Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 13
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 437
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची स्तवनचौवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७७६, आदि: ऋषभ जिणिंदसुप्रीतडी; अंति: (-), (पू.वि. महावीरजिन स्तवन गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ५५१९५. (+#) वैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८, प्रले. मु. दोलतरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४११, ६४३६-४३). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जीओ सासयठाणं, गाथा-१०४. वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसार असारमाहि नथी; अंति: जीव सास्वतुं ठाम. ५५१९६. (+) नयचक्र बालावबोध, नयकर्णिका व सप्तनयस्वरूप विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १८४५०-५३). १. पे. नाम. सप्तनय विचार का बालावबोध, पृ. १आ-८अ, संपूर्ण. नयचक्र-भाषावचनिका का बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: (१)स्यात्कारमुद्रिता, (२)अनंत धर्मात्मक वस्तु; अंति: (१)मतिच० परोपकृतिहेतवे, (२)मत अनुकूल हुस्यै. २. पे. नाम. नयकर्णिका, पृ. ८आ, संपूर्ण. उपा. विनयविजय, सं., पद्य, वि. १७उ, आदि: वर्द्धमानं स्तुमः; अंति: सिंहगुरोश्चतुष्ट्यै, श्लोक-२३. ३. पे. नाम. सप्तनयस्वरूप विचार, पृ. ८आ, संपूर्ण. नयस्वरूप विचार, सं., पद्य, आदि: शुद्धं द्रव्यं समा; अंति: नत्वादेवभूतभिमन्यते, श्लोक-९. ५५१९७. (+#) संग्रहणीसूत्र, अपूर्ण, वि. १७६१, वैशाख कृष्ण, ३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(१)=८, ले.स्थल. जपुर, प्रले. मु. रामचंद्र (गुरु पं. उद्धव ऋषि); गुपि.पं. उद्धव ऋषि (गुरु आ. सुखमल्लजी); आ. सुखमल्लजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (६४५) यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा, जैदे., (२६४१२, १८४३९). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३९२, (पू.वि. गाथा-४१ से है.) ५५१९८. सिंदूरप्रकर, संपूर्ण, वि. १७९५, बाणांगपारावारकुमुदबांधव, वैशाख शुक्ल, ९, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. कर्मवाटी, प्रले. मु. रामचंद्र (गुरु पं. उद्धव ऋषि); गुपि.पं. उद्धव ऋषि (गुरु आ. सुखमल्लजी); आ. सुखमल्लजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३६-३९). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सूक्तमुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक-९५. ५५१९९. (+#) पिंडविशुद्धि प्रकरण, द्विदल विचार व २१ प्रकार के पानी, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १९४३४-३८). १. पे. नाम. पिंडविशुद्धि प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-८आ, संपूर्ण. पिंडविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: देविंदविंदवंदिय पयार; अंति: जिणवल्लहे० सोहिंतु अ, गाथा-१०३. पिंडविशुद्धि प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: देव भुवनपति इंद्र; अंति: सोधउ निर्दोष करूं. २. पे. नाम. द्विदल विचार सह टबार्थ, पृ. ८आ, संपूर्ण. द्विदल विचार, प्रा., पद्य, आदि: जं मिओ पिल्लिजते; अंति: नेहजुयं होइ तं विदलं, गाथा-१. द्विदल विचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जीणइ पीलीइकुंतइ चोपड; अंति: ते विदल कठउल न कहीयइ. ३. पे. नाम. इकीस प्रकार के पानी सह टबार्थ, पृ. ८आ, संपूर्ण. २१ प्रकार के पानी, प्रा., पद्य, आदि: उस्सेइम १ संसेइम २; अंति: वरिससिरे वासासुजलं०, गाथा-२. २१ प्रकार के पानी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पीठा हाथ भरीया धोई; अंति: पूठई सचित्त जाणिवउं. ५५२००. (+#) शीलोपदेशमाला-शीलतरंगिणी वृत्तिगत सीताप्रबंध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्ट, जैदे., (२६४११, १६x४८). For Private and Personal Use Only

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