Book Title: Jinabhashita 2002 02
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 6
________________ जतारा में अपूर्व धर्मप्रभावना आचार्य वर्धमानसागर जी को अपना निर्यापकाचार्य बनाया था। पूज्य माताजी अपनी साधना को क्रमशः बढ़ाते हुए सन् 1998 से एक दिन के अंतर से और सन् 2000 के चातुर्मास से दो दिन के अंतर से आहार को उठती थीं। अंतिम महिने में तो मात्र जल ही उनकी पर्याय का आधार रहा, जिसे 16 जनवरी 2002 को सल्लेखना अवधि पूर्ण होते ही उन्होंने पूरी तरह त्याग दिया था। जल त्याग के बाद छह दिन की उनकी कठोर साधना अत्यंत प्रभावक और प्रेरणादायक रही। नन्दनवन के एकांत परिसर में प्रतिदिन चार-पाँच हजार श्रद्धालु श्रावक उनके दर्शनार्थ आते थे। अग्निसंस्कार के समय तो दर्शनार्थियों की संख्या लगभग दस हजार थी। तैंतीस पीछीधारी माताजी की समाधि के समय नन्दनवन में विराजते थे। धरियावद नन्दनवन की तीन समाधियाँ अत्यंत निकट से देखने का अवसर मुझे मिला। तीनों आर्यिका माताओं को पूज्य आचार्य वर्धमानसागर जी एवं उनके संघस्थ मुनिराजों, आर्यिका माताओं और ब्र. भाई बहिनों ने अत्यंत वात्सल्यपूर्वक संबोधन और वैयावृत्ति के द्वारा जिस प्रकार सम्हाला, वह देखने जैसा था। पूज्य आचार्य महाराज की कृपा से तीनों माताओं के अंत समय में मुझे भी उनके चरणों में बैठने का अवसर मिला, यह मेरा सौभाग्य था। पूज्य विशुद्धमति माताजी के प्रति वरिष्ठ आर्यिका गणिनी सुपार्श्वमती माताजी का वात्सल्य भी अप्रतिम था। 31 दिसम्बर 2001 ऐसी पुण्यतिथि थी कि उस दिन तीन धर्मनिष्ठ ब्र, माताओं ने समाधिमरण द्वारा देह त्यागकर अपना जीवन सार्थक कर लिया। गाजियाबाद में पूज्य उपाध्याय ज्ञानसागर जी महाराज के सान्निध्य में ब्र. सुशीलाबाई की समाधि हुई। बिजनौर में जन्मी सुशीलाजी ने सन् 1934 में क्षुल्लक मनोहरलालजी वर्णी से आजन्म ब्रह्मचर्यव्रत लेकर अपना व्रती जीवन प्रारंभ किया था। 70 वर्ष तक साधना करते हुए आर्यिका दृढ़मतीजी से हस्तिनापुर में अष्टम प्रतिमा के व्रत लिये और सन् 1989 में आचार्य सुमतिसागर जी से बारह वर्ष का सल्लेखना व्रत ले लिया। 1993 में अन्न का त्याग करके उन्होंने अपनी साधना बढ़ाई और अंत समय में उपाध्याय ज्ञानसागर जी के चरणों में पहुँच गई। उपाध्यायश्री ने अंत समय में पीछी प्रदान करके उनका नाम समाधिमति माताजी रख दिया था। 31 दिसम्बर 2001 को ही बाड़ी (रायसेन) में ब्र. त्रिलोकबाईजी ने पूज्य आर्यिका अकंपमतीजी के संघसान्निध्य में समाधिमरण किया। आर्यिका अकंपमतीजी ने आचार्य विद्यासागर जी से आशीर्वाद लेकर अंत समय में ब्र. त्रिलोकबाई को पीछी प्रदान करके पुण्यश्री माताजी बना दिया था। उसी तारीख में इंदौर में श्रीमती चम्पादेवी ने भी समाधिमरण के साथ अपनी देह विसर्जित की। उन्हें अंत समय में पूज्य आचार्य सीमंधरसागरजी का चरण सान्निध्य और संबोधन मिला। ब्र. राजेशजी इन्दौर और विशालजी गंजबासौदा भी सम्बोधन में सहायक रहे। चम्पादेवी 90 वर्ष की धर्मनिष्ठ महिला थीं। उन्होंने जीवन में अनेक प्रकार के व्रतों की आराधना की तथा सिद्ध क्षेत्रों, अतिशय क्षेत्रों की अनेक वन्दनाएँ की। समाधियों का यह मौसम मुझे भी समाधिमरण की प्रेरणा प्रदान करके मेरे आत्मकल्याण का पथ प्रकाशित करे, यही कामना है। निर्मल जैन सुषमा प्रेस, सतना 4 फरवरी 2002 जिनभाषित - जतारा (टीकमगढ़ म.