुं सद्गुरु पाय), ५४७९९(+#$), ५३७४८(#S) फूलडा सज्झाय, पुहिं.,रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (बाई रे कोतिग दीठ), ५३६३४(+-#), ५३४१७-१ (२) फूलडा सज्झाय-टीका, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवीर निर्वाणात), ५३६३४(+-2) (२) फूलडा सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीरना निर्वाण), ५३४१७-१ बंधी विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (कृष्णपखी समामिछदिठि), ५४४१२-२(+) बरडावीर छंद, आ. जयचंदसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (एगते एकचित्ते भूवलय), ५२६०२-७(#) बलभद्रमुनि सज्झाय, मु. करुणाचंद, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (द्वारामतिथी कृष्णबलभ), ५३४६५-२(#) बलभद्रमुनि सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मूपू., (द्वारिका हुती निकल), ५४१३२-६(+#) बलभद्रमुनि सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (मासखमणने पारणे तपसी), ५३६९२-१(-#) बलभद्रमुनि सज्झाय, उपा. राजरत्न पाठक, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (संवेगी बलदेव साधु), ५२६९६-२(#) बलभद्रमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वन उध्यान विचरता), ५४३७९-६(+-) बारहमासा वर्णन, पुहि., पद्य, वै., (--), ५३९४२-१(+$) बाहुजिन फाग, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (परणे रे बाहू रंग), ५२२०८-२(-2) बाहुजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (बाहु समापउ बाहुजी), ५५२५२-१८(+#) बाहुजिन स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (रमत रमिवा मैं गईथी), ५४५०४-६(#) बाहुजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (साहिब बाहु जिणेसर), ५४३८४-८(+#) बाहुबली गीत, मु. लींबो, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (तखसीला नगरीइ आवीया), ५३५८२-३(#) बाहुबली सज्झाय, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वीराजी मानो वीनती), ५२५४५-६(-2) बाहुबली सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (बाहूबली वन काउसग), ५५१५१-९(#) बाहुबली सज्झाय, मु. राम, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (बाहुबल दीक्षा ग्रही), ५२४३४-१(#) बीजतिथि सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (बीज तणे दिन दाखवू), ५४१३२-१९(+#) बीजतिथि स्तवन, ग. गणेशरुचि, मा.गु., गा. १९, वि. १८१९, पद्य, मूपू., (श्रीश्रुतदेवि पसाउले), ५२५३९-२ बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (दिन सकल मनोहर बीज), ५४७५९-३(#), ५४८२२-७(#), ५५३७६ २(#), ५५४५७-३(#) बुढ़ापा चौपाई, मा.गु., ढा. १२, वि. १८४५, पद्य, मूपू., (जंबुद्वीपनै भरतमै), ५५०९२(+$) बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., गा. ६२, पद्य, मूपू., (प्रणमुं देवी अंबाई), ५३५६१, ५४८५२-२०, ५२०६३(#), ५३४०२(2) बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), ५४४९६-२(+#) भक्तिपरक पद, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (जब हम तुम इक ज्योत), ५५१२८-७(+#) For Private and Personal Use Only Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५७० www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ " भक्तिपरक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं, गा. ३, पद्य, मृपू, (हमारी अखियां अति ऊलस), ५५१२८-२४(+४) भय परिहार गीत, मु. मेघराज ऋषि, मा.गु., गा. ७, पद्य, वे., (सिद्धांत सुणेवा काजो), ५२६०१-८(१) भरतचक्रवर्ती रास, पासो पटेल, मा.गु., ढा. २०, वि. १८१८, पद्य, स्था., (अरि हणवे अरिहंतजी), ५५२६६ ($) भरतचक्रवर्ती रास, मा.गु., पद्य, श्वे. (--), ५४४६७ ($) " भरतचक्रवर्ती सज्झाय, ऋ. इंद्रजी, मा.गु., गा. ११, पद्य, वे., (साहेबा प्रेम घरी प्र), ५२६०५-२(१) भरतचक्रवर्ती सज्झाय वा. किशन, मा.गु, गा. ९, पद्य, मृपू. (--), ५२९३१-३ (६) . भारतबाहुबली छंद, मु. वादीचंद, मा.गु.. गा. ६०, पद्य, मूपू., (छंद भरथेस्वर बाहुबल), ५२५६४ भरतबाहुबली सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., गा. १२, वि. १७७१, पद्य, मूपू., (तव भरतेश्वर वीनवे), ५३९७१ भरतबाहुबली सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु, डा. ४, गा. ३८, वि. १७७१, पद्य, मूपू (स्वस्ति श्रीवरवा) ५३५३०(०), ५४१३२ "" ५(००) ५४४४०-२३(+) भरतबाहुबली सज्झाय, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., ( बाहुबल चारित लीयो), ५३९८९-२(#) भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु. गा. ७. वि. १७वी, पद्य, भूपू (राजतणा अति लोभीया), ५४१३२-१२(१), ', ५४१८३-५(१४), ५४२२४-७(+), ५५२८३-३६(१) ५२२८८-१, ५३११४-२, ५३६१२-२, ५३०६४-८) भरतबाहुबली सलोको, क. उदवरत्न, मा.गु., गा. ६८, पद्य, मूपू., (प्रथम प्रणमुं माता), ५३६०८-१(+), ५५४५९९० भले का अर्थ- महावीरजिन पाठशालापंडित संवादगर्भित, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रभु नीशाल बैठा), ५४२३५ भवदेवनागिला सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (भवदेव भाई घरे आवीयो), ५३०६१-१ भारमान विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., वै., (षट सरसवे एक जव थाय), ५४४६४-३४ भावना सज्झाय, मु. कुशलसंयम, मा.गु. गा. १३. पथ, भूपू (पाय प्रणमी रे भगति), ५५१९२-१ /**$) भुजंगजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (भुजंगदेव भावे भजो), ५४५०४-३४१०६) भुवनभानुकेवली चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, मा.गु., पद्य, भूपू (--), प्रतहीन. (२) भुवनभानुकेवली चरित्र - बालावबोध, मु. हरिकलश, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिरिवीरं नमीअ जिणं), ५४१०० भूतलमान विवरण कवित, मु. हीर, मा.गु. गा. १, पद्य, मूपू (भूतल छन्नुकोडि नगर), ५४२६५-३(१) " भैरूजी की आरती, मा.गु., पद्य, जै. वै., (रुमझुम रुमझुम आरती), ५३२४३-६(#$) , भोजन पद, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे. (प्रथम जनेसर लागु पाय), ५३६७८(+) मंगलपच्चीशी, पं. खेमवर्द्धन, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सरसती माता सारज करो), ५२७४२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मंत्र संग्रह*, मा.गु., गद्य, वै., (लीली बलकी तुंबडी), ५४२६८-२ मताग्रही सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १५, वि. १८४०, पद्य, स्था., (एणे जगमें केइ नरनारी), ५४४४०-१९(+) मदनरेखासती चौपाई, मा.गु., गा. १७९, पद्य, मूपू., (वापै सु आपै धनन्नी), ५४००८, ५२२६६ (#) मदनरेखासती सज्झाय, मु. राजसमुद्र, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (लघु बंधव जुगबाहूनो), ५३८७५-२ मदनरेखासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (मोरा प्रीतमजी तुं सु), ५३७४५-२ मधुबिंदु सज्झाय, मु. चरण प्रमोद - शिष्य, मा.गु., डा. ५, गा. १०, पद्य, मूपू (सरसति मुझने रे मात). ५४१३२-४५ (+०), ५३८३०-१(४), ५३६५३-२-१ मनकमुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, भूपू., ( नमो रे नमो मनक), ५२०८६-१, ५३०५६ मन मधुकर पद, मु. सिद्धिचंद्र, पुहिं, गा. ४, पद्य, मूपू (मेरे मन मधुकर सुंदर), ५५२५२-२३(+) " "" मनमांकड सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मन मांकडलो आण न माने), ५४१३२-२५(+#) मनुष्य की ७०० नाडी, मा.गु., गद्य, थे. (१६० नाडी नाभीथी मस्त), ५४४६४-११ " मनुष्यभव १० दृष्टांत सज्झाय, वा. गुणविजय, मा.गु. गा. १२, पद्य, भूपू (प्रणमी परमेसर वीर). ५२६३१-१०) मनुष्यभवदुर्लभता सज्झाब, मु. पासचंद, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (दुलहो नरभव भमता), ५४०६३-८ मनुष्य व संमूच्छिंम जीव उत्पत्ति स्थान, मा.गु., गद्य, वे (मनुष्यनै समुर्छिम), ५२४७९-३ मरुदेवीमाता सज्झाय, क. ऋषभ, मा.गु, गा. ५, पद्य, मूपू., (तुझ साधे नहीं बोलु), ५३८१५-२, ५३०६८-२० " For Private and Personal Use Only Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. कल्याण, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (रिषभ जीवन वासइ वसइ), ५३८३९(+) मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १६, वि. १८५०, पद्य, स्था., (जंबुदीपै हो भरत), ५२९०६-१(+#) मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १३, वि. १८३७, पद्य, श्वे., (नगरी वनीतां भली वीर), ५२०६६-२(+#), ५२१९५ ४(-) मलयसुंदरी रास, मु. कातिविजय, मा.गु., खं. ४ ढाल ९१, गा. १०५२, वि. १७७५, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसुखसंपदा), ५४२२९ मलयासुंदरी चौपाई, पंडित. उदयधर्म, मा.गु., प्र. ४, गा. ११९५, ग्रं. १८००, वि. १५४३, पद्य, मूपू., (सयल जिनवर सयल जिनवर), ५४३३५ (+#) मल्लिजिन पद, मु. जिनहरख, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (जिनमुख वांनी भव खैला), ५३१४१-२(-2) मल्लिजिन लावणी, मु. मोहन, रा., गा. ५, वि. १९६३, पद्य, श्वे., (श्रीमल्लीनाथ हु), ५३८८६-१(#) मल्लिजिन स्तवन, मु. कुशललाभ, मा.गु., ढा. ५, वि. १७५६, पद्य, मूपू., (नवपद समरी मन शुद्ध), ५२८५४(+#) मल्लिजिन स्तवन, मु. धर्मसिंह, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (हवे दान संवछरि दिये), ५२९०६-४(+#) मल्लिजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (चीत कुंण रमे चित कुण), ५२५५३-२ मल्लिजिन स्तवन, मु.स्वरूपचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जीरे महिमा मल्लि), ५४६१३-१५ महादंडक ३० द्वार, मा.गु., गद्य, मूपू., (दंडक १ लेस्या २ ठिती), ५५६००(+#) महादेव अष्टक, पुहिं., पद्य, वै., (देव तु माहादेव साचि), ५२७२४-१(६) महापुरुष महासती सज्झाय, क. जिन, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (पुरस सरवे सरखा नहि), ५३०९१(#) महाबलराजर्षि कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (तहेव विजउराया० गजपुर), ५४८५३-६(+#) महावीरजिन २७ भव वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (अथ हिवइ श्रीमहावीरस), ५३६७६(#) महावीरजिन २७ भव वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (जै माटि आ अवसर्पणीमा), ५२५२५ महावीरजिन गहुंली, मु. खुसालरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभुजी आव्या रे गुण), ५३७३७(+) महावीरजिन गहुंली, मु. विद्यारंग, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (सहीया वीर जिणंद), ५३१७५, ५३१९० महावीरजिन गहुंली, मु. विवेक, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सखी सासननायक आवै छे), ५२३१५-१(+) महावीरजिन गहली, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (नयरि राजगृहि आविया), ५३०८२-२(-#) महावीरजिन गीत, मु. कनककीर्ति, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वीरजी हूं बांभण धन), ५३२३०-१(2) महावीरजिन चैत्यवंदन, क. ऋषभ, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वंदं वीर जिणंद मही), ५३३०७-२($) महावीरजिन चौढालिया, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा. ४, गा. ६३, वि. १८३९, पद्य, स्था., (सिद्धार्थकुलमई जी), ५३३४७(#$) महावीरजिन छंद, मु. वीर मुनि, मा.गु., गा.११, वि. १८१०, पद्य, मूपू., (महा मंगलीक भजो आप), ५२९०७-२(+#) महावीरजिन छंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर जनमीया), ५३५६३-३(+) महावीरजिन जन्मकुंडली स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. १०, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (सेवधी संचउ घेरिया), ५३४४० महावीरजिन जन्मबधाई, रा., गा. १३, पद्य, मूपू., (त्रिसला दे माता), ५३८९६-१ महावीरजिन जीवन प्रसंग, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५४४७४($) महावीरजिन तप स्तवन, मु. रायचंद, मा.गु., गा. १५, वि. १७९३, पद्य, मूपू., (श्रीमहावीर तप सांभलो), ५२४९४-१(+) महावीरजिन तप स्तवन, मा.गु., गा. १७, पद्य, श्वे., (गोतमसामी बुधि दीयो), ५२४०८-३($) महावीरजिन तप स्तवन, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (गौतमस्वामीजी बुद्धि), ५४४४१-७(+$), ५४५०४-३२(#) महावीरजिन तप स्तवन, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सरसति स्वाम्मीजी), ५२३७५(#) महावीरजिन निर्वाण आरती, मु. उदय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (जय जय जगदीश जिनेसर), ५३२५४-२(#$) महावीरजिन निसाणी-बामणवाडजीतीर्थ, मु. हर्षमाणिक्य, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (श्रीमाता सरसती सेवक), ५३५९२(#) महावीरजिन पद, मु. जिनचंद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पावापुर महावीर जिणेस), ५३२४३-१७(#) महावीरजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (अंगीया मेरा जिनजीसुं), ५२४८२-३ महावीरजिन पद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (स्वामि माहावीरजी), ५३१३८-२(#) For Private and Personal Use Only Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५७२ www.kobatirth.org भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ महावीरजिन पारण, मु. अभीविजय, मा.गु., गा. १८, पद्य, मृपू. (माता त्रिशला ए पुत्र), ५२७२७, ५३३९२ महावीरजिन प्रभाति, मु. रामचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वीरजिणंद नाडीया), ५२८५९(०१) महावीरजिन वधावा, रा., गा. ११, पद्य, मूपू., (सरसतसामीने समरववूं), ५३१०१ महावीरजिन विनती स्तवन- जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १९, पद्य, भूपू (वीर सुणो मुज विनती), ५२६५७ " १(+#), ५३३५२-१, ५३६६०-१, ५२४८९(#), ५४५०४-३६ (#), ५५१५१-१०(#), ५३३६३($) महावीर जिन सज्झाय, मु. सेवक, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (विरजिनवर अवतसां वरसे), ५३१०७-४ महावीरजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु, गा. ७, पद्य, मृपू., (वीरजीने चरणे लागु), ५३९४९-२ (२) महावीरजिन स्तवन- टवार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हिवे ध्रुवपद पाम्यो), ५३९४९-२ '. महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु.. गा. ५. वि. १७८९, पद्य, मूपू (जगपति तारक श्रीजिनदे), ५२४५०-२(०), ५२६९४-४(क) महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, रा. गा. ७, पद्य, भूपू. (नीजरां रहस्यांजी), ५३९७९-३०), ५४०५५न्दाल महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, भूपू (लबधीवंत गुरु गोतमसाम), ५२९०६-१० (+) " महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (श्रीप्रभुजी तुमे तो), ५२४६५-४ (+), ५२३०२, ५२४८७-१, ५२५८८ (३(-105) יי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ', महावीरजिन स्तवन, मु. ऋषभदास, मा.गु गा. १८, पद्य, मृपू (वीर जीणंद चोवीसमो), ५२८५१(३) महावीरजिन स्तवन, मु. ऋषभ, मा.गु, गा. ११, पद्य, म्पू, (वीरजिणेसर साहिब मेरा), ५३११४-१(३) महावीरजिन स्तवन, मु. कुंअर सिंह, मा.गु., गा. ९, पद्य, भूपू. (महावीरजिण वंदीह जी), ५२०८९-१(+ महावीरजिन स्तवन, मु. केसर, पुहिं. गा. ९, पद्य, मूपू (जय बोलो त्रिशलानंदन), ५३९०५-२(+) " महावीरजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु, गा. १०, पद्य, म्पू, (भविक कमल पडिबोहतो), ५४५०४-१५ (१६) महावीरजिन स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू. (म्हारे भले उगो रे), ५२७१७-५ महावीरजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (महावीर मनोहरु प्रणमु), ५३४२०-४ महावीरजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३३, पद्य, मूपू., (हवे इंद्र आदेसे धनदत), ५३३८१(#) महावीरजिन स्तवन, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. ५, पद्य, थे. (श्रीसीद्धार्थकुल), ५३०४३-२(+), ५४३८४-४(+०) ५४४७७-२ महावीर जिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वीर हमणां आवे छे), ५२६९४-१(#) महावीरजिन स्तवन, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, भूपू., ( नणदल हे के नगवल), ५३७०१-१, ५४५०४-२७(१६) महावीरजिन स्तवन, श्राव, भूपाल, मा.