Book Title: Jinabhashita 2002 07
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 33
________________ दी। समाचार महाविद्यालय के अधूरे पड़े छात्रावास के निर्माण में आने वाले संपूर्ण व्यय (लगभग 5-6 लाख) को श्री प्रेमचंद जी पटना परिवार भव्य आर्यिका दीक्षा समारोह सम्पन्न ने एवं नलकूप उत्खनन में होने वाले संपूर्ण व्यय (लगभग 1 लाख 21 जून वह चिरप्रतीक्षित दिन था जिसकी बड़ी उत्सुकता | रुपये) को श्री शीतलचंद जी पड़ा वालों ने प्रदान करने की स्वीकृति के साथ प्रतीक्षा थी। इस दिन परमपूज्य आचार्य श्री विरागसागर जी से 13 बहनें आर्यिका दीक्षा ग्रहण करने वाली थीं। प्रात:काल ब्र. पंकज 'सागर' से ही मोराजी प्रांगण में स्थान-स्थान से लोगों के आने का ताँता | कैलाश पर्वत का उदघाटन एवं लोकार्पण समारोह लगा हुआ था। सभी जन इस ऐतिहासिक वैराग्य के दृश्य को भगवान् ऋषभदेव की दीक्षा एवं केवलज्ञान कल्याणक से देखने आ रहे थे। प्रात: काल 4 बजे से सभी दीक्षार्थी बहनों के । पावन भूमि प्रयाग-इलाहाबाद में पिछले वर्ष पूज्य गणिनी प्रमुख केशलोंच हुए। श्री ज्ञानमती माताजी की मंगल प्रेरणा से "तीर्थंकर ऋषभदेव ___ दोपहर में ठीक 1 बजे से दर्शकों से खचाखच भरे वर्णी तपस्थली" तीर्थ का भव्य निर्माण सम्पन्न हुआ था, जिसमें दीक्षा भवन प्रांगण में विशेष तौर पर बनाये गये मंच से दीक्षा समारोह कल्याणक तपोवन में महामुनि ऋषभदेव की पिच्छी-कमण्डलु प्रारंभ हुआ। दीक्षार्थी बहनों ने आचार्य श्री के चरणों में श्रीफल सहित खड्गासन प्रतिमा धातु के वट वृक्ष के नीचे विराजमान की अर्पण कर दीक्षा हेतु प्रार्थना की। आचार्य श्री ने इस प्रार्थना पर | गई। साथ ही केवलज्ञान कल्याणक समवसरण मंदिर, निर्वाण मंगल उद्बोधन देते हुए जिनदीक्षा के महत्त्व को स्पष्ट करते हुए | कल्याणक कैलाश पर्वत एवं भगवान् ऋषभदेव कीर्तिस्तंभ का भी बताया कि जिनशासन में स्त्री पर्याय में आर्यिका पद सर्वोत्कृष्ट । निर्माण किया गया था। होता है, जिसमें साधना के द्वारा स्त्रीलिंग का छेद कर परंपरा से वर्तमान में राजधानी दिल्ली से 20 फरवरी 2002 को भगवान् मुक्ति प्राप्त होती है। चतुर्विध संघ, विद्वद्वर्ग, उपस्थित जनसमूह महावीर जन्मभूमि कुण्डलपुर के लिए मंगल विहार करके मार्ग में को स्वीकृति प्राप्त करने के बाद आचार्य श्री ने दीक्षार्थिनियों की | भारी धर्मप्रभावना करते हुए पूज्य माताजी (ससंघ) 12 जून को दीक्षा हेतु आशीर्वाद प्रदान किया। तीर्थंकर ऋषभदेव तपस्थली पर पधारी, जहाँ उनके ससंघ सान्निध्य सौभाग्यवती महिलाओं द्वारा बनाये गये अक्षत स्वास्तिक में 24 जून को सम्पन्न हुआ भारत वर्ष में प्रथम बार निर्मित अत्यंत पर बैठकर दीक्षार्थिनियों ने ज्ञाताज्ञात भाव से हुए अपराधों की