Book Title: Jinabhashita 2004 03
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 17
________________ गतांक से आगे आत्मा और शरीर की भिन्नता : चिकित्सीय विज्ञान की साक्ष्य डॉ. प्रेमचन्द्र जैन हृदय रोग विशेषज्ञ माइकेल साबोम ( Michael Sabom) का । एक-दूसरे के अनुभवों को परस्पर बाँटने के लिये एकत्रित थे। विश्लेषणः 'उनमें से बहुतों के लिये यह एक जीवन परिवर्तित करने वाली माइकेल साबोम हृदय रोग विशेषज्ञ के साथ-साथ 'मृत्यु- | आध्यात्मिक यात्रा थी' (For many of them, was a life altering निकट अनभव' के शोधकर्ता भी हैं। ये लिखते हैं कि उन्होंने | spiritula iourney)। ऐसे एक रोगी राबर्ट मिलहम (Robert डॉक्टर स्पेट्रजलर द्वारा रीनोल्ड की शल्य क्रिया के सभी अंकित Milham) ने बताया कि हृदयाघात के समय उसके हृदय की अभिलेखों की प्रतिलिपियों का, शल्यक्रिया के दौरान रीनोल्ड | धड़कन बंद हो गई और दर्द काफूर हो गया और मैं अपने शरीर के द्वारा अनुभूत सभी घटनाओं और सुरंग की यात्रा के वृतांत से | ऊपर लटकने की स्थिति में आ गया। मैंने अपने को एक स्ट्रेचर पर मिलान किया और पाया कि उस समय रीनोल्डस का मस्तिष्क लेटा एवं लोगों को उसपर पैडल मारते हुये देखा' उसने आगे उस कम्प्यूटर के समान था जिसमें से विद्युत प्रदाय का प्लग | कहा कि 'मौत के इस स्पर्श ने उसे निरे स्वार्थी, स्वकेन्द्रित जीवन निकाल दिया गया हो अर्थात् पूर्ण निष्क्रिय और इसप्रकार के मृत- से दूसरों को अधिक देने वाला व्यक्ति बना दिया।' मस्तिष्क को न कोई मतिभ्रम हो सकता है और न ही वह कोई | एक अन्य मिष्ट भाषी तकनीक उद्यमी केन एमिक गलत गोला दाग सकता है अर्थात् अन्यथा सोच सकता है और न | (KenAmick) ने डॉक्टर रोमर को एक एलर्जीजन्य प्रतिक्रिया ही निश्चेतक ड्रॅग्स या अन्य ड्रॅग्स की दशा में कोई क्रिया या (allergic reaction) के फलस्वरूप हुये मृत्यु निकट अनुभव प्रतिक्रिया कर सकता है। माइकेल साबोम आगे लिखते हैं कि | बताया कि उस समय उसकी श्वास रुक गई थी और उसका पूरा रीनोल्ड के शरीर में मृत्यु के सभी लक्षण थे। मृत्यु की सभी | शरीर नीला पड़ गया था। उसने आगे बताया 'मैं रंग देख सकता चिकित्सा नैदानिक कसौटियाँ थीं, जीवन के कोई चिन्ह नहीं थे। | था, मैं सुन सकता था। मैं भय और राहत जैसे संवेगों को महसूस तो क्या वह मृत्यु थी? और यादि मृत्यु थी तब इस दशा में रहते कर सकता था' यह कहते हुये वह रुकता है मानो वह उस स्थिति हुये उसके अनुभवों को क्या कहा जा सकता है? का पुनः अनुभव कर रहा हो 'तब वह टेबल पर पड़ी नीले रंग आंतरिक औषधि के विशेषज्ञ बारबरा रोमर (Barbara | की वस्तु क्या थी? वह मैं था। मैं जानता हूँ कि व Romer) की शोध : मुझे भयभीत भी किया किन्तु वास्तव में वह मैं नहीं था, यह तो ___ सबसे पहले १९७० में डॉक्टर बारबरा रोमर का सामना | सही रूप में मेरा शरीर था।' एक ऐसे रोगी से हुआ जो मृत्यु निकट अनुभव से गुजर चुका था। यद्यपि उद्धृत रोगियों के संबंध में यह प्रमाण नहीं है कि तब से १९९४ तक उसने ऐसे ६०० से अधिक रोगियों का | वे उस समय नैदानिक रूप से मृत अवस्था में थे (clinical साक्षात्कार लिया जिन्हें मृत्यु-निकट अनुभव था। साक्षात्कारोपरांत | dead) किन्तु प्रश्न तो मृत्यु-निकट अनुभव का है। आखिर वह 'वह पूर्ण रूपेण आश्वस्त हो गयी कि हमारी मृत्यु उपरांत कुछ न | क्या था जो उन्हें सम्मोहित कर रहा था? उन्हें इस बात से संतोष 'कुछ जीवित अवश्य रहता है' | रहा कि वे ऐसा अनुभव करने वाले अकेले नहीं है और न ही ऐसे लोगों ने साक्षात्कार के समय डॉ. रोमर से कहा कि | सनकी या पागल। पूरे संसार में ऐसा अनुभव करने वाले अनेक वे लोग समान अनुभव वाले लोगों से एक-दूसरे के अनुभवों का | व्यक्ति हैं। आदान-प्रदान करना चाहते हैं। तद्नुसार डॉ. रोमर ने ऐसे लोगों | डच हृदयरोग विशेषज्ञ पिमवानलोमेल (PinVan Lommel) का एक मासिक आश्रय- समूह (Monthly support group) | के अनुभव नवीन साक्ष्य, नवीन सिद्धांत - बनाना प्रारंभ कर दिया जो संसार के इस प्रकार के समूहों में सबसे । पिम वान लोमेल का एक ब्रिटिश मेडीकल जर्नल दि बड़ा था। बारबरा रोमर लिखती हैं कि वे ऐसे लोगों के अनुभवों | लानसेट (The Lancet) में प्रकाशित एक शोध लेख में एक ४४ की कहानियाँ सुनना चाहती थीं, अतः उन्होंने ऐसे एक समूह की | वर्षीय हृदयरोगी का विवरण दिया है। जिसकी हृदय कि धड़कन बैठक में भाग लिया इसमें दर्जनों मध्य आयु के पुरुष महिलाएँ | बंद हो गई थी तथा जिसे मृत्यु निकट अनुभव हुआ था। उसे - मार्च 2004 जिनभाषित 15 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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