गु गा. ७, पद्य, मूपू (महावीरजी आवी), ५२८४९) ,, " महावीरजिन स्तवन, मु. मनोहरविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, भूपू (प्रभुजी म्हारा आज), ५२६७६-४००, ५३२१७/१ , महावीरजिन स्तवन, मु. महानंद, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (वीर साहिब सुखकारी), ५२५४९ (+), ५४५०४-१०(#) महावीरजिन स्तवन, मु. महानंद, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू (सासननायक समरुं सदा), ५३१२६-६ महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (गिरुआ रे गुण तुम), ५३३५२-२, ५५२९८ २०(#) महावीर जिन स्तवन, पन्या, रंगविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू (सिधार्थसुत बंदिय), ५३५५०- २ (-) महावीरजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू (नारे प्रभु नहीं), ५२३४९-५ (5) महावीरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (सासननायक वीरजिणंद), ५३५२७-१, ५२९४९-२ महावीरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु.. गा. १२, वि. १८३७, पद्य, वे (सिद्धारथ कुल दीपक), ५४४४१-६ (९), ५३२१२-२(६), ५२१९५-५) ५२९४९-१(१ י महावीरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु. गा. ११ वि. १८४०, पद्य, भूपू (सिद्धारथ राजारी राणी), ५३६०६-३(१) महावीरजिन स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु. गा. ८, पद्य, मृपू. (ते दिननो विसवास छें), ५४२२४-५ (+) " महावीरजिन स्तवन, मु. रूपसिंघ, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रथम दीपे दीपता रे), ५२९०६-६(+#) महावीरजिन स्तवन, मु. लक्ष्मीविमल, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सिद्धारथ कुल कमल दिव), ५२८३१-१ महावीरजिन स्तवन, मु. वखता, मा.गु, गा. ८, पद्य, वे. (कटक कंदो रे मोहनो हो), ५२०९४-२ , For Private and Personal Use Only Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ महावीरजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु. गा. ११, पद्य, म्पू, (माताजी तुमे धन धन रे), ५३३७२, ५३४४१-२ महावीरजिन स्तवन, मु. वीर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (वीरकुंवरनी वातडी), ५२४४२ महावीरजिन स्तवन, श्रीपति, मा.गु, गा. ७, पद्य, भूपू (मुख मटके अटके मारु), ५४०३५-२ महावीरजिन स्तवन, मु. सिंहकुशल, मा.गु. गा. ४, पद्य, मूपू., (वीर जिणेशर वीनती), ५५२४०-४० (-) महावीरजिन स्तवन, सोहनलाल ब्राह्मण, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., वै., (सिमर नर महाबीर भगवान), ५३३९० महावीरजिन स्तवन, मु. हौर, मा.गु., गा. ६, पद्य, भूपू (सासण भुषण सामी सधीर), ५४३८४-९ (+०) महावीरजिन स्तवन, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (जारे जनजी चविने), ५२८८० (+#) " "" महावीरजिन स्तवन, मा.गु गा. १२, पद्य, भूपू (तारनी इंद्र फारी इंद), ५२९७१-२) महावीरजिन स्तवन, मा.गु, पद्य, भूपू (सरसतस्वामीने वीनवू), ५३३८३-३(5) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीरजिन स्तवन- १२ वधावा, मु. जिनदास, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (--), ५२९०७-१(+#$) महावीरजिन स्तवन- १४ गुणस्थानकविचारगर्भित, ग. सहजरत्न, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (महावीर जिनरायना पय), ५२४७८ महावीर जिन स्तवन- ९४स्थानक गुणगर्भित, आ. समरचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ५३, पद्य, मूपू. (सयल गुणनिधि० वीरजिन), ५५२५२१२/०५) ५७३ महावीरजिन स्तवन-१४ स्वप्नगर्भित, क. जैत, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (एक मन वंधु श्रीवीर), ५३९६४, ५३६०९($) महावीरजिन स्तवन- २४ दंडक २६ द्वारगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ९१, प्र. १६२, पद्य, भूपू. (सुखकर स्वामी वीरजिन), ५५२५२.२० (+) महावीरजिन स्तवन- २४ दंडकगर्भित, क. पद्मविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ८९, पद्य, मूपू (प्रणमी सरसति भगवती), ५५४३१ महावीर जिन स्तवन- २७ भव, पंन्या. ज्ञानकुशल, मा.गु., डा. ११, गा. ८७, वि. १७३१, पद्य, मूपू. (पूर्ण प्रेमे प्रणमीह), ५५५१४(+६) महावीरजिन स्तवन- २७ भवविचारगर्भित पं. वीरविजय, मा.गु., डा. ५, गा. ५२, वि. १९०१, पद्य, भूपू (श्रीशुभविजय सुगुरू), १ ५५५६९(१) महावीरजिन स्तवन- ४५ आगम संख्यागर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., ढा. ३, गा. २८, वि. १७७३, पद्य, मूपू., (देवां ना पिण जेह छै), ५२०८०-११+४), ५३४७८-१ महावीरजिन स्तवन -५ कल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ५६, वि. १७७३, पद्य, मूपू., (शासननायक शिवकरण वंदु), ५२२७९, ५३५५०-१(0) महावीरजिन स्तवन -५ कल्याणक वधावा, मु. दीपविजय, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (वंदी जगजननी ब्रह्माण), ५२२९३ महावीरजिन स्तवन-उपधानतपविधिगर्भित, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. २७, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (श्रीवीरजिणेसर सुपरे), ५२४५८(#), ५३५५१-१($) महावीरजिन स्तवन- कुमतिउत्थापन सुमतिस्थापन, श्राव. शाह बघो, मा.गु., गा. ४० वि. १७२६, पद्य, मूपू (श्रीश्रुतदेवीनें चरण), ५३५८१-२, ५३५६४-१(#) महावीरजिन स्तवन-छट्ठाआरागर्भित, श्राव. देवीदास, मा.गु., ढा. ५, गा. ६६, वि. १६११, पद्य, मूपू., (सकल जिणंद पाय नमी), ५२२९६-१ महावीरजिन स्तवन - ज्ञानदर्शनचारित्रसंवादरूप नयमतगर्भित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., ढा. ८, गा. ८१, वि. १८२७, पद्य, मूपू., (श्रीइंद्रादिक भावथी), ५२२७६(#) महावीर जिन स्तवन- तपवर्णन, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सरसत सांमण द्यो मति), ५२४४७-१ (२) महावीरजिन स्तवन- दीपावलीपर्व, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., ( मारग देशक मोक्षनो रे), ५२३९८-१(#) महावीरजिन स्तवन- नालंदापाडा, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २२, वि. १८३९, पद्य, श्वे., (मगध देशमांहि विराजै), ५४३८४ १४+१३) महावीरजिन स्तवन-निर्वाण विवरण, ग. कुमुदचंद्र, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., ( पुन्य संजोगै दर्शन), ५२२३६(-) महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत अनंत गुण), ५२८३८ (+), ५३१६४(+), ५३३५४-२(+३), ५२८८८, ५२९५३-२(४) For Private and Personal Use Only Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ महावीरजिन स्तवन-बांमणवाड, मु. विनयचंद, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (--), ५५२५२-१(+#$) महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (समरवि समरथ सारदा), ५२९६७-१(+), ५४२०७-७(+$), ५२५६१-१,५३६३६(#), ५२४८३-४(६), ५५२४०-२३(-2) महावीरजिन स्तवन-मुहपत्तिपडिलेहणविधिगर्भित, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (वरधमान जिनवर तणा जी), ५३९८२-२(#) महावीरजिन स्तवन-विक्रमपुरमंडन, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (जयकारी वीरजिणेसरु), ५२५७८-१(#) महावीरजिन स्तवन-सांचोरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (धन्य दिवस मई आज जुह), ५३३२४-१(2) महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ६, गा. १४८, ग्रं. २२८, वि. १७३३, पद्य, पू., (प्रणमी श्रीगुरुना पय), ५४१४७(+#$), ५४२०७-६(+), ५५३१२(#$) (२) महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (ए स्तवनमां प्राइ पद), ५४१४७(+#s) महावीरजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मुरति मनमोहन कंचन), ५३६७०-१,५४५४६-१८(#) महावीरजिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जय जय भवि हितकर वीर), ५३४२०-३ महावीरजिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मनोहर मुरति महावीर), ५३४२०-२ महावीरजिन स्तुति, मु. पुण्यरुचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (महावीर मोटो जगनाथ), ५४२४४-३(#) महावीरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (कठन करम मेली काठीआ), ५२५८१-६(2) महावीरजिन स्तुति, पुहिं., गा. १, पद्य, मूपू., (तरण तारण दुख निवारण), ५४६६८-१ महावीरजिन स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (दं दं दंचग मृदंग), ५२९०६-११(+#) महावीरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (दया तणो सायर मुक्ति), ५५३६४-१३(+#), ५२८६७-३(#) महावीरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (बालपणे डाबो पाय चाप), ५५३६४-१२(+#) महावीरजिन स्तुति-गांधारमंडन, मु. जसविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (गंधारें श्रीवीरजिणंद), ५३४१६-३, ५२४११(#), ५३९९९(#) महासती सज्झाय, पुहि., गा. १०, पद्य, श्वे., (गीसती के घर साधने), ५२०५१-२(#) मांगलिक दीवो, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (दीवो रे दीवो मंगलिक), ५३२०५-१(#) मांडली ७ नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (सुत्रनी मंडली १ अर्थ), ५४४६४-४७ माणिभद्रवीर छंद, मु. उदयकुसल, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (सरस वचन द्यो सरसती), ५२७८५(+), ५२४७४-२(s), ५२५३९-१(5) माणिभद्रवीर छंद, आ. शांतिसूरि, मा.गु., गा. ४३, पद्य, मूपू., (सरसति सामनि पाय), ५३४६५-३(2) माणिभद्रवीर छंद, मु. शिवकीर्ति, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीमाणिभद्र सदा), ५२७०९, ५३९६८-१ माधवानल चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. ५५२, वि. १६१६, पद्य, मूपू., (देवि सरसति देवि), ५४९७६(+#), ५४०४१ मानतुंगमानवती रास, अनुपचंद-शिष्य, मा.गु., ढा. ८, वि. १८७०, पद्य, मूपू., (सरी संत जणेसरु नमता), ५२४३१-१(-) मानतुंगमानवती रास, उपा. अभयसोम, मा.गु., ढा. १४, वि. १७२७, पद्य, मूपू., (प्रणमुंमाता सरसती), ५४०९३(+#) मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., ढा. ४७, गा. १०१५, वि. १७६०, पद्य, मूपू., (ऋषभजिणंद पदांबुजे), ५४४४७(+S), ५४८४१(+$), ५५०३३(+), ५५२३६(+#S), ५४०८८(#$), ५४२७७(#), ५५५५५($) मानपरिहारछत्रीसी, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (मान न कीजे रे मानवी), ५३८०९(2) मार्गानुसारी ३५गुण सज्झाय, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (वीर कहइ भविजन प्रते), ५३६६७(+-) मालडूंगरबावनी, श्राव. पद्मनाभ, मा.गु., गा. ५४, वि. १५४३, पद्य, दि., (ॐकार अपार पार पावंति), ५२७६९(+) मिथ्यात्वी वर्णन लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (कंकर कुं शंकर करी), ५२९०६-३(+#) मुंहपत्ती पडिलेहण विचार सज्झाय, पं. तेजविजय गणि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर प्रणमी), ५२७६८(२) मुनिगुण सज्झाय, मु. विनय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (वे मुनि मेरे मन वस्य), ५३६५१(+#) For Private and Personal Use Only Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ ५७५ मुनिपति चौपाई, मु. सिंहकुल, मा.गु., ढा. २७, गा. ६०६, वि. १५५०, पद्य, मूपू., (गोयम गणहर गोयम गणहर), ५४३९८(+#$), ५५२५०(+#), ५५३७४(+#) मुनिमालिका स्तवन, ग. चारित्रसिंह, मा.गु., गा. ३६, वि. १६३६, पद्य, मूपू., (ऋषभ प्रमुख जिन पय), ५२२३२(+#) मुनिसुव्रतजिन धमाल, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मुनिसुव्रत मेरो मन), ५३५१६-५ मुनिसुव्रतजिन पद, मु. राज, मा.गु., पद. २, पद्य, मूपू., (सांमीजी मने तारीई), ५३५३९-१०(+) मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (गुण बोलतांजो नवि), ५३९६०-८(+#) मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. दौलत, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीमन सुव्रत कृपा), ५३२४३-२(#) मुनिसुव्रतजिन स्तवन, पं. प्रमाणरुचि, मा.गु., गा. १४, वि. १८७१, पद्य, मूपू., (श्रीसरसती चरणे नमी), ५२३०५ मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मुनिसुव्रतशुंमोहनी), ५४८६५-८(+), ५५२४०-१९(-#) मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. सुमतिकुशल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मुनिसुव्रत जिन वीनति), ५५२४०-३३(-#) मुहपति पडिलेहण के २५ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (सूत्र अर्थसाचो सद्द), ५४१२३-३ मुहपत्ति पडिलेहण सज्झाय, मु. कुसलहससीस, मा.गु., गा. ८, वि. १५८३, पद्य, मूपू., (वर दरीसण रे द्यो), ५४१३२-४४(+#) मूढशिक्षा अष्टपदी, पुहि., गा. ८, पद्य, दि., (ऐसे क्युं प्रभु पाईइ), ५३९५६-५(#) मृगलोढा रास, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., ढा. ८, वि. १८१२, पद्य, श्वे., (--), ५४४९७ मृगांकलेखा रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ४१, गा. ८७६, वि. १७४८, पद्य, मूपू., (जिनवर हितकर सदा प्रण), ५४०१८(+) मृगापुत्र चौढालिया, मु. प्रेमचंद, मा.गु., ढा. ४, वि. १८२०, पद्य, श्वे., (प्रथम नमो अरिहंतकू), ५३८५१-२ मृगापुत्र सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (सुगरीपुर नगर सोहामणौ), ५५२८३-२२(+#), ५२४२५-१, ५२४४०-१(-2) मृगापुत्र सज्झाय, मु. सिंहविमल, मा.गु., ढा. १, पद्य, मूपू., (प्रणमी पार्श्व जिणंद), ५३१०८(-5) मृगापुत्र सज्झाय, मु. सिंहविमल, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (सुग्रीवनयर सुहामणो), ५२५१४-२(+#$), ५४१३२-१३(+#), ५२४५२ मृगावतीसती चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. ३ ढाल ३७, गा. ७४५, ग्रं. ११००, वि. १६६८, पद्य, मूपू., (समरु सरसति सामिणी), ५४८४९(+#$), ५५०५१(+$) मृगावतीसती सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (राजर खोयुने सीयल), ५३४००-३ मेघकुमार चौढालियो, मु. जादव, मा.गु., ढा. ४, गा. २३, पद्य, श्वे., (प्रथम गणधर गुण नीलो), ५३९८७, ५३१३३(६) मेघकुमार सज्झाय, मु. अमर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धारणी मनावे रे मेघ), ५३१६६ मेघकुमार सज्झाय, मु. जिनसागर कवि, मा.गु., ढा. ६, गा.५२, पद्य, मूपू., (समरी सारद स्वामिनी), ५२५४६-१(#s), ५२६०६(#) मेघकुमार सज्झाय, मु. देव, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (तेरे कारण मेहा जिनवर), ५२७९३(#) मेघकुमार सज्झाय, मु. पुनो, रा., गा. २२, पद्य, श्वे., (वीरजिणंद समोसर्या जी), ५५१९२-५(+#) मेघकुमार सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धारणी मनावे रे मेघ), ५२५००-३, ५३३१७-२ मेघकुमार सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (चारित्र लइ चित्त), ५३२५५-१(+), ५३६१०-२(#) मेघकुमार सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (सेणकरायनो दिकरो रे), ५२३७७-३(#S) मेघकुमार सज्झाय, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (वीर जिणंद समोसा ), ५२८६७-१(#) मेघ गीत, पुहिं., पद. ४, पद्य, वै., (चढे साहर दश आकाश), ५४९७२-५५(+-#) मेघरथराजा लावणी, मु. लाल ऋषि, मा.गु., गा. ३९, वि. १८७७, पद्य, श्वे., (भव्यजन हीयामाहे), ५२८९६-२(+#) मेघरथराजा सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (पुरब दिस पोषद मै), ५३२२७(5) मेघरथराजा सज्झाय-पारेवडाविनती, मा.गु., गा. ३४, पद्य, मूपू., (दया बरोबर धर्म नहीं), ५३७२२($) मेतारजमुनि सज्झाय, मु. खिमा, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (महिलामाह वैठो मनरंग), ५२७७९-२(-) मेतारजमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (समदम गुणना आगरु जी), ५४५५९-७(#) मेतारजमुनि सज्झाय, रा., पद्य, मूपू., (मासखमणरो पारणो मुनि), ५३९६९-२($) मेतार्यमुनि सज्झाय, मु.रंगविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सुमती गुपतीना आगरु), ५४१३२-३४(+#) मेतार्यसाधु सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (भिक्षा सारु सोनी), ५४४४०-३(+) For Private and Personal Use Only Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५७६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ मेरुत्रयोदशी स्तवन- लघु, मु. भूपविजय शिष्य, मा.गु., ढा. ३, गा. ३०, वि. १८९३, पद्य, मूपू., (श्रीसरस्वति प्रणमी), ५२६५८ मेरुपर्वत मान, मा.