Book Title: Jinabhashita 2001 11
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 3
________________ आपके पत्र, धन्यवाद : सुझाव शिरोधार्य Received "Jina Bhashita" Sept issue. I just तरह के लेख के लिये। कर्नाटक की जैन संस्कृति पर प्रो. राजाराम had a bird's view. The format and get up is जैन साहब का लेख तो उच्चकोटि का शोधपत्र है। pleasing, the editorial is thought provoking. It श्रीमती विद्यावती जैन का लेख भी उच्च कोटि का है। श्री analyses the mentality of pseudo religious per शिखरचन्द्र जैन ने अपने व्यंग्य से वर्तमान हालात पर सीधी चोट sons of present day. Well written. The replies of पहुँचायी है। कहाँ तक लिखू, सबकुछ तो अच्छा ही है। आप इस Pt. Ratan lal Bainada to searching questions are पत्रिका की गरिमा को बनाये रखेंगे, यह विश्वास है। यह पत्रिका बत्तीस excellant expositions of the spirit of agamas. पृष्ठों की होकर भी 320 पृष्ठों की ऐसी-वैसी पत्रिका से बहुत ज्यादा Generally the issue is a collection of good write श्रेष्ठ और उपयोगी है। ups. विनोद कुमार तिवारी Br. Adinath रीडर व अध्यक्ष, इतिहास विभाग Shri Visakha Aacharya यू.आर. कालेज, रोसड़ा, Tapo-Nilayam, Kund-Kund Nagar, (समस्तीपुर), बिहार Tamilnadu-604505 सितम्बर 2001 'जिनभाषित' का अंक देखने का सौभाग्य सितम्बर 2001 के सम्पादकीय में आपने एक अब तक के प्राप्त हुआ। इसके पूर्व जुलाई 2001 अंक बड़ागांव, शास्त्री परिषद् अछूते विषय को शक्तिशाली व विश्लेषणात्मक शैली में उठाया है। अधिवेशन में देखने को मिला था। आज जैन समाज की 300-400 विधान-पूजा, भजन-आरती और पंचकल्याणक आदि उत्सवों में होने के लगभग पत्र-पत्रिकाएँ निकल रही हैं, उनमें से कतिपय अपनी वाली फिल्मी-अनैतिक घुसपैठ मनोरंजन के नाम पर नहीं होने देना विशिष्टता के लिये जानी-पहचानी जाती हैं, उसी श्रेणी में जिनभाषित चाहिए। इस विकृति पर आचार्यों, गणिनियों, प्रतिष्ठाचार्यों और शीर्ष भी आती है। जैन नेतृत्व को तत्काल रोक लगानी चाहिए। पूजा के पुराने छंदों की आपका सम्पादकीय समयानुकूल वेदनायुक्त है। वैराग्य जगाने लय यदि मनोरंजक नहीं है, तो छंद नहीं, लय बदली जा सकती है के अवसरों के फिल्मी-फूहड़ मनोरंजनीकरण के कारण ही आज हमारा शास्त्रीय या उपशास्त्रीय लय पुराने छंद को मनोरंजक/सामयिक बना युवा वर्ग भटक रहा है। आज विधान हो या पंचकल्याणक, जिसमें सकती है। फिल्मी फूहड़ गीतों की ध्वनि पर कोई कार्यक्रम न हुआ, तो जानिये संगीतकार रवीन्द्र जैन से प्रेरणा लेकर मौलिक धुनों व सीधे उसे लोग 'असफल' घोषित कर देते हैं। उसी फिल्मी तर्ज पर गाये सच्चे बोलों पर गीत-संगीत की रचना कर आडियो कैसेट तैयार किये गये गीत पर धार्मिक आयोजनों में जिस प्रकार नृत्य आदि देखने को जा सकते हैं। 'मास' के लिये 'क्लास' की बलि न चढ़ाई जाये, बल्कि | मिलते हैं, वे शालीनता की सीमा-रेखा को भी कभी-कभी पार कर 'क्लास' में ही संगीत परम्परा-सम्मत उपयुक्त परिवर्तन कर 'मास' जाते हैं, खैर.....। कब चेतेगा हमारा समाज? श्रमण ज्ञान भारती, के लिये भी तैयार किया जाये व यँ करके 'मास' (आमजन) के 'टेस्ट' | मथुरा की स्थापना जैन विद्याध्ययन के लिये स्तुत्य कदम है। को भी 'अपग्रेड' किया जाये। अपनी गीत-संगीत-भाषा, संस्कृति, 'भवाभिनन्दी मुनि और मुनि निन्दा' पठनीय चिंतनीय है। मैं पूर्णतः कला आदि को 'अन्य' से प्रेरणा लेकर समृद्ध करना बुरा नहीं, बशर्ते | समर्थक हूँ इस लेख का। आदरणीय बैनाड़ाजी का शंका समाधान स्तंभ शास्त्रीयता का ध्यान रखा जाए, परम्परा का निर्वाह किया जाये। बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। इससे अच्छा लाभ होगा। देवस्तुति का ब्र. संजय सम्यक् महेश जी, सतना (वर्तमान में सांगानेर) का हिन्दी अनुवाद सभी के महेश जा, सतना (वतमान एम-213, शिवनगर, दमोह नाका, जबलपुर | लिये पठनीय है। आपके सम्पादकत्व में पत्रिका ने शीघ्र ही सफलता अर्जित की 'जिनभाषित' का सितम्बर अंक हस्तगत हुआ। मुखपृष्ठ पर | है। कवर पृष्ठ चुम्बकीय आकर्षण युक्त है। कागज का प्रयोग, छपाई की आचार्य श्री वीरसागर जी का चित्र देखकर मन श्रद्धा और आदर | सन्दर है. जो आज कम देखने को मिलती है। से भर उठा। 'सम्पादकीय' में तो आपने बस जो सही स्थिति है आज सुनील जैन 'संचय' शास्त्री धर्म स्थल की, उसी का सही चित्रण खींचा है। यह प्रेरक और अपनाये ___ बी-3/80, भदैनी, जाने योग्य है, पर लोग इससे कुछ सीखें, तब न। दुग्धसेवन पर वाराणसी (उ.प्र.) -221001 जो आज अनाप-शनाप लिखा जा रहा है, स्वीटी और ऋतु जैन ने 'जिनभाषित' के सभी अंक प्राप्त हुए हैं, एतदर्थ धन्यवाद। इसका सही और वैज्ञानिक जवाब दिया है, बधाई हो दोनों को, इस -नवम्बर 2001 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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