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वीतरागदृष्टि से ही वैराग्य का जन्म
छपारा म.प्र., 18 जनवरी 2002, जन्मकल्याणक के दिन दिया गया प्रवचन )
आचार्य श्री विद्यासागर प्रतिदिन की भाँति अपनी इंद्र, सभा में सिंहासनारूढ़ है तभी । मनाते हैं। अचानक उसका सिंहासन कंपायमान होता है। वह सोचता है ऐसा | कल एक व्यक्ति आया था। उसने कहा महाराज आज गर्भस्थ कौन सा व्यक्ति आ गया है, जो हमारे सिंहासन को हिलाने की क्षमता शिशु का परीक्षण होता है यह नहीं होना चाहिए. इसे रोकना चाहिए, रखता है, सारे स्वर्ग में हमारी ही आज्ञा और ऐश्वर्य के बिना कुछ इसके बारे आज कार्य नहीं हो रहा है। हमें उस व्यक्ति की पहचान हो नहीं सकता है। ऐसा क्यों हो रहा है? ऐसा वह सौधर्म सभा में करना चाहिए लेकिन शिशु के पहचान की बात का हेतु क्या है? इसमें बैठा सौधर्म इंद्र है। उसका सिंहासन जब हिलता है तो वह सोचता एक कारण है, यदि लड़का होता है, तो उसकी सोच अलग होती है और अपने अविधज्ञान से जानता है कि तीन लोक के नाथ होने | है, यदि लड़की होती है तो उसको नहीं चाहते हैं, उसका गर्भपात वाले तीर्थंकर बालक का जन्म अयोध्या नगरी में होता है तो उसका आज किया जा रहा है। हम जिनेन्द्र भगवान के उपासक हैं और सोचना इसी तरह आसन कम्पायमान होता है। वह सौधर्म इंद्र एक साथ 170 चाहिए, एक जीव की हत्या क्या उचित है? आज सरकार की ओर तीर्थंकरों का भी जन्म हो जाये तो वह सबका महोत्सव मनाता है। से प्रतिबंध होते हुए भी आज बहुत हो रहा है और विज्ञापनों के साथ यहाँ पर हमें एक पंच कल्याणक करने में पसीना छूटने लगता है।। किया जा रहा है। यह सब क्या है? यह सब व्यक्ति के स्वार्थ का इंद्र को किसी बैरी की चिन्ता नहीं होती है, यदि किसी बैरी की चिन्ता | अतिरेक है। आज व्यक्ति कर्त्तव्य दृष्टि से ऊपर उठ रहा है। यदि इसी होती है तो एक कर्म बैरी की चिन्ता होती है। संसार में संसारी प्राणी | प्रकार कार्य होता रहा तो व्यक्ति की संवेदनाएँ ही समाप्त हो जायेंगी। के लिये कर्म बैरी की चिन्ता होनी चाहिए। उससे कैसे बचा जाये, | हमें इस संदर्भ में पक्षपात से ऊपर उठ कर सोचने की आवश्यकता यह चिन्ता होनी चाहिए। आज होनहार भगवान का जन्म हुआ है। | है। अपनी मनुष्यता का परिचय इस कार्य को रोकने से देना है। हम क्योंकि भगवान का जन्म नहीं होता भगवान तो बना जाता है। जन्म कल्याणक तो बहुत मनाते हैं, लेकिन यह नियम नहीं लेते जिसकी
वह इंद्र आज्ञा देकर जन्म महोत्सव कराता है और स्वयं जाकर | आवश्यकता है। हम गर्भपात जैसे कार्य को न करायेंगे, न ही इसका भगवान का पांडुकशिला पर जन्म अभिषेक महोत्सव करता है। आज | समर्थन करेंगे, यह नियम लें। वह महोत्सव स्थापना निक्षेप की अपेक्षा से मनाया जा रहा है। गर्भ यह जीवन कैसा है? तो एक प्रभात की लाली होती है, और से लेकर मोक्ष तक का महोत्सव वह इंद्र मनाता है। वह सभी कार्य संध्या की भी लाली होती है। यह जीवन भी प्रभात एवं संध्या की सानंद सम्पन्न करता है। ऐसा