गु., गद्य, मूपू., ( धरतीनइ तलइ पहोलो), ५३२७०-१ मेषादि राशिपति सवैया, क. गोडी कवि, पुहिं., पद. १, पद्य, (मेषपति सोये वृष के), ५४९७२-६(+-#) मोक्षमार्ग पयडी, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., गा. २४, पद्य, दि., (इक्क समैं रुचिवंतनों), ५५०९४-७(+) मोक्ष सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मोक्षनगर मारुं सासरु), ५३१५१ मोक्ष सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मोक्षनगर माहरु सासरु), ५२४५९-३(+) मोक्ष स्वरूप छंद, मु. कनकविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., ( जहा रूप न रेख न वर्ण), ५२२०४-२ (#) " मोतीकपासीया संबंध, मु. श्रीसार, मा.गु., ढा. ५, गा. १०३, वि. १६८९, पद्य, मूपू., (सुंदर रुप सोहामणो), ५३०२९-१(+#) मोहनविजय लावणी, श्राव. लालजी, पुहिं, गा. ४. वि. १९३७, पद्य, मृपू. (मुनि मोहनविजय माहार), ५२३६२ मोह निवारण गीत, मु. मेघराज ऋषि, मा.गु., गा. ११, पद्य, वे., (बहिनी जेहनि मोहि वाह), ५२६०१-२(#) मोहप्रवल सज्झाय, मु. जिनराज, मा.गु गा. ७, पद्य, मूपू. (मोह महाबलवंत कवण), ५२९२५-१ + मौनएकादशीपर्व कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., ( नमः श्रीपार्श्वनाथाय), ५२२६८(+#) मौनएकादशीपर्व व्याख्यान, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिरिवीरं नमिऊण), ५५४२६-१(+), ५५४३८(+#) मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., डा. ३, गा. २५, वि. १७६९, पद्य, भूपू (द्वारिकानयरी समोसर्य), ५३६९५-२ (+३), ५५४०२-२(०४), ५३४६१, ५४०५५-२००१ ५४५५९-८(०), ५३६०४७ ', मौनएकादशीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. ४२, वि. १७९५, पद्य, मूपू., (जगपति नायक नेमिजिणंद), ५२९७३ ($) मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., ढा. ३, गा. २८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रणमी पूछे वीरने ), ५५२४०-१५(#) मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. माणेक, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (विश्वनायक मुक्तिदायक), ५३४१० मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समवसुंदर गणि, मा.गु., गा. १३. वि. १६८१, पद्य, मूपू., (समवसरण बेठा भगवंत), ५५०८७-८ (०), ५५२५६-५००) ५५२८३.२००१ ५४०५५-८ाण मौनएकादशीपर्व स्तवन- १५० कल्याणक, उपा. यशोविजय, मा.गु., ढा. १२, गा. ६२, वि. १७३२, पद्य, मूपू., (धुरि प्रणमुं जिन), ५२२९६-२(३) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (एकादशी अति रुअडी), ५४७५९-७(#), ५४८२२-८(#), ५५३७६-४५ ५५४५७-४११ मौनएकादशीपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू. श्रीनेमिजिनवर सबल), ५२९२७ मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीनेमिने पूछै हरि), ५४९७२-७० (+-#) युगप्रधान जिनचंद्रसूरि गीत, मु. समयप्रमोद, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (कबइ जाय धारइ इण), ५२७९०-२(+) युगमंधरजिन स्तवन, पं. जिनविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू. (काया रे पामी अति), ५३९७४-२(१) युगमंधरजिन स्तवन, मु. जिनसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीयुंगमिंधर भेटवार), ५३३१३-३(#) युगमंधरजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (हीयडो मीलवा रे प्रभु), ५४९७२-३३(+#) युगमंधरजिन स्तवन, मु. नवविजयजी शिष्य, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीयुगमंधर माहरे रे), ५३७७५-२(३) युगमंधरजिन स्तवन, आ. पद्मचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (युगमंदिर जिणवर सुनो), ५४०६३-७ युगमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. ९, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (महाविदेह मे प्रभु रो), ५२१९५-३(-) युगमंधरजिन स्तवन, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू (निसदन लली ललि शीस), ५३०१४ यौवनपच्चीसी, मु. खोडीदास, मा.गु. गा. २५ वि. १९१६, पद्य, स्था. (जोवनियानो लटको दहाडा), ५४४२२-३(+) " यौवन वर्णन पद, पुहिं., दोहा. २, पद्य, वै., (नत्थन केलि फंदा गलि), ५४९७२-४५(+-#) , י रतनकुमार सज्झाय, मा.गु., ढा. १०, गा. ५३, पद्य, मूपू., (रतन गुरु आगलीजी आगली), ५३६७२-३(#$) रतनसीगुरु सज्झाय, मु. देवजी, मा.गु., ढा. १०, गा. ४५, पद्य, श्वे., (रतनगुरु गुण मीठडा रे), ५२९९५ (#$), ५३४५८(#) रत्नगुरु सज्झाय, मा.गु., गा. ३८, पद्य, श्वे. (रतनगुरु गुण आगला रे), ५३२८०-१ (४७) " रत्नचूड चौपाई, मु. कनकनिधान, मा.गु, डा. २४, वि. १७२८, पद्य, भूपू (स्वस्ति श्रीसोभा), ५५०४०(+४), ५५०५६ (५०) For Private and Personal Use Only Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ रत्नचूड रास, मा.गु, पद्य, वे. (प्रेम धरी प्रभु आदि), ५४५०१३) יי www.kobatirth.org रत्नपाल- रत्नावती चौपाई, मु. मोहनविजय, मा.गु., खं. ४ ढाल ६६, गा. १३७२, वि. १७६०, पद्य, मूपू., (सकल श्रेणि में दुर), ५४१६८(+#), ५४१९५ (+#), ५४३६० (+#) रत्नपाल - रत्नावती रास-दानाधिकारे, मु. सूरविजय, मा.गु, खं. ३ दाल ३२ गा. ७७४, वि. १७३२, पद्य, मूपु. ( रीषभादिक जिनवर नमुं). ५५१७२(+), ५४३८५ (०९) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रत्न रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., वि. १७५८, पद्य, मूपू., (सकल समीहित पूरण), ५५००० (+#) रत्नसारकुमार रास, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. २९९, वि. १५८२, पद्य, मूपू., (सरसति हंसगमनि पय), ५२४४९(+$) रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, पुहिं. गा. १९, पद्य, मूपू., (देखी मन देवर का), ५५२४०-२९(१) रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., ( राजिमती नेम भणी चाली), ५२५२७-२ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, भूपू (देवरीया मुनीवर छेडो), ५४४४०-२५ (+) रथनेमिराजिमती सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (छेडो नाजी नाजी छेडो), ५५२४०-४१(#) रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू (काउसग व्रत रहनेम), ५४१३२-४२ (+# रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु.. गा. ८, पद्य, मूपू. (काउसग्ग ध्याने मुनि), ५२६४५-४, ५२१५५-१० रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. सेवक, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (नव भव केरी प्रीत धरी), ५३९३३-३ रथनेमि सज्झाय, मु. वसता मुनि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (काउसग्ग थकी रे), ५३३७०-१(-) रविवारव्रत कथा, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ३२ वि. १८३६, पद्य, भूपू (सुखकर प्रणमुं सरसति), ५२४३६ रहस्य कुतुहल, मा.गु., गद्य, (अलसीयो सूकी हीरवणारी), ५४८९७-१ (०६) रहस्य दूहा संग्रह, पुहिं., मा.गु., गा. ५, पद्य, जै. ?, (सीसडो तुम चरणेह आतम), ५४८६५-१३(+) रावाबत्तीसी, श्राव. राचो, मा.गु., गा. ३२, पद्य, वे. (जीवडा जाग रे सोवे). ५५२८३-३८(१०) राजसिंघ रास, ग. कपूरविजय, मा.गु., ढा. ५३, गा. १३८५, वि. १८२०, पद्य, मूपू., (ऋषी पडिलाभे भावथी), ५४२५५ (#) राजसिंहरत्नवती कथा, मु. गौडीदास, मा.गु., ढा. २४, गा. ६०५, ग्रं. ८८५, वि. १७५५, पद्य, मूपू., (सारद शुभमतिदायिनी), " ५४२४३-१००१ राजिमतीपच्चीसी, मु. लालचंद, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., ( प्रथम हि समरुं अरिहं), ५३२१० (+) (गोखे चडि राणी राजुल), ५४४४६-११(+) राजिमती सज्झाय, मु. सुरविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., राजिमतीसती गीत, मु. जयतसी, मा.गु., गा. ८, पद्य, भूपू. (सुणि सुणि चतुर सुजाण), ५२९३१-२(३) राठौर मुगल शौर्य गीत, पुहिं. कडी. ७, पद्य, (असपति सुलिखेति) ५४९७२ ११(०) " रात्रिभोजन चौपाई, उपा. सुमतिहंस, मा.गु., ढा. २४, वि. १७२३, पद्य, मूपू., (सुबुधि लबधि नव निध), ५५०७४(+#) रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सकल धरममा सारज कहिइ), ५३९१९-२(+) रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. वसता मुनि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू (ग्यान भणो गुण खाणी), ५४१३२-३३(+) " रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, आ. हेमविमलसूरि, मा.गु. गा. २१, पद्य, मूपु. ( अवनितल नगरी वसे जी). ५२३२६-२, ५५११८-२(१) , रात्रिभोजन निवारण सज्झाय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (अवनितलि वारू वसइजी), ५४१३२-८(+) रात्रिभोजन परिहार चौपाई, मा.गु., पद्य, भूपू (--), ५५२९९(१) " रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मु. कुशालचंद, मा.गु., गा. २५, वि. १८७५, पद्य, श्वे., (अरिहंत आगम भाषियो रे), ५३२८४(+) रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मु. सेवक, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (रंभा जणणी रुयडीजी), ५३०९२(#) राधा-कृष्ण रास वर्णन, पुहिं., दोहा. ४, पद्य, वै., (आज मनमोहन सों ऐसी ), ५४९७२-४७ (+#) रामवशोरसायन चौपाई. मु. केशराज, मा.गु. अधि. ४ डाल ६२ गा. ३१९१. ग्रं. ४३७५. वि. १६८३, पद्य, भूपू., ५७७ For Private and Personal Use Only (मुनिसुव्रतस्वामीजी), ५४३८६ (०४), ५५२२७ (+), ५५४६६ (+३), ५४२९८, ५३०३३(१६), ५३०८४) रामसीता चरित्र, मु. चेतनविजय, मा.गु., ढा. २३, गा. ४१५, वि. १८५१, पद्य, मूपू., ( सारद मात दया करो), ५४३१५ (+) रामसीता रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. ९, गा. २४१२, ग्रं. ३७०४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसुखसंपदा), ५४२९१, ५५१४२(३) Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ रामायन अष्टपदी, पुहिं., गा.८, पद्य, दि., (विराजैरामायन घटमां), ५३९५६-१५ (#), ५५२४०-३८(-2) रावण २८ भव वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीकांतसेठ १ मृग), ५४४६४-८२ ।। रावतचोर चौपाई, मु. हर्षचंद, रा., ढा. १०, वि. १९७४, पद्य, श्वे., (आदनाथ आदे करी चोवीस), ५३५७७-१(+) रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, भूपू., (विचरता गामोगाम नेमि), ५२६३७-१, ५३१८७ रुक्मिणीसती सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २८, पद्य, श्वे., (हृदा दरसण परीसो), ५३४१८(+) रूप-जीव-वरसंघ-खिमा भास, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (सकल सास्त्रानिरणि), ५२७८२ ।। रूपसेन रास, मु. ज्ञानमूर्ति, मा.गु., ढा. ५७, गा. १२९६, ग्रं. १८५६, वि. १६९४, पद्य, मूपू., (तीर्थंकर त्रेवीसमो), ५४४३४(+$) रेवतीश्राविका सज्झाय, मु. वल्लभ, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सोवन सिहासन रेवति), ५४४४६-३५(+), ५३२७७-१ रेवतीश्राविका सज्झाय, मु. हर्षकुशल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (धन धन संसारई नारी रे), ५२१४१-१(#) रोहिणीतप सज्झाय, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (वासुपूज्य नमी स्वामी), ५२२०९-१(+#) रोहिणीतप स्तवन, मु. अबीरचंद्र ऋषि, मा.गु., गा. ११, वि. १९२३, पद्य, मूपू., (तीरथनायक लायक), ५२६६१(+) रोहिणीतप स्तवन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., ढा. ६, गा. ३१, वि. १८५९, पद्य, मूपू., (हां रे मारे वासुपूज), ५३३७४-१, ५३३९३, ५३४८९ रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., ढा. ४, गा. ३२, वि. १७२०, पद्य, मूपू., (सासणदेवता सामणीए मुझ), ५२८५३-१(+#), ५३३९५,५२६८६(#$), ५३३६८(#), ५४०५५-१(#), ५२७७३(5) रोहिणीतप स्तुति, मु. पद्मसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जयानंदन दीपतो ए वासु), ५३९७८-२ रोहिणीतप स्तुति, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जयकारी जिनवर वासपूज), ५२४०३-२, ५२४९०-६(#), ५३०१३-३(#) रोहिणीतप स्तुति, मु. लाभरुचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जयकारी जिनवर वासुपूज), ५३१५५ रोहिणी रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ढा. ३१, वि. १७७४, पद्य, मूपू., (सुखकर श्रीशंखेसरु), ५४१६९(+) लक्ष्मणजी २६ भव वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (वसुदतसेठ १ हरिण), ५४४६४-८१ लक्ष्मीचंदआचार्य भास, मु. केशरचंद्र, पुहि., पद्य, मूपू., (के सरसति जां को गुण), ५२८८६-२(#$) लक्ष्मीचंद्रसूरि भास, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीलक्ष्मीचंद्रसूरी), ५३१५९-६(+) लग्नदोषावली, मा.गु., गद्य, (जे समे जे लग्न होइ), ५५१२३-२(+#) लग्नसुबोधी एकोत्तरी, मु. रामचंद, मा.गु., गा. ७१, वि. १८०८, पद्य, मूपू., (गुरु सारद पाय नमी), ५४००१ लघुदंडकभेद बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (शरीर ओगाहणा संघयण), ५५१५५ लाजपच्चीसी, श्राव. गोवर्धन कवि, मा.गु., गा. २६, पद्य, श्वे., (सुण जीव पहिलो उपशम), ५४४३३-२२(+) लीलावतीसुमतिविलास रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. २१, गा. ३४८, वि. १७६७, पद्य, मूपू., (परम पुरुष प्रभु पास), ५४१९८(+#) लुंकामतीय प्रश्नबोल, मा.गु., गद्य, स्पू., (श्रीउवाईमांहि अंबडनी), ५५२५२-१९(+#) लेश्या ११ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (नामाइं पण रस गंध फरस), ५५२३५-१(+), ५२३१७, ५३५०४, ५३५९६(#) लोभपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. २५, वि. १८३४, पद्य, श्वे., (लोभि मनुषसू तो प्रीत), ५४४३३-१(+) वंकचुलनृप रास, मु. कनकविमल, मा.गु., ढा. ८, वि. १७५६, पद्य, मूपू., (त्रिभुवननायक गुणनि(त), ५४८२५-२(+) वंकचूल रास, मु. गंगदास, मा.गु., ढा. ६, गा. १२८, वि. १६७१, पद्य, म्पू., (संति जिणेसर चिरंजीओ), ५५०४६-३(+) वंकचूल रास, मा.गु., गा. ९४, पद्य, मूपू., (आदि जिनवर आदि जिनवर), ५४२६६(१), ५३०५४($) वंकचूल सज्झाय, मु. तेजमुनि, मा.गु., गा. ११, वि. १७०७, पद्य, श्वे., (आ जंबुदिप दिपतो रे), ५४४४०-२७(+) वज्रधरजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (विहरमान भगवान सुणो), ५३२७६-२ वज्रस्वामी गहुँली, पं. वीरविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सखी रे में कौतुंक), ५३४५१(+) (२) वज्रस्वामी गहंली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (वयरस्वामी ६ मासनै), ५३४५१(+) वज्रस्वामी सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (गणधर दश पूरवधर सुंदर), ५५२४०-५२(-2) वडगच्छशाखा कवित्त, पुहि., पद. १, पद्य, मूपू., (वडो तपो वडगच्छ कोटी), ५३८०६-१(-) For Private and Personal Use Only Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ वणझारा सज्झाय, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (नरभव नगर सोहामणु), ५३३९१-२(+) वनमाली सज्झाय, मु. पद्मतिलक, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (काया रे वाडी कारमी), ५२५०२-१(६) वरदत्तगुणमंजरी चौपाई-ज्ञानपंचमीफलमाहात्म्ये, मु. ऋषभसागर, मा.गु., ढा. २१, पद्य, मूपू., (पास जिणेसर पाय नमु), ५५२६३(+) वर्धमानजिन नामकरण आश्रयी भोजन विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (भलो उत्तंग तोरण), ५२९६६-१(#) वस्तुपालतेजपालमंत्री रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. २, गा. ४०, वि. १६८२, पद्य, मूपू., (सरसति सामिणि मनि), ५५०२० १+#), ५२९५२ वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नायक मोह नचावीयो), ५२०९२-२, ५२३४९-२, ५२४३९-३(#), ५५२९८-७(#) वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. जीतचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वासुपूज्य जिन बारमा), ५२६१३-१(+#) वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. भक्तिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, पू., (वासव पूजित वासुपूज्य), ५३५३८-२ वासुपूज्यजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (स्वामि तुमे कांइ), ५५२९८-१९(#) वासुपूज्यजिन स्तवन-पंचकल्याणक, उपा. हीरधर्म पाठक, मा.गु., स्त. ५, गा. २५, पद्य, मूपू., (मूरत श्रीवासुपूज्यनी), ५३१८९ २($) वासुपूज्यजिन स्तुति- आंतरोलीमंडन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वासुपूज्य जिनराज), ५३४१६-५ विकथा सज्झाय-स्त्रियों के कथला, मु. महानंद, रा., गा. ४७, वि. १८१०, पद्य, श्वे., (आठम पाखी परवना दिवसे), ५४४७९-३ विक्रमचौबोली रास-पुण्यफलकथने, वा. अभयसोम, मा.