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यानि पूरी की पूरी प्राकृतिक चिकित्सा ही पाचन तंत्र (डायजेस्ट | सिस्टम) से संबंधित है और योग तंत्रिका तंत्र ( नर्वस सिस्टम) से संबंधित है अतः भोजन का पाचन सही हो इसके लिये हम भोजन के बारे में बात करें कि भोजन कैसे व कब करना चाहिए।
भोजन शांतचित्त होकर, मौन पूर्वक, शोरगुल से रहित स्थान में करना चाहिए। तथा तेज भूख लगने पर ही करना चाहिए, प्राकृतिक चिकित्सा में आहार को ही औषधि माना गया है, परन्तु यह औषधि का कार्य कब करता जब हम भोजन चबा-चबाकर करें । अन्न शब्द अद् धातु से बना है जिसका अर्थ होता है खाना। सम्यक आहार लेना तथा उसे अच्छी तरह से पचाकर शरीर का हिस्सा बन लेना ही सही खाना है। यही अन्न की सार्थकता है, ज्यादा खाने तथा स्वाद के लिये खाने से अन्न हमें खा जाता है। ठूंस-ठूंस कर गरिष्ठ भोजन करने से शरीर की सारी शक्ति निचुड जाती है। जो शक्ति शरीर के समस्त अवयवों को पोषण एवं स्वास्थ्य प्रदान करती है, वहीं गरिष्ठ भोजन को पचाने में नष्ट होने लगती है। प्रत्येक अंग प्रत्यंग रुग्ण एवं कमजोर होने लगते हैं । जीवनी शक्ति नष्ट हो जाती है। शरीर बीमार हो जाता है।
सुबह उठते ही चाय (बेड टी यानि डेड टी) बिस्कुट (जिसमें विष कूट-कूट कर भरा हुआ है) कॉफी, पाव रोटी, ब्रेड, केक, पूडी, टाफी, कचौरी, रंग बिरंगी मिठाईयाँ, डिब्बा बंद आहार में प्रीवेंटिव कलरेट एण्टी, ऑक्सीडेन्ट के रूप में अनेक जहरीले रसायन मिलाये जाते हैं जिनसे कैंसर, गठिया, आंत, यकृत, हृदय एवं फेफड़े के रोग तथा जेनेटिक्स विकृतियाँ पैदा होती हैं इसीलिए आज का लंच बीमारियों का मंच बना हुआ है। आज हम लोग थाली में बैठ कर हार जाते हैं उसी का नाम तो आहार हो गया है। पर होना तो चाहिए था इसके विपरीत सब्जी जैसा कि नाम से ही लगता है जिसको खाने से सब लोग जी जाते है यानि जीवित हो जाते हैं। आज तोरई कोई खाना पसंद नहीं करता वह कहती है तू रोई अपनी किस्मत पर, उसी से दिल तथा गुर्दे की अनेक बीमारियों का ईलाज होता है, एक टेवलेट ही बनाई गई है, तोरई ।
उपवास : सप्ताह में एक दिन या पन्द्रह दिन में एक दिन उपवास अवश्य करें (अष्टमी, चतुर्दशी, एकादशी या पंचमी) गुस्सा या क्रोध करने वाले सोमवार का उपवास करें, क्योंकि
चन्द्रमा शीतलता एवं सुधारस बरसा कर चित्त को शांत करता है । मंगलवार का उपवास मंगलकारी मेधा स्मृति ज्ञान एवं प्रज्ञावान बनने के लिये। बुधवार का उपवास ओज तेज एवं शक्ति के लिये । गुरुवार का उपवास समुद्र की तरह गुरु गंभीर बनने के लिए, शुक्रवार का उपवास शक्ति एवं वृद्धि के लिए शनिवार का उपवास समस्त विघ्नों को दूर करने के लिए तथा रविवार का उपवास तमसो माँ ज्योतिर्गमय के लिये है। उपवास के दिन मौन रखें।
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एक दिन उपवास के बाद दूसरे दिन गरिष्ठ भोजन, पकवान, मिठाई खाने से हानि अधिक लाभ कम होता है, इसलिए रस, सूप या दूध से उपवास तोड़ें, सामान्य आहार लें, उपवास के पहले तथा तोड़ने पर ठूंस-ठूंस कर भोजन करने का अर्थ रोग तथा मौत को निमंत्रित करना है।
उपवास में शरीर का विकार निकल जाता है पेट को अवकाश तथा विश्राम मिलता है पाचन संस्थान तथा शरीर को नया जीवन मिलता है रक्त की सफाई होती है। बुढ़ापा लाने वाले फ्रोरेडिकल्स बनना कम हो जाता है। आयु तथा आरोग्य में वृद्धि होती है। रोग होने की संभावना कम हो जाती है । उपवास संजीवनी का कार्य करता है, जो लोग साप्ताहिक उपवास नहीं कर सकते उन्हें फलाहार पर रहना चाहिये ।
नोट :- स्वास्थ्य की दृष्टि से उपवास में गर्म पानी, नीबू पानी अथवा मौसमी का रस विकारों को निकालने की दृष्टि से अधिक लाभदायक माना गया है।
आज हमारे स्वास्थ्य का अक्षय स्त्रोत दूषित कचरे एवं गंदगी में दब गया है विषाक्त बिजातीय पदार्थ एवं विषैले मनोविकारों से कुचलकर सड़ रहा है, मर रहा है। स्वास्थ्य सुमन के खिलने एवं सुरक्षित होने की संभावना नष्ट हो रही है। जागें, उठें एवं एक कुशल माली की तरह प्राकृतिक चिकित्सा द्वारा दूषित विकारों को हटाकर स्वास्थ्य सौरभ से स्वयं को, समाज को एवं सृष्टि को भर दें। साहस के साथ निसर्गोपचार द्वारा गंदगी की चट्टान को तोड़फोड़ कर हटा दें। स्वास्थ्य का अक्षय शुद्ध सलिल स्त्रोत फूट कर जीवन को तृप्त कर देगा, आनंद विभोर हो आप गा उठेंगे। निसर्ग शरणं गच्छामि, योगं शरणं गच्छामि, आनंदं शरणं गच्छामि, आरोग्यं शरणं गच्छामि
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सूचना
इस वर्ष श्रमण संस्कृति संस्थान, सांगानेर से २० छात्र शास्त्री परीक्षा उत्तीर्ण करेंगे। जिन्हें पाठशाला तथा मंदिर में प्रवचनार्थ विद्वानों की आवश्यकता हो वे पं. श्री रतनलाल जैन बैनाड़ा से संपर्क करें ।
कार्ड पेलेस, सागर फोन : २२६८७७
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पं. रतनलाल जैन बैनाड़ा, अधिष्ठाता श्री दि. जैन श्रमण संस्कृति संस्थान, सांगानेर वीरोदय नगर, सांगानेर, जयपुर पिन- ३०३९०२ फोन : ०१४१-२७३०५५२, ५१७७३००
मार्च 2004 जिनभाषित 19
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