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रहने पर धमतीर्थ की उत्पत्ति हुई। श्रावण कृष्ण प्रतिपदा | पञ्चम काल के अन्त तक इक्कीस हजार वर्ष तक भव्य के दिन रुद्र मुहूर्त में सूर्य का शुभ उदय होने पर और | जीवों का उद्धार करता रहेगा। अभिजित् नक्षत्र के प्रथम योग में जब युग का आदि | पं० परमानन्द जी शास्त्री ने अपने इसी विषय हुआ, तभी तीर्थ की उत्पत्ति समझना चाहिए। पर एक लेख में लिखा है कि "ऐसी महत्त्वपूर्ण एवं
इस कथन से यह भी स्पष्ट हो जाता है कि श्रावण | मांगलिक तिथि को, खेद है कि हम अर्से से भूले हुए कृष्णा प्रतिपदा का यह दिवस ही युग के आदि का | थे। सर्वप्रथम मुख्तार साहब ने धवल ग्रन्थ से वीर शासन दिवस है। युग की समाप्ति आषाढ़ की पौर्णसासी को की इस जन्मतिथि का पता चलाया और उनके दिल होती है। पौर्णमासी की रात्रि के अनन्तर ही प्रातः श्रावण | में यह उत्कट भावना उत्पन्न हुई कि इस दिन हमें कृष्णा प्रतिपदा को अभिजित् नक्षत्र, बालवकरण और रुद्र | अपने महोपकारी वीर प्रभु और उनके शासन के प्रति मुहूर्त में ही युग का आरम्भ होता है। युग के आरम्भ | अपने कर्तव्य का कुछ पालन जरूर करना चाहिए। तदनुसार से तात्पर्य सुषम-सुषमा आदि काल का विभाग अथवा | उन्होंने १५ मार्च सन् १९३६ को 'महावीर की तीर्थ उत्सर्पिणी या अवसर्पिणी काल के प्रारम्भ होने से है। प्रवर्तन-तिथि' नाम से एक लिखा और उसे तत्कालीन इस तिथि के लिए सभी दिगम्बरीय और श्वेताम्बरीय | 'वीर' के विशेषाङ्क में प्रकाशित कराया। ग्रन्थ एकमत हैं। एक श्वेताम्बरीय ग्रन्थ की टीका में | उन्हीं मुख्तार जी के शब्दों मेंलिखा है कि भरत, ऐरावत और महाविदेह क्षेत्रों में युग | यह तिथि- इतिहास में अपना खास महत्त्व रखती का आदि इसी तिथि से होता है- "भरतैरावते महाविदेहेषु | है और एक ऐसे 'सर्वोदय' तीर्थ की जन्म तिथि है जिसका च श्रावणमासे कृष्णपक्षे बालवकरणेऽभिजिन्नक्षत्रे लक्ष्य 'सर्वप्राणिहित' है। प्रथमसमये युगस्यादि विजानीहि।"(मलयागिरि-ज्योति- इस दिन- श्री सन्मति-वर्द्धमान-महावीर आदि नामों षकरण्डटीका)
से नामाङ्कित वीर भगवान् का तीर्थ प्रवर्तित हुआ, उनका इन्हीं मलयगिरि ने लिखा है कि "सर्वेषामपि सुषम- | शासन शुरू हुआ, उनकी दिव्यध्वनि पहले पहल खिरी, सुषमादिरूिपाणां कालविशेषाणामादि युगं, युगस्य चादिः" | जिसके द्वारा सब जीवों को उनके हित का सन्देश सुनाया
अर्थात् सभी सुषमा-सुषमा आदि विशेषों के प्रारम्भ | गया। होने का नाम युग है। और इस युग का प्रारम्भ इसी | इसी दिन- पीड़ित, पतित और मार्गच्युत जनता तिथि में होता है।
को यह आश्वासन मिला कि उसका उद्धार हो सकता इस सम्पूर्ण वर्णन से यह स्पष्ट रूप से समझ | है। में आता है कि इसी भारतवर्ष में इन आचार्यों के समय यह पुण्य दिवस- उन क्रूर बलिदानों के सातिशय में इस तिथि का बहुत यशोगान था। नया युग, नया वर्ष, | रोक का दिवस है, जिनके द्वारा जीवित प्राणी निर्दयता नवमास इस तिथि को माना जाता था। एक और महत्त्वपूर्ण | पूर्वक छुरी की धार पर उतारे जाते थे अथवा होम के तथ्य यह है कि नक्षत्र, करण और मुहूर्त में भी अभिजित् | बहाने जलती हुई आग में झौंक दिये जाते थे। नक्षत्र, बालवकरण और रुद्र मुहूर्त से नक्षत्रों, कारणों और | इसी दिन- लोगों को उनके अत्याचारों की यथार्थ मुहूर्तों की गणना प्रारम्भ होती है अर्थात् ये नक्षत्र आदि परिभाषा समझाई गई और हिंसा-अहिंसा तथा धर्म-अधर्म ही प्रथमस्थानीय हैं। इस दिन सम्पूर्ण जैनजगत् में बहुत | का तत्त्व पूर्णरूप से बतलाया गया। पहले खुशियाँ मनाई जाती थीं, पर आज हम देखते हैं | इसी दिन से- स्त्री जाति तथा शद्रों पर होनेवाले कि जनवरी के प्रथम दिन नववर्ष की हम खुशियाँ मनाते | तत्कालीन अत्याचारों में भारी रुकावट पैदा हुई और वे हैं। यह जैनजगत् के प्रत्येक धर्मी के लिए एक शोचनीय | सभी जन यथेष्ट रूप से विद्या पढ़ने तथा धर्मसाधना विषय है। इस तिथि का महत्त्व वीरनिर्वाण दिवस से | करने के अधिकारी ठहराये गये। भी ज्यादा है, क्योंकि वीर के निर्वाण से भी ज्यादा हर्ष इसी तिथि से- भारत वर्ष में पहले वर्ष का प्रारम्भ हमें इस बात का होना चाहिए कि तीर्थ का प्रवर्तन ही हुआ करता था, इत्यादि। ('अनेकान्त' / जून १९३९) हम सब के लिये आज कल्याणप्रद है और यह तीर्थ । आज श्रावक जन इस तिथि के महत्त्व से परिचित
अगस्त 2009 जिनभाषित 10
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