गु., ढा. १७, ग्रं. ३२५, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (वीणा पुस्तक धारणी), ५४८२५-७(+), ५५०४६-६(+S), ५४२३७(#) विक्रमराजा चौपई, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., खं. ६ ढाल ७५, गा. ३१६८, वि. १७२८, पद्य, मूपू., (प्रणमु पासजिणंद पय), ५४८३४(+$) विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मा.गु., ढा. ६४, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (परम ज्योति प्रकास), ५४०६४(+#), ५४८२८(+s), ५४३८१(६) विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., ढा. ५२, गा. ११६२, ग्रं. १६२४, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (सुखदाता संखेश्वरो), ५४८४३(+$), ५५२६४(+#$) विक्रमादित्य चौपाई, मु. लाभवर्द्धन, मा.गु., ढा. २७, गा. ५८५, वि. १७२३, पद्य, मूपू., (पुरिसादाणी प्रणमीइ), ५४०८५, ५५३६१ विक्रमादित्य चौपाई, मु. हर्ष, मा.गु., गा. २०२, पद्य, मूपू., (सकल सदा फल गुण भंडार), ५५२११(+) विचार संग्रह *, मा.गु., गद्य, श्वे., (ठाणांगमाहिं त्रीजे), ५५५२७-२(+#), ५३००३-३, ५३२२८-४(#) विचार सज्झाय, मु. वीर मुनि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (एह संसार अवतार विस्त), ५४२०७-८(+) विजयक्षमासूरि सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीविजयरत्नसूरिंदना), ५२५४७-१(#) विजयजिनेंद्रसूरि गच्छरायगुरु गहुँली, पं. माणिक्यविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सजनी श्रीगुरु चरणकमल), ५२२९७-१ विजयजिनेंद्रसूरिगुरु गहुंली, मु. शांतिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, पू., (प्रहसम गणधर प्रणमीये), ५२२९७-२ विजयजिनेंद्रसूरिगुरु भास, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वीरजी आयारे गुणशैल), ५२२९७-३ विजयदानसूरि गीत, मा.गु., पद्य, मूपू., (विजेदान परमेसर बेठा), ५३३१५-२(-#$) विजयदेवसूरि सज्झाय, मु. विजयप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (तेतरिया भाई तेतरिया), ५३९५२-५(#$) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. कुसल, मा.गु., ढा. ३, गा. २८, पद्य, मूपू., (भरतक्षेत्रे रे), ५३४०९(+$), ५३९८९-१(#S) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. २२, वि. १८५८, पद्य, श्वे., (शीयल तणी महिमा सांभल), ५३२७८-१(+s) विजयसेठ विजयासेठाणी सज्झाय, मु. रामचंद, पुहिं., ढा. ४, वि. १९१०, पद्य, श्वे., (आदिनाथ आदिसरु सकल), ५३४४८, ५३४४३-२(#) For Private and Personal Use Only Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., गा. १७, वि. १८६१, पद्य, स्था., (प्रथम नमु श्रीअरिहंत), ५४४४६ २७(+), ५३४७४-१, ५३४७९(#) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., ढा. ३, गा. २४, पद्य, मूपू., (प्रह उठी रे पंच), ५२२४२-२(5) विद्याविलास चौपाई, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ३०, वि. १७११, पद्य, मूपू., (सरसति नित आपो सुमति), ५५१७५(#$) विमलजिन पंचकल्याणक स्तवन-मेदिनीतटिमंडण, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (विमलनाथ सुणौ वीनति), ५३२९८(+) विमलजिन स्तवन, मु. कनकरतन, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (विमलनाथ महिमा निलो), ५२०८९-२(+#) विमलजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (घर आंगण सुरतरु फल्यौ ), ५४९७२-७(+-#), ५२३१२-१, ५३३३७ विमलजिन स्तवन, उपा. देवविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (विमल जिणंदसुं विनती), ५३१९८(+) विमलजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जिन विमल वदन रलियामण), ५२७९७ विमलजिन स्तवन, मु. स्वरूपचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (विमलविमल गुणे राजता), ५४६१३-११ विरह कृष्ण विलापन, पुहि., पद. ८, पद्य, वै., (परकी फाग मेरे पीय), ५२७२०-४ विवाहपटल दोहा, मु. हीर, मा.गु., गा. १३४, पद्य, मूपू., (हरिसयणा धन मीन मलमास), ५५०४१-३(+-) विवेक विलास, पुहिं., गा. ७८, पद्य, श्वे., (श्रीजिनचरन प्रनाम कर), ५३३९९ विवेक सज्झाय, मु. तेजसी, मा.गु., गा. १५, वि. १८५९, पद्य, श्वे., (बुद्धि विना धरम नहिं), ५२८८६-१(२), ५३२३२-३(#) विहरमान २० जिन नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (सीमंधरस्वामी श्रीजुग), ५२६५७-२(+#) विहरमान २० जिन स्तवन, पा. धर्मसिंह, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (वंदु मन सुध विहरणमाण), ५३५५९-३(#) विहरमान २० जिन स्तवन, मु. हर्षचंद, मा.गु., ढा. ५, गा. ३१, वि. १८१४, पद्य, मूपू., (समरूं मन सुंधै सदा), ५४६१२-१(+) विहरमान २० जिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पंचविदेह विषय), ५३४२९-१०(+), ५५०३१-२६(+#), ५५३६४-१०(+#), ५३५६७-३, ५४५४६-५(#) विहरमानजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (दीन बंध दयाल तुम हो), ५३५६४-३(#) विहरमानजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. ११, वि. १८३५, पद्य, श्वे., (पूर्व महाविदेह विराज), ५५२९८-१२(2) वीरभाणउदयभाण रास, मु. कुशलसागर, मा.गु., ढा. ६५, वि. १७४५, पद्य, मूपू., (सदगुरुजी सानिध करो), ५३०५१(६) वीर वंशावलि, मा.गु., प+ग., मूपू., (आदिदेवादि जिनान्), ५४०५८(#$) वीसजिन स्तवन-सम्मेतशिखरतीर्थमंडन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आज आणंद थयां समेत), ५३३९४-१(६) वैदर्भी चौपाई, ऋ. प्रेमराज, मा.गु., गा. २०९, पद्य, श्वे., (जिणधरमसुंजागता हुवो), ५५१६१-३(+#) वैदिकमत खंडन काव्य, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., वै., (मिथ्यामतिनो मत जुओ), ५२५४६-२(2) वैराग्यपच्चीसी, मु. मेघलाभ, मा.गु., गा. २५, वि. १८७४, पद्य, श्वे., (माताने उदरे उपनो नव), ५२३९५ वैराग्य पद, मु. रामविजय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (ऐसे मुनिवर देखे बनमै), ५५४४८-१२(#) वैराग्यपरक पद, मु. ज्ञानसार, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (औधूए जगका आकारा), ५५१२८-१२(+#) वैराग्यपरक पद, मु. ज्ञानसार, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (औधू हम विन जग कछु), ५५१२८-१४(+#) वैराग्यपरक पद, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (कहा भरोसा तन का औधू), ५५१२८-११(+#) वैराग्य सज्झाय, मु. कल्याण मुनि, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (प्राणी काया ने माया), ५४४४६-२०(+), ५३२८०-२(#) वैराग्य सज्झाय, मु. रतनतिलक, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (काया रे वाडी कारमी), ५४५५९-२(2) वैराग्य सज्झाय, मु. राजसमुद्र, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (एक कनक और कामिनी), ५२४४८-४(#) वैराग्य सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (ते गिरूआ भाइ ते गिरू), ५३९५२-४(#) व्यवहारशुद्धि चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ९, गा. १६१, वि. १६९६, पद्य, मूपू., (शांतिनाथ जिन सोलमो), ५४८२१(+#) व्यसनत्याग गीत, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (लजालो हरखारो न लीजे), ५२७५१-२(+-) । व्याख्यान पीठिका, मा.गु., गद्य, मूपू., (अशरणशरण भवभयहरण), ५२५८९-१(#), ५२८४१(६) शकडालयुद्ध पद, मा.गु., पद्य, श्वे., (फजर उगता दियडा आव), ५३९०३-२(#$) For Private and Personal Use Only Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ शकुन विचार, मा.गु., गा. ७२, पद्य, श्वे., (सारस सांड तुरंग खर), ५५३८८-३(+) शकुनविचार संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (वार उघाड तांगि लोई), ५५३८८-२(+) शतौषधि नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (मोरशिखा सहदेवी तुलसी), ५५१५४-४ शत्रुजयगिरनारतीर्थ स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (त्रिभुवनमांहे तिरथ), ५२४६२-२ शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., ढा. १२, गा. १२०, ग्रं. १७०, वि. १६३८, पद्य, मूपू., (विमल गिरिवर विमल), ५२१२९(+), ५२८९७(+#$), ५४११७-१(+#), ५४७५७(+$), ५५४३०(+#), ५४२२३, ५४२२५, ५५३०६(#),५२३४६(5) शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जय जय नाभिनरिंदनंद),५३५४४-५(#) शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (श्रीशेजूंजय सिद्ध), ५३३९१-४(+) शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (धुर समरु श्रीआदिदेव), ५२५३२-१ शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (शत्रुजय सिद्ध), ५४२०९-१०(+),५२३७१-१($) शत्रुजयतीर्थ पद, मु. धर्मसी, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (विमलगिर क्युं न भए), ५३१५६-६ शत्रुजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतरंग, मा.गु., ढा. १०, वि. १८४०, पद्य, मूपू., (विमलाचल वाहला वारु), ५४२७५-१(2) शत्रुजयतीर्थरायणवृक्ष स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (नीलुडी रायणतरु तले), ५३१३५, ५३१८०-२ शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ६, गा. ११२, वि. १६८२, पद्य, मूपू., (श्रीरिसहेसर पाय नमी), ५५२१७(+), ५४६११,५२९५७-२(#), ५४३२०-१(2), ५५४२८-२(क) शत्रुजयतीर्थ वृद्धस्तवन, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (तीरथ सेर्जेजेजी रहि), ५३५५९-५(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा.७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आंखडीये रे में आज), ५३७५१-२(2) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (ते दिन क्यारे आवसी), ५२४०४(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शेव्रुजागढना वासी), ५५२४०-२०(-2) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सहीयां मोरी चालो), ५२४४६ शत्रुजयतीर्थस्तवन, मु. कनक, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (चालो सखी सिद्धाचल), ५२३९९(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कल्याणविमल, पुहिं., गा.७, पद्य, मूपू., (मेरो मन मगन भयो अब), ५३१८०-३ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कांतिविजयजी, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्री रे सिद्धाचल), ५२४०१-२(+-), ५४२२४-९(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. क्षमारत्न, मा.गु., गा. ५, वि. १८८३, पद्य, मूपू., (सिद्धाचलगिरि भेट्या), ५३५५७-६ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आज आपे चालो सहीयां), ५२६४५-२, ५२६८८ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (सरसती सामण वीनवु), ५२३८५-१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (करजोडी कहे कामनी), ५२२६९-१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (चालो चालोने राजा), ५२५९०-४(-2) शत्रुजयतीर्थस्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (देव समानने अरथ समान), ५३१३१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (इण डुंगरीयानी झिणी), ५२७३७-५, ५५२४०-२७(-2) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (माहरुं मन मोह्यु रे), ५२८७०-१(+#), ५२१४३(#) शत्रुजयतीर्थस्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (लोहो लीजे रे भविया), ५४९७२-३६(+-#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. नयविमल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (माहरा आतमराम किणे), ५४९७२-५३(+-#), ५३१४४ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (यात्रा नवाणु करीए), ५२५९०-२(-2) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वीरजी आव्या रे), ५३५१४-१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सफल संसार अवतार मांह), ५४०६३-१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. राजसमुद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (साभलि हे सखी सांभलि), ५३६१०-६(#) शत्रुजयतीर्थस्तवन, मु. विनयचंद्र, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (सिधाचल सोहामणउ उंचउ), ५३१२२(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ११, वि. १८७३, पद्य, पू., (सिद्धाचल सिद्ध सुहाव), ५२१९६-१(+#) For Private and Personal Use Only Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५८२ भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, वा. साधुकीर्ति, मा.गु. गा. १३, पद्य, मूपू. (पव पणमी रे जिणवरना), ५२६६७-३ शत्रुंजयतीर्थ स्तवन- ९९ यात्रागर्भित, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धाचलमंडण), ५२५९०-१(क) शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुंजय तीरथसार), ५४१३४-१७(+#), ५३४१६-९ शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू. श्रीशत्रुंजयमंडण), ५३४२९-९(१), ५४७३१-२(१), ५५०३१-२५(००१), ५५३६४-९(+४), ५३५६७-४, ५२८६७-२(१), ५४५४६-६(१) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, पुहिं, गा. ४, पद्य, मूपु. ( आगे पूरव वार नीवाणु), ५२५४४-३(००), ५२४९०-२(७) शत्रुंजयतीर्थे मोतीशाट्रंक स्तवन- इतिहासबुक्त, पं. वीरविजय, मा.गु., डा. ७, पद्य, मूपू (उठी प्रभाते प्रभु, ५५३२३-१(+) शनिश्चर चौपाई, पंडित, ललितसागर, मा.गु, गा. ४७ वि. १७वी, पद्य, मूपू (सरसती सामिणी मन दियो), ५२५६६-१(१), 1 " ५२५७७(#), ५३८७१(#) शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु.. गा. १७, पद्य, श्वे. (अहि नर असुर सुरपति), ५२१२५-१(०) ५३७१०+), ५३१६८-१, ५३७२१, "" ५३९५९-१, ५२०६९(१) ५३८८३-१०१ ५३९०८ शनिश्चर छंद, मा.गु., गा. १६, पद्य, वै., (छायानंदन जग जयो रवि), ५२१३३-१(+) शनिश्चर कथा, मा.गु., गद्य, वै., ( उजेणीनगरी विक्रमाद), ५५२५२-२१(+४) शरीर अस्थिरता सवैया, मु. धर्मवर्धन, पुहिं, सबै १, पद्य, भूपू., (ज्ञान के अभ्यासा मिस), ५२१२५-१ शल्यछत्रीशी सज्झाय, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. ३६, वि. १९वी, पद्य, श्वे. (अरिहंत सिद्ध छे आयरि), ५३३६७(-) शांतिजिन कवित्त, मु. कीर्ति, पुहिं., गा. १, पद्य, मूपू., (मुख पूनम सारद चंदलसै), ५४३०३-३(+#$) शांतिजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू (सोलम जिनवर शांतिनाथ), ५३५४४-६ (७) शांतिजिन छंद - हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु गा. २१, पद्य, मूपू (सारद माय नमुं सिरनाम), ५३२८९-१(+), ५३५८६, , ५४८५२-१८, ५२६७९-२१०१, ५४५०४-४० " शांतिजिन जन्माभिषेक, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू (जय सयल सुरासुर नमि), ५२९६१-२ शांतिजिन पद, मु. उदयरत्न, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., ( आंगण कल्प फल्यो री), ५२७१७-४ शांतिजिन पद, मु. कीर्ति, पुहिं. गा. १, पद्य, मूपू., (कंचन वर्ण पद लंडन), ५४३०३-२(१) " शांतिजिन पद, आ. जिणेसरसूरि, मा.गु गा. ४, पद्य, मूपू (--), ५२९६१-१(३) . शांतिजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (शांतिजिणंद सुखकंद), ५३५७३-३ शांतिजिन रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., डा. ६६ गा. १४२८, ग्रं. २२०५ वि. १७२०, पद्य, मूपू. (सकलसुखसंपतिकरण गउडि), ५४२२० (+) शांतिजिन रास, मु. रामविजय, मा.गु., खं. ६, गा. ६९५१, वि. १७८५, पद्य, मूपू., (सकल श्रेयवरदायिनी ), ५४१९३(+), ५४३०३ १०) ५४४१५(३) (छोरि षड खंड भारिचौसठ ), ५२४०१-५ (+) (संतिसर अलवेसर नयणा), ५५२५२.६ (+) शांतिजिन सवैया, मु. धर्मसिंह, पुहिं, सवै १, पद्य, भूपू शांतिजिन स्तवन, ग. अमीचंद, मा.गु.. गा. १३, पद्य, मृपू., शांतिजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू (सुणो शांतिजिणंद), ५३९७८-१, ५४५०४-३३(४७) शांतिजिन स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सेवयो रे शांति जिणंद), ५३१७४-४(-) " शांतिजिन स्तवन, मु. कल्याणनिधान; श्राव. चंदगोपालदास, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (अरजकरूं कर जोडीने), ५३७७४ शांतिजिन स्तवन, मु. कविवण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जिनजी हो आज उमाहो), ५२५६२-२ शांतिजिन स्तवन, पं. कांतिविमल, मा.गु., गा. ८, पद्य, भूपू (संति जीनेसर मूरति ), ५३५३५-४ शांतिजिन स्तवन, मु. खेम, मा.गु., गा. १३, वि. १७४२, पद्य, मूपू., (श्रीशांतिजिणेसर शांत), ५२०७७-३ शांतिजिन स्तवन, मु. गुणविनय, पुहिं, गा. ११, पद्य, मूपू (भविजन शांतिनाथ प्रभु, ५२६७० (०) शांतिजिन स्तवन, मु. गुणसागर, मा.