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'साहित्य समीक्षा'
'मनीषी' प्राचार्य नरेन्द्र प्रकाश जैन अभिनन्दन ग्रन्थ' | समीक्षात्मक अभिमतों को आलेखित किया है। चतुर्थ खण्ड में पं. श्री नीरज जैन के निर्देशन में प्रधान सम्पादक डॉ. भागचन्द्र जैन साहित्यक अवदान, यात्राएँ, काव्योद्यान, समीक्षाएँ प्राचार्य जी की 'भागेन्दु' एवं डॉ. जय कुमार जैन, डॉ. शीतल चन्द्र जैन, डॉ. | प्रेरणास्पद तथा समीचीन है। ४ आलेख अन्य विद्वानों में उनके कपूर चन्द्र जैन तथा डॉ. अनुपम जैन, श्री कपूर चन्द्र पाटनी, पं. | लिये लिखे हैं। पंचम खण्ड में बीसवीं सदी के प्रमुख दि. जैन लाल चन्द्र जैन 'राकेश' व पं. विनोद कुमार जैन के सम्पादकत्व | विद्वानों का अति संक्षिप्त परिचय है, उनमें काफी कुछ छूट गये हैं। में सम्पादित हुआ है। ग्रन्थ के प्रबन्ध सम्पादक डॉ. चिरंजी लाल | लगभग ७०० पृष्ठों के ग्रन्थ (आकार ११"x९") में काफी कुछ विद्या-विनय-विवेक के प्रतीक प्राचार्य जी के जीवन्त व्यक्तित्व | समन्वित करने का सफल प्रयास किया गया है। प्रत्येक पृष्ठ पर की यशोगाथा आलेखित करने में समर्थ रही है ऐसा तो नहीं कहा | सुभाषित सूत्र आलेखित हैं जो उपयोगी व प्रेरणास्पद हैं। जा सकता क्योंकि 'वाक अनयन, नयन बिनु वाणी' अतः देखा | मुख पृष्ठ तथा सभी खण्डों के अग्रपृष्ठों पर ऐतिहासिक हुआ भी नहीं कहा जा सकता तो 'मनीषा' में एक मनीषी विद्वान | स्मृति-चित्रग्रन्थ की सार्थकता स्पष्ट कर रहे हैं। ग्रन्थ के नायक की यशोगाथा जीवन्त हो सके यह भी सम्भव नहीं है फिर भी | मनीषी विद्वान प्राचार्य जी के जीवन वृत्त पर आधारित शताधिक ७० लोगों के आशीर्वचन, १७० लोगों की आदरांजलि यशोगाथा | छायाचित्र आकर्षण बढ़ा यशोगाथा में चार चाँद लगा रहे हैं। ग्रन्थ के रूप में काफी कुछ अभिव्यक्त कर रही है। प्रथम खण्ड में | की आदर्श साज-सज्जा सादगी पूर्ण कलात्मक प्रस्तुति एवं त्रुटि आचार्यों तथा मुनियों, त्यागियों, विद्वानों तथा विशिष्ट लोगों के | रहित स्पष्ट मुद्रण सभी कुछ सुन्दरतम है। ग्रन्थ पठनीय, प्रेरणास्पद. मंगलाशीष, सन्देश तथा शुभ कामनायें हैं, जो एक गुणी आदर्श | संग्रहणीय एवं मानवता के लिये अनुकरणीय है। प्रकाशन श्री उदान्त चरित्रवान विद्वान का सम्मोहन तो है ही। द्वितीय खण्ड में | भारतवर्षीय दि.जैन धर्म संरक्षिणी महासभा (पश्चिम बंगाल) शताधिक प्रशंसकों की आदरांजलियाँ हमारे प्रणम्य संस्मरण हैं जो | कोलकाता ने किया है। अभिनन्दनीय विद्वान के प्रति उसके गौरव पूर्ण विशिष्ट गुणों की प्रस्तुत ग्रन्थ जैन-जैनेतर विद्या मंदिरों के पुस्तकालयों में यशोगाथा हैं। तृतीय खण्ड में 'जीवन ऐसे जियो', आत्मकथ्य, | उपयोगी होगा ताकि नवीन पीढ़ी तथा शिक्षित वर्ग ऐसे सदाचारी भैंट वार्ताएँ, व्यक्तित्त्व एवं कृतित्त्व दिया गया है जो ग्रन्थ का | निस्प्रही विद्वान से प्रेरणा ले सके तथा यह भी जाने कि इस अर्थ प्रेरक तत्व अथवा मुख्य आकर्षक पहलू है। न धर्मोः धार्मिकैर्बिना' | युग में भी सुसंस्कार वान विद्वान समाज में प्रणम्य हैं। महासभा के अनुसार गुणों का साकार रूप गुणी में ही दृष्टव्य होता है, अतः | का लक्ष्य जैन धर्म के आदर्शों का प्रचार-प्रसार करना है और इस पाठक इस खण्ड को पढ़कर ही इस 'ग्रन्थ सागर' के रत्न (सूत्र) | ग्रन्थ में एक आदर्श व्यक्तित्व को उसके उदात्त कृतित्त्व के लिये हस्तगत करता है। यह कथ्य संक्षिप्त होते हुये भी सारगर्भित है। अभिनन्दन रूप विनयांजलि दी गयी है जो श्लाघनीय है। ३७ पृष्ठों पर आत्मकथ्य है तथा ९० पृष्ठों पर अन्यान्य विद्वानों के |
प्रो.डॉ. विमला जैन
स. सम्पादिका - 'जैन महिलादर्श' संस्मरण
सच्चा-रास्ता
मुनि श्री क्षमासागर जी
चातुर्मास में जयपुर से कुछ लोग आचार्य महाराज के दर्शन करने नैनागिरि आ रहे थे। वे रास्ता भूल गये और नैनागिरि के
गये। थोडी दर जाकर उन्हें अहसास हआ कि वे भटक गये हैं। इस बीच चार बंदकधारी लोगों ने उन्हें घेर लिया। गाड़ी में बैठे सभी यात्री घबरा गये। एक यात्री ने थोड़ा साहस करके कहा कि 'भैया, हम जयपुर से आऐ हैं। आचार्य विद्यासागर महाराज के दर्शन करने जा रहे हैं, रास्ता भटक गए हैं, आप हमारी मदद करें।' उन चारों ने एक दूसरे की ओर देखा और उनमें से एक रास्ता बताने के लिए गाड़ी में बैठ गया।
नैनागिरि के जल मंदिर के समीप पहुँचते ही वह व्यक्ति गाड़ी से उतरा और इससे पहले कि कोई कुछ पूछे, वह वहाँ से जा चुका था। जब उन यात्रियों ने सारी घटना सुनाई तो लोग दंग रह गए। सभी को वह घटना याद आ गई, जब चार डाकुओं ने आचार्य महाराज से उपदेश पाया था। उस दिन स्वयं सही राह पाकर आज इन भटके हुए यात्रियों के लिए सही रास्ता दिखाकर मानों उन डाकुओं ने उस अमृत वाणी का प्रभाव रेखांकित कर दिया।
'आत्मान्वेषी' से साभार
20 मार्च 2004 जिनभाषित
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