Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 13
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 486
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ४७१ ५५५३७. (+) जीवविचार सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. मु. हरख, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, ४X३६). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा. पद्य वि. ११वी, आदिः भुवण पइवं वीरं नमिउण, अंतिः संतिसूरि० " , समुद्धाओ, गाथा ५१. जीवविचार प्रकरण टवार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: त्रण भुवनने विषे अंति: जे समुद्र तेह थक्की. - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५५३८. (+) आलापपद्धति सह टिप्पण व नयचक्र-असद्भूत व्यवहार विवरण सह अर्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २. प्र. वि. संशोधित टिप्पन युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें, जै, (२५.५४११.५, १३४३६-५० ). १. पे. नाम. नयचक्र अलापपद्धति सह टिप्पण, पृ. १आ-६अ, संपूर्ण. आलाप पद्धति, आ. देवसेन, सं., पद्य, वि. १०वी, आदि: गुणानां विस्तर, अंति: यथा जीवस्य शरीरमिति, अधिकार १९ सूत्र- २२८, (वि. प्रतिलेखक ने सूत्र संखाय क्रमबद्ध नहीं लिखा है.) आलाप पद्धति - टिप्पण, सं., गद्य, आदि: द्रव्यलोक० कायत्वं; अंति: युक्तं च युक्तवत्. २. पे नाम, नयचक्र-असद्भूत व्यवहारनय विवरण सह अर्थ, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण नयचक्र-चयन, प्रा., पद्य, आदि: एइंदियाइदेहा निव्वत; अंति: होइ उत्तमं रूव, गाथा- ९. नवचक्र - चयन का अर्थ, पुहिं., गद्य, आदि: एकेंद्रीजीव के देह, अंति: असद्भूत व्यवहार. ५५५३९. (+#) अभिधानचिंतामणीनाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११ - ४ (१ से ४) = ७, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, ११-१५X३८-४०). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., कांड २ श्लोक १८० अपूर्ण तक है.) " ५५५४०, (+) वाग्भटालंकार, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १३x४५). वाग्भटालंकार, जै.क. वाग्भट्ट, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: श्रियं दिशतु; अंति: (-), (पू. वि. परिच्छेद ४ श्लोक १३८ तक है.) ५५५४१. (+#) पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १७७७, ज्येष्ठ कृष्ण, १०, मंगलवार, मध्यम, पृ. ७, प्रले. श्राव. देवीचंद, पठ. ग. रुपहंस; अन्य. पं. अमृतहंस, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैवे. (२६.५x११.५, १६x४१). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. ५५५४२. (+४) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १६६८, ज्येष्ठ कृष्ण, ९ रविवार, मध्यम, पृ. १२-५ (१८ से ११) - ७, ले. स्थल स्तंभतीर्थनगर, प्रले. ग. कीर्तिविजय (गुरु पं. कमलविजय गणि); गुपि. पं. कमलविजय गणि (गुरु ग. हंसविजय); राज्यकालच्छ विजयसेनसूर (गुरु आ . हरसूरि *, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अंतिम पत्र का पत्रांक खंडित है, अनुमान से पत्रांक १२ दिया गया है. प्रतिलेखक द्वारा यह ६२वाँ ग्रंथ लिखा गया है ऐसा उल्लेख मिलता है, पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६x११, ११X३३-४०). नवस्मरण, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.सं., प+ग, आदि: (-); अंति: शिवं भवतु स्वाहा, स्मरण - ९, (पू. वि. उवसर्गहर स्तवन गाथा ४ अपूर्ण से अजितशांति स्तवन तक है व बृहशांति स्तोत्र नवग्रह स्मरण से है.) ५५५४४. (+) बंध, उदय, उदीरणा, सत्ता कोष्ठक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, अन्य. सा. दीवालीबाई स्वामी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे., (२५.५४११.५, १७४२७) १४ गुणस्थानके कर्मबंधउदयसत्ता व उदीरणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५५५४५. (+#) गौतमपृच्छा प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, प्रले. पं. हीरोदय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्वाही फेल गयी है, जैवे., (२५x१०.५, ५X३७) गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न- ४८, गाथा-६४. गौतमपृच्छा-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ तीर्थ, अंति: अर्थ जे हनउ एहवी कही. For Private and Personal Use Only

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