गु., गा. ९, वि. १६६७, पद्य, मूपू (अद्भुत शांति जुहारी), ५२७४९-२ शांतिजिन स्तवन, मु. गौतमविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (शांति जिणंदने भेटीये), ५३५९४-१ शांतिजिन स्तवन, मु. जयमल ऋषि, मा.गु गा. २९, पद्य, वे (नगर हविणापुर अतिहि), ५३०२३(०१ . * , "" For Private and Personal Use Only Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ शांतिजिन स्तवन, मु. जिनेंद्र, मा.गु., गा. २२, पद्य, श्वे., (जिनेंद्र शांतिसुर), ५४०६३-६ शांतिजिन स्तवन, आ. दयासागरसूरि, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (शांतिजिणेसर प्रणमु), ५२४६८ शांतिजिन स्तवन, मु. नयनसुंदर, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (शांतिकरण प्रभु सोलमो), ५२११७-१(+#) शांतिजिन स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (नारी ते नर ने वीनवे), ५२३५७-२(+) शांतिजिन स्तवन, ग. प्रेम वाचक, मा.गु., गा. ८, वि. १८२६, पद्य, मूपू., (हाजी संती जिनेसर), ५२५०२-२ शांतिजिन स्तवन, मु. मेघविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सजनी शांत महारस सागर), ५५२४०-१०(-2) शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (शांति जिनेश्वर साहिब), ५२६९४-२(#) शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सोलमा श्रीजिनराज),५२१४७, ५२१५५-२(#) शांतिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (हम मगन भए प्रभुध्यान), ५३२१५-१(#), ५३३३६ १(#), ५३७९९(#) शांतिजिन स्तवन, मु.शांतिकुशल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वंछितपूरण आदि नमो), ५३७११-३(#) शांतिजिन स्तवन, मु. सुमतिचंद्र, मा.गु., गा. ९, वि. १७०२, पद्य, मूपू., (ओलगडि ओलगडि अवधारे), ५५२५२-४(+#) शांतिजिन स्तवन, मु.स्वरूपचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सेवो भवी शांतिजिणंद), ५४६१३-१३ शांतिजिन स्तवन, मु. हर्षचंद, पुहिं., गा.७, पद्य, मूपू., (चित चाहत सेवा चरण), ५३९७९-१(#) शांतिजिन स्तवन, मु. हर्षचंद्र, मा.गु., गा.११, पद्य, मूपू., (अहिपुरमंडण सोलमौ), ५४०६३-२ शांतिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ३१, पद्य, भूपू., (परम पुरुष परमामृत भण), ५२६९५ शांतिजिन स्तवन, रा., गा. २२, पद्य, श्वे., (श्रीसंत जिणेसर भणता), ५२७४८ शांतिजिन स्तवन-कुमरगिरिमंडण, ग. हर्षरत्न, मा.गु., गा. ३०, वि. १५६३, पद्य, मूपू., (संपइ सुहकारण दुरिअ), ५५२५२-१४(+#) शांतिजिन स्तवन-जावर, मु. भानुचंद शिष्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (शुभ सुख सारद दाइला), ५५२५२-२(+#) शांतिजिन स्तवन-नडुलाई, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (सोलमउ सांतिजिणंद जय), ५२६३९-५, ५२५७८-२(#) शांतिजिन स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ६, गा. ४८, वि. १७३४, पद्य, मूपू., (शांतिजिणेसर अरचित जग), ५२२७८,५३६२५(#) शांतिजिन स्तवन-सिरोहीमंडन, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (हो जी मारी सहीया सेव), ५२३४९-१ शांतिजिन स्तुति, ग. अमीचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शांति जिणंदा अति), ५५२५२-२४(+#) शांतिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शांति जिणेसर समरीइ), ५२३८४, ५२४४४-१ शांतिजिन स्तुति, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मयगल घरबारी नार), ५२५८१-३(#) शांतिजिन स्तुति-जावरापुरतीर्थमंडन, मु. पुन्यविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शांतिकर शांतिकर), ५३२५२-१ शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., ढा. २९, गा. ५१०, वि. १६७८, पद्य, मूपू., (सासननायक समरिय), ५४७३३-१(+६), ५५३७१(+#), ५५३८१(+#), ५५३८९(+#), ५४०१९, ५५३४२-१(#$), ५३८१५-३(5) शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. विनीतविमल, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (राजगृही नगरीने), ५३९५२-२(#) शालिभद्रमुनि सज्झाय, ग. समयसुंदर, मा.गु., गा. ३४, पद्य, मूपू., (प्रथम गोवालीया तणे), ५४१३२-२(+#) शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (प्रथम गोवाल तणे भवे), ५५१९२-४(+#), ५३९५२-३(#) शालिभद्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (धन धन धनो सालभद्र), ५३३१३-२(#) शाश्वतअशाश्वतजिन चैत्यवंदन, मु. खिमाविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (प्रह ऊठीनें प्रणमीई), ५५३१३-८(#) शाश्वत जिनप्रतिमा विचार स्तवन, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. २३, पद्य, मूपू., (प्रणमी प्रभुना पयकमल), ५३३२३ शाश्वतजिनबिंबप्रासाद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम सौधर्म देवलोके), ५२४७९-२ शाश्वतजिनबिंब स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., ढा. ६, गा. ६०, पद्य, मूपू., (सरसति माता मन धरि), ५३५८१-१ शाश्वतजिन स्तवन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., ढा. ७, गा. ३१, पद्य, मूपू., (श्रीऋषभाननजिन), ५२७५७-१(+) शाश्वतजिन स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (ऋषभ चंद्रानन वंदन), ५३४१६-७ शिवपुरनगर सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १६, वि. १८२०, पद्य, स्था., (अहो प्रभु सिवपुर नगर), ५३०७३-३(#) For Private and Personal Use Only Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ शिवपुरनगर सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (गोतमस्वामी पुछा करी), ५२६२६ शिष्य सज्झाय, मु. जिनभाण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चेला रहे गुरुने पास), ५२७३८-३ शीतलजिन पद, मु. आणंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रभुजी शीतल जिनवरदे), ५२३६८ शीतलजिन पद, मु. करण, पुहिं., पद्य, श्वे., (लगन लगी जिन नामसुं), ५३१४१-५(-#) शीतलजिन स्तवन, मु. ऋषभ, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीसतल जीनदेव नीरजा), ५३८६१-१(-2) शीतलजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ११, वि. १८२७, पद्य, मूपू., (भविजन वंदो रे शीतल), ५३४५३-२(#) शीतलजिन स्तवन, मु. जिनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शीतलजिन सहजानंदी थयो), ५५२५६-११(+#) शीतलजिन स्तवन, मु. नित्यलाभ, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (शीतल जिनवर सांभलो रे), ५५२९८-८(#) शीतलजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, श्वे., (शीतल जिनपति सेवीईए), ५३२७६-१(६) शीतलजिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सफल आज तणौ दिन आवियौ), ५४०६३-९ शीतलजिन स्तवन, ग. मेघराज, मा.गु., गा. ६, वि. १८२२, पद्य, श्वे., (शीतल जिनवर देव सुणो), ५३३११-२, ५४५०४-११(#) शीतलजिन स्तवन, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (श्रीशीतलजिन सोहे देख), ५२६१३-४(+#), ५२५६०-३ शीतलजिन स्तवन, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सुगण सनेही संभलो एक), ५२६१३-५(+#) शीतलजिन स्तवन, मु. सहजसागर, मा.गु., गा. १२, वि. १७८१, पद्य, मूपू., (शीतल जिनवर सेवीयों), ५४५०४-१२(#) शीतलजिन स्तवन, मु.सुमतिकुशल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभुजी श्रीशीतलजिन), ५५२४०-३१(-2) शीतलजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (विनतडी अवधारोजी पाउध), ५३५३९-५(+), ५२५१२-१(-2) शीतलजिन स्तवन-अमरसरपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, रा., गा. १५, पद्य, मूपू., (मोरा साहेब हो), ५२५४०-२,५३५२२-२, ५३८९८-३, ५३०४५(#), ५३२६६(१), ५२३३८-२(s) शीतलजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (त्रिभुवन जननायक दायक), ५४५४६-१०(#) शीतलजिन होरी, ऋ. साधु, पुहिं., गा. १०, पद्य, श्वे., (श्रीसीतलजिन होरी), ५३४००-२ शीयल चौढालियो, मु. जीवण, मा.गु., ढा. ४, गा. २०, पद्य, मूपू., (चोविसे जिन आगमे रे), ५२९१३-१(+#$), ५४४४०-२८(+) शीयलव्रत सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (सुणो समजो सकल नरनारी), ५३२४२(#) शीयलव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. २५, वि. १८४७, पद्य, मूपू., (श्रीसंखेशरपासनारे), ५४००३-२ शीयलव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ८, वि. २०वी, पद्य, मूपू., (सरसती केरा रे चरणकमल), ५२४०३-१ शीयलव्रत सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सीयल तणे सुपसाउले), ५२६०५-४(2) शीयलव्रत सज्झाय, रा., गा. १५, पद्य, मूपू., (सील रतन मोटो रतन रे), ५२८४२-१ शीयलव्रत सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ५३०६९-१(६) शीलनववाड ढाल, मु. अगरचंद, मा.गु., ढा. १०, वि. १८३६, पद्य, मूपू., (प्रणमुपंचपरमेष्ठि), ५३४५९(5) शीलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., गा. ६८, ग्रं. २५१, पद्य, मूपू., (पहिलुं प्रणाम करूं), ५४७९८(#) शीलव्रत सज्झाय, मु.शुभवीर, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (चोथु व्रत हवे व्रणवु), ५२९२१ शीलव्रत सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (सुगंध माणस तुमे हु), ५२७०१ शील सज्झाय, श्राव. संघो, मा.गु., गा.८, पद्य, श्वे., (उतम कहु सिखामण सारी), ५४४४०-२४(+) शील सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (चोथीने वाडे इम चित), ५३१९६ शीलसुंदरीसती चौपाई, पंन्या. राजविजय, मा.गु., ढा. ३८, गा. ८५६, वि. १७९०, पद्य, मूपू., (त्रिहुँ जगनो शंकर), ५४९२६(+) शुकनविचार संग्रह, रा., गद्य, वै., (भार दूज नकुल नील), ५३७३८-२(-) शुकबहोत्तरी, मा.गु., गद्य, मूपू., (करि प्रणाम श्रीसारदा), ५५२४३(#) शुकराज चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ख. ४, ग्रं. १४५९, वि. १७०१, पद्य, मूपू., (सकल सिद्धि दातार वर), ५४११९(+#) शुक्लपक्ष कृष्णपक्षतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सासयने असासय चैत्यतण), ५४९७२-५९(+-#) शृंगार गीत, पुहि., कडी. ४, पद्य, (कहै नारि भरतारसुं), ५४९७२-२१(+-#) शृंगार गीत, पुहि., कडी. २, पद्य, (प्रीतज रोज रिजाह सखी), ५४९७२-२०(+-#) For Private and Personal Use Only Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ शृंगाररस सवैया, पुहिं., दोहा. ७, पद्य, वै., (एक दीप ते गेह की), ५४९७२-४६ (+४), ५४९७२-७६(+४) शोक परिहार गीत, मु. मेघराज ऋषि, मा.गु., गा. ९, पद्य, वे (मोहनी कर्म उदय कारणि), ५२६०१-१(७) श्रद्धापच्चीसी, मा.गु पद्य थे. (सरधा पचीसी सुणजो सार), ५२८९६-६ (+०३) " श्रावक ११ प्रतिमा, मा.गु., गद्य, म्पू., (दंसण १ वय २ सामाइय) ५४९२५-२शक्क श्रावककर्तव्य सज्झाय, मा.गु., गा. ४४, पद्य, श्वे. (--), ५४४४०-९ (+5) "" श्रावक ११ प्रतिमा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (दरसन प्रतिमा१ ज्ञान), ५४४६४-८५ आवक २१ गुण नाम, मा.गु, गद्य, वे (धर्म रत्ने व्यवहारे, ५३७१५-२(६) "" श्रावक २१ गुण वर्णन, मा.गु., अंक. २१, गद्य, मूपू., (धर्मनई विषइ १ मन वचन), ५४४६४-३७, ५३२२८-२(#), ५२१७०($) श्रावक २१ गुण सज्झाय, मु. धर्मचंद, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सरसति सरस वचन वरसती), ५२०९५ श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २३, पद्य, म्पू, (श्रावक तुं उठे परभात), ५४२८६-१४(१), ५२२९२-२, ५२३९०, ५४८५२-१६, ५२९५७-३(४) श्रावक के ८ गुण, मा.गु., गद्य, मूपू., (अणगल पाणी न पीड़ १). ५४४६४-२९ श्रावक के घर में ९ चंद्रवा का विधान, मा.गु., गद्य, मूपू., (पाणीहारे १ उखले २), ५४४६४-३२ श्रावकगुण सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (कहिए मिलस्ये रे), ५४४३३-२५ (+), ५४४४०-१७(+), ५५२८३-४० (+#) श्रावकछत्रीशी, मु. गोरधन ऋषि, मा.गु., गा. ३६, वि. १८४०, पद्य, श्वे., (श्रावकजी तू उठे), ५३७१५-१(+) श्रावक मोयकाबोल की आलोयणा, मा.गु., गद्य, मूपू., (अगलित जल व्यापारे), ५२४७९-१ י' श्रावक विधि सज्झाय, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (--), ५४८५९-१($) आवक व्रत १२४ अतिचार विचार, मा.गु., गद्य, भूपू (ज्ञानना ८ दर्शनना ८) ५४४६४-६९, ५४४६४-९८, ५४५५१-४(०३) श्रावकाचार चौपाई, ग. खेमराज, मा.गु., गा. ८१, वि. १५४६, पद्य, मूपू., (जगबंधव सामी जिणराय), ५२८११-१(+#) श्रीदेवी कमलस्वरुप वर्णन, मा.गु., गद्य, श्वे. (हेमवंतपर्वत १०० जोजन), ५३९५८-१($) श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. ४०, गा. ७५६, ग्रं. ११३१, वि. १७२६, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर जेहना ), ५४०७३-१(+#), ५५२४८(१) श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., खं. ४ ढाल ४१, गा. १८२५, वि. १७३८, पद्य, मूपू., ( कल्पवेल कवियण तणी), ५४१६३(+), ५४९६४), ५४२२८(+), ५४२४६(१), ५३४११ (३) (२) श्रीपाल रास - टवार्थ * मा.गु., गद्य, मूपू (त्रीजो खंड पूरो थयो ), ५४१६२(+), ५४२२८) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) सिद्धचक्र स्तवन, मा.गु., ढा. ११, गा. ४६, पद्य, मूपू., (त्रीजे भव वर थानक तप), ५३३५७ श्रीपाल रास- बृहद्, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ४९ गा. ८६१. वि. १७४०, पद्य, मूपू (अरिहंत अनंतगुण धरीये) ५४२०४१) " ५४७९४(१ श्रीपाल रास - लघु, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. २०, गा. २७१, वि. १७४२, पद्य, मूपू., (चउवीसे प्रणमु जिनराय), ५४१११(+), ५४१९६(+) श्रीमती रास, मु. रतनचंद, मा.गु., ढा. ६, वि. १८९४, पद्य, श्वे. (सील धर्म सुख संपजै), ५३४५४ (-) , יי श्रेणिकराजा चरित्र, मु. वल्लभकुशल, मा.गु., ढा. ५०, गा. १२३६, वि. १७७४, पद्य, मूपू., (आदिसर आदे नमुं शिवसु), ५४९१३ श्रेणिकराजा चौपाई, मु. नारायण, मा.गु., खं. ४, वि. १६८४, पद्य, थे. (श्रीजिननायक भावशु), ५४८३७(+) श्रेणिकराजा रास, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु खं. ४, गा. ६०६. ग्रं. ६८१, वि. १६०३, पद्य, म्पू, (सकल ऋद्धि मंगलकरण), . ५४१२१ (०३) श्रेयांसजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु, गा. ६, पद्य, मूपू (श्रीश्रेयांस जिन), ५३४२४-४(क) "" ५८५ श्रेयांसजिन स्तवन, मु. कल्याणहंस, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू (जगदानंदन साहिबा कुमत), ५२६१३-२ (+) श्रेयांसजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू.. ( मनडुं ते सहियां मोरु), ५४२२४-८(+) श्रेयांसजिन स्तवन, मु. सुमतिकुशल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू (श्रेयांस जिणेशरु), ५५२४०-३२ (-१) For Private and Personal Use Only . Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ षद्रव्य थोकडा, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणाम १ जीव २ मुता), ५५३६९-१(+#) षड्द्रव्य गुणपर्याय भाव, मा.गु., गद्य, मूपू., (सो होइ निच्छयनउंजो), ५५२८०(+#) षड्द्रव्यगुणपर्यायभाव विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (मोख्य ते आठ कर्मनु), ५४४४५ षष्ठतीर्थ स्तुति, मु.न्यायसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शत्रुजय तीरथसार), ५३४१६-१ संख्यातादि भेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (जघन्यसंख्यातो१), ५४५३५-५ संजतीगुण चौढालीयो, मा.गु., ढा. ४, गा. ४९, पद्य, श्वे., (चरमजीणेसर पाय नमी), ५४४४०-५२(+) संतोषछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, वि. १६८४, पद्य, मूपू., (सांहामी स्यउं संतोष), ५२६०२-३(#) संभवजिन पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू., (वांके गढ फोज चढी), ५३६६१-६(-2) संभवजिन स्तवन, मु. ऋद्धिकीर्ति, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (संभवजिनरी सेवा), ५२०७७-२ संभवजिन स्तवन, मु. ऋद्धिकीर्ति, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (साहिबारे संभव जिनरी), ५२४८७-२ संभवजिन स्तवन, मु. कवियण, पुहिं., गा. १०, पद्य, मूपू., (अरज करुं सांभलि मुझ), ५२३९८-४(-#) संभवजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ७, वि. १८९४, पद्य, मूपू., (विणजारा रे नायक संभव), ५३६४६-२(+-#) संभवजिन स्तवन, वा. मानविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (साहिब सांभलो विनति), ५२६७६-१(#) संभवजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.