Book Title: Jinabhashita 2002 07
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 4
________________ आपके पत्र, धन्यवाद : सुझाव शिरोधार्य आपके संपादकीय पर हार्दिक बधाई । मैं अपने विचार आपको | समझकर किया जाता है, उसमें उतनी ही कुशलता एवं यथार्थता प्रेषित कर रहा हूँ, उचित लगे तो प्रकाशित करने की कृपा करें। | निहित होती है। जब किसी क्रिया को मस्तिष्क स्वीकार कर लेता पूजा, भक्ति का एक रूप है। प्रभु के गुणस्तवन का एक | है, तो मन का उससे साम्य हो जाता है, तभी उस कार्य के प्रति माध्यम है। जैनदर्शन पूर्णत: कर्म सिद्धान्त पर आश्रित है। आचार्यों | उसकी आस्था सन्देह से परे निर्विवाद सत्य के रूप में स्थापित हो ने आस्रव के संवर हेतु सामान्यजन को बड़े ही सुगम मार्ग सुझाये जाती है। सामाजिक संगठन की सुदृढ़ता के लिये विचारात्मक हैं। जप एवं पूजा में प्रत्यक्षत: मन की गति का अपेक्षतः निरोध समन्वय एवं परस्पर सामंजस्य परम आवश्यक है। एतदर्थ तथा परोक्ष रूप में जीवन के परम लक्ष्य मोक्ष के मार्ग में अग्रसर जहाँ जिस पद्धति या आम्नाय को मान्यता प्राप्त है, वहाँ तदनुरूप होने में सहायक जो गुण आवश्यक हैं, उनका स्मरण निहित है।। ही व्यवहार करें तथा उनके विचारों को आदर व सम्मान पूजा की पद्धति क्या हो, यह विद्वानों के विवाद एवं प्रदान करें। आलोचना या विवेचना करने से विवाद उत्पन्न पांडित्य का विषय तो हो सकता है, किन्तु सामान्य पूजक के लिये | होंगे तथा मन में मलिनता फैलेगी। मेरी राय में तो अपनी परम्परा एवं आस्था ही उसकी प्रेरक होती है, जहाँ उसकी भावनायें मान्यता एवं श्रद्धानुसार हम स्वयं आचरण करें तथा उतनी ही एवं मान्यताएँ प्रगाढ़ता से जुड़ी होती हैं। हर व्यक्ति का अपनी | स्वतंत्रतापूर्वक अन्यों को भी उनकी परम्परानुसार व्यवहार शैली एवं कार्यपद्धति के प्रति आग्रह होता है, जो धार्मिक क्रियाओं करने दें। हाँ! क्षण-प्रतिक्षण सत्यान्वेषी बनकर अपने लक्ष्य में भी स्पष्ट परिलक्षित होता है। जब भी किसी आम्नाय, पद्धति | की प्राप्ति में प्रयासरत रहें। अथवा कर्मकाण्ड का विरोध या हठीला आग्रह प्रबल होता है, पद्मश्री बाबूलाल पाटोदी तब प्रतिक्रिया स्वरूप किसी विशेष वर्ग की भावनाओं को ठेस पूर्व विधायक म.प्र. 64/3, मल्हारगंज, इन्दौर-2, पहुँचती है। मन में आक्रोश उत्पन्न होता है। कहीं-कहीं तो यह Thave received every issue of 'जिनभाषित' the संघर्ष का रूप भी ले लेता है। संघर्ष एवं किसी को भी शारीरिक content of which reflects the true sense of its title. I या मानसिक आघात पहुँचाना स्पष्ट ही हिंसा का रूप है। ऐसी | had written earlier a letter expressing my स्थिति अहिंसा धर्म के परिपालकों के लिये कदापि भी उचित नहीं | appreciation of the same and also my gratitute and कही जा सकती। सहज मानवीय गुणों के भी विपरीत है ऐसा thankfulness for your kindness in sending the same, and I do not know wheather the same has reached आचरण। सामान्य सिद्धांत है कि जैसे व्यवहार की अपेक्षा आप you or not. दूसरों से करते हैं, वैसा ही व्यवहार स्वयं भी अन्यों से करें। Every article that has appeared in this क्रिया एवं पद्धति प्रत्येक का निजी विषय है। इसमें न तो admirable magazine gives insight into the subject हस्तक्षेप उचित है और न ही उपहास । सभी लोग विभिन्न उद्देश्यों related to our religion and society. Presently I have एवं संकल्पों की पूर्ति के लिये व्रत, आराधना एवं साधना करते great appreciation for the article'दोनों पूजापद्धतियाँ आगम सम्मत' as the same is effective in bringing हैं। कुछ ही लोग हैं जो बिना समझे-जाने, देखा-देखी ही क्रिया harmony between बीसपन्थी and तेरहपन्थी. However करने लग जाते हैं। अज्ञानता, मूढ़ता या अविवेक के कारण भी in south, since ancient times the puja performed is पद्धतिभिन्नता संभव है। झूठे अहंकार तथा लोकभय के कारण भी akin to the puja of बीसपन्थी and there is no तेरहपन्थी लोग मन में इच्छा होने के उपरान्त भी किसी विद्वान से अपनी puja system. But now a days the pooja system current क्रिया का कारण या सम्यक पद्धति पुछने, समझने से कतराते हैं। There is opposed, or rather I should say, denigrated by the followers of Kanaji Panth and no such पूजापद्धति तो दूर, अनेक लोग तो यह भी नहीं जानते कि मंदिर harmony can be expected, because the latter do not क्यों जाते हैं? मंदिर जाकर दर्शन कैसे करें, क्या पाठ बोलें, कहाँ accept any such scriptural statement which goes खड़े हों अथवा बैठें, जाप कैसे दें आदि अनेक प्रश्न हैं, जिनके बारे | against their own views, and based on this issue में सभी लोग भली-भाँति नहीं जानते हैं और न ही संकोचवश वे cleavage and group-formation has been developed किसी से समझना या सीखना चाहते हैं? शनैः-शनैः, वे जैसा कर in every town where there is Jain Population, which रहे हैं, उसके प्रति उनकी आस्था एवं मान्यता दृढ़तर होती जाती है। in fact is a pathetic development. Thanking you M.D. Vasanth Raj उन्हें उनकी श्रद्धा से डिगा पाना असंभव जितना ही कठिन होता है। No. 86, 9th Cross, Naviluraste यह भी सत्य है कि जो कार्य बुद्धि और विवेकपूर्वक Kuvempunagara, Mysore-570023 2 जुलाई 2002 जिनभाषित - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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