तेज पुण्य इस संसार में और किसी लाली के समान होता है। एक के आने से वैभव बढ़ता जाता है, और का नहीं होता, जितना तीर्थंकर का होता है। कोई इतने तेज पुण्य को एक आने से वैभव मिटता जाता है। हमें जिनभारती को समझना है बाँध भी नहीं सकता। इसमें कारण क्या है? इतना तेज पुण्य कैसे उसे पढ़ना चाहिए। यदि एक व्यक्ति का पतन होता है, तो बहुत से बँधता है? तो सोलह कारण भावनाएँ इसमें कारण है। जिसके द्वारा व्यक्तियों के लिये पतन का कारण बन जाता है, यदि एक का उत्थान इतने तेज पुण्य का बंध होता है। जन्म के पूर्व रत्नों की वर्षा, जन्म होता है, तो वह असंख्यात जीवों के उत्थान के लिये कारण बन सकता के समय भी रत्नों की वर्षा, थोड़ी नहीं करोड़ों रत्नों की वर्षा एक | है। जो व्यक्ति परमार्थ को प्राप्त कर लेता है, अर्थ तो उसके चरणों बार में होती है। यह एक आश्चर्यजनक कार्य है। जिसको जितना मिलता | में आकर बैठ जाता है। वह कहीं पर भी रहे, अर्थ उसके पीछे-पीछे है वह सब अपना ही किया हुआ मिलता है। हमें अपने किये हुए के चलता है। लेकिन जो व्यक्ति परमार्थ को छोड़कर अर्थ के पीछे दौड़ता बारे में सोचें। दुनिया के द्वारा हमें फल नहीं मिलता है। हमें अपने है तो भवनों में बैठा हुआ है, वहाँ पर भी अशान्ति का अनुभव करता किये हुए का ही फल मिलता है। कर्म का बीज हमें जो मिला है, उसी है। यदि कोई पुण्य शाली व्यक्ति का जन्म जंगल में हुआ है, और के अनुसार ही तो फल हमें मिलता है। हमारा बीज जैसा होता है वैसा | उसकी माँ का मरण हो गया, वहाँ पर उसका कोई नहीं है, तो वहाँ ही फल हमें मिलता है। इसीलिए हमें कर्म के बीज को समझना चाहिए। | पर भी उसकी रक्षा करने वाले आ जाते हैं। उसके पुण्योदय से मारक दुनिया के फल की अपेक्षा न करके दुनिया में रहते हुए अपने कर्म | तत्त्व भी साधक तत्त्व बनकर उसकी रक्षा करते हैं। इसलिये हमें यह फल की ओर दृष्टि होनी चाहिए। अभिषेक के लिये कोई सागर का | नहीं सोचना है कि उसका पालन पोषण कैसे होगा? वह तो अपना जल नहीं, क्षीर समुद्र से जल लाया गया था। कहते हैं वह क्षीरसागर | पुण्य लेकर आता है। उसके अनुसार वह सब कुछ पाता है। हम उस का जल जो ढाई द्वीप से बाहर है, जिसमें जलचर एवं त्रसजीव ही | जीव के मारक तत्त्व बनकर उसके जीवन का संहार करने लगें यह नहीं होते उस जल से तीर्थंकर बालक का जन्माभिषेक किया गया | ठीक नहीं है। हमारे लिये राम, हनुमान, प्रद्युम्न के जीवन को देखना था। उस बालक में ऐसी कौन सी शक्ति है? वह दिखे, न दिखे, चाहिए, पढ़ना चाहिए, उनका जीवन कैसा था? उनका पुण्य था, लेकिन उसकी महिमा तो चारों तरफ दिखाई देती है। सभी देव उसकी | इसलिये जंगल में भी उनका संरक्षण हुआ। एक हम है, जीवों के संरक्षण सेवा करना चाहते हैं, उसकी भारती के अनुसार ही उसका महोत्सव | की बात तो नहीं करते, लेकिन आज संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों का
12 फरवरी 2002 जिनभाषित
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