Book Title: Jinabhashita 2002 12
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 15
________________ डिब्बाबंद खाद्य अभक्ष्य डॉ. श्रीमती ज्योति जैन जिनभाषित अगस्त, 2002 में शाकाहारी चिह्न के सन्दर्भ । पालन किया जा सकता है। "जैसा खावे अन्न वैसा होवे मन" में आपका जानकारी पूर्ण विज्ञापन देखा। हमें विचार करना है कहावतें वर्षों से हमारी संस्कृति में यूं ही नहीं समायी हैं। आज कि- उपभोक्तावादी और उदारीकरण के इस दौर में हम जो जीवन | आहार विशेषज्ञों का भी कहना है कि आहार का हमारे शरीर शैली अपना रहे हैं उससे हमारी आहार व्यवस्था/संस्कार कहीं | पर ही नहीं वरन् हमारे मानसिक क्रियाकलपाप और हमारे पीछे छूटते जा रहे हैं। फास्ट होती इस जीवन शैली की देन है संवेगों पर भी पूरा प्रभाव पड़ता है। फास्ट फूड/जंक फ़ूड/ डिब्बाबंद भोज्य पदार्थ, अधिकांश लोगों खाने-पीने की चीजों की भरमार आज आधुनिकता और की आहार चर्या में इन सबने अपनी गहरी पैठ बना ली है। | संपन्नता की प्रतीक बन गयी है। आज के यंग पपीज' फास्ट फूड अनगिनत व्यंजनों, राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय भोजन स्वादों ने खाने पीने | पार्लर में खड़े-खड़े खाया पैसा फेंका और चल दिये। आहार की भरमार कर दी है। फूड कंपनियों के चकाचौंध करते विज्ञापन व्यवस्था के इस दोष से अभिभावक भी नहीं बच सकते, जो बच्चों एवं इनके प्रचारतंत्र के मायाजाल ने उपभोक्ताओं की जिह्वा एवं में इस तरह की आदतों को बढ़ावा दे रहे हैं। कोई भी अवसर हो, स्वाद की लालसाओं को उकसाकार अपने मोहपाश में बाँध लिया | धार्मिक प्रवचन हो, शादी समारोह हो, सांस्कृतिक कार्यक्रम हो या है और हमारे सामने स्वाद का एक अनंत सागर सा लहराने लगा सफर, अधिकांश बच्चों के हाथ में चिप्स आदि स्नेक्स जंक फूड है। आज आधुनिक खानपान ने होटल संस्कृति को बढ़ावा दिया के पेकिट देखे जा सकते हैं। सेंडविच, मैगी न्यूडल्स तो अधिकांश है। होटल संस्कृति में बस खाया पीया पैसा फेंका और चल दिये, बच्चों के टिफिनों में अपना स्थान बना चुके हैं। "मैगी न्यूडल्स 2 न पौष्टिकता का ध्यान न स्वास्थ्य का और तो और न भक्ष्य- मिनिट" ने तो हर बच्चे को दीवाना बना दिया है और हम भी अभक्ष्य का विचार । इसीलिये आज हमारी शाकाहारी व्यवस्था अपने लाडले को बिना नुकसान की परवाह किये देते चले जाते है पर कुठाराघात के बादल मँडरा रहे हैं। कैलोरी लदा, चिकनाई में डूबा, रेशाविहीन भोजन, बड़ी आंत, आज की व्यस्ततम लाइफ में तुरंत तैयार भोज्य पदार्थों का | पित्ताशय, मलाशय और गर्भाशय कैंसर की जोखिम बढ़ा रहे हैं। महत्त्व बढ़ता जा रहा है। कामकाजी महिलाओं ने तो इन्हें लोकप्रिय | | "चाऊमिन" जो पहले चाइनीज रेस्टोरेंट तक ही समिति था आज बनाया ही है, आम गृहिणी भी इस मामले में पीछे नहीं है। इस | जगह-जगह स्टालों पर दिखाई देने लगे हैं। सामूहिक भोज, बर्थडे तरह पूरा परिवार ही इस खाने की चपेट में आ गया है। तुरंत तैयार | पार्टी, विवाह समारोह आदि में भी महत्त्वपूर्ण स्थान बना लिया है। खाद्य पदार्थों ने भोजन को सुविधाजनक बना दिया, बस आपको | इन स्टालों के इर्द-गिर्द जमा भीड़ इसकी लोकप्रियता सिद्ध करते अपनी पंसद चुनना है और निर्देशानुसार उसे ठंडा या गर्म करना | हैं। है। इस तरह के रेडीमेड भोज्य पदार्थ आज अधिकांश डाइनिंग | चाइनीज डिसेस में प्रयुक्त रसायन लंबे समय तक उपयोग टेबिल पर अपना स्थान बना चुके हैं। करने में स्वास्थ्य के लिये नुकसानदेह हैं। रसायन सोडियम ग्लूटामेट फास्ट फूड/जंक फूड/डिब्बाबंद भोज्य पदार्थों को बनाने | जो न्यूडल्स को अधिक समय तक खाने योग्य बनाये रखते है, यह में अनेक हानिकारक रसायनों और न जाने किन-किन मसालों रसायन स्वयं तो स्वादरहित है हमारी स्वााद कोशिकाओं को भी का उपयोग होता है। आज शाकाहारी भोज्य पदार्थों में अभक्ष्य | भ्रमित कर देता है और हमें अहसास होता है कि खाने में स्वाद ही पदार्थों की मिलावट होने लगी है। अनेक फूड कंपनियाँ अपने | स्वाद है। चाऊमिन आदि भोज्य पदार्थों का प्रमुख मसाला है पेकिंग पर कुछ इस तरह लिखती हैं कि जन साधारण समझ ही 'अजीनोमातो'। यह रसायन मस्तिष्क के हाइपोथेलेमस को प्रभावित नहीं पाते हैं। कुछ तो लिखती ही नहीं है। होटल की महँगी | करता है। हाइपोथेलेमस शरीर में हारमोनों के उत्पादन और संचालन सलाद, सूप, आइसक्रीम, टॉफी, चाकलेट, बेकरी उत्पाद इत्यादि का नियंत्रण करता है। जरा सोचिए रसायन का क्या प्रभाव हमारे तो संदेह के घेरे में थे ही, अब तो सेंडविच, बर्गर, पराठा, कुलचा, | शरीर पर पड़ता होगा। खाद्य पदार्थों में मिलाये जाने वाले रसायन डबलरोटी आदि शाकाहारी चीजों पर अभक्ष्य पदार्थों की काली उसी का अंग बन जाते हैं। इनके लगातार प्रयोग से सेहत पर असर छाया मँडरा रही है। पड़ता है। परिणाम दीर्घकाल में प्रकट होते है, अत: व्यक्ति कुछ खाद्य पदार्थों को लेकर हमारी संस्कृति, हमारी दिनचर्या समझ ही नहीं पाता। डॉक्टर्स भी नित नयी बीमारियों को देख संयमित, नियमित एवं सादगीपूर्ण रही है। जिसमें न केवल स्वाद | हैरान हैं। का, अपितु सेहत का भी भरपूर ध्यान रखा जाता है। आहार बदलते परिवेश में महिलाओं की रसोईघर संबंधी भूमिका संबंधी कुछ नियम, संयम आचार-विचार हैं जिनका सहजता से | कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण हो गयी है। आधुनिकता की लहर में -दिसम्बर 2002 जिनभाषित 13 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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