Book Title: Jinabhashita 2002 07
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 30
________________ पृथ्वियों के नीचे, अन्त में एक राजू प्रमाण क्षेत्र खाली है (उसमें समाधान : श्री त्रिलोकसार गाथा- 833 में इस प्रकार केवल निगोद जीव रहते हैं)। यह कथन आगम सम्मत नहीं है। | कहा हैविद्वतगण विचार करें। भरह इरावद पण पण मिलेच्छखंडे सुखयरसेढीसु। जिज्ञासा: मनुष्यों का अल्पबहुत्व बताएँ? दुस्समसुमादीदो अंतोत्ति य हाणिवड्डी य 18331 समाधान : सिद्धांतसार दीपक (भट्टारक सकलकीर्ति अर्थ : भरत और ऐरावत क्षेत्रों में पाँच-पाँच म्लेच्छ खण्डों विरचित) में मनुष्यों का अल्पबहुत्व ग्यारहवें अधिकार के श्लोक | में तथा विद्याधरों की श्रेणियों में दुःषमा-सुषमा काल के आदि से नं. 181 से 190 (पृष्ठ-423) तक कहा है। जिसका हिन्दी अर्थ | लगाकर उसी काल के अन्त पर्यन्त हानि-वृद्धि होती है। इस प्रकार है-मनुष्य गति में लवणोदधि और कालोदधि समुद्रों में श्री तिलोयपण्णति अधिकार-4, गाथा-1629 में भी इसी स्थित-96 अन्तर्वीपों के मनुष्यों का प्रमाण एकत्रित करने पर भी प्रकार कहा हैवे सर्वस्तोक हैं। अन्तीपों के मनुष्यों के पंचमेरु सम्बन्धी दश पण-मेच्छ-खयरसेढिसु, अवसप्पुस्सप्पिणीए तुरिमम्मि उत्कृष्ट भोगभूमियों के मनुष्य संख्यातगुणे हैं। 181-182 उत्कृष्ट तदियाए हाणि-चयं,कमसो पढमादुचरिमोत्ति 1629 भोगभूमियों के मनुष्यों के पंचमेरु सम्बन्धी हरि-रम्यक नामक अर्थ : पाँच म्लेच्छ खण्डों और विद्याधर श्रेणियों में दश मध्यम भोगभूमियों के मनुष्य संख्यातगुणे हैं। 183 मध्यम भोगभूमियों से हैमवत-हैरण्यवत नामक 10 जघन्य भोगभूमियों अससर्पिणी एवं उत्सर्पिणी काल में क्रमश: चतुर्थ और तृतीय के मनुष्य संख्यातगुणे हैं, और जघन्य भोगभूमियों के प्रमाण से काल के प्रारम्भ से अन्त पर्यन्त हानि एवं वृद्धि होती रहती है। पंच भरत, पंच ऐरावत नामक दश कर्मभूमियों में शुभ-अशुभ जिज्ञासा : जम्बू द्वीप का विस्तार 1 लाख योजन और कर्मों से युक्त मनुष्य संख्यातगुणे हैं। 184-185 कर्मभूमिज मनुष्यों | धातकी खण्डद्वीप का विस्तार 4 लाख योजन है। तो क्या जम्बूद्वीप के प्रमाण से पंचविदेह क्षेत्रों के मनुष्य संख्यातगुणे और विदेहस्थ | से धातकी खण्ड का क्षेत्रफल 4 गुना मानना चाहिए? मनुष्यों के प्रमाण से सम्मूर्च्छन मनुष्यों का प्रमाण असंख्यातगुणा | समाधान : आपका इस प्रकार मानना उचित नहीं है है। 186। जो श्रेणी के असंख्यात भागों में से एक भाग मात्र हैं। गणित के अनुसार जिस प्रकार वृत्त का क्षेत्रफल निकाल जाता है आगम में उस श्रेणी के असंख्यातवें भाग का प्रमाण असंख्यात उसी प्रकार क्षेत्रफल निकालना चाहिए। केवल विस्तार 4 गुन कोटा-कोटि योजन क्षेत्र के जितने प्रदेश होते हैं, उतने प्रमाण कहा होने से क्षेत्रफल 4 गुना नहीं होता। श्री 'जम्बूद्वीप पण्णति संगहो' ग्रन्थ में पृष्ठ 188 पर द्वीप अतः सम्मूर्च्छन जन्म वाले लब्धपर्याप्तक मनुष्य कर्मभूमिज | स्त्रियों की नाभि, योनि, स्तन और कांख में स्वभावत: उत्पन्न होते | और समुद्रों के क्षेत्रफल की अच्छी चर्चा आयी है, तदनुसार जम्बूद्वीप है। 189 इस अपर्याप्तक मनुष्यों के अवशेष गर्भज मनुष्य पर्याप्त ही के क्षेत्रफल से घातकी खण्ड का क्षेत्रफल 144 गुना है। कालोदधि होते हैं, अपर्याप्तक नहीं। समुद्र का क्षेत्रफल जम्बूद्वीप से 672 गुना है तथा पुष्कारार्धद्वीप क श्री तिलोयपण्णत्ति अधिकार-गाथा नं. 2976 से 2979 | क्षेत्रफल जम्बूद्वीप से 1184 गुना है। गणित के अनुसार क्षेत्रफल तक भी इसी प्रकार मनुष्यों के अल्पबहुत्व का वर्णन किया है। | निकाले जाने पर भी ये सभी प्रमाण बिल्कुल ठीक बैठते हैं। अत जिज्ञासा : विजयार्ध पर्वतों पर और भरत आदि क्षेत्रों के | इसी प्रकार मान्यता बनानी चाहिए। म्लेच्छ खण्डों में कौन-सा काल वर्तता है और उसमें हानि-वृद्धि 1/205, प्रोफेसर्स कालोन होती है अथवा नहीं। . आगरा-.282 001(उ.प्र.. अनेकान्त वाचनालय की स्थापना अनेकान्त ज्ञानमंदिर शोधसंस्थान बीना (म.प्र.) द्वारा स्थापित किये जो रहे 26 अनेकान्त वाचनालयों की स्थापना के क्रम में 14वाँ अनेकान्त वाचनालय का योग बना झाँसी नगर में। श्री दि. जैन पंचायती बड़ा मंदिर झाँसी में उत्तरप्रदेश का प्रथम वाचनालय अत्यधिक धूमधाम एवं उल्लास के साथ 26 जून को प्रात: 9 बजे स्थापित हुआ। इस वाचनालय में चारों अनुयोगों के ग्रन्थों के अतिरिक्त बाल साहित्य एवं श्रेष्ठ साहित्यकारों की नीतिपरक रचनाओं को उपलब्ध कराया गया है । वाचनालय के अन्तर्गत मंदिर जी में स्थित लगभग 100 हस्तलिखित ग्रन्थों को भी संरक्षित करके विराजमान किया गया है। वाचनालय के सम्यक्संचालन के लिए एक संचालन समिति का भी गठन किया गया है। संजय जैन, कर्नल, झाँसी 28 जुलाई 2002 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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