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कुम्भकार को सुबह वाली धूप दीखती है धरती पर। इसे अतिश्योक्ति __ एक मायने में महाकाव्य के हरेक स्थल पर, जहाँ भी कहें या कुछ और, परन्तु कवि ने ऐसा लिखा तो है। लिखते समय | चित्रण है प्रकृति का, मुनिवर ने वहाँ प्रकृति सौंदर्य के बोध को वे कुछ विस्मृत कर बैठे हैं- ऐसा भी नहीं लगता।
स्थापित करते हुए भी अध्यात्म का रंग फीका नहीं होने दिया है। प्रकृति चित्रण का, महाकाव्य में यह अंतिम स्थल है, उन्होंने आंख मूंद कर या आंख खोलकर चित्रण नहीं जहाँ गुरुवर विद्यासागर जी बाढ़ से उफनती नदी के विषय में किये हैं, हर चित्रण के पार्श्व में कलमकार अपनी अनुभूति उपस्थिति कलम चलाते हैं- वर्षा के कारण नदी में/नया नीर आया है/नदी | करने का सुन्दर प्रयास करता है, जबकि सत्य यह भी है कि वेग-आवेगवती हई है/संवेग निर्वेग से दूर/उन्माद वाली प्रमदा | दिगम्बर सन्त को ऐसी अनुभूतियों से सरोकार नहीं रहा है, न सी। (पृ. ४४०)
रहेगा। ____नदी को नारी के रूप में देखने के बाद, उसमें संवेग और | मैं उन्हें प्रकृति चित्रण में सिद्ध हस्थ मानता हूँ और उनके निर्वेग को तलाशना और न पाना, मुनि विद्यासागर जैसे महाकवि | चित्रण की सराहना करता हूँ। ही स्पष्ट कर सकते हैं।
२९३, गढ़ा फाटक जबलपुर (म.प्र.)
जन्म कृतार्थ हो
प्रो. डॉ. विमला जैन 'विमल'
जन्म सुमंगलमय वही, जो नहि आगे होय, अन्तिम जन्म अरिहन्त का, या श्री सिद्ध का होय॥
मानव जन्म कृतार्थ हो, कर सम्यक पुरुषार्थ, स्व परहित जीवन जगा, मन, वच, तन परमार्थ । 'वृष पथ बढ़' यह श्रेष्ठतम, रत्नत्रय के साथ, स्वात्म बने परमात्माः सर्वजीवहित साथ।
जन्म मरण का दुक्ख अति, परवस सहता जीव, जन्मे फिर निर्वाण लें, वे परमात्म सुजीव।
तीर्थंकर के जन्म पर, उत्सव 'जन्म कल्याण' अन्तिम तन तजते कहा, हुआ 'मोक्ष कल्याण'।
मानव जन्म सुश्रेष्ठ है, बने मुक्ति भरतार, जो जैसी करनी करे, फलद चतुर्गति भार।
मुनिचर्या दुष्कर लगे, करें राष्ट्र कल्याण, जन्मभूमि रक्षक बने, दे दुष्ठन का त्राण। राष्ट्र भक्त की मृत्यु भी, 'वीरगति' बहुमान, अमर शहीद की जय बुले, स्वर्णाक्षर जग जान। जो समाज हित में लगे, जन-जन सेवा नित्य दुर्बल का सम्बल बने, सेवहि बन आदित्य।
नर्क और तिर्यंच गति, जन्म न लेना भव्य,
'पंच पाप' तज वृष धरह. सधर जाय भवितव्य।
जन्म कहा सार्थक वही. परहित हो बलिदान
'सप्त व्यसन' की लत बुरी, दूर से देना लात,
आगम अरु इतिहास लख, सुजन बिगाड़ी बात। 'दश वृष' की संजीवनी, व्याधि मिटाती जन्म, स्व-स्वभाव मय आत्मा, शुद्ध-बुद्ध आजन्म।
राष्ट्र समाज अरु धर्म का, करता जो उत्थान, क्रमशः बढ़ परमार्थ में 'विमल'ध्येय के संग, जन्म सुकारथ शुचिंकरम, मरण समाधि के संग।
फिरोजाबाद (उ.प्र.)
मार्च 2004 जिनभाषित 11
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