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(4) आहार और बीमारियाँ विश्व स्वास्थ्य संगठन की बुलेटिन संख्या 637 के अनुसार मांस खाने से शरीर में लगभग 160 बीमारियाँ प्रविष्ट होती हैं।" शाकाहार विभिन्न व्याधियों से बचाता है। अधिकांश औषधियाँ वनस्पतियों से ही उत्पन्न होती हैं।
हरी सब्जियों में उपस्थित पोषक तत्त्व तथा विटामिन 'ई' एवं 'सी' प्रति आक्सीकारकों की तरह कार्य करते हैं। अल्साइमर रोग से बचाने में इन प्रति आक्सीकारकों की ही भूमिका होती है। शरीर से मुक्त मूलकों की सफाई में प्रति आक्सीकारक अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मुक्त मूलक कैंसर सहित अनेक घातक रोगों के लिये उत्तरदायी होते हैं।"
(5) जैव विविधता संरक्षण और जीव दया - गत दो हजार वर्षों में लगभग 160 स्तनपायी जीव 88 पक्षी प्रजातियाँ लुप्त हो चुकी हैं और वैज्ञानिक अनुमान के अनुसार आगामी 25 वर्षों में एक प्रजाति प्रति मिनिट की दर से विलुप्त हो जायेगी।"
विभिन्न खाद्य श्रृंखलाओं के द्वारा समस्त जीव-जन्तु एवं वनस्पति आपस में इस तरह से प्राकृतिक रूप से जुड़े हुए हैं कि किसी एक के श्रृंखला से हटने या लुप्त हो जाने से जो असंतुलन उत्पन्न होता है उसकी पूर्ति किसी अन्य के द्वारा असंभव हो जाती है। उदाहरणार्थं प्रति वर्ष हमारे देश में दस करोड़ मेंढक मारे जाते हैं। पिछले वर्ष पश्चिमी देशों को निर्यात करने के लिये एक हजार टन मेंढक मारे गये। यदि ये मेंढक मारे नहीं जाते तो प्रतिदिन एक हजार टन मच्छरों और फसलनाशी जीवों का सफाया करते। 12
इस प्रकार से प्रकृति में हर जीव-जन्तु का अपना विशिष्ट जीव वैज्ञानिक महत्त्व है और मनुष्य जाति को स्वयं की रक्षा हेतु अन्य जीव-जन्तुओं को भी बचाना ही होगा, अहिंसा की धार्मिक भावना तथा वैज्ञानिकों की सलाह इस संबंध में एक समान है।
(6) कीटनाशक और कीड़ों का महत्व प्रत्येक जीव की तरह कीड़ो का भी बहुत महत्त्व होता है दुनिया के बहुतेरे फूलों के परागण में कीड़ों का मुख्य योगदान रहता है। अर्थात् पेड़-पौधों के बीज एवं फल बनाने में कीड़े महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं। अनेक शोधकर्ताओं ने यह पाया है कि जिस क्षेत्र में कीटनाशकों का अधिक उपयोग होता है वहाँ परागण कराने वाले कीड़ों की कमी हो जाती है और फसल की उपज पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। 13
भारत में कीट पतंगों की 131 प्रजातियाँ संकटापन्न स्थिति में जी रही हैं। ऐसे में कीटनाशकों के बढ़ते उपयोग और उसके होने वाले दुष्प्रभावों से वैज्ञानिक भी चिंतित हो उठे हैं। 14
विश्व में प्रतिवर्ष 20 लाख व्यक्ति कीटनाशी विषाक्तता से ग्रसित हो जाते हैं। जिनमें से लगभग 20 हजार की मृत्यु हो जाती है। यही कारण है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 129 रसायनों को प्रतिबंधित घोषित कर रखा है।
कीटनाशक जहर जैसे होते हैं और ये खाद्य श्रृंखला में लगातार संगृहीत होकर बढ़ते जाते हैं। इस प्रक्रिया को जैव आवर्धन कहते हैं। उदाहरण के लिये प्रतिबंधित कीटनाशक डी.डी.टी. की मात्रा मछली में अपने परिवेश के पानी की तुलना में 10 लाख गुना अधिक हो सकती है और इन मछलियों को खाने वालों को स्वाभाविक रूप से अत्यधिक जहर की मात्रा निगलनी ही पड़ेगी । यहि प्रक्रिया अन्य मांस उत्पादों के साथ भी लागू होती है। खाद्यान्न की तुलना में, खाद्यान्न खाने वाले जन्तुओं के मांस में कई गुना कीटनाशक जमा 22 फरवरी 2002 जिनभाषित
