Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 13
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन का अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सुधर्मास्वामिनि जंबू; अंति: बे मि० हुं कहुं छि. ५५०६२. पद्मावती सज्झाय व आराधना प्रकरण सह अर्थ, संपूर्ण, वि. १९१६, भाद्रपद कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. १३, कुल पे. २, दे., (२५.५X११, ११x२८-३३).
१. पे. नाम पद्मावती सिज्झाच, पृ. १आ ३आ, संपूर्ण, ले. स्थल. जेतारणनगर, प्रले. पं. रुपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. पद्मावती आराधना उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवै रांणी पदमावती अंतिः पापथी छुटे
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
सूत्रकृतांगसूत्र- हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधमांस्वामी, प्रा. पद्म, आदि: पुच्छिमुणं समणा मारण, अंतिः देवाहिव आगमिस्संति, गाथा - २९.
तत्काल, ढाल -३, गाथा-३६.
२. पे. नाम. आराधना प्रकरण सह अर्थ, ,पृ. ३आ- १३आ, संपूर्ण.
पर्यताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा. पद्य, आदि: नमिऊण भगइ एवं भयवं अंतिः सोम० ते सासवं सुक्खं गाथा-७१.
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पर्यंताराधना- अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजिनेश्वर प्रत्यै; अंति: सास्वता सुख पामस्यै.
५५०६३. । कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण. वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२०-१९०७ (१ से १०७) १३. पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. पत्रांक २ से १४ भी दीए हैं. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें जै., (२५४११.५, ६-१७X३८-५०).
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कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). कल्पसूत्र - टवार्थ, मा.गु, गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
कल्पसूत्र- व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
५५०६४.
सूक्तमाला सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैवे. (२६४१२, ६४५१).
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सूक्तावली, सं., पद्य, आदि: राज्यं निःसचिवं गत; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक १०७ अपूर्ण तक लिखा है.)
सूक्तावली संग्रह - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सचिवं गतं क० प्रधान, अंतिः (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ५५०६७. सप्तस्मरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, दे., ( २६११, ११४३६).
सप्तस्मरण- खरतरगच्छीय, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअं जिअ सव्वभयं; अंतिः भवे भवे पास जिणचंद, स्मरण- ७, (वि. अंतिम स्मरण उवसग्गहरं का मात्र प्रतिक पाठ लिखा है.)
५५०६९. (#) भगवतीसूत्र ना गम्मा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११, ले. स्थल. नवानगर, प्रले. मु. गुणसागर गणि (गुरु पं. देवसागर गणि); गुपि. पं. देवसागर गणि, प्रले. मु. जिनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मुनि श्रीगुणसागरजी गणि के लिखने के बाद उनके भ्राता श्री जिनसागरजीने नकल की हो ऐसा प्रतीत होता है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र. ले. श्लो. (९९१) जादृसं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६X११.५, २१x४२).
भगवतीसूत्र - विचार संग्रह, संबद्ध, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-).
५५०७० (+) चतुर्मासिकत्रयीव्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८५०, गगनाद्वाणाष्टविश्वंभरा, माघ शुक्ल, १३, मध्यम, पू. ११,
ले. स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. गजसार पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें- अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ.. जैदे., (२५x११, १४४३७-५०).
चातुर्मासिक व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., गद्य, आदि: स्मारं स्मारं स्फुरद, अंतिः व्याख्यानमाख्यानभृत्, ग्रं. ४०१.
५५०७२, (+) सुक्तिमुक्तावली भाषा, संपूर्ण, वि. १७५५, माघ कृष्ण, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. ११, पठ अमराबालचंद,
अन्य पं. जिणदास लालजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५X१०.५, ११x४५).
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सिंदूरकर - पद्यानुवाद भाषा, भाव, बनारसीदास, पुहिं. पद्य वि. १६९१, आदि: सोभित तप गजराज सीस, अंतिः करनछत्र सित पाख, अधिकार- २२, गाथा - १०४.

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