Book Title: Jinabhashita 2002 02
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 4
________________ जबलपुर दिनांक 22.01.2002 को प्रात: 4.30 बजे विदुषी आर्यिका रत्न पूज्य विशुद्धमति माता जी के 'उदयपुर राज' में समाधिस्थ होने का समाचार सुन कर सर्वत्र शोक की लहर छा गई। आज रात्रि में श्री वर्णी दिगम्बर जैन गुरुकुल, पिसनहारी मढ़िया, जबलपुर में एक विनयांजलि सभा का आयोजन किया गया, जिसमें अनेक विद्वज्जनों ने भाग लिया। श्री वर्णी दिगम्बर जैन गुरुकुल के अधिष्ठाता ब्र. जिनेश जी ने कहा कि आर्यिका विशुद्धमति माता जी, बहिन सुमित्राबाई जी के रूप में सागर स्थित महिलाश्रम में अध्ययन किया करती थीं। सुप्रसिद्ध महामनीषी स्व. डॉ. श्री पन्नालालजी साहित्याचार्य 'सागर' उनके शिक्षागुरु थे। अध्ययन के उपरान्त सन् 1964 में तीर्थराज पपौराजी में आपने आर्यिका दीक्षा ग्रहण की। आपकी साधना अद्वितीय थी, जिसके बल पर आपने अपने लक्ष्य को साकार किया एवं उत्तम समाधिमरण को प्राप्त किया। गुरुकुल के संचालक ब्र. प्रदीप शास्त्री 'पीयूष' ने कहा कि जैन धर्म शरीर के आश्रित नहीं है, भावों की प्रधानता है। माता जी ने श्रमण संस्कृति में नया इतिहास रचा है। आज से 12 वर्ष पूर्व आपने सल्लेखना व्रत लिया और क्रमशः समाधि के शिखर पर बढ़ते हुए उस पर विजय प्राप्त की । ब्र. त्रिलोक जी ने कहा कि माताजी ने बाल्याकाल से ही विद्याभ्यास एवं वैराग्य का मार्ग अपनाया। आपके जीवन में दृढ़ता बहुत थी, जिसके रहते वे अपनी जीवन साधना में सफल हुईं। ब्र. पवन जी 'सिद्धांतरत्न' ने कहा कि पूज्य माताजी अद्भुत बुद्धि की धनी थीं, आपका ज्ञान सूक्ष्म था, जिसके फलस्वरूप आपने त्रिलोकसार, त्रिलोयपण्णति एवं मरणकंडिका जैसे आगम ग्रंथों की टीकाएँ की वत्युविज्जा, श्रमणचर्या समाधि दीपक, 'ऐसे ये चारित्र 'चक्रवर्ती' आदि आपकी अन्य महत्त्वपूर्ण कृतियाँ हैं, जो समाज का सदैव मार्गदर्शन करती रहेंगी। श्री राकेश जैन 'एम. टेक' ने कहा कि माता जी ने शारीरिक सुविधाओं को त्याग कर मन पर विजय प्राप्त की। समाधि के मार्ग पर चलने का संकल्प 12 वर्ष पूर्व लेकर अद्भुत मिशाल कायम की। उस का सम्पूर्ण निष्ठापूर्वक पालन करते हुए जैनागम के अनुसार सम्यक् समाधि को प्राप्त किया। ब्र. अनिल जी ने कहा कि जीवन और मृत्यु अटल सत्य हैं। मृत्यु को जीतने का जैन धर्म में समाधि के रूप में विधान किया गया है। पूज्य माता जी ने संकल्पपूर्वक समाधि का लाभ प्राप्त किया। पूज्य माता जी के समाधिमरण से जैन समाज में एक करुणा एवं वात्सल्य की मूर्ति तथा विलक्षण बुद्धिकौशल वाली आर्यिका रत्न का अभाव हो गया है, जिसकी पूर्ति अब असंभव - सी लगती है। विनयांजलि सभा में अन्य वक्ताओं के रूप में ब्र. कमलजी, ब्र. नरेशजी, ब्र. महेशजी ब्र. विवेकजी, प्राचार्य श्री सी. एल. जैन, पं. लखमीचंद्र जैन एवं समस्त गुरुकुल परिवार उपस्थित था। सभा का संचालन मंत्री श्री कमल कुमार जी 'दानी' ने किया। ब्र. त्रिलोक जैन मदनगंज किशनगढ़ आज दिनांक 22.1.2002 सायं 7.30 बजे श्री चन्द्रप्रभु दिगम्बर जैन मंदिर जी में परम पूज्य मुनि श्री चारित्र सागर जी महाराज एवं परम पूजनीया श्री विशुद्धमति माताजी के दिवंगत हो जाने पर 2 फरवरी 2002 जिनभाषित Jain