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जिज्ञासा-समाधान
पं. रतन लाल बैनाड़ा
प्रश्नकर्ता : श्री नरेन्द्र कुमार जैन, नांदेड़
2. नियमसार टीका 149 में इस प्रकार कहा हैजिज्ञासा : कौन से समदघात किस गणस्थान तक अन्तरात्मा क जघन्य, मध्यम आर उत्कृष्ट भद ह होते हैं?
अवरित सम्यग्दृष्टि जघन्य अन्तरात्मा है, पाँचवें गणस्थान से समाधान : समुदघातों में गणस्थान इस प्रकार जानने ग्यारहवें गुणस्थान तक मध्यम अन्तरात्मा है और क्षीणमोह चाहिये।
12 वें गुणस्थानवर्ती उत्कृष्ट अन्तरात्मा हैं। 1. कषाय समुद्घात-पहले से छठवें गुणस्थान तक।
3. बृहद् द्रव्य संग्रह गाथा 14 की टीका में इस
प्रकार कहा है- अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान में उसके योग्य 2. वेदना समुद्घात-पहले से छठवें गुणस्थान तक।
अशभ लेश्या रूप ये परिणमित (जीव) जघन्य अन्तरात्मा 3. वैक्रियक समुद्घात-पहले से छठवें गुणस्थान तक। है. क्षीण कषाय गणस्थान में उत्कृष्ट अन्तरात्मा हैं तथा अविरत
मारणान्तिक समुद्घात-तीसरे गुणस्थान को छोड़कर और क्षीण कषाय गुणस्थान के बीच के गुणस्थानों में पाँचवें पहले से ग्यारहवें गुणस्थान तक।
से ग्यारहवें तक मध्यम अन्तरात्मा हैं। 5. तैजस समुद्घात-मात्र छठवें गुणस्थान में।
4. वीरवर्धमान चरित्र सर्ग 16. श्लोक 95-96 में 6. आहारक समुद्घात-मात्र छठवें गुणस्थान में। चतुर्थ गुणस्थान वाले जीव को जघन्य अन्तरात्मा, पाँचवें से 7. केवली समुद्घात मात्र तेरहवें गुणस्थान के अन्तिम ग्यारहवें गुणस्थानवी जीव को मध्यम अन्तरात्मा और 12 अन्तर्मुहूर्त में।
वें गुणस्थानवर्ती जीव को उत्कृष्ट अन्तरात्मा कहा है। प्रश्नकर्ता : कु. आशा शाह, सूरत
वर्तमान में मुनिराजों के पहले गुणस्थान से सातवाँ जिज्ञासा : क्या वर्तमान के मुनिराजों को उत्कृष्ट
गुणस्थान तक होना संभव है, यदि उनका गुणस्थान पहले से
तीसरा तक है तो बहिरात्मा हैं यदि चौथा गुणस्थान है तो अन्तरात्मा कहा जा सकता है?
जघन्य अन्तरात्मा हैं और शेष तीन गुणस्थानों में पाँचवें और समाधान : अन्तरात्मा के तीन भेद कहे गये हैं। 1.
छठवें गुणस्थान में तो सर्वसम्मत रूप से मध्यम अन्तरात्मा उत्कृष्ट अन्तरात्मा 2. मध्यम अन्तरात्मा 3. जघन्य अन्तरात्मा।
हैं, जबकि सप्तम गुणस्थानवर्ती मुनिराज को कार्तिकेयानुप्रेक्षा इनके लक्षण आचार्यों ने इस प्रकार कहे हैं
में उत्कृष्ट अन्तरात्मा कहा गया है। 1. कार्तिकेयानुप्रेक्षा में गाथा 195 से 197 तक
किस मुनि के कौन सा गुणस्थान है, यह हमारे अन्तरात्मा का स्वरूप इस प्रकार बताया है-"जो जीव पाँचों
ज्ञानगम्य नहीं है। इतना अवश्य है कि जिनका शिथिलाचार महाव्रतों से युक्त होते हैं, धर्म्यध्यान और शुक्लध्यान में सदा
स्पष्ट दिखाई दे रहा है, उनको प्रथम गुणस्थानवर्ती बहिरात्मा स्थिर रहते हैं तथा वे समस्त प्रमादों को जीत लेते हैं, वे
ही मानना चाहिये। उत्कृष्ट अन्तरात्मा हैं। 195॥ श्रावक के व्रतों को पालने
प्रश्नकर्ता : श्रीकान्त जैन, झांसी वाले गृहस्थ और प्रमत्त गुणस्थानवर्ती मुनि मध्यम अन्तरात्मा होते हैं। ये जिनवचन में अनुरक्त रहते हैं, उपशम स्वभावी
जिज्ञासा : भगवान् की वेदी के बाहर जो इन्द्र बनाये होते हैं और महापराक्रमी होते हैं। 196। जो जीव अविरत जाते हैं, उनके बाल भी दिखाये जाते हैं तो क्या देवों के सम्यग्दृष्टि हैं, वे जघन्य अन्तरात्मा हैं। वे जिन भगवान् के वैक्रियिक शरीर में बाल होते हैं? चरणों के भक्त होते हैं, अपनी निन्दा करते रहते हैं और गुणों समाधान-उपरोक्त जिज्ञासा के समाधान में निम्न को ग्रहण करने में बड़े अनुरागी होते हैं। 197॥ भावार्थ- प्रमाणों पर विचार करना चाहियेचतुर्थ गुणस्थानवर्ती जघन्य अन्तरात्मा, पंचम एवं षष्ठम 1.श्री मूलाचार में इस प्रकार कहा हैगुणस्थानवर्ती मध्यम अन्तरात्मा और सप्तम से द्वादश गुणस्थान केसणहमंसुलोमा चम्मवसारूहिरमुत्तपुरिसं वा। पर्यन्त उत्कृष्ट अन्तरात्मा होते हैं।
णेवट्ठी णेव सिरा देवाण सरीरसंठाणे॥ 1054॥
-दिसम्बर 2005 जिनभाषित 25
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