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नहीं हैं और हैं भी तो उनके दिलो-दिमाग में इस तिथि । अहिंसा, अपरिग्रह की परिधि में ढालकर अनेकान्त, की उतनी महत्ता नहीं है, जितनी अन्य तिथियों की। स्याद्वाद के विचारों से सन्तुलित करके, अजैनों में छोटीइसलिए आज हम सभी साधुसन्तों और श्रावकों को इस | छोटी सरल-सपठनीय पस्तकों को प्रेषित करके भगवान तिथि की महत्ता समझ कर आज के दिन भगवान महावीर | महावीर के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रेषित करनी चाहिए। के उपदेशों को प्रचारित-प्रसारित करने और नव वर्ष | इस लेख को लिखने की यही पावन भावना है। पुनः की तिथि मानकर हर्ष-उल्लास से अपने आचरण को | याद रखें- "न हि कृतमुपकारं साधवो विस्मरन्ति।"
अमरकंटक में गूंजती मंगलध्वनि मैकल के शिखर अमरकंटक में श्रमणपरम्परा के । आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने आदिवासी उन्नायक प्रख्यात आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने | संस्कृति के माध्यम से अध्यात्म की अनुभूति कराते हुए विशाल जनसमूह को सम्बोधित करते हुए कहा कि पगडण्डी | कहा कि विशुद्ध परिसर को पार कर आयी हुई वायु पर कभी दुर्घटना नहीं होती, जब कि आधुनिक मार्गों | प्राप्त होती है, तो ऊर्जा-स्फूर्ति प्रदान करती है, किन्तु पर तीव्र गति से भागने वाले वाहनों से दुर्घटना की आशंका | यही वायु प्रदूषित प्रक्षेत्र पार कर प्राप्त हो, तो प्राणलेवा रहती है। दूरस्थ वनों में जीवनयापन करनेवाले आदिवासी | भी हो जाती है। मन का प्रदूषण दूर करने के लिए ग्राम्य प्रकृति प्रदत्त ज्ञान से परिपूर्ण हैं। पग-पग चलकर निश्चिन्त, | अंचलों में रात्रि भर भजन कीर्तन वाद्य यंत्रों के माध्यम निर्बाध, यात्रा करनेवालों को अशिक्षित तथा पल-पल आशंका | से करके भगवान् और भक्त में ऐक्य करने की क्रिया से ग्रस्त यात्रा करनेवालों को सुशिक्षित बताना किस ज्ञान की जाती है, किन्तु हाईवे पर दृश्य परिवर्तित हो जाता की देन है? यदि इन्हें ही प्रगतिवादी कहते हैं तो, ऐसी | है। एकान्त निवासियों की अनुभूति का बोध कराते हुए प्रगति को दूर से ही सलाम।
आचार्यश्री ने कहा कि 'दाम बिना निर्धन दुखी, तृष्णा आदिवासी सभ्यता और अनादिवासी जीवनशैली के | वश धनवान। कहीं न सुख संसार में सब जग देखो छान।' मध्य रोचक, किन्तु गंभीर अन्तर स्पष्ट करते हुए आचार्य धनवान की तृष्णा कमी समाप्त नहीं होती, फलतः पूरा श्री विद्यासागर जी ने कहा कि अक्षर का अध्ययन मात्र जीवन दुख की अनुभूति में व्यतीत हो गया, क्या दिया ज्ञान का प्रतीक नहीं है। विद्यालयों में भौतिक शिक्षा ग्रहण इस संग्रह ने, शिक्षा ने, संस्कार ने ? स्वानुभवी के पास कर संसार चिन्ताग्रस्त, अवसादग्रस्त हो रहा है। किसी उपलब्ध धन की कोई सानी नहीं। कल आया नहीं, अभी विद्यालय में आत्मोत्थान का पाठ्यक्रम नहीं है। जीवन आज का अस्तित्व समाप्त हुआ नहीं, किन्तु कल की एक यात्रा है। इस यात्रा में आत्मकल्याण की कितनी शिक्षा | चिन्ता में जीवनयात्रा पूरी हो गई। तृष्णा ने कभी संतोष दी गई? वनों के निवासी पढ़े लिखे नहीं हैं, किन्तु संतोषधन | को समीप आने नहीं दिया। संतोषधन को मुक्ति की प्रथम से सराबोर हैं, प्रकृति से इतनी मात्रा लेते हैं, जिससे | सीढ़ी बताते हुए आचार्यश्री ने कहा कि इसके आराधक आज की पूर्ति हो जाए। निश्चिन्त हैं, द्वार पर ताला लगाने | को अरहन्त बनने में कोई बाधक नहीं। दरिद्र होना दुख की भी आवश्यकता नहीं। जीवन मर्यादित है। विद्यालय का प्रतीक नहीं, मेरे पास कुछ नहीं कुछ पाने की चाहत में शिक्षा प्राप्त नहीं की, संतोष धरोहर के रूप में प्राप्त | भी नहीं। तृष्णावश धनवान दुखी है, संतोषी को चाह हो गया। जिन्हें शिक्षित, सभ्य, प्रगतिशील, विज्ञान का नहीं, कौन शिक्षित है कौन अशिक्षित? जीवन यात्रा को ज्ञाता बताया जाता है, जिनके संग्रह की सीमा नहीं, किन्तु | सुगम बनाना है या दुर्गम, यह समाधान समाज को तलाशना क्षण भर भी संतोष की अनुभूति नहीं, यह कौन सा शिक्षण- है। किस मार्ग से चलना है? जिस पर कोई दुर्घटना न प्रशिक्षण है, हमें बताओ। संतोषी को रुढिवादी और असंतोषी हो अथवा वह जिस पर चिन्ता बनी रहती है? उचित को प्रगतिवादी कहना ज्ञान की कौन सी धारा है? आचार्य | मार्ग पर यात्रा करनेवालों की संख्या समाप्त तो नहीं हुई, श्री ने पूछा कौन है प्रगतिवादी, कौन है रूढिवादी? लोकतंत्र | किन्तु नगण्य अवश्य है। यह ज्ञान प्रदान करते हुए आचार्य में साक्षर बनाने का संकल्प लिया है, यह अच्छा है, | श्री ने कहा कि दुर्लभ है संसार में एक जथारथ ज्ञान। किन्तु आत्मकल्याण की शिक्षा का प्रबंध हो, तो अधिक
प्रेषक- वेदचन्द्र जैन, अच्छा है।
गौरेला पेण्डारोड
॥ अगस्त 2009 जिनभाषित -
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