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• जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
भावना में बैठ गया। भावना और नवकार का कार्यक्रम पूरा होते ही बिस्तर उठाकर रखने गया। वहां कंबल में से एक बड़ा बिच्छु निकलकर सीधा-सीधा चला गया। जैसे वह (बिच्छु ) भी मेरी मैत्री भावना सुनने बैठ गया हो, वैसे वैर विरोध भूलकर दो घंटे बैठा रहा। मुझे लगा कि अपनी अल्प शुभ भावना से भी ऐसा परिणाम निकलता हो तो प्रकृष्ट मैत्री के केन्द्र समान श्री तीर्थंकर भगवान जहां विराजमान हों ऐसे समवसरण में नित्य वैरी पशु-पक्षी भी जाति वैर को भूलकर साथ में बैठकर परमात्मा की वाणी का पान करते हैं, तो उसमें आश्चर्य की बात कहाँ ? अपनी
भावना का बिन्दु श्री तीर्थंकर परमात्मा की भावना के सिंधु में मिल जाए तो अक्षय बन जाए। इसी प्रयोजन से मैं नित्य यह भावना भी करता हूं कि परमात्मा की "सवि जीव करुं शासन रसी" की भावना सफल हो।
सभी के सुख और हित की भावना के साथ किये हुए नवकार मंत्र के जाप से मन का ऊर्ध्वकरण होता है, जीवन के संघर्षों में योग्य मार्गदर्शन प्राप्त होता है और संकट का भी धैर्य के साथ स्वागत करने का बल प्राप्त होता है, इतना ही नहीं, इससे मेरा सर्वांगीण विकास हुआ है, ऐसा मैं अनुभव करता हूँ। जैसे-जैसे मुझे अच्छा होता गया वैसे वैसे मैं धर्म में भी आगे बढता गया और व्रत नियम भी लेने लगा।
गत भाद्रपद माह में हमारे यहां श्री नवकार मंत्र का एक लाख का जाप एवं श्री वर्धमान तप की नींव का कार्यक्रम महाराज श्री ने आयोजित किया था। उस समय मैंने भी वर्धमान तप की नींव डाली। कैंसर के रोग के साथ इस दुनिया से विदाई लेने वाले मैंने लगातार बीस दिन तक आयम्बिल और बीच-बीच में उपवास की आराधना की। मुझे इससे बहुत संतोष हुआ। मेरे जीवन में कोई अजीब शान्ति फैल रही है।
वि.सं. 1996 से पूर्व का मेरा जीवन धर्मशून्य था। रात्रि भोजन, फीचर का धंधा, देर रात तक जगना, दूसरे को सुखी देखकर दुःखी होना, यह सब मेरे जीवन का सामान्य क्रम था। उस समय मैंने किसी का अच्छा सोचा भी नहीं, बल्कि किसी का किस तरह नुकसान हो, यही
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