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जैनधर्म में तीर्थंकरों को मान्यता है, लेकिन वे सृष्टि कवच के रूप में उपलब्ध हुआ है। जैनसमाज केवल अपनी के कर्ता नहीं, इत्यादि यह पृथक्ता / स्वतंत्रता अनेक महापुरुषों शिक्षण संस्थायें स्वतन्त्रता से चला सकेंगे। दूसरे शब्दों में ने खोजों से स्वीकार भी की है यथा सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन् अल्पसंख्यक का अधिकार केवल भारतीय संविधान के पं.जवाहरलाल नेहरु आदि ने अपनी-अपनी कृतियों में अनुच्छेद 29 व 30 में जो धार्मिक शिक्षण संस्थाओं के सप्रमाण यह उल्लेख किये भी हैं, खारवेल एवं सिंधुघाटी संचालन हेतु है, वहीं तक सीमित हैं, इससे राजनैतिक अथवा सभ्यतादि से जैनधर्म की प्राचीनता पहले ही सिद्ध हो चुकी किसी प्रकार के आर्थिक लाभ या संरक्षण से किंचित् भी है। यह उतना ही निर्विवाद है जितना यह कि सदियों से नहीं है, इसलिये जब कोई जैनियों के आर्थिक स्तर को इस हिन्दू संस्कृति में जैन, दूध-पानी की तरह एकाकार में रचे हेतु मापता है अथवा सामाजिक स्तर की बात करता है तो पचे हैं और राजनीतिज्ञ, हिन्दू-मुस्लिम के बीच की तरह वह स्वयं को और दूसरों को भ्रमित करता है, वस्तुत: यह आड़े नहीं आये तो कभी दोनों अहिंसक समाज पृथक् केवल धार्मिक स्वतन्त्रता के लिए संवैधानिक कवच मात्र दिखेंगे भी नहीं।
है। किसी प्रकार का हरिजन/आदिवासी जैसा आर्थिक पैकेज उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश,छत्तीसगढ,बिहार, उत्तराचंल. या मुस्लिमों जैसा आरक्षण का लाभ बिल्कुल नहीं है। न कर्नाटक आदि की राज्य सरकारों ने जैनों को अल्पसंख्यक
जैन समाज ने कभी इस तरह के लाभ की मांग की है घोषित कर भी दिया है और वहाँ कोई विवाद नहीं है।
लेकिन लोकतन्त्र में अपना निहित संवैधानिक सुरक्षा कवच मध्यप्रदेश में केवल इसलिये कि यह घोषणा कांग्रेसी सरकार
भी न मिले, उसके गिरनार जैसे आदिकालीन तीर्थ को भी ने की थी, इसलिये भाजपा में कुछ मलाल है जबकि उसके
उससे छिना जाये या जैन मुनियों को सुरक्षा भी न मिले या तुरन्त बाद हुये चुनाव में भाजपा सरकार के बनने में जैन
आने वाली पीढ़ियों को जैन संस्कार भी न दे सकें तो फिर समाज का योगदान कम नहीं रहा, इसलिये चार-चार मंत्री
अस्तित्व बचाने के लिये कुछ तो करना ही होगा, अहिंसक जैन हैं पर सुगबुगाहट यह कह कर कि इससे मुख्य धारा
माने निष्क्रिय तो नहीं होता न? कट जायेंगे या यह कह कर कि जैनों को हिंसकों के साथ
पूर्व के न्यायिक दृष्टान्त बैठना पड़ेगा आदि निराधार तर्क दिये जाकर कथित कांग्रेसी
1. ए. एस. आइ. ट्रस्ट बनाम डायरेक्टर एजूकेशन देन, छीनने की बदनियतीपूर्ण कानाफूसी है, जबकि ऐसा
दिल्ली ए. आइ. आर. 1976 दिल्ली 207 श्री श्वेताम्बर तेरापंथी कुछ भी आधार नहीं है, न तो जैनियों का हिन्दुओं से सौहार्द
विद्यालय बनाम स्टेट ए. आइ. आर 1982 कलकत्ता 101 में कम हुआ है, न मुख्य धारा से कटे हैं, न सभी जैन कांग्रेसी
जैनसमाज को अल्पसंख्यक घोषित करते हुये अनु. 30 के हो गये न कोई भाजपा से कट गये। नहीं, हिंसकों के साथ तहत जैनधर्म को स्वतन्त्र धर्म माना गया है। जुड़ाव हुआ है कोई आरक्षण मिल गया हो-ऐसा भी नहीं
2. मंडल कमीशन ने जैनों को हिन्दओं से भिन्न हुआ और न ही ऐसी कोई मांग है, जैनियों को कोई आर्थिक लाभ मिला हो ऐसा भी नहीं, न ही ऐसी कोई मांग है फिर समूह में माना जिसे माननीय न्यायालय ने अपने निर्णय लाभ क्या है यह भी देख लें संविधान के अनच्छेद 25 से दिनाक 16.11.1992 म सहा ठहराया था। 30 को इसलिये समझना यहाँ आवश्यक है-अनुच्छेद 25 से 3. पंजाब राज्य बनाम डी. पी. मेशराम में सर्वोच्च 28 में धार्मिक स्वतन्त्रता के मौलिक अधिकारों का उल्लेख न्यायालय ने ही स्पष्ट किया था, अनुच्छेद 25, 2वी में जैनों किया गया है केवल 29 एवं 30 में अल्पसंख्यक शब्द का को स्वतंत्र धर्मावलम्बी माना है। प्रयोग है, जिसके अनुसार भारत के नागरिकों का कोई समुदाय
4. श्री बाल पाटिल की रिट याचिका 5009/97 यदि अपनी भाषा, लिपि अथवा संस्कृति रखता है तो उसकी ।
भारत सरकार व अन्य में बम्बई हाइकोर्ट की खण्डपीठ ने अक्षण्यता बनाये रखने का उसे पूर्ण अधिकार है। अनुच्छेद 2010.1993 को यह निर्देश दिये थे कि वह अल्पसंख्यक 30 में अल्पसंख्यक वर्ग को अपनी भाषा अथवा धर्म के
आयोग की सिफारिश पर जैन अल्पसंख्यक का स्टेटस आधार पर शिक्षण संस्थाओं की स्थापना, उनका संचालन,
प्राप्त करने के अधिकारी हैं, शीघ्र निर्णय लें। शिक्षा के मापदण्डों के मानते हुये, करने का अधिकार है
5. राष्टीय अल्पसंख्यक आयोग ने दिनांक 3.10.94 इस तरह मात्र इससे संवैधानिक सुरक्षा, केवल विधिक
22 दिसम्बर 2005 जिनभाषित
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