Book Title: Jinabhashita 2002 07
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 32
________________ लेकिन, मेरे भाई, यह मात्र छलावा है। केवल भेड़-चाल है। | ला पाने में सफल हुए हों, जिस पर वो सचमुच चर्चा करना चाह इसमें बच्चे का भविष्य बनने की गारंटी तो नहीं, पर तथाकथित | रहे थे। बोले-"लेकिन अब तो यह बात कतई सही नहीं बैठती। पब्लिक स्कूल चलानेवालों का वर्तमान बनने की गारंटी पक्की आजकल तो, जो नवाबी है सो खेल-कूद में ही है। जिसे खेलना होती है।" आ जाता है, वह कार के एडवरटाइजमेंट में पोज़ देकर लाखों "फिर भी, पब्लिक स्कूल में पढ़ने से बच्चे में अतिरिक्त | कमा लेता है। इधर कोई दौड़ में अव्वल आया नहीं कि उधर स्मार्टनेस तो आ ही जाती है।" नायकजी ने विषय को मजबूती से पुलिस में उसकी नौकरी पक्की हो जाती है, जबकि जो यूनिवर्सिटी पकड़े रहते हुए कहा-"म्युनिसिपिल स्कूल के विद्यार्थी की अपेक्षा की परीक्षा में अव्वल आता है उसे पी.एस.सी. क्लियर करने में विषय पर उनकी पकड़ तो अधिक मजबूत हो ही जाती है। गणित | पसीना आ जाता है। पलभर को दोनों हाथों पर बोझा साधकर जो की नींव तो दृढ़ बन ही जाती है।" भारोत्तोलन का पदक पा लेता है, वह तत्काल रेल्वे के अफसर "गणित को लेकर आप नाहक परेशान हो रहे हैं नायक | की कुर्सी पर सुस्ताने बैठ जाता है, जबकि केमिस्ट्री की किताब जी।" मैंने उन्हें समझाते हुए कहा-"जिन्हें गणित नहीं आता वे / से वर्षों उलझ कर जो परीक्षा पास करता है, उसे मजबूरन रेल्वे किसी से कम बैठते हों सो बात नहीं है। मेरे भाई साहब संस्कृत | प्लेटफार्म पर बोझा ढोने का काम करना पड़ता है। अब तो के प्रकांड विद्वान् हैं। यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर रहे हैं। उनकी लिखी | नौकरियों में स्पोर्ट्स का कोटा अलग से तय रहता है और वह भी हुई पुस्तकें कोर्स में पढ़ाई जाती हैं। पर लघुतम का गणित उनसे केवल सरकारी नौकरियों में नहीं, बल्कि प्रायवेट सेक्टर की नौकरियों न तब बनता था, जब बनना चाहिए था और न अब बनता है, जब | में भी। इसलिए क्या हर माँ-बाप को बच्चों को खेलने के लिए बनने-ना बनने से कोई फर्क नहीं पड़ता।" प्रोत्साहित नहीं करना चाहिए?" "अच्छा एक बात बतलाइए जैन साहब," इन्होंने तत्काल | "जरूर करना चाहिए।" मैंने उनकी प्रसन्नता बनाए रखने विषय बदलते हुए कहा-"आप जब पढ़ते थे, तब कोई खेल भी | के उद्देश्य से कहा। खेलते थे क्या?" "लेकिन अफसोस कि इस मामले में मैं पूरी तरह हार "जरूर खेलता था।" मैंने उत्तर दिया-"गपई-समुंदर | गया हूँ।" नायकजी ने एक गहरी हाय-साँस लेते हुए कहा। खेलता था। पिट्ट खेलता था। कबड्डी खेलता था। ऐसे तमाम | उनके चेहरे पर प्रसन्नता के स्थान पर विषाद की एक मोटी परत खेल-खेलता था जिनमें पैसे खर्च नहीं होते थे। एक बार तो उभर आई। अत्यंत गमगीन स्वर में बोले-"मैंने बहुत कोशिश की त्रिटंगी दौड़ में डिस्ट्रिक्ट लेबिल तक सांत्वना पुरस्कार भी मिला | जैन साहब, कि पप्पू कोई खेल खेलने लगे। पर नहीं खेलता। था। लेकिन इससे आगे नहीं बढ़ पाया। कारण कि पिता जी खेलों | खेलता ही नहीं। मुझे इस बात का बहुत दुःख है। इस संसार में के सख्त खिलाफ थे। वह बहुधा कहा करते थे कि 'पढ़ोगे लिखोगे | सचमुच दुःख ही दुःख हैं।" बनोगे नवाब, खेलोगे कूदोगे होगे खराब'।". ___यह सुनकर नायक जी के चेहरे पर प्रफुल्लता पसर गई। 7/56-A मोतीलाल नेहरू नगर (पश्चिम) भिलाई (दुर्ग) छ.ग. - 490020 मानो वह बहुत देर के बाद, घुमा-फिरा कर मुझे उस विषय पर । वर्ष 2001 के विद्वत् महासंघ पुरस्कारों का समर्पण एवं सम्मान समारोह तीर्थंकर ऋषभदेव जैन विद्वत् महासंघ द्वारा स्थापित । महासंघ के अध्यक्ष महोदय द्वारा घोषित ऋषभदेव पुरस्कार से स्व. चन्दारानी जैन, टिकैतनगर स्मृति विद्वत् महासंघ पुरस्कार | सम्मानित किया गया। महासंघ की वरिष्ठ सदस्या डॉ. रमा जैन, 2001 तथा सौ. रूपाबाई जैन, सनावद विद्वत् महासंघ | छतरपुर द्वारा संकलित / संयोजित कुण्डलपुर के राजकुमारपुरस्कार 2001 का समर्पण समारोह गत 24 जून 2002 को | जयनायक तीर्थंकर महावीर पुस्तक का विमोचन डॉ. पन्नालाल परमपूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माता जी के ससंघ सान्निध्य | पापड़ीवाल, पैठण ने किया। में तीर्थंकर ऋषभदेव तपस्थली, प्रयाग में आयोजित किया गया। गणिनी ज्ञानमती, प्राकृत शोधपीठ के इन्दौर केन्द्र के विकास इस समारोह में वरिष्ठ जैन विद्वान् डॉ. दयाचन्द्र जैन साहित्याचार्य, | हेतु भूखण्ड प्रदान करने एवं दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान सागर एवं सन्मतिवाणी मासिक के यशस्वी सम्पादक पं.जयसेन | की अन्य गतिविधियों में सहयोग प्रदान करते हुए कुँवर दिग्विजय जैन, इन्दौर को चन्दारानी जैन स्मृति विद्वत् महासंघ पुरस्कार | सिंह जैन, इन्दौर तथा राष्ट्र एवं समाज की अप्रतिम सेवा हेतु 2001 तथा आगमनिष्ठ सक्रिय पं. विद्वान शिखरचन्द्र जैन एवं | महासमिति ने राष्ट्रीय महामंत्री की माणिकचन्द्र पाटनी, इन्दौर को पं. शीतलचन्द्र जैन, सागर को सौ. रूपाबाई जैन विद्वत् महासंघ | 'समाज रत्न' की उपाधि से सम्मानित किया गया। कार्यक्रम पुरस्कार 2001 से सम्मानित किया गया। संचालन एवं संयोजन डॉ. अनुपम जैन ने किया। ग्वालियर के युवा विद्वान् डॉ. अभयप्रकाश जैन को डॉ. अनुपम जैन 30 जुलाई 2002 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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