Book Title: Jinabhashita 2002 12 Author(s): Ratanchand Jain Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra View full book textPage 4
________________ हर समस्या का समाधान है जिनभाषित। संयमित कृति का प्रमाण है जिनभाषित। आगमप्रमाणित होता है जिनभाषित। स्वयं अनुशासित है जिनभाषित। डॉ. सुरेश के. गोसावी __ मेडीकल आफीसर औरंगाबाद ( महाराष्ट्र) एवं मान्य परम्परा सूचक है। श्री शांतिसागर जी सभी के थे किसी वर्ग/क्षेत्र विशेष में नहीं सिमटे-जुड़े। उन्हें सादरनमन । बूढ़ी गाय की आत्मकथा अंदर बोल रही है। यह आपकी अनंत करुणा का सूचक है। जीवन रूपांतरण के अध्यात्म आलेख मार्ग दर्शक हैं। सभी को अमिवादन राजेन्द्र कुमार बंसल, अमलाई बहुत दिनों से जिनभाषित पर लिखने की इच्छा थी, सो आज प्रत्यक्ष रूप से उतर आई। मुखपृष्ठ ही इतना भा गया कि हम भावों को न रोक पाये और लिख दिया अपने टूट-फूटे शब्दों में। हमने हर अंक के मुख पृष्ठ को अच्छी तरह निहारा है. सराहा है, चिन्तन किया है। सभी हमें अच्छे लगे। एक सुझाव हम आपके सामने रखते हैं। हर अंक में मुख पृष्ठ पर एक सिद्धक्षेत्र का चित्र प्रकाशित करें तो अच्छा होगा। जैसे एक स्त्री को माँ बनने पर खुशी होती है, एक कवि को अपनी कविता की सराहना होने पर खुशी होती है, एक लेखक को अपनी कृति के प्रकाशित होने पर होती है वैसे ही हमें "जिनभाषित" आने पर होती है। आज तक जितने भी जिनभाषित प्रकाशित हुए हैं. उन्हें यदि 'वर्तमानयोग' कहा जाय तो किसी भी स्वाध्यायी को आपत्ति नहीं होगी। 'जिनभाषित' इतना अच्छा निकलता है कि हर उलझन को सुलझाता है जिनभाषित। |श्री वर्णी जैन प्रशान्तमति पाठशाला का शुभारंभ दमोह / सन्त शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी का 56वाँ जन्म दिवस "शरद पूर्णिमा" को श्री पार्श्वनाथ जैन मंदिर, नेमीनगर दमोह के भव्य सुसज्जित हॉल में विविध आयोजनों के साथ मनाया गया। इस शुभ प्रसंग पर आचार्य श्री की प्रथम शिष्या आर्यिकारत्न प्रशान्तमति माता जी की प्रेरणा से संकल्पित 'श्री वर्णी जैन प्रशान्तमति पाठशाला' का विधिवत् शुभारंभ पृज्य वर्णी जी महाराज के शिष्य प्रोफेसर (डॉ.) भागचंद | जैन 'भागेन्दु' की अध्यक्षता में प्रतिष्ठाचार्य पं. अमृतलाल जी |शास्त्री के मुख्य आतिथ्य में सम्पन्न हुआ। सुरेन्द्र कुमार जैन, को. बैंक जैनधर्म अल्पसंख्यक : उच्च न्यायालय औरंगाबाद (महाराष्ट्र) : जैनधर्म को अल्पसंख्यक का | पारसी को अल्पसंख्यक माना जाता है। संविधान की धारा | दर्जा देने की एक याचिका की सुनवाई के अंतर्गत 10 अक्तूबर | 30(1) में धर्म पर आधारित इस तत्त्व के अनुसार ये कानून को औरंगाबाद खंडपीठ के न्यायाधीश एस.बी. म्हसे तथा बनाया गया है। इसके विपरीत विवाह, जन्म, दत्तक, पालन न्यायाधीश डी.एस. झोटिंग में जैनधर्म को संविधान की धारा 30 पोषण आदि से सम्बन्धित कानून का समावेश हिन्दु धर्म में है। के अंतर्गत अल्पसंख्यक समझा जाता है ऐसा निर्णय दिया। साथ ही, केन्द्र प्रशासन ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यकों से संबंधित श्री अमोलकचंद विद्याप्रसारक मंडल कडा (बीड) कमीशन एक्ट (1992) की धारा 2 के अन्र्तगत अध्यादेश के संचालित श्रीमती शंताबाई कांतिलाल गांधी कला. धनराजजी द्वारा मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद व पारसी धर्मियों को गांधी भगिनी शास्त्र, पन्नालाल, हीरालाल गांधी वाणिज्य अल्पसंख्यक माना है। महाविद्यालय को 'अल्पसंख्यक दर्जा प्रमाणपत्र' देने से इन्कार न्याय॒र्ति झोटिंग व न्या. म्हसे द्वारा अपने निर्णय में इस के निर्णय के विरुद्ध उक्त संस्था की ओर से एडवोकेट सतीश कानून व संविधान की धारा 30 में धर्म व भाषा पर आधारित तलेकर के द्वारा यह याचिका दाखिल की गयी। अल्पसंख्यकों को शैक्षणिक संख्यायें स्थापित व संचालित करने महाराष्ट्र सरकार की ओर से शपथपत्र दाखिल किया । के दिये गये अधिकार के अन्तर्निहित उद्देश्य, धारा 30 पर दिये | गया था कि जैन धर्म हिंदू धर्म का भाग होने के कारण स्वतंत्र | गये मूलभूल अधिकारों को सीमित नहीं करता। फलस्वरूप, नहीं समझा जाता। धारा 30 को ध्यान में रखते हुए कमीशन एक्ट (1992) का राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की रिपोर्ट के अनुसार कानुन माना नहीं जायेगा. ऐसा प्रतिपादन एडवोकेट सतीश भारत में कल पाँच धर्मों सिख, मुस्लिम, क्रिश्चियन, बौद्ध तथा । तलकर न किया। जिनवर'30. अक्टूबर, 2002 से साभार 2 दिसम्बर 2002 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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