प्र.) सन्त शिरोमणि, प्रातः स्मरणीय परम पूज्य 108 आचार्य श्री विद्यासगर जी महाराज के मंत्र मुग्ध वाणी के धनी, परम प्रभावक शिष्य परम पूज्य मुनि श्री समता सागर जी, मुनि श्री प्रमाण सागर जी एवं ऐलक श्री निश्चयसागर जी महाराज, श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र जतारा जी जिला टीकमगढ़ (म.प्र.) में दिनांक 10.1.2002 गुरुवार से दिनांक 28.1.2002 सोमवार तक विराजमान रहे है। इस अवधि में नगर जतारा में अपूर्व धर्म प्रभावना होती रही है। जहाँ प्रातः 9 से 10 तक प्रतिदिन परमपूज्य महाराजत्रय में से क्रमशः एक महाराजश्री के मंगलमय प्रवचनों का धर्म लाभ मिलता रहा, दोपहर 2 बजे से सभी पूज्य महाराजों के श्री मुख से अनेक ग्रंथों की वाचना करते समय उनकी विस्तृत व्याख्या सुनने का सौभाग्य प्राप्त होता रहा, वहीं सायं 5.30 से आचार्य भक्ति (गुरु भक्ति) के बाद परम पूज्य मुनि श्री समता सागर जी महाराज के मंगलमय सान्निध्य में मेरी भावना, महावीराष्टक एवं अन्य स्तोत्रों की सरस व्याख्या सनने सस्वर सुन्दर भजनों एवं गीतों को सनने. प्रश्न मंच एवं पुरस्कार पाने आदि कार्यक्रम आनन्द यात्रा के अंतर्गत नित्य हुआ करते थे। इसी समय प. पूज्य ऐलक श्री निश्चयसागर जी महाराज के द्वारा छोटे छोटे बालक, बालिकाओं को नैतिक एवं धार्मिक शिक्षा प्रदान की जाकर उन्हें सुसंस्कारित भी किया जाता था। सभी कार्यक्रमों में श्रद्धालुओं की अपार भीड़ रहती थी। उक्त अवधि में दिनांक 15.1.2002 मंगलवार को मुख्य बाजार में, दिनांक 17.1.2002 गुरुवार को जनपद कार्यालय के प्रांगण में एवं गणतंत्र दिवस की 53वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में राष्ट्र के नाम धर्म सन्देश प्रदान करने हेतु दिनांक 26.1.2002 दिन शनिवार को पुनः बाजार में धर्म सभाओं के आयोजन किये गये, जिनमें परम पूज्य तीनों महाराजों के मंगलमय, सार गर्भित प्रवचनों का धर्म लाभ हजारों जैन-जैनेतर एवं सभी वर्ग के श्रद्धालुओं ने उठाया। उक्त धर्म सभाओं में जतारा क्षेत्र के विधायक श्री सुनील नायक, जिला पंचायत अध्यक्ष श्रीमती चन्दा सिंह गौर, जतारा जनपद अध्यक्ष श्री सुरेन्द्र सिंह गौर, उपाध्यक्ष श्री हीरालाल कुशवाहा, नगर पंचायत अध्यक्ष श्री अब्दुल लतीफ चौधरी, नगर के सभी एडवोकेट महानुभाव, पत्रकार, समाज सेवी महानुभावों एवं समीपी स्थानों के सरपंच महोदय, ग्रामवासी एवं नगर के अनेक प्रतिष्ठित महानुभावों ने प.पू. मुनि संघ के चरणों में श्रीफल अर्पित कर आशीर्वाद प्राप्त किया। दिनांक 17.1.2002 को धर्मसभा में श्री दयोदय पशु सेवा केन्द्र श्री पपौरा जी के लिये स्थानीय समाज ने एक लाख साठ हजार के लगभग राशि दान में प्रदान की तथा जतारा गौ शाला के लिये जतारा विधायक श्री सुनील नायक ने विधायक निधि से दो लाख रुपये दान देने की घोषणा की। कपूरचन्द्र जैन 'बंसल' जतारा म Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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