७, वि. १७७०, पद्य, मूपू., (समकित दाता समकित आपो), ५४६१३-१८ संभवजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १७३०, पद्य, मूपू, (संभव जिनवर विनती), ५३१५७-२(+), ५३४२४ संभवजिन स्तवन, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (संभव जिणंद गायो रसना), ५३३५२-३ संभवजिन स्तवन, मु. सुमतिकुशल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सेनादेना जाया हो मनि), ५५२४०-४९(-2) संभवजिन स्तवन, मु. सुमतिविजय शिष्य, मा.गु., गा. ७, वि. १७६०, पद्य, मूपू., (मुने संभवजिनस्यु), ५२१४४ संभवजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५७, पद्य, श्वे., (--), ५४०७३-२(+#$) संभवजिन स्तवन-पंचकल्याणतिथि गर्भित, मा.गु., पद्य, मूपू., (साचो शंभवनाथ दिलमा), ५२४५०-३(+$) संयमफल सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (दस मारग दीखारयो तणा), ५३५२६-२ संयमश्रेणिविचार स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. २, गा. २१, पद्य, मूपू., (प्रणमी श्रीगुरुना), ५२३१४ (२) संयमश्रेणिविचार स्तवन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, पू., (ऐंद्रवदनतं नत्वा), ५२३१४ संवर सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर गौतमने), ५२८८४(+#), ५४४४०-१३(+), ५५५६४-५(+) संवेगबावीसी, श्राव. तेजपाल सा, मा.गु., गा. २३, पद्य, श्वे., (सुध संवेगी किरीया), ५४४७९-४ सचित्त अचित्त वस्तु काल निर्णय, मा.गु., गद्य, श्वे., (आषाढे चोमासामाहे), ५२२२०-५ सचित्तअचित्त सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (प्रवचन अमरी समरी), ५२५९२-२(+), ५२०५३-१, ५३२८६-१(#) सज्जन पद, पुहिं., गा. ७, पद्य, वै., (सज्जन तुं हीयडै वसै), ५३८१८-२ सती सज्झाय, मु. भानु, मा.गु., गा. ४५, पद्य, मूपू., (प्रथम नमुंते सारद), ५५२५२-१५(+#) सदयवच्छ रास, मु.रंगविजय, मा.गु., खं. ४ ढाल ८३, गा. २६६८, ग्रं. ४१८४, वि. १८५६, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीरमणि रमण), ५४१५० सदयवत्स सावलिंगा चउपई, मु. कीर्तिवर्द्धन, मा.गु., गा. ३९०, वि. १६९७, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसोहगसुजस), ५४९२९(+#) सदारंग आचार्य गीत, मु. सिव, मा.गु., गा. ९, वि. १८६५, पद्य, श्वे., (गोतम गणहर पाय नमी), ५२०७६-१(#) सदेववत्स सावलिंगा दोहा, क. संघकविसर, मा.गु., गा. २१९, वि. १७९७, पद्य, श्वे., (सातलख्य संध राख वा), ५४२६५-१(#) सद्गुरुआलाप दोहरा, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (ज्यौं दातार दयाल होइ),५३९५६-१६(#) सनत्कुमारचक्रवर्ति चौपाई, मु. गोविंद, मा.गु., ढा. ८, वि. १८४९, पद्य, श्वे., (एक दिवस सुर इंदजी), ५५०९९(#) सनत्कुमारचक्रवर्ति रास, मु. सेवक, मा.गु., गा. ८५, वि. १६१७, पद्य, मूपू., (सुखकरि संतीसर नमु), ५३५६२ सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जोवा आया रे देवता), ५३१७९-४ For Private and Personal Use Only Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ ५८७ सनत्कुमारचक्रवर्ती चौढालियो, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., ढा. ४, पद्य, श्वे., (तिणकालने तिण समें), ५२८९६-४(+#) सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (कुरुदेशे गजपुर ठामे), ५२२६७-२ सनत्कुमारचक्रवर्ती सवैया, मु. हीरालाल, मा.गु., सवै. ४, पद्य, स्था., (सुरलोगमाही सुर पती), ५५५३६-३(+-) सनत्कुमारचक्रवर्ती रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. ३१, गा. ५१५, ग्रं.७५१, वि. १७३७, पद्य, मूपू., (प्रण पारसनाथ), ५४०९७(+) सप्तनय संक्षिप्त स्वरूप, मा.गु., गद्य, मूपू., (अनंत धर्मात्मक वस्तु), ५२६४९ । सप्तव्यसनफल सज्झाय, मा.गु., गा.८, पद्य, श्वे., (जूवै रमें नर जेह), ५२७४९-१ समकित ६७ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवादिक पदार्थ जाणवा), ५३०१७(#) समकितबत्रीसी, श्राव. कवरपाल, मा.गु., गा. ३२, पद्य, श्वे., (केवलरूप अनूपम आतम), ५४७७७-१(+) समकित सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (नरग निगोदमां किया), ५४४४६-१२(+) समकितसार प्रश्नोत्तरपच्चीसी सज्झाय, मु. जेठमल्ल, मा.गु., ढा. ५, गा. १८८, वि. १८७८, पद्य, श्वे., (चरणकमल गुरुदेवना नमी), ५५३३१-१(+#) (२) समकितसार प्रश्नोत्तरपच्चीसी सज्झाय-प्रश्नसूची, मा.गु., गद्य, श्वे., (सूरिये पुस्तकरत्न), ५५३३१-२(+#) समकित सुरतरु वेली, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ढा. ९, वि. १७३०, पद्य, मूपू., (श्रीसंखेसरपासना चरण), ५४००५ समवसरण रचनां स्तवन, मु. अमरविबोध, मा.गु., गा. २३, पद्य, श्वे., (वीर जिणेसर चरण कमल), ५४३२०-५(#) समवसरण स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (समोसरणनी शोभा जेणे), ५२६२७(#) समाधिपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २५, वि. १८३३, पद्य, स्था., (अपुरव जीव जिनधर्मने), ५३३१४-३(+$), ५४४३३ ८(+), ५३०६० समुद्रपाल चौढालीयो, मु. लालचंद्र ऋषि, मा.गु., ढा. ४, गा. ६९, वि. १८६७, पद्य, श्वे., (बार गुण अरिहंतजी आठ), ५३२६५-१ समुद्रपालमुनि सज्झाय, उपा. उदय वाचक, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (नगरी चंपामां वसे एतो), ५३१५७-१(+), ५४५५९-६(#) सम्मेतशिखरतीर्थ चैत्यवंदन, मु. कल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पूरव दिसे दीपतो), ५३५४४-३(#) सम्मेतशिखरतीर्थरास, मु. गुलाबविजय, मा.गु., ढा. ६, वि. १८४६, पद्य, मूपू., (सांवलिया श्रीपासजी), ५५०८७-२(+) सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (हं तो जाउंरे सिखर), ५३७६७(#) सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. रंगविजय, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (शिखरसम्मेत जुहारस्या),५३९८२-७(#) सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. रामचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (साहिबा समेतशिखर गिर), ५३४५३-५(#) सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. १२, गा. ६८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सुकृतवल्लि कादंबिनी), ५२८७२-१(+#$), ५४२०७-१(+) सम्यक्त्व आठ वचन भांगा, मा.गु., गद्य, मूपू., (न जाणइन आदरइ न पालइ), ५४०३०-३($) । सम्यक्त्व चौढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा. ४, वि. १८३३, पद्य, श्वे., (समकीत माहे दीढ रह्या), ५४४४०-३६(+) सम्यक्त्वछप्पनी, मा.गु., गा. ५६, पद्य, मूपू., (इम समकित मन थिर करो), ५३५१८(+#) सम्यक्त्वदीपक दोधका, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (जेह तणो आदेश सावद्यभ), ५३५१५-१ सम्यक्त्व पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (जागे सौ जिनभक्ति), ५२८७०-११(+#) सम्यक्त्वसुखडी सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चाखो नर समकित सुखडली), ५२०८१-१ सम्यग्दृष्टि, देशविरति व सर्वविरति ११ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (विधिवाद १ जे वितरागइ), ५४४६४-६० सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (बुद्धि विमल करणी), ५३७४७-२(+#s), ५३९५०-२ सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (सरस वचन समता मन), ५२६३६-१(+#), ५२७५१-१(+-६), ५२२८५, ५२५९१(#), ५२८०४-१(#) सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., ढा. ३, गा. १४, पद्य, मूपू., (शशिकर जिनकर समुज्व), ५३७४७-१(+#S), ५४३०६(+), ५२६६९, ५३७५३, ५२२७७-३(#) सरस्वतीदेवी छंद, ग. हेमविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (ॐकार धुरा उच्चरणं), ५२१२५-२(+), ५२६९९(+#), ५४८९७-२(#) सरस्वतीदेवी छंद-अजारीतीर्थ, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (सरसति सरस वचन समता), ५३२८३(+#), ५२४८३-२ For Private and Personal Use Only Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ सरस्वतीदेवी पद, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (सिद्धा रूपी सादी देव), ५४८९७-५(#) सरस्वती स्तुति, मु. धर्मवर्धन, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (अगम आगम अरथ उतारै), ५५०३१-१०(+#) सर्पभय निवारण ध्यान, मा.गु., गद्य, श्वे., (श्रीमलीनाथजी रो नाम), ५३२६८-७ सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (जगदानंदन गुणनीलो रे), ५३२१६-१, ५५१५१-३(#) सवैया संग्रह, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. २६, पद्य, दि., (जिनके वचन उर धारत), ५२७६५(+#) सवैया संग्रह, पुहि., पद्य, वै., (अली आय खरी सन्मुख), ५४२४९-२(+), ५४४४४-२(+), ५४९७२-६८(+-#), ५४९७२-१(+-#), ५४९७२-३(+-#), ५४०७९-४ सहजानंदी सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ११, वि. १९वी, पद्य, मपू., (सहजानंदी रे आतीमा), ५३३९१-१(+) सांबप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. २ ढाल २२, गा. ५३५, ग्रं. ८००, वि. १६५९, पद्य, मूपू., (श्रीनेमीसर गुणनिलउ), ५४७८१(#$) सांबप्रद्युम्न प्रबंध, रा., वि. १९६५, पद्य, श्वे., (ऐ परजणकुवर का सामाकु), ५२२००(-#$) साधारणजिन आरती, मु. शुभचंद, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (आरती जिणराज तुहारी), ५४७५८-३(#) साधारणजिन गीत, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (तु छे सकल देवनो देवत), ५३६६१-४(-2) साधारणजिन गीत, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (तु निरंजन इष्ट हमेरा), ५२८०७-४(#) साधारणजिन चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जय जय तुं जिनराज आज), ५२७१६-२, ५३०५५-२ साधारणजिन पद, मु. करण, पुहि., गा. २, पद्य, श्वे., (अरी मेरी अखीयन हरख), ५३१४१-१(-2) साधारणजिन पद, मु. खुशालराय, पुहिं., गा. २, पद्य, मूपू., (मेरा जीवडा लग्या), ५४८१७-२(+#), ५३३५२-४, ५३३४४-१(-2) साधारणजिन पद, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (क्या करियै अरदास साध), ५५१२८-२२(+#) साधारणजिन पद, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (नाथ तुमारी तुमही), ५५१२८-१७(+#) साधारणजिन पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रभु दीनदयाल दया), ५५१२८-९(+#) साधारणजिन पद, मु. दया, मा.गु., पद. ५, पद्य, श्वे., (श्रीगुरुने चरणे नमु), ५३७३१ साधारणजिन पद, जै.क.द्यानतराय, पुहि., गा.४, पद्य, दि., (मोहतारा हो देवाधिदेव), ५३९२५-३ साधारणजिन पद, मु. नवल, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (प्रभू तेरी मूरत द्रग), ५२८०७-१९() साधारणजिन पद, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (सुखदायक मुख एव जगत), ५३९५६-१४(#) साधारणजिन पद, मु. भूधर, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (जिनराज ना विसारो मत), ५५४४८-१४(१) साधारणजिन पद, मु. मालदास, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (भलै मुख देख्यौ), ५३५७३-४ साधारणजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रभु मेरे अइसी आय), ५२२१९-३(+) साधारणजिन पद, रामदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (नैना सफल भये प्रभु), ५२८०७-५(#), ५३१३८-४(#) साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (तुम तारण हम जाणी तार), ५५४४८-१७(#) साधारणजिन पद, मु.रूपचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (देव निरंजन भव भय),५२८७०-७(+#), ५३२४३-४(#) साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (निरंजन यार वोरे अब), ५३२०६-१ साधारणजिन पद, मु. रूप, पुहिं., गा. १, पद्य, श्वे., (हो जिन तेहे दरस पर), ५३१४१-४(-2) साधारणजिन पद, मु. सेवाराम, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (प्रभुजीसू लागो मारो), ५३६०५-४, ५३१३८-१(#) साधारणजिन पद, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (जिन आपकुंजोया नहि), ५४८९७-१३(#) साधारणजिन पद, पुहि., गा. १, पद्य, श्वे., (जिनराज उरमै धारौ वसु), ५५४४८-१५(#) साधारणजिन पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (थारै मुखडारी हो), ५३३६०-२ साधारणजिन पद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (होरी मेरो पीया घर), ५२८०७-६(#) साधारणजिन प्रभातीयु, मु. रायचंद्र, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (वेणला वाया रे प्रभु), ५४५०४-३(#) साधारणजिन प्रार्थना दोहा, मा.गु., दोहा. २, पद्य, मूपू., (सुख देवो दुख मेटवो), ५४१३४-१९(+#) साधारणजिन फाग, मु. चंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (ऐसी होरी में प्रीतम), ५३२४३-१२(#) For Private and Personal Use Only Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ साधारणजिन विनती स्तवन, मु. भुधर, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (त्रिभुवनगुरु स्वामी), ५३३३६-३(#) साधारणजिन वीनति, मु. भूदरदास, पुहि., गा. १२, पद्य, श्वे., (अहो जगत गुरुदेव सुनी), ५५४४८-११(#) साधारणजिन स्तवन, वा. उदयरतन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पामी प्रभुजीना पाय), ५२७९२-४ साधारणजिन स्तवन, मु. कनककीर्ति, पुहि., गा. १२, पद्य, मूपू., (वंदु श्रीजिनराय मन), ५३९०३-१(#), ५३९०४-२(#) साधारणजिन स्तवन, मु. कांति, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जिणंदा ताहरी वाणीइ), ५३५७३-६ साधारणजिन स्तवन, आ. कीर्तिसूरि, मा.गु., गा.५, पद्य, पू., (मन रे भजो श्रीभगवान), ५३०८८-३(#) साधारणजिन स्तवन, ग. खिमाविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (परमानंद विलासी जिनेस), ५२८२६-२ साधारणजिन स्तवन, मु. जिनलक्ष्मी, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सबल भरोसो तेरो जिनवर), ५३२६८-४ साधारणजिन स्तवन, मु. ज्ञानउद्योत, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (खतरा दूर करणा दूर), ५३१५६-४, ५३२६८-६ साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा.७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (भोर भयो भयो भयो जागी), ५२८७०-८(+#) साधारण जिन स्तवन, पंन्या. दयानंद, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (गाइई गाइई गाइइ), ५४२१७-४(+#) साधारणजिन स्तवन, मु. देवचंद्रजी, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (हुं तो प्रभु वारि छु), ५३४४५-५(+) साधारणजिन स्तवन, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा.८, वि. १७वी, पद्य, दि., (मगन होइ आराधो साधो), ५३९५६-३(#) साधारणजिन स्तवन, मु. भावसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अतुलबल अरिहंतजी शिवद), ५५२४०-२६(-#) साधारणजिन स्तवन, मु. मुनिचंद्र, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (अलख अकल गत सुरत ताहर),५३९७३-४(#) साधारणजिन स्तवन, मु. मुनिचंद्र, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (सुरत प्यारी रे प्रभु), ५३९७३-३(#) साधारणजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (जिन तेरे चरण सरण), ५३०८०-२(#) साधारणजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (मे परदेसी दूरका दरसन), ५३६६१-८(-2) साधारणजिन स्तवन, मु. सदानंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (सदा भेटिए भावस्यु), ५२५०२-५ साधारणजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५८, पद्य, श्वे., (त्रिभुवनतारक जिनवर), ५३७१३-१ साधारणजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (भवोदधि पार कीजो तुम),५२७९२-२ साधारणजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, श्वे., (रात गई रवि उगीयो रे), ५३६५९-२($) साधारणजिन स्तवन-देवनाटकविचार, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (प्रभु आगल नाचे सुरपत), ५३५००-१(#) साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चंपक केतकी पाडल जाई), ५५३६४-१६(+#), ५५३८७-२(+), ५२४९०-३(#), ५३०१३-२(#), ५४२४४-१०(#) साधारणजिन स्तुति, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (दुखहरण जिणेंद्र कर्म), ५२४२४(-#) साधारणजिन स्तुति-श@जय-गिरनारमंडन, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (त्रिभुवन माहे तीरथ), ५२३८८ साधुआचार परिचय सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (समदृष्टि आरे पांचमे), ५४४१०-३(+#$) साधुआचार सज्झाय, मा.