Book Title: Jinabhashita 2004 03
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 15
________________ महावीर के सिद्धान्त अहिंसा प्राणियों को नहीं मारना, उन्हें नहीं सताना । जैसे हम सुख चाहते हैं, कष्ट हमें प्रीतिकर नहीं लगता, हम मरना नहीं चाहते, वैसे ही सभी प्राणी सुख चाहते हैं कष्ट से बचते हैं और जीना चाहते हैं। हम उन्हें मारने/सताने का भाव मन में न लायें, वैसे वचन न कहें और वैसा व्यवहार/ कार्य भी न करें। मनसा, वाचा, कर्मणा प्रतिपालन करने का महावीर का यही अहिंसा का सिद्धांत है । अहिंसा, अभय और अमन चैन का वातावरण बनाती है। इस सिद्धान्त का सार - सन्देश यही है कि 'प्राणी के प्राणों से हमारी संवेदना जुड़े और जीवन उन सबके प्रति सहायी/सहयोगी बने ।' तोप, तलवार से झुका हुआ इंसान एक दिन ताकत अर्जित कर पुनः खड़ा हो जाता है। अनेकान्त भगवान महावीर का दूसरा सिद्धान्त अनेकान्त का है । अनेकान्त का अर्थ है- सह-अस्तित्व, सहिष्णुता, अनाग्रह की स्थिति। इसे ऐसा समझ सकते हैं कि वस्तु और व्यक्ति विविध धर्मी हैं । अपरिग्रह - भगवान महावीर का तीसरा सिद्धान्त अपरिग्रह का है । परिग्रह अर्थात् संग्रह-यह संग्रह मोह का परिणाम है। जो हमारे जीवन को सब तरफ से घेर लेता है, जकड़ लेता है, परवश / पराधीन बना देता है वह है परिग्रह। धन पैसा को आदि लेकर प्राणी के काम में आने वाली तमाम वस्तु/ सामग्री परिग्रह की कोटि में आती है । आत्म स्वातन्त्र्य भगवान महावीर द्वारा प्रतिपादित एक सिद्धांत आत्म स्वातन्त्र्य का है, इसे ही अकर्त्तावाद या कर्मवाद कहते हैं। अकर्त्तावाद का अर्थ है- 'किसी ईश्वरीय शक्ति/सत्ता से सृष्टि का संचालन नहीं मानना ।' यह सिद्धान्त इसलिए भी प्रासंगिक है कि हमें अपने किए गए कर्म पर विश्वास हो और उसका फल धैर्य, समता के साथ सहन करें। वस्तु का परिणमन स्वतंत्र / स्वाधीन है। मन में कर्तृत्व का अहंकार न आये और ना ही किसी पर कर्तृत्व का आरोप हो । इस वस्तु- व्यवस्था को समझकर शुभाशुभ कर्मों की परिणति से पार हो, आत्मा की शुद्ध दशा प्राप्त करें। बस यही धर्म चतुष्टय Jain Education International संकलन : सुशीला पाटनी भगवान महावीर स्वामी के सिद्धान्तों का सार है। व्यक्ति जन्म से नहीं कर्म से महान् बनता है । यह उद्घोष भी महावीर की चिन्तनधारा को व्यापक बनाता । इसका आशय यह है कि प्रत्येक व्यक्ति मानव से महामानव, कंकर से शंकर और भील से भगवान बन सकता है। नर से नारायण और निरंजन बनने की कहानी ही महावीर का जीवन दर्शन है। मनीषियों के विचार अहिंसा का सिद्धान्त सबसे पहले गहन रूप से भलीभाँति तीर्थंकरों द्वारा प्रतिपादित एवं प्रचारित किया गया। इसमें २४ वें तीर्थंकर भगवान महावीर वर्द्धमान का उल्लेखनीय योगदान है। भगवान बुद्ध और फिर महात्मा गाँधी ने भी मन, वचन, काय से अहिंसा के सिद्धान्त को आचरण में उतारा। प्रो. तानयुन शान (चीन) महावीर के वचन मानवी आचरण की उज्जवलतम प्रस्तुति है। अहिंसा का महान सिद्धांत, जिसे पश्चिम जगत में 'ला आफ नान - वायलेंस' के नाम से जाना जाता है, सर्वाधिक मूलभूत सिद्धांत है, जिसके द्वारा मानवता के कल्याण के लिए आदर्श संसार का निर्माण किया जाता है। डॉ. एल्फ्रेड डब्ल्यू पार्कर ( इंग्लैण्ड ) भगवान महावीर जिन्होंने भारत के विचारों को उदारता दी, आचार को पवित्रता दी, जिसने इन्सान के गौरव को बढ़ाया, उसके आदर्श को परमात्मा-पद की बुलंदी तक पहुँचाया, जिसने इन्सान और इन्सान के भेदों को मिटाया, सभी को धर्म और स्वतंत्रता का अधिकारी बनाया, जिसने भारत के अध्यात्म-संदेश को अन्य देशों तक पहुँचाने की शक्ति दी। सांस्कृतिक स्त्रोतों को सुधारा, उन पर जितना भी गर्व करें, थोड़ा ही है । डॉ. हेल्फुथफान गलाजेनाप्प (जर्मनी) महावीर का जीवन अनन्तवीर्य से ओत-प्रोत है। अहिंसा का प्रयोग उन्होंने स्वयं अपने ऊपर किया और फिर सत्य और अहिंसा के शाश्वत धर्म को सफल बनाया। जो काल को भी चुनौती देते हैं, ऐसे उन भगवान को 'जिन और वीर' कहना है। आज के लोगों को उनके आदर्श की आवश्यकता है। डॉ. फर्नेडो बेल्लिन फिलिप (इटली) भगवान महावीर सत्य और अहिंसा के अवतार थे। उनकी पवित्रता ने संसार को जीत लिया था। भगवान महावीर का नाम यदि इस समय संसार में पुकारा जाता है तो उनके द्वारा प्रतिपादित For Private & Personal Use Only मार्च 2004 जिनभाषित 13 www.jainelibrary.org

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