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जिज्ञासा-समाधान
पं० रतनलाल बैनाड़ा
प्रश्नकर्ता- विनयकुमार जैन, देहली।
उपर्युक्त दोनों समाधानों में कोई तथ्य प्रतीत नहीं जिज्ञासा- क्या तीर्थंकर भगवान के माता-पिता का | होता और कोई आगमप्रमाण भी नहीं दिया गया है, अत: २-३ भव में मोक्ष जाने का नियम है?
इनको कैसे माना जाये? समाधान- तीर्थंकर के माता-पिता के मोक्ष जाने | दिक्कुमारियाँ, जो तीर्थंकर की माता की सेवा करने के सम्बन्ध में तिलोयपण्णत्ति में इसप्रकार कहा है- | के लिए आती हैं, उनके सम्बन्ध में त्रिलोकसार गाथातित्थयरा तग्गुरओ, चक्की-बल-केसि-रुद्द-णारहा। | ९४८ से ९५९ तक जो वर्णन किया गया है उसके अनुसार अंगज-कुलयर-पुरिसा, भव्वा सिझंति णियमेण॥ | रुचिक पर्वत की पूर्व दिशा में विजया आदि ८ देवकुमारियाँ
४/१४८५॥ निवास करती हैं, जो श्रृंगार धारण कर माता की सेवा अर्थ- तीर्थंकर (२४). उनके गरुजन (२४+२४ करती हैं। इसी पर्वत की दक्षिण दिशा में माता एवं पिता), चक्रवर्ती (१२), बलदेव (९), नारायण |८ दिक्कुमारियाँ निवास करती हैं, जो दर्पण लेकर, (९),रुद्र (११), नारद (९), कामदेव (२४) और कुलकर | पश्चिम दिशा में ईला देवी आदि ८ दिक्कुमारियाँ निवास (१४) ये सब १६० भव्य पुरुष नियम से सिद्ध होते | करती हैं, जो तीन छत्र धारण करती हैं। तथा उत्तर दिशा
में अलम्भूषा आदि ८ दिक्कुमारियाँ निवास करती हैं, उपर्युक्त कथन में भगवान् के माता-पिता के नियम | जो चमर धारण कर महाप्रमोद से युक्त होती हुई तीर्थंकर से सिद्ध होने का तो वर्णन है, परन्तु कितने भव में | की माता की सेवा करती हैं। इसप्रकार ३२ दिक्कुमारियों सिद्ध होंगे इसका कोई उल्लेख नहीं है। जैनेन्द्र सिद्धान्त | का कथन हुआ। कोष में इस गाथा का अर्थ करते हुए श्री जिनेन्द्र वर्णी | उपर्युक्त के अलावा रुचकगिरि के अभ्यन्तर कूटों ने- 'उसी भव में या अगले एक-दो भवों में' इसप्रकार | में से चारों दिशा में कनका आदि चार देवियाँ रहती जो लिखा है वह उनकी अपनी धारणा हो सकती है, | हैं, जो तीर्थंकर के जन्म काल में सर्व दिशाओं को निर्मल परन्तु उपर्युक्त गाथा में ऐसा कोई भी शब्द नहीं कहा | करती हैं तथा इन कूटों के आभ्यंतर की ओर चारों
| दिशाओं में रुचिका आदि चार देवियाँ रहती हैं, जो तीर्थंकर होते हैं, इतनी मात्र धारणा बनाना आगम सम्मत है। | के जन्म समय में जातकर्म करने में कुशल होती हैं।
जिज्ञासा- ५६ कुमारी देवियाँ कौन होती हैं और | जैनेन्द्र सिद्धान्त कोष भाग २/४२८ के अनुसार वे कहाँ निवास करती हैं?
नन्दनवन में सुमेधा आदि ८ दिक्कुमारी देवियाँ निवास समाधान- ५६ कुमारियों के संबंध में प्रतिष्ठ- | करती हैं, जो गर्भ के समय भगवान् की माता की सेवा | रत्नाकर की प्रस्तावना पृष्ठ २९ में इस प्रकार कहा करती हैं। यहाँ तक ३२+८+८=४८ दिक्कुमारियों का वर्णन
हुआ। इनमें श्री ह्री, धृति कीर्ति, बुद्धि, लक्ष्मी तथा तुष्टि भवनवासी देवियाँ-२०, व्यंतर-१६, ज्योतिष्क-२, | और पुष्टि ये ८ दिक्कुमारियों के नाम और मिलाने से कल्पवासी-१२, तथा कुलाचल की देवियाँ-६-५६ देवियाँ | समस्त दिक्कुमारियाँ ५६ होती हैं। शायद इसप्रकार ५६ होती हैं। 'पं० गुलाबचन्द्र जी पुष्प अभिनन्दन ग्रन्थ' पृष्ठ | दिक्कुमारियों की धारणा बनाई गई हो। किसी भी शास्त्र २/२०७ पर यह उल्लेख मिलता है। (२) पं० भूधरदास | में ५६ दिक्कुमारियों की संख्या का स्पष्ट उल्लेख प्राप्त जी के 'चर्चासमाधान' नं० ६८ के समाधान में ५६ नहीं होता। प्रतिष्ठाचार्यों से नम्र निवेदन है कि वे इस दिक्कुमारियों की नामावली निम्न प्रकार बताई है- | संबंध में और प्रकाश डालने का आगमप्रमाणसहित प्रयास
कल्पवासी की इन्द्राणी-१२, भवनवासिनी की | करें। इंद्राणी-२०, व्यन्तरों की इन्द्राणी-१६, चन्द्रमा की-१, सूर्य | उपर्युक्त देवियों को दिक्कुमारी क्यों कहा जाता
लाचल-वासिनी श्री आदि-६ : ५६ | है, इस संबंध में भी कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता। दिक्कुमारियाँ होती हैं।
कछ महानभावों की धारणा ऐसी है कि इनका कोई
अगस्त 2009 जिनभाषित 28
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