गु., गा. २८, पद्य, श्वे., (आहार उपधिने अपासरो), ५४४१०-१(+#) साधुआचार सज्झाय, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (कोई कहै साधु पधारिया), ५२४३१-१०(२) साधुआचार सज्झाय, मा.गु., गा. ४६, पद्य, श्वे., (पेला अरहंतने नमुं), ५४४१०-२(+#) साधुगुणपच्चीसी, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (कहिये मलसे रे मुनिवर), ५३७६२-२(+#), ५४४३३-२६(+) साधुगुण सज्झाय, आ. आनंदविमलसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवरने करूं), ५४३८४-१३(+#), ५४४४१-२(+), ५२५५७) साधुगुण सज्झाय, मु. ब्रह्म, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (पंच महाव्रत जे धरइ), ५५२८३-३९(+#) साधुगुण सज्झाय, मु. भुदर, पुहिं., गा. ८, पद्य, श्वे., (वंदु श्रीजिनगुरु चरण), ५४४४०-६(+) साधुगुण सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (मोटा पंचमहाव्रतधारी), ५३२९० साधुगुण सज्झाय, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पांचे इंद्री रे), ५२१४०-२(+#), ५२९४५-२(+), ५४४४०-१६(+) साधुगुण सज्झाय, ग. विजयविमल, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (पंच महाव्रत सुधा), ५२५३६-३(#$) साधुगुण सज्झाय, मा.गु., गा. १२, पद्य, पू., (झोली पाया पत्तर पाया), ५४०३९-१ For Private and Personal Use Only Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ साधुगुण सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (श्रीजिनवर गणधर), ५३६५७(s) साधुजीवन सज्झाय, मु.खेतसी, मा.गु., गा. २०, पद्य, श्वे., (--), ५३०८७-१(६) साधुवंदना, मु. श्रीदेव, मा.गु., ढा. १३, गा. ३७७, पद्य, मूपू., (पंच भरत पंच एरवय), ५५०११(+) साधुवंदना, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ५५२०६(+#$) साधु-श्रावक संवाद सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मुनिवर वाणी वागरी), ५३१५२-२ साधुसंगति पद, पुहिं., पद. १, पद्य, वै., (तात मिलै कुनि मात), ५४९७२-२६(+-#) साधुसंगति सज्झाय, मु. धर्मदास, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रवचन वचन सोहामणां), ५५३१९-३, ५३३२२(#) सामायिक ३२ दोष सज्झाय, मु. कानजी, मा.गु., गा.८, वि. १७५८, पद्य, श्वे., (श्रावक व्रतधारी गुण), ५३१०५(#) सामायिक दृष्टांत, मा.गु., गद्य, श्वे., (सामाईयं १ समईयं २), ५४५५१-२(#) सामायिक सज्झाय, मु. कमलविजय-शिष्य, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (प्रणमिय श्रीगौतम), ५३०८७-३, ५३४३८-१ सारदा स्तुति, मु. अमर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मात सदा सुरराणी हे), ५२७०५-३(-) सिंहासनबत्रीसी चौपाई-दानाधिकारे, पंन्या. हीरकलश, मा.गु., कथा. ३२, गा. २४३०, ग्रं. ३५००, वि. १६३६, पद्य, मूपू., (आराहि श्रीरिषभप्रभु), ५४३००(+#) सिचियायमाता छंद, आ. सिद्धसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मपू., (मुज मन आस्था अज फली), ५३९४८-१(+#), ५३९६५-२($) सिचीयायदेवी छंद, हेम, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सानिधि साचल मात तणी), ५३९४८-२(+#), ५३९६५-१ सिचीयायमाता स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (साचीनु सिचीयाय अचलओ), ५३९४८-३(+#) सिद्ध के १५ द्वार बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (अणंतर सीझणा द्वार), ५४४६४-४९ सिद्ध के ३१ गुण, मा.गु., गद्य, श्वे., (लांबउ १ बादलउ २), ५४१०५-२(#) सिद्धगिरि स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (ते दिन क्यारे आवसी), ५२६८२(+) सिद्धगुण आरती, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा.८, पद्य, दि., (आठ कर्म को नास आठगुन), ५४६९८-५ सिद्धचक्र आरती, मु. कुशलविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र आरती भविजन), ५२७१७-२ सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शिव सुखदायक सिद्धचक), ५२५६३-१ सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. शांतिविजय शिष्य, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पहेले दिन अरिहंतनु), ५३५४५-२(2) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. साधुविजय शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र आराधता), ५२७२१-१ सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (नगरी तो चंपापुरी), ५४२०९-१४(+) सिद्धचक्र नमस्कार, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत उदार कांत), ५२०७४-१ सिद्धचक्र पद, आ. अमृतचंदसूरि, मा.गु., गा.५, वि. १९२३, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र ध्यान धरिय), ५२६५१-३(+) सिद्धचक्र स्तवन, मु. अमरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (समरी सारद माय प्रणमी), ५५३१३-३(#) सिद्धचक्र स्तवन, पंन्या. खिमाविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (जिनवाणी पणमेव समरी), ५४९७२-७४(+-#) सिद्धचक्र स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (धन धन नवपद जस नामी), ५३५११-३ सिद्धचक्र स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्री जयति तीरथपति), ५३५७६(#) सिद्धचक्र स्तवन, वा. भोजसागर, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र सुहामणो), ५३९४५-१(#) सिद्धचक्र स्तवन, मु. विजयहर्ष, मा.गु., गा. १३, वि. १७४७, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर सेवित), ५३५५७-२ सिद्धचक्र स्तवन, उपा. वीरसुंदर, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (नवपदनो रे ध्यान धरी), ५२५१२-२(-#) सिद्धचक्र स्तुति, ग. उत्तमसागर, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धचक्र सेवो), ५३९४५-२(#), ५४२४४-७(#) सिद्धचक्र स्तुति, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अंगदेश चंपापुरी वासी), ५३१८८(+) सिद्धचक्र स्तुति, ग. कांतिविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १८उ, पद्य, मूपू., (पहिले पद जपीइ अरिहंत), ५४२४४-८(#) सिद्धचक्र स्तुति, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जगनायक दायक सिद्ध), ५३४२९-१३(+), ५३५११-४ सिद्धचक्र स्तुति, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रणमंत सुरनर पाय), ५३४२९-१२(+) सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (निरुपम सुखदायक), ५३५११-५, ५४५४६-१९(#) For Private and Personal Use Only Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ ५९१ सिद्धचक्र स्तुति, मु. धीरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (त्रिगडे बेठा), ५२५९८-३ सिद्धचक्र स्तुति, मु. नयविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर अति अलवेस), ५२२२०-२ सिद्धदंडिका स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., ढा. ५, गा. ३८, वि. १८१४, पद्य, मूपू., (श्रीरिसहेसर पाय नमी), ५३५५१-२(5) सिद्धपद स्तवन, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (जगतभूषण विगत दूषण), ५३१२९, ५३६१२-१ सिद्धपद स्तुति, मु. स्वरूपचंद, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (परमेष्ठी आराधी सुगुण), ५२३८७-२ सिद्धांत बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (जे इम कहइ छइ अम्हारई), ५५२८६ (#$) सिद्धांतविचार रास, मा.गु., गा. १८२८, पद्य, मूपू., (ॐकाराक्षररूपाय), ५४३५८(#$) सिद्धांतसारविचार सज्झाय, आ. आणंदवर्द्धनसूरि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (श्रीजगनाथि सइमुखि), ५४७५१-७(#$) सीताराम पद, पुहिं., पद्य, वै., (रामजीरो वत भर जेना), ५२४१६-४(-#$) सीतासती १६ भव विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (गुणवंति सेठनि पुत्री), ५४४६४-८० सीतासती गीत, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (छोडी हो पिउ छोडि), ५३६१०-५(#) सीतासती चरित्र, मा.गु., गद्य, श्वे., (मिथिला नगरीयइ जनकराज), ५४२८३ सीतासती सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (जनकसुता हुं नाम), ५३४००-४($), ५२५१२-३(-#), ५२८३२(-२) सीतासती सज्झाय, मु. सुखचंद, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीब्रह्माणी हो पाए), ५२५५९(#) सीतासती सज्झाय, मु. हर्षकुशल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सीता जुग मोटी सतीजी), ५२४२५-२ सीतासती सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (पालि बधी हे सखी चेटी), ५३००२, ५२८२८($) सीतासती सज्झाय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (रावण सीता लेइ गय जीत), ५४३७९-५(+-) सीतासती सज्झाय-शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, म्पू., (जलजलती मिलती घणी रे), ५४१३२-३१(+#), ५४४४०-२६(+) सीमंधरजिन के नाम जीवाजी का पत्र, मु. रतन कवि, रा., गद्य, मूपू., (--), ५३४८१(+#$) सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वंदं जिणवर विहरमाण), ५२६५६-१(+), ५२०७४-४, ५३५४४-४(#) सीमंधरजिन चैत्यवंदन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर जिनवरा), ५२५१८-३ सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ३, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर वीतराग), ५४२०९-१२(+), ५३५३४-३ सीमंधरजिन चैत्यवंदन, मु. हर्षविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (पूरव दिशि इशान कुण), ५३९१३-२ सीमंधरजिन पत्र, क. नर, मा.गु., पत्र. २, गद्य, श्वे., (स्वस्ति श्रीमहाविदेह), ५३३४३(-2) सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन-३५० गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. १७, गा. ३५०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीसीमधर साहिब), ५३४३८-२(६) सीमंधरजिन विनती स्तवन, वा. उदय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (मनडुते माहरु मोकलु), ५२५१८-२,५२५५६-१(३), ५३२२१ २(#), ५३३१७-४() सीमंधरजिन विनती स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सुण सीमंधर साहिबाजी), ५३३७४-२(६) सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (सफल संसार अवतार हु), ५३९४०-२(+$), ५४४४१____३(+$), ५३६६०-२, ५३८९८-१,५२७८६(#), ५३४७५ (#) सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ११, गा. १२५, ग्रं. १८८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (स्वामी सीमंधर विनती), ५४२०७-२(+), ५२९०४(#$), ५३८८१(#$) सीमंधरजिन स्तवन, मु. अगरचंद, मा.गु., गा. २३, वि. १८२१, पद्य, मपू., (मारी वीनतडी अवधारो), ५२८९६-३(+#) सीमंधरजिन स्तवन, ग. उत्तमसागर, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर वीनवुरे), ५४००३-१ सीमंधरजिन स्तवन, मु. कनकसौभाग्य शिष्य, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रभुजी सीमंधरस्वामी), ५२३५६-१(-2) सीमंधरजिन स्तवन, मु. गंग मुनि शिष्य, मा.गु., गा. १३, वि. १७७१, पद्य, मूपू., (सीमंधरस्वामी सुणो), ५४४७७-६ सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, म्पू., (पूर्वविदेह विजये), ५३५५७-४ For Private and Personal Use Only Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर साहिबा), ५३५५७-३, ५३३६९-२(-) सीमंधरजिन स्तवन, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा.१०, पद्य, श्वे., (श्रीसीमंदर सायाव दील), ५२४१८-२(+) सीमंधरजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू, (श्रीसीमंधर साहिबा), ५२५१८-४ सीमंधरजिन स्तवन, मु. दीपविजय, पुहिं., गा.५, पद्य, मूपू., (अब मेरी सार करो), ५२४०० सीमंधरजिन स्तवन, मु. ब्रह्म, मा.गु., गा. ११, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर जिणवरु), ५३२९३ सीमंधरजिन स्तवन, वा. मानविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (ओलुडि महाविदेह), ५२३१०-१ सीमंधरजिन स्तवन, मु. मुनिसुंदर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (श्रीश्रीमंधर सामिया),५२८३० सीमंधरजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (साहिब आंगी तुमारी), ५४२२४-४(+) सीमंधरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा.७, वि. १८वी, पद्य, मप., (पुष्कलवइ विजये जयो), ५५५५३-२(+#), ५३७७५-१ सीमंधरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ३८, वि. १८वी, पद्य, मपू., (श्रीसीमंधर विनति), ५३३७७(६) सीमंधरजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (धनधन क्षेत्रविदेह), ५२७०५-२(-) सीमंधरजिन स्तवन, ग. रत्नविजय, मा.गु., गा.७, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (विजय विराजै पुखलवई), ५२३१०-२ सीमंधरजिन स्तवन, मु. राम, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (प्यारा प्रभुजो मुझ), ५४९७२-३२(+-#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १४, वि. १८४१, पद्य, स्था., (पुर्व माहाविदिहे वशे), ५२८६४(#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १४, वि. १८४०, पद्य, मूपू., (सीमंदर साहबा अरज सुण), ५३६०६-४(#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., ढा. ७, गा. ४०, पद्य, मूपू., (सुणि सुणि सरसती भगवत), ५२९९३(+$) सीमंधरजिन स्तवन, मु. शिवलाल, मा.गु., गा. ९, वि. १८८१, पद्य, मूपू., (श्रीमंदिर सीमंधर), ५३६३०-२ सीमंधरजिन स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., ढा. ७, गा. ११५, वि. १७१३, पद्य, मूपू., (अनंत चोवीसी जिन नमु), ५२२४९() सीमंधरजिन स्तवन, मु. सुखदेव, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (सीमधर जिनरायजी), ५२७३७-१ सीमंधरजिन स्तवन, मु. हंस, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीसीमधरस्वामीजी), ५३४४२(#), ५५२९८-२२(#), ५२९३१-५(s), ५३७४५-३() सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (जिनवर० जीव जागीओ), ५२३१०-३ सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (बे कर जोडीने वीनवु), ५४५०४-८(#) सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, पू., (श्रीसीमंधर साहीब), ५४५०४-३७(#s) सीमंधरजिन स्तवन-आलोयणाविनती, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ५६, वि. १५६२, पद्य, मूपू., (आज अनंता भवतणां कीधा), ५२९१३-२(+#), ५२५३३(#) सीमंधरजिन स्तुति, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सीमंधर नित वंदीय), ५२९६५-२(#) सीमंधरजिन स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (पूर्व विदेह विराजता), ५२०७४-३ सीयालशुकन विचार यंत्र, मा.गु., गद्य, वै., (ईशानकूणि उत्पात अग्न), ५४२६५-४(#) सुंदरीतप सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सरस्वती स्वामिनी), ५३९१९-३(+) सुकोशलमुनि चौपाई, मु. देवराज, मा.गु., ढा. ६, गा. ५७, पद्य, श्वे., (सुगुरू वयणे सांभलीजी), ५२१०४(+$), ५२५२०-१(#) सुकोशलमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (समता सागर संजमी), ५४३७९-८(+-) सुकोशलसाधुरास, मु. कवियण, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (प्रहि उठी रे भगवति), ५२९३६(#) सुगुनकुवर महाराज सज्झाय, सा. केसरबाई, पुहि., गा. ६, वि. १९४३, पद्य, श्वे., (धन सतीयां सुजाण), ५३१२०-३(-) सुगुरुपच्चीशी, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सांभलजो सहूऐ मन आण), ५३९७५-२(#) सुगुरुपच्चीसी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सुगुरू पिछाणो एणे), ५४४३३-१०(+), ५२९२२() सुतेजजिन स्तवन-अतीत, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (जिनजीनी थीरता अतिरूड), ५३४४५-३(+) सुदर्शनशेठ रास, मु. दीपचंद ऋषि, रा., गा. १२१, पद्य, श्वे., (वंदु श्रीजिन महावीर), ५४२४८-१(#) सुदर्शनशेठ सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ४५, वि. १७७६, पद्य, मूपू., (श्रीगुरु पद पंकज नमी), ५३५९१, ५२७८०($) For Private and Personal Use Only Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ सुदर्शनसेठ सज्झाय, मा.गु., गा.