Education International एक विनयांजलि सभा का आयोजन श्री दिगम्बर जैन समाज द्वारा किया गया, जिसमें दोनों साधु महाराज एवं आर्यिका माता के प्रति उनके उत्तम एवं संयमित जीवन को दर्शाते हुए उनकी जीवन-मरण की शृंखला शीघ्र समाप्त होकर शाश्वत पद प्राप्त होने की मंगल कामना करते हुए भावभीनी विनयांजलि अर्पित की गई। उक्त सभा में श्री बोदूलाल जी गंगवाल की अध्यक्षता में क्रमशः श्री शांति कुमार गोधा, दीपचन्द चौधरी, पारसमल बाकलीवाल, निर्मल कुमार पाटोदी, डॉ. ओमप्रकाश जैन, श्री मूलचन्द झाँझरी, भागचन्द चौधरी एवं श्रीमती आशा जैन ने अपनी एवं समाज की तरफ से भाव-भीनी विनयांजलि अर्पित की और एक शोक प्रस्ताव पास कर णमोकार मंत्र के साथ सभा का विसर्जन किया गया। निर्मल कुमार पाटोदी कटला, मदनगंज-किशनगढ़, पिन- 305801 (राज.) छपारा में पंचकल्याणक गजरथ 21 जनवरी 2002 का दिन सिवनी जिले की छपारा नगरी ही नहीं, वरन् सम्पूर्ण महाकौशल, विंध्य व बुंदेलखंड के लिये परम सौभाग्य का दिन रहा है। गत एक सप्ताह से चल रहे पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव की गजरथ की फेरी लगभग एक से डेढ़ लाख श्रद्धालुओं की उपस्थिति में निर्विघ्न संपन्न हुई। परम पूज्य आचार्य गुरुवर विद्यासागर जी महाराज एवं दृढ़मति माता जी के पावन आशीर्वाद से बिना किसी अप्रिय घटना के कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। गजरथ महोत्सव समापन पर आर्यिका दृढ़मति माता ने आचार्य विद्यासागर को महावीर की उपमा से विभूषित करते हुए कहा कि जैसे चंदनबाला के घर महावीर के आने से अतिशय हुए थे, ऐसे ही अतिशय आचार्य श्री के छपारा पधारने पर हुए गुरुवर आचार्य विद्यासागर महाराज ने उपस्थित धर्मप्रेमी बंधुओं को संबोधित करते हुए कहा कि जीवन में पल-पल कर्मों के द्वारा परीक्षा होती रहती है। हमें हर पल आत्म-परीक्षण हेतु तैयार रहना चाहिये। जैन समाज की अपेक्षा इस क्षेत्र की जनता का भी महान पुण्य का उदय है कि पंचकल्याणक निर्विघ्न संपन्न हो गया। अन्य जगह की अपेक्षा महाकौशल व बुंदेलखंड की देन है कि यहाँ के गजरथ हमेशा सफल होते हैं। आचार्य श्री ने कहा कि जैसी भावना हो फल वैसा ही मीठा होता है। पंचकल्याणक में जो धन बच जाता है, उसका लोभ न करके अन्य स्थानों के तीर्थ उद्धार में लगा देना भी अनुकरणीय उदाहरण है। जो अहिंसा धर्म की उपासना करते हैं, देवता उनके आस-पास निवास करते हैं। यह सब अहिंसा का प्रभाव है। छपारा आते ही अचानक मौसम की ठंडक कम हो गई, यह सब आपकी भावना का प्रभाव है। गजरथ महोत्सव के समापन के दो दिन पूर्व से अचानक मौसम ने करवट बदली, आसमान बादलों से घिरे रहे, सारा क्षेत्र चिंता से व्याकुल था कि कहीं पानी कहर न बरपा दे। लेकिन धर्म का प्रभाव है कि सब निर्विघ्न सम्पन्न हो गया। महाराज ने अपने उद्बोधन में पहले ही कह दिया था कि बादल छायेंगे, दल-दल नहीं होगी, बरसने से पहले पूछना होगा। जिला पुलिस प्रशासन एवं जिला प्रशासन की चुस्त-दुरुस्त व्यवस्था से लाखों की संख्या में उपस्थित धर्मप्रेमी श्रावकगण शांतिपूर्वक महोत्सव का आनंद लेते रहे। अमित पड़रिया For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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