Book Title: Jinabhashita 2005 12 Author(s): Ratanchand Jain Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra View full book textPage 3
________________ जाता है तो ज्ञान की धारा निर्बाध अन्दर की ओर प्रवाहित कभी हमारा लक्ष्य नहीं रहा । इसलिये दुःख उठाते रहे। जब होने लगती है। तक हम भोगों का विमोचन नहीं करेंगे, उपास्य नहीं बन पायेंगे। 44 'आतम के अहित विषय कषाय इनमें मेरी परिणति न जाये" और "यह राग आग दहै सदा तातें समामृत सेइये । चिर भजे विषय कषाय अब तो त्याग निज पद वेइये ॥ " ये राग तपन पैदा करता है। विषय-कषाय हमें जलाने वाले हैं। यह हमारा पद नहीं है। यह 'पर' पद है। अपने पद में आओ। आज तक हम आस्रव में जीवित रहे हैं निर्जरा आओ बच्चो, आओ बच्चो, चलें पाठशाला हम तुम । वहाँ मिलेंगे सद्गुण हमको, और धर्म सीखेंगे हम ॥ पाप पुण्य क्या कहलाता ? स्वर्ग नरक क्या कहलाता ? किसे अधर्म धर्म बोलें हम ? सत्य झूठ क्या कहलाता ? सारे जग की सच्चाई की, सशिक्षा पायेंगे हम । वहाँ मिलेंगे सद्गुण हमको, और धर्म सीखेंगे हम ॥ क्या होता पूजन अर्चन से? क्या होता अभिनन्दन से ? क्या होता तीर्थ यात्रा से ? क्या होता गुरु के वंदन से ? चलें पाठशाला हम तुम वीतरागता क्या कहलाती? इसको पहचानेंगे हम । वहाँ मिलेंगे सद्गुण हमको, और धर्म सीखेंगे हम ॥ विनय पिता-माता गुरुओं की, सेवा दया अहिंसा क्या ? क्या पापों का फल होता है ? जानो चोरी हिंसा क्या ? करनी का फल किसने पाया? ये बाते जानेगें हम । वहाँ मिलेंगे सद्गुण हमको, और धर्म सीखेंगे हम ॥ कैसे हमको वस्त्र पहनना ? क्या हमको खाना पीना ? कैसे हमको बाल कटाना ? कैसे यह जीवन जीना ? Jain Education International योग जीवन है, भोग मरण है। योग सिद्धत्व को प्रशस्त करने वाला है और भोग नरक की ओर ले जाने वाला I आस्था जागृत करो। विश्वास/ आस्था के अभाव में ही हम स्व-पद की ओर प्रयाण नहीं कर पायें हैं । त्याग के प्रति अपनी आस्था मजबूत करो ताकि शाश्वत सुख को प्राप्त कर सको । 'समग्र' से साभार मुनि श्रीसुव्रतसागर जी सदाचार की अच्छी शिक्षा, शीघ्र मुफ्त पायेंगे हम । वहाँ मिलेंगे सद्गुण हमको, और धर्म सीखेंगे हम ॥ क्या ? कब ? करें मनोरंजन हम, क्यों? कब? टी.वी. देखें हम। किससे जीवन स्वस्थ रहेगा? खेल कौन से खेलें हम ? महत्त्वपूर्ण जीवन की कीमत, समयमूल्य पायेगें हम । वहाँ मिलेंगे सद्गुण हमको, और धर्म सीखेंगे हम ॥ कैसी पुस्तक हमको पढ़ना ? कैसे मित्र बनाना है ? क्या ? सीमाएं हैं अपनी, कैसे गुरु अपनाना है ? नियम व्रतों का फल क्या होता? कैसे ये पालेंगे हम ? वहाँ मिलेंगे सद्गुण हमको, और धर्म सीखेंगे हम ॥ For Private & Personal Use Only जैसे प्यारा हमको जीवन, और सुखी हमको बनना । वैसे ही औरों का जीवन, दुःखी नहीं पर को करना ॥ रखो मित्रता सब जीवों से, सबको गले लगायें हम। वहाँ मिलेंगे सद्गुण हमको, और धर्म सीखेगें हम ॥ आओ बच्चो, आओ बच्चो, चलें पाठशाला हम तुम ॥ -दिसम्बर 2005 जिनभाषित 1 www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 ... 36