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विजातीय द्रव्य अनेक रोगों के रूप में प्रकट और विख्यात होता | मन और आत्मा से बड़ा घनिष्ठ होता है। सुकरात कहा करता था
अगर मनुष्य केवल बलवान हो तो इसमें उसकी कोई विशेषत सूक्ष्म रूप में देखने और विचार करने से मनुष्य को सताने | नहीं, मृतक मनुष्य नहीं है शव मात्र है, परन्तु जीवित मनुष्य के वाले विभिन्न प्रकार के रोगों में एकरूपता प्रत्यक्ष रूप से परिलक्षित शरीर और मन का अविच्छेद संबंध होता है दोनों को मिलाकर होती है। मनुष्य अप्राकृतिक व कृत्रिम साधनों का प्रयोग कर एक समझना होगा और एक को छोड़कर दूसरे का विकास किय गलत राह पर चलकर अपने शरीर में विषाक्त दूषित मल (जिसे | भी नहीं जा सकता। मस्तिष्क को उन्नत रखते हुए शरीर को प्राकृतिक चिकित्सा की भाषा में विजातीय द्रव्य कहते हैं) से भर | बलशाली करने वाला शरीर सुख के मार्ग पर होता है। जाता है। परिणाम यह होता है कि मनुष्य को देर सबेर बीमार प्राकृतिक जीवन, प्राकृतिक रहन-सहन, प्राकृतिक खान होना ही पड़ता है ताकि प्रकृति को रोगों के रूप में उनके भीतर | पान हमारे जीवन में सात्त्विकता लाकर हमें ऊपर उठाते हैं। मन स्थित उस विजातीय द्रव्य को निकालने और उन्हें स्वस्थ बना देने | का संयम करके हम अध्यात्म की ओर लौट जावेंगे। यह सच है का मौका मिले।
कि अगर मानव जाति प्राकृतिक चिकित्सा का अनुकरण करे और चिकित्सा की अन्य पद्धितियों में रोग की चिकित्सा पर उसे अपनाये तो निर्दयता, पाशविकता, पैशाचिकता संसार से एकदम जोर दिया जाता है, परन्तु प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में रोगी के | उठ जावे और पृथ्वी पर स्वर्ग उतर आवे। रोगी शरीर निर्बल समृचे शरीर की चिकित्सा करके उसे नया बनाया जाता है, जिससे | आत्मा और कलुषित मन तीनों की चिकित्सा के लिए प्रार्थना रोगों के चिन्ह आप से आप गायब हो जाते हैं। जिसे अन्य पद्धितियाँ ध्यान, मंत्र अथवा प्रभु नाम जप, जो कि प्राकृतिक चिकित्सा का रोग कहती है, प्राकृतिक चिकित्सा में उसे रोग का चिन्ह कहा | प्रमुख अंग है, राम बाण चिकित्सा है। जाता है। वास्तिविक रोग तो शरीर में इकट्ठा विजातीय द्रव्य या | संक्षेप में प्राकृतिक चिकित्सा का तात्पर्य रोगों से मुक्ति विष होता है। सिर दर्द होने पर केवल सिर दर्द की दबा नहीं होनी एवं स्वस्थ समाज के लिए आम आदमी को अपने आहार बिहार, चाहिए, अपितु सिरदर्द के कारण स्वरूप पाचन प्रणाली के दोष आचार-विचार, चिंतन मनन और व्यवहार में परिवर्तन करना या समूचे शरीर के रक्त दोष की होनी चाहिए, जिसके दूर होने पर होगा। सीधी सरल सहज एवं स्वाभाविक सच्चाई यह है कि सिरदर्द आप से आप चला जावेगा।
समस्त रोगों का कारण आहार-विहार एवं विचारों के खराब होने मन, शरीर और आत्मा तीनों के स्वास्थ्य सामंजस्य का से विजातीय पदार्थ का प्रकृति द्वारा शरीर से विकार मुक्ति का नाम पूर्ण स्वास्थ्य है। प्राकृतोपचार में तीनों की स्थास्थ्योन्नति पर | | सहज प्रयास ही रोग है। आधुनिक चिकित्सा में रोग को दबाओं बराबर ध्यान रखा जाता है। यह प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली की द्वारा दबा दिया जाता है जिससे तुरंत राहत (रिलीफ) मिल जाती सबसे बड़ी विशेषता है- प्राकृतिक चिकित्सा मनुष्य के मानसिक | है किन्तु बाद में दबा हुआ रोग घातक जीर्ण एवं चिरकालिक स्वास्थ्य को उसके शरीरिक स्वास्थ से अधिक आवश्यक और | (क्रोनिक) के रूप में सामने आता है, ऐसी स्थिति में राहत शामत गुरुतर समझती है। और आत्मिक स्वास्थ या आत्मबल को सर्वोपरि | बन जाती है तथा रिलीफ ग्रीफ बन जाता है। एवं गुरूतम।
प्राकृतिक चिकित्सा दमनात्मक एवं सप्रेसिव नहीं बल्कि कोई भी बीमारी पहले मन में उपजती है और फिर तन में | अपनयन मूलक एवं पुर्नजीवन प्रदान करने वाली संजीवनी है पनपती है, इसलिए एक प्राकृतिक चिकित्सक की नजर में शारीरिक | ऐसी संजीवनी को पाने के लिए हमें आज नहीं तो कल प्रकृति के स्वास्थ का अर्थ केवल रोगरहित शरीर ही नहीं होता, अपितु वह | समीप लौटना ही होगा। यह भी जानता है कि मनुष्य के शरीर के स्वास्थ का संबंध उसके
भाग्योदय तीर्थ, सागर (म.प्र.)
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-दिसम्बर 2002 जिनभाषित 17
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