Book Title: Jinabhashita 2007 06 07 Author(s): Ratanchand Jain Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra View full book textPage 3
________________ रजि. नं. UPHIN/2006/16750 जून-जुलाई 2007 वर्ष 6, अङ्क 6-7 मासिक जिनभाषित पृष्ठ सम्पादक अन्तस्तत्त्व प्रो. रतनचन्द्र जैन . आचार्य श्री विद्यासागर जी के दोहे आ.पृ.2 कार्यालय • कथाएँ : मुनि श्री समता सागर जी ए/2, मानसरोवर, शाहपुरा • भगवान् अरनाथ भोपाल-462 039 (म.प्र.) • भगवान् मल्लिनाथ फोन नं. 0755-2424666 सम्पादकीय : शुभोपयोग क्षायोपशमिकभाव भी है सहयोगी सम्पादक लेख पं. मूलचन्द्र लुहाड़िया, मदनगंज किशनगढ़ • चातुर्मास का नियम : स्व. पं. जुगलकिशोर जी मुख्तार पं. रतनलाल बैनाड़ा, आगरा • मूर्तिनिर्माण की प्राचीन रीति डॉ. शीतलचन्द्र जैन, जयपुर : स्व.पं. मिलापचन्द्र जी कटारिया 13 डॉ. श्रेयांस कुमार जैन, बड़ौत सल्लेखना आत्महत्या नहीं : प्रो. भागचन्द्र जैन 'भास्कर' 16 प्रो. वृषभ प्रसाद जैन, लखनऊ डॉ. सुरेन्द्र जैन 'भारती', बुरहानपुर • सल्लेखना : देहविसर्जन की वैज्ञानिक प्रक्रिया ब्र. पुष्पा जैन शिरोमणि संरक्षक • श्रमण के मूलगुणों का नैतिक, सामाजिक एवं वैज्ञानिक श्री रतनलाल कँवरलाल पाटनी दृष्टिकोण डॉ. श्रेयांसकमार जैन (मे. आर.के.मार्बल) • रात्रि में देवपूजन करना आगम-सम्मत नहीं किशनगढ़ (राज.) : पं. पुलक गोयल, इन्दौर श्री गणेश कुमार राणा, जयपुर • जीवधर्म के प्रवर्तक भगवान् वृषभदेव (आदिनाथ) : पं. अनन्तबल्ले जैनदर्शनाचार्य 31 प्रकाशक • कविवर पं. दौलतराम जैन : सुमत कुमार जैन सर्वोदय जैन विद्यापीठ 1/205, प्रोफेसर्स कॉलोनी, • 1857 के महासभा के दो जैन महानायक : डॉ. ज्योति जैन आगरा-282 002 (उ.प्र.) . जिज्ञासा-समाधान : पं. रतनलाल बैनाड़ा फोन : 0562-2851428, 2852278| प्रतिवेदन • एक अनुपम आयोजन श्रुताराधना शिविर सदस्यता शुल्क डॉ. नरेन्द्र कुमार जैन शिरोमणि संरक्षक 5,00,000 रु. आचार्य श्री विद्यासागर जी से पत्रकारों की बातचीत परम संरक्षक 51,000 रु. डॉ. नरेन्द्र कुमार जैन संरक्षक 5,000 रु. आजीवन 500 रु. |- कविता : श्रुतपंचमीपर्व-वन्दनाष्टक वार्षिक 100 रु. : प्रतिष्ठाचार्य पं. पवन कुमार शास्त्री 'दीवान' आ.पृ. 3 समाचार 12, 20, 22, 27,45 सदस्यता शुल्क प्रकाशक को भेजें। एक प्रति 10 रु. लेखक के विचारों से सम्पादक का सहमत होना आवश्यक नहीं है। 'जिनभाषित' से सम्बन्धित समस्त विवादों के लिये न्यायक्षेत्र भोपाल ही मान्य होगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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