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रहेगा जो अंततः मांसाहारी को मारक सिद्ध होगा। अतएव कीड़ों का बचाव, कीटनाशकों का उपयोग रोकना अर्थात् अहिंसा का पालन वैज्ञानिक रूप से भी आवश्यक हो जाता है।
(7) प्राकृतिक आपदाएँ और हिंसा प्रकृति अपने विरुद्ध चल रहे क्रियाकलापों को एक सीमा तक ही सहन करती है और उसके बाद अपनी प्रबल प्रतिक्रिया के द्वारा चेतावनी दे ही देती है। दिल्ली विश्वविद्यालय में भौतिकी के तीन प्राध्यापकों डॉ. मदनमोहन बजाज, डॉ. इब्राहीम तथा डॉ. विजयराज सिंह ने स्पष्ट गणितीय वैज्ञानिक गवेषणाओं द्वारा यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि दुनिया भर में होने वाली समस्त प्राकृतिक आपदाओं सूखा, बाढ़, भूकम्प, चक्रवात का कारण हिंसा और हत्याएँ हैं। 16 (ख) अहिंसा उन्नति के वैज्ञानिक उपाय
(1) वृक्ष खेती अनेक वृक्षों के फल-फूलों के साथ उनके बीज भी अच्छे खाद्य हैं। उनका उत्पादन 10-15 टन प्रति हैक्टेयर प्रति वर्ष होता है जबकि कृषि से औसत उत्पादन 1.25 टन प्रति वर्ष ही है। वृक्ष खेती में किसी प्रकार के उर्वरक, सिंचाई, कीटनाशक की भी आवश्यकता नहीं होती। 7
इस तरह से वृक्ष खेती के द्वारा खाद्यान्न समस्या और जल समस्या का और भी कारगर समाधान तो होता ही है, यह विधि अहिंसा से अधिक निकटता भी लाती है। (2) ऋषि कृषि
जापानी कृषि शास्त्री मासानोबू पशुकुओका ने इस कृषि प्रणाली को जन्म दिया है। इसमें रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों इत्यादि का बिल्कुल उपयोग नहीं किया जाता यहीं तक कि भूमि में हल भी नहीं चलाया जाता है। बीज यूँ ही बिखेर दिये जाते हैं। खरपतवारों को भी नष्ट नहीं किया जाता है इस प्राकृतिक खेती द्वारा फ्युकुओका ने एक एकड़ भूमि से 5-6 टन धान उपजाकर पूरी दुनिया को चकित कर दिया है।
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अहिंसक खेती के प्रवर्तन पर इस जापानी महामना को मैगासे से पुरस्कार भी प्राप्त हो चुका है। प्रथम जैन तीर्थंकर आदिनाथ द्वारा प्रतिपादित "कृषि" की ही इस खोज (रिसर्च) को बढ़ावा देना क्या हम अहिंसक अनुयायियों का कर्त्तव्य नहीं बनता है? और महावीर, अहिंसा अथवा आदिनाथ की पावन स्मृति में स्थापित कोई पुरस्कार, इस ऋषि तुल्य जापानी को नहीं दिया जाना चाहिये ?
(3) समुद्री खेती समुद्र की खाद्य श्रृंखला को देखने पर पता चलता है कि वहाँ पादप प्लवकों द्वारा संचित 31080 के.जे. ऊर्जा बड़ी मछली तक आते-आते मात्र 126 के. जे. बचती है। ऐसे में यह विचार स्वाभाविक रूप से उठता है कि क्यों ना भोजन के रूप में पादप प्लवकों का सीधे प्रयोग करके विशाल ऊर्जा क्षय को तो रोका ही जावे, हमारी खाद्य समस्या को भी सरलता से हल कर लिया जावे।
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समुद्री शैवालों का विश्व में वार्षिक जल संवर्धन उत्पादन लगभग 6.5 x 1,00,00000 टन है। जापान तथा प्रायद्वीपों सहित दूरस्थ पूर्वी देशों में इसके अधिकांश भाग का सब्जी के रूप में उपयोग किया जाता है। समुद्री घासों में प्रोटीन काफी मात्रा में पायी जाती है। इसमें पाये जानेवाले एमीनो अम्ल की तुलना सोयाबीन या अण्डा से की गई है। 20
मेरे मत से तो मछली पालन के स्थान पर पादप प्लवक
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