Book Title: Jinabhashita 2002 07 Author(s): Ratanchand Jain Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra View full book textPage 7
________________ हैं कि क्या बदरीनाथ भारतवर्ष के बाहर कोई ऐसा सुरक्षित भूखंड । विरोधी राजनीतिक पार्टियों ने संबंधित प्रदेश सरकार की बर्खास्तगी है, जहाँ देश के सामान्य नियम-कानून नहीं लागू होते। बदरीनाथ | की माँग लेकर देशव्यापनी आन्दोलन खड़ा कर दिया होता। प्रकरण की विस्तृत रिपोर्टिंग तो 'दैनिक जागरण' के जुलाई, अगस्त, | अब से 5 वर्ष पहिले भी जब राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग सितम्बर व अक्टूबर 2000 के कई अंकों में भी प्रकाशित हुई, पर | ने जैन समुदाय को अल्पसंख्यक धार्मिक वर्ग की सूची में शामिल उनके किसी सम्पादकीय लेख में या अन्य किसी हिन्दू मनीषी | किए जाने के लिए अपनी संस्तुति भेजी थी, तो हिन्दू समाज के द्वारा किसी लेख में इस अतिवादी हिन्दू धर्मान्ध मानसिकता की | एक वर्ग में इसीप्रकार खलबली मच गई थी तथा बालकवि वैरागी निन्दा या विरोध में दो पंक्ति भी लिखी हमारे देखने में नहीं आईं। सरीखे जैन समाज के तथाकथित शुभचिन्तक हिन्दू नेताओं ने जैन न ही उपरिलिखित किसी भी घटना का किसी विख्यात हिन्दू नेता | समाज से आयोग की इस पहल का विरोध करने की अपील तक या धर्म गुरु ने विरोध किया हो हमारे देखने पढ़ने में नहीं आया। कर डाली थी तथा केन्द्र सरकार को भी आयोग की संस्तुति को न विस्मय होता है कि क्या यही हिन्दुत्व की उदात्त भूसांस्कृतिक | मानने की या ठंडे बस्ते में डाल देने की सलाह दी थी। अवधारणा का व्यावहारिक रूप है? समन्वयवाणी यदि किसी मान्यता प्राप्त वर्गीकृत अल्पसंख्यक धार्मिक जून 2002 (द्वितीय पक्ष) से साभार समुदाय की धार्मिक भावनाओं को आहत किया गया होता, तो । अहिंसा पर हमला जे.के.संघवी एक तरफ भगवान् महावीर के 2601वें जन्मोत्सव मनाने | पुण्योदय से 4-5 महीने हॉस्पिटल में इलाज के बाद उनका हेतु अन्तिम तैयारियाँ चल रही थीं। दूसरी तरफ जन्मकल्याणक जीवन बच पाया। राजपुर-डोसा में जीवदया का कार्य करने दिवस के ठीक एक दिन पहले 24 अप्रैल, 2002 को अहिंसा के वाले श्री प्रकाश भाई शाह पर 2 अप्रैल, 2000 को हमला किया पुजारी, जीवदया-प्रेमी, सुश्रावक श्री ललित जैन (उम्र 31 वर्ष, गया था। जीवन-मृत्यु का संघर्ष करते हुए 20 अप्रैल, 2000 एडवोकेट) की भिवंडी (जिला-ठाणे) में दिन के 11.30 बजे | को जीवदया के लिए वे शहीद हो गये। बाड़मेर, फलौदी, भरे बाजार में कसाइयों ने गोली मार कर न:शंस हत्या कर दी।। अहमदाबाद आदि में जीवदया के लिए समर्पित कार्यकर्ताओं सरकार द्वारा घोषित 'अहिंसा-वर्ष' के समापन पर अहिंसा पर | की हत्याओं के मामले भी प्रकाश में आये हैं। क्रूर/बर्बर हमला हुआ। क्या केन्द्र अथवा राज्य सरकार इस | एडवोकेट श्री ललित जैन एवं अन्य कार्यकर्ताओं की काले कलंक को अपने सिर से मिटा पायेगी? शहादत ने यह साबित कर दिया है कि हिंसा-का-दौर पराकाष्ठा जीवदया, करुणा श्री ललितभाई के रग-रग में बसी हुई पर है और सरकार विदेशी मुद्रा के लोभ-लालच में उसे लगातार थी। सामायिक, प्रतिक्रमण, रात्रि-भोजन-त्याग आदि नियमों बढ़ावा दे रही है। हमलावरों को सजा न मिलने के कारण का जीवन में पालन करते हुए वे वकालत करते थे। एनिमल | उनके हौंसले बढ़ रहे हैं। अवैध पशु-व्यापार में घोर मुनाफे के प्रिवेन्शन एक्ट 1976 के अनुसार गैर-कायदे कत्लखाने ले जाते कारण रिश्वत आदि का दौर चलने से सरकारी मशीनरी द्वारा भी हुए पशुओं को बचाने का वे सतत् प्रयत्न करते थे। इस अभियान | कानूनों को ताक पर रखा जाता है। में पिछले आठ वर्षों में कानून को ताक में रखने वाले लोगों पर तय है कि समय रहते सरकार ने कोई कदम नहीं 200 से ज्यादा केस दर्ज कर उन्होंने 5000 से ज्यादा पशुओं की उठाया और इन्सानियत के विरुद्ध वह निरन्तर हिंसा को कृषि जान बचायी। के छद्म नाम के अन्तर्गत शाबासी देती गयी, तो एक दिन इस यह विडम्बना है कि राजनेताओं, पुलिस और कसाइयों | भारत की वसुन्धरा पर हिंसा का जो नग्न तांडव होगा, उस पर के गठबन्धन के कारण कानून को घोल कर पिया जा रहा है और अंकुश पाना असंभव होगा। आज भी जो रक्तपात हो रहा है, गैर काननी कत्ल का धंधा पनप रहा है। पहले भी जीवदया के | उसकी पृष्ठभूमि पर पशुओं का व्यापक वध और हिंसामूलक कार्यकर्ताओं पर हमले हुए हैं। 27 अगस्त, 1993 को अहमदाबाद उद्योगों को बढ़ावा देना है। में गीताबेन बी.रांभीया (उम्र 33 वर्ष) को दो कसाइयों ने रिक्शे यदि जनता और सरकार दोनों ने इस भयावह घटना से से बाहर खींच कर छुरे द्वारा 19 वार कर निर्मम हत्या की थी।। कोई सबक नहीं लिया, तो वह दिन दूर नहीं जब देश में अल्पायु में उन्होंने 70,000 मूक प्राणियों के प्राण-बचाये थे।। हिंसक/बर्बर ताकतों का बोलबाला होगा। करुणा, संवदेना, ऐसी क्रूर हत्या के बाद भी सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया। प्रेम, भाईचारा, इन्सानियत-ये शब्द मात्र शब्दकोश में रह जाएँगे। हायवे रोड डोसा पर 7 अक्टूबर, 1997 को जीवदया के कार्यकर्ता | अनैतिकता, अराजकता का काला साया इस पृथ्वी पर नजर श्री भरतभाई कोठारी पर प्राणघातक हमला किया गया था।| आयेगा। कसाई तो वहीं मरा हुआ समझ कर उन्हें छोड़ गये थे, लेकिन । 'तीर्थंकर', जून 2002 से साभार -जुलाई 2002 जिनभाषित 5 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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