Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 13
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 440
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ५५२२५. (+१) आदित्यवार व्रतकथा, संपूर्ण वि. १८६१ श्रावण कृष्ण, १ शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल, पंचपाठ, प्रले. मु. किशोरचंद्र ऋषि, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X११, ११४३१). आदित्यवार व्रतकथा, मु. उत्तमविजय, मा.गु, पद्य, वि. १८५७, आदि: प्रथम नमु ते श्रीपार, अंतिः सीस उत्तम गुण गाय, गाथा- ७३. 1 ५५२२६. नयचक्रसार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२५.५X११, १५X४०). नयचक्रसार, ग. देवचंद्र, सं., गद्य, वि. १८वी, आदि: गुणानां विस्तर, अंति: यथा जीवस्य शरीरमिति. ५५२२७. (+) रामरसरसायण, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११४-१०८ (१ से १०८) = ६ प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६४११, १४-१६X५०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रामयशोरसायन चौपाई, मु. केशराज, मा.गु., पद्य, वि. १६८३, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., सीता हरण अपूर्ण से हनुमान मिलन का प्रसंग अपूर्ण तक है.) ५५२२९. (#) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टीकादि का अं नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X१०.५, ६x४५). "9 पंचप्रतिक्रमणसूत्र - खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा. सं., प+ग, आदिः णमो अरिहंताणं० जवड, अंतिः (-) (पू.वि. श्रुतदेवी स्तुति तक पाठ है.) पंचप्रतिक्रमणसूत्र - खरतरगच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: माहरउ नमस्कार अरिहंत, अंति: (-). ५५२३० (+) चारित्र के ५ भेद के ३६ स्थान यंत्र, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ५, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६४११.५, २०X३३-६८). चारित्र के ५ भेद के ३६ द्वार यंत्र, संबद्ध, मा.गु., को., आदि: पनवणा १ वेद २ रागे ३; अंति: संख्यातगुणा ३. ५५२३१. (4) दशवैकालीकसूत्र सह वालावबोध, त्रुटक, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६-११(१ से २४ से ५,७ से ८,१० से १२,१४ से १५)=५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६X१२, ४x२५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि (-); अति (-). दशवैकालिकसूत्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५५२३२. (+#) दुरिअरयसमीर सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४ - ९ (१ से २९) = ५, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ क खंडित है, जैदे., (२६X११, १५X४२). दुरिअरयसमीर स्तोत्र - वृत्ति, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा २४ से गाथा ३५ तक है.) ५५२३५. (+) लेश्याद्वार व चौदगुणस्थानक पचीसद्वार, संपूर्ण, वि. १८८०, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५X११, २१४५५). १. पे. नाम. लेश्याद्वार विचार, पृ. १अ २अ संपूर्ण. लेश्या ११ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नाम १ वर्ण २ रस ३; अंति: परम शुक्ल लेशाः. २. पे. नाम. चौदगुणस्थानक पच्चीसद्वार, पृ. २अ -५ आ, संपूर्ण. ४२५ १४ गुणस्थानक २५ द्वार, मा.गु., गद्य, आदि: नामदुवार १ लखणदुवार, अंति: अनंतगुणा नीगोद जीव. ५५२३६. (+#) मानतुंगमानवती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १० -५ (१ से २, ५ से ७) = ५, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., ( २४.५X११.५, १४X३३). For Private and Personal Use Only मानतुंगमानवती रास - मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल २ दुहा १ से ढाल ६ गाथा ९ अपूर्ण तक व ढाल १० गाथा १ से ढाल १३ गाथा ७ अपूर्ण तक है.) ५५२३७. (+) आठ कर्म १५८ प्रकृति विचार, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५. प्र. वि. संशोधित. जैवे. (२५४१२, १३३७).

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