Book Title: Jinabhashita 2009 08
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 22
________________ अर्थात् सातावेदनीय कर्म के उदय से प्राप्त होनेवाले । के अशुभकर्म शुभरूप हो जाते हैं, एवं गृह को शुभरूप घर, धन-धान्य, स्त्री-पुत्र आदि--- । बनाने से अशुभकर्मों में भी परिवर्तन हो जायगा।---- साता-असाता वेदनीय कर्म के उदय में मात्र जिस प्रकार निमित्त परिवर्तित कर कर्मोदय में परिवर्तन रुचिकर-अरुचिकर भोजन ही नहीं, अपितु गृह, धन- किया जा सकता है, उसी प्रकार वास्तुशास्त्रानुकूलगृह धान्य आदि अन्य कारण भी देखे जाते हैं। गृह, धन- | निर्माण कर अशुभकर्मोदय में भी परिवर्तन किया जा धान्य, स्त्री, पुत्र आदि के प्रतिकूल या अप्राप्त होने पर सकता है। व्यक्ति असाता का अनुभव करता है एवं इनकी प्राप्ति | लेख की प्रतिक्रियाओं की समीक्षा या अनुकूल होने पर साता का वेदन करता है। १. वास्तुविद्या से अनभिज्ञजनों के द्वारा वास्तु पर ६. गृह क्या, कोई भी वस्तु हमेशा समान फल | प्रतिक्रिया करना आश्चर्यजनक है। जैसे जैनागम के नहीं दे सकती, क्योंकि सुख-दुःख में मात्र वास्तु- द्वादशांगों के उपलब्ध नहीं होने पर उनका अभाव भी ही नहीं, किन्तु और भी अनेक कारण | नहीं माना जा सकता है, उसी प्रकार विद्यानुवादपूर्व उपलब्ध होते हैं। उनका भी प्रभाव समय-समय पर परिवर्तित | नहीं है, तो उसका अभाव भी नहीं माना जा सकता होकर प्राप्त होता है। गृह उनमें एक कारण है। इसे | है। जहाँ वास्तु के नाम पर अजैनों से सलाह लेकर भी शुभ बनाने का भाव रहता है। गृह वास्तुशास्त्रानुकूल | तोड़-फोड़ करके उनके अनुसार धन का अपव्यय करते होने पर अन्य कारण भी अनुकूल होने चाहिए। हैं, वहीं यदि जैनवास्तुकार उन्हें संबल देकर, धर्म में ७. वास्तुशास्त्रप्रतिकूल गृहों में कलह का योग | स्थित रखते हुए मार्गदर्शन करें और धन प्राप्त करें, तो बनता है, जिसमें रहनेवालों में कलह होती रहती है। उस धन का अपव्यय नहीं माना जायेगा। इसमें वरिष्ठ कलह, धनक्षय का प्रमुख कारण है। वास्तुशास्त्र प्रतिकूल विद्वानों का मार्गदर्शन एवं आशीर्वाद ही मिलना चाहिए. गृह असाताकर्म के उदय में निमित्त है, यह पहले ही क्योंकि युग के साथ तो चलना ही पड़ेगा, नहीं तो हम सिद्ध हो चुका है। प्रगति में पिछड़े रहेंगे। वास्तुशास्त्र भी जैनागम का अंश ८. वास्तुशास्त्र प्रतिकूल घर भी भय, संक्लेश एवं | है। इस लेख के पूर्व में प्रमाण स्पष्ट हैं। वेदना का कारण होता है, जिससे मृत्यु हो सकती है। २. जैनवास्तुशास्त्री जैनागमानुसार यदि वास्तु-संबंधी अकालमरण के अन्तरकारणों में वास्तुशास्त्र-प्रतिकूल गृह जानकारी देकर धन प्राप्त करते हैं, तो लोगों की श्रद्धा भी कारण है। वज्रजंघ और उनकी पत्नी श्रीमती का | अन्यमतियों की ओर नहीं जा पाती है और धन भी अकालमरण गृह के झरोखों के द्वार बंद होने से हुआ-- उनका गलत लोगों के पास नहीं पहुँच पाता है। इस "तत्रवातायनद्वारपिधानारुद्धधूमके ---- ।" | कार्य से यदि जैनवास्तुशास्त्री धन कमाकर धनवान् बनता (आदिपुराण भाग १ / सर्ग ९ / श्लोक २६) है, तो हमें साधर्मी की प्रगति के प्रति ईर्ष्यावान नहीं, अर्थात् उस दिन सेवक लोग झरोखे के द्वार खोलना | अपितु हर्षित, प्रसन्नचित्त होना चाहिए। भूल गये थे, जिससे वह धूम उसी शयनागार में रुकता ३. जिनभाषित जनवरी २००९ के अंक का रहा। उस धूम से वे दोनों पति-पत्नी श्वासावरोध से | संपादकीय 'वास्तुशास्त्र और कर्मसिद्धांत' पढ़ने के बाद मृत्यु को प्राप्त हो गये। मृत्यु श्वासा-वरोध से हुई, किन्तु | | प्राप्त प्रतिक्रियाओं में कुछ लिखित रूप में और कुछ मृत्यु एवं श्वासावरोध में कारण खिड़कियों का बंद होना | | दूरभाष पर प्राप्त हुई हैं। पं० श्री सुमेरचन्द्र जी भगत अर्थात् वास्तुशास्त्रप्रतिकूल गृह कारण बना। इस तरह | जी, पं० श्री रतनलाल बैनाड़ा, पं० निहालचन्द्र जी बीना वास्तुशास्त्र प्रतिकूल गृह अकालमरण में कारण है। | आदि विद्वानों ने इस लेख को जैनागम-सम्मत नहीं माना, ९. वास्तुशास्त्रानुकूल शुभगृह में निवास करनेवाले | इनसे मेरी व्यक्तिगत चर्चा हुई है। रजवाँस (सागर) म० प्र० अगस्त 2009 जिनभाषित 20 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36