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अनूठा,प्रशंसनीय एवं स्पृहणीय बन जाता है । वह ऐसा कोई कार्य | भैया ने ऐसा सुझफुर वातावरण प्रचार किया है जिसमें दुलार है, नहीं करती जिससे नारी की मर्यादा धूमिल हो या पतित हो। प्यार है, सेवा है, त्याग है तथा प्रेरणा देने की अपूर्व क्षमता है। भृमण्डल पर उसका संस्कृति और सभ्यता को नवीन उर्वर देता | नारी जीवन का मापदण्ड पतिव्रताओं के लिए मैना ही है। यह रहा। सर्वात्मना अनुपम मैना में शाीनता कूट-कूटकर भरी हुई | मूक नारी के संकल्पों पतिव्रताओं के लिए मैना ही है। यह मृकनारी
के संकल्पों की दृढ़ व्यक्ति है। महिलाभूषण मैना ने श्रीपाल के मैना का चरित्र स्पष्ट: का है कि सिद्धान्तों के लिए रूप में कर्मों का भूभूत ही देखा और उसे अपनी प्रज्ञा छैनी से समझौता सही नहीं, भले ही वह पता ही क्यों न हो? परन्तु | विश्वसनीय आकृति दी। मैना के विवाह की बेला जो कारुणिक मर्यादाहीनता भी उचित नहीं। प्रा न मैना के सामने जीवन- | चित्रण उकेरती है वही उसकी त्याग तपस्या उसे विश्वसनीय मरण की समस्या रही। वह न पित ो दोष देती है, न पति को। | आकृति देकर सतत स्मरणीय व संग्रहणीय बना देती है। इस बस भाग्य को ही दोषी ठहराती उसकी इसी तपस्या का, | प्रकार मैना का संतुल जीवनवृत्त अलौकिक तत्त्वों की दिकता से सिद्धान्तनुसारिता का ही परिणाम ? के वह पति को निरोग कर सम्पन्न मनो-मुग्धकारी है। देती है, तो समस्त सुखभोग को प्रा. कर लेती है।
श्रद्धा, ममता और सौन्दर्य की साकार प्रतिमा इस मधुरभाषिणी प्रज्ञावती मैना ने यदि तनिक भी अपने वचनों | वीरांगना ने जितना कठिन संघर्ष अपने अस्तित्व को सुरक्षित के लिए क्षमा माँग ली होती, आसन्न विपत्तियों से घबरा गई होती रखने के लिए इस जगती तल पर किया उतना किसी ने नहीं। तो वह भी अपनी युगीन नारियों की भीड़ में ही खो जाती। उसके
सहिष्णुता की प्रतिमूर्ति इस देवी ने अत्याचार सहा, तथा नरक सदाचार, व्यवहार और कर्म सत्ता पर अटल विश्वास का ही
यातनाओं को भी सहर्ष अंगीकार किया लेकिन अपने व्यक्तित्व परिणाम था कि वह विपरीत स्थितियों में भी शान्त और निर्विकार
को मिटने नहीं दिया। स्वयं नीलकण्ठी बन इस तेजस्विनी ने रहती है। पृथ्वी सदृश उसकी क्षमाशीलता और सहिष्णुता दर्शनीय
युग को जीवन दान दिया।
अपनी प्रतिभा, अलौकिक बुद्धि, अपरिमित क्षमता, है। जिस धैर्य और सरलता से उसने अपना कर्त्तव्य निभाया उससे
अपूर्व साहस और अथक परिश्रम से इस वीर बाला ने अपना कोई भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहता। जैनागम मैना जैसी आर्य
पथ प्रशस्त किया। ललनाओं के ही पावन चरित से उज्ज्वल है, धन्य है। इनके रूप
के.एच.-216, कविनगर में नारियों को अपूर्व साहस और चेतना मिली है अपने चारों और
गाजियाबाद
ग्रन्थ-समीक्षा
लोकोत्तर साधना
डॉ. जयकुमार'जलज'
कृति-लोकोत्तर साधना, लखक- प्राचार्य निहालचंद । के पूर्व दी गई संक्षिप्त टिप्पणियों को नये शाब्दिक संस्कार जैन, बीना, प्रकाशक-जैनधर्म सं न संस्थान, अहमदाबाद। देकर घटनाओं के मर्म को ही नहीं जैनधर्म/दर्शन के अनेक प्रथम संस्करण-2001 । 107. मूल्य 25/- | सूक्ष्म रहस्यों को भी स्पष्ट किया है। प्रस्तावना/आमुख-प्रो. (डॉ.) रर न्द्र जैन। प्रधान सम्पादक
जैन पारिभाषिक शब्दों की नवीन मान्यताएँ प्रभावित 'जिनभाषित' भोपाल प्रस्तुत वृ चारित्र चक्रवर्ती आचार्य करती हैं। जैसे-हिंसा पराभव व पराजय की पर्याय है। भक्ति में परमपूज्य श्री शान्तिसागर महाराज जीवन से सम्बन्धित 115
तर्क का उपालम्भ नहीं होता। महान संत की जीवन पुस्तक का घटनाओं/संस्मरणों का साहित्यिर ली में विवेचन है।
प्रथम पृष्ठ करुणा के अक्षरों से लिखा होता है। निर्मल मन-- __ पूज्य आचार्यश्री के लोको वन/तपसाधना को प्रस्तुत सम्यक्त्व की भी है। करने का सार्थक प्रयास पं. नि चंदजैन (प्राचार्य) बीना
कृति अनेकबार पठनीय है। (म.प्र.) ने किया । लेखक अनेक यों के सर्जक हैं। घटनाओं
12 दिसम्बर 2002 जिनभाषित
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