Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 13
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

View full book text
Previous | Next

Page 485
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५५५३२. (+#) हैमीनाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २२-१४(१ से १४)=८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४४५-५२). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कांड ३ श्लोक ७९ अपूर्ण से श्लोक ३४२ अपूर्ण तक है.) ५५५३४. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ, व्याख्यान व कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १२३-११६(१ से ११६)=७, प्रले. सा. रंभा आर्या (गुरु सा. रतना आर्या); गुपि. सा. रतना आर्या (गुरु पं. वाघा ऋषि); अन्य. मु. वाघा ऋषि (गुरु मु. भोजाजी ऋषि); गुपि.मु. भोजाजी ऋषि (गुरु मु. जसवंत ऋषि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ४५५१, टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५४११, ६४३३-३७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उवदसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६, (पू.वि. गाथा २४६ अपूर्ण से है.) कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: स्वामि पूर्वोद्धृतः. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: ते धन्य सुख पामइ. ५५५३५. (+#) दंडक प्रकरण, सीमंत्यादि क्षेत्र क्षेत्रमान विचार व पंचेंद्रियजीव विचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ४४३३-३६). १.पे. नाम. दंडक प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउण चउविसजिणे तसु; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ, गाथा-३८. दंडक प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइं ऋषभ; अंति: पोताना हितने काजे. २.पे. नाम. सीमंत्यादि क्षेत्र क्षेत्रमान विचार सह टबार्थ, पृ. ७अ, संपूर्ण. सीमंत्यादि क्षेत्रमान गाथा, प्रा., गद्य, आदि: पणयालीसं लक्खा सीमंत; अंति: ३ दीवो अ४ इगलक्खं. सीमंत्यादि क्षेत्र क्षेत्रमान विचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पस्तालीस लाख जोयनना; अंति: ४ लाख जोजन प्रमाण. ३. पे. नाम. पंचेंद्रियजीव भेद सह टबार्थ, पृ. ७अ, संपूर्ण. पंचेंद्रियजीव भेद विचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: नरगय पणिदि तस भव; अंति: चउहा पंचेंदि आजीवा, गाथा-२. पंचेंद्रियजीव भेद विचार गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: च्यारगतिमाहेथी मनुष; अंति: तेतला सर्वजीवा कहीइं. ५५५३६. (+-) सवैया संग्रह, अपूर्ण, वि. १९४८, माघ शुक्ल, ९, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(६)=७, कुल पे. ४, ले.स्थल. कणजेडा, प्रले. मु. हीरालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-अशुद्ध पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४११, १४४५३). १. पे. नाम. औपदेशिक सवैया संग्रह, पृ. १अ-५आ+७आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, वि. १९३२, आदि: श्रीजिनराज मुज माज; अंति: हीरालाल सरयो आधार है, सवैया-७६, (पू.वि. सवैया ५९ अपूर्ण से सवैया ७० अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. दसारणभद्रराजा सवैया, पृ. ७आ, संपूर्ण. दशार्णभद्रराजा सवैया, मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, वि. १९३८, आदि: विचरत विचरत आया श्री; अंति: हीरालाल० सुखेकरीयौ, सवैया-४. ३. पे. नाम. संतकुमारचक्रवर्ती सवैया, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. सनत्कुमारचक्रवर्ती सवैया, मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, आदि: सुरलोगमाही सुर पती; अंति: हीरालाल करो नरनार है, सवैया-४. ४. पे. नाम. चंदराजागुणवती सवैया, पृ. ८अ८आ, संपूर्ण. चंद्रराजागुणवती सवैया, मु. हीरालाल, पुहि., पद्य, वि. १९३१, आदि: कुसुमपुरी को राज चनण; अंति: हीरालाल० माइ है, सवैया-६. For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612