सुन्दर-झरनों, फव्वारों, प्राकृतिक सौन्दर्य से समन्वित 108 फुट क्षमा याचना कर समस्त आभूषणों का त्याग किया। तत्पश्चात् लम्बे, 72 फुट चौड़े एवं 50 फुट ऊँचे कैलाश पर्वत का भव्य आचार्य श्री ने दीक्षासंस्कार किये। ज्ञानोपकरण शास्त्र, संयमोपकरण उद्घाटन एवं लोकार्पण समारोह । पिच्छी, शौचोपकरण कमण्डलु एवं वस्त्र प्रदान किये गये। अंत में कर्मयोगी ब्र. रवीन्द्र कुमार जैन आचार्य श्री द्वारा नामकरण किया गया। नामकरण संस्कार होते ही अतिशयक्षेत्र खण्डेला विकास परिषद् उपस्थित जन समूह ने जय-जयकार के नारों से पूरे सभा भवन को खण्डेला 26 जून। श्री खण्डेलवाल दिगम्बर जैन गुंजायमान कर दिया। दीक्षार्थिनियों के नाम क्रमशः स्वाति अतिशयक्षेत्र, खण्डेला में श्री दिगम्बर जैन अतिशयक्षेत्र खण्डेला (भिलाई)- विबोधश्री, स्वप्निल (भिलाई)-विमोहश्री वर्षा विकास परिषद् का स्थापना समारोह मनाया गया जिसकी अध्यक्षता (सागर)-विविक्तश्री, नीतू (भिलाई)-वियुक्त श्री, नीतू (भिण्ड) भूतपूर्व इंजीनियर लल्लू लाल छाबड़ा, जयपुर ने की। समारोह के विजेताश्री, अनुराधा (भिलाई)-विनेताश्री, पिंकी (कटनी) मुख्य अतिथि श्री पारस कुमार जैन ए.सी.जे. एम. श्रीमाधोपुर ने विद्वतश्री, वीणा (भिण्ड)-विशोधश्री, जूली (भिण्ड) विश्वासश्री, दीप प्रज्ज्वलित किया। सर्वप्रथम मुख्य अतिथि एवं अध्यक्ष का माल्यार्पण कर श्यामादेवी (पथरिया) क्षु. विशांतश्री, मुन्नी बाई (लखनऊ)-क्षु. विधाताश्री नाम रखे गये। इन दीक्षार्थिनियों में क्षु. विशांतश्री स्वागत किया गया। अतिशयक्षेत्र खण्डेला के मंत्री श्री महावीर प्रसाद जैन लालासवालों ने कार्यक्रमों के बारे में विशद जानकारी दी। आचार्यश्री विराग सागरजी महाराज की गृहस्थावस्था की माँ हैं। महावीर प्रसाद जैन लालासवाला इसी आयोजना के मध्य में विराग विद्यापीठ भिण्ड के मुखपत्र 'विरागवाणी' के द्वितीय अंक का विमोचन वीरेन्द्र कुमार विद्वत् महासंघ पुरस्कारों हेतु प्रस्ताव आमंत्रित "वेटे" कटनी, भरत कुमारजी छाबड़ा, अशोक कुमार गोइल भिलाई द्वारा किया गया। साथ ही पत्रिका के प्रधान संपादक तीर्थंकर ऋषभदेव जैन विद्वत् महासंघ द्वारा वर्ष 2000 में श्रीपाल जैन 'दिवा', कमलकुमार जी कमलांकुर, श्री दीपचंद जी निम्नांकित 2 पुरस्कारों की स्थापना की गई। प्रत्येक पुरस्कार में भोपाल ने पू. आचार्यश्री के कर कमलों में पत्रिका की प्रतियाँ भेंट 11,000/- रु. की नकद राशि, शाल, श्रीफल एवं प्रशस्ति प्रदान की। की जाती है। वैराग्य के इस क्षण पू. आचार्य श्री की प्रेरणा से वर्णी | (1) स्व. चन्दारानी जैन, टिकैतनगर स्मृति विद्वत् महासंघ पुरस्कार -जुलाई 2002 जिनभाषित 31 महामंत्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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