________________
एम्बुलेंस द्वारा तुरंत अस्पताल लाया गया। डॉक्टरों ने डेफीब्रीलेटर्स | मस्तिष्क ही नहीं अपितु मांसपेशियों, खोपड़ी, आँते, आहारनली, नामक यंत्रों की सहायता से उसके हृदय को पुनः चालू कर दिया। | त्वचा, रक्त में रहने वाली, अरबों-खरबों असंख्य कोशिकाएँ एक एक नर्स ने उसके नकली दांत निकाले ताकि उसके गले में श्वास | नेटवर्क के अधीन एक दूसरे से बातें करती हैं जो हमारे अनुभवों लेने वाली नलिका डाली जा सके। हृदय चालू होने पर उसे आइ. | की चेतना को तब भी बनाए रखते हैं जब कि अरबों की संख्या में सी.यू. (Intensive Care Unit) में भेज दिया गया। एक सप्ताह | कोशिकाएँ मृत हो जाती हैं और अरबों नई उत्पन्न होती रहती हैं। बाद उस रोगी ने दांत निकालने वाली नर्स को देखा और उसे | यदि तथ्य ऐसा ही है तो उस दशा में भी वे कोशिकाएँ जीवित पहचान कर कहा 'तुमने मेरे मुँह से नकली दांत निकाले थे' | रहती हैं जब किसी व्यक्ति को मस्तिष्क की दृष्टि से मृत घोषित यद्यपि दांत निकालते समय वह रोगी सम्मूर्छित से नैदानिक मृत्यु | कर दिया गया हो और तभी वह उस नैदानिक मृत्यु की दशा में की अवस्था में था। उस रोगी ने अस्पताल में अपनी चिकित्सा के | भी घटित उन घटनाओं को देख सकता है जो अन्यथा अबोधगम्य सभी अन्य विवरण पूर्णतः सही-सही रूप में वर्णन किये जो | और अव्याख्येय ही हैं। उसकी आत्मा ने देह मुक्त अवस्था में देखे थे।
यदि ऐसा है तो इसका क्या अर्थ है कि मस्तिष्क के मृत मृत्यु -निकट अनुभव की आवृत्ति की दर क्या है, इसे | हो जाने पर 'मन' बना रहता है? उदाहरण स्वरूप क्या हमें मत मापने के लिये लोमेल और उसके सहशोधकर्ताओं ने ३४३ अन्य | मस्तिष्क के अंगों का प्रत्यारोपण के लिये निकाले जाने पर पुनर्विचार ऐसे रोगियों का साक्षात्कार लिया जिन्हें हृदयाघात हुआ था और | करना चाहिए? जो बाद में जीवित बच गये थे। पता चला कि १८ प्रतिशत रोगियों | अतः मृत्यु निकट अनुभव हमें उन प्रश्नों के पुनर्निरीक्षण को हृदय बंद होने की स्थितियों के बावजूद उनमें स्पष्ट चेतना थी। के लिए बाध्य करते हैं जो हम समझते हैं कि उनका उत्तर हमारे इन रोगियों ने उस दशा में हुई शांति की अनुभूति से लेकर मृत्यु | पास है, मृत्यु क्या है? चेतना कहाँ रहती है? क्या विज्ञान आत्मा निकट अनुभवों का विस्तार से वर्णन किया।
को भी पा सकता है? खोज कर सकता है? इसीप्रकार कुछ ब्रिटिश शोधकर्ताओं द्वारा किये गये एक | उपसंहार - चिकित्सा वैज्ञानिकों के उक्त अनुभूत सत्य अध्ययन, जो रीसससियेशन (Resusciation) जर्नल में प्रकाशित | घटनाएँ विश्लेषण और शोध से आत्मा के संबंध में जैन दर्शन की हुआ, मैं यह पाया गया कि ११ प्रतिशत ऐसे रोगियों को उनकी | सभी मान्यताओं की पुष्टि होती है। अचेतन अवस्था में हुये कार्यों की स्मृति है और ६ प्रतिशत ऐसे (अ) आत्मा और शरीर दो भिन्न पदार्थ हैं। डॉ. स्पेट्रजलर रोगी जो हृदयाघात के बाद मिली चिकित्सा से ठीक हो गये, को | द्वारा मस्तिष्क रोगी पाम रीनोल्ड्रस की शल्यक्रिया के दौरान मृत्यु निकट अनुभव हुआ था।
अनुभूत विवरण यह सिद्ध करते हैं चेतनाशून्य शरीर हो जाने या वान लोमेल एवं ये ब्रिटिश शोधकर्ताओं का विश्वास है | सभी नैदानिक मापदण्डों के अनुसार शरीर मृत या निष्क्रिय होने कि उक्त निष्कर्ष यह संकेत करते हैं कि क्रियाशील मस्तिष्क की | पर भी शरीर से पृथक कोई तत्त्व या पदार्थ, जिसे आत्मा ही कहा
अनुपस्थिति में भी चेतना रह सकती है। वान लोमेल लिखते हैं | जा सकता है, का अस्तित्त्व है जो ज्ञान, दर्शन और चेतना से युक्त 'मस्तिष्क की तुलना एक टी.वी. सेट से की जा सकती है और | है तभी तो पाम रीनोल्ड्स तथा ऊपर वर्णित अन्य रोगियों (राबर्ट टी.वी. कार्यक्रम आपके टी.वी. सेट में नहीं हैं।', (यह तो अन्य | मिलहम आदि) ने शल्यक्रिया के उपरान्त शल्यक्रिया के सूक्ष्म से स्थान से प्रसारित होता है।)
सूक्ष्म विवरण मृतप्राय रहने पर भी ज्यों के त्यों वर्णन कर दिये। ___ तो फिर चेतना कहाँ है ? क्या यह शरीर के प्रत्येक कोशिका | वैज्ञानिकों की भी इस घटना पर यही प्रतिक्रिया थी कि विज्ञान (Cell) में हैं ? और वान लोमेल कहते हैं 'मेरा चिन्तन इसी ओर को आत्मा की संभावना पर भी विचार करना चाहिए जो शरीर है' हम जानते हैं कि प्रतिदिन मानव शरीर की ५० अरब कोशिकाएँ | से पृथक होकर भी देख और अनुभव कर सकती है। रोगी (Cells) मृत हो जाती हैं और उतनी ही नई उत्पन्न होती हैं। | राबर्ट मिलहम का तो स्पष्ट कथन था कि निश्चेतन (मृत) इससे निष्कर्ष निकलता है कि लगभग वे सभी कोशिकाएँ जो मुझे | अवस्था में जो उसने देखा 'वह वास्तव में मैं नहीं था यह तो या आपको बनाती हैं वे सब नई हैं और तब भी हमें यह अनुभव | सही रुप में मेरा शरीर था।अर्थात मैं (आत्मा) और शरीर दो नहीं होता कि हम पहले से कुछ बदल गये हैं। इस तथ्य से यह भिन्न पदार्थ हैं।' निष्कर्ष निकलता है कि हमारे शरीर की सभी कोशिकाओं के | (ब) आत्मा स्वभाव से ही ज्ञान, दर्शन और चेतनामय मध्य परस्पर कोई संचार सूचना पद्धति होनी चाहिए अर्थात् केवल | है- निश्चेतन और सभी चिकित्सकीय मापदण्डों से मृत रोगियों
16 मार्च 2004 जिनभाषित
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org