१०, पद्य, श्वे., (सुदरसन मन किजा लीजी), ५३५२६-१ सुधर्मास्वामी गहुंली, मु. सोहव, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चेलणा लावे गहुली), ५२३१५-३(+) सुधर्मास्वामी भास, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चंपानयरी उद्यान सुरत), ५२३१५-२(+) सुधर्मास्वामी भास, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (ज्ञानादिक गुणखाणि), ५२३१५-४(+) सुपन पाठक विचार व गंगा तेली दृष्टांत, मा.गु., गद्य, श्वे., (हवे सुपन पाठक भेला), ५४२७१(#) सुपात्रदान सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (संखराजा जसोमतीराणी), ५४४४०-१५(+), ५३२५८-२, ५३०७३-२(#) सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (सकल समिहीत सूरतरु रे), ५३९६०-३(+#) सुपार्श्वजिन स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (साहिब हो साहिब मुझ), ५४८६५-१२(+), ५२५६१-३ सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. नित्यलाभ, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मुज मन भमरे प्रभु), ५४६१३-१६ सुपार्श्वजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीसुपास जिनराज), ५२१८१-३, ५५२९८-१८(2) सुबाहुकुमार चरित्र, ऋ. जैमल, मा.गु., ढा. ७, गा. १९०, पद्य, श्वे., (नमु वीर सासनधणी सर्व), ५४४४०-५७(+) सुबाहकुमार चौढालियो, मा.गु., ढा. ४, पद्य, श्वे., (प्रथम सुबाहु वखांणीए), ५२९०१(+#$) सुभद्रासती रास-शीलव्रतविषये, मु. मानसागर, मा.गु., ढा. ४, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (सरसति सामणि वीनवू),५५१६१-१(+#$), ५२९८६(#) सुभद्रासती सज्झाय, उपा. राजरत्न पाठक, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (साजन वंदुरेसुभद्रा), ५२६९६-१(#) सुभद्रासती सज्झाय, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (मुनिवर सोधेरे इरजा), ५३२७९-३(-5) सुभद्रासती सज्झाय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सतीसुभद्रा साधुना), ५४३७९-३(+-) सुभद्रासती सज्झाय-सीयल, मु. सिंघो, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (मुनीवर सोधे इरया जीव), ५४१३२-२८(+#) सुमतिकुमति लावणी, जिनदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (हां रे तुंकुमति), ५२०६०-४(-#) सुमतिजिन पद, मु. आनंदरूप, रा., गा. ३, पद्य, श्वे., (सुमति महाराज म्हांनु), ५२८०७-१८(2) सुमतिजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (मुजरा साहिब मुजरा), ५३५६४-४(#), ५३७४४-५(2) सुमतिजिन समवसरण गीत, ग. जीतविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (आज हुंगइतीरे समवसर), ५२८५३-३(+#s), ५३८१४, ५४५०४-७(2) सुमतिजिन स्तवन, ग. अमीचंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सुमतिजिणंद जुहारीइं), ५५२५२-५(+#) सुमतिजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा.६, पद्य, मूपू., (जीवडा तुज विषयारी), ५३९६०-१(+#) सुमतिजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (तुम हो बहु उपगारी), ५५२४०-२४(-2) सुमतिजिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वंशइख्यागई राजीओI), ५४०६३-४ सुमतिजिन स्तवन, पं. फत्तेविजय गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मुरती ताहरी अनोपम), ५४२२४-१२(+) सुमतिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुमति सुमति सलूणा), ५४८६५-७(+) सुमतिजिन स्तवन, आ. लक्ष्मीसागरसूरि, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सेवकनी अरजी सूणज्यो), ५३१३८-५(#) सुमतिजिन स्तवन, मु. स्वरूपचंद, मा.गु., गा.६, पद्य, मूपू., (अतुल बल अरिहंत नमीजे), ५४६१३-७ सुमतिजिन स्तवन-१४ गुणस्थान विचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., ढा. ६, गा. ३४, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (सुमतिजिणंद सुमति), ५४६१२-६(+), ५३२८६-२(#$), ५३५५९-१(#) सुमतिजिन स्तवन-उदयापुरमंडण, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभुस्युं तो बांधी), ५४००३-३ सुमतिजिन स्तुति, मु. ऋषभ, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मोटो ते मेघरथ राय रे), ५३४१६-८ सुमतिशिक्षा सज्झाय-आत्मप्रति, मु. महानंद, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (मारे घर आवजो रे वाला), ५३१२६-४($) सुमतीकुमती सज्झाय, वा. उदयरतन, मा.गु., ढा. १, गा. ९, पद्य, मूपू., (कहे सुमती चेतन सुणो), ५३११५ सुरसुंदरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., खं. ४ ढाल ४०, गा. ६१३, वि. १७३६, पद्य, मूपू., (सासण जेहनउ सलहियइ), ५४८५७(+#), ५३४२६(#$), ५४६०२६) For Private and Personal Use Only Page #609 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५९४ www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ सुरसुंदरी रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., ढा. २१, गा. ५१७, वि. १६४४, पद्य, मूपू., (आदि धरमने करवा ए भीम), ५५१९३(+#$), ५४९८१ ($) יי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ', सुलसाश्राविका सज्झाय, मु. कल्याणविमल, मा.गु., गा. १०, पद्य, म्पू. ( धन धन सुलसा साची), ५४१३२-३०(+) सुविधिजिन स्तवन, मु. उत्तम, मा.गु, गा. ११, पद्य, भूपू (सुणो सुविधि जिणंद), ५४५०४-२० (७) सुविधिजिन स्तवन, मु. कवियण, पुहिं. गा. ७, पद्य, मृपू., (सहज सलूणी सोहइ प्रभू), ५२३९८-५ (१) सुविधिजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ताहरी अजबशी योगनी मु), ५३९६०-५ (+) सुविधिजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू (सोभागी सुविधिजिणंद), ५२५६१-२ सुविधिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अरज सुणो एक सुविधि), ५४६१३-२ सुविधिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू (सुविधि जिणेसर जागतो), ५३८९१ सुविधिजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (वांकै गढ फोज चढी है), ५३१०६-३ सुविधिजिन स्तवन, मु. सुमतिकुशल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रभुजी प्रीतम प्राण), ५५२४०-३०/-) सुविधिजिन स्तवन, मु. स्वरूपचंद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (साहिब सुविधिजिणंद), ५४६१३-१० सुश्री गीत, मा.गु., कडी ४, पद्य, (कहै कध दुहु कुल), ५४९७२-२२(+) "3 सूतक विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पुत्र जन्म्यां १०), ५२१०५-४, ५२३५९ सूर्यगति सज्झाय, मु. सोमविमल, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (सरसती सामणी समरी), ५२५३७-१(#) सोहनलाल गुरु जीवनचरित्र, मु. आनंदघन, पुहिं. गा. १७, वि. १९०१, पद्य, ओ., (ॐकार प्रणमूं ग्यान), ५३८८२-१ स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन, मा.गु., स्त. २४, वि. १८पू, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम), ५३५६० (+#), ५४१८० (+#), 1 ५४१९२ (+#), ५५२१४(+), ५३४५६ ($) (२) स्तवनचीवीसी - बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (चिदानंदमय जिनवर सदा), ५४१८० (mm) (२) स्तवनचीवीसी टवार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु. नं. ८२८, गद्य, मूपू (आनंदघनस्यास्या गीत) ५४९९२ (क) स्तवनचौवीसी, मु. उदयरत्न, मा.गु., स्त. २४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मरुदेवीनो नंद माहरो ), ५४३९६, ५२१७५(#), ५२४५१ ($) स्तवनचीवीसी, मु. कमलविजय, मा.गु., स्त. २४ वि. १९४५ १९४६, पद्य, मूपू. (श्रीसंखेश्वर पाय), ५५१७० (४६) स्तवनचौवीसी, मु. कांतिविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (सुगुण सुगुण सोभागी), ५४०३९-२ ($) (मनमधुकर मोही रह्यो) ५४०८३(०) स्तवनचौवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., स्त. २४, पद्य, भूपू स्तवनचीवीसी, मु. जिनहर्ष, पुहिं. डा. २४, गा. ३९, पद्य, मूपू (देख्यौ रे ऋषभ जिणंद), ५३५१६-१ स्तवनचौवीसी, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (आदीसर सुखकारी हो), ५२२५४(#$) स्तवनचौवीसी, ग. तत्त्वविजय, मा.गु. स्त. २४, गा. १२०, पद्य, मूपू. (ऋषभ जिणंद मया करी रे) ५४०६६ ( स्तवनचीवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., स्त. २४ वि. १७७६, पद्य, भूपू (ऋषभ जिनिंदसु प्रीतडी), ५५१९४(5) स्तवनचौवीसी, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., स्त. २४, गा. १२०, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (जग चिंतामणी जगगुरु), ५३४६३($) स्तवनचीवीसी, उपा. मानविजय, मा.गु., स्त. २४ वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिनंदा ऋषभ), ५५२१९ ( +०७), १४६१३-१, 2 ५२५७१-२(०३), ५४२३१(३) स्तवन चौवीसी, मु. मोहनविजय, मा.गु. स्त. २४, पद्य, मूपू (प्रथम तीर्थंकर सेवना), ५४१५४-१(+), ५४०३५-१, ५४७४४- १(क) स्तवनचीवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्त. २४. गा. १२१, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जगजीवन जगवालहो), ५४००७-२, " ५४११२, ५२८०२, ५३६८१७) स्तवनचीवीसी, श्राव विनयचंद्र गोकलचंद कुमट, मा.गु. स्त. २४, वि. १९०६, पद्य, वे (श्रीआदिश्वर सामी हो), ५३४८४, ५२४१४१३) स्तवनचीवीसी १४ बोल, उपा यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्त. २४. वि. १८वी, पद्य, मूपू (ऋषभदेव नितु वंदिये), ५४२३८ (३) स्तवनवीसी, पंन्या. न्यायसागर, मा.गु., स्त. २०, पद्य, मूपू., (कहियो वंदन जाय दधि), ५२६१६ स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्त. २०, पद्य, मूपू., (पुक्खलवई विजये जयो), ५५४३२ (+#), ५३४९३(#$), ५३९१२ १(ख) For Private and Personal Use Only Page #610 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१३ स्त्री चरित्र चौढालिया, श्राव. हीराचंद, रा. डा. ४, वि. १८३६, पच, भूपू (लख चोरासी मै भटकर), ५२६८७ स्त्रीपुरुष संवाद, मा.गु., गा. २, पद्य, श्वे., (सिख सुणो पिउ माहरा), ५३२६८-२ स्थापनाचार्यजी पडिलेहण १३ बोल, मा.गु, गद्य, भूपू (शुद्ध स्वरूपने ध्याउ), ५२६७५-३(+) स्थूलभद्र गीत, मु. यशोवर्द्धन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सखी मोहि थूलभद्र आणि), ५३५४७-१(+) स्थूलिभद्र चौमासा, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रावण आयो साहिबा रे), ५३९४२-५ (+) स्थूलभद्रनवरस सज्झाय, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., डा. ९, गा. ४९, पद्य, म्पू, (करी शृंगार कोशा कहि), ५५१५१-८/० स्थूलभद्रमुनि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, भूपू (प्रियुडा मानो बोल), ५३९४२-३ (+) स्थूलभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न, मा.गु., डा. ९, वि. १७५९, पद्य, मूपू (सुखसंपत्ति दायक सदा), ५३२८८ (७), ५४६४२ स्थूलभद्रमुनि नवरसो ढाल व दूहा, उपा. उदयरत्न, मु. दीपविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. ७४, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (सुखसंप " दायक सदा), ५४२७९* ५४८२५-३+) ५४१५३(१) ५२४६९३ ५३७०७ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir , स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. अमरचंद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू. (आवो रे धुलिभद्र रंगे), ५३०८२-१८-०१ स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. धनजी, मा.गु. गा. १०, पद्य, भूपू (फागुनि फाग सबई मीली), ५३२३०-४(१) स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, पंडित, नयसुंदर, मा.गु. गा. २२, पद्य, मूपू., (कोस्था कामिनि कहे), ५२४९३ स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, आ. रत्नसूरि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., ( वेश्या उभी विनवै रे), ५४८२२-९ (#S) स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. रामजी, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., ( थुलिभद्र थिर जस करमी), ५२९२०-१(#) स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चंपा मोर्यो हे आंगणे), ५२७३८-२ स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु.. गा. १७, पद्य, मूपु. ( लाछल दे मात मल्हार), ५२२१६, ५३४७६ स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, ग. लब्धिउदय, मा.गु., गा. ११, पद्य, भूपू (मुनिवर रहण चोमासे), ५३५४७-३(+), ५५२८३-२५(+०), ५२२४३-१, ५२५४५न्दाक स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू (प्रीतडली न किजीये), ५३९४२-४(०), ५२९५७-४(A) स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. हस्तिविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सखी मोरी आयो रे मास), ५२३१०-४ स्थूलभद्र रास, मु. उदयरत्न, मा.गु., डा. १०. ग्रं. २१०, वि. १७३९, पद्य, मूपू (सुख संपत दाय सदा), ५२६९०-२(३) स्थूलिभद्र सज्झाय, मु. महानंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (हो मुनीवरजि माहरे), ५३१२६-३ स्थूलिभद्र सज्झाय, पंडित. सिंहविमल, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (कोश्या कहे थुलभद्रने), ५५१५१-२ (#) स्नात्रपूजा, ग. महिमासागर, मा.गु. गा. ५१, पद्य, भूपू (नमोहंत केसरनिं चोथा) ५५०७५-१०) ५२५६७ + יי स्नात्र पूजा, मा.गु., प+ग, भूपू (पूर्व बाजोट उपरि ५५२८५-५ (+) ७ स्नात्रपूजा विधिसहित ग. देवचंद्र, मा.गु., डा. ८, गा. ६०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चोतिसे अतिसय जुओ वचन), ५४५७३-१(+), ५४९६२ (०७), ५२३१९, ५४९५१, ५३४१९(१), ५४५८६-२०१ स्वप्न चौपाई, मु. सिंघकुल, मा.गु., गा. ४२, वि. १५६०, पद्य, श्वे., (पहिलो मन जोइ करि,), ५२२६०-१(#) स्वयंप्रभजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (स्वामी स्वयंप्रभ), ५३०२४-२($) स्वरोदयज्ञान, मु. कपुरचंद, मा.गु., गा. ४५३. वि. १९०५, पद्य, मूपु. ( नमो आदि अरिहंतदेव), ५४२९६-१, ५२६२५क स्वामीप्रभजिन स्तवन, मु. देवचंद्रजी, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (नमि नमि नमि नमि विनव), ५३४४५-४(+) स्वार्थपच्चीसी, मु. चोथमल ऋषि, रा. गा. २५, वि. १८५८, पद्य, भूपू (सवार्थ जगवलभ लागे), ५४४३३-१७/+) स्वार्थ सज्झाय, मु. मानसागर, मा.गु., गा. २०, पद्य, भूपू (सेमुख श्रीजिनवर उपदि), ५२९२०-२(७) हंसराजवच्छराज रास-दानशीलतपभावविषये, मु. मानसिंह कवि, मा.गु., गा. ५५०, वि. १६७५, पद्य, मूपू., (श्रीआदीसरजिनतणा पद), ५४५८३ (+$) हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु. खं. ४ दाल ४८ गा. ९०५. वि. १६८०, पद्य, मृपू (आदिसर आदे करी चोवीसे), ५४०९० (+#), ५४९९४(+#$) हरिकेशिमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू. (मुनि मातंगज महाऋषि), ५३६८२ हरिकेशीमुनि कथा, मा.गु, गद्य, भूपू (सोवागकुल संभूत० अथ), ५४८५३-७(+) For Private and Personal Use Only ५९५ Page #611 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५९६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ , हरिकेसी सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (जगवलभ गुरजी तु वसीयो), ५२३१२-२ हरिवल चौपाई, मु. लब्धिविजय, मा.गु. उल्ला. ४ ढाल ५९ नं. ३७५१, वि. १८१०, पद्य, म्पू. (प्रथम धराधर जगधणी), ५४१२६ (०) हरिबल रास, मु. जीतविजय, मा.गु., ढा. ३५, गा. ८४९, पद्य, मूपू., (सुखदाई समरूं सदा), ५४८५५(#$) हर्षचंद सज्झाय, मु. रंग, मा.गु., गा. ९, पद्य, भूपू (आज गछराज शिरताज), ५२४६६-१ हितोपदेशबत्तीसी, मु. गंगदास, मा.गु. गा. ३३. वि. १८६५, पद्य, वे (-), ५२९८७-१(३) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विजयसूरि सज्झाय, मु. विजयसेनसूरि- शिष्य, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (बे कर जोडीजी वीनवुं), ५२५४४-१(+#), ५३४९५ हुंडी सज्झाय, मु, मांडण ऋषि, मा.गु गा. २२, पद्य, थे. (नेम कहे सेठ सांभलो), ५३०४८ (०) ', होली विचार, मा.गु., गा. ४, पद्य, वै., (पूर्व वाय वहतो जोय), ५२५३७-२(#) For Private and Personal Use Only Page #612 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैन आराध राधना कर पहावीर जैन केन्द्र को कोबा. श्री 卐 卐 Serving Jin Shasan असतं तु विद्या 148472 gyanmandirdkobatirth.org Acharya Sri Kailasasagarsuri Gyanmandir Sri Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba Tirth, Gandhinagar E-mail : gyanmandir@kobatirth.org Website : www.kobatirth.org ISBN: 978-81-89177-44-7 Set: 81-89177-00-1 For Private and Personal Use Only