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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३
४६१ प्रास्ताविक श्लोक, सं., पद्य, आदि: वीरःसर्वसुरासुरेंद्र; अंति: रम्यागिर: पातुवः, श्लोक-२३२. ५५४४८. (#) पद संग्रह, सज्झाय, सवैया व निर्वाणकांड-भाषा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. १७, प्र.वि. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ९४३१). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. दोलत, पुहिं., पद्य, आदि: सुनौ जिया यह सतगुरु; अंति: निवडो दुंद दसातै, गाथा-५. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___पुहिं., पद्य, आदि: मोही जीव भमत मतै; अंति: विलास निकास हृदय सैं, गाथा-४. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: जीव तु अनादही भल; अंति: नीच रैलवा जीवत, गाथा-३. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. ___पुहि., पद्य, आदि: सुन जियारे खोवै छै; अंति: मानो सतगुरुदी बातडि, गाथा-३. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण.
म. टोडरमल, पुहिं., पद्य, आदि: जीया तोसों केतक बार; अंति: डोटर० तिहुं लोक नही, गाथा-४. ६.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
मु. जगतराम, पुहिं., पद्य, आदि: कैसा ध्यान धर्या है; अंति: जगतराम० नमो ऊचरा है, गाथा-४. ७. पे. नाम. निर्वाणकांड भाषा, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण. निर्वाणकांड-पद्यानुवाद, जै.क. भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७४१, आदि: वीतरागिवंदौ सदा भाव; अंति: निर्वाणकांड
गुणमाल, गाथा-२२. ८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण.
मु. जादवराय, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन तेरी बुधि कौन; अंति: पडौगे नर्क नगरी रे, गाथा-२. ९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण.
मु. जगराम, पुहिं., पद्य, आदि: जोगी जुगति जानी नही; अंति: सुख चाहो भवोदधि तिरो, गाथा-२. १०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: जिआ जिनराज विनारे; अंति: भवसागर तिरणां रे, गाथा-५. ११. पे. नाम. साधारणजिन वीनती, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. साधारणजिन वीनति, मु. भूदरदास, पुहि., पद्य, आदि: अहो जगत गुरुदेव सुनी; अंति: भूदर० सुन लिजो भगवान,
गाथा-१२. १२. पे. नाम. वैराग्य पद, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.
मु. रामविजय, पुहिं., पद्य, आदि: ऐसे मुनिवर देखे बनमै; अंति: नित प्रत ध्यान जतनमै, गाथा-५. १३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ६अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: कहै पसु दीन सुनौ जग्; अंति: जगदिस कछु आइ है, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) १४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. मु. भूधर, पुहि., पद्य, आदिः जिनराज ना विसारो मत; अंति: भुदर० दगा है यारो, गाथा-१, (वि. प्रतिलेखकने ४ गाथा को
१ही गीना है, आगेगाथा क्रमशः) १५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ६आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: जिनराज उरमै धारौ वसु; अंति: अव सिव महल सिदारो, गाथा-१. १६. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. लालविनोद, पुहिं., पद्य, आदि: मैरा चसमों दा प्यारा; अंति: निर्वाण पद लहा है, (वि. गाथांक
नहीं लिखा है.) १७. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ७आ, संपूर्ण.
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